भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
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(पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव
शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Sunday, October 26, 2008
विदेह ०१ अक्टूबर २००८ वर्ष १ मास १० अंक १९- part-I
'विदेह' ०१ अक्टूबर २००८ ( वर्ष १ मास १० अंक १९ ) एहि अंकमे अछि:-
१.संपादकीय २.संदेश
३.मैथिली रिपोर्ताज- (लंदनसँ सुभाष साह)
४. गद्य
४.१.कथा सुभाषचन्द्र यादव(बनैत बिगड़ैत) कुमार मनोज कश्यप(भावना)
४.२.निबन्ध शक्ति शेखर(जोगार) ओमप्रकाश मीडिया कतअ ल जा रहल अछि?
४.३.जीवन झाक नाटकक सामाजिक विवर्तन-डॉ प्रेमशंकर सिंह
४.४.शोध लेख-स्व. राजकमल चौधरी पर (देवशंकर नवीन द्वारा)
४.५.यायावरी- कैलाश कुमार मिश्र (लोअर दिवांग घाटी: इदु-मिसमी जनजातिक अनुपम संसार)
४.६.दैनिकी-ज्योति /
उपन्यास-उनटा आँचर- गजेन्द्र ठाकुर
५.पद्य
५.१.श्यामल सुमनक-आत्म-दर्शन
५.२.श्री गंगेश गुंजनक- राधा (चारिम खेप) ज्योतिक- असल राज
५.३.महाकाव्य- बुद्ध चरित
५.४.डॉ पंकज पराशरक कविता
५.५.विनीत उत्पलक ३ गोट कविता
५.६. महेश मिश्र "विभूतिक" कविता"
६. मिथिला कला-संगीत(आगाँ)
७.पाबनि-संस्कार-तीर्थ -मिथिलांचलक गाणपत्य क्षेत्र- प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन/
नूतन झा-कोजगरा
८. महिला-स्तंभ- - जितमोहन झा
९. बालानां कृते-१.भाट-भाटिन २. देवीजी
१०. भाषापाक रचना लेखन (आगाँ)
11. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)-
The Comet-English translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani
12. VIDEHA MAITHILI SAMSKRIT EDUCATION(contd.)
विदेह (दिनांक १ अक्टूबर २००८)
१.संपादकीय (वर्ष: १ मास:१० अंक:१९)
मान्यवर,
विदेहक नव अंक (अंक १९, दिनांक १ अक्टूबर २००८) ई पब्लिश भऽ गेल अछि। एहि हेतु लॉग ऑन करू http://www.videha.co.in |
एहि अंकमे:
श्री गगेयश गुंजन जीक गद्य-पद्य मिश्रित "राधा" जे कि मैथिली साहित्यक एकटा नव कीर्तिमान सिद्ध होएत, केर दोसर खेप पढ़ू संगमे हुनकर विचार-टिप्पणी सेहो। सुभाष चन्द्र यादव जीक कथा, कुमार मनोज कश्यपक लघु-कथा, महेश मिश्र "विभूति"-श्री पंकज पराशर- विनीत उत्पल- श्यामल जीक पद्य आऽ प्रेमशंकर सिंह, मौनजी, जितमोहन, ओमप्रकाश, शक्ति-शेखर, नूतन झा जीक रचना सेहो ई-प्रकाशित कएल गेल अछि।
श्री राजकमल चौधरीक रचनाक विवेचन कए रहल छथि श्री देवशंकर नवीन जी।
ज्योतिजी पद्य, बालानांकृते केर देवीजी शृंखला, बालानांकृते लेल चित्रकला आऽ सहस्रबाढ़निक अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत कएने छथि।
शेष स्थायी स्तंभ यथावत अछि।
अपनेक रचना आऽ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.co.in ggajendra@yahoo.co.in
२.संदेश
१.श्री प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
२.श्री डॉ. गंगेश गुंजन- "विदेह" ई जर्नल देखल। सूचना प्रौद्योगिकी केर उपयोग मैथिलीक हेतु कएल ई स्तुत्य प्रयास अछि। देवनागरीमे टाइप करबामे एहि ६५ वर्षक उमरिमे कष्ट होइत अछि, देवनागरी टाइप करबामे मदति देनाइ सम्पादक, "विदेह" केर सेहो दायित्व।
३.श्री रामाश्रय झा "रामरंग"- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
४.श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बाधाई आऽ शुभकामना स्वीकार करू।
५.श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
६.श्री डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
७.श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
८.श्री विजय ठाकुर, मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
९. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका ’विदेह’ क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आऽ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१०.श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका ’विदेह’ केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
११.डॉ. श्री भीमनाथ झा- ’विदेह’ इन्टरनेट पर अछि तेँ ’विदेह’ नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।
१२.श्री रामभरोस कापड़ि भ्रमर, जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत से विश्वास करी।
१३. श्री राजनन्दन लालदास- ’विदेह’ ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।
१४. डॉ. श्री प्रेमशंकर सिंह- "विदेह"क निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी।
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आऽ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।
विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
महत्त्वपूर्ण सूचना (१):महत्त्वपूर्ण सूचना: श्रीमान् नचिकेताजीक नाटक "नो एंट्री: मा प्रविश" केर 'विदेह' मे ई-प्रकाशित रूप देखि कए एकर प्रिंट रूपमे प्रकाशनक लेल 'विदेह' केर समक्ष "श्रुति प्रकाशन" केर प्रस्ताव आयल छल। श्री नचिकेता जी एकर प्रिंट रूप करबाक स्वीकृति दए देलन्हि। प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (ISBN NO.978-81-907729-0-7 मूल्य रु.१२५/- यू.एस. डॉलर ४०) आऽ पेपरबैक (ISBN No.978-81-907729-1-4 मूल्य रु. ७५/- यूएस.डॉलर २५/-) मे श्रुति प्रकाशन, १/७, द्वितीय तल, पटेल नगर (प.) नई दिल्ली-११०००८ द्वारा छापल गेल अछि।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(२) 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश आऽ ३.मिथिलाक्षरसँ देवनागरी पाण्डुलिपि लिप्यान्तरण-पञ्जी-प्रबन्ध डाटाबेश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(३) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक 'सहस्रबाढ़नि'(उपन्यास), 'गल्प-गुच्छ'(कथा संग्रह) , 'भालसरि' (पद्य संग्रह), 'बालानां कृते', 'एकाङ्की संग्रह', 'महाभारत' 'बुद्ध चरित' (महाकाव्य)आऽ 'यात्रा वृत्तांत' विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे प्रकाशित होएत। प्रकाशकक, प्रकाशन तिथिक, पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत।
महत्त्वपूर्ण सूचना (४): "विदेह" केर २५म अंक १ जनवरी २००९, ई-प्रकाशित तँ होएबे करत, संगमे एकर प्रिंट संस्करण सेहो निकलत जाहिमे पुरान २४ अंकक चुनल रचना सम्मिलित कएल जाएत।
महत्वपूर्ण सूचना (५): १५-१६ सितम्बर २००८ केँ इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, मान सिंह रोड नई दिल्लीमे होअयबला बिहार महोत्सवक आयोजन बाढ़िक कारण अनिश्चितकाल लेल स्थगित कए देल गेल अछि।
मैलोरंग अपन सांस्कृतिक कार्यक्रमकेँ बाढ़िकेँ देखैत अगिला सूचना धरि स्थगित कए देलक अछि।
रिपोर्ताज-
सुभाष साह, गाम-अरनाहा, जिला सरलाही, नेपाल। वर्तमानमे लंदन मेट्रोपोलिटन विश्वविद्यालयसँ बी.बी.ए.कए रहल छथि। सामाजिक कार्य, मैथिलक जुटान, सांस्क्र्तिक कार्यक्रम संचालनमे विशेष रुचि। यू.के. केर मधेसीक संगठनANMUK केर सक्रिय सदस्य आ सम्प्रति सचिव। नेतृत्व क्षमताक गुण संगहि प्रखर वक्ता।
लन्दनमे नेपाल मेला २००८
(लन्दनसँ श्री सुभाष शाहक रिपोर्ट)
लन्दन शहरमे पिकाडिली सर्कस नामक स्थान पर नेपाल एमबैशीक सहायता सऽ २१ आऽ २२ सितम्बर २००८ कऽ अहि मेलाक आयोजन कैल गेल छल जाहिमे नेपाल के पर्यटन मंत्री आदरणीया सुश्री हिशिला यामी नेपालक राजदूत श्री मुरारी राज शर्मा खैतान ग्रुपके चेयरमैन एवम् मैनेजिंग प्रेसिडेंट श्री राजेन्द्र खैतान आदि सहित अन्य दिग्गज सब उपस्थित छलैथ।अतऽ इहो घोषणा कैल गेल जे साल २०११ के पर्यटन वर्षक रूपमे मनाओल जायत। सुश्री यामी सऽ हम सब अहू बात पर विचारविमर्श केलहुं जे 'लुम्बिनी' के पर्यटक सबलेल बेसी आकर्षक बनाबऽ लेल की कैल जा सकैत अछि।यामीजी अहि बात लेल प्रतिबद्ध भेली जे ओ सीता मैया एवम् बुद्धदेवक इतिहास सऽ सम्बन्धित स्थानके विकासमे यथाशक्ति योगदान देती।
श्री नवीन कुमार एवम् सुश्री सुनीता शाह द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक परिधानक फैशन शो अत्यन्त सफल रहल।हमरा सब अन्मुक (ANMUK- Association of Nepali Madheshis in UK) के सदस्य सबलेल अहि आयोजनक सफलता बहुत पैघ
प्रोत्साहन अछि।
(आभार - अन्मुक के वेबसाएट जाहि सऽ फोटो प्राप्त भेल )
४. गद्य
४.१.कथा सुभाषचन्द्र यादव(बनैत बिगड़ैत) कुमार मनोज कश्यप(भावना)
४.२.निबन्ध शक्ति शेखर(जोगार) ओमप्रकाश मीडिया कतअ ल जा रहल अछि?
४.३.जीवन झाक नाटकक सामाजिक विवर्तन-डॉ प्रेमशंकर सिंह
४.४.शोध लेख-स्व. राजकमल चौधरी पर (देवशंकर नवीन द्वारा)
४.५.यायावरी- कैलाश कुमार मिश्र (लोअर दिवांग घाटी: इदु-मिसमी जनजातिक अनुपम संसार)
४.६.दैनिकी-ज्योति /
उपन्यास-
उनटा आँचर- गजेन्द्र ठाकुर
१. सुभाषचन्द्र यादव २. कुमार मनोज कश्यप
चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द
सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल- मधुबनी। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।
बनैत बिगड़ैत
“हाह। हाह”।
टोकारा आ थपड़ी सँ नै उड़ै छै तऽ माला कार कौवा केँ सरापय लागै छै – “बज्जर खसौ, भागबो ने करै छै”।
कौवा कखनियें सँ ने काँव-काँव के टाहि लगेने छै। कौवाक टाहि सँ मालाक कलेजा धक सिन उठै छै। संतान सब परदेस रहै छै। नै जानि ककरा की भेलै! ने चिट्ठी-पतरी दै छै, ने कहियो खोज-पुछारि करै छै। कते दिन भऽ गेलै। कुशल समाचार लय जी औनाइत रहै छै। लेकिन ओकरा सब लेखे धन सन। माय-बाप मरलै की जीलै तै सँ कोनो मतलब नै।
“हे भगवान, तूहीं रच्छा करिहक। हाह। हाह”।– माला कौवा संगे मनक शंका आ बलाय भगाबय चाहै छै।
“धू, छोड़ू ने। कथी मे लागल छी। ओ अपन बेगरतेँ कर्रैत छै। अहाँक की लइए’- सत्तो बुझबै छै।
लेकिन मालाक मन नै मानै छै। अनिष्टक आशंका सँ डरायल ओ और जोर-जोर सँ होहकारा दै छै आ थपड़ी पाड़ै छै।
माला सब बेर एहिना करै छै। सत्तो लाख बुझेलक, बात भीतर जाइते नै छै। कतेक मामला मे तऽ सत्तो टोकितो नै छै। कोय परदेस जाय लागल तऽ माला लोटा मे पानि भरि देहरी पर राखि देलक। जाइ काल कोय छीक देलक तऽ गेनिहार केँ कनी काल रोकने रहल। अइ सब सँ माला केँ संतोख होइ छै, तैं सत्तो नै टोकै छै। ओकरा होइ छै टोकला सँ की फैदा? ई सब तऽ मालाक खून मे मिल गेल छै। संस्कार बनि गेल छै।
सत्तो केँ छगुन्ता होइ छै। यैह माला कहियो अपन बेटा-पुतौह आ पोती सँ तंग भऽ कऽ चाहैत रहै जे ओ सब कखैन ने चैल जाय। रटना लागल रहै जे मोटरी नीक, बच्चा नै नीक। सैह माला अखैन संतान खातिर कते चिंतित छै।
सत्तो सोचै अय अइ मे मालाक गलती नै छै। माला केँ सख लागले रैह गेलै जे नेहाय कऽ आयल छी तऽ पुतौह परैस कऽ खाइ ले देत आकि कहियो केशे झाड़ि देत या गोड़े हाथ दाबि देत। पोती केँ टांगैत-टांगैत तऽ छातीक हाड़ दुखाइत रहै। अपन कोखिक जनमल बेटो कहियो ई नै पुछलकै- माय केना छै?
कौवा उड़बै ले माला कखनो हाथ चमकाबैत अछि, कखनो मुँह चमकाबैत अछि। मगर ओकर धमकी-चमकी के कौवा पर कोनो असर नै भेलै। ओ ओहिना काँव-काँव करिते छै।
कौवाक टाहि सँ सत्तोक जी सेहो धक रहि जाइ छै। मन मे तरह-तरह के शंका आ डर पैस जाइ छै। लेकिन ओ कहुना अपना केँ बुझा लैत अछि। सत्तो संगे ई सब बेर होइ छै। कोनो अपसुगुन भेला पर आशंकित भऽ जाइत अछि। आशंका केँ बुधि आ तर्क सँ ठेल कऽ बाहर करैक कोशिश करैत अछि। कखनो संस्कारक फान मे लटपटाइत अछि। कखनो सम्हरैत अछि। फेर फँसैत अछि। फेर छुटैत अछि। ई सब बड़ी काल चलैत रहै छै।
कार कौवा तेना एकपरतार टाहि लगेने जा रहल छै जे कान में झड़ पड़य लागलै।
“देखियौ, ई कौवा तऽ केना-केना ने करै छै। नीक नै लागैए”।– माला व्याकुल भऽ जाइ छै।
“ई अहाँक मनक भरम छी”।– सत्तो कहै छै आ एकटा रोड़ी जुमा कऽ कौवा दिस फेकै छै।
कौवा उड़ि गेलै। उड़ल जाइत कौवा केँ सुना कऽ माला कहै छै- “हम ककरो कुइछ नै बिगाड़लिऐ अय। जा, चैल जा”।
कौवा आगू वला छत पर बैठ रहै छै आ फेर कर्रय लागै छै।
सत्तो केँ मोन पड़ै छै एक दिन बड़ी राति केँ माला ओकरा जगेलकै- “सुनै छिऐ? कुत्ता बड़ी काल सँ कानै छै। हमर जी छन-छन करैत अछि”।
सत्तो अकानलक। ठीके ढेरी कुत्ता कानैत रहै। आशंका सँ ओकरो मन सिहरि गेलै।
लेकिन ओ बाजल- “अरे, भूख सँ कानैत हेतै। देखै नै छिऐ आइ काल्हि कोय एक्को कर दै छै।
“भूख सँ एगो दूगो ने कानितिऐ, आकि सब कानितिऐ”?- सत्तोक तर्क मानै ले माला तैयार नै रहै।
“और सब केँ देखाउँस लागल हेतै”।– सत्तो दोसर तर्क देलकै।
माला केँ सतोक तर्क नै सोहेलै। ओकरा झुझुआयल सन चुप बैठल देख सत्तो फेर बुझेलकै- “देखै नै छिऐ विदाइ बेर मे की होइ छै। जहाँ एगो मौगी कानल कि सभक आँखि मे नोर आबि गेल”।
माला कने काल चुप रहल। फेर मूल बात पकड़ैत बाजल- “पहिने तऽ सब करे कर दैत रहै तबो किए कानैत रहै”?
“कोनो कुत्ते मैर गेल हेतै, तकरे सोग मे कानैत हैत”। - सत्तोक बात सँ माला संतुष्ट तऽ नै भेल, मगर कुत्तो सब कते कनितय। एगो चुप भेल। दूगो चुप भेल। आस्ते-आस्ते कानब घटैत गेलै। फेर गोटेक आध कुत्ताक कानब कखनो कऽ सुनाइ। बाद मे ओहो बन्न भऽ गेलै। माला आ सत्तो सेहो कखनो निन्न पड़ि गेल।
माला केँ कौवाक गुनधुन मे पड़ल देख सत्तो पुछै छै- “अहाँ कौवाक बोली बुझै छिऐ”?
माला कने काल बात केँ ताड़ैत रहल। बातक मरम बूझि खुखुवा उठल- “दुनियांक काबिल अहीं टा तऽ छी। अहाँ सन बुझक्कड़ और कोय छै”!
