भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
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(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Tuesday, January 13, 2009
विदेह १ दिसम्बर २००८ वर्ष १ मास १२ अंक २३
'विदेह' १दिसम्बर २००८ ( वर्ष १ मास १२ अंक २२ ) एहि अंकमे अछि:-
१.संपादकीय संदेश
२.गद्य
२.१.कथा 1.सुभाषचन्द्र यादव
२.२.बी. पीं कोइराला कृत मोदिआइन मैथिली रुपान्तरण बृषेश चन्द्र लाल
२.३.उपन्यास- चमेली रानी- केदारनाथ चौधरी
२.४. १.मैथिली भाषा आ साहित्य - प्रेमशंकर सिंह २.स्व. राजकमल चौधरी पर-डॉ. देवशंकर नवीन (आगाँ)
२.५.सगर राति दीप जरय मैथिली कथा लेखनक क्षेत्रमे शान्त क्रान्ति-डा.रमानन्द झा ‘रमण‘
२.६. दैनिकी-ज्योति/ कथा- प्रेमचन्द्र मिश्र
२.७. रिपोर्ताज- नवेन्दु झा/ ज्योति .
२.८. मिथिलांचलक सूर्य पूजन स्थल-मौन
३.पद्य
३.१.1.रामलोचन ठाकुर 2.कृष्णमोहन झा
३.२. बुद्ध चरित- गजेन्द्र ठाकुर
३.३.-एक युद्ध देशक भीतर-ज्योति
३.४. १.भालचन्द्र झा 2.विनीत उत्पल
३.५. 1. पंकज पराशर 2.अंकुर
३.६. कुमार मनोज कश्यप
३.७. रूपेश झा "त्योंथ"
४. मिथिला कला-संगीत-लुप्तप्राय मैथिली लोकगीत-हृदय नारायण झा
५. बालानां कृते- १.प्रकाश झा- बाल कविता २. बालकथा- गजेन्द्र ठाकुर ३. देवीजी: ज्योति झा चौधरी
६. भाषापाक रचना लेखन- पञ्जी डाटाबेस-(डिजिटल इमेजिंग / मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण/ संकलन/ सम्पादन-गजेन्द्र ठाकुर , नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा)
७. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)-
७.१.Original Maithili Poem by Sh. Ramlochan Thakur translated into English by GAJENDRA THAKUR and Original Maithili Poem by Sh. Krishnamohan Jha translated into English by GAJENDRA THAKUR
७.2.The Comet-English translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani by jyoti
विदेह (दिनांक १ दिसम्बर २००८)
१.संपादकीय (वर्ष: १ मास:१२ अंक:२३)
मान्यवर,
विदेहक नव अंक (अंक २३, दिनांक १ दिसम्बर २००८) ई पब्लिश भऽ गेल अछि। एहि हेतु लॉग ऑन करू http://www.videha.co.in |
ई अंकक समर्पण गर्वक-संग ओहि 16 बलिदानीक नाम जे मुम्बईमे देशक सम्मानक रक्षार्थ अपन प्राणक बलिदान देलन्हि।
केसर श्वेत हरित त्रिवार्णिक
मध्य नील चक्र अछि शोभित
चौबीस कीलक चक्र खचित अछि
अछि हाथ हमर पताका ई,
वन्दन, भारतभूमिक पूजन,
करय छी हम, लए अरिमर्दनक हम प्रण।
अहर्निश जागि करब हम रक्षा
प्राणक बलिदान दए देब अपन
सुख पसरत दुख दूर होएत गए
छी हम देशक ई देश हमर
अपन अपन पथमे लागल सभ
करत धन्य-धान्यक पूर्ति जखन
हाथ त्रिवार्णिक चक्र खचित बिच
बढ़त कीर्तिक संग देश तखन।
करि वन्दन मातृभूमिक पूजन,
छी हम, बढ़ि अरिमर्दनक लए प्रण।
समतल पर्वत तट सगरक
गङ्गा गोदावरी कावेरी ताप्ती,
नर्मदाक पावन धार,सरस्वती,
सिन्धु यमुनाक कातक हम
छी प्रगतिक आकांक्षी
देशक निर्माणक कार्मिक अविचल,
स्वच्छ धारक कातक बासी,
कीर्ति त्रिवार्णिक हाथ लेने छी,
वन्दन करैत माँ भारतीक,
कीर्तिक अभिलाषी,
आन्धीक बिहारिक आकांक्षी।
१.एन.एस.जी. मेजर सन्दीप उन्नीकृष्णन्
२.ए.टी.एस.चीफ हेमंत कड़कड़े
३.अशोक कामटे
४.इंस्पेक्टर विजय सालस्कर
५.एन.एस.जी हवलदार गजेन्द्र सिंह "बिष्ट"
६.इंस्पेक्टर शशांक शिन्दे
७.इंस्पेक्टर ए.आर.चिटले
८.सब इंस्पेक्टर प्रकाश मोरे
९.कांस्टेबल विजय खांडेकर
१०.ए.एस.आइ.वी.अबाले
११.बाउ साब दुर्गुरे
१२.नानासाहब भोसले
१३.कांसटेबल जयवंत पाटिल
१४.कांसटेबल शेघोष पाटिल
१५.अम्बादास रामचन्द्र पवार
१६.एस.सी.चौधरी
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ २९ नवम्बर २००८) ६६ देशक ६३० ठामसँ १,२७,०८० बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
अपनेक रचना आऽ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
गजेन्द्र ठाकुर, नई दिल्ली। फोन-09911382078
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बया, हिन्दी छमाही पत्रिका, सम्पादक- गौरीनाथ
संपर्क- अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4, शालीमारगार्डन, एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
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पेपरबैक संस्करण
उपन्यास
मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00
कहानी-संग्रह
रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 90.00
शीघ्र प्रकाश्य
आलोचना
इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
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साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक
बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन
सामाजिक चिंतन
किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा
शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र
उपन्यास
माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन
कहानी-संग्रह
धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
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२.संदेश
१.श्री प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
२.श्री डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह|
३.श्री रामाश्रय झा "रामरंग"- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
४.श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बाधाई आऽ शुभकामना स्वीकार करू।
५.श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
६.श्री डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
७.श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
८.श्री विजय ठाकुर, मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
९. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका ’विदेह’ क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आऽ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१०.श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका ’विदेह’ केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
११.डॉ. श्री भीमनाथ झा- ’विदेह’ इन्टरनेट पर अछि तेँ ’विदेह’ नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।
१२.श्री रामभरोस कापड़ि भ्रमर, जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत से विश्वास करी।
१३. श्री राजनन्दन लालदास- ’विदेह’ ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।
१४. डॉ. श्री प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भ' गेल।
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आऽ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।
विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
महत्त्वपूर्ण सूचना (१):महत्त्वपूर्ण सूचना: श्रीमान् नचिकेताजीक नाटक "नो एंट्री: मा प्रविश" केर 'विदेह' मे ई-प्रकाशित रूप देखि कए एकर प्रिंट रूपमे प्रकाशनक लेल 'विदेह' केर समक्ष "श्रुति प्रकाशन" केर प्रस्ताव आयल छल। श्री नचिकेता जी एकर प्रिंट रूप करबाक स्वीकृति दए देलन्हि। प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (ISBN NO.978-81-907729-0-7 मूल्य रु.१२५/- यू.एस. डॉलर ४०) आऽ पेपरबैक (ISBN No.978-81-907729-1-4 मूल्य रु. ७५/- यूएस.डॉलर २५/-) मे श्रुति प्रकाशन, १/७, द्वितीय तल, पटेल नगर (प.) नई दिल्ली-११०००८ द्वारा छापल गेल अछि। e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com website: http://www.shruti-publication.com
महत्त्वपूर्ण सूचना:(२) 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश आऽ ३.मिथिलाक्षरसँ देवनागरी पाण्डुलिपि लिप्यान्तरण-पञ्जी-प्रबन्ध डाटाबेश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(३) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक 'सहस्रबाढ़नि'(उपन्यास), 'गल्प-गुच्छ'(कथा संग्रह) , 'भालसरि' (पद्य संग्रह), 'बालानां कृते', 'एकाङ्की संग्रह', 'महाभारत' 'बुद्ध चरित' (महाकाव्य)आऽ 'यात्रा वृत्तांत' विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे प्रकाशित होएत। प्रकाशकक, प्रकाशन तिथिक, पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत।
महत्त्वपूर्ण सूचना (४): "विदेह" केर २५म अंक १ जनवरी २००९, ई-प्रकाशित तँ होएबे करत, संगमे एकर प्रिंट संस्करण सेहो निकलत जाहिमे पुरान २४ अंकक चुनल रचना सम्मिलित कएल जाएत।
महत्वपूर्ण सूचना (५): १५-१६ सितम्बर २००८ केँ इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, मान सिंह रोड नई दिल्लीमे होअयबला बिहार महोत्सवक आयोजन बाढ़िक कारण अनिश्चितकाल लेल स्थगित कए देल गेल अछि।
मैलोरंग अपन सांस्कृतिक कार्यक्रमकेँ बाढ़िकेँ देखैत अगिला सूचना धरि स्थगित कए देलक अछि।
२.गद्य
२.१.कथा 1.सुभाषचन्द्र यादव
२.२.बी. पीं कोइराला कृत मोदिआइन मैथिली रुपान्तरण बृषेश चन्द्र लाल
२.३.उपन्यास- चमेली रानी- केदारनाथ चौधरी
२.४. १.मैथिली भाषा आ साहित्य - प्रेमशंकर सिंह २.स्व. राजकमल चौधरी पर-डॉ. देवशंकर नवीन (आगाँ)
२.५.सगर राति दीप जरय मैथिली कथा लेखनक क्षेत्रमे शान्त क्रान्ति-डा.रमानन्द झा ‘रमण‘
२.६. दैनिकी-ज्योति/ कथा- प्रेमचन्द्र मिश्र
२.७. रिपोर्ताज- नवेन्दु झा/ ज्योति .
२.८.पाबनि-तीर्थ-मिथिलांचलक सूर्य पूजन स्थल-मौन
कथा
१. सुभाषचन्द्र यादव
चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द
सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल- मधुबनी। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।
ओ लड़की
एक-दोसराक सोझा-सोझी बनल तीन टा होस्टल रहै, दू टा लड़काक आ एकटा लड़कीक । ओहि तीनूक बीचोबीच एक टा छोट सन मकान रहै ।ओहि मकान मे छात्र-छात्राक मनोरंजन लेल टेबुलटेनिस, चाइनीज चेकर, शतरंज सन खेलक व्यवस्था रहै । मकानक अगुअइत मे चाह, पान अफलक एक-एक टा दोकान रहै ।
होस्टल शहर सँ हटि क’ एक टा सुरम्य पहाड़ी पर बनायल गेल रहै । ओहिठामक वातावरण एकदम शांत आ अध्ययन-मनन के अनुकूल रहै । ओतय अबाध स्वतंत्रता रहै । कोनो चट्टान पर बैसि कए अहाँ घंटाक घंटा चिन्तन मे लीन रहि सकैत छलहुँ या प्रेमिका संगे रभसल सपनामे डूबल रहि सकैत छलहुँ ।
मुदा एहि आधिदैविक आ रूमानी वातावरण पर दिनकें उदासी पसरल रहैत छलै । लड़का-लड़की पढ़ै-तढ़ै लए निकलि जाइ अ होस्टल भकोभन्न आ सून पड़ि जाइ ।मुदा साँझ पड़िते ओहिमे जीव पड़ि जाय । लड़का-लड़कीक चहल-पहल आ गनगनी कोनो पाबनि-तिहार सन लगै ।हैलो, हाय आ हाउ आर यू सन कथनी हवामे उड़ैत रहै ।धनीक घरक ईलड़का-लड़की बेसी कए अंगरेजी बाजइ आ तखन एहन लगै जेना अहाँ हिन्दुस्तान मे नहि, लंदन या न्यूयार्क मे होइ ।
साँझ पड़िते होस्टलक्क बीच ओह छोटका मकानक चारूकात लड़का-लड़कीजमा हुअय लागै। किछु ठाढ़े ठाढ़ आ किछु सिमटी वला बेच पर बैसि कए गप्प करै आ बहस करै । कोनो-कोनो बेंच पर खाली प्रेमीक जोड़ा बैसल रहै ।ए ई क्रम बड़ी राति धरि चलैत रहै । एहनो होइ जे साँझ पड़िते मोटरसाइकिल आ कार सँ शहरक लड़का आबै आ अपन –अपन प्रेमिका के ल’क’कतहु निकलि जाइ आ दू-चारि घंटामे छोड़ि जाइ । क्यो-क्यो होस्टले लग कार लगा क’ कारे मे अपन प्रेमिका सँ गप्प करैत रहैत छलै ।
एहने कोनो साँझक गप्प छियै । ओहि दिन नवीन भरि दिन होस्टलक अपन कोठलीमे बैसल पढ़ैत रहल छल । पढ़ैत-पढ़ैत ओकर माथ भारी भ’ गेलै ।गोसांइ डूबि गेल रहै आ पछबरिया क्षितिज पर ओकर लाली पसरल रहै ।नवीन बिना स्वेटर पहिरने चाह पीबा लेल निकलि गेल । होस्टलक मेसमे खाली भोरे टा कें चाह भेटै । तें नवीन धीरे-धीरे अहि मकान दिस बढ़य लागल, जतय चाहक दोकान रहै । होस्टल सँ बाहर निकलिते ठंढा हवाक झोंक सँ ओकर देह सिहरि उठलै । मुदा स्वेटर पहिरय ल’ ओ छूरल नहि । दलकी वला जाड़ नहि रहै । हवा सँ ओकरा ताजगी भेटलै आ माथ जे भारी रहै से हल्लुक होब’ लगलै। मकानक आसपास अखन भीड़ नहि रहै । बेंच पर किछु जोड़ा रहै आ दोकान पर किछु लोक । एकटा कार लागल रहै ।कारमे एकटा लड़का आ एकाटा लड़की बैसल चाह पिबैत रहै । भरिसक चाह खतम भ’गेल रहै आ ओ दुनू खलियाहा कप थामने बैसल रहै । बुझेलै जेना लड़काकें एकाएक ई बोध भेलै ज ओ अनेरे हाथमे खलियाहा कप ल’क’ बैसल अछि आ ओहि बेकारक बोझ हटाब’ लेल कपकें कारक सीटपर राखय चाहलक । लेकिन लड़की ओकरा एना करय नहि देलकै । ओ लड़का वला कप ल’ क’ अपन कप पर राखि लेलकै । नवीन कें लगलै जेना ओलड़की आब कार सँ निकलतै आ अँइठ कप राख’ चाहक दोकान पर जतैक । मुदा ओ ओहिना बैसल रहल । जखन कि सम्हारय कातिर ओ बेर-बेर कप दिस देखै आ एना कयलासँ ओकर ध्यान गप दिस सँ हटि जाय, तइयोजानि नहि कते रसगर गप्प चलैत रहै जे छोड़ल नहि जाय ।
कार लग पहुँचि क’ नवीन उड़ती नजरि सँ दुनूकें देखलक आ उदासीन भावें आगू बढ़ि गेल ।
’एक्सक्यूज मी !’- पाछूसँ लड़कीक आवाज आयल।ओ नवीनकें बजबैत रहै ।आवाज सुनि क’ नवीन कें आश्चर्य भेलै । कियैक बजा रहल छैक ई अपरिचित लड़की ? ओ पाछू घूमि क’ आश्चर्य सँ लड़की कें देखलकै । लड़की जींस आ उजरा कुरता पहिरने रहै ।घूमिते लड़की पुछलकै-’अर यू गोईंग टू दैट साइड ?’
