भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Friday, January 01, 2010
'विदेह' ४९ म अंक ०१ जनबरी २०१० (वर्ष ३ मास २५ अंक ४९) PART III
‘जीत’
लोक गाममे रहए वा शहरमे सूर्य आ चन्द्र मा ओहिना उगैत छैक आ डुबैत छैक। सूर्योदय होइत छैक आ सूर्यास्तह होइत छैक। साँझ होइत छैक आ भोर होइत छैक। दुपहरिया रौद आ बसातमे कोनो अंतर नहि होइत छैक। मुदा सुविधामे अंतर होइत छैक। विजुरी आ महल देखि गामसँ शहर आएल लोक छगुन्ताेमे पड़ि जाइत अछि। छगुन्ताममे रघुवीर पड़ल छल। छगुन्तामे कमल सेहो पड़ल छल। जहाजक ड्यूटी ओहीमे सूतब–बैसब। अहीमे सभ नित्य क्रिया–कर्म। मुदा स्त्रीक दर्शन दुर्लभ। कहियोकाल केओ ककरो घुमबऽ–फिरबऽ अबैत छल तँ सभ देखिते रहि जाइत छलैक। कैसेट चलैत रहैत छलैक। बीच–बीचमे एनाउन्सकमेन्टक होइत छलैक। ककरो बजाएल जाइत छलैक तँ ककरो काजमे लगाएल जाइत छलैक। ड्यूटीकेँ बादो केओ कोनो काज करऽसँ मना नहि कऽ सकैत छलैक। तैँ जहाजसँ बाहर निकलि घुमबऽ–फिरबऽ आवश्योक छलैक।
कमल जहाजसँ निकलल आ मुम्बइयक महल, मुम्बाइयक सड़क आ मुम्बयइयक स्त्रीो–शरीरकेँ देखैत आगाँ बढ़ैत जा रहल छल। मस्ती मे चलि रहल छल। कखनो रिजर्व–बैंकक सामने पार्कमे बैसैत छल तँ कखनो म्यूहजियमक सामने बस–स्टेहन्डिपर कृष्णै चन्दररक कथाकेँ याद करैत छल तँ कखनो लव–प्वाबइन्ट पर बैसि लघु–कथा पढ़ैत छल। एक नजरि लघु–कथापर तँ दोसर नजरि अगल–बगलमे बैसल युगल जोड़ीपर रहैत छलैक।
युगल जोड़ी पहिने समुद्र दिस पीठ कऽ कऽ बैसल छल आ जेना जेना सूर्य समुद्रमे समाएल जाइत छल युगल जोड़ी समुद्र दिस घुमल जाइत छल। सूर्य डुबल। युगल जोड़ी समुद्र दिस घुमल। आगाँ बढि़ नमहर–नमहर पाथरपर जा बैसल। जतए दस–बीसटा प्रेमी प्रेमिका ओतै ओकर व्यबवसाय करऽ–वाली सेहो। के कहैत अछि प्रेम न बारी उपजे प्रेम न हाट बिकाय। जकरा प्रेम करऽ नहि अबैत छैक सेहो प्रेम कीनि सकैत अछि।
कमल मंटोक कथा पढ़ि रहल छल। सभसँ प्येरगर बच्चाक ओ अछि जे एखन धरि जमीनपर पैर रखलक नहि अछि। सभसँ प्रिय बात ओ अछि जे हमरा अहाँक कानमे एखन कहक अछि। जाहि हेतु हमर ठोर फुस–फुसा रहल अछि; किन्तुए एखन धरि अहाँसँ कहलहुँ नहि अछि।
बगलमे दूटा किशोरी बड़ स्वलभाविक ढंगसँ गप्पु–सप्पह कऽ रहलि छलि, जेना दूटा सुग्गान वेदक चर्चा करैत होए जे:– वेद स्वेयं प्रमाणित अछि कि एकरा प्रमाणित करक प्रयोजन छैक। किशोरी गप्पन कऽ रहलि छलि जे प्रेम करब नीक बात छैक कि अधलाह। एक ओकर जवाब स्पकष्टम शब्दोमे जानऽ चाहैत छलि मुदा दोसर ओकरा सवालक जवाब किछु छिड़िआएल शब्दिमे दैत छलि।
पहिने ओ बाजलि:–प्रेम एक अधलाह काज छैक। फेर किछु प्रश्ना कएलाक बाद बाजलि:–किछु सीमा धरि रहलासँ प्रेम एक नीक काज छैक। आ अंतमे एहि बात पर आएलि जे प्रेमसँ बढ़ि कऽ जीवनमे छैहे की। जी भरि कऽ प्रेम करू। अइमे कोनो पाइ खर्च होइत छैक। दुनियाकेँ अहाँ कने प्रेमक नजरिसँ देखियौक। दुनियोँ अहाँकेँ प्रेमक नजरिसँ देखत। प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाय, राजा–प्रजा जेहि रूपें बँटि–बाँटिकेँ खाए।
पहिल पुछलकैक:– देखला आ सुनलासँ प्रेम भऽ जाइत छैक; मुदा कि एतवासँ संतुष्टि भेटैत छैक आदमीकेँ? एना कऽ पहिल दोसरासँ एकपर एक सवाल करैत छलि आ चालाकीसँ दोसरक पेटक बात निकालि नोट कएने जा रहलि छलि। सभ बात ओ दोसराक पेटसँ निकाललाक बाद ठहक्का दऽ कऽ हँसऽ लागलि आ दोसर नम्बरक किशोरीसँ कहलक:तेँ नीक जकाँ अइमे रमलो छाँह आ हमरासँ सभ बात छुपबैत रहलाँए– हाँ। आब सत्त कह जे तोँ ककरासँ प्रेम करैत छाँह आ एखन तक तोँ कहाँ धरि पहुँचलाँ –हाँ?’’
कमल पाँछौ घुरि तकलक। सूर्य बाँस भरि पानिमे चलि गेल छलैक। कमल आ ओइ दुनू किशोरी छोड़ि सभ केओ अप्न्रि मुँह समुद्रक अन्हा।र दिस कऽ लेने छल आ युगल जोड़ी–सभ एक दोसराकेँ कसि कऽ पकड़ि रहल छल। कमल दुनू किशोरीक बात सुनि रहल छल; मुदा जखन ओ दुनू बात करिते ओतँसँ उठि गेलि तँ ओहो उठि कऽ सड़कक कात पार्कमे जा बैँचपर एसगर बैसि गेल। सामनेक बैँच सभपर कतौ दू–एकटा स्त्री आ दू–तीनटा पुरूषक एक संग बातचित कऽ रहल छल। सामने एक ठाम एक पुरूषक संग दूटा स्त्री छलैक। दुनू–स्त्री पुरूषक दुनू कात एक संग घासपर बैसल छलैक।
कमलकेँ याद अएलैक गामक ओ गप्प । जखन ओ परिक केश पकड़ैत छल तँ शशि टीक पकड़ि लैत छलैक आ जखन परिकेँ छोड़ि शशिक केश पकड़ैत छलि तँ ओम्हरसँ परि बाँहि पकड़ि घिचैत छलैक। ताहिपर ओ खिसिया कऽ परिक गाल पकड़ैत छल। तखन शशि गरदनि पकड़ि लैत छलैक। एना कऽ दुनू ओकरा उछन्निर दैत छलि ताहिपर ओ खिसिएबाक नाटक कऽ दुनूक अंग–अंग संग खेलौड़ करैत छल। एक बेर परिक हाथ मचोड़ि जमीनपर खसाए देने छल आ हाथ–दुनू पकड़ि लेलकैक। फेर परिकेँ छोड़ि शशिकेँ जमीनपर ओघरा टाँग पकड़ि घिसियाबऽ लागल छल। खेल खतम हेवाक नाम नहि लऽ रहल छलै। गाल बाँहि कि आब ओ एका–एकी दुनूक छाती तक चलि जाइत छल। परि हारब नहि सिखने छलि। मुदा शशि बीच–बीचमे तंग आबि परिसँ मदैत मँगैत छलि आ परि शशिकेँ छोड़बऽ जाइत छलि, मुदा स्व–यं ओकरा हाथमे आबि जाइत छलि। परिकेँ पीठ भरे जमीन पर लेटाए दुनू हाथ पकड़ि कि दुनू पैर पकड़ि घिचलासँ ओकरा साइत क्रँलिंग करऽमे नीके लगैत छलैक। पकड़ि कऽ घिचलाक बादो ओ हारि मानऽ–वाली नहि छलि आ तीनू लगातार हँस्सीेक आ आनन्द क चरम उत्क र्ष तक बढ़ल जा रहल छल।
शशि आ ओ पूर्ण परिचित छल। ओकरा दुनुक बीच एहि तरहक कोनो लज्जहयाक बात नहि छलैक। ओ शशिकेँ संग औपचारिकता करैत छल आ चाहैत छल जे परि हारि मानि ओकर चोराएल चप्प ल दऽ दियाए। एहि बेर ओ परिक देहपर पड़ि ककुड़ा बना शक्तिविहीन कऽ देलक।
शशि चिचिया उठलि:– अहिरे दैवा। बीच अङनामे। जुलुम भऽ गेलै। मुदा नहि। परि साड़ीकेँ धोती बना अपना शरीरकेँ पूर्ण सुरक्षित रखने छलि आ एना जाँघमे केँच लगाए देलाक बादो ओ जीतऽ नहि देलकैक आ अंतमे वैह हारि मानि पाएरक चप्पनल ओतै छोड़ि चलि देलक। दूनू जीतऽ नहिए ने देलकैक। ओकर जिद्द चकनाचूर भऽ गेलैक
रातिमे जखन दुनुक मिलन अपना घरमे भेलैक तँ शशि पुछलकैक: अपना घरमे भेलैक तँ शशि पुछलकैक: आइ बीच अङनामे अहाँ परिकेँ किछु बाँकी नहि रखलियैक”।
पार्कमे तहिना एक पुरूष आ दूटा स्त्री प्रेमालाप कऽ रहल छल। पुरूष जखन एककेँ पकड़ैत छल तँ दोसर छोड़बैत छलैक आ जखन दोसरकेँ पकड़ैत छलैक तँ पहिल छोड़बैत छलैक। एहि क्रममे पुरूष दुनुक अंग–अंग तक जाइत छल आ तहिना दुनू–स्त्रीँ सेहो।
कमलकेँ ओइ तीनूक खेल देखैत देखैत आकच्छ् लागि रहल छलैक मुदा ओकर सभक खेल समाप्तक नहि भऽ रहल छलैक। प्रति–पल उमंग–उत्सािह आ उत्तेजना नव अनुभूतिक हेतु आगाँ बढ़ले जा रहल छलैक। एक बेर एक दिस मुड़ल फेर दोसर दिस। एक स्त्रीँ छोड़बक बहन्नेे अपना दिस घिचैत छलि आ जखन देह–स्पुर्शक आनन्द क चरम–उत्कनर्ष दिस जाइत देखाइ–दैत छलैक तँ दोसर ईर्श्या–वश ओकरासँ पुरूषकेँ हेट करैत छलि आ अपना दिस घीचि लबैत छलि। ई क्रिया त्वचरित गतिसँ लगातार दोहराएल जा रहल छल, मुदा समाप्तअ नहि भऽ रहल छल। कमल सोचि रहल छल जे ई सभ एतँसँ कतऽ जाएत से देखी। कोनो घर दिस जाएत कि होटल दिस जाएत कि गाड़ीमे बैस चलि जाएत। मुदा समय जखन बहुत आँगा बढ़ि गेल छलैक आ ओ सभ ओतँसँ उठि नहि रहल छल तँ स्व यं सभ प्रश्नन ओतै छोड़ि–अपना जहाजक लेल रस्ताल नपलक। काल्हि सेलिंग छलैक। दू मास तक मुम्बसइयक सड़क, मुम्ब इयक महल आ अत्यालधनिक–फैशनसँ रंगल–ढ़ंगल युगल–जोड़ीकेँ नहि देख सकत।
मुदा नहि जहाजक सेलिंगक प्रोग्राम करीब पन्द्र ह बीस दिनक हेतु स्थडगित भऽ गेलैक। आन दिन ओ कोनो साहित्यिक पत्रिका हाथमे लेने एसगर घुमैत छल। कतौ कोनो गाछ तर बैसैत छल कि लगातार दूर–दूर चरि चलिते रहैत छल। आइ रघुवीर आ ओकर संगी इरफान कमलकेँ संग कऽ लेलक, ओतँ हेतु जतँ ओ दुनू बरमहल जाइत छल आ एक बस मात्र ओकरा दुनूकेँ सही जगहपर उतारि दैत छलैक।
कोठापर सोफा लगाएल छलैक। तीनू बससँ उतरि सीढ़ी चढ़ल आ सोफापर जा बैस गेल। देह–श्रमिक सजि–धजि कऽ देह सुन्दरी बनलि छलि। एक–एकटा रघुवीर आ इरफानक बगलमे बैस गेलि। ओ सभ पूर्व परिचित छल। अपना प्रोग्रामक अनुसार एक–एकटाकेँ हाथ पकड़ि दबौलक। यानी आइ तोरा चुनि लेलियौक। आ इशारा केलकैक आँगा बढ़क हेतु।
नम्हर हाँलमे नेवार मढ़ल लोहाक खाट लगाएल छलैक। थोड़ेक काल ओ दुनू गप्प–सप्प केलक आ नर्स जकाँ मरीजकेँ देखक हेतु खाटकेँ चारू दिससँ डंटा ठाढ़ कऽ परदा लगौलक रघुवीर एक खाटक गद्दापर जा बैस गेल। इरफान सेहो दोसर खाटक गद्दापर जा बैस गेल। दुनू देह–सुन्दघरी रति–क्रियाक हेतु खाटपर चलि गेलि। थोड़ेक काल गप्पस–कएलक आ फेर गद्दापर पड़ि रहल। रघुवीर ओकरा देहक संग खेलब शुरू कऽ देलक। इरफान सेहो दोसरक संग आइ नव अन्दाज आ उमंगसँ खेलब शुरू कऽ देलक। दुनू दिलक मरीज बराबर ओतँ थोड़ेक शांतिक एहसास लैत छल। इरफान अपना उद्वेगक संग आतुर छल मुदा ओ, सीमा अप्पन मूड़ी परदासँ बाहर निकालि सिगरेट पीबऽ लागलि। ओकर गरदनि सेहो खाटसँ बाहर लटकि रहल छलैक। कमल ओम्हदरे बैसल छल। ओ पूछि बैसलैक:– भऽ गेलैक? “तँ जवाब देलकैक–नहि।”
कमल ओतँसँ उठि सीढ़ी दिस बढ़ल जे निच्चाँ उतरि आब बसे–स्टे न्डहपर इन्तवजार कएल जाए। ताबे एक देह–श्रमिक निच्चासँ उप्पचर आबि रहल छलैक। छोट–गोर–नार मुदा कठगरि। तनल छाती देखि कमल अप्पन हाथ लपका जकाँ बढ़ा देलक आ आधा सीढ़ीसँ निच्चाँ उतरऽ लागल कि ओ ओकरा माथपर उपरेसँ हाथ मारलक। ताबे ऊपरसँ दुनू मालती आ सीमा आबि गेलैक आ पुछलकैक: की भेलौक गई? “तँ कहलकैक सीढ़ीपर पटसँ लपकि लेलकाए। पइसा बचा कऽ राखत आ मगनीमे मजा लेत”।
इरफान आ रघुवीर ताबे बाथरूममे साफ ----------सफाई कऽ रहल छल।
सीमा कहलकैक: हँम तँ एही–लाए एकरा निच्चाँसँ ऊपर बजौलियैक। हम सभ तँ अहीँ सभक छी ने। एतँ किछु करू अपराध नहि मानल जाएत। बाहरमे ई सभ अपराध छैक। कतौ ताकि झाँकि देबैक से अपराध। धक्का देबैक तँ अपराध आ एना लपकबैक–झपटबैक तँ से अपराध मानत। मुदा एतँ पाइ खर्च करू आ आनन्दा लिअऽ। एतँ अहाँ बलात्का–री नहि कहाएब। लोक कमाइ–खटाइए कथी लाए? ई पसंद अइ तँ ई अहीकेँ अइ। लऽ जाऽ एकरा आ करेजापर चढ़ि मड़मड़ा दिअऽ। एतँ केओ शर्माएत नहि। केओ लजाएत नहि।
ओहो सीढ़ीसँ ऊपर चढ़ऽ–वाली कहलकैक :–हाँ तँ। ठीके तँ कहैत अइ।
ताबे रघुबीर आ इरफान आबि गेल। दुनू पुछलकैक ओकरा सँ ;–की भेलैक?