मालाक कटाह बोल सँ सत्तो केँ चोट लागलै। ओ चुप आ उदास भऽ गेल। ओकरा लागलै जे चीज पसिन नै पड़ै छै, तकरा प्रति लोग निष्ठुर आ अन्यायी भऽ जाइत अछि। कारी रंग आ टाँस आवाजक चलते कौवा केँ अशुभ बना देलक।
सत्तो केँ अपन नौ मासक पोती मोन पड़ै छै- मुनियां। कौवा देख मुनियां चहैक उठै। आह-आह कहि ओकरा बोलाबै। मुनियां कानय लागै तऽ सत्तो कौवे केँ हाक दै- “कोने गेलही रे कौवा ऽ ऽ? मुनियाक कौवा ऽ ऽ ? कोने गेलही ई ई “? ई सुनिते मुनियां चुप भऽ जाइ आ मूड़ी घुमा-घुमा कौवा केँ ताकय लागै।
कौवा बिलाइत जाइ छै। कुइछ दिनक बाद तऽ साफे अलोपित भऽ जेतै। अखैन ई बात ने माला जानै छै, ने मुनियां। कौवा मुनियांक जिनगी मे समा गेल छै। मुनियां केँ बेर-बेर कौवा मोन पड़ैत रहतै, दादा मोन पड़ैत रहतै। ने ओ कौवा केँ बिसैर सकैत अछि, ने दादा केँ। मुनियां कौवा केँ ताकैत रहत, दादा केँ ताकैत रहत। कहियो ने कौवा रहतै, ने दादा रहतै।
२. कुमार मनोज कश्यप
कुमार मनोज कश्यप
जन्म: १९६९ ई़ मे मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। स्कूली शिक्षा गाममे आऽ उच्च शिक्षा मधुबनी मे। बाल्य काले सँ लेखनमे आभरुचि। कैक गोट रचना आकाशवानी सँ प्रसारित आऽ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रिय सचिवालयमे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।
भावना
जेठ महिना मे तऽ सूरज जेना भोरे सँ आगि उगलऽ लगैत छैक। दुपहरिया तक तऽ वातावरण ओहिना जेना लोहा गलाबऽ बला भट्ठी। छुट्टी के दिन रह्ने भोर मे देरिये सँ उठलंहु; साईत तहु द्वारे कनिया भानस करबा मे अलसा रहल छलीह। अंततोगत्वा निर्णय भेल - भोजन बाहरे कैल जाय।
घर सँ बाहर निकललंहु। बाहर एकदम सुनसान - एक्का दुक्का लोक चलैत - सेहो साईत मजबूरीये मे। कियैक निकलत केयो घर सँ एहन समय मे? एहन रौद मे निकलनाई कोनो सजा सँ कम थोड़बे छैक। बड़ मसकत्ति के बाद एक टा रिक्सावला तैयार भेल लऽ जेबाक हेतु। रिक्सावला कि - अधबेसु, कृशकाय, हँपैᆬत़।रेस्टोरेंट पहुंचि भाड़ा पुछलियै। कहलक दस रुपैया। कनिया लड़ि पड़ली ओकरा सँ -''पांच रुपैया के दस रुपैया मंगैत छैंह! हमरा सभ कें बाहरी बुझैत छैं कि? ठक्क नहिंतन! एना जबर्दस्ती सँ बढिया होयतौक जे पौकेट सँ पाई निकालि ले। बजबियौ पुलिस के?'' बेचारा रिक्सावला घबड़ा गेल। पसेना सँ मैल-चिक्कट भेल गमछा सँ अपन मुंह पोछैत, बिना किछु बजने पांचक सिक्का लऽ कऽ चलि गेल बिना किछु बजने़ निरीह।
रेस्टोरेंट मे भोजनोपरांत हमरा दस रुपैया टीप के रुप मे छोड़ैत देखि कनिया बजलिह - '' अपना स्टेटस के तऽ कम-सँ-कम ध्यान राखू। की दसे रुपैया दैत छियई - पाछाँ सँ गरियाओत'' एतबा कहि झट सँ पचासक नोट बिल-फोल्डर मे छोड़ैत हमरा चलबाक ईसारा केलनि। आकस्मात हमरा आंखिक आगाँ रिक्सावलाक चेहरा मूर्तिमान भऽ उठल। तुलना करऽ लगलंहु - रेस्टोरेंटक वेटर आ रिक्सावला मे - एकटा वातनुवूᆬलित कक्ष मे भोजन परसैत आ दोसर रौद मे कोंढ तोरैत। भवनाक अंतर सँ सिहरि उठलंहु हम।
शक्ति शेखर, पिता-श्री शुभनाथ झा, गाम- मोहनपुर, भाया-हरलाखी, जिला-मधुबनी। जोगार
'हम आपको दिखा रहे हैं कि कैसे फ़ला आदमी किसी मामले को दबाने के लिए दुसरे को पैसा दे रहे है। यह हमारे चैनल के स्टिंग आपरेशन का नतिजा है जो सिर्फ़ दिखा रही है।' जी,इ पंक्ती अछि आजुक समय के सब घटना स अपना सब के देखा रहल इलेक्ट्रोनिक चैनल के। अपना के सब स ऊपर पहुंचाबय के लेल ओ सब हथकंडा अपना लैत अछि। विडंबना इहो देखु जे सब चैनल वला अपना के राजा हरिश्चंद्र के सत्य निती पर आधारीत बताबैत अछि। बहुतो चैनल वला सब कोनो काज के तह तक पहुचबाक लेल हमेशा एकटा हथकंडा अपनाबैत अछि जाहि के अहि युग मे स्टिंग आपरेशन कहल जायत अछि। माने इ जे हम इ हम देखा रहल छी जे बस अहाक लेल अछि आ सत्य अछि। मुदा कहल जाय त एकटा सत्य मीडिया खास क इलेक्ट्रोनिक मीडिया मे अहि शब्दक बोलबाला अछि। जी,हम बात क रहल छी 'जोगार' के। आजुक युग मे बहुतो युवा के रुझान पत्रकारीता दिस झुकि रहल छैन। लाखो रुपया ओ सब अहि पत्रकारिता के पढाई पर खर्च क दैत अछि। शायद किछ उम्मीद के संग जे ओहो सब एक दिन अहि क्षेत्र मे अपन नाम रौशन करताह। मुदा कि होइया अतेक पढाई लिखाई केलाह स? पढाई के संग संग कतेको लोकनि के पत्रकारीता मे काज करबाक लेल जोगार सेहो लगाबअ पड़ै छैन। एक तरह स कहु त डीग्री डिप्लोमा स पहिले कोनो चैनल मे पहुंचबाक लेल हुनका सब के सब स पहिले त जोगार लगाबहे पड़ै छैन। अनुचित नहि हैत जौं कहि त जे पत्रकारीता क्षेत्र मे घुसबाक लेल सब स जरुरी जोगार होयत अछि। आब त कतेको चैनल सब आ अखबार एजेंसी सब अपन-अपन संस्थान सेहो खोलि लेने अछि,इ कहि क जे पढाई समाप्ती के बाद हुनका सब के ओहि चैनल आ अखबार एजेंसी मे काज देल जायत। साधारण वर्ग सब पत्रकारीता के पढाई करलाक बादो ओ सब अहि संस्थान मे नामांकन नहि ल सकैत छथि। चैनल वला सब के अहि कदम स साधारण तबका वला युबासब के अहि चैनल मे काज खोजनाय पहाड़ खोदनाय एहन भ रहल अछि। सोचल जाय जे ओ चैनल वा अखबार एजेंसी वला सब अपन संस्थानक विद्यार्थी के छोड़ि क दोसर गाटे के कियाक काज देत। बड पैघ पैघ गप्प करैत छथि इ चैनल वा अखबार वला सब जे भारत मे बेरोजगारी अहि हद तक बढि रहल अछि आ दोसर दिस अपने जोगारक मंत्र पर काज दैत अछि। ध्यान दि जे अखन समाचार चैनल वा अखबार एजेंसी मे काज क रहल छथि,ओहि मे स एहन कतेक व्यक्ती छथि जिनकर कोनो नहि कोनो संबंध अहि क्षेत्रक माफ़िया सब स नहि छैन। प्रतिशत मे देखल जाय त जोगार वला सबहक प्रतिशत शायद 80 तक पहुंच जायत। एक तरह स कहि त जे अहि पत्रकारीता क्षेत्र मे ज्यादा स ज्यादा दिन तक टिकबाक लेल जिगार रहनाय आवश्यक अछि। ओना त सब क्षेत्र मे जोगार अपन एक अलग स्थान राखैत अछि मुदा पत्रकारीता क्षेत्र के लेल एकर महत्व विशेष मे भ जायत अछि। पत्रकारीता के देशक चारिम स्तंभ मानल जायत अछि आ इ स्तंभ जोगार पर टिकल अछि। कि जिनका लक जोगार नहि अछि,ओ पत्रकारीता क्षेत्र मे काज नहि क सकैत छथि? फ़ैसला ओहि सब लोकनि के लेबअ पड़तैन जे अहि मे संलिप्त रहै छथि,जिनकर नाम ल क जोगार लगाबअ पड़ैत अछि,ओहि सब युवासब के लेल के काइल के भविष्य छथि।
ओमप्रकाश झा, गाम, विजइ, जिला-मधुबनी।
मीडिया कतअ ल जा रहल अछि?
गप आरुषि कांड के करी वा मिथिलांचल मे आयल कोसी के कहरक या हाल मे दिल्ली मे भेल सिरीयल बम ब्लाष्टक। यदि अहां सब पछिला किछु दिनका मीडिया के इतिहास पर नजरि डालि तअ देखु जे ओ कि परोसि रहल अछि आ विडंबना देखु,दर्शक/पाठक के जे ओ ओकरा यथावत ग्रहण करबाक लेल बाध्य छथि। मीडिया के भूमिका के लेल अपना अहि ठाम एकटा कहावत 'खशी के जान जाय,आ खाय वला के स्वादे नहि' वला सहत प्रतिशत ठीक बैस रहल अछि। हमरा बुझा रहल अछि जे अहां सब सनक पाठक लेल मीडियाक छवि के आओर उजागर केनाय उचित नहि हैत।
अहि स छोड़ि यदि मीडिया के आंतरिक संरचना पर ध्यान दी त जतेक निम्न काटि वा अहु स खराब जैं कुनु शब्द होय त संबोधनक स्वरुप ल सकैत छी। यदि टीवी पर देखाय वला सुन्दर चेहरा वा अखबार/मैगजिन मे लिखै वला पुरोधा सब के निजी जीवन मे झांकि क देखब त ओहि मे स अधिकतर व्यक्ती के व्यक्तित्वक समीक्षा केलाक बाद मोन घृणित भ जायत। मुदा विडंबना देखु जे सब गोटे सब बात बुझैत बेबस छी। जे मीडिया दोसरक स्टिंग आपरेशन करैया कि ओकरा लेल सेहो स्टिंग आपरेशन नहि होयबाक चाहि? मुदा इ के करत? हम सब त बगनखा पहिरने छी।
बहुतो मैथिल पुरोधा सब मीडिया के शिर्ष पद सब के सुशोभित क रहल छथि,मुदा कि मजाल जे ओ कखनो सत्य बाजि दैथ। हमहु ओहि भीड़ मे कतौह के कतौ शामिल छी,इ कहैत कोनो लाज नहि भ रहल अछि। कहियो तिलक जेकां पत्रकार होयत छलाह। मुदा आजुक पत्रकार सब समाज के धनाढय वर्ग मे स आबैत छथि।
पाठकगण अहां सब मे स जे कियो मीडियाकर्मी होयब त हमरा माफ़ क देब,मुदा कि हम सब इ दोहरा चरित्र जीवन जिबअ स मुक्त नहि भ सकै छी? अपन पूर्वज के रुप मे मंडण,अयाची,जनक आ विद्यापति के संतान हम सब कतह जा रहल छी? अहां सब मे स जे कियो मीडिया के नजदिक स नहि देखने होय त कोनो निकट परिचत जे अहि क्षेत्र मे काज क रहल हेताह,हुनका स पुछि लेबन्हि। जैं सत्य बाजअ चाहताह त सच्चाई स अवगत भ जायब।
प्रोफेसर प्रेम शंकर सिंह
डॉ. प्रेमशंकर सिंह (१९४२- ) ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा। 24 ऋचायन, राधारानी सिन्हा रोड, भागलपुर-812001(बिहार)। मैथिलीक वरिष्ठ सृजनशील, मननशील आऽ अध्ययनशील प्रतिभाक धनी साहित्य-चिन्तक, दिशा-बोधक, समालोचक, नाटक ओ रंगमंचक निष्णात गवेषक, मैथिली गद्यकेँ नव-स्वरूप देनिहार, कुशल अनुवादक, प्रवीण सम्पादक, मैथिली, हिन्दी, संस्कृत साहित्यक प्रखर विद्वान् तथा बाङला एवं अंग्रेजी साहित्यक अध्ययन-अन्वेषणमे निरत प्रोफेसर डॉ. प्रेमशंकर सिंह ( २० जनवरी १९४२ )क विलक्षण लेखनीसँ एकपर एक अक्षय कृति भेल अछि निःसृत। हिनक बहुमूल्य गवेषणात्मक, मौलिक, अनूदित आऽ सम्पादित कृति रहल अछि अविरल चर्चित-अर्चित। ओऽ अदम्य उत्साह, धैर्य, लगन आऽ संघर्ष कऽ तन्मयताक संग मैथिलीक बहुमूल्य धरोरादिक अन्वेषण कऽ देलनि पुस्तकाकार रूप। हिनक अन्वेषण पूर्ण ग्रन्थ आऽ प्रबन्धकार आलेखादि व्यापक, चिन्तन, मनन, मैथिल संस्कृतिक आऽ परम्पराक थिक धरोहर। हिनक सृजनशीलतासँ अनुप्राणित भऽ चेतना समिति, पटना मिथिला विभूति सम्मान (ताम्र-पत्र) एवं मिथिला-दर्पण, मुम्बई वरिष्ठ लेखक सम्मानसँ कयलक अछि अलंकृत। सम्प्रति चारि दशक धरि भागलपुर विश्वविद्यालयक प्रोफेसर एवं मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली साहित्यक भण्डारकेँ अभिवर्द्धित करबाक दिशामे संलग्न छथि, स्वतन्त्र सारस्वत-साधनामे।
कृति-
मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिली नाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिली अकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशन भागलपुर २००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओ नाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८
मौलिक हिन्दी: १.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, प्रथमखण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७१ २.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, द्वितीय खण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७२, ३.हिन्दी नाटक कोश, नेशनल पब्लिकेशन हाउस, दिल्ली १९७६.
अनुवाद: हिन्दी एवं मैथिली- १.श्रीपादकृष्ण कोल्हटकर, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली १९८८, २.अरण्य फसिल, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१ ३.पागल दुनिया, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१, ४.गोविन्ददास, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००७ ५.रक्तानल, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८.
