भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, January 30, 2010

'विदेह' ५० म अंक १५ जनबरी २०१० (वर्ष ३ मास २५ अंक ५०)- Part_II

२.४१.प्रबोध सम्मान २०१० लेल चयनित जीवकान्तसँ वरिष्ठ पत्रकार आ मैथिलीक उदीयमान कवि विनीत उत्पलक साक्षात्कार २. सुशान्त झा-विकासक तेजीमे कहीं छुटि नै जाय मिथिला ३. नवेन्द्र कुमार झा-पचास वर्षक भेल प्रादेशिक समाचार एकांश/1993 मे प्रारंभ भेल छल मैथिली मे समाचारक प्रसारण/ सताक प्राप्ति बनल भाजपाक उद्देश्यल ४. केदार कानन-जगदीश प्रसाद मंडलक पछताबा पर एक दृष्टिा

मूर्खता पीबि कऽ विषवमन करैत अछि समीक्षक - जीवकान्त
प्रबोध सम्मान २०१० लेल चयनित जीवकान्तसँ वरिष्ठ पत्रकार आ मैथिलीक उदीयमान कवि विनीत उत्पलक साक्षात्कार

विनीत उत्पल : अहाँक जन्म कतए भेल आ दिन-वर्ष की छल? लालन-पालन कतए भेल?
जीवकांत : २७ जुलाई, १९३६ क मामाक गाम सुपौल जिलाक अभुआढ़ मे हमर जन्म भेल। किछु दिन तक तँ हमर लालन-पालन मामक गाममे भेल। तकर बाद अपन गाम मधुबन क डेओढ़मे भेल। हमर पिता चारि भाइ छलथि। संयुक्त परिवार छल आओर हम सभ १५-१६ बच्चाक लालन-पालन संगे भेल।

विनीत उत्पल : एखन अहाँक परिवारमे के सभ अछि आओर ओ सभ की करैत अछि?
जीवकांत : हम दू भाइ छी। जेठ हम छी आ नवकांत झा छोट अछि। नवकांत सेंट्रल बैंकक नौकरसँ अवकाश ग्रहण कए दरभंगामे रहैत अछि। एक बहिन आब नहि छथि। दोसर बहिन गोदावरी सुपौलमे ब्याहल गेल, जे सहरसामे रहैत अछि। तीन बच्चा अछि। पैघ बेटा अरुण चेन्नइमे बैंकमे कार्यरत अछि। छोट वरुण लखीसरायमे एलआईसीमे काज करैत अछि। बेटी प्रेम नेपालक राज विराजमे ब्याहल अछि।

विनीत उत्पल : घरमे आन लोक मैथिली पढ़ैत आ लिखैत अछि? कनियाक सहयोग लेखनमे कतेक भेटल?
जीवकांत : हमर घरमे भाइ हुअए आकि कोनो बच्चा, मैथिलीमे नहि लिखैत अछि। शुरूमे कनियाँ शुचि किछु नहि बुझैत छलीह। हुनका लगैत छल जे फालतूक काज कऽ रहल छी। हुनका अनिद्राक बीमारी छलन्हि ताहिसँ रातिमे लाइट मिझा दैत छलीह। मुदा, बादमे सहयोग करए लगलीह। धन्य ओ जे हम लिखैत छी। ओना ओ ज्योँ विरोध करतीह तँ हम किछु नहि लिखि सकैत छी। एकरा लेल हम कनियाँक आभारी छी।

विनीत उत्पल : मैथिली साहित्य दिश कोना आकृष्ट भेलहुँ? विस्तारसँ बताऊ?
जीवकांत : हम जाहि कालमे पैदा भेलहुँ, ताहि कालमे पढ़ैक महत्व नहि छल। हमरो पढ़ाइ देरीसँ शुरू भेल। स्कूलमे नाम लिखेबा लेल कियो नहि गेल छल। हम अपने गेल छलहुँ। ओहि कालमे हम सभ माटिपर लिखैत छलहुँ।
हमर गाममे तुलसीदासक रामायणक पाठ होइत छल। द्वारपर लोक ताश खेलाइत छल आ रामायणक श्लोकक दसटा अर्थ करैत जाइ छलाह। श्लोककेँ लऽ कऽ तर्क-विर्तक सेहो होइत छल। हमरो घरमे बेंकटेश्वर स्टीम प्रेससँ छपल मोटका रामाएण छल, जकरा पढ़ैत आ सुनैत छलहुँ। तखन धरि मैथिलीक कोनो गप नहि छल। नेना रही, सोचैत रही, जखन तुलसीदासक लिखलपर एतेक तर्क-विर्तक होइत अछि, तखन हमहूँ किएक नहि लिखै छी। शुरूमे कविता लिखलहुँ, जे आर्यावर्तमे छपल। आइ.एस.सी. कऽ कए साल भरि बाद १९६४ ई. मे प्राइवेटसँ बी.ए. कएलहुँ। छह मास धरि अहापोहमे रहलहुँ, जे हिंदीमे लिखी आकि मैथिलीमे।
ओहि काल मे मिथिला मिहिर पढ़ैत छलहुँ। ओहिसँ बेसी प्रभावित भेलहुँ। रवींद्रनाथ टैगोरक साहित्यसँ सेहो प्रभाविल भेलहुँ। हिंदीमे लिखी आओर मैथिलीमे सेहो। किछु काल बाद निर्णय लेलहुँ जे हम नित दिन लिखब। गृह जिला मधुबनीमे नौकरीक मादे खजौली, देहोल, पोखराम आदि गाममे रहलहुँ आ जीवनानुभवक व्यापक अनुभव लिखलहुँ।

विनीत उत्पल : अहाँक कालमे संस्कृतक विस्तार बेसी छल। तखन मैथिली दिश कोना प्रवृत भेलहुँ?
जीवकांत : स्वतंत्रता प्राप्तिक कालमे इंगलिश मीडियम स्कूल खुजल रहै। हिंदी स्कूलमे मैथिली पढ़ाओल जाइत छल। इंगलिश स्कूल खुजलासँ लोक संस्कृत बिसरि गेल। मुदा हम गामक लोक गामसँ प्रभावित। २४ जनवरी १९६५ मे मिथिला मिहिरमे पहिल कविता 'इजोरिया आ टिटही’ छपल। एकरासँ हमरा जोश भेटल।

विनीत उत्पल : अहाँ केकर लेखनीसँ प्रभावित छी?
जीवकांत : कविता हमर प्रिय अछि। लिखैमे आनंद अबैत अछि, ओकर गंधसँ प्रभावित होइत छी। मुदा गंधक प्रतीकमे तुलना साफ नहि होइए। कोनो गप कवितामे बेसी नीकसँ कहल जा सकैत अछि। आलोचक कहैत अछि जे अहाँ कथामे सब किछु अलग-अलग नहि करैत छी। पाठककेँ अपन दिशसँ सूत्र जोड़ए पड़ैत अछि। सबहक गंध अपन-अपन तरहक होइत छै। हमर लेखनक मूल कविता अछि, आओर अपन गप कविताक संग प्रेषित करैमे नीक लगैत अछि।

विनीत उत्पल : लेखनमे कोना प्रोत्साहित होइत छलहुँ?
जीवकांत : अहाँ सोमदेवक नाम सुनने होएब। हमर कविता पढि़ कऽ यात्री जी हुनका कहलथिन जे जीवकांतकेँ कहियौ ओ उपन्यास लिखताह। एकरा संगे मिथिला मिहिरसँ लिखबाक आमंत्रण आएल। एकरा एक तरहसँ हम चुनौतीक रूपमे लेलहुँ आ जे ओ लिखबैत रहल, फरमाइश करैत छल, से लिखैत रही। शिक्षक संघसँ सेहो जुड़ल रही ताहिसँ पटना जाइत रही। ओहि काल पटनामे लोकसँ भेट होइत रहए आओर प्रोत्साहन भेटैत रहए। तीनटा उपन्यास फरमाइशपर लिखलहुँ जे धारावाहिक रूपमे छपल।

विनीत उत्पल : अहाँकेँ ई नहि लगैत अछि जे साहित्य अकादमी देरीसँ अहाँक लेखन~पर विचार केलक?
जीवकांत : साहित्य अकादमीक पुरस्कारकेँ लोक संदेहक दृष्टिसँ देखैत छैक। ओतए जाएज लोककेँ किनारा कऽ दैत छै। हम साहित्य अकादमीक पॉलिटिक्स नहि जनैत छी। गाममे रहैत छी। कोनो दोस्त नहि बनेलहुँ। ओहिनो मिथिला समाज आ लोक अनौपचारिक अछि। भऽ सकैत अछि साहित्य पुरस्कार विलंबसँ भेटल। मुदा एहि सभमे हम नहि पड़ैत छी।

विनीत उत्पल : पैघ-पैघ पत्रिकामे कोना लिखए लगलहुं?
जीवकांत : एखनसँ तीस साल पहिने समकालीन भारतीय साहित्य शुरू भेल, तखन हम किछु अनुवाद कएलहुँ। मैथिलीमे पहिल कहानी हमरे आएल। पहिल बेर मैथिली विशेषांक आएल। एकटा अनुवाद केदार कानन केलथि। मैथिली कविता पठबैत रही। हिंदी संपादक आ हिंदी पत्रिका खूब आदरसँ हमर रचना छपैत रहए। समय अंतरालपर कोलकाता, मुंबइ, दिल्लीसँ प्रकाशित पत्रिका सेहो छपै लागल।

विनीत उत्पल : पहिल कविता संग्रह कोन छल आओर के छपलथि?
जीवकांत : 2003 मे 'तकैत अछि चिड़ै’ कविता संग्रह छपल, जेकरा ऊपर साहित्य अकादमी पुरस्कार देलक। ओकर हिंदी अनुवाद 'निशांतक चिडिय़ा’ छपल। एकरो साहित्य अकादमी छपलक। ढेरे विश्वविद्यालयमे शोध भऽ रहल अछि। प्रखर आलोचक सेहो लेखनक प्रशंसा कए रहल अछि।

विनीत उत्पल : अहांक कविता 'रहस्य’ मे गूथल बुझाइत अछि?
जीवकांत : कविताक आरंभ कतहुसँ जे होइत अछि से तार्किक परिणति तक जरूर पहुँचैत अछि। लोक कहैत अछि जे हमर कविता आखिर मे 'टर्न’ लऽ लैत अछि। लोक काल आ पाठक हमर सामने नहि रहैत अछि, ताहिसँ अलग-अलग पाठक हमर कवितामे अलग-अलग गप देखैत अछि।

विनीत उत्पल : अहाँ तँ खूब समीक्षा केने छी?
जीवकांत : समीक्षक तौर पर हम ओते प्रोफेशनल नहि छी। बैसल रहैत रही तँ पढ़ैत रही। नव पोथी पढ़लाक बाद छोट-छोट टिप्पणी करैत छी। पूरे ४० साल मे ६०-७० टा पोथीपर छोट-छोट टिप्पणी केने छी। एकरा बाद मन बहलबैत छी, हास-परिहास आ चर्चा, बहुत रास गप करैत छी।

विनीत उत्पल : नव लेखक आ हुनकर रचनाकेँ कोना देखैत छी?
जीवकांत : एखन नवलेखक तेजीसँ आबि रहल अछि। देहातसँ सेहो लेखक आबि रहल अछि। बीच वाला पीढ़ी्मे अद्भुत लेखक भेल। महाप्रकाश आ सुभाषचंद्र यादव लोक विवशता, निर्धनताक विलक्षण चित्रण अपन रचनामे करैत छथि।
मैथिली कविता सेहो गंभीर भऽ रहल अछि। ओकर स्तर बढि़ गेल अछि, सोच काफी आगू तक अछि।

विनीत उत्पल : मैथिलीक साहित्यमे समीक्षकेँ अहाँ कोन दृष्टिसँ देखैत छी?
जीवकांत : समीक्षा यूरोपसँ आएल अछि। यूरोपमे अन्वेषणक संग समुचित परिप्रेक्ष्यमे समीक्षा होइत अछि। हिन्दुस्तान एहि विधामे पिछड़ल अछि। हिंदी भाषा्मे सेहो नीक समीक्षा नहि भऽ रहल अछि। लोक वेद कहैत अछि जे हिंदीक पैघ समीक्षक नामवर सिंह समीक्षा नहि कऽ भाषण दैत छथि। तटस्थ भऽ कऽ मूल्यांकन नहि भऽ रहल अछि। नीक लेखककेँ पएरसँ दबा देल गेल आओर जेकरा किछु नहि अबैत अछि ओकरा कन्हापर बैसा देल जाइत अछि। विद्यापतिपर आइ धरि कियो मैथलीमे नीक समीक्षा नहि केलक अछि। रामानाथ झाक समीक्षा जयकांत बाबूक समीक्षा नहि भऽ रहल अछि। अंग्रेजीमे नीक बुद्घि होइत अछि। अंग्रेजीसँ एम.ए. केलाक बाद लोकक नीक बुद्घि होइत अछि, मुदा मैथिलीसँ एम.ए. कोर्स करबाक बाद छात्र बरबाद होइत अछि। नाश कऽ दैत अछि ओकर भविष्य। जखन महीसे खराब होएत तखन कोनो नीक चीज आनि कऽ दियौ खेनाइ खरापे बनत। सोनारक काज लोहारक हथौड़ीसँ नहि भऽ सकैत अछि। समीक्षामे कोनो नीक काज नहि भऽ रहल अछि।
'अपन बट्टी भरि पनबट्टी’ सनक लोक अछि। जाइत-पाति बेसी अछि। लोक एक-दोसरकेँ छोट बुझैत अछि। रचना्क मूल भावनमे कमी आएल अछि। अपन रचना आ अपन लगुआ-भगुआमे लोक फंसल जाइत अछि। सब अपनाकेँ पैघ बुझैत अछि। सभटा लोक काजक क्रेडिट अपना लेल लेबाक लेल मारि कए रहल अछि।

विनीत उत्पल : रचना्मे अनुभवक की भूमिका होइत अछि? मैथिलीक प्रचार-प्रसार लेल अहाँक विचार की अछि?
जीवकांत : सभ लोकक अपन अनुभव होइत अछि। ओकरे ठीक-ठाक कए लेखक शास्त्र बना दैत अछि। सभटा लेखक अपन अनुभवकेँ पुनर्जीवित करैत अछि। जहिना-जहिना शिक्षक स्तर बढ़त, तहिना-तहिना मैथिलीक प्रचार-प्रसार बढ़त। मिथिलामे शिक्षकक कमी अछि। स्त्री शिक्षा एखनो बेसी नहि अछि। साक्षरता जेना-जेना बढ़त आर्थिक स्थिति तेना-तेना नीक होएत। मैथिली बढ़त। इंटरनेटेपर मैथिली बढि़ रहल अछि। गौरीनाथ नीक काज कए रहल छथि। कोलकाताक स्वस्ति फाउंडेशन सेहो नीक काज कए रहल अछि।

विनीत उत्पल : अहाँक रचना विद्रोही प्रवृतिक अछि, से किए?
जीवकांत : सरकार बनेने छी। जनताकेँ सुरक्षा चाही, सडक़ चाही। आजादी भेटल, त्रुटि सेहो भेटल। कमजोर लोकक संग दुर्व्यवहार भऽ रहल अछि। अन्यायक खिलाफ आवाज उठबैत हमर मनोदशा अछि। १९७० ई. मे कोलकातामे 'किरणजी’सँ भेट भेल छल। ओ कहलथि जे हमर स्टैंड तँ सत्ता विरोधी अछि। हुनकर गप ठीक छल।

विनीत उत्पल : मार्क्सवादकेँ लऽ कऽ की सोचैत छी?
जीवकांत : मार्क्सवादक पहिने सेहो गरीबी छल। विद्यापति अपन कवितामे गरीबीक व्यापक वर्णन कएने छथि। 'कखन हरब दुख मोर’ गीतमे एक तरहेँ गरीबीक वर्णन कएल गेल अछि। 'नहि दरिद्र सब जुग माही’ आ संस्कृत श्लोक 'सर्वे गुणा कांचन भाजयंति’ मे सेहो दरिद्राक गप अछि। गरीबीक खिलाफ गरीबक पक्षमे सभ दिन लिखल जाइत रहल अछि।

विनीत उत्पल : अहाँ आ अहाँक लेखन ककरासँ प्रभावित अछि?
जीवकांत : हम सेहो मार्क्सवादसँ प्रभावित छी। लोहियासँ सेहो प्रभावित छी। बराबरी आ समानताक विचारकेँ प्रमुखता दैत छी। मार्क्सक समर्थक रही। एकरा लेल दीक्षा नहि लेलहुँ, कियो ई गप पैदा नहि केलक, अपने पैदा भेल।

विनीत उत्पल : तखन अहाँ मार्क्सवादक विरोध किए कए रहल छी?
जीवकांत : मार्क्सवाद उत्तम विचार छी, मुदा हिंसाक पक्षमे बेसी अछि। भारतीय राजनीति आ संस्कृतिमे मार्क्सवादक संभावना कम अछि, ताहिसँ एतए समाजवाद प्रबल भेल। भारतीय संस्कृति 'सर्वे भवन्तु सुखिनः’ पर आधारित अछि। एतए गांधी प्रासंगिक छथि। मार्क्सवाद बारंबार अपन रास्तासँ भटकैत अछि। मार्क्सवादक नीतिकेँ जमीनपर उतारब कठिन अछि। रूसक जमीनपर उतरल मार्क्सवाद राष्ट्रवादक प्रबल समर्थक बनि गेल। तिब्बत, भूटान, नेपाल आ पाकिस्ताक बलधकेल जमीनमे चीनी झंडा फहराइत अछि।

विनीत उत्पल : 'सुमन’ जीक अहाँ हमेशा विरोध कएलहुँ, तखन अभिनंदन ग्रंथमे बड़ाइ करबाक की मतलब अछि?
जीवकांत : 'सुमन’ जीक बड़ाइ लिखलहुँ तँ हम अछूत(......)भऽ गेलहुँ। हुनकर अध्यात्मपर लिखल अद्भुत अछि। संस्कृतमे लिखलन्हि। ओ आगि लगबैक क्षमता रखैत छथि। ओ संस्कृति आ मूल्यक विषयक ध्वजवाहक छलाह। ओ मैथिली कविताकेँ उत्कृष्टता तक लऽ गेलथि। हम मार्क्सवादी भऽ जाइ तकर माने ई तँ नहि होएत जे हम वेद-पुराणकेँ बिसरि जाइ। अभिनंदन ग्रंथ लेल फरमाइशी लेख लिखाओल गेल छल। हम हुनकर काव्य आ आध्यात्मपर लिखलहुँ। सही काल छल, एकरा लेल हम खुश छी।

विनीत उत्पल : कवितामे विशेष परिवर्तन कतए तक जाएज अछि?
जीवकांत : हमरा संग ढेर लोक एलाह। सभ पछुआ गेल। पाँच साल बाद हम अपन विषय परिवर्तन केलहुं। हर क्षेत्र~मे अपनेकेँ परिवर्तन करबाक चाही। जे परिवर्तनक समर्थक होएत ओ कालजयी होएत। हमहुँ विषय बदलैत गेलहुँ ताहिसँ जीवित छी। असहमतिक कविता पंजाब आ बंगालसँ आएल। बंगालमे सुभाष मुखोपाध्याय भेलाह जे कहलथिन 'हे कृष्ण, कुरुक्षेत्र मे घोड़ाक रास छोडि़ कए फेरसँ वंशी बजाउ।’ कविताक विषय सभ दिन बदलैत रहैत अछि। विद्यापति शृंगार आ भक्तिकेँ लऽ कए लिखलथि। एखन शृंगारसँ लोककेँ वैर भऽ गेल अछि। देश प्रेमक कविता लिखल गेल। मुदा दोसर विश्वयुद्घमे देशप्रेमक गपमे देखल गेल जे ई मनुष्यकेँ बर्बाद कऽ रहल अछि। राजनीतिपर कविता लिखब बेवकूफी अछि। आदमी, मित्रता, सुख-दुख कविताक विषय रहैत अछि। जेना-जेना समय बदलत, तेना-तेना विषय सेहो बदलत। जहिना कविता बदलत तहिना एकर रूपो बदलत। एकरा एना देखी, बच्चाक छठियार करैत छी, ओकरा बाद बच्चा्मे कतेक परिवर्तन होइत अछि।

विनीत उत्पल : मैथिली समाजक स्थिति लेल की कहबाक अछि?
जीवकांत : पैरवी-पैगाम आ गुटबाजी होइत अछि। अपन गाम आ समाज सिद्घांतवादी नहि अछि। जवाहरवादी अछि ताहिसँ तुरंत झुकि जाइत अछि। क्वालिटीसँ समझौता भऽ जाइत अछि। नीक लोकक नाम लेबासँ लोक अपवित्र भऽ जाइत अछि।

विनीत उत्पल : अहाँपर लोक आरोप लगबैत अछि जे 'चेला’ बनाबैत छी जेना महाप्रकाशपर रेखाचित्रमे रमेशकेँ उद्घृत करैत सुषाष चन्द्र यादव लिखै छथि। ई गप कतेक सच अछि?
जीवकांत : हम गुरुजी रही। साइंस टीचर रही तँ शिष्य तँ बनबे करत। सभ आदमी अपन प्रभाव छोड़ैत अछि। कुणाल, प्रदीप बिहारी आदि ई नाम अछि। हालमे शिवशंकर कहलथिन जे अहाँक रचना हम पढ़ैत रही। तारानंद वियोगी कहलथिन अहाँक कविता मासमे दूटा पढ़ैत रही, मिथिला मिहिरमे, ताहिसँ प्रेरित भेलहुँ आ लेखनक मुख्य धारासँ जुड़लहुँ। हमहुँ कहैत छी, यात्रीजीक लेखनसँ प्रभावित भेलहुँ। हमहुँ कहैत छी जे हम यात्रीजी आ विद्यापतिक चेला छी। हम कमांडो नहि बनेने छी। हम कोनो पुरस्कार लेल पैरवीकार नहि बनेने छी। हम दलाल नहि बनेने छी। हमर रचनासँ प्रभावित भऽ कऽ कियो रचना कर्ममे आएल, एहिमे हमर की गलती? हम अपन समर्थनमे भीड़ नहि जुटेलहुँ, वोट नहि मांगलहुँ, समीक्षाक लेल पैरवी नहि कएलहुँ। तखन जे कियो कहैत अछि जे हम हुनकर 'चेला’ छी तँ एहि~मे गलत की अछि ?

