ज्योतिकेँ
www.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ। नेशनल एशोसिएशन फॉर ब्लाइन्ड, जमशेदपुरमे अवैतनिक रूपेँ पूर्वमे अध्यापन।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। --सम्पादक
बर्फ ओढ़ने वातावरण !
मानू आकाश टूटि क बिखरि गेल ,
अपने आप के छिरियाकऽ
सबके एक रंग में रंगि गेल ॥
थरथराबैत सरदी स भयभीत
सब जीव अपन जगह धेलक;
प्रकृति के इहो अवरोध मुदा,
मनुष्य के नहि बॉंधि सकल ॥
भॉंति प्रकारक साधन जोगारलक
विकट परिस्थिति पर विजय लेल;
अपन सर्वश्रेष्ठ बुद्धिबल स
मनुष्य अंतत: सफल भेल॥
गामक सूर्यास्त
गामक सूर्यास्त
एक अद्भुत दृष्य यादि पाड़ि चकित भेलहुँ,
पोखरिक भीड़ पर हम ठाढ़ छलहुँ
आसमानक नीलवर्ण भेल रंगमय
दिया बातीक मुहुर्तमे सूर्य सबसॅं विदा लय
क्षितिजमे विलीन हुअ लागल
संग ओकर प्रकाशपुंज सेहो भागल
सबहक खरिहानमे लालटेन टिमटिमाय छल
पक्षी सब समदाओन गाबि रहल छल
सेहो ध्वनि मन्द पड़ि गेल
सॉंझ रातिमे बदलि गेल
फेरि स अगिला भोर मे पक्षिगण
गायत प्राती सब मिलि एक संग।
विशाल समुद्र
समुद्रक लहरिक तरंग
अनगिनत बेर दोहरा रहल अछि ।
उद्देश्यहीन अपने मुदा ओकर गान
कहिया कत’ सँ चलि रहल अछि ।
बेर बेर रेत पर बनल पदचिह्न
मेटा क’ तटसॅं घुरि जाइत अछि ।
जलक सभसॅं शक्तिशाली संगठन
सागरक रूपमे उपस्थित अछि ।
रातिक अन्हारोमे ओकर गर्जन
ओकर विशालताक आभास कराबैत अछि ।
आधुनिक जीवनदर्शन
अतिशयोक्ति सँ विरक्ति अछि
जाबे ओ' दोसरक प्रशंसा में होय
परञ्च निंदामे किएक कंजूसी
जखन अनकर करबाक होय ।
असभ्य तऽ ओकरा बुझब
जे हमर प्रशंसकके रोकयए,
ने हम्मर कियो प्रशंसक अछि
ने समाजमे कियो असभ्य बुझाइए ।
परोपकार करनिहारके आशिष
जे हमर काज बना गेल
अन्यथा ओ सब बेरोजगार
जे आनक काजमे लागि गेल ।
.मनुष्य आ' ओकर भावना
कठोर हृदयमे भावुकता नुकायल भेटल,
पुछलियै, “ तोहर आब कोन स्थान ?”
