भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Friday, January 01, 2010

'विदेह' ४९ म अंक ०१ जनबरी २०१० (वर्ष ३ मास २५ अंक ४९) PART II

३. प्रो. प्रेमशंकर सिंह
मणिपद्मक कथा–यात्रा
स्वाधीनता–संग्राम विकट–प्रत्युहक पश्चात् देश जखन स्वतंत्र भेल तखन भारतीय शासन–व्यवस्था भेला पर आधुनिक भारतीय भाषामे साहित्य–सृजनक एक प्रबल ज्वार आयल परिणाम भेलैक जे साहित्य–सरितामे एक नव–स्पन्दनक संचार भेलैक आ प्रत्येक सृजक अपन–अपन साहित्यक विकासार्थ अभूत पूर्वगतिएँ साहित्य–सृजन दिस उन्मुख भेलाह तथा प्रत्येक विधामे अत्युच्य कोटिक साहित्य–सृजनक अभूतपूर्व परम्परा उद्भूत भेल। एहि दिशामे मैथिली–साहित्य पछु आयल नहि रहल; प्रत्युत निर्वाध गतिएँ साहित्य–सृजनक परम्पराक शुभारम्भ भेलैक जकर प्रकाशनक श्रेय समकालीन पत्रिकादिकेँ छैक जे नव–नव प्रतिभा सम्पन्न साहित्य सृजनिहारकेँ साहित्य–साधना दिस उन्मुखक कए प्रोत्साहित करब प्रारम्भ कयलक। एकरे प्रतिफल थिक जे स्वाधीनताक पश्चात् मैथिली–साहित्यक सर्वांगीन विकास भेल तथा प्रत्येक विद्यादिमे नव–रूपें साहित्य–सृजनक परम्पराक श्री गणेश भेल। स्वाधीनोत्तर कालमे मैथिली गद्यक विकासमे वैदेही (1950), मिथिला दर्शन (1953) तथा मिथिला मिहिर (1960) अन्य पत्रिकादिक अपेक्षा दीर्घजीवी भेल साहित्य–सरिताक प्रवहमान वेगवती धारामे अवरोध नहि होमय देलक।
मैथिली कथा साहित्यकेँ प्रोढ़, प्राणवंत, समुन्नत आ समृद्धशाली बनयबाक दिशामे पटनासँ प्रकाशित मिथिला मिहिरक पुनर्प्रकाशन निश्चये मीलक पाथर प्रमाणित भेल जे सहस्त्राधिक कथाकारक एक वर्ग तैयार कयलक जनिक कथा एहि लब्ध–प्रतिष्ठ पत्रिकामे अनवरत प्रकाशित होइत रहल जकर श्रेय आ प्रेय छनि एकर विद्वत वरेण्य साहित्य चिंतक आ सम्पादक सुधांशु शेखर चौधरी (1920–1990)केँ जे प्राचीन एवं अवाचीन कथाकारक अद्भुत समंवय कयलनि। एहि विषयकेँ ध्यानमे राखि एकर प्रत्येक अंकमे कम सँ कम दुइ आ अधिक सँ अधिक चारि कथाक समावेश कयलनि। एकर अतिरिक्त समसामयिक पृष्ठभूमिमे मिथिलांचलमे प्रचलित व्रत–त्योहारक कथा सेहो समय–समयपर प्रकाशित होइत रहल। मिथिला मिहिरक नव वर्षक प्रवेशांक कथा–अंकक रूपमे नियमित रूपेँ बहराइत रहल जे एकर साक्षी थिक मैथिली कथा–साहित्य अपन प्रौढ़ताकेँ प्राप्त कयलक। कारण मैथिली कथा–साहित्यक सर्वाधिक सशक्त ओ सम्पन्न विधा कथा ओ कविता थिक। निश्चयतः एहि कथानक सत्यताक अपलाप नहि कयल जा सकैत अछि। किंतु एहि स्थितिक संग–संग इहो विचारणीय विषय थिक जे कोन एहन तत्व सभ विशेषतया कथाकार लोकनिक मध्य काज कयलकनि जे अपनाकेँ स्थापित करबाक हेतु कठिन साहित्य–साधना कयलनि तथा निरंतर हुनक कथा धारा प्रवाहित होइत रहलनि, कारण कथा गद्य–साहित्यक विशिष्ट विधा थिक जकर प्रतिरूप मैथिली–कथामे सर्वत्र दृष्टिगोचर होइत अछि।
उपर्युक्त पृष्ठभूमिक परिप्रेक्ष्यमे डा. व्रजकिशोर वर्मा मरिपद्म (1918–1986) एक एहन प्रतिभा सम्पन्न कथाकार उद्भूत भेलाह जे एहि विधामे अपन अक्षय कथा कृतिक कारणेँ एक कीर्तिमान स्थापित कयलनि जे निश्चये मैथिली–साहित्येतिहासमे एक अविस्मरणीय ऐतिहासिक घटना थिक। क्वालिटी आ क्वानटिटीक दृष्टिसँ विश्लेषन कयल जाए तँ हिनक कथा–यात्रा अनंत छनि। ओ जाहि विपुल परिमाणमे मैथिली कथा–भण्डारकेँ भरलनि जे अन्यान्य कथाकार लोकनिक द्वारा सम्भव नहि भऽ सकल, किंतु एतय एक प्रश्न वाचक चिह्न अछि जे विपुल परिमाणमे कथा–रचना कयलो पर ई साहित्येतिहासमे सर्वथा उपेक्षिते रहि गेलाह।
मैथिलीक वरिष्ठ इतिहासकार डा. जयकांत मिश्र (1922–2009) हुनक कथा–यात्राक प्रसंगमे A History Of Maithili Literature (Sahitya Academy New Delhi 1976) तथा मैथिली साहित्यक इतिहास (साहित्य अकादेमी नई दिल्ली 1988)मे एको शब्द लिखब उचित नहि बुझलनि, ने जानि किएक? साधारण पाठक तँ इएह अनुमान करत जे ओ मरिपद्मक कथादिसँ सर्वथा अनभिज्ञ वा अपरिचित छथि, वा जानकारीक अभाव छनि वा जानि बूझिक उपेक्षा कयलनि।
राधाकृष्ण चौधरी (1924–1984) A Survey Of Maithili Literature (शांति निवास, बमपास टाउन, देवघर, झारखण्ड, 1976) मैथिलीक विस्तृत चर्चा करैत हुनक दुइ कथाक विशेष उल्लेख कयलनि अछि, Manipadm’s Purishaka Mula (Value Of Man) and Kona Elini (What brought you) (Page 247–248)|
चेतना समिति पटना द्वारा आयोजित भारती–मण्डन–व्याख्यान मालाक अंतर्गत डा. जयधारी सिंह (1929–2000) मैथिली कथाक विश्लेषण करबाक क्रममे कथाकार लोकनिक उपलब्धिक मूल्याकंन करबाक अपेक्षा कथा संग्रह सभक परिचय दऽ कए ओहिमे संग्रहीत कथा कारक जे परिचय देलनि जे वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यमे अप्रासंगिक प्रतीत होइत अछि। एहि क्रममे ओ परिपद्मक साहित्यकारक दिन (संचयिता), शाश्वत ऑल इण्डिया रेडियो (अभिव्यञ्जना), प्रतिद्वन्द्विता (पल्लव) एवं दक्षिणा (मिथिला मिहिर) कथाक उल्लेख कयलनि (मैथिली साहित्यक रूप–रेखा पृष्ठ 89–103)।
मैथिली साहित्यक इतिहास (भारती पुस्तक केन्द्र दरभंगा 1991)मे डा. दुर्गानाथ झा श्रीश (1929–2000) मैथिली गद्य साहित्यक विश्लेषणक अंतर्गत आधुनिक गल्प–साहित्यक अंतर्गत नकटाक शिकार (वैदेही), पट्टीदार (वैदेही), एवं संयोग (वैदेही) मात्र कथाक उल्लेख कयलनि आ हुनक कथाक प्रसंगमे एको शब्द लिखब उचित नहि बुझलनि (381–382)।
डा. दिनेश कुमार झा (1941–2002) मैथिली साहित्यक आलोचनात्मक इतिहास, मैथिली अकादमी, पटना 1979)मे मैथिली कथाक प्रवृत्ति मूलक विश्लेषण करबाक क्रममे हुनक मात्र दुइ यथार्थवादी कथा शोणितक स्वाद (मिथिला मिहिर) एवं दछिना (मिथिला मिहिर)क उल्लेख कयलनि, किंतु हुनक कथा–धाराक वा प्रवृत्तिक कोनो विश्लेषण नहि कयलनि जे हास्यास्पद प्रतीत होइछ।
हाल चाल (1986)क मरिपद्म–श्रद्धाञ्जिल अंकमे मात्र पैंतीस कथाक शीर्षक चर्चा कयल गेल अछि जे उपहास्पद थिक।
साहित्य–अकादेमी आ चेतना समिति पटनाक तत्वाधानमे मैथिली गद्यक विकास (1994) पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठीमे मोहन भारद्वाज (1943) मैथिली कथा गद्यपर अपन आलेख प्रस्तुत कयलनि, किंतु मरिपद्मक सदृश सशक्त गद्यकारक गद्यक प्रसंगमे ओ विचार करब अनावश्यक बुझलनि जखन कि हुनक गद्य अत्यंत सशक्त ओ प्राणवंत अछि जकर यथार्थताक अवबोध पाठककेँ हुनक कथाक अनुशील नहिसँ पाठककेँ होयतनि।
डा. मिघन प्रसाद (1961), मैथिली कथा कोश (1996)मे मरिपद्मक एक सय आठ कथाक शीर्षक वद्ध उल्लेख कयलनि जाहिमे सँ मुनरीक मोल (1964) कथा नहि; प्रत्युत एकांकी थिक जकरा हम अनमिल आखर (कर्ण गोष्ठी कोलकता 2000)मे संकलित कयल अछि। ओहिमे सँ तीन कथाकेँ अर्चित मानलनि अछि। (कथा कोश पृष्ठ-......), किंतु हमरा जनैत हुनक कथाकेँ मर्मकेँ आत्मसात करबाक दिशामे ओ सचेष्टता नहि देखौलनि तेँ एहन निष्कर्ष बहार कयलनि। डा. प्रसाद बहुचर्चित, चर्चित तथा अर्चित कथा क्रम जे एहन निर्धारण कयलनि अछि ताहिसँ हम असहमत छी, कारण कोन आलोचक प्रत्येक कथाकारक कथा–कृति धरि सीमित रहि जाइत छथि। किंतु जाहि समीक्षककेँ उपयुक्त अवसर भेटैत छनि तँ ओ समग्र कथा–कृतिक प्रत्येक पक्षसँ परिचित भऽ कए वास्तविक समीक्षा करबाक प्रयास करैत छथि।
अवलोकन (1995)मे डा. अरूण कुमार कर्ण (1961) मरिपद्मक कथा–संसार शीर्षकसँ एक समालोचनात्मक आलेख अछि जाहिमे हुनक सम्पूर्ण कथा–कृतिक विश्लेषण नहि कऽ कए मात्र वैदेही ओ मिथिला मिहिरक जे कथादि हुनका उपलब्ध भेलनि, ओहि आधार पर हुनक आलेख केन्द्रित अछि। डा. कर्ण सेहो मुनरीक मोल (1964)केँ कथा कहलनि जे नितांत भ्रामक आ अशुद्ध थिक।
उपर्युक्त परिप्रेक्ष्यमे आब आवश्यक भऽ जाइत अछि जे डा. व्रज किशोर वर्मा परिपद्मक कतेक कथा कृति अद्यापि मैथिलीक विभिन्न पत्र–पत्रिकादिमे आ कथा–संग्रहादिमे प्रकाशित अछि तकर यथार्थतासँ जनमानस पाठक परिचित भऽ जाथि। मैथिली कथा–द्वारपर मरिपद्म दस्तक देलनि बीसम शताब्दीक षष्ठ दशक आरम्भिक कालमे, जाहि हुनक लेखकक एक दिन (1950), जामवंत चारी (1952), धरतीक हाक (1953), नकटाक शिकार (1954), पट्टीदार (1954), संयोग (1955), ओ दिन आ ओह दिन (1957), दुनू छोर (1959), भट्ठापरक पीपर (1960), ओइ लेखक दुआरे (1960), क्षण आ मन (1961), तऽरमे एक्के (1962) एवं मिस फिट (1969) कुल तेरह कथा प्रकाशित अछि।
दरभंगासँ प्रकाशित मिथिला मिहिरमे हुनक इजोतदाइ (1951), जोगबा मिसर (1951) बाल गोविन्द (1953), सुमरिन महालन (1953) एवं राजकुमारी चैननक रोमांस (1953) कुल पाँच कथा पाठक सम्मुख आयल।
किंतु हुनक कथा–यात्राक शिल्प विकसित भेल तखन, जखन पटनासँ ओकर पुनर्पकाशन प्रारंभ भेलैक जाहिमे साधनाक मोह (1960), सफलताक छड़पान (1960), युधिष्ठिक पत्नी (1961), माइक संस्कृति (1961), हमर अष्टग्रह (1962), विसरल नहि जाइत छैक (1962), मरूधारा (1962), बहिनिक दुलार (1963), मुक्ति दिवस (1965), ओ विश्व विद्यालय (1965), आकृतिक ओहि पार (1965), दछिना (1966), उजरा बीछ (1967), लेखा–जोखा (1968), शोणितक स्वाद (1968), करोरिया मुँह (1969), खण्डित – साधना (1970), एकटा लौंग मार्च (1971), केँ? (1971), झिंगुर टेल (1972), सरोकारी (1972), लवहरि कुशहरि (1973), दोस्ती (1973), तेसर प्रेत (1974), स्वगता (1975), एकटा खुटेसल बकरी (1976), सोनहुला कनतोड़ (1976), श्मशानसँ घुरलापर (1976), प्रतिशोध (1976), सर्पसागर आ सुन्दरी (1976), हीरो गिरगिट (1977), हुनका नहि कहबनि (1977), खोजक भेंट (1978), चमचा (1978), एयर होस्टेज (1978), बस स्टैण्डपर (1979), चाहवाला छौड़ा (1979), जहीहा (1980), अद्वैत (1982), समाद (1982), क्षतिपूर्ति (1982), बसक बात (1983), एवं दानी दार (1984) कुल पचास प्रवासी मातृभाषानुरागी लोकनिक सहयोगसँ बङ्ग भूमिक महानगर कोलकातासँ प्रकाशित पत्रिकादिमे, मिथिला दर्शन (1953), कथीले (1955), लुतुक (1955), पोखरि खोर (1955), दुपरिया रातिक शिकार (1956), केशकरक इशारा (1957), बीसक ढ़ोलकिया (1958), प्रवासी एलाह (1960), मौनव्यथा (1960), हाफे हाफ (1960), कोव्रागर्लक खोजमे (1964), अदला – बदली (1973), एवं एकटा जरैल मोमबत्ती (1977)
मैथिली प्रकाशमे एकटा फाजिल पोस्ट कार्ड (1976–77), आखरमे चिंतामरित (1968) तथा मैथिली दर्शनमे खंजरी लै कै (1976) एक–एक कथा प्रकाशित अछि। धीया पूतामे बिलाइक डायरी (1960), अभिव्यञ्जनामे तीन शाश्वत ऑल इण्डिया (1960), ओइ राति (1962), एवं बुझले छल, निर्माणमे तीन रखबाक आ भरिया (1954), जौं लोक चढ़ैत होइ (1955) एवं रौंग साइड (1955), पल्लवमे तीन घरमुँहा (1957), नीमाक तीन युग (1957) एवं प्रतिद्वन्द्विता (1958), अभियानमे एक तुलिका लऽ कऽ (1963), आहूतिमे सरिसवक सागर (1976), कथा दिशामे एक एकपहिया ट्रेक्टर आ दोसर (1980) देस कोसमे अहैत (1981), माटि पानि आधुनिकीकरण (1984) तथा स्मारिका (धनबाद)मे एक हुनका खोजमे प्रकाशित अछि।
मरिपद्मक किछु कथा एहनो उपलब्ध होइत अछि जे नवीन पुस्तक प्रकाशनोपलक्षमे साहित्यकारक दिन (1953) टटका गप्पमे ओ दुनू (1964), गल्प–सुधामे क्रिमनल (1964), गल्प गुच्छमे नैका बनिजारा (1979), मैथिली ललित गद्यमे यात्रा (1973) तथा साहित्य–सौरभमे महाप्राण सलहेस (1987), अतएव ओकर प्रकाशन तिथि पुस्तक प्रकाशन तिथि मानव उचित हैत। केवल ओ दुनू कथाक पश्चात् जा कऽ मैथिली अकादमी पत्रिका (जनवरी–दिसम्बर 1985)क अंकमे प्रकाशित भेल।
मैथिली प्राचीन ओ अर्वाचीन पत्रिकादिक अनुसंधान कऽ कए हमरा दृस्टिएँ कुल एक सएसँ बेसी कथा प्रकाशित अछि। हमरा अनुसंधानक क्रममे चारि कथाक सूचना आर भेटल अछि ओ थिक वैदेहीमे एक जामवंत चाही (1952), मिथिला दर्शनमे दू मिल औरो दिऔ (1959) तथा राधाकृष्ण चौधरी दू कथाक पुरूषक मोल एवं कोना अयलनिक चर्चा कयल;अनि अछि जे अनुसंधेय थिक। एहू सम्भावनाकेँ नहि अस्वीकारक जा सकैछ जे हिनक आर कथादि विभिन्न पत्रिकादिमे प्रकाशित हो जाहि दिस अद्यापि अनिसंधाता लोकनिक नजरि नहि गेलनि अछि।
अद्वैत शीर्षकसँ सेहो मरिपद्म दुइ कथाक रचना कयलनि जकर उल्लेख भेटैत अछि। एक देस कोस नवम्बर 1981 तथा दोसर मिथिला मिहिर 3 जनवरी 1982क अंकमे प्रकाशित अछि आ दुनू कथाक भाव भूमि सर्वथा पृथक–पृथक अछि। किंतु कथा कोशकार मिथिला मिहिरमे प्रकाशित कथाकेँ अनुसंधान एवं कथानु क्रमणिकामे उद्वैत कहलनि अछि। ओ अपन सूक्ष्म दृष्टिक उपयोग करबामे अन्यमनस्कता देखौलनि अछि, कारण अद्वैत एवं उद्वैतमे हुनका कोनो अंतर नहि बुझना गेलनि। पाठकक एहि भ्रम दूर करबाक उद्देश्यसँ प्रस्तुत संग्रहमे हम दुनू कथाकेँ समाविष्ट कयल अछि।
मरिपद्मक मसिजीवी साहित्यकार रहथि जनिक साहित्य–साधनाक अविरल धारा सतत कल–कल करैत साहित्य–सरितामे प्रवाहित होइत रहलजे मैथिलीक विभिन्न पत्रिकादिक अनुशीलनसँ स्पष्ट अछि। हुनक साहित्य–साधना निर्वाध गतिसँ प्रवाहित होइत रहलनि तथा ओ जीवनक अंतिम क्षण धरि साहित्य–साधनामे तल्लीन रहलाह जकर साक्षी थिक हुनक अक्षय–साहित्य–भण्डार। मरिपद्म कथा–साहित्यमे प्रवेश कयलनि वैदेहीक माध्यमे, किंतु बिस्तर भेटलनि मिथिला मिहिरमे तथा कथा–जगतमे चिन्हस गेलाह बाल गोविन्द (1953) कथा लऽ कए जे हिनका अविस्मरणीय कथाकार बनादेलक। हुनक कथा परिधिक व्यापकताक अनुमान तँ एहीसँ लगाओल जा सकैछ जे हुनक समसामयिक कोनो एहन पत्रिकादि नहि अछि जाहिमे हुनक कथा नहि प्रकाशित भेल हो।
मरिपद्म माने प्रवाह। मानवीय भावनाक प्रवाह। भाषण ओ लेखनमे प्रवाह। यथार्थताक नाम पर कलाक नाम पर ओ मानवीय भावनाकेँ थकुचि देबाक प्रबल विरोधी रहथि। कथा कहबाक शिल्पमे केवल संदेश देनिहार रहथि जे मानवीयताक हत्या नहि हो। समाजक हर व्यक्ति स्वर हिनक कथादिमे गुंजित होइत अछि चाहे ओ सामाजिक हो वा असामाजिक। सामाजिक यथार्थक मार्मिक मूल्याकंन हिनक कथा साहित्यक वैशिष्टय अछि। उपन्यास एवं कविता सदृश हिनक कथादिमे भावुकताक प्रभुसत्ता भेटैत अछि। एहि सभमे भोगल यथार्थ जीवनक विसंगति, जटिलता, कुण्ठा–संत्रास तथा यथार्थ जीवनक विविध आयामकेँ ओ अभिव्यक्त कयलनि। कविताक समानहि ओ गद्यमे उपमा–उपमानक झड़ी लगा देलनि अछि। आधुनिकताक परिवेशमे परिवर्तित होइत सामाजिक पृष्ठभूमिक यथार्थताक मूल्याकंन हिनक कथाक मर्मज्ञताक अछि। लोक–प्रचलित सहज–संवेद्य, बोध गम्य, सरल, सुकुमार शब्दावली जे मैथिलीमे विलुप्त भेल जा रहल छल ओहि सभक दस्तावेज थिक हिनक कथा जगत, जाहिमे प्रचुर परिमाणमे ओ ओकर प्रयोग भेल अछि।
मरिपद्म कथा–धारामे एक–सँ एक महत्वपूर्ण हिलकोर अनलनि तथा जीवनक महत्वपूर्ण सूक्ष्माति सूक्ष्म धड़कन, शाश्वत एवं सम्प्रतिक समस्याक जीवंत चित्र प्रस्तुत कयलनि। हिनक कथा–साहित्यक वैशिष्टय थिक जे भाषा–शैलीमे रोचकता, गम्भीर दृष्टिकोणमे व्यापकता, धारावाहिकता–भावुकता प्रभुसत्ता, महत्वपूर्ण उद्देश्य हुनक कथामे सर्वत्र उपलब्ध होइत अछि। हिनक कथामे प्रभावोत्मादकता, कल्पनाक प्रौढ़ता, प्रकृति वर्णनक सश्रीकता, कथानक–क्षेत्रक विशालता, विश्वव्यापी अनुभूतिक उद्घाटन तथा पात्रक अंतः स्तलमे प्रवेश करबाक अद्भुत क्षमता अछि। कथा तत्वकेँ सुरक्षित रखैत चरित्रक सूक्ष्मता, वातावरण ओ परिस्थितिक निर्माण कऽ कए उत्कर्ष–विधान हिनक कथाक मार्मिकता अछि। हिनक कथाक दृष्टि ओ दृष्टिओ दृष्टिमे भिन्नतासँ भरल अछि। कथोमे अद्युनातन प्रवृत्तिक रचना आ रचनाकारक खबरि ओ रखैत छलाह चाहे ओ रवीन्द्रनाथ ठाकुर (1861–1941), की जार्ज बनार्ड शाँ (1856–1950) अथवा टी.एस.इलिएट (1888–1964)। हिनक कथामे सामाजिक ओ वैयक्तिक दुनू पक्षक सम्यक रूपसँ चित्रित भेल अछि। ओ कथामे देश एवं अंचलक समस्या पर अपन विचार निर्भीकताक संग प्रस्तुत कयलनि। मरिपद्मक कथा–गद्यक सूक्ष्म रूपेँ विश्लेषण कयल जाय तँ कतिपय आलोचनात्मक कृतिक सम्भावना दृष्टिगत भऽ रहल अछि। मैथिली कथा साहित्यपर पर्याप्त मात्रामे आलोचनात्मक कृतिक अद्यापि अभावे अछि।
मरिपद्मक विशाल कथा–यात्राक परिधि अछि। ई जाहि परिमाण अमे कथा लिखलनि ओहि परिमाणमे अद्यापि मैथिलीमे कोनो कथाकार कथा–रचना नहि कऽ पौलनि। हिनक सम्पूर्ण कथा–यात्रा केँ एकहि संग प्रकाशित करब दुःसाध्य ओ असम्भव थिक, कारण समग्र कथा एक विशाल ग्रंथक आकार लऽ लेत जकर सम्भावना मैथिलीमे नहि दृष्टिगत होइत अछि जे क्यो प्रकाशक एहन विशाल–काय कथा–संग्रह प्रकाशित कऽ पौलाह। मैथिलीक हेतु दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति अछि जे हुनक जीवन–कालमे कोनो कथा–संग्रह नहि प्रकाशित भऽ सकल। एहन साहित्य–मनीषीक साहित्य–साधनाक एहिसँ पैघ पुरस्कार आन किछु नहि भऽ सकैछ जनिक स्मृति पटल पर मरिपद्मक साहित्य अद्यापि आच्छादित कयने अछि। पुस्तकाकार रूपमें हुनक कथा–कृतिक प्रकाशनो परांत हुनक कथा जनित प्रतिभाक वास्तविकताक यथार्थताक मूल्यांकनक सम्भावना अछि।


