भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार
लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व
लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक
रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित
रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक
'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम
प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित
आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha
holds the right for print-web archive/ right to translate those archives
and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).
ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/
पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन
संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक
अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह
(पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव
शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Saturday, August 01, 2009
'विदेह' ३९ म अंक ०१ अगस्त २००९ (वर्ष २ मास २० अंक ३९)
वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश
२. गद्य
२.१. कामिनी कामायनी-कथा-भरोस
२.२. मिथिलेश कुमार झा-लघुकथा- एडभांस युग मे
२.३. अनमोल झा- लघुकथा- सुरक्षित
२.४ सुशान्त झा- सुशांत झा-कथा- अहां कोना रहै छी भौजी....
२.५ पालन झा -कथा- गरीबक जिन्दगी
२.६. कथा-गिरैत देवाल- कुमार मनोज कश्यप
२.७. मनोज झा मुक्ति-इज्जतिक खातिर
३. पद्य
३.१. सतीश चन्द्र झा-सृजन
३.२. अमरेन्द्र् यादव-आह्वान / कल्पखना आ यथार्थ
३.३. आशीष अनचिन्हार-गजल
३.४.पंकज पराशर- -फैसलाबाद
३.५. विनीत ठाकुर-अभ्यागत
३.६.निशाप्रभा झा (संकलन)-आगां
३.७. हिमांशु चौधरी-आतङकक राजकुमार
३.८. ज्योति-प्रतीक्षा सऽ परिणाम तक
३.९. दयाकान्त-पाँच लाख बौआक दाम
४. मिथिला कला-संगीत-तूलिकाक चित्रकला
५. गद्य-पद्य भारती -पाखलो (धारावाहिक)- मूल उपन्यास-कोंकणी-लेखक-तुकाराम रामा शेट, हिन्दी अनुवाद- डॉ. शंभु कुमार सिंह, श्री सेबी फर्नांडीस, मैथिली अनुवाद-डॉ. शंभु कुमार सिंह
६. बालानां कृते-१. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स); आ २. मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति
७. भाषापाक रचना-लेखन - पञ्जी डाटाबेस (आगाँ), [मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी रूपमे
Videha e journal's all old issues in Braille Tirhuta and Devanagari versions
विदेह आर.एस.एस.फीड।
"विदेह" ई-पत्रिका ई-पत्रसँ प्राप्त करू।
अपन मित्रकेँ विदेहक विषयमे सूचित करू।
↑ विदेह आर.एस.एस.फीड एनीमेटरकेँ अपन साइट/ ब्लॉगपर लगाऊ।
ब्लॉग "लेआउट" पर "एड गाडजेट" मे "फीड" सेलेक्ट कए "फीड यू.आर.एल." मेhttp://www.videha.co.in/index.xml टाइप केलासँ सेहो विदेह फीड प्राप्त कए सकैत छी।
१. संपादकीय
१. संपादकीय
"हम मैथिल" मैथिली त्रैमासिक कोलकातासँ
लोकार्पित भेल अछि, जकर प्रधान सम्पादक श्री
रामलोचन ठाकुर आ सम्पादक मनमोहन मिश्र 'चंचल' छथि।
१२ जुलाइ २००९ कें कोलकाता सम्पर्कक मासिक बैसार नियमानुसार मासक दोसर रविकें भेल।
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ १४ जुलाई २००९) ८२ देशक ८६२ठामसँ २६,६१४ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ १,८८,४८१ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण
अपनेक रचना आ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in
ggajendra@yahoo.co.in
२. गद्य
२.१. कामिनी कामायनी-कथा-भरोस
२.२. मिथिलेश कुमार झा-लघुकथा- एडभांस युग मे
२.३. अनमोल झा- लघुकथा- सुरक्षित
२.४ सुशान्त झा- सुशांत झा-कथा- अहां कोना रहै छी भौजी....
२.५ पालन झा -कथा- गरीबक जिन्दगी
२.६. कथा-गिरैत देवाल- कुमार मनोज कश्यप
२.७. मनोज झा मुक्ति-इज्जतिक खातिर
कामिनी कामायनी
भरो स
‘अहीं के धान रहै़ बलु जे हम काटि देलौ हमरा अपने बहुते काज रहै है।’ धान क बाेझ माथ प’ स’ नीचा दरवज्जा लग पटकैत बटेसरा छाेटका भाय के देखैत मातर बाजल छल ।ओकर यएह पैघ पैघ आँखि मे लाल लाल डाेरी दूरे सॅ झ्लकैत नजरि आबए छलै ।दलान प’ कुरसी प’ बैसल अखबार सॅ नजरि हॅटबैत कान मे घुरियाति ओकर बाेल के अनठा क’ छाेटका भाय गप्पा के पलटैत नहूँ नहूँ करि क’बजला ‘बटेसर बाबू तू त एतेक मेहनति छ इर्मानदार सेहो ।एतेक बूझनूक भ’ क’कनि कनि गप्पब प’ नै न उबलबा के चाही । जो रे माॅ के कही चारि कप्पम चाह बनवा क’ आँगन सॅ भेजथुन ।’ मुनेसरा दाैङ क’ आँगन चलि गेल आ’ बटेसर दलान प राखल अखङा चौकी के गर्द कांन्ह प राखल अपन मइर्ल अंगाेछा सॅ झाङैत बैस गेल । मुदा ओकर मुखाकृति एखनो धरि तामस सॅ भरल छलै ।ओ अपना विरूद्व एकोटा आखर नहिं सुनि सकैत अछि ‘बङका कका बाेलै हथीन जे बटेसरा अहाॅ सबके आँखि मे धूरा झोँकि रहल है।’ ‘अच्छा तो बङका कका के गप्पब प तमसाएल छ़ धुर बुङबक़ ।’छाेटका भाय हॅसैत बजल जेना ई हो तमसैबाक के कोनो गप्पख छै ।
कारी धूथूऱ एकदम गठल शरीऱ पूरा गाम मे एकटा वएह बचि गेल सहनी टाेल मे जवान मरद । आर सब दियाद बाद भाय बहिनी पंजाब हरियाणा सिलीगुङी़ नै जानि कत्त कत्त चलि गेल अछि कमाबए लेल । ई हो गेल छल कलकत्ता मुदा तुनुक मिजाज लङि झगङि क’ मारि पीट करि क ई ओत्त नहिं टीक स
कल आ’ बौआ ढहना क’ फेर गामक रास्ता अपनैालक ।
बाबूजी के आगाँ पाछाँ करैत रहैन्ह त’ ओ कोना नै कोना ओकरा सरकारी नैाकरी लगवा देने रहैथ ।बाबूजी के खेत त’ ओकर बाबुए बटाए करैत छल मुदा ई किछु नब जमीन आ’ अपन बाङी झाङी बढाैलक बटाए के खेत। आठ टा धिया पुत्ता सबके पढेनाय लिखेनाय सरकारे के कपार प’ सबहक अप्प न सौख मौज गाम मे ओ पहिल लोक छल जेकरा घरक चार प’ सजिमनिक’ लत्ती नै भ’ क’ टीवी के एंटिना लागल छल ।पानि राखए लेल बङका सीनटैक्सओ
के टब सेहो राखल काज त’ कोनेा नै होय मुदा अपन दू कोठरी के नब पक्काा बनल घरक छत प’ ओकरा एना बैसा देलकै मानू ओ ओहि गामक ताजमहल होए ।कलकत्ता मे देखने रहै लहेरियासराय मे बैसाहलक ।बटेसर के अपनो फिट फाट बेस ।पैंट शर्ट हाफ पैंट सेहो कखनो क’ रंग बिरंगक’ टी शर्ट़ माथ प’लाल पियर टाेपी हाथ मे घङी आँखि प’ धूपक चश्मा ।सरकारी नाैकरक रो बदाब़ ।
अगहनी फसल कटबा के तैयारी भ’ रहल छल ।कोन कोन गाम सॅ नै ताकि ताकि क’ बाेनिहारि सब आनल जाय़ निमोछिया बूढबा़ स्त्रीगण दुगुना मजूरी तिरलोकी जे बङका कका के भातीज छल कहलकैन्ह ‘कका हमरा त’ सवा सौ बीघा लेलक ऊपर सॅ भरि पेट खेनाय बीङी तमाकू अलग सॅ ।’खगन बाबू आने की बङका कका चुपचाप मूङी झूकाैने सुनैत रहि गेल छलाह ‘कि जमाना आबि गेल छै ।’
बटेसरक कनिया छाेटका भाय के अंगना मे काज करैत छल कि जिट फिट मे रहै कन्हाैली बाली ।काकी क ेपरदेसिया बेटा बेटी पुताैह सब सेहो बङ मान संम्मान दैन्ह ।
‘कन्हाैली वाली के मोन खराप छै़ ई सुनि काकी जेना बियाकुल भ’ जायथ़‘हे रौ बाउ बजार जाए छै कनि उनटि दस्त के दबाए नेने अबीहै बटेसरा के बौह के बङ रद दस्त भ’ रहल छै काल्हिए सॅ।’ काकी टाेल मे ककरो बजार जाइत देखि बाजि उठैथ ।
आ’ कन्हाैली बाली के की ठाठ़ रतुका अइर्ंठ बासन बाहरि अइर्ठार प’राखल राखल खरकैट रहल अछि जलखई भानस बनतई त कोना ।काकी पिछाैती मे जा कए चिकरि रहल छथि ‘रौ सोहना रे तिसबा़ गै मंजूआ माय के पठा कनि जल्दी देखि कत्तेक बेर भेल जाइर्त छै ।’आ’ बङ चिकरला के बाद अपन आँगन सॅ निकलि क’ झून झून पायल बजबैत आबै । ‘मायजी माथ मे बङी दरद हलै सोहना के बाबू कहैहलै बलू आय नै जो ।मुदा हम कहलिए जे काकी के बङी दिक्क त भ’ जैते ।भरि अंगना लोकवेद सब आयल है संजूआ के आंगन बाङी मे नाैकरी लागि गेलए त’ मंजूआ के मेहमान ले गेलै़ छाेट बच्चा है ऩ बहिनी नाैकरी प’ जेतय़ त’ बच्चा के खेलैते़ ओहि से दीक्केत हो गेल हमरो नहिं त’ मंजुआ आबि क’सब काज करिय दैत हलैन्ह ।’जल्दी जल्दी दूधक बासन माॅजैत बाजल ‘मायजी़ चुन्नी दाय क़़ त्त है कनि चाह पीबिताै ।’आ’ काकी चाह बनवा क’ सोहना़ बिसवा आ कन्हाैली वाली के बिस्कूट संगे पीबए लेल बजबा लेलखिन्ह़ ।
पवन आ’ गाेरखक घरवाली अपन सौसक ई रूप देखि क’ दंग रहि गेल छलीह ।अपना आगाँ केकरो किछु नै चलए देबए वाली जबरदस्त स्त्री आय दाय नाैकर प’ एत्तेक मेहरबान । ‘कि करबै कनिया आब ओ जुग नै छै बङ मूॅह ठाेर धेने रहै छी़ त’ काज करि दैत अछि एसगरि रहे छी उपाय की़ बाबूजी के समय मे भिनसरे सॅ दलान प’ मजलिस जमय लागै ‘चाह ला़ पानि ला़ ओ त’ बूटना छलै बटेसरा के बाप रहै जे हुनका पाछाँ लागल राति क’ दरवज्जा प’ सूत लेल सेहो तैयाऱ नै त’ ओहो एक टा आफत आब त’ सेहो नै एकसर एत्तेटा आँगनि मे काहि काहि करैत जीबि रहल छी़ ।
ताबैत बङका टा के घाेघ तनने कन्हाैली वाली आबि दूनू दियादिनी के गाेङ लगलक ‘कखनी अलखिन दीदी सब़़ काल भरै दिन काकी बाट तकैत रहलखिन्ह चारि दिन पहिले से सब घरक पलंग परक चादरि धाेआबै छली कनिया सब के साफ सुथरा घर भेटबा के चाही़ बलु़ ’ ।’कन्हाैली वाली बरांङा मे राखल बरतन सब समेटि क’ ऽ््ऽल’ प’ जाइर्त काल दू मिनट ठाढ भ’ बाजल ।
बङकी कनिया आ’ कन्हाैली वालीके दुरागमन एके दिन भेल छलै ताहि लेल ओ हुनका पैघ दियादिनी जकाॅ सम्मान दैत छल ।पहिने त’ बङ लाज करै’ ‘हे दीदी अलखिन है़ हाली हाली काम क’ दै छी ।’ननदि सब के कहै़ घाेघ तनने आबै़ ल’ग मे ठाढ से हो नै होय मुदा धीरे धीरे आन दियादिनी सब के अयला प’मुखरित भेल गेल़ ‘गै दाय सब़ बङकी दीदी त हमरा सॅ कहियेा बाेलबाे नै केलखिन्ह़ आ’ ई मॅझली के देखियाे कहै हे़ हे कन्हाैली बाली हमर नूआ कखनी साफ होतै ।’नबकी दियादिनी सब प’ चुटकी लेबए सॅ बाज नै आबै़ काकी के कान सेहो भरि दै ।
जखन घर मे लोक सब जूटै कन्हाैली वाली के नखरा आओर बढि जाए काकी सॅ कहैन्है ‘ऊ़ सोहना के बाबू कहै हल्ले़ बङकी भाैजी तोरा ला कि आनलकाै ।’ काकी कहलखिन्ह ‘अखने त’ अहाॅ के म्ॅाझला बौआ न’ब साङी आनि क’ पंजाब सॅ देने रहै बेटा लेल पेन्ट बूसट ।’ ‘हॅ से हम कहलिए बलू दैते रहै हथिन्ह की़ ।’ गप्पब के तङाक सॅ पलति क’ बाजल ।
ओकरा परो छ मे काकी बजलीह ‘ऐंठी से बढि गेल छै जहिया सॅ अहि घर मे काज पकङलक उत्तान भ’ क’ चलैत अछि। पहिने घर बाला दारू पीबि क’ गत्तर गत्तर फाेङि दै़ पङा पङा क’ नैहर भागै छल आब देखियाै गिरहथनी भेल गप्पघ छाँटि रहल अछ़ि ।’
एक एक करि क’ आठ बच्चा़ ‘हे ओपरेसन उपरेसन कथी लेल करेबै़ एगाे दूगाे आर होते त होते ।’दीपारानी के टाेकला प’ बाजै ।देखैत देखैत दू तीन टा बेटा बेटी के विवाह दान करि क’ पाेता नाति वाली वाली बनि गेल आ’ जखन बङकी भाैजी सहरि सॅ गाम आबथि लाजे हुनका सोझाॅ सॅ हॅटि जाए़ ‘दीदी की सोचैत होथीन्ह़ ई बूढाे भे गेले ।’मुदा रंग बिरंगक साङी़ लहठी़ सिन्नुर काजरि पहिरनै ओ अपन पूताैह सॅ बेसी नब लागै।
‘बङकी दीदी साङी नै अनलखिन्ह हमरा लेल़’ दीदी के देखैत मातर ओकर फरमाइर्स आर बढि जाए ।आ’ अहि बेर छैठ मे जखन दीदी गाम पहुॅचलि त’कन्हाैली वाली हुलसि क’ ल’ग आयल । ‘हमर बेटा के नाैकरि नै लगते़ पंजाब से घुरि आयल ।’ बङकी कनिया चौंकली ‘चलि आयल़ ।हमरा घर प’ किएक नहि आयल ।’ ओ चुप़ ।दाेसर दिन आबि क’ कहैत अछ़ि ‘जे बलु संभुआ कहलकै जे भैया फाेन प’ कहलकै के छै़ हम तोरा नै चिन्हे हियाे।’बङकी कनिया क्षुब्ध ‘हमहीं उठेने रहियै़ आ’ हमहीं भैया सॅ गप्पप करबेने रहियै़ पूछियाै त’ ।’संभुआ पिछाैती मे बाङी साफ करैत छल आयल ‘हॅ की ’बङकी कनिया लग माथ झूका लेलक । ‘अहाॅ के हम बजेने नै रही घर प़ ।’ ‘हूं’ ‘त कियाक नहि एलीयै़ ।’ ओ एकदमे चुप ।
‘ एतेक झूठ बाजै छै ई सब ।’ बङकी कनिया घर मे जाकए बजली त’ छाेटकी ननदि टपकि पङली़ ‘ओ सब कोने सोइर्त बाभन छै जे झूठ नहि बजतै ।’
कन्हाैली बाली कन्हाैली बाली कन्हाैली बाली़ भरि दिन ओकरे चर्च ‘गै़ माॅ कन्हाैली बाली के बेटा रमुआ आरि प’ के’ सबटा सीसो पाॅगि लेलकाै ।’छाेटकी ननदि चिकरति आँगन मे पैंसली त’ माॅजी के मोन तामसे माहूर भ’गेलन्हि ओ नहा धाे क’ पूजा करय लेल बैसले छलीह ।पूजा घर सॅ बहरा पएर मे चप्पील पहिर पछुआति मे गेली ‘हे रमुआ के माऽऽ््ए़ हे कि भेलै़ छाैङा किएक एना अगत्ती जेकाॅ करैत अछ़ि पूछि लैते हम मना कैरतीयै तखन नै़ ।’आ ‘ओ घाेघ वाली काकीके देखि क’ रमुआ के बिखैन बिखैन क’ गरियाबए लागल छल़ ।
घर आबि क’ काकी परो क्ष मे खूब जहर उगलली ।कनिए काल मे फनकैत छाेटका भाए एला़ ‘संभुआ के टी़ वी ठीक करबा ब’ लेल देने रहियै़ से एखन धरि नै देलकै कहली एको बेऱ चारि सौ टाका सेहो देने रहि उपर सॅ़ ’। काकीफेर चिकरली़ कऽ््ल ल’ ग’ जाकए़़ “यै संभुआ के माय़ यै पूछियाै संभूआ के़ हमर टी़वी बेच बिकीन लेलक की ।’
काकी सेहो बूझैत छलीह ओ टी वी आ’ पैसा’ लेल संभूआ के उकटि दैत छलखिन्ह ‘एखनी दैत छी ’कहैत कहैत छाै मास बीता देलकै़ ।
‘यै कनि कोबी कहबै संभूआ के आनय लेल ’काकी फटा फट खूजल पाए ताकुए लगली । ‘नमरी देबए त’ छदाम सेहो नहि घूरा क’ दैत ।’चुन्नीदाय किछु बाजय चाहली त’ माॅजी तमसा गेली “एसगरे रहै छी गाम मे तू सब गाेटे पाहुन पङक़ एलाॅ दू दिन मे चलि जेबें नै किछु कही ओकरा सब के़ जानै नै छी आब पहिलुका गप्प़ नै छै सरकारे एकर सबहक मान बढा देने छै़ ओ त’बाबूजी के एहसान छै़ बटेसरा के नाैकरी जे कनियाे आँखि मे लाज लिहाज बाॅचल छै नै त’ अपन दर दियाद के त’ ओतबाे पानि नहिं छै नै कोनो दरेग ।’
छैठक’ परना के बाद बङकी कनिया सहरि जाए लगली त ‘कन्हाैली बाली के कहलखिन्ह ‘अहीं के भरो से माॅ जी के छाेङने जाए छी़ देखबै ।’ ‘हे दीदी चिन्ता जुनि करूॅ ओ ठंढी मे माॅ गिर पङलखिन्ह़ क’ल’ प’ पिच्छङि हलै़ ।हमहीं हुूनका देख भाल करली़ पॅजरा मे केत्तना तेल मालिस तखनी जा क’उठलखिन्ह ।’ ‘ठीक छै एह ीस नै अहाॅ हुनकर असली पूताैह छियैन्ह हमरा सब के अहाॅ प’ बहुत भरो स अछि ।’ आ’ ओकर ब्हुत ब्हुत बङाई करैत रूपया पैसा दैत विदा भ’ रहल छल़ि तखने माॅजी भगवती घर सॅ बहरैत बाजए लगली़ ‘एसगरै रहैत छी़ सांझे सकाल सबटा दरबज्जा ब्ंाद क’ लैत छी इर्हाे सोचि नेने छी़ जाैं मरियेा जायब़ त कन्हाैलीबाली भाेरे भाेर दरबज्जा पीटबे करतै नै खुजतै त हल्ला हेतै चारो ं दिस बेटा बेटी के लोक सब खब्रि करतै़ बटेसरो लग सबहक फाेन नंमर छै ताहि लेल हमरा लेल निस्चिंत रहुॅ ।’बङकी कनिया के आँखि मे नोर भरि गेलन्हि बुढापा़ एसगरूआ भय सॅ ग्रसित माॅजी कन्हाैली बाली के पैलबारक जादती सहि रहल छथि गाम मे ते इर्हाे विकल्प छै़ मुदा निर्दय सहरि मे धन दाैलत सिनेह अनुराग दइर्याे क की अहाॅ केकरो विश्वास आ’ वफादारी पाबि सकैत छी किन्नाे नहिं ।
27 ।06 ।09
_________ मिथिलेश कुमार झापरिचय-पात
नाम ________ मिथिलेश कुमार झा
पिता ________ श्री विश्वनाथ झा जन्म ________ 12-01-1970 केँ मनपौर(मातृक) मे पैतृक ________ ग्राम-जगति, पो*-बेनीपट्टी,जिला-मधुबनी, मिथिला, पिन*- 847223 डाक-संपर्क _____ द्वारा- श्री विश्वनाथ झा, 15, हाजरा रोड, कोलकाता-- 700026 शिक्षा :
प्राथमिक धरि- गामहिक विद्यालय मे। मध्य विद्यालय धरि- मध्य विद्यालय, बेनीपट्टी सँ। माध्यमिक धरि- श्री लीलाधर उच्च विद्यालय,बेनीपट्टीसँ इतिहास-प्रतिष्ठाक संग स्नातक-कालिदास विद्यापति साइंस काँलेज उच्चैठ सँ, पत्रकारिता मे डिप्लोमा-पत्रकारिता महाविद्यालय(पत्राचार माध्यम) दिल्ली सँ, कम्प्युटर मे डी.टी.पी ओ बेसिक ज्ञान। रचना: हिन्दी ओ मैथिली मे कविता, गजल, बाल कविता, बाल कथा,साहित्यिक ओ गैर-साहित्यिक निबंध, ललित निबंध, साक्षात्कार, रिपोर्ताज, फीचर आदि। प्रकाशित पहिल रचना:
हिन्दी मे– मुखपृष्ठ अखबार का- जनसत्ता(कलकत्ता संस्करण) मे 19-10-94 केँ(कविता) मैथिली मे- विधवा(कविता)-प्रवासक भेंट(मैथिली मासिक कोलकाता)-रिकार्ड तिथि उपलब्ध नहि, आरक्षण सिर्फ सत्ताक हेतु- आलेख(प्रवासक भेंट-कोलकाता)- नवम्बर 1994 कें। प्रकाशित रचना: मैथिली:- प्रायः 15 गोट कविता, 17 गोट बाल कविता, 18 गोट लघुकथा, 3 गोट कथा, 1 टा बालकथा, 44 गोट आलेख आ 6 गोट अन्य विविध विषयक रचना प्रकाशित। प्रकाशित रचना:- हिन्दी:- प्रायः 10 गोट कविता/गजल, 18 गोट आलेख, 1 गोट कथा ओ 3 गोट विविध विषय प्रकाशित।
एडभांस युग मे
___ की हाल-चाल यौ? भैयाक विआह भ गेल की? केहन रहलै बरियातीक सत्कार?
____ सब ठीके रहलै।--- स्वागत-सत्कार मे त’ बुझू जे कोनो कमी नहि।--- खूब एडभांस परिवार छै।
____ वाह ! खूब नीक बात।
____ आ नीक बात आरो, जे बरियाती मे स्त्रीगण- वर्ग सेहो छलीह।
____ ऎं ! --- ठीके? --- के सब रहथि?
____ हँ यौ, सतबारा वाली मौसी, सौराठ वाली दीदी, मलंगिया वाली मामी, कहरुया वाली भौजी सब रहथि, खूब मोन लगलै।
____ छिः नाक कटेलौ।
____ एह, दुनियाँ कते एडभांस भ’ गेलै आ अहाँ परंपराकेँ पडनहि छी !
____ ऎं यौ, कोन मूहसँ बजै छी ! --- यौ सात लाख काटर नै लेने रहितौ तखन ने एडभांस बुझितहुँ, धुर जी !! ।
अनमोल झा (१९७०- )-गाम नरुआर, जिला मधुबनी। एक दर्जनसँ बेशी कथा, साठिसँ बेशी लघुकथा, तीन दर्जनसँ बेशी कविता, किछु गीत, बाल गीत आ रिपोर्ताज आदि विभिन्न पत्रिका, स्मारिका आ विभिन्न संग्रह यथा- “कथा-दिशा”-महाविशेषांक, “श्वेतपत्र”, आ “एक्कैसम शताब्दीक घोषणापत्र” (दुनू संग्रह कथागोष्ठीमे पठित कथाक संग्रह), “प्रभात”-अंक २ (विराटनगरसँ प्रकाशित कथा विशेषांक) आदिमे संग्रहित।
सुरक्षित
भाइस चान्सलर बनलाक बाद बधाइ देबऽ लेल आयल लोकक ताँता लागल छलै। बहुत गोटा क्षुब्ध आ विस्मित सेहो छल। प्रायः बहुत गोटाकेँ बुझल छलै जे एखन हिनका सऽ पन्द्रह गोटा आर सिनियर अछि तकरा बाद हिनकर नम्बर अबैत छनि।
मुदा सभकेँ पाछू छोड़ैत भी.सी.क कुर्सीपर बैसल देखि एक गोटा पूछि देलकैन- श्रीमान् अपनेक नम्बर तऽ बड़ पाछा छल। कोना एलउ एतेक जल्दी एतय।
भी.सी. हँसैत कहने रहथिन- सभ मंत्रीजीकऽ कृपा छियैन। ओ लोक फेर पुछलक- मंत्रीजी कते दिन? हुनका गेलापर की हैत अहाँक?
