भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
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(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html, http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
Friday, October 30, 2009
'विदेह' ४५ म अंक ०१ नवम्बर २००९ (वर्ष २ मास २३ अंक ४५)-PART I
वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश
२. गद्य
२.१. प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-मिथिलाक इतिहास
२.२.उपन्यास- जगदीश प्रसाद मंडल-जीवन संघर्ष
२.३. साकेतानन्द-कथा-कृतं न् मन्ये
२.४. सुजीत कुमार झा-कथाप्रियंका
२.५.कथा-दिन धराबय तीन नाम कुमार मनोज कश्यप
२.६. हेमचन्द्र झा-एना किएक?
२.७. नवेन्दु् कुमार झा-रिपोर्ताज
२.८. बिपिन झा-ये बान्धवाऽबान्धवा वा।
३. पद्य
३.१. गुंजन जीक राधा-चौदहम खेप
३.२. राजदेव मंडल-नदीक माछ-बाट-बटोही
३.३.उमेश मंडल (लोकगीत-संकलन)- खेलौना-आगाँ
३.४.कल्पना शरण-प्रतीक्षा सँ परिणाम तक-७
३.५. विनीत उत्पलक टटका कविता
३.६. सन्तोाष कुमार मिश्र-केकरा करु किलोल हो मिता
३.७. विनीत ठाकुर-गीत
३.८. दयाकान्त-ई बुढिया अछि हक्कल डइन
४. मिथिला कला-संगीत-कल्पनाक चित्रकला
५. गद्य-पद्य भारती -पाखलो (धारावाहिक)-भाग-७- मूल उपन्यास-कोंकणी-लेखक-तुकाराम रामा शेट, हिन्दी अनुवाद- डॉ. शंभु कुमार सिंह, श्री सेबी फर्नांडीस, मैथिली अनुवाद-डॉ. शंभु कुमार सिंह
६. बालानां कृते- देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)२.कल्पना शरण:देवीजी.
७. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]
8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1. Original Maithili Poem by Smt.Shefalika Varma,by B.N.Varma
8.2.Original poem in Maithili by Gajendra Thakur Translated into English by Lucy Gracy from New York
9. VIDEHA MAITHILI SAMSKRIT EDUCATION(contd.)
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
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१. संपादकीय
एहि बर्खक (२००९) यात्री-चेतना पुरस्कार श्री प्रेमशंकर सिंहकेँ देल गेल अछि। चेतना समितिक संस्थापक आ वरेण्य अक्षरपुरुष वैद्यनाथ मिश्र “यात्री”क स्मृतिमे चेतना समिति द्वारा स्थापित मैथिली भाषा आ साहित्यक क्षेत्रमे महत्वपूर्ण अवदान लेल वर्ष २००० ई.सँ प्रतिवर्ष यात्री चेतना पुरस्कार देल जाइत अछि। एहि पुरस्कारक राशि पाँच हजार टाका अछि। पूर्वमे ई पुरस्कार २००० ई.मे पं.सुरेन्द्र झा “सुमन”, दरभंगा; २००१ ई. लेल श्री सोमदेव, दरभंगा; २००२ लेल श्री महेन्द्र मलंगिया, मलंगिया; २००३ लेल श्री हंसराज, दरभंगा; २००४ लेल डॉ. श्रीमती शेफालिका वर्मा, पटना; २००५ लेल श्री उदय चन्द्र झा “विनोद”, रहिका, मधुबनी; २००६ लेल श्री गोपालजी झा गोपेश, मेंहथ, मधुबनी; २००७ लेल श्री आनन्द मोहन झा, भारद्वाज, नवानी, मधुबनी; २००८ लेल श्री मंत्रेश्वर झा, लालगंज, मधुबनीकेँ देल गेल अछि।
कवि कीर्तिनारायण मिश्रक परिवारक सदस्य द्वारा चेतना समितिक नामे जमा निश्चित राशिपर ब्याजसँ २००८ ई.सँ मैथिलीमे प्रकाशित आधुनिक बोधक उत्कृष्ट मौलिक कृतिपर कीर्तिनारायण मिश्र साहित्य सम्मान २००८ सँ प्रारम्भ भेल अछि। एकर अन्तर्गत ११,००० टाका देल जाइत अछि। कीर्तिनारायण मिश्र साहित्य सम्मान २००८ ई. लेल ई श्री हरेकृष्ण झाकेँ हुनकर कविता संग्रह “एना तँ नहि जे” आ २००९ लेल श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता”केँ हुनकर नाटक नो एण्ट्री: मा प्रविश लेल देल गेलन्हि। नो एण्ट्री: मा प्रविश विदेहक ८म सँ १५म अंक धरि ई-प्रकाशित भेल छल आ एकरा पाठकक अपार स्नेह भेटल रहैक।
बीसम अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन कानपुरमे २०-२१ दिसम्बर २००९ केँ आयोजित कएल जा रहल अछि।
जातिवाद एहेन समस्या अछि जे एहिसँ जुड़ल लोक अपनामे मग्न रहि जाइ छथि। सम्हरिकऽ बजबाक अभ्यास छुटि जाइ छन्हि कारण पूर्ण रूपसँ आश्वस्त रहै छथि जे दोसर जातिक आ अपनो जातिक उदार तत्वक प्रवेश ओतए नहि छै। आ गप-शपक क्रममे अपन जातिक गुणगान आ ओकरा प्रति दोसर जातिक द्वारा कएल गेल अत्याचारक चर्च करैत रहैत छथि वा कोनो समस्या अएलापर, हमर जाति एहिमे सम्मिलित नहि छल, एहन सन वक्तव्य दैत रहै छथि। एक जातिवादी संगठन दोसर जातिवादी संगठनक सामान्य रूपमे विरोधी रहैत अछि मुदा धर्मनिरपेक्ष आ जाति निरपेक्ष संस्था वा व्यक्तिक विरोध करबा कालमे ई सभ एक भऽ जाइत छथि। जे अपन समाजसेवा आ ईमानदारीक ढोल पीटए तकरासँ सम्हरि जाऊ, आ जातिवादी संगठन सभक कार्यक विश्लेषण करू- जे ओ अहाँक भावनाक संग कोन तरहेँ खेला रहल छथि आ महान व्यक्तित्व लोकनिक जयन्ती आ पुण्यतिथिक बेढ़मे हुनका सभकेँ कोन तरहेँ अपमानित कऽ रहल छथि। आ अहाँ जे छी ताहिमे अहाँक जातिक कोन योगदान अछि? हमरा तँ बेशी लोक एहने भेटल छथि जे कहै छथि जे दोसर जाति बला अपन जातिक लोकक मदति करै छै मुदा हमर जातिक लोक नोकसाने करैत अछि। जे १९-२०म शताब्दीक इतिहास देखी तँ जे देश गुलाम छल आ विदेशीक नजरिमे छोट-पैघ किछु नहि रहए कारण सभ गुलाम छलाह। मुदा एहनो परिस्थितिमे मैथिली साहित्यमे भोजनक कालमे आ आन कालमे कोन-कोन तरहक छूत-अछूतक विचार राखी ताहिपर विस्तृत विचार भेटत जेना विवेचनकर्ता कोनो आविष्कारक होथि। मुदा २१म शताब्दीमे सेहो मैथिलीक सेवा लेल जातिवादी संगठन सभ आगाँ छथि? की ओहि जातिक ओ प्रतिनिधित्व करै छथि? की दोसर जातिक लोक, गुणवत्ता नहिओ रहला उत्तर, मात्र मैथिलीक नामपर हुनकर संग नहि दै छथिन्ह। मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थक तँ छोड़ू (मैथिली-सेवा तँ मात्र हिनके सभक विशेषाधिकार छन्हि आ सभसँ पहिने मैथिलीकेँ घरसँ निकालबाक प्रारम्भ सेहो यैह सभ केने छथि), आन जातिक नेता सेहो वोट माँगै लऽ जाइ छथि, हमरे गाम आबि हमरेसँ वोट मँगै छथि, मुदा मैथिलीमे नहि, हिन्दीमे। वोट हमरा दिअ आ फराक रहू, अहाँक भाषा हम नहि बजै छी !
मुदा विदेहक मैथिली साहित्य आन्दोलन एहि सभटा कुचक्रकेँ देखार करैत रहत।
किछु भाषण-भाख
किछु भाषण-भाख जे हम संगी साथी सभकेँ गप-शपमे दैत रहै छियन्हि से हुनका सभक आग्रह कारण आब एतए दऽ रहल छी।
कम वसा बला दूध सदिखन पीबू आ कम नोन खाऊ। माउसक सेवन सेहो कम करू, माँछ बेशी खा सकै छी। अपन आस-पड़ोसक लोकक दिनचर्यापर अहाँक ध्यान अवश्य रहबाक चाही नहि तँ घर बदलि लिअ। कोनो व्यक्तिकेँ जे अहाँ प्रशंसा करब तँ ओ ओकरा लेल बड़ उत्साह बढ़बएवला हएत। अपन पड़ोसीकेँ बगिया वा कोनो आन व्यंजन बना कए खुआऊ आ ओकर बनेबाक विधि सेहो लिखाऊ। ककरो प्रति दुर्भावना वा पूर्वाग्रह नहि राखू। कोनो मॉलमे जाऊ तँ कार खूब दुरगर लगाऊ आ परिवार-बच्चा संगे टहलि कए आऊ। दूरदर्शनपर मारि-पीट बला धारावाहिक नहि देखू आ जे-जे कम्पनी ओकर प्रायोजक अछि तकर उत्पादक बहिष्कार करू। सभ लोक, पशु-पक्षीक प्रति आदर राखू। ककरोसँ गाड़ी माँगी तँ घुरबैत काल पेट्रोल वा डीजल पूर्ण रूपसँ भरबा कऽ घुराऊ, लोक किएक तँ एकर उल्टा करैत छथि, भरल पेट्रोल गाड़ी लऽ जाइ छथि आ रिजर्वमे आनि कए घुरबैत छथि। देखब जे ओ व्यक्ति अहाँक चरचा बड्ड दिन धरि करत आ आगाँसँ गाड़ी देबामे बहन्ना नहि करत। दिनमे पाँच-सात गोटेकेँ अभिवादन अवश्ये करू। एक-आधटा माल-जाल राखू, जे दिल्ली-मुम्बैमे रहै छी तँ तकर बदला कुकुड़ पोसू। मासमे एक बेर सुर्योदय अवश्य देखू आ तरेगण सेहो। दोसराक जन्म दिन आ नाम अवश्य मोन राखू। होटलक खेनाइ परसनिहारकेँ टिप अवश्य देल करू। ककरोसँ भेँट भेलापर आह्लादसँ अभिवादन करू, हाथ मिलाऊ आ सर्वदा आँखि मिला कऽ गप करू। धन्यवाद आ आदरसूचक शब्द अवश्य बाजू। कोनो बाजा बजेनाइ अवश्य सीखू, नहि कोनो आर तँ झालि तँ बजाइये सकै छी। नहाइत काल गीत गाऊ। (अगिला अंकमे)
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ ३० अक्टूबर २००९) ८७ देशक ९५७ ठामसँ ३२,२५२ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ २,०५,६९० बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in
ggajendra@yahoo.co.in
२. गद्य
२.१. प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी-मिथिलाक इतिहास
२.२.उपन्यास- जगदीश प्रसाद मंडल-जीवन संघर्ष
२.३. साकेतानन्द-कथा-कृतं न् मन्ये
२.४. सुजीत कुमार झा-कथाप्रियंका
२.५.कथा-दिन धराबय तीन नाम कुमार मनोज कश्यप
२.६. हेमचन्द्र झा-एना किएक?
२.७. नवेन्दु् कुमार झा-रिपोर्ताज
२.८. बिपिन झा-ये बान्धवाऽबान्धवा वा।
प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी (१५ फरबरी १९२१- १५ मार्च १९८५) अपन सम्पूर्ण जीवन बिहारक इतिहासक सामान्य रूपमे आ मिथिलाक इतिहासक विशिष्ट रूपमे अध्ययनमे बितेलन्हि। प्रोफेसर चौधरी गणेश दत्त कॉलेज, बेगुसरायमे अध्यापन केलन्हि आ ओ भारतीय इतिहास कांग्रेसक प्राचीन भारतीय इतिहास शाखाक अध्यक्ष रहल छथि। हुनकर लेखनीमे जे प्रवाह छै से प्रचंड विद्वताक कारणसँ। हुनकर लेखनीमे मिथिलाक आ मैथिलक (मैथिल ब्राह्मण वा कर्ण/ मैथिल कायस्थसँ जे एकर तादात्म्य होअए) अनर्गल महिमामंडन नहि भेटत। हुनकर विवेचन मौलिक आ टटका अछि आ हुनकर शैली आ कथ्य कौशलसँ पूर्ण। एतुक्का भाषाक कोमल आरोह-अवरोह, एतुक्का सर्वहारा वर्गक सर्वगुणसंपन्नता, संगहि एतुक्का रहन-सहन आ संस्कृतिक कट्टरता ई सभटा मिथिलाक इतिहासक अंग अछि। एहिमे सम्मिलित अछि राजनीति, दिनचर्या, सामाजिक मान्यता, आर्थिक स्थिति, नैतिकता, धर्म, दर्शन आ साहित्य सेहो। ई इतिहास साहित्य आ पुरातत्वक प्रमाणक आधारपर रचित भेल अछि, दंतकथापर नहि आ आह मिथिला! बाह मिथिला! बला इतिहाससँ फराक अछि। ओ चर्च करैत छथि जे एतए विद्यापति सन लोक भेलाह जे समाजक विभिन्न वर्गकेँ समेटि कऽ राखलन्हि तँ संगहि एतए कट्टर तत्त्व सेहो रहल। हुनकर लेखनमे मानवता आ धर्मनिरपेक्षता भेटत जे आइ काल्हिक साहित्यक लेल सेहो एकटा नूतन वस्तु थिक ! सर्वहारा मैथिल संस्कृतिक एहि इतिहासक प्रस्तुतिकरण, संगहि हुनकर सभटा अप्रकाशित साहित्यक विदेह द्वारा अंकन (हुनकर हाथक २५-३० साल पूर्वक पाण्डुलिपिक आधारपर) आ ई-प्रकाशन कट्टरवादी संस्था सभ जेना चित्रगुप्त समिति (कर्ण/ मैथिल कायस्थ) आ मैथिल (ब्राह्मण) सभा द्वारा प्रायोजित इतिहास आ साहित्येतिहास पर आ ओहि तरहक मानसिकतापर अंतिम मारक प्रहार सिद्ध हएत, ताहि आशाक संग।-सम्पादक
अध्याय – 1
मिथिला क इतिहास
वैदिक युग प्राचीन वैदिक साहित्या मे अंग मगध और मिथिला क कोनो स्प ष्टा उल्लेपख नहिं भेटइत अछि। ऋग्वे द संहिता मे उपरोक्त तीनू खण्डि मे सँ कोनो खण्डद क नाम उल्लिखित नहिं अछि। ऋग्वेतद क तेसर अष्टेक क पूउम सूक्त क चौदहम ऋचा मे ‘कीकट’ क उल्लेोख अछि आर ओहिठाम क राजा ‘ प्रमगन्द ’ क संबन्धय मे बहुत रास निन्दौनीय बात से हो। यास्क क अनुसार‘कीकट’ देश मे अनार्थ लोकनिक निवास छल। सायणाचार्य अहि मत सँ सहमत होइत हुँ आगाँ कहैत छैथ जे ‘कीकट’ क निवासी नास्तिक छलाह आ योग, दान, होम इत्याादि पर हुनका लोकनि केँ एक्कोरत्ती विश्वाास नहिं छलैन्हं। ओ लोकनि इहलोकिक छलाह आर परलोक मे हुनका लोकनि कें कोनो प्रकार क विश्वापस नहिं छलैन्हक। ओ लोकनि भौतिकवादी छलाह। वायुपुराण क गया महातम्य् सेँ कहल गेल अछि--
”कीकटेषु” गया पुण्याय नदी पुण्या पुन: पुन: च्यंवनस्यां श्रमं पुण्यंछ पुण्यं राज गृहं वनम्” आहि सँ स्पष्ट अछि जे ‘कीकट’ दक्षिण विहार मे छल आर ओहिठाम क निवासी भौतिकवादी दर्शन मे विश्वादस रखैत छलाह। ‘कीकट’ क संबध मे वैदिक विद्वान लोकनिक मध्यह मतभेद अखनो बनल अछि आ आहि विवाद मे पड़ब हमरा लोकनिक हेतु एतए आवश्य क नहिं बुझना जाइछ।
एहन मानल जाइत अछि जे संहिता काल मे आर्य-सभ्याता क प्रधान केन्द्र सरस्वबती आ ह्रषद्वली नदी क मध्य मे छल आर ओहि स्था न के मनु ब्रह्मावती कहने छथि। ब्राह्मण काल मे आहि संस्कृ ति क केन्द्रह छल कुरू-पाँचल्ल जकरा मनु ब्रह्मर्षि देश कहने छथि। शतपथ ब्राह्मण मे कुरू पाँचल्ल देश क विशेष प्रशंसा भेल, अछि आर ऐतरेय ब्राह्मण मे आर्य देश क हेतु अस्याँव श्रुवायां प्रतिष्ठाेयां विशेषण क प्रयोग भेल अछि। सदानीरा नदी (गण्ड क) पार कक जखन आर्य लोकनि मिथिला क क्षेत्र मे उतरलाह तखन अत्यंशत द्रूतगति सँ आर्य संस्कृ्ति क प्रसार आहि क्षेत्र मे भेल आ मिथिला विदेह समस्तठ पूर्वी भारत मे आर्य सभ्यषता क प्रसार-प्रचार क एकटा प्रधान केन्द्र बनि गेल।
कोनो संहिता मे स्पएष्ट रूपे विदेहक उल्लेिख नहिं भेटइत अछि। तैत्तिरीय आर काठक संहिता मे“वैदेह्य ”, “वैदेही” एवं “वैदेह” शब्द क प्रयोग भैटेत अछि परञ्च आहि सभहिक व्यनवहार गाय आर बरद क हेतु भेल अछि। ऐतरेय ब्राह्मण मे जाहिठाम आर्य देश क चर्चा भेलो अछि ताहुठाम “ विदेह’’ शब्द क पृथक उल्लेख नहिं भेटैत अछि। काशी, कोशल, मगध, अंग,आदि शब्द’ संग ‘ विदेहो’ के प्राच्य देश मे साटि देल गेल अछि। ‘विदेह’क पृथक उल्लेख स्पोष्टभ रूपें शतपथ ब्राह्मण मे भेटैत अछि ओहिठाम ई कहल गेल अछि जे विदेघ माथव अपन पुरोहित गौतम राहूगण क संग वैश्वारनर अग्नि क अनुशरण करैत-करैत सरस्विती नदी क तीर सँ सदानीरा क तीर धरि पहुँचलाह। अहि सँ पूर्व आर्य लोकनि सदानीरा कँ पारकर पूब दिसि नहिं गेल छलाह तै तँ ई एक महत्वर पूर्ण घटना मानल जाइत अछि। वैश्वादनर विदेघ माथव केँ सदानीरा टपबाक आदेश देलथिन्ह । विदेघ अपन पुरोहित क संग आकरा पार केलन्हि आर तखने सँ ओ देश ‘विदेह’ कहबे लागल। सदानीरा विदेह आर कोशल कवीच क सीमा रेखा बनल।
