भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Friday, January 30, 2009

की नाम राखी एहि कथाक


“हम यादवजीक पत्नी बाजि रहल छी, ओ छथि की?” एकटा गम्भीर स्वर आएल। यादव जी एखने अपन प्रेमिकाक संग बाहर निकलल रहथि । अरिन्दमकेँ किछु नहि फुरएलैक जे की बाजए- “कोनो काजसँ बाहर गेल छथि, एखने दू मिनट पहिने। हुनकर मोबाइलपर फोन कऽ लिअ”।

“मोबाइल नॉन-रीचेबल छन्हि, कोनो ऑफिसक काजसँ गेल छथि की?”

अरिन्दमकेँ आब किछु नहि फुरएलैक-

“नहि, से तँ लागैए जे कोनो व्यक्तिगते काज छन्हि कारण ऑफिसक काज रहितए तँ हमरा बुझल रहितए”।

ओम्हरसँ फोन राखि देल गेल। अरिन्दमकेँ मोन पड़लैक जे यादवजी जाइसँ पहिने मोबाइल बिना ऑफ कएने बैटरी निकालि आ लगा कऽ मोबाइल बन्द कएने छलाह। स्वाइत नॉन-रीचेबल आबि रहल अछि।

अरिन्दम लैपटापपर एक्सेल डॉक्युमेन्टमे ओझराएल हिसाब-किताब ठीक-ठाक करए लगलाह।
किछु दिन पहिने एहिना एकटा स्वर फोनपर आएल रहैक- “यादवजी छथि की?”

“अहाँ के”?
“हम हुनकर पत्नी”। अरिन्दम फोन यादवजीकेँ देने रहए आ यादवजी खूब आह्लादसँ पत्नीसँ गप कएने छलाह। ओहि दिन बॉसक पत्नीक अबाज ओतेक गम्भीर नहि लागल रहैक अरिन्दमकेँ। चुलबुलिया सन अबाज रहैक। होइत छैक, लोकक मोन क्षणे-क्षणे तँ बदलैत रहैत छैक।

अरिन्दम अपन घरक शान्त-प्रशान्त जीवन मे रहैत अछि। कारसँ नित्य अबैत काल रेडलाइटपर हिजड़ा-सभ सभ दिने भेँट होइत छैक। पुरनका कारमे ए.सी. नहि रहैक, से शीसा खसेने रहैत छल। ढेर गप-शप बजैत ओ सभ हाथ-मुँह चमका कऽ की-की सभ सुना दैत रहए। मुदा आब ओ एहिसँ बचबाक लेल शीसा खसबिते नहि अछि। ओ सभ शीसाक बाहरसँ मुँह पटपटबैत किछु कालमे दोसर गाड़ी दिस बढ़ि जाइत अछि। परसू एकटा बालगोविना तमसा कऽ हाथक झुटकासँ ओकर कारमे स्क्रैच लगा देलकैक। पाँच टकाक बदलामे ढेर नुकसान भऽ गेलैक- धुर। के करबैत गऽ डेंटिंग-पेंटिंग, स्क्रैच भने रहत किछु दिन। दिल्लीमे जे एहन चेंछमे डेंटिग पेंटिंग कराबए लागी तँ सभ दिने करबए पड़त। मुदा ई नवका बॉस ज्र् आएल अछि से अरिन्दमक मस्तिष्कमे एकटा भूकम्प आनि देने छैक। रस्तोमे की सभ सोचाइत रहैत छैक।

“काल्हि अहाँक पत्नीक फोन आएल रहन्हि”।

“अच्छा, कखन?” यादवजी बजलाह।

“अहाँक गेलाक किछुए कालक बाद”।

कोनो जवाब बिनु देने यादवजी फोन मिलेलन्हि-

“ऑफिसमे किएक फोन केलहुँ......मोबाइल बेसमेन्टमे नॉन-रीचेबल रहैत छैक, तँ किछु काल प्रतीक्षा कएल नहि भेल...”। खटाकसँ फोन रिसीवरपर बजड़ल। अरिन्दम लैपटॉपसँ मुँह उठा कऽ देखलक। केहन परिवार छैक? साँझमे गामपर पहुँचल होएत तँ पत्नीसँ गपो नहि भेलैक की? गपक फरिछाहटि ऑफिसेसँ फोन कए कऽ रहल अछि।
अरिन्दम डेस्कटॉपक आ वाशिंग मशीन दुनुक हेल्पलाइन नम्बरकेँ फोन मिलेलक, गामपर फुरसति कहाँ भेटैत छैक। घरपर दुनू चीज एके बेर खराप भऽ गेलैक। घरसँ ऑफिस निकलैत काल कनियाँ वाशिंग मशीनक खराब हेबाक तँ बेटा अपन कम्प्युटरपर गेम कैक दिनसँ खरापीक चलते बन्द रहबाक विषयमे कहने रहन्हि।

