भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

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Tuesday, January 13, 2009

विदेह १५ दिसम्बर २००८ वर्ष १ मास १२ अंक २४

विदेह १५ दिसम्बर २००८ वर्ष १ मास १२ अंक २४



'विदेह' १५ दिसम्बर २००८ ( वर्ष १ मास १२ अंक २४ ) एहि अंकमे अछि:-
एहि अंकमे अछि:-
१.संपादकीय संदेश
२.गद्य
२.१.कथा १. सुभाषचन्द्र यादव २. भ्रमर ३.गजेन्द्र ४.परमेश्वर कापड़ि आ ५.शुशान्त
२.२.बी. पीं कोइराला कृत मोदिआइन मैथिली रुपान्तरण बृषेश चन्द्र लाल
२.३.उपन्यास- चमेली रानी- केदारनाथ चौधरी
२.४.सगर राति दीप जरय मैथिली कथा लेखनक क्षेत्रमे शान्त क्रान्ति-डा.रमानन्द झा ‘रमण‘
२.५. 1.आलेख-महेन्द्र कुमार मिश्र/ 2.दैनिकी-ज्योति/
२.६. रिपोर्ताज- मनोज मुक्ति- 1.अवैद्य नागरिकताः सिक्कलमीकरणक प्रयास, 2.तराई/मधेशक आन्दोंलनः लूटमे लटुवा नफ्फाथ,3.अन्तर्वार्ता-डा. राम दयाल राकेश/आभाष लाभ,4.त्रिभुवन विश्वंविद्यालयद्धारा मिथिलाक्षर फन्टजक विकास
२.७. जितिया/ मकड़ संक्रांति-मनोज मुक्ति
२.८. धीरेन्द्र प्रेमर्षि-नव भोर जोहैत मिथिला
३.पद्य
३.१. १.राम नारायण देव २.निमिष झा
३.२. १.अमरेन्द्रण यादव २.मनोज मुक्तिद
३.३.-१.ज्योति-२.गजेन्द्र
३.४. १. सच्चिणदानन्‍द यादव २. विनीत उत्पल ३.जितमोहन
३.५. १.पंकज पराशर, २.भवनाथ दीपक ३.मयानन्द्र मिश्र ४.सूर्यनाथ गोप
३.६. कुमार मनोज कश्यप
४. गद्य-पद्य भारती
५. बालानां कृते
६. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)-
8.१.The Comet-English translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani by jyoti
९. मानक मैथिली
विदेह (दिनांक १५ दिसम्बर २००८)
१.संपादकीय (वर्ष: १ मास:१२ अंक:२४)
मान्यवर,
विदेहक नव अंक (अंक २४, दिनांक १५ दिसम्बर २००८) ई पब्लिश भऽ गेल अछि। एहि हेतु लॉग ऑन करू http://www.videha.co.in |
४१म आ ४२म ज्ञानपीठ पुरस्कारक घोषणा- हिन्दीक नवीन कविता आन्दोलनक सशक्त कवि श्री कुँवर नारायणकेँ ४१म ज्ञानपीठ पुरस्कार (२००५) आ कोंकणीक श्री रवीन्द्र केलेकर आ संस्कृतक श्री सत्यव्रत शास्त्रीकेँ संयुक्त रूपसँ ४२म ज्ञापीठ पुरस्कार (२००६) देबाक घोषणा भेल अछि।
श्री कुँवर नारायणक जन्म १९२७ ई. मे भेलन्हि। अज्ञेय द्वारा सम्पादित "तीसरा सप्तक"क सशक्त कवि कुँवर नारायणकेँ एहिसँ पहिने साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटि चुकल छन्हि।
श्री रवीन्द्र केलेकरक जन्म १९२५ ई.मे भेलन्हि, हिनकर कोंकणी भाषा मण्डलक निर्माणमे प्रमुख भूमिका रहल छन्हि।
श्री सत्यव्रत शास्त्री संस्कृतमे तीन गोट महाकाव्यक रचना कएने छथि। रवीन्द्र केलेकर आ सत्यव्रत शास्त्रीकेँ सेहो साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटि चुकल छन्हि।
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ १४ दिसम्बर २००८) ६८ देशक ६५४ ठामसँ १,३२,७९७ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
अपनेक रचना आऽ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
गजेन्द्र ठाकुर, नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in ggajendra@yahoo.co.in
अंतिका प्रकाशन की नवीनतम पुस्तकें

सजिल्द

मीडिया, समाज, राजनीति और इतिहास

डिज़ास्टर : मीडिया एण्ड पॉलिटिक्स: पुण्य प्रसून वाजपेयी 2008 मूल्य रु. 200.00
राजनीति मेरी जान : पुण्य प्रसून वाजपेयी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.300.00
पालकालीन संस्कृति : मंजु कुमारी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 225.00
स्त्री : संघर्ष और सृजन : श्रीधरम प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.200.00
अथ निषाद कथा : भवदेव पाण्डेय प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु.180.00

उपन्यास

मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00


कहानी-संग्रह

रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.125.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 180.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
बडक़ू चाचा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 195.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00


कविता-संग्रह



या : शैलेय प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 160.00
जीना चाहता हूँ : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 300.00
कब लौटेगा नदी के उस पार गया आदमी : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 225.00
लाल रिब्बन का फुलबा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु.190.00
लूओं के बेहाल दिनों में : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 195.00
फैंटेसी : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 190.00
दु:खमय अराकचक्र : श्याम चैतन्य प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 190.00
कुर्आन कविताएँ : मनोज कुमार श्रीवास्तव प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 150.00
मैथिली पोथी

विकास ओ अर्थतंत्र (विचार) : नरेन्द्र झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 250.00
संग समय के (कविता-संग्रह) : महाप्रकाश प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
एक टा हेरायल दुनिया (कविता-संग्रह) : कृष्णमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 60.00
दकचल देबाल (कथा-संग्रह) : बलराम प्रकाशन वर्ष 2000 मूल्य रु. 40.00
सम्बन्ध (कथा-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 165.00

पुस्तक मंगवाने के लिए मनीआर्डर/ चेक/ ड्राफ्ट अंतिका प्रकाशन के नाम से भेजें। दिल्ली से बाहर के एट पार बैंकिंग (at par banking) चेक के अलावा अन्य चेक एक हजार से कम का न भेजें। रु.200/- से ज्यादा की पुस्तकों पर डाक खर्च हमारा वहन करेंगे। रु.300/- से रु.500/- तक की पुस्तकों पर 10% की छूट, रु.500/- से ऊपर रु.1000/- तक 15% और उससे ज्यादा की किताबों पर 20% की छूट व्यक्तिगत खरीद पर दी जाएगी ।

अंतिका, मैथिली त्रैमासिक, सम्पादक- अनलकांत

अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4, शालीमारगार्डन, एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,

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बया, हिन्दी छमाही पत्रिका, सम्पादक- गौरीनाथ

संपर्क- अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4, शालीमारगार्डन, एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,

आजीवन सदस्यता शुल्क रु.5000/- चेक/ ड्राफ्ट/ मनीआर्डर द्वारा “ अंतिका प्रकाशन ” के नाम भेजें। दिल्ली से बाहर के चेक में 30 रुपया अतिरिक्त जोड़ें।


पेपरबैक संस्करण

उपन्यास

मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00

कहानी-संग्रह

रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 90.00

शीघ्र प्रकाश्य

आलोचना

इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर

बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक

बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन

सामाजिक चिंतन

किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा

शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र

उपन्यास

माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन

कहानी-संग्रह

धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम

एक साथ हिन्दी, मैथिली में सक्रिय आपका प्रकाशन


अंतिका प्रकाशन
सी-56/यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन, एकसटेंशन-II
गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
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मोबाइल नं.9868380797,
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श्रुति प्रकाशनसँ
१.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
२.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
३.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
४.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादव
५.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ आऽ २ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)- गजेन्द्र ठाकुर
६.विलम्बित कइक युगमे निबद्ध (पद्य-संग्रह)- पंकज पराशर
७.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
८. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह “नचिकेता”
९/१०/११ १.मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश, २.अंग्रेजी-मैथिली शब्दकोश आऽ ३.पञ्जी-प्रबन्ध (डिजिटल इमेजिंग आऽ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण) (तीनू पोथीक संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर , नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा)
श्रुति प्रकाशन, रजिस्टर्ड ऑफिस: एच.१/३१, द्वितीय तल, सेक्टर-६३, नोएडा (यू.पी.), कॉरपोरेट सह संपर्क कार्यालय- १/७, द्वितीय तल, पूर्वी पटेल नगर, दिल्ली-११०००८. दूरभाष-(०११) २५८८९६५६-५७ फैक्स- (०११)२५८८९६५८
Website: http://www.shruti-publication.com
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२.संदेश
१.श्री प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
२.श्री डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह|
३.श्री रामाश्रय झा "रामरंग"- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
४.श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बाधाई आऽ शुभकामना स्वीकार करू।
५.श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
६.श्री डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
७.श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
८.श्री विजय ठाकुर, मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
९. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका ’विदेह’ क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आऽ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१०.श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका ’विदेह’ केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
११.डॉ. श्री भीमनाथ झा- ’विदेह’ इन्टरनेट पर अछि तेँ ’विदेह’ नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।
१२.श्री रामभरोस कापड़ि भ्रमर, जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत से विश्वास करी।
१३. श्री राजनन्दन लालदास- ’विदेह’ ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रि‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।
१४. डॉ. श्री प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भ' गेल।
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आऽ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।
विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
महत्त्वपूर्ण सूचना (१):महत्त्वपूर्ण सूचना: श्रीमान् नचिकेताजीक नाटक "नो एंट्री: मा प्रविश" केर 'विदेह' मे ई-प्रकाशित रूप देखि कए एकर प्रिंट रूपमे प्रकाशनक लेल 'विदेह' केर समक्ष "श्रुति प्रकाशन" केर प्रस्ताव आयल छल। श्री नचिकेता जी एकर प्रिंट रूप करबाक स्वीकृति दए देलन्हि। प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (ISBN NO.978-81-907729-0-7 मूल्य रु.१२५/- यू.एस. डॉलर ४०) आऽ पेपरबैक (ISBN No.978-81-907729-1-4 मूल्य रु. ७५/- यूएस.डॉलर २५/-) मे श्रुति प्रकाशन, १/७, द्वितीय तल, पटेल नगर (प.) नई दिल्ली-११०००८ द्वारा छापल गेल अछि। e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com website: http://www.shruti-publication.com
महत्त्वपूर्ण सूचना:(२) 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश आऽ ३.मिथिलाक्षरसँ देवनागरी पाण्डुलिपि लिप्यान्तरण-पञ्जी-प्रबन्ध डाटाबेश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे -१.मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश, २.अंग्रेजी-मैथिली शब्दकोश आऽ ३.पञ्जी-प्रबन्ध (डिजिटल इमेजिंग आऽ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण) (तीनू पोथीक संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर , नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा)
महत्त्वपूर्ण सूचना:(३) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक 'सहस्रबाढ़नि'(उपन्यास), 'गल्प-गुच्छ'(कथा संग्रह) , 'भालसरि' (पद्य संग्रह), 'बालानां कृते', 'एकाङ्की संग्रह', 'महाभारत' 'बुद्ध चरित' (महाकाव्य)आऽ 'यात्रा वृत्तांत' विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे- कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ आऽ २ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)- गजेन्द्र ठाकुर
महत्त्वपूर्ण सूचना (४): "विदेह" केर २५म अंक १ जनवरी २००९, ई-प्रकाशित तँ होएबे करत, संगमे एकर प्रिंट संस्करण सेहो निकलत जाहिमे पुरान २४ अंकक चुनल रचना सम्मिलित कएल जाएत।
महत्त्वपूर्ण सूचना (५):मैलोरंग २५ दिसम्बर २००८ कें सेमिनारक आयोजन एन.एस.डी. कैम्पस, भगवानदास रोड, नई दिल्लीमे आयोजित कएने अछि।
२.गद्य
२.१.कथा १. सुभाषचन्द्र यादव २. भ्रमर ३.गजेन्द्र ४.परमेश्वर कापड़ि आ ५.शुशान्त
२.२.बी. पीं कोइराला कृत मोदिआइन मैथिली रुपान्तरण बृषेश चन्द्र लाल
२.३.उपन्यास- चमेली रानी- केदारनाथ चौधरी
२.४.सगर राति दीप जरय मैथिली कथा लेखनक क्षेत्रमे शान्त क्रान्ति-डा.रमानन्द झा ‘रमण‘
२.५. 1.आलेख-महेन्द्र कुमार मिश्र/ 2.दैनिकी-ज्योति/
२.६. रिपोर्ताज- मनोज मुक्ति- 1.अवैद्य नागरिकताः सिक्कलमीकरणक प्रयास, 2.तराई/मधेशक आन्दोतलनः लूटमे लटुवा नफ्फाथ,3.अन्तर्वार्ता-डा. राम दयाल राकेश/आभाष लाभ,4.त्रिभुवन विश्वतविद्यालयद्धारा मिथिलाक्षर फन्टकक विकास
२.७. जितिया/ मकड़ संक्रांति-मनोज मुक्ति
२.८. धीरेन्द्र प्रेमर्षि-नव भोर जोहैत मिथिला
चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द
सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल- मधुबनी। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।