ताहिदिन सँ विदेह आर्य सभ्यशता क प्रधान केन्द्र बनि गेल। शतपथ बाह्मण क शेष अध्याय मे जनक क दरबार क कथा सुरक्षित अछि। मिथिला क राजा जनक अपना ओहिठाम देश क विभिन्नल भाग सँ ब्रह्मज्ञानी लोकनि केँ आमंत्रित क केर् बजबैत छलाह, आर हुनक दरबार मे तँ कुरू पंचलि सँ बरोबरि ऋषि-मुनि लोकनि आबिते रहैत छलाह॥ ऋषि याज्ञवल्मय विदेह मे रहैत छलाह आर ताहु हेतु मिविला क प्रसिद्ध समस्त आर्यावर्त मे छल। जनक याज्ञवलम्यत तँ बुझु जेना आर्य संस्कृिति क धोतक बुझल जाइत छलाह आ ब्रह्मज्ञान क क्षेत्र मे हिनका लोकनि क कोनो ककरो सँ तुलना ताहिं दिन मे नहिं छल। कुरु पाँचाल क ऋषिगणक कुटिया मे शिक्षित रहितहुँ याज्ञवलम्यक जखन जनक क ओहिठाम शास्त्राार्थ मे पहुँचलाह तखन ओ ओहिठाम उपस्थित कुरू पाँचलि क ऋषि गण केँ शास्त्रार्थ मे पराजित केलन्हि आर अपन विदूता क प्रकाश से हो। हुनक वचन मात्र अध्याूत्म विघेटा मे नञ अपितु वैदिक क्रियाकलाप मे से हो सर्वथा प्रामाणिक मानल जाइत छल। परंपरा मे हिनका शुक्ल यजूर्वेदक प्रवर्तक मानल गेल अछि। शतपथ ब्राह्मण एवं बृहदा रण्यकोपनिषद –क अनेकानेक स्थाल पर जनक- याज्ञवलम्यग क ब्रह्मज्ञान क विवैचना क वर्णन अछि आर ठाम-ठाम विभिन्नध ऋषि लोकनिक शास्त्रा र्थ क सेहो। ब्रह्मज्ञान क हेतु तैतिरीय ब्राह्मण मेसे हो राजा जनक क प्रशंसा कैल गेल अछि। जनक ब्रह्मज्ञान क हेतु केहेन प्रसिद्ध रहल हेताह तकर एकटा सामान्यव संकेत हमरा लोकनि के कौशीतकी उपनिषदक एक कथा मे भेटइत अछि जाहि मे कहल गेल अछि कि गर्गवंश क ‘बाल्मकि’ नामक एक ब्रह्मज्ञानी काशीराज अजानशुत्र क ओतए ब्रह्मज्ञान क निरूपण के जखन पहुँचलाह तँ राजा हुनका सँ प्रसन्नम भए एक हजार गाय देलथिन्हा आर कहलथिन्ह जे देखु तइयो लोक सब “ जनक - जनक’’ चिकैरि रहल अछि। वैदिक युग मे ब्रह्मज्ञान क चरम उत्कोर्ष विदेह मे भेल छल। ब्रह्मज्ञान आर्य संस्कृ ति क चरम उत्कनर्ष बुझल जाइत छल - वैदिक मंत्र क उत्थातन ब्रह्मावर्त मे, क्रिया कलाप क विकास ब्रह्मर्षि देश मे एवं “ब्रह्मविद्या” क विवेचन विदेह मे भेल। अहि हेतु ताहि दिन सँ समस्तक आर्यावर्त क लोक केँ विदेह आवए पडैत छलैन्हि। विदेह पूर्वी भारत मे वैदिक काल मे आर्य सभ्यतताक प्रधान केन्द्रत छल। आहिठाम क्षत्रिय से हो वेदवक्ता होइत छलाह।
संस्कृ त साहित्ये मध्य मिथिला, विदेह एवं तीरभुक्ति क वर्णन:-
बालकाण्ड (बाल्मीहकि) मे मिथिलाक वर्णन एवं प्रकारे अछि -
रामायण (बालकाण्डब) - “रामोडपि परमांपूजाँ गौतमस्य महामन:”
सकाशाद् विधिवत् प्राप्य जगाम मिथिलाचलः॥
अनर्ध राधव मे (अंक २)
“श्रृणोछि विदेहषु मिथिला
नामनगरीम”
जयदेव - प्रसन्नद राधव (अंक २)
“तादह मिथिलायां पंचरात्र
निवासेन श्रमोपनेतव्य ।
प्रसंगादयां राजा जनको द्रशः”
रघुवंश - (सर्ग – ११)
”संन्यामन्व्यन सम्यृवत हेतु मैथिलः
स मिथिलां व्रजन वशी। “
नैषधीयचरित - (सर्ग – १२)-
”अपीयमेनं मिथिला पुरन्दरं निपील
दृष्टि: शिथिला स्तुते वरम् ”
‘रामायण चम्पूट’ (बालकाण्डम)
“ अथ मिथिलां प्रात प्रास्थान:
कौशिकस्तअ मित्थ म कथयतू ”
दशकुमार चरित (उतरपीढिका – उक्छवास )
“ एषो ब्रह्मस्मि पर्य्यटने कदा गतो
विदेहषु मिथिलाम प्रावस्यैव”
कथासरित सागर ( जम्बक उ, तरंग – ५)
” हदो वैदेह देशे च राज्यं गोपलिकायसः।
सत्कार हेतोहंति पतिः श्वसुर्यायानुगच्छतेः॥
भृंगदूत (गंगानंद झा) - १७ म शताब्दी।
“ गंगाती रावधि रधि गता यद भुओ भृंग भुक्ति
र्नाम्ना सैव त्रिभुवन तले विश्रुता तीर भुक्तिः॥
भृंगदूत मे दरभंगा क वर्णन एवं प्रकारे अछि –
नस्यापाथः परमाविमणं सांतिपियाभिरामा –
गारांकामायुध दरभंगा राजधानी - मुवैयाः॥
रघुवीर कवि –“ लक्ष्मीश्वरोपायन” मे –
“देशः संतु सहस्त्रोपि ममतु स्वाभाविक प्रीतये, श्रेयान देश बिशेष एवं मिथिलानामा क्षमा मंडले।” बदरी नाथ झा - ‘ गुणेश्वर चरित चम्पू’
“ आस्ति स्वस्ति समस्त भूमि बल श्रेय प्राशासी श्रुता प्रत्यार्थ स्मय मन्थना प्र मिथिला नामाडभिरामा कृति:। प्रेक्षाशालिविपा चिदालिल लिनो त्संगा डिभिषंगार्दिनी , नीवृद वृन्दम, चर्चिका र्चितलर श्रे स्तीरभुक्तिः सदा ।
गंगा गण्डकी संगम सँ पश्चिम सुप्रसिद्ध सोनपुर टीसनक समीप जे हरिहर क्षेत्र अछि तकरो उल्लेख भृंगादूत मे भेटेइत अछि। अहि भृंगदूतमे गाण्डवीश्वर स्थान , ब्रह्मपुर , वाग्वती (वाग्मती) एवं कमला नदी क उल्लेख से हो भेटइत अछि। कहबी छैक जे गाण्डवीश्वर महादेव राजा जनक क दक्षिण क द्वार पलि रहथिन्ह आर ओ स्थान सम्प्रति जोगिआरा टीशन क समीप अछि। ओना मिथिला नाम सँ प्राचीन जनक राजक राजधानी क ओध होइछ परञ्च एतए स्मरण राखबि आवश्यक जे मिथिला, तेरभुक्ति, विदेह, अछि शब्द एक एहन भौगोलिक इकाई क धोतक थिक जे गंगाक उत्तर मे छल आर विभिन्न छोट - छोट गणराज्य मे बटल छल। प्राचीन कविक बिहार मे गंगा क दक्षिण मेछल अंग आर मगध आर उत्तर मे छल मिथिला जकर अंतर्गत कैकटा छोट – छीन राज्य सब छल। जातक कथा आर जैन साहित्य क अतिरिक्त वृहद विष्णु पुराण क मिथिला महात्मय मे मिथिला क जे वर्णन अछि ताहि सँ एकर महत्व एवं जन प्रियता क पता लगेइयै। अहि मिथिला क अंतर्गत छल तँ प्राचीन कालक वैशाली जकर विस्तृत विवरण रामायण, रामायण चम्पू एवं भृंगादूत मे भेटैत अछि। प्राचीन ‘ विशाला ’ नगरिये बौद्ध कालक वैशाली थिक। विशाला क नाम क अद्धत्तन “बिसारा” परगना सँ होइत अछि । अहि क्षेत्र मे एकटा भैरव स्थान सेहो छल जकर चर्च भृंगादूत मे भेल अछि। नहिंयारी गाँव (कमतौल टीसन) सँ अघुना एकर बोध होइछ। भृंगदूत मे “ सरिसव” ग्राम आर कोहिश्वर महादेव क उल्लेख सेहो भेटइत अछि।
नाम एवं मिथिला क भौगोलिक सीमा : -
शतपथ ब्राह्मण क अनुसार नदी क बहुलता क कारणे मिथिला क भूमि दलदल जकाँ छल। कहल जाएछ जे अग्निदेव क आज्ञा सँ माथव विदेघ आर गोतम राहुगण सदानीरा (गण्डकी) क पूब मे जाक बस लाह आर और क्षेत्र इतिहास मे मिथिला, विदेह, तीरभुक्ति एवं तिरहुत क नाम सँ प्रसिद्ध भेल। दलदल भूमि कें अग्निदेव सुखा कें कठोर बनौलन्हि आर जंगल के जरा के अहि पूर्वी भूमि के रहबा योग्य स्थान से हो। आर्य ऋषि लोकनि ओहिठाम अगणित यज्ञ क आयोजन केलन्हि आर असंख्य यज्ञ आर होम होयबाक कारणें ओहिठाम भूमि रहबा योग्य बनि सकल। नदी क बाहुल्य क कारणे संभव जे अहि क्षेत्र के तीरभुक्ति कहल गेल छल। प्राचीन काल मे तीरभुक्ति समस्त उत्तरी बिहार क धोतक छल आर एकर सीमा पश्चिम मेश्रावस्ती भुक्ति आर पूब मे पुण्डवर्धन भुक्ति सँ मिलैत – जुलैत छल आर एकर अहि विशालता क परिचय हमरा आयनी – अम्बरी मे वाणैत तिरहुत सरकार क महल क नाम सब भेटइत अछि।
परंपरा गत साधन मे मिथिला क जे विवरण उपलब्ध अछि तकर सिंहावलोकन करब अपेक्षित। ओहि वर्णन मे एतिहासिकता क दुर –कतबा दूर धरि अछि से नहिं कहि सकैत छी तथापि पौराणिक आर आन क महत्व तँ एतिहासिक संक दृस्टिये अछिये अहि मे संदेहक कोनो गुंजाइश नहिं।
भविष्य पुराण क अनुसार अयोध्या क महाराज मनुक पुत्र निमि अहि यज्ञ भूमि मे आवि अपना के कृत्य – कृत्य बुझलन्हि आर ओहिठाम क ऋषि लोकनिक लय आर यज्ञ सँ लाभान्वित भेलाह। निमि क पुत्र ‘मिथि’ एक शक्तिशाली शासक भेलाह आर ओ अपन पराक्रम क प्रदशनार्थ ओहिठाम एकटा नगर क निर्माण केलन्हि जे ‘ मिथिला’ क नाम सँ प्रसिद्ध भेल। अहि मे कहलगेल अछि जे पुरी निर्माता होएबाक कारणें मिथिला क दोसर नाम ‘जनक’ पडल।
भविष्य पुराण : - निमः पुभस्तु तत्रैव मिथिला मे महान स्मृतः ।
प्रथमः भुजबलैयेन तैरहूतस्थ पार्श्वतः ॥
निर्म्मित स्वीयनाम्ना च मिथिला पुरमुन ममू।
पुरी जनन सामथ्यज्जिनकः सच कीर्तितः॥
वाल्मीकीय रामायण : - राजा भृतिषु लोकेषु विश्रुतः खेन कर्मणा निमि परमधर्मात्मा सर्व तत्व वतांवरः । तस्य पुत्रो मिथिर्नाम जनको मिथिपुत्रक कथन अछि जे जखन वशिष्ठ यज्ञाभिलाषी निमिक निमंत्रण अस्वीकार कए इन्द्रक पुरोहिताई करबाक हेतु स्वर्ग गेलाह तखन वशिष्ठ क अनुपस्थिति मे भृगु आदि आस्थिन ऋषि मुनि लोकनि क सहायता सँ निमि अपन यज्ञ क संपादन केलन्हि। वशिष्ठ स्वर्ग सँ घुरला पर जखन यज्ञ के सम्पादन भेल देखलन्हि तखन क्रुद्ध भए ओ राजा निमि के “ विदेह ” राजेबाक श्राप देलन्हि। वशिष्ठ क अति श्राप सँ चारूकात हाहाकार मचिगेल प्रजा लोकनि घबरा उठलाह। अराजकता क स्थिति देखि आस्थिन ऋषि गण निमि क मृत शरीर कें मथे लगलाह ओर मथला उत्तर जे शरीर उत्पन्न भेल तकर “ मिथिल” अथवा “ विदेह ” क संज्ञा देलगेल। बाद मे“जनक” नाम सँ सेहो प्रसिद्ध भेलाह।
श्रीमदभागवत : -
जन्मना जनकः सोऽभूद्धै वेह स्तु विवेहजः
मिथिलो मथनाज्जातो मिथिला येन निर्म्मिता॥
देवी भागवत: - सँ ज्ञान होइछ जे निमिक उन्नेसम पीढी मे राजर्षि सीरध्वज जनक भेल छलाह और श्रीमद - भागवत सँ ई बुझल जाइत अछि जे जनक वंशक शासक लोकनि एहेन वातावरण बना देने छलाह जे हुनक पार्श्ववती गृहस्थ सेहो सुख दुःख सँ मुक्त भ गेल छलाह। ‘विदेह’ जे कि महत्वपूर्ण कल्पना छल आर जकर प्राप्तिक हेतु लोग ललायत रहैत छल से ओहि देश क नामक संकेत से हो दैत अछि जाहिठाम जनक वंश क लोग अपन राज्य क स्थापना करने छलाह। शुक्रदेव जी ( व्यास क पुत्र ) जखन अपन पिता सँ तपश्या क हेतु आज्ञा माँगलन्हि तखन हुनका योगिराज जनक क दृष्यांत दैत ई कहल गेलन्हि जे ओ घरो मे रहिके तपस्या क सकैत छथि। शुक्रदेव जी असंतुष्ट देखि व्यास हुनका राजार्षि जनक क ओतए पठा देलथिन्ह।
देवी भागवतः - वंशेऽस्मिन्येऽपि राजा नस्ते सर्वे जनकास्तथा।
विख्याता ज्ञानिनः सर्वे वेदेहाः परिकीर्निताः॥
वर्षद्वयेन मेरूंच समुल्लङ्घ्य महामनिः।
हिमालये च वर्षेण जगाम मिथिलां पति॥
प्रविष्टो मिथिलां मध्ये पश्यंसर्यद्धैमुतम्।
प्रजाश्र्चः सुखिता सर्वाः सदाचाराः मुखन स्थताः॥
देवी मद् भागवत: - एते वै मैथिला राजन्नात्म विद्या विशारदाः
योगेश्वर प्रसादेन द्वन्दै मुक्ता गृहष्वेपि॥
मिथिला क सीमा क सबंध मे देवी भागवत मे निम्नांकित विवरण अछि।
एवं निमि सुतो राजा प्राथतोजन कोऽभवित।
नगरी निर्मिता तेन गंगातीरे मनोहरा।
मिथिलेति सुविख्याता गोपुरा हाल संयुता
धनधान्य समायुक्ताः हद्यशाला विराजिता॥
शक्तिसंगम तंत्र : -
गण्डकी तीरमारभ्य चमोआरण्यंतंग शिवे।
विदेहभूः समाख्याता तीर भुतयमिधः संतु॥
स्वद पुराण : -
गण्डकी कौशिकी चैव तयोमध्ये वरस्थलम्।
बृहद विष्णुपुराण : -
कौशिकीन्तु समारभ्य गण्डकीमधिगम्यवै।
योजनानि चतुविशंद व्यायामः परिकीर्तितः॥
गंगा प्रवाह मारभ्य यावद्धैमवतंवनम्।
विस्तारः षोडश प्रोक्तो देशस्य कुलनन्दन।
मिथिलानाम नगरी तत्रास्ते लोक विश्रुता॥
अगस्त्य रामायण : -
वैदेहोपवनस्यांते दिश्यै शान्यां मनोहरम्।
विशालं सरस्वतीरे गौरी मंदिर मुतमम्॥
वैदेही वाटिका तत्र नाना पुष्प सुगुम्फिता।
राक्षनामनलिकन्यामिः सर्वतु सुखदा शुभा॥
मिथिला क उत्तर मे हिमालय, दक्षिण मे गंगा, पूवमे कौशिकी आर पश्चिम मे गण्डकी अछि।
चन्दा झा :- गंगा बहथि जनिक दक्षिण दिशि,
पूर्व कौशिकी धारा
पश्चिम बहथि गण्डकी,
उत्तर हिमवत बल विस्तारा।
प्राचीन मिथिला मे आधुनिक दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, (दरद – गण्डकी देश), सहरसा, पुर्णियाँ, बेगुसराय, कटिहार, विहपुर, एवं नेपाल क दक्षिणी भाग सम्मिलित छल। नदी क प्रधानता हेवाक कारणे मिथिला के तीरभुक्ति से हो कहल गेल छैक –
वृहद विष्णु पुराण : - गंगा हिमवतोर्मध्ये नदी पञ्च दशांतरे।
तीर भुक्तिरिनति ख्यातो देशः परम पावनः॥
तीरभुक्ति नाम होएबाक निम्नलिखित कारण बताओल गेल अछि।
i. ) शाम्भकी, सुवर्ण एवं तपोवन सँ भुक्तमान
होएबाक कारणे ई तीरभुक्ति कहाओल।
ii. ) कौशिकी, गंगा आर गण्डकी क तीरधरि
एकर सीमा छलैक तै एकरा तीरभुक्ति क
संज्ञा देल गेलैक।
iii.) ऋक, यजु आर शाम तीनटुक वेद सब सँ
आहुति देवऽबला ब्राह्मण समूहक निवास
सँ त्रि आहुति अर्थात तिरहुतक नाम सँ
ई स्थान प्रख्यात भेल।
१६–१७ म शताब्दी क निव्वती यग्त्री लाभा तारनाथक विवरण मे तिरहुत कें “तिराहुति ”कहल गेल अछि। आर आयनी अकबरी मे तँ सहजहि एक विस्तृत विवरण भेटिते अछि। एतिहासिक दृष्टिकोण सँ भुक्ति शब्द प्रयोग गुप्त युग सँ प्रारंभ भेल आर शिलालेख मे एकर उल्लेख भेटैत अछि। वैशाली सँ प्राप्त कैकटा मोहर पर तीरभुक्ति शब्द क उल्लेख अछि आर संगहि कहरा सँ प्राप्त अभिलेख, नारायण पालक भागलपुर अभिलेख, वनगाँव ताम्रपत्र अभिलेख आदि सँ ‘तीरभुक्ति’ पर प्रकाश पडैयै आर ई बुझि पडैयै जे ताहि दिन मेतीरभुक्ति समस्त उत्तर विहार क धोतक छल जकरा पश्चिम मे छल आधुनिक उत्तर प्रदेश और पूव मे बंगाल। महानंदा क पश्चिम आर गण्डकी क पूव क समस्त भूमि तीरभुक्तिकहबैत छल, अहि मे कोनो संदेह नहिं। जातक मे मिथिला क क्षेत्र जे वर्णन अछि आरआयनी अम्बरी मे वर्णित तिरहुत सरकार क विवरण हमर उपरोक्त मतक समर्थन करैयै। देशक भूगोल आर सीमा राजनैतिक उथल - पुथल क कारणे बदलैत रहैत छैक आर मिथिला क राजनैतिक इतिहास मे सेहो एहेन कतैक परिवर्तन भेल छैक तथापि एकर जे एकटा साँस्कृतिक स्वरूप अछि से आविच्छन्न रूपें चलि आवि रहल अक्चिइ आर उवैह रूप एकर भौगोलिक सीमा क स्पष्ट आभास दैत अछि। प्राचीन साहित्य मे मिथिला आर जनकपुर नाम भेटैछ परञ्च गुप्तयुग सँ तीरभुक्ति नाम प्रशस्त भ गेल।
___ “ प्राग्ज्योतिषः कामरूपे तीरभुक्तिस्तु निच्छविः
विदेहा चाथ कश्मीरे ” =
लिंग पुराण :- “ तीर भुक्ति प्रदेशेतु हलुविर्त्ते हलेश्वरः ”
प्राचीन मिथिला क पुरातत्वक विश्लेषण एवं
अध्ययन अखनोधरि अपेक्षिते अछि।
नेपाल क सीमा जे सम्प्रति जनकपुर अछि तकरे प्राचीन विदेह मानल गेल अछि। सुरूचि आरगौधार जातक मे विदेह एवं मिथिला क भौगोलिक सीमा क विवरण भेटइत अछि। विदेह क चारू मुख्य फाटक पर चारिटा बाजार छल। महाजनक जातक मे तँ विदेह क राजधानी‘मिथिला’ क भव्य वर्णन अछि – मिथिला क नगरी क सोभा, वाजार आर राज दरबारक शोभा, सामान्य लोगक पहिरब, ओढब, खान, पान, रहन, सहन, सैनिक, संगठन, रथ, हाथी, घोडा, आदि एहेन कोनो अंश धुल्ल नहिं अछि जकर वर्णन ओहि मे नहिं भेटइत छै। अयोध्या सँ मिथिला पहुँचबामे विश्वामित्र कें चारि दिन लागल छलैन्ह परञ्च राजा दशरथ क ओतए जनक जाहि दूत के पठौने छलाह तकरा मात्र तीन दिन लागल छलाह। दशरथ चारि दिन मे अयोध्या सँ मिथिला पहुँचल छलाह। महावीर एवं बुद्ध क समय मे विदेहक सीमा एवं प्रकारे छल –
___ लम्बाई मे कौशिकी सँ गण्डक धरि २४ योजन –
___ चौडाई मे हिमालय सँ गंगा धरि १६ योजन –
___ मिथिला वैशाली ३५ मील उत्तर पश्चिम दिसि छल।
___ जातक क अनुसार विदेह राज्यक सीमा ३००० लीग छल, आर राजधानी
मिथिला क ६ लीग
___ मिथिला जमुद्वीप क एकटा प्रधान नगर छल।
___ सदानीरा नदी बुढी गण्डक क धोतक छल।
___ तीरभुक्ति नाम क संदर्भ मे भृंगादूत मे कहल गेल अछि –
“ गंगा तीरा वधि रधि गता यदभुओ
भृङ्गा भूक्तिनिमा सैब त्रिभुवन तले विश्रुताः तीरभुक्ति
आर शक्ति संगम तंत्र मे –
गण्डकी तीरमारभ्य चम्पारण्यांतकं
शिवे विदेहभूः समाख्याता तीरभुक्ति मिधो संतुः।
’भुक्ति’ शब्द सँ प्रान्त क ओध होइछ आर गुप्त युग मे समस्त मिथिला तीरभुक्ति नाम सँ प्रसिद्ध छल आर आहि सँ समस्त उत्तर विहार क बोध होइत छल। भोगौलिक दृष्टिये मिथिला क निम्नलिखित नाम सेहो महत्वपूर्ण अछि – विदेह, तीरभुक्ति , तपोभूमि,शाम्भवी, सुवर्णकानन, मालिनी, वैजयंती, जनकपुर इत्यादि परञ्च अहि रूप मे विदेह, मिथिला, तीरभुक्ति आर तिरहुत विशेष प्रचलित अछि। चारिम शताब्दी मे तीरभुक्ति नाम प्रसिद्ध भ चुकल छल। त्रिकाण्डशेष, गुप्त अभिलेख आर बारहम शताब्दी क एकटा अभिलेख एवं अन्य अभिलेख सब मे ‘तीरभुक्ति’ क नाम भेटइत अछि।