बड़ निर्मलतासॅं उत्तर देलक,
''हमरा सॅं नहिं तोरा सबके त्राण।
क्रोध, प्रेम, दु:ख, दया आदि जीवनक अंश
अहिसॅं पूर्णत: विमुक्त भेनाई कठिन;
परन्तु गलतकेँ बिसरा कऽ नीक विचारकेँ
आश्रय देनाय अछि अपन आधीन ।
दया परोपकारक अधिष्ठात्री अछि ,
दु:ख खुशीक महत्त्व बुझाबए छै।
क्रोध सॅं हठ, प्रेमसँ त्याग जनमैत अछि,
बस उचित दिशा निर्देशन आवश्यक छै।
मानवक बुद्धि भावनासॅं प्रभावित होइत अछि़;
भने ओ स्वयम्केँ विधाता बनओने फिरैए।
आधुनिकताक होड़मे निष्ठुरता ओढ़ने अछि,
भावनाहीन भऽ कऽ जीवित नहि रहि सकैए।
हम्मर गाम
गरमी में सूर्योदय के समय कतेक शान्त आ' शीतल,
लू आ उमस सॅं ओत प्रोत दुपहरिया तेहने बिगड़ल;
सॉंझ हुअ सऽ पहिने धूल धक्कड़ आ' बिहारि,
राति होइत होति देरी अन्हार, ताहि पर मच्छड़क मारि।
अहि सबहक बीच बसल बस एक मात्र मिठास
अप्पन भाषाक ज देने अछि गाम जायक प्यास
जतऽ सभ्यता के लाज में अपनापन नहिं नुकाइत छल
लोक हाक दऽ कऽ हाल पूछऽ में नहिं सकुचाइत छल
अनार, शरीफा, खजूर, लताम, पपीता, जलेबी, केरा सहित लीचीक बगान
केसौर, कटहर, बेल, धात्री, जामुन, बेरक संग अप्पन पोखरिक मखान
फेर आमक गाछी सेहो अछि जतऽ गर्मी बितौनाई नहिं अखड़ल
हवा बिहारि में खसल आम बीछऽ लेल भगनाई नहिं बिसरल
विकास
विकासशीलताक उच्चतम् शिखर
कतऽ आऽ कतेक दूर पर भेटत।
ई एकमात्र मृगमरीचिका तऽ नहि
जे लग गेला पर बिला जायत ।
प्यासलकेँ लोभ दऽ बजाबए लेल
फेर कनिक दूर पर देखायत।
मनुष विज्ञान आर तकनीकक नशामे
आर कते दिन ओकरा खिहारइत रहत।
यात्रा मात्रसॅं प्रकृति दूषित भेल
भेटऽ मे की जानि कतेक हानि हएत।
परन्तु अपन ज्ञानक सीमा संकुचित कऽ
बुद्धिकेँ स्थूल तऽ नहि कएल जायत।
गति निर्धारण आ' सामनजस्य चाही
जतऽ विकासक मार्ग नहि रोकल जायत।
संगहि प्रगति आऽ प्रकृति दुनुक भैयारी
विज्ञानक नाम पर नहि तोड़ल जायत।
बालश्रम
बालपनक किलकारी भूखक ताप सऽ भेल मूक,
पोथी बारि कोदारि पाडैत हाथक मारि अचूक।
कादो रौद बसातमे श्रम केनाइ भेल मजबूरी;
गरीबीक पराकाष्ठा ! पेट आ पीठक घटैत दूरी,
किछु धनहीनता आ’ किछु माता पिताक मूर्खता,
मुदा, सभसँ बेसी स्वार्थी समाजक संवेदनहीनता,
जे बालक केँ माताक आश्रय सॅं वञ्चित केलक,
लेखनि के छीन कोमल हाथमे करची धरेलक,
माल जालक सेवा करैत बाल्य जीवन कुदरूप,
अपने भविष्यकेँ दरिद्र करैत अज्ञान आ' अबूझ,
