भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Friday, January 01, 2010

'विदेह' ४९ म अंक ०१ जनबरी २०१० (वर्ष ३ मास २५ अंक ४९) PART VI

३. पद्य

३.१. कालीकांत झा "बुच" 1934-2009- आगाँ

३.२.१.लोकगीत संकलन– निशा प्रभा झा २. २.उमेश मंडल-लोकगीत संकलन

३.३.१. लक्ष्मण झा ‘सागर’-चुट्टीधारी २. विभूति आनन्द-एक- दू- तीन- चारि- पाँच- छओ- सात- आठ- नओटा- कविता ३. रमण कुमार सिंह ४. मायानाथ झा-मातृगिरा ५. विनीत उत्पल-समाज
३.४.१. जीवकान्तन-जन-जन याचक

३.५.१. रघुनाथ मुखिया-किछु पद्य २.सच्चिदानन्द सौरभ-किछु पद्य

३.६.१. ई वर्ष-अजित मिश्र २. नव वर्ष ३. शिव कुमार झा-किछु पद्य
३.७.१. अशोक दत्त-किछु कविता २. शीतल झा--किछु कविता ३. शंम्भु नाथ झा ‘वत्स’--किछु कविता

३.८.१.डॉ. योगानन्दत झा घर


स्व.कालीकान्त झा "बुच"
कालीकांत झा "बुच" 1934-2009
हिनक जन्म, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक कर्मभूमि समस्तीपुर जिलाक करियन ग्राममे1934 ई0 मे भेलनि । पिता स्व0 पंडित राजकिशोर झा गामक मध्य विद्यालयक
प्रथम प्रधानाध्यापक छलाह । माता स्व0 कला देवी गृहिणी छलीह । अंतरस्नातक समस्तीपुर काॅलेज,समस्तीपुरसँ कयलाक पश्चात बिहार सरकारक प्रखंडकर्मचारीक रूपमे सेवा प्रारंभकयलनि । बालहिं कालसँ कविता लेखनमे
विषेश रूचि छल । मैथिली पत्रिका- मिथिला मिहिर, माटि- पानि, भाखा तथा मैथिली अकादमी पटना द्वारा प्रकाशित पत्रिकामे समय - समयपर हिनक रचना प्रकाशित होइत रहलनि। जीवनक विविध विधाकेँ अपन कविता एवं गीत प्रस्तुत कयलनि । साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित मैथिली कथाक इतिहास (संपादकडाॅ0 बासुकीनाथ झा )मे हास्य कथाकारक सूची मे डाॅ0 विद्यापति झा हिनक रचना
‘‘धर्म शास्त्राचार्य"क उल्लेख कयलनि । मैथिली एकादमी पटना एवं मिथिला मिहिर द्वारा समय-समयपर हिनका प्रशंसा पत्र भेजल जाइत छल । श्रृंगार रस एवं हास्य रसक संग-संग विचारमूलक कविताक रचना सेहो कयलनि ।
डाॅ0 दुर्गानाथ झा श्रीश संकलित मैथिली साहित्यक इतिहासमे कविक रूपमे हिनक उल्लेख कएल गेल अछि |









!! सरस्वती वंदना !!

अधर हास करतल वर वीणा हंस वाहिनी परम प्रवीणा ।
श्वेत अंबरे परे शुद्धि दे, अपरे परमेश्वरि सुबुद्धि दे ।।

भावक सर विश्वासक शतदल,
पर पसरल श्रद्धास्पद परिमल,
हस्त स्फटिक माल मनोहर
सहज तपस्विनी आत्म शुद्धि दे
अपरे परमेश्वरि सुबुद्धि दे ।

आसीना कल्पना हंस पर
पद सौन्दर्यक पंक वंश पर
व्योम नायिके कथा गायिके
हरू हमरो कुण्ठाबरूद्धि हे
अपरे परमेश्वरि सुबुद्धि दे ।

सींचू ज्ञान कमंडल जल सॅ
पोंछू माॅ प्रेमक आंचल सॅ
उक्ति द्वार पर रसाहार
करबू त्यागू युग युगक क्रुद्धि हे
अपरे परमेश्वरि सुबुद्धि दे ।।



!! भदैया होली !!

डीहो धरि डूबल जखन बुर्ज बालुका पंक ।
रंग कोना पकड़त कहू तखन होलिका अंक ।।
असली होरी बाढ़ि विच माॅचल छल नैहऽर,
आङी डूबल घऽर मे, साड़ी भासल चऽर ।।
फगुओ सॅ भऽ गेल अछि, अधिक नीक भदवारि,
बूढ़ी पत्नी बेड़ पर कोरा मे नव सारि ।।
भौजी कहलनि हुलसि कऽ लाउ लगा दी रंग ।
तेवर तेसर नयन लग, पसरल अजर अनंग ।।
अपने छी परदेश मे हम छी बान्हे पऽर ।
यौवन खतरा बिन्दु लग, देह करय थर - थऽर ।।
प्रेमक जल नेपाल सॅ छूटल अछि चलि आउ ।
चैते मे डूबब पिया, शीघ्र नाव बनवाउ ।।
डिम-डिम ढ़ोलक ढ़ेंप सॅ छिटकल देहक पानि ।
उज्जर केश अबीर तर, बुढ़ियो भेलि जुआनि ।।
मंत्री उड़थि अकाश मे, पब्लिक गेल पताल ।
धरती पर नेता लोकनि कऽ रहला रंगताल ।।
सम्मत जहिना जड़ि रहल तहिना जड़ल करेज ।
दुहू जीव कछमछ करी पड़ल उपासक सेज ।।
भोजन पैकेट पानि मे, गूड़ चूड़ा सभ गूम ।
फाउन्टेन पेनक धार मे भासल बूट गहूम ।।
टूटल बलुआहा जखन खसला भीम उतान ।
अर्धांगिनीक चरण पकड़ि बचैलन्हि कहुना जान ।।





!! वनिवासक अंत !!

घुरल आव अवधक दिवस भाग जागल,
बुड़ल नाव देखू नदी कात लागल ।।
भरथि कान हनुमान संवाद अमरित,
भरत भऽ रहल छथि मगन मोन तिरपित,
विरागी हृदय भाव अनुराग जागल ।
बुड़ल नाव.................................. ।।

नगर आबि रहलनि लखन राम - सीता,
प्रजा कंठ गीता नृपकि प्राण प्रीता,
विगत कालरात्रिक पहर प्रीत जागल ।
बुड़ल नाव.................................. ।।

उठू तीनु जननी नयन नोर पोछू,
सुनू कैकेयी त्यागु परिताप सोचू,
उड़ल प्राण बहुरल पुनः गात लागल ।
बुड़ल नाव.................................. ।।

प्रमोदी चमन वर्ख - वर्खक सुखयल,
हुलसि आइ पनकल विहंसि कऽ फुलायल,
मृगक अक्षि अपलक विहग प्रेम पागल ।
बुड़ल नाव.................................. ।।





!! मिथिलाक दुःदशा !!

नकशा सॅ मिटा रहल मिथिला केर नाऊॅ गय ।
कतऽ हमर पीढ़ी अछि कतऽ हमर ठाॅऊ गय ।
भारत सॅ भिन्नो बऽ बनलै बंगाल देश,
मुदा अपन देशे मे दावल मिथिला प्रदेश,
राज्यक की बात कठिन पाॅचो टा गाऊॅं गय ।
कतऽ हमर ...................................................... ।।

हमर अमर षड़दर्शन हमर अचर साधु संत,
हमर अजर वन उपवन हमर अपन वर बसंत,
कवि कोकिल निकट काक करै काउॅ - काउॅ गय ।
कतऽ हमर ...................................................... ।।

लोकवेद जागि रहल ओंघायल नेता छथि,
अपने मे लड़ि - लड़ि कऽ घायल विजेता छथि,
पूछत के हाल दशा ककरा सुनाऊॅ गय ।
कतऽ हमर ...................................................... ।।

महिषी वा करियन हो, वाजितपुर मंगरौनी,
सरिसब सॅ चैमथ धरि बनला सभ क्यो मौनी,
देशक सभ सॅ दरिद्र मैथिल कहाॅऊ गय ।
कतऽ हमर ...................................................... ।।






!! माला !!

सुरभित अहॅक सिनेहक माला ।।
जनम - जनम जपि रहब विपटतर,
राखू बन्न अपन मधुशाला ।।
देवि, सुखक परबाहि न हमरा,
मिलनक अल्पो आहि न हमरा
हम नर दुःखकाटब धरती पर,
अपने बनलि रहू सुरवाला ।।
सुन्दरि अहाॅ अकाशी गंगा,
हम भूमिक प्यासल भिखमंगा ।
युग-युग बरू बौरायब मरू मे -
अइॅठायब नहि पावन प्याला ।।
सुरभित अहॅक सिनेहक माला ।।
नहि श्रृंगार रौद्र हुंकारे ।
हम एहि पार, अहाॅ ओहि पारे
दुहुक बीच कठोर कत्र्तव्यक -
भरल अथाह भयंकर नाला ।।
सुरभित अहॅक सिनेहक माला ।।





!! जागरण गान !!

असम, वंग पंजाब, गुजरात जागल ।
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल ।।
सुरूज त्यागि आयल निशा केॅ उषा मे,
खिड़ल जागरण ज्याति दऽशो दिशा मे ।
सगर श्रृंग - सागर धरिक निन्न जागल !
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल ।।
चिकरि हॅसि रहल स्यार सिंहक दशा पर ।
चलल बकगणक हंस पर क्रुर थापर ।
निठूर काक कर सॅ पिकक कंठ दागल,
अहीं टा पड़ल छी, उठू औ अभागल ।।
विदेहक सुतक देह दुवेहि बनल अछि ।
ग्रसित कऽ रहल मैथिली केॅ अनल अछि ।
परक लेल दर्शन अपन आॅखि लागल,
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल ।।
हरण भऽ रहल अछि हमर मीठ बयना ।
कोना कऽ सिखत आन बोली ई मयना ।
विवश अछि वधिक हाथ सॅ ठोर तागल ।
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल ।।
कतऽ पितृ स्वर अछि कतऽ मातृवाणी ।
फंटऽ जा रहल जीह बचबू भवानी ।
ब्नब गोड़ ई गुनि हमर प्राण पागल ।
टहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल ।।
बहुत भेल हे आब ककरो ने मानू !
निकसि द्वारि प्राचीन तरूआरि तानू ।
अहह जाहि मे युग युग मे जंग लागल,
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल ।।






!! मिथिलाक दुःदशा !!