लिप्यान्तरण-१. अङ्कीयानाट, मनोज प्रकाशन, भागलपुर, १९६७।
सम्पादन- १. गद्यवल्लरी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६६, २. नव एकांकी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६७, ३.पत्र-पुष्प, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९७०, ४.पदलतिका, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९८७, ५. अनमिल आखर, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००० ६.मणिकण, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ७.हुनकासँ भेट भेल छल, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००४, ८. मैथिली लोकगाथाक इतिहास, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ९. भारतीक बिलाड़ि, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, १०.चित्रा-विचित्रा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ११. साहित्यकारक दिन, मिथिला सांस्कृतिक परिषद, कोलकाता, २००७. १२. वुआड़िभक्तितरङ्गिणी, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८, १३.मैथिली लोकोक्ति कोश, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, २००८, १४.रूपा सोना हीरा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००८।
पत्रिका सम्पादन- भूमिजा २००२
जीवन झाक नाटकक सामाजिक विवर्तन (आगाँ)
ई श्रेय युगपुरुष जीवन झाकेँ छनि जे अपन नाटकक माध्यमे एकर साक्षात विरोध करबाक साहस कयलनि। “नर्मदा सागर सट्टक”क सुन्दर मिश्र तकर ज्वलन्त प्रमाण छथि। मोदन मिश्र सुन्दर मिश्रकेँ नीक जाति-पाँजिक वर त्रिविक्रम ठाकुरक संग नर्मदाक विवाह करयबाक विचार दैत अपन मतक समर्थनमे कहैत छथि:
कुलहीन जमाय- अधीन कुलीन सुता अनुताप सदा सहती।
बसि नीच मनुष्यक बीच यथोचित नीच कथा कहती सुनती।।
पठियार अगार अचार-विचार विचारि विचारि व्यथा सहती।
परिवार समान जहाँ न तहाँ भरिजन्म कोना सुख सैँ रहती॥
(कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-१०७)
उपर्युक्त पंक्तिमे कन्याक पिताक मानसिक व्यथाक कथा सामाजिक व्यवस्था, ओकर परिवेश आऽ परिस्थितिक रेखांकन नाटककार अत्यन्त सूक्ष्मताक संग कऽ कए समाजकेँ दिशा-निर्देश करबाक उपक्रम कयलनि। एहिपर सुन्दर मिश्रक कथन छनि:
उत्तम जाति जमाय असङ्गत कष्ट सुता सभ काल जनाउति।
सासु दयादिन आदि अनादक वाद कथेँ कुल छोट मनाउति।।
जीउति जौ सहि गारि कदाचित् मातु-पिता हित बन्धु कनाउति।
ई असमञ्जस हैत निरर्थक ऊँचक सङ्ग जे नीच वनाउति॥
(कविवर जीवन झा रचनावली पृष्ठ-१०७)
नाटककार सामाजिक वातावरणमे परिव्याप्त वैवाहिक प्रथाक प्रसंगमे अपन विचार व्यक्त करैत ओकर मात्र आलोचने नहि कयलनि, प्रत्युत एहन वैवाहिक सम्बन्धक प्रसंगपर तीक्ष्ण व्यंग्य सेहो कयलनि तथा समाजकेँ सुधरबाक संकेत देलनि।
सामवती पुनर्जन्ममे बन्धुजीवक विकौआ मनोवृत्ति आ पुनर्विवाह करबाक चेष्टाक प्रति सारस्वत ओ वेदमित्रक तिरस्कार भावसँ नाटककारक व्यक्तिगत विचार धाराक परिचय भेटैत अछि। एहि प्रसंगमे बन्धुजीवक कथन छनि:
जे हमरा ठुनकाबथि से लय पहिरथु राङ।
हम पुनि कतहु विकायब पोसब अपन समाङ।
(सामवती पुनर्जन्म, पृ.३९)
उपर्युक्त कथनमे विकौआ प्रथाक निन्दाक स्पष्ट झलक भेटैत अछि। सामवती पुनर्जन्ममे घटक द्वारा सारस्वतकेँ वर पक्षसँ टाका गनयबाक प्रस्तावपर सरस्वतक उत्तरक अवलोकन करू, “छी छी टाकाक चर्चा कोन हमरा तेहन मैत्री अछि आ ओ ततेटा व्यक्ति छथि जे एहन कथा सुन टाका तँ गनि देताह। परन्तु असन्तोष हततैन्हि। ई कथा पुनि जनि बाजी”। (सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-४६)।
नर्मदा सागर सट्टकमे त्रिविक्रम ठाकुर दिससँ नर्मदाक प्रति टाका गनयबाक घटकक प्रस्तावपर सुन्दर मिश्रक विपरीत प्रतिक्रियाक संग देल गेल उत्तर:
पिता आनि वर कन्या का वसन-विभूषण-युक्त।
सादर अर्पण मन्त्रवत से विवाह विधि युक्त॥
(कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-१०९)
मिथिलांचलक समाजमे प्रचलित नियमानुकूल वैवाहिक सम्पर्क स्थापत्यर्थ घटक-पजिआरक नियोजन एक आवश्यक उपादान थिक। युगपुरुष जीवन झाक चाहे सामाजिक नाटक हो वा पौराणिक ओ अपन प्रत्येक नाटकमे एकर नियोजन कयलनि अछि। सामवती पुनर्जन्ममे सेहो घटक पजिआड़क नियोजन कयल गेल अछि। जखन सारस्वत आ वेद मित्रक बीच अपन सन्तानक विवाहार्थ स्वीकृति भेटैछ तखन वेदमित्रक कथन छनि, “यद्यपि ब्राह्मणक विवाहमे अपद व्यय कोना ने हैइ छैक तथापि घटक-पजिआड़ जे कहताह ततबा टाका त अवश्य ओरिआ लेबै पड़त”।
(सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-४)
अक्षर पुरुष जीवन झा मिथिलांचलक सामाजिक जीवनसँ निरपेक्ष नहि भऽ सकलाह तेँ हिनक नाटकादिमे सबठाम सामाजिक वातावरणक विशिष्ट सन्दर्भक संगहि संग सांस्कृतिक एवं आर्थिक जीवनक अति यथार्थ प्रतिनिधित्व करैछ। हिनक समस्त नाटक जनसामान्यक निकषपर अक्षरसः सत्यताक आवरणसँ आच्छादित अछि जाहिमे आशा-आकांक्षा, आचार-विचार, आमोद-प्रमोद, स्त्री-पुरुषक सुख-दुःख, रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, भाव-भाषा, राजनीति आदिक यथार्थ परिचय भेटैत अछि। ओ मिथिलाक सांस्कृतिक परम्पराक प्रबल समर्थक रहथि जकर प्रतिरूप हिनक नाटकादिमे स्थल-स्थलपर उपलब्ध होइछ। मैथिल संस्कृतिक अनुरूप विवाह पूर्व घटक-पजिआड़क नियोजन हमर सांस्कृतिक परम्पराक अनुरूप समाजमे प्रचलित नियमानुकूल वैवाहिक सम्पर्कक स्थापत्यर्थ घटक-पजिआड़क नियोजन आवश्यक अछि। सामवती पुनर्जन्म एवं नर्मदा सागर सट्टकमे जे घटक-पजिआड़क चर्चा भेल अछि ओ सर्वथा मैथिल संस्कृतिक अनुकूलहि अछि।
जतेक दूर धरि वेशभूषाक प्रश्न अछि हिनक नाटकान्तर्गत विशुद्ध रूपेँ मैथिल संस्कृतिक अनुरूपहि पात्रक वेशभूषाक संग साक्षात्कार होइछ। नर्मदा सागर सट्टकक घटकराजक स्वरूपक तँ अवलोकन करू:
जैखन देखल लटपर पाग।
धोती तौनी नोसिक दाग॥
कयलक लोक गाम घर त्याग।
हमरा हृदय भेल अनुराग॥
(कविवर जीवन झा रचनावली पृष्ठ-१७)
हाथमे फराठी छनि, अवस्था विशेषक कारणेँ हुनक डाँर पर्यन्त झुकि गेल छनि, पाग लटपर छनि। एहन वेश-भूषाकेँ देखि लोककेँ घटककेँ चिन्हब कनेको भाङठ नहि होइत छनि:
ओ जेना छल केहन उकाठी।
उचकि पड़ायल हमर फराठी॥
बीतल वयस वर्ष थिक साठी।
पैरन सोझ पड़य बिनु लाठी॥
जौँ जनितहुँ एहि गामक ढाठी।
तौँ न आबि भसिअइतहुँ भाठी॥
(कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-९५)
एहिमे नाटककार मिथिलामे वैवाहिक अवसरपर घटकक कर्तव्यपरायणता तथा ओकर वेश-भूषाक यथार्थ स्थितिक चित्रण अत्यन्त मार्मिकताक संग कयलनि अछि।
सांस्कृतिक परिदृश्यमे मिथिलामे पर्दा प्रथाक पालन सामाजिक रीति-नीतिक अनुकूलहि हिनक नाटकादिमे वर्णित अछि। एहि प्रथाक अनुसारेँ ससुर-भंसुर वा परिवारक श्रेष्ठ व्यक्तिक समक्ष वा अपरिचित व्यक्तिक समक्ष मिथिलांचलक महिला नहि जाइत छथि। एहि प्रथाक अनुरूपहि कादम्बरी एवं अभिरानी एहि रहस्यसँ अवगत रहितहुँ जे सुन्दर निश्चित रूपेँ सरलाक पति थिकथिन तथापि ओ सभ आत्मीयता नहि प्रदर्शित करैत छथि। सुन्दरकेँ सेहो अनुभव होमय लगैत छनि जे सरला हुनक पत्नी छथिन, किन्तु मर्यादाक पालनार्थ ओ अपन वास्तविक परिचय नहि उद्घाटित करैत छथि।
सांस्कृतिक परिवेशक नियोजनक दृष्टिएँ जखन हिनक नाट्य साहित्यक विश्लेषण करैत छी तँ स्पष्ट प्रतिभाषित होइछ, जे युगपुरुष जीवन झा मिथिलाक संस्कृतिक अनुरूपहि फगुआक हुड़दंगक चित्रण सामवती पुनर्जन्ममे कयलनि अछि। विदर्भराज सपरिवार बैसल छथि आ मृदंग वाद्य सहित हुनक राज्य वेश्या कलावती नचैत अछि आ गीत गबैत अछि:
(अगिला अंकमे)
(अगिला अंकमे)
स्व. राजकमल चौधरी पर डॉ. देवशंकर नवीन
डॉ. देवशंकर नवीन (१९६२- ), ओ ना मा सी (गद्य-पद्य मिश्रित हिन्दी-मैथिलीक प्रारम्भिक सर्जना), चानन-काजर (मैथिली कविता संग्रह), आधुनिक (मैथिली) साहित्यक परिदृश्य, गीतिकाव्य के रूप में विद्यापति पदावली, राजकमल चौधरी का रचनाकर्म (आलोचना), जमाना बदल गया, सोना बाबू का यार, पहचान (हिन्दी कहानी), अभिधा (हिन्दी कविता-संग्रह), हाथी चलए बजार (कथा-संग्रह)।
सम्पादन: प्रतिनिधि कहानियाँ: राजकमल चौधरी, अग्निस्नान एवं अन्य उपन्यास (राजकमल चौधरी), पत्थर के नीचे दबे हुए हाथ (राजकमल की कहानियाँ), विचित्रा (राजकमल चौधरी की अप्रकाशित कविताएँ), साँझक गाछ (राजकमल चौधरी की मैथिली कहानियाँ), राजकमल चौधरी की चुनी हुई कहानियाँ, बन्द कमरे में कब्रगाह (राजकमल की कहानियाँ), शवयात्रा के बाद देहशुद्धि, ऑडिट रिपोर्ट (राजकमल चौधरी की कविताएँ), बर्फ और सफेद कब्र पर एक फूल, उत्तर आधुनिकता कुछ विचार, सद्भाव मिशन (पत्रिका)क किछि अंकक सम्पादन, उदाहरण (मैथिली कथा संग्रह संपादन)।
सम्प्रति नेशनल बुक ट्रस्टमे सम्पादक।
बटुआमे बिहाड़ि आ बिर्ड़ो
(राजकमल चौधरीक उपन्यास) (आगाँ)
कहल जा चुकल अछि ÷आदिकथा'क समय धरि सेहो मैथिलीक पाठक समाजक बोध-शीर्ष आ विचार-फलक उर्ध्वमुखी नहि भेल छलनि, एकदम सपाट भूमि पर जर्जर परम्पराक खुट्टीसँ बन्हाएल घूमि रहल छलनि। पूर्ववर्ती रचनाकार सेहो कम प्रयास नहि केलनि। कविताक क्षेत्रामे कतोक गोटए अपन योगदान देलनि। कथा आ उपन्यासक क्षेत्रामे कांचीनाथ झा ÷किरण' आ हरिमोहन झा स्त्राी आ विवाहसँ सम्बन्धित मिथिलाक जड़ियाएल समस्या पर नजरि द' चुकल छलाह। वैद्यनाथ मिश्र ÷यात्राी', ÷पारो' आ ÷नवतुरिया'मे एहि गन्हाएल वैवाहिक पद्धति पर समधानि क' चोट क' चुकल छलाह। तथापि समाज व्यवस्थाक पाखण्ड आ अयथार्थ आदर्शक चाँगुर एहि समाजकें जकड़ने छल, स्वाधीनता प्राप्तिक दशक भरि बादहु मिथिलाक लोक एहि वैवाहिक पद्धतिक प्रति घृणा आ विरोधक भाव नहि अवधारलनि। चुतुर्थिएक राति ÷पारो' सन बालिकाक संग पति स्थानीय वृद्ध राक्षस द्वारा बलात्कार अथवा ÷सुशीला' सन उद्दाम यौवनसँ भरल सुकामिनीक यौन-प्रताड़णाक प्रति किनकहु मोन खिन्न नहि भेलनि। पंजी प्रथाक विकृतिक रूपमे भेल एहेन बेमेल विवाह, बाल-वृद्ध विवाह आ बहु-विवाहक कारणें वृद्ध अथवा स्वर्गवासी जमीन्दारक कठमस्त जवान स्त्राीक संग रमणेच्छा सबकें रहै छलनि, गाछमे पाकल लताम देखि कौआ जकाँ दू लेल मारि अएबाक लालसा सबकें होइ छलनि, मुदा ओहि युवतीक मोन आ सम्वेदनासँ किनकहु कोनो मतलब नहि छलनि। छद्म आ अतिशयोक्तिसँ भरल मिथिलाक जीवन-पद्धतिक इएह विडम्बना छल। विवाहेतर सम्बन्ध रखबासँ परहेज नहि छलनि, भेद खुजि जएबाक डरें आतंकित रहै छलाह। एहेन समाजमे सुशीला आ देवकान्त अपन मोनक समर्थन कोना करितथि -- उपन्यासकारक सोझाँ ई पैघ समस्या छल। आदर्श आ मर्यादाक जर्जरतासँ आच्छन्न अइ प्रवृत्तिक कारणें उपन्यासकार ÷आदिकथा'कें सुखान्त नहि बना सकलाह। सम्भवतः इएह कारण थिक जे बाबा यात्राी ÷पारो'क दुर्दशासँ व्यथित भेलाह, उग्र नहि। रचनाकारक व्यथासँ पाठककें सामान्यतया उग्र हेबाक चाही, मुदा यात्राी देखलनि जे समाज एखनहुँ उग्र नहि भेल। आठ बर्खक बाद फेरसँ यात्राी ÷नवतुरिया'कें ठाढ़ केलनि।
मिथिला क्षेत्राक एहेन जड़ मन स्थितिक समाजमे कोनो प्रगति चेतनासँ सम्पन्न रचनाधर्मी लोकक मानसिक उद्वेलनक कल्पना कएल जा सकैत अछि। निर्दयी सासु, सुमति, मनुष्यक मोल, पुनर्विवाह, चन्द्रग्रहण, कन्यादान आदि पूर्ववर्ती उपन्यासमे मिथिलाक स्त्राीक दुर्दशाक चित्राण भेल, मुदा चित्राणक स्वरूपसँ स्त्राी-चेतना आ स्त्राीक दुर्दशाक प्रति पुरुषक वैचारिक उद्वेलनक कोनो उद्यम एहि जनपदमे नहि देखल गेल। स्पष्टतः ई दोष रचनाकारक नहि, रूढ़िग्रस्त मैथिल समाजक धर्मान्धताक छल। ÷पारो'आ ÷आदिकथा'मे सेहो स्पष्ट विरोध अइ कुरीतिक प्रति नहि देखाइत अछि, मुदा ÷पारो'क यौन उत्पीड़न और ÷सुशीलाक यौन प्रताड़णसँ पाठकक मोन खिन्न होइत अछि। संख्यामे थोड़े सही, मुदा ÷बिरजू'क क्रोध आ ÷देवकान्त'क व्यथाक सहयात्राी अवस्से बनैत अछि। ई समय समाजक बदलैत मनस्थितिक छल। उपन्यासकार अपन मोनक नहि क' सकलाह, मुदा संकेत देलनि -- समाजक बदलइत धार्मिक नैतिक मान्यतादिक एहि संक्रमित कालमे (आदिकथा)÷कॉमेडी' नइं बनि सकल, मात्रा एक अपूर्ण ÷टे्रजेडी' रहि गेल। इएह समकालिक यथार्थ थिक। लोक प्रेम करइए, प्रेमपात्राक लेल बेकल रहइए, मुदा, संस्कारक ससरफानी तोड़ि नइं पबइए। इएह आदि-आदिसँ चल अबइत कथा थिक, आदिकथा थिक।...
