भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Wednesday, November 05, 2008

सिपाही- सन्तोष मिश्र,काठमाण्डू

“लोक कि कहैत हायत, जे बेटीके दुरागमन भेला एक वर्ष भऽगेलै मुदा नैहर सँ केओ नहि गेलै ................. एकटा बेटा अछियो त देशक भक्त ।...... बेटियो कि सोचैत हायत ।” ई बात सन्तोषक माय सोचिते रहैक की ताबते सन्तोष हाथसँ झोड़ा निचा रखैत पैर छुकऽप्रणाम कएलकै । सन्तोषक माय ओकरा मुँहपर ताकिकऽ कहैछ “बौआ रे ........... तोरे बारेमे सोचैछलहु ।”
ई सुनिकऽ सन्तोष हसऽ लगलै आ कहलकै “एह, माय तहुँ कि नहि .......।”
एते बजीते जखन सन्तोष अपन मायके मूहँपर तकलकै त आँखिमे नोर नजड़ि परलै ताहि बातपर ध्यान बिना देनहि कहलकै– “अच्छा, माय ..... चल हमरा बड जोरसँ भुख लागिगेल अछि ।”
माय भितर जाकऽ जाबे नास्ता लबैक ताबे सन्तोष कलपर जाकऽ हाथपएर धोकऽ बैस गेल रहै । माय चुरा आ दही लऽकऽ सन्तोषके देलखिन आ ओ खायलगलै । माय सेहो सन्तोषक कातमे बैसिकऽ कहलीह “हो, तहुँ निके समयपर अएलेह..... काल्हिखन सुकराति छै...........तो एतऽ सँ परसु भोजन कैलाक वाद बहिन गाम जाकऽ नौत लेबऽ चलिजो ।” बहिनगाम जएबाक नामपर सन्तोष खुस होइय आ सोचऽ लगैय अपन ओझाक पिसियौत बहिनके बारेमे जे दुरागमनमे भेटल रहैक । ओना दुनुके टोका चाली त भेल नहिए रहैक मुदा ताकाताकी खुब भेल रहैक । ओ रहबो करै एते सून्दर जे किनका नहि एकबेर नजड़ि पड़िजाई त बेर–बेर देखऽ चाहितै ।
सुकराति बड़ निकजका मनौलनि । आ प्रातः भोजन कऽकऽ सन्तोष बहिनगाम जएवाकलेल तैयार भेला । माय एकटा चंगेरीमे किछु खजुरिया, किछु पिरुकिया, आर कि दोन कहाँ दोन धकऽ एक चंगेरी पुरा देलनि । चंगेरी उठाबके चलते सन्तोष कहैछ “एहँ माय, कि धऽ देलही.........हम ओम्हरे मिठाई ललितिऐ ।”
ई छिछ कटनाई देखिक माय कहलीह– “हमरा ई सोचिकऽ दुःख लागल ........जे सबहे सिपाहि छिछकट किया भऽजाइछ ।”
सिपाहिक बारेमे एहन वात सुनिते सन्तोष जल्दिसँ हाथमे चंगेरी उठबैत चलिदैछथि । बाटमे सैनिक बसके चेक (तलाश) करैतरहै छैक । ताही तलाशक क्रममे सन्तोषक जेबसँ एकटा बन्दुकक गोलीके खोका भेटैछनि । सन्तोषके बसमेसँ उतारिक सैनिक सब पुछताछ करऽ लेल लजाइछनि । ओमहर बसक खलासी हुनक समान निचा उतारिकऽ चलिजाइ छैक । जखन सन्तोषसँ काजक बारेमे पुछलजाइ छनि तखन हुनका अपना बारेमे कहवाक मौका भेटैछनि आ कहैछथि “हम एहि देशक सिपाहिमे असई छि........