भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Sunday, October 26, 2008
विदेह १५ सितम्बर २००८ वर्ष १ मास ९ अंक १८- part-II
सहस्रबाढ़नि-गजेन्द्र ठाकुर
पएरे ऑफिस गेनाइ-एनाइ, साँझमे सोचैत रहनाइ। किछु ग्रंथ सभक जे पठन होइत छलन्हि सेहो बन्न भए गेल छलन्हि। बच्चा सभक संग बैसि कए जे पढ़ैत छलाह, सेहो आब कहाँ भऽ पबैत छलन्हि। फगुआ आऽ दुर्गापूजामे गाम जेबाक जे क्रम छलन्हि, सेहो आब टूटि रहल छलन्हि। पूरा परिवार आब मात्र दुर्गापूजामे गाम जाइत रहथि। मुदा नन्द फगुआमे असगरे गाम जेनाइ नञि बिसरैत छलाह। एहिना गाम जाइ आबएमे नन्द गाममे एकटा दूरक पीसाक एहिठाम जाए आबए लगलाह। पीसा कालीक भक्त रहथि। हुनकर गाम नन्दक गामक बगलमे छलन्हि। बेचारे नीक लोक। नन्द हुनका लग जाथि आऽ प्रवचन सुनथि। फेर हुनकासँ दीक्षा सेहो लेलन्हि। काली-सहस्रणामक पाठक अतिरिक्त आर किछु नञि, नन्द भरि दिन ओही पाठमे लागल रहथि। नन्दक मोनमे डाइन-जोगिन सभक विचार अबैत रहैत छलन्हि। आस-पड़ोसक लोककेँ शंकाक दृष्टिएँ देखैत रहैत छलाह। बच्चा-सभक संग परीक्षा दिआबय जाइत छलाह, शंकित मोने जे हुनकर कोनो शत्रु हुनकर बच्चा सभकेँ हानि नञि पहुँचाबए। मुदा पीसाजीसँ दीक्षा लेलाक बाद हुनकामे विरक्तिजनित आत्मविश्वास आएल छलन्हि। फेर सभटा मन्थर गतिसँ होमए लागल। बच्चा सभक पढ़ाइ-लिखाइ, ओकर सभक नोकरी-चाकरी। वैह मध्यम वर्गक जोड़ल पाइ, वैह मध्यमवर्गीय आकांक्षा। बिआह-दानक झमेला। घरक आऽ बाहरक छोट-मोट वाद-विवाद। बच्चा सभक विश्वसँ प्रतियोगिता करबाक साहस देखि नन्द जेना आर आश्वस्त भऽ गेल छलाह। कारण घरसँ बाहर कहियो हुनकर बच्चा सभ निकलैत नहि रहए। घर अएलाक बाद दोस-महीम सभ सेहो नहि। बाहरक दुनियाँसँ तैयो प्रतियोगिता कए रहल छलाह। प्रतियोगिता परीक्षाक लिखित परीक्षामे उत्तीर्ण भऽ जाइत छलाह मुदा साक्षात्कारमे जाति, भाषा आऽ प्रान्तक गप आबि जाइत छलन्हि। नन्द बच्चा सभक कहियो ओहि तरहक वातावरणमे पालन नञि कएने छलाह से बच्चो सभ आश्चर्यचकित भऽ जाइत छलाह जे ई कोन नव परिवेश अछि। मुदा फेर नन्दक दुनू पुत्र नोकरीमे लागि गेलाह। आरुणिसँ नन्दकेँ जतेक पैघ पदक आशा छलन्हि से तँ ओऽ नञि पाबि सकल रहथि मुदा भारत सरकारक बी ग्रुपक नोकरी भेटि गेल छलन्हि हुनका। जमाय सेहो अभियन्ता छलखिन्ह ओऽ सेहो सरकारी सेवामे लागि गेलाह। दोसर बेटा सेहो बैंकमे अधिकारी बनि गेलन्हि। सिनेमा हॉलमे १० बरखसँ सिनेमा नहि देखने रहथि नन्दक बच्चा सभ। पटनाक पूजाक मेला, पटनदेवी, गोलघर किछु नहि देखने छलाह नन्दक बच्चा सभ। एहि विषयपर पहिने तँ लोक हँसी करन्हि मुदा बादमे सभकेँ लागए जे ईएह तँ नन्दक परिवारक विशिष्टता तँ नहि बनि गेल अछि। नन्दक घरमे टेलीविजन सेहो नहि छलन्हि ई सेहो लोक सभक लेल आश्चर्यक विषय छल। नन्द आऽ हुनकर सम्पूर्ण परिवार भारतीय टेलीविजनपर प्रसारित भेल रामायण धारावाहिकक एकोटा एपीसोड नहि देखने छलाह। कारण नन्दक घरमे टेलीविजन छलन्हि नहि आऽ क्यो गोटे दोसराक घर ओहुना नहि जाइत रहथि, टी.वी. देखए लेल जएबाक तँ प्रश्ने नहि छलए। नोकरी पकड़लाक बाद आरुणि घरमे एकटा टेलीविजन अनलन्हि। ओतए महाभारतक प्रचार देखि नन्द एक दिन पत्नीकेँ कहलखिन्ह-
“अपन टी.वी.मे महाभारत किएक नहि दैत अछि”।
“अपना टी.वी.मे खाली डी.डी.१ अछि। ऊपरमे एक गोटे रहैत छथि से कहैत रहथि जे हुनका घरमे बेटा एकटा ३०० टाकामे मशीन अनलन्हि-ए। ओकरा टी.वी.मे लगा देलासँ डी.डी.मेट्रो अबैत छैक। ओहीमे महाभारत अबैत छैक। बेटा तीन हजारमे टी.वी.कीनि देलन्हि। आब तीन सय टाका अहाँ लगाऽ कए ओऽ मशीन अगिला मासक दरमाहासँ आनि लेब”।
“जिनकर टी.वी.छन्हि सैह तकर मशीनो अनताह”।
आरुणिकेँ एहि गपक जखन पता चललन्हि तँ हुनका हँसी लागि गेलन्हि। अगिले दिन ओहि मशीनकेँ लगबेलन्हि। अगिला रवि पिताजी जखन महाभारत देखलन्हि तँ सभ गोटे बड्ड प्रसन्न भेलाह। ओही मासमे आरुणि आर्म्स-हथियारक ट्रेनिंग लेल पटनासँ बाहर गेलाह। एहि एक मासक ट्रेनिंगक बीचमे दुर्गा पूजा पड़ैत रहए। पिताजी पहिल बेर दुर्गापूजामे गाम नहि गेल रहथि। आरुणि सेहो बीचमे शुक्र-शनि-रविक दुर्गापूजाक छुट्टी देखि पटना आबि गेलाह। रवि दिन रहए। महाभारत चलि रहल रहए। आरुणिक एकेटा संगी रहन्हि। ओकरा संगे आरुणि बिन खेने-पीने कोनो काजसँ बाहर गेल छलाह। संगीक संगे घरपर अएलाह। माँ दुनू गोटे लेल खेनाइ अनलखिन्ह।
“बाबूजी खाऽ लेलथि”।
“हँ तऽ। तीन बजैत अछि। महाभारत देखलाक बाद खाऽ कए सूतल छथि। अहाँ सभ खाऊ, तावत हम हुनका चाह बना कऽ हुनका दैत छियन्हि, तखने निन्न टुटतन्हि”।
आरुणि दू-तीन कौर खाऽ कऽ उठि गेलाह। हुनकर संगी कारण पुछलखिन्ह-
“की भेल”?
“पता नञि। घबराहटि भऽ रहल अछि”।
“काल्हि ट्रेनिंगपर जएबाक अछि ने। ताहि द्वारे”।
“पता नञि”।
तावत भीतरसँ अबाज आएल। सभ क्यो दौगलाह।
“की भेल माँ”।
“देखू ने। चाह आनि कऽ देलियन्हि हँ, मुदा आँखि खोलि कऽ देखिये नञि रहल छथि। आन दिन तँ चाहक नाम सुनिते देरी उठि कए बैसि जाइत छलाह”।
नन्दक शरीर अकड़ि गेल छलन्हि। कन्ना-रोहट सुनि ऊपरमे रहनिहार एकटा डॉक्टर आला लऽ आयल छलाह आऽ नन्दक मृत्युक घोषणा कए देने रहथि। आरुणि अवाक गुम्म भेल ठाढ़ भऽ गेल रहथि। हुनकर संगी नञि जानि कोन बाटे अपन संगी सभकेँ बजा कऽ लऽ अनने छलाह। सभक ड्यूटी लगा देलन्हि। ककरो गेटपर तँ ककरो ड्रॉइंग रूममे। लोकक भीड़ लागए लागल छल। हुनकर संगी सभ समान बिछाओनमे समेटि बिछौना मोरि आरुणि लग अएलाह।
“क्रिया-कर्मक तैयारी करए पड़त आरुणि। बाँसघाट धरि लऽ जएबाक व्यवस्था करए पड़त। हम जाइ छी गाड़ीक व्यवस्था करए”।
“बाबूजीकेँ गामसँ बड्ड लगाव रहन्हि। कहैत रहथि जे अगिला सात जन्म धरि नगर घुमि कए नहि आएब। ओना बाऽ केर दाह संस्कार बाबूजी पटनेमे कएने रहथि। मुदा ओहि समयमे पटनाक ई गंगा-ब्रिज नहि रहए। आब तँ गाड़ीसँ हिनका लऽ गेल जाऽ सकैत अछि, तखन दाह-संस्कार भोरमे गामेमे भऽ जाएत”।
“हम व्यवस्था करैत छी”।
आरुणिक ओऽ संगी हनुमाने छल। कनी कालमे गाड़ी आबि गेल। रस्तामे पुलिस लाश देखि रोकत से समस्या आएल।
“अहाँ लग वर्दी बला परिचय-पत्र तँ हएत ने”।
“हँ, अछि”।
“ओना दिक्कत अएबाक तँ नहि चाही, मुदा जौँ रस्तामे पुलिस टोकए तँ देखाऽ देबए”।
घर खाली भऽ गेल। ताला लागि गेल। दुनू भाय आऽ माय मृत पिताक संग शुक्लपक्षक ओहि रातिमे पटना नगरसँ निकलि गेलाह। गंगा-ब्रिजपर गाड़ी ठाढ़ भेल। मृत व्यक्तिक एकटा सूची टाँगल छल, जोन-मजदूरक। ई सभ पुल बनेबामे खसि कऽ मरि गेल छलाह। आरुणि गाड़ीसँ उतरि सूची देखैत छथि।
उराँव,झा बहुत रास मजदूर। एकटा “झा” उपाधिक मजदूर, बेशी आदिवासी उपाधिक! बहुत रास मूइल छलाह, कताक सैकड़ामे मुदा राता-राति पुलिसक मदतिसँ अभियन्ता-ठिकेदारसभ लहास भसिया दैत छलाह। ३० गोटेक नाम मुदा छल एतए।
“पायाक ऊपरसँ घुरिया-घुरिया कऽ खसैत मजदूर, कतेक ठाम हम सूचना देने रही, कोनो सुनबाहि नञि भेल। ओकरा सभकेँ न्याय नञि दिआ सकलहुँ तँ लगैत अछि जे दोषी हमहू छी”। नन्दक डायरीक ई अंश एक बेर आरुणि पढ़ने छलाह। चलू घुरि कऽ आएब तखन बाबूजीक डायरी ताकब, कतए छन्हि।
फेर गाड़ी आगाँ बढ़ल। गंगा ब्रिज पाछाँ छुटि गेल। आगाँ गंगा-ब्रिज कॉलोनी आएल। आरुणिक बालकथाक साक्षी। स्कूल, घर, खेलेबाक मैदान। सटले गंगा ब्रिजक गोडॉन। कताक बेर चोरिक समान ट्रकसँ एतएसँ निकलैत छल, एकाध बेर धरायल छल। बड़का धराएल ट्रक, क्तेक चक्का बला, लोक गुमटीलग मेला जेना देखऽ पहुँचैत छलए। बच्चा-सभ ट्रकक चक्का गनैत छलाह, १४ चक्का बला अछि वा १६ चक्का बला।
जीवनक प्रतियोगितामे सभटा जेना बिसरि गेल छलाह आरुणि। भ्रष्टाचार, जोन-बोनिहारक मृत्यु, पिताक संघर्ष सभटा सोझाँ आबि रहल अछि।
“फेरसँ सोझाँ आएलई सभटा, पिताक स्मृति बनि कऽ, मुदा पिताक हारि बनि कए तँ नञि। ई नाम आरुणि हमरा लेल चुनने छलाह बाबूजी किएक”।
“की बजलहुँ बेटा”। माँ पुछलखिन्ह।
“नहि। ई कॉलोनी देखि कऽ किछु मोन पड़ि गेल”।
“नहि देखू ई पपियाहा कॉलोनीकेँ”।
गंगा-ब्रिजक चरचा घरमे टैबू बनि गेल रहए। आरुणिकेँ बुझल छन्हि ई। मुदा एकटा आर प्रारम्भ तँ नञि भऽ जाएत। माँ भीतरसँ घबराऽ गेल छलीह।
आब जे चुप्पी पसरल से गामेमे जाऽ कए खतम भेल। अग्रज भाएक मुँह पकड़ि कनाए लगलाह। एहन भैयारी ककर हेतए। धुर बताह, पैघ भायकेँ क्यो छोड़ि कऽ पहिने चलि जाइत अछि। कहियो नहि कनेने छलह तँ आइ किए कनबाऽ रहल छह। सौँसे टोल जुटि आएल छल। समाचार सुनलाक बाद ककरो घरमे खेनाइ नहि बनल छलैक। पता नञि के ककरा टेलीफोन कऽ देने रहैक जे समाचार एतए पहुँचि गेल रहए।
“कलममे बाबूक सारा लग दाह हेतन्हि”, अग्रजक एहि इच्छाक बाद लहास ओतए गेल। कान्हपर उठा कए सभ पहुँचलाह कलम-गाछी।
“देखियौ, केना मूहपर हँसी छैक, एको रत्ती मूइल लगैत अछि”। नन्दक अग्रज बजलाह।
आरुणिक पैघ भाए जखने अपन आगि लेल हाथ पिताक दिस बढ़ेलन्हि आकि ओऽ विचलित सन भऽ गेलाह। काका भरोस देलखिन्ह। आगिमे मिलैत गेल ओऽ मृत शरीर, पुनः घुरि अएबाक कोनो सम्भावनाकेँ खतम करैत।
सभटा विध-व्यवहार, लगैत रहए जेना ककरो मृत्युक नहि वरन् कोनो पाबनिक इन्तजाम-बात भऽ रहल अछि, धूम-धामसँ। महापात्र आकि कंटाहा ब्राह्मणक निर्देशानुसार होइत श्राद्धकर्म आऽ साँझक पाठ गरुड़-पुराणक अविश्वसनीय विवरणक। सभ सम्पन्न भऽ गेल।
परम शांति आऽ कि घोर कोलाहल। आरुणि ठाकुर किछु अस्वस्थ रहथि आऽ कलकत्तामे वुडलैण्ड नर्सिंग होमक समीपस्थ स्थित विशालकाय अपार्टमेंटक अपन फ्लैटमे असगरहि अस्वस्थ स्थितिमे अध्यावसनमे लीन अपन अतीतक पुनर्विश्लेषणमे रत रहबाक घटनाक्रम मोन पड़ि जाइत छन्हि। अशांतिक क्षण हुनका रहि-रहि कय अनायासहि मोन पड़ि रहल छन्हि। जखन ओऽ अपन समस्या सभ अपन हित-संबंधी सभकेँ सुना कय अपन मोनक भार कम करैत रहथि। शनैः-शनैः समस्या सभ बढ़ैते चल गेल एतेक तक कि आब दोसरकेँ सुनेलापरांत मोन आर उचटि जाइत छलन्हि। ताहि द्वारे आब ओऽ अपने तक सीमित रहय लगलाह। हित संबंधी सभ बुझय लगलाह जे आरुणि समस्यासँ रहित भय गेल छथि। बच्चेसँ सपनामे भयावह चीज सभ देखाइ पड़ैत छलन्हि आरुणिकेँ। अखन धरि हुनका यादि छन्हि कोना आध-आध पहर रातिमे ओऽ घामे-पसीने भय जाइत रहथि आऽ हुनकर माता-पिता चिंतित भय बीयनि होकैत रहथि छलखिन्ह। पिताक-पिता आऽ तकर जन्मदाता के ? भगवान जौँ सभक पूर्वज तखन हुनकर पूर्वजके ? लोकसभ एहि प्रश्न सभकेँ हँसीमे उड़ा दैत छलाह, परंतु बादमे जखन आरुणि दर्शनशास्त्र पढ़लन्हि तखन हुनका पता चललन्हि जे एकर उत्तरक हेतु कतेक ऋषि-मुनि सेहो अप्पन जीवन समर्पित कय चुकल छथि मुदा ई प्रशन एखनो अनुत्तरिते अछि। अस्वस्थताक स्थितिमे फेरसँ ई सभ अनुत्तरित प्रश्न हुनका समक्ष स्वप्न बनि आबि गेल छन्हि।
कख्ननोकेँ निन्दमे हुनका लागन्हि जे ओऽ घरक छत पर छथि आऽ नहि चाहितो शनैः-शनैः छतक बिना घेरल भाग दिशि गेल जा रहल छथि। गुरुत्वक कोनो शक्ति हुनका खीचि रहल छन्हि तावत धरि जावत ओऽ नीचाँ नहि खसि पड़ैत छथि। की ई छल कोनो प्रारब्धक दिशानिर्देश आऽकि कोनो भविष्यक दुर्घटनासँ बचबाक संदेश।
किछु दिन तकतँ आरुणि सुतबाक सही समयक पता लगबैत रहलाह परंतु शनैः-शनैः हुनका ई पता लागि गेलैन्ह जे स्वप्न आऽ निन्न एहि जीवनक दूटा एहन रहस्य अछि जे नियम विरुद्ध अछि आऽ अनुत्तरित अछि।
आऽ आरुणि पैघ भेलथि, फेर हुनकर पढ़ाइ शुरु कएल गेल- अगस्त्यक स्तोत्र- सरस्वति नमस्तुभ्यम वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भम् करिष्यामि सिद्धिर्भवतुमे सदा।
श्रीगणेषजीक अंकुशक संग गौरिशंकरक अभ्यर्थना सिद्धिस्तु। साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वसिनी उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिःपतिः सिद्धिःसाध्ये सतामस्तु प्रसदांतस्य धूर्जटेः जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला।
एहि श्लोककेँ बजैत काल प्रायः आरुणि पशुपतिःपतिःक सामवेदीय तारतम्यक बाद अनायासहि हाऽ हाऽ कऽकय जोरसँ हँसय लगैत छलाह आऽ बीचहि मे रुकि जाइत छलाह। पिता सोचलखिन्ह जे कम वयसमे पढ़ाई शुरु केलासँ आरुणिक कुर्सी पर बैसि कय माथपर हाथ राखि कय बैसबाक आदति तँ खतम होयतन्हि।सय तकक खाँत ओऽ एके बेर मे सीखि गेलाह जखन ओऽ देखलन्हि जे बीसक बाद गणनामे पशुपतिःपतिःक जेकाँ लयबद्धता छैक।
मायक एकटा गप्प हुनका पसिन्न नहीं छलन्हि। ओऽ बिचमे गप्प करैत-करैत आरुणिक बातकेँ अनठिया दैत छलथिन्ह। एकबेर मायक क्यो संगी आयल छलीह। आरुणिक कोनो बातपर माय ध्यान नहीं दय रहल छलीह। आरुणिक हाथमे भरिघरक चाभीक झाबा छलन्हि तेँ ओऽ कहखिन्ह जे जौँ हुनकर बात नहीं सुनल जयतन्हि तँ ओऽ झाबाकेँ सोझाँअक डबरामे फेंकि देताह। माय सोचलखिन्ह जे हाँ-हाँ केलापर झाबा फेकियेटा देताह तैँ आर अनठिया देलखिन्ह। परिणाम दुनु तरहेँ एके हेबाक छल। चाभी बहुत खोज केलो पर नहि भेटल। एखनो घरक सभ अलमीरा आदिक चाभी डुप्लीकेट अछि। एतेक दिनक बाद ई सभ सोचि आरुणिक मुँहपर अनायासहि मुस्की आबि गेलन्हि।
सिद्धांतवादी पिताकेँ नोकरीमे किछु ने किछु दिक्कत होइते रहैत छलन्हि ताहि द्वारे ओऽ आरुणि जल्दी सँ जल्दी पैघ देखय चाहैत छलाह। तेसर सँ सोझे पाँचम वर्गमे फनबा देल गेलन्हि।फेर भेल ई जे होलीक छुट्टीमे नियमानुसार सभ गोटे गाम गेल छलाह। नियम ई छल जे होली आऽ दुर्गापूजामे सभ बेर गाम जयबाक नियम जेकाँ छलैक। पिताजी सभकेँ छोड़ि कय वापिस भय गेलाह। फेर दरमाहा बन्द भय गेल छलन्हि प्राय़ःसे गाम चिट्ठी आयल जे आब सभकेँ गामहि मे रहय पड़तन्हि। मायतँ कानय लगलीह मुदा आरुणि खूब प्रसन्न भेलाह। मुदा सरकारी स्कूलमे ओहि समय वर्गक आगाँमे (नवीन) लगाकय एक वर्ग कममे लिखबाक गलत परम्परा नवीन शिक्षा नीतिक आलोकमे लेल गेल छलैक कारण नवीन नीतिमे आर किछुओ नवीन नहि छल। पिताजीकेँ जखन एहि बातक पता चललन्हि तँ ओऽ तमसायलो छलाह आऽ एकर प्रतिकार स्वरूप पाँचम क्लासक बाद जखन ओऽ सभ शहर वापस अयलाह तँ आरुणिकेँ फेर एक वर्ग तरपाकय सोझे छठम वर्गक बदलामे सातम वर्गमे नाम लिखवा देलन्हि। छठम वर्गक विज्ञान आऽ गणितक पढ़ाइ पाँचमे वर्गमे कय लेबाक पिताक निर्देशक उद्देश्यक जानकारी आरिणिकेँ तखन जाकय भेलन्हि जखन प्रवेश-परीक्षामे यैह दुनु विषय पूछल गेल आऽ आरुणि छठा आऽ सातम दुनु वर्गक प्रवेश परीक्षामे बैसलाह आऽ सफल भेलाह। बहुत दिन बाद तक जखन क्यो आनो संदर्भमे छठम वर्गक चर्चा करैत छल तँ आरुणिकेँ किछु अनभिज्ञताक बोध होइत छलन्हि।
