भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Friday, May 08, 2009

श्रीधरम (1974- )

श्रीधरम  (1974- )


फानी

पंच सभ एकाएकी कारी मड़रक दुअरा पर जमा हुअलागलछल। दलान पर चटाइ बिछा देल गेल रहै। देबालक खोधली मे राखल डिबिया धुआँ बोकरि रहल छल। मात्र रामअधीन नेताक अयबाक देरी रहै

बिना रामअधीन नेताक पंचैती कोना शुरु भसकैए? डोमन पाँच दिन पहिनहि सँ पंच सभक घूर-धुआँ मे लागल छल। डोमन चाहैत रहए जे सभ जातिक पँच आबय, मुदा रामअधीन नेता मना कदेने रहै, बाभन-ताभन केँ बजेबेँ तँ हम नइँ पँचैती मे रहबौ जातिनामा पँचैती जातिए मे होना चाही। डोमन केँ नेताजीक बात काटबाक साहस नइँ भेलै। रामअधीन आब कोनो एम्हर-ओम्हर वला नेता नइँ रहलै, दलित पाटीक प्रखंड अध्यक्ष छिऐ। थानाक बड़ाबाबू, सीओ, बीडीओ, इसडीओ सभ टा चिन्है छै। कुसी पर बैसाककनफुसकी करै छै। मुसहरी टोलक बिरधापेंशनवला कागज-पत्तर सेहो आब नेतेजी पास करबै छै। कोन हाकिम कतेक घूस लै छै, से सभ टा रामअधीन नेता केँ बूझल छै। कारी मड़र तँ नामे टाक माइनजन, असली माइनजन तँ आब रामअधीने नेता किने?

डोमन पँच सभ केँ चटाइ पर बैसा रहल छल आ सोमन माथा-हाथ देने खाम्ह मे ओङठल, जेना किछु हरा गेल होइ। टील भरिक मौगी सभ कारी मड़रक अँगना मे घोदिया गेल रहैसोमन आ डोमनक भैयारी-बँटवारा देखलेल। ओना दुनू भाइक झगड़ा आब पुरना गेल रहै। मौगी सभक कुकुर-कटाउझ सँ टोल भरिक लोक आजिज भग्र्ल रहय तेँ रामअधीन नेता डोमन केँ तार ददिल्ली सँ बजबौलकै। सभ दिनक हर-हर खट-खट सँ नीक बाँट-बखरा भइए जाय।

झगड़ाक जड़ि सीलिंग मे भेटलाहा वैह दसकठबा खेत छिऐ जे सोमनक बापे केँ भेटल रहै। रामअधीन नेताक खेतक आरिये लागल दसकठबा खेत। कैक बेर रामअधीन नेता, सोमनक बाप पँचू सदाय केँ कहने रहै जे हमरे हाथेँ खेत बेचि लैह, मुदा पँचू सदाय नठि गेल रहै। रामअधीन नेता आशा लहौने रहए जे बेटीक बियाह मे खेत भरना राखहि पड़तनि, मुदा पँचू सदाय आशा पर पानि फेर देने छलै। एकहक टा पाइ जोगाकबेटीक बियाह सम्हारि लेलक तेँ खेत नइँ भरना लगेलक। मरै सँ चारि दिन पहिनहि पँचू सदाय सोमन आ डोमन केँ खेतक पर्ची दैत कहने रहै,ई पर्ची सरकारक देल छिऐ, जोगाकरखिहेँ बौआ, बोहबिहेँ। नइँ। दस कट्ठा केँ बिगहा बनबिहेँ, भरि पेट खाइत देखिकसभकेँ फट्टै छनि। बगुला जकाँ टकध्यान लगेने रहैए।

