भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Wednesday, April 15, 2009
अनुप्रियाक दू गोट कविता- भगजोगनी आ देह
www.maithilimandan.blogspot.com
भगजोगनी
हमरा लग ने दीप अछि
ने बाती
आर ने तेल
तैयौ जरौने छी
दीप उमेदक अपन
आँखि मे
किछु एहेन घर
किछु एहेन डगर
किछु एहेन बस्ती जतय
ढीठ भ’ जीबैत अछि अन्हार
ओतय देखने छी हम
टिमटिमाइत भगजोगनी
जेना अपन मिरियैल इजोत सं
ओ काटि देबय चाहैत होई
घुप्प अन्हार
वैह भगजोगनी
हमरा मन मे
गहैत अछि विश्वास
जे आब एतहु
मनायल जायत दिवाली
आउ झक इजोत लेल
एक-एक टा दीप जराबी ।
00000000000000000
देह
अहां हमरा गहय चाहैत छलहुँ
अपन बाँहि मे
आ हम चाहैत छलहुँ
अहाँक संग
अहाँ छूबय चाहैत छलहुँ
हमरा
आ हम अहाँक हाथ पकड़ि
पूरा करय चाहैत छलहुँ
जीवन-जतरा
हमरा लेल तेँ अहां
हमर आत्मा बनि गेल छलहुँ
मुदा अहांक लेल
हम- मात्र एकटा देह ।
31 comments:
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
दुनू कविता एकपर एक।
ReplyDelete1. रचना प्रस्तुतिमे कोनो तथ्गत कमी नहि। लेखकक अपन ठेंठ अनुभुति सर्वत्र नव शिल्प आ नव कविता बनि उभरल अछि।
2. कविता मे कोनो परिमार्जनक आवश्यकता नहि।
3. सं केर बदला सँ , अहां केर बदला अहाँ , तहिना अहांक बदला अहाँक । प्रायः टंकण दोष।
4. कोनो दोसर त्रुटि नहि।
5. कविता तँ अनुभूति छैक, जे जतेक बेशी गहन अनुभूति करताह/ करतीह , हुनकर कविता ततेक गहींर धरि मोनकेँ छुअत।
6. दुनू कविता पढ़ि ईएह मोनमे अबैत अछि जे ई सभटा भावना मोनमे घुरमैत रहए मुदा सोझाँ नहि आनि सकल रही। हँ यैह तँ छी ओ विषय जाहिपर क्यो गप करए लेल तैयार नहि रहए, कारण हम फरिचा जे नहि पाबि सकल रही।
7. दुनू कविता विशेष क' दोसर कविता कवियित्रीक प्रतिभाक परिचायक। विशेष क' दोसर कविता एहि द्वारे लिखलहुँ कारण ई कोनो तरहेँ एकटा पुरुष कवि द्वारे लिखल जाएब सम्भवे नहि छल। देह आ आत्मा एहि बिन्दुपर जे कविताक समापन भेल अछि तकर की आ कतेक चरचा करी।
बहुत नीक. अहिना लिखैत रहु.
ReplyDeletedunu kavitaa hridaya ke sparsh kay gel,
ReplyDeletebhagjognik bimb dvara optimism ho
va purush narik manovigyan,
dunu tham lekhika atulaniya chhathi
bina dip-batik umedak dip aankhi me jaraonihari lekhika ke naman.
ReplyDeleteyaih chhi kavita,
dosar kavitak prashansa me shabd taki rahal chhi, bhetat te ghuri kay aayab aa likhab.
nav rachna tavat jaldi se post karu
ehi blog par katek chamatkarik shuruaat dekhait chhi hoit,
ReplyDeleteanupriya jik aagman ekta vaih ghatna chhi, mithila mandan ke dhanyavad, anupriya ji ehi blog ker sadasya bani rachna nirantar post karathi se aagrah, 100 gote se oopar eho blog ke pratidin kam se kam dekhi rahal chhathi.
ehi dunu rachnak prasang:
pahil rachna me kavi aankhi me bin diya batik aankhi me umidak diya jarene chhathi, kon bharos par, bhagjogni ke dekhi kay je apan miriaail prakash se anharak dambh torait achhi,
se pahil kavitak sheershak bhagjogni sarthak.
dosar kavita purushak bhautik premak aa strik samarpanak vrittant achhi.
dhanyavad
दुनू कविता, विशेष कए दोसर कविता नारी चेतनाक स्वर बनि उभड़ल अछि।
ReplyDeletesundar abhivyakti.anubhoot sach.pratyek naari k yahi anubhay.kintu ita prakritik sach seho thik.nari k samrpan k sukh kintu purush k haasil karbaak sukh.ham ne janai chhi,ki sahi--ki galat.kintu naari--purushak manovigyanak alag-alag dharaatal par alag-alag anubhooti hona ati sahaj chhe.aar i sahaj k apne vishisht banave me safalta prapt kene chhi apan maarmik abhivyakti ka bal par.saadhuvaad.