नकशा सॅ मिटा रहल मिथिला केर नाऊॅ गय ।
कतऽ हमर पीढ़ी अछि कतऽ हमर ठाॅऊ गय ।
भारत सॅ भिन्नो बऽ बनलै बंगाल देश,
मुदा अपन देशे मे दावल मिथिला प्रदेश,
राज्यक की बात कठिन पाॅचो टा गाऊॅं गय ।
कतऽ हमर ...................................................... ।।

हमर अमर षड़दर्शन हमर अचर साधु संत,
हमर अजर वन उपवन हमर अपन वर बसंत,
कवि कोकिल निकट काक करै काउॅ - काउॅ गय ।
कतऽ हमर ...................................................... ।।

लोकवेद जागि रहल ओंघायल नेता छथि,
अपने मे लड़ि - लड़ि कऽ घायल विजेता छथि,
पूछत के हाल दशा ककरा सुनाऊॅ गय ।
कतऽ हमर ...................................................... ।।

महिषी वा करियन हो, वाजितपुर मंगरौनी,
सरिसब सॅ चैमथ धरि बनला सभ क्यो मौनी,
देशक सभ सॅ दरिद्र मैथिल कहाॅऊ गय ।
कतऽ हमर ...................................................... ।।






!! तोहर ठोर !!

कि जहिना कुरकुर पानक ठोर ।
कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर ।।
लगौलह बातक पाथर चून ।
सजौलह कऽथ कपोलक खून ।
कि रहलह एक्के बातक चूक,
कतऽ छह प्रेमक पुंगी टूक ?
कि जहिना लाली पसरल भोर ।
कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर ।।
देखि कऽ लहरल हमर करेज,
त्यागि अयलहुॅ उदयाचल गेह ।
अहाॅ बिनु व्याकुल वाटक माॅझ ,
सुमुखि भऽ रहल जीवनक साॅझ ।
कि जहिना वक्र सुधाकर गोर ।
कि जहिना सुन्नरि तोहर ठोर ।।
पिपासित आयब अहॅक दुआरि,
प्रेम पीयूष पीयब झटढ़ारि,
बधिक जॅ बनत अहॅक बर बाहु
तऽ हमहूॅ बनव विखंडित राहु,
कि जहिना सुधा स्वर्ग मे थोर,
कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर ।।
सीखि विश्वकर्मा सॅ विज्ञान,
बनायब सकरी मिल महान ।
भरब माधुर्यक कोषागार,
सेहंतित भऽ जायत संसार ।
जेना कुसियारक पाकल पोर,
कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर ।।
बनव हम पुर्नजन्म मे धान,
धान सॅ भऽ जायब चिष्टान्न ।
पड़ब पुनि अहॅक प्रतीक्षापात
अछिंजल सॅ सद्यः स्नात ।
जेना छाल्ही साजल नव खोर ।
कि तहिना सुन्दरि तोहर ठोर ।।
भऽ रहल वर्ण - वर्ण निःशेष,
शब्द सॅ प्रगटल नहि उद्य़ेश्य ।
मने मे रहल मनक सब बात
अनल मे पड़ल नवला जल गात ।
जेना आगू अलभ्य चित चोर ।
कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर ।।
स्वः काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘



!! नचारी !!

गाबैत चलल छी बमबम,
नाचैत चलल छी छमछम
लगबैत ताल दुलकल डेगक
सजवैत स्वरक नव सरगम ।।
काॅवरि मे आबह गंगे
तोॅ लागह हमरा संगे
लऽ चलह जतऽ कैलाशी

छथि चिता भूमि सन्यासी,
हे करूणामयि दुख भंगे,
देखबैत चलह पथ हर दम ...... ।।
प्रेमक मस्ती मे भासल
शंकर छथि परम पियासल
श्रद्धा केर धार बहाबह
विश्वाक पात्र बनावह
बौरहबा अधिक उपसाल
हुनका संतुष्ट करब हम .... ।।
कंठे मे पचल हलाहल
छाती पर काली बान्हल
पदतल तर विश्वक वैभव
ई महिमा हमरो जानल
छथि आशुतोष ओंघायल
तेॅ डमरू बजबह हरदम ..... ।।
मानल हम शरणागत छी,
तैयो तेॅ अभ्यागत छी
स्वागत कऽ दहक यथोचित
साधक छह चरण समर्पित
अपने कंजूस कहयबह
करूणा करबह जॅ कमसम ।।

!! सुनू आब मन जेहन लगैए !!

सुनू आब मन जेहन लगैए -
जिन्दाबाद रहय गयघट्टा,
रानी परती मुरली छौनी,
कछमछ कऽ कऽ राति बितावी,
बान्हि धोधि पर दनही तौनी,
धन्य हऽम छी फल्लाॅ बाबू जजिमनिके मे क्षुधा जगैए ।
सुनू आब मन जेहन लगैए ।।

अपना घर मे रखने नहि छी,
कप्प गिलासक फूटलो टुकड़ी,
बहराइछ पावनि तिहार मे
मोरा मूनल गूड़क चुकड़ी
धन्य - धन्य छथि मास्टर साहेब जेॅ ओ छथि तेॅ चाह चलैए ।
सुनू आब मन जेहन लगैए ।।

मूड़क नहि परवाहि रहल अछि,
शूलि उठय सूदिक कपचन मे
पाइ पाइ केॅ जोड़ि आइ धरि
सेठ कहयलहुॅएहि जीवन मे
धन्य हऽम छी फल्लां बाबू ओहो धन्य नोत जे दैए ।
सुनू आब मन जेहन लगैए ।।

बाहर सॅ जेहने बलबुतगर,
भीतर सॅ तेहने पनिमऽरू,
सज्जन हम जेहने दलानपर
आंगन मे तेहने दुरजऽरू
धन्य हऽम छी फल्लां बाबू बाढ़निये सॅ देह झरैए ।
सुनू आब मन जेहन लगैए ।।

नोन मात्र कीनी दोकान मे
स्ेहो जजिमानी ढ़ेबुआ सॅ
मोन पड़य नहि किनने होयब,
हम देहक सूतो देबुआ सॅ
धन्य हऽम छी फल्लां बाबू खर्च देखिकऽ मांस गलैए ।
सुनू आब मन जेहन लगैए ।।

समधिक हाथे देल गेल छल,
हमरो आदर्शक गरदनिया
बेटा मंगनी बिका गेल हम
बनि कऽ रहलहुॅ बुरबक बनियाॅ
धन्य हऽम छी फल्लां बाबू अखनो रहि - रहि चोन्ह अबैए ।
सुनू आब मन जेहन लगैए ।।




!! गहवर जननी केर !!

चमकि रहल चकमक औ, गहबर जननी केर ।
देखिते टूटल भक औ गहवर जननी केर ।।
गुंबज गगन दिशा देवाल अछि,
पंडा बनि कऽ ठाढ़ काल अछि
चान सुरूज दीपक औ गहवर जननी केर ।।
पदतल पर स्वयं शिव शंकर
नारायण सूतल सुअंक पर
विधि व्याकुल ठकमक औ गहवर जननी केर ।।
गगनक गंगा चन्द्रकूप अछि
उषा किरण ओढ़ुल अनूप अछि
सकल भुवन पूजक औ गहवर जननी केर ।।
टप - टप सुधा चरण सॅ चूबय
वरद हस्त सुत मस्तक छूबय
फलप्रसाद परिपक औ गहवर जननी केर ।।


१.लोकगीत संकलन– निशा प्रभा झा २. २.उमेश मंडल-लोकगीत संकलन





१.लोकगीत संकलन– निशा प्रभा झा छठिक गीत

1.
हाथ सटकुनिया हो दीनानाथ
हे घूमई छी संगहि संग
आजु दिन उगई छी हे दीनानाथ
आहे भेर भिनसर ॥2॥
आजु के दिनमा हो दीनानाथ
हे लागल एतीबेर ॥2॥
बाट धेने जाई छही हे अबला
एक त अन्हरा पुरूख ॥2॥
कानि–कानि कहई छही गे अबला
हे लागल एतीबेर ॥2॥
बाट धेने जाई छही हे अबला
एक तऽ बाझिनियॉ ॥2॥
पुत्र कनई छऊ गे अबला
हे लागल एतीबेर ॥2॥
बाट धेने जाई छै गे अबला
एकटा कोरिया पुरूख ॥2॥
कानि–कानि कहै छही गे अबला
हे लागल एतीबेर ॥2॥

2.
माँ छठि मईया हे सुनु ने अरजिया हमार।
जखन छठि मईया घर सऽ बहार भेली
माँ छठि मईया कोढ़िया छथि काया लेल ठाढ।
माँ छठि हे सुनु ने अरजिया हमार।
जखन छठि मईया घर सऽ बहार भेली
माँ छठि मईया हे अन्हरा छथि नयना लय ठाढ
माँ छठि मईया हे सुनु ने अरजिया हमार।
जखन छठि मईया दरबज्जा सऽ बहार भेली
माँ छठि मईया हे बाँझिन छथि पुत्र लय ठाढ
माँ छठि मईया हे सुनु ने अरजिया हमार।
जखन छठि मईया गाम सऽ बहार भेली
माँ छठि मईया हे निर्धन छथि धन लय ठाढ
माँ छठि मईया हे सुनु ने अरजिया हमार।

3.
कल जोड़ी ठाढ़ भेली पोखरी केऽ कात हे
शिव के दुआरी हे, दीनानाथ निर्मल धार हे।
अरघ उठैबे दीनानाथ अंकुरी हजार हे
शिव केऽ दुआरी हे, दीनानाथ निर्मल धार हे।
दूध चढ़ैबे दीनानाथ केराक घउड़ हे।
शिव केऽ दुआरी हे, दीनानाथ निर्मल धार हे।
हाथी बैसायब दीनानाथ अच्छत पान हे
शिव केऽ दुआरी हे, दीनानाथ निर्मल धार हे।
दीप जरायब दीनानाथ धूप–गुगुल संग हे
शिव केऽ दुआरी हे, दीनानाथ निर्मल धार हे।
नहाय–सोनाए दीनानाथ पोखरी के कात हे
शिव केऽ दुआरी हे, दीनानाथ निर्मल धार हे।
कल जोड़ी ठाढ़ भेली पोखरी के कात हे
शिव केऽ दुआरी हे, दीनानाथ निर्मल धार हे।


