भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, July 19, 2009

मिश्रित

महाभारतमे उल्लेख अछि, जे इन्द्र-ध्वजा गाढ़ नील रंगक होइत छल। रामक ध्वजा लाल-गेरुआ रंगक छलन्हि आ’ एहि पर कुलदेवता सूर्यक चित्र अंकित छल। महाभारतमे अर्जुनक ध्वजा पर वानरराजक चित्र छल। नकुलक ध्वजा पर सरभ पशुक चित्र छल। अथर्ववेदक अनुसार सरभ पशु दू माथक , दूट सुन्दर पंख बला, एकटा नमगर पुछी बला आ’ सिंहक समान आठ नोकगर पैरक आँगुर युक्त्त होइत छल।अभिमन्युक द्वजा पर सारंग पक्षी छल। दुर्योधनक ध्वजा सर्पध्वजा छल। द्रोणक ध्वजा पर मृगछाल आ’ कमण्डल छल।कर्णक ध्वजा पर हाथीक पैरक जिंजीर छल, आ’ सूर्य सेहो छलाह।
भगवान विष्णुक ध्वजा पर गरुड़ अंकित अछि। शिवक ध्वजा पर नंदी वृषभ अंकित अछि।
दुर्गा मण्डपमे शस्त्र,ट्क्का,पटह,मृदंग, कांस्यताल(बाँसुरीकेँ छोड़ि), वाद्य ध्वज,कवच आ’ धनुष केर पूजन होइत अछि। एहिमे सर्वप्रथम खड्गक पूजा होयबाक चाही। तकरा बाद चुरिका, कट्टारक, धनुष, कुन्त आ’ कवच केर पूजा आ’ फेर चामर,छत्र,ध्वज,पताका,दुन्दुभि,शंख, सिंहासन आ’ अश्व केर पूजा होइत अछि। हमरा हिसाबे मिथिलाक कोनो झंडा बिना एहि सभक सम्मिलनक संपूर्ण नहि होयत।


I.
इन्द्रस्येव शची समुज्जवलगुणा गौरीव गौरीपतेः कामस्येव रतिः स्वभावमधुरा सीतेव रामस्य या। विष्णोः श्रीरिव पद्मसिंहनृपतेरेषा परा प्रेयसी विश्वख्यातनया द्विजेन्द्रतनया जागर्ति भूमण्डले॥9॥

उपर्युक्त पद्य विद्यापतिकृत शैवसर्वस्वसारक प्रारम्भक नवम श्लोक छी। एकर अर्थ अछि- उत्कृष्ट गुणवती, मधुर स्वभाववाली, ब्राह्मण-वंशजा, नीति-कौशलमे विश्वविख्यातओ’ महारानी विश्वासदेवी सम्प्रति संसारमे सुशोभित छथि, जे पृथ्वी-पति पद्मसिंहकेँ तहिना प्रिय छलीह जहिना इन्द्रकेँ शची, शिवकेँ गौरी, कामकेँ रति , रामकेँ सीता ओ’ विष्णुकेँ लक्ष्मी॥9॥ II.
मधुबनी जिला मुख्यालयसँ दक्षिण पण्डौल रेलवे-स्टेशनक निकट भवानीपुर ग्राम बसल अछि। एहि गामक निकट छह फीट नीचाँ जमीनमे एकटा शिव-लिंग अछि, जे उग्रनाथ महादेवक नामसँ प्रसिद्ध अछि। एहन विश्वास लोकमे छैक जे पन्द्रहम शाब्दीक आरंभमे हुनकर सहचर उगना, जखन महाकवि प्यासे अप्स्याँत छलाह, हुनका अपन जटासँ गंगाजल निकालि कय पियओने रहथि। एहि पर कविकेँ शंका भेलन्हि, आ’ ओ’ कविसँ असली परिचय पुछलन्हि। तकर बाद एहि स्थान पर शिव हुनका अपन असली रूपक दर्शन देलन्हि।
एहि कथा पर विश्वास तखने भ’ सकैत अछि, जखन तर्क आ’ विज्ञानक संग श्रद्धाक मिश्रण होय। शंकराचार्यक विष्यमे कहल गेल जे ओ’ अपन कमंडलमे धार भरि लेलन्हि। भेल ई जे बाढ़िमे बेचेमे पहाड़ रहलाक कारण एक दिशि बाढ़ि अबैत छल आ’ एक दिशि दाही। बीचक गुफाकेँ शंकर अपन शिष्यक सहयोगसँ तोड़ि जखन कमण्डल लेने बहरओलाह तँ लोक देखलक जे दोसर कात पानि आबि रहल अछि। सभ शंकराचार्यक स्तुति कएलन्हि, जे अहाँ अपन कम्मंडलमे धार आनि हमरा सभकेँ दाही सँ आ’ दोसर कातक लोककेँ बाढ़िसँ मुक्त्त कराओल। अहाँ कमण्डलमे पानि आ’ धार अनलहुँ। बादमे अवसरवादी लोकनि एकरा क्मत्कारसँ जोड़ि देलक। आशा अछि जे अहाँ सेहो अपन लेखमे उगनाक कथाक तर्क आ’ श्रद्धासँ विवेचना करब।
बीस मार्चकेँ १४ दिनुका मिथिला क्षेत्रक गृही परिक्रमा, आइ काल्हि जनकपुरक, दू टा डालाक संग- १.मिथिला बिहारी जी आ किशोरीजी आ आर मारिते रास ढेर मन्दिरक/ भक्तक डाला सभक संग कुआ रामपुर दऽ कऽ जनकपुरमे प्रवेश करैत छथि। कतेक भक्त तँ अपन पशुक संगे परिक्रमा करैत छथि। ई परिक्रमा कचुरी मठ, धनुषासँ शुरू होइत अछि आ अमावस्याक रातिमे पहिल विश्राम हनुमान नगर आ चतुर्दशी दिन पन्द्रहम विश्राम जनकपुरमे होइत अछि। २१ मार्चकेँ फागुन परिक्रमा दिन ई यात्रा जनकपुर नगरपालिकाक परिक्रमाक अंतरगृह परिक्रमा (लगभग 8 किलोमीटर) क संग होइत अछि। २२ मार्चकेँ जनकपुर आ आसपासमे होली मनाओल जाइत अछि।

