'विदेह' ३३ म अंक ०१ मई २००९ (वर्ष २ मास १७ अंक ३३)
वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश
२. गद्य
२.१ रामभरोस कापडि भमर-संचार एवं साहित्य क्षेत्रमे समावेशी स्वरुपक अपेक्षा
२.२. कथा-सुभाषचन्द्र यादव- दृष्टि
२.३. प्रत्यावर्तन - तेसर खेप- -कुसुम ठाकुर
२.४. बलचन्दा (संपूर्ण मैथिली नाटक)-लेखिका - विभा रानी (अन्तिम खेप)
२.५ १. कामिनी कामायनी - सूटक कपङा आ २.कुमार मनोज काश्यप-प्रतिरोध
२.६. मणिपद्म क संस्मरण-संसार- प्रेमशंकर सिंह
३. पद्य
३.२. कामिनी कामायनी: लिखत
के प्रेम गीत
३.३. विवेकानंद झा-कविता आ की सुजाता/ चान आ चान्नी
३.४. सतीश चन्द्र झा- मध्य वर्गक सपना
४. गद्य-पद्य भारती -सोंगर,मूल कोंकणी कथाः खपच्ची,लेखकः श्री. सेबी फर्नानडीस, हिन्दी अनुवादकः डॉ. चन्द्रलेखा डिसूजा,मैथिली रूपान्तरण : डॉ. शंभु कुमार सिंह
५. बालानां कृते-1देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स); आ 2. मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी
६. भाषापाक रचना-लेखन - पञ्जी डाटाबेस (आगाँ), [मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]
७. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)
७.THE COMET- English translation of Gajendra Thakur's Maithili NovelSahasrabadhani translated by Jyoti.
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१. संपादकीय
मैथिली पत्रिका “मिथिला दर्शन". नव रूप-रंग मे संपूर्ण पारिवारिक पत्र जाहिमे आर्थिक लेखक संग नेना-भुटका लेल कथा-कविता, महिला स्तम्भक अन्तर्गत भानस-भात आ साज-श्रृंगार, समीक्षा-लेख, पोथी-परिचय, सुश्रुषामे डॊक्टरी सलाह आ नियमित कथा-कविता सम्मिलित अछि।
एहि पत्रिकाक स्थापना १९५३ ई.मे भेल रहए आ प्रतिष्ठाता सम्पादक- प्रोफेसर प्रबोध नारायण सिंह आ डॉ. अणिमा सिंह रहथि । आब एकर प्रधान सम्पादक- नचिकेता आ कार्यकारी सम्पादक- रामलोचन ठाकुर छथि। कला सम्पादक छथि डॉ. रमानन्द झा’रमण’। श्री शम्भु कुमार सिंह आ श्री अजित मिश्र एहिमे सम्पादकीय सहयोग दए रहल छथि। आ सम्पादकीय उपदेष्टा छथि पन्ना झा, रामचन्द्र खान, भीमनाथ झा, सुभाष चन्द्र यादव आ कुणाल। चित्रकार छथि चन्दन विश्वास। डॉ. अणिमा सिंह द्वारा ई प्रकाशित आ मुद्रित कएल जा रहल अछि। ई पत्रिका अपन वेबसाइट http://www.mithiladarshan.com/ शीघ्र शुरु करत।
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ ०७ अप्रैल २००९) ७८ देशक ७८१ ठामसँ २०,९५१ गोटे द्वारा विभिना आइ.एस.पी.सँ १,६८,७०८ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
अपनेक रचना आ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in
ggajendra@yahoo.co.in
1
aum said...
excellent magazine
२. गद्य
२.१ रामभरोस कापडि भमर-संचार एवं साहित्य क्षेत्रमे समावेशी स्वरुपक अपेक्षा
२.२. कथा-सुभाषचन्द्र यादव- दृष्टि
२.३. प्रत्यावर्तन - तेसर खेप- -कुसुम ठाकुर
२.४. बलचन्दा (संपूर्ण मैथिली नाटक)-लेखिका - विभा रानी (अन्तिम खेप)
२.५ १. कामिनी कामायनी - सूटक कपङा आ २.कुमार मनोज काश्यप-प्रतिरोध
२.६. मणिपद्म क संस्मरण-संसार- प्रेमशंकर सिंह
संचार एवं साहित्य क्षेत्रमे समावेशी स्वरुपक अपेक्षा
– रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’
रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’, अध्यक्ष ः साझाप्रकाशन, ललितपुर
संचार एवं साहित्य क्षेत्रमे समावेशी स्वरुपक अपेक्षा
वि.स. १९५८ मे प्रारंभ भेल गोरखापत्र समाचारपत्रक प्रकाशनसं नेपाली पत्रकारिताक विधिवत शुरुआत मानल जएबाक चाही । मुदा इहो समाचारपत्र मात्र नेपाली भाषा आ नेपाली भाषी सभक हेतु पृष्टपोषणक काज करैत आएल अछि । ई एक सय आठ वर्षक नेपाली पत्रकारिताक इतिहासेमे नुकाएल अछि समस्त नेपालक पत्रकारिताक व्यथा कथा । राजनीतिकर्मी लोकनि भले दू सय चालिस वर्षक गोरखासं ल’ नेपालक शाह वंशीय राजघराना धरिक समय कालमे मधेशवासीक शोषणक बात करैत हो, सत्य तं ई अछि एहि समस्त अवधिसं ल’ एखन धरिक गणतंत्र नेपालमे समेत अवस्था उएह छैक आ ओ चाहे राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक हुअए अथवा साहित्य एवं संस्कृति क्षेत्र हुअए । मधेश आन्दोलनक बाद जे किछु आंगुर पर गन’ बला परिवर्तनक संकेत आएल अछि से धन सन ।
हम पहिने संचार क्षेत्रक बात करी । गोरखापत्रक सय वर्षसं उपरक इतिहासमे पहिल बेर कोनो मधेशी किंवा मैथिल नि.प्रधान सम्पादकक जवावदेह पद पर जा सकलाह अछि । एहिस पूर्व सम्पादक आ काका अध्यक्षक वाते नहि आने महाप्रबन्धक । नीति निर्माणक तहमे मैथिल किंवा मधेशीक पहुंच शून्य रहल अछि । गणतन्त्रो नेपालक संचार कर्मी सभक हेंजमे जवावदेह पदपर मधेशी आबि पओताह–तकर आशा कम्मे अछि । नेपाल टेलिभिजनक महाप्रबन्धक भले नोकरीक वरिष्ठताक कारणें कोनो मधेशी तपानाथ शुक्ला भ’ जाथु । एखनो सरकारक मनोनयनमे सरकारी संचार क्षेत्र मधेशी विहिन अछि । कहियो काल देखएबालेल सचिवक अध्यक्षता बला संचालक समितिक सदस्यक रुपमे रेडियो नेपालमे कोनो मंगल झा किंवा रोशन जनकपुरी भले नियुक्त क’ देल जाइत हो । ने अवधि पूर्ण ने नितिनिर्माणमे कोनो अहमियत । नेपाल टेलिभिजनक हालति सएह छैक । संचालक धरिमे कोनो मधेशी नहि । बड कठिनसं आ प्रायः घनघोर प्रसव वेदनाक संग राससक उचिते प्राप्तकर्ता महाप्रबन्धक पद पर महतोजी वैसाओल गेलाह अछि, मुदा का.मु.क संग । राससक अध्यक्षक कुर्सि सदैब मधेशी सभक हेतु आकासक तरेगन भ’क’ रहि गेल अछि । प्रेस काउन्सिलक अध्यक्ष धरि मधेशीक पहुंच एखन धरि भ’ नहि सकल अछि । ४१ वर्ष पूर्व गठन भेल प्रेस काउन्सिल तहियासं आइधरि उएह नेपाली भाषी सभक हाथमे राखल गेल आ वात कएल गेल काठमाण्डू आ तराईक पत्र–पत्रिका विकासक । परिणाम भेलै एखनो धरि प्रेस काउन्सिल मधेशक पत्र–पत्रिकाकें पक्षपातपूर्ण आ द्वैध चरित्र देखा दबबैत रहलैक अछि, सतबैत रहलैक अछि । प्रत्येक नियुक्तिमे एक–आध गोटे मधेशी सदस्य बना देल जाइत छथि, जनिका सम्भवतः चलितो किछु नहि छन्हि ।
सरकारी संचार क्षेत्र जाहिने नेपालक आनोक्षेत्र खास क’ मधेशीक कर आ मालपोतक रकम लागल छैकमे कोनो समावेशी स्वरुपक अवधारणा शासक लोकनि किएक ने राखि सकलाह । गणतन्त्र नेपालक संचार मंत्री द्वारा गठित प्रेस काउन्सिल लगायत आन संचार क्षेत्र मधेशी पदाधिकारीसं किए शून्य भ’ गेल अछि । नहि लगैए ? – समावेशी मात्र नारा आ सहमति–समझौताक विषय भ’क’ रहि गेल अछि । तकरा कार्यरुपमे परिणत करबाक कोनो प्रयोजन सत्तापक्ष नहि वुझैत अछि । सरकार सूचना आयोग बनौलक, एक्कोटा मघेशी किएक राखत । सरकारी संचार माध्यम जाहिपर सभक अधिकार मानल जाइत अछि, तकर ई हालति अछि तं निजी क्षेत्रक वाते करब की । एत्त तं आर दुर्गति छैक । मधेश, मधेशी, मैथिल, मिथिला आ मैथिलीक चर्च एहि निजी पत्र–पत्रिका आ संचार माध्यमक हेतु कुनैनक गोली जकां गलामे अरघैत नहि छैक । तखन व्यवसायिक बाध्यतावश किछु मधेशी, मैथिल लोकनि किछु संचार माध्यमक महत्वपूर्ण पद पर आसीन राखल गेलाह अछि । नेपाली भाषी सभक नियंत्रणक ओहि प्रतिष्ठान सभमे हिनका सभकें की चलैत हयतनि–अनुमान कएल जा सकैछ ।
आब आबी साहित्य दिश । नेपालमे तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशमशेर ज.व.रा. (१९०१–१९२९, प्रधानमंत्रीत्व काल) जखन नेपालमे राणाशासन विरुद्ध सुगबुगाहट देखलनि आ चोरानुकी राणा विरोधी साहित्य प्रकाशनक बात महशूस कएलनि तं १९१३ ई. मे ‘गोरखा भाषा प्रकाशिनी समिति’ नामक संस्थाक गठन कएलनि । फरमान जारी कएलनि–कोनो साहित्य वा रचना एहि समितिक स्वीकृति विना प्रकाशित नहि हयत । एहि तरहें राणा प्रधानमंत्री जे अपन गद्यी बचएबालेल समिति बना नियम चलौलनि ओ आइधरि परिवर्तित रुपमे अर्थात् पहिने गद्यी बचएबा लेल आब मात्र नेपाली भाषा बचएबा लेल तेहने जालसभ विनल गेल अछि । ओ चाहे तत्कालीन राजा महेन्द्रक कृपासं गठन भेल नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान होए आ अथवा २०२१ सालमे गठन भेल साझा प्रकाशन होअए ।
नेपालक जनसंख्या अनुसार मैथिली भाषीक संख्या १३ प्रतिशत अछि २०५८ सालक तथ्यांक अनुसार । दोसर भाषा अछि नेपालीक बाद । मुदा सरकारी संरक्षण विहिन अवस्था छैक । तहिना भोजपुरी, अबधी, थारु आदि भाषा छैक, जकरा प्रारंभ सं उपेक्षाक शिकार होब’ पडल छैक । साहित्यक रक्षामे लागल प्रतिष्ठान सभ मे समेत ई अवस्था शाहीकाल सं एखन धरि छैक जे दुखद मानल जएबाक चाही । मधेशी सेहो संचारमंत्री भेल छथि, मुदा की कएलनि !