भी.सी.गम्भीरता पूर्वक कहने छलखिन- किछु नै हैत हमरा। कारण जैह मंत्री एताह हम तिनके सपोटर भऽ जायब। तैँ हम सुरक्षित छी, अति सुरक्षित...।
सुशांत झा
अहां कोना रहै छी भौजी....
लक्ष्मी आई आठवां क्लास मे चल गेलि। मिडिल स्कूल के हेटमास्टर यादवजी ओकर अंग्रेजी के बड्ड प्रशंसा करैत छथिन्ह। कहैत छथिन्ह जे अगर एकरा मौका भेटैक त जरुर किछु करत ई बचिया। ओहिदिन जिलास्तरीय नाटक प्रतियोगिता के लेल रिहर्सल मे बौआरानी के सलेक्शन स्कूल सं भेलैक। कहने रहय-कका यौ...मेन रोल नहि भेटि सकल, लेकिन हम अपना दिस सं खूब कोशिश केलियै। हम ओकर अंग्रेजी के टेस्ट करयैक लेल ओकरा सं रीडिंग दैक लेल कहैत छियैक। बौआरानी धुरझार अंग्रेजी पढ़ैत अछि आ ओकर माने सेहो बतबैत अछि। हम सोचैंत छी जे एकटा प्रतिभा के फेर अकाल मृत्यु भ जैतैक की...? लेकिन के जनैत अछि प्रारब्ध मे ककरा की लिखल छैक।
हमरा दस साल पहिने के बात मोन पड़ैत अछि। शैलेन्द्र भैया के ससूर गाम आयल रहथिन्ह आ बड़का कका सं कहलखिन्ह- आब हमरा अहां के संबंधक कड़ी खत्म भय गेल। बड़का कक्का पहिने नहि बुझलखिन्ह, लेकिन कनिये कालक बाद हुनका आंगन मे कन्ना रोहटि उठि गेल। पूरा गामक लोग जमा भ गेल। पता चलल जे शैलेन्द्र भैया नहि रहलाह। बड़का कक्का के जीवन मे पहिल बेर कनैत देखने छलियन्हि, 65 साल के अवस्था मे अंगना मे ओ ओगरनिहया मारि का कानि रहल छलाह।
लक्ष्मी तहिया छोट छल, प्राय चारि या पांच साल के। ओकर छोटकी बहिन रागिनी 2 साल के हेतैक। शैलेंद्र भैया एखन रहितथि त 44-45 के रहितथि। भैया के कका हुनका एनटीपीसी मे नौकरी लगा देने रहथिन्ह। ओ जमाना छलै जहिया एडहाक पर बहाली होईत छलैक आ बाद मे हाकिम ओकरा किछु दिनुका बाद परमानेंट कय दैक। शैलेंद्र भैया ताबत परमानेंट नहि भेल छलाह, इम्हर घर पर घटक सबहक लाईन लागि गेलन्हि। हाय रे मिथिला के बेटी सब, आई हुनका परमानेंट नौकरी रहितन्हि त भौजी के ई दिन थोड़े देखय पड़ितन्हि। शैलेंद्र भैया के बियाह नीक परिवार मे भेलन्हि। भौजी के बाप ततेक धड़फडेल रहथिन्ह जे बेटी के मेट्रिक के परीक्षेक साल बियाहि देलखिन्ह। भौजी आ भैया के अबस्थो मे बढ़िया अंतर छलन्हि...लेकिन सबकिछु के दरकिनार करैत बियाह भ गेल। आब सोचति छी, त बुझायत अछि जे ई एकटा मैथिल पिता के विवशता स बेसी किछु नहि छल।
शैलेन्द्र भैया आ भौजी अनपरा चलि गेला..जतय एनटीपीसी मे ओ क्लर्क छलाह। जमाना बदैल रहल छल। दिल्ली मे नब आर्थिक व्यवस्था लागू भ रहल छल,उदारीकरण के नाम पर कयकटा नियम बनायल आ हटायल जा रहल छल।
भैया के परमानेंट होई के संभावना दिन पर दिन क्षीण हुअय लगलन्हि। आब त एडहाक के दरमाहो कम पड़य लगलन्हि जहिया स बियाह भेल छलन्हि। ताबत लक्ष्मी आ रागिनी दुनिया मे आबि गेल छल। भैया शराब पिबय लगला। पति-पत्नी के बीच संबंध खराब हुअय लगलन्हि। धीरे-2 शराब हुनकर स्वास्थ्य के प्रभावित केरय लगलन्हि। हुनकर किडनी खराब भय गेलन्हि। ओ छुट्टी लय क गाम आबि गेलाह। ओ छुट्टी पर छुट्टी लेने जाईथ। लेकिन एडहाक के नौकरी मे लंबा छुट्टी-कतेक दिन चलितन्हि। गामों मे हुनकर शराब के नशा नहि छुटलन्हि। पाई नै रहन्हि त अन्न पैन बेच क पी लथि। पोलीथीन आ सस्ता शराब सेहो। कखनो पोखरिक महार पर त कखनो नहरिक कात मे। जन हरवाह सब देखय, त कक्का के कहनि। जहि खानदान मे एकोगोटे भांग आ बीड़ी सिगरेट नहि पीबय ओहि आदमी के बेटा के बारे मे शराबी होई के चर्चा कतेक अपमानजनक आ लज्जास्पद हेतैक-ई हमरा सबके ओतेक छोट अवस्था मे नहि बुझे पड़े। लेकिन आब कल्पना करैत छी, त मोन केना दनि कर लगैत अछि।
भौजी के सासु के व्यवहार दिन पर दिन भौजी के प्रति बिपरीत भेल जाईन्ह। आब त ओ खुलेआम कहय लगलीह जे अही मौगी के पेरे हमर बेटा के मोन खराब भेल जाईये। बात-2 पर रक्षिसिया आ गारि भौजी के नियति बनि गेलन्हि। एकटा कुलीन घर के कन्या-जकर कुलशील के गवाह मिथिला के तमाम पंजीकार छलाह-जे पारंपरिक मिथिला के सर्वोत्तम गांव मे स आयल छलीह-हुनकर ई हाल हमर मोन के विदीर्ण कय दिए। ओहि समय हम पटना मे छलहुं। मैट्रिक पास कय मेडिकल के तैयारी करी, कहियो काल गाम जाई। मोबाईल के जमाना नहि छल। मां स चिट्टी-पर बात हुए या गाम जाई तखने। एतेक नहि बुझियै।
साल 2001 के पितरपक्ष मे गामे मे रही। शैलेन्द्र भैया के अंगना मे हमरा नोत रहै। हम खा क उठले रही की, भैया के ससूर अयलाह। तकर बाद कन्ना रोहटि उठि गेल।
तकर बाद के कहानी भौजी के दुख, अपमान, मानसिक यातना आ संघर्ष के कहानी छन्हि। तीन साल तक भौजी कोनो तरह कटलीह। लक्ष्मी आ रागिनी के चमकैत चेहरा मलीन भेल गैलैक। ओ आब पूर्ण ग्रामीण वाला लागय। लेकिन लक्ष्मी तीन साल तक अनपरा के पब्लिक स्कूल मे इसाई टीचर सं अंग्रेजी पढ़ने रहय। ओकर अंग्रेजी एखनो नीक रहै। दूनू बहिन आब गामे मे बिहार सरकार के स्कूल मे जाई।
कोनो तरहे समय बीतल। भौजी के शिक्षा मित्र मे भय गेलन्हि। डेढ़ हजार महीना पर। नबका युवा मुखिया शैलेन्द्र भैया के दोस्त रहन्हि। ओ भरल पंचायत मे बाजल जं एकटा वेकेंसी हेतैक त शैलेन्द्रक कनिया के हेतैक।
आई अहि बात के चारि साल बीत गेल। आई नीतीश सरकार शिक्षा मित्र सबके दरमाहा साढ़े सात हजार कय देलकैक। आब ओकर नाम पंचायत शिक्षक भय गैलैक आ ओ परमानेंट सेहो भय गैलेक। आब भौजी के सासु के व्यवहार बदलि गेलन्हि। भौजी घर चलबै छथि। आब ओ सोचैत छथि जे ओ त बेसी नहि पढ़ि पेली लेकिन दूनू बेटी के जरुर इजिनियरिंग करेती। ओ हमरा स पूछैत रहैथ, जे अहां सब त पत्रकार छी-कतेक जान पहचान हेत,कनी देखबै।
हमरा लक्ष्मी के आंखि मे ओज देखा रहल अछि। ओकरा अगर मौका देल जाई त ओ जरुर किछु करत। हेडमास्टर यादवजी के कथन सही छन्हि...। लेकिन की ई कहानी एतय खत्म भय जेबाक चाही ? की लक्ष्मी आ रागिनी के भविष्य सुनिश्चित भय गेनाई अहि खिस्सा के सुखद अंत मानल जाई ?
भौजी के अवस्था एखनो 31 साल छन्हि। जहिया बियाह भेल छलन्हि तहिया 17 साल के छलीह। हुनकर की हेतन्हि...?? .हुनकर के छन्हि.?? .की हुनकर सुखदुख के कोनो मोल नहि...?? ई सवाल मुंह बौने ठाढ़े अछि...मिथिला के समाजक समाने...आ हर साल सैकड़ों मैथिलानी अहि सवालक सामने हारि जाइत छथि....जे हमर के अछि...??की हमर सुखक कोनो मोल नहि...?
पालन झा
गरीबक जिन्दगी
रामकुमार सभ बाले-बच्चे चित्कार काटि कए कानि रहल छल। कानए किएक नहि
सभ संसार ओकर उजडि गेलैक। दू चारिटा बकरी छलैक से हो सभ अगिलग्गी
मे झुलसि कए मरि गेलैक। लोकसभ के मुदा आब जुटनहि की।सभ चीज वस्तु त सुड्डाह भए गेल छलैक। लोकसभके सांत्व्ना देबाक अतिरिक्त आओर कहाँ रहि गेल
छलैक, हँ एकटाधरि भगवानक कृपा जे दुनू बाल-बच्चा समेत रामकुमार दुनू प्राणी
बचि गेल। जतेक तरहक लोक ततेक तरहक गप। लोक सभ ढाढस बढबैत जे आब
की करबा विधाताक घर मे इएह मंजूर भेल छल, हुनको लगमे गरीबक दुःख देबालेल
रहैत छनि रजिस्टर मे लिखल, नीक कहाँ सँ लिखथिन। कतेक दिन जोगार कएलाक
बादे ओ खोपरी ठाढ भेल छलेक, कोनहुना सभ ओही मे निवाह करैत छल।वषॉ-बुन्नी
सँ त बचल रहैत छल। थाकल-मारल चैन सँ त सुतैत छल। आब कतए रहतैक, कतए
ई दुनू बाल-बच्चा रहतैक। आब ई कोना फेर खोपडी ठाढ करतै, दुनू बाल-बच्चा के
पोसतै कि घर बनेतै। आब कनिए कए की हेतैक, जे वस्तु नष्ट भए गेलैक से आब
थोडेक घुरिकए अओतैक कतेक काल धरि कानैत रहितए रामकुमार, कनिते थोडे
साहस कए बजबाक प्रयास करैत कहैताछि “आब हम कोना जीबै, हमर बाल-बच्चा
कोना रहतै, कोनहुना भरिदिन काज कएके बोनि अनैत रही, ओही मे सँ दोकान-दौडी, दबाइ-दारु करैत रही, टुटलो घर छलते रौद वसात सँ बचल रहैत छलहुँ, आबतँ ओहो खोता उजडि गेल” एखनहु समाज निष्ठुर नहि भेल छैक, टोल-पडोसक लोक सभ
किछु ने किछु मदति करए लगलैक। आगाँ फेर सभ नीके होएबाक बोल भरोस देबए
लगलैक।रामकुमार फेर भोकारि पारि कए कनैत अछि आ,किछु साहस कए अपन
दुःखनामा सुनबए लगैत अछि “चारि दिन पहिने भुटकुन गिरहथ परती बला खेत
लए लेलनि। कहने रहथि जे ई दसो कठ्ठा जमीन के तोडिकए खेत बनाए ले आ
हमरा तोँ एकर उपज तीन वषॅ धरि किछु नहि दिहे, तकर बाद तोरा जाबत धरि
खेत के अपन खून-पसेना सँ बनेलहुँ, बच्चा के आरिपर सुताकए ओहि चैतक रौद
मे काज करैत रही। पहिल वरख तँ किछु नहि भेल, एहिबेर आलू रोपैक विचार
कएनहि रही, की खेत लए लेलथिन, एहिलेल हम सभ बैसार कएके जाइ छियनि
कहैक लेल, जे हतैक से हतैक, फरिछा लेबनि, आ खेत धरि नहि जोतए देबनि”
कहि कए ओहिठाम सँ बच्चा सभक लेल किछु खेनाइक इंतजाम करए चलिगेल।
रामकुमार अपन टोल-पडोसक लोककेँ अपन दुःख
दर्द सुनबितहि छल जे कोना हमर बुधिया बेती हमरा सभक संग-संग काज करैत
छल, बडका-बडका ढेपकेँ फोडेत छल, घास-पात विछि-विछि कए आरि पर जमा
करैत छल। कहिते छल कि मटकुनमा एक गेँट सोहारी, नोन-तेल-मरिचाइ सभ
नेने ओहिठाम आबि गेल। रामकुमार’क कनियाँ, अरहुलिया केँ हाथ मे सोहारी’क
गेँट दैत कहैत अछि- “बच्चा सभकेँ ताबत खुआ-पिआकेँ शांत करु आ अहूँ सभ
किछु खा-पी लिअ, आब जे वस्तु नष्ट भए गेल से घुरिकए थोडेक आएत आगाँक
चिंता आब करू, भगवान’क इच्छा हेतनि’तँ फेर सभ भए जेतैक। हमहुँ सभएक-दू
दिन मे भुटकुन गिरहथक अन्याक विरुद्ध बैसार करैत छी।“रामकुमार किछु साकाँक्ष
होइत-“नहि, हम गिरहथ सभसँ झगडा नहि करब, हमरा संग जे अन्याय भेल अछि
तकर निसाफ भगवान स्वयं करथिन, फेरतँ हमारा एही समाज मेरहब, ओने हमरा
संग अन्याय कएलनि हमतँ नहि ने केलिअनि नीक उपजाक सभावना देखि करेज
फाटए लगलनि आ खेत छीन लेलनि। कतेक मेहनत हम कएने छलहुँसे नहि देखने
छलाह की कहाँ भेलनि जे दस टाका व दूसेर अन्नोक मदति कए दियैक” बीचे मे
लुटना कहि उठैत अछि” अहा कतेक मेहनतिसँ घर बनओने छल, दू मासक बाद
साओन-भादव आबि रहल छैक, कोना रहतैक! की करतै! दू-चारि दिनक बात रहैक
तखन ने घरोतँ ने छैक बेशी ककरो, जे एहि छोट-छोट नेनाक आश्रय भए जइतैक।“
रामकुमार एकमात्र भगवान पर भरोस करैत,”चलि जेबैक दिल्ली-पंजाब दिस। सुनैत छियैक कजे ओहिठाम खूब काज भेटैत छैक, अपन जतेकटा ईगाम छैक ततेक-ततेक
-टा जगह मे पच-पच महल’क मकान सभ बनैत छैक, एकबेर काज लागि गेला पर
पाँच-पाँच बरख धरि दोसर ठाम जाइक कोनो काज नहि। साल-दू-साल काज चलए
बला मकानक’तँ कोनो कमिए नहि, ओतहि चलि जेबैक, केओ ने केओ काज धराइये
देते, एहिठाम हमरा आब की अछि! अरहुलिया काज नहि करतै, धिया पुता के’तँ
सोझाँ मे रखतै, भानस-भात’सँ करतै नै! ”एतेक कहैत देरी की ओमहर’सँ कन्हैया टोक
दैत जे-हँ, रौ रामकुमार मंगल’क बेटा भोलबा पंजाब मे रहैत छैक आ ओ, जे सहदेबा’क बेटा राजकुमार छौक सेहो पढनाइ छोडि दिल्ली की हरियाणा चलि गेलेक आ खूब
कमाइ-खटाइ जाइ छै। सहदेब’क बेटा राजकुमार तँ अपन सार सभके सेहो लए गेलैक। चमर टोलियो’क कतेक छौडा सभके काज धरेलकैक। चमर टोली’क छौडा सभके देखैत
छियैक खूब नीक-नीक कपडा-लता पहिरने, हाथ मे घडी आ काँख तर रेडियो लटका
कए घुमैत-रहैत अछि। आबतँ ओसभ खेतो भरना लेबए लागल अछि, पहिने ई सभ
खाइ बेतरेक मरैत छल। माए-बाप, भाइ-बहिनि सभलेल् सेहो नीक-नीक कपडा सभ अनैत अछि। ओकरे सभसँ गप कएकेँ चलि जो दिल्ली-हरियाणा, तोरो दिन-दुनियाँ
नीक भए जेतौक चिंता नहि। “दिल्ली-पंजाब’क चर्चा चलिते छलैक की मंगल सेहो
आबि गेलैक। मंगल सभ चीजके निहारि रामकुमार लग आविकए बैसि गेल की
तखन हि रामकुमार हबो-ढकार भए कनैत अपन दुःख्ननामा सुनबैत-सुनबैत दिल्ली
लए जएबा’क पैरवी करए लगलैक। राजकुमार कतहु हमरो दिल्ली सभ मे काज धराए
दिनए तँ बाल-बच्चा सभकेँ पोसि लितहुँ, सुनैत छियेक जे ओतए बोनि बेशी दैत छैक, एतए तँ तीन सेर धान वा दू किलो गहूम भेटैत छैक, एतेक मे कोना निर्बाह करबै,
ताहू मे कहि ओ बेराम भए जेबैक तँ बाल-बच्चा सभकेँ के देखतै? अरहुलिया सभ दिन
बेरामे रहैत अछि। मंगल बोल-भरोस दैत जे हँ, किएक ने लए जेतैक, हमतँ कहबे करबे तोहुँ जाकेँ भेंट कए अपनेसँ कहि दिहक। ओ आब आठसँ दस दिनक भीतरे पूर्णिमा सभक लगीच मे जेतैक।
रामकुमार अन्हरगरे भोर मे उठि राजकुमार केँ भेंटकए अपन दुःख-दर्द सुनबैत दिल्ली
लए जएबाक आग्रह करैत अछि। राजकुमार काज धरएबाक आश्वासन दैत रेल-मासूलक
इंतजाम कए लेबाकलेल कहैत अछि।रामकुमारक मुखमण्डल पर मुस्कान’क संग चमक
आबि गेलैक। आश्वस्त भए रामकुमार घर मे पन-पिआइ कए बोनि करबा’क लेल चलि गेल।सांझुक पहरअबैत काल बेसाहक किछु वस्तुजात लएकेँ आएल। खाए-पीकेँ सुतबाक
प्रयास करैत अछि मुदा निन्दो होइक तखनने,कारण रेल मासूलक इंतजाम जे नहि भए
सकलैक।घर मे सम्पत्ति मे सम्पत्ति मात्र अरहुलियाक नैहर मे देलगेल``` हँसुली’ टा छलैक
मुदा ओकरा बेचला’सँ पैसे कतेक दितैक,तीन सए नहि साढे तीन सए टाका``।चारि गोटेक मासूल,बटखर्चा आ ताहि पर बेरवख्त लेल किछु हाथो मे रहैक चाही।जाइते देरी जँकाज नहि भेटि सकै दू-चारि दिन रुकए परैक तखन की हेतैक?चिंता सँ निन्न नहि भएरहल छलैक।कोनहुना पसरखोलबाक बेरमे निन्न भेलैक, फेर भोरमे काज पर जएबाक छलैक।
रामकुमार आइ एकेवेरियाँ काज कए सबेरे घर चलि आएल मासूलक इंतजाम करबा’क
लेल। मासूल’क कोन-हुना इंतजाम कए दिल्ली जएबा’क तैयारी मे लागि गेल। काल्हि अन्हरगरे दिल्ली जएबाक छैक। राजकुमारसँ भेंटकए पुर्ण आश्वस्त भए आइ रातिए मे मोटरी-चोटरी पाथेय सभ बान्हि-छेक राखि देलक,भोरे आब मात्र प्रस्थानक काज।
रामकुमार सबेरे-सकाल उठि बाले-बच्चे तैयार भए नियत समय पर विदा भए गेल।
ब्रह्मस्थान मे जाकए बैसल छल कि ताबत राजकुमार दस डेग पहिंने सँ चल-चल देरी
भए गेलैक, बस छुटतै’तँ ट्रेनो छुटि जेतैक। समय पर नहि पहुँचबै’तँ फेर ट्रेन काल्हिये
भेटतै। सभ झटकि कए भगवती चौक पर पहुँचल कि ओमहर’सँ बस हनहनाइत पहुँचि गेल। कोनहुना सभ बस’सँ दिल्ली टीशनधरि पहुँचल। गाडी अएबा मे घंटा भरि बिलम्ब
छलैक। ताबत राजकुमार पैसा लए टिकट कटाए अनलक। किछु पनपिआइ सभ करैत गेल कि ट्रेनो आबि गेलैक। भीड’तँ छलैहे तथापि कोनहुना सभ चढि कए दिल्ली स्टेशन आबि
गेल।
दिल्ली मे बडका-बडका शाँपिंग माल सभ बनैत देखि अचंभित ओ मने-मने काजक आशा
