भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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Wednesday, November 05, 2008
दाग- सन्तोष मिश्र, काठमाण्डू
अरुणक प्रश्नके बिना कोनो जबाब देने ओ कहलीह –‘हम भागिकऽ अएलीए ।’
तैयो अरुण किछु नहि बुझल जकाँ ओ ओकर आओर लग घुसकिकऽ ओकरे दिश ताकय लागल । रानीके लगमे बसिते ओकरा पुरान बातसभ मोन परऽलगलै; रानी, जे पहिलबेर कैम्पसक पहिल सांस्कृतीक कार्यक्रममे भेटल छलीह । निक कलाकार होबऽके कारणसँ रानी अरुणसँ परिचय करऽगेलीह । परिचय भेलै । आ, साथमे आओर किछु बात सभ । आ एतहि दूनुके एक–दोसरसँ मुक प्रेम भऽगेलनि । ताहिके बाद दूनु कहियो कतौ त कहियो कतौ भेटऽके सिलसीला जारी राखऽलागल । एहिके बारेमे किनको किछु बुझल नहि छलनि । एहि क्रममे अरुण रानीसँ बियाहक प्रस्ताव आगु बढ़ौलनि । आ, रानीक सहमति पाबि ओसभ भागिकऽ बियाह कएलाह । एहि बियाहके ओना रानीक जातिके लोक बिरोध आ अरुणक जातिक लोक स्वागत कएने रहै । आ, दूइए बर्षक बाद ई .......... दोसर संगे ।
जेकरासंगे ओ चलिगेलछली अरुणके बुझल नहि छलनि जे ओ के छैक । किए त अरुण एकटा कुशल कलाकार होबऽके कारणसँ बहुतो लोकके हुनका आंगनसँ आबाजाही लागल रहैछलनि । ओना त ओ रानीके गेलाक बाद ओ बहुत दिन धरि गुमसुम रहय लगलाह । मुदा एखनि ओ अप्पन मोनके बुझालेने छलाह । गाम आ टोलक लोकसभ कहैछलै –
‘केहन छै , लाजो नहि । बहुभागिगेलै ...... ।’
मुदा समाजमे एहन घटना घटब त आम बात भऽगेल छैक । एकटा अकल्पनीय घटनाके प्रश्नवाचक दृष्टीसँ देखते रहैथ ताबते ओ बजलीह–
‘हम अहाँसँ मात्र भेट करऽ आएलछी ......... एगारहे बजे अएली मुदा अहुँ नोकरी करऽलगलीए से मालुम भेल । ...... एखनो धरि अहाँ हमरालेल चिन्ता लैतरहैछी से बात सिरसियावाली काकी कहैछलखिन । .......कि आब अहूँ बियाह कऽलेब त नहि होएत .......... आ नोकरीवालाके बियाह होनाइ सेहो कठिन नहि ।’
मुदा अरुण हुनक प्रश्नक कोनो जवाफ बिना देने पुछलखिन –
‘अहाँ एतऽ कि करऽ अएली ?’
अरुणक एहि प्रश्नक जवाफमे ओ कहली –
‘हम बिमार भऽगेली ...... दिनानुदिन कमजोर भऽरहलछी ....... जखन–तखन माथ दुखाइत रहैय .... घुरमी लागल जकाँ बुझाइतरहैय । ......... हम ओ छठठूकसंग जाकऽ बड नमहर पाप कएली आ पापक परिणाम कतहूँ निक नहि होइछैक । हमरा ओ ठगिलेलक, अरुण ?’
एते सुनलाक बाद अरुण पुछलखिन– ‘किए ? आब कि भेल ?’