शुरुमे हम संचारक्षेत्रक बात कएल अछि । सरकारी संचार क्षेत्रक गोरखापात्र, रेडियो नेपाल, नेपाल टेलिभिजन आदिमे नियमित साहित्यिक प्काशन व प्रसारण होइत अछि । कतेक स्थान नेपाली इतर भाषा, साहित्यक छैक । गोरखापत्र एम्हर ‘नयां नेपाल’ परिशिष्टमे देशक विभिन्न भाषाक पृस्ट देब’ लागल अछि । नीक प्रयास थिक । मुदा दू पृस्ट सं एक क’ देल भाषाक ओ पृस्ट भाषाक विशिष्टताक आधार पर नहि समावेशीक नामपर हक अधिकारकें कटौती क’क’ देल जा रहलैक अछि । आनो पृस्टपर छापबला रचना सभमे नेपाली भाषाक लेखकक अतिरिक्त आन भाषा–भाषी लेखक किंवा उक्त भाषाक साहित्य सम्वन्धी आलेख छापबामे परहेज कएल जाइत रहल अछि । गोरखापत्रक शनिवारीय परिशिस्टांक आ मधुपर्क साहित्यिक रचनाक प्रकाशन अछि । जं नियमित पाठक छी तं महिनौंक वाद किछु मैथिल किंवा मधेशी लेखकक रचना अति उपेक्षित रुपें कोनो कोनमे अभरत । वस, तकरा बाद उएह देखले–पढले नाम आ भाषा–रचना सभ । कतबो समावेशीक बात केओ क’ लिअए–मजाल अछि एहि पत्रिका सभमे मैथिली, भोजपुरी, अबधी, थारु भाषा साहित्यक रचना व विकास यात्रा सम्वन्धी आलेख छापालेब । कहियो काल ‘भनसुन’ कएला पर भले अपवादमे देखि पडए ।
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक गप त आर निराला अछि । नेपाली भाषा वाहेक आन भाषामे काज नहि करबाक जेना सप्पत खएने होए एकर पदाधिकारी लोकनि । एकतं एहिमे पहिने तीसटामे एक मधेशी सदस्य आ उएह कार्यसमिति अर्थात् परिषद्मे राखल जाइत छलाह । से भाषा, संस्कृति, साहित्य आदि विधाक अन्तरगत । ताही महक किछु पाइ कबारि एक आधटा पुस्तक मैथिलीयोमे बहार भ’ गेल अछि तं ई महान कृपा भेल छैक मैथिली पर । एकरालेल कोना विभाग छुटिआओल नहि गेल अछि । हालेमे गठित आ भंगठित प्रज्ञा–प्रतिष्ठानसं पूर्वक गठनमे एकमात्र मधेशी मैथिली साहित्यकार अवसर पबितो परिषद्मे राखल नहि गेलाह । तथापि प्रज्ञाप्रतिष्ठानक इतिहासमे पहिल बेर ‘आंगन’ गतगर पत्रिका मैथिलीमे निकलल । किछु काज आगां बढल रहय, परिषद् भंग आ दीर्घअन्तरालक बाद जं गठनो भेल तं एहन जे शपथग्रहण लेवासं पूर्वे तहस–नहस भ’ गेल । अदालत आ जनता दुनू द्वारा वहिष्कृत भ’ क’ रहि गेल अछि । तए“ एकरा सं ने पहिने आशा छल, आ ने आब करी से तकर वातावरण बनैत देखल जा रहल अछि । कोना डा. योगेन्द्र प्र. यादव जहिया एकर सदस्य रहथि तहियासं ‘सयपत्री’ पत्रिकाक प्रकाशन शुरु भेल रहय जे वास्तविक रुपमे समावेशी स्वरुप रहैक ।
आब साझा प्रकाशनक गप करी । पहिने चर्च भ’ आएल अछि राणा प्रधान मंत्री अपना विरुद्धक साहित्यकें प्रकाशनसं रोकबाक हेतु १९१३ ई. मे जे गोरखा भाषा प्रकाशिनी समिति (नेपालके समीक्षात्मक इतिहास–डा. श्री रामप्रसाद उपाध्याय, (२०५५), पृ–३१७ साझा प्रकाशन)क गठन भेल उएह समिति तत्कालीन राणा प्रधानमंत्री जुद्धशमशेर द्वारा नेपाली भाषा प्रकाशन समिति (वि.स. १९९०)क रुपमे परिणत क’ देल गेल तकरे उत्तराधिकारीक रुपमे २०२१ साल अगहन १७ गते साझा प्रकाशनक स्थापना भेल । एकरो संचालक लोकनि नेपाली वाहेक आन भाषामे प्रकाशन करब सोचने ने छलाह आ साझा प्रकाशन विगत ४५ वर्षसं नेपाली साहित्यक भण्डारकें विना कोनो सरकारी अनुदान, अपनेसं कमा क’ अथवा घाटा सहि क भरैत रहल अछि । जं कि एहि संस्थामे सरकारक लगानी ६० प्रतिशत अछि तए“ एकर अध्यक्ष लगायत तीन संचालक सरकार दिशसं मनोनित होइत रहलाह अछि । मुदा केओ एकरा नेपाली भाषा सं आगां लाबि नेपाली जनताक करक अंशसं चलैत एहि संस्थाकें समावेशी नहि बना सकल । सहकारीक कारणें ई कृषि मंत्रालय अन्तरगत अछि आ एहिसं पूर्वो वहुतो मधेशी कृषि मंत्री होइत रहलाक अछि । मुदा आय, लाभ शून्य साझा अध्यक्षक पद पर धरि कोनो मधेशीकें लएबाक जरुरति महशूस नहि कएल गेल । ४५ वर्षक बाद एहिबेर पहिल मधेशी एकर अध्यक्ष पदपर आएल अछि । साझाक नेपाली भाषा मुखी सम्पूर्ण क्रियाकलापकें समावेशी बनएबाक प्रयास जारी अछि । किछु प्रकाशनक तैयारी चलि रहल अछि । मैथिली व्याकरण, मैथिली वालकथा, मैथिली कथा संग्रह आदिक प्रकाशन प्रगति पर अछि तं महाकवि विद्यापतिक चित्र प्रकाशित भ’ चुकल अछि । भोजपुरी, अवधी, थारु, नेपाल भाषा, तमाङ आदि भाषामे काज करबाक गृहकार्य चलि रहल अछि । मुदा ई सभ काज नगण्य स्तपरपर अछि – नेपाली भाषाक काजक आगां ओत्त नेपाली मानसिकतासं उबरि सकबामे जे कठिनाइ लगबाक चाही, लागि रहल अछि । तथापि किछु साहित्यिक संचालक लोकनि समावेशीक वर्तमान रुपान्तरण मे साझाकें मात्र नेपालीक घेरामे राखब उचित नहि, कहि उदारता देखा रहलाह अछि । परिणाम दूर तं अछि मुदा पहुंचसं ततेक दुरो नहि ।
साझाक पत्रिका ‘गरिमा’ एखन नेपालसं, प्रकाशित साहित्यक पत्रिकामे अग्रणी रखैत अछि । ओकरो समावेशी स्वरुपमे लाओल जा रहल अछि । लेखकीय घेराकें तोडैत मधेशक लेखक लोकनि द्वारा मैथिली, भोजपुरी, अवधी, थारु आदि साहित्य सम्वन्धी आलेख प्रकाशन प्रारंभ भ’ चुकल अछि, आहवान कएल जा रहल अछि ।
एकर अतिरिक्त निजी क्षेत्रक पत्र–पत्रिकामे समावेशी रचना सभक उपस्थापन कमजोर अछि । रचना’, ‘अभिव्यक्ति’, शारदा’ ‘मिर्मिरे,’ ‘नेपाल’ लगायतक पत्र–पत्रिका सभमे नियमित रुपमे भाषान्तरक रचना, साहित्यक समीक्षा समालोचना, अनुवाद, मौलिक आदि प्रकाशित होइत रहबाक चाही । एहि सम्वन्धमे उक्त पत्र–पत्रिका द्वारा प्रयास कएल गेल हो से हमरा ज्ञात नहि अछि ।
एहि तरहें देखलापर स्पष्ट रुपें देखि पडैछ जे राजनीतिए जकां भाषा, साहित्य किंवा संचारक क्षेत्रमे मधेशी उपेक्षित रहल अछि । ओ राज्य द्वारा तं सभसं बेसी अछिए, निजी क्षेत्र द्वारा सेहो कम अबडेरल नहि गेल अछि । परिणाम छैक मैथिलीभाषा, साहित्यमे विभिन्न विधा आ धाराक गतिविधि चरम पर होइतो नेपाली संसार ताहिसं अनभिज्ञ अछि आ समकालीन साहित्य यात्राक उपलव्धि अपने धरि सिमित भ’ क’ रहि गेल अछि ।
तहिना संचारक्षेत्र एतेक आगां बढि गेल अछि, मुदा एहि क्षेत्रमे अपन योग्यता, क्षमता प्रदर्शित क’ सकबाक अवसर कोनो ‘ज्ञानी’ मधेशी पाबि नहि रहलाह अछि । ई व्यक्तिक मात्रे नहि राष्ट्रकें क्षति सेहो भ’ रहलैक अछि । आ तए“ राष्ट्रियताक सूत्र कहियोकाल ढील पडैत वूझि पडैत छैक । आबो समावेशी नहि त फेर कहिया !!!