सवाल खतम होइते नवीनक नजरि लड़्कीक चेहरा सँ उतरि क’ ओकर हाथक कप पर चलि गेलै आ ओ अपमान सँ तिलमिला गेल । ओकरा भीतर क्रोध आ घृणाक धधरा उठलै । की ओ ओहि दुनूक अँइठ् कप ल’ जायत ? लड़कीक नेत बुझिते ओ जवाब देलकै-’नो’ ओकर आवाज बहुत तेज आ कड़ा रहै आ मुँह लाल भ’ गेल रहै। ओकरा एहि बातक खौंझ हुअय लगलै जे ओकर जवाब एहन गुलगुल आ पिलपिल किए भ’ गेलै ।ओ कियैक नहि कहि सकलै-निम्नवगीयि दब्बूपनी आ संस्कार ओकरा रोकि लेलकै । नवीन पान वला दोकान पर जा क’ ठाढ़ भ’ गेलै । ओ ऊपर सँ शांत बुझाइतो भीतरे-भीतर बहुत उत्तेजित रहै । ओ खाली ठाढ़ रहै । बाहरी दुनिया सँ निर्लिपृ ।
’क्य लोगे साहब ?’-विचित्र नजरि सँ तकैत पानवला पुधलकै त’ ओ अकबका गेल ।ओकरा की लेनाइ रहै ? कनी काल धरि ओ किधु सोचिये नहि सकल । ’हँ, सिगरेट।’-ओ दोकनदार कें कहलकै । सिगरेट ध्राए क’ नवीन सोचय लागल ओकरा त’ चाह पिबै लेल जेनाइ रहै फेर एतय कियैक रूकि गेल। की ई देखाब’ लेल जे देख हम ठीके ओम्हर नहि जा रहल छी ? कते फोंक आ डेरबुक अछि ओ ? तोरा हिम्मत कोना भेलौ ? कियैकनहि कहि सकलै ओ! की ओ ठीके दब्बू अछि ? आदब्बूपनीए कारणे ओकरा मुँह सँ निकलि गेलै-नो भरिसक ई बात नहि छैक । मरजाद आ शालीनताक लेहाज नहि होइतै त’ चाहक बदला ओ पानक दोकान पर किए ठाढ़ होइत । मुदा ई शालीनताक ढोंग नहि भेलै ?
नवीन बेचैन रहै आ जल्दी-जल्दी सिगरेटक सोंट मारैत रहै ।ओकरा ई बात परेशान कयने रहै जे लड़कीक मनमे एहि तरहक प्रस्ताव करबाक विचार अयलै कियैक । की ओ अपनाकें श्रेष्ठ आ हमरा नीच आ तुच्छ बूझि लेने रहै ?हँ, साइत यैह बात रहै । नवीन सोच मे पड़ल रहै । सिगरेट जरि क’ आब ओकर अंगुरी जरबय लागल रहै । सिगरेट फेकि क’ ओ चाहक दोकान पर चलि गेल ।
नवीन ढील भेलै आ लड़कीक ओहि समयक चेहरा ओकर बिधुआयल मुहेंठक लेल नवीन कें अफसोस भेलै ।ऊ सोचय लागल जँ कप लइये लितियै त’ की भ’ जइतियै । एहि सँ ओकर चरित्रक उदारता आ भद्रते सोझाँ अबितै । ओ छोट नहि भ’ जाइत, ई ओकर बड़प्पन होइतै । ओहिठमक जीवनमे ककरो कोनो छोट-मोट मदति करब आम बात रहै आ ई ककरो खराब नहि लागै । सहयोगक एहन भावना सँ नवीन अपरिचित नहि रहय । तइयो पता नहि की रहै जे ओ भड़कि गेल रहै ।
नवीन कें लगैत रहै ओकर दुनिया अलग छै आ ओहि लड़कीक दुनिया अलग । दुनूमे कोनो मेल नहि छैक । ओहि लड़कीक दुनिया चाहियो क’ नवीनक दुनिया नहि भ’ सकैत छलै आ नवीनक दुनिया लेल ओहि लड़की मे कहियो कोनो चाहत नहि भ’ सकैए । नवीन कें बुझेलै साइत सम्पन्नताक चिक्कन चाम आ रौद-बसातक सुक्खल चामक अन्तरे ओकरा भड़का देने होइ । ओ निश्चय नहि क ‘ पाबैत रहै । कही एहन त ‘ नहीं जे ओ लड़की अकारण ओकरा नीक नहीं लागल होइ आ ओ भभकि उठल हो ? मुदा से बुझाइत नहीं रहै । भरिसक ओकर भंगिमा, ओकर स्वरमे किछु रहै । ओकर अनुरोध मे अधिकारक भाव रहै, याचनाक नहीं ।
नवीन ओकर आकृतिकें मोन पाड़्य लागल । ओकर चेहरा मरदाना रहै । जनीजाति मे जे लाज आ कोमलता होइ छै, ओकरामे से नहि रहै । ओहि लड़कीमे किछु एहन रहै जे कठोर रहै आ विकर्षित करैत रहै । नवीन सोचैत रहल । ककरो ने ककरो गलती जरूर रहै । या त’ ओहि लड़की के प्रस्ताव ठीक नहि रहै या नवीनक प्रतित्र्किया उचित नहि रहै । दुनूमे क्यो दोषी रहल हएतै या दुनू दोषी हेतै या दुनूमे क्यो नहि । कोनो कारणो जरूर रहल हेतै । कारण आरो भ’ सकैत छल । ठीक-ठीक किछु नहि कहल जा सकैए । खाली एतबे साँच छै जे लड़की उदासभ’ गेल छलै आ नवीन दुखी रहैआ सोचने चल जाइत रहै ।
वृषेश चन्द्र लाल-जन्म 29 मार्च 1955 ई. केँ भेलन्हि। पिताः स्व. उदितनारायण लाल,माताः श्रीमती भुवनेश्वरी देव। हिनकर छठिहारक नाम विश्वेश्वर छन्हि। मूलतः राजनीतिककर्मी । नेपालमे लोकतन्त्रलेल निरन्तर संघर्षक क्रममे १७ बेर गिरफ्तार । लगभग ८ वर्ष जेल ।सम्प्रति तराई–मधेश लोकतान्त्रिक पार्टीक राष्ट«ीय उपाध्यक्ष । मैथिलीमे किछु कथा विभिन्न पत्रपत्रिकामे प्रकाशित । आन्दोलन कविता संग्रह आ बी.पीं कोइरालाक प्रसिद्ध लघु उपन्यास मोदिआइनक मैथिली रुपान्तरण तथा नेपालीमे संघीय शासनतिर नामक पुस्तक प्रकाशित । ओ विश्वेश्वर प्रसाद कोइरालाक प्रतिबद्ध राजनीति अनुयायी आ नेपालक प्रजातांत्रिक आन्दोलनक सक्रिय योद्धा छथि। नेपाली राजनीतिपर बरोबरि लिखैत रहैत छथि।
बी. पीं कोइराला कृत मोदिआइन मैथिली रुपान्तरण बृषेश चन्द्र लाल
स्टेकशनसँ बाहरक दृश्यरकेँ घुरिघुरि कऽ देखैत हम मिसरजीक पाछँा चलय लगलहुँ । अनगिन्तील एक्काा, सम्पात्तिक लेखे नहि । बुझाइत छलैक जेना बैलगाड़ीसभक तोड़ सड़कपरसँ कखनो समाप्तऽ नहि होयत । स्टेलशनक हत्तासँ सटले उत्तर–दक्षिणदिसि गेल सड़कपर सुर्खी आ’ माटिक गर्दा निरन्तथर उड़ि रहल छलैक ।तखने एकगोट गाढ़ हरियर पेन्टे कयल चमकैत फिटिन आयल जाहिमे पयरसँ दबादबाकय टन–टन घण्टीम बजाओल जाऽ रहल छलैक । सड़कपर चलैत यान–वाहन आ’ लोकसभपर गर्वसँ टनटनाइत धड़फड़ाकय कात होइत मिसरजी हमरो पिचायसँ बचबैत कहलाह — “ कात होउ, कात होउ राजदरबारक फिटीन गाड़ी छैक । ”
दड़िभङ्गा ठीके बहुत बड़का छल, बहुतो नहि सोचल चीज–वस्तुय देखि हम उत्सुटक आ’ भयग्रस्ता भऽ गेल छलहुँ । स्टेहशनसँ सटले बाहर ओहिपार एकगोट विशाल पोखरि रहैक जकर स्टे शन दिसुका कातमे एकलाइनसँ मोदीसभक दोकानसभ छलैक ।दोकानसभ अर्थात फूसक झोपड़ीसभ । आगाँमे काठक चौकी तैपर ढ़ाकीसभमे भरल छल चूड़ा, भुज्जाी, बदाम (चना) अथवा गहुँमक सतुआ, गुड़ आ’ किछु पुरान लड़ू, नोन, मिरचाई, आ’ कोनो–कोनो दोकानमे दही सेहो सजाकय राखल रहैक । हमसभ ओही दोकानसभमेसँ एक कातक एकगोट दोकानमे पैसलहुँ जकर कर्त्ताधर्त्ता एकगोट नाम आ’ हृष्टईपुष्ट कदकाठीक सुन्नअरि आकर्षक मोदिआइन छलि । मोदी छल दुब्बोर–पातर प्राणी । नीच्चाग असोराक ओरीयानीमे बीच–बीचमे खोकैत नारियलक गट्टावला हुक्का् सुड़कैत रहैत छल । मोदिआइन अपन दोकानक भोज्यजसामग्रीसभक ठीक पाछाँ पलथी मारि बैसलि व्य ग्र आ’ चिन्ति्त स्व्रमे पिताकय बाजि रहलि छलि — “ वैद्यलग जा कऽ दवाई लाबक छह कि नहि ? कयबेर कहलियैक जे हुक्कामसँ दम आओर फुलतैक मुदा धनसन ”
मोदिआइन बीच–बीचमे अपन बड़का डण्टाईबला ताड़क पंखासँ एक हाथेँ अपन देहकेँ होंकैत भोज्योसामग्रीसभपर झिनकैत माछी आ’ बिढ़नीसभकेँ सेहो भगा रहलि छलि । मिसरजी ओकर पतिप्रतिक एकाग्रताकेँ भङ्ग करैत जोरसँ कहलखिन्ह — “ मोदिआइन ”
दूगोट गहिंकी ( हमरासभकेँ ) देखि ओकर स्वगर एकदम कोमल भऽ गेलैक — “ आउ, आउ बहुत दिनपर अयलहुँ ”
ओकर उज्ज र सुन्नसर दाँतसभ चमकि उठलैक । मुँहपरक मुस्कीम आत्मीहयताक भावक सङ्केत प्रेषित कऽ रहल छलैक । हमरा देखिते अत्य न्तउ भावपूर्ण सिनेहसँ ओ बाजलि — “ बौआकेँ बड्ड भूख लागल हएतन्हिह । ़़़ देखू तऽ, ठोर कोना सुखा गेल छैक ”
हम चट्ट दऽ अपन ठोरकेँ जीभसँ चाटि भिजयबाक प्रयत्न— कयलहुँ । मोेदिआइन हमरासभक स्वा्गतमे चौकीसँ उतरलि । ओकर नमहर काठी तखन खुलि कऽ स्पनष्टभ भ कऽ आयल । स्थूिल नमहर शरीर, ढ़ोढ़ीसँ उपरेक बिना बटमबला बड़का गलाक छिटक बलाउज पेटक कनेक नीच्चे एकगोट गिरहपर अँड़ल एगारह हाथक नील साड़ी, चाकर–चाकर तथा विभिन्नड आकार–प्रकारक कानमे, गड़मे आ’ पएरमे चानीक गहनासभ, हातमे बरोबरि नीच्चाद सड़कैत बाजुबन्दथ आ’ बेरबेर फुजैत खोपा सम्हाैरयलेल उठैत हाथ — एहन रहय मोदिआइन । एहन नाम मौगी प्रायः नहिये भेटत । सेहो विहारक उत्तरी भागमे जतय मनुखक आकार सामान्यकतया मझोल होइत छैक भेटक तऽ गप्पेह व्य र्थ । कनेक काल हम टकीटकी लगाकय देखिते रहलहुँ । ओ झुकलि आ’ हमर काँखतरक मोटरी लऽ लेलकि । ओकर बडका–बड़का कारी–कारी आँखि, सुन्नलर आ’ समटल कारी भौं तथा पपनी, मुँहक रंग तऽ कारिये मुदा गढ़नि अत्येन्तड नीक रहैक । स्वस्थ ताक चमकिसँ भरल–पूरल चमकैत मुँह बीच–बीचमे ओकर हँसनाईसँ आओर निखैरि जाइत छलैक । मोदिआइनक सामान्यड मुस्कीैयोमे ओकर पातर लाल ठोर आओर लाल भऽ जाइत छलैक जाहिसेँ ओकर सौन्दचर्य आओर बढ़ि जाइक । हाथ–पयर, बाँहि सभ पुष्ट आ’ आकर्षक छलैक । ओतहि नीचा खोंकैत चोटकल गाल घोकचल कल्लााबला बैसल आदमीक धँसल छाती आ’ हड्डी–हड्डी देखाइत शरीरकेँ देखि बुझाइत छलैक जेना ओ दुनू सँयबहु नहि भिन्नत काल तथा स्थाानक प्राणीसभ होय । हमरा एखन मोन पड़ैयऽ, ओकरासभकेँ धियापुता नहि रहैक । किएक तऽ हम ओतय कोनो नेनाभुटकाकेँ नहि देखलहुँ । शायद तैं मोदिआइनपर उमेरक तेहन प्रभाव नहि पड़ल छलैक । पता नहि, मोदिआइनक उमेरे कम छलैक अथवा बेशी होइतो बुझयमे नहि आबि रहल छलैक । इहो भऽ सकैछ जे ओकर उमेर यथार्थमे कम रहल हेतैक मुदा देखयमे कनेक बेशीये बुझाइक । बात चाहे जे होउक मुदा ओकरामे दुनू चीज देखाइक — परिपक्व तो आ’ जुआनीक कोमलतो ।
हमराप्रतिये ओकर व्यसवहार अत्यमन्त’ आत्मीकय छलैक । ओ हमरा पुछलकि — “ बौआ, दड़िभङ्गा पहिलबेर अयलहुँ अछि ? ”
हम मुड़ी डोलबैत ‘ हँ ’ कहि देलिऐक ।
एखनतक मिसरजी अपन मोटरीसँ धोती बाहर निकालि कोंचिया नेने छलाह । मोदिआइन हमरो कहलकि — “ अहूँ नहायलेल चलि जाउ उ लगेक हड़ाहा पोखरिमे चलि जाउ । पानि शीतल आ’ निर्मल छैक, मुदा कातेमे नहायब उ बेशी दूर नहि जायब । बड्ड गहींर अछि हड़ाहा ”
मोदिआइनक बातपर अनायासे हमर मुँह फुजि गेल । हम गर्वसँ कहलिऐक — “ हमरा हेलय अबैत अछि । ”
ओ हमरा समझओेलकि — “ हेलय अबैत अछि से घमण्डो पोखरि, नदी, मोन्हिा, बड़का खधिया, दह लग नहि करी ।एहिसभमे देवताक वास रहैत छैक । गर्वक बोली पसिन्नफ नहि होइत छन्हिि हिनकासभकेँ उ अही हड़ाहा पोखरिमे कतेक अपनाकेँ बुझयबला ”
मिसरजी ओम्हकर पहुँच गेल छलाह, हमरा सोर कएलन्हिह — “ कतेक अबेर करैत छी, बौआ जल्दीड आउ । ”
मोदिआइन बाजलि — “जाउ, नहाकय जल्दील आउ उ तावत हम चूड़ा, दही, गुड़ आ’ मिठाई परसिकय राखि दैत छी । हे, कातेमे नहाएब उ कातेमेऽ ”
ठीकेमे ओहन पोखरि हम कहियो नहि देखने रही । पूर्वरिया भीड़पर ठाढ़ भऽ पछबारी भीड़दिसि तकलापर ओम्हु रका लोककेँ ठीकसँ चिन्ह नाई मुश्किपल छलैक । ओहिपार आम आ’ सिसोक एकटा घन फुलवारी रहैैक । हड़ाहा वास्तेवमे अथाह आ’ गहींर छल होयत । पूर्वरिया भीड़ स्टेकशनदिसि भेलाक कारणेँ प्रयोगमे छल । उतरबरिया भीड़पर दने सड़क भेलाक कारणेँ ओम्हेरो घाट बनल रहैक, मुदा पछबरिया आ’ दछिनबरिया भीड़पर जङ्गल–झार आ’ फुलवारीयेटा छलैक ।
घाटपर अङ्गा निकालैत काल हमरा मोदिआइनक चेताओनी मोन पड़ि गेल । ओ स्पीष्टे ईहो झलकोने छलि जे बहुतो आदमी एहिठाम डुबि कऽ मरि गेल अछि । हेलयमे तेजसभ सेहो । ओ एहिमे बसल देवतासभक बारेमे सेहो चेतओेने छलि । हमहुँ एहि अपरिचित स्थाकनमे कातेमे नहाएब उचित ठनलहुँ । आकाशमे एकबेर मेघक छोटका टुकड़ी पोखरिपर छाहरि दैत ससरलैक । पोखरिक पानि अनायास ककरो तमसायल मुँह जकाँ कारी भऽ गेलैक । तखने बसातक झोंकसँ सेहो ओहि पोखरिक अथाह जलराशि आन्दोअलित जकाँ भऽ गेल । लाखों लघु लहरिसभ पूरा पोखरिमे व्या प्तथ भऽ हिलोरि मारय लागल जेना केओ ककरो एकाग्रता भङ्ग कऽ देने होइक आ’ तैं केओ विक्षुब्धघ भऽ गेल होय ।साँचे, हमरा डर लागि गेल । कातेमे चटपट नहाकय हम सोझे मोदिआइन लग फिरि अयलहुँ ।
मोदिआइन प्रसन्न मुद्रामे भोजन–सामग्री ओड़िओने ओकर रखवारी करैति हमर प्रतीक्षा कऽ रहलि छलि । पातर पितरिया थारीमे धोअल फुलायल चूरा तथा ओहीमे दूगोट लड्ड़ू नोन आ’ गुड़ सेहो राखल छल । दही छाँछिमे छलैक ।
मोदिआइन बाजलि — “ लियऽ, नीकसँ बैसि कऽ खाउ उ मिसरजीक रस्ताा देखब आवश्य क नहि । ओ सन्याीमे कऽ कऽ अओताह । देरी लगतन्हिआ । बच्चाटसभमे एकर विचार आवश्यमक नहि । ”
ओ फेरो बाजलि — “ हड़ाहा पोखरि कतेक नमहर अछि उ ़़़ नहि ? केहन लागल बौआ, अहाँकेँ ? आ’ फेरो पानि कतेक कञ्चेन तथा शीतल छैक नहि ? ”
हम पुछलिऐक — “ मोदिआइन, हड़ाहा पोखरिमे देवता रहैत छथिन्हौ ? घमण्डी पर तमसा जाइत छथिन्ह ? कतेक आदमी डूबल हएत एखनतक ओहि पोखरिमे ? ”
“ कतेक ने कतेक के कहि सकत ? ओ कोनो हलहा आ’ नवका पोखरि अछि से ओहिमे बड्ड उग्र देवतासभक वास छन्हि । एहि जिल्ला मे एहन दोसर पोखरि नहि छैक ”
हमहुँ उत्सुहकतापूर्वक समर्थन करैत कहलिऐक — “ हँ, से तऽ ठीके । एहन नमहर पोखरि हमहु कतहु नहि देखने छलहुँ उ ”
हमरा खाइत देखि मोदिआइन अत्यतन्तथ सिनेहपूर्वक देखैति आगाँ बाजलि — “ बौआ, अहाँ की करैत छी ? पढैत छी कि नहि ? ”
हम कहलिऐक — “ पढ़ैत छी ।”
ओ घुसकिकय लग आबि फेर पुछलकि — “ की पढ़ैत छी, बौआ ?”
