भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Tuesday, January 13, 2009
विदेह १ दिसम्बर २००८ वर्ष १ मास १२ अंक २३- part ii
ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि। मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
उपसंहार :
कलकत्ता शैक्षणिक यात्रा, १९९० - ९१:
टिस्को स्कूल सऽ जे एजूकेश्नल टूर अर्थात् शैक्षणिक यात्राक व्यवहार छल से किताबी ज्ञानके वास्तविक रूपसऽ सिखाबऽमे सहायक तऽ छल। संगे अहि सऽ अपन चरित्रनिर्माण मे सेहो सहायता होइत छल।सब संगे मिलिकऽ रहैमे बहुत किछु सिखैके सेहो अवसर भेटै छल।उदाहरणार्थ किछु विद्यार्थी एहेनो छलैथ जे अपने मे मस्त रहैत छलैथ। हुनका सबके विद्यालय सऽ घरक रस्ता के अतिरिक्त आर किछु बाहरी दुनियाक खबरि नहि रहैत छलैन।एहेन लोकसब जखन ऑल राउण्डर विद्यार्थी सबसऽ भेंट करैत छथि तऽ हुनका सबके आन कार्यमे र रुचि बढ़ै छैन।किछु विद्यार्थी सबके अपन अभिभावक पर आश्रित रहैके अतिशय अभ्यास होएत छैन । एहेन बच्चासबमे आत्मनिर्भता आबैत छै।अपन कैरियर आदिक चयन स्वयम् करैके क्षमता आबैत छै।तथा आकस्मिक आब वला विषम परिस्थिति सऽ भीड़क आत्मविश्वास आबै छै।
ई तऽ भेल शैक्षणिक यात्राक विशेषता। आब हम अपन अनुभव कहै छी।हमरा अहिबेरका टूर वास्तव मे शैक्षणिक यात्रा लागल। इण्डियन म्यूज़ियम सऽ इतिहासमे, बॉटेनिकल गार्डेन सऽ वनस्पति विज्ञानमे, चिड़ियाखाना सऽ जीवविज्ञानमे, बिरला म्युज़ियम सऽ तकनीकमे, तथा पलैनेटोरियम सऽ खगोलशास्त्रमे जानकारी बढ़ल।हमरा सबके भोजनमे कोनो दिक्कत नहि भेल।जॅं कोनो छात्र छात्राके स्वास्थ्य खराब होएत छलैन तऽ शिक्षक सब पूरा ध्यान राखै छलखिन।ओ सब कखनो अभिभावक सऽ दूर हुअ के अनुभूति नहिं हुअ दैत छलैथ।शिक्षक सबके जीवनमे तऽ कतेक छात्र सब आबैत छैन।लेकिन हम विद्यार्थी सब लेल ई शिक्षकसब अविस्मरणीय छैथ।हुनकर सबसऽ जे मार्गदर्शन हमरासबके भेटैत अछि से आजीवन याद रहैत अछि आऽ काज आबैत अछि।
अनाम कथा- प्रेमचन्द मिश्र
पी. सी. मिश्र गामक एकटा कम प्ढ़ल-लिखल युवक छथि, उम्र करीब २४ वर्ष। ६ साल पहिने गामसँ दिल्ली आयल छलाह। संघर्षरत जीवनसँ सफर करैत आब ठीक-ठाक अवस्थामे छलाह यानि ताहि समयमे एकटा मध्यम् वर्गक युवककेँ तनख्वाह जे हैत से तनख्वाह पावैत छलाह आ संगे गामसँ अयलाक बाद दिल्लीमे किछु नीक लोकक संपर्कमे रहलासँ अंग्रेजी फर्राटेसँ बजैत छथि यानि कि अंग्रेजी बजैत काल कियो नहि कहि सकैत छनि जे ओ पढ़ल-लिखल कम छथि। ताहि कारण लोककेँ कहैत छथिन सत्यता- जे हम पढ़ल-लिखल कम छी- तँ लोक मजाक बुझैत अछि। एकटा प्राइवेट कम्पनी, जे ट्रैवेल एजेन्टक काज करैत अछि, मे पी.सी.मिश्र रंजीतक, जे हुनकर रिश्तामे भागिन छथिन मुदा कम्पनीमे उच्च पदपर छथिन्ह, केर संग कज करैत छथि। पी.सी.मिश्र विवाह योग्य भऽ गेल छथिन, पिताजी बुढ़ापामे प्रवेश कऽ लेने छथिन। ओऽ चाहैत छथि जे जहिना पैघ भाई सभक विवाह भऽ गेल छनि, हुनको विवाह कऽ देल जाय। कारण एकटा छोट भाई सेहो छनि, रुपैय्या पाइ कमा लैत छथि आऽ अपन आब कोन भरोस। कखन छी कखन नहि छी। चुंकि जमाना बदलि गेल छैक, ताहि हेतु पी.सी.मिश्रासँ संपर्क केलन्हि जे लोक सभ बहुत परेशान करैत छथि अहाँक विवाह लेल, से की कहैत छी। हुनकर जवाब छलनि, जे पिताजी हमर किछु शर्त अछि विवाहमे। तँ पिताजी कहलखिन- ठीक छै, रातिमे भौजीसँ गप्प करायब, ठीक छै। रातिमे भोजनक बाद पी.सी.मिश्रा जी भौजीक द्वारा अपन शर्त पठेलन्हि- एक विवाहमे रुपैय्या पैसाक आदान-प्रदान नहि, यानि बिना पैसाक विवाह-आदर्श विवाह। दोसर लड़की पढ़ल-लिखल आऽ अंग्रेजी बजनाय अनिवार्य ताकि बच्चाक शिक्षा उच्च होय। तेसर द्विरागमन जल्दी होय ताकि साल भरि जे अपन संस्कार यानी विध-विधानमे कम खर्च होयत। चारिम जिनका ओहिठाम विवाह होय ओ हमर तुलनामे गरीब होय ताकि हुनका ओहिठाम सम्मान बेसी भेटत।
ई सभ शर्त सुनि हुनकर पिताजी कहलनि- हम शर्तसँ बहुत प्रसन्न छी, लेकिन सभ शर्त हमरासँ भऽ सकत मुदा दोसर शर्त हमरा विश्वास नहि अछि की गामक लोक पूरा करए देत वा नहि। ताहि हेतु कहबनि जे एहन कुनू भेट जानि तँ ओऽ हमरा कहि देत। ई बात रंजीतकेँ पता लगलनि, तँ ओहो सोचलन्हि जे कोनो सम्पर्कक आदमीसँ पी.सी.मिश्राक विवाह करल जाय तँ उत्तम। ई दू-चारि ठाम बजलाह जाहिमे “श्रीमति महारानी मिश्रा” जे रंजीतक भाभी आऽ पी.सी. मिश्राक रिश्तामे भौजी छलथिन केँ सेहो पता लगलन्हि। अपन छोट बहिन अनीता झाक ननदि छलथिन सोनी आ हुनकर उम्र १९ साल रहनि। ओऽ अपन बाबूजी श्री भरत झाकेँ कहलथिन जे ई कथा मुफ्तमे भऽ जाएत। ओऽ अपन जमाय दिलीप झाकेँ फोनसँ संपर्क केलन्हि। दिलीप झाक बाबूजी १० साल पहिने स्वर्गवासी भऽ गेल छथिन, ताहि हेतु बहिन सोनीक विवाह दिलीप झा आऽ विनय झाकेँ करबाक छनि। ई सभ बात सुनि दिलीप झा अपन पत्नी अनीताकेँ कहलथिन जे ई काज बुझू मँगनीमे भऽ जाएत। ई बात सुनिते अनीता कहलथिन जे अहाँ देरी नहि करू आऽ जयपुर जाऊ। बुझू लक्ष्मी चलि कऽ आबि गेल छथि। ई बात ओऽ विनय झाकेँ सेहो कहलन्हि आऽ सोनीक दूटा नीक फोटो लऽ जयपुर आबि गेलाह। आब महारानी रंजीतक द्वारा पी.सी.मिश्राकेँ जयपुर बजेलन्हि। होलीक बहन्ना बना कय अपन दफ्तरसँ रंजीत आऽ पी.सी.मिश्रा जयपुर गेलाह। साँझक हवाई जहाजसँ जयपुर पहुँचलाह। पहुँचलाक उपरान्त चाय-पानिक बाद महारानी पी.सी.मिश्रासँ बजलीह- बौआ विवाह कहिया करब, आब तँ लगन आबय बला छैक आऽ विवाह योग्य भय गेल छी। हम काकासँ बात करू? पी.सी.मिश्र हँसैत कहलन्हि- जे भौजी हमर किछु शर्त अछि, से जँ पूरा भय जायत तँ हम विवाह एखन कय लेब। ई गप सुनि महारानी कहलथिन बुझू बौआ जे अहाँक विवाह भऽ गेल आऽ अपन बातसँ पलटब नहि। पी.सी. एकरा एकटा मजाक बुझि ठहक्का लगा कऽ हँसऽ लगलाह। तावत लगभग रातिक ११ बाजि गेलैक। महारानी कहलथिन- चलू खाना खाऽ लिअ, रुकू हम खाना लगावैत छी। रातुक भोजनमे दू तोर भेल, एक बेर भोजनक लेल बैसलाह पी.सी.मिश्रा, रंजीत ठाकुर आऽ रामानन्द मिश्रा। भोजनक उपरान्त ओऽ तीनू गोटे पहिल तलपर गेलाह सुतक लेल। दोसर बेर फेर भोजन लागल जाहिमे भरत झा, दिलीप झा, राजू झा व नूनू झा – राजू आ नूनू झा महारानीक छोट भाई छथिन-, फेर सभ अपन-अपन बिस्तरपर सुतक लेल गेलाह। भोर भेल चायक आयोजन भेल। सातू गोटे भरत झा, दिलीप झा, रामानन्द मिश्रा, राजू झा, नूनू झा, रंजीत ठाकुर, पी.सी.मिश्रा व महारानी चायक पश्चात् गप्प करए लगलाह। महारानी बजलीह-बौआ विवाह कहिया तक करब। मजाकक स्वरमे पी.सी.मिश्रा बजलाह- देखियौक आब जल्दी करब, कारण जे बाबूजीक फोन आयल छल जे लोक सभ परेशान करैत अछि विवाहक लेल, तँ आब जल्दी भऽ जाएत। ई सुनिते भरत झा बजलाह जे कतेक पैसा लेताह। पी.सी.मिश्रा कहलथिन जे एहन कोनो बात नहि छैक। ई शब्द पूरा होइसँ पहिने बीचेमे रंजीत बजलाह- लड़की जँ नीक भेटत तँ कोनो पाई-रुपैया नहि। ई शब्द सुनिते पाछूसँ महारानीक माय बजलीह- जे कही तँ अनीताक ननदिसँ करा दियौन, लड़की तँ बड़ भव्य छथिन, सज्जन-भव्य व धार्मिक प्रकृतिक घरक, सभटा काज आ लूरि-व्यवहार जनैत छथिन्ह। ई बात पूरा भेलाक बाद महारानी बजलीह जे ओझा ओतेक पाई कतएसँ देथिन्ह। ताहिपर रंजीत बजलाह- पाइक कोनो प्रश्न नहि छैक, हुनकर किछु शर्त छन्हि ओऽ चारूटा शर्त दोहरेलन्हि। ताहिपर दिलीप झा बजलाह- हम चारू शर्तसँ परिपूर्ण छी। ई बात सुनि रामानन्द मिश्र बजलाह जे जल्दीमे काज नहि होयबाक चाही। पहिने ई शर्तपर चिन्तन कैल जाऊ। कारण जे सवाल दू टा जिनगीक अछि आ शर्तक कोनो जवाब नहि अछि। एहन सोच तँ बहुत कम लोकक होइत छनि, ताहि हेतु पुनर्विचार करू।