विनीत उत्पल : विवेकानंद ठाकुरक कविता संग्रहकेँ लऽ कऽ मोहन भारद्वाज जी समीक्षाक पर खूब विवाद भेल छल? ताहि लेल अहाँ की कहैत छी?
जीवकांत : मोहन भारद्वाज विवेकानंद ठाकुरक कविता संग्रह 'गामक कविता, कविताक गाम’ पर एकटा समीक्षा केने रहथिन। ओहिमे मोहन भारद्वाजजी लिखलथिन्ह जे हिनकर कविता सभटा समकालीन संभावनाकेँ खारिज करैत अछि। एहि संदर्भमे हम गौरीनाथकेँ एकटा पत्र पठेने छलहुँ। एतेक घटिया समीक्षा आ तुलनात्मक अध्ययन नहि भऽ सकैत अछि। संगे-संग पत्रक फोटोस्टेट कॉपी आओर लोककेँ पठेने छलहुँ। एकहि रचनासँ सभटा कविता खारिज भऽ जाए, एहन संभव नहि अछि। हमर विरोधक पत्र कोनो पत्रिकामे नहि आएल। मुदा गौरीनाथ एकरा मुद्दा बना देलक।
विनीत उत्पल: मोहन भारद्वाजक समीक्षाकेँ किछु गोटे गदगदी समीक्षा कहलन्हि मुदा ओ सभ बादमे अपने सेहो गदगदी समीक्षा कएलन्हि, मात्र किताब आ लेखक बदलि गेल!
जीवकांत: ई सभटा समीक्षक दारू पी कऽ, पैसा पी कऽ, मूर्खता पी कऽ विषवमन करैत अछि।

विनीत उत्पल : अपनेसँ अनुदित पुस्तक पर मूल पोथीक लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार लेखक सभ लेमए शुरू कए देलन्हि अछि। जेना अहाँ हालेमे अपन निबन्धमे मायानंद मिश्र द्वारा अपन लिखल हिन्दीक पोथीक स्वयं मैथिलीमे अनुदित पुस्तक 'मंत्रपुत्र’पर पुरस्कार लेबाक विषयमे लिखलहुँ?
जीवकांत : एहि मुद्दापर हमरा किछु नहि कहबाक अछि। मुदा मायानंद मित्र पुरस्कार लेलन्हि तँ किछु जरूर सोचने हेताह, सोचिए कऽ लेने हेताह। वैहि कहि सकैत छथि जे किए लेलन्हि।

विनीत उत्पल : साहित्य आ साहित्य लेखनमे इमानदारी आ नैतिकता कतेक आवश्यक अछि?
जीवकांत : लोककेँ सभ ठाम ईमानदार हेबाक चाही। 'पंजरि प्रेम प्रकासिया’मे हम खूब ईमानदारीसँ लिखने छी। मुदा, लोक गंगाजल लऽ कऽ अपन जीवनी लिखैत अछि। कविता, कहानी, नाटक तकमे लोक गंगाजल छींट कऽ लिखैत अछि। लेखनमे प्रेम, खून, हत्या, लार नहि अबैक चाही। हम सभ पाखंड करैत छी। मुदा जे लेखक जीवनक सत्य आ समाजक स्थिति लिखलक ओ अपन धरतीपर बदनाम भऽ गेल। राजकमल चौधरी साहित्यमे समाजक सत्य लिखलक, बदनाम भऽ गेल। ओ सत्य लिखलन्हि तँ हुनका 'अय्यास प्रेतक विद्रोह’ कहल गेल।

विनीत उत्पल : मिथिलाक केंद्र मानल जाएबला शहर 'मधुबनी’मे मैथिलीक पोथी नहि भेटैत अछि, एना किए?
जीवकांत : हम तँ देहातमे रहैबला लोक छी। बासन तँ दिल्ली, मुंबई, कोलकातामे बिकाइत अछि। मधुबनी, दरभंगा, घोघरडीहामे तँ घास छिलैबला लोक रहैत अछि। पढ़ै वाला लोक तँ बाहरे चलि जाइत अछि। मधुबनीमे पोथी नहि बिकाइत अछि, ओहिमे लेखकक कोन दोष? पब्लिशर्स आ सर्कुलेशनक मामला्मे समर्पित लोकक जरूरत अछि। गीता प्रेसक पोथी सभ ठाम बिकाइत अछि। हिंद पॉकेट बुक्सक पोथी ठामे-ठाम भेटैत अछि। हिंदीमे धर्मयुग, सारिका बंद भऽ गेल अछि। हमर सबहक पोथी दोकानमे नहि भेटि रहल अछि। लोक-वेद खैरातमे पोथी लएले चाहैत अछि।

विनीत उत्पल : प्रबोध सम्मान 2010 प्राप्त करबाक लेल बधाई।


२.
सुशान्त झा-ग्राम+पत्रालय-खोजपुर, मिथिला विश्वविद्यालयसँ स्नातक (इतिहास), तकर बाद आईआईएमसी (भारतीय जनसंचार संस्थान) जेएनयू कैम्पससँ टेलिविजन पत्रकारितामे डिप्लोमा (2004-05) ओकरबाद किछु पत्र-पत्रिका आ न्यूज वेबसाईटमे काज, दूरदर्शनमे लगभग साल भरि काज।


विकास के तेजी मे कहीं छुटि नै जाय मिथिला….।

बिहार विकास के चर्चा जोरशोर सं आबि रहल अछि। जीडीपी विकास दर मे बिहार गुजरात सं कनिए पाछू आयल अछि-ओहो तखन जखन कि राज्य मे कोनो तरहक उद्योग धंधा या व्यवसाय के विकास नहि भेल अछि। साफ अछि जे ई विकास कृषि क्षेत्र आ सरकारी योजना सबके लगभग सही ढ़ंग सं लागू करैके बदौलत भेल अछि। एम्हर केंद्र सरकार के कतिपय योजना-जेना नेरेगा, मध्यान्ह भोजन, सर्वशिक्षा अभियान, राजीव गांधी विद्युतीकरण आ पंचायत पर बेसी ध्यान दै के कारणे सेहो ई विकास देखा रहल अछि। ओना नीतीश कुमार सरकार के तारीफ ई जे ओ अहि योजना सबके सही तरीका सं बिहार मे लागू कयलक।
अगर आंकड़ा पर गौर करु त पायब जे बिहार के अर्थव्यवस्था पिछला चारि साल मे लगभग 11 प्रतिशत के दर सं आगू बढ़ल। लेकिन, दोसर दिस अगर राजधानी पटना मे संपत्ति के मूल्य पर गौर करी त आंखि फाटि जायत। पटना मे पिछला 2-3 साल मे रीयल स्टेट के मूल्य मे लगभग 100 सं लय क 300 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी भेल अछि। जहि फ्लैट के दाम पटना मे 2 साल पहिने तक 12 लाख रुपया छल ओ आब 25 सं लय क 40 लाख तक भेटि रहल अछि। पटना देश के ओहि किछु गिनल चुनल शहर के श्रेणी मे पहुंचि गेल जतय हवाई यात्रा करैबला के संख्या मे सबसं बेसी बढ़ोत्तरी भेल अछि। साफ अछि जे पटना के विकास या पटना मे धन के उपलब्धता बिहार के आम लोग के आमदनी सं बहुत बेसी अछि। ई बात एकटा खतरनाक संकेत के दिस इशारा कय रहल अछि जे बिहार के तमाम विकास राजधानी मे सिमटि रहल अछि या फेर बिहार मे धन के संकेंद्रण राजधानी मे अश्लील रुप लय लेलक अछि। एकरा दोसर तरीका स एना बूझि सकैय छी जे बिहार मे धन के केंद्रीकरण किछ खास हाथ मे बेसी भेल आ ओ आम जनता के हाथ कम पहुंचल। प्रतिशत मे बृद्धि के दर कयकटा दोसर फैक्टर सं ध्यान हटा दैत अछि, ई विकास के पूरा तस्वीर नहि कहैत अछि। विकास त भेले लेकिन ओहि विकास मे सम्पूर्ण जनता के भागीदारी संदेह के घेरा मे अछि।

लेकिन चिंता के बात सिर्फ एतबे नहि। मुख्य बात ई जे बिहार के अपेक्षाकृत विकास त भेले आ यदि स्थिति ठीक-ठाक रहल त आबै बला दिन मे औरो तेजी सं विकास हेत-लेकिन विकास के चरित्र जे संकेत दय रहल अछि ओ मिथिला के लेल शुभ नहि बुझा रहल अछि।
बिहार के नक्शा के गौर सं देखू-अंदाज लागि जायत जे आबै बला बिहार- गंगा के उत्तर आ गंगा के दक्षिण- एकटा भयंकट आर्थिक विषमता के बाट जोहि रहल अछि। बिहार के उत्तरी भाग-खास कय मिथिला क्षेत्र ऐतिहासिक रुप सं बाढ़ग्रस्त अछि, आ एतय बहुत कम सरकारी निवेश भेल अछि। आधारभूत संरचना, प्रतिवर्ष बाढ़ि के भेंट चढ़ि जायत अछि। एहन मे गंगा के दक्षिण के इलाका के भौगोलिक बढ़ित हासिल अछि।
बिहार मे हुअय बला वर्तमान निवेश आ अबैबला निवेश के जिनका अंदाज छन्हि ओ जनैत छथि जे सबटा मोट निवेश गंगा सं दक्षिण खासकय मगध आ भोजपुर मे जा रहल अछि। चाहे नालंदा विश्वविद्यालय हुए या गया के निकट निजी क्षेत्र मे लागय बला बिजली घर। दोसर गप्प ई जे ई इलाका पहिने सं संपर्क मार्ग पर अछि-चाहे ओ जीटी रोड हुए या दिल्ली-कलक्तता रेल मार्ग। अहि इलाका मे बाढ़ि नहि अबैत छै आ पटना एहेन नगर अही इलाका मे छै। बिहार के आमदनी दै बला मुख्य पर्यटन क्षेत्र गया-राजगीर अही इलाका मे अछि। ई इलाका स्वाभाविक लाभ के स्थिति मे अछि।

लेकिन ओहू सं बेसी बिहार सरकारक मौजूदा चरित्र अहि हालत के और प्रोत्साहित कय रहल अछि। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजगीर, नालंदा आ गया के विकास के लेल बेसी उत्साहित छथि। नीतीश जहन, केंद्र मे मंत्री छलाह तखनो ओ बाढ़ मे एनटीपीसी आ नालंदा मे आयुध कारखाना(जार्ज के तत्कालीन संसदीय क्षेत्र आ नीतीश के प्रभावक्षेत्र) लगबौने छलाह। एमहर केंद्रीय योजना के बात चलल त बिहार के भेटय बला एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी चलि गेल-सिर्फ हाथ आयल किशनगंज या कटिहार मे प्रस्तावित अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के कैम्पस।

मिथिला के जे मूल समस्या अछि ओहि दिस नीतीश सरकार के कम ध्यान अछि। मिथिलांचल, जकर आबादी बिहार मे कोनो दोसर क्षेत्र सं बेसी अछि ओतय के लेल बहुत कम पैघ सरकारी प्रोजेक्ट प्रस्तावित अछि। एकर मूल मे अछि एहि इलाका के बाढ़िग्रस्त भेनाई, तखन फेर नीतीश सरकार बाढ़ि के निदान के लेल किएक नहि उत्साहित अछि?

अहि इलाका मे साक्षरता के दर कम अछि, स्वास्थ्य के हालत ठीक नहि। तैयो सरकार के एजेंडा पर अहि इलाका मे एकोटा विश्विविद्यालय खोलनाई नहि छैक। नहिए, सरकार अहि इलाका मे एकोटा मेडिकल या इंजिनियरिंग कालेज खोलैके दिशा मे उत्साहित अछि।

ओनहियो, अगर ई मानि लेल जाई जे बाढ़ि के वजह सं अहि इलाका मे कोनो बड़का प्रोजेक्ट नहि लागि सकैये, आ एकर निदान केंद्र के हाथ मे छैक, तैयो की नितीश सरकार के ई दायित्व नहि जे ओ केंद्र पर दवाब डाले? पिछला साल कोसी के बाढ़ि के बादों हमसब एकर पूर्णकालिक निदान के कोनो संकेत नहि पाबि रहल छी।

हमरा सबके विकास के अहि रफ्तार सं चेति जाय के चाही। समय आबि गेल अछि जे हम सब अपन मांग जोरशोर सं उठाबी-नहि त अबैबला बिहार मे तमाम निवेश गंगा सं दक्षिण होयत आ मिथिला के लोग सिर्फ ओतय चाकरी करय ले जेता। हमर-अहांके हालत वैह भ सकैत अछि जेना पंजाब मे एखन बिहारी के छैक।

नवेन्द्र कुमार झा
नवेन्दुत कुमार झा
पचास वर्षक भेल प्रादेशिक समाचार एकांश
1993 मे प्रारंभ भेल छल मैथिली मे समाचारक प्रसारण

