भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Wednesday, November 05, 2008

डाक्टर- सन्तोष मिश्र, काठमाण्डू

एक्कहिटा गाममे सभ दिन कोनो नहि कोनो बिमारीक प्रभावसँ ग्रामबासी मरिरहल खबरि नियमित रुपमे निकालिरहल पत्रिकाक माध्यमसँ सरकार तक पहूँचैछैक । माय स्वास्थ बिभागद्वारा एकटा नव डाक्टर जे एक महिना पहिने स्वर्ण पदक प्राप्तकऽ कऽ आएल छथि, हुनके निरिक्षण आ जाँचके लेल ओहि गाममे पठाओल गेलनि ।
ठाँम–ठाँमके पुल टुटल । सड़क काटल । आ, गाछसभ काटिकऽ सड़केपर राखल होयवाक कारणसँ कोनो सवारी साधनक सुबिधा नहि रहैक । माय, करिब पन्द्र घन्टा पैदले चलिकऽ ओ ओहि गाम तक पहुँचलैथ । सभसँ पहिने त ओ रहऽके ब्यवस्था मिलौलैथ । एकटा कोठरीक ब्यवस्था भेलैक, सायद घरबला पुरे परिवार किछुए दिन पहिने मरिगेल छलैक । घरो एहन जाहिके भितरसँ दिनमे आकास आ रातिमे तारा निकसँ देखाजाइक ।
ओना त डाक्टर साहेब अपना हाथे कहियो भानस बनौने नहि रहथि माय हुनका एकटा भानस बनौनिहारक आवश्यक्ता रहैन । अशोरा पर बैसिकऽ किछु सोंचिते रहैथ कि एकटा भलादमी ओतऽदने जाइत नजड़ि परलैन । ओ, हुनका बजाकऽ पुछलखिन–“भाइ साहेब एतऽ एकटा आदमीके ब्यवस्था नहि भऽसकैय ? जे भानस बनादे आ बरतनि साफ कऽलेअ ।” अनचिन्हार आदमीके देखिकऽ ओ पुछलखिन “पहिने अहाँ ई कहुँ जे कहाँसँ अएलहुँ आ अहाँ के छी ?” हुनको पुछब उचित छलनि किया त ओ घटना अखन पुरान नहि भेल अछि । डाक्टर साहेब अपन पुरा परिचय कहलखिन तखन जाकऽ ओ सेहो अपन परिचय दैत कहलखिन–“हमर नाम रतन अछि, आ अहाँ एतऽ जे हमरा सभकलेल अएलहुँ ताहिकेलेल धन्यवाद । रहि गेल बात अहाँक लेल आदमी त हम देखैछी । ” एते कहिकऽ ओ ओतऽसँ बिदा भऽगेलथि ।
करिब एक घण्टाक बाद ओ एकटा बाह्–तेह् बर्षक बचियाके लेनेअएलखिन । आ डाक्टर साहेबके बचियाके देखाकऽ कहलखिन–“हे ई टुगर छै, ईहे करिब एक महिना पहिने एकर माय आ बाप दूनु एकहि दिनक आगा–पाछा मरिगेलै ।” बचियाके देखिकऽ ओ सेहो चिन्तित भऽगेलखिन आ, ओकरा अपना लग राखिलेलखिन । काज सेहो बेशी करऽके नहि रहै जे कनिको दिक्कत होइतै ।
दोसर दिन डाक्टर साहेब अपन औजार लऽकऽ गाममे रोगक परिक्षण करऽलेल बिदा भेलैथ । हुनक नजड़ि जेमहर पड़ैन, एकहिटा चिज सगरो देखऽमे अबैन – गामक सभक कपड़ा मैल, अधिक्तर बच्चा सभक मुहँसँ एकहिटा बात–“गे माय भुख लागल अछि । ” कतौ सुनऽमे अबै–“दादा हो दादा मरिगेली । ” आदि ।