विद्योपार्जनक ककरा फुर्सति ? स्थिति तऽ तेहन भेल,
चोर बनक आतुर अछि बालपन दू दाना अन्न लेल।
(१)
तारा दूरसँ
बुझाइत कतेक शीतल
वास्तवमे जड़ैत
(२)
शाखासँ लागल
पुष्प आऽ पत्रसॅं आच्छादित
अछि झूलैत लता
(३)
पक्षी विश्राम कएल
बड़का यात्राक उपरान्त
एखनो जे अपूर्ण
(४)
अद्रभुत अपवाद छैक
नागफनीक कॉँटक बीच
कुसुम खिलायल
(५)
नीलांबरमे मेघ
विचरैत अछि कोना जेना
सागरमे होए शार्क
(६)
भावी संकट केर
पशु पक्षीमे पूर्वाभास
प्रभुक दिव्य आशिष
(७)
कोमल पंखुड़ी
सुगन्धक संग सजाओल
एक पुष्पक रूपमे
(८)
नदीक तरंग
ओहिना लागैत अछि जेना
ओकर घुरमल केश
(९)
दू टा पसरल पाँखि
बाज उड़ऽ लेल तैयार अछि
पूर्ण रूपसॅं जागरूक
(१०)
पहाड़ीक ढलान
ताहि पर एकमात्र गाछक छाह
भेल यात्रीक विश्राम
(११)
संध्याक बेला
सुनसान आऽ शान्त पोखरिक कात
एक एकान्त स्थान
(१२)
मेघ रूपी बर्फमे
अछि हवाई जहाज पिछड़ैत
आकाशमे विचरैत
(१३)
कठोरतम भूमि
समुद्रक छोर पर बसल
अछि पाथरक किनार
(१४)
विलक्षण अपवाद
आकाश जरैत संध्याकाल
समुद्रक उपरि
(१५)
पहाड़सॅं उदित
सूर्यसॅं आकाश भेल जागृत
ज्वालामुखी सन
(१६)
उगैत सूर्य संगे
आयल अंधकारक उपरान्त
अंतहीन दिनक आस
(१७)
दिवस आब थकल
रातिक स्वागतमे लीन साँझ
मिझाइत सूर्य दीप
(१८)
गाछ भने हरियर
ग्रीष्मोमे देखु पतझड़
भोरक आकाशमे
(१९)
पक्षीक चहक
आऽ आकाशक लाली संग
प्रकृति जागल
(२०)
अतिसुन्दर जाड़
मेघक घिस घिस छिड़यौलक
हिमपातक रूपमे
(२१)
तैयार उड़ऽलेल
पक्षी विश्रामसॅं जागल
वा अछि शुरूआत
(२२)
पक्षीक निरीक्षण
छूटल अन्नक फेरमे
कटनी भेलाक बाद
(२३)
फूलक हुँजक बोझ
शाखा केँ झुका रहल
बसंत आयल अछि
(२४)
तितलीक पंख
अंकित रंग बिरंग आकार
प्रभुक चित्रकला
(२५)
मनुष लेल कठिन
किन्तु जीवन ओतहु अछि
शीतलतम स्थान
(२६)
उच्चतम शिखरसॅं
धुन्ध भरल हरियर घाटी
निहारक इच्छा
(२७)
विभिन्न प्रकारक
घास पात जमीन पर उगल
आइरसँ दूर बॅंचल।
(२८)
ओसक बूँद पाबि अछि
घासक फुनगी आह्लादित
हीरा सन चमकैत
(२९)
बाहर घूमऽ निकलल
बतख अपन बच्चा संग
गर्मीक दिनमे
(३०)
बतख हेल रहल अछि
पानिक ऊपरी सतह पर
लक्ष्यक दिस निरंतर
(३१)
स्प्रेसो
आस्ते पिब लेल
गर्म देल गेल
(३२)
ईश्वर केँ तकनाइ
नहि कठिन पाबू ओकरा
पवित्र हृदयमे
(३३)
दृष्टि भ्रमणमे
घाटी पर दूर दूर धरि
भटकि सकैत अछि
(३४)
घोड़ा भटकि रहल
उद्देश्यहीन बिन घुड़सवार