एकटा अंत
समदियाकेँ देखिते माथ ठनकल । कतहु ससुरकेँ ने किछु भऽ गेलनि ! ओ बहुत दिनसँ दुखित रहथि । डाक्टरो जवाब दऽ देने रहनि । हम एक मास पहिने देखि आयल रहियनि । हमर पत्नी सात-आठ मास पहिने गेल छलीह । फेर आनो बेटी सभ भेंट कऽ अयलनि । सभ क्यो हुनक मृत्युक प्रतीक्षामे रहय ।
'कका खतम भऽ गेलथिन’-समदिया बाजल ।
'कहिया हौ ?'-पत्नीम चकित होइत पुछलथिन आ जा समदिया 'चारि दिन पहिने’ बाजल ता पत्नीक क्रंदन शुरू भऽ गेलनि । ओ कनैत रहलीह आ बीच-बीचमे अपन उलहन, अपन पछतावा जनबैत रहलीह । बाकी सब शोकाकुल मौनमे डूबि गेल ।
बुझाइत अछि ससुर देह त्यागि एत्तहि चल आयल छथि आ हमर सभक मन-प्राणमे बसि गेल छथि । चेतनामे हुनक स्मृति निरन्तर चलि रहल अछि ।खाइत-पिबैत, उठैत-बैसैत दिन-राति हुनके चर्चा होइत अछि। हमरासँ पत्नी केँ शिकायत छनि जे हमरे कारणे ओ अपन पितासँ अंतिम समयमे भेंट नहि कऽ सकलीह । हम कहि देने रहियनि जे ठीक छथि । आइसँ एक मास पहिने ओ ठीके नीक रहथि । लेकिन एकटा बात हम नहि कहने रहियनि । ओ कहऽ वला बात नहि रहै । मात्र एकटा पूर्वाभास । जखन हुनकासँ विदा लेबऽ गेल रही तऽ हुनकर आँखिमे ताकने छलियनि । ओहो हमर आँखिमे ताकने छलाह । आ हमरा दुनूकेँ बुझायल रहय जेना ई ताकब अंतिम ताकब थिक, जेना आब फेर कहियो भेंट नहि होयत ।
सएह भेल । ओ चल गेलाह । आब नहि भेटताह । लेकिन ओ दृष्टि मनमे अखनो ओहिनाक ओहिना गड़ल अछि आ हुलकी मारैत रहैत अछि । अइ अनुभव दिआ हम पत्नी केँ किछु नहि कहलियनि । गोपनीय नहि होइतो ई ततेक व्यकक्तिगत रहै जे एकरा बँटबाक इच्छा नहि भेल। व्य क्तिक जीवनमे एहन बहुत रास अनुभूति होइत छैक जे ओ ककरो नहि कहैत अछि; जे ओकरे संग चल जाइत छैक।
हमसभ ससुर संग बीतल समय आ प्रसंग मोन पाड़ैत रहैत छी; एक-दोसरकेँ सुनबैत छी। वात्सल्य स्नेह आ प्रेमसँ भीजल क्षणकेँ स्मरण करैत पत्नी भावुक भऽ जाइत छथि, कंठ अवरूद्ध भऽ जाइत छनि आ आँखि नोरा जाइत छनि । ओ बजैत छथि-'बाबू कहियो हमरा बेटी नहि कहलनि; सभदिन बेटा कहैत रहलाह । पछिला बेर चलैत काल भेंट करऽ गेलियनि तऽ पुछलथिन-चूड़ी नहि पिन्हलह ?आब के एतेक निहारि-पिहारि कऽ देखत जे चूड़ी नव अछि कि पुरान ?’ पत्नी सोगमे डूबि जाइत छथि ।
हमसभ हुनक अंतिम अवस्थाक कष्ट, उपेक्षा आ निराशाक चर्च करैत छी । परिवारक के कतेक सेवा केलकनि, के कतेक अवहेलना, तइपर टीका-टिप्पणी करैत छी आ सोचैत छी हमहीं सभ की केलियनि, किछु नहि ।
नह-केशसँ एकदिन पहिने सासुर पहुँचैत छी ।मृत्यु जे शून्यता आ नीरवता छोड़ि गेल अछि, कन्नारोहटि तकरा तोड़ैत रहैत अछि। भोज-भातक गप आ ओरिआन चलि रहल अछि । हमरा लगैत अछि श्राद्धक कर्मकांडमे व्यस्त भऽ कऽ लोक सोग बिसरि जाइत अछि । कर्मकांडक और कोनो सार्थकता नहि छैक ।
हमर एकटा साढू अखने आयल छथि-केश कटेने । जहिया समाद गेल हेतनि, तहिये या अगिला दिन कटेने हेताह । हमरा सन सम्बन्धी लेल तीन दिन पर केश कटेबाक विधान अछि। हमरा चारि दिन पर खबर भेटल रहय आ हम सोचने रही जे केश नहि कटेबा लेल एकरा ढाल बनाओल जा सकैत अछि। लेकिन साढूक मूड़ल माथ देखि बुझायल जेना ई तर्क ठठऽ वला नहि अछि। हम चिन्तित भऽ जाइत छी ।एहि लेल नहि जे बेलमुंड भऽ गेलापर देखऽ मे नीक नहि लागब । केश तऽ हम नहिए कटायब । तँइ बेलमुण्ड हेबाक तऽ प्रश्ने नहि अछि । लेकिन विरोध बहुत होयत । हम उठल्लू भऽ जायब । एकरे चिन्ता अछि ।
नह-केश दिन ठाकुर भोरे चल आयल अछि । केशकट्टी चलि रहल छैक । हम दू-तीन बेर टहलि कऽ एहि कर्मकेँ देखि आयल छी । एकबेर एक गोटय पुछबो केलक—'कटेबै ?’ हम हाथसँ अस्वीकृतिक मुद्रा बना घूमि गेलहुँ । ओ सोचने होयत बादमे कटेताह । हमर एकटा आर साढू आबि गेल छथि। आ केश कटवा रहल छथि । एकटा क्षण एहन अबैत अछि जखन घरक सभ पुरूखक माथ छिलायल अछि आ एकमात्र हम विषम संख्या सन बचल छी । आब कतेको गोटय पूछऽ लागल अछि-'केश नहि कटेबै ?' 'की हेतै ?' कहैत हम टरि जाइत छी ।
आब ककरा-ककरा बुझौने घुरियौ जे हमरा एहि कर्मकांडमे विश्वास नहि अछि। बुझेबो करबै तऽ क्यो बुझऽ लेल तैयार होयत ? लेकिन हमर केश सभक आँखिमे गड़ि रहल छैक ; अनटेटल आ अनसोहाँत लागि रहल छैक ।
हम दाढ़ी बना रहल छी । सोचने छी तकर बाद नह काटि लेब । सासुक नजरि हमरा पर पड़ैत छनि । बेटीसँ पुछैत छथिन-'दुल्हा केश नहि कटेलथिन ?’ हमर पत्नीकेँ खौंत नेस दैत छनि । हमरा दिस तकैत फुफकार छोड़ैत छथि—'आ गय, पापी छै, पापी । पता नहि बाप मरल रहै तबो केश कटेने रहै कि नहि !'
हमरा तामस उठैत अछि; दुख होइत अछि, लेकिन चुप रहि जाइत छी। केश कटा कऽ हमर दुनू साढू निश्चिन्त छथि । एकटा तऽ पी रहल छथि आ कखनो आयोजन तऽ कखनो सारि-सरहोजिक आनंद उठा रहल छथि ।
केश कटा लेने रहितहुँ तऽ हमरो लेल सब किछु आसान आ अनुकूल रहितय ।लेकिन विश्वास आ आत्माक खिलाफ कोनो काज करब हमरा बूते पार नहि लागि सकैत अछि। केश कटेने मृतात्माकेँ मुक्ति आ स्वर्ग भेटि जेतैक आ नहि कटेने नरक ? एहन विचार हमरा लेल हास्यास्पद अछि । तखन केश कटेबाक कोन तुक? की एहि लेल जे देखू हम हुनक सम्बन्धी छी आ शोकाकुल छी ? सम्बन्ध आ सोगक एहन प्रदर्शन हमरा बहुत अरुचिकर बुझाइत अछि । हमर वश चलितय तऽ सब कर्म आ भोज-भात बंद करबा दितियै ।सोचि लेने छी जे लिखि कऽ चल जायब जे हमर मृत्युक बाद ई सभ नहि हो ।
बुझाइत अछि हमर पितिऔत सारकेँ क्यो हुलका देने छनि ।ओ धड़धड़ायल अबैत छथि आ हमर डेन पकड़ि घीचने ठाकुर लग लऽ अनैत छथि—‘ठाकुर, छिलह तऽ ।' ठाकुर आदेश सुनियो कऽ उठैत नहि अछि। सार हमर कनहामे लटकि जोर लगा कऽ हमरा बैसाबऽ चाहैत छथि । हम बूझि नहि पबैत छी जे ओ चौल कऽ रहल छथि कि गंभीर छथि ।हम छिटकि कऽ एकटा कुर्सी पर बैसऽ चाहैत छी ।लेकिन जा-जा बैसी ताहिसँ पहिनहि ओ कुर्सी खींचि लैत छथि आ हम खसैत-खसैत बचि जाइत छी । लोक हाँ-हाँ ‘ करैत अछि । हम क्रोध आ अपमानसँ तिलमिला उठैत छी—‘बहानचोद, चोट्टा, उल्लू !’
‘ईह रे बूड़ि, बुधियार बनैत छथि !भोज परक पात छीन लेब सार ।'- कहैत ओ चल जाइत छथि।
क्यो कुर्सी पर बैसा दैत अछि । हम बैसि जाइत छी । भीतरसँ खौलैत। 'की भेलै ? की भेलै?’—पूछैत आँगनसँ कैक गोटय आबि गेल अछि। हम उठि कऽ आँगन चलि दैत छी ।
फ्लैश बैक-रामभरोस कपडि भ्रमर

नरेश पाछां चलि गेल अछि, बहुत पाछां । प्रायः पचास वर्ष पाछां । गामक सहपाठी सभक संगे खेलए ओ । बहादुर नोकर रहैक – वावूजी जंगलकातसं लओने छलाह । एक बोलिआ, आदेश चाही, काम फत्तह कइएक दम लैत छल । से बाबूजीकें आदेश रहैक – गुरुजीलग पढ ल जएबाक छै से बहादुर लाख चिचिऔलो पर नरेशकें कान्हलपर बोकि कन्हा इ साहुक दलान पर गुरुजी लग दइए अबैक । ओत्त गेला पर गुरुजीक कांच करची अथवा खजूरक छडी ओकर सभ जीद हेरा दैक । ओ चुपचाप हाथमहक पाटीपर कारिख पोति कचरासं साफ क चमकाब लागए आ तखन भठासं लिखबाक प्रयास करए – क ख ग घ...।
“इस्सप....” गुरुजीक छडी जखन बांहि पर पडैक तं ओ लोहछि जाए । मन होइ भागि जाइ मुदा... वहादुरक डीलडौल आ पिताक आदेश मन पडितो मनमारि क पाटी पर आंखि गडा कखरा लिखबाक प्रयास कर लगए ।
गुरुजीक ओहिठाम बटखरा कंठस्थथ रहैक । ई कंठस्थब करब ओकर मजवूरी रहैक, ओना हिसावमे ओ ओहुना कमजोरी महशूस करए । चौठचन्दिमे गुरुजीक संग घंटी बजबैत, काठक डंटाकें बजबैत घरे–घरे घुमनाई आ गुरुजीक डेरापर जा गुडचाउरक प्रसाद खएनाईक अपन आनन्दट रहैक ।
आनन्दच तं पानि नहि पडने हर हर महादेव बना गाम घुमबै काल सेहो अबैक । कोनो सहपाठीकें सौंसे देहमे छाउर रगडि देल जाइत छलैक । माथपर आ बांहिमे सेहो अशोक पात सभ लपेटि देल जाइत छलैक । माथ पर जूट आ सनसं जटा ताहिपर टीनकें कैंचीसं काटि चान लटका देल जाइक । हाथमे वावाजीके त्रिशूल आनि क ध देल जाइक । वस–वनि जाइक महादेब । छौडा सभक हेंज पाछां–पाछां हाक परैत जाइक – हर, हर महादेव पानी देऊ अलिकती पुगेन, बढी देउ ! भाव रहैक महादेव पानी दीअ, कम सं नहि भेल, बेसी दीअ.... । जकरा दरबज्जाल पर जाइक पानि उझलि दैक । मान्यढता रहैक पानि देलापर वर्षाक संभावना बढि जाइत छैक । वेचारे महादेव बनल बौआ बादमे थर–थर कांपए, वच्चाव सभ ताली पिटैत हंसैक । वाल सुलभ प्रताडना ओहि समयमे खूब प्रचलित रहैक । नरेश ओहि हेंजमे अगुवा रहय....।
नरेशक ठोढ पर अपने आप मुस्कीक दौडि जाइत छैक । वितलाहा क्षणक स्मैरण कतौसं गुदगुदा दैत छैक ओकरा । वालशोषणक विरुद्ध ओहो कतेक आलेख लिखि चुकल अछि, कतेको सेमिनार मे भाग ल भाषण छांटि चुकल अछि । मुदा नेनामे नेनेद्वारा कएल ई अपराध शोषण नहि रहैक ! नरेश वाल सुलभताक ओ क्षण फेरसं स्मलरण करैत सिहरि उठैत अछि आ कतौ भोतिआ जाइछ पुन.......।
मुश्कििलसं ७–८ वर्षक छल हयत । गामेक स्कूसलमे पढए, मुदा संगति रहैक अपने टोल महल्लालक धीआपूतासं । ताही मंडलीमे एकटा छौरी रहैक इजोतिया । ओकरे लगुआक वेटी । नीक रहैक कि अधलाह ओकरा तहिया ज्ञान नहि रहैक मुदा ओकरा संगे इजोरिया रातिमे अन्हकरिया–इजोरिया खेलैत ओ खूब प्रशन्न् रहल करए । आंगनेमे दुनूपयर आगां पसारि वैसि , वांहिके केहुनी लगसं मोडि आगां पाछां करैत आ ताही लयमे दुनू पयरके सेहो आगां पाछां करैत पाछा मुंहे घुसकैत इजोतिया खेलल करए आ गाओल करए–“आगेमाई ककरी के बतिआ...” त ओकरा नीक लगैक ।
इजोरिया रातिमे चानक चारुकात बनल गोल घेराकें कौतुहल सं देखैत काल माय रहस्यरमय बोलीमे समझबैक – ई हमरा सभक पुरखा सभक वैसार छै इन्दरर भगवान लग । कहै है निचां पानि विना अकाल पडल छै, पानि दिऔ । आब पानि हयबे करत....। नेनामे ई बात सत्य लगैक आ आश बन्हांई जरुर वर्षा हयत ।
तेहने समयमे जट–जटिन गीत होइक । टोलक महिला सभ जटा आ जटिन कनए आ गीत गाबि–गाबि झूमए । ओहिमे पुरुष नहि, नेनाकें छुट रहैक । नरेश नियमित ओकर दर्शक रहए, ओकर संगी इजोतिया ओहि मंडली मे सामेल रहैक, ओ एकटक ओकरा सभकें झूकि क आगां बढैत आ तहिना माथ उठा क पाछां अबैत देखैत रहय..... ।
नरेशकें फेर किछु मोन पडैछै, ठोढ पर हंसी अबैत–अबैत रुकि जाइछै । भतखोखरि बुढिआक अंगनामे वेंग कुटि मैलाक संग पतली फेकि देल जाइ छल आ ओ वुढिआ भरि राति फेकनिहारिकें पुरा खनदानकें उराहि दैत छलैक । वेटी–रोटी करैत रहैत छली । वास्तभवमे वेंट कुटि क तए ओकरे आंगनमे फेकल जाइत छलै जे ओ बेसी गाडि पढि सकैत छलीह । राति भरि जुआन छौडी सभक धुमगज्जमरिक संग वालसुलभ उत्सुउकतासं पाछां – पाछां दौगब महज खुशी दैत छलै । लगै दिनमे बहादुरक घीसिआ क गुरुजी के चटिसारमे ल जएबाक डरसं मुक्त रातुक ई माहौल स्वशच्छलन्दा छैक । ने वावूजीक डर, ने वहादुरके उठा ल जएबाक चिन्ताग । वात वुझौक कि नहि, नरेश रमल रहैत छल ओहि खेलमे ।
ओकरा तं तखनो ने किछु बुझायल रहै जखन इजोतिया ओकर घरक पछुआर बला गाछी आ भुसा घरलग एकटा प्रस्ता व कएने रहैक – नरेश,खेलबे अर्थ त ओकरा ओतेक नै वुझल भेलै मुदा ओकर इशारासं आशय वुझने रहय आ डेरा गेल रहैक – नहि, हम नहि खेलबौ । ठाढे ओ नासकार चलि गेल रहय । जं कि इजोतिया ओकरा उमेर सं बेसीक वुझाइक, ओ वातकें वुझैक, मुदा नरेश....।
पता नहि नरेशकें किए आइ पुरना बात मोन पड लागल छै । ओ भोरेसं अपन पोताक उदण्डेपनीसं फिरिशान भेल अछि । एक तं भोरमे देरीसं उठत, उठि कत्त पडायत ठेकान नहि । स्कूरल जएबाक कोनो जरुरी जेना नहि होइक । कुण्ड लिया छौडा सभक संगत आ पता नहि गुटका, भांग, सिगरेट किंवा आनो कोनो नशा खाइत हो ,त मनमे आशंका उठल छै । खौंझायल मोने वरण्डा क खुरसीपर बैसि गेल । तखने ओकरा वुझएलै – एक ई दिन अछि आ एक ओ दिन रहय ।फेर भसिया गेल रहय । एखनो मोन थीर कहां भेलैए...।
माय जखन ओकरा दुनू मोडलहबा टांगपर लादि दुनू हाथ पकडि घुघुमना खेलबै तं हिल्लाक झुलबाक मजा ओ लेल करए । गीतकलय संगे झुलैत नरेशक वालपन महज देहमे गुदगुदी आ आनन्दड मात्र उठा सकैत रहय वुझए किछु नहि ।
मुदा जखन ओ टेल्हागर भेल त मायक नक्क्ल करबाक मोन होइक । अपन भातिजकें ओहिना टांगपर ध झुलब लागय आ पढ लागय–घुघुमना घुघुमना, बौआकें गढा देब दुनू कान सोना । ओकरो झुलबैत आनन्दर लगैक आ बौआ सेहो हंसि, हंसि क अपन आनन्दनक अनुभूति करबैत छल । ओना ओकर छोट–छोट पयर–हाथ बौआके बेसी काल सम्भाआरबाक अवस्थापमे नहि रहैक, ओ उतारि दैक तुरते ।
अपन नेनपनक उछल–कुदक दूटा घटना मन पडिते सौंसे देह सीहरि जाइत छैक । बड मुश्किछलसं बचल रहैक आंखि ओकर.. । आंगन मे दुनू भाइ खेलैत रहय । भैया तीर धनुष बना चलौल करए । एक बेर भेलै ई जे तीर सोझे नरेशकें आखिएमे लगलै–वाम आंखिमे । सौंसे हाहाकार मचि गेलै, माय त बताह भ गेल छलीह । ओकरा कनैत–कनैत बेहाल रहैक । गामेक टोटकासं आंखि ठीक भेल रहैक । पता नहि माय कोन–कोन दैब पीतरकें एहि लेल मानि देने छलीह । तहिना एकबेर गछुलीमे आम लुट बेरमे अन्धा धुन्धर दौगल रहय नरेश, त गाछीमे गाडल एकटा खुट्टाक नोक सोझे कपारमे गरि गेल रहैक । माथ सुन्न भ गेल रहैक । मायके जखन पता लगलै त ओ हकासल–पिआसल दौगलि रहय घराडी पर आ ओकरा समेटि क गामक बैध लग लजा उपचार करौने रहैक ।
वाल सुलभ जीवन शैली, गामसं जनकपुर धरिक यात्रा, पढाइ आ डिग्री सभक अपन–अपन कथा रहैक । धन–खेती जे होइक, शिक्षामे पछुआएल परिवारक प्रत्येाक ओ संघर्ष ओकरा भोग पडलै जे एकटा सभ्यथ समाजक अंग बनबा ले जरुरी होइत छैक । आइ जखन उमेरक चारिम प्रहरमे जएबा ले तैयार अछि ओकरा लगैछै ओ फेरसं बचपन दिश लौट चाहैए । दिन रातिक षडयन्त्रे, राजनीतिक विद्रुपतता, चन्दाक, अपहरण, हत्यान किंवा दिन दिन बढैत असुरक्षाक भय आ आतंकसं त्रसित समाजमे तनावक जिनगी जीबाक अर्थेकी?
मुदा फेरसं ओ स्वतयं प्रश्नग करैत अछि की ओ नेनपनक स्वुच्छ न्दच, सहज स्नेअहसं भरल किछु साल घूरि सकत ! चलु ओ वितलहा वर्ष नहि घूरत ई सत्य थिक, अपने तं ओहि युगमे जा सकैछी ने ! हं, ई संभव छैक । भ सकैछ एना भेने तनावमे कमि अबैक, मुंहपर चापलुसीक वोल झाडैत, परोक्षमे चरित्र हत्याओले उताहुल सरसमाजक व्य क्तित्वअक दोगला मुंह देखबाक दुर्भाग्यडसं बंचि त सकै छी । हमहीं किएने अपनाकें नेना बनाली !
नरेशकें अपने सोचपर हंसी लगै छी । की ई संभव छैक । ओहुना साठिक बाद लोक नेनपनमे पुनः प्रवेश क जाइए कहांदन । ओकरो अवस्थाक तं आबिए रहल छैक । चलल जाए एक बेर सएह सही....।
नरेशकें जेना सौंसे देह हल्लुहक लगैत छैक । वरण्डाहसं उठैत अछि । आंगन मे अबैत अछि । पोता आबि गेल छै । ओकरा डंटबाक इच्छां रहितो ओ चुप रहैत अछि । प्रारंभ एत्तहिसं हुअए तं हर्जे की?
शिक्षा अभियान- गजेन्द्र ठाकुर
“हे हम डोमाकेँ पढ़ा लिखा कए किछु बनबय चाहैत छी । “ बुछन पासवान बाजल । चण्डीगढ़मे रिक्शा चलबैत छथि । गाममे खेती – बारीमे किछु नहि बचलैक । छोटका भाय सम जनमिते मरि जाइत रहय से डोमक हाथसँ एकटा छोटका भायकेँ जनमलाक बाद माय – बाप बेचलन्हि आऽ फेर पाइ दऽ किनलन्हि । ई समटा काज ओना तँ सांकेतिक रूपेँ भेल मुदा एहिसँ ग्रह कटित भऽ गेलैक । आऽ छोटका भाय जे बुधन पासवानसँ १२ बरिख छोट रहए बचि गेलाह । आऽ ताहि द्वारे ओकरा सम डोमा कहि सोर करए लगलाह । बुधन अपन बाप – मायक संग हरवाही करथि मुदा भायकेँ पढ़ेबाक बड्ड लालसा रहन्हि । सुनैत छिअए जे हमरा सभमे कनिओ पढ़ि – लिखि लेलासँ नोकरी भेटि जाइत छैक । एकरा जरूर पढायब, चाहे ताहि लेल पेट काटय पड़य आकि भीख माँगय पड़य ।
मुदा गाममे जे स्कूल रहय ओतय किओ टा दलित आकि गरीबक बच्चा नहि पढ़ैत रहथि। सरकार एकटा योजना चलेलक , दलितक बच्चा सभकेँ बिना पाइ लेने किताब बाँटबाक । किताब लेबाक लेल घर-घर जाऽ कए यादव जी मास्टर साहेब बच्चा सभकेँ स्कूल बजेलन्हि , नाम बिना फीसक , मासूलक लिखओलन्हि । सम हफता – दस दिन अएबो कएल स्कूल दुसधटोलीसँ , चमरटोलीसँ , धोबिया टोलीसँ । सभकेँ किताब भेटलैक आऽ सभ सप्ताहक-दस दिनक बाद निपत्ता भऽ जाइ गेलाह । देखा –देखी कमरटोली आऽ हजामटोलीक बच्चा सभ सेहो अएलाह पढ़य, किताब मँगनीमे भेटबाक लोभे । मुदा ओतए ई कहल गेल जे अहाँ सभ पैघ जातिक छी, मुफत, किताब योजना अहाँ सन धनिकक लेल नहि छैक ।
“बाबू ई काटए बला गप छैक की, छोट-छोटे होइत छैक आऽ पैघ – पैघे । स्टेटक आइ तकक सभसँ नीक चीफ-मिनिस्टर कर्पूरी ढाकुर भेल छैक, की नञि छै हौ असीन झा “ ।
जयराम ठाकुर असीन जीक केश अपन खोपड़ीक टूटल चारसँ हुलकैत सूर्यक प्रकाशक आसनीपर कटैत बजलाह।
“ से तँ बाबू ठीके “ । असीन बजलाह ।
से गाममे फेर ब्राहाण आऽ भूमिहारके छोड़ि आर क्यो स्कूलमे पढ़ए बला नहि बँचल । अदहरमे सभटा किताब ई लोकनि किनैत गेलाह ।
“ हे अदहरसँ बेसीमे नहि देब , मानलहुँ किताब नव अछि, मुदा अहाँ सभकेँ तँ मँगनीयेमे ने भेटल अछि “। आऽ दुसध टोली चमरटोली आऽ धोबिया टोलीसँ सभटा किताब सहटि कऽ निकलि गेल ।
पता नहि डोमा पढ़लक आकि नहि।