कमल कहलकैक:– चल, आगाँ कहबौक।” आ तीनू ओतँसँ विदा भऽ गेल। आ अपना अपना स्थाेनपर गेल।
एक दिन इन्स टीच्यूट क टेरस पर कमल मदनक संग दू ग्लाकसमे रम भरि पहुँचल। मदन कमलकेँ अपना राधाक विषय घंटा–घंटा किछु सुनबैत छलैक। जिनगीक अनेक पक्षपर ओ ओकरा कहैत रहैत छलैक, मुदा कमल घोटँ भरैत छल कथा जगतक अथाह सागरमे डुबकी लगबऽ–लाए। ओ मदनकेँ कथा तत्वर आ किछु उत्कृोष्कक कथाक विषय कहऽ लगलैक। मुदा मदन ओकरा मुँहपर हाथ धऽ राधाक विषय कहऽ लागल। ओकर ओ कथा सत्यष कथा छलैक। पहिल बेर जखन राघा भेँट भेल छलैक तँ ओ ओकर हाथ दिस तकलक हाथ सुन्नष लगैत छलैक। बाजल:–“एक दोकानमे एतेक सुन्दहर चूड़ी सभ देखलियाए जे मोन ललचा गेलाए। ओ चूड़ी तोराँ हाथमे खुलतौक”।
ताहिपर राधा कहलकैक: “हमरा कतँसँ पाइ आएत”? ताहिपर मदन चट्टसँ जेबीसँ बीस रूपैया निकालि कऽ देलकैक आ कहलकैक, “जो, ओइ दोकानमे चूड़ी पहिर ले गऽ”।
राधा खुशीसँ रूपैया लऽ लेने छलैक आ चूड़ी पहिरि आएलि छलि। आ मदनक एहि उपकारसँ ओ बहुत खुश छलि। कतौ मदन जाइत अबैत छल तँ राधा दौड़ि जाइत छलि। ओ ओकरापर आकर्षित भऽ गेलि छलि। दुनूक बीच चारि–पाँच साल प्रेम रहलैक मुदा बादमे राधा ओकरा संग प्रेम तोड़ि लेने छलि; एकरे तड़प छलैक मदनक मोनमे। मदन तैँ कहि रहल छलैक जे आजक जीवन अनिश्चातासँ भरल अछि।
चारू दिस पाथर जकाँ सिर्फ धोखे–धोखा पड़ल अछि। सदिखन ठेस लगबाकसँ भावना अछि। प्रेमोमे धोखा छिपल रहैत छैक। आजुक जीवन सिर्फ सत्तपर आश्रित नहि अछि। जीवनमे छल आ संदेहक अहं भूमिका छैक। चिड़ै कखन केमहर घूमि जाएत, हवा अप्प।न रूखि कखन बदलि लेत, माल–जाल कखन बमकि जाएत आदमी नहि जनैत छैक।
मदनकेँ भावुक भेल जाइत देखि कमल फेर कथा–जगतक बात उठौलक। ताहिपर मदन कहलकैक:– हमरा कोन काज अछि कथा जगतसँ; हमरा कोनो लेखक बनक अछि। हम तँ अप्पहन जिनगी जिबैत छी। हमरा कोन काज अछि कल्पजनासँ। हमरा कोन काज अइ अइ सभसँ।
मदन ओकरा बातकेँ काटि दैत छलैक तैँ ओ लगातार ‘घूँट’ लैते गेल छल आ तहिना मदन राधाक गममे डुबल जाइत छल।
दुनू तरमराइत ओतँसँ उठल आ बाहर निकलल आ चलैत–चलैत सोझे सिनेमा हॉलक सामने जा कऽ ठाढ़ भऽ गेल। थोड़ेक काल दुनू पोस्ट र देखलक। मदन कहलकैक:– हम तँ सिनेमा देखब।”
कमल कहलकैक, “हमरासँ सिनेमा हॉलमे तीन घंटा बैसल पार नहि लागत”। ई सिनेमा हॉल नहि जेल अछि। हम एहिमे बन्द नहि होएब। बाँकी दुनियाँ कतेक सुन्दलर छैक! कतेक फलल फूलल छैक! कतेक हरियर–हरियर छैक! हम एहि फुजल दुनियाँमे रहब। केम्हरोसँ हवा चलैत छैक, तँ केम्हलरोसँ विजुरी चमकैत छैक। केम्हिरीसँ मेघ उठैत छैक तँ केम्ह रोसँ वर्षा शुरू भऽ जाइत छैक। एकरा कहैत छैक फुजल दुनियाँ। पक्षी सन स्वतन्त्रठ दुनियाँ। आकाशमे जतँ तक जेवाक होए चलि जाऊ। जल आ जमीनसँ खेल करब।
ओ हँलसँ बाहर निकलल तँ बदबदा कऽ वर्षा शुरू भऽ गेलैक। कमल देखलक–सड़कपर पाँनि लागि गेल छलैक, मुदा ओ सोचलक जे ई पानि अप्पऽन प्रोग्राम नहि बदलि रहल अछि तँ हम अप्पन प्रोग्राम केएक बदलू। वर्षा होइत रहत आ हम चलैत रहब।
चम्पा रघुवीरकेँ बॉहिमे पजिया रूममे लऽ जाइत छलैक। जॉघपर बैसि गरदनि पकड़ि धरि रूममे रहैत छलि ओकरा संग। बाहर एलाक बादो ओकरा बगलमे सटि कऽ सोफापर बैसैत छलि। बिदा हेबाक काल फेरसँ पाँच मिनटक लेल अढ़मे लऽ जाइत छलि आ ओकर दुनू हाथ पकड़ि अपना करेजापर रखैत छलि आ ओकरा विदा कऽ खिड़कीसँ बहुत बहुत काल धरि ओम्हर निहारैत रहैत छलि। कमलकेँ दोस्तल सभ अप्पतन पर्स–आइडेन्टीँ कार्ड आ अउठीकेँ सम्हातरि कऽ राखक हेतु लऽ जाइत छल। कमल रिसिप्सननमे चुपचाप बैसल छल। ओतुक्का स्टँन्डार्ड किछु अधिक छलैक। फ्रिज, टी.वी., वाथरूम, एयर कूलर आ ए.सी. रूम सभक व्य।वस्थाब छलैक। एक गोटे एकटा छौड़ाक संग एलैक आ किछु पीबाक आर्डर दैत अन्द र घुसि गेल आ कहलकैक ओकरा सभक हेडकेँ—संगमे एवाक हेतु। ओ सभ चीज लऽ अन्द र गेलैक आ वापस हँसैत अयलैक आ बाजलि:– “आइए छड़वेक दिन खराप छन्हि।”
कमलक बगलमे परि सन एक देह–श्रमिक–सुन्दपरी आबि कऽ बैसि गेलैक आ ओकर हाथ पकड़ि लेलकैक आ ओकरा हाथक आँगुरमे अप्पेन आँगुर सन्हिया देलकैक। कमल ओकरासँ ओकर नाम, ठेकान, पता, इत्यामदि पुछऽ लगलैक। ओ बुझौएल जकाँ छ–छी–च–ची–लगा कऽ– एक अजीब सन भाषामे ओकरासँ पूछि रहल छलैक आ ओ ओही भाषामे हँसि–हँसि कऽ जवाब दऽ रहल छलैक।
कमल कुर्सीपर बैसल छल। ओ ओकरा जाँघपर आबि बैस गेलैक आ दोसरो हाथक आँगुरमे आँगुर सन्हिया देलकैक। कमल निजीर्व जकाँ अपना शरीरकेँ स्थिर रखने छल आ ओकरा शरीरमे उत्तजेना भरऽ चाहैत छलि।
ओ कहैत छलैक जे ओ सभ गरीब अइ। बाप मास्टिरक काज करैत छैक। दीदी नम्हर शहर देखबऽ लाए अनलकैक आ कहलकैक किछु दिन छोट–छिन काजो कऽ ले–घर–भाड़ाक। मुदा ओकरा आदमीकेँ प्रसन्न करक काज लगा देलकैक। आदमीकेँ प्रसन्न करैत ओकरा सुख भेट रहल छलैक आ ओ बजैत छलि जे ओ ओतँ बड्ड खुश अछि। दीदी मानैत छैक1 कथुक दुःख नहि छैक। अप्पैन मानैत छैक। कहियो काल बाहरो जाइत अछि। केओ अप्प ने घर लऽ जाइत छैक तँ केओ होटल। जहाजमे सेहो जाइत अछि। तीन दिन ओहीमे रहल अछि। बहुत पाइ कमौनी छलि। आब कतौ अबैत जाइत डर नहि होइत छैक। कहियो काल सजि–धजि कऽ सिनेमा सेहो जाइत अछि।
ओ कमलक जाँघपर मोटर साइकिल जकाँ पैर फैला कऽ बैसलि छलि। ओ कमलकेँ कसि कऽ पजिया कऽ पकड़लक आ छातीकेँ छातीसँ मिलौलक। कमलक शरीरमे कोनो तरहक उत्तेजना नहि अएलैक। ओकर दुनू हाथ पक ड़ि कपड़ाक तरसँ अपना छाती
धरि लऽ गेलि आ ओकर तरहत्थीसक ऊपर अप्पकन तरहत्थी रखने रहल। कमल ने तँ ओकरा किछु करऽसँ प्रतिवाद करैत छलैक आ ने कोनो तरहक उन्मा द देखबैत छल। ओ पाँछा दिससँ हुक छोड़ा लेलक। कमल हाथ हटबक कोशिश केलक तँ चट्टसँ ओकर हाथ पकड़ि लेलक आ ओकर हाथ अपना छातीपर लऽ गेलि। आब ओकरा लगलैक जे कमल हाथ हटबक कोशिश नहि कऽ रहल अछि। हाथ छोड़ि देलोपर हाथ ओतेँ रखने अछि। ओ अपन हाथ कमलक दुनू जाँघक बीच सन्हिया देलक। एहि क्रियासँ कमलक आँगुर नहूँ–नहूँ गतिमे आबऽ लगलैक। ओ प्रायः–कमलक हाथ अपना शरीरक सभ क्षेत्र तक लऽ गेलि छलि तहिना ओ बहुत देरी तक अप्पिन हाथ ओकरा सम्पूीर्ण शरीरकेँ टटोलैत–उत्तेजित करैत असफल देखल जाइत छलि। ओकर दीदी ओकरा अपस्याँनत देखि धूप–दीपक संग कामदेवकेँ प्रसन्न् करबाक हेतु नाचऽ–गाबऽ लागलि। ताबे इरफान आ रघुवीर रूमसँ निकलि गेल छल। आ ओ निराश भऽ मुँह विधुआ कऽ अलग–बैस गेलि छलि।
हारि कऽ दोस्तर सभकेँ कहलक:– एकरा कहकने चलक हेतु।” ताहिपर रघुवीर डाँटि देलकैक:– फाल्तूै परेशान किएक करैत छही। ई अहिना हमरा संग आएल छल।”
जाए काल ओकर दीदी गातिर देलकैक:– हिजरा नहि तन।” ताहिपर ओ जवाब देलकैक:– नइ गइ! से बात नहि छैक। ताहिमे तँ धाकर अछि मुदा की जानि एना किएक भेलैक।”
एना किएक कऽ रहल छैक से रधुवीर नीक जकाँ जनैत छल। मेडिकल कॉलेजक जिमना जियमक बगलक घटनासँ कमल बहुत दु:खी छल आ ओ ओहने गलती फेरसँ दोहराबऽ नहि चाहैत छल जिमनाजियमक बगलमे रेल–लाइनसँ सटल एक साधारण साड़ीमे ठाढ़ि एक सम–वयस्काचकेँ देखलक तँ बुझेलैक जेना– ओ ओकरे गामक पनि–भरनी होइक। ओ पुछलापर सैह कहलकैक जे मालिक गामसँ लऽ अनने छथि घरक काज करक हेतु। मोन एसगरि नहि लगैत अछि तँ एम्हर आबि जाइत छी। ओ जगह लव–प्वाघइन्टाक लगेमे छलैक। कमलक मोनमे सेहो लवक बात आबि गेलैक मुदा झाँझ उन्हाजरि भऽ गेल छलैक। ओकरा ओ जामुन बिछैत मालती लगलैक। ओ गाछीमे मालतीक पेटक चमड़ी पकड़ि दवा देने छलैक आ अपने हाथसँ जामुन नहि बीछि ओकरा खोइछामे सँ जामुन मंगैत छलैक आ जामुन लेबक बहन्नेल ओकर नाभि स्पओर्श करैत छल। मालती एसगरि छलि तैँ डेरा कऽ भागि गेलि छलि। मुदा ओकर हाथ पकड़लाक बादो ओ डेराएल नहि छलि, मुदा पुलिसकेँ देखि कमल ओतँसँ चलि देने छल। ओ रोकैत रहि गेल छलैक। कहैत रहि गेलि छलैक जे हवलदारसँ नहि डेराइ। ओकर बोल कमलपर नशाक काज कएने छलैक आ दोसरो दिन ओ कनेक्शन देरीसँ ओतँ चलि गेल छल। ओ कमलकेँ भांङ आ भाटिक बीच अढ़मे लऽ गेल छलैक। कमल किछु नहि बुझि रहल छल जे ओ ओकरा कतॅं लऽ जा रहल छलैक। ओ ओकरा जेबीसँ पर्श निकाललक। दू एकटा फोटो छलैक, किछु कार्ड आ किछु रूपैया। ओ सभ रूपैया गनऽ लागलि आ गनि कऽ ओकरा वापस कऽ देलकैक आ कहलकैक:– एहिमे सँ हमरा चालीस रूपैया दिअऽ? “
ओ पुछलकैक, “किएक?’’