(iv.) मिथिला भूमि : -
सम्प्रति जे मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सहरसा, पूर्णियाँ, अररिया, बेगुसराय, आदि क्षेत्र अछि सैह प्राचीनकाल मे मिथिला, विदेह, तीरभुक्ति, कहबैत छल और वैशाली एकर अंतर्गत छल। गण्डकी सँ महानंदा आर हिमालय सँ गंगाधारक क्षेत्रक अंतर्गत मिथिला छल। मिथिला क सीमा लगभग २५००० वर्ग मील छल। हिपुए नस्मं जें ‘पूरा भारत’ क वर्णन कैने छथि ताहि मे मिथिलो ल उल्लेख अछि। मिथिला क नाम उत्पत्ति क संबध मे निम्नलिखित श्लोक प्रसिद्ध अछि –
“ निमिः पुवस्तु तत्रैव मिथिनमि महान स्मृतः
प्रथनं भुजबलेयैन त्रैहूतस्य पार्श्वलः।
निर्म्मितं स्वीय नाम्नाच मिथिलापुर मुलम्
पुरीजनन सामध्यति जनकः सच कीर्तितः ॥
(शब्दकल्पद्रूम-iii.७२३)
वृहद विष्णुपुराणक मिथिला महात्म्य खण्ड –
मिथिला नाम नगरी नमास्तं लोक विश्रुता
पंचभिः कारणैः पुण्या विख्याताजगतीत्रये
पाणिनिः- मन्यते शत्रओ यस्यां = मथ+”मिथिलादयश्च”
इति दूलच अकारस्यत्वं निपात्यते स्वनाम
ख्यातनगरी। सातु जनकराज पुरायथा। विदेहा
मिथिलाप्रोक्ता। इति हलायुधः-
मिथिला भूमि क विशेषता ई अछि जे अहिठाम नदी क बाहुल्य क कारणे जमीन उपजाउ अछि आर सब प्रकारक अन्न क खेती एतए होइत अछि। अहिठाम क जनसंख्या क विशेष भाग अहुखन खेती पर निर्भर करैत अछि। प्रतिवर्ष अहिठाम नदी क बाढि अबैत अछि, गाम घर दहा जाइत अछि, लोग वेलल्ला भजाइत अछि तथापि अपन माँटि-पानिक प्रति अहिठाम क लोक के ततेक प्रेम आर आशा तत्त छैक जो ओ एकरा तैयो छोडवा लेल तैयार नहिं अछि आर ओहि माँटि-पानि सँ सटि के रहब अपन जीवन क सार बुझैत अछि। गण्डक, वाग्मती, बलान, लखनदेई, कमला, करेहा, जीवछ, काशी, तिलयुगा, गंगा क मारि मिथिला क लोग जन्म- जन्मांतर सँ सहैत आवि रहल अछि। नदी क बिना मिथिला क भूमि क कल्पने नहिं भ सकइयै। नदी क कारणे तँ मिथिला क नामो तीरभुक्ति पडल छल कहियो। नदी मे सप्तगण्डकी आर सप्तकौशिकी क उल्लेख अछि आर एकर श्रोत नेपाल मे अछि। अवि हुनु नदी कें निमांत्रत करबाक हेतु कौशी आर गंडक योजना बनल अछि आर आन-आन नदी के पालतु बनेबाक प्रयास भ रहल अछि।
मिथिला भूमि क बनावट एकरा कैक अर्थ मे सुरक्षा प्रदान करैत छैक। एक दिसि हिमालय पर्वत छैक तँ तीन दिसि नदी आर तैं अहिठामक लोक किछु विशेष स्वभाव क होइत छथि जकर संकेत विद्यापति क पुरूष परीक्षा मे अछि। नदी क पूजा अहिठाम ओहिना होइछ जेना कोनो देवी देवता क आर सब नदी क पूजा क गीत सेहो उपलब्ध अछि। पावनि तिहार पर नदी मे स्नान करब आवश्यक बुझल जाइत अछि। अक्षय-तृतीया (वैशाख शुक्ल) क दिन नदी मे स्नान करबाक परम धार्मिक मानल गेल अछि। मिथिला क लोग अपन देश, संस्कृति, भाषा आर संस्कार क प्रति बड्ड कट्टर होइत छथि। भौगोलिक दृष्टिये मिथिला क क्षेत्र एकटा राजनैतिक ईकाई क रूप मे प्राचीन कालहिं सँ बनल रहल अछि आर तैं एकर साँस्कृतिक वैशिष्टय अखनो बचल छैक।
v) मिथिला क निवासीः-
जे केओ मिथिला अथवा मैथिल सँस्कृति सँ अपरिचित छथि हुनका ‘मिथिला’ सँ मात्र मैथिल ब्राह्मण क बोध होइत छन्हि परञ्च इ ओध हैव भ्रामक थिक कारण मिथिला एकटा भौगोलिक सीमा क धोतक थिक आर ओहि सीमा क अंतर्गत रहनिहार प्रत्येक ओहि भौगोलिक ईकाई क अंग भेलाह चाहे हुनक जाति, वर्ण, अथवा वर्ग जे हो। मिथिला क रहनिहार प्रत्येक व्यक्ति मैथिल कहौता अहि मे कोनो संदेह नहिं रहबाक चाही। धार्मिक क्षेत्रक प्रधान आर आध्यात्मिक रूपें प्रभुत्व रहला क कारणें ब्राह्मण क प्रधानता रहलैन्ह आर लगातार ७००–८०० वर्ष ब्राह्मण राजवंश क शासन रहबा क कारणें ब्राह्मण क राजनैतिक महत्व सेहो बनल रहल। ई फराक कथा जे सामान्य ब्राह्मण गरीब छथि परञ्च ई बात क सोंच जे ब्राह्मण क राज्य रहला सँ राजनीति मे ब्राह्मण के विशेष प्राधिकार भेटलन्हि आर ओ लोकनि सामंतवादी युग सँ अधावधि सब क्षेत्र मे महत्व केलन्हि। स्मरणीय जे आनवर्ण क तुलना मे मिथिला मे ब्राह्मण क जनसंख्या बहुत कम अछि।
ब्राह्मण क अतिरिक्त मिथिला मे क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र(सब प्रकार), कायस्थ, मुसलमान, ईसाई आदि सब वर्णक लोग रहैत छथि। मिथिला क विशाल क्षेत्र मे सूरी, तेली, कलवार, यादव, राजपूत, वर्ण सँ कम धनी आर शक्तिशाली नहिं छथि। मिथिला मे कतेक वर्नक लोग मध्य युग मे रहैत छलाह तकर विश्लेषण ज्योतिरिश्वर ठाकुर क वर्णरतिकर सँ भेटैछ। मुसलमानो मे सैयद , पाठान, मोमिन, शेख, आदि शाखा सम्प्रदाय क लोग क वास छैन्ह। जमीन्दार मे ब्राह्मण क अतिरिक्त, भूमिहार ब्राह्मण, राजपूत, और यादव लोकनि एक्को पैसा कम नहिं छथि। यत्र-तत्र कायस्थ लोकनि के सेहो जमीन्दारी छलैन्ह मुदा ओ लोकनि आव विशेषतः कलमफरोती मे रहि गेल छथि। मिथिला क्षेत्र मे मुसलमानो जमीन्दार कैकटा छलाह।
बाकि हिसाबे मिथिला मे मूलरूपेण दूटा वर्ग अछि – गरीब क वर्ग आर धनिक क वर्ग। जे केओ धनमान छथि (चाहे जाति कोनो होहि) ओ धनी वर्ग मे छथि – आर गरीब क वर्ग। दुनु वर्ग क बीच संघर्ष चलि रहल अछि। जमीन्दारी उठला क उपरांत ई संघर्ष आर तीव्र भगेल अछि कारण आर्थिक हिसाबें मिथिला तुलनात्मक द्रष्टिये विशेष शोषित आर पीडित अछि। उत्तर भारत क अन्नागारक पदवी सँ विभूषित रहितहुँ मिथिला क सामान्य लोग कें अहुँ खन पावभरि क अन्न आर पाँच हाथ क वस्त्र नहिं भेटैत छैक आर ओ अपन पेट भरवा क लेल चारू कात बौआइत रहैत अछि। मिथिला क निम्नवर्ग क सामाजिक श्रृखंला करीब-करीब टुटि चुकल अछि आर ओ शोषण यंत्र मे नीक जकाँ पीसा रहल अछि। ई स्थिति आव क्रांति क आह्वान जहिया करे।
मिथिला क उत्तरी आर उत्तर-पूर्वी सीमा पर इण्डो-मंगोलाइड जाति क लग से हो बसैत छथि जे घास कहबैत छथि। हुनका लोकनि कें रहन-सहन अहुखन पुराने छन्हि यद्धपि ओ लोकनि परिश्रम करबा मे ककरो सँ कम नहिं छथि। शुद्ध मे शुद्ध आर अशुद्ध(अछूत) दुनु तरहक लोग अवैत छथि। डोम, चमार, दुसाध, मुशहर, हलाल खोर, धानुक, अमाढ, केओट, कुरमी, कहार, कोइरी आदि सेहो पर्याप्त संख्या मे मिथिला मे वसैत छथि। जनसंख्या कहि सवें यादव सब सँ आगाँ छथि, दुसाध, कोइरी, चमार, कुरमी आदि क जनसंख्या जोडि देला सँ तथाकथित पिछडावर्गक जनसंख्या तथाकथित अगुआवर्गक जनसंख्या सँ वेसी अछि। जनगणना क आधार पर निम्नलिखित जातक ज्ञान होइछ –
___ गोप(यादव), ब्राह्मण, राजपूत, दुसाध, कोइरी, चमार, शेख, भूमिहार, कुर्मी, मल्लाह, जोलहा, तेली, कन्दु(कानू), नोनिया, धानुख, मुशहर, तांती, कायस्थ, धोबी, कलवार, केओट, सोनार, कहार, कुँजरा, सुनरी, पठान, हलवाइ, तमौली, इत्यादि – ॥
जगदीश मंडल
उपन्यास:
जीवन संघर्ष :ः 1
कातिकक अन्हरिया पख। रौदियाह समय भेने जेठक रौद जेँका रौद तीख। उम्मस सेहो। दस बजेक उपरान्त बाध-बोन मे रहब कठिन। तेँ सवेर-सकाल सब चलि अबैत, मुदा घरो पर चैन कहाँ। माथ परक पसीना नाक पर होइत टप-टप खसैत आ देहक पसीना स कपड़ा भीजैत। मन औल-बौल करैत। आठमे दिन दिवाली, तहू मे काली-पूजा करैक विचार सेहो सैाँसे गैाँवा मिलि के क लेलक। दुनू अमबसिये दिन। ओना दिवाली एक दिना पावनि होइत मुदा काली पूजा धूम-धाम से मनबैक विचार भेने, पाँचो दिन सब अपना-अपना ऐठाम दीप जरवैक विचार क लेलक। सब अप्पन-अप्पन घर-आंगनक टाट-फड़क स ल’ क’ जते-जते गामक रस्ता-पेरा टूटल अछि ओकरो सरिअवै मे लागि गले। गाम मे पहिल बेरि काली-पूजा सेहो हैत तेँ सब वयस्त। सब मे तजगर उत्साह। अप्पन-अप्पन खेती-बाड़ी छोड़ि सब नीक जेँका ओहि काज मे भीड़ल। ओना खेत मे हालोक कमी किऐक त अधा भादो मे जे एकटा मझोलका अछार भेल तइ दिन से एक्को बुन बरखा नई भेल, खेत मे दरारि फाटि गेल। उपरका खेतक धान मरहन्ना भ’ गेल। केकरो-केकरो गरमा धान जे अगता रोपने छल, ओकर कम दिनक धान रहने सोलहन्नी, मुदा जे वेसी दिनक गरमा धान अछि ओ अधा-छिधा। पूजाक पैघ आयोजन तेँ विषेष वयवस्थाक जरुरत। मुदा लोकक उत्साहे तते जे कोढ़िला बोझ जेँका काज के बुझैत। अनठौला से हल्लुको काज भारी भ जाइ छै, मुदा उत्साहित भ केला से भारिओ काज हल्लुके बनि जाइ छै।
आइ तक अइ गाम मे(बँसपुरा मे) ने कहियो कोनो यज्ञ-जाप भेल आ ने कोनो पूजा-पाठ। तेँ इलाकाक लोक वँसपुराके पपीयाहा गाम बुझैत। ओना गोटे-गोटे साल, महावीर जी स्थान मे, अष्टयाम कीर्तन भ’ जायत। ओहो नियमित नहि। जइ साल उपजा-बाड़ी नीक होइत ओइ साल उत्साहित भ’ सब कीर्तन क लैत, मुदा जइ साल रौदी वा दाही भ जाइत तइ साल अष्टयामो या त रौदिया जाइत वा दहा जाइत। बेकता-बेकती कहियो काल भनडारा सेहो क लइत। अइ बेर काली पूजा करैक विचार सैाँसे गामक लोक मिलि क’ केलक। मेलो धुमधाम से हैत। पाँच दिनक मेला। नाच-तमाषा स ल’ क’ दोकान-दौरीक नीक व्यवस्था हैत। गाम मे काली-पूजा हैत, तेँ लोक मे विषेष जिज्ञसो आ उत्साहो। भिनसर से खाइ-पीवै राति धड़ि सब यैह चर्चा करैत। काली-पूजाक प्रति लोकक मन एते उड़ि गेल जे सब अप्पन-अप्पन काज-राज छोड़ि, अही पाछू बेहाल। मालो-जालक आ खेतो-पथारक भार स्त्रीगणे पर पड़ि गेल। मुदा ओहो सब खुषी। किअए खुषी? खुषी अइ दुआरे जे हम्मर घरबला धरमक काज मे लागल छथि, जे हमरो हैत। ओना दिवाली, एक दिना पावनि अदौ स होइत आयल, भलेही दिवालीक प्रात गोधन पूजा, दोसर दिन भरदुतिया-चित्रगुप्त पूजा होइत, मुदा एक-दोसर स अलग-अलग होइत। दषमी(दुर्गापूजा) जेँका नहि जे सप्तमी क’ भगवती केँ आखि(डिम्भा) पड़िते मेला शुरु भेल आ नेने-नेेने एक्के बेर जतरा दिन उसरल। मुदा अइबेर बँसपुराक दिवाली के काली-पूजा रंग चढ़ा देलक। किऐक त सब अपना मे विचार क लेलक जे जाबे तक काली पूजाक मेला चलत ताबे तक सब अप्पन-अप्पन घर-आंगन, दुआर-दरवज्जा स ल क’ पोखरिक घाट, इनार चापाकल, माल-जालक खूँटा पर सेहो दीप जरौत।
गाम मे काली पूजा किअए हैत? तेकर कारण भेल। कारण इ भेल जे बँसपुरा से सटले(डेढ़ कोस पर) सिसौनी मे पच्चीसो बर्ख से दुर्गा-पूजा होइत अबैत अछि। चरिकोसीक लोक(मरद-मौगी) दुर्गा-पूजा देखै सिसौनी अबैत। अप्पन-अप्पन कबुला-पाती सेहो चढ़वैत आ मेलो देखैत। साँझो दैत। बलि प्रदान सेहो करैत। बलि-प्रदान मे सिसौनीक दुर्गा नामी। किऐक त एते बलि प्रदान कतौ ने होइत। किलो भरि-भरि छागरक दाम पँच-पँच सौ भ जाइत। अइ बेरक पूजा मे एकटा घटना घटल। घटना इ जे बँसपुराक एकटा अठारह-बीस बर्खक लड़की के, पूजा कमिटीक तीन गोटे, बलजोरी पकड़ी क’ भंडार घर ल जा भरि राति रखि लेलक। राति मे ते कियो ने बुझलक, मुदा भिनसर मे जखन ओइ लड़की के छोड़लकै आ लड़की कनैत-कनैत गाम पहुँचि सब के कहलकै तखन जना सबहक(जे सुनै) देह मे आगि लगैत गेलै। लड़कीक माए बताहि जेँका जोर-जोर से सरापबो करै, गारियो पढ़ै आ घर से फरुसा(फौरसा) निकालि सोझे सिसौनी दिसक रस्तो पकड़लै। साड़ीक अँचरा क’ उलटा पीठि पर बान्हि, जना सन मे सिपाही जाइत, तहिना विदा भेलि। लड़कीक बापो तहिना मुरेठा बान्हि हरोथिया लाठी ल अनधुन गरिअबैत, स्त्रीक पाछु-पाछु विदा भेल। मुदा समाजक मरदो आ जनिजातियो दुनू केँ पकड़ि क’ रोकलक। जेना-जेना समाचार पसरैत तेना-तेना गाम दलमलित हुअए लगल। रंग-बिरंगक गप-सप, गाम मे चलै लगलै। कियो बजैत जे चलै चलू सिसौनी मे आगि लगा सैाँसे गाम क’ जरा देब। त कियो बजैत जे सैाँसे गाम के लुटि सबहक बहू-बेटी क’ पकड़ि घिसिया क ल आनब। कियो कहैत जे ओइ सार(कमिटीक सदस्य) के खून क देब। मुदा इ सब विचार खुदरा-खुदरी छल, सामूहिक नहि। गामक बुद्धियार लोक सब सबके शान्ति करै मे लगल। एक्के-दुइये, गामक सब(मरद-मौगी) सड़क पर आबि थहा-थही करै लगल। मेला जेँका लोक सड़क पर भ’ गेल। ककरो-ककरो हाथ मे लाठी त ककरो-2 हाथमे भाला त ककरो-2 हाथ मे तीर-धनुष सेहो। गाम मे सबसे अधिक उमेरक मखन बाबा। नब्बे बर्ख से उपरे उमेर। हाथ मे फराठी नेने, देह थरथराइत, टुघरल-टुघरल आबि आखि उठा के देखलनि ते बुझि पड़लनि जे आइ दुनू गामक बीच मारि हेबे करत। केमहर से के मरत, तकर ठेकान नहि। मन पड़लनि, जे एहिना एक बेरि जूरषीतल मे एकटा नढ़िया खातिर बेला आ मैनहीक बीच मारि भेल, जइ मे तीनि टा खूनो भेल आ कते गोरे के जे जाँघ टुटलै, से जिनगी भरि ठाढ़ नै भेल। हो न हो कहीं आइयो ओहिना ने हुअए। फेरि मन मे भेलनि जे सबके मनाही क’ दियै। मुदा फेरि भेलनि जे हम्मर बात मानत के। विचित्र गुन-धून मे मखन बावा। थोड़े आगू बढ़ि मखन बाबा देखलनि जे जेस्त्रीगण आ मरदो धाक करै अए ओहो सब सोझे मे निधोक अन्ट-सन्ट बाजि रहल अछि। लाज-धाकक कोनो बिचारे नै। मन मे एलनि जे जहिना आगि मे जरैत लकड़ी पर पाइन देला से आगि त मिझा जाइत मुदा आगिक ताव(गरमी) त रहवे करैत। तहिना त लोकोक बीच हैत। गुन-धुन करैत मखन बाबा फराठी बले बीच रास्ता पर ठाढ़ भ, ने आगू बढ़ैत ने पाछु होइत। अपन दायित्व बुझि आ(मखन बावा) एक हाथ से फराठी पकड़ने आ दोसर हाथ उठा, सबके शान्त रहै ले कहथिन। मुदा हुनकर अवाजो आ हाथक इषारो भीड़ मे हरा जाइत। सब अपने सूरे। थोड़े आगू बढ़ि मखन बाबा पाछु घुरि तकलनि ते देखलखिन जे एते काल चेतने लोक सब के देखै छेलियै, आब ते जेरक-जेर धियो-पूतो सब आवि रहल अए। गामक जते कुत्ता अछि सेहो सब नाङरि डोला-डोला भुकै अए। एक त देहक अब्बल दोसर मन मे चिन्ता, बीचे रस्ता पर फराठी रखि मखन बावा वैसि, दुनू हाथ माथ पर ल सोचै लगलथि। मन एलनि जे घटना भेल अछि ओ त इज्जत स जुड़ल अछि। तेँ जँ लोक जान द बँचवै चाहै अए ते नीके करै अए। मुदा गामक भीतर त ऐहेन-ऐहेन किरदानी सब दिन होइ अए। तखन कहाँ कोइ किछु बजै अए। तइ काल मे छौँड़ा-छौउड़ीक खेल भ जाइ अए। इ बात मन मे अबिते मखन बावाक मुह स हँसी निकलल। हँसैत मखनबावा सोचलनि जे एक्के तरहक काज ले सैाँसे गामक लोक मारै-मरै पर तैयार अछि आ दोसर ठाम छउरा-छउरीक खेल बना दैत अछि। अजीव अछि लोकोक बुद्धि आ विचार। जँ एकरा इज्जति बुझै छै ते इज्जत बना राखह, नै जे खेल बुझै अए ते खेल बुझह। मुस्की दैत ओ सबसे आगू जा रास्ता पर पइर रहलाह। पड़ल-पड़ल कहै लगलखिन- ‘‘अगर तू सब अइ से(अपना के चेन्ह बना) आगू बढ़बह ते हम एतै परान गमा देब। नै ते अखैन शान्त हुअअ बाद मे रस्ता से जबाव देवइ।’’
मखन बाबाक बात सब मानि गेल। सब शान्त भ गेल। स्त्रीगण सब घर दिसक रास्ता धेलक। धीरे-धीरे लोको पतड़ाए लगल। बाकी जे लोक रहल ओ हुनका(मखन बाबा) लग जा पूछलकनि- ‘‘बाबा, कोना जबाव देबइ?’’