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Neelima Chaudhary said...
bhramar jik article bad nik,
madhesh ker janatak, mithilanchalak uttaree bhagak lokak samasya aa samadhan par tathya parak lekh
कथा
सुभाषचन्द्र यादव-दृष्टि
चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द
सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कॉलेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।
दृष्टि
रातिक दस बजल अछि । अन्दाज लगबैत छी डेरा पहुँचय मे कम सँ कम एक घंटा अबस्से लागि जायत। पाइ केँ जेबीये गनय लगैत छी । बड़ कम अछि । डेरा लग एकटा टुटपुजिया होटल छैक, जे सस्ते मे खुआबैत छैक । लेकिन ओतऽ जाइत-जाइत एगारह बाजि जेतैक । ताधरि ओ होटल बंद नहि भऽ जाय, ई सोचि एकटा होटलमे घोसिया जाइत छी । एकटा टिनहा बोर्ड टांगल छैक, जाहि पर सभ वस्तुक दर लिखल छैक । हम मनेमन पैसाक मोताबिक हिसाब बैसा लैत छी आ आधा प्लेटक आर्डर दऽ दैत छी । किछु पाइ बचि जाइत अछि । मोन सिगरेट पीबा लेल नुड़िआय लगैत अछि आ बचलाहा पाइक सिगरेट लऽ लैत छी । मोन हल्लुक जकाँ बुझाइत अछि आ चालि किछु स्थिर भऽ जाइत अछि ।
रस्ता मे बहुत बात मोन पड़ैत रहैत अछि – 'ई हाले मे एम. ए. कयने छथि, बेचारा बड्ड गरीब छथि । कतहु कोनो नोकरी दिया दियौक ।’
आब बड्ड घृणा भऽ गेल अछि एहि सभसँ । भरि दिन एम. एल. ए., एम. पी. सभक खुशामद, अपन हीनता-बोध आ सर्विस होल्डरक मौन व्यंग्यसँ मन कुंठित भऽ जाइत अछि । दिन भरि नोकरीक चक्करमे बौआइत छी आ राति केँ झमान भेल डेरा घुरैत छी। जीवनक यैह क्रम बनि गेल अछि । कहिया निस्तार होयत, तकर ठेकान नहि ।
कोठलीमे एकटा चिठ्टी फेकल अछि । चिठ्टी उठबैत छी । गामसँ आयल अछि । नोकरी भेटल कि नहि, से पूछल गेल अछि । मोन घोर भऽ जाइत अछि । बहुत उदास भऽ जाइत छी । चिठ्टी मे गाम अयबाक आग्रह सेहो अछि । गाम अयबाक बात मनकेँ सान्त्वना दैत अछि ।
मन होइत रहैत अछि गाम भागि जाय । एहिठामक भूख-प्यास, अपमान, दुख, निराशा कखनो काल बताह बना दैत अछि । ई शहर काटय दौड़ैत अछि । बुझाय लगैत अछि जे नोकरी एकटा मृगतृष्णा थिक । ओकरा पाछू बौआइत-बौआइत जीवन अकारथ चल जायत । गाम जेबाक निर्णय करैत छी । निर्णय पर दृढ़ रहय चाहैत छी लेकिन से होइत नहि अछि । गौंआ—घरूआक व्यंग्य आ उपहासक कल्पना कलेजामे भूर करैत रहैत अछि । 'देखही रौ, फलनाक बेटा बुड़िआय गेलै । एतेक पढ़ियो—लिखि कऽ नोकरी नहि भेलै । आब गाम मे झाम गुड़ैत छै ।'
'धौ, पढ़तै कि सुथनी । पढ़ितिऐक तँ यैह हाल रहितैक ।'
'अरे अबरपनी कयने घुरैत हेतै ।'
एहन-एहन बिक्ख सन बोल सुनि केँ मन होइत अछि लोकक मुँह नोचि ली । लेकिन मरमसि कऽ रहि जाइत छी ।
नोकरी । पढ़बाक—लिखबाक उद्देश्य लोक एक्केटा बुझैत अछि-नोकरी । जे नोकरी नहि करैत अछि, गाममे रहय चाहैत अछि, तकरा लोक उछन्नर लगा दैत छैक । कियैक ? मन मे बेर-बेर ई सवाल उठैत अछि । लोकक व्यवहारक प्रति मनमे क्रोधकं धधरा उठैत अछि ।
आइ भोर ओहि दक्षिण भारतीय पत्रकार सँ भेंट भेलाक बाद मन उद्वेगहीन आ शांत भऽ गेल अछि । सोचि लेने छी आब गामे मे रहब । खेती करब । पत्रकारक बात रहि-रहि कऽ मोन पड़ैत अछि- 'जँ आइ सभ पढ़ल-लिखल लोक नोकरिये करत तँ फेर खेतीक काज के करत । हमरा आश्चर्य होइत अछि जे आइ—काल्हिक शिक्षित वर्ग केँ खेती करबामे लाजक अनुभव होयत छैक । जीवनक कोनो क्षेत्र होअय-कृषि, उद्योग अथवा व्यापार, एकटा महान आदर्श उपस्थित करबाक चाही । जीवन प्राप्तिक उद्देश्य केवल पेटे टा भरब नहि, किछु आरो अछि । आ ई की जे बी. ए. वा एम. ए. पास करू आ तुरन्त पेट पोसबा लेल कोनो नोकरी पकड़ि लिअऽ । भूख पर विजय प्राप्त करू, तखनहि कोनो महत् आदर्श स्थापित कऽ सकैत छी नहि तँ भूखे मे ओझरा कऽ रहि जायब ।'
लेकिन भूख पर कतेक दिन धरि विजय प्राप्त कयल जा सकैछ?' हम शंका राखलियैक ।
ओ बहुत गर्वित होइत बाजल – 'डू यू नो, डेथ केन नॉट कम ट्वाइस । आ जखन मृत्यु एक्के बेर भऽ सकैछ तँ हम सभ भूख सँ कहियो मरि सकैत छी?’ हमरा तखन बुझायल जेना इजोतक एकटा कपाट अचानक खुजि गेल हो । हम किछु आओर नहि सोचलहुँ आ गाम चल आयल छी।
गाम आबिते एकटा निराशा घेरि लेलक अछि । ओहि पत्रकारक प्रेरणा फीका आ बदरंग भेल जा रहल अछि। गामक जीवन, बहुत कठिन आ दुर्वह बुझाइत अछि । एहिठामक गरीबी, अशिक्षा, दंगा-फसादमे हम ठठि सकब ? हमरा सन सफेदपोश एहिठाम नहि रहि सकैछ । हमर निर्णय गलत रहय । हमर फैसला सुनिकेँ ककरो खुशी नहि भेलै । पत्नी पर तँ जेना वज्रपात भेलै । ओकर सभटा सपना चकनाचूर भऽ गेलैक । कतेक आस लगेने छल सब । पढ़त-लिखत, नोकरी करत, परिवार केँ सुख देत । लेकिन सब व्यर्थ । अपन अस्तित्व आब निरर्थक आ अप्रासंगिक बुझाय लागल अछि । की करी ? शहर घुरि जाय ? लेकिन ओतय करब की ? बस एत्तहि आबि कऽ अटकि जाइत छी । बुझाइत अछि शहर आ गाम हमरा लेल कतहु जगह नहि अछि । गाम अबैत छी तँ भागि कऽ शहर चल जयबाक मन होइत अछि आ शहरमे रहैत छी तँ भागि कऽ गाम चल अयबाक इच्छा होइत अछि । भरिसक हम चाहैत छी जे बैसले-बैसल सभ किछु भेटि जाय । लेकिन से कतहु भेलै—ए । उद्यम तँ करय पड़त । हमरा मे चारित्रिक दृढ़ता सेहो नहि अछि । छोट-छोट बात पर उखड़ि जाइत छी आ निर्णय बदलय लगैत छी । क्यो कहिये देलक जे 'पढ़ि-लिखि' कऽ गोबर भऽ गेलै, तँ की हेतैक । कहैत छैक तँ कहओ । एहि सँ दुखी भऽ कऽ शहर पड़ा जायब कोन बुद्धिमानी हेतैक । आइए एक गोटे 'हरबाह' कहलक तँ कुटकुटा कए लागल । मन भेल कतहु पड़ा जाय । एहि तरहक क्षणिक आवेश आ भावुकतामे गलब ठीक नहि अछि ।
मनकेँ अनेक तरहेँ शांत आ स्थिर करबाक प्रयास करैत छी । लेकिन फेर कोनो एहन बात भऽ जाइत अछि जाहिसँ अन्हार आ निराशा पसरय लगैत अछि ।
क्यो कहैत अछि – 'खेती मे कोनो लस छैक । कहियो रौदी, कहियो दाही....’ आ हमर मन डूबय लगैत अछि । भविष्यक चिन्ता आ डर खेहारय लगैत अछि । ई नहि सोचय लगैत छी जे सब जँ एहि डरेँ खेती छोड़ि दैक तँ अन्न एतै कतयसँ आ लोक खायत की ? आखिर एतेक आदमी तँ खेतीये सँ जिबैत अछि । पता नहि कियैक, मनमे खाली निराशाजनक भावना आ विचार अबैत रहैत अछि । साइत सुविधाभोगी हेबाक कारणे । हम श्रम सँ भागय चाहैत छी, सुविधाकामी छी तेँ भविष्य असुरक्षित आ अंधकारमय बुझाइत अछि । हरबाह-चरबाह आ जन-बोनिहार भविष्य सँ डेराइत नहि अछि । श्रमे ओकर भविष्य होइत छैक । श्रम, जे ओकर अपन हाथमे छैक । फेर कथीक चिन्ता आ कोन असुरक्षा ।
हम अचानक एकटा विचित्र तरहक आशा आ प्रसन्नताक अनुभव करय लगैत छी।
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Krishna Yadav said...
