भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Tuesday, January 13, 2009
विदेह १५ नवम्बर २००८ वर्ष १ मास ११ अंक २२-part iii
धर्मेन्द्र विह्वल-जन्म विक्रम सम्वत २०२३-१२-०४, बस्तीपुर सिरहा,शिक्षा : एम ए ( मैथिली/राजनीतिशास्त्र ),डिप्लोमा ईन डेभलपमेन्ट जर्नालिज्म,प्रकाशित कृति : एक समयक बात (वि स २०६१ मैथिली हाईकु संग्रह ),रस्ता तकैत जिनगी (वि स २०५०/ कविता संग्रह ),एक सृष्टि एक कविता (२०५७/ दीर्घ कविता ),हमर मैथिली पोथी ( कक्षा 1 सं ५ धरिक पाठय पुस्तक ),सम्प्रति : सभापति, नेपाल पत्रकार महासंघ
किछु छौंक
१) बदनामी–
प्रेम आ सिनेहकेँ
सरेबजार
निलाम नहि करू
गौरवमय इतिहासकेँ
एना बदनाम नहि करू ।
२) विज्ञापन
जानि नहि
आदमीक जंगलमे
हम कतय
हेरा रहल छी
अखवारक ढ़ेरमे
हम जिनगीक विज्ञापन
ताकि रहल छी ।
३) इज्जत
खुलेआम इज्जत
बिका रहल अछि
दाम दऽ
झट कीनि दिअ
जल्दि करू
स्टक सीमित अछि ।
जितमोहन झा घरक नाम "जितू" जन्मतिथि ०२/०३/१९८५ भेल, श्री बैद्यनाथ झा आ श्रीमति शांति देवी केँ सभ स छोट (द्वितीय) सुपूत्र। स्व.रामेश्वर झा पितामह आ स्व.शोभाकांत झा मातृमह। गाम-बनगाँव, सहरसा जिला। एखन मुम्बईमे एक लिमिटेड कंपनी में पद्स्थापित।रुचि : अध्ययन आ लेखन खास कs मैथिली ।पसंद : हर मिथिलावासी के पसंद पान, माखन, और माछ हमरो पसंद अछि।
दुनियाँक सभ फूल,खुशबू, आर बहार !
अपनेक मिले इ सभ उपहार !!
आसमाँ के चाँद, आर सितारा !
एय सब सँ अपने करू श्रृंगार !!
अपने खुश रही, आवाद रही !
ख़ुशी के एहेंन हुवे फुहार !!
हमर एहेंन दुवा अछि हजार !
दामन अपनेक कम परे ....
जीवन मेंs अपनेक मिले एतेक प्यार !!
मंजिल आसान सभटा, मुस्किल बेनूर हुवे !
दिलक जे भी अछि तम्मना ओ हमेशा दूर हुवे !!
होठ पर होथक बात हुवे, ख़ुशी मेंs समटल जिन्दगी !
गम भरल परछाई अपनेक आँचल सँ लाखो दूर हुवे !!
फूलक तरह मह्कैत रहू, सितारा के तरह चमकैत रहू !
हमर एतबे दुवा अछि अपनेक लेल ....
अपने जाते भी रही, हरदम चाह्कैत रहू !!
लौटक आयब एक दिन, जरुर हमर यकींन करब !
हमर याद आबे तँ आइख अपन नै कहियो नम करब !!
दुनियाँ साजिश केs कs जुदा नै के दिए हमरा !
कियो किछ भी कहे अपने भरोसा नै करब !!
फुरसत के लम्हा मेंs ख़त लिखब अपने कs मुदा !
हर दिन अपने हमर खतक इंतजार नै करब !!
हाथ मेंs पहिरने कंगना छी, आर कान मेंs पहिरने बाली !
हम विदेहक लेल अहिना लिखेत रहब, चाहे नव वर्ष होई या दिवाली !!
१.वैकुण्ठ झा २. हिमांशु चौधरी
श्री बैकुण्ठ झा,पिता-स्वर्गीय रामचन्द्र झा, जन्म-२४ - ०७ - १९५४ (ग्राम-भरवाड़ा, जिला-दरभंगा),शिक्षा-स्नात्कोत्तर (अर्थशास्त्र),पेशा- शिक्षक। मैथिली, हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषा मे लगभग २०० गीत कऽ रचना। गोनू झा पर आधारित नाटक ''हास्यशिरोमणि गोनू झा तथा अन्य कहानी कऽ लेखन। अहि के अलावा हिन्दी मे लगभग १५ उपन्यास तथा कहानी के लेखन।
(१०/०२/९१)
चलू देखैब अपन गाम अय
ये बम्बई के कनियाँ देखल अहाँ दुनियाँ
चलू देखैब अपन गाम अय- गाम ये
तूबय जतय महु-आम ये। ये बम्बई...
पहिरी तऽ बेल बाँट ओढ़ी नई ओढ़नी
घोघमे अहाँ सँ सुन्नर नोकरनी
वैह थिक सीताक गाँम अय-गाँम ये।
तूबय...
भेटत जौं पोखरि मन्दिर देखू ओतय
भावहु भैंसुरसँ छुआई छै जत्तय
लै नञ पतिक केउ नाम अय- नाम ये।
तूबय जतय...
भैंसुर ससुर देवर बुझि नञ पड़ै एतय
देखबै पुरनियों मरौतो काढ़ै ओतय
पीबै छै भाँग, नई जाम अय, भाँग अय।
तूबय..
जकरा कही रोटी ओ छै सोहारी
तीमन कही हम अहाँ तरकारी
पहिरै छै पुरुख खराम अय- खराम अय।
भरिमन कनियाँ घुमू अहाँ बम्बई
आँगनसँ ओतय त कोनटामे जे बई
चलबै निहुरि नई, उदाम अय, उदाम अय!
तूबय...
सिनेमा २०.०९.९१
अछि प्रभाव पसरल सगरो, डिस्को धुनमे नाचय नङरो।
भारत भूषण के रोल एखन, होइछ पसन्द, ककरो-ककरो।
अछि प्रभाव...
अछि देखा रहल अमिताभ नाच, गाबय जहिना हो झूठ साँच।
अभिनेत्रीक कपड़ा बनल नाप, दू-दू मिलि कय भय जाइछ पाँच।
मुक्का , लोटा, सोटा सँ नई बाँचि कय होय आब झगड़ो
अछि..
भारत नाट्यम बिसराय रहल, बाजा एहनो केकियाय रहल
स्रोताकेँ कान उड़ाय रहल, बुझू ओहिना जे वज्र खसल
मुदा सुनत के अहाँक बात? भय रहल प्रशंसा तऽ ओकरो।
अछि प्रभाव...
हमर सभ्यता जाय रहल, पाश्चात्य सभ्यता छाय रहल,
संग एक टेबुलपर बैसि देखू , अछि खाय रहल भावहु भैंसुरो।
अछि प्रभाव..