ई बात पूरा भेलाक बाद दिलीप झा बजलाह जे लड़कीक फोटो देख लेल जाओ आऽ हमहु पढ़ल-लिखल छी आऽ पेशासँ एकटा प्राइवेट शिक्षक छी ताहि हेतु शिक्षाक महत्व बुझैत छी। ई बात सुनिते भरत झा बजलाह- रंजीत ई (फोटो दैत) लिअ आऽ अहाँ सभ देख लिअ। हम भीम बाबू (समधि) सँ बात कऽ लैत छी। बिच्चेमे रंजीत फोटो लैत आऽ पी.सी.मिश्राक हाथ पकड़ैत पहिल तलसँ ऊपर छतपर गेलाह आऽ मजाकक तौरपर बजलाह जे देखू भाई जँ अहाँ नहि करब तँ हमही दोसर विवाह कय लेब। हमरा तँ लड़की बहुत पसन्द अछि। ई कहैत पी.सी.मिश्रकेँ हाथ फोटो पकड़ेलन्हि। फोटो बहुत आकर्षक छल। पी.सी.मिश्र कहलथिन- फोटो तँ बहुत आकर्षक अछि, हमरा किछु सन्देह भऽ रहल अछि। रंजीत उत्तर देलन्हि- भाभी झूठ नहि कहतीह। संदेहक मतलब अछि भाभीपर शक करब। ताहिपर पी.सी.मिश्रा जवाब देलन्हि- हम शकक नजरिसँ नहि देखैत छी, चलू जे छथि, ई तँ हमर शर्तमे नहि शामिल अछि। लेकिन लड़की पढ़ल-लिखल अवश्य चाही। सुन्दर-खराब कोनो बात नहि अछि ई बात करैत दुनू नीचाँ अएलाह। एतबामे महारानी पुनः चाह अनलन्हि, फेर चाहक चुश्की लैत रंजीत बजलाह- देखू सभ बात बुझू भऽ गेल। आगू बात जे बरियाती ६५-७५ तक जाएब आऽ सत्कारमे कोनो तरहक शिकायत नहि। ई बात सुनैत दिलीप झा बजलाह जे सरकार हम गरीब छी, हमरासँ संभव नहि अछि ७५ टा बरियाती, हमरा किछु छूट देल जाऊ! लेकिन सत्कारमे कोनो त्रुटि नहि होएत। ई बातक बिच्चेमे महारानी बजलीह जे लड़काकेँ एकटा अंगूठी आऽ दू भरीक सोनाक चेन (सीकरी) आऽ लड़कीक नामसँ ५१,०००/-क फिक्स डिपोजिटक कागज ओझाजी दऽ देथिन, बरियाती ५१ टाक बात फाइनल, बस आब ने बौआ। ने ई किछु बजताह आऽ ने ओझा किछु बजताह! आर खान-पीन दिन घरक प्रत्येक सदस्यकेँ नीक आऽ ५ टूक कपड़ा। बस रंजीत आब किछु नहि बाजू आऽ ओझाजी अहूँकेँ एतेक तँ करए पड़त। रंजीत किछु बजैक उत्सुकता देखबैत छलाह की बिचमे भरत झा बजलाह जे फेर विवाहसँ एक साल तक दुनू दिस लड़की वलाक काज छैक, रंजीत ताहि हेतु आब बुझू जे ई बहुत महग भऽ गेल।
(अगिला अंकमे)
१. नवेन्दु कुमार झा पटनासँ आऽ २. ज्योति लन्दनसँ
नवेन्दु कुमार झा (१९७४- ), गाम-सुवास, भाया-केवटसा बरुआरी, जिला-मुजफ्फरपुर। समाचार वाचक सह अनुवादक (मैथिली), प्रादेशिक समाचार एकांश, आकाशवाणी, पटना।
शिक्षा दिवस समारोह-छात्र-छात्रा आ बाल वैज्ञानिक देखौलनि अपन प्रतिभा
देशक पहिल शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलामक १२०म जन्म दिवस बिहारमे शिक्षा दिवसक रूपमे मनाओल गेल। मौलाना आजादक जन्म दिवस मनेबाक लेल सरकारी स्तरपर कतेको कार्यक्रम सम्पन्न भेल। राजधानी पटनाक गाँधी मैदानमे दू दिवसीय शिक्षा दिवस सेहो सम्पन्न भेल। दू दिनक एहि कार्यक्रमक अन्तर्गत सरकार द्वारा शिक्षाक क्षेत्रमे कएल जाऽ रहल काज आऽ सरकारक उपलब्धि जनताक सोंझा आनल गेल। स्कूली छात्र सभक कला सांस्कृतिक कार्यक्रमक माध्यमसँ आऽ हुनक प्रतिभा एहिमे लागल विज्ञान प्रदर्शनीमे दृष्टिगोचर भेल। आकर्षक ढंगसँ बनल कतेको पैवेलियनमे विभिन्न संस्थान अपन प्रकाशन आऽ पाठ्यक्रमक जानकारी सेहो उपलब्ध करौलक।
सरकार द्वारा एहि कार्यक्रमक आयोजनक उद्देश्य पछिला तीन सालक सुशासनमे शिक्षा क्षेत्रकेँ प्राथमिकता दऽ जे सभ काज कएलक अछि ओहिसँ बिहार जनताकेँ अवगत करा प्रदेशमे शिक्षाक नव वातावरणबनाएब छल। एहि अवसरपर विविध क्षेत्रमे अपन उत्कृष्ट प्रतिभासँ देश-विदेशमे बिहारक नाम रौशन कएनिहार छात्रकेँ सम्मानित कएल गेल जाहिमे आइ.आइ.टी.क टॉपर शिति कंठ, सी.एल.टी.क पी.जी.मे प्रथम स्थान प्राप्त भावना सिंह, ए.आइ.आइ.एम.एस.मे सफल मधुकर दयाल, आइ.आइ.टी. जमशेदपुरक परीक्षामे तेसर स्थान प्राप्त प्रणव कुमार सिंह, निफ्टमे तृतीय स्थान प्राप्त रोहित कुमार, यू.पी.एस.सी. सी.पी.एफ.२००८क परीक्षामे द्वितीय उत्तम कश्यप आऽ अन्तर्राष्ट्रय ज्योतिष ओलम्पियाडमे स्वर्ण पदक विजेता शांतनु अग्रवाल “बिहार गौरव सम्मान”सँ अलंकृत भेलाह। एकर अतिरिक्त बिहार संयुक्त प्रवेश परीक्षामे एकसँ तीन रैंक प्राप्त करऽबाला छात्र, आइ.आइ.टीमे नामांकित तेरह टा छात्र आऽ माध्यमिक परीक्षामे प्रदेश आऽ जिला स्तरपर टॉपर नौ टा छात्रकेँ सेहो प्रशस्ति-पत्र आऽ टाका दऽ सम्मानित कएल गेल। एहि वर्षक माध्यमिक परीक्षाक टॉपर कुणाल प्रतापकेँ सरकार पचीस हजार टाका दऽ सम्मानित कएलक। सभकेँ शिक्षा देएबाक लेल चलाओल जाऽ रहल सर्व शिक्षा अभियानमे उत्कृष्ट काजक लेल “प्रथम मौलाना आजाद शिक्षा पुरस्कार” श्रीमती रुक्मिणी बनर्जीकेँ देल गेल। माध्यमिक आऽ इंटरमीडिएट परीक्षाक एहि वर्षक सभ संकायक टॉपरकेँ प्रशस्ति पत्र आऽ २५-२५ हजार टाका दऽ सम्मानित कएल गेल। दू दिनक एहि कार्यक्रमक क्रममे गोटेक १५० सँ बेसी आयोजित शैक्षिक गतिविधि आऽ प्रतियोगिता सभमे चयनित डेढ़ दर्जन छात्रकेँ स्मृति चिन्ह आऽ प्रशस्ति-पत्र दऽ पुरस्कृत कएल गेल। एहि मेलामे आयोजित राज्य स्तरीय विज्ञान प्रतियिगिताक विजेता नीतेश, क्वीज प्रतियोगिताक विजेता शिवानन्द गिरी आऽ अनुराधा कुमारीकेँ पुरस्कार स्वरूप लैपटाप प्रदान कएल गेल।
एहि समारोहक अवसरपर ३६म राज्य स्तरीय जवाहर लाल नेहरू बाल विज्ञान प्रदर्शनीक आयोजन सेहो कएल गेल जाहिमे बाल वैज्ञानिक सभ द्वारा बनाओल गेल गोटेक १०० मॉडलक प्रदर्शन कएल गेल। राज्य शिक्षा शोध आऽ प्रशिक्षण परिषद् द्वारा आयोजित एहि प्रदर्शनीक विषय छल “वैश्विक संपोषणीयता के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी”। विज्ञानक प्रति छात्र-छात्रा आऽ जनसामान्यमे सहज आऽ स्वाभाविक अभिरुचि उत्पन्न करैत एहि प्रदर्शनीमे बाल वैज्ञानिक सभ खूब उत्साहित छल। एहि माध्यमसँ सर्वश्रेष्ठ तीन मॉडलक बाल वैज्ञानिकक चयन पूर्वी भारत विज्ञान मेला आऽ राष्ट्रीय विज्ञान प्रदर्शनी लेल कएल गेल। एहि ठाम लागल मैथिली, भोजपुरी, हिन्दी, मगही आऽ उर्दू अकादमीक स्टॉलपर लोक सभ भाषा अकादमी सभक प्रकाशन आऽ गतिविधिक जानकारीक संग किताबक खरीद सेहो कएलनि। चाणक्य लॉ युनिवर्सिटी, चन्द्रगुप्त प्रबंधन संस्थान, काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान, पटना विश्वविद्यालय, इग्नू, माइक्रोसाफ्ट, इंटेल, एडुकैम्प आदि कतेको संस्थान अपन पाठ्यक्रम आऽ गतिविधिक जनतब देलक। बिहार विद्यालय परीक्षा समितिक स्टॉलपर माध्यमिक आऽ इंटरमीडिएटक कला, विज्ञान आऽ वाणिज्यिक टॉपर छात्रक उत्तरपुस्तिका सेहो पैघ संख्यामे छात्र सभ खरीदलनि।
पछिला किछु वर्षसँ प्रदेशक शिक्षा-व्यवस्था ध्वस्त भऽ गेल छल। प्रदेशमे नीतीश सरकारक सत्तारूढ़ भेलाक बाद एहिमे सुधारक आश बनल छल, जाहिमे प्रगति देखल जाऽ रहल अछि। प्रतिभासँ भरल एहि प्रदेशक छात्रकेँ शिक्षा दिवसक अवसरपर सरकारक उपलब्धि आऽ कार्यक्रमसँ एकटा किरण देखाई पड़ल अछि, मुदा ई उपलब्धि मात्र कार्यक्रमक आयोजन धरि सीमित नहि रहए एकर ईमानदारीसँ सरकारी स्तरपर प्रयास चलैत रहल तँ शिक्षाक क्षेत्रमे बिहार गौरव फेरसँ लौटि सकैत अछि।
३२म राष्ट्रीय पुस्तक मेला-पुस्तक प्रेमीमे भेल नव उत्साहक संचार
बिहार सरकार आऽ पटना जिला प्रशासनक सहयोगसँ नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा आयोजित ३२म राष्ट्रीय पुस्तक मेलामे उमरल पुस्तक प्रेमी सभक भीड़सँ एक बेर फेर साबित भेल जे प्रदेशक जनतामे पढ़बाक जिज्ञासा एखनो बनल अछि। ई पुस्तक मेला छात्र-युवा नेनासँ बुजुर्ग धरि सभ पुस्तक प्रेमीमे एकटा नव उत्साहक संचार कएलक। जखन कि पहिनहिसँ एकटा आन पुस्तक मेला एहि गाँधी मैदानमे चलैत छल तथापि एहि पुस्तक मेलामे जाहि तरहक भीड़ उमड़ल ओहिसँ लगैत छल जे पाठक कतेक दिनसँ किताबक भूख मेटेबाक लेल बेचैन छलाह। एहि मेलामे लागल स्टॉल सभपर पुस्तक प्रेमीक भीड़ देखि प्रसिद्ध कवि अशोक वाजपेयीक ई टिप्पणी जे “साहित्यक पाठक आऽ रसिक एखनो बिहारमे छथि आऽ बिहार नहि होइत तँ हमरा सभमे सँ कतेकोकेँ ई पता नहि चलैत जे हमरा सभक लिखल केओ पढ़बो करैत अछि” स्पष्ट करैत अछि जे गरीब बिहार शैक्षणिक रूपसँ एखनो अमीर अछि। एहि मेलामे विविध विषयक पुस्तक प्रकाशक द्वारा तँ उपलब्ध कराओल गेल संगहि एन.बी.टी. हिन्दी, उर्दू, मैथिली आऽ आन भाषाक कतेको लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारसँ सोझां-सोझी अनौपचारिक गप-सप करा पाठक आ लेखकक बीच संवाद स्थापित करा लेखक साहित्य रचना, प्रक्रिया आऽ हुनक साहित्यिक यात्रा आऽ पाठकक मनक जिज्ञासाकेँ शान्त करौलक। ट्रस्ट अधिकारी देवशंकर नवीन जनतब देलनि जे एहि मेलामे देशक गोटेक १५० प्रकाशकक पुस्तक १७५ स्टॉलपर पुस्तक प्रेमीक लेल उपलब्ध कराओल गेल।
एहि मेलामे सभक लेल हुनक मन पसन्दक पुस्तक उपलब्ध छल। महान् विभूतिक जीवन यात्रा हो कि आत्म-कथा, नव-पुरान साहित्यकारक संग कालजयी साहित्यकारक कहानी-संग्रह, कविता-संग्रह, उपन्यास सभ एक संग मेलामे पुस्तक-प्रेमीकेँ अपना दिस ध्यान आकृष्ट कएलक। पाठक सेहो एहि अवसरक पूरा लाभ उठौलनि आऽ अपन रुचिकर पुस्तकक खरीददारी कएलनि। मेलामे आधा आबादीक प्रतिनिधित्व सेहो पैघ संख्यामे देखल गेल। महिला साहित्यकार आऽ लेखकक साहित्यिक कृति तँ उपलब्ध छल संगहि हुनक रुचिवाला खान-पान, सौंदर्य आदिसँ संबंधित पुस्तक लेनाई प्रकाशक नहि बिसरल छलाह। प्रतियोगी छात्र आऽ नेना सभक लेल सेहो पुस्तक पर्याप्त उपलब्ध छल। जहिना साहित्य प्रेमी एहि मेलाकेँ गंभीरतासँ लेलनि तहिना प्रकाशक सेहो साहित्यिक पुस्तकक पूरा सेटक प्रदर्शन कएलनि। मेलामे विज्ञान संकायक पुस्तकक अभाव विशेष रूपसँ छात्र सभकेँ खटकल।