भेल अनुशासनहीन
(३५)
स्थिर पानिमे
प्रकृतिक प्रतिबिम्ब
साफ लेकिन उलटा
(३६)
प्राकृतिक दृष्य
पानिक प्रतिरूप बिना
अपूर्ण बुझाइत अछि।
(३७)
पतझड़क पात
पसारलक अप्पन सतरंजी
हरियर घास बदला।
(३८)
समुद्रक तहमे
विभिन्न आकार प्रकारक
रंग बिरंग जीवन।
(३९)
नटखट समुद्र
तटक आरामसँ वंचित
कएने बेर बेर तंग।
(४०)
पहाड़क चोटी
आर बेसी ऊँच लागैत अछि
गहीँर घाटीक बीच
(४१)
पोखरिमे देखु
प्रकृतिक प्रतिबिम्ब
उलटल बुझाइत अछि
(४२)
तितलीगण उतरल
पंखरूपी पैराशूट लऽ
फुलक झुण्ड पर।
(४३)
उच्चतम शिखर पर
गुफासँ दृष्टिगोचर
होइत रमणीय दृष्य
(४४)
बच्चाक संग खेलमे
एकेटा खुशीक आभास
ओकर किलकारी
(४५)
टेढ़ मेढ़ रेखा अछि
बरसातक बहैत पानिसँ
खिड़कीक काँच पर बनल
(४६)
बादलसँ छनल
समुद्रक लहरिक तरंग
उपर चमकैत किरण
(४७)
पानिक तरंग केँ
पक्षी बदलि रहल अछि
कलरवक लयमे
(४८)
मरुस्थलमे रेत
अछि हवासँ बहारल
सतह भेल समतल
(४९)
कतेक बेसी ध्यान
पातक प्रारूप देबऽमे
ईश्वर देने छथि
(५०)
बरसात खतम भेल
पानि तइयो झरि रहल अछि
गाछक पात सब सऽ
(५१)
समुद्रक लहरि
लगातार टकरा रहल
पाथर तइयो स्थिर
५२
मनोरम दृष्य
जेना चिन्नीक चाशनीमे लिप्त
अछि गाछ जाड़मे
(५३)
अपने रंगहीन अछि
गाछ केँ रंगीन बनौलक
नीचा गड़ल जड़ि
(५४)
शीतल प्रकाश युक्त
सुर्योदयक पहिनेक समय
सर्वोत्तम काल
(५५)
पाँखिक शाल ओढ़ने
प्रकृतिक भ्रमण हेतु
पक्षी निकलल जाड़मे
(५६)
चिडैय़ाक बच्चा
माए बाप संगे अछि ताबञ
जाबञ पंख नहिक छैक।
(५७)
प्रवासी पक्षी
मीलक मील उड़िक आयल
गर्मीक आनन्द लय।
(५८)
उछलैत पानि
नदीसँ भेँट लेल
खसल झरनाक रूपमे ।
(५९)
नागफणीक गाछ सभ
मरुस्थल्मे सेहो अछि
मजबूतीसँ ठाढ़।
(६०)
कठोर पातसँ लिप्त
नागफनीक चोटी पर अछि
कोमल फूलक ताज
(६१)
आर सजायल गेल
कैक रंगक फूल आऽ लाइटसॅं
क्रिसमसक साँझमे
(६२)
एक नारिकेरक फल
कठोर केशयुक्त कवचमे
मीठ उज्जर फल अछि
(६३)
भुखाएल बगुला
नदीक कातमे ठाढ़ अछि
माछक ताकिमे
(६४)
अतिथिक आगमन
कौआक कर्कश काँव काँवसँ
पूर्वसूचित भेल अछि
(६५)
सागरमे डॉलफिन
खतरनाक जीवक बीचमे
मनुषक साथी
(६६)
जिग ज़ैग ध्वनि केँ
गाड़ी दोहरा रहल अछि
भीजल सड़क पर
(६७)
भूकम्पक श्राप अछि
अज्ञात अपराधक सजा
मनुषकेँ भेटल
(६८)
छोट किन्तु तेज अछि
अपन लक्ष्य चिनहऽमे
भड़ल भीड़क बीच
(६९)
समुद्रक नीचाँ
कतओ जायकाल रहैअ
छोट माछ सब झुण्डमे