दहेज १८.०९.९१
प्रण तऽ कयल बार-बार, पाओल अहाँक मधुर प्यार।
संग छोड़ि मझधार, गेलउँ कतय, कतय गेलउँ।
कतय गेलउँ कतय गेलउँ
गेलउँ कतय कतय गेलउँ
रे जो हवा तोँ कहि कऽ आ, संवाद किछु जरूर ला,
छी अवला तऽ नारी हम, की यैह छी हमर बला?
कहब ई दर्द ककरा हम, कहब सुनत हँसत भला।
कहिहैं ई जरूर तूँ, एहन केना निठुर भेलउँ।
निठुर भेलउँ निठुर भेलउँ
कतय गेलउँ कतय गेलउँ
दहेज तऽ दहेज छै, की प्रेमसँ प्रहेज छै।
कमलकेँ रौँदि कऽ कतउ , की वीर केउ बनल ओ छै।
बालु के दिवाल जौँ बनल, ढहल ओ छै।
करू प्रयास खुद अपन, दहेज लय की प्रण केलउँ।
कतय गेलउँ कतय गेलउँ
गेलउँ कतय कतय गेलउँ
होइछ विवाह प्यार लय, उठबय घरक तऽ भार लय,
सोचनहुँ नञ छल हमर तऽ मन, छोद्अब अहाँ तँ कार लय,
हवा ठिठकि मुसकि कहय, नञ छल असल प्रणय।
दोष अछि तँ ई कार केँ, जगत के भार हम भेलहुँ
कतय गेलउँ कतय गेलउँ
गेलउँ कतय कतय गेलउँ
परदेश- २७.१२.८९ एवं ८.१.९०
पाहुन बनि निज गृह त्यागि अहाँ
कतबा दिन रहबै परदेशी।
बाबा बाबू सब छला वैह
होयत बेटा पुनि परदेशी॥
निज उद्यमके उत्थान करू,
मिलि शासक लग अभियान करू।
होयब गरीब नईं कोना हम?
हमरो श्रमपर अभिमान करू॥
भूमिक महिमा गुणगान केने
दुनियाँमे ककरा की भेटल?
गुणगान आर श्रमदान करू
वनि वीर जगतमे नाम करू।
सब किछु रहैत हम छी गरीब,
की बनल रहत एहिना नशीब?
पढ़ि-पढ़ि बच्चा ठोकर खायत
लय नाम अयाचिक जल पीब?
दुनियाँमे ककरा के देलक?
यदि देलक तऽ ओ भिक्षा थिक।
आश्रित बनि रही अगर सब दिन
थिक नई यथार्थ, नईं शिक्षा थिक॥
जागू-आ’ जगा दियौ सबकेँ
सुनू आ सुना दियौ सबकेँ।
निज पौरुष जे नईं चीन्हि सकल
ओऽ तऽ जगमे कायरता थिक
सड़क १९.०९.९१
हम छी सड़क स्वतन्त्र भारतक
मिथिला हो मद्रास मगध मथुरा
मदुरै मुम्बई (बम्बई) रोहतक। हम छी
कानी हकन्न मीलि कऽ हम सब
ढेकरि-ढेकरि ओ पीबय आशक,
मना रहल अधिकारी उत्सव।
जकरा घर लागल छल फाटक,
उड़ा रहल ओ मजा तऽ महलक,
हम छी सड़क स्वतन्त्र भारतक।
के देखैत अछि हमर ई दशा
टायर हो या लोकक आँगुर-
फटि-फुटि कय भय रहल दुर्दशा।
जनताकेँ तऽ अछि ई शोचक,
हम छी सड़क स्वतन्त्र भारतक।
परतन्त्र देश छल हमर मान छल,
छी चिक्कन हमरा गुमान छल,
स्नान करी नित हमर शान छल
अस्सी प्रतिशत भाग एखन
हमरा बनबयमे अछि चोरक।
हम छी सड़क स्वतन्त्र भारतक।
घरबैया जौं जागि जाईत अछि,
चोर फुर्र सँ भागि जाइत अछि,
आन्हरो बाजी मारि जाईत अछि।
जनतामे हिम्मत नई शोरक,
हम छी सड़क स्वतन्त्र भारतक।
२.हिमांशु चौधरी-पिता : स्वर्गीय कामेश्र्वर चौधरी,माताः श्रीमती चन्द्रावती चौधरी,जन्मः वि स २०२०/६/५ लहान, सिरहा,शिक्षाः स्नातकोत्तर(नेपाली),पेशाः पत्रकारिता (सम्प्रति : राष्ट्रिय समाचार समिति ),कृति : की भार सांठू ? (मैथिली कविता संग्रह ),विगत दू दशकसं नेपाली आ मैथिली लेखन तथा अभियानमे निरन्तर क्रियाशील आ विभिन्न संघ संस्थासं आबद्ध ।
की भार सांठू ?.........
लाते लातसं घायल
लाशे लाशसं गन्हाएल
सङक्रान्तिक पीडामे
की भार सांठू ?.........
थुराएल चानी
फ़ुफ़डिआएल अहिबक फ़ड
शोकाएल चाउर, पीपाएल आंजुर
दन्त्यकथाक पात्र जकां
कचोट द' रहल अछि
गत्र गत्रमे बेधल भाला-गडांस
टीसे-टीसे द' रहल अछि
फ़ाटल चिटल कपडा-लत्ता
मूंह कतहु, हाथ कतहु स्ट्रेमे राखल सिगरेटक ठुट्टीसन
लावारिस भ' गेल इतिहासमे बहल नोर
फ़ेर एहिबेर सेहो बहि गेल
गन्हाएल लाशक भार कोनाक' साठू ?.........
अनिष्टकारी अमरौती पीने अछि
ओकरा लेल सत्यम,शिवम आ सुन्दरमक सर्जक बाधकतत्व
बाधकतत्व मरि जाए/माहुरे माहुर भ' जाए
अन्यायक अमरलत्ती/द्रोपदीक चिरसन नमरैत चलि जाए
एहन सनकमे सनकैत ओकर अमरौती
कखनो बारुद फ़ेकैए/कखनो धराप रखैए
बारुद आ धरापमे पोस्तादाना कत' ताकू
जे अनरसा बनाएब आ भार सांठब
क्यानभासमे फ़ाटल गाछ देखि
अन्हडि-बिहाडि अएबे करत
विश्र्वासक जयन्ती अङकुरित भेल अछि
परन्च बहुतो धोएल सींथक सेनुरक
कारुणिकताक भार कोनाक' साठू ?.........
नियति
बिछानरुपी मशानमे अर्थहीन भ'
अपन लाशक कठियारी स्वयमसन भ' गेल छी
इच्छासभमे पूर्णविराम लागि गेल अछि
तें
एकटा नियति भ' गेल छी
हंसलासं मात्र नंहि
कनएटा पडैत अछि
कनैत कनैत थाकि जाइत छी
तखनो
शान्ति नहि
किछु मनोविनोद करएटा पडैत अछि
बनाबटी मुस्की छोडएटा पडैत अछि
धन्य कथा !
धन्य यथार्थ !!