“ ए़ बी़ सी़ डी़ ”
“ पढ़िकय की करब ? ”
घरमे जेना हम अखनतक कहैत आयल छलिऐक तहिना निर्भिक भावेँ हम ओकरो कहलिऐक — “ बड़का आदमी बनब । ”
ओ फेरो पुछलकि — “ केहन बड़का आदमी ?”
हमरा एहन प्रश्ननक उत्तर ज्ञात नहि छल । चुपचाप खाइत रहलहुँ । ओ लगेमे स्थि रसँ बैसलि रहलि आ’ बाजलि — “ बडका आदमीसभ नहि जानि कतेक किसिमक होइत अछि ? मुदा नीक आदमी सभतरि एक्के। प्रकारक भेटत उ बड़का बनय दिसि नहि जाउ । बौआ, नीक बनक कोशिश करु । नीक ”
कातसँ खोंकैत मोदी नकिआइत कहलकैक — “ मोदिआइन, ई तोहर कोन आदति छौक ? सभकेँ ई उपदेशे देमय लगैत अछि उ ”
तावत मिसरजी सेहो नहा–धो कऽ आबि गेल छलाह । मोदिआइन फुरफुराकय उठलि आ’ हुनका सम्बो धित करैत बाजलि — “ बौआ भूखायल होयताह से सोचि हम हिनका दही चूरा खायलेल देलियन्हिु । अहाँ भानस अपने करब तऽ चाउर, दालि, घी, तेल, जारनि आदि सभ ठीकठाक कऽ कऽ राखि देने छी । चुल्हिा सहो फुकि दैत छी । आ’ नहि तऽ दहीये चूड़ा खा लियऽ ”
मिसरजी कहलखिन्हद — “ आब अखन हमरा भानस करक आँट नहि रहि गेल अछि । ”
हुनकालेल दही–चूराक व्यहवस्थाख करयहेतु मोदिआइन चौकीपर चढ़लि ।
मिसरजीकेँ खुआ–पीआकय ओ भीतर अपन घरमे गेलि । तखने मोदी सेहो खों–खों करैत ओकरहि पाछाँ भीतर गेलैक । प्रायः ओहोसभ दिनुका भोजन करय लागल छल । मुँहमे कौर देनहिं मोदिआइन भीतरसँ बाजलि — “कौआ–चील ने कहीं आबि जाई । कने देखबैक । हम तुरत्ते अबैत छी । ”
(अगिला अंकमे)
उपन्यास- चमेली रानी
जन्म 3 जनवरी 1936 ई नेहरा, जिला दरभंगामे। 1958 ई.मे अर्थशास्त्रमे स्नातकोत्तर, 1959 ई.मे लॉ। 1969 ई.मे कैलिफोर्निया वि.वि.सँ अर्थस्थास्त्र मे स्नातकोत्तर, 1971 ई.मे सानफ्रांसिस्को वि.वि.सँ एम.बी.ए., 1978मे भारत आगमन। 1981-86क बीच तेहरान आ प्रैंकफुर्तमे। फेर बम्बई पुने होइत 2000सँ लहेरियासरायमे निवास। मैथिली फिल्म ममता गाबय गीतक मदनमोहन दास आ उदयभानु सिंहक संग सह निर्माता।तीन टा उपन्यास 2004मे चमेली रानी, 2006मे करार, 2008 मे माहुर।
चमेली रानी- केदारनाथ चौधरी
कष्टी भेलनि तकर हाल की कहल जाय। सुपती गाँथबला बनबिलाड़ बनल।
मुदा ओहि सभ काज मे दू वर्षक समय बीति गेलनि तखन चिनगारीजी केँ एकाएक मोन पड़लन्हिदशनिचरी। शनिचरी मोन पड़िते ओ ब्यााकुल भमोदियानिक अड्डाक हेतु प्रस्थािन केलनि।
कनही मोदियानि हुलास सँ चिनगारीजीक स्वा्गत करैत बाजल�रे चिनगारी! तोहर अमानत केँ हम ओरियाकराखल। मुदा गारल असर्फी केँ लेबा सँ पहिने अगिला-पिछला हिसाब चुकता कदे।�
चिनगारीजी भावुक भउठलाआँखि सँ नोर टपकय लगलनिकंठ अवरुद्ध भगेलनि। ओ गड्डीक गड्डी नोट कनही मोदियानिक पयर पर पसारि देलनि। फेर एकटा पैघ सूटकेश केँ आगाँ करैत बजलाह�अहि मे अगेली-पिछेली सोनाक गहना आ वस्त्रान भरल अछि।�
कनही मोदियानिक आँखि फाटि कबाहर निकललगलै। ओ आश्च-र्य सँ चिनगारी केँ निहारय लागलि। चिनगारी अत्यकन्ता नम्र वाणी मे बजला�हम जे किछु छी से अहाँक परसादे। अहाँ ई किएक बुझलियैक जे हम अहाँक स्वागत मे खाली हाथे आयब। हयै मोदियानि! चिनगारी अहाँक सेवकअहाँक अज्ञाकारी।�
कनही मोदियानि केँ सुइद-मूर सँ कइएक गुणा बेसि भेटि गेलै। ओ हँसैत बाजलि�एकटा औरो बात जानल जाए हे मनीस्टरर साहेब! गंगा-कात सँ एकटा मनुक्खक केँ आनिजकर नाम छियै कीर्तमुखशनिचरीक बियाह करा देलियैक अछि। आखिर समाज सँलोक-लाज सँ अहाँक रक्षा करब आवश्यटक छल। कीर्तमुख केँ सहवास करैक लूरि नहि छैक। शनिचरी सँ बच्चाक अहाँ जन्मा उ आओर बाप बनत कीर्तमुख।�
हेएकरा कहै छैक बुद्धि। कनही मोदियानिक सोचबभविष्यच केँ काया-कल्पम बनेबा मे के सकत।
चिनगारीजीक विभागक गाड़ीबडीगार्ड आ पीए आदि सभ कियो पटना वापस भेल। चिनगारीजी बहुतो दिन तक कनही मोदियानिक अड्डा मे अटकल रहलाह। मध मे घोरल शुद्ध शिलाजीतक बुकनीमिसरी देल ललका अरहुलक मोरब्बाज आओर गिलासक गिलास बकरीक दूध मे बादामकेसर आ हफीम फेंटल पेय केँ चिनगारीजी उदरस्तस करैत रहलाह एवं कनही मोदियानिक व्यगवस्थार मे जमकल रहलाह। परिणाम भेलयुधिष्ठिफरक आगमनक सूचना।
बिदाह हेबाकाल चिनगारीजी कनही मोदियानि केँ बुझा ककहलनि जेशनिचरीक खरचाहोइबला बच्चाक खरचाकीर्तमुखक खरचा आ आन सब खरचा मासे मास पटना सँ आयल करत। कोनो बातक चिन्तान जुनि करब। सत्त्ोमनीस्टइर की ने कसकैत अछि
कालक्रमे युधिष्ठिपरक अहि भूलोक मे पदार्पण भेलनि। मुदा हुनक जन्मखक बाद चिनगारीजी फेर कनही मोदियानिक अड्डा पर वापस नहि आबि सकलाह।
पटनाक नेतागणक बीच यद्यपि चिनगारीक कीर्ति-पताखा बड़ उच्चम मे फहराइत रहैन्ह मुदा ओ एकटा पैघ पाप कबैसलाहतकर प्रायश्चिँतो नहि कसकलाह। सबटा नसीबक दोष।
पहिल केबिनेटक मीटिंग। सीएम गुलाब मिसिरक भाषण भेल�भाइ लोकनिहम जो कुछ बोलता हूँ उसको आप सभी धियान से सुनने का कष्टन करें आऊरो सचेत हो जायें। हमरा एक मंत्रा हैसातू खाते रहोराज करते रहो। कँग्रेसिया सातू छोड़ाखाने लगा पोलाव। नतीजा क्याक हुआसब मैटर आपके सामने है। हम फिर दोहराता हूँ सातू जिन्दाबाद! सातू जिन्दा बाद!�
मुदाचिनगारीजी अपन नेताक गुरुवाणी बिसरि गेलाह। पोलावबिरयानीमूर्ग-मोसल्लाम कटिया भरल ठर्रा। पहिने हुनका ब्ल्ड प्रेसर धक्काो देलकनिफेर डाइभीटिज। डाक्टुर भेटलनि चाइबासाक सेडूल्डत ट्राइब्सबक नम्बार दूक डा. पी. के. मूरमूर।
डाक्टिर मूरमूर जखन पहिल मेडिकल परीक्षा मे दाखिल भेल छलाह तकुल मार्क्सब एलनि एगारह। हुनकर सहोदर भ्राता हेल्थर मनीस्टनर छलथीन। हुनका परम आश्च र्य भेलनि�कुछ होएग्गाकरह नम्बार तो लाया। अब मेरा भाई डाक्टहर बनकर रहेगा।�
डाक्ट र मूरमूर चिनगारीजीक जाँच केलथिन्हा आओर उपदेश देलथिन्ह �बड़ा आदमी का निसानी है ब्लोड प्रेसर और डाइबीटिज। दवा लिख दिया हैखाते रहिए और देश का काज करते रहिए।�
एलोपैथी दवाइ खाइबला केँ जँ भोरुका उखराहा मे मुँह मे खटमिट्ठीक स्वाशद अबैक तसचेत भजेबाक चाही। मुदाचिनगारीजी मनीस्टहर। हुनका चेतबाक फुर्सति कहाँ
ओहि दिन चिनगारीजी रतुका खुमारी तोड़ैक लेल पहिने ललका रमक एक गिलास पिलनि। फेर ब्रिटानिया बिस्कु़ट केँ चिकेन सूप मे भिजा कमुँह मे रखलनि की पेट मे हूक उठलनि। कनिएँ कालक बाद पेट मे मरोड़। पेटक वस्तुा बाहर हेबालेल भगवान मनुक्खाक शरीर मे दूटा द्वार देने छथिन्हट। चिनगारीक दुनू द्वारक पट एकहि संग खुजि गेलनि। पछिला रतुका खेलहाअखरोटछहोड़ाकिसमिस साबुत निकलय लागल। डा. मूरमूर एलाह आ चिनगारीजी केँ देखिते बजलाह�इसको तुरंत अस्परताल भेजो। मरीज बहुत गन्दाा है।�
अस्पातालक नाम भेल अभावक पराकाष्ठाअ। चिनगारीजी अस्प तालक अव्यावस्थारक कौतुहल मे फंसि गेलाह आ मुँह-बाबि दम तोड़ि देलनि। कियो कहलक हार्ट फेल हो गया। दोसर कहलक�नहीनहीपेट मे भुरकी हो गया।�कियो किछु तकियो किछु।
किछु होउकमनीस्ट।र बला बात। आध दर्जन डाक्टनर गहन छान-बीन केलाक बाद निर्णय देलक�चिनगारीजी मर चुके हैं। सच तो यह है कि अस्प ताल आने के मार्ग में ही इनकी मृत्युर हो चुकी थी।�
संध्याोकाल सीएम रेडियो पर भाषण देलनि�चिनगारीजी एक करमठइमानदारत्यादगी और प्रान्तग के महान नेता थे। हमलोगों को भवसागर में छोड़कर चले गए। उनके रिक्त स्थािन की पूर्ति कोई नहीं कर सकता है। हम उनके आत्माक की शान्ति का प्रार्थना करता हूँ।�
कनही मोदियानि केँ जखन चिनगारीक मृत्यु क समाचार भेटलै तओ आकुल भकबफारि तोड़ब शुरू केलक। नवका नोटक फरफराइत गड्डी ओकरा आँखि मे स्वँप्नीवत घुमलगलै। मुदाबहुत जल्दी ए ओ अपन ध्ौर्य केँ बाकुट मे समेटलक। अरे! विधाताक बनाओल विधि व्योवस्थाग सबसँ ऊपर।
कनही मोदियानि शनिचरी केँ बजा ककहलकै�चूड़ी नहि फोड़रहदेसेनूर नहि पोछललका-पिअरका नुआ पहिरते रह। आइ तक तूँ परतंत्रा छलह। आब हे रूपवती शनिचरी! तूँ स्वचतंत्रा छह। सौंसे संसार मे उड़। अपनो प्रसन्न रहआ हमरो प्रसन्न करैत रह।�
शनिचरी केँ स्वआतंत्रा होइत देरी कनही मोदियानिक आमदनी मे इजाफा भेलैक। ओम्हेर आमदनी बढ़ैत गेल आ एम्हनर शनिचरी क्रमशः चारिटा आओर बेटाक जन्मआ देलक। मुदाअन्तिनम बेटाक जन्मल-कालबुझू धरती फाटि गेलै आ शनिचरी ओहि मे समा गेलि।
कीर्तमुख आब पाँच सन्तादनक पिता छल। कनही मोदियानि जामे तक जिअल ओकर सिनेहओकर देख-भाल मे कोनो कमी नहि आयल।
कीर्तमुखक नकुलवाबला गप सुनि कअर्जुन केँ प्रचण्डम तामस भेलैक। क्रोधसँ ओकर आँखि लाल भउठलै। पिछला दू अन्ह।रियाक पाँच हजार टाका थानाक बाँकी छैक। कतेक नेहौरा केलाक बाद थाना प्रभारी एक आओर अन्हलरिया उधार देलक। डकैतीक काज मे की कोनो लज्ज त रहि गेलै हेंट्रकबला सब पलटनक गाड़ी जकाँ कतार मे चलैत छै। इलाका ओहिना दरिद्दर। तखन तबाहरक कोनो भुतिआयल मुसाफिर फँसल तकिछु झड़ल।
अर्जुन आइ एक घंटा चूल्हासइक महावीर मंदिर मे मनौती केलकतखन डकैतीक धन्धा पर विदा भेल छल। बीचहिं मे टोक। हे महावीर! एहन निर्दयी बाप ककरो ने हो।
�रे हे अरजुनमा! किछु बाजै नहि छएँ। टुकुर-टुकुर तकला सँ की हेतौकपोसि-पालि कसबकेँ पैघ केलिऔक। आब नकुलबा के रास्ताय पर अननाइ तोहर फर्ज बनै छौ। छोटकासहदेवा एखन चरबाही करै अछिठीके अछि। आब हम बूढ़ भेलिऔ। अपन जिम्मे दारी केँ कम करचाहैत छी।�
अर्जुन फेर घूमि केँ बाप दिस तकलकबाजल�बेसी टेएँ-टेएँ करबने तअखुन्तेछ आबि कगर्दनिक हड्डी तोड़ि देब।�
कीर्तमुख अपन गरदनि पर हाथ रखलक तओकरा मोन पड़लै जे ओकरा गरदनि छलैहे नहि। सही मेकीर्तमुखक शरीरक बनाबट अजीब रहैक। लग्गाम सन नम्ह र-नम्हबर दुनू टांगघोंकचल पेट आ छातीकन्हाी पर पौड़ल मूड़ी गरदनि नदारत। पीठ पर कुब्ब र। तें भीख मंगै काल कियो ओकरा घेंचू त कियो ढेँचू कहैक। कीर्तमुख केँ कनिओ बुझल नहि रहैक जे ओकर माय-बाप केगंगा-कात मे भीख मंगैत ओ पैघ भेल आ गंगा-कातक पण्डा। ओकर नामकरण केलकैकीर्तमुख।
भगवान सबकेँ देखै छथिन्हक। सभहक इन्त जाम करैत छथिन्हज। कीर्तमुख जखन चेस्टगर भेल तगंगा नदीक कछेर मे माँछ पकड़ए लागल। आध-आध मनक रहु आ भाकुर ओ हाथे सँ पकड़ि लिअए। ई गुण ओकरा अपने-आप आबि गेल छलै। ओही माँछ के बेचैक क्रम मे ओकरा कनही मोदियानि सँ परिचय भेलै।
आ एक दिन कनही मोदियानि कीर्तमुख केँ बुझा-सुझा ककहलकै�कतेक दिन तक बौआइत रहब। आब ठेकाना पकड़ि लैह।�
