भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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Sunday, November 15, 2009
'विदेह' ४५ म अंक ०१ नवम्बर २००९ (वर्ष २ मास २३ अंक ४५)-PART II
३.१. गुंजन जीक राधा-चौदहम खेप
३.२. राजदेव मंडल-नदीक माछ-बाट-बटोही
३.३.उमेश मंडल (लोकगीत-संकलन)- खेलौना-आगाँ
३.४.कल्पना शरण-प्रतीक्षा सँ परिणाम तक-७
३.५. विनीत उत्पलक टटका कविता
३.६. सन्तोाष कुमार मिश्र-केकरा करु किलोल हो मिता
३.७. विनीत ठाकुर-गीत
३.८. दयाकान्त-ई बुढिया अछि हक्कल डइन
गंगेश गुंजन
गुंजन जीक राधा- चौदहम खेप
किछुओ कतबो कहैत जाओ संसार
प्रेमहि थिक जीवनक एकमात्र आधार
जीवनक सबटा ब्योंत-व्यवस्था
रस, रसाभास सबहक थिक
अपना-अपनी क ओएह समस्त प्रकार.
जीवन सब तरहें अभिप्रेत मनुष्यक
सृष्टि सेहो संरक्षक एकरे आदिकाल सँ
दृष्टि,बुद्धि जाइत अछि जतबा दूर
अतीतक उज्ज्वल अंश जतेक हो जेहने
मुदा मात्र एकरे गाथा थिक
सबहक प्राण,जीवनक आध्यात्मिको आधार.
प्रेम परिभाषित जेना जतेक जाहि तरहें करैत आएल मनुक्ख
गुणी-पंडितजन सहित युग-युगक समाज
ओतबे आ ओतबे रंगक बा रसक रूप बा अनुभव-जगत अछि ने से अनुराग
जकर चर्चा गायन मे बीतल आयु, जकर चर्चा मे अस्तित्वक कएल गेल आविष्कार !
प्रेम किछु तेहन चित्र नहि बालु, पानि, हो बसात बा घरेक देबाल पर।
से अछि परम स्वतंत्र,स्वशासी आ तें स्वाधीनमना
करय नहि कृपा जेना ककरो पर तहिना
तहिना कोनो परिस्थिति मे नहि करय घृणा।
मनुक्खक सर्वश्रेष्ठ अनुभव, लोकक सर्वोच्च सर्जना
ताहि प्रेमक करैत आह्वान ताही प्रेमक करबा लेल स्मरण,
हमर भेलय जन्म
हमर हएत मरण प्रेम से
जेना नचाबय, नाचब
आ तहिना,जेना बजाओत बाजब
ओ जे-जे कहत करब
ओ जे-जे सहत
ओकरे काया माया-मात्सर्यें हमहूँ
रहब, सब किछु सहब
प्रेम मे जीवन एही मे मरब
हमरा जिआओत ई प्रेम
हमरे प्राण एकरा जिया राखत-
युगधार मे
एकहि क्षण लेल सब किछु,एत धरि जे
श्रीकृष्णक श्रीछवि पर्यन्त।
बहुत काल धरि रहथि ने स्वयं सेहो संग
बहुत काल नहिं संग दैत अछि मनुक्ख कें
ओकर अपनो मोन !
ई संसारी सत्य,सत्य-सुन्दर-शिवकारी सेहो
अन्यथा एतेक-एतेक वेदना
सहल हो कोना मनुक्ख कें-
कोन सामर्थ्य सँ, कोन उद्देश्ये आ
केहन मनोरथ मे ?
व्यक्ति माने श्रीकृष्ण, हिनकर सेहो
होइत अछि अनुवाद-
प्रेममय सब ह्रदय मे
मूल कृष्ण तँ क्षणे-क्षणे
भ जाइत छथि तिरोहित ।
नहि जानि कोन दिशा कोन परिस्थिति मे...
काज चलय एहना मे हुनक अनुवादे सँ।
तें मानी जे प्रेमोक हो अनुवाद
यदि प्रेम मौलिक अनुभव तँ
मौलिकताक अविकल अनुवाद आभासे थिक-प्रेम !
मूल आ अनुवादो थिक।
...
कए रूप मे पड़ि जाइए मन रमकनियाँ भौजी
जेहन बाट ओ एहि युग मे धेलक आ चलि पड़ल
की जाने आइ कोन हालति मे कोना हो
जीबहु देल गेल होइ ओकरा कि मरि गेल रमकनियाँ भौजी ?
केहन विचित्र !
थिक नहि यद्यपि मुदा लोक मानैए अतत्तह एकरा
भरि संसार मरैये पेटे आ देहक लेल
किन्तु बाना धरत एहन जेना सब टा अध्यात्मे हो !
जल-अग्नि-आकाश-वायु आ पृथ्वी सबटा...
सबटा के मानैत छी, बड़ दिब, मानू ईश्वर परन्तु
तकर अभिप्राय-अर्थ, भीतरीयो आगाँ-पाछाँ
सब के बुझू,चीन्हू-जानू
ई सब थिक अस्तित्व हमर,हुनकर, समाज मे सबहक
तथापि तकर आधार छुच्छ भावना नहि छैक
ई सबटा अपरिहार्य तत्व जीवन धारण करबा मे तें
ई सब अछि अभिन्न अकाट्य मनुक्ख सँ।
छुच्छे उपयोगितो ने कही, कारण जे सब प्रकृति देल
स्वयं प्रकृति भेल
स्वतः आ कि निर्मित ककरो हाथें !
से विषय ने हमरा सब सन गामक छौंड़ी राधाक बूझल-गमल
ने आनेक किछु ।
ओ भिन्ने थिक बुद्धि-विलासक विषय। ताहि पर चलि रहलए
बड़े विचार, सुनै छी, क्यो ने क्यो बूढ़-पुरान लोक कहितहि छथि समय-समय
हमरो भ गेल हएत सुनना सए बेर !