तें
जीवन मृत्युमे लीन होइत जा रहल अछि
जीवन आ मॄत्यु मन्जिल होइत जारहल अछि
मैथिली साहित्य आ रंगमंच क्षेत्रक महिला विभूति
अणिमा सिंह
(१९२४- )—समीक्षिका, अनुवादिका, सम्पादिका।प्रकाशन: मैथिली लोकगीत, वसवेश्वर (अनु.) आदि। लेडी ब्रेबोर्न कॉलेज, कलकत्तामे पूर्व प्राध्यापिका।
लिली रे
जन्म:२६ जनवरी, १९३३,पिता:भीमनाथ मिश्र,पति:डॉ. एच.एन्.रे, दुर्गागंज, मैथिलीक विशिष्ट कथाकार एवं उपन्यासकार । मरीचिका उपन्यासपर साहित्य अकादेमीक १९८२ ई. मे पुरस्कार।मैथिलीमे लगभग दू सय कथा आ पाँच टा उपन्यास प्रकाशित।विपुल बाल साहित्यक सृजन। अनेक भारतीय भाषामे कथाक अनुवाद-प्रकाशित। प्रबोध सम्मान प्राप्त।
शांति सुमन
जन्म 15 सितम्बर 1942, कासिमपुर, सहरसा, बिहार, प्रकाशित कृति, “ओ प्रतीक्षित, परछाई टूटती, सुलगते पसीने, पसीने के रिश्त, मौसम हुआ कबीर, समय चेतावनी नहीं देता, तप रेहे कचनार, भीतर-भीतर आग, मेघ इन्द्रनील (मैथिली गीत संग्रह), शोध प्रबंध: मध्यवर्गीय चेतना और हिन्दी का आधुनिक काव्य, उपन्यास: जल झुका हिरन। सम्मान: साहित्य सेवा सम्मान, कवि रत्न सम्मान, महादेवी वर्मा सम्मान। अध्यापन कार्य।
शेफालिका वर्मा
जन्म:९ अगस्त, १९४३,जन्म स्थान : बंगाली टोला, भागलपुर । शिक्षा:एम., पी-एच.डी. (पटना विश्वविद्यालय),सम्प्रति: ए. एन. कालेज मे हिन्दीक प्राध्यापिका ।प्रकाशित रचना:झहरैत नोर, बिजुकैत ठोर । नारी मनक ग्रन्थिकेँ खोलि:करुण रससँ भरल अधिकतर रचना। प्रकाशित कृति :विप्रलब्धा कविता संग्रह,स्मृति रेखा संस्मरण संग्रह,एकटा आकाश कथा संग्रह, यायावरी यात्रावृत्तान्त, भावाञ्जलि काव्यप्रगीत । ठहरे हुए पल हिन्दीसंग्रह ।
इलारानी सिंह
जन्म 1 जुलाई, 1945, निधन : 13 जून, 1993, पिता: प्रो. प्रबोध नारायण सिंह सम्पादिका : मिथिला दर्शन, विशेष अध्ययन: मैथिली, हिन्दी, बंगला, अंग्रेजी, भाषा विज्ञान एवं लोक साहित्य। प्रकाशित कृति: सलोमा (आस्कर वाइल्डक फ्रेंच नाटकक अनुवाद 1965), प्रेम एक कविता (1968) बंगला नाटकक अनुवाद, विषवृक्ष (1968) बंगला नाटकक अनुवाद, विन्दंती (1972), स्वरचित: मैथिली कविता संग्रह (1973), हिन्दी संग्रह।
नीरजा रेणु
जन्म: ११ अक्टूबर १९४५,नाम: कामाख्या देवी,उपनाम:नीरजा रेणु,जन्म स्थान:नवटोल,सरिसबपाही ।शिक्षा: बी.ए. (आनर्स) एम.ए.,पी-एच.डी.,गृहिणी ।प्रकाशित रचना:ओसकण (कविता मि.मि., १९६०) लेखन पर पारिवारिक, सांस्कृतिक परिवेशक प्रभाव।मैथिली कथा धारा साहित्य अकादेमी नई दिल्लीसँ स्वातन्त्र्योत्तर मैथिली कथाक पन्द्रह टा प्रतिनिधि कथाक सम्पादन ।सृजन धार पियासल कथा संग्रह,आगत क्षण ले कविता संग्रह, ऋतम्भरा कथा संग्रह,प्रतिच्छवि हिन्दी कथा संग्रह,१९६० सँ आइधरि सएसँ अधिक कथा, कविता, शोधनिबन्ध, ललितनिबन्ध,आदि अनेक पत्र-पत्रिका तथा अभिनन्दनग्रन्थमे प्रकाशित ।मैथिलीक अतिरिक्त किछु रचना हिन्दी तथा अंग्रेजीमे सेहो।
उषाकिरण खान
जन्म:१४ अक्टूबर १९४५,कथा एवं उपन्यास लेखनमे प्रख्यात।मैथिली तथा हिन्दी दूनू भाषाक चर्चित लेखिका।प्रकाशित कृति:अनुंत्तरित प्रश्न, दूर्वाक्षत, हसीना मंज़िल (उपन्यास), नाटक, उपन्यास।
प्रेमलता मिश्र ’प्रेम’
जन्म:१९४८,जन्मस्थान:रहिका,माता:श्रीमती वृन्दा देवी,पिता:पं. दीनानाथ झा,शिक्षा:एम.ए., बी.एड.,प्रसिद्ध अभिनेत्री दू सयसँ बेशी नाटकमे भाग लेलनि ।भंगिमा (नाट्यमंच) क भूतपूर्व उपाध्यक्षा, पत्रिकाक सम्पादन, कथालेखन आदिमे कुशल । ’अरिपन’ आदि अनेक संस्था द्वारा पुरस्कृत-सम्मानित।
आशा मिश्र
जन्म:६-७-१९५० ई.,प्रकाशित कथा मे मैथिकीक संग हिन्दी मे सेहो । सभसँ पैघ विजय मैथिली कथा संग्रह।
नीता झा
जन्म : २१-०१-१९५३,व्यवसाय:प्राध्यापिका । लेखन पर समाजक परम्परा तथा आधुनिकताक संस्कार सँ होइत विसंगतिक प्रभाव।प्रकाशित कृति : फरिच्छ, कथा संग्रह १९८४, कथानवनीत १९९०,सामाजिक असन्तोष ओ मैथिली साहित्य शोध समीक्षा।
ज्योत्स्ना चन्द्रम
मूल नाम: कुमारी ज्योत्स्ना ,उपनाम : ज्योत्स्ना आनन्द ,जन्मतिथि: १५ दिसम्बर, १९६३,जन्मस्थान : मरूआरा, सिंधिया खुर्द, समस्तीपुर,पिता: श्री मार्कण्डेय प्रवासी,माता: श्रीमती सुशीला झा,कार्यक्षेत्र : अध्ययनाध्यापन ।,रचना प्रकाशित : झिझिरकोना (कथा-संग्रह), एसगर-एसगर (नाटक),बीतक संग संकलन एवं सम्पादन।एकर अतिरिक्त दर्जनाधिक कथा ओ कविता विभिन्न पत्र-पत्रिका में प्रकाशित तथा आकाशवाणीक पटना, भागलपुर, दरभंगा केन्द्रसँ प्रसारित।शिक्षा : पटना विश्वविद्यालयसँ हिन्दी साहित्यमे एम.ए,।
सुस्मिता पाठक
जन्म:२५ फरवरी, १९६२,सुपौल, बिहार । परिचिति कविता संग्रह प्रकाशित । कथावाचक, कथासंग्रह प्रकाशनाधीन । राजनीति शास्त्रमे एम.ए.। संगीत, पेंटिंगमे रुचि । मैथिलीक पोथी पत्रिका पर अनेक रेखाचित्र प्रकाशित । समकालीन जीवन, समय, आ तकर स्पंदनक कवयित्री । अनेक भाषामे रचनाक अनुवाद प्रकाशित।
बालानां कृते
१.प्रकाश झा- बाल कविता २. बालकथा- गजेन्द्र ठाकुर
३. देवीजी: ज्योति झा चौधरी
प्रकाश झा, सुपरिचित रंगकर्मी। राष्ट्रीय स्तरक सांस्कृतिक संस्था सभक संग कार्यक अनुभव। शोध आलेख (लोकनाट्य एवं रंगमंच) आऽ कथा लेखन। राष्ट्रीय जूनियर फेलोशिप, भारत सरकार प्राप्त। राजधानी दिल्लीमे मैथिली लोक रंग महोत्सवक शुरुआत। मैथिली लोककला आऽ संस्कृतिक प्रलेखन आऽ विश्व फलकपर विस्तारक लेल प्रतिबद्ध। अपन कर्मठ संगीक संग मैलोरंगक संस्थापक, निदेशक। मैलोरंग पत्रिकाक सम्पादन। संप्रति राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्लीक रंगमंचीय शोध पत्रिका रंग-प्रसंगक सहयोगी संपादकक रूपमे कार्यरत।
( मिथिलामे सभस’ उपेक्षित अछि मिथिलाक भविष्य ; यानी मिथिलाक बच्चा । मैथिली भाषामे बाल-बुदरुक लेल किछु गीतमय रचना अखन तक नहि भेल अछि जकरा बच्चा रटिक’ हरदम गावे-गुनगुनावे जाहिसँ बच्चा मस्तीमे रहै आ ओकर मानसिक विकास दृढ़ हुऎ । एहि ठाम प्रस्तुत अछि बौआ-बच्चाक लेल किछु बाल कविता । )