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हुनकर स्वभावमे क्रोधक प्रवेश कखन भेलन्हि से तँ हुनको नहि बुझबामे अयलन्हि मुदा पिताजी हुनका क्रोधक समान कोनो दोसर रिपु नहि एहि संस्कृत श्लोकक दस बेर पाठ करबाक निर्देश देने छलखिन्ह- से धरि मोन छन्हि। एकटा घटना सेहो भेल छल जाहिमे स्कूलमे एकटा बच्चा झगड़ाक मध्य सिलेटसँ हुनकर माथ फोड़ि देने छलन्हि। आरुणि सेहो सिलेट उठेलथि मुदा ई सोचि जे ओकर माथ फूटि जयतैक हाथ रोकि लेने छलाह। एकर परिणामस्वरूप हुनकर पिता दू गोट काज केलन्हि। एकतँ हुनकर सिलेटकेँ बदलि कय लोहाक बदला लकड़ीक कोरबला सिलेट देलखिन्ह जकर कोनो ने कोनो भागक लकड़ी खुजि जाइत छलैक आऽ दोसर जे कॉलोनीमे समकक्ष अधिकारीक बैठक बजाकय कॉलोनीअहिमे स्कूल खोलि देल गेल जतय आरुणि पढ़य लगलाह। बादमे क्यो पंडित जखन वाल्मीकि रामायणक सुन्दरकाण्डक पाठ तँ क्यो ज्योतिष कँगुरिया आँगुरमे मोती आऽ कि मूनस्टोन पहिरबाक सलाह अही उद्देश्यक हेतु देबय लगैत छलाहतँ ओऽ संस्कृत श्लोक हुनका मोन पड़ि जाइत छलन्हि।
बाल संस्कारक अंतर्गत सहायता माँगयमे आऽ समझौता करयमे अखनो हुनका असहजता अनुभव होइत छन्हि। मुदा हारि आऽ जीत दुनुकेँ बराबड़ बूझि युद्ध करबाक विश्वास हुनकामे नहीं रहलन्हि विशेषकरिके पिताक मृत्युक बाद। आऽ विजय हुनकर लक्ष्य बनैत गेलन्हि शनैः-शनैः। जकर ओऽ जी-जानसँ मदति कएलन्हि सेहो समयपर हुनकर संग देलकन्हि। समय-समय पर केल गेल समझौता सभ हुनकर संघर्षकेँ कम केलकन्हि। जतेकसँ दोस्तियारी छलैन्ह तकरे निभेनाइ मुश्किल भय रहल छलैन्ह। फेर तँ नव शहरमे नव संगीक हेतु स्थान नहि बचल।
महत्वाकांक्षाक अंत नहि आऽ जीवन जीबाक कला सभक अद्वितीय अछि। आरुणि ई नाम आब कखनो-कखनो घरमे सुनाइ पड़ैत छल। कलकत्ता शहर प्रतिभाक पूजा करैत अछि। मुदा व्यवसायी होयबामे एकटा बाधा छल-अंग्रेजीक संग बाङलाक ज्ञान जे ओऽ बाट चलैत सीखि गेलाह। व्यस्त जीवनमे बीमारीक स्थितिअहिमे हुनका आराम भेटैत छलैन्ह। बीमारियेमे सोचबाक आदति मोन पड़ैत छलैन्ह। आऽ ई फ्लैट किनलाक बाद मायकेँ सेहो बजा लेलखिन्ह। ओना हुनका बुझल छलन्हि जे माय एहि सभसँ प्रभावित नहि होयतीह। कारण ओऽ अधिकारी पत्नी छलीह आऽ पुत्रकेँ सेहो ओहि रूपमे देखबाक कामना छलन्हि। ई नव शहर हुनक पुत्रक व्यक्तित्वमे सैद्धांतिकताक स्थानपर प्रायोगिकताक प्रतिशतता बढ़ा देने छलन्हि। आब समयाभावक कारण स्वास्थ्य खराब भेलेपरांत सोचबोक समय पुत्रकेँ भेटैत छलन्हि।
व्यसायमे सफलता प्राप्तिक पूर्व आरुणि एकटा कागज प्रिंटिंग प्रेसमे काज केनाइ शुरु केलन्हि। अपन मित्रवत प्रिंटिंग प्रेस मालिकसँ दरमाहाक बदला पर्सेंटेज पर काज करबाक आग्रह केलन्हि। ऑर्डर आनि बाइंडिंग आऽ प्रिंटिंग करबाबथि आऽ आस्ते-आस्ते अपन एकटा प्रिंटिंग प्रेस लगओलथि। किछु गोटे हिनका अहिठामसँ छपाइ करबाकय ग्राहककेँ बेचथि। हुनका जखन एहि बातक पता चललन्हि तँ ओऽ एकटा चलाकी केलथि जे सभ बंडलमे अपन प्रेसक कैलेंडर धऽ देलखिन्ह। जखन अंतिम उपभोक्ताकेँ पता चललैक जे ओ’ सभ अनावश्यके दलालक माध्यमसँ समान कीनि रहल छलाह तँ ओऽ सभ सोझे आरुणि प्रिंटिंग प्रेस केँ ऑर्डर देबय लागल। आरुणिकेँ घरमे अपन नाम कखनहुँ काले सुनि पड़ैन्ह। किताबक ऊपर छपल हुनकर नाम तँ कोनो कंपनीक छलैक- आऽ ओऽ ओकरासँ निकटता अनुभव नहि कऽ पाबि सकैत छलाह। संसारक कुचालि हुनकर पिताक अंत केने छलन्हि मुदा आरुणि व्यावसायिक युद्ध मस्तिष्कसँ लड़ैत आऽ जितैत गेलाह। मायक एलाक बाद आरुणि ई नाम बीसो बेर दिन भरिमे सुनाइ पड़य लागल। ओकर संगी लोकनि उपरोक्त व्यावसायिक सफलताक घटना सभकेँ जखन आरुणिक मायकेँ सुनबैत रहैत छलाह ई सोचि जे ओऽ अपन मित्रक बड़ाइ कय रहल छलाह तँ आरुणि असहजताक अनुभव करय लगैत छलाह आऽ गप्पकेँ दोसर दिशि मोड़ि दैत छलाह।
हुनकर मायतँ जेना हुनक विवाहक हेतु आयल छलीह। माय जखन जिद्द ठानलन्हि तँ हुनका आश्चर्य भेलन्हि कारण घरमे जिद्दक एकाधिकारतँ हुनकेटा छलन्हि। मुदा माय बूझि गेल छलीहजे हुनकर बेटा प्रक्टिकल भय गेल छन्हि आऽ जिद्द केनाइ बिसरि गेल छन्हि। आरुणि सोचलन्हि जे छोटमे बड्ड जिद्द पूरा करबओने छथि तेँ आब पूरा कर्बाक समय आयल अछि। विवाह फेर बच्चा। माय अपन नैतमे पतिक रूप देखलैन्ह। पतिक मृत्युक पहिनहि बेटा प्रैक्टिकल बनि गेल छलन्हि। मुदा आब ई नहि होयत। जे काज बेटा नहि कय सकल से आब नैत करत। नैतक नाममे बेटा आऽ पति दुहुक नामक समावेश केलन्हि- आरुणि नन्द। फेर पढ़ाइ शुरु- सिद्धरस्तु-श्री गणेशजीक अंकुश आऽ वैह उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिःपतिः। हुनकर बेटाकेँ पति पढ़ेलखिन्ह ओऽ तँ घर सम्हारैत छलीह। आब पुतोहु घर सम्हारलैन्ह, बेटाकेँ तँ फुरसतिये नहि। आब बाऽ पढेतीह नैतकेँ।
उतपत्स्येत हिमम कोऽपि समानधर्मा कालोह्यम निरवधिर्विपुला च पृथ्वी।
पृथ्वी विशाल अछि आऽ काल निस्सीम,अनंत, एहि हेतु विश्वास अछि जे आइ नहीं तँ काल्हि क्यो ने क्यो हमर प्रयासकेँ सार्थक बनायत।
आरुणि अपनाकेँ अपन मायसँ दूर अनुभव केलन्हि, किछु अस्वस्थ सेहो छथि आऽ वुडलैण्ड नर्सिंग होमक समीपस्थ स्थित विशालकाय अपार्टमेंटक अपन फ्लैटमे असगरहि अध्यावसनमे लीन अपन अतीतक पुनर्विश्लेषणमे रत छथि। प्रतियोगिता परीक्षा सभक उमरि बाकी छलन्हिये से दू चारिटा परीक्षामे बैसि गेलाह आऽ केन्द्र सरकारक ई ग्रुप बी वर्दीबला अधिकारी बनि गेलाह। माँकेँ कनेक संतोख भेलन्हि जे क्लास वन नहि मुदा सरकारी नोकरी तँ केलक, ई बिजनेस-तिजनेस तँ छोड़लक।
“चलह कनेक खाऽ लैह, एना केने काज नहि चलतह”। आरुणिक छोटका मामा प्रेमपूर्वक दबाड़ि कए कहलन्हि। क्रिया-कर्म खतम भऽ गेल छल आब घुरबाक बेर आबि गेल छल, नोकरीक संग पिताक मार्गपर सेहो।
१९९५ क नवम्बरक मास। केश कटायल मुँहेँ गामसँ दरिभङ्गा आऽ ओतएसँ पटनाक बस पर चढ़लाह आरुणि। किछु किताब बेचिनहार अयलाह, तुक मिलेने सभ किताबक विशेषता कहि सुनओलन्हि।k खिस्सा-पिहानी,उपचार,फूलन-देवी सँ लय मनोहर पोथी तक सभ यात्रीगणकेँ एक-एक टा परसैत गेलाग।ओहिमे सँ किछु मोल-मोलाइ कएलाक उत्तर बिकयबो कएलन्हि आ’ सभटा वापस लय जाइत गेलाह,बससँ उतरैत कालकंडक्टरसँ वाद-विवाद सेहो भेलन्हि। फेर नेबोक रस निकालबाक यंत्रक आविष्कारक चढ़लाह,रस निकालि देखओलन्हि,खलासीसँ वाद-विवादक उपरांत ओहो उतरि गेलाह।फेर ककबा बला,पेन बला आऽ पेचकश बला सभ चढ़ि कय उतरैत गेलाह। पुछलाक उपरांत पता चलल जे गाड़ी साढ़े दस बजे खुजत ई गप्प बस बला झुट्ठे बाजल छल। पछुलका बसक सवारीकेँ सीट नहि भेटल छलन्हि, से बेशी अबेरो नहि होयत आऽ सीटो भेटि जायत,एहि तर्कक संग मार्केटिंगक उपकरणक रूपमे ई शस्त्र चलल छल। गाड़ी खुजबाक समय छल ११ बजे मुदा ११ बाजि कय पाँच मिनट धरि बहस होइत रहल जे घड़ीमे ११ बाजल अछि कि नहि। पाँछा एगारह बाजि कय दस मिनट पर जखन बादमे जायबला बसक कंडक्टर अशोक मिश्रा आऽ शाहीक बसक बीचक भिड़ंतक बात कय झगड़ा बजारि देलक-जे एको सेकेंड जौँ लेट होयत तँ जे बुझु से भय जायत- तखन ड्राइवर अकस्माते हॉर्न बजाबय लागल। आरुणिक बगलक सीट पर बैसलि एकटा बूढ़ि बेटाकेँ जोरसँ बजाबय लगलीह, पाँच मिनट गरदमगोल होइत रहल। सभ यात्री चढ़ि गेलाह, आऽ दू-चारिटा यात्री जे अखने रिक्शासँ उतड़ल छलाह, जोर-जोरसँ बाजय लगलाह। पछुलका बस बला हुनकर मोटा-चोटा उठा कय अपना बसमे लऽ जाय चाहैत छलन्हि, मुदा ओऽ लोकनि पढ़ल लिखल छलाह आऽ हमरे सभक बससँ जाय चाहैत छलाह। ओऽ लोकनि दू-चारिटा चौधरी-कुँअरक नाम-गाम गनओलन्हि, तखन ओहि बस बलाकेँ बुझओलैक जे ई सभ फसादी लोक सभ अछि- से कहलक जे टू बाइ टूक बदला ओहि टू बाइ थ्री धक्कागाड़ीमे ठाढ़े जयबाके जौँ इच्छा अछि तँ हम की करू- किरायो ओऽ एको पाइ कम नहि लेत। से दू-चारि गोट बेशी यात्री लेबाक मनसूबा पूरा भेलाक बाद ड्राइवर गाड़ी हाँकि देलक। ओहि रिक्शा-सभ परसँ एक गोट अधवयसू व्यक्ति चढ़ल छलाह आऽ संयोग ई भेल, जे आरुणिक दोसर बगलमे बैसल व्यक्ति गुनधुन करैत छलाह जे फलनाँ बड़ा बूड़ि अछि,एखन धरि नहि आयल। गाड़ी खुजलाक बाद अगिला चौक पर असकसा कय ओऽ उतरि गेलाह आऽ तकर बाद ओहि टू बाइ थ्री ग़ाड़ीक तीन सीट बला हीसमे आरुणिक बगलमे ओहि सज्जनकेँ जगह भेटि गेलन्हि।
आरुणिक मोन स्थिर छलन्हि आऽ बेशी बजबाक इच्छा नहि छलन्हि। मुदा बगलगीर पहिने अप्पन भाग्यकेँ धन्यवाद देलन्हि,जकर प्रतापे हुनका सीट भेटलन्हि। पटनामे आवश्यक कार्य छलन्हि, तेँ लेट जायबला बससँ गेला उत्तर काजमे भाङठ पड़ितन्हि। फेर अप्पन परिचय असिस्टेंट डायरेक्टरक रूपमे देलाक उपरांत ई सूचना देलन्हि जे दरिभङ्गाक संग पटनोमे हुनकर मकान छन्हि। दुनू घर अप्पन पुरुषार्थसँ बनयबाक गप्पक संग,दुनू घरक दुमहला आऽ मारबल आऽ ग्रेनाइटसँ युक्त होयबाक बातो कहलन्हि। बजबैका लोक केँ सुनिनिहार लोक बड्ड पसिन्न पड़ैत छन्हि,से ओऽ आरुणिकेँ पसिन्न करय लगलाह।
तेँ पुछलन्हि-
“पटनामे अपनेक मकान कोन महल्लामे अछि”।
आरुणि कहलखिन्ह- “अप्पन मकान नहि अछि,किराया पर छी”।
किछु कालक शांतिक पश्चात ओऽ सज्जन पनबट्टीसँ पान बहार कय आरुणिसँ पुछलन्हि जे-
“पान खाइत छी”।
“नहि”- एहि उत्तरक पश्चात अप्पन विशेषज्ञता देखबैत कहलन्हि, जे-
“हमतँ अहाँक दाँते देखि कय बुझि गेल छलहुँ”।
पान खेलाक बाद अप्पन बेटी सभक सासुरक चर्चा कएलन्हि। बेटाक आइ.ए.एस. केर तैयारी करबाक गप्प कएलन्हि आऽ कोनो ग्रुपक चर्चा सेहो कएलन्हि जे विद्यार्थी लोकनिक बीच एहि तैयारीक हेतु तैयार भेल छल आऽ ओहि ग्रुपमे प्रवेश मात्र प्रतिभावान लोकनिक हेतु सीमित छल। फेर आखिरीमे ईहो पता कहलन्हि जे ओहि प्रतिभावान ग्रुपक सदस्यता हुनकर पुत्रकेँ सेहो प्राप्त छन्हि।
आँगा बढ़ैत-बढ़ैत गाड़ी एकटा लाइन होटल पर ठाढ़ भेल। किछु यात्री एकर विरोध कएलन्हि। एक गोटे कहलन्हि जे ई ड्राइवर-कंडक्टर खेनाइ खएबाक द्वारे एहि घटिया लाइन होटलमे गाड़ी रोकैत अछि। एकर सभक खेनाइ एतय मुफ्तिया छैक आऽ संगहि सूचना भेटल जे मुफ्तिया की रहतैक ओकर सभक बिल यात्रीगणसँ परोक्ष रूपमे लेल जाइत छैक आऽ बुझु जे एकर सभक बिल यात्री सभ भरैत छथि। हुनकर ईहो अपील छलन्हि जे क्यो गोटे नहि उतरय आऽ हारि कय बसकेँ स्टार्ट करय पड़तैक। किछु कालक उपरांत एकाएकी सभ गोटे उतरैत गेलाह आऽ ओऽ सज्जन सेहो खिसियायल उतरि फराक भऽ ठाढ़ भय मिथिलांचलक दुर्दशाक कारणक व्याख्यामे हुनकर गप्प नहि मानबाक मनोवृत्तिकेँ सेहो दोषी करारि देलथिन्ह।
गाड़ी फेर खुजल आऽ किछु दूर आगू जाऽ कय धक्काक संग ठाढ़ भय गेल। कंडक्टर कहलक जे सभ उतरैत जाऊ। गाड़ी पंक्चर भय गेल। लाइन होटल पर गाड़ी नहि रोकबाक अपील केनहार सज्जनक मत छलन्हि, जे लाइन होटलपर जे गाड़ी ठाढ़ भेल, तखनेसँ जतरा खराब भए गेल अछि। आब आगू देखू की-की होइत अछि। नीचाँ उतरलाक बाद चारि-चारि, पाँच-पाँच गोटेक गोला बनि गेल। ई जगह प्रायः वैशालीक आसपास छल। एक गोटे खेतक विस्तारक दिशि ध्यान देलन्हि। घर सभक ऐल-फैल होयबाक सेहो चर्चा भेल। संगहि अपना सभक गाम दिशि घर पर घर आऽ चाड़ पर चाड़ चढ़ल रहैत अछि आऽ से झगड़ाक कारण अछि, अहू पर चर्चा भेल। आरुणिक बगलमे बैसल अधवयसू व्यक्ति किछु औंघायल सन छलाह, मुदा एहि व्यवधानसँ हुनकर भक्क टूटि गेलन्हि। हुनकर बकार लाइन होटल पर आकि नीचाँ ठाढ़ भेला पर मन्द भय जाइत छलन्हि से आरुणि अनुभव कएलन्हि। फेर बस चलि पड़ल आ ऽ ओऽ सज्जन पुनः शुरू भय गेलाह। हाजीपुर शहर अएला पर तँ हुनक स्मृति आर तीक्ष्ण भय गेलन्हि।
किछु काल बस चलल तँ एकटा कॉलोनीक दिशि इशारा कय ओऽ कहलन्हि-
“ई छी गंगा ब्रिज कॉलोनी, की छल आऽ आब की भय गेल अछि। एक भागमे रहबाक हेतु क्वॉर्टर आऽ दोसर भागमे गिट्टी-छड़-सीमेंट सभ भड़ल रहैत छल। आबतँ कॉलोनीक मेंटेनेंसो नहि भय रहल अछि”।
आरुणि चौँकि गेलाह। कहलन्हि,
“एतय एकटा स्कूलोतँ छल”।
ओ ऽ सोझाँ इशारा दैत देखेलन्हि-
“देखू, ओतय नामो लिखल अछि। बरखा बुन्नीमे नाम अदहा-छिदहा मेटा गेल अछि”। फेर ओ ऽ चौँकि कय पुछलन्हि-
“अहाँकेँ कोना बुझल अछि”। -हम एहि स्कूलमे पढ़ने छी। -मुदा एहि कॉलोनीमे तँ गंगा पुल निर्माणक अभियंता लोकनि मात्र रहैत छलाह आऽ स्कूलमे हुनके बच्चा सभकेँ पढ़बाक हेतु एहि स्कूलक निर्माण भेल छल। -हम सभ अही कॉलोनीमे रहैत छलहुँ। -अहाँक पिताक नाम की छी। -श्री नन्द ठाकुर। पिताक मृत्युक पंद्रह दिन पहिनहि भेल रहन्हि से स्वर्गीय कहबाक हिस्सक नहि पड़ल छलन्हि।
-अहाँ ठाकुरजीक पुत्र छी। ई कहि आरुणि दिशि ओ ऽ अपनत्वसँ बेशी ममत्वक दृष्टि देलन्हि।
“अहाँक नाम की छी”। आरुणि पुछलखिन्ह।
“आइ.ए.आजम”।ओ ऽ कहलन्हि।
तखन आरुणि हुनका सभटा बच्चाक नाम गना देलखिन्ह। हुनकर एकटा बेटा नेहाल आजम आरुणिक क्लासमे पढ़ैत छल। आब हुनकर स्वर बदलि गेलन्हि।
-कॉलोनीमे दू गोटे खूब पूजा करैत छलाह। एकटा पाण्डे जी आऽ दोसर अहाँक पिताजी। पाण्डेजी तँ पूजाक संग पाइयो कमाइत छलाह। मुदा अहाँक पिताजी छलाह पूर्ण ईमानदार आ ऽ दयालु। चंदा कय होम्योपैथिक दवाई कानपुरसँ अनैत छलाह, आ ऽ मुफ्त इलाज कॉलोनी बलाकेँ दैत छलाह। हमर बेटीकेँ माथमे बड़का गूर भय गेल छलैक। कोनो एलोपैथिक बलासँ ठीक नहि भेल छलैक। अहींक पिताजी ओकरा ठीक केने छलखिन्ह। इंजीनियर रहितहुँ होम्योपैथीक डिग्री हुनका रहन्हि। ड्राइंग रूममे होम्योपैथीक छोट-पैघ, सादा-रंगीन शीशी सभ आरुणिक आँखिक सोझाँ आबि गेल। -आइ काल्हि कतय पोस्टेड छथि। बहुत दिनसँ सम्पर्के टूटि गेल। एतुक्का बाद कतहु संगे पोस्टिंग सेहो नहि रहल। बुझू भेँट भेना पन्द्रह सालसँ ऊपर भय गेल अछि। -पन्द्रह दिन पहिने हुनकर मृत्यु भय गेलन्हि। आरुणिक कटायल केश दिशि देखि ओ ऽ कहलन्हि-हमरे सँ गल्ती भेल। केश कटेने देखियो कय नहि पुछलहुँ। तेँ अहाँ भरि रस्ता गुम्म छलहुँ। फेर कहय लगलाह-
-मजदूरक प्रति बड्ड चिंता रहैत छलन्हि।
तावत बस गंगा पुल पर आबि गेल छल। आगाँ फाटक पर बसकेँ टिकट कटेबाक हेतु ठाढ़ कय देल गेलैक। क्यो गोटे संवादो देलक जे आगू वन-वे जेकाँ अछि। एक कातमे रिपेयरिंग चलि रहल अछि। आरुणिक आगाँ दृश्य घूमि गेलन्हि। एहि पुलक निर्माणकालक पाया सभक। कॉलोनीक टूटल देबालक पजेबा सभ। ओऽ देबाल सभ साल टूटैत छल। पिताजी कहैत छलखिन्ह जे इंजीनियर आऽ ठेकेदार सभ मिलल अछि। फेर मोन पड़लन्हि सूटकेस भरल रुपैय्या। आरुणिक पिताजी एक लात मारने छलाह आऽ सूटकेस दूर फेका गेल। एक गोट पितयौत भाय रहैत छलखिन्ह घरमे -से सभटा रुपैय्या ओहि सूटकेसमे राखि ओहि ठिकेदारकेँ देलन्हि। माँ सभकेँ भितरिया कोठली दिशि लय गेलीह। एक बेर नन्द पुलक पाया सभक लग स्टीमरसँ लय गेल छलखिन्ह आरुणिकेँ आ ऽ कहलन्हि-
-देखू। एहि पायाक निर्माणमे कतेक गोट मजदूर ऊपरसँ घिरनी जेकाँ नाचि कय गंगामे खसि पड़ल। सयसँ ऊपर। कतेक हमरा आँखिक सोझाँ। ओहिमेसँ मात्र किछुए परिवारकेँ कंपेनसेशन देल गेलैक। आन सभक ने लिस्टमे नाम छैक, ने क्यो पता लगेलकैक। तैयो सभ अभियंता लोकनि ठिकेदारसँ मिलल अछि।
भक्क टूटलन्हि आरुणिक। बससँ उतरि ओहि पुलक निर्माणमे शहीद मजदूरक लिस्ट फेर देखलन्हि। बहुत कम लोकक नाम छल-प्रायः बिन कंपेंनसेशन बलाक नाम नहि रहैक। बस शुरू होयबाक सूरसार कएलक तँ आरुणि आऽ आजम साहब बस पर धड़फड़ा कय चढ़लाह।
ओ ऽ पुनः बाजय लगलाह।
-पटनामे अहाँ कहलहुँ जे किरायाक मकानमे रहए जाइत छी।