मैथिली भाषीक लेल ई पुस्तक मेला पुस्तक खरीदबाक लेल नीक अवसरपर रहल। साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक अकादमीक स्टॉलपर पचास प्रतिशत छूटक संग उपलब्ध रहल आऽ एकर लाभ उठबैत मैथिली प्रेमी पैघ संख्यामे पुस्तकक खरीद कएलनि। मैथिली अकादमीक सेहो नव रूप एहि मेलामे देखल गेल। एहि सभक मध्य हरियाणा पुलिस अकादमीक स्टॉल आकर्षणक केन्द्र बनल रहए जतए संवेदी पुलिस सजग समाजक नारा बुलन्द करैत अकादमीक अधिकारी पुलिस आऽ जनताक मध्य संवाद स्थापित करबाक लेल कएल जाऽ रहल अभ्यास आऽ विभिन्न कानूनक जानकारी उपलब्ध कराओल गेल।
प्रकाशक सभक लेल सेहो ई पुस्तक मेला एकटा नव अनुभव दऽ गेल। मेलामे भेल बिक्रीसँ उत्साहित प्रकाशक कहलनि जे जतेक पाठक बिहारमे छथि ओतेक आर कतहु नहि अछि। गरीबी आऽ अशिक्षाक बावजूद पुस्तकक प्रति भूख अपना आपमे एकटा मिशाल अछि। ओऽ आशा जतौलनि जे अगिला साल एहि ठाम अन्तर्राष्ट्रीय पुस्तक मेलाक आयोजन भऽ सकैत अछि।
एहि पुस्तक मेलामे बंग्ला भाषाक साहित्यकार नजरुल इस्लाम, तेलुगु कवि बरबर राव, हिन्दीक अरुण कमल, केदारनाथ सिंह, गंगा प्रसाद विमल, अशोक वाजपेयी, उर्दूक हुसैनुल हक, अब्दुस्समद, मैथिलीक मोहन भारद्वाज, पं गोविन्द झाक अलावा जुबैर रिजवी, कीर्ति नारायण मिश्र, अवधेश प्रीत, कर्मेन्दु शिशिर आदि कतेको साहित्यकार पुस्तक प्रेमी सभसँ संवाद कएलनि। मेलाक समापनक अवसरपर बहुभाषी कवि गोष्ठीमे हिन्दी, मैथिली उर्दू आऽ भोजपुरीक कतेको कवि अपन कविताक पाठ कएलनि।
२. ज्योति लन्दनसँ
लन्दनक चित्रकला प्रदर्शनी
लन्दनक एक प्रसिद्ध आर्ट गैलेरीमे ईलिंग आर्ट ग्रुपक ९३म वार्षिक चित्रकला एवम् हस्तकला प्रदर्शनीमे माननीय सदस्यगण सहित हमहुं अपन चित्रकला शामिल केने रही।हम तीनटा मधुबनी मिथिला चित्रकला आ एकटा महाकवि स्वर्गीय विद्यापतिजीक पेसिंल स्केच प्रदर्शित केने रही।ओतय २०० सऽ बेसी अनेको प्रकारक उत्कृष्ट नमूना उपलब्ध छल।अहिमे लगभग ३' बाइ ५' के विशाल आकारक कैनवास पर बनल ऑयल पेण्टिग एक्रिलिक पेण्टिग आदि मिडियासऽ बनल आकर्षक चित्र सब उपस्थित छल। किछु मात्र प्रदर्शनी लेल छलै आ बेसी विक्रय हेतु उपस्थित छलै। न्युनतम दाम £ ५० छल।
देखनाहरक भीड़ सेहो खूब छल।अंग्रेज सब सेहो मिथिला पेण्टिग लग रूकै छलैथ आ हमरा सऽ किछु जानकारी प्राप्त करैके कोशिश सेहो केलैथ। विदेशमे अहि कलाक प्रति लोकक रूचि सराहनीय अछि।
मिथिलांचलक सूर्य पूजन स्थल
डॉ प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’ (१९३८- )- ग्राम+पोस्ट- हसनपुर, जिला-समस्तीपुर। पिता स्व. वीरेन्द्र नारायण सिँह, माता स्व. रामकली देवी। जन्मतिथि- २० जनवरी १९३८. एम.ए., डिप.एड., विद्या-वारिधि(डि.लिट)। सेवाक्रम: नेपाल आऽ भारतमे प्राध्यापन। १.म.मो.कॉलेज, विराटनगर, नेपाल, १९६३-७३ ई.। २. प्रधानाचार्य, रा.प्र. सिंह कॉलेज, महनार (वैशाली), १९७३-९१ ई.। ३. महाविद्यालय निरीक्षक, बी.आर. अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर, १९९१-९८.
मैथिलीक अतिरिक्त नेपाली अंग्रेजी आऽ हिन्दीक ज्ञाता।
मैथिलीमे १.नेपालक मैथिली साहित्यक इतिहास(विराटनगर,१९७२ई.), २.ब्रह्मग्राम(रिपोर्ताज दरभंगा १९७२ ई.), ३.’मैथिली’ त्रैमासिकक सम्पादन (विराटनगर,नेपाल १९७०-७३ई.), ४.मैथिलीक नेनागीत (पटना, १९८८ ई.), ५.नेपालक आधुनिक मैथिली साहित्य (पटना, १९९८ ई.), ६. प्रेमचन्द चयनित कथा, भाग- १ आऽ २ (अनुवाद), ७. वाल्मीकिक देशमे (महनार, २००५ ई.)।
प्रकाशनाधीन: “विदापत” (लोकधर्मी नाट्य) एवं “मिथिलाक लोकसंस्कृति”।
भूमिका लेखन: १. नेपालक शिलोत्कीर्ण मैथिली गीत (डॉ रामदेव झा), २.धर्मराज युधिष्ठिर (महाकाव्य प्रो. लक्ष्मण शास्त्री), ३.अनंग कुसुमा (महाकाव्य डॉ मणिपद्म), ४.जट-जटिन/ सामा-चकेबा/ अनिल पतंग), ५.जट-जटिन (रामभरोस कापड़ि भ्रमर)।
अकादमिक अवदान: परामर्शी, साहित्य अकादमी, दिल्ली। कार्यकारिणी सदस्य, भारतीय नृत्य कला मन्दिर, पटना। सदस्य, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर। भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली। कार्यकारिणी सदस्य, जनकपुर ललित कला प्रतिष्ठान, जनकपुरधाम, नेपाल।
सम्मान: मौन जीकेँ साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार, २००४ ई., मिथिला विभूति सम्मान, दरभंगा, रेणु सम्मान, विराटनगर, नेपाल, मैथिली इतिहास सम्मान, वीरगंज, नेपाल, लोक-संस्कृति सम्मान, जनकपुरधाम,नेपाल, सलहेस शिखर सम्मान, सिरहा नेपाल, पूर्वोत्तर मैथिल सम्मान, गौहाटी, सरहपाद शिखर सम्मान, रानी, बेगूसराय आऽ चेतना समिति, पटनाक सम्मान भेटल छन्हि।
राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठीमे सहभागिता- इम्फाल (मणिपुर), गोहाटी (असम), कोलकाता (प. बंगाल), भोपाल (मध्यप्रदेश), आगरा (उ.प्र.), भागलपुर, हजारीबाग, (झारखण्ड), सहरसा, मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, वैशाली, पटना, काठमाण्डू (नेपाल), जनकपुर (नेपाल)।
मीडिया: भारत एवं नेपालक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे सहस्राधिक रचना प्रकाशित। आकाशवाणी एवं दूरदर्शनसँ प्रायः साठ-सत्तर वार्तादि प्रसारित।
अप्रकाशित कृति सभ: १. मिथिलाक लोकसंस्कृति, २. बिहरैत बनजारा मन (रिपोर्ताज), ३.मैथिलीक गाथा-नायक, ४.कथा-लघु-कथा, ५.शोध-बोध (अनुसन्धान परक आलेख)।
व्यक्तित्व-कृतित्व मूल्यांकन: प्रो. प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन: साधना और साहित्य, सम्पादक डॉ.रामप्रवेश सिंह, डॉ. शेखर शंकर (मुजफ्फरपुर, १९९८ई.)।
चर्चित हिन्दी पुस्तक सभ: थारू लोकगीत (१९६८ ई.), सुनसरी (रिपोर्ताज, १९७७), बिहार के बौद्ध संदर्भ (१९९२), हमारे लोक देवी-देवता (१९९९ ई.), बिहार की जैन संस्कृति (२००४ ई.), मेरे रेडियो नाटक (१९९१ ई.), सम्पादित- बुद्ध, विदेह और मिथिला (१९८५), बुद्ध और विहार (१९८४ ई.), बुद्ध और अम्बपाली (१९८७ ई.), राजा सलहेस: साहित्य और संस्कृति (२००२ ई.), मिथिला की लोक संस्कृति (२००६ ई.)।
वर्तमानमे मौनजी अपन गाममे साहित्य शोध आऽ रचनामे लीन छथि।
मिथिलांचलक सूर्य पूजन स्थल
भारतीय सनातन समाजमे प्रत्येक आनुष्ठानिक सत्कर्मक आरम्भ पंचदेवताक पूजनसँ होइछ। ओ पंचदेव छथि- दुर्गा (शक्ति), शिव, विष्णु, सूर्य एवं गणेश। पंचदेवताभ्यो नमः। परब्रह्म परमात्माक प्रत्यक्ष पूजोपासना सूर्यसँ होइछ। श्रुति, स्मृति, पुराणादि सम्मत सूर्यसँ जीव सभ उत्पन्न होइछ। हिनकेसँ यज्ञ, मेघ, अन्न ओ आत्मा अछि। अतः हे आदित्य, अहाँकेँ नमस्कार! आदित्ये प्रत्यक्ष ब्रह्म छथि, साक्षात् विष्णु छथि, प्रत्यक्ष रुद्र छथि। हिनकेसँ भूमि, जल, ज्योति, आकाश, दिक्, देवगण एवं वेद उत्पन्न होइछ। अतः आदित्य ब्रह्म छथि (वृहदारण्यकोपनिषत् ३.७९)। “आदित्य हृदय” (श्लोक ३६, ४४-५३) मे सूर्यकेँ सर्वयज्ञ स्वरूप, ऋक्, यजु एवं सामवेद, चन्द्र-सूर्य-अग्नि नेत्रधारी, ओ सर्वतंत्रमय कहल गेल अछि।
“आदित्य हृदय” (श्लोक ५९-६१) मे द्वादश आदित्यक उल्लेख भेल अछि- विष्णु, शिव, ब्रह्मा, प्रजापति, महेन्द्र, काल, यम, वरुण, वायु, अग्नि, कुबेर एवं तत्वादिक स्रष्टा ओ स्वतः सिद्ध अधीश्वर। उदयकालमे ओ ब्रह्मा, मध्याह्नमे महेश एवं अस्तवेलामे विष्णु स्वरूप सूर्य त्रिमूर्ति छथि। जेना शिवस्वरूप त्रिमूर्तिमे सदाशिवक संगे सौम्य ओ रौद्र रूप (भैरव) उत्कीर्ण होइत छथि। शिवलिंग ओ विष्णुलिंग जकाँ सूर्यक पूजोपासना ब्रह्म लिंगक रूपमे कयल जाइछ। सूर्यकेँ गगनलिंग सेहो कहल जाइत छनि। सूर्यमण्डलमे गायत्रीक ध्यानक विधान अछि।