१. प्रकाश झा
बाल-बुदरुकक लेल कविता
छैठ परमेसरी
आइ छै खड़ना खीर रातिमे, दादी सबके देतै
ढाकी, केरा,कूड़ा ल’ क’, घाट पर हमहू जेबै
भोरे – भोर सूरज के ,अरघ हमहू देखेबै
ठकुआ, मधूर, केरा, भुसवा हाउप हाउप खेबै .
२. बालकथा- गजेन्द्र ठाकुर
छेछन
चित्र ज्योति झा चौधरी
डोम जातिक लोकदेवता छेछन महराज बड्ड बलगर छलाह। मुदा हुनकर संगी साथी सभ कहलकन्हि जे जखन ओ सभ सहिदापुर गेल छलाह, बाँसक टोकरी आऽ पटिया सभ बेचबाक लेल तखन ओतुक्का डोम सरदार मानिक चन्दक वीरता देखलन्हि। ओ एकटा अखराहा बनेने रहथि आऽ ओतए एकटा पैघ सन डंका राखल रहय। जे ओहि डंकापर छोट करैत छल ओकरा मानिकचन्दक पोसुआ सुग्गर, जकर नाम चटिया छल तकरासँ लड़ए पड़ैत छलैक। मानिकचन्द प्रण कएने रहथि कि जे क्यो चटियासँ जीत जाएत से मानिकचन्दसँ लड़बाक योग्य होएत आऽ जे मानिकचन्दकेँ हराएत से मानिकचन्दक बहिन पनमासँ विवाहक अधिकारी होयत। मुदा ई मौका आइ धरि नहि आएल रहए जे क्यो चटियाकेँ हराऽ कए मानिकचन्दसँ लड़ि सकितय।
दिन बितैत गेल आऽ एक दिन अपन पाँच पसेरीक कत्ता लए छेछन महराज सहिदापुर दिश विदा भेलाह। डंकापर चोट करबासँ पहिने छेछन महराज एकटा बुढ़ीसँ आगि माँगलन्हि आऽ अपन चिलममे आगि आऽ मेदनीफूल भरि सभटा पीबि गेलाह आऽ झुमैत डंकापर चोट कए देलन्हि। मानिकचन्द छेछनकेँ देखलन्हि आऽ चटियाकेँ शोर केलन्हि। चटिया दौगि कए आयल मुदा छेछनकेँ देखि पड़ा गेल। तखन पनमा आऽ मानिकचन्द ओकरा ललकारा देलन्हि तँ चटिया दौगि कय छेछनपर झपटल मुदा छेछन ओकर दुनू पएर पकड़ि चीरि देलखिन्ह। फेर मनिकचन्द आऽ छेछनमे दंगल भेल आऽ छेछन मानिकचन्दकेँ बजारि देलन्हि। तखन खुशी-खुशी मानिकचन्द पनमाक बियाह छेछनक संग करेलन्हि।
दिन बितैत गेल आऽ आब छेछन दोसराक बसबिट्टीसँ बाँस काटए लगलाह। एहिना एक बेर यादवक लोकदेवता कृष्णारामक बसबिट्टीसँ ओऽ बहुत रास बाँस काटि लेलन्हि। कृष्णाराम अपन सुबरन हाथीपर चढ़ि अएलाह आऽ आमक कलममे छेछनकेँ पनमा संग सुतल देखलन्हि। सुबरन पाँच पसेरीक कत्ताकेँ सूढ़सँ उठेलक आऽ छेछनक गरदनिपर राखि देलक आऽ अपन भरिगर पएर कत्तापर राखि देलक।
३. देवीजी: ज्योति झा चौधरी
देवीजी :
चित्र ज्योति झा चौधरी
देवीजी : परीक्षाक तैयारी
परीक्षा लऽग आबि गेल छल।सब विधार्थी सब सचेत भऽ रहल छल। लेकिन ओहिमेसऽ किछु तेहेनो छल जे अतिशय चिन्तित छल जाहि कारण ओकरा सबके स्वास्थ्य सेहो बिगड़ि रहल छल। जखन देवीजीके अहि बातक जानकारी भेलैन तऽ ओ सबके परीक्षाक तैयारी करैके उचित तरीका सिखाबक निर्णय लेली।एक बड़का कोठलीमे सब बच्चा सबके बजौली आ अपन पाठन शुरू केली।पहिने तऽ ओ कहली जे साल भरि बैसल रहिकऽ अंतिम समय मे अधीर भेने किछु नहिं होइत छै।तकर बाद ओ मुख्य रूपसऽ तीन शीर्षक मे अपन विचार रखली :
1 परीक्षाक समय स्वास्थ्यक ध्यान: अहिलेल देवीजी निम्नलिखित परामर्श देली-(1) पर्याप्त भोजन करू।पढ़ाई के चिन्तामे खेनाइ-पिनाइ नहि बिसरू।समय बचाबै लेल दोसर काज बन्द करू जेनाकि कतौ घुमनाई, अनेरो लोक स गप करैमे समय बितौनाई।(2) बाहर के कीनल समान नहिं खाऊ।(3) बीच-बीच मे चलनाई-फिरनाई करैत रहू।भऽ सकैतऽ योग आ ध्यान करू।(4) हमेशा आशावादी रहू।मनुष के मस्तिष्क के क्षमता अपार छै।तैं किछु असम्भव नहिं छै मनुष लेल। (5) पर्याप्त मात्रामे सूतू।छऽ सऽ आठ घंटा जरूर सूतू।नींदके कमीसऽ एकाग्रतामे कमी आबैत छै।
२ पाठ स्मरण करक तरीका: (1) पाठके स्मरण करैलेल ओकरा बुझनाई आवश्यक अछि।अहिलेल शिक्षक सऽ सहायता लिय।एक दोसर के सेहो सहायता करू।गणित लेल अभ्यास आवश्यक छै। (2) स्मरण कैल पाठके बेर-बेर दुहराऊ तऽ ओ बिसरत नहिं। (3) एकरसता हटाबै लेल कनिक काल एकटा विषय पढ़लाक बाद फेर दोसर विषय पढ़ु।
३ अंतिम कालक पढ़ाई: (1) सब पाठके संक्षिप्त नोट बनाकऽ राखू आ परीक्षा लेल जायसऽ पहिने ओकरा पढ़ू, (2) जे प्रश्न कठिन लागैत अछि तकरा एक जगह लिखिकऽ राखू आ जायकाल पढ़ू, (3) रस्तामे सुरक्षाक ध्यान राखू , आ (4) कक्षामे बैसिकऽ कनिक काल ऑंखि मुनिकऽ वा अपन हाथ दिस ताकि ध्यान करू।अहि सऽ एकाग्रता आबैत छै।
देवीजीक अहि परामर्श सऽ सब बच्चाक बढ़िया मार्गदर्शन भेल।सब आगामी वार्षिक परीक्षाक तैयारीमे लागि गेल।
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
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भारत आऽ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
मैथिलीक मानक लेखन-शैली
१.मैथिली अकादमी, पटना आऽ २.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली।
१.मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली
1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
ग्राह्य
एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि
अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।
2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।
21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।
ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६
२.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन
१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।
२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।
३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।
४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।
५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।
६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।
७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।
८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।
९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।
१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए। हमसभ हुनक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ चलबाक प्रयास कएलहुँ अछि।