मे खुशियो भए रहल छलैक। सएक-सए मजदूर काज कए रहल छल। रामकुमार सभ कहिओ महानगर देखने रहितए तखन ने, जिज्ञासार्थ राजकुमार सँ किछु-किछु पुछए लागल। राजकुमार आब गामक भाषाकेँ छोडि टूटल-फूटल हिन्दी मे ओकरा बुझबैत हिन्दी मे बजबाक निर्देश दैत कहए लगलैक,”हे! ई बडका शहर थिकैक, एहिठाम गामक भाषा नहि बजिहे,नहितँ लोक देहाती बुझतौक, निछन्छ देहाती। अपना सभमे गप करबहतँ नहि कोनो, मुदा हाकिम हुकुमसँ हिन्दीएमे बात करिहह, ओना ओ सभ अपनामे अंग्रेजिएमे गप्प करैत छैक” रामकुमार उत्तर दैत कहैत अछि” अँए हौ राजकुमार! ओसभ जखन अंग्रेजीमे गप्पकरैत छैक तँ फ्रेर रिक्शा-टेम्पू-टेक्सी बला सभ सँ कोना गप्प करैत हेतैक,
ई सभतँ देखैत छियैक जे हिन्दीए मे बजैत छैक ओकरा अंग्रेजी बजैत कहाँ देखैत छियैक” की राजकुमार कहैत अछि हँ,हौ एहि लोककतँ ओ सभ उपेक्षा दृष्टिएँ अवश्य
देखैअ छैक, मुदा जाहिठाम मजदूर-रिक्शा आदिक काज पडैत छैक ताहिठाम ओकरो हिन्दीए मे बाजए पडैत छैक मुदा सभ छोटका हिन्दीए मे गप्प करैत छैक चाहे ओ
चाय-पान बला हो ठेला-रिक्शा बला हो चाहे जन-मजदूर हो”,रामकुमार किछु आगाँ
बढैत अछि की,पुनः राजकुमारसँ पुछिदैत चैक जे अँए हौ एहिठाम देखैत छियैक जे बुढिया-बुढिया सभ जिंस-पेंट पहिरने रहैत छैक, कतेक केँ देखैत छियैक जे भरि देह कपडो नहि पहिरने रहैत छैक, से किएक? गाँव-घर सभ मे एना रहतै तँ लोक कतेक चौल करतै।“ राजकुमार डँटैत जे, ”हे, ई बडका शहर थिकै एहिठाम सभ सेठ-साहूकार
सभ छैक एहिठाम एहिना रहैत छैक, ई सभ बात एहिठाम नहि बजिहेँ नहितँ पुलिस
केँ बजाए जेल मे दए देतौक” रामकुमार सहमि गेल, मुदा भीतरसँ आओरो जिज्ञासा
सभ उमरि रहल छलैक। गप-शप करैत सभ राजकुमारक डेरा पर पहुँचि गेलैक। रास्ताक सभ झमारल छल। गामसँ जे किछु अनने छल सएह सभ खा-पी कए आराम करए
लागल।
साँझुक पहर चारि बाजि गेलैक, काजक तलाश मे से हो जएबाक छलैक। राजकुमार
अरहुलिया केँ भानस भात करबाक सभ वस्तु देखाए रामकुमारक संग निकलि गेल।
संयोगवश लगहि मे किछु दुरी पर एकटा नव पर मकान बनि रहल छलैक। धखाइत-
धखाइत ओहिठाम पहुँचल । मालिक मनेजरक संग ठीकेदार सेहो छलैक। राजकुमार
मालिक केँ रामकुमारक दिस इशारा लकरैत जे काजक तलाश मे गाम सँ आएल छैक।
रामकुमार से हो टुटल-फूटल हिन्दी मे अपन दुर्दैन्यक विषय मे कहए लगलैक। संयोगवश रामकुमार केँ काज भेटि गेलैक। दोसरेदिन मालिक केँ एकटा एपार्टमेटक ने ओ ले बाक छलैक, सए-दूसए लेबरक काज छलैक। दोसरे दिन आठ बजे काज पर बजाओल गेलैक। राजकुमारक देह सेहो हल्लुक भए गेलैक आ रामकुमार सेहो प्रसन्न भए गेल ।
रामकुमार दोसर दिन समय पर पहुँचि काज
प्रारम्भ कए देलक। मनसँ काज करए लागल, मेहनतियातँ छलहे, मालिक काज देखि प्रसन्न भए गेलैक। दू-चारि दिन काज कएलाक उपरांत किछु अग्रिम आ किछु अपनो दिस सँ रहबाक लेल वस्तु जात खरीद आनएलेल कहीं देलकै। रहबाक लेल एकटा झोपडीनुमा घर दए देल गेलैक। सभ बाले-बच्चे रामकुमार रहए लागल। किछुए दिन मे
सभ हिलि-मिलि गेल। धियो-पुतो सभ जगहसँ परिचित भए अपन खेलाए धुपाए लागल।
बडका छौडा ललटुनमा काज करए काल मे बापक छोट-छीन टहल सेहो कए दैक। आबतँ
ईसभक प्रिय पात्र बनिगेल। मालिक-मलिकाइन जखन अबैकतँ चाहो सभ पिआए दैक। मालिक आब गेटक चाभी सेहो एकरे हाथ मे थम्हा देलकै। कखनहु ककरो बिषय मे नीक
अधलाह जे किछु पुछबाक रहैत छलैक से रामकुमारे सँ पुछैत छलैक। इहो सभटा बात सत्य-सत्य कहि दैत छलैक। किछु दिनमे घरक छत सभ ढला गेलैक, रामकुमारक के आब ओही मे रहबाक लेल आज्ञा भेटि गेलैक। गेटक चाभी सेहो दए देल गेलैक। आवए-जाए बला पर नजरि रखबाकहेतु सेहो कहिदेल गेलैक। मालिक-मलिकाइनकेँ कोनो गुप्त बातक जानकारी लेबाक होइतँ रामकुमारेसँ पुछैत छलैक। दू-तीन वरख धरि एहि मे काज चलतै से सोचि खूब प्रसन्न भए रहए लागल। समय बितैत गेल देखिते-देखिते आब तेसरो बरख बीतल जाए रहल छलैक एपार्टमेटक दोसरमहल घरिक सभ ढांचा
तैयार भए गेलैक, मुदा एखनो बहुत काज बाँकी छैल। आबतँ फिनिशिंगक काज चालू कएल जेतैक। मालिक धीरे-धीरे मजदूर सभक छँटनी करए लागल, झोपडी सभ सेहो हँटए लगलै। रामकुमारक चिंता
सेहो बढए लगलैक जे आब हमरो ई स्थान छोडए पडत। ठीकेदार,रामकुमार केँ मकानक एकटा कात मे रहबाक स्थान सीमित कए देलकै। रामकुमार उदास भए कए रहए लागल तथापि ओ छओ-मास घरि आओर ओही मे खेप लेलक। पन्द्रह दिन ठीकेदार मालिक केँ एपार्टमेँटक चाभी सौप देतैक। रामकुमार
पत्नी अरहुलियाक संग भविष्यक चिंता करैत अवसर पाबि काजक खोज सेहो करए लागल। “दिल्ली सभ महानगर मे काज कतहु नहि भेटैक,ताहू मे मजदूरीक काज। एखनहु इंजिनियर, डाक्टर, शिक्षकक
काज पडततँ एकक बदला अनेक उपस्थित भए जाएत मुदा मजदूरक दिक्कततँ सभ दिन रहतैक, कतबो मशीनी युग एलैक मजदूरकतँ काज पडबे करतै। मजदूर की आब मजदूरे रहलैक? ओहो सभ आब अपन स्वयंक काज करए लागल आ ओहि मे ओकरा खूब आमदनियो होइत छैक बाबू-भैया सभ गाममे जमीन बेचैत छथि आ ओसभ खरीद करैत अछि। “मकान मे फिनिशिंगक काज सेहो लगचाए गेलैक। बाहर मे रंग_विरंगक फूल सभ सेहो लागए लगलै।
रामकुमार केँ भगवान-भगवतीक कृपा सँ दोसरो ठाम काज भेटि गेलैक मुदा ओहि काज मे एखन दस दिन समय आओर लगतै, एहने एकटा शाँपिंग माँल बनतै, ओहू मे चारि-पाँच वर्ष धरि काज चलतै। रामकुमार दुनू प्राणी खूब खुश छल कि कुसंयोग सँ बडका बेटा ललटुनमा दुःखित पडिगेल। टाइ-फाइड भए गेलैक की कालाज्वर एकसए तीन आ चारि डिग्री धरि बुखार रहए लगलैक। बुखार उतरए केनाम नहि। कखनहु-कखनहुँ आँखिसभ बन्न भए जाइक तँ कखनहु देह पानि-पानि मुदा जिद्दी ज्व्रर जल्दी छुटबाक नामे नहि लैक। ठीकेदार एहनो स्थिति मे
घर खाली करबाक हेतु अंतिम चेतावनी दए देलकै। घर तँ खाल्री कइये देने रहैक, परिसर मे बनल एकटा गिलेबा पर जोडल ईटक घर मे छलैक। मालिक से हो आबि कए कहि गेलैक, मालिक स्वयं
ललटुनमाक मरनासन्न अवस्था देखलकै तथापि कोनो हालत मे परिसर खाली करबाक आदेश दैत चलि गेल।
आइ भोरे परिसर खाली करबाक छलैक मुदा ओ खाली करबासँ विवश छलैक, छौडा एक-दूदिन
जितै की नहि से कहब कठिन छलैक। सांझुक पहर ठीकेदार, मालिक, मलिकाइन सभ एलै एकरा सँ
विनु किछु कहनहि सामान सभ बाहर मे कनैल फूलक गाछ दिस छहर दिबालीक कातमे फेकए लगलैक। रामकुमार-अरहुलिया दुनू प्राणी निहोरा-विनतीसँ जे,” मालिक दू चारि-दिन मे हम
खाली कए देब,एहि जडकाला मे राति मे ई लएकेँ कतए जेबैक। मालिक! मरिजेतैक ललटुनमा। इएह ललटुनमा छल जे अहुँ सभक टहल कए दैत रहए। कहिओ चाह आनए, कहिओ सिगरेट तँ कहिओ पानि। एही जरकाला मे कहियै ललटुनमा ठँढ लागि जेतौक स्वेटर खरीद कए पहिरि लिहे, पएर मे चप्पल लए लेआ पैसो दैत रहियै। मालिक! ओयेह ललटुनमा मरि रहल छैक कहाँ दू टा टको दैत छियेक जे एकटा गोटियो खेतै। मालिक दू चारि दिन रहए दिऔक हमारा खाली कए देब।“ मुदा
ठीकेदार आ मालिक पर तकर कोनो प्रभाव नहि। ललटुनमा जाहि टूटल खाट पर पडल छल, ओहि खाट सहित ललटुनमाकेँ परिसर सँ बाहर गाछक तर राखि देलक। ओकरा सभ केँ संका जे कही मरि गेल तँ आओरो आफत होएत।
रामकुमार मालिक सँ प्रार्थना करैत कलजोरिकए जे” मालिक! एकरा बड कठिन सँ पोसने छियैक, अहाँ सभ गरीबक दर्द ओ ममता नहि बुझैत छियैक। अहुँ सभकेँ बाल-बच्चा अछि मुदा अहाँ सभतँ बच्चाकेँ माएक दूधो नहि पिअए दैत छियैक किएक तँ माएक शरीर खराब भय जेतैक नब
नहिदेखेमेअओतै।बच्चा सभकेँ दाइसभक भरोसे छोडि जतए ततए रंगीन दुनियाँ मे घूमए चलि जाइत छियैक। अपने सभखाली धनकघमौर करैत छियैक। बच्चाकेँ रंग-विरंगक कीमती कपडा-खिलौना गाडी जे चाही से दैत छियैक मुदा असली स्नेह तँ माइये-बाप सेँहोइत छैक से स्नेह देवए अहाँसभ नहीं जनैत छियैक यदि से स्नेह रहितैक तँ ललतुनमा केँएना नहि बाहर कए दितियै, अहाँ सभकेँकनेक बो दरेद नहि अछि मतलब ओतबे काल रहैत अछि जतेक काल अपने लोकनि के काजक जरुरी रहैत अछि। “ मालिक! एकरा राति भरि रहए दिऔक। मुदा मालिक- मलिकाइन पर तकर कोनो प्रभाव
नहि।
सगरो राति रामकुमार दुनू बच्चाकेँ नेने जगले रहिगेल। भगवान-भगवतीक स्मरण करैत जे”, हे भगवान! सभटा दुःख हमरे सन गरीबकेँ देलियै। गाम मे तँ सरो समाज छल बोलो भरोस देलक एहिठाम तँ केओ नहि अपन होइत छैक सभ स्वार्थ मे लागल रहैत अछि,गरीबक दिस ककरो ध्यान नहि। ओहो जे राजकुमार छल से हो पंजाब चलि गेल ,आब हम एखन कतए जाउ, हमरसभक रक्षा करु! रक्षा करु!”भोर होइतहि देरी ललटुनमाक आँखि खुलि गेलैक, साक्षात जेना सूर्य भगवान अपन
प्रकाश पुञ्जसँ रोगकेँ हरण कए लेलथिन। ललटुनमा पानि मंगलकै पीबाक लेल। अरहुलिया-रामकुमारक
बात जेना दिनकर दीनानाथ सुनि लेलथिन। दुनू प्राणीकेँ होश आबि गेलैक। ललटुनमाकेँ गाएक दूध पीआए दवाइ दए देल गेलैक। किछु कालक बाद होश भेला पर ललटुनमा बजैत अछि- “माए एतए
किएक छियैक? मालिक सभ हमरा सभकेँ निकालि देलखिन? माए माथ पर हाथ धए सहला बैत अपन दुःख कहए लगलैक। बीच-बीच मे ललटुनमा आखिँ से हो मुनि लिअए। किछु कालक बाद होश भेला पर ”माए! एतएसँ चल, एहि घरक सोझाँ हम नहि रहब, गाछेक तर मे रहबाक अछितँ बरक गाछ तर च, मुदा एहिठाम आब नहिरह, एकोक्षण हमरा नहि राख एहिठाम। ओहि ज्वरसँ हमरा ई बेशी दुःख बुझाइत अछि,जल्दी चल” रामकुमार सभवस्तु-जातकेँ एकटा बोरिया मे लए, ललटुनमाकेँ कान्ह पर लटकाए धर्म-वृक्षक छयामे रहबाक लेल बाले-बच्चे रामकुमारक दुनू प्राणी एक-टक ओहि मकानकेँ निहारैत विदा भए गेल। नहि जानि, कोन धर्म-वृक्षक छया मे ओ रुकल।
कुमार मनोज कश्यप
जन्म मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। बाल्य काले सँ लेखन मे आभरुचि। कैक गोट रचना आकाशवानी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।
गिरैत देवाल
भालसरिक गाछक कात मे जे एकटा कोठली छै ओहि मे रहैत अछि बैठा- सपरिवार। ओ एकमात्रा कोठली बैठा के दोकान आ घर दुनू छैक - दिन मे दोकान आ राति मे घर। अहल भोरे उठि कमला घाट पर कपड़ा खिचनाई, ओतहि कपड़ा सुखा कऽ दुपहर तक घर लौटनाई, पेᆬर खिचल-सुखायल कपड़ा पर आयरन केनाई - यैह दिनचर्या छै बैठा के। नेना मे हमरा सभ कें परिहास सुझय -'नाम बैठा, मुदा हरदम ठाढ़े'। सत्ये बैठा बेसी काल ठाढे रहैत अछि । बैठा बैसैत छल तऽ मुदा सभटा काज खतम कईये कऽ - चाहे जखन हो।
बैठाक ओ दिनक कार्यस्थल, राति मे विश्रामस्थल मे परिणत भऽ जायल करैक। एक कात खिचबाक लेल मोटरी बान्हल कपड़ाक ढेरी आ दोसर कात बैठा सपरिवार पति-पत्नी आ चारि गोट संतान - तीन टा बेटी आ एक टा बेटा क़ोरपछुआ। कनियाँ रस्ता कात मे चुल्ही पजाड़ि भानस करैक आ बैठा पटिया पर सुतल़ बीड़ी धुकैत, कोनो गीत़ऱाजा सल्हेश किंवा लोरिक़ ग़ुनगुनैत; धिया-पुता सभ आपस मे झगड़ा करैत किंवा खेलाईत। यैह टा क्षण होईत छलैक बैठाक आरामक, पलखति पेबाक़ एक क्षण के लेल सभटा दिन-दुनियाँ बिसरि जेबाक ।
बैठा डाँड़ तोरि मेहनति करैत छल जे दू पाई संजोगि बेटी के वियाह करा सकत । उपरा-उपरी तऽ छैहे तीनू बेटी। मुदा एहि हाड़-तोड़ मँहगी मे कतऽ सँ कऽ सकत बचत आ ताहि पर घड़ियालक मुंह सन लड़का बला के मुंह़ई चाही तऽ ओ चाही। बैठा लड़का बला ओहि ठाम सँ निराश घर घुमि आबय। लागई कोन जनम के पाप केलक जे बेटी के बाप बनल। गाम मे लोक सभ वुᆬटिचाल करैक़क़नियाँक मुंह हरदम तुम्मा लटकल़बेटी, निरीह मनस्ताप मे डुबल़क़ी करतैक बैठा ? अपराध-बोध सँ भड़ल़मुदा एहि सँ की भऽ सकैछ? समस्याक निदान तऽ किन्नहु नहि हेतैक ।
एक दिन भोरे-भोर सौंसे गाम गनगना गेलै जे बैठाक बड़की बेटी ककरो संग पड़ा गेलै। बैठाक कनियाँ-बच्चा सभ ओंघरिया मारै। गामक सभ लोक बेरा-बारी जुटऽ लगलै। कोई कहई - 'गामे-गाम छान माड़ - पड़ा कऽ आखिर जेतै कतऽ' ; तऽ ककरो कहब रहै जे पुलिस मे नालिस करा। बैठा स्थितप््राग़्य बनल रहल -- किंकर्तव्य विमूढ। मोन कहलकै - ' तोरा सामर्थ्य नहि छलहु तऽ अपने अपन रस्ता चुनि लेलकै छौंड़ी। जतऽ रहै, सुख सँ रहै। लोक के की नीको मे दुसतहु आ अधलाहो मे।'
आँखि मे चमक आबि गेल छलै बैठा के । बच्चा सभ कन्ना-रोहट पसारने छलैक़ओम्हर कनियाँ के चट्-चट दाँती लगैत छलै । लोकक भीड़ बढले जा रहल छलै ।
मनोज झा मुक्ति
इज्जतिक खातिर
एहि लोकप्रिय कार्यक्रम ’मैथिली गुञ्जन मे’ बहुतोलोकेक जिवनक घटना सुनैत-सुनैत आई हम अपना जीवन मेँ वितल या कि कहु विति रहल घटना लिखिक, पठावि रहल छी ई आशा लक जे अवश्य प्रशारण क,देब। अपन मोनक बोझ कम करब आ मैथिल समाज मे व्याप्त एहि चलन प्रति सम्पूर्ण समाज क लेल हमर ई प्रश्न अछि।
हमर नाम सुची अहि। हमर घर सागरमाया अञ्चल मे पडैत अछि। हम(3) तीन भाय-बहिन छी।(2)टा भाय आ हम बहीन मे एसगरे छे। बाबुजी हमर एकटा सरकारी कर्मचारी छथि आ माँ गृहिणी। हमर जन्म 2030 साल, आइ स 33 वर्ष पहिने भेल। बाबुजी सरकारी नोकरिहारा आ एसगर बहिन होयबाक नाते घर-परिवारक सब क्यो बड मानैत छलयि हमरा। बाल्य काल बहुत दुःखमय रहल हमर। हम सब अर्थात माँ,दुनू भाय आ हम अपना गामे मेँ रहैत छलहुँ आबाबुजी ओतही जत-जत हुनकरपोस्टिंगहोइत। हमरा गामे मे हाइस्कूल होयबाक कारणेँ हमारा सब भाय-बहिन स्कूल संगे जाइत-अवैत छलहुँ। मैट्रिक हम बहुत नीक जका पास कयलहुँ। मैट्रिकक बाद गाम स तीने किलोमीटर पर रहल एकटा काँलेज मे हमर एडमिशन भेल।
काँलेज मे लडकीक संख्या ओते बेसी नै त कमो नै छलै। हम I.A. First year के परिक्षा
देलहुँ आ कनि दिनक बाद रिजल्ट सेहो आयल, बहुत नीक नम्बर आयल छल हमरा।
हमर बाबुजी पढल-लिखल आकी कहु बुझनिहार होयबाक कारणे हमरा स्वतंत्र जका छूट
भेटल छल कोनौ अंकुश नहि। एहि तरहे हमारा I.A. फर्स्ट डिविजन सँ पास कयलहुँ 2043 साल मे। आब B.A. मे पढबाक लेल हमरा विराटनगरक महेन्द्र मोरंग केंपस मे
एडमिशन भेल। ओना विराटनगर मे त हमरा अपन परिवारक केओ व्यक्ति नइ छलयि हँ,
हमर मामा-मामी ओतइ रहैत छलयि। मामा एकटा फैक्ट्री मे मैनेजर छलयि। हम हूनेक सब संगे रहेत छलहुँ। काँलेजक हमरा क्लास मे हमरा अलावा एकटा आर मैथिल लडकी छली- पुनम। ओना लडका सब त बहुत छल मूदा एकटा लडका अरुण यादव बहुत सभ्य
आ पढाइयोमे निक छल। ओना हमरा ककरोस ओते मतलब नइ रहैत छल। मतलब रहैत छल त मात्र अपन पढाइ सँ। हँ साहित्य मेँ हमर रुची होयबाक कारणे कविता सम्मेलन
सब मे हमर जायब मामा के कनिको नीक नइ लगैत छलनि। एहि तरहे हम फस्ट इयर
