भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Friday, January 01, 2010

'विदेह' ४९ म अंक ०१ जनबरी २०१० (वर्ष ३ मास २५ अंक ४९) PART VIII

१. अशोक दत्त-किछु कविता २. शीतल झा--किछु कविता३. शंम्भु नाथ झा ‘वत्स’--किछु कविता

१.अशोक दत्त
कविता
आह्वान

निर्दोष मानव रक्ततसँ
रक्तद र‍‍ञ्जित
धराक छाती
कुहरि रहल अछि।
कारामे बन्दछ कऽ देल गेल
कलम
अन्हाेर खोहमे
धकियाओल जाइछ
आवाज
कोना करू शान्तिक बात,
सर्वोच्च आसनपर
विराजमान अछि
दुराचार, अपराध
जोड़पर अछि।
आतङ्क कुकर्म।
खुंखार कुकुरक नोचसँ
सोनिताएल देह लेने
कोना सूति सकै छी
कोना भऽ सकै छी निश्चिन्त
जखन तागसँ कटल गुड्डी जेकाँ
पताए लागल अछि
वर्तमान/भविष्ये
ते उठबैछी गाण्डिव
अर्जून जेकाँ,
सिंहानाद कऽ जगबै छी
सुतनाहरकेँ
हौ उठऽ/ देखहक
देश बनल छह कुरूक्षेत्र
समधातऽ लक्ष्यर
शान्ति लए। अस्मिता लए।
२०६२/९/१६

कविता
ओघि उपाड़

उपहास करैत इतिहासक
नितरा रहल अछि
सफलतापर,
सफलता
जे छैक
पानिक बुलबुल्लाा जेकाँ।
सन्हिआएल छै अदक
कोँढ़मे
उड़ल छै निन्नद
तकने घुरैछ सुरक्षा कवच
मुदा, उताहुल भेल अछि
मुँहमे जाबी लगाकऽ
मेहमे बान्ह ल बड़द जेकाँ
जोतबाक लेल,
छै दश-पाँच गोट
लगुआ-भगुआ
छै बन्दु-क
ते फँकैए गुँड़-चाऽर
मने-मन
नित नवीन आडम्बरकऽ।
नइँ छै चौवन्नीरमरि जनाधार
तैयो नितरा रहल अछि,
सफलताक नाम दऽ
अतीतके गुनैत
वंशा बढ़बऽमे उनमत्त।
बुझैत अछि ओ
करची पङने
दू-चारि गोट बाँस कटने
नइँ उपटै छै बाँस
तेँ नितराइत अछि
बनल अछि ढीठ।
देश उएह अछि
परिवेश नव
देखैत छल पहिनहुँ
करूआइत छलै आँखि
आब बूझऽ लागल अछि
बच्चासँ बुढ़धरि
नइँ होइत छै फूल बाँसमे
नइँ होइत छै सुगन्धँ
नइँ लगैत छै फल
मुदा, पनपऽ नइँ दैत छै ककरो
अपना लगमे
मात्र बढ़बैत अछि
अपन साम्राज्यअ।
आब करची पङलासँ नइँ
दू-चारि गोट बाँस कटलासँ नइँ
उपटाबऽ पड़त ओधि
जडि़सँ कोरिकऽ
तहन फुलएतै फूल
छिरिअएतै सुगन्ध
लगतै फल
मुस्किअएतै ठोर।
२०६२ माघ २९
गीत
नाटक-इहो बच्चेब छै (लए)

• कहे रहि-रहिकऽ हमरा सभ अमगला रे
• हमर कसूर कथी
• भेलियै बेटा जे हम गरीबहाके
• हमर कसूर कथी
• अछि हमरो उमेरिया पढ़ऽलिखके
• सङी-साथीके सङमे हँसऽ खेलके
• मुदा गारी, हम गारी, छियै गारी हँ-हँ गारी
• गारी सुनै छी अनकर दु‍अरिया रे
• हमर कसूर कथी, भेलियै बेटा . . . .
• पेट जरल अछि तेँ ने छी एत्तऽ पड़ल
• घरमे रहितै जे कोठी बरवारी भरल
• रहितौं हमहूँ, हमहूँ रहितौं हँ-हँ रहितौं, हँ रहितौं
• रहितौं अम्माेके हमहूँ दुलरूवा रे
• हमर कसूर कथी, भेलियै बेटा . . . . . . .
• दर्द मनके अपन हम कत्ते सुनाउ
• हमहँ बच्चेअ छी केओ तऽ छाती लगाउ
• घूरि जएतै, हँ घूरि जएतै, हँ-हँ घूरि जएतै
• घूरि जएतै हमरो समैया रे
• हमर कसूर कथी, भेलियै बेटा . . . . . . . . .

• नौटङ्की
• नाटक-नइँ आब नइँ (लए)
• सर्व साधारण घरके
• कथा कही अहि बेर।
• मेहनति छल संसार जकर
• दुरमतिया देलकै घेर।।
• दुरमतिया देलकै घेर
• बुझलकै अपन धीयाकेँ भारी।
• जकर एहन परिणाम भेलै
• भेल दिन सियाह राति कारी।।
• दिन सियाह राति कारी
• रेतलक धीया-पूताकेँ घेँट।
• अंचिया बनलै आगि बेदीके
• दर्दे रहलै शेष।।
• लौल कएलक सुनू केहन अज्ञातमे
• अजोहेमे देलकै कनियाँ बना।
• आब देखू अहाँ सभ जे की-की भेलै
• चूक कएलक जे तक्कजर की परिणाम छै।।

• नौटङ्की
• नाटक-नइँ आब नइँ (लए)
• बूधि गेलै बिला देलकै सासुर पठा
• पढ़ऽ लिखऽकेँ बेरिया देल कनियाँ बना।
• भेलै खाक मनोरथ आब नोरेँ बचल
• भरि जिनगी लए दोषेटा माथा चढ़ल।।
• तील-तीलकऽ जरल धुधुआकऽ जरल
• धीयाकेँ बियोगेटा रहि गेल पड़ल।
• शोक-सन्तारपमे आब अपनो जरत
• यादमे आब धीयाकेँ ओ पल-पल मरत।।
• सुनू अहाँ समकेओ बाबू-भैया यौ
• एहन परिणाम रौदियाकेँ भेलै किए।
• नइँ करितै धीयाकेँ नेनहिमे बियाह
• तहन भोगितै नरक सन ओ जिनगी किए।।
• गीत

• लोहियामे दाइल केली अढि़यामे भात
• छिपा लऽकेँ काढ़ऽ गेली बहुमारलक लात
• आरे बाप रे बाप
• थाकल हारल घर आबी बहरा कमा
• अङनोमे दैहए लगले काम अढ़ा
• उल्टे कपाड़ पीटैत धरे जाके खाट
• अरे बाप रे बाप
• लोल रैङ सुत अपने तोशक बिछा
• हुकुम करे हमरा जो खाना बना
• कुच्छोक जे कहली दैहए नहिराकेँ धाख
• अरे बाप रे बाप
• करमे छल फूटल जे कैली बियाह
• हट्ठोघड़ी मौगी हमर दैहए घिता
• कहियो ने सुने हमर एक्को गो बात
• अरे बाप रे बाप
• दू आखर पढि़ बुझे हमरा मुरूखा
• आङन-घर छोडि़ कहे सदखिन घुमा
• सोङरपर टीकल हमर घरके टाट
• अरे बाप रे बाप

• कविता
• की लिखू कविता?
• की लिखू कविता
• ने रङ्गक उमङ्ग
• आ ने पुआक मिठास
• जीवनकेर कवितामे
• टीसक अनुप्रास।
• बस्तीअमे करैत अछि
• ताण्डअव नर्तन भूख,
• नइँ बजैत अछि
• डम्फब आ झालि
• एखन होलीमे,
• नइँ छे ककरो ठोरपर
• फगुआक गीत
• रङ्ग-अबीर नइँ
• उडै़त अछि सोनित
• तेँ शोकाएल अछि
• होलीक उमङ्ग,
• गरम तावापर पड़ल
• पानिक बुन्दप जेकाँ
• उडि़ गेल अछि मुस्कीँ।
• कतबो करओ केओ
• आत्म प्रशंसा
• मुदा, ठाढ़ होबऽ पड़तै काल्हि
• कठघारामे
• देबऽ पड़तै जबाब ओकरा
• जे सोनितओने अछि फगुआ,
• अओतै समय
• अएबे करतै
• खेलबै होली
• रङ्ग-अबीरसँ
• तहन लिखब कविता/ एखन की लिखू कविता?
• २०६२/१२/१

• गीत
• पुरूष चान आएल उतरि आइ मोर अङना
• छिटैत इजोर बजैत मधुर बयना
• स्त्री हमरा भेटल सिनेहक अनूप गहना
• आइ नाचब छमा-छम बजाए कङ्गना
• स्त्री मनकेँ कियारीमे जुही-चमेली
• चम्काए नयन बीच हिराकेँ ढ़ेरी
• पुरूष हुअए पूरा अहाँकेँ मधुर सपना
• रहओ सदिखन अहाँकेँ हँसैत‍ नयना
• स्त्री हमरा भेटल सिनेहक . . . . . .
• पुरूष यौवनक मधुरसँ साँठल चङेरी
• प्रेमक हमर घरकेँ अहाँ बड़ेरी
• स्त्री अहीं छी पूजा हमर अहीं अर्चना
• सोलहो सिंगार हमर अहीं सजना
• पुरूष चान आएल उतरि . . . . . . .
• स्त्री उमङ्गकेर धारकेँ आब किए घेरी
• पुरूष एम्हर सहटि आउ करू ने देरी
• स्त्री हृदय बीच राखब सदति अपना
• पुरूष पूरा भेल कहियो जे छल सपना
• चान आएल उतरि . . . . . . .
• स्त्री हमरा भेटल सिनेहक . . . . . .

• गीत

• पुरुष गोरी नइँ कर एते गुमान, तोरेपर मन जे अटकल
• सुन बात हमर तोँ मान, आब छोड़ एना नइँ हठ कर
• स्त्रीप तोरा सन बहुत अकान, दुनियाँमे हम अछि देखल
• छौ केहनो मुँह ने कान, करे काग जेकाँ किए करकर
• पुरुष हमरासँ नीक तोरा आओर कतऽ भेटतौ
• ओल सनक बोल सूनिकेँ तोरा पुछतौ
• जुआनी हेतौ जियान, एहिना जँ रहबे भड़कल
• स्त्रीप लेर चुअबैत किए घुमए पाछा-पाछा
• छी हम जुआन तैसँ तोरा कोन बाधा
• रे एखनों करै गियान, मरपाँखि किए छौ जनमल
• पुरुष नयनक कटारी तोहर हीयाकेँ बेधलक
• मस्त जुआनी जे छौ चैन उएह लुटलक
• दऽ दे हमरा पर ध्यान, मन तोरे लए अछि ककछल
• स्त्री चालि एहन छौ जेना कोनो वंश कुरहरि
• छाती पीटैत रहबे देखि-देखि सुन्नररि
• छिछिआइते जेतौ परान, जिनगी मरि रहबे रकटल

• शिव गीत
• बाबाक महिमा अपरम्पाीर
• गंग-राशि जटामे शोभए
• गरबामे साँपक हार, बाबाक महिमा. . . . .
• अपना खाइ छथि भाङ-धथुर आ
• रने-वने भटकै छथि
• सभक करथि मनोरथ पूरा
• औढ़रदानी कहबै छथि
• अपन अङ्ग विभुत-बाघम्बबर
• अनका लए गृवहार, बाबाक महिमा. . . . .
• शिवकेँ महिमा जानि सकलकेँ
• पढ़ि-पढ़ि वेद-पुराण
• जग रक्षा लए विषकेर छाँकल
• बास बसथि समसान
• त्रिभुवन स्वाामी अन्त र्यामी
• जगकेँ पालनहार, बाबाक महिमा. . . . .
• सभक हृदय बसै छथि महादेव
• सभक जनै छथि हाल
• अहूँक सूदि लेतऽ स्वियंभू
• टूटत दु:खक सञ्जाल
• देवक रक्षा कएलनि गौरी वर
• दुष्टरक कऽ संहार, बाबाम महिमा. . . . .

• कविता
• अहुरिया

• पटापट भुजा रहल अछि
• भ्रष्टाुचारक कनसारमे
• जिनगी।
• चेतनाशून्य
• सम्वेशदनाशून्या
• कलमक तरूआरि हनहनबैत
• रेतैत अछि घेंट
• स्वेतच्छातचारी शासक
• तेँ छटपटाइत छी।
• एक टुकड़ी रोटी लए
• भूखल पियासल
• मशिन जेकाँ
• श्रम कर लए बाघ्य
• गरीब मजदूरकेँ
• खैनीक नोसि जेकाँ सुड़कैए
• बीड़ीक धूआँ जेकाँ उड़बैए
• ओ, जकरा भेटैत छे आसन,
• जे बनाओल जाइछ
• भ्रष्टाचार नियंत्रक
• उन्मूटलक
• ओहो बहैए अनन्तल प्रलोभनमे
• बढ़ऽ लगैछ नह ओकर
• निकलि जाइछ सिङ्घ राक्षस जेकाँ
• हुड़कि कऽ फाँड़ऽ लगैए पेट
• आ नोचि-नोचिकऽ
• करैए शान्तफ
• अपन उदरक ज्वाङला।
• चहुँदिश पसरल अछि
• भ्रष्टा चारीक साम्राज्यम,
• भ्रष्टाक महासागरमे फँसल
• उजबुजाइत जिनगी
• किछेर खोजैत
• कऽ रहल अछि रक्तम तर्पण
• असन्तो ष आ चरम घृणाक बीच।
• नइँ देखाइत अछि कोनो मन्दिर
• जतऽ चढ़ाउ आस्थाकक फूल,
• रफ्फू पर रफ्फू करैत छी
• तैयो फाटलकेँ फाटले अछि जिनगी,
• दम फुलैए
• चेहो उठै छी सपनोमे
• नइँ भेटैत अछि जखन
• भ्रष्टाैचारक सोइरकद अन्तच
• तैयो हथोड़ैत रहै छी
• घवाह विगतकेँ ढ़ोइत
• निरोग भविष्य ।
• टङाएल अछि जनमसिद्ध अधिकार
• भ्रष्टाछचारीक जेबमे
• चौपेतल कागत जेकाँ
• आ हम घवाह कुकुर बनल
• एहि गलीसँ ओहि गली
• करैत रहै छी भुकबाक अभ्या स
• अपन स्वैरमे आक्रोश आ
• क्रन्दवनकेँ मिझरबैत
• जे घूरि ताकत कोनो समाङ
• निकालत समवेत् स्व र
• ओ स्वतर
• जे स्व र
• ढ़ाहत भ्रष्टाचारक किला
• लगाओत जाबी
• भ्रष्टााचारीक मुँहमे।
• २०६२/१२/१५

• कविता
• सङ्केत‍

• पुष्टत वक्षक
• मर्दनमे जूटल वलत्का।री
• बुझैत अछि पट्ठा अपनाकेँ।
• बिसरि गेल उन्मा दमे
• जाहि वक्षक उरोजकेँ चूसिकऽ
• आइ बनल अछि
• मर्दन करबा जोग
• ओही छातीकेँ करैत अछि
• छत-विछत
• जकर पीड़ासँ
• आधा हलाल कऽ छोड़ल गेल
• खसी जेकाँ
• छटपटा रहल अछि वर्तमान
• मुदा नइँ छै फिकर तकर
• नोचैत आएल अछि
• आओर नोचऽ लए उद्धयत अछि।
• कर्पुर जेकाँ उड़ैत अछि शान्ति,
• बढि़ रहल अछि मूख!
• क्रन्दहन!
• टुग्गदर होइत धीया-पूता!
• आह! अहुरिया कटैत अछि
• बिनु मोइसक कलम
• मुदा, आश, जिवित अछि
• फड़फराए जे लागल अछि
• वलात सीयल ठोर
• अधिकार लए,
• फड़कऽ लागल अछि बाँहि
• मसोरऽ लए ओकर गर्दनि
• जे प्रयत्नक करैत अछि
• इदिअमिन आ हिटलर बनबाक
जे दोहराबऽ चाहैत अछि
’शिकागो’-क बीच सड़कपर
घोड़ाक टापसॅं कएल लतखुर्दन
जे लगाकऽ आगि
मस्तग भऽ बजबैत अछि
अपन बाँसुरी ‘निरो’ जेकाँ ।
ठोरक फड़फराएब,
बाँहिक फड़कब
सुखद सङ्केत अछि
वलत्काङरीक अन्त क ।
२०६२/१२/२५

शिव गीत

भोलेदानी हमर अहाँ विनती सुनू
खाली झोरी लऽ अएलहुँ दयासँ भरू
अछि जन-जनमे सगरो अहींकेँ गुणगान
दिअ हमरो अधरकेँ यौ, बाबा मुस्काान
हमरा भेटए ने बाट जाए ककरा कहू
भोलेदानी हमर अहाँ . . . . . . .
होशे हराएल नइँ किछियो अछि भान
हमरा लगैए कारी एखन सुरूज आ चान
नाव भवसागरसँ पार जिनगीक करू
भोलेदानी हमर अहाँ . . . . . . . .
छी अहाँक शरण आएल, राखि लिअमान
भोले अहाँ ने सुनब हम तेजब परान
अछि हमरो अहाँसँ ई हट्ठे बुझू
भोलेदानी हमर अहाँ . . . . . . . .