पोथीक वर्णविन्यास कक्षा ९ क पोथीसँ किछु मात्रामे भिन्न अछि। निरन्तर अध्ययन, अनुसन्धान आ विश्लेषणक कारणे ई सुधारात्मक भिन्नता आएल अछि। भविष्यमे आनहु पोथीकेँ परिमार्जित करैत मैथिली पाठ्यपुस्तकक वर्णविन्यासमे पूर्णरूपेण एकरूपता अनबाक हमरासभक प्रयत्न रहत।
कक्षा १० मैथिली लेखन तथा परिमार्जन महेन्द्र मलंगिया/ धीरेन्द्र प्रेमर्षि संयोजन- गणेशप्रसाद भट्टराई
प्रकाशक शिक्षा तथा खेलकूद मन्त्रालय, पाठ्यक्रम विकास केन्द्र,सानोठिमी, भक्तपुर
सर्वाधिकार पाठ्यक्रम विकास केन्द्र एवं जनक शिक्षा सामग्री केन्द्र, सानोठिमी, भक्तपुर।
पहिल संस्करण २०५८ बैशाख (२००२ ई.)
योगदान: शिवप्रसाद सत्याल, जगन्नाथ अवा, गोरखबहादुर सिंह, गणेशप्रसाद भट्टराई, डा. रामावतार यादव, डा. राजेन्द्र विमल, डा. रामदयाल राकेश, धर्मेन्द्र विह्वल, रूपा धीरू, नीरज कर्ण, रमेश रञ्जन
भाषा सम्पादन- नीरज कर्ण, रूपा झा
आब १.मैथिली अकादमी, पटना आऽ २.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैलीक अध्ययनक उपरान्त निम्न बिन्दु सभपर मनन कए निर्णय करू।
ग्राह्य/अग्राह्य
1. होयबला/होबयबला/होमयबला/ हेब’बला, हेम’बलाहोयबाक/होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ
47. ल’/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा’/करबाय/करबाए
60. त’/त ऽ तय/तए
61. भाय भै
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द’/द ऽ/दए
67. ओ (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
68. तका’ कए तकाय तकाए
69. पैरे (on foot) पएरे
70. ताहुमे ताहूमे
71. पुत्रीक
72. बजा कय/ कए
73. बननाय
74. कोला
75. दिनुका दिनका
76. ततहिसँ
77. गरबओलन्हि गरबेलन्हि
78. बालु बालू
79. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
80. जे जे’
81. से/ के से’/के’
82. एखुनका अखनुका
83. भुमिहार भूमिहार
84. सुगर सूगर
85. झठहाक झटहाक
86. छूबि
87. करइयो/ओ करैयो
88. पुबारि पुबाइ
89. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
90. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
91. खेलएबाक खेलेबाक
92. खेलाएबाक
93. लगा’
94. होए- हो
95. बुझल बूझल
96. बूझल (संबोधन अर्थमे)
97. यैह यएह
98. तातिल
99. अयनाय- अयनाइ
100. निन्न- निन्द
101. बिनु बिन
102. जाए जाइ
103. जाइ(in different sense)-last word of sentence
104. छत पर आबि जाइ
105. ने
106. खेलाए (play) –खेलाइ
107. शिकाइत- शिकायत
108. ढप- ढ़प
109. पढ़- पढ
110. कनिए/ कनिये कनिञे
111. राकस- राकश
112. होए/ होय होइ
113. अउरदा- औरदा
114. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
115. बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
116. चलि- चल
117. खधाइ- खधाय
118. मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
119. कैक- कएक- कइएक
120. लग ल’ग
121. जरेनाइ
122. जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
123. होइत
124. गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
125. चिखैत- (to test)चिखइत
126. करइयो(willing to do) करैयो
127. जेकरा- जकरा
128. तकरा- तेकरा
129. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
130. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
131. हारिक (उच्चारण हाइरक)
132. ओजन वजन
133. आधे भाग/ आध-भागे
134. पिचा’/ पिचाय/पिचाए
135. नञ/ ने
136. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
137. तखन ने (नञ) कहैत अछि।
138. कतेक गोटे/ कताक गोटे
139. कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
140. लग ल’ग
141. खेलाइ (for playing)
142. छथिन्ह छथिन
143. होइत होइ
144. क्यो कियो
145. केश (hair)
146. केस (court-case)
147. बननाइ/ बननाय/ बननाए
148. जरेनाइ
149. कुरसी कुर्सी
150. चरचा चर्चा
151. कर्म करम
152. डुबाबय/ डुमाबय
153. एखुनका/ अखुनका
154. लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
155. कएलक केलक
156. गरमी गर्मी
157. बरदी वर्दी
158. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
159. एनाइ-गेनाइ
160. तेनाने घेरलन्हि
161. नञ
162. डरो ड’रो
163. कतहु- कहीं
164. उमरिगर- उमरगर
165. भरिगर
166. धोल/धोअल धोएल
167. गप/गप्प
168. के के’
169. दरबज्जा/ दरबजा
170. ठाम
171. धरि तक
172. घूरि लौटि
173. थोरबेक
174. बड्ड
175. तोँ/ तूँ
176. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
177. तोँही/तोँहि
178. करबाइए करबाइये
179. एकेटा
180. करितथि करतथि
181. पहुँचि पहुँच
182. राखलन्हि रखलन्हि
183. लगलन्हि लागलन्हि
184. सुनि (उच्चारण सुइन)
185. अछि (उच्चारण अइछ)
186. एलथि गेलथि
187. बितओने बितेने
188. करबओलन्हि/ करेलखिन्ह
189. करएलन्हि
190. आकि कि
191. पहुँचि पहुँच
192. जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
193. से से’
194. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
195. फेल फैल
196. फइल(spacious) फैल
197. होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
198. हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय
199. फेका फेंका
200. देखाए देखा’
201. देखाय देखा’
202. सत्तरि सत्तर
203. साहेब साहब
7.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
7.1.Original Maithili Poem by Sh. Ramlochan Thakur translated into English by GAJENDRA THAKUR and Original Maithili Poem by Sh. Krishnamohan Jha translated into English by GAJENDRA THAKUR
7.2.THE COMET- English translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani translated by Jyoti.