-हँ। पिताक क्रियाकर्मक हेतु गाम गेल छलहुँ, पिताक मृत्युक उपरांत माँ केर मोन ओहि घरमे नहि लगतन्हि, ताहि हेतु ओऽ गामेमे रहि गेल छथि। आब पटना पहुँचि कय दोसर डेरा ताकब। ओना हम तँ कलकत्तामे नोकरी करैत छी।
-बुझू। तीस बरख पी.डबल्यु.डी. मे ईमानदारीसँ कार्य कएलाक उत्तर एकटा घरो नहि बना सकलाह। लोक की-की नहि कए गेल। हमहुँ १९८१ क बाद अहींक पिताजीक लाइन पर चलय लगलहुँ। दू टा घरो जे बनयने छी से नामे-मात्रक दू-महला। अधखिज्जू-ऊपरमे एक-एकटा कोठली अछि। अहाँक पिताकेँ की देलकन्हि सरकार। आ ऽ की भेटलन्हि। रिटायरमेण्टक पहिनहि मृत्यु। ने कोनो सम्मान। पुलक उद्घाटन पर दू-दू हजार सभ अभियंताकेँ सरकार देलक। ओ ऽ तँ भगवानक रूप छलाह। सम्मानक लालसाक हेतु काज नहि कएलन्हि। सभ वर्क्स डिवीजनमे जयबाक हेतु पैरवी करय आ ऽ ई नन-वर्क्समे जयबाक हेतु पैरवी करथि।
फेर ओ ऽ आरुणिसँ पुछलन्हि जे-
-अहाँ की करैत छी।
-पिता,माय आ ऽ भाय पटनामे रहैत छलाह, हम कलकत्तामे इंटेलीजेन्स विभागमे छी, कहियो वरदी रहैत अछि कहियो मनाही रहैत अछि।
-दरभंगोमे आऽ पटनो मे आउ। मायोकेँ अनियन्हु। हमर पत्नीकेँ बड्ड नीक लगतन्हि। नेहालतँ पटनेमे अछि।
फेर अपन पटना आ ऽ दरभंगा दुनू ठामक पता अपन स्नेहिल हाथसँ पड़बैत पटनाक हार्डिंग पार्क बस स्टैण्ड पर उतरलाह। बाहरसँ पटना अयला पर होर्डिंगकेँ देखि आरुणि प्रसन्न भय जाइत छलाह। मुदा पिताक छायाक दूर भेलाक बाद आब एहि नगरसँ लगाव नहि प्रतियोगिता करय पड़तन्हि हुनका। ई कोन संयोगपर संयोग भऽ रहल छल। आजम साहेब आइये कोना भेटि गेलाह। पन्द्रह सालसँ किएक क्यो नहि भेटल रहथि आऽ अकस्मात् नियति की चाहए छन्हि हुनकासँ।
रिक्शा पकड़ि घरक लेल निकललाह। फेर सोचनी लागि गेलन्हि। एक बेर बाबूजीकेँ कटहरक कोआ खेलाक बाद पेट फूलि गेलन्हि, दू बजे रातिमे। ईहो नहि फुराइत छलन्हि, जे बगलमे श्रवनजीक बाबूकेँ बजा लियन्हि, जे कोनो डॉक्टरकेँ बजा देताह। फुरायल तँ छलन्हि, मुदा कहियो गप नहि छलन्हि, तँ आइ काज पड़ला पर कहितथिन्ह, से हियाऊ नहि भेलन्हि। माय केबाड़ पीटि कय पड़ोसीकेँ उठेलन्हि, कनैत खिजैत रहलीह। पड़ोसी डॉक्टरकेँ बजओलक, तखन जाऽ कय बाबूजीक जान बाँचलन्हि। माय श्राप सेहो दैत रहलखिन्ह आऽ ईहो कहैत रहलखिन्ह जे पाँच वर्षक बेटा रहैत छैक तँ सभ भरोस दैत छैक, जे कनैत किएक छी, अहाँकेँ तँ पाँच वर्षक बेटा अछि।ऽ ई सभ .....जाह, अपने भोगबह हम तँ दुनियासँ चलि जायब।
बहिन कॉलेजमे पढ़ैत छलखिन्ह। कॉलेजक रस्ता पैरे जाय पड़ैत छलन्हि। आऽ कॉलेजसँ आँगा स्कूल छलन्हि आरुणि दुनू भाँयक। बहिन कहलखिन्ह, जे अहूँ सभ संगे हमरा सभक संगे चलू। एक दिन दुनू भाँय संग गेबो कएल रहथि। मुदा गप बिनु केने दुनू भाँय आगू-आगू झटकैत चल गेलाह। मोनमे ईहो भव छलन्हि, जे छौड़ा सभ चीन्हि नहि जाय जे हमरा सभक ई बहिन छथि। आब ई सोचैत छथि जे चिन्हिये जाइत तँ की होइत।
अपन व्यक्तित्त्वक विकासक कमी छलन्हि ई? बादमे पैघ भेलाह तँ माँ-बापकेँ उकटैत छथि, जे घरघुस्सू आऽ मुँहचुरूक संज्ञा जे देलहुँ अहाँ सभ, कहियो ई सोचलहुँ, जे कोनो पड़ोसीसँ गप्प नहि करबाक, संगी-साथी नहि बनयबाक, घूमब-फिरब नहि करबाक उपदेशक पाछू -जे अहाँ सभ उपदेश देलहुँ- ओकर पाँछा इच्छा समाजक बुराइसँ दूर करबाक छल, परंतु यैह तँ बनेलक मुँहचुरू आऽ घरघुस्सू सभकेँ।
रातिमे माय बापक झगड़ाक सीन सपनामे देखैत छलाह आऽ डरा कय उठि जाइत छलाह। पैघ भाय बहिनसँ अरुणिकेँ खूब झगड़ा होइत छलन्हि, मुदा एक बेर माय-बापक झगड़ाक बाद, खूब कानल छलाह, खूब बाजल छलाह। ओहि घटनाक पहिने किछु दिनसँ भाय-बहिनसँ झगड़ाक बाद टोका-टोकी बन्द छलन्हि। सभ बेर वैह लोकनि आगाँ भऽ टोकैत छलाह। मुदा एहि बेर आरुणि कानैत-कानैत बहिनकेँ टोकलन्हि आऽ फेर कहियो बहिनसँ झगड़ा नहि भेलन्हि। भाय पिठिया छलन्हि, संगे पढ़ैत छलखिन्ह, ताहि हेतु ओकरासँ तँ झगड़ा होइते रहलन्हि, मुदा कम-सम।
एहि सभ गपक हेतु माँ पिताजीकेँ दोषी कहथे। माँ सभसँ- पड़ोसी-संबंधी, जान-पहचानसँ- गप करबासँ कहियो नहि रोकलन्हि आऽ सभटा दोष पिताक छलन्हि।
एक बेर ग्लोब किनबाक जिद्द कएलन्हि आरुणि। कएक बेर समय देल गेलन्हि, जे आइ आयत- काल्हि आयत। आरुणि पढ़ब छोड़ि देलन्हि। आऽ तखन जाऽ कय ग्लोब अएलन्हि। बहिन अखनो कहैत छथिन्ह, जे ग्लोब अनबाक जिद्दक पूरा भेलाक बाद अरुणिक पढ़ाइक लय टूटि गेलन्हि। वर्गमे स्थान प्रथमसँ नीचाँ आबि गेलन्हि आऽ पिताजी एकर कारण तंत्र-मंत्रमे ताकय लगलाह। एकटा तांत्रिकसँ भेँट भऽ गेलन्हि।
कतेक दिन सभ गाममे रहैत जाइत गेलाह। गंगा ब्रिज कॉलोनीमे एकटा एकाउन्टेंट बाबू छलाह। ओऽ बाबूजीकेँ कहलखिन्ह, जे अहाँ तँ घूस नहि लैत छी, मुदा अहाँक पत्नी अहाँक नाम पर घूस लैत छथि। तकर बाद सभ गाम पहुँचा देल गेलाह।
सभ ट्रांसफरक बाद बिहार सरकारक नौकरीमे दरमाहा बंद भऽ जाइत छैक। आऽ ताहि द्वारे सभ ट्रांसफरक बाद नन्द सभकेँ गाम पठा दैत छलाह। एहि क्रमम सभ गाममे छलाह। नन्दक चिट्ठी माँक नामसँ गाम आयल छलन्हि। आरुणि पढ़ने रहथि। नन्द आरुणिक मायकेँ लिखने छलाह, जे -जौँ अहाँ घूसक पाइ लेने छी तँ लौटा दियौक। हम विजीलेंसकेँ लिखने छी, छापा पड़त, तखन पाइ निकलत तँ बड्ड बदनामी होयत।
एहि सभ परिस्थितिमे स्कूलमे आरुणि घरक परिस्थितिकेँ बिसरि जयबाक प्रयास करय लगलाह। झुट्ठेकँ हँसय लगलाह। ई आदति पकड़ि लेलन्हि। घरक बड़ाई करय लगलाह। लोक सभ नन्दक ईमानदारीक तँ चर्चा करिते रहय। आरुणि घरक कलहक विषय घरक बाहर अनबासँ परहेज करय लगलाह, लोक बुझत तँ हँसत। आऽ बुझू जे ईमानदारीक ग्लैमरकेँ जिबैत जाइत गेलाह। सोचबाक आऽ गुनधुनीक आदति एहन पड़लन्हि, जे सुतैत सपनामे आऽ जगैत लिखबा-पढ़बा काल धरि ई पाछाँ नहि छोड़लकन्हि। दसमामे छमाही परीक्षा किछु दिन पहिने देने रहथि। कॉमर्सक परीक्षामे एकटा प्रश्न बनेलन्हि। मुदा ओऽ गलत बनि गेलन्हि, फेर दोसर आऽ तेसर बेर प्रयास केलन्हि। सभटा प्रश्नक उत्तर अबैत छलन्हि मुदा पहिलो प्रश्नक उत्तर पूरा नहि भऽ रहल छलन्हि। कॉपीकेँ अंगाक नीचाँमे नुका लेलन्हि। आऽ पानि पीबाक बहन्ने जे बहरेलाह, तँ घर पहुँचि गेलाह। पढ़ैत-पढ़ैत सोचय लगैत छलाह। एक्के पन्ना उनटेने घंटा बीति जाइत छलन्हि। चिड़ियाखाना गेल रहथि एक बेर। किछु गोटे हुनकर सभक सर-संबंधी लोकनि, ओतय हुनका सभकेँ भेटि गेलखिन्ह। बड्ड हाइ-फाइ सभ। ओना तँ कहलखिन्ह किछु नहि, मुदा हुनकर सभक बगेबानी देखि कय, आरुणिमे हीन भावना अएलन्हि। चुप्पे भीड़मे निकलि घरक लेल पहुँचि गेलाह। जेबीमे पाइ नहि रहन्हि से पएरे निकलि गेलाह। ओतय चिड़ियाखानामे सभ डराइत रहल जे कतय हरा गेल। सभ घर पहुँचल तँ सभकेँ फुसियेँ कहलन्हि जे सत्ते भोथला गेल रहथि। सत्त बात ककरो नहि बतेलन्हि।
सभ लोक जे भेटथिन्ह यैह कहथिन्ह जे अहाँ, फलनाक बेटा छी। बेचारे भगवाने छथि।
ऑफिसमे पिताक दरमाहाक लेल पे-स्लिप बनबाबए पड़ैत रहन्हि। एक बेर आरुणि पे-स्लिप बनबए गेल छलाह। किरानी बाबू बाजल- हिनकर पिताक पे-स्लिप बिना पाइ लेने बना दियन्हु।
पिताजीसँ नहि तँ सहकर्मी खुश छलन्हि नहिये ठीकेदार सभ। सहकर्मी एहि लऽ कय जे नहि स्वयं कमाइत अछि, नहिये दोसराकेँ कमाय दैत अछि। पैघभायक गिनती बच्चामे बदमाशमे होइत छलन्हि। एक बेर ट्रांसफरक बाद जखन सभ गाम गेलाह, तँ पैघ भाय जे सभक फुलवाड़ीसँ नीक-नीक गाछ उखाड़ि कय अपना घरक आगाँ लगाऽ लैत छलाह, से आब एकहि सालमे दब्बू, सभसँ पाछू बैसनिहार विद्यार्थीक गिनतीमे आबि गेलाह। ओहि बेर ट्रांसफरक बादक गाममे निवास किछु बेशी नमगर भऽ गेल छलन्हि। फेर मुख्यमंत्री पदक दावेदार एकटा नेताजी जखन गाममे वोट मँगबाक लेल अयलाह, तखन काका हुनकासँ भेँट कएलन्हि, आऽ कहलखिन्ह जे- हमर भायकेँ वर्क्ससँ नन-वर्क्स मे ट्रांसफर कए दियौक, बच्चा सभ पोसा जयतैक।
नेताजी कहलन्हि जे -जौँ हम जीति गेलहुँ तँ ई काज तँ हम जरूर करब। वर्क्समे जयबाक पैरवी तँ बहुत आयल मुदा नन-वर्क्समे जयबाक हेतु ई पहिले पैरवी छी।
संयोग एहन भेल जे ओऽ नेताजी जीति गेलाह आऽ मुख्यमंत्री सेहो बनि गेलाह। ओऽ शपथ ग्रहण केलाक बाद ई काज धरि केलन्हि, जे पिताजीक ट्रांसफर कय देलखिन्ह। आऽ नन्दक परिवार पुनः शहर आबि गेल रहन्हि । गाममे रहथि तँ एक गोटे जे आरुणिक भायक संगी छलाह, ककरो अनका प्रसंगमे कहने छलाह।
हुनकर अनुसार- हुनकर मायक स्वभाव तीव्र छलन्हि, आऽ ओऽ खेनाइ खाइते काल झगड़ा करय लगैत छलीह। मुदा ओहि दिन ककरो अनका ओऽ आर तीव्र स्वभावक देखने छलाह।
खराब आर्थिक स्थितिक उपरांत होयबला कलहक परिणाम आरुणि देखि रहल छलाह। दू टा घटना हुनका विचलित कए दैत छलन्हि। एकटातँ इनकम टैक्स कटौतीक मास- मार्च मास। ई घटना तँ सभ साले होइत छल, मुदा कटौती बढ़ैत-बढ़ैत एक साल आबि कय पूरा मार्च मासक दरमाहा काटि लेलक। माँ कहैत छलखिन्ह जे- आब भोजन कोना चलय जयतौह। आब भीख माँगय जइहँ गऽ सभ। मुदा नन्द एकटा गामक भातिजकेँ पोस्टकार्ड पठेलन्हि आऽ ओऽ आठ सय टाका आनि कय दय गेलखिन्ह, तखन जऽ कय असुरक्षाक भावना खत्म भेल छल। भीख मँगैत अखनो जौँ ककरो देखैत छथि आरुणि तँ मोन कलपय लगैत छन्हि। दोसर घटना छल जखन हुनकर घरक आँगा एकटा एक्सीडेंट भेल छल आऽ ओकरा बाद हुनकर भाइ खेनाइ छोड़ि देने छलाह आऽ कानि-कानि कय आँखि लाल कए लेने छलाह। नन्द जखन बुझबय लगलाह तँ ओऽ जवाब देलन्हि,
-अहाँकेँ जौँ किछु भय जायत, तखन हमरा सभक की होयत।
पिताजी इंश्योरेंस बेनीफिट, जी.पी.एफ., ग्रेच्युटी आदिक हिसाब लगाय पुत्रकेँ बुझेलन्हि जे ९९००० रुपय्या तँ तुरत भेटत आऽ फेर महिने-महिने पेंशनो भेटत। लगभग एक घंटा तक बाबूजी पैघ पुत्रकेँ बुझबैत रहलाह।
एक बेर आरुणिक ओहिठाम एक गोट पीसा आयल छलाह। आइयो घरमे क्यो अबैत छथि, तँ सभ सुरक्षित अनुभव करैत छथि। नन्द पीसाक हुनकर सार भेलखिन्ह से एहि ओहदासँ हँसी सेहो चलि रहल छल।
ओऽ कहलन्हि जे नन्दे जेकाँ ईमानदार एकटा बी.डी.ओ. साहेब झंझारपुरमे छलाह। पिताजी हुनकर मलाह छलखिन्ह, कष्ट काटि अफसर भेलाह। मुदा नन्दक जेँका हुनको घरमे खाटे टा छलन्हि। पीसा हुनका कहलखिन्ह जे कथी ले अफसर भेलहुँ, गाममे रहितहुँ आऽ मचान पर बैसि माछ भात खएतहुँ। माछक कारबारमे फायदा होइत।
आरुणिक बहिनक विवाह बाद घरमे कखनो काल बहनोइ अबैत छलखिन्ह। जमायक अबिते देरी आरुणिक माँक झगड़ा पिताजी सँ शुरू भय जाइत छलन्हि, किएकतँ घरमे इंतजाम तँ किछुओ रहिते नहि छल।
ट्रांसफरक बाद पिताजीक अभियान घूसखोरकेँ सजा देबय पर चलल। आऽ जखन सरकारी तंत्र परसँ विश्वास खतम भए गेलन्हि, तखन एकटा तांत्रिकक फेरमे पड़ि गेलाह। घरमे माता-पिताक बीच कलह बढ़ि गेल। एक दिन पिताजीसँ आरुणिक बहसा-बहसी भए गेलन्हि आऽ तीनू भाय बहिन गरा लागि कय कानय लगलाह। तकरा बादसँ अरुणिक भाय-बहिन सभसँ झगड़ा होयब समाप्त भय गेलन्हि।
आरुणि अनेर गुनधुन करैत घरपर पहुँचलथि।
दू-तीन धरि दोसर किरायाक मकान ताकए लेल निकलल करथि आऽ साँझमे वैह गुनधुनी।
एक बेर घर आबि रहल छलाह स्कूलसँ।
घर अबैत काल मोन कोना दनि कऽ रहल छलन्हि। स्कूलसँ घर आबि रहल छलाह। रस्तामे सभ क्यो एक दोसरा सँ किछु असंभव घटित होयबाक गप कऽ रहल छलाह। आरुणि दुनू भाय सातम कक्षामे पढ़ैत रहथि, संगहि-संग। मुदा आइ पैघ भायक पेटमे दर्द छलन्हि से ओऽ टिफीनक बाद छुट्टी लऽ घर चलि गेल छलाह। स्कूलमे सभकेँ हँसैत देखैत रहथि, तँ अपन घरक स्थिति यादि पड़ि जाइत छलन्हि। ईर्ष्य़ा सेहो होइत छलन्हि आन बच्चाक भग्य पर। फेर मोनमे ईहो होइत छलन्हि, जे हुनके सभ जेकाँ परिस्थिति होयतैक एकरो सभक। मुदा झुट्ठे प्रसन्नताक नाटक करैत जाइत अछि। घरमे माय बापक कलहक बीच डरायल सन रहैत रहथि। लगैत रहैत छलन्हि जे ई सभ परिस्थिति कहियो खत्म नहि होयतैक। नहि तँ दोसरसँ गप्प कय सकैत छथि, नहिये ककरो अपन मोनक गप्पे कहि सकैत छथि। बेर-बखत कहियो अपन सहायताक हेतु सेहो सोर नहि कऽ सकैत छथि। माय ठीके घरघुसका, मुँहदुब्बर आदि विशेषणसँ विभूषित करैत छलखिन्ह। साँझमे घुमनाइ आकि दुर्गापूजाक मेला गेनाइ, ई सभ बात हुनका सभक जीवनसँ दूर छलन्हि। एक बेर भूकम्प जेकाँ आयल छल, सभ क्यो ग्रील तोड़ि कय बहरायल, मुदा आरुणि खाट पर पड़ले रहि गेलाह। किछु तँ अकर्मण्यतावश आऽ किछु ई सोचि कय , जे की होयत घर टूटि देह पर खसत तँ, समस्यासँ मुक्तियोतँ भेटत।
घरक लगमे पहुँचलाह तँ भीड़ देखि मोन हदसि गेलन्हि, जे बाबूजीकेँ तँ किछु नहि भऽ गेलन्हि। घरमे पहुँचलाह तँ माँ-बहिनसँ पूछय लगलाह, जे की भेल? सभ बोल भरोस देबय लगलथिन्ह तँ आरो तामस उठय लागलन्हि।
जोरसँ कानि कय बाजय लगलाह जे-
-बाबूजी मरि गेलाह की? कतय छन्हि हुनकर मृत शरीर।
ताहि पर बहिन कहलखिन्ह जे-
-नहि, हुनका किछु नहि भेलन्हि। अहाँक संगी जे मकान मालिकक बेटा अछि, से ओऽ ओकर छोट भाय , ओकर पिता आऽ रिक्शाबला, चारू रिक्शा पर जाइत छलाह। बेचारा रिक्शा बला विवाह क’ऽ कय कनियाँकेँ अननहिये छल। एकटा विशाल ट्रक रिक्शाकेँ धक्का मारि देलकैक। ठामहि मरि जाय गेलाह।
आरुणिक कानब खतम भय गेलन्हि। ई जे आफत आयल छलैक से आइ ककरो अनका घर, ओना ओऽ जे मृत भेल छल आरुणिक संग डेढ़ सालसँ स्कूल जाऽ रहल छल प्रतिदिन प्रातः। सभ दिन प्रातः सीढ़ी पर कॉलबेल बजबैत छलाह आऽ ओऽ सीढ़ीसँ उतरैत छल, आऽ संगे सभ स्कूल जाइत छलाह। मोन पड़लन्हि जे काल्हि सेहो सभ दिन जेकाँ ओऽ कॉलबेल बजेने छलाह, तँ ओकर बहिन जे चश्मा लगबैत छलि, आऽ झनकाहि छलीह, से ऊपरसँ तमसाकेँ कहलक जे कतेक जोरसँ आऽ देरी तक कॉलबेल बजबैत छी, आऽ सेहो जे बेर-बेर किएक बजबैत छी, आबि रहल अछि। काल्हि तँ ओऽ आयल मुदा आरुणि तखनहि कहि देलखिन्ह जे काल्हिसँ हम कॉलबेल नहि बजायब, अहाँकेँ हमरा संगे जयबाक होय तँ नीचाँ उतरि कय आऊ आऽ संग चलू। ओऽ नहि आयल तँ आरुणि किएक कॉलबेल बजबितथि। डेढ़ सालमे पहिल बेर भेल छल जे आरुणि कॉलबेल नहि बजेने छलाह आऽ ओऽ डेढ़ सालमे पहिल बेर स्कूल नागा कएने छल। आब आरुणिक मोनमे होमय लगलन्हि जे कतहु ओऽ बाजि तँ नहि देने होयत जे आरुणि काल्हिसँ कॉलबेल नहि बजओताह। मुदा किंसाइत ओकर कोनो आनो कार्यक्रम होयतैक। किएकतँ छोट भाय आऽ पिताक संग रिक्शासँ कतहु जाऽ रहल छल। अस्तु आरुणि चिंतित छ्लाह मुदा दुःखी नहि। मोनक गप कियो बुझय नहि तेँ मुँह लटकेने ठाढ़ रहथि। ओऽ तँ मात्र सोचने रहथि जे काल्हिसँ एकरा संगे स्कूल नहि जएताह, जायत ई असगरे। मुदा ओऽ तँ असगरे नहि जायत से सत्य कय देखा देलक। अरुणिक मायक आँखिमे नोर छलन्हि, मुदा अरुणिक भीतर प्रसन्नता, किएकतँ हुनकर पिताजीक मृत्यु जे रुकि गेल छलन्हि।
दोसर किरायाक घर तकलाक बाद दुनू भाँय सभटा समान नवका घरमे राखि माँकेँ गामसँ आनि लेलन्हि।
आरुणि अपन नोकरी पर चलि गेलाह।
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“नहि एहन कोनो बात नहि अछि”, ई तँ हमर सभक कार्यक अंतर्गत करइए पड़ैत अछि”।
“ मुदा अहाँकेँ ई नहि बुझि पड़ैत अछि जे एहि बेर किछु बेशी क्रूर भऽ गेलहुँ अहाँ सभ?”