Subhash Chandra Yadav Jik Katha me kichhu gap rahait chhaik.
उपन्यास
-कुसुम ठाकुर
प्रत्यावर्तन - (तेसर खेप)
९
आय भोरे बाबुजी असगर चलि गेलाह। माँ कs मोन नहि मानलन्हि जे ओ हमरा कानैत छोरि कsजैतथि। बाबुजी कs गेलाक बाद हमरा बड अफसोस होयत छलs जे माँ के हमरा चलते रहय परि गेलैन्ह, आ आब बच्चा सब के लs असगर जाय परतैन्ह।
कॉलेज जयबाक खुशी एतबे दिन मे समाप्त भs गेल, कियाक से नहि जानि। कॉलेज जाइ अवश्य मुदा जेना कतो आओर हेरायल रहैत छलहुँ।घर आबि तs घर मे सेहो एकदम चुप चाप जा अपन कोठरी मे परि रहैत रही। माँ सब सोचथि हम थाकि जायत होयब आ सुतल छी, मुदा हम घंटो ओहिना परल रहैत रही। हमरा अपनहु आश्चर्य होयत छलs। स्कूल गेनाई तs हम मोन ख़राब मे सेहो नहि छोरैत रही , फेर हमरा एहि तरहे कियाक भेल जा रहल छलs। काल्हि बाबुजी चलि गेलाह से आओर घर सुन लागैत छलैक ताहि पर कॉलेज जयबाक से मोन नहि होयत छलs। कहुना कॉलेज तs गेलहुँ मुदा ओहियो ठाम नीक नहि लागल।कॉलेज सs आपस अयलाक कs बाद नहि जानि मोन जेना बेचैन लागैत छलs। हमरा बुझय मे नहि अबैत छल जे एहि तरहे कियाक भsरहल अछि। जहिना हाथ पैर धो कs अयलहुं मौसी (जे की हमर काकी सेहो छथि) जलखई लsकs ठाढ़ रहथि आ हमरा आगूक जलखई दैत बजलीह जल्दी सs पहिने जलखई कs लिय। अहाँ सब दिन बहाना कs दैत छियैक जे भूख नहि अछि एतबहि दिन मे केहेन दुब्बर भs गेल छी। नीक सs खाऊ पिबू नहि तs ठाकुर जी अओताह तs कहताह एतबहि दिन मे सब हमर कनियाँ के दुब्बर कs देलैथ। ठाकुर जी नाम सुनतहि नहि जानि कतय सs हमरा मुँह पर मुस्की आबि गेल। बुझि परल जेना फूर्ति आबि गेल हो। मौसी के एकटा नीक मौका भेंट गेलैंह आ ओ तुंरत माँ के बजा कहय लागलिह "हे बहिन, अहाँ तs किछु नय बुझैत छियैक, कुसुम थाकय ताकय किछु नय छथि रोज तीन चारि बेर ठाकुर जी कs नाम लs नय लेल करू, सब ठीक रहतैक"। आब हमरा कोनो दोसर उपाय नहि बुझाइत छल, हम बिना किछु बजने चुप चाप मौसी के हाथ सs जलखई लsलेलियैन्ह।
सब राति हम आ काका विविध भारतिक हवा महल अवश्य सुनैत रही। हमरा दुनु गोटे कs इ कार्यक्रम बड़ पसीन छलs। सब सुति रहथि मुदा हम दुनु गोटे हवा महल के बाद सुतय लेल जाइत रही। हमरा कतबो पढ़ाई कियाक नहि हो सब दिन काका हमरा हवा महल काल अवश्य बजा लेत छलाह। आइयो हवा महल जहिना शुरू भेलैक मधु के भेजि कs हमरा बजा पठेलथि। हवा महल सुनलाक बाद हम अपन कोठरी मे सुतय लेल चलि गेलहुँ आ काका अपन कोठरी मे।
जहिना इ कहने रहथि, तहिना सब दिन हिनकर चिट्ठी आबैन्ह आ ओकर जवाब सब दिन राति मे सुतय काल लिखय चाहि मुदा हिनका हम की सम्बोधन कs चिट्ठी लिखियैन्ह इ हमरा बुझय मे नहि आबति छलs आ हम पुछबो किनका सs करितहुँ । हम अपन पहिल चिट्ठी जे हिनका बौआ सँग मुजफ्फरपुर पठौने रहियैन्ह ताहू दिन सोचैत- सोचैत जखैन्ह किछु नय फुरायल छलs तs हम हिनका "ठाकुर जी" सम्बोधन कs चिट्ठी लिखि पठा देने रहियैन्ह। ओ चिट्ठी पता नहि कोना , हिनकर कोनो दोस्त देख लेने रहथि आ हिनका कहि देने रहथिन्ह जे अहाँक सारि चिट्ठी बड़ सुन्दर लिखति छथि।इ ओकर चर्च हमरा लग हँसैत हँसैत कयने रहथि। हमरा ओहि दिन अपना पर तामस अवश्य भेल छलs मुदा हमरा बुझले नय छलs जे लोग की संबोधन कs घरवाला के चिट्ठी लिखैत छैक। आब तs "ठाकुर जी "सम्बोधन कs सेहो नहि लिखि सकैत छलहुँ । जखैन्ह हम सुतय लेल अयलहुं तs इ सोचिये कs आयल छलहुँ जे, किछु भs जाय आइ हम चिट्ठी लिखबे करबैन्ह।हमरा अपने बहुत खराप लागैत छलs जे हम एकोटा चिट्ठिक जवाब नहि देने रहियैन्ह। बहुत सोचलाक बाद जखैन्ह हमरा सम्बोधनक कोनो शब्द नहि फुरायल तs हम ओहि भाग कs छोरि चिठ्ठी लिखय लगलहुँ । चिट्ठी मे कैयाक ठाम हम लिखिये जे हमरा मोन नहि लागति अछि जल्दी चलि आऊ मुदा ओ फेर हम काटि दियय । खैर बिना सम्बोधन वाला चिट्ठी लिखि कs हम एकटा किताब मे इ सोचि कs राखि देलियैक जे भोर तक किछु नय किछु फुरा जयबे करत। तखैन्ह ओ लिखि कsकॉलेज जाय काल खसा देबैक। पोस्ट ऑफिस हमर घरक बगल मे छलैक।
चिट्ठी लिखलाक बाद हम सोचलहुँ सुति रही मुदा कथि लेल नींद होयत। बड़ी काल तक बिछौना पर परल परल जखैन्ह नींद नहि आयल तs उठि कs पानि पीबि लेलहुँ आ फेर बिछौना पर परि कs हिनकर देल किताब "साहब बीबी और गुलाम पढ़य" लगलहुँ । दू चारि पन्ना पढ़लाक बाद किताबो सs मोन उचटि गेल आ जओं घड़ी दिस नजरि गेल तs देखलियैक भोर के चारि बाजति छलs। सोचलहुँ आब की सुतब, जाइत छी चिट्ठी पूरा कs तैयार भs जायब। इ सोचि जहिना उठि कs कलम हाथ मे लेलहुँ कि बुझायल जे कियो केबार खट खटा रहल छथि। हमरा मोन मे जेना एक बेर आयल कहीं इ तs नहि अयलाह। हम जल्दी सs आगू बढ़ि कs जहिना केबार खोलति छी तs ठीके इ एकटा बैग लेने ठाढ़ छलथि। हम किछु क्षण ओहिना ठाढ़ भs हिनकर मुँह ताकैत रही गेलहुँ अचानक मोन परल आ हिनका सs बिना किछु पूछने वा कहने ओहि ठाम स तुरन्त भागि गेलहुँ । ता धरि काका के छी करैत ओहि ठाम पहुँच गेलाह आ हमरा भागैत देखि पुछलथि" के छथि"?हम बिना किछु कहने ओहि ठाम सs भागि अपन कोठरी मे जा बैसि गेलहुँ। काका हिनका देखैत देरी अ हा हा ... ठाकुर जी आयल जाओ बैसल जाओ कहैत हिनका घर मे बैसा तुरंत ओहि ठाम सsजोर जोर सs भौजी भौजी करैत भीतर आबि सब के उठा देलथि। थोरबहि काल मे भरि घरक लोग उठि गेलथि। तुरंत मे चाह पानि सबहक ओरिओन होमय लागल। राँची मे तs हमर पितिऔत चारि भाई बहिन सेहो रहथि। जाहि महक तीन गोटे हिनका देखनेहो नहि रहथि, मधु टा विवाह मे छलिह। सब हिनका देखय लेल जमा भs जाय गेलथि। मौसी सs सेहो हिनका पहिल बेर भेंट भेल छलैन्ह। विवाह मे मौसी नहि रहथि नीलू दीदी कs विवाह के बाद सोनूक (छोटका बेटा) मोन खराप भs गेल छलैन्ह आ काका मौसी, सोनू, निक्की आ पप्पू के राँची छोरि आयल छलथि। हुनका एतबो समय नहि भेंटलैन्ह जे मौसी के फेर अनतथि।
हम अपन कोठरी मे चुप चाप बैसल रही, रतुका बेचैनी आब नहि छलs मुदा हमरा किछु नहि बुझाइत छलs जे हम की करी। इ सोचैत रही जे कॉलेज जाइ या नहि, जयबाक मोन तs नहि होयत छलs, ताबैत मौसी हमरा कोठरी मे कुसुम कुसुम करैत हाथ मे चाह लेने घुसलीह। हमरा देखैत कहय लगलीह "अहाँ अहिना बैसल छी, जल्दी सs चाह पीबि लिय आ तैयार भs जाऊ। हमरा इ सुनतहि बड़ तामस भेल, हमरा मोन मे भेल कहू तs इ अखैन्हे अयलाह अछि आ मौसी हमरा कॉलेज जाय लेल कहैत छथि हम धीरे सs कहलियैन्ह हमर माथ बड़ जोर सs दुखायत अछि। इ सुनतहि मौसी के मुँह पर मुस्की आबि गेलैन्ह आ कहलथि तैयार भs जाऊ मोन अपनहि ठीक भs जायत, आ आय कॉलेज नहि जयबाक अछि। इ सुनतहि हमरा भीतर सs खुशी भेल,बुझायल जेना हम यैह तs चाहैत रही, जे कियो हमरा कहथि अहाँ कॉलेज नहि जाऊ। हम जल्दी सs चाह पीबि तैयार होमय लेल चलि गेलहुँ।