बाल गीत (लोरी)

आगे निनियाँ आ-आ
बौवा लए निन ला-ला
देबौ तोरा नवका साड़ी
दौगल-दौगल आ-आ
बौवा हम्म र मिसरीक ढ़ेपा
तोरा माथा जूड़ा-खोंपा
खीर देबो तोरा भरिथारी
सुन्देर सन गीत गा-गा
आगे निनियाँ . . . . . . .
मैना बनबए घरमे खोंता
सिरोलिया करए ओहिमे चोंचाँ
दाना आनय फोडि़ बखारी
सभ मिल बाजय खा-खा
आगे निनियाँ . . . . . . .
चुनियाँ पढ़ए बड़का पोथा
सह-सह ढिल करैछै झोंटा
नम्हर केश ओकर बड़कारी
दौड़ कऽ ककही ला-ला
आगे निनियाँ . . . . . . .

कविता अभियान

भाइ-भतिजा मारिकऽ जे
अछि शादी हथियौने,
उन्माादमे ताण्डऽव नर्तनकेँ
अछि देशमे रक्तद बहओने।
देशमे रक्तर बहाबए किए
कनिको नइँ छै भान,
जागल जनता छेडि़ चूकल अछि
गणतंत्रक अभियान चलल से
आब ने किन्नेहुँ रूकतै,
अहंकारी आ अत्यायचारी
मुँहे भरे खसतै।
मुँहे भरे खसतै
खुनलक ‘ज्ञाने’ अपने खद्धा,
छै ककरामे कुब्बयत जे
एहि बेरक सहिले धक्का‍ ।
अही बेदकेँ धक्काकमे
भऽ जाएत चकनाचूड़,
जनसमुद्रकेर लहरक आगाँ
सभक टूटल गुरूर।
सभक टूटल गुरूर
तखन ई ‘ज्ञाने’ पारस की छै,
‘हिटलर’ तऽ धूल-धुसरित भऽ गेल
ई तऽ बस मुसरी छै।
मुसरी सङ टुनमुसरी
जिनगीक जडि़ कटैए,
छून लागि गेल कटैए,
घून लागि गेल बाँहिमे
से ई भरम पोसैए।
नइँ लागल अछि छून बाँहिमे
खुन भेल ने ठण्ढो
सभ केओ मिल सङे लहराएब
आजादीकेर झण्डा।
आजादी सभक होइत छै
जनमासिद्ध अधिकार,
तकरा कोना छिन सकत ई
सँड़ल-गलल दरबार।
एहि दरवारकेँ सभ केओ मिलकऽ
ईंटसँ ईंट बजादी,
अही बेरकेँ उघबामे
‘नामो-निशान’ मेटा दी।
’नामो-निशान’ मेटा दी तैं लए
बुलन्दम करू आवाज,
सिंहनाद कऽ सभ केओ बाजू
लोकतंत्र जिन्दाेबाद।
लोकतंत्रकेर हएत बहाली
राज करतै जनता,
मेचीसँ महाकाली बजतै
जन-विजयकेर डङ्का।
जन-विजयकेर डङ्का बजने
घर-घर हएत खुशियाली,
लोकतंत्रकेर नामपर
बजाउ जोड़सँ ताली।
२०६२/१/७

बाल गीत

छुनमुन-छुनमुन बौवा हम्म,र
फुदकैत फुद्दी जेकाँ रहैए
कखनो मुस्कीद कखनो मटकी
कखनो दि‍दीकेँ चुप्पी कहैए, छुनमुन. . . . .
खुब हिलसगर बौवाक गात
चुन-चुन बजैए सभ बात
मिसरी सनकेँ बोली सूनि-सूनि
मोन जुड़ाइए मोन जुड़ाइए, छुनमुन. . . . .
थाहि-थाहि कऽ उठबए धाप
रूनझुन बाजए पायलक चाँप
कारी लट जे घूरमल-घूरमल
गोर गालकेँ चूमल करैए, छुनमुन. . . . . .
गोल-गोल पुआ सन गाल
चान जेकाँ चम्कैनए भाल
हिरणी सनकेँ नयनक पुतली
सभक मनकेँ मोहल करैए, छुनमुन. . . . .
हाथमे धऽ कऽ हम्मरर हाथ
स्कूेल जएतै रटतै पाठ
हमरे सनकेँ बौवा हम्म र
हाथसँ कलम धरल करैए, छुनमुन. . . . .
२०६३/३/२

बाल गीत

सुन-सुन-सुन-सुन एगो बात
चल रोपै छी ढ़ौवाक गाछ
लुच्चीै जेकाँ ढ़ौवा फड़तै
बढ़तै अपनो तै दिन ठाठ
एक दिन ढ़ौवाक गाछी बढ़तै खूब झमटगर हएतै
घौर्छे-घौर्छे ढ़ौवा गाछमे फड़ते आ फलएतै
तोडि़-तोडि़ करबै सभटा काज, सुन-सुन. . . . . . .
फुलबारीमे पोखरि खुनएबै सुन्दकर घाट मढ़एबै
आम लताम जामुन संग मिठका बैरक गाछ रोपएबै
ताहिपर झुलब साथे-साथ, सुन-सुन. . . . .
बरबिघबा सन चौरमे अपनेसँ मेला लगबएबै
अजब-गजबकेँ खेल-तमाशा आ सर्कस बजबएबै
घुमएतै परी पकडि़कऽ हाथ, सुन-सुन. . . . . .
किन कम्यूी प टर सेहो अनबै, मास्ट र आबि सिखए तै
दुनिया भरिके ज्ञानसँ जे हमरो परिचित करबएतै
रहतै मोटरो गाड़ी पास, सुन-सुन. . . . . .


गीत

एक खाड़ा रोटी लए कुकुर बनल लोक अछि
केओ एतऽ मलछैए केओ ककरो झपटैए
रोटीए लए करैत कते देहक व्याएपार अछि
अभावकेर छूआँसँ आँखि पथराइ छै
भूखकेर आरीसँ हृदय चिराइ छै
एहन सन हालमे छै एक नइँ अनेक एतऽ
पेटे बनल जकर जीके जञ्जाल अछि
रोटीए लए करैत. . . . . . .
मुँह भऽ जाइ चून सन देह पीरा जाइ छै
नेनाहिमे ठोरसँ मुस्कीह हेरा जाइ छै
ओकरा नइँ पुछियौ छै नीत आ अनीत कतऽ
खेलबाक बयसमे एतऽ भेल जे लचार अछि
रोटीए लए करैत. . . . .
कोकनल घाओ जेकाँ जिनगी दुखाइ छै
जुआनी सराप भेल दिन-राति बिकाइ छै
झरकै छै निस दिन जिनगीक अंग ततऽ
रोटीक भूगोल पाछा बौरल संसार अछि
रोटीए लए करैत. . . . .



२.
शीतल झा, पिताक नाम–स्व. लक्ष्मी कांत झा, माताक नाम–स्व. दाई रानी झा, जन्म स्थान–सुगामधुकरही–५, ग्राम–नरहिया,धनुषा, नेपाल।, वर्तमान बसोबास–जनक पुर–६, जानकीनगर पगला धर्मशाला, महाराज सागरसँ दक्षिण, जिला धनुषा, नेपाल।, जन्म भिति–२०१२/०१/०१
जूड़शीतल।, शिक्षा–बी.ए., बी.एड., बी.एल.।, राजनीतिक संलग्नता–नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी (एमाले)
पद–सलाहकार, के.क. नेकप्पा एमाले।, रूचि आ प्रकाशन–(i) संघीय संरचना आ मिथिला राज्य। मिथिलाक राजनीतिक इतिहास आ मिथिला (नेपालक सन्दर्भमे मात्र),(ii) संस्कृति, राष्ट्र आ मधेशक सम्बन्धमे विभिन्न रचना।, (iii) कविता (प्रकाशित विभिन्न पत्रिकामे), (iv) सुगौली सन्धि आ मिथिला (अप्रशित), “सुगौली सन्धि”मीन राज उपाध्याय नागरिक उड्डयन विभाग बाबरमहल
(१) भारतक भूमिनिर्माण पौराणिक कथा, नक्शा, नेमूनि, निथि, ऐतिहासिक चर्चा
(२) तत्कालीन राजाक इतिहास, भूगोल, नक्शा
(३) भारतक लिखित इतिहास–(मौर्य, अश्लके, मानव इतिहास)
(४) मुगल (ब्रिटिश साम्राज्य, हिमखण्ड)
(५) मिथिला–वर्ड–तिरहूत
मुंशी जी
पगला बाबा
धर्मशाला।

टी..ऽऽऽऽ..स
शीतल झा
हमरोमे अहुँमे एकटा टी..ऽऽ..स अछि,
नहि कहि ककर उन्नैस ककर बीस अछि।
किनका आस पर हम छाति तानि चलु,
हुनके तँ बिछुआएल निहुरल शीश अछि।
जीबाक जोगाड़ वड्ड कष्ट प्रद अछि, बाउ रे,
पूजारीक हाथमे अमृत कहाँ विष अछि।
शांतिक शब्द थारसँ मोन आब उऽठि गेल,
भभक्त रीक्त पेटसँ से मात्र रीस अछि।

मुक्तक
शीतल झा
(१) हिन्दी पढ़लहुँ व्याकरण धोकलहुँ,
हाकिम, नेता होइछ पुलिङ।
छुटिएलौ मोंछ, भूमि, भाषा, सीमा, जनता होइछ स्त्रीलिङ॥
(२) आँखिमे नोर भरि गेल बिनु सर्दीकेँ
जखन भय बढ़िगेल हथियार बिनु बर्दीकेँ,
की हे तै वर्दीवाला हथियार सेहो नरसिंहक छैने,
तै हिंसक हथियार देखबाक आब हिंसक छैने॥
(३) सब तरकारी छोड़ि नीक लागए लागल नेबो देल ओल,
प्रशंसा तँ मात्र चाकड़ी अछि नीक अछि कटु बोल॥
(४) अभावक चिन्ता सदा अछि बढ़ि जाइयै हाटमे,
मित्रत सर्वत्र छथि भय अछि जे छथि सङे बाटमे॥
(५) भूमि नहि भाषा नहि आकाश तँ अपन ललिअ
चाकड़ीक नोकरी अछि अबकाश्त अपन ललिअ।


बोकरे सन
शीतल झा
हम बुझलिऐ जकरा अपन, ओत रहल छल ओकरे सन,
बधिआकेँ लिए खसी बनौनलिऐ, ओत रहिगेल बोकरे सन।
पद, प्रतिष्ठा, पैसा छन्हि आब, भल मानुष त कहबनि ने?
बात करैथ ओ नमहर मोटगर, मित्री चालि सब छोकरे सन,
नीति, नियत, व्यवहारमे अंतर पैंचमे धोकल बजता हे,
लाल, डम्हाएल, पुष्टक भ्रम अछि, मुदा रहल छथि चोकरे सन।
की करब चेतु जन, मनसँ आबो चिन्हकेँ केँ छथिओ,
मालिक बनाकए देखलहुँ ओ छथि हेहर थेथर नोकेर सन।

शांति ! ! !
शीतल झा
I. की उठौने छी? बम्!
की पकड-अने छी? बन्दूक!
की खोजैछी? शांति!
भेटथिन्ह? नहि!
II. की देखैछी? लास!
की गिंजैछी? खून!
की खोजैछी? चैन!
भेटलाह? नहि!
III. कऽ तँऽ बौआई छी? कोने कोने!
कत छिछि आई छी? घाटे घाटे!
की खोजैछी? सुरक्षा!
भेटलाह? नहि!
तहन ......
धैर्य धरू! बुद्ध आवि रहल छथि
बन्दुक ने नहि, शांतिकेँ घिसिओने!
बम् उठौने, चयनकेँ चिचिअबैत!
सुरक्षाकेँ लति अबैत !!!!

सब केव उदास रहैअ!
शीतल झा
सब केव एहिठाम उदास रहैअ,
केव हमर, केव हुनकर, केव अहाँकेँ दास रहैअ!
केब प्रधान, केब महान, केव गणमान्य होइथ,
देखिओन कने नीक जकाँ, ओ ककरो खबास रहैअ!
भाषण तँ मंत्री, प्राज्ञ आ संतकेँ नहि होइक,
उतारि देखु हुनके पर, ओ कोरा नकवास रहैअ!!
जीवित साँसक दम्यमे जे किछु गति दैछ ओ यंत्र लगाए देखलिअ ओ तँ एकटा लास रहैअ!!

हमर संस्कारक गीत
शीतल झा
(१) की गल्ली, की सड़क़, की मन्दिर की मोहाड़?
जखन नाक मूनिक, “पैर बारिक” चलैछी
(२) पोखरि ऐतिहासिक होइक आ धनिकक कोड़ावल
मोहाड़परक घर नमरैत गेलै
पनिआब घटैत गेलै
तहन कोनो मासमे मोन पड़िआइए
शामाक गीत
”गामक अधिकारी तोहे बड़का भैआ हो!
भैआ हाथ दस पोखरि खनाए दहो
चम्पा फूल लगा दहो हो!
(३) एहि ठामक मन्दिर की भेलै?
हाकिम साहेब कब्जाक लेलखिन! आ मूर्त्ति?
ओ तँ चोरा...अ...लेल कै! केँ?
से तँ भयंकर पैघ लोक रहै! आ जयिन जग्गह?
महान् जी बेच लेलखिन! सब?
नहि किछु माइरामकेँ। किछु ओकरे भतिजाकेँ!
तहन, मोन पड़ैअ आ गुनगुनाए लगैछी–
“एहन पतित केर अही पति राखब हे महारानी सीया,
अहीकेँ चरण केर आश् हे महारानी सीया!!

कवि जी तबाह छथि
शीतल झा
कवि जी तबाह छथि हुनकासँ,
गाल परक कारी बुन्कासँ!
कविताक लेल खोजलनि एकटा नारी,
श्रृंगार रस लेल पकड़लनि ओकर साड़ी
कविक नाक टेढ़ भेलनि हुनकर ठुन्कासँ!
कविजी मग्न भेलाह हुनक प्रेम चिन्तामे
मन अटकि गेलनि कखनो केस कखनो फित्तामे
बहकि गेलनि पत्नी पड़ोसीक नन्कासँ!