(७०)
अंगूरक फल अछि
मीठ जेल जमाकऽ रखने
छोट छोट आकारमे
(७१)
स्वर्ग सदृश दृश्य
हरियर प्राकृतिक संग
चिड़ैआक कलरव
(७२)
राति हुअक पहिने
आकाश दहकि रहल
सूर्यास्तक पहिने
(७३)
खिलखिलाइत झरना
मधुर ध्वनि घोरि रहल
चारू दिशामे
(७४)
सूर्यक अएलापर
रातिक अन्हार भागि गेल आऽ
भोर शुरु भऽ गेल
(७५)
छाया उपर्युक्त अछि
गोबरछत्ता केँ उगऽ
आऽ पसरऽ लेल
(७६)
एकटा पओलाक बाद
खरहा फेर भागि रहल अछि
आर भोजन लेल
(७७)
गाछक स्वर्णिम रंग
पतझड़क आगमनक
घोषणा अछि करैत ।
(७८)
गरमीक ऋतु
कहॉँ ओतेक दुखद अछि
शुरुक दिनमे
(७९)
स्वयम् सिद्ध मकरा
अपन सुरक्षा हेतु
जाल अछि बुनैत
(८०)
कोनो आकारमे
ढलि जाएत पानि मुदा गहराई
एकर अपन गुण
(८१)
आकाश अखनो ऊँच
बादल पहुँचमे बुझाएल
ई धुन्धक रूपमे
(८२)
रातिमे इजोत दैत
बर्फसँ परावर्तित होइत
प्रकाशपुँज जाड़मे
(८३)
लुक्खी सब निकलल
अपन घड़सँ आलस त्यागि
वसन्त ऋतुमे
(८४)
सोन सन सूरज भेल
उज्जर चमकैत हीरा सन
दिनकेँ अएला पर
(८५)
गाछ सब अछि होड़मे
सबसँ पहिने पाबऽ लेल
सूरजक रोशनी
(८६)
एकटा मन्दिर अछि
खजूरक गाछ भीड़मे
एक पोखरि कातमे
(८७)
सुखाएल छोट पातसभ
गाछसँ नीचाँ खसैत अछि
नबकेँ अवसर दैत
(८८)
गाछक शाखासभ
अतेक ऊँचाई पर पसरल
जड़ि ततब्बे गहिँर
(८९)
भोरक अयला पर
गाछ पर लादल ओस भेल अछि
चमकैत हॅँसी सन
(९०)
सोन सन कम्बल अछि
ओढ़ने गहुमक खेत सभ
कटाइक पहिने
(९१)
चक्रवातीय पवन
जीवनसंहारक बनि गेल
जीवनरक्षक छल।
(९२)
प्रदान करैत अछि
पक्षी आऽ हिरण सभकेँ
गाछ आऽ वृक्ष आश्रय
(९३)
फूलसँ भरल अछि
एकटा घाटी एहन अछि
जेना खुशी मुस्काइत।
(९४)
पानि बढ़ि रहल
रस्ताक गाछ आऽ पाथर सभ
विदा करैत ठाढ़
(९५)
जाड़क गाछ अछि ठाढ़
वसन्तक प्रतीक्षामे
पात सभसँ भिन्न भऽ
(९६)
Illusion of eye
Colourful appearance of
Rainbow in the sky
आँखिक भ्रम,
आभास वर्णमय
पनिसोखा द्यौ
(९७)
Rainbow declares
Beginning of bright days and
End of rainy ones
पनिसोखाक,
शुभ्र दिन आबह
खिचाहनि जाऽ
(९८)
Filled with smoky fog
The wood seems to be burning
Thou' it is winter
धुँआ कुहेस
जेना जड़ैत काठ,
अछि ई जाड़
(९९)
The words sound so sweet
imitated by parrots
Like baby babbles
गुञ्ज मधुर
सुग्गाक अभिनय,
तोतराइत स्वर
(१००)
The sky is bright
The wind has cleared the clouds