ओना तs हमरा तैयार हेबा मे बड़ समय लागैत छलs मुदा ओहि दिन जल्दी जल्दी तैयार भsगेलहुँ। अपन कोठरी मे पहुँचलहुं तs मौसी हमरे कोठरी मे रहथि आ किछु ठीक करैत छलिह। हमरा देखैत बाजि उठलिह "बाह आय तs अहाँ बड़ फुर्ती सs तैयार भs गेलहुँ, आब माथक दर्द कम भेल"? हम हुनका दिस देखबो नही केलियैन्ह आ दोसर दिस मुँह घुमेनहि हाँ कही देलियैन्ह।
काका के विवाहे बेर सs हिनका सँग खूब गप्प होयत छलैन्ह। हमर काका बड़ निक आ हंसमुख व्यक्ति, ओ हिनका सs कखनहु कखनहु कs हँसी सेहो कs लेत छलाह। हिनको काका सs गप्प करय मे बड़ नीक लागैत छलैन्ह। हम तैयार भs कs पहुँचलहुं ता धरि ओ सब गप्प करिते छलाह। मौसी हमरे कोठरी सs काका के सोर पारि हुनका सs कहलथि" ठाकुर जी कs तैयार होमय लेल कहियोक नहि, थाकल होयताह "।किछुए कालक बाद इ हमर वाला कोठरी मे अयलाह,हम चुप चाप ओहि ठाम बैसल रही। हिनका देखैत देरी हमरा की फुरायल नहि जानि झट दय गोर लागि लेलियैन्ह।गोर लगलाक बाद हम चुप चाप फेर आबि कs बैसि रहलियैक। मोन मे पचास तरहक प्रश्न उठैत छल।इहो आबि कs हमरा लग बैसि रहलाह आ पुछ्लाह अहाँ कानैत कियाक रही, आ हमरा देखि कs आजु भागि कियाक गेलहुँ। अहाँक बाबुजी जखैन्ह सs इ कहलाह जे अहाँ कs कनबाक चलते माँ रही गेलीह, आ आब एक मास बाद जयतीह, तखैन्ह सs हमरो मोन बेचैन छलs। अहाँ के बाबुजी के गाड़ी मे बैसा सीधे हॉस्टल गेलहुँ आ ओहिठाम मात्र कपडा लs जे पहिल बस भेंटल ओहि सs सीधा आबि रहल छी। हिनकर इ गप्प सुनतहि हमर आँखि डबडबा गेल। हमरा अपनहु इ नहि बुझल छलs जे हम कियाक भागल रही आ नहि इ, जे हमरा कियाक कना जायत छल।
साँझ मे हम चाह लs कs जखैन्ह घर मे घुसलहुं तs इ आराम करैत छलाह मुदा हमरा देखैत देरी उठि कs केबार बंद कs लेलथि आ हमरा लग आबि बैसैत कहलाह "अहाँ सs हमरा किछु आवश्यक गप्प करबाक अछि"। हम किछु बजलियैन्ह नहि मुदा मोन मे पचास तरहक प्रश्न उठैत छलs। चाह पीबि कप राखैत कहलाह "अहाँ सच मे बड़ सुध छी, अहाँ हमर बुची दाई छी"। हम तखनहु किछु नहि बुझलियैन्ह आ नय किछु बजलियैन्ह, मोने मोन सोचलहुं इ बुची दाई के छथि। हम सोचिते रही जे हिनका सs पुछैत छियैन्ह, इ बुची दाई के छथि ताबैत धरि इ उठि कs एकटा कागज लs हमरा लग बैसि रहलाह। हमरा सs पुछलाह हरिमोहन झा कs नाम सुनने छी? हम सीधे मुडी हिला कs नहि कहि देलियैन्ह, ठीके हमरा नहि बुझल छलs। ठीक छैक हम अहाँ के बुची दाई आ हरी मोहन झाक विषय मे दोसर दिन बतायब। पहिने इ कहू, अहाँ के तs हमरा देखि कs खुशी आ आशचर्य दूनू भेल होयत। हिनका देखि कs हमरा खुशी आ आश्चर्य तs ठीके भेल छलs मुदा हिनका कोना कहितियैन्ह हमरा कहय मे लाज होयत छलs, तथापि पुछि देलथि तs मुडी हिला कs हाँ कहि देलियैन्ह। इ अपन हाथ महक कागज़ हमरा दिस आगू करैत कहलाह, इ अहाँ के लेल हम किछु सम्बोधानक शब्द लिखने छी, अहाँ के अहि मे सs जे नीक लागय वा अहाँ जे संबोधन करय चाहि लिखी सकैत छी, मुदा आब चिट्ठी अवश्य लिखब। कोनो तरहक लाज, संकोच करबाक आवश्यकता नहि अछि। बादक गप्प के कहय हम तs इ सुनतहि लाज सs गरि गेलहुँ। हम सोचय लगलहुं हिनका हमर मोनक सबटा गप्प कोना बुझल भs जायत छैन्ह। थोरबे काल बाद इ हमरा अपनहि कहय लगलाह हम अहाँक किताब देखैत छलहुँ तs ओहि मे सs हमरा ओ चिट्ठी भेटल जे अहाँ हमरा लिखने छलहुँ। ओहि मे अहाँ हमरा संबोधन तs नहि कयने छी मुदा ओ हमरे लेल लिखल गेल अछि से हम बुझि गेलहुँ। कोनो कारण वश अहाँ नहि पठा सकल होयब इ सोचि हम पढि लेलहुँ। पढ़ला पर दू टा बात बुझय मे आयल, पहिल इ जे अहाँक मोन एकदम सुध आ निश्छल अछि, आ दोसर इ जे अहाँ मोन सs चाहैत छलहुँ जे हम आबि, आ देखू हम पहुँची गेलहुँ। अहाँ हमरा चिट्ठी एहि द्वारे नहि लिखी पाबैत छी नय जे अहाँ के सम्बोधनक शब्द नहि बुझल अछि,कोनो बात नहि।एहि मे लाजक कोनो बात नहि छैक, अहाँ के जे किछु बुझय मे नहि आबय आजु सs ओ अहाँ हमरा सs बिना संकोच कयने पुछि सकैत छी। ओहि दिन नहि जानि कियाक, हमरा बुझायल जे बेकारे लोक के घर वाला सs डर होयत छैक। पहिल बेर हुनक जीवन मे हमर महत्व आ स्थान केर आभास भेल आ हमरा मोन मे संकोचक जे देबार छलs से ओहि दिन पूर्ण रूपेण हटि गेल। नहि जानि कियाक, बुझायल जेना एहि दुनिया मे हमरा सब सs बेसी बुझय वाला व्यक्ति भेंट गेलैथ।
जाहि दिन हमर विवाह भेल छलs ओहि समय हमर बडकी दियादिन केर सेहो द्विरागमन नहि भेल छलैन्ह। आ ओ राँची अपन नैहर मे छलिह। दोसर दिन साँझ मे इ कहलाह जे काल्हि भौजी सsभेंट करय लेल जयबाक अछि आ ओकर बाद परसु मुजफ्फरपुर चलि जायब। आजु चलु राँची(राँची केर मुख्य बाज़ार मेन रोड के लोग राँची कहैत छैक) दुनु गोटे घूमि कs अबैत छी। बरसातक मास आ बादल सेहो लागल छलैक तथापि हम सब निकलि गेलहुँ। रिक्शा किछुएक दूर आगू गेला पर भेंट गेल। घर सs मेन रोड जयबा मे करीब आधा घंटा लागैत छलैक। हम सब आगू बढ़लहुं ओकर १५ मिनट केर बाद सs पानि भेनाइ आरम्भ भs गेलैक। विष्णु सिनेमा हॉल सs किछु पहिनहि हम दूनू गोटे पूरा भीजि गेलहुँ। सिनेमा हॉल लग पहुँची इ कहलाह, भीजि गयबे केलहुं,चलू सिनेमा देखि लैत छी तs आपस घर जायब, कपड़ा सिनेमा हॉल मे सुखा जायत।
राति मे अचानक माथक दर्द आ प्यास सs नींद खुजि गेल, बुझायल जेना हमर देह सेहो गरम अछि। उठि कs पानि पीबि फेर सुति गेलहुँ। भोर मे मोन ठीक नहि लागैत छलs मुदा हम किनको सs किछु कहलियैन्ह नहि, भेल कहबैक तs बेकार मे सब के चिंता भs जयतैन्ह। मोन बेसी खराब लागल तs जा कs सुति रहलहुं। जखैन्ह आँखि खुजल तs देखैत छी डॉक्टर हमरा सोंझा मे अपन आला लेने ठाढ़ छलथि। हमरा ततेक बुखार छल जे चादरि ओढ़ने रही तथापि कांपति छलहुँ।डॉक्टर की कहलैथ से हम किछु नहि बुझलियैक। हमरा थोर बहुत बुझय मे आयल जे कियो हमर तरवा सहराबति छलथि, आ कियो गोटे पानिक पट्टी दs रहल छलथि , मुदा हम बुखारक चलते आँखि नहि खोलि पाबति छलहुँ, हम बुखार मे करीब करीब बेहोश रही। जखैन्ह हमरा होश आयल आ आँखि खुजल तs प्यास सs हमर ओठ सुखायत छल, मुदा साहस नहि छलs जे उठि कs पानी पिबतहुं। जहिना करवट बदललहुं तs हिनका पर नजरि गेल। हिनका हाथ मे एकटा रुमाल छलैन्ह आ बिना तकिया सुतल छलथि। हमरा इ बुझैत देरी नहि भेल जे इ हमरा रुमाल सs पट्टी दैत दैत सुति रहल रहथि। हमरा हिम्मत तs नहि छल तथापि हम चुप चाप उठि जहिना हिनकर माथ तर तकिया देबय चाहलियय इ उठि गेलाह। हमरा बैसल देखि तुंरत कहि उठलाह अहाँ कियाक उठलहुं अहाँ परल रहु। इ सुनतहि हम फेर तुंरत परि रहलहुं।
भोर मे उठलहुं त कमजोरी तs छलs मुदा बुखार बेसी नहि छल। मौसी सs पता चलल जे चाय पिबय के लेल जखैन्ह मधु उठाबय गेलीह तs हम बुखार सs बेहोश रही। इ देखि तुंरत डॉक्टर के बजायल गेलैक। डॉक्टर के गेलाक बाद बड राति तक माँ आ इ दूनू गोटे बैसल रहथि आ ठंढा पानी सs पट्टी दs बुखार उतारबाक प्रयास मे लागल रहथि। माँ के बाद मे इ सुतय लेल पठा देलथि आ अपने भरि राति जागल रहथि कियाक तs बुखार कम भेलाक बादो हम नींद मे बड़ बड़ करैत छलियैक। दोसर दिन सs हमर बुखार कम होमय लागल मुदा हमरा पूर्ण रूप सs ठीक होयबा मे एक सप्ताह लागि गेल। हिनका कतबो कहलियैन अहाँ चलि जाऊ, क्लास छूटैत अछि मुदा इ कहलाह, अहाँ ठीक भs जाऊ तखैन्ह हम जायब।