अपन अपन माय-परमेश्वटर कापडि
सबके नव नेपाल, समृद्ध आ संघात्म क नेपालक सुन्द र चित्र बनएबाक बेगरता रहनि । उमटुमाएल त’ बहुतो गोटे रहथि धरि चुनुआ बिछुआ, नामी—गरामी सातटा कलाकारके अपन बुमि ई भार देल गेलनि । भार अबधारि सब एहि निहुछल काजमे लागि जाइत गेला ।
केओ धर— मुडी, केओ हाथ त’ केओ टाङ्ग, केओ पयर त केओ बाहिँहाथ बनाबऽमे तन्मिय भ गेलाह ।
देखिते देरि सब सबआग बना बनाक अनलनि ।
आहिरेबा । जखनि जे सबके द्धारा बनाएल नेपाल मायक आगके एकठाम जोडिक देखलनि त ओ आकृति कुरुपे नहि विद्रुप आ राक्षसी लगैत छल । ई चित्र देखिते निर्माणक आग्रही संरचनावादी लोक भडकिक आन्दो लन पर उतारु भगेल ।
असलमें ई नरी चित्र भेलै कि नहि सेहे विवादक विषय बनि गेल ।
भेल कि रहै त जे पयर बनएने रहथि से रहथि माटिक मूर्तिकार आ पएर एहन सुकोमल माने परी रानीक सुन्नार पयरसन रहै । माय माये हाइछै । मायक पयर धरती परक लोकक रेहल खेहल आ कर्मठ पयर होएबाक चाही ने से रहबे नहि करए । मुँह जे बनएने रहथि से अमूर्त पेन्टिरङ्गक रहैक । आँखि किदन त नाक निपत्ताप । केश दोसरे रङ्गके, पश्चिहमी कटिङ्गके । फडफरायल ठाढ, किछु लट ओम राएल बेहाल । हाथ धातु मूर्तिकारद्धारा बनाएल रहैक त धर काठ मुर्तिकारद्धारा बनाएल कोकनल, निरस । लगै जेना मेहन जोदर्डो सभ्यदताक वा पाषणकालक उत्खधनन कएल गेल हो । तहिना कटि आ ओद्रभाग हिन्दीस फिल्ममक आइटम गर्लक कपचि छपटिक ल आएल सनके । बेनङ्गन निर्लज ।
बात निर्विवाद छलै जे समरसताके अभावमे ई मूर्तिपूर्णे नहि भेलै । गढनिसब बेमेल बानि उबानि । बेलुरा रहैक ।
असफलता पर पछताबा कोनो कलाकारके नहि रहैक । अहँकारी हेठी सबके मनमे । आब ऐ बात पर घोंघाउज कटाउँज होइत होइत अरारि आ मारि पीट धरिक नौबत आबि गेलै । से केना त जेना एखनि नेपालक क्षेत्रीय मुद्दाक बलिधिङ्गरोक विवाद ।
काष्ठ कलाबाला कहथि हपरा के अदुस अधलाह कहत, तेकरा हम बसिलेस पाङ्गि देबै । पेन्टपर रङ्गकर्मीके अपन हठ हमर सृजनाके चिन्हठ बुमके एकरा सबके दृष्टि ए दम नै छन्हिम । चित्रकारके अपने राग । पाषाणमुर्तिकारक अपने ठक ठक । सब अपन बातके इर बान्हिृ, गिठर पारि अडल जे मायक चित्र हमरे कल्प।ना भावना अनुसार बनए ।
सह लहके बाते कोन अपना आगूमे सबके सब अदने, निकम्मेड बुमथि । घोल घमर्थन, गेङ्ग छेंटके वैचारिक दर्शन कहैत सब हुडफेर फेरने घुमए ।
अपना अपनीके सब तानहिबला, सुनबाला निठाहे नइ ।
लोकमे सब रङ्गके, सब तौंतके लोक रहैछ ने । ओइमेस एगोटे आगू अएलाह आ थोडथम्हघ लगबैत कालाकार सहित सबके बम्बोकधित करैत कहलन्हिा हमर बात पहिने ध्याइनस सुनैत जाऊ । बात हम पयरस सुरु करैत छी, मूहँस नहि । पहिने पयरेस एहि दुआरे जे हमरासबके सँस्कृ तिमे सबसँ पहिने पयरे पूजल जाइत अछि । पयरे चलिक केओ अबैत अछि । पयरेपर केओ ठाढ होइत अछि । पयरै लक्ष्मीस होइत अछि । आगत अतिथिके पयरे पवित्र मानल जाइत अछि । प्रवेशके पयर देव कहल जाइत अछि । माने पयरे प्रथम अछि । कर्मशील भेने बन्दिनीय आ ई लक्ष्मी पात्र अछि । ताहि दुआरे पयरेस चित्रक निर्माण शुरु हुअओ ।

छोटकी काकी —कुमार शुशान्त्
गामक माटिक सुगन्धि, गामक बसमे बैसिते लागऽलागल । चौबीस वर्षक विछोडक बाद आइ ई सौभाग्यक भेटल । जौं कही चौबीस वर्षक बनवासक बाद तहन कोनो अतिश्योनक्ति नई, हमरालेल त बनवासे अछि गाम सँ दूर । जेना–जेना आन–आन गामके पार करैत बस अपन गामक लगमे अबैत गेल, तहीना–तहीना हृदयमे एकटा हटले प्रकारक उमँगक सँचारके अनुभूति होबऽ लागल । हौजी, गाममे प्रवेश आ अपन घरक दूरी दश डेगक, मूदा दू मिनट पहाड सन लगैत छल ।
उठल डेग रुकिगेल जहिना एकटा आवाज कानके स्पअर्श कैलक, “छोटकी काकी गै, पाइ दहिने धान कुटबऽ ले ।” एहने बिसराह छलथि हमर छोटकी काकी । पुछलाबाद ओहो अपन परिचय “छोटकीए काकी” कहिकऽ दैत छलीह । हूनक नाम त हमरो सबके नहि बुमल अछि, लगतीह दाइ मूदा बजवैत छलियैन्हि “छोटकी काकी” नाम सँ । ओना हमर अपने नई भऽ पटिदारीक दाइ छलीह “छोटकी काकी”, मूदा अप्पोन एतेक कि आँखि खुजिते छोटकी काकीक हँसैत चेहरा देखैत छलहुँ आ बाल सुलभ हठ शुरु भऽ जाए “छोटकी काकी गै ?”
“बउवा ?”
“नीन्नीक( चीनी )बला रोटी बनएने कि नई ?”
“बाबु हमर बिसराह भऽ गेलहुँ, बिसरि गेलऊँ, नेन्ना हमर अखने बना दैत छी ।”
वाह रे शब्दगक अमृत, एतेक मधुरता !
छोटका बबा परदेश कमाइत छलथि, बड सलज लोक । एही पृष्ठाभूमिमे छोटकी काकीक धियापुताक चर्चा नई देखि अपने पाठक लोकनि जरुरे बुमिगेल हायब कि “भगवानो सँ चूक होइत छन्हिछ”, मूदा जौं हमर विचार पुछि त हम एकरा न्याठय कहब भगवानके, छोटकी काकी सन लोक जे उपमा छथि स्ने हक, प्रेमक, हुनकर घेरा सिमीत नई होए ताँए ।
सत्तेक कहबी छैक, बचपनके घटना जे बच्चामके मानस पटल पर आकीत भऽ जाइत छैक ओ मेटौला सँ नई मेटाऽ सकैया ।
प्रित दीदी नइहर आएल छलिह, हमर छोटकी काकी बेचैन, “गै छोटकी काकी किया बेचैन छें ?”
“नेन्ना रे प्रित वऊआ आएल छथिन्हट ।”
“गै छोटकी काकी, ओतेक पैघ आजन, हूनकर माए प्रित दीदी तखन बऊवा कोना भेलखुन्ह ?” मोतीसन बतीसो दाँत छोटकी काकीक चमकल, कहलीह, “हमर त बऊवे छथि ।”
“कि कहलहुन प्रित दीदी ?”
“बऊवा रे जतऽ रहैत छथिन्हर प्रित बऊवा ओतऽ ताजा माछ नईं भेटैत छैक” एहि बातक मर्म तखन हमरा बुमबामे नई आएल छल, मूदा वेसी समय सेहो नई लागल ।
सुतली रातिमे छोटकी काकीके हिंचकी हमरा भित्तर सँ मकमोरिकऽ जगा देलक । छोटकी काकी कनैत छलीह ।
“किया कनैत छें छोटकी काकी ?”
“नई किछ, सोना सुति रहू”
“नईं जो कह नेऽ ?” नोर पोछैत अपन अनुरोध रखलहुँ ।
“नेन्नान रे, प्रित बऊवा काल्हिर जाइ छथिन्ही, हुनका माछ खुअवितहुँ । पैंच नेने छलहुँ, किछु पाई बाकसमे रखने छलहुँ, हरा गेल ।”
“छोटकी काकी गै नई कान, हम कमाएब त तोर खूब पाई देबऊ तू हूनका माछ खुवा दियहुन”, भरि पाँज धऽ कऽ माथ चुमि लेलथि छोटकी काकी ।
वात्य्ेल क छहारीमें समय कोना कटल नई बुमाएल । कखनो काल बाबुजी, माँपर बड तमसाथि, “बिगडि रहल अछि, देखू ध्या न दियऊ”। ई शब्दई, शब्दब नई सँकेत छल, भेंटऽबला सजायके । किछु दिनमे परिणाम देखाई देलक, हम जिद्दपर अडि गेल छलहुँ “नई कि नईं जाएब”, जिद्द निरर्थक नई छल, हमरा हिसाब सँ, बात छल छोटकी काकी सँ दूर होयबाक । पढऽवास्ते बेबी दीदी ठाम जएबाक ।
“बच्चाू के बल कानव ” एहि कहविके चरितार्थ करैत, छोटकी काकीके कोरामें माथ राखिकऽ खूब कानी । नोर नुकवैत छोटकी काकी कहथि,“नई “जाएब त हाकिम कोना बनव ?”
“हमरा नई बनवाक अछि हाकिम”
फेर सँ हिचकी लैत सवाल पुछि बैसियैन,“हमरा कोन जरुरी अछि हाकिम बनऽके ?, नीक बला पैन्टक शर्ट पहिरलाकबाद तोहीं त कहैछें कि हमर नेन्नाब हाकिम सन लगैया”, शब्द नोरक बान्हन तोडि देलक, भरि पाँज कऽ धऽ दुनु गोटा फफक्काछ मारिकऽ कानऽ लगलहुँ । फेर कहलथि,“आहाँके हम्मेर सपत जौं नई गेलहुँ त हम्मरर मरल मुहँ देखब ।” पट सँ कोरा छोडि उठलहुँ आ प्रस्था न कऽ गेलहुँ अपना घर दिस, ओइ घर दिस जकरा काल्हिह धरि हम मदनबाबुक घर कहियैन (हमर बाबुजीक नाम मदनबाबु अछि )।
चारिए डेग आगु बढल छलहुँ की फेर सँ सुनाई परल छोटकी काकीक आवाज “घुरब तखने जखन हाकिम बनि जाएब ।” माँ सँग सूतब माँके आश्चुर्यमे रखने छलन्हिर, बेरबेर पुछथि, “कि भेल बाऊ ?”
“नई किछु, हम जाएब बेबी दीदी ओतऽ पढऽ ।” भ्‍ाोर सँ भोर बाबुजी सँगे तैयार भ कऽ विदाह भेलहुँ पढि लिखिकऽ हाकिम बनवाक लेल । विदाह बेर बाबुजी कहलथि, छोटकी काकीके गोर लागि कऽ आबऽलेल । हम अपन हिसाबक बहन्नाे बना लेलहुँ, मूदा गेलहुँ नई ।
बसमे बैसति काल बाबुजी कहलथि, “देखु वाएह छथि छोटकी काकी”
तका गेल, सत्त्तेब छोटकी काकी छलीह । “किया आएल छथिन्हग एत्त ?” बाबुजी सँ पुछलिऐन्हिि । प्रश्नेक जबाव बाबुजी नई देलथि, हमरा चाहबो नई करैत छल बाबुजीक जबाव, किया त हम बुमैत छलहुँ छोटकी काकीके अएबाक कारण । हँ, ई नई बुमल छल जे छोटकी काकीके अन्तिछमबेर देखि रहल छी । जौं ई बुमल रहैत त जतेक देर बस रुकल छल ओतेक देर कम सँ कम हुनके देखितहुँ ।
“शुश भाई एतऽ किया रुकल छी ?, कखन अएलहु” चचेरा भाईएक ई शब्दि हमर तन्द्रा तोडलक ।
जे नोर छोटकी काकीके सँग रहलापर हमरा सँग छल, हूनका बिदाह भेलाकबाद विदा भऽगेल छल । अखन..... हूनकर याद फेर सँ नेने आबिगेल छल..नो...र... ।
डटके जलपान- कुमार शुशान्तन

एकटा कविताक भाव निश्चिनतरुपसँ स्मपरण हायत,
“सात समुद्रक जलके स्यानही बनादेलजाए,
वनक जँगलके लेखनी,
समस्तँ धर्तीकेँ कागज बनादेलजाए,
तखनो भगवानक महिमा पूर्णरुपसँ नहि लिखल जाऽसकैया”