विष्णु सेहो एकटा आदित्य छथि- भगवत आदितश्च। सूर्यक लाक्षण (चक्र) विष्णुक सुदर्शन चक्र बनि गेल। प्राचीन सिक्का (वृष्णि ओ गणराज्यक) पर अंकित चक्रक अभिप्राय सूर्यसँ अछि। प्रायः देवी-देवताक प्राथमिक लक्षण प्रतीक रूपेँ अभिव्यंजित भेल। कालान्तरमे बोधगम्यताक दृष्टिसँ हुनक स्वरूपक विधान कयल गेल। तदनुसार सूर्य सप्ताश्वक रथपर ठाढ़ छथि। आगाँमे सारथि अरुण बैसल छथि। माथपर उन्नत किरीट (मुकुट) शोभित छनि। दुनू हाथमे कमल पुष्प अछि। डाँरमे तरुआरि लटकल छनि। पार्श्वदेवीक रूपमे उषा ओ प्रत्युषा उत्कीर्ण छथि। सूर्यक देह जिरह बख्तरसँ अलंकृत अछि। कोनो कोनो मूर्तिमे पार्श्वदेवताक रूपमे कलम लेने पिंगल ओ दण्ड लेने दण्डी सेहो ठाढ़ छथि। सूर्य पैरमे नमहर बूट पहिरने छथि। ई सभ शक-ईरानी लक्षण मानल जाइछ। भारतीय सूर्य मूर्ति विज्ञानपर कुषाण कालमे इरानी प्रभाव बढ़ि गेल छल। बोधगयाक पाथरक बेष्टन वेदिका (रेलिंग) पर एवं कुम्हरार (पटना) क माँटिक पट्टी (मृण्फलक) पर सूर्यक सबसँ प्राचीन प्रतिमांकन भेल अछि। बोधगया रेलिंगपर उत्कीर्ण सूर्य चारो दिशा सभक सूचक चारिटा अश्वक रथपर आरुढ़ छथि। सूर्यक दुनूकालमे उषा ओ प्रत्युषा हाथमे धनुष-वाण लेने अंधकारक बेधन करैत छथि। आलोच्य सूर्यक प्राचीनतम मूर्ति “अंधकार पर सूर्यक विजय” सूचक अछि। सूर्यक पाछाँ वृत्ताकार आभामंडल बनल अछि। एहिसँ संकेत प्राप्त होइछ जे सूर्यक पूजा शकस्थानसँ भारतमे आयल।
मुदा बोधगया रेलिंगपर उत्कीर्ण उदीच्य वेषधारी सूर्य मूर्ति विदेशी परम्परासँ भिन्न ओ प्राचीन (शुंगकालीन) अछि। इरानी प्रभावसँ पहिने एहि ठाम सूर्य मूर्तिक भारतीय अवधारणा सुनिश्चित छल (भारतीय कला को बिहार की देन, बी.पी.सिन्हा, पटना, १९५८, पृ.८१-८३)। कुम्हरार (पटना) क सूर्य (मूर्ति) चारिटा घोड़ाक रथपर आरुढ़ छथि। माटिक गोल पट्टीपर बनल एहि सूर्यकेँ भारतीय सूर्य मूर्ति परम्परामे सर्वप्राचीन मानल जाऽ सकैछ। शाहाबाद एवं मुंगेरसँ प्राप्त सूर्य उदीच्य वेषधारी छथि। पार्श्वदेवता कलमधारी पिंगल त्रिभंग मुद्रामे ठाढ़ मनुष्यक सुकृत्य ओ कुकृत्यक लेखन कऽ रहल छथि एवं दहिन दिस विधर्मी सभकेँ दण्डित करबाक लेल हाथमे दण्ड लेने दण्डी तत्पर छथि। वाम भागमे सूर्यक पत्नी उषा ओ दहिनमे प्रत्युषा अंधकारक बेधन कऽ रहल छथि। शाहाबाद जिलासँ प्राप्त सूर्यमूर्ति संभवतः गुप्तकालीन कलाकृति थिक। गरामे एकावली (माला) शोभित छनि एवं कृपाण वाम भागमे लटकल छनि। दक्षिण बिहारमे सूर्य मन्दिर, सूर्यमूर्ति ओ सूर्योपासनाक केन्द्र उत्तर बिहारक अपेक्षा अधिक अछि।
सत्यार्थीक सर्वेक्षणक अनुसार सांस्कृतिक मिथिलांचलमे सूर्योपासनाक प्राचीन ऐतिहासिक केन्द्रक रूपमे विष्णु बरुआर (मधुबनी) क द्वादश आदित्यक रूपेँ पूजित पालकालीन सूर्यमूर्ति अछि। मूल सूर्यमूर्तिक प्रभावलीमे बारहटा आदित्यक स्वरूप उत्कीर्ण अछि। मिथिलांचलक अन्यान्य सूर्यमूर्ति जकाँ सूर्यक देहपर जिरह-बख्तरादि नहि छनि। ओ भारतीय भेषभूषा ओ आभूषणसँ विन्यस्त छथि। यद्यपि स्थलक नाम विष्णु बोधक अछि। एहि ठाम सूर्य विष्णु रूपेँ पूजित छथि।
सत्येन्द्र कुमार झाक अनुशीलन (मिथिला की पाल प्रतिमाएँ) क अनुसार मधुबनीक झंझारपुर-मधेपुर पट्टीक कोशी-बलानक पुरान प्रवाह क्षेत्रक सूर्य नाहर-भगवतीपुर ओ भीठ भगवानपुरक अतिरिक्त राजनगर, पस्टन एवं पटलामे प्राप्त अछि। एहि पट्टीसँ कनेक हटिकऽ एकटा सूर्यमूर्ति जगदीशपुर (मनीगाछी प्रखण्ड, दरभंगा)सँ सेहो उपलब्ध भेल अछि। एहि सूर्य पूजन पट्टीक सर्वाधिक आकर्षक ओ प्रभावशाली सूर्य मूर्ति (आकार ४८ इन्च गुणा २४ से.मी.) परसा (झंझारपुर, मधुबनी) क अछि। तेरहम सदीक बनल ई मूर्ति सूक्ष्म अलंकरणसँ भरल अछि। एहिसँ एकटा धारणा ई बनैत अछि जे सूर्य मूर्तिक पूजन एकटा सीमित क्षेत्र धरि छल। मुदा हिनक अवधारणाक खंडन देवपुरा (बेनीपट्टी प्रखण्ड, मधुबनी), रघेपुरा (असगाँव-धरमपुर), डिलाही, कोर्थ, देकुली, अरई, रतनपुर, छर्रापट्टी, कुर्सो-नदियामी, हाबीडीह (दरभंगा), भोज परौल, भीठ भगवानपुर, अकौर, अन्धराठाढ़ी, रखवारी, गाण्डीवेश्वर, झंझारपुर (मधुबनी) एवं वीरपुर, बरौनी, नौलागढ़ (बेगुसराय), सवास (मुजफ्फरपुर), कन्दाहा (सहरसा), बड़ीजान (किशनगंज) आदि ऐतिहासिक ओ धार्मिक स्थल सभसँ सूर्य मूर्तिक प्राप्तिसँ भऽ जाइछ। लौकिक स्तरपर सूर्योपासनाक परिदृश्य गाम-गाममे पसरल छठ पर्व सर्वाधिक लोकप्रियताक उदाहरण अछि।
अजय कुमार सिन्हा (बड़ीजान का पुरातात्विक महत्व, कोशी महोत्सव २००३ ई.) किशनगंज जिला मुख्यालयसँ प्रायः पचीस कि.मी.उत्तर-पश्चिम दिशामे अवस्थित बड़ीजान दुर्गापुरक विशाल सूर्यमूर्ति (५फीट ७ इन्च गुणा २ फीट ११ इन्च) क अपन शोधपत्रमे उल्लेख कयने छथि। बड़ी जान दुर्गापुर पुरातात्विक भग्नावशेषसँ भरल अछि, जाहिमे दसम शताब्दीक भव्य मन्दिरक स्थापत्य प्रमुख अछि- सूर्यक विशाल दू खण्डित पाथरक मूर्ति, मन्दिरक अलंकृत चौखट, बहुतरास शिवलिंग, पाथरक एकटा सोहावटी (लिन्टेल) मध्य गणेश एवं दोसरक केन्द्रमे उत्कीर्ण त्रिशूल। दुर्गापुर नामक संलग्नता आदिकेँ देखैत बड़ीजान पंचदेवोपासक क्षेत्र छल। बहुतरास मन्दिर सभ भग्नावशिष्ट अछि। मूर्ति विज्ञानक दृष्टिसँ एहि ठामक सूर्य मूर्तिकेँ अजय कुमार सिन्हा एगारहम सदीक कहने छथि। एहि क्षेत्रमे शैवमतक प्रधानता छल। मुदा सीमान्त क्षेत्रमे अवस्थित भेलाक कारणे एहिठाम सूर्य मन्दिरक होएब स्वाभाविक अछि।
कोशी क्षेत्रक (सुविदेह, अंगुत्तर आदिक रूपेँ ख्यात) दोसर सूर्य मन्दिरक साक्षात कन्दाहा (सहरसा) मे कयल जाऽ सकैछ। कन्दाहाक सूर्यमन्दिर सहरसा जिला मुख्यालयसँ चौदह कि.मी. पश्चिम वनगाँव-महिषी क्षेत्रमे अवस्थित अछि। वनगाँव, महिषी एवं कन्दाहाकेँ जँ त्रिभुज बनाओल जाय तँ ओऽ सभ स्थल समकोणपर अवस्थित अछि। हवलदार त्रिपाठी सहृदय (बिहार की नदियाँ)क मतेँ एहि ठामक बुद्धक समकालीन कोणियवाहक जटिल ब्राह्मण छल।
कन्दाहाक सूर्यमन्दिरक गर्भगृहमे स्थापित भगवान सूर्यक मूर्तिकेँ भवादित्य (द्वादश आदित्यक एकटा प्रकार) कहल गेल अछि। सूर्यक संग उषा एवं प्रत्युषा सेहो उत्कीर्ण छथि। मन्दिरक द्वार स्तंभ (चौखट) पर उत्कीर्ण शिलालेखक अनुसार (१४५३ ई.) वर्तमान सूर्यमन्दिरक निर्माता ओइनवार वंशीय हरसिंहदेवक पुत्र नरसिंहदेव छलाह। शिलालेखक प्रशस्तिमे नरसिंहदेवकेँ भूपतिलक, महादानी, धीरवीर आदि कहल गेल छनि। विद्यापतिक पदावलीक भणिता (सुभद्र झा द्वारा सम्पादित पदांक ४४-४५)सँ नरसिंहदेवक ऐतिहासिक अवस्थितिक सेहो पुष्टि होइछ। सूर्यमन्दिर लगक कूपजलक सेवनसँ चर्मरोग समाप्त भऽ जाइछ। सूर्योपासनासँ चर्मरोग, कुष्टादि रोगसँ मुक्तिक अनेक पौराणिक अनुश्रुति अछि। एहि तरहेँ कन्दाहाक सूर्य मन्दिर सूर्योपासनाक प्रसिद्ध केन्द्र बनल अछि।
नाहर भगवतीपुर (मधुबनी)क प्रसिद्धि जतेक महिषासुर मर्दिनी भगवतीक तेजस्विताक कारणे अछि ओतबे ख्याति पाथरक अनेक सूर्यमूर्ति (मध्यकालीन)क कारणे अछि। मूर्ति सभमे धनुष धारिणी पार्श्वदेवीक अपेक्षा पैघ पार्श्वदेवक रूपेँ पिंगल ओ दण्डी उत्कीर्ण अछि। सिरोभूषणक स्थान सिमरौनगढ़ (घोड़ासाहन, चम्पारणसँ उत्तर नेपालक तराइक सीमान्त क्षेत्र) क सूर्यमूर्ति जकाँ अलगसँ मुकुट लगयबाक स्थान खाली छोड़ल गेल अछि। नाहर भगवतीपुरक सूर्यमूर्ति कर्णाटकालीन थिक। सिमरौनगढ़सँ प्राप्त एवं काठमाण्डूक राष्ट्रिय संग्रहालयमे संरक्षित एकटा अभिलेखांकित कर्णाटकालीन सूर्यमूर्तिक सूचना तारानन्द मिश्र (प्राचीन नेपाल -२४- काठमाण्डौ, नेपाल) देने छथि।
एहि सभसँ किंचित भिन्न ओ विशिष्ट सूर्यमूर्ति सवास, गायघाट प्रखण्ड (मुजफ्फरपुर)सँ प्राप्त अछि। सूर्यमूर्ति पाँच फीट नमहर अछि, जे ओहिठामक एकटा मन्दिरमे स्थापित एवं लक्ष्मीनारायणक नामे पूजित छथि। सूर्यक प्रतिरूप विष्णुकेँ मानल गेल अछि। सूर्य सप्ताश्वक रथपर स्थानुक मुद्रामे ठाढ़ छथि। ठेहुनधारी अधोवस्त्र ओ वामकंधसँ आवक्ष बन्हैत उत्तरीय एवं वस्त्राभूषणसँ सूर्य आच्छादित छथि। कान्हपर यज्ञोपवीत एवं डाँरमे कटार छनि। कर्णाटवंशी राजा लोकनि सूर्यवंशी क्षत्रिय छलाह। अतः पंचदेवोपासक भूमि मिथिलाक अनेक कर्णाट शासित क्षेत्रसँ सूर्य मूर्तिक प्राप्ति स्वाभाविके मानल जायत। कर्णाटकालीन तिरहुतक राजधानी सिमरौनगढ़ (सिमरौनगढ़ को इतिहास, मोहन प्रसाद खनाल, काठमांडौ, नेपाल, २०५६ वि.), अन्धराठाढ़ीक कमलादित्य स्थान (मधुबनी), भीठ भगवानपुर (मधुबनी) मूर्तिया (नेपाल तराइ), कुर्सो नदियामी (दरभंगा), कोर्थ (दरभंगा) आदि ऐतिहासिक ओ धार्मिक स्थान सभसँ प्राप्त अछि। सिमरौनगढ़क सूर्य मूर्तिक निर्माण याज्ञिक श्रीपतिक लेल हरसिंहदेवक मंत्री गणेशक आदेशपर कयल गेल छल (प्राचीन नेपाल-२४)। कर्णाटवंशी राजालोकनि पंचदेवोपासक छलाह।
