भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार
लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व
लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक
रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित
रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक
'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम
प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित
आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha
holds the right for print-web archive/ right to translate those archives
and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).
ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/
पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन
संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक
अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह
(पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव
शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Sunday, October 26, 2008
विदेह १५ सितम्बर २००८ वर्ष १ मास ९ अंक १८- part-III
चित्रकार: ज्योति झा चौधरी
ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ। नेशनल एशोसिएशन फॉर ब्लाइन्ड, जमशेदपुरमे अवैतनिक रूपेँ पूर्वमे अध्यापन।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
नूतन झा; गाम : बेल्हवार, मधुबनी, बिहार; जन्म तिथि : ५ दिसम्बर १९७६; शिक्षा - बी एस सी, कल्याण कॉलेज, भिलाई; एम एस सी, कॉर्पोरेटिव कॉलेज, जमशेदपुर; फैशन डिजाइनिंग, एन.आइ.एफ.डी., जमशेदपुर।“मैथिली भाषा आ' मैथिल संस्कृतिक प्रति आस्था आ' आदर हम्मर मोनमे बच्चेसॅं बसल अछि। इंटरनेट पर तिरहुताक्षर लिपिक उपयोग देखि हम मैथिल संस्कृतिक उज्ज्वल भविष्यक हेतु अति आशान्वित छी।”
दुर्गा पूजा-
आश्विन मासक शुक्लपक्षकऽ प्रातिपदा तिथि सऽ नवरात्रीक आरम्भ होइत अछि। आन प्रदेश सऽ मिथिलांचलमे दुर्गापूजा कनिक भिन्न होइत अछि। मिंथिलांचलमे दुर्गापूजा मूलतथ्य पूजा एवम् आस्तिकताक पाबनि अछि कारण नाच गान ओतेक महत्त्वपूर्ण नहि होइत अछि। तैयो गाम सबमे मेला लागैत अछि आ नाटक- नौटंकी के आयोजन रहैत अछि। प्रतिमा पूजा होइत अछि जकर विसर्जन यात्रा दिन होइत अछि। घरे-घर अहि समय विधि-विधान सऽ पूजा होइत अछि। महाल्याक प्रात कलशकेँ स्थापित कैल जाइत अछि आ अहि के चारू कात जौ रोपल जायत अछि जाहिसॅं जयन्ती उगैत छै। भगवती दुर्गाक पूजाक ई दस दिन मिथिला प्रदेशके सबसऽ बेसी दिनतक चलैवला पूजा अछि। कतेक लोक नौ दिनका व्रत करैत छथि जाहिमे सुर्यास्तक बाद फलाहार करैत छथि। अष्टमी वा नवमी कऽ कुमारि भोजक प्रथा सेहो प्रचलित अछि। कतेक ठाम नौ दिनक सम्पूर्ण रामायणक पाठ होइत अछि तऽ कतेक लोक दसो दिन दुर्गा सप्तशतीक पाठ करैत छथि। भगवती दुर्गाक निम्नलिखित १०८ नामक प्रतिदिन जाप करनिहार के सर्वथा सिद्धि भेटैत छैन :
1 ॐ सती, २ साध्वी, ३ भवप्रीता, ४ भवानी, ५ भवमोचनी, ६ आर्या, ७ दुर्गा, ८ जया , ९ आद्या, १० त्रिनेत्रा, ११ शूलधारिणी, १२ पिनाकधारिणी, १३ चित्रा, १४ चण्डघण्टा, १५ महातपा: , १६ मन: , १७ बुद्धि: , १८ अहंकारा, १९ चित्तरूपा, २० चिता, २१ चिति:, २२ सर्वमन्त्रमयी, २३ सत्ता, २४ सत्यानन्दस्वरूपिणी, २५ अनन्ता, २६ भाविनी, २७भाव्या, २८ भव्या, २९ अभव्या, ३० सदागति: , ३१ शाम्भवी, ३२ देवमाता, ३३ चिन्ता, ३४रत्नप्रिया, ३५ सर्वविद्या, ३६ दक्षकन्या, ३७ दक्षयज्ञविनाशिनी, ३८ अपर्णा, ३९अनेकवर्णा, ४० पाटला, ४१ पाटलावती, ४२ पट्टाम्बरपरीधाना, ४३ कलमञ्जिनी, ४४ अमेयविक्रमा, ४५ क्रूरा, ४६ सुन्दरी, ४७ सुरसुन्दरी, ४८ वनदुर्गा, ४९ मातंगी, ५०मतंगमनपूजिता, ५१ ब्राह्मी, ५२ माहेश्वरी, ५३ ऐन्द्री, ५४ कौमारी, ५५ वैष्णवी, ५६चामुण्डा, ५७ वाराही, ५८ लक्ष्मी, ५९ पुर्उषाकृतिः , ६० विमला, ६१ उत्कर्षिणी, ६२ ज्ञाना, ६३ क्रिया,६४ नित्या, ६५ बुद्धिदा, ६६ बहुला, ६७ बहुलप्रेमा, ६८ सर्ववाहनवाहना, ६९ निशुम्भशुम्भहननी, ७० महिषासुरमर्दिनी, ७१ मधुकैटभहन्त्री, ७२ चण्डमुण्डविनाशिनी, ७३ सर्वासुरविनाशा, ७४ सर्वदानवघातिनी, ७५ सर्वशास्त्रमयी, ७६ सत्या, ७७ सर्वास्रधारिणी, ७८ अनेकशस्त्रहस्ता, ७९ अनेकास्रधारिणी, ८० कुमारी, ८१ एककन्या, ८२कैशोरी, ८३ युवती, ८४ यतिः , ८५ अप्रौढ़ा, ८६ प्रौढ़ा, ८७ वृद्धमाता, ८८ बलप्रदा, ८९ महोदरी, ९० मुक्तकेशी, ९१ घोररूपा, ९२ महाबला, ९३ अग्निज्वाला, ९४ रौद्रमुखी, ९५ कालरात्री: , ९६ तपस्विनी, ९७ नारायणी, ९८ भद्रकाली, ९९ विष्णुमाया, १००जलोदरी, १०१ शिवदूती, १०२ कराली, १०३ अनन्ता, १०४ परमेश्वरी, १०५कात्यायनी, १०६ सावित्री, १०७ प्रत्यक्षा, १०८ ब्रह्मवादिनी।
जितमोहन झा घरक नाम "जितू" जन्मतिथि ०२/०३/१९८५ भेल, श्री बैद्यनाथ झा आ श्रीमति शांति देवी केँ सभ स छोट (द्वितीय) सुपूत्र। स्व.रामेश्वर झा पितामह आ स्व.शोभाकांत झा मातृमह। गाम-बनगाँव, सहरसा जिला। एखन मुम्बईमे एक लिमिटेड कंपनी में पद्स्थापित।रुचि : अध्ययन आ लेखन खास कs मैथिली ।पसंद : हर मिथिलावासी के पसंद पान, माखन, और माछ हमरो पसंद अछि।
हम लड़की वला छी जनाब ...
आजुक परिवेशमे बेटी सर्वगुण संपन्न आर आत्मनिर्भर अछि ! हुनकर विवाहके जखन बात आबैत छलए ताँ दुनु पक्ष (वर - वधु) क भावनाकेँ महत्त्व देवक चाही ! हम तँ कहब आब खाली लड़किये टा नञि लड़को सभ मानसिक रूपसँ अइ बातक लेल तैयार रहथि कि शायद शिक्षा, पसंद - नापसंद, व्यवहार के लऽ कऽ ओहो कुनू लड़की द्वारा नकारल जाऽ सकैत छथि !
ई सुनि कऽ किछ अटपटा जेकाँ जरुर लागल हैत किये कि एहि तरहक भाषा तँ हमेशा लड़का (वर पक्ष) वला करैत छथि ! मुदा आब जमाना बदलि गेल यs ओ समय बीत गेल अछि जै समयमे बेटी वला अपन बेटीक लेल एक योग्य वरक तलाशमे भूख, प्यास तक बिसरि जाइत रहथि ! अपन बेटी के हाथ पियर करब ओ सब अपन जीवनक सभसँ पैघ परीक्षा बुझैत रहथिन !