“क्रूरताक तँ कोनो बात नहि अछि। हमरा सभ तँ कोनो विशेष सूचनाक आधार पर कार्य करैत छी”। ”मानि लियऽ जे हमरा ककरोसँ दुश्मनी अछि, आऽ ओहि आधार पर विभागकेँ ओऽ अपन व्यक्त्तिगत स्वार्थ आऽ झगड़ाक हेतु प्रयोग कए सकैत अछि”।
“ अहाँक शंका ककरो पर अछि?”
“ नहि हम तँ उदाहरण दय रहल छलहुँ”। ” नहि हमरा सभ कोनो सूचनाक आधार पर सोझे बिदा नहि होइत छी। पहिने ओकर गंवेषणा करैत छी, आऽ तकरे बाद एतेक ठाम सर्च करबाक अनुमति भेटैत अछि”।
“ मुदा आब अहाँ ई कहियो देब जे अहाँक कोनो गलती नहि अछि, तँ की हमर इज्जत लौटि कए आयत”। ” एना तँ हमरा सभकेँ हाथ-पर हाथ दए बैसि जाय पड़त। मुदा अहूँक गप ठीक अछि। अहाँक प्रति जौँ द्वेषवश क्यो कार्य कएने होयत तँ ओकरा पर कार्यवाही कएल जायत।”
“ की कार्यवाही होयत। हमरा पर तँ कार्यवाही भऽ गेल। हमर सभटा बायर टूटि जायत। हम सभ एतेक पुरान छी, तीन पुस्तसँ एहि कार्यमे लागल छी। करबो करब तँ क्लेंडेस्टाइन रिमूवल करब? सभ बायरपर तँ रेड भऽ गेल, किछु कतहु नहि भेटल से के पतियायत”।
ओकर बातो ठीक छलैक। ई प्लाइवुडक व्यापारी एक नंबरक काजक हेतु जानल जाइत छल, मुदा आरुणिकेँ जे सूचना प्राप्त भेल छलन्हि से ओकर विपरीत छल। मुदा ई रेड तँ खाली गेल। फैक्टरी, घर, डीलर सभ ठामसँ टीम खाली हाथ आयल। मुदा आब ऑफिसरकेँ की जवाब देताह। नामी कंपनी छल, अधिकारीगण डरा कऽ रेडक अनुमति आरुणिक व्यक्त्तिगत प्रतिष्ठाकेँ देखैत देने छलाह। हेडक्वार्टरसँ फोन पर फोन आरुणिकेँ आबि रहल छलन्हि, भोर तँ रेडमे भइये गेल छल, दस बजे ऑफिसमे रिपोर्ट देबाक हेतु कहल गेल छलन्हि। फैक्टरीक मालिक सेहो एम्हर- ओम्हरक बात लऽ कऽ दस बात सुना देलकन्हि। स्वर्णप्लाइ नाम्ना ई कंपनीक दिल्ली धरि पहुँचि छलैक। अकच्छ भऽ कऽ आरुणि भोरमे घर पहुँचि मोबाइल ऑफ कऽ कय ९ बजेक अलार्म लगाऽ कऽ सुतबाक प्रयास करय लगलाह। काल्हि भोरेसँ रेड चलि रहल छल, ई कोना भेल, कोनो क्लेंडेस्टाइन रिमूवलक कच्चा पर्ची किएक नहि भेटल। केस लीकतँ नहि भऽ गेल। मुदा केसक विषयमे आरुणिकक अतिरिक्त्त डायरेक्टर विजीलेंसकेँ मात्र बुझल छलन्हि। ई सभ बिछौन पर सोचिते रहथि, तावत निन्द तँ नहि लगलन्हि मुदा ९ बजेक अलार्म बाजि उठल।
ऑफिसमे सभ क्यो जेना हिनके बाट ताकि रहल छलाह। कतेक गोटे ईहो सुना देलकन्हि, जे एहि केसक इंटेलिजेंस हुनको सभक लग छलन्हि, मुदा एहि तरहक केसमे क्लेंडेसटाइन रिमूवलकेँ सिद्ध केनाइ मुश्किल होइत छैक, ताहि हेतु ओऽ लोकनि एहिमे हाथ नहि देलन्हि। कानाफूसी होमय लागल जे बड्ड हीरो बनैत छलाह, आब ट्रांसफर ऑर्डर लऽ कय निकलताह डायरेक्टरक ऑफिससँ।
आरुणि डायरेक्टरक ऑफिसमे गेलाह आऽ सोझे किछु दिनक समय माँगि लेलन्हि। की प्लान छन्हि, एहि विषयमे गप-शप घुमा देलथि। एहि बेर कोनो प्रकारक कोनो भ्रम नहि राखऽ चाहैत छलाह।
आब आरुणि स्वर्ण प्लाइक फैक्टरीसँ हटि कऽ आऽ ओकर डीलरसँ हटि कऽ कार्य करए लगलाह। सभटा दस्तावेजकेँ घोखि गेलाह। किछु कागज पर सेहो लिखय लगलाह। फेर अपन प्लानक हिसाबसँ कलकत्तासँ पटना आऽ ओतएसँ अररियाक हेतु बिदा भऽ गेलाह।
पान तँ खाइत नहि रहथि आऽ चाह सेहो घरे टा मे पिबैत रहथि। मुदा लोकसँ किछु जनबाक हो तँ बिना चाह आऽ पानक दोकान गेने कोना काज चलत। से ओऽ चाह पान शुरू कएलन्हि। बाबुल दादाक गुलकन्द बला पान नीको बड्ड लागन्हि। तकरा बाद बाबुल दादा अररियाक लग पासक सभटा प्लाइवुडक फैक्टरीक लिस्ट दऽ देलकन्हि। मुदा फैक्ट्री सभक पहुँचबाक रोड सभक भगवाने मालिक रहथि। धूल-धक्करमे कहुना जाऽ कय एकटा फैक्टरीक पता चलल जे स्वर्णप्लाइकँग सप्लाइ दैत छल, ओतुक्का दरबान आरुणिकेँ कहलकन्हि जे मालिक दोसर फैक्टरीमे बैसैत छथि, से दू टा फैक्ट्रीक पता चलि गेलन्हि आरुणिकेँ।
आरुणि थाकल-हारल ओहि फैक्टरीमे पहुँचलाह। एक गोट मारवाड़ी सज्जन बैसल रहथि।
“कतयसँ आयल छी”।
”आयल तँ पटनासँ छी, मुदा घुरब कोना से नहि बुझि पड़ैत अछि”।
” हँ, एक गोट नेताक जेलसँ बाहर गोली मारि कय हत्या कऽ देल गेल। नेताजी रहथि तँ जेलमे मुदा घुमय फिरय पूर्णियाँ जेलसँ बाहर बिना नियमक निकलल रहथि। जेलर की करताह। पिछला मास एक गोट कैदीकेँ पुरनका जेलर घुमय हेतु नहि देने छलथिन्ह तँ भट्टा बजारमे गोली मारि देलकन्हि पुरनका जेलरकेँ। एहि बेर जे घुमय देलखिन्ह तँ सरकार सस्पेन्ड कऽ देलकन्हि नवका जेलरकेँ। ताहि हत्याक बाद बन्दक आह्वान अछि। हमरा संगे रहू। एतय हमहू अपन गेस्ट हाउसमे रहैत छी। परिवार सिलीगुड़ीमे रहैत अछि। विवाह नहि भेल अछि। भोरमे हमरा कलकत्ता जयबाक अछि। पहिने सिलिगुरी अपन गाड़ीसँ जायब तँ रूट बदलि कऽ पूर्णियाँ बस स्टैण्डमे अहाँकेँ छोड़ैत जायब”।
युवा बजक्कर रहथि से आरुणिकेँ नीक लगलन्हि। रातिमे गेस्ट हाउसमे बहुत गप्प भेलन्हि। नेताक रंगदारीक, चन्दा बला सभ जबर्दस्ती रसीद काटि जाइत छलन्हि।
“एनामे तँ बिना क्लेनडेस्टाइन कएने घाटा भऽ जायत, हँ मजबूरी छैक। आऽ तकर दोषी तँ ई नेता सभ छथि। व्यापारी की करओ”।
आब मारवाड़ी युवा जकर नाम नवल छल कनेक कनछिया कऽ आरुणि दिशि देखलक। आरुणिकेँ भेलन्हि जे ओकरा कोनो शंका तँ नहि भेलैक।
“ नहि क्लेंडेस्टाइन नहि करबाक तँ सिद्धांत अछि हमरा सभक। हँ किछु एडजेस्टमेंट करय पड़ैत अछि”।
आरुणिकेँ मोन पडलन्हि जे कोना स्वर्ण प्लाइक मालिको बजैत-बजैत बाजि देने छल, जे करबो करब तँ क्लेनडेस्टाइन रिमूवल करब।
तखन करैत की जाइत अछि ई सभ। ओना अररियाक ई फैक्टरी स्वर्ण प्लाइक हेतु जॉब वर्क करैत छल, आऽ ताहि हेतु सरकारी ड्यूटीक सभ भार स्वर्ण प्लाइ पर रहैक। ई क्लेनडेस्टाइन करियो कऽ की करत। टैक्स तँ दोसराकेँ देबाक छैक।
तखने एकटा फोन अयलैक। रिंग नमगर रहैक से संकर्षणकेँ बुझबामे भांगठ नहि भेलन्हि जे ई बाहरक एस.टी.डी.कॉल अछि। ओहि कॉलक बाद एकाएक ओऽ युवा आरुणि दिशि ताकि कय चुप्पी लगाऽ गेल।
भनसिया जकरा नवलजी “झा” कहि संबोधित कऽ रहल छलाह, खेनाइ बनि जेबाक सूचना देलकन्हि। आरुणि आऽ नवलक बीच मात्र औपचारिक गप भेल। फेर दुनू गोटे सूति गेलाह। भोरमे अपन वचनक अनुसार ओऽ युवा आरुणिकेँ पूर्णियाँ बस स्टैण्ड छोड़ि देलकन्हि। उतरबासँ पहिने आरुणि नवलसँ पुछलन्हि।
“कलकत्तामे स्वर्ण प्लाइक ऑफिस छैक। ओतहि जाऽ रहल छी की”।
ओ’ युवा हँसल।
“ अहाँ विजिलेंस सँ छी। हमरा काल्हि जे एस.टी.डी. आयल छल, से स्वर्ण-प्लाइक कलकत्ता ऑफिससँ आयल छल। अहाँक विभागेक क्यो गोटे हुनका सभकेँ अहाँक अररिया यात्राक विषयमे सूचना देलखिन्ह। देखू हम कहने छी जे हम मात्र एडजेस्टमेंट करैत छी। आऽ ताहिसँ हमरा कोन फायदा होइत अछि? टैक्स तँ हमरा लगैत नहि अछि। हँ ताहिसँ हमरा काज भेटैत अछि। आऽ बाहरी छोट-मोट खर्चा, विभागक, पुलिसक, नेताक निकलि जाइत अछि। तखन बेश”।
ई कहि ओऽ सज्जन आरुणिकेँ हतप्रभ करैत चलि गेलाह।
आब पटना पहुँचि कय आरुणि जखन ऑफिस पहुँचलाह तँ सभकेँ बुझल रहैक जे आरुणि ताहि फैक्ट्रीक विजिट सरकारी खर्चा पर कएलन्हि अछि, जकरा पर सरकार टैक्सक माफी देने छैक।
डायरेक्टसँ भेँट कएलाक बाद आरुणि पहुँचि गेलाह फेरसँ कलकत्ता। पुलिस थानामे घुमैत रहलाह आऽ पता करैत रहलाह जे स्वर्ण-प्लाइ आकि ओकर कोनो कर्मचारीक विरुद्ध कोनो केस छैक तँ नहि। मुदा ओतय तँ स्वर्ण प्लाइ बड्ड नीक छवि शुरुएसँ बनेने छल। आब संकर्षण सोचमे पड़ि गेलाह। इनपुट-आउटपुट केर अनुपातसँ ई कंपनी करोड़ो रुपयाक टैक्सक चोरि कए रहल अछि। मुदा प्रमाण कोनो नहि। आरुणि ओतुक्का थाना सभमे अपन पता आऽ फोन नंबर छोड़ि देलन्हि, जे जौँ कोनो केस एहि कंपनी किंवा एकर कर्मचारीक संबंधमे होय तँ तकर सूचना हुनका देल जाइन्ह।
अपन लोकल डायरेक्टरसँ कहलखिन्ह, जे क्लोजर रिपोर्ट अखन नहि देब। देखैत छी किछु जानकारी कतहु सँ भेटैत अछि कि नहि।
छह मासक बाद।
भोरमे एस.टी.डी. केर रिंग भेल।
” हम कलकत्ता, साल्ट लेक थाना सँ बाजि रहल छी। एक गोटे एकटा कमप्लेन लिखेने छथि, जे स्वर्ण-प्लाइ ऑफिससँ पेमेन्ट लऽ कऽ घुरैत काल हुनकर सूटकेस ऑटो बला छीनि लेलकन्हि, जाहिमे किछु कैश आऽ चेक छलन्हि”। ” कतेक कैस आऽ कतेक चेक”। ”१.७९ लाख कैस आऽ १.८३ लाखक चेक, प्रायः कैसक कोनो इनस्योरेंस रहन्हि, ताहि द्वारे एफ.आइ.आर. करओलन्हि अछि। चेकक तँ पेमेंट स्टॉप भऽ जायत”।
आरुणि टीमक संग ओहि गोटेक घर पर छापा माड़लन्हि जकर पाइ आऽ कैस ऑटो बला छीनि लेने छल।
छापाक बीचमे संकर्षणकेँ एकटा डायरी भेटलन्हि। तकरा बाद पटना फोन कऽ अररियाक फैक्टरीसँ नवीनतम रिमूवलक रिटर्न मँगा लेलथि। फेर ओऽ सज्जन जिनका घर पर छापा पड़ल छल केँ ऑफिस अनलन्हि। रस्तामे पता चलल जे ओऽ सज्जन नवलक बहनोइ छलाह, आऽ अररियाक फैक्टरीक एकाउन्टेन्ट होयबाक संगहि, स्वर्ण-प्लाइक संग ओकर लाइजन अधिकारी सेहो छलाह।
आब सभ तथ्य सोँझा छल। जे डायरी भेटल छल ताहिमे कैस आऽ चेकक कॉलम बनल छल। तिथि सहित विवरण छल। चेकक भुगतानक कॉलम अररिया फैक्टरीक क्लियरेंससँ मिलि गेल छल, आऽ ईहो सिद्ध भऽ गेल जे सभ ट्रांजेक्सनमे लगभग अदहाक पेमेंट स्वर्ण-प्लाइ द्वारा कैसमे देल जाइत छल। आऽ तकर विवरण नहि तँ स्वर्ण-प्लाइक खातामे रहैत छल आऽ नहिये अररियाक फैक्टरीमे। स्वर्णप्लाइ टैक्स सेहो मात्र चेकक (पकिया) द्वारा गेल अदहा रिमूवलक पेमेंट पर दैत छल। संकर्षण ई रिपोर्ट लोकल डायरेक्टर केँ दऽ देलन्हि।
एकाउन्टेन्टक अपराध बेलेबल छलैक। कोर्ट ओकरा बेल पर छोड़ि देलकैक।
”नवलक समाचार कहू। बड्ड नीक लोक अछि। मुदा किछु बतेलक नहि”। ” ओकर काल्हि अररियासँ सिल्लीगुड़ी जाइत काल सड़क दुर्घटनामे मृत्यु भऽ गेलैक किंवा करा देल गेलैक। जमाय बाबूक संग एतयसँ सोझे हमरा सभ ओतहि जायब”।
एक गोट उत्तेजित स्वर जे एकाउन्टेन्ट बाबू केँ लेबाक हेतु आयल छल बाजि उठल।
“ मुदा ई बूझि लिअ जे अहाँक ई सफलता हमर बुरबकीसँ भेटल अछि। जौँ हम कैसक इनस्योरेंस क्लेमक लालचमे नहि पड़ितहुँ तँ ई सभ नहि होइत”। जमाय बाबू बाजि उठलाह।
डायरेक्टर स्वर्णप्लाइक विरुद्ध कार्यवाहीक लेल ऑर्डर देलन्हि। स्वर्ण प्लाइक विरुद्ध करोड़ोक रुपैयाक टैक्स घोटालाक शो-कॉज नोटिस सेहो पठा देल गेल। आरुणि चिंतामग्न छलाह।
“ ठीके तँ कहलक नवल। एडजेस्टमेंटे तँ कऽ रहल छल। चोरि तँ क्यो आन कऽ रहल छल। ओऽ तँ मात्र माध्यम छल। हमहू तँ कतहु नहि बनि गेल छी माध्यम, नवलक मृत्युक”।
आरुणिक व्यवसायिक सफलताक बाद नोकरी मध्य सेहो सफलताक शुरुआत भऽ गेल। माध्यम बनथि वा नहि मुदा पिता जेकाँ हारताह नहि। मोन पड़ैत रहन्हि हुनका सभटा गप बीच-बीचमे-
“कहलहुँ सुनैत छियैक। बेटी पैघ भ’ रहल अछि। बेटा सभक लेल किछु नहि कएलहुँ। अपन घरो नहि बनल। रिटायर भेलाक बाद कतय रहब।“
” बेटीक चिन्ता नहि करू। बेटा बलाऽ अपने चलि कए आयत। हमरा सभकेँ जतेक सुविधा भेटल छल, ताहिसँ बेशी सुविधा हिनका सभकेँ भेटि रहल छन्हि। तखन पढ़्थु वा नहि से ई सभ जानथि। रिटायरमेन्टक बाद गाम जाऽ कय रहब। सात जन्म शहर दिशि घुमि कए नहि आयब”।
“क्यो सर-कुटुम अबैत छथि तँ हुनका सत्कार करबा लेल घरमे इंतजामो नहि रहैत अछि।“
” इंतजाम करबाक की जरूरति अछि। एक पैली बेशी लगाऽ दियौक अदहनमे।“
आरुणि मायबापक एहि तरहक वार्त्तालाप सुनि पैघ भेलथि। एक बेर हॉस्पीटलमे पिताजीकेँ देखय लेल एक गोट कुटुम्ब आयल रहथि। हुनकर गप सेहो किछु एहने बुझा पड़लन्हि।
” की कऽ लेलहुँ शरीरकेँ। ई बच्चा सभकेँ देखि कए मोहो नहि भेल। कतय पढ़ैत जाइत ई सभ। आऽ कोनो टा सुविधा, नहिये कोनो टा चिन्ते छल अहाँकेँ। अपनो आऽ एकरो सभक जिनगी बर्बाद कएलहुँ।“
तखने व्यवधान भेल। पत्नी कहलखिन्ह जे एकटा फोन होल्ड अछि-
“आरुणि। एकटा पैघ राजनीति चलि रहल अछि ऑफिसमे। अहाँक विरुद्ध षड्यंत्र चलि रहल अछि। अहाँकेँ चेतेनाइ हमर काज छल। मुदा अहाँ तँ कोनो तरहक प्रतिक्रिया दैते नहि छी।“ फोन पर एक गोट हितैषीक आवाज सुनि रहल छलाह आरुणि।
”आरुणि। की भऽ गेल। बाबूजी जेकाँ डरायल रहब। किछु दिनुका बाद हारि मानि ऋषि भऽ जायब। आकि दुष्टक संहार करब। एहि दुनूमे की चुनब अहाँ।“
”चिन्ता नहि करू। “ हँसैत बजलाह आरुणि फोन पर, आऽ फोन राखि देलन्हि।
ऑफिसक एकटा लॉबी आरुणिक पाँछा पड़ि गेल छल। ट्रांसफर-पोस्टिंग केर बाद आरुणिक ऊपर दवाब आबि गेल छल। किछु गोटे हुनकर विरुद्ध बिना-कोनो आधारक किछु कम्प्लेन कए देने छलन्हि। एकटा ऑफिसर शशांक केर हाथ छलैक एहिमे। ओकर खास-खास आदमीक पोस्टिंग मोन-मुताबिक नहि भेल रहय आऽ ओऽ प्रोमोशनमे आरुणिकेँ पाछाँ करए चाहैत छल। एहि बीचमे आरुणिक फोन किछु दिन डेड छलन्हि। तकरा बाद हुनकर फोनसँ अबुधाबी आऽ दुबइ फोन कएल गेल छल। मुदा ओहि समयमे सरकारी फोनमे आइ.एस.डी. केर सुविधाक हेतु टेलीफोन विभागकेँ सूचित करए पड़ैत छल। हुनकर ऑफिसक एकटा प्रशासनिक अधिकारी टेलीफोन विभागकेँ चिट्ठी लिखि कए ई सुविधा आरुणिक जानकारीक बिना करबाए देने छल। विजीलेंसक जाँचमे ओऽ बयान देने छल जे आरुणि एहि ऑफिसक मुख्य छथि, आऽ हुनकर मौखिक आदेशोक पालन करए पड़ैत छन्हि हुनका। से आइ.एस.डी. केर सुविधाक लेल टेलीफोन विभागकेँ ओऽ आरुणिक मौखिक आदेश पर चिट्ठी लिखने छलाह। माफिया ओकरा तोड़ि लेने छल आऽ ओहिमे ओऽ प्रशासनिक अधिकारी अपनाकेँ सेहो फँसा लेने छल।
सोम दिन फैक्स आयल आऽ आरुणिक ट्रांसफर भऽ गेल।
”रिप्रेजेंट करू एहि आदेशक विरुद्ध”। वैह चिरपरिचित स्वर, मणीन्द्रक।
“अहूँ कोन झमेलामे पड़ल छी। सभ ठीक भऽ जायत”। बजलाह आरुणि फोन पर।
शशांकक घर पर पार्टी भेल।
”मिस्टर आरुणि रिप्रेसेन्ट तक नहि कएलन्हि। रिलीव भऽ कए चलि गेलाह। बुझू सरेन्डर कए देलन्हि अपनाकेँ”।
”प्रोमोशन बुझू जे दस साल धरि रुकल रहतन्हि। सीनियरिटी मारल जएतन्हि। बदनामी भेलन्हि से अलग। सुनैत छी जे फोन पर दुबइक स्मगलर सभसँ गप करैत छलाह”।