डोमन बापक मुइलाक बाद परदेश मे कमाय लागल रहय आ सोमन गामे मे अपन खेतीक संग-सग मजूरी। फसिलक अधहा डोमनक बहु रेवाड़ीवाली केँ बाँटि दैक। मुदा, जेठकीसियादिनी महरैलवाली केँ ईबड्ड अनसोहाँत लागै, मर्र, ई कोन बात भेलै, पसेना चुवाबै हमर साँय, चास लगाबबेर मे सभ निपत्ता आ बखरा लेबबेर गिरथाइन बनि जायत। लोकक साँय बलू गमकौआ तेल-साबुन डिल्ली से भेजै हय तहम कि हमर धीया-पुत्ता आरु सुङहैयो लेजाइ हय्।

सभ दिन कने-मने टोना-टनी दुनू दियादिनी मे होइते रहै। मुदा, ओहि दिन जे भेलै...

सोमन गहूँम दौन कदू टा कूड़ी लगा देलक आ नहाय लेचलि गेल। गहूमक सऊँग देह मे गड़ैत रहै। रेवाड़ीवाली अपन हिस्सा गहूम पथिया मे उठाबलागल रहए कि देखते जेना महौलवाली केँ सौंसे देह मे फोँका दड़रि देलकै, रोइयोँ नइँ सिहरै हय जेना अपने मरदबाक उपजायल होइ। रेवाड़ीवाली कोना चुप रहितय ? कोनो कि खेराअँत लै छै? झट दजवाब देलकै, कोनो रंडियाक जिरात नइँ बाँटै हय कोइ अधहाक मालिक छिऐ छाती पर चढ़िक बाँटि लेबै।रंडियाशब्दा महीरैलवालीक छाती मे दुकैम जकाँ धँसि गेलै-बरबनाचो...के लाज होइ हय बजैत साँय मुट्ठा भेजै हय आइँठ-कुइठ धोइ कआ एतई मौगी थिराएल महिंस जकाँ टोले-टोल डिरियायल फिरै हय, से बपचो...हमरा लग गाल बजाओत। सुनिते रेवाड़ीवालोक देह मे जेना जुरपित्ती उठि गेलै ओ हाथ चमकबैत महरैलवालीक मुँह लग। चलि गेल, ऐ गै धोँछिया निरासी! तूँ बड़ सतबरती गै! हे गै उखैल कराखि देबौ गै। भरि-भरि राति सुरजा कम्पोटर पानि चढ़ा-चढ़ा कबेटीक ढीढ़ खसेलकौ से ककरा सनुकायल हौ गै? कोना बलू फटा-फटि बेटीक दीन कससुरा भेज देलही।

बेटीक नाम सुनिते महरैलवालीक तामस जवाब ददेलकै झोँ टा पकड़िकरेवाड़ीवाली केँ खसा देलक। दुनू एकदोसराक झोँ ट पकड़ने गुत्थम-गुत्थी भेल। ओम्हर सँ सोमनक बेटा गँगवा हहासल-फुहासल आयल आ मुक्के-म्य्क्की रेवड़ीवाली केँ पेटे ताके मारलागल। रेवाड़ीवाली एसगर आ एमहर दू माइ-पूत। कतेक काल धरि ठठितया, ओ बपहारि काटलागल। टोल पड़ोसक लोक सभ जमा भगेल रहै, दुनू केँ डाँटि-दबाड़ि ककात कयलक। दुनू दियादिनीक माथक अधहा केस हाथ मे आबि गेल रहै।

ओहि राति रेवाड़ीवालीक पेट ने तेहन ने दरद उखड़लै जे सुरज कम्पोटर पानि चध्आ कथाकि गेलै, मुदा नइँ सम्हरेलै। चारिये मासक तँ भेल रहै, नोकसान भगेलै। बेहोसियो मे रेवाड़वाली गरियबिते रहलै, ईडनियाही हमरा बच्चा केँ खा गेल। सोचै हय कहुना निर्वश भजाय जे सभ टा सम्पैत हड़पि ली। डनियाहीक बेटा मरतै। धतिंगबाक हाथ मे लुल्ही-करौआ धरतै। काटल गाछ जकाँ अर्रा जेतै...।