आब सभ जगहक बाद अपनों मिथिलामे ई सभ परिभाषाकेँ एक नया सिरासँ गढल जाऽ रहल अछि ! आब हर माँ-बाबूजी अपन बेटीकेँ ससुराल भेजब दोसर क्रम आर बेटीक आकांक्षा हुनकर स्वतंत्र विचार राखएकेँ पहिल क्रममे राखए के प्रयास कऽ रहल छथि ! आइ के माता - पिता अपन बेटीक भविष्यसँ आशान्वित छथि, चिंतित नञि ! आइ बेटीपर कुनू तरहक दबाब नञि रहल ! आइ हुनको अपन भावी पति (वर) केहेन होइन ई तय करऽ के अधिकार छनि ! कुनू बात के लेल आइ ओऽ वाध्य नञि छथि ...
ओना आइयो अपन मिथिलामे शादी - विवाह बुजुर्गे तय करैत छथि मुदा रिश्तामे लड़की के दखल एक सुखद बदलाव अछि, अपन समाजमे आइयो लड़का वला होई के झूठा अकड़क चलन पूर्ण रूपसँ नञि मिटल अछि ! कतो नञि कतो अपनेकेँ लड़का वला दोहरी मानसिकताक चेहरा लऽ कए घुमैत नजर परले हेता !
पछिले सालक बात छी हम एक परिचितक बेटीक रिश्ताक संदर्भमे बहुत परिवारसँ मिललहुँ ! जै मे किछ अनुभव बहुत कटु रहल ! तिरस्कृत सन् बर्ताव देखलासँ मोन बहुत आहत भेल ! हम सब परिवार के आबैत घरी अपन नाराजगीयो अप्रत्यक्ष रूपसँ व्यक्तो केलियनि ! दुखक बात अछि की ऐहेन शुष्क आर रुखल व्यवहार करएसँ लोक शर्मावैतो नञि छथि ! समाजमे नज़र दौरेलासँ देखब की हर जगह लड़की वालाकेँ आत्मसम्मानक साथ खिलवार भऽ रहल अछि !
एक बेर हमर पड़ोसीक बेटीक विवाह तय भेल, वर पक्ष वाला लड़कीयो देखि कऽ गेलथि लड़की हुनको सभकेँ पसंद भेलनि। सभ बात बिचार सेहो तय भऽ गेलनि। लड़की पक्षकेँ लड़का पक्ष वालाक फोनक इंतजार रहनि। दुइ दिनक बाद लड़का वला फ़ोन केलखिन कि हमरा सोचक लेल समय चाही हमर बेटाक लेल पाँच गोट रिश्ता आयल छल। अपने के लेल विचार करब ! आब अहीं कहू, ई सब की भऽ रहल अछि ? एकर मतलब साफ छलए, की लड़कीक भावनाकेँ बूझए वाला कियो नञि छथि !
हमरा हँसीक संगे संग दुखो होइत छल जे हर बेर रिश्ता तय करबाक हक सिर्फ लड़के वाला कऽ होइ छनि ! लड़की वालाकेँ पूछए वाला कियो नञि छथि ओ एक कठपुतलीक समान कियो हुनका हाँ कहनि तय्योमे खुश नञि कहनि तय नया सिरासँ रिश्ताक तलाशमे लागि जाइत छथि ! हुनकर दुःख दर्द कियो नञि बूझक प्रयास करए छथिन ....
हम तँ कहब ई लड़का वालाक ढकोसला आब बेसी दिन नञि चलत। आइ सभ क्षेत्रमे लड़की मौजूद छथि, सर्वगुण संपन्न छथि, संगे आत्मनिर्भर सेहो छथि ! आब खाली लड़किये नञि लड़कोक मानसिक रूपसँ अइ बातक लेल तैयार रहए पड़तनि की शायद शिक्षा, पसंद - नापसंद, व्यवहारकेँ लऽ कऽ ओहो एक लड़की द्वारा नकारल जाऽ सकैत छथि !
विवाहक समय लड़का वाला उर्फ़ बरियातीगन स्व्यंकेँ बढ़ि-चढि कऽ देखाबए लेल बहुत तरहक हरकत करैत छथि, भद्दा मजाक, तरह - तरहक फरमाइश, लड़की वालाक द्वारा कएल गेल व्यवस्थापर बेवजह नाराजगी या भोजन पसंद नञि आबय के शिकायत ! लड़की वाला अपन हैसियतक अनुसार या ओइसँ बेसी निक आवभगत आर व्यवस्था राखैत छथि ! मुदा एहि तरहक बर्ताव हुनकर सब कएल गेलपर पानि फेर दैत छनि !
बेटीक विवाह शुभ - शुभ पूर्ण होइन अइ दबाबमे ओऽ चाहियो कऽ किछु नञि बाजि पावैत छथि !
सभ लड़कीक माँ - बाबूजीक फर्ज बनैत छनि कि ओऽ अपन कर्तव्यक प्रति जागरूक रहथि, संगे ओऽ अपन बेटीक भावनाक सम्मान सेहो करथि ! यदि कुनू लड़का वाला रिश्ताक लेल हँ कहैत छथि तँ ओकरा अपन भाग्य मानि कऽ अपन बेटीक हँ या नञि केँ नज़र अंदाज नञि करी, हुनकर राय जरुर ली ....
विवाहक अइ पवित्र बंधनकेँ बेरीसँ मुक्त राखी ! लड़का वाला अहं आर लड़की वाला बेचारगीकेँ बिसरि जाओ ! बेटेक जेकाँ बेटियोक जन्म सुखद अछि। हर माता - पिता गर्वसँ कहू ...... हम लड़की वला छी जनाब...........
बालानां कृते
१.बत्तू -गजेन्द्र ठाकुर
२. देवीजी:-वृक्षारोपण ज्योति झा चौधरी
चित्र: ज्योति झा चौधरी
बत्तू
एकटा बकड़ी छलि। ओकरा एकटा बच्चा भेलैक। मुदा ओऽ छागर मात्र ४ मासक छल आकि दुर्गापूजा आबि गेल। दुर्गापूजामे छागरक बलि देबाक कियो कबुला केने छलाह। से बकड़ीक मालिकक लग आबि छागरक दाम-दीगर केलन्हि। संगमे पाइ नहि अनने छलाह से अगिला दिन पाइ अनबाक आऽ चागर लए जएबाक गप कए चलि गेलाह। बकड़ी ई सभ सुनैत छलि ओऽ अपन बच्चाकेँ कहलन्हि जे भागि जाऊ जंगल दिस नहि तँ ई मलिकबा काल्हि अहाँकेँ बेचि देत आऽ किननहार दुर्गापूजामे अहाँक बलि दए देत। छागर राता-राती जंगल भागि गेल। २-३ साल ओऽ जंगलमे बितेलक, मोट-सोट बत्तू भए गेल, पैघ दाढ़ी आऽ सिंघ भए गेलैक ओकरा। एक दिन घुमैत-घुमैत ओऽ दोसर जंगलमे चलि गेल। ओतए एकटा बाघ छल, बत्तू बाघकेँ देखि कए घबड़ा गेल। बाघ सेहो एहन जानवर नहि देखने छल, से ओऽ अपने डरायल छल। ओऽ पुछलक-
नामी नामी दाढ़ी मोंछ भकुला,
कहू कतएसँ अबैत छी, नञि तँ देव ठकुरा।
बत्तू कहलक-
अर्चुन्नी खेलहुँ गरचुन्नी खेलहुँ, सिंह खेलहुँ सात।
आऽ जहिया दस बाघ नञि होए, तहिया परहुँ ठक दए उपास।
ई सुनि बाघ पड़ाएल। मुदा रस्तामे नढिया सियार ओकरा भेटलैक आऽ कहलकैक जे अहाँ अनेरे डरैत छी। चलू आइ तँ नीक मसुआइ होएत। ओऽ तँ बकड़ीक बच्चा अछि। बाघ डराएल छल से ओऽ सियारक पैरमे पैर बान्हि ओतए जएबा लेल तैयार भए गेल। आब बत्तू जे दुनूकेँ अबैत देखलक तँ बुझि गेल जे ई सियरबाक काज अछि। मुदा ओऽ बुद्धिसँ काज लेलक। कहलक-
“ऐँ हौ, तोरा दू टा बाघ आनए ले कहलियहु आऽ तोँ एकेटा अनलह”।
ई सुनैत देरी बाघ भागल आऽ सियरबा घिसिआइत मरि गेल।
२. देवीजी: ज्योति झा चौधरी
देवीजी :
चित्र: ज्योति झा चौधरी
देवीजी : वृक्षारोपण
बाढ़िक खबरि सऽसब दुखी छल। कतेक ठाम तऽ विद्यालय बन्द भऽ चुकल छल। देवीजीक विद्यालय संयोग सऽ बाढ़ि सऽ बचल रहैन। लेकिन ओतय कैम्प लागल छल।बाढ़ि सऽपीड़ित लोक सबके बचाक ओतऽ आश्रय देल गेल। देवीजीके सेवा भाव फेर सब विद्यार्थी एवम् शिक्षकगणके एकजुट भय सामाजिक कार्य करलेल उत्साहित केलकैन।
सबकियो गौवॉं सबसऽ पाइ, कपड़ा आ भोजन जमाकऽ कैम्पमे बॅटलक। दवाईके इंतजाम सेहोकेलक। ओहि कैम्पमे आयल बच्चा सबके लऽ कऽ देवीजी अपन पुरान छात्र सबसंगे पढ़ेनाई सेहो प्रारम्भ केली। तहन अहि विपदाक विषयमे चर्चा उठल तऽ देवीजी सबके पर्यावरणके बढैत तापमानक जानकारी देलखिन।
ओ बतेलखिन, ''सब जगह तापमान बढ़ला सऽ हिमनद सब घमि रहल छै। ताहि पर सऽ हिमालय पर विश्वके सबसॅं ऊंच आ विशाल हिमनद छै जे गर्मीसऽ घमि रहल छै। ओकर पानि हिमालय सऽ निकल बला नदी सबमे आबि रहल छै। तैं ई विपत्ति आयल अछि। अकरा रोकैलेल नदी सबके किनार मजबूत भेनाई बड आवश्यक छै जाहिलेल सामान्य जनता वृक्षारोपण कऽ सरकारक सहायता कऽ सकैत छैथ।बान्ह बनौनाइ तऽ सरकार द्वारा कैल जायत लेकिन जगह-जगह गाछ लगा हम सब तापमान नियंत्रण आऽ माटिक कटाव पर रोक लगा सकै छी। जौं मेघके लौह मानी तऽ गाछके चुम्बक मानू।गाछ रहला सऽ बरखाक अभाव सेहो दूर होइत अछि।
देवीजीक अहि बात सऽ प्रभावित भऽ सबकियो खाली पड़ल जमीनपर आ सड़कक काते-काते गाछ लगेला आऽ कैम्पक लोकसब तऽ इहो मोन बनेला जे अपन गाम घुरलापर ओ सब ओतौ वृक्षारोपण करता आऽ वृक्षके अनायास काटऽ पर रोक लगौता।
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
मैथिलीक मानक लेखन-शैली
1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
ग्राह्य अग्राह्य
एखन अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठाम ठिमा,ठिना,ठमाजकर,तकर जेकर, तेकरतनिकर तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)अछि ऐछ, अहि, ए।
2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल।जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि।कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे।’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय(अपवाद-संसार सन्सार नहि), किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि।यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20.