बड गम्भिर भऽकऽ रानी जबाब देली– ‘हमरा ओ कहने रहे घरमे असगरे छी, एकटा माय मात्र छथि, नमहर घर अछि .. अन्न किनऽनहि परैए । मुदा सब झूठ छै । ....... एक्कहूटा बात साँच नहि ।’
एते बजलाके बाद ओकरा आखिमेसँ नोर खसऽलगलै आ आवाज सेहो थरथराए लगलै । ओकर बातक बिना कोनो प्रतिक्रिया देनहि ओ पुछलाह –‘आब कि समस्या अछि ?’
ओ फेर कहली – ‘ओ कहैए हमरो होटलमे गीत गाबऽपरत .......... नहि त ओना पालऽ नहि सकत । नमहर शहरमे एसगर कमाकऽ पेट नहि भरैछैक कहाँदोन । .....हम कि करु ?’
एते बजला बाद ओ भोकासी पारिकऽ कानऽ लगलीह । अरुण बिना कोनो प्रतिकृयाके पुछैछथि– ‘ओ अपने कि करैए ?’
‘ओ अपने होटलमे डान्स करैए ।’
आँखिसँ खसल नोरके आँचरसँ पोछैत ओ अरुण दिश ताकऽ लागलीह मुदा हुनका सहजहि किछुनहि फुरैलनि तथापि ओ रानीके धैर्यता धारण करबाक अश्वासन दैत कहलनि –‘जे भेलै भऽ गेलै मुदा अहाँके बिना सोंच बिचार कएने ओना भागऽके नहि चाही । आब अहाँ कि चाहैछी, कहू ।’
‘हमर जीनगी बरवाद भऽगेल, ..... हम कतऽ जाउ, ..... फाँसी लगाकऽ मरियो नहि सकैछी ।’ हुनक नोरक गंगा बहिरहल छलनि कनिक देर चुप भऽ ओ फेर बजलीह– हम बहुते पैघ गलती कऽलेली, आब हम जीबियोकऽ कि करब । आ हमरासन रोगीके केओ नोकरनीमे सेहो नहि रखतै ....... हम कि करु ..... ?’ एते कहिकऽ ओ भोकासी पारिकऽ कान लगलीह ।
अरुणलग कोनो प्रकारक जबाब नहि छलनि तैयो ओ रानी दिश तकैत बजलाह –‘किछु नहि भेलैए, ..... अहाँ किछु दिन अप्पन माय–बाबुजीलग जाक रहु । आ, बितल समयके बिसरऽके कोशिस करु । आ, ओही लफंगासँ नहि डेराउ ।’
‘केना जाउ नैहर, माय–बाबुजीके कोन मूहँ देखबियनि ...... हमरा सहास नहि अछि ....... ओतहूसँ सेहो हम भागिएकऽ आएल रही । ....... आ अहाँसंगे भागऽसं पहिनहि ई सोचिलेने रही जे मरिजाएब मुदा माय–बाबुजी लग हारिकऽ नहि जाएब । ..... सच त ई छैक जे हमरा अहाँसँ सेहो क्षमा मागऽके छल .... किए त हमरा बड़ निक जकाँ बुझल अछि जे हमरा चलते अहाँके प्रतिष्ठापर पड़ल । ....... तैयो हम अहाँक समक्ष आबऽके सहास कैली । ...... माय बाबूजी त हमरासँ तहिए हाथ धो लेलखिन जहिया हम अहाँसंगे बियाह कएली । .... सहेलीसभ कहैत रहे जे जहिना सुनलखिन हमर बियाहक बात तखने केश कटालेलखिन आ कहलखिन– जो बेटीके नामके नौहकेश करालेली । ....... अहाँ सेहो हमरासँ मन मारिलेने होएब ।’ एते कहऽ धरि रानी मात्र हिचैक रहल छली सायद नोर सुखागेल छलैक ।
अरुण उदास भऽ कह लगलखिन– ‘हम कि करी... हमरा त अहाँके देखिकऽ आओर दुख लागि रहल अछि । बल्कि जा धरि अहाँके नहि देखने रही ता धरि मन शान्त छल, बिसरऽके प्रयास करैत छलीए ।’ किछु देर चुप्प भऽ ओ फेर कहलखिन – ‘अहाँके कि भेल अछि ? .... अहाँ हमरासँ कि चाहैछी ?.... अहाँके मुँह देखिकऽ हमरा डर लागिरहल अछि । दबाईबिरो सेहो नहिए करौने होएब ? ...... मुदा अहाँक एहन हालत देखिकऽ ओ कि कहैए..................’