उत्साहित भ मखन बाबा कहलखिन- ‘‘अखन ते नहाइ-खाइ बेर भेल जाइ अए, तेँ अखन नहि। चारि बजेे मे सब कियो एक ठाम बैइसू। जे करैक हैत से सब विचारि के क लेब।’’
सैह भेल।
चारि बजे सब ब्रह्मस्थान मे बैसल। सबहक विचार एक दिषाहे। दू पार्टी(पक्ष-विपक्ष) रहला से बैसारक रुप अलग होइत, मुदा से त नहि अछि। अप्पन-अप्पन विचार के सब जोर-जोर से बाजि-बाजि रखै चाहैत। जइ से ककरो कियो बाते ने सुनैत। सब अपने सुरे अपन बात रखै मे बेहाल। बजैत-बजैत जब सबहक पेटक बात सबटा निकलि गेलै तब अपने सब चुप भ गेल। चुप भ सब सबहक मुह देखै लगल। होइत-हबाइत सब मखन बाबा केँ कहलक- ‘‘बाबा, अहाँ जे निर्णय करब, हम सब मानि लेब।’’
सबहक विचार सुनि मखन बावाक मन मे संतोष भेल। ओ अपन विचार दइ ले ठाढ़ भेला। मुदा बुढ़ापाक चलैत दुनू जाँघ थरथर कपैत। थरथराइत जाँघ देखि सब कहलकनि- ‘‘बैसिये के कहिऔ बाबा।’’
मुदा बैसि के कहला से सब सुनत की नहि, इ बात मन मे होइन। ठाढ़े-ठाढ़ अप्पन दुनू जाँघ के असथिर करैत मखन बावा कहै लगलखिन- ‘‘दू गामक झंझट असान नै होइत। दू गोटेक बीचक झंझट नइ छी। जहिना तू सब कहै छहक तहिना ते ओहू गामक लोक सब कहतै। अखन ते एक्के गोरेक संग घटना घटल अछि मुदा झंझट बढ़ौला से ऐहेन-ऐहेन कते घटना घटत। मारि करै जेबहक ते तोँहू मारबहक तोरो मारतह। तोँहू कपार फोड़बहक तोरो फोड़तह। हाथ-पाएर तोँहू तोड़बहक तोरो तोड़तह। अखन ने बुझि पड़ै छअ जे सोलहन्नी हमही सब मारबै आ ओ सब माइर खायत। मुदा माइर मे से थोड़े होइ छै। दुनू दिसक लोक मारबो करै छै आ माइरियो खाइ अए।’’
मखन बाबाक विचार सुनि सब मूड़ी डोला-डोला सोचै लगल। सब सब दिस तकैत। सबहक मन मे बिचारक गंभीरता अवै लगलै। मुदा तइओ मन मे सोलहन्नी क्रोध नै मेटेलै। मुदा मनक विचार मे गजपट हुअए लगलै। कखनो शान्तीक रास्ता मन मे जोर पकड़ै ते लगले मारि-दंगाक विचार। लगले मन मे खुषी अबै ते लगले तामस उठै। सबहक मुहक रुखि देखि मखन बावा आगू कहै लगलखिन- ‘‘गामे मे की देखै छहक? जे कने हुबगर अछि ओ गरीब-गुरबाक संग केहेन बेवहार करै अए। तहिना गामोक होइ छै। अप्पन गाम(वँसपुरा) भीतर मे फोंक अछि। देखते छहक जे सब अपन-अपन नून-रोटी मे भरि दिन लगल रहै अए। ने अपना पेट से छुट्टी होइ छै आने अनकर आ कि समाजक कोनो चिन्ता रहै छै। तेही ले बेइमानी-सयतानी सेहो करै अए। सब मिलि के कोनो समाजिक काज करी, इ विचार ककरो मे मन छइहे नहि। ओना सिसौनीयो मे बेसी नहिये छै मुदा अपना गाम से थोड़े बेसी जरुर छै। किऐक त सब मिलि दुर्गा पूजा क लइ अए। जइ से साल-भरिक जे रुसा-फुल्ली रहै छै, ओ कमि जाइ छै। तेँ समाज के आगू बढ़ैक लेल दसनामा(सर्वजनिक) काज जरुरी अछि। जाबे तक लोकक मन मे दसनामा काजक प्रति सिनेह नइ आओत(औत) ताबे तक समाज आगू मुहे कोना ससरत? अइ नजरि से देखला पर बुझि पड़तह जे अपना गाम(बँसपुरा) से सिसौनी थोड़े अगुआइल अछि। सिसौनियो से अगुआइल अछि बरहरबा। किऐक त ओइ गाम(बरहरबा) मे दुर्गो-पूजा होइ छै आ पढ़ै-लिखै ले हाइयो स्कूल तक छै। बरहरबो से अगुआइल कटहरवा अछि। ऐखते छहक जे कटहरबा मे हाइयो स्कूल छै, अस्पतालो छै आ साल मे एक बेरि सब मिलि के चारि दिनक मेला सेहो काली-पूजा मे लगा लइ अए। यैह सब काज गामके आगू बढ़ैक रास्ता छी। जइ गाम मे जते बेसी दसनामा काज हैत ओइ गामक लोक मे ओते बेसी प्रेम बढ़त जखने लोकक बीच प्रेम बढ़त तखने छोट-छीन बात ले झगड़ा-झंझट कमत। झगड़ा-झंझट की होइछै? देखबे करै छहक जे सदिखन एक-दोसर मे गारि-गरौबलि, मारि-मरौबलि होइते रहैछै। जखने लोक झूठ-फूस मे ओझराइये तखने ओकर घरक काज(खेती-बाड़ी, माल-जालक सेवा) मारल जाइ छै। जखने आमदनीक काज मरल जेतइ तखने चारु कात से अभाव दौड़ल औतै। अभाव तेना भ क’ पकैड़ लेतै जे ओ बेवस भ जायत। जखने बेवस हैत तखने दुनिया मे अन्हार छोड़ि इजोत देखबे ने करत। तेँ जरुरी अछि जे लोकक मन दसनामा काज दिस बढ़ै। जइ गाम मे जते दसनामा काज हैत ओ गाम ओते तेजी से आगू बढ़त।’’
मखन बाबा बजिते छल कि सब अपना मे कन-फुसकी करै लगल। कन-फुसकी एते हुअए लगलै जे सबहक धियान मखन बाबाक विचार स हटि अपना दिस भ गेल। लोकक धियान हटैत देखि मखन बाबा ठाढ़े-ठाढ़ सोचै लगल जे भरिसक सबहक मन मे कोनो नव विचार उपकलै। बैसले-बैसल जोगिनदर जोर से बजै लगल- ‘‘दुर्गा-पूजा ते आब परुका(पौरकाँ) साल हैत, मुदा काली-पूजा त लगिचाइल अछि। तेँ हम सब आइये संकल्प ली जे हमहू सब काली-पूजा गाम मे करब।’’
जोगिनदरक बात सुनि सब कसि क’ थोंपड़ी बजा समर्थन देलक। अही प्रतिक्रियाक फल थिक गाम मे काली पूजा। ओना रौदीक चलैत गामक किसान आ बोनिहारक दषा दयनीय, मुदा सिसौनीक घटना लोकक उत्साह केँ एते ने बढ़ा देलक जे बोनिहारो सब एकावन-एकावन रुपैया चंदा अपने-अपने मुहे गछै लगल। बोनिहारक चंदा किसान के मुसकिल मे द देलक। मुदा एक त समाजक संग चलैक सवाल दोसर आइ धरिक परिवारक प्रतिष्ठा केँ बँचबैक, तेसर नव काज गाम मे भ रहल अछि, तइ मे पाछू हटब, उचित नहि। एक्के-दुइये किसानो सब उत्साहित भ गेल। एक स्वर से सब समर्थन द देलक। सबकेँ उत्साहित देखि प्रेमलाल ठाढ़ भ बजै लगल- ‘‘भाइ लोकनि, अपना गामक बहू-बेटी आन गामक मेला मे जा बेइज्जत होइ अए। एकर की करण छै? एक कारण अछि जे अपना गाम मे कोनो तेहेन काजे ने होइ अए। जखने अपनो गाम मे तेेहेन काज हुुअए लगत ते अनेरे ओहू सब गामबला के दहसति हेतइ जे जँ हमसब ओइ गाम(बँसपुरा) वला के किछु करबै ते ओहो सब ओहिना करत। जखने बराबरीक बिचार मन मे औते तखने चालि-ढालि बदलतै। जखने चालि ढालि बदलतै तखने सब बराबरीक रास्ता धरत। जँ से नइ करत ते हमहूँ सब ओहिना करबै जना ओ सब करत।’’ कहि प्रेमलाल बैसि रहल।
प्रेमलाल के बैसिते फेरि सब कन-फुस्की शुरु केलक। कनफुसकी एते हुअए लगलै जे सौजनिया भोज जेँका हल्ला बुझि पड़ै। कनफुसकी देखि छीतनलाल उठि क’ ठाढ़ भ खिसिया के बजै लगल- ‘‘देखू, गल्ल-गुल्ल केने किछु ने हैत। सिसौनीवला सबके एते गरमी किएअ चढ़ल रहै छै से बुझै छियै? ओ सब दस हजार रुपैआ खर्च क क’ दुर्गा-पूजा क लइ अए, तेँ। ओकरा सब के बुझि पड़ै छै जे अइ परोपट्टा मे हमही सब टा पुरुख छी। हमरे सब टा के रुपैआ अछि आ आन-आन गाम वला मौगी छी, ओकरा सव के रुपैआ छइहे नै। तेँ पुरुख बनि ओकरा सबके जबाव दिअए पड़त। ओ सब दस हजार रुपैया दुर्गा-पूजा मे करै अए हम सब पचास हजार रुपैया खर्च क क’ काली-पूजा करब। जँ सवैया-डयोढ़ा काज करब ते ओ सब मद्दिये ने देत। किऐक ते पच्चीस बर्ख से ओकर मुह अगुआइल छै। एक बेरि समधानि के दबैक काज अछि। तेँ तेना के दाबैक कोषिष करु जे ओ सब बुझत हमरो दादा कियो अछि। एक बेरि हरदा बजबैक अछि। तेँ, भने अखन सब बैसिले छी, अखने पूजा कमिटी बना लिअ। पूजा कमिटी मे सब टोल आ सब जाइतिक सदस्य बना लिअ। जँ सब टोल आ सब जाइतिक सदस्य नइ बनाएव ते अनेरे लोकक मन मे अनोन-विसनोन हुअए लगतै। ततबे नइ, सब जाइतिक सदस्य भेने काजो मे असान हैत किऐक त सब तरहक काज करैक लेल अनुभवी लोक भेटि जायत।’’
छीतन लालक कारगर विचार के सब एक मुहरी समर्थन देलक। कमिटी बनै लगल। सब टोल आ सब जाति मिला क एक्केस गोटेक कमिटी बनि गेल। एक्कैसो सदस्य बैसार मे। सब नौजवान। एक्के बेरि सब अपना-अपना जगह पर ठाढ़ भेल। सैाँसे गामक सब आखि उठा-उठा के बेरा-बेरी एक्कैसो के देखलक। एक्कैसोक मन मे खुषी जे हमसब परिवार स आगू बढ़ि समाज मे एलौ। तेँ सब मुस्कुराइत। एक्कैसो गोटे एक दिषि बैसल आ शेष समाजक दोसर दिस। किऐक त कमिटीक लेल अध्यक्ष, उपाध्यक्ष आ कोषाध्यक्षक जरुरत होइत। अध्यक्ष के बने? अइ सवाल पर सब सबहक मुह देखै लगल। किऐक त गाम मे पहिले-पहिल कमिटियो बनि रहल अछि आ तेकर अध्यक्षो बनत। तेँ जहिना अध्यक्ष बनैक इच्छा सबहक मन मे, तहिना अनभुआर काज बुझि डरो। गुनधुन करैत रघुनाथ अप्पन पितिऔत भाइ, देवनाथक नामक प्रस्ताव अध्यक्षक लेल केलक। देवनाथक परिवार गाम मे सबसे अगुआइल। अगुआयल अइ माने मे जे जाइतियो पैघ आ धनो बेसी। दोसर गोरेक नामक प्रस्ताव नइ देखि मंगल उठि क’ ठाढ़ भ अप्पन नाम अध्यक्षक लेल रखलक। जखने दू गोरेक नाम एलै कि बैसार मे गुनगुनी शुरु भेल। जाइतिक मामला मे मंगल पछुआइल।
देवनाथ आ मंगल, गामक स्कूल स ल क’ काओलेज संगे-संग पढ़ने। ओना पढ़ै मे मंगल तेज मुदा रिजल्ट देवनाथक नीक होय, किऐक त देवनाथ धुड़फन्दा। जना-जना दौड़-बरहा क क’ नीक रिजल्ट आनि लिअए। मंगलक नाम सुनि दुनू भाइ-देवनाथ आ रघुनाथ आखिक इषारा से गप-सप करै लगल। कनिये कालक बाद रघुनाथ, मंगल के पलौसी दैत कहलक- ‘‘भैया, हमरा लिये जेहने अहाँ तेहने देवनाथ भैया। अहूँ दुनू गोरे संगिये छी। संगे-संग पढ़नौ छी। तेँ हम कहब जे देवनाथ भैया के अध्यक्ष आ अहाँ उपाध्यक्ष बनि पूजा-कमिटी चलाउ।’’
मंगलक मन मे सिर्फ कमिटिये चलवैक बात टा नहि, समाज के आगू मुहे बढ़वैक विचार सेहो। बच्चे से देवनाथक चरित्र के मंगल देखने। मुदा समाज त पोखरिक पाइनिक सदृष्य होइत। जहिना पोखरि मे गोला फेकला से पाइन मे हिलकोर उठैत मुदा रसे-रसे असथिर होइत, पुनः पहिलुके रुप मे चलि अबैत। जे बात मंगल जनैत। मंगलक मन मे एकटा आरो बात घुरिआइत। ओ बात इ जे एक दिन(करीब तीनि साल पहिने) एकटा गामेक लड़की संग देवनाथ दुरबेवहार करैत रहए। ओहि समय मंगल हाट स अबैत छल। ओ लड़की मंगल के देखि कानि-कानि देवनाथक संबंध मे कहलकै। मंगलक तामस बेकावू भ गेलै। देवनाथ के बिना किछु पुछनहि चारि-पाँच थापर गाल मे लगा देलक। थापर लगौलाक उपरान्त तामसो कमलै। डर से देवनाथ थर-थर कपैत। ओना मंगलो थरथराइत। मुदा तामसे। मंगल देवनाथ के कहलकै- ‘‘बच्चा से अखन धरिक संगी छेँ छोड़ि दइ छियौ, नइ ते समाजक बेटी संग अतियाचार केनाइ केहेन होइ छै, से सिखा दैतियौ।’’
दुनू हाथ जोड़ने देवनाथ आगू मे ठाढ़। जिनगी भरि(अखन धरिक जिनगी) जे देवनाथ हँसी-मजाक से ल क’ सब रंगक बात मंगलक संग करैत आइल छल, ओइ देबनाथ के आइ मुह स बकार नै निकलि रहल छै। जहिना बोली थरथराइत तहिना करेज। जेना कोनो अपराधी न्यायालय मे न्यायाधीषक आगू अपना के बुझैत तहिना मंगलक आगू मे देवनाथ। आखि से नोर बहबैत देवनाथ दुनू हाथ जोड़नहि बाजल- ‘‘भैया, हम जे केलौ से पौलौ। संगी होइक नाते एकटा बात कहै छिअह जे अइ घटना के तीनि आदमी छोड़ि चारिम नै बुझै।’’
हँसैत मंगल कहलकै- ‘‘आइ कान पकड़ि ले जे ऐहेन काज समाजक बहीनि-बेटीक संग जिनगी मे कहियो ने करब। समाजक ककरो बहीनि वा बेटी समाजक होइ छै। जाबे तक ओकर विआह-दुरागमन नै भेल रहै छै ताबे तक ओ माए-बापक ऐठाम रहि समाजक बीच रहै अए, तकर बाद त ओ सदा-सदाक लेल समाज छोड़ि दोसर समाज मे मिलि जाइ अए।’’
यैह बात मंगलक मन मे घुरिआइत।
रघुनाथक बात के जबाब दैत मंगल कहै लगलै- ‘‘बौआ रघु दसनामा काजक(सार्वजनिक काजक) शुरुआत गाम मे भ रहल अछि। मुदा समाज त टुकड़ी-टुकड़ी भ छिड़िआयल अछि। तेँ सबसे पहिने ओइ टुकड़ी सब केँ बीछि-बीछि समेटए पड़त। जँ से नै हैत त स्वस्थ समाजक निरमान(निर्माण) कन्ना हैत। अखन धड़िक जे समाजक ढाँचा रहल ओ बेढ़ंग अछि। ओहि बेढ़ंग के ढंगर बनबैक अछि। जाबे तक से नै हैत ताबे तक वेइमान, शैतान, गुण्डा, बदमाष समाज पर हावी रहत। जाबे धरि ओ तत्व हावी रहत ताबे तक समाजक असली करता लुटाइत रहत। कमाइत कोइ आ खाइत कोइ। जे होइ अए। तेँ दसनामा काज मे समाजक बच्चा-बच्चा के बराबरीक हिस्सा हेवाक चाहियै। मुइल-टूटल कियो किअए ने हुअए मुदा ओकरा मन से इ बात निकलि जेबाक चाही जे इ काज(दसनामा) हम्मर नै फलनाक छियै। हम मात्र करैवला छी, करबैवला नहि। इ बात सत्य जे हमरा सबहक बाप-दादा हर जोतैत आयल जे हमहू सब करै छी। तहिना कियो मोटा उठबैत आयल, त कियो अप्पन श्रम के दोसराक हाथे बेचैत आयल। कियो पालकी उठबैत आयल ते कियो ढोल-पीपही बजवैत, नीच-स नीच काज हमरा सबहक बाप-दादा से समाजक किछु गोटे करवैत आयल, अखनो करबै अए। की हमरा शरीर मे ओ शक्ति नै अए जे ओकरा बदलि सकब। आजुक समयक इ मांग भ गेल अछि। तेँ नजरि स काज के आगू बढ़ौल जाय। अखन गामक सब बैसल छी तेँ आइये अइ बातक निरनय(निर्णय) भ जेवाक चाही। हम नइ चाहै छी गाम मे दसनामा काज नइ हुअए। मुदा जना आन-आन गाम मे देखै छी तना नै हुअए देब। जँ से हैत ते हमहू सब फुट भ दोसर जगह(ठाम) पूजा करब।’’
मंगलक बात सुनि सब चुपचुप भ मने-मन सोचै लगल। सबहक मन मे सब बात अँटबो ने करै। किऐक त अखन धरि जइ काजक अभ्यस्त भ गेल अछि आ आखिक सोझहा मे आन-आन गाम मे देखै अए, वैह बात मन मे नचैत। मुदा मंगलक विचार नव मनुक्ख, नव समाजक लेल अछि।
सबकेँ चुप देखि मंगल दोहरा क’ बाजल- ‘‘जहिना नव घर बनवै ले पुरान घर के उजाड़ै पड़ै छै। जँ से नै उजाड़त ते नवका घरक नीब(वुनियाद) कोना देत। अगर पुरने घरके नव ढंग से बनवै चाहत ते ओ नव घर नहि, पुरना घरक मरम्मत हैत। सब कियो देखै छियै जे जते-कतौ दुर्गा-पूजा वा काली पूजा होइ अए, ओइ ठाम मुरती कुम्हार बनवै अए। जे माइटिक काज छियै। मुरती बनबैक लेल चाल बढ़ही बनवै अए। घर गरीब-गुरबा बनवै अए। मुदा सब काज भेला ओ पूजाक हकदार कोन बात जे स्थानक भीतरो जेवाक अधिकारी नइ रहै अए। इ विषमता अखन धरि समाज मे अछि। तेँ हम ताबे तक विरोध करैत रहब जाबे तक इ विषमता मेटा जायत। हमर अध्यक्ष बनैक लिलसा नइ अछि, मुदा विषम के सम बनवैक जरुर अछि। तेँ हम कहब जे जते गोटे जते टोल आ जाइतिक छी ओ सब अपना-अपना मे विचार क निर्णय करु।’’
मंगलक बात सुनि सबहक मन मे द्वन्द्व उत्पन्न हुअए लगल। किऐक त समाजक अधिकांष लोक परजीवी बनि गेल अछि। परजीवी अइ माने मे जे कियो दोसराक कमाइ लुटि वा ठकि के जीवैत अछि। ते कियो दोसराक बले(जना कोट-कचहरीक पैरवी, थाना-बहाना, खरीद-विक्री, डाॅक्टर-वैद्य। ...?) जीवैत अछि। तेँ एक-दोसर स टूटै नहि चाहैत अछि। जे समाजक विषमताक जड़ि छी। पैइच-उधार, लेन-देन, एकर मुख्य अंग छियै। बड़ी काल धरि बैसार मे गुन-गुन, फुस-फुस होइत रहल। परोछ मे त उचित बात बजनिहारक कमी नहि मुदा सोझा-सोझी कियो नहि। एकरो दू कारण छैक। पहिल बुधियार लोक अनका कन्हा पर बन्दूक रखि चलबै चाहैत आ बूड़िबक डरे नै बजैत।
गुन-गुन, फुस-फुस होइत देखि मंगल बुझि गेल। मन पड़लै बुद्धदेवक ओ बात- जे बीणाक तार के ओते नै कड़ा कड़ी जे टुटि जाय आ ने ओते ढील राखी जे अवाजे ने निकलै। तेँ किछु इम्हरो आ कुछ ओम्हरो से(अर्थात् मध्य स) ल क’ डेग उठेबाक चाही। उठि क’ ठाढ़ भ बाजल- ‘‘हम अप्पन नाम वापस लइ छी। देवनाथे अध्यक्ष हेता। मुदा आइ स ल क’ जावे धरि पूजाक प्रकरण समाप्त नहि भ जायत ताबे तक सब काजक निर्णय कमिटीक बीच हैत। जँ कियो अपना विचारे बलधकेल कोनो काज क समाजक नोकसान करत त ओकर फैसला समाजक बीच हैत।’’
कहि मंगल बैसि गेल। मंगल क’ बैसिते देवनाथ उठि क’ ठाढ़ भ बजै लगल- ‘‘जिनगी मे पहिले-पहील दिन समाजक काज(सार्वजनिक) करैक मौका भेटल, तेँ मन मे बहुत खुषी अछि। मुदा हमहू त अनाड़िये छी, तेँ भुलचुक हेबे करत। हम चाहब जे पूजा-प्रकरणक जे मुख्य-मुख्य कार्य अछि ओ समाजेक बीच तय-तसफिया भ जाय। जहि स समाजक नजरि मे सब बात रहत।’’
बहुत बढ़िया! बहुत बढ़िया बात देवनाथ कहलक। आइये(अखने) पूजाक मुख्य-मुख्य काजक निर्णय हम सब मिलि के क ली। तर्क-वितर्क हुअए लगल। तर्क-वितर्क होइत-होइत निर्णय भेल-
1. गामेक कारीगर(कुम्हार) मुरती बनवे। ओना एक पर एक कारीगर बाहर अछि, मुदा पूजा-आराधना मे कारीगरी(कला) नइ देखल जाइ छै। देखल जाइ छै ओहि देवी-देवताक स्वरुप। दोसर बात जे जँ हम अप्पन बनौल वस्तु के अपने अधला मानव, ते हम आगू कोना बढ़व? तेँ गामक जे कला अछि ओ ऐहेन-ऐहेन अवसर पर आगू बढ़ैत अछि।
2. काली मंदिर,(मंडप) गामेक घरहटिया बनवे। जेकरा घर बनवैक लूरि रहतै ओ मंडप किएक ने बनौत। संगे इहो हैत जे अधिक से अधिक गामक लोकक भागीदारी हेतैक।
3. पूजाक लेल, परम्परा स अवैक पुरोहितक संग ओहू आदमी के अवसर भेटै जे पूजा स सिनेह रखै अए। चाहे ओ कोनो जाइतिक किअए ने हुअए। समाज समाजक निरमते नहि नियामक सेहो होइत अछि।
4. मनोरंजनक लेल, गामक कलाकार के सेहो अवसर देल जाय। संगे वाहरक ओहन-ओहन तमाषा आनल जाय, जेहेन अइ इलाका मे नइ आयल अछि। इ बात सत्य जे पैघ कलाकारक कला अधिक लोक देखबो करैत आ प्रसंसो(परसनसो) करैत, मुदा पैघियो कलाकार मे इ गुण होइत जे छोटो कलाकारक कला देखि आगू बढ़बैक कोषिष करैत। तेँ दुनू-गामोक आ बाहरोक कलाकार केँ अप्पन-अप्पन कला देखवैक अवसर भेटए।’’
5. पूजा समितिक सदस्य आ अतिरिक्त काजकेनिहार से बेहरी नै लेल जाय किऐक त ओकर समय लागि चुकल रहै छै।
6. जइ परिवार से बेहरी लेब, अगर जँ ओहि परिवारक कियो दोकान-दौरी करत, ते ओकरा से बट्टी नइ लेल जाय।
7. गामक जते गोटे काज करत, ओइ मे नीक-नीक काज केनिहार केँ पुरस्कृत कयल जाय। संगे अधला केनिहार के आगू करैक मौका नइ देल जाय।
सैाँसे गामक लोकक बीच सातो निर्णय भ गेल। सातो निर्णय के अध्यक्ष पढ़ि के सबके सुना देलक। बैसार उसरि गेल।
खा-पी के मंगल बिछान बिछबैत राइतिक साढ़े एगारह बजैत। मंगल से भेटि करै ले जोगिनदर आयल। सतरंजी बिछा मंगल दुनू हाथ से जाजीम के पकड़ि झाड़लक। झाड़ैक अवाज कनी जोर से भेलै। अवाज सुनि जोगिनदर दलानक दावा लग डरे बैसि रहल। मन मे भेलै जे कतौ थ्री-नट्टा चललै हेँ। कान ठाढ़ क अकानै लगल। मुदा ने गल-गुल सुनै आ ने ककरो देखलक। मन असथिर भेलै, तखन उठि क’ ठाढ़ भेल। ठाढ़ भ मंगल के सोर पाड़लक। कोठरिये से मंगल अबाज दैत बहरायल। बाहर आबि ओसारक चैकी लग आबि जोगिनदर के कहलक- ‘‘आबह! आबह! भाइ, निच्चा मे किअए ठाढ़ छह? दुनू गोरे चैकी पर बैसि गप-सप करै लगल। जोगिनदर मंगल के कहलकै- ‘‘भाइ, आइ तक तोरा, ऐना भ क’ नै चिन्हने छेलियह। मुदा तोहर औझुका विचार देखि, बारह हाथक छाती भ गेल। भाँई मे क्यो दादा हुअए।’’
जोगिनदरक बात सुनि मंगल बाजल- ‘‘भाइ, राइत बहुत भ गेल। भोरे उठैक अछि। एते राइत मे किअए ऐलह, से कहअ?’’
