भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Monday, August 31, 2009
पेटार १३
..
पुरुष पात्र नारी पात्र
जीबू संझा
चैतू बिन्दा
बैजू
शिबू
नीलू
एकटा आङन। आङनक दू भागमे घर। एक भागक घरमे दू टा हन्ना। एकटा हन्नामे
केबाड़ तथा दोसरमे सिरकी लागल। दोसर भागक घरमे एक्कोटा हन्ना। ओहिमे फट्टक लागल।
ओकर बुआरि बहुत गंदा। आङनक तेसर भागमे पर्दाक टाट लागल। टाट पुरान तथा टूटल-
फाटल। आङनक चारिम भाग उदाम। ई भाग देखला सँ बूझि पड़ैछ जेना पहिने एहिठाम घर
रहल होइक। घरक भग्नावशेष किछु अंशमे एखनो व्याप्ते। आङनक बीचमे मड़बा। मड़बा पर
एकटा पीढ़ी उन्टल राखल। बीचमे एकटा पटिया ओछाओल। पटियाक किछु मोंथी उघरल।
केबाड़ बला हन्नाक दुआरि पर घेल्ची। ओहि पर दू टा घैल। ओहिमे सँ एकटा नीक तथा
दोसरक कान्ह फूटल। एही हन्नाक ओल्तीमे कोनो दोसर चीज रखबाक काज मे उपयोग भेल
एकटा तेलक पुरान टीन राखल। टीन सँ हँटि कऽ दू टा पथार पसरल। एकटा दढ़ पटिया पर
तथा दोसर टूटल पटिया पर सँ चद्दरि पर। उदाम बला तथा टाट बला भागक कोन्चरमे चारि
पाँच टा कर्ची पर छढ़ैत लत्ती। लत्तीक मूड़ी खायल। आङनक सम्पूर्ण स्थिति एकटा साधारण
तथा नापरवाह गृहस्थीक संकेत करैछ।
पर्दा धीरे-धीरे उठैत अछि। ओहिक अनुसार प्रकाशो जीबूक पयर सँ लऽ कऽ ऊपर धरि
बढ़ल जाइछ। ओ लोटा सँ केबाड़ बला दुआरिक कगनी पर ठाढ़ भऽ कऽ पयर धोइत अछि।
पयरमे थाल लागल छैक। सम्पूर्ण पर्दा उठला पर ओ लोटा पटकि कऽ घर मुँहे घूमि गेल
रहैछ। तें ओकर मात्र पछिलका भाग दृष्टिगोचर होइछ। लोटा टीन पर खसवाक कारणें
झनाकक शब्द होइत छैक। जीबू घरमे प्रवेश कऽ जाइत अछि। तत्-पश्चात् आङनक सम्पूर्ण
भाग एक-एक कऽ प्रकाशमे आलोकित होमऽ लगैछ। किछु क्षणक बाद संझा चकुआइत प्रवेश
करैत अछि। किछु आगू बढ़लाक बाद ओकर नजरि पयर धोन पानि पर जाइत छैक। ओ
झटकि कऽ आबि हाञि-हाञि पथार मोड़ऽ लगैछ।
संझा--आँखिमे जेना अन्हरजाली लागल रहनि ! सुझबे ने करैत छनि।
पथार मोड़ि कऽ लात सँ पानि पोछऽ लगैछ। एक्कोरत्ती ई खियाल नहि
कयलकै जे.... ....।
लोटा उठा कऽ दुआरि पर राखि दैत अछि आ पयरक छाप देखि कऽ जाहि
हन्नामे जीबू गेल रहैत अछि ओही हन्नाक मुँह पर क्रुद्ध भेलि जाइत अछि।
की करैत छें? कनी बाहर निकल।
जीबू ने निकलैत अछि आ ने कोनो जबाबे दैत अछि। संझा प्रतीक्षा मे ठाढ़ि
रहैत अछि।
(क्रुद्ध स्वर सँ)सुनैत नहि छें? हम शोर करैत छियौक।
जीबू--(घरे सँ की बात छैक?
संझा--(उच्च स्वर सँ) निकलबें तखन ने।
जीबू निकलि कऽ झुठेक चारू कात चकुआ कऽ तकैत अछि। जेना ने किछु
देखऽ मे आ ने किछु बुझऽ मे अबैत होइक। फेर प्रश्न भरल दृष्टिएँ संझा दिस तकैत
अछि।
किछु देखाई पड़ैत छौक कि नहि?
जीबू--हमरा तँ किछु देखबा मे नहि अबैत अछि। की बात छैक से कहबें तखन ने.. ...।
संझा--एना ऊपरे-घारे नहि रह। निच्चाँ घार करही। संझा पथार दिस संकेत अछि। जीबू पथार
पर ध्यान दैत अछि।
के एना कयलकैए?
जीबू--हमर ध्याने नहि गेल पथार दिस।
संझा--(उच्च स्वरमे) हम की पुछैत छयौक?
जीबू--एखन तँ हमहीं... ... हमरे बुते भेलैए।
संझा--कियैक?
जीबू--ई तँ पहिनहि कहि देलियौक जे...।
संझा--(कचकचैल मोन सँ) तों हमरा एतेक कथीलए नचबैत छें?
जीबू--एहिलए आब फँसी देबाक छौक तँ दऽ दे। हमरो नीक भऽ जायत।
संझा--(गुम्हरि कऽ) हूँ, एकर ई जबाब.... ...।
जीबू--जान छोड़बऽ चाहैत छी तँ....।
संझा--(विक्षुब्ध स्वर सँ) उन्टे...जेना पानि चल गेलैक तेना हँटा दितैक से नहि तँ....।
जीबू--वैह हमरा मोनमे नहि उपकल।
जीबू आगू बढ़ि कऽ पथार लग जाइत अछि। पथार कें घीचि कऽ ओहिठाम सँ हँटबऽ
लगैत अछि।
संझा--आब हँटेबाक काज नहि छैक। एखन हम खुट्टा छियौक।
संझा आगू बढ़ि कऽ जीबूक बाँहि पकड़ि कऽ कात कऽ दैत अछि। ओ अपने ओहिठाम
सँ पथार कें कात कऽ दैत अछि।
जीबू--(ईष्र्या सँ) एहन तामसे नहि देखलहुँ।
संझा--(उनटि कऽ जीबू कें तकैत) हमरे तामस... ....। पाथर तर पानि भिन्ने...।
जीबू--(तरुछि कऽ मुँहक बात लोकैत)से तँ कहलियौक जे....। संझा पथार कें पसारि कऽ
लारऽ लगैत अछि।
संझा--हे, बुझलहुँ जे बेसोहमे ओतऽ पयर धो लेलें। आ लोटा कें जो ओना कऽ ओंघरा देलही
से।
जीबू--ओंघरा गेलैक तँ हम की करियौक? जान दऽ दियौक।
संझा--(उनटि कऽ पुनः जीबू कें तकैत) जान दऽ देबही ! कनखामे पानि पीबें?
जीबू--(चिकरि कऽ)ह, हम पीअब। तों बाज नहि। तों बजैत छें तँ....।
जीबू मड़बाक कगनी प चुक्कीमाली भऽ कऽ बैसि जाइत अछि। संझा पथार लारऽमे
व्यस्त रहैत अछि।
संझा--हम अपने लए बजैत छियनि।
जीबू--हमरा जिनगी लए तोरा चिन्ता करबाक काज नहि छौक। हम अपना जिनगी लए अपने...
....।
संझा--तों अपना जिनगी लए सोचितें तँ.... ...।
जीबू--ब्यर्थ तों एतेक... ....।
संझा--नहि देखल जाइत अछि। तों एना रङडोलबा बनल ... ...। (किछु क्षणक बाद) ककरो
एना करैत देखैत छही?
जीबू--धुर ! लोकक परतर की करैत छें ! लोककमाय एना....(सहसा रुकि जाइछ आ बात
बदलि दैछ) हरदम ई...।
संझा--एखन हमर बोल कटाओन लगैत छोक। बादमे पछतेबें।
जीबू--से कि एखन नहि पछताइत छी? एखनो हम एहि घरमे जन्म लऽ कऽ पछता रहल छी।
जीबू माँथाहाथ धऽ लैत अछि। संझा पथार लारि कऽ मड़बा पर अबैत अछि।
संझा--एखन की भेलौए? एना जँ करैत रहलें तँ....।
जीबू--दोसर चीजक हम उमेदो नहि करैत छी।
जीबू शून्यमे तकैत अछि। संझा पीढ़ी कें सुन्टा कऽ केबाड़ बला हन्नाक दुआरि पर जा
कऽ बैसि जाइत अछि।
संझा--कर ने, जाही सँ तोरा खुशी भेटौक से...।
जीबू--एहि घरमे? ऊहूँ, एहि घरमे किछु सम्भव नहि। ई घर तँ... ...।
संझा--तँ कहाँ?
जीबू--एहिठाम सँ दूर, बहुत दूर।
जीबू शून्यमे किछु ताकऽ लगैछ। जतऽ एहिठामक... ...।
संझा--तँ ओहो कऽ कऽ देखही ने जे...। मुदा ई कियैक नहि बुझैत छही जे जयबें नेपाल आ
कपार जयतौक सङे।
जीबू--(व्यंग्य सँ मुस्कुराइत) हुः ई बात आब पुरान भऽ गेलैक। लोकक आँखि आ दिमाग काज
करैत छैक। जीबू उठि कऽ मढ़बामे सँ एकटा काठी तोड़ि कान खोधऽ लगैछ। संझा
जीबू दिस तकैत अछि। जीबू कान खोधैत पीढ़ी पर बैसि जाइत अछि।
संझा--लोकक आँखि आ दिमाग ठीके काज करैत छैक, मुदा तोहर नहि। निकम्मा आधमीक
सङ निकम्मे बुद्धि आ विचार रहैत छैक।
जीबू--ओमहरका छोड़ने। घरमे जे हम निकम्मा बनल छी से ... ... (सहसा रूकि जाइछ)
संझा--से की?
जीबू काठी फेकि दैत अछि। किछु गम्भीर जँका भऽ जाइत अछि।
जीबू--तोरा मोनमे एतेक किचकिचाहटि कथीलए आबि गेलौए?
संझा--तों कहऽ की चाहैत छलें? कनुआ कऽ जीबू दिस तकैत अछि।
जीबू--यैह तँ कहलियौक।
जीबू पटिया सँ एकटा मोंथी तोड़ि कऽ दाँत सँ खोटऽ लगैछ।
संझा--हमरा मोनमे एतेक किचकिचाहटि तोरा देखि कऽ अबैत अछि। तों ने एकोटा खढ़क दुःख
देबें, ने कोनो खेत पथार जयबें, ने बाहर ककरो सँ...। भरि दिन घरमे बैसल-बैसल।
आ मोन उबिएतौक तँ जैह चीज पयबें सैह चीज बेचि कऽ.....।
जीबू--हमरा जे फूरत से करब। एहिमे तोरा।
संझा--जे फुरतौक से करबे?
जीबू--हूँ।
संझा मोन मसोड़ि कऽ रहि जाइछ। जीबू पुनः पटिया सँ दोसर मोंथी तोड़ैत अछि।
संझा आबि कऽ जीबूक आगू सँ पटिया मोड़ि कऽ कात कऽ दैत अछि आ निच्चेंमे बैसि
जाइत अछि। किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
संझा--आखिर तों चाहैत छें की?
जीबू--किछु नहि, आ कखनो-कखनो बहुत किछु।
संझा--से तों कहैत छें कियैक नहि? (किछु क्षणक बाद) तोरा कहबाक चाही ने जे... ....।
जबावक लेल जीबू दिस तकैत अछि। उँ?
जीबू कोनो जबाब नहि दैछ। हम की पुछलियौक?
जीबू संझाक बात कें अनसूनी करैत अछि। संझा उत्तरक प्रतीक्षामे रहैछ। जीबू वैह
फेकलाहा काठी सँ चीछ पारऽ लगैछ।
ओहि काठी सँ बेसी माँटि नहि कोड़ेतौक। कोदारि लऽ अबै।
जीबू--लाबै ने कोदारि। ढाहि दियैक एहि घर सबकें ! जीबू चीछ पारिते रहैछ। किछु क्षणक
बाद जीबू चीछ पारनाइ छोड़ि कऽ पटिया घीचि लैत अछि आ ओकरा ओछा कऽ
पेटकुनियाँ भरे सूति रहैछ। मूड़ी दूनू बाँहि पर रहैत छैक।
संझा--(व्यथित स्वर सँ) अदीनता कपार पर अबैत छैक तँ एहिना होइत छैक ! दोसर की
करतौक !
संझा माँथहाथ धऽ लैत अछि। थोड़ेक काल धरि दूनू गोटाक यैह स्थिति रहैछ।
तत्पश्चात् संझा माँथाहाथ हँटा लैत अछि। ओकर ध्यान कोन्टाक खायल लत्ती पर
जाइत छैक। ओ उठि कऽ लत्ती लग जाइत अछि।
तोड़ि देलकै कोनो मइलहा !
लत्ती कें ठीक करैत अछि। पुनः निच्चाँमे कोनो चीजक चेन्ह देखैत अछि।
आङनमे छल आ बड़द लत्तीक मूड़ी खा गेलैक से।
जीबू--(सुतले-सुतले) हम जखन अयलियैक ताहि सँ पहिने सँ एना छलैक।
संझा--तोरा कोन काज छौक। रहबो करितें तँ....! (किछु क्षणक बाद) ओह ! केहन भोगार गाछ
छल से...।
संझा ओहिठाम सँ केबाड़ बला हन्ना मे जाइत अछि। किछु कालक बाद एकटा पथिया
मे गहूम आ सूप लेने मड़बा पर अबैत अछि।
आइ कयक दिन सँ भुकैत रहि गेलहुँ जे आङन बहुत दिन सँ उदाम अछि से...।
जीबू--की होयतैक पर्दाक टाट लगा कऽ? पर्दाक टाट तँ कोनो जरूरी...।
संझा--से देखलही नहि, आइ जँ लागल रहितैक तँ बड़द खूजि कऽ...।
गहूम कें निच्चाँ मे उझील दैत अछि आ किछु गहूम सूप मे लऽकऽ फटकि लैत अछि।
गीदड़-कुकुर तँ अबिते अछि दोसर जे चलैत अछि से....।
संझा सूपक गहूम बीछऽ लगैछ।
जीबू--बुड़िबक छैक लोक सब। देखी ओ जे देखल नहि रहय।
संझा--नहि, लोक बुझतैक जे जीबू बाबूक आङन छियनि। हमरा आँखि मूनि कऽ...।
जीबू--यदि तोरा जनैत टाट लागब आवश्यक छैक तँ.... लगबा कियैक नहि लैत छें?
संझा--(जीबू कें तकैत) हमहीं लगबा लिअ?
जीबू--'कुकुर' कें कियैक नहि कहैत छही?
संझा--(तमसा कऽ) ओ तँ चुल्हा मे छौक। ओ कियैक लगौतौक?
जीबू बामा हाथ पर माँथ टेकि कऽ संझा दिस तकैत अछि।
जीबू--यैह बात जँ पहिनहि सोचने रहितें तँ...।
संझा--हम की सोचने रहितहुँ?
जीबू--यैह, एखन जे 'कुकुर' कें चुल्हा मे जाय दऽ कहलहीए से...।
संझा--ले ने कारबार अपना हाथ मे। ओ जे एतेक सम्पत्तिक नाश करैत छौंक से....। ओकरा
आब....।
जीबू--करऽ दही।
संझा--करऽ दियौक ! ओकरा तँ किछु नहि बिगड़तैक। आआ तोरा तँ....।
जीबू--(ईष्र्या सँ संझाकें तकैत) हमरो नहि किछु बिगड़त। (किछु क्षणक बाद) हमरा सम्पत्ति सँ
घृणा अछि।
संझा-(व्यथित स्वर सँ) भीख माङक जे लिखल छौक से...।
जीबू--वैह हमहूँ कखनो-कखनो सोचैत छियैक। आ बढ़ियों हमरा लेल...।
हाथ मे एकटा अखबार लेने चैतूक प्रवेश। ओ मड़बा लग आबि कऽ ठाढ़ भऽ जाइत
अछि।
चैतू--एह ! जहिया कहियो आयल होयब तहिया...।
संझा--देखैत छहक? तखन सँ ई...।
जीबू--(संझा सँ) हम तोरा सँ एना नहि करऽ चाहैत छी, .. मुदा...।
संझा--एखन के एहन होयत जे खेती पथारीक ताक मे...। भरि दिन घर मे..।
चैतू--उठ, की घसमोडने पड़ल छें। जीबू उठि कऽ बैसि जाइत अछि।
जीबू--देखियौक अखबार, चौतू !
चैतू अखबार जीबूक आगू मे फेकि दैत अछि। जीबू अखबार हाथ मे लऽ लैत अछि।
तों बैसि नहि सकैत छें?