४. रामलोचन ठाकुर
• समकालीन मैथिली-कथाक यथार्थ-उर्फ यथार्थक-कथा

• आयू प्राय: समस्तथ समीक्षक- समालोचक लोकनि कहैत छथि, आ ऐ उचिते कहैत छथि, जे समकालीन मैथिली कथा-भारतक जे कोनो भाषाक समकालीन कथाक’समकक्ष अछि। अपन गुणवत्ताए नहि गुणालाकताक आधाऐ पर समकालीन मैथिली कथा आ कविता अन्याान्यच विघासँ आगू अछि ताहिमे संदेहक कोनो अवकाश नहि। आ ई गुणवत्ता थिक’’ ओकर यथार्थपरकता जे आजुक मिथिलाक यथार्थ थिक। एहिठाम’’स्पवष्ट’’’ कऽ दी जे मिथिलाक यथार्थसँ हमर तात्पठर्य मात्र भौगोलिक मिथिलाक (जे वर्तमानमे अछिए नहि) रौदी–दाही, पाबनि–तिहार, भोज–भात, वर्ण–विद्वेष, अभाव–अभियोग, इच्छाक–आकांक्षा, धरि–सीमित, नहि अछि अपितु राज्यन-केन्द्रटसरकार द्वारा वंचित-अवहेलिब मि‍थिलाक जलबल, जे अपन उदर पूर्ति आ परिवारक भारण–पोषण हेतु प्रवास पलयिन लेल बाध्यद अछि, असम पंजाब, मुम्बई, मध्य–प्रदेशसँ भारतक राजधानी दिल्लीि धरि अवांक्षित- उपेहित गारि-मारि खाइत- जीवन व्तींजात–करबा लेल बाध्या अछि, तकरो–यथार्थ अछि; यद्यपि समकालीन कथा-साहित्यगमे ई विषय-बात तेना भऽकेँ देखभगर रूपमे नहि आयल बुझना जाइछ।
• मैथिलीमे कथा-लेखन” बेस विलंबसँ प्रारंभ भेल। डॉ. जयकान्तन मिश्रक अनुसार 1920 ई. धरि लोककेँ ई बोधे नहि छलैक जे कथा की थिक, वा कथा ककरा कही? डॉ रमानन्दि झा ‘रमण’क अनुसार मैथिलीक प्रथम कथा थिक श्री कृष्ण ठाकुर ‘चन्द्रभ प्रभा’जकर’ रचनाकाल 1880 ई.सँ पूर्वक थिक। डॉ. जयकान्त मि‍श्रक अनुसार ‘चन्द्राप्रभा’1885ई.क रचना थिक जकर रचनाकार छथि-श्रीकृष्णर सिंह ठाकुर। मोहन भारद्वाज जनार्दन झा ‘जनसीदत्तक ‘ताराक वैधव्यद’केँ प्रथम मौलिक कथा होएबाक ज्ञात कहैत छथि ई विडम्णाना थिक मैथिली साहित्यसक इतिहासक।
• विमर्शसँ ज्ञात होइछ जे विगत शतीक चारिम दसकसँ कथा-लेखन गति पकड़लक। मुदा ताहि कथा सभमे मिथिला नहि छल, मिथिलाक यथार्थ नहि छल। एहिमे संदेह नहि जे मैथिल समाज खंड-खंडमे विभक्ति छल, प्रारंभसँ रहितो वृहत्तर मैथिल समाजक यथार्थमे साम्यल तँ छलैके, जे विषय-बात मात्र कथा नहि, हमर समस्त साहित्यतसँ असंभव रूपेँ अनुपस्थित छल। हमर समस्ते साहित्ये एक विशेष वर्गक, जकर संख्याि दस शतांशसँ वेशी नहि छल, घुरखुर ओगरते रहल। एकर विडम्ब ला नहि तँ आर की कहल जाएत जे हमर लोकजीवनक यथार्थ हमर साहित्य -संस्कृ ति हमर कला-कौशल बाहरक लोककेँ आकर्षित- उद्वेलित करैत छैक, प्रेरित-प्रभावित करैत छैक, मुदा हमरा लोकति लेखे धनसन। हमर लोक साहित्या देखि ग्रियर्सन मुग्ध भेल छलाह, हमर चित्रकला देखि विलियम आर्चर आभिभूत भेल छलाह, हमर लोक जीवनक यथार्थ बंगला साहित्यहकार सतीनाथ भादुरीसँ विभूतिभूषण मुखो पाध्याूय धरिकेँ पेरित-प्रभावित कएने छल, परंच हमर सर्जक प्रतिभा एहि सभसँ विमुख साँफ पराती भोर बिहाग राग ढ़ेरबामे व्ययस्ते आ मस्ता छलाह।
• कोनो विषय-वस्तुस पर लिखबाक लेल ई आवश्याके नहि अनिवार्य थिक जे ताहि विषय-वस्तुहक बोध हो! आ से होएब निर्भर-करैछ लेखकक स्थिति अवस्थायन पर ओकर सामाजिक सरोकार आ संवदेना पर। कपोल कल्पित कथाक तँ तथाकथित यथार्थ पाठकीय विश्व्सनीयता अर्जित कऽ पाओत ओकरा प्रभावित कऽ पाओत ताहिमे संदेह। एहि दृष्टिमे वि‍चार कएने पबैत छी जे मैथिलीक आरंभिक कथाकार लोकनिक अपन सीमा सरहद छलति जकर अतिक्रमण कऽ पाएब हुनका लोकनिक लेल संभव नहि छल। एहि सीमाक अतिक्रमण कएने छलाह काञ्चीनाथ झा ‘किरण’। वस्तुहतः किरण जीक कोनो सीमा छलहे नहि, ओ सीमातीत छलाह। हिनक समाज छल वृहत्तर मैथिल समाज जाहिमे सभ जाति, सभ धर्मक लोक छल आ सभक संग हिनक सामाजिक सरोकार छलनि। 1941 ई.कऽ हिनक ‘धर्मरत्नाकर कथा’ केँ एहि सन्द,र्भमे बानगीक रूपमे देखल जा सकैछ। किरण जीक प्राय: समस्तऽ कथा तत्काधलीन मिथिलाक लोकजीवनक यथार्थक बानगी थिक। हिनक सर्वाधिक चर्चित-परिचित कथा थिक–मधुरमतिद्ध एक चित्रक चर्च विरले देखल-सुनल जाइछ। मुदार एहिमे लोक-जीवनक यथार्थ जाहि तरहेँ प्रखर मुखर भेल देखल जाइछ से अदभुते अछि। वस्तुकतः किरण जी दस प्रतिशत उच्चव वर्गीय अकर्मण्य् लोकक विकृत विलास बहुल जीवन चरित नहि नब्बे प्रतिशत लोकक जीवनेच्छाक–जिजीविषा, श्रम- संधर्षक कथा-गाथा लिखवाकेँ श्रेयष्क र बुझैत छलाह। जेना कि डॉ रमानन्दव झा ‘रमण’ लिखैत छथि‘किरणक सम्पू र्ण कथा साहित्या यथार्थक धरती पर सुदृढ़ अछि। फलतः अपन चारूकात पसरल दीन दुखीक समस्यामकेँ, जन-बोनिहारक समस्या्केँ, ओकर अन्तकरक हाहाकारकेँ आशा-निराशाकेँ आ संघर्षशीलताकेँ अपन साहित्यषक प्रेरणा स्रोत बनाओल अछि। चारुकात पसरल कथ्याकेँ अपन विशिष्ट शैलीमे दारल अछि। एहि लेल कल्पयनाक उड़ान झा विजातीय परिवेशक संस्का र हिनक-कथामे नहि भेटैछ। अपितु भेटैछ सदिखन अपने टोल-पड़ोसक मानवीय समस्याजक प्रभाव शाली अभिव्यकक्ति आ अपने धरतीक सोहनगर महमही आ ओकरे आशा-आकांक्षाक संतुलित टिपकारी’। वस्तुभत- किरण जी-मैथिलीक प्रथम कथाकार छथि जिनकर कथामे लोक जीवनक यथार्थ जकरा प्रकारान्तिरसँ समाजिक यथार्थ सेहो कहल जा सकैछ, एते, प्रखर प्रगाढ़ रूपें चित्रित भेल अछि। एहिठाम लिखब प्रायः अनर्गल नहि होएत कि हिनक कथा ते मात्र सामाजिक यथार्थक कथा थिक अपितु सामाजिक चेतना सेहो अप्रतीम उदाहरण थिक जकर ई प्रयोक्ता–प्रवक्ता छथि, रूपकार छथि। विगत शतीक उत्तारार्धमे एहन प्रचुर कथा लिखल गेल अछि जाहिमे मिथिलाक लोकजीवनक यथार्थ अपन समग्रता–सम्पूर्णतामे चित्रित भेल अछि। अपवाहकेँ छोड़ि दी तँ प्राय: समस्ता चर्चित प्रतिष्ठित कथाकारक एहिमे थोड़-बहुत योगदान-अवदान अछि। मोहन-भारद्वाज अपन-आलेख मैथिली कथामे सामाजिक चेतनामे एक सूची देने छथित। हम एहिठाम कथा वा कथाकार सूची दए आलेखकेँ दीर्घायित नहि कए वर्तमान शतीक किछु टटका प्रकाशनसँ बानगी प्रस्तु त कऽ रहल छी जाहि- सँ विषय सुस्पाष्ट भऽ पाबए ।
• 2009 ई.मे प्रकाशित भेलए सुभाष चन्द्रग यादवक कथा संग्रह ‘बनैत बिगड़ैत’। एहिमे एक कथा अछि ‘हमर गाम’। ई गाम लेखकेक नहि ई मिथिलाक कोसी अंचलक एक गाम थिक जे हमरो भऽ सकैए, अहुँक भऽ सकैए। एहि गामक एक घरक चित्र देखल जाए- घरक एककात दूटा चौकी लागल छै। चौकी पर मेल खट-खट भोटिया बिछा ओल छै। चौकीसँ सटले दच्छिन गाय, भैंस, बकरी सब रहैत छै। नाकमे निरंतर गोबर आ गोंतक दुर्गन्धछ अबैत रहैत अछि। कोसिकन्हादक अधिकांश लोक एहिना रहैत अछि। जानवरक संग। जानवरक समान। जानवरक हालत मे। आ ई कोनो नव बात नहि थिक। साठि वर्ष भारतकेँ स्वाजधीन भेलाक पश्चामतो जखन कि नितहु लाख-लाख टाका खर्च कए सरकारी, अर्ध सरकारी प्रचारतंत्र देशक बहुमुखी विकासक इन्द्र धनुषी छवि देखबैत अछि, हमर मिथिलाक स्थिति आर बदतर भेलए। ‘बहुत-पहिने जहिया कौआ, कास आ पटेरक जंगल रहै, तहिया अनेक तरहक जल आ थल चिड़ै अबैत रहै। पूर्णियाक शिकारी चिड़ै बझबैत रहै आ सुपौलमे बेचैत रहै। आब कौआ उकनि गेल छै आ कास-पटेर उकनल जा रहल छै। पहिने लोक कौआ, कास-पटेर बेचि कऽ किछु कमा लैत छ्ल। जंगलमे झुंडक झुंड गाय-महींस पोसि कऽ जीविका चलबैत छल। खढि़या हरिन माछ, काछु आ डोका मारि कऽ खाइत छल। आब सब किछु खतम भऽ गेल छै आ जीबाक साधन दुर्लभ भऽ गेल छै। मुदा एहि आभाव अभियोग यंत्रणा वंचनाक अवस्थाेओमे मानवीय संवेदना, सामाजिक सरोकार अनामति छैक ‘डोम चमार मुसहर दुसाध तेली, यादव सब एके कलसँ पानि भरैत अछि एके पटिया पर बैसैत अछि’। आ जूड़शीतल दिन जेठ श्रोण्डरजत चानि पर पानि दैत जुड़ाएल रहबाक आशीष देब नहि विसरल छथि। समकालीन कथाक विरल विलक्षण हस्ताक्षर सुभाषक मादे महाप्रकाश उचिते कहैत छथि- ‘हुनक रचनाकार समयक समुद्रमे डूबि-डूबि मोती माणिक ताकि अनैत अछि। एहि तरहेँ सुभाषक लेखन यथार्थक अमूल्य दस्ताकवेज बनि जाइत अछि’।
• आइ समय बड़ तेजीसँ बढ़ि-बदलि रहल अछि। महानगरीय प्रदूषन आ वैश्वीकरणक प्रभावमे ग्राम्य परिवेश प्रदूषित भऽ रहल अछि। सरकारी बयना-अवहेलनाक शिकार मिथिलाक प्रतिभा आ श्रम पलायन लेल वाध्य अछि, आ जखन ओ गाम अवैए, अपना संग विजातीय विकृत संस्कृरर्ति नेने अबैह। प्रदीप बिहारीक ‘उग्रास’ कथा एहि विकृतिक स्पजष्टं चित्रांकन थिक जे समकालीन लोकजीवनक यथार्थ बनल जा रहल अछि वा बनि चुकल अछि। शिक्षितो वर्गक धर्मभीकता अंधविश्वापस आ कुसंस्कानर तथा पाछूकेँ प्रतिष्ठााक मानक बूझि तकर प्रदर्शन जतबा चिन्तभनीय किएक ने हो मुदा आजुक सत्यन होइत देखल जा रहल अछि। राम भूषक बाबू अपन फुतहु आ पोताकेँ घरमे कते दिन राखि पओत।
• मिथिला-गामक देश थिक। सहजता-सरलता आ सामाजिकता गामक विशेषता रहलैए। मुदा आइ गर्मेया वा ग्रामीण जीवनक ई विशेषता विल्पु प्तत भेल जा रहलए। नव खाढ़ीमे ई परिवर्त्तन बेस तीव्र आ त्वलरित भेल देखल जाइछ।
• औदार्यक अभाव ओ स्वाषर्थपरता संक्रामक व्यातधिक रूप लेने जा रहल अछि। तेँ कोनो पुतहु अपन वृद्ध ससुरक मादे निधोख बाजि सकैछ अइ कमासुतकेँ सखमे देखै जाही। ओइ दिनमे कहलिऐ जे बियाह कए लैह तँ नहि केलक। आब जे अइ उमरमे रंडीबाजी करत तँ से हम चलए देबै? बेचारा घूरन बुढ़बाकेँ बेकल भऽ गेनाइ स्वा।भाविक छैक। फलतः ओ अपन गरीब विधवा भाउजकेँ अंग झँपबाक लेल नुआ की देत, भाउजोकेँ त्यािगि दैछ। तारानन्दि वियोगीक एहि त्यालग कथाक भयावहता चरम पर तँ तखन पहुँचैए जखन घूरन मझिली पुतहु कहैत छैक ‘बेसी लबर लबर करबह तँ तते चप्पोल मारबह जे चानि परहक सबटा केश खहरि जेतह....’। अपन ससुरक खुलेआम एहन अवज्ञा अपमान चौंक। बयवला बात रहितो आजुक यथार्थ थिक जे वैश्वी.करणक प्रभावें हमर सांस्कृअतिक क्षरणक प्रतीक थिक।
• एहिठाम हम एक गोट आर कथाक चर्च करए चाहब। से थिक विभूति आनन्दकक‘संक्रान्ति’ कथा। मन पड़ैए सकल विधा उदधि मिथिला विदित भरि संसार। आ ताहि मिथिलामे शिक्षाक की स्थिति अछि तकर जीवंत छवि थिक ई कथा एक तँ शिक्षक लोकनि पढ़बए नहि चाहेत छथि, मुदा जँ केओ चाहितो छथि तँ ताहि लेल मच औनाइते रहि जाइत छनि, छात्रक दर्शन नहि होइत छनि, जखन कि रजिस्टरमे छात्रक अभाव नहि। प्रधानाचार्यक कक्षमे गिलास आ बोतलक हल्लुकक सन संगीतक भयावहता भावानात्मरक स्तरहिसँ बुझल जा सकैछ शब्दकमे व्यातख्याशचित करब सहज संभव नहि।
• एहि कथाक दोसर पक्ष तँ आर हृदय-द्रावक अछि। प्रवासी बालक पिताकेँ कम्यूसह टर सीखबा लेल कहैत छथि जे पितासँ संभव नहि भऽ पबैत छनि बचसाहु लोकक लेल ई तवे सहज छैको नहि जतबा किशोर युवा बच लेल। मुदा बालकक तर्क तऽ देखू-
• ’....अरे कम्यूक तरटर, नेट आदिक जानकारी रहत तऽ दिन-दुनिया सऽ जुड़ल रहब....हमरो सभ-सऽ सम्बन्ध बनल रहत।
• ‘अएँ! की कहलह?
• ‘ठीके तऽ कहलौ! ककरा एते समय छै जे....। तँ ई थिक आजुक सत्य ! आइ फलकेँ अपन पितासँ बात करबाक पलखति नहि छैक! हमरा लोकनि सरोकारक बाट करै छी, संवेदनाक बात करै छी
• कथाक सत्यत ओकर आत्माक होइछ कथावस्तुर। शिल्प क स्थाकन तकर बादे छैक जे कथावस्तु क प्रयोजनानुसार सहज स्वाओभाविक रूपेँ अबैछ। बलात्काबर शिल्प क व्याकमोह जे बाह्य आवरण–आभूषण मात्र थिक, कथाक सत्युकेँ ओकर आत्माभकेँ आंवष्ठित आच्छबन्नप कऽ लैछ आ अकसर पाठक लोकनि शिल्प्क चाकचिक्यमे ओझरा मूलधरि पहुँचबासँ वंचित रहि जाइत छथि।
• साहित्य क अर्थ होइछ सहित, सभक संग, संभक हित अर्थात समाजक हित आ इएह समाजक हित-साधन साहित्यरक उद्येश्यो थिक। ई भनछहि कहियो ‘टाइम पास’ करबाक लेल विनोद सामग्रीक रूपमे रचल जाइत रहल हो। आजुक साहित्यउकार अपन कर्त्तव्यभक प्रति पूर्ण सचेत आ सचेष्ट छथि, उद्येश्यस साधनक प्रति प्रतिबद्ध छथि। एक दिस अपन सामाजिक स्थिति अवस्थावनक सम्यरक ज्ञान आ दोसर दिस विभिन्न् भाषाक समकालीन साहित्याक अध्यसयन अनुशीलन हुनक दृष्टिबोधकेँ रचनाशीलताकेँ प्रेरित प्रभावित करैछ।
• निष्कतर्षतः कही जे समकालीन मैथिली कथाक यथार्थ आजुक मिथिलाक यथार्थ थिक। एकरा दोसर तरहे हम यथार्थक कथा सेहो कहि सकैत छी। आयामक विस्तायर सामाजिक सरोकार आ संवेदनाक निखार एकरा महत आ महत्त्वपूर्ण बनबैछ।
• सहायक ग्रंथ-
• 1. अखियासल\डॉ. रमानन्दथ झा ‘रमन’
• 2. मैथिली साहित्यीक इतिहास (सा. अकादेमी) डॉ. जयकान्त मिश्र
• 3. एकल पाठ/मोहन भारद्वाज
• 4. बाङला कथा साहित्येह बिहारेर लोक जीवन/बारिद बरन चक्रवर्ती
• 5. कथा किरण/डॉ. कांचीनाथ झा ‘किरण’
6. बनैत बिगड़ैत/सुभाष चन्द्र यादव