मिथिला क्षेत्रा भारतक एकटा एहेन भूखण्ड थिक जतए परस्पर विरोधी आचरण आ व्यवस्था निःशंक भ' कए विकसित भ' रहल अछि, होइत रहल अछि। पर्याप्त संख्यामे उद्दाम प्रवाहक नदी अछि, बाढ़िक कारण ओकर प्रवाहमे उद्दाम गत्यात्मकता अबैत अछि, प्रति वर्ष कोसीक बाढ़ि, गंगाक बाढ़ि, बागमती, कमला आदि नदी सभक बाढ़िक कारण तीव्रतासँ नदी-नालाक दिशा, स्थान परिवर्तित होइत रहल, जमीनक तल परिवर्तन होइत रहल... मुदा एहि प्रबल प्रभावकारी प्राकृतिक परिदृश्यक प्रतिकूल एतएक जीवन-यापन आ आचरण शिथिल, सुस्त, आ आरामपसन्द बनल रहल। गत्यामकतासँ निर्लिप्त, यथास्थिति पर अतीव आग्रह।... विद्वताक लेल मिथिला क्षेत्रा पुरातन कालहिसँ नामी-गिरामी रहल अछि। विद्वता आ प्रगतिशीलता आपसमे सहयात्राी होइत अछि, अर्थ-धर्म-काम-मोक्षक परिभाषा बुझितहि मनुष्यमे उदारताक प'ट खुजैत अछि, आ कलुष मेटाइत अछि। मुदा, मिथिलामे सब कथूक अछैतो एहि समस्त सद्वृत्तिक लोपे लोप रहल, उनटे रूढि, पाखण्ड, धर्मान्धता, अस्पृश्यता आदि भावना जड़िआएल रहल। जीवन विरोधी जर्जर व्यवस्थाक अनुपालनमे
अपन इच्छा आ नैतिकताकें मारैत रहल, फोंक मर्यादाक प्रदर्शन हेतु छद्म जीवन प्रक्रिया चलैत रहल। अइ छद्मक प्रति जड़िआएल आग्रह एतेक बढ़ल छल, जे छद्मे वास्तविकता लगैत रहल। छद्मक आँचर हटएबाक अर्थ मर्यादाक अतिक्रमण बूझल जाए लागल। राजकमल चौधरीक समस्त रचना संसार अइ छद्मेक अनावरणमे लागल रहल। आदिकथा उपन्यास सेहो, तकरे प्रमाण थिक। समाज ओहिसँ पहिने कनेको प्रगति-बोधसँ युक्त भेल रहितए, तँ सम्भव छल जे सुशीला आ देवकान्तक आदिकथा दुखान्त नहि भ' कए सुखान्त भ' जइतए।
÷आदिकथा' उपन्यासक अप्रतिम प्रभावोत्पादकताक मुख्य कारण ओहिमे प्रयुक्त गद्य सेहो थिक। राजकमल चौधरीक गद्य रचनामे एकटा खास बात रहैत अछि, जे ओ अपन मन्तव्य राख' लेल घटनावलीक कोनो श्रृंखला नहि तकै छथि; छोट सन कोनो प्रसंगक चारू भर एकटा परिवार, समाज अथवा मण्डली ठाढ़ करै छथि; ओकर आचरणकें ओकर मानसिक व्यापारसँ जोड़ैत जाइ छथि; अन्ततः अइ तरहक चरित्रा-चित्राणे हुनकर मन्तव्यकें आकार, रचनाकें पूर्णता, अभिप्रायकें सफलता, आ प्रभावकें उत्कर्ष दैत अछि। आदिकथा उपन्यासमे मोटा मोटी घटना तँ एतबे अछि जे कोनो विपत्ति-यात्राामे सुशीला आ देवकान्तक भेंट होइ छनि, बीचमे सब तरहक राग अनुराग चलैत अछि, आ अन्ततः ओ भेंट, ओ अनुरक्ति एकटा अयथार्थ आदर्शक रक्षामे पानि पर लिखल आखर जकाँ मेटा जाइत अछि। मुदा ई सम्पूर्ण ताना-बाना किछु खास-खास तरहक चरित्रासँ बुनल गेल अछि, ओहि चरित्रोक माध्यमसँ राजकमल चौधरी अइ उपन्यासकें अपन समयक एकटा महत्वपूर्ण उपन्यासक रूप देलनि अछि। आदिकथा, एकटा दुखान्त प्रेमकथाक प्रमाण होइतहु समकालीन समाजक मार्मिक आ बेधक दृश्यक कोलाज थिक, जाहिमे पंजी प्रथा, सामन्ती संस्कार आ सामाजिक पाखण्ड पर चोट अछि; जमीन्दारिएक जड़िसँ निकलि कए जमीन्दारी प्रथाक विरोध परिवर्त्तन-चक्रक सार्थकता साबित केलक अछि। समस्त पद-प्रतिष्ठा-सम्पन्नताक अछैत मिथिलामे स्त्राी लेल कोन तरहक सोच-पद्धति अपनाओल जाइत रहल अछि, तकर स्पष्ट चित्रा बनि सकल अछि।
आदिकथाक मुख्य पुरुष चरित्रा छथि -- अनिरुद्ध बाबू, कुलानन्द, महानन्द, ज्योतिषी लघुकान्त, आ देवकान्त। किछु गौण पात्रा सेहो छथि -- डाक्टर वैद्यनाथ, धर्मशालाक मैनेजर, खबास इत्यादि। मुदा हिनका लोकनिक कोनो चारित्रिाक विकास उपन्यासक कथाभूमिमे नहि भेल अछि। लघुकान्त ज्योतिषीक अवतारणा सेहो सामाजिक धर्मान्धता, पाखण्ड, भीरुता, छद्म आ निर्लज्जता देखएबा लेल भेल अछि। धरमपुरवाली, अर्थात् सुशीला, अर्थात् देवकान्तक सोनामामी, अर्थात कुलानन्द, महानन्दक सबसँ छोट सतमाइ कामोत्तेजनामे, अथवा कोनो मादक पदार्थक सेवनसँ बेहोश छथि। प्रयोजन छलै हुनकर सेवा-परिचर्या अथवा चिकित्साक, मुदा ज्योतिषी जी एकटा जवान स्त्राीक कामोत्तेजक बाँहि-पाँजरक स्पर्श पएबा लेल, कुत्सित लिप्सा तृप्त करबा लेल, अपन फोंक अस्मिता समाजमे ऊँच करबा लेल, आ लोक पर अपन पाखण्डक मनोवैज्ञानिक दबाब बढ़एबा लेल घोषित करै छथि, जे सुशीला पर ओएह प्रेतनी सवार छनि, जे तीन बर्ख पहिने हुनका हरिद्वारमे भेटल रहनि -- ई बात, ज्योतिषीकें भगवती कहि देने छनि...। मुदा उपन्यास मध्य राजकमल चौधरी एहेन एकहु छद्म चरित्राकें क्षमादान नहि देलनि अछि।... जे प्रेतनी छलहे नहि, तकरासँ मान-मनुहार ज्योतिषी करैत रहलाह, श्वसुर स्थानीय होइतहुँ, नजरिए आ स्पर्शे टासँ सही, सुशीला सन रसवन्तीक रसपान करैत रहलाह, एही बीच हुनकर पोल खुजि गेल, ओ नाँगरि सुटका क' पड़एलाह।
अइ चरित्राक प्रवेश उपन्यासक कथाभूमिमे अचानक भेल अछि। हिनकर अवतारणा नहियों होइतए तँ मूल कथा पर एकर कोनो असरि नहि होइतए। मुदा जें कि उपन्यासक गति एकरैखिक नहि होइत अछि, बहुत रास साँगह-पाती संग नेने चलैत अछि, कही तँ उपन्यास कम्प्यूटरक नॉर्टन एण्टी वायरस होइत अछि, अथवा मलाहक महजाल होइत अछि, जे सौंसे समाज व्याधि, अथवा सौंसे पोखरिक माछ, काछु, साँप, सनगोहि, सोंसि, नकार समेटने चलैत अछि। अही प्रक्रियामे राजकमल चौधरी ÷आदिकथा'मे कथा तँ कहलनि अछि मामि-भागिनक अनुक्तिक; मुदा बीच-बीचमे समस्त सामाजिक व्याधिक इलाज करैत गेलाह अछि। ज्योतिषी लघुकान्तक पाखण्ड उजागर करब आ समाजकें अन्धविश्वाससँ मुक्त करब आवश्यक छल, तें लघुकान्तक अवतरण भेल। एहि अवतारणा लेल कोनो संयोग-कथा नहि गढ़ल गेल, सहजतासँ ओ मूलकथाक अंश बनि गेल अछि -- से उपन्यासकारक विशिष्ट कौशल थिक।
महानन्द सामन्ती खानदानक नव उम्रक युवक छथि। अनिरुद्ध बाबूक छोट बेटा, सुशीला सन सुकामाक सतौत बेटा, कुलाकानन्दक सहोदर आ देवकान्तक ममियौत। छूआ-छूत, वर्ग संघर्ष समाजसँ मेटा देबाक आग्रही आ सामाजिक कुरीतिक उन्मूलनक श्रेय लेब' लेल तत्पर अपरिपक्व विद्रोही। हिनकर परिचय लेल उपन्यासकारक पंक्तिक उपयोग करी तँ -- ÷महानन्दक शरीरमे एखन समाज-सुधारक रक्त-प्रवाह दौड़ि रहल छइन। उर्दू-भाषामे एकटा कड़बी छइ -- नब मुसलमान सतरह बेर नामज पढ़इए -- से महानन्द सतरह बेर नामज पढ़ए चाहइ छथि। चाहइ छथि जे
युग-युगान्तरक धार्म्मिक संस्कारकें विद्रोहक एक्के धक्कासँ तोड़ि दी।' -- महानन्द जमीन्दारी संस्कारसँ उबिया तँ गेलाह अछि अवस्से, परिवर्त्तन चाहै छथि, ताहि लेल उद्यमो करए चाहै छथि, मुदा चेतना जाग्रत नहि छनि। महानन्द समकालीन मिथिलाक प्रतिक्रियावादी नौजवानक प्रतिनिधि जकाँ एहि उपन्यासमे ठाढ़ छथि, जे लक्ष्य निर्धारण आ संधान-समायोजन कएनहि बिना व्यवस्था विरोधमे लागि जाइ छथि। परिवर्तनक एतब टा बाट बूझल छनि जे आँगनमे तथाकथित निम्नजातीय लोक पात ओछा कए खा लिअए।... नितान्त अपरिपक्व आ क्षणोन्मादी लोक छथि महानन्द। अवज्ञा आ चिन्तनविहीन विरोधक संग परिवारसँ भिन्न भ' जएबाक बात सोचै छथि। महानन्दक आचरणक चित्रा एक दिश मिथिलाक युवा वृन्दक वास्तविक मानस लोकक परिचय दैत अछि, तँ दोसर दिश ओहि वर्गकें सुचिन्तित विरोधक प्रेरणा आ ललकार सेहो।
अनिरुद्ध बाबू रामपुर गामक सामन्ती संस्कारक उच्च कुल-वंश, जाति-पाँजिक विशिष्ट लोक छथि। चारिम पनमे प्रगल्भा, कामातुरा स्त्राीक पति भेलाह। एक पुत्रावती पत्नीक स्वर्गवास, आ दोसर पत्नीसँ एक पुत्रा तथा एक पुत्राीक प्राप्तिक पश्चातहु तेसर विवाहक लोभ सम्वरण नहि क' सकलाह, अधेर होएबा धरि ओहि पत्नीकें पुष्पवती नहि क' सकलाह। स्वयं साठि पार क' कए मामिला मोकदमामे तल्लीन रहै छथि। खाएब-पीब, रास-विहार, ज'र-जमीन, म'र-मोकदमाक बाद समय बचै छनि तँ सर-कुटुमक आदर आ नवोढ़ा पत्नीक आज्ञा-पालनमे लगबै छथि। अपन कौलिक संस्कार आ पूर्वजक अकबालक गर्वसँ फूलल रहै छथि। एहिसँ बेसी हुनकर कोनहुँ आचरणकें उपन्यासकार महत्व नहि देलनि अछि। जमीन्दारी सन रुग्ण व्यवस्थाक एक वृद्ध या रुग्ण व्यक्तिकें एही तरहें कोनो नव चेतनाक कथामे उपेक्षा कएल जेबाक चाही छल। ÷गहरी मार कबीर की, दिल से दिया निकाल।' अतीत-व्यतीतक फेण्टेसीमे भोतिआइत आत्महीन लोककें वस्तुतः एहिसँ बेसी महत्व नहि देल जेबाक चाही। अन्ततः उपन्यासक पाठककें अनुमान तँ होउ, जे मानवेच्छाक प्रति अनुदार आ सम्वेदनहीन लोकक इएह दुर्गति होइत अछि। भौतिक सुखमे मुग्ध रहताह, मुदा पहाड़ी नदीक जीवन्त धारकें, कामेच्छाक ज्वालामुखीकें बान्हि क' रखताह। धिक्कार ...
कुलानन्द अनिरुद्ध बाबूक पहिल स्वर्गीया पत्नीक एकमात्रा पुत्रा छथि। वयस करीब-करीब अपन छोटकी सतमाइक बराबर छनि। मूल कथाक विस्तारमे हिनकर उपस्थिति थोड़ेक सहायक भेल अछि। अपना समयक मेधाहीन छात्रा आ नाटक-नौटंकी कम्पनीक कलाकार-कलारिनीक संग बौआ कए ऊर्जस्वित जीवन समाप्त केलनि, आब गाममे पैतृक सम्पति कूटि कए भाँग आ विलासमे जीवन बितबै छथि। कायर, क्रोधी, आ अय्याशी प्रवृत्तिक पात्रा छथि। द्रौपदी सन सुशील स्त्राीक देवता छथि। स्त्राी जातिकें पुरुषक आश्रित आ गुलाम बुझै छथि। पत्नी तवाह रहै छनि। खून-खुनामय धरिक स्थितिमे पहुँचि जाइवला तामसी छथि। क्रोधमे किछु क' लेताह। नाच-नटुआमे लिप्त रहताह। देवकान्तक प्रति अपन सतमाइक अनुरक्ति नीक नइं लगै छनि। समाजक लोक तँ इहो कहबामे संकोच नहि करै छनि जे कुलानन्द अपन स्त्राीकें नैहर पठा क' सतमाइ संग रहै छथि। पिताक मृत्युक तत्काल बाद ओ सुशीलाकें अपन आश्रित बूझए लगलाह, हुनकर गहना जेबर बेचि कए अय्याशी करब हुनकर स्वभाव भ' गेलनि, मुदा सतमाइक उचितो खर्च पर आँकुश लगएबाक प्रवृत्ति आओर उग्र भ' गेलनि। लम्पट एहेन जे सुशीला संग तीर्थ कर' गेलाह तँ हुनकर आचरण देखि धर्मशालाक मैनेजर धरि सुशीलाकें कुलानन्दक लम्पटपनीक कथा कह' अएलनि।
एकटा सामन्ती संस्कारक व्यक्तिक कुलमे आओर केहेन सन्तान होइतए! सम्पत्ति छलनि तँ पिता सामाजिक स्वीकृतिक संग लम्पटपनी केलकनि, समय बदलल तँ कुलानन्द ओकरा आओर विकृति धरि पहुँचौलनि।
अइ उपन्यासमे राजकमल चौधरी जमीन्दार परिवारक सदस्य लोकनिकें ज्यामितीय आकृति पर ठाढ़ क' कए सामन्ती संस्कार, पंजी-प्रथा आ मिथिलाक स्थगित चिन्तन प्रणालीक धज्जी उड़ा रहल छथि। एहेन विकृत, वीभत्स रूप भरिसके कतहु भेटए। महानन्द, कुलानन्द, सुशीला--तीनू त्रिाभुजक तीन कोण पर ठाढ़ छथि। केन्द्रमे बैसल छथि स्वयं अनिरुद्ध बाबू, बेबस, लाचार, खानदानी पराक्रम आ कौलिक मर्यादाक गोबर गीजैत। आ बाहरमे ठाढ़ छथि देवकान्त। त्रिाभुज आ त्रिाकोण--दुनूसँ सम्वेदना, एक कोन पर अनुरक्ति, मुदा प्रवेश वर्जित, अमर्यादित...। विचित्रा हाल छल मिथिलाक! अशक्य अनिरुद्ध बाबू केन्द्रमे रहितहु, कतहु नहि रहलाह। अनिरुद्ध बाबूक देहावसान होइतहि जमीन्दारी पालो थमै लेल कुलानन्द केन्द्र दिश लपकै छथि। त्रिाभुज टूटि जाइत अछि, मुदा देवकान्त तथापि बहरइए रहि जाइ छथि। एकटा क्रोधी, नशेरी आ लम्पट पतिक पत्नी द्रौपदी कतहु नहि छथि, किछु नहि छथि। ई मिथिलाक आदर्श आ मर्यादा छल, जकरा, राजकमल चौधरी जीवन लेल अयथार्थ मर्यादा साबित केलनि।
(अगिला अंकमे)
डॉ कैलाश कुमार मिश्र (८ फरबरी १९६७- ) दिल्ली विश्वविद्यालयसँ एम.एस.सी., एम.फिल., “मैथिली फॉकलोर स्ट्रक्चर एण्ड कॊग्निशन ऑफ द फॉकसांग्स ऑफ मिथिला: एन एनेलिटिकल स्टडी ऑफ एन्थ्रोपोलोजी ऑफ म्युजिक” पर पी.एच.डी.। मानव अधिकार मे स्नातकोत्तर, ४०० सँ बेशी प्रबन्ध -अंग्रेजी-हिन्दी आऽ मैथिली भाषामे- फॉकलोर, एन्थ्रोपोलोजी, कला-इतिहास, यात्रावृत्तांत आऽ साहित्य विषयपर जर्नल, पत्रिका, समाचारपत्र आऽ सम्पादित-ग्रन्थ सभमे प्रकाशित। भारतक लगभग सभ सांस्कृतिक क्षेत्रमे भ्रमण, एखन उत्तर-पूर्वमे मौखिक आऽ लोक संस्कृतिक सर्वांगीन पक्षपर गहन रूपसँ कार्यरत। यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का, यू.एस.ए. केर “फॉकलोर ऑफ इण्डिया” विषयक रेफ़ेरी। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालयक पुरस्कारक रेफरी सेहो। सय सँ ऊपर सेमीनार आऽ वर्कशॉपक संचालन, बहु-विषयक राष्ट्रीय आऽ अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठीमे सहभागिता। एम.फिल. आऽ पी. एच.डी. छात्रकेँ दिशा-निर्देशक संग कैलाशजी विजिटिंग फैकल्टीक रूपमे विश्वविद्यालय आऽ उच्च-प्रशस्ति प्राप्त संस्थानमे अध्यापन सेहो करैत छथि। मैथिलीक लोक गीत, मैथिलीक डहकन, विद्यापति-गीत, मधुपजीक गीत सभक अंग्रेजीमे अनुवाद।
डॉ कैलाश कुमार मिश्र, इन्दिरा गान्धी राष्ट्रीय कला केन्द्रमे कार्यरत छथि। “रचना” मैथिली साहित्यिक पत्रिकामे “यायावरी” स्तंभक प्रशस्त स्तंभकार श्री कैलाश जीक “विदेह” लेल प्रारम्भ कएल गेल यायावरीक प्रस्तुत अछि ई तेसर खेप।
यायावरी
लोअर दिवांग घाटी: इदु-मिसमी जनजातिक अनुपम संसार