चैतू आबि कऽ पीढ़ी पर बैसि जाइत अछि। संझा गहूम बीछऽ मे व्यस्त रहैछ। जीबू
अखबारक पन्ना उन्टा कऽ पढ़ऽ लगैछ।
"आवश्यकता है, ... हूँ, हूँ... (किछु क्षणक बाद) आवश्यकता है... हूँ, हूँ...।
पुनः जीबू मोने मोने अखबार पढ़ऽ लगैछ। किछ काल धरि चुप्पी रहैछ।
चैतू--बास्तव मे जीबू, तों क्ष्दद्यद्धदृध्ड्ढद्धद्य भेल जाइत छें।
जीबू--तोहर कहब ठीक छौक।
चैतू--हमरा जनैत क्ष्दद्यद्धदृध्ड्ढद्धद्मत्दृद व्यक्तिक सामाजिक विकास मे बाधक होइत छैक।
जीबू--होइत होयतैक। तों मनोविज्ञान पढ़ने छें। हम तँ....।
चैतू--फेर तँ एहि अवगुणकें हँटबाक चाही ने।
जीबू-- कन्द्यद्धदृध्ड्ढद्धद्य बनब हमरा लेल असम्भव अछि। हमहूँ चाहैत छलहुँ जे...।
संझा--चैतू ! तों की बजैत छह से हम बुझिते ने छियैक।
जीबू--यैह, ई जे...ने ककरो सँ बाजब आने कत्तहु दस लोक मे बैसब...खाली घर मे...।
संझा--ईह ! से स्वाद करतह ! उन्टे तोरे सँ...।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। जीबू अखबारक सब पन्ना ऊपर-झापर देखैत अछि। संझा
बीछल गहूम पथिया मे राखि पुनः एक सूप लऽ कऽ फटकैत अछि आ ओकरा बीछऽ
लगैछ।
जीबू--धुर ! ई अखबार...।
अखबार कें मोड़ि कऽ मुट्ठी मे लऽ लैत अछि।
चैतू--केहन उच्चकोटिक तँ अखबार छैक। हँ, एहि मे एकटा आवश्यकता बला कॉलम...मुदा
तोरा तँ आवश्यकता सँ कोनो प्रयोजन नहि छौक।
जीबू--अरे, हमरा....हमरा नहि काज अछि, मुदा दोसर कें...रहबाक चाही ने।
चैतू--हूँ, से तँ...। दोसर पन्ना कें गौर सँ पढलहीए?
जीबू--की छैक?
चैतू--हिटलरक विषय मे देने छैक। ओ कियैक आत्महत्या कयलकै सेबुझल छौक?
जीबू--किछु किछु कऽ।
चैतू--की?
जीबू--रूसी ओकरा पकड़ि कऽ मास्कोक चिड़ियाखाना मे राखऽ चाहैत छलैक।
चैतू--मुदा कियैक?
जीबू--ओ केहन भारी खूँखार छलैक से बुझल नहि छौक? चैतू भभा कऽ हँसैत अछि।
कथीलए हँसी लगलौक?
चैतू--एकटा बात मोन पड़ि गेलेए।
जीबू--की !
चैतू--आइ सँ सात आठ वर्ष पहिने हिटलरक सम्बन्ध मे गप्प होइत रहैक। तोहर बैजुओ कक्का
ओहिठाम रहौक। ओ कहलकै--हम रहितियैक तँ ओकरा साड़ि कऽ दितियैक। ताहि पर
हम हँसैत पुछलियैक से कोना? ओ बड़ गर्व सँ कहलक केश कऽ दितियैक। जहाँ दुइए
तारीख मे कचहरी आबऽ पड़ितैक
कि.... बस।
सँझा--(कन्हुआ कऽ चैतू दिस तकैत) चैतू, डे बड़ अताई रहैत अछि ओकरा....ओकरा कहियो
ने कहियो।
संझा जाँतल--रूप सँ प्रसन्नता व्यक्त करैछ। जीबू संझा कें ईष्र्या सँ देखैत अछि। पुनः
अखबार सँ अपन मुँह झाँपि लैत अछि। संझा गहूम बीछऽ मे व्यस्त रहैछ।
चैतू--एना कियैक मुँह झपने छें?
जीबू--ओहिना !
जीबू अखबार मुँह पर सँ हँटा लैत अछि। मुखाकृति क्रुद्ध छैक।
चैतू--एखन तोहर मुखाकृति सँ बूझि पड़ैत जेना तों ककरो पर क्रुद्ध होई।
जीबू--ओह ! तोरा एहिना बूझि पड़ैत छौक।
एकटा बनाबटी हँसी हँसैत अछि।
सबठाम मनोविज्ञानक नियम नहि प्रयोग करही। किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। सँझा
गहूम बीछऽ मे व्यस्त रहैछ।
चैतू--जेना कोनो चीज एकबैग स्मरण भऽ जाइक) हँ, काल्हि मधुबनी मे तोहर सार भेटल छल।
जीबू--ई कोन भारी बात भेलैक। तों हूँ मधुबनी गेल छलें, ओहो मधुबनी आयल होयतैक। भेंट
भऽ गेलौक। सझा उत्सुकता सँ गहूम बीछब छोड़ि दैत अछि। जीबूक मुँह पर ने हर्ष
आ ने विषाद अबैत छैक।
संझा--कनियाँ नीके छैक? की सब कहैत छलह? हमरा तँ की करू हम।
चैतू--ओ तँ बड़ आहे-माहे कहऽ लागल।
संझा--किछु कहबो करब कि...।कनियाँ दऽ...।
चैतू--हँ, सब ठीके। चिठियो तँ देने अछि।
जेबी सँ बहुत रास कागज-पत्र निकालैत अछि आ ओहि मे सँ लिफाफ छाँटि कऽ
जीबूक आगू मे फेकि दैत अछि। जीबू अखबार छोड़ि लिफाफ फाड़ि कऽ चिट्टी पढ़ऽ
लगैत अछि।
संझा--तों केहऽ ने। आइ पाँच बरख सँ पाँच सय चिट्टी आयल होयतैक। ओहि मे बाघ रहैत
छैक कि साप से हम...।
चैतू--यैह जे हमर बहीनक कोन दोष...हम हुनकर अंग मे लगा देलियनि तखन....हम घटल छी
ओकरा ततेक ने तकलीफ होइत छैक जे.... (चुप भऽ जाइछ)
संझा--(उत्सुकता सँ) आओर?
चैतू--ओ बात सब अहाँ की सुनब ! ओ सब...।
संझा--सुनब ! ई सुनाओत तँ कियैक नहि सुनब?
चैतू--ओ तँ सब किछु खोलि कऽ.....हुनका यदि किछु भऽ जाइत तँ....।
संझा--ताहि लेल एकरा एक्को पाइ लाज छैक।
जीबू संझा दिस ताकि कऽ व्यंग्य सँ खूब जोर सँ हँसैत अछि।
हमरा ई हँसी नहि नीक लगैत अछि।
जीबू--हूँ, ई हँसी तोरा कियैक नीक लगतौक? ई तँ....(सहसा रुकि जाइछ) चैतू, काल्हि
कखन अयलें मधुबनी सँ?
चैतू--पाँच बजे।
जीबू--तखन तँ काल्हियो तों ई पत्र हमरा दऽ सकैत छलें?
चैतू--एहि सँ पहिने नहि देलियौक तकर कोनो कारण अवश्य रहल होयतैक। की हम भूमि नहि
सकैत छी?
जीबू--(झुझुआ कऽ) खैर, एहि सँ कोनो बिगड़ल नहि, मदा पहिने दितएँ तँ...।
जीबू किछु काल धरि किछु सोचैत रहैत अछि। तकर बाद चिट्टी कें गुण्डी-गुण्डी कऽ
कऽ फाड़ि कऽ फेकि दैत अछि। संझा जीबू दिस कन्हुआ कऽ तकैत अछि।
चैतू--फाड़ि देलही?
जीबू--देखलही नहि? एखनो गुण्डी सब छैके।
जीबू गुण्डी लऽ कऽ उड़िया दैत अछि। चैतू कें जीबूक काज सँ दुःख भऽ जाइत छैक।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
चैतू--की सब छलैए चिट्ठी मे?
जीबू--जे छलैक से....पढ़ि लेलियैक।
चैतू--आओर दोसर....? आ कि तोरे पढ़ला सँ....।
संझा--हम के छियैक ओकर?
जीबू--तोहर बुझब ठीके छौक।
संझा--सुनलहक?
जीबू--तों सुनलही आ चैतू...। चैतुओ कें तँ कान छैक।
चैतू--तों जीबू....।
जीबू--(बीचहिमे बात लोकैत) तों जे कहऽ चाहैत छें से बूझि गेलियैक।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। संझा गहूम बीछऽमे व्यस्त रहैछ। जीबू जेना कोनो
समस्याक समाधान करऽमे लागल होय।
चैतू--आखिर ओहि बेचारीक कोन दोष छैक जे....।
जीबू--एक्को बेर ओकर दोष दऽ हमरा बजैत देखलें हें?
चैतू--एकर माने जे हुनकामे कोनो दोष छनि जे तों नुका रहल छें?
जीबू--एहन माने लगाएब तँ तोहर खुशी... ...। ओकरामे कोनो दोषे नहि छैक जे...। यदि
रहितँक तँ हम बजितहुँ नहि?
चैतू--तखन हुनका एना निर्वासित करबाक...।
जीबू--(बीचहिमे बात लोकैत) हमर खुशी।
चैतू--बाहरे खुशी ! एहन खुशी हम कतहु नहि देखलहुँ !
जीबू--सेहन्ता पूरा भऽ ने गेलौक। जे कतहु नहि देखलें से एहि घरमे एहि घरक लोकमे देखि
रहल छें।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। जीबू किछु सोचैत रहैछ। संझा गहूम बीछऽमे व्यस्त
रहैछ। चैतू कखनो संझा आ कखनो जीबूक मुँह तकैत अछि।
चैतू--जीबू ! लोक की कहैत होयतौक ताहि पर एक्कोरत्ती बिचार नहि करैत छही?
जीबू--कोनो नव बात नहि, जेहन हम सब छी सैह। हमरा जनैत पतित कहैत होयतैक। आ
वास्तवमे छैको सैह।
चैतू--(अपने-अपने) ओ की ढड्ढड्ढथ् करैत होयथिन से...।
जीबू--ओहि लए हमरा बड़ दुःख अछि, जाहि सँ बढ़ि कऽ दुःख भऽ नहि सकैत छैक।
चैतू--हमरा नहि बूझि पड़ैत अछि।
जीबू--अनकर दुःख आन की जाने गेलैक। जँ जानि जयतैक तँ......। सत्यक खंडन नहि ने
कयल जा सकैछ!
चैतू जीबूक मुँह तकैत अछि।
चैतू--हमरा तँ किछु समझने नहि आबि रहल अछि जे...।
जीबू--ई हमर बात अछि, हमरा समझ मे अबैत अछि। तोरा समझमे अयनाई तँ कोनो जरूरी...
...।
चैतू--तँ कतेक दिन धरि एना... ..?
संझा जीबू दिस कन्हुआ कऽ तकैत अछि जीबू कोनो उत्तर नहि दैत अछि। ऊँ?
जीबू--ई नहि कहि सकैत छियौक जे ... ...।
चैतू--हुनकर घरक आर्थिक स्थिति पता छौक?
जीबू--तोरा जतेक बुझल छौक ताहि सँ बेसी...। हमर सासुर ने छी।
चैतू--तँ फेर ...?
संझा--(क्रुद्ध भऽ कऽ) हम कहैत छियह।
चैतू आ जीबू सँ झाक मुँह तकैत अछि।
(अपना दिस संकेत कऽ कऽ) ई हाथी मरतैक तखन।
जीबू--हँ, ईहो भऽ सकैत छैक।
संझा--बुझलहक ने (किछु क्षणक बाद) ओ बेचारी तँ पाप कयने छलि जे एकरा सँ सङ भऽ
गेलैक।
जीबू व्यंग्य सँ मुस्कुराइत अछि।
चैतू--(दुःखी मोन सँ) तों हँसैत छें?
जीबू--हँ, कखनो-कखनो जबर्दस्ती हँसबाक प्रयास करैत छी, मुदा...।
चैतू--हमरा तँ बड़ दुःख अछि तोहर व्यवहार देखि कऽ।
जीबू--आ हमरा (संझा दिस संकेत कऽ कऽ) एकर.....(सहसा रुकि जाइछ आ बात बदलि
दैछ) हमरा हँसी लागि जाइछ एकर आदति देखि कऽ।
संझा एक टक्क सँ जीबूक मुँह तकैत अछि।
चैतू--मतलब?
जीबू--(संझा पर आङुर सँ संकेत करैत) ई आदति सँ लाचार अछि। हम एकबेर नहि हजार बेर
कहने होयबैक जे हमरा आ हमर ध्र्त्ढड्ढक विषय मे नहि बाज से....।
संझा--ले कोढ़िया ! हमरा देखि कऽ कथीलए झड़की पड़ैत छौक ! आब बजियौक तँ...।
संझाक मुँह तामसे तमतमा जाइत छैक। सूपक बीछल गहूम बिना बीछल गहूम मे धऽ
दैत अछि।
धुर जरलाहा कें ! खो हमरा !
चैतू--की भेल?
संझा--देखहक ने, बीछल गहूम बिना बीछल गहूम मे फेंट देलियैक।
चैतू--पाबनिक छल?
संझा--तँ आओर कथीलए बिछतियैक? (किछु क्षणक बाद) मोन तँ होइत अछि जे पाबनि
ताबनि...।
जीबू--तँ छोड़ि कियैक नहि दैत छें? कियो करऽ कहैत छौक?
चैतू--ताँ चुप्प रह। हुनका गप्पक बीच मे टोक नहि दहुन।
जीबू--हूँ, ई तँ हमहूँ चाहैत छी जे जतऽ एकर छाया रहैक ततऽ...(किछु क्षणक बाद) ई जे
हाथ उठबैत अछि से हमरे कबुलाक।
चैतू--आओरें तें तो हिनका सँ...।
जीबू--तों जे कहऽ चाहैत छें से कहि दे, मुदा एकरो सँ कहि दही जे हमर कबुला पूरा नहि
करय। हमरा एकर ममता नहि चाही। बस।
जीबूक बात संझाक ह्मदय मे जेना कच्च दऽ भोंका जाइक। ओ तिलमिला उठैत
अछि। आँखि करुण भऽ जाइत छैक। चैतू सेहो दुःखी भऽ जाइत अछि। जीबूक लेल
धनसन। संझा किछु काल धरि व्यथित भेल बैसल रहैत अछि।
संझा--(एकटा दीर्घ •ााँस छोड़ैत) भगवान !
संझा गहूम-तहूम ओतहि छोड़ि कऽ बारी दिस चल जाइत अछि। किछु काल धरि जीबू
बैसल रहैत अछि। तत्पश्चात् कोम्हरो जयबाक लेल उठैत अछि। चैतू बैसले रहैछ।
चैतू--जीबू !
जीबू-- उँ?
चैतू--हमरा लक्षण लगैत अछि जे तों बादमे निछच्छ बताह भऽ जयबें।
जीबू--आ एखन?
चैतू--एखन आधा सँ किछु बेसी।
जीबू--हम पूराक प्रतीक्षा मे छी। भऽ सकैछ जे पूरा भेला पर...ई हम ढड्ढड्ढथ् नहि करी।
चैतू--(जीबूक मुँह एक टक्क सँ देखि कऽ) बताह !
जीबू--ई तँ...आब कोनो दोसर शब्द होउक तँ...। हमरा सब शिरोधार्य अछि।
चैतू उठि जाइत अछि।
बैस, तोरा सँ काज अछि।
चैतू--की?
जीबू--बैस ने।
चैतू पुनः बैसि रहैत अछि। जीबू सिरकी बला हन्ना मे जाइत अछि। किछु कालक बाद
एकटा काँपी, कलम आ लिफाफ लेने अबैत अछि।
चैतू--ई सब की करबें?
जीबू--एकटा पत्र लिखबाक अछि।
चैतू--कतऽ?
जीबू--आइ जे पत्र आयल छल तकर जबाब।
जीबू पटिया पर बैसि कऽ पत्र लिखऽ लगैत अछि। चैतू जीबू कें तकैत रहैत अछि।
किछु कालक बाद पत्र लिखल भऽ जाइत छैक। तकर बाद ओकरा लिफाफ मे बन्द
कऽ कऽ दुआरि पर जाइत आ घैल सँ पानि लऽ कऽ पत्र कें साटि पुनः मड़बा पर
अबैत अछि।
चैतू ! ई लिफाफ आइ कोना पहुँचतैक?
चैतू--हूँ, तँ एहीलए हमरा रोकने छलें?
जीबू--हँ।
चैतू--की बात छैक?
जीबू--बड़ जरूरी अछि। जँ आइ नहि पहुँचतैक तँ....।
चैतू--आओर आगू बाजि सकैत छें कि नहि?
जीबू--नहि, एतबे बूझ जे अत्यन्त जरूरी अछि। आ नहि पहुँचने बड़ गड़बड़ होयत।
जीबू पटिया पर बैसि जाइत अछि।
चैतू--फेर तँ हमरा कि कहैत छें?
जीबू--एखन तँ कोनो आदमी प्राय....। तें तोरा कहैत छियौक जे...।
चैतू--मुदा हमरा एखन छुट्टी कहाँ अछि जे....(किछु क्षणक बाद) अपना जाइत लाज होइत
छौक?
जीबू--धुर ! से बात...।
चैतू--हँ हँ सैह बाते छैक। तों सोचैत छें जे जाइत देरी सब झाउँ-झाउँ कऽ उठत।
जीबू--(किछु सोचैत) मे हम...जा सकैत छी आ ने तों....तखन ककरा भेजी से...
जीबूक नजरि एक सय गज फटकी कोनो वस्तु पर केन्द्रित छैक।
चैतू--की सोचैत छें?
जीबू--वैह जे...।
चैतू--यदि हमरा लोक पूछत जे एना कियैक कयने छथिन तँ हम की जबाब देबैक?
जीबू--(चिन्तन सँ मुक्त भऽ कऽ) तों जयबें?
चैतू--यदि हम जाइ तँ...?
जीबू--तोरा किछु नहि कहबाक छौक। सब हमरा पर....। असल मे तँ हमहीं...।
चैतू--हुः बड़ काबिल बूझि पड़ैत छें !कार्टून बनौनाइ जनैत छें !
