भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Saturday, January 03, 2009
मजाक - कथा - जितमोहन झा (जितू)
एक दिनक बात छल हुनक अर्धांग्नी (पंडीतैन) हुनका कहलखिन अहाँ सभसँ मजाक करै छी ... एतऽ धरि जे मजाकक मामला मे दूर - दूर तक अहँक चर्चा होइत अछि ! मुदा अहाँ हमरासँ कहियो मजाक नञि केलहुँ ......
पंडीजी काका बजलाह ... देखू सुनेना के माय, ई बात सत्य अछि जे हम सभसँ मजाक करै छी ! एकर मतलब ई थोड़े ने की हम अहूँसँ मजाक करी ?
ताहि पर पंडीतैन कहलखिन- से नञि हएत, एक दिन अहाँ हमरासँ मजाक कs ई देखाबू ताकि हमहूँ तँ देखी जे अहाँ कोना मजाक करैत छी ?
पंडीजी काका हारि क्s बजलाह- ठीक अछि। जहिया मौका भेटत हम अहूँसँ मजाक करब ......
किछु दिनक बाद पंडीजी काका अपन सासूर पहुँचलाह , सासुर मे हुनकर खूब मोन आदर भेलन्हि, भोजन - भातक बाद ओ जाय लेल निकलश ताबे मे हुनकर छोटका सार सुनील बाबु हुनका आग्रह कs कए कनि देर बैसे लेल कहलखिन !
सुनील बाबु ... झाजी बहुत दिनक बाद आयल छलहुँ, किछु गाम - घरक समाचार सुनाबू !
पंडीजी काका मूह बनबैत बजलाह की कही सुनील बाबु किछ दिनसँ हम बहुत परेसान छी ....
सुनील बाबु ... झाजी की बात अछि अहाँ बहुत दुखी लागैत छलहुँ, कनि खोइल के कहू अहाँ केँ कोन परेसानी अछि ? हम अपनेक कुनू काज आबी तेँ ख़ुशी हएत !
सुनील बाबु बात ई अछि जे घरमे आधा राति केँ एक प्रेत सुन्दर युवतिक रूप मे अर्धनग्न अवस्था मे दलान पर आबैत छलीह आ जतेह अनार, लताम, नेबो सभ गाछ में रहैत अछि सभ टा तोड़ि कs चलि जाइत छलीह ! हम रोज ओकरा देखैत छलहुँ मुदा हिम्मत नञि होइत अछि जे ओकरा रोकी ! आब अहीं कहू जे हमरा ई अनार, लताम आ नेबोक गाछ लगेनेसँ कोन फायदा ? परेसान भs कs आब सोचने छी जे सभ टा गाछ केँ काटि देब .... जखन फल खेबे नञि करब तँ गाछ राखिये कs कोन फायदा ?
सुनील बाबु हँसैत - हँसैत बजलाह ... बस एतबे टा बात सँ अहाँ परेसान छी ? अहाँ चिंता जुनि करू । काल्हि हम आबय छी, काल्हि राति हम ओ प्रेत केँ देखब .. आब अहाँ जाऊ, हम काल्हि आबए छी !
पंडीजी काका ठीक अछि, कनि सांझे केँ आयब हम अहाँक बहिन केँ कहि देबनि भोजन - भात तैयार रखतीह।
ई कहि केँ पंडीजी काका बिदा भेलाह ......
घर पहुँचते चौकी पर चारि-चित पड़ि रहलाह ।
पंडीतैन हुनका चौकी पर चारि-चित परल देख कए दौगल अएलीह .... नाथ की भेल अहाँ केँ ? अहाँ किछु परेसान लगै छी !
पंडीतैन केँ परेसान देखि कऽ पंडीजी काका उदास मने बजलाह ... हाँ पंडीतैन, बाते किछु एहेन अछि जै सँ हम परेसान छी !
पंडीतैन .... देखू हमरासँ किछ छुपबई के प्रयास नञि करू अहाँक ई हालत हमरासँ देखल नञि जएत, जल्दी कहू की बात छल ..?
-की कही पंडीतैन आय हम अहाँक नैहर गेल छलहुँ, अबैत घरी रस्ता मे एगो ज्योतिष महाराज जबरदस्ती हमर हाथ देखलन्हि .......
-की भेल सेतँ कहू ?
-भेल ई जे हुनकर कहब छनि, हम आब खाली ५ दिनक मेहमान छी .......
पंडीतैन जोर - जोर सँ छाती पिटैत कानए लगलीह- हे कालि मैया हम ई की सुनय छी ....... नाथ अहाँ चिंता नञि करू हम कुनू निक ज्योतिष सँ अहाँ केँ देखाएब । यदि कुनू कलमुहीक छाया अहाँ पर अछि तs ज्योतिष महाराज कुनू ने कुनू उपाय ओकर निकालताह.....
पंडीजी काका ... भाग्यवान उपाय तँ इहो ज्योतिष महाराज बतेल्न्हि......
पंडीतैन.. की उपाय बतेलक से कहू ?