एक सप्ताह इ कतहु नहि गेलाह हमरे कोठरी मे बैसि कs अपन पढ़ाई करथि। साँझ मे काका लग बैसि कs खूब गप्प होयत छलैन्ह। ओहि एक सप्ताह मे काका सेहो हिनका सs बहुत प्रभावित भsगेलथि आ इहो काका के स्वभाव सs परिचित भेलाह। साँझ मे परिचित सब हिनका सs भेंट करय लेल आबथि। एहि तरहे पूरा सप्ताह बीमार रहितहुँ हमरा खूब मोन लागल।
आइ भोर सs हमरा एको बेर बुखार नहि भेल। काल्हि भोर मे हिनका मुजफ्फरपुर जयबाक छैन्ह भरि दिन इ हमरा सँग गप्प करैत रहलाह। साँझ मे काका ऑफिस सs अयलाह तs इ हुनका लग बैसि हुनका सs गप्प करय लगलाह आ हम अपन कोठरी मे छलहुँ। माँ मौसी जलखई के ओरिआओन करैत छलिह बाकी भाई बहिन सब बाहर खेलाइत छलैथ। हमरा इ सोचि कs एको रति नीक नहि लागैत छलs जे काल्हि इ चलि जेताह आ ओकर किछु दिनक बाद माँ सेहो चलि जयतीह।
राति मे सुतय काल इ कहलाह भोरे तs हम जा रहल छी मुदा हमर ध्यान अहीं पर ता धरि रहत,जा धरि अहाँक चिट्ठी नही भेंटत जे अहाँ पूरा ठीक भs गेलहुँ अछि। एहि बेर माँ के जाय काल नहि कानब, ओ बड दूर रहति छथि हुनको अहिं पर ध्यान लागल रह्तैन्ह। अहि बेर रोज एकटा कs चिट्ठी अवश्य लिखब, आ हमरा दिस देखैत आ मुस्की दैत कहलाह आब तs अहाँ के चिट्ठी लिखय मे सेहो कोनो तरहक दिक्कत नहि हेबाक चाहि। हमहु हिनकर मुस्कीक जवाब मुस्की सs दsदेलियैन्ह।
आजु साँझ मे माँ के अरुणाचल जेबाक छैन्ह। हमरा खराप तs लागि रहल अछि मुदा एहि बेर हम कानैत नहि छी। माँ बड उदास छैथ। एक तs हमरे छोरय मे हुनका नीक नहि लागैत छलैन्ह, आ आब तs बिन्नी के सेहो छोरय परि रहल छैन्ह।माँ बिन्नी के हमरा आ काका के कहला पर छोरि कs जा रहल छथि। पन्द्रह दिन सs बिन्नी के बुखार छलैन्ह ठीक तs भs गेलैन्ह मुदा ओ बहुत कमजोर भs गेल छथि। डॉक्टर हुनका लs कs ओतेक दूर जएबाक लेल मना कs देने छथिन्ह । बाबुजी के चिट्ठी आयल छलैन्ह हुनक मोन ख़राब छैन्ह। माँ के किछु नहि फ़ुराइत छलैन्ह जे ओ की करथि। जखैन्ह हम कहलियैन्ह जे अहाँ जाऊ बिन्नी के रहय दियौन्ह तs ओ अरुणाचल जयबाक लेल तैयार भs गेलीह।
निक्की बड ताली छथि हुनका कोनो काज काका स वा दोसर किनको सs करेबाक होयत छैन्ह तsततेक नय नाटक करय छथि जे लोग के ओ सच बुझा जायत छैक आ हुनका ओ काज करय लेल भेट जाइत छैन्ह। जखैन्ह सs माँ के जेबाक चर्च शुरू भेलैक निक्की माँ सँग जेबाक लेल हल्ला करय लगलीह।काका कतबहु निक्की के बुझेबाक प्रयास केलैथ मुदा ओ नहि मानलिह आ हुनकर नाटक के आगू सब के हुनकर बात मानय परलैन्ह। माँ निक्की के अपना सँग अरुणाचल लsजएबाक लेल तैयार भs गेलीह।
साँझ मे माँ सोनी, अन्नू, छोटू आ निक्की के लs मुजफ्फरपुर चलि गेलीह। इ कहने रहथिन्ह जे मुजफ्फरपुर बस अड्डा आबि जेताह आ ओहि ठाम सs माँ सब के अपन कॉलेज लs जयताह माँ सब भरि दिन कॉलेजक गेस्ट हाउस मे रहि साँझ के अवध आसाम मेल पकरि कs चलि जेतीह। माँ के गेलाक बाद सs घर एकदम सुन भs गेल छलैक। एहि बेर बहुत दिन माँ सँग रहल रहि से आओर खराप लागैत छल। राति मे काका बहुत उदास छलैथ, हुनका निक्की के बिना नीक नहि लागैत छलैन्ह।
आय रबि छैक हमरा कॉलेज नहि जएबाक छलs। भरि दिन प्रयास मे रहि जे बिन्नी के असगर नहि छोरियैन्ह। बेर बेर हुनका दिस देखियैन्ह जे ओ उदास तs नहि छथि। एक तs हमही छोट बिन्नी तs हमरो सs करीब नौ साल छोट छथि मुदा ओ हमरा पकरि मे नहि आबय दैथ जे हुनका माँ के याद अबैत छैन्ह। दिन भरि काका सेहो बिन्नी लग बैसल रहथि आ हुनका हंसेबाक प्रयास करैत रहलाह। राति मे काका कहलाह काल्हि तs अहाँक कॉलेज अछि अहाँ अपन समय पर चलि जायब।
सोम दिन हमर दू टा क्लास होयत छलs आ दुनु भोरे मे छल। हम कॉलेज जाय लगलहुं तs बिन्नी के समझा बुझा देलियैन्ह आ मौसी रहबे करथि। हमर क्लास १० बजे तक छलs, क्लासक बाद हम घर जल्दी जल्दी पहुँच सीधा अपन कोठरी मे गेलहुँ कियाक तs माँ के गेलाक बाद बिन्नी हमरे कोठरी मे हमरे सँग रहैत छलिह। जओं अपन कोठरी मे पहुँचति छी तs बिन्नी आ इ दूनू गोटे बिछाओन पर बैसि कs गप्प करैत आ हँसैत छलाह। हमरा देखैत देरी बिन्नी तुंरत कहय लगलीह, "दीदी निक्की बोमडिला(बोमडिला, अरुणाचल मे छैक) नहि गेलीह। ततेक नय नाटक केलिह जे ठाकुर जी कs पहुँचाबय लेल आबय परलैन्ह"।
साँझ मे काका बड खुश छलथि, निक्की आपस जे आबि गेल रहथि। दोसर दिन इ फेर मुजफ्फरपुर आपस चलि गेलाह।
(अगिला अंकमे)
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VIDEHA GAJENDRA THAKUR said in reply to Technogati...
by devanagari you mean Hindi perhaps, but this site is in Maithili
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Technogati said...
Thanks.I hope Hindi will alive till next world.
3
Kusum Thakur said in reply to sanjai Mishra...
Sanjai ji, please specify what do you mean by the "complicated language" here in this Novel.
4
कृष्ण यादव said in reply to Jyoti Kumari Vats...
hamhu ehi se sahmat chhi
5
sanjai Mishra said...
Went through the part of Novel.Really very nice way of presantation of fact.But I will request you not to use complicated language n facts in Novel if you want to draw the attaintion of mass through yr creation.
Sanjai Kumar Mishra@yahoo.co.in
6
Subodh thakur said...
Apnek rachna padhla ke bad bujhayal jena madhyam vargak jingi ke parikrama kailaunh saripahun anant sapna puda karvake lel madhyam varg puda jingi ashavan rahait khepai chati
7
Subodh thakur said...
Apnek rachna padhla ke bad bujhayal jena madhyam vargak jigi ke parikrama kailaunh saripahun anant sapna puda karvake lel madhyam varg puda jingi ashavan rahait khepai chati
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Kusum Thakur said...
Dhanyavaad. koshis karab ahaan sab ke niraash nahi kari.
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Vidyanand Jha said in reply to Jyoti Kumari Vats...
ehi pothik print form avashya ayebak chahi
10
Jyoti Kumari Vats said...
एहि उपन्यासक जतेक बड़ाई भए रहल अछि से ठीके भए रहल अछि। ई प्रिंट रूपमे सेहो अएबाक चाही।
11
Anshumala Singh said...
uttama, kono khep madhyam nahi
12
Mohan Mishra said...
bad nik rachna sabh, ahank lekhni me flow achhi
13
Manoj Sada said...