ग्राह्य अग्राह्य
1. होयबला/होबयबला/होमयबला/ हेब’बला, हेम’बलाहोयबाक/होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ
47. ल’/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा’/करबाय/करबाए
60. त’/त ऽ तय/तए
61. भाय भै
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द’/द ऽ/दए
तका’ कए तकाय तकाए
पैरे (on foot) पएरे
ताहुमे ताहूमे
पुत्रीक
बजा कय/ कए
बननाय
कोला
दिनुका दिनका
ततहिसँ
गरबओलन्हि गरबेलन्हि
बालु बालू
चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
जे जे’
से/ के से’/के’
एखुनका अखनुका
भुमिहार भूमिहार
सुगर सूगर
झठहाक झटहाक
छूबि
करइयो/ओ करैयो
पुबारि पुबाइ
झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
पएरे-पएरे पैरे-पैरे
खेलएबाक खेलेबाक
खेलाएबाक
लगा’
होए- हो
बुझल बूझल
बूझल (संबोधन अर्थमे)
यैह यएह
तातिल
अयनाय- अयनाइ
निन्न- निन्द
बिनु बिन
जाए जाइ
जाइ(in different sense)-last word of sentence
छत पर आबि जाइ
ने
खेलाए (play) –खेलाइ
शिकाइत- शिकायत
ढप- ढ़प
पढ़- पढ
कनिए/ कनिये कनिञे
राकस- राकश
होए/ होय होइ
अउरदा- औरदा
बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
चलि- चल
खधाइ- खधाय
मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
कैक- कएक- कइएक
लग ल’ग
जरेनाइ
जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
होइत
गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
चिखैत- (to test)चिखइत
करइयो(willing to do) करैयो
जेकरा- जकरा
तकरा- तेकरा
बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
हारिक (उच्चारण हाइरक)
ओजन वजन
आधे भाग/ आध-भागे
पिचा’/ पिचाय/पिचाए
नञ/ ने
बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
तखन ने (नञ) कहैत अछि।
कतेक गोटे/ कताक गोटे
कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
लग ल’ग
खेलाइ (for playing)
छथिन्ह छथिन
होइत होइ
क्यो कियो
केश (hair)
केस (court-case)
बननाइ/ बननाय/ बननाए
जरेनाइ
कुरसी कुर्सी
चरचा चर्चा
कर्म करम
डुबाबय/ डुमाबय
एखुनका/ अखुनका
लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
कएलक केलक
गरमी गर्मी
बरदी वर्दी
सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
एनाइ-गेनाइ
तेनाने घेरलन्हि
नञ
डरो ड’रो
कतहु- कहीं
उमरिगर- उमरगर
भरिगर
धोल/धोअल धोएल
गप/गप्प
के के’
दरबज्जा/ दरबजा
ठाम
धरि तक
घूरि लौटि
थोरबेक
बड्ड
तोँ/ तूँ
तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
तोँही/तोँहि
करबाइए करबाइये
एकेटा
करितथि करतथि
पहुँचि पहुँच
राखलन्हि रखलन्हि
लगलन्हि लागलन्हि
सुनि (उच्चारण सुइन)
अछि (उच्चारण अइछ)
एलथि गेलथि
बितओने बितेने
करबओलन्हि/ करेलखिन्ह
करएलन्हि
आकि कि
पहुँचि पहुँच
जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
से से’
हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
फेल फैल
फइल(spacious) फैल
होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय
फेका फेंका
देखाए देखा’
देखाय देखा’
सत्तरि सत्तर
साहेब साहब
16. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS
Marriage dates as per KSD Samskrit University Panchang- 2008-09
november 2008 19,20,23,24,27,28,30, december 2008 1,3 february 2009 26,27, march 2009 4,9,11,12 april 2009 16,17 19,20,22,23,27,29, may 2009 3,4,6,7,8,17,20,21,24,25,31, june 20091,3,4,5,7,8,12,17,21,26,28,29 july 2009 1,2
YEAR 2008-09 FESTIVALS OF MITHILAमिथिलाक पाबनि-तिहार
Year 2008
ashunyashayan vrat- 19 july अशून्यशयन व्रत mauna panchmi- 23 july मौना पंचमी
madhusravani vrat samapt 4 august मधुश्रावनी व्रत समाप्त nag panchmi 6 august नाग पंचमी
raksha bandhan/ sravani poornima 16 august रक्षा बन्धन श्रावनी पूर्णिमा kajli tritiya 19 august कजली त्रितीया
sri krishna janmashtami- 23 august श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
srikrishnashtami 24 august श्रीकृष्णाष्टमी
kushotpatan/ kushi amavasya 30 august कुशोत्पाटन / कुशी अमावस्या haritalika vrat 2 september हरितालिका व्रत
chauth chandra 3 september चौठ चन्द्र
Rishi panchmi 4 september ऋषि पंचमी
karma dharma ekadasi vrat 11 september कर्मा धर्मा एकादशी व्रत indrapooja arambh 12 september इन्द्रपूजा आरम्भ anant pooja 14 september अनंत पूजा
agastya ardhdanam 15 september अगस्त्य अर्धदानम
pitripaksh aarambh 16 september पितृपक्ष आरम्भ
vishvakarma pooja 17 september विश्वकर्मा पूजा indr visarjan 18 september इन्द्र विसर्जन
srijimootvahan vrat 22 september श्री जीमूतवाहन व्रत
matrinavmi 23 september मातृनवमी somaavatee amavasya 29 september सोमावती अमावस्या
kalashsthaapana 30 september कलशस्थापन
vilvabhimantra/ belnauti 5 october विल्वाभिमंत्र/ बेलनौति
patrika pravesh 6 october पत्रिका प्रवेश mahashtami 7 october महाष्टमी mahanavmi 8 october महानवमी vijayadasmi 9 october विजयादशमी
kojagra 14 october कोजगरा dhanteras 26 october धनतेरस
deepavali- diyabati-shyamapooj a 28 october दीयाबाती/ श्यामापूजा/ दीयाबाती annakuta-govardhan pooja 29 october अन्नकूट गोवर्धन पूजा
bratridvitiya/ chitragupt pooja 30 october भ्रातृद्वितीया
khashthi kharna 3 november षष्ठी खरना
chhathi sayankalika arghya 4 navamber छठि सायंकालिक अर्घ्य
samaa pooja arambh- chhathi vratak parana 5 november सामा पूजा आरम्भ/ छठि व्रतक पारना
akshaya navmi 7 november अक्षय नवमी
devotthan ekadasi 9 november देवोत्थान एकादशी vidyapati smriti parv11 november विद्यापति स्मृति पर्व कार्तिक धवल त्रयोदशी kaartik poornima 13 november कार्तिक पूर्णिमा
shanmasik ravi vratarambh 30 november षाणमासिक रवि व्रतारम्भ
navan parvan 4 dec. नवान पार्वन
vivah panchmi 2 december विवाह पंचमी
Year 2009
makar sankranti 14 january मकर संक्रांति
narak nivaran chaturdasi 24 january नरक निवारण चतुर्दशी
mauni amavasya 26 january मौनी अमावस्या
sarasvati pooja 31 january सरस्वती पूजा
achla saptmi- 2 february अचला सप्तमी
mahashivratri vrat 23 february महाशिवरात्रि व्रत janakpur parikrama 26 february जनकपुर परिक्रमा holika dahan 10 march होलिका दहन
holi/ saptadora11 march होली सप्ताडोरा varuni yog 24 march वारुणि योग vasant/ navratrarambh 27 march वसंत नवरात्रारम्भ basant sooryashashthi/ chhathi vrat 1 april बसंत सूर्यषष्ठी/ छठि व्रत
ramnavmi 3 april रामनवमी
mesh sankranti 14 april मेष संक्रांति jurisital 15 april जूड़िशीतल
akshya tritiya 27 april अक्षय तृतिया
shanmasik ravivrat samapt 3 may षणमासिक रविव्रत समाप्त
janki navmi 3 may vatsavitri 24 may जानकी नवमी
gangadashhara 2 june गंगादशहरा
somavati amavasya 22 june सोमवती अमावस्या
jagannath rath yatra 24 june जगन्नाथ रथयात्रा saurath sabha arambh 24 june सौराठ सभा आरम्भ
saurath sabha samapti 2 july सौराठ सभा समाप्ति harishayan ekadashi 3 july हरिशयन एकादशी
aashadhi guru poornima 7 july आषाढ़ी गुरु पूर्णिमा
VIDEHA MITHILA TIRBHUKTI TIRHUT---