ठेकाना भेल कमचीबला मचानपत्नी- भेटलै शनिचरी आ बेटा भेलै पाँच। कोनो चीजक मिसियो भरि कमी नहि। बुझल जाउपूर्व जन्म क कमायल नीक कर्मक भोग कीर्तमुख केँ अनायास प्राप्तग होबलगलै।
मुदाआइ अर्जुनक गरदनिक हड्डी तोड़ै बला गप सुनि कओकरा बड्ड दुख भेलै। एहन मर्माहत बला दुख ओकरा कहिओ ने भेल रहैक। ओ चारू कात नजरि खिरौलकओकर बतारीक कियो नहि छैक।
अर्जुन केँ ओ निहारि कदेखलक। कीर्तमुखक आँखि मे चोन्हाि-मोन्हाभ लागि गेलैक। साँस सेहो ठमकि गेलैक। असल मेकीर्तमुख अइँठ कमुँह बाबि देलक।
खैरकीर्तमुख केँ की भेलैक से तसहदेवा जखन राति मे ओकर खेनाइ लकआओत तखन पता चलतैक। सहदेवाकीर्तमुखक सबसँ छोट नेनाचिनगारीजीक असलिका बेटाक ओहिठाम चरबाही करैत छल। भोरका पनपिआइदिनका कलउ आ रतुका खेनाइ ओकरा जे भेटैक ओहि मे सँ आधा ओ खाइ छल आओर आधा कीर्तमुख केँ खुआबै छल। मजाल की जे कीर्तमुख एको साँझक भूखल रहि गेल हो। सहदेवा केँ अपन बापक प्रति जे ममता छलै से संसार मे व्याखप्त सिनेहक उत्तम उदाहरण छल।
आब सब किछु केँ छोड़ू। चलू अर्जुनक संग डकैतीक अभियान पर।
अर्जुन सबसँ पहिने गोपियाक पसिखाना पहुँचल। जाहि दिन सँ ताड़ी पर सँ एक्सारइज हटलैताहि दिन सँ डिबियाक स्थाकन पर पेट्रोमेक्स् जड़ैत अछि। चारू कात भकभक इजोत।
अर्जुनक शागिर्द मे पहिल नम्ब र पर छल भूल्लास। अर्जुन केँ देखिते भूल्लाै बाजि उठल�आह! ओस्तारद आबि गेलाह।�
भूल्लाक एक गिलास मे उज्जनरफफनाति ताड़ी लकअर्जुन लग पहुँचल आ रिपोट देबलागल�बेगुसराय बला उधार गोली नहि देलक। कहलक पिछला उधार चुकातखन अगिला उधार ले।�
अर्जुनक गिरोह मे सात नौजवान छलै। मुदाताहि मे कुल पाँच देशी रिभालवर आ तकर मात्रा तीनटा गोली। आब अहीं कहूडकैतीक काज कोना हैतसब काज मे पूंजी चाही। पूंजीक अभाव अर्जुन केँ पनपै मे महाबाधक छल।
�तखन�अर्जुन ताड़ीक गिलास भूल्ला क हाथ सँ लैत प्रश्नछ केलकै।
�तखन की। सरपट मुसरीघराड़ी पहुँचलहुँ। अहाँक भैयाक गोर छूलऊँ। दुखड़ा कहलियै। ओ भरल एक पॉकिट गोली दविदा केलनि आ कहलनि�अर्जुन से कहनाउसका भतीजा पैदा हुआ है। फुर्सत मिले तो आकर देख जाय।�
अर्जुनक मोन गदगद भउठलैक। ओ भूल्लापक पीठ ठोकलक। ताड़ी केँ चुरुक मे लआचमनि केलकएक घोंट ताड़ीक कुरुर केलक आ थोड़ेक ताड़ी हाथमे लय सम्पूीर्ण देह पर छिटि लेलक।
अर्जुन ताड़ी नहि पिबैत अछि। असल मे अर्जुन कोनो निशा करिते ने अछि। मुदाडकैतीक काज मे भभकैत ताड़ीक गन्धा जरूरी होइत छैकतेँ ई टोटमा।
अर्जुन हाथ मे लागल ताड़ीक चिपचिपाहटि कात करोट मे पोछैत भूल्लाअ सँ कहलक�तों सब तैयार रह। हम हेड अॉफिस केँ खबरि ककतुरंत वापिस आबि रहल छी।�
हेड अॉफिस यानी चमेलीरानीक अड्डा।
कनही मोदियानि अपन एकमात्रा सन्तापन चमेली केँ बरौनी रिफाइनरीक इंगलिस स्कूैल मे नाम लिखा कहॉस्टिल मे राखि देने छलैक। ओ जखन मरल तचमेली दसमाक परीक्षा ददेने छलै।
कनही मोदियानिक मृत्यु क बादचमेली पुरना डीह-डाबर केँ बेचि हाइवे पर फैल जगह देखि नवका अड्डा बनेलक। नवका जमानानवका विचार। चमेलीक पक्काय दूमंजिला मकान। रहैकसूतैकखाइ-पिबैक आ गुलछर्ड़ा करैक अलग-अलग कमरा। सब इन्तवजाम फस्ट -क्लाकस। किछुए मास मे हाकिम हुक्कायममंत्राी-संतरीचोर-उचक्काेपंडित-कसाइ सबहक माइ डियर �चमेली।
चमेलीक माथ पर भूखन सिंहक बरदहस्त। रिफाइनरी सँ हथिदह तकसबसँ खूंखार डकैत भूखन सिंहचमेलीक धर्म-पिता छल। दिआराक चन्हाकईक्यूलक बच्चाी भाइ आ मोकामाक धोहरलाल तोपबालासब भूखन सिंहक मातहतमानू भूखन सिंहक आगू खपटा।
चमेली केँ ककरो परबाहि नहि। ओकर जवानी अंगार भकदहकि रहल छलै। ऊपर सँ पढ़ल-लिखलफटाफट अँग्रेजी बजैबालीतेज-तर्रार आ मुँहफट। परगना भरिक डकैत पहिने चमेलीक अड्डा पर जेबे करतहरी झण्डीप लेतफेर आगाँ पयर उठाओतसैह नियम छलैक।
अर्जुन जखन चमेलीक अड्डा पर पहुँचल तखन मात्रा सात बाजल रहैक। ओना अन्हतरियाअन्हाीर केँ झंपने किछु बेसिए अन्हाबर भचुकल छलै।
दू टा पावरफूल लैम्पडक बीच बैसलि चमेली। कान मे झुमकानाक मे नथियागरदनि मे सोनाक हारनहि किछु नहिएकोटा गहना चमेली नहि पहिरने छल। ने पाउडरने स्नोे आ ने काजर। किछु नहिमात्रा एकटा बिन्दीख ललाट पर दमकैत रहैक।
अर्जुन चमेलीक सपाट चेहरा पर नजरि अँटकेलक। ओकर नजरि पिछड़िगेलै। मुदाओकरा स्परष्टद भान भेलै जे एकटा हँंसीक लहरि चमेलीक आँंखि मे काँपि गेल होइक। ओना अर्जुन केँ धोखा सेहो भसकैत छै। किंतुचमेलीक बिन्दीर सँ एकटा ज्योकति पसरि रहल छलैअहि मे कोनो धोखा नहि छलै।
अर्जुन दिस चमेली एकटक निहारि रहल छलीह जाहि मे कोनो विशेष निमंत्राणक अन्दाकज छलै। चमेली बजलीह�कौन हैरेकुकुरमुत्ता तुम हो�
�कुकुरमुत्तासम्बोछधन अर्जुनक लेल छलै। कनही मोदियानि जीबिते रहै। चमेलीक उमिर तेरह-चौदह। अर्जुन बुझू पन्द्र ह-सोलह। ओहि काल बज्र दुपहरिया रहैक। चमेली कनखी मारि अर्जुन केँ इशारा केलकै। फेर पछबरिया अन्हाीर कोठरी मे एसगरे लगेलैकबिलैया सेहो चढ़ा देलकै। तकरा बादभीतर कोठरी मे की भेल से तप्रायः देवतो केँ पता नहि लगलनि। बाहर आबि चमेली बिहुँसैत अर्जुन दिस ताकि कबजलीह�कुकुरमुत्ता।�
कुकुरमुत्ता सम्बोीधन सुनि अर्जुनक नजरि झुकि गेलैक। ओ चुपचाप ठार रहल।
�तुम्हाारे वास्तेिकुकुरमुत्तादूसरा अॉडर है। कुछ देर पहले हुकुम आया है। आज रात को सेभेन्टीह वन अप के स्ली�पर में डकैती का कार्यक्रम है। तुमको उसमें जाना है। हाइवे डकैती में कुछ माल नहीं है। थाना को भी खबर है कि दो अन्हअरिया का पहुँचौआ तुमने नहीं पहुँचाया है। तुम पर बड़े साहब ददू की आँख है। तुम युधिष्ठिकर के सगे भाई होजवान होदिलदार होतभी तो चान्सप मिला है। इस काम में तुम्हा रा टेस्टप है। सफल होने पर एक धाकड़ मर्डर का काम मिलेगा। समझो तुम्हािरे किस्मथत का दरवाजा खुल गया है।�
चमेलीक मुँह सँ फहरी लाबा बनल शब्दो निकलय लागल। एम्हर अर्जुनक माथ मे घंटी बाजब शुरू भगेल। मर्डरबला चान्सह बड़ कठिने भेटैत छैक। भूखन सिंहक एहन कृपाक लेल सैकड़ों लाइन मे ठारे रहि जाइत अछि।
�बोलोतैयार हो�
�एकदम सँ तैयार छी। कहू तगोपियाक पसिखाना सँ हम अपन गिरोह केँ बजा लाबी।�
�फिर कुकुरमुत्ता जक्तील बात बोलता है। अरेट्रेन डकैती का काम अलग हैजोखिम का है। सड़क डकैती करने वाला उसमें फेल हो जाएगा। यहाँ जथ्थाक तैयार है। छोकड़ा-छोकड़ी मिलाकर बीस और तुम आ गया तो एक्कीकस। रात के बारह बजे रबाना होना है। अभी चार-पाँच घंटा का देरी है। तुम अन्दथर जाओ औरतैयारी मे जुट जाओ।�
अर्जुन भीतर प्रवेश केलक। विशाल आंगन। साफ-सुथराइजोत मे झलकैत। चारू कात काज भरहल छैक। एके सैंतालिस राइफलक ढेरी एक कात। एक गोटे ओकर चेकिंग मे लागल। दोसर कात छोटका-बड़का बमक नुमाइस। खेबा-पिबाक सामग्री दिस थोड़ेक छौंड़ा-छौंड़ी बैसल खा-पी रहल अछि। बहुत कात मेमुदा पूर्णतः इजोत मे एक जोड़ा अपन बैटरी चार्ज करमे मस्तर छल।
अर्जुनक मददिक लेल एकटा छौंड़ी आयल। ओकरा अपन काज सँ मतलब। �कपड़ा बदलना हैहथियार कहाँ रखना हैएक्सछट्रा मैगजीन जरूरी है।
सबटा काज केँ निष्पाकदन ककवैह छौंड़ी एकटा मुँह झँपना आनि कअर्जुन केँ देलकै आ ताकीत केलकै�इसको इस तरह टाइट बाँधो कि आँख छोड़कर पूरा चेहरा ढक जाय।�
ठीक बारह बजे राति। सन-सन बहैत हवा अन्हकरियाक छाती केँ विदीर्ण करहल छल। चमेलीक टाइट पेन्टन-सर्ट मेपाँछा लटकल चमड़ाक चमौटी मे रिवाल्बिर। चमेली अर्जुनक मुआयना करैत बाजलि�मेरे पीछे बैठ जाओ।�
अर्जुन मोटर साइकिल पर चमेलीक पाँछा बैसल। ठीक ओहीकालवैह छौंड़ी जे पछिला चारि घंटा सँ अर्जुनक देहक समस्तक पूर्जा केँ टीप-टाप ककओकरा तैयार केने छलअर्जुनक पाँछा मे आबि मोटर साइकिल पर बैसि गेलि। चमेली अर्जुन केँ फेर टोकलक�कुकुरमुत्तामुझे कसकर पकड़ लो।�
मोटर साइकिल फरफरा कस्टाेर्ट भेल। संगहि औरो मोटर साइकिल स्टा र्ट भेल। अर्जुन कृष्णाज आ कावेरीक बीच फँसल जा रहल छल।
अर्जुन पजिया कचमेली के ध्ोने छल आ सोचै छल। की कहलियैअर्जुन ट्रेन डकैती दसोचै छल जी नहिओ एतबे सोचै छल जे जखने चमेली अवसर देत ओ कुकुरमुत्ता सँ छोड़ि घोड़मुत्ता बनि कदेखा देतैक। पछिला छौंड़ी अलगे अर्जुनक देह मे घुसियेबाक बियोंत मे छल। मुदाअर्जुन कइये की सकैत छलचुपे रहल।
जमाना बदलल जा रहल छल। सब काज मे छौंड़ा सँ छौंड़ी आगू। ओ सब जखन कटवासाक गुमती लग पहुँचल तअर्जुन सबटा मोटर-साइकिल केँ गनलककुल दस टा।
गुमती मैन रेलवेक लालटेनक ललका बत्ती केँ तेज करैत बाजल�बसपाँच मिनट। ट्रेन आने ही वाली है।�ट्रेन आयल। आस्ते भेल। फटाफट सब चढ़ि गेल।डकैती शुरू भेल। तीनटा स्लीँपर लुटल गेल। केवल कैशगहना आ दामिल असबाव। पाँच बोड़ा में सबटा पैक। कुल बीस मिनट लागल। कोनो बिरोध नहिकोनो अवरोध नहि। पसिन्जगर सब डेरायलनुकायलऔंघायल आ चुपचाप। मात्रा चमेलीक रिभाल्वारक खलिया फायरक प्रतिध्वननि चारूकात पसरल छल। फेर ट्रेन आस्ते् भेलबहुत आस्तेे भेल। एकैसो व्यचक्तिर उतरि गेल। ट्रेन स्लोफ सँ फास्टक भेल आ आँखि सँ ओझल भगेल।
उतरै काल चमेलीक वामा पायर मे मोच पड़ि गेलैक। ओ नंगराए लागलि। अर्जुन केँ अपन वीरता देखेबाक सुअवसर भेटलैक। ओ चमेली केँ कन्हाक पर लदलक आ फूल-सन सुकुमारि केँ नेने दुलकी चालि मे चलैत वापस कटवासा गुमती लग पहुँचल। सब जा चुकल छल।
गुमती मैन अर्जुनक कन्हाआ पर चमेली केँ देखि बिफरि कहँसि पड़ल। ओकर अगिला दाँत में सोनाक कील ठोकल रहै। बिना किछु कहने अर्जुन मोटर-साइकिल स्टाआर्ट केलक। चमेली पाँछा मे बैसि अर्जुन केँ पजिया कपकड़ि लेलक। ओहि मोटर-साइकिलक तेसर सवारी पहिने जा चुकल छलै। डकैतीक कानून�वापसी मे किसी के लिए रुको नहींभागकर अड्डा पर पहुँचो।
चमेलीक शरीर सँ एकटा अत्यंफत अजूबा मादक सुगंधि विसर्जित भरहल छलैक। अर्जुन केँ ताड़ीक भभकैत गन्धहक कतौ अत्ता-पत्ता नहि रहलैक। ओ आपसी मे मोटर-साइकिल बहुत तेज चला रहल छल। चमेलीक गर्म सांस ओकर पीठक हड्डी केँ छलनी केने जाइत छलै।
जखन अर्जुन आ चमेली अड्डा पर आपस आयल तभोर भेल नहि छलैभोर होबहिबला छलै।
चमेली एकटा कोठरी मे जा कटेलीफोन सँ ककरो पूरा रिपोट पहुँचौलकफेर आदेश ग्रहण केलक आ आपस अर्जुन लग आयल।