हम बा सखि सुखबरनी बा अपने श्रीमान ई कृष्ण
कोना भेलहुं,बनि गेलहुं आ कि बनबाओल छी,
मनुक्खक काया मे जीवित छी वस्तु कोनो ?
बैसबा,सुतबा,खएबा,जीवाक कि बजयबाक बाजा
सभक सब अनके उपयोगक लेल बनल अछि जेना
बीनय सब वस्त्र जोलाह लोक कें पहिरय लए
हमरा लोकनिक सेहो कि सैह निर्माणक खिस्सा ?
मतलब, कुम्हारक घैल बनाओल माटिक बरतन-बासन
भरि क रखबा लेल जल, चूल्हि चढ़ि भानस करबाक उपयोग केहन
आ ककरा वास्ते बनलौं ?
(अगिला अंकमे...)
राजदेव मंडल
शिक्षा- एम.ए.द्वय, एल एल बी.
पता- ग्राम-मषहूरनियाँ, रतनसारा(निर्मली)
प्रकाशित कृति- हिन्दी ,नाम-राजदेव प्रियंकर
उपन्यास- जिन्दगी और नाव,पिजरें के पंछी,
दरका हुआ दरपन,अप्रकाशित कृति-
कहानी संग्रह, उपन्यास,मैथिली- कविता संग्रह
कथा संग्रह
नदीक माछ
नदीक कोख सँ उछलल माछ
क’ रहल हवा मे नाच
यात्रा पहरक सगुनियाँ
छोड़य चाहैत अछि जलदुनियाँ
देख’ चाहैत अछि पवनदुनियाँ
नदी मे रहितो नहि पाबि सकल पानिक थाह
सूखल मे जएबाक हेतु खोजि रहल राह
कर’ चाहैत अछि समाजिक हित
बढ़ब’ चाहैत अछि नव दुनियाँ सँ प्रीत
छोड़ि देत अपन पुरान बास
करत आब नव-नव प्रयास
खोजत नव-नव चीज
नव-नव बीज
लाभ होयत कि हानि
जाँचत
केहेन अछि हवा पानि
रचत नया इतिहास
नूतन चास बास
परन्तु
सुनने छल ओ अपनहि कान
कहने रहथिन बूढ़-पुरान
‘‘कहियो नहि जाइहेँ ओहि दुनियाँ
ओहिठाम भरल अछि खुनियाँ।’’
किन्तु
नव अनुसंधान
माँगैत अछि जीवनदान
तखन भेटैत अछि सम्मान
कोटि-कोटि केँ अन्न प्राण
पर ओ अछि अभागल
जलबून्द कड़ी अछि लागल
विफल भेल ओ छल बल मे
पुनः खसल ओहि नदी केँ जल मे
तद्यपि
बारम्बार क’ रहल प्रयास
स्पर्षक हेतु मुक्ताकाष
छोड़ि देने अछि मोह एहि जल केँ
क’ रहल कर्म चिन्ता नहि फल केँ।
ःः
बाट-बटोही
जाएब ओहि पार
खसौने घाड़
पुरान पहाड़
बरिसो सँ अछि ठाढ़
हमरा मार्ग के कएने अवरुद्ध
हरपल भेल क्रुद्ध
कतेको लगेलहुँ बाँहिक जोर
दुखा रहल अछि पोर-पोर
इंच भरि नहि भेल टसमस
भ’ गेलहुँ हम बेबस
नहि कियो द’ रहल अछि साथ
पहाड़ी पर पटकव आब माथ
डूबा देबैक हम खून सँ
अपना घामक बून सँ
विफल भेल छी देह जर्जर
पाछाँ सुनैत छी असंख्य स्वर
स्त्री-पुरुष, बाल अबाल
आबि रहल अछि तोड़ैत ताल
गाबि रहल अछि समूह गान
पुनः आएल शरीर मे जान
मन मे उठय लागल उफान
कत’ गेल ओ पहाड़ी
काँट सँ भरल झाड़ी
आहि रौ तोरी ई कोन बात
गड़ि गेल भूमि कि भागि गेल कात
आकि नभ मे उड़ा देलक बसात
मार्ग भ’ गेल तत्क्षण समतल
चल-चल चल-चल
जय हो जनबल
ताकि रहल अछि बटोही के बाट
नहि कियो लगा सकैत अछि टाट।
उमेश मंडल
खेलौना
(1)
भैया के घर बेटा जनम लेलक बधैया माँगे एलै हो लाल।
सोना खराम चढ़ि भैया एला की की मोर बहीन लेली हो लाल।
सोनाक हम मट्ठा लेलौ रुपा केर हम लेलौ काड़ा हो लाल।
रेषमी कपड़ाक अंगा लेलौ जड़ी लागल हम टोपी हो लाल।
पचासक बदला सौ लऽ कए जेती रेषम साड़ी पहिरेबनि हो लाल।
भनस कए कऽ भौजी अयली खादी साड़ी पहिरेबनि हो लाल।
सयक बदला पचास लय कए जैती, मूड़ी मे डांड़ लगतनिहो लाल।
कनैत खीजैत घर ननदि जेती हो लाल।
(2)
आइ छठि दिन घर मे सुदिन भेल
घर मे भेल ललना, दुआरे वाजे बजना।
बाबा लुटाबथि हाथी ओ घोड़ा
बावी लुटावे गहना, दुआरे बाजे बजना।
काका लुटाबे घड़ी ओ औंठी
काकी लुटाबे कंगना, दुआरे बाजे बजना।
पिसा लुटाबे मोटर गाड़ी
पीसी लुटाबे यौबना, दुआरे बाजे बजना।
(3)
बाजे बाजे बधाबा नन्द के अंगना
कथक नाचे पमरिया नाचे, छोटकी ननदिया नाचे अंगना।
किये तोँ ननदी नाचह आंगन, तोरो भैया रहथि पटना। श् बाजे....