जीबू--(निरास भऽ चैतूक मुँह सकैत) तँ नहि जयबें?
चैतू--एहना स्थिति मे हम तँ नहिए जयबौक, कोनो दोसर आदमी द्वारा हम...।
जीबू--(किछु सोचलाक बाद) सेहो भऽ सकैत छैक, मुदा आदमी द्रड्ढद्धढड्ढड़द्य होयबाक चाही।
चैतू--बिरुल कें भेज दैत छियैक।
जीबू--उत्तम। मुदा आइए।
चैतू--हँ, आइए। (घड़ी देखि कऽ) एकन नौए भेलैए। आ भारतीय गाड़ी अक्सरहाँ एक-डेढ़ घंटा
लेटे रहैत छैक।
जीबू--से तँ ओहू सँ बासी रहैत छैक। (किछु क्षणक बाद) एकटा बात कहियौक?
चैतू--की?
जीबू--ई हमर व्यक्तिगत अनुभव अछि--हम जाहि दिन थ्ठ्ठद्यड्ढ रहब ओहि दिन गाड़ी एकदम्म
द्रद्वदड़द्यद्वठ्ठथ् रहतैक आ हम जहि दिन द्रद्वदड़द्यद्वठ्ठथ् रहब ओहि दिन गाड़ी थ्ठ्ठद्यड्ढ रहतैक।
ई हमरा परतैल अछि। तें ठीके समय पर जयबाक चाही।
चैतू--हँ, हँ ठीके समय पर जयतैक।
जीबू चैतू कें लिफाफ दऽ दैत अछि। चैतू लिफाफ लऽ कऽ अपना जेबी मे राखि लैत
अछि। बैजू कोन्टा लग अबैत अछि आ पुनः घुमि जाइछ। चैतू बैजू कें देखि लैत छैक।
बैजूक कपार पर चोटक निशान छैक।
धुमलह कियैक?
बैजू पुनः घूमि कऽ आङन अबैत अछि।
अएँ ! कपार मे की भेलह अछि?
बैजी--एक कनमाँ दूध माङऽगेलियैए से नहि देलकै।
आ....हम की करू.....हम तँ..।
चैतूक प्रश्नकें अनसूनी करैत धरधरा कऽ केबाड़ बला हन्नाक मुँह पर पहुँचि जाइत
अछि।
आइ फेर हड़ताल बुझना जाइत अछि। हूँ, बुझैत छियैक।
बैजू घर मे ढुकि जाइत अछि।
चैतू--देखही, हमकी पुछलियैक आ ई...।
जीबू--लाज होइत छैक।
चैतू--(जीबूक मुँह तकैत) उँ?
जीबू--कपार मे चोट छैक ने, से...।
चैतू--तँ एहिलए....। कोना लागि गेलैक?
जीबू--प्रायः हम नहि रहितियैक तँ तोरा सँ कहितौक जे राति मे खसि पड़लहुँ वा....कोना ने
कोना बहाना अवश्य बना दितौक।
चैतू--फेर...तँ कोना...?
जीबू--घर मे कोठीक अभाव जकाँ छैक। ढक्कक काज छलैक से....।
चैतू--(बीचहि मे बात कटैत) हम की बुझऽ चाहैत छी से तोरा प्रायः ...।
जीबू--(बीचहि बात कटैत) तोरा बड़ जल्दी अधैर्य भऽ जाइत छौक !
चैतू--तँ कह, तों जहिना...।
जीबू--भच्छीक डोम्बा ढक्क बुनलकै। ओकर पाइ बाँकी छलैक ! कयक बेर पाइ हाथ पर
अयलैक से...। चैतू हुँकारी भरैत अछि।
पाइ माङऽ अबैत छलैक तँ उन्टे ओकरा पर उन्टा पगरी बन्हि कऽ....। मुदा राति गऽर
पर चढ़ि गेलथिन। सब कियो मिलि कऽ...।
चैतू--छी ! छी !! छी !!! कोन मोल रहलैक !
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
जीबू--ओ नहि अबितैक तँ...।
चैतू--ओ माने दुनियाक एतेक लोक मे सँ कियो...।
जीबू--अरे, तेसरकाँ जकरा सँ केश भेल रहैक।
चैतू-तेसुरकाँ जकरा सँ केश भेल रहैक।
चैतू--तेसुरकाँ...तेसुरकाँ तँ...तीन टा केश भेल रहैक।
जीबू--(आँखि मूनि कपारक चमरी कें हाथ सँ पकड़ि कऽ झीकैत) उँह ! ...हे .... ओकर नाओं
...हँ, मोन पड़ल। पेट मे छल, मुदा मुँह मे नहि अबैत छल। जटाधर बाबू।
चैतू--मुदा हुनका सँ तँ... तखन ओ... हुनके ने कचहरी मे कहने रहनि जे विआह नहि कयलहुँ
तँ बुझब जे जटाधरे बाबू सँ कऽ रहल छी।
बैजू एकटा लोहिया घर सँ लऽ कऽ दुआरि पर अबैत अछि। घैल सँ पानि ढारि कऽ
ओकरा अखारि लैत अछि। पुनः लोहिया मे पानि ढारि कऽ घर जाइत अछि। चैतू बैजू
कें तकैत रहैछ। किछु काल धरि चुप्पी रहैत अछि।
चैतू--जीबू ! एकटा बात कहियौक?
जीबू--एकटा नहि, दू टा कहि सकैत छें।
चैतू--दू टा नहि एक्कोटा बात अकस्मात सूझि मे आबि गेलैए।
केबाड़ बला हन्ना सँ धुआँ बहराइत अछि। घर मे धुआँ देखैत छियैक?
जीबू--चाह बनबैत छैक।
चैतू--(घड़ी देखि कऽ) एखन कऽ?
जीबू--छोड़ ओ सब। तोरा कोन बात अकस्मात सूझि मे आबि गेलौए?
चैतू--हँ, गदहाक नाओं तँ सुनने छही?
जीबू--एहन हमहीं गदहा छी जे गदहाक नाओं नहि सुनबैक। तों जे कहऽ चाहैत छें से...।
चैतू--आदमी कें गदहा कहैत छैक ने?
जीबू--हूँ।
चैतू--मुदा आब से नहि कहतैक।
जीबू--मतलब?
चैतू--आब कहतैक बैजू।
जीबू--तों एकरा बड़ ऊपर उठा देलही। ई तँ....एकरा लेल....ओह ! शब्दकोष मे कोनो शब्दे
नहि छैक। ई तँ....तों एकरा जनैत नहि छही?
चैतू जीबूक मुँह ठिकिया कऽ तकैत अछि। किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
चैतू ! हम कियैक एखन धरि चुप्प छी तकर कोनो उत्तर हमरा पास मे नहि अछि?
चैतू--तों की करऽ चाहैत छें?
जीबू--(मुद्रा कठोर आ दूनू मुट्ठी बान्हि कऽ) हम चाहैत छी जे एकर खून कऽ दी, मुदा हमरा
की भऽ गेल अछि जे एना नहि करैत छी से....।
चैतू जीबू कें तकैत रहैछ। थोड़ेक काल धरि चुप्पी रहैछ।
चैतू--आब जाइत छी। बड़ी काल धरि बैसलहुँ।
अखबार हाथ मे लऽ लैत अछि। पढ़बें कि लऽ जाउ?
जीबू--लऽ जो। चैतू उठि कऽ अङैठी मोड़ करैत अछि। तत्पश्चात् जीबू उठैत अछि। हमरा
काज नहि बिसरिहें।
चैतू--हे भगवान ! एक बेर तँ बुझलियैक जे...।
जीबू--सैह....! आगू आगू चैतू आ पाछू पाछू जीबू जाइत अछि। बैजू एकटा लोहिया लत्ता सँ
पकड़ने मड़बा पर अबैत अछि।
बैजू--पता नहि, केटली चाह बनबऽ लए छैक आ कि...।
लोहिया मड़बा पर राखि कऽ पुनः केबाड़ बला हन्ना मे जाइत अछि आ एकटा गिलास
लेने मड़बा पर अबैत अछि। जीबू चैतू कें अरियाति कऽ पुनः आङन अबैत अछि, मुदा
बैजू कें मड़बा पर देखि कऽ पुनः घूरि जाइत अछि। बैजू पीढ़ी घीचि कऽ बैसि जाइत
अछि आ लोहिया सँ चाह गिलास मे ढारि कऽ पीबऽ लगैछ। चाहक रङ लाल छैक।
हमरा देखि कऽ झड़को पड़ैत छह ! अपसोच कि...। नहि तँ...।
किछु काल मे लोहियाक दूनू गिलास चाह पीबि कऽ जेबी सँ तमाक आ चून
निकालि कऽ चुनबऽ लगैत अछि। संझा बारी सँ अबैत अछि। मुँह देखला सँ बूझि पड़ैछ
जेना खूब कानल होय।
आइ भानस कियैक नहि भेलैए?
संझा--भूखे नहि, भूख रहितए तँ...।
बैजू--तँ हम भुखले कचहरी जाउ?
संझा--कचहरीक कोन काज छैक?
बैजू--(जाँतल स्वर सँ) शिवेसर कें काज छैक। आइ कोनो काज नहि छलैक तें कहलियैक
जे...। काज रहितैक तँ नहिए जइतियैक।
संझा चारू कात नजरि दौगा कऽ देखैत अछि। बैजू तमाकू मे थपड़ि दैत अछि। पुनः
संझा मड़बा पर आबि कऽ बैसि रहैत अछि। बैजू किछु कालक बाद तमाक् कें ठोर मे
राखि कऽ उठैत अछि।
संझा--(लोहिया आ गिलास दिस संकेत कऽ कऽ) ई सब के धोतैक?
बैजू--धो दैत छियैक।
बैजू एक लोटा पानि अनैत अछि आ दूनू चीज कें धो कऽ केबाड़ बला हन्ना मे लऽ
जाइत अछि। घर मे जा कऽ किछु हड़बड़बैत अछि। पुनः किछु कालक बाद घर सँ
बहराइत अछि।
कनी बसिया रोठियो-तोटियो नहि छैक?
संझा--(व्यंग्य सँ) हमरा तँ भेल जे कोनो कुकुर-तुकुर घोघरा-मोड़ा कें हड़बड़ा रहल अछि।
बैजू तिक्ख नजरि सँ संझा कें देखि कऽ पीढ़ी पर बैसि जाइत अछि। किछु काल धरि
चुप्पी रहैछ।
बैजू--(एकटा दीर्घ •ााँश छोड़ैत) आइ हमर हाथ कटि गेल अछि तें हम कुकुर भेल छी, नहि
तँ।
संझा पटिया घीचि लैत अछि आ उघरलहा मोंथी ठीक कऽ कऽ बान्हऽ लगैछ। बैजू
किछु काल धरि बैसैत अछि। तकर बाद उठि कऽ सिरकी बला हन्ना मे जाइत अछि।
किछु कालक बाद किछु फाटल कुर्ता पहीरने घरसँ बहराइत अछि।
हमर चद्दरि कहाँ अछि?
संझा--पथार देल छैक।
बैजूक ध्यान पथार पर जाइत छैक। पथार कें देखि कऽ किछु काल धरि गुम्म रहैत
अछि।
बैजू--पथार चद्दरि पर देल जाइत छैक?
संझा--चद्दरि पर नहिं तँ माँथ पर?
बैजू--पटिया छलैक। यदि चद्दरिए पर देल जाइत छैक त आओर चद्दरि नहि छलैक?
संझा--हमर खुशी। जाहि पर मोन भेल ताहि पर देलियैक। एकर की छियैक?
बैजू--एखन कथी देह पर लिअ?
संझा--खापरियो छलैक सेहो तँ फूटि गेलैक।
बैजू संझा कें तिक्ख नजरि सँ देखि कऽ पथार दिस बढ़ैत अछि ! संझा कन्हुआ कऽ
बैजू कें तकैत
अछि। बैजू पथार कें समटऽ लए दूनू हाथ सँ चद्दरि कें पकड़ैत अछि।
आइ यदि पथार कें किछु भेलैक तँ बाढ़नि सँ चाँनि तोड़ि देबैक।
बैजू थक-थका कऽ ठाढ़ भऽ जाइत अछि। किछु काल धरि ठाढ़े रहैछ।
बैजू--जाहि परिवार लए बड़द बनल छी, ओहि परिवारक लोक एना करत से वि•ाास नहि
छल।
संझा--एखन की भेलैए। एखन तँ....।
बैजू जेना असोथकित भऽ जाय तहिना थाकल डेगे पीढ़ी पर जा कऽ बैसि रहैत अछि।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
बैजू--हम बड़ी भारी गल्ती कयलहुँ। आइ यदि बिआह कयने रहितहुँ तँ....।
संझा--(बात कटैत) तँ कयलें कियैक नहि?
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। बैजू आँखि मे एकटा विराट निराशा लेने कोनो चीज पर
ध्यान केन्द्रित कयने रहैछ। संझा पटिया बान्हऽ मे व्यस्त रहैछ।
बैजू--अपसोच कि ई चीज सब ओहि दिन सँ पहिने नहि सुनाओल गेल।
संझा--हमर आत्मा ओहू दिन कहैत छलौक, मुदा मुँह बाजऽ नहि चाहैत छलैक।
बैजू--एकर माने हमरा सँ धोखा कयल गेल।
संझा--कयलियौक नहि, तों हमरा देबऽ सँ बाध्य कऽ देलें। किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। बैजू
तमाकू थुकड़ि कऽ फेकैत अछि।
संझा--गूह खाइत छें तँ बाहर फेक। आ एना जे जहिं-तहिं फेकलें तँ मुँह मे ऊक लगा देबौक।
बैजू तिक्ख नजरि सँ संझा कें तकैत अछि।
बैजू--एही मुँह सँ लोक पान आ...।
संझा--(खूब जोर सँ डपटि कऽ) चुप्प ! बन्द कर अपन बकतूति !
बैजू--तों हमर महों बन्द कऽ देबह?
संझा--जहाँ जयबाक छौक से जो जल्दी सँ।
बैजू--हम नहिए जायब तँ....तोररा एहि मे की होइत छह?
संझा--तोरा चैन देखि कऽ हमर मोन अशान्त भऽ उठैत अछि।
बैजू--हम ओतेक जल्दी ककरो जान नहि छोड़ि देबैक।
संझा--ओ हमहूँ कहाँ कहैत छियौक। हम तँ कहैत छियौक एहि घर मे रह। किछु दिनक बाद
पिलुआ फड़तौक। ओहि अवस्था मे तोहर दूनू हाथ काटि देल जाय जाहि सँ कि तों
अपनहुँ पिलुआ नहि बीछि सकै। आओर ओ ओहि मे सबसबाइत रहौक।
जखन बैजूक मुँह किछु कहऽ लए खुजैत छैक कि खूब जोर सँ ठहक्का मारैत शिबूक
प्रवेश। बगे-बानी सँ बूझि पड़ैछ जेना देहक कोनो परबाहि नहि होइक। आँखि मे चश्मा
लागल छैक। बैजू कें जेना हँशी अत्यन्त कटु लगैत होइक। संझा पटिया मोड़ि कऽ
ओतहि राखि दैछ।
बैजू--(क्रुद्ध भऽ कऽ) हमरा हँसी नहि नीक लगैत अछि।
संझा--हमरा नीक लगैत अछि।
बैजू--(शिबू सँ)तों या तँ चुप्प रह या आङन सँ चल जो।
शिबू--तों जे कहैत छें से हम सब मानैत अयलियौक अछि आ मानबौक। (किछु क्षणक बाद) तों
सोचैत होयबें जे डर सँ ई एना करैत अछि से बात नहि। बात ई जे मैला पर ढेप
फेकब तँ उड़ि कऽ ने पड़ि जाय।
बैजू--हम जनैत छियैक जे तोरा मे एतेक साहस कहाँ सँ आबि गेलौए।
संझा--सब दिन एक्के रङ समय नहि रहैत छैक। बिलाड़ि बाघ आ बाघ बिलाड़ि भऽ जाइत
छैक।
शिबू पुनः खूब जोर सँ भभा कऽ हँसैत अछि। संझा गहूम आ कॉपी लऽ कऽ केबाड़
बला हन्ना मे जाइत अछि।
शिबू--लोक सब बुझितो रहैत छैक आ तैयो...।
पुनः खूब जोर सँ हँसैत अछि।
बैजू--तोरा कहैत छियौक हम चुप्प भऽ जायक लेल।
शिबू--हमर हँसी तोरा कियैक कटाओन लगैत छौक?
हम ओ चीज सब बजितहँ तँ भलेही..। से तँ देखैत छें हम सब किछु कें घोंटि कऽ
पीबि गेल छी तखन...।
बैजू--हम कहैत छियौक तँ तों सुनैत कियैक नहि छैं? तोरा की इच्छा छौक?
शिबू--हमरा जीवन मे तँ तों कोनो लिलसा नहि रहऽ देलें। आब मात्र एकटा लिलसा रहि
गेलेए। मात्र एकटा जे तों अन्तिम अवस्था मे पानि लए तरसैत रह आ हम तोरा देखा
कऽ पानि हेरा दी। बस, आओर किछु नहि। यैह टा मात्र।
बैजू क्रुद्ध भऽ कऽ उठैत अछि। शिबू फट्टक बला घर मे चल जाइत अछि।
संझा घर सँ बहराइत अछि।
बैजू--ठाढ़ रहऽ ने, हम ओहो आँखि फोड़ि दिअ।
संझा--(बैजू सँ) तों आङन सँ जो नहि तँ हम तोहर दूनू आँखि फोड़ि देबौक। (किछु क्षणक
बाद फट्टक बला घर दिस देखि कऽ) पता नहि आब एहि लाश कें देखि कऽ....।
बैजू--(सँझा कें तिक्ख नजरि सँ देखि कऽ) जकरा तों लाश बुझैत छहक ओ एक दिन अवश्य
बिसयतह। एहि बात कें गिरह बान्हि लैह।
बैजूक प्रस्थान। संझा मड़बा पर बैसि जाइछ। किछु कालक बाद शिबू घर सँ
बहराइत अछि।
शिबू--सब खतम। बिल्कुल खतम।
संझा---(उपकरि कऽ) कथी सब खतम?