क्षेत्रफलक दृष्टिकोणसँ अरुणाचल प्रदेश सम्पूर्ण उत्तर-पूर्व भारतमे सबसँ पैघ राज्य थीक। हालाँकि जनसंख्याक घनत्व एतए सबसँ कम छैक। समस्त राज्य हरियर जंगल, पहाड़सँ भरल; रम्य आ आकर्षक। एहि राज्यमे २६ मूल जनजाति अनेक उपजातिक संग रहि रहल अछि। अरुणाचलक अधिकांश क्षेत्रमे पहुँचनाई आइयो बहुत कठिन कार्य छैक। एक ठाम पहुँचबाक हेतु कतेको बेर नदी पार केनाइ, कतहु पक्का सड़कक नहि भेनाइ, कतहुँ जमीन धसि जेबाक कारणेँ रस्ता अवरुद्ध भऽ गेनाइ इत्यादि सामान्य बात छैक। एहि कठिन परिस्थितिक कारण एतय केर जनजाति सब एखनो धरि अपन मूल परम्परा, खान-पान, आभूषण, वस्त्र-विन्यास, रीति-रिवाजकेँ सहेजने छथि। अनेक दिस चीन एवं आन अन्तर्राष्ट्रीय सीमासँ सटल भारतक ई नैसर्गिक प्रदेश सौन्दर्यक दृष्टिसँ भारतवर्षक श्रृंगार थीक। एकर प्राकृतिक स्वरूपक जतेक प्रशंसा कएल जाय से कमे होयत। अरुणाचलक नाम लैते मात्र तवांग, ईटानगर (प्रदेशक राजधानी), बोमडिला, बन्दरदेवा, रोईंग, जीरो, तिराप, सुबंसरी, नामसाई आ अनेक रम्य स्थान हमरा मानस पटलमे घुमय लगैत अछि।, आ घुमय लगैत अछि रंग-विरंगक परम्परागत परिधानसँ सजल अरुणाचल प्रदेशक जनजाति- सेड्रोपेन, खामती, आदी, इदू-मिसमी, दिगारु-मिसमी, मिजो-मिसमी, आपातानी इत्यादिक झुण्डक-झुण्ड अपन सहजतामे हँसैत आ आबय बला प्रत्येक अतिथिकेँ अपन स्वभाविक आ स्वीकारात्मक मुस्कानसँ स्वागत करैत। बिना कहने सब किछु कहैत।
ताहिँ यायावरीक एहि अंकमे हम अपन लोअर दिवांग घाटी जिलाक यात्रा वृत्तान्तक चरचा कऽ रहल छी। प्रदेशक दिवांग घाटी दू भाग- अपर दिवांग घाटी आ लोअर दिवांग घाटीमे बाँटल छैक। हम अपन यात्रा अपन संस्थाक एक सहयोगी डॉ. ऋचा नेगीक संग दिसम्बर २००७मे केने रही। लोअर दिवांग घाटी तँ ठीक रहैक परन्तु अपर दिवांग घाटी जनपदमे अति बर्फ खसलाक कारणेँ बिल्कुल अवरुद्ध छलैक। ताहिँ हमरा लोकनि ई निर्णय लेलहुँ जे अपना आपकेँ सिर्फ लोअर दिवांग घाटी जनपद तक सीमित राखब आ ओतय केर इदु-मिसमी जनजातिपर कार्य करब। कार्यक मतलब ई जे इदु-मिसमीक जीवन-चक्र, गृह-निर्माण, पावनि-तिहार, वस्त्र-विन्यास, श्रृंगार-प्रसाधन, गहना, विवाह, कृषि-कार्य, स्त्री-पुरुषक सम्बन्ध, परम्परागत क्रीड़ा आदिक विस्तारसँ प्रलेखन आ डाक्युमेन्टेशन केनाइ। इदु-मिसमीक भाषा, संस्कृतिसँ अपना-आपकेँ अवगत करेनाइ।
डॉ. ऋचा नेगी एक प्रतिष्ठित आ वरिष्ठ मानवशास्त्री प्रोफेसर रघुनाथ सिंह नेगीक पुत्री छथि। ओना तँ हिनकर शिक्षा अंग्रेजीमे एम.ए. एवं अंग्रेजीयेमे लोक नाट्यपर छन्हि, परन्तु भ्रमणमे खूब मोन लगैत छन्हि। ई अलग बात छैक जे ओ एको आखर लिखयसँ सदरिकाल बचबाक बहाना बनबयमे माहिर छथि। ऋचाजीकेँ समस्त अऋणाचल प्रदेशसँ अथाह प्रेम छन्हि। हमरासँ ज्यादे ओ अरुणाचल प्रदेशमे रहैत छथि। जखन-कखनहु हमरा लोकनि उत्तर-पूर्व भारतक यात्रा करैत छी तँ गोवाहाटी जाइते मात्र ऋचाजी कोनो-ने-कोनो बहाना बनाय अरुणाचलक हेतु प्रस्थान कऽ जाइत छथि। पुनः दिल्ली वापस अयबाक नियत तिथिसँ एक-दू दिन पहिने गोवाहाटी आबि जाइत छथि। कद-काठी, उजरी गोराइ एहेन छन्हि जे सहजतासँ अरुणाचलमे खइप जाइत छथि। लम्बाई पाँच फुटसँ ज्यादे नहि हेतन्हि। एहि सब कारणेँ अरुणाचलमे लोक ऋचाजीकेँ स्थानीय बुझैत छन्हि। एहि बातपर ओ बड्ड प्रसन्न रहैत छथि।
बात लोअर दिबांग घाटी जनपद केर यात्राक सम्बन्धमे करैत रही। ई हमर प्रथम यात्रा छल, परन्तु ऋचाजी एकबेर पहिने आबि एहि जनपद केर डिस्ट्रिक्ट रिसर्च ऑफिसर, भाषा अधिकारी, जिला कला आओर संस्कृति अधिकारी एवं किछु स्थानीय लोक सभसँ बातचीत कय कार्यक्रम केर रूपरेखा बना कऽ गेल छलीह। ताहि परियोजनाक कार्यान्वयनमे हमरा लोकनिकेँ कोनो तरहक दिक्कत नहि भेल।
लोअर दिबांग घाटी जनपद केर मुख्यालय केर नाम रोईंग छैक। रोईंग ओना तँ जनपद केर मुख्यालय थीक परन्तु जनसंख्या आदिक दृष्टिएँ एना लागत जेना कोनो प्रखण्ड-स्तर केर कस्बा हो। ताइमे रोईंग पहुँचनाइ बहुत दुश्कर। हमरा लोकनि दिल्लीसँ हवाई जहाजसँ असम राज्य डिब्रूगढ़ अयलहुँ। डिब्रूगढ़सँ दू टाटा सूमो टेक्सी लेल। एक टेक्सीमे हम आ डॉ. ऋचा नेगी आ दोसर टेक्सीमे हमरा लोकनिक विडियो कैमराक सदस्य लोकनि अपन असला-खसला लय सवार भऽ गेलाह। डिब्रूगढ़ हवाई अड्डासँ हमरा लोकनि तीनसुकिया अयलहुँ। ओतय जरूरीक किछु समान जेना कि टॉर्च, रेनकोट, छत्ता, खयबाक हेतु नमकीन आदि कीन रोईंग लेल प्रस्थान कएल। तीनसुकियासँ रोईंग कोनो बड्ड दूर नहि छैक। लगभग ७५-८० किलोमीटर हेतैक मुदा पहुँचनाइ दुष्कर। सर्वप्रथम हमरा लोकनि सदियाघाट नामक स्थान जे कि ब्रह्मपुत्र नदीक कछेरपर छैक, पर पहुँचलहुँ। ओतयसँ एक प्राइवेट फेरीवलासँ बात कय अपन दुनू टेक्सीक संग ब्रह्मपुत्र पार करबाक हेतु मोटरबला नावमे सवार भेलहुँ। सवार होमाक प्रक्रिया मात्रमे लगभग सवा घन्टा लागि गेल।
आब हमरा लोकनिक नाव ब्रह्मपुत्रक दोसर कछेरक यात्राक हेतु प्रस्थान कऽ चुकल। नावकेँ चलिते एना बुझायल जेना कोनो समुद्रक बीच आबि गेलहुँ। चारू दिस जलमग्न। ऊपरसँ साँझ से भऽ गेल रहैक। ब्रह्मपुत्रक शान्त स्वभाव आ नावक मोटरक पानि काटक प्रक्रियाक कारणेँ एक अलग किस्म केर बनैत पानिक स्वरूप, वर्षाक कारणेँ मटियाएल पानि, हमरा नीक लगैत छल। नाव बला सभ कहलक जे सदियाघाटसँ दोसर दीयरा दिस जायमे लगभग सवा घंटा लागत। लगभग १० मिनट पानिमे चललाक बाद नावक मलाह अपन खोलीसँ एक छोट छिन्ह बोतल निकाललक। बोतल पौआ देशी दारुक रहैक। आधा भरल। दू आरमी बिना पानि मिलेने आधा-आधा घटकि लेलक आ जय कमला मइया कहैत खाली बोतलकेँ ब्रह्मपुत्रमे फेंकि देलकैक। पुनः ओ सब आपसमे मैथिलीमे वार्तालाप प्रारम्भ केलक।
हम पुछलियैक: “अहाँ लोकनि कतय केर छी”?
हम सब बिहारक छी”। ओ सब उत्तर देलक।
हम पुनः पुछलियैक:”बिहारक छी से तँ हम बुझि गेलहुँ, बिहारक कोन जिलामे अहाँ लोकनिक घर थीक?”
ताहिपर ओ जवाब देलक- “हमरा लोकनि पूर्णियाँ जिलासँ छी”।
एहिपर हम कहलियैक- “हम मधुबनीसँ छी”।
एकर बाद हमरा लोकनि अपन वार्तालाप मैथिलीमे शुरु कऽ देल।
मलाह हमर दिस इंगित भय कहलक- “सरकार अहाँ लोकनि कतयसँ आयल छी”।
एहिपर हम कहलियैक, “हम मधुबनीसँ छी”।
एकर बाद हमरा लोकनि अपन वार्तालाप मैथिलीमे शुरू कऽ देल।
मलाह हमरा दिस इंगित भय कहलक: “सरकार अहाँ लोकनि कतयसँ आयल छी”?
हम जवाब देलियैक: “दिल्लीसँ। हमरा लोकनि भारत सरकारक अधीनस्थ कर्मचारी छथि। लोअर दिबांग घाटी जिलामे ओतय केर लोकक विशेषतः इदु-मिसमी जनजातिक संस्कृतिकेँ बुझबाक हेतु एवं ओहि संस्कृतिपर कार्य करबाक हेतु आयल छी”।
हमर जवाब सुनि मलहबा भैया पुछलक: “सरकार, अहाँ सब कहियासँ कहिया धरि लोअर दिबांग घाटीमे रहब? लोअर दिबांग घाटीक मुख्यालय रोईंग छैक। रोईंगमे कतय रहब”?
हम कहलियैक: “भाई, हम सब दिन भरि तँ भिन्न-भिन्न गाम सबमे कार्य करब आऽ रातुक विश्राम रोईंग केर कोनो होटलमे करब। रोईंगक ई हमर प्रथम यात्रा थीक ताहिँ होटल आदिक नाम हमरा बुझल नहि अछि। हँ ओतय केर जिला शोध अधिकारी श्री श्रुतिकर हमर पूर्व परिचित लोक छथि। हमर जे महिला सखी छथि (डॉ. ऋचा नेगी) सेहो रोईंग एवं आस-पास केर इलाकासँ पूर्व परिचित छथि। श्री श्रुतिकर एवं डॉ. ऋचा नेगी दुनू गोटे मिलि सम्भवतः नीक जगहमे हमरा लोकनिक रात्रि-विश्रामक व्यवस्था करतीह ई विश्वास अछि। जहाँ तक कार्य करबाक बात छैक तँ हमरा लोकनि २४ फरबरीसँ १ फरबरी २००८ धरि सम्पूर्ण लोअर दिबांग घाटीमे कार्य करबाक योजना बना कऽ आयल छी। आगाँ भगवानक मर्जी”।
हमरा लोकनि बात करिते रही, ओहि बीच एकाएक बरखाक एक-आध बुन्द खसय लगलैक। हम डरि गेलहुँ। भेल कहीं बीच ब्रह्मपुत्र धारमे नहि फँसि जाइ। डरैत पुछलियैक : “कहीं जोरसँ बरखा तँ नहि हेतैक? आ भेलैक तऽ हमरा लोकनि केर की गति हैत”?
हमर अकुलायल प्रश्नसँ परेशान होइत मलहबा भाइ हँसैत एवं निर्भीक स्वरमे बाजल- “सरकार, अनेरे किएक परेशान भऽ रहल छी? ई बरखा ओना तँ हैत नहि आ किनसाइत भइयो गेल तँ चिन्ताक कोनो बात नहि। हमसब जलकर केर सन्तान छी। महाराज कोइलाबीरक पुजारी छी। कोशी माइ केर कोरामे बढ़ल छी। कहू मालिक! कोसीसँ खतरनाक भला कोनो धार दुनियाँमे भला भऽ सकैत अछि? कमलेसरी मैयाक कृपा हमरा सब पर छन्हि। लगभग १५ बरखसँ नाव चला रहल छी, आइ तक कोनो दुर्घटना नहि घटित भेल। बिना कमलेसरी आ कोइलाबीरक सुमिरन केने घरसँ नहि निकलैत छी”।
मलहबा भाइ केर ढ़ाढ़ससँ मोन कनि चैन भेल। वार्तालापक कड़ी टूटल नहि। हम पुछलियैक: “अहाँ सब हमरा ई कहू जे पुरनियाँसँ सरिमाघाट कोना अयलहुँ।
मलहबा भैया कहलक : “सरकार, पेट अनलक। गाममे बड्ड गरीबी छल। एकटा बाभनसँ हमर बाबू तीन सय टाका हमर बहिनक बियाह लेल सूदिपर लेलकैक। एहि आशामे जे धान-पानि नीक जकाँ हैत तँ धान बेचि एवं मखानक खेतीक पाइसँ कर्जा सधा देबैक। दुर्भाग्यसँ लगातार तीन बरख कोसीमे बाढ़ि अबैत रहलैक आ बभनाक पाइ सधेनाइ तँ दूर हम सब अपन पेट भरक लेल धान आ अन्न सेहो डेढ़ापर लय लेलियैक। सब टा चीज बढ़ैत गेलैक। अन्ततः पाँच बरखक बाद डकूबा बभना सब टा जोरि-जारि चालिस हजार टका बना देलकैक। गाममे पंचैती बैसलैक। हमर बूढ़ बाबूकेँ बभनाक बेटा सभ बान्हि कऽ मारलकैक। हमरा सबहिक तीन बीघा जमीन बलजोरी लिखा लेलक”।
“मालिक! मरता क्या नहीं करता! एक दिन साँझ खन हमर बाबू हमरा दुनू भाइकेँ बजौलक आ कनैत कहलक। ’बौआ! हम तँ बीट-बीट धरतीकेँ बेचि देलियौ। आब तोँ सब धरतीहीन छैं। जो कलकत्ता-असम कतहुँ कमा आ पाइ भेज जाहिसँ गुजर चलौक ’। एकर बाद बाबू हमरा दुनू भाइकेँ पकड़ि जोर-जोरसँ कानय लागल”।
“बाबूक बात तँ सत्य छलैक। हमर दुनू भाइ गामसँ कनियाक गहना बन्हक राखि कलकत्ता आबि गेलहुँ। कलकत्तामे मोहियाबुर्ज नामक स्थानपर रिक्शा चलाबय लगलहुँ। शुरूमे तँ बड्ड थकान भेल परन्तु धीरे-धीरे मोन लागि गेल। बाबू आ बच्चा सबहक बड्ड ध्यान अबैत छल। एक दिन साँझमे टेलिग्राम आयल जे “बाबू मरि गेल”। देखियौ सरकार, हमर बाबूक दुर्भाग्य, मरऽ काल हम दुनू भाइ बाबू लग नहि रहियैक। हमर पितियौत आगि देलकैक”।
“बाबू श्राद्धमे गाम गेलहुँ तँ किछु लोक कुटमैतीक नोत पूरक हेतु अयलाह। ओ सब कहलनि असम चलू। हम सब असम आबि गेलहुँ। तहियेसँ सदिया घाटमे छी। बाबू तँ हमर जमीनक शोकमे मरि गेल, मुदा हम सब १५ बरखमे पाँच बीघासँ ऊपर जमीन लेलहुँ। माय एखनहु जीबैत अछि। माय हमेशा कहैत अछि। ’रे रामओतार! तोहर बाऊ तोरा स्वर्गसँ आशीर्वाद दैत छौह। बभनाकेँ देख, कुष्ट फुटि गेल छैक। बेटासभ लगो नहि अबैत छैक। घरबाली मरि गेलैक। अपने असगरे टाहिं-टाहिं करैत अछि’। सरकार हमरा सबकेँ होइत अछि जे स्वर्ग-नरक सब एहि धरतीमे छैक”।
हम रामओतारकेँ कहलियैक- “हमरा बड्ड प्रसन्नता भेल जे तोँ सब एतय इमानदारीसँ मएहनति कय सम्पत्ति अर्जन करैत छह। नीक चीजक परिणाम नीके होइत छैक”।
संयोग नीक छल। कनीक बुन्दी-बान्दी भय आकाश स्वच्छ भऽ गेलैक। बरखा नहि भेलैक। मोन खरहर भऽ गेल। ओना जनवरी-फरवरी महिना प्रचण्ड जाड़, बरखा आ बर्फ खसबाक समय छैक लोअर दिबांग घाटीमे। अपर दिबांग घाटी तँ एहि मासमे आबाजाही साफे बन्द भऽ जाइत छैक। समस्त इलाका बर्फ आऽ पानिसँ भरल। रस्ता सबपर बर्फक परत दर परत जमल रहैत छैक। स्थानीय लोक सब दू तीन मास पहिने जरूरी समान जेना कि नोन, तेल, मसल्ला, दवाइ, वस्त्र, इन्धन, अन्न आदिक भण्डारण कऽ कए राखि लैत अछि।
खैर! थोरेक कालक बाद घाटक दोसर कछेरपर हमरा लोकनि पहुँचि गेलहुँ। आब राति भऽ गेल छल। पता चलल जे ओतयसँ रोईंग शहर लगभग ५५ किलोमीटर केर दूरीपर अवस्थित छैक। ५५ किलोमीटरमे लगभग १५ किलोमीटर दियारा अर्थात् बालु आ कादोसँ भरल कच्चा रस्ता। पहिने गेल गाड़ीक लीकपर चलैत रही। खूब सावधानीक संग। ड्राइवरक गति आ दिमाग दुनू चीजक आश्चर्यजनक सामंजस्यक संग चलबाक जरूरत। से नहि भेल तँ कतहुँ फँसि जाएब।
हमरा लोकनिक गाड़ी टाटा-सूमो छल। गाड़ीक ड्राइवर धर्मा बड़ा तेज आ बातूनी। ऋचा नेगीकेँ हाँ मे हाँ मिला कऽ बेबकूफ बनेबामे माहिर। ओना ड्राइवरीमे ओतेक निपुण नहि जतेक बात बनेबामे। हम सब अन्हरिया रातिमे ओहि सुन-सान दियारामे जाइत रही। एकाएक गाड़ीक पछिला चक्का थालमे फँसि गेलैक। हम सब कियो बाहर निकललहुँ। किछु कारणवश ऋचाजी सँ बाताबाती भऽ गेल रहए ताहिँ वार्तालाप नहि चलैत छल। ऋचाजी अपन शेखी बखारय लगलीह। तुरत अपन भायक दोस्त जे कि गोरखा रेजीमेन्टमे छलन्हि तकरा फोन करय लगलीह। एम्हर हमरा लोकनि डण्टा आऽ खन्तीसँ पछिलका चक्का आ मडगार्ड लग जमल माटिकेँ हटाबय लगलहुँ। लगभग आधा घण्टा धरि ऋचाजीकेँ फोनो नहि लगलन्हि। जखन लगलन्हि तँ गोरखा रेजीमेन्ट केर ऑफिसर सब कहलकन्हि जे आबयमे ओकरा सबकेँ थोरेक देर लगतैक कारण ओऽ सब कोनो दोसर ठाम फँसल गाड़ीकेँ निकालबाक हेतु पहिनेसँ कतहु गेल छैक।
खैर! हमरा लोकनि अपन प्रयासमे लागल रही। हमरा लोकनिक मणीपुरी कैमरामेन या विडियोग्राफर रोनेल हाओबाम आ जेम्स बड़ा उत्साही युवक छलाह। ओ सभ पूर्ण तन्मयताक संगे कादो निकालयमे लागल रहलाह। हुनका लोकनिक साहसकेँ देखैत हमहू सेतु बान्हक लुक्खी जकाँ कनी-कनी माँटि निकालैत रहलहुँ। हमरा सभ लग दुर्भाग्यसँ टॉर्च आदि सेहो नहि छल।
ओहि बीचमे धर्मा ड्राइवर बाजल जे एहि रस्तामे चलबाक हेतु जरूरी छैक जे गाड़ीमे एक कोदारि, एक खन्ती, एक टॉर्च आदि लऽ कऽ चलए”।
धर्मा पहिनहुँ ऋचाजीक संग लोअर दिबांग घाटीमे आबि चुकल छल। हम आब ओकरापर कनी तमसेलहुँ- “तोँ पहिने किएक नहि खन्ती, कोदारि, टॉर्च आदि नहि अनलैंह? जखन रस्ताक बारेमे बूझल छलौक तँ एना केयरलेस किएक”?