मिथिलांचलक बरौनी-बेगुसराय क्षेत्रमे सूर्योपासनाक ऐतिहासिक अवशेष सभ उपलभ्य अछि। वीरपुर-वरियारपुर ओ कैथसँ सूर्यक अलावा हुनक पुत्र रेवन्तक पाथरक प्राचीन मूर्ति प्राप्त भेल अछि। बरौनी ओ चकबेदौलियाक सूर्य मन्दिर दर्शनीय अछि। एहि भूभागक किछु सूर्यमूर्ति जी.डी.कॉलेज, बेगुसरायक संग्रहालयमे संरक्षित अछि। डॉ. सत्यनारायण ठाकुर ( मिथिला में मंदिरों का प्रादुर्भाव एवं स्वरूप, मिथिला की लोकसंस्कृति विशेषांक, दरभंगा, २००६ ई.) मिथिलांचलक अकौर, झंझारपुर, राजनगर ओ कंदर्पीघाटक सूर्य मन्दिर सभक उल्लेख कयने छथि। मुदा सत्येन्द्र कुमार झाक अनुसार नाहर भगवतीपुर सूर्योपासनाक पैघ केन्द्र छल जाहि ठाम चारिटा महत्वपूर्ण सूर्य मूर्ति उपलभ्य ओ पूजित अछि।
उपर्युक्त सर्वेक्षणात्मक अनुशीलनसँ स्पष्ट भऽ जाइछ जे सांस्कृतिक मिथिलांचलक पूर्वी छोड़ बड़ीजान दुर्गापुर (किशनगंज)सँ पश्चिममे अकौर (मधुबनी), उत्तरमे सिमरौनागढ़ (मिथिला नेपाल सीमान्त) एवं दक्षिणमे बरौनी-बेगुसराय धरि सूर्यमन्दिर ओ सूर्योपासनाक क्षेत्र विस्तृत छल। ओकरा राजकीय संरक्षण एवं लोकाश्रय प्राप्त छल। आर्य सूर्यप्रतिबद्ध लोक छलाह। मिथिलांचलक दक्षिणी सीमान्तक गंगातटवर्ती क्षेत्र (जढुआ, हाजीपुर, वैशाली)क सूर्योपासना यदुवंशी लोकनिक सुरजाहा सम्प्रदाय अवशिष्ट अछि। एहि जनपदक ज्योति एवं कारिख पंजियार सन लोकदेवता सूर्योपासक छलाह। हुनक स्वरूप वेदनिष्ठ ब्राह्मणक अछि। हुनक पैरमे खराम, अधोवस्त्रमे धोती, कान्हपर जनेउ, माथपर तिलक, हाथमे पोथी-पतरा एवं सोनाक चाभुक (किरणक प्रतीक) शोभित छनि-
पैर खरमुआ हो दिनानाथ, हाथ सटकुन।
देह जनेउआ हो दिनानाथ, तिलक लिलार॥– मैथिली प्रकाश, (शोध विशेषांक, मैथिली लोकसाहित्यक भूमिका, प्रो. मौन, कलकत्ता, जनवरी-फरवरी १९७६)।
मैथिली लोकसाहित्यक संदर्भमे सूर्य पूर्वदिशाक अधिपति छथि।
बिहारक धरतीपर सूर्यक प्राचीनतम स्वरूप कुम्हरार (पटना) सँ प्राप्य अछि जाहिमे सूर्य एकचक्रीय अश्वरथपर सवार (ई.पू. पहिल सदी) छथि। एकर विकास बोधगया रेलिंग (शुंगकालीन) पर उत्कीर्ण चारि घोड़ावाला रथपर आरुढ़ सूर्य मूर्तिमे भेल अछि, जाहिमे पार्श्वदेवी उषा ओ प्रत्युषा सेहो अभिशिल्पित छथि। कुषाणकालक सूर्य मूर्तिक विशिष्ट पहचान पैरमे इरानी बूट, देहमे जिरह-बख्तर ओ माथपर किरीट बनि गेल। एहिमे सूर्य सप्त अश्व रथी छथि। मुदा गुप्तकालमे सूर्यक स्वरूप क्रमशः भारतीय वस्त्राभूषणमे बदलैत गेल। मिथिलांचलक पाल, कर्णाट ओ ओइनवार कालीन शासनकालमे समानरूपेँ सूर्यमूर्ति ओ मन्दिरक निर्माण होइत रहल। सूर्य मूलतः अश्वारोही देव छथि, जनिक प्रभुत्वसूचक रथक चारिटा अश्व दिक् दिगन्त बोधक अछि त सप्ताश्व सप्तलोकक विस्तारकेँ प्रतिबिम्बित करैत अछि। एतबे नहि सप्ताश्व सप्तरंगी किरणक द्योतक सेहो बनि गेल अछि। सूर्य आर्य लोकनिक वैद्इक देवता छथि। अतः मिथिलांचलमे निर्मित सूर्यमूर्ति भारतीय परम्परा (वस्त्राभूषण) मे अछि। ओ वैष्णव धर्मी तिलक मण्डित छथि, अर्थात् आदित्य ब्रह्म ओ वेदज्ञ ब्राह्मणक प्रतीक बनि गेल छथि। हुनक हाथक कमल सृष्टि मूलक थिक। कमल फूल सूर्योदयक संग प्रस्फुटित होइत अछि एवं सूर्यास्तक संग सम्पुटित होइत अछि। दुनू हाथक कमल सूर्योदय एवं सूर्यास्तक प्रतीक अछि। मिथिलांचलमे नवोदित सूर्य ओ अस्ताचलगामी सूर्यदेवकेँ अर्घ्य देल जयबाक परम्परा अछि। एवं प्रकारें मध्यकालीन मिथिलामे सूर्य पूजन एकटा प्रबल धार्मिक प्रवृत्ति छल। कमल सभ देवी देवताक आसन बनल अछि।
भारतीय मूर्तिकला परम्परामे सूर्य अपन शक्तिद्वय उषा एवं प्रत्युषा, पार्श्वदेवता पिंगल एवं दण्डीक अतिरिक्त सूर्यपुत्र रेवंतक एकटा मूर्ति पचम्बा (बेगुसराय) एवं देवपुरा (मधुबनी) सँ प्राप्त भेल अछि। मिथिलांचलमे सूर्य मूर्तिक निर्माणक्रममे शास्त्रीयतासँ किंचित् भिन्न अभिनव प्रयोग सेहो देखना जाइछ, जकरा जनपदीय आस्थाक अभिव्यक्ति कहल जाऽ सकैछ। उदाहरणार्थ विष्णु बरुआरक द्वादश आदित्य (सूर्य)क मूर्तिक पाछाँ अग्नि शिखा सभक प्रत्यंकनकेँ देखल जाऽ सकैछ। सूर्य अग्निक प्रत्यक्ष प्रतिरूप छथि।
सूर्यक गणना नवग्रहमे होइत अछि। दिकपालमे ओ पूर्वक दिग्पति छथि। भारतीय मूर्तिकलामे नवग्रहक अवधारणा गुप्तकालीन परिवेशमे मूर्त भेल मुदा मिथिलांचलक धरतीपर हुनक पूजन परम्पराक पुरातात्विक अवशेष पाल ओ सेनकालमे विशेष देखना जाइछ। मध्यकालीन शिवमन्दिरमे प्रायः नवग्रहक मूर्ति अवशेष प्राप्त होइछ। वीरपुर (बेगुसराय) एवं चेचर (वैशाली)सँ नवग्रहक पालकालीन प्रस्तर पैनेल प्राप्त भेल अछि जाहिमे सूर्य प्रथम अनुक्रममे छथि। हुनक दुनू हाथमे कमल पुष्प शोभित छनि। मुदा लखीसरायक अष्टग्रह पैनेलमे सूर्य कमलासनपर प्रतिष्ठित छथि। बिहारशरीफ, नालन्दाक नवग्रह पैनेलमे सूर्य दण्ड ओ पिंगलक संगे उत्कीर्ण छथि। अंतीचक (विक्रमशिला, भागलपुर)क नवग्रह पैनल सबसँ पैघ (११८*६२ से.मी.) अछि। नवग्रह क्रम एवं प्रकारेँ निर्मित होइछ- सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, राहु एवं केतु। कोनो कोनो पैनेलक आरम्भ उलटाक्रम (केतु, राहु...)सँ होइछ। मिथिला लोकचित्रकलामे नवग्रहक प्रतीकांकन हरिशयन एकादशीक अरिपनमे देखना जाइछ। मांगलिक अनुष्ठानमे नवग्रहक पूजन आवश्यक मानल जाइछ।
शिवलिंगमे सूर्य: कन्दाहा (सहरसा)क चतुर्मुखी शिवलिंग सूर्य प्रमुख छथि एवं अन्यान्यमे ब्रह्मा, विष्णु ओ शिव छथि। तहिना रानीघाट (पटना)क दुधेश्वर मन्दिर (शिव) क पंचमुखी शिवलिंगमे ब्रह्मा, सरस्वती, सूर्य ओ गणेशक अलावा शीर्षपर नृत्यमूर्ति उत्कीर्ण (नवम-दसम सदी) अछि। अरेराज (प.चम्पारण)क सोमेश्वर शिव मन्दिरक प्रांगणमे स्थापित चतुर्मुखी शिवलिंगमे एकटा सूर्यक मुखाकृति उत्कीर्ण अछि। सर्वेक्षणात्मक अनुशीलनसँ ई स्पष्ट होइछ जे प्रत्येक शिवलिंगमे देवस्थानक मुख्य मूर्तिक अनुरूप एकटा देवता प्रमुख होइछ। उदाहरणार्थ कन्दाहाक शिवलिंगमे सूर्यक, भच्छीमे ब्रह्माक (त्रिमूर्ति)क इत्यादि।
एहि तरहेँ कन्दाहा (सहरसा), बड़ी जान दुर्गापुर (किशनगंज), बरौनी (बेगुसराय), झंझारपुर, कंदर्पीघाट, अकौर, चकबेदौलिया, परसा, अन्धराठाढ़ी, राजनगर (मधुबनी) आदिक सूर्य मन्दिर एवं अन्यान्य स्थल सभसँ प्राप्त प्राचीन सूर्यमूर्ति सभक उपलब्धता मिथिलांचलमे सूर्योपासनाक महत्ताकेँ रेखांकित करैत अछि।
आर्य लोकनिक अभिजात्य संस्कृतिक समानान्तर लोकक अपन सम्प्रदाय अछि, अपन देवी-देवता, पूजोपासना पद्धति, पावनि-तिहार आदि छैक। आभीर लोकनिक सुरजाहा सम्प्रदायक सूर्योपासक लोकदेवता ज्योति ओ कारिख, उषा-प्रत्युषाक समानान्तर गहिल षष्ठी आदिक पूजोपासना प्रकारान्तरसँ सूर्योपासना थिक। सौर संस्कृतिक केन्द्रीय देवता सूर्य छथि। आर्यलोकनिक सूर्य प्रतिबद्धताक उदाहरण अछि सूर्यक वाहन सप्ताश्व रथ। आर्य अश्वप्रिय छलाह आर अश्व हिनक संस्कृतिक संवाहक देवी-देवताक वाहन बनल अछि। छठि व्रतक परम्परा पुराणयुगसँ पहिनेक थिक। सुकन्या एहि कठिन व्रत साधनासँ अपन पति च्यवन ऋषिक नेत्रक ज्योति घुरौने छलीह। षष्ठी वा छठी मइया लोकजीवनक आंचरमे संतति, आरोग्य व सुख-समृद्धि देइत छथि।
सूर्यक सम्बन्ध ऋतुचक्रसँ अछि। बारह मास (द्वादश आदित्य), छह टा ऋतु (षष्ठी माता) एवं सात दिन (सप्ताश्व रथ) सभटा सूर्यसँ सम्बद्ध। हिनक गति प्रक्रिया अयन (गति क्रिया) मे विभाजित अछि- उत्तरायण एवं दक्षिणायन। सूर्यक दुनू अयनमे अर्थात् कार्तिक एवं चैत्रमे छठि मइयाक पूजोपासना कयल जाइछ। अश्वारोही सूर्यकेँ जलाशयक तटपर हस्तिकलश, चौमुख दीप, मौसमी फल-फूल, मेवा-मिष्टान्न आदिसँ अर्घ्य देल जाइछ (लोकायत और लोकदेवता, डॉ. रामप्रवेश सिंह, मुजफ्फरपुर, १९८६ ई.)। हिनक पूजोपासनाक लेल लोक श्रद्धावनत भऽ ठाढ़ रहैत अछि- ब्राह्मण बेटी जनेऊ, अहीर बेटी गायक दूध, कुम्हार बेटी हस्तिकलश आदि, तेली बेटी तेल, माली बेटी फूल-पात आदि लऽ कऽ उदयाचल दिस सूर्योन्मुख भऽ अर्घ्य देइत छनि। जापानकेँ सूर्योदयक देश ओ अरुणाचलकेँ उदयाचलक प्रदेश कहल जाइत अछि। मिथिलांचलमे उगैत एवं डुबैत (अस्ताचलगामी) सूर्यकेँ लोकपूजन परम्परित अछि। सूर्यक छठी व्रतानुष्ठान बहुत कठिन मानल जाइछ। एहि ठामक स्त्रीगण सूर्यक अर्घ्यक केराक रक्षाक लेल ब्रह्मास्त्र धरि उठयबाक लेल कृतसंकल्पित रहैत अछि- “मारवउ रे सुगवा धनुष से, ई घउर, रौना माइ के जाए”। छठी माइकेँ मिथिलांचलमे रौना माइ सेहो कहल जाइछ। षष्ठी लोकायत संस्कृतिक देन थिक मुदा सूर्य वैदिक संस्कृतिक। अतः रौनामाइ सूर्यक सतरंगी अश्वरथपर सवार भऽ कऽ मिथिलांचलक धरतीपर अबैत छथि एवं लोकजीवनक दुख-दारिद्र्यक हरण कऽ अपन “लोक”मे घुरि जाइत छथि। एवं प्रकारेँ सूर्योपासना सम्पूर्ण लोकजीवनकेँ श्रद्धाभिभूत कयने अछि। वैदिक एवं लोकायत संस्कृतिक समाहार एहि ठाम प्रत्यक्ष देखना जाइछ।