आकाशवाणी पटनाक प्रादेशिक समाचार एकांश 28 दिसम्बबर 2009 के अपन स्था पनाक पचास वर्ष पूरा कएलक अछि। आकाशवाणीक पटना केन्द्रर सँ 28 दिसम्ब्र 1959 के जे प्रादेशिक समाचारक प्रसारणक प्रांरभ भेल ओ बिना कोनो बाधा के प्रसारित भऽ पाछा नहि देखालक आ समाचार पर अपन गहिर नजरि रखने समाचार के जनता धरि पहूचैबा मे कोनो कसरि नहि छोड़लक अछि। प्रारंभहि सँ एहि एकांश सँ जूड़ल समाचार संपादक आ हुनक सहयोगीक दल सीमित साधनक बावजूद एकरा मजभूत स्त्म्म क रूपमे ठाढ़ कएलनि। बिहारक जनता के समाचार जगत सँ जोड़बाक जे काज आकाशवाणीक प्रादेशिक समाचार एकांश कएलक से अनवरत चलि रहल अछि ।
आजादीक बाद देशभरि मे आकाशवणीक पाच टा केन्द्र छल। ओना आजादी सँ पहिने देश भरि मे आठरा केन्द्रए छल जाहिमे देशक बैटवाराक बाद तीनरा केन्द्रर पाकिस्ता न मे रहि गेल। स्वरतंत्रता प्राप्तिक बाद एहि संचार माध्यसमक विस्ताहर प्रारंभ भेल आ सौभागय सँ एकहि वर्षक भीतर 26 जनवरी 1949 के आकाशवाणीक पटना केन्द्रक सँ समाचार क प्रसारण पहिल बेर 1959 मे प्रारंभ भेल। समाचार एकांश दिल्लीणक तात्काकलिक सहायक समाचार संपादक गुरूदत्त विधालंकारक नेतृत्वा मे समाचारवाचक रामरेणु गुप्तर आ संवाददांता रवि रंजन सिन्हाकक दल काज करब प्रारंभ कएलक। हुनक आ संवाददाता रवि रंजन सिन्हाचक दल काज करब प्रारंभ कएलक। हुनक प्रयास सँ एकरा रोमांचक क्षण आएल आ 28 दिसम्बरर 1959 के सांस सात बाजिकऽ पाच मिनट मे प्रादेशिक समाचारक पाच मिनटक पहिल बुलेटि आकाशवाणी पटना सँ प्रसारित भेल।
देश-दूनिया सँ बिहारक जनता के जोड़बाक लेल प्रारंभ भेल ई प्रयास अपन गति पकड़लक आ एकर समय क संगहि समाचारक अवधि में परिर्वतन आएल। प्रादेशिक समाचारक बढ़ैत लोक प्रियता के देखि पाच मिनटक ई बेलेटिन दस मिनटक भऽ गेल सा सांझ मे सात बाजिक तीस मिनट पर प्रसारित होमए लागल आ आइयो शहर सँ लऽ भऽ सुदूर गाम-धरमें एहि बुलेटिनक सात बाजिक तीस मिनट पर लोक सभी प्रतिक्षा करैत रहैत छथि। देश आ प्रदेशक बदलैत चातुर्दिक परिस्थित के देखि प्रतिदिन मात्र एकटा बुलेटिन सँ काज नहि चलैत देखि 10 अप्रील 1978 के एकटा आर बुलेटिनक प्रसारण प्रारंभ भेला। ई बुलेटिन प्रतिदिन दुपहरण मे तीन बाजि कऽ दस मिनट पर प्रसारित होएब प्रारंभ भेला। पाँच मिनटक ई बु‍लेटिन सेहो बिना कोनो बाधा के प्रसारित भऽ रहल अछि। एकांश द्वारा दू टा बुलेटिनक सफलता पूर्वक प्रसारणन बाद तेसर बुलेटिन सेहो प्रसारित होएब प्रारंभ भेल जे प्रतिदिन प्रात: काल मे आठ बाजिक दस मिनट पर प्रसारित अछि जे दरस मिनट अछि।
प्रादेशिक समाचार एकांश द्वारा प्रदेशक उर्दू भाषी जनता क लेल उर्दू समाचारक प्रसारण सेहो कएल गेल। 16 अप्रील 1989 सँ एकांश द्वारा उर्दू बुलेटिन इलाकाई खबरें’ दूपहर तीन बजि कऽ दस मिनट पर प्रसारित कएल जा रहल अछि। पाँच मिनटक एहि बुलेटिनक माध्यरम सँ आकाशावणी पटना क समाचार एकांश अपना के उर्दू भाषी जनता सँ जोड़लक। अपन यात्राक अगिला कड़ी मे एकांश मैथिली भाषी जनता के जोड़बाक योजनाके मूर्त रूप देलका 2 अक्टूाबर 1993 सँ मैथिली भाषी जनताक लेल मै‍थिली समाचार बुलेटिन ‘ संवाद’ क प्रसारण प्रारंभ भेल। सांझ छह बाजिक पन्द्रथह मिनट पर प्रसारित होमए बाला पाच मिनटक बुलेटिन प्रारंभ मे सप्ताेह तीन दिन प्रसारित होइत छला संवादक बढ़ैत लोप्रियता के देखि पाच मिनटक ई बुलेटिन 16 अगस्ता 2003 दिन सँ सांझ मे छह बाजि कऽ पन्द्रेह मिनट पर प्रतिदिन प्रसारित भऽ रहल अछि। ‘ संवाद’ आकाशवाणी पटनाक प्रादेशिक समाचार एकांश द्वारा तैयार कएल जाइत अछि आ एकर प्रसारण प्रतिदिन आकाशवाणीक दरभंगा केन्द्रा सँ होइत अछि। एकांश द्वारा समाचाराक अलाबा समकसामयिक विषय पर सभीक्षातमक वातीक कार्यक्रम ‘समसामयिक चर्चा’ 1992 सँ प्रारंभ भेला ई साप्तायहिक कार्यक्रम सभ शनि दिन प्रसारित होइत अछि। आकाशवाणीक समाचार एकांश अपन डेग आगा बढ़ौलक आ विधायिकाक नतिविधि सँ जनता के जोड़बाकक लेल विधान मंडल सभीक्ष कार्यक्रम प्रसारण प्रारंभ कएलका विधान सभा आ विधान परिषद्क सत्रक दरमियान एकांश द्वारा प्रतिदिन आठ बाजि कऽ बीस मिनट पर ‘ विधान मंडल समीक्षा’ प्रसारित करैत अछि।
देशमे आएल सूचना क्रान्तिक प्रभाव सेहो प्रादेशिक समाचार एकांश पर पड़ल। एकांश आधुनिक सूचना तंत्र सँ लैस भेल आ वर्ष 2003 मे रोमांचक क्षण आ एल। एहि वर्ष एकांशद्वारा ‘दूरभाष समाचार सेवा’ क प्रसारण प्रारंभ भेल। श्रोता अपन फोन पर समाचार सूनऽ लगलाह। एतबा नहि वर्ष 2005 मे एकांश आधुनिक मीडिया क साधनक उपयोग करैत डी टी एच पर सेहो अपन सेवा उपलब्धा करौलक आ प्रादेशिक समाचार डी टी एच पर सेहो उपलब्धै भऽ गेल। एफ एम चैनलक बढ़ैत लो‍कप्रियताक देखि वर्ष 2006 सँ प्रमुख समाचार तीन टा बुलेटिन 10.30, 11.30 आ सांझ 6.30 बजे एफ.एम चैनल पर सेहो प्रसारित भऽ रहल अछि। समाचार सेवा प्रभागक वेब साइड www. Newsonair.nic in आ www. newsonair. com पर सेहो वर्ष 2007 सप्राइज़ प्रादेशिक समाचार उपलब्धi होमए लागल अछि। दूनियाक कोनोमे बैसल व्य क्ति एहि वेव साइट के खोलि आकाशवाणी पटनाक प्रादेशिक समाचार के पढि़ आ सूनि सकैत अछि।
समाचार सेवा प्रभागक तर्ज पर प्रभागक रिदशा निर्देशक अनुसार प्रादेशिक समाचार मे संवाददाताक वाइस डिस्पै च, वाईस कास्टर आ साउट बाइटक कऽ प्रयोग कऽ समाचार के रोचक बनैबाक प्रयास प्रारंभ भेल। ई प्रयास अक्टू बर 2006 मे मूर्त रूप लेलक। संवाददाताक आबाजमे समाचारक प्रसारण जे प्रारंभ भेल से एखनो चलि रहल अछि। वर्ष 2006 मे मूर्त रूप लेलक। संवाददाताक आबाज मे समाचारक प्रसारण जे प्रारंभ भेल से एखनो चलि रहल अछि1 वर्ष 2006 मे मूर्त रूप लेलक । संवाददाताक आबाज मे समाचारक प्रसारण जे प्रारंभ भेल से एखनो चलि रहल अछि। वर्ष 2006 मे समाचार सेवा प्रभागक पहल पर जिलाक गतिविधि पर आधारित कार्यक्रम ‘जिले की चिह्ठी’ क नाम बदलि कऽ ‘जिले की हलचल’ कऽ देल गेल ‘जिले की चिट्ठी मे प्रदेशक विभिन्नअ जिलाक अंशकालिक संवाद दाताक प्रेषित समाचारक आलेखक प्रसारण होईत छल मुदा एकर परिवर्तित रूप ‘जिले की हलचल’ मे जिलाक समाचार आधारित एहि कार्यक्रम के संवाददाताक आवाजमे प्रसारित कऽ एकरा आर जीवंत बनाओल गेल अछि। ई कार्यक्रम प्रतिदिन प्रादेशिक समाचारक बाद प्रसा‍रित होईत अछि।
प्रादेशिक समाचार एकांशक स्थारनाक संगहि जाहि इमानदारीक संग गुरूवारदत्त, रामेरणुगुप्तार आ रवि रंजन सिन्हाश आकाशवाणी समाचार सँ बिहारक जनता के जोड़बाक काज प्रांरभकएलनि ओकरा पूरा इमानदारीक संग हुनक बाषजूद प्रादेशिक समाचार एकांश जनता के त्वाेरित आ विश्वंसनीय समाचार देबाक लेल तत्प र अछि। अपन कर्तव्यरक निर्वाह एकांश देश-दूनियाक हलचल सुदूर गामधरि पहूचा रहल अछि।

सताक प्राप्ति बनल भाजपाक उद्देश्यश
‘पार्टी विथ डिफरेन्सद’ क दाबा करए बाला भारतीय जनता पार्टी आब अपन चालि आ चारित्र के आन दलक डांचा मे ढालि रहल अछि। राजनीतिक अपराधी करण आ भ्रष्टाचारक विरूद्ध संघर्षक शंखनाद करए बाला भाजपा आब अपराधी आ भ्रष्टाजचारीक आगां नतमस्त्क भऽ गेल अछि। ई स्वांभावि को अछि। राजनीति दलक एकमात्र उद्देश्य् सत्ताक प्राप्ति अछि आ एकर प्राप्तिक लेल सभ किछु जायज अछि। ज्योो ई नहि रहैत तऽ पार्टी विथ डिफरेन्सष बाला भाजपा जाहि शिक सोरेनक विरुद्ध संसद सँ लऽ कऽ सड़क धरि संधष्र कएलक दलक संग झारण्डस मे शासन करबा लेल बेचैन नहि रहैत।
देशक बहुचर्चित सांसद घुस काण्डस आ शशिनाथ झा हत्याेकांड क आरोपी झारखण्डाल मुक्ति मोर्चाक अध्य क्ष शिबू सोरेन के झारखण्डाक मुख्यण मंत्री बनैबाक लेल भाजपा अपन समर्थन दऽ अपराध आ भ्रष्टाोचारक एकरा नव परिभाषा लिखबाक प्रयास कऽ रहल अछि। झारखण्डय मे त्रिशंक विधान सभा बनलाक बाद सोरेन पहिने कांग्रेसक चिरौरी कएलनि ओ काँग्रेस आलाकमान द्वारा मुख्य मंत्री पद देबा सँ मना बएलाक बाद पाला बदलि राजग केँ खेमा मे गेलनि आ जेना भाजपाक नेता सत्ताक प्राप्तिक लेल बेचैन छलाह, शिबूक सभ कुकर्म के बिसारि हुनक आगां नतमस्तओक भऽ गेलाह। शिबूक संग भाजपा के प्रदेश मे स्थाचयी सरकारक एतबा चिन्ता छल तऽ एहि चुनावक आवश्यतकता नहि छल। मधु कोड़ाक मुख्यज मंत्री पद सँ विदाई समय भाजपा ओहि सभ सँ पैघ दल छल। सदनमे ओकर 30 रा सदस्यय छल आ झामुमो के सेहो 18 सदस्यभ छल। आ दूनू दल आरामदायक बहुमत प्राप्त कऽ झामुमोके सेहो 18 सदस्यम छल। आ दूनू दल आरामदायक बहुमत प्राप्तन कऽ सरकार चला सकैत छल। मुदा सरकार सजानाक जे बाबादी भेल एकरा लेल भाजपा जिम्मे।दार नहि अछि? मात्र काँग्रेसके सत्ता सँ बाहर रखबाक लेल भाजपाक ईनाटक पार्टीक बदलि रहल चालि चरित्र आ चेहरा कहल जा सकैत अछि।
राष्ट्री वादी विचारक पोषक आ अपन ईमानदार छवि क तगमा लेने धुमि रहल भाजपाक भ्रष्टाहचारक विरुद्ध संघर्ष नारा लोकक आखिमे झाउर झोकब बुझि पड़ैत अछि। ओना पार्टी अपन नीति आ सिद्धांत पर चारि डेग चलि दू डेग पांछा हटबामे कोनो परहेज नहि करैत अछि बशर्ते सत्ताक गांरटी हो। राम मंदिरक मामिला होकि धारा 310, अथवा समान अचार सँ हिताक मामिला पार्टी अपन एहि भूल सिद्धांत सँ समझौता कएलक आ केन्द्र से गांरटेड सत्ता हाथ लागल। एकर बाद तऽ जेना पाटी मनुकख खूनक स्वाकद लऽ चूकल शेर मऽ गेल आ सत्ताक ई स्वाटद लेलाक बाद बिनू सत्ता प्राप्ति रहब दुष्कखर भऽ गेल। झारखण्डल भूख के शांत करबाक प्रयास कहल जा सकैत अछि।
बदलैत राजनीतिक परिदृश्याकक मध्यद राष्ट्रतवादक झण्डाष दो रहल भाजपा आब अपराधी आ भ्रष्टघचारीक कन्हा पर चढि़ कोनो हाल मे सत्ता प्राप्तिक नीति पर चलि रहल अछि। पार्टीक बदलैत चाहि। चरित्र आ चेहरा ज्यो वर्ष 2010 मे बिहार मे होमए बाला विधान सभा चुनावक दरमियान सोझा आबि सकैत अछि। प्रदेशक बदलि रहल राजनीतिक बातावरणमे बिहार मे सेहो त्रिशंकू विधान सभाक संभावना बुझि पड़ैत अछि। ज्योंक ई मेल 13 सत्ताक कुसीक लेल भाजपा पशुपालन घोटालाक लेल चर्चित राजद अध्यझक्ष लालू प्रसादन आगां साष्टांमग दण्डरबत भऽ कोनो आश्च र्य नहि होएत।
ई सत्त अछि जे राजनीतिक दलक लेल सत्ताक प्राप्तिक एकमात्र लक्ष्य होईत अछि। चुनावक मैदान मे उतरबा सँ पहिने भने पैघ-पैघ दाबा कएल जाईत हो। जनताके दिन मे चाद आ तारा देखैबाक आश्वांसन देल जाईत हो मुदा मत गणनाक बाद बदलैत राजनीतिक परिदृश्य क अनुरूप नीति आ सिद्धांत बदलैत अछि। आ ई सभ झारखण्डद मै पान मे ताल ठोकड बाला दल प्राप्तिक लेल नव-नव सभीकरण बनबड लागल आ सफलता भाजपाके भेटला। सांसद घुस काण्डा मे संसदक कार्यवाही के पन्द्रडह दिन घरि ठप्पज कऽ जनताक टाका बर्बाद करए बाला आ शिबू सोरेन पाक साफ लगलेनि। राँची सँ लऽ कऽ दिल्ली धटि बैसल भाजपाई शिबू के क्लीकन चीर दैत रहलनि आ ओम्ह र शाशिनाथ झाक परिजन शिबू के मुख्य मंत्री नहि बनैबाक चिरौरी करैत रहलाह। सत्ता प्रप्तिक एहि जोशमे स्व oझा के न्या य दे एबाक बात दबि गेल अछि। भाजपाक नेतृत्वौ घृतराष्ट्रल जकां आखि पर पट्टी बान्हि न्यामय सँ आँखि चोरा रहल अछि।
मामिला स्पलष्टज अछि। ज्योन शिबू सोरेन एतबा पाक साफ छलाह तऽ फेर आखिर कोन कारण भाजपा शिबूक विरूद्ध संघर्ष करैत रहला ईहो सत अछि जे शिबूक विरूद्ध संघर्ष करैत रहल। ई हो सत अछि जे शिबूक विरूद्ध कानूनक अनुसार मामिला पर निर्णय होएत आ निर्णय भेलो अछि। ओ न्यारयालय द्वारा बरी कएल गेल छथि आ आब मामिला सर्वोच्चम न्या यालय मे अछि। न्याओयालय अपन धारा आ साक्ष्य क आधार पर निर्णय देत मुदा सच तऽ झारखण्ड्क एक जनता जनैत अछि। ज्यों। न्यालयालय द्वारा बरी कएलाक बाद दोस्तीर जायज अछि तऽ बिहार मे पशुपालन धोटालाक किछु मामिलामे राजद अध्यओक्ष लालू प्रसाद के सेहो राहत भेटल अछि तऽ भला हुनक विरूद्ध संघष्र जारी राखब बिहारक जनता के मुर्ख बनाएब नहि अछि।
वर्ष 2009 मे लगातार हारिक स्वारदाक बाद वर्षक अंतमे विजेता बनबाक अवसर हाथमे अबैत देखि भाजपा अपन नीति आ सिद्धांत के फिक्सल डिपाजिट कऽ देलक अछि। एक दिस भाजपा अपराध भ्रष्टाबचारक संरक्षण दऽ सत्ता चलाओत दोसर दिस ओकर नीति आ सिद्धांत बढ़ैत रहत। सताक सहयोगी बनलाक बाद भने भाजपाई मदहोश भेल होथि मुदा स्वतoशशि नाथ झा क आत्मा। भाजपाक एहि निर्णय पर जरूर आश्चाय्र चकित होएत शिबूक मुख्य मंत्री बनलाक बाद स्विoझाक परिजनके न्याएय भेरत एकरतऽ कल्पसना करब बेक्कूकफी अछि। झामुमो सुप्रीमो जतए स्वीo झाक हत्यााक मामिलामे अपना आप के पाक साफ करबाक सभ संभव प्रयास करताह ओतहि भाजपाई पूर्व मुख्यस मंत्री मधु कोड़ाक साम्राज्यअक अनुरूप एहि तरहक अपनो छोअ साम्राज्यत बनैबा मे कोनो कसरि नहि छोड़ता । किएक तऽ झारखण्ड क ई नियति बनि गेल अछि ।
४. केदार कानन-जगदीश प्रसाद मंडलक पछताबा पर एक दृष्टिर

गंभीर साम्यावादी दृष्टिश, रचल पचल जीवानानुभव आ ताहि अनुभवक सहज मुदा परिपक्वक अभिव्यरक्तिू, अभिव्यसक्तिनमे कहबाक अपन ढ़ंग, मैथिल जीवन आ परम्‍पराक श्रेष्ठ अंकन-चित्रण कथाकार जगदीश प्रसाद मंडलक निजी पहचान थिक। एक बएसपर आबि गेलाक बाद ई लेखनक शुरुआत कएलनि अछि मुदा से हिनक कृतिक परायणसँ बुझाइत नहि अछि। तकर कारण ई रहल अछि जे हिनक मानसमे ई सभ वस्तुि कागतपर उतरबासँ पहिनहि रचित-खचित रहल अछि। जीवनक सघन-बीहड़ झंझावात सहि-अंगेजि लेखनक क्षेत्रमे उतरय बला जगदीश जी सनक श्रेष्ठत शिल्पीसक स्वा़गत करैत प्रसन्निता होइत अछि।
हिनक पछताबा कथा हमर टेबुलपर राखल अछि। सुपौलमे आयोजित कथा गोष्ठीामे ई कथा पढ़ल गेल छल। एकटा स्वकतंत्रता सेनानीक घरसँ बहराएल रघुनाथ अपन इंजीनियरिंगक पढ़ाइक पछाति नोकरी लेल पत्नीकक संग अमेरिका चलि जाइत अछि, अपन माता-पिता, परिवारक, सर-सम्बरन्धीी, समाज सभकेँ छोड़ि। ओहिठामक चाक-चिक्यक आ भोगवादी समाजमे रचल-पचल रधुनाथ लेल पाइ कमएबाक अतिरिक्तल कथूक चिन्ताक नहि छनि।
एम्हतर शिवनाथ आ हुनक पत्नीआ, रघुनाथक माता-पिता गामपर रहि जाइत अछि। थोड़ेक दिन पुत्रक वियोगमे मालिन रहि ई दुनू परानी ढ़ंगसँ अपन जीवन जीबैत छथि आ सुखसँ रहैत छथि। फ्लैनश बैंकमे ई कथा चलैत अछि आ अनेक-अनेक उपकथा कथा सभ उदघाटित होइत अछि।
अमेरिकाक जीवनसँ पहिने उबैत अछि रघुनाथक पत्नीघ। ने क्योथ संगी ने क्योा गप कएनिहार। एक दिन यैह पश्चाताप रघुनाथोकेँ होइत छनि। मगर ओ अपन ओछाइनपर छटपटाइत टा रहि जाइत अछि। गाम अएबाक कार्यरुप अथवा कोनो आन परिणति नहि देखाबऽ दैत अछि।
कथा मोनलग्गूा अछि। पढ़बामे क्रम भंग कतहु नहि होइत अछि। कथामे मैथिल अभिव्य क्तिचक निम्नांएकित रुप नीक लगैत अछि - जहिना पाकल आम तोड़ै लेल कियो गाछ पर चढ़ैत अछि आ आम तोड़ैसँ पहिनहि खसि पड़ैत अछि, तहिना शिवनाथोकेँ भेलनि। दुनूक मन एहिरुपेँ चूर-चूर भऽ गेलनि, जहिना अएनापर पाथरक लोढ़ी खसलासँ होइत अछि। दुनूक मनमे पैघ-पैघ अरमान पैघ-पैघ सपना छलनि जे एकाएक फूटल फुकना बैलूनक हवा जेकाँ वायु मंडलमे मिलि गेलनि। पाकल आमक आँठी जेकाँ करेज आरो सक्कलत भऽ गेलनि। अंडीक तेलमे जरैत डिबियाक इजोत जेकाँ।
जगदीश प्रसाद मंडलकेँ हम व्यक्तिेगत रूपेँ बधाइ दैत छियनि आ आशा करैत छी जे ओ अपन अनुभवकेँ आरो व्यारपकता प्रदान करैत नव-नव कृतमे हमरा सभकेँ परिचित करौताह।
२.५. १. डॉ. कैलाश कुमार मिश्र-सखी कुन्ती २. बिपिन झा-के करत मिथिलाक्षरक रक्षा ३. फूलचन्द्र झा प्रवीण- मैथिलीक बाल साहित्य


डॉ. कैलाश कुमार मिश्र-जन्म(८ फरबरी १९६७-) दिल्ली विश्वविद्यालयसँ एम.एस.सी., एम.फिल., “मैथिली फॉकलोर स्ट्रक्चर एण्ड कॊग्निशन ऑफ द फॉकसांग्स ऑफ मिथिला: एन एनेलिटिकल स्टडी ऑफ एन्थ्रोपोलोजी ऑफ म्युजिक” पर पी.एच.डी.। मानव अधिकार मे स्नातकोत्तर, ४०० सँ बेशी प्रबन्ध -अंग्रेजी-हिन्दी आ मैथिली भाषामे- फॉकलोर, एन्थ्रोपोलोजी, कला-इतिहास, यात्रावृत्तांत आ साहित्य विषयपर जर्नल, पत्रिका, समाचारपत्र आ सम्पादित-ग्रन्थ सभमे प्रकाशित। भारतक लगभग सभ सांस्कृतिक क्षेत्रमे भ्रमण, एखन उत्तर-पूर्वमे मौखिक आ लोक संस्कृतिक सर्वांगीन पक्षपर गहन रूपसँ कार्यरत। यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का, यू.एस.ए. केर “फॉकलोर ऑफ इण्डिया” विषयक रेफ़ेरी। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालयक पुरस्कारक रेफरी सेहो। सय सँ ऊपर सेमीनार आ वर्कशॉपक संचालन, बहु-विषयक राष्ट्रीय आ अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठीमे सहभागिता। एम.फिल. आ पी. एच.डी. छात्रकेँ दिशा-निर्देशक संग कैलाशजी विजिटिंग फैकल्टीक रूपमे विश्वविद्यालय आ उच्च-प्रशस्ति प्राप्त संस्थानमे अध्यापन सेहो करैत छथि। मैथिलीक लोक गीत, मैथिलीक डहकन, विद्यापति-गीत, मधुपजीक गीत सभक अंग्रेजीमे अनुवाद।