नीक नम्बर स पास कयलहुँ कहियो शाम चलि आयल बेर मे वा आवश्यक नोट सब हमरा अरुण सहयोग क दैत छलयि। अरुण हमर बहुत नीक मित्र भ गेलाये। हमरा दुनू गोटाक बीच आर कोनो तरहक सम्बन्ध नइ छल, मुदा सम्बन्ध त मात्र एकटा असल मित्रक। अरुण कहियो काल हमरा डेरा पर अबैत छलयि जे हमरा मामा अरु मामी के
कनिको निक नइ लगैत छलनि। मामी आब एकटा कोनो छोटो बात मे अरुण लगाक उलहनक रुप मे बात कहि दैत छलयि। एकदिन भोरे हमर बाबुजी विराटनगर पहुँचलयि आ हमरा पढाइ-लिखाइ आर सब बात-व्यवस्था सम्बन्ध मे पुछलयि। हम-सब बहुत नीक कहलियैन। बाबुजी ताइके बाद हमरा अरुणक सम्बन्ध मे पुछलयि- के छीयै ई अरुण यादव। ओकरा स केहन सम्बन्ध छै तोरा? बाबुजी के बहुत सरल रूप मे हम कहलियैन- अरूण यादव हमरे क्लासक एकटा सभ्य आ लगनशील विद्धार्थी छियै, आ हमर बहुत नीक
मित्र। बाबुजी अइस बेसी हमरा नइ पुछलयि आ- “निक जका पढब,सब विचार करैत.” कहिक ओहि दिन चलि गेलयि। बाबुजी त चलि गेलायि मुदा हमरा मोन मे एकटा मामा-मामी आ बाबुजी प्रति कनि केनादोन सोचाय। लागल। हम अरूणक मात्र एकटा मित्र
मानैत छियै आ ई सब एहन शंका किए क रहल छयि। फेर हम अपना के सामान्य बनब के प्रयाश कर लगलहुँ। पहिनही जका काँलेज जयबाक हमर दिनचर्या शुरु भेल। हमारा आब अरुण स बहुत कमे बजैत छलहुँ। पहिने त ओना हमारा कहयो हम नइसोचैत
छलहुँ, मुदा आब हमरा कखन काँलेज जाइ आ अरुण के देखैत रही जका होइत
छल। अहिना शुरु-शुरु मे अरुण प्रति कोनो भावना नइ आयल हमरा मोन मे मामा-मामी
जबरदस्ती कहिक अरुण प्रति हमरा सोचबाक लेल विवश क देलयि। B.A. सेकेण्ड इयर अर्थात फाइनलके परीक्षा होब मे मात्र चारिमास बाँकि छल मुदा आब हमरा पढ मे कनिको मोन नइ लगैत छल। आखिर एक दिन हम अपना-आपके नइ रोक सकलहुँ आ अरुण के कहि देलियै जे- हम आहाँ सँ प्रेम करैछी। अरुण एकदम चूप-चाप छल। हम
पुछलियै- कि हम अहाँके पसन्द नइ छी? अरुणक बोल फुटल- नइ-नइ से बात नइ छियै। आहाँ सब तरहे बहुत नीक छी, हम अहाँक एही प्रस्तावके हृदय सँ स्वागत करैत छी। मुदा डर अछि हमरा अइ बात के जे हम यादव छी, आहाँ ब्राम्हण छी,की हमरा आहाँक विवाह संभव छीयै? अरुणक एही प्रश्न के कोनो उत्तर हम नइ देलियैक। हमरा मोन मे ई पूरा विश्वास छल जे अखन के जमाना मे जाति-पाति कोनो बडका कारण
नइ छियै, हम अपना बाबुजी के कहुना मना लेबै। परीक्षा नजदिक भेलो पर हम दुनु गोटे
ओते नइ पढि रहल छलहुँ जतेक पढबाक चाही। प्रेम छुपाओल नइ जा सकै छई, स्याह
हमरो सब संगे भेल। मामा-मामी बाबुजी के खबर केलाखिन्ह, बाबुजी विराटनगर आबिक
हमर स समान लइत ,हमरा नेने गाम चलि औलायि। हमारा बाबुजी के कह चाह लियैन जे आब मात्र 2 मासक बाद हमर B.A. फाइनल परीक्षा अई। मुदा बाबुजी कोनोबाते हमर सुनबाक फेरी मे नइ रहथि। बस दस दिनक भितर इण्डियाक एकटा गाम मे हमर विकाह ठिक क देल गेल। हमरा नइ चाहितो हमर विवाह करादेल गेल। हमर आ अरुण दुनु गोटेक सब सपना चकनाचुर भ गेल। चाहियोक किछु नइ कर सकलहुँ। हम त आब
भाग्य मे ब्याह लिखल सोची कहुन अपन नयाँ जीवन के स्विकारबाक लेल बाध्य भ
गेलहुँ। विवाहक पाँचे दिन पर द्विरागमन भ गेल। अपना सासुर गेलहुँ। सासुर आयल
जे उमंग एकटा नयाँ विवाहिता मे होइत छै वा अपन नइहर छोडका लेम जे दुःख होइत छै से कनिको हमरा नई बुझायल, किया त हम अपना आपके मात्र एकटा कठपुतली
बुझैत छलौ मात्र कठपुतली। विवाहक छः दिन भेलाक बादो हमरा हमर पति नइ टोकलथि, हमरा लग हमर पति औलयि। आइये हम ओइ मनुख्यक के निकजका देखि रहल छि जकरा संग हमर जिवनक प्रत्येक साँस बन्हागेल अछि। बर पलंग पर बैसलयि। ओहो चुप आ हमहुँ चुप। दुनु गोटे चुपे-चुप बैसल ओराति बितिगेल। प्रातःभिने राति मे फेर औलयि, ओइदिन ओ दारु पिबिक आएल रहथि। दारु स हमरा एकदम घृणा लगैत छल मुदा हमारा एकहुँ रति हुनका मना नइ क सकलियैन। बेगर किछु बजने हम सब
संगही सुतलहुँ। प्रातःभिने पाँच बजे हमर बारह उठिक दिल्ली चलि गेलयि। दिल्ली मे ओ कम्प्यूटर इंजिनियरिंग क रहल छलयि। द्विरागमनक (3) तीन मासक बाद हमर बाबुजी क अयलाक बाद पता चललनि जे ओ नाना बन, बला छयि। समय अपना समयसँ विति रहल छल। हम एकटा बच्चाक माय बनलहुँ। सासुर मे सउस, ससुर सब गोटे बड़ा मानैत छलयि हमरा। बच्चा भेलाक एक ही मासे म हमर बाबुजी अपन गाम ल ऎलयि। हमर आठ मास रहलाक बाद ससुर विदागरी कराक हमरा सासुर ल गेलयि। तीन वर्ष वितिगेल छल हमरा बारह के दिल्ली गेला। एक दिन हमर ससुर इमरजेंसी तार पठाविक हमरा वर के गाम बजौलखिन्ह। गाम एलाक बाद राति मे हमरा दुनु गोटे मे परिचय-पात्र भेल। एतेक दिन धरि ने कियो सब किछु कहलथि आ नइ हम ककरो बतेलियै, हम त मात्र
एकटा हड्डी आ माउसक बनल मुर्ति आ की कहु रोबोट जका छलहुँ। ओइ राति मे हमर पति सब किछु हमरा बतौलयि। ओ कहलयि-देखु हमारा आहाँ स विवाह करबाक पक्ष मे
नइ छलहुँ, हमर त दिल्लीए मे एकटा लडकी संगे प्रेम करित छलौ जे हमरा बाबु-मायेक बुझल रहै। मुदा सब किछु बुझितो ओ जातिक कनियाँ आ दहेजक लेल जबरदस्ती हमर
विवाह आहाँ सँ कए देलयि। आहाँ स भेल विवाह हम मात्र अपन बाबुक इज्जति बचाब लेल केने छलहुँ। विवाहक बाद हम दिल्ली जाक ओही लडकी स वियाह क लेलहुँ, जकरा हमारा प्रेम करैत छलियै, हम चाहितोमे आहाँ स प्रेम नइ क सकेछी हँ मात्र आहाँ हमर कनियाँ छी आ आहाँक बच्चाक बाबु हमही छी स्याह टा हमारा कहि सकेछी।“ हम हुनका
किछु नइ कहलियैन आ ओहिना बच्चाक संग कहियो नैहर- कहियो सासुर करैत हमर जीवन वितैत छल। अखन दू वर्ष सँ एकटा वोर्डिङ स्कूल मे हम पढाबि रहल छी आ शेष अपन जीनगी गुजारि रहल छी।
एहि तरहे जहिया अरुण स हम प्रेम बड करैत छलहुँ जबरदस्ती ताना मारि-मारि क हमरा अरुण संग प्रेम करबाकलेल विवश क देलक। जाति आ समाजक खातिर हमर जीवनक डोरी ओइ खुट्टा मे बान्हि देल गेल जे लडका पहिनही स एकटा दोसर लडकी संग प्रेम करैत छल आ लडका के नइ चाहितो जाति आ समाजक डर स चार लाख
दहेज लक हमरा सँ विवाह कए देल गेलै। अइमे घाटा कोन समाजके भेलै वा फायदा कोन समाजके भेलै। घाटा आ फायदा त जकरा जे होऊ मुदा हमर जीवन अभिशप्त बनादेल गेल हमरा बाबुजी आ हमरा साउस- ससुर द्वारा। नइ अपने प्रेम करए बला मनुख्ख सँग जिवन विताव सकलहुँ आ नइ अपना पतिक जिवने मे समाहित भ सकलौ। ई दोष ककरा देल जाय, हमर प्रश्न सब समाज स अछि। उतरो चेहे जे अबै मुदा हमर जीनगी-----, हमर जीनगी त-------।
३. पद्य
३.१. सतीश चन्द्र झा-सृजन
३.२. अमरेन्द्र् यादव-आह्वान / कल्प ना आ यथार्थ
३.३. आशीष अनचिन्हार-गजल
३.४.पंकज पराशर- -फैसलाबाद
३.५. विनीत ठाकुर-अभ्यागत
३.६.निशाप्रभा झा (संकलन)-आगां
३.७. हिमांशु चौधरी-आतङकक राजकुमार
३.८. ज्योति-प्रतीक्षा सऽ परिणाम तक
३.९. दयाकान्त-पाँच लाख बौआक दाम
सतीश चन्द्र झा
सृजन
बुन्द बरखा कँे उतरि क’
देह के सगरो भिजेलक।
तप्त मोनक आगि नहि
तैयो कहाँ कनिओं मिझेलक।
जड़ि रहल छल गाछ रौदक
धाह सँ आँगन दलानक।
छल केना सुड्डाह भ’ गेल
फूल गेना, तरु गुलाबक।
निन्न सँ जागल कमलदल
बुन्द पड़िते दृग उठौलक।
स्नेह सँ जल बूँद कँे सब
निज तृषित उर सँ लगौलक।
प्रस्फुटित नव पंखुरित
किछु बुन्द आंचर मे नुकौलक।
पीबि जल अमृत धरा कँे
जीव जीवन कँे बचैलक।
जड़ बनल किछु बीज कँे
जखने भेलै स्पर्श जल सँ।
अंकुरित भ’ गेल बंजर
भूमि के चेतन अतल सँ।
अछि मनोरम दृष्य सबकेँ
छै केहन आनंद भेटल।
हर्ष मे डूबल प्रकृतिक
नृत्य मे जीवन समेटल।
गाछ पर बैसल केना अछि
खग बना क’ स्नेह जोड़ा।
छी एतय हम आई असगर
नहि पिया छथि,सुन्न कोरा।
की केलहुँ हम स्नेह क’ क’
द’ देलक किछु घाव जीवन।
नीक छल दुनियाँ अबोधक
पूर्ण जीवन, तृप्त जीवन।
घाव जँ रहितै शरीरक
फोरि क’ कखनो सुखबितहुँ।
तूर के फाहा बना क’
घाव पर मलहम लगबितहुँ।
देत के औषधि बना क’
अछि चोटायल घाव मोनक।
के मिटायत आबि हमरो
नेह सँ संताप मोनक।
द्वारि के पट बंद कयने
छी व्यथित हम आबि बैसल।
आइ अबितथि पिया, रहितहुँ
अंक मे आबद्ध प्रतिपल।
ठोर पर ठहरल सुधा जल
आइ ‘प्रियतम’ के पियबितहुँ।
प्रज्ज्वलित देहक अनल किछु
स्नेह के जल सँ भिजबितहुँ।
रक्त सन टुह-ंउचयटुह कपोलक
मध्य चुंबन ल’ लितथि ओ।
बाँहि के बंधन बना क’
बाध्य हमरो क’ दितथि ओ।
तेज किछु बहितै पवन जँ
ल’ जितय आँचर उड़ा क’।
भ’ जितहुँ निर्लज्ज , भगितहुँ
नहि हुनक बंधन छोरा क’।
तोड़ि क’ सीमा असीमक
द्वारि पर जा निन्न पड़ितहुँ।
त्यागि क’ देहक वसन नव,
स्वर्ण आभूषण हटबितहुँ।
क्षण भरिक अवरोध क्षण मे
क’दितहुँ अपने समर्पण।
झाँपि आचरि मुँह करितहुँ
देह कँे निष्प्राण किछु क्षण।
प्राण सँ प्राणक मिलन मे
अछि केहन जीवन अमरता।
होइत तखने देह मे किछु
‘बूँद अमृत’ सँ सृजनता।
के करत वर्णन क्षणिक ओ
प्राण मे अनुभूति नभ कँे।
शब्द सँ बांन्धब असंभव
ओ घटित आनंद भव के।
मोन मे उतरल कहाँ अछि
किछु अभिप्सा काम बोधक।
अछि हृदय मे आइ हमरो
कामना मातृत्व बोधक।
बुन्द जे ठहरल उतरि क’
जीव मे जौं होइत परिणत।
अपन देहक रक्त, मज्जा
दैत रहितहुँ दान मे नित।
स्नेह सँ गर्भस्थ शिशु कँे
धर्म मानवता सिखबितहुँ।
स्त्राी जातिक एहि जगत मे
मान राखब , नित पढ़बितहुँ।
अछि जगत मे पूज्य नारी
देवता के बाद दोसर।
कष्ट सँ जीवन बुनै अछि
गर्भ मे निज राखि भीतर।
किछु सजावट लय बनल
अछि वस्तु नारी नहि जगत मे।
नहि करब अपमान कहियो
बनि पुरुष दंभी अहं मे।
अंक मे नवजात शिशु कँे
दूध स्तन सँ पिया क’।
पूर्ण मानव हम बनबितहुँ
झाँपि आँचर मे जिया क’।
होइत तखने जन्म हमरो
किछु सफल परिपूर्ण जीवन।
जौं सृजन नहि भेल तन सँ
व्यर्थ अछि अभिशप्त जीवन।
छै केहन मोनक अभिप्सा
लालसा जग मे सृजन कँे।
दैत छै के धैर्य एकरा
नहि बुझै छै कष्ट तन केँ।
छथि अचंभित देवतो गण
देखि नारी के समर्पण ।
जी रहल जीवन बिसरि क’
गर्भ के रक्षा मे सदिखन।
गर्भ मे नौ मास रखने
अडिग बैसल असह् दुख मे।
द’ रहल छथि अन्न भोजन
देह सँ निज मातृ सुख मे।
हर्ष मे अछि मग्न ममता ।
छै तपस्या पुत्रा स्नेहक।
साधना मे लीन अछि ओ ।
छै केहन हठयोग देहक।
अंत क्षण साक्षी विधाता !
मोन मुर्छित, दर्द तन मे।
वेदना सँ प्राण व्याकुल
अछि केहन पीड़ा सृजन मे।
सुनि अपन नवजात शिशु के
ओ पहिल अनमोल क्रंदन।
धन्य ममता ! दुख बिसरि क’
हँसि उठै छै फेर तन मन।
अंकुरित ओ बीज कहियो
भ’ उठै छै गाछ भारी।
छाँह ममता के बनै छै,
प्राण के आधाार नारी।
पैध होइते शिशु केना ओ
किछु बनै छै दुष्ट दानव।
अंध मोनक वासना में
होइत अछि पथ भ्रष्ट मानव।
बुझि सकल नहि गर्भ मे ओ
भावना नारी हृदय केँ।
बनि असुर निज आचरण सँ
क’ देलक लज्जित समय कँे ।
होइत अछि नारी ‘बलत्कृत’
अछि पुरूष ओ के जगत कँे ?
गर्भ नारी सँ धरा में
जन्म नहि लेलक कहू के ?
छी! घृणित कामी, कुकर्मी
छै पुरूष पाथर केहन ओ।
यंत्राणा दै छै केना क’
आइ ककरो देह कँे ओ।
भरि जेतै ओ घाव कहियो
देह नोचल , चेन्ह चोटक।
जन्म भरि बिसरत केनाक’,
ओ मुदा किछु दंश मोनक।
मोन नहि भोगल बिसरतै,
ज्वार पीड़ा के उमड़तै ।
लाल टुह टुह घाव बनिक
जन्म भरि नहि आब भरतै।
पढ़ि लितय जौं भाग्य ममता
अछि अधर्मी ई जगत के।
नहि करत ओ प्राण रक्षा
पेट मे बैसल मनुख के ।
जन्म द’ क’ ओहि पुरुष के
अछि कहू के भेल दोषी ?
देव दोषी ? काल दोषी ?
गर्भ अथवा बीज दोषी ?
छै नियति नारी के एखनहुँ
हाथ बान्हल, ठोर साटल।
के देतै सम्मान ओकरा
छै कहाँ भव धर्म बाँचल।
ग्रन्थ के उपदेश ज्ञान क
अछि जतेक लीखल विगत मे।
भेल अछि निर्माण सभटा
मात्रा नारी लय जगत मे।
क’ सकत अवहेलना नहि
दृष्टि छै सदिखन समाजक।
नहि केलक विद्रोह कहियो
धर्म छै बंधन विवाहक।
जन्म सँ छै ज्ञान भेटल
धर्म पत्नी के निभायब।
स्वर्ग अछि पति के चरण मे
कष्ट जे भेटय उठायब।
ध्यान, तप, सेवा, समर्पण
जन्म भरि नहि बात बिसरब।
प्राण नहि निकलय जखन धरि
द्वारि के नहि नांघि उतरब।
नहि हेतै किछु आब कनने,
शक्ति चाही खूब जोड़क।
नोर मे सामथ्र्य रहितै...
नहि रहैत ओ ‘वस्तु भोगक’।
छीन क’ ओ ल’ सकत जँ
किछु अपन सम्मान कहियो।
चुप रहत भेटतै केना क’
दान मेे अधिकार कहियो ।
अमरेन्द्रध यादव
आह्वा न
हे हउ दिना–भदरी,
तूँ दुनू भाय
चाहक सँग भाङ्ग पिबिकऽ
भरिरहल छह पन्जापबमे
सरदारक बखारी ।
आ एतय तोहर घरमे
कोनटा लग
कानिरहल छह
तोहर पाँच मनक कोदारि ।
हे हउ कृष्णाकराम–सोबरन,
तूँ दुनू भाय
साउदीक बालू–पहाडपर
रोमिरहल छह हेँजक हेँज उँट
आ एतय सुन्नछ लगै छह
तोहर दौरीबथान
अर्ना भेल जाइ छह
तोहर अनेर भैँस ।
हे हउ भाय सलहेस,
तूँ परदेशक दरबज्जाकपर
दैत छह पहरा
ठोकैत छह सलामी ।
आ एतय
तोहर मायक आँचरमे
मुदइ गडौने छह नजरि
हे हउ दिना–भदरी,
हे हउ कृष्णाहराम सोबरन,
हे हउ भाय सलहेस,
बाँझ भेल जाइ छह तोहर चौरी चाँचर,
सुन्नभ भेल जाइ छह गोहाली बथान
टुगर लगै छह तोहर देश ।
आबह घुरिकऽ
जल्दिु आबह घुरिकऽ
अपने गामके बनेबै पन्जािब
अपने समाजके बनेबै कतार
अपने देशके बनेबै अमिरका ।
आशीष अनचिन्हार
गजल १७
किछु विरोधाभास विचित्रे बुझाइत छैक
पेटक आगि पानि सं नहि मिझाइतछैक
राम नाम सत्त थिक मुदा समसाने धरि
लोक राम सं बेसी रावने लेल घुरिआइत छैक
बम गोली छुटैत छैक एना भए कए
लोक कनिकबो नहि घब्राइत छैक
गजल १८
एना हमरा दिस किएक देखैत छी अहाँ
लाल टरेस आखिँए किएक गुम्हरैत छी अहाँ
कोन खराप जँ अहाकँ करेज पर लिखा गेल हमर नाम
जँ मेटा सकी तँ मेटा सकैत छी अहाँ
पीअर रौद मे नाचि रहल उज्जर बसात अनवरत
उदास सन गाम मे केकरा तकैत छी अहाँ
पानि जेना बचए तेना बचाउ एखन ,हरदम
जल-संकटक समय मे किएक कनैत छी अहाँ
धेआन सँ परिवर्तन देखू चोरबा बदलि लेलक समय
राति भरि जागि कए दिन मे सुतैत छी अहाँ
गजल १९
एना जे धड़ के नेड़ा बैसल छी
जिनगीक अर्थ के हेड़ा बैसल छी
नहि होइन्ह अन्हार हुनक कोबर मे
तँए अपन करेज जरा बैसल छी
उराहल इनारक पानि सँ कब्ज होइए
गंगोजल के सड़ा बैसल छी
भेटबे करत केओ ने केओ कहिओ
एही उम्मेद पर अपना के जिया बैसल छी
करोट फेरब के परिवर्तन कहल जाइए
जखन की आत्मे के सुता बैसल छी
(अगिला अंकमे जारी)
पंकज पराशर
फैसलाबाद
घुरि आऊ बाऊ, घुरि आऊ
एहि बाट सँ क्यो आइ धरि
नहि पहुँचल अछि फैसला धरि
बाट-घाट केँ छेकि कए बैसल पंच-समूह
किन्नहहु नहि छोड़त बाट
नहि बन्न करत अवघात
आ हरान भ’ कए घुरब अहाँ
तँ पहिनहि किएक नहि घुरि जाइत छी बाऊ ?