३.पद्य
३.१.1.रामलोचन ठाकुर 2.कृष्णमोहन झा
३.२. बुद्ध चरित- गजेन्द्र ठाकुर
३.३.-एक युद्ध देशक भीतर-ज्योति
३.४. १.भालचन्द्र झा 2.विनीत उत्पल
३.५. 1. पंकज पराशर 2.अंकुर
३.६. कुमार मनोज कश्यप
३.७. रूपेश झा "त्योंथ"
1.रामलोचन ठाकुर 2.कृष्णमोहन झा
श्री रामलचन ठाकुर, जन्म १८ मार्च १९४९ ई.पलिमोहन, मधुबनीमे। वरिष्ठ कवि, रंगकर्मी, सम्पादक, समीक्षक। भाषाई आन्दोलनमे सक्रिय भागीदारी। प्रकाशित कृति- इतिहासहन्ता, माटिपानिक गीत, देशक नाम छल सोन चिड़ैया, अपूर्वा (कविता संग्रह), बेताल कथा (व्यंग्य), मैथिली लोक कथा (लोककथा), प्रतिध्वनि (अनुदित कविता), जा सकै छी, किन्तु किए जाउ(अनुदित कविता), लाख प्रश्न अनुत्तरित (कविता), जादूगर (अनुवाद), स्मृतिक धोखरल रंग (संस्मरणात्मक निबन्ध), आंखि मुनने: आंखि खोलने (निबन्ध)।
अनुजक नाम/ काज अहींक थिक
खएबामे जत्ते
किएक ने होउक तीत
औषध
फल होइते छैक नीक
रोगी कें
बुझा देब ई बात
काज अहींक थिक
कृष्णमोहन झा (1968- ), जन्म मधेपुरा जिलाक जीतपुर गाममे। “विजयदेव नारायण साही की काव्यानुभूति की बनावट” विषयपर जे.एन.यू. सँ एम.फिल आ ओतहिसँ “निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में प्रेम की परिकल्पना” विषयपर पी.एच.डी.। हिन्दीमे एकटा कविता सँग्रह “समय को चीरकर” आ मैथिलीमे “एकटा हेरायल दुनिया” प्रकाशित। हिन्दी कविता लेल “कन्हैया स्मृति सम्मान”(1998) आ “हेमंत स्मृति कविता पुरस्कार”(2003)। असम विश्वविद्यालय, सिल्चरक हिन्दी विभागमे अध्यापन।
दुनूकेँ
माछकेँ देखैत अछि स्त्री
स्त्री केँ देखैत अछि माछ
अहाँ दुनू केँ देखि रहल छी
बुद्ध चरित
बुद्ध चरित- गजेन्द्र ठाकुर
माया-शुद्धोधनक विह्वलताक प्रसन्नताक,
ब्राह्मण सभसँ सुनि अपूर्व लक्षण बच्चाक,
भय दूर भेल माता-पिताक तखन जा कऽ,
मनुष्यश्रेष्ठ पुत्र आस्वस्त दुनू गोटे पाबि कए।
महर्षि असितकेँ भेल भान शाक्य मुनि लेल जन्म,
चली कपिलवस्तु सुनि भविष्यवाणी बुद्धत्व करत प्राप्त,
वायु मार्गे अएलाह राज्य वन कपिलवस्तुक,
बैसाएल सिंहासन शुद्धोधन तुरत,
राजन् आएल छी देखए बुद्धत्व प्राप्त करत जे बालक।
बच्चाकेँ आनल गेल चक्र पैरमे छल जकर,
देखि असित कहल हाऽ मृत्यु समीप अछि हमर,
बालकक शिक्षा प्राप्त करितहुँ मुदा वृद्ध हम अथबल,
उपदेश सुनए लेल शाक्य मुनिक जीवित कहाँ रहब।
वायुमार्गे घुरलाह असित कए दर्शन शाक्य मुनिक,
भागिनकेँ बुझाओल पैघ भए बौद्धक अनुसरण करथि।
दस दिन धरि कएलन्हि जात-संस्कार,
फेर ढ़ेर रास होम जाप,
करि गायक दान सिघ स्वर्णसँ छारि,
घुरि नगर प्रवेश कएल माया,
हाथी-दाँतक महफा चढ़ि।
धन-धान्यसँ पूर्ण भेल राज्य,
अरि छोड़ल शत्रुताक मार्ग,
सिद्धि साधल नाम पड़ल सिद्धार्थ।
मुदा माया नहि सहि सकलीह प्रसन्नता,
मृत्यु आएल मौसी गौतमी कएल शुश्रुषा।
उपनयन संस्कार भेल बालकक शिक्षामे छल चतुर,
अंतःपुरमे कए ढेर रास व्यवस्था विलासक,
शुद्धोधनकेँ छल मोन असितक बात बालक योगी बनबाक।
सुन्दरी यशोधरासँ फेर करबाओल सिद्धार्थक विवाह,
समय बीतल सिद्धार्थक पुत्र राहुलक भेल जन्म।
उत्सवक संग बितैत रहल दिन किछु दिन,
सुनलन्हि चर्च उद्यानक कमल सरोवरक,
सिद्धार्थ इच्छा देखेलन्हि घुमक,
सौँसे रस्तामे आदेश भेल राजाक,
क्यो वृद्ध दुखी रोगी रहथि बट ने घाट।
एक युद्ध देशक भीतर- ज्योति
एक युद्ध देशक भीतर
अन्तर की
लड़ैवला सैनिक संग सामान्य जन
सीमाक जनजीवनक बदले
अहिमे उच्चवर्ग भुक्तमभोगी
उपाय की
कनिक त्याचग आ संयम सऽ
प्रमाणकेँ जगजाहिर कऽ
समस्याक समूल नाश करी
अन्यथा
सदैव आशंकित रही
एक एहेन शत्रु सऽ
जे निरन्तर पीठ पर
छुरी चलाबैत रहल
सीधे सामनाक जकरामे
ताकत नहिं
चिन्हो कऽ जकरा दोषी
कहक हमरा सबके अधिकार नहिं
जान लुटाबैत सेना
मान लुटाबैत राजनेता
प्रजातंत्रक शानमे
अधीर होएत जनता
एहेन भयावह समयमे
बनल रहै देशमे शान्ति आ एकता
शब्द सऽ अति दरिद्र
कोना सान्त्वदना दिअ
शहीद आ’ निर्दोष मृतकक परिवारकेँ
बस इर्श्वरक असीम कृपा होए
सैह अछि प्रार्थना
आवश्यक अछि
सुरक्षाकेँ आर दृढ़ करी
हर नागरिक केँ तैयार करी
अहिंसक दानवक दमन लेल
कानूनकेँ कठोर करी
सीमाक नियम ठोस करी
नरसंहारकेँ रोकैलेल
१. भालचन्द्र झा २.विनीत उत्पल
ए.टी.डी., बी.ए., (अर्थशास्त्र), मुम्बईसँ थिएटर कलामे डिप्लोमा। मैथिलीक अतिरिक्त हिन्दी, मराठी, अग्रेजी आऽ गुजरातीमे निष्णात। १९७४ ई.सँ मराठी आऽ हिन्दी थिएटरमे निदेशक। महाराष्ट्र राज्य उपाधि १९८६ आऽ १९९९ मे। थिएटर वर्कशॉप पर अतिथीय भाषण आऽ नामी संस्थानक नाटक प्रतियोगिताक हेतु न्यायाधीश। आइ.एन.टी. केर लेल नाटक “सीता” केर निर्देशन। “वासुदेव संगति” आइ.एन.टी.क लोक कलाक शोध आऽ प्रदर्शनसँ जुड़ल छथि आऽ नाट्यशालासँ जुड़ल छथि विकलांग बाल लेल थिएटरसँ। निम्न टी.वी. मीडियामे रचनात्मक निदेशक रूपेँ कार्य- आभलमया (मराठी दैनिक धारावाहिक ६० एपीसोड), आकाश (हिन्दी, जी.टी.वी.), जीवन संध्या (मराठी), सफलता (रजस्थानी), पोलिसनामा (महाराष्ट्र शासनक लेल), मुन्गी उदाली आकाशी (मराठी), जय गणेश (मराठी), कच्ची-सौन्धी (हिन्दी डी.डी.), यात्रा (मराठी), धनाजी नाना चौधरी (महाराष्ट्र शासनक लेल), श्री पी.के अना पाटिल (मराठी), स्वयम्बर (मराठी), फिर नहीं कभी नहीं( नशा-सुधारपर), आहट (एड्सपर), बैंगन राजा (बच्चाक लेल कठपुतली शो), मेरा देश महान (बच्चाक लेल कठपुतली शो), झूठा पालतू(बच्चाक लेल कठपुतली शो),
टी.वी. नाटक- बन्दी (लेखक- राजीव जोशी), शतकवली (लेखक- स्व. उत्पल दत्त), चित्रकाठी (लेखक- स्व. मनोहर वाकोडे), हृदयची गोस्ता (लेखक- राजीव जोशी), हद्दापार (लेखक- एह.एम.मराठे), वालन (लेखक- अज्ञात)।
लेखन-
बीछल बेरायल मराठी एकांकी, सिंहावलोकन (मराठी साहित्यक १५० वर्ष), आकाश (जी.टी.वी.क धारावाहिकक ३० एपीसोड), जीवन सन्ध्या( मराठी साप्ताहिक, डी.डी, मुम्बई), धनाजी नाना चौधरी (मराठी), स्वयम्बर (मराठी), फिर नहीं कभी नहीं( हिन्दी), आहट (हिन्दी), यात्रा ( मराठी सीरयल), मयूरपन्ख ( मराठी बाल-धारावाहिक), हेल्थकेअर इन २०० ए.डी.) (डी.डी.)।
थिएटर वर्कशॉप- कला विभाग, महाराष्ट्र सरकार, अखिल भारतीय मराठी नाट्य परिषद, दक्षिण-मध्य क्षेत्र कला केन्द्र, नागपुर, स्व. गजानन जहागीरदारक प्राध्यापकत्वमे चन्द्राक फिल्मक लेल अभिनय स्कूल, उस्ताद अमजद अली खानक दू टा संगीत प्रदर्शन।
श्री भालचन्द्र झा एखन फ़्री-लान्स लेखक-निदेशकक रूपमे कार्यरत छथि।
दू गो कविता
१.अपन अस्तीत्वक असली मोल
बुझबाक हुअए
यदि अपन अस्तीत्वक असली मोल
त पुछियौक सुकरातकें
देखबियौक ओकरा
विश्वक नक्शा पर
पहिने अपन “देसक” अस्तीत्व
ओहि देस मे अपन “राज्यक” अस्तीत्व
राज्य मे अपन “जिलाक” अस्तीत्व
जिला मे अपन “गामक” अस्तीत्व
गाम मे अपन “घरक” अस्तीत्व
आ तहन घर महुक “अपन” अस्तीत्व
आ ई सभ
“विश्वक नक्शा” पर
से बूझि लियौक...
२. हमर माय
गर्भगृहक सुखासन सँ बहरेलहुँ
त हमर जन्मदात्री अपसियाँत रहय
भनसिया घर मे
तीतल जारैन कें धूआँ मे
करैत रहय धधराक आवाहन
देहक धौंकनी कऽकऽ
आ तहिया सँ लऽ कऽ आइ धरि
ओकरा आन कोनो ठाम नहिं देखलियैक
देखलियैक
त बस कोनटा घरक ऐंठार पर
सभक ऐंठ पखारैत
कखनो अँगना बहारैत
त कखनो जारैन बीछैत
कखनो कपड़ा पसारैत
त कखनो नेन्नासभक परिचर्या करैत
खिन मे जाँत पर, त खिन मे ढेकी पर,
चार पर, चिनमार पर
अँगनाक मरबा पर, घरक असोरा पर
दिन-दुपहर, तीनू पहर जोतल
कखनो दाईक चाइन पर तेल रगड़ैत
त कखनो छौंरी सभक जुट्टी गूहैत
राति मे पहिने दाईकें
आ तहन बाबूकें पएर दबबैत
एहि तरहें ओकर जीवनक आध्यात्म
भनसिया घर सँ शुरू भऽ कऽ
भनसिये घर मे समाप्त भऽ गेलैक
झुलसैत देखलियैक चूल्हिक आगि मे
नारीक स्वतंत्रता, ओकर अस्मिता
ओकर मान आ स्वाभिमानकें
कहाँ भेटलैक पलखतियो ओकरा
एहि सभ दिसि ताकहो कें
आइ सोचै छी सेहो नीके भेलैक
अगिलुका पीढ़ी सचेत भऽ गेलैक
भलमनसियत सँ जँ नहिं भेटलैक
त छिनबाक ताकति भेटि गेलैक
मुदा ताँहिं की हमर मायक त्याग आ बलिदान
ईब्सेन कें नोरा सँ अथवा गोर्कीक माय सँ
रत्तियो भरि कम कहाओत?