संकलन–निशा प्रभा झाक गौरीक गीत।

1.
गेन्दा तोहर बड़ लाल गे मलिनिया ॥2॥
गेन्दा तोहर बड़ लाल।
तीन सिन्दुर लय गौरी हम पूजब, पीपा आ भटिया अचीन गे।
गेन्दा तोहर बड़ लाल गे मलिनिया ॥2॥
तीन फूल लय गौरी हम पूजब, चम्पा अड़हुल गुलाब गे।
गेन्दा तोहर बड़ लाल गे मलिनिया ॥2॥
तीन फल लय गौरी हम पूजब केरा पेड़ा अनार गे।
गेन्दा तोहर बड़ लाल गे मलिनिया ॥2॥
तीन वस्त्र लय गौरी हम पूजब लाल पीयर पीताम्बर गे।
गेन्दा तोहर बड़ लाल गे मलिनिया ॥2॥
तीन जल लय गौरी हम पूजब गंगा यमुना सरयुग गे।
गेन्दा तोहर बड़ लाल गे मलिनिया ॥2॥

2.
चलु गे सुन्दरि गौरी पूजय लय नटुआ नचायब आजु गे।
नटुआ जे नाचत बजना जे बाजत देखत नगरक लोक हे।
तीन सिन्दुर लय गौरी पूजब, मटिया आ पीपा अचीन गे,
चलु गे सुन्दरि गौरी पूजब लय नटुआ नचाओत आजु गे।
तीन फूल लय गौरी हम पूजब,बेली,चमेली अड़हुल गे,
चलु गे सुन्दरि गौरी पूजब लय नटुआ नचाओत आजु गे।
तीन वस्त्र लय गौरी हम पूजब पीयर,पीला,पीताम्बर पटोर गे,
चलु गे सुन्दरि गौरी पूजब लय नटुआ नचाओत आजु गे।
तीन जल लय गौरी हम पूजब, गंगा यमुना सरयुग गे,
चलु गे सुन्दरि गौरी पूजब लय नटुआ नचाओत आजु गे।
तीन नेवैद्ध लय गौरी हम पूजब, केरा पेड़ा नारियल गे,
चलु गे सुन्दरि गौरी पूजब लय नटुआ नचाओत आजु गे।
नटुआ जे नाचत बजना जे बाजत, देखत नगरक लोक हे।
चलु गे सुन्दरि गौरी पूजब लय नटुआ नचाओत आजु गे।

संकलन–निशा प्रभा झाक फूल छिटबाक गीत

1.
फूल छीटय मे लागे सोहाओन, सिया जी के कोबर मे
कथी मे लोढ़ब हे, बेली–चमेली, कथी मे लोढ़ब गुलाब
सिया जी के कोबर मे।
डाली मे लोढ़ब हे, बेली–चमेली, फुलडाली मे लोढ़ब गुलाब
सिया जी के कोबर मे।
किनका चढ़ायब हे, बेली–चमेली किनका चढ़ायब गुलाब
सिया जी के कोबर मे।
शिव जी चढ़ायब हे, बेली–चमेली, गौरी चढ़ायब गुलाब
सिया जी के कोबर मे।
किनका सँ माँगब हे,अनधन लक्ष्मी, किनका सँ माँगब सोहाग
सिया जी के कोबर मे।
शिव जी सँ माँगब हे, अनधन लक्ष्मी, गौरी सँ माँगब सोहाग
सिया जी के कोबर मे।
फूल छीटय मे लागे सोहाओन, सिया जी के कोबर मे।

2. भोला शंकर पार्वती (नचारी)
भोला शंकर पार्वती
जगपालक जगदीश्वर ईश्वर हमर अहाँ सुधि ली
भोला शंकर पार्वती।
दुःख जनम भरि भोगल बाबा, की अनाथ हम छी।
कार्तिक, गणपतिसन हम नहि छी, छी अपराधी
भोला शंकर पार्वती।
उतरब पार अहीं बल बाबा अढ़रन ढ़रन अहीं
भष्म विभूत कंठ विषधारी तांडव तान करी।
भोला शंकर पार्वती।
मुंडमाल सर्पक संग सभ दिन गंगा–चन्द्रधरी,
पूरत आस मनोरथ बाबा गौरी के नगरी।
भोला शंकर पार्वती।



२.उमेश मंडल-लोकगीत संकलन


कोबरक गीत
कोबर लिखय गेलि रानी कौषिल्या, चारु कात लिखल मयूर।
ताहि कोबर सुतला फल्लाँ दुलहा, संग लागि सीता सुकुमारि।
मुह उधारि सुन्दरि के पुछलनि कोन कोन अभरन हे।
हाथ कंगना अपन बाबा देलनि, सिकरी लखन देओर हे।
सिरक सिन्दुर प्रभु अहीं जे देलहु यैह तीन अभरन भेटल हे।
कोबर नीपक गीत
देखू देखू हे सखि सीता आइ रुसि रहली।
आधा निपलनि कोबर आधा छोड़ि बैसली।
सीताक बापके बजाउ ओ भाय के बजाउ।
की की सीता के सिखाय कइलनि विदा।
सुनि सासु कौषिल्या मोहर लेलनि हाथ।
कंगना गढ़ायब टीका गढ़ायब सिया किय रुसली।

कन्या पक्ष तुलासी
गौड़ीक गीत
फूल लोढ़य गेलि गौरी माली फुलबाड़ी
बसहा चढ़ल षिव आइ गे माइ।
लोढ़ल फूल षिव देलनि छिरिआइ।
कनैत खीजैत गौरी अम्मा लग ठाढ़ि।
के तोरा मारलक के पढ़ल तोरा गारि।
हम नहि कहब अम्मा कहितहुँ लाज।
पूछू गय सखि सभके कहत बुझाय।
महेषवाणी
हम नहि आजु रहब एहि आंगन, जौं वूढ़ होयत जमाय गे माई।
एक त बैरिन भेल विधि विधाता, दोसर धिया के बाप गे माई।
तेसर बैटी भेला नारद ब्राह्मण, हेरि लयला बूढ़ जमाय गे माई।
धोती लोटा पोथी पतरा, सेहो सब लेबनि छिनाय गे माई।
जौं किछु बजता नारद ब्राह्मण, दाढ़ी धऽ देबनि धिसिआइ गेमाइ।
अरिपन लेपलनि पुरहर फोरलनि, फेकलनि चैमुख दीप गे माई।
धिया लऽ मनाइनि मन्दिर पैसलीह, केओ जुनि गाबथि गीत गे माई।
भनहि विद्यापति सुनु ए मनाइनि, इहो थिक त्रिभुवन नाथ गे माई।
शुश्षुभ कऽ षिव गौरी विवाहू, इहो वर लिखल ललाट गे माई।
समदाउन
बारह बरस केर छल उमिरिया तेरहम बरस ससुरारि।
कौने निरमोहिया दिनमा पठाओल कोन निरमोही मानि लेल।
कौने निरमोहिया डोलिया पठौलक कौने निरमोही नेने जाय।
ससुर निरमोहिया दिनमा पठौलक बाबा निरमोही मानि लेल।
भैया निरमोहिया डोली पठौलकइ स्वामी निरमोही नेने जाय।
कथी देखि धैरज धरबह हे सखिया कथि देखि रहब लोभाय।
घरभरीक गीत
माय मनाइनि पान लगाबथि सब मिलि कयल ओरियान।
आइ थिकनि घरभरी सखि हे धिया जमैया मोर जाय।
धान पान देल हाथहिँ सखि हेे दुनु मिलि देल छिड़िआय।
भनहि विद्यापति गाओल सखि हे सब बेटी सासुर जाय।
अवसर विषेष वा समसामयिक
पावस
नव घन गरजत माला।
एक सघन तिपिराछन रजनी कूजित दुतिय मराला।
तेहर सेज सुनि लखि पहु बिनु उठल अन्तर ज्वाला।
रहिश्रहि चहुदिषि चपला चमकत विहरिनि जन जिमि भाला।
खेपब राति कौन विधि सखि हे चिन्ता हृदय विषाला
हे जलधर अहाँ जाउ ततय झट जहाँ बसथि नन्दलाल।
करबनि विनय चरण धय लबि कऽ आबथु शीघ्र कृपाला
जौं झट दऽ मोहन नहि औता करता निमिप अभेला।
तौं ब्रज मे एको नहि जीउति विरहिनि सब व्रजवाला।
कजरी
सखी हे पिया नहि घर अयला, मेघवा वरिसन लागे ना।
जौं हम जनितौं पिया नहि औंता रखितहुँ हृदय लगाय।
हमरा सँ की त्रुटि भेल सखि हे आइधरि नहि आय।
जौं जनितौ पिया ऐहन करता दितियनि नहि हम जाय।
सखी हे पिया नहि घर अयला।
(2)
सखिया सावन ने डर लागै जियरा धड़श्धड़ धड़कै ना।
ष्याम घटा चहुँ ओर देखायत बिजुरी चमकै ना।
पिया मोर परदेष गेला सुन सेजबा न भावै ना।
झींगुर दादुर मोर पपिहरा कोइली कुहकै ना।
सखिया सावन मे डर लागै ना।
उदासी तिरहुत
मधुपुर गेल मनमोहन रे मोर बिहरत छाती।
गोपी सकंल बिसललनि रे जते छल अहिबाती।
सुतलि छलहुँ अपन गृह रे निन्न गेलौ सपनाइ
कर स छूटल परसमनि रे के लेल अपनाई
कत सुमिरब कत झाँखब रे हम मरब गरानी।
आनक धन लय धनबन्ती रे, कुबजा भेलि रानीश्तिरहुत।
(2)
जखन चलल हरि मधुपुर रे सब सुरति निहारि।
आब कोना रहब हरि बिनु रे झाँखथि ब्रजनारी।
वन मे डोलय पिपर पात रे बहय सेमरि।
हम धनि डोलिय पिया बिनु रे बिनु पुरुषक नारी।
केहन कर्म विधि लिखलनि रे झाँखथि वृजनारि।
हरि बिनु भूषण भार भेल रे पलंगा ने सोहाई।
(3)
एते दिन भ्रमर हमर छल सखि हे,
आब गेल सारंग देष।
मधुपीबि भ्रमर लोभित भेल सखि हे।
मोहि किछु कहियो ने गेल।
ककराश्ककरा कहब, अपन दुख सखि हे,
नयन निन दुरि गेल।
जे बिरहे हम व्याकुल सखि हे
भ्रमर हमर रुसि गेल।
आंगन मोर लिये बिजुवन सखि हे,
घर भेल दिवस अन्हार।
पुरुषक वचन ऐहन थिक सखि हे,
सपतक नहि विसवास।