भैया हमर पटना रहै छथि, ओतहि सँ आओत मोती के कंगना।
भाई मोरा जीबौ भतीजबा जीबौ, देव पुराओल मन कामना।
(4)
ककरा के अंगना जमहिरा रे,
मन रंजे के लाल।
ककरा बहिनि आबय रे,
मन रंजे के लाल।
बाबा के अंगना जमहिरा रे,
मन रंजे के लाल।
पलंगा सुतल तोहे पिया हे,
मन रंजे के लाल।
बहिन मांगय इनाम रे,
मन रंजे के लाल।
तेरे सन्दुक मे कंगना रे,श् मन रंजे...
कंगना हम नहि लेब रे, मन....
हमहि त लेब नौ लाखा हार,श् मन.....
हँसैत जायब ससुरारि रे,श् मन......
हम नहि देब नौ लाख के हार,श् मन....
कनैत जाउ ससुरारि रे,श् मन.....
जँ नहि देब नौ लाख के हार,श् मन....
बबुआ के लऽ जैब ससुरारि रे,श् मन....
फेर कऽ बबुआ जनम लेब रे,श् मन....
नैना मे नैना मिला लेब रे,श् मन....
सुनु बचन अहाँ ननदी रे,श् मन....
कोखिया लहरि नहि जाय रे,
गन रंजे के लाल।
(अगिला अंकमे)
कल्पना शरण
प्रतीक्षा सऽ परिणाम तक – 7
कृष्णक परामर्शपर पुत्र केलक माताक अवज्ञा
दुर्योधनक अन्त सऽ भेल कौरव समाप्त
भीमक प्रतिमा बढ़ाकऽ केलखिन रक्षा
पुनश्च पराजय सऽ विह्वल धृतराष्ट्र
परिवारक अन्त आ पतिक अव्हेलना पर
गान्धारी देलखिन यदुवंशक विनाशक श्राप
नगरक अन्त स भऽ हतोत्साहित बलराम
प्राण निकललैन मुँह सऽ श्वेत नागक रूपमे
धोखा सऽ मरल बालि प्रभु रामक द्वारा
पुनर्जन्मल छल ओकर शिकारी के भेषमे
प्रभु करैत विश्राम चरणके मणि देखि
चलेनेछल तीर जारा एक मृगक भ्रममे
गान्धारीक क्रोध मे स्वर्णिम शहर द्वारिका
जन जीवन सहित जलमग्न भेल छल
वा एक दोसर के मारि क नष्ट भेल
जे विश्वामित्र आ नारद मुनीक श्राप छल
कालचक्र बढ़ल द्वापरयुगसऽ कलयुग दिस
अष्टमवतारक विषदोष अन्तपरिणाम छल
विनीत उत्पलक
गप
शुरू करल जाए फेर सऽ गप
जतय खत्म भऽ गेल छल
अपन गप आ संवाद
मुदा, अहि बेर ध्यान राखब
एक टा गप जे
एक-दोसर कऽ स्वाधीन छोड़ब
बेसी नीक होयत
बिसरै पड़त
के फूइस बाजल छल
के सच कऽ दामन थामने छल
विश्वासघात आ पाश्चाताप कऽ
घुइट कऽ पी गेल छल
के ककरा देलक आ॓ कष्ट जे
महसूस तऽ भेल
मुदा, कहल नहि गेल
भूगोल आ इतिहास स दूर भऽ कऽ
अहि समयांतराल मे
दुनिया बदलि गेल
धरती से चांद पर पहुंच गेल लोक
पीढ़ी-दर-पीढ़ी खत्म भऽ गेल
आ नबका लोक आबि गेल
आब नोर नहि बहैत अछि
आ॓ शब्दक जाल स
ता धरि हृदय मोम नहि बनैत अछि
ककरो नोर सऽ
अनंत कालक स्मृति आइयो
सिनेमा जना आंखि के आगू
घुमैत जाइत अछि
बिना कोनो ब्रेक आ इंटरवल के
नक्सल के नाम पर
मारि जाय रहल छथि लोक
लाशक ढेर से
गुजरि रहल छथि दिन आ राति
डेग-डेग पर बारूदी सुरंग
आ बंदूकक नोकक आगू
नींद नहि आबैत छैक
लोक कऽ जखन ई बात सदियों सऽ छल
इराक सऽ लऽ कऽ
अफगानिस्तान तक
मनुख नहि छैक आ॓ मनुख
जकरा मे एकटा आत्मा छल कहियो
आ॓ भऽ गेल छल मशीन
एकटा आ॓बामा बनि गेल छल
अशांतिक प्रतीक
दोसर आ॓बामा कऽ
मिलल शांतिक आशा मे नोबल
एहि युग मे जतय बाट
एतेक कंटकाकीर्ण छैक
आ॓तय,
बिसरल बाट खोजहि परत
गप शुरू करय परत
एक ठां बैसै परत एक उम्मीदक संग
कि गप से खत्म होयत मनमुटाव
जखन कि ई बुझैत जे कखनो धोखा खा सकैत अछि
ई बाट पर।
सन्तो ष कुमार मिश्र
केकरा करु किलोल हो मिता
केकरा करु किलोल हो मिता
केकरा हम करिऐ किलोल
भरल गाम लोकमे
किओ नहि अप्पेन अछि
नहि किओ आन अछि
हमरा लेल सबहे माटिक मूर्ति
आ सबहे मुर्दा समान अछि ।
केकरा करु किलोल हो मिता
केकरा हम करिऐ किलोल
सबहे लग झूठक खिस्साि छै
चिन्निग नइ मटिया मिट्ठा छै
अन्हििरिया सेहो इजोरिया छै
सबहक अपने खिस्साय छै ।
केकरा करु किलोल हो मिता
केकरा हम करिऐ किलोल
सपना नइ ई बिपना छै
निराशा जीवनक आशामे
परिवर्तणके जरुरत छै ।
विनीत ठाकुर
गीत
जिवन एक अनमोल गहना खुबकऽ झमकाऊ
हिरा मोतिसँ प्रज्वलित सपना नयनमे सजाऊ
कर्मक पथपर चलु आगु छोरु टिकरम जाल
छि अहाँ चमकैत सोना माँ मिथिलाके कोखक लाल
झगर लगाउन चुगला बनिकऽ मुहनै नुकाउ
फूसक एकचारीपर कखनो उरुनै बनिकऽ कौवा
केकरो माथपर ठनका खसा बजवियौनै कैह वौवा
सोनितके हर एक कतरा अपन विकाशमे लगाऊ
