भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Thursday, March 19, 2009

कृतघ्न मनुख बेमार आलोचना.

मैथिली साहित्यक समृद्धि कें स्वीकारबा में प्राय: एकरा सं परिचित आनो भाषा-भाषी कं असोकर्ज नहि बुझैत छैन्हि. मुदा जे गप विचारवाक अछि से थिक साहित्यिक समृद्धिक पाछू किनका सबहक खपि जेनाय रहल छैन्हि.
नाम गिनेबा लेल जं भिडि जाइ त' असमाप्य श्रृंखला शुरू भ' जायत.
मुदा कृतघ्नता में हमर सबहक जोर नहि. भाषा संस्कृतिक नाम पर भरि जीवनक होम क' देनिहार कें हम सब बेर-बेर मोन तक पारब उचित नहि बुझैत छी. जीबैत काल धरि किछु गोष्ठीक अध्यक्षता आ छोट छिन सम्मानक अलावे हुनका सबहक हिस्सा किछु नहि अबैत छैन्हि. अहि दुर्भाग्य पूर्ण प्रसंग सं अपना सबहक सौन्दर्यबोध आ संस्कृतिबोधक इयत्ता संदेहक वस्तु
बनि गेल अछि. अतीतक तीत अनुभव नवतुरिया सबकें सहज नहि होमय द' रहल छैक. अहि सन्दर्भ में युवा रचनाकार अखिल आनंदक ई गप उल्लेख करबा योग्य अछि – “ मैथिली सं पाइक आस तं नहिये रहैत छैक कम सं कम सही मूल्यांकन त' होए’’. गुणगान आ निंदाक बीच फंसि दम तोइर रहल मैथिली आलोचनाक सधल इलाज़ बहुत जरूरी छैक

9 comments:

  1. bahut khoob, badhiya prashn utthelaun hain, nischit roop sa ee aatmmanthan ke samay aichh. kam shabd mein kafee keechh kahi delaun apne.

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  2. मदन जी आलोचना नहि आलोचक बेमार आ बेइमान होइत छैक। छोट लेख एहि विषय लेल उपयुक्त नहि।

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  3. nik discussion ker prarambh, muda sahi kahlanhi anchinhar ji, lekh bad sankshipt.

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  4. मदनजी नमस्‍कार,
    बहुत सटीक आ सार्थक प्रश्‍न उठेबाक लेल अहॉं के धन्‍यवाद । बहुत कम शब्‍द में अपन मंतव्‍य सफल रूप सँ प्रकट क क "गागर मे सागर" वाला कहावत के चरितार्थ केलहुँ अछि । अहॉंक छोट लेख बहुत किछु कहि गेल अछि । इएह कारण छैक जे वैद्यनाथ मिश्र यात्रीजी, नागार्जुन बनि मैथिली सँ परहेज क क हिन्‍दी के शरण में गेलाह, मात्र पैसाक लेल नहि....आत्‍मसम्‍मानक लेल ।

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  5. Mandan ji, ham ashish ji ker ahi mantavya sa sahmat nahi chhi. vastutah aalochano bemar hoit chhaik je aalochakak laparvahik parinam hoit chhaik !
    ahank ahi vichar sa asahmati jataiba se nik vyapak star par manthank aavashyakata chhaik. shabdak jal me mool mudda ken matiyebak prayas nahi kail jaybak chahi.

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  6. एहि डिसकशनक परिणामस्वरूप मिथिला आर मैथिली ब्लॉग द्वारा नव लेखकक रचनाक समीक्षा शुरू कएल जा रहल अछि। एहि क्रममे पहिल समीक्षात्मक आलेख विनीत उत्पलक पहिल कविता संग्रह "हम पुछैत छी" पर डॉ. गंगेश गुंजन जीक समीक्षा जे विदेह ई-पत्रिका मे ई-प्रकाशित भेल अछि, तकरा प्रस्तुत कएल जा रहल अछि। पाठक-लेखकगणसँ एहि प्रकारक समीक्षा पठेबाक अनुरोध सेहो कएल जाइत अछि। एहि डिसकशनमे भाग लेनिहार सभ लेखक-पाठककेँ धन्यवाद।

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  7. Anonymous2:14 PM

    maithili mandan ker ahi chhot alekh ker etek prabhavi bhenai uplabdhi thik.maithili aar mithilak dwara ekra gambhirta sa lenai neek sanket achhi.

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  8. बहुत नीक प्रस्तुति

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