7. सरोकार/प्रदीप बिहारी

8. मिथिला दर्शन, जुला.-दि. 2005, संपा.-रामलोचन ठाकुर

9. मिथिला दर्शन, जुला.-अग.2009 संपा.-रामलोचन ठाकुर


१. बिपिन झा-॥ आवश्यकता अछि मैथिली शब्दतन्त्र निर्माणक ॥२. गोपाल प्रसाद
फराक मिथिला राज्यक गठन कियक नहि ?
बिपिन झा

॥ आवश्यकता अछि मैथिली शब्दतन्त्र निर्माणक ॥
शब्दतन्त्र जेकरा सामान्य रूप संऽ Word-Net रूप में कहल जाइत अछि, ई अखनि धरि मैथिली भाषा हेतु तैयार नहिं भय सकल अछि। एहि लेखक माध्यम सँऽ समस्त मैथिलीप्रियबन्धुगण कें एहि दिस आगू बढवाक हेतु उद्यत करय चाहैत छी।
सबसँऽ पहिने ’शब्दतन्त्र’ एहि पद सँ की अभिप्राय ई स्पष्ट करब उचित बुझैत छी। शब्दतन्त्र एकटा Lexical Database होइत अछि जे शब्द कें पर्यायवाची चयन करबा में अथवा शब्दक विवरण शीघ्रता सँऽ क्षण भरि में तकबा में उपयोगी होइत अछि। एकर उपयोग एतबा धरि सीमित नहिं अछि अपितु एकर उपयोग संगणकीय भाषाविज्ञान आ कृत्रिम प्रज्ञानं हेतु सेहो कयल जा सकैत अछि। शब्दतन्त्रक परिचय आओर विस्तृत विवरण हेतु विक्कीपीडिया द्रष्टव्य अछि[1]।
आब प्रश्न उठैत अछि जे कोन-कोन भाषा हेतु शब्दतन्त्र बनल अछि आओर मैथिली हेतु कियाक आवश्यक अछि। अंग्रेजी[2], संस्कृत[3], उडिया[4], हिन्दी[5], आओर मराठी[6] हेतु शब्दतन्त्र निर्माण हेतु प्रयास कयल गेल अछि| मैथिली हेतु शब्दतन्त्रनिर्माणक दिशा में आइ धरि प्रयास नहिं कयल गेल। यदि मैथिली शब्दतन्त्र साफ्टवेयर के रूप में उपलब्ध भय जायत तऽ संगणकीय दृष्टि सँ मैथिलीक महत्त्व अवश्य बढत संगहि उपयोगकर्ता हेतु ई भाषा सहजतम भय जायत।
कोनो भाषा तखने धरि जीवन्त रहैत अछि जाधरि ओ उपयोग में रहैत अछि। ई शब्दतन्त्र मैथिली कें उत्कर्ष पर पहुंचेबा में समर्थ सिद्ध होयत। आजुक संसार एतेक आगू बढैत जारहल अछि जतय भाषा बाधक नहिं रहत। एक भाषा सँऽ दोसर भाषा में अनुवाद यन्त्र द्वारा[7] संभव अछि। यदि मैथिली भाषा हेतु निरन्तर प्रयास नहिं कयल जायत तऽ एकर एहि भाग दौड में पाछू छुटबाक संभावना अधिक अछि। अस्तु शब्दतंत्र निर्माणक दिशा में प्रयास हो ई आवश्यकता अछि। एहि सन्दर्भ में ध्यान आकर्षित करय चाहब The Global WordNet Association[8] दिस जे संसारक समस्त भाषा हेतु शब्दतन्त्र सम्बन्ध में एक महत्त्वपूर्ण प्लेटफार्म दैत अछि। अस्तु, एहि दिशा में कार्य हो एवं यथाशीघ्र मैथिली शब्दतन्त्र क निर्माण हो ई जरूरत अछि। यदि एहि क्षेत्र में कतहु कार्य हो तऽ विदेहक माध्यम सँ सभ के अवगत कराओल जायत ई आशा अछि।
बिपिन झा, CISTS, HSS, IIT, Bombay
http://sites.google.com/site/bipinsnjha/home


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[1] http://en.wikipedia.org/wiki/WordNet
[2] http://wordnet.princeton.edu/
[3] CISTS, HSS,IIT, Bombay, Sanskrit Word-Net निर्माण हेतु प्रयासरत अछि
[4] http://www.onlineordbog.dk/wordnet/en/af/oriya.php
[5] http://www.ling.helsinki.fi/filt/events/conferences/2004/msg01267.html
[6] http://www.alphadictionary.com/directory/Languages/Indo,045Iranian/Marathi/
[7] यान्त्रिक अनुवाद द्वारा
[8] http://www.globalwordnet.org/

२.-गोपाल प्रसाद
फराक मिथिला राज्यक गठन कियक नहि ?
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जखन पृथक तेलंगाना राज्यक गठन भ सकैत अछि त फराक मिथिला राज्यक गठन कियक नहि? मिथिलांचल के पूर्ण न्याय एखन धरि कोनो उद्योग एही क्षेत्र में प्रारंभ नहि कायल गेल अछि | सभ क्षेत्र में मिथिलांचल केर घोर उपेक्षा भ रहल अछि | केंद्र सरकार ओ बिहार सरकार एखन धरि कोनो उद्योग एही क्षेत्र में प्रारंभ नहि कायल गेल अछि, जाहिसँ एही क्षेत्रक लोक पलायन लेल मजबूर अछि | असमान विकासक करने दशक पिछरल राज्य बिहार में मिथिला अति पिछरा क्षेत्र बनि क रही गेल अछि | बिहार सरकार केर ध्यान मात्र पटना आ नालंदा के विकसित केनाई रहि गेल अछि | मिथिला मे पर्यटन ओ खाद्य प्रसंस्करण केर भरपूर संभावना केर बाबजूदो मिथिलाक संग नकारात्मक रवैया अपनओल जा रहल अछि| एही क्षेत्रक भाषा मैथिली आ मैथिली अकादेमी अपन अस्तित्व हेतु संघर्ष क रहल अछि | बिहार सरकार केर युवा महोत्सव आ दिल्ली केर प्रगति मैदान स्थित बिहार पवेलियन मे आईआईटीएफ केर दौरान आहूत सांस्कृतिक कार्यक्रम मे मैथिली केर घोर उपेक्षा कयल गेल | जाहिसँ सरकार केर नीति ओ नीयत मिथिलावासी लोकनि कें समझ मे आबी गेल अछि | एहि सभ समस्याक निदान केर एकमात्र विकल्प फराक मिथिला राज्य अछि | बिहार सरकार प्रवासी बिहारी लोकनि केर सुरक्षा , रोजगार आ न्याय दिलयबमे पूर्ण तरहे विफल रहल अछि आ एकर आ एकर ज्यादातर शिकार मिथिलाक लोक सभ रहल अछि | महाराष्ट्र , दिल्ली आ पंजाब केर बाद मध्यप्रदेशक राजनेता लोकनि सेहो बिहारी लोकनिक संग असंवैधानिक रूख अप्नौलानी आ बिहार सरकार मात्र बयां डी क अपन कर्त्तव्य केर इतिश्री क लेलनी | बिहार सरकार केर योजना विभाग , केद्र सरकार केर योजना विभाग मे बिहार टास्क फ़ोर्स आ बिहार फौन्डेसन केर बाबजूद मिथिला क बिहार मे पर्याप्त तवज्जो कियक नहि भेटल? आधारभूत संरचनाक विस्तारक बिना मिथिला कटल कटल जका अछि | पूर्व लोक सभा अध्यक्ष पी . ए .संगमा केर ओ बयान स्वागत योग्य अछि जाहिमे ओ कहने छलाह जे " क्षेत्रवाद - नक्सलवाद असमानता केर उपज अछि जाहिसँ छोट राज्य केर गठन क दूर कयल जा सकैत अछि " मिथिलाक लोकनि बाढ़ झेलय आ विकासक धारा अन्य क्षेत्र मे बहे ई नहि चालत आई भारत केर समस्त मिथिला वासी लोकनि के एकरा लेल आन्दोलन करय परत फराक मिथिला राज्य लेल अंतर राष्ट्रीय मथिली परिषद् द्वारा कानपूर मे २३ - २४ दिसंबर के मिथिलाक बुद्धिजीवी, स्वैक्षिक संगठन केर सम्मलेन भेल जाही मे आंदोलनक दशा दिशा तय कयल गेल|एहि वास्ते दिल्ली केर जंतर मंतर पर सेहो धरना देल गेल जाकर पूर्ण समर्थन भेटल|
१.दुर्गानन्द मंडल -बकलेल,२.कपिलेश्वर राउत- छूआ-छूत,३.राजदेव मंडल ,रखबार (दोसर भाग)


दुर्गानन्द मंडल
सहायक शिक्षक,
उ. वि. झिटकी-बनगावाँ, मधुबनी (बिहार)।
बकलेल
गर्मीक समय, जेठक दुपहरिया, प्रचण्ड रौद, बिजली लापत्ता। ऐहन बुझना जाइत छल, जेना दाता-दीनानाथ आइ मनुखक परीक्षा लेमए चाहैत छथि। कतौसँ वसातक कोनो आश नहि। नेेना-भुटका सभ एमहर भेँए तँ ओम्हर भेँह, एम्हर केँ तँ ओम्हर कें करैत छल। बुझना जाइत छल जेना मखना तेलीक पहरा होअए। माल-जाल गर्मी सँ परेशान भऽ एकहक हाथ जीभ बवैत छल। लेड़ू आ परड़ुक तँ तेरहो करम भऽ गेल छल। कोनो तरहें चंडलवा रौद आ दुपहरिया झुकल, मन कनेक थिर भेल मुदा राति खन उएह हाल, जतवे गर्मीसँ परेशानी ततवेक मच्छड़ आ उड़ीसक उपद्रव। ओकरा सभमे एकता ततेक जँ हाँ-हाँ नहि करियोक तँ सोझे उठालेत आ नेने-नेने सकरी चीनी मील लग रखि आओत। कतहुँ चैन नहि...।
भोजनोपरांत देह-हाथ सोझ करवाक लेल विछाउनपर गेलौं, मुदा चैन नहि। कछमछ-कछमछ कऽ रहल छलौं। कती राति गुजारलाक वाद कने जा कि आॅखि लागल, आ कि ध्यान किछु आर-आर विषय दिस चल गेल। आॅखि यधपि बन्न मुदा चेतनामे अनेकानेक तरहक बात धुमए लगैत अछि। पड़ल छी विछौनपर मुदा मन जीनगीक चैबट्टीपर ठढ़ वर्तमानक अधरपर भूतसँ भविष्यक, भविष्यकेँ विषयमे सोचए लगैत अछि।
सरकारी सेवामे रहवाक करणें कमे-काल गाम जेवाक मौका लगैत अछि। पावनियो तिहार जतै छी ततै करए पडै़त अछि। तखनो अस्सी बर्खक बुढ़ि माए आ करीब सय वर्खक बुढ़ बावूजीकेँ देखए लेल गाम जरुरे चल जाइ छी। टोला-पड़ोसाक सभकेँ भेंट कऽ सबहक कुशल छेम जानि अपना कऽ धन्य बुझैत छी।
एहि प्रकारे विभिन्न प्रकारक लोकक चारित्रिक विश्लेषण करबाक सेहो मौका लागि जाइत अछि। संभवतः ऐहने स्थितिमे मोन पड़ैत छथि एकटा सज्जन सरोज बावू। ओ ऐहेन व्यक्ति जे कोनो सुरतमे अपने कऽ किनकोसँ कम मानक लेल तैयार नहि होइत छथि।
माए-बापक एक मात्र वेटा नान्हिएटा सँ पढ़ै-लिखैमे तेजगर मुदा ततवेक थेथरलोजीमे सेहो निपुण। विषय कोनो किएक नहि हो मुदा एक चैखड़ि थेथरलोजी जरुर करताह। जेना की ओ सर्वज्ञ होथि। तेँ हुनकर किछु संगी-साथी हुनका ‘‘मिस्टर नो आॅल’’ सेहो कहैत छलनि। लोक सभ बकलेल सेहो कहथिन्ह।
परुकेँ साल अगहन मासमे हुनकर विआह झंझारपुरक बगलहि महरैल गाममे सम्पनन भेल।
विआहक मादे एकोटा सर-कुटुम नहि छुटथि एहि लेल ओ एकटा बही अलगसँ बना आ क्रमवद्ध सभकेँ नत-लिऔन आ हकार पठाएव नहि विसरलाह। विआहोत्सवमे सभ उपस्थित भऽ बराती गेलाह। जाहिसँ एक बात स्पष्ट भऽ गेल जे लड़का कोनो नीके समाजसँ जुड़ल छथि। गौवा-धरुआ आति प्रसन्न भऽ बढ़ि-चढ़ि कऽ बारातीक स्वागत-बात कएलैन्हि। ममिऔत-पिसिऔत सभ एहिसँ प्रसन्न जे बर-आ कनियाँ दुनूक जोड़ी सीता-रामक जोड़ी लगैत अछि। भगवानक असीम कृपासँ अनुगृहित भऽ नीके कथा सम्पन्न भेल।
असली कथा आव एहि ठामसँ शुरु होइत अछि। विआहोपरांत कनियाँ कनिया विदागरी भऽ सासुर ऐलीह। दाइ-माइ लोकनि अरधि-परधि कनियाँ घर केलैन्हि। आ अइहव-सुहव होथू अशीरवाद दैत अपन-अपन घर चल गेलीह।
कनियाँ तऽ कनिए दिनमे अपन सासु-ननदिक दिल जीत लेलैन्हि। बर-कनियाँ समर्थ रहवाक कारणें विदागरी चैठारी दिन नहि भऽ साओन-भादोमे भेल। पहिल साओन-भादो नवकी कनियाँ नैहरमे मनवैत छथि, एहि तरहक मिथिलाक आ मैथिलक एकय मान्यता छैक।
नीक दिन तका कनियाँ विदागरी भऽ सासुरसँ नैहर चल गेलीह। आव तँ भेल पहपटि। सरोज बावू जे एते दिन सदिखन घरेमे धुसल रहथि आ सदिखन कनियाँए कऽ निंधारैत आ गवैत छलाह ई गीत ‘‘मन होइए अहाँ केँ हम देखते रही, किछु बाजी अहाँ हम सुनिते रही, मन होइए अहाँकेँ........।
आठ मास कोना वितल से नहि बुझि सकलाह आ कनियाँ आठे मासक फला-फलक रुपमे नौ मासक सनेश लऽ नैहर चल गलीह। से तँ, एको दिन, एको पहर, वितव सरोज बावूक लेल पहाड़ सन बुझना जाइत छलैन्हि। कोनो वातक सुधए-बुधिए नहि रहैन्हि। सदिखन एकदम बकलेल जेँका करथि। एहन सन वुझना जाइत छलैन्हि जे शरीर गाममे होइन्हि आ आत्मा सासुरमे। भोजनक प्रति अरुची जागए लगलैन्हि। समएसँ स्नान-भोजन करब सेहो सुधि-बुधि नहि। लोक सभ अपनेमे बाजथि जे सरोज बावू ऐना किएक करैत छथि- एकदम बकलेले जेकाँ
जहिना अपना गाम बेरमामे सरोज बावू तहिना अपना नैहर महरैलमे सरोजनी दुनू व्यक्ति एक दोसराक विरहाग्निमे जरैत। दिनो-दिन मुरझायल जाइत छलाह। स्वाभाविके थिक। किएक तँ बड़-कनियाँ समर्थ रहवाक कारण जीवनक अपूर्व आनन्द जे उठौने रहथि। एकय पूर्ण पति पत्नीक रुपमे।
एक-एक दिन पहाड़ भेल चल जाइत छलैन्हि। नहि तँ ऐम्हरे आँखिमे निन्न आ ने ओम्हरे एको मिन्टक चैन। माए-बापक डरे नहि तँ कनियाँ करैन्हि आ ने बावूजीक डरे सरोज सासुर जेवाक साहस कऽ पबथि। किएक तँ एखनो कतउ-कतउ ऐहन प्रथा छे जे विना दिन-दूरागमनक बर-सासूर नहि जाइत छथि। तेँ सरोज बावूक डेग सासुर जेवाक लेल नहि उठैन्हि।
समय बीतेत देरी नहि लगैत छैक देखैत-देखैत चैठ-चन्द्र पावनि आएल....... चल गेल। जीतीआ बीतल आवि गेल आषीण मास.... सगरो दुर्गापूजाक तैयारी शुरु भऽ गेल। ओम्हर सरोजनीक नैहरमे जोड़ा करिआ छागर बलि-प्रदानक लेल राखल छल। जकरा ओ लोकनि खुब जतनसँ दाना-पानि खुआवथि-पिआवैथि। देखते-देखते दुनू छागर, सवाइयासँ डोढ़ा भऽ गेल। जँ जँ दूर्गापूजा लग आएल जाइत, सरोज बावू आ सरोजनीक हृदयक धड़कन हृदयागंम हेवाक लेल मचलए लागलि। देखते-देखते कलश स्थापन भेल। पहिल पूजा बीतल दोसर बीतल आवि गेल पंचमी। मुदा एखन धरि सासुरसँ सरोज बावूक लेल कोनो खोज-खवरि नहि कएल गेल!
एकदिन माए पुछलथिन्ह- ‘‘बौआ, कनिआक खोज खवरि नहि केलहक? कोनो फोनो-तौनो नहि अवै छह? बेचारे की बजताह अपन हारल आ वहूक मारल क्यो की बजै छै? हारि-थाकि पंचमी राति फोन लगौलन्हि। घंटी भेल, फोन उठौलथिन्ह हुनकर शारि- कमलनी, ओम्हरसँ अवाज अवैत अछि- ‘‘हेलो.... हम महरैलसँ वजै छी?
‘‘हम छी सरोज बेरमासँ। कनी...... दीदी.......केँ फोन .....।
कमलनी माँ दिस तकैत बाजि उठैत अछि- ‘‘माए गे माए जीजा जीकेँ फौन छिए। एम्हरसँ हेलौ-हेलौ होइत रहैत अछि। कमलनी फोन लऽ कऽ दैत छैक अपन दीदी सरोजनीकेँ।
शेष आगाँ .......


२.कपिलेश्वर राउत-
छूआ-छूत

कपिलेश्वर राउत
गाम-बेरमा,
वाया-तमुरिया,
जिला-मधुबनी,
बिहार।
छूआ-छूत
दूर्गापूजाक समए रहए। सभ अपन-अपन उमंगमे मस्त। सभ कियो नव-नव परिधानमे सजल। कियो पूजामे मस्त तँ क्यो नाच देखएमे मस्त, कियो दारु पीवैमे मस्त। स्टेजक आगाँमे लग्धी-विरती कऽ देखएमे मस्त, कियो कुमारी भोजन करएवा व्यस्त। क्यो ब्राह्मण भोजनमे मस्त। एक-एकटा कुमारी आ ब्राह्मण पच-पच गोटेकेँ नोत खाइले तैयार छल। तखनहि शंभू मंडल लड्डू लऽ कऽ भगवतीकेँ चढ़ैवाक लेल गेल। ओकरा मंदिरक भीतर जेवा सँ पंडितजी रोकैत बजलाह- ‘‘तु सोलकन सभ भगवतीकेँ अपने हाथे ने लड्डु चढ़ा सकै छै ने प्रणाम कऽ सकै छै। एहि बातपर थोड़े काल हल्ला-गुल्ला सेहो भेल। अंतमे फैसला भेल जे पूजेगरी आ पुरोहित छोरि कऽ क्यो भीतर नहि जा सकैत अछि। चाहे ओ कोनो जातिक रहए।
जखन चैकपर एलौं तँ एकटा देासरे नाटक पसरल छल। एकटा डोम चाहक दोकानपर बेंचपर वैसि कऽ चाह पीवाक लेल तैयार छल दोकानदार रोकि रहल छल। अन्तमे बल जोरी ओ बेंचपर बैसि गेल। आ ओ डोम दोकानदारसँ सवाल पूछलक। पहिल सवाल छल- ‘‘हम हिन्दु छी कि नै छी। दोसर सवाल छल जे जहन सभ जाइतक अहाँ आंइठ धोइत छी तँ हमर आंइठ किऐक नहि धोअव। तेसर सवाल छल जे एक तँ अहाँ बावाजी छी कंठी बन्हनै छी तहन अहाँ सबहक आंइठ धोइत छी से धोनाइ छोरि दिऔ आ से नहि तँ बावाजी जी बाला आडम्बर छोरि दिऔ, प्रश्न विचारनीय छल हम सोचमे परि गेलौं।


३.राजदेव मंडल ,रखबार (दोसर भाग)


ग्राम-मुसहरनियाँ, पो.- रतनसारा (निर्मली), जिला- मधुबनी (बिहार)
पिन कोड- 847452
कथा
रखबार

कथा ‘रखबार’ क शेष अंश कम्रशः......