शिबू--(अपन-अपने) राति एतेक गऽरे ने कयलियैक जे। एखन पीबऽ गेलियैए तँ...।
संझा--हूँ, पीबू, खूब पीबू। एक्कोरत्ती नीलू दिस....।
शिबू--(व्यथा सँ मुस्कुराइत) नीलू लए चिन्ता करबाक काज नहि, नीलू हमर बेटा अछि। हमरा
ओकर चिन्ता अछि।
शिबूक बात सूनि कऽ संझाक मोन अपरतीव जकाँ भऽ जाइत छैक।
संझा--मार बाढ़नि ! सबकें हमरे देखि कऽ।
शिबू मड़बाक कगनी पर चुक्कीमाली भऽ कऽ बैसि रहैत अछि।
शिबू--जीबू ! जीबू !! ... हौ जीबू !!!
कोनो जबाब नहि अबैछ। किछु काल धरि शिबू ओहिना बैसल रहैत अछि। तत्पश्चात्
उठि कऽ पुनः फट्टक बला घर मे जाइत अछि। संझा दुःखी भेल बैसल रहैत अछि।
(घर सँ) जीबू !.... हौ जीबू !!
पुनः कोनो जबाब नहि अबैछ। किछु कालक बाद शिबू डेरैल एकटा तमघैल लऽ
कऽ बहराइत अछि। तमघैल कें आङन मे राखि दैत अछि। नीलूक प्रवेश। एकटा मैल
कमीज आ पेंट पहिरने अछि। कमीज फाटल छैक। नीलू कें देखि कऽ शीबू कनी सहमि
जाइत अछि।
नीलू ! जीबू भैया कहाँ छौक?
पता नहि होयबाक संकेत ठोर बिजका कऽ करैत अछि।
देखलहीए नहि?
नीलू 'नहि' मे मूड़ी झुलबैत अछि।
नीलू--(तमघैल आङुर सँ देखवैत) बाबू ! ई तमघैल की करबैक?
शिबू--नहि किछु।
नीलू--तँ कथीलए बहार कयलियैए?
शिबू--ओहिना। तों भैया कें देखही। हम तमघैल राखि दैत छियैक। (कोन्टा दिस आङुर
देखबैत) एमहर देखही तँ कहाँ गेलौक?
नीलू बारी जाइत अछि। शिबू नीलू कें तकैत रहैत अछि। किछु कालक बाद
तमघैल लऽ कऽ आङन सँ जाय लगैत अछि। संझा कन्हुआ कऽ शिबू कें तकैत अछि।
नीलू--(कोन्टा सँ) बाबू ! भैया के नहि देखैत छियनि।
शिबू--इह ! इ छौड़ा ...।
तमघैल पट दऽ राखि दैत अछि। नीलू शिबू लग जाइत अछि।
नीलू--अहाँ कहलियै जे तमघैल राखि दैत छियैक,....तँ कहाँ लेने जाइत छियैक?
शिबू--(नीलू कें पोचकारैत) देख बेटा !.... तोहर....तोहर कमीज फाटल छौक ने, तें एकरा
बन्हक राखि कऽ एकटा नव कमीज तोरा लए...।
नीलू-इह ! झुट्ठे ! ई लऽ कऽ अहाँ दारू पीबै।
शिबू--नहि, नहि, हम ठाके कहैत छियह। तोरे कमीज लए...हँष एकटा बात। जीबू भैया सँ नहि
कहिहक जे बुझलहक ने?
नीलू--अच्छा !
शिबू तमघैल उठा कऽ चल जाइत अछि। नीलू शिबू कें कोन्टा लग जा कऽ तकैत रहैत
अछि। किछु कालक बाद सहटि कऽ संझा लग अबैत अछि।
काकी !
संझा ने कोनो जबाब दैत अछि आ ने मूड़ी उठा कऽ नीलू दिस तकैत अछि।
काकी, बजैत छें कियैक नहि?
संझा--(ललकारि कऽ) कहाँ अयलें हें? जो हमरा लग सँ। नीलू बकर-बकर संझाक मुँह ताकैत
रहैत अछि।
सुनलही नहि? कहैत छियौक जो हमरा लग सँ।
नीलू पयरक नह सँ माँटि कोड़ैत ठाढ़े रहैत अछि। संझा उठि कऽ डेन पकड़ि
मड़बा सँ निच्चाँ कऽ दैत अछि। नीलू फफकि-फफकि कऽ कानऽ लगैत अछि। संझा
पुनः मड़बा पर आबि अशान्त भऽ कऽ बैसि रहैत अछि। नीलू धीरे धीरे फट्टक बला घर
चल जाइत अछि। संझाक आँखि नोरा जाइत छैक। किछु कालक बाद संझा शोर पाड़ैत
अछि।
नीलू !.... नीलू !!
नीलू ने कोनो जबाब दैत अछि आ ने निकलि कऽ बहरा अबैत अछि। किछु
काल धरि संझा चुप्प रहैछ।
नीलू !.... नीलू !! .... रे नीलू !!!
पुनः कोनो जबाब नीलू नहि दैत अछि। संझा उठि कऽ ओहि घरक मुँह पर
जाइत अछि।
नीलू ! एमहर आ।
संझा किछु काल धरि घरक मुँह पर नीलूक प्रतीक्षा करैछ। नीलू घर सँ नहि
बहराइत अछि। पुनः संझा घर जाइत अछि आ पोल्हा कऽ नीलू कें लेने मड़बा पर
अबैत अछि। नीलू हिचुकैत अछि।
कान नहि। चुप्प रह। तामस-पित्त पर हम एहिना .. देख ने हमहूँ कनैत छी। हमरो
आँखि मे नोर अछि।
नीलू संझाक मुँह देखैत अछि आ पुनः मूड़ी खसा लैत अछि। हिंचुकी बन्द नहि
होइत छैक।
बैस ! हमरा बात पर कथीलए कनैत छें। हम तोहर काकी छियौक।
संझा पटिया ओछा कऽ अपनो बैसि जाइत अछि आ नीलू कें सेहो लगमे बैसा
लैत अछि।
नीलू ! बहीनक ओहिठाम गेल छलें आ बहीन की सब कहलकौ से तँ नहि कहलें।
नीलू कोनो जबाब नहि दैछ।
नहि कहबें?
नीलू--कहलियौक तऽ।
संझा--नहि बुझलियैक। फेरर एक बेर कह।
नीलू संझाक मुँह तकैत अछि।
कह ने। एहिठाम अओतौक कि नहि।?
नीलू--कहलकै नहि। जाबत धरि कक्का नहि मरतैक ताबत धरि...। कथीलए ओ एना कहैत
छैक?
नीलू संझाक मुँह तकैत अछि।
संझा--ओ ठीके कहैत छैक। मतलब जे...हँ, तों ई सब... हम समाद देबैक कपलेसर मे आबऽ
लए। तोहूँ चलिहें। ओकर बरो अओतैक।
नीलू--(आश्चर्यसँ संढाक मुँह ताकि कऽ) अएँ ओहो बरे छियैक ! ओ तँ बड़ बूढ़ छैक। बर तँ
ओ होइत छैक जे...हम बहीन छैक ने, ओकरासँ कनिए नमहर होइतैक। आ ई तँ।
संझा--बेटा ! एना नहि बाजी। विवशतामे एहने बर होइत छैक।
नीलू--ऊँहूँ, हम ओकरा बर नहि कहबैक। बर छथिन भैया। भौजीसँ कनी नमहर। काकी ! भैया
भौजीकें कथीलए नहि लबैत छथिन?
संझा--से हम की जाने गेलियैक। तों ही पुछिहनि।
नीलू--अच्छा, तँ आइ हम पुछबनि। (किछु क्षणक बाद) काकी आइ भिनसरमे मुसहरबाक माय
बड़ गारि पढ़लकै। कहैत छलेए--आबऽ मे मूड़ी ममोड़ि कऽ चूल्हिमे लगा दिअ।
संझा--कियैक?
नीलू--हम मुसहरबाकें सङ करऽ गेलियैक तें। ओ कहैत छलैक जे ई सब बेइज्जती छैक।
एकरा सभक सङ आ आङन मे देखलियह तँ।
संझा--(ममाँहत भऽ कऽ) हँ, बेटा ! हम सब बेइज्जती छी। ओकरा सङ करऽ नहि जाही।
नीलू--(सँझाक मुँह तकैत) तँ आब नहि जयबैक। मुदा ओ जे गारि पढ़ि देलक से।
संझा--पढ़ऽ दहक। गारि पढ़ला सँ भूर नहि भऽ जाइत छैक। ओकर अपने मुँह...।
नीलूक देह पर हाथ फेरैत अछि।
नीलू--हूँ, पढ़ऽ दियौक। बाबू कें कहैत छियनि तँ ओहो यैह कहैत छथि, तों हूँ यैह कहैत छें,
भैयो सैह कहैत छथि आ ओ कक्का तँ...।
मुँह बना कऽ देखबैत अछि।
एना कऽ गुम्हरि दैत अछि।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। नीलू उठि कऽ कोन्टा लग जाइत अछि। किछु
काल धरि ओतऽ ठाढ़ भऽकऽ कोनो चीजकें देखैत अछि।
संझा--कथी देखैत छही?
नीलू--नहि किछु। हमरा भेल जे भैया...।
नीलू पुनः आबि कऽ संझा लग बैसि रहैत अछि।
काकी ! हम बाबू दारू कथीलए पीबैत छथिन?
संझा--तोहर बाबू कमजोर छौक तें।
नीलू--(संझाक मुँह ताकि कऽ) तोरोसँ बेसी कमजोर छथिन? लोक कहैत छैक जे मौगी बड़
कमजोर होइत छैक। तखन तो कियैक नहि पीबैत छही?
संझा--के कहैत छैक जे मौगी कमजोर होइत छैक? मौगी पुरुष सँ बेसी जोरगर होइत छैक।
ओ सब किछु कें
पचा लैत छैक आ पुरुष कें नहि पचाओल होइत छैक तें दारू पीबैत छैक।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। नीलू उठि जाइतअछि।
नीलू--आब जाइत छी काकी।
संझा--कतऽ?
नीलू--कतहु नहि, एही सब मे...।
नीलू दू डेग बढ़ैछ आ पुनः घूमि जाइछ।
काकी ! कटलहबा लताम लग जयबैक तँ की होयतैक?
जेना कोनो चीज संझा कें धक दऽ लगैक।
संझा--अएँ...हँ...तों ई सब...ई सब कियैक पुछैत छें?
नीलू--ओहि दिन मुसहरबा गेलैक तँ ओकर माय ओकरा बड़ मारलकै।
कहैक जे ओतऽ गराँत छैक, भूत छैक।
संझा--ओह ! नीलू ! ...जो....खेलो गने।
नीलू--ओत्तहु?
संझा--(दिक् भऽकऽ) हे भगवान !....तों हमरा दिक नहि कर।...जो खेलो गऽ। हम काज करऽ
जाइत छी।
नीलू--तँ कह ने जे...।
संझा झटकि कऽ केबाड़ बला हन्ना मे चल जाइत अछि। नीलू संझा कें तकैत रहैछ।
पुनः ओ एमहर-ओमहर घुमैत अछि। तत्पश्चात् फट्टक बला घर मे चल जाइत अछि।
घर मे किछु हड़बड़बैत अछि। किछु कालक बाद उदास मोन सँ घरसँ बहराइत अछि।
काकी !
संझा--(घर सँ) की?
नीलू सहटि कऽ केबाड़ बला हन्नाक दुआरि लग जाइत अछि। संझा घर सँ निकलि कऽ
दुआरि पर अबैत अछि।
कह ने, की कहैत छें?
नीलू--(मूड़ी गोंति कऽ जाँतल स्वरमे) तों आइ भानस नहि कयलहीए?
संझा--भूख लगलौए?
नीलू 'हँ' मे मूड़ी झुलबैत अछि।
भानस तँ आइ नहि कयलियैए। चूरा-चीनी खयबें?
नीलू पुनः 'हँ' मे मृड़ी झुलबैत अछि।
थम, दैत छियौक।
नीलू कें स्नेह सँ तकैत अछि।
'बेटा हमर छी--हमरा ओकर चिन्ता अछि।'
कोन मुँह सँ बजैत अछि से...।
संझा पुनः केबाड़ बला हन्ना मे जाइत अछि। मड़बा पर बैस। लेने अबैत
छियौक।
नीलू मड़बा पर जा कऽ पटिया पर बैसि रहैत अछि। बैजू हनहनायल आङन
अबैत अछि।
बैज--बेकूफ ! लड़त मोकदमा आ तारीख कहिया छैक सेहो पता नहि।
संझा चङोरी मे चूरा चीनी लऽ कऽ मड़बा पर अबैत अछि। बैजू मड़बा पर सँ
पीढ़ी लऽ कऽ सिरकी बला हन्नाक दुआरि पर खुट्टा मे ओङठि कऽ बैसि आइत अछि।
शिवेसर अयलैए।
संझा--फुला कऽ खयबें किओहिना फकबें?
नीलू--ओहिना फाँकब।
संझा नीलूक हाथ मे चङेरी दऽ दैत अछि।
बैजू--हम कहलियैक। शिवेसर अयलैए।
संझा-हँ, हम बहीर नहि छी। कहौक चल जायक लेल।
बैजू संझाक मुँह तिक्ख नजरि सँ तकैत अछि।
हमर मुँह की तकैत अछि? ओहन कुटुम्बक लेल हमरा घर मे जगह नहि अछि।
नीलू चूरा-चीनी नहि खाइत अछि।
खाइत छें कियैक नहि?
नीलू--काकी ! भानस तँ नहि कयलहीए आ भैया आओथिन तँ कथी खयथिन?
संझा--तों खो। अबौक तँ कहियनि जे सीक पर चूरा छैक आ ओहिठाम बोइयाम मे चीनी। लऽ
कऽ खा लेबऽ लए।
नीलू 'हँ' मे गरदनिएक दिस टेढ़ कऽ लैत अछि। बैजू तिक्ख नजरि सँ संझा
कें देखि ।
बैजू--हूँ, हमरा घर....।
संझा नीलू लग बैसि जाइत अछि।
हमरा जे होइत अछि से....मुदा कुटुम्बक...एखन खयबाक बेर छैक आ...कुटुम्ब भूखल
जयतैक तँ...।
संझा--भूखल नहि जयतैक तँ मालक घर मे गोबर छैक, कहौक खा लेबऽ।
बैजू--के कहौक ने अपने सँ जा कऽ जे...।
संझा--ओ हमर के छी? ... हम एक्के बेर आब ओकरा मरल मे देखऽ चाहैत छी।
बैजू गुम्म पड़ि जाइत अछि। किछु कालक बाद जेबी सँ चुनौटी निकालि कऽ चुन-
तमाकू लगबऽ लगैत अछि।
बैजू--लोक की कहतैक से...।
संझा--(खूब जोर सँ डपटि कऽ) चुप्प ! तों लोक-तोक की बजैत छें ! लोक सब किछु देखि
लेलकै आ आब हम लोक कें देखा देबैक।
बैजू--किछु अपनो लए सोचह।
संझा--एखन अपना लए नहि, एखन तँ तोरे लए हम शुरु कयमहुँहें।
बैजू--अच्छा, हमहूँ देखैत छियैक जे..।
संझा--(व्यथा सँ जबर्दस्ती हँसैत) देख ! खूब देख !! गौर सँ देखैत जो !!!
शिबू कें सहारा देने जीबू प्रवेश करैत अछि। शिबू दारू पीबि कऽ बुत्त भेल
अछि। नीलू दूनू गोटा कें देखि कऽ डरि जाइत अछि। की करु की नहि से किछु नहि
फुरा रहल छैक। ओ मुट्ठीक चुरा आ चड़ेरी छोड़ि कऽ संझा लग सँ हँटि जाइत अछि।
जीबू--बारम्बार तोरा कहैत छियह जे...मुदा तों बातक एक्कोरत्ती स्वादे नहि करैत छह !
संझा--की भेलौक नीलू? तों डरैत कियैक छें?
शिबू कें पकड़ने जीबू मड़बा पर अबैत अछि।
जीबू--सुतह, एहि पटिया पर !
संझा उठि जाइत अछि। जीबू शिबू कें सुता दैत अछि। नीलू डरे सर्द भेल रहैत अछि।
बैजू तमाकू चुनबैत मड़बा दिस तकैत रहैत अछि।
शिबू--हम बीजू..हमरा तों....तों....देखैत...नहि छह जे...।
जीबू सिरकी बला हन्ना सँ एकटा गेरुआ आनि कऽ शिबूक माँथ तर दैत अछि।
संझा--नीलू, खो ने।
शिबू--सार आब...उधारी दैते ने...छल। जीबू ! ...तों हूँ....पीबि कऽ...देखहक ने....बड़सानक
...लगैत छैक।
जीबू--चुपचाप सुतह।
जीबू क्रोध सँ नीलू दिस तकैत अछि।
तोरा ओतेक बुझा कऽ कहैत छियौक जे जतऽ एकर (सँझा दिस संकेत कऽ कऽ) छाया
रहैक ओतऽ तों नहि जो, से तों मानैत छें कियैक नहि?