-किछ नञि, हुनक कहब छन्हि जे आमावस्याक रातिमे यदि कुनू सुहागिन नारी अर्धनग्न अवस्था मे आधा राति केँ यदि कुनू नेबोक गाछसँ नेबो तोड़ि केँ आनथि आ यदि सूर्योदय सँ पहिने हमरा ओकर सरबत पीएय लेल देल जाय तs ई बिघ्न दूर कएल जाऽ सकैत अछि !
पंडीतैन..... नाथ तखन अहाँ चिंता किए करै छी, काल्हि अमावस्या छी आ अपने दलान पर नेबोक गाछ अछि, काल्हि हम अपने ई काज करब अहाँ चिंता नञि करू ! राति भ्s गेल, चलू सुइत रही, काल्हि सभ ठीक भऽ जएत ......
दुनु प्राणी सुतए लेल चली गेलाह मुदा पंडीतैन केँ भरि राति निंद नञि भेलनि ..... ओ भोरक इंतजार करए लगलीह ! भोर भेल आब ओ रातिक इंतजार करए लागलीह .... ताबे धरि सांझ के सुनील बाबु पहुँचलाह ....
पंडीतैन ... भैया आय अहाँकेँ बहिन कोना मोन पड़ल ... कहीं रस्ता तs नञि बिसरि गेलहुँ ?
सुनील बाबु ... बहिन आय दफ्तरक छूटी छलए तँ सोचलहुँ जे अपन गुडियांक हाल - समाचार लs आबी !
बाद मे बहुत देर तक हाल समाचारक बाद सभ भोजन केलक । भोजनक बाद सुनील बाबु सुतए लेल दलान पर चलि गेलाह !एम्हर पंडीजी - पंडीतैन सेहो सुतए लेल चलि गेलाह .... किनको निंद नञि आबैत छन्हि .... पंडीजी काका अपन मजाकक बारे मे सोचैत छलाह तँ पंडीतैन अपन जीवन साथीक जीवनक लेल .... सभसँ हटि कs सुनील बाबु बहुत खुश छथि ! कियेकी हुनकर सोचब छन्हि जे ई अनार, लताम, नेबो तोरब कुनू प्रेतक काज नञि ई कुनू परोसिनक काज थीक ! आय ओ मने मन सोचलथि जे कियो भी होए हम ओकरा नञि छोड़ब, किये की ओ हमर झाजीक जिनाय हराम कए देने अछि ! ओ एखने सँ नेबोक जड़िमे जाऽ कए बैसि गेलाह ! देखते - देखते राति सभ केँs अपन कोरमे लs लेलक ....
पंडीतैन धरफड़ाएले उठलीह, अपन कपड़ा उतारलन्हि, माथ झुका कालि मैया केँ प्रणाम कs कए विनती केलन्हि जे हे मैया हमर पतिक रक्षा करिहैथ....
आ ओ चलि देल्न्हि नेबो तोड़ए लेल .....
पंडीतैन जहिना नेबो गाछ तर पहुँचलीह सुनील बाबु भरि-पाँज हुनका पकड़ि लेलखिन आ मूह दबेने दलान दिस चलि देलन्हि .... ताबे धरी पंडीजी काका हाथ मे लालटेन लेने दौगल अएलाह ....
-सुनील बाबु ssssss, सुनील बाबु रुकू ssssss रुकू, ई कियो आर नञि अहींक बहिन छलीह ......
ई सुनिते सुनील बाबु भोर होए के इन्तजारो नञि केलन्हि, भागलाह अपन गामक दिस .....
एम्हर पंडीतैन पंडीजी काकासँ लिपटि केँ कलपि-कलपि कऽ कानए लगलीह ..... नाथ अहाँ हमरा संग एहेन मजाक किये केलहुँ ......?
7 comments:
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
अति सुन्दर, पंडीजी तँ गोनू झाक जोड़ीदार निकललाह।
ReplyDeleteetek nik rachna par badhai, ee blog 2009 me ehina sabh kshetrak soochna dait rahay se aasha.
ReplyDeleteatyttam
ReplyDeleteshabd chayan, bhashayi pakar, bhashak ksamta aa samarthya adbhut
ReplyDeleteee katha vyangya srenik ekta nik prayatn
ReplyDeleteघर पहुँचते चौकी पर चारि-चित पड़ि रहलाह ।
ReplyDeleteपंडीतैन हुनका चौकी पर चारि-चित परल देख कए दौगल अएलीह .... नाथ की भेल अहाँ केँ ? अहाँ किछु परेसान लगै छी !
पंडीतैन केँ परेसान देखि कऽ पंडीजी काका उदास मने बजलाह ... हाँ पंडीतैन, बाते किछु एहेन अछि जै सँ हम परेसान छी !
पंडीतैन .... देखू हमरासँ किछ छुपबई के प्रयास नञि करू अहाँक ई हालत हमरासँ देखल नञि जएत, जल्दी कहू की बात छल ..?
atyttam
कथा बहुत निक लागल अहिना लीखैत रहू ...
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