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ओम्हर आरुणिकेँ अपन बाबूजीक ट्रांसफर, ईमानदारीक लेल कएल संघर्ष, संघर्षक विफलता आऽ तकर बाद हुनकर तंत्र-विद्या आऽ पूजा-पाठक दिशि अपनाकेँ ओझरायब आऽ घर-द्वार,ऑफिस आऽ सांसारिकतासँ विरक्त्ति मोन पड़ि गेलन्हि। एहि सभ घटनाक्रमक बाद हुनकर मुँह पर जे चिन्ताक रेखा आयल छलन्हि। मुदा से बेशी दिन धरि नहि रहलन्हि आरुणिक मोन पर। हारिकेँ जीतमे कतोक बेर बदलने छलाह ओऽ। नोकरीयोमे आऽ ओहिसँ पहिने व्यवसायमे।
” की यौ मणीन्द्र। कोनो फोन-फान नहि। स्टेटसँ बाहर ट्रांसफर भऽ गेल तँ अहाँ सभ तँ बिसरिये गेलहुँ”।
” हम की, सभ क्यो बिसरि गेल अहाँकेँ एतय”।
“अहाँ की बुझलहुँ। जे हम सेहो बिसरि गेल छी। अहाँकेँ मोन अछि। हम जखन इंटरक बाद बाबूजीक इच्छाक विरुद्ध विज्ञान छोड़ि कए कला विषय लेने छलहुँ। विज्ञानक सभटा किताब ११ बजे रातिमे पोखड़िमे फेंकि देने छलियैक। कोनोटा अवशेषो नहि छोड़ने छलहुँ ओहि विषयक अपन घरमे। आऽ जखन कला विषयमे प्रथम श्रेणी आयल छल तखन गेल छलहुँ गाम। तकरा पहिने कतेक बरियाती छोड़ने छलहुँ, कतेक जन्म-मृत्यु। मुदा गाम नहि गेल छलहुँ”।
” एह भाई। अहाँकेँ तँ सभटा मोन अछि। हमरा तँ भेल जे अहूँ काका जेकाँ भऽ गेलहुँ। ई सभ क्षमाक योग्य नहि अछि। कनेक देखाऽ दियौक। आब हमरा विश्वास भऽ गेल जे किछु होयत”।
” फेर वैह गप। जखन अहाँ नहि बदललहुँ तखन हम कोना बदलब। छोड़ने छलहुँ किछु दिन अपनाकेँ। आब सुनू। जे कहैत छी से टा करू। बेशी बाजब जुनि। जाहि समयक कॉल हमर टेलीफोनसँ बाहरी देश कएल गेल छल, ओहि समयमे तँ हमर टेलीफोन खराब छल, ई तँ अहाँकेँ बुझले अछि। घरसँ टेलीफोन विभागकेँ कम्प्लेन सेहो लिखबाओल गेल छल। मुदा से टेलीफोने पर लिखबाओल गेल छल। कोनो लिखित पत्र आऽ ओकर प्राप्ति रशीद तँ अछि नहि। मुदा ई पता करू जे एहि तरहक कम्प्लेनक कोनो रेकार्ड टेलीफोन विभागक लग रहैत छैक की नहि।“
मणीन्द्रक फोन आयल किछु दिनुका बाद जे फोन विभाग एक महीनाक बाद कम्प्लेन नंबर फेरसँ एक सँ देब शुरू कए दैत छैक। से ई काज नहि भेल।
” बेश तखन ई पता करू, जे हमर नंबरसँ ककरा-ककरा कोन-कोन नंबर पर विदेश फोन कएल गेल छल। आऽ ओहि विदेशीक फोन कोन-कोन नंबर पर आयल अछि”।
”हँ। एहि गपक तँ हमरा सुरते नहि रहल”।
आब मणीन्द्र जे टेलीफोन नंबरक सूची अनलन्हि, से सभटा टेलीफोन बूथ सभक छल। मुदा कोनो टा कॉल आरुणिक नंबर पर नहि आयल छल।
विजीलेंसक सुनबाहीमे ई सभ वर्णन जखन आरुणि कएलन्हि, तखन शशांक हतप्रभ रहि गेलाह। ई तँ नीक भेल जे शशांकक आदमी सभ बूथ बलासँ संपर्क रखने छल, नहि तँ ओहो सभ फँसैत आऽ संगहि शशांकोक नाम अबैत एहि सभमे। अस्तु आरुणि जाँचसँ बाहर निकलि गेलाह।
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“ भाइ। हम मणीन्द्र। ओकरा सभकेँ तँ किछु नहि भेलैक।“
”हमर ट्रांसफर दिल्ली भेल अछि। देखैत छी। अहाँ निश्चिंत रहू।“
”हम तँ ओहि दिन निश्चिंत भऽ गेलहुँ जहिया अहाँ पुरनका गप सभ सुनेलहुँ। काकाक अपमानक बदला अहाँकेँ लेबाक अछि। मात्र व्यक्त्ति सभ बदलल अछि। चरित्र सभ वैह अछि”।
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दिल्लीमे आरुणि विजीलेंस विभागक सूचना-प्रौद्योगिकी शाखामे पदस्थापित भेलाह। एहि विभागकेँ शंटिंग पोस्टिंग मानल जाइत छल। विजीलेंसक एनक्वायरीसँ बाहर निकललाक बादो आरुणि एहि पोस्टिंगके चुनलन्हि, से एहिसँ तँ ईएह सिद्ध होइत अछि, जे आरुणि थाकि गेलाह। पाँच साल कोनमे बैसल रहताह। शशांकक ग्रुप प्रफुल्ल छल।
एम्हर आरुणि अपन विज्ञानक छोड़ल पाठ फेरसँ शुरू कएलन्हि। भरि दिन कम्प्युटर आऽ ओकर तकनीकी विशेषज्ञ सभसँ भिड़ल रहथि। ओहो लोकनि बहुत दिनक बाद एहन अधिकारी देखने छलाह जे भिड़ल अछि, काजसँ। दोसर लोकनि तँ कोहुना टर्म पूर्ण कए भागैत छथि।
ओना देखल जाय तँ ई विभाग बड्ड संवेदनशील छल। आब आरुणिक अपन विभागक सभ कर्मचारीसँ बेश निकटता भऽ गेल छलन्हि। सभक आवेदन समयसँ आगू बढ़ैत छल। सभटा ऑफिसक इक्विपमेंट नव आबय लागल। पहिलुका ऑफिसर सभ तँ समय काटि भागय केर फेरमे रहैत छल आऽ ऑफिसक आवश्यक आवश्यकता सेहो पूर्ण नहि करैत छल।
ऑफिसमे एकटा इक्विपमेन्ट आयल छल, एन्टी करप्शन रोकय लेल। एहिमे स्मगलर सभक फोन टेप करबाक सुविधा छल।
किछु दिन समय व्यतीत होइत रहल।
”मणीन्द्र। कोनो फोन-फान नहि”।
”हम आब निश्चिन्त छी”।
”हँ समय आबि गेल अछि। एकटा काज करू स्मग्लरक संग शशांकक संबंधक संबंधमे एकटा न्यूज निकलबा दिऔक अखबारमे। आगाँ सभ चीज तैयार अछि”।
ओम्हर अखबारमे खबरि निकलल, आऽ मंत्रीक जन संपर्क पदाधिकारी जकर काज विभागक खबरिकेँ अखबारसँ काटि कए मंत्री धरि पहुँचायब छल, ओऽ क्लिपिंग मंत्रीजी लग पहुँचाय देलन्हि। समय समीचीन छल कारण विभागीय मंत्रीजी पर ढेर आरोप ओहि समय आयल छलन्हि,संसदक सत्र चलि रहल छल, से ओऽ कोनो तरहक रिस्क नहि लेलन्हि। इंक्वायरीक ऑर्डर दय देलन्हि।
विजिलेंस विभागमे केश आयल। ओकर आंतरिक बैठकी होइत छल, जाहिमे प्रौद्योगिकी विभागकेँ सेहो बजाओल जाइत छल। सभ केशमे मोटा-मोटी प्रौद्योगिकी विभाग अनाधिकार प्रामाण पत्र दए दैत छल। आऽ केश इंक्वायरीक बाद समाप्त भऽ जाइत छल।
मीटिंगक तिथि तय भेल। मीटिंगमे आरुणि विजिलेंस कमेटीक सदस्यक रूपमे शामिल भेलाह।
”शशांक पर कोनो तरहक कोनो आरोप सिद्ध नहि होइत छन्हि। आरुणि अहाँक विभागकेँ टेलीफोन टैपिंगक उपकरण उपलब्ध करबाओल गेल छल। मुदा अपन ऑफिसमे तँ फैक्स मशीनो ६ मास किनाकय राखल रहलाक बाद लगाओल जाइत अछि, तखन ई मशीन एखनो राखले होयत आकि किछु कंवर्शेशन रेकार्डो भेल अछि”।
”श्रीमान। ई मशीन एहि मासक पहिल तिथिकेँ आएल आऽ ओहि तिथिसँ एकर उपयोग शुरू भऽ गेल। एहि केशमे जाहि स्मगलरक नाम आयल अछि, ओकर नाम ओहि सूचीमे अछि, जकर कॉल रेकॉर्ड करबाक आदेश हमरा भेटल छल। शशांकक कंवर्शेशन एहि व्यक्त्तिसँ नहि केर बराबड़ अछि। आध-आध मिनटक दू टा कंवर्शेशन। दोसर कंवर्शेशन नौ बजे रातिक छी आऽ एहि कंवर्शेशनक बाद ओहि स्मगलरक फोन अपन कर्मचारीकेँ जाइत छैक, आऽ ताहूमे मात्र आध मिनट ओऽ लगबैत अछि”।
” ई कोन तारीखक अछि”।
”पाँच तारीखक”।
” छह तारीखक भोरमे एहि स्मगलरक ओहिठाम रेड भेल छल, आऽ किछु नहि भेटल छल। ई सभ फोनक डिटेल दिअ आरुणि’।
”पहिल कॉलमे शशांक कहैत छथि, जे साढ़े आठ बजे घर पर आबि कए भेंट करू। बड्ड जरूरी गप अछि। दोसर कंवर्शेशनमे ओऽ नौ बजे तमसाइत कहैत छथि, जे नौ बाजि गेल आऽ अहाँ एखन धरि नहि अएलहुँ। एहिमे उत्तर सेहो भेटैत अछि, जे ओऽ स्मगलर शशांकक गेट पर ठाढ़ अछि”।
” तेसर फोनमे की वार्त्तालाप अछि”।
” तेसर फोन ओऽ स्मगलर अपन ऑफिस स्टाफकेँ साढ़े नौ बजे करैत अछि। ओऽ कर्मचारीकेँ आदेश दैत अछि, जे तुरत ऑफिस आऊ, हमहुँ पहुँचैत छी। बस एकर अतिरिक्त किछु नहि। कोनो एवीडेंस नहि भेटि सकल एहि केसमे। कहू तँ हम नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट दए दिअ”।
”आरुणि। की कहैत छी अहाँ। अहाँक विभाग तँ आइ तक कोनो काज नहि कएने छल, मुदा आइ तँ सभटा कड़ी जोड़ि देलहुँ अहाँ। शशांक फोन कएलक जे भेंट करू। दोसर फोन पर ओऽ व्यक्त्ति ओकर गेट पर ठाढ़ छल। तेसर फोनमे ओकर कर्मचारी ऑफिस ओतेक रातिमे की करए जाइत अछि। रेडक खबड़ि शशांक लीक कएलन्हि। ओऽ कर्मचारी सभटा कागज हटा देलक, आऽ हमर विभागक ऑफिसर भोरमे छुच्छ हाथ घुरि कए आबि गेलाह। आब एकटा फोन आर करू। शशांकक नंबर टेप तँ नहि भऽ सकल छल, मुदा प्रक्रियाक अनुसार ओकर आवाजक सैंपल मैच करबाक चाही। ओऽ फोन उठायत तँ गलत नंबर कहि काटि दियौक”।
”सैह होयत”।
तखने ई प्रक्रिया कएल गेल।
“ई तँ ओपन आऽ शट केस अछि”। विजीलेंस कमेटीक अध्यक्ष महानिदेशककेँ बतओलन्हि। महानिदेशक शशांककेँ बजबओलन्हि आऽ ओकरा दू टा विकल्प देलन्हि।
”शशांक एहि सभ घटनाक बाद अहाँ लग दू टा विकल्प अछि। विभागसँ कंपलसरी सेवा निवृत्ति लेबय पडत अहाँकेँ। नहि तँ इंक्वायरी आगाँ बढ़त”।
शशांक कंपलसरी सेवानिवृत्ति लए लेलन्हि। विभाग छोड़ि कए चलि गेलाह।
” भाइ मणीन्द्र। कोनो फोन-फान नहि”।
”भजार। हम तँ ओहि दिन निश्चिंत भऽ गेल छलहुँ जाहि दिन हमरा बुझबामे आओल, जे अहाँकेँ बच्चाक सभटा गप मोन अछि। काका आऽ अहाँमे कोनो अंतर नहि। मार्ग मात्र दू तरहक रहल। एहि विजयक मार्ग पर अहाँ चली ताहि हेतु, कतेक भरकाबैत छलहुँ अहाँकेँ से मोन अछि ने। मुदा ओहि दिन जखन हमरा अहाँ बच्चाक गप सभ कहए लगलहुँ तहिये निश्चिन्त भऽ गेल छलहुँ हम”।
पढ़ाइक ग्राफ पिताक मोनक संग बनैत-बिगड़ैत रहैत छलन्हि। मुदा घुरि कए पुनः लक्ष्य प्राप्त करैत छलाह। नोकरीमे रहितहु ई घटना एक बेर भेल छल। एकटा सरकारी यात्राक बाद भेल एक्सीडेन्ट, १५ दिन धरि वेंटीलेटर पर,फेर एक साल धरि बैशाखी पर रहलाक बाद, पुनः अपन पैर पर ठाढ़ भऽ गेलाह। मृत्यु पर विजय कएलन्हि।मुदा डेढ़ साल बाद जखन ऑफिस अएलाह तखन लोककेँ विश्वासे नहि भेलैक। मुख पर वैह चिरपरिचित हँसी। लोक सभ तँ ईहो कहैत छल जे ई एक्सीडेंट भेल नहि छल वरन् करबाओल गेल छल। कारण नवलक एक्सीडेंटक तुरत बाद भेल छल ई एक्सीडेंट।
२. ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ। नेशनल एशोसिएशन फॉर ब्लाइन्ड, जमशेदपुरमे अवैतनिक रूपेँ पूर्वमे अध्यापन।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
पांचम दिन :
२९ दिसम्बर १९९०, शनिवार :
आहि भोरे उठैमे ओते उत्साह नहि बुझाइत छल। कारण लागै छल जे टूर आहिये समाप्त भऽ रहल अछि। कलकत्ता लेल अतेक मोन लागल छल आ आहि कलकत्तामे अंतिम दिन छल। सब सामान पाती लऽ बसमे सवार भऽ गेलहुं। इंडियन गार्डेन आर विक्टोरिया मेमोरियल के लग सऽ होइत इंडियन म्यूज़ियम पहुंचि गेलहुं।
इंडियन म्यूज़ियम :
ई भारतक सबसऽ पैघ संग्रहालय अछि।अकर स्थापना २ फरवरी १८१४ ईसवीमे भेल छै। तहन ई एशियाटिक सोसाइटीमे रहै। सन् १८७८ ईसवीमे ई वर्त्तमान स्थान पर मात्र दू टा गैलेरी संगे स्थापित भेल।आब अहि दू मंजिला विशाल भवनमे साइठोटा गैलेरी छै। अकर प्रथम क्यूरेटर नथेनियल वैलिक (Nathaniel Wallich) छलैथ जे डेनमार्क सऽ आयल छलैथ।
अत सबसऽ पहिने रानी विक्टोरियाके बहुत पैघ मूर्त्ति छै।तकर बाद भगवान बुद्ध के विभिन्न रूप महावीर नागराज गणेश कामदेव महिषामर्दिनी दुर्गा पार्वती शिव नटराज इत्यादिक अतिप्राचीन प्रतिमा राखल छल।ई सब मध्ययुगके मूर्त्ति छै। एहेनो मूर्त्ति सब छै जकर विषयमे बेसी ज्ञात नहि भऽ सकल छै जे ई कोन युगक अछि वा ककर अछि। ओत फोटो खिंचनाई मना छल लेकिन कतेक चित्रकार सब ओत नीचा बैसकऽ मूर्त्तिक स्केच उतारि रहल छलैथ। पुछला पर पता चलल जे ओसब कथुपर रिसर्च क रहल छलैथ। अनेको शैलीमे बनल मू़र्ति विराजित छल जेनाकि पाल शैली गुप्तोत्तर शैली कलिया शैली आदि। नक्काशी कैल स्तम्भ सेहो राखल छल।
बगलक हॉलमे मुद्राक संग्रह छल।आहत कैशवी पयाल मालवा मथुरा नागकूड़ इक्ष्वाकु कनिष्क कुषाण गुप्त आदिके विभिन्न मुद्रासब राखल छै। उपरक मंजिलमे मिश्र वला कक्षमे दु टा ममी राखल छल।हमसब दू तीन गोटय नियमके विरुद्ध ओकरा छूबो केलहु। अगिला कक्षमे कैओ हजार वर्ष पुरान पक्षीसबके कंकालके सुरक्षित राखल गेल छल।६० करोड़ सऽ लऽ कऽ २०० करोड़ वर्ष पुरान जीव सब जे आब पाथर भऽ गेल छल विशेष तरीका सऽ सुरक्षित राखल गेल छै।अत हाथी ऊंट आदिके कंकाल सुतुरमुर्ग गिलहरी आदिके शरीर के सुरक्षित राखल गेल अछि। अतऽ संरक्षित सामानक विशालता एवम् विविधताक वर्णन एक पन्ना की एक पुस्तक मे केनाइ सम्भव नहि लागैत अछि। ओतय सऽ निकलि हमसब भोजन केलहु आ फेर तारकेश्वर दिस प्रस्थान केलहु। भक्तिभाव के जागृत केलहुतारकेश्वर दिस विदा भऽ गेलहु।रस्ता मे भारतक विपन्नताक दर्शन केलहु बंगालक ग्रामीण इलाकाके रूपमे।
तारकेश्वर :
तारकेश्वर मे शिवलिंगक पूजा होइत अछि।कलकत्तासऽ लगले सेरामपुर लग ई पवित्र स्थान अछि। बहुत श्रद्धालु अत कॉंवर लऽ कऽ सेहो आबैत छथि।कहल गेल अछि जे अहि शिवलिंगक खोज पशु सब द्वारा भेल अछि। लोक सबके पता चलल जे गामक सब गाय सब जंगलमे जा एक स्थानपर अपन दूध स्वेच्छा सऽ दऽ आबै छल। तहन ओहि जगहके साफ केलापर पता चलल जे ओतय शिवलिंग विराजमान छल। तहनस ओहि शिवलिंगके पूजा हुअ लागल। तारकेश्वर पहुचिकऽ पंडित सबहक दक्षिणाक प्रति जे लोभ देखलहॅं से मोनके बेसी व्यथित करै बला छल।ईश्वरक प्रतिमाके दर्शन करैलेल दानक शर्त राखऽबला पंडा सबसऽ बहुत दुखित भेलहु। जॅं दान मन्दिरके देख-रेखके लेल आवश्यक अछि तऽ भक्तके स्वेच्छा आ श्रद्धा सऽ हुअके चाही। आई बाकी समय यैह सोचैत रहलहु जे धार्मिक रीति-रिवाज़के दाम लगाकऽ धार्मिक आस्थाके बेचपर रोक लगनाइ कतेक आवश्यक अछि। अन्यथा अहि देशके की हैत।
१. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर २. स्व. श्री राजकमल चौधरी
श्री रामभरोस कापड़ि “भ्रमर” (१९५१- ) जन्म-बघचौरा, जिला धनुषा (नेपाल)। सम्प्रति-जनकपुरधाम, नेपाल। त्रिभुवन विश्वविद्यालयसँ एम.ए., पी.एच.डी. (मानद)।
हाल: प्रधान सम्पादक: गामघर साप्ताहिक, जनकपुर एक्सप्रेस दैनिक, आंजुर मासिक, आंगन अर्द्धवार्षिक (प्रकाशक नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, कमलादी)।
मौलिक कृति: बन्नकोठरी: औनाइत धुँआ (कविता संग्रह), नहि, आब नहि (दीर्घ कविता), तोरा संगे जएबौ रे कुजबा (कथा संग्रह, मैथिली अकादमी पटना, १९८४), मोमक पघलैत अधर (गीत, गजल संग्रह, १९८३), अप्पन अनचिन्हार (कविता संग्रह, १९९० ई.), रानी चन्द्रावती (नाटक), एकटा आओर बसन्त (नाटक), महिषासुर मुर्दाबाद एवं अन्य नाटक (नाटक संग्रह), अन्ततः (कथा-संग्रह), मैथिली संस्कृति बीच रमाउंदा (सांस्कृतिक निबन्ध सभक संग्रह), बिसरल-बिसरल सन (कविता-संग्रह), जनकपुर लोक चित्र (मिथिला पेंटिङ्गस), लोक नाट्य: जट-जटिन (अनुसन्धान)।