भगवानक महिमा त छोडि दिय एतबा में त डटकेजलपानेक महिमा नई अटत । डटकेजलपान हूनक वास्तिविक नाम छन्हिक दिबसलाल । जे हुनकर कर्मेन भेटल छन्हिा हूनक किछु महिमा प्रस्तु.त अइछ,
क्‍ीऋ परिक्षाक सेंन्टेर गामसँ ७० कि.मि. दूर एकटा स्कूवल में रहें, आवत–जाबत नई संभव हाएत ई विचार कऽक गामक १० टा जे परिक्षार्थी छल सबगोटे एके ठाम डेरा लेनहुँ । पहिलबेर अभिभावकके नजरसँ दूर स्व च्छंहद लंगोटिया यार–दोस्त संग रहबाक मौका भेटल । उमंग–उत्सालह त एते कि बर्णने उचित नई । ओम्हछर अभिभावकके कि फुरौलनि से भगवान जानथि । देख–रेखलेल संग लगौलनि डटकेजलपानके । एक त राकश मंडलि उपर स न्योौत से भेट गेल, डेरामें समानसब राइखकऽ फ्रेश होयबाकलेल कोका–कोला पिबाक निर्णय भेल मंइलिके । दोकानपर पहुँचिते हुकुम भेल दोकनदारके,
“दसटा खूब ठंढा कोका–कोला दऽ”
डटकेजलपान लगा कुल संख्यात छल एग्या रह, मुदा जानि–बूझकऽ मंगनऊ दशेटा ।
आवशुरु भेल विवेचन
एकटा मित्र “ जा हुनका नइ भेटलनि ”
दोसर “ नई–नई हुनका देबो नइ करबनि ”
तेसर “ से किया ?”
चौथा “ बड़ कडा निशा होइत छैक अइ में”
सब गोटे जाहि मंशासँ गप्पह नारने छलहुँ से पुरा भेल, डटकेजलपान बजलथि ।
डटके “ उबारु सब, माँए बाप परिक्षा देबला पढएने छन्हिा आ ईसब एतऽ दारु पिबइ छथि ”
एक मित्र “ तोहरा अपन ँबतजभच के शपथ छह, कतौ बजिहऽ नई ”
अंगूठा द्दाप, ँबतजभच के मतलब नई बूझलथि ताएँ झगड़ा नई कएलथि, एतबे बजलनि
“ ठिकछई–२ नइ कहब ” ।
किछुदेर सऽबके पिबैत देख नइ रहलगलन्हिल, पूछि बैसलथि,“ कते कड़ा होइछै एकर निशा ?”
मित्र “ नइ पूछह, झूमा देतौ ”
डटके “(मूंह बिचकबइत) हूँह, केहन–२ भाँग–धतूर के त सिधें घोंटि जाइ छियनि त ई कि झूमाओत ?”
मित्र “ कहैत छिओ ने , भूलियोकऽ नई पिविहऽ ”
डटके “ एहन बात छइ तहन लबही तरे ”
लेलथि कोका–कोला; मुश्किँलसँ आधा बोतल पिने रहथि कि लड़बड़ाईत आवाजमें कहैछथि “ हमरा
कान में फहऽहऽहऽ करईया ”
एक मित्र “ हौ, ई कोन बिमारी भेल ”
दोसर मित्र “ बिमारी नई, हिनका निशा लागि गेल छन्हिह ”
हौजी एतवा सुनिते आधा बोतल कोका–कोला हाथमें नेने ओङ्घराए लगलथि रोडपर । आबत भेल भीड़, जे तुरत्ते आएल रहथि हूनक एकैटा प्रश्न रहन्हि–– “ कि भ गेल छन्हि ”
“ निशा लागल छन्हिश ”
“ कि लऽ लेलथि ”
“ कोका–कोला ”
“ बड़ नौटंकियाह लोक छथि, ओइसँ कोनो निशा लगइ छइ ”
जइन एतबे जवाब धिरे–धिरे जम्मास भेल पचासटा लोकसँ सुनलथि तइन ठाढ भऽ क देहपर लागल माटि झाड़ैत बजलथि,“ उबारु सब, झूठे किया बजैजाइत गेले हऽ जे निशा बला चिज छइ से, करा देले ने बेइज्जतति” ।
एकटा मित्र “ तों किया चिंता करैत छऽ बेइज्ज तिके ?, ओकरा करऽ दहक ने जकरा ठाम इज्जेत छई ” ।
“ बोनि निक भेटल” चर्चा करैत सब गोटे पहुँचनऊ डेरामें ।
आब निर्णय भेल भोजन लेल जएबाक ।बेरा–बेरी भोजन कऽक आएल जाए ।
२ रुपैयामे भरिपेट भोजन पहिनहिं एकटा होटलमे तय कऽ क एडभान्सज १० रुपैया जमा सेहो करा चुकल छलहुँ । होटलके नाम कहिकऽ सबसँ पहिने भोजन करबाकलेल पठाओलगेल डटके जलपानकेँ । घन्टाा दू घन्टाम, चारि घन्टाट भऽगेल मूदा डटके जलपान अएलथि नहि । चिन्ताे सँ बेसी कौतुहुलतावश हुनक तलाशमे सबगोटे निकललहुँ । होटल आगा पहुँचलहुँ त फेर सँ नजर पडल किछु लोकक भीडपर । पहुचिते देखैत छी जे डटकेजलपान आओइ होटल मालिक बीच गर्मागरम बहश भऽरहल अछि ।
होटल मालिक “हम कोनहुँ किमतपर नईं खुवा सकैत छी”
डटके– “अपने मने नई खुएबे, पाई देने छियौ, फोकटमे नईं”
बीच बचाव करैत होटल मालिकसँ प्रश्नु पुछि बसिलहुँ–“की बात ”
जबावमे खाना बनाबऽवला महराज बडका हण्डातके करछुसँ पिटैत पहुँचल ओतऽ जतऽ हमसब ठाढ छलहुँ ।
दोकानदार–(खाली हण्डाा दिस ईशारा करैत)“आब बुमाएल बात”
किछुदेरक चुप्पी्क बाद, फेरसँ हाथ जोडिकऽ बजलथि–“सरकार हम मनुख्खटक भोजनके बात कएने छलहुँ”
हमसब कहलियैन्हिक–“ई त ऊचीत नई भेल ! हमसब त एडभान्सज देने छी ”
दोकानदार गल्लाैमेसँ १२ टका निकालिकऽ, लगमे आबि हाथमे पकडा देलक आ कानमें धिरेसँ कहैया–“बारह टका देलहुँ, १० टका जे अपने एडभान्स देने छलहुँ से आ सुनु–ऊ जे सामनेके होटल अछि(सामनेके होटल दिस ईशारा करैत) ओकरा मालिकसँ बड कसिकऽ दू दिन पहिने हमरा मगडा भेल छल, उपरका जे फाजिल दू टका अछि ओ हमरा तरफसँ घूसभेल, अई आदमिके काल्हिमसँ ओही होटलमें पठाऊ”
दोकानदार सँगे सब मित्रके हँसैत–हँसैत पेट दुखाए लागल ।
डटकेजलपान अर्थात दिवसलालजीक एक एकटा काजक वर्णन लिखऽमे जौं समुद्रक पानिके मसी बनादेल जाए त भलेही समुद्र सुखा जाए मूदा दिवसलालजीक कारनामा नई लिखा सकत । धन्यकछथि....दिवसलालजी !

वृषेश चन्द्र लाल-जन्म 29 मार्च 1955 ई. केँ भेलन्हि। पिताः स्व. उदितनारायण लाल,माताः श्रीमती भुवनेश्वरी देव। हिनकर छठिहारक नाम विश्वेश्वर छन्हि। मूलतः राजनीतिककर्मी । नेपालमे लोकतन्त्रलेल निरन्तर संघर्षक क्रममे १७ बेर गिरफ्तार । लगभग ८ वर्ष जेल ।सम्प्रति तराई–मधेश लोकतान्त्रिक पार्टीक राष्टीय उपाध्यक्ष । मैथिलीमे किछु कथा विभिन्न पत्रपत्रिकामे प्रकाशित । आन्दोलन कविता संग्रह आ बी.पीं कोइरालाक प्रसिद्ध लघु उपन्यास मोदिआइनक मैथिली रुपान्तरण तथा नेपालीमे संघीय शासनतिर नामक पुस्तक प्रकाशित । ओ विश्वेश्वर प्रसाद कोइरालाक प्रतिबद्ध राजनीति अनुयायी आ नेपालक प्रजातांत्रिक आन्दोलनक सक्रिय योद्धा छथि। नेपाली राजनीतिपर बरोबरि लिखैत रहैत छथि।
बी. पीं कोइराला कृत मोदिआइन मैथिली रुपान्तरण बृषेश चन्द्र लाल