आ ई खोका त हालेमे आतंकवादीसभसँ द्वन्द भेलछल ताही वेरके छै ।” एते वात कहीकऽ ओ अपन परिचय–पत्र देखबैछथि । परिचय–पत्र देखला बाद सैनिक सब हुनका छोडैछनि । बसक समय सेहो समाप्त भऽगेल छलैक । ताहीसँ हुनका चंगेरी माथपर धऽकऽ करिब तिन कोष पएरे चलिक जाए परैछनि । अन्हरिया राति, कच्ची सडक भऽसन्तोष रातिकेँ करिब दश बजे वहिनगाम पहुँचैछथि ।
तखन धरि घरक सब लोक भोजन कऽकऽ आराममे चलि गेलरहै । मात्र ओकर बहिन आंगनमे बरतन मजैत रहै तखने ओ केवार ढकढऽकौलनि ई सुनिकऽ ओ केवार खोलऽ गेलिह । सन्तोषके देखिकऽ बहिन बड खुसी भेलीह किए त हुनको सुनऽ पड़ल रहैछनि “एक साल होबऽ लगलै आ नैहर सँ केओ नहि अएलै । “ओ पुनः भोजन बनाबऽके सुरसार जँ करऽ लगलीह त ओ बहिनके हरान कराबऽ नहि चाहलकै आ कहलकै –‘भोजन कऽ लेने छी मात्र सुतऽके ब्यवस्था कऽदे ।’ हुनका आरामक ब्यवस्था भेलनि ओ आराम करऽ गेलाह ।
भोरमे सन्तोष प्रातः काल उठिक नित्य क्रियामे चलिगेल । नित्य क्रियाक वाद जखन सन्तोष स्नान करऽलेल बाल्टीन लऽकऽ दलानबाला कलपर पहुँचैछथि त नजड़ि पड़लनि हुनक ओझाक पिसियौत बहिनपर जे कल पर कपडा खिचैत छलिह । झुलि–झुलिकऽ कपडा खिचऽके क्रममे हुनक ओढनी निचा खसिपड़ल छलनि जाहिके कारणसँ हुनक गोर आ शिकार करला तानल बन्दुक सनक स्तनपर सन्तोषक नजड़ि पड़िगेलै । ओकर नजरि ओही सुन्दर स्तनपरसँ हटिते नहि रहैक । आ ओ कन्या विना केम्हरो तकैत मात्र अपन कपडा खिचऽ पर ध्यान देनेछलिह । कपडा धोब केँ क्रममे जखन ओ कन्या दोसर कपडा बाल्टीनमेसँ निकालऽलगलीह त सन्तोष पर नजड़ि पड़लनि । हुनका देखिते ओ जल्दीसँ अपन ओढनी सरियबैत कहलिह–“पाहुन, .....नहाय अएलीए ?” प्रश्न सुनिते सन्तोष कन्याक मुहपर तकैत घबराएल जका कहैछथि “....एह, हँ, हँ ।”
“ठिक छै पहिने अहाँ नहालिअ तखन हम कपडा खिचब ।” एते कहिक ओ आँगनदिश चलिगेलीह । सन्तोष नहेलाक वाद जखन आँगन पहुचैय त ओ कन्या सन्तोषक बहिन लग बैसल रहै । सन्तोषकेँ ओतऽ देखिकऽ ओ कन्या पुनः कपडा धोब चलिगेलीह । कन्याक गेलाबाद सन्तोष अपन बहिनसँ पुछलकै “ आँइ गे बहिन ..........ई के छथिन ?” बहिन हँसिकऽ जबाब दैछ “ ई तोरे ओझाक पिसियौत बहिन....... कञ्चन ।” नाम सुनिक सन्तोष बजैछथि “बाह ! एकर मुहसँ सुन्दर त .....एकर नाम छैक ।”
बहिन हसऽ लगैय । सन्तोष पुनः अपना बहिनके आगंनमे देखाक कहैए “जा, अखन धरि आगंनमे अरिपन सेहो नहि देलही ।” बहिन कने खेखैनकऽ कहलिह “कनिके देर रुकिजोनऽ .........कि ?”