Some still needs force
अकाश श्वेत
वायु टारैत मेघ,
कनेक बल
(९६ सँ १०० धरि इंग्लिशसँ मैथिली अनुवाद संपादक द्वारा कएल गेल)
मेघक उत्पात
कनिक काल दऽ पानिक फुहार
फेर लेलक अपन ऑँजुर सम्हारि
देखू मेघक उत्पात
लोकक आशाक उपहास करैत
कखनो दर्शन दऽ बेर-बेर नुकाइत
मौलाऽगेल गाछ आऽ पात
कखनो गरजि भरि कऽ रहि गेल
कखनो बरसि-बरसि कऽ भरि गेल
डूबल पोखरिक कात
कोसीक प्रवाह सब बॉँन्ह तोड़लक
गामक गाम जलमग्न कएलक
ततेक भेल बरसात
किसानक भविष्य मेघपर आश्रित
मेघक इच्छा पूर्णतः अप्रत्याशित
सभसालक अनिश्चित अनुपात
बरखा तू आब कहिया जेबैं
1
बरखा तू आब कहिया जेबै
अकच्छ भेलौ सब तोरा सॅं
बुझलियौ तू छै बड जरूरी
लेकिन अतीव सर्वत्र वर्जित छै
आर कतेक तंग तू करबैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं
२
बेंग सब फुदकि फुदकि कऽ
घुसि रहल घर - ऑंगन में
ओकरा खिहारैत सॉंपो आयत
तरह - तरह के बिमारीक जड़ि
मच्छड़ सभके खुशहाल केलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं
३
कतौ बाढ़ि सॅं घर दहाइत अछि
कतौ गाछ उखड़ि खसि पड़ल
कतेक खतरा तोरा संग आयल
आन-जान दुर्लभ तोरा कारण
आढ़ि सभ कादो सऽ भरलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं
४
टूटल फूटल खपरी सऽ छाड़ल
गरीबक कुटिया कोनाक सहत
तोहर निरन्तर प््रावाहक मारि
पशु-पक्षी सेहो आश्रयहीन भेल
नञहर के तू सासुर बुझलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं
५
तोहर जाइत देरी शीतलहरी
अप्पन प्रकोप देखाबऽचाहत
मुदा पहिने आयत शरद ऋतु
कनिके दिनक आनन्दी लऽ कऽ
पनिसोखा देखेनाई नञ बिसरिहैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं।
मिथिलाक विस्तार
हम सब ओहि समूहक लोक
इतिहास छानब जकर भाग
संस्कृति बड़ धनी
मुदा संरक्षणक अभाव
जहिया सभक नींद खुजत
तहिया करब पश्चाताप
ओहि सभ्यताकेँ ताकब
जे अखन लगैअ श्राप
उन्नतिक पथ पर चलऽ लेल
पहिरलहुँ आधुनिकताक पाग
जिनकासॅं ई सुरक्षित अछि
से गाबैत बेरोजगारीक राग
जे गरीबीक सीमा पार कएलाह
से व्यस्त प्रतियोगितामे दिन राति
एक संजीवनी बुटीक अभिलाषा
जे सभ्यताकेँ दिअए सुरक्षित आधार
विश्वस्तरीय संस्थाक निर्माण होए
एकर विशेषताक जे करए विस्तार
ईशक अराधना
1
हे ईश एहन हाथ दिअ
जे कर्मठ आ कुशल होई
अहॉं लग मात्र जोड़िक
कर्म के तिलांजली नहि दई
पूजाक संग काजक संगम