Ramlochan Thakur (1949- ) Senior Poet, theatre artist ,editor and critic of Maithili language. "Itihashanta" and "Deshak nam chhal son chrai", "Apoorva", "Mati Panik Geet"(collection of poems), "Betal Katha"(Satire), "Maithili Lok Katha (Folk Literature), "Ankhi Munane Aankhi Kholane" (Essays).
Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed at http://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title “KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in
Original Maithili Poem by Sh. Ramlochan Thakur translated into English by GAJENDRA THAKUR
Addressed to the system/ warning-
Without any indication
Or
Any wait for time
The sleeping volcano
Could thunder anytime
The mountaineer
Anytime could lag behind
Sh. Krishnamohan Jha (1968- ), "Ekta Herayal Duniya", collection of poems in Maithili, "Samay Ko Chirkar" collection of poems in Hindi. For Hindi poems "Kanhaiya Smriti Samman" in 1998 and "Hemant Smriti Kavita Samman" in 2003.
Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed at http://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title “KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in
Original Maithili Poem by Sh. Krishnamohan Jha translated into English by GAJENDRA THAKUR
ONE DAY
If not today then tomorrow
If not tomorrow then on a day after tomorrow
If not on a day after tomorrow then on two days after tomorrow
Not on two days after tomorrow not even after a month…
Then after a couple of years
One day
You would return to this threshold
And time and again would tell to yourself-
Thanks! Thanks!!
English Translation of Gajendra Thakur's( Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed at http://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title “KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in ) Maithili Novel Sahasrabadhani by Smt. Jyoti Jha Chaudhary
Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.com and her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). She had been honorary teacher at National Association For Blind, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.
SahasraBarhani:The Comet
translated by Jyoti
Examination of all art was held in the primary schools of the village- music, drawing, drama etc. There were lots of talented people in the village who can play drums, harmonium etc. Earlier drama was played in Durga Puja only but later on it became trend of celebrating Krishnashtami, Kali Puja etc. Harsha’s Ramleela party had also performed drama for one month. Conflicts rose during that drama too. Then ramleela was played without inviting any drama company from outside every now and then. However people kept on sponsoring Ramleela by outsider. Bearing expenses of hiring the Ramleela party was termed as holding mala. People used to announce for sponsoring the drama out of excitement for a moment but later on considering enthusiasm of the drama party and interest of villagers a systematic collection of money for hiring the drama party was established. There was a craze of the Ramleela in those days and I too had dream of having my career as an artist. With consent of teachers we started practicing drama on Saturdays in the school. To solve the problem of finding source of good drama book I wrote a drama named “Daanveer Dadhichi”. I gathered the child-artists. The child-artists had names too casual to suit to the famous characters of Indian mythology. Let’s have a look- potaha, lulha, lengra, potsurka, lelha, dhahibala, kanha, anhra, totraha, bauka, bahira etc. Those names meant deaf, blind, handicapped etc. The children who were considering themselves very sophisticated and respectful weren’t interested in participation of drama. If someone pronounced dhahi in place of dahi (yogurt) in his childhood then his name was kept dhahiwala. One child got their name Potaha as he had runny nose in winter. If the second child too had caugh then he had name potsurka. One child got his name Anhara (blind) as he couldn’t see the object and hit it during moving in darkness. If any child started speaking late then he became Bauka (dumb). An innocent child got name of Lelha, ignorant to people got name of Bahira(deaf), if the child kept his hand straight after wearing new Ghari (a watch made up of the Mango leaf) in the Ghari Pabani he got the name lulha (handicapped). The stuttering child got name of Totala. His habit of seeing with cunning eyes or frightening other kids by folding eyelids could give him name of Kanha. If any child walked limpingly due to some problem in legs he got the name of langara (cripple). But if a child belonged to a rich family and his mother was quite bold then even though he had some real defect nobody could dare to tease him.
Ok, my drama ‘Danveer Dadhichi’ was to be played on next Saturday by that group of child-artists.
(continued)
VIDEHA MAITHILI SANSKRIT TUTOR
तेषाम् बिन्दुनां पुनः स्मरणं किंचित् कुर्मः।
अहम् किञ्चित् कार्यं करोमि-
अकबर मार्गः ह्रस्वः अस्ति।
नवदेहल्यां मार्गः दीर्घः अस्ति।
मम वेणी दीर्घा अस्ति।
मम उत्तरीयम् दीर्घम् अस्ति।
अहं बहु जानामि किञ्चित् वदामि।
एषः वृक्षः उन्नतः/ वामनः अस्ति।
पुरुषः उन्नतः/ वामनः अस्ति।
कः उन्नतः/ वामनः अस्ति।
इदानीम् वर्ण वाचकानाम् परिचयम् संपादयामः।
-शुकस्य वर्णः हरितः।
-शुकस्य वर्णः कः?
-पर्णस्य वर्णः कः?