ReplyDeletedunu kavita mon mohi lelak
ReplyDeleteanubhutik vishadta aa gaheerataa dunu kavita me dekhi kay mon ke tripti bhetal.
ReplyDeletedhanyavad
aanandit bhay gelahu dunu kavita padhi kay,
ReplyDeleteehne kavita sabh aab likhal jaybak chahi
किछु एहेन घर
ReplyDeleteकिछु एहेन डगर
किछु एहेन बस्ती जतय
ढीठ भ’ जीबैत अछि अन्हार
ओतय देखने छी हम
टिमटिमाइत भगजोगनी
etay kavik mon aaga badhal aa
वैह भगजोगनी
हमरा मन मे
गहैत अछि विश्वास
जे आब एतहु
मनायल जायत दिवाली
आउ झक इजोत लेल
एक-एक टा दीप जराबी ।
अहाँ छूबय चाहैत छलहुँ
ReplyDeleteहमरा
आ हम अहाँक हाथ पकड़ि
पूरा करय चाहैत छलहुँ
जीवन-जतरा
हमरा लेल तेँ अहां
हमर आत्मा बनि गेल छलहुँ
मुदा अहांक लेल
हम- मात्र एकटा देह ।
sampoorna kavita me eko shabd phajil nahi,
lekhika ke lakshyak pata cjhhanhi|
kavita aa ohi par samiksha tippani sabh padhlahu,
ReplyDeleteaab vishvas bhay gel je nahi te maithili marat aa nahiye maithili kavita,
lekhika te nik likhnahiye chhathi,
tippanikar sabh seho dhanyavadak patra chhathi.
didi kavita bad nik lagal,
ReplyDeletedunu kavita doo tarhak,
muda dunu apratibh karaybala,
pahil me aashavad,
muda dosar me kanek nirashavad lagal.
ehi site par abait chhi te mon praphullit bhay jait achhi, kahiyo ee nahi hoi ye je nav aa nik rachna nahi bhetait huaya.
ReplyDeleteanupriya jik aagman se ee blog aar sundar aa utkrisht bho gel.
pahil kavita me jatay kaviyitri apan aasha aa sankalp prakat kelanhi, dosar me manovigyan ke darshan karolanhi.
ehina nirantar likhait rahu, sarasvati ahank lekani me aar dhar antih
ReplyDeletedunu kavita tara upari, ek par ek
ReplyDeletebah, mon anand bhay gel, kaik ber padhalahu aa padhab
ReplyDeleteanupriya didi, namaskar,
ReplyDeletebharti mandan me dunu kavita padhne rahi, tahiyo nik lagal rahay, muda bharti mandanak ee ank 2001 me aayal rahay, 8 sal pahine,
ehi 8 sal me aar katek rachna ahan likhne hoyab, o sabh seho post karoo.
lekhikak kalam se ahne nik nik rachna niklay ehi kamnak sang
ReplyDeleterachna dunu ta uchh kotik muda sampreshan me kono kami nahi, kono klishtata nahi.
ReplyDeletenav tarahak bhav sampreshan aajuk yugak anusar uchit aa nik lagal
ReplyDeletebah bad nik,
ReplyDeletemahila lekhan maithili me ahi san lekhak karan se sashakt hoyat se aasha achhi.
internet nepal aa india ke maithili bhashi ke jori delak te ne ehen nik rachna padhay le bhetal.
ReplyDeleteदुनू कवितामे कवियित्री तारतम्य जोड़बामे सफल फेल छथि आ कविताक उद्देश्य लक्षित कय ओतए धरि पहुँचल छथि।
ReplyDeleteतेँ दुनू कविता पढ़बामे सेहो नीक लागल आ मानसिक तृप्ति सेहो देलक
दुनू रचना उत्तम।
ReplyDelete1. रचनाक विषयमे यैह कहब अछि जे कवि द्वारा प्रदर्शित प्रतिभा जे एहि दुनू रचनाक माध्यमसँ आएल अछि से आगाँ सेहो आबए तखने हुनकर सही मूल्यांकन भ' सकैत छन्हि।
2. रचनाक उज्जवल पक्ष अछि लेखिकाक निर्भीकताक संग स्त्री-पुरुष मनोविज्ञानक वर्णन।
ahan sab ker hriday se dhanyavaad je ahan sab apan mulyavaan samay nikali k hamar rachna padhlaun aa apan vichaar delaun.aagan hamar prayaas rahat je aaro badhiyan likhi....anupriya.
ReplyDeleteHmmm ! Bahut Nik, yaih chhi kavita !
ReplyDeletedunu kavita mon ke sochba par vivasha kaylak
ReplyDeleteअनुप्रिया,बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteमाता-पिताक ॠण केँ अहिना चुकेबाक चाही।
नीक कविता...
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