‘‘एती राइत मे अबैक खास कारण अछि। तेँ निचेन बुझि एलौ। तू ते देखते छहक जे अखन तक हम गाम मे दहलाइते छी। ने रहैक ठौर आ ने जीवैक आषा। मुदा......।
‘मुदा की?’
‘‘मुदा यैह जे हम करोड़पति छी। करोड़क लप-झप रुपैआ हमरा बैंक मे अछि।
करोड़क नाम सुनि मंगल चैंकि गेल। अकचकाइत पूछलक- ‘करोड़ कते होइ छै से बुझै छहक?’
‘‘हँ। एक सौ लाख एक करोड़ होइ छै। एक सौ हजार एक लाख होइ छै। आ दस सौ के हजार होइ छै।’’
‘रुपिया रखने कत-अ छहक?’
‘‘अइ गप के छोड़ह। जहिया से दिल्ली नोकरी करै गेलौ तहिये से रुपैआक ढेरी लग पहुँच गेलौ। शुरु मे जे रुपैआ देखियै ते हुअए जे छपुआ कागज छियै। मुदा किछु दिन रहला पर रुपैआ हथिअवैक लूरि भ गेल। (कमाइक नहि) अखन, दिन भरि मे लाख रुपैआ हसोथब कोनो भारी कहाँ बुझै छियै। मुदा आब ओइ से मन उचैट गेल। आब एक्के टा इच्छा अछि जे बाहरक खेल-तमाषा छोड़ि, मनुक्ख जेँका गामे मे रहब। आब जँ गामो मे रहब, ते ओते-पूँजी भ गेल जे नीक-जेँका जिनगी बीति जायत।’’
‘हमरा की कह-अ चाहै छअ?’’
‘‘अखैन ते सब पूजा मे ओझड़ायल छी। तेँ पूजाक पछाति तू हमरा मदति क दाय। अखैन हम एक लाख रुपैआ ल क’ आयल छी। अप्पन जे लोक सब छअ, जदि ओकरा रुपैआक जरुरी होय ते हम बिना सुदिये के सम्हारि देबै। मूड़क-मूड़ घुमा देत। संगे तोरो कहै छिअअ जे रुपैआ दुआरे पूजा मे कोनो अभाव ने होय।’’
जोगिनदरक बात सुनि मंगलक मन मे द्वन्द्व शुरु भेल। एक मन कहै जे रुपैआ दुआरे बहुत काज छुटि जाइ अए, से आब सम्हरि जायत। त दोसर मन कहै की हम डकैतक भाँज मे ने पड़ल जाइ छी। एसमगलर छी की माफिया? किछु बुझिये ने पड़ि रहल अछि।
दोहरा के मंगल पूछलकै- ‘एते रुपैआ कन्ना भेलह?’
मंगलक प्रष्न सुनि जोेगिनदर चैंकन्ना भ चारु दिषि तकै लगल। मुदा ककरो नहि देखि घुन-घुना के कहै लगलै- ‘‘भाइ, जकरा ऐठिन हम नोकरी करै छलौ ओ बड़ पैघ कारबाड़ी। हजारो नोकर, ढेरो कारबार। मुदा सबसे भीतरका कारोवार रहै विदेषी रुपैआ के भजौनाइ। कोन-कोन देषक लोक कोन-कोन रुपैआ ल क’ अबै आ अपना रुपैआ से भजबै, से चिन्हबो ने करियै। मुदा हमरा पर सेठबा के बड़ विसबास होय। किअए ते हमही सदिखन लगो मे रहियै आ चाहो-पान आनि-आनि दियै। निसोदंड राइत मे एक आदमी गाड़ी पर अबै आ भरि दिन मे जते रुपैआ भेल रहै ओ सब द दइ। आ ओकरा पासवुक पर रुपैया चढ़ा दै। सेठवा के जखैन जते रुपैआक काज होय, हमही बैंक से आनि दिअए।’’
मंगलक भक्क खुजल। पूछलकै- ‘‘दिल्ली सनक शहर मे पुलिस आ सी.आइ.डी. किछु ने करै?’’
हसैत जोगिनदर कहलकै- ‘‘सबके महीना बान्हल छै।’’
प्रषासनक इ रुप देखि मंगल हतोत्साह(हतोतसाह) भ गेल। मन मे अबै लगलै जे तखन लाक जीति कइअ दिन? छाती थर-थर कपै लगलै। मुदा मन के असथिर करैत पूछलकै- ‘तू ओहि सेठक संगे रहै छह कि.....?’
जोगिनदर- ‘‘दस बर्ख ओइ सेठवा अइठिन रैह के ओकर सबटा तड़ी-घटी बुझि लेलियै। नोकरी नइ छोड़लियै। ओकर कहलियै जे हम गाम जायव। माए दुखित अछि। तेँ अगुरबार रुपैआ दिअ जे माइयक इलाज करैब। भरि दिन मे कते शराब पीबे तेकर कोनो ठेकान ने, मुदा तइयो कतौ काज मे नै हुसै। हम सोचलहु जे एकरा ऐहेन कड़गर शराब पीआबी जे बेहोष भ जाय। सैह केलहुँ। जखन शराब पीलक आ निसां जोर करै लगले तखन वाहवाही दैत कहलक- ‘‘नीक माल अछि।’’
हमहू अनठा देलिऐ। मने-मन सोचलौ जे जँ कही किछु रुपैआ ल क’ पार करबै ते कानून मे ओझड़ौत। तेँ की केलहुँ जे कहलियै मालिक, हम चारि बजे भोरे चलि जायब। किएक त गाड़ी सवा चारि बजे टीषन से खुजै छै। अखने सब समान जोड़िया लेब। ओकरा निसां चढ़ैत जाय। जखैन बुझि पड़ल जे आब बेमत भ गेल, तखैन कहलियै- ‘‘मालिक रुपैया-पैसा अखैनिये द दिअ।’’ पड़ल-पड़ल ओ कुन्जी द देलक। कोठरी खोललौ ते रुपैआ देखि के मने उनटि गेल। जहिना अपना सब अन्न भरल बोरा थकिऔल। एकटा वोरा निकालि, कोठरी बन्न क, चाभी पलंग पर रखि, अपना वैग मे रखि लेलौ। समानो सब सरिया लेलौ। सेठानी लग जा क’ कहलियै- ‘‘मलिकाइन, हम भोरे गाम चलि जायब।’’ ओकरा लग से निकलि दोस-महिम से भेटि-घाट करैत थाना पर गेलौ। सब चिन्हरबे। कहलियै जे भोरे हम गाम चलि जायव तेँ अखन भेटि करै एलौ। सबसे भेटि-घाट करैत अपना डेरा ऐलौ। राति मे सुतलौ नै। दू बजे राति मे निकलि दोसक ऐठाम चलि गेलौ। सब बात दोसो के कहलियै। बीस लाख से उपर रुपैया रहै। ओकरे पूँजी बना हमहूँ वैह करोबार(विदेषी रुपैआ के भजौनाइ) शुरु केलौ। सबसे चिन्हा-परिचय रहबे करै तेँ कतौ दिक्कत हेबे ने करै। वैह हमर कमाइ अछि। मुदा आब ओइ काज से मन उचटि गेल। तेँ, आब गामे मे रहब।’’
मंगल- ‘अप्पन की योजना(जोजना) छह?’
जोगिनदर- ‘‘अप्पन मन अछि जे दस कट्ठा घरारी जोकर जमीन भ जाय आ पाँच बीघा धनहर। दस कट्ठा घरारी अइ दुआरे चाहै छी जे दसो कट्ठा के चारु भर से भरि मरद ऊँच छहर-देवाली द देबै। ओइ बीच मे डेढ़ कट्ठा मे चैघारा घर बना लेब। माछ पोसै ले दू कट्ठा खुनि लेब। वैह(ओही) माइट से सैाँसे भरा सेहो देवै। दू कट्ठा मे फल सब लगा लेब। दू कट्ठा तीमन-तरकारी ले राखब आ बाँकी अढ़ाइ कट्ठा ओहिना खसा के राखब। किऐक ते अन्नक मास मे खरिहानक जरुरी होइत। ओहुना कते काज परिवार मे होइत रहै छै।’’
मन पाड़ैत मंगल कहलकै- ‘देखते छहक जे बथनाहा(बगलवला गाम) मे अवधिया सब अछि। ओकरा सबहक खेत अपनो गाम मे अछि। ओइ मे से एक गोरे बैंक मे नोकरी करै अए। समांगोक पातर अछि। असकरे अछि। आन-आन गोरे ते अपने खेती करै अए, मुदा ओकर खेत बटाई लागल छै। ओ अपना गामक(बथनाहा छोड़ि) जमीन वेचै चाहै अए। करीब दस बीघा जमीन अपना गाम मे छै। अगर चाह-अ ते दसो बीघा भ जेतह। ओहो पाँच बीघा से कम नै बेचै चाहै अए। अगर खुदरा-खाइन बेचते ते बिका गेल रहितै। मुदा ने एक ठाम पाँच बीघा कीनैक ककरो ओकाइत छै आ ने ओ खुदरा बेचत। मुदा एकटा बात पूछै छिअ? अखन धरिक जे तोहर जिनगी छअ ओ हमरा विचारक विपरीत छअ। तेँ हमरा तोरा बीच कते दिन अपेछा चलत, तइ पर शंका अछि। इ कोना मेटाइत?’
मंगलक बात के सुनि जोगिनदर गंभीर भ सोचै लगल। थोड़े काल सोचि जोगिनदर जबाव देलक- ‘‘मंगल भाइ, तोहर शंका सोलहन्नी सही छह। मुदा हमरो मन अप्पन काज से उचैत गेल। सदिखन, चोरक मन जेँका हमरो मन डराइले रहै अए। हरदम होइत रहै अए जे कखन सड़क पर घूमै छी आ कखन जेल मे रहब, तेकर कोनो ठीक नहि। ओना रोडक सिपाही से ल क’ नीक-नीक पाइवला सलामी दइ अए। मुदा हम इहो बुझै छियै जे जोगिनदर के नहि, जोगिनदरक धंधा आ पाइ के सलामी दइ छै। कहियो काल जे राइत मे सपनाई छी ते ओहिना देखै छियै। जे आगू-आगू सी.पी.आइ. गरिअवैत आ पाछु-पाछु सिपाही थोपड़बैत रास्ता पर नेने जाइ अए। मन मे कखनो आन विचार नइ अबै अए। सदिखन देषी-विदेषी पाइयेक रहै अए। तेँ कखनो मन मे होइ अए जे आगू मुहे सरसराइल जा रहल छी त लगले होइ अए जे अइ दुनियाँ से पड़ाएल जा रहल छी। हमरा ले अइ दुनिया मे पाइ छोड़ि की अछि?’’ एते-बजैत-बजैत जोगिनदरक दुनू आखि से दहो-बहो नोर खसै लगलै। दुनियाक प्रति आकर्षण देखि मंगलोक हृदय दल-दल भ अपना मे जोगिनदर के साटै चाहैत। मुदा तरल वस्तु रहनहुँ करुतेल आ मटिया तेल कोना मिलत? जँ घोड़ाइयो जायत ते दुनू दुनूक गुण के समाप्त क’ देतए। मुदा मनुक्खक जे बदलैक क्रिया अछि ओ एते प्रबल(परबल) अछि जे शायद अनुपमेय अछि। तेँ कोनो मनुक्खक संबंध मे निसचित(निष्चित) बात कहि देब असंभव बात थिक। हँ जिनगीक दषा देखि कहलो जा सकै अए। मुदा तइओ मंगलक मन मे एकटा नमहर खाइध बुझि पड़ै। ओ इ जे अखन धरि हम तपबे केलौ मुदा इ ते तपक उनटे चलल। उम्र मे अधिक अन्तर भले ही नइ हुअए मुदा जिनगी त दू दिषा से बढ़ि रहल अछि। मने-मन सोचै लगल। एकटा बात मन पड़लै। ओ(मंगल) मात्रिक(मातरिक) गेल रहै। कोषिकन्हा मे मात्रिक। कोषी स(पूव मे कोसी आ पछिम मे कमलाक बीच जते धार-धुर छै) ल क’ कमला धरिक पाइन(बाढ़ि) ओहि गाम होइत दछिन मुहे जाइत। एकटा बाँसक बीट रहै। ओहि मे चालीस-चालीस हाथक बाँस रहै। अगते बाढ़ि(वैषाखे मे) आबि गेलै। गामक लोक गाम छोड़ि, माल-जालक संग सब अप्पन-अप्पन कुटुमक ऐठाम चलि गेल। ऐहेन परिस्थिति मे जन्म भूमि स्वर्ग कोना भ सकै अए? पनरह हाथ पाइन ओइ बाँस मे लगि गेल। खाइधनुमा बाध। अधिक दिन धरि बाढ़ि रहलै। ओइ बाँस मे पनरह हाथ उपरक गिरह पर से बाँसक कोपड़ रहलै। ओइ बाँस मे पनरह हाथ उपरक गिरह पर से वाँसक कोपड़ द देलकै। जखन पाइन सुखलै ते आमेक गाछ जेँका बाँसक बीट बुण् िपड़ै। सोचैत-विचारैत मंगलक मन मे एलै जे एकटा(षत्र्त) बान्ह स बान्हि दोसती क लेब। मुस्कुराइत मंगल कहलक- ‘‘
भाइ, जहिना तू दरबज्जा पर ऐलह तहिना तोहर सुआगत करब हमरो काज भ जाइ अए। मुदा हम आइ धरि झूठ नै बजलौ, से हमरा कोना निमहत?
मंगलक बात मंगलक पिता गणेष सेहो सुनलक। ओ पेषाब करै ले निकलल छल। हाँई-हाँई के पेषाब क गणेष दुनू गोटेक बीच पहुँच गेल। जोगिनदर चीन्हि गेल। बाजल- ‘‘आबह-आबह कक्का! तोहूँ एतै बैसह।’’
गणेष कहलक- ‘‘बौआ हम बैसिवह नहि। ठाढ़े-ठाढ़ अप्पन एकटा खिस्सा सुना दइ छियह। करीब चालीस साल पहिलुका बात छी हम जुआन होइते रही। मोछ-दाढ़ीक पम्ह अविते रहै। माए-बाबू जीविते रहथि। हम एक्को धुर जमीन बढ़ेलहुँ नहि, जते एखनो अछि ओते ओहू दिन मे रहै। एहिना कातिकक मास रहै। तीन बजे करीब(बेरु पहर) एकटा मोटरी नेने, नाना पहुँच गेलाह। अबिते माए के कहलखिन- ‘‘दाय, हम गंगा नहाइ ले जाइ छी। गामक बड़ लोक जाइ अए। हम ओकरा सब के कहि देने छियै जे टीषने पर भेंट हेबह। तेँ ताबे हमहू सुसता लइ छी आ तोहू तैयार हुअअ। खेवा-खरचा हमरा अछिये तेँ कोनो चीज लइ-दइ के नै छअ।’’ नानाक बात सुनि माए गुम्म भ गेलि किअए त एक दिन पहिने गाय विआइल छलै। अइ सब मे माए बड़ सुतिहार रहै। पहिने गाय विआइल छलै। अइ सब मे माए बड़ सुतिहार रहै। माइयक मन मे दू टा बात टकराइ। एकटा इ जे हम ओमहर(गंगा नहाइ ले) जाइ आ इमहर गाय के किछु भ जाय, तखन ते दस मासक मेहनतक मेहनहताना चलि जाइत। आ दोसर बात इ होय जे गौँवा छोड़ि के हमरा संग करै आयल, हम नइ जेवइ आ ओमहर गौँओ छुटि जाय, तखन की हेतइ? तेँ गुम्म। ताबे बवुओ मालक घर से निकलि के आयल। हम ते रहबे करी, मुदा हमर मोजरे कोन। बावू आबि के गोड़ लागि आगू मे ठाढ़ भ गेलखिन। ने माए किछु बजैत आ ने बावू। नाना अप्पन बात बाजि चुकल रहथि तेँ ने किछु बजैत। पानि आनि के हम पहिनहि राखि देने रहियै। तीनू गोटे के चुप देखि हमही कहलिअनि- ‘‘नन्ना पैर धुअ-अ ने।’’
एतबे बजैत देरी कि नन्ना बजै लगलखिन- ‘‘नै-नै, पैर-तैर नै धुअब। टेनक टेम भेल जाइ छै।’’
सामंजस्य करैत माए बाजलि- ‘‘बच्चा, छोड़ैवला कोनो ने छह। नाना संगे तोँही जा...।’’
मन अपनो रहै, मुदा किछुु बाजी नहि। किऐक त एक दिन एकटा खिस्सा सुनने रहियै जे गंगा तेहेन भारी(नमहर) धार अछि जइ मे सैाँसे दुनिया क मनुक्ख स ल क’ चुट्टी-पीपरी धरि अटि जायत। तइओ पेट(गंगाक पेट) खालिये रहत। तेँ देखैक जिज्ञासा रहै। नाना संगे विदा भेलौ। जखन गंगा मे पैसि(दुनू गोटे) नहाइ लगलौ कि नाना कहलनि- ‘‘नाइत, मने-मन गंगा के कहि दहुन जे आइ से झूठ नै बाजब, आ डूम ल लाय।’’ सैह केलौ। दू सालक बाद बाबू मरि गेल। घरक भार पड़ि गेल। मुदा काज करैक लूरि त सबटा रहबे करै। कहियो कोनो भार बुझिये ने पड़ै। झूठ बजैक जरुरते ने हुअए। किऐक ते भरि दिन अपना काज मे लागल रही। दछिनबारि टोल मे सरुप रहै। दस बीघा खेतो रहै। मुदा फुर्र-फाँइ वला आदमी। ललबवुआ। ने खेती-पथारी नीक जेँका करै आ बड़द खूँटा पर रखने रहै। भरि दिन ऐमहर से ओमहर केने घुरै। कनफुसकी क-क क’ लोक सब के खूब झगड़ा लगबै। रहवो करै बड़ डाहि। अनके हर-बड़द से खेतियो करै आ जइ जन के खटबे ओकरा बोइनो ने दइ। तेँ कि होय जे दस बीधा खेत रहनौ दुइओ मासक बुतात नै होय। जेकरा से जे चीज लइ ओकरा फेरि घुमा के नइ दइ। एक दिन अपना ऐठाम आबि कहलक- ‘‘गणेष, सुनै छी तू चाउर बेचै छह?’’