जनकपुर मध्य परिक्रमाक १५ स्थल आऽ ओतुक्का मुख्य देवता १. हनुमाननगर- हनुमानजी २.कल्याणेश्वर- शिवलिंग ३.गिरिजा-स्थान- शक्ति ४.मटिहानी- विष्णु मन्दिर ५.जालेश्वर- शिवलिंग ६.मनाई- माण्डव ऋषि ७. श्रुव कुण्ड- ध्रुव मन्दिर ८.कंचन वन- कोनो मन्दिर नञि मात्र मनोरम दृश्य ९.पर्वत- पाँच टा पर्वत १०.धनुषा- शिवधनुषक टुकड़ी ११.सतोखड़ी- सप्तर्षिक सात टा कुण्ड १२.हरुषाहा- विमलागंगा १३. करुणा- कोनो मन्दिर नहि मात्र मनोरम दृश्य १४. बिसौल- विश्वामित्र मन्दिर १५.जनकपुर। अन्तमे फेर जनकपुरमे खतम भऽ जाइत अछि। भक्त सभ बारहबीघा मैदान आ धर्मशाला सभमे ठहरैत छथि।
लघु परिक्रमा आठ कि.मी. , मध्य परिक्रमा 40 कोसक (128 कि.मी.) आ वृहत परिक्रमा 268 कि.मी. होइत अछि।

१.उग्रतारा स्थान- मण्डन मिश्रक कुलदेवी/ गोसाउनी महिष मर्दिनी भगवती, महिष्माती। १४म शताब्दीमे राजा शिव सिंहक ज्येष्ठ रानी पद्मावती एतए एकटा मन्दिर बनबेलन्हि। खण्डवला राजवंश कालमे सेहो एतए मन्दिरक रख-रखाव होइत छल आ राजा आसिन नवरात्रमे एतए पूजा आ रहबाक लेल अबैत रहथि।
तारा भक्त लोकनि दुर्गापूजाक समयमे एतए खूब मात्रामे अबैत छथि !
२.कपिलेश्वर स्थान- मधुबनीसँ पाँच किलोमीटर पश्चिम माधव मन्दिर आ पुरान शिवलिंग, सांख्य दर्शनक जनक कपिल एतए मन्दिरक स्थापना करबओलन्हि। एखुनका मन्दिर दरभंगा महाराज राघव सिंह द्वारा २५० वर्ष पहिने बनबाओल गेल। प्राचीन कालमे समुद्र हिमालय धरि पसरल छल आ फेर जमीन पसरल। जखन बंगालक खाड़ीक निकट गंगासागर तीर्थ लग कपिल सगरक ६०००० पुत्र / सैनिककेँ जरा देलन्हि तखन ओ कपिलेश्वर अएलाह। एखन गंगासागर सेहो समुद्रसँ कनेक हटि कए अछि।