“नहि, अबलाकेँ किछु देबक चाही। हम सभ अबला छी। पाइ देलासँ पाप कटित होइत छैक ने तँ श्राप पड़ैत छैक। ई सभ हमर मजूरी अइ।”
’’ ओ कहलकैक देब ने, एखन तँ बैसवे कएलहुँ अछि।”
ओ बाबू, बौआ कहि तेना ने परतारि चुचकारि कऽ कहलकैक जे–ओकरा भेलैक जे अपन करेजो काटि कऽ दऽ दियैक। ओ पाइ निकालि कऽ दऽ देलकैक।
ओ अप्पैन बलाडजक बटन खोलि ओकरा जाँघपर मूड़ी धऽ सूति रहलि छलि। ओकरा भेल छलैक:– लवकेँ लिए कुछ भी करेगा। ओकरा ओ बिनु बियाहलि काँच कुम्मिरि लागल छलैक जे ओकरापर तन–मनसँ न्यो्छावर छलैक।
रघुवीर कहने छलैक:– तोँ सभसँ स्नेह रखैत छही ताहीपर तोरापर द्रवित भऽ जाइत छैक। जो जाहुकेँ सत्यऽ स्नेहु, प्रभु कृपा मिलहुँ न कछु सन्देैहु। हम पाँचे बजेसँ ओकरा ताकि रहल छिऐक मुदा हमरा ओ नहि भेटल आ तोरा भेट गेलौक। मुदा ओकरा बादमे पता चललैक जे एम्हर–आम्हर जे ठाढ़ रहैत अछि गन्दोगीक कारण बीमारीसँ ग्रसित रहैत अछि। एकरा सभकेँ गामक गोरी नहि बुझियैक,
कमल वर्षामे भिजैत–तितैत खतराक बिना पर्वाह कयने एस्गर ओकरासँ मिलऽ चाहैत छल जे ओकरा उत्तेजित करक ओतेक प्रयास कएने छलि आ विफल भऽ गेलि छलि। ओकर दीदी ओकरा हिजरा कहने छलै तँ वैह ओकरा दिससँ ओकरा लेल बाजलि छलि जे ई तँ धाकर पुरूष अछि, मुदा नहि–जानि एना किएक भऽ रहल छैक।
आइ ओ अपना आपकेँ ओकरा समर्पित कऽ देबऽ चाहैत छल। मुदा लाख कोशिशक बादो ओतँ नहि पहुँच सकल। ओ तँ रघुवीर छल जे एक बेर ओतँ ओकरा ई–गली–ओ गली घुमवैत–फिरबैत लऽ गेल छलैक। ओकरा कोनो रोड आ गलीक ध्या न नहि छलैक। वर्षा नाली आ अन्हलर–विहारिक चिन्ता। तँ ओ नहि कएने छल।
लौट कऽ एक बजे रातिमे सुराक्षित अपना घर यानी जहाजमे आएल। भिजल–तितल पेन्टै–शर्ट आ जुत्ता निकालैत लगलैक जे: वाह! आइयो हम जीत गेलहुँ। नशामे केहन खोँट बात मोनमे आबि गेल छल आ केहन खतरनाक प्रतीज्ञा लऽ लेने छलहुँ जे–पानि, विहाडि़ आ अन्हकरसँ की हम हारि जाएब आ एकरा डरे सिनेमा हॉलक बन्दर वातावरणमे अपना आपकेँ तीन घंटाक हेतु कैद कऽ देब।” ओकरा कहाँ बुझल छलैक जे एतँ पूराक–पूरा बस–ट्रक आ कार पानिमे कहियो डूबि गेल छलैक। ओकरा कहाँ बुझल छलैक जे एतँ पानि बहक हेतु सेडक निच्चा केहन–केहन नाला छैक। आइ तक कतेक की घटना आ दुर्घटना एतँ भेल छैक ओकरा थोड़े बुझल छलैक। तथापि ओ अपना बेडपर गेल तँ लगलैक: वाह हम योद्धा छी’’ गलत राहपर–पैर राखियो देलाक बाद ओकर आत्माअ ओकरा गलत काज नहि करऽ देतैक। भोरमे सूर्य उगलैक तँ ओकरा नव संसार देखाइ देलकैक। वाह! गॉड ऑफ विग थिन्गकस।
एक सालक बाद ओहीद जगहपर अपनाकेँ आया कहऽ–वालीसँ ओ पुछलकैक:– अहाँ हमरा चिन्हैगत छी? “ तँ चट्टसँ जवाब देलकैक, “अहाँकेँ एक्के सालक बाद बिसरि जाएब।” ओकरा आश्च र्य लगलैक। ओतेक ओतेक लोकसँ ओकरा सभकेँ मुलाकात होइत छैक मुदा एखन धरि कमलकेँ याद रखने अछि।
पचीस–छबीस वर्षक बाद समुद्रक कात ओ अपना स्मृकतिकेँ ताजा करक हेतु बैसल छल तँ सभ बात माथमे नाचऽ लगलैक आ ओकर माथ दर्दसँ फाटऽ लगलैक। ओ ओहिना सड़क पर दूटा किशोरीकेँ जाइत देखलक। एक मोटकी आ एक पतरकी। सोचलक:– ई सभ ओकर सभक बेटी भऽ सकैत अछि।
ओ गाम गेल। ओकरा होइत छलैक जे एतेक दिनुका बाद परि ओ सभ बात विसरि गेल हेतैक। एक दिन ओ पुछलकैक: याद अइ की बिसरि गेलहुँ:– हमर सभक खेल।
परि चट्टसँ जवाब देलकैक:– हाँ, देखलहुँ जीतऽ नइँ ने देलहुँ। आ ओकर करेजा तनि गेल छैलैक।
३.(सं. सा. सं) नागेश्वर लाल कर्ण
गायन, कथक, सितार वादन
गाजियाबादक शालीमार गार्डेन स्थित गायत्री भवनमे श्री चित्रांश कर्ण समाज द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रममे संगीतज्ञ डा. नागेश्वर लाल कर्ण केर निर्देशनमे गायन, सितार वादन एवं नृत्यक प्रस्तुति भेल। श्री नईम आओर मीनाक्षी द्वारा गायन, सिमरन द्वारा कथक नृत्यजे तीनताल आओर रास तालमे प्रस्तुति काएल गेल, सारंगीपर रऊफ अहमद केलाह। सुनील सक्सेना एवं हुनक पुत्र स्पर्ष सेहो सितार वादन केलाह, डा. नागेश्वर लाल कर्ण तबला संगति केलाह। संस्था द्वारा कलाकार सभक अभिनंदन काएल गेल।
सांस्कृतिक कार्यक्रम–गिटार–वादनक प्रस्तुति
नई दिल्ली, श्रीवास्तव वेलफेअर एसोशिएसन द्वारा पूर्व सांस्कृतिक केन्द्रमे वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रमक आयोजन भेल। संगीतज्ञ डा. नागेश्वर लाल कर्ण केर निर्देशनमे गायन, वादन एवं नृत्यक प्रस्तुति भेल। श्री राजेश चन्द्रा, सीमा एवं मीनाक्षी द्वारा गायन, गुरू प्रसाद श्रीवास्तव द्वारा तबला संगतिकेँ बाद सिमरन द्वारा कथक नृत्य जे तीनतालमे प्रस्तुति काएल गेल। जाहिमे सारंगीपर रऊफ अहमद आओर तबलापर डा. कर्ण कुशलतासँ तबला संगीत केलाह। मुख्य अतिथी पूर्व मंत्री माननीय सुनील शास्त्री केर कर कमलसँ हिनक अभिनंदन काएल गेल।
कोलकाता केर युवा गिटार वादक रितोम सरकारककेँ विगत तीन दिवसक लगातार कार्यक्रम सम्पन्न भेल। अपन स्लाईड गिटारपर सोलो वादनमे लोधी रोड स्थित ‘लोक कला मंच’ केर सभागारमे क्रमशः राग कौंसी–कान्हडा, राग जोग, किडवाणी एवं हँसध्वनीमे आलाप, जोड–झाला, विलंबित तीनताल, मत्त ताल, मध्यलय, एवं द्रुत तीनतालमे निबद्ध तथा धुन केर प्रस्तुति केलाह।
‘संगीतज्ञ बाबा अलाउद्दीन खाँ म्युजिक फाउण्डेशन’ द्वारा–पूर्व सांस्कृतिक केन्द्, लक्ष्मीनगरमे राग बागेश्वरी जे विलंबित तीनताल, मत्त ताल, मध्यलय, एवं द्रुत तीनतालमे निबद्ध छल तकर प्रस्तुति केलाह।
अरविन्दो आश्रम महरौली रोड स्थित ‘ध्यान सभागार’मे राग बागेश्वरी जे तीनताल, मत्त ताल, एकताल आओर तीनतालमे निबद्ध छल, पुनः राग हँसध्वनीमे धुन बजौलाह। हिनक संग दिल्लीकेँ तबला वादक डा. नागेश्वर लाल कर्ण कुशलतासँ तबला संगति केलाह। अहि अवसरपर उपस्थित गण्य–मान्य नागरिक देशी विदेशी क्षोता–दर्शक वृन्द दुनु कलाकारक प्रभावशाली प्रस्तुति केर खूब सराहना काएल।
प्रस्तुति
अध्यक्ष (सं. सा. सं)
A27/SF3, रामप्रस्थ, गाजियाबाद–201011
४. डॉ. रवीन्द्र कुमार चौधरी
विद्यापतिक फोटोकेँ लोक सभामे लगएबाक मांग–
जमशेदपुर (झारखंड)। महाकवि विद्यापतिक चित्र लोकसभाक केन्द्रीय कक्षमे लगबाओल जाए एहि लेल झारखंड मैथिली आन्दोलनक सजग प्रहरी आ दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक मैथिली साहित्यकार मंच, झारखंडक प्रदेश संयोजक डा. रवीन्द्र कुमार चौधरी एक ज्ञापन लोकसभाक अध्यक्षा श्रीमती मीरा कुमारकेँ देलनि। जकर प्रति लोकसभाक उपाध्यक्ष सांसद करिया मुंडा सहित झारखंड आ बिहारक कतेको सांसदकेँ देलन्हि।
एल.बी.एस.एम. काँलेज, जमशेदपुरमे मैथिलीक प्राध्यापक आ साहित्य अकादमीमे मैथिली परामर्शदातृ समितिक सदस्य डा. चौधरी विद्यापतिक फोटोक संग प्रेषित ज्ञापनमे कहलन्हि जे मैथिलीक महाकवि विद्यापति अपन गीतक बलपर समस्त पूर्वोत्तर भारतमे काव्य रचनाक एक विशिष्ट परम्परा स्थापित केलनि। बंगालक महर्षि अरविन्द आ विश्वकवि रवीन्द्र नाथ टैगोर धरि हुनक प्रतिभासँ प्रभावित रहथि। एहन महान कविक चित्र संसद भवनक केन्द्रीय कक्षमे लगलासँ देश भरिक मैथिलीभाषी सम्मानक अनुभव करतनि आ हुनक अपार आस्था लोकसभाक सदस्य प्रति बढतनि। डा. चौधरी एहो कहलन्हि जे जँ महर्षि अरविन्द आ टैगोरक फोटो संसदक केन्द्रीय कक्षमे लागल अछि तँ विद्यापतिक फोटो लगेबामे कोनो आपत्ति नहि हेबाक चाही। ज्ञातब्य अछि जे डा. चौधरीक अथक प्रयासक कारणेँ झारखंडक राँची विश्वविद्यालयमे मैथिलीक पाठ्यक्रमक निर्धारण आ पढाई प्रारंभ भऽ सकल। विश्वविद्यालय द्वारा गठित मैथिली बोर्ड आँफ स्टडीजक सदस्य-सचिव स्वयं हिनका रहला कारणेँ ई पाठ्यक्रमक प्रकाशन सेहो लगले करबा लेलन्हि। डा. चौधरीक आगामी कार्यक लक्ष्य छैन्हि राँची विश्वविद्यालयसँ हालहिमे विभक्त भेल कोल्हान विश्वविद्यालय, चाईबासामे स्नातकोत्तर मैथिली विभाग खोलाएब आ झारखंडक क्षेत्रीय भाषाक सूचीमे मैथिलीकेँ सम्मिलित कराएब। हुनक कहब छैन्हि जे जखन राज्यक क्षेत्रीय भाषाक सूचीमे मैथिली आबि जायत तँ स्वतः जे.पी.एस.सी.मे मैथिली मान्य भऽ जायत आ सरकारी नौकरीमे सेहो सुविधा भेटत।
२.९.- जिनगीक जीत उपन्यास- जगदीश प्रसाद मंडल
जिनगीक जीत
उपन्यास
जगदीष प्रसाद मण्डल
बेरमा, मधुबनी, बिहार।
जिनगीक जीत:ः 1
छोट-छीन गाम कल्याणपुर। गाम क’ देखनहि बुझि पड़ैत जे आदिम युगक मनुक्खसँ ल’ क’ आइ धरिक मनुक्ख हँसी-खुशीसँ रहैत अछि। मनुखेटा नहि मालो-जाल तहिना। एक फुच्ची दूधवाली गायसँ ल’ क’ बीस लीटर दूधवाली गाय धरि। बकरीओक सैह नस्ल। ऐहनो बकरी अछि जकरा तीनि-चारि बच्चा भेने, एक-दूटा दूधक दुआरे मरिये जाइत। आ एहनो अछि जकरा चारि लीटर दूध होइत। गाछियो-बिरछी तहिना। एहनो गाछी अछि जहिमे एकछाहा शीशोएटा अछि तँ दोसर बगुरेक। आमो गाछीक वैह हाल। कोनो एकछाहा सरहीक अछि तँ कोनो एकछाहा कलमीक। ततबे नहि, ओहन-ओहन गाछ अखनो अछि जे दू-दू कट्ठा खेत छपने अछि तँ ओहनो गाछी अछि जहिमे पनरह-पनरहटा आमक गाछ एक कट्ठामे फइलसँ रहि मनसम्फे फड़बो करैत अछि।
ओझुका जेँका कल्याणपुर, चालीस बर्ख पहिने नहि छल। ने एकोटा चापाकल छलै आ ने बोरिंग। जेहने हर त्रेता युगमे राजा जनक जोतने रहथि तेहने हरसँ अखनो कल्याण पुरक खेत जोतल जाइत अछि। ने अखुनका जेँका उपजा-बाड़ी होइत छल आ ने बर-बीमारीक उचित उपचार। सवारीक रुपमे सभकेँ दू-दूटा पाएर वा गोट-पङरा बड़द जोतल काठक पहियाक गाड़ी। अंग्रेजी शासन मेटा गेल मुदा गमैआ जिनगीमे मिसिओ भरि सुधार नहि भेल। जहिना जाँतमे दूटा चक्की होइत- तरौटा आ उपरौटा। तरौटा कीलमे गाड़ल रहैत। तहिना शहरी आ देहाती जिनगीक अछि। शहरी जिनगी तँ आगू मुहे घुसकल मुदा देहाती जिनगी तरौटा चक्की जेँका ओहिना गड़ाइल रहि गेल अछि। बान्ह-सड़क, घर-दुआर सब ओहिना अछि जहिना चालीस बर्ख पहिने छल। तेँ की कल्याणपुरक लोक अंग्रेजी शासन तोड़ैमे, भाग नहि लेलक? जरुर लेलक। दिल खोलि साहससँ लेलक। सगरे गाम क’ गोरा-पल्टन आगि लगा-लगा तीनि बेरि जरौलक। कत्ते गोटे बन्दूकक कुन्दासँ, तँ कत्ते गोटे मोटका चमड़ाक जूत्तासँ थकुचल गेलाह। जहल जाइबलाक धरोहि लागि गेल रहय। कत्ते गोटे डरे जे गाम छोड़ि पड़ायल ओ अखनो धरि घुरि क’ नहि आबि सकल। कत्ते गोटेक परिवार बिलटलै, तकर कोनो ठेकान, अखनो धरि नहि अछि।
कल्याणपुरक एक परिवार अछेलालक। अगहन पूर्णिमाक तेसर दिन, बारह बजे रातिमे घूर धधका दुनू परानी अछेलाल आगि तपैत रहय। पहिलुके साँझमे स्त्री मखनीकेँ पेटमे दर्द उपकलै। प्रशबक अंतिम मास रहने मखनी बुझलक जे प्रशवक पीड़ा छी। अछेलालोकेँ सैह बुझि पड़लै। ओसरे पर चटकुन्नी बिछा मखनी पड़ि रहलि। चटकुन्नीक बगलेमे अछेलालो बैसि गेल। दरद असान होइतहि मखनी बाजलि- ‘‘दरद असान भेल जाइ अए।’’
मुह पर हाथ नेने अछेलाल मने-मन सोचैत जे असकरुआ छी कोना पलहनिक ओहिठाम जायब? कोना अगियाशी जोड़ब? जाड़क समय छियै। परसौतीक लेल जाड़ ओहने दुश्मन होइत अछि जेहने बकरीक लेल फौती। दर्द छुटितहि मखनी फुड़-फुड़ा क’ उठि भानसक जोगारमे जुटि गेलि। पानि भरैक घैल लए जखने घैलची दिशि बढ़ै लागलि कि अछेलाल(पति) बाँहि पकड़ि रोकि, कहलक- ‘‘अहाँ उपर-निच्चा नइ करु। हम पानि भरि अनै छी। अहाँ घर से बासन-कुसन निकालू। हम ओकरो धो क’ आनि देब।’’
मखनी चुल्हि पजारै लागलि आ अछेलाल लुरु-खुरु करै लगल। बरतन-बासन धोय ओहो चुल्हिऐक पाछुमे बैसि, आगियो तपै आ गप्पो-सप्प शुरु केलक। मुस्कीदैत अछेलाल बाजल- ‘‘एहिबेर भगवान बेटा देताह।’’
बेटाक नाम सुनि मखनी सुखक समुद्रमे हेलए लागलि। मने-मन सुखक अनुभव करैत विचारै लागलि जे बच्चाकेँ दूध पियाइब। तेल-उबटनसँ जाँतव। आखिमे काजर लगा किसुन भगवान बना चुम्मा लेब। कोरामे लए अनको आंगन घूमै जाएब। इस्कूलमे नाओ लिखा पढ़बैक विचार एलै, कि जहिना गमकौआ चाउरक भात आ नेबो रस देल खेरही दालिमे सानल कौर मुहमे दइते, ओहन आँकर पड़ि जाइत जहिसँ जी (जीभ) कटि जाइत, तहिना भेलि। मनक सुख मनहिमे मखनी क’ अटकि गेलि। पत्नीक मलिन होइत मुह देखि पति बाजल- ‘‘गरीबक मनोरथ आ बरखाक बुलबुला एक्के रंग होइ छै। जहिना पाइनिक बुलबुला सुन्दर आकार आ रंग ल’ बढ़ैत अछि कि फॅुटिये जाइत, तहिना।’’
मखनीक मनमे दोसर विचार उठलै जे धन तँ बहुत रंगक होइ छै- खेत-पथार, गाय-महीसि, रुपैआ-पैसा मुदा एहि सब धनसँ पैघ बेटा धन होइत छैक। जे बूढ़मे माय-बापक सवारी बनि सेवा करैत अछि। ततबे नहि, परिवारो खनदानो क’ आगू बढ़बैत अछि। तोहूँमे जँ कमासुत बेटा होइत तँ जीवितहि माय-बापकेँ स्वर्गक सुख दैत अछि ।
भानस भेलै। दुनू परानी खेलक। मोटगर पुआर पर चटकुन्नी विछाओल, तहि पर जा मखनी सुति रहलीह। थारी-लोटा अखारि, चुल्हि-चिनमारक सभ सम्हारि अछेलाल चुल्हिये लग बैसि आगि तपै लगल। तमाकुल चूना मुहमे लेलक। चुल्हिये लग बैसल-बैसल अछेलाल ओंघाइयो लगल। ओंघी तोड़ै ले उठि क’ अंगनामे टहलै लगल। भक्क टुटिते फेर चुल्हि लग आबि अछेलाल आगि तपै लागल। मखनी निन्न पड़ि गेलि। मखनीक नाकक आबाज सुनि अछेलाल सोचै लगल जे जँ राति-बिराति दर्द उपकतै तँ महा-मोसकिलमे पड़ि जायब। अपने तँ किछु बुझैत नहि छी। दशमीक डगरक सिदहा द’ नहि सकलिऐक तेँ पलहनियो आओत की नहि? चुल्हिक आगि मिझाइत देखि अछेलाल जारन आनै डेढ़िया पर गेल। ओससँ जारनो सिमसल। लतामक गाछ परसँ टप-टप ओसक बुन्न खसैत। अन्हारक तृतीया रहने, चान तँ भरि राति उगल रहत, मनमे अबितहि अछेलाल मेघ दिशि तकलक। चान तँ उगल देखैत मुदा ओसक दुआरे जमीन पर इजोत अबितहि नहि। पाँजमे जारन नेने अंगना आयल। ओसार पर चुल्हि रहने सोचलक जे घरेमे घूर लगौनाइ बढ़ियाँ हैत किऐक तँ घरो गरमाइल रहत। अछेलालक पाएरक दमसिसँ मखनीक निन्न टुटि गेलै। धधकैत घूर देखि मखनियोकेँ आगि तपैक मन भेलै। ओछाइन परसँ उठि ओ घूर लग आबि बैसलि। बीचमे घूर धधकैत आ दुनू भाग दुनू परानी बैसल। जहिना देहक दुखसँ मखनी तहिना मोनक दुखसँ अछेलाल। बेबसीक स्वरमे अछेलाल बाजल- ‘‘अदहा राति तँ बीतिए गेल, अदहे बाकी अछि। जहिना अदहा बीतल तहिना बाँकियो बीतबे करत।’’
अछेलालक बात सुनि मखनी पूछलक- ‘‘अखन धरि अहाँ जगले छी?’’