हम कहलियै- ‘हँ।’
‘‘हमरा एक मन चाउरक काज अछि।’’
‘‘भऽ जायत। ककरो पठा देवइ, नइ जे अपने नेने जायब ते ल लिअ।’’ ओ चाउर तौला के छोड़ि देलक कहलक जे तोरा तगेदा करैक काज नहि। जखने हाथ मे रुपैआ औत तखने तोरा द देवह। हम कहि देलियै- ‘‘बड़बढ़ियाँ।’’ छह मास बीति गल। जखन जुआन से कहि देने रहियै जे तगेदा नइ करब तखन तगेदा कन्ना करितियै। साल बीत गेल। दोसर साल फेरि ओहिना केलक। तेसरो साल केलक। ओ चाउरक दाम दिअए नै आ हम तीनि खेप चाउर द देलियै। पाइयक दुआरे अपन काज बिथुत भ जाय। तब मन मे आयल जे कमाइ हम खाय दोसर, इ त सोझा-सोझी गरदनि कट्टी भ रहल अछि। ओह, से नइ ते आब चाउर गछबे ने करबै। कहबै जे नइ अछि। मुदा फेरि मन आयल जे झुठ कोना बाजब। विचित्र स्थिति भ गेल। हारि के झूठ बजै लगलौ। तेँ बौआ, तू दुनू गोरे जवन जहान छह, कहि दइ छिअ-अ जे नीक-अधलाक विचार करैत आगू मुहे पाएर उठविहह।’’
2
अमावासिया दिन। आइये दिवालियो होएत आ कालियो पूजा।
(अगिला अंकमे)
साकेतानन्द
( कथा)
कृतं न् मन्ये.
“नँइ बाबू साहेब, तलाशी त’ एक_एक वस्तुक हैत, पुलिस पार्टी आबि रहल अछि...एस.पीये साहेबके और्डर छै, साहेब अपनहि आबि रहल छै... झट द’ जनी_जाति के ल”एक कात भ’ जैयौ...!” सब साल परबी ल’ जाइ बला हुनकर गाम चांवरडीहक चौकीदार अजोधी ; नमोनारायण सिंह के कहि रहल छलनि। कहै कहां छलनि महराज ! धिरा रहल छलनि, धमका रहल छलनि;बाप_दादाक बनायल घर के तुरंते खाली करैक फरमान सुना रहल छलनि।
चांवरडीह गाम धरि छैक बेस झमठगर । बारहो बरन बसै छल अछि अहि दू धारक बीच, लमछुरका जमीन पर बसल ई गाम मे। बीच गाम देने सडक; जे आब त’ धार पर पुल भ’ जेबाक कारणॆ सीधे जिला मुख्यालय तक जाइ छैक, मुदा तहिया कत’ पाबी ? तहिया एक पेडिया कि सुर्खी बला
सडकक चलनसार छलै। साफ_साफ कही त’ अंग्रेजक अमलदारी छलै । बाबू साहेबक गाम, ताहूमे नमोनारायणक स्वर्गीय पिता जी के तहसीलदार स’ घुठ्ठी सोहार, तैं अमला_फैला, कर_कचहरी सब ठां बाबू जयनारायण सिंहक जयजयकार होति रहै ताहि दिन चांवरडीह मे। भरि चौमासा त’ एत’ आयब असंभवे छलै जे नीको समय साल मे तहिया, गाम आयब बड दुरूह रहै। तखन भरि बरसात नावक सवारी
रहै । गरीबो लोकके एकटा घसकट्टीयो,नाव जरूर होइ छल।
मुदा सब एक्के बेर दमदमा क’ पहुंचि गेलै....दू जीप मे भरिक’सिपाही रहै। ओकर संग हवलदार आ एकटा डी.एस.पी.। सब हथियार बन्द ,जेना कोनो पैघ डकैत के पकडै लए आयल हुए । नमोनारायण अवाक् भेल आंगनक मोखा लग जे ठाढ भेला से किम्हर पडेता कि की करता से किछु फुरेबे नहि करनि। ताबे एकटा सिपाही पाछां स’ हिनकर गंजी पकडि क’ अपना दिस टनैत पुछलकनि__” तोरे नाम नमोनारायण छिय’...? चल’ एस.पी. साहेब बजबै छथुन।“
नमोनारायण सर्द पडि गेला, नमोनारायणक मुंह कारी भ’ एलनि, नमोनारायण मुंहमे धान दैथ त’ लाबा होनि । जहिना गंजी धोतीमे छला तहिना सिपाहीक पाछां_पाछां विदा भेला बडगाछतर, जाहि ठाम काल्हिये
स’ ज़िलाक एस.पी. कैम्प केने छै । वैह चतरलका बडक गाछ त’ एखनहु छैहे गवाही सब कथुक.। अही
गाछ लग स’ सवर्ण आ महादलित टोला अलग_अलग होइ छै । अही बडक गाछक चलते लोक चांवरडीहक
दलित बस्ती के ‘बडतर टोल’ कहैत रहै । नमोनारयणक स्वर्गीय पिता , जे अहि कुकांडक
नायक छला, से त’ गेला सुरपुर धाम। बांचल छथिन हुनकर एकमात्र सुपुत्र, जे बलिदानी छागर जेकां बढि रहल छथिन ओन्न’ जत’ नहि जानि कैक युगक तामस, घृणा आ बदलाक भावना स’ भरल एस.पी. प्रतीक्षा क’ रहल छनि। पहिने त’चांवरडीहक आम ग्रामीणे जेकां हिनको पता नहि रहनि जे ई
सब कियैक भ’ रहल छनि, पुलिस एकाएक हिनकर घर_आंगनक एना तलाशी कियैक ल’ रहल अछि ?
मुदा एस.पी.क नाम आ ई जनिते जे एस.पी. वैह घनश्यामक जमाय भास्कर छियै; सब बात बिजली
जकां दिमागमे छिटकि उठलनि...आइ स’ पच्चीस बरख पहिलुका घटना एना लाग’लगलनि जेना काल्हुक
घटना हो ! ओ सब बात हिनका आ हिनकर किछु बूढ दियादे टा के ने बूझल छनि ? गामक लोक ई सब कत’ स’ जनलकै ? खैर, आब त’ जाइये रहला अछि । आखिर कोन कारण स’ पुलिस घरक ओ दशा क’ रहल छनि आ हिनकर चोर_डकैत जकां पेशी भ’ रहल छनि,सेहो त’ लोक के बुझै जोगर होइतै ? मुदा जेना भ’ क’ पुलिस घर ढुकलनि आ जेना भ’ क’ सर्च क’ रहल छनि....राम_राम ! से कि ई कोनो अपराधी छला अछि ? होथि कि नहि होथि; पुलिस त’ एखन तेहने व्यवहार क’ रहल छनि; जेना चोर_डकैतक घरक तलाशी लेल जाइ छैक ,तहिना एक_एक टा वस्तु_जात खोलि_खालि क’, एत्ते तक जे कोठीक चाउर तक निकालि क’ तलाशी
ल’ रहल रहनि। ओ बड गाछ दिस जाइयो रहल छथि आ सोचि रहल छथि जे घनश्यमवाक ओ जमाय
भास्कर एस.पी. बनत, आ बनबो करत त’ अही ज़िलामे आओत, ई त’ कहियो सपनोमे ने सोचने रहथिन। ...एह बातो आझुक छियै ? जोडबै त’ कैक युग बीत जेतै !
कोसिक झमारल चांवरडीह गाम, बारहो मास तीसो दिन अबै_जाइमे बड तकलीफ होइ लोकके। भूलिये_भटकि क’ कोनो सर_कुटुम्ब अबै। आजुक हाल देखि क’ त’ अहांके परतीते ने हैत जे वैह चांवरडीह छियै! रोग_बेरामी,पर_परसौत ज’ गडबडायल त’ जाबे अहां चर्राइन कि सहरसा पहुंचब गे, रोगी भगवान लग दाखिल भेल रहत। ताहि दिनुका बात भेलै जखन कोसी, जंगल आ अंग्रेज सन जालियाक शासन रहै...मुंह देखि क मुंगबा परसैबला ! तहिया पुलिस थाना, कोर्ट कचहरी जे रहथि से जयनारायण सिंह छला। हुनकर फैसला पहिल आ अंतिम होइ छलै तहिया अहि गाममे !
अही गाममे ओ वर बनि क’ आयल रहै...यैह बडक गाछ तर ओ कुर्सी पर...आंखिमे काजर, गलामे बेली फूलक मौलाएल जाइत माला पहिरने बैसल रहै...बगलक खाट पर ओकर पिता आ पित्ती बैसल रहथिन ।
घनश्याम, ओकर होइबला ससूर पीयर धोती आ गोलगला पहिरने अपन फूल सनक बेटी फुलमतियाक
होइ बला वर के देख क’ मोन हुलसि आयल छलनि चांवरडीह गामक अधवयसू आ अपन समाजक प्रतिष्ठित सदस्य; घनश्यामके । ओ हलसल_फुलसल अपन आंगन दिस जा रहल छला जे अपन मोनक
आह्लाद अपन लोक, जनी _जाति के कहथि आ वर_वरियाती लए पान_सुपारी_बीडी_सिगरेट आदि आनथि।
मोन गदगदायमान छलनिहें जे बडतर; जत’ वर_बरियातीक डेरा माने जनवासा रहै, ओत्त’ स’ उठलै हल्ला...मच’लगलै गर्द आ गूंज’ लगलै आर्तनाद निरपराधक ।
”मार सार के ! घेर क’ मार सबके..क्यो बचौ नहि, देखिहें नमोनारायण ! एह, खटिया पर मटोमाट केहन
अछि ? सुनरा! ला फरसा आ छफाटि ले सबहक कुल्हा !!” जयनारायण सिंह अपन चानीक मूठि लागल डंटा के चलाइयो रहल छला आ गरजियो रहल छला। ठीक कोनो राक्षस सन लागि रहल छला। जखन ओ
एकरा लग, माने भास्कर लग पहुंचल रहथि त’ माला पहिरने, थरथर कंपैत भास्कर धधकैत जयनारायणक
आंखि दिस बड कातर भावे देखने रहनि आ क’ल जोडि क’ ठाढ होइते रहै जे चानीक मूठ बला लाठीक समधानल वार पीठ पर भेलै आ तकर बाद की भेलै...कोना ओ पडा क’ ककरो घरमे शरण लेलक...कोना
ओकर बियाह भेलै...टूटल हाथ_पैर लेने ओ आ ओकर बाप_पित्ती कोना अहल भोरिये कनिया संग ल’ क’ नाव पर पडयला... सब ओकरा सपना सन लगैत अएलै अछि एखन धरि ।
पढिते रहय त’ एक बेर फेर एत’ आयल त पता चलल रहै जे जे कनियां स’ एकर बियाह भेलै, ओकरा पर नमोनारायणक नज़रि बहुत दिन स’ गडल रहनि, तैं ओना तांडव मचौने छला ओकर बियाहक राति। कहां दन तीन दिन तक अहि टोलक लोक थर_थर कंपैत घरमे सुटकल रहल। ओ त’ सुकुर भेलै जे वर_वरियाती संगे ओ राता_राती निकलि गेल...ने त’ जान बांचब मोस्किल रहै ओइ राति । ओही दिन ओ संकल्प केने रह जे ओ पढत, खूब पढत आ पुलिसक नौकरी करत।...साल दू साल पर ओ चांवरडीह आबै...छुट्टा सांढ जकां सब कथू पर मुंह मारैत पहिने जयनारायण के देखैत रहै आ तकर बाद ओकर बेटा नमोनारायण के, जे एखन सुटुकपिल्ली सन सिपाहीक पाछां_पाछां बलिदानी छागर सन बढल जा रहला अछि, जिम्हर अहि पलक प्रतीक्षा कैक युग स’ करैत अबैबला एस.पी. भास्कर ,सन्नद्ध बैसल अछि।
मुदा ई घटना कोनो आजुक छियै ? पच्चीस वर्ष पहिने भेल अपराधक सजाय,
ओकरा आइ देल जेतै ?ओकरो अइ घटनाक पश्चाताप भेल रहै। समय बदलल रहै, युग बदललै, नमोनारायणके
विचारो बदलल रहनि। ई त’ सपनोमे नै सोचने रहथिन जे घटना चक्र अहि तरहें घुमतै। बाबुओ के मुइना त’
आब पंद्रह वर्ष भेल हेतनि।...पता नहि, पुलिस के आंगनमे घुसिते ओकर माय आ कनियां कत’ गेलै ! की
पता ? ओहू राति ककरो कहां पता चललै जे वर_वरियाती कि कनियां कत’गेलै ? कुम्हर पडेलै ? भरि गाम
त’ जयनारायण सिंहक सिंहगर्जना सुनैत रहलै__ “...मैट्रिक पास जमाय छै त’की ? आगि मूतत ? एत्ते टा
साधंस जे हमरा सबहक सामने खाट_कुर्सी पर बैसत...एत्ते धू_धू_पूपू स’ बेटीक बियाह करत ? से की हम सब
मोसम्मात ? कि ई सब बाबू साहेब बनि गेल ..? खच्चर नहितन...।“
संग सिपाहीक जाइत ओ फिर क’ अपन द्वार, आंगन आ बरंडा दिस तकलनि...घरक
सब सामान ओइ पर रिद्द_छिद्द भेल छलै...बक्सा...अलमीरा...पलंग...ओकर कनियांबला ड्रेसिंग टेबुल...ओकर,
मायक आ बाबूक पुरना पेटी, ओकर भी.आइ.पी. सब मुंह बेने...ओकरा देखल नहि गेलै ! आखिर ओकरा कोन
अपराधक सजाय भेट रहल छै...जे आइ स’ पच्चीस वर्ष पहिने भेल छलै ? ओ आगां_आगां जाइत सिपाहीक
पीठ दिस ताक’ लागल कि तखनहि मायक आवाज़ सुनाइ पडलै__”बौआ, हमहूं अबै छिय’ !”
नमोनारायण पाछां पलटि क’ घरक सब वस्तु_जात के देखैक बदला उज्जर साडीमे डोलैत मायक काया देखै मोनमे होइ छनि जे ‘ई कथी लए संग लागि गेली ?’ फेर भेलनि जे कहीं_कदाच माय के देखि क’ ज’ एस.पीके दया आबि जाइ, भास्करक मोन पघिल जाइ...!
भरि गामक लोक अपन_अपन दरवाजा पर स’ अपन_अपन डांड पर हाथ धेने
अइ घटना क्रमके, अपन_अपन ढंग स’ देखि रहल छल,अर्थ लगा रहल छल। खाली बूढ_बुढानुस, दर_देयाद
के पछिला सब बात फट स’ मोन पडि एलै...जयनारायण सिंहक चानीक मूठ बला लाठी मोन पडि एलै....
नमोनारायणक सांढ जेकां सब हक खेतमे मुंह मारैक लुतुक मोन पडलै...ओकर बापक कारस्तानी सब मोन पडलै। जखन बापे गुंडइ सिखाबे त’ बेटा के की कहल जाय ? मुदा ई जरूर जे ई सब भेना बहुत दिन, पचीसो साल भेलै...आब गडल मुर्दा उखाडल जेतै ? नमोनारायण दुनू बाप_पुते तहिया जे केने रहै, तकर सजाय आब देतै भास्कर एस. पी. ?
नै देबाक चाही ? जहिना खूनक घोंट पुश्त_दरपुश्त पिबैत आयल, तहिना पिबैत रहय ? कि ओइ राति
ई दुनू बापं_पूत पशुतोक सब सीमाक उल्लंघन नहि केने रहथि जखन कि वर बनि क’ ई गाम आयल भास्कर
के दुनू बाप_पूत मिल क’ बरियातीक संगे अइ लेल मारि पीट क’बेइज्जत_बेइज्जत केलखिन जे ओ
लोकनि खाट पर आ वर कुर्सी पर कियैक बैसल अछि ? ई चांवरडीह छियै, बाबू साहेबक बस्ती...ताहि ठाम ई मजाल ? लगलै जे हिनके दुनू गोटेक ज़मिन्दारीमे बसल हो सब क्यो !
तैं गामक लोक डांड पर हाथ देने, आगां_आगां सिपाही,तकर पाछां ओ, आ सब स’ पाछां हुनकर विधवा मायके दलित_टोला जाइत देखैत रहल। मुदा, ने क्यो सबदल आ ने क्यो संग देलकनि !
बुझले अछि जे नमोनारायण के देखितंहि एस.पी. के की भेल हेतै । पचीस वर्ष बीतल होइ कि
पचास...ई सब बिसरैबला बात छै ?तैं नमोनारायण के सरि भ’ क’ एस.पी.क हाथो जोडल नहि भेल रहनि
जे अशोक_चक्रक मूठि लागल एस.पी.क हंटर सटाक पीठ पर लागल रहनि...जाबे ई किछु सोचथि कि दोसरो
हंटर बजरलनि, जे हुनकर पीठ पर गुणाक चिह्न बना देने छलनि आ जे हुनका मार्मिक चोट पहुंचबै लए
पर्याप्त छलनि। हुनकर चित्कार स’ ओहि ठाम उपस्थित हुनकर सब गौंआक मोन दहलि गेलै त’ कोन
आश्चर्य ! मुदा कठोर स’ कठोर अपराधी के मनोबल तोडबाक, तोडि क’ सत्य बोकरेबाके ट्रेनिंग भेटल छैक
ओकरा; तैं ओकर कडकदार आवाज़ गूंजैत अछि__”हवलदार ! अइ डारि स’उल्टा लटका एकरा !”
भूमि पर भास्कर एस.पी.क पैर गरेछने मायक काया थरथरा उठैत छनि, संभवतः दांती लागि जाइ छनि।
कत्तौ स’ एकटा महिला सिपाही प्रगट होइत अछि आ मायक परिचर्चामे लागि जाइत अछि।मुदा नमोनारायणक
डांडमे रस्सा बन्हा गेल अछि...बस आब हिनका लटकैले जाइबला अछि।हिनकर मुंहमे गर्दा उडि रहल छनि...
...चेहरा कारी भ’ आयल छलनि...बुद्धि काज नहि क’ रहल छलनि...सिट्टी_पिट्टी गुम। पीठ परहक चोटक
संग अबैबला कष्टक कल्पने करैत चौन्ह अबैत रहनि।
“ कियै, हमरो अहिना चोट लागल रहै रे नमोनारायण...एखन त’ किछु भेबे ने केलौए...तोहर लाठीक मारि स’
त’ हमर पित्ती दुइयो मासने बचला...हमर बापक माथक दर्द कहियोने छुटलनि...तोरा त’साले...!”
ताबे चांवरडीह गामक एक्का_दुक्का ग्रामीण बडतर एकठ्ठा हुअ’ लागल
छलै...हिनकर मसियौत दौडि क’ गेल आ निहोरा_मिनती क’ क’ घंश्याम के खिंचने आयल। ओहो सामनेक
दृष्य देखि भीडमे अवाक् भेल ठाढ...।पहिने सत्तो निकलला तकर बाद धीरे_धीरे सब हाथ जोडने कातर भाव स’
देखैत।
”मर, त’ अहां के एत्त’ के बजेलक ? गैरलाइसेंसी हथियार एकर घर स’ बरामद भेलैए, एकरा जेल हेतै !”
एस.पी. तत्ते जोर स’ बजला जाहि स’ गामक लोक ठीक स’ सुनि लियै। उत्तरमे क्यो किछु नहि बाजल। बजै जोग किछु शेषो नहि रहै। सब बस गुम भ’ क’ भास्कर एस.पी.के देखि रहल छल।
ओ पहिने अपन ससुर घनश्यामक नत दृष्टि आ बादमे अपन सासुरक सब गोटाक क्षमाक मूक गोहारि अनुभव
केलक...आगांमे पडलि नमोनारायणक मायक उज्जर साडीमे लपेटल काया छलैक।ओ चारूकात नजरि घुमा क’
देखलक...अइ ठाम अत्यंत कातर भाव स’ ओकर प्रत्येक क्रिया_कलाप के देखैत आन क्यो नहि, ओकरसासुरक
लोक अछि ,जकरा ओ बच्चे स’ देखैत आबि रहल अछि । अनकठ्ठल चुप्पी कि निगूढ शांति के भंग करैत
भास्कर एस.पी.क स्वर बडतर फेर गूंजल__”हवलदार ! खोलि दहिंक...आब एकरा ककरो अपमान करबाक साधंस नहि हेतै ।“
***
(ई कथा “कृतं न् मन्ये” श्री आर.बी. राम सेवा निवृत्त आइ.जी. के सस्नेह एवं सादर ! लेखक।)
सुजीत कुमार झा
कथा
प्रियंका
गामसँ छुट्टी बितओलाक बाद काठमाण्डू जा रहल छलौ । बसमे चढ़िते एक युवतीके देखलियै तत्ततक्षण मन रोमांचित भऽ उठल मुदा अपनाके सम्हारैत सिटपर बसि गेलौं ।
युवती हमरे पाछुमे बैसल छली । बेर—बेर हमर मोन ओहि युवती दिश आकृष्ट होइत छल ओकरा सँ बात करबाक हेतु । तथापि हम अपन मनके नियन्त्रि त कऽ ढल्के्वर, पथलैया, हेटौडा, नारायणगढ़, मुगलिंग पार करैत कतेको स्टेाशन गनैत काठमाण्डू पहुँचलौं ।
काठमाडू बस पड़ावमे पहुँचैत—पहुँचैत प्रायः सभ यात्री उतरि गेल छल । मात्र ओ युवती आ हम बाँचि गेल छलौ ।
हम अपन बैंग सम्हाेरि उतरि गेलौं । हमरे पाछा—पाछा ओ युवती सेहो उतरि गेली । हमर हृदय जोर जोर सँ धड़कऽ लागल कि आब ओ अपन घर चलि जएती । हम हुनकासँ गप्पी करबाक लेल ब्यारकुल छलौं ।
बस पड़ावमे उतैरते पानि टिप टिपाए लागल । हम बैंगमे सँ छत्ता निकालि लेलौ । समिपमे ओ युवती चुपचाप ठाढ छलीह । कखनो ओ बाट दिस तकैत तऽ कखनो घड़ी दिस । किछु देरकबाद हम हिम्मलति कऽ हुनका सँ पुछलियैनि अहाँके कतऽ जायके अछि ?
बिनू बजने ओ हमरा दिस तकली आ फेर अनुहार झूका लेली ।
हम हिचकिचाइत हुनका सँ पुनः पुछलियै, अहाँ कतऽ जेबै ?
ओ हमरा दिस देख कऽ कहलि ‘कतौ नहि ।’
हमरा चटकन जेकाँ लागल आ हम मुक रहि गेलौं ।
किछु देरक बाद पानि सेहो जोड ़सँ बरिसय लागल छलै हम छाता निकालि डेरा दिस बिदा भऽ गेलौं ।
तखने पाछु सँ आवाज आएल ‘सुनु तँ ।’
हम पलटि कऽ देखलौ ओ स्वोर ओहि युवतीके छल । हम हिम्मिति कऽ हुनका सँ कहलियैन ‘कहू ?’