“हेतै !” कहिकऽ सन्तोष अशोरापर धएल कुर्शीपर बैसिजाइछथि ।
कनिए समयक वाद कञ्चन पुनः आगंनमे अबैछथि हाथमे भिजल कपडा सँ भरल बाल्टीन आ दोसर हाथमे साबुन रहैछनि । सन्तोष पुनः कञ्चनपर ताकऽ लागैछथि । मुदा कञ्चन के अपन काजसँ मतलब रहैछैक । ओ असगनि पर कपडा पसारिरहल छथि । सन्तोष विचारैत रहैछथि जे कखन कञ्जनसँ परिचय करि । ताबते एकटा बुढिया कञ्चन के अढादैछनि आगंनमे अरिपन धरऽलेल । ओ अरिपन धर लगलीह । ओना त कञ्चन सेहो सन्तोष पर तकित रहैए मुदा एहि किसिमसँ जे केओ बुझ नहि सकै ।
रातिमे भोजन करऽला कञ्चन सन्तोषके बजाबऽ दलानपर पहुचैछथि । सन्तोष दलानपर लालटेमक टिमटिमाइत इजोतमे उपन्यास पढैतरहे मुदा पएरकें पायलक आवाज सुनिते सन्तोष उपन्यास छोड़िक बाहर ताकऽलागल । आ,
कञ्चनके देखिते ओ पूनः मुरी गोतिकऽ पढऽलागल । कञ्चन नजदिक आविक कहैछथि “पाहुन............. चलु भोजन करऽ लेल ।”
उपन्यासपर तकिते सन्तोष कहैय “कनिए देर रुकुने......., कनिके बाँकी छै ।”
कञ्चन ई सुनिकऽ सन्तोषक दहिनाकात बैसजाइय । कञ्चनके वैसैत देखिकऽ ओ मोनेमोन बड खुशी होइय आ सोचैय कि आबो जरुरे बात करबाक मौका भेटत ।
कञ्चन पुनः पुछैय “अच्छा, पाहुन ........कोन उपन्यास अछि ?”
“ई सुस्मीता उपन्यास कें मैथिली अनुवाद छै ।”
ओ पुनः पुछैछथि “आहाँक नाम कि अछि,.... पाहुन ?”
“हमर नाम आहाँके बुझल होएत ।”
“नहि, कहुने ।”
“हमर नाम सन्तोष कुमार झा अछि ।”
“आ शिक्षा ?”
“छोरु, शिक्षा बड कम अछि ।”
“कहुने”
“हम स्नातक प्रथम वर्षमें नामांकन कराक छोड़िदेलहु ।”
कञ्चन फटाफट प्रश्न पुछनेजारहल अछि मुदा सन्तोष प्रश्न करऽबाक हिम्मत जुटाक व्यंग करैत पुछैछथि “ओना .........आहाँक नाम कि अछि, कञ्चनजी ?”
“हमर नाम............।” एतबे कहिते कञ्चन चुप भऽ जाइछ ।
आ दुनुगोटे हँसऽ लगैय । तखन हँसिते दूनु गोटे आंगन दिश प्रस्थान
करैत अछि । सन्तोष भोजन करऽ ला बैसैय । ओत, कञ्चन, ओकर माय आ सन्तोषक दिदी सेहो बैसल रहैछथि । कञ्चनकेँ माय बजैछथि “कि करबै पाहुन, ...............बहिनोइ नोकरी परसँ आयल रहितनि त संगे बैसतनि मुदा...।”
सन्तोष कोनो प्रकारक प्रतिक्रिया नहि व्यक्त करैछथि आ ओ चुप चाप मुरी निहुराकऽ भोजन करैतरहै छै । ताबते बुढ़ी पुनः पुछैछनि “पाहुन, आहाँक विवाह त.......अखन नहि भेल होएत ?”