दिसरे दिन रेवाड़ईवाली थाना दौगल जाइत रहे, रिपोट लिखाव। रस्ता सँ रामअधीन नेता घुरेने रहै, समाजे मे पँचैती भजैतौ आ नेताजी सोमन केँ मार’-मास्क छूटल रहै, रौ बहि सोमना। मौगी केँ पाँज मे राखबेँ से नै। आइए सरबे सब परानी जहल मे चक्की पिसैत रहित। मडर केस भजइतौ। सरबे हाइकोट तक जमानति नहि होइत। सोमन बीतर धरि काँपि उठल रहय। नहि जानि पँचैती मे की सभ हेतै। एक मोन भेलै, जाय आ पटुआ जकाँमहरैलवाली केँ डंगा दैक। , छिनरी के हरदम फसादे वेसाहैत रहैए। रामअधीन नेताक अबिते पँचैतीक करबाइ शुरु भगेलै। फौदारक चीलम सँ निकलैत धुँआक टुकड़ी किछु दूर उपर उठि बिला जाइत रहे गंधक माध्यम सँ अपन उपस्थितिक आभास दैत एअहय।

हँ तडोमन किऐ बैसेलही हेँ पँचैती, से पँच केँ कहबिही किने रामअधीन नेता बाजल। डोमन ठाढ़ होइत बाजल, हम परदेस कामाइ छिऐ। रेवाड़ीवाले एतएसगर रहै हय। पँचू सदाय बलू भैयाक बाप रहै तहमरो बाप रहै। हमहुँ पँचूए सदायक बुन्न सजनमल छिऐ आ बोए केँ सरकार जमीन देने रहै महंथ सछीनिक। अइ जमीन पर जतने अधिकार एकर हइ ओतने हमरो हय। तहन जे सब मिलि करेवाड़ीवालीक गँजन केलकै, तकर निसाफ पँच आरु कदइ जाउ। हमरा आर कुछो नइँ कहनाइ हय। सब चुप...फेर नेतेजी सोमन केँ टोकलके, की रौ। तोहर की कहनाम छौ?

आब हम बलू की कहबै ? जे भगेलै से तघुरिक नइँ एतै ग। समाज आरूक बीच मे छिऐ। जते जुत्ता मारै केँ हइ, मारि लौ। दुनू मौगी रोसाएल रहै, तहन तबलू ओकर नोकसान भगेलै तेँ ओकर दिख त लोक नइँ देतै। तहन जे भगेलै से भगेलै। पंच आरू मिलिकबाँट-बखरा कदौ। खेतो केँ आ घरो केँ। झगड़े समापत भहेतै।

रौ बहिं सिमना, बात केँ लसियबही नइँ। तहन तअहिना ककरो कियो खून कदेतै आ समाज मुँह देखैत रहतै। कोना बभना आरू पुक्की मारै जाइ हइ से तूँ सभ की जानगेलही। परसू बेलौक पर सार मुखिया हमरा देखि-देखिकहँसैत रहय, चुटकी लैत रहय, की हौ रामअधीन! जहन टोले नइँ सम्हरै छबिधायक बनलाक बाद पूरा एलाका कोना सम्हरतह? सुनै छियएहि बेर टिकट तोरे भेटत। चलअइहबा मे पार लागिऐ जेत।... नेताजी गुम्हरल, टिकटेक नाम सुनिकसार सब केँ झरकै छनि, आगू की सभ जरतनि? रामअधीन नेता एक बेर मोँ छ केँ चुटकी सँ मीड़ि उपर उठेक फेर आक्रामक मुद्रा बनबैत बाजल, सुनि ले बहिं, से सभ नइँहेतौ। गलती दुनू के छौ। पाँच-पाँच हजार दुनू केँ जुर्बाना देमपड़तौ, जातिनाम खाता मे। नेताजीस्वाभाविक गति सँ पुन: एक बेर मोंछक लोली केँ चुटकी पर चढ़बैत मड़र कका दिस देखलनि, की हौ मरड़ कका बजैत किऐ ने छहक? मड़र कका बदहा जकाँ मूड़ी डोला देलकै।