अरुणक बात बिचेमे कटैत ओ सिसकैत बजलीह– ‘आब हमरा ईलाज कराबऽके नहि अछि । अहाँसँ भेटलाक बाद माय–बाबुजीसँ भेटवाक चाहना पुरा भऽगेल ।’ एते कहि ओ उठिकऽ केवार दिश आगु बढ़लीह ।
केवारलग पहुचते काल अरुण उठैत बैसऽलेल कहलखिन – ‘रानी, बैसु ने ।’ मुदा एते कहवासँ पहिने बिना किछु बजने ओ केवारसँ बाहर भऽगेल छलीह ।
बाहर अन्हार रहै । ‘आब ई नौ बजे कतऽ जाएब ? रुकु । .... हमहु अबैछी ... रुकु ।’ एते कहिते ओ जुत्ता पहिरऽलागल । आ जखन बाहर निकलल त रानी केम्हरो नजरि नहि परलनि । अन्हार सड़क पर ओ पूर्ब गेली वा पच्छिम देखऽमे नहि अबनि । ओ किछु आगु पाछु देखलखिन आ जखन भेट नहि भेलनि त फेर घरमे फिर्ता आबिगेलाह ।
किछु दिन बाद केओ कहलकनि जे रानी आत्महत्या कऽलेलीह । ई सुनिकऽ अरुणक पैरतरसँ जमिन निकलिगेलनि । शायद मुत्युसँ दाग धुवागेल होए मुदा किछु कऽसकैछलीह ।
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ReplyDeleteएते सुनलाक बाद अरुण पुछलखिन– ‘किए ? आब कि भेल ?’
बड गम्भिर भऽकऽ रानी जबाब देली– ‘हमरा ओ कहने रहे घरमे असगरे छी, एकटा माय मात्र छथि, नमहर घर अछि .. अन्न किनऽनहि परैए । मुदा सब झूठ छै । ....... एक्कहूटा बात साँच नहि ।’
एते बजलाके बाद ओकरा आखिमेसँ नोर खसऽलगलै आ आवाज सेहो थरथराए लगलै । ओकर बातक बिना कोनो प्रतिक्रिया देनहि ओ पुछलाह –‘आब कि समस्या अछि ?’
ओ फेर कहली – ‘ओ कहैए हमरो होटलमे गीत गाबऽपरत .......... नहि त ओना पालऽ नहि सकत । नमहर शहरमे एसगर कमाकऽ पेट नहि भरैछैक कहाँदोन । .....हम कि करु ?’
ant par kanek dhyan diyauk, beshi harbari kay dait chiyaik santosh ji.
nik, muda lagait achhi bina revision ke ek draft me likhal gel achhi, se kichhu tham tartamya garbara rahal achhi.
ReplyDeleterachna me kaphi sudhar achhi, internet par maithili padhbak mauka bheti rahal achhi saih uplabdhi achhi.
ReplyDeletesantosh bhaiya, ahank ela se ee blog aar sundar bhe gel, jitu ji blog ke design seho sundar bana delani, rachnak te bharmar laga delani, dunu gote ke dhanyavad
ReplyDeleteबाह...आय पहलुक बेर एलों...आर मोन प्रफ़्फ़ुलित भ गेल
ReplyDeleteबड निक प्रयास ...
इंटरनेटपर रंगबिरंगक रचना देखि मैथिलीमे लिखबा के सख हमरो भ गेल। बड्ड नीक संतोषजी, कथामे कसावट कनी चाही मुदा तैयो नीक।
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