फैसलाक लेल जिद कयनिहार सब आब कहाँ ?
मोकदमा पर मोकदमा
गाम सँ ल’ कए दुनिया भरिक पंचायत मे
मुदा फैसलाबादो मे फैसला कहाँ ?
अटारिये सीमा सँ हमर पछोड़ धयनेँ
वृद्वा सबहक समूह-
रेड क्लिफ...रेड क्लिफ...बुदबुदाइत
चकित भेल थकित स्वमर मे
अश्रुविगलित भेल कहैत रहलीह
घुरि आऊ बाऊ, घुरि आऊ
एहि ठाम सँ कोनो बाट फैसला धरि
नहि पहुँचल अछि आइ धरि
दुनिया भरिक छड़ीदार आ मरड़ लोकनि
कोर्ट-कचहरी आ शिखर-सम्मेचलनी ओकील सब
फैसला धरि पहुँचबाक पूर्वाभ्याकसे टा क’ कए
रहि जाइत छथि
तारीख-पर-तारीख करैत असोथकित विश्व समूह
परतारल जाइत रहल-ए कइक सदी सँ
एखन नहि बाद मे
फैसला ... बाद मे
सब बेर ओहिना फैसलाबाद मे
मंटो भाइक कथा सँ एक्केम बेर चेहाइत पुछैए
पीिड़त-क्षुधित-उत्पीैिड़त विशाल जन समूह
किएक हमरा लोकनिक फैसला बाद मे ?
अहाँक फैसला एडविना केर काॅफी सन मीठ
माऊंटबेटनक दृढ़ता सन अडिग
मुदा टोबा टेक सिंहक बेर मे किएक
फैसला...... बाद मे?
पुस्तट-दर-पुस्त बीति जाइत छैक बाऊ
मोकदमा लड़निहार सँ ल’ कए न्याीयाधीश धरिक
मुदा फैसलाक बेर मे कर्फ्यू लागि जाइए
शोणितक पमारा बहय लगैए
एक्कोक टा काग-पंछी नहि देखार पड़ैए नगर मे
आ फैसला आगूक लेल टारि देल जाइए
नीति सँ अनीति सँ अनेक कूटनीति सँ
उताहुल जन-समूह केँ राजी क’ लेल जाइए
आ आइ-कािल्हज केर अनंत-श्रृंखलाक फांस मे
शनै: शनै: फैसला विलीन भ’ जाइए
जिन्ना केर फैसला सब लियाकत केँ नहि पसिन्ना पड़लनि
लियाकतक हत्याा भेलनि
जुल्फिकारक फैसला जिया-उल-हक केँ अनसोहाँत लगलनि
भुट्टो केँ फाँसी भेलनि
एकक फैसला दोसर केँ अनसोहांत लगैत रहतै
आ हत्यालक अनंत श्रृंखला अनवरत चलैत रहतै बाऊ
एहना मे ककर बात के सुनतै?
फैसला रहतै फैसले ठाम
मुदा गामक-गाम अनेर भ’ जेतै
अहाँ किएक नहि सुनैत छी हमर हाक?
किएक नहि धरैत छी अपन गामक बाट?
डेगार भेल बढ़ले जा रहल छी
फैसलाबाद
...??
विनीत ठाकुर, मिथिलेश्वर मौवाही, धनुषा ।
अभ्यागत
कतेक देरऽसँ ठाढ छैथ द्वार पर अभ्यागत
सिदहा दऽ कऽ घरनी करु हुनका स्वागत
प्रचन्ड गर्मिमें भित धेने भेल लहालोट छै
तन पर गुदरी हुनकर परल कतेक छोट छै
अपन दुःख आ पिड़ाके ओ छातिमे दवाकऽ
टहल लगावे सगरो गामे–गाम जाकऽ
जन्में की कर्मसँ हुनका कोना कहबै पछुवाएल
कपटीके जालमें हुनक जीवन जे ओझराएल
अषाढक रौदी जका पैरमे फाटल बेमाई छै
समाजेनै देखतै तऽ ककरा गल दबाई छै
निशाप्रभा झा (संकलन)
विवाह क गीत
कोना वियाहब धीया ओ पिया, कोना वियाहब यो{(2)}
वरक भाव आकाश चढल छई,
दू अच्छर नहि पढ्ल-लिखल छई।
माँग करए फटफटिया यो पिया, कोना वियाहब यो, कोना विहायब धीया ओ पिया, कोना वियाहब यो। {(2)}
वरक बाप केहन छथि बोढ्ला,
तिलक माँगे सोनक मोहरा,
वरक बाप लटपटिया यो पिया, कोना वियाहब यो,
कोना वियाहब धीया ओ पिया, कोना वियाहब यो।
कोनो उपाय नहि हमरा सुझईए,
बेटीक देखि जग झाझर लगइए,
बेटीक वियाह झनझटिया ओ पिया, कोना वियाहब यो,
कोना वियाहब धीया यो पिया, कोना वियाहब यो।{(2)}
(अगिला अंकमे)।
हिमांशु चौधरी।
आतङकक राजकुमार
आइकाल्हि भोर – साँझ
हमर गाम असुरक्षित अछि
भोर मे शांति बलात्कृत
साँझ मे सुरक्षा अपहरित
शांतिक लेल अष्टजाम
सुरक्षाक लेल महायज्ञ
पद्धतिसन भ गेल अछि।
कखनो लक्ष्मी भोकाडि पाडैत अछि
कखनो सावित्री गोहारि मङैत अछि
क्षणमे पार्वतीक हरण होइत अछि
गामक देवता शांति-शांति कहैत छथि
गामक गिद्धसभ क्रांति-क्रांति कहैत अछि।
केहन कोलाहल केहन मिथकीय परम्परा आतङ्के-आतङ्क
गामक मन्दिर,मस्जिद आ चर्च कोलाहल,
द्विविधा आ मिथकीय परम्पराक आश्रय स्थल बनि
सिर्जना,चिंतन आ सुरक्षा केँ बदी बना पौरुख,
गौरव आ महत्वाकाङ्क्षाक घडारी केँ चारुदिससँ भाला,
गडाँस ल क घेरि लैत अछि। भाला पौरुखक पेट मे
गडाँस गौरवक छाती मे आतङ्कक हृदय एतबो मे नहि जुडाइत अछि
डिहबारक गाछ मे सिर्जना, चिंतन, महत्वाकाङ्क्षा ज्ञान,
भाव आ इच्छा के बान्हि आरासँ चीरैत अछि
सूर्योदयसँ सुर्यास्त धरि अहङ्कार चिचिआइत अछि
विजयोत्सव! विजयोत्सव!!
सिर्जना, चिंतन महत्वाकाङ्क्षा, ज्ञान, भाव,
इच्छा पौरुख आ गौरवक हत्या सँ शोकायल अछि हमर गाम।
एक-एकटा फूल झडैत जा रहल अछि
जकर कतहु नहि चर्चा होइत छैक
गामक समवेदना हरेक दिन कष्टप्रद यात्रा क रहल अछि
ई दृष्टिभ्रम नहि समय हमर गामकेँ बेर-बेर ठकलक अछि
विध्वंशक गर्जन आ तर्जन से हो भ रहल अछि
शोकाएल हमर गाम मे एक बेर फेर
विवेक आ आस्थाक डिबिया बार पडतैक
ओकर इजोत सँ पडाएति ---- आतङ्कक राजकुमार।
ज्योति
प्रतीक्षा सऽ परिणाम तक
बहुत आवेग छल भरल भीतर
चेहरा पर मात्र किछु लकीर
प्राण रक्षाक याचना करैत
भऽ गेल छल एक फकीर
पौरूषसऽ राज करैवला कर्मवादी
आहि ताकि रहल छल तकदीर
एक शून्यता भविष्यक प्रति
सबकिछु बुझाइत अन्कर हाथमे
तैयो हिम्मत हारक कायरता नहिं
चमत्कािरक विश्वास छल साथमे
पालनकर्ता दुष्टक विनाश करता
अपन कर्त्तव्यपथ पर चलैके लाथमे
मेघक ताण्डव सऽ त्रस्त प््राथकृति
अवतारक राति छल बड कारी
अष्टम सन्तानक रस्ता व्यग भऽ
ताकि रहल छल मोन केने भारी
तूफानक कोलाहलक बीच गूंजल
बाल कृष्णक मायावी किलकारी
दयाकान्त
पाँच लाख बौआक दाम
नहि कमाईत छैथ फुटल कौड़ी
नहि रोजगारक कोनो ठेकान
दस बरख सॅ धेने छथि दिल्ली
टाका आबै छैन अखनो गाम
बाबु सुद-दरसुद जोरी के
लगबैत छथिन बौआक दाम
पाँच लाख बौआक दाम ।
कहैत छथि एम.बी.ए. केने छी
नहि चाही सरकारी नोकरी, नाम
एम.एन.सी. मे नोकरी करैत छी
रखैत अछि कम्पनी सबटा ध्यान
प्रवन्धन के कोनो गप्प करू ते
मुँह बेता जेना परम अकान
पाँच लाख बौआक दाम ।
घटक देखी के बाप बजैत छथि
बड़का हाकिम हमर संतान
गाड़ी-बंगला नोकर-चाकर
सब चीजक ओतय ओरियान
आॅफिस मे बड़का-बड़का हाकिम
करैत रहैत छैक बौआके सलाम
पाँच लाख बौआक दाम।
अबिते लगन घटकक आसमे
मखमल जाजीम सोभय मचान
सिल्क कुर्ता संग परमसुख धोती
सजि-धजि बैसथि बाप दलान
जखन देखु भरल रहथि छैन
चाहक संग खिलबट्टी मे पान
पाँच लाख बौआक दाम।
अहि लगन मे लुल्हा लंगड़ा
नहि बाँचल कियो बहिर अकान
पैंतीस बीतल चढि गेल छत्तीस
नहि सुनैत अछि कियो कान
हमर सपुतक षुभ लगन मे
सब अप्पन बनि गेल अछि आन
पाँच लाख बौआक दाम।
दयाकान्त
पाखलो
मूल उपन्यास : कोंकणी, लेखक : तुकाराम रामा शेट,
हिन्दी अनुवाद : डॉ. शंभु कुमार सिंह, श्री सेबी फर्नांडीस.मैथिली अनुवाद : डॉ. शंभु कुमार सिंह
पाखलो- भाग-२
शालीकेँ होस आबि गेलैक। एखन धरि साँझ परि गेल रहैक। पूरा जंगलमे अन्हार व्याप्त भ’ गेल रहैक।
एहि अन्हारकेँ देखि शालीकेँ बुझाइक जे जेना फेर ओकर दम निकलि जेतैक। ओकरा देह पर ओकर अपन कोनोटा नूआ नहि रहैक। मुदा ओकरा देह पर किछु फाटल-चिटल नूआ राखि देल गेल रहैक।
ओकरा देहक नीचाँ किछु कड़गर कपड़ा रहैक। ओकरा माथक नीचाँ जे किछु रहैक तकर तँ ओकरा पतो नहि चलि सकलैक। ओ जड़वत भ’ गेलीह। ओकर करेज धक-धक करैत रहैक, देहक पोर-पोरमे दरद होइत रहैक। ओ जतय कतहुँ अपन हाथ रखैक ओकरा सूखल खून हाथ लागैक। ओ बहुत डरि गेल छलीह मुदा कानि नहि सकैत छलीह।
ओ उठि कए बैसि गेलीह। तखने अकस्मात् टॉर्चक इजोत भेलैक। ओकर इजोत ओकरा देह पर पड़लैक। ओ छन भरिक लेल अपन आँखि बन्न क’ कए फेर खोललक। देखलक जे वैह पाखलो ओकरा लगीच आबि रहल छलैक। आन दू पाखलो ओतहि ठाढ़ रहैक। पछाति जा कए ओ दुनू ओहि टॉर्चक इजोतमे आगू बढ़ि गेल।
शाली दिस आबि रहल पाखलो नांगटे देह छल। ओ फेर डरसँ सिहरि गेलीह। ओ फटलका नूआ-फट्टा ल' कए अपना छातीकेँ झाँपैत ठाढ़ हेबाक प्रयास करए लागलीह। ताधरि ओ पाखलो शालीकेँ झट दए अपन हाथेँ पकड़ि लेलक। शाली टूटल गाछ जकाँ धरती पर गिर गेलीह। ओ पाखलो शालीक देहक नीचाँ ओछाओल कपड़ा उठा लेलक । शालीक माथक नीचाँ राखल टोपी शालीक माथ पर राखि ओ जोर-जोरसँ हँसय लागल। शालीक घबराहटि बढिते जा रहल छलैक। ओ डरेँ थरथर काँपय लागलीह। ओकरा बुझैलैक जे एकटा बड़का टा अजगर खूब पैघ मुँह बौअने ओकरा अपन ग्रास बना लैतैक। ओ जोरसँ चिकरल, मुदा ओकरा मुँहसँ कोनो शब्द नहि निकललैक।
ओ फेर शालीकेँ चुम्मा-चाटी करब सुरह क’ देलकैक आ ओकरा अपन बाँहिमे कसि लेलकैक।
ओहि अन्हार घुप्प जंगलमे ओ अजगर सरिपहुँ ओकरा अपना काबूमे क’ लेलकैक। झार-झंखार आ पात सभसँ अजीब तरहेँ आवाज आब’ लागलैक।
साँझ होइतहि ई बात सौंसे गाममे पसरि गेलैक। सीता कहैत रहैक जे कोना ओ पाखलोक चंगुलसँ बाँचि गेलीह। शाणू केर घरनी बतबैत छलीह जे कोना पाखलो कुमारि शालीकेँ उठा कए भागि गेल ओ ओकर इज्जति लूटि लेलक। शालीकेँ तँ पाखलो नोचि-चोथि नेने हेतैक, ई सभ सोचि-सोचि आन सभ लोक ओकरा प्रति अपन दया भाव देखबैत रहैक।
पाखलो शालीक इज्जति लूटि लेलकैक ई बात सौंसे गाममे आगिक भांति पसरि गेलैक। ओकर भाय जे नोकरीसँ घर घुरैत रहैक ओकरहुँ ई बात बुझनामे आबि गेलैक। ओ गोस्सासँ लाल भ’ गेलैक। संगहि डरि सेहो गेलैक। ओकरा हाथमे कुड़हरि रहैक जकरा ओ अपन कन्हा पर राखि लेलक।
एहि कुड़हरिसँ जे हम ओहि पाखलोकेँ जित्ते नहि काटि देलियनि तँ हमरहुँ नाम नहि। ओ बेर-बेर यैह शब्द दोहराबैत रहैक। शालीकेँ ताक’ जएबा लेल ओ कतेको लोकसँ मिनती केलक मुदा क्यो ओहि अन्हार जंगलमे जएबा लेल तैयार नहि भेलैक। ओ एकटा लालटेम जरौलक आ एसगरे जएबा लेल तत्पर भ’ गेल। ‘पाखलो ओकरा गोली मारि देतैक' ई कहि लोक-सभ ओकरा डरएबाक प्रयास केलकैक मुदा ओ अपन जिद पर अड़ल रहल। ओ एसगरे चलि देलक, तखने दादी सेहो ओकरा संगे जएबाक लेल तैयार भ' गेलैक। दादी बस केर चालक रहैक। शकल-सूरतमे ओ सोनूएँ-सन रहैक। दुनू म्हालगडी जएबाक लेल तैयार भ’ गेलैक।
दादी शालीक कानमे किछु कहलकैक। ओ दुनू पातोलेक बाटे जंगल नहि जा कए सीधे गामक पुलिस स्टेशन दिस चलि देलकैक। एहन देखि गामक किछु आर बूढ़ आ जुआन सभ ओकरा संग भ’ गेलैक। सब क्यो पुलिस-स्टेशन पहुँचि गेल। दादी स्टेशनक पुलिस कॉन्सटेबल देसाई साहेबकेँ शोर पारलकैक। ओ दरबज्जा नहि खोलि खिड़की खोललक आ ओतहिसँ बाहरक दृश्य देखलकैक।
पाखलो भीतरमे छैक की? दादी कॉन्सटेबलसँ पुछलकैक।
नहि। कॉन्सटेबल कहलकैक।
तखन गेलैक कत’ ? दादी फेर पुछलकैक।
कार्मोक प्रधान आ हुनक दूई टा संगी भोरहि शिकार पर गेल छैक, एखन धरि नहि आएल छैक। दूई गोटे पणजी शहर गेल छैक जे आब काल्हिए एतैक।
कॉन्सटेबल कहलकैक।
साँचे?
हँ, साँचे, देवकीकृष्ण भगमानक किरिया। कॉन्सटेबल कलकैक।
नहि, नहि ओ झूठ बाजि रहल अछि। हमरा सभकेँ पुलिस स्टेशनक भीतर जा कए देखबाक चाही।
पहिने दरबज्जा खोलू, हमरा सभकेँ देखि कए पाखलो भीतरे गुबदी मारि देने हैत। सोनू जोरसँ चिकड़ि कए कहलकैक आ अपन कुड़हरि नचब’ लागल।
जाउ! जाउ! बन्न करू अपन ई नाटक। कॉन्सटेबल गोस्सासँ कहलकैक।
एखन जँ अहाँक बहिनक इज्जति पाखलो लूटि नेने रहितए तँ अहाँ कि एहिना चुप बैसि रहितहुँ? सोनू गोस्सासँ बाजल।
आब अहाँ किछु बेसिए बाजए लागलहुँ अछि, एहिसँ बेसी जँ किछु बाजलहँ तँ हमरा बन्दूक निकालए पड़त।
अहाँ एना किएक बाजि रहल छी? दादी बीचहिमे टोकलक।
ओ कि कोनो बाहरी लोक छियैक? फिरंगीक पेटपोस्सा, अपन आ आनक कोनहुँ गरैन नहि? एहन-एहन केँ तँ पाखलोएक संग भगा देबाक चाही।
‘हाँ साँचे!’ एतबा कहि सभ लोक हँ मे हँ मिलैलकैक।
नहि, नहि हमरा सभकेँ अहाँक बात पर भरोस नहि अछि। हमरा सभकेँ देखए दिअ,पाखलो निश्चिते भीतर दुबकल अछि। एतबा कहि ओ भीतर जएबाक जिद करए लागल।
नहि, नहि एहन बात नहि छैक। जँ एहन रहतैक तँ अहाँ सभ एखन धरि पड़ा गेल रहितौंक। पाखलो सँ अहाँ सभकेँ गोली खाए पड़ितए। अहाँ सभकेँ जँ एखनहुँ विश्वास नहि होअए तँ भीतर आबि जाउ मुदा जल्दीए बहरा जाएब।
सभ क्यो पुलिस स्टेशनक भीतर घुसि गेल। ओतए तीनटा पुलिसक अतिरिक्त क्यो नहि रहैक। एक कॉन्सटेबल देसाई, दोसर नायक कासीम आ तेसर धोणू पुलिस।
सोनू आ दादी दुनू शालीकेँ ताकबाक लेल रातिएमे पातोलेक जंगलमे चलि गेल। सोनू शालीक नाम ल’ ल’ कए चिकड़’ लागल, मुदा ओकरा कोनो जबाब नहि भेटलैक। जंगलमे भालू सभ कानैत रहैक। चारू दिस कीड़ा-मकोड़ाक आबाज अन्हार आ सन्नाहटि पसरल रहैक। ओ दुनू राति भरि जंगलक खाक छानैत रहलैक मुदा ओकरा कानमे मात्र ओकरहि द्वारा लगाओल गेल आबाजक प्रतिध्वनि सुनाइत रहलैक।
सोनू छन भरिक लेल बहुत निराश भ’ गेल। गाम-घरमे ककरो देहमे ब्रह्म बाबाक प्रवेश केलासँ जे स्थिति होइत छैक ओहिना सोनूक देह काँपए लागलैक।
ओ अपन आँखि बिदोरि देलक मुदा कोनहुँ तरहेँ अपन देह पर नियंत्रण केलक। हम सौंसे जंगलमे आगि लगा देबैक, आ जरा कए राख क’ देबैक। यैह जंगल पाखलो केँ शरणागत केने छैक। जरा देबैक एकरा, सुड्डाह क’ देबैक। ओ बुदबुदाब’ लागल।
दोसरहि छन ओकरा डरो लागए लागलैक। ओ लालटेमक बतिहरि उकसा देलकैक। लालटेमक इजोत भभक’ लागलैक। ओहि बतिहरिसँ ओ सौंसे जंगलकेँ जरएबाक तैयारी करए लागल,मुदा दादी ओकरा रोकि लेलकैक।
अहाँ ई कोन पगलपन क’ रहल छी?