एते सुनिते सन्तोषके वाजसँ पहिनही हुनक बहिन कहैछथि “नहि त ...... मुदा आब त कर परतै ....... गाँमपर माय असगर भ जाइछथि ।”
सन्तोष भोजन कऽकऽ आराम कर दलानपर चलिजाइछथि । रातिमे सन्तोषक बारेमे कञ्चनक माय सब किछु पुछैछथी मुदा ओ ई त पुछबेनहि करैछथि कि सन्तोष कोन काज करैछथि । सब किछु पुछलाक वाद बड गम्भीरता पूर्वक ओ सन्तोषक बहीनसँ कहैछथि “ए कनिया.......जौ अाँहा पाहुन सँ कञ्चनियाकेँ विवाह करबा दितहु त बड गुन होएत । जे जेना तिलक गनऽ परतैक हम त गनबेकरबैक ।” एमहर कञ्चन अपन विवाहक बारेमे सुनिकऽ खुशी होइय आ रातिमे सन्तोषके बारेमे सपना से हो देखलीह ।
भोरमे सन्तोष अपन गाम जाएलेल तैयार होइए मुदा हुनक बहिन एकदिन रहऽला आदर करैछनि ।” गामपर छठि सेहो अछि ।” कहिकऽ वातकेँ टारैत सन्तोष अपन झोड़ा लऽकऽ निकलैय । कञ्चन हुनका अरियातऽ लेल हातसँ झोड़ा लऽकऽ आगुबढैय । दलान सँ कनिक आगु गेलाक वाद कञ्चन गम्भिरता पूर्वक सन्तोषके कहैय –“आब अपना दुनुकेँ कहिया भेट होएत से ठेकान नहि अछि मुदा माय कहै छलीह जे छठिके परात त भदवा रहैछैक आ तकर बाद बाबुजी अहाँक गाम पहुँचता से ध्यान देबै ?”ऐते कहलाक बाद जे ओकरा अाँखि जे कहैत रहैछै से ओकर मुह कहि नहि पबै ।
माय, ई सुनिक सन्तोष कहैय “देखु ! भगवान की कराबऽ चाहैय । तैयो ठिके छै हम प्रतिक्षा करबनि ।”
कनि आगु चलिक कञ्चन रुकलीह आ कहलीह– “आब आँहा जाउ, .............हम एतै सँ विदा होइछि ।” सन्तोष कनेक मुसैक कञ्चनके हातसँ झोरा लकऽ गम्भीर भऽ जाइछैक आ दुनु एक आपसमे आगु बढैत पाछु तकैत अपन–अपन दिशातर्फ चलिदैछ ।
कञ्चनकेँ माय जखन ओकर बाबुजीलग वियाहक चर्चा करैछथि त बाबुजी सेहो सहमति जनबै छथि । ओना हुनको इच्छा रहैछनि जे बेटीक वियाह नेपालमे करी । ओ पुरा तैयारी भऽ असगरे नेपालक सर्लाही जिल्लाक खैरवा गाम पहुँचैछथि ।
बाटमे एक आदमी माथपर धानक बोझा लऽकऽ अवैत रहैछथि । ओ आदमी आर केओ नहि सन्तोष अपने रहैए ओ सन्तोषके रोकिकऽ पुछैछथि “हे यौ भाइसाहेब .....सन्तोष झाके घर कोन थिकै ?”
सन्तोष झा हुनकापर ताकिक कहैछथि “चललजाए हमरे संग,......कनिके आगा छैक ।” दुनु गोटा चुप्पेचापे कनिक आगुतक चलैय आ पुनः कञ्चनके बाबुजी पुछैछथि “अच्छा, एकटा चिज कहल जाए .......हुनका कतेक जमिन–जत्था हैतनि ?”
“इहे करिब ३ विग्घा जते छैक ।”
कने सोचल जका करैत कहैत छथि “ऐ ... आ सन्तोष कोन काज करैय ।”
“ओ नेपालक पुलिसमें असइ छथि ।”
ओना त ओ असइके अर्थ नहि बुझलनि मुदा पुलिसक अर्थ बुझिगेलाह । आ पुलिसक नाम सुनिते ओ रुकिक कहलनि “भाई साहेब, अपने चललजाय ........हम अबैत छी ।”