“कतेक कालसँ फोन इनगेज रखने छी, गप सुनू, ककरो फोन आबए तँ कहबैक जे यादवजीक स्थानान्तरण भऽ गेलन्हि”। बॉस बाहर कतहुसँ फोन कएने रहथिन्ह आ एके सुरमे सभटा बाजि गेल छलाह।

काल्हि साँझमे पत्नीकेँ छोड़ए लेल यादवजी गेल रहथि आ एम्हर हुनकर प्रेमिकाक फोन आएल रहन्हि ऑफिसमे। ओ कोनो होटलक नाम बाजल रहए आ कहने रहए जे यादवजीकेँ होटलक नाम बता देबन्हि ओ बुझि जएताह। अरिन्दम ई मैसेज यादवजीकेँ तखने दऽ देने रहथि। आब आइ नहि जानि कोन कारणसँ एखन धरि ऑफिस नहि आएल अछि। कनियाँ तँ गेलैक नैहरि आ तखन आब ककर फोन अएतैक जकरा कहबैक जे एकर स्थानान्तरण भऽ गेलैक।
फोन तँ नहि आएल मुदा ओ आएलि रहए, बॉसक प्रेमिका। आइ ओ अपन नामो बतेलक, बड्ड नीक नाम रहैक ओकर- पारुल।

“यादवजी कतए गेलथि”।

“हुनकर स्थानान्तरण भऽ गेलन्हि”। अरिन्दम बाजल।

“अच्छा”। ई कहि ओ चलि गेलि।

“अहाँकेँ फोनपर आएल प्रश्नक उत्तरमे ई कहबाक रहए, सोझाँ आएल लोककेँ नहि”। ओकर सहकर्मी रोहिणी हँसैत बाजलि।

“हम कनेक भाँसि गेल छी। आब आइसँ ऑफिसक फोन रिसीव करबाक भार अहाँपर”। अरिन्दम बाजल।

रोहिणी एहि गपकेँ हँसीमे लेने रहए मुदा अरिन्दम तखनेसँ सभटा फोन रिसीव केनाइ छोड़ि देलक।

एहन नहि रहए जे बॉस कार्यालय अब् नहि छल। जखन धरि ओ कार्यालयमे रहैत छल बेशी काल अपने फोन रिसीव करैत रहए, काजमे सेहो फुर्तिगर रहए।

“एकटा गप बुझलिऐ। अजय गणेशन आइ भोरसँ मुँह लटकौने अछि”।
“किएक”। रोहिणीक प्रश्नक उत्तर दैत अरिन्दम बाजल।

“इन्टरनेटपर कोनो प्रेमिका संगे कतेक महिनासँ चैटिंग द्वारा प्रेमालाप करैत रहए। आइ पता लगलैक जे ओकरा संगे क्यो दोसर लड़का हँसी कऽ रहल छलैक। प्रेम वियोगमे अदहा बताह बनल अछि”- रोहिणी कहलक।

यादव जी कोनो चीज बिसरि गेल छलाह से लिफ्टसँ तखने कक्षमे आएल रहथि, रोहिणीक गप सुनि लेने छलाह।
“हमरा तँ इन्टरनेटक ई माध्यमे आकाशीय लगैत अछि”- कहैत ओ अपन चश्मा लेलन्हि आ चलि गेलाह।

रोहिणीकेँ फोन रिसीव करबाक ड्युटी लगलन्हि तँ अरिन्दम निश्चिन्त भऽ गेलाह।

“सुनैत छी, एक बेर फोनपर जे अबाज अबैत छैक जे हम यादवजीक पत्नी छी तँ ओहिमे कचबचियाक अबाज गुँजैत छैक आ दोसर बेर जे फोन अबैत अछि जे हम यादव जीक पत्न्नी छी तँ ओहिमे गंभीरता रहैत छैक। की रहस्य अछि किछु ने बुझाइए”।
“लोकक मूड होइत छैक”।
“एहन कोन मूड होइत छैक जे घण्टे-घण्टामे बदलैत रहैत छैक। आ देखू एहि बॉसकेँ। जखन चुलबुलिया मूडमे फोन अबैत छैक तँ ई हँ-हँ हमर सरकार कहि कऽ गप करैत अछि आ जखन गम्भीर स्वरमे पत्नीक फोन अबैत छैक तँ झिरकिकँ बजैत अछि जे ऑफिसक फोनपर फोन किएक केलहुँ- बुझू”।
“ई अपना रहलापर फोन अपने उठबैक प्रयास करैत अछि”।
“कोनो डर छैक ताहि द्वारे”।
“अहाँकेँ तँ ओहिना लगैत रहैए, कथीक डर रहतैक एकरा”।
आब अरिन्दमकेँ लगलैक जे रोहिणी कोनो चीजक अन्वेषणमे लागि गेल अछि।

