भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Tuesday, January 13, 2009

विदेह १५ नवम्बर २००८ वर्ष १ मास ११ अंक २२-part-ii

विदेह १५ नवम्बर २००८ वर्ष १ मास ११ अंक २२-part-ii

कुमार मनोज कश्यप।जन्म-१९६९ ई़ मे मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। स्कूली शिक्षा गाम मे आ उच्च शिक्षा मधुबनी मे। बाल्य काले सँ लेखन मे अभिरुचि। कैक गोट रचना आकाशवाणी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।

नव-वर्ष

शहरी संस्कृति मे नव-वर्षक बड़ महत्त्व भऽ गेलैक आछ। चारु कात उल्लास, आनंद़ कोनो पाबनि-त्योहार सँ बेसिये। लोक पुरनका बितल साल सँ पिण्ड छोड़ा नवका साल कें स्वागत करय मे बेहाल़ एहि मे केयो ककरो सँ पाछाँ नहिं रहऽ चाहैछ । धूम-धड़्‌क्का, नाच-गाऩ आई जकरा जे मोन मे आबय कऽ रहल अछि नया सालक स्वागत मोन सँ कऽ रहल आछ । मुदा सब केयो थोड़बे?

शहरक एहि उल्लास के नहि बुझि पाबि; सुकना के सात सालक बेटा पुछिये देलकै ओकरा सँ -'' बाबू, आई कि छियै जे लोक एना कऽ रहल आछ?''

''बाऊ, पैघ लोक सभक नया साल आई सँ शुरु भऽ रहल छै; तैं सभ पाबनि मना रहल आछ।''- बाल-मन कें बुझेबाक प्रयास केलक सुकना ।

चोट्टहि प्रश्र्नक झड़ी लगा देने छलई छौंड़ा - ''हम सभ नया साल कियैक नहिं मनबैत छि ? हमरा सभक नया साल कहिया एतैक? हम सभ कहिया मनेबई नया साल?''

सुकना एहि अबोध कें कोना बुझबौक जे गरीबक कोनो साल नया नहिं होईत छैक। बोनिहारक सभ सांझ नया साल आ सभ भिनसर पुरान साल जँका होईत छैक। बोनिहारी भेटलई तऽ नूने-रोटी सही, परिवारक सभ व्यत्तिक पेट भरलैक ; नहि तऽ भुखले रहि गेल सभ गोटे । एना मे कोन सीमा-रेखा मजूरक लेल नया आ पुरानक भऽ सकैछ़ ज़ँ भऽ सकैछ तऽ एक मात्र मजूरी भेटब़ भेट गेल तऽ नया सालक खुशी; नहि भेटल तऽ पुरान साल सन दुख़ तै सभ सांझ नया साल आ सभ भिनसर पुरान साल ।

बाप-बेटा दुनू चुप एक दोसराक मुँह देखि रहल छल़ साईत आँखि आँखिक भाषा बूझि गेल छलैक।

२. ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ। नेशनल एशोसिएशन फॉर ब्लाइन्ड, जमशेदपुरमे अवैतनिक रूपेँ पूर्वमे अध्यापन।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
नवम दिन :
२ जनवरी १९९१, बुद्धवार :
भोरे पॉंच बजे उठीकऽ नित्यक्रियासऽ निपटि हम सबसऽ पहिने तैयार भेलहुं।समान ठीक केलाक बाद सबके उठेलहुं।तकर बाद अपन समान बसमे राखि एलहुं।फेर जाबे सब तैयार होइत छल ताबे बगानमे खेलाइ छलहुं।कनिक देर बाद सबकियो समुद्रतट दिस विदा भेलहुं।कतेक लोक पैरे चलि गेल किन्तु हमसब बसमे गेलहुं। शिक्षक सब कनी पैघ रस्ता सऽ लऽ कऽ गेला उड़िसाके सीमामे सेहो प्रवेश करेला।तकर बाद समुद्र देखैत देरी हम ओहिमे घुसि गेलहुं।ई हमर पहिल अवसर छल जहन हम सागरक लहर सऽ खेल रहल छलहुं। तकर बाद हमरा सबके नास्ता लेल बजायल गेल।फेर हमसब लौटि गेलहुं लॉजमे।आब हमरा सबके सामान बसमे राखक छल।अहिमे हम सबके सहायता करैमे सबसऽ आगॉं रही।आधा रस्तामे रूकिकऽ हमसब भोजन केलहुं।भोजनोपरान्त पुनथ जमशेदपुर दिस विदा भेलहुं।यद्यपि अपन अभिभावक सबस भेंट हुअके खुशीतऽ छल किन्तु सबसऽ अलग हुअके दुथख सेहो छल।तुरत हमसब निर्णय लेलहुं जे एक पिकनिक करब आ ताहि लेल पाई शिक्षक अभिभावक के मीटिंगमे जमा करक छल। तुरत हमसब शिक्षक सबके सेहो आमंत्रित कऽ देलहुं। जहन जमशेदपुर पहुंचलहुं तऽ सबहक अभिभावक पहिने सऽ ओतऽ पहुंचल छलैथ।अहि तरहे हमर सबहक जीवनक ई महत्त्वपूर्ण नवम्‌ दिन समाप्त भेल।
रिपोर्ताज- 1.अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन आ नेपाल रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’ 2. नवेन्दु कुमार झा 3. नेपाल चिन्हएबाक अभियान - जितेन्द्र झा .

श्री रामभरोस कापड़ि “भ्रमर” (१९५१- ) जन्म-बघचौरा, जिला धनुषा (नेपाल)। सम्प्रति-जनकपुरधाम, नेपाल। त्रिभुवन विश्वविद्यालयसँ एम.ए., पी.एच.डी. (मानद)।

हाल: प्रधान सम्पादक: गामघर साप्ताहिक, जनकपुर एक्सप्रेस दैनिक, आंजुर मासिक, आंगन अर्द्धवार्षिक (प्रकाशक नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, कमलादी)।

मौलिक कृति: बन्नकोठरी: औनाइत धुँआ (कविता संग्रह), नहि, आब नहि (दीर्घ कविता), तोरा संगे जएबौ रे कुजबा (कथा संग्रह, मैथिली अकादमी पटना, १९८४), मोमक पघलैत अधर (गीत, गजल संग्रह, १९८३), अप्पन अनचिन्हार (कविता संग्रह, १९९० ई.), रानी चन्द्रावती (नाटक), एकटा आओर बसन्त (नाटक), महिषासुर मुर्दाबाद एवं अन्य नाटक (नाटक संग्रह), अन्ततः (कथा-संग्रह), मैथिली संस्कृति बीच रमाउंदा (सांस्कृतिक निबन्ध सभक संग्रह), बिसरल-बिसरल सन (कविता-संग्रह), जनकपुर लोक चित्र (मिथिला पेंटिङ्गस), लोक नाट्य: जट-जटिन (अनुसन्धान)।

नेपाली कृति: आजको धनुषा, जनकपुरधाम र यस क्षेत्रका सांस्कृतिक सम्पदाहरु (आलेख-संग्रह), भ्रमरका उत्कृष्ट नाटकहरु (अनुवाद)।

सम्पादन: मैथिली पद्य संग्रह (नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान), लाबाक धान (कविता संग्रह), माथुरजीक “त्रिशुली” खण्डकाव्य (कवि स्व. मथुरानन्द चौधरी “माथुर”), नेपालमे मैथिली पत्रकारिता, मैथिली लोक नृत्य: भाव, भंगिमा एवं स्वरूप (आलेख संग्रह)। गामघर साप्ताहिकक २६ वर्षसँ सम्पादन-प्रकाशन, “अर्चना” साहित्यिक संग्रहक १५ वर्ष धरि सम्पादन-प्रकाशन। “आँजुर” मैथिली मासिकक सम्पादन प्रकाशन, “अंजुली” नेपाली मासिक/ पाक्षिकक सम्पादन प्रकाशन।

अनुवाद: भयो, अब भयो (“नहि आब नहि”क मनु ब्राजाकीद्वारा कयल नेपाली अनुवाद)

सम्मान: नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान द्वारा पहिल बेर १९९५ ई.मे घोषित ५० हजार टाकाक मायादेवी प्रज्ञा पुरस्कारक पहिल प्राप्तकर्ता। प्रधानमंत्रीद्वारा प्रशस्तिपत्र एवं पुरस्कार प्रदान। विद्यापति सेवा संस्थान दरिभङ्गाद्वारा सम्मानित, मैथिली साहित्य परिषद, वीरगंजद्वारा सम्मानित, “आकृति” जनकपुर द्वारा सम्मानित, दीर्घ पत्रकारिता सेवाक लेल नेपाल पत्रकार महासंघ धनुषाद्वारा सम्मानित, जिल्ला विकास समिति धनुषा द्वारा दीर्घ पत्रकारिता सेवाक लेल पुरस्कृत एवं सम्मानित, नेपाली मैथिली साहित्य परिषद द्वारा २०५९ सालक अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन मुम्वई द्वारा “मिथिला रत्न” द्वारा सम्मानित, शेखर प्रकाशन “पटना” द्वारा “शेखर सम्मान”, मधुरिमा नेपाल (काठमाण्डौ) द्वारा २०६३ सालक मधुरिमा सम्मान प्राप्त। काठमाण्डूमे आयोजित सार्कस्तरीय कवि गोष्ठीमे मैथिली भाषाक प्रतिनिधित्व।

सामाजिक सेवा : अध्यक्ष-तराई जनजाति अध्ययन प्रतिष्ठान, जनकपुर, अध्यक्ष- जनकपुर ललित कला प्रतिष्ठान, जनकपुर, उपाध्यक्ष- मैथिली प्रज्ञा प्रतिष्ठान, जनकपुर, उपकुलपति- मैथिली अकादमी, नेपाल, उपाध्यक्ष- नेपाल मैथिली थाई सांस्कृतिक परिषद, सचिव- दीनानाथ भगवती समाज कल्याण गुठी, जनकपुर, सदस्य- जिल्ला वाल कल्याण समिति, धनुषा, सदस्य- मैथिली विकास कोष, धनुषा, राष्ट्रीय पार्षद- नेपाल पत्रकार महासंघ, धनुषा।

अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन आ नेपाल
रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’