हमरा जनितबे रत्ती भरि बेसिये बूझू
३.विनीत उत्पल (१९७८- )। आनंदपुरा, मधेपुरा। प्रारंभिक शिक्षासँ इंटर धरि मुंगेर जिला अंतर्गत रणगांव आs तारापुरमे। तिलकामांझी भागलपुर, विश्वविद्यालयसँ गणितमे बीएससी (आनर्स)। गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालयसँ जनसंचारमे मास्टर डिग्री। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्लीसँ अंगरेजी पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्लीसँ जनसंचार आऽ रचनात्मक लेखनमे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजोल्यूशन, जामिया मिलिया इस्लामियाक पहिल बैचक छात्र भs सर्टिफिकेट प्राप्त। भारतीय विद्या भवनक फ्रेंच कोर्सक छात्र।
आकाशवाणी भागलपुरसँ कविता पाठ, परिचर्चा आदि प्रसारित। देशक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे विभिन्न विषयपर स्वतंत्र लेखन। पत्रकारिता कैरियर- दैनिक भास्कर, इंदौर, रायपुर, दिल्ली प्रेस, दैनिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली, फरीदाबाद, अकिंचन भारत, आगरा, देशबंधु, दिल्लीमे। एखन राष्ट्रीय सहारा, नोएडामे वरिष्ट उपसंपादक।
सपना अधूरे रहि गेल
आकाश मंडल साफ़
सूर्यक तापमान मध्यम-मध्यम
लोक नीक कए एक अलगे
रोमांसक भाव आबैत रहैत
ओहि दिन जखन
हम आउर अहां
एक-दोसर कए
आगोश मे सिमैट गेलिह
सूर्यक ताप कम भए गेल
वायुक वेग उद्वीग्न भए गेल
एक-दोसर कए निहारैत, निखारैत
दूई सांस एक भए गेल
एक दोसर मे
पूर्णरुपेण समाबईक लेल
रोआं-रोआं
पुलकित छल
मुदा,
जना सूर्य आ चांद,
आसमान आ धरती
एक नहि होइत
तहिना हमर सपना
अधूरे रहि गेल
और सभ लोग
चिर निद्रा मे आलीन भए गेल.
सामाजिक प्राणी
पहिलुख बेर
अहां सं भेल जखन भेंट
नहि अहां मे किछु
एहन गुण भेटलाह
जकरा याद करतियैथ
मुदा,
धीरे-धीरे सबंध
प्रगाढ़ भेल
नहि रहलों
हम आउर अहां अनजान
कनि-कनि कए
एक दोसरा कए चिनलहुं
सुख-दुख मे संग
काज-बेकाजक गप
सेहो शेयर भेल
दिन होइत
या राति
जखन मोन परत
तखने फ़ोन सं गप
भए जाइत छैक
जीवनक यात्रा कखन तक साथ चलत
कियो नहि जानैत छैक
मुदा, एक टा गप मानैये परत
जे मोन कए कोनो कोन
एक-दोसरक बिना खाली छैक
अरस्तु कहलक रहैक
"मनुख एक टा सामाजिक प्राणी छैक"
तहि सं सामाजिकताक ख्याल करि
हम दूर-दूर छी
नहि तए कहिया एक भेल गेल रहतियै.
जीवनक पथिक
हम जीवनक पथिक छी
जहिना रेलगाड़ी चलैत काल
अपन पाछं प्लेटफ़ार्म कए
छोड़ित चलैत छैक
तहिना जीवन मे पड़ाव आबैत रहैत छैक
अहां हमरा लेल
जीवनक कोनो पड़ाव पर
नीक करलहुं या अदलाह
हम अहांक लेल
अदलाह करलहुं या नीक
जखन हम वा अहां
एक बेर शांत दिमाग
आ शांत दिल सं सोचबै
या सोचब जखन
विकट परिस्थिति कए सामना करै परत
तखन जे दोषी होइत
ऊ अपन चेहरा आइना मे
नहि देखि सकत
अपना कए कहियो
माफ़ नहि कए सकत
मुदा, हे पथिक
ओहि काल हुनकर हाथ मे
किछु नहि रहत
नहि ओहि ठाम
नहि हाथ मे समय.
1.डॉ पंकज पराशरश्री डॉ. पंकज पराशर (१९७६- )। मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आऽ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी.पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आऽ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आऽ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। रघुवीर सहायक साहित्यपर जे.एन.यू.सँ पी.एच.डी.।
खयाल
श्मशानमे फुलायल फूलक गंध मिज्झर होइत
रातरानी फूलक गंधमे पसरैत अछि दहो-दिस
तीव्रगंधी चिरायंध गंध जकां
भैरवी केर तान जकां तबला मिलबैत काल क्यो हमरा
हाक दऽ रहल अछि कइक युगसँ ओलतीमे ठाढ़ घोघ तानसँ
उतप्त श्वास केर परागकण सन्हियाइत अछि
मोनक कोनमे उठैत बोल खसैत अछि स्मृतिक तीव्र धारमे
आ भसियाइत चलि जाइत अछि हमर अधजरु लहास
सरगम केर तान जकां कपरजरू केर विशेषण सुनैत-सुनैत
अहाँक एहि यमन-कालमे
हम नहि क सकलहुँ नीक जकां संगत से ठीके भेल बहुत असंगत
कहरवा बजबैत ठोह पाड़िकेँ कनैत एहि मरुभूमिमे
मुखड़ा केर मृगतृष्णाक पाछाँ बौआइत रहि जाइत छी संतापित
संलापित कइक योजन धरि अवरोहणक प्रवाहमे।
2. अंकुर काशीनाथ झा- गाम कोइलख, जिला मधुबनी। नेपाल-1 टेलीविजनक मैथिली समाचार वाचक
पश्चाताप
असत्यक धार मे,
पापक पथ पर,
अधर्मक दिशा मे,
अविरल चलैत रहलौं ।
किछु करबाक आश मे,
आगू निकलबाक प्रयास मे,
सैदखन लड़ैत रहलौं ।
दोसरक दुख दर्द सऽ दूर,
सफलता के नशा मे चूर,
जीतबाक लेल,
की - की नहि केलौं ।
मुदा जखन हम धारक पार पहुंचल छी,
असगर थाकल छी,
शरीर सऽ हारल छी,
अंतःवेदना सऽ ग्रसित पड़ल छी,
तऽ आत्मा पूछि रहल अछि,
जे उपर संग की लऽ जैब,
हम निरूत्तर,
पश्चातापक संग नोर बहा रहल छी॥
कुमार मनोज कश्यप।जन्म-१९६९ ई़ मे मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। स्कूली शिक्षा गाम मे आ उच्च शिक्षा मधुबनी मे। बाल्य काले सँ लेखन मे अभिरुचि। कैक गोट रचना आकाशवाणी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।
गजल
आदमी छल - छद्मक मोहरा बनल ।
आब गामो पर शहरक पहरा पड़ल ।
मनुक्खे रहल, मनुक्ख्ता लुटि गेलई।
लट पांचाली के फेर सँ खुजले रहल ।
रंग अपनहुँ के आब जर्द सन भऽ गेलई।
जिनगीक महल आई खंडहर सन ढ़हल।
आब ककरा सँ कहतई मोनक व्यथा।
कान मालिको के तऽ छई पाथरे बनल।
अपनो पर कोना आब कोई भरोसा करय।
सांस-सांसो मे माहुर आछ भरल पड़ल।
बाटक धूरा जकाँ उड़िते रहि गेलहुँ।
आँखि कानल मुदा मोन नहिये भरल।
रूपेश कुमार झा 'त्योंथ',ग्राम+पत्रालय-त्योंथा,भाया-खिरहर, थाना-बेनीपट्टी,जिला-मधुबनी,सम्प्रति कोलकाता मे स्नातक स्तर मे अध्यनरत, साहित्यिक गतिविधि मे सेहो सक्रिय, दर्जन भरि रचना पत्र-पत्रकादि मे प्रकाशित।
बूथ कैप्चरिग
कोन पाप लागल से ने जानि
घुरि अयलहुँ मोनक बात मानि
नोकरी सँ ने भेटैत अवकाश
ने करितहुँ हम ई गाम वास
अयलहुँ तऽ लागय सभटा नीक
अछि ने मुदा किछुओ ठीक
आब गामक हवा अछि बिगड़ल
अछि स्वार्त जल सँ सभ भीजल
तथापि रहैत छलहुँ हर्षित
भेल समाजक हेतु समर्पित
मुदा आयल बइमनमा चुनाव
बढ़ल लोक सभक आब भाव
ग्रामीण सभ मिलि कयलक बैसार
भेल ओ जे छल ने आसार
सभ क्यो कयलक आग्रह प्रगाढ़
जे होऊ अहाँ एहि बेर ठाढ़
सोचल दी कोना लोकक बात काटि
सेवाक अवसर देलक आइ माटि
बनि एहि पंचायतक हम मुखिया
रहय देबै ने ककरो दुखिया
सोचि बनल मुखियाक प्रतिनिधि
कल जोड़ि पोस्टर छपओलहुँ सविधि
प्रचार मे जुटलहुँ दिन-राति
विरुद्ध मे ठाढ़ भेल कतेको पछाति
भेल शुरू मारामारी-गड़ागड़ौवल
कएक ठाम भेल लठा-लठौवल
भेटल सभ केँ दू-चारि गोट नोट
खसलहि दोसरेक हक मे वोट
तइयो नहि भेटलै संतोष
छपलक बूथ मिलि सभ दोस
परिणाम सुनि भेलहुँ स्तब्ध
भऽ गेल छल हमर जमानत जब्त
घर सँ निकलैत आब होइछ लाज
किएक कयलहुँ हम एहन काज
बैसब ने मुदा निश्चित आब
हेबे करतै फेरो चुनाव
होयब ठाढ़ हम फेर जा
पोसब गुंडा आब कएकटा
उगि गेलैछ हमरो दू गोट सिंग
करब हमहुँ आब बूथ कैप्चरिग
कला आ संगीत शिक्षा
हृदय नारायण झा, आकाशवाणीक बी हाइग्रेड कलाकार। परम्परागत योगक शिक्षा प्राप्त।
लुप्तप्राय मैथिली लोकगीत
प्राती ,गोसाउनिक गीत भगवतीगीत झूमरा,सोहर,खेलउना, कुमार,परिछन ,चुमान, डहकन ,बिषहारा गीत , झूमरि ,बटगमनी,मलार चैमासा ,लगनी ,समदाउन आ एकर अतिरिक्त नदी संस्कृति मे कोशी गीत आदि कतेको मैथिली लोकगीत लुप्तप्राय अछि । जतए कतहु एखनहु लोककण्ठ मे ई गीत सभ बाचल अछि तकरा संग्रहित कऽ ओहि गीतक प्रकाशन आ ओहि धुन कें सुरक्षित रखबाक लेल ओकर आॅडियो वीडियो रूप मे दस्तावेजीकरण करबाक आवश्यकता विचारणीय अछि । संवैधानिक मान्यता प्राप्त भारतीय भाषा बनलाक बाद मैथिलीक संस्कार ,रीति रिवाज , पर्व त्योहार ओ )तु पर आधारित गीतक समृ( परंपरा वर्तमान आ भविष्यक पीढ़ी लेल कोना सुरक्षित कएल जाय ई संपूर्ण मैथिली जगतक लेल चिन्ताक विषय बनल अछि । मिथिला महान रहल अछि अपन विशेषताक कारणें। मिथिलाक प्रशंसा में वृहद्विष्णुपुराणक उक्ति अछि
धन्यास्ते ये प्रयत्नेन निवसन्ति महात्मुने । विचरेन्मिथिला मध्ये ग्रामे ग्रामे विचक्षणः ।।
सदाम्रवन सम्पन्ना नदीतीरेषु संस्थिता । तीरेषुभुक्तियोगेन तैरभुक्ति रितिस्मृता ।।
अर्थात् हे मुनीश्वर ! ओ धन्य छथि जे मिथिला में यत्नपूर्वक निवास करइ छथि आ मिथिलाक गामे गाम
घूमइ छथि । ई मिथिला सदैव आमक वन सॅ सम्पन्न नदीक तट पर स्थित अछि आ तीर में भोगक लेल प्रसि( अछि । ते तीरभुक्ति अर्थात् तिरहुत नाम सॅ सेहो जानल जाइत अछि मिथिलांचल ।
पुराणोक्त कपिलेश्वर, हरिलाखी , पिप्पलीवन , फुलहर ,गिरिजास्थान , विलावती , हरित्वेकी , कूपेश्वर ;कुशेश्वरस्थान द्ध , सिंहेश्वर , जनकपुर ,वनग्राम ,सिन्दूरेश्वर , त्रपनायनवन , विषहर , मंगला, मंगलवती विरजा , पापहारिणी , सुखेलीवन आदि तीर्थ सॅ पावन मिथिलाक महिमा वृहद्विष्णुपुराणक मिथिला माहात्म्य में वर्णन कएल गेल अछि ।