मानवता राईख मनमे दोसरके होइयौ सहारा
सबकेउ एक दोशरसँ अपनामे राखू भाईचारा
टुइट परु अधिकारकलेल केकरोसँ नै डेराउ
दयाकान्त
ई बुढिया अछि हक्कल डइन
नैहर मे सिखलक सावर्ण मंत्र
नहि काज करै एकरा लग कोनो जंत्र
पहिने खेलक अप्पन सांय
सालेक भीतर जावत भेल धांय
तखन भुजय लागल टोल आ गाम
एकरा लग के बुद् बच्चा नैन्ह
ई बुढिया अछि हक्कल डइन
नहि छैक एकरा कोनो लाज विचार
ककरा संग करी कोण व्यव्हार
नहि बजाबय कियो काज तिहार
तैयो टपकी परैया बीचे द्वार
नव कनिया खेला लगैत अछि भूत
बाम हाथ से जाकर छुबय चैन
ई बुढिया अछि हक्कल डइन
ककरो मरैया सांप कटा के
ककरो मरैया रोग ढूका के
ककरो मरैया दर्द करा के
ककरो मरैया धार डूबा के
नहि छोरैया बुढिया ओकरा
रहै छैक जाकर पर कैन
ई बुढिया अछि हक्कल डइन
बिच राईत मे गाछ हंकैया
निशाभाग राईत मे गाम घुमैया
पोषने अछि चुरिन, भूत जुआन
करैया टोल परोस परेशान
नहि बचल ओ लोक आई धरि
तकैया जाकर दिस कन्खुरिये नैन
ई बुढिया अछि हक्कल डइन
दुनियाँ आई अन्तरिक्ष घुमैया
सागर मे पताका भह्राबैया
चंदरमा पर बसत आब लोक
भारत खोजि लेलक ओतय पानि
नहि भेल हमर सोच मे अंतर
अखनो भूत, प्रेत आ डाइन
ई बुढिया अछि हक्कल डइन
बालानां कृते-
१.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)
२.कल्पना शरण: देवीजी
देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग” प्रकाशित (2004 ई.)
नताशा:
(नीचाँक कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पढ़ू)
नताशा उनतीस
कल्पना शरण:देवीजी:
देवीजी : धानक गूरा सऽ विद्युत निर्माण
खरीफ फसल के कटनी के समय नजदीक छल।देवीजी के ज्ञात छलैन जे सब किसान घरमे अखन अस्तव्यस्तता चलि रहल छल। ताहि पर सऽ धान तऽ मिथिलांचल के सर्वप्रमुख अनाज अछि।बच्चो सबहक पाठ लगभग पूरा भऽ गेल छल आ परीक्षा के तैयारीक समय छल।मुदा देवीजीक मस्तिष्क के विश्राम नहिं नीक लागैत छलैन।
देवीजी देखैत छलखिन जे धान कुटेला के बाद जे भूसा निकलै छै तकर उपयोग अपना सब दिस माल जाल के खुआबऽ मे होयत छै।जखन कि अकर बहुत नीक व्यवसायिक उपयोग छै। तै देवीजी फेर सऽ एक बैठक बैसेली जाहिमे ओ धानक भूसा के सदुपयोगक सुझाव रखने छली। धानक भूसा के जराबऽ सऽ जे गैस निकलै छै ताहि के उपयोग बिजली बनाबैमे कैल जा सकैत छै।जरेला के बाद जे राखि भेटै छै ताहि सऽ सिमेट बनायल जा सकैत छै जे अतेक उत्कृष्ट प्रकारके होयत छै जकर प्रयोग पानिक जहाज मे कैल जा सकैत छै।एहेन सिमेट मजबूत जलविरोधक होयत छै।चारि किलो भूसा जराकऽ 1 लीटर डीजल के बराबरी के उर्जा उत्पन्न कैल जा सकैत छै। देवीजी कहलखिन जे धानक पूरा वजन के 22प्रतिशत हिस्सा गूरा होयत छै।बॉंकि मे चाउर. खुद्दी इत्यादि होयत छै।
देवीजी कहलखिन जे बिहार के बेतियाहमे स्थित हस्क पावर प्लाण्ट जे कि एक पुरस्कृत ग्रामीण विद्युतीकरण कम्पनी छ.ै पश्चिमी चम्पारण के करीब 50 टा गाममे अहि प्रकार प्रयोग सफलता पूर्वक कऽ चुकल छै जाहि सऽ करीब 2000 सऽ 4000ग्रामवासी फलान्वित भऽ रहल छैथ।सब प्लाण्ट छह मास के भीतर लागत वसूलि लाभ हासिल करऽ लागल छै।अहि कम्पनी के एहेन सफलता देखि ओकरा शेल फाउण्डेशन के दिस सऽ दुबारा आर्थिक सहायता भेटि रहल छै। अहि कम्पनी के लक्ष्य छै 2009 के अन्त तक 100गाम. 2010 तक 400 गाम तथा 2012 तक 2000 गाम मे धानक गर्दा सऽ बिजली निर्माण केनाई।
देवीजी के अहि सूचना सऽ ग्रामवासी बहुत आश्चर्यचकित आऽ खुश छलैथ।मुदा एहेन प्रयोगके लेल उपर्युक्त कम्पनीके सहायताक आवश्यकता छल।एक एहेन प्रयास के आवश्यकता छल जे गामक विकास के प्रस्ताव उद्योगपति तक पहुँचा सकै। प्रजातांत्रिक राष्ट्र के एक मध्यम वा निम्न वर्गीय समुदायके लेल सबस सहज छल अपन क्षेत्र के राजनैतिक संगठन लग प्रस्ताव रखनाई । अहि प्रयास लेल देवीजी के ग्रामवासी समेत प्रधानाध्यापक के पूरा सहयोग भेटलैन।
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.)
Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
इंग्लिश-मैथिली-कोष / मैथिली-इंग्लिश-कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदानई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।
विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
नेपाल आ भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन
१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।
२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।
३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश,बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश,वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।
४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी,जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत,योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।
५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।
६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु,तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले,चोट्टे, आनो आदि।
७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।
८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।
९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन),पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।
१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली
1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
ग्राह्य
एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि
अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।
2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।
21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।
ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६
VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS(Festivals of Mithila date-list)
8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1. Original Maithili Poem by Smt.Shefalika Varma,by B.N.Varma
8.2.Original poem in Maithili by Gajendra Thakur Translated into English by Lucy Gracy from New York
DATE-LIST (year- 2009-10)
(१४१७ साल)
Marriage Days:
Nov.2009- 19, 22, 23, 27
May 2010- 28, 30
June 2010- 2, 3, 6, 7, 9, 13, 17, 18, 20, 21,23, 24, 25, 27, 28, 30
July 2010- 1, 8, 9, 14
Upanayana Days: June 2010- 21,22
Dviragaman Din:
November 2009- 18, 19, 23, 27, 29
December 2009- 2, 4, 6
Feb 2010- 15, 18, 19, 21, 22, 24, 25
March 2010- 1, 4, 5
Mundan Din:
November 2009- 18, 19, 23
December 2009- 3
Jan 2010- 18, 22
Feb 2010- 3, 15, 25, 26
March 2010- 3, 5
June 2010- 2, 21
July 2010- 1
FESTIVALS OF MITHILA
Mauna Panchami-12 July
Madhushravani-24 July
Nag Panchami-26 Jul
Raksha Bandhan-5 Aug
Krishnastami-13-14 Aug
Kushi Amavasya- 20 August
Hartalika Teej- 23 Aug
ChauthChandra-23 Aug
Karma Dharma Ekadashi-31 August
Indra Pooja Aarambh- 1 September
Anant Caturdashi- 3 Sep
Pitri Paksha begins- 5 Sep
Jimootavahan Vrata/ Jitia-11 Sep
Matri Navami- 13 Sep
Vishwakarma Pooja-17Sep
Kalashsthapan-19 Sep
Belnauti- 24 September
Mahastami- 26 Sep
Maha Navami - 27 September
Vijaya Dashami- 28 September
Kojagara- 3 Oct
Dhanteras- 15 Oct
Chaturdashi-27 Oct
Diyabati/Deepavali/Shyama Pooja-17 Oct
Annakoota/ Govardhana Pooja-18 Oct
Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-20 Oct
Chhathi- -24 Oct
Akshyay Navami- 27 Oct
Devotthan Ekadashi- 29 Oct
Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 2 Nov
Somvari Amavasya Vrata-16 Nov
Vivaha Panchami- 21 Nov
Ravi vrat arambh-22 Nov
Navanna Parvana-25 Nov
Naraknivaran chaturdashi-13 Jan
Makara/ Teela Sankranti-14 Jan
Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 20 Jan
Mahashivaratri-12 Feb
Fagua-28 Feb
Holi-1 Mar
Ram Navami-24 March
Mesha Sankranti-Satuani-14 April
Jurishital-15 April
Ravi Brat Ant-25 April
Akshaya Tritiya-16 May
Janaki Navami- 22 May
Vat Savitri-barasait-12 June
Ganga Dashhara-21 June
Hari Sayan Ekadashi- 21 Jul
Guru Poornima-25 Jul
Dr. Baidya Nath Varma,Professor Ennitus of Sociology,The City University of New York
ENGLISH TRANSLATION OF MAITHILI POEMS
Shefalika Verma has written two outstanding books in Maithili; one a book of poems titled “BHAVANJALI”, and the other, a book of short stories titled “YAYAVARI”. Her Maithili Books have been translated into many languages including Hindi, English, Oriya, Gujarati, Dogri and others. She is frequently invited to the India Poetry Recital Festivals as her fans and friends are important people. I do not have to give more introduction of her as her achievements speak for themselves.
Shefalika, the poet enjoys being with her lover. Who else could he be except her husband?
I will translate for the readers some of her poems to show her affection for life and the agony of bereavement from her sweet heart.
Her poems take leaps in all directions and focus on nature, from flowers to lakes and mountains, from the sun to the moon to the stars, and finally she reaches humanity –she embraces them all.
Let us follow her dreams in BHAVANJALI now….
[Poem No. 11]
“The flower “Rajanigandha” is crying,
Although blessed with a garland of stars,
“Singarhar” is shaking with pain,
The clouds are showering rain…
…..from the mouth of the sky.
You came silently without exposing your body
Now you have become my life.
You are decorating the smile on my lips for eternity.”
[Poem No. 14]
“…you are searching yourself in my eyes
If you do not see yourself you are lost.
But I have decorated you in my heart…”
Then she goes into a different world….
[Poem No. 20]
“…you make me dance as you wish,
I live my life as you want,
Then why are you measuring the guilt of each of us?
Oh God, You are not free of guilt!”
[Poem No. 26]
When my heart becomes desert
You shower rain on it.
And I receive a new life.