चारिम वर्ष हम पटना गेल रही । चेतना समितिमे बैजू बाबू भेटलथि । विद्यापति स्मृति पर्व भ’ गेल रहै । कोनो आने सन्दर्भमे रही । ओ आवेशपूर्वक दिल्लीमे आयोजन होब बला अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनमे अएबाक हेतु आमंत्रण देलनि । हमरा सभ लेखें पहिल आयोजन रहैक–हम आ डा. विमलकें जएबाक रहैक, मुदा जं कि ओ बड हडबडीमे आ अस्पष्ट रुपें अएबाक बात बाजल रहथि, हम सभ जा नहि सकल रही । बरु काठमाण्डूसं धीरेन्द्र आ कमलेश झा गेल रहथि । ‘मिथिलारत्न’ सं सम्मानित होइत गेलाह आ ओत्तहि घोषणा कएलनि–अगिला साल ई समारोह काठमाण्डूमे हयत । तालीक गडगडाहटि भेल ।
जे से हम सभ जा नहि सकलहुं । बादमे बैजू बाबूकें भेलनि जे नेपाल सं किछु आरलोकनि छुटि गेलाह, अएबाक चाहियनि । ओ जनकपुर अएलाह आ धीरेन्द्र आदिसं सम्पर्क कएलखिन्ह जे एहि वर्ष काठमाण्डूमे आयोजनक की तैयारी अछि । जे हुनका संग रहनि हुनक कथन अनुसार धीरेन्द्र आदि जे केओ गछने रहनि साफ पाछां हटि गेलनि । ओ मर्माहत भ’ जनकपुरसं घूरि गेलाह । तखन ओम्हर जा मुम्वईमे आयोजन करबाक ब्योंत धरौलनि ।
आब मुम्वईमे अएबालेल पुनः बैजू बाबूक आमंत्रण, आग्रह आ स्नेहपूर्ण दवाव आएल । रेवती जीकें सेहो आग्रह भ’ गेल रहिन–विद्यापति स्मृतिपर्वक अवसर पर दरिभंगेमे । ई तेसर सालक गप थिक । अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन नेपाल–भारतक विद्वान, मैथिली सेवी सभक सझिआ मंच होएबाक हमर विश्वास मुम्वई चलबाले’ प्रेरित कएलक आ तखन दरिभंगासं टिकट रिजर्बक व्यवस्था चन्द्रेशजी जिम्मा देल गेल । जेना बैजु बाबूक मुंहकहबी कार्यक्रम तहिना अस्पष्ट चन्द्रेशजीक ओरिआओन । हम सभ दरिभंगा पहुंचि दोसर दिन भेने मुम्वईक हेतु प्रस्थान कएने रही । मुम्वईक सम्पूर्ण कार्यक्रमक सन्दर्भमे पुस्तकमे आनठाम हमर विचार आबि चुकल अछि ।
तहिना गत वर्ष कलकत्ताक तैयारी रहैक । एहि बेर हमरा पर थप भार द’ देलनि बैजू बाबू–‘मिथिला रत्न’क हेतु व्यक्तित्व चयनक । रेवती जीसं सल्लाह कएल–ओ वदरी नारायणवर्माक नाम बतौलनि । हम डा. रामदयाल राकेशकें एकरा लेल उपयुक्त वूझि दुनूक नाम बैजूबाबू लग पठा देलियनि । डा. राकेश कें काठमाण्डूसं बजाओल गेलनि । हम सभ निर्धारित तिथिकें ‘गंगासागर’ सं कलकत्ताक हेतु विदा भ’ गेल रही । ओत्त पहुंचलाक बाद स्टेशन पर ठाढ बैजू बाबू मोनकें गदगद क’ देने रहथि ।
तकरा बाद अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनमे नेपालक हमरा चारि गोटकैं फूटे कोठरीमे आवास देल गेल आ सम्मान सेहो । मैथिली सम्मेलनक अन्तराष्ट्रिय स्वरुप प्रदान करबा लेल हमरा सभक उपस्थिति जहिना अनिवार्य देखल गेल तहिना डा. वैद्यनाथ चौधरी बैजूक व्यवहार ततबे सहज आ अपनत्व भरल ।
आब चारिम चेन्नईमे अछि । तैयारी चलि रहल छैक । ओत्तहु नेपाल एकटा महत्वपूर्ण सहभागी रुपमे उपस्थित हयत तकर आशा करैत छी ।
अनुभूति आ औचित्य
हमरा बूझल नहि अछि बैजू बाबू कोन उद्देश्य राखि ई अन्तराष्ट्रिय स्वरुपमे एकरा शुरु कएलनि । ओ एकर शुभारंभ मैथिलीकें अष्टम अनुसूचिमे स्थान भेटलाक बाद ताही तिथि २२ दिसम्वरकें कएलन्हि । जकरा अधिकार दिवसके रुपमे मनाओल जाइछ – २२ ता.क’ अधिकार दिवस आ २३ ता.क’ अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन ।
पहिल बेर दिल्लीक हेतु आमंत्रण भेटला पर हमरा सभक हिचकिचाहट, आयोजनमादे शंका ढेर सन छल । बैजू बाबूक संघर्षशील व्यक्तित्व प्रभावित त करैत छल, मुदा हरफन मौला काम काजसं आशंका उठैत छल, पता नहि जे कहैत छथि, करबो करैत छथि वा नहि तए“ दिल्लीक ओ सम्मेलन छुटल तकर हमरा काफी अफशोच अछि ।
बादमे मुम्वई आ कलकत्ताक अनुभब काफी सकारात्मक, प्रशंसनीय आ अनुकरणीय रहल । अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनक समस्त गरिमाकें निर्वाह करबाक प्रयास ओ करैत छथि । कतौ स्थानीय आयोजक अपनासं उन्नैस वुझाइत छनि तं कतौ वीस । तए“ परेशानी त हुनके उठब’ पडैत छनि । मुदा हम सभ जे अनुभव कएलहुं ओ अत्यन्त काजक छल । मैथिली संसारक बहुतो साहित्यकार, सेवी, भाषाशास्त्री, संगीत एवं नृत्यकलाकार सभसं भेंटघांट होइत अछि । सभक विचारक आदान–प्रदान होइत छैक । नव संसारक निर्माण होइत छैक ।
भाषा, साहित्य, संस्कृतिक हेतु सेहो एहि सम्मेलनक उपादेयता स्पष्ट अछि । मैथिली भाषाक उत्थानक हेतु नव–नव योजना बनैत छैक । नव–नव पोथी प्रकाशित एवं विमोचित होइछ । विद्वान एवं प्रेमी लोकनि सम्मानित होइत छथि । सांस्कृतिक कार्यक्रममे नव–नव प्रतिभा आगां अबैत छथि । सम्पूर्ण मैथिल समाजसं ओ प्रतिभा जुडैत अछि, जाहिसं बादमे ओकर विकासक अवसर प्रदान होइछ । ‘राखी’ एकटा अपाहिज लडकी एहने प्रतिभा अछि जे सभकें प्रभावित कएने रहए । अमता धरानाक कलाकार लोकनि मुग्ध करैत छथि ।
नेपाल आ भारतक विचक सम्वन्धक नीक सूत्रपात ई सम्मेलन करैत अछि । नेपालक प्रतिनिधिके मंचपर उपस्थितिसं दुनू देशक प्राचीन सम्वन्धमे ताजापन अबैछ । मुम्वई आ कलकत्तामे पंक्ति लेखकक भाषणसं हजारोंक दर्शक दीर्धामे भेल तालीक गडगडाहटि तकर प्रमाण छैक । नेपालमे होइत मैथिली गतिविधिसं सम्पूर्ण मिथिलाञ्चलकें, खास क’ प्रवासी मैथिलकें जानकारी करएबाक ई सुन्दर अवसर होइत अछि, जकर उपयोग मुम्वई आ कलकत्ता दुनूठाम कएल गेल । कलकत्तामे नेपालमे मैथिली, नामक वूकलेट छपा वांटल गेल रहय तं राम भरोस कापडि ‘भ्रमर’क सद्यः प्रकाशित पुस्तक” राजकमलक कथा साहित्यमे नारी’ विमोचित भेल । ओत्त गामघर साप्ताहिक विशेष अंक, नेमिकानन’क अंक सभ वांटल व विक्रय लेल उपलव्ध कराओल गेल । बहुतो साहित्यकार रुचिसं नेपालक भाषा, साहित्यक वारेमे जानकारी लेलनि । जानकारीक आदान प्रदान भेल । ज्ञान समृद्ध भेल ।
तखन एखन धरि सहभागी भ’ जे किछु अनुभव कएल अछि ओ एकर औचित्यकें स्वतः प्रमाणित करैत अछि । ई सम्मेलन निरन्तर जारी रहबाक चाही । वैजू बाबू जुझारु लोक छथि, आयोजनकें सफल बनएबा लेल अहर्निश खटैत छथि । हाथ, पएर, मुंह सभ धरबामे संकोच नहि करैत छथि मां मैथिलीक प्रतिष्ठाक हेतु । एहन विराट हृदयी, समर्पित आ लगनशील व्यक्तित्व भेने मैथिली समादृत भेलीह अछि ।
अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनक अनुभूति किछु किछु सुझाव देबाक लेल हमरा उत्प्रेरित करैत अछि । जं ई भ’ जाइत त सोनमे सुगन्ध भ’ जइतैक – ई हमरा लगैत अछि ।
सूझाओ
१. अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन हयबाक कारणें एकर वैनर जे बनैक ताहिमे नेपालक किछुओ प्रतीक चिन्ह अवश्य रहैक ।
२. कार्यक्रम सभ व्यवस्थित आ पूर्व निर्धारित होएबाक चाही । कार्यक्रम चलैत बेरमे व्यवस्थापन करब अस्तव्यस्तता लबैत अछि ।
३. सभ कार्यक्रम, सहभागी वीच एकदिन पूर्वे वितरीत भ’ जाए तं उत्तम
४. अधिकार दिवस दिन मात्र भाषण नहि, कार्यपत्र प्रस्तुति आ टिप्पणीक कार्यक्रम राखल जाए । नेपालक प्रतिनिधिकें कार्यपत्र आ बजबाक अवसर अवश्य देल जाइछ ।
५. मूल समारोहमे नेपालक प्रतिनिधित्व मंच पर अवश्य हयबाक चाही । ओ उपस्थिति आ वक्ता दुनू रुपमे होए ।
६. आवासक व्यवस्था प्रति सतर्क रहल जाए ।
७ स्मारिकाक स्तरीय प्रकाशन हो, जाहिमे विगतक सम्मेलन सभक सन्दर्भमे आलेख आ चित्रवाली अवश्य देल जाए ।
८. कलकत्ता सम्मेलनमे एकर निर्वाह भेल अछि, एकरा आगूओ एही रुपमे बढाओल जाए ।
९. अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनक सहभागि सभक सूची १५ दिन पूर्व अन्तिम रुप द’ सार्वजनिक क’ देल जाइक आ संगहि ‘मिथिला रत्न’ पौनिहारक जीवनी फूटसं प्रकाशित क’ औचित्य प्रमाणित कएल जाए ।
नेपालक साहित्यकार, मैथिली प्रेमी सभकें अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनसं बहुत किछु आशा छैक । दुनू देशमे मैथिली अपन अस्तित्व लेल लडि रहल अछि । एहनमे ई भेंटघांट, अप्पन–अपनौती, दुख–दुखक वंटवारा आपसी सम्वन्धकें सुदृढ त करबे करैत अछि, लक्ष्य प्राप्तिक हेतु मोनकें मजवूत सेहो बनबैत अछि ।
अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनक महासचिव डा. वैद्यनाथ चौधरी बैजू एहि सम्वन्धक सूत्रकें गसिआ क’ पकडने छथि । हुनक इएह स्नेह, सद्भाव आ अपनैती नेपालीय राजनीतिक इतिहासमे मिथिलाराज्य’क स्थापनार्थ शक्ति आ वातावरण निर्माणमे सहायक भ’ रहल अछि । हुनक जुझारु व्यक्तित्व एत्त प्रेरणाक स्रोत रहलए । हमसभ एहि सम्वन्धक निरन्तरताक अपेक्षा करैत छी । आ नेपाल–भारत विचक आपसी आ प्रेमक प्रतीक रुपमे चलैत आबि रहल एहि सम्मेलनक सफलताक कामना करैत छी ।
नवेन्दु कुमार झा, समाचारवाचक सह अनुवादक (मैथिली), प्रादेशिक समाचार एकांश, आकाशवाणी, पटना
विद्यापति स्मृति दिवस (११ नवम्बर २००८) पर विशेष-यशस्वी कवि छलाह महाकवि विद्यापति
मिथिलांचलक पावन भूमि कतेको महापुरुषकेँ जन्म देलक अछि जकर यश अपना देशक अलावा विदेशमे सेहो पसरल। एहने महान विभूतिमे सऽ एक छलाह “महाकवि विद्यापति” जिनक रचनामे कल्पनाक बदला यथार्थक दर्शन होइत अछि। ओ ओहि गीतकारमे सऽ एकटा छलाह जिनक रचित गीतकेँ मिथिलांचलेमे नहि अपितु बंगाल, आसाम, उत्तर प्रदेश आदिक संगहि सम्पूर्ण विश्वक रसिक मंडली सम्मान देलक अछि। उत्तर भारतमे प्रचलित आर्यभाषा क्षेत्रमे विद्यापति सनक सम्मान प्रायः ककरो नहि भेटल अछि। असमिया, हिन्दी, बंग्ला आ मैथिली एहि चारि टा भाषाकेँ हिनक गीत एकटा नव प्रेरणा देलक अछि। महाकवि विद्यापति एकटा सुयोग्य कवि, लेखक, भक्त, राजनयिक, समाज सुधारक, स्मृतिकार, संगीतज्ञ आ ज्योतिषविद् छलाह। एहि सभ गुणक कारण आइयो हुनक नाम एहि तरहे लेल जाइत अछि जेना ओ आईयो हमरा सभक मध्य उपस्थित छथि। छह सहस्त्राब्दीक बादो आईयो हुनक विद्वता आ गुणक प्रसिद्धि मिथिलांचलक संगहि सम्पूर्ण भारत आ विश्वमे पसरल अछि।
महाकविक जन्म दरभंगा जिलान्तर्गत बिस्फी गाममे भेल छल। ओ सम्पन्न परिवारक छलाह। हुनक जन्मक सम्बन्धमे विद्वान सभक मध्य मत भिन्नता अछि। विभिन्न उपलब्ध सामग्रीक आधारपर विद्वान लोकनि हुनक जन्मक संबंधमे अनुमान लगबैत छथि। स्व. नागेन्द्रनाथ गुप्तक अनुसार महाकविक जन्म १३५७ ई. मे भेल छल। जखन कि स्व. हर प्रसाद शास्त्री हुनक जन्म १३५० ई. मानैत छथि। मुदा मिथिलांचलक विद्वान् महाकविक जन्म अनुसंधानक आधारपर १३६० ई. मानैत छथि तथापि बहुमत अछि जे महाकवि १३६० ई. सँ १४४८ ई. क मध्य विराजमान छलाह।
कहल जाइत अछि जे ओ पैघ आयु पएने छलाह। कतेको राजघरानाक उतार-चढ़ावकेँ ओ अपना आँखिसँ देखने छलाह। बुढ़ राजा-रानीसँ लऽ कऽ राजकुमार-राजकुमारी सभक संग हुनक निकटवर्ती संबंध रहल। हुनक पिता गणपति ठाकुर दरभंगा राजक राज मंत्री छलाह। हुनक पितामह जयदत्त पैघ विद्वान आ उच्च कोटिक संत छलाह। स्वयं विद्यापति सेहो जन्महिसँ ओइनवार वंशक राजा सभपर आश्रित छलाह। ओ महाराजा शिव सिंहक प्रधान पार्षद आ विश्वसनीय अमात्य छलाह। महाराज शिव सिंह अपन राज्याभिषेकक समय हुनक जन्मभूमि “बिस्फी” गाम हुनका दानमे दऽ देने छलाह। शिव सिंहक बाद सेहो विद्यापति, महारानी विश्वास देवी, महाराजा नरसिंह तथा महाराजा धीर सिंहक दरबारमे प्रधान राज पण्डितक रूपमे छलाह।
अपन दीर्घकालिक जीवनमे महाकवि कतेको ग्रन्थक रचना कएलनि। हुनक एहि ग्रन्थ सभक अध्ययन कएलासँ हुनक बहुमुखी प्रतिभा स्पष्ट होइत अछि। हुनक समयमे आबा जाहीक अतेक सुविधा नहि छल एकर बावजूद ओहि समयक मिथिलांचलक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल सभक विवरण “भू परिक्रमा” नामक ग्रन्थमे प्रस्तुत कऽ आबए बाला पीढ़ीक लेल पैघ उपकार कएलनि। संस्कृत भाषामे सेहो हुनक लेखनी चलल जाहिमे “शैव सर्वस्वसार”, “शैव सर्वस्वसार प्रमाण”, “पुराण संग्रह”, “दान वाक्यावली” आ “वर्षकृत्य” आदि प्रमुख अछि। संस्कृतमे ओ “मणिमञ्जरी” नामक नाटक सेहो ओ लिखलनि। “गोरक्ष विजय” नामक दोसर नाटक जे नेपालसँ भेटल अछि, ओहिमे संस्कृतसँ अलग मैथिली भाषामे सेहो गीत अछि। एकर अलावा अपभ्रंशमे ओ “कीर्तिलता” आ “कीर्ति पताका” नामक ग्रन्थक रचना कएलनि। कीर्तिलता हुनक पहिल रचना मानल जाइत अछि।
अपभ्रंश आ संस्कृतक अतिरिक्त हुनक काव्यक विशाल भण्डार मैथिली भाषामे सेहो विद्यमान अछि। हुनक यश मुक्त रचनामे सुरक्षित अछि, जकर प्रचार-प्रसार हुनक मरलाक बाद आइयो घरे-घर अछि। हुनक मृत्युक संबंधमे सेहो विद्वान सभ एकमत नहि छथि। जनश्रुति ई अछि जे हुनक मृत्यु १४५० ई. मे भेल मुदा नेपालक दरबार पुस्तकालयमे उपलब्ध “ब्राह्मण सर्वस्व” नामक ग्रन्थक आधारपर हुनक मृत्यु १४६० ई. मानल जाइत अछि। ओना सम्पूर्ण मिथिलांचलमे ई कहबी प्रचलित अछि जे-
“विद्यापतिक आयु अवसान
कार्तिक धवल त्रयोदशी जान”
उपेक्षित अछि सोनपुर आ हरिहर क्षेत्र मेला
अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर बिहारक पहचान देएबामे सोनपुर प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र मेलाक महत्वपूर्ण स्थान अछि। प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमासँ शुरू भऽ ई मेला एक मास धरि चलैत अछि। ई मेला देशमे जानवरक सभसँ पैघ मेला अछि। एहि ठाम जानवरक अलावा दैनिक उपयोगी वस्तुक बिक्री सेहो होइत अछि। मेलामे मनोरंजनक विशेष व्यवस्था सेहो रहैत अछि। चारूकात नदी आ जलाशयसँ वेष्ठित एहि ठामक बाबा हरिहर नाथक मंदिरक सभसँ पैघ विशेषता ई अछि जे हरि आ हरक एक संग पुण्य दर्शन भक्त सभकेँ होइत अछि।
ई क्षेत्र पौराणिक आ धार्मिक महत्व बाला होएबाक संगहि ऐतिहासिक सेहो अछि। एहि ठामक माटिमे संगम आ समन्वयक भावना सेहो अछि। हरिहर क्षेत्रक स्वर्णिम इतिहास आइयो पूर्ण रूपेण जन साधारणक सोंझा नहि आबि सकल अछि। आइयो ई शोध आ अनुसंधानक अभावमे भूगर्भमे पड़ल अछि। एकर उज्जवल भविष्यक स्मृति चिन्ह आइयो एहि ठाम जमानासँ गौरव स्तम्भ आ प्रकाश कुंजक रूपमे विद्यमान अछि। कतेको ऋषि-महर्षिक साधनाक ई भूमि ज्ञानक तपोभूमि अछि। एकर पौराणिक गौरव गाथा पद्मपुराण सहित आन ग्रन्थमे सेहो सगौरव वर्णित अछि। बाबा हरिहरनाथक मन्दिर अति प्राचीन अछि जकर स्थापना स्वयं ब्रह्माजी अपना हाथे हरि आ हरक एकीकार लिंगक रूपमे एहि ठाम स्थापित कएने छलाह। हरि आ हरक एहन एकाकार संगम भारतवर्षमे कतहु नहि भेटैत अछि। एहि ठाम गंगा आ गंडक नदीक अभूतपूर्व संगम सेहो अछि।
हरिहर क्षेत्रक महातम्यक संदर्भमे कतेको कथा लिखल गेल अछि। पुराणक अनुसार एक बेर ब्रह्मा जीक पुरोहितीमे देवता सभ एकटा यज्ञक आयोजन कएलनि। कतेको कारणसँ ई यज्ञक विध्वंश भेल, तखन देवता सभ “हर”क स्थापना कएलनि आ यज्ञकेँ सफल बनौलनि। तखनसँ हरिहर क्षेत्र लोक विश्रुत भेल। पद्म पुराणमे व्व्हो वर्णन अछि जे शालग्रामीसँ उत्तर हिमालयसँ दक्षिण पृथ्वी महाक्षेत्र अछि। एहि ठाम बाबा हरिहरनाथक मंदिर अछि। ओहि स्थानपर भगवती शालिग्रामीक पतित-पावनि गंगामे आबिकऽ मिलन भेल अछि। संगम क्षेत्र होएबाक कारण एहि क्षेत्रक माहात्म्य बहुत बढ़ि गेल अछि। इहो कथा अछि जे शालिग्रामी तथा गंगाक संगम होएब आ महाक्षेत्रक अंतिम भाग होएबाक कारण एहि ठाम “हरि” आ “हर”क स्थापना भेल।
सोनपुरमे एहि स्थानपर कतेको मठ आ मन्दिर अछि जे स्थानीय प्रशासन आ सरकारक उफॆख्षाक शिकार बनल अछि। गंडक नदीक किनारपर ठीक सामने अछि गोटेक अढ़ाई सौ गज पश्चिम बाबा हरिहरनाथक मुख्य मन्दिर। कार्तिक पूर्णिमाक अवसरपर कतेको लाख श्रद्धालु प्रति वर्ष संगम स्नान कऽ बाबाकेँ जल चढ़ा श्रद्धा सुमन अर्पित करैत छथि। मन्दिरक प्रांगणमे कतेको आन छोट-छोट मन्दिर सेहो अछि जाहिमे विभिन्न देवी-देवता सभक मूर्ति स्थापित अछि। एहि मन्दिरक ठीक सोझाँ अछि एकटा महावीर मन्दिर जाहिमे उज्जर संगमरमरक गोटेक दस फीटक विशाल राम भक्त हनुमानक मूर्ति स्थापित अछि। हरिहरनाथ मन्दिरक पाछाँ मुगल बाड़ी अछि जाहिमे सेहो मन्दिर बनल अछि। मंदिरसँ सटल दक्षिण भागमे पुरान ठाकुरबाड़ी मन्दिर अछि, जखन कि मुख्य मन्दिरक सोझाँ पूरब दिश एकटा ऐतिहासिक तालाब अछि जकर निर्माण च्यवन ऋषि कुष्ठ रोगक निवारण लेल करबैत छलाह, मुदा किछु बाधा आबि गेलासँ एकर निर्माण नहि भऽ सकल। एकरा च्यवन ऋषिक तपस्थल अथवा च्यवन तालाबक नामसँ जानल जाइत अछि।
मन्दिरसँ भरल एहि क्षेत्रमे गंडक किनारमे अछि प्रसिद्ध ऐतिहासिक मन्दिरमे दक्षिणमुखी माँ कालीक प्रचण्ड रूप वाला दुर्लभ मूर्ति। एहि मूर्तिक ठीक सोझाँ सत्ताइस हाथपर शिवलिंग विराजमान अछि। मन्दिरक दक्षिणमे श्मसान अछि। मान्यता अछि जे ई काली मन्दिर सिद्धपीठ अछि जतए पहिने तंत्र-मंत्रक सिद्धि कएल जाइत छल। एहि काली मन्दिरक पाछाँ एकटा पुरान मन्दिर अछि जाहिमे कतेको मूर्ति विराजमान अछि। मन्दिरक प्रांगणमे पाल कालक कतेको महत्वपूर्ण अवशेष देखल जाऽ सकैत अछि। गीता बाबाक एहि मन्दिरमे हुनक जीवन कालमे रौनक रहैत छल, परञ्च बाबाक मृत्युक बाद सभ परम्परा ध्वस्त भऽ गेल। काली मन्दिरक उत्तर दिस अति प्राचीन गौरी शंकर मन्दिर अछि जाहिमे भगवान शिव आ माँ पार्वतीक सुन्दर आ ऐतिहासिक दक्षिण रुखक मूर्ति अछि। तंत्र साधक सभक मानब छनि जे एहि ठाम लागल मूर्ति काम विजय मुद्रामे अछि। एहि मन्दिरक प्रांगणमे एकटा विष्णु मन्दिर सेहो अछि जकर गुम्बदपर पाल काल आ मौर्य कालक कलाकृति उत्कीर्ण अछि। हरिहर नाथक मुख्य मन्दिरसँ पश्चिम गोटे दू सौ गजक दूरीपर विशालनाथ आ बालनाथक समाधि स्थल अछि जकर भीतरक भागमे अद्भुत कलाकृति अंकित अछि। महान तपस्वी स्वामी त्रिदण्डीजी महाराज द्वारा गजेन्द्र मोक्ष देव स्थानपर आकर्षण मन्दिरक नव निर्माण कराओल गेल अछि। भगवान विष्णुक ई मन्दिर हरिहर क्षेत्रक अद्भुत नमूना अछि।
ऐतिहासिक हरिहर क्षेत्र आ ओकर लगपास स्थित मन्दिर आ मठ लोक सभक आस्थाक केन्द्र अछि मुदा देखभाल उचित रख-रखावक अभावमे जीर्ण-शीर्ण भऽ रहल अछि। सभ साल हरिहर क्षेत्र मेलाक अवसरपर किछु साफ सफाई होइत अछि आ स्थानीय प्रशासन आ लोक सभ सेहो सक्रिय होइत छथि, मुदा एकर बाद ई अपेक्षित रहैत अछि। प्रतिवर्ष एहि मेलाक घटैत स्वरूप आ लोकक घटैत आकर्षणसँ एहि क्षेत्रक ऐतिहासिक आ पौराणिक स्वरूप संकटमे पड़ल जाऽ रहल अछि। एहि मेलाक विकासक लेल सरकार द्वारा मेला प्राधिकरणक घोषणा मात्र बयानबाजी साबित भेल अछि। पछिला वर्षसँ एहि मेलामे खरीदल जानवर सभक प्रदेशक बाहर लऽ जयबासँ प्रतिबन्धक कारण व्यापारपर असरि पड़ल अछि। सभ वर्ष उद्घाटन आ समापनपर मेलाक विकासक लेल भाषण होइत अछि जे मेलाक समाप्तिक बाद बिसारि देल जाइत अछि।
औद्योगिक रूपसँ पिछड़ल बिहारमे आय अर्जित करबाक लेल पर्यटन उद्योग संभावनासँ भरल अछि। एहि ठाम कतेको ऐतिहासिक, पौराणिक आ प्राकृतिक स्थल अछि जे पर्यटककेँ अपना दिस खिचि सकैत अछि। एहिमेसँ सोनपुर आ हरिहर क्षेत्र मेला सेहो एकटा अछि। जरूरत अछि जे एकर योजनाबद्ध विकास कऽ एकरा देशक पर्यटनक मानचित्रपर आनल जाए आ ई भाषण आ घोषणासँ नहि होएत एहि वास्ते सरकार, स्थानीय प्रशासन आ स्थानीय जनताकेँ एक संग प्रयास करक होएत।

