भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Friday, May 08, 2009

विनीत उत्पल (१९७८- )।

विनीत उत्पल (१९७८- )।

आनंदपुरा, मधेपुरा। प्रारंभिक शिक्षासँ  इंटर धरि मुंगेर जिला अंतर्गत रणगांव s तारापुरमे। तिलकामांझी भागलपुर, विश्वविद्यालयसँ गणितमे बीएससी (आनर्स) गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालयसँ जनसंचारमे मास्टर डिग्री। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्लीसँ अंगरेजी पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्लीसँ जनसंचार आऽ रचनात्मक लेखनमे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजोल्यूशन, जामिया मिलिया इस्लामियाक पहिल बैचक छात्र s सर्टिफिकेट प्राप्त। भारतीय विद्या भवनक फ्रेंच कोर्सक छात्र।

आकाशवाणी भागलपुरसँ कविता पाठ, परिचर्चा आदि प्रसारित। देशक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे विभिन्न विषयपर स्वतंत्र लेखन। पत्रकारिता कैरियर- दैनिक भास्कर, इंदौर, रायपुर, दिल्ली प्रेस, दैनिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली, फरीदाबाद, अकिंचन भारत, आगरा, देशबंधु, दिल्ली मे। एखन राष्ट्रीय सहारा, नोएडा मे वरिष्ट उपसंपादक।सम्‍पादक


ककर गलती

कतेक दिवससँ
सोचैत रही
जे
गाम जाएब
परञ्च
दिल्लीक उथल-धक्कासँ
मुक्त होएब तखन नञि।

पिछला दशहरामे
जखन गाम पहुँचलहुँ
s आड़ि पकड़ि टोल
घुसैत रही।

ओहि ब्रह्मबाबाक ठामपर
एकटा स्त्रिगन बैसल रहथि
की कहू, धक्कसँ रहि गेलहुँ
कंठक थूक कंठहिमे सूखि गेल

स्त्रिगन कोनो भूत नहि छलीह
ओऽ कोनो डायन-जोगिन नहि रहथि
ओऽ गौरी दाई छलीह
बियाहक ठामे साल
विधवा s गेलीह

ताहि दिनसँ ओऽ नवयुवती
उजरा नुआ पहिरैत छथि
सीथमे चुटकी भरि सेनूर नहि
गुमसुम रहैत समय काटि रहल छथि।

s हुनका देखि s
हरदम सोचैत छी
की यैह मिथिला थिक

यैह हमर संस्कृति थिक
जे मन केँ मारि कए एकटा
नवयुवती जीवन काटि रहल अछि
ओकरा कियो देखनिहार नहि छैक

नवयुवतीक मांग
जुआनीमे उजड़ि गेल
ताहि दिनसँ हुनकापर
की बितैत होयत
पति बीमारीसँ मरि गेलखिन

एकरामे गौरी दायक की दोष
दोष s हुनक पिताक छनि
जिनका वरक बीमारीक जानकारी नहि छल
मुदा ओहो की करताह
घटक बनि s गेल रहथि
द्वितीकार जे बतोलथि
सैह ने सत्य मानितथि

गप सच छल
जे गौरी दाय
अपन पिताक गलतीक
सजा भोगि रहल छथि
भाग्यकेँ कोसि रहल छथि

आब की कही
देश-परदेशमे तs
वर- कनिया बदलि जाइत अछि
जेना हर छः मास पर
बदलैत छी हम अपन अंगा

मुदा, गौरी दाय
बीसेक साल बादो
नहि बदललीह
ओहि दिनसँ
पतिक वियोगमे
दिन-राति घुटैत छथि

कियो कतहुसँ खुशियोमे
हुनका नोत नहि दैत छथि
कियो अपन नवजातकेँ
खेलाबए ले
नहि दैत छथि

की करती गौरी दाय
कियो हुनका देवी कहैत अछि
तऽ डायन-जोगिन कहबासँ
लोक-वेद पाछुओ नहि रहैत छथि।

समर्पण

(कथक नृत्यांगना पुनीता शर्माक लेल)

जीवनक जीवंतता कि

मनुष्यक मनुष्यता कि

जेहन मोन, जेहन भाव

तहिने होइत समर्पण भाव

 

नर्तकी जखन राग मालकौस मे

स्टेज पर रोशनीक चकाचौंध मे

अपन संपूर्ण प्रतिभाक प्रदर्शन करैत छथि

देरवू तखन की होइत अछिराग, की होइत अछि भाव देखू तखैन कि हैत छथि राग, कि हैत छथि भाव

 

लागत जेना हुनकर देह मे

नर्तकीक आत्मा नहि

देवता बैस गेल

जे जेना नचाबि रहल छैक

तहिना नर्तकी नाचैत छथि

 

कि कि ठाठ

कि करि ओइ चक्करक वर्णन

शब्दो तँ ओतेक नहि अछि

कोना करी

समर्पण भावक वर्णन

 

अहां जकर बेटी होएब

अहाँ जकर बहिन होएब

मुदा, अहाँ जकरा सँ

प्रेम करैत होएब

सब कतेक खुशनसीब होइत

 

जे नर्तकी

अपन संपूर्ण अस्तित्व

नृत्य मे झोंइक दैत छथि

हुनकर प्रेम वा पुरुष

वा समर्पन जरूर संपूर्ण होइत.


 

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