मिथिलाक लोकगीत में धर्म आ लोक बेवहारक प्रधानता अछि । ब्राह्मवेलाक, पराती , श्रमगीत;लगनीद्ध ,गोदना , भगवतीक आवाहन गीत ;गहबर मे प्रचलित गीत झूमराद्ध , कोशी संस्कृति में विकसित गीत सहित परंपरागत संस्कार गीतक कतेको प्रकार मिथिलाक नव पीढ़ीक बीच लुप्तप्राय अछि ।
ओहि लुप्तप्राय गीत सभक शब्द रचना ,धुन ,स्वर ,लय आ भाव एखनहुॅ सबकें आकर्षित करइत अछि । सब तरहें ज्ञान कें बढ्ऱाब बला , संस्कारक संग रीति नीतिक बोध कराब बला आ सुनबा मे मनोरंजक अछि ओ गीत सभ । एखनहुॅ जतए कतहु परातीक स्वर कान में पड़ैछ मन भाव विभोर भ जाइत अछि । प्रस्तुत अछि साहेबदासक लिखल पराती मौलिक पारंपरिक भास में -
अजहुॅ भजन चित चेत मुगुध मन अजहु भजन चित चेत ।।
बालापन तरूणापन बीतल , केस भये सभ सेत मुगुध मन । अजहुॅ ।।
जा मुख राम नाम ने आबत , मानहु सो जन प्रेत मुगुध मन । अजहुॅ ।।
हरि विमुखी सुख लहत न कबहुॅ , परए नरक के रेत मुगुध मन । अजहुॅ ।।
साहेबदास तोहि क्या लागत , राम नाम मुख लेत मुगुध मन अजहुॅ भजन चित चेत ।।
परातीक संबंध में श्रेष्ठ जन कहइ छथि - जखन पराती गाओल जाइ छल त एक कोस धरि ओर ध्वनि पहुॅचइत छल । परातीक भास आ भाव लोकसभ के जगा क मंगल विहानक आनन्द दैत छल । ओहि भासक पराती केहन होइत अछि ,देखल जाय -
प्राण रहत नहि मोर श्याम बिनु प्राण रहत नहि मोर ।।
काहि पुछओ कोई मोहि ने बताबए , कहाॅ गेल नन्द किशोर । श्याम बिनु ।।
छल कए गेल छलिक नन्दनन्दन , नैन झझाइछ नोर । श्याम बिनु ।।
साध्यौ मौन कानन पशु पंछी , कतहु ने कुहुकए मोर । श्याम बिनु ।।
हमहुॅ मरब हुनि बहुरि न आएब , साहेब जीवन दि न थोर । श्याम बिनु प्राण रहत नहि मोर ।।
मधुबनी में श्री दुर्गास्थान ,कोइलख में भद्रकाली,श्री दुर्गाशक्तिपीठ , मंगरौनी में बूढ़ी माई, डोकहर मे
राजराजेश्वरी ,जितवारपुर मे सि(काली पीठ ,ठाढ़ी मे परमेश्वरी स्थान , खोजपुर में तारामंदिर , सहरसा के वनगाॅव मे उग्रतारा , विराटपुर मे चण्डिका ,बदलाघाट मे कात्यायनी , पचगछिया मे श्री कंकाली , पटोरी आ गढ़बरूआरी मे दशमहाविद्या ,देवनाडीह मे वनदुर्गा , दरभंगा मे श्यामामंदिर , म्लेच्छमर्दिनी , गलमा मे तारास्थान ,पचही मे चामुण्डा , अहल्यास्थान ,ककरौल मे शीतला स्थान , पूर्णियां मे पूरनदेवी , अररिया मे दक्षिण कालिका मंदिर , मुजफ्फरपुर मे त्रिपुरसुन्दरी , सखरा मे सखलेश्वरी , उच्चैठ मे छिन्नमस्तिका , चम्पारन मे वैराटी देवी , चण्डी स्थान , सहोदरा स्थान सन कतेको देवी तीर्थ सॅ सम्पन्न मिथिलाक जन जन मे देवी शक्तिक उपासनाक परंपरा समृ( अछि ।
मिथिलाक घर घर मे कुलदेवी रूप मे पूजित हेबाक कारणेॅ विविध भावक देवीगीतक परंपरा विकसित भेल। संपूर्ण भारत वर्ष मे मिथिला एकमात्र क्षेत्र अछि जतए भगवती गीतक सर्वाधिक धुन पाओल जाइछ । कोनो मंगल कार्यक आरंभ में गोसाउनिक गीत गेबाक जे परंपरा अछि ओहि मे प्रचलित अधिकांश गीत आ धुन लुप्तप्राय अछि । लोककंठ में एखनहुॅ कतहुॅ कतहुॅ सूनल जा सकैछ एहन किछु गीत । यथा
1पारंपरिक
जय वर जय वर दिअ हे गोसाउनि हे मा तारिणी त्रिभुवन देवी ।
सिंह चढल मैया फिरथि गोसाउनि हे मा अतिबल भगवती चण्डी ।।
कट कट कट मैया दन्त शबद कएलि हे मा गट गट गिरलनि काॅचे ।
घट घट घट मैया शोणित पिबलनि हे मा मातलि योगिन संगे ।।
2 म0म0मदन उपाध्याय
जय जय तारिणी भव भय हारिणी दुरित निवारिणी वर माले ।
परम स्वरूपिणी उग्र विभूषिणी दनुज विदूषिणी अहिमाले । ।
पितृवन वासिनि खल खल हासिनि भूत निवासिनि सुविशाले ।
त्रिभुवन तारिणि त्रिपुर विदारिणि वदन करालिनि अहिमाले ।।
शतभख फल दे दिविशत शुभ दे अरिकुल भय दे धननिले ।
अति धन धन दे हरि हर जय दे अनुपम वर दे वर शिले ।।
मदन विलासिनी विदित विकासिनि कर कृतपाशिनि जगदीशे ।
हरिकर चक्रिणि हरिकर वज्रिणि हरिकर शूलिनि परिमिशे ।।
रवि शशि लोचिनि कलुष विलोचिनि वर सुख कारिणि शिव संगे ।
श्रुति पथ चारिणि महिष विदारिनि क्षितिज विपोथिनि रण संगे ।।
अतिशय हासिनि कमल विलासिनि तिमिर विनासिनि वर सारे ।
हर हृदि हर्षिणि रिपुकुल घर्षिणि धन रव वरसिनि हे तारे ।।
जय जय तारिणि भव भव हारिणि दुरित निवारिनि वर माले ।।
3 पारंपरिक
करू भव सागर पार हे जननी करू भवसागर पार ।
के मोरा नैया के मोर खेबैया के मोरा उतारत पार हे जननी ।।
अहीं मोर नैया अहीं मोर खेबइया अहीं उतारब पार हे जननी ।।
के मोरा माता पिता मोर के छथि के मोर सहोदर भाई हे जननी ।।
अहीं मोर माता अहीं मोर पिता छी अहीं सहोदर भाई हे जननी ।।
4 कालिकान्त
अखिल विश्व के नैन तारा अहीं छी हे जगदम्ब हम्मर सहारा अहीं छी ।।
अनल वायु शशि सूर्य सभ मे अहीं मा , नदी के विमल मंजुधारा अहीं छी ।।
रज सत्व तम केर उदभव अहीं मा , प्रगट मे तदपि शंभुधारा अहीं छी ।।
विपत धार मे सुत जौं डुबि रहल हो तकर हेतु निकटक किनारा अहीं छी ।।
विनय कालिकान्तक सुनत आन के मा दया के सकल सृष्टि सारा अहीं छी ।।
5 पारंपरिक
सुर नर मुनि जन जगतक जननी हमरो पर होइयौ ने सहाय हे मा ।।
जनम जनम सॅओ मुरूख बनल छी , आबहु देहु किछु ज्ञान हे मा ।।
केओ ने जगत बीच अपन लखित भेल , हमहुॅ अहींक सन्तान हे मा ।।
दुखिया के जिनगी माता देखलो ने जाइए , सुखमय जग करू दान हे मा ।।
काम क्रोध लोभ मोह माया जाल बाझलहुॅ , मुक्तिक देहु वरदान हे मा ।।
6 पारंपरिक
हे जगदम्ब जगत माता काली प्रथम प्रणाम करै छी हे ।।
प्रथम प्रणाम करै छी हे जननी हम त किछु ने जनै छी हे ।।
नहि जानी हम पूजा जप तप अटपट गीत गबइ छी हे ।
अटपट गीत गबई छी हे जननी हम त किछु ने जनै छी हे ।।
विपतिक हाल कहू की अहाॅ के सबटा अहाॅ जनै छी हे ।
सबटा अहाॅ जनै छी हे माता ,हम त किछु ने जनै छी हे ।।
मात पिता हित मित कुल परिजन माया जाल बझल छी हे ।
जगतारिणी जगदम्ब अहीें केॅ गहि गहि चरन कहै छी हे ।।
7 पारंपरिक
हे अम्बे माता हमरो पर होइयौ सहाय ।। हमार जगजननी हमरो पर होइयौ सहाय ।।
युग युग सॅ भटकल छी जीवन भॅवर मे आबहुॅ उबारू हे माय।।
दुःखहि जनम बाल यौवन मे पाओल सुख के ने भेटल उपाय ।।
अज्ञानी शक्तिहीन लोभी बनल छी ,एहन ने जिनगी सोहाय ।।
8 महाकवि विद्यापति
आदि भवानी विनय तुअ पाय ,तुअ सुमिरइत दुरत दूर जाय ।।
सिंह चढ़ल देवि देल परवेश बघछाल पहिरन जोगिन भेष ।।
बाम लेल खपर दहिन लेल काति , असुर के बधए चललि निशि राति ।।
आदि भवानी विनय तुअ पाय ,तुअ सुमिरइत दुरत दूर जाय ।।
तुअ भल छाज देवि मुण्डहार , नूपूर शबद करए छनकार ।।
भनई विद्यापति कालीकेलि सदा ए रहू मैया दहिन भेलि ।। आदि भवानी
9 कवीश्वर चन्दा झा
तुअ बिनु आज भवन भेल रे घन विपिन समान ।।
जनु रिधि सिधिक गरूअ गेल रे मन होइछ भान ।।
परमेश्वरी महिमा तुअ रे जग के नहि जान । मोर अपराध छेमब सब रे नहि याचब आन ।।
जगत जननी काॅ जग कह रे जन जानकि नाम । नहर नेह नियत नित रे रह मिथिला धाम ।।
शुभमयी शुभ शुभ सब दिन रे थिर पति अनुराग । तुअ सेवि पूरल मनोरथ रे हम सुलित सभाग ।।
इ नवो गीत नौ धुन मे अछि । एकर अतिरिक्त कतोक गीत अछि मुदा आबक नब पीढ़ीक बीच एकर परंपरागत शिक्षाक बेवहार नहि देखल जाइछ । परिणामतः फिल्मी गीतक धुन मे भगवती गीत सभक चलन
मैथिली परंपरागत गोसाउनिक गीत भगवती गीतक परंपराक समक्ष अस्तित्वक संकट अछि ।
एकर अतिरिक्त गाम गाम मे गहबर बीच भगतक मंडली मे झूमरा गाबक समृ( परंपरा रहल अछि । मुदा कालक्रमे इहो परंपरा अस्तित्वक संकट झेलि रहल अछि । नौ सदस्यक समवेत स्वर मे झालि आ माॅडर के संगति मे प्रस्तुत झूमरा गायन सॅ भगवतीक आवाहन होइत अछि आ भगतक शरीर मे देवी
प्रगट होइत छथि । बीज रूप में एखनहुॅ बचल अछि ई परंपरा मुदा लुप्तप्राय अछि । बतहू यादव सन भगत चिन्तित छथि जे हुनक बाद इ परंपरा कोना बाॅचत ? हुनकहि सॅ सूनल अछि इ झूमरा गीत
अरही जे वन से मइया खरही कटओलियइ हे मइया खरही कटओलियइ हे ।
मइया जी हे बिजुबन कटओलियइ बिट बाॅस जगदम्बा रचि रचि महल बनओलियई हे ।।
गोड़लागूॅ पैयाॅ पड़ूॅ मइया जगदम्बा आइ मइया गहबर अबियउ हे ।
मइया जी हे राखि लिअउ भगत केर लाज जगदम्बा कलजोरि पैयाॅ पड़इ छी हे ।।
जहिना बलकबा खेलइ माता के गोदिया हे , भवानी माता के गोदिया हे ।
मइया जी हे तहिना खेलाबहु जग बीच जगदम्बा आब मइया गहबर अबियउ हे ।।
नामो ने जनइ छी मइया पदो ने बूझै छी हे मइया पदो ने बूझै छी हे ।
मइया जी हे सेवक बीच कण्ठ लियउ बास जगदम्बा आब मइया लाज रखियौ हे ।।
गोड़ लागूॅ पइयाॅ परूॅ आद्या जलामुखी हे मइया अद्या जलामुखी हे ।
मइयाजी हे राखि लिअउ अरज केर लाज जगदम्बा सेवक कलजोड़इए हे।।
(अगिला अंकमे)
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।(c) 2008 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ' आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ' संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ' पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.co.in पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ' रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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