अवसर विषेषक गीत
मलार
(1)
अलि रे प्रीतम बड़ निरमोहिया।
आतुर वचन हमर नहि मानय, परम विषम भेल रतिया।
काँपत देह घाम घमि आबत, ससरि खसत नव सरिया।
आवत वचन थीर नहि आनन, बहत नीर दुहू अँखिया।
रमानन्द भामिनि रहु थीर भय सुख बिच कहु दुख बतिया।
(2)
हे उधो लिखब कोन विधि पाती।
अंचल पत्र नयन जल कज्जल नख लिखि नहि थीर छाती।
चन्द्र किरण बध करत एतए पिय ओतए रहू दिनश्राती।
रेषम वसन कनक तन भूषण तेसर पवन जीव घाती।
कहथि रमानन्द सुनू विरहिनि आओत श्याम विरहाती।
(3)
अलि रे हम रघुवर संग जायब
भूखल पायब भोजन करायब निर्मल जल पियेबै।
थाकल पायब चरण दबायब शीतल बेनिया डोलेबै।
औंघैल पायब वन पत्र लायब तहि पर आँचर ओछेबै
तुलसीदास प्रभु तुम्हरे दरस को रघुवर चरण लेपटेबै।

योग (1)
भात खेआय मन मारलन्हि हे अपन सासु हे।
जाय ने देथि अपन देष हे अपन सासु हे।
अम्मा होयती बाट देखैत करवन बाबू औताह हे।
पान खेआय मति मारलन्हि हे सरहोजिनि अपन हे।
जाय न देथि निज देष बुझाय रखतीह हे।
कर जोरि विनती करै छी सुनू रघनन्दन।
बान्हत अहाँ के प्रेम अहाँ अपने छी जगवन्दन।
(2)
प्रिय पाहुन मन सँ जिमि लिअ।
अपने योग बनल अछि किछु नहि सेहो मनहि विचारि लिय।
बुझब तखन हम जौं किछु माँगव और दिअ।
भावक भुखल स्वभाव अहाँ के तेँ हम सब हरसाइत छी।
भनहि विद्यापति इहो मंगल मिथिला विधि जानि लिअ।
(3)
हमर अपन करिये छथि पाहुन ताहि सँ मतलब अनका की।
अपन बल पर अपन खुषी थिक ताहि मे कानून जहाने की।
अपन बहिनि यदि फेकिये देता ताइ सँ मतलब अनका की।
साठि हतार जनभूलखिन पुरखिन तकर करै छी निन्दा की।
प्रसव कास मे दषा जे भेलनि ताहि सँ मतलब अनका की।
गटश्गट गारि सुनै छथि लालन मगर मरम्मति करताकी।
स्नेहलता मुसकाथि लजाइत उचित बात मे बजता की।
उचिति(1)
श्यामा वरन श्री राम हे सखि! देखैत मुख अभिराम।
आइ हमर विध बाम हे सखि! मोहि तेजि पहु गेल आन।
पढ़ल पंडित भान हे सखि! पहुक नहि करि अपमान।
भनहि ‘विद्यापति’ भान हे! स्ुापुरुष गुणक निधान।
(2)
श्याम गोकुल तेजि गेल रे, हमर कोन दोख भेल रे।
हमरा सँ नित अपराध रे, तोहे प्रभु गुणक अगाध रे।
कत गुणकरब बखान रे, जग भरि के नहि जान रे।
भनहि ‘विद्यापति’ भान रे, सुपुरुष गुणक खान रे।
(3)
जओं करु सुजन सिनेह रे, उपला पाहुन नेह रे।
हेमकर मण्डप हेम रे, चाानन वन कत नीम रे।
हिंगु हरदि कत बीच रे, गुनहि चिन्हल ऊँच नीच रे।
मणि कादब लेपटाय रे, तैओ ने तनिक गुण जाय रे।
अलि के कुसुम अनेक रे, मालति के अलि एक रे।
काक कोइलि एक कांति रे, भेम्ह भ्रमर दुई भाँति रे।
कह ‘बादरि’ अवधारि रे, सुपुरुष जन दुइ चारि रे।






बारहमासा (1)
चैत हे सखि मत्तकोकिल कुहुकि काम जगाव यो।
कठिन श्याम कठोेर मानस ऋृतु बसन्त विदेष यो।
बैषाख हे सखि देखि उपवन ललित कुसुम विकास यो।
देखि निज कुच कुसुम मौलल रहत चित्त न थीर यो।
जेठ हे सखि तेल चन्दन पंक लेप शरीर यो।
बिन नाथ चन्दन शीतलादिक धघकि जारत देह यो।
आषाढ़ हे सखि झमकि झमकत नीर बिजुरी जोर यो।
देखि काँपत देह थर नयन धारा नोर यो।
आयल साओन मेघ बरिसत घुमुड़ि घोर समीर यो।
सुमरि यौवन उमड़ि आबत प्राणमति नहि पास यो।
भादब जलधर धड़कि ठनकत खसल चैकि अचेत यो।
काहि कहु अब श्याम बिनु सखि जात जीवन मोर यो।
आस आसिन अन्त कय सखि बैसल कंत दुंरंग यो।
शरद चन्द्रक चाँदनी देखि चित्त चंचल मोर यो।
देखि कातिक नारि एकसरि तानि शर रतिनाथ यो।
करत आंकुल जीव छनश्छन कठिन कन्त न बूझ यो।
लबिजात धान समान अगहन कमल सन कुच मोर यो।
झट नाथ-नाथ पुकार कय सखि पड़ल सेज अचेत यो।
पूस ओस बेहोष भय सखि खसत प्रीतम पास यो।
हम अकेलि सून पहु बिन काटब कोन विधि राति यो।
माघहे सखि जाड़ लागत जुलुम करि गेल कंत यो।
अंगअंग अनंग ज्वाला ताप तापित देह यो।
रमानन्द रहु धीर कामिनि धीर धय मन मारि यो।
आओत फागुन मिलत बालम खेलत हुनि संग फागु यो।
(2)
कहत मैना सुनू यो मुनि जन गौरी कोना रहत कुमारि यो।
गौरी जोग बर खोजि आनू चढ़ल मास बैसाख यो।
जेठ नारद फिरति चहु दिषि जोहल भंगिया भिखारि यो।
कहथि नारद सुनहु त्रिभुवनपति चलह व्याहन आज यो।
अखाढ़ हेमन्त घर बरियात लायल देखल सकल समाज यो।
काज राज सब छोड़ि सखिसब देखु हर बरियात यो।
सावन वर बौराह आयल बसहा पीठ असवार यो।
एहन उमत वर हेमन्त लायल पैर फाटल बेमाय यो।
भादब मैना भेलि व्याकुल धुनथि माथ कपार यो।
घटक के हम की बिगाड़ल की विधि लिखल लिलाट यो।
आसिन मैना गेलि अंगना मन दुख अगम अपार यो।
आब हम विष घोरि पीअब मरब जल बिच जाय यो।
कातिक शंकर भस्म तेजल कयल गंगा स्नान यो।
रगड़ि चानन अंग लेपल भेल सुन्दर रुप यो।
अगहन मैना भेलि हरसित लावथि गाइनि बजाय यो।
चलह सखि सब गीत गाबह त्रिभुवनाथ जमाय यो।
पूस सखि सब छोड़ि बैसलि देखथि रुप अनूप यो।
चलह सखि सब करह मौहक देखि नैन जुड़य यो।
माघ शंकर भेल व्याकुल जोहथि आक धथुर यो।
एहन उमत वर हेमन्त लायल भाँग हुनक अधार यो।
फागुन षिव सँ कहथि गौरी सुनू षिव अरजी हमार यो।
एक बेरि भस्म उतारु शंकर देखत हेमन्तक समाज यो।
चैत मैना भेलि हरसित पूरल मनक अभिलाष यो।
भनहि विद्यापति ई पद गाओल मिलल त्रिभुवन नाथ यो।
(3)
अगहन सीता के विवाह, पूस कोवर तैयार।
माघ सीरक भराय देव रधुवर जी के।
फागुन फगुआ खेलायब, चैत फूल लोढ़ि लायब,
बैषाख बेनिया डोलायब रधुवर जी के।
जेठ घाम परे भारी, आषाढ़ वुन्द झरे सारी,
सावन झूलबा लगा दे, रधुवर जी के।
भादव राति अन्हार, आसिन करब सिंगार
कातिक आवि गेल मिथिला रधुवर जी के।
(4)
कातिक अयले कलकतिया जोहन बटिया।
अगहन चुड़वा कुटायब पूस दही पौरायब।
फागुन फगुआ खेलायब चैत फूल लोढ़ि लायब।
बैषाख बेनिया डोलायब जोहन बटिया।
जेठ हेठ भऽ गमायब अषाढ़ घर चल जायब।
सावन दुनु मिलि खेलब जोहन बटिया।
भादब नहि घहराय आसिन आस लगायब।
कातिक ऐलै कलकंतिया जोहन बटिया।
छौमासा(1)
साओन सर्व सोहाओन सखि हे फुलल बेलि चमेलि यो।
रभसि सौरभ भ्रमर भ्रमि भ्रमि करय मधुरस केलि यो।
आरे केलि करथु पहु मन दय
सखि अधिक विरह मन उपजय।
भादव घन घहराय दामिनि गरजि गरजि सुनाय यो।
बरसु घन झहर बून्द रिमिझिमि मोहि किछु नहि भाय यो।
आरे भामिनि भय घन दमसय
सखि मुरुछि खसु महिमय।
परिणाम कोन उपाय हे सखि करब कोन परकार यो।
मास आसिन अधिक ज्वाला विरह दुख अपार यो।
आरे कतेक सहब दुख पहु बिनु
सखि ककरो नाह बिछड़ि जनु।
नाह विछुड़ल मोर हे सखि होयत जीवक अन्त यो।
अरुण कातिक धसिय धायब जतय लुबधल कंत यो।
आरे कंत जोहय हम जायब
सखि जतय उदेष हम पायब।
अगहन हे सखि सारि लुबधल लबल जीवन मोर यो।
योगिनि भय हम जगत जोहब जतय जुगल किषोर यो।
आरे हमर प्रभु जौं अहोताह
सखि कर गहि कंठ लगोताह।
पूस धैरज धरय चाहिए भमर रहल विदेष यो।
हुनि विदेषी सुखहि खेपत हमर तरुण वयस यो।
आरे विदेसहि वैसि गमओताह
सखि हमर गृह नहि अओताह।
माध झिहिर पवन डोलय देह झाँझड़ मोर यो।
हँसथि, बसन उधारि सखि सब कहथि मोहि विजोर यो।
आरे शोक वियोग मनहि मन
सखि चित्त नहि थिर रहे एको छन।
(2)
वैषाख मास तनि तलफत घाम चुबै अबिरल।
वैसि बेनिया डोलायब कोठरिया मे।
जेठ दहकत अकास, घाम सहलो न जात
पैस बैसब भीतर मन्दिरिया मे।
अषाढ़ वुन्द अपार पावस बरसे हजार
देखि हरषथ अपन कोठरिया मे।
साओन बरखा बहार, झुला करब तैयार
झुला झुलबै हम फुलवरिया मे।
भादब भरु गदी नार, नैया करब तैयार
अहाँ झिझरी खेलायब नदिया मे।
आसिन शरद बहार चाँदनी के झलकार
रास रचालेब कंचन महलिया मे।
कातिक दुतिया मनायब सबके एतहि बजायब
करब सब सुख साज कोठरियामे।
अगहन पन्चचमी मनायब नवका चड़बा कुटायब
प्यारे परसि खुआयब ससुररिया मे।