लगेबै जे एकटा बिआएल रहत तँ दोसर गाभिन। आब एकरहिं पाईल बढ़ेबाक छै। सम्हार नहि हैत तँ एक आधकेँ बेचि खेतो कीनि लेब। चारा कऽ दिक्कत छै तँ पछुआरक बाड़ीमे धासक बीया बुनि देबैक।’’
ओ कलेजाकेँ मजगुत कएलक। रखवारसँ कन्नी कटिकेँ आएले रहए। हाँय-हाँय धान छोपय लागल। पहिलेसँ काटल घासक पथियाक लगमे गेल। गम्हरैल छोपल धान छीटामे रखलक, उपरसँ धास फुलकैक राखि देलक जाहिसँ धान देखबामे नहि आबि सकय। तरका धान उपरका घाससँ झँपा गेल। तब जेना भीतरका थरथरी कम होअए लागल।
सुमनीकेँ बुझएलै जेना पाछूमे कियो ठाढ़ भेल हो। आ ओकर सभटा अधलाह काज देखैत हो। फेरि सोचलक- जे एतेक टह-टह करैत दुपहरियाकेँ रौदमे के एताह। ई सोचेत संतोख भेल।
खर-खर जेना पाछूमे किछु खड़खड़ाएल हो। ओकरा डर पैसि गेल। साइत भूत-प्रेत न हो। घुमिकेँ पाछू दिस देखलक आ देखतहि रहि गेल। मुँहक बोली बन्न। छातीक धुक-धुकी तेज भऽ गेल। हाथ-पाइर जेना कठुआ गेल हो। किन्तु एहेन स्थिति बेसी काल तक नहि रहल।
तत्क्षण आएल परिस्थितिसँ लड़बाक क्षमता मनुक्खमे आबि जाइत छैक। ई क्षमता किनकोमे किछु कम किनको किछु बेसी होइत अछि।
अपना देह आ मनकेँ समान्य करबाक चेष्टा करैत सुमनी धासक पथिया उठेबाक चेष्टा कएलक।
मुसबाक कड़कैत स्वर निकलल- ‘‘ऐ, धासक पथिया उठा नहि सकैत छेँ। आइ धरा गेलँह। दस दिन चोरकेँ त एकदिन साउधकेँ। ओहि दिन गामक लगीचमे रहि तँ गारि दैत गामपर चलि गेलँह। अखन चिचिएबो करबहि तँ एतेक दूरसँ कियो सुनतौं।’’
याइद पड़ल सुमनीकेँ ओहि दिन मुसबा सुमनीकेँ देखैत ऐँठिकेँ बाजल रहै- ‘‘बाधमे धान रहे चाहे घसबाहिनी सभहक मालिक मुसबा। जे मन हेतै से करबै।’’
इएह सुनिकेँ सुमनी गारि दैत चलि गेल रहैक।
सुमनीकेँ चुप देखि मुसबा फेर बाजल- ‘‘आब तँ तोरा जरिमाना लगबे करतउ। कियो नहि बचा सकैत छौ।’’
सुमनीकेँ स्मरण भऽ उठल-ससुरक लाठीक हूर। सौसक खोरनीक मारि। भरल पंचायतमे छौंड़ा सभक पिहकारी। जरिमाना जे लगत से अलगे।
तइयो ओ हिम्मत बान्हलक- ‘‘हम देसराकेँ खेतमे हाथ नहि देलिए। हमरा पथियामे कहाँ किछु अछि। लोग घासो नहि कटतैक। माल-जालकेँ एतेक दिक्कत छैक। हमरा बेर भेल जाइत अछि। हम जा रहल छी। हमरा कियो नहि रोकि सकैत अछि।’’
पथिया उठा कऽ चलल। करोधमे आबि मुसबा घासक पथिया ठेल कऽ गिरा देलक। आ घास उझलिकेँ झिड़ियाबैत बाजल- ‘‘ई की छिओ? आब कोना बँचबे?’’
सुमनी लाजे कठुआ गेली किन्तु कोनो बहाना तँ करऽ पड़त सुमानीकेँ बाजलि- ‘‘ई धान हम अपना खेतमे काटलहुँ। माल-जालकेँ बचेबाक लेल तँ कोनो उपाय करऽ पड़त।’’
मुसबा ओकरा देहकेँ गहींकी नजरिसँ देखैत मुड़ी हिलाबैत बाजल- ‘‘हँ, अपना मालक जान बचा आ दोसरकेँ गरदनि काट। गे कहै छियौ-आबो लत हो। हमर बात सुन। साँपो मरि जाएत लाठियो नहि टूटत।’’
सुमनी सोचलक- कहीं कोनो नीके गप्प कहैत हुए। डुबैत काल तिनका भेेट जाए। पूछलक- ‘‘अच्छा की कहै चाहैत छहक।’’
मुँहक सुपारीकेँ चपर-चपर करैत। आँखि-मुँह चमकाबैत मुसबा बाजल- ‘‘कहबौ की। कतेक दिनसँ आस लगौने छी। कतेक बेर तोरा इशारासँ कहबो केलियौ। एक बेर हमरा मनक आस पूरा कऽ देखि, तोरा कोनहु गप्पक दुख-तकलीफ नहि होए देबौक। की मौगियाह फेकुआकेँ पाला पड़ल छेँ। सुन्नर जुआनीकेँ गारथ कऽ देतौक।’’
सुमनी थर-थर कँपैत, ललिआएल आँखि मुसबा दिस तकलक। आओर सोचलक-उमेर देखहक आ पपियाहाक गप्प सुनहक। जँ इज्जत नहि रहत तँ जीवि कऽ की करब। किन्तु लगैत अछि जे आइ देवी, महरानी बचैत तबे बाँचव। अपना शक्तिकेँ संग्रह करैत। कड़किकेँ बजली- ‘‘रे तोरा बाजैकेँ ठेकान छौ कि नहि। सभ धन बाइसे पसेरी बुझै छी। बड्ड खेत खेने छी। आई सभटा बोकरा देबौक।’’
कठहँसी हँसैत मुसबा एकरा मौगीक मलार बुझि लपकि सुमनीकेँ बाँहि पकड़लक। एहि बातमे मुसबा पहिलहुँसँ अभ्यस्त छल। कतेकोकेँ साथे कुकरम कएने छल, किन्तु आसक वीपरीत मुसबाकेँ सुमनी एक ऐँड़ मारलक। मुसबा फेर उठि सुमनी दिश बढ़ल। ओकरा बुझेलए घोड़ापर सवारी करबाक लेल एक दू चैताड़ तँ सहय पड़तैक। धाक छुटल नहि छैक। कने बलजोरी कऽ लेबै तँ कि कऽ सकैत अछि एहि सुन-मसान बाधमे। बात बढ़तैक तँ सिंहजी गिरहत अछिये।
ओकर किरदानी देखि सुमनीक सौंसे देह आगि नेश देलक। आँखि लाले-लाल थर-थर कँपैत शरीर। बाजलि- ‘‘सोझहासँ भागि जो नहि त...। किन्तु मुसवा नहि रुकल। आगू बढ़ल हँसुआ नेने सुमनी हुड़कल। चर-चर-चराक हँसुआक प्रहार कुरताक सँगे मुसबाक कनेक छातीयो चिरा गेल।
आँखि उठा कऽ देखलक तँ बुझि पड़ल। ओ सेाझामे सुमनी नहि कियो आन ठाढ़ अछि। साइत गाछक झोंझिसँ कोनहु देवी ओकरापर सवारी भऽ गेल।
हाथमे खूनसँ भीजल हँसुआ। साड़ीकेँ ढठा बन्हने करोधसँ करिआएल मुख, लाल-लाल आँखि, थर-थर काँपैत मुसबा दिश बढ़ल आबि रहल अछि।
गरजैत बजली- ‘‘आइ सभटा खून बोकरा देबोक। सभटा पाप पेट फाड़िकेँ निकालि देबोक। ठाढ़ रह ओहिठाम।’’
मुसबाकेँ बुझेलै जे आब प्राण बँचाएब मोसिकिल। ओ खिखिर जेँका पाछू घुरि पड़ेलाह। धाँहि-धाँहि खसैत पड़ा रहल अछि। ओकरा बुझि पड़ैत अछि जे पाछूसँ खूनमे भीजल आँखि आ हँसुआ दौड़ल आबि रहल अछि। आबि रहल अछि। निश्चय मनुक्ख नहि देवी चढ़ल अछि ओकरा देहपर। ओ चिचिया उठल- ‘‘हौ मालिक, हौ गिरहत, दौड़केँ आबह हौ।’’
किन्तु कतउ कियो नहि आबैत अछि। ओ अपस्याँत भऽ गेल अछि। हलफ सूखि रहल अछि। आँखिक आगू अन्हार सन बूझि पड़ैत अछि। फेर मोन पड़ितहिं जोर-जोरसँ पाठ करै लागल- ‘‘जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय कपीश निहुँ लोक उजागर।
समाप्त।
१. शरदिन्दु चौधरी-समय–संकेत २. शीतल झा-गामक अधिकारी....भैया....पोखरि....चम्पा फूल.... ३. विजय–हरीश-किछु लघु कथा ४. सुनीता ठाकुर-अपहरणक सच-५. श्रीमति कुमुद झा-उच्चैठ भगवतीक महात्म-६. शम्भू झा वत्स-ग्राहर्स्थ्य जीवनक समस्या५

१.शरदिन्दु चौधरी
समय–संकेत

बलराज घरमे बैसल अपन आतीत दिस झाँकि रहल छल। एहन अवसर कहियो नहि भेटल छलैक ओकरा जे ओ अपन इतिहासकेँ स्वयं अपन नजरिसँ आंकि सकय। ईहो अवसर ओकरा एहि कारणे भेटि गेलैक जे कि ओकर पत्नी सेहो बेटा संग मुबंइ चलि गेल छलैक आ ओ घरमे नितांत असगर रहि गेल छल।
वयस्कक अंतिम पड़ाव पर आइ ओ अपनाकेँ एकदम असगर पाबि रहल छल। ओ सोचय लागल जे किएक आइ ओ असगर भऽ गेल अछि? किएक एक–एकटा कऽ सभ ओकरासँ अलग भऽ गेलैक? पहिने दुनू बेटी अपन–अपन सासुर चलि गेलैक। फेर दुनू बेटाक समय अयलै। पहिने शोभराज पढ़बाक हेतु दिल्ली गेलैक आ पढ़ाइ समाप्त कयलाक बाद ओतहि एकटा कम्पनीमे काज करय लागल। फेर ओकर विवाह भेलैक। किछु दिन ओकर पत्नी पटनामे ओकरा सभ लग रहलैक आ फेर ओ अपन पति लग दिल्ली गेलि आ ओतहि रचि–बसि गेल।
एहि तरहे केशव सेहो नोकरीक खोजमे मुंबइ गेल आ ओहीठाम स्थायी रूपेँ रहबाक निर्णय लऽ लेलक। मायक कोरपच्छु रहबाक कारणे आब मायकेँ सेहो अपना संग रखबाक हेतु किछु दिन लेल लऽ गेल अछि। मालती सेहो किछुए दिनमे बेटा ओतऽ रमि गेल अछि। ओना ओ जाइत काल कहि गेलि छलि जे जल्दीये आपस आबि जायत।
बलराज सोचैत चल जा रहल छल जे आखिर किए एक दोसरासँ अपन लोक अलग भेल चल जाइत अछि जखन कि परिवारिक सभ सदस्य रक्त सम्बन्धसँ जुड़ल एकटा माला सदृश होइछ।
ओ ई सभ सोचिये रहल छल कि ओकरा बुझयलैक जे ओकर दांतमे एकटा छोट–छिन केश फंसि गेल छैक जे बेर–बेर दांतसँ फराक करबाक हेतु ओकरा अपना दिस आकृष्ट कऽ रहल छैक। ओ सोचलक जे पहिने एहि केशकेँ दांतसँ बाहर कऽ देल जाय तकर बाद ओ निश्चिंतसँ बैसि कऽ अपन चिंतन प्रक्रियाकेँ आगाँ बढ़ाओत।
ई सोचि ओ मुँहसँ नकली दांत बाहर निकानिकालि ओहिमे फंसल केशकेँ ताकऽ लागल। मुदा ई की– ओकरा ध्यान अयलैक जे ओ चश्मा तँ लगौनहि नहि अछि तँ दांतमे फंसल केश ओकरा कोना सुझतैक? ओकरा स्मरण अयलैक जे चश्मा बगलवला कोठरीमे टेबुल पर राखल छैक। ओ चश्मा अनबा लेल ठाढ़ भेल। बगलवला कोठरीमे जयबा लेल डेग बढ़यबापर छल कि ध्यान अयलैक जे छड़ी तँ हाथमे लेबे ने कयलक तँ कोना ओहि कोठरीमे जा सकत? मुदा तुरंते ओकरा देवालसँ सटल छड़ी ओहीठाम भेटि गेलैक।
हठात् ओकरा अनुभूति भेलैक जे जहि प्रश्नक उत्तर ओ ताकि रहल छलसँ तँ छड़ीक संगे भेटि गेलैक। ओ हँसय लागल आ स्वयंसँ कहय लागल–हमर दाँतजे हमर अपन छलसँ नहि अछि। हमर आँखि जे ज्योति प्रदान करैत छल, सेहो अपना भरोसे नहि रहल, हमर पैर जाहि भरोसे एतेक यात्रा कयलहुँ सेहो आब अपनापर निर्भर नहि अछि आ एहि सभक अछैत हम कृत्रिम अंगक सहयोगसँ जीवि रहल छी।
फेर ओकर चिंतन प्रक्रियाक आगाँ बढ़लैक–ई सम्बन्धो सभ तँ कृत्रिमे छैक तखन एकरा जनबा लेल एतेक व्याकुल किए छी। की हम अपन सर सम्बन्धीक संगे धरती पर आयल छी। किए हमर ई अंग सभ अपन रहितो काज करब बंद कऽ देलक?
आब ओकर चिंतन प्रक्रिया विराम लेबाक संदेश दऽ रहल छलैक। ओकरा ओ ई कहि देलकै जे समये ओ तंत्र छैक जे मनुष्यकेँ सभ साधन उपलब्ध करबैत छैक आ समय पर पुनः ओकरासँ आपस लऽ लैत छैक। ओ तँ एकटा माध्यम मात्र अछि जे समय–संकेतक पालन करैत अछि।
सम्पादक, समय–साल



२. शीतल झा-गामक अधिकारी....भैया....पोखरि....चम्पा फूल....

जनकपुर, धनुषा, सुगा मधुकरही–५, नरहिया



हम नान्हिटा रही कहिओ कहिओ बाबु संगे पोखरिमे नेहाए जाई। बाबु पानिमे डूबऽबेसँ पहिने एक बाकूट माटि पोखरिमे सँ कोड़िक मोहाड़ पर फेक देथिन्ह। एक दिन हम पूछलिएन्ह एकर कारण। हुनकर उत्तर रहन्हि “बौआ हम सब गरीब छी, पोखरि नहि कोड़ावि सकैछी। जिन्दगी भरि जौ एक मुट्ठीक माटि पोखरिमे सँ कोड़िक बाहर फेकि दै छै तँ एकटा पोखरि कोड़ाओलाक फल भेटै छै। वावुक एहि धारणामे की रहन्हि, अध्यात्मिक, नैतिक, सामाजिक नहि जानि मुदा एकटा बात तँ स्पष्ट भेल जे पोखड़िकेँ महत्व बहुत कारणसँ छै। पोखड़ि कोड़ाबएबलाकेँ धर्म होइछै, दश लोक स्नान करै छै, माल जाल पानि पिबै छै, इत्यादि।
हम जाहि पोखड़िकेँ चर्चा कऽ रहल छी, ओकर की की काज छलै सँ हमरा मोन पड़ैए–
कऽ, सौसे गामक लोक ओहिमे स्नान करैत छल, अखनो करैत अछि। एकटा घाट पर पुरूष, दोसर घाट पर स्त्रीगण कपड़ा खिचैछल।
लगभग आधा गाँवकेँ मालजाल पानि पीबैत छल।
पोखरिकेँ एकटा कोनमे शौच करैत छल जे शुद्धताक पहिल प्रतीक मानल जाइत अछि।
गाम कोनो नमहर भोज होइत छलै तँ एहि पानिसँ दालि रन्हाइत छलै, जे केहनो दालि गलिक घाटि भऽ जाइत अछि।
वर्षाक पानिक अभावमे पोखरिसँ नजदीकक खेतमे पानि पटाओल जाइत छलै, जाहिसँ किछु उपजा अवश्य भऽ जाइत छलै।
पोखरिमे हेलब एकटा शौक छलै जे वास्तवमे एकटा सुखद व्यायाम छै आ खास समयक संकट पार करबाक उपाय।
पोखरिकेँ मोहाड़, खरिहान, दाउनकेलेल बहुतोक प्रयोगमे अवैत
छलै।
मोहाड़परक बड़का पिपरक गाछतर गर्मीमे सब छाहरि पवैत छलै
गामक नमहर पंचेती होइत छलै।
मनुष्यकेँ जीवाक लेल, आ इ कहु जे जन्म लेवासँ पहिनेसँ जाहि अति आवश्यक चीजकेँ आवश्यकता होइछै ओ पानि पोखरिमे भण्डारण कएल जाइत छलै। करिब करिब वर्ष दिनक पानिक लोक आवश्यकताक पूर्त्ति पोखरि करैत छै। आइ धार्मिक भौतिक आ वैज्ञानिक कोनो आधार पर देखल जाएत भेटेछ जे हावा आ पानिकेँ विकल्प नहि अछि। एहि दूटाक लेल मनुष्यकेँ प्रकृतिए पर निर्भर करए पड़तै। ताहि जीवन तत्वकेँ संरक्षण करैत अछि पोखरि सभा। चिकित्सक कहैत छथि जे शरीरमे कखनो ८०% पानि चाही नहि तँ लघु रोग मात्र नहि दीर्घ सेहो लागि सकैत अछि। अध्यात्मिक ज्ञान तँ कहैत अछि जे शरीर बनएमे जे पाँच तत्वकेँ आवश्यकता अछि ताहिमे एकटा पानियो अछि अर्थात बनियो गेल पानिसँ आ रिकाब पड़ैछै सेहो पानिसँ। एहन आवश्यक जीवन रसकेँ पौड़ाणिक कालसँ प्रस्तुत कऽ रहल अछि आ आपूर्त्ति कऽ रहल अछि पोखरि आ नदी।
तहिआ पोखरिमे माछ रहै छलै–स्थानीय माछ। सामूहिक रूपमे माछ विका कऽ आमदनी होइत छलै। एखन तँ आओर विकाशी माछ पालल जा रहल छै। पोखरिसँ लाखों आमदनी छै। प्रत्येक वर्ष दुर्गापूजामे ओहीकेँ आमदनी खर्च होइछै धूमधामसँ पूजा होइछै। पोखरिकेँ जीर्णोद्धार भऽ रहल छै। मोहाड़पर होइत सड़क गेलैए। ओ पोखरि आययूलक सेहो भेलैअ।
पोखरि नया कोड़ावल होइककि पुरानकेँ माटि कोड़ाक गहिड़ कएल गेल होइक पोखरि मोहाड़पर जौ वृक्षारोपण नहि हेतै तँ पोखरि पुनः जल्दी भत्थन भए जेतै। आ पोखरि कार्यक नहि जेतै। तै पोखरिकेँ मोहाड़ पर पोखरिकेँ धरिमे जौ सघन वृक्षारोपण कएल जाइछै, घासपात लगाओल जाइछै तँ पोखरिकेँ आयु निश्चित रूप सँ दीर्घ हेतै। तैं गाछ वृक्ष लगाओलास ओकर जड़ि माटिकेँ कस्सिक पकड़ि लेतै छै आ भूक्षयकेँ नियंत्रण करैछै। जीवित जंतुकेँ लेल आवश्यक आक्सीजन तत्व आपूर्त्ति करैछ आ हवाकेँ ग्यास तत्वकेँ संतुलित करैत अछि। बहुत रोचक बात छैजे गाछ वृक्ष माटिकेँ पानि ग्रहण करबाक अमताके वृद्धि करैछ। आवश्यक बुझनाइ ई छै जे पर्यावरणकेँ बहुत रासे प्राकृतिक प्रक्रियाके निर्धारण करैत अछि आ संतुलनमे रखैत अछि। एतवे नहि अनेक प्रकारक चिड़ै–चुनमुनकेँ बासकेँ व्यवस्था इएह करैत अछि आ प्राकृतिक सुन्दरता लवैत अछि आ बढ़वैत अछि। औषधि जन्म झारपातकेँ महत्व तँ कहले नहि जा सकैअ। पुनः वृक्षारोपणसँ अन्धनक समस्या सेहो किछु हदतक समाधान।
पोखड़िक मोहाड़पर चम्पा फूलक आवश्यकता आ रूचिकर छै। चम्पा फूलक गाछ होइत अछि झारपात नहि, घासक आकार नहि एकटा वृक्षाकारमे होइत अछि। ई करिब २० फुट तक उँच भऽ सकैत अछि एकर जड़ि सेहो बहुत गड़िहतक जाइत अछि। गाछ डाठिपातसँ सघन होइत अछि। एकरामे सुगन्ध होइत छैक मुदा उत्कट नहि, मनमोहक घ्राणनीय। वातावरणकेँ बहुत निकजका सुगन्धित कएने रहैत छैक। गर्मीमे पोखरिकेँ ठण्ढ़ा हवा आ एकर शीतल हाहरि ओहना कोनो थाकल पथिककेँ आकर्षित करैत अछि। पर्यावरणकेँ प्रदुषित होबए सँ बचावकेँ कार्य पोखरि आ वृक्ष मिलकए करैत अछि।
पोखरि खुनाक वृक्षारोपण केनाई कोनो मैदानी क्षेत्रकेँ वासीकेँ जीवन पछाति मात्र नहि जीवनक आधार अछि। एहि बातकेँ हमर संस्कृति अछि जे धर्म परम्परा आ जीवन शैली सँ मात्र जुड़ल नहि अछि परंतु ई जीवनक मूल तत्वकेँ पकड़ने अछि आ पर्यावरणक चेतना दऽ रहल अछि।
जखन कार्तिक मासमे शुक्ल पक्षमे अन्हार सांझमे किछु समूह गत कन्या लोकनि, विवाहिता लोकनि एकटा डालामे किछु छोट छोट माटिक मूर्त्ति एकटा मूर्त्तिमे किछु खर कोंचल एकटा मूर्त्तिमे किछु सन ठूसल, आ दीप बड़ल रास्ता पर गीत गवैत आंगनसँ निकलए आ समूहमे मिश्रित भऽ फुलोकलयमे लोकगीत गावए तँ उत्तर संस्कृतिकेँ लोक कोना बुझि सकैअ जे एहि गीतमे भाए बहिन अतुलनीय प्रेम आ ममता प्रतिध्वनित अछि, भाएक आयुकेँ हार्दिक कामना प्रतिबिम्बित अछि, भाएक वीर होवएबाक प्रेरणा मिश्रित अछि। भाएक बहुत तगड़ा होबएबाक शुभकामना आ आशीर्वाद अछि। सुखी सम्पन्न होएबाक चाहना अछि। चुगलखोरसँ सतर्क रहबाक चेतावनी अछि। चूगलाकेँ मूँहमे कारी पोति दण्ड देबाक न्याय पद्धति अछि। दुनू वाँहिकेँ जराए निर्मम दण्डकेँ न्याय व्यवस्था अछि। अर्थात् झगड़लगा व्यक्तिकेँ चुगलखोरकेँ, ग्राम कंटककेँ कोन रूपे मिथिला देखैत अछि श्वरकेँ मिथिलाक नारी वर्गमे ओकर कोन स्थान छैक?
गोंदमे आगि लगैत वाते छोड़ु जौ वृन्दावनमे आगि लगैक तँ ओकर भाए मिझएबाक लेल साहसी होइछ पर्यावरणकेँ रक्षा करैकसँ बहिनक इच्छापूर्ण निर्देशन छै। जाहि लोक सांस्कृतिक गीतमे ननदि भाउजक परम्परागत परिहास छैक आ ओहि परिहास द्वारा भाएक सुखमय दाम्पत्य जीवनक कामना छै।
तै महिला लोकनि कर्णयुद्ध श्वरमे गवैत छथिन्ह– ‘सामाक गीत’
“गामक अधिकारी अहो मोहन भैया यौ,
भैया दस हाथक पोखरि खुनाए दियौ यौ,
चम्पा फूल लगाए दियौ यौ”।
काश! एहन लोकगीतक मर्म आशय प्राचीन मिथिलाक राजधानी जनकपुर संत महंथ पूजारी व्यापारी कर्मचारी बुझथि आ बुझथि ओ सेहो जे करैहथि ठेकेदारी आ नेतागिरी आ बचा देथि जनकपुरक पोखरि चारू मोहाड़ सहित।
शीतल झा, जनकपुर, धनुषा, सुगा मधुकरही–५, नरहिया।