You have given me everything:
Truth and falsehood,
Sin and godliness,
Respect and people’s hatred…”
She floats in the heavens now...
[Poem No. 41]
“How will my song reach you?
The fragrance of my breadth flies around the world to reach you.
The tears of my bereaved eyes flow drop by drop.
You left me, the moon left…
The music vanished from the moonlight.
The beauty of the dawn evaporated from my life,
And the season of songs vanished for me –
I had hoped forever.”
And the world changed, she found her soul.
[Poem No. 49]
I have traveled the world...
Visited all the religious places, dipped in the holy rivers,
And found that in the small space of my Heart,
All the elegance of the world exists.
Original poem in Maithili by Gajendra Thakur
Translated into English by Lucy Gracy from New York
Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed at http://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title “KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in
The Fire Age Of Emigration To City
The rushing group of milkmen
A chase to cross the river of Kamala
Swimming against the flow
The burp like sound of castle
Groups returning to the village
The peaceless home filled with quarrels
The life among the shit of castle
Faced towards the towns
Land of hatred dislikes pollution and diseases
Many friends died of aids
Retreating the village life
Among the fascination of the city
First came the age of emigration
Now lonely families suffering separations
What pleasure did the houses get?
Many villages are contaminated by the idea of emigration
God knows what the reason is
People will laugh at me if one sells groceries at village
But who sees what you do in the city
And facing the discrimination here too
Looking for a single people of my village
Friends are also showing proud
Generations are dieing of such ideology
The regional violence
Is this going to be fate of whole India?
Then why to leave my place out of fear
Whose conspiracy is this?
Why couldn’t find the root
Couldn’t get doctor when needed
Who will help in flood and drought?
My home is where I live now
I have sensitivity
For the next generation
I will have my courage with me always.
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१६. 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऑडियो आर्काइव
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१९. मैथिल आर मिथिला (मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त)
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२०.श्रुति प्रकाशन
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२१.विदेह- सोशल नेटवर्किंग साइट
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महत्त्वपूर्ण सूचना:(१) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल गेल गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक खण्ड-१ सँ ७ Combined ISBN No.978-81-907729-7-6 विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे आ प्रकाशकक साइटhttp://www.shruti-publication.com/ पर।
महत्त्वपूर्ण सूचना (२):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary. विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे।
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक- गजेन्द्र ठाकुर
गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बालमंडली-किशोरजगत विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७
Ist edition 2009 of Gajendra Thakur’s KuruKshetram-Antarmanak (Vol. I to VII)- essay-paper-criticism, novel, poems, story, play, epics and Children-grown-ups literature in single binding:
Language:Maithili
६९२ पृष्ठ : मूल्य भा. रु. 100/-(for individual buyers inside india)
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"विदेह" क २५म अंक १ जनवरी २००९, प्रिंट संस्करण :विदेह-ई-पत्रिकाक पहिल २५ अंकक चुनल रचना सम्मिलित।
विदेह: प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/
विदेह: वर्ष:2, मास:13, अंक:25 (विदेह:सदेह:१)
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर; सहायक-सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा
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मोनालीसा हँस रही थी : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु.100.00
कहानी-संग्रह
रेल की बात : हरिमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2007मूल्य रु. 70.00
छछिया भर छाछ : महेश कटारे प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
कोहरे में कंदील : अवधेश प्रीत प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 100.00
शहर की आखिरी चिडिय़ा : प्रकाश कान्त प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
पीले कागज़ की उजली इबारत : कैलाश बनवासी प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
नाच के बाहर : गौरीनाथ प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 100.00
आइस-पाइस : अशोक भौमिक प्रकाशन वर्ष 2008मूल्य रु. 90.00
कुछ भी तो रूमानी नहीं : मनीषा कुलश्रेष्ठ प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 100.00
भेम का भेरू माँगता कुल्हाड़ी ईमान : सत्यनारायण पटेल प्रकाशन वर्ष 2007 मूल्य रु. 90.00
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एक टा हेरायल दुनिया (कविता-संग्रह) : कृष्णमोहन झा प्रकाशन वर्ष 2008 मूल्य रु. 60.00
दकचल देबाल (कथा-संग्रह) : बलराम प्रकाशन वर्ष2000 मूल्य रु. 40.00
सम्बन्ध (कथा-संग्रह) : मानेश्वर मनुज प्रकाशन वर्ष2007 मूल्य रु. 165.00 शीघ्र प्रकाश्य
आलोचना
इतिहास : संयोग और सार्थकता : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
हिंदी कहानी : रचना और परिस्थिति : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
साधारण की प्रतिज्ञा : अंधेरे से साक्षात्कार : सुरेन्द्र चौधरी
संपादक : उदयशंकर
बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक
बालकृष्ण भट्ïट और आधुनिक हिंदी आलोचना का आरंभ : अभिषेक रौशन
सामाजिक चिंतन
किसान और किसानी : अनिल चमडिय़ा
शिक्षक की डायरी : योगेन्द्र
उपन्यास
माइक्रोस्कोप : राजेन्द्र कुमार कनौजिया
पृथ्वीपुत्र : ललित अनुवाद : महाप्रकाश