ऋचाजी धर्माकेँ बचेबाक मुद्रामे हमरा लग अयलीह। एहिसँ पहिने जे ओऽ किछु बजितथि, हम कहलियैन- “अहाँ लेल नीक हैत जे अहाँ एकौ शब्द नहि निकालू। हम एखन घोर तामसमे छी! अहाँ सभ पहिने की एतय पिकनिक मनेबाक हेतु आयल छी”?
ऋचाजी हमर तामससँ पूर्व परिचित छलीह। ओऽ चुपे रहबामे अपन कल्याण बुझलनि आ किछु बातक जवाब नहि देलीह। ओना रोनल आऽ जेम्स केर जतेक प्रशंसा करी से कम। दुनू बिना एकौ मिनट केर आरामक कादो हटबैत रहलाह। हमहूँ तमसाइत, चिचियाइत रहलहुँ मुदा कादो हटेबाक कार्यकेँ रुकय नहि देलियैक। अन्ततः हमरा लोकनि अपन उद्देश्यमे सफलता प्राप्त कएल। गाड़ी कादोसँ बाहर भेल। आब रातिमे बौआइत डेराइत हमरा लोकनि अपन गन्तव्य दिस बढ़य लगलहुँ। लगभग १५ किलोमीटर आगाँ बढ़लाक बाद गोरखा रेजीमेन्ट बला सब एक जीप आऽ एक ट्रकक संग हमरा लोकनि लग आयल। धर्मा ड्राइवर ओकरासभकेँ बता देलकैक जे हमरा लोकनिक टाटा सूमो स्वतः हमरा लोकनिक प्रयाससँ ठीक भऽ गेल।
मुदा ऋचाजी कतय मानयबाली। सेना जीपकेँ रोकबाक इशारा करैत स्वयं गाड़ीसँ बाहर अयलीह। हाथ मिलेलन्हि। मुद्रा एहेन बनेली जेना भारतक तीनू सेनाक सर्वोत्कृष्ट अधिकारी होथि। हम तामसे भेर रही।
खैर लगभग साढ़े दस बजे रातिमे हमरा लोकनि रोईंग आबि एक स्थानीय होटलमे अयलहुँ। आब पानि खूब जोरसँ होबय लगलैक। होटलक मैनेजर एक बंगाली भद्रलोक छलाह। कनीक फुचफुचाएल। लगभग ६२ वर्षक श्यामवर्ण। मोटुका चश्मा धारण केने। हम सभ जखन होटल अयलहुँ तँ पता चलल जे जिला शोध अधिकारी डॉ. पी.के.श्रुतिकर एवं जिला भाषाधिकारी श्री जेमि पुलू महोदय हमरा लोकनिक रहय केर व्यवस्था डॉ. ऋचा नेगीसँ दूरभाषसँ भेल बातचीतक आधारपर पूर्वहिँ एहि होटलमे केने छलाह। डॉ. श्रुतिकर स्वयं कतहु व्यस्त छलाह ताहिँ लोअर दिवांग घाटीक जिला कला एवं संस्कृति अधिकारी श्री गोगोई लींगि एवं जिला भाषाधिकारी श्री जेमिपुलूकेँ हमरा लोकनिक स्वागत एवं दिशा निर्देशन हेतु होटलमे पठा देने रहथि। जार प्रचण्ड रहैक। थर-थर कँपैत आ ऊपरसँ पानिमे भिजैत कोनो तरहेँ हमरा लोकनि होटलक प्रांगणमे प्रवेश केलहुँ। होटलक स्वागत कक्षमे प्रवेश करिते मात्र बिजली गुम भऽ गेलैक। अन्हार गुप्प!!! होटल केर मैनेजर साहेब तुरत एकटा १३-१४ वर्षीय बच्चाकेँ बजौलाह। ओऽ बच्चा सेहो मोतीहारी जिलाक रहैक। बच्चाकेँ डटैत मोमबत्ती लयबाक निर्देश देलथिन्ह। हम कहलियन्हि- “एतय जेनेरेटर केर व्यवस्था नहि छैक की”? ताहिपर गोगोई लींगि महोदय कहलाह- “एतय ई सभ सुविधा कोना भेटत? एतय केर सभसँ नीक होटल यैह छैक। समय कोहुना बिताबय पड़त। एहिसँ नीक समस्त रोईंग शहरमे कोनो स्थान नहि छैक”।
कनीक कालक बाद ओ बच्चा (होटल केर नौकर) तीन टा मोमबत्ती लय हमरा लोकनि लग एक आरो नौकरक संग आयल। पता चलल जे हमरा लोकनिक व्यवस्था होटल केर तेसर तल्लापर अछि। जखन तेसर तल्लापर पहुँचलहुँ तँ घोर पश्चाताप भेल। तमाम कमरासभ दुर्गन्धसँ भरल। कोनो कमरामे लैट्रिन-बाथरूम संलग्न नहि, मूस सभ एम्हर-ओम्हर दौड़ैत; ओछाओन सभ मैल, मसुआएल आ दुर्गन्धसँ भरल। भेल, हे भगवान। कतय आबि गेलहुँ। अन्ततः एक कमरा कनीक नीक लागल। हम अपन लैपटॉप बला बैग लय ओहि कमरा दिस आगाँ बढ़ि कहलियैक जे- “हमर समान एतय राखू”।
बीचहिमे जिला कला एवं संस्कृति अधिकारी श्री गोगोई लींगि महोदय झटाक दऽ बाजि उठलाह- “नहिँ, नहिँ। एहि कमरामे अहाँ नहि रहि सकैत छी। कोनो आन कमरा पसन्द कऽ लिअ। ई कमरा हमरा लोकनि डायरेक्टर महोदया लेल सुरक्षित रखने छी”।
ई कहि गोगोई लींगि ऋचाजीक बैग लय ओहि कमरामे आबि गेलाह। फेर होटलक नौकरकेँ निर्देश देलथिन्ह: “एहि कमराकेँ ठीकसँ साफ कय डॉ. ऋचा नेगी लेल तैयार करह”।
हम तामसे भेर भऽ गेलहुँ। तामससँ काँपैत कहलियैक: “कियोक डायरेक्टर नहि अछि एतय। जैह ऋचा नेगी छथि, सैह हमहुँ छी। दू तरहक कमराक निर्देश अहाँ लोकनिकेँ के देलक”?
तावत ऋचाजी ओतय आबि गेल छलीह। ओऽ तुरतहि अपन गलतीकेँ ठीक करऽ लगलीह। गोगोई लींगिसँ हमर परिचय करओलन्हि: “ई डॉ. कैलाश कुमार मिश्र छथि। हम सभ दुनू गोटे शोध अधिकारी छी। ई ज्यादे काल असम, मणीपुर, मेघालय, नागालैण्ड, त्रिपुरा आदिमे व्यस्त रहैत छथि। अरुणाचल मूलतः हमहीँ अबैत छी। हिनका यैह कमरा देल जाय”।
हम ऋचाजीकेँ किछु नहि कहलियन्हि। अपन समान ओही कमरामे राखि लेल। गोगोई लींगि महोदय एवं भाषाधिकारी जीमि पुलू महोदयसँ हाथ मिला अपन समान सभ ठीक करय लगलहुँ। ओऽ सभ ऋचाजी एवं हमर टीमक आन सदस्य सभ लेल कमराक व्यवस्थामे लागि गेलाह। आब बिजली सेहो आबि गेल छलैक। हम मुँह हाथ धोबय चाहैत रही। मुदा पानि सर्द एतेक जेना बर्फ हो। की करू? घंटी बजाय मैनेजर साहेबकेँ बजाओल आ निर्देश देलोयन्हि जे तुरत गरम पानिक व्यवस्था करओल जाय।
पन्द्रह मिनटक बाद एक लड़का एक बाल्टीन पानि लए प्रवेश कएलक। आब हम कपड़ा बदलि मुँह हाथ धोलहुँ। हाथमे थाल इत्यादि लागल छल। तकरा नीक जकाँ साफ कयल। कनीक कालक बाद रात्रिक भोजन केर व्यवस्था भेल, मोटका चाउरक भात, हरियर तरकारी, स्थानीय साग, मुर्गाक मांस, मसुरिक दालि, टमाटर, पियाज, मुरइ, हरियर मिरचाई इत्यादि केर सलाद। रोटीक कल्पना केनाई मूर्खता। ताहिँ भोजन करय लगलहुँ। मुदा भोजनमे कोनो स्वाद नहि। भूख हदसँ ज्यादा, मुदा स्वादहीन भोजन खाऊ तँ कोना! तावतमे कैमरामेन रोनल आ जेम्स हमरा लग आबि गेलाह। कहलन्हि- “सर, ई भोजन अहाँ नहि खाऽ सकैत छी। स्थानीय मसाला आऽ बिना तेलक बनल छैक। हमरा लोकनि बड्ड भुखायल छी। एतय एक सप्ताह रहबाक सेहो अछि। अहाँ दू पैग रमक लऽ लिअ। जाड़ सेहो ठीक भऽ जाएत। एक आज्ञाकारी शिष्य जकाँ हम बिना कोनो तर्क केने रोनल आ जेम्सक बात मानि लेलहुँ। जेम्स एक स्टील बला ग्लासमे एकै बेर दू पैग रम ढारि पानिसँ भरि हमरा लग अनलन्हि। हम धीरे-धीरे पी लेलहुँ। आ नीक जकाँ भोजन कय डायरी लीखय लगलहुँ। कनीक कालक बाद ऋचाजी अयलीह। कहलन्हि: “हम अहाँसँ किछु बात करय चाहैत छी”।
हम कहलियन्हि: “हम एखन बात करबाक मूडमे नहि छी। काफी थाकल छी। अपसेट सेहो छी। अहाँ हमरासँ भोरमे बात करू।
ऋचाजी फेर कहलन्हि- “हमरा बुझा रहल अछि जे गोगोई लींगिक बातसँ अहाँकेँ हमरा प्रति किछु गलतफहमी भऽ गेल अछि। हम ओकरा दूर करए चाहैत छी। हमरा मात्र ५-१० मिनट समय दिअ। हम फेर चलि जाएब”।
हम साफ मना कऽ देलियन्हि। “देखू ऋचाजी। हम एखन बहुत डिस्टर्ब आऽ थाकल छी। अहाँसँ हम कोनो तरहक वार्तालापक मूडमे नहि छी। जतेक गलतफहमी अछि तकरा भोरमे ठीक करब। एखन हम असगर रहए चाहैत छी। चिन्तन करए चाहैत छी। आऽ पुनः सुतए चाहैत छी। अहूँ थाकल छी, जाउ आऽ सुति रहू”।
ऋचाजी बुझि गेलीह जे हम नाराज छियन्हि, मुदा वार्तालाप सेहो सम्भव नहि। कनिक उदास भय नहुँ-नहुँ हमरा कमरासँ बाहर भऽ गेलीह। जाइत-जाइत शुभ-रात्रि कहलन्हि, मुदा हम कोनो उत्तर नहि देलियन्हि। कनिक काल तक हम तमाम परियोजनापर सोचैत रहलहुँ। रोईंगक एहि विकट होटलमे अपन पुत्र शशांकक याद बेर-बेर अबैत छल। सोचि रहल रही जे पूनम (हमर कनियाँ) बड्ड परेशान हेतीह। बात करय चाहैत रही। परन्तु नेटवर्क साफे इंगित नहि भऽ रहल छल। काफी कचोट भेल। अन्ततः सुति रहलहुँ।
(अगिला अंकमे)
२. ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ। नेशनल एशोसिएशन फॉर ब्लाइन्ड, जमशेदपुरमे अवैतनिक रूपेँ पूर्वमे अध्यापन।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
छठम दिन :
३० दिसम्बर १९९०, रविवार :
आईके हमर दिनचर्या ६ बजे भोरे शुरु भेल। नित्यक्रियासऽ निवृत्त भऽ नास्ता कऽ पुनथ यात्रारम्भ भेल।शहर सऽ दूर जंगलाह रस्ता हरियर गाछ वृक्ष सऽ भरल वातावरण लक्ष्यके भूमिका बना रहल छल। हमसब भारतक प््राथम नोबेल पुरस्कार विजेता स्वर्गीय रवीन्द्रनाथ टैगोरक कर्मभूमि शान्ति निकेतन पहुंचलहुं।अहि स्थानक गौरवपूर्ण इतिहासदऽ किछ कहनाइ सूर्यक सोंझामे दीप रखनाई अछि।हॅं अत राखल वस्तुक विवरण देल जा सकैत अछि।सबसऽ पहिने रवीन्द्रभवन नामक संग्रहालय देखलहुं जे प्रवेशद्वारे लग छल। अहिमे रवीन्द्रनाथजी द्वारा उपयोग कैल जूता, ओवरकोट, कपड़ा, होमर ब्रैण्डक कार, अतऽ तक की प्लेट - चम्मच सब सेहो राखल रहै।ओहि संग्रहालयमे नोबेल पुरस्कार सेहो राखल छल।अहि संग्रहालयक बगलमे रवीन्द्रनाथ टैगोरके पॉंचटा भवन सेहो छल जकर नाम छल -
1 उद्दयन : ई दू मंजिला आर उज्जर रंगक छल।
२ कोणार्क : ई साधारण प््राकारक घर छल।
३ श्यामली : ई माटिक बनल कुटिया छल जाहिमे गॉंधीजीक चरणकमल सेहो पड़ि चुकल अछि।
४ पुनश्च : अहि एकमंजिला मकानक खिड़कीमे कॉंचक केवाड़ छल।
५ उदीचि : अहि दूमंजिला मकानक बनावट मंदिर जकॉं छल।
अकर बाद हमसब ओतक बाग-बगिचा, कला शिक्षण केन्द्र, यूनिवर्सिटी आदिक भ्रमण केलहुं।ई वास्तवमे एक गुर्उकुल छै जत प्राचीन तरीका सॅ प्राकृतिक वातावरणमे आधुनिक शिक्षा देल जाइत छै। अतय २२ भाषाक अध्यापन होइत छै।अहि तरहे ई एतिहासिक स्थानक दर्शनोपरान्त हमसब भोजन करै लेल गेलहुं।भूख तऽ लागल छल मुदा मांछ खा-खा अघा गेल छलहुं आकि थाकल छलहुं ताहि कारणे भोजनक ईच्छा नहिं छल।लेकिन जखन एकटा शिक्षकके ई पता चललैन तऽ हमरा आर हमर एक संगीके लऽ कऽ मिठाई खुआबऽ लऽ गेला। नहिं खायक बात पर डॅंटला आर ताबे तक रंग-रंगक मिठाई खुआबैत रहला जाबे मोन अकसक नहिं भऽ गेल। लागल बंगालमे मैथिलक बरियाती आयल छी।हुनकर अहि तरहक आबेस आऽ एक-एक गोटैक ध्यान राखक स्वभावके हम कहियो नहिं बिसरब।
भोजन के बाद हमसब पुन: अपन मंजिल दिस बढ़लहुं।रस्ता भरि हल्ला-हुच्चर करैत रहलहुं। बुझेबो नहिं कैल कखन सुर्यास्त भेल कखन राति आबि गेल आ चारि घंटामे तारापीठ पहुंचि गेलहुं।अगिला दिन मंदिरक दर्शन करैके छल से पूर्वसूचित कैल गेल।
उपन्यास-
उनटा आँचर- गजेन्द्र ठाकुर
उनटा आँचर
“बौआ, कनेक ओहि कठौतकेँ खुट्टाक लग कए दिऔक। बड्ड पानि चूबि रहल छैक ओतए। ई बादरकाल सभ साल दुःख दैत अछि। सोचिते रहि गेलहुँ जे घर छड़ायब। मुदा नहि भए सकल। घरोक कनी मरोमति कराएब आवश्यक छल, मुदा सेहो नहि भए सकल। ठाम-ठाम सोंगर लागल अछि। फूसोक घर कोनो घर होइत छैक? ठाम-ठाम चुबि रहल अछि, ओतेक कठौतो नहि अछि घरमे। खेनाइ कोना बनत से नहि जानि। ओसारापरक चूल्हिपर तँ पानिक मोट टघार खसि रहल अछि। एकटा आर अखड़ा चूल्हि अछि, मुदा जे ओऽ टूटि जाएत, तखन तँ चूड़ा-गुड़ फाँकि कए काज चलबए पड़त। समय-साल एहेन छैक जे चूल्हि बनाएब तँ सुखेबे नहि करत। जाड़नि सेहो सभटा भीजि गेल अछि। भुस्सीपर खेनाइ बनाबए पड़त”।
पइढ़िया उजरा नुआक आँचर ओढ़ने, थरथराइत कनियाँ काकी दस बरखक अपन भातिजक सँग, कखनो सोंगरकेँ सोझ करथि तँ कखनो कठौतकेँ एतएसँ ओतए घुसकाबथि। जतए टघार कम लागन्हि ओतएसँ घुसकाकए, जतए बेशी लागन्हि ओतए दए दैत छलीह। सौँसे घर-पिच्छर भए गेल छल। कोनटा लग एक ठाम पानि नञि चूबि रहल छल। ततए जाए ठाढ़ भए गेलीह।
“खढ़, कतेक रास, चरमे अनेर पड़ल छल। पढ़ुआ काकाकेँ कहलियन्हि नहि। घर छड़बा लेने रहितहुँ”।
“यौ बाबू। घर छड़एबाक लेल पुआर तँ भेटनहार नहि। आऽ गरीब-मसोमातक घर खढ़सँ के छड़ाबए देत”।
नेनाकेँ खढ़सँ आऽ पुआरसँ घर छड़बयबामे होमयबला खरचाक अन्तर नहि बुझल छलन्हि।
“से तँ काकी, खढ़सँ छड़ाएल घरक शान तँ देखबा जोग होइत छैक। पढ़ुआ काकाक घर देखैत छियन्हि। देखएमे कतेक सुन्दर लगैत अछि आऽ केहनो बरखा होए, एको ठोप पानि नहि चुबैत अछि”।
“से तँ सभसँ नीक घर होइत अछि कोठाबला”।
“एह, की कहैत छी? गिलेबासँ आऽ सुरखीसँ ईँटा जोड़ेने कोठाक घर भए जाइत अछि। आऽ नेङराक घर तँ सीमेन्टसँ जोड़ल छैक, मुदा परुकाँ ततेक चुबैत छल से पूछू नहि”।
“से”।
“हँ यै काकी। सभ बरख जौँ छड़बा दी, तँ ओहिसँ नीक कोनो घर होइत छैक”।
“चारिम बरख जे छड़बेने छलहुँ तकर बादो पहिल बरखामे खूब चुअल छल”।
“पहिलुके बरखामे चुअल होएत, फेर सभ तह अपन जगह धऽ लेने होएत, तखन नहि चुअल होएत”।
“हँ, से तँ तकरा बाद तीन साल धरि नहि चुअल”।
तखने कनिआ काकी बजैत अएलीह-
“जनमि कए ठाढ़ भेल अछि आऽ की सभ काकीकेँ सिखा रहल अछि। कनेक उबेड़ जेकाँ भेलैक तँ सोचलहुँ जे बहिन-दाइक खोज पुछड़ि कए आबी”।
बुन्नी रुकि गेल छल। भातिज अपन घर दिस गेलाह आऽ दुनू दियादनीमे गप-शप शुरू भए गेल।
साँझ भेल। भदबरिया अन्हार। कनिआ काकी कहैत गेलखिन्ह-
“बहिन दाइ, आगिक जरूरी पड़य तँ हमर घरसँ लए जाएब”।
“नञि बहिनदाइ। सलाइमे दू-तीन टा काठी छैक। मुदा मसुआ गेल छैक। हे, ई डिब्बी दैत छियन्हि, कनेककाल अपन चुल्हा लग राखि देथिन्ह तँ काजक जोगर भए जाएत। बौआ दिआ पठा दिहथि”।
“देखिहथि। उपास नञि कऽ लिहथि से कहि दैत छियन्हि”।
कनियाँ काकी ओसारापर खुट्टापर पीठ सटा बैसि गेलीह।
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“खुट्टा पहलमान छथि ई”।
“से नहि कहू काका। जबरदस्तीक मारि-पीटि हम नहि करैत छी, ताहि द्वारे ने अहाँ ई गप कहि रहल छी”।
फूदन काका आऽ उदन भातिज। पित्ती-भातिजमे ओहिना गप होइत छलन्हि, जेना दोस्तियारीमे गप होइत छैक। अखराहामे जखन उदन सभकेँ बजाड़ि देथि तखन अन्तिममे फूदन हुनकासँ लड़य आबथि। काका कहियो हुनका नहि जीतए देलखिन्ह।
उदनक कनियाँ नव-नव घरमे आएल छलीह। एहि तरहक वातावरण घरमे देखलन्हि तँ मोन प्रसन्न भऽ गेलन्हि। घरक दुलारि छलीह आऽ सासुरो तेहने भेटि गेलन्हि। समय बीतए लगलन्हि। मुदा उदनक विधवा एतेक जल्दी कहाय लगतीह से नहि बुझल छलन्हि हुनका। आब तँ सभ प्रकारक विशेषणक अभ्यास भऽ गेल छन्हि। झगड़ा-झाँटि बीच क्यो ईहो कहि दैत छन्हि- वरखौकी, वरकेँ मारि डाइन सिखने छथि!