डाक्टर साहेब बिमारीके जाँचऽगेल रहथि भुख सन पैघ बिमारीक ईलाज हुनकालग नहि रहैन –जे गामक प्रमुख समस्या रहै । जतऽ डाक्टरसाहेब ठाह् भऽजाथिन त लगै जेना कौआ सभक बिचमे बकुला । गाम भरिमे एकहिटा हुनके कपड़ा साफ छलनि, मुदा कते दिन ? एकटा बात त निश्चित छलै जे ई गामक एहन दशा गरिबीक कारणे भेल छल । ताँहूमे किछुलोक ओकर गरिबीक नाजाएज फाएदा लेबऽचाहै ।
गाममे घर–घर जाकऽ ईलाज करऽके क्रममे एकबेर जखन ओ बाटपर चलैत रहैथ त अबाज अएलै–“माय गे मरिगेली .....। ” बड जोरसँ ओ अबाज जे अएले सें सोचियोकऽ डर लागिसकैय । डाक्टर अबाज आएल दिश दौड़ला । घरमे पैसिकऽ देखलखिन त एकटा बाह्–तेह् कर्षक बच्चा पेट पकरिकऽ कनैत रहै । ओ एमहर–ओमहर सगरो तकलखिन मुदा शियान ओतऽ केओ नहि रहै । ताबते मधिम–मधिम खोकीके अबाज सुनाय पड़लै । ई सुनिकऽ ओ अबाज लगौलखिन “घरमे के छी ?” केश बगराके खोता सन रखने एकटा बुढ़िया अएलै त डाक्टर साहेब एकटा गिलासमे पानि लाबिदेबऽलेल कहलखिन । बुढ़िया पानि लाबिकऽ देलकै । एकटा गोटी ओहि बच्चाके ओहि पानि संगे खुवेलखिन । पाँच–सात मिनटके बाद ओ ठिक भऽगेलै । फेर ओतऽसँ ओ बिदा भेला । साँझमे ओ जखन अपन घर पहुँचलखिन त ओ टुगरी बड़ सुनरि भानस बनाकऽ धएने रहै । ओ हाथ–पएर धोकऽ भोजन करऽ लेल बैसिगेलखिन । ओ चिन्तिते अवस्थामे भोजन कऽकऽ आराम करऽ गेलखिन । हुनका निने नहि परैन । दिनमे जाँच कएल बिमारीसभ हुनक नजरिके सामने घुमैत रहैन । आ, एकहि दिनमे एकहि परिवारक चारि–चारिगोटेके मृत्यु । ओ एहि बिमारीसभक बारेके सोंचऽलगलखिन ।
बिमारी किछु नव किशिमक भेटल रहैक । किछु जल्दिसँ करऽके अवस्था नहि रहैक किया त ओहि गामसँ शहर धरि पहुँचऽलेल कमसँ कम पन्द्र घण्टा चलऽपरै । ओतऽ नहि त प्याथोलोजिक समानरहै जे किछु जाँच कएल जएतै । बिमारीसभक बारेमे सोचैत–सोचैत, ओतै बोरा पर सुतल ओहि बचियासँ पुछलखिन–“बौआ, नाम कि छो तोहर ? ” ओकरो निन त नहिए पड़ैत रहै, ते ओ उठिकऽ बैसिगेली आ जबाब देली –“जी हमर नाम सेहन्ता अछि । ” ओ फेर पुछलखिन–“ तोहर माय–बाबुके कि होइत छलौ ? ” सेहन्ता हुनका पएरलग जाकऽ बैसिगेली आ गम्भिर भऽ कहऽलगली–“ किछो नहि ......, करिब डेढ़ दू महिना पहिने बहुते लोक सभ बन्दुक लऽकऽ अएलै आ सभके घरे–घर लोकसभके कहै काज करऽ जाएला ।.....जे नइ जाइ ओकरा धमकी दै जे नहि जएतै ओ घिसरी काटिकऽ मरतै । .......