भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Monday, November 10, 2008

धोबीकेँ गदहा - सन्तोष मिश्र, काठमाण्डू

धोबीकेँ गदहा

सुबोधकेँ बच्चे सँ माँ आ बाबुजीक निक स्नेह भेटलनि । सुवोध हसिते, खेल्ने मेट्रिक पास भेलाह । गामसँ लगे पर वाला कौलेज मे आ.ए. पढैत रहैथ ।एकदिन हुनक बाबुजी हनका बजाक कहलनि "अपना खेत कते छौक से त बुझले छौक......... आब हम तोरा खर्च नहि द सकैछि आब तो अपने किछ आर्जन कर केँ कोषीश कर.....।"ई बात सुनिक सुवोधकें मनमे दुःख लगलनि आ ओ अपना बाबुजीके कहलनि "हम एते पाइ कमासकैत छि जे अाँहा पुते कहियो खर्च ककऽ खतम नहि कएल पार लागत ।"आ, ई वात कहिक ओ बाहर जाएकें लेल तयारी करऽ लगैय । ताबतें किछ दिन बाद सुवोधके वास्ते अगुवा एलनि आ हुनक बाबुजी तिलक लक सुवोध केँ विवाह क देलनि । विधी विद्यान सँ सुवोधक विवाह सु–सम्पन्न भेलनि । तिकममेका जे पाई बैचगेलरहनि ताहिसँ ओ छोटमोट व्यापार क'र केँ सोचलनि । ओ पटनासँ दवाई आ अन्य किछ लाविक वेचैछलैथ । एक दिन जखन ओ पटनाक गोविन्द मित्रा रोड पहुँचैछथ लखने हुनका ३ आदमी घेरक चाकु देखाक –"जते पाइ छौ निकाल नहि त मारिक नालीमे फेक देवौ ।"ई धमकी द सुवोधसँ सवटा पाई छिन लैछनि । सुवोधक जेवीमे एकटा फूटलो कौडी नई होब के कारण स ओ वड कष्ट कक अपन घर पहुँचैछथि । तिन दिन वाद भुखले सुवोध अपना घरपर पहुँचैय । मुदा ई घटनाक वात किनको नहि सुनवैछथि । मुदा ई वात ओ अपना मनमे से हो नहि दवाब सकैय । आ ई कारण ओ एकदिन आधा रातिएमे उठिकऽ घर घेरिक चैलजाइछैक । आगा पहुचक जइ वस पर चढ लनि ताही वसक स्टाफसँ पुछलनि "ई बसमे ......यात्री विमा अछि कि नहि ?"एहन वात सुनिकऽ लोक कहैक "ई छौरा त ....पागल लगैछैक ।"मुदा सुवोधकें मनमे ई छलैक जे हम मरियोजाएब त विमा वाला पाइ हमर बाबुकेँ भेटऽ जाइतै जै सँऽ किछ निमहि जएतै । मुदा ओकरा अपन घरवालीके चिन्ता कनिको छैहे नहि । सुवोध मुम्बई पहुँचैय । मुम्बईमे सुवोध करिब २० दिन पाथरि फोडवाला काज करैय आ पुनः ओ दोसर काज करकेँ तैयारीमे लगैय । काज ताकँऽके क्रममे एकदिन सुवोध देखैय एक आदमी आगु–आगु भागिरहल आ चारिगोटें ओकरा खेहारैत । हाथमे तलवार लऽकऽ खेहारैवाला सब बड क्रुर लगैत रहैत छैक । भागऽ वाला आदमी सुवोध ठाह् भेल वाला गल्लीमे नुकारहैछैक । बाँकी खेहारवाला सब चारुतर्फ ताकिक ओ फिर्ता चैल जाइए । तखन ओ नुकायल अदमीलग जाकऽ अपन परिचय दैछैक आ काजक तलाशमे छि से हो कहैय । ओ आदमी सुवोधकें अपन मालिक लग लऽजाइतछै । खाँन पोशाक पहिरने दाह् िवाला आदमी सुवोधके एकटा काज सोपैछै"ई वेग लऽकऽ समुद्र किनारमे पहुचादही तोरा ओतै हमर अदमी भेटतौ आ तोहर परिश्रमिक ओतै दऽ देतै ।"सुवोध बेगलक समुद्रकात पहुचैय ओत ओकरा कहल अनुसारकेँ आदमी भेट जाइछैक । ओ वेग सुवोध ओकरा द'क अपन परिश्रमिक पच्चिस हजार रुपैया पबैय । हातमे पाई परिते ओ सबसँ पहिने जीवनविमा करबैय आ पुनः अपन काजमे लागि जाइय । एक दिन जखन सुवोध वेग लऽकऽ समुद्रकात जातिरहैय त पुलिश पाछा आब लगैछैक । सुवोध अपन मोटर–साइकल छोरिक लगैय गलिदने भाग । सुवोध आगा आ पुलिशपाछा । ई क्रम चलैत चलैत पुलिश सुवोधपर गोली–चलवैछैक । सुवोधके पिठपर गोली लागिजाइछैक । सुवोध लगैय छटपटाय । हाथसँ वेग खैस परैछै । गोलीके आवाज सुनिक लोक लगैछै भागऽ । पुलिश वेग खोलिक देखैय त ओकरा वेगमे मात्र उजरा पाउडर रहैछैक । पुलिश पुनः दोसर गोली ओकरा माथपर मारिदैछैक । सुवोधकेँ प्राण ओतै छुटिजाइछैक । पुलिश ओकरा लाशके समुद्रकात मे लजाक फेकदैछै । मुदा सुवोधके माथ–बाबु आ कनियाके अखनो प्रतिक्षा छै सुवोधके ।

6 comments:

  1. internet par maithili ke jiya kay rakhay bala blog achhi ee, dhanyavad santosh ji, kathmandu aa nepalak aan maithili bhashi ke joru ehi blog se.

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  2. nik lagal ahank katha, etek ras likhait chhi saih bad paigh bat achhi, hamra sabh te sochite rahi gelahu,

    muda khissa kahba me harbari se kaj nahi liya budhiya dadi ke mon pari kay nishinta mon se khissa kahoo,

    ona nik prayas achhi.

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  3. nik prayas achhi, aa nirantar lokpriyata aa badhait pathak sankhya okar parinam, katha kanek aar nik bhay sakait chhal muda kono nahi, bahut nik lagal.

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  4. uttam prayas, ehina likhoo santosh ji, likhait likhai lekhni me chamak aayat, ona ekhno khoob likhait chhi

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  5. nik lagal apan madhesak kathakar ke padhait, muda jiti ji ek page par 7 Ta post rahla se site khujba me late hoit achhi, 4 se beshi ek page par nahi rakhoo, pher old post ke badla me agala aabi rahal achhi se confusion paida kay rahal achhi.

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  6. मार्गदर्शनक लेल बहुत बहुत धन्यवाद राहुलजी अहिना हमर मार्गदर्शन आs लेखकगण केs प्रोत्साहित करैत रहब .....

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