हठात् अपन दडिभङ्गा आबक प्रयोजनक मोन पडि≥ते हम व्यग्र भद्र गेलहु“ । प्रायः तखन दिनक एगारह बजैत छलैक हएत । शहरबजारक कोलाहल किछु पहरक हेतु शान्त भेल छलैक । स्टेशन शून्यसन छल, सडकपर गाडी वा पैदल यात्री एकाधेटा देखयमे अबैत छलैक आ’ सेहो कखनोकाल । चारुकात प्रचण्ड रौदक साम्राज्य छल । आकाशमे उपर बहुत उपर चीलसभ उडि रहल छल । दोकानक नीम गाछपर कौआसभ कखनो–कखनो आबिकय कुचरि जाइक । कखनो–कखनो एकगोट बिलाडि दोकाने–दोकाने घुमैत छडपैत नजरि पडैक । ... हडाहा पोखरिपर सूर्यक प्रखर रौद अनवरत पडि रहल छल, मुदा अखनो मेघक छाह पडिते पानि करिक्का रोसनाई जका कारी भ जाइत छलैक आ’ बसातक छोटको झोंक ओहिमे असंख्य हिलकोरि उठाय पानिके चञ्चल बना दैत छलैक ।
हम मिसरजी लग जा क जीद्द करय लगलहु“ — शहर देखय चलू न. ”
ओ आश्चर्यस बजलाह — बाप रे, एहन रौदमे... ”
हम जीद्दपर उतरि गेलहु तखन ओ दिकिआकय एकगोट एक्का भाडापर लेलन्हि । शहरक पूरा परित्रमाहेतु नहि ... नगरदर्शनक पहिल पडावधरिक लेल मात्रहिं एक्का हमरासभके राजदरबारतक पहुचा देलक । ओहिठाम हमसभ उतरि गेलहु आ’ तकरबाद पैदले देखैत–सुनैत आगा बढलहु। बडीटाके विशाल लोहाक फाटक लगस हमसभ ओहि लालदरबारके निहारलहु जकरा बारेमे रेलगाडीमे ओ बूढा कहैत रहथि जे बनाबयमे डेढ करोड लागत पडल छैक । जाधरि ताकि सकलहु तकैत रहलहु ओहि विशाल दरबारके आ’ तहिना ओकर बडकी फूलक बगीचाके जाहिमे रङ्गविरङ्गक शोभा बढबयबला गाछ तथा फूलसभ रोपि सजाओल गेल छलैक । फाटक लग ठाढ बन्दूकधारी सिपाही हमरासभके डपटलक — कथी देखैत छह, भागह एहिठामस की ... ”
तकरबाद हमसभ हथिसार, घोडसार, असबाबखाना आदि देखलहु। एकस एक चमत्कारिक वस्तुसभ देखैत सुनैत हमरासभ अन्तमे दडिभङ्गाक बजारदिसि पैसलहु । तहिया दडिभङ्गा शहर एक्के ठाम स्थित नहि रहैक — मोहल्ला–मोहल्ला, टोल–टोल आ’ सेहो सभ अलग–अलग छुटल छिडिआयल जका रहैक । एक ठामस दोसर ठाम जायलेल छोटछीन ग्रामीण खण्डके पार करहिं पडैत छलैक — खेत, बारी, ताडक बडका–बडका गाछक पातिसभ आ’ ओहिमे सटल ताडीखानाक एकचारीसभ बीच–बीचमे बडका–बडका नालीसभमे खदबदाइत गजगज करैत टोल मोहल्लाक गन्दगी । ... शहरक बाबूसभ खपडाबला विशाल बङ्गलाक बरन्डामे भारी, चाकर आ’ बडका–बडका आराम कुर्सीपर, जाहिमे आधा शरीर सुताकय आराम कएल जाइत छैक, सुतल दूपहरियाक शून्य निहारि रहल छलाह । कखनो–कखनो एकाधटा एक्का अथवा बैलगाडी सडकक माटिके आओर महीन गर्दा बनबैत पास करैत रहैत छल ।
दडिभङ्गा शहरक दिनभरिक लम्बा भ्रमणस आखिमे विभिन्न नव–नव दृश्यसभ संजोगैत मुदा एकदम थाकल ठेहिआयल साझखन हमरासभ फेरो मोदिआइन लग पहुचलहु। मिसरजी चौकीपर बैसिते ठेहीक कारणे नमहर सास तनलनि । मोदिआइन एक बाल्टीन पानि आ’ लोटा दैित कहलकन्हि — अहासभ थाकि गेल छी । ... हात–पयर धो क ठेही उतारु देखू त एहि बौआके, ... बेचारा... ”
मोदिआइनक वचन अत्यन्त स्नेहपूर्ण रहैक । ततबे स्निग्धता नजरि आ’ भावमे सेहो छल । मिसरजी उठि हाथमे लोटा लैत बजलाह — हम कनेक पोखरिदिसि जाइत छी । ओतहि सभ त्रियास निवृत भ जल्दीये आयब । तकराबाद हमरा काजस बाहर जयबाक अछि । ”
हमहु पोखरिदिसि जायलेल उठलहु । मुदा मोदिआइन हमरा रोकि लेलकि — एखन पोखरि जयबाक जरुरी नहि छैक । ... सेहो कुबेरमे । ... आ’ फेर अहा थाकलो छी ”
हम ओही ठाम पीढीयेपर बैसिकय हाथ–पयर धोयलहु आ’ लगेक अखरे चौकीपर जा क पलथी मारि बैसि गेलहु । मोदिआइन एकगोट बडका लालटेन लेसलकि आ’ लोहाक एकगोट पातर कडीमे ओकरा लटका देलकैकि । तकरबाद एक–एक क सभ दोकानसभमे इजोत होइत गेलैक । एक्के रत्तीमे साझ मुन्हारि भ गेलैक । कीडा–फटिङ्गासभक तीख ध्वनि चारुभरिक वातावरणके हडहोडय लगलैक । अन्हारमे हडाहा पोखरि लुप्त भ गेल जेना निस्तब्धताक कारी धुधुर चद्दरि ओहि पोखरिपर चढिक पसरि गेल होइक । ओहि कारी निस्तब्धताक चद्दरिपर असंख्य भगजोगनीसभ भक–भक करैत उडय लगलैक । हमरा लागल किंवा साझक अन्हार हडाहा पोखरिपर कनेक बेशीये मोटगर भ गेल छलैक । हम कनेक डेरायल आ’ शिथिल स्वरमे पुछलिऐक — मोदिआइन, हडाहा पोखरि साझ होइतहिं ... सभ दिन साझखन क एहने कारी भ जाइत अछि ? ”
ओ एकबेर हमरादिसि धुमिकय देखलकि । अन्हारक कारणे शायद, हमरा बुझायल जेना ओ बहुत दूर होय आ’ दूरहिंस एकटक हमरा निहारि रहलि होय । कनेक दोसरे रङ्ग लागल । मुदा लगलेक ओकर स्नेहयुत्त स्निग्ध वाणीस हम आश्वस्त भ गेलहु —बौआ, हडाहा एकगोट विशेष प्रकारक पोखरि अछि ”
हम पुछलिऐक — केहन विशेष प्रकारक... ? ”
ओ बाजलि — बहुत प्राचीन पोखरि अछि ई ... ... महाभारतेक समयक थिक । तहिया एतय आटव्य जङ्गल रहैक जकरा बीचमे रहैक एकगोट छोट डबडा ”
तखन ?”
धीरे–धीरे जङ्गल फडाइत गेलैक । गामक बढैत क्षेत्र आ’ लोकसभ जङ्गलके कटैत ठेलैत गेल । कालान्तरमे अहूठाम वस्ती बैसि गेलैक । बादमे दडिभङ्गाक एखुनका महाराजक पुरखासभ एकरा अपन जिमदारीमे समावेश क लेलन्हि । ”
मोदिआइन एकहि सुरमे सुरआयल बजैति गेलि । हम अत्यन्त थाकल छलहु तथापि ओकर सुरआयल स्वरस सम्मोहित जका होइत गेलहु । ओ बजैति गेलि — जहिया ई चारुकात झारेझारस घेरल एकटा छोट डबडा जका छलैक, नित्य अही पोखरिक मोहारपर बैसिकय एकगोट मलाहिन माछ बेचैति छलि । ... मलाहिन नाम, ह्ष्ट–पुष्ट, सुन्नरि आ’ आकर्षक छलि । जेना तहिया प्रचलित रहैक ओकर पूरा देह चानीक गहनास छाडल रहैत छलैक । ओकर घर कतय रहैक, ओ कतय माछ मारैति छलि से ककरो ज्ञात नहि रहैक मुदा ओकर माछ होइक नीक ... तैं ओकरा ओहिठाम बैसिते देरी माछ फटाफट बिका जाइक । ओ हमरा चुपचाप निसायल टकटकी लगाकय देखैत आ’ सुनैत देखि बीच्चेमे रुकि गेलि आ’ पुछलकि — सुनैत छिऐक, बौआ ”
हम कहलिऐक — तखन फेर, मोदिआइन ? ”
जेना कि सभ दिन ओ करैति छलि एकदिन ओ माछ ल क पोखरिक मोहारक अपन निश्चित स्थानपर आबिकय बैसलि । ओहि दिन ओकर डालामे एकटा बडका रोहु माछ रहैक । तखने दडिभङ्गा राजाक एकगोट नामी तान्त्रिक पोखरिमे नहाकय दुर्गा कवच पाठ करैत ओही द क जा रहल छलाह । ओ लाल धोती, लाल कमीज आ’ टोपी सेहो लाले पहिरने छलाह । मलाहिनक डालीक बडका जुआयल रोहु हुनका खूब नीक लगलन्हि । ओ ओहि रोहु माछके किनि लेलन्हि । एतेकटा बडका माछ एक्के आदमीके किनैत देखि मलाहिन बड्ड हर्षित भेलि । ओ हसैति अपन खुशी व्यत्त करैति पण्डितजीके कहलकन्हि — आई त अहाक भरि घरक हेतु ई पर्याप्त आ’ भरिपोख हएत । ”
मलाहिन जखन हसलि त ओकर सजल मिलल सुन्नर चमचम करैत दातसभ ओकर सौन्दर्यके आओर चमका देलकैक । ठोरसभ रसायल आ’ लाल भ गेलैक । तान्त्रिक ओहि सुन्नरि नारीके एकटक देखिते रहि गेलाह । तखने एकटा चील तान्त्रिकक हातक माछके झपटिकय छिनि लेलक आ’ उडि गेल । मुदा माछ भरिगर रहैक तैं चील दूर नहि ल जा सकल । पचासे डेगधरि ल गेल होयतैक कि माछ खसि पडलैक । मलाहिन फेर एकबेर हसलि । तान्त्रिक खूब निहारिकय ओहि मलाहिनके देखलन्हि । हुनका लगलन्हि जेना हसीक पाछा नुकायल चेहराक मुख्य भाग वेदनास भरल कोनो प्राचीन नारीक छलैक खाली हसीयेटा ताजा आ’ अखुनकाक ... । ”
जेना तान्त्रिकके एकाएक कोनो गम्भीर रहस्य बुझा गेल होइन्ह ओ मलाहिनदिसि तकैत पुछलखिन्ह —मलाहिन, तो किएक हसलह ? ... तो के छह ?”
मलाहिन बाजलि — हम केओ होइ ताहिस अहाके की ? हसलहु एहि दुआरे जे कलियुगमे आदमीयेटा नहि खियायल पशुपक्षी सेहो खिया गेल । देखियौक ने, ओहि एकटा रोहुके चील उडाकय नहि ढोऽ सकल । तहियाक मनुखसभ परात्रमी आ’ हाथी जका“ शत्तिशाली होइत छलाह । पशुपक्षीसभ सेहो ओहने बलुआर होइत छलैक । महाभारतक कालमे एकटा चील कुरुक्षेत्रस एकगोट योद्धाक शरीरके उठाकय अही ठाम खधियामे फेंकने छल । ... कहा कुरुक्षेत्र आ’ कहा“ दडिभङ्गा कतेक दूर आ’ सेहो एकगोट योद्धाक भारी शरीर उधैत एतय तक उडब कतेकटाक चील होइत छल हएत तहिया । कतेक बलशाली रहल हएत ”
तान्त्रिक फेर पुछलखिन्ह - तो छह के ? तो ईसभ बात कोना बुझलह ? ”
मलाहिनक मुस्कान हठात् हेरा गेलैक आ’ मुह विषादस कारी भ गेलैक । ओ अपन डाला उठा लेलकि — हम केओ होइ ताहिस अहाके कोन प्रयोजन ... ?”
तान्त्रिक किंचित अधिकारपूर्वक किछु बाजक प्रयत्न करिते छलाह मुदा मलाहिन अटेरैत आगा बढि गेलि । तान्त्रिक आगास बाट घेरैत रहस्य उद्घाटित करक उद्देश्यस कडकैत बजलाह — मलाहिन, थमह तो के छह से बिना बतओने नहि जा सकैत छह तोरा हम नहि जाय देबह ।”
मुदा ताधरि मलाहिन बिला गेलि छलि । ने त ओतय कोनो मलाहिन रहैक ने ओकर डाली । खाली तान्त्रिकक कडकैत ध्वनि किछु कालधरि वातावरणमे गुञ्जैत रहल आ’ किछुअे आगा खसल पडल ओ रोहु माछ बीच–बीचमे चमकैत रहलैक । ”
हम अत्यन्त व्यग्रतास“ पुछलिऐक — तखन फेर की भेलैक, मोदिआइन ? ”
की होइतैक ? ओतयस तान्त्रिक धडफडाइत सोझे राजदरबार गेलाह, राजाके सम्पूर्ण वृतान्त सुनोलन्हि । आ’ फेर तखन तान्त्रिकेक सलाहपर एहि खधियाक उत्खननक निर्णय भेल रहैक । ओहिमे महाभारत कालक योद्धासभक शरीरक कोनो हाड भेटतैक की से सोचि पाच हजार जन छौ
(अगिला अंकमे)
उपन्यास- चमेली रानी
जन्म 3 जनवरी 1936 ई नेहरा, जिला दरभंगामे। 1958 ई.मे अर्थशास्त्रमे स्नातकोत्तर, 1959 ई.मे लॉ। 1969 ई.मे कैलिफोर्निया वि.वि.सँ अर्थस्थास्त्र मे स्नातकोत्तर, 1971 ई.मे सानफ्रांसिस्को वि.वि.सँ एम.बी.ए., 1978मे भारत आगमन। 1981-86क बीच तेहरान आ प्रैंकफुर्तमे। फेर बम्बई पुने होइत 2000सँ लहेरियासरायमे निवास। मैथिली फिल्म ममता गाबय गीतक मदनमोहन दास आ उदयभानु सिंहक संग सह निर्माता।तीन टा उपन्यास 2004मे चमेली रानी, 2006मे करार, 2008 मे माहुर।
चमेली रानी- केदारनाथ चौधरी
रहमान नामक बडीगार्ड बोतल सँ आधा गिलास स्कॉ च ढारलकफेर थर्मस सँ बर्फ निकालि कमिलेलक आ गिलास विधायकजीक हाथ मे पकड़ा देलक। किछु काल पहिलका झंझट सँ विकल विधायकजी सम्पू्र्ण गिलासक पेय केँ एकहि सांस मे घोंटि गेलाह। फेर पूर्ववत अपन सुरमादार आँखि केँ युवतीक मनचुम्भीँ मारूक स्था6न पर केन्द्रि त कनिश्चिफन्त भेलाह।
हम तहरिद्वार जा रहल छी।
स्वाकमीजी पलथी पर राखल मोटका किताब सँ नजरि हटा कयुवती केँजबाब देलथिन आ फेर प्रश्न6 केलनिमुदा ओ अइ मैनाअहाँ काकेक संग अहि अतिकाल मे कतविदाह भेलऊँ अछि
अर्थात युवतीक नाम मैना आ युवकक नाम काके। ओहि तीनूक बीच वार्तालाप होबय लागल। ट्रेन अपन फुल स्पीाड अर्थात पाँच-छः किलोमीटर प्रति घंटाक गति मे जा रहल छल। अँग्रेजक बनाओल पटरी आ बिनु बजाओल प्रत्येयक वर्षक कोशीक जानलेबा बाढ़ि। समस्तप इलाका मे अभाव आ दरिद्रताक साम्राज्यप। भविष्यल मे कोनो परिवर्तन होयत तकर दूर-दूर तक कोनो आशा नहि। धहधह जरैत बाध बोन। कतौ-कतौ गाछ वृक्षक दर्शन। ओना चारू कात तअकाले पसरल रहै।
सत्य वा झूठ। स्वापमीजीकाके आ मैनाक गप-सप सँ पता चलल जे ओ सब भारदाक सटल कटकी ग्रामक निवासी छलाह। काके मेडिकल टेस्ट दिअ पटना जा रहल छल। मैना जिद्द पसारि देलक आओर काकेक संग विदा भगेलीह। ओ सब मौसीक डेरा पर दू दिन रहि वापस होयत। स्वानमीजी समस्तीओपुर सँ हरिद्वारक बोगी पकड़ि कप्रस्थाओन करताह।
ट्रेन एक-दू टीसन रुकैत आगाँ बढ़ल। ओहि फस्ट -क्लावसक डिब्बाे मे धीरे-धीरे आलस्यो पसरि गेल छलै। सब कियो गुमसुम। मैना काकेक गरदनि पर मूड़ि रखने चुपचाप पड़ल छलीह। हुनक काजर पोतल आँखि बन्दब छलनि। काके कखनोकाल एम्ह र-ओम्हखर ताकि लैत छल। स्वाहमीजी एकाग्र भकिताबक पन्ना मे अध्यायत्मिक तत्त्व केँ ताकि रहल छलाह।
मुदाविधायकजी मे कोनो परिवर्तन नहि भेल। हुनक समस्तै वासना जे हुनक साठि वर्षक उमेरक कारण आँखियेटा मे रहि गेल छलनिमैनाक सौन्द र्यक निर्लज्ज अवलोकन मे व्यकस्तन छल।
बारम्बाहर विधायकजीक चर्चा भरहल अछि। ताहि कारणें हुनक जीवनक देदीप्य मान इतिहास जानब आवश्यबक।
लार्ड कर्नवालिसक चलाओल जमींदारी व्यतवस्थाा बहुतो प्रथाक जन्मप देलक। ओहि मे भेल खबास-खबासिनक प्रथा। भखरांइवाली अपन समयक प्रसिद्ध खबासिन छल। ओकरा दूटा बेटी छलै चानो आ मानो। चानो सासुर मे बसैत छल। मानोक बियाह पछिला अगहन मे भेलै बियाह कपाहुन कलकत्ता गेलाह से आब एगारह मासक बाद एकटा बैरन चिट्ठी पठौलनि बाद समाचार जे कोठीक मलकाइन बिस्वाास देलक हें जे अगिला मास फागुन मे एक महीनाक छुट्टी देत। हम भरिसालक दरमाहा आ जिनिस-पत्तर लकफगुआ तक आयब।
भखरांइबालीक करेज खुशी सँ फाटलगलैक। ओ हिसाब जोड़लकआब तफगुआक दिन बीस दिनक भितरे। ओ अपन बेटी मनियाँक केश मे गमकौआ तेल देलककाजर केलक आ स्नोआ-पाउडर लगा कओकरा परी बना देलक। फेर मनियाँ केँ बुझबैत कहलकजोजाके बाबू साहेब सँ एक सय मंगने आ। मास भरिक सिदहा एखने कीनि लेब से ठीक। पाहुन कलकत्ता सँ पहिने एतहि औताह। हुनका अबिते की कोनो वस्तुनक कमी रहत!
मनियाँ जखन बाबू साहेबक दलान पर पहुँचलि तओ मसनद पर ओंगठल अखबार पढ़ैत रहथि। आंगन सँ हुनकर तेसर पत्नीसजे भागलपुर जिलाक बौंसी सँ आयल छलखिनतिनकर कर्कश आबाज आबि रहल छलै। ओ अपन दुनू सौतीन संगे वाक्‌युद्ध करहल छलीहगइतोहें की बजै छौहमे छी राजाक बेटी आ तोहें छौंदरिदरक बेटी। चुपे रहौंनहि तआबि केँ झोंटा नोचि लेबहौं।
बाबू साहेब अर्थात ठाकुर त्रिलोकीनाथ सिंह। भारत स्व तंत्रा भचुकल छलैमुदा जमींदारी नहि गेल रहैक। बाबू साहेब तीस-पैंतीस तौजीक मालिक। महराजक सम्बसन्धीरदुमहला भवनचारूकात कइएक बीघा मे पसरल आमलीचीकटहरजामुन आ फूलक बगान। अपन पोखरि आ पिराभिट महादेव मन्दिहर। तीन बिआह केलनि मुदा सन्तासनक मुँह एखन तक नहि देखि सकल छलाह। आब चारिम बिआहक जोगार मे रहथि कि भखरांइबाली खबासिनक छोटकी बेटीमनियाँ सोझा मे ठार भगेलनि।
अच्छानएक सय टाका चाहीबाबू साहेब आँखि सँ मनियाँ केँ तजबीज करलगलाहमुदा कान पथने रहथि आंगन मे। समय आ अवसरक पारखी बाबू साहेब केँ निश्चसय भगेलनि जे आंगन मे पसरल वाक्‌-युद्ध जल्दीआ समाप्ते होबबला नहि। ओ मनियाँ केँ दलानक भीतरबला कोठरी मे लगेला। ओकरा हाथ पर सय टाका राखि देलनिसंगहि चारिम बियाहक कल्पाना मे कंपैत संतानक सम्पू र्ण इच्छाह केँ सेहो मनियाँक कोखि मे उझील देलनि।