३. विजय–हरीश-किछु लघु कथा-


छींट बला गमछा

हम हुनका दिस दैखलियै तँ ओ बैसले–बैसल मुस्किया देलखिन। कने आर लग जे गैलियै तँ ओ खिलखिला कऽ हँसि देलखिन। हम अति–उत्साहित भऽ हुनक आरो लग जे गैलियै तँ ओ कने सइटि कऽ कानमे कहलखिन–“भाइयौ हमहुँ अहींक जाति–बिरादरी छी”। आ अपन माथ परक छींटबला गमछा हटा देलखिन।
लघु कथा
किकिऔनी
विजय–हरीश
दुइ गोट लेखक मित्र छलाह। एकटा नव तँ दोसर पुरान। पुरान किछु हद धरि एक मोकाम पर पहुँचि गेल छलाह। तँ नवका हुनका लग बेर–बेर दौड़थि। पुरनका बेचारे आजिज भऽ गेल छलाह अपन नव मित्रसँ। मुदा बाजताह की? कहबाके लेल, मुदा छलथि तँ मित्र। एक दिन ओ कविताक माध्यमे अपन पीड़ा व्यक्त केलखिन आ कविताक शीर्षक देलथिन–किकिऔनी।
नोट-“सगर राति दीप जरय”
सरसठिम कथा गोष्ठी,
मानाराय टोल, नरहन (समस्तीपुर)
मे पठित
पता–विजय–हरीश
डोमन–द्वारि
ग्रा.+पो.–परसरमा
भाया–सुखपुर
जिला–सुपौल
पिन.–852130

लघु कथा
भावी–रणनीति
विजय हरीश
हम बच्चा सभकेँ ट्यूशन पढ़बैत छलहुँ। एक ठाम नव ट्यूशन शुरू करबाक छल। हम ओतय पहुँचलहुँ। मौसम कने गर्म छल। कुर्सीपर बैसते गमछासँ हाथ–मुँह–पोछऽ लगलहुँ।
तखने कुसंयोगे हमरा दहिना आँखिमे किछु पड़ि गेल। आँखि लिबिर–लिबिर करऽ लागल। बगलेमे बच्चा सभक दादी बैसल छलि। ओ हमरा दिस कने नजरि कड़ा करैत बाजि उठलीह–“हो मास्टर! आइ तोहर पहिले दिन छिअ आ हमरा तोहर छिच्छा नीक नञि बुझबै छअ”।
हुनकर इ गप्प हमरा टिकासन धरि लेसि देलक। मुदा हम पितमरू भेल हुनका कहलियनि–“नञि माताराम कोनो तेहेन गप्प नञि छै। हम तँ अपनेक आँखिक रोशनी टेस्ट करैत छलहुँ। किएक तँ ओहि हिसाबे ने हम अपन भावी–रणनीति तय करब”।
विजय–हरीश
डोमन–द्वारि
ग्रा.+पो.–परसरमा
भाया–सुखपुर
जिला–सुपौल
पिन.–852130
लघु कथा
तृष्णा
विजय हरीश
हमरा टोलामे ‘एकगोट’ छल। नमरी कोढ़िया। पुरखाक अर्जल संपैत बेचि–बेचिक जीवन भरि अपन आत्मिक आ शारीरिक सुख मौज केलथि। जीह तँ बहसले रहनि अय्याशो तेहने। हुनक गप्प सुनिक तँ नवका छौड़ा सभ आँगुरमे दाँत काटे लागैत छलै। अपन छुतहरपनीक लेल ओ प्रसिद्ध छलाह आ एहि आगाँ ओ धियो–पुताक भविष्यक लेल कहियो नञि सोच–लनि।
तँ समय एलनि तँ बेटा–पूतोह खूब ऐंराठेन, खूब दुर्गज्जन करनि। इ रोज–रोजक फजीहत देखि अड़ोस–पड़ोस बलाक अनसहज लागि जानि मुदा हुनका लेल कोनो हरख विढाद नञि। एहि क्रममे एक दिन एकटा हुनके मेरिया आजिज भऽ बाजि उठलाह–एह! हिनका जगह पर जौ दोसर कियो रहिते तँ निस्तुके बिख खा लित मुदा एहि चार्वाक प्रवृति इंसान लेल कोनो बात नञि। सभ किछुकऽ कुर्त्तामे पड़ल गदी जकाँ झाड़ि दैत रहथिन लागै जेना निर्लज्जताक सभ घाटक पानि ओ पीने रहथि। छिः छिः ऐना बेटा पूतोहूक खोरनाठबसँ मरि जाएब बेसतर एहेन जीनगी कतो मनुक्खल जीते।
संयोगे एक राति हुनके घर लग बाटे हम जाइत छलहुँ कि एकटा आवाज हमरा कानमे सुनाई पड़ल ‘राम जानकी, राम जानकी’ हम अकनाबे लगलौ कि फेर वैह आवाज ‘राम जानकी, राम जानकी’ रक्षा करहुँ प्राण की ओं अपन मचानपर पड़ल रटेत छलाह। कने मुसकीयाबेत हम आगाँ बढ़ि गेलौं।


४. सुनीता ठाकुर-अपहरणक सच

उम्र–२१
गाम–भवानीपुर, ।

अपहरणक सच


वर्ष २००३ सितम्बरकेँ घटना अछि। हमर पितियौत भाइ श्री राजीव कुमार इंटरमीडिएटकेँ छात्र छलथि संगहि मेडिकलकेँ तैयारी सेहो करैत रहैथ। ओ पटनाक बोरिंग रोडमे एकटा भाड़ाक मकानमे संगीक संग रहैत छलाह। १५ सितम्बरक दिन हुनका एकटा संगी आशीष हुनके संगे रहैत रहय हुनका ठगि कऽ लय गेल जे चलु गया घुमि आबए लेल। राजीब संगीपर विश्वास कऽ हुनका संगे गया लेल बिदा भेलाह। दुनु गोटे रिक्शा पकड़ि पटना स्टेशन पहुँचलाह। ट्रेनमे बैसलापर किछु दूर गेला कि बगलमे एकटा लड़का आबि कऽ बैसि गेल। राजीब छलथि सीधा लड़का ओ किछु बुझि नहि सकलाह। किछु दूर गेला पर दूटा लड़का आ ओर बगलमे आबि कय बैसि गेलनि। आशीष कहलखिन जे इ सब हमरे संगी छथि। राजीब सोचलनि जे ठीक छैक सब गोटे संगे गया जायब तय मोन लागत। मुदा ओ कि बुझताह जे इ सब हिनकर जीवन बर्बाद करबाक तैयारीमे छथि। ट्रेनमे सब खूब बातचीत करैत जाइत गेलाह। बहुत दूर गेलाक बाद राजीब पुछलखिन जे एखन धरि गया नहि आयल तऽ आशीष कहलनि जे“देखियो ने राजीव हमर भैया सीवानमे रहैत छथि, हुनका हमरासँ कोनो जरूरी गप करबाक छनि फोन केलथि जे पहिने सीवान आऊ ताहि द्वारे पहिने चलु भैयासँ भेंट कय लैत छियैन, तकर बाद गया चलब। राजीबसँ बुझि सीवान पहुँचलाह मुदा ओ सब गोटे एकटा होटलमे नास्ता कयलनि। नास्ताक समय मिठाईमे बेहोशीक दवाई मिला कय राजीवकेँ खुआ देल गेल। मिठाई खाइत देरी ओ बेहोश भऽ गेलाह। तकर बादक घटना ओ किछु नहि बुझि सकलाह। संगी सब मिल कऽ हुनका देवरिया (यू.पी.)मे अपहरणकर्ताकेँ गिरोहमे दऽ देलनि। राजीवक पिता कटिहारमे कोनो साधारण नौकरी करैत छलाह। राजीवक फोन नहि लगलनि तऽ ओ चिंतित भेला आ पुनः अपन पैघ भाइ जे कि पटनामे रहैत छथिन हुनका लग एलथि। पूरा परिवार चिंतामे डुबल छ्लाह मुदा राजीवक कोनो खबरि नहि लगलनि। सब बहुत घबरा गेलाह। पुलिस स्टेशन जा कऽ रिपोर्ट लिखैलनि। बहुत ठाम पता लगैलथिन मुदा किछु पता नहि चलल।
चारि दिनक बाद सांझ कऽ अपहरणकर्त्ता फोन कएलक आ राजीवक पापाक कहलनि जे“अहाँक बेटा हमरा लग अछि अहाँ २५ लाख टाका लऽ कऽ आऊ, तखन अहाँक बेटाकेँ छोड़ब”। ई सुनि राजीवक पापा कहलथिन जे “हम साधारण आदमी छी, एतेक टाका कतयसँ आनब”। आ बहुत चिंतित भय गेलाह। ओहि बेचाराक दुटा बेटीक बियाह करबाक रहनि, कतयसँ ओतेक टाका ओ अनतथि बहुत परेशान भऽ गेलाह। माँ, भाइ, बहीन, चाचा सब केओ सोचय लगलनि जे आब की होयत। कतयसँ ओतेक टाका इंतजाम होयत आ राजीवकेँ छोड़ा कऽ आनब। हमहुँ गेल छलहुँ चाचासँ भेट करबाक लेल। हमहुँ बहुत चिंतित भेलहुँ, आ चाचाकेँ समझेलियनि जे चिंता नहि करू सब ठीक भऽ जाइत।
बीस दिन धरि बहुत घमर्थन भेल। अंतमे अपहरणकर्त्ता चारि लाख टाकाक इंतजाम कयलनि आ दुनू भाइ अपहरणकर्त्ताक गप पर टाका इंतजाम कयलनि आ दुनू भाइ अपहरणकर्त्ताक गप पर टाका लऽ कऽ छपरा गेलाह। ओतए गेला पर हुनका सभकेँ भरोस नहि होइत छल जे राजीव भेटत। बहुत परेशान कएलनि अपहरणकर्त्ता सभ कखनो फोन कऽ कऽ कहैन जे होटल आऊ तय कखनो फोन कहैत जे स्टेशन पर आऊ। बहुत परेशानी भेलनि मुदा अंतमे राजीव भेट गेलनि। राजीवकेँ देखलथि आँखि पर पट्टी बान्हल, पूरा कारी भेल, पूरा पातर सेहो भय गेल छलैक। एकटा चेन पहिरने रहैथ सेहो छीन लेने छल, मोबाइल, घड़ी, सेहो लऽ लेने रहै। पापा एवं चाचाकेँ देखि कऽ राजीव बहुत कानय लागल। ओ सब समझा बुझा कय हुनका पटना डेरा पर अनलथिन। राजीवकेँ देखि पूरा परिवार बहुत खुश भेला आ सब केओ पकड़ि कय कनलनि। राजीव सेहो कनलनि, तखन ओ सबकेँ जनौलनि जे एहन संगी भगवान दुश्मनोकेँ नहि देथि। आ पूरा जनौलनि जे केना कऽ ओ बीस दिन अपहरणकर्ताक संग बितौलनि। जंगल रहैथ पूरा आ ओतय एकटा घरमे बंद कऽ कऽ राखनि। खेनाइ –पिनाइमे दिक्कत नहि होइत मुदा ओ खेता कि ओ तय पूरा घबरायल रहथि आ हरदम कनैत रहथि। जेना तेना कय दिन कटलनि।
बादमे पता चलल जे आशीष मधुबनी जिलाकेँ छल, हुनके सभटा हाथ रहैथ राजीवक अपहरणमे। हुनका गलत फहमी भऽ गेल रहनि जे राजीव बहुत बड़का बापक बेटा छथि। पुलिसकेँ जखन आशीषक नाम बताओल गेल तऽ ओ सभ छान बीन कऽ ओकरा थाना अनलक। बहुत दिन धरि मामिला चलल। ताहि बीचमे आशीषक पापा राजीवक पापाकेँ कहलनि जे चारि लाख टाका हम दैत छी हमरा बेटाकेँ नाम कटवा दियौ, मुदा ओ सभ तैयार नहि भेलाह। आ एखनो धरि आशीष जेलमे अछि। राजीव दिल्लीमे एम.बी.ए. कऽ तैयारी कऽ रहल अछि। इ छल अपहरणक सच।

५. श्रीमति कुमुद झा
उच्चैठ भगवतीक महात्म
श्रीमति कुमुद झा, उम्र ५१ वर्ष, ग्राम अरेड़ डीह टोल, जिला मधुबनी (बिहार) मधुबनी जिला अंतर्गत रहिकासँ लगभग २० किलोमीटर दूर भगवतिक स्थान छैनि। कहब अछि जे वर्षो पूर्व पोखरि जे एखन अछि वो नदी छल। नदीकेँ उत्तर संस्कृत विद्यालय रहैक, ओहि विद्यालयमे नियम रहैक जे प्रति दिन दू लड़का राति कऽ काली जीक आरती करैक लेल नदी पार कऽ कऽ आबैत छलाह, तथा वापस गेलाक बादे छात्र सब राति कऽ भोजन करैत छलाह। एक दिन नदीमे बाढ़ि आवि गेल छलैक कियो छात्र आरती करयकेँ लेल नदी पार करबाक हिम्मत नहि केलक। अंतमे हेड पंडित कहलथिन जे आई आरती छोड़ि दियौ आ सब आदमी भोजन करैय जाऊ।
ओहि ठाम कलिया नामक एकटा नोकर छल, ओ कहलकैक जे हम आरती करय जायब तथा आरतीक बादे सब दिन जका भोजन हेतैक। जेना तेना नदीकेँ पार कय कऽ कलिया माताजीक दरबारमे आरती करय लेल पहुँचल। आरतीक विधि ओ नहि जनइत छल। कलिया आरतीक समान सब भगवतीक मुँहमे लेप देलकैन। ओहि पर माता बहुत प्रसन्न भेलीह आ कलियाके कहलथिन जे तू हमरासँ वरदान माँग। कलिया माताजीक कहलथिन जे हे माता हमरा सब मूर्ख कहैये से हमरा विद्वान बना दिअ”। माताजी वरदान देलखिन जे जतेक किताब तूँ आई रातिमे छू सकबय सब तोरा याद भय जेतौक। कलिया विद्यालयमे सब छात्रकेँ भोजन करा विद्यालयमे जतेक किताब रहैथ उपलब्ध सबकेँ राति भरिमे छू लेलक आ कलिया विद्वान भय गेलैक। तकरा बाद कलिया पूर्ववत विद्यालयमे कार्य करैत रहल। लेकिन छात्र सब गलती पढ़ै छलाह तँ कलिया टोकि दैत छलैथ तथा छात्र सबसँ मारि खाइत छलाह। एक दिन पण्डित जी वेदक कोनो अध्याय याद करय लेल छात्र सबकेँ कहलथिन। उच्चारण गल्ती भेला पर कलिया टोकलकनि तऽ छात्र सब तमसा कऽ कलियाकेँ बहुत मारलखिन, अंतमे पण्डित जी हल्ला कऽ एलाह। बात सब बुझलापर पण्डित जी कहलथिन कलिया ठीक कहैत छैक। पण्डित जी आश्चर्यचकित भेलाह जे वेदक ई अध्याय कलिया कोना जनलक।
पण्डित जी कलियाकेँ अपन कक्षामे बजा कय आरतीक वृतांत सुनलाह, तथा कलियासँ कालीदास भेल। कलियाकेँ आदरपूर्वक विदाई दय कय विद्यालयसँ विदा केलखिन। वास्तवमे कलियाक वियाह राजकुमारी विद्योतमासँ शास्त्रार्थमे भेल छ्लैन। किंतु विद्योतमा तुरंत जानी गेलीह जे कलिया मूर्ख अछि। ओकरा देशसँ निकलि जायकेँ सजा भेटलाक उपरांते कलिया भगवति स्थानक विद्यालयमे पहुँचल छल।
उच्चैठ भगवती स्थान काकी प्रसिद्ध अछि सब दिन दर्शनार्थीकेँ भीड़ लगैत छैक आ जे कामना सँ आहाँ ओतए जायब, माँ भगवती सबकेँ मनोरथ पुरा करैत छथिन्ह आ बारहो मास ओतए बलिप्रदान सेहो होइत अछि। खास कऽ कऽ आसिनक दुर्गा पूजामे अष्टमीक दिन बहुत प्रसिद्ध मानल जाइत छलै। हम सब ओहिठाम बराबर जाइत छलौ। आ माताक दर्शन कऽ कऽ गीत गवैत छलौ। पूजा पाठ कऽ खाना खा कऽ हम सब पूरा परिवार घर वापस आवैत छी। एहि तरहे उच्चैठ भगवतिकेँ इ कहानी अछि।

भगवतीक गीत
श्रीमति कुमुद झा

हमर दुःखक नहि ओर हें जननी, हमर दुःखक नहि ओर
जहिया साँ माता जन्म जे देलाँह दुःख छोड़ि सुख नहि
मेल जननी हमर दुःखक नहि ओर, जहिया साँ माता
पुत्र जे देलौहु दुःख छोड़ि नहि भेल हे जननी हमर दुःखक
नहि ओर .....२। जहिया सा माता सम्पत्ती जे देलोंह
दुःख छोड़ि सुख नहि भेल हे जननी .....२। माताकेँ
सब पुत्र बराबर पण्डित मुर्ख गँवार हे जननी हमर दुःखक
नहि अओर .....२।


दोसर गीत भगवतीक
श्रीमति कुमुद झा

हम तय जनै छी माता अहाँ बरी दुर हे दुअरे पर
आवि हे माता भये गेल कसुर हे। एकटा जे पुत्र
देतौ धनकेँ सिंगार हे सेहो पुत्र होयत माता सेबक
तोहार हे। गंगा जमुन साँओ जल भरि लायब हे भोर
होइतहि माता पिढ़िया निपायब हे। मलिया आँगन
साओ फुलबा मँगायब हे भोर होइतहि माता फुलबा
चढ़ायब हे, पटवा दोकान साँओ आँचरी मँगायब हे।
नित उठि आहे माता। आँचरी टँगायब हे। हाट
बाजार साँओ धूमन माँगायब हे साँझ हेते माता
धूप–दीप देखायब हे।