‘हँ, की करब। जँ सुति रहितौ आ तइ बीचमे अहाँकेँ दरद उठैत तँ फटोफनमे पड़ि जइतहुँ। सैाँसे गामक लोक सुतल अछि। ककरा सोरो पारबैक। एक्के रातिक तँ बात अछि। कहुना-कहुना क’ काटिये लेब। मनमे होइत छल जे बहिनकेँ बिदागरी कराकेँ ल’ अनितहुँ मुदा ओहो ते पेटबोनिये अछि। तहूमे चारि-पाँचटा लिधुरिया बच्चो छै। जँ विदागरी करा क’ आनव ते पाँच गोटेक खरचो बढ़ि जाइत। घरमे ते किछु अछि नहि। कमाई छी खाई छी।’’
‘‘कहलिएै ते ठीके। अपना घरमे लोक भुखलो-दुखलो रहि जाइत अछि। मुदा जकरा माथ चढ़ा क’ अनितियै ओकरा कोना भूखल रखितियै?’’ दिन-राति चिन्ता पैसल रहै अए जे पार-घाट कोना लागत। भगवानो सबटा दुख हमरे दुनू परानीकेँ देने छथि। एक पसेरी चाउर घैलमे रखने छी कहुना-कहुना पान-सात दिन चलबे करत। तकर बाद बुझल जेतैक।’’
पसेरी भरि चाउर सुनि अछेलालक मोनमे आशा जगल। मुहसँ हँसी निकलल। हँसैत बाजल- ‘‘जँ हमर बनि बच्चा जनम लेत तँ कतबो दुख हेतइ तइओ जीवे करत। नहि जँ कोनो जनमक करजा खेने हेबै ते असुल क’ चलि जायत।’’
पतिक बात सुनितहि मखनीकेँ पहिलुका दुनू बच्चा मन पड़ल। मने-मन सोचै लागलि जे ओहो बच्चा नहि मरिते। जँ नीक-नहाँति सेवा होइतइते। मुदा मनुखे की करत? जकरा भगवाने बेपाट भ’ गेल छथिन। पैछला बात मनसँ हटबैत मखनी बाजलि- ‘‘समाजमे ओहनो बहुत लोक होइत जे बेर-बेगरतामे भगवान बनि ठाढ़ होइत।’’
‘‘समाज दू रंगक होइछै। एकटा समाज ओहन होइ छैक जइमे दोसराक मदतिकेँ धरम बुझल जाइ छै आ दोसर ओहन होइ छैक जहिमे सब सभक अधले करैत अछि। अपने गाममे देखै छियै। अपन टोल तीस-पेंइतीस घरक अछि। चारि-पाँच रंगक जातियो अछि। एक जातिकेँ दोसर स’ भैंसा भैंसीक कनारि अछि। अपन तीनि घरक दियादी अछि। तीनू घरमे सुकनाकेँ दु सेर दू टाका छैक। ओकरा देखै छियै। सदिखन झगड़े-झंझटक पाछू रहैअए। टोलमे सबसे बाड़ल अछि। ओकरा चलैत हमरो स’ सब मुह फुलौने रहै अए। ने ककरो स’ टोका-चाली अछि आ ने खेनाई-पीनाई, आ ने लेन-देन। भगवान रच्छ रखने छथि जे सब दिन बोइन करै छी मौज स’ खाई छी नइ ते एक्को दिन अइ गाममे बास होइत।’’
अछेलालक बात सुनि मूड़ि डोलबैत मखनी बाजलि- ‘‘कहलौ ते ठीके, मुदा जे भगवान दुख दइ छथिन ओइह ने पारो-घाट लगबै छथिन।’’
मखनीक बात सुनि अछेलाल बाजल- ‘‘सगरे गाममे नजरि उठा क’ देखै छी त’ खाली बचेलालेक परिवारसँ थोड़-बहुत, मिलान अछि। सालमे दश-बीस दिन खेतिओ सम्हारि दइ छियै आ घरो-घरहट। पेंइच-उधार ते नहिये करै छी। हमर ब्रह्म कहै अए जे अगर बचेलालक माएकेँ कहबनि ते ओ बेचारी जरुर सम्हारि देती। कहुना राति बीतै भोर होय, तखन ने कहबनि। दुखक रातियो नमहर भ’ जाइ छै। एक्के निन्नभेर भ’ जाइ छले, से बितबे ने करै अए।’’
हाफी करैत मखनी बाजलि- ‘‘देहो गरमा गेलि आ डाॅड़ो दुखा गेल। ओछाइने पर जाइ छी।’’
मखनीक बात सुनि अछेलाल ठाढ़ भ’ मखनीक बाँहि पकड़ि ओछाइन पर ल’ गेल। मखनी पइर रहलि। पड़ले-पड़ल बाजलि- ‘‘मन हल्लुक लगै अए। अहूँ सुति रहू।’’
अछेलालक मनमे चैन आयल। मुदा तइयो सोचैत जे एहि देह आ समयक कोन ठेकान। कखन की भ’ जयतैक। गुनधुन करैत बाहर निकलि चारु भर तकलक। झल-अन्हारक दुआरे साफ-साफ किछु देखवे ने करैत। मूड़ी उठा मेघ दिशि तकलक। मेघोमे छोटका तरेगण बुझिये ने पड़ै। गोटे-गोटे बड़का देखि पड़ै। अयना जेँका चानो बुझि पड़ै। डंडी-तराजूकेँ ठेकना ताकै लगल। तकैत-तकैत पछबारि भाग मन्हुआइल देखलक। डंडी-तराजू देखि अछेलाल क’ संतोष भेलै जे राति लगिचा गेल अछि। फेर घुमि क’ आबि घूर लग बैसल। आलस अबै लगलै। तमाकुल चुना मुहमे लेलक। बाहर निकलि तमाकुल थूकड़ि क’ फेकि पुनः घुरे लग आबि बोरा पसारि घोंकड़ी लगा, बाँहिएक सिरमा बना सुति रहल। निन्न पड़ि गेल। निन्न पड़ितहि सपनाइ लगल। सपनामे देखै लगल जे घरवाली दरदसँ कुहरैत अछि। चहा क’ उठि पत्नीकेँ पूछलक- ‘‘बेसी दर्द होइ अए?’’
मखनी निन्न छलि। किछु नहि उत्तर नहि देलि। घूर क’ फूँकि अछेलाल धधड़ाक इजोतमे मखनी लग जा निङहारि क’ देखै लगल। मनमे भेलै जे कहीं बेहोश तँ ने भ’ गेलि अछि, मुदा नाकक साँस असथिर रहै।
कौआ क’ डकितहि अछेलाल उठि क’ बचेलाल ऐठाम विदा भेल। दुनू गोटेक घर थोड़बे हटल, मुदा बीचमे डबरा रहने घुमाओन रास्ता। बचेलालक माय क’ अछेलाल भौजी कहैत। दियादी संबंध तँ दुनू परिवारमे नहि मुदा सामाजिक संबंधे भैयारी। बचेलालक पिता रघुनन्दन छोटे गिरहस्त, मुदा सामाजिक हृदय रहने सभसँ समाजमे मिलल-जुलल रहैत। बचेलाल ऐठाम पहुँचते अछेलाल डेढ़िया पर ठाढ़ भ’ बचेलालक माय सुमित्राकेँ सोर पाड़लक। आंगन बहारैत सुमित्रा बाढ़नि हाथमे नेनहि घरक कोनचर लगसँ देखि, मुस्कुराइत बाजलि- ‘‘अनठिया जेँका दुआर पर किऐक छी? आउ-आउ, अंगने आउ।’’
अछेलालक मन्हुआयल मुह देखि सुमित्रा पूछलक-‘‘रातिमे किछु भेलि की? मन बड़ खसल देखै छी।’’
कपैत हृदयसँ अछेलाल उत्तर देलकनि- ‘‘नइ रातिमे त किछु ने भेल मुदा भारी विपत्तिमे पड़ल छी। तेँ एलौ।’’
‘‘केहन विपत्तिमे पड़ल छी?’’
‘‘भनसियाकेँ संतान होनिहार अछि। पूर मास छियै। घरमे त दोसर-तेसर अछि नहि। जनिजातिक नीक-अधला ते अपने बुझै नइ छी। तेँ अहाँ क’ कहै ले एलौ जे चलि क सम्हारि दिओ।’’
कनेकाल गुम्म भ’ सुमित्रा बजलीह- ‘‘अखन त दरद नहि ने उपकलै हेन?’’
‘‘नै, अखन चैन अछि। साझू पहर दरद उपकल छलै मुदा कनिये कालक बाद असान भ’ गेलै।’’
‘लोकेक काज लोक क’ होइ छै। समाजमे सभक काज सभकेँ होइ छै। अगर हमरा गेला स अहाँक नीक हैत त’ किअए ने जायब।’ कहि सुमित्रा फुसफुसा क पूछल- ‘‘परसौती खाइले चाउर अछि, की ने?’’
अछेलालक मोनमे एलै जे झूठ नहि कहबनि। कने गुम्म भ’ बाजल- ‘‘एक पसेरी चाउर घरमे अछि, भौजी।’’
एक पसेरी चाउर सुनितहि सुमित्राकेँ हँसी लगलनि। मुदा हँसी क’ दाबि, सोचलनि जे कमसँ कम एक मासक बुतात चाही। मास दिनसँ पहिने परसौतिक देहमे कोनो लज्जति थोड़े रहै छै। तेँ एक मासक बुतातक जोगार सेहो क’ देबै। बेर पड़ला पर गरीब लोकक मन बौआ जाइछै तेँ अछेलाल ऐना कहलक। पुरुख जाति थोड़े परसौतीक हाल बुझैत अछि। जखन हमरा बजबै ले आइल तखन बच्चा क’ एहि धरती पर ठाढ़ करब हमर धर्म भ’ जाइत अछि। सिर्फ बच्चा जनमि गेलासँ तँ नहि होइत। दुनू गोटे गप-सप करिते छल कि बचेलाल सुति क’ उठल। केबाड़ बन्ने छल कि दुनू गोटेक गप-सपक आवाज सुनलक। खिड़कीक एकटा पट्टा खोलि हुलकी देलक कि दुनू गोटेकेँ गप-सप करैत देखलक। केबाड़ खोलि बचेलाल दुनू गोटे लग आबि चुपचाप ठाढ़ भ’ गेल। पुतोहूक दुआरे सुमित्रा बाजलि- ‘‘दरबज्जे पर चलू।’’
तीनू गोटे दरवज्जा पर आबि गप-सप करै लगल। अपन भार हटबैत सुमित्रा बचेलालकेँ कहलक- ‘‘बच्चा! अछेलालक कनि´ाँकेँ सन्तान होनिहारि छै। बेचारा, जेहने सवांगक पातर अछि तेहने चीजोक गरीब। आशा लगाा क’ अपना ऐठाम आयल। गाममे त’ बहुतो लोक अछि मुदा अनका ऐठाम किऐक ने गेल। जेँ हमरा पर बिसवास भेलै तेँ ने आयल।’’
मूड़ी निच्चा केने बचेलाल चुपचाप सुनैत। माएक बात सुनि कहलक- ‘‘जखन तोरा बजबै ले एलखुन ते हम मनाही करबौ।’’
‘‘सोझे गेला से त नइ हेतै। कम स कम एक मासक बुतातो चाही की ने?’’
‘‘जखन तूँ घरक गारजने छेँ तखन हमरा से पूछैक कोन जरुरी? जे जरुरी बुझै छीही, से कर।’’
अछेलालक हृदयमे आशा जगै लगल। मने-मन सोचै लगल जे अखन धरि बुझै छलौ जे गाममे क्यो मदतिगार नहि अछि मुदा से नहि। भगवान केहेन मन बना देलनि जे ऐठाम एलौ। कुस्कुराइत अछेलाल सुमित्राकेँ कहलक- ‘‘बड़ी काल भ गेल भौजी, अंगनामे की भेल हेतै, सेहो देखैक अछि तेँ आव नइ अँटकब। चलू, अहूँ चलू।’’
सुमित्रा- ‘‘बौआ! अहाँ आगू बढ़ू, हम पीठे पर अबै छी।’’
अछेलाल आंगन बिदा भेल। सुमित्रा बचेलालकेँ कहै लागलि- ‘‘बच्चा! मनुखेक काज मनुख क’ होइ छै। आइ जे सेवा करब ओ भगवानक घरमे जमा रहत। महीना दिन हम ओकर ताको-हेर करबै आ खरचो देबै। भगवान हमरा बहुत देने छथि। कोन चीजक कमी अछि।’’
बचेलाल- ‘‘माए! तोरा जे नीक सोहाओ, से कर। जा क’ देखही।’’
दरबज्जासँ उठि सुमित्रा अंगनाक काज सम्हारै लागलि। सब काज सम्हारि सुमित्रा अछेलाल ऐठाम विदा भेलि। मखनी ओसार पर, विछान बिछा, पड़लि। पहुँचते सुमित्रा मखनीकेँ पूछलि- ‘‘कनि´ाँ, दरदो होइ अए?’’
कर घूमि मखनी बाजलि- ‘‘दीदी, अखन त दरद नइ उपकल हेन, मुदा आगम बुझि पडै़ अए।’’
मखनी क’ दूटा संतान भ’ चुकल छल तेँ आगम बुझैत। सुमित्रा अछेलालकेँ कहलक- ‘‘ऐठाम हम छी हे। अहाँ पलहनिक ऐठाम जा बजौने आउ?’’
अछेलाल पलहनिक ऐठाम विदा भेल। मुदा पलहनि ऐठाम जेबा ले डेगे ने उठैत। मनमे होइ जे दशमी डगरक सिदहा नै द’ सकलिऐक, तेँ ओ आओत की नहि? मुदा तइयो जी-जाँति क’ विदा भेल। भरि रास्ता विचित्र स्थितिमे अछेलाल पड़ल रहय। एक दिशि सोचैत जे जँ पलहनि नहि आओत तँ बेकार गेनाइ हैत। दोसर दिशि होय जे जाबे हम इमहर एलौ ताबे घर पर की हैत की नहि। पलहनिक ऐठाम पहुँचते अछेेलाल देखलक जे पलहनि मालक थैरिक गोबर उठा, पथियामे ल’ खेत विदा भेलि अछि। जहिना न्यायालयमे अपराधीकेँ होइत तहिना अछेलालोकेँ बुझि पड़ैत। मुदा तइयो साहस क’ पलहनिसँ कहलक- ‘‘कने हमरा ऐठाम चलू। भनसिया क’ दरद होइ छै।’’
‘‘माथ पर गोबरक छिट्टा नेने पलहनि उत्तर देलक- ‘‘हम नइ जेबनि। डगरक सिदहा हमर बाँकिये अछि। पेट-बान्हि कतेक दिन काज करबनि।’’
पलहनिक बात सुनि अछेलाल अपन भाग्य क’ कोसैत। भगवान केहेन बनौने छथि जे जकरा-तकरासँ दूटा बात सुनै छी। मुह सिकुड़िअबति अछेलाल पुनः कहलक- ‘‘कनि´ाँ, अइ साल सिदहा नइ द’ सकलिएनि, तेँ कि नहि देबनि। समय-साल नीक हैत त अगिला साल दोबर देबनि। समाजमे सभक उपकार सभकेँ होइत छैक। चलू, चलू....।
खिसिया क’ पलहनि डेग बढ़बति बाजलि- ‘‘किन्नहु नहि जेवनि।’’
एक टकसँ अछेलाल पलहनि क’ देखैत रहल। देहमे जना एको मिसिया तागते ने बुझि पड़ै। हताश भ’ दुनू हाथ माथ पर ल’ अछेलाल बैसि सोचै लगल जे आब की करब? आशा तोड़ि घर दिशि विदा भेल। आगू मुहे डेगे ने उठै, पाएर पताइत। जना बुझि पड़ै जे आखिसँ लुत्ती उड़ै अए। कहुना-कहुना क’ अछेलाल घर पर आयल।
तेसर सन्तान भेने मखनी क’ दरदो कम भेलै आ असानीसँ बच्चाक जन्म भेलै। अपना जनैत सुमित्रा सेवोमे कोनो कसरि बाकी नहि रखलखिन। डेढ़िया पर अबितहि अछेलालकेँ बुकौर लगि गेलै। दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर खसै लगल। अंगना आवि मुस्कुराइत सुमित्रा बाजलि- ‘‘बौआ, ककरो अहाँ अधला केने छी जे अधला हैत। भगवान बेटा देलनि। गोल-मोल मुह, मोटगर-मोटगर दुनू हाथ-पाएर छैक।’’
आशा-निराशाक बीच अछेलालक मन उगै-डूबै लगल। हँसी होइत सुख निकलै चाहैत जबकि आखिक नोर होइत दुख।
दुख। बेटा जनमितहि सुमित्राक अंगनाक टाट पर बैसल कौवा दू बेरि मधुर स्वरमे बाजल कौवाक बोली सुनि बचेलालक मुहसँ अनायास निकलल- ‘‘अछेलाल काका क’ बेटा भेल।’’
मुहसँ निकलितहि बचेलाल आखि उठा-उठा चारु कात देखै लगल जे क्यो कहलक नहिये तखन मुहसँ किऐक निकलल? आंगनसँ निकलि बचेलाल टहलैत डबराक कोन लग आयल। कोन पर ठाढ़ भ’ हियासै लगल जे बच्चाक जन्म भेलि आ कि दरदे होइत छै। सुमित्रा ओछाइन साफ करैत। अगियासी जोड़ै ले अछेलाल डेढ़िया पर जारन आनै गेल कि बचेलाल पर नजरि पड़ल। नजरि पड़ितहि अछेलाल, थोडे़ आगू बढ़ि, बचेलालकेँ कहलक- ‘‘बौआ, छैाँड़ा जनमल।’’
लड़काक नाम सुनितहि बचेलालक मोनमे आयल जे जा क’ देखिऐेक। मुदा सोचलक जे अखन जा क’ देखब उचित नहि। चोट्टे घुमि आंगन आवि पत्नी क’ कहलक- ‘‘अछेलाल काका क’ बेटा भेल।’’
बेटाक नाम सुनितहि मने-मन असिरवाद दैत रुमा बाजलि- ‘‘भगवान जिनगी देथुन।’’
बच्चाक छठियार भ’ गेल। सुमित्रा अपन अंगनाक काज सम्हारि अछेलालक आंगन पहुँचली। गोसाई लुक-झुक करैत। पतिआनी लगा बगुला पछिमसँ पूब मुहे उड़ैत अपनामे हँसी मजाक करैत जाइत। कौआ सब धिया-पूता हाथक रोटी छीनै ले पछुअबैत। जेरक-जेर टिकुली गोलिया-गोलिया उपरमे नचैत। सुरुज अराम करैक ओरिआनमे लगल। अछेेलालक बीच आंगनमे बोरा बिछा सुमित्रा बच्चा क’ दुनू जाँघ पर सुता जतबो करति आ घुनघुना क गेबो करथि-
गरजह हे मेघ गरजि सुनाबह रे
ऊसर खेत पटाबह, सारि उपजावह रे
जनमह आरे बाबू जनमह, जनमि जुड़ाबह रे
बाबा सिर छत्र धराबह शत्रु देह आँकुश रे
हम नहि जनमब ओहि कोखि अबला कोखि रे
मैलहि बसन सुतायत, छैाँड़ा कहि बजायत रे
जनमह आरे बाबू जनमह जनमि जुड़ाबह रे
पीयर बसन सुताबह बाबू कहि बजावह रे
झुमि-झमि सुमित्रा गबितो आ बच्चा क’ जँतबो करति। आखिसँ आखि मिला स्नेहक बरखा बरिसबैत। बच्चाकेँ कोनो तरहक तकलीफ नहि होइ तेइ ले मुह दिशि देखैत। टाटक अढ़मे बैसि अछेलाल सुमित्राकेँ स्नेह देखि, दुनिया क’ बिसरि आनन्द लोकमे बिचरैत।
........