चैमासा
(1)
माध मोहन नेह लगायल अपने चलल परदेष यो।
ओहि रे परदेषिया रामा ओतहि गमाओल हम धनि बाड़ि बयस यो।
फागुन हे सखि आम मजरल कोइली सबद घमसान यो।
कोइली शब्द सुनि हिया मोर सालय नैना सँ झहरय नोर यो।
चैत हे सखि चित्त चंचल यौवन भेल जीवकाल यो।
आन धन रहितय बेचि हम खइतौं ई धन बेचलो न जाय यो।
बैषाख हे सखि विषम ज्वाला घाम सँ भीजल शरीर यो।
रगड़ि चन्दन अंग लेपितहुँ जौं गृह रहितथि कन्त यो।
(2)
कैसे खेपव बिनु कामिनि दामिनि दमसय रे।
सखि री सुखक मास अषाढ़ आस नहि पूरल रे।
दादुर करत पुकार झिंगुर झंझकारत रे।
सखी री सावन चहुँ ओर घटा मयूर बन कुहकत रे।
भादव मे मेघ झंहरत मोर मन झहरत रे।
सखी री हरि बिनु मंदिर शून गुण कत सुमिरब रे।
‘सूरदास’ प्रभु गावल सखी समुझाओल रे।
सखी री धैरज धरु चहु मास आसिन हरि आओत रे।

वसन्त (1)
सरस वसन्त समय भेल सजनी गे दखिन पबन बहु धीरे।
सपनहुँ रुप वचन एक भाखिय मुखा सँ दूर करु चीरे।
तोहर बदन सन चान होथि नहि यदपि जतन विधि देथि।
कय वेरि काटि बनाओल नव के तदपि तुलित नहि होथि।
लोचन तूल कमल नहि भय सक से नहि के जग जाने।
तै पुनि जाय नुकायल ज लमे पंकल एहि अपमाने।
मदन बदन परतर नहि पावथि जब भरि तोहरहि जोहि।
भनहि विद्यापति सुनु वर यौवति उपमा सुझय न मोहि।
(2)
समय वसन्त पिया परदेष
असह सहब कत विरह कलेष
सुमरि पहु मन नहि थीर
मदन दहन तन दगध शरीर
षीतल पंकज चम्पाक माल
हृदय दहन करु विषधर ज्वाला
श्रवण दहन करु कोकिल गान
चान दहन तन अनल समान
(3)
रंगीली रंगश्महल मे खेलतु आज वसन्त।
संगश्सखी श्रृंगारश्सजी सब सरस तरंग वसन्त। रंगीली...
सुश्कर कनक पिचकारीश्धारी, सोहत श्री सिय कन्त।
भीजतश्भूषणश्वसनश्रमणश्तन, अनुपमश्छवि दर्षन्त। रंगीली...

तिरहुत
(1)
मधुपुर गेल मनमोहन रे मोर बिहरत छाती।
गोपी सकल बिसरलनि रे जते छल अहिबाती।
सुतल छलहुँ अपन गृह रे निन्द गेलौं सपनाइ।
कर स छूटल परसमनि रे के लेल अपनाइ।
कत सुमिरब कत झाँखब रे हम मरम गरानी
आनक धन लय धनवन्ती रे कुबल भेलिरानी।
(2)
जखन चलल हरि मधुपुर रे सब सुरति निहारि।
आब कोना रहब हरि बिनु रे झाँखथि ब्रजनारि।
वन मे डोलय पिपर पात रे जल बहय सेमारि।
हम धनि डोलिय पिया बिनु रे बिनु पुरुषक नारि।
केहन कर्म विधि लिखलनि रे झाँखथि वृजनारी
ळरि बिनु भूषण भार भेल रे पलंगा ने सोहाई।
(3)
सुतल छलहुँ हम घरवा रे गरवा भोतिहार।
राति जखन भिनसरवा रे पहु आयल हमार।
कर कोषल कर कपइत रे मुखचन्द्र निहारे।
केहन अभागलि बैरिन रे भागल मोर निन्द।
विद्यापति कवि गाओल रे धनि मन धरु धीर।
समय पावि तरुबर फरु रे कतबो सिंचु नीर।
बटगवनी
(1)
तरुणी वयस मोर बीतल सजनी गे पिया पिया बिसरल मोर नाम।
कुसुम फुलीय फूल मौलल सजनी गे भ्रमरो ने लेल विश्राम।
सिर सिन्दुर नहि भावय सजनी गे मुखहि खसय एहि ठाम।
उठ दूत परम व्याकुल सजनी गे नयन ढ़रकि खसु वारि।
अधरस ओतय गमाओल सजनी गे दय गेल सौतिनक बारि।
युगल नयन मन व्याकुल सजनी गे थिर नहि रहय गेयान।
विद्यापति कवि गाओल सजनी गे ई थिक दुखक निदान।
(2)
चानन बुझि हम रोपल सजनी गे
भय गेल सिमरक गाछ सजनी गे।
ताहि रे गमक पिया जागल सजनी गे।
चलि भेल पिया परदेष सजनी गे।
बारह बरस पर आयल सजनी गे,
लायल कंगही सनेस सजनी गे।
ताहि कंगही लय आयल सजनी गे,
कय लेल सोलह श्रृंगार सजनी गे।
खोंइछ भरि लोढ़लहुँ चंगेरी भरि सजनी गे,
सब फूल सेजिया लगैब सजनी गे।

फगुआ
(1)
मिथिला मे राम खेलथि होरी। मिथिला मे...
अतर गुलाब कुम कुम केषरि, रंग अबीर भरल झोरी।
सखि सब सजि धजि रधुवर के देल अबीर भरल झोरी।
होइछ बाद्य विधान विविधश्विधि नाचश्गान ओ झिकझोरी।
मारथि मर्स पूर्ण पिचकारी राम सकुचि जाइछ गोरी।
सुरश्गण सुमन गगन सौ उझलथि, अबीर गुलाल बीच घोरी।
कूदथि बालक वृन्द मुदित मन, मिलाश्मिला निज-निज जोरी।
धै फगुआ के रुप मिथिलापुर, घरश्घर मचि रहल होरी।
‘हरेकिृष्ण’ शोभा लखि सकुचित, शेषश्षारदाश्षत् जोरी।
(2)
गलिअन बिच धूम मचायो री, गलियन...
ग्वालवाल संग लिये कन्हैया नित भोरे उठि आयो री।
हाथ अबीर गुलाल पिचकारी सिर डारो री।
वन्षी वीणा झाल बजाओ देत गारी गायो री। -गलियन......
(3)
गोरी संग कृष्ण खेलय होरी
ग्वाल वाल संग कृष्ण कन्हैया
सुन्दर रंग भरी झोरी।
बाजत आबत झाल मृदंग सब
सब जन आबत रस बोरी।
गिरिधर दास गाओल बाल संग
युग युग जीबओ यह जोरी। गोरी संग...
(4)
परदेसिया लै अंगना निपावे गोरिया। परदेसिया...
जब परदेसिया नगर बीच आयल
खुटे खुट अंगना निपावे गोरिया। परदेसिया...
जब परदेसिया आंगन बीच आयल
रचि रचि केसिया बन्हावे गोरिया। परदेसिया...
जब परदेसिया घर बीच आयल
झाड़ि झाड़ि पलंग ओछावे गोरिया। परदेसिया...
(5)
परदेसिया के नारि सदा रे दुखिया।
चारिम मास फागुन अब बीतल
कहियो ने आयल पहुँ पतिया। परदेसिया....
पाचम मास चैत जब बीतल
अपनो ने सूनल हुनि बतिया। परदेसिया...
(6)
होरी खेलत श्री रघुवर रसिया।
धूम मचावत, डंफ बजाबत घाटश्बाट सब रोक लिया।
श्री रघुवंषी छैल छबीले, श्री मिथिलेष दुलारी सिया।
ललकारत दोऊ ओर परस्पर जीत लिया होरी जीत लिया
अबीर उड़ावत रंग वरसावत जनक नगर के गलि गलिया।
‘प्रेमनिधि’ अबला प्रबला भऽ, उमड़ि चली हे रंगरलिया।
(7)
होरी मे लाज न करु गोरी।
प्रेम ब्रजवासी तु गोरी भली बीनहै यह जोड़ी।
जौ इससे सीधे नहि खेलहुँ मार मार कर वरजोरी।
सुरदास निकले सब बन मे लिये जाय वन मे जोड़ी।