“दू दिनसँ देवगन तंग कएने अछि दुर्घटना बीमा करेबाक लेल”- रोहिणी बजलीह।
“एजेन्सी लऽ लेलक अछि की?”- अरिन्दम पुछलन्हि। देवगन ऑफिसमे चपरासी छल।
“हँ, एहि नगरमे जतेक पाइ भेटैत छैक ताहिसँ की होएतैक से पत्नीक नामसँ एजेन्सी लेने अछि। कहैत रहए पन्द्रह सालक दुर्घटना बीमा लेबाक लेल”।
“ओ, तखन ई एल.आइ.सी. नहि जी.आइ.सी.क एजेन्सी लेने अछि”।
“कम्मे प्रीमियम छैक लऽ लियौक, हमहू लऽ रहल छी”।

देवगन खुशी खुशी दुनू गोटेकेँ फॉर्म भरबाक लेल देलक आ चाह बनेबाक लेल चलि गेल। तखने यादवजी धरधराइत अएलाह।
“कोन फॉर्म सभ गोटे भरि रहल छी?”
“देवगन कनियाँक नामसँ इन्स्योरेन्सक एजेन्सी लेने अछि, वैह दुर्घटना बीमा करबा रहल अछि सभक”। रोहिणी आ अरिन्दम जेना संगे बाजि उठलाह।
तखने देवगन चाहक ट्रे लेने आएल। यादवजीकेँ फॉर्मक तहकीकात करैत देखि ओकर देह सर्द भऽ गेलैक।

“दू टा फॉर्म हमरोसँ भरबा लिअ”- यादवजी देवगनकेँ कहलखिन्ह।
देवगनकेँ तँ कानपर विश्वासे नहि भेलैक। दौगि कऽ दू टा फॉर्म अनलक।
“एकटा हमरा नामसँ भरू आ एकटा सबीना यादवक नामसँ”।
“मेम साहबक नाम सबीना यादव छन्हि?”
“हँ”।
फॉर्म जखन भराए लागल तँ नॉमिनेशनक कॉलम मे देवगन यादवजी बला फॉर्ममे सबीना यादव आ सबीना यादव बला फॉर्ममे यादव जीक नाम भरि देलक।
“ई की केलहुँ, दुनू फॉर्म चेन्ज करू। नॉमिनेशनक की जरूरति अछि। हमरा पत्नीक पाइक कोनो खगता नहि अछि”।
देवगन दुनू फॉर्म फाड़ि दू टा नव फॉर्म भरलक। अपन फॉर्ममे यादवजी हस्ताक्षर कएलन्हि आ दोसर फॉर्म साइन करेबाक लेल देवगनकेँ पता लिखि कऽ देबऽ लगलाह।
“हमरा अहाँक डेरा देखल अछि साहब”।
“ई दोसर पता छी, राखू”।

रोहिणीक कान ठाढ़ भऽ गेलन्हि। ओ यादवजीक बाहर गेलाक बाद देवगनक कानमे किछु कहलन्हि। अरिन्दम अपन काजमे लागल रहल।