मिथिलाक दशा ३.शंम्भु नाथ झा ‘वत्स’

मिथिला मैथिल की भए गेलैए
परदेशी व्यवहार सनातन
पश्चातक रङ्ग रङ्गि गेलैए
मिथिला मैथिल की भए गेलैए
कतए गेलैए मण्डण केर गरिमा
विद्यापतिक केर गीत।
पहिरब औढ़ब डिस्को भए गेलैए
विसरि गेलैए सभ रीति।
वेद–मन्त्र केर ध्वनि हता गेलैए
सुनि लिअ फिल्मी तान।
दिन–राति डिस्को लहरीसँ
फाटि रहल अछि कान।
कत गेलैए ओ पाग–दुपट्टा
चन्दन–चर्चित भाल।
साँची धोती–अंगपोछा आ
पावन रेशम शाल।
डिस्को पाछाँ देश बिका गेलैए
बिगड़ि गेलैए संस्कृति।
दुल्हा–दुल्हिन सेहो बदललि
आयल केहैन नव रीति।


• मोनसँ पढ़ू बढ़ू अओ बाउ।
• सीमा हीन क्षितिजमे बढ़ि कए
• अपन लक्ष्य् कए पाउ।
• मोनसँ पढ़ू बढ़ू अओ वाउ।
• जीवन-कठिन तपस्याउ बढ़ि गएल।
• बेरोजगारीक समस्याा बढ़ि गएल।
• मिटए क्ले श देशक जन-जन कए।
• प्रतिभा एहन देखाउ।
• मोनसँ पढ़ू बढ़ू अओ बाउ।
• नेता ठग कए भाषण पढ़ि गएल।
• कपट-कुटिल कुशासन बढ़ि गएल।
• धन-लोलुप भ्रस्ट प्रशासन बढ़ि गएल।
• धवल कीर्त्ति ध्वपज वाहक बनि कए
• राष्ट्र्क अलख जगाउ।
• मोनसँ पढ़ू बढ़ू अओ बाउ।
• बिपत्तिसँ उवरव आस टूटि गएल।
• नेता परसँ विश्वाउस उठि गएल।
• प्रबल राष्ट्र् इतिहास छूटि गएल।
• क्षेत्रवाद सामत्त कहरसँ
• राष्ट्रव कए तुरत‍ वचाउ।
• मौनसँ पढ़ू बढ़ू अओ वाउ।
• अनाचार कुशिक्षा बढ़ि गएल।
• विनु पढ़ाए परीक्षा बढ़ि गएल।
• लुटि-मारि बुमुक्षा बढ़ि गएल।
• देशक अहाँ कर्णधार यो
• बिपदा दूरि भगाउ।
• मोनसँ पढ़ू बढ़ू अओ वाउ।


मिथिलाक बचाउ
शंम्भु नाथ झा ‘वत्स’

हे प्रभो! झटसँ बचाउ हमर मिथिला देशकेँ
विपद् ग्रस्त संत्रस्त जन केर
दूर करू दुःख क्लेशकेँ
श्रृंखला परतंत्रता केर
चिन्ह एखनो नहि छूटल।
शांति केर रोटी सेहो जे
आइ धरि नहि भेट सकल।
जाति–भाषा धर्ममे
भायसँ भाय अछि लड़ि रहल।
कतोक आगिक कुंडमे
धन–जन भसम कए जाए रहल।
सद् बुद्धि समता शांति आ ओर
विश्वास भेटल जाए रहल।
आचार अनुशासन नियम
आदर्श छूटल जाए रहल।
परम्परा–पावन–पुरातन
पतन ओकर भए गेलैए
उपदेश गीता बुद्ध केर
संदेश सुक्ति कतए गेलैए
प्रार्थना भगवानसँ अछि
नेताकेँ सद् बुद्धि दी।
ऐहेन गद्दीसँ ओकरा की
स्वर्ग केर ओ गद्दी दी।


बेरोजगारीक समस्या
शंम्भु नाथ झा ‘वत्स’

अही कहू हम जीवैत छी?
पढ़ि–लिखि घर बैसल छी
घरनीक बात सुनैत छी।
अही कहू हम जीवैत छी?
रोजी रोटीक बात नहि पूछब
महगीक बोझ ढ़ुबैत छी।
दिन–राति फेर काल्हि की खायब
उहैए टा गीत गवैत छी।
अही कहू हम जीवैत छी?
बेर–बेर बहरायल वेकेंसी
आवेदन तए करैत छी।
अंतर्वीक्षा दए फुटपाथपर
ऐखन धरि घुरैत छी।
अही कहू हम जीवैत छी?
पहिरन ओढ़न भए गेलैए गुदरी
फाटल धोती सीवैत छी।
घरनीक ताना सुनि सिनि बुझू
विषक घूंट पीवैत छी।
अही कहू हम जीवैत छी?
हमर दुःखकेँ सुनताह
हम ककरो कहवए की।
हम “शम्भु नाथ” दुःखक गाथा
गीत गावि सुनवैत छी।
कतोक सुनायब दुःखक खिस्सा
कोनो विधि दिन वितवए छी
नहि कोनो काज अछि बैसल–बैसल
किछु सँ किछु लिखैत छी।
अही कहू हम जीवैत छी।


परिचय
पण्डित शम्भुनाथ झा “वत्स”
योग्यता साहित्याचार्य, वेदविद् ज्योतिर्विद्
अध्यापन कार्य–१९८४ सँ १९९० धरि
संस्कृत महाविद्यालय, विराट् सरोवर फारबिसगंज अररिया
वर्तमानमे कार्य
कर्मकाण्ड सम्पादन
निवास स्थल
ग्राम–बहोरा, थाना–सरसी, जिला–पूर्णियाँ (बिहार)



१.डॉ. योगानन्दव झा घर



१.डॉ. योगानन्दव झा
परिचय–पत्रक

नाम : योगानन्द– झा
पिता का नाम : स्वा. रामलखन झा
माताक नाम : श्रीमती भाग्यवती देवी
पारिवारिक सदस्य : श्रीमती केवला झा–पत्नी
: श्रीमिलिन्द कुमार झा–पुत्र
: श्रीधीरज कुमार झा–पुत्र
: सुश्री कीर्त्ति झा–पुत्री
जन्म तिथि : 11 जनवरी 1955
स्था यी पता : भगवती स्थाकन मार्ग, कबिलपुर,
लहेरियासराय दरभंगा-846001 (बिहार)
दूरभाष सं. : 06272-244161
चलवार्त्ता सं. : 09334493330
शिक्षा : एम.ए. (मैथिली एवं हिन्दीु), पी.एच.डी.
मातृभाषा : मैथिली
अन्यभ भाषा : हिन्दी9, संस्कृ त, अँग्रेजी, बंगला
एम.ए. मतबन्ध : काष्ठ व्यासवसायिक मैथिली शब्दाँवलीक व्याख्या्त्मीक अध्य यन
शोध प्रबन्घसक विषय : मैथिलीक प्रमुख पारम्प रिक जातीय व्यवसाय (पी.एच.डी. हेतु) सम्ब न्धी शब्दालवलीक व्याख्यात्मक अध्ययन
उत्तीर्ण : यू.जी.सी. राष्ट्री य पात्रता परीक्षा, 1990 कम्यूेतु टर अप्लीरकेशन प्रमाण पत्र परीक्षाDOEAC 2006
वृत्ति : अंकेक्षक, बिहार राज्यत विद्युत् बोर्ड पटना
सदस्यि : भारती कला परिषद्, कबिलपुर
: तुलसी मानस गोष्ठी , कबिलपुर
मिथिला रिसर्च सोसाइटी, कबिलपुर
कर्णामृत, कर्णगोष्ठीक, कोलकाता
चेतना समिति, पटना
अखिल भारतीय साहित्यम परिषद्, नई दिल्ली मिथिला परिषद् भागलपुर
मैथिली लेखक संद्य, पटना
मैथिली भाषा परामर्शदातृ समिति, साहित्यल अकादेमी, नई दिल्ली (1998-2002)
स्था1पित : लक्ष्मील अभिनय (नाट्य संस्था ), कबिलपुर कीर्त्तिलता साहित्य साहित्य8 समिति (प्रकाशन संस्थान)
प्रेरक : पं. श्रीचन्द्र नाथ मिश्र ‘अमर’ (मैथिली कवि)
डा. रामदेव झा (मैथिली कथाकार एवं मनीषी) पं. सुरेन्द्र9 झा ‘सुमन’ (मैथिली कवि-पत्रकार)
डा. सुभद्र झा (विश्वीविख्यानत भाषा शास्त्री )
प्रतिबद्धता : माता, मातृभूमि, मातृभाषा
रंगमंचीय सक्रियता : भारती कला परिषद्, कबिलपुर
लक्ष्मी अभिनयम्, कबिलफर
संकल्प् लोक, लहेरियासराय
रुचि : लोक संस्कृपति एवं साहित्यप, अध्य्यन, शोध-कार्य कविता-कथा-निबन्धह-समालोचनादि
प्रथम रचना : वर्षा (कविता) 1969
प्रथम प्रकाशित कृति : मिथिलाक डोम जाति ओ ओकर जातीय शब्दातवली, मिथिला सांस्कृभतिक परिषद् स्मा रिका, बोकारो, 1982
प्रकाशित कृति : लोकजीवन ओ लोक साहित्यओ (निबन्धव) 1986, परिणीता (कथाकव्यांथश) 1987, फकीर मोहन सेनापति (अनुवाद) 2000, आलेख सञ्चयन (निबन्ध ) 2002, बिहारक लोककथा (अनुवाद) 2003, स्ने हलता (विनिबन्ध) 2006,
मैथिली पत्रकारिताकेँ सौ वर्ष (निबन्ध0) 2006, गहबरगीत (निबन्धृ) 2007,लोक, साहित्यव ओ शब्द,-सम्पगदा (निबन्धस) 2007, मैथिलीक
पारम्प रिक जातीय व्य्वसायक शब्‍दावली (शोघ ग्रन्थत) 2009
सम्पाीदित कृति : संकल्पह स्माघरिका 3,4,5 (वर्ष 1985,87 एवं 89) युगदीप तुलसी 2004, अनमोल भजनावली2005,
मैथिली हनुमान चालीसा, 2007
पुरस्का र : पी.सी.राय चौधरी कृत ‘फाँक टेल्सस ऑफ बिहार’क मैथिली अनुवाद ‘बिहारक लोककथा’ पर साहित्यक अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा 2005 मे पुरस्कृथत
सम्मा न : मिथिला रिसर्च सोसाइटी, कबिलपुर 1970, बिहारी जनसेवा समिति, मुम्ब इ 1986,
श्रीसुमन अभिनन्दपन समिति, वल्ली पुर 1998, विद्यापति समिति, दुमका 2000,
राष्ट्री य शिखर साहित्यि सम्मा्न, साहित्य कार संसद, समस्तीसपुर 2003,2005,2007,
सरस्व्ती समभ्ययर्चना,भारती परिषद् प्रयाग2004, चेतना समिति, पटना 2006,
अखिल भारतीय साहित्यि परिषद्, दरभंगा शाखा 2006,
बिहार स्टेयट इलेक्ट्रिक सप्लायइ वर्कर्स यूनियन, मिथिला क्षेत्र 2008,
सिद्धाश्रम, कलीपीठ, सिमरिया घाट 2008, मिथिला विकास मंच, भागलपुर 2008,
मिथिला सेवा संस्थाटन, खगड़िया 2009,
प्रमुख साहित्यिक गतिविधि : राष्ट्री य-अन्त2:राष्ट्री य संगोष्ठीलमे सहभागिता, आकाशवाणी, दरभंगा से वार्त्ता प्रसारित, साहित्यि अकादेमी अनुवाद कार्यशालामे सहभागी 1990, मैथिली कथा आन्दो्लन, ‘सगर राति दीप
जरय’मे सहभागी, कवि गोष्ठीट एवं काव्यअ संध्याामे सहभागी, साहित्या अकादेमी नई दिल्ली द्वारा प्रस्तादवित यात्रा अनुदानकेँ माध्य्मसँ उड़िया साहित्य एवं संस्कृपतिक परिचय; राष्ट्री य-
अन्तय:राष्ट्री य पत्रिकामे शोध एवं अनुवाद कार्य प्रकाशित; अभिनन्दान ग्रन्थ मे लेखकीय सहयोग आदि ।
अग्रिम प्रकाशन योजना : सुमनजीक स्व देश
अमरजी: सम्पा्दक
मंगल-प्रभात
मैथिली गणकाव्य: श्री सीता–राम विवाह पदावली
मैथिली लोकसंस्काारपरक गीत
वर्षा (कविता संग्रह)
संतसेवीक बोधकथा (अनुवाद)
सुख-दु:ख (अनुवाद)
प्रतिशोध (नाटक)
स्नेिह वाटिका (सम्पानदन)
सीतावतरण (खण्ड) काव्यव)
तीरन्दााज (अनुवाद)
पगधूलि चरित (प्रवचन काव्यड)
डा. रामदेव झा ओ हुनक संजीवनी समालोचना
योगानन्द. झा

घर
भीतेटा चहकल नहि सगरो
चारो धरि उजड़ल अछि
यैह हमर घर केर थिक नकसा
हृदय हमर टूटल अछि

कहिया धरि आशापर जीबइ
कहिया धरि सपनामे
भाग्य -भरोसे निर्यात कते दिन
लड़ब-कटब अपनामे
एहन दशा सभ घरवासी केर
जनु भाग्ये फूटल अछि
यैह हमर घर केर थिक नकसा
हृदय हमर टूटल अछि

जकरा जेम्हूरे अवसर भेटल
कयलक लूट-खसोट
अपन-अपन कऽ सभ अछि चिन्तित
सभहक मनमे खोट
चालनि जे बनि गेल स्वभयं
से सुपहुकेँ दूसल अछि
यैह हमर घर केर थिक नकसा
हृदय हमर टूटल अछि

स्वा र्थक मदमे सभ अछि मातल
अनकर की परवाहि
कहियर धरि ई खतम भऽ सकत
दलित-पीडि़तक आहि
कुकुर-कटाउझि मचल दहोदिश
ओत्तहि सभ जूटल अछि
यैह हमर घर केर थिक नकसा
हृदय हमर टूटल अछि

मन्दिर-मस्जिद रण-प्राङन अछि
धर्मक ककरा ध्याछन
सभहि सुखी सभ रोगमुक्ता नहि
भारत कोना महान
सन्त ति सभ एहि घरमे एखनो
अलस पड़ल सूतल अछि
यैह हमर घर केर थिक नकसा
हृदय हमर टूटल अछि

केओ नृप होय हमे का हानी
कखनो ई संवाद
हमर जाति केर लोक थिका ई
कखनो उठय विवाद
गमलक नहि मघुऋतु शिशिरोमे
अन्त र, कतहु कुशल अछि
यैह हमर घर केर थिक नकसा
हृदय हमर टूटल अछि
कालक नहि लीला ई सभ थिक
ब्रहमक नहि थिक माया
ई करनी मानव-दानव केर
भोग-वृत्ति केर छाया
संघर्षक आह्वान करी तँ
कर्म कतहु रूसल अछि
यैह हमर घर केर थिक नकसा
हृदय हमर टूटल अछि

ताकि रहल छी माटि राष्ट्र केर
माटिक सोन्ह सुगन्धट
संस्कृसति आ संस्कानर अपन
पुनि परम्पहरित अनुबन्ध‍
स्विर्णमुकुट धरणी केर कहिया
ककरोसँ झूसल अछि
यैह हमर घर केर थिक नकसा
हृदय हमर टूटल अछि
पर-पड़ोसी फूट देखि, घर
लुटबा लय तैयार
कखन करयकेँ, नहि जानी
जयचन्दय सरिस व्य वहार
विश्वद भरिक चोरा मुँह बओने
परिखा लग जूटल अछि
यैह हमर घर केर थिक नकसा
हृदय हमर टूटल अछि



बालानां कृते-
१. किछु लघु कहानी आशीष चौधरी २. जगदीश प्रसाद मंडल-किछु लघुकथा ३. देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कॉमिक्स)

आशीष चरैया, अररिया
किछु लघु कहानी

क.1.एकटा कार सँ एकटा चिड़ियाँ टकराए गेल आर बेहोश भऽ गेल।
2.कार मालिक बढ़ियाँ (बड्ड नीक) आदमी छलै।
3.कार मालिक चिड़ियाँ केँ उठाए केर अपन घर आन लक आर चिड़ियाँ केँ पिंजड़ा मे डाएल (बन्द क) देलक।
4.आर सोचलक जखन चिड़ियाँ ठीक भऽ जाएत तखन उड़ाए देब।
5.जखन चिड़ियाँ केँ होश आएल तँ चिड़ियाँ सोचलक लागेये जँ कार मालिक टकराएबे मे (दुर्घटना मे) मरि गेल ये तँ हमरा उम्र केद केँ सजा भऽ गेल ये।


ख.1.जहाज केर अपन उड़ब पर बड्ड (बहुत) घमंड छलै।
2.लेकिन एक दिन जहाज केँ पास सँ एकटा रॉकेट बड्ड तेजि सँ निकलि गेल।
3.जहाज केँ बड्ड हेरानि लागल (भेल) जे हमरो सँ तेज कोई उड़ि सकैत ये।
4.जहाज केँ नहि रहल गेल आर रॉकेट केँ पुछलक भाइ अहाँ एतना तेज कोना उड़ैत छिये?
5.रॉकेट कहलक भाइ जखन अहाँ केँ पाछु मे आगि लागल रहत ने तखन अहों एतना तेज उड़ै लागब।