चैताबर
(1)
कृष्ण तेजल मधुवनमा हो रामा कौन करनमा
कृष्ण तेजल मधुवनमा।
यमुना तट पर वंषी वट पर सेहो नहि लागत सोहनमा
कौतुक हास रास वृन्दावन सेहो सब भेल सपनमा
हो रामा कृष्ण तेजल मधुवनमा।
जौं हम जनितौं कृष्ण नहि औता रहितौ अपन भवनमा।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस को हरि मुख भेल सपनमा।
हो रामा कृष्ण तेजल मधुवनमा।
(2)
चैत रे महिनमा पिया बिनु आबै नहि निंदिया, हो रामा...
पिया परदेष गेल सुधि बुधि हरि लेल
भुलि गेल घर के सुरतिया हो रामा पिया बिनु.....
जब सुधि आबै पिया तोहरो सुरतिया
कुहुकि उठय मोर छतिया हो रामा पिया...
केहन कठोर भेल पिया के करेजवा
एको नहि लिख भेजय पतियाश्हो रामा
घर जब अइहे। पिया कोरा लै बैसिहें
नखरा लगैंहें आधी रतिया हो रामा...
कहत महानन्द सुनु हे सहेलिया
ऐसे मे बितैं हें सारी रतिया हे रामा....
(3)
डिम डिम डमरु बजाबै हो रामा, षिव रंगरसिया।
अपने सदाषिव पूजा पर बैसता
गौरी सँ टहल कराबै हो रामा...
अपने सदाषि भाँग उपजावै
गौरी सँ भाँग पिसाबै, हो रामा....
अपने सदाषिव बसहा चराबै
गौरी सँ डोरी धरावै, हो रामा....
अपने सदाषिव माँगिश्माँगि आनथि,
गौरी स धान कुटावै, हो रामा....
(4)
रुसल पियबा मना दे कोइलिया
तेरी मीठी बोलिया।
सगर रैनि हम कतेक मनाओल
ओ नहि मानल मोर बतिया।
केओ नहि हितश्बंधु ककरा जगायब
के पिया देत मनैया।
आमक गाछ पर तोही जे कुहुकब
हम कुहुकब दिन रतिया हो रामा...
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस को
कओन हरल हुनि मतिया। हो रामा तेरी मीठी बोलिया
(5)
कौन कयल योग टोनमा, हो रामा सब गेल वनमा
राम लखन सिय वनहि सिधारल, दषरथ तेजल परनमा, हो रामा..
मातु कौषिल्या रोदना पसारल सुन भेल नगर भवनमा, हो रामा..
तुलसदास प्रभु तुम्हरे दरस को, धन इहो कोप भवनमा, हो रामा..
झूला
(1)
यमुना तीरे कदमक डारी झूला रेषम के डोर गे।
षोभा देखि भेल चितबौरी ज्ञान हरन भेल मोर गे।
एक दिष राधा एक दिष कन्हा दोउ कर झिकझोर गे।
राधा वदनमा पर शोभे माला निरखत नंद किषोर गे।
नभ धेरि अयलै कारी बदरिया भेलै गगन मे शोर गे।
विरहिन के चित्त चंचल भेलइक नयना झहरे नोर गे।
राधाकृष्ण युगल अति सुन्दर एक श्यामल एक गोर गे।
(2)
आयल सावनक मास, मन मे बढ़ल हुलास
मनमा लागि गेलै वृन्दावन नगरिया मे।
झुला परम अनमोल, लागत रेषमक डोर
झूलत नन्द किषोर इजोरिया मे।
सखियन संग राधा रानी से छवि कोना के बखानी
सुन्दर बाजन बाजै हुनका पैजनिया मे।
झूलवै मिलिकय सखी सहेली, सुमुखी राधा अलबेली
झूलत राधे श्याम यमुना किनरिया मे।
एक सखि लेने कर मे माला, कहाँ गेल नन्दलाला
सूरदास पुछथिन्ह छोड़ि डगरिया मे।
(3)
झूला लगे कदम की डाली,
झूले कृष्ण मुरारी ना।
कौने काठ के बनल हिड़ोला
कोन वस्तु के डोरी। झूला..
राध झूलय कृष्ण झुलावय बारीश्बारी ना। झूला..

