भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Friday, April 24, 2009
सृजन- दोसर खेप- सतीश चन्द्र झा
16 comments:
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
अहाँक सृजन कविताक ई दोसर भाग पढि एकर तेसर भागक लेल लालसा बढि गेल।
ReplyDeleteजाहि तरहेँ अहाँ अपन भावनाक जटिल रूपकेँ सरलतासँ प्रकट कएने छी, से प्रसंसात्मक अछि।
narik prati samarpit srijnak dosar bhag bad nik lagal
ReplyDeleteछथि अचंभित देवतो गणदेखि नारी के समर्पण ।जी रहल जीवन बिसरि क’गर्भ के रक्षा मे सदिखन।
मोन मुर्छित, दर्द तन मे।वेदना सँ प्राण व्याकुलअछि केहन पीड़ा सृजन मे।
ReplyDeleteahank srijanak tathya bad nik, okar vistar seho nik ja rahal achhi,
tesar bhagak intazar rahat.
pahil bhag se dosar bhag bhinn,
ReplyDeleteaa te tesar bhagak lel utsukta badhi gel achhi
पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ की आप को मेरी शायरी पसंद आई !
ReplyDeleteआपने बहुत ही शानदार लिखा है ! ऐसे ही लिखते रहिये !
bahit nik lagal satish bhai, ee kavitaa
ReplyDeleteदुख बिसरि क’हँसि उठै छै फेर तन मन।
ReplyDeleteअंकुरित ओ बीज कहियोभ’ उठै छै गाछ भारी
छाँह ममता के बनै छै,प्राण के आधाार नारी।
bhai ki nukene chhi mon me, jatek padhait chhi ahan ke rahasya gaharait jai ye
एक बेर फेर बहुत नीक प्रस्तुति,
ReplyDeleteछन्दोबद्ध तं नहि अछि मुदा तुकान्त सेहो आइ काल्हि कहां जल्दी कवितामे देखैत छी।
bahut nik lagal
ReplyDeleteee bhag seho bad nik lagal
ReplyDeleteछै केहन हठयोग देहक।
ReplyDeleteमोन मुर्छित, दर्द तन मे।वेदना सँ प्राण व्याकुलअछि केहन पीड़ा सृजन मे।
bahu sundar abhvyakti srijnak
मोन मे उतरल कहाँ अछिकिछु अभिप्सा काम बोधक।
ReplyDeleteअछि हृदय मे आइ हमरोकामना मातृत्व बोधक।
SATISH JI, AHANK KAVITA SARALTA SE JATEK GAHIR DHARI JAIT ACHHI SE ADBHUT HOIT ACHHI< BLOGAK PATHAKAK BADHBAK KARAN AHAN SAN SAN LEKHAKAK EHI BLOG SE JURAB ACHHI
bahut nik, parhi kay mon prasann bhay gel.
ReplyDeletetesar bhagak besabri se intzar rahat.
Ee kavita padai k teen ta aapan baat par garv bhel.Pahil nari k roop mein jeevan je bhetal achi,dosar matritava par aur tesar maithil hoa pe.Keep it up.All the best.
ReplyDeleteछन्दोबद्ध रचना पद्य कहबैत अछि-अन्यथा ओ गद्य थीक। छन्द माने भेल-एहन रचना जे आनन्द प्रदान करए । मुदा एहिसँ ई नहीं बौझबाक चाही जे आजुक नव कविता गद्य कोटिक अछि कारण वेदक सावित्री-गायत्री मंत्र सेहो शिथिल/ उदार नियमक कारण सावित्री मंत्र गायत्री छंदमे परिगणित होइत अछि यदि अक्षर पूरा नहि भेल तँ एक आकि दू अक्षर प्रत्येक पादकेँ बढ़ा लेल जाइत अछि। य आ व केर संयुक्ताक्षरकेँ क्रमशः इ आ उ लगा कए अलग कएल जाइत अछि। जेना- वरेण्यम्=वरेणियम्
ReplyDeleteस्वः= सुवः
। आजुक नव कविताक संग हाइकू/ क्षणिका/ हैकूक लेल मैथिली भाषा आ भारतीय संस्कृत आश्रित लिपि व्यवस्था सर्वाधिक उपयुक्त्त अछि। तमिल छोड़ि शेष सभटा दक्षिण आ समस्त उत्तर-पश्चिमी आपूर्वी भारतीय लिपि आ देवनागरी लिपि मे वैह स्वर आ कचटतप व्यञ्जन विधान अछि जाहिमे जे लिखल जाइत अछि सैह बाजल जाइत अछि। मुदा देवनागरीमे ह्रस्व 'इ' एकर अपवाद अछि, ई लिखल जाइत अछि पहिने, मुदा बाजल जाइत अछि बादमे। मुदा मैथिलीमे ई अपवाद सेहो नहि अछि- यथा 'अछि' ई बाजल जाइत अछि अ ह्र्स्व 'इ' छ वा अ इ छ। दोसर उदाहरण लिअ- राति- रा इ त। तँ सिद्ध भेल जे हैकूक लेल मैथिली सर्वोत्तम भाषा अछि। एकटा आर उदाहरण लिअ। सन्धि संस्कृतक विशेषता अछि? मुदा की इंग्लिशमे संधि नहि अछि? तँ ई की अछि- आइम गोइङ टूवार्ड्सदएन्ड। एकरा लिखल जाइत अछि- आइ एम गोइङ टूवार्ड्स द एन्ड। मुदा पाणिनि ध्वनि विज्ञानक आधार पर संधिक निअम बनओलन्हि, मुदा इंग्लिशमे लिखबा कालमे तँ संधिक पालन नहि होइत छैक , आइ एम केँ ओना आइम फोनेटिकली लिखल जाइत अछि, मुदा बजबा काल एकर प्रयोग होइत अछि। मैथिलीमे सेहो यथासंभव विभक्त्ति शब्दसँ सटा कए लिखल आ बाजल जाइत अछि।वेदमे वर्णवृत्तक प्रयोग अछि मात्रिक छन्दक नहि आ ताहूमे छन्दकेँ अक्षरसँ चिन्हल जाइत अछि। यदि अक्षर पूरा नहि भेल तँ एक आकि दू अक्षर प्रत्येक पादकेँ बढ़ा लेल जाइत अछि।गणना पाद वा चरणक अनुसार होइत रहए।एहू प्रकारेँ नहि पुरलापर अन्य विराडादि नामसँ एकर नामकरण होइत अछि।
यथा- गायत्री(24)- विराट् (22), निचृत्(23), शुद्धा(24), भुरिक् (25), स्वराट्(26)
2. सतीशजी तेसर भागक बाद विस्तृत रूपेँ लिखब।
kavita padhi k mon prashnna bha gel. srijan ke tesar bhagak pratichha achhi.
ReplyDelete**** neha ***
madhubani