�यह है दस हजार रुपैयातुम्हानरा हिस्साप। साहेब यानी ददू का हुकूम है वापिस घर जाओ। अगिला आदेश का इन्तअजार करो।�
अर्जुन रुपैया केँ दहिना पेन्टक जेबी मे ठुसलक आ टकटकी लगा कचमेली दिस ताकय लागल। अर्जुनक नजरि मे एकटा पैघ नजरिया साफ देखमे आबि रहल छलै।
भोरुका समयपुरबा बसात मे सिहरनअतृप्त। कामक प्रचण्डद वेग। ताहि पर सँ कामदेव देशी पिस्तौरल सँ ताबड़तोड़ फाइरिंग करहल छलाह। चमेली एकटकअर्जुनक आँखि मे देखि रहल छलीह। प्रकृति पुरुष मे समर्पणक लेल आतुर भरहल छलीह। एक क्षण तएहनो अभास भेल जे डकैतीक सरदारीनचमेली बेबस भरहलीह अछि।
मुदावाह रे चमेली! ओ कामक वेग केँ मूलाधर चक्र पर बजारि एक अद्भुत विवेकक परिचय देलनि। हुनक मुखाकृति पर आभाक विस्ताार होमय लागल। शायद भविष्य क गर्त मे नुकायल कोनो पैघ कार्यक सम्पापदन होयत तकर आभास सहजहिँ दृष्टिरगोचर होबय लागल। चमेली अँटकल ओ फँसल अबाज मे बजलीह�जानते हो अर्जुनमैं तीन वर्षों से डकैती का काम कर रही हूँ। सैकड़ों डकैती का अनुभव मुझे बतला रहा है कि यहाँ के लोग आलसी किंतु शांतिप्रिय हैं। मैं भी इन्हीं लोगों के बीच से आई हूँ। इस तरह के लोगों की भलाई इन पर शासन करके ही किया जा सकता है। और यह भी सच है कि इन पर शासन करना कुछ भी कठिन नहीं है।�
चमेली पढ़लि-लिखलिअर्जुन मूर्ख। चमेली की बाजि रहल छथिअर्जुन केँ बुझै मे किछु नहि ऐलैक। चमेली फेर बजलीह�इस सपाट मैदान मे सिर्फ घास ही घास है। लेकिनबहुत जल्द एक विशाल पेड़ उगने वाला है। वह पेड़ मैं बनूँगी। सभी मेरी छाया में आयेंगे। मैं सबका भाग्या लिखूँगी। सच पूछो तो मैं इस प्रान्ते की रानी बनने वाली हूँ। जिस रास्तेप मैं चल रही हूँ और चलने वाली हूँमुझे अच्छीय तरह पता है कि वह कहाँ तक पहुँचता है। हाँयह भी सच है कि मुझे एक मर्द की जरूरत होगी। समय आने पर मैं तुमको अपने पास बुला लूंगी। मेरी आवाज सुनकर तुम आओगे क्योंीकि मैं तुमसे प्या र करती हूँ। तुम ही मेरा पहला और आखिरी प्यामर हैसमझे।�
एखन अर्जुन किछु नहि बुझलक। ओकर समझक आगाँ एकटा पाथर छलपियासल ओ पसरल। ओकर कान मे चमेलीक आबाज फेर टकरेलै�और अभी की बात जान लो। तुम औरत के गले का गहना नहीं छीन सका। डकैती के उसूल के विरुद्ध। इसी से तुमको मर्डरवाला काम नहीं दिया जाएगा। तुम इस काम को करने की योग्यँता नहीं रखते हो। तुमको अभी और निडर-निष्ठुरर बनना पड़ेगा। तुम्हा रे अंदर कोई देवता है जिसे मारपीट कर भगाना पड़ेगा। सफलता के लिए जो भी काम करो उसमें इमानदारी का होना जरूरी है।�
अर्जुन के मोन पड़लैकट्रेन मे डकैती काल ओहि नववधुक गरदनि मे सोनाक गहना पर हाथ देलक तओ बाजि उठल छलै�ई मंगल सूत्रा थिक। एकराजुनि लैह।
फेर ओहि नववधुक आँखि सँ करुणाक इनहोर नोर ओकरा हाथ पर खसलैक। ओ हाथ छीप नेने छल।
अर्जुनक मोने ई बात कियो ने देखलक आ ने बुझलक। मुदासे नहि। डाकूक मुखियाचमेलीक नजरि सँ किछु नुकायल नहि रहि सकैत छलै। अर्जुन केँ अपन गलतीक एहसास भेलैक। ओकर आँखि आओर कातर भउठलैक।
अर्जुनक दयनीय दशा देखि चमेलीक हृदय मे कतहु सँ एक आना दयाक भाव जगलैक। ओ चुचकारी दैत बजलीह�खैरजो हुआ सो हुआ। तुम दुखी मत होओ। एक बैंक लूटने का प्लाकन बन रहा है। अभी फाइनल नहीं हुआ है। फाइनल होते ही मै उसमें तुमको शामिल करने का प्रयास करूँगी। अब तो खुश! अब सीध्ो घर जाओ।�
खिसिआयल महादेव केँ परचारैत अर्जुन अपन गाम मिरचैया लेल विदा भेल। आकाश मे चकमैत भोरुकवा तारा दिस तकैत ओ सोचि रहल छल जे चमेलीक अन्तिकम बात जँ सत्यप हेतैक तखने ओकर भाग्य जगतै। तामे बहुत रास दुख ओकरा छपने रहत।
पहिल दुख जे बहुतो प्रयास केलाक बादो ओ कुकुरमुत्ता सँ घोड़मुत्ता नहि बनि सकल।
दोसर दुख जे मात्रा एकटा मंगलसूत्राक कारणें ओकरा मर्डरबला काजक चान्सत हाथ अबैत-अबैत खिसकि गेलैक।
आओर तेसर दुख! गाम पहुँचि कतेसर दुख परिलक्षित भेलैक। कमचीवाला मचानक नीचाउत्तर मुंहें सिरमा केनेकीर्तमुख मुँह बौने मरल पड़ल छलाह। उज्ज्र नवका कपड़ा सँ हुनक देह झाँपल छल आ सिरमा लग गोइठाक धुआँ आकाश मे बिलीन भरहल छल।
अर्जुन केँ देखिते नकुल आ सहदेवा�भैयाहोउ भैयाकहैत ओकरा सँ लेपटा गेलै। अर्जुनक ठोर पटपटा उठलै�बापबाप मरि गेल। आइ हम टुअर भगेलहुँ।
अदू
�रघुपति राघव राजा रामपतित पावन सीताराम। अजीओ महाराज जीतनी हटू। हमारा अन्द र जाए दिअ।�
कहबला व्यमक्तित गेरुआ वस्त्रा धारीट्रेनक फस्टँ-किलास डिब्बा मे चढ़ैक प्रयत्नँ करहल छथि। मुदा डिब्बा क दरबज्जाद लग एक व्य क्तित हाथ मे स्टेरनगन नेने ओहि महात्माि केँ चढ़ै सँ रोकि रहल अछि।
अभागल प्रान्तघक अति अभागल टीसननिर्मली। भोरुका करीब आठ बजेक समय। जेठक रौद्र सूर्यआकाश मे फनैत आगि उझील रहला अछि। एखन एहन गर्मी तदुपहरिया मे केहन रौद तकर मात्रा कल्पकना सँ देह काँपि उठैत अछि।
अठबज्जीन ट्रेन निर्मली सँ खुजय लेल तैयार। ट्रेन मे लार्ड डलहौजी समयक बनल एक मात्रा फस्टउ किलासक डिब्बाा। डिब्बाझक एक बर्थ पर एकटा स्मा्र्ट करीब बीस वर्षक युवकटाइट पेन्टा-शर्ट मे। हुनका संगे करीब चौदह वर्षक परम रूपवती एकटा नवयुवती। ओहो टाइट पेन्टब-शर्ट मेमुदा शर्टक ऊपरका दूटा बटन खुजल। दोसर बर्थ पर एकटा केचुआयलकरीब साठि वर्षकमोटरी जकाँ तोंद आ लगातार तीन एसेम्बओलीक इलेक्श न जीतै बला विधायकउज्जोर जाजीम पर लम्बाप-लम्बीष पड़ल। विधायकजीक समग्र ध्याून सामने टाँग पर टाँग रखने नवयुवतीक सौन्द र्य मे केन्द्रि त छल।
विधायकजीक बर्थक ठीक नीचाहुनक राजस्थालनी कमानीदार जूताक बगल मेहुनकर बडीगार्ड एक हाथ मे गिलास तथा दोसर हाथ मे तौलिया मे लपटाओल स्कॉीचक बोतल नेने बैसल छल। बडीगार्डक हथियार यानी स्टेलनगन ओहि ठाम ओकर बगल मे पड़ल छलै।
विधायकजीक दोसर बडीगार्डडिब्बा क दरबज्जाड लगस्टेटनगन तनने आगन्तुपक महात्मानजीक रास्ताा रोकने कहि रहल छलै�देखता नहीं हैयह फस्टा क्लाबस हैदूसरे में जाओ।�
नवयुवतीक ध्यारन महात्माक दिस गेलै। ओ मूड़ी झुका खिड़की सँ महात्मा केँदेखबाक प्रयास केलक। मुदा अही प्रयास मेओकर उपरका दूटा खूजल बटनबला कमीज सँ गोल-मटोलचिक्कडनविधायकजीक करेज मे बरछी भोंकैबलाविद्यापतिक जुगल कुच छहलि कबाहर आबि गेलनि। नवयुवती झपटि कअपन वस्त्राग दुरुस्तक केलनि आ खिड़की सँ मुँह सटा कजोर सँ बाजि उठलीह�स्वाछमीजी!�
जेना वीणाक सब तार एके बेर झंकृत भउठल होअयतहिना ओहि युवतीक स्व र-ध्वकनि सम्पूठर्ण निर्मली टीसनक प्लेूटफार्म केँ झनझना देलक।
टीसन पर लोकक भीड़ जमा भगेलै। लोक सबहक एक बिताक गरदनि मे तुलसीक कण्ठीसठरका चाननफहराइत टीक आओर फाटल आँखि। सब कियो ओहि फस्ट किलास डिब्बाल दिस ताकय लागल। ओहि विरान टीसन पर एहन अजगुत बात।
विधायकजीक बडीगार्ड अपन कर्तव्यक वहन करैत ओहि स्वातमीजी केँ डिब्बाी मे चढ़ै मे पूर्ण बाधा उपस्थित केने छल। युवतीक खिड़की दिस घुमलाक कारणे विधायकजीक तंद्रा एकाएक भंग भगेलनि। जखन सँ ओ अहि डिब्बास मे आयल छलाहहुनक समग्र चिंतनसांख्यकमार्गी जकाँओहि युवतीक उठैत-खसैतनोकदार खूंटी मे टाँगल छलन्हिब। व्यूवधानक कारणे प्रान्तथक महान आ यशस्वीय नेता केँ क्रोध भउठलनि। ओ खिसियाति बजलाह�काहे रोकते होआने दो।�
स्वायमीजी डिब्बााक भीतर आबि खाली तेसर बर्थ पर पलथी मारि कबैसि रहलाह। गाड़ी सीटी देलक आ धकधका कधक्काा दैत विदा भेल।
�स्वामीजीकतके यात्राा में प्रस्थाँन कलियै अछि�प्रश्नक पुछैत युवती सुभ्य स्ति भकसोझ भेलीह। विधायकजीक आँखिक दूरबीन ठीक एंगिल मे आबि गेल। आब कोनो चिन्ताक नहि। ओ नीचा मे दाँत निपोरने बैसल बडीगार्डजे किछु काल पूर्व विधायकजी सँ आँखि बचा केँ स्कॉएचक बोतल सँ पैघ दू घोंट उदरस्ति कचुकल छलसँ कहलनि�रहमानदवा दो।�
(अगिला अंकमे)
१.मैथिली भाषा आ साहित्य - प्रेमशंकर सिंह २.स्व. राजकमल चौधरी पर-डॉ. देवशंकर नवीन (आगाँ)
१.प्रोफेसर प्रेम शंकर सिंह
डॉ. प्रेमशंकर सिंह (१९४२- ) ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा। 24 ऋचायन, राधारानी सिन्हा रोड, भागलपुर-812001(बिहार)। मैथिलीक वरिष्ठ सृजनशील, मननशील आऽ अध्ययनशील प्रतिभाक धनी साहित्य-चिन्तक, दिशा-बोधक, समालोचक, नाटक ओ रंगमंचक निष्णात गवेषक, मैथिली गद्यकेँ नव-स्वरूप देनिहार, कुशल अनुवादक, प्रवीण सम्पादक, मैथिली, हिन्दी, संस्कृत साहित्यक प्रखर विद्वान् तथा बाङला एवं अंग्रेजी साहित्यक अध्ययन-अन्वेषणमे निरत प्रोफेसर डॉ. प्रेमशंकर सिंह ( २० जनवरी १९४२ )क विलक्षण लेखनीसँ एकपर एक अक्षय कृति भेल अछि निःसृत। हिनक बहुमूल्य गवेषणात्मक, मौलिक, अनूदित आऽ सम्पादित कृति रहल अछि अविरल चर्चित-अर्चित। ओऽ अदम्य उत्साह, धैर्य, लगन आऽ संघर्ष कऽ तन्मयताक संग मैथिलीक बहुमूल्य धरोरादिक अन्वेषण कऽ देलनि पुस्तकाकार रूप। हिनक अन्वेषण पूर्ण ग्रन्थ आऽ प्रबन्धकार आलेखादि व्यापक, चिन्तन, मनन, मैथिल संस्कृतिक आऽ परम्पराक थिक धरोहर। हिनक सृजनशीलतासँ अनुप्राणित भऽ चेतना समिति, पटना मिथिला विभूति सम्मान (ताम्र-पत्र) एवं मिथिला-दर्पण, मुम्बई वरिष्ठ लेखक सम्मानसँ कयलक अछि अलंकृत। सम्प्रति चारि दशक धरि भागलपुर विश्वविद्यालयक प्रोफेसर एवं मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली साहित्यक भण्डारकेँ अभिवर्द्धित करबाक दिशामे संलग्न छथि, स्वतन्त्र सारस्वत-साधनामे।
कृति-
मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिली नाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिली अकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशन भागलपुर २००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओ नाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८
मौलिक हिन्दी: १.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, प्रथमखण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७१ २.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, द्वितीय खण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७२, ३.हिन्दी नाटक कोश, नेशनल पब्लिकेशन हाउस, दिल्ली १९७६.