माथपर धानक बोझा धएने सन्तोष इहो नहि कहऽ सकल कि सन्तोष ओहे छथि । कञ्चनके बाबूजी ओतै सँ अपन घर फिर्ता भऽ जाइछथि । गाम पहुचिकऽ निराश भ बैसिजाइछथि । कञ्चन बाबुजीके देखिक काकाक अगनासँ माय के बजाबऽ गेलीह । माय जल्दिसँ अबिकऽ कञ्चनके बाबुजी सँ पुछैछथि “कि भेल वात पटल कि नहि ।”
ई सुनिते कञ्चनके बाबुजी आवेशमे आबिजाइछथि आ कहैछथि “जखन भोरे–भोर रेडियो खोलैछि त समाचार मे नेपालके वारेमे सब दिन एक्कहिटा वात सुनैछि फल्ना ठाम माओवादी सिपाहिके द्वन्द भेलैक । फल्ना ठाम एते सिपाहि मरिगेलैक । फल्ना ठामक चौकीमे बम फेक देलकै । मतलब अखनकेँ समयमे सिपाहिके माय कखन निपुत्र भऽ जाएत सिपाहिक कनिया कखन विधवा भजाएत कोनो ठेकान नहि ।”
ओ पित्त सँ थुक घोट लगलनि, आँखिमे नोर भरि जाइछनि आ मन्द स्वरमे पुनः कहलनि –“ए, कञ्चनके माय ! एतेक सम्पत्ति अछि, एते सुन्दर बेटी, कोनो हम अपन बेटी सँ स्नेह नहि करैछी हम बेटी के निक ठाम वियाह करब मुदा नेपालक सिपाहि सँ नहि करब ।”
बाबुजीक एहन बात सुनिकऽ कञ्चन दू–तिन दिन तक खान–पिअन त्यागिक बैसिगेलीह । माय ई वात हुनक बाबुजीकेँ सुनौलीह त ओ बेटीके कतबो सम्झझौलनि मुदा बेटी त वात बुझ्बेनहि करै । ओ मात्र एते कहैछथि “प्रित त किछ नहि देखैछैक ।” ओ बड जीद करऽ लगलीह त हुनक बाबूजी पुनः सन्तोषक घर जाएवाक लेल तैयार होइछथि । ओ पुनः सन्तोषक गाम पहुँचलनि । ओ जखन सन्तोषक दलान पर पहचैछथि त सन्तोष खह् लऽकऽ वैललग जाइत रहथि । कञ्चनके बाबुजी हुनका कहलनि– “सुनलजाय ।”
सन्तोष हाथमे पोआर लेनहि रुकिकऽ हुनकापर ताकिकऽ कहैछथि “जी कहलजाय, ...हम कि सेवा कऽ सकैछि ?”
“अपने सन्तोषजी, छिए कि ?”
“जी ! मुदा अपने ?”
“हमर घर हाटी, हम कञ्चनके.......बाबुजी ।”
सन्तोष खह् आतै छोड़िकऽ हुनक नजदिक अबैछथि आ जल्दी सँ पैर छुकऽ प्रणाम करैत हात पकरिकऽ भितर बैसाबऽ लजाइछथि । सन्तोष आँगन जाकऽ पाहुनके बारेमे अपन माय के कहैय । माय जलपान आदी बनाबमे लागिजाइछथि । माय पाहुनके लेल जखन जलपान लऽकऽ अबैछथि त जलपान खाइत ओ सन्तोषक मायके सुनाकऽ कहैछथि– “हम त सन्तोषक घटक बनिकऽ अएलहु ।”
ई वात सुनिते सन्तोषक मुरी निचा निहुरि जाइछनि आ ओ भितरे भितर एते खुस भऽ जाइछथि जैके केओ नापि नहि सकैय आ नहि त ओइके केओ लेखक लिखऽ सकैय ओ पुनः कहलाह –
“अपने सब जे किछ कहब हम दऽ देव मुदा एकटा आग्रह जे सन्तोषजी के सिपाहि क नोकरी छोड़ऽ पड़तनि बरु ओ गाममे बैसिक व्यापार आदि करौथ जे जेना करऽपरतै हम कऽ देबनि ।”
नोकरी छोड़ऽ के नाम सुनिते सन्तोष सोच लागल– “वाप रे ! जौ एहने सब व्यक्ति भऽ जाइ त देशके कि हालत हेतैक.................. कि हालत हेतै ?”