‘सखी कुन्ती’
हम करीब तेरह वर्षक भऽ गेल रही। रही बड्ड खुर्लच्ची आ अगाध बदमास। कहियो एहेन नहि होइत छल जहिया ककरोसँ झंझट नहि होइत हो। माय हम्मर लोकक उपरागसँ तंग आबि गेल छलीह। सब उपाय केलन्हि; डांटब, बुझाएब, मारब। मुदा बेकार हम अपन खुर्लुच्ची स्वभावकेँ नहि त्यागलहुँ।
एहनो बात नहि छल जे हमरा अपना मोनमे अपन कर्मक प्रति घमण्ड हो। प्रति दिन सूतबा काल ई निर्णय लैत रही जे आब लोक सभसँ झगड़ा–फसाद नहि करब। खूब मोन लगाकऽ पढ़ब। लोक आब माय लग ई कहय अयतन्हि जे आहाँक बेटा अपन कक्षाक सबसँ नीक विद्यार्थी अछि। लोक सभसँ आपसी प्रेम बना रखैत अछि। आदि–आदि। “मुदा ई सब किछु क्षणक निर्णय होइत छल। भोर होइतहि हम अपन बदमासीक प्रवृत्तिमे पुनः संलग्न भऽ जाइत रही।
माय सोचलन्हि; “आब ई बर्बाद भऽ जाएत”। तामससँ घोर होइत बाढ़नि उठा एक दिन कतेको बेर मारलन्हि। बीचमे हफैत रहली या कहैत रहलन्हि “राघव! तोरासँ नीक कुकुर! कमसँ कम अपन पोसनहारक बात तऽ मनैत अछि”। माएक हाथ चलैत रहलन्हि, आ हम मारि खाईत रहलहुँ। फेर ओ बजलीह; तूँ तँ बतहा कुकुर छै मारैत मारैत माए थाकि कऽ चूर भऽ गेलीह।
ओना तँ कतेको दिन माएसँ मारि खाईत छलहुँ मुदा ओहि दिनक बात जीवनपर्यंत याद रहत। शरीर बेदनासँ कराहए लागल। माए केँ सेहो बुझेलन्हि जे आई ओ किछु ज्यादे मारि देलन्हि। हम बिना किछु कहने मण्डिल (मन्दिर)केँ पाछा जाए कानए लगलहुँ।
आधा घंटाक बाद माए मालीमे करूक तेल लेने अयलन्हि। पाछासँ हमर झोटकेँ सहलाबए लगलन्हि। हमरा भेल फेर मारतीह। मुदा जखन हुनका दिस ध्यान गेल तऽ देखलहुँ आँखिसँ नोर चुबैत छलन्हि। कहए लगलन्हि; “चारिटा बाल बच्चा भगवान देलन्हि। तीनटासँ कहियो कुनो शिकायत नहि भेल। सबहक कसरि तो पूरा कऽ देलह राघव। माए कहैत रहलीह आ माथा सहलाबैत रहलीह। आब हमहुँ कानए लगलहुँ। कहलियिन्ह “माए! आब हम बदमासी नहि करब! हमरा आई आहाँ बड्ड मारलहुँ। पूरा शरीर गूड़ घाव जकाँ दर्द करैत अछि”। ई कहि हम माएकेँ पकड़ि हुनकर गरसँ लागि बड्ड जोरसँ कानए लगलहुँ। पूरा शरीरमे बाढ़निकेँ ओदरा परि गेल छल। माए ओकरा देखैत हमरे जकाँ जोरसँ कानए लगलीह। फेर तेल लगौलन्हि। स्नान केलहुँ आ भोजन केलहुँ। माए दिन भरि कनैत रहलीह। दिन भरि अन्न नहि खेलन्हि। लोक सब आग्रह केलकन्हि तँ कहलखिन्ह जे हम्मर प्रायश्चित यैह थीक जे हम 24 घंटा अन्न जल ग्रहण नहि करी”।
जखन हमरा पता चलल हम दीदीकेँ हाथसँ चाह लए माए लग गेलहुँ। हमरा बुझल छल जे माए अन्न बेतरे तँ रहि सकैत छथि मुदा चाहकेँ बिना नहि। हम कहलियन्हि माए! अहाँ चाह पी लिअ। आब हम कहियो गलती नहि करब। लोक कहत ‘राघव केहेन नीक लड़का छैक’। माए हमरा दिस देखलन्हि आ बजलीह; चुपचाप चाह लऽ कऽ घर चलि जो। जाई हम किछु नहि खैब! रातियोमे माए नहि खेलीह। भोरे भईया दरभंगासँ अयलाह। आबिते मातर माए हुनका कहलथिन्ह; “पवनजी, राघब हमर जीनाई दुर्लभ कऽ देने अछि। लोकक उपरागसँ तंग आबि गेल छी। काल्हि जानवर जकाँ मारिलियैक। कचोट बादमे बड्ड भेल। ई महामुर्ख निकलि गेल। तेँ एकरा पिताजी लग सिमडेगा भेज दहक। रामनगर वाली बहिन कहैत छलीह जे रोहित चारि पाँच दिनक भीतर राँची जाए बला छथि। हुनके संगे पठा दहक। बाबूजीकेँ एकटा चिट्ठी लिख दहुन”। हम्मर घरमे माएक राज चलैत छलन्हि। भैया हुनकर आज्ञाकेँ स्वीकार केलन्हि। साँझमे भैया रोहित भाईकेँ लऽ कऽ अयलाह रोहित भाई माएकेँ कहलथिन्ह; कुनो बात नहि कनिया काकी, हम राघबकेँ सिमडेगा बला बसपर बैसा देबैक। सिमडेगामे बसे स्टेंड लग खादी भण्डार छैक। बसक कण्डक्टर राघबकेँ ककाजी लग पहुँचा देतैक”।
माए हमर जएबाक तैयारी करए लगलीह। हमरा गामसँ सिमडेगा गेनाई नीक नहि लागि रहल छल, जे एकबेर जे कुनो बात माए मोनमे ठानि लेलन्हि तकरा दुनियाक कुनो ताकत नहि टारि सकैत अछि। ताहि बिना कुनो प्रतिकार केने हमहुँ सिमडेगा जेबाक तैयारीमे लागि गेलहुँ। अपन तीन चारिटा लंगौटिया यार सबकेँ कहि देलयैक; “हम आब सिमडेगा चललीयौक। तूँ सब रह अतय केर राजा”।
चारि दिनक बाद हम रोहित भाई संग सिमडेगा लेल प्रस्थान केलहुँ। आबए काल माए बड्ड कनलीह। बड़ हृदयसँ लगौलन्हि। पहिल बेर पता चलल जे माए हमरा कतेक मानैत छलीह। कहलीह; “बाबूजी लग, मनुक्ख जकाँ रहबाक प्रयत्न करिहैं राघब। तंग नहि करियेन्ह। माए एकटा चिट्ठी सेहो बाबूजी केँ लिखलथिन्ह। चिट्ठी अंतिम भागमे लिखल रहैक;
“राघब बड्ड बदमास अछि। प्रतिदिन लोकक उपरागसँ मोन आजिज भऽ गेल अछि। ताहिसँ एकरा अहाँ लग पठा रहल छी। शायद अहाँक डरसँ बदमासी कम करत। हम जनैत छी ई हमर कोर पछुआ अछि। तइयो एकर उत्तम भविष्य केर लेल अपन छातीपर पाथर राखि अहाँ लग दूर देशमे पठा रहल छी। एकरा डॉट फटकार अवश्य करबैक, मुदा अहाँकेँ हम्मर आ चारू धीया–पुताक सप्पत अछि, एकरा मारबै नहि”।
माएक चिट्ठी हम सिमडेगा अयलाक आठ दिनक बाद पढ़लहुँ। माएक यादमे चुपचाप बड्ड कनलहुँ। लागल केहेन महान चीजक नाम छैक ‘माए’। स्वयं तँ मारैत छलीह, मुदा जखन बाबूजी लग भेजलन्हि अछि तँ बाबूजीकेँ सब तरहे बुझा रहल छथिन्ह जे राघबपर हाथ नहि उठेबैक। बाह रे माएक ममता!
बाबूजी माएकेँ बड्ड मनैत छलथिन्ह। ओ हमरा बुझबैत छलाह; “राघब, अहाँ खूब मोनसँ पढ़ु। अहाँकेँ जे कुनो चीज चाही से लिअ जा पढ़ु। लोक सबसँ झगड़ा–दान नहि करू”।
अगल–बगल केर चारि–पाँच लड़का–लड़की सबसँ बाबूजी हमर परिचय करा देलन्हि। हम अपनामे आश्चर्यजनक परिवर्त्तन अनलहुँ आ लोक सबसँ लड़ाई–झगड़ा त्यागि देलहुँ। बाबूजी प्रसन्न छलाह, जे चलू राघबमे एहेन परिवर्त्तन अयलन्हि।
हमरा लोकनिक घरक बगलमे एकटा तमाकुल बेचय बला बनिया छल। ओकर नाम रहैक सोहन साहु। सोहन साहु केर बेटी शीला छलैक। हलांकि शीला हमरासँ एक कक्षा जुनीयर छलि। शीलाक नाक नक्श बड़ सुन्दर, रंग कारी मुदा सोहनगर। शीला जवान भऽ रहलि छलि, से शरीरक अंगसँ स्पष्ट परिलक्षित होइत छलैक। पातर ठोर, डोका सनहक आँखि, मध्यम कद। कपड़ा–लत्ता सेहो ठीक पहिरैत छलि। शीलाक माए हमरा बड्ड मानैत छलीह। कहैत छलथिन्ह; “बेचारा राघब,! बिना माएकेँ सिमडेगामे रहैत अछि”। शीला सेहो हमरा बड्ड मानैत छलि।
पिताजी हमर नाम सिमडेगाक सरकारी स्कूलमे लिखा देलन्हि। हमर स्कूलकेँ ठीक पाछा शीला कन्या विद्यालयमे पढ़ैत छलि। हलांकि शीला बरसमे हमरासँ डेढ़ वर्षक पैघ छलि, परंतु कक्षामे हमरासँ एक कक्षा पाछा। स्कूलक समय दूनू स्कूल एकै रहैक। हम प्रतिदिन स्कूल शीलेक संग जाइत रही। शीलाक संग शीलाक एक सहछात्रा सेहो हमरा लोकनिकेँ संग विद्यालय जाइत छलि। ओहि छात्राक नाम रहैक कुंती। कुंती मध्यम कदकेँ करीब पन्द्रह वर्षक स्वस्थ आ गोर लड़की छलि। नमहर कारी–कारी केश, सुन्दर नाक, कान। कनीक वरससँ ज्यादे बुझना जाइत छलि कुंती। शनैः शनैः कुंतीसँ हमर नीक बातचीत होमए लागल।
पता नहि कियाएक कुंती हमरा शीलासँ ज्यादे नीक लगैत छलि। निश्छल, सहज आ सुन्दरि। ओकर आंखि दिस जखन–कखनो ध्यान जाइत छल तँ एना बुझाइत छल जेना ओ सहज भावसँ मोनक कुनो बात हमरासँ बांटए चाहैत अछि। बात क्रममे पता चलल जे कुंती मैथिल ब्राह्मणी थीकि। पूरा नाम रहैक कुंती झा। चुंकि हमरा लोकनि सभवयस्क आ संगीक रूपमे रहैत रही, आ उपर कुंती हमर सखी शीलाक अभिन्न संगी रहैक ताहिसँ हम सब ओकरासँ तूँ कहि कऽ बात करियैक। हलांकि एक दिन शीलाक माए हमरा कहलन्हि, राघव, अहाँ सब कुंतीकेँ तूँ नहि कहियौक”!
हम पुछलियन्हि, “कियाएक काकीजी? कुंती आ शीला दूनू हमर संगी जकाँ थीकि। हम शीलोकेँ तूँ कहिकऽ बजबैत छियैक मुदा अहाँ कहियो मना नहि केलहुँ, परंतु कुंतीक लेल ई बात कियाएक कहि रहल छी”?
शीलाक माए हमर प्रश्नक जवाब देमए लगलीह, यही बीचमे शीला आ शीलाक पिताजी हुनका रोकि देलथिन्ह। शीलाक पिताजी शीलाक माएसँ कहलथिन्ह; “अहाँ बच्चा सबकेँ बीचमे कियाएक टांग अरबै छी? “जखन कुंतीकेँ कुनो समस्या नहि छैक, तँ अहाँकेँ की समस्या अछि? राघबकेँ अनेरे अहाँ शिक्षा नहि दियौक”। शीला सेहो अपन माएकेँ भाषण देमए लागलि; “गे माए, ई तोहर बड़का समस्या छौक। अपना जे करक छौक से कर। जकरा जेना बजबै चाहैत छैं, बजा। हमरा सभहिक बीचमे नहि बाज। हम कुंती आ राघब ओहिना रहब जेना रहि रहल छी। हमरा सबकेँ व्यर्थमे नैतिकताक शिक्षा नहि दे माए”।
हमरा बूझ’मे नहि आयल जे एकाएक बाप–बेटी मिलकेर बेचारी शुद्ध महिलाकेँ कियाएक बजबासँ रोकि देलकैक। ओना शीलाक माएक बातपर हमरा किछु विस्मय जकाँ सेहो लगैत छल। शीला हमरा दिस देखैत बाजलि; “राघब,! तों जेना चाहैत छैं तहिना कुंतीकेँ सम्बोधित कऽ सकैत छैं। जेना कियाएक, ओहिना जेना हमरा कहैत छैं। तहिना कह” कुंती कहैत रहलि। समय चलैत रहल। हम अपन माएक देल वचन पर थोड़ेक प्रतिबद्ध रहलहुँ। खूब मोनसँ पढ़ी। लोक सनसँ झगड़ा–फसाद लगभग छोड़ि देलकै। स्कूलक शिक्षक सब सेहो हमर व्यवहार आ कुनो चीज अथवा ज्ञानकेँ सीखबाक उत्कंठा या जिज्ञासासँ प्रसन्न छलाह। बाबूजी हमर प्रशंसा सुनि गद्–गद् भऽ गेलाह। झट दनि माएकेँ चिट्ठी लीखि देलथिन्ह। चिट्ठीक मजबून ई रहैक।
राघबमे आश्चर्यजनक परिवर्त्तन भेलैक अछि। गामसँ एकरा सिमडेगा ऐनाई करीब 7 मास भऽ गेलैक मुदा भाई धरि ककरो कुनो शिकायत राघबकेँ खिलाफ नहि भेटल अछि। शिक्षक सबसँ राघबकेँ सम्बन्धमे हमेशा जानकारी लैत रहैत छी। सब कियोक मुक्त कंठसँ राघव केर प्रशंसा करैत रहैत छथि। हमरा राघव कुनो तरहसँ परेशान नहि करैत अछि। राघब अतेक नीक भऽ जाएत तकर तँ हम कल्पनों नहि केने रही”।
पिताजीक पत्र पढ़ि माँ बड्ड प्रसन्न भेलीह। तुरत निर्णय लऽ लेलन्हि जे कमसँ कम दुइयो मासक लेल सिमडेगा अयतीह आ हमरा सब संगे रहतीह। माँ पिताजीकेँ पत्र द्वारा सूचना देलथिन्ह जे धनकटनीक पश्चात् ओ सिमडेगा आबि रहल छथि।
किछु दिनक बाद माए सिमडेगा आबि गेलीह। हम बड्ड प्रसन्न रही। माएक स्नेह, माए हाथक भोजन भेट रहल छल बाबूजी सेहो प्रसन्न छलाह। लगभग हमर झंझटसँ स्वतंत्र किछु दिन लेल भऽ गेल छलाह। माए अपन मिलनसार स्वभावक कारणे सिमडेगाक नीचे बजार मुहल्लामे प्रशंसाक पात्र भऽ गेलीह। स्त्रीगण सब अपन तमाम नीक कार्यमे हुनका बजबय लगलन्हि।
हमरा सिमडेगा आयलाह आब लगभग एक वर्ष भऽ गेल छल। एहि बीचमे किछु अप्रत्याशित घटना घटित भेलैक। कुंती लगातार चारि–पाँच दिनसँ नहि आबि रहलि छलि। शीलासँ ज्ञात भेल जे कुंतीक घरमे किछु झंझटि चलि रहल छैक, ताहि कारणे ओ नहि तँ स्कूले आबि रहल छलि आ ने हमरा सब लग।
लगभग दस दिनक बाद कुंती शीलाक घर आयलि। हम शीलेक घरमे रही। हमर माए सेहो ओतय छलीह। कुंतीक चेहरा उतरल रहैक। मुँह कारी स्याह। आँखिक उपर–नीचा फूलल। अहिसँ पहिने कि हम किछु ओकरासँ पुछितियैक, हमर माए आ शीलाक माए कुंतीकेँ आबितहि ओकरा भाषण देमय लगलन्हि। माए हमर बाजए लगलीह; “देखू कुंती! अहाँक ब्राह्मण कुलक स्त्रीमे जन्म भेल अछि। पति नीक, अधलाह जेहेन होइत छैक, स्त्रीगण हेतु भगवान होइत छैक। अहाँकेँ भोलाझा पति छथि। अहाँकेँ हुनकर आज्ञाकेँ अवश्य मानक चाही। बिना हुनकर आज्ञाकेँ कुनो कार्य केनाइ या कतहुँ जेनाइ उचित नहि। अहाँ अप्पन गलतीकेँ स्वीकार करू आ जीवनकेँ आनन्द पूर्वक जीबू”।
हम माएक बातकेँ सुनलहुँ तँ आश्चर्यमे पड़ि गेलहुँ। पहिल बेर इ ज्ञात भेल जे कुंती कुमारि नहि अपितु ब्याहित महिला थिक। आब बुझना गेल जे शीलाक माए हमरा कियाएक कहैत छलीह जे कुंतीकेँ तूँ कहिक नहि बजेबाक हेतु! चिंताक अथाह सागरमे डुबि गेलहुँ। कतए 17 वर्षक कुंती आ कतए 52 वर्षीय भोला झा। केहेन अनमोल विवाह!!! हे भगवान, ई केहेन जोड़ी बना देलयैक! लोहामे सोना सटि गेल। भरल दुपहरियामे अन्हार!! एक क्षण लेल एना बुझना गेल जे कुंतीक आत्मा हमर शरीरमे प्रवेश कऽ गेल! हम अपना –आपकेँ कुंती बुझि मोनहि मोन कानए लगलहुँ, काँपए लगलहुँ। अपन पितयौत बहिनक विवाहक कालक स्त्रीगण सब हारा गाएल गीतक एक पांति बेर–बेर मोनमे हुमरय लागल;
“लोहामे जड़ि गेल हम्मर सोना।
हम जीबै कौना”!!
मुदा कुंती पाथरक मूर्त्ति बनलि हम्मर माएक आ शीलाक माएक अनर्गल भाषण सुनैत रहलि। बिना कुनो उचाबच केने। कुंतीक माथ जमीन दिस रहैक। किछु कालक बाद देखलियैक जे धरतीपर नोरक बुन्द मारितै पड़ल छैक। मुदा ओ सब ठोप बेकार भऽ गेलैक। दकियानूशक परिवेशमे हमर माए ततेक रमलि छलीह जे हुनका कुंतीक नोर नहि देखेलन्हि। किछु कालक बाद कुंती मुँह ऊपर उठा अपन गालपर हाथक लाल निशान भोला झा चमेटाक निशान छलैक। माए अपन हाथसँ कुंतीक गालकेँ सहलाबए लगलथिन्ह। माएक ममत्वकेँ देखि कुंतीकेँ हृदय फारि गेलैक। कुहेस फारि कानए लागलि। हम्मर माए अपन छातीसँ लगा लेलथिन्ह। कहाथिन्ह; “अहाँ आब नीकसँ रहूँ। भोला झा गलत कार्य केलन्हि अछि। हम मैनेजर साहेब (हम्मर पिताजीकेँ बारेमे) कहबन्हि जे हुनका समझेथिन्ह। अहाँक जेठ बहिनसँ हुनकर छोट भाएकेँ बियाह भेल छन्हि आ अहाँक जेठकी भगिनी अहाँसँ एकै वर्षक छोट अछि। मुदा आगू नीकसँ रहूँ। केवल स्कूल जायकाल स्कर्ट आदि पहिरू। स्कूलसँ वापस अयलाक बाद सारी पहिरू, नीक जकाँ रहूँ। जतए–ततए नहि बौआऊ। छौरा सबसँ हसी–ठट्ठा नहि करू”।
आ लाचार कुंती हम्मर माएक बातकेँ सुनैत रहलि। एना बुझना जाइत छल जेना ई सब माए–बेटी हो। अही बीचमे शीलाक माए चूराक भूजा आ कचरी बनाए सबकेँ खाए लेल देलथिन्ह। कुंतीक नहि लैत छलि मुदा हम्मर माए एवं शीला ओकरा बड्ड आग्रह केलथिन्ह तँ कुंती खाए लागलि। नोर मुदा एखनहुँ खसि रहल छलैक।
ओहि दिन साँझमे शीला हमरा कुंतीक सम्बन्धमे तमाम जानकारी देलक। भेलैक ई जे कुंतीक जेठ बहिनक वियाह भोला झाक छोट भाएसँ भेल रहैक। कुंतीक बहिनकेँ दूइ लड़की आ दूइ लड़का छलैक। भोला झा समस्तीपुरक कुनो गामसँ कम्मे वरसमे सिमडेगा आबि गेल छलाह। अतय आबि गुजर–बसर करबाक लेल मुख्य सड़क केर कातमे एक लाइन होटल खोलि लेलन्हि। होटलकेँ बगलमे सिमडेगाक नामी पेट्रोल पंप रहैक। पेट्रोल पंपक अगल बगलमे गाड़ी–घोड़ा ठीक करबाक मारिते दुकान आ मेकेनिक सबहक भरमार। अहि सब कारणे पाँच–दस बस–ट्रक आ अन्य गाड़ी सदरिकाल ओतए लागल रहैत छलैक। आ गाड़ीक ड्राईवर, सहायक इत्यादि भोला झाक लाईन होटलमे सामान्यतया खाटपर बैसि भोजन करैत छलैक। लाईन होटल केर भोजन होइत छलैक अति स्वादिष्ट आ चहटगर। कहियो कालक हम्मर पिताजी ओहि होटलसँ तरकारी इत्यादि मंगबैत छलाह। तँ भेलैक ई जे भोला झा अपन परिवारकेँ ठीक करयमे लागल रहलाह। तीन कुमारि बहिनक विवाह, माए–बापक संस्कार, क्रिया कर्म, दूटा छोट भाएक रोजगारक तलाश आ वियाह दान करैत–करैत कहियो अपना बारेमे सोचबे नहि केलन्हि। अही बीच जखन कुंती करीब 14 वर्षक छलि तँ अपन जेठ–बहिन लग सिमडेगा आयलि। ओहि समयमे भोला झा 51 वर्षक छलाह। कुंतीक शरीर भरल रहैक। आ देखबामे 18–19 वर्षक लगैत छलि। भोला झाकेँ अचानक वियाह करबाक इच्छा भेलन्हि। अपन छोट भाए अर्थात् कुंतीक जेठ बहिनोईकेँ कहलथिन्ह जे ओ कुंतीसँ वियाह करैत छथि। तावेत धरि कुंतीक पिताक स्वर्गवाश भऽ गेल छलन्हि। विधवा माए ओहि जमानामे चारि हजार टकाक लोभसँ कुन्तीक वियाह भोला झासँ करा देलकैक। पहिने तँ कुंतीक नहि बुझि सकलि अहि सब चीजक परिणाम। मुदा नइ–नइ स्थिति स्पष्ट होमए लगलैक। हालहिमे भोला झा कुंतीकेँ रातिमे हवशकेँ शिकार बनबय चाहैत छलथिन्ह, जकर ओ प्रतिकार केलकन्हि तँ झोटा नोचि गालपर बड्डपर मारलखिन्ह। शीला ईहो कहलक जे भोला झा दिन भरि गाजा पीबैत रहैत छथि, राक्षस जकाँ मोछ रखैत छथि, मुँहसँ गंध अबैत रहैत छन्हि, ताहि सब कारणे कुंती हुनका लग जाएसँ बचय चाहैत अछि।
खैर! अहि घटनाक बाद आ कुंतीक अतीत जनबाक कारणे हम्मर व्यवहार ओकर प्रति बदलि गेल। कुंती आन ठाम जेनाई बन्द कऽ देलक परंतु शीला आ हमरा लग एनाई नहि रूकलैक। हम आब ओकरा किछु सम्मानसँ बचबय लगलियैक तँ बाजि उठलि; “नहि राघब, ई ठीक बात नहि। तो हमर परम मित्र छैह! हमरा पूर्वे जकाँ कुंती कहि सम्बोधन कर तँ नीक लागत। हम एकबेर पुनः कुंतीक संग वैह पुरनका व्यवहार करए लगलहुँ।
समयक चक्र चलैत रहलैक। एहि बीच हमरा लोकनि दसमी कक्षामे पहुँच गेलहुँ। हम्मर उम्र करीब सोलहकेँ भऽ गेल। कुंतीक लगभग अठारह वर्षक। एकाएक कुंतीक शरीरमे आश्चर्यजनक परिवर्त्तन आबए लगलैक। ओकर वक्ष एकाएक बड्ड भारी भऽ गेलैक, गाल मोट भऽ गेलैक। शरीरक वजन बढ़ि गेलैक। आँखि छोट भऽ गेलैक। हलांकि एहि तमाम परिवर्त्तनकेँ बादो कुंतीक सौन्दर्यमे कुनो कमीनहि भेलैक। एखनो हमरा कुंती अजीब सुन्दरि लगैत छलि। करीब आठ मास पहिने एकबेर पता नहि कियाएक कुंती हमरा भरि पांज पकड़ि अपन हृदयसँ सटा लेलक आ हम्मर माथा चूमि लेलक। हम सन्न रहि गेलहुँ। लाजे किछु नहि कहलियैक। मुदा तहियासँ सदरिकाल मोनमे यैह सपना आबए लागल, जे किनसियायत कुंती हमर जीवन संगिनी बनि जाईत। हलांकि हमरा ई नीक जकाँ बुझल छल जे ई संभव नहि अछि। एक दिन हम कौतुहलमे पुछलियैक, “कुंती तोरामे अतेक परिवर्त्तन कियाएक भऽ रहल छौक। तौं कियाएक अचानक मोट भऽ रहल छै”?
हम्मर कौतुहल सुनि कुंती हँसय लागलि। केवल कहलक; “राघव, तौ नहि बुझबै!! से कहि कुंती चलि गेल।
एहि घटनाक लगभग एक मास बाद कुंती स्कूलो गेनाई बन्द कऽ देलक। कुंती हमरा ई कियाएक कहलक जे “राघव, तौं नहि बुझबै”!! हमरा किछु नहि फुराइत छल। अंततः एक दिन जखन स्कूलसँ डेरा आबैत रही तँ बाटमे जेल लग शीला भेट भऽ गेल। शीलासँ कुंतीकेँ बारेमे जानकारी लेबए लगलहुँ तँ पता चलल जे कुंती गर्भवती थीकि। आब बूझऽ मे आएल जे कुंती कियाएक हँसलि आ कहलक जे तौं नहि बुझबै”!!! हम शीलाकेँ पुछलियैक; “आब कुंतीकेँ पढ़ाईकेँ की हेतैक”? शीला कहलक; “किछु नहि भोला झा कहलकैक अछि पढ़ाई छोड़ि देबाक हेतु। आब डेढ़ मासमे कुंती अपन बच्चाकेँ जन्म देत आ बच्चाल लालन पालनमे। पढ़ाईक अंत भऽ गेलैक। खैर, छोड़ राघब! हमरो पिताजी आब हमरा लेल लड़का ताकि रहल छथि। हमरा माए लग तीन लड़का ताकि रहल छथि। हमरा माए लग तीन लडकाक फोटो छैक। हम तोरा देखा देबौक”।
मुदा हमरा कुनो लड़काक फोटोसँ कुन मतलब! खैर! करीब डेढ़ मासक बाद एक दिन शीलासँ ज्ञात भेल जे कुंती सरकारी अस्पतालमे एक लड़्काकेँ जन्म देलकैक अछि। दोसरे दिन भोला झा दू किलो मिठाई लऽ कऽ हमर पिताजीकेँ दऽ गेलथिन्ह। भोला झा खुशीसँ गद्–गद् छलाह।
अहि घटनाक किछु दिनक बाद पिताजी स्थानांतरण सिमडेगासँ गिरिडीह भऽ गेलन्हि। पिताजी संग हमहुँ गिरिडीह आबि गेलहुँ। करीब चारि वर्षक बाद सिमडेगा गेलहुँ तँ शीला नहि भेटलि। शीलाक माए कहलन्हि जे शीलाक वियाह राऊरकेला भऽ गेलैक। लड़का चाऊरक व्यवसायी छैक। शीलाकेँ एक सालक एकटा लड़की छैक। शीला अपन पति आ बच्चा संगे बड्ड प्रसन्न अछि। हलांकि कुंतीसँ भेट नहि भऽ सकल मुदा शीलाक माए बतौलन्हि जे कुंतीकेँ एकटा लड़की सेहो छैक। आब ओकर पति भोला झा अपन माएसँ भिन्न भऽ गेल छथि। कुंती पूर्णरूपेण एक सफल गृहणी, पत्नी आ माए बनि गेल अछि। सदरिकाल अपन परिवार, बेटा, बेटी आ पतिक सेवामे लागलि रहैत अछि। शीला नहि छलि तँ हमरा कुंतीसँ भलाकेँ मिला सकैत छल। इच्छा रहितहुँ हम कुंतीसँ नहि भेंट कय सकलहुँ।
इमहर करीब 20 वर्षक बाद कुनो प्रयोजने सिमडेगा गेल रही। राँचीसँ जखन सिमडेगा लेल बस पकड़लहुँ तँ कुनो विशेष परिवर्त्तन ओहि क्षेत्रमे नहि बुझना गेल। किछु मकान इत्यादि अवश्य बनि गेल रहैक। सिमडेगामे कुनो विकास नहि बुझना गेल। पिताजीक मित्र श्री देवचन्द्र मिश्रजीक ओतए हम ठहरलहुँ। पाँच दिन सिमडेगामे रहलहुँ। बहुत पुरान लोक सबसँ मुलाकात भेल। शीलाक छोट बहिनक विवाह सेहो भऽ गेल रहैक। ओकर माए एखनो ओहिना नीक स्वभावक स्वामिनी छलि। शीलाक छोटका भाई दीपू बड़ पैघ पीबाक भऽ गेल रहैक। हम्मर घरमे कार्य करए बला दाई असहाय जीवन जीबि रहल छलि। पति मरि गेलैक आ बेटा नालायक। चन्दन मिश्र वकील साहेबकेँ नक्शली सब हुनका बेटा संगे कुट्टी–कुट्टी काटि देलकन्हि।
आ अंततः जखन कुंतीक सम्बन्धमे जनबाक प्रयत्न केलहुँ तँ पता चलल जे जाहि छोट भाए लेल भोला झा अतेक त्याग केलन्हि, अपन जवानी बर्बाद केलन्हि, बुढ़ापामे ब्याह केलन्हि, सैह छोट भाई हुनका संगे बेइमानी केलकन्हि। लाईन होटलसँ बेदखल कऽ देलकन्हि। भोला झाकेँ दम्मा भऽ गेलन्हि। पैसाक तंगीमे ठीकसँ इलाज नहि भऽ सकलन्हि। कुंती आब सिलाईकेँ कार्य कऽ रहल अछि। आ अपन बच्चा सबहिक पोषण कऽ रहल अछि। बच्चा सब की, तँ बेटी 10वीमे पढ़ैत छैक, आ बेटा एक नम्बरकेँ नालायक। देवचन्द्र मिश्रक पत्नी कहलन्हि; “राघव, अगर अहाँ चाही तँ साँझमे हम सभ कुंतीक दुकान जाएब”। मुदा हम मना कऽ देलयन्हि। हम ओहि कुंतीकेँ नहि देखए चाहैत छी जकर चेहरा पर वैधव्य होइक, श्रीहीन हो, कष्टसँ कनैत हो। हम जीर्ण–शीर्ण कुंतीकेँ नहि देख सकैत छलहुँ। तैं हम पुरनके कुंतीक यादमे जीबए चाहैत छलहुँ।
पाँचम दिन दुपहरियामे सिमडेगासँ बसपर बैसि राँचीक हेतु प्रस्थान कैल। मोनमे एखनहुँ वैह हँसैत, खेलाईत, मचलैत कुंती आ अपन सखी कुंतीक यादमे मग्न। मुदा ईहो सोचैत रही जे आब कहियो सिमडेगा नहि आएब ।