उदनक जिवैत जे सभक दुलारि छलीह तकर सभक आँखिक काँट भए गेलीह। फूदन कनियाँक पक्ष लए किछु बाजि देलखिन्ह एक बेर तँ कनियाँक सासु-ससुर कहए लगलखिन्ह जे हमर पुतोहुकेँ दूरि कए रहल छथि। अपना घरमे मुद्दीबासभक घटना हेतैक, तखन ने बुझए जाइत। लोक कहैत छैक जे सुखक दिन जल्दी बीति जाइत अछि, मुदा कनियाँक दुखक दिन जल्दी बीतैत गेलन्हि, सुखक दिन तँ एखनो एक-संझू उपासमे खुजल आँखिसँ कनियाँ काकी देखैत रहैत छथि, खतमे नहि होइत छन्हि। विधवा भेलाक अतिरिक्त आन घटनाक्रम अपन नियत समयसँ होइत रहल। हुनकर माता-पिताक मृत्यु भेलन्हि, सास-ससुरक सेहो। फेर पितिया ससुर फूदन कका सेहो गुजरि गेलाह। घरमे जखन बँटबारा होमय लागल तखन सम्पत्तिक- खेत-पथारक बँटवारा चारि भैयारीमे मात्र तीन ठाम होमय लागल। उदनक हिस्सा तीनू जिबैत भैयारी बाँटि लेलन्हि। कनियाँ किछु कहलखिन्ह जे हमर गुजर कोना होएत तँ उदनक मृत्युक दोष हुनका माथपर दए कनियाँक मुँह बन्न कए देल गेल। तीनू भाँयक मुँह उदनक समक्ष खुजैत नहि छलन्हि मुदा हुनका मृत्युक बाद हुनकर विधवाकेँ हिस्सा नहि देबऽ लेल तीनू भाँय सभ तरहक उपाय केलन्हि। कनियाँ नैहर जाऽ कए अपन भायकेँ बजा कए अनलन्हि। पंचैती भेल आऽ फेर अँगनाक कातमे एकटा खोपड़ी अलगसँ तीनू भाँय बान्हि देलखिन्ह कनियाँ काकी लेल। धान, फसिल सभ सेहो जीवन निर्वाहक लेल देबाक निर्णय भेल। कनियाँ काकी चरखा काटए लगलीह, से कपड़ा-लत्ता ओतएसँ तेना निकलि जान्हि।
“लिअ काकी सलाइ”।
“हँ बौआ”। भक टुटलन्हि कनियाँ काकीक। बच्चा सलाइ पकड़ाए चलि गेल।
एहि बेर बाढिक समाचार रहि रहि कए आबि रहल छैक। बाट घाट सभ जतए ततए डूमि रहल छलए, खेत सभ तँ पहिनहि डूमि गेल छलए। पढ़ुआ काकी पहिनहिये सुना देने छथिन्ह जे एहि बेर वार्षिक खर्चामे कटौती हेतन्हि।
“कनियाँ सभटा फसिल डूमि गेल, एहि बेर वार्षिक खरचामे कटौती हेतन्हि”।
“एँ यै काकी। जहिया फसिल नीक होइए तँ हमर खरचामे कहाँ कहियो बेशी धान देलहुँ”?
ई गप पढ़ुआ काका सुनि रहल छलाह। बजलाह- “राँड़ तँ साँढ़ भए गेल”। पढ़ुआ काकीक इशारा केलापर ओऽ ससरि कए दलान दिशि बहराऽ गेलाह। कनियाँ काकी नोर सोंखि गेलीह।
धुत्त दिनमे तँ खेनहिये छलहुँ, एहि अकल-बेरमे केना खेनाइ बनाएब। कनियाँ-मनियाँ छलीह तखने विधवा भऽ गेलीह आऽ अहू वयसमे तैँ सभ कनियाँ-काकी कहैत छन्हि। उदन कतेक मानैत छलखिन्ह अपन भायकेँ, अपन पेट काटि मुजफ्फरपुरमे राखि पढ़ओलन्हि छोटका भाइकेँ आऽ आब ओऽ पढ़ुआ बौआ एहेन गप कहैत छथि। सोचिते-सोचिते नोर भरि अएलन्हि आँखिमे। भातिजक संग एकबेर मास करए लेल गेल रहथि। अपन बड़की दियादिनीकेँ सुनबैत रहथि खिस्सा- बहिनदाइ, ततेक भीड़ छलए ट्रेनमे, गुमार ततबे। गाड़ीमे बेशी मसोमाते सभ छलीह। एक गोटे कहैत छलीह जे जतेक कष्ट आइ भेल ततेक तँ जहिया राँड़ भेल छलहुँ तहियो नञि भेल छलए। कनियाँ काकीक मुँहपर बारीक हहाइत पानि आऽ चारसँ टपटप चुबैत पानिक ठोपक आऽ घुप्प अन्हारक बीच कनेक मुस्की आबि गेलन्हि। सोचिते-सोचिते खाटपर टघरि गेलीह कनियाँ काकी, भोर होइत-होइत बारीक पानि बान्हपरसँ अँगना दिस आबि गेल। तीनू भैयारी अपन-अपन हिस्साक आंगन भरा लेने छलाह से सभटा पानि सहटि कऽ कनियाँ काकीक धसल आँगनसँ खोपड़ी दिस बढ़ि गेल। घरमे चारि आँगुर पानि भरि गेल। भोरमे किछु अबाज भेल आऽ जे उठैत छथि तँ खाटक नीचाँ पानि भरल छल, एक-कोठी दोसर कोठीपर अपन अन्न-पानिक संग टूटि कऽ खसल छल। आब की हो बड़की दियादनीक बेटा सभसँ पहिने आबि कऽ खोज पुछाड़ि केलकन्हि, अबाज दूर धरि गेल छलए। सभटा अन्न-पानि नाश भऽ गेलन्हि। अन्न पानि छलैन्हे कोन- दू-टा छोट-छोट कोठी, ओकरे खखरी-माटि मिलाऽ कऽ दढ़ करैत रहैत छलीह। मुदा भोर धरि ओऽ हहा कऽ खसल आऽ मसोमातक जे बरख भरिक बाँचल मासक खोरिस छल तकरा राइ-छित्ती कऽ देलक। कनियाँ काकी सूप लऽ कऽ अन्नकेँ समटए लेल बढ़लीह मुदा कमलाक बाढ़िक पानिक संग पाँकक एक तह आबि गेल छलन्हि हुनका घरमे।
सौँसे टोल हल्ला भऽ गेल जे देखिऔ केहन भैंसुर दिअर सभ छै, अपना-अपनीकेँ अपन-अपन अँगना भरि लए गेल अछि। मसोमातक अँगना तँ अदहासँ बेशी धकिआ लऽ गेल छलैहे, जे बेचारीक बचल अँगना अछि से खधाई बनि गेल अछि। बड़की दियादिनी सहटि कऽ अएलीह कारण दिआद टोलक लोक सभ आबए लागल रहथि। कनियाँ काकीक सोंगरपर ठाढ़ घरक दुर्दशा देखि सभ काना-फूसी करए लागल रहए। बड़की दिआदिनीक संग कनियाँ काकी बौक भेल पछोड़ धऽ हुनकर घरमे पहुँचि गेलीह। अँगनाक एक कोनसँ दोसर कोन, अपन घरसँ दोसराक घर!
पानि पैसबाक देरी रहैक आऽ आस्ते-आस्ते कनियाँ काकीक घरक एक कातक भीतक देबाल ढहि गेल। टोलबैया सभ हल्ला करए लागल जे कनियाँ काकी भितरे तँ नञि रहि गेलथि। बड़की दिआदिनी खसल घर देखि हदसि गेलीह, भगवान रक्ष रखलखिन्ह जे सुरता भेल आऽ कनियाँकेँ घर लए अनलियन्हि नहि तँ दियादी डाह नहि बुझल अछि। सभ कलंक लगबितए अखने।
दियाद सभ सभ गप बूझि अपन-अपन घर जाए गेलाह। मन्टुन भातिज कनियाँ काकी लग अएलाह। मार्क्सवादी विचारक रहथि, दरभंगामे पढ़ैत छलाह। विधवा-विवाह, जाति-प्रथा सभ बिन्दुपर पितासँ आऽ पढ़ुआ काकासँ भिन्न विचार रखैत छलाह। घरक नाम मन्टुन छलन्हि मुदा स्कूल कॉलेजक नाम मृत्युंजय छलन्हि। मुदा घरमे कोनो मोजर नहि छलन्हि, कहल जान्हि जे पहिने पढ़ि-लिखि कऽ किछु करू। काकीसँ कतेक गमछा-झोड़ा भेटैत छलन्हि, चरखाक सूतक कमाइक, जय गाँधी बाबा, विधवा लोकनि लेल ई काज धरि कऽ गेलाह। गाममे भोजमे खढ़िहानक पाँति आऽ बान्हपरक पाँति देखि विचलित होइत छलाह। जोन-बोनिहारकेँ बान्हपर बैसा कऽ खुआबैत देखैत छलाह आऽ बाबू-भैयाकेँ खढ़िहानमे। खढ़िहानमे बारिक लोकनि द्वारा खाजा-लड्डू कैक बेर आनल जाइत छल । बान्हपरक पाँतीमे
५.पद्य
५.१.श्यामल सुमनक-आत्म-दर्शन
५.२.श्री गंगेश गुंजनक- राधा (चारिम खेप) ज्योतिक- असल राज
५.३.महाकाव्य- बुद्ध चरित
५.४.डॉ पंकज पराशरक कविता
५.५.विनीत उत्पलक ३ गोट कविता
५.६. महेश मिश्र "विभूतिक" कविता"
श्यामल किशोर झा, लेखकीय नाम श्यामल सुमन, जन्म १०।०१।१९६० चैनपुर जिला सहरसा बिहार, स्नातक । शिक्षा:अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र एवं अंग्रेजी, विद्युत अभियंत्रणमे डिपलोमा, प्रशासनिक पदाधिकारी,टाटा स्टील, जमशेदपुर,स्थानीय समाचार पत्र सहित देशक अनेक पत्रिकामे समसामयिक आलेख, कविता, गीत, गजल, हास्य-व्यंग्य आदि प्रकाशित, स्थानीय टी वी चैनल एवं रेडियो स्टेशनमे गीत गजल प्रसारण, कैकटा कवि सम्मेलनमे सहभागिता ओ मंच संचालन।
आत्म-दर्शन
ठोकलहुँ अपन पीठ अपने सँ, बुझलहुँ हम होशियार!
लेकिन सच कि एखनहुँ हम छी, बेबस आउर लाचार!
यौ मैथिल जागू करू विचार ! यौ मैथिल सुनि लिय हमर पुकार!!
गाम, जिला के मोह नहि छूटल, नहि बनि सकलहुँ हम मैथिल!
मंडन के खंडन केलहुँ आउर, बिसरि गेल छी कवि कोकिल!
कानि रहल छथि नित्य अयाची, छूटल सब व्यवहार!
बेटीक बापक रस निकालू, छथि सुन्दर कुसियार!!
यौ मैथिल जागू करू विचार ! यौ मैथिल सुनि लिय हमर पुकार!!
मिथिलावासी बड़ तेजस्वी, इहो बात अछि जग जाहिर!
टाँग घीचै मे अपन लोक के, एखनहुँ हम छी बड़ माहिर!
छटपट मन करय किछु बाजी, सुनवा लय क्यो नहि तैयार!
मुखिया नहि मानथि समाज के, एक सँ एक बुधियार!!
यौ मैथिल जागू करू विचार ! यौ मैथिल सुनि लिय हमर पुकार!!
''संघे शक्ति कलियुगे'' के, कतेक बेर सुनलहुँ हम बात!
ढंगक संघ बनल नहि एखनो, हम छी बिल्कुल काते कात!
सुमन हाथलय बिहुँसल मुँह सँ, स्वागत वो सत्कार!
हृदय के भीतर राति अन्हरिया, चेहरा पर भिनसार!!
यौ मैथिल जागू करू विचार ! यौ मैथिल सुनि लिय हमर पुकार!!
१. श्री गंगेश गुंजन २. श्रीमति ज्योति झा चौधरी
१. श्री डॉ. गंगेश गुंजन(१९४२- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार।१९६४-६५ मे पाँच गोटे कवि-लेखक “काल पुरुष”(कालपुरुष अर्थात् आब स्वर्गीय प्रभास कुमार चौधरी, श्री गंगेश गुन्जन, श्री साकेतानन्द, आब स्वर्गीय श्री बालेश्वर तथा गौरीकान्त चौधरीकान्त, आब स्वर्गीय) नामसँ सम्पादित करैत मैथिलीक प्रथम नवलेखनक अनियमितकालीन पत्रिका “अनामा”-जकर ई नाम साकेतानन्दजी द्वारा देल गेल छल आऽ बाकी चारू गोटे द्वारा अभिहित भेल छल- छपल छल। ओहि समयमे ई प्रयास ताहि समयक यथास्थितिवादी मैथिलीमे पैघ दुस्साहस मानल गेलैक। फणीश्वरनाथ “रेणु” जी अनामाक लोकार्पण करैत काल कहलन्हि, “ किछु छिनार छौरा सभक ई साहित्यिक प्रयास अनामा भावी मैथिली लेखनमे युगचेतनाक जरूरी अनुभवक बाट खोलत आऽ आधुनिक बनाओत”। “किछु छिनार छौरा सभक” रेणुजीक अपन अन्दाज छलन्हि बजबाक, जे हुनकर सन्सर्गमे रहल आऽ सुनने अछि, तकरा एकर व्यञ्जना आऽ रस बूझल हेतैक। ओना “अनामा”क कालपुरुष लोकनि कोनो रूपमे साहित्यिक मान्य मर्यादाक प्रति अवहेलना वा तिरस्कार नहि कएने रहथि। एकाध टिप्पणीमे मैथिलीक पुरानपंथी काव्यरुचिक प्रति कतिपय मुखर आविष्कारक स्वर अवश्य रहैक, जे सभ युगमे नव-पीढ़ीक स्वाभाविक व्यवहार होइछ। आओर जे पुरान पीढ़ीक लेखककेँ प्रिय नहि लगैत छनि आऽ सेहो स्वभाविके। मुदा अनामा केर तीन अंक मात्र निकलि सकलैक। सैह अनाम्मा बादमे “कथादिशा”क नामसँ स्व.श्री प्रभास कुमार चौधरी आऽ श्री गंगेश गुंजन दू गोटेक सम्पादनमे -तकनीकी-व्यवहारिक कारणसँ-छपैत रहल। कथा-दिशाक ऐतिहासिक कथा विशेषांक लोकक मानसमे एखनो ओहिना छन्हि। श्री गंगेश गुंजन मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक छथि आऽ हिनका उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल छन्हि। एकर अतिरिक्त्त मैथिलीमे हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोर (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आऽ शब्द तैयार है (कविता संग्रह)। प्रस्तुत अछि गुञ्जनजीक मैगनम ओपस "राधा" जे मैथिली साहित्यकेँ आबए बला दिनमे प्रेरणा तँ देबे करत सँगहि ई गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित सभ दुःख सहए बाली- राधा शंकरदेवक परम्परामे एकटा नव-परम्पराक प्रारम्भ करत, से आशा अछि। पढ़ू पहिल बेर "विदेह"मे गुञ्जनजीक "राधा"क पहिल खेप।-सम्पादक।
गुंजनजीक राधा
विचार आ संवेदनाक एहि विदाइ युग भू- मंडलीकरणक बिहाड़िमे राधा-भावपर किछु-किछु मनोद्वेग, बड़ बेचैन कएने रहल।
अनवरत किछु कहबा लेल बाध्य करैत रहल। करहि पड़ल। आब तँ तकरो कतेक दिन भऽ गेलैक। बंद अछि। माने से मन एखन छोड़ि देने अछि। जे ओकर मर्जी। मुदा स्वतंत्र नहि कए देने अछि। मनुखदेवा सवारे अछि। करीब सए-सवा सए पात कहि चुकल छियैक। माने लिखाएल छैक ।
आइ-काल्हि मैथिलीक महांगन (महा+आंगन) घटना-दुर्घटना सभसँ डगमगाएल-
जगमगाएल अछि। सुस्वागतम!