जितेन्द्र झा, जनकपुर
नेपाल चिन्हएबाक अभियान
मिथिला नाटय कला परिषद, जनकपुर तीनटा जिलामे विभिन्न ४० स्थानमे नव नेपालक निर्माणमे राजनीतिक दल आ नागरिक समाजक जिम्मेवारी बुझएबाक अभियानमे चिन्हियौ नेपाल नामक सडक नाटक मन्चन कएलक अछि ।
धनुषा, महोत्तरी आ सर्लाही जिलामे मन्चित सडक नाटकमे समाजक सभ समुदाय, वर्गके अपन उन्नति लेल जिम्मेवारी बोध हएब आवश्यक रहल बताओल गेल अछि। नव नेपालक लेल इएह कर्तब्यबोधक सन्देश दैत चिन्हियौ नेपाल नाटकके पहिल खेप सम्पन्न भेल नाटय निर्देशक रमेश रंजन बतौलनि अछि ।
कोशीक बाढि जेना जाति आ वर्ग बिना देखने अपन त्रास मचओलक तहिना कोनो राष्ट्रिय संकट सभके लेल समान रुपे चिन्ताक विषय रहल नाटकमे देखाओल गेल अछि । महेन्द्र मलंगिया लिखित आ रमेश रंजन निर्देशित इ नाटक राष्ट्रिय भावनाके मजबुत बनएबा दिश केन्द्रित अछि ।
हिंसा, आतंक,, आम जीवनक कठिनाईके जीवन्त नाटय प्रस्तुतिक माध्यमसं युवा पिढीक मनोविज्ञानके उतारबाक प्रयास कएल गेल अछि । युवामे पलायनवादी मनस्थिति आ श्रम बिना सुविधाभोगी जीवन जिबाक सपना अपराध करबालेल उक्सारहल नाटकमे देखाओल गेल अछि ।
नाटकमे सुनिल मिश्र, रमेश रंजन झा, मदन ठाकुर, राम नारायण ठाकुर, विष्णुकान्त मिश्र, परमेश झा, रविन्द्र झा, रन्जु झा, प्रियंका झा, गंगाकान्त झा, राम अशिष ठाकुर, राम कैलाश ठाकुर अभिनय कएने अछि।
1.विचार-राष्ट्रप्रमुखके उपेक्षा,अनिष्टक संकेत,श्यामसुन्दर शशि,दोहा, कतार2. विद्यापति-निमिष झा

श्यामसुन्दर शशि,दोहा, कतार
श्याम सुन्दर शशि, जनकपुरधाम, नेपाल। पेशा-पत्रकारिता। शिक्षा: त्रिभुवन विश्वविद्यालयसँ,एम.ए. मैथिली, प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। मैथिलीक प्रायः सभ विधामे रचनारत। बहुत रास रचना विभिन्न पत्र-पत्रिकामे प्रकाशित। हिन्दी, नेपाली आऽ अंग्रेजी भाषामे सेहो रचनारत आऽ बहुतरास रचना प्रकाशित। सम्प्रति- कान्तिपुर प्रवासक अरब ब्यूरोमे कार्यरत।
राष्ट्रप्रमुखके उपेक्षा,अनिष्टक संकेत
लोकतान्त्रिक गणतन्त्र नेपालक प्रथम राष्ट्रपति डा.रामवरण यादव अधिर भऽ अपन मोनक विहाडि बाहर कएलनि अछि । सम्भवतः मनक पीडा वेसम्हार भेलाक बाद ओ अपन पूर्व सहकर्मीसभक बीच सीधा आ सपाट शब्दमे कहि गेलाह —राजनितीस“ बेसी डाक्टरी पेसामे ईज्जति अछि(छल) । असलमे ओ अपन निजी अवस्थाक चित्रण कएने छलाह । यदि ईहे बात अन्य दोसर नेताक मूहस“ निकलल रहैत त ओ अभिव्यक्ति कोनो खास महत्व नहि पावि सकैत कारण देशक अधिकांश नेतालोकनि दर्शक र श्रोताक मूड पढिक अपन भाषण लिखैत आ पढैत छथि । मुदा किचेनस“ लऽ कैविनेटधरि , मधेस“लऽ पहाडधरि एक्कहि बोली बोलएवला डा.यादवक“े यी अभिव्यक्तिक भीतर वास्तवमे गम्भिर पीडा नुकाएल अछि । मर्यादाक लिहाजस“ देशक सभस“ उ“च्च पदक व्यक्तिक यी अभिव्यक्ति लोकतान्त्रिक गणतन्त्रक मुखियाक प्रतिष्ठा उपर प्रश्न खाढ कएलक अछि । जनताक बेटा राष्ट्रप्रमुख बनि सकओ ई परिवर्तनकामी नेपालीक सर्वोच्च सपना छल जाहि सपनापर राष्ट्रपतिक ई वक्त्व्य सवाल खाढ करैत अछि । प्रधानमन्त्री पुष्पकमल दाहालक“े लन्ठैई आ सत्तासाझेदार अन्य दलसभक उपेक्षाक सिकार राष्ट्रपति यादवक“े यी भावुक अभिव्यक्ति आम नेपालीके चिंतित बनौलक अछि । मधेसीके आओर अधिक । संगहि अनेकानेक जिज्ञासा सेहो उब्जौलक अछि । अपनाके“ राष्ट्रपतिक रुपमे घोषणा कए संविधानसभाक निर्वाचनमे जाएवला लोकतान्त्रिक नेपालक प्रथम कार्यकारी प्रमुख पुष्पकमल दाहाल एहने निरास राष्ट्रपतिक कल्पना कएने छलाह कि ? राज्यक कार्यकारी प्रमुखद्वारा सेहो राष्ट्रप्रमुखके मानमर्दन कएल जएवाक घटनासभ आम नेपालीके सोचवालेल वाध्य क रहल अछि — कहीं माओवादी एकतन्त्रीय शासन प्रणाली लएवाक षडयन्त्र त ने करहल अछि ? वा राष्ट्रपतिक पदके उपेक्षित बना सा“डामे दफन राजसंस्थाके पुर्नस्थापित कएल जएवाक अघोषित षडयन्त्र त ने भ रहल अछि देशमे ?
मधेसवादी आन्दोलन जहन उत्कर्षमे छल तहन नेपाली काग्रेसक महामन्त्रीक रुपमे डा.रामवरण यादव एहि महान आन्दोलनके“ “मास हिस्टीरिया” कहने छलाह । एक चिकित्सकके रुपमे हुनका एहि गाडिक अर्थ नीक जका“ बूझल छनि । जहन वास्तविकता ई अछि जे आई जाहि पदपर ओ आसीन छथि से पद हुनका ईहे हिस्टीरियाक रोगीसभक बलिदानस“ प्राप्त भेल छनि । देशी विदेशी राजनयिक,राजनितीक विष्लेशक एवं शक्ति केन्द्रसभ एहि आन्दोलनके आन्तरिक उपनिवेश विरुद्धक स्वाभाविक विद्रोह कहि रहल समयमे एक मधेसी नेताक यी अभिव्यक्ति राजधानीमे वेस चर्चा पौलक आ राष्ट्रिय राजनितीमे डाक्टर यादवके कद सेहो बढल । यद्यपि मधेस भरि एहि वक्तव्यक कडा विरोध भेल छल आ आक्रोशित आन्दोलनकारीसभ जनकपुरक“े ब्रह्मपुरी स्थित हुनकर घरमे आगजनी सेहो कएने छल । मुदा महामानव विपीक अनुयायी डा.यादव लोकतन्त्र,समाजवाद आ मानवअधिकारक पक्षमे पहाड जका“ अडिग रहलाह । अपन घरमे अपमानित भईयो कऽ ओ राष्ट्रिय एकताक पक्षमे अविचल रहलाह । राष्ट्रवादी राजावादीसभसंग समेत सहकार्य करवाक सार्वजनिक प्रतिवद्धता व्यक्त करैत आएल माओवादी अध्यक्ष दाहाल प्रधानमन्त्रीक शपथ लेबाक लेल सुट टाईमे सजि धजिक आएल छलाह मुदा राष्ट्राप्रमुखक“े रुपमा ओ कथित राष्ट्रियताक प्रतीक दाउरा सुरुवालमे देखल गेलाह । गृहनगर जनकपुरमे सेहो ओ माथपर भादगाउ“ले टोपी आ ताहि उपर मिथिलाक प्रतीक पाग लगौने देखल गेलाह । अपन गाममे सेहो राष्ट्रियता हुनकर माथपर छलनि । ओ हुनकर बाध्यता छल वा पदक मर्यादा हुनके बूझल हएतनि । मुदा एतवाधरि साफ अछि जे ओ राष्ट्रिय एकताक मूलमन्त्रस“ कोनो ठाम एको तिल विचलित नहि भेलाह । वा कहल जाय त अपनाके सार्वजनिक व्यक्तित्व प्रमाणित करवालेल ,कथित राष्ट्रियताक प्रतीक टोपी धारण कएनाई कखनो नहि छोडलाह । भादगाउ“ले टोपीउपर मिथिलाक पवित्र पाग लगबैत कालक हुनकर मनोदशा वर्णनातीत भ सकैछ । भादगाउ“ले टोपी उपरके पागक रहस्य खुजए नहि ताहिपर खस मानसिकताक वर्तमान शासकके विशेष सचेष्ट रहवाक चाही । कारण देशमे पुनः ववाल भ सकैत अछि ।
ईएह राष्ट्राप्रमुख डा.रामवरण यादव “राजनितीस“ डाक्टरीक पेसा बेसी ईज्जतदार ” कहि अपन हारल मोनक व्यथा वखान कएलनि अछि । काग्रेसक महाधिवेशन प्रतिनिधीस“ लऽ महामन्त्रीधरिक पदमे रही काज कएनिहार डा.यादव एक बेर चुनाव भलेहि हारि गेल होथि मुदा हारल कहियो नहि छलाह । एखन ओ राजनितीक रुपस“ सर्वोच्च शीखर पर छथि । देशक सबस“ उच्च ओहदापर छथि मुदा देशक प्रथम राष्ट्रपतिक मुहस“ आएल यी अभिव्यक्ति चिन्ताक विषय जरुर अछि । जनआन्दोलन २ के प्रथम उद्येश्य छल जे जनताक बेटा राष्ट्रप्रमुख बनि सकओ । सम्प्रति जनताक बेटा राष्ट्रप्रमुख बनल अछि मुदा जनताक बेटाके उचित प्रतिष्ठा नहि द हमरालोकनि पुरने राजसंस्थाके“ त ने प्रतिष्ठित क रहल छी ?
राष्ट्राप्रमुखद्वारा अपने देशमे प्रतिष्ठाक अपेक्षा राखब अनुचित नहि अछि । राष्ट्रपतिक उपेक्षाके“ माओवादी नेतृत्वक वर्तमान सरकारक“े निती मानल जाय ? आई यदि गिरीजाप्रसाद कोईराला,माधव नेपाल वा प्रचण्ड राष्ट्रपति रहितथि तथापि ईएह अवस्था रहतैक ? एखन ई प्रश्न खासक मधेसमे विशेष चर्चाक विषय बनल अछि । कही डा.यादवके मधेसी होएवाक दण्ड त ने देल जा रहल छनि ? यदि डा.यादवके“ जातीय,क्षेत्रीय,भाषिक वा अन्य कोनो कारणस“ अपेक्षित प्रतिष्ठा नहि भेटि रहल छनि त ई देशक वास्ते प्रतिउत्पादक होएत । यदि सत्ताधारी दलसभ एवं प्रतिपक्षी नेपाली काग्रेस विनु अधिकारक आ विनु मर्यादाक राष्ट्रपतिक परिकल्पना कएने हो त कहवाक किछु नहि अछि यन्यथा राष्ट्रपति आ उपराष्ट्रपति उपर महाभियोग लगाओल जाएवला कानून बनैबाक तैयारीमे लागल जम्बो सभासदलोकनि देशक सभस“ पैघ राष्ट्रपति आ उपराष्ट्रपतिक अधिकार आ कर्तव्यक विषयमे किए ने किछु बाजि रहल अछि ?
डा.यादव सदृश्यक सच्चा राष्ट्रवादीसभमे कोनो प्रकारक कुन्ठा वा हिन भावना नहि पनपए चाही कारण देशक एकताक सम्पर्क सूत्र छथि ओ लोकनि आ हुनकासभक मोनमे हिन भावना टुसाएव माने देशक एकताक वास्ते अनिष्टक संकेत अछि ।