नेपाली कृति: आजको धनुषा, जनकपुरधाम र यस क्षेत्रका सांस्कृतिक सम्पदाहरु (आलेख-संग्रह), भ्रमरका उत्कृष्ट नाटकहरु (अनुवाद)।
सम्पादन: मैथिली पद्य संग्रह (नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान), लाबाक धान (कविता संग्रह), माथुरजीक “त्रिशुली” खण्डकाव्य (कवि स्व. मथुरानन्द चौधरी “माथुर”), नेपालमे मैथिली पत्रकारिता, मैथिली लोक नृत्य: भाव, भंगिमा एवं स्वरूप (आलेख संग्रह)। गामघर साप्ताहिकक २६ वर्षसँ सम्पादन-प्रकाशन, “अर्चना” साहित्यिक संग्रहक १५ वर्ष धरि सम्पादन-प्रकाशन। “आँजुर” मैथिली मासिकक सम्पादन प्रकाशन, “अंजुली” नेपाली मासिक/ पाक्षिकक सम्पादन प्रकाशन।
अनुवाद: भयो, अब भयो (“नहि आब नहि”क मनु ब्राजाकीद्वारा कयल नेपाली अनुवाद)
सम्मान: नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान द्वारा पहिल बेर १९९५ ई.मे घोषित ५० हजार टाकाक मायादेवी प्रज्ञा पुरस्कारक पहिल प्राप्तकर्ता। प्रधानमंत्रीद्वारा प्रशस्तिपत्र एवं पुरस्कार प्रदान। विद्यापति सेवा संस्थान दरिभङ्गाद्वारा सम्मानित, मैथिली साहित्य परिषद, वीरगंजद्वारा सम्मानित, “आकृति” जनकपुर द्वारा सम्मानित, दीर्घ पत्रकारिता सेवाक लेल नेपाल पत्रकार महासंघ धनुषाद्वारा सम्मानित, जिल्ला विकास समिति धनुषा द्वारा दीर्घ पत्रकारिता सेवाक लेल पुरस्कृत एवं सम्मानित, नेपाली मैथिली साहित्य परिषद द्वारा २०५९ सालक अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन मुम्वई द्वारा “मिथिला रत्न” द्वारा सम्मानित, शेखर प्रकाशन “पटना” द्वारा “शेखर सम्मान”, मधुरिमा नेपाल (काठमाण्डौ) द्वारा २०६३ सालक मधुरिमा सम्मान प्राप्त। काठमाण्डूमे आयोजित सार्कस्तरीय कवि गोष्ठीमे मैथिली भाषाक प्रतिनिधित्व।
सामाजिक सेवा : अध्यक्ष-तराई जनजाति अध्ययन प्रतिष्ठान, जनकपुर, अध्यक्ष- जनकपुर ललित कला प्रतिष्ठान, जनकपुर, उपाध्यक्ष- मैथिली प्रज्ञा प्रतिष्ठान, जनकपुर, उपकुलपति- मैथिली अकादमी, नेपाल, उपाध्यक्ष- नेपाल मैथिली थाई सांस्कृतिक परिषद, सचिव- दीनानाथ भगवती समाज कल्याण गुठी, जनकपुर, सदस्य- जिल्ला वाल कल्याण समिति, धनुषा, सदस्य- मैथिली विकास कोष, धनुषा, राष्ट्रीय पार्षद- नेपाल पत्रकार महासंघ, धनुषा।
नेपालमे कोशीक ताण्डव: जल प्रलयक विभत्स दृश्य
जनकपुर। देखिते जेना करेज मुँहमे आबऽ चाहैत अछि। भोक्कासी पाड़ि कानबाक मोन होबऽ लगैत छैक जखन टुटल-फाटल प्लास्टिक, गोनैर, पटिआ किंवा घरायशी धोती-सारीकेँ लपेटिकऽ बनाओल अत्यन्त कमजोर ओत बला छावनीमे बैसल पचीसो हजार लोक अपन सभ किछु गमा टुकुर-टुकुर सरकार आऽ राहतक बाट तकैत अछि। कोशी पुलपर जाइते जेना एकटा झुरझुरी देहमे पैसि जाइत छैक- इएह कोशी नदी आ पुल अछि जे दर्जनौं गामकेँ बर्वाद कऽ वासी सभकेँ विस्थापित बनौलक अछि। मुदा ई की! कोशी तँ सुखल अछि। वालुक ढेरी ओहिना देखाइत। ५६मे सँ लगभग अधिकांश फाटक खुजल। मुदा पानिक ओऽ बेग नहि जे एहि मासमे कोशीमे देखि पड़ैत छल। तखन बुझबामे कोनो भांगठ नहि भेल रहय जे एकर ८०-८५ प्रतिशत पानि कुसहाक टुटलाहा तटबन्धक रस्ते कुसहा, श्रीपुर, हरिपुर, लोकही, वीरपुर, भण्टावारी, कटैया होइत सुपौल, सहर्षा, अररिया मुँहे तवाही मचबैत भागि गेल अछि।
कोशी पूर्वोमे एहिना बाट बदलैत रहल। पूर्णियाँमे बहैत कोशी सुपौलमे कोना आएल। तथ्यांकक अनुसार विगत २५० वर्षमे ई अपन १२ गोट धाराक माध्यमसँ १२० कि.मि.क क्षेत्रमे भ्रमण करैत रहल अछि। ई क्रम पूर्वसँ पछिमक दिश देखल गेल अछि। एहि बेर ई पश्चिमसँ पूर्व दिश बढ़ल अछि। तखन की आशंका करी कोशी फेर एक बेर तवाहीक नव बाटपर बढ़ि गेल अछि।
कहल जाइछ १६ अगस्त २००८ केँ भारतीय अधिकारीकेँ नेपाल दिशसँ पूर्वितटबन्धक खतरासँ अवगत करा देल गेल छल। २३ अप्रैल १९५४ ई.मे भेल नेपाल-भारत कोशी समझौतामे कोशी बराज आऽ दुनू तटबन्धक देखरेख भारत सरकारकेँ करबाक छैक। से कोशी वराजसँ पूर्व चकरघट्टी धरिक ३४ कि.मि.क तटबन्धमध्ये ३२ कि.मि. के सम्भार करबाक अभिभारा रहितो भारतीय पक्ष द्वारा उपेक्षा कएल गेल जकर ई भयंकर परिणाम आएल अछि। तटबन्धक आयु २५ वर्षक मानल गेल अछि। एहनमे लगभग ४८ वर्षक तटबन्ध मरम्मत सम्भारक अपेक्षा तऽ करिते छल। ताहुमे तटबन्ध कमजोर हयबाक प्रमाण एहुसँ लगाओल जाऽ सकैछ जे ९ लाख ५० हजार क्यूसेक पानि छोड़बाक क्षमता कोशी वैरेजक छैक मुदा ओतुक्का प्रविधिक सभक कथन छैक ४ लाखसँ निचे पानिक बहाब रहैक। तखन बान्हकेँ टुटब पूर्णरूपेँ कमजोर बान्ह दिश संकेत करैत अछि।
जेसे, जे हएबाक रहैक से भऽ गेलैक। आब तऽ बचल अछि तँ मात्र तबाही। विहारक वीरपुर, सुपौल, कटैया, भीमनगर आदिक निकटवर्त्ती ठामसँ विस्थापित सभ कोशी वैरेजक पूर्विभाग, तटबन्धक दुनू कात आऽ भारदह धरि पसरल अछि। ई संख्या वीसो हजार भऽ सकैछ। एकरा छानवीन कऽ किछु दिनक बाद भारतीय अधिकारीकेँ जिम्मा लगएबाक विचार कएल जाऽ रहल अछि।
ओम्हर भण्टाबारी धरि जाएबला पुल क्षति ग्रस्त भऽ गेल अछि। मात्र पैदल आऽ साइकल यात्री ओत्तऽ जाऽ पाबि रहल अछि। वजारक पश्चिमी कातक सभ पक्की, कच्चीघर पानिमे आधासँ बेसी डुबल अछि। भण्टावारीसँ आगाँ जाएबला राजमार्ग किछुए दुरक बाद पानिमे डुबि गेल अछि। लोक अनेकौं कष्ट सहि एक ठामसँ दोसर ठाम जाऽ रहल अछि। नाव एकटा मात्र सहारा भऽ सकल अछि।
कोशी वैरेजक बाद बारह कि.मि. पर जाऽ कुसहा लग तटबन्ध टुटल अछि। पहिने असी फीट कहल गेल रहैक, एखन तीन किलोमीटर कहल जाऽ रहल अछि। टुटलाहा तटबन्धक दक्षिणी छोर परसँ खड़ा भऽ देखलापर एकटा पैघ नदीक स्वरूपमे परिवर्तित भऽ चुकल कोशीक ई खतरनाक स्वरूपक वेग एखनो अत्यन्त प्रवल छैक। एहिमे नाविक सभ नावकेँ धाराक बहाव दिश दूर धरि लऽ जाऽ गमसँ पूर्वि डुबान दिश मोड़ैत अछि आऽ लगभग डेढ़-दू कि.मि.क यात्रा करैत फँसल लोक सभक विच शुभचिन्तक सभकेँ पहुँचबैत अछि। नावक कमि सेहो खूब देखि पड़ल। मोटर बोटक तँ कथे नहि।
राहतक घोषणा सरकार कएलक अछि। अमेरिका कएलक अछि। असगरि उपेन्द्र महतो ५१ लाख टका राहत कोषमे दऽ चुकलाह अछि। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आऽ कतेको मंत्री निरिक्षण कऽ चिकल छथि। सभ गोटे सुनसरीक दर्शनटा कऽ वाढ़िक विभीषिकाक अनुमान लगवैत छथि। एक मात्र उपराष्ट्रपति भारदह अएलाह, कंकालनी क्षेत्रमे राखल राहत केन्द्रक दौरा कएलनि।
काज सप्तरीक प्रशासनिक निकाय सेहो कम नहि कएलक अछि। सप्तरीक प्रमुख जिल्ला अधिकारी जीवछ मिश्र अहोरात्री खटि कऽ राहत आऽ सुरक्षाक प्रबन्ध मिलवितो नाम सुनसरीके मात्र कहलासँ काजमे रमल लोकक हेतु अनसोहांत सन लगैत अछि से कहलनि। सप्तरीक प्र.जि.अ. मिश्रक सक्रियताकेँ भारदहक प्रवीण ठाकुर सेहो उच्च मूल्यांकन करैत हमरा सन्तुष्ट कएलनि जे बाढ़ि प्रभावित सभकेँ हरतरहक मानवीय सेवा करबामे सप्तरीक सम्पूर्ण संघ संस्था प्रतिबद्ध अछि।
विस्थापित सभक विच हमरा पशुचिकित्सक डॉ. इन्द्रकान्त झा भेटलाह। हुनका विभाग एही काजक लेल काठमाण्डूसँ पठौलकनि अछि। पशुचिकित्साक उचित प्रबन्ध देखबाक हेतु डॉ. झाक सक्रियता बढ़ल छनि। इहो काज सप्तरीक पशुसेवा कार्यालय प्रमुख डॉ. काशिनाथ यादवक नेतृत्वमे शिविरसभ लागल अछि। हुनका संग डॉ. चन्द छनि।
पुछलापर एखन कुत्ताक काटल नियमित ५-६ गोट उपचारमे अवैत हयबाक बात डॉ. झा बतबैत छथि। बाढ़िक जे प्रकोप भेल अछि एहिमे निमोनिया, डायरिया, जौण्डीस, आँखि उठब सन रोग बढ़ि रहल अछि आऽ भ्यागुते रोग, चिरचिरे रोग अएबाक पूर्ण संभावना छैक। एकरा लेल पर्याप्त औषधि ओऽ सेवाक व्यवस्था छैक से बात सप्तरीक प्रमुख डॉ. यादव बतबैत छथि।
हम सभ महुशुस करैत छी जे राति एत्तऽ अन्हारे वितैत हयत। जकरा खाए के उपाय नहि ओऽ लालटेन, विजली वत्ती आऽ मोमवत्ती कत्तसँ किनत। सरकार दिशसँ अस्थायी विद्युत आपूर्तिक व्यवस्था नहि छैक, जकर शख्त जरूरी वूझना गेल। राति-विराति चोर उचक्काक खेल बढ़ि सकैछ। रक्षको भक्षक भऽ सकैछ। जवान बेटी, पुतहु ओत्तऽ छैक। ओकर इज्जतक सुरक्षाक प्रश्न छैक। नवजात शिशुक संग वर्षाक पानिमे भिजैत माय सभ छथि। गर्भवती महिला सभ छथि। हुनका सभमे सुरक्षाक उपयुक्त प्रबन्धक अभाव छैक।
माँग तँ बहुतो भऽ रहल छैक। राहत कत्तऽ जाऽ रहल छैक। बड़ मुश्किलसँ एक आधाकिलो चाउर, दालि, चूड़ा, मीठा किंवा चाउचाउ प्राप्त भेने सभ किछु भऽ गेल से संभव नहि। ककरो नीकसँ पन्नी धरि उपलब्ध नहि कराओल जाऽ सकल अछि।
तहिना पीबाक पानिक तेहने अभाव छैक। पूर्वि तटबन्धक १२ कि.मि.क दुनूकात आधा दर्जनसँ बेसी हाथेकल नहि देखि पड़ल। हाहाकार छैक पानिक। वाढ़िक गन्दगीसँ भरल पानि पीबापर मजबूर अछि विस्थापित। सरकारकेँ चाहिऐक बोरिंग करा कऽ पाइप द्वारा शिविरधरि पानि पहुँचएबाक जोगार करए। एकरा सेहो प्राथमिकता सूचीमे अगाड़ीए रखबाक चाही।
आब तँ सरकारी आकड़ा आबि गेलैए- १ लाख ७ हजार लोक कोशीक चपेटमे अछि। काज जल्दीए हो तँ नीक।
राहतक जे गति एम्हर अछि बिहारोमे अवस्था नीक नहि। भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वाढ़ि ग्रस्त क्षेत्रक निरिक्षण कएलाक बाद वाढ़िसँ निपटबाक हेतु एक हजार दश करोड़ नगद आऽ सवा लाख टन अनाज देवाक घोषणा कएलनि अछि। ई एकटा पैघ राहत भेलैक। ओत्तऽ आब काज जोड़सँ आगाँ बढ़त।
नेपालमे माँगलो गेल राहतक पाई पीड़ित लग नहि, कतेको बेर तँ निजी उदर पूर्तिमे लागल हयबाक बात प्रकाशमे आएल अछि। जाइ तरहक विपदा आएल अछि एहिमे सभपक्षकेँ एकयबद्ध भऽ एहि राष्ट्रिय विपदासँ देशकेँ मुक्त करैक तेहन सक्रियता देखएबाक चाहिऐक।
स्व. राजकमल (मणीन्द्र नारायण चौधरी) (१९२९-१९६७), महिषी, सहरसा। रचना:- आदि कथा, आन्दोलन, पाथर फूल (उपन्यास), स्वरगंधा (कविता संग्रह), ललका पाग (कथा संग्रह), कथा पराग (कथा संग्रह सम्पादन)। हिन्दीमे अनेक उपन्यास, कविताक रचना, चौरङ्गी (बङला उपन्यासक हिन्दी रूपान्तर) अत्यन्त प्रसिद्ध। मिथिलांचलक मध्य वर्गक आर्थिक एवं सामाजिक संघर्षमे बाधक सभ तरहक संस्कार पर प्रहार करब हिनक वैशिष्ट्य रहलन्हि अछि। कथा, कविता, उपन्यास सभ विधामे ई नवीन विचार धाराक छाप छोड़ि गेल छथि।
अपराजिता-राजकमल चौधरी (वैदेही, अक्टूबर १९५४ सँ साभार)
हमर अभिन्न मित्र नागदत्त अपन घरवाली केँ अपराजिता कहैछ। किएक, से कि सोचलो उत्तर एखन धरि बूझऽ मे आयल अछि?
हम धरि हुनका अन्नपूर्णा भौजी कहैत छियनि। जर्दा लेल बड्ड छिछिआयल रही आ ओ खास अवसर पर संकट-मोचन रहथि। ओहुना हमरा मैथिल-बाला सभ मे अन्नपूर्णाक रूप अधिक भेटैत अछि।
मुदा अपराजिता?
धुः! पत्नीक प्रति ई भाव तँ एक विदेशी भाव थिक। भारतीय सँ एकरा कोनो साम्य छैक? मिसियो भरि ने। भारतीया तँ बेचारी लाज, बन्धन, आवरण, नियम ओ उपनियम सँ तेना कऽ जकड़लि रहैछ जे ओ सर्वदा पराजित बनलि रहैछ।
एही सभ मे दहाइत-भसिआइत रही। खिड़की सँ बाहर मिथिलाक श्यामल, सोहागिन, सुहासिन धरती। ट्रेनक खिड़की सँ बाहर देखैत रही।
दिवानाथ धरि मूड़ी निहुड़ौने “गारंटी ऑफ पीस” मे ओझरायल छल। मुक्ती बाबू ट्रेनक हड़ड़-हड़ड़ मे ताल दैत विद्यापतिक पाँती गबैत रहथि, “सखि हे, हमर दुखक नहि ओर”।
नागदत्त अपना लगक मोसाफिर संगेँ जोर-जोर सँ बजैत रहय, “नइँ महाराज...आन देश मे ई हाल नइँ छैक...अही ठाँ रूस मे देखिऔक गऽ। विज्ञानक जोर सँ मनुक्ख नदीक धार केँ अपन इच्छानुसार मोड़ि देलक अछि”।
इन्टरक एहि डिब्बा मे आनो-आन यात्री सभ अपन-अपन गप्प सभ मे तल्लीन रहथि। एकटा बूढ़ दरोगा साहेब अपन सहगामी केँ कोनो रोमांचकारी डकैतीक खिस्सा कहैत रहथिन। एकटा सेठ अपन अधवयसू मुनीम केँ सोना-चानीक तेजी-मन्दीक कारण बुझा रहल छलाह, लगहि मे हुनक पत्नी घोघ तनने बैसलि! ट्रेन समस्तीपुर सँ फूजल। कैप्सटनक डिब्बासँ अन्तिम सिकरेट बहार कऽ दिवानाथ सुनगाबऽ चाहैत रहय...सलाइयो रहैक लगहि मे ...मुदा ओ तँ रहय अपन “गारंटी ऑफ पीस” मे ओझरायल। हमरा हँसी लागल। हम हँसऽ लगलहुँ। मुक्तीबाबू दोसर गीत गाबऽ लगलाह, “मानिनि आब उचित नहि मान”!
हठात् खिड़कीसँ हुलकि दिवानाथ चिचिआयल, “देख, मणि...देख...अपराजिताक ताण्डव”! सभ गोटा हुलकी मारऽ लागल। सभक आँखि विस्मय-विस्फारित!
“गारंटी ऑफ पीस” खतम छल...विद्यापतिक गीत खतम छल। रूसक कथा खतम छल। डकैतीक कथा थम्हि गेल...सोना-चानीक तेजी-मन्दी सेहो बन्द भऽ गेल रहय। सिकरेटक लगातार धुँआ रहि गेल आ रहि गेल अपराजिता!
सरिपहुँ... बागमती, कमला, बलान, गंडक आ खास कऽ कऽ कोसी तँ अपराजिता अछि ने! ककरो सामर्थ नहि जे एकरा पराजित कऽ सकय। सरकार आओत...चलि जायत..मिनिस्टरी बनत आ टूटत, मुदा ई कोसी...ई बागमती...ई कमला आ बलान...अपन एही प्रलयंकारी गति मे गाम केँ भसिअबैत, हरिअर-हरिअर खेत केँ उज्जर करैत, माल-जालकेँ नाश करैत, घर-द्वारक सत्यानाश करैत बहैत रहत आ बहैत रहत।
वेद मे नदी केँ मनुक्खक सेविका कहलकैक अछि...मनुक्खक पत्नी कहलकैक अछि...
मुदा,
बहुओ भऽ कऽ कोसी आ बागमती अपराजिता अछि...
अन्नपूर्णा कहाँ?
रेलवी-सड़कक दुहू कात कोसक कोस पसरल अबाध जल-प्रवाह! दुहू क्षितिज केँ छुबैत जलक धार!!
“लगैत अछि, हम सभ ट्रेनपर नहि, मने जहाजपर बैसल होइ। जेना चारू कात विशाल, विकराल, विराट समुद्र हो जे हमर अस्तित्व पर्यन्तकेँ डुबा देलक अछि!”, बाजल दिवानाथ। मुक्ती टिपलक, ’मणि भाइ, कते गामक तँ कोनो थाहो-पता ने लगैत छैक जे एतऽ कहिओ कोनो गामो रहैक। जतऽ ईंटाक पोख्ररापाटन हवेली रहैक ततऽ की छैक? महाविशाल मोइन आ कुण्ड! जतऽ खेत आ खरिहान रहैक ओहि ठाँ गण्डकी नंगटे नचैए...खरिहानक नाच नहि, श्मसानक नाच!”