-पर्णस्य वर्णः हरितः।
-पुष्पस्य वर्णः पीतः।
-सेमन्ती पुष्पस्य वर्णः पीतः।
-काकस्य वर्णः कृष्णः।
-कृष्णफलकस्य वर्णः कृष्णः।
पत्रस्य वर्णः श्वेतः।
दंतस्य वर्णः श्वेतः।
क्षीरस्य वर्णः श्वेतः।
आसन्दस्य वर्णः रक्तः।
स्वादुफलस्य वर्णः रक्तः।
अंतः रक्तम् अस्ति।
रक्तस्य वर्णः कः।
रक्तस्य वर्णः रक्तः।
वस्त्रस्य वर्णः नीलः।
भित्तः वर्णः नीलः।
आकाशस्य वर्णः नीलः।
र्ष्ट्रध्वजे त्रयः वर्णाः सन्ति।–हरितः/ श्वेतः/ कासायः वर्णः
चक्रस्य वर्णः नीलः।
कस्य कः वर्णः- केशस्य वर्णः कृष्णः। श्रीकृष्णस्य नीलः।
(वर्णमूलशब्दः पु.)
अहम् ईदृश फलम् इच्छामि।
अहं तादृश फलं न इच्छामि।
मम समीपे ईदृश घटी अस्ति।
मम समीपे तादृश घटी नास्ति।
भवत्याः समीपे कीदृश घटी अस्ति।
मम समीपे तादृश घटी नास्ति।
कस्यापि गृहे ईदृश कपिः अस्ति वा।
भवत्याः गृहस्य कपिः ईदृश/ तादृश शब्दम् करोति वा।
ओ महामर्कटः।
इदानीम् अहं वस्तु प्रदर्श्य भिन्न-भिन्न नाम वदामि।
तादृश वस्तु भवताम् गृहे अस्ति वा नास्ति वा।
इति वदन्तु-
मम गृहे तादृश पाञ्चालिका/ लेखनी अस्ति।
ईदृश कङ्कणं कस्यापि (कस्याः अपि) समीपे नास्ति।
इदानीम् एकं नूतनम् अंशं जानीमः।
सन्दीपः क्रीडाङ्गनं गच्छति। क्रीडति।
सन्दीपः क्रीडितुम् क्रीडाङ्गनः गच्छति।
बालक पठितुम् विद्यालयं गच्छति।
किमर्थम्?
खादितुम्- जानीतुम्- वक्तुम्
पीबति-पातुम्
गच्छति-गन्तुम्
आगच्छति-आगन्तुम्
उत्तिष्ठति-उत्थातुम्
उपविशति- उपवेष्टुम्
जानाति- ज्ञातुम्
करोति- कर्तुम्
श्रुणोति- श्रोतुम्
वदति- वक्तुम्
ददाति- दातुम्
पश्यति- द्रष्टुम्
इदानीम् अन्यविध अभ्यासं कुर्मः।
-बालकः विद्यालयं गच्छति।
-बालकः विद्यालयं गन्तुम् इच्छति।
-रमेशः क्रिकेट क्रीडति।
-रमेशः क्रिकेट क्रीडितुम् इच्छति।
-मुकेशः वदति।
-मुकेशः वदितुम् इच्छति।
चालयति- चालयतुम्
शन्मुखः गृहे वासम् करोति।
शन्मुखः गृहे वासम् कर्तुम् इच्छति।
वासुदेवः देहलीम् गच्छति।
धरति-धर्तुम्
गायकः गीतम् गायति।
सुभाषितम्
मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत्
आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पण्डितः।
श्रुतस्य सुभाषितस्य अर्थः एवम् अस्ति।
सर्वदा पण्डितः उदारदृष्टया पश्यति। पण्डितः इत्युक्ते सज्जनः। सज्जनः अन्य भगिनीः। महिलाः।
कथम् पश्यति। अन्य भगिनीः सः मातरः इत्येव चिन्तयति। तथादृष्ट्या एव पश्यति। एवमेव बहुनाम् समीपे धनम् संपद् भवति। सज्जनः कया दृष्ट्या पश्यति। सः तत् धनं परेषां धनं मृत्तिकाम् इव पश्यति। तत धनं मृत्तिका समाना। इत्येव चिन्तयति। एवमेव प्राणिनः जीवन्ति। प्रपञ्चे। प्राणीनां विषये सज्जनस्य व्यवहारः कथं भवति। यदा स्वस्य विषये मृदुतया/ श्रेष्ठतया व्यवहारं करोति। तथैव सर्वप्राणिभिः सः व्यवहारं करोति। एवं पण्डितस्य दृष्टिः सर्वदा विशाला भवति। तादृशः एव पण्डितः इति उच्यते।
कथा
एकः ग्रामः- ग्रामे एकः सत्पुरुषः- सः बहु सज्जनः- सः जीवनार्थं धनस्य संग्रहं न कृतवान्। भिक्षाटनवृत्या जीवनं करोति स्म। भिक्षाटनं करोति- जीवनं करोति। धनसंग्रहं न करोति। प्रतिदिनं तपः करोति। प्रातःकाले/ मध्याह्ने/ रात्रौ/ एवं तदा तदा तपः करोति। मनसः संस्कारः भवति। तत कारणतः तस्य मनः शुद्धं सात्विकम् अस्ति। एका शक्तिः आगता- तपसः प्रभावेन् तस्य मनसः एका शक्तिः आगता। का सा शक्तिः- अनस्याः मनसि अथवा अनस्य मनसि यः भावः भवति तम् भावं सः सज्जनः ज्ञातुम् शक्नोति। सः सत्पुरुषः तपसः प्रभावेन् एव तत सर्वं ज्ञातुम् शक्नोति स्म। एकदा सः अन्यं ग्रामं गच्छति। सः ग्रामः दूरे अस्ति। मार्गे आयासः भवति। समीपे एकं कुटीरं पश्यति। तत्र गच्छति। स्वामिनं पृच्छति- कृपया किञ्चित् जलं ददातु। यजमानः आगच्छति- जलं ददाति। यदा किञ्चित् पिबति तस्य मनसि किमपि भवति। सः चिन्तयति। जलं पर्याप्तम्। गच्छामि। इति त्वराम् करोति। तदा गृहस्य स्वामी वदति- भोः। न गच्छतु। किञ्चित् क्षीरम् ददामि। क्षीरं स्वीकरोतु। परन्तु एषः सज्जनः वदति- नैव। अहं गच्छामि। परन्तु गृहस्वामी बहु आग्रहं करोति- अन्तः गच्छति-क्षीरम् आनयति। बहु आग्रह कारणतः सः सज्जनः तिष्ठति। क्षीरं गृह्णाति। सज्जनः स्वीकृतवान्। आग्रहकारणतः। परन्तु हस्तेन् किंचिदेव् क्षीरं पीतवान्। तदा एव तस्य मनसि एक विध स्पंदनं अभवत्। सः गृहस्वामिनं पृष्टवान्- भवतः गृहे धेनुः अस्ति वा। गृहस्वामी वदति- आम् अस्ति। पुनः सत्पुरुषः पृच्छति- एकवारं द्रष्टुम् इच्छामि। अस्तु। आगच्छतु। इति सत्पुरुषं गृहस्वामी नयति। सत्पुरुषः धेनुं पश्यति। धेनुः कण्डे बंधनम् अस्ति। धेनुः बहिर्गमन् मार्गम् अपि पश्यति। तदा गृहस्वामी पृच्छति। किमर्थं भवान् तथा पश्यति। तदा किमपि नास्ति- इति सत्पुरुषः वदति। तदा पुनः एषः गृहस्वामी आग्रहं करोति- वदतु-वदतु। अस्तु। इति सत्यं वदति। एषा धेनुः भवदीया धेनुः न्। कुतश्चित् चोरिता धेनु:। सत्यं वा न वा। तदा गृहस्वामिनः मुखं म्लानं भवति। सत्यं। परन्तु भवान् कथं ज्ञातवान्। तदा एषः वदति- सत्पुरुषः- भोः गृहस्वामि। भवान् क्षीरं दत्तवान्। तदा मम मनसि विकारः समुत्पन्नः। मम मनसि- अहं चोरयामि- इति भावः उत्पन्नः। तदर्थम् अहं गोष्ठं गत्वा सर्वं दृष्टवान्। परन्तु यदा चौर्यम् करणीयमेव इति महती इच्छा अभवत्। अहं गन्तुम् त्वरां कृतवान्। एवम् आहारस्य प्रभावः मनसः उपरि भवति। चोरः यदि आहारं ददाति- मनुष्यस्य अपि चौर्यबुद्धिः भवति। एवमेव एतस्मिन् संदर्भे अभवत्। अहं चिन्तितवान्। एषा धेनुः चोरिता धेनुः। तदर्थं मम मनस्य अपि चौर्यं करणीयम्- इति बुद्धिः उत्पन्ना। सत्यं वा न वा। एषा धेनुः चोरिता वा न वा। तदा गृहस्वाम स्वात्मनः दोषम् अङ्गीकरोति। सत्यम् इतः परम् अहम् एतां धेनुः मम गृहे स्थापयामि- एतस्य यजमानाय प्रत्यर्पयामि- इति वदति। प्रत्यर्पयति च।