२. जगदीश प्रसाद मंडल
लघुकथा
21 बुझैक ढ़ंग
एकटा यात्री वृन्दावन विदा भेल। किछु दूर गेला पर रास्ताक बगल मे मीलक पत्थर पर नजरि पड़लै। ओहि मीलक पत्थर मे वृन्दावनक दूरी आ दिशा लिखल छलै। ओ यात्री ओतइ अटकि बैसि रहल आ बजै लगल जे पाथरक अंकन त गल्ती नहि भऽ सकैत अछि किऐक त विश्वासी (बिसवासी) लोकक लिखल छियैक। वृन्दावन त आबिये गेल छी, आगू बढ़ैक की प्रयोजन?’
थोड़े कालक बाद एकटा बुझनिहार आदमी ओहि रस्ते कतौ जाइत रहथि ते सुनलखिन। मन-मन खूब हँसलथि। कने काल ठाढ़ भऽ हँसैत ओहि यात्री कऽ कहलखिन- ‘पाथर पर सिरिफ (सिर्फ) संकेतमात्र अछि। एहिठाम स वृन्दावन बहुत दूर अछि। जँ अहाँ ओतइ जाय चाहै छी त तुरनते सब सामान समेटि विदा भ जाउ नहि त नइ पहुँचव।’
भोला-भाला यात्री अपन भूल मानि विदा भेल।
ऐहन बहुतो लोक छथि जे शास्त्रो पढ़ैत छथि, शास्त्रीय बातो सुनै छथि, मुदा धरम धारण करैक रास्ता पकड़बे ने करैत छथि तखन ओ धर्म कोना बुझथिन। जे धर्म की थिकैक?’
22 श्रमिकक इज्जत
अपन संगी-साथीक संग नेपोलियन टहलै ले जाइत रहथि। जेरगर रहने सैाँसे रास्ता छेकायल छलैक। दोसर दिशि स एकटा घसबाहिनी माथ पर घासक बोझ नेने अबैत छलि। ओहि घसबाहिनी पर सबसँ पहिल नजरि नेपोलियनक पड़लैक। ओ पाछू घुरि क देखल। सैाँसे रास्ता घेरायल छलैक। अपन पैछला संगीक हाथ पकड़ि खिंचैत कहलखिन- ‘श्रमिकक सम्मान करु। एक भाग रास्ता खाली कऽ दिऔक। यैह देशक अमूल्य संपत्ति थिक। ऐकरे बले कोनो देशक उन्नति होइत छैक।’
घसबाहिनी टपि गेलि। थोड़े आगू बढ़ला पर पुनः नेपोलियन संगीसभ सँ कहलखिन-‘सद्प्रवृत्ति कऽ बढ़ेबाक चाही। ओकरा जत्ते महत्व देबैक ओत्ते जन-उत्साह जगतैक। जहि स देशक कल्याण हेतैक।’
23 वंश (कुल)
एक दिन महान् विचारक सिसरो कऽ एकटा धनिक सरदार स कोनो बाते कहा-सुनी हुअए लगलनि। ने ओ धनिक पाछू हटै ले तैयार आ ने सिसरो। दुनूक बीच पकड़ा-पकड़ीक नौबत अबै लगलै। खिसिया क ओ धनिक सिसरो कऽ कहलक- ‘तूँ नीच कुलक छेँ, तेँ तोरा-हमरा कथीक बराबरी?’ एहि बात स सिसरो बिचलित नहि भऽ साहस स उत्तर देलखिन- ‘हमरा कुलक कुलीनता हमरा स शुरु हैत जबकि तोरा कुलक कुलीनता तोरा स अंत हेतौ।’
सभ्यता आ कुलीनता जन्म स नहि बल्कि चरित्र आ कर्तव्य स पैदा लैत अछि।
24 तियाग (त्याग)
सत्संग, भागवत आ प्रवचन मे बेरि-बेरि तियागक महिमाक चर्चा होइत। त्याग क ईश्वर प्राप्तिक रास्ता बताओल जाइत। बेरि-बरि जरायुध एहि चरचा के सुनैत। तेँ मन मे बिसवास भऽ गेलनि जे सत्ते तियाग स ईश्वर प्राप्ति होइत। ओ (जरायुध) अपन सब सम्पत्ति दान कऽ देलखिन। मुदा दान केलो उपरान्त हुनका ने मन मे शान्ति एलनि आ ने ईश्वर भेटिलनि। निराश भ जरायुध महाज्ञानी शुकदेव लग पहुँच पूछल-‘जनक त संग्रही छलाह मुदा तइयो हुनका ब्रह्मज्ञान प्राप्ति भऽ गेल छलनि आ हम सब कुछ तियागियो के ने ब्रह्मज्ञान पाबि सकलहुँ आ ने शान्ति भेटल। एकर की कारण छैक?’
ध्यान स जरायुधक बात सुनि सुकदेव उत्तर देलखिन- ‘आवश्यक वस्तु कऽ परमार्थ मे लगा देव त नैतिक आ सामाजिक कर्तव्य बुझल जाइत। आध्यात्मिक स्तरक त्याग मे सब वस्तुक ममत्व छोड़ि ओकरा ईश्वरक घरोहर बुझै पड़त। शरीर आ मन सेहो सम्पदा छी। ओकरा ईश्वरक अमानत मानि हुनके इच्छानुसार कयला पर बुझबै जे सही त्याग भेलि आ मोक्षक रास्ता भेटत।’
25 सद्विचार
एकटा न्यायप्रिय राजा साधुक भेस (वेष) मे अपन प्रजाक कुशल-क्षेम बुझैक लेल निकललथि। जहिया कहियो ओ (राजा) साधुक भेस मे निकलथि तहिया सिर्फ एकटा मंत्री क चेलाक रुप मे संग क लथि। ने अंगरक्षक रहनि आ ने अमिला-फमिला। आ ने ककरो जानकारी दथिन।
बहुतो गोटे स सम्पर्क करैत राजा एकटा बगीचा मे पहुँचलाह। ओहि बगीचा मे एकटा वृद्ध किसान नवका (बच्चा) गाछ रोपैत रहैत। गाछ देखि राजा किसान कऽ पूछलखिन- ‘ई त अखरोटक गाछ बुझि पड़ैत अछि।’
मुस्कुराइत किसानकहलकनि- ‘हँ भैया! अहाँक अनुमान बिलकुल ठीक अछि।’
‘बीस-पच्चीस बर्खक गाछ भेला पर अखरोट फड़ैत छैक, ताधरि अहाँ जीविते रहब?’
‘एहि बगीचा क हमर बाप-दादा लगौने छथि। खून-पसीना एक क कऽ एकरा पटौलनि, देखभाल केलनि। जेकर फड़ हम सब खाइ छी। तेँ आब हमरो कर्तव्य बनैत अछि जे ओते हमहू रोपि दियैक। अपने टा ले गाछ लगौनाइ त स्वार्थक बात भऽ जाइत छैक। हम ई नहि सोचै छी जे आइ एहि गाछक उपयोगिता की छैक? भविष्य मे दोसर क फल दइ, वस यैह इच्छा अछि।’
किसानक विचार सुनि राजा मंत्री कऽ कहलखिन- ‘जँ एहिना सब बुझै लगै जे हमरा लगबै स मतलब अछि त समाजो आ परिवारो मे सद्वियार पसरि जायत। जाधरि समाज मे सद्वृत्तिक प्रसार (पसार) नइ हैत ताधरि नीक समाज बनब, मात्र कल्पना रहत।’
26 साहस
सोंवियत संघक नेता लेनिन पर, एकटा सिरफिरा पेस्तौल चला देलकनि गोली त निकलि गेलनि मुदा छर्रा (छर्रा) गरदनि मे फँसले रहि गेलनि। तहि बीच देश मे एकटा पुल टुटि गेलै। पुल मुख्य मार्ग मे छलै। तेँ जत्ते जल्दी भऽ सकैत ओते जल्दी पुल बनायब छलैक। आपात् स्थिति घोषित कऽ ओहि पुलक मरम्मत युद्धस्तर पर हुअए लगलैक। देशप्रेमी जनता ओहि काज मे लगि गेल। लेनिन सेहो ओहि काज मे जुटल। श्रमिकेक जेँका लेनिनो काज करैत रहथि। गरदनि मे गोली रहनहुँ ओ बीस-बीस घंटा काज करति रहथि। काज करैत देखि एकटा श्रमिक पूछलकनि तखन ओ कहलखिन- ‘अगर हम अगुआ भऽ काज मे पाछू रहब तखन जन उत्साह कोना बढ़तै?जकर जरुरत देश मे अछि।’
बरदास्त

अब्राहम लिंकन अमेरिकाक राष्टपति रहथि। हुनक पत्नी चिड़चिड़ा आ कठोर स्वभावक छलथिन। जहि स लिंकनक परिवारिक जीवन दुःखमय छलनि। कैक दिन ऐहन होइत छलैक जे जखन परिवारक सब सुति रहैत छलै तखन ओ (लिंकन) चुपचाप पैछला दरवाजा स आबि सुइत रहैत छलाह। आ सुरुज उगै स पहिनहि तैयार भ निकलि आॅफिस चलि जाइत छलाह। दिन भरि अपन कार्य मे मस्त भ¬ऽ बीता लैत छलाह। संगी-साथीक संग हँसी-मजाक क मन बहला लैत छलाह।
एक दिन परिवारक एकटा नोकर केँ हुनक पत्नी गारिओ पढ़लखिन आ फटकारबो केलखिन। ओहि नोकर कऽ बड़ दुख भेलैक। ओ कोठी स निकलि सोझे लिंकनक आॅफिस जा सब बात कहलकनि। नोकरक सब बात सुनि लिंकन कहलखिन- ‘अए भले आदमी! पनरह बर्ख स हम एहि परिस्थिति स मुकाबला करैत शान्ति स रहैत एलहुँ। आ अहाँ एक्के दिनक फटकार मे एत्ते दुखी भऽ गलहुँ। बरदास्त क लिअ।’
अचताइत-पचताइत वेचारा नोकर लिंकनक बात मानि लेलक।
27 भूल
प्रख्यात दार्शनिक बरटेªण्ड रसेल अपन जीवनी मे लिखने छथि, जे हमर पहिल स्त्री सचमुच विचारबान छलीह। जखन ओ मन पड़ैत छथि तखन हृदय दहकि जाइत अछि। दुनू गोटेक बीच अगाध प्रेम छल। एक दिन कोनो बाते दुनू गोटेक बीच अनबन भऽ गेल। खिसिया कऽ हम बिनु खेनहि आॅफिस विदा भऽ गेलहु। रास्ता मे एकाएक मन मे उपकल जे अपन क्रोधक बात पत्नी कऽ कहि दिअनि। रस्ते स घुरि गेलहुँ। घुरि कऽ घर ऐला पर पत्नी घुरैक कारण पूछलनि। हमर क्रोध आरो उग्र भऽ गेल। हम कहलिएनि- ‘आब अहाॅ लेल हमरा हृदय मे मिसिओ भरि जगह नहि अछि।’ पतिक बात सुनि पत्नी स्तब्ध भऽ गेलि, मुदा किछु बाजलि नहि। बेचारीक हृदय मे ई बात जरुर पकड़ि लेलकनि जे हमरा ओ (पति) कपटी बुझैत छथि। आइ धरि हम भ्रम मे छलहुॅ। दुनूक बीच खाई बढ़़ैत गेलइ। होइत-होइत पति पत्नी क तलाक द देलक। वेचारी रसेलक घर स सदा-सदाक लेल चलि गेलि

28 धैर्य
इंग्लैंडक प्रसिद्ध विद्वान टामस कूपर अंग्रेजीक शब्दकोष तैयार करति रहथि। काज मे ओ (कूपर) तेना ने लीन भऽ गेल रहथि जे घरक कोनो सुधिये-बुधिये ने रहनि। पत्नी कँे घरक सरंजाम जुटबै मे परेशानी होइन, तेँ ओ पति पर खूब बिगड़थि। मुदा तकर कोनो असरि कूपर कऽ नहि होइन। एक दिन कूपर कतौ गेल रहथि, तहि बीच पत्नी खिसिया कऽ शब्दकोषक सब काॅपि जरा देलकनि। जखन ओ घुरि क अयलाह ते देखलखिन जे बरसोक मेहनत जरि गेल। मुदा धैर्य एत्ते प्रबल रहनि जे एको मिसिया तामस नहि उठलनि। ने एकोरत्त्ी पत्नी पर बिगड़लखिन आ ने अफसोस केलनि। मुस्कुराइत सिर्फ एतबे कहलखिन- ‘आठ बर्खक काज अहाँ आरो बढ़ा देलहुँ।’
29 मनुष्यक मूल्य
एक दिन सिकन्दर आ अरस्तू कतौ जाइत रहथि। रास्ता मे एकटा नदी छल। जहि नदी मे नाओ पर पार हुअए पड़ैत छलैक। पहिने अरस्तू पार हुअए चहैत छलाह मुदा सिकन्दर हुनका रोकि अपने पार भेलाह। जखन सिकन्दर दोसर पार गेलाह तखन अरस्तू कऽ पार हुअए कहलखिन। पार भेला पर अरस्तू सिकन्दर के पूछलखिन-‘पहिने हमरा पार हुअए स किऐक मना केलहुँ?’
हँसैत सिकन्दर उत्तर देलखिन- ‘अगर हम नदी मे डूबि जइतहुँ तइओ अहाँ हमरा सन-सन दशो सिकन्दर पैदा क सकै छी, मुदा जँ अहाँ डूबि जइतहुँ त हमरा सन-सन दशो टा सिकन्दर बुते एकटा अरस्तू नहि बनाओल भऽ सकैत अछि।’
सिकन्दरक बिचार सुनि अरस्तू अपन जिनगीक मूल्य बुझलनि।

30 मदति नइ चाही।
ग्रीस (मिश्र) मे एकटा किलेन्थिस नामक लड़का एथेंसक तत्ववेत्ता जीनोक पाठशाला मे पढ़ैत छल। किलेन्थिस बड़ गरीब छल। ने खाइक कोनो ठेकान आ ने देह झाँपैक लेल वस्त्रक। मुदा पाठशाला मे सही समय पर फीस दऽ दैत। पढ़ै मे चन्सगर रहने सुभ्यस्त परिवार सभक विद्यार्थी ओकरा स ईष्र्या करैत। किलेन्थिस कऽ दबबैक लेल एकटा षड्यंत्र ओ सब रचलक। षड्यंत्र यैह जे ओ (किलेन्थिस) पाठशाला मे जे फीस दैत अछि ओ चोरा क अनैत अछि। चोरीक मुकदमा किलेन्थिस पर भेलै। पुलिस पकड़ि कऽ जहल लऽ गेलै। जखन ओकरा न्यायालय मे हाजिर कयल गेलै तखन ओ जज केँ कहलक- ‘हम निरदोस (निर्दोष) छी। हमरा फँसाओल गेल अछि। तेँ हम अपन वयानक लेल दू टा गवाही न्यायालय मे देब।’
जजक आदेश स दुनू गवाही बजाओल गेल। पहिल गवाही एकटा माली छल आ दोसर वृद्धा औरत। माली स पूछल गेल। माली कहलकै- ‘सब दिन ई लड़का हमरा बगीचा मे आबि इनार स पाइन भरि-भरि गाछ पटा दैत अछि। जकरा बदला मे हम मजूरी दैत छियैक। तखन वृद्धा स पूछल गेल। ओ वृद्धा कहलकै- ‘हम वृद्धा छी। हमरा परिवार मे क्यो काज करैवला नहि अछि। सब दिन ई बच्चा आबि गहूम पीसि दैत अछि, जकरा बदला मे मजूरी दैत छियैक।’
गवाहीक बयान सुनि जज मुकदमा समाप्त करैत सरकारी सहायता स पढ़ैक लेल सेहो आदेश देलक। परन्तु किलेन्थिस सरकारी सहायता लइ स इनकार करैत कहलक- ‘हम स्वयं मेहनत कऽ पढ़ब तेँ हमरा दान नहि चाही। हमरा माता-पिता कहने छथि जे मनुष्य कऽ स्वावलंबी बनि जीबाक चाही।


३.देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।
विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा “जंग” प्रकाशित (2004 ई.)

नताशा:
(नीचाँक कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पढ़ू)
नताशा पैंतीस

नताशा छत्तीस

नताशा सैंतीस


बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.)
Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
इंग्लिश-मैथिली-कोष / मैथिली-इंग्लिश-कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदानई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।
विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
नेपाल आ भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश,बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश,वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी,जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत,योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु,तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले,चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन),पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)

2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६



VIDEHA FOR NON-RESIDENT MAITHILS(Festivals of Mithila date-list)

8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1.Original Maithili Poem by Smt.Shefalika Varma,Translated into English byDr.Anamika
8.2.1. Yogendra Yadava- MAITHILI 2. Sindhu Poudyal-Mithila :- mother land of Navya- Nyaya Language.