अनुवाद: हिन्दी एवं मैथिली- १.श्रीपादकृष्ण कोल्हटकर, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली १९८८, २.अरण्य फसिल, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१ ३.पागल दुनिया, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१, ४.गोविन्ददास, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००७ ५.रक्तानल, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८.
लिप्यान्तरण-१. अङ्कीयानाट, मनोज प्रकाशन, भागलपुर, १९६७।
सम्पादन- १. गद्यवल्लरी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६६, २. नव एकांकी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६७, ३.पत्र-पुष्प, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९७०, ४.पदलतिका, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९८७, ५. अनमिल आखर, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००० ६.मणिकण, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ७.हुनकासँ भेट भेल छल, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००४, ८. मैथिली लोकगाथाक इतिहास, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ९. भारतीक बिलाड़ि, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, १०.चित्रा-विचित्रा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ११. साहित्यकारक दिन, मिथिला सांस्कृतिक परिषद, कोलकाता, २००७. १२. वुआड़िभक्तितरङ्गिणी, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८, १३.मैथिली लोकोक्ति कोश, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, २००८, १४.रूपा सोना हीरा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००८।
पत्रिका सम्पादन- भूमिजा २००२
मैथिली भाषा आ साहित्य
मिथिलाक भाषा मैथिलीक एहि व्यापकताकेँ सर्वप्रथम डॉ. सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन लक्ष्य कयलनि। १८८० ई. मे अपन “बिहारी भाषा”क व्याकरणक भूमिका ओऽ लिखलनि जे “निकट भूतमे मिथिलाक भाषापर पश्चिमसँ भोजपुरी अधिकार कऽ लेलक अछि आऽ बदलामे ई गंगा पार कऽ गेल अछि आर उत्तर परगना तथा मुंगेर एवं भगलपुरक ओहि भागपर अधिकार कऽ लेलक जे गंगाक दक्षिणमे पड़ैत अछि। ई कोशीकेँ पार कऽ पूर्णियाँ धरि पसरि गेल अछि”। ओऽ पुनः १९०३ ई. मे गंगाक दक्षिण भागलपुर एवं मुंगेरक अतिरिक्त संथाल परगनाक पश्चिमोत्तर भागकेँ मैथिली कहलनि।
अतएव मैथिल संस्कृति आऽ मैथिली भाषा मिथिलाक भौगोलिक सीमासँ विशेष व्यापक अछि। मैथिली भाषा सम्बन्धी सीमापर जखन विचार करब तखन पायब जे मैथिलीक पश्चिमी, पूर्वी, उत्तरी तथा दक्षिणी सीमापर क्रमशः भोजपुरी, बाङला, नेपाली आऽ मगही भाषा स्थित अछि। अपन निजी क्षेत्रमे मुण्डा आऽ संताली एहि दुनू अनार्य भाषासँ मिलैत अछि। ई कहब निरर्थक अछि जे अपन पड़ोसक भाषासँ सीमापर ओहिसँ मिश्रित भऽ जाइत अछि आर ओहि क्षेत्रमे ई कहब कठिन अछि जे बाजल गेनिहार भाषा ओहि भाषादिसँ प्रभावित मैथिलीक उपभाषा थिक वा नहि।
मैथिली मुख्यतया उत्तर-पूर्वक बिहारक आदिवासी लोकनिक मातृभाषा थिक। बिहार प्रान्तक मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, शिवहर, पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, बेगुसराय, खगड़िया, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णियाँ, किशनगंज, कटिहार, मुंगेर, भागलपुर, लखीसराय, शेखपुरा, बाँका, आर झारखण्ड प्रदेशक संथाल परगना, गोड्डा, देवघर, जामताड़ा इत्यादि जिलामे ई भाषा बाजल जाइत अछि। एहि भाषाकेँ ई श्रेय छैक जे ई अन्तर्राष्ट्रीय भाषाक रूपमे नेपालक रोतहट, सरलाही, सप्तरी, महोत्तरी आऽ मोरंग आदि जिलामे बाजल जाइत अछि। एहि भाषा-क्षेत्रक उत्तरमे मगही आर ओड़िया तथा पश्चिममे हिन्दी अछि। प्राचीन कालसँ लऽ कए आधुनिक काल धरि भाषातत्वविद् लोकनि एकर बोली उपरूपक तालिका प्रस्तुत कएलनि अछि। एकर निम्नांकित उपरूप अद्यापि उपलब्ध अछि: मानक मैथिली, दक्षिणी मैथिली, पूर्वी मैथिली, पश्चिमी मैथिली, छेका-छीकी मैथिली, जोलही बोली आऽ केन्द्रीय वर्त्तात्मक मैथिली।
(अगिला अंकमे)
२. डॉ. देवशंकर नवीन
डॉ. देवशंकर नवीन (१९६२- ), ओ ना मा सी (गद्य-पद्य मिश्रित हिन्दी-मैथिलीक प्रारम्भिक सर्जना), चानन-काजर (मैथिली कविता संग्रह), आधुनिक (मैथिली) साहित्यक परिदृश्य, गीतिकाव्य के रूप में विद्यापति पदावली, राजकमल चौधरी का रचनाकर्म (आलोचना), जमाना बदल गया, सोना बाबू का यार, पहचान (हिन्दी कहानी), अभिधा (हिन्दी कविता-संग्रह), हाथी चलए बजार (कथा-संग्रह)।
सम्पादन: प्रतिनिधि कहानियाँ: राजकमल चौधरी, अग्निस्नान एवं अन्य उपन्यास (राजकमल चौधरी), पत्थर के नीचे दबे हुए हाथ (राजकमल की कहानियाँ), विचित्रा (राजकमल चौधरी की अप्रकाशित कविताएँ), साँझक गाछ (राजकमल चौधरी की मैथिली कहानियाँ), राजकमल चौधरी की चुनी हुई कहानियाँ, बन्द कमरे में कब्रगाह (राजकमल की कहानियाँ), शवयात्रा के बाद देहशुद्धि, ऑडिट रिपोर्ट (राजकमल चौधरी की कविताएँ), बर्फ और सफेद कब्र पर एक फूल, उत्तर आधुनिकता कुछ विचार, सद्भाव मिशन (पत्रिका)क किछि अंकक सम्पादन, उदाहरण (मैथिली कथा संग्रह संपादन)।
सम्प्रति नेशनल बुक ट्रस्टमे सम्पादक।
बटुआमे बिहाड़ि आ बिर्ड़ो
(राजकमल चौधरीक उपन्यास) (आगाँ)
मैथिली तँ आब संविधान स्वीकृत भाषा भ' गेल अछि, सन् १९५७मे,
जहिआ ई उपन्यास लिखल गेल छल, से बात नहि छलै; मैथिली भाषाक अधिकार लेल खूब-बर्चा होइ छलै। प्रवासी मैथिल लोकनि शहर-शहरमे भाषाई समिति बनबै छलाह। ओही समितिक माध्यमे किछु गोटए अस्तित्व रक्षा करै छलाह, किछु अस्मिता निर्माण; किओ अपन राजनीतिक उत्थान करै छलाह, किओ अकादमीक उन्नति; किओ कुण्ठा मेटबै छलाह, किओ रास-विलास; मुदा थोड़े लोक लेल धन्न सन। किऐ तँ ओ भूखसँ व्याकुल रहै छल। कहाँ दन कुरुक्षेत्रामे भूख लगला पर गान्धारी अपन बेटा सभक लहासक ढेरी पर चढ़ि फल तोड़ए लागल छलीह। भूख, मनुष्यक विवेक आ सम्वेदनाकें एहि तरहें आन्हर करैत अछि। एहना स्थितिमे भाषाक लड़ाइ लड़' लेल के जाएत? सोलह आना सत्य वचन थिक जे हरेक एहि तरहक आन्दोलनमे मुख्य रूपें लोक अपन-अपन लड़ाइ लड़ैत रहल अछि। संयोग थिक जे ई भाषाई आन्दोलन छल। जँ नहिओ रहितए तँ लोक कोनो आओर बाट ताकि लितए, जेना एखन लोक ताकि रहल अछि। भारतीय स्वाधीनताक बाद भारतीय नागरिकक विवेक एते बेसी आत्मकेन्द्रित भ' गेल, जे ओ समस्त आन्दोलनमे अपनाकें जोड़ि कए अपन लिप्सा आ कुण्ठामे तल्लीन भ' गेल। अपन स्थान तकबामे आ सुरक्षित करबामे लीन भ' गेल। स्वातन्त्रयोत्तरकालीन भारतीय लेखक मनुष्य जातिक अही वृत्तिकें उजागर करबामे लागल रहलाह अछि।
कलकत्ताक मैथिल समितिक भाषाई आन्दोलन, एहने आन्दोलन थिक, जाहिमे भुवनजी सगरो समाजमे बेस प्रतिष्ठित आ निविष्ट मानल जाइ छथि; मैथिल, मैथिली, आ मिथिलाक हित लेल बेस उदारतासँ काज करै छथि; लोक सब खूब मान-आदर करै छनि। मुदा ओएह लोक सभ जहिना सभा सोसाइटीक प्रेमिका, उदात-यौवना निर्मलाजीकें भुवनजी संग उठैत बैसैत देखै छथि कि सगरो मैथिल समाज चर्चा कर' लगैत अछि जे हुनकर अपन स्त्राी महान कुरूपा छथिन तें निर्मलाजीक आँचर कसि क' धएने छथि।
नीलू, विष्णुदेव ठाकुर संग सिनेमा देखब पसिन नहि करै छथि, मुदा अन्हार रातिमे जखन देह व्याकुल करै छनि, तँ निर्वस्त्रा भेल कमलजीक अन्हार कोठलीमे पहुँचि जाइ छथि। सामाजिक यथार्थ आ दैहिक यथार्थक एहि तरहक निरूपण आन्दोलन उपन्यासकें ठोस, आ महत्त्वपूर्ण साबित करैत अछि। उपन्यासक कथाभूमि कलकत्ता थिक, मुदा कथाक जीवन पूर्ण रूपें मैथिल थिक। जीवन-यापन आ आत्म-स्थापन हेतु कलकत्ता शहरमे संघर्षरत मैथिलक स्वभाव, जागरूकता, आलस्य, उदारता, राग-द्वेष, मनोवेग, उन्माद, भाषा-प्रेम, स्वार्थ-सिद्धि हेतु चलाओल भाषाई आन्दोलनक र्छंि, आत्मविज्ञापन हेतु यत्रा-कुत्रा पाँखि पसारबाक ललक, फैंटेसी... समस्त स्थितिकें सूक्ष्मता आ मार्मिकतासँ एतए रेखांकित कएल गेल अछि। मैथिलीमे एहि कृतिकें पहिल राजनीतिक उपन्यास घोषित करबामे कोनो कोताही नहि हेबाक चाही। उपन्यासकार स्वयं एकरा प्रथम राजनीतिक उपन्यास अथवा राजनीतिक पर्यवस्थितिमे लिखल गेल प्रथम वृतान्तक उपन्यास' कहलनि अछि।
समाज-व्यवस्थाक नियम अछि जे मनुष्य ÷प्रभुत्व' आ ÷प्रतिष्ठा' अर्जित करए चाहैत अछि। अही दुनूमे कतहु ÷चरित्रा' सेहो नुकाएल अछि। ÷प्रभुत्व', ÷प्रतिष्ठा' आ ÷चरित्रा'--ई तीनू पद व्यावहारिक जीवनमे बड़ अमूर्त्त सन अछि। ई तीनू वस्तुतः की थिक? केहन चरित्राक मनुष्यकें केहन प्रतिष्ठा भेटतनि? कतेक प्रतिष्ठा अर्जित केलासँ मनुष्यकें कतेक प्रभुत्व हएत? कतेक प्रभुत्व आ प्रतिष्ठाधारी व्यक्तिक चरित्रा केहन हएबाक चाही?--अइ प्रश्नावलीक उत्तर कोनो समाजक आचार संहितामे स्पष्ट नहि अछि। मुदा लोक निरन्तर फिल्मिस्तानक ÷मुन्ना भाइ' जकाँ लागल रहै'ए। अपन आचरणक श्रेष्ठताक व्याख्या अपना तरहें करैत रहै'ए। आन्दोलन उपन्यासक कमलजी, भुवनजी, निर्मलाजी, सुशीला, नीलू, हेम बाबू... सबहक आचरण देखि उपन्यासकार राजकमल चौधरीक मोनमे जे ओझराहटि उपजै छनि, तकरे उघार करबाक प्रयास एहि उपन्यासमे कएल गेल अछि। धन्य छथि ओ समीक्षक, जिनका अइ उपन्यासमे एकसूत्राताक अभाव बुझाइ छनि।...वस्तुतः मनुष्यक मूल प्रवृत्ति थिक जिजीविषा; आ तकर प्राथमिक शर्त थिक--रोटी, सेक्स, सुरक्षा। एहि तीनू आश्यकताक पूर्ति हेतु दुनियाँक प्रत्येक प्राणी चुट्टीसँ बाघ, बाघसँ नढ़िया, नढ़ियासँ मनुक्ख भ' जाइए। जीवनक समस्त छल, र्छंि, ईर्ष्या, द्वेष, उदारता, ईमानदारी, त्याग, तल्लीनता, भय, साहस, स्पष्टता, प्रवंचना, खोशामद, ललकार, टोप-टहंकार, धर्म-पाखण्ड, नीति-विचार, दान-दक्षिणा, लूट-बटमार... आदिक स्वांग अही निमित्त करै'ए; सफल-असफल होइ'ए। सफलताक अहंकारमे उन्मादित रहै'ए, असफलताक कुण्ठामे गन्हाइत रहै'ए। बिसरि जाइ'ए जे अइ सफलातक मार्गमे ओ कतेक हीन भेल अछि, अथवा असफल होइत केतक नमहर भेल अछि। सम्पूर्ण ÷आन्दोलन' उपन्यास मानव जीवनक अही जटिल-गुत्थीक गाथा थिक। हमरा जनैत अइ उपन्यासक आश्रय-वृक्ष ÷मैथिल समिति' टा नहि रहितए तँ भाषा परिवर्त्तन क' कए एकरा सम्पूर्ण संसारक अथवा सम्पूर्ण मानवीय वृत्तिक कोनहुँ भाषाक उपन्यास कहल जा सकै छल।