जीबू नीलू दिस बढ़ैत अछि। नीलू डरे कानऽ लगैछ।
शिबू--मारह ! ...अभागल कें....मारह ! ....जे आओर बुझा कऽ....कहबहक से....।
संझा--नीलू !तों एमहर आ। ई अन्हौआ सहब तोरा साधि कऽ मारि देतौक।
संझा रोषायल जा कऽ नीलूक डेन पकड़ि लैत अछि। जीबू ('हट ! एकरा
छुलहक तँ दाँत झहुरा कऽ देबह।') कहैत संझा कें ठोंठ पर हाथ दऽ कऽ खूब जोर सँ
ठेल दैत अछि। संझा धड़फड़ा कऽ खसि पड़ैत अछि। बैजू जोर-जोर सँ तमाकू मे
थपड़ी देबऽ लगैत अछि। सम्पूर्ण मंच पर अन्हार पसरि जाइछ। मात्र दू टा खण्डित
प्रकाश मे बैजू आ संझाक मुखाकृति दृष्टिगोचर होइछ। बैजूक मुँह पर मुस्कुराहटि आ
संझाक मुँह पर असीम पीड़ा रहैछ। पुनः ओहो दूनू प्रकाश धीरे-धीरे विलीन भऽ जाइछ।
.. .. .. ..
अन्तराल विकल्प
सब सेट पूर्ववत्। जे वस्तु जतऽ राखल जाइछ ओतहि पड़ल रहैछ। एकटा खण्डित
प्रकाश जीबू पर पड़ैत छैक। ओ मड़बाक कगनीपर मूड़ी गोंतने पीढ़ी पर बैसल अछि।
पयर निच्चाँ मे लटकल छैक। दूनू ठेहुन पर दूनू केहुनी रोपि कऽ दूनू हाथे केश
पकड़ने अछि। किछु क्षणक बाद केश छोड़ि कऽ मूड़ी उठबैत अछि। मुँह पर एकटा
दर्दक छाँप छैक। तत्पश्चात् मंचक सम्पूर्ण भाग एक-एक कऽ आलोकित भऽ जाइछ।
बिन्दा धीरे-धीरे प्रवेश करैत अछि। ओ एकटा मामूली छीट, ब्लाउज, लहठी, पायल आ
कनबाली पहिरने अछि। खोइँछामे खोइँछ छैक। आँखि मे कजार, नह आ पयर मे
अल्ता छैक। मोटा-मोटी देखला सँ बूझि पड़ैछ जेना कतहु सँ विदागरी भऽ कऽ आयल
होय। जीबू ककरो अबाक आहटि पाबि उनटि कऽ पाछू तकैत अछि। बिन्दा कें देखि
कऽ स्तब्ध रहि जाइत अछि।
जीबू--अहाँ ! (किछु क्षण धरि मुँह खुजले रहैछ) आबिए गेलहुँ !
बिन्दा ठकुआ कऽ मड़बाक कात मे ठाढ़ी भऽ जाइत अछि। जीबू पीढ़ी घुसका
कऽ बिन्दा मुहें बैसि जाइछ।
कहू हाल-समाचार? (किछु क्षणक बाद) नीके छलहुँ ने?
जीबू एक टक्क सँ बिन्दाक मुँह तकैत अछि। बिन्दाक आँखि नोरा जाइत छैक।
उँ? कनैत छी !
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। जीबू मूड़ी खसा कऽ किछु सोचैत रहैछ।
हमरा दोसर पर वि•ाास नहि करबाक चाहैत छल।
जीबू मूड़ी उठा कऽ बिन्दा दिस तकैत अछि।
बिन्दाक आँखि नोर सँ भरल रहैत छैक।
कानू नहि, जाउ, पहिने भगवतीकें प्रणाम कऽ लिअ गऽ। तखन कोनो बात।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। बिन्दा खाम्ह जकाँ ठाढ़िए रहैत अछि।
हम जे कहलहुँ से प्रायः अहाँ नहि सुनलियैक। हम कहैत छी भगवती कें प्रणाम कऽ
लिअ गऽ। हमरा लए भगवती सँ नहि रुसू। किछु काल धरि बिन्दा ठाढ़ि रहैत अछि।
तकर बाद आङनक सब चीज कें अवलोकन करैत दुआरि पर सँ लोटा उठा कऽ धैल
सँ पानि ढारि लैत अछि आ' कोन्टा मे जा कऽ
पयर धोइत अछि। पुनः लोटा कें दुआरि पर राखि कऽ केबाड़ बला हन्ना मे जाइत अछि।
वि•ाासघात ! (किछु क्षणक बाद दोस्तक सङे !) कोनो समस्याक समाधान करऽ मे
डूबि जाइत अछि, मुदा सफल नहि होयबाक कारणें कछ-मछाहटि लेने उठि जाइत
अछि। किछु काल धरि आङन मे टहलैत अछि आ पुनः आबि कऽ ओही पीढ़ी पर बैसि
जाइछ। विन्दा घर सँ बहराइत अछि।
एमहर आउ।
बिन्दा आबि कऽ मड़बा लग ठाढ़ि भऽ जाइत अछि।
आब कहू। नीके छलहुँ ने?
बिन्दा कोनो उत्तर नहि दैत अछि।
हूँ, बुझलहुँ। हमरा ई चीज नहि पुछबाक चाही। (किछु क्षणक बाद) बैसि जाउ।
बिन्दा ठाढ़िए रहैछ। किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
के सङे आयल अछि? जाह, ईहो बात हम बेकारि पुछलहुँ। हमरा तँ अपने बाहर जा
कऽ देखि लेबाक चाही जे...।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
कती काल धरि ठाढ़ि रहब? तें बैसि जइतहुँ तँ नीक छल।
पुनः किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
आब यदि अहाँ अपन मौन व्रत नहि तोड़ब तँ हम अपन सपत दऽ देब।
बिन्दा--(जेना प्रयत्न कऽ कऽ बजैत होथि) हम अहांक के छी?
जीबू--हूँ, हमहूँ यैह सोचैत छलहुँ जे जहिया अहाँ सँ भेंट होयत तहिया अहाँ यैह पूछब।
बिन्दा--आओर अहाँ एकर की जबाब रखने छी?
जीबू--कत्र्तव्य सँ तँ कियो नहि, मुदा...मासाजिक बन्धन सँ...।
बिन्दा--स्त्री ! एकटा झूठक ......। (किछु क्षणक बाद) अहाँ हमरा पुछैत छी 'नीके छी, ताहिलए
हमरा बड़ दुःख भऽ रहल अछि !
जीबू--एहि सब लए अहाँ हमरा क्षमा नहि कऽ सकैत छी? हमरा तँ आशा अछि जे।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। बिन्दा उनटि उनटि कऽ कोनो चीज देखैत रहैछ। हम
अहां कें कहने छलहुँ बैसि जायक लेल।
बिन्दा--हम ठाढ़िए रहब तँ अहाँ कें...। (किछु क्षणक बाद) माय कहाँ छथिन?
जीबू--कतऽ गेलैए से पता नहि। (किछु क्षणक बाद) अहाँ बैसि जइतहुँ तँ नीक छल।
बिन्दा निच्चें मे बैसि रहैत अछि।
निच्चाँ मे नूआ गन्दा भऽ जायत।
बिन्दा--नहि, ठीके छी। (किछु क्षणक बाद) नीलू बौआ, कहाँ छथिन?
जीबू--स्कूल गेलैए।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। बिन्दा बामा हाथक लहठी दहिना हाथ सँ घुमबैत रहैत
अछि।
बिन्दा--(मूड़ि गोंतने) अहाँ नीके छलहुँ?
जीबू--(झुझुआ कऽ) हूँ, शरीर सँ तँ...।
बिन्दा--शरीरे सँ पुछलहुँ हें। मोनसँ जेहन रहैत छी से हमरा।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
मझिला कक्का, ओहिना करैत छथिन?
जीबू--हूँ, आब तँ आओर बेसी। कतऽ खाइत छी, की खाइत छी तकर कोनो सूधि नहि रहैत
छनि।
बिन्दा--(दुःखी मोन सँ) ओहिना पीबतो छथिन?
जीबू--ओहू सँ बेसी।
बिन्दा-हुनका ई चीज छोड़ि देबाक चाही :
जीबू--हमहूँ तँ एहिना कहैत छियनि, मुदा...।
बिन्दा--(जीबूक मुँह ताकि कऽ) मुदा की? ई चीज नीक छियैक?
जीबू--के कहैत अछि जे नीक चीज छियैक? मुदा ओ...ओ बढ़ा सकैत छथि, कम नहि कऽ
सकैत छथि। तखन छोड़क बात तँ दूर रहओ।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। बिन्दा लहठी पुनः धुमबय लगैत अछि। जीबू कें
कोनो समस्याक समाधान नहि होयबासँ कछमछाहटि छैक।
बिन्दा--एना अहाँ कियैक करैत छियैक?
की करैत छियैक?
बिन्दा--जेना कोनो कुकुरमाँछी कटैत होय।
जीबू--हूँ, हम अहाँ कें एहिठाम... (सहसा रुकि जाइछ) हम अहाँ कें लग मे बजौलहुँ
कुकुरमाँछिए कें उड़बऽ लए।
बिन्दा--आकि हमरा अयला सँ कुकुरमाँछी काटहि लागलए? (किछु क्षणक बाद) अहाँ हमरा
तखन कहने छलहूँ--आबिए गेलहुँ।
जीबू--हूँ, तँ की ओकर माने भेलैक?
बिन्दा--एकर माने ई भेलैक जे अहाँ नहि चाहैत छी तथापि हम आबि गेलहुँ।
जीबू--(बल सँ हँसैत) हँ....मुदा ई नहि भऽ सकैत छैक जे हम मोनमे अहाँक चर्च करैत होइ
आ अहाँ तखने आबि जाइ? एकटा शब्दक कतेको अर्थ भऽ सकैत छैक, मुदा छोड़ू ई
सब। हम पुछने छलहुँ ओहिठाम सब कियो नीके अछि?
बिन्दा--तकर अहाँ कें कोन काज अछि? कियो मरलैक तँ धन आ जीलैक तँ धन।
जीबू--ओह ! .... फेर...अहाँ बात कियैक नहि बुझैत छियैक?
बिन्दा--हमरा अहाँ की कहलहुँहें जे नहि बुझैत छियैक?
जीबू--अहाँ कें तँ हँसी बूझि पड़त जे....मुदा हम कहैत छी जे कोनो पति अपना पत्नी कें फराक
राखि कऽ सुखक अनुभव नहि करैत होयत। हमरा ह्मदय पर जे बीतैत अछि से हमहीं
जनैत छी, मुदा....।
जीबू आँखि सँ वेदना स्पष्ट करैत अछि।
बिन्दा जीबूक मुँह ताकि कऽ मूड़ी गोंति लैत अछि आ चूड़ी कें घुमबऽ लगैत
अछि। किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
बिन्दा--भैयाक नोकरी छूटि गेलनि से एहाँ कें बुझल अछि?
जीबू--लिखने छलाह अशोक।
बिन्दा--की सब?
जीबू--यैह जे साहेबक घूर-धुआँ नहि कयलियैक..तें बिना कारणक कारण लगा कऽ...।
बिन्दा--सैह...बजरखसुआ...ओहि लऽ कऽ एकन घरोक हालति...देखबैक त किछु नहि
फुरायत।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
जीबू--अहाँ कथी सँ अयलहुँहें?
बिन्दा--गाम सँ तँ ट्रेनसँ आ स्टेशन सँ ताङा सँ।
जीबू--हमर चिठियो पहुँचल छल?
बिन्दा--कहिया?
जीबू--काल्हि।
जिन्दा--ओह ! चैतन्य हमरा कहाँ किछु देलनि?
जीबू--चैतू गेल छल?
बिन्दा--(आश्चर्य सँ) अहीं भेजने छलियनि आ...अहाँ नहि पठौने छलियनि?
जीबू--अएँ..हँ, पठौने तँ छलियैक हमहीं, मुदा...एना छलैक जे चैतू कें किछु काज छलैक तें
बिरुल सँ ओ कहने छलैक जे...।
बिन्दा--(बीचहि मे रुष्ट भऽ कऽ) चुप्प रहू ! एतबो अहाँ कें सिनेह नहि जे....के गेल आ कि
नहि गेल से...आ अपने अहाँ तँ...।
बिन्दा दुःखी मोन सँ उठि जाइत अछि।
जीबू--सुनू ने, हमरा अहाँ एकटा...।
बिन्दा--अङोरा सुनू !
बिन्दा सिरकी बला घर चल जाइत अछि। जीबू वैह कछमछाहटि लऽ कऽ आङने मे
टहलऽ लगैत अछि। किछु कालक बाद बिन्दा घर सँ बहराइत अछि।
जीबू--चैतुआ कहाँ गेल?
बिन्दा कोनो उत्तर नहि दैत अछि।
(किछु क्षणक बाद) हम की हम की पुछलहुँ?
बिन्दा--(जीबूक मुँह ताकि कऽ चैतुआ ! चैतू कहबनि तँ की होयत?
जीबू--(जेना क्रोध कें पीबैत होथि) दोस्ती मे कखनो कखनो कऽ...।
बिन्दा--बूझि पड़ैछ जेना भीतर सँ हुनका पर खिसिआएल होइयनि।
जीबू क्रोध कें नुकेबाक हेतु जबर्दस्ती हँसैत अछि। बिन्दा बारीक कोन्टा मे जाइत अछि
आ बारीक चीज-वस्तु देखि कऽ एकटा खुशीक अनुभव करैछ। जीबू पाछु सँ जा कऽ
बिन्दाक कनहा पर हाथ दैत अछि।
बिन्दा--(कनहा छिपैत) छड़ ई सब !
जीबू--चैतू कहाँ गेल से नहि कहलहुँ?
बिन्दा--(कोनो चीज कें ध्यान सँ देखैत) अबैत छथिन। ताङा बला कें खीचा पार करबऽ
गेलथिन हें।
बिन्दा ओहि कोन्टा सँ टहलि कऽ दोसर कोन्टा मे जाइत अछि। ध्यान कोनो चीज पर
जाइत छैक।
(आश्चर्य सँ) जाह ! ई लताम कें काटि देलकै?
जीबू--'कुकुर' !
जीबू बिन्दा दिस बढ़ैत अछि।
बिन्दा--(जीबूक मुँह ताकि कऽ) कथीलए?
जीबू कोनो जबाब नहि दैत अछि।
कथीलए काटि देलथिन?
जीबू--(धीरे सँ) पता नहि...भरिसक...काटि देबाक कोनो कारण छैक।
बिन्दा--सैह तँ पुछैत छी जे...।
जीबू--हम कहलहुँ 'पता नहि' से नहि सुनलियैक?
बिन्दा--(अपसोच करैत) च्-च्-च्-च् ... कतेक फड़ैत छलैक। अहाँ नहि रोकलियनि?
जीबू--ऊँहूँ।
बिन्दा--से कथीलए अहाँ...।
जीबू शान्त आ गम्भीर भऽ कऽ कोनो बहुत दूरक चीज देखऽ लगैत अछि।
जीबू--(अपने-अपने) बाबू एकटा बनारस सँ लायल रहथि। एकरा नमहर करऽ मे बड़ परिश्रम
पड़ल छलनि।....एकर फड़ी देखि कऽ हुनका बड़ खुशी होनि।
बिन्दा--मायो एकोबेर नहि कहलथिन जे...?
जीबू--नहि, कियो नहि। ओकरो बिचार रहैक जे...। जीबक स्थिति पूर्ववते रहैछ।
बिन्दा--कथी देखैत छियैक?
जीबू--पूर्व सँ लऽ कऽ एखन धरिक एकटा नाटकक इतिहास। जकर नायक कमजोर छैक।
जकरा देह मे शोणित नहि, पानि छैक। मुदा एना कियैक छैक से पता नहि।
बिन्दा--अहाँ कतऽ डूबल छी?
जीबू--कतहु नहि, अहींक सोझाँ मे तँ छी।
बिन्दा--ई सब की बजैत छियैक?
जीबू--जे बजलियैक से तँ सुनबे कयलियैक।
बिन्दा--हे, अहाँ बताह जकाँ कियैक करैत छी?
जीबू--(बल सँ मुस्कुराइत) बताह जकाँ लोक करैत नहि छैक, भऽ जाइत छैक।
जीबू दोसर दिस टहलि जाइत अछि। बिन्दा किछु काल धरि जीबू कें एक टक्क स
ताकि कऽ फट्टक बला घरक दुआरि पर जाइत अछि।
बिन्दा--(घर मे हुलकी मारि कऽ) बापरे बाप ! मझिला कक्काक घर आ दुआरि देखियौन तँ
जे...। एह ! नौ मोन लागल छैक। कहियो एहि घर मे बाढ़नि नहि पड़ैत छैक?
जीबू--घर मे रहबे नहि करैत छथिन तँ...अयबो कयलाह तँ...।
बिन्दा--कनी बहारि दैत छियैक।
बिन्दा आङन मे अबैत अछि।
जीबू--(थाकल स्वर सँ) की बहारबैक ! फेर तँ....।
कोनो चीज तकबाक हेतु मड़बा, आङन आ दुआरि पर नजरि दौगबैत अछि।
बिन्दा--बाढ़नि कहाँ छैक?
जीबू--ईहो हमरे सँ पुछैत छी?