ENGLISH संस्कृतम् मैथिली
Do you know when the examination begins? परीक्षारम्भः कदा इति ज्ञातं किम्? अहाँकेँ बुझल अछि परीक्षा कहियासँ शुरू होएत?
Yes, the time-table came just yesterday. आं, वेलापत्रिका ह्यः एव आगता। हँ, टाइम-टेबुल काल्हिये आएल।
Is there any gap between two papers? प्रश्नपत्रयोः मध्ये अवकाशः अस्ति किम्? दू परीक्षाक बीच विराम अछि की?
Only two days. केवलं दिनद्वयस्य अस्ति। मात्र दू दिनक अछि।
The examination has been postponed. परीक्षा अग्रे नीता। परीक्षाक तिथि आगाँ बढ़ि गेल अछि।
How is the preparation? सज्जता कथम् अस्ति?
तैयारी केहन अछि?
I don’t remember anything that I read. पठितं किमपि न स्मरामि भोः। हम जे पढ़ैत छी से एकोरत्ती मोन नहि रहैत अछि?
The portions of the third paper have not been completed. तृतीय-पत्रस्य पाठ्यांशः एव न समाप्तः। तेसर पत्रक पाठ्यक्रमक किछु अंश सेहो बाँकी अछि।
The admission card will be given day after tomorrow. प्रवेशपत्रं परश्वः लप्स्यते। प्रवेश-पत्र परसू देल जाएत।
What time is the examination? परीक्षासमयः कः? परीक्षाक समय की अछि?
From 8 to 10 in the morning. प्रातः अष्टतः दशवादनम्। भोरमे ८ सँ १० बजे धरि।
Which examination centre did you get? किं परीक्षा-केन्द्रं प्राप्तवती भवती? कोन परीक्षा-केन्द्र अहाँकेँ भेटल?
The centre is near my house. केन्द्रं मम गृहस्य समीपे अस्ति। केन्द्र हमर घरक लगेमे अछि।
How was the question-paper? प्रश्नपत्रं कथम् आसीत्? प्रश्नपत्र केहन रहए?
It was very easy. अतीव-सुलभम् आसीत्। बड्ड हल्लुक रहए।
It was very difficult. बहु क्लिष्टम् आसीत्। बड्ड भारी रहए।
It was alright. सामान्यम् आसीत्। सामान्य रहए।
The time was not enough. समयः अपर्याप्तः अभवत्। समय पर्याप्त नहि रहए।
There was no option among the questions. प्रश्नेषु विकल्पः एव न आसीत्। प्रश्नमे विकल्प सेहो नहि छलए।
I could not write answers of two questions. अहं प्रश्नद्वयस्य उत्तरं लेखितुं न शक्तवती। हम दू टा प्रश्नक उत्तर नहि लिखि सकलहुँ।
The practical-exam is over. प्रात्यक्षिक-परीक्षा समाप्ता। प्रायोगिक परीक्षा समाप्त भेल।
The examiner for practical-exam was a nice man. प्रात्यक्षिक-परीक्षायाः परीक्षकः उत्तमः आसीत्। प्रायोगिक परीक्षाक परीक्षक नीक लोक रहथि।
How was the viva-voce? मौखिक-परीक्षा कथम् अभवत्? मौखिक परीक्षा केहन रहल?
Not very good. सम्यक् न आसीत्। नीक नहि रहल।
When will the result be declared? फलितांशः कदा प्रकटितः भविष्यति? परिणाम कहिया धरि आएत?
There’s still one month. इतोऽपि एक मासः अस्ति। एखनो एक मास अछि।
It will be declared in the next week. अग्रिम-सप्ताहे प्रकटितः भविष्यति। अगिला सप्ताह भऽ सकैए निकलत।
How many percent marks did you get? प्रतिशतं कति अङ्काः प्राप्ताः? कतेक प्रतिशत अंक अहाँकेँ भेटल?
I got 80% marks. मम ८०% अङ्काः आगताः। हमरा ८०% अंक भेटल
He has failed in one subject. सः एकस्मिन् विषये अनुत्तीर्णः। ओऽ एक विषयमे अनुत्तीर्ण भऽ गेल।
I lost the first rank by two marks. अङ्कद्वयेन मम प्रथम-स्थानं गतम्। दू अंकसँ हम पहिल स्थानसँ वंचित रहि गेलहुँ।
His result has been withheld. तस्य फलितांशः निरुद्धः अस्ति। ओकर परिणाम रोकि लेल गेल।
She is applying for revaluation of this paper. सा एतस्य पत्रस्य पुनर्मूल्याङ्कनार्थम् आवेदनं करिष्यति। ओऽ अपन उत्तर-पत्रक फेरसँ परीक्षण लेल आवेदन देने अछि।
Two month’s holidays from now on. इतःपरं मासद्वयस्य विरामः। एखनसँ दू मासक विराम अछि।
Next year I will study well. अग्रिमवर्षे अहं सम्यक् अध्ययनं करिष्यामि। अगिला साल हम नीक जेकाँ पढ़ब।
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।(c) 2008 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ' आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ' संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ' पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.co.in पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ' रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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