DATE-LIST (year- 2009-10)

(१४१७ साल)

Marriage Days:

Nov.2009- 19, 22, 23, 27

May 2010- 28, 30

June 2010- 2, 3, 6, 7, 9, 13, 17, 18, 20, 21,23, 24, 25, 27, 28, 30

July 2010- 1, 8, 9, 14

Upanayana Days: June 2010- 21,22

Dviragaman Din:

November 2009- 18, 19, 23, 27, 29

December 2009- 2, 4, 6

Feb 2010- 15, 18, 19, 21, 22, 24, 25

March 2010- 1, 4, 5

Mundan Din:

November 2009- 18, 19, 23

December 2009- 3

Jan 2010- 18, 22

Feb 2010- 3, 15, 25, 26

March 2010- 3, 5

June 2010- 2, 21

July 2010- 1

FESTIVALS OF MITHILA

Mauna Panchami-12 July

Madhushravani-24 July

Nag Panchami-26 Jul

Raksha Bandhan-5 Aug

Krishnastami-13-14 Aug

Kushi Amavasya- 20 August

Hartalika Teej- 23 Aug

ChauthChandra-23 Aug

Karma Dharma Ekadashi-31 August

Indra Pooja Aarambh- 1 September

Anant Caturdashi- 3 Sep

Pitri Paksha begins- 5 Sep

Jimootavahan Vrata/ Jitia-11 Sep

Matri Navami- 13 Sep

Vishwakarma Pooja-17Sep

Kalashsthapan-19 Sep

Belnauti- 24 September

Mahastami- 26 Sep

Maha Navami - 27 September

Vijaya Dashami- 28 September

Kojagara- 3 Oct

Dhanteras- 15 Oct

Chaturdashi-27 Oct

Diyabati/Deepavali/Shyama Pooja-17 Oct

Annakoota/ Govardhana Pooja-18 Oct

Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-20 Oct

Chhathi- -24 Oct

Akshyay Navami- 27 Oct

Devotthan Ekadashi- 29 Oct

Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 2 Nov

Somvari Amavasya Vrata-16 Nov

Vivaha Panchami- 21 Nov

Ravi vrat arambh-22 Nov

Navanna Parvana-25 Nov

Naraknivaran chaturdashi-13 Jan

Makara/ Teela Sankranti-14 Jan

Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 20 Jan

Mahashivaratri-12 Feb

Fagua-28 Feb

Holi-1 Mar

Ram Navami-24 March

Mesha Sankranti-Satuani-14 April

Jurishital-15 April

Ravi Brat Ant-25 April

Akshaya Tritiya-16 May

Janaki Navami- 22 May

Vat Savitri-barasait-12 June

Ganga Dashhara-21 June

Hari Sayan Ekadashi- 21 Jul
Guru Poornima-25 Jul

Original Maithili Poem by Smt.Shefalika Varma,Translated into English by Translated by ………
Translated by Dr. Anamika
Dept. of English
Satyawati college, Ashok

Unquenched thirst
Dr. shefalika verma


I asked for a drop of water
My thirst loomed larger than the ocean
A maid in penance I was
Nothing could lure me , for sure.
Clouds floated by without a drop of rain
In my yard
Yet my heart knew no cpmlaints
My heals hot on desert sands
Di not even crave
For a shadow

Away from shore
Caught up in a whirlpool
I leapt up like a wave
With woes unsung
And glories all undone
My dreams were drenched in
The rain of tears
I held my pain in a drop
Unshed

The rays of light scattered
With many ifs and buts
How could you tell the fragrence
From the flower ?
I was crushed in the arms of darkness

Wherever you are I am here
With you
Nothing in or beyond life
Can break us apart
Even when you are not around
My songs of sufferings
Keep us bond…………….

Translated by Dr. Anamika
Dept. of English
Satyawati college, Ashok Vihar
Delhi University

1.
1. Yogendra Yadava- MAITHILI 2. Sindhu Poudyal-Mithila:- mother land of Navya- Nyaya Language.




1. Yogendra Yadava
MAITHILI[1]
1. Background information
1.1 Alternative names
As its name implies, Maithili is, properly speaking, a language of Mithila, the prehistoric ancient kingdom, which was ruled by King Janak and was the birthplace of Janaki or Sita (Lord Ram's concubine). This region was also called Tairabhukti, the ancient name of Tirhut comprising both Darbhanga and Muzaffarpur districts of Bihar, India. Mithila is now a region located in north Bihar (India) and the south-eastern part Nepal Terai, where its speakers have been residing since the ancient times. It has also been alternatively called Mithilaa Bhaakhaa, Tirhutiyaa, Dehaati,Thethi, Avahata or Apabhramsa.

1.2 Affiliation
There has been some controversy regarding the genetic affiliation of Maithili. According to Grierson (1981, 1903) and others, this language belongs to the Eastern subgroup of the Indo-Aryan group within the Indo-Iranian branch of the Indo-European language family besides Oriya, Bengali, and Assamese. Jeffers (1976; as cited in Yadav (1996:5)), however, places Maithili among “Bihari languages”, along with Bhojpuri and Magadhi. Maithili thus forms a subgroup with Bhojpuri and Magadhi and is linguistically closer to Assamese, Bangla, and Oriya than to its more contiguous languages, namely, Hindi and Nepali, which belong to the Central and Western subgroups of Indo-Aryan, respectively.

1.3 Geographic spread and number of speakers
The Maithili language is spoken mainly in the northeastern part of Indian state of Bihar and eastern part of Nepal's Terai region. There are also Maithili speaking minorities in adjoining Indian states like West Bengal, Maharashtra and Madhya Pradesh and the central Nepal’s Terai.
There have been reported 31,900,000 (2000 census) and 2,800,000 (2001 census) Maithili speakers in India and Nepal, respectively, totalling 34,700,000. Maithili ranks 31st among the world’s languages in terms of number of speakers (http://www.ethnologue.com/show_language.asp?code=mai).
Besides, the Maithili language is also spoken by many others as a second language in India and Nepal. In Nepal, it is the language of approximately 12.3 percent of the total population and figures second in terms of the number of speakers- next only to Nepali, the only official language.

1.4 Linguogeographical information
1.4.1 Principal dialects
Being a cross-border language and having contact with different languages, Maithili exhibits different dialectal variations in India and Nepal. According to S. Jha (1958:5-6), there exist seven regional dialects of Maithili in India. They are the standard, southern, eastern, Chikachiki, western, Jolhi, and the central colloquial dialects. Of them, standard Maithili is spoken in the north of Darbhanga district (Bihar state, India), which now forms the part of the Madhubani district. So far little attempt has been made to study the social dialects of the language.
It may, however, be said that Maithili exhibits social variations in its pronunciation, vocabulary and grammar in terms of the speaker's caste, sex, education, interpersonal relationship, and other social factors.
In Nepal a preliminary study reveals that there are three regional dialects: eastern (Morang and Sunsari districts), central (Saptari, Siraha, Dhanusha and eastern Mohattari districticts) and western (western Mahottari, Sarlahi and eastern Rauthat districts). There are approximately two social dialects of Maithili in Nepal: Brahmin and non-Brahmin although there are also observable some ethnic variations. These variations are, however, just approximations and need to be verified with a sociolinguistic survey.

1.4.2 Sociolinguistic situation
1.4.2.1 Communicative and functional status of the language
In both India and Nepal Maithili is predominantly used in all the contexts of role relationship of home domain within its speech community (Yadav 1990:225). It also functions as lingua franca in communicating with non-Maithili speakers such as Hindi, Urdu and Nepali speakers in the region.
Recently it has been included in the Eighth Schedule of the Indian Constitution. In Nepal the Interim Constitution (2007) has recognized it as a national language like other mother tongues spoken in the country. Despite this Maithili has received no status of official language in both the countries though there has been strong thrust on making it a medium of provincial administration in Nepal’s forthcoming federal constitution.

1.4.2.2 Level of standardization
Maithili has a long tradition of written literature. As a result, the language used by great Maithili writers has been accepted as standard. Besides, Maithili is rich in vocabulary and has standard dictionaries and grammar. It has, however, been realized that the colloquial Maithili be recognized as standard as it has been used by most of its speakers. It would be a political anachronism to accept the variety of Maithili used by a few elites as standard.
There has also been an effort for reforming Maithili spellings which differ from modern spoken Maithili.

1.4.2.3. Using in education
In India Maithili has been taught as subject from secondary to doctoral levels as subject. In Nepal, however, it has been recently been introduced as subject from the primary to higher levels of education. Under the Education for All national programme of Nepal Maithili is soon going to be used as medium of instruction in primary education for reasons such as ease in learning and quality education.
Both PEN (Poets, Essayists, Novelists) and Sahitya Akademi have recognized Maithili as the 16th largest language of India and has been included in the Eighth Schedule of the Indian constitution.

1.5 Writing type
Previously, Maithili had its own script, called Mithilakshar or Tirhuta, which originated fromBrahmi (of the third century B.C. Asokan inscription) via the proto-Bengali script and its similar to the modern Bengali and Oriya writing systers. Besides the Mithilakshar script, the Kaithi script was also used by Kayasthas (belonging to a caste of writers and clerks), especially in keeping written records at government and private levels. These two scripts are now almost abandoned. For the sake of ease in learnability and printing (and also perhaps under the influence of the Hindi writing system), they have been gradually replaced by the Devanagari script used in writing Hindi, Nepali and some other languages of both Indo-Aryan and Tibeto-Burman stocks spoken in adjoining areas.

1.6 Brief periodization of the history of the language
Like other Indo-Aryan languages, Maithili is believed to have evolved from Vedic and Classical Sanskrit through several intermediate stages of Magadhi Prakrit, Proto-Maithili andApabhramshas. It emerged as a distinct modern Indo-Aryan language between A.D.1000 and 1200.
Maithili has a long rich tradition of written literature in both India and Nepal. The earliest written record can be traced back as early as Vernaratnaakara, the oldest prose text in Maithili written by Jyotdirisvara Kavisekharacharya in the 14th century. The most famous Maithili writer is Vidyapati Thakur, popularly known as Mahakavi Vidyapati. Apart from being a great Sanskrit writer, he composed melodious poems in Maithili, entitled Vidyapati Padavali, which mainly deal with the love between Radha and Krishna. It is this anthology of poems that has made him popular and immortal to the present day.
Maithili flourished in its region and even outside till the 16th century. It was used in all socio-cultural activities by its speakers. It had the status of being used as mother tongue by the-then royal dynasties such as Karnatas, Oinibars, and khandwalas in Mithila, Mallas in Nepal and Sens in Morang (now a district of Nepal) (Jha 1999: iv). Maithili was also practised as a court language in the Kathmandu valley during Malla period. Several literary works (especially dramas and songs) and inscriptions in Maithili are still preserved at the National Archives in Kathmandu.
It also served as a lingua franca in the south-east Bihar (India), north-east Nepal, and also Bengal, Orissa and Assam.
In the present context there have been literary writings in all literary genres, especially poetry, plays, and fiction, from both Indian and Nepalese writers. Apart from literature, Maithili writers have also been contributing to other fields like culture, history, journalism, linguistics, etc.
In addition to written texts, Maithili has an enormous stock of oral literature in the forms of folktales in both prose and verse, ballads, songs, etc. Of them the ballads of Ras Lila (expressing the love between Radha and Krishna) and Salhes (a prehistoric king) are well known specimens.

1.7 Linguistic phenomena likely conditioned by contacts with other languages
Maithili speech community is more or less multilingual. Consequently, it has been influenced by the languages in contact, viz. Hindi/Urdu in India and Nepali/Hindi in Nepal.

2.0.0. Grammar / Structure
2.1.0. Phonology
Not all the characters in Maithili script are distinctive and phonemic. For example, theDevanagari alphabet makes short/long vowel contrasts, but they are not distinctive at the phonological level of the Maithili languages; that is to say, Maithili has only short vowels and no long ones. Besides, each consonant in writing incorporates the inherent vowel [ə], which is pronounced with the consonant in isolation but dropped if it occurs with other vowels in the sequence of a word.
Except for a few, all consonants are pronounced like their symbols. The consonants that are spoken differently are: =[s]; =[kri];=[gya]; and =[kcha]. Maithili writing also uses diacritical marks like the chandrabindu [ँ]or anuswar [ं] for nasalization of a vowel.

2.1.1. Inventory of phonemes
There exist 26 consonants and eight oral vowels in Maithili:
Table1: Consonants (Yadav 19984, 1996)
Bilingual Dental Retroflex Palatal Velar Glottal
Stops p pʰ b bʰ t tʰ d dʰ t̺ t̺ʰ d̺ d̺ʰ k kʰ g gʰ
Affricates c cʰ j jʰ
Nasals m n N
Tap R
Fricatives S h
Lateral L
Approxi-mants (w) (y)
Table 2: Pure Vowels (Yadav 1984, 1996)
Front Central Back
High i u
Mid e ə o
Low ӕ a ɔ
Maithili also has a few diphthongs. Both pure vowels and diphthongs can be nasalized and are phonemic.
The germination of consonants is an important feature of the Maithili sound system. A consonant is geminated intervocally if the preceding vowel is stressed, e.g., sukkha 'draught', but *gi'rra (gi'ra) 'cause to fall' (Yadav 1996: 29-30). Stress is, however, not very significant in Maithili and has a marginal role in differentiating words. Consonant clusters in Maithili are more common in formal educated speech than in informal uneducated speech.

2.2.2. Morphophonology
The morphophonemic alternations that are very productive in Maithili include schwa /ə/ deletion (e.g., sərək-e →[sərk-e] 'only the road') and a →ə (e.g., kam-ai →kəm-ai 'salary') (Yadav 1996: 51-59; also Jha 2001).

2.3 Lexical borrowings
Most of the foreign words in Maithili have been borrowed from Sanskrit. Technical terms are mostly loanwords from English.
From Sanskrit: ədətt 'extreme', ənərgəl 'improper', əbəstha 'age', ar 'and'
From Persian: ədna 'not related', ədalət 'civil court', admi 'human being'
From English: tisən 'station', pen 'pen' kapi 'copy; notebook', tebul 'table'

2.4.0. Parts of speech
2.4.1. Nominal Morphology
The pronouns of Maithili distinguish person, honorificity (glossed in the article as "hh" for high honorifics, “h” for honorific, "mh" for middle honorifics, and "nh" for non-honorifics ), proximity and case:
Nominative Dative Genitive
1 ham hamraa hamar
2nh tun toraa tohar
2mh ton toraa tohar
2h ahaan əhaa-ken ahaan-k
2hh indirect apne apne-ken apne-k
3nh proximate i ekraa ekar
3nh remote u okraa okar
3h/hh proximate i hinkaa hinak
3h/hh remote o hunkaa hunak
With regard to most categories, pronouns are equally or less differentiated than verbal inflections. They are less specific with regard to the "honorific" vs "non-honorific" distinction among third person, which are registered as -aith and -athinh, respectively, on the verb. In either case, the pronoun is o. Moreover, if third person reference is proximate, all honorificity (h) distinctions are neutralized to i. Among second persons, pronouns are equally discriminatory as verb forms. However, the distinction between honorific əhaan and high-honorific apne is not encoded synthetically. Rather, apne combines with a periphrastic passive-like construction that contrasts with the active form agreeing with ahaan: apne pad̺h-al ge-l-aik. (2hhN read-PCL AUX-PT-3)'You (hh) were reading', vs. ahaan padh-ait cha-l- aunh. (2hN read-IP AUX-PT-3) 'You were reading.'
Mid- and non-honorific second persons are differentiated by tun vs. ton, respectively, but this contrast is not always maintained. It is especially among lower-caste speakers (Bickel et al. 1999).
This distinction between honorific degrees is not limited to pronouns. Proper nouns can be marked by an honorific (h) suffix (-ji) or a non-honorific (nh) suffix (-jaa, -baa, -maa), triggering corresponding verb inflection. Hari-ji bhajan gab-ait ch-aith (H.-h religious.song sing-IP AUX- 3hN) 'Hariʰ is singing a bhajan, honorific form', Hari-yaa bhajan gab-ait ai-ch (H.-nh religious.song sing-IP 3-AUX) 'Hariⁿʰ is singing a bhajan, non honorific form.' Without such making, a name has a neutral to mid-honorific value. Common nouns sometimes differentiate an honorific and non-honorific lexical form, such as bauaa 'boyʰ' vs. chauraa 'boyⁿʰ', or daiyaa 'girlʰ' vs. chauri 'girlⁿʰ'.
Grammatical gender in Miathili nouns is rather very much restricted both as a morphological category and as a syntactic category. There exist declensions like -i (chauraa 'boy'/ chauri 'girl'), -aain (guru/guruain 'teacher masculine/feminine'), etc., but they are confined to a limited number of nouns and do not apply across the board. Maithili pronominals do not encode gender distinctions at all. But in highly formal speech, Maithili verbs encode, as a syntactic category, the feminine gender associated with third person honorific nouns and pronouns in past and future tenses: o daur-l-ih/daur-t-ih. (3h run-PAST-3hN: FEM run-FUT-3hN: FEM) 'She ran/will run', o daur-l-aith/daur-t-ah. (3h run –PT-3hN run-FUT-3hN) 'He ran/will run'. It is to be noted, however, that unlike Hindi and Nepali, possessive modifiers do not agree with their nominal heads in gender: okar pati/patni 'his/her husband/wife'. However, if the modifier is an adjective it does agree with its human head noun in gender: okar pahilkaa betaa/ okar pahilki beti 'his/her first son/ his/her first daughter'.
Both Maithili nouns and pronouns are formed plural by taking sab(h), which has been grammaticalized from a full form sab(h)’all’. Alternatively, they also take lokain as a plural marker in case they are honorific.