Mulla Taqia has said that Kameswara Thakur founder of the Oinivara Dynasty of Sugaon, who had been ousted by Illyas was reinstated in Tirhut and Mus¬lim officers were appointed for the propagation of Muslim Law.
Firuz Tughlaq's visited Tirhut many times. Kamesvara Thakura (A .D 1324-53)
Of Khauare Jagatpur mula and was of Kasyapagotra. But Jayapati's son Hitgu and his son Oin Thakur, an ancestor of Kamesvara had procured Oini village from some Kshatriya ruler. Since than his mulagrama became 'Dinivara'. He had six brothers.' He made over the kingdom to his son Bhogisvara. Thakura dynasty, or Sugaon Dynasty of Kamesvara modern Sugarma, P. O. Rajnagar, district-Madhubani. The family name of 'Oinivara' is after the name of its - Biji¬purusha.
Oin Thakur was the great-grand-father of Kamesvara Thakur, is said to have established himself in Oini village with the help of Nanyadeva's descendants. Bhogisvara Thakura (A.D.1353-70)-Kamesvara did not like to shoulder the burden of a reign. He made over the kingdom to his son Bhogisvara Thakura after that Ganesha Raya who was, however, murdered by Arjuna Raya, Kumara Ratnakara and others. Though he ruled for a very short period due to his intelligence became one of the fomous king.
Devasimhadeva lived before the year 1410 A.D. assumed the title (Viruda) `Garudanarayana' .Under his patronage Vidyapati Wrote Bhuparikrama which was later on, incorporated in Purushapariksha written for his son Sivasimha.
Sridatta compiled the Ekdgnidanapaddhati and Harihara grandfather of Murari, was his Chief Judge. Vidyapati dedicated some of his poems also to him. Devasimha married Hasini Devi daughter of Mahamahopadhyaya Ramesvara of Jalayamula and had two sons - Sivasimha and Padmasimha from her.
ShivSimha ascended throne after his father's death in A. D. 1412-13 at the age of 50. By this time the poet Vidyapati had become much more familar and intimate with the king who recognised the poet's greatness and granted him his native village of Bisphi on the occasion of his being installed the ruler of Mithila and changed his capital from Devakuli to Gajarathapuras.He even struck coins in his name, specimens of which were found from a village called Pipra in the Champaran District. He is also said to have erected a Masoleum known as Mamoon Bhanja at Jaruha, near Hajipur.
He faught against the Mohammadans but it is said that he was defeated, arrested and brought to Delhi. Vidyapati showed his poetic genius and obtained his release. Lakhimadevi (A-D. 1412-16) queen Lakhima fled with the royal family, to take shelter in village Rajabanauli in Saptari Parganna (near modern Janakapur in Nepal Kingdom). She waited for twelve years in the hope of meeting or knowing anything of her consort. She e laid down her life as a sati. After Sivasimha's death his first wife Maharani Padmavati Mahadevi ruled for about one year six months, and after that Lakhima Mahadevi ruled for six years and after her reign, Padmasimha came to the throne.He died only after a year and his wife Visvasa Devi took the management of the state reigned for 12 years with great success.
The collateral branch of Harismhadeva assumed power. Dhirasimha began to rule though Narasimha lived on to that year. Lakshminathadeva, Kamsa narayana, came to the throne after the demise of Ramabhadra¬deva. a very great patron of poetry written and composed in Maithili language, assumed the title of Rttpanarayana. Sikandar Lodi who marched into Tirhut defeated the Tirhut king.
But after some time the Bengal Ruler ended the illustrious Oinivara Dynasty.
(Courtesy: Ramavtar Yadav, Yogendra yadav, Sunil Kumar Jha, Radhakrishna Chaudhary, Vijaykany Mishra, Yogendra Jha , Makhan Jha and others)
Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.com and her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). She had been honorary teacher at National Association For Blind, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.
SahasraBarhani:The Comet
The reason of the fight was head of a pig. One more story about that old man’s throwing ability was famous. He was so perfect in aiming and throwing stick to the aim that all monkeys ran away from the mango orchard out of fear. See the new generation. Can anyone through the stick as high as the top of the Jamun tree? All wrestling spots are used for growing crops so how can youngsters build their muscles.
Once, Burhiya didi had visited house of Nand with her son for employment. The lai of Barh cooked by Burhiya didi can be tasted only when Burhiya didi was visiting Patna or the village.
When powers of Zemindars were seized the trend of doing job especially the government job was in vogue and so getting job was very tough too.
The Thakurs belonging to the barber community often complained that Nand had helped every community to get government job except the Thakurs of barber community. Everyone got job but son of the Burhiya didi. The mentality of not doing job was changed too. Otherwise Gulab jha of eastern side of the village used to say that ‘Naukari’ (job) means ‘nai kari’ (not to be done), and ‘vetan’ (salary) means without body or ‘tankha’(salary) means eat your body.
Burhiya didi had myriad stories about well, pond, ditch, orchards and quarrels for those things. Among such circumstances of sharing stories and views Nand’s children started growing.
Nand had never kept his children disconnected from his native village. He used to visit his village with family at least thrice a year- in the summer vacation, in Holi and in Deshera. Children used to visit Burhiya didi’s house to taste the mangoes of that village. They used to walk recklessly on foot everywhere. The experience of wandering frivolously on the sands of the river of Kamala or in the mango orchards was wondrous. The picnic with menu of rice and fish curry in the summer nights in mango orchard, peeling mangoes with clam shells, ‘ti ti, who is called lal chadi’- playing satghariya, sucking smoke by burning lotus stems, experiencing sweet lips after eating mango with edible lime were truly indelible experiences and are not possible to be achieved by children if they didn’t visit village. Nand had once told his son-in-law that he would not return to Shar in his next seven births.