विद्यापति- निमिष झा
कोनो साहित्यमे किछ साहित्यकारसभ एहन होइत छथि जिनकर जन्म कोनो घटनाक रूपमे होइत अछि आ ओहि घटनासँ सम्बन्धित सम्पूर्ण साहित्य प्रभावित भऽ जाइत अछि । ओहन साहित्यकारक साहित्यिक व्यक्तित्व ओहि साहित्यक सर्वाङ्गीण विकासमे वरदानसिद्ध होइत
अछि । ओहन साहित्यिक महापुरुष पूर्ववर्ती साहित्यिक परम्परा आदिक सम्यक अनुशीलन पश्चात अपन मान्यता एवम साहित्यिक योजना निर्दिष्ट करैत छथि । अपन कार्यसभक माध्यमसँ युगान्तकारी आ प्रभावशाली रेखा निर्माण कऽ अमरत्व प्राप्त करैत छथि ।
मैथिली साहित्यक इतिहासमे विद्यापति एकटा एहने अतुलनीय प्रतिभाक नाम अछि । सम्पूर्ण मैथिली साहित्य हुनकासँ प्रभावित अछि । हुनकर प्रभाव रेखाकेँ क्षीण करबाक साहित्यिक क्षमता भेल व्यक्ति मैथिली साहित्यक इतिहासमे अखन धरि किओ नहि अछि । विद्यापति मैथिली साहित्यक सर्वश्रेष्ठ कवि छथि । हुनकेमे मैथिली साहित्यक सम्पूर्ण गौरव आधारित अछि ।
इतिहासकार दुर्गानाथ झा ‘श्रीश’क शब्दमे विद्यापति आधुनिक भारतीय भाषाक प्रथम कवि छथि । ओ संस्कृत साहित्यक अभेद्य किलाकेँ दृढ़तापूर्वक तोड़ि भाषामे काव्य रचना करबाक साहस कयलनि । हुनकरे आदर्शसँ अनुप्रेरित भऽ शङ्करदेव, चण्डीदास, रामानन्द राय, कवीर, तुलसीदास, मीरावाई, सुरदास सनक महान स्रष्टासभ अपन भक्ति भावनाक माध्यमसँ अपन मातृ भाषाकेँ समृद्ध कयलनि ।
मैथिली साहित्यमे विद्यापति युग ओतबे महत्वपूर्ण अछि जतबे अङ्ग्रेजी साहित्यमे शेक्सपियर युग, नेपाली साहित्यमे भानुभक्त युग, बङ्गालीमे रवीन्द्र युग तथा हिन्दीमे भारतेन्दु
युग । विद्यापतिक रचनासभमे मिथिला पहिल बेर अपन वैशिष्टय भक्तिभावना, शृङ्गगारिक सरसता एवम् मौलिक साङ्गीतिक लय प्रस्फुटित भेल आभाष कयलक अछि । ओकर बाद विद्यापतिक पदावलीसभ जनजनक स्वर बनि सकल तऽ मिथिलामे युगोसँ व्याप्त असमानताक अन्त करैत विद्यापतिक रचनासभ समान रूपसँ लोकस्वरक रूप ग्रहण कऽ सकल ।
वास्तवमे विद्यापति युगद्रष्टा रहथि । ओ मैथिली साहित्यक श्रीवृद्धिक लेल अथक प्रयास मात्र नहि कयलनि, तत्कालीन समयमे पतनोन्मुख मैथिल समाजक पुनर्संरचनाक लेल सेहो मद्दत पहुँचौलनि । विद्यापतिक प्रादुर्भावक समयमे भारतीय उपमहाद्वीपका प्रायः हरेक भागक सभ्यता आ संस्कृति सङकटपूर्ण अवस्थामे
छल । मुसलमानी शासकसभक आतङक चरमोत्कर्षमे रहल ओहि समयमे मैथिल संस्कृतिक रक्षा आवश्यक भऽ गेल छल ।
ओहन अवस्थामे विद्यापतिक आगमन मैथिली साहित्य आ संस्कृतिक विकासक लेल महत्वपूर्ण वरदान सिद्ध
भेल । एक दिस मुसलमानी शासकसभक आक्रमण आ दोसर दिस बौद्ध धर्मक बढ़ैत प्रभावक कारण समाजमे सिर्जित वैराग्यक मनस्थितिसँ आक्रान्त मैथिल सभ्यता आ संस्कृति अपन उन्नयनक रूपमे सेहो विद्यापतिकेँ प्राप्त कऽ अपन मौलिकता बचाबयमे सक्षम
भेल ।
विद्यापति अपन विविध रचनासभक माध्यमसँ सामाजिक पुनर्संगठनक प्रक्रियाकेँ बल
देलनि । ओ समाजसँ पलायन भऽ रहल मैथिल युवासभकेँ समाज निर्माणक मूल धारामे प्रभावित करएबाक लेल अथक प्रयास सेहो कयलनि । हुनकर एहने प्रयासक उपज अछि शृङ्गगारिक रचनासभ । मुसलमानसभक आक्रमणसँ पीडित आ पलायन भऽ रहल तत्कालीन मिथिलाक युवासभकेँ मुसलमान विरुद्ध प्रयोग कऽ मिथिलाक अस्तित्व रक्षा करबाक लेल विद्यापतिक ई रचनासभ सहयोगी प्रमाणित भेल ।
तत्कालीन समयक लेल विद्यापतिक अहि प्रकारक चातुर्यकेँ कुटनीतिक सफलताक रूपमे देखल जा सकैया ।
समाजमे व्याप्त असमानाता, कुरीति, अन्धविश्वास सहित विभिन्न विसङगतिसकेँ मानव प्रेम एवम भाषा उत्थानक भरमे विद्यापति अन्त करबाक काजमे सफल छथि ।
विद्यापतिक सम्पूर्ण रचनासभ शृङ्गगार आ भक्ति रससँ ओतप्रोत अछि । कतेको विद्वानसभ विश्व साहित्यमे विद्यापतिसँ दोसर पैघ शृङ्गगारिक कवि आन किओ नहि रहल कहैत छथि ।
महाकवि विद्यापति तत्कालीन समाजमे प्रचलित संस्कृत, अवहठ्ठ आ मैथिली भाषाक ज्ञाता छलथि । ई तीनु भाषामे प्राप्त रचनासभ अहि बातकेँ प्रमाणित करैत अछि ।
यद्यपी विद्यापतिक जन्म तथा मृत्युक सम्बन्धमे विभिन्न विद्वानसभक विभिन्न मत अछि । तथापि मिथिला महाराज शिव सिंहसँ ओ दू वर्षक जेष्ठ रहथि । अहि तथ्यक आधार पर विद्वानसभ हुनकर जन्म तिथिकेँ आधिकारिक मानैत छथि । कवि चन्दा झा विद्यापतिद्वारा रचित पुरुष परीक्षाक आधार पर विद्यापति राजा शिव सिंहसँ दू वर्ष पैघ रहथि उल्लेख कयने
छथि । जँ ई तथ्यकेँ मानल जायतऽ सन् १४०२ मे राज्यारोहणक समयमे राजा शिव सिंहक उमेर ५० वर्ष छल आ विद्यापति ५२ वर्षक रहथि । अहि आधार पर विद्यापतिक जन्म सन् १३५० मे भेल निश्चित अछि ।
डा.सुभद्र झा, प्रो. रमानाथ झा, पं. शशिनाथ झा आदि विद्वानसभ ई मतकेँ स्वीकार करैत छथि मुदा डा.उमेश मिश्र, डा.जयमन्त मिश्र सहितक विद्वानसभ विद्यापतिक जन्म सन् १३६० मे भेल कहैत छथि ।
अहिना विद्यापतिक मृत्यु प्रसङ्गमे सेहो एक मत नहि
अछि ।
अपन मृत्युक सम्बन्धमे मृत्यु पूर्व विद्यापति स्वयंद्वारा रचित पद विद्यापतिक आयु अवसान कात्तिक धवल त्रयोदशी जानेकेँ तुलनात्मक रूपमे अन्य मत सभसँ अपेक्षाकृत युक्ति संगत मानल गेल अछि । मुदा अहिसँ वर्षक निरुपण नहि भेल अछि ।
विद्यापतिक जन्म हाल भारतक बिहार राज्यक मधुवनि जिल्ला अन्तर्गत बिसफी गाममे भेल छल । ई मधुवनी दरभङ्गा रेल्वे लाइनक कमतौल स्टेसन लग अवस्थित अछि । हिनक पिताक नाम गणपति ठाकुर आ माताक नाम गंगादेवी रहनि । हाल विद्यापतिक वंशजसभ सौराठमे रहति छथि ।
विद्यापति बालके कालसँ कुशाग्र वुद्धिक अलौकिक प्रतिभाक रहथि । अपन विद्वान पिताक सम्पर्कमे ओ प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण
कयलनि । मुदा औपचारिक रूपमे प्रकाण्ड विद्वान हरि मिश्रसँ शिक्षा ग्रहण कयलनि । तहिना प्रकाण्ड विद्वान पक्षधर मिश्र विद्यापतिक सहपाठी रहनि ।
विद्यापति मैथिली साहित्यक धरोहर मात्र नहि भऽ संस्कृतक सेहो प्रकाण्ड विद्वान रहथि । ओ मैथिली आ अवहठ्ठक अतिरिक्त संस्कृतमे सेहो अनेको रचना कयने रहथि ।
हुनकर रचनासभकेँ तीन भागमे वर्गीकरण कयल जाइत
अछि ।
क) संस्कृत ग्रन्थ ः भू–परिक्रमा, पुरुष परीक्षा, शैवसर्वस्वसार, शैवसर्वस्वसार प्रमाणभूत, लिखनावली, गङ्गा वाक्यावली, विभागािर, दान वाक्यावली, गया पत्तलक, दुर्गाभक्ति तरङ्गिणी, मणिमञ्जरी, वर्ष, व्रत्य, व्यादिभक्ति तरङ्गिणी ।
ख) अवहठ्ठ ग्रन्थ ः कृतिलता, कृतिपताका
ग) मैथिली ग्रन्थ ः गोरक्ष विजय
महाकवि विद्यापति तीन भाषाक ज्ञाता रहथि । ओ दू दर्जनसँ बेसी ग्रन्थसभक रचना कयने
छथि । हुनकर बहुतो कृति सभ अखन बजारमे उपलब्ध अछि । प्रस्तुत अछि विद्यापतिक ग्रन्थसभक संक्षिप्त विवरण
१) गंगावाक्यावली ः अहि ग्रन्थमे गंगा नदी आ एकर तट पर होबय बला धार्मिक कार्य अर्थात कर्म काण्डक विषयमे विस्तृत जानकारी अछि । गंगा वाक्यावलीक रचना विद्यापति रानी विश्वास देवीक आज्ञासँ कयने रहथि । कृतिमे गंगा नदीक स्मरण, कीर्तन, गंगा तट पर प्राण विसर्जनक महात्म्य वर्णन अछि ।
२) दानवाक्यावली ः राजा नरसिंह दपंनारायणक पत्नी रानी धीरमतीक आज्ञासँ ई ग्रन्थक रचना भेल अछि । अहिमे सभ प्रकारक दान विधि विधान विस्तार पूर्वक कयल गेल अछि ।
३) वर्षकृत्य ः अहि ग्रन्थमे वर्ष भरि होबयबला प्रत्येक पावनि तथा शुभ कार्यक विस्तृत विधान प्रस्तुत अछि । तहिना पूजा, अर्चना, व्रत, दान आदि नियमक सम्बन्धमे सेहो चर्चा कयल गेल अछि ।
४) दुर्गाभक्तितरंगिणी ः दुर्गाभक्तितरंगिणीकेँ दुर्गोत्सव पद्धतिक नामसँ सेहो जानल जाइत अछि । विद्यापति एकर रचना राजा भैरव सिंहक आज्ञासँ कयने रहथि । अहि ग्रन्थमे कालिका पुराण, देवी पुराण, भविष्य पुराण ब्रह्म पुराण, मार्कण्डेय तथा दुर्गा पूजाक पद्धति संग्रहित अछि ।
५) शैवसर्वस्वसार ः राजा पद्मम सिंहक पत्नी विश्वास देवीक आज्ञासँ रचित अहि ग्रन्थमे महाकवि विद्यापति भगवान शिवक पूजासँ सम्बन्धित सभ विधि विधानक वर्णन कयने छथि । अहि ग्रन्थकेँ शम्भुवाक्यावली सेहो कहल जाइत अछि ।
६) गयापत्तलक ः गयापत्तलक ग्रन्थक रचना कोनो राजा या रानीक आदेशसँ नहि भेल अछि । अहि ग्रन्थक सम्बन्ध सामान्य जनतासँ अछि । गयामे श्राद्ध एवम पिण्ड दान तथा गया जा कऽ पितृ ऋणसँ मुक्त होबाक महात्म्य ग्रन्थमे अछि ।
७) विभागसार ः विद्यापति विभागसारक रचना राजा नरसिंह देव दपंनारायणक आदेशसँ कयलनि । अहिमे दायभागक संक्षिप्त मुदा सुन्दर आ आकर्षक विवेचन अछि । मिथिलामे तात्कालीन दायभाग आ उत्तराधिकार सम्बन्धी विधानक लेल ई प्रमाणिक ग्रन्थ मानल जाइत अछि ।
८) लिखनावली ः राजा शिवसिंह तिरोधान भेलाक बाद विद्यापति रजाबनौलीमे राजा पुरादित्यक आश्रममे अहि ग्रन्थक रचना कयलनि । ई ग्रन्थमे पत्राचार करबाक विधिकेँ स्पष्ट व्याख्या कयल गेल अछि । अपनासँ पैघ, छोट, समान तथा नियम व्यावहारपयोगी सहित चारि प्रकारक पत्रक उल्लेख अछि । ग्रन्थसँ मिथिलाक तात्कालीन सामाजिक आ सांस्कृतिक अवस्थाक परिचय भेटैत अछि ।
९) शैवसर्वस्वसार प्रमाणभूत संग्रह ः शैवसर्वस्वसारक रचनाक बाद विद्यापति अहि ग्रन्थक रचना कयने रहथि । अहिमे शैवसर्वस्वसारक प्रमाणभूत पौराणिक वचनक संग्रह अछि ।
१०) व्याडिभक्तितरंगिणी ः ई लघु ग्रन्थमे सर्पिणीक पूजाक वर्णन अछि । विभिन्न पौराणिक कथा सभ उल्लेख अछि ।
११) द्वेतैनिर्णय ः ई एक तन्त्र शास्त्रीय लघु ग्रन्थ अछि । जाहिमे तन्त्र शास्त्रक गुप्त चर्चा कयल गेल अछि । अहि ग्रन्थसँ विद्यापतिकेँ तन्त्रक सेहो विशद ज्ञान रहल प्रमाणित होइत अछि ।
१२) पुरुषपरीक्षा ः राजा शिव सिंहक निर्देशन पर रचित ई ग्रन्थकेँ विद्यापतिक उत्तम कोटिक ग्रन्थ मानल जाइत अछि । पुरुषपरीक्षामे वीर कथा, सुवुद्धि कथा, सुविद्य कथा आ पुरषार्थ कथा नामक चारि वर्गक पञ्चतन्त्रक शिक्षाप्रद कथा सभ समाविष्ट अछि । समाजशास्त्री, इतिहासकार, मानवशास्त्री, राजनीति शास्त्री सहित दर्शन एवम साहित्य विधाक व्यक्तिक लेल ई अपूर्व कृति अछि ।
१३) भूपरिक्रमा ः ई विद्यापतिक अत्यन्त प्रभावकारी ग्रन्थ अछि । राजा देव सिंहक आज्ञासँ भूपरिक्रमाक रचना कयल गेल
अछि । ग्रन्थमे वलदेवजीद्वारा कयल गेल भूपरिक्रमाक वर्णन अछि । तहिना नैमिषारण्यसँ मिथिला धरिक सभ तीर्थ स्थलक वर्णन सेहो अछि ।
१४) कीर्तिलता ः कीर्तिलताक रचना विद्यापति अवहठ्ठमे कयलनि अछि आ अहि ग्रन्थमे राजा कीर्ति सिंहक कीर्ति कीर्तन अछि । मिथिलाक तात्कालीन राजनीतिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक स्थितिक अध्ययनक लेल ई ग्रन्थ महत्वपूर्ण मानल जाइत अछि । ग्रन्थसँ विद्यापतिक प्रौढ़ काव्य कलाक प्रमाण भेटैत अछि । तहिना विकसित काव्य प्रतिमाक दर्शन सेहो होइत अछि ।
१५) कीर्तिपताका ः अहि ग्रन्थमे राजा शिवसिंहक बहुत चतुरतापूर्वक यशोवर्णन अछि । ग्रन्थक रचना दोहा आ छन्दमे
अछि । ग्रन्थक आरम्भमे अद्र्धनारीश्वर, चन्द्रचूड शिव आ गणेशक बन्दना अछि । कीर्तिपताका खण्डित रूपमे मात्र उपलब्ध
अछि । एकर ९ सँ २० धरिक जम्मा २१ टा पृष्ठ अप्राप्त अछि । तीसम पृष्ठमे राजा शिव सिंहक युद्ध पराक्रमक वर्णन अछि ।
१६) गोरक्षविजय ः ई एक एकांकी नाटक अछि । अहिमे विद्यापतिक नूतन प्रयोग सेहो अछि । गोरक्षनाथ आ मत्स्येन्द्रनाथक कथा पर नाटक आधारित
अछि । ग्रन्थक रचना राजा शिव सिंहक आदेशसँ कयल गेल छल ।
१७) मणिमंजश नाटिका ः ई एक लघु नाटिका अछि । नाटिकामे राजा चन्द्रसेन आ मणिमंजरीक प्रेमक वर्णन अछि ।
१८) मैथिली पदावली ः विद्यापतिक मैथिलीमे रचित पदावलीक संग्रहित ग्रन्थ अछि मैथिली पदावली । लिखित संकलनक अभावमे विद्यापतिक गीत अपन माधुर्यक कारण लोक कण्ठमे जीवित छल आ बहुत बाद एकर समग्र रूपमे संकलित करबाक प्रयास कयल गेल । यद्यपी अनेक संग्रहसभमे विद्यापतिक गीतक संकलित भेल अछि । पदावलीमे राधा एवम कृष्णक प्रेम प्रसंग गेय पदमे प्रकाशित अछि ।
३.पद्य
३.१.1.रामलोचन ठाकुर 2.कृष्णमोहन झा 3. अशोक दत्त 4.निमिष झा
३.२.श्री गंगेश गुंजनक- राधा (सातम खेप)
३.३. बुद्ध चरित- गजेन्द्र ठाकुर
३.४. टेम्स नदीमे नौकाविहार-ज्योति
३.५. १.विद्यानन्द झा २.अजीत कु. झा ३.विनीत उत्पल
३.६. १.वृषेश चन्द्र लाल २. पंकज पराशर
३.७. 1.धीरेन्द्र प्रेमर्षि 2. धर्मेन्द्र विह्वल 3.जितमोहन झा
३.८. १.वैकुण्ठ झा २. हिमांशु चौधरी
1.रामलोचन ठाकुर 2.कृष्णमोहन झा 3. अशोक दत्त 4.निमिष झा
श्री रामलचन ठाकुर, जन्म १८ मार्च १९४९ ई.पलिमोहन, मधुबनीमे। वरिष्ठ कवि, रंगकर्मी, सम्पादक, समीक्षक। भाषाई आन्दोलनमे सक्रिय भागीदारी। प्रकाशित कृति- इतिहासहन्ता, माटिपानिक गीत, देशक नाम छल सोन चिड़ैया, अपूर्वा (कविता संग्रह), बेताल कथा (व्यंग्य), मैथिली लोक कथा (लोककथा), प्रतिध्वनि (अनुदित कविता), जा सकै छी, किन्तु किए जाउ(अनुदित कविता), लाख प्रश्न अनुत्तरित (कविता), जादूगर (अनुवाद), स्मृतिक धोखरल रंग (संस्मरणात्मक निबन्ध), आंखि मुनने: आंखि खोलने (निबन्ध)।