जानकी नवमी- वैशाख शुक्ल नवमी- मानुषी। रामनवमी- चैत्र शुक्ल नवमी। विद्यापतिक मृत्यु तिथि कार्तिक धवल त्रयोदशी-देसिल बयना ।
विवाह पंचमी- अगहन शुक्ल पंचमी। शतानन्द पुरहित-राम सीताक विवाह। मरवापर मिथिला चित्रकला आ परिचन, गोसाउन गीत आ नैना जोगिन ओहिना जेना जुगल सरकारक विवाहमे भेल रहए, आइयो।
मिथिला प्राचीन कालमे मैथिलक भूमि विदेहक नामसँ- जकर राजधानी मिथिला रहए- स्थापना मिथी (भविष्य पुराण) द्वारा। दोसर नाम विदेह, मिथिला, तीरभुक्ति, तिरहुत, तपोभूमि, साम्भवी, सुवर्णकानन, मँतिली। मिथिला माहात्म्य (वृहद विष्णु पुराण)- वृहद परिक्रमा- सम्पूर्ण मिथिलाक परिक्रमा एक सालमे। 268 कि.मी.। कौशिकीसँ शुरू भए सिघेश्वर स्थान, ओतएसँ सिमरियाघाट, फेर हिमालयक फुटहिल्स, फेर कौशिकी होइत सिँघेश्वरस्थान। मध्य परिक्रमा- 40 कोस (128 कि.मी) 5 दिनमे, मुदा आइ-काल्हि 15 दिनमे। फाल्गुन शुक्ल पक्षक पहिल तिथिकेँ (अमावस्या) दिन शुरू होइत अछि आ पूर्णिमा दिन खतम होइत अछि। फागुनक परिक्रमा सभसँ बेशी प्रसिद्ध अछि मुदा परिक्रमा कातिक आ बैशाखमे सेहो कएल जा सकैत अछि।
पाणिनी- मिथिला ओ नगरी छी जतए शत्रुक मर्दन कएल जाइत अछि। जनक- जन (विश)सँ व्युत्पत्ति। निमी द्वारा वैजयंती (जनकपुर) आ मिथी द्वारा मिथिला नगरक स्थापना।
शरभ नकुलक झंडापर रहए, मिथिकल जानवर जकरा दू टा माथ, दू टा पाँखि, एकटा नमगर पुच्छी, आ सिँह जकाँ 8 टा नह होइत अछि। जखन भगवन विष्णु नरसिंह अवतार लेलन्हि तखन हुनका प्रसन्न करबाक लेल शिव शरभक रूपमे जन्म लेलन्हि। मिथिला चित्रकलाक पाँच रंग- क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरक द्योतक। अंकुश- दू फेँरक बरछा- स्पीयर जाहिसँ हाथीकेँ नियंत्रित करैत छी, गणेश जीक अंकुश मूसकेँ नियंत्रित करैत अछि।

यूनीकोड- 1200 साल पुरान फिगराइन आ 500 साल पुरान पाण्डुलिपि। संयुक्ताक्षर- कोष्ठकक संख्या जे बंगालीमे नहि अछि वा बिल्कुल अलग अछि- कवर्ग (10), खवर्ग (4), गवर्ग (8), घवर्ग (4), ङ वर्ग (4) चवर्ग (6), ज वर्ग (5), झ वर्ग (4) ट वर्ग (3), ठ वर्ग (2), ड वर्ग ( 2), ढ वर्ग (3), ण वर्ग (6), त वर्ग (6) , थ वर्ग (3), द वर्ग (8), ध वर्ग (3), न वर्ग (6) प वर्ग (8), फ वर्ग (2), ब वर्ग (4), भ वर्ग (3), म वर्ग (11) अंत-संयुक्ताक्षर य वर्ग (2), र वर्ग (2), ल वर्ग (4), व वर्ग (4), श वर्ग (9), ष वर्ग (8), स वर्ग (8), ह वर्ग (8) तीन वर्णक संयुक्ताक्षर- (49) चारि वर्णक संयुक्ताक्षर (1) बिकारी (1), ग्वंग ह्रस्व-दीर्घ (2), अंजी एक टाइप अंशुमन पाण्डे द्वारा वर्णित (5) प्रकार आर।

विद्यापति- नेपाल लखिमाक संग पलायन- घुरलाक बाद अंतिम रचना दुर्गा भक्ति तरंगिणी। झूमर, नचारी, महेशवाणी, जोग उचिती, बटगवनी, परिछनि, कोबर, पराती, बारहमासा, मान, तिरहुत, दृश्यकूट, शिव, भगवती आ गंगा, विष्णु, शक्ति, हर-गौरीक विषयमे।

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