ई पगलपन नहि छैक दादी। एहि जंगलहिमे आगि लगा कए हम ओहि पाखलोकेँ सुड्डाह क’ देबैक। सोनू अपन दाँत आ ठोर बिदकाबैत बाजल।
नहि, नहि ओ एना नहि मरि सकत, हँ जंगल अवश्ये जरि कए सुड्डाह भ’ जेतैक। एतबा कहि दादी ओकरा रोकबाक प्रयास केलकैक। एहि बातकेँ ल’ कए दुनूमे हाथापाही सेहो भ’ गेलैक, आ एहि बीच सोनूक हाथसँ लालटेम गिर गेलैक आ बुता गेलैक। चारू दिस घुप्प अन्हार भ’ गेलैक।
बहुत राति भीजला पर ओ दुनू गाम घुरल।
एखन मुर्गा पहिले-पहिल बाँग देने हेतैक। खाम्हसँ ओंगठि कए ठाढ़ भेल सोनूकेँ निन्न आबए लागलैक, तखनहि दरबाजा पर खट-खट केर आबाज भेलैक। सोनू उठि कए दरबाजा लग गेलैक। सोनू ओहि दरबाजा लग खाम्हे जकाँ ठाढ़ रहलैक।
घरमे बरैत लालटेमक इजोतमे ओ पुलिस प्रधान कार्मो रेयस केँ चिन्ह गलैक । गोर-गहुमा कांति आ ताहिपर भूल्ल मोंछ। पुलिस प्रधान अपना कन्हा परसँ शालीकेँ नीचाँ पटैक देलकैक। ओ शालीकेँ कहुना बैसएबाक प्रयास केलक मुदा असफल रहल, हारि कए ओ अपनहि अंगा खोलि ओछा देलकैक आ ओहि पर शालीकेँ सुता कए तीनू पाखलो घूरि गेल। ओकरा सभक जूत्ताक आबाज शनैः-शनैः कम होमए लागलैक।
शाली धरतीए पर घोलटि गेलीह। ओकर आँखि खुजले रहैक। सोनूकेँ तँ बुझू जे क्यो ओकरा पाएरमे काँटी ठोकि देलकैक, ओ भावशून्य भ' ठाढ़ रहल। ओकर आँखि कोनमे राखल कुड़हरि पर चलि गेलैक । लालटेमक इजोतमे ओहि कुड़हरिक चमकैत धार सोनूक असहाय्यता पर हँसैत रहैक। ओ चमक सोनूक करेजकेँ चालनि केने जा रहल छल।
(क्रमशः)
श्री तुकाराम रामा शेट (जन्म 1952) कोंकणी भाषामे ‘एक जुवो जिएता’—नाटक, ‘पर्यावरण गीतम’, ‘धर्तोरेचो स्पर्श’—लघु कथा, ‘मनमळब’—काव्य संग्रह केर रचनाक संगहि कैकटा पुस्तकक अनुवाद,संपादन आ प्रकाशनक काज कए प्रतिष्ठित साहित्यकारक रूपमे ख्याति अर्जित कएने छथि। प्रस्तुत कोंकणी उपन्यास—‘पाखलो’ पर हिनका वर्ष 1978 मे ‘गोवा कला अकादमी साहित्यिक पुरस्कार’ भेटि चुकल छनि।
डॉ शंभु कुमार सिंह
जन्म: 18 अप्रील 1965 सहरसा जिलाक महिषी प्रखंडक लहुआर गाममे। आरंभिक शिक्षा, गामहिसँ,आइ.ए., बी.ए. (मैथिली सम्मान) एम.ए. मैथिली (स्वर्णपदक प्राप्त) तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। BET [बिहार पात्रता परीक्षा (NET क समतुल्य) व्याख्याता हेतु उत्तीर्ण, 1995] “मैथिली नाटकक सामाजिक विवर्त्तन” विषय पर पी-एच.डी. वर्ष 2008, तिलका माँ. भा.विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। मैथिलीक कतोक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे कविता,कथा, निबंध आदि समय-समय पर प्रकाशित। वर्तमानमे शैक्षिक सलाहकार (मैथिली) राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर-6 मे कार्यरत।
सेबी फर्नांडीस
बालानां कृते-
1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स); 2. मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी
1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)
देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग” प्रकाशित (2004 ई.)
नताशा: मैथिलीक पहिल-चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)
नीचाँक दुनू कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पढ़ू)
नताशा सोलह
नताशा सत्रह
2.
मध्य प्रदेश यात्रा- ज्योति
पन्द्रहम दिन ः
6 जनवरी 1992 ़ साेमदिन ः
हमर सबहक गाड़ी रातिके 12ः45 मे आयल आऽ हमसब भोरे 11ः00 बजे टाटा पहुँचि गेलहुँ।बीतल 14 दिन हमरा सब लेल अविस्मरणीय बनि गेल छल।स्टेशनमे सबके लैलेल कियाे ने कियाे आयल छल।हम्मर चिन्हार शिक्षिका यात्रामे गेल छलैथ से हमर अभिभावक हुनके जिम्मेवारी देने रहथिन घर पहुँचाबैके।हम हुनके संगे अपन घर लाैटि एलहुँ।
देवीजी : ज्योति
देवीजी ः मित्रता दिवस
देवीजी मित्रता दिवसके अवसर पर अपन सभा पुनः लगेने छली।मुदा सबबेर सभा जुटाबक प्रयाेजन ततेक विविध आ राेचक हाेयत छलैन जे लोक सबहक बढ़िया जुटान हाेयत छल।अहिबेर ओ मित्रता आ सामाजिकता सिखा रहल छली।हुनका ज्ञात भेलैन जे किछु बच्चा सब अपन घर आयल अतिथि सबसऽ नीक व्यवहार नहिं कऽ रहल छल।ताहि पर ओ बजली जे मैथिल सबमे तऽ हमेशा साैहार्द्रपूर्ण विचार मान्य अछि। जहिना भारतमे ‘अतिथि देवो भव’ के गूँज अछि तहिना नेपाल अपन अतिथिसेवाक व्यवहार लेल प्रसिद्ध अछि।
देवीजी कहलखिन जे स्नेह आ सहयाेग सऽ मित्रता निर्मित हाेयत छै।मित्रके समय पर बिना ओकर आमंत्रण के प्रतीक्षा केने सहायता करैके चाही।दाेसर के खुशीमे अपन खुशी पाबैके प्रवृत्ती मनुष्यके श्रेष्ठ बना दै छै।मित्रता मे लोलुपता या लोभ नहिं हुअ के चाही।अपन मित्रके गलत आदत के सुधारक प्रयास सदैव करैके चाही। मित्रता जात़ि रंग़ धऩ शिक्षा आदिके भेद नहिं मानै छै।अभिमान के काेनाे स्थान नहिं अछि अहिमे।भारतके इतिहास आ ग्रन्थ सबमे मित्रता आ प्रेम के अद्भुत उदाहरण भेटत। धार्मिक ग्रन्थमे कृष्ण सुदामाके मित्रता क वर्णन अछि।श्रीकृष्ण भगवान गाेकुल के राजकुमार आ सुदामा एक दीन ब्राह्म ण।मुदा कृष्ण भगवान के लेल अहि सऽ दाेस्ती पर काेनाे असर नहिं छलैन।देवीजी कहलखिन जे अपन दाेस्तके समर्यसमय पर ओकर पसन्दक ध्यान राखिकऽ किछु उपहार देला सऽ मित्रके आभास हाेयत छै जे हमर मित्र हमर कतेक ध्यान राखैया। तहिना अतिथि सेवामे सेहाे विनम्रता़ सत्काैर तथा सबसऽ बेसी स्नेह के बहुत महत्वक छै।
देवीजी कहलखिन जे स्नेह आ शुभकामना व्यक्ति करैलेल गुलाबक फूल सन सहज आ सुन्दर उपहार आर की हैत। मुदा गुलाब फूलक रंग आब बहुत महत्व पूर्ण भऽ गेल अछि कारण लोक सब तऽ गुलाबक फूल के विभिन्न रंगके सेहाे विशेष परिस्थिति के लेल नियमबद्ध कऽ देने छैथ।जेनाकि लाल गुलाब प्रेमक अभिव्यक्तिि के लेल तथा कत्थिइर् गुलाब सुन्दरता के प्रशंसा हेतु प्रस्तुत कैल जायत अछि। तहिना उज्जर गुलाब भाेलापन तथा पवित्रता के़ हल्का गुलाबी तथा पीच रंगक गुलाबक फूल सहानुभूति के़ गाढ़ गुलाबी रंगक गुलाब धन्यवाद के़ पीयर गुलाब दाेस्ती के़ संतरा गुलाब जिज्ञासा के़ एवम् नीला रंगक गुलाब रहस्यभाव के अभिव्यक्तिव लेल कैल जायत अछि।पीच रंगक गुलाब प्रेम लेल नहिं भेजल जायत अछि आऽ कारी गुलाब मृत्युय के दुःखद अवसर मे देल जायत अछि। लाल रंगक गुलाबक कली प्रेमक शुद्धता के अभिव्यक्तब करैत छै तऽ उज्जर रंगक गुलाबक कली किशाेरीके देल जायत अछि।तैं देवीजी कहलखिन जे गुलाबक फूल देबऽ काल ओकर रंग पर जरूर ध्यान दिय।
अन्ततः देवीजीक व्यक्ति्गत विचार छलैन जे गुलाबक फूल जतेक नीक गाछमे लागैत छै ततेक नीक ताेड़लापर नहिं ताहि कारणसऽ वैकल्पिक उपहार हुनका बेसी पसन्द छैन जाहिमे प्रकृतिके हानि नहिं हाेइर्।सबसऽ बेसी महत्विपूर्ण अछि अपन मित्र के प्रसन्न राखक इर्च्छा। अहि इर्च्छा सऽ कैलगेल केहेनाे बचकाना प्रयास अतिथिके प्रसन्न कऽ दैत अछि।जेनाकि भगवान राम सबरीके अंइठ बैर खुर्शीखुशी खा लेने रहथि।अहि तरहे अतिथि सत्कापर करैके उपदेश देलाक बाद देवीजीक आहिके सभा समाप्ती भेलैन।
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवाफोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara orPhonetic-Roman.)
Language: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
इंग्लिश-मैथिली कोष/ मैथिली-इंग्लिश कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदान ई-मेल द्वाराggajendra@videha.com पर पठाऊ।
विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
१.पञ्जी डाटाबेस आ
२.भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
१.पञ्जी डाटाबेस-(डिजिटल इमेजिंग / मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण/ संकलन/ सम्पादन-पञ्जीकार विद्यानन्द झा , नागेन्द्र कुमार झा एवं गजेन्द्र ठाकुर द्वारा)
जय गणेशाय नम:
(66) ''25''
(24/05) पाली सै दुर्गादित्य् द्दौ।। कन्हौेली एकहरा सै (29/01) माधव सुतोइनी बसावनौ (33/01) माण्ड4र सै सुधाकर सुत चान्दि दौ वुधवाल सै दाश द्दौणा बसावन सुता बहेराढी सै सोने दौ (07/01) नरहरि सुता बाराह (42/03) बाउरे (48/08) शिरूका: नरउन सै कोने दौ (14/05) सकo जीवेश्वलर द्दौणा (42/03) बाराह सुता नोने सोने इबे चौवेका: माण्डौर सै रघुपति दौ तिसूरी सै सिधू दौहित्रदौ सोने सुता रूद सुधाकर प्रo सुधे महाईका: (46/01) खौआल सै रति दौ (16/07) रमापति सुतो हरिहर बेलउँच सधरदित्य1 दौ (10/05) भरेहा सै गणपति द्दौणा हरिहर (29/04) सुतो रति: टकबाल सै केशव दौ (09/05) केशव सुता हरदत्त (43/06) भवदत्त रविदत्त देवदत्ता: (41/05) (49/04) जजिवाल सै वावू द्दौ।। रतिसुता जल्लकी सै मतिकर दौ (12/010) मo मo रतिघर सुत मतिकर सुतौ लक्ष्मीवकर: माण्ड9र सै सुरसद दौ (22/02) कुजौली सै राजू द्दौणा एवं भवदत्त मालिक चकं।। भवदत्त सुता खौआल सै विशो दौ (21/040) अमरू सुतोविशोक: करo श्रीकान्त9 दौ (21/010) खौआल सै गोविन्दे द्दौणा विशो सुतो (302/02) गोविन्दत बुध हलधर दौ (19/04) पॉंखू सुतो हरधर: दरिo गिरी दौ (22/04) गिरी सुताशकत (39/04) (57/03) माधवा: सोदरo हरि दौ (23/10) कुo वंशवर्द्धन द्दौणा हलधर सुतौ (91/04) थेघ: वितरखा माण्ड/रसँभाने दौ (19/10) भानुकर सुतो रामकर: बहे रवि दौ।। रामकर सुतौ मानेक: घुसौत सै गुणाकर दौ (20/01) गुणाकर सुतौ गोढि़ बलिo श्रीधर दौ (94/04) माने सुतौ पीताम्बोर:(230/08) हरिo विभू दौ (16/03) नोने सुता चाण (28/04) विभू परभू (36/03) लाखूका (37/02) पचही जजिo रूद्रपाणि दौ कशयपगोत्रे ब्रहम्पुगरा सै हरिहर द्दौणा मिमांशक विभू (33/03) सुता वुद्धिकर (50/08) (66/01) (77/02) होरे जोरे का: तल्हहनपुर सै गोपाल दौ (24/09) गोविन्दतसुतौ गोपाल: पाली सै कामेश्वलर दौ गोपाल सुतौ लान्हू7क: पाली सै (61/04) नाइ दौ (21/05) नाइसुतौ यशु कगरू बागेका: (38/05) माण्डपर सै जीवेश्व र दौ।। एवम् बाबू मात्रिक चक्रांप
(67)
रामचन्द्राु परनामक बावू सुतो (84/06) (97/04) दामोदर: कटका सोदरपुर सै विशो सुत (26) भानु दौ (24/05) शादू सुता महाई गोनू (17/02) (67/05) विशो जीवे पराना: माण्डसर सै जोर दौ (07/0/11) चौबे सुतौ शिव धामौ (253/01) शिव सुतौ कामेश्व्र: बेलउँच सै सुत केशवदौ।। कामेश्वशरसुता पीते सागर विठूका: कोइयार सै विनायक दौ महो सागर सुता सदुo जीवे महामहत्तक जोर जाने का बहेराढ़ी सै धृतिकर सुत बाराह दौ दरिहरा सै हरिशर्म्म द्दौणा महामहत्तक (39/07) जोर सुता पाली सै तुगुरू दौ (25/01) (35/010) डगरू सुतो रघु शिवौ खौआल सै जीवे दौ (20/01) अपरा शुचिकर सुतौ नोने श्रीवों करमहा सै नितिकर दौ जीवे सुता रतन् (29/07) मांगु हरय: पनिचोभ सै धराई दौ वीरपुर पनिचोभ सैबरिमी महेश्वसर ए सुतौ कामेश्वरर ए सुतौ रतनेश्व र: ए सुतौ नाथू बारू कौ ।। बारू सुतौ धराईक: माण्डकर सै महामहोपाध्यावय जगन्नातथ दौ (02/05) निखूति सै विद्याधर द्दौणा (29/01) धराई सुता करूआनी सकराढ़ी सै भीम दौ एवं विशोमातृक चक्रं।। दिशो सुता केशव मo भानु (88/03) कुमार राजा का: माण्डकर सै गागेदौ (21/03) भवदत्त सुतो कान्हा: हरिअम सै रूचि दौ ।। कान्हौ सुतो रवि गिरी कौ बोहाल करमहा सै शिववंश सुत सुपन दौ गंगुआल सै गोविन्दव द्दौणा गिरी सुतौ कुले गागे कौ पालीसै पौखू दौ।। (13/09) खौआल सै नरसिंह द्दौणा गांगु सुतौ महनू रंजनो (40/01) (229/07) कुजौली सै सुरपति दौ (04/04) रूद्र सुतौ रघुक: ए सुतौ कानह: पबौली सै महिपतिदौ
(68) ''26''
कान्ह8 सुतो सुरपति: सकराढ़ी सै चण्डेपश्वलर सुत देहरिदौ दिघोय सै जगन्ना थ द्दौणा सुरपति सुतौ थेघ मेघौ तिसुरी सै पौखू पौत्र खाजो सुत गुदिदौ खॉंजो सुतौ गुदिक: खण्डवव शुभदत्त दौ।। गुदिसुता झोट पाली दरिहरा सै मधुकर सुतमांगु दौ कोइयार सै सुधाकर द्दौ।। मानुमात्रिक मिश्र मानुसुतो (63/04) भवानीनाथ रामनाथौ (82/06) बाली दरिहरा सै होराई दौ (22/04) रूपन (49/10) सुतौ बासूक: पालीसै केशव दौ (14/04) नाउनसै कोने द्दौणा (62/05) वासुतेर बुधा (67/03) सुधाईकौ हरिअम सै रति दौ (16/03) रतिसुतौ महाइक: (85/02) भाण्डैर सै कृष्ण पति दौ (18/08) कृष्णदपति सुतौ रामपति सर्वपति (48/01) वुधवाल सै भानु दौ (19/04) दरिह प्रितिनाथ द्दौणा बुधाई सुतौ चिकू होराई कौ पनिo माने दौ (17/10) गोविन्दस सुतो मानेक: सतo चान्दप दौ (24/07) (28/09) चान्दृ सुतो मतिकर: फनन्दोह महेश्व र दौ।। माने सुतौ रामपाणि रतनपाणि एकo महाई दौ (221/08) थानू सुतौ कोचेक: करo विश्वोनाथ दौ।। कोचे सुता बैजू महाई हरायका दरिo केशव दौ (40/05) महाई सुतौ गोविन्दा (441/05) मुरारी: माण्ड र सै ज्ञानपति दौ (231/06) ज्ञानपति सुतौ रवि दामोदरौ (83/08) बुधवाल सै महेश्वचर दौ (19/04) महेश्व र सुता पवौली सै धराधर सुत विशो दौ वलिo दिनमणि द्दौणा होराई मात्रिक चक्रं।। होराई सुता देवनाथ (82/05) काशीनाथमहिनाथा:करमहा सै रघुनाथ दौ (02/08) श्री वत्स। सुता बाछे सुता बाछे (36/08) (32/02) शम्मुव हरय: दरिo कोचे दौ (15/01) कोचे सुतौ दुगीदित्या गोनू (53/02) कौ गढ़ घोसोत सै रविकर दौ (19/01) माण्डरर सै हरदत्त
(69)
बाछे सुतो (27/02) माने भवे कौ खण्ड1बला सै लाख दौणा (01/06) लाखू सुता राम रूद कुल्पातिय: बभनियाम सै किठो दौ (06/08) खण्डखबला सै रविकर द्दौणा (13/05) भवे सुतौ रघुनाथ: नरउन सै विदू दौ (08/02) चन्द्रमकर सुतौ (28/01) बागे ओहरि बहेराढ़ी सै बासू दौ (07/08) तल्ह नपुर सै रतनाकर द्दौणा (80/08) ओहरि सुतौ विदूक: तिसूरी सै ग्रहेश्विर सुत सिधू दौ माण्डेर सै माने द्दौणा विदू सुता बo(1/09) श्रीपति गिरपति (704/07) पौखूका: पनिचोभ सै महेश्विर दौ (20/03) माण्डतर सै रूचिकर द्दौणा रघुनाथ मात्रिकचंक्र रघुनाथ सुतौ श्री नाथ हरिनाथौ सोदरपुर सै मीन दौ (16/08) राम सुतौ भीम: नरउन सै दिनकर दौ (24/08) दरिहरा सै कुसुमाकर द्दौणा (8/10) भीम सुतो जीवनाथ (62/04) विश्वतनाथा: वलिo हरिअमसै भवे दौ (25/07) (54/04) नरहरि सुता (55/06) रवि मवे (74/02) (31/04) (45/02) कुश मधुकर साधुकर बुद्धिकर (75/06) (334/09) कृष्णा1 सिमरौनी माण्ड(र सै गिरीश्वरर दौ (20/07) गिरीश्वैर सुता विशोराम हल्लेकश्व5रा: कुजौली सै चन्द्र कर सुत मितू दौ खौआल सै डालू द्दौणा (44/07) भवे सुतो गणेश: नरउन सै मेघ दौ (19/03) शुचिकर (74/03) सुतौ मेघ: वभनिo इशर दौणा (06/07) महिपति सुतौ इशर (51/10) रघुकौ वलिo जयानन्दन दौ।। इशर सुता शादू कुलपति (35/08) गोदिका जगति सै धाम दौ (15/05) बास सुतो धरेश्वकर: ए सुतो धाम: सरौनी सै महादेव दौ।। धाम सुतो भवेक: तपोवन सै विठू दौ (52/09) मेघ सुतौ गौरीपति वावू (44/08) (136/10) इन्द्र पतिय: माण्डुर सै कुलपति दौ (24/05) (31/08) आङनि सुतो कुलपति सोदरo विश्वमनाथ दौ (22/010) मम विश्वनाथ सुतौ गोपीनाथ: (29/02) वलियास सै शंकरसुत कृष्ण दौ अलय सै गोती द्दौणा
(70) ''27''
(38/03) कुलपति सुतौ मांगुक: बहेराढ़ी सै पौखू दौ (09/04) त्रिपुरे (40/07) पौखूक: परसंडा सै श्रीदत्त दौ पौखू सुता (48/04) (38/06) रतिमति वावू चान्दा़: (31/07) खौआनादू सुत चन्द्र/क दौ अलय सै कारू द्दौणा एवं ठo रघुपति विवाहस्था6पं’’ ठ धराधर सुता बेहर करमहा सै वावू सुत कृष्णौपति दौ (27/01) (66/07) मानू सुता हरखू (168/09) (37/05) जयदेवा: सरिसब सै महिपाणि दौ (20/04) माने सुतौ गंगेश्वएर: बलिo बसाउन दौ (270/09) सुतौ रत्नपाणि महिपाणि माण्डनर सै प्रसाद शुभंकर दौ (09/06) सदo विशो सुतो शुभंकर: अलय सै गणेश दौ।। ए सुतौ (38/06) वुद्धिकर: पनिo नोने दौ (18/05) नोने सुता हरि शिव नहियतिय: विस्फीय संज्ञानकर दौ महिपाणि सुता नयपति उँमापति रविपति शुभपति यथा क्रम डीगरू निकरू (53/10) निकरू (56/07) नोनी पौहोरिला: (52/05) मंगरौनीहरिo दामु दौ (25/07)’ केशव सुतौ दामूक: परिवर्द्धमान दौ (23/06) फनन्दहह सै नरसिंह द्दौणा (39/05) दामू सुता माण्डिर सै गिरीश्वदर दौ (27/05) कुजौली सै मितू द्दौणा (49/01) हरखू सुतौ सदुo राघव: रैयाम सोदरo माघूसुत गवेश दौ (22/010) मo मo (30/07) रघुनाथ सुतौ थानूo सिरू कौ वलियास सै जीवेश्वरर सुत शिवादित्यग दौ टकबाल सै लाखू द्दौणा (50/07) सिरू प्रoश्री पति सुतौ माधव मनोरयौ पनिचोभ सै पुलहारी दिनकर दौ (17/07) फलाहारी दिनकर सुतो भवदत्त: दरिहरा सै कीर्तिशर्म्मत सुत केशव दौ यमुगामसै आङनि द्दौणा मिमांशक (42/05) माधव सुता हरिकेश गणेश नारायण अनन्तक चतुर्भुजा: बुधबाल सै महेश्वदर सुत शिरू दौ (19/06) शिरू सुतौ (66/02) रघु मैखौबधवास सरिo मोरि दौ (27/03) गंगेश्वशर सुता गौरि गौरि मोरि (35/05)
(71)