श्रीमति कुमुद झा, उम्र–५१वर्ष, गाम–अरेड़, डीह टोल, जिला–मधुबनी।

• ६. शम्भू झा वत्स
• ग्राहर्स्थ्य जीवनक समस्याम

• ग्राहर्स्थ्य जीवन बड संघर्षमय होइछ। शंकरो भगवान एहि संघर्षए उद्धेलित भए गेल छलाह।
• तारकासुरकेँ ब्रह्मा जीसँ वरदानमे सैह प्राप्त भेल छलैक जे शंकरसँ उत्पन्न छ: सालक बालक हमरा मारि सकैछ। आओर केओ देव गन्धँर्व-राक्षसादि नहि मारि सकैछ जखन तारकासुर एहि वरदान प्राप्त कय उन्म त भए देवता सभ कए मारि भगा स्व्र्ग पर शासन करए लागलए। तखन देवता लोकनि सभ एकत्रित भए पितामह ब्रह्मा जीके समक्ष उपस्थित भेलाह आ अपन दु:खक सम्पूलर्ण वृतान्तव कहि सुनौलक। ब्रह्माजी देवता सभ कए आश्वास्त कहि किछु दिन धैर्य धारण करबाक लेल कहलथिन।
• शंकर भगवान ब्रह्मचारी तपस्वी‍ भय माया-मोहसँ मुक्त छलाह तँ तारकासुर एहेन वरदान माँगने छल जे हमरा शंकरजीसँ जन्मल ६ वर्षक बालके मारि सकैछ। आओर केओ नहि। नहि शंकर विवाह करताह आ नहि हुनका बालक होइतैन्हि। तँ से तारकासुर निश्चिन्त छल मृत्युओसँ।
• ब्रह्माजी देवता लोकनि सभ गोटे शंकरजी केर समक्ष जाय करबद्ध प्रार्थना कैलेन्हि। हे महादेव? हमरा सभकेँ उद्धार करू। नहि ते देवता सभ आब नहि बचत। आव हमरा सभक कल्याण हेतु वियाह करू।
• शंकरजी ते गार्हस्य्ा जीवनकेँ कठिन बुझि तहूसँ मुक्त रहै चाहैत छलाह1 मुदा देवता सभ-केर कष्टन मेटावए लेल प्रथम सती दक्षप्रजापतिक पुत्रीसँ वियाह केलेन्हि। बादमे पार्वतीकेँ रूपमे दोसर जनम जे सती केर भेल छलैक। ताहि सँ पुनः वियाह भेलेन्हि।
• शंकरजी समक्ष आव गार्हस्य्याह जीवन केर समस्या उपस्थित होए लगलन्हि, पार्वती जी एलथिन्ह् तँ “ऐसना-पोडर, लिपास्टिक” केर मांग होवे लगलन्हि। शंकर जी कहलथिन्हा– ए पार्वती? हमरा तए भसमे छाउरसँ काज चलैत छल अहाँकेँ हम ऐसनो-पोडर कतएसँ दैव पार्वती वजलीह- ई सभ कहने काज नहि होइत। नारीक श्रृंगार तँ इएहसँ होइत छैक।
• ”ई लेल तँ धन व्य य होयत? मुदा हम धन कतैसँ आनब? हम तँ बाबाजी छी”। शंकर जी वजलाह।
• ‘’बाबाजी भेले सँ काज नहि होएत। हम की खाएव? धिया-पुता की खाएत? त्रिशूल-कमण्ड ल राखू। पासैन- कोदारि धरू। बौनि बुता करू।‘’
• पार्वती झुँझुहाति बजलीह।
• शंकरजी पार्वती केर एहेन प्रचंड रूप देखि सहमि गेलाह। हुनका स्मरण भए गेलेन्हल-
• यत्र नार्यस्तु पूज्यंन्ते रमन्तेा तत्र देवता। यत्रैतास्तुी न पूज्यनन्ते तत्र सर्वाफला क्रिया
• इयैह विचारि पार्वती जे-जे कहथिन्ह सँ सँ करए लगलाह।
• शंकरजी केर पारिवारिक समस्याय बढ़ले गेलए। ध्याँन-मनन-चिन्तान केर समय-कम पड़ि गेलन्हि। शंकरजी केर दूई टा वालक सेहो तेहने भेलन्हि। गणेशजी लम्बोँदर गज-बदन मनोहर। शंकरजी जे कमाए-कौड़िकेँ आनथिन्हट। तहिमे गणेशजी केर पेट नहि भरन्हि। कऐक दिन तँ शंकर जीकेँ उपासे करए पड़ैन्हि।
• एक दिन शंकरजी स्ना न-कए ध्या न चिन्तऐन कए रहल छलाह। हुनका पहिरनामे बाघक छाल छलैन्हि। सॉपकेर डाड़ॉडौर आ साँपए केर जनोऊ छलैन्ह । शंकरजी ध्या नमे मगन छलाह। एम्हमर अवसर पावि कार्त्तिकजी केर वाहन मोर साँप पर दौड़ल। साँप डॉड़ सए ससरि पड़ा गेलए। ऐम्हनर पार्वती केर वाहन बाघ, बसहा बड़द पर दौड़ल। बसहा बड़द होकाँहि-होकाँहि डिकरैत भागल। शंकरजी हड़बड़ा कए त्रिशुल लए दौड़ल की तावत डाँड़ सए बाघक छाल ससरि खसि पड़लए। शंकर जी झुँझुआई गेलाह। “हमरा सभ तबाह करएमे लागल अछि। केओ सुख देनिहार नहि। स्त्री-बेटा सभ तए सभ, ओकर वाहन धरि हमरा दु:खे दैत अछि। नहि। आब तँ अए सँ बढ़िया भीखे मांगि–चांगि खायब आ वोन–जंगलमे जीवन बितायब।“
• ताहि दिनसँ शंकरजी भीख मांगि आनतथि आ रातिमें भीत पर खूट्टीमे टांगि देतथि। जखन सब सूति जा‍तथि तखन रातिमे गणेशक वाहन मूषिक समटा झोरा केर भीख फोंकि जाएकि।
• शंकरजी आव पगलाए गेलाह। “नहि केओ नहि सुख देनिहार।“ आब हम आक–भांग धथूर खाएकए रहब।“ आ श्मेशान वास करब।‘’
• स्वरयं सुरेश: श्वबसुरो नगेश:
• सखा धनेशस्तगनयो गणेश:।
• तथापि मिक्षाटनमेव शम्भो,
• वलीयसि केवल मिश्व रेक्षा।।
• शंकर जी स्व यं देवसँ ऊपर महादेव छलाह, ससुरो पहाड़क राजा हिमालय, दलिदर नहि, हुनकर मित्र मण्डीली सेहो धन-कुवेर, बेटा सैहो गणेश अग्रपूज्या, ऋद्धि सिद्धि दायक, तैयो शंकरजी भिखमंगे? कहल गैल छैक जे ईश्व रक ईच्छा बलगर हौइछ, गार्हस्य्श अ जीवनमे जौ हुनको दुर्दशा भोगए पड़लन्हि तँ हमरा लोकनि कए गप्पे कोन।


१.मिथिला मे रंगकलाक समकालीन दृष्टि - प्रकाश
२.२.राकेश कुमार रोशन-पञ्चैति (कथा)३. भीमनाथ झा-चन्दा झा,हरिमोहन झा मिलिकऽ४. हेमचन्द्र झा दूटा कथा
कथा




१.मिथिला मे रंगकलाक समकालीन दृष्टि

- प्रकाश
सब कला मे श्रेष्ठतम कला मानल गेल अछि रंगकर्म के । से आइ नै, प्राचीने काल स’। इहो कोनो खास सभ्यता मे नै बल्कि विश्वक सब सभ्यता मे । जँ रंगकर्म केँ कला सँ संज्ञापित कयल जाय त’ सिवाय रंगकला के दोसर कोनो कला - चाहे ओ चित्रकला होइ वा संगीतकला वा नृत्यकला; अपना छोड़ि दोसर कोनो प्रोफेशन मे (आजुक समय मे सेहो ) सपोर्टिभ नहि होइत छैक । सभ कला मात्र सीमित क्षेत्रक लेल उपयुक्त होइछ संगहि व्यक्तिगत बेसी । मुदा रंगकर्म व्यक्तिगत स’ बेसी सामाजिक होइछ, तेँ रंगकर्म के आन कोनो दोसर कला मे श्रेष्ठ कला मानल गेल अछि ।

हमरा समाजक समाजशास्त्रीक ई अंभिज्ञता या अज्ञानता बूझी, जे सर्व साधारण तक एहि कलाक विशेषता केँ नहि प्रचारित क’ एकर विपरित प्रचार प्रसार कयल गेल । परिणाम हमरा सभहक समक्ष अछि, जे आइ विश्व के एक्कैसम शताब्दी मे होबाक बाबजूद,सूचना तंत्रक क्रांतिक होबाक बादो हमर समाज रंगकला सँ जीविकाक प्रश्न करैत अछि वा एहि क्षेत्रक जानकारी मे अपन असमर्थता देखबैत अछि । आखिर एहन स्थितिकिएक ? ई सवाल हमर अपन समाजशास्त्री आ समाजक अगुवा माननिहार लोकनि स’ अछि ।

नाटक वा रंगमंचक संदर्भ मे मिथिला समाजक अधिकांश व्यक्ति अखनहु तक अत्यंत असमनजस मे छथि । ई विधा कतेको रास तर्क कुतर्क स’ घेरल अछि । जिनका जतेक कम ज्ञान छनि ओ ओतेक ज्ञानिक अभिनय क’ एहि विधा के अपना हिसाबे तोड़ि-मड़ोरि क’ समाजक आगू प्रस्तुत करैत छथि । एहि रंग विधाक प्रकृति की अछि, ई कोन व्याकरणक आधार पर चलैत अछि एहि स’ संबंधित बहुत थोड़ तथ्य उजागर भेल अछि वा ई कही जे ओहि दिस कम्मे लोकनि के ध्यान गेलन्हि अछि । रंगमंच के आइयो गम्भीरता स’ नहि लेल जा रहल अछि । जे किछु लिखल वा कहल गेल सेहो ततेक ने शास्त्रीय भ’ क’ जे ओ आरो बुझौबलि बनि समाजक बीच व्याप्त रहि गेल ।

एहि सँ कनी आरो आगू बढ़ी । जँ रंगमंच के मैथिली साहित्यकार लोकनि साहित्यक कोनो विधा हेबाक प्रमाणपत्र दैत छथिन त’ ओहू सभ विधा मे नाट्यकर्म अन्य दोसरा सँ बेसी फलदायी अछि । तकर सबूत देबाक आवश्यकता हमरा नहि बुझना जाइत अछि । एहि एक्कैसम शताब्दी मे होमाक बादो जँ किछु तथा कथित गणमान्य व्यक्ति मे शंकाव्याप्त छनि तँ हुनका समक्ष हम किछु तथ्य, किछु उदाहरण आ किछु प्रश्न प्रस्तुतकरबाक प्रयास करैत छियनि, जाहि सँ हुनका सभहक बीच नाट्यविधाक लेल व्याप्त भ्रम दूर भ’ सकनि ।

किनको द्वारा ई कहि हीन देखायब जे रंगमंच मे कोनो तरहक जॉब नहि छैक, नाट्यकला केँ पेट भरबाक सामर्थ्य नहि छैक आदि आदि । ई एहि क्षेत्र के गंभीरता सँ अध्ययन नहि होबाक परिणाम थिक । हम आइ एतेक तक कहि सकैत छी, जे एहि तरहक भ्रम केँ मिथिला समाज मे प्रचारित करब एकटा सोचल समझल रणनीति मानल जयबाक चाही । मिथिला मे एहन तरहक काज बेसी संख्या मे ओहन व्यक्ति द्वारा भ’रहल अछि जे अपना आप केँ साहित्यकार घोषित केने छथि ।

आजुक समय मे कियो सज्जन पूर्णरूपेण ई दावा नहि क’ सकैत छथि जे ओ अपने (वा कोनो फलां धारे बाबू) मात्र कविता वा कथा वा उपन्यास लिखी क’ अपन आ अपन परिवारक भरन-पोषण करैत छथि ।

अहाँ सभ हमरा जनतब केँ कनि फरिछा सकैत छी त’ कहू जे कवि / कथाकार / उपन्यासकार / नाटककार / शिल्पकार / चित्रकार आदि लोकक अपन एहि कला मे महारथ हेबाक केहन प्रभाव हुनकर समसामयिक काज पर पड़ैत छनि ? की एकटा नीक कवि नीक शिक्षक भ’ सकैत छथि तकर कोन गारंटी अछि । एकटा नीक कथाकार नीक अधिकारी हेबे करताह से के कहि सकैत अछि ? एकटा नीक शिल्पकार वा की चित्रकार नीक वक्ता, प्रवक्ता, अधिवक्ता वाकि नेता हेताह से के दाबा संग कहि सकैत छथि ? प्राय: ई देखल गेलैक अछि ओ मैथिलीए मे नहि दोसरो-दोसरो भाषा मे जे एकटा शिक्षक जँ कविता लिखता त’ नीके लिखताह, एकटा प्रवक्ता कथा लिख देलाह त’ ओ नीके होयत, एकटा अधिकारी कोनो फोटो बनेलाह त’ सभ स’ पैघ चित्रकार कहाब’ लगताह । आ मैथिली मे प्रोफेसर साहेब (जे किनको प्रासाद स’ एहि पद पर आसीन छथि, कोनो प्रतियोगिता परीक्षा वा की यू.जी.सी. आदि स’ चयनित नहि भेल छथि ) त’ सफेद कागज पर किछु घँसियो देताह त’ समीक्षक वा हुनके समगोत्री लोकनिकेँ ओहि मे आर्ट / कविक प्रखरता / कथाक गंभीर कथ्य / उपन्यासक जटिलता / नाटक मे प्रयोगात्मक्ता देखा जाइत छनि ।

एकर ठीक विपरीत अछि रंगविधा । एकटा व्यक्ति जँ रंगकर्मी छथि वा कि कहियो कम-सँ-कम एक्को महीनाक लेल सघन रूप सँ रंगकर्म केने छथि त’ हुनकर जीवनकप्राय: सभ क्षेत्र मे एकर प्रभाव देखार भ’ जाइत अछि । ई हुनकर जीवनक अंतिम क्षण तक संग रहैत अछि । जँ ओ रंगकर्मी छलथि / छथि त’ ओ छात्रक नजरि मे एकटा नीक शिक्षको हेताह से गारंटी अछि । ओ एकटा अनुशासित अधिकारी, नीक वक्ता, नीक प्रवक्ता, नीक अधिवक्ता वाकि नीक नेता हेताह से कहल जा सकैत अछि । एकटा शिक्षक जँ अभिनय करताह त’ ओ नीके करताह से किन्नौ नहि मानल जा सकैत अछि । एकटा अधिकारी वा प्रोफेसर नीके नाटक लिखताह / नीके अभिनय करताह / नीके निर्देशन करताह तकर संभावना नगन्ये मात्र होयत ।

उपर्युक्त तथ्य जँ कनियो सत्य लगैत अछि त’ कहल जाओ जे कोन विधा महत्वपूर्णअछि जीवनक लेल; रंगकर्म वा कि कोनो दोसर ? हँ रंगकर्म ततेक ने अनुशासनसिखबैत छैक जे ओ रंगकर्मी अपन जीवनो मे आवश्यक्ता स’ बेसी अनुशासित भ’जाएत अछि । तकर प्रभाव अखन तक मिथिला मे साफ उल्टा भेलैक अछि । कियो किम्हरो स’ अबैत अछि आ एक सिंह नाट्यकर्म केँ मारि चलि जाएत अछि । ई कतौ स’ उचित नहि । बिडम्बना त’ ई अछि जे जाहि विधा पर ई लोकनि अपन अपन तर्क-वितर्क वाकि कुतर्क करैत छथि ओहि समूह मे पहिने सँ रंगकर्म सँ जूड़ल व्यक्ति केँ बजायब आ हुनकर सहमति वा अहमति लेबाक कोनो प्रयोजनो नै महसूस करैत छथि । बंद कोठली मे निर्णय लैत छथि आ सम्पूर्ण समाजक पाई सँ बनल संस्था सभ सँ मोटगर-मोटगर ग्रंथ छापि नुका रहैत छथि । एहन लोकनि केँ लेशमात्र ग्लानि नहि होइत छनि जे नबका पीढ़ी के ओ की द’ रहल छथिन वा जहिया कहियो नवका सभहक समक्ष सत्य ओतैत तखन एहि सभ ग्रंथ पर छपल नामक प्रति ओ सभ की प्रतिक्रिया करतैक । ओ पीढ़ी आजुक पीढ़ी सँ बेसी प्रतिक्रियावादी हेतैक से हमरा सभ के मोन राखक चाही ।

रंगकर्म एकटा एहन कला अछि जाहिमे सबस’ बेसी जोर होइत अछि ई जे ‘अपना आप के चिनहू/बूझू/जानू’ । जीवनोक यैह मूल मंत्र अछि । अहाँ अपना आप केँ, अपन सामर्थ्य केँ जतेक नीक जेना बूझब अहाँ ओतेक सफल होयब अपन जीवनमे । तेँ अति आवश्यक अहि जे सभ व्यक्तिकेँ एहि बिधा सँ जूड़ि लाभ उठाबय चाहियनि ।

मिथिला समाज मे रंगकर्मक महत्ता के प्रचारित प्रसारित करबाक अति आवश्यकताअछि । एहि दिस सभ विद्वान केँ आगू अएबाक चाहियनि ।

- प्रकाश झा
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय
भगवान दास रोड, नई दिल्ली – 01
मो. – 9811774106
२.राकेश कुमार रोशन-पञ्चैति (कथा)
लालापहि-६, सप्तपरी हाल
पो.ब. न: ५४३२ काठमाँण्डूा

पञ्चैति (कथा)