During the flood of Patna in 1975 Nand was shifted to the north bank of the Ganges in order to work in Ganga Pul Pariyojana, a project work of building barrages. Nand was leading a happy family life with two sons and one daughter. Who had ever predicted that the year 1975 would destroy Nand’s happy family?
The abridgement of Aaruni’s story was that at the time of his birth his father was told that it was a daughter and that communication gap came to an end one day before the Chhathihar when his father came to know that he was a boy. The whole misunderstanding proved the fact that the fact was true the way someone knew that till the real truth was known to him. The vivid aspects of truth which is not untrue had efficacy in growth of Aaruni. Baa died before birth of Aaruni. Whenever Baa was recalled by people Aaruni used to listen to those conversations eagerly. In this way Baa had become a part of his life. Baa was not present physically but she was alive in memories of family members.
The connection between Aaruni’s story and Nand’s story was not found earlier but as days passed Aaruni started showing his talents. It is an inevitable quality of human behaviour to compare and discuss similarity and disparity between two things. Many people spend their entire life in doing such analysis. Characters of Aaruni and Nand seemed to be similar somehow. In spite of outer personality and so called difference in thoughts the inner personality was some how same in both characters. At least it appeared so.
Aaruni was also taken care of in the same manner an Indian middle class baby should be brought up. Aaruni’s parents especially his father was keen enough to find talents in Aaruni just like a normal parent who always enjoy discovering skills of his child.
Aaruni used to have many nightmares. He was having both good and bad dreams but bad dreams were more often happening. He was trying to get rid of those. He used to start sweating in midnight and when he got up he found his parents fanning him. He had a keen anxiety to know who was born first. If God had made everything then who had made the God?
He used to be concerned with such philosophic thoughts very seriously. He used to leap on the roof of his house in the well shaped nature in his dreams. Then he used to go unwillingly along the edge of roof like side of a pond. Again he wished to go away from the edge towards the centre but the well shaped nature’s gravity pulled him towards it and he fell down. Suddenly he used to wake up and then he was surrounded by both good and bad thoughts. He used to be happy that it was not a reality but at the same time he used to be worried suspecting the repetition of the nightmare. Aaruni started researching about the circumstances when he was having such nightmares. He used to think that he was awake till 9 p.m., he was also awake till 10 p.m., so when did he go to sleep? But he alleviated his worries by considering the fact that if he could know when he slept he couldn’t sleep at all. His name is changed many times. He also read many mythological books for that. Then his education started. He wrote Ganapati’s ankush and then reciting the sacred lined dedicated to the goddess Parvati and the god Shiva.
Aaruni used to laugh after chanting that mantra. His pronunciation problem was also solved. While learning numbers he used to utter in same rhythm but jumping from ten to nineteen and then from twenty to twenty nine. Nand’s younger son Aaruni was according to his expectations from the very beginning. There was some reason behind that. Nand was teaching him writing one to hundred. First he taught him one to ten and when started eleven he thought that it could be too much pressure for that little boy. But that boy learned eleven to twenty and twenty one to thirty as he felt that it was of the same trend as one to ten. When he discussed that with his father his father challenged him to write up to one hundred. When that boy showed him that correctly then they discussed how to write numbers in words. Nand gave special attention to these four numbers gyarah (eleven), ekkis (twenty-one), unasi (seventy-nine) and navasi (eighty-nine). When mother inspected to know the progress of last half an hour then she came to know that lesson was completed for that day. Father was pleased a lot and mother discussed that fact to very few people being conscious about his son’s wellness. Those instances had made the image of the boy as a perfectionist in the eyes of the father.
Aaruni was addicted to recall his past- the year in which incidents happened, how to remember these years. What he did in his childhood, life story of his parents and other elder people. It seemed that he was very worried how people could do work without his consent. In other words the world should have stopped working when Aaruni was sleeping. He was able to remember only four incidents- like watching ‘Bobby’ movie in theatre, going for photo shoot of long locks with parents before first hair cut ceremony, throwing the bunch of all keys into a ditch as a reaction of being neglected by his mother, any gathering on some occasion in village etc. Aaruni had concluded after thinking all these things that he remembered everything after 1976 when he was 5-6 years old. His mother gave him habit of reading news paper from that age. Nand recovered a diary of Aaruni in which he had recorded all events from his memory chronologically just like a historian.
I, Aaruni, considers the year of 1976 as a turning point of my life. Because my life before that appeared as a few events without any hints of sequences what happened first and what after that. Sometimes I suspect that it is memory of my previous birth.
Year 1976, I with my family and elder siblings was living in colony of workers of the Ganges Bridge Project in Hajipur situated at the northern side of the river. My father is an engineer but he is also a homeopathy doctor having M.D. degree with gold medallist. And this is a kind of his hobby. Residents of the colony collect money to buy homeopathic medicines. My father and a few people go to Kanpur to buy medicines. The drawing room of our government quarter with one almirah, one table and two chairs is dedicated to medicine practice. My small table is also there where I used to read the ‘Aryawart’ newpaper costing 30 paise to my mother. How much I remember is that this colony had two parts, it was surrounded by boundary wall, there was a wall between these colonies too that used to divide this colony in two parts- residential area and warehouse. The area of warehouse used to be filled with scattered iron rods, weighting machine, trucks and a tree. The weighting machine was too big to be effected by me when I was climbing on it. Rather the weight indicator didn’t move when I stood on that. I was told that the machine was made to weight heavy things. The weight of 15 Kilograms of 5 years old boy couldn’t be measured by this machine.
There were one big and one small play grounds in the residential area of this Ganga Bridge Colony. A big water storage tank and a pump house were also situated between these two fields. A huge thick pipe was linked to the pump house for water supply. I still remember it clearly that the pipe was open and I had peeped once into it but after that I was scared knowing the danger of falling down into it. That pipe used to be covered by one jute bag, usually used for storing grains. There was also a government food shop in the north corner of the bigger play ground. In the west of that shop a temple and Hanuman’s statue were built but the work was not completed because there was problem in fixing Hunuman’s nose. Nose of the God Hanuman was not fixed correctly either because of wrong proportion of building material or anybody’s mischiefs. But the work was completed after some days. Aarati was started on every Tuesday. The spirituality was spread in whole colony. People’s ardour of worshipping in that temple was diminished as time passed just like every social organisations. All plans related with that religious organisation remained merely in papers couldn’t be implemented.
I had started going to a school away from the colony. My elder sister and brother were also reading in the same school. One day I quarrelled with one of my classmates. We both have slate-boards and we both started using it as a weapon. Had I hit his head with the slate then he might start bleeding so I used it as a defensive weapon. But he belonged to different group so.....thump.......and blood came out from my head. Teacher took me to the principal’s room. I still remember the smell of the cotton soaked in dettol or savlon. I was not needed to wait for evening and closing of the school day after first aid treatment. I was sent home with my elder sister on an ordinary rickshaw without waiting for the school rickshaw that had a banner of notice “Be careful, school kids are here”. I asked my sister meaning of that phrase. I was of the opinion that it meant all kids on that rickshaw are careful. That boy didn’t agree with me and started quarrel with me. Sister replied that this was to alert other drivers so that they didn’t hit the rickshaw.
I was still dissatisfied and asked, “But why?”
I was growing with such eagerness and queries. During that phase of growing up sometimes maa used to say, “I was saying that when he would grow up and when he grew up he made me more worried.”
I and my siblings used to go to the school established in the name of a Christian Saint. After being injured by slate board my father called a meeting of officers of the colony. It was found that the premise of the centre of public distribution of ration between the play ground and the northern boundary wall of the colony was too big for that purpose. Apart from that, the licence of that centre was also lapsed so the officers had decided to start their school in that premise of three or four rooms having asbestos roof. A committee of not more than four people was made and a few teachers were employed. An invitation to the Gandak Colony situated nearby was sent to send their kids to that school after six months. Name of the school was painted on the outer side of the northern wall which faded after some time. But the fame of that school kept on increasing day by day. Whenever a new guardian was requesting teachers for getting admission of his kid teachers used to suggest him to apply for one or two years junior class to that kid’s present class. They used to present standard of their school distinguished and superior to other schools. Being insisted by parents they used to call me and ask the question that the current applicant was unable to answer and after getting correct answer from me they used to give a pride smile to the parent. In short I was the smartest boy in my school before the student from that village came. No one was as able as I was. I had great interest for studies which was lost later on. Once I was suffering from high fever on the day of exam. I was able to write the paper only when question paper and answer sheets were sent to my home. The school was very small but people of the colony were participating in each of the event with interest whether it was cultural program or sports events. In race of running to some distance by making team of two students and tying one legs together else becoming a three footed creature and solving the maths problem written on the black board on the other end and then returning back to the starting point was a real test of mental as well as physical ability in which I used to be first.