व्यवस्थाक नाम/ चेतौनी
बिना कुनू संकेतक
वा
समयक प्रतीक्षा कें
सूतल ज्वालामुखी
कखनहुं गरजि सकैछ
गिरि शिखरक आरोही
कखनहुं पिछड़ि सकैछ
कृष्णमोहन झा (1968- ), जन्म मधेपुरा जिलाक जीतपुर गाममे। “विजयदेव नारायण साही की काव्यानुभूति की बनावट” विषयपर जे.एन.यू. सँ एम.फिल आ ओतहिसँ “निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में प्रेम की परिकल्पना” विषयपर पी.एच.डी.। हिन्दीमे एकटा कविता सँग्रह “समय को चीरकर” आ मैथिलीमे “एकटा हेरायल दुनिया” प्रकाशित। हिन्दी कविता लेल “कन्हैया स्मृति सम्मान”(1998) आ “हेमंत स्मृति कविता पुरस्कार”(2003)। असम विश्वविद्यालय, सिल्चरक हिन्दी विभागमे अध्यापन।
एक दिन
आइ नहि तँ काल्हि
काल्हि नहि तँ परसू
परसू नहि तँ तरसू
नहि तरसू नहि महिना...
किछु बरखक बाद

एक दिन
अहाँ घूरि कऽ आयब अही चौकठि पर
आ बेर-बेर अपनहि सँ कहब अपना-
धन्यवाद! धन्यवाद!!

अशोक दत्त , जनकपुर, नेपाल
दू टप्पी
पतुरियासन मुस्की मगरसन नोर नेने
भोरसं सांझधरि फ़ुसिएटा परसैए
गिरगिट त दुनियांमे ब्यर्थे बदनाम अछि
गिरगिटसं बेशी मनुक्ख रंग बदलैए
लुत्ती
करेजपर चोट लगै छै त लुत्ती जनमै छै
केओ जं घात करै छै त लुत्ती जनमै छै
फ़ाटल चाहे जत्ते हो देहके वस्त्र मुदा
चीर पर हाथ बढै छै त लुत्ती जन्मै छै
रहओ केहनो अपन मडैया बडा नीक लगैछ
बास उपट' लगै छै त लुत्ती जनमै छै
ल कर्मक रङकुच्ची बनबैया अपन फ़ोटो
ओ फ़ोटो डहै छै त' लुत्ती जनमै छै
सोनित या पानि धर्ती होइछै समान सभके
भेदके रङ चढ़ैछै त लुत्ती जनमै छै
बुझि छाउर सर्द चाहे जत्ते खेल करए
बात जं हकके अबैछै त लुत्ती जनमै छै

निमिष झा,समाचार प्रमुख,हेडलाइंस एण्ड म्यूजिक एफ.एम.,97.2, ललितपुर, नेपाल
वेदनाक तरङ्ग

निरश आ उचाट वातावरण
विरक्त आ विरान दृश्य
निर्मम सन्नाटा
तीतायल चेहरा
विक्षिप्त मोन
भूतलायल आकृति
आक्रोशसँ पाकल आँखि
उच्छ्वाससँ जरल ठोर
रागसँ पिसायल चित्रवृत्ति
परस्पर टूटल सम्बन्ध जकाँ निरीहता
नहि फूल जकाँ मधुर मुस्कान
नहि मोनक निस्तब्धतामे स्निग्ध जागरण
मात्र गड़ैत अछि
हृदयमे वेदनाक तरङ्ग
गगेयश गुंजन
. श्री डॉ. गंगेश गुंजन(१९४२- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार।१९६४-६५ मे पाँच गोटे कवि-लेखक “काल पुरुष”(कालपुरुष अर्थात् आब स्वर्गीय प्रभास कुमार चौधरी, श्री गंगेश गुन्जन, श्री साकेतानन्द, आब स्वर्गीय श्री बालेश्वर तथा गौरीकान्त चौधरीकान्त, आब स्वर्गीय) नामसँ सम्पादित करैत मैथिलीक प्रथम नवलेखनक अनियमितकालीन पत्रिका “अनामा”-जकर ई नाम साकेतानन्दजी द्वारा देल गेल छल आऽ बाकी चारू गोटे द्वारा अभिहित भेल छल- छपल छल। ओहि समयमे ई प्रयास ताहि समयक यथास्थितिवादी मैथिलीमे पैघ दुस्साहस मानल गेलैक। फणीश्वरनाथ “रेणु” जी अनामाक लोकार्पण करैत काल कहलन्हि, “ किछु छिनार छौरा सभक ई साहित्यिक प्रयास अनामा भावी मैथिली लेखनमे युगचेतनाक जरूरी अनुभवक बाट खोलत आऽ आधुनिक बनाओत”। “किछु छिनार छौरा सभक” रेणुजीक अपन अन्दाज छलन्हि बजबाक, जे हुनकर सन्सर्गमे रहल आऽ सुनने अछि, तकरा एकर व्यञ्जना आऽ रस बूझल हेतैक। ओना “अनामा”क कालपुरुष लोकनि कोनो रूपमे साहित्यिक मान्य मर्यादाक प्रति अवहेलना वा तिरस्कार नहि कएने रहथि। एकाध टिप्पणीमे मैथिलीक पुरानपंथी काव्यरुचिक प्रति कतिपय मुखर आविष्कारक स्वर अवश्य रहैक, जे सभ युगमे नव-पीढ़ीक स्वाभाविक व्यवहार होइछ। आओर जे पुरान पीढ़ीक लेखककेँ प्रिय नहि लगैत छनि आऽ सेहो स्वभाविके। मुदा अनामा केर तीन अंक मात्र निकलि सकलैक। सैह अनाम्मा बादमे “कथादिशा”क नामसँ स्व.श्री प्रभास कुमार चौधरी आऽ श्री गंगेश गुंजन दू गोटेक सम्पादनमे -तकनीकी-व्यवहारिक कारणसँ-छपैत रहल। कथा-दिशाक ऐतिहासिक कथा विशेषांक लोकक मानसमे एखनो ओहिना छन्हि। श्री गंगेश गुंजन मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक छथि आऽ हिनका उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल छन्हि। एकर अतिरिक्त्त मैथिलीमे हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोर (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आऽ शब्द तैयार है (कविता संग्रह)। प्रस्तुत अछि गुञ्जनजीक मैगनम ओपस "राधा" जे मैथिली साहित्यकेँ आबए बला दिनमे प्रेरणा तँ देबे करत सँगहि ई गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित सभ दुःख सहए बाली- राधा शंकरदेवक परम्परामे एकटा नव-परम्पराक प्रारम्भ करत, से आशा अछि। पढ़ू पहिल बेर "विदेह"मे गुञ्जनजीक "राधा"क पहिल खेप।-सम्पादक। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक पढबाक लेल बुधिबधिया, गुंजनजीक नाटक आइ भोर पढ़बाक लेल आइ भोर आऽ गुंजनजीक दोसर उपन्यास पढ़बाक लेल पहिल लोक क्लिक करू। ( हुनकर पहिल उपन्यास "माहुर बोन"क मूल पाण्डुलिपि मिथिला मिहिर कार्यालयसँ लुप्त भए गेल, से अप्रकाशित अछि। गुंजनजी सँ अनुरोध केने छियन्हि जे जतबे मोन छन्हि, ततबे पाठकक लेल पठाबथि, देखू कहिया धरि ई संभव होइत अछि।)
गुंजनजीक राधा
विचार आ संवेदनाक एहि विदाइ युग भू- मंडलीकरणक बिहाड़िमे राधा-भावपर किछु-किछु मनोद्वेग, बड़ बेचैन कएने रहल।
अनवरत किछु कहबा लेल बाध्य करैत रहल। करहि पड़ल। आब तँ तकरो कतेक दिन भऽ गेलैक। बंद अछि। माने से मन एखन छोड़ि देने अछि। जे ओकर मर्जी। मुदा स्वतंत्र नहि कए देने अछि। मनुखदेवा सवारे अछि। करीब सए-सवा सए पात कहि चुकल छियैक। माने लिखाएल छैक ।
आइ-काल्हि मैथिलीक महांगन (महा+आंगन) घटना-दुर्घटना सभसँ डगमगाएल-
जगमगाएल अछि। सुस्वागतम!
लोक मानसकें अभिजन-बुद्धि फेर बेदखल कऽ रहल अछि। मजा केर बात ई जे से सब भऽ रहल अछि- मैथिलीयेक नाम पर शहीद बनवाक उपक्रम प्रदर्शन-विन्याससँ। मिथिला राज्यक मान्यताक आंदोलनसँ लऽ कतोक अन्यान्य लक्ष्याभासक एन.जी.ओ.यी उद्योग मार्गे सेहो। एखन हमरा एतवे कहवाक छल । से एहन कालमे हम ई विहन्नास लिखवा लेल विवश छी आऽ अहाँकेँ लोक धरि पठयवा लेल राधा कहि रहल छी। विचारी।