मैथिलीमे तँ निश्चिते आन्दोलन उपन्यास एकटा नव शुरुआत थिक। आत्मकथात्मक शैलीमे लिखल जएबाक अछैत एहिमे कतहु आत्मश्लाघा अथवा आत्मसंकोचक स्वाभाविक त्राुटि नहि आएल अछि। कथावाचक कमलजी कलकत्ता महानगरमे आत्म-स्थापनरत छथि, भाषाई आन्दोलनमे सहभाग-सहकार द' रहल छथि, आन्दोलनी परिवारक हरेक व्यक्ति लेल तटस्थ आ ईमानदार आचरण रखै छथि। सम्पूर्ण उपन्यासमे कतहु स्पष्ट नहि होअए दै छथि जे ओ स्वयं किनका पक्षमे छथि। जे भुवनजी हुनका कलकत्ता महानगरमे पैर रोपबाक आधार देलकनि, नैतिक समर्थन देलकनि, स्नेह-प्रेम देलकनि, मान-सम्मानक मार्ग प्रशस्त केलकनि, तिनकहु लेल ओ कतहु पक्षपातक स्थिति अपन कथावाचनमे नहि आबए देलनि। नीलू, निर्मला, सुशीला... तीनू तीन आचणक स्त्राी छथि; तीनूक खोंइचा छोड़ा क' राखि देलनि, मुदा किनकहु पर अपन निर्णायक वक्तव्य नहि देलनि। स्वयं बदनाम गली धरि गेलाह, तकरहु उजागर करबामे संकोच नहि केलनि। लक्ष्य संधान छलनि मानवीय वृत्तिक स्पष्ट नक्शा उतारबाक, से अइ तटस्थ भावे टासँ सम्भव छल। इएह कारणो थिक जे आइ आ आइसँ पहिनहुँ अइ उपन्यासमे मूल मानवीय वृत्तिक एते रास छवि देखाइत अछि, देखाइ छल। महानगरीय परिवेशक प्रवासी मैथिल द्वारा चलाओल जा रहल भाषाई आन्दोलन एहि उपन्यासक आश्रय-वृक्ष भने रहल हो, मुदा सम्पूर्णतामे ई मिश्रित चित्रा खण्डक कथ्य-बहुल उपन्यास थिक, जाहिमे क्षुधा, आत्म-सुरक्षा आ यौन-पिपासाक चारू भर चित्राखण्डक समायोजन भेल अछि। तथापि कथ्य एकटा सुगठित कौशलसँ रचल यथार्थ उद्बोधित, समाज सम्मत, विश्वसनीय वृत्तान्तक रूपमे सोझाँ आएल अछि।
रचनाकालक दृष्टिएँ ÷आन्दोलन' ÷आदिकथा'सँ पूर्वक उपन्यास थिक, मुदा विषय आ शिल्पक दृष्टिएँ ई बेसी प्रगतिशील, आधुनिक, आ ऊर्ध्वोन्मुखी अछि।
कोनो उपन्यास मनुष्य, मानवीय जीवन, जनजीवनक सामाजिक व्यवस्था आ ओकर वातावरणक कथा कहैत अछि। एहि अर्थमे उपन्यासमे ठाढ़ मनुष्यक क्रिया-कलापहिसँ उपन्यासक गरिमाकें चीन्हल-बूझल जा सकैत अछि आ उपन्यासकारक रचना-दृष्टिक मूल्यांकन कएल जा सकैत अछि। अर्थात् चरित्रा-चित्राण जाहि कृतिमे जतेक सन्तुलित आ स्पष्ट हएत ओहि कृतिक उद्देश्य आ वातावरणकें ओतेक स्पष्टतासँ बूझल जा सकत। सामान्यतया रचनाकार लोकनि अपन सृजित पात्राक चरित्रा पर समग्रतामे अपन टीका दै छथि। केहन लोक छथि, कते पढ़ल छथि, कोना कमाइ छथि, कोना खाइ छथि, की करै छथि...। चाही तँ सुविधा लेल एकरा व्याख्यापरक चरित्रा-चित्राण कहल जा सकैत अछि, मुदा एहिसँ बेसी सुविधा होइत अछि, पात्राक आचरण आ कथोकथनक आधार पर ओकर चरित्रा बुझबामे। एहिमे भावक लोकनि पात्राकें अपना नजरिएँ चिन्हबाक चेष्टा करै छथि। प्रायः इएह कारण थिक जे नाटक, अथवा नाटकीय शैलीक कृतिमे चरित्रा चित्राणक सुविधा बेसी भेटैत अछि। खास क' कए मनोविश्लेषणात्मक चरित्रा-चित्राण करबाक पर्याप्त सम्भावना रहैत अछि। इहो कहब समीचीन होएत जे राजकमल चौधरीक रचनामे अकारणे एते कथोपकथन नहि रहैत अछि। नाटकीय शैलीक एहि उपन्यासमे पात्राक मनोविश्लेषणक प्रभूत व्यवस्था अछि। रचनाक नायक-नायिका आ सहयोगी लोकनि पारस्परिक वार्तालाप आ अपन क्रिया-कलापसँ जते तरहें अपन चारित्रिाक सीमा अंकित करैत'छि रचनाकार स्वयं टीका द' कए ओते विस्तारसँ कहिओ नहि कहि सकै छथि। एहिसँ कृति संक्षिप्त, दीप्त आ प्रभावकारी सेहो होइत अछि। सम्भवतः इएह कारण थिक जे राजकमल चौधरीक उपन्यास आकारमे एते छोट होइत अछि आ प्रभावमे एते विराट। वार्तालापसँ मनुष्यक सम्पूर्ण व्यक्तित्व ठाढ़ भ' जाइत अछि। शिल्प, शैली, वाक्य-संरचना, शब्द-चयन, सम्बोधन-अभिवादन, विषय आ विषयानुरक्तिसँ कोनहुँ व्यक्ति अपन सम्पूर्ण सोच-समझ-आचरण, कौलिक आ व्यावहारिक संस्कार, आर्थिक-शैक्षिक-सामाजिक पृष्ठभूमि स्पष्ट करैत अछि। जेना आन्दोलन उपन्यासक पात्रा सब कएने छथि।
भाँगक निशाँमे मातल कमलजीक कोठलीमे अल्पवयस नीलू अर्धनग्न अवस्थामे पहुँच जाइत अछि। ओहि अन्हार गुज्ज रातिमे बन्द कोठलीमे नीलू, कमलजीकें ÷भैया' कहैत अछि, मुदा सर्वस्व अर्पित करए चाहैत अछि। स्पष्ट अछि, जे किशोर वयक उन्माद आ उत्तेजनामे नीलू ÷सम्बोधन' आ ÷क्रिया'क बीचक समन्वय बिसरि गेल अछि। जे कमलजी यौन पिपासा मेटएबा लेल देह-व्यापारमे लिप्त स्त्राीक खोली धरि पहुँचि जाइ छथि, से कमलजी भाँगक घनघोर निशाँमे मातल छथि, आ अन्हार गुज्ज रातिमे बन्द कोठलीमे समर्पित नीलूकें बुझा-सुझा क' आपस क' दै छथि (आन्दोलन/पृ. ५०-५१)। मैथिलानी वेश्याक ताकमे जखन कमलजी बनगामबालीक खोलीमे पहुँचै छथि तँ सम्पूर्ण नक्शा उनटि जाइत अछि, हुनक विषय-वासना करपूर जकाँ बिला जाइत अछि (पृ. ३५-३७)। अइ वार्तालापमे आ एहने कतोक वार्तालापमे व्यक्ति, समाज, व्यवस्था, वातावरण आ मनोवेगक जतेक स्पष्ट छवि अंकित भेल अछि, ततेक स्पष्ट करब आन कोनो माध्यमे
असम्भव छल।
एतए नीलूक किशोरावस्था आ काम-पिपासा नीलूकें आन्हर क' देने अछि। ÷भैया' सम्बोधनक बादहु यौनाचार प्रतिवेदन अनर्गल थिक, मुदा एतए नीलूक वयसोचित उन्माद आ अपरिक्वतामे उचितानुचितक विवेक नुका गेल अछि, जे सहज अछि, सम्भाव्य अछि। मुदा तें, नीलूक चरित्रा घृणित नहि कहल जा सकैत अछि। अपरिपक्व रहितहुँ ओ सर्वस्व-अर्पण हेतु पात्रा-चयनमे असावधान नहि अछि, भुवनजीक आवासीय परिसरमे आओर कतोक पुरुख, मैथिल पुरुख बिलमल छथि, तिनका संग ओ एना नहि केलनि; महानगरीय वातावरणक विकृतिमे ओ निर्मलाजी अथवा सुशीला नहि बनि गेलीह। नीलूक समर्पणकें अस्वीकार करबाक अर्थ कमलजीक नपुंसकता अथवा निष्काम वृत्ति नहि थिक। से रहितथि तँ कमलजी वेश्यालय नहि जैतथि। मुदा कमलजी कामातुर राक्षस नहि छथि। से रहितथि तँ ओ सुशीलाक राति किनलनि, हुनका संग सब किछु कइए क' आपस होइतथि। समस्त मानवीय दुर्बलताक अछैत मनुष्यक विवेक ओकरा नैतिक रूपें विराट बनबैत अछि। समस्त दुर्बलता आ सबलताक सीमा बूझब समयक नायककें वास्तविक स्वरूप दैत अछि आ ओकर चारित्रिाक वैशिष्ट्य समकालीन समाजकें जीवन जीबाक दृष्टि आ नैतिक बल अनुसंधानक बाट देखबैत अछि। आन्दोलन उपन्यासक चरित्रा चित्राण तकरहि उदाहरण थिक।
(अगिला अंकमे)
1.सगर राति दीप जरय मैथिली कथा लेखनक क्षेत्रमे शान्त क्रान्ति-डा.रमानन्द झा ‘रमण‘ 2. मिथिला विभूति पं मोदानन्द झा-प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्र
डा.रमानन्द झा ‘रमण‘
21.01.1990-पहिल सगर राति दीप जरय,मुजफ्फरपुर
64म-सगर राति दीप जरय
मैथिली कथा लेखनक क्षेत्रमे शान्त क्रान्तिे
रहुआ-संग्राम-11 नवम्बार, 2008
डा.रमानन्दष झा ‘रमण‘
सगर राति दीप जरय (कथा पाठ एवं परिचर्चा) संकलन-डा.रमानन्दअ झा ‘रमण‘
क.सं. स्थापन तिथि संयोजक अध्यसक्षता/उदघाटन पेाथी लेाकार्पण ल्ेाखक लेाकार्पणकर्ता अन्यल
1 2 3 4 5 6 7 8 9
1 मुजफ्फ8रपुर 21.01.1990 प्रभास कुमार चौधरी रमानन्दन रेणु - - शैलेन्द्रल आनन्दनक कथा
यात्रा-डा.रमानन्द0झा रमण'
2 डेओढ़ 29.04.1990 जीवकान्तर प्रभास कुमार चौधरी - - - -
3 दरभंगा 07.07.1990 डा.भीमनाथ झा/प्रदीपमैथिली पुत्र,
व्य्वस्थाद-विजयकान्तन ठाकुर
गोविन्द झा
1.सामाक पौती
2.मोम जकाँ बर्फ जकाँ
गोविन्द झा
अमरनाथ
डा.मुनीश्वार झा
प्रभासकुमारचौधरी
4 पटना 03.11.1990 गोविन्द् झा
व्यभवस्था.-दमनकान्तत झा
उपेन्द्र नाथ झा‘व्या-स'
एवं राजमोहन झा
- - - -
5 बेगूसराय 13.01.1991 प्रदीप बिहारी प्रो.रमाकान्तथ मिश्र 3.हमर युद्धक साक्ष्ये मे डा.तारानन्द वियोगी उपेन्द्रे दोषी -
6 कटिहार 22.04.1991 अशोक उपेन्द्र दोषी 4.ओहि रातुक भोर
5.अदहन
अशोक
शिवशंकर श्रीनिवास
डा.भीमनाथ झा
डा.रमानन्दझझा रमण
विभूति आनन्दरक कथा
यात्रा-डा.रमण
7 नवानी 21.07.1991 मोहन भारद्वाज प्रो.सुरेश्वतर झा 6.समाड. रमेश कुलानन्दड मिश्र -
8 सकरी 22.10.1991 प्रो.सुरेश्व्र झा
व्य्वस्था.-डा.राम बाबू
ए.सी.दीपक 7.साहित्या.लाप डा.भीमनाथ झा गोविन्दर झा
-
9 नेहरा 11.10.1992 ए.सी.दीपक मन्त्रे श्वर झा - - - -
10 विराटनगर 14.04.1992 जितेन्द्रा जीत डा.गणेश प्रसाद कर्ण
उद- गोविन्द1 झा
- - - नेपालमे मैथिली कथा -
डा.रमण
11 वाराणसी 18.07.1992 प्रभास कुमार चौधरी मायानन्दनमिश्र/गंगेश गुंजन
उद-ठाकुर प्रसादसिंहएवं
पं.रमाकान्तर मिश्र
- - - -
12 पटना 18.10.1992 राजमोहन झा स्ुाभाषचन्द्रझ यादव - - - -
13 सुपौल 09.01.1993 केदार कानन बुद्धिनाथ झा 8.पुनर्नवा होइत ओ छौंड़ी विभूति आनन्दस महाप्रकाश -
14 बोकारो 24.04.1993 बुद्धिनाथ झा गोविन्द झा - - - -
15 पैटघाट 10.07.1993 डा.रमानन्दद झा‘रमण‘ प्रो.उमानाथ झा 9.विद्यापतिक आत्मनकथा गोविन्दर झा प्रभासकुमारचौधरी -
16 जनकपुरधाम 09.10.1993 रमेश ंरंजन गोविन्दा झा
उद-डा.रामावतार यादव
10.श्वेडतपत्र
11.मिथिलावाणी-पत्रिका
12.गामनहि सुतैत अछि
13.मर्सिनी-उपन्या्स
स.ंवियोगी एवं रमेश
मिलाप,जनकपुरधाम
महेन्द्र मलंगिया
डा.अरुणकुमार झा
डा.धीरेन्द्र
धूमकेतु
गोविन्दआ झा
डा.रामावतार यादव
-
17 इसहपुर 06.02.1994 डा.अरविन्दन कुमार ‘अक्कू ' डा.भीमनाथ झा - - - -
18 सरहद 23.04.1994 अमियकुमार झा प्रेमलता मिश्र ‘प्रेम' - - - -
19 झंझारपुर 09.07.1994 श्याेमानन्द‘ चौधरी जीवकान्त - - - -
20 घोघरडीहा 22.10.1994 जीवकान्तय राजमोहन झा 14.कथा कुम्भ सं.बुद्धिनाथ झा गोविन्दा झा -
21 बहेरा 21.01.1995 कमलेश झा श्याामानन्दन ठाकुर
उद-चन्द्रहभानु सिंह
15.सत्यच एकटा काल्पसनिक
विजय
सारस्वदत जीवकान्तक -
22 सुपौल,दरभंगा 08.04.1995 कमलेश झा प्रो.रामसुदिष्टर राय ‘व्या.धा
उद-गोविन्दा झा
- - - -
23 काठमांडू 23.09.1995 धीरेन्द्रश प्रेमर्षि डा.धीरेन्द्र 16.नख दर्पण गोविन्दि झा डा.यादव -
24 राजविराज 24.01.1996 रामनारायण देव डा.धीरेन्द्रा
उद-डा.योगेन्द्र6 प्र.यादव-
मुख्यव-गजेन्द्र नारायणसिंह,
मन्त्रीआ, नेपाल सरकार
- - - -
25 कोलकाता
रजत जयंती
28.12.1996 प्रभास कुमार चौधरी गोविन्दर झा
उद-यमुनाधर मिश्र
17.निवेदिता
18.कथाकल्पा
सुधांशु‘शेखर' चौधरी
डा.देवकान्त झा
गोविन्द9 झा
प्रभासकुमारचौधरी
-
26 महिषी 13.04.1997 डा.वियोगी/रमेश-
प्रायोजित
मायानन्दत मिश्र 19.अतिक्रमण
20.हस्तक्षेप
21.शिलालेख
22.परिचिति
डा.तारानन्द वियोगी
डा.तारानन्द वियोगी
डा.तारानन्द वियोगी
सुस्मि्ता पाठक
गोविन्दद झा
कुलानन्द मिश्र
सुभाषचन्द्रच यादव
मोहन भारद्वाज
-
2
सगर राति दीप जरय (कथा पाठ एवं परिचर्चा)
कसं.