5 comments:

  1. ई सुनिते कञ्चनके बाबुजी आवेशमे आबिजाइछथि आ कहैछथि “जखन भोरे–भोर रेडियो खोलैछि त समाचार मे नेपालके वारेमे सब दिन एक्कहिटा वात सुनैछि फल्ना ठाम माओवादी सिपाहिके द्वन्द भेलैक । फल्ना ठाम एते सिपाहि मरिगेलैक । फल्ना ठामक चौकीमे बम फेक देलकै । मतलब अखनकेँ समयमे सिपाहिके माय कखन निपुत्र भऽ जाएत सिपाहिक कनिया कखन विधवा भजाएत कोनो ठेकान नहि ।”
    ओ पित्त सँ थुक घोट लगलनि, आँखिमे नोर भरि जाइछनि आ मन्द स्वरमे पुनः कहलनि –“ए, कञ्चनके माय ! एतेक सम्पत्ति अछि, एते सुन्दर बेटी, कोनो हम अपन बेटी सँ स्नेह नहि करैछी हम बेटी के निक ठाम वियाह करब मुदा नेपालक सिपाहि सँ नहि करब ।”
    बाबुजीक एहन बात सुनिकऽ कञ्चन दू–तिन दिन तक खान–पिअन त्यागिक बैसिगेलीह । माय ई वात हुनक बाबुजीकेँ सुनौलीह त ओ बेटीके कतबो सम्झझौलनि मुदा बेटी त वात बुझ्बेनहि करै । ओ मात्र एते कहैछथि “प्रित त किछ नहि देखैछैक ।” ओ बड जीद करऽ लगलीह त हुनक बाबूजी पुनः सन्तोषक घर जाएवाक लेल तैयार होइछथि । ओ पुनः सन्तोषक गाम पहुँचलनि । ओ जखन सन्तोषक दलान पर पहचैछथि त सन्तोष खह् लऽकऽ वैललग जाइत रहथि । कञ्चनके बाबुजी हुनका कहलनि– “सुनलजाय ।”
    सन्तोष हाथमे पोआर लेनहि रुकिकऽ हुनकापर ताकिकऽ कहैछथि “जी कहलजाय, ...हम कि सेवा कऽ सकैछि ?”
    “अपने सन्तोषजी, छिए कि ?”
    “जी ! मुदा अपने ?”
    “हमर घर हाटी, हम कञ्चनके.......बाबुजी ।”
    सन्तोष खह् आतै छोड़िकऽ हुनक नजदिक अबैछथि आ जल्दी सँ पैर छुकऽ प्रणाम करैत हात पकरिकऽ भितर बैसाबऽ लजाइछथि । सन्तोष आँगन जाकऽ पाहुनके बारेमे अपन माय के कहैय । माय जलपान आदी बनाबमे लागिजाइछथि । माय पाहुनके लेल जखन जलपान लऽकऽ अबैछथि त जलपान खाइत ओ सन्तोषक मायके सुनाकऽ कहैछथि– “हम त सन्तोषक घटक बनिकऽ अएलहु ।”
    ई वात सुनिते सन्तोषक मुरी निचा निहुरि जाइछनि आ ओ भितरे भितर एते खुस भऽ जाइछथि जैके केओ नापि नहि सकैय आ नहि त ओइके केओ लेखक लिखऽ सकैय ओ पुनः कहलाह –
    “अपने सब जे किछ कहब हम दऽ देव मुदा एकटा आग्रह जे सन्तोषजी के सिपाहि क नोकरी छोड़ऽ पड़तनि बरु ओ गाममे बैसिक व्यापार आदि करौथ जे जेना करऽपरतै हम कऽ देबनि ।”
    नोकरी छोड़ऽ के नाम सुनिते सन्तोष सोच लागल– “वाप रे ! जौ एहने सब व्यक्ति भऽ जाइ त देशके कि हालत हेतैक.................. कि हालत हेतै ?”
    lagait achhi aatmkatha san.

    ReplyDelete
  2. nik, muda lagait achhi bina revision ke ek draft me likhal gel achhi, se kichhu tham tartamya garbara rahal achhi.

    ReplyDelete
  3. rachna me kaphi sudhar achhi, internet par maithili padhbak mauka bheti rahal achhi saih uplabdhi achhi.

    ReplyDelete
  4. santosh bhaiya, ahank ela se ee blog aar sundar bhe gel, jitu ji blog ke design seho sundar bana delani, rachnak te bharmar laga delani, dunu gote ke dhanyavad

    ReplyDelete
  5. इंटरनेटपर रंगबिरंगक रचना देखि मैथिलीमे लिखबा के सख हमरो भ गेल। बड्ड नीक संतोषजी, कथामे कसावट कनी चाही मुदा तैयो नीक।

    ReplyDelete

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।