“यादवजी छथि?” फोनपर पारुल रहथि।
“यादवजीक ट्रान्सफर भऽ गेलन्हि”।
“झूठ नहि बाजू, हुनका फोन दियन्हु”।
“हे, नहि तँ हम अहाँक नोकर छी आ नहिये अहाँक यादव जीक।
ई कहैत अरिन्दम फोन पटकि देलक। बीचमे कतेक दिनसँ रोहिणी फोन उठबैत छलीह। आइ ओ कतहु एम्हर-ओम्हर छलीह से अरिन्दमकेँ फोन उठाबए पड़ल रहैक।
रोहिणी तखने पहुँचि गेल छलीह- “अभ्यास खतम भऽ गेने तामस उठि गेल अहाँकेँ”। अरिन्दम स्वीकृतिमे मूड़ी डोलेलक।
आइ ऑफिस अबैत काल रेडियो मिर्ची एफ.एम. पर चलि रहल अण्ट-शण्ट गप नीक लागि रहल छलैक अरिन्दमकेँ।
“हमर बड़का बेटा सुमन्त तेलुगु खूब नीक जकाँ बजैत अछि मुदा छोटका हिन्दी बाजए लागल अछि। हैदराबादसँ दादाक फोन अबैत छैक तँ हुनको हिन्दीयेमे जवाब दैत अछि। हुनका हिन्दी अबिते नहि छन्हि। घरमे पति तेलुगु बजबाक अभियान शुरु कएने छथि”- रोहिणी बाजि रहल छलीह।
“अच्छा”।
“बुझलहुँ, पारुलक फोन आएल रहए। कहैत रहए जे अरिन्दम जीक हम कोनो बकड़ी तँ नहि खोलि लेने छलियन्हि जे ओना कऽ फोनपर झझकारि उठल रहथि”।
“हूँ”।
“आ ई सेहो बाजि रहल छलि जे ओ यादवजी पर विश्वास कए धोखा खएलक”।
“ओ”।
“आ देवगन गेल रहए यादवजीक नवका घर”।
“नवका घर? पुरनका घर बेचि देलन्हि की?”
“नहि। देवगनेक कहल कहैत छी। पुरनका घरमे यादव जीक पहिल पत्नी रहैत छथिन्ह, वैह अहाँक गम्भीर स्वरवाली। आ नवका घरमे नवकी चुलबुली कनियाँ रहैत छन्हि। एकटा कोढ़चिल्को देखलक देवगन। यादवजीक बेटा रहन्हि प्रायः”।

7 comments:

  1. ee kathak nam te thike khojab kathin achhi, mahaanagara vaa life in metro rakhay parat

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  2. thik kahalani rahul ji, muda kathaak nam thike rakhlahu, ki nam rakhab jakhan life etek complex bhay gel chhaik.

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  3. ओम्हरसँ फोन राखि देल गेल। अरिन्दमकेँ मोन पड़लैक जे यादवजी जाइसँ पहिने मोबाइल बिना ऑफ कएने बैटरी निकालि आ लगा कऽ मोबाइल बन्द कएने छलाह। स्वाइत नॉन-रीचेबल आबि रहल अछि।

    अरिन्दम लैपटापपर एक्सेल डॉक्युमेन्टमे ओझराएल हिसाब-किताब ठीक-ठाक करए लगलाह।
    किछु दिन पहिने एहिना एकटा स्वर फोनपर आएल रहैक- “यादवजी छथि की?”

    “अहाँ के”?
    “हम हुनकर पत्नी”। अरिन्दम फोन यादवजीकेँ देने रहए आ यादवजी खूब आह्लादसँ पत्नीसँ गप कएने छलाह। ओहि दिन बॉसक पत्नीक अबाज ओतेक गम्भीर नहि लागल रहैक अरिन्दमकेँ। चुलबुलिया सन अबाज रहैक। होइत छैक, लोकक मोन क्षणे-क्षणे तँ बदलैत रहैत छैक।

    अरिन्दम अपन घरक शान्त-प्रशान्त जीवन मे रहैत अछि। कारसँ नित्य अबैत काल रेडलाइटपर हिजड़ा-सभ सभ दिने भेँट होइत छैक। पुरनका कारमे ए.सी. नहि रहैक, से शीसा खसेने रहैत छल। ढेर गप-शप बजैत ओ सभ हाथ-मुँह चमका कऽ की-की सभ सुना दैत रहए। मुदा आब ओ एहिसँ बचबाक लेल शीसा खसबिते नहि अछि। ओ सभ शीसाक बाहरसँ मुँह पटपटबैत किछु कालमे दोसर गाड़ी दिस बढ़ि जाइत अछि। परसू एकटा बालगोविना तमसा कऽ हाथक झुटकासँ ओकर कारमे स्क्रैच लगा देलकैक। पाँच टकाक बदलामे ढेर नुकसान भऽ गेलैक- धुर। के करबैत गऽ डेंटिंग-पेंटिंग, स्क्रैच भने रहत किछु दिन। दिल्लीमे जे एहन चेंछमे डेंटिग पेंटिंग कराबए लागी तँ सभ दिने करबए पड़त। मुदा ई नवका बॉस ज्र् आएल अछि से अरिन्दमक मस्तिष्कमे एकटा भूकम्प आनि देने छैक। रस्तोमे की सभ सोचाइत रहैत छैक।
    shilp aa kathya dunu drishti se bejor katha

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  4. bahut nik katha lagal, banhane rahal ant dhari

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  5. बहुत नीक प्रस्तुति।

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