बिन्दा--(मुस्कुराइत) छलहुँ घर मे अहाँ तँ....।
बिन्दा पहिने केबाड़ बला हन्ना मे आ तकर बाद सिरकी बला हन्ना मे जाइत अछि।
किछु कालक बाद घर सँ बाढ़नि लेने आङन अबैत अछि।
बिन्दा--बाबूक फोटो की कऽ देलियनि? नहि छैक टाङल?
जीबू--पेटी मे राखि देलियैक।
बिन्दा--कथीलए?
जीबू--फोटो राखऽ बला घर नहि छैक। दुर्दशा भऽ रहल छलनि !
नीलू किताब लेने प्रवेश करैत अछि। बिन्दा कें देखि कऽ 'भौजी ! भौजी !!' करैत
दौगति अछि आ भरि पाँज कऽ बिन्दा कें पकड़ि लैत अछि। किताब कतऽ खसि पड़ैत
छैक तकर कोनो सोह नहि। दूनू गोटाक मोन खुशी सँ गद् गद् भऽ जाइत छैक। किछु
काल धरि नीलू पकड़ने रहैछ आ बिन्दा स्नेह सँ नीलूक माँथ पर हाथ फेरैत रहैत
अछि।
नीलू--(बिन्दा कें छोड़ि कऽ) भौजी ! कखन अयलहुँ? हमरा तँ बुझले नहि छल जे...नहि तँ
आइ हम स्कूलो नहि जइतहुँ।
उत्तर मे बिन्दा अत्यधिक प्रसन्नता व्यक्त करैत अछि।
(जीबू सँ भैया ! अहाँ हमरा कियैक नहि कहलहुँ जे आइ भौजी अओथिन?)
जीबू--अएँ..हँ, तखन तों स्कूल जइतें?
नीलू--उँह ! एक दिन स्कूल नहि जइतहुँ तँ कीदन होइतैक !
बिन्दा--बच्चा ! नीके छलहुँ ने?
नीलू 'हँ' मे जल्दी मूड़ी झुलबैत अछि।
नीलू--भौजी ! अहाँ कें देखऽ लए हमरा बड़ मोन लागल छल। (बिन्दाक मुँह ताकि कऽ) अहाँ
नहि कहलहुँ जे कखन अयलहुँ?
बिन्दा--थोड़ेक काल भेलेए। (स्नेह सँ नीलूक माँथ पर हाथ फेरैत) अङाँ बड़ लट्टल छी?
नीलू--(अपन देह निघारैत) अङाँ बहुत दिन पर देखलहुँहें तें बुझाइत अछि।
बिन्दा--हूँ, ओहो तँ संयोग छल जे परुका साल मेंट भऽ गेल। (किछु क्षणक बाद) हे, अहाँ
स्कूल सँ अयलहुँहें, मुँह सुखयाल अछि। पहिने जलखै कऽ लिअ तखन...। (जीबू सँ)
घर मे किछु..।
जीबू--रोटी आ तरकारी बना देने छौक बाबू। खा ले गऽ।
नीलू बिन्दा कें तरे आँखिए देखि कऽ मुस्कुराइत अछि।
बिन्दा--कथीलए हँसी लगैत अछि?
नीलू--(जाँतल स्वर सँ) हुः रोटी आ तरकारी...आइयो....।
बिन्दा--(हँसैत) एखन भरिया पाछुए छैक। चल तँ अबितैक तङे पर, मुदा दही छलैक तें.. ...।
नीलू--(लजा कऽ) भौजी ! अहाँ कें देखि कऽ जेना भूखे बिला गेल होय।
बिन्दा--(प्रसन्नता सँ उग-डूब करैत) एहन हीरा दियोर ककर होयतैक !
नीलूक चिबुक पकड़ि कऽ तकैत अछि।
(जीबू सँ) कतऽ छैक रोटी?
जीबू--ओकरे घर मे। थमू, हम दैत छियैक। फट्टक बला घर दिस बढ़ैत अछि।
बिन्दा--नहि, हमहीं देबनि।
जीबू ठाढ़ भऽ जाइत अछि। बिन्दा फट्टक बला घर दिस बिदा होइत अछि।
जीबू--चुल्हा लग सब किछु होयतैक।
बिन्दा घर जाइत अछि आ एकटा छिपली लेने आङन अबैत अछि।
बिन्दा--घैल मे एको ठोप पानियो ने छैक।
बिन्दा घेल्ची परक घैल सँ पानि ढारि कऽ छिपली अखारि लैत अछि आ पुनः फट्टक
बला घरमे जाइत अछि। किछु कालक बाद छिपली मे रोटी-तरकारी लऽ कऽ आङन
अबैत अछि।
कतऽ खायब?
नीलू--एहि मड़बा पर।
बिन्दा--नहि, कियो देखत तँ...। (जीबू सँ) एकटा टाट लगबा देथिन से...। चलू केबाड़ बला
हन्ना मे खा लिअ गऽ।
नीलूक हाथमे छिपली दऽ दैत अछि। नीलू छिपली लऽ कऽ केबाड़ बला हन्नामे
चल जाइत अछि। बिन्दा दुआरि परक लोटामे एक लोटा पानि ढारि कऽ नीलू कें दऽ
अबैत अछि।
जीबू--नीलू !
नीलू--(मुँहमे रोटी लेने घरे सँ) की?
जीबू--खा कऽ कोम्हरो निकलि नहि जइहें। अङनेमे रहिहें। बुझलही किने?
नीलू--(घरे सँ) अच्छा।
बिन्दा आङनमे अबैत अछि।
बिन्दा--(जीबू सँ) हम आयब से ...?
जीबू--(बीचहिमे बात लोकैत) अहूँ नेन्ना जकाँ... ...।
ओकरा कहितियैक तँ..। कहबे तँ कयलकै जे हम स्कूल नहि जइतहुँ।
बिन्दा जीबूक मुँह ताकि कऽ बाढ़नि आ किताब लेने फट्टक बला घरमे चल
जाइत अछि। जीबू मे पुनः वैह कछमछाहटि आबि जाइत छैक। एहि क्रममे ओ कखनो
मड़बा आ कखनो आङन मे हाथ मलैत जाइत अछि।
जीबू--बेकूफी !.... जखन हम निर्णय कऽ लेलहुँ तखन फेर चोरेबाक कोन बात? थोड़ेक कालक
बाद तँ ओ बुझबे करती। बुझबे नहि करतीह, करबो करतीह। तखन फेर ? बेकूफी
!...जाहि कारण सँ हम एतेक मानसिक यातना सहैत छी (किछु क्षणक बाद) हम एकरा
खतम कऽ सकैत छलहुँ, हम ओकर खून कऽ सकैत छलहुँ। मुदा...हमहम...किछु नहि।
मात्र कायर आ बेकूफ !
बिन्दा घर बहारि कऽ दुआरि बाहरऽ लगैत अछि। जीबूक गति-विधि पूर्ववत् रहैछ।
बिन्दा--(बहरनाइ छोड़ि कऽ जीबू कें तकैत) एना कियैक औंड़ माड़ैत छियैक?
जीबू--ओहिना।
जीबू फट्टक बला घरक ओरियानी मे आबि कऽ ठाढ़ भऽ जाइत अछि।
अहाँ कें बड़ दुःख भेल होयत जे हम अहाँ कें आइ पाँच वर्ष सँ..आ कि नहि?
बिन्दा--(जीबूक मुँह तकैत) ककरा खुशी भऽ सकैत छैक जे अपन घर-आङन, लोक-वेद छोड़ि
कऽ...। माय-बापक दायित्व त ओही दिन खतम भऽ गेलनि जाहि दिन अहाँ हमर हाथ
पकड़लहु..आ तैयो।
बिन्दाक आँखि छलछला जाइत छैक।
जीबू--एतेक तँ हमहूँ बुझैत छियैक जे। मुदा हम बारम्बार पत्र लिखैत छलहुँ जे।
बिन्दा--हमरा नहि काज अछि अहाँक नोकरीक। ई हमर अपन घर अछि, एही घर मे हमरा
सुख-दुख काटबाक अछि। हमरा दोसराक कोठा काज दैत?
जीबू--हूँ, अहाँक सोचब तँ ठीके अछि, मुदा...।
बिन्दा--आ अहाँ की सोचैत छी?
जीबू--हम किछु आओर..मतलब जे...।
बिन्दा--(बीचहि मे बात कटैत) मतलब जे हमरा जीवन भरि नोर मे डुबौने रही।
जीबू--(जोर सँ) नई इ...।
बिन्दा--तऽ...? कोनो हम गल्ती कहैत छी?
जीबू आवेश मे ओबि कऽ हाथ मसोड़ऽ लगैत अछि।
जीबू--हम किछु आओर सोचैत छी। मुदा अहाँ बुझैत नहि छी।
संझा थाकल डेगे आङन मे प्रवेश करैत अछि। ओ बिन्दा कें देखि कऽ चकित रहि
जाइछ। बिन्दा बाढ़नि ओतहि छोड़ि कऽ संझा कें आबि कऽ गोर लगैत अछि। संझा
आशीर्वाद दैत अछि। जीबू गुम्हरि कऽ दूनू गोटा कें तकैत अछि। संझाक दुःखी आ
सुखायल मुँह पर प्रसन्नताक लहरि पसरि जाइत छैक।
संझा--(कुशी सँ उग-डूब करैत) हमरा तँ बुझले ने छल जे अहाँ...।
बिन्दा--(आश्चर्य सँ) हिनको नहि छलनि बुझल !
संझा-ओह ! हम की जाने गेलियैक जे अहाँ...की सब चिट्ठी मे गेल छल से हमरा...।
बिन्दा--चिट्ठी कहाँ गेल छलैक। चैतन्य ओहिना...।
संझा--हम काल्हि देखने रहियैक जे...। (किछु क्षणक बाद) हम मनुक्ख रही तखन ने जे...।
बिन्दा कन्हुआ कऽ जीबू दिस तकैत अछि। अहाँ नीके छलहुँ?
बिन्दा--हूँ।
संझा--गाम पर सब कियो नीके छथि?
बिन्दा--हँ।
संझा--चलू, दुआरि पर बैसू।
आगू-आगू संझा आ पाछू-पाछू बिन्दा केबाड़ बला दुआरि दिस बढ़ैत अछि। संझा पुनः
घूमि कऽ मड़बा पर सँ पटिया लऽ लैत अछि आ ओही दुआरि पर ओछा कऽ दूनू सासु
पुतोहु ओहि पर बैसि रहैत
अछि।
के आयल अति सङे?
बिन्दा--चैतन्य नहि ककरो आबऽ देलथिन। कहलथिन जे अहाँ सब कियो नहि जाउ।
संझा--से कथीलए?
बिन्दा--आब की बात छैक से...।
जीबू संझा आ बिन्दा दिस पीठ कऽ कऽ मड़बाक बगनी पर चुक्कीमाली भऽ कऽ बैसि
रहैत अछि। संझा बिन्दाक चूड़ी आ कनबाली छूबि-छूबि कऽ देखैत अछि।
हिनका किछु होइत छलनि?
संझा--ओह ! हमरा कि होयत ! हम तँ...।
बिन्दा--मुँहक सुर्खी देखैत छियनि जे..।
नीलू सुसुआइत घर सँ बहराइत अछि। खयलहुँ?
नीलू--हँ।
नीलू संझा आ बिन्दा लग बैसऽ चाहैत अछि, मुदा ध्यान जीबू पर जाइत छैक। ओ मोन
मसोड़ि कऽ मड़बा पर जाइत अछि।
बिन्दा--बैसू ने एहिठाम।
नीलू ठाढ़ भऽ कऽ संझा आ जीबू कें तकैत अछि। पुनः जीबू लग चल जाइत अछि।
संझा--ओ हमरा लग बैसतैक तँ काँचे ओकरा चिबा जयतैक।
बिन्दा--के?
संझा--आओर के?
बिन्दा--कियैक?
संझा--आब से हम कोना कहू?
बिन्दा--(जीबू कें तकैत) उतकीर्ना करैत छथि।
संझा--किछु कऽ कऽ रखनहँ ने छी जे...। लोकक पुतोहु अबैत छैक तँ खीर...आ हमर
पुतोहु...।
बिन्दा--घुर ! ओ सब कोनो बात छियैक (किछु क्षणक बाद) हिनका जखन बुझले नहि छलनि
तँ...। (किछु क्षणक बाद) हमरा सङे कोन नाटक भऽ रहल अछि से हम की जाने
गेलियैक।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। संझा बिन्दा कें प्रसन्नता सँ तकैत रहैत अछि।
संझा--अहाँ बैसू। ताबे हम झट दऽ...। मुँह सुखायल अछि।
बिन्दा--एकन छोड़ि ने देथुन।
संझा--एह ! अहाँ अयलहु आ...। हमरा आइ ततेक ने खुशी अछि जे...।
जीबू जोर सँ भभा कऽ व्यंग्य सँ हँसैत अछि। संझा स्नेह सँ बिन्दाक माँथ पर हाथ फेरि
कऽ उठि जाइत अछि। नीलू बिन्दा लग जाइत अछि।
जीबू--बेकारे एकरा एतेक खुशी छैक !
संझा तिक्ख नजरि सँ जीबू दिस तकैत अछि।
बिन्दा--आउ बैसू।
नीलू पटिया पर बैसि जाइत अछि। संझा भानसक ओरियाओन मे लागि जाइत अछि।
एहि क्रम मे भानसक समान लऽ कऽ बारी सँ घर आ सिरकी बला हन्ना सँ केबाड़ बला
हन्ना मे जाइत अछि।
ई छोड़ि ने देथुन। हमहीं कऽ लैत छी।
सँझा--एह ! आइए अहाँ अयलहुँहें आ आइए सँ... एना बताहि जकाँ कियैक बजैत छी !
संझा घेल्ची पर सँ घैल उठा कऽ केबाड़ बला हन्ना मे जाइत अछि।
बिन्दा--बाउ, अङाँ बैसू। हम माय कें लागि-भीड़ि दैत छियनि, अएँ?
नीलू--अच्छा।
सँझा--(घुरखुर लग आबि कऽ लजायल स्वर मे) भरियो-तरियो...फेर ओकरो सीदहा लगबऽ...।
बिन्दा--एकटा छैक।
सँझा पुनः घर मे ढूकि जाइत अछि। तत्पश्चात् नीलू उठिकऽ जीबू लग आ बिन्दा
केबाड़ बला हन्ना मे जाइत अछि। किछु कालक बाद केबाड़ बला हन्ना सँ धुआँ बहराए
लगैछ।
नीलू--भैया ! हम जाउ?
जीबू--हमरा सङे जइहें।
नीलू जीबूक मुँह तकैत अछि।
नीलू--अहाँ सङे कतऽ जायब?
जीबू--जतऽ हम जायब ततऽ।
नीलू--अहाँ कतऽ जयबैक?
जीबू--छोड़, एतेक बात नहि चीरै।
जीबू उठि जाइत अछि आ आङन मे कछमछाहटि सँ टहलऽ लगैछ। चैतू धीरे-धीरे
आङन आबि कऽ आङन मे ठाढ़ भऽ जाइत अछि। जीबूक ध्यान चैतू पर जाइत छैक।
चैतू !
चैतू--(हँसैत) प्रायः तोरा देखि कऽ आश्चर्य लागि रहल छौक।
दूनू गोटे सोझां-सोझी भऽ कऽ ठाढ़ भऽ जाइत अछि। एक दोसर कें टकटकी लगा कऽ
तकैत अछि।
जीबू--तों बुझनिक बूझि पड़ैत छैं। आकि नहि?
चैतू--अपना विचार सँ तँ वैह बुझैत छियैक, मुदा तोरा विचार मे आब जे होइ।
नीलू--भैया कनी नदी दिस जाउ?
जीबू--जो, मुदा जल्दी चल अबिहें।
नीलू कें जेना हक् दऽ प्राण अबैक तहिना आङन सँ बहार भऽ जाइत अछि। जीबू
आङन मे टहलऽ लगैत अछि। चैतू जीबू कें तकैत रहैछ।
सँझा--(घरे सँ) अङाँ छोड़ि दियौक। हम कऽ लैत छी। अहाँ नहि हरान होउ।
बिन्दा--(घरे सँ) एहि मे हरानक कोन बात छैक।
जीबू--भरिसक तों पत्र नहि देलही।
चैतू--नहि।
जीबू पुनः उनटि कऽ चैतू दिस तकैत अछि।
जीबू--कियैक?
चैतू--अयबाक सब तैयारी भऽ गेल छलैक।
जीबू--आओर तें तोरा पत्र देबऽ कहने छलियौक।
चैतू--तों कहने छलें ने, मुदा हम ओहि स्थिति मे देनाई ठीक नहि बुझलियैक।
जीबू--ठीक आ बेठीक तोरा पर नहि छलौक। (किछु क्षणक बाद) दोसर पत्र मे की छलैक से
तों की जानऽ गेलही?
चैतू--हम जे...हम....हम तँ एना सोचलियैक जे...जखन ओ जाइते छथिन तँ जेहने पत्र देने आ
नहि देने दूनू बराबर होयतैक।
जीबू--हूँ।
जीबू पुनः टहलि जाइत अछि।
पत्र कहाँ छैक?
चैतू पत्र निकालि कऽ जीबू कें दैत अछि। जीबू पत्र लऽ कऽ खूब गौर सँ देखऽ
लगैत अछि।
संझा--(घरे सँ) हे, अहाँ करबे करब तँ पथार आङन सँ उठा लिअ गऽ। काल्हि सँ पसरल
अछि।
बिन्दा--(घरे सँ) काल्हि सँ पसरल छनि !
संझा--हँ, हमर मोन कनी...कोनो सुधिए ने रहल जे...।
जीबू--बूझि पड़ैछ तों पत्र पढ़ि कऽ पुनः एहि मे राखि देलहीए।
चैतू--हँ।
बिन्दा--(घरे सँ) कथी मे उठबियैक?