मनियाँ छिड़िआयल टांग केँ समटैतआँचर सँ आँखिक काजर केँ पोछैत आ माथक बिन्दीइ केँ तकैत जखन अपन आँगन मे पहुँचलि तओकर माय भखरांइबाली सूप मे चाउर फटकै छलै। पुछलकैटाका देलकौ
हँकहैत मनियाँ मायक हाथ मे सय टाका राखि देलकै आ फेर फूटल चूड़ी आ मसकल आंगी दिस सेहो इशारा केलकै।
भखरांइबाली टाका केँ खूट मे बन्है त कहलकैजे भेलौ से बिसरि जो। डिगडिगिया पिटैक कोनो काज नहि। ई सब कने-मने होइते रहै छै। मुदा ध्या न दकसुन। ओहि कोढ़ियाक दलान दिस फेर मुँह नहि करिहएँ। पाहुन केँ कलकत्ता सँ आबै मे आब दिने कतेक छैक। पाहुन केँ अबिते सब किछु सरिया जेतौकनिश्चिदन्तर रह।
मुदापाहुन कोनो कारणें नहि आबि सकलाह। बाबू साहेबक सन्तािनक चरम इच्छाो मानियाँक पेट मे परिलक्षित होबलागल। आबएहन अवस्थास मे कयले की जा सकैत छलै।
मनियाँ ठीक समय पर गोर-नारएकटा सुन्नर बेटा केँ जन्मे देलक। मुदाबेटाक जन्मटकाल ओकरा किछु भगेलैक। बंगाली डाक्टबर बाद मे कहलकै जे मनियाँ टिटनस बिमारीक चलते मरि गेल। टिटनसक कोनो दबाइ नहि छै।
भखरांइबाली जेना-तेना ओहि नेनाक सेवाक-खेबाक इन्तटजाम केलक। नेना टनमनाइत पाँच-छह वर्षक भेल। भखरांइबाली आब शरीर सँ लचरि गेल छल। ओ हिम्मात हँसोति कएक दिन बाबू साहेबक ओहिठाम पहुँचलि।
ओहि दिन ठाकुर त्रिलोकीनाथ सिंह अपन सतमायक सराधक जयवारी भोज मे बाझल रहथि। हजारो नोतहारी पंघति मे बैसल सटासट जीम रहल छल। बासमती अरबा चाउरक भातआमिल देल राहरिक दाइलसात तरहक तरकारीबेस फूलल-फूलल बड़ी आ ओरिका सँ परसल देशी घी। बुझू बहुत दिनक बाद एहन रमनगर भोज हाथ लागल छल।
की हल्ला भेलै। भखरांइबाली हाथ नचबैत चिचिया-चिचिया कबाजि रहल छलैऔ बाबू साहेबहम सत्यु बजै छी। ई अहींक जनमाओल बेटा छी।
भोज मे लूटन झा अदौरी-भाटा परसैत छलाह। ओ दालिक बारीक बिलट झा केँ रोकि पुछलनिकथिक हल्ला छैअँए हौकी बात छै
बिलट झा सविस्ता र सब बात लूटन झा केँ बुझबैत जवाब देलकनि जे बाबू साहेब एकर प्रमाण माँगि रहलखिन अछि।
उचिते की ने। बिना प्रमाणक ई गप्पू सिद्ध कोना हैत। हौप्रमाणे सँ अदालत चलै छै ने।
बारिक अपन काज में व्यमस्तू भगेलाह। भखरांइबाली लोहछल नेनाके पहुँचा पकड़ने वापस भगेलीह। ओ टोले-टोलगाम-गाम सबकेँ सविस्ताेर सूचना दएलै। मुदाओ प्रमाण नहि जुटा सकलि।
प्रमाण तकैत-तकैत भखरांइबाली एक दिन अहि धरती केँ त्यातगि देलक। ओनेना आब टोल-पड़ोस मेफेर गाम-गाम घुमि भीख मांगि कसमय बितबलागल। ओ प्रायः सदिखन नांगट रहै छल। ताहि कारणे कियो ओकर नामकरण कदेलकै ठाकुर नांगटनाथ सिंह।
किछु समयक बाद भीख मांगैक क्रम मे नांगटनाथ झंझारपुर पहुँचल। झंझारपुर मे बिर्रो अधिआइ छलै। दू वर्षक बाद बटेर सिंहक दिलबहारनौटंकीक आगमनक सूचना झंझारपुर केँ अपन गिरफ्तध मे लनेने छलै।
सब ठाम एकेटा गप्पं। दालमण्डींक तीन आओर चतुर्भुज स्थाकनक दूकुल पाँच नवकी नर्तकी इजोतक पूरा इन्ताजामनवका परदाजंगल-सीन अलग आ महल-सीन अलग। आब आरो की चाहीअइ बेर चौआनियाँ टिकटबला पाछाँ बैसत आ अठनियाँ आगाँ। सबसँ आगाँ ठीक हरमोनियम आ तबला मास्टमरक बगल मे थोड़ेक कुर्सी रहतै जाहि पर जिलाक हाकीम फ्री मे नौटंकी देखताह।
बटेर सिंह पहिल दिन �लैला-मजनूंखेलायत। फेर सिरी-फरहादनल-दमयन्तीचकटी पतंगआदि खेलाइत अन्तर मे सुल्ता ना डाकू। नौटंकीक महीना भरिक प्रोग्राम झंझारपुरबला केँ हर्षित आ प्रफुल्लिसत केने रहत।
ओही हरबिर्रो मे नांगटनाथ भीख मंगैत-मंगैत बटेर सिंहक सोझा मे आबि ठार भगेल।
बटेर सिंहक उमिर साठिक धक मे। छपरा दिसका रहनिहार। ओ चौकी पर बैसल छल। ओकर खास नोकर झरोखिया ओकर घुट्ठीक मटर फोड़ि रहल छलै। बटेर सिंह किछु काल तक अपलक नांगटनाथ केँ देखैत रहल। फेर झरोखिया केँ हुकुम देलकैलौंडा को नौटंकी मे भर्ती कर लो।
नांगटनाथ बटेर सिंहक दिलबहार नौटंकी मे की भर्ती भेल जे ओकर नसीबक पेटार खुजि गेलैक। नीक आ भरिपेट भोजनसाल-दू साल जाइत-जाइत नांगटनाथ केँ पुरुष बना देलकै।
बटेर सिंहक जवानीक प्रेमिका छलै पटोरमणि। आब पटोरमणि कोनो पाट नहि करै छैमुदा रहै छै नौटंकीए मे। कखनहुँ काल जखन बटेर सिंह मूड मे आबय तँ पटोरमणि सँ हँसी-मजाक कलिएबस। नांगटनाथ पटोरमणिक दुलरुआ बनि गेल। तकर कारण छलै पटोरमणिक गठिया दर्द। नांगटनाथ मोन लगा क घंटो पटोरमणिक गठियाबला स्थालन केँ जाँत-पीच करै छल आओर पटोरमणिक हिस्सां सँ सेर भरि दूध ओकरे हाथे पिबैत छल।
परिवर्तन तसमयक विधान थिक। सालक साल समय बितैत गेल आगाम-गामनगर-नगर घुमैत दिलबहार नौटंकी पूसा रोड सँ कनिकबे पश्चिथम कटोरिया गाम मे अपन खुट्टा गाड़लक। नांगटनाथक नौटंकीक प्रत्येिक विभाग पर पूर्ण आधिपत्यक रहैकमुदा आमद खर्च पर एखनो बटेर सिंहक कब्जाी छलैक। पांजरक हड्डी जागलकोहासन पेटचोटकल गालआ कंकाल बनल बटेर सिंह जखन सबकेँ महिना बाँटय तनांगटनाथक मिजाज मे पसाही लागि जाइकहे परमेसर! कहिया बटेरबा मरत।
बटेर सिंह मरल। नांगटनाथक मददगार भेलैक झरोखियाक बेटा ननखेसरा।
ननखेसरा नांगटनाथ केँ बुझबैत कहलकैकहिया तक बाट तकब। ई बटेरबा तनेने मे कौआक जी पीस कपी नेने अछि। बाप रौ बाप। एतेक दिन कियो मनुक्खि जीबए।
रातिक अन्तिाम पहर छल। मसनद सँ चांपिबटेर सिंहक इहलीला केँ समाप्तन कदेलक आ कन्तोेर सँ लगभग बीस हजार टाका लए नांगटनाथ आ ननखेसरा सरपट भागल। भगैत-भगैत गंगाकात जा कसाँस लेलक।
गंगाकात मे एकटा मलाह चिचियाति छलैपाँच रुपैया खेबा मेगंगा पार जेबा मे। आबि जाउनाव खुजैबला छै।
बीच गंगा मे लहरि भौर मारै छलै। नांगटनाथ आ ननखेसरा केँ डर सँ घिग्घीं उठि गेलैक। ओकरा दुनू केँ अपन पाप कर्मक बोध होमलगलैक। बटेर सिंहक बहरायल आँखिक पीड़ा डिम्हाठ आगाँ मे नाचलगलै। आब जे करथि गंगा माता।
वाह रे गंगा माइ। हिनकहिं असीम कृपा सँ दुनू गोटे पटनाक रानीघाट पर सकुशल पहुँचि गेल। दुनू स्नामन केलकफेर भरिपेट जिलेबी खेलक। एक कात एकान्तट मे जा कआधा-आधा रुपैया बँटलक। फेर ननखेसरा नांगटनाथ सँ बाजलहम एक कात जाइत छी। तों दोसर दिस जो। आब एकर आगाँ अपन-अपन नसीबक भरोसा।
ननखेसराक गेलाक बादनांगटनाथ बिदा भेल। जेम्हजर-जेम्ह र सड़क ओकरा लगेलैक ओ जाइत रहल। पैघ शहरचौड़ा रस्ताएलोकक भीड़मोटरक पीं-पां। नांगटनाथ केँ किछुओ ने पता रहैक जे कोन पूव आ केम्हपर पश्चिआम। बसचलैत गेल।
विधाता मनुक्खलक कपार पर भाग्यरेखा अंकित केने छथिन्ह । सब काल आ सब दशा मे भाग्यर संगे रहैत छैक। नांगटनाथ बौआइत-ढहनाइत एकटा पैघ मैदान मे पहुँचल। ओतलोकक अपार भीड़। सबहक हाथ मे दूरंगा झंडामाथ पर दूरंगाटोपी आ पयर हलचल। नांगटनाथ केँ भान भेलैकहो न हो इहो कोनो नौटंकिए ने होअए।
किछु कालक बाद लोकक भीड़ पंक्तिोबद्ध भएक कात सँ सड़क पर प्रस्था न केलक। देश का नेता कैसा होगुलाब मिसिर जैसा होमेरा छाप कबूतर छापआदिक नारा आरम्भो भेल। नांगटनाथ ओहि लोकक झुण्डल मे सन्हिकया गेल।
थोड़ेक कालक बादनौटंकीक माजल बटेर सिंहक लौंडाअपन समस्त् प्रतिभा केँ उजागर करलागल। किछुकालक बाद नांगटनाथ गुलाब मिसिरक बिन हुडबला जीप पर उल्टाल मुंहे ठार छल आ गरदनिक सिरा केँ फूलौने आगाँ-आगाँ बाजि रहल छलैदेश का नेता कैसा होफेर समग्र भीड़ बजैत छलैगुलाब मिसिर जैसा हो!
राति मे एरिगेशन डिपार्टमेंटक रेस्टब हाउस मेएकटा पलंग पर थाकल-चूड़ल गुलाब मिसिर पट पड़ल छलाह। आओर नांगटनाथ पूर्ण मनोयोग सँ हुनका जाँति रहल छल। पोटरमणिक गठिया जाँतपीच करैत-करैत नांगटनाथ केँ जाँतैक पूर्ण दक्षता प्राप्तन भचुकल छलैक। जीवन मे प्राप्ता अनुभव कहियो व्‍यर्थ नहि होइत छैक। नांगटनाथ गुलाब मिसिरक प्रत्येषक मांसपेशी मे सन्हिपआयल तनाव केँ विश्रामक स्थितति मे आनि देलक। गुलाब मिसिर केँ निन्न भएलै।
गुलाब मिसिर प्रातःकाल जखन उठलाह तपूरा फ्रेस छलाह। हुनका आगाँ नांगटनाथ चाहक कप नेने ठार छल।
गुलाब मिसिर मे नेताक गुण। एकहि नजरि मे ककरो चिन्है।क निपुणता। बिना कोनो प्रश्न पुछनेबिना कोनो परिचय प्राप्ते केने ओ अपन नजरि सँ नांगटनाथक अवलोकन केलनि आ मोने-मोन बजलाहसालावर्णशंकर लगता है। मेरे काम का है। इसे साथ मे रखना ठीक होगा।
नांगटनाथ गुलाब मिसिरक खासम-खास खबास बनि गेल। नांगटनाथक जाँतैक कला मे दक्षता ओकर जीवन केँ उच्च शिखर पर पहुँचेबा मे मुख्यस कारण बनल।
गुलाब मिसिर जखन मुख्यरमंत्राीक कुर्सी पर आसीन भेलाह तनांगटनाथ आओर प्रभुताबला बनि गेल। पी. ए. केँ के कहएगुलाब मिसिरक पत्निीयो केँ भेंट करैक परमिशन नांगटनाथ सँ लिअ पड़ैक।
एक समयक गप थिक। गुलाब मिसिर पानक पाउज करैत कुर्सी पर बैसल छलाह। हुनक नजदीकी सम्बनन्धी जे पार्टीक महामंत्राी सेहो छलअगामी इलेक्शीनसँ पार्टीक कैन्डि डेटक फाइनल लिस्टप बना रहल छल। तइमे एक सीट पर जीच भगेलै। गुलाब मिसिर अपन बादशाही लहजा मे कहलनि�शास्त्रा ी को टिकट नहीं देना है। वह पाजी है।
महामंत्राी झुंझला कबजलातककरा टिकट देबैककियो कटगर व्य्क्तिो अहि सीटक दाबेदार नहि अछि। कही तनांगटनाथ के टिकट ददिअनि।
महामंत्राीक व्यंटग्यद नांगटक लेल वरदान बनि गेलै। गुलाब मिसिर महामंत्राी केँ जबाब देलनिठीक तो है। इसी साले को टिकट दे दो।नांगटनाथ सहजहि विधायक बनि गेल।
नांगटनाथक गात मे ठाकुर त्रिलोकीनाथक सोनितभखरांइबालीक पालन-पोषणमुँह पर बटेर सिंहक नौटंकीक डायलॉगहाथ मे पटोरमणिक गठियाक अजमायल कलाक प्रवीणता आ ताहू पर विधायकक कुर्सी। सभ बात विलक्षण। ओ मात्रा किछुए वर्षक भीतर ट्रान्सयफरपदोन्नतिठीका पर जान लेबठीका पर पुल बनबैकअर्थात्‌ शासनक प्रत्येओक दाव-पेंच मे माहिर भगेल।
मुदा नांगटनाथ मंत्राी कहिओ ने बनि सकल। विधायक बनलोक बाद ओ गुलाब मिसिरक खबासी मे जीवन यापन करैत रहल।
आब खिस्सा क आदि मे आउ। ओहि दिन एकांत मे गुलाब मिसिर नांगटनाथ केँ कहलनिजरूरी भी है और मेरी मजबूरी भी है। इस काम के लिए इच्छा नहीं रहते हुए भी तुम्हाारा चुनाव करना पड़ा। इस तारीख को भारदा से आकर तीन जन तुम्हेंे सूटकेश देगा। उन तीनों सूटकेसों को ट्रेन से तुम झंझारपुर लाओगे। वहाँ स्टेोट प्लेबन रहेगा। उसमें तुम तीनों सूटकेस लेकर पटना आओगे और सीध्‍ो मेरे पास पहुँचोगे। तुम दिन-रात पीते हो और लफन्द।री में भी तुम्हाोरा अच्छान नाम है। मैं तुम्हें सचेत करता हूँ कि काम के वक्त न शराब छुओगे और न ही लफंगा बाला काम करोगे। सुरक्षित तीनों सूटकेस मेरे पास आना हैबस। समझे या फिर से समझावें।
नांगटनाथ नतमस्तकक भगुलाब मिसिर केँ विश्वाैस दियौलक-हजूरकनिओ चिन्ता नहि। हम अहाँक आदेशक अनुसारे काज करब। हम तीनू सूटकेस संगे सुरक्षित अहाँक सेवा मे उपस्थिसत होयब से निश्चझय बुझल जाए।
मुदा नांगटनाथ केँ अपन नेताक आदेश बिसरा गेलनि। वैह विधायक नांगटनाथबर्थ पर चित पड़लगिलासक गिलास स्कॉनच पिबैतमैनाक अद्‌भुत सौन्दार्यक पान करबा मे बेकल छलाह। तीनू सूटकेस ऊपरका बर्थ पर राखल छलै।
नांगटनाथक बुढ़ायल शरीर मे सहस्त्रानो पंचर छलै। मात्रा शिकोहाबादक झुम्ममन मियांक सुरमाक प्रतापे ओकर आँखिक रोशनी ठीक छलै। संविधान साधारणतः विधायक केँ सम्पू र्ण प्रान्त आ खास कअपन क्षेत्रक सेवाक कार्यक हेतु आदेश देने छल। मुदा नांगटनाथक एक मात्रा लक्ष्यस छलै जे कहुना मैना केँ अपन आलिंगन मे लजीवन सार्थक करी।
नांगटनाथक इच्छाश पूर्तिक सुअवसर तुरंते उपस्थिलत भेलै। काके उठि कडिब्बा क बाथ रूम मे प्रवेश केलक कि नांगटनाथ चिचिया उठलैरहमान।
अपन नाम सुनिते रहमान केँ कर्तव्यन बोध भगेलैक। ओ स्टे नगन नेने ठार भेल। बाथ रूमजाहि मे काके भीतर गेल छलैकेँ बाहर छिटकी लगा कबन्द् कदेलक आ जोर सँ दोसर बडीगार्ड केँ सम्बोाधन करैत बाजलबूढ़े महात्माि को कवर करो।
अगिला जे घटना भेलै से मात्रा किछु सेकेण्ड मे सब किछु घटित भगेलै। नांगटनाथ जोश मे आबि मैना के अपन पाँज मे समेट लेलक। दोसर बडीगार्ड स्वा मीजीक कनपटी मे स्टेेनगनक मुंह सटा कनिशाना फिट केलक आ सतर्क भगेल।
मुदा नांगटनाथक दुनू बाँहि सँ मैना छिहलैत नीचा खसलि आ फेर छिहलैत रहमानक दुनू पैरक बीच सँ बाथ रूमक फाटक तक पहुँचलि। मैना फाटकक छिटकिनी केँ खोलि देलनि। काके बिहारि जकाँ बाहर आयल तअपन दुनू हाथक गफ्फाु सँ रहमानक गरदनि पकड़ि ऊपर मुंहे झटका देलकैक। काकेक झटका मे एतेक ने बल छलैक जे रहमानक माथ भराम दडिब्बारक छत सँ जा टकरायल। ओकर हाथक स्टेझनगन नीचा खसि पड़लै। रहमानक माथक हड्डी चकनाचूर भगेलैक आ ओ बेहोश भकफर्श पर पसरि गेल। एम्ह र मैनाक हाथक कराटेक चाप नांगटनाथक गरदनिक नीचा आ कालर बोनक ऊपर पड़लैक। एकटा शब्दत भेलैक कड़ाक। बुझा गेलैक जे नांगटनाथक गरदनिक हड्डी दू फाँक मे टूटि गेलैक।
अहि सभ क्रियाक बीचहि मे स्वापमीजीक किताब सँ फायर भेलैक। ओहि मे सँ निकलल बुलेट दोसर बडीगार्डक दहिना हाथ केँ विदीर्ण कदेलक। सोनितक धार बहि गेल। स्टेेनगन फेकैत ओ बफारि तोड़ैत नीचा बैसि गेल। स्वा मीजी एतबे सँ निश्चिान्ति नहि भेलाह। ओ उठि कओहि पुस्तरक केँ अतिवेग सँ दोसर बडीगार्डक माथ पर प्रहार कदेलनि। ओकर चिचिएबाक प्रलाप बंद भगेलैक आ ओ मूर्छित भकफर्श पर चित भगेल।
एक क्षणक लेल स्वाेमीजीकाके आ मैना ठहरि कतीनू बेहोश केँ निहारलनि। ट्रेन अपना गति सँ जा रहल छलै। फस्टव किलासक डिब्बाल मे भेल घटना सँ ककरो कोनो मतलब नहि छलैक।
आश्व स्ता भकाके नांगटनाथक ऊपरका बर्थ सँ तीनू सूटकेस केँ अपन बर्थ पर अनलनि। स्वागमीजी अपन झोड़ा सँ मूठ लागल एक इंचक फलबला ब्लेसड केँ बाहर केलनि। ब्लेथड एहन ने तेजगर छलै जे कनिकबे प्रयासे गोहिक चमरा सँ बनल तीनू सूटकेस दू फाँक भकओदरि गेल।
सूटकेस मे सौ-सौ बला डॉलर केँ नोट बंडल मे पतियानि सँ सैंतल छलै। स्वानमीजी अपन झोड़ा सँ दूटा मजगूत प्लाेस्टि कक बोड़ा निकालि तीनू सूटकेसक तमाम अमेरिकन डालर भरि लेलनि। सूटकेसक पेंदी सँ एगो कागज निकलल जाहि पर लिखल छलैटोटल टेन मिलियन। अर्थात्‌ एक करोड़ डॉलर।
स्वालमीजी फेर अपन झोड़ा सँ फाटल पुरान ओ माटि मे लेटायल बोड़ा बाहर केलनि आ क्रमशः दुनू प्लालस्टि कक बोड़ा केँ ठूसि मजबूत जौउर सँ बनहन दकबान्हिम देलनि।