2.4.2 Verb Morphology
The most striking feature of Maithili grammar is the extremely complex verbal system. Like other Indo-Aryan languages, Maithili has a polymorphomic inflectional verb paradigm. It consists of several elements normally to the right of the verb stem. Its structure may be expressed as follows: Verb →Stem (Asp) (Suff be) (Asp Suff) (Aux) Tense Agr1 (Agr2) (Agr3), as illustrated in:
(1) hari-ji daur-ait rah-ait cha-l-aah.
Hari-3h run-IP be-IP AUX-PT-3.h
'Hari had been running.'
Maithili verbs encode three tenses: present, past, and future:
(2) a. u cithi likh-ait ai-ch
he letter write-IP pres.3.nh-AUX
‘He writes a letter.’
b. u cithi likh-l-ak
he letter write-PT-3.nh
‘He wrote a letter.’
c. u cithi likh-at
he letter write-FUT.pres.3.nh
‘He will write a letter.’
These three tenses can combine with four aspects: simple, imperfect, progressive and perfect, thereby yielding twelve verb forms (For details see Yadava 1980a).
Unlike most of the Indo-Aryan languages, however, Maithili encodes one of the most complex agreement system of Indo-Aryan languages. In this language, not only nominative and non-nominative subjects, but also objects, other core arguments, and even non-arguments are cross-referenced, allowing for a maximum of three participants encoded by the verb affixes. An example of an intransitive clause where one argument is marked on the verb is ham sut-l-aun (1N sleep-PT-1N) 'I slept'. In a transitive clause, two arguments may be marked on the verb: ham hun-kaa madat kar-l-i-ainh (1N 3h-ACC help do-PT 1N-3h.ACC) 'I helped him'. And a ditransitive verb may have three cross-referenced arguments: ham to-raa hun-ak kitaab de-l-i-au-nh (1N 2mh-ACC 3h-GEN book give-PT-1N-2mhACC-3hGEN) 'I gave his book to you'.
The controllers of verb agreement in all the three types of verb agreement include not only the arguments of a predicate and the possessors but also non-arguments like nominals in postpositional phrases and possessors therein, as well as deictic referents in discourse: ton hun-kaa-lel kaaj kai-l-ah-unh (2mhN 3h-OBL-for work do-PT-2mhN-3hOBL) 'You worked for him (agreement with a non-argument)', ham toh-ar ghar-par ge-l ch-al-i-ah (1N 2mh-GEN house-at go-PCL AUX-PT-1N 2mhGEN) 'I had been to your house (agreement with a possessou)', and ham o-kraa maar-l-i-ah (1N 3nh-ACC beat-PT-1N-2mh) 'I bit him(who is related to you, etc., agreement with a deictic referent)'. However, it has been found that the system is partly reduced by lower caste speakers, who are least interested in maintaining this style, especially its emphasis on hierarchy (Bickel et al 1999; Yadava 2001).
The categories reflected in the morphology are three persons with four honorific degrees and, in the case of third person only, masculine vs. feminine gender, proximate vs. remote spatial distance and in focus vs. out of focus reference. However, not all combinations of category choices are equally represented, and there are many cases of neutralization.
A related issue in Maithili grammar is the optionality of pronouns. Not only the subject pronoun, but also the direct object and possessive within the direct object may be dropped. ham toraa maar-b-au (I-[1] you-[2nh] beat-FUT-1SUB+2nhDO) 'I will beat you' may have the following realizations: toraa maarbau, ham maarbau, or maarbau.
Like other South Asian languages, Maithili nominals involve a rich case system. They encode three types of case markings: zero-marking, clitics and –(a)k +postposition. There are two cases in Maithili that are zero-marked, viz. nominative and accusative with nonhuman nouns: nominative u daur-l-ak (he.NOM run-PT-3nh) 'he ran', accusative u kitaab kin-l-ak. (heNOM book-ACC buy-PT-3nh) 'He bought a book'.
The clitic –ken marks accusative/dative case. Ram chaura-ken maar-l-ak (Ram boy-ACC beat-PAST-3nh) 'Ram beat the boy', hari-ken bhukh laag-al (Hari-DAT hunger feel-PAST) 'Hari felt hungry'. The clitic –(a)k (on nouns and honorific pronouns) and (-(a)r with non-honorific pronouns) mark the genitive case: ham raam-ak ghar dekh-l-i-ainh (Ram-GEN house see-PT-1-3h) 'I saw Ram’s house', ham ahaan-k ghar dekh-l-aunh (I 2h-GEN house see-PT-1) 'I saw yourʰhouse', ham-ar ghar dur ai-ch (my-GEN house far 3-AUX) 'My house is far away'.
The clitic -san marks instrumentals or sources: hari pensil-san likh-l-ak (Hari pencil-INS write-PT-3nh) 'Hari wrote with a pencil', hari-ji apan gaam-san ai-l-aah (Hari-h self village-SRC come-PT-3h) 'Hari came from his village'. The clitics -me and -par mark locatives: hari-ji kothari-me ch-aith (Hari-h room-LOC AUX-PRES.3h) 'Hari is in the room', hari-ji ghar-par ch-aith (Hari-h home-LOC AUX-PRES.3h) 'Hari is at home'. It is to be noted, however, that in contrast to many other Indo-Aryan languages including Hindi and Nepali, Maithili has no ergative case marking.
An example of genitive case marker with a postposition is: ham kitaab-ak-lel/baaste ae-l ch-i (I book-GEN-P come-PCL AUX-PRES.1) 'I have come for the book'.
Like Nepali, Hindi and several other south Asian languages, there is no one-to-one correspondence between cases and grammatical relations in Maithili (Bickel et al 2000). For example, the subject of a clause may take non-nominative case marking and appear in the following cases: dative(DAT), instrumental(INS), genitive(GEN), and locative(LOC), as well as logical subject in a passive constructions: hunkaa bhukh lag-l-ain(h) (3h-DAT hunger-feel-PT-3h)'He felt hungry'. hunkaa cithi likhai-ken cha-l-ain(h) (3h-DAT letter to write be-PT-3hNN) 'He had to write a letter', hunkaa-san i kitaab padh-al nahi bhe-l-ain(h) (3h-INS this book read-PCL not become PT-3hNN) 'He could'nt read this book', hunak paisaa haraa ge-l-ain(h) (3h-GEN money lose go-PT-3hNN) 'He lost his money', hunkaa-me saaphe dayaa nahi ch-ain(h) (3h-LOC at.all mercy not be PRES3hNN) 'He has no mercy at all', hunkaa-san i cithi likh-al ge-l-ain(h) (3h-by this letter write-PCL go-PT-3hNN) 'This letter was written by him'.
There are derivational morphological processes in Maithili which apply to verbs and change their valence. These processes either increase or decrease their arguments.
Causativization is a valence-increasing process. Like Hindi but unlike Nepali, a verb in Maithili employs two types of causative verbs, e.g., kataa-/katbaa- 'have cut by someone/cause someone to have cut by someone'. Furthermore, the first causative is derived from its transitive counterpart kaat- 'cut something', which is further derived from its intransitive form kat- 'cut' (as in 'the tree is cutting well').
Another valence-increasing process is transitivization, whereby an intransitive verb is changed into a transitive verb by adding the suffix –au
(3) a. geetaa daur-l-ih.
Geeta run-PT-3.FEM
‘Geeta ran.’
b. Hari geetaa-ken daur-au-l-ak
Hari Geeta-ACC run-CAUS-PT-3.nh
‘Hari made Geeta run.’
Maithili valence-decreasing devices include passivization and noun incorporation.
There are two types of passivization in Maithili: morphological and periphrastic. The morphological passive is formed by adding the suffix –aa to the verb whereas the periphrastic passive is formed by adding the past participle –al to the main verb which is followed by the verb jaa ‘go’(Yadav 1996:209):
(4) a. ham kitaab kin-l-aunh.
1 book buy-PT-1
‘I bought a book.’
b. ham-raa-sa kitaab kin-ae-l.
1-ACC-by book buy-PASS-PT
‘A book was bought by me.’

c. ham-raa-sa kitaab kin-al ge-l.
1-ACC-by book buy-PCL go-PT
‘A book was bought by me.’
Like several South Asian languages, Maithili also involves noun incorporation as a valence-decreasing device. In this process a verb root combines with a noun root to form a single complex verb (or predicate), thereby decreasing the number of argument:
(5) a. ham aai i kitaab bec-ab
1 today this book sell-FUT.1
‘I’ll sell this book today.’
d. sitaa peshaa-k rup me kitaab bec-ait aich
Sita as a profession book sell-IMP PRES.3.nh-AUX
‘Sita does book selling as a profession.’
A verb in Maithili can be expanded in another way also, namely, in the form of a serial verb construction (often referred to as "compound verb") which involves a sequence of two verbs. The first of these verbs is in the form of conjunctive participle (CP) and may be referred to as a "host", while the second one is in the finite form and may be called a "light verb", e.g.
(6) hari-ji kitaab paedh le-l-aith
Hari-h book read.CP take-PT-3h)
'Hari completed the reading of the book'.
Apart from aspectual functions, serial verbs in Maithili also express other semantic functions, e.g., volitionality and control of the action by the agent as well as the speaker's attitude.
In addition, there exist other types of complex predicates in Maithili. For example, a verb can combine with a noun or adjective to a complex verb:
(7) a. raam cor-ak pichaa kae-l-ak (Noun+Verb)
Ram thief-GEN pursueN do.IP-PT-3nh
'Ram chased the thief.'
b. raam ghar saaph kae-l-ak. (Adjective+Verb)
Ram house clean do-PT-3nh
'Ram cleaned the house.'

2.4.3 Adjectives
Adjectives in Maithili can be used both attributively and predicatively as shown in (a) and (b), respectively:
(8) a. i kitaab nik ai-ch.
this book nice PRES.3.nh-AUX
‘This book is nice.’
b. ham nik kitaab kin-l-aunh.
1 nice book buy-PT-1
‘I bought a nice book.’
They do not inflect for number but sometimes take gender inflections. Unlike Hindi and Nepali, possessive modifiers do not agree with their nominal heads in gender: okar pati/patni'his/her husband/wife'. However, if the modifier is an adjective it does agree with its human head noun in gender: okar pahilkaa betaa/ okar pahilki beti 'his/her first son/ his/her first daughter'.
Unlike English Maithili adjectives do not take comparative and superlative inflections:
(9) a. i gaach namhar ai-ch
this tree tall PRES.3.nh-AUX
‘This tree is tall.’
b. i gaach ohi gaach-san namhar ai-ch
this tree that tree-COMP tall PRES.3.nh-AUX
‘This tree is taller than that one.’

this tree all-COMP tall PRES.3.nh-AUX
‘This tree is the tallest of all.’
However, there exist a few Maithili adjectives of Sanskrit origin which inflect with comparative –ar (e.g. brihat ‘great’> brihat-ar ‘greater’ and superlative –tam (e.g. unc‘high’ > unc-tar>’higher’ >unc-tam ‘highest’.

2.5 Simple clause
The normal order of constituents in Maithili is S(ubject) V(erb) O(bject), e.g., raam kitaab kinat (Ram book will.buy) 'Ram will buy a book(SVO)'. However, these constituents can be permuted in any order: kitaab raam kinat (OSV), kitaab kinat raam (OVS), kinat raam kitaab(VSO), kinat kitaab raam (VOS), and raam kinat kitaab (SVO).
The order SOV is unmarked and stylistically neutral, whereas the various permuted orders are generally accompanied by phonological and semantic effects like topicalization, focusing, afterthought, definiteness, etc (See Yadava 1997).
The freedom of word order also extends to indirect object and adverbials of various types. What is more interesting about Maithili word order is that even elements like adjectives within NPs and auxiliaries within verbal sequences can be permuted with other elements of the sentences: e.g.
(10) gitaa hariyar saari pahir-ne ai-ch
Geeta green sari wear-PERF PRES.3-AUX
'Geeta is wearing a green sari'
This sentence may have the following permutations:
(11) a. gitaa hariyar pahirne aich saari
b. gitaa saari pahirne aich hariyar
The change in word order is not only restricted to simple sentences and phrases in Maithili but also extends to complex sentences. Consider the unmarked order of the constituents in the complex sentence and how the elements of both main and subordinate clause can be juxtaposed with one another: raam hari-ken kitaab padh-baak-lel kah-l-ak (Ram Hari-ACC book read-INF tell-PT-3.nh) 'Ram told Hari to read the book' = hari-ken raam padh-baak-lel kitaab kah-l-ak, etc.
Taking the unmarked order into consideration, Maithili, like all languages of the South Asia sprachbund ('linguistic area'), is a head-final language, whereby we mean that the head of a phrase follows its complements. Thus, the head of a verb phrase (VP) is a verb (V) and it follows its complements (object NP); the head of a postpositional phrase (PP) is a postposition (P) and it follows its complement (object NP); and the head of a noun phrase (NP) is a noun (N) and it follows its complement (genitive marker -ak): raam [VP hari-ken maar-l-ak] (Ram3nhN Hari-ACC beat-PT-3.nh) 'Ram beat Hari', [PPnepaal me] (Nepal in) 'in Nepal', [NP raam-ak kitaab] (Ram-GEN book) 'Ram's book'.

2.6 Complex constructions
In this section we will discuss two major types of complex constructions: coordination and subordination.

2.6.1 Coordination
Maithili has these semantic types of the coordinations (the terms used by Payne (1985) and Liljegren (2008)): conjunction, disjunction and rejection.

Conjunction
The coordinator aa, alternatively aar, is often used to combine two noun phrases, adjective phrases and clauses, as shown in (12a) and (12b), respectively:
(12) a. ham ek-got kitaab aa ( r) du-got kalam kin-l-aunh
1 one-class book and two-class pen buy-PT-1
‘I bought a book and two pens.’
b. i kitaab rucikar aa( r) upyogi ai-ch.
this book interesting and useful PRES.3nh-be
‘This book is interesting and useful.’
c. ham ek-got kathaa padh-l-aunh aa(r) caah pi-l-aunh
1 one-class story read-PT-1 and tea drink-PT-1
‘I read a story and took tea.’
Noun phrases are, however, also conjoined by juxtaposition, in a list-like manner:
(13) ham kitaab kalam kin-l-aunh.
1 book pen buy-PT-1
‘I bought a book and a pen.’
Two clauses can be combined by mudaa to give an adversative meaning to indicate semantic contrast:
(14) hari aai aa-ot mudaa ham ghar par nahi rah-ab.
Hari today come-FUT3nh but I home at not remain-FUT31
‘Hari will come today but I will not be at home.’

Disjunction
Disjunction in Maithili often uses ki or yaa between two alternative noun phrases or clauses:
(15) a. raam bhaat ki/yaa roti khae-t
Ram rice or bread eat-FUT3nh
‘Ram will eat either rice or bread.’
b. raam padha-at ki/yaa TV dekh-at.
Ram read=FUT3nh or TV watch-3nh
‘Ram will either read or watch TV.’

Rejection
Rejection is formed in Maithili by phrase- or clause-initial ne (ta)…ne:
(16) a. raam ne bhaat khae-t ne roti
Ram neither rice eat-FUT3nh nor bread ‘Ram will neither eat rice nor bread.’
b. raam ne padha-at ne TV dekh-at.
Ram neither read=FUT3nh nor TV watch-3nh
‘Ram will neither read nor watch TV.’

2.6.2 Subordination
Maithili has the following types of subordination:
1. Clausal complementation,
2. Relativization,
3. Converbal constructions
4. Adverbial clauses

1. Clausal complementation
One of the major strategies employed in Maithili subordination is complement clauses. It has been found that Maithili has two major forms of complement clauses: finite and non-finite. Both these forms, which can occur as subject or direct object, are selected by the intrinsic properties of the predicates which require them.

(17)raam ghar par ai-ch se se u kah-l-ak.
Ram home at PRES.r.nh-AUX that he.3nh say-PT-3.nh
‘He said that Ram would come home.’
(18)u kah-l-ak je hari bimaar ai-ch.
3nh say-PT-3.nh that Hari sick 3.nh-AUX
‘He said that Hari was sick.’
In these examples the predicate kahab is a verb. There can be non-verbal predicates such as an adjectival or nominal as shown in (19a) and (19b), respectively.
(19) a. raam ghar par ai-ch se se nishcit ai-ch.
Ram home at PRES.3.nh-AUX that certain PRES.3nh-AUX
‘That Ram will come home is certain.’
b. sitaa ghar nahi pahuc-l-ih se tathya ai-ch.
Sita home not reach-PT-3.Fem that fact 3.nh-AUX
‘It is a fact that Sita did not reach home.’