थप!....थप!....थप!....खैनि तरह थि पर रगड़लाकेँ बाद चपड़ि ठोकि धूल उड़बैत बाजल सिफैत “आजुक पञ्चैतिमे बड़ मोन लागल....नहि रौ?....चन्नात। “खैनि खाइल जीसँ लेर चुबबैत बाजि उठल चन्ना “तँ!....आइ खुब मजा एतै....बड़ मोनसँ दुलारसँ आइ.ए., बि.ए. आ आओर किदन बिग्दुन पढ़ेलक जिवछ। माटर....अपन दूनु बेटा आ बेटियोकेँ। कहै छल जे....बलु हमरा धन जोडबाक नहि अछि....बेटा बेटी सभक पढा लिखा देव तँ कमाइयोकेँ खेतै आ....निक लोकसेहो बनि जएतै”। “तह!....आइए माटरबाकेँ बुझा जाएत जे दुकट्ठा जमीन जोड़नेसँ फाएदा होइतै की बेटा पढ़ेनेसँ फाएदा भेलैय”। खैनिकेँ मोनसँ घुस्सादैत बाजल सिफैत/तखने सिफैतक गोहालिमे साँझुका खानपिन खा’ क’ हाथ सुखबैत पहुँच गेल दिलिफ आ चट् दऽ बाजि उठल “कथिकेँ बातचित चलैत छै....सिफैत का....महरो एक जुम खैनि दियह”।“धुर....खैनि खेता! ....बड़ सौख छौ तँ लगाकेँ खेबहि तँ नहि हेतौ?....अच्छाा ले कनेक्शन खा हमहुँ तँ बेर–बेर माँगिक खाइत छी आ फटसँ दू जुम खैनिकेँ तिन भागल गाबैत आ बातक अगाड़ि बढ़बैत फेर बाजल सिफैत “तोँ आइ भरि दिन गाममे नहि छी से....नहि किछु बुझलि एखनी धरी”। बातकेँ जोंक नाहित नमराबैत देखि बिचेमे बाजि उठल चन्ना “रे!....जिवछा माटर द्या गफहोइत छलै....तोहर बाप तँ तोरा बेसि नहि पढेलकौ तँ बुढवा 14 कट्ठा खेतो त किनकेँ राखलक ने एकटा जे ई माटर हँ....देखैत नहि छि 4 कठ्ठा खेत छै ओ कनी दूटा घर।....कमाक नै एक्कोे कठ्ठा खेत किन लकै आ....नै दसो हजार रुपैया जम्माघ कऽ सकलै....।प्रिन्सिपलक नाम पर भेटल पैसा बुढि़या बेटिकेँ बियाहोमे नहि जुमले तँ राखी की सकत। आब आइ ओकर पुतहु सभमे झगड़ा भऽ गेलै तँ बेटा सभ पञ्चैति बैठेने छै....भिन है ले....आब दे‍खैत रहि सार बुढवाकेँ पुछै छै”। बुढि़या बोछि एहि सन्द्र्भमे कहने छल जे मास्ट र अपन बेटीकेँ स्नाेनत्तक धरि पढा देलकै बाद वियाह कयने छल २१ वर्षक उमेरमे। दिलिफ सभ वात बुक्तछतो अन्ठिया ल नाहित बाजल ए आइ पँञ्चैति छियै ने तब देखिलियै बुढवाकेँ द्वारपर दूटा विरिञ्च लागल छलै आ-आ हमरो घर गेल छलै ओकर पोता एकटा विरिञ्च लाबे”।....तह....देखह बुढबाकेँ आब गञ्जन भऽ जेतै.....एखन चलै बुलैत छै तँ कहुनाक दिन कटिए जेतै....आ जखन लोथ भए जेतै तँकेँ....केँ देखतै....देहमे पिलुबा फडि जेतै....”। आगिमे घी ढारैत बात बढौलक चन्ना.” तँ देखैत जाहिने....पाँच कठ्ठा खेतमे दूओ कठ्ठा माटरकेँ पञ्च सभ द’ देत तैयो कोइ नहि राखैले तैयार होतै।....छोटका तँ ओर हरामी छै,....कहते वलु मरि जाउ बुढवा....हमरा कोनो मतलब नहि छै।....आ बढका।....कनि स्थिर गरे छैत की भेल....दूकठ्ठा खेतसँ कि होइतै बुढवाकेँ सो ओहो राखत।....आइसँ तँ जिबछा माटर अबस्से् भिख मँग्गा भऽ जेते। एम्हार ठोर तरक खैनिमे सँ पच्चो दऽ थुक फेकैत बाजल दिलिफ”....तह! आब बुढवा माटरकेँ देखह ने दमाक दवाइकेँ किनक लाइवदैत छै बजारसँ आ कोन पुतहु....भोर साझ एक लोटो पानि देतै ब्लडप्रेसरक गोटि खहिले”।“....ओना आब पँचैति शुरु भऽ गेल होत।....चलै चलहने ओते बुझवो तँ करवै केना केना करैत छै पञ्चसभ आ....आ बुढबाकेँ हालो तँ देख लेबै” बाजल सिफैत आ एहि वाले तीनु सहमति होइन डेग बढेल एक उत्सुपक नजर लऽ कऽ जिबछक द्वार दिस।
जिबछ एक आधुनिक सोंचक थिक। जिनकर शिक्षा प्रति विशेष झूकाव छल। ओना अपना तँ गामेक प्राथमिक स्कूकलक शिक्षक छल आ मात्र मैट्रिक पास। मुदा अपन दुनु बेटा जेठका गनपैत आ छोटक धनपैतकेँ पढेमे कोनो कसैर बाकि नहि रखने छल। तैं गनपैत एम.ए. पास केन छल आ धनपैतो बी.ए. पुरा केने छल/गनपैत गामक लगेमे रहल एकटा छोट बजार कञ्चनपुरमे एकटा बोर्डिग स्कु लमे पढ़बैत छल ओही नोकरी ओकरा बड मुस्किलसँ भेटल छल आ एतेक ने कमाइ होइत छल जे खापीक बेटाबेटि पढबैत पढबैत एक्को टाका नहि बचैत छल। बेरोजगारीकेँ समस्या सँ ग्रस्ते एहि समाजमे धनपैतकेँ एहन एक्कोद गोट नोकरी नहि भेटल छल ताहि लक ओ गामेमे भोर साझ टिसन पढावैत छल आ कहुना कहुनाक ओहो अपन गुजाराकर लैत छल। बुढबा एखन एतके उमरगर भऽ गेल छलथिसे ओ नोकरीसँ रिटाएर्ड भऽ गेल छल आ पेन्सानक नाम पर हुनका जे टाका भेटैत छलथि जे बल्डिप्रेसर आ दमाक नियमित दवाइयोमे मुश्किलसँ जुमि जाइत छल ।
आइ बुढवा जिवछा माटरकेँ भरल छै। मडर मनेजर, राम्फेल, भिक्ख ना सँगहि सिफैत, चना, दिलिफ लगाएत बहुटो लोग सभ गोल बृद्ध भए बैसल छल। द्वारक तिनुकातक घरक कोन्टान सभ भरल छल छौंडी आ जनिजाइत सभ सेँ आ सभक उत्सुबकता पूर्ण आँखि केन्द्री त छल पञ्चसभ दिस। साँझुक करिब साढें आठ बजयत होयत। गनपैत तस्तउरीमे ‘सुपाडि, विडि, मोहलिसोंफ आ पान लैत आँगनसँ दुवार पर आएल आ सुभक वाट’ लागल। एम्हीर मडर मौनताक भंग करैत बोलल” शुरु कर ने....की भैलेए....खातिर ई पञ्चैति बैसाओल गेल?’’ ओना सभ बुझैत छल जे बास्तगविकताकी थिक? ई तँ बाट शुरु करैके औपचारीक घोषणा मात्र छल धनपैत बाजल ‘’हम दुनु भाय भिन होव चाहैत छी से बलु हमरा सभक’....सभ किछु बाँटिदिय। बडि सोक्तल आ स्पाष्ट‘ भाषामे कहि गेल छोटका एम्हीर राम्फ ल कनेक्शन गम्भिर होइत बाजल कहल जाइत अछि जे जतेक माथ ततेकबात तेँ बातक सुब मोथलक, चौहु तर्फ नजर दौडबैत- ‘’की हौ पञ्चसभ बढवाकेँ कतेक खेत जीवका देनसँ निक होयत। एम्हबरसँ मनेजर बाजल‘’पाँच कट्ठा खेतमे की देवह बेटा बेटी सभक....ओना नहि देवह तैमो तँ नहि हो तै ने....से नहि....तीन कट्ठा आ ई छौडा सभी जेकर बाल बच्चाभ छै ओ सभक एक्के कट्ठाक....”। सभलोक अपन अपन हिसाबे आ बात ओझराइते गेल तावतमे मड़र पुछि उठल” क हौ!.... जिबछ मास्टसर छे....सभ बरबैरक बाँटि दह दुनकेँ। बैसल सभ एक बेर जेना चौंक गेल कहल जाइत अछि जे जटेक माथ टटेकबा ते बातक खुब मोथलक, वातावरण कनेक गम्भिर बनि गेल आ ओइ गम्भिरक कारण छल बुढबाक ई गप। किएक तँ सभी सोचने छल जे ओ बाजत पाँच कट्ठा खेत आ छटा कोन्टा क की बाँटब कह....कहक बरु कमाकेँ खाएत आ ई सभ हमरा छाँटि देव। मुदा....ओकर विपरीत बुढबा आइ अपना हिस्साब सेहो नहि माँगलरक।....कहलक जे हुनके बरोबरी बाँटि दहक/बुढबाकेँ ई बात सुनि नहि रहल गेल मनेजरक आ ओ जेना विलाड़ पठरुक झपैट लेना छौ आ बु‍ढ़िया बककरी भऽ देखैत रहैत हो। तहिने गम्भिर बाताबरणकेँ चिरैत बाजि उठल”। तुँ! तुँ कत जेबह।....केँ तोराकेँ राखत....भिख माँगब काल्हिसँ भिख....भिन भेलाक बाद ई बेटा सभ एकटा फूटलहो बाटि नहि देत भिखो माँगो बास्तेँ....”। बात पूरी नहि भेलछल ता गनपैत बाजि उठल”....अपन बाउकेँ हमहि राखब....हमहि राखब अपन बाउकेँ।....जिविका लेल आ नहि....मुदा हम अपन बाउकेँ बुड़हारिमे सेवा करब। एम्ह।र सभ आश्चर्य चकित भ गेल। एखन तक एहन पञ्चैति नहि भेल छल। आन पँचैति सभमे जिविको होइत जबरजस्ति लादहल जाइत छल बुढवा बुढियाके....ओकरे कोनो धियापुता पर आ....आ लाधनहार रहैत छल पञ्चसभ....ओहे पञ्चसभ एम्हुर बुढवाकेँ आँखि नोरा गेल छल। ओम्हिर....एक कातमे ठाढ़ धनपैतो तुरुन्तेप बाजि उठल”नहि....हम राखब अपन बाउ केँ।....हम अपन बाउके बीन जी नजि सकैत छी....”। आब बुढबाकेँ याद परि गेल ओ दिन जखन बुढबा कतेक मेहनत सँ पालने छल ई दू बेटा। एक बेटिकेँ....। ओकरा सभक माय ते कनिएटामे छोडि चैल बैसल छलिथि एहि सँसारमे मुदा....मुदा बुढबा मास्टभर माय आ बाप दुनुके भुमिका पुरा केने छल ओहि सभक लेल। से आब....आब अपन जीवनकेँ सफलताकेँ खुसिक नोर नहि रोकि सकल आ पानिक धार नाहित बनल बुढवाकेँ सिकुड़ल गालक चमडीकेँ बिचोबिचा वह लागल नोर एक सफलताक नोर।

३. भीमनाथ झा-चन्दास झा, हरिमोहन झा मिलिकऽ

कवीशवर चन्दाा झा महाप्रयाण कयलनि 1907मे तथा संसारमे हरिमोहनझाक आगमन भेलनि 1908मे। आधुनिक युगक प्रवर्तक अपन काज सम्पेन कऽ लेलनि तँ ओहि काजकेँ आर विस्ता‍र देबा लेल मानू ओहि लोक जाकऽ हरिमोहन झाकेँ एहि लोकमे पठा देलनि। कवीश्वनर मैथिली साहित्यल लेल बहुत-किछु कयलनि, की-की कयलनि तकरा दोहरयबाक प्रयोजन नहि। किन्तु , ई कहब एतऽ प्रासंगिक अछि जे ओ साहित्यहकेँ जनताक बीच पसारि देलनि। पसारलनि तँ सभसँ अधिक विद्यापति, तकर दिनक बाद मनबोध सेहो, मुदा चन्दा झा तकरा ओलि-फटीक कऽचुनौटा बना देलनि।
झाक समयमे मिथिलामे लेखनक भाषा बड़ अव्येवस्थित भऽगेल छल । एक दिस संस्कृयत ह्रासोन्मभख भऽ रहल छलैक। एहनामे मिथिलाक जे अपन भाषा छलेक मैथिली, तकरापर भारी आबऽ लगलैक। चन्दाछझाक सोझाँ अपन मातृभाषाक सुच्चायपनकेँ बचाकऽ राखब सभसँ बड़का चुनौती बनिकऽ ठाढ़ भऽ गेलनि। अपन भाषापर एहन विकट संकटक सामना हुनक पूर्ववतीकेँ नहि करऽ पड़ल छलनि जेहन कवीश्व रकेँ करऽ पड़लनि। जँ अपन भाषे नष्टऽ भऽ जायत तँ साहित्येक मोल भेनहि को? तेँ ओ मैथिली लेखनमे साहित्यिक मूल्य वत्तासँ कनेको कम नहि, कतहु-कतहु तँ अधिके भाषाक शुद्धतापर सावधान देखबामे अबैत छथि। ताहूसँ आगाँ बढि़कऽ ओ ईहो प्रमाणित करऽ चाहैत छलाह जे मैथिलीमे से सामर्थ्य़ छैक जे केहनो जटिल भावकेँ मौलिक भंगिमामे सहजेँ अभिव्यछक्तथ कऽ सकैछ। यैह कारण थिक जे ओ स्थाेनीय लोकोक्ति-कहबी आ देशज शब्दतक सौन्दसर्य भरि मैथिली भाषाकेँ आर मोहक बना देलनि। सर्वथा विपरीत परिस्थितिमे मै‍थिलीमे से सामर्थ्य् लोकोक्ति-कहबी आ देशज शब्द।क सौन्द र्य भरि मैथिली भाषाकेँ आर मोहक बना देलनि। सर्वथा विपरीत परिस्थितिमे मैथिलीकेँ माजि-चमकायस, ओकरा आर क्षिप्र बनाया एक दिस जनसामान्यमसँ जोड़बाक आ दोसर दिस अन्यथ रचनाकारक समक्ष भाषाक आदर्श नमूना प्रस्तुैत कऽ लेखन दिस प्रवृत्त करबाक काजक कारणहुँ, केवल ओहू टाक कारणहुँ, ओ युगप्रवर्तकक आसनक अधिकारी छथि। किन्तु से कयलनि पद्यक माध्युमे। ओ समये तेहन छलैक जे जनता गद्य दिस कनडेरियो नहि तकितैक। से ओ भाँफि लेलनि। साहित्येक माने होइक पद्य, जे बहुधा गीतक रूपमे अभिव्यमक्त‍ होइक। से गीत गहना बनि गेलैक, ओहन गहना, जकरा काजे-तिहारमे पहिरल जाइक। अनदिना कन्तोबड़ीमे बन्दह रहैक। चन्दाेझा पद्यकेँ ‘गुआ-पन’बनौलनि, जे लोकक अमलमे आबि गेलैक। विषय चुनलनि समसादमयिक। लोक-आस्थािक अनुकूल रामायण लिखलनि। रामचरितमानसक प्रचार तहिया मिथिलामे ओतेक छलैक नहि। संस्कृयत जनसामान्यमसँ दूरे भऽ गेलैक। अंगरेजक दु:शासनसँ सीदित लोककेँ परितोष सेहो ओ देलथिन, महगीक मारिसँ पीडि़तक प्रति सहानुभूतियो देखौलथिहन, धर्मक हानि दिस संकेतो कयलथिन। एतावता अपन समाजकेँ भगवत् भजनमे लागल रहि आस्त्कि जीवन जीवाक सन्देलश देब ओ अपन कविकर्मक उद्देश्यग बनौलनि। मुदा, हुनक कविता काज ओहिसँ बहुत बेसी कऽ गेल,मैथिली साहित्यरकेँ नव दिशा दऽ गेल, नवयुगक आगमनक शंखनाद कऽ गेल। ई सभटा भेल काव्यनक माध्यऽमे- पद्यमे, गीतमे। गद्यकेँ ओ छूलनि टा, तकर छविकेँ निखारि‍तथि, लोककेँ गद्योन्मु-ख करितथि- ततबा पलखति नहि भेटि सकलनि। हुनका जाय पड़लनि। ओ संसार छोडि़ चल गेलाह। आ, अपन ताही छूटल काजकेँ सम्हारबा ले’ लगले हरिमोहनझाकेँ पठा देलनि।
1929मे हरिमोहनझा ‘मिथिला’क माध्यबमे मैथिलीमे उतरलाह आ मै‍थिलीकेँ साक्षर-निरक्षरक जीहपर चढ़ा देलनि, मिथिलाक घर-घरमे पहुँचा देलनि, ततबे नहि, एकर सौरभकेँ भारत भरिमे पसारि देलनि। ई चमत्कालर कयलनि ओ गद्यक माध्यनमे। लिखिकऽ टाल नहि लगौलनि ओ, मुदा लोकप्रियताक हिमालय ठाढ़ कऽ देलनि। अपन आ मैथिली-दुनूक लोकप्रियताक। चमत्काुर भऽ गेल। एहन चमत्का।र पूर्वमे कहियो ने भेल छल। विद्यापतिक चमत्कातर लोक बुझैत-बुझैत बुझलका, हुनक गेलाक सय-सय वर्षक बाद बुझलक, मुदा हरिमोहनझाक चमत्काकर तँ हिनक प्रवेश करितहिँ बुझऽ लागल।
हिनक साहित्य- समाजमे पसरल दू तरहेँ—एक तँ पाठकक व्याापक समर्थनसँ, दोसर तीव्र विरोधसँ। विरोध कयनिहार मिथिलाक सनातनी पण्डित रहथि, कर्मकाण्डीप रहथि, जे हनिमोहनझा द्वारा अपन अन्धपविश्वाासपर होइत प्रहारसँ तिलमिला उठथि आ ओकर घनघोर विरोध करथि। विरोधक कारणेँ आर ई पढ़ल जाथि । आइ ओ विरोध कालक गालमे समा गेल अछि, आ हिनक साहित्य कालातीत मानल जाय लागल अछि।
मुदा एकटा बात एखनो, किछु गोटे छथि जनिका कचोटैत छनि जे हरिमोहनझा अंगरेजी पढ़लनि तँ अंगरेजक समर्थक भऽगेलाह, ओकर सभ बात-विचार प्रिय भऽ गेलनि आ अपना लोकनिक सभ शास्त्रछ-पुराण फूसिक पुलिंदा बुझाय लगलनि। हुनका लोकनिकेँ दुख बातक छनि जे जतेक ई अपन ‘थाती’क खिधांस कयने छथि ततेक भरिसक कोनो साहित्यामे ओकर अपन साहित्य कार नहि कयने होयतैक। तहिना, जतेक ई देशक दुश्ममन अंगरेजक बात-विचारक गुणगान कयने छथि ततेक क्योा अपन दुश्मेनक रीति-रेबाजक प्रशंसा नहि कयने होयत।
सभसँ पहिने तँ ई जे अंगरेजी पढि़योकऽ ओ अंगरेज नहि भेलाह, अंगरेजक रहल-सहन नहि अपनौलनि। सूट नहि पहिरलनि, सिगरेट-चुरुअ नहि पीलनि, शराब नहि छू‍लनि, घरमे गंगरेजी नहि चलौलनि। धोती-कुर्त्ता पहिरैत रहलाह, माछ-भात खाइत रहलाह, हास्य -विनोदक गप करैत रहलाह। दोसर, ओ मानैत छलहा जे अंगरेज तावते धरि हमर शत्रु छल जाधरि हमरापर शासन करैत छल। ओ भारत छोडि़कऽ चल गेल, अध्यानय लागि गेलैक। शास्त्रि, साहित्यर, वैज्ञानिक बोध, प्रगतिक ललक-ककरो शत्रु नहि होइत छैक। ओ जँ शत्रुदेशोक छैक ओ नीक छैक तँ तकर प्रशंसा होयबाक चाही, तकर अनुकरण होयबाक चाही। ई नहि जे शत्रुदेशक थिक तँ केहनो नीक थिक, तकरा दिस ताकी नहि, ओकरा छूबी नहि। ओहि दिस नहि ताकब, ओकरा नहि छूअब तँ प्रगति कोना कऽ सकब, संसारक संग डेगमे डेग मिलाकऽ चलि कोना सकब? तहिना, अपन जे वस्तु अछि, शास्त्रड-पुराण अछि, तकरा समयक निकणपर रगड़ब नहि, समकालीन सन्द,र्भमे तकर पुनर्मूल्यांसकन नहि करब तँ की होयत? ओहीमे ओझराकऽ खपि जायब, आगाँ बढि़ नहि सकब। अपन वस्तुँ खराप अछि, से के कहैत अछि? ओ तँ बहुमूल्यब गहना थिक, ओकरा कन्तोँड़मे जोगाकऽ राखू। सौंसे देहमे ओकरा छाडि़ लेब तँ अकलार्यक भऽ जायब। आन दूसत। हँसत।
हरिमोहनझा बस एतबे कहलनि अछि, आ सभसँ स्प ष्ट तासँ‘खट्टर ककाक तरंग’मे कहलनि अछि। ओहिमे अपन किछु अन्धीपरम्पसराकेँ उघारिकऽ राखि देलनि अछि आ तकरासभकेँ आजुक सन्दनर्भमे अनुपयोगी सिद्ध कयलनि अछि। मुदा, एहि पाछाँ अपन शास्त्रे-पुराणपर अनास्थाय कि अपन संस्कारक प्रति अवहेलना-भाव नहि छनि। एहि बातक छनि- ‘’खट्टर ककाक तरंग’क द्वितीय संस्किरणक भूमिकामे कऽ देलनि अछि। जखन पुछल जाइत छनि- ‘’खट्टर कका, एकटा बात कहू? अहाँ ई सभ भितरिया मनसँ करैत छिऐक कि केवल लोककेँ हँसाबक हेतु? ‘’ ताहिपर ओ कहैत छथिन- ‘’आब तोँ हमर सभटा भेद एक्के दिनमे बुझि लेबह? ’’हुनक मुँहसँ बहरायल ई ‘भेद’ शब्देक कहैत अछि जे हुनका ‘वेद’सँ विरोध नहि छलनि। तहिना, पश्चिमक आचार-व्यतवहार सभटा नीके थिक-सेहो ई नहि मानैत रहथथि। ओकरो खिल्ली उड़ौने छथि। पाशचात्य् सभ्यहता नीत अनेको व्यछवहारपर कते तीक्ष्यकण कटाक्ष ई कयने छथि, तकरो प्रमाण ‘खट्टर ककाक तरंग‘मे भेटि जाइत अछि। ‘खट्टर ककाक टटका गप्प ’सँ निम्न लिखित उद्धरण प्रस्तुपत कयल जा रहल अछि-
‘’खट्टर कका-भोजक अर्थ होइ छल ‘भरि पेट’। पार्टीक अर्थ‘भरि प्लेरट’। अर्थात् एक फक्काख दालमोट ओ एकटा सिंहारा। ई सिंहारा आबिकऽ सोहारी-तरकारीक संहार कऽ देलक। पहिने अढ़ेयामे चरण अखरिकऽ एक अढ़ैया मधुर आगाँ राखि दैत छल। आब अढ़ाइ चम्म च चीनी एक चुकरीमे दय ऊपरसँ गोमूत्र-रंगक काढ़ा चुआ दैत अछि।
हम-हँ, आब तँ सभ ठाम ‘टी’.....
खट्टर कका-हौ, यैह टी तँ सभक टीक काटि लेलक। पहिने सौजन्यकक अर्थ छलैक अट्ठारहटा बाटी। आब केवल ‘टी’टा रहि गेलैक। आधुनिक सभ्यकतामे ठोर दागि दैत छैक, भफाइत इन्हो र लऽ कऽ। आचमनीयम् क स्थाकनमे चायमानेयम्। पहिने विवाहमे टाका भेटैत छलै। आब भेटे छैक ‘टा टा’। टी पियाकऽ टा टा कऽदेतौह। अर्थात् टिटकारी दऽ देतह। आइकाल्हुमक सभ्य‍ता बूझह तऽ ट अक्षरपर चलैत अछि। टोस्ट्, टी, टेरेलिन, ट्रैंजिस्टझर ओ टा टा। स्वाचइत लोक टिटिया रहल अछि।
हम-धन्य। छी, खट्टर कका। अहाँकेँ तँ सभ बातमे विनोदे सुझैत अछि। उनटे गंगा बहा दैत छिऐक।
खट्टर कका-हम बहबैत छिऐक कि आधुनिक महर्षि फ्रायडक चेला लोकनि बहबैत छथुन्हस? हुनका लोकनिक सिद्धान्तल छैन्हत जे चोला छूटय, लेकिन चोली नहि छूटय। कदम्बिसँ कदीमा धरि, सभ प्रतीके सुझैत छैन्हक। इन्द्रियनिरोधक स्थाैनमे गर्भनिरोध करै छथि। ‘मेन लाइन’ छोडि़ तेहन ‘लूप लाइन’ धैलन्हि अछि जे भावी पीढ़ी कूपमे जा रहल अछि।

हम-वास्तथवमे आब सभ बात उनटि रहल छैक।

खट्टर कका-ताहिमे कोन संदेह। पहिने पुत्रजन्म क उत्सनव होइत छलैक, आब जन्म निरोधक उत्स्व होइत अछि। आधुनिक नारी ‘पुत्रवती भाव’क स्था नमे ‘रूपवती भव, लूपवती भव’ आशीर्वाद चाहैत छथि। पहिने स्वा मी स्त्रीकक माँग भरैत छलाह। आब स्त्री स्वािमीक माँग पुरैत छथिन्हभ। स्वीयं कमाकऽ। कतिपय ‘पति’ मे ‘तँ’ अक्षरक योग सेहो भऽ जाइत छन्हि। पहिलुक चेला चैला चिरैत छल, आब छैला बनल फिरैत अछि। छौँड़ा सभ छीट पहिरय लागल अछि, छौँड़ी सभ सूट कसय लागल अछि। चित्त-पटपर चित्रपट अंकित रहैत छैक। रानी सभ लीडरानी बनि गेलीह। राजनेत्री लोकनि अभिनेत्रीक कान काटि रहल छथि। पहिने अप्सहरा होइ छलीह, आब अफसरा होइ छथि। ‘फैशन’ ओ ‘पैशन’ दिनदिन बढ़ल जाइत अछि। .....