बहुतो लोक त ओकरा सभसंगे चलिगेलै मुदा किछु लोक जाएके लेल तैयार नहि भेलै । सभगोटेके चलिगेलाक बाद एकटा आदमी एकटा बम फेकलकै जाहिके आबाजसँ बहुते घर टुटिगेलै आ छ–सात दिन धरि अन्हारे रहै । एतऽके लोक सभके श्वासलेबऽमे सेहो दिक्कत होइ । एतऽ एकहिटा ईनार छै जतऽके पानि सभ पिबैछै ओहूमे किछु खसादेलकै । .........एतऽ पानिके लेल आओर ब्यवस्था नहि छैक । ” एते बात कहिकऽ ओ बच्चा लगलै डाक्टर बाबुके पएर जाँतऽ ।
पएर जाँतब देखकऽ ओ सेहो उठिकऽ बैसिगेलाह आ कहलखिन “ जो तहूँ सुतऽ । ” ओ बच्चा फेर ओहि बोरापर सुतऽ चलिगेली । भोरमे सबेरे उठिकऽ एकटा आदमीके चिठ्ठी दऽकऽ स्वास्थ मन्त्रालय पठौलखिन । आ संगहि किछु दबाई आ गैससभ सेहो पठादेबऽलेल ओहि चिठ्ठीमे लिखलनि । ओकरा बिदा कएला बाद हुनका जे किछु टोल छुटिगेल छलनि ओमहर बिदा भेला ।
साँझमे जखन ओ सूचि उल्टाकऽ देखलनि त किछु बच्चा मात्र एहन छलै जेकरा कोनो प्रकारक रोग नहि लागल छलैक । आ, एकटा बात निश्चित रहै
जे रोगीसभ मरबेटा करतै आओर कोनो उपाय नहि रहै । रोगीक श्वाससँ फैलऽवाला रोगक नियंत्रन बड़ कठिन माय ओकरा सभके मरनाइए उचित बुझि ओ अपन झोरासँ बिषक सूइ निकाललैथ । आ, पहिने तैयार कएल सूचिके देखिकऽ फेर एकटा नव सूचि तैयार कएलनि जे केकरा –केकरा बिषक सुई देबाक अछि ।
प्रातः फेर ओ आओर दिन जकाँ बिमारीक देखभाल करऽ बिदाभेलखिन । मुदा ओइ दिन हुनका छटपटाति मुर्दाके मुक्ति देबऽके छलनि । आ, साँझ धरि ओ करिब अस्सिगोटेके मुक्ति दऽदेलखिन ।
साँझखन जखन ओ निबासस्थान फिर्ता अएलथि त सेहन्ता भोजन बनाकऽ हुनके बाट तकैत छली । ओ झटसँ झोरा धऽकऽ हाथ पएर धोकऽ भोजन करऽलेल बैसिगेलखिन । सेहन्ता भोजन लाबिकऽ देलकै मुदा भोजन करऽसँ पहिने हुनका उल्टी होबऽलगलनि । पेट–माथ सभमे दर्द सेहो होबऽलगलनि । ओना हुनको ओहे बिमारीक लक्षण छलनि मुदा ओ अपनेसँ बिषक सूइ त नहि न लऽसकैछलथि ।
राति भरि दर्दसँ छटपटाति, बोकरैत । मात्र तिन पहरके राति कतेको बर्ष जका अनुभव होइ । भोरमे करिब नौ बजे बहुते डाक्टर, नर्स आ पुलिससभ सेहो अएलै । डाक्टर आ नर्ससभ पहिने डाक्टर मुरली प्रसाद शर्माके देखभाल कएलखिन । हुनका निशाक सूइ दऽकऽ मात्र आराम भेटलनि ।
दोसर दिश पुलिससभके गाममे ई समाचार भेटलनि जे डाक्टरसाहेब काल्हिखन जिनका–जिनका सूइ देलखिन ओ सभ मरिगेलै । माय पुलिससभ हुनकासँ पुछऽअएलै कि एते लोक एकहिबेरमे केना मरिगेलै । ओ निसंकोच अपन समस्या कहिकऽ कहलखिन–“............माय हम काल्हिखन अस्सिगोटेके बिषक सूइ दऽदेलीऐ । ”