ई उपन्यास अपन स्थान राखत मैथिली उपन्यासक मध्य।
14
preeti said...
ee bhag seho pachhila dunu bhag jeka, nik
15
aum said...
upanyasa bad nik lagal, agila beruka pratiksha rahat
बलचन्दा
(मैथिली नाटक)-अन्तिम खेप
(वर्तमान। स्त्री मंच पर अबैत अछि।.... पार्श्र्व स' समदाओन चलैत अछि। स्त्रीक विवाहक बाद विदा लेबाक अभिनय। एकरा ओ अपन लाल ओढनी से प्रतिध्वनित करैत अछि। समदाओन सुनाइ पड़ैत अछि)
बड़ा रे जतन स' सिया धिया पोसल
सेहो सिया राम नेने जाए
आगू आगू रामचन्दर, पाछू पाछू डोलिया
तही पाछू लछुमन जे भाई
लाल रंगे डोलिया, सबुज रंग ओहरिया
लागि गेलै बत्तीसो कहार ।
(समदाओन धरि स्त्री मंचक एक ओर से दोसर दिसि जाइत अछि, जेना नइहर से सासुर पहुंचि गेल हुअए।
स्त्री सासुर पहुंचलाक बाद 'कनिया एलै', 'कनिया परीछू'क सोर भेलै। गाड़िये मे हमरा परीछि- तरीछि के सभ किओ हमरा आगं बढेलक। चंगेरी मे पएर दइत हम आगां बढलहुं। आइ-माइ-दाइ सभ फ़ेर गीत शुरु केलीह। गीत, धुन, बदलइत अछि। स्त्री जेना चंगेरी मे पएर राखैत आगां बढि रहल हुअए। गीतक स्वर)
दुल्हीन धीरे-धीरे चलियऊ ससुर गलिया
ससुर गलिया ओ भैंसुर गलिया
तोरे घँूघटा मे लागल अनार कलिया
स्त्री चंगेरी-यात्रा के बाद हम पाओल जे हम सभ एक गोट दूरा पर ठाढ छी- दूर छेकाइ लेल। रोहित सभ के यथायोग्य नेग-तेग देइत आगां बढलाह, आ पाछू-पाछू हम। कोहबरक बिध-बेबहारक बीच फ़ेर गीत उठलै- (कोहबरक गीत। स्त्री द्वारा कोहबरक बिध, खीर खुअएबाक आदिक अभिनय )
आज फूलों से कोहबर भरा जाएगा
आज दूल्हा ओ दुल्हन सजा जाएगा
जरा सा तो टीका पहन मेरी लाड़ो
तेरे बचवे पर सबका नजर जाएगा।
(प्रेमक प्रसंग.. स्त्री द्वारा प्रेमक नाना अभिव्यक्तिक आ चरम संतुष्टिक बाद गहीर नींद मे सुतबाक अभिनय... नीने मे जेना नवजातक परिकल्पना।.. स्त्री ओकरा गसिया लइत अछि.. चुम्मा लइत अछि.. अपन पेट के सोहरबइत अछि.. सोहरबइत-सोहरबइत चेहाइत अछि.. हमरा स' नञि भ' सकत, एहेन अभिनय.. कल्पने मे बच्ची के बेर-बेर पँजियबैत अछि.... ओ कनेक नर्वस अछि.. स्त्रीक पतिक पएर पड़बाक, रूसबाक, मनेबाक अभिनय.. प्रताड़ित हेबाक अभिनय.. स्त्री डेकरैत अछि.. )
स्त्री : बाउजी! हमरा बचा लिय'..। हमर बेटी के बचा लिय'। आइ धरि अहां हमरा अपना पुतरी मे सन्हियाक' राखलहुँ.. मुदा हम.. हम अपन बच्ची के.. (पति स') रोहित, रोहित,प्लीज.. अरे, कोना अहाँ एतेक निष्ठुर भ' सकै छी..? की फेदा अई जिनगी स'? एहेन जिनगी? हमर पढ़ाई बिच्चहि मे छोड़बा देलहुँ.. गामक पहिल लड़की के इंजीनियर बनबाक स्वप्न.. अधरस्ते मे दम तोड़ि देल.. संगे छलहुं ने हम दुनू, एके क्लास मे। अहाँ स' कम त' किन्नहुं नञि छलहुँ.. कखनो अहाँ फर्स्ट आबी, कखनो हम.. विवाह स'पहिने एतेक रास चर्चा, डिस्कशन्स, ज्वाइंट स्टडी.. आ विवाहक बाद सभटा सुड्डाह.. पूछला पर एक्कहि टा वाक्य- मायक इच्छा.. हुनका नोकरीबला पुतौहु पसिन्न नञि.. अंग्रेजी बाज-भूक'बला लड़की हुनका नञि चाहीं । त' जहन इयैह सभ छल, तहन विवाह स' पहिने कियैक ने कहल? .. गामक पहिल लड़की हम, जे प्रेम कएल.. भौजी सभ की-की सभ नञि सुनौलन्हि। भौजी सभ माय के सुना सुना के कहितथिन्ह- 'हम सभ जौं एना कएने रहितहुं, त' हमर बाउजी त' हमरा सभ के जीबिते खाल खींचि के भुसि भरबा देने रहितियन्हि।' ..फ़ेर ओ सभ हमरा खोंचारैथि- 'अयं ये प्रेमा दाय, कॉलेज इंजीनियएरीक पढाइ पढ' जाय छलहुं कि प्रेमक इंजीनियरी पढ' लेल..? हं ये, राधा कृष्णक रास कत' नञि होइत छैक.. अयं ये प्रेमा दाइ, रास मे सभ किछु द' देलियन्हि कि किछु बचाइयो के राखलियन्हिए कि नञि.. नीके छै, विवाहक पहिनही विवाहक सभटा मज़ा लूटि लिय'। बाद मे फ़ेर ई कन्हैया नयिं त' कोनो आन कन्हैया, रास रचैया त'भेटबे करताह.. हुनका ट्रेनिंग अहीं द' देबैन्हि, कहबन्हि जे इंजीनियरीक ई खास कोर्स छलै... (कनैत) ई सभटा अपमान हम चुपचाप सहि गेलहुं।.. मात्र एक्कहि टा उमेद पर,जे एक बेर बस, एक बेर अहां लग आबि जाइ, तहन त' फ़ेर सुखे सुख.. धन्य हमर बाउजी। वएह हमर सखा, वएह हमर सहायक.. सभटा विरोध सहितहुं हमर अन्तर्जातीय विवाह लेल पूर्ण सहमति देलन्हि.. अहाँक मायक सभटा सौख सरधा हमर बाउजी तिगुना चौगुना क' क' पूर्ण कएलन्हि। मुदा.. हुनका लेल हम एखनो धरि आनि जातिएक छौंड़ी छी..। घर परिवारक मर्जाद आ बाउजीक मुंह देखि चुप छी..। भरि दिन कोल्हूक बरद जकाँ खटैत छी.. मुदा चुप छी..। अहाँ स' दूटा गप्प कर' लेल तरसि जाइ छी.. मुदा चुप छी..। कतेक अरमान छल.. स'ख सिहंता छल.. अहाँ स' दुनिया जहान पर चर्च करब.. डिस्कशन्स करब, मुदा..(स्त्री के लागैत छै जे कोनो छोट बालिका ओकरा ल'ग आबि कनफुसकियाइत अछि -माँ! हम आबि रहल छी!
स्त्री : (स्त्री चेहाइत एम्हर-ओम्हर ताकैत अछि) के? के छी? कत' स' बाजि रहल छी?
बालिका : हम! अहींक बेटी! अहींक पेट स'..
स्त्री : (पेट पकड़ि के) नञि बाजू! चुप भ' जाऊ! आ सूति जाऊ! ई कोनो गप्प करबाक बेर छै?ई त' सुतबाक बेर छै। सूति रहू। देखिऐ, हमरो नींन आबि रहलए। हम्हूं सूति रहलहुं। ई देखियौ। (फोंफ कटबाक अभिनय। स्त्रीक बच्ची रूप मे हंसि आ कथन..)
बालिका : झूठ! बहन्ना! निन्नी नयिं। माँ! हम आएब, हमरा आब' दिय'।
स्त्री : (पति स') रोहित, सुनू ने! प्लीज! ई अप्पन संतान अछि.. हमर-अहाँक प्रेमक प्रथम निशानी! ..बाउजी कहै छथि.. बेटा-बेटी में कोन फरक?.. मुदा नञि! बाउजी, फरक छै..। फ़रक नयिं रहितियन्हि त' हम एना अपने बच्चा लेल एतेक अंहुरिया कटितहुं? ओकरा अई धरती पर आन' में अपना के एतेक असहाय अनुभव करितहुँ..। हम सभ त' गुलाम छी । कहलो गेल छै- पराधीन सपनहुं सुख नाही। .. अम्मा जी.. मानि जाथु ने.. गोर पड़ै छी अम्मा जी, गोर पड़ै छी। अरे, आब अई मे हमर कोन दोख, यदि हमर कोखि मे बेटीए आएल त'? साइंस पढबइत काले टीचर हमरा सभ के बुझेलखिन्ह जे प्रजनन प्रक्रिया मे दू टा फ़ैक्टर होइत छै- एक्स आ वाई। स्त्री मे मात्र XXएटा होइत छै, आ पुरुख लग X आ Y दुनू। पुरुख X देलन्हि त' बेटी आ Y देलन्हि त' बेटा। अम्माजी,छोट मुंह, जेठ गप्प.. जदि हिनको पहिल बेर बेटीए भेल रहितियैक तहन..
सासु : (सासुक स्वर मे) तहन? तहन मारि देने रहितियैक। आ मारि देने रहितियैक नञि, मारि देलियई.. ओहो एकटा के नञि, तीन तीन टाके.. आ, ले, देख हमर हाथ.. देख, भगै कत' छें? ले देख, देख।
(दुनू हाथ भयानक तरीका स' सोझा देखबइत अछि। स्त्री चेहाक' आ डेरा क' दूर भगैत अछि.... स्त्री विक्षिप्त जकाँ करैत अछि..)