हाथक “ब्लिज” केँ तह दैत एकटा सज्जन बजलाह, “आ बाबू...सरकार तँ पटना आ दिल्लीक सचिवालय मे बिजलीक पंखा आ स्प्रिंगदार सोफाक बीच सूतल अछि। मिथिला वा भोजपुर भसिआइए गेल तँ ओकरा की? कोसी सर्वनाशे करइए तँ ओकरा की? ओ तँ इण्डियाक “फारेन-पालिसी” सोचैत अछि। भीतर सँ भारत खुक्ख भऽ रहल अछि...कोकनि रहल अछि, मुदा ओ यू.एन.ओ.क कुर्सी बचाबक फिकिर मे अपस्याँत अछि”। दरोगाजी कनिएँ उकड़ू भऽ बैसि गेलाह आ कान पाथि हमरा लोकनिक गप्प सुनऽ लगलाह। सेठजी अपन धर्मपत्नी दिस व्यग्र भावेँ ताकि बजलाह, “रधिया की माँ...जरा इलायची तो देना...सर चकरा रहा है”।
दाँत कीचि दिवानाथ गुम्हड़ल- गारंटी ऑफ पीस!! हम सोचलहुँ, हमर देश मे जे “गारंटी ऑफ पीस” दऽ सकैछ से तँ लालकिलाक मुरेड़ा पर खजबा टोपी, करिया अचकन...चुननदार पैजामा पहिरने तिनरंगा छत्ता तनने आराम सँ पड़ल अछि! आ भगवान सँ स्वर्ग मे छथि तँ अबस्से दुनियाँ मे सभ वस्तु ठीक छैक।
यद्यपि देशक ई हालत किएक, से सभ जनैत अछि- हमहूँ..अहूँ...नेता आ जनतो! तइयो ई देश अपन दरिद्रा केँ सोनाक पानि चढ़ाओल डिब्बी मे बन्द कऽ कऽ विदेशक प्रदर्शनीक “शो-केस” मे सजबैत अछि। रीढ़क अपन हाड़ तोड़ि ताजक रूप मे उपस्थित करैत अछि। फाटल-चीटल केथड़ी जोड़ि आ सजा, भटरंग कऽ प्रति पन्द्रह अगस्त कऽ शाही महल सभ पर धर्मचक्र-सज्जित तिरंगा फहरबैत अछि।
गाड़ी ठाढ़ भऽ गेलैक।
पुल रहैक कोनो मने। फेर चुट्टीक चालि मे घुसकनियाँ काटऽ लागल। सभ मोसाफिर खिड़की आ फाटक पर मुड़िआरी देने बाहर हुलकी मारऽ लागल-
गण्डक, बागमती, कमला आ कोसीक भयानक रूप। समुद्रक ज्वारि जकाँ विकराल ढेहु उठैत। लगैक मने सौंसे ट्रेनकेँ गीड़ि जायत! लहरिक संगहि-संग कौखन कोनो पुरना नूआक फाटल पाढ़ियुक्त भाग...कौखन काठक सनुकचाक कोनो थौआ भेल भाग...कौखन जानवरक हाड़! घरक ठाठ बहल जा रहल छल...खाट आ चौकी भसिआयल जा रहल छल...इज्जति आ प्रतिष्ठा मिथिलाक नोर मे दहायल जा रहल छल। जीवन भसिआयल जा रहल छल। सीसो-सखुआ-आमक कलमबाग आ बँसबिट्टी डूबि गेल छल।
ऊपर रहैक केवल पीतवसना नागकन्या गण्डकी अपन अति विषाक्त फुफकार छोड़ैत।
मुक्तापुर आबि गेल।
स्टेशनक चारू कात पानिएँ पानि। स्टेशन पर असंख्य गरीब किसान-बोनिहार लहालोट होइत। ककरो एक मुट्ठी अन्न नहि...पाँच हाथ वस्त्र नहि...टाँग पसारि कऽ सूतक स्थान नहि। प्लाटफारम पर आकाशक ठाठ तर असंख्य किसान-परिवार! धीया-पूता भूखेँ चिकरैत...माय ओकरा घोघ तर मुँह नुकओने कनैत। एकटा कोनो कांग्रेसी सज्जन स्टेशन-मास्टर केँ जोर-जोर सँ कहैत रहथिन, “अरे, महाराज...एहि मे सरकारक कोन कसूर? भगवानक लीला छनि। सरकार की जानऽ गेलैक जे एहन विशाल बाढ़ि आबि रहल छैक। ताहू पर रिलीफ कमेटी बनि रहल छैक। अगिला हप्ता मिनिस्टर लोकनिक “टूर प्रोग्राम” छनि। आ अलाबे एकर मुख्यमन्त्री दरभंगा, मुजफ्फरपुर आ सहरसाक कलक्टर केँ तार देबे कयलथिन अछि जे ओ जते चाहथि रिलीफक हेतु खर्च करथि। से नहि आब की करौक?”
आ सरिपहुँ सरकार खर्च करैत रहैक से हम देखलिऐक! एकटा गृहस्थ बाजल, चारिम दिन अन्न भेटल छल...मूड़ पीछू दू सेर...ओकर पहिने तँ मात्र जले टा आधार होइक। आ दू सेर चाउर कक्खन धरि? स्त्रीगणकेँ पहिरक कोनो नूआ-फट्टा नइँ। मलेरियाग्रस्त लोक केँ लहालोट पुरिबा आ जाड़ सँ बचबऽक खातिर कम्बल नहि। रेलवे कर्मचारी हाता सँ एकटा ठहुरिओ नइँ काटऽ देनिहार। पूछक तँ बड़ इच्छा छल... मुदा गाड़ी फुजि गेलैक।
“ब्लिज” वला सज्जन बजलाह, “बाबू एखन की देखलिऐक अछि, आगाँ ने चलू...किसनपुर...हायाघाट....मोहम्मदपुर...जोगियार..कमतौल दिस आर प्रलय मचल छैक। एहन कोनो परिवार नहि छैक जकर कोनो समाङ कि कोनो बच्चा कि कोनो माल नहि दहा-भसिआ गेल होइक”।
हायाघाट स्टेशन! सूर्यास्तक समकाल।
डुबैत सूर्यक लालिमा प्रतीचीक जल केँ रक्त सन बनओने। लिधुराह पानि..खुनिञा धार!! मुक्ती बाबू सिकरेट ताकऽ चललाह। दिवानाथ प्लाटफारम पर अपने घर मे शरणार्थी बनल गृहविहीन सँ गप्प कऽ रहल छल। गाड़ीक इंजन मिझा गेल रहैक। लेहरियासराय सँ तार अओतैक तखन ने फुजतैक गाड़ी! हमहूँ उतरलहुँ। देखलिऐक, सौंसे प्लाटफारम पर चुट्टी ससरऽक दौर पर्यन्त नइँ। अँगनइ मे बाँसक पातर सट्टा गाड़ि-गाड़ि ओहि पर पातर पुरान नूआ कि धोती टाँगि कऽ तम्बू सन बनल। एहन-एहन सैकड़ो तम्बू एक पतिआनी सँ ठाढ़। स्त्रीगण सभ लोटे-लोटे स्टेशनक इनार सँ पानि अनैत रहथि आ धीया-पूता टुक-टुक ट्रेन दिस तकैत रहय। पानिक कछेड़ मे एकटा बुढ़िया बाढ़ि मे डूबल बेटाक शोक मे बताहि भेलि चिकरैत रहय। पानिक कछेड़ मे एकटा बुढ़िया बाढ़ि मे डूबल बेटाक शोक मे बताहि भेलि चिकरैत रहय। ओझरायल केश मुँह पर...नूआ-फट्टाक होस नहि...गाबि-गाबि कानय, हे गण्डक मैया...हे कमला मैया। कतऽ गेलइ हम्मर सुगवा, कतऽ गेलइ हमर लाल!
आ ओम्हर दिवानाथ बूढ़ा दरोगा साहेब केँ बुझा रहल छलनि...मनुक्ख जे चाहय से कऽ सकैत अछि। एही ठाँ चीन केँ देखिऔक...ओकर “ह्वांगहो” कोसिओ सँ भयानक रहैक। मुदा लाल क्रान्तिक दू बरखक बाद ओकरा सघन बान्ह सँ जकड़ि देलकैक, आइ ओ ह्वांगहो चीनक वरदान छैक, अभिशाप नहि। आ दिवानाथक आँखिमे लाल चिनगीक तीक्ष्ण प्रकाश आ ज्वाला। भेल जे अमृतपुत्रक एहि ज्वालामे कोसी भस्म भऽ जयतीह। मुदा एक जोड़ा आँखिक चिनगी सँ नहि। लक्ष-लक्ष जोड़ा आँखिक अंगोर सँ। हमरा एकर चतुर्दिक एहन रक्तिम दाहक चिनगीक जाल बूनऽ पड़त।
मुक्तीबाबू अधजरुआ सिकरेट हमरा दिस बढ़ा बजलाह, “मणिबाबू, प्लाटफारमक ओइ भाग तकिऔ तँ कने...कोना छागर-पाठी जकाँ लोक सभ अछि, मालगाड़ी मे कोंचल। हुँ! कोंढ़ उनटि जाइत अछि”।
ट्रेन पार कऽ ओइ पार गेलहुँ। एकटा पूर्ण मालगाड़ी रहैक ठाढ़। डिब्बा मे पुरुष, मौगी, धीआ-पूता, माल-जाल सभ भरल छल। डिब्बे मे चूल्हि सुनगि रहल छल। हाँड़ी सभ चढ़ाओल जा रहल छल। कोसी आ गण्डकी मैया केँ प्रार्थनाक “कोरस” सुनाओल जा रहल छलनि। हाहाकार आ रुदनक स्वर गूँजि रहल छल।
मालगाड़ीक डिब्बा सँ एकटा विद्यार्थी बहरायल...कोर मे चारि-पाँच बरखक कनटिरबी केँ रखने। ओ छौँड़ी बड़ी-बड़ी जोर सँ हिचकैत रहैक। नागदत्त पुछलकैक, “अहा-हा...किऐक औ...की भेलैक अछि...किऐक कनैत अछि”?
ओ नेनिया केँ ठोकैत बाजल, “एकर माय, बाबू साहेब, डूबि गेलैक एही बाढ़ि मे। कनतैक ने तँ...”? सभ गोटा निस्तब्ध भऽ गेल।
युवक बाजल, “विद्यार्थी छी अहाँ लोकनि...तेँ मन होइछ अहाँ लोकनि सँ गप्प करी। हम सभ एही स्टेशन सँ तीन मील पर रामपुर गामक बासी छी। आब तँ ओ बस्तिए नइँ रहलैक...। सौंसे गाम भसिया कऽ लऽ गेलैक...ई राक्षसी गण्डकी”।
मारिते रास लोक जमा भऽ गेल, ओकर गप्प सुनऽ लेल। दरोगा साहेब बजलाह, “की सौंसे गाम”?
“हँ औ। हठात राति मे आबि गेलैक बाढ़ि। छन-छन पानि बढ़ैत...कोनो तरहेँ स्त्रीगण लोकनि केँ नाह पर लदलहुँ...माल-जाल हँकओलहुँ...वस्तु-जात, अत्यन्त आवश्यक वस्तु सभ कनहा पर लदलहुँ, पड़यलहुँ, स्टेशनक दिस। कतहु भरि डाँड़...कतहु कच्छाछोप, कतहु चपोदण्ड। हेलैत-डुबैत एतऽ पहुँचलहुँ। कतेक नेना-भुटका डूबल। माल-जालक तँ कथे कोन। भसिआयल ठाठ पर हमरा लोकनि स्त्रीगण सभ केँ बैसा कऽ अनलहुँ एतऽ धरि। अयला पर पता लागल जे एहि कनटिरबीक माय डूबि गेलैक। ई हमर भतीजी थिक। मुदा आब की”? कने काल चुप भऽ गेल ओ। युवकक आँखि पनिआ गेलैक। फेर बाजल,”स्टेशन आबि देखल, ई पहिनहि सँ भरल छल। लगीचक पन्द्रह बीस गामक लोक सभ सँ भरल छल। एहि इलाका मे एकटा ई स्टेशन मात्र छैक ऊँच स्थान। खाली इएह मालगाड़ी रहैक ठाढ़। सभ गोटा एही मे शरण लेल। सम्पूर्ण डिब्बा खाली छल, सभ मे हम सभ भरि गेलहुँ।
दोसर दिन प्लेटफॉर्म पर सेहो पानि आबि गेलैक, तखन लोक सभ बोरा जकाँ एक दोसर पर गेंटल रही। युवक सभ ऊपर छत पर चढ़ि गेलाह, स्त्रीगण आ बूढ़, नेना सभ डिब्बे मे रहलाह।
स्टेशन मास्टर हमरा सभ केँ डेरओलनि, मालगाड़ी खाली कर दो।
अहीं लोकनि कहू से कोना होइतैक? हम सभ कतऽ जाइतहुँ? हमरा सभक संग मे पाइ-कौड़ी नहि छल, घर नहि छल, पहिरऽ लेल वस्त्र नहि छल”। एतेक कहि युवक फेर रुकि गेल। नहुँए सँ बाजल, “हमरा जऽर अछि। जाड़ भऽ रहल अछि, यदि अपने सभक मे एकटा बीड़ी हो तँ दिअऽ“।
मुक्तीबाबू ओकरा सिकरेट देलथिन आ दिवानाथ सलाइ। युवक बाजल, “ओ, ई तँ कैप्सटन अछि”। फेर बड़े तन्मय भऽ सिकरेटक कश खींचऽ लागल। (एलेक्शनक अवसर पर कैथोलिक पादरी सभ सम्पूर्ण तिरू-कोचीन मे मङनी मे सिकरेट आ चाहक पैकेट बँटने छलाह। पैकेट सभ पर लिखल छल, काँग्रेस को वोट दो।) नागदत्त पुछलथिन, “फेर की भेल”?
“फेर की हेतैक”? युवक गाड़ीक कम्पाट सँ ओंगठि कऽ बाजल, “फेर पुलिस आबि-आबि कऽ हमरा सभकेँ तंग करऽ लागल। जकरा संग पाइ-कौड़ी छलैक से पाइ-कौड़ी दऽ कऽ पुलिसक ठोकर सँ बचल रहल। रातिखन कऽ युवती सभ गाड़ीक डिब्बा सँ बिलाय लागलि। मुदा हम सभ मालगाड़ीक डिब्बा केँ छोड़लहुँ नहि। छोड़ि कऽ हम सभ कतऽ जैतहुँ? दोसरे दिन समस्तीपुर सँ एकटा बड़का इंजिन आयल।
स्टेशन मास्टर बाजल, “तुम लोग गाड़ी खाली कर दो, वरना इंजिन तुम लोगों को लेकर समस्तीपुर चला जाएगा। वहाँ तुम लोगों को जेल हो जायगा, सरकारी गाड़ी पर कब्जा जमाने के जुर्म मे”।
बूढ़ सभ कहलथिन जे नीके होयत, लऽ चलऽ। कम सँ कम भोजनो तँ भेटत जहल मे। मुदा स्त्रीगण कानऽ लगलीह। नेना सभ चीत्कार मारऽ लागल। मैथिल स्त्रीगण जे कहियो गामक बाहर पयर नहि रखलनि तनिका हम जेल कोना जाय दितहुँ। आ तखन हम सभ नारा लगओलहुँ, “मालगाड़ी नहीं जायगा, नहीं जायगा”।
पुलिसक लाठीक मदति सँ ड्राइवर मालगाड़ी मे इंजिन लगओलक। आ एम्हर हम सभ इंजिनक आगाँ आबि कऽ ठाढ़ भऽ गेलहुँ, “मालगाड़ी नहीं खुलेगा, नहीं खुलेगा”। पुरुष लोकनि छाती तानि कऽ ठाढ़ भऽ गेलाह। स्त्रीगण पड़ि रहलीह। नेना सभ बाँसक फट्ठी मे लाल वस्त्र बान्हि कऽ आगाँ मे ठाढ़ भऽ गेल।
बाँसक फट्ठी मे लाल चेन्ह!
गाड़ी रोकऽक चेन्ह।
अपन अधिकार लेबऽक चेन्ह।
युवकक गर्दनि तनि गेलनि, उत्साह सँ बाँहि फड़कऽ लगलनि, आँखि लाल भऽ गेलनि।
सेठजी अपन स्त्रीक कान मे कहलथिन, रधिया की माँ, सूटकेस पास ले आओ, कुछ हो जा सकता है”।
दरोगा साहेब गुनगुनयलाह, “ठीक कहइ छी”।
युवक कहब जारी रखलनि, “पुलिस तँ पहिने घबड़ा गेल, ड्राइवर इंजिन बन्द कऽ देलक। कतेक हजार लोकक रेड़ा पड़ऽ लागल। पुलिस “लाठी चार्ज” करऽ चाहलक, मुदा हम फरिछा कऽ कहि देलियनि, यदि एकोटा लाठी उठल तँ हम सभ एक-एकटा पुलिस केँ उठा-उठा कऽ गण्डक मे फेँकि देब। कहू तँ, पन्द्रह-बीस पुलिस के की चलितनि एहि क्रुद्ध जनसमुद्र मे?
आ, पुलिस सँ नाक रगड़ैत रहि गेल, मुदा मालगाड़ी नहि जा सकल। दोसर दिन भोरे नाव पर चाउरक बोरा गेंटने “स्टूडेंट्स-फेडरेशन” आ “नौजवान-संघ”क लोक सभ अयलाह आ ई हम सभ पहिल सहायता पओलहुँ।
आ आब तँ पानि कम भऽ रहल अछि। सरकारोक कुम्भकर्णी निन्न टूटि रहल छनि। ओहो दू-दू सेर चाउर बाँटि गेलाह अछि”। एतेक कहि युवक चुप्प भऽ गेलाह। वातावरण अशान्त छल, सभक मन युवकक दुःखपूर्ण कथा सुनि खिन्न छलैक। एतबे मे स्टेशनक एकटा कर्मचारी आबि कऽ बाजल-
“गाड़ी खुल रही है, डिब्बे मे बैठिए”।
अपन बिना मायक भतीजी केँ कोरा मे लऽ कऽ युवक प्लेटफॉर्म पर ठाढ़ रहल।
गाड़ी नहुँ-नहुँ चलऽ लागल, तखन ओ दिवानाथक बामा हाथ दबा कऽ बाजल, “मोन राखब बन्धु”! हठात् बूढ़ दरोगा साहेब अपन “सीट” पर सँ उठि अपन ऊनी चद्दरि युवकक कान्ह पर धऽ देलथिन आ फेर अवरुद्ध कंठ सँ कहलथिन, “अहाँ केँ तँ ज्वर अछि, ई चद्दरि लऽ लिअऽ। आ...”।
गाड़ी तेज भऽ गेल।
फेर तँ ओएह चारू कात अथाह अबाध समुद्र छल आ हिलकोरक घोर गर्जन।
पद्य
विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (१८७८-१९५२)2.गुंजनजीक गजल
१. श्री गंगेश गुंजन (राधा तेसर खेप) २. श्रीमति ज्योति झा चौधरी
महाकाव्य- बुद्ध चरित
१. स्व. गोपेशजी २. डॉ पंकज पराशर
१. विनीत उत्पल २. अंकुर झा
1.विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी 2. श्री डॉ. गंगेश गुंजन
१. विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
विविध भजनावली
१२.
महेशवानी
बम भोला छथि अनमोल कतेक दुखी हम
जाइत देखल करैत अति अनघोल॥
ककरहु देविक दैहिक दुख छनि
ककरहु भौति कलेस
कियो अबै छथि आश अन्न टकाके लेल॥
कतेक बिकल छथि पुत्र दार ले कतेक अनेक कलेस
कतेक अहाँके भजन करै ये परमारथके लेल॥
परसि मणि अहाँ झारी वैसल सवके दुख हरि लेल॥
रामजी किछु कहि न सकैछी अपराधी के लेल॥
१३.
महेशवानी
एहन बड़के खोजि आनलन्हि पारवतीके लेल॥
जिनका घर नहि धन परिजन नहि जाति पातिक झेल,
डमरु बजावथि गिरिपर निसि दिन भूत प्रेतसँ खेल॥
अन्नक खेती किछु नहि राखथि भांग धुथुर अलेल,
भूषण गत्र-गत्रमे लटकट बिषधर देखि उर मेल॥
परम बताहक लक्षण सभ छनि अंग भस्म लेपि लेल,
हाथी घोड़ा त्यागि पालकी वोढ़ बरद चढ़ि लेल॥
कहथि रामजीभाग ऊदय अब लेल,
त्रिभुवन पति गौरी पति हेता साजू पूरहर लभे॥
१४.
महेशवाणी
हमरो जीवन व्यर्थ बीति गेल।
कहियो बिल्बपत्र नहि तोड़ल, फूल रोपि नहि भेल।
अक्षत धूप, दीपलै, चानन शंकर पूजि नहि भेल॥
कतेक वासना मनमे करि-करि दिवस रैन बिति गेल।
कवहुँ ध्यान शान्त चित्त भए बम-बम कहियो न भेल॥
सुत बनितादि विषय बस कवहुँ, मन बिश्राम न भेल।
चिन्ता करति करति दिन बीतल, अब जर्जर तन भेल॥
कहथि रामजी सकल आश तजि शिव सेबू अलबेल।
शिब बिनु दोसरके हरत दुसहदुःख निश्चय मन करिलेल॥
१५.
महेशवानी
शिवकें सुनै छियन्हि दयाल
दुखियाक कहिया सुनता सवाल।
जय गंग चन्द्र भाल, कंठ मुण्डमाल, भंग ले बेहाल॥
वाम भाग पार्वती बसहा सवार, अंग-अंगमे विषधर लटकल हजार,
भूतनात प्रणत पाल दिगम्बर धार,
भस्म अंग संग बेताल डमरु बघ छाला॥
रामजी दीननपर कखन करब खयाल
शिव बिना हमर के करत प्रतिपाल॥
१६.
महेशवाणी
शिव काटू ने जञ्जाल।
कतेक कहब हम अपन हवाल॥
निसि दिन चैन नहि भूख भेल काल
चिन्ता करति भूलि गेल अहाँक खयाल।
बन्धु वर्ग कुटुम्ब संग धेलाह अनेक भल
केओ न सहाय भेला दुर्दिन प्रवल।
रामजीके आशा एक जँ निगाहनै करब रहब बेकल॥
१७.
महेशवाणी
शिव कहूने बुझाय॥
ककरा कहब हम अपन दुख जाय।।
केओ ने भेटैत छथि अहाँक समुदाय
जे सुनि हेताह तुरत सहाय॥
हित मित बनिता सुत स्वास्थ्य से भाए।
निर्धन देखि भुख लए छपि घुमाए॥
बम्भोला वैद्यनाथ दीनन अपनाय झाड़ीमे बैसि
हीरालालको लुटाय॥
रामजी आशा लगाय कृपा दृष्टि हेरू
नाथ लिय अपनाय॥
इति
सिद्धिरस्तु। शुभञ्चास्तुस्त्र
श्री डॉ. गंगेश गुंजन(१९४२- )।
2.बाढ़िक त्रासदी-पर डॉ. गंगेश गुंजन जीक मैथिली गजल
दु:खे टा चारू कात छै आ जी रहल-ए लोक
ताकैत आसरा कोनो दुःख पी रहल-ए लोक !
घर-द्वारि दहि गेलैक सब बच्चा टा छै बांचल
रेलवेक कात, बाट-घाट जी रहल-ए लोक !
सांझो भरिक खोराक ने छैक अगिला फसिल धरि
जीबा लए ई लाचार कोना जी रहल-ए लोक !
सबटा गमा क' जान बचा आबि त' गेलय
आब फेकल छुतहर जकां हद जी रहल-ए लोक !
जले पहिरना, बिछाओन जले छैक ओढना
जबकल गन्हाइत पानि-ए खा पी रहल-ए लोक !
सब वर्ष जकां एहू बाढ़ि मे कारप्रदार
रिलीफ नामें अपन झोरी सी रहल किछु लोक !
चलि तं पड़ल-ए जीप-ट्र्क-नावक से तामझाम
आब ताही आसरा मे बस जी रहल-ए लोक !
कहि तं गेलाह-ए परसू-ए दस टन बंटत अन्न
एखबार-रेडियो भरोसे जी रहल-ए लोक !