‘ अहाँ कतऽ जेबै ? ’ किछु सकुचाइत लड खडाएल स्वऽरमे पुछली ।
कुपण्डो ल, ओना अहाँके कतऽ जएबाक अछि ? हम पुछलियैक ।
‘जी हमरा...कतौ नहि ।’
हम तमसाइते कहिलयौ ‘ बहुत भारी बात अछि । एखने अहाँ बजओने छलौ आ पुछि रहल छी तऽ बताबऽ नहि चाहैत छी । ठिक छै ‘ई कहि हम पुनः जायके लेल विदा भेलौं । किछु डेग चलल छलौ कि हमरा कानधरि ओ युवतीके सिसकऽ के अबाज आएल ।
हम पलटि कऽ देखलौ । ओ ओढ़नीमे मुह नुकाँ कानऽ लगली ।
हम फेर रुकि गेलौ । आब हमरामे गप्पन करबाक हिम्म ति त आबिये गेल छल । अतः हम समिपमे जा कऽ पुछलियैए ‘अहाँ कानि किए रहल छी ? ”
हमरा पुछलाकबाद ओ आओर जोरसँ कानऽ लगली । हम घवरा गेलौ कि यदि कियो ई सभ देखत तऽ पिटाइ अवश्यब हएत । अतः हुनकासँ कहिलयनि ‘कृपया अहाँ कानव बन्दप करु आ बताउ जे अहाँके कतऽ जएबाक अछि । हम एक नोकरीहारा सभ्यह व्यनक्ति छी हमरा पर विश्वा स करु ।
एहिपर ओ वजली, हमरा कोनो घर नहि अछि, हमरा लेल ई शहर अनजान अछि तें.. ।
हम आश्च र्यमे पड़ि गेलौ एक अति सुन्दनर, जुआन असगरे युवती आखिर एहि पहाड़क शहर काठमाण्डू मे की कऽ रहल छैक ? अनेक प्रश्न मानसपटलपर घुमल । हम कहलियै ‘ ओना अहाँ जाए कतऽ चाहैत छी ? ’
एतऽ समिप कोनो होटलमे जा कऽ असगरे कोना विताओलजाऽ सकैत छैक ?
आई अहाँके घरमे रहि सकैत छी... ? यदि अहाँ कही त ? ई बात सहजहि कहि सिसकऽ लगली ।
हनुकर गप्पो सुनिकऽ मनमे गुदगुदी सेहो भेल आ डर सेहो लागि रहल छल हम हुनकर बैंग उठा विदा भेलौं । टैक्सीामे बैसि कुपण्डो ल एलौं । पुरा बाट हम चुप रहलौं ।
घरमे आएलाक बाद ओ चारु दिस देखऽ लगली हम हुनका बैसऽ कहि स्वैयं फ्रेस होबऽ बाथरुममे चलि गेलौं ।
किछु देरक बाद घूमिकऽ एलौं त ओ अनचिन्हासर युवती पुरा घरके ठिकठाक कऽ देने छल हम मुस्किेयाकऽ हुनका दिस तकलौ एहि पर ओहो मुस्कितया देली ।
हम पुछलियै— किछ खाएब ?
ओ चुप्पि रहली तऽ हम कहलियनि आब चुप्प रहलासँ काम नहि चलत । एकरबाद हम स्टोकभपर चाह चढ़ा देलियै आ गाम सँ माय बटखर्चाके लेल बगिया देने छल तेकरा दूटा प्ले टमे धऽ हुनको देलियै आ हमहु लेलौ ।
ओ चुप—चाप खाय लगली । एकरा बाद हमरा गप्पद करबाक उत्सु्कता भेल, त पुछलियै आब अहाँ सत्यप गप कहुँ अहाँ के छी ?
‘ हमर नाम प्रियंका अछि आ हम धनुषा जिल्लाेके रहऽबाली छी । हमरा घरमे माय बाबुजीक अतिरिक्तै दूटा छोट भाइ आ एक बहिन अछि हम जीवनमे किछु करऽ चाहैत छी, किछ बनऽ चाहैत छी परंच हमर गामे ई सम्भइव नहि अछि । बाबुजी हमर वियाह गामक लगमे परवाहा गाम छैक ओत्तै करा रहल छलाह । तें हम भागि एलौं ।
हम एस.एल.सी. पास कएने केने छी । हम नाम कायम चाहैत छी, जीवनमे संघर्ष करऽ चाहैत छी । तेँ हेतु एहि राजधानीमे एलौं अछि ... आब त किछु कएलाबकाद घूरिकऽ जाएब ।
बसमे एकदम शान्तज सौम्य बैसलि ओ युवतीक वाक पटुताके देख हम आश्य र्चमे छलौ ।
हम कहलियनि— ई अहाँ ठिक नहि कएलौ घरक लोक कतेक चिन्तिेत हएत ।
होमऽ दियै । यदि विवाह भऽ जाइत त हम कतेक चिन्तिौत रहितौं ? ’
वियाहसँ केहन चिन्ताा ? अहाँके अपन घर परिवार रहैत ....”
जी नहि, हम असगरे स्व तन्त्रँ रुपसँ किछु करऽ चाहैत छी ।
की ?
अहाँ चिन्तिनत नहि होउ । हम भोरे चलि जाएब ।
कतऽ ?
‘कतौ... नोकरी ताकऽ ।’
नइ अहाँ असगरे नहि जाएब हम अहाँके सँगे चलब । आ केटलीमे सँ चाह छानि दुू गोटे लऽ लेलौ आ भात चढा़ऽ देलियैक । चाह पिलाक बाद राति भऽ गेल छलै तें बजारसँ तरकारी लाबऽ लेल हम विदा भेलौं ।
भोजनक बाद हम हुनका घरमे छोड़ि अपने वरण्डाै पर ओछायन कऽ सूति रहलौं ।
ओछायन पर सुतिकऽ सोंचऽ लगलौं ‘मन पसंद युवती सेहो विवाह करऽ लेल नहि भेट रहल छल से भगवान प्रियंकाके हमरा लेल पठा देलैथ । सुडौल, पढ़ललिखल,सुन्दभर कनियाँ हो तऽ आओर की चाही हम मनेमन योजनामे उलझि गेलौ आ लागल जेना हम हुनकासँ प्रेम करऽ लागल होइ ।
परात भेने प्रियँका तैयार भऽ कऽ जाए लगली तऽ हम कहलियनि, ‘ चलु हमः अपन एक परिचितसँ भेंट करबै छी सम्भावतः नोकरी भेटि जाएत ।
हमर योजना छल कि हम हुनका एतै रोकि ली आ हुनका वियाह करबाक लेल मना ली । हम प्रियंकाके अपन परिचित मानबहादुरसँ भेट करओलियैन । ओ हिनका देख बड़ खुशी भेल । आ प्रियंका सेहो मानबहादुरक बैभवके देखि अकचका लगली । हमर निवेदनपर मानबहादुर अपन कार्यालयमे नोकरी दऽ देलकैन । आब सभ दिन भोरे हमरे सँग निकलैत छली आ राति हमरे घरमे वितबैत छली । हमरा दुनू गोटेमे एखनो तक दूरी यथावत छल ।
किछु दिन वितलाक बाद हम हुनकासँ हिलमील गेलौ तऽ हिम्मआत कऽ हुनका सम्मुलख वियाहक प्रस्ता व रखलियै । ई सुनि ओ अकचका गेली आ किछ नहि बजली ।
सांझखन हम मानवहादुरके कार्यालयमे गेलौं त ओ बजली कुपण्डोमल एतसँ दूर पड़ैत छैक तें हमरा मानबहादुरजी एतै एकटा घर उपलब्धम करा देलनि अछि ।
एदि एकरा अन्यतथा नहि मानी तऽ आइसँ हम एतै रहब ।
हम हृदयक शीशा प्रियंकाक कठोर शब्दत रुपी पाथर सँ चकनाचुर भऽ गेल । हम बुझि गेल छलौं की मान बहादुरकेँ बैभव आ प्रियंकाक सुन्दरता बीच एक सम्झौरता भऽ गेल छैक । हम घर एलौ बहुत दुःखित छलौ ओहि राति खेवो नहि कएलौ आ भरि राति सोचैत रहलौं जे आब कहियो नहि जाएब हुनका लग करीब एक हप्तार तक हम गेबो नहि कएलौं ।
आठम दिन मोन नहि मानलक तऽ हम प्रियंकासँ भेटवाक लेल हुनकर कार्यलय गेलौं । प्रियंका तऽ पुरा बदलि गेल छली ।
जीन्सग आ भेष्ट मे ओ एकदम आधुनिक लागि रहल छलि । हुनक अनुहार ताजगी आ आँखिमे सफलताक चमक स्पलष्टट देखाइत दैत छल ।
ओ कहली काल्हि ओ एकटा फिल्मत निर्मातासँ भेट करऽ जएती ।
किए ? हम अकचका कऽ पुछलियनि ।
ओ मानबहादुरजीक परिचित फिल्मा निर्माता छथि । ओ हमरा भेटबाक लेल काल्हिी समय देने छथि । आब देखब हम किछुए दिनमे सुपरस्टा र अभिनेत्री बनि जाएब ।
हम हुनका सम्झाुएबाक प्रयन्तछ करैत कहलियनि नहि जाउ बादमे बहुत पछताएब परन्च नहि मानलैथ । हुनका पर त सिनेमाक भूत सवार छलनि ।
हम ओतसँ चलि एलौं । समय वितैत गेलैक हमहुँ अपन काममे व्य स्ता भऽ गेलौं ।
अचानक करिब २, ३ वर्षक बाद प्रियंका हमरा राजविराजमे भेटली । हम हुनकर मेकअप आ ड्रेस देखि दंग रहि गेलौं । हम अधिकारसँ पुछलियनि, की छै हालचाल ?की अहाँ जे चाहैत छलौं से भेट गेल .... ?
अहि पर ओ नितराइत बजली ‘ भेटीयो गेल आ सम्भीवतः नहियो...’
‘से कोना ? हम ः पुछलियैन ।
हमरा लग ओ सब त अछि, जे नहि होएबाक चाही । तखन ओ नहि अछि जे होएबाक चाही ।
‘ हम बुझलौं नहि ? ’— हम पुछलियै ।
‘अहाँक बात शुरुयेमे मानि लेने रहितौ त आइ... आत्म ग्ला नी भरल स्व रमे कहैत रहैथ की तखने समिप एक मारुती आबि रुकल । ओइमेसँ एक युवक उतरि प्रियंकाके समिप आबिकऽ बाजल— हाय लभली बहुत प्रतीक्षा करैलौ आइ काल्हिए त अहाँ बड़ अनमोल चिज भऽ गेल छी ... तें हातक हात विका रहल छी ।
प्रियंका एक नजरि हमरा दिश देखैत ओकरासँग मारुतीमे बैसि गेली आ हम देखैत रहि गलौ.. ओहि चिजके... ओहि लभलीके.... ।
कुमार मनोज कश्यप
जन्म मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। बाल्य काले सँ लेखन मे आभरुचि। कैक गोट रचना आकाशवानी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।
दिन धराबय तीन नाम
श्यामाबाबू़य़ानि श्यामानंद दास । भरि ऑफिस मे श्यामाबाबूक नामे विख्यात। गूढ-सँ-गूढ समस्याक चुटकी मे समाधन बतबैत छलाह श्यामाबाबू। तैं तऽ उच्चाधिकारी सभ सेहो हुनकर सलाह लेब नहि बिसरैत छलाह। श्यामाबाबू हमरा अपन छोट भाय जकाँ मानैत छलाह। जखन हम नया ज्वाईन केने रहि तऽ अंजान शहर मे अबुह बुझाईत रह ;मुदा श्यामाबाबू सँ भेंट होईते लागल जेना अपन लोकक बीच मे छी़य़ुग-युग सँ परिचित। डेरा तकबा सँ लऽ कऽ हिंग-हरदि सभ टा जोगार केने रहथि ओ। एतबे नहि, रोज पुछथि जे कोनो तकलीफ तऽ नहि बुझाईतअछि ?
सेवा-निवृत भऽ श्याम बाबू अपन बनाओल मकान मे रहऽ भागलपुर चलि गेलाह।एहि बेर भागलपुर जेबाक हमरा जखने मौका भेटल हम निश्चय केलहुँ सर्वप्रथम श्यामबाबू सँ भेंट कैल जाय़ कतेक दिन भऽ गेल भेंटो भेला़सेवानिवृति के बाद तऽ नहिये। भागलपुर स्टेशन पर उतरि रिक्शा भंजियबैत रहि किं ता हुनकर एकमात्र पुत्र पर नजरि पड़ल। हम चिकरि कऽ ओकरा बजौलियैक। लग मे एला पर सभ सँ पहिने श्यामबाबूक हाल-चाल बुझबाक प्रयास केलहुँ। ओ गम्भीर होईत उत्तर देलक --''ओना तऽ निके छथि, मुदा दिमाग कने सनकिं सन गेल छैन।'' हमरा अचम्भित होईत देखि ओ बाजल---''घर पर चलु; छोट सन बजारक काज कऽ कऽ हम यैह एलहुँ।'' कहैत ओ स्वूᆬटर स्टार्ट कऽ कऽ आगू बढ़ि गेल। ई दुखद समाचार सुनि मोन भारी भऽ गेल ।
घर पर पहुँच कऽ श्यामबाबूक नोकर गेटे पर ठाढ़ भेट गेल। ई बड़ स्वामीभत्तᆬ आ नेने सँ हुनका ओहिठाम काज करैत आबि रहल अछि। हम ओकरा सँ पुछलियै---''रामू! मालिक कोना छथुन?'' ओ चोट्टहिं अत्यंत गम्भीर होईत बाजल--''मालीक आब कहाँ रहलाह ।'' पेᆬर हमरा बैठकी मे एबाक ईशारा कऽ स्वयम भीतर चलि गेल। हमर माथ घुमऽ लागल। लागल नहि जानि कतऽ आबि गेलहुँ अछि । मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना। ताबत श्यामबाबूक कनियाँ घर सँ बहरेलीह। हम हुनका कऽल जोरि आभवादन कऽ हुनके सँ स्पष्टीकरण चाहलहुँ। मुदा, हाय रे हमर दुर्भाग्य ! ओ आओर जरल पर नून छिटलन्हि--''ओना तऽ स्वस्थ छथि,मुदा अकान भऽ गेलाह अछि । '' हमर माथ आर बेसी चकराय लागल । लागल जेना हम गलत जगह आबि गेलहुँ अछि । या तऽ घरक सभ लोक हमरा सँ मसखरी कऽ रहल अछि या सभ सनकिं गेल अछि । तखने श्यामबाबू घर सँ बहरेलाह-- स्वस्थ, तंदुरुस्त, ओहने मुस्कंी, वैह स्वभाव़। हमरा देखिते भरि पाँज कऽ गसिया लेलनि। हमरो आँखि सँ नोर बहऽ लागल। पेᆬर अपना के संयत करैत सभ टा बात बता देलियनि आ हुनके सँ एकर कारण जानऽ चाहलहुँ। हुनकर ठोर पर चिर-परिचित मुस्कंी पसरि गेलनि। पेᆬर छलिया सुपारीक सरौता सँ महीन कतरा कटैत बजला--''ओ सभ केयो सत्ये बजैत अछि ।''
''सत्य कोना श्यामबाबू?!!'' हम बिच्चहि मे टोकलियनि।
एक चुटकी कतरा हमरा आगू बढ़ा ओ हमरा संयत करबाक प्रयास केलनि। पेᆬर हमर प्रश्नवाची नजरि के अकानैत बजलाह--'' ओ खिस्सा तऽ सुननहिं हेबैक जे आन्हर सभ एक टा हाथी के देखि कऽ ओकर स्वरुपक कोना भिन्न-भिन्न व्याख्या केने छलैक। सैह अहु ठाम छैक । ''पेᆬर खखसि कऽ भहरल स्वर मे आगू बजलाह---''हमर पुत्र आहाँ के कहलनि जे हम सनकिं गेल छी ; से अपना जगह पर ओहो सत्ये छथि। हम हुनकर नीक-अधलाह पर टोका-चाली करैत छियैन ; से हुनका पसिन्न नहिं। आब आहं कहु जे अधलाह पर हम जिबैत जी चुप्पो कोना रहि जाऊ ?बजा तऽ जाईते अछि । तैं ओ हमरा सनकाह बुझैत छथि। ''पुनः आगू बजलह--'' जहाँ तक रामूक प्रश्न छैक तऽ नोकरी करैत काल मे हमहीं ओकर वेतन आ सभ आवश्यकता के पुरा करैत छलियैक; से आब रिटायर भेला पर नहि भऽ पबैत छै । तखन आहं कहु जे हम ओकरा लेल मरले सन छियैक ने?'' हम अवाक भेल एक टक सँ श्यामबाबू के देखैत आ हुनकर व्याख्या सुनैत रहलहुँ। ओ आगू बाजब शुरू केलनि---''हमर पत्नि तऽ पोता-पोतीक संग नव आश्रय ताकिं लेलनि आ बेटा-पुतोहु के हँ-मे-हँ मिलबैत रहैत छथि। आब हमर संस्कंार कहू वा आदति जे हम ई सभ नहि कऽ पबैत छि । तैं ओ हमरा अकान बुझैत छथि । '' कहि कऽ श्यामबाबू ख़िडकी सँ बाहर शुन्याकाश दिस देखऽ लगलाह। पेᆬर एक टा दीर्घ-निश्वास छोड़ैत बजलाह--''दिन धराबय, तीन नाम।'' सुन्न पड़ि गेल चेहरा पर एकटा मुस्कंी अनबाक प्रयास करऽ लगलाह श्यामबाबू़आगि के छाऊर सँ झंपबाक एकटा थाकल प्रयास़किंवा जीवनक दंश सहबाक जीजिविषा़।
।
हेमचन्द्र झा
कथा
एना किएक?