डोमन भाइ सँ बदला लैक धुन मे एखन धरि गुम्हरि रहल छल, मुदा नेताजीक बात सुनिते झमान भखसल। एक मोन भेलै, कहि दैजे भेलै से भेलै भैयारी मे। नइँ करेबाक यपंचैती। ई किन बात भेलै ! हमरे बहु मारियो खेलक आ जुर्बान सेहो हमहीं दियौ, मुदा चुप रहल। डरें बाजल नइँ भेलै। डोमन केँ देखल छै जे रामअधीन नेता पंचैती नइँ माननिहार केँ कोना ताड़क गाछ मे बान्हिकपीटै छै। एखन धरि जुर्बाना वला पचासो हजार टाका जातिनाम खाता मे गेल हेतै, मुदा हिसाब? ककर बेटी बियेलैहेँ जे रामअधीन नेता सँ हिसाब माँगत!

रामअधीन नेताक पी.ए. जकाँ हरदम संग रहनिहार मोहन सदाय बाजि उठल, की रौ सोमना, हम दुनू भाइ सपुछै छियो; कहिया तक पाइ जमा कदेमही ? एक सप्ताह सबेसीक टेम नइँ देल जेतौ। अहि पाइ सकोनो छिनरपन नइँ हतै, सारबजनिक काम हेतै। दीना-भदरीक गहबर बनतै।

कतौ सचोरी कए कनइँ आनबै हमर हालति बलू ककरो सनुकाएल तनइँ हय। सोमन कलपल।

मोहन सदाय केँ रामअधीनक कृपा सँ जवाहर-रोजगार वला ठिकेदारी सभ भेटलागल छै। सीओ, बीडीओ केँ चेम्बरे मे बंद कदैत अछि आ मनमाना दस्तखत करा लैत अछि तेँ ओकरा सभ टभजियायल छै जे घी किना निकालल जाइत छै। ओ सभक चुप्पी केँ तौलैत मड़रककाअक नाड़ी पकड़लक की हौ मड़र कका! तोरा आरूक की बिचार छह? दीना भदरीक गहबर मे ओ पाइ लागि जाए तनीके किने ?

मरड़ कका आइ दस साल सँ हरेक पंचैती मे अहिना दीना-भदरीक गहबर बनैत देखि रहलछैमुदा एखनो दीना-भदरीक पीड़ी पर ओहिना टाँग अलगा ककुकूर मुतिते छै। मड़रकका मने-मन कुकू केँ गरियेलक, सार, कुकूरो केँ कतौ जगह नइँ भेटै हय, देबते-पितरक पीड़ी केँ घिनायत। खैनीक थूक कठ धरि ठेकि गेल रहै, पच्चा दफेकैत बाजलजे तूँ सभ उचित बुझही !

पंचैती मे रामधीन नेता आ मोहन सदाय बजैत जा रहल छल। बाकी सभ पमरियाक तेसर जकाँ हँ मे हँ मिलबैत। सोमन पंच सभक मुँह ताकि रहल अछि, मुदा दिन भरिक हट्ठाक थाकल-ठेहियायल पंच सभक मुँह स्पष्ट कहै छै जे कतेक जल्दी रामअधीन नेता निर्णय दै आ ओ सभ निद्राक कोरा मे बैसि रहय। मड़र ककाक हुँहकारी सँ मोहन सदायक मनोबल एक इँच आरो उपर उठलै। ओ बाजल, नगदी ई दुनू भाइ जमा कसकत से उपाय तनइँ छै तहन पाइ कोना एकरा सभ केँ हेतै, तकरो इन्तिजाम तआइए भ्जेबाक चाही। आब अहि लेदोसर दिन तबैसार नइँ हेतै। हम्र एक टा प्रस्ताब छै जे दुनू भाइक साझिया दसकठबा खेत ताबत केओ दस हजार मे भरना ललौ। जहिया दुनू भाइ पाइ जमा कदेतै तहिया खेत घुरि जेतै।बिना ककरो विचार लेनहि मोहन सदाय डाक शुरु कदेलक, बाजके लेबहक! जमीन अपने टोला मे रहतै बभनटोली मे नइँ जेनाय छै खपटा ल