मोड़ पर : धूमकेतु अनुवाद : स्वर्णा
मोलारूज़ : पियैर ला मूर अनुवाद : सुनीता जैन
कहानी-संग्रह
धूँधली यादें और सिसकते ज़ख्म : निसार अहमद
जगधर की प्रेम कथा : हरिओम
अंतिका, मैथिली त्रैमासिक, सम्पादक- अनलकांत
अंतिका प्रकाशन,सी-56/यूजीएफ-4,शालीमारगार्डन,एकसटेंशन-II,गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.),फोन : 0120-6475212,मोबाइल नं.9868380797,9891245023,
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Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: :देवनागरी : मूल्य भा. रु. 100/-
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९.मिथिलाक इतिहास – स्वर्गीय प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी
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(ग्राहकक हस्ताक्षर)
२. संदेश-
[ विदेह ई-पत्रिका, विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डक- निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक (संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-मंडली-किशोर जगत- संग्रह कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मादेँ। ]
१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ। सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल। हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।
२.श्री रमानन्द रेणु- मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।
३.श्री विद्यानाथ झा "विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन महिमामय "विदेह"कँर अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल,तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।
४. प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल अभिनन्दन।
५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथीकुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहन भव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर हार्दिक बधाई स्वीकार करी।
६. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
७. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
८. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
१०. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
११. श्री विजय ठाकुर- मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
१२. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१३. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिंट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाई। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति अछि सात खण्डमे। ..सुभाष चन्द्र यादवक कथापर अहाँक आमुखक पहिल दस पंछक्तिमे आ आगाँ हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी शब्द अछि (बेबाक, आद्योपान्त, फोकलोर..)..लोक नहि कहत जे चालनि दुशलनि बाढ़निकेँ जिनका अपना बहत्तरि टा भूर!..( स्पष्टीकरण- दास जी द्वारा उद्घृत अंश यादवजीक कथा संग्रह बनैत-बिगड़ैतक आमुख १ जे कैलास कुमार मिश्रजी द्वारा लिखल गेल अछि-हमरा द्वारा नहि- केँ संबोधित करैत अछि। मैथिलीमे उपरझपकी पढ़ि लिखबाक जे परम्परा रहल अछि तकर ई एकटा उदाहरण अछि। कैलासजीक सम्पूर्ण आमुख हम पढ़ने छी आ ओ अपन विषयक विशेषज्ञ छथि आ हुनका प्रति कएल अपशब्दक प्रयोगक हम भर्त्सना करैत छी-गजेन्द्र ठाकुर)...अहाँक मंतव्य क्यो चित्रगुप्त सभा खोलि मणिपद्मकेँ बेचि रहल छथि तँ क्यो मैथिल (ब्राह्मण) सभा खोलि सुमनजीक व्यापारमे लागल छथि-मणिपद्म आ सुमनजीक आरिमे अपन धंधा चमका रहल छथि आ मणिपद्म आ सुमनजीकेँ अपमानित कए रहल छथि।..तखन लोक तँ कहबे करत जेअपन घेघ नहि सुझैत छन्हि, लोकक टेटर आ से बिना देखनहि, अधलाह लागैत छनि..(स्पष्टीकरण-क्यो नाटक लिखथि आ ओहि नाटकक खलनायकसँ क्यो अपनाकेँ चिन्हित कए नाटककारकेँ गारि पढ़थि तँ तकरा की कहब। जे क्यो मराठीमे चितपावन ब्राह्मण समितिक पत्रिकामे-जकर भाषा अवश्ये मराठी रहत- ई लिखए जे ओ एहि पत्रिकाक माध्यमसँ मराठी भाषाक सेवा कए रहल छथि तँ ओ अपनाकेँ मराठीभाषी पाठक मध्य अपनाकेँ हास्यास्पदे बना लेत- कारण सभकेँ बुझल छैक जे ओ मुखपत्र एकटा वर्गक सेवाक लेल अछि। ओना मैथिलीमे एहि तरहक मैथिली सेवक लोकनिक अभाव नहि ओ लोकनि २१म शताब्दीमे रहितो एहि तरहक विचारधारासँ ग्रस्त छथि आ उनटे दोसराक मादेँ अपशब्दक प्रयोग करैत छथि-सम्पादक)...ओना अहाँ तँ अपनहुँ बड़ पैघ धंधा कऽ रहल छी। मात्र सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ द्वारा प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक।( स्पष्टीकरण- श्रीमान्, अहाँक सूचनार्थ- विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री आर्काइवमे http://www.videha.co.in/ पर बिना मूल्यक डाउनलोड लेल उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि आ किएक रखने छथि वा आगाँसँ दाम नहि राखथु- ई सभटा परामर्श अहाँ प्रकाशककेँ पत्र/ ई-पत्र द्वारा पठा सकै छियन्हि।- गजेन्द्र ठाकुर)... अहाँक प्रति अशेष शुभकामनाक संग।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
१८.श्रीमती शेफालिका वर्मा- विदेह ई-पत्रिका देखि मोन उल्लाससँ भरि गेल। विज्ञान कतेक प्रगति कऽ रहल अछि...अहाँ सभ अनन्त आकाशकेँ भेदि दियौ, समस्त विस्तारक रहस्यकेँ तार-तार कऽ दियौक...। अपनेक अद्भुत पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक विषयवस्तुक दृष्टिसँ गागरमे सागर अछि। बधाई।
१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।
२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी। "विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽ सकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा सकैछ।
२१. श्री किशोरीकान्त मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि- बधाई स्वीकार कएल जाओ।
२२.श्री जीवकान्त- विदेहक मुद्रित अंक पढ़ल- अद्भुत मेहनति। चाबस-चाबस। किछु समालोचना मरखाह..मुदा सत्य।
२३. श्री भालचन्द्र झा- अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई।
२४.श्रीमती डॉ नीता झा- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।
२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक हमर उपन्यास स्त्रीधनक विरोधक हम विरोध करैत छी।... कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।(श्रीमान् समालोचनाकेँ विरोधक रूपमे नहि लेल जाए। ओना अहाँक मंत्रपुत्र हिन्दीसँ मैथिलीमे अनूदित भेल, जे जीवकांत जी अपन आलेखमे कहै छथि। एहि अनूदित मंत्रपुत्रकेँ साहित्य अकादमी पुरस्कार देल गेल, सेहो अनुवाद पुरस्कार नहि मूल पुरस्कार, जे साहित्य अकादमीक निअमक विरुद्ध रहए। ओना मैथिली लेल ई एकमात्र उदाहरण नहि अछि। एकर अहाँ कोन रूपमे विरोध करब?)
