भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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Tuesday, September 29, 2009
राजकमल चौधरी - सीता मृत्यु: अहिल्याक जन्म
बिना कएने धरम-समाजक लोक-लाजक कोनो परवाहि
वृद्ध पितामह अनने छथि खोड़षीकें बिआहि...
परिस्थिति
पंडित सुधाकरजीक धर्मपत्नी द्वितीया, स्वकीया
आ हमर नवजात वासना परकीया
दुन्नू अछि बान्हल कुल-शील ससरफानीसँ
वैवस्वत मनुक महावाणीसँ
परनारीक नाम नहि लिअ’
परपुरुषकें दिअ’ देह नहि छूअ’
मनेच्छाक करू जुनि गप्प, हृदयधारकें राखू सम्हारि
देखू काटए नहि, बिखधरकें पहिनहि दिअ’ मारि
मोनक वातायन पर टाँगू मोट-मोट कारी-कारी परदा
खाइत रहू कामनाक माटि, फँकैत रहू निवृत्तिक गरदा
द्रवित, दुखित, भ्रमित रहू होइते आत्माक क्रन्दनसँ
बान्हल छेकल रहू स्मृति-पुराण संहिताक बन्हनसँ
लक्ष्मण-रेखासँ
नियतिक व्यंग्यपूर्ण लेखासँ...
कथा
मुदा, (ई ‘मुदा’ अछि कतेक नग्न, अछि कतेक भग्न)
अर्थार्जनमे सदिखन रहै छथि सुधाकरजी मग्न
जमीन्दर (पहिने छलाह। आब नेता) देशक द्वार पर प्रति राति
करैत गप्प शप्प ओएह जे जमिन्दारिनीकें सोहाति
बँचै छथि पुराण
बँटै छथि धर्मक ज्ञान, त्याग, बलिदान
जे एहेन छलाह राजा शिवि, एहेन छलाह दधीचि
कर्तव्य-रक्षार्थें अपने सोनितसँ धरा देलनि सींचि
एहेन छलीह गार्गी, मैत्रोयी, सीता, अनुसूया, सावित्राी
अपन शक्तिसँ केलनि गौरवान्वित ई धरित्राी
एहेन छलाह पूर्णपरब्रह्म श्रीकृष्ण भगवान
केलनि गोपिकाक रूप-गंगामे भरिपोख स्नान
... सुधाकरजी बँटै छथि मर्मज्ञान
आ, एम्हर हुनकर द्वितीया, बनि पूर्णिमाक चान
गबै छथि मधुर स्वरें कोनो नटुआसँ सूनल गान--
केहेन चतुर भौजाइ रे
मोन होइ छै दिअर संगें जाइ रे
कनकलता सन देहक कंचन फल छै
कतबो जतनहुँ आँचर तर ने समाइ रे...
सत्य
गबै छथि मधुर स्वरें गान, भ’ खिड़की लग ठाढ़ि
हमरा हृदयमे उठै’ए जेना कोसिकाक बाढ़ि
उफनै’ए कामनाक धार
(की हएत अनर्गल जँ रोकी नइं मोन-सागरक फेनिल ई ज्वार?)
उपसंहार
फूसि थिक मनुदेवताक स्मृति, फूसि थिक व्यासदेवक गीत
आइ थिक कलियुग, त्रोतामे मरलीह सीता
मरि गेलाह एक पत्नीव्रतधारी पुरुषोत्तम राम
नइं मरल मुदा, शिवक तृतीयो नेत्रा ज्वालासँ काम
भेलै नइं संसारक कोनो क्षति
सीताक मरनइं की, जीविते छथि एखन लक्ष-लक्ष रति
मरलीह एखनऊँ नइं गौतमक पत्नी अहिल्या सुकामा
मरलाह श्रीकृष्ण, जिबते अछि रूपभिक्षुक हमरा सन सुदामा
आ,
जनमिते रहती नितप्रति अगणित अहिल्या सुकुमारी
(ताकत अवस्से स्वस्थ वृक्ष, माधवी लता थिक नारी)
जावत अछि जीवित एक्कोटा बूढ़ बोको गौतम
नइं हटि सकत ई तम
गबिते रहती नारी परपुरुखक सहगान
करिते रहत पुरुख-जाति सहस्त्रा अहिल्याक धेआन...
1 comment:
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
बड नीक प्रस्तुति
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