राधा (सातम खेप)
राधा

ऑगी हेराएब कोनो तेहन दुर्घट बात नहि। राधा तें उदासो नहि भेलीह। उदास तं ओ आनो आन कए कारणें छलीह। जेना ,शरीरे दुखित पड़लि छलीह। कोनो टा सखि, क्यो बहिना कए दिन सं देख' पर्यंत नहि अयलनि। हुलकियो देब' नहि। दुखित कें होइत छैक आशा आग्रह। बल्कि स्पृहा। स्पृहा ई जे क्यो आबए, आबि क' दू क्षण लग मे बैसय, दःख पूछय। गप करय। किछु कहय, किछु सुनय। मन कें बहटारय।
सैह तकरे अभाव आ संबन्धक जोर।जे अप्पन नहि तकरा पर अधिकारे कोन ? जे अपनो अछि आ अधिकारो बुझाइत अछि, वास्तव मे से कतेक अपन ?
ई अधिकार आ प्रयोजनक प्राथमिकताक अपन-अपन वृत्त होइत छैक। मनुक्ख-मनक ई लाचारी छैक। ओकरा अपन एहि सीमाक ध्यान राख' पड़ैत छैक आ तहिना संपर्कित-संबंधित समस्त समाजक ध्यान राख' पड़ैत छैक। से जकरा बुतें एकर, एहि बुद्धिक संतुलन नहि रहल ,तकर जीवन कनीक आर मोशकिल।अर्थात्‌ जीवनक मोशकिली धरि अपरिहार्य।
राधाक ई सोचब आ दुखी हएब स्वाभाविके जे जीवन मोशकिलीक सवारी थिक। चिक्कन चुनमुन बाट पर पहिया सब गुड़कैत आगां बढ़ैत रहल तं बड़ दिब। सबटा मन विरुद्धो अनुभव पाछां छुटैत गेल आ मनलग्गू अनुभव अपना संग आगां बढ़ैत रहल। कतहु कोनो ठाम पहुंचि गेलाक बाद कए तरहें संतुष्ट कयलक आ कए तरहें अतृप्त राखि देलक।
आब फेर एत' सं अनुभवक अतृप्त प्रसंग जे एकहि क्षण पहिने मात्र नगण्य बुझाइत छल, से भ' जाइत अछि खोंचाड़ल मधुमाछी... खोंचाड़ल मधुमाछीमक खोंता । बिना बिन्हनहुं अनेरे ठेहुन सं मूड़ी धरि घनघनौने रहत बड़ी-बड़ी काल। हरदम डेरायल मन-काटत,आब काटत...। कोनो क्षण लुधकत आ काटि लेत। यद्यपि कि काटियो लेत तं कोन ओ अहांक गर्दनि छोपि लेत ? दंश देत। से मुदा भने मधु जकां नहि, विष विशाइत दंश। कोनो गर्दनिकट्ट नहि होइत अछि- मधुमाछी !
-बरु गर्दनियें काटब सुभीतगर, ओ सोचलनि। भने मनुक्ख कें छुटकारा तं भेटि जाइ छैक। आ दिन दिनक विस विसाइत भोग-अनुभूतिक अनवरत क्रम जे संपूर्ण अस्तित्वे के बेचैन कयने रहत। देह-प्राणक किछु टा आन वातावरण नहि बनब' देत। घिसियौर कटबैत रहत। ओही अपन स्वभावक परिधि आ तकर प्रयोजन मे बन्हने रहत। मात्र बन्हनहुं टा रहि जाय, तैयो सुकुर, मुदा ओ तं अहांक बुद्धि सं आर सब किछु कें काटि-बारि क' फराक क' देत। अहीं कें अपन तेहल्ला बना क' छोड़त। लैत रहू।
आब एहि मन मे किछुओ क्षण रहि गेलौं कि ओ अहां सं अहींक परिचय तलब करत। यावत-यावत तैयार भ' क' अहां उपयुक्त सोचब आ बाजब, तावत-तावत ई बात, अहांक मनक ई मामूली घटना एकटा समाचार बनि जायत। ई समाचार बिना कोनो माध्यम कें रौद आ बसात पर सवार भ' क' पहुंचि जायत ओत' धरि जत' अहां सोचियो ने सकैत छी। आब बैसि क' कपार पीटैत रहू। ककरा-ककरा आ की-की बुझयबैक ? आ से जकरा बुझयबैक से कतेक दूर धरि ,की मानत ? जतवा मानियो लेत तकरा सं अहांक जीवन कें की सुभीता आ कोन सुख ?
हॅं, सुख ? की थिक ? केहन होइत छैक ? कोना होइत छैक ? कतवा होइत छैक ? ककरा होइत छैक ?
मुदा... मुदा, किछु छैक तं अवश्ये ई सुख! सुखक अनुभव अवश्ये छैक एहि पृथ्वी पर-मनुक्ख सं ल' क' सब जीवधारी मे।तें रहैए एकरा पाछां व्याकुल-बेहाल! परंतु से केहन छैक-लाल ,पीयर, हरियर ,उज्जर, कारी -केहन ? अर्थात्‌ सुखक कोनो रंगो होइत छैक ? कोनो खास रंग ?
-की स्वाद छैक ? केहन स्वाद ? कोनो फलक स्वाद ? चाउर-दालि-गहूमक स्वाद ? तीमन-तरकारीक ?इनारक टटका जलक स्वाद ?एक संगे दू गोटेक इजोरियाक चन्द्रमा बा एकान्त अन्हरिया मे तारा गनवाक स्वाद ? कोनो अनचिन्हार चिड़ैक अपरिचित बोल अकानि चीन्हवाक कोसिसक स्वाद? बा भोरे भोरे जन्मौटी बच्चाक मिलमिलाइत आंखि जकां बाड़ीक कोनो नान्हि टा गाछ मे नव पनगल दिव्य ललाओन दुपत्ती कें देखि अह्‌लाद होयवाक स्वाद ?....घन अन्हार मे ककरो कंठ सं अपन नामक सम्बोधन सुनवाक ?
कोनो गंध होइत छैक ? अत्तर-गुलाब सन, बेली-चमेली सन , तेजपात सं छौंकल दालि, कढ़ी पातक बा औंटवा काल लोहिया लागि गेल दूध सन, सोन्हायल डाबा सन,-कथी सन ? जन्मौटी बच्चा सन, तुरंत बियाहलि स्त्री सन आ कि बाध सं घुरल हरवाह-गृहस्थ सन, यमुना जल मे खीचल नूआ-वस्त्र सन बा पाकल कदंब सन बा श्रीकृष्णक सांस सन ?
सांस मे केहन निसां छैक ! कृष्णक सांस मे केहन निस्सां छनि ? कृष्ण मे अपने केहन निसां छनि ! कृष्ण निस्सें छथि । कृष्ण माने निसां...।
बेचैनी राधाक ,बेबस मनक प्रवाह मे,
बहैत रहल, यमुना धार सन,
राति, रातुक अन्हार काल मे । सब सूतल अपन-अपन ठाम।
धेने सब रातुक विश्रामक स्थान।
चिड़ै चुनमुन्नी अपन-अपन खोंता।
माल जान अपन थैर-बथान।
आ मनुक्ख अपन-अपन चौकी-खाट-मचान !
निसभेर निन्न मे डूमल जीयैत।
मात्र ई एकटा एकसर मनक विकल नियति, चुपचाप
सूतल रातिक अन्हार मे अपन निस्बद्द चलैत रहल-बहैत गेल!
राधाक मनक प्रवाह यमुना भ' गेल।
एतवो पर रच्छ छल , मुदा
कहां बांचल समयक इहो एहनो सुभीता,
सेहो तं आंजुरक जल भेल।
कतबो यत्ने बचा क' रखवा मे कहां भेलहुं सकारथ ?
सबटा बहि गेल। कनीक काल रहल भने
भीजल तरहत्थी-माने स्निग्ध ,
सेहो अगिले पल ऋतुक उष्ण प्रभावक वेग मे निठ्ठाहे सुखा गेल।

जानि नहि ओ आंजुर आ आंजुरक जल कोन क्षण अलोप भेल
कोना बिला गेल,
कत' गेल ?
सूर्य लग गेल ? चन्द्रमा लग गेल कि तारा लग ? वा माटि मे,
पोखरि-इनार-धार, कोनो मे फेर सं घुरि गेल, जा क' मीलि गेल जल-
अपन उद्गम सं, उत्स सं वा भाफ बनि क' बन' गेल मेघ ? कर' गेल बरखा,?
जल कत'गेल ? आंजुर भरि जल कत' गेल ?


ई किछु विलाप जकां
राधाक मनक परिताप अपनहि अभ्यंतर मे
मुखर चलि रहल-
अपनहि कहैत-अपने कें सुनैत । अपने सं सभटा पूछैत।
ई केहन विचित्र आत्म सम्बोधन ?
अपनहि मन सोर पाड़य अपने मन !
सौंसे गाम-टोल अछैत ,
टोलक लोक, संबंधी, सखि-बहिनपाक एहि
पसरल समाज आ संसार मे कोनो एकटा मन,
एहन असकर
एतेक एकान्त
काटि रहल व्याकुल पल-पल जीवन ।
अपनहि विडंबना कें स्वयं करैत
आत्म सम्बोधन....
-"राधा'' ....!!
एं ई की भेल कत' सं कोन आकाशवाणी
-"आब केहन मन अछि अहांक राधा !''


के पूछल ? बाजल के ? के आयल पूछ'-कुशलक्षेम,
ककर थिक ई प्राणबेधी वाणी ?
दुर्लभ स्वर्गिक संगीत स्वर थिक ककर ?
रातिक एहि निस्बद्द एकान्त अन्हार मे के बाजल,
ककरा भेलैक हमर चिन्ता ?
के आयल पूछय-हालचाल,...


अच्छा, तं... ई थिक
हुनके ताल ?


राधा कें कानमे स्पष्टे क्यो पुछलकनिहें। किछुओ संदेह नहि,
सत्य छैकः
'केहन मन अछि अहांक राधा...'
ई थिक सद्य : अनुभव, कोनो टा भ्रम नहि।
मुदा तखन राधा कें कियेक लगलनिहें ई जिज्ञासा,
पुरुष-कंठक नारी-स्वर मे प्रतिध्वनि ?
यदि पुछलनिहें कृष्ण तं पछाति
सैह प्रश्न करैत स्त्री के छल ई जकर स्वर छल ?
ई अछि कोना संभव ?
मुदा थिक तं ई सत्य ,संदेह कथमपि नहि।
सत्य तं होइत अछि सत्ये।
ज्वरे परजरित एहि देहक ताप पर
जमुना जल भीजल पीतांबरी जकां के
एना पसरि रहल-ए,
आलसे निनियाइल बसात...
जमुना मे झिलहरि खेलाइत,
निस्बद्द राति।
गंगेश गुंजन/राधा- सातम खेप/ प्रेषित २३ अक्तूबर-२००८.

गजेन्द्र ठाकुर (1971- ) कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ आऽ २ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य,शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन) प्रिंटमे।
बुद्ध चरित

ई पुरातन देश नाम भरत,
राज करथि जतए इक्ष्वाकु वंशज।
एहि वंशक शाक्य कुल राजा शुद्धोधन,
पत्नी माया छलि,
कपिलवस्तुमे राज करथि तखन।

माया देखलन्हि स्वप्न आबि रहल,
एकटा श्वेत हाथी आबि मायाक शरीरमे,
पैसि छल रहल हाथी मुदा,
मायाकेँ भए रहल छलन्हि ने कोनो कष्ट,
वरन् लगलन्हि जे आएल अछि मध्य क्यो गर्भ।

गर्भक बात मुदा छल सत्ते,
भेल मोन वनगमनक,
लुम्बिनी जाय रहब, कहल शुद्धोधनकेँ।
दिन बीतल ओतहि लुम्बनीमे एक दिन,
बिना प्रसव-पीड़ाक जन्म देलन्हि पुत्रक,
आकाशसँ शीतल आऽ गर्म पानिक दू टा धार,
कएल अभिषेक बालकक लाल-नील पुष्प कमल,
बरसि आकाशसँ।
यक्षक राजा आऽ दिव्य लोकनिक भेल समागम,
पशु छोड़ल हिंसा पक्षी बाजल मधुरवाणी।
धारक अहंकारक शब्द बनल कलकल,
छोड़ि “मार” आनन्दित छल सकल विश्व,
“मार” रुष्ट आगमसँ बुद्धत्वप्राप्ति करत ई?


माया-शुद्धोधनक विह्वलताक प्रसन्नताक,
ब्राह्मण सभसँ सुनि अपूर्व लक्षण बच्चाक,
भय दूर भेल माता-पिताक तखन जा कऽ,
मनुष्यश्रेष्ठ पुत्र आश्वस्त दुनू गोटे पाबि कए।

महर्षि असितकेँ भेल भान शाक्य मुनि लेल जन्म,
चली कपिलवस्तु सुनि भविष्यवाणी बुद्धत्व करत प्राप्त,
वायु मार्गे अएलाह राज्य वन कपिलवस्तुक,
बैसाएल सिंहासन शुद्धोधन तुरत,
राजन् आएल छी देखए बुद्धत्व प्राप्त करत जे बालक।
बच्चाकेँ आनल गेल चक्र पैरमे छल जकर,
देखि असित कहल हाऽ मृत्यु समीप अछि हमर,
बालकक शिक्षा प्राप्त करितहुँ मुदा वृद्ध हम अथबल,
उपदेश सुनए लेल शाक्य मुनिक जीवित कहाँ रहब।
वायुमार्गे घुरलाह असित कए दर्शन शाक्य मुनिक,
भागिनकेँ बुझाओल पैघ भए बौद्धक अनुसरण करथि।
दस दिन धरि कएलन्हि जात-संस्कार,
फेर ढ़ेर रास होम जाप,
करि गायक दान सिंघ स्वर्णसँ छारि,
घुरि नगर प्रवेश कएल माया,

हाथी-दाँतक महफा चढ़ि।
धन-धान्यसँ पूर्ण भेल राज्य,
अरि छोड़ल शत्रुताक मार्ग,
सिद्धि साधल नाम पड़ल सिद्धार्थ।
मुदा माया नहि सहि सकलीह प्रसन्नता,
मृत्यु आएल मौसी गौतमी कएल शुश्रुषा।
उपनयन संस्कार भेल बालकक शिक्षामे छल चतुर,
अंतःपुरमे कए ढेर रास व्यवस्था विलासक,
शुद्धोधनकेँ छल मोन असितक बात बालक योगी बनबाक।
सुन्दरी यशोधरासँ फेर करबाओल सिद्धार्थक विवाह,
समय बीतल सिद्धार्थक पुत्र राहुलक भेल जन्म।
उत्सवक संग बितैत रहल दिन किछु दिन,
सुनलन्हि चर्च उद्यानक कमल सरोवरक,
सिद्धार्थ इच्छा देखेलन्हि घुमक,
सौँसे रस्तामे आदेश भेल राजाक,
क्यो वृद्ध दुखी रोगी रहथि बाट ने घाट।
सुनि नगरवासी देखबा लेल व्यग्र,
निकलि आयल पथपर दर्शनक सिद्धार्थक,
चारू कात छल मनोरम दृश्य,
मुदा तखने आएल पथ एक वृद्ध।
हे सारथी सूतजी के अछि ई,
आँखि झाँपल भौँहसँ श्वेत केश,
हाथ लाठी झुकल की अछि भेल?
कुमार अछि ई वृद्ध,
भोगि बाल युवा अवस्था जाय
अछि भेल वृद्ध आइ,
की ई होएत सभक संग,
हमहू भए जाएब वृद्ध एक दिन?
सभ अछि बुझल ई खेल,
फेर चहुदिस ई सभ करए किलोल,
हर्षित मुदित बताह तँ नहि ई भीड़,
घुरि चलू सूत जी आब,
उद्यानमे मोन कतए लाग!

महलमे घुरि-फिरि भऽ चिन्तामग्न,
पुनि लऽ आज्ञा राजासँ निकलल अग्र,
मुदा एहि बेर भेटल एकटा लोक,
पेट बढ़ल, झुकल लैत निसास,
रोगग्रस्त छल ओऽ पूछल सिद्धार्थ,
सूत जी छथि ई के की भेल?
रोगग्रस्त ई कुमार अछि ई तँ खेल,
कखनो ककरो लैत अछि अपन अधीन,
सूत जी घुरू भयभीत भेलहुँ हम आइ,
घुरि घर विचरि-विचरि कय चिन्तन,
शुद्धोधन चिन्तित जानि ई घटनाक्रम।
आमोद प्रमोदक कए आर प्रबन्ध,
रथ सारथी दुनू नव कएल प्रबन्ध।
फेर एक दिन पठाओल राजकुमार,
युवक-युवती संग पठाओल करए विहार,
मुदा तखने एकटा यात्रा मृत्युक,
हे सूतजी की अछि ई दृश्य,
सजा-धजा कए चारि गोटे धए कान्ह,
मुदा तैयो सभ कानि रहल किए नहि जान।
हे कुमार आब ई सजाओल मनुक्ख,
नहि बाजि सकत, अछि ई काठ समान।
कानि-खीजि जाथि समस्त ई लोक,
छोड़ए ओकरा मृत्यु केलन्हि जे प्राप्त।
घुरू सारथी नहि होएत ई बर्दाश्त,
भय नहि अछि एहि बेर,
मुदा बुझितो आमोद प्रमोदमे भेर,
अज्ञानी सन कोना घुमब उद्यान।
मुदा नव सारथी घुरल नहि द्वार,
पहुँचल उद्यान पद्म खण्ड जकर नाम।
युवतीगणकेँ देलक आदेश उदायी पुरोहित पुत्र,
करू सिद्धार्थकेँ आमोद-प्रमोदमे लीन,
मुदा देखि इन्द्रजीत सिद्धार्थक अनासक्ति,
पुछल उदायी भेल अहाँकेँ ई की?
हे मित्र क्षणिक ई आयु,
बुझितो हम कोना गमाऊ,
साँझ भेल घुरि युवतीसभ गेल,
सूर्यक अस्तक संग सांसारक अनित्यताक बोध,
पाबि सिद्धार्थ घुरल घर चिन्ता मग्न,
शुद्धोधन विचलित मंत्रणामे लीन।
किछु दिनक उपरान्त,
माँगि आज्ञा बोन जएबाक,
संग किछु संगी निकलि बिच खेत-पथार,
देखि चास देल खेत मरल कीट-पतंग,
दुखित बैसि उतड़ल घोड़ासँ अधः सिद्धार्थ,
बैसि जोमक गाछक नीचाँ धए ध्यान,
पाओल शान्ति तखने भेटल एक साधु।
छल ओऽ मोक्षक ताकिमे मग्न,
सुनि ओकर गप देखल होइत अन्तर्धान।
गृह त्यागक आएल मोनमे भाव,
बोन जएबाक आब एखन नहि काज।
घुरि सभ चलल गृहक लेल,
रस्तामे भेटलि कन्या एक,
कहल अहाँ छी जनिक पति,
से छथि निश्चयेन निवृत्त।
निवृत्त शब्दसँ निर्वाणक प्रसंग,
सोचि मुदित सिद्धार्थ घुरल राज सभा,
रहथि ओतए शुद्धोधन मंत्रीगणक बिच।
कहल - लए संन्यास मोक्षक ज्ञानक लेल,
करू आज्ञा प्रदान हे भूदेव।
हे पुत्र कएल की गप,
जाऊ पहिने पालन करू भए गृहस्थ,
संन्यासक नहि अछि आएल बेर,
तखन सिद्धार्थ कहल अछि ठीक,
तखन दूर करू चारि टा हमर भय,
नहि मृत्यु, रोग, वृद्धावस्था आबि सकय,
धन सेहो क्षीण नहि होए संगहि।
शुद्धोधन कहल अछि ई असंभव बात,
तखन हमर वियोगक करू नहि पश्चाताप।
कहि सिद्धार्थ गेलाह महल बिच,
चिन्तित एम्हर-ओम्हर घुमि निकललि बाह्य,
सूतल छंदककेँ कहल श्वेत वेगमान,
कंथक घोड़ा अश्वशालासँ लाऊ,
सभ भेल निन्नमे भेर कंथक आएल,
चढा सिद्धार्थकेँ लए गेल नगरसँ दूर,
नमस्कार कपिलवस्तु,
घुरब जखन पाएब जन्म-मृत्युक भेद।
सोझाँ आएल भार्गव ऋषिक कुटी उतरि सिद्धार्थ,
लेलन्हि रत्नजटित कृपाण काटल केश,
मुकुट मणि आभूषण देल छंदककेँ।
अश्रुधार बहल छंदकक आँखि,
जाऊ छंदक घुरु नगर जाऊ,
नहि सिद्धार्थ हम नहि छी सुमन्त,
छोड़ि राम घुरल अयोध्या नगर।
घोटक कंथकक आँखिमे सेहो नोर,
तखने एक व्याध छल आयल,
कषाय वस्त्र पहिरने रहए कहल सिद्धार्थ,
हमर शुभ्र वस्त्र लिअ दिअ ई वस्त्र,
अदलि-बदलि दुनु गोटे वस्त्र पहिर,
छंदक देखि केलक प्रणाम गेल घुरि।
सिद्धार्थ अएलाह आश्रम सभ भेल चकित,
देखि नानाविध तपस्या कठोर,
नहि संतुष्ट कष्ट भोगथि पाबय लेल स्वर्ग,
अग्निहोत्रक यज्ञ तपक विधि देखि,
निकलि चलल किछु दिनमे सिद्धार्थ आश्रम छोड़ि,
स्वर्ग नहि मोक्षक अछि हमरा खोज,
जाऊ तखन अराड मुनि लग विंध्यकोष्ठ,
नमस्कार मुनि प्रणाम घुरू सभ जाऊ,
सिद्धार्थ निकलि बढ़ि पहुँचल आगु।

ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ। नेशनल एशोसिएशन फॉर ब्लाइन्ड, जमशेदपुरमे अवैतनिक रूपेँ पूर्वमे अध्यापन।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
टेम्स नदीमे नौकाविहार
टेम्स नदीमे कर चललौं नौकाविहार
स्टीमरमे उपरिक मंजिल पर सवार
मन्द - मन्द चलैत शीतल बयार॥
वस्तुकलाक कते उत्कृष्ट उदाहरण
तकनीकी विकासक प्रत्यक्ष दर्शन
तटमे ठाढ़ ऊंच - ऊंच भव्य भवन॥
कलकलाइत जल स डोलैत नाव
मानव प्रयाससऽ अनुशासित बहाव
जगा देलक अपन बिसरल घाव॥
कतेक पॉंछा अछि अपन प्रान्त
नैसर्गिक आपदा स आक्रान्त
कहिया हैत बाढ़िक समस्या शान्त॥
रातिक बात तऽ आरो अद्भुत
बस मंत्रक उद्घोष छल विलुप्त
स्थानो नहिं छल ओहेन भक्तियुक्त॥
अन्यथा कहितौं अकरा हरिद्वार
बत्तीक प्रतिबिम्ब स चमकैत धार
जेना होय छठिक अर्घ्यदीपक भरमार॥

१.विद्यानन्द झा २.अजीत कुमार झा ३.विनीत उत्पल
१.श्री विद्यानन्द झा पञ्जीकार (प्रसिद्ध मोहनजी) जन्म-09.04.1957,पण्डुआ, ततैल, ककरौड़(मधुबनी), रशाढ़य(पूर्णिया), शिवनगर (अररिया) आ’ सम्प्रति पूर्णिया। पिता लब्ध धौत पञ्जीशास्त्र मार्त्तण्ड पञ्जीकार मोदानन्द झा, शिवनगर, अररिया, पूर्णिया|पितामह-स्व. श्री भिखिया झा। पञ्जीशास्त्रक दस वर्ष धरि 1970 ई.सँ 1979 ई. धरि अध्ययन,32 वर्षक वयससँ पञ्जी-प्रबंधक संवर्द्धन आऽ संरक्षणमे संलग्न। कृति- पञ्जी शाखा पुस्तकक लिप्यांतरण आऽ संवर्द्धन- 800 पृष्ठसँ अधिक अंकन सहित। गुरु- पञ्जीकार मोदानन्द झा। गुरुक गुरु- पञ्जीकार भिखिया झा, पञ्जीकार निरसू झा प्रसिद्ध विश्वनाथ झा- सौराठ, पञ्जीकार लूटन झा, सौराठ। गुरुक शास्त्रार्थ परीक्षा- दरभंगा महाराज कुमार जीवेश्वर सिंहक यज्ञोपवीत संस्कारक अवसर पर महाराजाधिराज(दरभंगा) कामेश्वर सिंह द्वारा आयोजित परीक्षा-1937 ई. जाहिमे मौखिक परीक्षाक मुख्य परीक्षक म.म. डॉ. सर गंगानाथ झा छलाह।

॥श्री गणेशाय नमः॥
“श्रृष्टि चक्र”

आदिमे शुन्य छल शुन्यसँ शान्ति छल।
शुन्य केर सत्ता दिग-दिगन्त व्याप्त छल।
शून्यक विधाता शून्यसँ आक्रान्त छल।
शून्यसँ प्रारम्भ भए शून्यहिसँ विराम छल।

विधिना विधान कएल रचना संसार कएल।
खेत पथार पोखरि ओ जीवक संचार कएल।
दिति ओ अदितिसँ श्रृष्टिक विस्तार कएल।
कर्म सभक बान्हि बान्हि धरतीपर आनि धएल।

शुन्यक विखंडनसँ वृत्तक विस्तार भेल।
पोखरि ओ झांखड़ि पर्वत पहाड़ भेल।
नदी-नद तालाब ओ वनस्पति हजार भेल।
जीव जङ्गम स्थावर ओ गतिमान संसार भेल।

चन्द्र सूर्य नक्षत्र ओ वायु वारिद नीर।
धरा-गगन धरि व्याप्त भेल विद्युत ओ समीर।
सभतरि पसरल तेज पुञ्ज चकाचौंध गम्भीर।
तम-तम करइत दिन दुपहरिया नयन भरल ओ नीर।

जल चर- थलचर- नभचर नाना।
अप्पन-अप्पन धएलक बाना।
विविध भेष ओ भाषा नाना।
कएलक निज-निज गोत्र बखाना।

विष ओ अमृत संग जनमि गेल।
स्नेह-प्रेम-आघात प्रगट भेल।
दोस्त-महिम कुटुम्ब अमरबेल।
चतरि-चतरि चहुँओर पसरि गेल।

एक दिशि जनमल चोर-उचक्का।
दोसर दिशि भलमानुष सुच्चा।
श्रृष्टि हेतु- समधानल सभटा।
प्रभु सभ करथि हुनक ई छिच्छा।

गोङ बधिर बजबैका नाङ्गर।
श्वेत-श्याम सत्वर ओ अजगर।
दीर्घकाय ओ दुव्वर पातर।
सभटा रचलैन्हि ओ विश्वम्भर।

भूख रचल प्यास रचल।
श्रम ओ संधान रचल।
रोग रचल व्याधि रचल।
औषध अपार रचल।

काम भूख दाम भूख वासनाक उग्रभूख।
शान-मान-दान भूख भूखक हजार रूप।
ई भूख ओ भूख भूखक विद्रूप रूप।
भूख मुदा बढ़िते गेल धधकैत विकराल रूप।

शाम-दाम-दण्ड भेद शासन कुशासन।
काम-क्रोध-लोभ-मोह विरचल “महाशन”।
राग-द्वेष-प्रेम-वैर पसरल हुताशन।
श्रृष्टि चक्र चलैत रहल वैदिक ऋचा सन।....।

घर बनल गाम बनल नगर ओ धाम बनल।
जनता जरल सन नेता भगवान बनल।
देशक खेवैया झुठ्ठा बेइमान बनल।
भक्तिक भभटपन पण्डा शैतान बनल।
श्रृष्टि चक्र चलैत रहल वैदिक ऋचा सन।...

पाद-टिप्पणी: १.वारिद-मेघ २.समधानल-ओरियाकऽ ३.छिच्छा-स्वभाव ४.संधान-अन्वेषण,खोज ५.महाशन-विष्णु ६.हुताशन-अग्नि.

२.दहेज दानव
पुत्र हुनक अभियन्ता छन्हि।
मनमे बहुत सेहन्ता छन्हि।
बेटी बापक टिक पकड़िकऽ।
शोणित चूषक इच्छा छैन्हि।

विन दामक नहिं बेटा वियाहब।
वरु कुमार रहि जाथि।
व्यापारी छी व्यापार करब।
वरु बेटे विक जाथि।

वरक बाप ओ ओढ़ङ्गल वैसल।
क्षण-क्षणमे फुचियाथि।
जे किछु मङ्गलनि से बड़ कम अछि।
कन्या दाता स्वयं विकाथि।

कन्यादाता अरमान करथि।
भलमानुष भेटि जाथि।
माय बन्धु ओ कुटुम वेरागन।
द्वार-द्वार घुरियाथि।

की मांगी ओ की नहिं मांगी।
एहिपर नहिं किछु सोच-विचार।
जे फूरय ओ सब किछु मांगी।
माँगक अन्त नहि, कतऽ उदार।

लोलूप जीव किछु नहिं वूझय।
सब बूझय- धनपोषनिहार।
अनकर धनपर लूटि मचावथि।
संसारक सब चोषनिहार।
कन्या दाता भए वेगर्तित।
अंट-शंट गछि लेथि।
मिथ्यालाप कखनहुँ नहिं हितकर।
तकर करथि निर्लेख।

विवाह एक धर्म थिक विवाह एक कर्म थिक।
धर्म-कर्म राखि सकी समाजक ई मर्म थिक।
दहेज एक लोभ थिक दहेज एक रोग थिक।
लोभ-रोग छोड़ि सकी हमर ई धर्म थिक। हमर ई धर्म थिक...

2.अजीत कुमार झा, गोवराही, दुहबी-6, धनुषा, कनकपुर नेपाल।
सम्प्रति, हानवेल, यूके.मे अध्ययन
काका काकी दहेज लेलथि

कक्का भोरे बिदा भेलाह
जीट-जाट आ कान्हि छटा
पुछलहुँ कक्का एना कतए
कहल जे जाइ काल टोक नञि ने
अबए छी कने बजार भेने
मीठ पकवान आ मिठाई नेने
एम्हर काकी घरकेँ नीपल
सर सफाई कका चमका रहल
कोन अवसर जे एना भ’ की रहल
पुछलहुँ जे काकीसँ कहलनि
बौआ आइ घटक आबि रहल

अच्छा तँ दोकानक सजावट छी ई
ग्राहकक स्वागतक तैयारी छी ई
सभ किछु आइ नव तेँ लागि रहल
भाइजीयोक मुँह चमकि रहल
कान्हि छटाक’ केश रँगा क’
पान चबाबैत कुर्तामे बान्हल
जतेक बढ़िया समान ततबे बढ़िया दाम
बनीमाक राज कक्काक’ खूब नीकसँ बुझल

घटक जी अएला निहारि क’ देखला
ठोकि बजा क’ सभ किछु परखला
भाइजीपर ओ’ फेर बोली लगेलथि
मोल तोल केँ ल’ क’ खूब भेल घमर्थन
सवा चारि लाखमे भेल बात पक्का
देखू आजु हम्मर भैयि बिकेलथि
लागनिक सूद-मूर सभ उप्पर भेलन्हि
जमा-पूँजीकेँ खूब नीकसँ भजओलथि
कक्का काकी आइ हमर दहेज लेलथि
निमुख बरद जेकाँ भैय्या बिकेलथि
कक्का काकी आइ हमर दहेज लेलथि

३.विनीत उत्पल (१९७८- )। आनंदपुरा, मधेपुरा। प्रारंभिक शिक्षासँ इंटर धरि मुंगेर जिला अंतर्गत रणगांव आs तारापुरमे। तिलकामांझी भागलपुर, विश्वविद्यालयसँ गणितमे बीएससी (आनर्स)। गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालयसँ जनसंचारमे मास्टर डिग्री। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्लीसँ अंगरेजी पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्लीसँ जनसंचार आऽ रचनात्मक लेखनमे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजोल्यूशन, जामिया मिलिया इस्लामियाक पहिल बैचक छात्र भs सर्टिफिकेट प्राप्त। भारतीय विद्या भवनक फ्रेंच कोर्सक छात्र।
आकाशवाणी भागलपुरसँ कविता पाठ, परिचर्चा आदि प्रसारित। देशक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे विभिन्न विषयपर स्वतंत्र लेखन। पत्रकारिता कैरियर- दैनिक भास्कर, इंदौर, रायपुर, दिल्ली प्रेस, दैनिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली, फरीदाबाद, अकिंचन भारत, आगरा, देशबंधु, दिल्लीमे। एखन राष्ट्रीय सहारा, नोएडामे वरिष्ट उपसंपादक।
चुनावक गप
चुनावक मौसम आबि गेल
सबटा नेता
जे चुनावक मैदान मे
ठार होइत छथि
अपन सम्पतिक
लेखा-जोखा
लोकक आगू
रखैत छथि
केकरो एकटा वाहन नहि
केकरो अप्पन मकान नहि
कियो एहनो अछि
जेकरा लग छैक कुबेर सनक सम्पति
मुदा, आम जनताक दिस स
हम पूछैत छी
ओहि सम्पतिक
लेख-जोख मे कतेक
सत रहैत छैक कतेक फ़ूइस
अदालत मे त
धर्मग्रंथक शपथ खाईके
फ़ूइस बाजैत जा रहल छै
सदियों से.
पप्पू केकरा देत वोट
दिल्ली मे
एहि बेर
एकटा नारा कए
खूब प्रचार-प्रसार भए
रहल अछि
'पप्पू कान्ट वोट'

माने ई
जे चुनाव मे वोट
नहि दैत अछि
ओ 'पप्पू' छैक

माने ई
जे चुनाव मे वोट
नहि दैत अछि
हुनका अपन अधिकारक

आ कर्तव्यक ज्ञान नहि छैक
एकर मतलब ई भेल
इलेक्शन कमीशन कए
पता छैक जे बेसी लोक
अपन अधिकार आ कर्तव्य स विमुख छैक

तहि मे विज्ञापन
वा प्रचारक की जरूरत
जेकरा ई ज्ञान नहि छैक
कि हम कि करि
एकरा स
लोकतंत्र कए
की फ़र्क परैत

ओहिनो, पागल वा दिवालियाक
वोट देबै कए अधिकार नहि छैक
ई लोकतंत्र मे.
नहि करू घोषणा
जहिया स होश सम्भालने छी
देखैत छी हर चुनाव मे हम
नेताजी कए
करैत घोषणा

सड़क बनबा देब
घर बनबा देब
रोजगारक सुविधा
घर-घर पहुंचा देब

आउर त आउर
एक टका मे चाउर भेटत
आम जनता कए
एहन दिवास्वप्न
देखा बैत छी ई नेता

जे हुनकर सरकार की एता
राइतों राइत दुनिया बदलि जाइत
साठ साल भs गेल
भारत कए लोकतंत्र बनल
साठ साल भए गेल
नेताक आश्वासन मे
जीयब

जागू जनता-जनार्दन जागू
एक बेर कहियो
ई नेता सभ कए
अहि बेर नहि दियो
कोनो आश्वासन
नहि करियो
कोनो घोषणा
हुनका स एतबे टा कहियो
अहांक पार्टी
पिछला बेर तक जेतबा
घोषणा करल छैक
ओहि टा कए पूरा कए दियो

एतबे टा पूरा करैत
दशकों बीत जाइत
एक पीढ़ीक नेता कि करत
दोसर पीढ़ीक नेता
उ घोषणा कए पूरा
कए सकत कि नहि
एकरो मे संदेहे छैक.
दिए परत वोट
लोकतंत्रक लेल
ई बड़ शर्मनाक छैक
जे चुनावक मौसम
आबैक संग
नेता वा गधा मे
कोनो अंतर नहि
रहि जाइत छैक