जकरा लेल ग्राह्य होई
२
हे ईश एहन पैर दिय
जे अपन भार सहि सकय
आनक जहन प्रयोजन होई
तऽ सभसॅं आगॉं बढ़ि सकै
औचित्य सॅं विचलित जकरा
कोनो बाधा नञ कऽ सकै
३
हे ईश एहेन वाणि दिअ
जाहि में निवास करैथ शारदा
मिठास होए आ' शीतल होय
नहिं होए भय आ' लोलुपता
अहॉंक अराधना भक्तिभावसऽ
देववाणिमे करक दिअ क्षमता
४
हे ईश एहेन दृष्टि दिअ
अहॉंक रूपके कराबै चिन्हार
अहॉंक बास जखन घट-घट मे
फेर कियै जाउ हिमालय पहाड़
सत्कर्मके हम पूजा मानी
नहिं रहै अज्ञानताक अन्हार
५
हे ईश एहन बुद्धि दिअ
अहॉं पर सदैव रहै विश्वास
संतोष आ' शान्ति पाबि
बेसी के नहिं हुए आस
प््रााणिमात्रक कल्याण लेल
कऽ सकी आमरण प्रयास
खरहाक भोज
खरहा सब भामि-भामि
बाड़ीमे अछि भोज करैत
जतेक छल रोपल साग-पात
कुचरि-कुचरि कऽ चरैत
एहन असहति दृष्य देख
गृहस्थक तामसे मोन जरैत
प्रतिदिनक निरंतर प्रयास
बाड़ी छल फूलैत-फलैत
अतेक दिनका कएल धैल
पर ई सभ पानि फेरैत
भीड़ल सब ओकरापर
चारू दिससॅं खिहारैत
कियै ओ ककरो हाथ आयत
नहि देरी भेल ओकरा पड़ाइत।
बिन मेहनति आ' बिन धैर्य
मनुषकेँ अछि किछु नहि भेटैत
पशु - पक्षी सब लुझिकऽ
अपन जीवन अहिना बिता लेत।
कल्पनालोक
कल्पनालोकमें विचरण करै छलहुँ उन्मुक्त
सबतरहक विषाद जतऽ भऽ गेल छल लुप्त
आह्लादित हृदय सेहो रहय विस्मयसॅं युक्त
प्रशंसा में स्वर्ग शब्द लागल सबसऽ उपयुक्त
कोनो भूमि नहि भेटल जे छल कलह सॅ लिप्त
थम्हलहुँ जत कतौ छल स्नेहक जलसॅंऽ सिक्त
आरोग्यक कचोर रंग सर्वत्र छल पल्लवित
ताहि पर खुशी कोमलतापूर्वक रहय पुष्पित
शान्ति तेहेन जे देलक अपूर्व आत्मसंतोष
दूर-दूर तक नहिं कतौ देखायल आक्रोश
एहनो दुनिया हैत कतौ से नहिं छल भरोस
जाहि सॅं दुखी छलहुँ से मेटायल सब रोष
वास्तविकता अछि अलग से तऽ स्वयंसिद्ध
समस्या सॅं जूझैत सब, की बच्चा की वृद्ध
कल्पनाक साकार भेनाई अछि अहिमें निमित्त
घर-घर जहन लोक हैत शिक्षित आ समृद्ध।
कोसीक प्रकोप
प्राकृतिक प्रकोप मिथिलामे
देखि के नहि हैत अधीर
देहाइत डूबैत जन जीवन
सरकार बनल अछि बहिर
कहिया सऽ अछि बनल
कोसी नदी बिहारक शोक
पर्यावरणके सतत हनन
कियेक नहि लागल रोक
घमैत हिमनद बढ़ैत जलस्तर
सृष्टिके दिनोदिन बढ़ैत तापमान
पर्यावरण पर गम्भीर चिन्तन आवश्यक
पहिने वर्त्तमान संकट स पाबि निदान
अतेक सालक समय देलाक बाद
फेर रस्ता बदलि लेलक कोसी नदी