सोरि कुलपतिय: खौआल सै नोने दौ।। सोरि सुता माण्डार सै कान्हत दौ (09/03) कान्हो सुतौ गोपीनाथ: बेलउँच सै धर्मादित्य5 दौ (16/05) खैआल सै उँमापति द्दौ गणेश सुता दरिहरा सै जीवे दौ (25/06) शक्तूव सुतो जीवेक: हरिअम सै दिन दौ (16/07) माण्डैर सै नगाई द्दौणा (42/08) जीवे सुतो (79/05): रामदेव: महिषी पाली सै शिवदौ (19/07) धरादित्य7सुतौ देवे (40/03) रतनू कौ वलिo हरादित्य7 दौ (10/01) हरिदित्यल सुतौ पनिधोध (36/04) सुधाकर मटिधोध शुभंकरो फनo नरसिंह दौ।। देo प्रo. देवादित्य0 सुता शिव गागु (35/5) (35/02) बागे का: खणडबला सै देवे दौ (05/08) कामेश्वदर सुतौभवाई हरायकौ (33/02) बहेo रति दौ (07/05) निखूति सै जगद्धर द्दौणा भवाई सुतौ देवेक: बभनिo कुमर दौ (14/06) सकo गिरीश्वपर द्दौणा देवे सुता खौआल सै रघुपति दौ. (07/09) नरउन सै कोने द्दौणा (30/06) शिव सुतौ (56/07) नरपति: माण्डतर सै सुपन दौ (09/06) (35/07) हरिकर (35/07) हरिकर सुता रतिकर (29/03) (36/09) मधुकर खांतरा: टकबाल सै बाइ दौ (09/05) नरउन सै यशु द्दौणा खांतर सुता सुपन रूपन (56/01) हलधरा: वेलo धर्मादित्य दौ (16/05) खौआल सै उँमापति द्दौणा सुपन सुता सुधे महाई राम नोने कोनेo नाउन सै खांतू सुत सुचिदौ (27/06) बभनियाम सै इश्वदर द्दौणा एवं राघव मात्रिक चक्रं सदुपाध्याीयराघव सुता बावू बनाई (94/05) (53/37) विराई बाबी का सिमरवाड़ सोदरपुरसै माधू दौ (15/09) हलधर सुतो वास्तुवक कम्जोली व्या(सकंठ दौ।। वास्तु( सुतौ (56/04) (33/06) राम हरिकौ सकo राजू दौ पाo नारायण द्दौणा हरि सुता (35/01) (137/04) बसावन नोने मतिश्व रा: सतo चान्दँ दौ (26/05) चान्द सुतौ इबे शिरूक: (92/08) टकo ग्रहेश्वबर द्दौणा मतिश्ववर सुता जनार्दन बo (8/08) प्रo जानू अच्युरत श्री निवास (46/05) नीना: खौआल सै गोन्दू। दौ (21/010) (30/04) बाइ सुतो गोन्दूैक: अलय सै रत्नधरसुत हरदत्तदौ गंगोली सै साधुकर द्दौणा गोनू सुता (83/03) जागे माधव गोपी मुरारी (66/03) मुकुन्द केशवा: नाउन सै ऐंठो दो (27/02) बागे सुतौ एंहोक: माण्डोर सै दामूसुत मांगु दौ पाली सै रामदत्त द्दौणा
(72) ‘’28’’
ऐंठो सुतो हेलूअन्इ कौ करo बाइ सुत महिपति दौ गंगोली सै राम द्दौणा माधव प्रo (80/09) माधू सुतौ माण्डसर सै काशी दौ भवेसुतौहलसर: नरउन सै खांतू दौ (19/02) माण्डरर सै बागे द्दौणा. (145/02) हलसर सुतौ काशीक: पालीसै रूद दौ (23/11) देवे सुतौ रूद: नरउन सै उदयकर दौ तरूद सुता बलियास सै नारू दौ (21/08) जीवेश्वनर सुतौ (59/10) रतिकर: ए सुतौ नारूक: धुसौत सै रविकर दौ (19/01) माण्ड र सै हरदत्त द्दौणा नारू (43/01) सुतौ चमरूक: (56/06) करमहा सै गौरीपति सुत बाइदौ सकo साहू द्दौणा (58/07) काशीसुता हरिअम सै महाई दौ (25/08) चान्द सुतौ मितूक: माण्डरर सै मिश्र गयन सुत वीर दौ कुoसुधाकर द्दौणा मितू सुता कोचे महाई सुरपति पौखू का: दरिo रदि दौ (15/02) डालू सुते रविकर: सोदरo महेश दौ (35/04) रविकर सुता पबौलि सै धराधर सुत दिशो दौ बलियास सै दिनमनि द्दौणा महाई सुतौ रामचन्द्र : एकo वुद्धिकर दौ (22/01) लक्ष्मीधकर सुतौ हरिनाथ: ए सुता गंगेश्वरर (09/09) हल्लेौश्व र भवेश्वदरा: वलियास सै गौरि दौ।। भवेश्व र सुता मिमांशक रूद धर्माधिकर जी वाटू राजपंडित गढ़कू (42/04) वेणीका जालय सै महिधर दौ।। मिश्र रूद सुता रविकर वुद्धिकर गुणाकर: (262/08) अलय सै रत्नधर दौ।। वुद्धिकर सुता उचति सै सुन्दधर दौ (06/03) हलधर सुत सुन्दकर सुतौ थेघ: खण्ड(o महादेव द्दौणा एवम् वावू मात्रिक चक्रं।। बावू सुतो रतिधर हरपति कृष्ण्पति कृष्णा : (123/06) हारीसोदरo कृष्णाय: (123/06) हारीसोदरo जयदेव दौ (22/06) रति सुतौहोरे नोने कौ कुजौली सै रविकर दौ (23/03) अलय सै गंदाधर द्दौणा होरे सुता मणि शशि बाछे कृष्णा।: जगति सै रूद दौ (27/08) भवे सुतौ रूद: जजिo देव सुत धाम दौ वलिo सुपन द्दौणा
नम: (73)
रूद सुतौ (35/06) नानक: उचति सै कान्ह सुत पशुपति दौ गंगोली सै जोर द्दौणा. मिश्र मणि सुता बासुदेव (88/05) कामदेव जयदेवा: पनिo. बुद्धिकर दौ (26/06) धराई सुतौ विभाकर: दरिहरा सै श्रीपति सुत हरदत्त दौ टैकबाल सै गांगु द्दौणा विभाकर सुता गुणाकर बुद्धिकर दिवाकर (93/10) प्रभाकर रामदेवा: खौआल सै रघुनाथ दौ (21/04) गंगोली केशव बुद्धिकर सुता माण्डदर सै महाई दौ साधव सुत श्रीवेश्वरर सुतौ कोने देवेक: सुरगन सै लक्ष्मी कर दौ ए सुतौ महाईक: करमाहा सै शुभे दौ।। महाई सुता पाली सै रूद सुत उगरूदौ दरिहरा सै महेश्वगर द्दौणा एवं जयदेव मातृक चक्रं मिश्र (76/06) जयदेव सुता नगवाड़ घोसोत सै महामहोपाध्यााय विद्यापति दौ (19/01) रविकर सुतौ रूद बुद्धिकरौ दरिहरा सै गुणीश्वार दौ बुद्धिकर सुतौ हलधर (52/04) मo. मo. उ.पाo. केशवो सरिसब सै जादू सुतबाइ दौ सकौना सै सोम द्दौणा महामहोपाध्या5य (61/07) केशव सुता महामहोपाध्या य गोविन्दि सोन्हूो हरखू सरिसब सै केशव दौ (20/04) सोने सुतौ पौखूक: टकo राम दौ।। पौखू सुतौ कोने केशवो माण्ड र सै विशोसुत प्रसाद शुभंकर दौ पनिo नाने द्दौणा केशव सुता वलिoमतिकर दौ मएड़ सै बाभन द्दौणा महामहोपाध्यारय गोविन्दद सुता महामहो लक्ष्मीतनाथो परनामक (209/05) ठकरू मo मo उपाoविद्यापति (65/05) मo मo उपाo (102/03) दामोदर मo मo उपाoरामनाथ (178/07) आगमाचार्यक मo मo उपाo (96/04) देवनाथ तर्क पत्र्चनन मo मo उपाo गोपीनाथ कन्ट1को द्वारकारक महामहोपाध्यारय मधुसूदन महामहो (39/04) (105/09) जनार्दना: माण्डमरसै इखडि दौ (120/08) दुखडि सुता रघु राम रवि प्रo नोने का: एकहरा सै वागीश्व0र दौ (28/06) गंगेश्वौर सुतौ वागीश्वतर गणेश्व रौ (51/09) करo श्री नाथ दौ।। वागीश्व9र सुता सकराढ़ी सै गिरीश्वकर सुत महेश्वगर दौ करमहा सै सुपन द्दौणा एवम् ठo विद्यापति मातृक चक्रं।।
(74) ‘’29’’
महोमहोपाध्याय विद्यापति सुता अनिरूद्ध अनन्त अच्युाता: एकहरा सै काशी दौ (25/01) माधव सुतौ सन्याससी काशी (52/09) ओने कौ पाली सै गुणाकर दौ (24/04) गुणाकर सुता माण्ड र सै सुरसर दौ (22/02) कुजौली सै राजू द्दौणा सन्या्सी (134/04) काशीसुता सोदरपुर सै लाखन दौ (27/09) गोपीनाथ सुता हाऊँ प्रo रत्नाकर: माण्डैर सै महामहोपाध्याुय पशुपति दौ (18/08) अलय सै मo मo उपाo रामेश्वरर द्दौणा हाउँ प्रo(43/05) रत्नाकर सुता राम लाखन भव (63/03) (48/03) जीवेका करमहा सै माधव दौ (02/09) माधव सुतौ रूद सर्वेश्वररौ माण्डकर सै (70/03) रतिकरदौ (28/05) (34/05) रतिकरसुता इबे (32/10) गुणाकर (82/09) प्रितिकरा: (82/09) बहेराढ़ी सै रवि दौ (09/04) माण्ड5र सै विभूद्दौणा लाखन सुता बासुदेव (53/08) जनार्दन गोपी नरहरिय: खौआल सै जीवे दौ (25/04) अपरा (55/02) हरिकर सुतौ जीवे जोरो तकo (132/08) तकo प्रथमापरोक्षे भवदत्तस्यै(व दौ सुरगन सै भगव द्दौणा जीवे सुता करमहा सै शिरू सुत गंगाधर दौ जांजवाल सै गोनू दौहित्र दौ एवम् कृष्ण पति मात्रिक चक्रं।। कृष्ण्पति सुता खौआल सै रत्नपति सुत परशुराम दौ (14/05) बुद्धिकर (80/05) सुतौ कृष्णौपति गाउलकरमहा सै साधुकर दौ (21/09) रूपन सुता साधुकर सुर्यकर (83/07) पिरतू का: खौआल सै रतनू दौ (26/05) रतनू सुतौ डालूक: गंगोरसै सुधाकर दौ (19/06) (44/15) चन्द्र/कर: (40/06) माण्ड रसै डालू दौ साधुकर सुतौ भवनाथरामनाथौ बेलउँच धरम् दौ (22/09) कृष्णिपति सुता भाषाकंo श्रीकंठ बसुकंठ प्रo धरमूका: पण्डुनआ सै शुभंकर दौ पण्डु ग्रापासै बीजी मo मo उo. पाठक गोविन्दश: ए सुतौवामन: ए सुता सदुo. हरि सदुपाध्याौय विष्णुा सदुपाध्याडय डालू सडपाध्या य छीतू चन्द्रतकरा:।। चक्रपाणि प्रo छीतू सुतौ पृथ्वीएधर मनोधरौ महोमनोधर सुतौ हेमधर: ए सुतौ गुणाकर: ए सुतौ पाँ प्राणधर:
(75)
प्राणघर सुतौ पाँ आनन्दसकर: ए सुता पाँ कान्हध पाँ माधव पाँ केशव पाँ नारायणा: तकo रतिपति दौ।। पाँ कान्ह5 सुता पाँ रामकर पाँ रत्नाकर पाँ शुभंकरा: सोo हलधर दौ।। पाँ शुभंकर सुतौ पाँ सूर्यकर पाँ रविभाकरौ नदाम सै नरायण दौ।। धरमू सुता सकo धनपति दौ (14/07) सदुoसुपे सुतो दामोदर: ए सुतौ डालूक: पवौलीसै गोढि दौ (34/06) डालू सुतो विद्यापति (74/02) धनपति बुधपाल सै बासुदेव दौ सुरगन सै केशव द्दौणा घनपति सुतों जोर (53/03) सकौना सै रघु दौ।। अपरौ हचलूक: पालीसै हरिकर सुत वाठन दौ वलिo कान्हर द्दौणा एवं कृष्णपपति मत्रिक चक्रं।। कृष्ण पति सुतौ रत्नपति: करहरावुधवाल सै मानु सुत पूरखू दौ (19/06) मानू सुतौ पुरखू नारायणो (94/01) त्रिद्वि खौआल सै गिरूदौ (28/09) (37/01) बाटू सुतौ गिरूक: करमहा सै महिपति दौ गंगोली सै राम द्दौणा गिरू सुता हरखू (48/09) (78/05) गणेश धनेशा: भरव. कुजौली सै शुभंकर दौ (23/03) सुपन सुता (36/06) श्रीकर शुभंकर (64/84) हरिकरा: दरिहरा सै सुपन दौ (22/04) सुपन सुतौ गांगु विशोंकौ एकहरा सै हारू दौ।। शुभंकर सुता मेधू पांगु (39/02) (16/01) दिनू शुचि जागे का: खौआल सै शुभे दौ (23/02) शुभेसुतो मानेक: सोदरपुर सै महामहोपाo रघुनाथ दौ (27/07) (32/05) रघुनाथ सुतौ जोर: वलिo माधू दौ (15/04) माधू सुतो (47/09) रूद (56/08) शम्भू7 कौ अलय सै मo मo उपाo रामेश्वैर दौ (02/01) दरिo रति द्दौणा पूरखूसुतौ महामहो रामदेव: पबौली सै रघुदत्तदौ (34/01) शिवदत्त सुता (32/01) (46/06) रूचिदत्त रामदत्त रूचिदत्त शुभदत्ता: भौआल माण्डसर सै सर्वाई दौ (22/07) सर्वाई सुतौ (46/09) श्री कर केउँइ कौ करo सुपन दौ (26/08) गंगुआल सै गोविन्द4 दौ (39/07) रूचिदत्त सुता रघुदत्त जानू (65/03)
(76) ‘’30’’
गादू का: पनिo लाखू दौ (17/10) (56/09) लाखू सुतौ श्री निवास प्रo. श्री राम: सकराढी सै हरिश्व र दौ (05/05) हरिश्व र (12/02) सुतौ रतीश्वैर: करo मांगुसुत प्रज्ञाक दौ (37/06) रघुदत्त सुतौ करमहा सै पशुपति दौ (03/07) मo मo उपाo रतिघर सुता महो (76/04) कुलपति सदुo पशुपति कृष्णसपति विष्णुदपति (43/06) विष्णु पुरी ख्या त् महो (306/03) रमापतिय: सोदरपुर सै हेलू दौ (21/07) ग्रहेश्वतरसुतौ हेलूक: उचति सै होरे दौ।। हेलू सुतौ (45/02) थेघ: नरउन सै ग्रहेश्व)र सुत सुधाकर दौ दरिo. गुणाकर द्दौणा (39/01) पशुपतिसुता सकराढी सै राजू दौ (06/04) राजूसुतोहोरे शोरे कौ: बहेराढी सै विरखू दौ (07/10) विरखू (77/05) (44/01) सुतौ वेणी वाछ कौ: नाउन सै रतिकर दौ (19/02) रतिकर सुता करमहा सै बाइ दौ (21/08) तल्ह)नo विर द्दौणा एवम् रत्नपतिमात्रिकचक्रं रत्नपति सुतौ परशुराम: और खण्डुबला सै महामहोपाध्या(य ठo गोपाल दौ (04/06) महामहोपाध्यापय उदयपुर राजगुरू महेश सुता मo मo ठo रामचन्द्रश महामहोपाध्या(य गोपाल महामहोपाध्यादय अच्यु त धर्मकर्मावतार राजनैतिक मo पo परमानन्दाम: महिषी पाली सै शिव सुत दाम दौ (28/05) अपरा शिव सुता दामू (75/08) (83/05) कान्हम जीवे का: बेलउँच सै होरे दौ (25/05) रूद्रादित्यह सुतौ होरेक: (182/02) होरे सुतौ अमरूक: सोदरपुर सै रामनाथ सुतकान्ह दौ (23/09) (78/01) रामनाथ सुतौ कान्ह2 दरिहरा सै हरिहर दौ कान्हश सुतौ (308/04) (58/05) बांसू नोने को नरउन सै चन्द्र9कर दौ माण्डधर सै विशो द्दौणा (76/08) दामू सुता दरिहरा सै गुणे दौ (22/05) (75/09) शिवे सुतौ गुणेक: द्वारम बेलउँच सै शिरू दौ (10/03) महो जयादित्य( सुता हरदत्त सुधे शिरूका: पण्डु5आसै प्राणधर सुतहल्लेवश्वेर दौ भन्दववाल सै शिरूद्दौणा शिरू सुतौ (75/09)
(77)
गंगाधर लक्ष्मीआधरौ पालीसै दिनकर दौ (12/05) हचलू सुतौ दिनकर: नरउन सै योगेश्वररदौ पालीसै हलधर द्दौणा दिनकर सुता कटौना माण्ड र सै सुरसरदौ (22/02) कुo राजू द्दौणा गुणे सुतौ (70/09) गणेश: कटमा हरिअम सै रामकर दौ (16/08) रामकर सुतौ (96/05) हरिहर: पचही अजीवo मितू दौ (17/04) गोपाल सुता मितू दिनू पिरतू पर्वत (58/06) हिरइ का: वलियास सै सुधाकर दौ।। मितू सुतौ ओहरि: उचति सै थानू सुत होरे दौ खण्डवबला सै भीम द्दौणा एवम् गोपाल मात्रिक चक्रं कर मo मo उपाध्यासय ठ. (93/01) गोपाल सुतौ माधव: वलिo हरिअम सै सुधाकर दौ (27/05) कुश सुतौ सुधाकर: महनौरा खौआलसै डालू दौ (19/04) (38/03) रामकर सुतौ डालूक: पालीसै गोपालनदं माण्ड रसै वीर द्दौणा (83/07) डालू सुतौ उधोरण:(84/07) पचही जजिवाल सै शंकर दौ (17/04) (38/02) माधव सुतौ (77/02) शंकरौ सकराढ़ी सै जगद्धर सुत आङनि दौ केउँअराम सै मधुकर द्दौणा शंकर सुता हरिपति गणपति गुदे खांतरा: सकराढी सै रतीश्व्र सुत गौढि दौ (24/03) गोढि सुता सोने गणपति मुशे मुरारी शिरूका: बहेराढी सै विशो सुत वागीश्वैर दौ गंगोर सै हरिहर दौ मिश्र सुधाकर सुतो (252/07) रघुनाथ: गौर सादोपुरसै सुधाधर दौ (19/01) बाटू सुता सुधाधर (57/09) मणिधर (54/02) रामधर रूपधरा: जगति सैभवे दौ जजिo धाम द्दौणा (44/08) सुधाधर सुता (36/01) (86/08) बासुरे चक्रयाणि पद्मनाभा: माण्डेर सै नोने दौ (18/03) महामहो रतिपति सुता चान्दा (35/08) (54/08) इबेकुशे का: मलिछाम नरउन सै डालू सुत मधुकर दौ (08/03) वलियासै यशोधर द्दौणा मोन शावर पुस्तसक।। कुचित पनिo शोंशे द्दौणा झूo नoशाखा लेखक: डोमाई मिश्रा।। चाण प्रo (39/04) चन्द्रुपति सुता बासू प्रoबसुपति सूर्यपति शम्भूलपति गंगापति (45/06) मानू का: सिरखंडिया (314/03) लेखक लूटन झा
(78) (31)
करमहा सै केशव दौ (02/08) केशव सुतो (54/01) टुनेक: खण्डपबला सै पुरूषोत्तम सुत ज्ञानपति दौ भन्दावाल सै मतिकर द्दौणा वसुपति सुता नोने (33/05) ओहरि निकार गुणाकर हरिहर: विरपुर पनिo खांतू दौ (17/02) जजिo रति द्दौणा नोने सुता (318/02) गोविन्द (77/02) पुरूषोत्तम गिरिपति भवानी नाथा: उजान वुधo होरे दौ (221/07) हरि सुता (58/04) धीरू होरे सदुo (151/02) कुलपतिय: बेलo जिवादित्य1 दौ (19/06) वुधवाल सै शुभंकर द्दौणा होरे सुता (79/06) उधे वेणी काशी (259/08) विष्णुदपतिय: माण्ड र सै रामकर दौ (25/07) घोसेत सै गुणाकर द्दौणा एवम् परशुराम मत्रिक चक्रम।। परशुराम सुतौ हाड़ी चिन्ता मति महिथा सोदरपुर सै बएन सुता छीतर दौ (23/0/0) कीर्तिनाथ (42/07) सुता काशी भैरव माधव दामोदरा: (107/0) सिमवाड़ खौआल सै राम सुत गहाई दौ (21/10) (94/05) गहाई सुतौ जसाउन नोने कौ समया पालीसै गोपाल दौ (23/0/0) गोपाल सुतौ (53/06) हरिपाणि: खौआल सै साधुकर सुत शुचिकर दौ (19/04) शुचिकर सुता अलय सै साढू सुत नारायण दौ सोदरपुर सै भोगीश्व9र दौहित्र दौ (85/04) काशी सुतौ (209/08) गुणी बाटनौ पारखण्डर बहेराढ़ी सै चान्द्र4 दौ (27/0) हरिहर अलकार (070/08) कुबेरा: सिर खंडिपा माण्ड0र सै महादेव दौ (27/09) आङनि सुतौ महादेव वुधवाल सै भानु दौ (19/04) दरिo प्रिति शर्म्भड द्दौणा बo (0211/0) महादेव सुता हरिअम सै नाथू दौ (25/07) (39/05) मांगु सुतो नाथुक: गंगोर सै हरिनाथ दौ झूo नo शाo पुo।। गंगोली सै मतिनाथ सुत हरिनाथ दौ।। मेहनo शाoपुo लेo पौ लूटन झा नाथू सुता राम (322/04) लाखन (40/06) रघु खूरीका: (32/05) ब्रह्मपुर
(79)
जजिo नारू दौ (20/09) खौआलसै विश्वघनाथ द्दौणा बाटन सुतौ पदूम(96/01) छीतरौ माण्ड र सै हरिनाथ दौ (25/02) पदम सुतौ हरिनाथ:सरिसब सै कुलपति दौ (28/01) (87/01) कुलपति सुतौ विशोक: दरिoगांगुदौ।। हरिनाथ सुतौ श्रीपति: बेहद करo. नरहरि दौ (26/09) हरसुतौ(76/04) गोविन्दण नरहरि सिमरी वलियास सै जोर दौ (30/07) माधवसुतौ नारायण: एकहरा सै सुधाकर दौ ।। नारायण सुता जोर (44/10) (36/09) महन् शिरू का: बेलउँच सै धर्मादित्य( दौ (16/05) खौआलसैउँमापति द्दौणा।। जोर सुतो रघुनाथ (40/05) बहेराढ़ी सै विश्वरभर दौ(07/06) खौआलसै रघुपति द्दौणा नरहरि सुतौ गोन्इदक: हरिहरा सै थेघ दौ(21/09) बुद्धिकर सुतो थेध: सोदरo रघुनाथ दौ (130/07) रघुनाथ सुतौ(48/05) महिपति गंगापति (66/05) तिसूरी सै ग्रहेश्वसर दौ।। थेध सुतौलक्ष्मीमपति गौरीपति हारी पाली सै कान्ह8 दौ (21/03) कान्ह6 सुता(37/03) विष्णुचपति (35/09) रघुपति नरपति (83/01) रमापतिइन्द्र पति हरिपति (142/08) (54/06) सुरपतिय: सकराढ़ी सै गुणेदौ।।एवम् छीतर मात्रिक चक्रं।। (81/07) छीतर प्रo परशुराम सुतौ (106/03)भोरानाथ: रजौरा माण्डरर सै रघुनन्दरन दौ (18/01) (46/02) यग्यतपतिसुता अफेल (75/08) वेणी नरहरि (152/07) शशिधरा: आद्या पालीसै रूददौ (28/02) वलियारू सै नारू दौ।। अन्यो़ पालीसै रविनाथ दौ (20/10)खौo रविनाथ मo मo उपाo (56/03) नरहरिसुतौ घनेश: शोधोलिअलय सैवेणी दौ (15/03) हरि सुतौ रघुक: खौआल सै शुचिकर दौ बुधवाल सै मानुदौ (66/08) रघु सुतो वेणीक: खौआलह नारायण दौ (21/05) नारायणसुता (61/02) खण्डाबला सै नरहरि दौ (22/02) नरउनसै चन्द्रेकर द्दौणावेणी सुतौ देवनाथ: (46/06) माण्डैरसै देहरि दौ (29/04) गुणाकर सुतौदेहरि: कुजौली सै श्री वर्द्धन सुत हरिहर दौ माण्डौर सै वागीश्व र द्दौणा देहरिसुता जीवे बासू (131/03) यशुका: सरिसब सै भवादित्यससुत रवि दौसकराढ़ी सै नन्दीौश्वार द्दौणा
भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
मैथिलीक मानक लेखन-शैली
1. नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली आऽ 2.मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली
1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन
१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।
२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।
३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।
४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।
५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।
६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।
७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।
८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।
९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।
१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए। हमसभ हुनक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ चलबाक प्रयास कएलहुँ अछि।
पोथीक वर्णविन्यास कक्षा ९ क पोथीसँ किछु मात्रामे भिन्न अछि। निरन्तर अध्ययन, अनुसन्धान आ विश्लेषणक कारणे ई सुधारात्मक भिन्नता आएल अछि। भविष्यमे आनहु पोथीकेँ परिमार्जित करैत मैथिली पाठ्यपुस्तकक वर्णविन्यासमे पूर्णरूपेण एकरूपता अनबाक हमरासभक प्रयत्न रहत।
कक्षा १० मैथिली लेखन तथा परिमार्जन महेन्द्र मलंगिया/ धीरेन्द्र प्रेमर्षि संयोजन- गणेशप्रसाद भट्टराई
प्रकाशक शिक्षा तथा खेलकूद मन्त्रालय, पाठ्यक्रम विकास केन्द्र,सानोठिमी, भक्तपुर
सर्वाधिकार पाठ्यक्रम विकास केन्द्र एवं जनक शिक्षा सामग्री केन्द्र, सानोठिमी, भक्तपुर।
पहिल संस्करण २०५८ बैशाख (२००२ ई.)