घोखै तं छथि जे देच्च मे पर्याप्त अछि अनाज
सड़ओ गोदाम मे, उपास जी रहल-ए लोक !
उमेद मे जे आब आओत एन जी ओ कतोक
द' जायत बासि रोटी, वस्त्र, जी रहल-ए लोक !
अछि कठिन केहन समय ई राक्षस जकां अन्हार
किछु भ' रहल अछि तय , तें तं जी रहल-ए लोक !
१. श्री गंगेश गुंजन २. श्रीमति ज्योति झा चौधरी
१. श्री डॉ. गंगेश गुंजन(१९४२- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार।१९६४-६५ मे पाँच गोटे कवि-लेखक “काल पुरुष”(कालपुरुष अर्थात् आब स्वर्गीय प्रभास कुमार चौधरी, श्री गंगेश गुन्जन, श्री साकेतानन्द, आब स्वर्गीय श्री बालेश्वर तथा गौरीकान्त चौधरीकान्त, आब स्वर्गीय) नामसँ सम्पादित करैत मैथिलीक प्रथम नवलेखनक अनियमितकालीन पत्रिका “अनामा”-जकर ई नाम साकेतानन्दजी द्वारा देल गेल छल आऽ बाकी चारू गोटे द्वारा अभिहित भेल छल- छपल छल। ओहि समयमे ई प्रयास ताहि समयक यथास्थितिवादी मैथिलीमे पैघ दुस्साहस मानल गेलैक। फणीश्वरनाथ “रेणु” जी अनामाक लोकार्पण करैत काल कहलन्हि, “किछु छिनार छौरा सभक ई साहित्यिक प्रयास अनामा भावी मैथिली लेखनमे युगचेतनाक जरूरी अनुभवक बाट खोलत आऽ आधुनिक बनाओत”। “किछु छिनार छौरा सभक” रेणुजीक अपन अन्दाज छलन्हि बजबाक, जे हुनकर सन्सर्गमे रहल आऽ सुनने अछि, तकरा एकर व्यञ्जना आऽ रस बूझल हेतैक। ओना “अनामा”क कालपुरुष लोकनि कोनो रूपमे साहित्यिक मान्य मर्यादाक प्रति अवहेलना वा तिरस्कार नहि कएने रहथि। एकाध टिप्पणीमे मैथिलीक पुरानपंथी काव्यरुचिक प्रति कतिपय मुखर आविष्कारक स्वर अवश्य रहैक, जे सभ युगमे नव-पीढ़ीक स्वाभाविक व्यवहार होइछ। आओर जे पुरान पीढ़ीक लेखककेँ प्रिय नहि लगैत छनि आऽ सेहो स्वभाविके। मुदा अनामा केर तीन अंक मात्र निकलि सकलैक। सैह अनाम्मा बादमे “कथादिशा”क नामसँ स्व.श्री प्रभास कुमार चौधरी आऽ श्री गंगेश गुंजन दू गोटेक सम्पादनमे -तकनीकी-व्यवहारिक कारणसँ-छपैत रहल। कथा-दिशाक ऐतिहासिक कथा विशेषांक लोकक मानसमे एखनो ओहिना छन्हि। श्री गंगेश गुंजन मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक छथि आऽ हिनका उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल छन्हि। एकर अतिरिक्त्त मैथिलीमे हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोर (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आऽ शब्द तैयार है (कविता संग्रह)। प्रस्तुत अछि गुञ्जनजीकमैगनम ओपस "राधा" जे मैथिली साहित्यकेँ आबए बला दिनमे प्रेरणा तँ देबे करत सँगहि ई गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रितसभ दुःख सहए बाली- राधा शंकरदेवक परम्परामे एकटा नव-परम्पराक प्रारम्भ करत, से आशा अछि। पढ़ू पहिल बेर "विदेह"मे गुञ्जनजीक "राधा"क पहिल खेप।-सम्पादक। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक पढबाक लेल क्लिक करूबुधिबधिया। गुंजनजीक नाटक आइ भोर पढ़बाक लेल क्लिक करू "आइ भोर"।
गुंजनजीक राधा
विचार आ संवेदनाक एहि विदाइ युग भू- मंडलीकरणक बिहाड़िमे राधा-भावपर किछु-किछु मनोद्वेग, बड़ बेचैन कएने रहल।
अनवरत किछु कहबा लेल बाध्य करैत रहल। करहि पड़ल। आब तँ तकरो कतेक दिन भऽ गेलैक। बंद अछि। माने सेमन एखन छोड़ि देने अछि। जे ओकर मर्जी। मुदा स्वतंत्र नहि कए देने अछि। मनुखदेवा सवारे अछि। करीब सए-सवासए पात कहि चुकल छियैक। माने लिखाएल छैक ।
आइ-काल्हि मैथिलीक महांगन (महा+आंगन) घटना-दुर्घटना सभसँ डगमगाएल-
जगमगाएल अछि। सुस्वागतम!
लोक मानसकें अभिजन-बुद्धि फेर बेदखल कऽ रहल अछि। मजा केर बात ई जे से सब भऽ रहल अछि- मैथिलीयेक नामपर शहीद बनवाक उपक्रम प्रदर्शन-विन्याससँ। मिथिला राज्यक मान्यताक आंदोलनसँ लऽ कतोक अन्यान्य लक्ष्याभासकएन.जी.ओ.यी उद्योग मार्गे सेहो। एखन हमरा एतवे कहवाक छल । से एहन कालमे हम ई विहन्नास लिखवा लेल विवशछी आऽ अहाँकेँ लोक धरि पठयवा लेल राधा कहि रहल छी। विचारी।
राधा (चारिम खेप)
सौख केहन आखेटक ....
अछि विकट की हाल एहि मनक,
कही ककरा कहू की, के बनओ
एहि प्राणक धुकधुकी सन अपन
ठीक हमरे जकां आकुल चित्त
एहिना बहा क' बैसलि सकल सुख
मनोरथ जे भसा बैसलि हो, बिहुंसैत
यमुना-धार मध्य हंसैत सब टा
सभ किछु अर्पित काल मंदिर मे
बनल हो प्राणहीना देह
राखल भूमि पर कंकाल
आंगन मे,
जरैत दुपहरक रौद प्रचण्ड
नुकायल लोक सब समाज घरे घर
आ निस्बद्द सब आंगन
स्वयं रौद-बसात अछि पर्यंत बैसल
नुकायल जे लागि ने जाय कहीं हमरो-लू
चिड़ै-चुनमुन्नी कहय के, माल-जालो
बिन डकरने शान्त होयत
कहां कोनो शब्द आबय कान धरि
एहन मृतक समान एहि चुपचाप मे तं
गाय-गोरुक पाजु लेवाक स्वर सेहो सुनाइत रहितैक
तेहन आलस तेहन छैक ई सभक लेल
जे बनल अछि सब बौक
सौंसे सृष्टिये निःशब्द आ चुपचाप बैसलि,
दुबकि क' कोन अदृश्यक महाबृक्षक
अनन्त छाहरि मे।
केहन ई अछि सभक,
हमरो विडंबना जे सभ
अपनहि गुण आ धर्मक सहि रहल अछि आगि
स्वयं प्रकृतिक ई लीला
जेना धधकैत हो बसात
जे देखल ने जाइत हो ने सूनल जा रहल
सबकिछु स्तब्ध धह-धह करैत सबटा चुपचाप
कहां किछु सुनि पड़ैये,
की भेलय हमरा
भ' त' ने गेलौंहें हमही बहीर ?
सखि-बहिनपा सेहो ने जानि गेल कोन धाम
बिन बिदागरीये चलि जाइ गेलि की सासुर ?
यदि से नहि त'
कोना छी हम, जीवितो छी कि मरि गेलौं
देख' लेल क्यो देलक हुलकियो पर्यंत एकहु बेर
कए दिन बीति गेल, घाट, यमुना कात गेना
बिना हुनके बनल छथि जे ब्रजक प्राण
१२/४/०५
2. ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ। नेशनल एशोसिएशन फॉर ब्लाइन्ड, जमशेदपुरमे अवैतनिक रूपेँ पूर्वमे अध्यापन।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
कोसीक प्रकोप
प्राकृतिक प्रकोप मिथिलामे
देखि के नहि हैत अधीर
देहाइत डूबैत जन जीवन
सरकार बनल अछि बहिर
कहिया सऽ अछि बनल
कोसी नदी बिहारक शोक
पर्यावरणके सतत हनन
कियेक नहि लागल रोक
घमैत हिमनद बढ़ैत जलस्तर
सृष्टिके दिनोदिन बढ़ैत तापमान
पर्यावरण पर गम्भीर चिन्तन आवश्यक
पहिने वर्त्तमान संकट स पाबि निदान
अतेक सालक समय देलाक बाद
फेर रस्ता बदलि लेलक कोसी नदी
अहि महाप्रलय सऽ बचनाइ छल संभव
समय पर सरकारी कोष खुजितै यदि
मज़बूत बान्ह आ प्रवाहक मार्गदर्शन लेल
भूगोलवेत्ता आ अभियंता आगू आबैथ
जलसंचयसऽ सिंचाइक समस्या भगा
जलशक्ति सऽ विद्युत निर्माण करैथ।
बुद्ध चरित-गजेन्द्र ठाकुर
ई पुरातन देश नाम भरत,
राज करथि जतए इक्ष्वाकु वंशज।
एहि वंशक शाक्य कुल राजा शुद्धोधन,
पत्नी माया छलि,
कपिलवस्तुमे राज करथि तखन।
माया देखलन्हि स्वप्न आबि रहल,
एकटा श्वेत हाथी आबि मायाक शरीरमे,
पैसि छल रहल हाथी मुद,
मायाकेँ भए रहल छलन्हि ने कोनो कष्ट,
वरन् लगलन्हि जे आएल अछि मध्य क्यो गर्भ।
गर्भक बात मुदा छल सत्ते,
भेल मोन वनगमनक,
लुम्बिनी जाय रहब, कहल शुद्धोधनकेँ।
दिन बीतल ओतहि लुम्बनीमे एक दिन,
बिना प्रसव-पीड़ाक जन्म देलन्हु पुत्रक,
आकाशसँ शीतल आऽ गर्म पानिक दू टा धार,
कएल अभिषेक बालकक लाल-नील पुष्प कमल,
बरसि आकाशसँ।
यक्षक राजा आऽ दिव्य लोकनिक भेल समागम,
पशु छोड़ल हिंसा पक्षी बाजल मधुरवाणी।
धारक अहंकारक शब्द बनल कलकल,
छोड़ि “मार” आनन्दित छल सकल विश्व,
“मार” रुष्ट आगमसँ बुद्धत्वप्राप्ति करत ई?
(अनुवर्तते)
१. स्व. गोपेशजी २. डॉ पंकज पराशर
स्व. श्री गोपालजी झा “गोपेश” क जन्म मधुबनी जिलाक मेहथ गाममे १९३१ ई.मे भेलन्हि। गोपेशजी बिहार सरकारक राजभाषा विभागसँ सेवानिवृत्त भेल छलाह। गोपेशजी कविता, एकांकी आऽ लघुकथा लिखबामे अभिरुचि छलन्हि। ई विभिन्न विधामे रचन कए मैथिलीक सेवा कएलन्हि। हिनकर रचित चारि गोट कविता संग्रह “सोन दाइक चिट्ठी”, “गुम भेल ठाढ़ छी”, “एलबम” आऽ “आब कहू मन केहन लगैए” प्रकाशित भेल जाहिमे सोनदाइक चिट्ठी बेश लोकप्रिय भेल। वस्तुस्थितिक यथावत् वर्णन करब हिनक काव्य-रचनाक विशेषता छन्हि। श्री मायानन्द मिश्रजीसँ दूरभाषपर गपक क्रममे ई गप पता चलल जे गोपेशजी नहि रहलाह, फेर देवशंकर नवीन जी सेहो कहलन्हि। हमर पिताक १९९५ ई.मे मृत्युक उपरान्त हमहूँ ढ़ेर रास आन्ही-बिहाड़ि देखैत एक-शहरसँ दोसर शहर बौएलहुँ, बीचमे एकाध बेर गोपेशजी सँ गप्पो भेल, ओऽ ईएह कहथि जे पिताक सिद्धांतकेँ पकड़ने रहब। फेर पटना नगर छोड़लहुँ आऽ आइ गोपेशजीकेँ श्रद्धांजलिक रूपमे स्मरण कए रहल छियन्हि। स्मरण: हमरा सभक डेरापर भागलपुरमे गोपेशजी आऽ हरिमोहन झा एक बेर आयल छलाह। गोपेशजी सनेस घुरैत काल मधुर लेलन्हि आऽ हरिमोहनझा जी कुरथी! हुनकर कवितामे सेहो वस्तुस्थितिक एहि तरह्क यथावत वर्णनक आग्रह अछि जे हुनका चरित्रमे रहैत छथि। हरिमोहन झाजीक अन्तिम समयमे प्रायः गोपेशजीकेँ अखबार पढ़िकेँ सुनबैत देखैत छलियन्हि। हरिमोहनझाक १९८४ ई.मेमृत्युक किछु दिनुका बादहिसँ ओऽ शनैः शनैः मैथिली साहित्यक हलचलसँ दूर होमए लगलाह। एहि बीच एकटा साक्षात्कारमे शरदिन्दु चौधरी सेहो हुनकासँ एहि विषयपर पुछबाक कोशिश कएने छलाह मुदा गोपेशजी कहियो ने कन्ट्रोवर्सीमे रहलाह, से ओऽ ई प्रश्न टालि गेल छलाह।
प्रस्तुत अछि गोपेशजीक कविता जे २००६ केर नचिकेताजीक “मध्यम पुरुष एकवचन” जेकाँ उत्तर-आधुनिक अछि, मुदा लिखल गेल २५-३० वर्ष पूर्व। हिनकर प्रस्तुत कविता नवीन कविताक शैलीमे लिखल गेल अछि।
समय रूपी दर्पणमे
समय रूपी दर्पणमे
देखइत छी हम अपन मूह
आऽ करइत छी अनुभव
जे किछु नव नहि होइछ
जनमइ अछि
नित्य अहलभोर
किछु एहन-एहन इच्छा
उठइ अछि मोनमे भावनाक तरङ्ग
जे आइ किछु नव होएत
मुदा सुरुज भगवान छापि दैत छथि
दिनुक माथपर किछु एहन-एहन समाचार
जाहिमे हम अपनाकेँ
अभियोजित नहि कए पबैत छी
दूर-दूर उड़इत गर्दाक पाँखिएँ
पोसा पड़बा जहिना मोट भए जाइत अछि
तहिना हमर भावना-तरंग
अनुभवक सम्बल पाबि मोट भए कए
सिद्ध करैछ जे
नव किछु नहि होइछ
जे किछु हमरा सोझाँ अबैछ
से थिक समयक शिलाखंडपर
खिआएल पुरनके वस्तु, पुरनके विचार,
जे नव होएबाक दम्भ भरैत अछि
आऽ थाकल ठेहिआएल मोनक पीड़ा हरैत अछि
२. डॉ पंकज पराशर
श्री डॉ. पंकज पराशर (१९७६- )। मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आऽ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी.पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आऽ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आऽ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। रघुवीर सहायक साहित्यपर जे.एन.यू.सँ पी.एच.डी.।
पहिया
कतेक दिनसँ घूमि रहल अछि पृथ्वी
दिनसँ राति आऽ रातिसँ भोर करैत अंतरिक्षमे
अनंत जीवन चक्रक छोट-छोट घिरनीकेँ सम्हारैत
आब तँ बाटक हरानीसँ
जानो जियान भऽ गेल हेतैक बतहिया के
आऽ हाल-बेहाल पहिया सबहक
हओ बाबू!
आइयो तोरा सहबक (अ)ज्ञानभूमिपर
जे गड़कि रहल छह मृच्छकटिकम केर पहिया
ओहिपर कतेक पहिया गेल अछि अनंत धरि तकरा
एहि चक्काडुबानी के बेरमे कतेक मोन पाड़बह आब?
तोँ जे सब दिन पहियेक घुमौनीकेँ
बुझैत रहलह गति
आइयो धरि नहि कऽ सकलह
चक्काठेल शक्तिक साक्षात्कार
जाहि रथकेँ निर्विघ्न आगू बढ़एबाक लेल कहाँदन
अपन आँगुरकेँ किल्ली बना कए धुरीमे लगा देने छलखिन कैकेयी
ताहि पहियाक घुमौनी आइयो घुमा रहल छनि रामकेँ
आख्यानसँ वर्तमानक शिलापूजन धरिक रथयात्रामे
हओ बाबू!
पहिया जे धरतीसँ बेशी दिमागमे चलैत अछि
तकरा सबहक हालपर आब कतेक धुनबह कपार!
पितामह भीष्मपर जे पहिया लऽ कए दौड़ल छलाह कृष्ण
जँ कऽ सकह साधंश तँ कहक ताहि पहियाक संदर्भमे-
माधब! ई नहि उचित विचार!
बाबीक मुँहें सुनल बितबा भाइक खिस्साक गाड़ीमे
जोतल मुसबा सब घीचनेँ छ्ल जाहि अद्भुत पहियाकेँ
ताहि पहिया सबहक गति
एतेक मंद किएक भऽ गेल छैक आब
जे राधा धरि पहुँचबासँ पहिनहि दऽ दैत छैक जवाब?
बड़दवला गाड़ीक लेल जिनगी भरि पहिया बनौनिहार
हमरा गामक काशी कमार
जीवन भरि नहि पहुँचि सकल कुबेरक दरबार!
हम सोचैत छी आऽ लसकि जाइत छी बेर-बेर
अतीतक दलदलित बाटपर दलमलित हृदयसँ
सभ्यताकेँ घीचैत-घीचैत पहिया आइ जतय धरि पहुँचल अछि
ताहि ठामसँ जँ अखियासैत छी
तँ वएह सब देखाइत छथि टिकासनपर ठाढ़
जे कोनहुना प्राप्त कयलनि सत्ता आ कमेलनि पाइ
पहिया-पहियाक अंतर देखइक जाहक हओ बाबू!
जे ककरो निस्सीम अंतरिक्ष धरि पहुँचल
तँ असंख्य लोकक पहिया
जीवन केर कदबेमे लसकल रहि गेल भरि भरि जिनगी
घरक पहिया केर बहिया बनल हमरा लगैत अछि
जे जीवन केर गाड़ीक पहिया चर्र-मर्र करैत
यात्राक आरोहणे कालमे ढरकऽ लागल अछि
प्रागैतिहासिक जंगलमे अवरोहणार्थ
1. विनीत उत्पल 2. अंकुर झा
१.विनीत उत्पल (१९७८- )। आनंदपुरा, मधेपुरा। प्रारंभिक शिक्षासँ इंटर धरि मुंगेर जिला अंतर्गत रणगांव आs तारापुरमे। तिलकामांझी भागलपुर, विश्वविद्यालयसँ गणितमे बीएससी (आनर्स)। गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालयसँ जनसंचारमे मास्टर डिग्री। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्लीसँ अंगरेजी पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्लीसँ जनसंचार आऽ रचनात्मक लेखनमे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजोल्यूशन, जामिया मिलिया इस्लामियाक पहिल बैचक छात्र भs सर्टिफिकेट प्राप्त। भारतीय विद्या भवनक फ्रेंच कोर्सक छात्र।
आकाशवाणी भागलपुरसँ कविता पाठ, परिचर्चा आदि प्रसारित। देशक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे विभिन्न विषयपर स्वतंत्र लेखन। पत्रकारिता कैरियर- दैनिक भास्कर, इंदौर, रायपुर, दिल्ली प्रेस, दैनिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली, फरीदाबाद, अकिंचन भारत, आगरा, देशबंधु, दिल्ली मे। एखन राष्ट्रीय सहारा, नोएडा मे वरिष्ट उपसंपादक .।
पार्टनर, अहांक मूल की
अहां कs मन छथि
कवि मुक्तिबोध
जखन हुनका
कियो नव लोक भेटति छलैन
तs पुछथिन
पार्टनर, अहांक पालिटिक्स की
आब तs
मुक्तिबोध नहि छथि
मुदा, मिथिला मे हुनकर गप
घर-घर मे
अहां सुनि
सकैत छी
ई गप जखन-तखन
नहि सुनबहि
मुदा, ब्याह-दानक
घटकैति मे
सुनबहि जरूर
पार्टनर, अहांक मूल की
अहांकs एहि गप मे
अंतर किछु
नहि लागत
मुदा, जमीन आ आसमानक
फ़र्क छैक
मुक्तिबोधक गप मे मानसिक आ
वैचारिक स्तर देखबा मे आबैत छल
जखन कि मिथिलाक संस्कार मे
निखटुओ जे छथि
पूर्वजक गुणगान मे
पेटकुनिया धेने भेटताह
एकटा गप
पुछै छी
आब कि
राजतंत्र छैक
जे राजाक बेटा
राजा होइत.
नहि टाइम अपना लेल
नेना मे
गाम-घर मे
सुनैति रहि
नौकरी
नहि करी
तखन तs
एक कान से सुनि
दोसर कान
सs
उड़ा दैत रहि
मुदा,
जखन सs
नौकरी केलहुं अछि
बुझाब मे आबि गेल
नौकरीक भाव
नहि अपन
ठाम अs ठिकाना
जतय
कंपनी पठैलक
वहि ठाम ओ ठिकाना
नहि सुतैक टाइम
नहि उठैक लेल टाइम
नहि खाइक लेल टाइम
नहि टाइम अपना लेल
यहि छै नौकरी.
2. अंकुर झा
अंकुर काशी नाथ झा,गाम-कोइलख, जिला-मधुबनी, मिथिलांचल
सरकारी योजना
माथ पर लेने जारैनक पथिया,
घुमि रहल छै, कलमें गाछीये
एकटा बुढ़िया ।
सब कहै छै ओ हरजिन छै,
सरकार ओकरा देने संरक्षण छै,
महिला वला सेहो ओकरा आरक्षण छै,
तइयो अभगली के गंजन छै।
सरकार के ओकर जाति पर बहुत छै ध्यान,
ओकरा लेल घर बेनबाक सेहो छै प्रावधान,
अन्न आ कपड़ा में वैह सब छै प्रधान,
तइयो ओ खाइ लेल छै पेरशान।
इंदिरा आवास आ अन्नपूर्णा के योजना एलै,
बुढ़िया के ई सब भेटब सपना भेलै,
नेता सब के अन्न भेटलै, घर बनलै,
सरकार बुझलकै गरीबक कल्याण भेलै।
एक बेर फेर ओ योजना सऽ वंचित रहि गेलै,
पूछलीयै जे ओकरा कियैक नहि भेटलै,
मुखिया जी कहलैन,
जगह कम आ बेसी भीड़ छै,
मुदा सत्त बात तऽ काका कहला,
बेचारी बुढ़िया शरिफ छै॥
चित्रकार: ज्योति झा चौधरी
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।(c) 2008 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ' आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ' संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ' पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.co.in पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ' रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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