अहि महाप्रलय सऽ बचनाइ छल संभव
समय पर सरकारी कोष खुजितै यदि
मज़बूत बान्ह आ प्रवाहक मार्गदर्शन लेल
भूगोलवेत्ता आ अभियंता आगू आबैथ
जलसंचयसऽ सिंचाइक समस्या भगा
जलशक्ति सऽ विद्युत निर्माण करैथ।
असल राज
लन्दन शहरमे भोरक भीड़सऽ
भागैत दिनचर्याके आढ़िसऽ
ठाढ़ भेलहुं कात भऽ॥१॥
लागल सबके प्रेत रेवारने छल
आकि कोनो लॉटरी फुजल
सबके तेना पड़ाहि लागल छल॥२॥
समय सॅ छलै सब पैबन्ध
विदा काज दिस एक बैगक संग
ओवरकोटमे बन्द॥३॥
मिथ्या अभिमान भेल विलीन
सब काजक सुरमे तल्लीन
स्वावलम्बी आऽ आत्माधीन ॥४॥
कानूनन ठीक अछि जे कोनो काज
तकरा करैमे जे नहि केलक लाज
सैह कऽ रहल अछि असल राज॥ ५॥
पतझड़क आगमन
पतझड़क आगमन
दहैक रहल वातावरण
संतरा, पीयर, लाल, भूरा
रंग सऽ भरल पूरा
प्रकृति जेना भेल जीर्ण
मौलाएत झड़ैत तृण-तृण
विविध रंगके त्यागिकऽ
गेरूवा वस्त्र धारिकऽ
विदा भेल लेबऽ सन्यास
ताहि पर सुर्योदयक आकाश
धरतीपर जे आगि छल
ताहिमे ओहो लिपटल
आकि अछि दर्पण जकॉं
पृथ्वीक रूप देखाबैत जेना
अकरा शीतल करैलेल
साधु तपस्यामे लीन भेल
जहिया हिमक बरखा हैत
अस्वच्छता जखन दूर हैत
तहिया सऽनवजीवनक प्यास
लायत सुखद वसंतक अभिलाष।
वृद्धक अभिलाषा
एक वृद्ध रोपि रहल छल गाछ आमके
कियो पुछलकै जे की लाभ हैत अहॉंके
अपने छी जीवनक अंतिम छोर पर
फरनाइ तऽ हैत अहॉंक मरलापर
ओ वृद्ध जवाब देलैथ विनम्रता सऽ
अपन काज सऽ बिना अडिग भऽ
बाप दादाक रोपल कलम जे भोग केलहुं
बस सैह ऋणके लौटाबक प्रयास केलहुं
आगामी पीढ़ीके अपन हाथे खुआयब की नहिं
कम सऽ कम ई गाछ फरैत रहत जा धरि
अपन बाल बच्चामे मिठास घोरैत रहब
भने ताबे अपने जीवैत रहब नहिं रहब
टेम्स नदीमे नौकाविहार
टेम्स नदीमे कर चललौं नौकाविहार
स्टीमरमे उपरिक मंजिल पर सवार
मन्द - मन्द चलैत शीतल बयार॥
वस्तुकलाक कते उत्कृष्ट उदाहरण
तकनीकी विकासक प्रत्यक्ष दर्शन
तटमे ठाढ़ ऊंच - ऊंच भव्य भवन॥
कलकलाइत जल स डोलैत नाव
मानव प्रयाससऽ अनुशासित बहाव
जगा देलक अपन बिसरल घाव॥
कतेक पॉंछा अछि अपन प्रान्त
नैसर्गिक आपदा स आक्रान्त
कहिया हैत बाढ़िक समस्या शान्त॥
रातिक बात तऽ आरो अद्भुत
बस मंत्रक उद्घोष छल विलुप्त
स्थानो नहिं छल ओहेन भक्तियुक्त॥
अन्यथा कहितौं अकरा हरिद्वार
बत्तीक प्रतिबिम्ब स चमकैत धार
जेना होय छठिक अर्घ्यदीपक भरमार॥
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