आब तीनू अपन-अपन वस्त्राड परिवर्तन मे लागि गेलाह। मैना बाथरूम गेली। तीनूक नवीन ड्रेस देखल जाए। स्वाीमीजी केँ ठेहुन तक फाटल धोती माथ पर डालर बला एकटा बोड़ा आ बगल मे मझोला मैल झोड़ा। काकेक डांर मे धरियादेह मे हरियर गंजीगला मे तामक तगमा। मैनाक ड्रेस सबसँ लाजवाब। श्या़म रंग मे रंगल हुनक सर्वादेहडांर मे ठेहुन सँ बित्ता भरि उठल घघरीउनटा मुंहे बान्ह्ल केस और कन्हा पर एकटा छोट सन लग्गाप जाहि मे घोंपल एकटा बिज्जी।
ओ तीनू अपन-अपन असबाब संगे इत्मी नान सँ चलती ट्रेन सँ उतरि गेलाह। स्वाहमीजी अपन झोड़ा सँ अपन किताब निकालि एक विशेष पन्ना उनटौलनि। ओहि पन्ना मे कम्पाँस फिट छलैक। ओ पश्चिहम-दक्षिण कोनक ठेकान करैत आंगुर सँ काके आ मैना केँ इशारा केलनि। तीनू सामनेक पगडंडी पकड़ि द्रुत गति सँ बिदा भेलाह।
जेठक प्रखर आ प्रचंड रौउददुपहरियाक समय। रौउद मे चिलमिलिया चमकैत रहअए। मनुक्खद संगे चिड़ै-चुनमुनियोक दरस नहि। चारू कात जीवबिहीन सुन्नाहट। एतेक बिकराल रौदक सामना के करितयसभ छांह मे नुकायल। खेत-खरिहानगाछी मे चलबाक एकटा सरसराहटि।
ओ तीनू बेग सँ चलैत रहल। आगू मे काकेबीच मे बिज्जीस घोंपल लग्गाे कन्हास पर लेने मैना आ सतर्क स्वानमीजी सबसँ पाछाँ।
करीब तीन-चारि घंटा चललाक ऊपरांतआमक गाछीक कात मे एक ठूठ गाछक नीचाएकटा औंघायल चापाकल केँ देखि तीनू ठहरि गेलाह। काके माथक बोरा केँ एक कात राखि हुमैच-हुमैच कचापाकलक हेण्डिपल केँ चलोलनितखन भुभुआकपानि खसलगलै।
तीनू चुरुके-चुरुके चापाकलक पानि पिलनि आ हाथ-पयर धोलनि। मैना अपन डाँरक बटुआ सँ बिस्कुहट निकालि कस्वाचमीजी आ काके के देलनि आ अपनो खेलनि। तीनू बिस्कुअट खा कफेर सँ पानि पिबैत गेला। फेर आबि कएक झमटगर गाछक छाया मे बसैत गेलाह।
स्वामीजी अपन झोड़ा सँ मोटका किताब निकालि ओहि मे सँ विभिन्न तार केँ जोड़लनि। एक बहुत छोट सन हेडफोन कान मे फिट ककसांकेतिक भाषा मे रिपोट पढ़लगलाह।
रिपोट केलाक बाद सांकेतिक भाषा मे हुनका चमेलीरानीक संदेश आ आदेश प्राप्ता भेलन्हि । ओ ध्याेन सँ सभ सुनिवायरलेस सेट केँ पूर्ववत किताब मे समेटि झोड़ा मे राखि लेलनि। संदेशक भावार्थ काके आ मैना केँ कहलथिन्ह जे जखन ओ सभ नट-नटिन बनि ट्रेन सँ उतरि बिदा भेलाह तखने बगलक कम्पामटमेन्टन सँ एक व्य क्तिी उतरि पाछाँ करब शुरू केलक। ओ बराबर पाछाँ करैत आबि रहल अछि। ओ व्यिक्तिह उज्ज्र पेन्टनकारी कोट आ नम्ह र जुल्फीे रखने अछि। अन्दाबजन ओ व्ययक्तिक अपन काज मे माहिर आ होशियार बुझि पड़ैत अछि। ओकरा सम्ब न्धु मे अधिक जानकारी नहि अछि।
स्वा मीजीक बाजब स्थिीर आ शान्ती छलनि। ओ फेर आगाँ कहलनिहमर सभहक एखुनका मंजिल मात्रा कोस भरि आगाँ अछि। रस्ता क डाइरेक्शथन सेहो ठीक अछि। मुदा चमेली बिटिया केँ कहब छन्हिस जे ओहि करिया कोटबला सँ फरिया ली। या तभौकी दओकरा भुतिया कआगाँ बढ़ी वा आवश्यसकता भेला पर ओकरा समाप्ता केलाक बादे अपन ठेकाना मे प्रवेश करी।
भय आ चिन्ताअ नामक कोनो भाव ओहि तीनूक लेल नहि छलै। केवल कर्तव्यआक पूर्ति आ चमेलीरानीक आदेशक पालन अभीष्टा छलै। ओ तीनू आगाँ अपन मार्ग पर बिदा भेलाह।
कनिए आगाँ एकटा पैघ गाछी छलै। गाछीक आरम्भन मे एकटा विशालकरीब दू कट्ठा मे पसरल पुरान बड़क गाछ छलै। तीनू ओहि बड़क गाछतर आबि अपना मे मंत्राणा केलनि आ अपन-अपन मोटरी संगे ओहि बड़क गाछ पर चढ़ि गेलाह। गाछ वेश झोंझरिबला छलैक। ओ तीनू उपयुक्तन स्थालनक तजबीज कअदृश्यप भगेलाह। पाछाँ करैबला आगाँ बढ़ि जाए तठीकअन्यतथा अही गाछतर ओकरा खतम कदी सैह हुनक निर्णय भेल छलनि।
किछुए मिनट बितल रहैक की उजरा पेन्टलकरिया कोटबला ओहि विशाल बड़क गाछ तर पहुँचि गेल। गाछक नीचा पहुँच कओ अकबका गेल। नाकक थुथना सँ चारू कात सुंघलक आ फेर अचम्भि त होइत ओ बड़ेक नीचा ठार भगेल। गाछक झोंझरि मे नुकायल तीनू गोटे दम सधने निचलका व्य क्तिि केँ देखि रहल छल कि एकटा अजीब घटना घटित भगेलैक।
बड़क एकटा मोटगर डारि पर स्वािमीजी आ काके अपन-अपन बोड़ा केँ टेकने ठार छल। ओहि डारिक छीप पर लग्गाा मे बिज्जीि घोंपने मैना दोसर झोंझरि मे नुकायल छलीह। हुनक बिज्जीछबला लग्गाअ ओहि सँ ऊपरका डारिक झोंझरि मे ठेकि गेल रहैक। ऊपरका झोंझरि मे एक जोड़ धामन साँप छलैक। दुनू साँप लग्गा। आ लग्गाप मे घोंपल बिज्जी केँ देखिते खोंखिया कझपटा मारलक। धामन साँप विशाल आकृतिक होइत अछि आ ओहि मे एक छोड़ि दूटा। मैनाक हाथक लग्गाे साँपक वजनक कारणे छुटि गेलनि। हुनका अपन देहक बैलेन्सआ सेहो गड़बड़ा गेलनि।
बड़क गाछक नीचा ठार व्य क्ति क दायां ओ बायां दुनू कात ओ साँप खसल। साँपक भयंकर आकृति देखि ओ बाप-बाप करितय कि तखने ओकर माथ पर मैना खसली। मैनाक घघरी हुनक सम्पू र्ण मूड़ी केँ झाँपि देलक। ओ मैना केँ नेने-देने मुँहे भरे आगाँ खसलाह। मैना फुर्ती सँ अपन घघरी केँ हुनक मूड़ी सँ अलग कउचकि कआगाँ कूदि गेलीह।
मैनाक हालत देखिस्वादमीजी आ काके अपन बोड़ा संगे धपाधप कूदि गेलाह। स्वा मीजीक हाथ मे कतौ सँ पिस्तौहल आबि गेल।
अरेदादा रे दादा। ई कीया हो गया�
बाजब आ उच्च रण सँ स्पोष्ट� भगेल जे पाछाँ केनिहार बंगाली छथि। स्वाामीजीक हाथ मे पिस्तौौल देखि ओ घिघिया उठलहमारा जान लेने से पहले साँप को मारो।
स्वायमीजी अनिश्चसयक स्थि ति मे छलाहपहिले बंगाली केँ मारी कि साँप केँमारी। ओहि काल मैना चिचिया उठलीहस्वाजमीजी साँप पर फायर करू।
स्वाहमीजीक हाथक पिस्तौसल दू बेर ठाँयठाँय केलक आओर ससरैतफुफकारैत दुनू धामनक मूड़ी चिथड़ा उड़ि गेलै।
आब स्वाउमीजीक पेस्तौिल ओहि करिया कोटबला दिस घुमल। ओ साँप मरलाक बाद थोड़ेक अपना केँ सुभ्यवस्तज अनुभव कयने छल। ओ पेस्तौबल केँ अपना ऊपर तानल देखिबिना कोनो भय केँ बाजलहमारा पास सभ खबर है। थोड़ा देर पहले तुमको बायरलेस पर मुझे जान से मारने का अॉडर मिला है। तुम्हािरा कोडेड मैसेज अनकोड होकर मुझको मिल चुका है। ठीकतुम हमको मारेगा और हम मरेगा। वैसे हम भी तैयार है। हमारा पास इतना ताकत है कि हजार आदमी भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। लेकिन नहींतुम मारेगा आउर हम मरेगा। मरने के पहले हम थोड़ा बात तुमको कहना चाहता है। उस बात को सुन लो। तुम्हांरा पास टाइम जास्तीम नहीं है। फिर भी हमारा बात सुन लो। हमारा बात तुमको लाभ देगा। हम तुम्हा रा दोस्तर हैनहीं तो तुम्हांरा आखरी मेसेज के बाद हम तुम्हा रा पिछु-पिछु नहीं आता।
स्वाामीजी पेस्तौाल केँ हिलबैत बंगाली केँ अपन बात कहबाक इशारा केलनि। काके आ मैना अत्यतधिक सावधान भकओहि बंगालीक बात सुनलगलाह। बंगाली जल्दी -जल्दीै बाजब शुरू केलकमेरा नाम विश्वकनाथ भट्टाचार्य है। हम बंगाली मानुष है। निर्मली मे मेरा रेडीमेड कपड़े की दूकान हैनिहारिका। कपड़ा का दूकान मेरा मुखौटा है। असल मे हम पक्काल जासूस है। हम केजीबी के लिए काम करता है। बैंकॉक से सूटकेस चलाभरदा पहुँचाउसमें कैसा माल हैसभी कुछ का खबर हमको है।
हमको इनटरफेयर करने का अॉडर नहीं है। फिर भीहमारा इलाका मे क्याह कुछ होता है उसका खबर रखना हमरा काम है। तुम तीनों का हम निर्मली से फौलो करता है। तुम उस एमएलए आउर उसके दोनों बडीगार्ड को घायल कियाबेहोश कियामाल लियाट्रेन के नीचे आया तो हम भी ट्रेन का नीचा आया। फिर जब तुम तीनों जहाँ थोड़ी देर रुका था वहाँ पहुँचा आउर नाक से तुम सबका गन्धी सूंघा। हमको गन्धा सूंघने का स्पे शल ट्रेनिंग है।
उसके बाद हम सारा मैसेज को ट्रान्सँमीट कर दियाफिर तुम्हाआरा छोड़ा गन्ध को सूंघते-सूंघते तुम्हा रा पीछा किया। हमने जो मैसेज मास्कोट ट्रान्सीमीट किया उसमे तुम्हासरा हुलियातुम्हाूरा ड्रेस सभी कुछ का कर दिया। हमारा मैसेज मास्कोोरिसीभ किया आउर उसका कनफरमेशन आ गया। मास्कोस उस मैसेज को दिल्लीी भेजा होगा आउर दिल्लीम पटना को। पटना का इनटेलिजेन्सन अॉपरेशन थोड़ा कमजोर है। फिर भी खतरा तो बढ़ गया है। तुम्हाारा पास टाइम बहुत कम है।
तुम्हामरा पिछु-पिछु आया। दादा ओ दादाइस घाम में तुम लोग कितना तेज चलता है जिराफ का माफिक। हमको तो ट्रेनिंग है लेकिन तुम्हा रा कैसा ट्रेनिंग हैसोचने की बात है।
हम सोचाफिर कीया हुआ सो सुनो। हम काली माँ का पूजा करता है। काली माँ मेरा सब कुछ है। माँ ने दिमाग में झटका मारा। मेरा दिमाग ने सोचना छोड़ दियाफिर ठीक होकर सोचने लगा। दिमाग में माँ बोलता हैअरे! तुम किसको पिछु करता हैतुम किसका नुकसान करता हैये लोग अपना वतन का दिवाना है। देश को वास्तेमअपना प्रान्तो को वास्तेजजान हथेली पर रखकर निकला है। मेरा माथा में सब बात साफ हो गया। फिर माथा बोलाभट्टाचार्य तुम इनका कितना बड़ा नुकसान कर दिया। अरे! अभी तक तो सभी पुलिसकुत्ता का माफिकइसको पकड़ने वास्तेय निकल चुका होगा। ये हमने कीया किया
भट्टाचार्य केँ निर्मलीक लोक भाटाजी कहैत छलैक। भाटाजी फूटि-फूटि ककानय लगलाह। हुनक आँखि सँ अश्रुधार बहय लगलनि। तकरा बाद भाटाजी जे कहलनि तकर भाव छलभाटाजीकलकत्ताक एकटा धाकर कम्यूधनिस्ट नेताक पुत्रा छलाह। इलेक्ट्रॉानिक इन्जीएनियरिंग पढ़ै लेल ओ रूस देश गेलाह। मेधावी छात्रा छलाह। हुनका रूस देश मे अनेको स्कॉदलरसीप भेटलैन्ह । ओ संचारक क्षेत्रा मे अनेको किस्मं आ उपयोगी यंत्राक आविष्काूर केलनि। फेर ओ एकगोट रसियन कन्या् सँ विवाह केलनि आ ओही देशक नागरिक बनि रूसहि मे रहए लगलाह। हुनक प्रतिभा सँ प्रभावित भकेजीबी हुनका अपना मे समेटि लेलक। अति कठिन ट्रेनिंग भेल आ ओ केजीबीक पैघ अॉफिसर बनि अनेको देश मे कार्यरत रहलाह। उमिर बढ़ला पर आ विशेष कबंगाली रहलाक कारणें हुनका अपन मूल देशक प्रेम जागृत भेलनि। केजीबीक प्रधान लग अपन आरजू पठौलनि तखन निर्मली मे हुनक पोस्टिं ग भेलनि। निर्मली मे ओ बारह वर्ष सँ रहि रहलाह अछि एवं परिवार कलकत्ता मे रहै छथिन। मोटगर तनखाह भेटैत छनिआर्थिक दृष्टि सँ सम्पहन्न छथि।
भाटाजी अपना पर नियंत्राण करैत बजैत गेलाबाबातुम लोग कीया करता हैकिसके वास्तेन करता हैहम अभी नहीं जानता है। लेकिन तुम्हाैरा संचार बहुतकमजोर है। आज के युग मे तुम्हाारा काम बहुत अच्छामबहुत सफोस्टीनकेटेड संचार सिस्टसम का मांग करता है। संचार को इम्प्रू भ करने मे हम तुम्हाररा मदद करेगा। काली माँ का भी अॉडर है आउर जीवन के अन्तं मे कुछ अच्छाम काम करने का इच्छाा रखता है। इसी वास्तेा तुमसे मिलने का हम रिस्कह लिया। नहीं तो तुम्हामरा आखिरी अनकोडेड मैसेज के बाद हम कभी भी अपना लाइफ को डेनजर मे नही डालते। माँ काली का शपथ खाकर बोलता हैमेरा फेथ करो। तुम्हाैरे वास्तेक काम करेगायह मेरा अॉफर है।
स्वाेमीजी पिस्तौकल केँ काकेक हाथ मे पकड़ा वायरलेस सेट केँ ठीक केलनि। फेर चमेलीरानी केँ सभटा सविस्तामर रिपोट दअपन मन्तकव्य देलनिबिटिया रानीभाटाजी अपन जरूरत केँ पूर्ति करताह से हमर सोचब अछि।
प्रायः चमेलीरानी स्वी कृति देलथिन। स्वाामीजी भाटाजी दिस घुमैत बजलाहकन्टेलक्टन फिरिक्वेिन्सीम
फ. म. अस्सीी हजार दसमलव फोर।
ठीक। वेशअहाँ वापस जा सकैत छीभाटाजी।
भाटाजीक मोन प्रफुल्लिवत भगेलनि। ओ मैना दिस तकलनि आ फेर गरदनि हँसोथि बजलाबाबायहाँ रास्ताा में मुरही का भी दूकान नहीं है। पूरा एरिया बंडल है।
मुस्कीर छोड़ैत मैना अपन बटुआ सँ छोट-छोट बिस्कुदट निकालि भाटाजी केँ देलनि। भाटाजी प्रसन्न होइत वापस अपन रस्ता पकड़ि लेलनि।
भाटाजीक कारणे बिलम्ब़ आ हुनकर सूचनाक कारणे अन्देकसा। तें ओ तीनू बहुत तेज गति सँ अपन गंतव्य स्थाजनक हेतु बिदा भेलाह।
एकटा छोटपुरान आ चहरदिवारी सँ घेरल महादेवक मंदिर। गाम सँ हटल आ आमक गाछ सँ घेरल। मंदिरक आगाँ पोखरि आ पाछाँ दूटा खोपड़ीनुमा घर। मंदिरक प्रांगण साफ-सुथराफूल पत्ती सँ सजल आ परम पवित्रा।
नट-नटिन केँ अबिते पुजारी हड़बड़ा कठार भेलाह। आवश्य-क निर्देश देलनि। निर्देश देबाक आतुरता अहि बातक संकेत दैत छल जे सतर्कता अनिवार्य बनि गेल अछि।
किछुए कालक बादस्वा मीजी पिअर धोतीउज्जवर कुर्ता आ लाल गमछा संगे त्रिपुण्ड चानन आ पैघ सिनुरक ठोप केने मंदिरक अगिला हन्नाा मे वैह मोटका किताब केँ अपना आगाँ राखि दूर्गा पाठ करहल छलाह।
अन्दकर खोपड़ीनुमा घरक एक कोठली मे काके बरक परिधान मे तथा मैना नव कनिआँक भेषभूषा मे एकटा खाट पर बैसल गप-सप करहल छलीह। डालरबला दुनू बोरा हुनक खाटक नीचा जाजीम सँ झांपल राखल छल। ओ सभ कियो कोनो अनहोनी घटनाक प्रतीक्षा मे पूर्ण तैयार ओ साकांच छलाह।
सूर्यास्त क समयअतिशय गर्मी आ उमसक कारणें पुजारीजी गमछा सँ घाम पोछै मे व्यजस्तप छलाह। मंदिरक दक्षिण बरिया दुआरि पर पुजारी जाहि पटिया पर बैसल रहथि ओकर आगाँ दूटा थार राखल छलै। पहिल थार मे फूलफूलक माला आ घसल चानन तथा दोसर थार पेड़ा सँ भरल।
ओहीकाल आशाक अनुरूप एकटा भीसण्डन मोट दरोगा तथा ओकरा संगे एकटा दुब्बसरपांजरक हड्डी जागलसिपाही हहाइत ओतए पहुँचल। दरोगाक फूलल पेटक वामा कात पिस्तौबल लटकल छलै। सिपाहीक हाथ मे ओकरे सन हकन कनैत बेंतचेहरा पर पसीना तथा आँखि मे एहन भाव जे ओ एक पन्द्रटहिया सँ अन्नक दरस नहि केने होअय।
दरोगा अबिते गरजि उठलहई पुजारी बाबा! रौआ बताँई जे इहाँ के सब आयल बा
पुजारीजी दुनू हाथ जोड़ैत ठार भेलाह आ कलपैत स्व र मे बजलासरकारएतए तकियो नवीन लोक नहि एलाह अछि। हम पुजारीपाठ केनिहार महात्माआ एतए महिनो सँ रहै छी। भीतर हमर खोपड़ी मे हमर बालक आ हुनक कनिआँ। बस आओर किओ नहि।
दरोगा अपन आबाज केँ औरो कर्कश बनबैत बाजलका बोले तारहो पुजारी बाबा। हमरा घसबैनी सँ खबर मिलल बा जे दू जन नट आ एक जन नटिन एम्हजरे आईल बा। उपरका अरजेन्टर हुकुम बानी। हमरा के ओ नट-नटिन के एरेस्टे करै के बा।
पुजारी औरो नम्र होइत चुचकारीबला स्व्र मे दरोगा केँ उत्तर देलनिसरकारहम अहाँ केँ चिन्हैहत छी। अहाँ सन इमानदार हाकिम केँ के नहि चिन्ह्तजहिया सँ अहाँ थाना पर एलहूँ अछिचोर-उचक्काह लापता भगेल। मुदा सरकारहमरा पर विश्वािस करूहम अहाँक शपथ खा ककहैत छी जे कोनो नट-नटिन एम्हार पयर नहि देलक हेंए। ओहुना एतए नट-नटिनक कोन काजएततमात्रा एकटा काज भोलेनाथक पूजा।