Non-finite clausal complements in Maithili can be one of the following types (Yadav1996):
(i) infinitival
(20) ham kitaab kin-a caah-ait ch-i.
ham book buy-INF want-IMP AUX-PRES.1
‘I want to buy a book.’
(ii) nominalized
(21) hin-kaa padh-ab /padh-naai nik lag-ait ch-ainh
3.h-ACC read-NOM read-NOM good feel-IMP AUX-PRES.3h.ACC
The identical subject in (20) involves equi-NP deletion. Also note that the case of the subject hin-kaa in the nominalized clause of (21) is demoted from nominative to accusative.
A finite complement clause functioning as subject may be extraposed. When extraposed, the complementizer se is replaced by je and expletive i ‘it’ is used as the subject of the matix clause:
(22) a. i nishcit ai-ch je raam ghar par ai-ch
it certain PRES.3.nh that Ram home at PRES.3.nh-AUX
‘It is certain that Ram is at home.’
b. i tathya ai-ch je sitaa ghar nahi pahuc-l-ih
it fact PRES.3.nh-AUX that Sita home not reach-PT-3.FEM

Non-finite complement clauses, however, take no complementizer nor do they involve extraposition.

2. Relativization
A relative clause in Maithili is formed by the use of a relativizer, which is the relative pronounje and its inflected forms. The following examples illustrate the restrictive and the non-restrictive relative clauses respectively:
(23) ham[ je kitaab mahag ch-aek se/u
1 REL book expensive be-PRES.3nh COREL that
nahi le-b
not take-FUT.1
‘I won’t buy the book which is expensive.’
((24) mukesh [je netaa ch-aeth] aai bhasan de-t-aah
Mukesh REL leader be-PRES.3h today speech give-FUT.3h.
‘Mukesh, who is a leader, will deliver a speech today.’
In a restrictive relative clause, the relativizer je(in its various forms) can occur with or without an accompanying common noun:when the latter is present the relativizer serves as a determiner.The NP of the relative clause is coreferential with the head NP of the main clause. The head NP consists of the correlative pronoun se(in its various forms), either with or without an accompanying common noun. Both the relativized and the head NP may be either present or suppressed-depending upon the relative word order of the head noun and the relative clause.The following examples illustrate the Syntactic Strategy used in the formation of the restrictive relative clauses in Maithili: sentences are relative subordinate clauses :
(25) [ je khet hariyar ai-ch] se o/u ham-ar ai-ch
REL field green be- PRES.3.nh COREL that 1-GEN be- PRES.3nh
‘The field that is green is mine.’
(26) u vidyaarthi [je o raait pada-l-ak] (se)o ekhan sut-al ai-ch
that student Rel night read-PT-3nh COREL now asleep PRES.3nh-AUX
‘ The student who read last night is now asleep.’
Basing our analysis on the relative position of the head NP vis-a-vis the relative clause, there are three types of restrictive relative clauses in Maithili; postnominal, prenominal and internal.
Postnominal: In a postnominal relative clause the head NP (consisting of a determiner and a common noun or a personal pronoun) occurs outside the relative clause and the relative clause follows the head NP. The typical word order is thus: determiner + head + relative clause. The examples which follow illustrate:
(27) u maaster [ je iskul me nahi ch-al ] se hat-aa
that teacher REL school in not be-PT.3nh COREL move-CAUS
de-l ge-l
give- PCL go- PT.3nh
‘The teacher who was not in the school was sacked.’
. (28) mithiles-ak bhaai [jin-kar tang rel me kaet
mithilesh-GENIT brother REL(H)-GENIT leg train in cut
ge-l-ainh ] (se) æ-l ch- aith
Go-PT-3h) COREL come-PERF AUX-PRES.3h
‘Mithilesh’s brother whose leg got cut in the train has come.’
Sentences in (27) and (28) are all postnominal relative clauses as the head u maastar(27), and mithiles-ak bhaai (28) occur outside the relative clauses and the relative clauses follow the head NPS. The relative clauses are marked by the relativizer je and its honorific and case – inflected forms. The common noun which might otherwise accompany the relativizer within the relativized NP has been deleted in all sentences .

Prenominal: In a prenominal relative clause the head NP occurs outside the relative clause and the relative clause precedes the head NP. The Typical word order thus is: relative clause + determiner+ head, as exemplified below:
(29) [je kaailh raait naac-əl ] se/ u natuaa
REL yesterday night dance-PT.3nh COREL DEM dancer
akhan sutal ai-ch
now asleep PRES.3nh-AUX
‘The dancer who danced last night is now asleep.’
(30) [ jak-raa ahaan nahi rakh-l-auh ]
REL-ACC/DAT you (H) not keep – PT-2h
tahi/ ohi nokar ke ham raaikh le-l-aunh
COREL DEMONS servant ACC/DAT 1 keep take-PT-1.
‘I have employed the servant whom you did not keep.’
Note that unlike postnominal relative clauses, pronominal relative clauses require that there head NP contain a correlative/demonstrative determiner.

Internal: In an internal relative clause (traditionally known as relative- correlative) the head NP occurs inside the relative clause .The main clause too may have the head NP repeated in it, in which case the head NP is preceded by the correlative- demonstrative-determiner; usually, however, the head NP is deleted and only a correlative-demonstrative-third person pronoun is used. The following examples are illustrative:
(31) [je sherpaa everest par pahine cadh - l ] se/ u tenzing ch-əl
REL sherpa Everest on first climb-PT-3nh REL he Tenjing be-PT.3nh
‘The sherpa who climbed Mt. Everest first was Tenjing.’
(32) [je natuaa raait naac-al ] ok-raa/
REL dancer night dance – PT.3nh 3nh-ACC/DAT
ohi natuaa ke mahendr paac rupaiyaa de-l-thinh.
DEMONS dancer ACC/DAT mahendra five rupees give- PT-3h
‘Mahendra gave five rupees to the dancer who danced last night.’
Although prenominal and internal relative clauses are treated above as two separate types of restrictive relative clauses, it may be possible to treat them as subtypes of what have traditionally been called the correlative clauses.

3. Converbal constructions

Most of the South Asian languages (including Indo-Aryan, Tibeto-Burman, Dravidian and Austric languages) typically employ non-finite clauses instead of finite clauses to realize clause linkage (cf. Masica, 1976). One of such constructions is sequential converbal constructions (also known as 'conjunctive participle/participial clauses', 'absolutive' or'purvakaalik kriyaa 'prior tense verb').
The simultaneous or progressive converbal clause encode 'simultaneity', i.e. the activity overlapping with the activity encoded in the matrix clause. They are exemplified as follows:
(33) padh-aet u bhaat khae-l-ak.
read-CONV he rice eat-PT-3.nh
‘He ate rice while reading.’
The sequential converbal marker in Maithili is -ka/-ke, which follows the verb stem:
(34) snaan ka ka/ke o khaa-it ch-aith. (Jha, 1971:74)
bath having done he eat-Hab. Aux-Pr.3.hon.
'Having taken bath, he eats.'
The sequential converbal basically refers to 'anteriority' ( to use Givon's term), i.e. the event occurring immediately prior to the event encoded in the following verb, which may be another sequential converb or a finite verb in the matrix clause. It is exemplified as follows:
(35) khaanaa khaa-ka/ke sab aadami suit rah-al.
meal eat-CONV all people sleep remain-PT.3nh
‘ Having eaten meal, everyone went to sleep.’
Thus, the sentence in (35) contains a sequence of events: 'Everyone ate meal and then went to sleep.'
It is, however, to be noted that Maithili, as several other South Asian languages, have non-specialized sequential converbs, which are open to a range of meanings including cause (as shown in (36)) and manner (as shown in (37)), apart from its core meaning, viz. anteriority or temporal priority ( as shown in ()).
(36) okar saphaltaa-k khabar suin-ka ham his success -POSS news hear-CONV I
bahut khush bhe-l-aunh
much happy become-PT-1
'I was very happy to hear of his success.'

A sequential converbal clause is normally joined to the left of the matrix clause in Maithili, as shown in (37). They can be also postposed in marked constructions as a discourse strategy to express afterthought or focus:
(37) ham bahut khush bhe-l-aunh okar saphaltaa-k khabar suin-ka
The tense and the mood of the matrix verb have broad scope which extends to the sequential verb. In sequential converbal constructions both negation and question have narrow scope; i.e. their scope remain restricted to the matrix clause and do not extend to sequential converbal constructions (See Yadava for details).
The subject of a sequential converb in Maithili can be either a null NP, viz. PRO or a lexically overt NP. These two options for Maithili have been illustrated in (38a) and (38b), respectively.
(38) a. [ PROi ghar aaib -ka/ke] raami sut-al.
home come-CONV Ram sleep-PT3.nh
‘Having come home Ram slept.’
b.[tor-aa kaail nahi aaib-ka/ke] kuc kaam nahi ho-yat. 2nh-DAT tomorrow not come_CONV some work not happen-FUT
Mention must, however, be made of certain lexically specified expressions such as time/weather expressions where subject identity constraint is violated:
(39) ghar khais ke das aadmi mair gel.
house fall CONV ten persons died
'The house having collapsed, ten persons died.'
It is, however, to be noted that lexical subjects occur only in such converbal clauses which express cause and effect relation, temporal clauses and the clauses with opposite verbs. They are banned from sequential converbal clauses.

4. Other adverbial constructions
Besides converbs, Maithili uses some other adverbial constructions including time, place,

Time
Time constructions are formed by correlatives such as jakhan –takhan, jahiyaa –tahiyaa, etc., e.g.
(40) jakhan ham ghar pug-l-aunh takhan sab sut-al ch-al
when 1 home reach-PT-1 then all sleep-PTCP AUX-PT.3.nh
‘When I reached home all had slept.’
Place
Place constructions take the coorelative jata-tata:
(41) jata ahaan ch-i tata ham ae-b.
where you be-PRES.1 there 1 come-FUT.1
‘I’ll come where your are.’

Conditional clauses
Conditional clauses are generally formed by the correlative jaun/jadi – ta:
(42) jaun/yadi ahaan kaaj kar-ab ta saphal hae-b.
If 2h work do-FUT.2h then success be-FUT.2h
‘If you work then you’ll succeed.’

2.7 Sentence modifications
The two major types of sentence modifications are interrogative and negative.

2.7.1 Interrogatives
Maithili interrogatives do not involve change in word order. They are mainly polar and constituent interrogatives. Polar interrogatives or ‘yes-no questions’ are expressed optionally by ki attached to the end of a declarative sentence:
(43) hari ghar bech-at (ki)?
Hari house sell-FUT.3.nh Q
‘Will Hari sell the house?
They also involve rising intonation at the end.
In constituent interrogatives the questioned constituents are replaced by interrogative words in situ; i.e. the interrogative words remain in their original position:
(44) hari ki bech-at ?
Hari what sell-FUT.3.nh
‘What will Hari sell?

2.7.2 Negation
Negative sentences are formed by adding the negative particle nahi preverbally:
(45) ham raam-ke kitaab nahi de-l-aunh
I Ram-ACC book not give-PT-1
‘I did not give the book to Ram.’

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Yadava, Y.P. and D.N. Yadav.2008."Clausal complementation in Maithili", a paper presented at 29th annual conference of Linguistic Society of Nepal.

________________________________________
[1] A version of this article will appear in Languages of the World in Russian medium.


2. Sindhu Poudyal-Mithila :- mother land of Navya- Nyaya Language.
Sindhu Poudyal, Ph. D Scholar
HSS, IIT, Bombay
http://sites.google.com/site/jahnabi1984/

Mithila :- mother land of Navya- Nyaya Language.

Nyaya as a school of thought is one of the important orthodox schools (among six other) of Indian philosophy. It is a school of realistic pluralism and focuses mainly on the epistemology and logic rather than metaphysics and theology. In the later developments, this school divided into two schools viz. traditional Nyaya and Navya-Nyaya. Here in this section I am going to give a brief outline of the development of the Navya-Nyaya school of Indian philosophy.
Mithila is said to be the mother Land of Navya- Nyāya School. As one of the advanced school of thought, its origination and development traced back to Thirteen century AD in the hands of Gangesa Upādhyāya of Mithila. He developed the traditional Nyaya philosophy and tried to give a new outlook in his famous work ‘Tattvachintāmaņi’. This work carried all the fame to the origination of new thinking in Mithila. Many students visited to Mithila with the development of philosophy of this kind.
Among the important texts of the school are, Tattvachintāmaņi as cited above, written by Gangesa Upadhyaya, two commentaries viz. Nyaya Kusumanjali Prakash andNyaya Nibandha Prakash are written by Gangesa’s son Bardhaman. Apart from these, Translation of Tattvachintāmaņi named ‘Dhiditi’ by Raghunath, Tārkika Rakşā of Baradarāja, Tarkabhāşā of keśava Miśra, Tarka Samgraha of Annam Bhaţţa are prominent. These works glorified the heritage of Navya Nyaya School so richly that, without knowing the text knowledge of Nyaya it becomes incomplete and it developed its scope gradually.
The contribution of Navya Nyaya philosophy lies in the development of technical language in all affairs of philosophical discourse. With the implication of highly sophisticated language and conceptual schematicism it tried to resolve philosophical problems like epistemological and more specifically the logical problems. Most of the works of this school are following the rigorous use of the Sanskrit language. Though it has developed technical language of its own but still unlike the contemporary analytical trend it is non- symbolic in nature. Its importance lies not only in philosophy but also linguistics and in some domain of natural sciences as well as cognitive sciences. I would like to give here the famous example to illustrate the point. ‘A man is standing with the stick’ to translate this expression in ordinary Sanskrit it will be ‘दण्डधारी पुरुष अस्ति’ but in the Navya Nyaya philosophy its translation would be, ‘दण्डनिष्ठ-दण्डत्वावच्छिन्न-संयोगसम्बंधावच्छिन्न-आधेयतानिरूपित-आधारतावान् पुरुषः’ This expression tires to reveal all the possible meanings related to the contexts we can use with the stick and a man. The kind of translation and the presentation which they tried to present is in my view is to give the holistic understanding of the statement. The text,Tattvacintamani is generally regarded as the Jewel of Thought on the Nature of Thing; is the basic text for the development of this school. Later logicians of this school are primarily interested in defining the terms and concepts. Invention of special terminologies to give precision to logical thought and reasoning is a significant aspect of this school. It tried to develop some of the drawbacks of traditional Nyaya philosophy. As we all know all the problems of philosophy are due to our misuse of language. And in this connection the attempt made by Navya Nyaya logicians is really an admirable one.