२. बिपिन झा-
के करत मिथिलाक्षरक रक्षा!!
किछु दिन पूर्व एकटा ग्रन्थ पढने रही। ग्रन्थ केर नाम छल ’भुवमानीता भगवद्भाषा’। ई ग्रन्थ संस्कृत मे अछि आओर एहि ग्रन्थक उद्देश्य मानव मात्र में एहि विचार कें आनव अछि जे सदिखनि प्रयत्न कय अपन संस्कृति कें रक्षण करब संभव होइत छैक। एहि ग्रन्थ में यहूदी संस्कृति केर विवरण दैत एहि तथ्य के स्प्ष्ट कयल गेल अछि। एहि ठाम सहज रूपे ई प्रश्न उठत जे प्रकृत निबन्धलेखनक क्रम में संस्कृतिक चर्चा तर्कसंगत अछि वा नहि? अवश्य तर्कसंगत अछि कियाक तऽ कोनो संस्कृति केर रक्षा केर प्रथम चरण होइत अछि ओकर भाषा आओर लिपिक संरक्षण। यदि ई गप्प मिथिलाक परिप्रेक्ष्य में करी तऽ आओर स्पष्ट होयत| मैथिली बाषा तऽ निरन्तर उत्कर्ष दिस अछि मुदा ओतहि यदि एकर लिपि केर चर्चा करी तऽ देखैत छी जे ई सदिखनि उपेक्षिते भय रहल अछि। किछु वर्ष पूर्वतक ई परिपाटी छल जे पत्राचार मिथिलाक्षर (तिरहुता) मे हो आ एहि कारण ई प्रचलन मे छल मुदा आब तऽ ई कदाचित विलुप्त नहिं भय जाय ई आशंका केनाय कोनो अनुचित नहि।
एहि सम्बन्ध में विशेष ध्यान देवाक आवश्यकता अछि जे पुनर्जागरण हो आ सभ मैथिल मिथिलाक्षर सँ कम सऽ कम परिचित अवश्य होई। कियाक तऽ आजुक स्थिति एहेन भय गेल जे अधिकांश मैतिल तऽ मिथिला कें अपन लिपि सेहो छैक अहू सं अपरिचित छथि एहेन स्थिति में मिथिलाक्षर केर संरक्षण कतेक कठिन अछि सहजतया बुझल जा सकैत अछि।
एहि सन्दर्भ में श्री गजेन्द्र ठाकुर केर प्रयास सराहनीय छन्हि जे Learn International Phonetica Alphabet through Mithilakshara.++ नामक ग्रन्थ लिखि एहि दिस लोक केर ध्यन आक्र्षित कराओलथि। यद्यपि ई ग्रन्थ सीमित जानकारी प्रस्तुत करैत अछि मुदा प्रारम्भिकदृष्ट्या उत्तम अछि। ई ग्रन्थ Online pdf फार्मेट में सेहो उपलब्ध अछि।
पुनश्च ई निवेदन जे एहि ग्रन्थक विस्तृत रूप में परिवर्द्धन हो आ व्यवहार में मिथिला क आखर समस्त मैथिल केर हृदय में पुनः विराजमान हो एकर समुचित प्रयास कयल जाय।
++मिथिलाक्षरक विस्तृत जानकारी Learn MithilakShara by Gajendra Thakur आ Learn Braille through Mithilakshara by Gajendra Thakur मे उपलब्ध अछि, जे मैथिली पोथी डाउनलोड एहि लिंक पर डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि।
३.बाल साहित्य-
फूल चन्द्र झा ‘प्रवीण’
जन्म तिथि: 10 अक्टूबर 1961
पिता: श्री श्याम सुन्दर झा
माता: श्रीमति चन्द्रकला देवी
सम्पर्क: ग्राम–तुमौल, पत्रालय–पुतइ, जिला–दरभंगा (बिहार)
व्यवसाय: अध्यापन
अभिरूचि: लेखन, चित्रकला, अभिनय, गीत–संगीत, सामाजिक कार्य।
रचना संसार
कविता–संग्रह
* आयल नवल प्रभात * वसंतक बजनिञा
* पाङल गाछक छाहरि
* हमरा मोनक खंजन चिड़ैया नाटक
* आन्दोलन*लुत्ती*सामाजिक न्याय
* गुरूआइनि*स्वागत हे गणतंत्र भारती
कथा–संग्रह
• भूत होइत भविष्य
निबंध–संग्रह
• हमरा जनैत
संकलन–सम्पादन
• बाबू भोलालाल दास रचनावली, पहिल खण्ड
• मधुपजी बीछल बेरायल कविता
•अनुवाद
• मल्लिनाथ (अंग्रेजीसँ)
•सम्मान
•साहित्यकार संसद द्वारा राष्ट्रीय शिखर सम्मान-* कविचूड़ामणि पं. काशीकांत मिश्र ‘मधुप’ (2006)*विद्यापति(2008)*सुमन स्मृति सम्मान (2009)।
एकर अतिरिक्त ‘जखन–तखन’ पत्रिकामे सम्पादन सहयोग,राष्ट्रीय–अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कविसम्मेलनमे सहभागिता, विभिन्न पत्र–पत्रिकामे गीत, कविता, कथा, लेख, निबंध आदिक रचनात्मक सहयोग।
मैथिलीमे बाल साहित्य
मैथिली शिशु साहित्य लोक
फूलचन्द्र झा ‘प्रवीण’