छठि
(1)
अंगना मे पोखरी खुनायल
छठि मइया औती आइ।
दुअरा पर तमुआ तनायल
छठि मइया औती आइ।
अँचरा सँ गलिया बहारब
तैपर पियरी ओढ़ायब
छठि मइया औती आइ।
(2)
डोमिन बेटी सुप नेने ठाढ़ छै
उगै हो सुरुज देव।
अरघ केर बेर
हो पूजन केर बेर
मालिन बेटी फूल नेने ठाढ़ छै
उगै हो सुरुज देव।
अरघ केर बेर
हो पूजन केर बेर
केओ ने छै लेसबैया परमेसरी मैया
सोना के दियरा मइया, पाटश्सुती बाती हे
अबला नारी लेसबैया परमेसरी मइया
निर्धन कोढ़ी बाटे-घाटे ठाढ़ छै
उगै हो सुरुज देव।
अरघ केर बेर
हो पूजन केर बेर
पान सुपारी पकवान नेने ठाढ़ छै
उगै हो सुरुज देव।
(3)
हमरो पर होइयौ सहाय, हे छठि मइया
हमरो पर होइयौ सहाय।
चारि पहर राति जलश्थल सेबलौं
सेबलौ छठि गोरथारि, हे छठि मइया।
हमरो पर होइयौ सहाय।
अपना ले मंगलौ अनश्धन लछमी
जुगश्जुग मांगल अहिबात, हे छठि मइया
हमरो पर होइयो सहाय।
घोड़ा चढ़ै लेल बेटा एक मंगलौ
हमरो पर होइयो सहाय।
वयन बिलहै लेल बेटी एक माँगल
माँगल पण्डित जमाय, हे छठि मइया
हमरो पर होइयो सहाय।
(4)
केरवा जे फरल छै घौद सँ, ओइ पर सुग्गा मड़राय।
मारबौ रे सुगवा धनुष सँ, सुगा खसल मुरुझाय।
सुगनी जे कानय वियोग सँ, आदित होउ ने सहाय।
काँचहि बाँस केर बहिंगा, ओइ मे रेषमक डोर
भरिया जे फल्लाँ भरिया, भार नेने जाय छै
बाटहि पूछै बटोहिया स, ई भार किनकर जाई।
आन्हर होइबे रे बटोहिया ई भार छठि माई के जाइ।
ई भार दीनानाथ के जाय।
समदाउन
(1)
बड़ रे जतन सँ सिया जी के पोसल
सेहो रघुवंषी नेने जाय।
कौने रंग दोलिया कौने रंग ओहरिया
लागि गेल बतीसो कहार।
लऽ कऽ निकसल बिजुवन सखिया
ओहि बन केओ ने हमार।
केयो जे कानय राजमहल मे
केओ कानय दरबार।
केओ जे कानय मिथिला नगर मे
जोड़ि सँ बिजोड़ि केने जाय।
आजु धीया कोना अमा बिनु रहती
छनश्छन उठति चेहाय।
(2)
भेल विवाह चलल षिवषंकर
गौरी सहित कैलाष।
बसहा पीठ षिव दोलिया पठाओल
बाघ छाल पड़ल ओहार।
बड़ रे जतन सँ गौरी के पोसल
घृत मधु दूध पीआय।
सोनाक मुरुति सन गौरी हमर छथि
वर भेल तपसि भिखारि।
हमर गौरी कोना तपोवन जैतीह
झाँखथि राजदुलारि।
(3)
सुग्गा जौं पोसितहुँ भजन सुनविते
धीया पोसि किछु नहि भेल।
घीवक घैल जकाँ पोसलौं हे धीया
बेटा जेँका कयल दुलार।
सेहो धीया मोर सासुर जैतीह
सुन भवन केने जाय।
ओलतिक छाहरि जकाँ पोसलौं हे धीया
मधुर जेँका राखल जोगाय।
सेहो धीया मोर सासुर जैतीह
सुन भवन केने जाय।
(4)
बारह बरस केर छल उमेरिया तेरहम बरस ससुरारि।
कौने निरमोहिया दिनमा पठाओल कोन निरमोही मानि लेल।
कोने निरमोहिया डोलिया पठौलक कौने निरमोही नेने जाय।
ससुर निरमोहिया दिनमा पठौलक बाबा निरमोही मानि लेल।
भैया निरमोहिया डोली पठौलकइ स्वामी निरमोही नेने जाय।
कथी देखि धैरज धरबह हे सखिया कथी देखि रहब लोभाय।
(5)
जखन महादेव निज घर चललाह गौरी सहित कैलाष।
बसहा चढ़ल षिव डोलिया पठौलनि बाघछाल कयल ओहार।
घर सँ बाहर भेला हेमन्त ऋृषि भय गेल बाप पीठी ठाढ़।
घर सँ बाहार भेलि माय मनाइनि सुसुकि बहाबथि नोर।
सब दिन खाथि गौरी माखन मिसरी सक्कर करथि अहार।
से गौरी कोना धतुर भाँग खयती आन की हयत आधार।
पराती
(1)
उठि भोरे कहू गंगाश्गंगा।
उठि भोरे कहू गंगाश्गंगा।
छल एक पापी महाबली
जाय मगह मरि गेल।
ओकरा तनके कौओ कुकुर ने खाय,
गिद्ध गीदर देखि डराय। उठि...
गलि गेल माँस हाड़ भेल बाहर
रोमश्रोम भेल विकलाई।
कणिका एक उड़ि पद पंकज,
सुर विमान लय धाई। उठि...
पंछी एक उड़ल गंगा मे
ऊपर पाँखि फहराई।
देखू गंगाजी क महिमा जे
ओ कोना तरि जाई। उठि...
गेल बैकुण्ठ मुदित मन देखू,
आरति सुर उतराई।
भोलाजी गंगाक महिमा,
कहइत अधिक लजाई।
(2)
कोन गति होयत मोर हो प्रभु कोन गति होयत मोर।
जनम जनम हम पाप बटोरल कहिओ न भजलहुँ तोर।
बेरि बेरि अँखिया कमल मुख हेरलहुँ सुधि नहि तोर एको बेर।
अबहु सुमति गति दिय त्रिभुवन पति शरण रहब हम तोर।
तुलसीदास प्रभु तुम्हरे दरस के दुख संकट हरु मोर।
(3)
रथ पर निरखत जात जटाई रथ पर निरखत जात।
रथ के उपर बैठ वैदेही नाजत निठुराई। रथ पर...
है कोइ वीर राम के दलमे रथ के ले बिलमाई।
कोन वंष के सूत रघुराई कौन हरने आई। रथ पर ...
सूर्यवंषक राजा नृप दषरथ तनिके सुत रघुराई।
तनिके प्रिया नाम जानकी निषचर हरने जाइ। रथ पर...
करुण वचन जब सूनेउ जटाई रथ चढ़ि कयल लड़ाई।
अग्निवाण मारल सो धरती गिरल मुरदाई - रथपर
मन सँ आषिष देल माता जानकी प्राण रहे घट छाई।
एहि बाटे आओता रघुवर ताकय सव बात कहव बुझाई। रथ पर...
(4)
जागहु राम कृष्ण दोउ मूरति दषरथ नन्द दुलारे।
उदय होय उदयाचल आवत जोति पलंग पसारि।
जय जयकार करत सब आयो सुर नर मुनि तुअ दुआरे। जा....
क्रीट मुकुट मकराकृत कुण्डल मुरली धनुष सम्हारि।
कब देखिहौं नयनन दोउ मुरति सन्तन केर रखबारे। - जा....
पायो दरस परस पद पंकज पापी पुरुष निवारे।
रहे एक आस दास तुलसी के तीन लोक के न्यारे।
सीता पति राधा वर जोरी लेइय सुधि न हमारे। - जागहु....
(5)
जुनि करु राम वियोग हे जननी। जुनि..
सुतल छलहुँ सपन एक देखल,
देखल अवधक लोक हे जननी। - जुनि....
दुइ पुरुष पथ अबइत देखल,
एक श्यामल एक गोर हे जननी। - जुनि....
कंचन गढ़ हम जरइत देखल,
लंका मे उठल किलोल हे जननी। - जुनि.....
स्ेातु वान्ह हम बन्हाइत देखल,
समुद्र मे उठल हिलोर हे जननी। - जुनि....
नचारी
(1)
रहबौ हम तोहरे नगरिया हो भंगिया,
रहबौ हम तोहरे नगरिया।
झारी मझारी मे कुटिया बनायब,
सब दिन बहारब डगरिया हौ भ्ंगिया।
भांगो धथुर पीसि तोहरा पियायब,
भोर साँझ दुपहरिया, हो भंगिया....।
भांगक बाड़ी मे बसहा चराएव,
जीवन भरि करबौ चकरिया, हो भंगिया...
धथुर के फूल बेलपतिया चढ़एव,
चानन चढ़ायब केषरिया, हो भंगिया....
कतबो हटेला सँ हम नहि हटबह,
कहियो ने छोड़वह दुअरिया, हौ भंगिया...।
सब दिन नवीने नचारी सुनाकय
अप्पन बितायब उमरिया, हौ भंगिया...
नेको अनेको जनम मे बसविहह,
अपन घरक पछुअरिया, हो भंगिया...
‘मधकर’ सतत बाट हम तोरे ताकब
कहियो त फेरबऽ नजरिया, हौ भंगिया...।
(2)
आइ मयना के अंगना सोहाग बहिना।
जेना जूटल छै शोभा के खान बहिना।
गौरी ओ शंकर युगल रुप मोहन।
कए के सकै अछि बखान बहिना।
घरश्घर नगर ओ डगर पर विराजय।
तानल वसन्त वितान जहिना।
छवि के छटा पर कपिक घन घटा अछि।
तै पर स्वर लय के जुटान बहिना।
मोदो प्रमोदो प्रमोदो पाबि उमड़ल।
उदधि देखि पूनम के चान जहिना।
षिवराति षिवमय करय विष्व भरि कैं।
‘मधुकर’ सब फागुन के मास एहिना।
(3)
गौरी तोर अंगना बड़ अजगुत देखल तोर अंगना।
एक दिस बाघ सिंह करै हुलना
दोसर बड़द छैन सेहो बउना।
पैंच उधार लय गेलहुँ अंगना
सम्पत्ति के मध्य देखल भाँग घोटना।
खेती ने पथारी सिव के गुजर कोना
मंगनी के आस छनि वरिसो दिना।
कातिक गणपति दुइ जन बालक
एक चढ़ै मोर एक मूस लदना।
भनहि विद्यापति सुनु उदना
दारिद्र हरण करु घैल शरणा। गौरा...
(4)
नारद बहुत बुझा हम कहलहुँ
गौरी लय एहन वर अनलहुँ यो।
हमरो गौरी छथि बारह बरख केर
बुढ़वा वर लय अयलहुँ यो।
नारद बड़ अजगुत अहाँ कयलहुँ।
गौरी लय एहन बर लयलहुँ यो।
तीनि भुवन बर कतहुँ न भेटल
तँ घर घूरि फिरि अबितहुँ यो।
बेटि गौरी छथि अल्प वयस केर
कनिको नहि बिचारलहुँ यो।
भनहि विद्यापति सुनिय मनाइनि
त्रिभुवन पति लय अयलहुँ यो।
(5)
जोगि एक ठाढ़ अंगनमा मे।
भिखियो ने लिअय बाटो नहि छोड़य गौरी कोना जयती अंगनमा मे।
देह अछि सह सह विषधर शतश्षत भूतश्प्रेत छनि संगवा मे।
बरहा चढल षिव डमरु बजाबथि जटा बीच गंग तरंगना मे
जोगि एक ठाढ़ अंगनमा मे।
सामाक गीत
(1)
डाला लय बहार भेली बहिनो से फल्लाँ बहिनो
फल्लाँ भैया लेल डाला छीनि, सुनु राम सजनी....
समुआ बैसल तोहें बाबा बड़ैता
तोर बेटा लेल डाला छीनि सुनु राम सजनी...
कथी केर आहे बेटी डालवा तोहर छौ
कथी बान्हल चारु कोन सुनु राम सजनी...
काँचहि जे बाँस केर डलवा यौ बाबा
बेलीश्चमेली चारु कोन सुनु राम सजनी ...
जौं तोरा आहे बहिनो डलवा जे दय देब
हमरा के की देब दान सुनु राम सजनी....
चढबाक घोड़ा देव पढ़वाक पोथी देब
छोटकी ननदिया देब दान सुनु...
(2)
चानन बिरिछ तर भेलि बहिनो
से फल्लाँ बहिनो
ताकथि बहिनो भाइ केर बटिया
एहि बाटे औता भैया, से फल्लाँ भैया ..
दखि लेबनि भरि अँखिया
पैर पकड़ि जनु कानू हे बहिनो, से फल्लाँ वहिनो
फाटत मोर छतिया।
(3)
हमर भैया कोना आबै
हाथी चढ़ल भैया हँसैत आवै
पान खय मुह रंगैत आबै
रुमाल लय मुह पोछेत आबै।
दरपन लय मुह देखैत आबै
चुगिला कोना के आवै
गदहा चढ़ल हिहिआइत आबै
कोइला सँ मुह रंगैत आबै
गुदरी सँ मुह पोछैत आबै।
(4)
गे माइ कौने भइया जयता अटना पटना
कोने भैया जयता मुंगेर।
कोने भइया जेता दिल्ली कलकत्ता
कौने भइया जयता रंगून।
कौने भइया लौता आलरिश्झालरि
कौने भइया लौता पटोर
कौने भइया लौता झिलमिल केचुआ।
कौन भइया लौत कामी सिन्नुर
कौने बहिना पहिरथि आलरि झालरि
कौने बहिनी पहिरु पटोर।
कौने बहिना पहिरथि झिलमिल केचुआ
कौने भौजी कामि सिन्नुर।
युगेश्युगे लीबथु इहो सब भैया, भौजी के बाहु अहिवात।
(5)
नदिया के तीरे तीरे फल्लँा भैया खेलथि सिकार।
कहि पढ़ोलनि भाइ फल्लाँ बहिनो के समाद
भैया आओताह पाहुन हे।
कोठी नहि मोरा आरब चाउर बसनो नहि बीड़ा पान हे।
कौन विधि राखब माइ हे, फल्लाँ भाइक मान हे।
हाट बजार सँ चाउर मंगायब, तमोली सँ बीड़ा पान हे।
पटना शहर से धोतिया मंगायब, राखब भैया के मान हे।
(6)
गाम के पछिम ठुठि पाकड़ि रे ना
ना रे ताहि पर बाबा बसेरा लेल ना।
खेलितेश्धुपैते गेली फल्लाँ बहिनी ना।
एक कोस गेली बहिनी दू कोस ना।
तेसर कोस बहिनी हेराय गेलौ ना।
तकैत तकैत गेलथिन फल्लाँ भौया ना।
एक वन तकलनि भैया दुइ वन ना।
कतहुँ ना भेटय बहिनिया मोर ना।
देहरि बैसल भैली खुष भेली ना।
ना रे भेल ननदी हेराय गेली ना।
(7)
गाम के अधिकारी भैया हे
भैया हाथ दस पोखरी खुना दिय।
चम्पा फूल लगा दिय हे।
फुलवा लोढ़ैत बहिनी आयल हे।
घमि गेल सिर के सिन्नुर नयन भरु काजर हे।
छता लेने आवथि भैया से फल्लाँ भैया हे।
बैसह बहिनी एहि छाह आषीष देहु हे।
युगेश्युगे जीवथु फल्लाँ भैया तोरो अहिबात बढ़ू हे।
राग संबंधी
ललित राग मे
मेघ समय पर जलदान करे।
पृथ्वी धनश्धान्य सँ भरल रहे।
पिसुन पाबि जनु नृपतिक काने।
गुन बुझि भूप करथु सनमाने।
चिरै जिबथु हिन्दुपति देओ।
गुन कीरथि गाबहि सब केओ।