(अगिला अंकमे)
सगर राति दीप जरय मैथिली कथा लेखनक क्षेत्रमे शान्त क्रान्ति-डा.रमानन्द झा ‘रमण‘
डा.रमानन्द झा ‘रमण‘
1
सगर राति दीप जरय ( कथा पाठ एवं परिचर्चा) आयोजक- तीन वा बेशी बेर
प्रभास कुमार चौधरी कमलेश झा प्‍ा्रदीप बिहारी श्यापम दरिहरे रमेश
1.मुजफफरपुर 21.01.1990 1.बहेरा 21.01.1995 1.बेगूसराय 13.01.1991 1.पटना 10.10.1998 1.महिषी (सह) 13.4.1997
2.वाराणसी 18.7.1992 2.सुपौल 08.04.1995 2.बेगूसराय 13.09.1997 2.धनबाद 21.10.2000 2.सहरसा 18.7.1998
3.कोलकाता 28.12.1996 3.अन्दौ ली 28.10.1999 3.खजौली 04.04.1998 3.देवघर 08.01.2005 3.पूर्णियाँ 24.6.2005
4.पटना 18.07.1997 4.बेनीपुर 20.09.2003 4.बेगूसराय 09.04.2005
5.बेगूसराय 10.02.2007
सगर राति दीप जरय ( कथा पाठ एवं परिचर्चा )-अध्यसक्षता/उदघाटन मे तीन वा बेशी बेर
पण्डिात गोविन्द0 झा राजमोहन झा रमानन्द4 रेणु डा.धीरेन्द्रद डा.रमानन्द0 झा ‘रमण‘
1.दरभंगा 07.07.1990 1.पटना 03.11.1990 1.मुजफफरपुर 21.01.1990 1.काठमाण्डू 23.09.1995 1.काठमाण्डूो 25.06.2000
2.बिराटनगर 14.04.1992 2.घोघरडीहा 22.10.1994 2.खजौली 04.04.1998 2.राजविराज 24.01.1996 2.कोलकाता 22.01.2003
3.बोकारो 24.01.1993 3.पटना 10.10.1998 3.कोलकाता 22.01.2003 3.जनकपुरधाम 25.03.2000 3.राँची 02.01.2004
4.जनकपुरधाम 09.10.1993 4.मधुबनी 24.07.1999 4.सहरसा 21.07.2007
5.सुपौल 08.04.1995 5.धनबाद 21.10.2000 5.राँची 19.07.2008
6.कोलकाता 28.12.1996
7.दरभंगा 21.01.2004
8.पटना 03.11.2005
सगर राति दीप जरयक अवसर पर आलेख पाठ
डा.रमानन्दव झा ‘रमण‘ डा.भीमनाथ झा डा.तारानन्द वियोगी
1.शैलेन्द्र् आनन्दठक
कथा यात्रा
1.मुजफफरपुर 21.01.1990 1.मैथिली कथाक समस्या बिट्ठो 21.01.2001 मैथिली कथाक वर्तमान
समस्यात
कोलकाता 22.01.2003
2.विभूति आनन्द0क
कथा यात्रा
2.कटिहार 22.04.1991
3.नेपालमे मैथिली
कथा
3.विराटनगर 14.04.1992
सगर राति दीप जरयक अवसर पर पठित
कथाक संग्रह
जतय एक सँ बेशी बेर आयोजित भेल अछि
नाम सम्पा दक वर्ष 1.पटना 2.जनकपुरधाम 3.बोकारो 4.दरभंगा 5.राँची
1.श्वे‍त पत्र तारानन्दन वियोगी/रमश 1993 1. 03.11.1990 09.10.1993 24.04.1993 07.07.1990 13.04.2002
2.कथा कुम्भा बुद्धिनाथझा/तुलानाथमिश्र 1994 2. 18.10.1992 25.03.2000 28.03.2001 21.02.2004 02.10.2004
3.कथादिशा महा
विशेषांक
प््रषभासकुमार चौधरी/गंगेश
गुंजन
1997 3. 18.07.1997 12.08.2006 19.07.2008
4.भरि राति भोर के..डी.झा/श्या1म दरिहरे प्रदीप
बिहारी
1998 .4. 10.10.1998 6.काठमाण्डू0 7.कोलकाता 8.बेगूसराय 9.सहरसा
5एकैेसम शताब्दी8क
घोषणा पत्र
रमेश/श्या म
दहरहरे/मोहनयादव
2001 5. 01.12.2001 23.09.1995 28.12.1996 1.13.01.1991 18.7.1998
6.संधान-4
कथा विशेषांक
अशोक 2000 6. 16.11.2002 25.06.2000 22.01.2003 2.13.08.1997 21.07.07
7.कथा सेतु प्‍ा्रशान्त0 2002 7. 03.11.2005 3.09.04.2005 सुपौल
4.10.02.2007 09.01.1993
01.12.2007
एहि अवसरपर पठित कथाक कतेको व्यरक्ति0गत संग्रह छपल अछि तथा समस्त4 पठित कथाक संख्यार 1500 सँ अधिक होएत ।
2
विभिन्नर नामे आयोजित सगर
राति
सगर राति दीप जरय- संचालक
1.कथा रैली डेओढ स्थाजन नाम स्था‍न नाम
2.क्थार सम्वा‍द दरभंगा 1.मुजफफरपुर 1.प्रभास कुमार चौधरी 20.भागलपुर 20.अशोक
3.कथाचेतना रैली घोघरडीहा 2.प्‍ैाटघाट 2.अशोक 21.कोलकाता 21.रामलोचनठाकुर/नवीन चौधरी
4.सृजनकेरदीपपर्व सुपौल 3.इसहपुर 3.शैलेन्द्र. आनन्द1 22.बेनीपुर 22.अजित कुमार आजाद
5.गंगासँ हिमालय कठमाण्डू 4.सरहद 4.शिवशंकर श्रीनिवास 23.नवानी 23.मोहन भारद्वाज
6.कथा कुम्भम पर्व बोकारो 5.झंझारपुर 5.शिवशंकर श्रीनिवास 24.दरभंगा 24.डा.भीमनाथ झा
7.कथा कौमुदी बोकरो 6.घोघरडीहा 6.शिवशंकर श्रीनिवास 25.देवघर 25.प्रदीप बिहारी
8.कथा गंगा पटना 7.काठमाण्डूी 7.रमेश रंजन 26.पूर्णियाँ 26.अजित कुमार आजाद
9.कथा कारिख खुटौना 8.राजविराज 8.रमेश 27.पटना 27.डा.देवशंकर नवीन
10.कथा पर्व राँची 9.राँची 9.अजित कुमार आजाद 28.जनकपुर 28.रमेश रंजन
11.भरि राति भोर पटना 10.मधुबनी 10.सरस 29.जयनगर
30.बेगूसराय
29.प्रदीप बिहारी
30. अजित कुमार आजाद
12.कथा लोरिक बेनीपुर 11.राँची 11.सरस 31.जमशेदपुर 31.डा.अशोक अविचल
13.कथा अमृत कोलकाता 12.महिषी 12.शिवशंकर श्रीनिवास 32.सहरसा 32.अजित कुमार आजाद
14.कथा सेतु भागलपुर 13..तरौनी 13.प्रदीप बिहारी 33.सुपौल 33.अजित कुमार आजाद
15.स्व र्ण दीप दरभंगा, 14.बलाइन 14.शिवशंकर श्रीनिवास 34.राँची 34. कु.मनीष अरविन्दा/सरस
16.कथा कमला-कथा
सलहेस
जयनगर 15.काठमाण्डूद 15.रमेश रंजन
17.कथा बहुरा बेगूसराय 16.धनबाद 16.अशोक
18.कथा संगम ज्माशेदपुर 17.बिट्ठो 17.अशोक
19. कथा वर्षा राँची 18.हटनी 18.डा.फूलचन्द्रश मिश्र‘रमण‘
19.पटना 19. अजित कुमार आजाद
सगर राति दीप जरय-तीन सँ बेशी लोकार्पित पोथीक लेखक/सम्पा्दक
1.पण्डिजत श्री गोविन्दल झा 2.रमेश 3.डा.तारानन्दर वियोगी
पोथीक नाम स्थारन तिथि पोथीक नाम स्थाीन तिथि पोथीक नाम स्थाकन तिथि
1.सामाक पौती दरभंगा 07.07.1990 1.स्मा‍ड़ नवानी 21.07.1991 हमर युद्धक
साक्ष्या
बेगूसराय 13.01.1991
2.विद्यापतिक
आत्मस कथा
प्‍ैाटघाट 10.07.1993 2.श्वे.तपत्र (सहसम्पास) जनकपुरधाम 1993 2श्वे.ादातपत्र
(सहसम्पा्)
जनकपुरधाम 1993
3.नखदर्पण काठमाण्डू0 23.09.1995 3.समानान्त(र पटना 18.07.1997 3.अतिक्रमण महिषी 13.04.1997
4.प्रलाप पटना 01.12.2001 4.प्रतिक्रिया सहरसा 18.07.1998 4.हस्ता8क्षर महिषी 13.04.1997
5.आत्मापलाप कोलकाता 22.01.2003 5.मण्डान मिश्र अद्वैत
मीमांसा(सहसम्‍पा
काठमाण्डूत 25.06.2000 5.शिलालेख महिषी 13.04.1997
6.अतीतालाप पटना 6.एकैसम शताब्दीहक
घोषणा पत्र (सह सम्पा6
पटना 01.12.2001
7.पाथर पर दूभि दरभंगा 21.02.2004
8.कोशी घाटी सभ्यरता दरभंगा 21.02.2004
4.डा.रमानन्द झा ‘रमण 5.श्या9म दरिहरे 6.प्रदीप बिहारी
1.मिथिला दर्पण
पुण्यापनन्दसझा-सबोकारो
25.08.2001 1.भरि राति भोर सहसम्पासपटना
10.10.1998 1.भरि राति भोर
सह.सम्पारपटना
10.10.1998
2.बेसाहल दरभंगा 21.02.2004 2.एकैसम शताब्दी.क
घोषणा पत्र-सह सम्पा2
पटना 01.12.2001 2.मकड.ी काठमाण्डूस 25.06.2000
3.यदुवर
रचनावली
दरभंगा 21.02.2004 3.सरिसब मे भूत दरभंगा 21.02.2004 3. सरोकार ब्‍ेागूसराय 09.04.2005
4.सगर राति
दीप जरयक
इतिहास
दरभंगा 21.02.2004 4.कनुप्रिया-अनुवाद दरभंगा 21.02.2004 4. अक्षर
आर्केस्ट्रा -अनुवाद
बेगूसराय 21.07.2007
5.भजारल बेगूसराय 09.04.2005
3
सगर राति दीप जरय-तीन सँ बेशी बेर लोकार्पणकर्ता
1.पण्डिजत श्री गोविन्द झा 2.प्रभास कुमार चौधरी
पोथी ल्‍ेाखक स्था्न तिथि पोथी ल्‍ेाखक स्थासन तिथि
1.साहित्याेलाप डा.भीमनाथ झा सकरी 22.10.1991 1.मोम जकाँ बर्फ
जकाँ
अमरनाथ दरभंगा 07.07.1990
2.गामनहिसुतैत अछि महेन्द्र मलंगिया जनकपुाधाम 09.10.1993 2.विद्यापतिकआत्म कथा गोविन्द झा पैटघाट 10.07.1993
3.कथा कुम्भै सं-बुद्धिनाथ झा घोघरडीहा 22.10.1994 3.कथाकल्प् डा.देवकान्त झा कोलकाता 28.12.1996
4.निवेदिता स्‍ुाधांशुशेखर‘चौधरी कोलकाता 28.12.1996 4.समानान्त‍र श्रमेश पटना 18.07.1997
5.अतिक्रमण डा.तारानन्दध वियोगी महिषी 13.04.1997 5.कुकूरू.कूआकसौटी चन्दे्तरश ब्‍ेागूसराय 19.09.1997
6.प्रतिक्रिया श्रमेश सहरसा 18.07.1998 3.सोमदेव
7.युगान्तरर विश्व नाथ पटना 01.12.2001 1.प्रलाप गोविन्दक झा पटना 01.12.2001
8.एक फाँक रौद योगीराज पटना 16.12.2002 2.तीन रंग तेरह
चित्र
डा.सुधाकर चौधरी पटना 16.11.2002
9.यात्री समग्र स.ंषोभाकान्त2 पटना 16.12.2002 3.उदयास्तन धूमकेतु पटना 16.11.2002
10.मैथिलीबालसाहित्य डा.दमन कुमार झा पटना 16.12.2002 4.अभियुक्तत राजमोहन झा पटना 16.11.2002
11.दिदबल प्रभास कुमार चौधरी दरभंगा 21.02.2004 5.सर्वस्वा2न्तभ सकेतानन्दा पटना 16.11.2002
12.गंगा प.ं यन्त्र नाथ मिश्र दरभंगा 21.02.2004 6.लाखप्रश्नभअनुत्तरित रामलोचन ठाकुर खुटौना 07.06.2003
13.गाछ झूल झूल जीवकान्त् दरभंगा 21.02.2004 7.चितकावर हंसराज दरभंगा 21.02.2004
14.हम भेटब मार्कण्डेनय प्रवासी दरभंगा 21.02.2004 5.डा.रमानन्द0 झा ‘रमण‘
15.यदुवर रचनावली डा.रमानन्दर झा ‘रमण‘ दरभंगा 21.02.2004 1.अदहन डा.शिवशंकर
श्रीनिवास
कटिहार 22.04.1991
16.कनुप्रिया अनु.श्यारम दरिहरे दरभंगा 21.02.2004 2मिथिलांचलक लोक
कथा
डा.गंगाप्रसाद अकेला काठमाण्डूद 25.06.2000
17लोरिक मनियार चन्द्रे श दरभंगा 21.02.2004 3.शिरीषक फूल अनु.डा अकेला काठमाण्डूह 25.06.2000
4.राजमोहन झा 4.उगैत सूर्यक धमक सियाराम झा ‘सरस‘ दरभंगा 21.02.2004
1.मनकआडनमेठाढ़ डा.भीमनाथ झा धनबाद 21.10.2000 5.अभिज्ञा डा.फूलचन्द्र1मिश्र‘रमण‘ दरभंगा 21.02.2004
2..एकैसमशताब्दी क
घोषणा पत्र
रमेष/श्या मदरिहरे/मोहनयादव
.
पटना 01.12.2001 6.स्वारस स्वायसमे
विश्वापस
विवेकानन्द. ठाकुर राँची 02.10.2005
3 पृथा नीता झा भागलपुर 24.08.2002 7.अक्षर आर्केस्ट्रा अनुवाद- प्रदीपबिहारी बेगूसराय 21.07.2007
4.सरिसब मे भूत श्‍याम दरिहरे दरभंगा 21.02.2004
5.हाथीचलय बजार डा.देवशंकर नवीन दरभंगा 21.02.2004
6.चिन्तलन प्रवाह डा.धीरेन्द्रगनाथ मिश्र दरभंगा 21.02.2004
7.सरोकार प्‍ा्रदीप बिहारी ब्‍ेागूसराय 09.04.2005
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5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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