मैथिली लोक साहित्यमे शिशु लोक साहित्यक अम्बार लागल अछि। किछु लिपिबद्ध आ बेसी मौखिक। शिशु लोक साहित्य अज्ञात समयमे, अज्ञात लोक रचनाकारक द्वारा भेल होयत। जहियासँ एकर रचना भेल तहियासँ ई वेदक रचना जकाँ हजारो वर्ष धरि मौखिक परम्परामे जीबैत रहल। तकर बाद किचु तँ लिपिबद्ध कयल जयबाक प्रयास भेल आ बेसी एखनो धरि लोकक कंठमे अपन स्थान बना कऽ रखने अछि। प्रत्येक पीढ़ीक लोक अपन पछिला पीढ़ीक लोकसँ एकरा सुनैत आ सीखैत आबि रहल अछि। मौखिक परम्परामे जीबाक कारणेँ एकर मौलिकता दिनानुदिन नष्ट भेल जा रहल अछि। लोक–विशेष, वर्ग–विशेष आ क्षेत्र–विशेषक कारणेँ एकर शब्द आ उच्चारणमे अंतर पाओल जाइत अछि।
मैथिली शिशु लोक साहित्य प्रायः सब विधामे उपलब्ध अछि, मुदा एहि आलेखमे पद्य विधाकेँ केन्द्रमे राखि थोड़ बहुत आनो विधा सब पर विचार कयल गेल अछि।
एखनधरि जे मैथिली शिशु लोक साहित्यकेँ लिपिबद्ध रूपमे संकलित करबाक प्रयास भेल अछि ताहिमे प्रो. प्रफुल्ल कुमार सिंह “मौन”क मैथिलीक नेना गीत डा. अणिमा सिंहक “शिशु गीत आ खेल” तथा एहि सम्पूर्ण बाल साहित्यकार डा. दमन कुमार झाक एकटा समालोचनात्मक ग्रंथ “मैथिली बाल साहित्य”क प्रकाशन बहुत हद धरि उपयोगी सिद्ध भेल अछि।
मैथिली शिशु लोक साहित्यकेँ निम्नलिखित भागमे बाँटल जा सकैत अछिः-
1. लालन–पालनसँ सम्बद्ध।
2. खेल आ मनोरंजनसँ सम्बद्ध।
3. ज्ञानोपयोगी।
लालन–पालनसँ सम्बद्ध शिशु लोक साहित्य
एहि प्रकारक लोक साहित्यक परिवेश पैघ नहि होइछ। ई घर–आँगनसँ दलान धरि सीमित रहैत अछि। नेनाकेँ जन्म लितहि ‘सोहर’ ओकरा कानमे पड़ैत छैक आ जेना–जेना नेनाक अवस्था बढ़ैत छैक, बदलैत छैक तेना–तेना शिशु लोक साहित्य परिवर्त्तित होइत जाइत अछि। जन्मक बाद ओकरा दिन–राति मिला कऽ कतेको बेर कड़ूतेलसँ जाँतल–पीचल जाइत छैक आ जतनिहारिक ठोर पर अनायास चल अबैत अछि–
चैं–चैं–चैं बौआ सूतभैं
बौआ मत्था पच्चनि तेल
मुद्दै मत्था फुट्टनि बेल।
चानि पर तेल पचाय, अपन दुनू टाँगपर नेनाकेँ पारि, देह उँगारैत कहैत छथि
बौआ ईलसन, कील सन
धोबियाक पाट सन
कुम्हराक पाठ सन
अद्दै–मुद्दैक छाती पर लात दिअऽ
पृथ्वी पर भऽर दिअऽ।
तकर बाद नेनाकेँ हाथसँ लोकैत छथि। नेना डरे कानए लगैत अछि। पुनः कहैत छथि–बौआ आम तोड़ू/बौआ जाम तोड़ू।
तकर बाद टाँग पकड़िकऽ, उनटाकऽ झुलबैत कहैत छथि–
बौआ मामा गाम देखू
बौआ नाना गाम देखू
बौआ अपन गाम देखू।
एहिमे एकटा बात देखयमे अबैत अछि–जँ नेना मामा गाममे रहल तँ ओकर दादा–दादीक, जँ अपन गाममे रहल तँ नाना–नानीक चौल कयल जाइत अछि।
पहिल साँझ दीप लेसलाक बाद छोट–छोट नेनाक रक्षार्थ संझा–मैयासँ प्रार्थना कयल जाइत अछि।
आको मैया चाको, संझा मैया राको
पहरा मैया हेरणी, सब दुःख फेरनी
जे बौआकेँ दिअय दृष्टि, तकरा बान्हू गोला विष्ठी
काल–भैरव रक्षा करय, सोनक दीप, पाटक बाती
बौआ सूतय सुखक राती
दुःख–दरिद्र पाछू जाउ, सुख–श्रृंगार आगू आउ।
तहिना बेसी देखनुहुक नेनाकेँ क्यौ नजरि–गुजरि ने लगा दिअय, एहि क्रममे ई पाँती द्रष्टव्य–
हँसनी–खिलनी गेल बजार/हँसनी चल आयल
खिजनी रहि गेल/जहिना हस्से राजा धनपाल
तहिना हस्से बालक/दोहाइ राजा धनपाल
दोहाइ मौरगनी माए।
दीपक इजोत पर नेना अपन दृष्टिकेँ केन्द्रित कऽ डिम्हा घुमबैत, आनन्द लैत रहैत अछि।
जनश्रुति अछि, प्राचीन कालमे छठिहारक रातिक दीप मिझाकऽ लोक राखि लैत छल तथा छः वर्ष धरि बेटाकेँ आ तीन वर्शन धरि बेटीकेँ एहि दीपसँ ई टोटमा करैत छल, मुदा वर्त्तमानमे एहन कम देखबामे अबैत अछि।
जखन नेना बैसऽ लगैत अछि, संकेत पर आँगुर पकड़ब सीखि लैत अछि तखन लोक कोनो बातक जिज्ञासाक क्रममे, बालबोध बुझि अपन बिचला दू गोट आँगूरकेँ नेनाक कपारपर घुमबैत कहैत छथि–आनी–मानी हम जानी/खारा रोटी खाए नहि जानी
आए–बापकेर ना नहि जानी/सत्त छोड़ि असत्त नहि बाजी।
तकर बाद नेनाकेँ आँगुर देखबैत पकड़बाक लेल कहल जाइत अछि। जँ नेना बिचला आँगुर पकड़ि लैत अछि तँ जिज्ञासा पूरा होयबाक सम्बावना प्रबल मानल जाइछ।
जखन नेना ठाढ़ होयब आरम्भ करैत अछि तखन बेर–बेर खसि पड़ैत अछि। घर–परिवारक लोक ओकरा बेर–बेर आँगुरक भऽर दैतठाढ़ होयबाक लेल आ डेग उठएबाक लेल प्रोत्साहित करैत कहैत छथि–
था.....था.....दिग्–दिग् था
था.....था.....थैया.....था
डेग बढ़ैया.....हम्मर बाबू.....हम्मर भैया।
एहि संग नेना डैग उठबैत अछि, बेर–बेर खसैत अछि आ ई सुनि–सुनि पुनः ठाढ़ होएबाक आ डेग उठएबाक प्रयास करैत अछि। एहि पदक माध्यमसँ नेनाकेँ बूलब सिखाएल जाइत अछि।
झौलाएत नेनाकेँ कोरामे लऽ घुमयबाक क्रममे कथा–गीतक परम्परा रहल अछि। एकर स्वरूप पैघ आ छोट दुनू प्रकारक देखबामे अबैत अछि। जेना चन्नामामाकेँ देखबैत नेनाकेँ कहल जाइत अछि–
चन्ना मामा आ रे आ, पारे आ/नदियाकेँ किनारे आ
सोनाकेँ कटोरामे/दुध–भात नेने आ/बौआक मुँअमे घुटुक सन।
दोसरः-
चन्नामामा आरे आ पारे आ/केराक भार ला
पूड़ी–पकमान ला/फोका मखान ला/बौआ मुँहमे ठुस।
एतेक कहैत अपन हाथसँ नेनाकेँ खोअएबाक अभिनय करैत छथि। तहिना तरेगण दिस तकबैत–
एक तारा दू तारा/तारा बेटी बड़ बुधियारि
गंगाकातसँ बालु अनलक/सेहो बालु कनुनियाँ लेलक
सेहो कनुनियाँ फुटहा देलक/सेहो फुटहा चरबहबा लेलक
सेहो चरबहबा घस्सा देलक/सेहो घस्सा गैया खेलक
सेहो गैया दूध देलक/सेहो दूध बिलैया पीलक
सेहो बिलैया मूसा देलक/सेहो मूसा चिलहोरबा खेलक
सेहो चिलहोरबा पंखा देलक/सेहो पंखा राजा लेलक
सेहो राजा हाथी देलक/सेहो हाथी मामा लेलक
सेहो मामा गिलास देलक
सुतयबाक काल नेनाकेँ जाँघपर लऽ, बेर–बेर ओकर कनपट्टी आ माथकेँ सोहरबैत, जाँघकेँ नीचा–उपर करैत, अपनो देहके डोलबैत, ई लोरीक परम्परा एखनो धरि मिथिलाक सब घरमे देखबा सुनबामे अबैत अछि–आगे निनियाँ आ आ/बौआ लए निन ला ला
निनियाँ एलै बिढ़िनियाँसँ/बौआ एलै मातृकसँ
बौआक मामा गामकी–की बिकाय।
अंगा बिकाय, टोपी बिकाय/सेहो अंगाकेँ पहिरय/बौआ पहिरय
एकरा कत्तौ–कत्तौ दोसर प्रकारेँ एना सुनबामे अबैत अछि–
निनियाँ अयलै बिरहिनियाँसँ/बौआ अयलै ममहरसँ
ममहरमे बौआ की–के खाए/आरब चाउरक भात
सोरहिया गायक दूध/हाली–हाली खो रे बौआ जयबेँ बड़ी दूर
हुअमाकेँ पियासल बौआ गेल पोखरि
पोखरिक टेंगस लेल टेंगराय
बोनक बगुला देल छोड़ाय/ऐहेँ रे बगुला खेत–खरिहान
एक सूप देबौ देसरिया धान/तेकरे कुटिहे नाम–नाम चूड़ा
बैसि जिमबिहेँ ब्राह्मण पूरा देल आसीस
जिबिहेँ सै बौआ लाख बरीस।
एहि लोरी सभक माध्यमसँ नेनाकेँ सुतयबाक संग–संग ओकर दीर्घायु होएबाक कामना सेहो कएल जाइछ। नेनाक सुति रहला पर माए, निश्चिंत भऽ अपन घरक काज–रोजगारमे लागि जाइत छथि।
नेनाक संग अपनो मनोरंजन करबाक क्रममे लोक अपने उतान भऽ पड़ि रहैत अछि आ नेनाकेँ पैरपर बैसाय, बेर–बेर पैर उपर–नीचा करैत एहि पालन गीतक आनन्द अपनो लैत छथि आ नेनोकेँ सेहो दैत छथिन। एकरा कत्तौ–कत्तौ “घुघुआ–मना” आ कत्तौ–कत्तौ “धुआँ–चुआँ” नामसँ सेहो जानल जाइत अछि।
घुआँ घूँ लल्ले छूँ लल्ले मनसा नाम की
सोनमन झा, टीक पकड़ि ला, पोखरि खुना
पोखरिक कात–कात चम्पा लगा/चम्पा फूल उधिआयल जाए
परती फुलायल जाए/सीकीक डगमग कोकाक फूल
चकमक देवता चल बड़ी दूर/कत्ते दूर/मधेपुर
मधेपुरमे की सब, तार छै बेतार छै
काजर–बीजर कएल छै/टीकुली बैसाएल छै
मामा गेलै पटना/मामी सुतलै अंगना
मामा घरमे चोर पैसल/दोड़ऽ हो भगिनमा
तकर बाद “नव घर उठे” कहि पैर उठाएल जाइत अछि आ “पुरान घर खसे” कहि पैर नीचाँ खसाएल जाइत अछि। ई खेल नेना सब बेर–बेर खेलएबाक लेल कहैत अछि आ आनन्द विभोर होइत रहैत अछि।
जावतकाल घरि नेना जागल रहैत अछि, ओकरा एक ने एकटा लोकक सानिध्य चाही, नहि तँ ओ कानय लगैत अछि। एहना स्थितिमे गायक अतिरिक्त नानी, दादी, दीदी आदि ओकर मोनकेँ बहटारबाक लेल रंग–बिरंगक पद्य, भास लगाकऽ गाबऽ लगैत छथि–
अलिया गै, मलिया गै/गोला बड़द खेत खाइ छौ गै
कत्तऽ गै, डीहपर गै/डीहपर रखबार के गै/बाबा गै
सासुकेँ नहि देतौ गै/सिरमातरमे रखतौ गै
अपने सबटा खयतौ गै।
दोसरः-
लाल गाछी गेली, लाला आम पेली
बाबाक देली, बाबा हौ/आब नहि जाएब मकैया खेत।
बाघ छै, बघिनियाँ छै, कोठीपर हरमुनियाँ छै
बाबा आँगनमे चूड़ा कुटाय/पड़बा बीछि–बीछि खाइ छै
कोन बेटखउकी नजरि लगौलक/पड़बा रूसल जाइ छै।
नेनाक लालन–पालनमे माए, दादी, नानीक संग–संग दीदी अर्थात पिउसिक सेहो बड़ महत्वपूर्ण योगदान रहलैक अछि। तेँ किछु दीदीपरक द्रष्टव्यः-
लाल दीदी गे/की दीदी गे/डलिया दे मिरचाइ तोड़ए लेल
ककरामे/पुलिसबामे/सबे पुलिसबा हुलिसन आएल
ककरा घर नुकाएब गे/बाबा घर नुकाएब गे
बीचे बाट पर खसली गे/सब बरियतिया हँसली गे
दोसरः-
लाल दीदी गे/की दीदी गे/बेटा कनै छी खोपड़ीमे
कानय दहिन पुतखौकाकेँ/नाचय दहिन पमरियाकेँ
खाइ लेल देलहुँ दालि भात/खाए लेलक सोहारी
सुतइ लेल देलहुँ अलंग–पलंग/सूति रहल गोरथारी
गेलहुँ मोँछ पकड़ि कऽ उठबए/फोलि देलक केबाड़ी।
तेसरः-
लाल दीदी गे/की दीदी गे/एक रत्ती छाल्ही चटलियौ गे
तै लेल बाबा मारलकौ गे/बाबा बड़ चण्डलबा गे।
अपना ओहिठामक बेटीकेँ जखन संतानक योग्यता होइत छनि तखन प्रायः नैहर आनि लेबाक परम्परा एखनो धरि बाँचल अछि। एहना स्थितिमे नेनाकेँ मामा, मामी, नाना, नानीक बेसी दुलार–मलार भेटैत रहलैक अछि, तेँ किछु मामा–मामीसँ जुड़ल पालन–पद्य द्रष्टव्य–
मामा हौ पोखरी भीड़पर जइहऽ
चिक्कन पड़बा मारिकऽ आनिहऽ
मामी हाथकेँ दीहऽ/तेल फोरन मिलाकऽ करिहऽ
अपने खइहऽ लाल–लाल कुटिया/हमरा दीहऽ झोर
ई सब देखिकऽ बहि रहलैए/हमरा आँखि सँ लोर।
दोसरः-
मामी यै भात उधिआए/मामी यै दालि उधिआए
कोठी पर सुग्गा स्नान करैए।
तेसरः-
आब नहि जएबै मामाक अँगना
अपने खाइ छै लाल–लाल कुटिया/हमरा दै छै झोर।
खेल आ मनोरंजनसँ सम्बद्ध शिशु–लोक साहित्य
एहिसँ सम्बद्ध शिशु लोक साहित्यक परिवेश बेसी विस्तृत अछि। रस्ता–पेरा, परती–पराँत, विद्यालय–परिसर, खेलक मैदान आदि ठाम नेनाक झुण्ड भोर साँझ जमा होइत अछि आ रंग बिरंगक खेल खेलाइत अछि। छोट–छोट नेना, जे खेल, बेसीकाल खेलाइत अछि, ताहिमेसँ किछु द्रष्टव्य–
अटकन–मटकन दहिया चटकन/पूस महागर पुरनी पत्ता
हिल्लय–डोल्लय/माघ मास करैला फरए/तै करैलाक नाम की
आम गोटी, जाम गोटी, तेतरी सोहाग गोटी।
सिंगही लेबै की मुँगरी
जँ उत्तरमे नेना ‘सिंगही’ कहैत अछि तँ ओकरा बिट्ठू काटल जाइत अछि आ जँ ‘मुँगरी’ कहैत अछि तँ मुक्कासँ मारल जाइत अछि।
एकरा दोसर प्रकारेँ सेहो सुनबामे अबैत अछि–
अटकन मटकन दहिया चटकन/केरा कूस महागर जागर
पुरनिक पत्ता हिल्लै–डोल्लै/माघ मास करैला फूलै
आमुन गोटी, जामुन गोटी/तेतरी सोहाग गोटी
सिंगही लेबेँ की मुँगरी?
दोसरः-
गाछ करै ठाँए–ठाँए, नदी गौंगिआए
कमलक फूल दुनू अलगल जाए/सीकीक डाली चमेलीक फूल
चकमक देवता चलबड़ी दूर/हाथीपर हथबरबा भैया
घोड़ापर रजपूत
सब रजपूतनी खोपा गुहने/बंका छै मजबूर
बंका बिकाइए तीन–तीन बंका/बाजूकेँ गरदाग
रामजीकेर सुतल पुतहुआ/कूटैत रहए धान।
बाल मनोविज्ञानकेँ ध्यानमेँ राखि, नेनाक समुचित विकासक, उल्लासक लेल मैथिली शिशु लोक साहित्य थोड़ नहि प्रतीत होइछ। खेलसँ सम्बद्ध एकटा बाल–कथा काव्य द्रष्टव्य–
एकटा छलै फुद्दी, ओ बैसल कुसपर
कुस ओकर पेट चीरि देलक
ओहिसँ निकलल तीनटा धार
दूटा सुखले–सुखले छल, एकटामे पानिएँ नहि
जाहिमे पानिएँ नहि, ताहिमे पैसल तीनटा हेलबार
दूटा डुबिए–डुबिए गेल, एकटाक पते नहि
जकर पते नहि,से नोतलक तीनटा ब्राह्मण
दूटा भुखले–भुखले रहल, एकटा खएबे नहि कएलक
जे खएबे नहि कएलक, तकरा भेल तीन मुक्का दण्ड
दूटा हुसिए–हुसिए गेल, एकटा लगबे नहि कएल
एहि प्रकारक लोक साहित्य नेना सब बड़ मनोयोगसँ सुनैत अछि।
कखनोकाल नेना–भुटका झुण्ड एक–दोसरक डाँर पकड़िकऽ रेलगाड़ी बनबैत अछि। एहिमे एक गोटा इंजिन आर सब नेना डिब्बा बनैत अछि आ घुमि–घुमिकऽ कहैत अछि।
रेलगाड़ी झकमक/पहिया लोहारकेर, बेल सरकारकेर
कुँइआमे पानी, मकोलामे तेल/आ गेलि मइयाँ, पी गेलि तेल
भैया रे भैया, कुटुम्ब कहाँ गेल/एक सय हाथी बान्ह पर गेल।
मिथिलाक खेलमे कबड्डीक बड्ड पुरान परम्परा रहल अछि। एहिपर आधारित किछु पद्य देखल जाए–
कबड्डी–कबड्डीकार/मैना बच्चा अण्डापार
दोसरः-
चेत कबड्डी आबऽ दे/तबला बजाबऽ दे
तबलामे पइसा/बाग–बगइचा।
तेसरः-
कबड्डी खेलऽ गेलहुँ कपार फुटि गेल
रेशमकेर डोरामे हाथ कटि गेल
श्रवणकेम देखिकऽ पियास लागि गेल
हाथीक देखिकऽ हदास उड़ि गेल/आम चकलेट चीनी प्लेट
एकटा खेल अछि गिरगिटरानी ई खेल मिथिलाक कन्या लोकनिक मध्य खेलाएल जाइत रहल अछि। एहिमे एकटा कन्या गिरगिट बनैत अछि आ दूटा, ओकर दुनू जाँघ पकड़िकऽ ठाढ़ भऽ जाइत अछि आ एकटा कन्या ओकर दुनू पैर पकड़िकऽ, ओहि पर बैसि जाइत अछि आ कहैत अछि–
गिरगिटमाला–गिरगिटमाला/कहाँ–कहाँसँ आएल छी
बौआ लाला–बौआ लाला/देस–देससँ आएल छी।
की सब लाएल छी।
आम छोड़ि गुद्दा/ककरा देलहुँ
राजाक बेटीक हाथमे/राजाक बेटी कत्तऽ अछि
मजे कोठलिया/मजे कोठलिया की सब
साँप छै, बाघ छै।
एहि कथा–काव्यकेँ दोसर तरहेँ सेहो कहल जाइछ–
हे गिरगिटियाँ रानी! तोँ कतएसँ अएलह
हमरा लेल की–की अनलह
कान खोड़ि गुजुआ/सेहो गुजुआ ककरा लेल
राजा बेटी हाथक लेल/राजा बेटी की सब देल
हाथी छोड़ि घोड़ा देल/सेहो घोड़ा कहाँ गेल
विरदावनमे चरए गेल/विरदावनमे की–की देखल
साँप देखल, बाघ देखल/नाचे गिरगिटिया।
जे कन्या गिरगिट बनल रहैत अछि ओ अपन मूड़ी उठा आ हाथ पसारिकऽ उत्तर दैत रहैत अछि आ ओ तीनू सहयोगी कन्या ओकरा घुमबैत रहैत अछि।
एकटा खेल अछि–कटहरक गाछ बला एहिमे एकटा नेना ठाढ़ भऽ गाछक अभिनय करैत अछि तथा आओर नेना सब ओकर पैर पकड़ि, मूड़ी गोंतिकऽ, बैसि रहैत अछि आ कटहर फलक अभिनय करैत कहैत अछि–
हमरा बाड़ी–हमरा बाड़ीकेँ हुहुआए
राज कोतवाल/की–की मँगैए
आरब चौरा, नव ढ़कना
तकर बाद कोतवाल, फलक अभिनय करैत नेना सबकेँ, हाथसँ टेबैत अछि
तखन गाछ कहैत अछि–
काँच छै तऽ छोड़ि दू/पाकल छै तऽ लऽ लू।
एकटा खेल अछि– “झिझिर कोना”। ई खेल पाँचगोट नेना द्वारा कोनो खाली घरमे खेलाएल जाइत अछि, जाहिमे चारिटा कोन होइ। ई खेल बेसीकाल नेना खाली दलानक कोठली वा विद्यालयमे खेलाइत अछि। एहि खेलमे प्रयुक्त लोक साहित्यकेँ देखल जाए–
झिझिर कोना–झिझिर कोना कोन कोना जैब
एहि कोना जैब, ओहि कोना जैब।
एकटा खेल अछि– “साँप डिग–डिग”। ई एकटा सामुहिक खेल थिक, जाहिमे बहुत नेना एक संग हत्था – जोड़ि कऽ केँ सोझ पाँतीमे ठाढ़ होइत अछि। एकटा कहैत अछि –
की रे बकरिया
की रे छकरिया/बकरी कत्तऽ
खेतमे/धान किएक खेलकौ
खेत्तौ/रोज लेब्बौ
नहि देब्बौ।
तखन दू हाथक बीच दऽ नेनासब बन्हएबाक अभिनय करैत अछि आ बजैत अछि– साँप–डिगडिग/साँप–डिगडिग
जेना पशु–पक्षी सब अपन अबोध नेनाकेँ आत्मरक्षाक उपाय दौड़िकऽ बाजिकऽ, खेलाएकऽ सिखबैत रहैत अछि, तहिना शिशु लोक साहित्यमे सेहो आत्म–रक्षार्थ अनेक प्रकारक खिस्सा–पिहानी
गद्य आ पद्य दुनूमे पर्याप्त मात्रामे उपलब्ध अछि। उदाहरणस्वरूप–बगिया गाछक खिस्सा, गोनू झाक खिस्सा एहिमे सबसँ बेसी लोकप्रियता पौलक अछि। ओना आरो कतेक अछि। जेना–ननदि–भाउजसँ जुरल आँझुलक खिस्सा ‘सातो भाइ परदेस गेल आँझुलकँ दुःख देने गेल’।
तहिना झाँझी कुकुरक सौतिनक खिस्सा–
मोर मन मोर मन नहि पतिआइ
सौतिनक टाँग दुनू झुलिते जाइ।
किछु एहेन लोक–साहित्य देखबामे अबैत अछि जाहिमे निरर्थक शब्द सभक प्रयोग बुझना जाइछ। जेना–
औका–बौका, तीन तरौका/लौआ–लाठी, चानन काठी
चाननकेँ बागमे इजय–विजय/गल–गल पुअबा–पचक।
दोसरः-
ईटा–माटी सोनेक टाट/आठम लड़की भागल जाइ
आलू बम बेटा बम/भौजी नाचए छमाछम।
ज्ञानोपयोगी शिशु लोक साहित्य
“परिवारकेँ सामाजिक जीवनक पहिल पाठशाला” कहल गेल अछि। मैथिली शिशु लोक साहित्यक माध्यमेँ नेनाकेँ अनेक प्रकारक शिक्षा देल जाइत रहल अछि। किछु उदाहरण द्रष्टव्य–
अंक ज्ञानक लेल एकटा खेल अछि– “अट्टा–पट्टा” एहिमे नेनाक दहिना हाथपर अपन दहिना हाथसँ थापर मारल जाइत अछि आ बेरा–बेरी आँगुर पकड़ि कहल जाइत अछि–
अट्टा–पट्टा बौआकेँ पाँचगो बेट्टा
एगो गेल गायमे, दोसर महींसमे
तेसर बड़दमे–चारिम गेल बकरीमे/पाँचम गेल छकरीमे।
तकर बाद तरहत्थीपर, अपन आँगुर रखैत–
एतऽ बुढ़िया स्नहलक, पकौलक, खएलक, पीलक ई कहैत अपन आँगुरकेँ डेगा–डेगी बढ़वैत ओकर हाथसँ काँख धरि लऽ जाएल जाइत अछि आ कहल जाइत अछि–
एतऽ सँ जे चलल बुढ़िया..../गुद्दू गैयाँ।
नेना गुदगुदी लगलापर जोर–जोरसँ हँसैत–हँसैत लोट–पोट भऽ जाइत अछि। एहि प्रकारेँ नेनाकेँ एकसँ पाँच धरि अंकक ज्ञान कराओल जाइत अछि।
तहिना दोसर खेल अछि जाहिमे दू आ दूसँ अधिक नेना ठाढ़ भऽ आँगुरसँ संकेत करैत खेलाइत अछि–
दस, बीस तीस, चालीस, पचास/साठि, सत्तरि, अस्सी, नब्बे, सौ
सौमे लागल धागा, चोर निकलिकऽ भागा
रानी बेटी सोइती, फूलकेँ माला गोइती
मेम खाए बिस्कुट/साहेब बाजए भेरी गुड।
एहि खेलक माध्यम सँ नेनाकेँ दहाइ आ सैकड़ा धरिक अंकक ज्ञान कराओल जाइत अछि।
एकटा खेल अछि– “घो–घो रानी”। एहि खेलमे एकटा नेना बीचमे ठाढ़ होइत अछि आ चारूकात नेनासब हत्था जोड़ी कऽ केँ वृत्ताकार ठाढ़ होइत कहैत अछि–
घो–घो रानी कत्ते पानी–एड़ी धरि
घो–घो रानी कत्ते पानी–ठेहुन धरि
घो–घो रानी कत्ते पानी–जाँघ धरि
घो–घो रानी कत्ते पानी–डाँढ़ धरि
घो–घो रानी कत्ते पानी–ढ़ोढ़ी धरि
घो–घो रानी कत्ते पानी–पेट धरि
घो–घो रानी कत्ते पानी–छाती धरि
घो–घो रानी कत्ते पानी–गरदनि धरि
घो–घो रानी कत्ते पानी–मुँह धरि
घो–घो रानी कत्ते पानी–नाक धरि
घो–घो रानी कत्ते पानी–आँखि धरि
घो–घो रानी कत्ते पानी–माँथ धरि
अंतमे ‘चुभुक’ कहि सब नेना डूबिकऽ नहयबाक अभिनय करैत अछि। एहिमे माध्यमसँ नेना सबकेँ अंगक ज्ञान कराओल जाइत अछि।
एकटा खेल नेना सब एहि प्रकारेँ खेलाइत अछि–एकटा नेना अपन दुनू हाथकेँ उठाकऽ पैघ आकार बनबैत अछि आ तकर बाद क्रमशः छोट करैत जाइत अछि आ कहैत अछि–
एतेक टा की–छिट्टा/एतेक टा की–पथिया
एतेक टा की–मउनी/एतेक टा की–चुक्का
चुक्कामे की–अण्डा/के फोरए–कउआ
के गीजए–हमसब।
ई कहि– ती–ती–ती–ती....कहैत सब नेना कूदऽ लगैत अछि। एहि लोक साहित्यक माध्यमसँ छिट्टा, पथिया, मउनी, चुक्का सभक आकारक ज्ञान कराओल जाइत अछि।
तहिना एकटा खेल अछि जकरा माध्यमसँ किछु वस्तुक उपयोगक ज्ञान कराओल जाइत अछि–
खेलए–धूपए गेलिऐ/एगो लोहा पेलिऐ
सेहो लोहा कथी लेल/हाँसू गढ़ाबऽ लेल
सेहो हाँसू कथी लेल/खड़ही कटाबऽ लेल
सेहो खड़ही कथी लेल/बंगला छराबऽ लेल
सेहो बंगला कथी लेल/भैसी बन्हाबऽ लेल
सेहो भैसी कथी लेल/चोतबा पड़ाबऽ लेल
सेहो चोतबा कथी लेल/अंगना निपाबऽ लेल
सेहो अंगना कथी लेल/गहूँम सुखाबऽ लेल
सेहो गहूँम कथी लेल/आटा पिसाबऽ लेल
सेहो आटा कथी लेल/पूरी पकाबऽ लेल
सेहो पूरी कथी लेल/भौजीकेँ मँगाबऽ लेल
सेहो भौजी कथी लेल/बेटा जनमाबऽ लेल
सेहो बेटा कथी लेल/कोरामे खेलाबऽ लेल
अंतमे–टाइल–गुल्ली टूटि गेल/बौआ रूसि गेल।
उपरोक्त विवेचनसँ लगैत अछि जे मैथिली शिशु लोकसाहित्य नेनाक प्रत्येक पक्षसँ जुड़ल रहल अछि। लालन–पालन आ खेल मनोरंजनसँ सम्बद्ध लोक साहित्यक अधिकता पाओल गेल अछि। खेलक मध्यमसँ मनोरंजनक संग–संग नेना भुटकामे एकता, सहयोग, सहानुभूति आ प्रेमक भावना जगैत अछि। एकर अतिरिक्त अभिनय, नृत्य, गीत आदिक ज्ञान सेहो आरम्भहिसँ होमए लगैत अछि। एखन हमरा सबकेँ मैथिली शिशु लोक साहित्य सन अमूल्य धरोहरकेँ सहेजिकऽ समेटबाक प्रयोजन अछि कारण दिनानुदिन ई अपन मौलिकताकेँ त्यागि विकृत रूप अपनौने जा रहल अछि। जँ एहि दिशामे हमरा सभ सचेष्ट नहि होएब तँ एहि धरोहरक मूल्यवान वस्तु नष्ट भऽ जयबाक प्रबल सम्भावना लगैत अछि।
ओना हम आरम्भेमे कहि चुकल छी जे एहि विषयपर पहिनो बहुत गोटा काज कयलनि अछि आ प्रायः एखनो कऽ रहलाह अछि, मुदा एकर फलक ततेक विस्तृत अछि जे उपलब्ध संकलन यथेष्ट नहि मानल जा सकैत अछि। कारण संकलित शिशु लोक साहित्यसँ कैक बड़ बेसी लोक साहित्य एखनो धरि लोकक ठोरपर छिड़िआएल अछि।
वर्त्तमानमे जखन पाश्चात्य–सभ्यता मिथिलाकेँ चारूकातसँ गछारने जा रहल अछि। लोक “चन्न मामा आ रे आ”केँ त्यागि “ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार” दिस आँखि मुनिकऽ भागल जा रहल अछि आ अपन जे विशिष्ट–वस्तु तकरा त्यागने जा रहल अछि। एहना स्थितिमे हमरा सभक समक्ष यक्ष प्रश्न अछि जे मिथिलाक एहि अमूल्य–निधिकेँ, जे कि, एहिठामक संस्कृतिक, एकटा अपन विशिष्ट परिचिति दैत रहल अछि, तकरा कोनाकऽ अक्षुण्ण राखल जाए। आइ जखन हमसब इक्कीसम शताब्दीक देहतिकेँ पार कऽ रहल छी, विज्ञान अपन विस्तारकेँ सुदूर देहातधरि पसारि चुकल अछि, तेहना स्थितिमे नव–नव तकनीक द्वारा एहि असंकलित शिशु लोक साहित्यकेँ, चिरकाल धरि, संकलित कऽ जोगा कऽ राखल जा सकैत अछि, जन–जन धरि एकर प्रचार–प्रसार कराओल जा सकैत अछि, परंच एकरालेल जरूरी छै–एहि दिशामे एकटा समधानल डेग उठएबाक आ जोरगर प्रयास करबाक।
...
२.६. १. श्या मसुन्द,र शशि-नमन गुरुदेव- (साहित्य कार डा़. धीरेश्वगर झा धिरेन्द्रछक ६ अम वार्षिकीपर विशेष) २. सुजीत कुमार झा हारैत हारैत नेपाल पत्रकार महासंघक केन्द्री य अध्याक्ष