I remember two more incidents. The first incident was arrival of one boy from other village. He was a competitor to me because book of his village was different. But no sooner that difference was gone the challenge was gone too.
The second incident was accident of a child. During play time we used to peep into his room through window to see him and sometimes we used visit his room and read his diary. I remember some parts of that diary which was as follows:
“Due to lack of time I started missing the opportunity to talk about us. The reason was first of all my own habits and after that my accident, because of why 18 months of my life passed like 18 days, uselessly. I was also keen to make up that loss. I tried to do that by waking up early in the morning but due to lack of complete sleep I remained sleepy so could not use that time. Then I tried to reduce my social contact which was achieved without any effort as it seemed that I had a disease without any cure. Different opinions of different doctors.... wrong operations.... and combined effect was so that I had to lead a life of handicapped.
Leave the gossips apart. Even I was losing my faith on doctors. Their optimistic words were unable to solace me. Phone calls for asking about my health condition were reduced day by day. Afterwards I improved from crutch to stick and started driving. Then I faced problem in socialising myself like I used to be earlier. I tried to maintain one-sided relationship with people who were not living away from my place. But other people became beyond approach because of my isolation from them in past years. People who used to laugh at me during my bad days found my good behaviour to them sympathy for their rudeness so they denied to continue relationship with me. People’s negligence saved my time a lot.
First I thought that my colleagues would not recognise me but when I reached the office I was welcomed like a hero. But they didn’t let me know their grief of seeing me holding a stick.
They were always appreciating my courage. When I left the support of stick and went to office in jeans and shirt then someone told me that I was regaining my previous look. I started thinking about that. I made video recording of my walking styles with help of my wife. I was shocked to know that my walking posture was like I was running. Then family members told me that that was too less than my earlier habit. Then I realised that how bad it could be for my well- wishers. Then I realised the reason behind their motivation. The fear of being left alone in crowd of colleagues after passing a long period of loneliness, my expectations rather faith in self being, all led to develop my strong and special personality.
Although he was my fellow but he was pretending as he was a big matured married man.
Miserable life of group of workers, hanging clothes on the trolleys – these views were really heart touching. And in spite of all poverty they used to laugh, able to feel the happiness without having a roof. The beggar children used to peep us with their woeful vision. Insulted by everyone, if I would have to face such a wretched life then how would I face that? And no one simply bother about them then why should I? Am I only the different one? I was thinking that world kept on going even if I was not present everywhere. I used to read a fact in a book that some animals were only able to see two dimensional things. Men can see three dimensional things then had the earthquake and other disasters been brought by someone who can see four dimensional views. Whenever father was buying me a lalchadi worth five paisa, he used to say to look at those people who looked after their families by earning money by selling those lalchadi. The importance and necessity of money could grow as much as you want.
VIDEHA MAITHILI SANSKRIT TUTOR
ENGLISH SAMSKRIT MAITHILI
Meeting Friends मित्रमेलनम् मित्रसँ भेँट
Hello! How are you? हरिः ओम्। कथम् अस्ति भवान्? नमस्कार। केना छी अहाँ।
I am fine. अहं सम्यक् अस्मि। हम ठीक छी।
You are not seen these days. एषु दिनेषु भवतः दर्शनमेव नास्ति। आइ-काल्हि अहाँक दर्शन दुर्लभ भऽ गेल अछि।
I am very busy these days. एषु दिनेषु बहु कार्यव्यस्तः अस्मि। आइ-काल्हि हम बड्ड व्यस्त छी।
Where were you all these days? कुत्र आसीत् भवती एतावन्ति दिनानि? अहाँ एतेक दिन कतए छलहुँ?
Only yesterday I remembered you. ह्यः एव भवतीं स्मृतवान्। काल्हिए हम अहाँक मोन पाड़ने छलहुँ।
I had gone to Simla. अहं शिमलानगरं गतवती आसम्। हम शिमला गेल छलहुँ।
All of us will go there together. वयं सर्वे मिलित्वा एव तत्र गच्छामः। हम सभ ओतए संगे जाएब।
Day after tomorrow? परश्वः किम्? परसू की?
At what time. कस्मिन् समये? कोन समयमे।
At three o’clock. त्रिवादने किम्? तीन बजे की?
At three o’clock I’ve some other work. त्रिवादने मम अन्यत् कार्यम् अस्ति। तीन बजे हमरा किछु अन्य कार्य अछि।
Then let us go at 4 o’clock. तर्हि चतुर्वादने गच्छामः। तखन चारि बजे जाइ।
Okay. अस्तु। ठीक।
Why are you late. किमर्थः विलम्बः? एतेक देरी किए?
At the time of leaving my vehicle’s tyre got punctured. प्रस्थानसमये मम यानस्य चक्रं भ्रष्टम् अभवत्। निकलैत काल हमर गाड़ीक टाएर पंक्चर भऽ गेल।
We waited for a long time. वयं बहु कालं प्रतीक्षितवन्तः। हम सभ बड़ी काल धरि प्रतीक्षा केलहुँ।
Sorry, my work wasn’t over. क्षम्यतां, मम कार्यमेव न समाप्तम्। क्षमा करू, हमर काज समाप्त नहि भेल छल।
Why didn’t you come on that day? तद्दिने भवान् किमर्थं न आगतवान्? ओहि दिन अहाँ किए नहि एलहुँ?
I completely forgot about it. तद्विषये पूर्णतया विस्मृतवान् एव। हम ओऽ विषय पूरा-पूरी बिसरि गेलहुँ।
Had everyone else come? अन्ये सर्वे आगतवन्तः आसन् किम्? आन सभ गोटे आबि गेलाह की?
Yes, everyone else except Vrinda had come. आम्, वृन्दां विहाय अन्ये सर्वे आगतवन्तः। हँ, वृन्दाकेँ छोड़ि आन सभ आबि गेलाह।
I also very much wanted to come but I couldn’t. मम अपि बहु इच्छा आसीत् किन्तु न शक्तवान्। हमरो बड्ड इच्छा छलए मुदा नहि आबि सकलहुँ।
I telephoned you several times yesterday. ह्यः भवतीं बहुवारं दूरभाषां कृतवती। काल्हि हम अहाँकेँ कतेक बेर फोन केलहुँ।
We had all gone to my maternal uncle’s home. वयं सर्वे मम मातुलगृहं गतवन्तः। सभ क्यो हमर मामाक घर गेल छलहुँ।
How did you come here today? अद्य अत्र कथम् आगमनम्? अहाँ एतऽ आइ कोना अएलहुँ?
I had some work here in the bank. अत्र वित्तकोषे किञ्चित् कार्यम् आसीत्। एतऽ बैंकमे किछु काज छलए।
I came here because I had some urgent work. अत्र त्वरितकार्यम् आसीत् अतः आगतवती। एतऽ किछु आवश्यक काज छलए से अएलहुँ।
Is that you! I couldn’t recognize you from far. भवान् एव किम्? दूरतः न ज्ञातवान् एव। अहाँ छी की! अहाँकेँ दूरसँ नहि चीन्हि सकलहुँ।
You’ve become very thin. बहु कृशः अभवत् भवान्। अहाँ बड्ड दुब्बर भऽ गेल छी।
I had typhoid. मम विषमज्वरः जातः आसीत्। हमरा टायफाइड भऽ गेल रहए।
Come, let us go home. आगच्छतु, गृहं गच्छामः। आऊ, हमरा सभ घर चली।
Now? इदानीं किम्? अखने की?
It’s slightly difficult now. इदानीं किञ्चित कष्टम्। अखन कनी दिक्कत अछि।
Oh friend! Why do you say so? किं मित्र! एवं वदति? किए मित्र! एना किए बाजए छी?