स्थारन तिथि संयोजक अध्यएक्ष पेाथी लेाकार्पण ल्ेाखक लेाकार्पणकर्ता अन्य
1 2 3 4 5 6 7 8 9
27 तरौनी 20.06.1997
यात्रीजन्मौदिन
शोभाकान्तम जीवकान्त1 - - - -
28 पटना 18.07.997 प्रभास कुमार चौधरी हरिनारायणमिश्र/रामचन्द्रण खान 23.समानान्तरर रमेश प्रभास कुमार चौधरी -
29 ब्ेागूसराय 13.09.1997 प्रदीप बिहारी प्रफुल्लर कुमार सिंह ‘मौन' 24.कुक्केरूकू आ कसौटी चन्देवश प्रभास कुमार चौधरी प्रभास कुमार चौधरीक
अन्तिसम सहभागिता
30 खजौली 04.04.1998 प्रदीप बिहारी रमानन्दह रेणु - - - -
31 सहरसा 18.07.1998 रमेश डा.महेन्द्र 25.ओना मासी डा.देवशंकर नवीन कुमारी ऋचा -
उद-गोविन्दा झा 26.चानन काजर डा.देवशंकर नवीन मायानन्दण मिश्र -
27.प्रतिक्रिया रमेश गोविन्द झा -
32 पटना 10.10.1998 श्या म दरिहरे राजमोहन झा
उद-गोविन्द झा
28.भरि राति भोर के.डी.झा,श्यारमदरिहरे एवं प्रदीप
बिहारी
उपेन्द्र नाथझा‘व्याडस'
33 बलाइन, नागदह 08.01.1999 पदम सम्भेव जीवकान्ति - - - -
34 भवानीपुर 10.04.1998 डा.जिष्णुम दत्त मिश्र कामिनी 29.काल्हि. आ आइ डा.धीरेन्द्रर जीवकान्त -
35 मधुबनी 24.07.1999 सियाराम झा ‘सरस‘
व्यनवस्थाु-डा.कुलधारी सिंह
राजमोहन झा
उद-डा.जयधारी सिंह
30.काजे तोहर भगवान शैलेन्द्रं आनन्दु विभूति आनन्दि -
36 अन्दौ ली 28.10.1999 क्म लेश झा चन्द्रशभानु सिंह - - -
37 जनकपुरधाम 25.03.2000 रमेश रंजन डा.धीरेन्द्रर
उद-डा.राजेन्द्र. विमल
- - - -
38 काठमांडू 25.06.2000 .धीरेन्द्रम प्रेमर्षि डा.रमानन्दभ झा‘रमण‘ 31.मकड़ी प्ा्रदीप बिहारी महेन्द्रव मलंगिया
उद-महेन्द्र कुमार मिश्र, सांसद 32.मिथिलांचलक लोक क्रथा डा.गंगा प्रसाद अकेला डा.रमानन्द्झा‘रमण‘
33.शिरीषक फूल-‘अनुवाद अकेला डा.रमानन्देझा‘रमण‘
34.हम मैथल छी-कैसेट सियाराम झा‘सरस‘ डा.रामावतार यादव
35.मंडनमिश्र अद्वैतमीमांसा रमेश/दीनानाथ/सुरेन्द्रानाथ डा.रामावतार यादव
39 धनबाद 21.10.2000 श्यानम दरिहरे एवं रामचन्द्र लालदास राजमोहन झा
उद-कीर्तिनारायण मिश्र
36.मनक आड.नमे ठाढ़ डा.भीमनाथ झा राजमोहन झा
40 बिटठो 21.01.2001 डा.अक्कू बलराम 37.मातवर अशोक डा.धीरेन्द्रर म्ैाथिली कथाक
व्यमवस्थान-प्रो.विद्यानन्द् झा उद-कुलानन्दअ मिश्र 38.दृष्टिरकोण सुरेन्द्रकनाथ डा.भीमनाथ झा समस्या डा.भीमनाथ झा
41 हटनी,घोघरडीहा 19.05.2001 प्रो.योगानन्द- झा/अजित कुमार
आजाद
सोमदेव - - - -
42 बोकरो 25.08.2001 गिरिजानन्दनझा‘अर्धनारीश्वडर दयानाथ झा 39.निष्प्रा ण स्व प्न दयाकान्तश झा हरेकृष्ण मिश्र
व्यदवस्थान-मिथिला सां.परिषद उद-हरेकृष्णश झा,भा.आ.सेवा 40मिथिलादर्पण(1925/2001) पुण्यारनन्दभझा
स.डारमानन्दा झा ‘रमण‘
फूलचन्द्रा मिश्र ‘रमण‘
43 पटना
किरण जयन्तीा
01.12.2001 अशोक सोमदेव 41.प्रलाप गोविन्दि झा सोमदेव
च्ेातना समिति, पटना 42युगान्तषर विश्वृनाथ गोविन्द, झा
43एकैसम शताब्दीतकघोषणा पत्र रमेश/श्याम दरिहरे/मोहन यादव राजमोहन झा
44 राँची 13.04.2002 कुमार मनीष अरविन्दउ साकेतानन्द 44चानन घन गछिया विवेकानन्द4 ठाकुर मोहन भारद्वाज
उद -परमानन्दी मिश्र 45.शुभास्तेर पन्थाकनः परमानन्दय मिश्र साकेतानन्दव
45 भागलपुर 24.08.2002 धीरेन्द्र् मोहन झा योगीराज 45.कथा सेतु सं.प्रशान्त डा.बेचन
उद-डा.बेचन 47.प्ृाथा नीता झा राजमोहन झा
48.आउ, किछु गप्प7 करी कुलानन्दथ मिश्र डा.करुणाकर झा
3
सगर राति दीप जरय (कथा पाठ एवं परिचर्चा)
क.सं. स्थापन तिथि संयोजक अध्यक्ष पेाथी लेाकार्पण ल्ेाखक लेाकार्पणकर्ता अन्यत
1 2 3 4 5 6 7 8 9
46 विद्यापतिभवन,
पटना
16.11.2002 अजित कुमार आजाद मोहन भारद्वाज
उद.राजनन्दतन लाल दास
49.काठ विभूति आनन्द डा.तारानन्दअ वियोगी -
50.एक फाँक रौद योगीराज गोविन्दा झा -
51.तीन रंग तेरह चित्र डा.सुधाकर चौधरी सोमदेव -
52.उदयास्त धूमकेतु सोमदेव -
53.सांझक गाछ राजकमल,
सं.डा.दे.नवीन
रामलोचन ठाकुर -
54.सर्वस्वां त सकेतानन्दी सोमदेव -
55.अभियुक्तं.. राजमोहन झा सोमदेव -
56.यात्री समग्र सं.शोभाकान्तह गोविन्दव झा -
57.मैथिलीबाल साहित्या डा.दमन कुमार झा गोविन्दद झा -
58.ज्ीम ब्वंसवदपंस च्म तपचीमतलरू
प्उंोहपदह डपजीपसं ; 1875.1955द्ध
डा.पंकज कुमार झा डा.हेतुकर झा -
59.मैथिल समाज
पत्रिका, नेपाल
स.ंधीरेन्द्रु प्रेमर्षि - -
47 कोलकाता 22.01.2003 कर्णगोष्ठीप, कोलकाता डा.रमानन्दि झा‘रमण‘
उद-रमानन्द रेणु
60.आत्मामलाप गोविन्दु झा रमानन्दठ रेणु मैथिली कथाकवर्तमान
समस्याा-.डा.वियोगी
48 खुटौना 07.06.2003 डा.महेन्द्र नारायण राम सोमदेव/उद-खुशीलाल
झा एवं रामलोचन ठाकुर
61.लाख प्रश्नुअनुत्तरित रामलोचन ठाकुर सोमदेव
49 बेनीपुर 20.09.2003 कमलेश झा डा.फूलचन्द्रर मिश्र‘रमण‘
उद-प्रो.रामसुदिष्टो राय ‘व्यानधा‘
- - - -
50 दरभंगा
स्वएर्ण जयन्तीा
21.02.2004 डा.अशोक कुमार मेहता गोविन्दम झा
उद-चन्द्रयनाथ मिश्र‘अमर‘
62.दिदबल प्रभास कुमार चौधरी गोविन्द‘ झा -
63.चितकावर हंसराज सोमदेव -
64.गंगा यन्त्ररनाथ मिश्र गोविन्द झा -
65बाबाक विजया उमाकान्ता मार्कण्डे य प्रवासी -
66.सरिसब मे भूत श्यानम दरिहरे राजमोहन झा -
67.गहवर डा.महेन्द्र नारायण राम जयनारायण यादव -
68.हाथी चलय बजार डा.देवशंकर नवीन राजमोहन झा -
69.उगैत सूर्यक धमक सियाराम झा‘सरस' डा.रमानन्दन झा‘रमण‘ -
70.आदमी के ँ जोहैत कीर्तिनारयण मिश्र मोहन भारद्वाज -
71.ओना कहबा लेल बहुत
किछु हमरा लग
कुलानन्दा मिश्र कीर्तिनारयण मिश्र -
72.गाछ झूलझूल जीवकान्त् गोविन्दर झा -
73.खंजन नयन निरंजन अनंत बि.लाल.इन्दुज' चन्द्र नाथ मिश्र‘अमर‘ -
74.हम भेटब मार्कण्डेनय प्रवासी गोविन्दा झा
75.चिन्तटन प्रवाह डा.धीरेन्दिनाथ मिश्र्र राजमोहन झा
76.दुर्वासा जयनारायण यादव गोपाजी त्रिपाठी
77.पाथर पर दूभि रमेश डा.शिवशंकर श्रीनिवास
78.कोशी घाटी सभ्यमता रमेश डा.शिवशंकर श्रीनिवास
79जागि गेल छी डा.महेन्द्र ना.राम डा.रामदेव झा
4
सगर राति दीप जरय (कथा पाठ एवं परिचर्चा)
क.सं. स्थापन तिथि संयोजक अध्यरक्ष पेाथी लेाकार्पण ल्ेाखक लेाकार्पणकर्ता अन्यम
1 2 3 4 5 6 7 8 9
50 दरभंगा 21.02.2004 डा.अशोक कुमार मेहता गोविन्दे झा
उद-चन्द्र नाथ मिश्र‘अमर‘
80.हमरा मोनक खंजन चिडैया फूलचन्द्र मिश्र प्रवीण‘ मार्कण्डेाय प्रवासी
81.जयमाला जयानन्द मिश्र चन्द्रशनाथ मिश्र ‘अमर‘
82.माटिक आबाज मंजर सुलेमान मोहन भारद्वाज
83.इजोरियरक अंगैठी मोर स.ं माला झा अशोक
84.बेसाहल डा.रमानन्द झा‘रमण मार्कण्डेशय प्रवासी
85.यदुवर रचनावली डा.रमानन्दा झा‘रमण गोविन्दा झा
86सगरराति दीप जरयक इतिहास डा.रमानन्दा झा‘रमण रमेष
87.अभिज्ञा डा.फूलचन्द्र् मिश्र‘रमण‘ डा.रमानन्दव झा‘रमण
88.विमर्श डा.भीमनाथ झा डा.देवेन्द्रम झा
89.स्मररणक संग डा.विभूति आनन्दर रतीष चन्द्रम झा
90.कथा काव्या आ द्वादशी डा.अरुण कुमार कर्ण रमानन्द् रेणु
91.तात्पार्य डा.अशोक कुमार मेहता अंजलि मेहता
92हेमलेट प्ा्रेा.रमाकान्ता मिश्र नीलमणि बनर्जी
93.लोरिक मनियार चन्दे्ेरश गोविन्दर झा
94.कनुप्रिया अनु.श्यादम दरिहरे श्याामसुन्दनर मिश्र
95.मन्दारकिनी प्रभास कुमार चौधरी चन्द्र नाथ मिश्र ‘अमर‘
96.सीता व्यथा कथा अनन्ता बि.लाल दास‘
इन्दु '
डा.रामदेव झा
97.नागार्जुन के उपन्या स मोहित ठाकुर डा.सुरेश्वरर झा
98.ैमसमबजमक च्व मउे वि ।उंत रमम म्ुारारि मधुसूदन ठाकुर .
99.अंतरंग हिन्दीउ पत्रिका.मैथिली
विशेषाक
स.ंप्रदीप बिहारी रमानन्द रेणु
51 जमशेदपुर 10.07.2004 डा.रवीन्द्र कुमार चौधरी स्ुारेन्द्र पाठक
उद-राजनन्दरनलाल दास
मु.अति..सत्यलनारायण लाल
- - - -
52 राँची 02.10.2004 विवेकानन्दा ठाकुर डा.रमानन्दण झा‘रमण 100.स्वारस स्वामस मे विश्वा)स विवेकानन्दन ठाकुर डा.रमानन्द झा‘रमण
उद-राजनन्दरन लाल दास 101.सम्पर्क-4 स.-सियाराम झा ‘सरस‘ राजनन्द न लाल दास
53 देवघर 08.01.2005 श्याकम दरिहरे एवं
अविनाश
दयानाथ झा
उद-यन्त्रदनाथ मिश्र
- - - -
54 बेगूसराय 09.04.2005 प्रदीप बिहार रामलोचन ठाकुर
उद-सत्य नारासयण लाल
102.भजारल डा.रमानन्दण झा‘रमण कीर्तिनारयण मिश्र
103.सरोकार प्रदीप बिहार राजमोहन झा
104.औरत म्ेानका मल्लि क ज्यो‘त्सिना चन्द्रचम
105.अन्तमरंग पत्रिका स.ं प्रदीप बिहारी डा.आनन्दरनारायण शर्मा
55 प्ूार्णियाँ 24.06.2005 रमेश साकेतानन्द्
56 पटना 03.11.2005 अजीत कुमार आजाद उद.गोविन्द् झा 106.अतीतालोक गोविन्दस झा राजमोहन झा
डा.फूलचन्द्र3 मिश्र ‘रमण' 107.गामक लोक शिवशंकर श्रीनिवास डा.रमानन्दवझा‘रमण'
108.मैथिली कविता संचयन सं.डा.गंगेशगुंजन छठज् गोविन्दर झा
109.मैथिली कथासंचयन छठज् स.ंशिवशंकरश्रीनिवास राजमोहन झा
110.बड अजगुत देखल शरदिन्दुर चौधरी फूलचन्द्रक मिश्र ‘रमण'
111.किछ ुपुरान गप्पर ,किछु
नव गप्पझ
कीर्तिनाथ झा गोविन्द झा
57 जनकपुरधाम 12.08.2006 रमेश रंजन महेन्द्रशमलंगिया,उद-डा.रेवतीरमण
लाल वि.अ.-डा.रमानन्दुझा‘रमण‘
- ' - -
5
सगर राति दीप जरय (कथा पाठ एवं परिचर्चा)
क.सं. स्थापन तिथि संयोजक अध्यदक्ष पेाथी लेाकार्पण ल्ेाखक लेाकार्पणकर्ता अन्यी
1 2 3 4 5 6 7 8 9
58 जयनगर 02.12.2006 श्री नारायण यादव
अध्य3.-डा.कमलकान्ता झा
उदघाटन-रामदेव पासवान
मु.अ.-भगीरथप्रसाद
अग्रवाल
. . . .
59 बेगूसराय 10.02.2007 प्रदीप बिहारी नवीन चौधरी 112.स्ने हलता डा.योगानन्दअ झा डा.तारानन्दद वियोगी
60 सहरसा 21.07.2007 किसलय कृष्णर उद.डा.मनोरंजन झा
अध्य..डा.रमानन्दक झा‘रमण‘
113.अक्षर आर्केस्ट्रा अनु-प्रदीप बिहारी डा.रमानन्द. झा ‘रमण‘
61 सुपौल 01.12.2007 अरविन्दब ठाकुर उद-डा.धीरेन्दड धीर
अध्य.. अंषुमान सत्यनकेतु
114.अन्हाुरक विरोध मे अरविन्दन ठाकुर अजित कुमार आजाद
62 जमष्ोदपुर 03.05.2008 डा.रवीन्द्र कुमार चौधरी उद-विद्यानाथ झा‘विदित'
अध्य.क्ष-विवेकानन्दअ ठाकुर
- - - -
63 राँची 19.07.2008 कुमार मनीष अरविन्दु उद-.डा.विदित
अघ्य . विवेकानन्दअ ठाकुर
एवं डा.रमानन्दक झा‘रमण'
115.समय षिला पर सुरेन्द्रानाथ डाविद्यानाथझा‘विदित'
64 रहुआ संग्राम 08.11.2008 डा.अषोक कुमार झा‘
अविचल'
(अगिला अंकमे)
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।(c) 2008 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ' आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ' संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ' पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.co.in पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ' रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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