जिनगीक जीत:ः 2
रवि दिन रहने बचेलाल अबेर क’ उठल। मनमे यैह सोचि विछान पर पड़ल, जे आइ स्कूल नहिये जाएब। घर पर कोनो अधिक काजो नहिये अछि। मात्र एक जोड़ धोती, एक जोड़ कुरता आ एक जोड़ गंजियेटा खिंचैक अछि। दुपहर तक तँ काजो एतवे अछि। बेरु पहर हाट जा घरक झूठ-फूस समान कीनि आनब। हाटो दूर नहि, गामक सटले अछि। सुति उठि बचेलाल नित्य-कर्मसँ निवृत भ’ दलानक चैकी पर आबि बैसल। रुमा चाह द’ गेलनि। दू घोंट चाह पीबितहि बचेलालकेँ पिता मन पड़ि गेलखिन। पिता मन पड़ितहि बचेलाल अपन तुलना हुनकासँ (पिता) करै लगला। मने-मने सोेचै लगल जे पिता साधारण किसान छलाह। पढ़ल-लिखल ओतबे जे नाम-गाम टो-टा क’ लिखि लथि। काजो ओतबे रहनि जे कहियो-काल रजिष्ट्री आॅफिस जा सनाक बनथि। भरि दिन खेतीसँ ल’ क’ माल-जालक सेबामे व्यस्त रहैत छलाह। मुदा एत्ते गुण अवश्य छलनि जे गाममे कतौ पनचैती होइत वा कतौ भोज-भात होइत वा समाजिक कोनो (दशनामा) काज होइत तँ हुनका जरुर बजौल जाइन। ततबे नहि, बूढ़-पुरान छोड़ि केयो नाम ल’ क’ सोरो नहि पाड़ैत छलनि। अपन संगतुरिया भाय कहनि आ धिया-पूतासँ चेतन धरि गिरहत बाबा, गिरहत काका कहनि। परिवारे जेँका समाजो क’ बुझैत छलथिन। मुदा हम शिक्षक छी। अपन काजक प्रति इमानदार छी। बिना छुट्टिये एक्को दिन ने स्कूलमे अनुपस्थिति होइ छी आ ने एको क्षण बिलम्बसँ पहुँचै छी। जते काल स्कूलमे रहै छी, बच्चा सभकेँ पढ़विते छी। जना आन-आन स्कूलमे देखै छी जे शिक्षक सभ कखनो अबै छथि, कखनो जाइ छथि आ इष्कुलेमे ताशो भँजैत छथि। ओना हमहू ककरो उपकार तँ नहिये करै छी किऐक तँ दरमाहा ल’ काज करैत छी। आन शिझकक अपेक्षा इमानदारीसँ जीवितहुँ अपना पैघ कमी बुझि पड़ैत अछि। ओ कमी अछि समाजमे रहि समाजसँ कात रहब। स्कूलक समय छोड़ि दिन-राति तँ गामेमे रहै छी मुदा ने क्यो टोक-चाल करै अए आ ने क्यो दरवज्जा पर अबै अए। मनमे सदिखन रहे अए जे कमाई छी तँ दू-चारि गोटेकेँ चाह-पान खुआबी-पीआबी। मुदा क्यो कनडेरियो आखिये नहि तकैत अछि। हमहू तँ ककरो ऐठाम नहिये जाइ छी। चेतन सभक कहब छनि जे दुआर-दरबज्जाक इज्जत छी चारिगोटेकेँ बैसब। मुदा से कहाँ होइ अए। गाम तँ शहर-बजार नइ छी जे एक्के मकानमे रहितहुँ, आन-आन क्षेत्रक रहने, लोक आन-आन भाषा बजैत, आन-आन चलि-ढ़ालिमे अपन जिनगी वितवैत, ककरो क्यो सुख-दुखमे संग नहि होइत! मुदा समाज तँ से नहि छी? बाप-दादाक बनाओल छी। एक ठाम सइयो-हजारो बर्खसँ मिलि-जुलि क’ रहैत अयलाह। रंग-विरंगक जातियो प्रेमसँ रहैत अछि। सभ सभकेँ सुख-दुखमे संग रहैत अछि। बच्चाक जन्मसँ ल’ क’ मरण धरि संग पूरैत। ऐहन समाजमे, हमर दशा ऐहन किऐक अछि? जहिना पोखरिक पानिक हिलकोरमे खढ़-पात दहाइत-भसिआइत किनछरि लगि जाइत तहिना तँ हमरो भ’ गेल अछि। की पाइनिऐक हिलकोर जेँका समाजोमे होइत छैक? जँ पाइनियेक हिलकोर जेँका होइत छैक तँ हम ओहि हिलकोर क’ बुझैत किऐक ने छी? हमहू तँ पढ़ल-लिखल छी।
जत्ते समाजक संबंधमे बचेलाल सोचैत तत्ते मन मलिन होइत जाइत। मुदा बुझि नहि पबैत। अधा चाह पीलाक बाद जे गिलासमे रहल ओ सरा क’ पानि भ’ गेल। ने चाहक सुधि आ ने अपन सुधि, बचेलाल क’। जना बुझि पड़ैत जे हम ओहन बनमे बौआ गेलहुँ जत्त’ एक्कोटा रस्ते ने देखैत छी। गंभीर भ’ बचेलाल बड़बड़ेबो करैत आ अपने-आपमे गप्पो करैत।
आंगन स सुमित्रा आबि बचेलालकेँ देखि पूछलखिन- ‘‘बच्चा, कथीक सोगमे पड़ल छह? किछु भेलह हेन की?’’
बचेलालक मुहसँ निकलल- ‘‘नहि माए! भेल तँ किछु नहि। मुदा गामक किछु बात मोनमे घुरिआइत अछि। जकर जबाब बुझिते ने छी।’’
तारतम्य करैत सुमित्रा कहै लगलखिन- ‘‘गाममे ते बहुत लोक रहैत अछि मुदा सभ थोड़े गामक सब बात बुझैै छै। गाममे तीनि तरहक रास्ता छैक। पहिल ओ जहि सँ समाज चलैत अछि। दोसर सँ परिवार चलैत आ तेसर सँ मनुक्ख चलैत अछि। मनुक्ख अपन चलि परिवारक चालिमे मिला क’ चलैत अछि। तहिना परिवार समाजक चालि स मिला क’ चलैत अछि तेँ, तीनूक अलग-अलग चालि रहनहुँ ऐहन घुलल-मिलल अछि जे सभकेँ बुझवोमे नहि अबैत।’
मुह वाबि बचेलाल माएक बात सुनि, कहलकनि- ‘‘माए, तोरो बात हम नीक-नहाँति नहि बुझि सकलहुँ। मनमे यैह होइ अए जे किछु बुझिते ने छी। अन्हारमे जना लोक किछु ने देखैत, तहिना भ’ रहल अछि।’
मूड़ी डोलबैत सुमित्रा कहै लगलखिन- ‘‘अपने घरमे देखहक- दूटा बच्चा अछि, ओकर त कोनो मोजरे नहि। तीनि गोटे चेतन छी। तोँ भरि दिन इस्कूलेक चिन्तामे रहै छह। भोरे सुति उठि क’ नओ बजे तक, अपन सब क्रिया-कर्म स निचेन भ खा के इस्कूल जाइ छह। चारि बजे छुट्टी होइ छह। डेढ़ कोस पाएरे अबैत-अबैत साँझ पड़ि जाइ छह। घर पर अबैत-अबैत थाकियो जाइत हेबह। पर-पखाना स अबैत-अबैत दोसर साँझ भ’ जाइ छह। दरबज्जा पर बैसि, कोनो दिन ‘रमायण’ त’ कोनो दिन ‘महाभारत’ पढै़ छह। भानस होइ छै खा क’ सुतै छह। फेरि दोसर दिन ओहिना करै छह। एहिना दिन बीतैत जाइत छह। दिने स मास आ मासे स साल बनैत छैक। कोल्हुक बड़द जेँका घर स इस्कूल आ इस्कूल स घर अबै-जाइत जिनगी बीति जेतह। मुदा जिनगी त से नहि थिक? जिनगी त ओ थिक- जना बसन्त ऋृतु अबिते गाछ-विरीछ नव कलश ल बढै़त अछि, तहिना। मनुक्खोक गति अछि। जिनगीक गतिये मनुक्खकेँ ब्रह्माण्डक गति से मिला क’ ल चलैत। अज्ञानक चलैत मनुक्ख, एहि गति क’ नहि बुझि, छुटि जाइत अछि। छुटैक कारण होइत व्यक्तिगत, परिवारिक आ सामाजिक जिनगी। जे सदिखन आगूक गतिक पाछु महे धकेलति अछि। जहि स मनुख समयक संग नहि चलि पबैत। मुदा तइ स की? बाधा कतबो पैघ किऐक ने हुअए मुदा मनुखोकेँ साहस कम नहि करक चाही। सदिखन सब अंग क’ चैकन्ना क चलला से सब बाधा टपि सकैत अछि। पुतोहूए जनिकेँ देखुन। भरि दिन भनसा आ धिये-पूतेक आय-पायमे लगल रहैत छथुन। हमरो जे शक लगै अए से करिते छी। घर त कहुना चलिये जाइ छह। मुदा परिवार त समाजक एक अंग छी। परिवारेक समूह ने समाज छी। तेँ समाजक संग चलैक लेल परिवार क’ समाजक रास्ता धड़ै पड़त। से नहि भ’ रहल छह। जना देखैत छहक जे रेलगाड़ीमे ढेरो पहिया आ कोठरी होइ छै। जे आगू-पाछू जोड़ल रहै छै। मुदा चलै काल सब संगे चलै छै। तहिना मनुक्खो छै।’’
सुमित्राक बात सुनि बचेलाल जिज्ञासासँ पूछल- ‘‘अपन परिवारक की गति अछि?’’
मुस्कुराइत सुमित्रा कहै लागलि- ‘‘अपन परिवार ठमकल अछि। ओना बुझि पड़ैत हेतह जे आगू मुहे जा रहल छी, मुदा नहि। तोरा बुझि पड़ैत हेतह जे शिझक छी, नीक नोकरी करै छी। नीक दरमहो पबै छी। हँ, ई बात जरुर अछि। मुदा अपनो सोचहक जे जखन हम पढ़ल छी, बुद्धियार छी। तखन हमरा बुद्धिक काज कैक गोटे क’ होइ छै। जे क्यो नहिये पढ़ल अछि ओहो त अपन काज, अपन परिवार चलबिते अछि। कने नीक कि कने अधला सब त जीवे करैत अछि। आइ तोरा नोकरी भ गेलह, तेँ ने, जँ नोकरी नइ होइतह तखन त तोहू वहिना जीवितह जहिना बिन पढ़ल-लिखल जीवैत अछि। एहिना पुतोहू जनि केँ देखुन, जना घर स कोनो मतलबे नहि अछि। हमरो बिआह-दुरागमन भेल छल। हमहूँ कनियाँ छलौ मुदा आइ जे घरमे देखै छिअह तना त नहि छल। जखन हम नैहर स ऐठाम एलहुँ तखन भरल-पूरल घर छल। सासु-ससुर जीविते रहथि। जखन चारि दिनक बाद चुल्हि छूलौ, तहिया स सासु कहियो चुल्हि दिशि नहि तकलनि। ने कोठी से चाउर निकालि क’ देथि आ ने किछु कहथि। जेहने परिवार नैहरक छल तेहने एतुक्को छल। जे सब काज नैहर मे करै छलौ सैह सब काज अहूठाम छल। अपन घर बुझि एकटा अन्न आ कि कोनो वस्तु दुइर नहि हुअए दैत छलिऐक। अखन देखै छिअह जे पाँचे गोटेक परिवार रहनहु सभ सब स सटल नहि, हटल चलि रहलह हेन। सटि क’ चलैक अर्थ होइत सभ सब काजमे जुटल रही। ई त नहि कि क्यो काजक पाछू तबाह छी आ क्यो बैसले छी। परिवारक सभकेँ अपन सीमा बुझि चलक चाही, से नहि छह। हम खेलहुँ कि नहि, तोँ खेलह कि नहि। भनसिया लेल धन्य सन। की खायव, कोन वस्तु शरीरक लेल हितकर हैत कोन अहितकर, से सब बुझैक कोनो मतलवे नहि। जे खाई मे चसगर लागत, भले ही ओ अहितकरेे किऐक ने हुअए, वैह खायब। जहि स घरमे बीमारी लधले रहै छह। जहिना सुरुजक किरिणमे देखै छहक जे अनेको दिशामे चलैत तहिना परिवारोक काज सब दिशा क’ जोड़ैत अछि, से नहि भ’ रहल छह।’’
बिचहिमे बचेलाल मायकेँ पूछलक- ‘‘माए! नीक-नाहाँति तोहर बात नइ बुझि रहलौ हेन?’’