संझा--(घरे सँ) ओहिठाम ओरियानी मे टीन राखल होयत। बिन्दा घर सँ आबि कऽ टीन लऽ
लैत अछि आ ओहि मे पथारक अन्न उठबऽ लगैत अछि।
जीबू--चैतू ! पत्र मे की छलैक?
चैतू--अहाँ आयब तँ कोनो अनिष्ट घटना देखऽ मे आओत।
जीबू--तँ फेर?
चैतू--ओहूठाम यैह स्थिति भऽ सकैत छलैक।
बिन्हा अद्र्धोन्मीलित नयन सँ चैतू दिस तकैत अछि।
(बिन्दा सँ) अहाँ कनी कालक हेतु एहिठाम सँ चल जाउ?
जीबू--कियैक? जकरे माय मरय तकरे पात भात नहि? रहऽ दहुन।
बिन्दा--कोन तमाशा भऽ रहलअथि से हम..।
जीबू दिस कन्हुआ कऽ तकैत अछि।
जीबू--आब सब देखि लेबैक।
चैतू--(सन्न भऽ कऽ) जीबू !
जीबू--कियैक आश्चर्य होइत छैक? प्रायः तों बूझि रहल छें जे एहि नाटकक अन्त नहि रोकि
सकैत छी।
चैतू--जीबू, तों की बाजि रहल छें से हमरा किछु बुझऽ मे नहि आबि रहल अछि।
जीबू--आबि जयतौक। (किछु क्षणक बाद) हम सोचैत छलहुँ जे किछु दिन आओर करेज पर
पाथर राखि कऽ...। ...मुदा...।
चैतू--(हताश होइत जीबू कनी आओर फरिछा कऽ..सत्ते हम किछु नहि बुझैत छियैक। हमरा
होइत अछि जेना कोनो चीज सनसनायल माँथ मे पैसि रहल होय। ठीके हम कहैत
छियैक जे...हम तँ सोचने छलियैक जे जँ कोनो एहन परिस्थिति अओतैक तँ ओकरा
सम्हारि लेब।
जीबू--तों छीके सोचलें। हमहूँ यदि तोरा स्थान पर रहितहुँ तँ यैह दाबी करितहुँ। आ तोहूँ
हमरा स्थान पर रहितें तँ हम जेना सोचैत छी तहिना सोचितें। नहि, भऽ सकैत छलैक
जे ई नहि सोचि कऽ कोनो दोसर बात सोचितें। मुदा समस्याक कोनो ने कोनो
समाधान अवश्य करितें।
जीबू कोन्टा दिस बढ़ि जाइत अछि। बिन्दा अलबकैल पथार टीन मे उठा कऽ
दूनू पटिया कें मोड़ि कऽ दुआरि मे ओङठा दैत अछि। ओही पर चद्दरि सेहो राखि दैछ।
चैतू किंकत्र्तव्यविमूढ़ भऽ मांथाहाथ धऽ कऽ बैसि जाइत अछि।
बिन्दा--(चैतू सँ) हम किछु बुझऽ चाहैत छी। अहाँ हमरा बुझा सकैत छी?
चैतू कोनो उत्तर नहि दैत अछि। ओहिना बैसल रहैत अछि।
जीबू--चैतू ! ओना कियैक बैसल छें? उठ, ओ की पुछलथुन? बुझा दहुन। तावत् हम एकटा
काज करैत छी।
जीबू सिरकी बला हन्ना मे चल जाइत अछि। बिन्दा सहटि कऽ चैतूक आओर लग चल
अबैत अछि।
बिन्दा--ओ की कहलनि?
चैतू--(मूड़ी ऊपर उठा कऽ बिन्दा कें तकैत) अहाँ कें नहि बुझल अछि से...?
बिन्दा--किछु बुझल अछि आ किछु बुझबाक बाँकी अछि।
जीबू घर सँ एक ताओ कागत, एकटा पत्रिका आ पेन लऽ कऽ मड़बा पर अबैत अछि।
चैतू दिक् मोन
सँ बैसल रहैत अछि आ बिन्दा किछु सुनबाक प्रतीक्षा मे ठाढ़ि रहैछ। जीबू पीढ़ी पर बैसि कऽ
ओहि कागत पर किछु-किछु लिखऽ लगैत अछि।
बिन्दा--कहू ने।
चैतू--की कहू ! काहि अहाँक भैया अशोक एकटा पत्र (जीबू दिस संकेत कऽ कऽ) एकरा देने
छलथि। ओहि मे छलैक जे हमरा नहि लिखबाक चाही, तथापि हम सब लाज त्यागि
कऽ लिखि रहल छी--अहाँ काल्हि बिदागरी आबि कऽ करा लिअ, नहि तँ कऽ कऽ
पहुँचा देल जायत। बैह रोकऽ लए ई हमरा पत्र देने छल।
बिन्दा--मुदा भैया तँ...।
जीबू--ओ जे कहने छलाह काल्हि विदागरी करब लए अओताह से सब झूठ। जँ (जीबू दिस
संकेत करैत) ई वा हम नहि जइतहुँ तँ अहाँक भैया अहाँ लोकनि सँ कहितथि जे समय
नहि भेटलनि तें...।
बिन्दा--हूँ, आब बुझलहुँ। हम जेना कुल-कलंकिनी होइ तहिना हमरा सँ....।
बिन्दा तिक्ख नजरि सँ जीबू दिस तकैत अछि। बाद मे धीरे-धीरे आँखि करुण भऽ
जाइत छैक। जीबू लिखऽ मे व्यस्त रहैछ। एहि क्रम मे कखनो ठोर पर कलम राखि
कऽ किछु सोचैत अछि आ पुनः फुरा गेला पर ओकरा लिखि लैत अछि।
हिनका हमर चिन्ता नहि करऽ कहियौन। हम अपन समस्या अपने सोझरा लेब। हिनका
आब।
बिन्दा झटकि कऽ सिरकी बला हन्ना मे चलि जाइत अछि। चैतू उठि कऽ जीबू
लग अबैछ। जीबू कें लिखल समाप्त भऽ जाइत छैक। ओ कागत मोड़ि कऽ जेबी मे
राखि लैत अछि। चैतू जीबूक माँथ पर आस्ते सँ हाथ दैत अछि।
चैतू--जीबू !
जीबू--(उठि कऽ) की?
चैतू--ओ की बजलथिन से सुनलही?
जीबू--सुनलियैक। सब ठीक भऽ जयतैक : ओ जेना सोचैत छथि से नहि होयतैक।
चैतू--(प्रसन्न भऽ कऽ) सत्ते?
जीबू--सत्ते नहि तँ झुठे।
चैतू--तँ एखन जाइत छी।
जीबू--जो।
संझा घर सँ निकलि कऽ दुआरि पर अबैत अछि। जीबू पत्रिका फेकि कऽ सिरकी
बला हन्ना मे चल जाइत अछि। चैतू जीबू कें घर मे प्रवेश करबा काल धरि तकैत
रहैछ।
संझा--चैतू ! कोना-की गेलह से जाय कालल किछु कहबो नहि कयलह।
चैतू--कहब चैन सँ।
संझा--अच्छा। (किछु क्षणक बाद) जाय लगिअह तँ हमर भेंट कऽ लिअह।
संझा घर चल जाइत अछि। चैतू मड़बा पर किछु सोचैत ठाढ़ रहैत अछि। किछु
कालक बाद जीबू घर सँ निकलि कऽ मड़बा पर अबैत अछि।
चैतू--(पत्रिका दिस संकेत कऽ कऽ) ई पत्रिका ओना कियैक फेकि देलही?
जीबू--की होयतैक आब ई सब राखि कऽ।
जीबूक आँखि छलछला जाइत छैक। किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
चैतू--ओ की लिखैत छलहीए?
जीबू लिखलहबा कागत निकालि कऽ चैतूक हाथ मे दैत अछि।
चैतू--की छियैक?
जीबू--पढ़ही ने।
चैतू जीबूक हाथ सँ कागत लऽकऽ पढ़ऽ लगैत अछि। जँ जँ ओहि कागतक निच्चाँ मे
जाइत अछि तँ तँ सन्न भेल जाइत अछि। पढ़लाक बाद एकटा दीर्घ •ााँस छोड़ि एक
टक्क सँ बीजू कें देखऽ लगैत अछि।
चैतू--ई की छियैक?
जीबू--पढ़लही नहि?
चैतू--पढ़लियैक। (किछु क्षणक बाद) जीबू ! हमरा वि•ाास छल जे हमर प्रेमक, हमर व्यवहारक
पलड़ा एहि छोट-छीन ङत्द्मत्त् सँ भारी होयत।
जीबू--एखनो भारी छौक। तों हमरा सङ रहबाक खातिर ओतेक जड़ल-कटल बात सहैत रहलें,
मुदा सब किछु कें घोंटि कऽ हमरा सङ...।
चैतू--तों बुझैत छें जेना हमरा माँथ मे आओर किछु नहि, मात्र गोबर रहय।
जीबू--नहि, कैतू ! हमरा अपसोच अछि जे... मुदा....।
चैतू--मुदा की?
चैतू ओहि कागत कें फाड़ऽ लगैत अछि। जीबू चट्ट दऽ हाथसँ झीकि लैत
अछि।
जीबू ! तों कोन नाटक एतेक दिन सँ करैत आबि रहल छें? हमरा तँ किछु समझ मे
नहि आबि रहल अछि।
जीबू--जाहि नाटकक नायक कमजोर होइत छैक, ओकर अन्त एहिना होइत छैक।
चैतू जीबूक मुँह तकैत अछि। किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
चैतू, तों प्रायः जनैत छें जे हम नोकरी ताकऽ मे कतेक परशान छलहुँ ! हप्ता-हप्ता
दिन घर सँ...। कहियो जयबाक किराया नहि होइत छल तँ कोनो चीज बेचि लैत
छलहु। लोक सब हमरा अबारा बुझैत अछि। कियैक तँ ई चीज ककरो बुझल नहि
छैक। हमरा ध्र्त्ढड्ढ कें मात्र एतबे बुझल छनि जे हम नोकरीक खोजमे छी। हँ, आओर
कक्का कें सेहो।
चैतू--तऽ...?
जीबू--(चैतू किछु कहऽ चाहैत अछि ताहि पर ध्यान नहि दऽ कऽ) तों सोचैत होयबें जे हमर
आर्थिक स्थिति खराप अछि तें हुनका नहि लबैत छलियनि से बात नहि। हमरा नोकरी
भेटि जाइत तखन हम हुनका आ नीलू कें लऽ कऽ...। हम सस्ता भावुकता मे नहि
आबऽ चाहैत छलहुँ जे बिना कोनो ठौरक सब कें लऽ कऽ चल जइतहुँ आ......।
चैतू--तँ फेर...?
जीबू--(पुनः चैतू किछु कहऽ चाहैत अछि ताहि पर ध्यान नहि दऽ कऽ) हम चाहैत छलहुँ गोप्प
रुप सँ कतहु नोकरी भेटि जाय जतऽ....।
चैतू--तों ही कहैत जो।
जीबू--जतऽ एहिठामक हवा धरि नहि पहुँचैत होइक। ओतहि तीनू गोटे चल जाइ। आ तखने
हम अपना कें खुशी राखि सकैत छी।
चैतू--तों सब किछु कहलें, मुदा तैयो हमरा बुझऽ मे किछु नहि आयल।
जीबू--तों एतबे बुझही जे हमर ध्र्त्ढड्ढ आत्महत्या कऽ लिए से हमरा पसिन आ ओकरा एहि घर
मे राखब पसिन नहि।
चैतू--मुदा एना कियैक? आखिर एहन कोन बात छैक जे...।
जीबू--ई बात हम नहि कहि सकैत छियौक। बस, एतबे बूझ जे आइ सब किछु कें त्यागि कऽ
हम सब जा रहल छी।
जीबूक आँखि छलछला जाइत छैक। चैतू कें जेना ठकमूड़ी लागल होइक।
संझा सिरकी बला हन्ना मे जाइत अछि।
संझा--(घर सँ) एना कथीलए सूतलि छी? (किछु क्षणक बाद) अएँ ! कनैत कियैक छी?
घर मे किछु गुदुर-गुदुर होइत अछि। तकर बाद संझा धामत साँप जकाँ हनहनाइत चैतू
लग अबैत अछि।
चैतू ! की भेलैए से हमरा कहऽ। आब हमरा एक्कोरत्ती सहाज नहि कयल जाइत
अछि।
जीबू संझा सँ मुँह घुमा लैत अछि।
चैतू--जीबू ! ई की पुछैत छथिन?
जीबू--एकरा सँ हम बाजऽ नहि चाहैत छी। कही चुपचाप चल जाय।
संझा तामसे थर-थर काँपऽ लगैत अछि।
संझा--(चैतू सँ) हम पुछैत छियह, हुनका एना...। जखन ई एहन कुकर्मी अछि तँ हुनकर सींथ
कियैक छुलकनि? हुनकर नोर एकरा अङोर भऽ कऽ नहि पड़तैक।
जीबू--हम कहैत छियौक चैतू, एकरा बाजऽ नहि कही। ओ हमर स्त्री छी, हम ओकर पति
छियैक। एहि बीच मे कोनो दूरी नहि छैक जे तेसर बलधकेल घुसिएबाक प्रयत्न करत।
संझा--हूँ। (किछु बाजऽ लए ठोर फड़फराइत छैक, मुदा तामसे कोनो शब्द नहि फुराइत छैक
जे बाजत)
चैतू--काकी ! एखन अहाँ चुप्प भऽ जाउ। एकरा बाजऽ दियौक जे बजैत अछि से।
संझा--नहि, आब हमरा एकर करनी एक्कोरत्ती...ई एना कियैक करैत अछि, आ की करत से
फरिछा लेबऽ कहक।
चैतू--अहाँ बुझैत नहि छियैक? हम कहैत छी चुप्प भऽ जाय।
जीबू--एकरा सँ की हम सम्बन्ध फरिछाएब ! सम्बन्ध आई सँ नहि, बहुत पहिने सँ फरिछाएल
अछि। जाहि दिन ई (रुकि जाइछ)
संझा--कहऽ कहक ने। की कहऽ चाहैत अछि?
जीबू कोन्टा मे जा कऽ ककरो तकैत अछि।
जीबू--ओह ! कक्का एखन धरि नहि आयलाह अछि। पुनः ओहिठाम सँ मड़बा लग अबैत अछि।
संझा तमसायल जीबू कें तकैत रहैत अछि।
चैतू--जीबू ! हम तोहर पयर पकड़ैत छियौक। ई सब दोष हमरे पर चल आओत। हम बदलाम
भऽ जायब। हमरा...।
जीबू--जकरा मस्तिष्क मे कनियो मसल्ला होयतैक से तोरा बदलाम नहि करतौक। एहिना
बादोमे होइतैक।
चैतू--तों नहि मानबें?
जीबू--आब शुभकामना दे।
चैतू--काकी ! जीबू जा रहल अछि।
संझा--उँह ! कोढ़ि उमतेलाह तँ... ...।
संझा छमकि कऽ सिरकी बला घर दिस जाइत अछि।
चैतू--सुनू ने, हम जे कहैत छी से ....।
संझा--अङोरा सुनू ओ बात !
संझा सिरकी बला हन्नामे चल जाइत अछि। (घरे सँ) कनियाँ ! चलू, कखन कहाँ खयने
होयब : (किछु क्षणक बाद) हम तँ पाप कयने छलहुँ जे एहि घरमे अयलहुँ। (किछु
क्षणक बाद) अहूँक कर्म कियैक एहन भेल जे एही पपियाहा घरमे..। (किछु क्षणक बाद)
उठू।
बिन्दा--(घरे सँ कानल स्वरमे) हमरा छोड़ि देथु। हम.... .. हमरा अन्न तहि घोंटाएत।
जीबू आङन सँ बहार भऽ कऽ बाहर जाइछ। आ पुनः तुरते घूमि अबैछ।
संझा--(घरे सँ) अहाँ कें हमर सपत छी। उठू।
जीबू सिरकी बला हन्नामे जाइथ अछि। किछु काल धरि चुप्पी रहैछ।
जीबू--(घरे सँ) चलू, उठू। कक्का अबैत छथिन।
जीबू ऊपरका जेबीमे किछु रखैत आङनमे आबैत अछि। नीलूक प्रवेश।
सँझा--हम अहाँ कें सपतो देलहुँ तैयो...। चलू ने।
संझा बिन्दाक हाथ पकड़ने सिरकी बला हन्ना सँ केबाड़ बला हन्ना लऽ जाइत अछि।
जीबू ई देखि कऽ मेघ जकाँ गरजैछ-बिन्दाऽऽऽ...। सँझा, बिन्दा, चैतू आ नीलू चौंक
उठैत अछि। ओ सब गोटे स्तब्ध भऽ कऽ जीबू कें देखऽ लगैत अछि। सँझाक हाथ
बिन्दाक हाथ सँ छूटि जाइत छैक।
जीबू--हम अहाँ कें कहलहुँ चलू। बिन्दा पिनकि कऽ जीबू लग अबैत अछि।
बिन्दा--(तमसायल) कतऽ चलू?
जीबू--हम जतऽ जाइत छी?
शिबूक प्रवेश। बिन्दा लजा क।ड नूआ सरियाबऽ लगैत अछि। शिबू आङनमे एक बेर
सब कें तकैत अछि। संझा आङनमे आबि जाइत अछि।
कक्का ! जा रहल छी।
शिबू--कहाँ?