साहित्यआकार डा़. धीरेश्वतर झा धिरेन्द्राक ६ अम वार्षिकीपर विशेष
नमन गुरुदेव
श्या मसुन्द र शशि
जनकपुरधाम
नेपालीय मैथिली साहित्य क जनक एवं जनकपुरक चटिसारके अन्तिेम प्राचार्य गुरुदेव डा़धीरेश्ववर झा ‘धिरेन्द्रह’क छठम् स्मृैतिसभा पुस २७ गते सम्पटन्नि भेल अछि । हुनकर वरदहस्तध प्राप्तर क एखन धुरन्धदर खेलाडी बनल साहित्यमकारलोकनि हुनका स्मएरण कएलनि कि नहि से ओएह जानथि मुदा हुनके प्रेरणासँ जन्मवग्रहण कएने मिथिला नाट्यकला परिषदधरि हुनका अवश्यव स्मएरण कएने छल । एहि अवसरपर भाषण भुषण आ किछु घोषणा सेहो भेल । सभके बुझल अछि जे नेतासभक भाषण निष्प्र भावी भ रहल आजुक युगमे भाषणप्रतिक आमजनके विश्वालस घटि रहल छनि । ओना हुनका कोनो मन्चरपर चढिक स्मलरण करी वा मोने मोन, कोनो अन्तकर नहि छैक । कारण देवताक पूजा मोने मोन सेहो कएल जा सकैए । आ असली पूजा त देवताक देखाओल बाटपर चलब थिक । हुनकर आदर्शके पालना करब थिक । हँ जहाँधरि घोषणा करबाक गप्पद अछि त एतुका वहुत संस्थाह आ व्य क्तिब बहुत किछु घोषणा क चुकल छथि । आव देखवाक अछि जे ई घोषणासभ कार्यरुपमे आएल कि नहि ?

हम जहन गुरुदेवके जनकपुरक चटिसारके अन्तिलम प्राचार्य लिखए लागल छलहुँ त मोनमे नानाप्रकारक चिन्ताि व्याहप्तज छल । कारण जनकपुरमे सम्प्राति जे कलमजिवीसभ सकृय अछि ,ओहोसभ कोनो हिसावसँ कम नहि छथि । सभक संग नाम,दाम आ मुकाम छनि । एहना अवस्थाामे केओ कहि सकैत छथि जे ‘ओ अन्तिहम प्राचार्य कोना भ गेलाह ।’ मुदा एहि वास्तेथ हम मैथिली एमएक पहिल बैचक जमावडाक दृश्य उदघाटन करए चाहव । ओना उमेरक कारणे हमरा एहि भितरके तिरीभिटीक जानकारी नहि अछि मुदा हम जे देखल से कहए चाहव ।
गुरुदेवके भागिरथी प्रयाससँ राराव क्याेम्पजसमे मैथिलीमे एमएक पढाई सुरु भेल छल । मैथिलीक बादे राजनिती शास्त्रथ,अर्थशास्त्रभ किंवा अन्यै विषयमे स्नापतकोत्तरके पढाई सुरु भेल । सभके सुखद आश्चदर्य लागि सकैए जे मैथिलीक एमएक पहिल बैचक विद्यार्थीसभ छलाह सर्वश्री डा़राजेन्द्रवप्रसाद विमल,जानकी रमण लाल,रामभरोस कापडि‘भ्रमर’डा़पशुपतिनाथ झा,डा़रेवतीरमण लाल, रुद्रकान्तल झा ‘मडई’,प्रो़परमेश्वसर कापडि,नमोनाथ ठाकुर,नागेश्वथर सिंह आदि आदि । ताहु समयमे सभके सभ अपन अपन मुकामपर छलाह । चुकी अधिकांश विद्यार्थी नोकरियाहा छलाह ते कक्षा भोरमे संचालित होईक आ अधिकाश कक्षा गुरुदेवके घरेपर संचालित होईक । चाह पानक दौर चलैक आ पढाई लिखाई सेहो । हम,घुटुल आ पुटुल चाह पान लावएमे परेसान रही । हँसीक पमारा छुटैक ,विभिन्न विषयपर गंथन मंथन होईक आ गुरुदेव डिक्टेहशन लिखवथिन । हमरा मोन अछि भाषा विज्ञानके कापी तैयार करैत काल गुरुदेव जानकी बाबू आ विमलसरसँ बेर बेर राय सल्लाभह कएल करथि । यदि अधलाह नहि लागय त स्वीनकार करए पडत जे ओएह कापीक आधारपर एखनो मैथिलीक एमएक विद्यार्थीसभ परीक्षामे पास करैत छथि ।
एखनो जनकपुरमे मैथिली विद्वानक कमी नहि अछि । मैथिलीक प्राध्या पकके सख्यार सेहो पहिनेसँ बेसी अछि । कि एखन गुरुदेवद्वारा चलाओल गेल चटिसार चलैत अछि ?यदि नहि त हुनका जनकपुरक चटिसारक अन्तिएम प्राचार्य कहवामे कि हर्ज ?
गुरुदेवके स्मिरण करैत काल एकगोट आओर विषय मोन परैत अछि । ओ ई जे ओ मैथिली भाषाक साहित्यककारटा नहि छलाह । साहित्यरकार श्रृजना करएवला ब्रम्हाि सेहो छलाह । केओ मानथि वा नहि मानथु ओ महेन्द्रस मलंगियाके नाटक लिखवाक प्रेरणा आ सिख दुनू देलथिन । रेवती रमणलालके रिपोर्ताज लिखवाक आदेश देलथिन । रामभरोस कापडिके कविता आ गीत एवं भुवनेश्वखर पाथेयके कविता आ कथा लिखवाक जिम्मेेवारी देलथिन ।
प्रतिभा आ रुचिक अनुसार गुरुदेवद्वारा कएल गेल ई जिम्मे‍वारी विभाजनके पाछा बहुत पैघ उद्येश्यआ छल हेतनि । ओ चाहने हेताह जे नेपालीय मैथिलीमे सेहो सभ विधामे रचना हो । पाछा जा से भेवो कएल । भलेहि भारतीय हुनके किछु शिष्यमद्वारा षडयन्त्र कएल गेल हो मुदा ‘नेपालीय मैथिली साहित्यछ’क नामाकरण ओएह कएने छलाह ।
हे गुरुदेव । अहाँ प्रेरणा दियौ जे जनकपुरमे फेरसँ गुरुकुल परम्पररा चलि सकए । चुकी एखन साहित्यथ श्रृजनसँ बेसी मैथिलसभके अधिकारक आवश्यपकता छैक । मैथिलके अपन राजपाट होईक आ अपन भाषामे काज क सकए । ओना हमरा मोन अछि अपनेक ओ जीद्द
नोरक टघारेसँ जिनगी जँ निर्मित
आशाकेर कमल अछि हृदयकेर दहमे
कठिन युद्ध अछि ई त लडिए रहल छी
हारब ने किन्निहु ,हमर जीत निश्चितत ।।
अपनेक अनुचरलोकनि अपनेक ईक्षाके अवश्यज पूरा करत ।