बचेलालक बातकेँ तारतम्य करैत सुमित्रा कहै लगलखिन- ‘‘बच्चा, देखहक जहिना गाममे किछु परिवार आगू मुहे ससरि रहल अछि त किछु परिवार पाछू मुहे। किछु परिवार ठमकल अछि। जहि स गाम आगूू मुहे नहि बढ़ि रहल अछि। तहिना परिवारोमे होइत। परिवारोमे किछु गोटे आगू बढ़ैक चेष्टा करैत त किछु (आलस अज्ञान आदि क चलैत) पाछू मुहे ससरैत। किछु गोटे अदहा-छिदहा मे रहैत। तेँ परिवार केँ जहि गति मे चलक चाही, से नहि भ’ रहल अछि। ततवे नहि इ रोग मनुक्खक भीतरो मे अछि। किछु लोक अपनाकेँ समय स जोड़ि क’ चलै चाहैत त किछु समयक गति नहि बुझि, पाछूऐ मुहे चलैत। ई बात जाबे नीक जेँका नहि बुझबहक ताबे ने मन मे चैन हेतह आ ने आगू मुहे परिवार बढ़तह।’’
माइक बात स बचेलालक मन घोर-मट्ठा भ गेल। की नीक, की अधला से बुझबे ने करैत। माथ कुरिअबैत बचेलाल माए केँ कहलक- ‘‘माए! जखन मन असथिर हैत तखन बुझा-बुझा कहिऐं। एक बेरे नइ बुझब, दू बेरे बुझैक कोशिश करब। दू बेरे नइ बुझब तीन बेरे कोशिश करब। मुदा बिना बुझने त काज नहि चलत।’’
बचेलालक बात सुनि मुस्कुराइत सुमित्रा कहै लगलखिन- ‘‘बच्चा जखन तोहर पिता जीविते रहथुन तखन घर मे पाथरक बटिखारा छल। ओहि स जोखै-तौलै छलहुँ। एक दिन अपने(पति) आबि कहलनि जे आब लोहाक पक्की सेर, अढ़ैया पसेरी सब आइल। हम पूछलिएनि जे पथरक जे सेर, अढ़ैया अछि तकरा फेकि देबै? ओ(पति) कहलनि-फेकबै किऐक? लोहा सेर क’ पथरक सेर स भजारि लेब। बटिखारा कम-बेसी हैत, सैह ने हैत, ओकरा अपन बटिखारा हिसाब स मानि लेबै। अओर की हेतै। बौआ अखन तोरो मन खनहन नइ छह, जा तोहू अपन काज देखह। हमरो बहुत काज अछि। जखन मन खनहन हेतह तखन आरो गप्प करब।’’
अनोन-बिसनोन मने बचेलाल कपड़ा खींचै विदा भेल। आंगन जा बाल्टी-लोटा, कपड़ा आ साबुन नेने कल पर पहुँचल। कपड़ा साबुन के कात मे रखि पहिने कलक चबूतरा साफ केलक। बाल्टी मे पानि भरि सब कपड़ा क’ बोइर देलक। एकाएकी कपड़ा निकालि दुनू पीठ साबुन लगा-लगा, बगल मे रखैत। जखन सब कपड़ा मे साबुन लगाओल भे गेलै तखन पहिलुका सावुन लगौलहा कपड़ा निकालि खींचै लगल। सुमित्रा खन्ती ल बाड़ी ओल उखाडै़ विदा भेलि। बाड़ी मे पतिआनी लगा ओल रोपने रहथि। तीन सलिया ओल। केंकटा गाछ फुला गेल। बाड़ी मे सुमित्रा हियासै लागलि जे कोन गाछ खुनब। सब गाछ डग-डग करैत। पतिआनीक बीच मे एकटा गाछक अदहा पत्ता पिरौंछ भ गेल। पात क’ पीअर देखि सुमित्रा ओइह गाछ खुनैक विचार केलनि। ओल कटि नहि जाय तेँ फइल से खुनव शुरु केलनि। सात-आठ किलोक हैदरावादी ओल। टोंटी एकोटा नहि। टोंटी नहि देखि सुमित्रा मने-मन सोचै लगली जे टोंटी रहैत त रोपियो दैतिऐक मुदा से नहि भेल। ओलक माटि झाड़ि गाछ के टुकड़ी-टुकड़ी काटि खधिये मे द उपर स माटि भरि देलखिन। सुमित्रा चाहथि जे ओलो आ खन्तिओ ऐके बेर नेने जायब मुदा से गरे ने लगनि। दुनू हाथ स’ ओल उठा एक हाथ के ल दोसर हाथ से खन्ती लिअए लगथि कि ओल गुड़कि क’ निच्चा मे गिर पड़नि। कैक बेर कोशिश केलनि मुदा नहिये भेलनि। तखन हारि क’ पहिने दुनू हाथे ओल उठा कल लग राखि, खन्ती आनै गेली। खन्तिओ मे माटि लगल आ ओलो मे। तेँ दुनू क’ नीक-नाहाँति घुअए पड़त। माए क’ ठाढ़ देखि बचेलाल हाँइ-हाँइ कपड़ा पखाड़ै लगल। कपड़ा ल बचेलाल चार पर पसरै गेल। सुमित्रा ओल के कलक निच्चा मे रखि कल चलबै लगली। गर उनटा-उनटा दश-पनरह बेर कल चलौलनि। मुदा तइयो सिरक दोग-दाग मे माटि रहबे केलै। तखन ओल क घुसुका बाल्टी मे पानि भरि लोटा स ओलो, खन्तिओ आ अपनो हाथ-पाएर धोलनि। आंगन आबि सुमित्रा पुतोहू केँ कहलखिन- ‘‘आइ रवियो छी, बच्चो गामे पर रहता तेँ ओलक बड़ी बनाउ। बड़ निम्मन ओल अछि तेँ दू चक्का तड़ियो लेब।’’
सुमित्राक बात सुनि मुह-हाथ चमकबैत पुुतोहू उत्तर देलखिन- ‘‘हिनका हाथ मे सरर पड़ल छनि तेँ कब-कब नइ लगै छनि। हमरा त ओल देखिये के देह-हाथ चुलचुला लगै अए। अपने जे मन फुड़ैन से बनबथु। हम चुल्हि पजारि ताबे भात रन्है छी। सभकेँ नवका चीज नीक लगै छै हिनका पुरने नीक लगै छनि।’’
पुतोहूक बात सुनि सुमित्रा मने-मन सोचै लगली जे जाबाव दिअनि आ कि नहि? समय पर जँ जबाव नहि देब त दबब हैत। मगर जबाव देनहु त झगड़े हैत। अपना जे इच्छा अछि वैह करब मुदा बाता-बाती से त काजे रुकत। जत्ते बनबै मे देरी हैत तते भानसो मे अबेर हैत। मुदा सुमित्राक मन जबाव देइ ले तन-फन करैत। ओल क’ बीचो-बीच काटि, चारि फाँक करै लगली ओलक सुगंध आ रंग देखि सुमित्रा जबाव देलखिन- ‘‘कनियाँ, जे चीज सब दिन नीक लागल ओ आइ अधला कोना भ’ जायत? जाबे जीबै छी ताबे त खेबे करब। तेाँ जकरा अधला बुझै छहक ओ अधला नहि छी। दुनू गोटेक नजरि मे अन्तर छह। जे अन्तर नीक-अधला मे बदलि गेल छह। दुनू गोटेक नजरि, एहि दुआरे दू रंग भ गेल छह जे दुनू गोटेक जिनगी दू रंग बीतल। तेाँ नोकरिहाराक परिवारक छह हम गिरहत परिवारक। तोहर बाप नगद-नरायण कमाई छथुन जहि स हाट-बजार से समान कीनि आनि खइ छेलह। हम त सामान उपजवै वला परिवार मे रहलहुँ। कोन वस्तु कोना रोपल जाइ छै, कोना ओकर सेवा करै पड़ैत छै, से सब वुझै छियै। तेँ हमर नीक आ तोहर नीक मे यैह अन्तर छह।’’
दुनू सासु-पुतोहूक गप-सप बचेलालो दरवज्जा पर स सुनैत। बीच आंगन मे बैसि सुमित्रा ओल बनवति रहथि। घर मे पुतोहू भन-भना क’ बजैत रहति, जे सुमित्रा नीक जेँका सुनवो ने करैत। बच्चा नेने मखनी सेहो आइलि। मखनी के कोरा मे बच्चा देखि सुमित्रा दबारैत कहलखिन- ‘‘मासे दिनक बच्चा के अंगना से किऐक निकाललह? जँ रस्ता-पेड़ा मे हबा-बसात लागि जइतै तब?’’
हँसैत मखनी उत्तर देलकनि- ‘‘दीदी! अइ आंगन के अनकर आंगैन कहै छथिन। हमर नइ छी? अपनो अंगना अवै मे संकोच हैत।’’
मखनीक बात सुनि सुमित्रा मने-मन अपसोच करैत कहलखिन- ‘‘अनकर अंगना बुझि नइ करलियह। अखन बच्चा छोट छह तेँ बचा केँ राखै पड़तह। बेटा धन छी। घर से त निकलबे करत। पुतोहू केँ सोर पाड़ि कहलखिन- ‘‘पहिले-पहिल दिन बच्चा अंगना आयल। तेल-उबटन दहक। अगर उबटन घर मे नइ हुअअ ते तेले टा नेने आवह। ताबे चुल्हि मिझा दहक। पहिने बच्चा के जाँति-पीचि दहक।’’
घर स रुमा तेल आ विछान नेने आबि अंगने मे विछौलक। तेलक माली लग मे रखि बच्चा केँ कोरा मे लेलक। दुनू पाएर पसारि बच्चा केँ जाँध पर सुतौलक। बच्चाक मुह देखि रुमा मने-मन बाजलि- ‘‘मखनी केहेन भाग्यशाली अछि जे भगवान ऐहन सुन्नर बच्चा देलखिन।’’ उनटा-पुनटा क’ बच्चा देखलक। रुमाक मन मे ऐलै जे कोना लोक बजै अए जे फल्लाँक कपार खराब छैक आ फल्लांक नीक? जँ कपार अधला रहितैक त बेटी होइतै। जकर कपार नीक रहै छै, ओकरा खाली बेटे होइतै। भगवानक नजरि मे सब बराबरि अछि। सभ त हुनके सनतान छी। कोन पापी बाप ऐहेन हैत जे अपना सन्तान केँ दूजा-भाव करत? अनेरे लोक, कपार गढ़ि, भगवान केँ दोख लगबै छनि।
सुमित्रा हाथ स ओलो आ कत्तो ल मखनी ओल बनबै लगलीह। ओल देखि मखनी सुमित्रा केँ कहलखिन- ‘‘ओल अंडाइल रोहू(माछ) जेँका बुझि पड़ैत अछि। दीदी ‘हाथ धो लथु, हम बना लै छी।’’
सुमित्रा हाथ धोय दुनू हाथ मे करु तेल लगा अपना पाएर मे हसोथि लेलनि। हाथक कबकबी मेटा गेलनि।ं विछान पर जा पुतोहू केँ कहलखिन- ‘‘कनि॰ााँ, बच्चा लाउ। हम जाँति दइ छियै। अहाँ चुल्हि लग जाउ।’ सुमित्रा कोरा मे बच्चा के द’ रुमा चुल्हि पजारै गेलि। सुमित्रा बच्चा केँ जाँध पर सुतवैत मखनी कँा कहलक- ‘‘कनियाँ, बीचला चक्का ओरिया क’ काटब। ओ तड़ब। कतका सब उसनि क’ बरी बनाएब।’’
मुस्की दैत मखनी कहलकनि- ‘‘तेहेन सुन्नर ओल छनि दीदी जे चुल्हि पर चढ़िते गल-बला जेतनि। खेबो मे तेहने सुअदगर लगतनि। अइ आगू मे दुदहो-दहीक कोनो मोल नहि।’’
सुमित्रा बच्चा केँ जतबो करैत आ घुनघुना क’ गेबो करैत-
‘कौने बाबा हरबा जोताओल,
मेथिया उपजाओल हे।
कौने बाबी पीसल कसाय
ओ जे बच्चा केँ उङारब हे।
बड़का बाबा हरबा जोताओल
ओ जे सरसो उपजाओल हे।
ऐहब बाबी तेल पेरौलीह
बच्चा केँ उङारथि हे।
जाबे मखनी ओल बनौलक ताबे सुमित्रो बच्चा क’ जाँति-पीचि चानि मे काजरक टिक्का लगा निचेन भेलीह। मखनीक कोरा मे बच्चा द’ सुमित्रा एक-डेढ़ सेर चाउर आ तीमन जोकर ओल द देलखिन।
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जिनगीक जीत:ः 3
अधरतियेमे सुमित्राक निन्न टूटि गेलनि। ओछाइन परसँ उठि आंगन आबि, मेघ दिशि हियासै लागली। अन्हरिया राति। साफ मेघ। सिंगहारक फूल जेँका तरेगण चमकैत। घरसँ थोड़े हटल पूबरि भाग बाँसक बीटि। बासँक झोंझमे मेनाक खोंता। एकटा मेना क’ बाझ पकड़ि उड़ि गेल। बाझके उड़िते आन-आन मेना गदमिशान करै लगल। मेनाक आवाजकेँ सुमित्रा अकानए लगली। भिनसुरका बोली नहि बुझि सुमित्रा सोचै लगलीह जे किछु भ’ गेलै। तेँ एना बजै अए। कने काल ठाढ़ भेलो पर रातिक ठेकान नहि पाबि सुमित्रा पुनः ओछाइन पर जा पड़ि रहली। अनायास मनमे एलनि जे जहिना अछेलाल समाजमे रहितो समाजसँ अलग अछि तहिना तँ बचेलालो अछि। ओहि दिन वेचारा सत्ते कहलक जे ने ककरो ऐठाम जाइ छी आ ने क्यो हमरा ऐठाम अबै अए। ने ककरो स’ गप्प होइ अए आ ने गामक कोनो बात बुझै छी। रुमा सेहो उठिकेँ सासु लग ऐली। पुतोहूँकेँ सुमित्रा कहै लगलखिन- ‘‘जखन दुरागमन भ’ ऐठाम आइल रही तखन दू-तीन साल अंगनेमे रहलौ। अंगनासँ बहार सासु नहि हुअए दथि। ओइह (सासु) बहराक काज सम्हारथि। कातिक मास। छठिक परातेसँ दुनू सासु-पुतोहू सामा गीत गाबी। समाजक सभ स्त्रीगण अपन-अपन अंगनामे सामाक गीत गबथि। ओ आगू-आगू कहथिन हम पाछू-पाछू। तीनि साल एहिना बीतल। चारिम साल सामा भसौनिक दिन हुनकर मोन खराब भ’ गेलनि। तत्ते जोर कफ आ उकासी होइन जे बजले ने होइन। भसाओनिक दिन रहने छोड़लो कोना जइतै। बेरुए पहर ओ एक पाँज धान काटि अनलनि। ओकरा मिड़लहु। अदनार धान तेँ ताड़ै-भाड़ैक जरुरते नहि। ओ (सासु) घानी लाड़थि, हम ऊखड़ि-समाठ ल’ कूटी। चूड़ा कुटलौ। बाटीमे अरबा चाउर भीजै ले दुपहरे द’ देने रहिये। ओकर पीठार पीसलौ। गोसांइ लुक-झुका गेल। काजो बहुत रहै तेँ हाँइ-हाँइ करी। तहूमे सासुक मन खराबे रहनि मुदा तइयो संग-साथ देथि। ने अखन धरि समा रंगने छलौ आ ने वृन्दावनक चुगला झड़कबै ले बनौने छलौ। किएक तँ घरमे सोन रहबे ने करै। हाँइ-हाँइ सामा-चकेबा सबकेँ पीठारसँ ढ़ौरलौ। ओकरा सुखै ले चंगेड़ा मे द’ देलियै। सामा रंगै ले एक्केटा पुड़िया गुलाबी रंग रहै। एके रंग से रंगलो नै जायत। कमसँ कम लाल, हरियर, पीअर आ कारी रंग ते जरुर चाही। दुनू सासु-पुतोहू गुनधुनमे पड़ल रही। अनाययास हुनका (सासु) मनमे एलनि जे सीमक पात तोड़ि हरियरका आ सिंगहारक फूलक डंटीसँ पीअरका रंग बनोओल जा सकैत अछि। मन पड़िते ओ (सासु) दश-बारहटा सीमक पात तोड़ि आनि हमरा पीसै ले कहलनि। अपने सिंगहारक गाछ लग जा बसिया फूल बीछि आनलनि। हम सीमक पात पीसै लगलहु आ ओ सिंगहारक डंटी तोड़ै लगलीह। मनमे सबुर भेलि। किऐक तँ काजरसँ करिया रंगक काज चलि जायत। रंग तैयार होइते दुनू गोटे सबकेँ रंगलौ। रंगल जखन भ’ गेल तखन हुनका मन पड़लनि जे झाझी कुत्ता, ढोलिया आ लड़ूबेचा तँ बनेवे ने केलहुँ। आब की हैत? विधि तँ पुरबै पड़त। गुनधुन करैत सासु कहलनि- ‘‘कनि॰ााँ, कने माटि सानि तीनू बना लिअ। मुदा धड़फड़मे सूखत कोना? तइयो तीनू बनेलहुँ। काँच दुआरे ओकरा नै ढोरलौ आ ने रंगलौ। सबके चंगेड़ामे सरिया क’ राखि भानसक जोगारमे लागि गेलहुँ। सासु मालक घरमे ओछड़ा दै ले गेली हम भानस करै लगलौ। भानस भेलो नइ छल कि उत्तरबारि टोलमे सामा गीत शुरु भेल। बाबू (ससुर) आ हुनका (पति) खुआ, दुनू गोटे खेलहुँ। थारी-लोटा, बरतन अखारि राखि देलिऐक। दीप जड़ेलहुँ। दुनू गोटे गीत गबै बैसलहुँ। जहाँ ओ (सासु) गोसाउनिक गीत उठौलनि कि उकासी उठलनि। एक लखाइते बड़ी काल धरि खोंखी करिते रहि गेलीह। उकासी बन्ने ने होइन। हम हुनकर (सासु) छाती दाबि ससारै लगलौ। तखन उकासी बन्न भेलनि। उकासी बन्न होइते कहलनि- ‘‘कनियाँ, हमरा गाओल नइ हैत। आइ उसरै अए, तेँ छोड़बो नीक नइ हैत। जैह अबै अए सैह गाबि विधि पूरा लिअ।’’