राजविजय राग मे
जय जय परिजात तरुराज।
पाओल पुरुब पुन दरसन आज।
सरगक भूखन गुनक निवास।
सुरहुक तोहें परिपूरह आस।
सेवक सब तुअ दानव देबा।
मानव जानव की तुअ सेवा।
सुरमति निअ कर करथि किआरी।
सची देथि सुरसरि जल ढ़ारी।
सुमति उमापति भन परमाने।
माहेसरि देइ हिन्दुपति जाने।

आसावरी राग मे
जायब हरिक समाजे। पाओब नयन सुख आजे।
कि आरेश्ध्रुवमद।
जोगहुँ न जानिअ जन्ही। दिठीभरि देखब तन्ही।
ब्रह्म सिव सेव जाही। काहि भजब तेजि ताही।
मनहि भगति लेब माँगी। समय परमपद लागी।
हिन्दुमति जिउ जाने। महेसरि देइ बिरमाने।
सुमति उमापति भाने। पुनमति भजु भगमाने।

वसन्त राग मे
अनगिनत किंषुक चारु चम्पक वकुल बकुहुल फुल्लियाँ।
पुनु कतहुँ पाटलि पटलि नीकि नेवारि माधबि मल्लियाँ।
कर जोरि रुकुमिनि कृष्ण संग वसन्त रंग निहार हीं।
रितु रभस सिसिर समापि रसमय रमथि संग बिहार हीं।
अति मज्जु बन्जुल पुन्ज मिन्जल चारु चूअ बिराजहीं।
निज मधुहिं मातलि पल्लबच्छवि लोहितच्छवि छाजहीं।
पुनु केलि कलकल कतहु आकुल कोकिल कुल कूजहीं।
जनु तीनि जग जिति मदननृपमनि विजयराज सुराजहीं।
नव मधुर मधु रसु मुगुध मधुकर निकर निक रस भावहीं।
जनि मानिनि जन मान भन्जन मदन गुरुगुन गावहीं।

बराडीराग मे
अब तरु अबनी तेजि अकास।
न थिक दिवाकर न थिक हुतास।
धोती धबल तिलक उपबीत।
ब्रह्म तेज अति अधिक उदीत।
बैनब दण्ड वेद कर सोभ।
आवथि नारद दरसन लोभ।
परम जुगुत तिनि जगतक हीत।
ब्रह्मासुत मोर सम्भुक मीत
सुमति उमापति भंन परमान।
जगमाता देवि हिन्दुपति जान।

पंचम राग मे
सखि हे रभस रस चलु फुलवारी।
तहँ मिलत मोहि मदनमुरारी।
किनक मुकुट महँ मनि भल भासा।
मेरु सिखर जनि दिनमनि बासा।
सुन्दर नयन बदन सानन्दा।
उगल जुगल कुबलय लय चन्दा।
बनमाला उर उपर उदारा।
अन्जनगिरि जनि सुरसरि धारा।
पिअर बसन तन भूखन मनी।
जनि नव घन उगल दामिनि।
जीवन धन मन सरबस देबा।
से लय करब हरि चरनक सेवा।
सुमति उमापति मन परमाने।
जगमाता देइ हिन्दुपति जाने।
नटराग मे
कि कहब माधब तनिक बिसेसे।
अपनहु तनु धनि पाब कलेसे।
अषनुक आनन आरसि हेरि।
चानक भरम कोप कतबेरी।
भरमहु निअ कर उर मर आनी।
परम तरस सरसीरुह जानी।
चिकुर निकर निअ नयन निहारी।
जलधर जाल जानि हिअ हारी।
अपन बचन पिकरब अनुमाने।
हरि हरि तेहु परितेजय पराने।
माधव अबहु करिअ समधाने।
सुपुरुष निठुर ने रहय निदाने।
सुमति उमापति भन परमाने।
माहेसरि देइ हिन्दुपति जाने।

मालव राग मे
हरि सउँ प्रेम आस कय लाओल।
पाओल परिभब ठामे।
जलधर छाहरि तर हम सुतलहुँ
आतप भेल परिनामे।
सखिहे मन जनु करिय मलाने
अपन करम फल हम उपभोगव
तोहें किअ तेजह पराने। ध्रुवम्
पुरुब पिरिति रिति हुनि जउँ विसरल
तइओ न हुनकर दोसे।
कतन जतन धरि जउँ परिपालिअ
साप न मानय पोसे।
कवहु नेह पुनु नहि परगासिअ
केवल फल अपमाने।
बेरि सहस दस अमिअ भिजाबिअ
कोमल न होअ परवाने। ध्रुवम्
गुरु उमापति पहु देव दरसन
मान होएव अबसाने।
सकल नृपतिपति हिन्दुपति जिउ
महरानि विरमाने। ध्रुवम्।

केदारराग मे
मानिनि मानह जउँ मोर दोसे।
साँति करह बरु न करह रोसे।
भौंह कमान बिलोकन बाने।
बेधह बिधुमुखि कय समधाने।
पीन प्योधर गिरिबर साधी।
बहु मास धनि धरु मोहि बाँधी।
की परिनति भय परसनि होही।
भूखन चरनकमल देह मोही।
सुमति उमापति मन परमाने।
जगमाता देइ हिन्दुपति जाने।

भल्ला राग मे
माधब करह हमर समधाने।
देह मोहि पारिजात तरु आने।
एहिखन तोरित करिअ परयाने।
नहि तइँ हमर अबस अबसाने।
एहि परि हमर पुरत अभिमाने।
हयत हसी नहि होअ अपमाने।
सुमति उमापति भन परमाने।
पटमहिखी देह हिन्दुपति जाने।

विभास राग मे
सहस पूर्णससि रहओ गगन बसि
निसिबासर देओ नन्दा।
भरि बरिसओ विस बहओ दहओ दिस
मलय समीरन मनदा।
साजनि आब जिबन किअ काजे
पहु मोहि हिन करु अपजस जग भरु
सहय न पारिअ लाजे। ध्रुवम्
कोकिल अलिकुल कलरब आकुल
करओ दहओ दुहु काने।
सिसिर सुरभि जत देह दहओ तत
हनओ मदन पचबाने।
सुकवि उमापति हरि होए परसन
मान होएत समधाने।
सकल नृपति पति हिन्दुपति जिउ
महेसरि देइ विरमाने। ध्रुवम्
...........................
१. लक्ष्मण झा ‘सागर’-चुट्टीधारी
२. विभूति आनन्द-एक- दू- तीन- चारि- पाँच- छओ- सात- आठ- नओटा- कविता
३. रमण कुमार सिंह
४. मायानाथ झा-मातृगिरा
५. विनीत उत्पल
समाज


१. लक्ष्मण झा ‘सागर’
२. जन्म्– ०१.०४.१९५३
३. पिताक नाम– श्री तारकेश्वूर झा उर्फ श्री मोला झा
४. मायक नाम– स्वी. गंगादेवी
५. गामक पता– ठढ़बितिया, घोघरडीहा, मधुबनी (बिहार)
६. स्था ई पता– ३बी, तिस्ताल अपार्टमेंट ९४, एवेन्यूक साउथ रोड संतोषपुर,
कोलकाता-६५ (पच्छिम बंगाल)
७. दूरभाष (आवास)– ०३३-२४१६६४१८
८. मोबाइल–०९४३२५–४५३४९
९. आजिविका–रूपा एण्डत कंपनीक इस्पा त संयन्त्र इकाईमे वरिष्ट४ क्रय प्रबन्ध कक पद पर कार्यरत- - कोलकातामे।
१०. रुचि-साहित्यिक आ सामाजिक सरोकारसँ जुड़ल रहबाक।
११. अरुचि– मैथिलीक नाम पर अनर्गल आ अनसोंहाँत क्रिया-कलाप।
१२. रचानाधर्मिता- १९६८सँ मैथिलीक विभिन्नक विघापर मैथिलीक विभिन्नट पत्रिका सममे रचना - प्रकाशित होइत रहल अछि (बीचमे १९८३–१९९६ छोडि़केँ)। चारिटा पोथीक (कविता, कथा, - निबन्ध विविधा) प्रकाशन योग्यक सामग्री उपलब्धी। छपेबाक जोगार नहि। प्रकाशक लोकनिक - खोज जारी।
१३.सेहेन्ताज–मिथिलांचलक समस्तग (कन्वेंचट छोडि़केँ) प्राथमिक विधालयसँ लऽकेँ उच्चग माध्यीमिक - विघालयमे पढ़ौनीक माध्यीम मैथिली मात्र मैथिलीए ता होइतैक।

प्रकाशनार्थ:-

चुट्टीधारी
लक्ष्म ण झा ‘सागर’

कविता
ओना नहि देखबैक
हरसट्ठे उड़ैत
एक्कोठटा गिद्ध।
मुदा,
जहन कोनो निर्जन
बाध-बोनमे
मुइल पशुक खाल
उधेडि़ लेल जाइ-ए;
तँ, देखि’ लिअ’
उड़न जहाज जेकाँ उतरैत
हेँजक-हेँज गिद्ध!!
औना नहि देखबैक
कौएकेँ कुचरैत
कत्तहु जेर बान्हिकेँ....;
मुदा,
जहन बीच चौबट्टीपर
बिजलीक तारमे सटि
कोनो अभागल काग
हति लइ-ए अपन प्राण....
तँ देखि लिअ’
काँउ....काँउ करैत
करमान लागल कौआ।
मुदा,
हमर कविताक दृष्टि
एत्तहिटा घेरायल नहि अछि;
घरक कोनो अन्हालर कोणमे
छीटल हो
चीनीक किछुओ दाना
किवा पिचाएकेँ/मरि गेल हो
अझट्टे कोनो चुट्टा!
हमर कविताक दृष्टि
पंतिआनीमे ससरैत
ओहि तुच्छ जीवपर
अटकि जाइत अछि
जे नहि अरजने अछि
कोनो विद्या....;
मुदा, छैक तइयो
ओकरो अपन जैविक संस्कालर!
हमर कविता
गिद्ध....कौआ....आ
चुट्टीक संसारकेँ
भजारि रहल अछि!
संवेदना
सिद्धान्त क चुल्हिमे
आदर्शक आगि
पजारि रहल अछि!!

लक्षमण झा ‘सागर’
३०–०९–०९

No comments:

Post a Comment

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।