जहि उम्मीदवार कए
जे दल स
टिकट कए जुगाड़ लागैत छैक
ओहि दलक जना
रंग मे रंगल
लबादा ओढ़ि लइत छैक

नहि कोनो भरोस
नहि कोनो सम्मान
बस जनता कए
मूर्ख बनाइबैत छैक ई नेता

गिरगिटो एतेक
तेजी स अपन
रंग नहि बदलैत छैक
जेना नेत बदलैत छैक
पार्टी वा सिद्धांत

आब समय आबि गेल
नेता कए सिखा बए परत सबक
जनता जखन जागत
तखन ई गप हेत संभव

एकरा लेल अपन अधिकारक
प्रयोग कए दिए परत वोट.
बदलि गेल वैशाली
वैशाली छल
पहिलुक गणतंत्र
जतहि जनता द्वारा
जनता कए आउर
जनता पर शासन छल

सदियों बाद
जब एक बेर तथागत
देखए लए आइलखिन
ई भारतवर्ष कए
शर्म आ तामस स
पसीना-पसीना भए गेल

एक गोटे स पूछलखिन
कि रौ ई भारतवर्ष मे
लोकतंत्र छैक
हमर समय मे अहि ठाम रहैक
वैशाली, जतय छल गणतंत्र

तथागत अपन गप जातक
खत्म करितथि
एकटा लोक कहि देलखिन
हुजूर, एतै लोकतंत्र
कए परिभाषा बदलि गेल
आब, ई लोकतंत्र मे
जनता कए बिसरि जाऊ
गोली-बारूद द्वारा
गोली बारूद के आउर
गोली बारूद पर
शासन होइत छैक
ई वैशाली मे.
१.वृषेश चन्द्र लाल २. पंकज पराशर
१.वृषेश चन्द्र लाल-जन्म 29 मार्च 1955 ई. केँ भेलन्हि। पिताः स्व. उदितनारायण लाल,माताः श्रीमती भुवनेश्वरी देव। हिनकर छठिहारक नाम विश्वेश्वर छन्हि। मूलतः राजनीतिककर्मी । नेपालमे लोकतन्त्रलेल निरन्तर संघर्षक क्रममे १७ बेर गिरफ्तार । लगभग ८ वर्ष जेल ।सम्प्रति तराई–मधेश लोकतान्त्रिक पार्टीक राष्ट«ीय उपाध्यक्ष । मैथिलीमे किछु कथा विभिन्न पत्रपत्रिकामे प्रकाशित । आन्दोलन कविता संग्रह आ बी.पीं कोइरालाक प्रसिद्ध लघु उपन्यास मोदिआइनक मैथिली रुपान्तरण तथा नेपालीमे संघीय शासनतिर नामक पुस्तक प्रकाशित । ओ विश्वेश्वर प्रसाद कोइरालाक प्रतिबद्ध राजनीति अनुयायी आ नेपालक प्रजातांत्रिक आन्दोलनक सक्रिय योद्धा छथि। नेपाली राजनीतिपर बरोबरि लिखैत रहैत छथि।
फेकनाक दिआबाती—बृषेश चन्द्र लाल

दिआबातीमे
फुलझडी, अनार भुइँपटका
आ कनफर्रा फटक्कासभसँ कात
आँखि बचा—बचाकय
फेकना ताकि रहल अछि तेल
बुताएल दिआसभमे
एक मुठि भातपर
सुअदगर तिलकोरक तरुआ लोभेँ!

क्षणक छनाक...!

चाही सभके
शासन चलबएला
अनुशासन !

लाल पहाड
महाभारतबला ?
खूनक ढेरी !

मीत अपने
हएबन्हि, ओ किछु
अओर छथि !

‘एकता’ माने
सभलेल नै खाली
‘एकटा’लेल !

गढैअछि शब्द
काबिलसभ, बात
चिबबैलेल !

सफल भेल
अपनेस ? जरुर
फेरल हैत !

सनकी अछि
दोष देखोनिहार
धरतीपर !

बरिआतमे
छिटल गेल इत्र
गन्हाइ छलै !

पुरान मन
रचतै युग नव ?
नइ हेतै !
१०
गैंडाक खाक
ओकर शिकारक
कारण थिक !
2.डॉ पंकज पराशरश्री डॉ. पंकज पराशर (१९७६- )। मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आऽ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी.पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आऽ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आऽ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। रघुवीर सहायक साहित्यपर जे.एन.यू.सँ पी.एच.डी.।
ध्रुपद
घरवलाक मारि वा सासुक तेखायल बातपर खौंझा कए
बोनगाम वाली भौजी कांख तर नुआ लऽ कए विदा होइत छलीह नैहरक लेल
आ गामक क्यो ने क्यो आइ-माइ घुरा अनैत रहनि हुनका
किरिया-सप्पत दैत, नेहोरा-मिनती करैत बौंसि कऽ बीच बाटसँ

नैहरक बाटपर जखन जनमि गेलनि दूबि
तँ तामसे आन्हर भेल धी-पूतसँ भरल परिवारक बोनगाम वाली भौजी
धारमे डुबबाक लेल बहराइत रहथिन घरसँ दहो-बहो भेल
आ तकर बादो क्यो ने क्यो कहि-सुनिकेँ हुनका घुरा अनैत छलनि बीच बाटसँ

एकटा दीर्घ आलापक आरोह उठैत छल नादक ओर धरि टहंकारसँ
जकर छोर पकड़िकेँ घुरा लैत छलनि अवरोह केर मान
स्त्रीत्व केर आहत मोनपर सम्मानक लेपन करैत सुदीर्घ सरगमसँ

अंतरा केर अंतराल भसिआइत चल जाइत अछि दूर-दूर धरि
समंधक रेगिस्तानमे पानिक दू बुन्न लेल “टप्पा” दिस घीचैत
जीवन-रागक तान कोनहुना घुरैत अछि समपर
एहि विषम युग केर अजगुत थाटकेँ मोन पाड़ैत

आइ मोतियाबिन्नसँ आन्हर भेल बोनगाम वाली भौजी
थाहैत छथिन स्वर-धार पार करबाक निमित्त साधंसी पानिमे
कोनो बिसरल तराना केर एको क्षणक असरा
मुदा जीवन पंचमक थालमे लसकल बदलि रहल छनि
एक गोट अनन्त आकुल पुकारमे

विलम्बित केर बिसरल तालकेँ मोन पाड़ैत आब ओ
गनैत रहैत छथिन मृत्युशय्यापर पड़ल-पड़ल
एक...दू...तीन...एक...दू...तीन...
1.धीरेन्द्र प्रेमर्षि 2. धर्मेन्द्र विह्वल 3.जितमोहन झा
धीरेन्द्र प्रेमर्षि (१९६७- )मैथिली भाषा, साहित्य, कला, संस्कृति आदि विभिन्न क्षेत्रक काजमे समान रूपेँ निरन्तर सक्रिय व्यक्तिक रूपमे चिन्हल जाइत छथि धीरेन्द्र प्रेमर्षि। वि.सं.२०२४ साल भादब १८ गते सिरहा जिलाक गोविन्दपुर-१, बस्तीपुर गाममे जन्म लेनिहार प्रेमर्षिक पूर्ण नाम धीरेन्द्र झा छियनि। सरल आ सुस्पष्ट भाषा-शैलीमे लिखनिहार प्रेमर्षि कथा, कविताक अतिरिक्त लेख, निबन्ध, अनुवाद आ पत्रकारिताक माध्यमसँ मैथिली आ नेपाली दुनू भाषाक क्षेत्रमे सुपरिचित छथि। नेपालक स्कूली कक्षा १,२,३,४,९ आ १०क ऐच्छिक मैथिली तथा १० कक्षाक ऐच्छिक हिन्दी विषयक पाठ्यपुस्तकक लेखन सेहो कएने छथि। साहित्यिक ग्रन्थमे हिनक एक सम्पादित आ एक अनूदित कृति प्रकाशित छनि। प्रेमर्षि लेखनक अतिरिक्त सङ्गीत, अभिनय आ समाचार-वाचन क्षेत्रसँ सेहो सम्बद्ध छथि। नेपालक पहिल मैथिली टेलिफिल्म मिथिलाक व्यथा आ ऐतिहासिक मैथिली टेलिश्रृङ्खला महाकवि विद्यापति सहित अनेको नाटकमे अभिनय आ निर्देशन कऽ चुकल प्रेमर्षिकेँ नेपालसँ पहिलबेर मैथिली गीतक कैसेट कलियुगी दुनिया निकालबाक श्रेय सेहो जाइत छनि। हिनक स्वर सङ्गीतमे आधा दर्जनसँ अधिक कैसेट एलबम बाहर भऽ चुकल अछि। कान्तिपुरसँ हेल्लो मिथिला कार्यक्रम प्रस्तुत कर्ता जोड़ी रूपा-धीरेन्द्रक धीरेन्द्रक अबाज गामक बच्चा-बच्चा चिन्हैत अछि। “पल्लव” मैथिली साहित्यिक पत्रिका आ “समाज” मैथिली सामाजिक पत्रिकाक सम्पादन।
गजल ३
घसाइत आ खिआइत चोख फार भेल छी
गला-गला गात गजलकार भेल छी

शब्दकेर महफामे भावक वर-कनियाँ लऽ
सदिखन हम दुलकैत कहार भेल छी

धधराक धाह मारऽ पोखरि खुनाएल अछि
स्वयं भलहि प्यासल महाड़ भेल छी

हमरे फुनगी लटकल धानक जयगान-
मुदा, हमधरि तिरस्कृत पुआर भेल छी

भावक व्यापार मीत पुछू ने भेटल की
मलहम दऽ दर्दक अमार भेल छी

दुखियाक गीत जेँ गबैत अछि गजल हमर
लतखुर्दनि होइत तेँ पथार भेल छी

रूप-रङ्ग हम्मर आकार किए निरखै छी?
निज आखरमे हम तँ साकार भेल छी

अबियौ सहभोज करी बन्हन सभ तोड़िकऽ
प्रेमक हम परसल सचार भेल छी

गजल-४

जँ बजितहुँ हम फूसि तँ भगवाने छलहुँ
अछि आदति खराब जे कि साँच बजै छी

देश दलदल छै भेल फूटि नीतिक जे घैल
बुझू तकरे सुखएबा लेल आँच बजै छी

कियो कतबो कहौक शिवक ताण्डव छियै
हम तँ सत्ताकेँ नटुवाक नाँच बजै छी

भलहि झूलि जाइ ब्रह्म लेल फँसरी सही
तैयो पाकलकेँ कथमपि ने काँच बजै छी

मुक्तक सुरेन्द्रक लऽ गजल गढ़ि लेल
मुदा दू आ दू कहियो नइ पाँच बजै छी

गजल-५

आबि गेल गजलोमे रोशनसँ रोशनी
बढ़िते जेतैक एकर पोषणसँ रोशनी

हाथ सैंति मीत हमर मूहक उदार महा
मुदा कोना बरतै उद्घोषणसँ रोशनी?

आगिएमे जरिकऽ सोना हम चमकै छी
दुनियाभरि तेँ चतरल शोषणसँ रोशनी

भने सागपात खोंटब छोड़ि देल जनकपुरी
कहियो की भेल छै इमोशनसँ रोशनी!

बरू मोनक घाओमे लगा दियौ प्रेमर्षि
पसरत अवश्य प्रेम-लोशनसँ रोशनी

गजल-६

हम कहब ने कथमपि हथियार निकालू
कने धरगर यौ मीता अखबार निकालू

दासत्वक सिक्कड़िसँ जे अइ जकड़ाएल
जङ्ग खुरचैत ओ असली विचार निकालू

मुहदुब्बर भेल छी तेँ सभक्यो लुलुअबैए
लाल सोनितसन आखर ललकार निकालू

गौरवकेर गीत हमर गर्भहिमे मरिरहल
आब तकरोलए साँठल सचार निकालू

टकटकी लगौने पिआसल चकोर लेल
थोड़े चानहिसन मिठका दुलार निकालू

स्वर्णिम बिहान काल्हि बिहुँसत जरूर
बस गुजगुज एहि रातिसँ अनहार निकालू

केहनो हो तख्त-ताज जकरालग नतमस्तक
ओहनेसन कलमक तरवार निकालू

गजल-७

हम्मर सरकारक महा ने साफ नीयत छै
झूठ नइ बजैत अछि, साँचक कब्जीयत छै

गमलामे धान रोपि धान्याञ्चल यज्ञ करए
डण्ड खीचि मुसरीधरि खोलैत असलीयत छै

जनताक फोड़नसँ तेल कपचि टोइयामे-
बारए मशाल, जे इजोतक अहमीयत छै

लाख-लाख दीपक ई पसरल प्रकाश कहै-
आजुक एहि सुरुजमे जरूरे कैफीयत छै

कोरामिन लगा-लगा कोरमे सुतओने अछि
देश तेँ दुरुस्त छैक, सुस्त बस तबीयत छै

सभक मोनमे छैक मात्र आब प्रश्न एक-
हमर स्वप्न-आस्था की ओकरे मिल्कीयत छै!

गजल-८

जीवनकेर डोर छोड़ि हाथक लटाइमे
जुनि पुछू स्वाद की छै गुड्डीक कटाइमे

इतराएब-छितराएब कहू कोन गुमानपर
नान्हिटा शरीरो अछि भेटल बटाइमे

फटैत तँ दूधे छै, नेनक जे खानि छियै
खट्टा जाए दूधमे वा दूधहि खटाइमे

प्रेम छोड़ि संसारक रङ्ग सभ धोखड़ि जाइ
छोड़ू अगधाएब बैसि चकमक चटाइमे

कर्मक खड़ाम पहिरि शतपथपर चलबासन
पुण्य कतहु पाएब नहि रामक रटाइमे

जन्म आओर मृत्यु थिकै सृष्टिक विधानटा
मजा छैक जिनगीक सङ्घर्ष छटपटाइमे

गजल-९

बोल रे मन एकतारा बोलै टनन-टनन-टन-टन
धनुषक जनु टङ्कार छुटैछै झनन-झनन-झन-झन

कतबो घुमरैत आबै बदरा अपने जाएत बिलाकऽ
जेना तप्त ताबापर जल होइ छनन-छनन-छन-छन

प्रेमक डिबिया बचाकऽ राखी साँचक आँचर तरमे
बड़ उकपाती पवन बहैए सनन-सनन-सन-सन

जाधरि छौ साँसक घण्टी बस ताधरि छौ बजबाके
गनगनाइत रह तेँ रे मीता गनन-गनन-गन-गन

तोरे चुप्पीके मलजलसँ नित्य जे चतरल जाइछौ
जरा दही ओहि अकाबोनकेँ हनन-हनन-हन-हन

तोहर सुर-गर्जनसँ जरूरहि, ठाढ़ देबाल दरकतै
तखने चहुँदिस हँसी खनकतै खनन-खनन-खन-खन

गजल-१०

सिहकैत कनकन्नीमे सीटर छी, जर्सी छी
मखा-मखा प्रेम करी, मोनक प्रेमर्षि छी

चानक धियानमे धरती नहि छूटए, तेँ
डिहबारक भगता हम दूरक ने दर्शी छी

थाहैत आ समधानैत काँटोपर जे बढ़ैछ
फाटल बेमाएवला चरणक स्पर्शी छी

हम्मर वैदेहीक कुचर्च कएनिहार लेल
अँखिफोड़बा टकुआ छी, जिहघिच्चा सड़सी छी

गन्ध जँ लगैए तँ मूनि लिअ नाक अहाँ
तिरहितिया खेतक हम गोबर छी, कर्सी छी

जिनगीक कखहरबामे साँसक जे मात्रा अछि
दहिना दिर्घी नहि, बामाक हर्षि छी

गजल-११

मुक्तिगीत अम्मल अछि, जीयब हम अमलेमे
रचि-रचि सजाएब नेह-गीत मोन-कमलेमे

धूर-धूर खेत पड़ल शासनकेर मोहियानी
निष्ठाक अन्न तैयो उपजाएब गमलेमे

दूभिजकाँ चतरल अछि जे मोनक कणकणमे
उपटत धरखन्ने ओ धुरफन्दीक हमलेमे!

पघिलत जे बर्फ़ तखन ढाहि देत आरि-धूर
नाचि लिअए नङटे ओ भने एखन जमलेमे

शासनकेर भाथीसँ चिनगी अछि रञ्ज भेल
जुटिअबियौ खढ़-पात मेहनतिसँ घमलेमे
गजलक ई पनही पहीरि बाट चलैत काल
पओलहुँ जे हेआओ तेँ समर्पित ई विमलेमे
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।(c) 2008 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ' आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ' संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ' पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.co.in पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ' रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु

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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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