सासुक आग्रह सुनि तरे-तर खुशी भेलौ, जे हमरो लूरि देखतीह। पहिने तँ थोड़े नाकर-नुकर केलौ जे हमरा गीत नइ अबै अए। मुदा फेरि सोचलहु जे लूरिकेँ झाँपियो क’ राखब नीक नहि। गाबै लगलौ। आगू-आगू हम कहियै आ पाछूसँ ओ धरथि। उकासी दुआरे घुनघुनेबे करथि। आंगनमे गोसाउनिक गीति गाबि, चंगेरा उठा बटगबनी गबैत चैमास दिशि विदा भेलौ। चैमास जाइत-जाइत गीतो खतम भेलि। चैमासमे चंगेरा राखि, सामाक गीत शुरु केलहुँ। पहिल गीति समाप्त होइते सासु कहलनि जे लगले सूरे पाँचटा पुरा लीअ’। पहिलुक गीति तँ हुनको अबैत रहनि तेँ घुनघुनाइयोकेँ संग पूरि देलनि, मुदा दोसर नहि अबैत रहनि तेँ कखनो घुनघुनाइत तँ कखनो चुप भ’ जाथि। हम देखियो क’ अपना सूरे गबिते रहलौ। जहिना भरल कोठीक मुह खोललासँ चाउर भुभुआ क’ निकलैत तहिना हमरो हुअए। एकके सूरे दश-बारहटा सामाक गीत गाबि लेलहुँ। गामक जत्ते सामा खेलेनिहारि रहथि सब अपन-अपन सामा भसा आंगन गेलीह। हमहू सामा भसा सोहर गबैत अंगना विदा भेलौ। एक्के-दुइये गामक गीति गौनिहारि आबै लगली। पाछू-पाछू ओहो सभ भाँज पूरै लगली। एकटा सोहर गाबि दोसर उठेलहुँ। सासुक मन खराब रहनि तेँ खिसिया क’ ओ सुतै ले चल गेली पाँचटा सोहर गौलौ। नवकी कनियाँ सभ मुह दाबि-दाबि बजैत जे दीदी नाचमे रहैत छेलखिन तेँ हाथ चमका-चमका गबै छथि। साउसो ओछाइन पर घुनघुना क’ गवैत। कखनो घरे से चाबस्सिओ द’ दथि। सोहरक बाद समदाउन उठेलहुँ। नवतुरिया सभकेँ भास चढ़वे ने करै। घरेसँ माय कहलखिन-‘‘ठी-ठी केने समदाउन गौल जाइछै। मनुख जेँका मन असथिर क’ क’ गाओले ने होइ छनि।’’ अपन कमजोरी मानि मंगली कहलक- ‘‘भौजी समदाउन छोड़ि एकटा बरअमासा (बारहमासा) कहिऔ।’’ मंगलीक विचारकेँ सभ समर्थन दैत हूँ-हूँ कारी भरलक। हम बरहमासा शुरु केलौ-
रघुवर जुनि जइयौ मिथिला नगर से सिया कोहवर से ना।
अगहन सिया के विआह पूस सेजिया लगायब,
माघ सीरक भरबायव रघुवर के, सिया कोहबर से ना।
फागुन फगुआ खेलायब चैत माला गाँथि लायब
बैशाख बेनि॰ाा डोलायब रधुवर के, सिया कोहवर से ना।
जेठ तबे दिन राति आषाढ़ बरसे दिन राति
सावन झुला झुलाय के, सिया कोहवर से ना।
भादव राति अन्हार आसीन आस लगायब
कातिक चलि जाएब मिथिला नगर से, सिया कोहवर से ना।
बारहमासा गबैत-गबैत रातियो बेसी भ’ गेलै आ ओससँ सबहक नुओ सिमसि गेलै। मुदा तइयो उठै ले क्यो तैयारे ने होइत। हाँ-हाँ, हीं-हीं सब करैत। अपनो थाकि गेलहुँ। तखन दुनू हाथ जोड़ि कहलिऐक- ‘‘बड़ राति भ’ गेल। अखन जाइ जाउ। काल्हिसँ आबि-आबि सुनवो करब आ सीखवो करब। तखन सब गेलि। हमहू सुतै ले गेलहु। औझुका जँका ने पढ़ल-लिखल जनिजाति छलि आ ने पढ़ै-लिखैक सुविधा छलै। एक-एकटा गीति सीखैमे कै-कै दिन लागि जाइ छलै। हमहीं जे सीखलौ, ओ माएसँ सीखलौ। काजो करै काल सीखी आ रातिमे खेला-पीला बाद माएके जतै ले जाइ तखनो सीखी। जखन गीत (याद) इयाद भ’ जाय तखन भाएकेँ गावि सुना दियै। दोसरे दिनसँ गीति सीखै ले ढेरबासँ ल’ क’ जुआन कनि॰ााँ धरि आबै लागलि। गामक बेटी सभ तँ जखन-तखन आवि जाय मुदा कनियाँ (पुतोहू वर्गक) दोसरि तेसरि साँझमे आबै। अंगना काज बरदाइत देखि सभकेँ कहि देलियै जे साँझू पहरके आबह। सैह भेल। छह मास धरि सभकेँ गीत सिखेलहुँ। जखन अपने (बचेलालक पिता) मरि गेलखिन तखन घरक भार पड़ि गेलि। दुनू बच्चा लिधुरिया। की करितौ? खेती-बाड़ीसँ ल’ क’ अंगना-घरक काज सम्हारै पड़ैत छल। अपने काजमे तेना ओझरा गेलौ जे दोसराक सुधिये ने रहल। समाजमे कतौ विआह होय वा उपनयन हमरो हकार अबैत छल। हमहू जा क’ गोसाउनिक गीतिसँ ल’ क’ समदाउन तक गबै छलौ। जे सब छूटि गेलि। अखनो ओ सब जँ इमहर अबै अए तँ जरुर भेटि करै अए। मुदा आब तँ अपने सभकेँ बाल-बच्चा, नाति-पोता भ’ गेलै। सब अपने-अपने परिवारमे ओझरायल रहै अए। हमहू बूढ़ि भेलौ तेँ पहिलुका जेँका काजोमे नै सकै छी। जाधरि गामक लोकसँ लाट रहैत छल ताधरि सब नीक-अधला बुझैत छलिऐक। ककरा ऐठाम पाहुन आयल वा ककरा घरमे कते नोन-तेल खर्च होइ छलै, सब बुझै छलिऐक। समय जिनगी क’ छोट बना देलक। जाबे जीवै छी ताबे दोसराक भार नहि बनिऐक, तेहि ले भरि दिन लुरु-खुरुमे लगल रहै छी। अखनो बाड़ी-झाड़ीमे तीमन-साजन उपजवितहि छी। भानसो करिते छी। अंगना-घर बहारिते छी। चिक्कनि माटिसँ घर नीपिते छी। कखनो ई नै बुझि पड़ै अए जे अथबल भेलहुँ। जखने काजसँ हटब तखने जिनगी भार बुझि पड़त। जिनगी की थिक? जिनगी तँ यैह थिक जे हँसैत-खेलैत बीता ली। जे अखैन धरि निमहल, आगू बुझल जेतै।’’
भोर भ’ गेल। चिड़ै चुनमुनी जुटि बान्हि-बान्हि, खोंतासँ निकलि आकासक रास्तासँ पराती गवैत जिनगीक लीला करै विदा भेलि।
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जिनगीक जीत:ः 4
आंगना बहारि सुमित्रा दरबज्जा बाहरै गेलीह। दरवज्जा बाहरैसँ पहिने बड़द पर नजरि पड़लनि। डेढ़िया पर बाढ़नि राखि मुह पर हाथ द’ बैसि, मने-मन सोचै लगली। बड़दक दशा देखि सुमित्राक दुनू आखिसँ नोर टघरै लगलनि। ताबे बचेलालो सुति उठि क’ दरवज्जा पर आयल मने-मन सुमित्रा सोचै लगली जे जाबे बचेलालक पिता जीबैत छलथिन ताबे जोड़ा बड़द खूँटा पर रहैत छल। दुनू बड़दकेँ खुआ-पीया पट्ठा बनौने रहैत छलाह। ने एकटा कुकुड़माछी देह पर रहै दैत छेलखिन आ ने एकोटा अठगोरबा रहैत छलै। जहिना लोक अपन बच्चाक सेवा करैत अछि तहिना ओ (पति) गाय-बड़दक सेवा करैत छलाह। जखन अपने जीवैत छलाह हमहू जुआन छलौ। दुनू बेकती मिलि घर-अंगनासँ ल’ क’ खेती-पथारी धरि सम्हारैत छलौ। आब बूढ़ि भेलहुँ आब कोना गाय-बड़दक सेवा कैल हैत? जँ कहीं अनचोकमे लथारे मारि दिये वा हूरिपेटे दिये तखन ते हाथ-पैर तोड़ा घरमे कुहरैत रहब। तइसँ नीक जे ओकरा लग जेबे ने करी। भरि दिन बचेलालो इस्कूले आइ-पाइमे लगल रहै अए। पुतोहूओ जनि तेहेन घर स’ आइलि छथि जे गाय-बड़दसँ कहियो भेटे ने। घास-पात दुआरे खूँटा पर बड़द कलपै अए। ने एक मुट्ठी केयो घास देनिहार आ ने एक डोल पानि पिऔनिहार। कखनो एक मुट्ठी घास आगूमे फेकि देलियै तँ कखनो एक डोल पानि पिआ देलिऐ। एहिसँ गाय-बड़द कोना पोसल जायत? सुमित्रा सोचवो करैत आ आखिसँ नोरो टघरैत। दलानक आगूमे बचेलाल दतमैनो करैत आ टहलबो करैत। अछेलालकेँ घरमे चून नहि रहने, मुट्ठीमे तमाकुल नेने चून मंगै आयल। सुमित्राक आँखिसँ नोर टघरैत देखि बचेलाल पूछलकनि- ‘‘माए, कनै किऐ छैँ?’’
सुमित्रा किछु नहि उत्तर देलखिन। दुनू आखिक नोर’ आँचरसँ पोछि माय बचेलाल दिशि देखै लगली। हाथमे तमाकुल रखने अछेलालो चुपचाप ठाढ़। ने चून मंगैक साहस होइ आ ने किछु बजैत। सुमित्राक मलिन चेहरा देखि अछेलालोक आ बचेलालोक चेहरा मलिन हुअए लगल। त्रिकोण जेँका तीनू गोटे। कियो ने किछु बजैत। कने कालक उपरान्त मिड़मिड़ा क अछेलाल सुमित्रासँ पूछल- ‘‘एते सोगाइल किऐ छी भौजी? कथीक दुख मनमे अछि?’’
पुनः आँचरसँ नोर पोछैत सुमित्रा बाजलि- ‘‘एत्तै आउ। लगमे बैसू। कहै छी। बौआ (बचेलाल) तोँहू मुह-हाथ धोनो आवह?’’
बचेलाल मुह-हाथ धोए ले कल पर गेल। अछेलाल लगमे आबि सुमित्राकेँ कहलक- ‘‘चूनक दुआरे तमाकुलो ने खेलौ भौजी। मन चटपटाइ अए। पहिने कने चून आनि दिअ।’’
‘‘अच्छा बैसू। आंगना से नेने अबै छी।’’- सुमित्रा कहि आंगन विदा भेलि। डेढ़िये परसँ बचेलाल जोरसँ घरवालीकेँ चाह बनौने अबै ले कहलक। दू घुस्सा द’ अछेलाल तमाकुल चूना मुहमे लेलक। दुनू गोटेकेँ सुमित्रा कहै लगलखिन- ‘‘एक समैक बात छी। हमरा नैहरमे एकटा गौर (बाछी) बाबू देने रहथि। बड़ सुन्नर बाछी छलै। छह मास पोसलौ तखन पाल खेलक। ठीक नओ (270दिन) मास पूरिते बाछी तरे बिआइल। बड़ दूधगरि गाय भेल। दू सेर भिनसर आ डेढ़ सेर बेरु पहरके दूध हुअए। गाय तँ गाइये छल। जखन बेगरता हुअए तखन पा भरि आसेर दुहि ली। बड़ सहठुल छल। एगारह बिआन बिआइल। जहाँ तीनि मास बियेना होय कि पाल खा लिये। पाल खेला पर छह मास लागे। जखन तीनि मास बिआइ ले बाकी रहै छलै तखन अपने दुहब छोड़ि दइ छेलिये। जहिना नाम गाय तहिना सज्जनो। खाइयो पीबैमे कोनो चीज बगै नइ छले। लत्ती-कत्तीसँ ल’ क’ तीमन तरकारीक छाँट-छुट आगूमे दइते लप दे खा लैत। तीनि मास बियेना भेलै कि बड़ जोर दुखित पड़ल। गामक लोक सब जे-जे दवाई बतौलक सब केलियै मुदा दुख घटैक बदला बढ़िते गेलै। मनमे हुअए जे कोन जनममे पाप केलहुँ जे ऐहेन लागल फुलवाड़ी उजड़ि रहल अछि। दुनू परानीक आशा टूटि गेल। सोगे अन्नो-पानि नीकि नहि लागे। बच्चाकेँ देखि दयासँ हृदय पधिल गेल। गाय अपने दुखसँ तबाह ते बच्चाकेँ कोना लगमे जाइ दितै। जना बच्चा परसँ सुरता हटि गेलै। सिरियाक गाय विआइल रहै। ओकरेसँ पा भरि क’ दूध ली आ बच्चाकेँ खुरचनसँ पीआवी। मुदा पा भरि से बच्चाके की होइतै? फुलकी वला घास आ खिचड़ीक आदति धीरे-धीरे लगबै लगलौ। पड़ले-पड़ल गाय डिरियेबो करै आ चारु टाँगो पटकै। मनमे हुअए जे नैहरक गाय छी जँ मरि जायत तँ नैहराक लोक कहत जे धारबे ने करै छै। मुहसँ फुफड़ी उड़ै। हमरोसँ बेसी हुनके (पति) चिन्ता होइन। सोगे सदिखन चैकी पर पेटकानो लधने आ कुही भ’ भ’ कनबो करथि। बेर टगिते एकटा महात्मा (दाढ़ी-केश बढ़ौने) रस्ते-रस्ते कतौ जाइत रहथि। महात्माक नाम देवन छलनि। गाइक डिरियेनाइ सुनलखिन। थोड़ेखान रस्ता पर ठाढ़ भ’ हियासलनि। तखन ससरि क’ दुआर पर ऐला। मुड़ी गोति हम अथाह दुखमे डूबल रही। दुआर पर अबिते देवन निङहारि-निङहारि गाय क’ देखै लगलखिन। कने काल गुम्म भ’ पूछलनि- ‘‘कते दिनसँ गाय अस्सक अछि?’’
कपैत मनसँ कहलिएनि- ‘‘सात दिन से।’’
पुनः पूछलनि- ‘‘घरवाड़ी कहाँ छथि?’’
हाथक इशारासँ चैकी पर देखा देलिएनि। हाथेक इशारासँ ओहो हुनका लग अबै ले कहलखिन। लग अबिते मुस्कुराइत कहलखिन- ‘‘गाय मरत नै। दुनू बेक्ती मनसँ दुख हटाउ।’’
कहि अपना झोरासँ कथूक जड़ि निकलि द’ कहलखिन- ‘‘एकरा सिलौट पर खूब हलसँ पीसने आउ?’’
ओहि जड़ी क’ धोय, सिलौट परसँ पीसने एलौ। भरि गिलास पानिमे ओहि जड़ीकेँ घोड़ि गायके पीया देलखिन। तीनू गोटे गप्प-सप्प करै लगलौ। कनिये खानक बाद गाइक डिरिआइब बन्न भेलै। आखि उठा क’ गाय बच्चा दिशि तकलक। बच्चा पर नजरि पड़िते हुकड़ल। बच्चो बोली देलकै। बाछीकेँ खुजले छोड़ि देने रहियै। दौड़ि क’ बाछी गाय लग आबि ठाढ़ भ’ गेलै। चारु टाँग समेटि गाय ओरिया क बैसल। गरदनि उठौलक। उठल गरदनि देखि कतौ स’ परान आयल। मनमे खुशी भेल। अपने (पति) कहलनि- ‘‘गायक रोग छुटि रहल अछि। आब गाय बँचि जाइत।’’
एत्ते कहिते छलाह कि गाय उठि क’ ठाढ़ भ’ गेलि। मुदा चारु टाँग थरथरायते रहै। नेरु गायक थन दिशि बढ़ै लगल कि अपने डोरी गला देलथिन। घरसँ घास आनि हम आगूमे दलियै। गाय खाइ लागलि। हमर करेज चमकि उठल। जहिना जाड़क मासमे करिया पहाड़ पर ओस पसरल रहैत आ सुरुजक रोशनी पड़िते चानी जेँका चमकै लगैत, तहिना भेल। अपने देवनकेँ कहलखिन- ‘‘महात्माजी! अपने भोजन क’ लेल जाउ।’’
हँसैत देवन उत्तर देलकनि- ‘‘भोजन जरुर करब, मुदा एहि गायक दूधक खीर खायब। ताबत एक लोटा जल पिआ दिअ।’’
महात्माजीक बात सुनि दुनू परानीक मोन बिहुँसि उठल। घरक काते-काते जे घास रहै ओकरा नोचि-नोचि हम गायक आगूमे दियै लगलियै आ अपने बाँसक पत्ता तोड़ै गेलाह। आहूल भरि घास गायक आगूमे दियै आ ओ लप दे खा’ जायत। पँजरामे पँजरा जे सटल रहै से अलगै लगलै। इनारसँ पानि भरि अनलौ। आगूमे दइते बाल्टीओ भरि पी लेलक। फेरि एक बाल्टीन अनलौ, सेहो पी गेल। ताबे अपनो पात अनलनि। दुनू गोटे पात खोंटि-खेंटि दियै लगलियै। अधा बोझ पात खा गेल। तखन देवन कहलनि जे आब दुहि लीअ। थन लटकिकेँ ठेहुन लग चल आयल रहै। बच्चा क’ डोरी छिटिका देलियै। दौड़ि क’ बच्चा पीबै लगलै। अपने दुहै लगलथि। बाल्टीन भरि गेल। दूध देखि मनमे भेलि जे दुखीत गायक दूधो त’ दूषिते हेतै। मुदा देवन महात्माजी कहलनि जे दवायक गुण त’ सेहो दूध तक पहुँच गेल हेतै। तीनि दिनक भूखल दुनू परानी सेहो रही। जाबे गाय दुखित रहै ताबेतक भूखो ने बुझियै, मुदा अपनो भूख जगल। अपने भानस करै गेलहुँ आ ओ (पति) देवनसँ गप-सप करै लगलथि। सबटा दूधक खीर रन्हलौ। पहिने माहात्माजीकेँ खुआ अपने दुनू बेकती खेलौ। ओहि गाइक जरोह ई बड़द छी। जकर दशा देखि पैछला सब बात मन पड़ि गेलितेँ आँखिमे नोर आबि गेलि।’’
रुमा चाह नेने आइलि। सब क्यो चाह पीबै लगल। चाह पीबि अछेलाल तमाकू चुनवै लगल। तमाकुल चुना क’ खा सुमित्राकेँ पूछल- ‘‘तकर बाद की भेलै?’’