जीबू--पता नहि, कहाँ जायब ! (किछु क्षणक बाद) नीलू कें सेहो लेने जाइत छियैक।
किछु काल धरि चुप्पी रहैछ। शिबूक आँखि डबडबा जाइत छैक।
शिबू--(दर्द भरल स्वर सँ) बेस, जाइत जाह ! ओम्हरे मूड़ी उठा कऽ जीबि सकबह। एहि
समाजमे तँ....। (किछु क्षणक बाद नीलूक चिबुक पतड़ि कऽ तकैत) जो, बेटा ! हमर
आशीर्वाद तोरा लोकनिक सङ। आओर हम दए की सकबह ! (किछु क्षणक बाद) हम
कनी पीबऽ जाइत छी।
शिबू फट्टक बला घर दिस जाइत अछि।
जीबू--सुनह ।
शिबू उनटि कऽ जीबू दिस तकैत अछि। जीबू जेबी सँ कागत निकालैत अछि।
ई कागत लऽ लैह।
शिबू--केहन कागत छियैक?
जीबू--हम अपन सम्पत्ति तोरा देने जाइत छियह। एकरा ओहि हिसाब सँ खर्च करियह जाहि सँ
राति कटि जाह।
शिबू--(करुण स्वर सँ) जीबू ! हम एहि दुनियामे कियैक जीबि रहल छी से नहि जानि ! लोक
सब एतबे कहैत अछि--मरि नहि जा होइत छैक जे जीबैत अछि।
शिबू पुनः ओही घर दिस जाय लगैत अछि।
जीबू--कक्का ! तों हमरालोकनिक मुइल मुँह देखह जे ई नहि लैह।
शिबू--जीबू !
शिबू आबि कऽ जीबक हाथ सँ कागत लऽ लैत अछि।
हम ई कागत लेलहुँ। आब हम ई कागत (संझा दिस संकेत कऽ कऽ) हिनका दऽ दैत
छियनि। एही लए ओ विआह नहि कऽ पओलक आ एहि आङनमे एतेक भेल।
शिबू संझा कें कागत दैत अछि, मुदा संझा नहि लैत अछि।
संझा--(तामसे दाँत पर दाँत बैसा कऽ) शराबी !... .... डरपोक !
शिबू संझाक आगूमे कागत फेकि कऽ फट्टक बला घरमे चल जाइत अछि। संझा पयर
सँ कागत मसोड़ऽ लगैछ।
जीबू--(बिन्दा सँ) हम अहाँ कें चलऽ कहलहुँ।
बिन्दा--हम नहि जायब।
जीबू--अहाँ कें जाय पड़त। ई घर रहऽ बला नहि छैक।
बिन्दा-से जे किछु होइक, मुदा...ई हमर अपन घर छी।
किछु काल धरि स्तब्धता व्याप्त रहैछ। जीबू बिन्दाक चलबाक प्रतीक्षा करैछ। शिबू
काँख तर किछु दबने पुनः आङनमे अबैत अछि।
शिबू--हम ओही चौक पर भेंट भऽ जयबह।
शिबू चल जाइत अछि। जीबू कें प्रतीक्षा करबाक धैर्य टूटि जाइत छैक। ओ खूब
जोर सँ बिन्दाक हाथ पकड़ि कऽ घीचैत अछि।
जीबू--(दाँत कीचैत) हम अङाँ कें चलऽ कहैत छी।
बिन्दा अपन गट्टा छोड़बैत अछि। गट्टा छूटि गेला सँ निच्चामे खसि पड़ैछ। संझा हँसोथि
कऽ उठबैत अछि।
संझा--गे दाई गे दाई ! ई रक्षसबा जान लेलकनि !
बैजूक प्रवेश। ओ आबि कऽ केबाड़ बला हन्नाक दुआरि पर खाम्हमे ओङठि कऽ बैसि
जाइत अछि आ जेबी सँ तमाकू निकालि कऽ चुनबऽ लगैछ।
जीबू--(दाँत कीचैत) हम कहैत छी अहाँ कें ई घर छोड़ऽ।
चैतू--जीबू ! एना बतहपनी नहि कर।
जीबू--छोड़ ई सब। आब भगवान सँ हमरा लए यैह प्रार्थना कर जे हमर एहि घरक सब स्मृति
मेटा जाय।
संझा--(बिन्दा सँ) घर चलू।
सँझा बिन्दाक हाथ पकड़ि कऽ घर लऽ जाइत अछि। जीबू बिन्दाक हाथ पकड़ि कऽ
घीचैत अछि। बिन्दा खसि पड़ैत अछि, मुदा तैयो जीबू घिसियबिते रहैछ। संझा आ चैतू
जीबू कें पकड़ैत अछि। जीबू चैतू कें खूब जोर सँ झटकि दैत अछि आ संझाक मुँह पर
खूब जोर सँ थापड़ मारैत अछि। संझा कें चौन्ह आबि जाइत छैक। ओ दूनू हाथे अपन
मुँह झाँपि कऽ बैसि जाइछ।
नीलू--काकी !
बिन्दा--कसाइ ! लैह, पहिने हमरा खून कऽ दैह तखन...।
चैतू--नीच !
बिन्दा जीबूक आगू मे अत्यन्त क्रुद्ध भऽ कऽ ठाढ़ि भऽ जाइत अछि। बैजू तमाकू मे खूब
जोर सँ थपड़ी दैत अछि।
बैजू--(मुस्कुराइत) कखनो-कखनो शिकारी अपने बनार्ओल जाल मे ओझड़ा जाइत अछि।
जीबू, बिन्दा आ चैतू बैजू कें तिक्ख नजरि सँ तकैत अछि। संझा धीरे-धीरे अपन हाथ
मुँह पर सँ हँटबैत अछि। सौंसे हाथ, नाक आ मुँह मे शोणित लागि जाइत छैक। ओ
अपन दूनू हाथ पसारि कऽ तकैत अछि। किछु क्षणक बाद मूड़ि उठबैत अछि।
संझा--चैतू ! एकरा जाय दहक। गुलाब रानी ! जाउ। नीलू ! तोंहूँ जो। सब कियो जाइत जो।
ई जहिना कहौक तहिना कर।
बैजू मुस्कुराइत पुनः तमाकू मे खूब जोर सँ थपड़ी दैत अछि।
जीबू--(बिन्दा सँ) चलू। (नीलू सँ) चलू नीलू।
नीलू संझा दिस तकैत अछि।
ओमहर की तकैत छें? चल।
संझा--जो बेटा ! आब पिहुआ बच्चा नहि ने छें जे हमर काज पङतौक।
जीबू बिन्दाक हाथ पकड़ि कऽ घीचैत पुनः बिदा होइत अछि। बैजू पुनः मुस्कुराइत
तमाकू मे खूब जोर सँ थपड़ी दऽ कऽ ठोर मे धऽ लैत अछि।
मुदा जयबा सँ पहिने एतेक कहने जो जे कियैक जा रहल छें?
जीबू कोन्टा लग जा कऽ एकबैग ठाढ़ भऽ जाइछ आ उनटि कऽ संझा दिस
तकैत अछि।
कह ने। एतबो कहऽ मे की लगैत छौक? आइयो एकटा बात हमर मानि ने ले।
जीबू--(दर्द भरल मुस्की सँ) हम जे कहबौक से प्रायः तों सूनि नहि सकबें।
संझा--नहि, मात्र तों कहि दे। दोसर काज हम अछि, हमरा पर छोड़ि ने दे। हमर ह्मदय तँ
पाथरक अछि, सब सहि लेब, सूनि लेब।
जीबू--हू, तो जे ई बात हमरा सँ पुछैत छें से तोंहीं कियैक नहि कहैत छें जे हम कियैक जा
रहल छी? तोंहीं ई कियैक नहि कहैत छें जे मझिला कक्काक ओहन हालति के कयने
छनि? आइ हम एहि समाज मे मूड़ी नहि उठा सकैत छी, हम कोनो पापक विरुद्ध
बाजि नहि सकैत छी, हमर दम्म धोंटाए लगैत अछि, हमर मृत्यु भऽ जाइत अछि। सब
तोरहि पापक कारणें। नीलूक माय आत्महत्या कयने होयतैक तोरहि पापक कारणें।
शान्ति घर छोड़ि कऽ भागि गेलि तोरहि पापक कारणें। ओकरा सब कें ई चीज बर्दाश्त
नहि भेल होयतैक। मुदा तैयो तों मजा लेब नहि छोड़लें। तों पाप चोरबऽ लए बदलाम
कऽ देलें ओहि लतामक गाछ कें। तों हमरा मारि देलें। तहिना हमरो तोरा मारि देबाक
चाही। (हाथक फानी बना कऽ देखबैत) गरदनि जाँति कऽ (भर्रल स्वर सँ) मुदा हम से
नहि कऽ कऽ आइ अपने कायर जकाँ जा रहल छी !
संझा--हूँ, तँ आइ तों हमरे पापक कारणें जा रहल छें ! हमरे पापक कारणें तोहर मृत्यु भऽ
जाइत छौक ! हमरे पापक कारणें तोहर दम्म घोंटा लगैत छौक ! हमरे पापक कारणें
नीलूक माय आत्महत्या कऽ लेलकै ! हमरे पापक कारणें नीलूक बहीन भागि गेलैक !
संझा खूब जोर सँ विचित्र प्रकारक हँसी हँसैछ आ हँसैत-हँसैत दोसर मुँहें घूमि
जाइत अछि। सब बकर-बकर संझा कें तकैत अछि।
जीबू--(घृणा सँ) छुतहरिया ! हँसैत कोना अछि। संझा चोटाएल साँप जकाँ जीबू दिस धूमि
जाइछ आ ज्वालामुखी जकाँ फूटि पड़ैछ।
संझा--तों आइ हमरा छुतहरिया कहैत छें। निरलज्जा ! तोरा कोनो गत्र मे लाज कियैक नहि
होइत छौक। रे, आइ जे अनुमान सँ नीलूक मायक आत्महत्याक दोष हमरा पर मढ़ैत
छें से ओहि दिन तों मरल छलें जाहि दिन नीलूक माय आत्महत्या कऽ लेलकै। तों सब
ओहि दिन ई कियैक बुझलही जे आत्महत्या बिना कारणें कयलकै? रे, ओ तोरा सब कें
कहऽ जइतौक जे सुगरखौका बैजुआ हमरा जीबऽ जोगर नहि रहऽ देलक तें आत्महत्या
कऽ रहल छी।
जीबू, बिन्दा आ चैतू कें झनाक दऽ लगैत छैक। संझाक आँचर देह पर सँ
खसि पड़ैत छैक। ओ क्रुद्ध भेलि जीबू लग जाइत अछि आ ओकर कमीज पकड़ि कऽ
झुलबऽ लगैछ। जीबू संझाक मुँह तकैत अछि।
तों हमर मुँह की तकैत छें? तों ओहि दिन ई कियैक नहि बुझलही जे तोरा बाबू कें
साँप नहि, बैजुआ डसने छनि। हुनकर इलाज साँपक मंत्र सँ भेलनि। अन्हरा ! विषक
इलाज कतहु साँपक मंत्र सँ भेलैए? ओ बारम्बार कहैत रहलथुन जे हमरा साँप नहि
काटि सकैत अछि, मुदा तों सब बौजुआक बनाओल दाढ़ देखि कऽ हुनका बात पर
वि•ाास नहि कयलहुन। संझा जीबूक कमीज छोड़ि दैत अछि। जीबू कें बुझना जाइत
छैक जेना आकाश-पाताल उनटि कऽ एक भऽ रहल होय। ओ माँथा-हाथ धऽ कऽ बैसि
जाइत अछि। बिन्दा संझाक आँचर सरियबैत अछि।
बिन्दा--माय ! देह नग्न... ...।
संझा--छोड़ू आइ आँचर-ताँचर ! आइ किछु नहि, आइ रहऽ दिअ जहिना छी तहिना। आइ
टूटल मुरुत कें अहाँ नहि झांपि सकबैक !
जीबू--तों ई सब की सुना रहल छें?
संझा--जकरा दऽ तों सोचैत छही ओही जे वासनाक आगि मे जरि कऽ मजा लऽ रहल छलि
ओही दुश्चरित्राक पृष्ठभूमि। तों एकर सभक जबाब दे। हमरे दुआरे ने तों जा रहल छें,
हमरे दुआरे ने तों हिनका नैहर मे छोड़ने छलहुन, हम खराब छी तें ने तों नीलू कें
हमरा छाँह सँ फराक रखैत छही। मुदा ओहि दिन तों कतऽ छलें जाहि दिन (बैजू दिस
संकेत कऽ कऽ) ई पतिता शान्तिक सङ ओहन अभद्र व्यवहार कयलकै। ओ बेचारी
ग्लानि सँ भागि गेलि शिवेसराक ओहिठाम। मुदा ओहो पपियाहा ओकरा नीक आश्रय
देबाक बदला मे एकटा कोकनल ढ़ेङमे लटका देलकै। तों पटना सँ अयलें तँ
शिवेसराक ओहिठाम पुछऽ गेलही जे कियैक भागि अयलें? एकर उत्तर ओ लाजे नहि
देलकौ। ओ कहलकौ - काकी सँ पूछि लेबऽ लऽ। मुदा तों हमरा सँ पुछऽक बदला मे
एकर अर्थ उन्टा लगौलें। तों सोचलें जे हम दुश्चरित्रा छी तें भागि गेलेए। हमर ई काज
देखि कऽ भागि गेलें। रे, जहिया ओ भागलि रहैक तहिया धरि तँ हम ठीके छलहुँ।
ओहि दिन धरि हम कहाँ दुश्चरित्रा बनल रही !
जीबू--माय ! बन्द कर ई सब। हमर माँथ फाटल जाइत अछि। हमरा आब नहि सुनो किछु।
संझा--एखने नहि, एखन कहऽ दे ओ दिन जाहि दिन (बैजू दिस संकेत कऽ कऽ) ई गइखौका
हमरा (केबाड़ बला हन्ना संकेत कऽ कऽ) एहि हन्ना मे बन्द कऽ कऽ हमर इज्जति लूटि
लेलक आ हम चित्कार करैत रहि गेलहुँ। हम ओहि दिन....
जीबू उठि कऽ संझाक मुँह प हाथ राखि दैत अछि।
जीबू--(चित्कार करैत) माय ! तों अपन समुद्रक तूफान बन्द कर। हम नहि देखने छलियैक
एहन तूफान, नहि सुनने छलियैक एहन तूफान, हमरा नहि सहल जाइत अछि ई
तूफान। माय बन्द कर।
संझा--(जीबूक हाथ मुँह पर हँटा कऽ) हँट ! आइ हमरा कहऽ दे सब किछु। कहऽ दे हम
आत्महत्या करऽ गेलहुँ आ कियैक नहि कयलहुँ? हमरा आत्महत्या कयने भऽ सकैत
छलैक जे हमरा पुतोहु कें करऽ पड़ितए, तोरा करऽ पड़ितौक, नीलूक हत्या होइतैक,
आओर समाजक कतेकों घर तबाह भऽ जइतए। नाश भऽ जइतौक सब किछु, खतम
भऽ जइतौक ई परिवार। तें हमर नारी साँप बनि गेलि। हम घोंटि गेलहुँ सब किछु। हम
पीबैत रहलहुँ जहर दम्म साधि कऽ। आइ तों नीलूक बाबू कें दारू पीबऽ लए जमीन
देने जाइत छही, मुदा जमीन अयलौक कहाँ सँ? जमीन तँ तोरा बाबू कें मारबाक पहिने
लिलाम करबा लेने रहौक आ ओहि सम्पत्ति सँ समाज कें ओतेक तंग करैत छलैक।
तोरा देबाक छौक तँ ओ असली कागत दहुन जे हम बैजुआ सँ लिखौने छी।
किछु क्षणक बाद दम लऽ कऽ पुनः जीबू लग जाइत अछि।
अएँ रे ! तों ओहि दिन मरल छलें जाहि दिन..।
जीबू--(पुनः संझाक मुँह पर हाथ राखि कऽ) माय ! हमर प्राण छूटि जायत। आब हमरा क्षमा
कऽ दे। चैतू, तकैत छें की? ओ दुआरि पर बैसल छोक, दुआरि पर बैसल छौक,
एकदम्म सँ सोझाँ मे बैसक छौक।
बैजू पराय लगैत अछि। चैतू पाछुए सँ पकड़ि कऽ खसा दैत अछि। पुनः चैतू, जीबू,
बिन्दा आ नीलू ओकर गभकुट्टा करऽ लगैछ।
संझा--(खूब जोरर सँ चिकड़ि कऽ) आओर जोर सँ ! आओर जोर सँ ! खूब जोर सँ ! मरमरा
दे एकर करेज ! तोड़ि दे एकर पयर ! रे जीबुआ ! तोड़ि दे एकर हाथ जाहि हाथ सँ
हमर सबक इज्जति लुटलक।
जीबू बैजू बँहि पर पयर राखि कऽ मरमरा दैछ। बैजू खूब जोर सँ किकिया उठैत
अछि।
रे नीलू ! तोरा बहीन कें कुदृष्टिएँ देखने छलौक। निकालि ले एकर दूनू आँखि !
नीलू जेबी सँ चक्कू बहार करैत अछि। मंच पर अन्हार पसरि जाइछ। ओही
अन्हार मे बैजू, जीबू, चैतू, बिन्दा आ नीलू गुम्म भऽ जाइत अछि। मात्र एकटा खण्डित
प्रकाश मे संझाक भयंकर रुप दृष्टिगोचर होइछ। पुनः ओहो प्रकाश धीरे-धीरे विलीन
भऽ कऽ सम्पूर्ण मंच अन्हार-गुप्प भऽ जाइत अछि।
अन्त
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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