२६.श्री महेन्द्र हजारी- सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।
२७.श्री केदारनाथ चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल, मैथिली साहित्य लेल ई पोथी एकटा प्रतिमान बनत।
२८.श्री सत्यानन्द पाठक- विदेहक हम नियमित पाठक छी। ओकर स्वरूपक प्रशंसक छलहुँ। एम्हर अहाँक लिखल - कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखलहुँ। मोन आह्लादित भऽ उठल। कोनो रचना तरा-उपरी।
२९.श्रीमती रमा झा-सम्पादक मिथिला दर्पण। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रिंट फॉर्म पढ़ि आ एकर गुणवत्ता देखि मोन प्रसन्न भऽ गेल, अद्भुत शब्द एकरा लेल प्रयुक्त कऽ रहल छी। विदेहक उत्तरोत्तर प्रगतिक शुभकामना।
३०.श्री नरेन्द्र झा, पटना- विदेह नियमित देखैत रहैत छी। मैथिली लेल अद्भुत काज कऽ रहल छी।
३१.श्री रामलोचन ठाकुर- कोलकाता- मिथिलाक्षर विदेह देखि मोन प्रसन्नतासँ भरि उठल, अंकक विशाल परिदृश्य आस्वस्तकारी अछि।
३२.श्री तारानन्द वियोगी- विदेह आ कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि चकबिदोर लागि गेल। आश्चर्य। शुभकामना आ बधाई।
३३.श्रीमती प्रेमलता मिश्र “प्रेम”- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। सभ रचना उच्चकोटिक लागल। बधाई।
३४.श्री कीर्तिनारायण मिश्र- बेगूसराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बड्ड नीक लागल, आगांक सभ काज लेल बधाई।
३५.श्री महाप्रकाश-सहरसा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नीक लागल, विशालकाय संगहि उत्तमकोटिक।
३६.श्री अग्निपुष्प- मिथिलाक्षर आ देवाक्षर विदेह पढ़ल..ई प्रथम तँ अछि एकरा प्रशंसामे मुदा हम एकरा दुस्साहसिक कहब। मिथिला चित्रकलाक स्तम्भकेँ मुदा अगिला अंकमे आर विस्तृत बनाऊ।
३७.श्री मंजर सुलेमान-दरभंगा- विदेहक जतेक प्रशंसा कएल जाए कम होएत। सभ चीज उत्तम।
३८.श्रीमती प्रोफेसर वीणा ठाकुर- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक उत्तम, पठनीय, विचारनीय। जे क्यो देखैत छथि पोथी प्राप्त करबाक उपाय पुछैत छथि। शुभकामना।
३९.श्री छत्रानन्द सिंह झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ, बड्ड नीक सभ तरहेँ।
४०.श्री ताराकान्त झा- सम्पादक मैथिली दैनिक मिथिला समाद- विदेह तँ कन्टेन्ट प्रोवाइडरक काज कऽ रहल अछि। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल।
४१.डॉ रवीन्द्र कुमार चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।
४२.श्री अमरनाथ- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य मध्य।
४३.श्री पंचानन मिश्र- विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।
४४.श्री केदार कानन- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद, शुभकामना आ बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा समाहित अछि।
४५.श्री धनाकर ठाकुर- अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत तऽ नीक।
४६.श्री आशीष झा- अहाँक पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।
४७.श्री शम्भु कुमार सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत। ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम् तँ अशेष अछि।
४८.डॉ. अजीत मिश्र- अपनेक प्रयासक कतबो प्रशंकसा कएल जाए कमे होएतैक। मैथिली साहित्यमे अहाँ द्वारा कएल गेल काज युग-युगान्तर धरि पूजनीय रहत।
४९.श्री बीरेन्द्र मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक आ विदेह:सदेह पढ़ि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।
५०.श्री कुमार राधारमण- अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल। हमर शुभकामना।
५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।
५२.श्री विभूति आनन्द- विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।
५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।
५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल।
५५.श्री अरविन्द ठाकुर-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मैथिली साहित्यमे कएल गेल एहि तरहक पहिल प्रयोग अछि, शुभकामना।
५६.श्री कुमार पवन-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़ि रहल छी। किछु लघुकथा पढ़ल अछि, बहुत मार्मिक छल।
५७. श्री प्रदीप बिहारी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखल, बधाई।
५८.डॉ मणिकान्त ठाकुर-कैलिफोर्निया- अपन विलक्षण नियमित सेवासँ हमरा लोकनिक हृदयमे विदेह सदेह भऽ गेल अछि।
५९.श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित सहयोग नहि कऽ पबैत छी।
६०.श्री देवशंकर नवीन- विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।
६१.श्री मोहन भारद्वाज- अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा शीघ्र सहयोग देब।
६२.श्री फजलुर रहमान हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी छी।
६३.श्री लक्ष्मण झा "सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।
६४.श्री जगदीश प्रसाद मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्याससहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि से चकित कएलक, एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि।
६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल शुभकामना।
६६.श्री ठाकुर प्रसाद मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।
६७.बुद्धिनाथ मिश्र- प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित ‘विदेह’आ ‘कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक’ विलक्षण पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।
६८.श्री बृखेश चन्द्र लाल- गजेन्द्रजी, अपनेक पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन गदगद भय गेल , हृदयसँ अनुगृहित छी । हार्दिक शुभकामना ।
६९.श्री परमेश्वर कापड़ि - श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।
७०.श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ। मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)
७१.श्री मंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल आ संगहि अहाँक मैगनम ओपस कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकसेहो, अति उत्तम। मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय अछि।
विदेह
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(c)२००८-०९. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। सहायक सम्पादक: श्रीमती रश्मि रेखा सिन्हा, श्री उमेश मंडल। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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