सुमित्रा बजलीह- ‘‘खेला-पीला बाद देवन विदा हुअए लगलाह। हम झोरा पकड़ि कहलिएनि कम स’ कम आइ भरि रहि जाउ। काल्हि चल जायब।’’ मानि गेला। खा-पीकेँ रातिमे ओ (देवन) अपन जिनगीक कथा कहै लगलथि। दुनू परानी सुनिनिहार रही आ ओ कहनिहार। कहै लगलथि- ‘‘जखन हम दशे वर्खक रही तखने माइओ आ बाबूओ दुखित पड़लथि। हम कमाई-खटाई जोकर नहि रही। हुनके (माए-बाबूजी) कमाईसँ घर चलैत छल। अनायास दुनू गोटे दुखित पड़ि गेलथि। खाइ ले घरमे किछु रहबे ने करै। एक तँ दुखसँ दुनू गोटे अब-तब करैत दोसर पेटमे अन्न नहि। सिर्फ पानिटा दिअनि। हमहू सदिखन लगेमे रहैत छलिएनि। हुनका सभकेँ छटपटाइत देखिएनि ते हमरो दुख हुअए। मुदा की करितहुँ? कोनो रस्ते ने सुझै। पाँचम दिन दुनू गोटे मरि गेला। जाबे दुखित रहथि ताबे समाजक क्यो ने अबैत छल आ ने किछु मदति करैत। मुदा जखन मरि गेला तखन जिज्ञासा करै किछु गोटा ऐला हमहू ककरो ने किछु कहलिऐक। मनमे आयल जे जई समाजमे क्यो ककरो देखैवला नहि आहि समाजमे रहिये के की करब? दुनू गोटे घरेक बिछान पर मुइला? हमरो हड़ल ने फूड़ल जते अंगनाक टाट-फड़क रहै सब के उजाड़ि घरमे द’ देलिए। मनमे आइल जे जरबैकाल नव-वस्त्र हेबाक चाही? मुदा सोचलौ जे जीबैत मे तँ दुनू गोटे फाटल-पुरान कपड़ा पहिरलथि मुदा जरै ले नव वस्त्रक कोन जरुरीछै? सब समान जमा क’ क’ घरमे आगि लगा देलियै। जखन आगि पजड़ल तखन अंगनामे एकटंगा द’ हाथ जोड़ि संकल्प केलहुँ जे अइ समाजमे नै रहब। जै समाजमे लोक अन्न बिना काहि कटैत, वस्त्र बिना नांगट रहैत, दवाई बिना रोगसँ मरैत ओहि समाजमे एको क्षण रहब कायरता छी। आंगनसँ विदा भ’ गेलौ। जाबे गामक सीमाक भीतर रही ताबे घुरि-घुरि पाछूओ ताकि आगि देखियै मुदा जखन गामक सीमान पर पहुँच गेलौ तखन तक घरो जरि चुकल छल। गामक सीमाने पर ठाढ़ भ’, दुनू हाथ जोड़ि, पाँच ठोप नोर चुवा, माय-बाबूकेँ सराध क’ विदा भ’ गेलौ। गामक सीमा टपिते मनमे हिलोर उठै लगल। एकटा फूलक गाछ, रासताक बामा भाग, देखलिएक। बड़ सुन्दर गाछ छलैक। निच्चोमे हरियर कचोर दूबि पसरल छलै। नीक जगह देखि ओहि गाछक निच्चामे वैसि गेलौ। मनमे भेल जे दुनू गोटे (माए-बावू) पछुऐने आवि, गाछ पर चढ़ि गेला। आखि उठा क’ उपर तकलौ। किछु ने देखलिऐक। एकटा भोम्हरा उड़ि-उड़ि फूलक रस पीबैत। सिहकी चलैत रहै। ओहि सिहकीक लहरिमे किछु आवाज होइत रहै। साकांछ भ’ कान पर हाथ द’ ओहि आवाजकेँ सुनै लगलौ। आवाज पिताक बुझि पड़ल। आवाज परेखि आरो ध्यानसँ सुनै लगलौ। बुझि पड़ल जे बावू किछु कहि रहल छथि। मुदा स्पष्ट बुझबे ने करियै। मने-मन कहलिएनि- ‘‘अपन पाँच बुन्न नोर चुबा हम अपन कर्तव्य पूरा क’ लेलौ। आव हम मुक्त छी। तखन अहाँ किऐक पछुऐने एलौ?’’
ई सुनि ओहो (पिता) कनैत-कलपैत स्वरमे कहै लगलथि- ‘‘बौआ, तोहर अवस्था दशे बर्खक छह तेँ तोहर कोनो दोख नहि। अखन तोँ खाइ-खेलाइ वला’ छह, कमाइ-खटाइबला नहि। तेँ तोहर कोन दोख। बड़ इच्छा छल जे बेटाकेँ पढ़ा-लिखा मनुख बनावी मुदा सब मनेमे रहि गेल। मुदा हमरो कोनो दोख नै अछि। जँ जीवैत रहितौ तखन ने, से त’ हमहू मरियेगेलौ। तोरा हम असिरवाद दइ छिअ जे जखन घर छोड़ि निकललह तँ दुनिया देखह। दुनियेमे सब कुछ छै। सदिखन मनुक्खक बीचमे रहिहह। मनुक्खेक बीचमे सरस्वती वास करैत छथि। ओहि बीच रहि तू पंडित भ’ जेबह। मुदा एकटा बात सदिखन मन रखिहह जे अपना मेहनतसँ जीवन-यापन करिहह। ककरो एको पाइक कर्जदार नहि बनिहह।’’
पिताक असिरवादसँ हमरा (देवन) नव ज्योति भेटल। नव शक्ति जगल। मनसँ चाउर-मड़ुआक भेद मेटा गेल। मेटा गेल गंगाजल आ डबरा पानिक भेद। मेटा गेल सजल-धजल फुलवाड़ीक फूलक सुगंध आ जंगलक अनेरुआ फूलक भेद। मेटा गेल उज्जर-कारी मनुक्खक भेद। नव उत्साह जगिते उठि क’ विदा भेलौ। विदा होइते माइक आवाज गाछ परसँ अबै लगल। रुकि क’ सुनै लगलौ। माए कहति रहथि जे बेटा, बड़ इच्छा छल जे भरल-पूरल परिवार देखब। मुदा सब मेटा गेल। जँ बेटा बनि जन्म भेल हेतह ते दुनिया देखबे करबह नहि तँ तोरा सन-सन बहुतो बौआइत-ढहनाइत मरैत अछि।’’ भूख स’ देह जरैत छल मुदा विवेक रुपी सारथी ओहि रुपे प्रेरित करैत छल जना नांगर घोड़ा रथ खिंचैत।’’
जाइत-जाइत एकटा गाम पहुँचलौ। जाड़क मास छलै। गामसँ हटल एकटा परिवार बाधमे। भिनसुरका समय सूर्य उगि गेल। ओहि परिवारमे दूटा बच्चा। दुनूूक उमेर पाँच बर्ख सात बर्ख। दुनू नंगटे। दुनू घरक पछुआरमे खढ़ बीछि-बीछि घूर लगवैत। हम रुकि गेलौ। मनमे आयल जे हमहू घूर लगवैमे बच्चाक संग दियै। हमहू नार-पात बीछै लगलौ। एकटा बच्चा अंगनासँ आगि अनलक। घूर सुनगेलौ। तीनू गोरे आगि तापै लगलौ। देह गरमाइल। कने कालक बाद ओहि बच्चाक माय छिपलीमे भात-तीमन लेने आबि आगूमे राखि देलकै। ओ औरत तीस-पैतीस बर्खक मुदा देखैमे अधबयसू बुझि पड़ैत। हमरा बैसल देखि ओ पूछलक- ‘‘बौआ, कोन गाम रहै छह?’’
हम कहलिऐ- ‘‘हमरा कोनो गाम नइ अछि। माए-बाप मरि गेलि। दुनिया देखै ले जाइ छी। जाबे तक जीवैत रहत ताबे तक चलिते रहब। मुदा बिना दुनिया देखने छोड़ब नहि।’’
हमरा देखि ओहि वेचारीकेँ दया लगलै। बच्चाक आगूक छिपली उठा अंगना गेलि। भाड़ामे जे भात-तीमन रहै काढ़ि क’ सब लेने आइलि। तीनू गोटे संगे-संग खेलौ। मुह-हाथ धोय पानि पीवि विदा हुअय लगलौ। तँ ओ औरत कहलक- ‘‘आइ नइ जो बौआ। जहिना दूटा बच्चा पोसै छी तहिना तोरो पोसबो। औरतक बात सुनि हम रुकि गेलौ।’’
बौआ (बचेलाल) भरि राति देवन अपन जिनगीक बात कहिते रहल आ हम दुनू परानी सुनिते रहलौ। आब बेरो बहुत भ’ गेल। काजो उदम बहुत अछि। फेरि कहियो अगिला बात कहबह।’’
जहिना निन्न टूटिते, सुतल आदमी विहान देखैत अछि तहिना अछेलाल आ बचेलालोकेँ भेल। दुनू गोटेक मुहसँ हँसी निकलै लगल। ओना दुनू गोटे आखि गड़ा सुमित्रे दिशि देखैत किन्तु हृदयमे हिलकोर उठै लगलै। जहिना भूमकमक समय पोखरिक पानि हिलकोर स’ किनछरिमे उपरो चढ़ैत आ पुनः टघरि अपना जगह पर चलि अबैत तहिना दुनू गोटेक मनमे हुअए लगल। अछेलाल सुमित्राकेँ कहलक- ‘‘भौजी! आइ घरि ऐहेन खिस्सा नहि सुनने छलौ। औझुका खिस्सा सुनला स’ बुझि पड़ै अए जेना तरको आखि खुजि गेल।’’
अछेलालकेँ सुमित्रा किछु कहै लगलखिन कि बिचहिमे पानि पीबै ले बड़द हुकरल। बड़दक हुकरव सुनि, बचेलालकेँ सुमित्रा कहलकखिन- ‘‘बौआ, बड़द पियासल छह। अंगनासँ बाल्टीन आनि पानि पीया दहक।’’
मायक बात सुनि बचेलाल आंगनसँ बाल्टी आनि, कल परसँ पानि आनि, बड़द क’ पीआबै लगल। सौँसे बाल्टी पानि बड़द पीबि गेल। पुनः दोसर बाल्टी पानि आनै ले बचेलाल कल दिशि बढ़ल। पानि पीया बचेलाल नादिमे कुट्टी लगौलक। नाइदमे कुट्टी परिते बड़द हपसि-हपसि खाय लगल जहिना भूखल आदमी नोनगर अनोन नहि बुझैत तहिना बड़दो क’ भेलै। बड़दकेँ खाइत देखि सुमित्राक मुहसँ हँसी निकलल। हँसैत सुमित्रा बचेलालकेँ कहलक- ‘‘बौआ, तोँहू जुआन छह आ घरोवाली जुआन छेथुन। मुदा....।’’
अकचकाइत बचेलाल पूछलक- ‘‘मुदा की?’’
सुमित्रा बाजलि- ‘‘मुदा यैह जे कनि॰ााँ जे छेथुन ओ मेहनतसँ हटल रहै चाहैत छथुन। सदिखन आरामे करब मनमे रहै छनि। पुरुष-नारीक जे वैवाहिक संबंध अछि, से नहि वुझैत छथुन। तोँहू अनका पढ़बै छह मुदा अपन बात वुझबे ने करै छहक। ऐहन बात हम एहि दुआरे कहि रहल छिअह जे आइ चालीस वर्खसँ हम एहि आंगनमे रहैत एलौ हेन। जहि रुपमे हमर जुआनी बीतल ओहिसँ बहुत दूर हटल कनियाँक छनि। हमरा खुशी होइ अए जे बेटाकेँ मास्टर बना ठाढ़ केलौ। तेँ अपन मेहनत क’ सार्थक बुझै छी। मुदा पुतोहू जनिक जे चालि-ढालि छनि ओहिसँ भोगी-विलाशीक परिवारक रुप-रेखा बनि रहल छह। मनुक्ख तँ भोगी नहि योगी होइत अछि। हम बूढ़ि भेलौ। कत्ते दिन जीवे करब। मुदा परिवार देखि अधमौगैत भ’ रहल अछि। जाबे आखि तकै छी ताबे घरक अधला कोना देखल जाइत? मुदा की करब? सदिखन रक्का-टोकी करब नीक हैत? तोँ असकरे कत्ते करबह। कोनो लोहाक मशीन तँ नहि छह। जते खेत एखन छह ततबे पहिनौ छेलह। जहिसँ परिवार नीक नहाँति चलै छेलह। परिवार स’ आगू बढ़ि दुनू बेकती समाजसँ जुड़ल छलौ। एखन दुख होइ अए जे बहुत निच्चा उतड़ि गेलौ मुदा तूँ दुनू परानी बुझै छहक जे आगू बढ़ि रहल छी। उन्नति भ’ रहल अछि। अखन घरक आमदनीक दूटा रास्ता भ’ गेल छह- एकटा नोकरी, दोसर खेती। मुदा घुसुकि रहलह हेन पाछू मुहे।’’
बिचहिमे बचेलाल बाजल- ‘‘माय, जते तू बुझै छीही तते हम थोड़े बुझै छियै?’’
मुस्कुराइत सुमित्रा उत्तर दैत कहै लगलखिन- ‘‘बौआ, आइ बुझि पड़ै अए जे तोहर नजरि बदलि रहलह हेन किऐक तँ जँ ई बात पहिने बुझितहक त’ सीखैक कोशिश करितहक। मुदा जखने जागी तखने परात। जिनगीमे सबसँ पहिने सबकेँ अपन सीमा-सरहद बुझक चाही। जा घरि अपन परिचय लोककेँ नइ हेतैक ताधरि गरथाहक जिनगीमे रहत। तोरा होइत हेतह जे हम बड़ गरीब छी वा बड़ धनीक छी, मुदा जखन अपनासँ आगू-पाछू देखवहक तँ वुझि पड़तह जे हमरोसँ बेसी धनिक लोक अछि आ गरीबो बेसी अछि। जना देखिते छहक, जतबो तोरा छह ततबो अछेलालकेँ नहि छैक। भरल पेट रहने मनक विचारो नीक होइत छैक। जबकि जरल पेटमे कोन आओत?’’
नमहर साँस छोडै़त बचेलाल बाजल- ‘‘हूँ-अ-अ।’’
‘‘हँ, ठिके बुझलहक। भूखल पेट मन क’ जरबैत छैक। जरल मनमे सिनेह कोना आओत? सिनेह तँ सिर्फ बजनहि वा उपदेश सुनने नहि आओत। जाधरि दुनूक बीच स्नेहक पुल नहि बनत ताधरि मनुख-मनुखक बीच द्वेष रहबे करतै।
जाधरि द्वेष रहतै ताधरि छल-प्रपंच, वेइमानी-शैतानी, मारि-मरौबलि कोना मेटाइत।’’
निरीह भ’ बचेलाल पूछलक- ‘‘तखन की करब? माय।’’
मुस्की दैत सुमित्रा बाजै लगली- ‘‘जहिना अछेलालक बेटा जनमै काल सेवा केलियै तहिना जिनगी भरि करबै। भगवान सबकेँ दूटा हाथ दूटा पाएर, साढ़े तीन हाथक देह आओर सबसँ पैघ सम्पति बुद्धिक खजाना सेहो देने छथिन। अपना ऐठाम सबसँ दुखद बात यैह अछि जे किछु गनल-गुथल लोक सम्पत्ति हथिया लेने अछि जहिसँ गरीबी एत्ते बढ़ि गेल अछि। कुम्हराक आबा जेँका गरीब लोक भूखक आगिमे जरि रहल अछि। जहिसँ दुनूक बीच बड़का पहाड़ ठाढ़ भ’ गेल अछि। वेचारा अछेलाल जेहने चीजसँ तेहने सवांगसँ आ तेहने बुद्धियोसँ पाछू पड़ि गेल अछि। अखन धरि बेचारा उजड़ल-उपटल घरमे रहलतेँ ज्ञान प्राप्त करैक अवसरे कहिया भेटिलै। देवनक देखओल रास्ता हम जनै छी। तेँ जहिना तोरा बेटा बुझै छिअ तहिना ओहूँ वेचराकेँ बुझै छी।’’
तारतम्य करैत बचेलाल पूछलक- ‘‘कोना अछेलाल काकाकेँ अपन समांग बनायब?’’
‘‘अखनेसँ खेत-पथार स’ ल’ क’ बड़दक सेवा करैक भार अछेलालकेँ द’ दहक। तू नोकरी करै छह मुदा खेती-पथारी तँ मरि गेल छह। अखन भार बुझि पड़तह, मुदा नहि! मनुक्खक भीतर जे सुतल शक्ति अछि ओकरा जगाबैक छह। जखने ओ जागि जायत तखने मनुक्ख अपन बदलल रुप देखै लगत। जे खेत परती अछि ओ सोना उपजै लगत। जहिसँ अपनो परिवारक आमदनी बढ़त आ ओहू वेचाराक परिवार हँसी खुशीसँ चलतै।’’
मायक बात सुनि बचेलाल अछेलालकेँ कहलक- ‘‘काका! आइसँ हमर अहाँक परिवार एक भ’ गेल। अखनेसँ खेत पथारक तरद्दुत शुरु क’ दिऔ। पाँच कट्ठा बाड़ी अछि, एहिमे, एक भागसँ घर बना लिअ आ बाकीमे उपजा हेतै। एक ठाम घर रहने चोरो-चहारसँ रक्षा हैत। बच्चा सबकेँ पढ़बै छी- जे एकटा ढेला छल आ एकटा पत्ता। दुनू जखन अपना जिनगी दिशि तकैत त’ ढेला क’ बुझि पड़ै जे बरखा हैत त’ गलिये जायब आ पत्ता क’ बुझि पड़ै जे हवा उठत त’ उधिआइये जायब। तेँ दुनूक जिनगी अनिश्चिते बुझि पड़ै। दुनू सोचलक जे अगर दोस्ती क’ लेब ते दुनूक जिनगी हँसैत-खेलैत चलैत रहत। दुनू दोस्ती क’ लेलक। जखन हवा उठै तखन ढेला पत्ता क’ दाबिक बचा लइ आ जखन पानि होय तखन पत्ता ढेलाकेँ झाँपि बचा लइ। तहिना त’ मनुक्खोक अछि।’’
बचेलालक बदलल बिचार सुनि गद्गद हृदयसँ अछेलाल कहलक- ‘‘बौआ! गरीबक हृदयमे छल-प्रपंच नइ होइ छै, आ ने मान-अपमान। क्यो जँ हमरा अपमाने करत त’ हम की ओकर क’ लेबै? हमरा की अछि जइसँ अपन मानक रक्षा करब। (सुमित्रा दिशि देखि) हमरो मनमे अछि भौजी जे जहिना अहाँ अपन बुझि बेटावला बनेलहुँ तहिना अहूँ क’ माय बुझि सेवा करब।’’
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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