सभ चुप्प!

फेर मोहन सहाय बाजल, जँ नइँ कियो लेबहक तनेताजी सोचतै, टोलक इज्जति तबलू बचाबपड़तै ओकरे किने। अंतिम श्ब्द बजैत मोहन सदायक आँखि नेताजीक आँखि सँ टकरा गेलै। मड़रकका आँखि मुनने भरिसक कुकूरे केँ खिहारि रहल छलाह। खैनीक सेप मुँह मे एतेक भरि गेल रहनि जे कने घोँ टाइयो गेलनि। खूब जोर सँ खखसैत बजलाह, :सुनि लेबहिं पिछला बेर जकाँ एहू बेर नइँ पजेबा खसि कउठि जाइ। मड़र ककाक शंका मे आरो एक-दू गोटा अपन हामी भरलक। मोहन सदाय पहिनहि सँ तैयार रहय, झट दबाजि उठल, नइँ हौ। दसक हहास बलू अपना कपार पर के लेत? जुर्बानाक पाइ देबते-पितर मे जेतै। दीना-भदरी संगे जे सार फ़द्दारी करत, तकरा घर पर खढ़ो बचतै ? घटतै तएक-दू हजार नेताजी अपन जेबियो सलगा देतै। कोनो अंतजेतै? धरम-खाता मे जमा रहतै। बभना आरू जेहन डीहबारक गहबर बनेलकै, ओहू सनिम्मन दीना-भदरीक गहबर बनतै।

महरैलवाली बड़ी काल सँ मुँह दबने रहय। आब ओकर धैर्य जबाव ददेलक, हइ के हमर जमीन लेतै? दीना-भदरीक गहबर बनै लेहमरे जमीन हइ। मोंछवला सभ बेहरी दबनेतै से नइँ। रेवाड़ीवाक्लीक हृदय सेहो आब बर्फ भगेल रहय। दियादनीक बात मे ओकरो मौन समर्थन रहै।

रामअधीन नेता केँ कहियो-कहिओ दिन तका कतामस उठै छै जहन ओकरा मोनक विपरीत कोनो काज होइत छै। एहन परिस्थिति मे नेताजी टोल भरिक छौड़ी-मौगी सँ गारिक माध्यम सँ लैंगिक संबंध स्थापित कलैत छथि। छिनरी केँ तूँ बीच मे बजनाहर के? हम सोमना नइँ छी, ततारि देब। नेताजी मारैक लेल हाथ उठेलनि। महरसिलवली नेताजीक लग मे आरो सटैत बाजल, माय दूध पियेने हइ तमारि कदेख लौ। नेताजीक हाथ थरथरा गेलनि मुदा मुँह चालू मुँह सम्हारि कबाज मौगी नइँ तचरसा घीचि लेबौ। आगि-पानि बारि देबौ, देखै छी कोना गाम मे तूँ रहि जाइत छें।