एमहर सेहन्ता डाक्टरबाबुके रातिभरि सेवामे लागलछली । आ, भोरमे जखन ओ पुरा ओछायनपरके बोकरल साफ कऽकऽ बैसली तखने एकटा पुलिस डाक्टरबाबुके कहलकनि–“हम अहाँके हपन हुकुमतमे लैछी । ” ई बात सुनिकऽ ओ जबाब देलखिन–“जँ अहाँके उचित लगैय त हम तैयारछी । ओ फेर कहलखिन – “अपन आवलोकन सभगोटेके समझादैछी आ एकटा बात आओर किछु बच्चा छै जेकरा कोनो रोग नहिछैक ते ओकरा सभके सेहो लऽचलऽके ब्यवस्था सेहो करु । ” सूचिअनुसार रोग नहि लागल बच्चासभके लेबऽ किछु पुलिससभ गेल । आ एमहर डाक्टर बाबु लगलखिन सभके अपन आबलोकन सम्झाबऽ । ओमहरसँ जखन ओसभ निरोग बच्चासभके लऽकऽ आबिगेलखिन तखन धरि हिनको काज समाप्त भऽगेल छलनि । तखन ओ कहलखिन –“आब चलि सकैछी । ”
दशगोटे पुलिस, बच्चासभ आ डाक्टरसाहेब ओतऽसँ बिदा भेलथि । थाकल बच्चासभके पुलिससभसेहो कोरामे उठाकऽ शहर तक पहुचौलैथ । रातिके दश बाजिगेल छलै माय बच्चासभ संगे डाक्टरबाबुके सेहो थानामे राखऽके ब्यब्स्था कएलगेलै । डाक्टरबाबु त गल्ति बड नमहर कएनेछलाह किया त जियाबऽ लेल पठाओलगेल छलनि मुदा ओ ..........., माय हुनका भोरमे अदालत मे उपस्थित कराओल गेलनि ।
अदालतमे हुनकासँ पुछलगेलनि –“डा. मुरली प्रसाद शर्मा, अहाँ एना किए कैलीऐ ? ” ओे किछु देर चुप भेलखिन तखन फेर जबाब दैत कहलखिन–“आइ तक हमर एस.एल.सी.के रेकर्ड केओ नहि तोरऽसकल अछि । तइयो बाबुजीके बड मेहनति करऽ परलनि हमर रुशमे एम.बि.बि.एसके लेल । आइ.एससी सँ एम.डी धरि टौप कऽकऽ पि.एचडी.मे स्वर्णपदकसँ विश्वबिद्यालय सम्मान कएने रहे । बहुतो अस्पतालसँ प्रस्ताव सेहो आएल मुदा हमर सोंच ई छल जे हमरा सनके डाक्टरके हमरा देशमे आवश्यक्ता अछि । सायद माय हमरा अबिते ओतऽ पठादेलगेल जतऽ पन्द्र घण्टा चलिकऽ पहुचऽपरैछैक । ......हम ओतऽ गेलहुँ ईलाज करऽ, ठिक छै , ईलाज कऽदेबै, मुदा जतऽ खाएके लेल रोटीयो नहि छैक ओतऽ दबाइ कतऽसँ अएतै । ......सरकारके सुरक्षामे खर्च करऽसँ फुरसते नहिछै आ, दबाइ त दूर जाउक ......... ओकरासभके एहन रोग छै जे एकटासँ दोसरके आ दोसरसँ तेसरके होइतजएतै । आ, धिरे–धिरे ओइ श्म्सानमे के बाँकि रहत......? ”
एते सुनिलेलाक बाद, न्यायधिस डाक्टरके प्रमाण–पत्र रद्द कऽदेबऽके फैसला सुनौलखिन । न्यायधिसक फैसला सुनिते हुनका मुँहसँ गाउज निकलऽलगलनि । ओ बेहोस भऽ खसिपरला । जाबे लोक दौड़े– दौड़े ताबे ओ ई देश नहि दुनियासँ बिदा भऽगेलाह ।