Wait for some time. किञ्चित् कालं तिष्ठतु। कनी काल रुकू।
It’s not possible now. इदानीं न शक्यते भोः। ई आब संभव नञि।
Why such hurry? किमर्थम् एवं त्वरा? एतेक फुर्ती किए?
There is still sometime, isn’t it? इतोऽपि समयः अस्ति खलु? अखनो कनी समए अछि, अछि ने?
No my dear, an hour is needed even to reach there. नास्ति इत्र, इतः तत्र प्राप्त्यर्थम् एव एकघण्टा आवश्यकी। नञि भजार, ओतऽ पहुँचए लेल सेहो एक घण्टा चाही।
As you wish. यथा भवान् इच्छति। जेहन अहाँक इच्छा।
Congratulations! I heard you got a job. अभिनन्दनम्! भवत्या उद्योगः लब्धः इति श्रुतम्। बधाई! हम सुनलहुँ जे अहाँकेँ नोकरी भेटि गेल।
Yes, thank you. आम्, धन्यवादः। हँ, धन्यवाद।
Where do you work? कुत्र उद्योगं करोति भवती? अहाँ कतऽ काज करए छी?
I am working in an advertising aency. कस्याञ्चित् विज्ञापन-संस्थायां कार्यं करोमि। हम एकटा विज्ञापन कंपनीमे काज करए छी।
When will you give sweets? मिष्टान्नं कदा ददाति? अहाँ मधुर कखन देब?
Come home on Tuesday. मङ्गलवासरे गृहमेव आगच्छतु। मंगलकेँ घरपर आऊ।
I must hurry now. इदानीं मया त्वरणीयम्। हमरा आब जल्दी करबाक चाही।
Wait friend, let’s have coffee. तिष्ठतु सखी, काफी पिबामः। कनी रुकू सखी, हमरा सभ कॉफी पीबी।
Okay, let’s drink. अस्तु, पिबामः। ठीक छै, पीबी।
Sorry, I don’t have time to stay. क्षम्यतां, स्थातुं मम समयः नास्ति। क्षमा करू, हमरा लग ठहरबाक लेल समय नहि अछि।
When shall we meet again? पुनः कदा मेलिष्यामः? फेर कहिया भेँट हएत?
Shall we meet tomorrow evening? श्वः सायं मेलिष्यामः किम्? काल्हि साँझमे जुटान करी की?
Yes, I’ll come there. आम्, तत्रैव आगमिष्यामि। हँ, ओतए हम आएब।
Where is your new residence? भवतः नूतनं गृहं कुत्र अस्ति? अहाँक नव घर कतए अछि?
This is my residential address. एषः मम गृहसङ्केतः। ई छी हमर घरक पता।
Oh! It’s near my sister’s home? ओहो! मम भगिन्याः गृहसमीपे अस्ति। ओहो! ई तँ हमर बहिनक घरक लग अछि।
Did you get my letter? मम पत्रं प्राप्तवान् किम्? हमर पत्र अहाँकेँ भेटल की?
Yes, I got it just now. आम्, इदानीमेव प्राप्तवान्। हँ, हमरा अखने भेटल।
For how many days are you staying here? अत्र कति दिनानि तिष्ठति भवान्? एतए अहाँ कतेक दिन लेल ठहरल छी।
I am here for two more days. इतोऽपि दिनद्वयम् अस्मि। हम एतऽ दू दिन आउर छी।
Then I’ll see you at home. तर्हि भवन्तं गृहे एव पश्यामि। तखन अहाँसँ घरपर भेँट करए छी।
I have to talk to you. भवतः समीपे सम्भाषणीयम् अस्ति। हमरा अहाँसँ गप करबाक अछि।
Come at any time. यदा कदापि आगच्छतु। जखन मोन हुअए आउ।
I heard Mohan met with an accident. मोहनस्य दुर्घटना अभवत् इति श्रुतवान्। मोहनक दुर्घटना भेलए से सुनलहुँ।
Yes, he had a narrow escape. आम्, सः स्तोकात् मुक्तः। हँ, ओऽ मुश्किलसँ बचल।
Did you meet him? तेन सह मिलितवान् किं भवान्? हुनकासँ अहाँक भेँट भेल की?
In which hospital is he admitted? कस्मिन् चिकित्सालये अस्ति सः? कोन अस्पतालमे ओऽ भर्ती अछि?
He is in the Lohia hospital. सः लोहियाचिकित्सालये अस्ति। ओऽ लोहिया अस्पतालमे अछि।
Did you hear this news? एतां वार्तां श्रुतवती किम्? अहाँ ई समाचार सुनलहुँ की?
Don’t worry, everything will be fine. चिन्तां मा करोतु, सर्वं सम्यक् भविष्यति। चिन्ता नञि करू, सभ ठीक भऽ जाएत।
Do you also agree with this? भवती अपि एतत् अङ्गीकरोति किम्? अहाँ सेहो एहिसँ सहमत छी?
How could you also believe it? भवान् अपि कथं विश्वासं कृतवान्? अहाँ सेहो कोना एहिपर विश्वास केलहुँ?
I was impressed by the way he spoke. तस्य कथनशैल्या एव अहं प्रभावितः। ओकर बजबाक शैलीसँ हम प्रभावित भेलहुँ।
Easily fail into his trap. सुलभतया तस्य जाले पतितवान्। आरामसँ ओकर जालमे फँसि गेल।
Sometimes it happens. एवं भवति कदाचित्। कहियो काल एना होइ छै।
We are meeting after a long time. अस्माकं मेलनानन्तरं बहु कालः अतीतः। हमरा सभ बड़ी दिनपर भेँट भऽ रहल छी।
How quickly time has passed! समयः कथम् अतिशीघ्रम् अतीतः। समय कतेक तीव्रगतिसँ बीति गेल।
You have come at the right time. युक्ते समये आगतवान्। अहाँ सही समयपर आबि गेलहुँ।
Will you lend me your vehicle for some time? किञ्चित् कालं भवतः यानं ददाति किम्? अहाँ अपन गाड़ी कनी काल लेल देब?
I too have to go out now. इदानीं मया अपि अन्यत्र गन्तव्यम् अस्ति। हमरा सेहो अखन बाहर जेबाक अछि।
I’ll come back quickly. अहं शीघ्रं प्रत्यागमिष्यामि। हम तुरत अबैत छी।
When will you come back? कदा प्रत्यागमिष्यति। अहाँ कखन घुरि कऽ आएब?
I’ll back in half an hour. अर्धघण्टाभ्यन्तरे आगच्छामि। हम आधा घण्टामे घुरि आएब।
There is no petrol in the vehicle. याने तैलं नास्ति। गाड़ीमे तेल नहि अछि।
Is that so? एवं किम्? एना अछि?
Don’t worry. चिन्ता नास्ति। कोनो बात नञि।
I was merely joking friend. परिहासाय उक्तवान् मित्र। हम मात्र हँसी केलहुँ, मित्र।
Don’t take it otherwise. अन्यथा मा चिन्तयतु। अन्यथा नहि लिअ।
Had you been late by a minute I would’ve gone. एकनिमेषस्य विलम्बः चेत् अहम् अगमिष्यम्। अहाँ एक मिनट देरी करितहुँ तँ हम पहुँचि गेल रही।
This person always pesters me. एषः एकः आगत्य सर्वदा पीडयति। ई हमरा हरदम तंग करय-ए।
Did he go? सः गतवान् किम्? ओऽ गेल की?
He’ll come again to see you, won’t he? भवन्तं द्रष्टुं सः पुनः आगच्छति खलु? ओऽ फेर अहाँकेँ देखए लऽ आएत, नहि आएत की?
Is he trustworthy? सः विश्वासयोग्यः किम्? ओऽ विश्वासी अछि की?
Can’t say. वक्तुं न शक्यते। नहि कहि सकए छी।
Are you coming with us? भवान् आगच्छति किम् अस्माभिः सह? अहाँ हमरा संग आबि रहल छी ने?
Come, let’s go for a walk. आगच्छतु, किञ्चित् अटित्वा आगच्छामः। आउ, कनी घूमि कए आबी।
Will you buy me a cold drink? शीतपेयं पाययति किं भवान्? अहाँ हमरा कोल्ड ड्रिंक कीनि देब की?