है केहन-केहन गेलै तमोछवला एलै। बहरा गाम मे रहि जेबै तें जमीन पर नइँ ककरो चड़हदेबै। ई नेताबा आरू गुरमिटी कक जमीन हड़प चाहै हय। जमीन भरना लेनिहार केँ तखपड़ी सचानि फोड़ि देबै। दीना-भदरी गरीबेक जमीन लेतै। अइ नेताबा आरूक कपार पर हरहरी बज्जर खसतै। घुसहा पंच सभ केँ मुँह मे जाबी लागि गेल हय। निसाफ बात बजैत लकबा नारने हइ।

महरैवालीक ई हस्तक्षेप सोमनक पक्ष केँ आरो कमजोर कदेलकै। पंच सभ सोमन केँ धुरछी-धुरछी करलगलै। फौदार कहलकै, रौ बहिं सोमना, ई मौगी ठिके झँझटिक जड़ि छियौ। एकरा अँगना कबइलेबेँ से नइँ? गाइरे सुनबै लेपंच आरू केँ बजेलही हें। सोमन केँ भरल सभा मे ई बेइज्जती बड़ अखड़लै जहन मरदा-मरदी बात होइ हय तई मौगी किऐ बीच मे टपकै हय। सोमन, महरैलवालीक ठौठ पकड़ि कअँगना मे जा कधकेलि देलक। महरैवाली आँगने सँ गरियाबैत रहल, अइ मुनसा केँ तजे नइँ ठकि लइ। बोहा दौ सभ टा। नेतबा सभ ततौला मे कुश दरखनै हय।

आब नेताजीक तामस मगजो सँ उपर चढ़ि गेल, ई सार सभ ओना नइँ सुधरत। एखने बभना आरू दस टा गारि दैतनि आ चारि डंटा पोन पर मारितन्हि ततुरते पंचैती मानितय। कोन सार पंचैती नइँ मानत से हमरा देखनाइ यए। नेताजीक ठोरक लय पर मोंछो थरथरा रहल छल ! सरबे सभ केँ हाथ-पयर तोड़िकराखि देबनि। घर मे आगि लगा कभक्सी झोंकान झौकि देबनि। देखै छी कोन छिनरी भाइ दरोगा हमरा खिलाफ एन्ट्री लैयए। चारू भर श्मशानक नीरवता पसरि गेल छल। पंच सभ आगाँक बातव् केँ रोकबाक लेल डोमन आ सोमन दिस याचक दृष्टएँ ताकि रहल छल। मोहन सदाय कागत-कजरौटी निकालैत सोमनक कान मे बाजल, की विचार छौ, फसाद ठाढ़ करबें? आ फेर सोमनक थरथराइत औंठा पकड़िककजरौटी मे धँसा देलक। अही बीच महरैलवाली वसात जकाँ हहाइत आयल आ दुनू हाथ सँ कागत आ कजरौटी केँ पकड़ि कओहि पर सूति रहल! ओ बाजय चाहैत रहय, मुदा मुँह सँ आवाज नहि निकलि रहल छलै। रामअधीन नेता कागत आ कजरौटी महरैलवालीक हाथ सँ छीनचाहैत छल, मुदा महरैलवाली पाथर भगेल रहय। जेना ओ कागत नहि, ओ दसकठवा खेत हो जकरा ओ अपना छाती सँ अलग नहि करचाहैत रहय।

छिनरी केँ तू एना नहि मानवें। महरैलवालीक मुँह पर घुस्सा मारैत ओकर मुट्ठी केँ हल्लुक करचाहलक।

एम्हर रेवाड़ीवालीक चेहरा तामसे लाल भगैल रहै। ओकर सभ टा चिद्रोह नेता सभक कूटनीति केँ बुझिते पिघलि गेल रहै। ओ डोमनक देह झकझौरैत बाजल, बकर-बकर की ताकै छ। नारने पूतखौका नेताबा आरू केँ। जब खेते नहि बचतबाँटबकी? रेवाड़ीवालीक ई रूप देखि नेताजीक हाथ ढील हुअलागल। पंच सभ हतप्रभ रेवाड़ीवाली दिस ताकलागल।

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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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