5 comments:

  1. गाममे घर–घर जाकऽ ईलाज करऽके क्रममे एकबेर जखन ओ बाटपर चलैत रहैथ त अबाज अएलै–“माय गे मरिगेली .....। ” बड जोरसँ ओ अबाज जे अएले सें सोचियोकऽ डर लागिसकैय । डाक्टर अबाज आएल दिश दौड़ला । घरमे पैसिकऽ देखलखिन त एकटा बाह्–तेह् कर्षक बच्चा पेट पकरिकऽ कनैत रहै । ओ एमहर–ओमहर सगरो तकलखिन मुदा शियान ओतऽ केओ नहि रहै । ताबते मधिम–मधिम खोकीके अबाज सुनाय पड़लै । ई सुनिकऽ ओ अबाज लगौलखिन “घरमे के छी ?” केश बगराके खोता सन रखने एकटा बुढ़िया अएलै त डाक्टर साहेब एकटा गिलासमे पानि लाबिदेबऽलेल कहलखिन । बुढ़िया पानि लाबिकऽ देलकै । एकटा गोटी ओहि बच्चाके ओहि पानि संगे खुवेलखिन । पाँच–सात मिनटके बाद ओ ठिक भऽगेलै । फेर ओतऽसँ ओ बिदा भेला । साँझमे ओ जखन अपन घर पहुँचलखिन त ओ टुगरी बड़ सुनरि भानस बनाकऽ धएने रहै । ओ हाथ–पएर धोकऽ भोजन करऽ लेल बैसिगेलखिन । ओ चिन्तिते अवस्थामे भोजन कऽकऽ आराम करऽ गेलखिन । हुनका निने नहि परैन । दिनमे जाँच कएल बिमारीसभ हुनक नजरिके सामने घुमैत रहैन । आ, एकहि दिनमे एकहि परिवारक चारि–चारिगोटेके मृत्यु । ओ एहि बिमारीसभक बारेके सोंचऽलगलखिन ।
    बिमारी किछु नव किशिमक भेटल रहैक । किछु जल्दिसँ करऽके अवस्था नहि रहैक किया त ओहि गामसँ शहर धरि पहुँचऽलेल कमसँ कम पन्द्र घण्टा चलऽपरै । ओतऽ नहि त प्याथोलोजिक समानरहै जे किछु जाँच कएल जएतै । बिमारीसभक बारेमे सोचैत–सोचैत, ओतै बोरा पर सुतल ओहि बचियासँ पुछलखिन–“बौआ, नाम कि छो तोहर ? ” ओकरो निन त नहिए पड़ैत रहै, ते ओ उठिकऽ बैसिगेली आ जबाब देली –“जी हमर नाम सेहन्ता अछि । ” ओ फेर पुछलखिन–“ तोहर माय–बाबुके कि होइत छलौ ? ” सेहन्ता हुनका पएरलग जाकऽ बैसिगेली आ गम्भिर भऽ कहऽलगली–“ किछो नहि ......, करिब डेढ़ दू महिना पहिने बहुते लोक सभ बन्दुक लऽकऽ अएलै आ सभके घरे–घर लोकसभके कहै काज करऽ जाएला ।.....जे नइ जाइ ओकरा धमकी दै जे नहि जएतै ओ घिसरी काटिकऽ मरतै । .......बहुतो लोक त ओकरा सभसंगे चलिगेलै मुदा किछु लोक जाएके लेल तैयार नहि भेलै । सभगोटेके चलिगेलाक बाद एकटा आदमी एकटा बम फेकलकै जाहिके आबाजसँ बहुते घर टुटिगेलै आ छ–सात दिन धरि अन्हारे रहै । एतऽके लोक सभके श्वासलेबऽमे सेहो दिक्कत होइ । एतऽ एकहिटा ईनार छै जतऽके पानि सभ पिबैछै ओहूमे किछु खसादेलकै । .........एतऽ पानिके लेल आओर ब्यवस्था नहि छैक । ” एते बात कहिकऽ ओ बच्चा लगलै डाक्टर बाबुके पएर जाँतऽ ।
    पएर जाँतब देखकऽ ओ सेहो उठिकऽ बैसिगेलाह आ कहलखिन “ जो तहूँ सुतऽ । ” ओ बच्चा फेर ओहि बोरापर सुतऽ चलिगेली । भोरमे सबेरे उठिकऽ एकटा आदमीके चिठ्ठी दऽकऽ स्वास्थ मन्त्रालय पठौलखिन । आ संगहि किछु दबाई आ गैससभ सेहो पठादेबऽलेल ओहि चिठ्ठीमे लिखलनि । ओकरा बिदा कएला बाद हुनका जे किछु टोल छुटिगेल छलनि ओमहर बिदा भेला ।
    साँझमे जखन ओ सूचि उल्टाकऽ देखलनि त किछु बच्चा मात्र एहन छलै जेकरा कोनो प्रकारक रोग नहि लागल छलैक । आ, एकटा बात निश्चित रहै
    जे रोगीसभ मरबेटा करतै आओर कोनो उपाय नहि रहै । रोगीक श्वाससँ फैलऽवाला रोगक नियंत्रन बड़ कठिन माय ओकरा सभके मरनाइए उचित बुझि ओ अपन झोरासँ बिषक सूइ निकाललैथ । आ, पहिने तैयार कएल सूचिके देखिकऽ फेर एकटा नव सूचि तैयार कएलनि जे केकरा –केकरा बिषक सुई देबाक अछि ।
    प्रातः फेर ओ आओर दिन जकाँ बिमारीक देखभाल करऽ बिदाभेलखिन । मुदा ओइ दिन हुनका छटपटाति मुर्दाके मुक्ति देबऽके छलनि । आ, साँझ धरि ओ करिब अस्सिगोटेके मुक्ति दऽदेलखिन ।
    anth seho nik

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  2. nik, muda lagait achhi bina revision ke ek draft me likhal gel achhi, se kichhu tham tartamya garbara rahal achhi.

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  3. rachna me kaphi sudhar achhi, internet par maithili padhbak mauka bheti rahal achhi saih uplabdhi achhi.

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  4. santosh bhaiya, ahank ela se ee blog aar sundar bhe gel, jitu ji blog ke design seho sundar bana delani, rachnak te bharmar laga delani, dunu gote ke dhanyavad

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  5. इंटरनेटपर रंगबिरंगक रचना देखि मैथिलीमे लिखबा के सख हमरो भ गेल। बड्ड नीक संतोषजी, कथामे कसावट कनी चाही मुदा तैयो नीक।

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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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