लोक मानसकें अभिजन-बुद्धि फेर बेदखल कऽ रहल अछि। मजा केर बात ई जे से सब भऽ रहल अछि- मैथिलीयेक नाम पर शहीद बनवाक उपक्रम प्रदर्शन-विन्याससँ। मिथिला राज्यक मान्यताक आंदोलनसँ लऽ कतोक अन्यान्य लक्ष्याभासक एन.जी.ओ.यी उद्योग मार्गे सेहो। एखन हमरा एतवे कहवाक छल । से एहन कालमे हम ई विहन्नास लिखवा लेल विवश छी आऽ अहाँकेँ लोक धरि पठयवा लेल राधा कहि रहल छी। विचारी।
केने छथि बेश सनाथ सबकें,
स्नेही-संबंधी
सौंसे समाज कें ई जे छथि
बनल लोकक गीलमल हार,
यमुना कुंजक मायावी मुरलीक कलाकार
बेफिकिर निश्चिन्त बनल अकान अनठा बैसल
कतहु अपस्यांत अनमस्क चिबबैत अपन ठोढ़
गुलाबक कोंढ़ीक दुपत्ती सन मृदुल लाल टुहटुह
अपने मे ध्यानस्थ
सौंसे संसार कें अनुपस्थि क'
दूरस्थ धरतीक कोर परक
टुग्गर सन गाम बिसरि
बैसल मथुरा सं चलबै छथि सरकार,
धन्य छी अहूं कृष्ण, छी धरि अपरम्पार,
बिहुंसि रहल छी,
बड़ उतकीरना करैत छी
हमर एहन मनकथाक करैत छी ठठ्ठा,
बड़ दिव,
धन्य छी बाबू, धन्य छी
मुदा एहू गरीबिनीक दिन फिरतै कहियो,
तखने पूछब हमहूं अहांक मनक हालचाल,
एक युग सं बौक अहांक बंसुरीक बोलक
नित्य निर्मल कालिन्दीक छल-छल बहैत
अहंक हृदय-धार सुखा जयवाक समाचार,
एखन मुदा लाचारी अछि, तैयो
एतवा धरि कहि रहले हमर एहि प्राण मे बैसल
सौंसे ब्रज
बड़ उदास बड़ उदास,
मुरलीधर! अहां कोना छी ?कतय ?
एक युग सं
कियेक चुप अछि एना बंसुरी ?
ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ। नेशनल एशोसिएशन फॉर ब्लाइन्ड, जमशेदपुरमे अवैतनिक रूपेँ पूर्वमे अध्यापन।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
असल राज
लन्दन शहरमे भोरक भीड़सऽ
भागैत दिनचर्याके आढ़िसऽ
ठाढ़ भेलहुं कात भऽ॥१॥
लागल सबके प्रेत रेवारने छल
आकि कोनो लॉटरी फुजल
सबके तेना पड़ाहि लागल छल॥२॥
समय सॅ छलै सब पैबन्ध
विदा काज दिस एक बैगक संग
ओवरकोटमे बन्द॥३॥
मिथ्या अभिमान भेल विलीन
सब काजक सुरमे तल्लीन
स्वावलम्बी आऽ आत्माधीन ॥४॥
कानूनन ठीक अछि जे कोनो काज
तकरा करैमे जे नहि केलक लाज
सैह कऽ रहल अछि असल राज॥ ५॥
बुद्ध चरित-गजेन्द्र ठाकुर
माया-शुद्धोधनक विह्वलताक प्रसन्नताक,
ब्राह्मण सभसँ सुनि अपूर्व लक्षण बच्चाक,
भय दूर भेल माता-पिताक तखन जा कऽ,
मनुष्यश्रेष्ठ पुत्र आस्वस्त दुनू गोटे पाबि कए।
महर्षि असितकेँ भेल भान शाक्य मुनि लेल जन्म,
चली कपिलवस्तु सुनि भविष्यवाणी बुद्धत्व करत प्राप्त,
वायु मार्गे अएलाह राज्य वन कपिलवस्तुक,
बैसाएल सिंहासन शुद्धोधन तुरत,
राजन् आएल छी देखए बुद्धत्व प्राप्त करत जे बालक।
बच्चाकेँ आनल गेल चक्र पैरमे छल जकर,
देखि असित कहल हाऽ मृत्यु समीप अछि हमर,
बालकक शिक्षा प्राप्त करितहुँ मुदा वृद्ध हम अथबल,
उपदेश सुनए लेल शाक्य मुनिक जीवित कहाँ रहब।
वायुमार्गे घुरलाह असित कए दर्शन शाक्य मुनिक,
भागिनकेँ बुझाओल पैघ भए बौद्धक अनुसरण करथि।
दस दिन धरि कएलन्हि जात-संस्कार,
फेर ढ़ेर रास होम जाप,
करि गायक दान सिघ स्वर्णसँ छारि,
घुरि नगर प्रवेश कएल माया,
हाथी-दाँतक महफा चढ़ि।
धन-धान्यसँ पूर्ण भेल राज्य,
अरि छोड़ल शत्रुताक मार्ग,
सिद्धि साधल नाम पड़ल सिद्धार्थ।
मुदा माया नहि सहि सकलीह प्रसन्नता,
मृत्यु आएल मौसी गौतमी कएल शुश्रुषा।
उपनयन संस्कार भेल बालकक शिक्षामे छल चतुर,
अंतःपुरमे कए ढेर रास व्यवस्था विलासक,
शुद्धोधनकेँ छल मोन असितक बात बालक योगी बनबाक।
सुन्दरी यशोधरासँ फेर करबाओल सिद्धार्थक विवाह,
समय बीतल सिद्धार्थक पुत्र राहुलक भेल जन्म।
(अगिला अंकमे)
डॉ पंकज पराशर
श्री डॉ. पंकज पराशर (१९७६- )। मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आऽ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी.पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आऽ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आऽ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। रघुवीर सहायक साहित्यपर जे.एन.यू.सँ पी.एच.डी.।
पृथकावली
दिल्लीक शरणागत अहल भोरेसँ साँझ धरि
डेग-डेगपर अर्पित करैत छी अपन आत्म आओर अपन सम्मान
आ जिनगीमे अर्जित कयल सबटा ज्ञान
चारि कौर अन्न आ पाँच हाथ बस्तर लेल रने-बने बौआइत
बाकी चारू भाइ आ बहीन हमर देशक कोन-कोनमे
अभ्यर्थित आँखिसँ बेस उताहुल
बेर-बेर भरोस दियबैत अछि नियोक्ताकेँ अपन बुत्ता भरि
जे कहियो नहि धयलक हरक लागन जिनगीमे
से मोंछगर हमर भाइ सब आइ खूब हरखित मोनेँ
रोपैत छथि धान आ बेचैत छथि पान
देशक कोन-कोनमे बिहरल अहराक खोजमे
दूरभाषिक वार्तालापमे सबटा खेरहा सुनबैत
बिहरैत परिवारक गाथाक बीच बढ़ैत सदस्य सबहक
बिलहैत अछि सूचना मुक्त मोनेँ,
संचारी भाव केर स्थायी अर्थाभावक बिना कोनो चिन्ता कयनेँ-
गामक खिस्सा सबहक बीच-बीचमे
कइक सालसँ कलकत्तामे निपत्ता बड़का काकाकेँ ताकबाक
सबटा व्यर्थ भेल प्रयास केर खिस्सा हमरा सुनल अछि
काकीक एकादशी-हरिबासन आ गंगामे एकटंगा देबाक आख्यान सेहो
सबहक पता-ठेकान जनितो हमरा लोकनि आब
जोखैत रहैत छी भेंट-घाँटक आकुलताकेँ
मासूलक पाइसँ
नहि जानि आपात चिकित्सा कक्षमे हमरा
किएक मोन पड़ैत अछि रहैत अछि
बाबीक गाओल सोहर आ साँझक गीत
जखन कि बाबीकेँ मुइना आइ तीस-पैंतीस बरखसँ बेशी भऽ गेलनि
एक भाइ दिल्ली आ एक कलकत्ता
एक बहीन पंजाब आ दोसर राजस्थानक रेगिस्तानमे अभिशापित
नैहरमे सुनल फकड़ा दोहरबैत रहैत अछि मोने-मोन...
जाहि बाटे गेली बेटी दूबिया जनमि गेलइ...
पृथ्वीक कोने-कोन बौआइत हम देखैत छी
गरीबक अहरापर गहन पहरा दैत महाशक्तिकेँ करे-कमान
कतेक गाम नापब एखनो बाकी छनि वामनावतार प्रभुकेँ?
जरीब-कड़ीकेँ उघबाक लेल जनमल हमरा लोकनि
कोन-कोन नक्शाक लेल पृथ्वीपर घीचैत रहब डाँड़ि
आ लड़ैत रहब ओहि राष्ट्र केर गौरवक लेल
जकर झटहा कइक पुस्तसँ हमरा लोकनिकेँ खेहारि रहल अछि
जंगलसँ गाम आ गामसँ शहरक नहर-छहरपर बसल
जलहीन मलिन बस्तीक मल-जलक असह्य दुर्गंधक बीच
बाबाक अपार्थिव इच्छा हुनक पार्थिव शरीरक संगे चलि गेलनि
क्यो काका ईर घाट तँ क्यो काका बीर घाटमे बसल
दसकठबा डीहकेँ पियाजुक क्यारीमे बाँटिकेँ संतुष्ट आब
कोनो काज-परोजनक अवसरपर
गामक स्मृति-संपदाकेँ दूरभाषिक आ ई-मेली चँगेरामे बिलहैत छथिन
नहि जानि कहिया धरि अपने देशक अमेरिका आ इजराइलमे
कहुखन अफ्रीकी तँ कहुखन फिलिस्तीनी बनल
मतृभूमिसँ तिरस्कृत संज्ञाकेँ घृणा आओर घृणाकेँ जीवनक प्रसाद बुझि
बौआइत रहब अनौन-बिसौन भेल
जिनगीक फागुनेमे
साओन-भादब भेल...
थाल-कादो भेल...!
१.विनीत उत्पल (१९७८- )। आनंदपुरा, मधेपुरा। प्रारंभिक शिक्षासँ इंटर धरि मुंगेर जिला अंतर्गत रणगांव आs तारापुरमे। तिलकामांझी भागलपुर, विश्वविद्यालयसँ गणितमे बीएससी (आनर्स)। गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालयसँ जनसंचारमे मास्टर डिग्री। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्लीसँ अंगरेजी पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्लीसँ जनसंचार आऽ रचनात्मक लेखनमे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजोल्यूशन, जामिया मिलिया इस्लामियाक पहिल बैचक छात्र भs सर्टिफिकेट प्राप्त। भारतीय विद्या भवनक फ्रेंच कोर्सक छात्र।
आकाशवाणी भागलपुरसँ कविता पाठ, परिचर्चा आदि प्रसारित। देशक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे विभिन्न विषयपर स्वतंत्र लेखन। पत्रकारिता कैरियर- दैनिक भास्कर, इंदौर, रायपुर, दिल्ली प्रेस, दैनिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली, फरीदाबाद, अकिंचन भारत, आगरा, देशबंधु, दिल्ली मे। एखन राष्ट्रीय सहारा, नोएडा मे वरिष्ट उपसंपादक .।
१. समर्पण
(कथक नृत्यांगना पुनीता शर्माक लेल)
जीवनक जीवंतता कि
मनुष्यक मनुष्यता कि
जेहन मोन, जेहन भाव
तहिने होइत समर्पण भाव
नर्तकी जखन राग मालकौस मे
स्टेज पर रोशनीक चकाचौंध मे
अपन संपूर्ण प्रतिभाक प्रदर्शन करैत छथि
देखू तखैन कि हैत छथि राग, कि हैत छथि भाव
लागत जना हुनकर देह मे
नर्तकीक आत्मा नहि
देवता बैस गेल
जे जेना नचाबि रहल छैल
तहिना नर्तकी नाचैत छथि
कि ततकार कि ठाठ
कि करि ओइ चक्करक वर्णन
शब्दो तं ओतेक नहि अछि
त कोना करि
समर्पण भावक वर्णन
अहां जकर बेटी होइब
अहां जकर बहिन होइब
मुदा, अहां जकरा सं
प्रेम करैत होइब
ई सब कतेक खुशनसीब होइत
जे नर्तकी
अपन संपूर्ण अस्तित्व
नृत्य मे झोंइक दैत छथि
हुनकर प्रेम वा पुरुष
वा समर्पन जरूर संपूर्ण होइत.
२. इतिहासक लिखल
कोनो इतिहासक पोथीक
पन्ना पलटि क देखि
शासक वा राजाक
इतिहास लिखल गेल छैक
एतेक त
रामायाण आ महाभारतो मे
शूरवीर आ विजेताक
गुणगान भरल छैक
भारतक स्वतंत्रताक पहिल
वा ओकर बादक इतिहास
एकरा सं
अछूत नहि छैक
माउंटबेटन सं ल कs
गांधी आ नेहरू
चंद्रशेखर आ अम्बेडकर तक
गुणगान सं भरल छैक
गांधीजी कहैत रहथि
देशक अन्तिम मनुखक
गप करू
ओकर नीक, तखन होइत देशक उत्थान
हम पूछैत छी
इतिहास तं कहियो
देशक अन्तिम मनुखक गप नहि लिखलक
तं, हम कोना करि.
३. आतंक
आतंक सं नहि
होइत आतंकवाद ख़त्म
ताहि लेल नहि
गोली वा बारूदक जरूरत
दू-चार गोटाक
पकडहि कs
गोली मारवाह सं
नहि सून-सपाट
आतंकवाद होइत
मार्क्स कs जेना रहै
मार्क्सवादक जरूरत
समाज कs रहै
समाजवादक जरूरत
आतंक कs नहि कोनो वादक जरूरत
खत्म करिय परत
आतंकक गाछ कs
ठारि कटला सं
नहि चलत काज
संपूर्ण तंत्रक करै परत ब्रेनवास
सं सुनू,
समाज मे प्रेम आ भाईचारा
भूख-प्यासक निदान
शिक्षा ओ सदभावक
अलख जगबै परत
तहि सं
सुनर परिवार
सुनर समाज
सुनर देश आ
सुनर दुनिया होइत.
महेश मिश्र “विभूति”
महेश मिश्र “विभूति” (१९४३- ),पटेगना, अररिया, बिहार। पिता स्व. जलधर मिश्र, शिक्षा-स्नातक, अवकाश प्राप्त शिक्षक।
पन्थीसँ
तनिक विलमिके सुनिली पन्थी,
अविलम पहुँचब गेहे।
तरुणाईमे कथिक अपेक्षा,
जतबा कहब, बुझब सब नेहे॥
अहाँ पन्थी! पथिक बनिके,
जा रहल छी बाटमे।
दृश्य अगणित देखब पन्थी,
भ्रमब नहि जग-हाटमे॥
आओत बाढ़ि जे स्नेह-सलिलके,
शपथ, सबल पग राखब।
दुर्बलता जँ व्यापत किञ्चित,
कहू! कोना जल थाहब॥
बिनु जल भवसागर की नदिया,
दहब-भसब नहिं बाबू।
दृढ़-सङ्कल्प पतवार पकड़िके,
राखब मन पर काबू॥
होयत हँसारति भरि जगमे,
जँ, बुड़ि जाओत नौका।
अस्तु, सोचब गृद्ध दृष्टि लऽ,
नहिं आओत फेर मौका॥
पुनः कतबा कहब बाबू?
शुभकामना अछि संगमे।
सफल होऊ , सुफल पाऊ,
शुभ रंग आनू रङ्गमे॥
अहाँ पायब सुयश जगमे,
पुलकि पुलकत गात मम्।
पूर्ण पूनम सम जँ देखब,
परम आनन्दित होयब हम॥
अछि निवेदन ईशसँ,
सद्बुद्धि दैथि सुजान के।
बड़ आश अछि पंथी अहाँसँ,
करंहु मुकलित प्राणके॥
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।(c) 2008 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ' आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ' संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ' पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.co.in पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ' रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
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1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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