तहिना, ‘अंगरेजिया बाबू’ नामक कथामे अंगरेजियतक भद्दा नकलपर जबर्दस्त उपहास कयल गेल अछि। अतएव ई कहब जे हरिमोहन झा अंगरेजी पढि़कऽ अंगरेजी सभ्यजतापर लट्टू भऽ गेलाह आ अपन संस्कृेतिकेँ निखट्टू मानि लेलनि-सत्य सँ दूर होयत।

ई विशेषत: ध्या-न देबाक बात थिक जे कवीश्व र भाषाकेँ मजबाक महत् काज जे पद्यक माध्यृमसँ कयलनि, तकवरा हरिमोहनझा अपन गद्य द्वारा आश्चबर्यजनक रूपसँ आकाश ठेका देलनि।


४. हेमचन्द्र झा दूटा कथा
कथा
बाट
हेमचन्द्रे झा
रामाक बी.ए. (आनर्स)क परीक्षा खतम भऽ गेल रहैक। बिनु समय गमौने ओ तुरंत आगूक प्रतियोगिताक परीक्षा समक तैयारीमे जूटि जाई चाहैत छल। ऑनर्समे नाम लिखबितहि प्रतियोगिता परीक्षा सभक तैयारीमे लागि गेल रहता ओ। एक दूबेर बैंकक आ कर्मचारी चयन आयोगक लिपिक श्रेणी परीक्षामे बैसियो चुकल छल। आ तेँ प्रश्न। पत्र सभक हाँज भाँज छलैक। संगहि पहिनेसँ विभिन्नक पत्र-पत्रिका पढ़बाक कारणे हिम्मात कने खूजि गेल छलैक। हिम्मतत केने छल जे यदि ढंगसँ एक-डेढ़ साल प्रतियोगिता परीक्षा सभक तैयारी कयल जाय, तँ कोनो ने कोनो लिपिकीय परीक्षामे उत्तीर्ण भेल जा सकैत अछि। तेँ अपन पहिल लक्ष्यय लिपिकीय परीक्षा रखने छल आ बादमे किछु आर।
तथापि शुरूआत कतऽ कयल जाय तेकर बाट नै देखाई छलैक। गामपर सँ परीक्षाक तैयारी असंभव छलैक, कारण एहिठाम एक तँ पत्र-पत्रिका भेटब मोशकिल छलैक, दोसर परीक्षा सभक फाँमौ भेटब दुर्लभ छलैक। आ तेँ कतौ बाहर रहब आनिवार्य छलैक। ओकर दोस्तोभ-महीम सभ सही प्रकरममे लागल छलैक। तथापि ओकर सभक लक्ष्य ‘पटना’मे रहि तैयारी करक छलैक, परन्तुा दोस्ति महीमसँ रामाक स्थिति किछु भिन्न. छलैक।
रामाक बाबूजी महेश बाबू पकिया गृहस्था। बाप-पुरुषाक देल ९-१० बीघा जमीनक बलपर अ महेश बाबू अपन तीनू बेटा के बी.ए. करौने छलाह। दुनू जेठ बेटा बाहर छलनि आ अपन पायरपर ठाढ़ हेबाक उपक्रममे लागल छलनि। सभसँ छोट छलनि रामा। ओहो बी.ए. ऑनर्स कऽ चुकल छल। एहिबीच दूटा कनेदानो केने छलाह। एहि सभ द्वारे महेश बाबूक आर्थिक दशा नीक नहि छलैन। रामा एकरा अनुभव करैत छल आ तेँ बाबूसँ आगूक पढ़ाइक वास्तेब पाई मंगबाक ओ हिम्मनत नहि कऽ पाबि रहल छल।
ऑनर्स परीक्षाक तुरंत बाद प्रतियोगिताक क्षेत्रमे भीड़बाक लक्ष्य पहिनेसँ बनने छल। दुर्गापूजामे बड़का भैया लग एहि संबंधमे प्रस्ताावो रखलक, परंतु आश्वाषसनक बात तँ दूर ओ कहलनि जे एहि प्रतियोगिता परीक्षासँ किछु ने होयत, कतौ नोकरीक जोगार करू। संभवतः- बड़का भैयाक अपन व्यकक्तिगत अनुभव रहनि। कारण ओहो एहि तैयारी सभमे दु तीन साल गमौने छलाह आ कतहु नहि चयन हेबाक स्थितिमे अंततः प्राईवेट कंपनीमे कलकत्तामे नोकरी पकड़ने छलाह। मझिला भैया बी.कॉम. केलाक बाद 5–6 महीना पहिने पूर्णत: स्थिरो ने भेल छलाह।
एहन स्थितिमे बड़का भैयासँ मददिक आशा केनाई व्य र्थ छल। आब एक्के टा रास्ताि छल जे कोनो शहरमे रहि ट्यूशन करय आ अपना बलबूतापर प्रतियोगिता सभक तैयारी करय। एहि लेल रामा तैयारो छल, परंतु शुरूआत कतऽ करय से नहि फुराईत छलैक। इंतजार छलैक फगुआक, जाहिमे ओकर मसिऔत भाय आबयबला छलथिन। ओकर मसिऔत पटने रहैत छलाह आ संजोगसँ ट्यूशन आदि सेहो करैत छलाह। फगुआमे मसिऔत भाई रमणजी गाम एलखिन। फगुआ प्राते रामा हुनका लग पहुँचल आ अपन सभटा समस्याल रखलक। रमण जी पूर्ण सहायताक आश्वातसन देलखिन आ कहलखिन जे हम पुन: मईमे गाम अबैत छी तँ हमरा संग पटना चलब। तथापि ओ कहथिन्हछ “पटनामे रहनाई। खेनाईक खर्चौटा बेसी छैक तेँ ओतय बेसी ट्यूशन करय पड़त। लिपिकीय परीक्षाक तैयारीक लेल पटना रहब आवश्यखक नहि छैक। एकर तैयारी मधुबनीमे रहिकेँ सेहो कयल जा सकैत छैक। तथापि अहाँ फेरसँ सोचि लिअ आ मईमे हमरा संग चलू”।
मसिऔतक उक्ति सुझाव रामाकेँ ठीक लगलैक। मधुबनी रहि गामोक संपर्कमे रहि सकैत छल आ जरूरत पड़लापर गामो आबि सकैत छल आ पटनासँ गाम अवैमे पर्याप्त समय आ पाई लगैत छलैक। संगहि अपन दुनू भायक बाहर रहने आ स्वआयं पटना रहिने बाबूजी सेहो एसगर भक् जेताह, ई सभ सोचि ओ अपन पटना रहबाक प्रोग्रामपर फेरसँ सोचय लागल। तथापि पटना नहि रहत, तँ कतय रहत ? ई प्रश्नि एखन धरि अनुत्तरित छल।
एही ऊहापोहमे अप्रैलक महीना लगिचा गेलैक। मईक अंत धरि पटना जयबाक छैक रामाकेँ आ मधुबनीमे शुरूआत करक छैक। ऑनर्सक दौरान मधुबनीमे रहि चुकल छल तेँ सभटा देखल सुनल छलैक। बस समस्या छलैक जे शुरूआतमे कमसँ कम एकोटा ट्यूशन भेटि जाईत तँ नीक रहैत। बादमे आसे ट्यूशन भेटि जयबाक संभावना रहैत छैक। ट्यूशन मात्र अपन गुजर-बसर जोग करय चाहैत छल। मेसमे खयबाक पक्षमे छल ताकि भानस भात बनेबाक समय बचि जाय। ट्यूशन करैत अध्य-यन जारी रखनाई कने कठिनाइ अवस्से छलैक तथापि दोसर कोनो उपाईयो तँ नहि छलैक।
एही सभ उधेर-बुनमे एक दिन दलानपर बैसल छल कि तखने मंगनूकेँ अबैत देखलक। मंगनू ओकरे गामक एकटा छात्र छल आ एखन मधुबनीमे बी.एस.सी.मे पढ़ि रहल छल। मंगनू रामासँ तीन-चारि साल जूनियर छलैक आ मैट्रिक परीक्षाक समयमे रामा ओकरा पर्याप्त. मददि कयने छलैक। से मंगनू रामाकेँ दलानपर खाली बैसल देखि ओतय आयल। कुशल मंगल भेलैक आ फेर शुरू भऽ गेलैक पढ़ाई-लिखाईक मुद्दा। रामा सविस्तार मंगनूकेँ अपन गप्प बतेलक। पटना जयबाक संबंधमे मसिऔत भायक विचार सेहो बतेलक आ अपन प्रतियोगिता परीक्षाक तैयारीक शुरूआत मधुबनी या दरभंगासँ करक अपन मंशा प्रकट केलक।
मंगनू मैट्रिकक समयमे रामा द्वारा कयल गेल मददिकेँ बिसरल नहि छल। ओ प्रकटत: बाजल- “हम बी.एस.सी.मे पढ़ैत मधुबनीमे ट्यूशन करैत छी आ एतबा आमदनी भऽजाईत अछि जे बाबूजीसँ हरदम नहि माँगय पड़ैत अछि। अहाँ तँ हमरा पढ़ेने-लिखने छी। जँ हम ट्यूशनसँ अर्जितकेँ सकैत छी तँ अहाँ किएक ने कऽ सकैत छी। अहाँ शीघ्रे मधुबनी आऊ आ अपन शुरूआत करू। हम करब अहाँक लेल ट्यूशनक जोगार”।
असमंजसक स्थितिसँ दू-तीन महीनासँ गुजरवला रामाकेँ जेना एकाएक अपन बाट भेटि गेलैक। ओ तुरंत अपन सहमति देलक। लगेमे रामाक बाबू बैसल छलथिन। दुनू गोटाक गप्प सूनि ओ बजलाह, “जहन तों स्व यं ट्यूशनसँ आगूक पढ़ाई जारी राखय चाहैत छह तँ जा धरि तोँ पूरा ट्यूशन नहि पकड़बह, हम तोरा मददि करबह”।
बाबूजीक एहि बातसँ रामाकेँ आर सम्बाल भेटलैक। ओ शीघ्रे मधुबनी गेल, डेरा डंटाक भाँज-पता लगेलक आ सभ सामान लऽकऽ मधुबनी पहुँचि गेल। मंगनू ओकरा तुरंत ट्यूशन तँ नहि दे सकलैक, तथापि कहलकै जे अहाँ पहिने एकटा पब्लिक स्कूँल पकड़ू। ट्यूशन अनेरे भेटि जायत। रामा एक-दू दिनक भीतर एकटा पब्लिक स्कूएल पकड़लक। शीघ्रे ट्यूशनो भेटि गेलैक। शुरूआत नीके जना भऽ गेलैक।
ता कर्मचारी चयन आयोगक लिपिकीय परीक्षा‍क लिखित भागमे पहिले चांसमे सफलता भेटि गेलैक। ओकर खुशीक ठिकाना नहि रहलैक। सभटा खबरि ओ गाम आ भैया सभकेँ कयलक। ओकर बड़का भैया पहिने चांसमे भेटल ओकर सफलतासँ प्रभावित भेलाह आ पाई-कौड़ीक मददि देब शुरू केलनि। फेर की छल रामाक आगू बाट अनायासे खूजैत चलि गेल।
तिथि
31/5/05
फरीदाबाद


कथा
अग्रसोची
हेमचन्द्र झा
आई महेश बाबू अपन तीनू बेटा अजय, विजय आ दुर्जयक संग कोनो विशेष मुद्दापर गप्प कऽ रहल छथि। गप्पह कखनो फुसुर-फुसुर होईत अछि तँ कखनो तेज भऽ जाईत अछि।
ओना महेज बाबू पकिया गृहस्थ । अपन गृहस्थी क बलपर तीनू बेटाकेँ पढ़ेलनि–लिखेलनि आ तीनू बेटीक वियाहो केलनि। सदिखन गाम घरसँ जूड़ल रहयवला महेश बाबू पहिले बेर दिल्लीे अयलाह अछि, तीनू बेटा दिल्ली एमे छनि। अपने दुनू प्राणि गाममे छथि। तीनू बेटी सासुर बसैत छनि। खेत पथार बटाईपर छनि, तथापि ततेक भऽ जाईत छनि जे कोनो बेटासँ कहियो मंगबाक पयोजन नहि पड़ैत छनि। गाममे सभ कहैत अछि जे महेश बेस सुखितगर आदमी अछि, एकर परिवार बेस नीक छैक, सभ अपन पायरपर ठाढ़ छैक------आदि।
आ तेँ महेशबाबू गाममे निश्चित छलाह। कहिया दिल्ली बेटा सभसँ भेंट करक लेल या धीया पुता सभकेँ देखबाक लेल ओ नहि अयलाह सालमे एक-आध बेर बेटे सभ गाम जाईत छलनि। तथापि एहिबेर मुद्दे से फँसि गेलनि जे दुर्गापूजाक बाद ओ अपन एकटा गौंआक संग दिल्लीई अयलाह। सामने दियावाती या छठि रहबाक बावजूदो ओ एलाह।
यद्यपि तीनू बेटामे थोड़-बहुत मतांतर रहैत छल, परन्तु ओ प्राय: प्रकट नहि होईत छल। मुदा एहि बेर फागुनमे अजयक जेठकी बेटीक कनेदानमे से नहि भेल। गप्प-शप्पक क्रममे नहि जानि कोन गप्पतपर मझिली पुतोहु आत्मकदाहक प्रयास केलकनि। यद्यपि दिनक समय छल आ कनेदान-दुरागमन रहबाक कारणे बेटियो सभ छलनि तेँ बात आगू नहि बढ़लैक आ मामिला थमि गेलैक। गाममे ई बात जंगलक आगि जेकां पसरि गेल आ देखैत-देखैत पूरा गामक लोक जमा भऽ गेल। महेश बाबूक सभटा संचित प्रतिष्ठा आ सुख-चेन जेना छनहिमे देखार भऽ गेलनि।
कनिये दिनक बाद बेटा सभ सपरिवार वापस चलि गेलनि आ तीनू बेटियो अपन-अपन सासुर निचेनसँ आब महेश-बाबू पूरा प्रकरनपर विचार करय लगलाह जे एना भेल किएक। गाम-घरमे सेहो लोक सभसँ विचार-विमर्श केलनि ई बुझवामे भांगठ नहि रहलनि जे सभक जड़ि छैक पाई। मास्टसर साहेब तँ प्रकटत: कहियो देलखिन जे अहाँ अपन जीबैत पाईवला झंझटि किएक ने फरिया दैत छियैक?
वस्तुनत: ६-७ साल पहानि महेश बाबू पाही पट्टीक एकटा एक बिघवा खेत बेचलनि। अपनासँ आब ओकर रखवाली कयल पार नहि लगैत छलनि, तेँ ओकरा बेच देलनि। किछु पाईं तँ जमीनमे फँसेलाह, किछु जमाय सभ लऽ गेलखिन आ बाँकी ४०,००० फिक्सि कऽ देलाह। ओही साल अजयक बेटाक मूड़न जमा भेल। अजय येन-केन प्रकारेण दुनू छोट भायकेँ बुझा देलथि जे बैंकमे पाई राखलासँ की फायदा होयत। ई पाई हमरा दऽ दिअ। हम शेयर बजारमे एकरा लगायब आ गामक बाँकी सभ काज हमरा जिम्मायमे रहत। हम एक्क हि सालमे एकरा दोबर-तेबर कऽ लेब आदि।
परंतु से भेल नहि। कारण जे हो। दू-तीन साल बीतलाक बाद अजय राम कहानी शुरू केलनि जे हमरा शेयरमे घाटा लागि गेल। तथापि सभ सब्र केने रहल जे की पता शेयरक दाम बढ़ि जाई। परंतु ई की? एक दिन गप्प शप्पक क्रममे जेठकी दियादनी मझिली दियादनीकेँ कहलथिन्ही जे अहाँ सभ आब ओई पाईकेँ बिसरि जाईयौ। अहाँक भैंसुर घरक लेल ई केलथि ओ केलथि.....।
आ एही मुद्दापर कनेदान आ दुरागमन संपन्ने होईतहि उक्त घटना घटल। महेश बाबू शीघ्रातिशीघ्र एकर समाधान करय चाहैत छलाह। तथापि आषाढ़- सोनमे गामसँ बहरेताह कोना, तेँ दुर्गापूजाक बाद दिल्लीय अयलाह, खास कऽ कऽ एहि मामिलाक पंचैती करक लेल।
पहिने पहुँचलाह अजयक डेरापर, ओहिठाम हाँज-भाँज लेलनि ,परंतु ई नहि कहलनि जे एहि काजक लेल आयल छी। विजयक डेरा लगे छल। ओतहु गेला आ समटा बात बुझलनि। भरदुतिया दिन पहुँचलाह दुर्जयक डेरा। अजय आ विजय सेहो रहनि संगमे। फरिछौढ भऽ सकैत छल ओही दिन परंतु दुर्जयक बिनु हाँज-भाँज लेने ओ गप्प कहब उचित नहि बुझलाह। दुर्जयकेँ स्पतष्टपत: कहलनि जे हम एहि काजक लेल आयल छी आ एकर समाधानक रस्ता् देखौलेन से तोँ ओई ४०,०००मे हिस्सात नहि लहक। हम कहि सुनिकेँ विजयकेँ किछु दिया दैत छियैक आ एहि तरहेँ हमर इज्जँति प्रतिष्ठा बचा दय। चूंकि गप्प इज्जात प्रतिष्ठाक छल, दुर्जेय मानि गेल आ रवि दिन सभ भाईक बजाहटि भेल एहि लेल।
पहिने तँ अजयक सामनेमे प्रस्तागव भेल जे तोँ ४०,०००×२ = ८०,००० केँ तीनू भाईमे बाँटि देहक। परंतु अजय तर्क रखलक जे हम एहि बीच गाममे अलान-फलान खर्च केलहुँ आ तेँ हम पाई नहि देब। संगहि ई परिवारक पहिल कनेदान छलैक, एहिमे हिनको सभकेँ शेयर देबय पड़तनि आ ई सभ शेयर नहि देलाह, तेँ हिनका सभक हिस्साद कटि गेल। तर्क सूनि सभ अकक् रहि गेल। दुर्जेय स्व यं कनेदानमे प्रस्ताव रखने छल जे अहाँक की पोजीशन अछि से कहू तँ हमहूँ किछु इंतजाम करैत छी। अजय मना कऽ देने छलाह। परंतु हुनका की बूझल छलनि से ओहि सझीवा पाईमे सँ हुनक हिस्सा कटि गेलनि। तहन अजयकेँ कहल गेल जे ई ठीक नहि केलह तँ ओ दोसर प्रस्तााव रखलनि जे अहाँ गाम जाउ आ खेत बेचिकेँ दुनू भाईकेँ ४०–४० दऽदियनु। ई प्रस्तााव तँ किन्न हु नै मानल जा सकैत छल। पर्याप्त कहा-सुनीक बाद अंतत: अजय २०,००० देबपर सहमत भेलाह आ ई फैसला भेल जे ओ २०,००० विजयकेँ दऽ देथिन। एवं प्रकारेण महेश बाबू एहि मुद्दासँ जान छोड़ेलनि।
एहि सभ घटना क्रममे अग्रसोचीक बुद्धिक तारीफ करय पड़त। कनेदानसँ ६-७ साल पहिने योजना बद्ध ढंगसँ समटा सझेवा पाई अपन कब्जाकमे करब आ कनेदानक बाद हिस्साहक नामपर काटब, वस्तुढतः- हुनक धूर्तता आ चालाकीक उत्कृनष्ट उदाहरण छल। अग्रसोची सुखी रहलाह। बिनु कोनो हुज्ज तिकेँ पहिल कनेदान निकलि गेलनि। सभसँ घाटामे रहल दुर्जय। ओकरा हाथ किछु नै एलैक। लेकिन ओ पर्याप्त खुश छल जे सभटा पहिने देखार भऽ गेलैक। अन्ययथा भाईमे सभसँ छोट रहने ओ सभ दिन सभक मददि करैत रहितय आ अपना बेरमे कियोनै आबि तैक मददि करय आ तटबक पछतेलासँ की लाभ होईतैक?
तिथि
2/6/05
फरीदाबाद

१. सुभाष चन्द्र यादव-पति-पत्नी सम्वाद २. मानेश्वर मनुज-‘जीत’३.(सं. सा. सं) नागेश्वर लाल कर्ण ४. डॉ. रवीन्द्र कुमार चौधरी-विद्यापतिक फोटोकेँ लोक सभामे लगएबाक मांग


सुभाष चन्द्र यादव
पति-पत्नी सम्वाद
(एहि कथामे पहिल सम्वाद पति आ दोसर पत्नीक अछि।)
(एहि नाटकमे पहिल पात्र पति आ दोसर पात्र पत्नी अछि।)

यै, सुनै छिऐ?
हमरा कान छै जे सुनबै?

कखैन सँ हाक दाइत रही!
की छिऐ?

चाह बना रहल छी?
बैठल लोग केँ एहिना चाह सुझै छै!

करै की छी?
सुतल छिऐ!

तमसाएल छी की ?
नै, हम किए तमसाएब!

तखन एना किए बजै छी?
अहाँ बहीर छी की?

से किए?
आबाज नै जाइए?

कोन आबाज?
सिल्ला के?

अरे अहाँ किछु पीस रहल छी?
तब ने बैठल-बैठल गीरब?

की पीस रहल छी?
मसल्ला, अओर की पीसब? अपन कप्पार!

धुर, अहूँ कथी-कथीमे लागल रहै छी। चाह बनाएब से नै?
अहीं कोन उनटन करै छी! हरदम कहब; चाह बनबै छी? चाह बनबै छी? हम एहिसँ अकच्छ भऽ गेल छी।

तखन छोड़ू।
छोड़ू किए? बना दै छी। लेकिन पीसल होएत तब ने!
बेस, जे अहाँक इच्छा!

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