मन्नू भाय रहथि सामाजिक लोक । सभक हाड़ी-बिमारी आ बर-बेगरता मे ठाढ़ रहब रहनि हुनक कर्त्तव्य । गाम मे किनको ओहिठाम कोनो काज होई मन्नू भाय हाजिर । सभक काज मे आदि सँ अंत धरि सहयोग देबय वला मन्नू भाय बेस लोकप्रिय । की बच्चा कीए बूढ़ सभ हुनका मन्नुये भाय कहनि, चाहे ओ रिश्ता मे ककरो किछु लागथि ।
मन्नू भाय गरीब लोक । माथ पर बाप-पुरखाक छोड़ल मात्र १० कट्ठा जमीन,किछु घरारी आ घरारिये लग कने-मने बाड़ी-झाड़ी । एकरा अतिरिक्त गुजर करक लेल दू-तीन टा महीस पोसने रहथि । ओही महीस सभक दू-दही-घी, चिपड़ी-गोइठा बेचि कऽ गुजर करथि । माथ पर रहनि ५ गोटाक परिवार । पत्नी, तीन बेटी आ एक बेटा । आश्रम एखन रहनि लेधुरिया आ तें हरदम तंगो-तरीज रहथि । तथापि अपन सामाजिक दायित्वक प्रति सचेष्ट रहथि आ अपन काज खगाईयो के दोसरक काज मे मददि करबाक लेल हरदम तत्पर रहथि ।
एकबेर संजोग सँ ओ कोनो कुटमारे गेलाह । किछु विशेष काजक कारणें ओतय किछु दिन रुकय पड़लनि । ताहि बीच मुकुन्द बाबू ओहिठाम उपनयन बजरि गेल । मुकुन्द बाबू गामक धनिक लोक । हुनक एकमात्र बेटाक उपनयन मे गौंआँ कें दू-तीन दिन भोज खेबाक अवसर छलै । परन्तु बिनु मन्नू भायक भोज- भात हो कोना? समय बीतैत गेल आ कुमरमक दिन सेहो आबि गेल ।
भोरे-भोर मुकुन्द बाबू ओहिठाम लोकक जुटान भेल । समस्या छल जे पूरा गौंआँक लेल भानस-भात बिनु मन्नू भायक सहयोग सँ होयत कोना । लोक सभ एहि समस्या पर विचार कैये रहल छल की ता मन्नू भाय हाजिर भऽ गेलाह । लोकक जान मे जान आयल । मन्नू भाय कहलाह जे हमरा एकाएक आईये याद आयल जे मुकुन्द बाबू बेटाक आई कुमरम छनि आ हम भोरे-भोर ओतय सँ विदा भेलहुँ जे मुकुन्द बाबूक काज बिथूति ने होइन ।
मन्नू भायक जेठ संतान बेटी १२ वर्षक । दोसर रहनि बेटा ९ वर्षक आ दुनू छोट बेटी क्रमश: ७ आ ४ वर्षक । कनेदान सामने रहनि तथापि अपन एकमात्र बेटाक उपनयन समय पर कराबय चाहथि । अपन पेट काटि-काटि उपनयनक लेल एक-एकटा पाई जमा केने रहथि । बड्ड सेहेन्ता रहनि जे एकबेर अपना ओहिठम गौंआँ के खुआबी आ तकरे तैयारी मे भीतरे-भीतर लागल रहथि ओ ।
गाम मे चौधरी पट्टी प्रमुख । चौधरी पट्टीक तीन मुख्य शखा । दू शाखा मे मोछक लड़ाई रहैक आ ताही चक्कर मे गाम मे दुगोला रहैक । चौधरीक तेसर शाखा अपन भगिनमान सहित विभक्त रहथि । प्राय: सभ परिवार मे दुगोला रहैक । ताहू मे जखने कतौ काज बजरै कि कनफुसकी शुरू भऽ जाईक । मन्नू भाय सेहो एकटा गोल धऽ कऽ रहथि आ अपन बेटाक उपनयन मे ओहि पूरा गोल कें नोत दऽ कऽ खुएबाक पक्ष मे रहथि ।
शनै: शनै: उदोगक दिन आबि गेल । पूरा गोल मे हकार पड़ल । किओ बाँस,तऽ कियो खड़ लऽ कऽ हुनक मददि केलनि । समय पर बँसकट्टी भेलैक । ओही दिन मरबठट्ठीक दिन सेहो रहैक । लोक सभ अबैत रहलाह आ भेद पुरबाक ले दू-चारिटा बन्हन दऽ घसकैत रहलाह । सभ आबथि दू-चारिटा बन्हन देथि, शर्बत पीबथि, पान खाथि आ चुपचाप घसकि जाथि । अंतत: मड़बा ठाढ़ करबाक बेर रहि गेलाह मन्नू भाय, हुनक पितियौत कारी भाय आ एक दू गोटा आर । मन्नू भाय सन सामाजिक लोक कें ई आशा नहि रहनि जे समाज हमरा काज मे एना करत । पूरा जिनगी लोकक उपकार केने रहथि आ तें भरोस रहनि जे पूरा समाज हमरा काज मे तत्पर रहत ।
उदोग आ मड़बठट्ठी होइतहि उपनयनक उपक्रम शुरू भऽ गेल । रोज मड़बा नीपब, बहारब, मड़बा पर गीतक अनिवार्यताक संग हुनक पत्नी सेहो अति व्यस्त रहय लगलीह । देखैत-देखैत माटि- मंगलक दिन आबि गेल । एहि मे पुरुष-पातक विशेष काज नै रहैक तें माटि-मंगल नीके नां बीति गेलैक । प्राते छगरा धूर रहैक आ तकरे प्रात रहैक कुमरम । उपनयनक महत्वपूर्ण दिन । भगवती पूजा आ बलि प्रदानक दिन आ संगहि भोज भातक दिन । समाजक असली काज आईये रहैक । चँकि मन्नू भाय पहिनहि सँ बेटाक उपनयनक तैयारी कयने रहथि तें अपन पूरा गोल मे पुरुषक दफा नोत देलाह । आई पूरा विश्वास रहनि जे पूरा समाज हमर मददि करत । भला हो कोना ने? सभक बेर मे ठाढ़ होईत रहल छलाह सदिखन ओ ।
लेकिन ई की । समाजक लोक हुलकियो देबय नहि एलैन । जेना-तेना अपन पितियौत कारी भायक संग अहरी खुनलाह, टोकना-लोहियाक इंतजाम केलाह आ अहरी पजारि देलाह । परन्तु ५-६ मन चाऊर, ओकर दालि, तरकारी, बड़ी, सतमनि-अदौड़ी,पापड़ आदिक इंतजाम केनाई छोट काज नहि रहैक । अपस्यांत भऽ गेलाह दुनू भाय । बीच मे एक-आध गोटा जिज्ञासाक लेल अयबो केलाह, परन्तु कहि के जे गेलाह जे फेर अबैत छी से नहिये घुरलाह । एवं क्रमेण दिनक तीन-चारि बाजि गेल । किछु सामग्री तैयारो भऽ गेल ।
ता गोलक प्रमुख बालेश्वर चौधरी अपन सात-आठ चमचाक संग पहुँचलाह । हुनका पहुँचतहि सभ चमचा हड़बिड़ो मचबय लागल । मन्नू भाय के आदेश भेलनि जे चौधरी जीक स्वागत करहुन । तुरंत मन्नू भाय ओमहर गेलाह । शर्बत बनल, चाह बनल आ फेर पान भेलैक । चौधरी सहित चमचा सभ खेलक-पीलक आ ओतय सँ चलि देलक । पुन: रहि गेलाह मन्नू अपने दुनू भाय ।
ब्राह्मण कें नोति देने रहथिन आ तें मानू गरा मे उतरी बन्हा गेल रहनि । येन-केन प्रकारेण अपना कें एहि सँ उॠण केनाई छ्लैन । ताही मे लागल रहथि दुनू भाय । काज तँ प्राय: सोझरायल छलनि परन्तु चौधरी आ हुनक चमचा आबि आर गड़बड़ कऽ देलकनि । जा मन्नू अपने चमचा सभक स्वागत मे लगलथि कारी भाय असगरे पड़ि गेलाह । आंच तेज करथि तऽ अदहन उधियाईन आ अधहनक शमण करथि तँ आँच बन्न भऽ जाईन । येन-केन प्रकारेण ९ बजे राति धरि भोजक सामग्री तैयार भेल आ बिझहो भेल ।
भोजनक समय लेकिन सभ जुटलाह । राति भऽ जेबाक कारणें सभ पहिले तोर मे भोजन करय चाहथि । तथापि टोलक किछु नवतुरिया बारिक बनबा लेल तैयार भेल आ पहिल तोरक भोज समाप्त भेल । खूब यश भेलनि मन्नू भाय के । दोसर तोर मे नवतुरिया सभ भोजन केलक आ अपन घर चलि गेल । ई तँ धन्य कही नवतुरिया सभ कें जे बँटबाक जिम्मा उठेलक नहि तँ कदाचित ओहो काज अपने दुनू भाय के करय पड़तैन । समाज अपन चालि नीक जकाँ देखा देलक ।
फेर रहि गेलाह दुनू भाय । पाहुन परक के भोजन करबैत, कुमरम रातिक आन विध-व्यवहार करैत, आँठि-कचार करैत पूरा राति बीति गेल । एको मिनटक लेल दुनू भाय आराम नहि कऽ सकलह । खैर प्रात भेने उपनयन रहैक । आचार्य, पुरहित,नौआ, ब्रह्मा आदिक सहयोग सँ मन्नू भायक बेटा के जनऊ पड़ि गेलैन । उपनयनक राति मे अठबभना कऽ कऽ मुक्त भेलाह मन्नू भाय ।
आब मन्नू भाय सामाजिक लोक नहि रहलाह । अपना काज सँ मतलब राखथि आ अपने मे मस्त रहथि । समाज मे ककरो ओहिठाम बजाओल गेला पर टारि जाथि मन्नू भाय । आखिर मन्नू भाय एना किएक भऽ गेलाह? गंभीर प्रश्न अछि समाजक समक्ष ।
नवेन्दु कुमार झा
१.प्रदेशमे नहि थमि रहल जातीय हिंसाक दौर
प्रदेशमे एक बेर फेर जातीय हिंसाक विभत्सा रूप सोझा आयल। एक अक्टू बर दू हजार नौ के खगडि़या जिलाक अमौसी गाम मे जमीनक विवाद मे सोलह गोटेक भेल सामुहिक हत्याक बाद पुरा क्षेत्र मे डर पसरि गेल। प्रदेश मे जातीय हिंसाक कोनो ई पहिल घटना नहि छल आ ई अंतिम घटना होयत सेहो कहब उचित नहि होयत। आजादीक बाद सँ एखन धरि प्रदेश मे छोट–पैघ गोटेक एक सौ सँ बेसी घटना भऽ चूकल अछि जकर शिकार छोट किसान आ मजूर बनल छथि। बाईस नवम्बलर उन्नैकस सौ एकहत्तर मे पूर्णियाँ जिलाक रूपसपुर–चंदवा सँ प्रारंभ भेल हत्याक ई सिलसिला गोटेक चारि दशक सँ चलि रहल अछि आ शासक वर्ग लहास क दाम लगा (मोआबजाक घोषणा) अपन काज समाप्तक बुझैत अछि। जतय हिंसाक घटना होईत अछि ओतय सुरक्षाक नाम पर सरकार पैघ-पैघ घोषणा होईत अछि। एहि घोषणा पर किछु दिन अमल सेहो होईत अछि मुदा समय बितलाक संगहि ओ कमजोर पडि़ जाइत अछि आ समयक प्रतिक्षा मे लागल समाज विरोधी तत्वा जमीनक बहाने जातीय हत्याक एकटा आर घटना के मूर्त रूप दऽ प्रशासनिक व्यलवस्थातक पोल खोलि दैत छथि।
मध्य बिहारक एकटा पैघ क्षेत्रमे किछु दिन पहिने धरि जमीनक विवाद क लऽ कऽ संघर्ष होयबाक संवाद भेटैत रहल अछि। दरअसल एहि क्षेत्रमे जमीन किछु लोकक मध्यम अछि। ई पैघ जोतदार अपन बाहुबलक सहारा लऽ मजूर सँ काज करबैत छलाह। समय बितलाक संगहि मजूर वर्ग मे आयल चेतनाक बाद जमीन मालिक आ मजूर क मध्य संघर्ष प्रारंभ भेल। एकर परिणाम स्वगरूप जमीन मालिक आ मजूर क मध्यज एहि संघर्ष के लड़बाक लेल अघोषित सेना अस्तित्वक मे आयल। रणवीर सेना, लोरिक सेना, ब्रह्मर्षि सेना, सनलाइट सेना, भूमि संघर्ष समिति, एम सी सी आदि कतेको मजूर आ जमीन मालिकक समर्थन बाला सेना आपस मे टकरायल। सत्त तऽ ई अछि जे एहि टकराहटक शिकार बनल छोट किसान आ रोज-रोज खेत मे काज कऽ अपन पेट पालऽ बाला मजूर आ कतेको जान गेल, कतेको स्त्री क सेनूर धोआ गेल, कतेको नेना अनाथ भऽ गेल। तथापि समाज विरोधी असामाजिक तत्वो क हृदय पाथरि नहि पिघलल आ ओ खून सऽ लाल होईत घरती आ जमीन पर पड़ल लहास के देखि अपन बहादूरी बुझैत छथि।
हिंसा कोनो सभ्य समाजक लेल नीक चीज नहि अछि आ एहि सँ कोनो समस्याहक समाधान सेहो नहि भऽ सकैत अछि। ई हिंसा जमीन मालिक दिस सँ हो कि मजूर दिस सँ एकर जतेक निन्दाय कयल जा कम होयत। दुर्भाग्य तऽ ई अछि जे सामूहिक हत्याू सन घटना क बाद एकरा राजनीतिक चश्माय सँ देखल जाईत अछि। हत्यागक बाद जमीन पर बहल खून चाहे ओ जमीन क मालिक क हो कि मजूर के एकर रंग लाल रहैत अछि मुदा राजनीतिक चश्मा मे एकर रंग अलग-अलग रहैत अछि। जाहि जातिक हत्या होईत अछि ओहि जातिक नेता अथवा जे राजनीतिक दल एकरा अपन समर्थक मानैत अछि ओहि घटना स्थ ल पर जा ऐना नोड़ चुअबैत छथि जेना कि घटना स्थएल पयर्टन स्थअल हो। शासक वर्ग हो कि विपक्ष एहि तरहक घटना के अपन चश्मात सँ एक रंग देखि इमानदारी सँ प्रयास करथि तऽ संभव अछि जे प्रदेश मे चलि रहल जातीय हिंसाक दौर समाप्तज भऽ सकैत अछि। सरकार चाहे जाहि दल अथवा जातिक हो हत्या करय बालाके हत्या रा बुझि ओकरा सजा देयबाक प्रयास करय अन्यिथा एहि तरह घटना पर रोक लगायब सपना मात्र होयत।
प्रमुख नरसंहार पर एक नजरि –
वर्ष स्था न मृतकक संख्याब
1971- रूपसपुर–चंदवा (पूर्णियाँ) -14
1975- डेरभरथा (नालन्दा ) -24
1976- अकोढ़ी -03
1977- बेलछी (नालन्दा ) -14
1980- पिपरा कल्यााण चक (पटना) -14
1981- पारस बिगहा -11
1984- दनबार बिहटा (भोजपुर) -22
1986- गैनी (औंरगाबाद) -24
1986- अरवल -24
1986- डरमैन (औंरगाबाद) -11
1986- कंसारा (जहानाबाद) -11
1986- दरसमिया (औंरगाबाद) -11
1987- दलेल चक बघौरा (औंरगाबाद) -56
1988- नोनही नगवां (जहानाबाद) -18
1989- माली बिगहा–खिंदपुरा (जहानाबाद) -10
1989- दनबार बिहटा (भोजपुर) -27
1991- देव सहियारा (भोजपुर) -14
1991- तिसखोरा (पटना) -15
1992- बारा (गया) -39
1996- बथानी टोला (भोजपुर) -22
1997- लक्ष्मणपुर बाथे (जहानाबाद) -58
1998- नगरी -10
1999- सुजातपुर (बक्स र) -16
1999- शंकर बिगहा (जहानाबाद) -23
1999- सेनारी (जहानाबाद) -35
1999- सेन्दा नी -12
2000- जढ़पुर (बक्स र) -16
2000- लखीसराय -11
2000- मियांपुर (औरंगाबाद) -35
2007- ढेलफोरबा (वैशाली) -10
2007- मणिपुर (शेखपुरा) -09
2009- अमौसी (खगडि़या) -16
२.राजगीरमे सम्प न्नी भेल संघ क तीन दिवसीय बैसक गामे-गामे सक्रिय होयत संघ
राष्ट्रनवादी सांस्कृ तिक संगठन राष्ट्री य स्वययंसेवक संघक अखिल भारतीय कार्यकारी मंडलक तीन दिवसीय बैसक देशक वर्तमान परिस्थिति पर चर्चाक संगहि संगठनात्मयक स्थिति पर चर्चा कयल गेल। एहि बैसक मे संघ अपन काजक विस्तािर करैत पर्यावरण के अपन कार्य क्षेत्र मे सम्मिलित कयला संघक सर संघ चालक मोहन भागवतक उपस्थिति मे संघक वरिष्ठय नेता तीन दिन धरि चिन्त न मनन कयलनि आ चारि टा प्रस्ताोव सेहो पारित कयल गेल। एहि अवसर पर संघ अपन राजनौतिक इकाई भारतीय जनता पार्टीक दशा- दिशा पर विचार कयलक आ पी एम इन वेटिंग लाल कृष्णत आडवाणी आ वर्तमान राष्ट्रीचय अध्यीक्ष राजनाथ सिंह के भविष्यपक अएना सेहो देखा देलनि। दूनू नेताक भविष्यकक लऽ कऽ चलि रहल चर्चा क संदर्भ मे निर्णय जल्दीरए अयबाक संभावना अछि। बैसकमे संघक सभ अनुषांगिक संगठनक प्रमुख नेता सर संघचालक अपन उपलब्धि रिपोर्टकोर्ड रखलनि आ भविष्य क योजनाक जनतब देलनि।
बिहारक पर्यटन स्थधल राजगृह (राजगीर) मे संघक राष्ट्री य स्तारक ई पहिल आयोजन प्रदेशमे भेल छल। एहि बैसकमे संघ महत्वथपूर्ण निर्णय लैत गाम दिस अपन डेग बढौलक अछि आ गो-रक्षा अभियानक माध्यहम सँ जन जन धरि अपन पकड़ बनैबाक लेल ध्यानन केन्द्रित करबाक संकेत देलक। एहि वास्ते रोजगारक अवसर आ खेतीक विकास मे योगदान देबय बाला सक्रिय संगठन सभके मददि करबाक रणनीति से हो संघ बनौलक अछि।
कौग्रेसक युवा चेहरा राजीव गाँघी द्वारा राष्ट्रीसय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रमक माध्यलम सँ ग्राम मे भेल सक्रियता क जबाब देबाक लेल संघ विश्वर मंगल गो ग्राम यात्रा सेहो प्रांरभ कयलक अछि। पहिल चरण मे एहि यात्राक लेल एक सौ पचास गाम के चूनल गेल अछि। एहि माध्यरम सँ संघ काँग्रेसक अपन वैचारिक लड़ाई गाम सँ लड़ब प्रारंभ कऽ देलक अछि।
संघ आ काँग्रेस वैचारिक रूप सँ दू ध्रूव पर अछि। तथापि गामक विकासक मामिला संघ राहुल गाँघीक बाट पर चलबाक जे निर्णय लेलक अछि देशक भविष्यछ लेल नीक संकेत अछि। देशक पैघ आबादी एखनो गाम मे अछि जकरा विकासक रोशनीक आवश्येकता अछि। श्री गाँधीक गाममे सक्रियता पर संघक प्रचार प्रमुख मनमोहन वैघ क प्रतिक्रिया ‘जे केओ गामक बात करय नीक बात अछि’ स्वारगत योग्यग अछि। वैचारिक रूप सँ एक दोसरक विरोधी राजनीतिक क्षेत्र मे सक्रिय राहुल गाँघी आ सामाजिक क्षेत्र मे सक्रिय राष्ट्री य स्वरयं सेवक संघक इमानदारी सँ गाम दिस अपन ध्याआन देलनि तऽ संभव अछि जे ग्रामीण क्षेत्र मे विकास क नव रोशनी पसरत आ गामे-गामे खुशहाली पसरत। अपन भविष्या क चिन्तां आ पेटक आगि के शांत करबाक लेल महानगर दिस अपन डेग बढ़ा रहल ग्रामीण जनता गामे मे रखि अपन भविष्यन क खोज करत।
बिपिन झा
ये बान्धवाऽबान्धवा वा।
दियाबाती दीपक पर्व थीक। बहुतो व्यक्ति एहेन हेतथि जे अपन गाम सँ दूर नगर आ महानगरमे आबि अपन कार्य मे व्यस्त भय गाम-घरक दियाबाती कऽ संवेदनात्मक स्मृतिमात्र अपन मन मेसंयोजित राखि सन्तोष कयलैत हेतथि। आखिर गाम क दियाबाती आ एहि महानगर कऽ दिवाली मेअन्तर की छैक जेकर भेदक अनुभूति होइत छैक? महानगर मे तऽ चहू दिस बिजली क सजावट आ पटाखा आदि उपलब्ध रहैत अछि जे सहजता सँ गाम मे अखनो धरि उपलब्ध भेनाइ कदाचित कठिने अछि। ताहू मे मूलतः बिजली कऽ सहजता सँ पर्याप्त उपलब्धता नहि भेलाक कारण गाम आ महानगरक तुलने करब अनुचित होयत। मुदा तइयो महानगरीय दिवाली क चमकदार उल्लास सँ अधिक आनन्द ओ मधिम इजोत बला गामक दियाबातीक स्मृति दैत अछि।
यदि एकर कारण देखल जाय तऽ देखैत छी जे एक तऽ महानगरक यान्त्रिक जीवन एहि उल्लास कें न्यून कय दैत अछि आ दोसर मानवीयताक ह्रास अ ओ औपचारिकताक आधिक्य संवेदनात्मक अनुभूति करेवा मे असमर्थ सिद्ध होइत अछि। किन्तु आशय ई नहि जे ई समस्या गामक परिदृश्य मे सर्वथा नहि अछि वा महानगरीय जीवन सर्वथा त्याज्य अछि। कहबाक आशय मात्र एतेक अछि जे सापेक्ष दृष्टि सँ गाम तीव्रगति सँ बदलैत एहि समयचक्र मे संवेदनात्मक पक्ष कें रक्षा करवा मे अखनहुं समर्थ अछि।
हम गामक दियाबाती आइयो ओहिना याद करैत छी। लक्ष्मी पूजा कऽ बाद ऊक प्रज्ज्वलन होइत छलैक। सामान्यतया ओहि राति कालीपूजनोत्सव सेहो होइत छैक अस्तु ओकरो आनन्द लैत छलहुं।
ऊक प्रज्ज्वलन आदि न केवल परंपराक निर्वहण मात्र होइत छैक अपितु पारिवारिक सदस्यक मध्य हार्दिक सामीपता क कारण सेहो होइत छैक। दीप विशॆष रूप सँ कीटनाशक रूप मे प्रथित अछि। पटाखा आदिक आधिक्य तऽ गामो मे बढि रहल छैक मुदा अखनहुं सीमिते कहल जाय।
हम गामक एकटा घटना कऽ स्मरण कय विशेष रूप सँ गामक दिवाली स्मरण करैत छी। घटना करीबन १३ साल पहिलका अछि। १ टा महिला अपन सभ सन्तानक निमित्त दीप दय रहल छलथि। १टा बच्चा पुछलकैन – काकी अहां ई दीप दियाबाती दिन अलग से किया दैत छियैक…….? महिला भावुक भय कहलथि- अपन बच्चा सभ लऽ। ओ बच्चा फेर बाजल- अहां के तऽ…आ ई चारिम केकरा लऽ? ओ और भावुक भय गेली किन्तु बच्चा के किछु नहिं कहलखिन। हम ओहि समय अपन काज सँ हुनका लग गेल रही। बच्चा क ओ अनुत्तरित प्रश्न हमरा जिज्ञासित करय लागल। किछु दिन बाद हम हुनका सँ एकर चर्चा केलियन्हि। ओ कहलथि- अपन बौआ कऽ लेल (हुनकर आठ बर्खक बेटा मरि गेल छलन्हि )। हम एहि सँ पहिने अनेको बेर अपन बाबा कऽ मुँह सँ तर्पण काल मे ई सुनने रही- ये बान्धवाऽबान्धवा वा….। अर्थात जे कोनो पितर एहेन होथि जिनका कोई जल देन्हार नहि छथीन्ह हुनको तृप्ति होन्हि, एहि निमित्त हम ई जल दय रहल छी।
कहबाक भाव मात्र एतेक अछि जे गामक प्रत्येक परंपरा चाहे ओ दिवाली पर्व हो वा अन्य, मानव के स्नेहबन्ध मे रखबाक, आ पारस्परिक सौहार्द्रता एवं कर्तव्यबोध निमित्त होइत अछि। एहि के प्रत्युत महानगरीय परंपरा ’सेलिब्रेट’ करबाक बहाना मात्र दैत अछि। ओ महिला बहुत नीक जकां बुझैत हेथीन्ह जे ओ बेटा संग हुनक संबन्ध सर्वदा क लेल टुटि गेल छन्हि मुदा तखनो ओकर प्रसन्नता क कामना हेतु दिबारी जरबैत छलखीन्ह। संगहि ई आठ बर्ख धरि ओकरा द्वारा देल गेल स्नेह आ सम्मानक निमित्त हुनक कृतज्ञताक परिचायक छलन्हि।
अस्तु ओ महिला क दीप देनाइ सम्वेदनात्मक स्मृतिक रक्षा सँ संदर्भित छल। तीव्र गति सं बदलैत एहि युग मे हम सब एहि संवेदनात्मक पक्ष कें रक्षा नहि कय पाबि रहल छी। यदि जीवन सँ संवेदात्मक पक्ष के निकालि देल जाइ तऽ वस्तुतः मनुष्यक जीवन शून्यक पर्याय बनि जायत। एहि निमित्त आवश्यक अछि जे एहि चकाचौन्ध कें संग ओ धूमिल टिम्टिमाइत दियाबाती दिन जरै बला दिबारी कऽ बाती नहिं खत्म हो, एकर सदिखन रक्षा कयल जाइ।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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