स्त्री हा.. हा.. स्त्री.. अभागल..। शास्त्र मे कहल गेल छै, 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवा:!' फूसि, अनर्गल.. हम सभ त' मात्र दासी छी.. सेविका.. भूमिका मे बन्हल..'भोज्येषु माता, शयनेषु रम्भा:।' हम सभ मनुक्ख नञि, मात्र भूमिका छी.. भूमिका नीक.. हम नीक.. नीक-अधलाहक फ्ऱेम हुनकर.... त' जहन भूमिके छी, त' जीब' दिय'हमरा आओर के अपन भूमिका संग.. माँ.. माता.. जननी.. मुदा नयिं, हम सभ त'कठपुतरी भरि छी। डोरी आनक हाथ में आ नचै छी हुनका ताले। .... (स्त्री उन्मत जकाँ चिकरइत अछि) ले, ले, भोगि ले.. भोग्या छी हम.. आऊ, आऊ, आ मर्दन करू हमर इच्छा के, हमर मान के, हमर सम्मान के.. हे.. हे समस्त स्त्रीगण.. हे समस्त स्त्रीगण,आऊ, आऊ आ प्रस्तुत करू अपना के.., प्रस्तुत करू अपना के, प्रस्तुत करू अपना के,प्रस्तुत करू अपना के। (एक-एक वस्त्र उतारबाक अभिनय। अंतिम वस्त्र उतारैत मुंह नुका लइत अछि..) मात्र रम्भा, मात्र उर्वशी, मात्र मेनका.. अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा,मंदोदरी - ई प्रात: स्मरणीया पंचकन्या नञि.. रंभा, उर्वशी, मेनका-भोग्या।..सीता..त्याज्या। ..नञि, द्रौपदी नञि। पति आ समाज स' प्रश्न पूछ'बाली द्रौपदी नञि चाही हमरा समाज के.. मात्र सीता चाही हमरा.. सीताक भूमि पर सीते-सीता.. प्रश्न नञि.. मात्र सहू.. आ नञि सहि सकी त' सन्हिया जाऊ.. ।
बच्ची मां, मां, आब' द दिय' हमरा। हम आएब। मां, मां, हमरा बचा लिय', बचा लिय' हमरा।(बालिकाक चिकरनाइ)
(स्त्री के होइत छै जे किओ ओकरा बचिया के ओकर कोखि से बाहर घींचि रहलए। स्त्री द्वारा बालिका के बचब' लेल ओकरा दिस दौगनाई कि बिच्चहि मे ठमकि जाइत अछि आ बेहोश भ' जेबाक अभिनय करैत अछि, जेना ईथर सुंघाएल गेल हुअए..। फ़ेर कने चैतन्य भ' क' एम्हर-ओम्हर करोट फ़ेरैत अछि।.. हठात ओ चिकरैत अछि, जेना किओ ओकरा घिसिया रहल हुअए.. ओ दौग-दौग क' चारू कात स' भागबाक प्रयास करैत अछि, मुदा सभ ओर स' ओकर रास्ता बन्न अछि.. चारू कात स' निराश ओ पाछा मंचक देवाल/पर्दा दिस भागैत अछि आ ओत' टकराक' खसैत अछि.. ओ एक पएर पकड़ि क' चिकरैत अछि,जेना किओ ओकर एक टाँग काटि देने हुअए.. 'माँ...' स्त्री एके पएर से अपना के घिसियबइत भागबाक प्रयास करैत अछि कि फेर दोसर पएर पर प्रहार.. ओकर पुन: चीख..। तेज संगीत.. स्त्री दुनू पएर स'अशक्त फेर दोसर दिस भगैत अछि.. आब एक हाथ कटबाक अभिनय.. ओकर कननाइ- 'ई की क' रहल छी? हमर बेटी के कत' ल' जा रहल छी? .. अरे, हमर बेटी अहांके की बिगाड़ने अछि?' स्त्रीक पुन: बच'लेल एम्हर-ओम्हर दौगनाई - एक हाथ आ दुनू पएर स' अशक्त.. कि दोसर हाथ कटबाक अभिनय आ ओकर चिकरनाइ.. 'एना जुनि करियउ हमर बेटी संगे। एना त' ओकर अंग-भंग क' क' नयिं मारियऊ हमर बेटी के। छोडि दियऊ हमर बेटी के।' .. (स्त्रीक बेचैनी बढ़ैत अछि.. ओ एम्हर स' ओम्हर दौगि रहल अछि.. लोथ-हाथ-गोर कटबाक अभिनय संगे.. अचानक जेना माथ पर प्रहारक अभिनय.. अभिनय स' पहिने जेना हथौड़ा माथ पर बरजैत देखने हुअए.. तदनुसार मां.. शब्दक चीख, छटपट आ भागबाक अभिनय..'माँ, मां, मां मां,.. देखब ई दुनिया.. हमरा आब' दे'.. कि माथ पर प्रहार आ ओ एकदम स' शांत.. स्त्री चक्कति खा के' खसि पड़ैत अछि। कनेक काल बाद ओकर शरीर मे हरकति होइत छै.. अशक्त भावे उठैत अछि आ विद्यापतिक गीत गबैत अछि।)
'कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ
दुखहि जनम लेल दुखहि गमाओल
नयन न तिरपित भेल', हे भोलानाथ..
(स्त्री लस्त पस्त अवस्था मे उठैत अछि.. ओ एखनो विभ्रम केर अवस्था मे अछि। अही अवस्था मे ओ अपना के निरेखइत अछि, पेट सोहरबइत अछि। पहिने लागै छै जे पेट मे किछु नयिं छै, मुदा फ़ेर पेट के सोहरबइत अछि। अई बेर ओकरा प्रतीत होइत छै जे ओकर गर्भ नष्ट नयिं भेलैये। ओ रसे- रसे अपना के सम्हारैत अछि ..कपड़ा, केश, विन्यास आदि सभटा ठीक करैत अछि.. मोन मे बेचैनी छै, जकरा एकटा दीर्घ श्र्वासक संगे बाहर करबाक प्रयास करैत अछि.. गमे- गमे चलि क' फ़ेर ओ ओहि स्थान पर पहुंचइत अछि, जत' ओ छलीह। ओकरा चेहरा पर फ़ेर विभ्रमक स्थिति अछि। ओ अपन शरीरक एक एक अंग देखैत अछि, फ़ेर अपन पेट के। वास्तविकताक भान भेला पर ओ अपन पेट के प्यार स' सोहरबैत अछि। एक गोट निश्चयक भाव ओकर चेहरा पर अबैत छै, जे भेलै बहुत, आब नञि। स्त्री रसे- रसे उठैत अछि,अपन संपूर्ण शरीर के निरखैत अछि, जेना ओकर संपूर्ण शरीरक एक एक टा अंग नव-नव हुअए। ....अपन स्वर के निश्चित बनबैत अछि। मुख पर दृढ़ निश्चयक भाव। )
स्त्री नञि संभव अछि हमरा स' ई .. अपने हाथे अपन संतानक हत्या.. धरती पर जनमल संतानक हत्या करितहँु त' जेल जइतहुं, राक्षसी कहबितहुं, मुदा ई अजनमल संतानक.. सेहो हिनका आओरक प्रसन्नता लेल?.. हिनक तथाकथित.. परम्पराक रक्ष लेल?े.. हमरा स' विवाह कएला सन्ते जे मर्जाद टूटल छल, तकर अभिशाप दूर कर' लेल?'.. (दर्शक स') ई हमर इंजीनियर पति..कहबाक लेल आधुनिक, मुदा आधुनिकता स' कोसो दूर.. अरे, आधुनिक त' हमर पिता छथि- ग्रामीण, कमे पढल-लिखल, मुदा विचार स'कतेक आधुनिक.. परन्तु ई हमर अजुका जुगक पढुआ पति? प्रेमी रूप मे कतेक नीक,कतेक समर्पित- आ प्रेमी स' पति बनितहि सभटा सुड्डाह? हिनका लेल हम मात्र पत्नी,मात्र भोग्या..। .. अपने त' मातृभक्त कहाब मे ई बड्ड गौरव बुझै छथि, ..मुदा..हमरा मातृत्व सुख स' वंचित कर' लेल आएल छथि.. (जेना संपूर्ण सृष्टि के ललकारैत) त'सुनू, हे सृष्टि, हे बिधाता, हे अई धरतीक समस्त नर- नारी! सुनू, हम तैयार छी.. अपन बेटीक उत्तरदायित्व वहन कर लेल.. हे, सुनने छलहुँ.. ओकर धड़कन.. डाक्टर सुनौने छल..कतेक मीठ, कतेक सोहनगर.. धक-धक, धक-धक, छुक छुक, छुक- छुक..जेना रेलगाड़ी चलैत हुअए। एहेन मीठ आ सोहनगर धड़कन के हम अपने हाथे.. बन्न क' दी?..आ जौं दोसरो बेर बेटिए एलीह, तहन फेर डाक्टर.. फेर हत्या। फ़ेर इय्ह सभ नाटक?..न.., बहुत भेल।..प्रेमी स' पति रूप मे परिवर्तित तथाकथित मातृभक्त हमर परम प्रिय प्राणपति परमेश्र्वर.. हँ, हम.. अई धरतीक कोमल, अबला, कमजोर, असहाय स्त्री, आई समाजक देल ई परिभाषा स' अपना के मुक्त करै छी। मुक्त करै छी अपना के अई सभ बंधन स'.. आ धारण करै छी अपन स्त्रीत्व के.. स्त्रीत्वक मान के, ओकर मर्याद के आ शप्पथि लइत छी अई धरती माता के छूबि के जे आब नञि.. आब नञि त' हम मरब,नञि हमर बेटी.. (स्त्री उत्तेजना स थर थर कंपैत अछि। स्त्री के लागै छै जे ओकरा कान मे ओकर बेटी कुहुकि रहल अछि। ओकरा चेहरा पर प्रसन्नताक भाव अबै छै। ओ प्रथम दृश्य मे मंचक पाछां रखल गुड़िया के उठा क' ल' अबाय्त अछि। ओकरा कोरा मे नेने-नेने ओ मंचक बीच में बैसि जाइत अछि.. ओक्का-बोक्का खेल स्त्री आरंभ करैत अछि..)
'ओक्का बोक्का तीन तरोक्का
लउआ लाठी चंदन काठी
चंदना के नाम की?
रघुआ
खइल' कथी?
दूध भात
सुतल' कहाँ?
बोन मे
ओढ़ल' कथी?
पुरइन के पत्ता
ढोढ़िया पचक!
ढोढ़िया पचक पर स्त्री अपन तर्जनी प्यार स' गुडिया दिस आ फ़ेर अपने नाभि पर खोपैत अछि.. दुनू खिलखिलाइत अछि.. पार्श्र्व स' मृदुल, मद्घम सितारक अथवा जलतरंगक धुन.. स्त्रीक नाना बाल-कौतुक /मातृ सुलभ गतिविधिक संगे प्रकाश शनै: शनै: फेडआउट होबैत अछि.... ।
(समाप्त)
1
Preeti said...
बलचन्दाक धारावाहिक प्रस्तुतिक लेल धन्यवाद। अहाँक दोसर रचनाक आश रहत।
2
Rahul Madhesi said...
Vibha Rani Jik Natak Bad Nik Lagal.
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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