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बादल सरकार : जीवन और रंगमंच : अशोक भौमिक

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श्रुति प्रकाशनसँ
१.बनैत-बिगड़ैत (कथा-गल्प संग्रह)-सुभाषचन्द्र यादवमूल्य: भा.रु.१००/-
२.कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक (लेखकक छिड़िआयल पद्य,उपन्यास, गल्प-कथा, नाटक-एकाङ्की, बालानां कृते,महाकाव्य, शोध-निबन्ध आदिक समग्र संकलनखण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना
खण्ड-२ उपन्यास-(सहस्रबाढ़नि)
खण्ड-३ पद्य-संग्रह-(सहस्त्राब्दीक चौपड़पर)
खण्ड-४ कथा-गल्प संग्रह (गल्प गुच्छ)
खण्ड-५ नाटक-(संकर्षण)
खण्ड-६ महाकाव्य- (१. त्वञ्चाहञ्च आ २. असञ्जाति मन )
खण्ड-७ बालमंडली किशोर-जगत)- गजेन्द्र ठाकुर मूल्य भा.रु.१००/-(सामान्य) आ $४० विदेश आ पुस्तकालय हेतु।
३.विलम्बित कइक युगमे निबद्ध (पद्य-संग्रह)- पंकज पराशरमूल्य भा.रु.१००/-
४. नो एण्ट्री: मा प्रविश- डॉ. उदय नारायण सिंह“नचिकेता”प्रिंट रूप हार्डबाउन्ड(मूल्य भा.रु.१२५/- US$ डॉलर ४०) आ पेपरबैक (भा.रु. ७५/-US$ २५/-)
५/६. विदेह:सदेह:१: देवनागरी आ मिथिला़क्षर सं स्करण:Tirhuta : 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: तिरहुता : मूल्य भा.रु.200/-
Devanagari 244 pages (A4 big magazine size)विदेह: सदेह: 1: : देवनागरी : मूल्य भा. रु. 100/-
७. गामक जिनगी (कथा संेग्रह)- जगदीश प्रसाद मंकडल): मूल्य भा.रु. ५०/- (सामान्य),$२०/- पुस्तकालय आ विदेश हेतु)
८/९/१०.a.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश; b.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश आ c.जीनोम मैपिंग ४५० ए.डी. सँ २००९ ए.डी.- मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध-सम्पादन-लेखन-गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा एवं पञ्जीकार विद्यानन्द झा
P.S. Maithili-English Dictionary Vol.I & II ; English-Maithili Dictionary Vol.I (Price Rs.500/-per volume and $160 for overseas buyers) and Genome Mapping 450AD-2009 AD- Mithilak Panji Prabandh (Price Rs.5000/- and $1600 for overseas buyers. TIRHUTA MANUSCRIPT IMAGE DVD AVAILABLE SEPARATELY FOR RS.1000/-US$320) have currently been made available for sale.
११.सहस्रबाढ़नि (मैथिलीक पहिल ब्रेल पुस्तक)-ISBN:978-93-80538-00-6 Price Rs.100/-(for individual buyers) US$40 (Library/ Institution- Indian & abroad) COMING SOON:
I.गजेन्द्र ठाकुरक शीघ्र प्रकाश्य रचना सभ:-
१.कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्डक बाद गजेन्द्र ठाकुरक
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक-२
खण्ड-८
(प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना-२) क संग
२.सहस्रबाढ़नि क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर उपन्यास
स॒हस्र॑ शीर्षा॒
३.सहस्राब्दीक चौपड़पर क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर पद्य-संग्रह
स॑हस्रजित्
४.गल्प गुच्छ क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर कथा-गल्प संग्रह
शब्दशास्त्रम्
५.संकर्षण क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर नाटक
उल्कामुख
६. त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन क बाद गजेन्द्र ठाकुरक तेसर गीत-प्रबन्ध
नाराशं॒खसी
७. नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक तीनटा नाटक
जलोदीप
८.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक पद्य संग्रह
बाङक बङौरा
९.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक खिस्सा-पिहानी संग्रह
अक्षरमुष्टिका
II.जगदीश प्रसाद मंशडल-
कथा-संग्रह- गामक जिनगी
नाटक- मिथिलाक बेटी
उपन्यास- मौलाइल गाछक फूल, जीवन संघर्ष, जीवन मरण, उत्थान-पतन, जिनगीक जीत
III.मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार गीत आ गीतनाद -संकलन उमेश मंडल- आइ धरि प्रकाशित मिथिलाक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद मिथिलाक नहि वरन मैथिल ब्राह्मणक आ कर्ण कायस्थक संस्कार/ विधि-व्यवहार आ गीत नाद छल। पहिल बेर जनमानसक मिथिला लोक गीत प्रस्तुत भय रहल अछि।
IV.पंचदेवोपासना-भूमि मिथिला- मौन
V.मैथिली भाषा-साहित्य (२०म शताब्दी)- प्रेमशंकर सिंह
VI.गुंजन जीक राधा (गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित)- गंगेश गुंजन
VII.विभारानीक दू टा नाटक: "भाग रौ" आ"बलचन्दा"
VIII.हम पुछैत छी (पद्य-संग्रह)- विनीत उत्पल
IX.मिथिलाक जन साहित्य- अनुवादिका श्रीमती रेवती मिश्र (Maithili Translation of Late Jayakanta Mishra’s Introduction to Folk Literature of Mithila Vol.I & II)
X.मिथिलाक इतिहास – स्वर्गीय प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी
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(कार्यालय प्रयोग लेल)
विदेह:सदेह:१ (तिरहुता/ देवनागरी)क अपार सफलताक बाद विदेह:सदेह:२ आ आगाँक अंक लेल वार्षिक/ द्विवार्षिक/ त्रिवार्षिक/ पंचवार्षिक/ आजीवन सद्स्यता अभियान।
ओहि बर्खमे प्रकाशित विदेह:सदेहक सभ अंक/ पुस्तिका पठाओल जाएत।
नीचाँक फॉर्म भरू:-
विदेह:सदेहक देवनागरी/ वा तिरहुताक सदस्यता चाही: देवनागरी/ तिरहुता
सदस्यता चाही: ग्राहक बनू (कूरियर/ रजिस्टर्ड डाक खर्च सहित):-
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दू बर्ख(२०१०-११ ई.):: INDIA रु.३५०/- NEPAL-(INR 1050), Abroad-(US$50)
तीन बर्ख(२०१०-१२ ई.)::INDIA रु.५००/- NEPAL-(INR 1500), Abroad-(US$75)
पाँच बर्ख(२०१०-१३ ई.)::७५०/- NEPAL-(INR 2250), Abroad-(US$125)
आजीवन(२००९ आ ओहिसँ आगाँक अंक)::रु.५०००/- NEPAL-(INR 15000), Abroad-(US$750)
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(ग्राहकक हस्ताक्षर)


२. संदेश-
[ विदेह ई-पत्रिका, विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डक- निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा,उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक (संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-मंडली-किशोर जगत- संग्रह कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मादेँ। ]
१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ। सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल। हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।
२.श्री रमानन्द रेणु- मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।
३.श्री विद्यानाथ झा "विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल,तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।
४. प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल अभिनन्दन।
५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथीकुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहन भव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर हार्दिक बधाई स्वीकार करी।
६. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
७. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
८. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
१०. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
११. श्री विजय ठाकुर- मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
१२. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१३. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रिं‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाई। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति अछि सात खण्डमे। ..सुभाष चन्द्र यादवक कथापर अहाँक आमुखक पहिल दस पंलक्तिमे आ आगाँ हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी शब्द अछि (बेबाक, आद्योपान्त, फोकलोर..)..लोक नहि कहत जे चालनि दुशलनि बाढ़निकेँ जिनका अपना बहत्तरि टा भूर!..( स्पष्टीकरण- दास जी द्वारा उद्घृत अंश यादवजीक कथा संग्रह बनैत-बिगड़ैतक आमुख १ जे कैलास कुमार मिश्रजी द्वारा लिखल गेल अछि-हमरा द्वारा नहि- केँ संबोधित करैत अछि। मैथिलीमे उपरझपकी पढ़ि लिखबाक जे परम्परा रहल अछि तकर ई एकटा उदाहरण अछि। कैलासजीक सम्पूर्ण आमुख हम पढ़ने छी आ ओ अपन विषयक विशेषज्ञ छथि आ हुनका प्रति कएल अपशब्दक प्रयोगक हम भर्त्सना करैत छी-गजेन्द्र ठाकुर)...अहाँक मंतव्य क्यो चित्रगुप्त सभा खोलि मणिपद्मकेँ बेचि रहल छथि तँ क्यो मैथिल (ब्राह्मण) सभा खोलि सुमनजीक व्यापारमे लागल छथि-मणिपद्म आ सुमनजीक आरिमे अपन धंधा चमका रहल छथि आ मणिपद्म आ सुमनजीकेँ अपमानित कए रहल छथि।..तखन लोक तँ कहबे करत जेअपन घेघ नहि सुझैत छन्हि, लोकक टेटर आ से बिना देखनहि, अधलाह लागैत छनि..(स्पष्टीकरण-क्यो नाटक लिखथि आ ओहि नाटकक खलनायकसँ क्यो अपनाकेँ चिन्हित कए नाटककारकेँ गारि पढ़थि तँ तकरा की कहब। जे क्यो मराठीमे चितपावन ब्राह्मण समितिक पत्रिकामे-जकर भाषा अवश्ये मराठी रहत- ई लिखए जे ओ एहि पत्रिकाक माध्यमसँ मराठी भाषाक सेवा कए रहल छथि तँ ओ अपनाकेँ मराठीभाषी पाठक मध्य अपनाकेँ हास्यास्पदे बना लेत- कारण सभकेँ बुझल छैक जे ओ मुखपत्र एकटा वर्गक सेवाक लेल अछि। ओना मैथिलीमे एहि तरहक मैथिली सेवक लोकनिक अभाव नहि ओ लोकनि २१म शताब्दीमे रहितो एहि तरहक विचारधारासँ ग्रस्त छथि आ उनटे दोसराक मादेँ अपशब्दक प्रयोग करैत छथि-सम्पादक)...ओना अहाँ तँ अपनहुँ बड़ पैघ धंधा कऽ रहल छी। मात्र सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ द्वारा प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक।( स्पष्टीकरण- श्रीमान्, अहाँक सूचनार्थ- विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री आर्काइवमे http://www.videha.co.in/ पर बिना मूल्यक डाउनलोड लेल उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि आ किएक रखने छथि वा आगाँसँ दाम नहि राखथु- ई सभटा परामर्श अहाँ प्रकाशककेँ पत्र/ ई-पत्र द्वारा पठा सकै छियन्हि।- गजेन्द्र ठाकुर)... अहाँक प्रति अशेष शुभकामनाक संग।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
१८.श्रीमती शेफालिका वर्मा- विदेह ई-पत्रिका देखि मोन उल्लाससँ भरि गेल। विज्ञान कतेक प्रगति कऽ रहल अछि...अहाँ सभ अनन्त आकाशकेँ भेदि दियौ, समस्त विस्तारक रहस्यकेँ तार-तार कऽ दियौक...। अपनेक अद्भुत पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक विषयवस्तुक दृष्टिसँ गागरमे सागर अछि। बधाई।
१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।
२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी। "विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽ सकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा सकैछ।
२१. श्री किशोरीकान्त मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि- बधाई स्वीकार कएल जाओ।
२२.श्री जीवकान्त- विदेहक मुद्रित अंक पढ़ल- अद्भुत मेहनति। चाबस-चाबस। किछु समालोचना मरखाह..मुदा सत्य।
२३. श्री भालचन्द्र झा- अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई।
२४.श्रीमती डॉ नीता झा- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।
२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक हमर उपन्यास स्त्रीधनक विरोधक हम विरोध करैत छी।... कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।(श्रीमान् समालोचनाकेँ विरोधक रूपमे नहि लेल जाए। ओना अहाँक मंत्रपुत्र हिन्दीसँ मैथिलीमे अनूदित भेल, जे जीवकांत जी अपन आलेखमे कहै छथि। एहि अनूदित मंत्रपुत्रकेँ साहित्य अकादमी पुरस्कार देल गेल, सेहो अनुवाद पुरस्कार नहि मूल पुरस्कार, जे साहित्य अकादमीक निअमक विरुद्ध रहए। ओना मैथिली लेल ई एकमात्र उदाहरण नहि अछि। एकर अहाँ कोन रूपमे विरोध करब?)
२६.श्री महेन्द्र हजारी- सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।
२७.श्री केदारनाथ चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल, मैथिली साहित्य लेल ई पोथी एकटा प्रतिमान बनत।
२८.श्री सत्यानन्द पाठक- विदेहक हम नियमित पाठक छी। ओकर स्वरूपक प्रशंसक छलहुँ। एम्हर अहाँक लिखल - कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखलहुँ। मोन आह्लादित भऽ उठल। कोनो रचना तरा-उपरी।
२९.श्रीमती रमा झा-सम्पादक मिथिला दर्पण। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रिंट फॉर्म पढ़ि आ एकर गुणवत्ता देखि मोन प्रसन्न भऽ गेल, अद्भुत शब्द एकरा लेल प्रयुक्त कऽ रहल छी। विदेहक उत्तरोत्तर प्रगतिक शुभकामना।
३०.श्री नरेन्द्र झा, पटना- विदेह नियमित देखैत रहैत छी। मैथिली लेल अद्भुत काज कऽ रहल छी।
३१.श्री रामलोचन ठाकुर- कोलकाता- मिथिलाक्षर विदेह देखि मोन प्रसन्नतासँ भरि उठल, अंकक विशाल परिदृश्य आस्वस्तकारी अछि।
३२.श्री तारानन्द वियोगी- विदेह आ कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि चकबिदोर लागि गेल। आश्चर्य। शुभकामना आ बधाई।
३३.श्रीमती प्रेमलता मिश्र “प्रेम”- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। सभ रचना उच्चकोटिक लागल। बधाई।
३४.श्री कीर्तिनारायण मिश्र- बेगूसराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बड्ड नीक लागल, आगांक सभ काज लेल बधाई।
३५.श्री महाप्रकाश-सहरसा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नीक लागल, विशालकाय संगहि उत्तमकोटिक।
३६.श्री अग्निपुष्प- मिथिलाक्षर आ देवाक्षर विदेह पढ़ल..ई प्रथम तँ अछि एकरा प्रशंसामे मुदा हम एकरा दुस्साहसिक कहब। मिथिला चित्रकलाक स्तम्भकेँ मुदा अगिला अंकमे आर विस्तृत बनाऊ।
३७.श्री मंजर सुलेमान-दरभंगा- विदेहक जतेक प्रशंसा कएल जाए कम होएत। सभ चीज उत्तम।
३८.श्रीमती प्रोफेसर वीणा ठाकुर- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक उत्तम, पठनीय, विचारनीय। जे क्यो देखैत छथि पोथी प्राप्त करबाक उपाय पुछैत छथि। शुभकामना।
३९.श्री छत्रानन्द सिंह झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ, बड्ड नीक सभ तरहेँ।
४०.श्री ताराकान्त झा- सम्पादक मैथिली दैनिक मिथिला समाद- विदेह तँ कन्टेन्ट प्रोवाइडरक काज कऽ रहल अछि। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल।
४१.डॉ रवीन्द्र कुमार चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।
४२.श्री अमरनाथ- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य मध्य।
४३.श्री पंचानन मिश्र- विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।
४४.श्री केदार कानन- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद, शुभकामना आ बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा समाहित अछि।
४५.श्री धनाकर ठाकुर- अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत तऽ नीक।
४६.श्री आशीष झा- अहाँक पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।
४७.श्री शम्भु कुमार सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत। ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम् तँ अशेष अछि।
४८.डॉ. अजीत मिश्र- अपनेक प्रयासक कतबो प्रशंभसा कएल जाए कमे होएतैक। मैथिली साहित्यमे अहाँ द्वारा कएल गेल काज युग-युगान्तर धरि पूजनीय रहत।
४९.श्री बीरेन्द्र मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक आ विदेह:सदेह पढ़ि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।
५०.श्री कुमार राधारमण- अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल। हमर शुभकामना।
५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।
५२.श्री विभूति आनन्द- विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।
५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।
५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल।
५५.श्री अरविन्द ठाकुर-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मैथिली साहित्यमे कएल गेल एहि तरहक पहिल प्रयोग अछि, शुभकामना।
५६.श्री कुमार पवन-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़ि रहल छी। किछु लघुकथा पढ़ल अछि, बहुत मार्मिक छल।
५७. श्री प्रदीप बिहारी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखल, बधाई।
५८.डॉ मणिकान्त ठाकुर-कैलिफोर्निया- अपन विलक्षण नियमित सेवासँ हमरा लोकनिक हृदयमे विदेह सदेह भऽ गेल अछि।
५९.श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित सहयोग नहि कऽ पबैत छी।
६०.श्री देवशंकर नवीन- विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।
६१.श्री मोहन भारद्वाज- अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा शीघ्र सहयोग देब।
६२.श्री फजलुर रहमान हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी छी।
६३.श्री लक्ष्मण झा "सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।
६४.श्री जगदीश प्रसाद मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्याससहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि, से चकित कएलक, एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि। समालोचना शास्त्रमे अहाँक दृष्टि वैयक्तिक नहि वरन् सामाजिक आ कल्याणकारी अछि, से प्रशंसनीय।
६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल शुभकामना।
६६.श्री ठाकुर प्रसाद मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।
६७.बुद्धिनाथ मिश्र- प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित ‘विदेह’आ ‘कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक’ विलक्षण पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।
६८.श्री बृखेश चन्द्र लाल- गजेन्द्रजी, अपनेक पुस्तक कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक पढ़ि मोन गदगद भय गेल , हृदयसँ अनुगृहित छी । हार्दिक शुभकामना ।
६९.श्री परमेश्वर कापड़ि - श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।
७०.श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ। मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)
७१.श्री मंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल आ संगहि अहाँक मैगनम ओपस कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनकसेहो, अति उत्तम। मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय अछि।
७२. श्री हरेकृष्ण झा- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक मैथिलीमे अपन तरहक एकमात्र ग्रन्थ अछि, एहिमे लेखकक समग्र दृष्टि आ रचना कौशल देखबामे आएल जे लेखकक फील्डवर्कसँ जुड़ल रहबाक कारणसँ अछि।
७३.श्री सुकान्त सोम- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक मे समाजक इतिहास आ वर्तमानसँ अहाँकजुड़ाव बड्ड नीक लागल, अहाँ एहि क्षेत्रमे आर आगाँ काज करब से आशा अछि।

७४.प्रोफेसर मदन मिश्र- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सन किताब मैथिलीमे पहिले अछि आ एतेक विशाल संग्रहपर शोध कएल जा सकैत अछि। भविष्यक लेल शुभकामना।

विदेह

मैथिली साहित्य आन्दोलन

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