Not cold drink let’s eat ice-cream. शीतपेयं मास्तु पयोहिमं खादामः। कोल्डड्रिंक नहि अछि, आइसक्रीम खाइ हम सभ।
Let’s go quickly otherwise mother will scold. शीघ्रं गच्छामः भोः नो चेत् माता तर्जयति। हम सभ शीघ्र जाइ नञि तँ माँ तमसेतीह।
How will you go there? कथं गच्छति भवती तत्र? ओतऽ अहाँ कोना जाएब?
I will talk. अहं पादाभ्यां गच्छामि। हम पएरे जाएब।
I will also come with you for some distance. अहमपि किञ्चिद्दूरं भवत्या सह आगच्छामि। हमहूँ अहाँ संगे कनी दर धरि आएब।
संस्कृत शिक्षा च मैथिली शिक्षा च
(मैथिली भाषा जगज्जननी सीतायाः भाषा आसीत् - हनुमन्तः उक्तवान- मानुषीमिह संस्कृताम्)
(आगाँ)
-गजेन्द्र ठाकुर
सम्भाषणम् -वयं तृतीया विभक्तेः अभ्यासं कृतवन्तः। इदानीं कानिचन् वाक्यानि वदामः। अहं वाक्यं वदामि, भवन्तः तत्र तृतिया विभक्तिं योजयन्तु।
रामः सुधाखण्डेन लिखति। राम चॉकसँ लिखैत अछि।
सः वाणेन ताडयति। ओऽ वाणकेँ मारैत अछि।
वर्णकारः कूचेन लिखति। चित्रकार कूचीसँ चित्र बनबैत छथि।
सुरेशः कुञ्चिकया उद्घाटयति। सुरेश कुंजीसँ खोलैत छथि।
माता कलशैः आनयति। माता कलश आनैत छथि।
जनाः वादनेन गच्छन्ति। लोकसभ वादनक लेल जाइत छथि।
एषः अङ्कन्या लिखति। ई पेन्सिलसँ लिखैत अछि।
अहं चमषेन अन्नं खादामि। हम चम्मचसँ खेनाइ खाइत छी।
अहं छुरिकया शाखं कर्तयामि। हम छुरीसँ शाख काटैत छी।
अहं गुरेन मिष्टान्नं करोमि। हम गुरसँ मधुर बनबैत छी।
अहं द्विचक्रिकया विद्यालयं गच्छामि। हम साइकिलसँ विद्यालय जाइत छी।
भवान् कथं विद्यालयं गच्छति। अहाँ कोना विद्यालय जाइत छी।
अहं कर्णाभ्यां श्रुणोमि। हम दुनू कानसँ सुनैत छी।
अहं नेत्राभ्यां पश्यामि। हम दुनू आँखिसँ देखैत छी।
अहं पादाभ्यां चलामि। हम दुनू पएरसँ चलैत छी।
अहं हस्ताभ्यां कार्यं करोमि। हम दुनू हाथसँ काज करैत छी।
वार्ता- मान्ये अहं अतः आगच्छामि वा।
किमर्थं विलम्बेन् आगतवान्।
बालाभ्याम् आगतवान अतः विलम्बः जातः।
अहं संतोषेण पाठं पठामि। हम संतोषसँ पाठ पढ़ैत छी।
भवन्तः संतोषेण पाठं पठन्ति वा। अहाँ सभ संतोषसँ पाठ पढ़ैत छी की?
वयं पठामः। हम सभ पढ़ैत छी।
अहं आनन्देन् संभाषणं करोमि। हम वार्तालाप करैत छी।
भवन्तः आनन्देन संभाषणं कुर्वन्ति वा। अहाँ सभ आनन्दसँ वार्तालाप करैत छी की?
वयं कुर्मः। हम सभ करैत छी।
पिता प्रीत्या पुत्रिं पालयति। पिता प्रेमसँ पुत्रीक पालन करैत छथि।
माता सदनया पुत्रं पोषयति।
भक्तः भक्तया देवं नमयति। भक्त भक्तिसँ देवक सोझाँ झुकैत छथि।
कृषकः कष्टेन कार्यं करोति। कृषक कष्टभोगि कार्य करैत छथि।
अहम् उत्साहेन कलहं करोमि। हम उत्साहसँ कलह करैत छी।
हर्षेण/ संतोषेण/ दुःखेन/ लज्जया/ भक्तया/ दैन्येन/ श्रद्धया
भवान् मंजूनाथः सह गच्छतु। अहाँ मंजूनाथक संग जाऊ।
अनन्तः केन सह गतवान/ आगतवान/ सम्भाषणं करोति। अनन्त ककरा संग गेल/ आएल/ वार्तालाप करैत अछि।
अनन्तः मंजूनाथेन सह आगतवान। अनन्त मंजूनाथक संग आएल।
अहल्या दीपिकयाः सह चित्रमन्दिरं गच्छति। अहल्या दीपिका संग सिनेमाहॉल गेल।
हंसा दीप्तया/ शिल्पया/ मिथिलया/ मधुरया/ मालया/ शान्तलया/ रमया/ आप्तया/ नन्दिन्या/ अश्विन्या/ भाष्कर्या/पार्वत्या सह नगरं गच्छति। हंसा दीप्तिक संग नगर जाइत अछि।
फलके शब्दत्रयं लिखितम् अस्ति। एतेषां शब्दानाम् उपयोगं कृत्वा वाक्यं रचयामः।
लक्ष्मणः रामेण सह वनं गतवान्।
रवि मित्रम् नगरम् गतवान्।
गोपाल शिवः संभाषणम् कृतवान्।
गोविन्दः सखी चर्चा कृतवान्।
माता पुत्री बन्धुगृहं गतवती।
सः रमेशः कलहः कृतवान्।
लता सुमा कार्यं कृतवती।
केशवः सुरेशः भोजनं कृतवान्।
रोगी वैद्यः चिकित्सालयः गतवान्।
मालिनी शारदा शाला गतवती।
हेमा पार्वती पाठः पठितवती।
तैलेन् विना दीपः न ज्वलति। तेलक विना दीप नहि जरैत अछि।
जलेन् विना मीनाः न जीवन्ति। पानिक विना माँछ नहि जिबैत छथि।
आहारेण विना जीवनं कष्टम्।
इदानीं “विना” इति शब्द प्रयोगं कृत्वा एकैकं वाक्यं वदन्ति वा।
धनेन विना जीवनं कष्टम्।
अहम् उपनेत्रेण विना न पश्यामि।
यदा अन्धकारः भवति तदा दीपं ज्वालयमः। जखन अन्हार होएत तखन दीप जराऊ।
यदा वुभुक्षा भवति तदा भोजनं कुर्मः। जखन भूख लागत तखन भोजन करू।
यदा अनारोग्यं भवति तदा चिकित्सालयं गच्छामः। जखन अस्वस्थ होइत छी तखन चिकित्सालय जाऊ।
यदा परीक्षा अस्ति तदा पठन्ति। जखन परीक्षा होइत अछि तखन पढ़ए जाइत छथि।
यदा विरामः भवति तदा प्रवासं गच्छन्ति। जखन विराम होइत अछि तखन प्रवासलेल जाइ जाइत छथि।
अहं वाक्यद्वयं वदामि। भवन्तः यदा तदा योजयित्वा वदन्तु।
विद्युत गच्छति। सिक्थवर्तिकाम् ज्वालयन्ति।
यदा तदा
सूर्योदयः भवति कमलं विकसति
पिपासा भवति जलं पिबतु
पूजा भवति घण्टानादं कुर्वन्ति
वृष्टिः भवति बीजं वपन्ति
सखी मिलति संभाषणं करोमि
परीक्षा समाप्यते संतोषं भवति
यदा यद हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत,
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।
इदानीम् एकं सुभाषितं श्रुण्मः-
अपार भूमि विस्तारम् अगम्य जन संकुलम्
राष्ट्रं संघटनाहीनं प्रभवेन्नात्मरक्षणे॥
इदानीं श्रुतस्य सुभाषितस्य अर्थः एवम् अस्ति। एतस्मिन् सुभाषिते संघटनस्य महत्वम् उक्तम् अस्ति। यद्यपि क्श्मिंश्चित् राष्ट्रे विशाला भूमिः अस्ति, अपारा जनसंख्या अस्ति तथापि तस्मिन् राष्ट्रे यदि संघटनं न भवति तर्हि तत् राष्ट्रम् आत्मरक्षणे समर्थं न भवति। एवं संघटनस्य महत्वम् एतादृशम् अस्ति।
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।(c) 2008 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ' आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ' संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ' पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.co.in पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ' रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु
-
"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
-
जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
-
खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।