योगदान: शिवप्रसाद सत्याल, जगन्नाथ अवा, गोरखबहादुर सिंह, गणेशप्रसाद भट्टराई, डा. रामावतार यादव, डा. राजेन्द्र विमल, डा. रामदयाल राकेश, धर्मेन्द्र विह्वल, रूपा धीरू, नीरज कर्ण, रमेश रञ्जन
भाषा सम्पादन- नीरज कर्ण, रूपा झा
2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली
1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
ग्राह्य
एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि
अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।
2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।
21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।
ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६
VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS
8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1.Original poem in Maithili by Ramlochan Thakur Translated into English by Gajendra Thakur
8.2.THE COMET- English translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani translated by Jyoti.
DATE-LIST (year- 2009-10)
(१४१७ साल)
Marriage Days:
Nov.2009- 19, 22, 23, 27
May 2010- 28, 30
June 2010- 2, 3, 6, 7, 9, 13, 17, 18, 20, 21,23, 24, 25, 27, 28, 30
July 2010- 1, 8, 9, 14
Upanayana Days: June 2010- 21,22
Dviragaman Din:
November 2009- 18, 19, 23, 27, 29
December 2009- 2, 4, 6
Feb 2010- 15, 18, 19, 21, 22, 24, 25
March 2010- 1, 4, 5
Mundan Din:
November 2009- 18, 19, 23
December 2009- 3
Jan 2010- 18, 22
Feb 2010- 3, 15, 25, 26
March 2010- 3, 5
June 2010- 2, 21
July 2010- 1
FESTIVALS OF MITHILA
Mauna Panchami-12 July
Madhushravani-24 July
Nag Panchami-26 Jul
Raksha Bandhan-5 Aug
Krishnastami-13-14 Aug
Kushi Amavasya- 20 August
Hartalika Teej- 23 Aug
ChauthChandra-23 Aug
Karma Dharma Ekadashi-31 August
Indra Pooja Aarambh- 1 September
Anant Caturdashi- 3 Sep
Pitri Paksha begins- 5 Sep
Jimootavahan Vrata/ Jitia-11 Sep
Matri Navami- 13 Sep
Vishwakarma Pooja-17Sep
Kalashsthapan-19 Sep
Belnauti- 24 September
Mahastami- 26 Sep
Maha Navami - 27 September
Vijaya Dashami- 28 September
Kojagara- 3 Oct
Dhanteras- 15 Oct
Chaturdashi-27 Oct
Diyabati/Deepavali/Shyama Pooja-17 Oct
Annakoota/ Govardhana Pooja-18 Oct
Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-20 Oct
Chhathi- -24 Oct
Akshyay Navami- 27 Oct
Devotthan Ekadashi- 29 Oct
Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 2 Nov
Somvari Amavasya Vrata-16 Nov
Vivaha Panchami- 21 Nov
Ravi vrat arambh-22 Nov
Navanna Parvana-25 Nov
Naraknivaran chaturdashi-13 Jan
Makara/ Teela Sankranti-14 Jan
Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 20 Jan
Mahashivaratri-12 Feb
Fagua-28 Feb
Holi-1 Mar
Ram Navami-24 March
Mesha Sankranti-Satuani-14 April
Jurishital-15 April
Ravi Brat Ant-25 April
Akshaya Tritiya-16 May
Janaki Navami- 22 May
Vat Savitri-barasait-12 June
Ganga Dashhara-21 June
Hari Sayan Ekadashi- 21 Jul
Guru Poornima-25 Jul
१.विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी रूपमे Videha e journal's all old issues in Braille Tirhuta and Devanagari versions
२.मैथिली पोथी डाउनलोड Maithili Books Download,
३.मैथिली ऑडियो संकलन Maithili Audio Downloads,
४.मैथिली वीडियोक संकलन Maithili Videos
५.मिथिला चित्रकला/ आधुनिक चित्रकला आ चित्र Mithila Painting/ Modern Art and Photos
"विदेह"क एहि सभ सहयोगी लिंकपर सेहो एक बेर जाऊ।
६.विदेह मैथिली क्विज :
http://videhaquiz.blogspot.com/
७.विदेह मैथिली जालवृत्त एग्रीगेटर :
http://videha-aggregator.blogspot.com/
८.विदेह मैथिली साहित्य अंग्रेजीमे अनूदित :
http://madhubani-art.blogspot.com/
९.विदेहक पूर्व-रूप "भालसरिक गाछ" :
http://gajendrathakur.blogspot.com/
१०.विदेह इंडेक्स :
http://videha123.blogspot.com/
११.विदेह फाइल :
http://videha123.wordpress.com/
१२. विदेह: सदेह : पहिल तिरहुता (मिथिला़क्षर) जालवृत्त (ब्लॉग)
http://videha-sadeha.blogspot.com/
१३. विदेह:ब्रेल: मैथिली ब्रेलमे: पहिल बेर विदेह द्वारा
http://videha-braille.blogspot.com/
१४.VIDEHA"IST MAITHILI FORTNIGHTLY EJOURNAL ARCHIVE
http://videha-archive.blogspot.com/
१५. 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मैथिली पोथीक आर्काइव
http://videha-pothi.blogspot.com/
१६. 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऑडियो आर्काइव
http://videha-audio.blogspot.com/
१७. 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका वीडियो आर्काइव
http://videha-video.blogspot.com/
१८. 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मिथिला चित्रकला, आधुनिक कला आ चित्रकला
http://videha-paintings-photos.blogspot.com/
१९. मैथिल आर मिथिला (मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त)
http://maithilaurmithila.blogspot.com/
२०.श्रुति प्रकाशन
http://www.shruti-publication.com/
२१.विदेह- सोशल नेटवर्किंग साइट
http://videha.ning.com/
२२.http://groups.google.com/group/videha
२३.http://groups.yahoo.com/group/VIDEHA/
२४.गजेन्द्र ठाकुर इडेoक्स
http://gajendrathakur123.blogspot.com
२५.विदेह रेडियो:मैथिली कथा-कविता आदिक पहिल पोडकास्ट साइटhttp://videha123radio.wordpress.com/
२६. नेना भुटका
http://mangan-khabas.blogspot.com/
महत्त्वपूर्ण सूचना (१):महत्त्वपूर्ण सूचना: श्रीमान् नचिकेताजीक नाटक "नो एंट्री: मा प्रविश" केर 'विदेह' मे ई-प्रकाशित रूप देखि कए एकर प्रिंट रूपमे प्रकाशनक लेल 'विदेह' केर समक्ष "श्रुति प्रकाशन" केर प्रस्ताव आयल छल। श्री नचिकेता जी एकर प्रिंट रूप करबाक स्वीकृति दए देलन्हि। प्रिंट संस्करणक विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे।
महत्त्वपूर्ण सूचना (२): 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। संप्रति मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश-खण्ड-I-XVI. प्रकाशित कएल जा रहल अछि: लेखक-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा, दाम- रु.५००/- प्रति खण्ड । Combined ISBN No.978-81-907729-2-1 e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com website:http://www.shruti-publication.com
महत्त्वपूर्ण सूचना:(३). पञ्जी-प्रबन्ध विदेह डाटाबेस मिथिलाक्षरसँ देवनागरी पाण्डुलिपि लिप्यान्तरण- श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत। पञ्जी-प्रबन्ध (शोध-सम्पादन, डिजिटल इमेजिंग आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण)- तीनू पोथीक शोध-संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा Combined ISBN No.978-81-907729-6-9
महत्त्वपूर्ण सूचना:(४) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे।कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)-लेखक गजेन्द्र ठाकुर Combined ISBN No.978-81-907729-7-6विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे ।
महत्त्वपूर्ण सूचना (५): "विदेह" केर २५म अंक १ जनवरी २००९, प्रिंट संस्करण विदेह-ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक चुनल रचना सम्मिलित। विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे।
महत्त्वपूर्ण सूचना (६):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary. विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे
नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA.
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक- गजेन्द्र ठाकुर
गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७
Ist edition 2009 of Gajendra Thakur’s KuruKshetram-Antarmanak (Vol. I to VII)- essay-paper-criticism, novel, poems, story, play, epics and Children-grown-ups literature in single binding:
Language:Maithili
६९२ पृष्ठ : मूल्य भा. रु. 100/-(for individual buyers inside india)
(add courier charges Rs.50/-per copy for Delhi/NCR and Rs.100/- per copy for outside Delhi)
For Libraries and overseas buyers $40 US (including postage)
The book is AVAILABLE FOR PDF DOWNLOAD AT
https://sites.google.com/a/videha.com/videha/
http://videha123.wordpress.com/
(send M.O./DD/Cheque in favour of AJAY ARTS payable at DELHI.)
DISTRIBUTORS: AJAY ARTS, 4393/4A,
Ist Floor,Ansari Road,DARYAGANJ.
Delhi-110002 Ph.011-23288341, 09968170107
e-mail:shruti.publication@shruti-publication.com
विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : देवनागरी
"विदेह" क २५म अंक १ जनवरी २००९, प्रिंट संस्करण :विदेह-ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक चुनल रचना सम्मिलित।
विदेह: प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/
विदेह: वर्ष:2, मास:13, अंक:25 (विदेह:सदेह:1)
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर
गजेन्द्र ठाकुर (1971- ) छिड़िआयल निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) ,पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण),महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक (खण्ड 1 सँ7 ) नामसँ। हिनकर कथा-संग्रह(गल्प-गुच्छ) क अनुवाद संस्कृतमे आ उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) क अनुवाद संस्कृत आ अंग्रेजी(द कॉमेट नामसँ)मे कएल गेल अछि। मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली शब्दकोश आ पञ्जी-प्रबन्धक सम्मिलित रूपेँ लेखन-शोध-सम्पादन-आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण। अंतर्जाललेल तिरहुता यूनीकोडक विकासमे योगदान आ मैथिलीभाषामे अंतर्जाल आ संगणकक शब्दावलीक विकास। ई-पत्र संकेत- ggajendra@gmail.com
सहायक सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा
श्रीमति रश्मि रेखा सिन्हा (1962- ), पिता श्री सुरेन्द्र प्रसाद सिन्हा, पति श्री दीपक कुमार। श्रीमति रश्मि रेखा सिन्हा इतिहास आ राजनीतिशास्त्रमे स्नातकोत्तर उपाधिक संग नालन्दा आ बौधधर्मपर पी.एच.डी.प्राप्त कएने छथि आ लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर आलेख-प्रबन्ध सेहो लिखने छथि।सम्प्रति “विदेह” ई-पत्रिका(http://www.videha.co.in/ ) क सहायक सम्पादक छथि।
मुख्य पृष्ठ डिजाइन: विदेह:सदेह:1 ज्योति झा चौधरी
ज्योति (1978- ) जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी।ज्योतिकेँ www.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) ज्योतिकेँ भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि।
विदेह ई-पत्रिकाक साइटक डिजाइन मधूलिका चौधरी (बी.टेक, कम्प्यूटर साइंस), रश्मि प्रिया (बी.टेक, कम्प्यूटर साइंस) आ प्रीति झा ठाकुर द्वारा।
(विदेह ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ http://www.videha.co.in/ पर ई-प्रकाशित होइत अछि आ एकर सभटा पुरान अंक मिथिलाक्षर, देवनागरी आ ब्रेल वर्सनमे साइटक आर्काइवमे डाउनलोड लेल उपलब्ध रहैत अछि। विदेह ई-पत्रिका सदेह:1 अंक ई-पत्रिकाक पहिल 25 अंकक चुनल रचनाक संग पुस्तकाकार प्रकाशित कएल जा रहल अछि। विदेह:सदेह:2 जनवरी 2010 मे आएत ई-पत्रिकाक26 सँ 50म अंकक चुनल रचनाक संग।)
Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)
विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)
विदेह: सदेह: 1: : देवनागरी : मूल्य भा. रु. 100/-
(add courier charges Rs.20/-per copy for Delhi/NCR and Rs.30/- per copy for outside Delhi)
BOTH VERSIONS ARE AVAILABLE FOR PDF DOWNLOAD AT
https://sites.google.com/a/videha.com/videha/
http://videha123.wordpress.com/
(send M.O./DD/Cheque in favour of AJAY ARTS payable at DELHI.)
DISTRIBUTORS: AJAY ARTS, 4393/4A,
Ist Floor,Ansari Road,DARYAGANJ.
Delhi-110002 Ph.011-23288341, 09968170107
Website:http://www.shruti-publication.com
e-mail:shruti.publication@shruti-publication.com
"मिथिला दर्शन"
मैथिली द्विमासिक पत्रिका
अपन सब्सक्रिप्शन (भा.रु.288/- दू साल माने 12 अंक लेल भारतमे आ ONE YEAR-(6 issues)-in Nepal INR 900/-, OVERSEAS- $25; TWO YEAR(12 issues)- in Nepal INR Rs.1800/-, Overseas- US $50) "मिथिला दर्शन"केँ देय डी.डी. द्वारा Mithila Darshan, A - 132, Lake Gardens,
Kolkata - 700 045 पतापर पठाऊ। डी.डी.क संग पत्र पठाऊ जाहिमे अपन पूर्ण पता, टेलीफोन नं. आ ई-मेल संकेत अवश्य लिखू। प्रधान सम्पादक- नचिकेता। कार्यकारी सम्पादक- रामलोचन ठाकुर। प्रतिष्ठाता सम्पादक- प्रोफेसर प्रबोध नारायण सिंह आ डॉ. अणिमा सिंह। Coming Soon:
http://www.mithiladarshan.com/
(विज्ञापन)
अंतिका प्रकाशन की नवीनतम पुस्तक
सजिल्द
मीडिया, समाज, राजनीति और इतिहास
डिज़ास्टर : मीडिया एण्ड पॉलिटिक्स: पुण्य प्रसून वाजपेयी 2008 मूल्य रु. 200.00
राजनीति मेरी जान : पुण्य प्रसून वाजपेयी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.300.00
पालकालीन संस्कृति : मंजु कुमारी प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 225.00
स्त्री : संघर्ष और सृजन : श्रीधरम प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु.200.00
अथ निषाद कथा : भवदेव पाण्डेय प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु.180.00
उपन्यास
मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
कहानी-संग्रह
रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु.125.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 200.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 200.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 180.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
बडक़ू चाचा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 195.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 200.00
कविता-संग्रह
या : शैलेय प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 160.00
जीना चाहता हूँ : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 300.00
कब लौटेगा नदी के उस पार गया आदमी : भोलानाथ कुशवाहा प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु.225.00
लाल रिब्बन का फुलबा : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु.190.00
लूओं के बेहाल दिनों में : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 195.00
फैंटेसी : सुनीता जैन प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.190.00
दु:खमय अराकचक्र : श्याम चैतन्य प्रकाशन वर्ष2008 मूल्य रु. 190.00
कुर्आन कविताएँ : मनोज कुमार श्रीवास्तव प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 150.00
पेपरबैक संस्करण
उपन्यास
मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00
कहानी-संग्रह
रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2007मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 90.00
मैथिली पोथी
विकास ओ अर्थतंत्र (विचार) : नरेन्द्र झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 250.00
संग समय के (कविता-संग्रह) : महाप्रकाश प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
एक टा हेरायल दुनिया (कविता-संग्रह) : कृष्णमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 60.00
दकचल देबाल (कथा-संग्रह) : बलराम प्रकाशन वर्ष2000 मूल्य रु. 40.00
सम्बन्ध (कथा-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 165.00 शीघ्र प्रकाश्य
आलोचना
इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक
बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन
सामाजिक चिंतन
किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा
शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र
उपन्यास
माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन
कहानी-संग्रह
धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम
अंतिका, मैथिली त्रैमासिक,सम्पादक- अनलकांत
अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
आजीवन सदस्यता शुल्क भा.रु.2100/-चेक/ ड्राफ्ट द्वारा “अंतिका प्रकाशन” क नाम सँ पठाऊ। दिल्लीक बाहरक चेक मे भा.रु. 30/- अतिरिक्त जोड़ू।
बया, हिन्दी छमाही पत्रिका,सम्पादक- गौरीनाथ
संपर्क- अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
आजीवन सदस्यता शुल्क रु.5000/- चेक/ ड्राफ्ट/ मनीआर्डर द्वारा “ अंतिका प्रकाशन” के नाम भेजें। दिल्ली से बाहर के चेक में 30 रुपया अतिरिक्त जोड़ें।
पुस्तक मंगवाने के लिए मनीआर्डर/ चेक/ ड्राफ्ट अंतिका प्रकाशन के नाम से भेजें। दिल्ली से बाहर के एट पार बैंकिंग (at par banking) चेक के अलावा अन्य चेक एक हजार से कम का न भेजें। रु.200/- से ज्यादा की पुस्तकों पर डाक खर्च हमारा वहन करेंगे। रु.300/- से रु.500/- तक की पुस्तकों पर 10% की छूट, रु.500/- से ऊपर रु.1000/- तक 15%और उससे ज्यादा की किताबों पर 20%की छूट व्यक्तिगत खरीद पर दी जाएगी ।
एक साथ हिन्दी, मैथिली में सक्रिय आपका प्रकाशन
अंतिका प्रकाशन
सी-56/यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन,एकसटेंशन-II
गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
फोन : 0120-6475212
मोबाइल नं.9868380797,
9891245023
ई-मेल: antika1999@yahoo.co.in,
antika.prakashan@antika-prakashan.com
http://www.antika-prakashan.com
(विज्ञापन)
श्रुति प्रकाशनसँ
१.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
२.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
३.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
४.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादव
५.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ आ २ (लेखकक छिड़िआयल पद्य, उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते, महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलन)- गजेन्द्र ठाकुर
६.विलम्बित कइक युगमे निबद्ध (पद्य-संग्रह)- पंकज पराशर
७.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
८. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह “नचिकेता” प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड (ISBN NO.978-81-907729-0-7 मूल्य रु.१२५/- यू.एस. डॉलर ४०) आ पेपरबैक (ISBN No.978-81-907729-1-4 मूल्य रु. ७५/- यूएस.डॉलर २५/-)
९/१०/११ 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर१.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। संप्रति मैथिली-अंग्रेजी शब्दकोश-खण्ड-I-XVI. लेखक-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा, दाम- रु.५००/- प्रति खण्ड । Combined ISBN No.978-81-907729-2-1 ३.पञ्जी-प्रबन्ध (डिजिटल इमेजिंग आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यांतरण)- संकलन-सम्पादन-लिप्यांतरण गजेन्द्र ठाकुर , नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा द्वारा ।
१२.विभारानीक दू टा नाटक: "भाग रौ" आ "बलचन्दा"
१३. विदेह:सदेह:१: देवनागरी आ मिथिला़क्षर संदस्करण:Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1:तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: : देवनागरी : मूल्य भा. रु.100/-
श्रुति प्रकाशन, DISTRIBUTORS: AJAI ARTS, 4393/4A, Ist Floor,AnsariRoad,DARYAGANJ. Delhi-110002 Ph.011-23288341, 09968170107.Website: http://www.shruti-publication.com
e-mail: shruti.publication@shruti-publication.com
(विज्ञापन)
२. संदेश
१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ। सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल। हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।
२.श्री रमानन्द रेणु- मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।
३.श्री विद्यानाथ झा "विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल, तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।
४. प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह|
६. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
७. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
८. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
१०. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
११. श्री विजय ठाकुर- मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
१२. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१३. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
विदेह
मैथिली साहित्य आन्दोलन
(c)२००८-०९. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। सहायक सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
(c) 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ' संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाक अनुवाद आ पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतु ggajendra@videha.com पर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरी आ रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल। सिद्धिरस्तु
-
"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
-
जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
-
खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।