२.सुजीत कुमार झा
हारैत हारैत नेपाल पत्रकार महासंघक केन्द्रीशय अध्यिक्ष


नेपालमे एकटा कहावत अछि नेपालक एकीकरणक समयमे पृथ्वीरनारायण शाह कतेको ठाम हारि गेल रहथि । निराश भऽ अपन घरमे अराम कऽ रहल रहथि की देखलखिन एकटा चुट्टी किछ पर चढयकेँ प्रयास करैत छल आ ओ बीचमे खसि परैत छल । चुट्टी के देखलखिन चारि पाँच वेरक प्रयासक वाद ओ चढि गेल । एकरवाद हुनका एकटा ज्ञान भेटलन्हिल आ पृथ्वीलनारायण शाह फेर सँ एकीकरण अभियानमे जुटि गेलाह , एखनकेँ नेपाल अछि तकर निर्माण भऽ सकल ।

करीब—करीब नेपाल पत्रकार महासंघक केन्द्रीणय अध्यनक्ष धर्मेन्द्र झा सँग एहने स्थिरति भेल अछि । ओ चुट्टी तऽ नहि देखलथि मुदा पत्रकारक नेतृत्व् करबाक अछि से अठोट हुनका केन्द्रीरय अध्य क्ष बना देलक ।
धर्मेन्द्रन २०५१ सालमे नेपाल पत्रकार महासंघ धनुषाक कोषाध्य्क्षमे हारल रहथि । फेर २०५४ सालमे केन्द्री य सदस्यद पदमे, २०५९ सालमे केन्द्रीधय सचिव पदमे , २०६२ सालमे महासचिव पदमे हारल रहथि । किछ गोटे तऽ हुनका हरुवा पुरुष तक कहय लागल छलनि । मुदा २०६५ सालमे नेपालक पत्रकार सभक सभसँ वडका पद महासंघक केन्द्रीहय अध्युक्ष भऽ गेलथि । नेपाल पत्रकार महासंघक पूर्व अध्ययक्ष तारानाथ दहाल कहैत छथि– ‘महासंघक नेतृत्वी करबाक अछि से अठोट आ पत्रकार सभ बीच सम्वापद कायम राखब धर्मेन्द्रछकेँ अहि स्थासन पर पठौलक ।’ धर्मेन्द्रप अहि बीचमे २०५६ सालमे केन्द्रीाय सदस्य मे मात्र जितल छलथि । ओ स्वंमय कहैत छथि — ‘केन्द्री य कमिटीक विभिन्नद पदमे हारलौ तहुँ सँ बेसी जनकपुरमे कोषाध्यओक्ष पदमे हारल छलौं तहिया बड दुःख भेल छल ।’ ३०/३५ गोटे सदस्यह रहल जिल्लाममे हारि गेलौं तकर बाद प्रण लेने रही जे केन्द्र क प्रमुख पदपर पहुँच सभकेँ देखा देबै ।

कहियो नेता बनयकेँ सपना देखने धर्मेन्द्रक रामस्वहरुप रामसागर बहुमखी क्या।म्पसस जनकपुर अन्तरर्गतक स्वयतन्त्रप विद्यार्थी युनियनक सदस्य् आ नेपाल विद्यार्थी संघ धनुषाक उपाध्यदक्ष सेहो भेल रहथि । मुदा स्वववियू कालमे २०४३ सालमे चहल पहल नामक भिते पत्रिका निकाललथि । आ सम्पावदक भेलाक बादक लोकप्रियता वा प्रभाव हिनका अहि दिस खिच लेलक । ओ अपन स्वावियूकालमे जागृति नामक पत्रिकाक सम्पारदक सेहो भेल रहथि ।
मैथिली आ राजनीति शास्त्र सँ एम.ए आ इन्डिलयन इन्टि ज च्यूिट अफ मास क्युह निकेशन दिल्लीी सँ डिप्लोलमा धरिकेँ पढाइ कएने धर्मेन्द्रह पत्रकारिता केँ पेशा बनौलथि । धर्मेन्द्रजक बाबु राजेन्द्रय झा कहैत छथि– ‘धर्मेन्द्रि लग क्यापम्पधसमे टिचिङ्ग करब, अन्यब सरकारी नोकरी दिस जाएब आ पत्रकारिता करब तिनटा विकल्प– छल । मुदा हम देखलियै धर्मेन्द्रमक इच्छार पत्रकारिता दिस वेसी अछि । पत्रकारितामे बहुत रास कठिनाइ छैक बुझलाक बादो हमसभ कोनो रुकाबट नहि कएलौ ।’
जाहि लगन सँ ओ काज करैत छलथि हमरा विश्वा्स छल ओ एक दिन बढिया करता राजेन्द्र आगा कहलन्हिन । २०२३ चैत ४ गते माता मनोरमा झा आ पिता राजेन्द्र झाक जेष्ठ पुत्रक रुपमे सिरहा जिल्लािक गोविन्दछपुर वस्तिरपुरमे जन्म४ लेनिहार धर्मेन्द्र जहिना पत्रकारक नेता छथि तहिना लेखन क्षेत्रमे सेहो चोटी पर छथि ।
काठमाण्डूथ सँ प्रकाशित अन्नरपूर्णापोष्टज दैनिकक समाचार संयोजक छथि । धर्मेन्द्रक हिमालय टाइम्सष दैनिककेँ कार्यकारी सम्पारदक सेहो रहि चुकल छथि । जनकपुरमे धर्मेन्द्र क सम्पाजदनमे प्रकाशित नवविचार साप्ताेहिक पत्रकारितामे एकटा अलग चिज देने छल । प्रत्येुक हप्ताा अन्तकरवार्ता, व्यंपङ्ग, समाचारमे विविधता ओहि पत्रिकाक विशेषता
छल । ओना व्य वसायिक पत्रकारिता माधव आचार्यक सम्पातदनमे जनकपुर सँ प्रकाशित जनआकांक्षा आ विएम खनालक सम्पायदनमे प्रकाशित विदेह साप्ताआहिक सँ शुरु कएने छथि ।
साहित्यममे सेहो धर्मेन्द्रेके प्रयोगवादी कविक रुपमे चिन्हिल जाइत अछि । धर्मेन्द्र क रस्तार तकैत जिनगी, एक श्रृष्टीय एक कविता , एक समयक वात, धुनियाएल आकृतिसभ सनक हिनक मैथिली संग्रह आएल अछि । तहिना नेपालीमे गोनु झाका कथाहरु , कौशलका परिहास सहित दर्जन सँ बेसी पुस्तिक प्रकाशित अछि ।
पुरस्का रक बात जँ कएल जाए तऽ २०५५ सालमे नेपाल विद्याभूषण ‘ख’, रिपोर्टस क्लिबद्वारा २०६० सालमे वेष्टा जर्नलिस्ट अवार्ड , २०६४ सालमे नागाअर्जुन वेष्टम पब्लि केशन पुरस्कारर , २०६५ सालमे राष्ट्रीतय प्रतिभा पुरस्काकर देल गेल अछि ।
भारत , अमेरिका , श्रीलंका, बंगला देश, कतार, नर्बे, फिन्लै ण्डा , डेनर्माक, स्वीटडेन आ जर्मनीके भ्रमण कऽ चुकल धर्मेन्द्रक के आगा बढाबयमे माता पिताक अतिरिक्त कनिया मुन्नीम झाक सेहो महत्वरपूर्ण योगदान रहल ओ प्रसंगक क्रममे वेर वेर कहलन्हि । देशक पत्रकारसभके श्रमजीवि ऐन अन्तनर्गत मिडियासभ तलब दौक, विना नियुक्ती पत्रके देशक कोनो पत्रकार के काज नहि करय परैक ताहि अभियानमे ओ आ हुनक नेपाल पत्रकार महासंघ अखन लागल अछि ओना मैथिलीक अभियानी लोक सेहेा छथि । मैथिली भाषा साहित्यग कला साँस्कृसतिकेँ कोना बढाओल जाय ताहिमे लागल रहैत छथि । फेर सफलताक शिखर पर चढलाक बादो धर्मेन्द्रअ अपन कैरियरकेँ प्रति ओतबे गम्भीतर छथि जतेक २०/२५ वर्षक युवा रहैत अछि ।
२.७. कुमार मनोज कश्यप-जन्‌म : १९६९ ई़ मे मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। स्कूली शिक्षा गाममे आ उच्च शिक्षा मधुबनी मे। बाल्य काले सँ लेखनमे आभरुचि। कैक गोट रचना आकाशवाणी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रिय सचिवालयमे अनुभाग अधिकारी पद पर पदस्थापित।
अन्हेर

बड़ एकंात्मता बुझा रहल आछ हमरा स्वयं आ एहि ट्रेन मे---दुनू पड़ायल जाईत -- कंोनो-कंोनो स्टेशन पर बिलमैत -- नव-नव लोकं सँ परिचय आ पुरान सँ संग छुटब --तथापि ने मिलनकं खुशी ; ने वियोगकं दुःख----चरैवेति़ चरैवेति ।

टुगर हम क़ंक्कंा -कंाकंीकं कृपा पर जीबैत भैंस-बकंरी चरबैत । मोने आछ हमरा जे हम, जीबछा, मलहा सभ केयो टाईल-पुल्ली खेलबा मे एतेकं ने मस्त रही जे महींस के हाँकंबो बिसरि गेलहुँ । सभटा महींस भोकंनी साहुकं खेसारी खेत मे हुलि गेलै । एके-दू बेर तऽ मुँह मारने हेतै महींस सभ किं कंतऽ ने कंतऽ सँ दनदनाईत भोकंनी साहु जुमि गेलै़तामसे-पित्ते माहुर भेल़़बिखिन्न-बिखिन्न के गारि पढ़ैत । सभकं महींस तऽ हाँकिं कंऽ लईये गेलै ओ ; भोलबा सेहो पक़ंडा गेल । सभ छौंड़ा सभ जेम्हरे पओलकं तेम्हरे जान बचा कंऽ पड़ायल । डरे हमहुँ बेछोहे प़ड़ेलहुँ । डर भोकंनी बाबू सँ बेसी तऽ कंक्कंा आ कंाकंीकं छल़़दुनू बात-बात पर कंोना अधमौगति कंऽ मारैत आछ लाते-मुक्के, जे पओलकं ताहि लऽ कंऽमरबा-जीबाकं कंोनो ठेकंान ने ।

हम रेलवे कंाते-कंात पड़ायल जाईत रही किं लागल केयो पाछु सँ हमर आँगी पकंड़ि लेलकं डरे हमर होश गुम्म भऽ गेल अधमरू सन भऽ गेलहुँ । बफाड़ि कंटैत हम कंहुना एहि चाँगुर सँ अपना के छो़ड़ेबाकं अंतिम प््रायास कंरैत आगु दिस जोर लगबैत रहलहुँ । पेᆬर धम्म्‌ दऽ मुँहे भरे खसलहुँ । देह सँ माटि झाड़ैत हम पाछाँ तकंलहुँक़ेयो नहिं छल । जान मे जान आयल । हमर आँगी सिगनलकं तार मे ओझड़ा गेल छल । दूर तकं देखलहुँक़ेयो एम्हर नहिं आबि रहल छल । डर किंछु कंम भेल । ताबते कंोनो ट्रेन सिगनल पर आबि कंऽ ठाढ़ भेल । नुकंा कंऽ हम ओहि मे चढ़ि गेलहुँ डरे एकं कंोन मे दुबकंल ठाढ़ रही । एकंटा आदमी कंने कंात सहटि कंऽ हमरा बैस जेबाकं ईसारा केलकं । असोथकिंत तऽ भईये गेल रही ; बैसिते आँखि लागि गेल । आँखि खुजल तऽ सौंसे डिब्बा खाली छलैकं । धड़फ़डा कंऽ ट्रेन सँ नीचा उतरलहुँ । लोकंकं एहि अजश्र भीड़ मे एकंहुटा चेहरा चिन्हार नहिंज़गह अनचिन्हार; लोकं अनचिन्हार अनभुआर हम आब कंतऽ जायब ?क़ंी कंरब ?? बुकंौर लागऽ लागल हमरा डरे जाँघ थरथराय लागल - 'नहिं जानि कंोन दुरमतिया घेरने छल जे गाम सँ पड़ा गेलहुँग़ाम पर मारिये खैतौं ने ! पहिनहुँ किं कंोनो कंम्म मारि खेने छी ।क़ंी बिगड़ितै मारि खा कंऽ ? देह मे भूर तऽ नहिं ने भऽ जैतै ? मरि तऽ ने जैतौं ? एहि परदेश मे तऽ आब बिलटि कंऽ मुईनाईये लिखल आछ । बौड़ल लोकं अपन देश कंहाँ आपस जा पबैत आछ़़ओकंरा सभ के सुख-सराध लोकं ओहिना कंऽ दैत छै । ' डरे हदास उड़ऽ लागल जोर-जोर सँ हिचुकंऽ लागल रही ।

बुझायल जे केयो हमरा कंान्ह पर हाथ रखलकं चौंकिं कंऽ तकंलहुँ । एकंटा अधवयसु पुरूष हमर कंनबाकं कंारण जानऽ चाहि रहल छल । ओकंर स्नेह सँ हमर कंरेजा फाटि गेल मोन भेल भरि ईच्छा कंानी । हम किंछु ने बाजि सकंल रही । ओ हमरा स्टेशनकं खाली बेंच पर बैसा कंऽ मारते रास कंचड़ी-मुड़ही-घुघनी कंीनि कंऽ खेबा हेतु देलकं । भुख सँ तऽ अँतरी बैसल जाईत रहै़हम खाय लगलहुँ । कंने सुभ्यस्त भेलहुँ तऽ ओ पोल्हा कंऽ सभ बात पुछय लागल । पहिने तऽ हमरा किंछु नहिं बाजल भेल खाली हिचुकैत रहलहुँ । परदेश मे एकंटा अनचिन्हार द्वारा एहन स्नेह पओला सँ हम ओकंर कृतग्य भऽ गेल रही । हम ओकंरा सभ बात बता देलियै आ कंहलियै जे ओ हमरा गाम बला ट्रेन पर बैसा दिअय । ओ हमरा बड़ बोल-भरोस देलकं आ कंहलकं जे आब आई तऽ कंोनो ट्रेन नहिं छैकं ; कंाल्हि ट्रेन धड़ा देत । ता राति भरि लै अपना बासा पर लऽ गेल । मुदा ओ हमरा गामकं ट्रेन नहिं धड़ओलकं नित नव-नव बहाना । हमरे तुरिया ओकंरो बेटा रहै । खेलाईत-खाईत हमरो दिन बीतऽ लागल़़ग़ामकं सुरता धिरे-धिरे कंम होईत गेल ।

ओकंरा सभकं हमरा प््राति स्नेह व्रᆬमशहे कंम्म होईत गेलैकंआब हमरा उपर घरकं कंाजकं संगहिं माल-जाल , खेत-पथार, बाड़ी-झाड़ी सभ टा जिम्मेदारी छल़़क़ंान वुᆬरियेबाकं तकं के पलखति नहिंताहि पर गारि-गंजन सेहो हुअय लागल । आजिर भऽ कंऽ एकं दिन सिन्हा साहेब सँगे ओहि ठाम सँ पड़ा गेलहुँ ।

सिन्हा साहेब हमरा भोरे-भोर सभ दिन भेंट भऽ जाथि ओ टहलय निकंलैत छलाह आ हम मलिकंाईनकं पूजा लेल पूᆬल तोड़य निकंलैत छलहुँ । आपस मे देखि कंऽ मुस्किंयेनाई , पेᆬर प््राणाम आ तकंरा बाद बढ़ैत गेल अपनत्व । सिन्हा साहेब कंोनो पैघ ऑफीसर रहथि । हमरा अपन माय-बाप के मुँह तकं मोन नहिं लोकं कंहई अलच्छा जनमिते माय-बाप के खा गेलई । मुदा सिन्हा साहेब मे हम अपन माय-बापकं छाँह साफ देखैत छलहुँ । हम हुनकंा अपन देवता समान बुझैत रहलहुँ आ ओ हमरा अपन संतान सँ बढि कंऽ मानैत छलाह । अपने जतऽ-जतऽ जाईत रहलाह हमरा संगे रखलनि । एकं दिन अनचोके मे हुनकंो साहचर्य हमरा सभ के छुटि गेल आब ओ एहि दुनियाँ मे नहिं रहलाह ।

हम आब हुनकंर बेटाकं कंारखाना मे कंाज कंरैत छी । कंारखाना के कंाज सँ जयनगर जा रहल छी । ट्रेनकं ख़िडकंी सँ पाछु पड़ायल जाईत खेत-पथार, कंलम-गाछी, बाध-बोन, ईनार-पोखरि अचानकं हमरा मोन मे हमर बाल्यकंाल एकंटा छाँह जकंाँ पसरि गेल आछ । ट्रेन एके बेर धक्कंा संग रूकिं जाईत आछ । यात्री सभ एम्हर-ओम्हर तकैत एकं दोसरा सँ ट्रेन रूकंबाकं कंारण पुछि रहल आछ । किंछु गोटे तऽ कंारणकं खोज मे ट्रेन सँ नीचा उतरि गेल आछ । हमरो मोन उबिया गेल वा ई कंहु जे रेलकं पटरी कंातकं मनभावन दृश्य हमरो ट्रेन सँ नीचा उतरबा लेल विवश कंऽ देलकं। लोकं बजैत छै जे माओवादी सभ ट्रेन के पटरी उड़ा देने छै़आब ट्रेन आगू नहिं जा पाओत । हम चारू कंात मुड़ी घुमा कं चर -चित लैत छी - सामने पुल पर बोर्ड लागल छैकं -- कंमला पुल सं० ७ । हमर दिमाग पर जोर पड़ल हमरो गामकं पुल के तऽ लोकं साते नम्बर पुल कंहै । ओहु ठाम एकंटा एहने झमटगर पीपड़ के गाछ छलै । हम तजबीज कंरैत छी । यादकं आर कंोनो चिन्ह नहिं बुझाईत आछ । मुदा ई कंमला नदी जकंरा लोकं मोईन कंहैत छलैकं आ एकंर भीड़ पड़हकं ई पीपड़कं गाछ !? हम ट्रेन सँ अपन बैग लऽ कंऽ नीचा उतरि जाईत छी ।

रस्ता कंात मे गुम-सुम ठाढ़ हम आखयास कंऽ रहल छी समय कंतेकं जल्दी बदलि जाईत छैकं मोईनकं कंात मे पीपड़कं गाछ तर बदरिया के चाहकं दोकंाऩ़ओकंर दस पैसी नागीन बिस्वुᆬट कंी सुअदगर ! साँझ-भिनसर भरि गामकं लोकं जुटै एहि दोकंान पऱ़ग़ाम-घर, देश-दुनियाँ, खेती-पथारी सभ टा गप्प होई एहि ठाम । हमरो कंक्कंा घर मे कंतबो चाह पीने होऊ जाबत भोर-साँझ एतुक्कंा चाह नहिं पिबैत छल ताबे चैने नहिं क़ंाकंी भने कंतबो अपन कंपाड़ नोचौ । हमरा मोने आछ जे एकं बेर धानकं सीस लोढ़ि कंऽ ओहि पाई सँ चाह पिबैत रही कंी कंतऽ ने कंतऽ सँ कंक्कंा आबि गेल रहै आ बिना किंछु पुछने तेहन घरमेच्चा मारने रहै जे गाल पर लिला-मशा पड़ि गेल रहै । गिलास तऽ दुर पेᆬकंा कंऽ चूड़-चूड़ भऽ गेल रहै । लोकं सभ कंते दुर्‌ छीः केने रहै कंक्कंा के । ई मोईनो कंतेकं चौड़गर रहै ताहि दिन । कंी मजा अबै पीपड़कं पुᆬनगी पर चढ़ि कंऽ पानि मे वुᆬदई मे । कंते-कंते कंाल हम डुब्बी मारने रहि जाई पानि मे एके सुरूकिंया मे आधा मोईन के पार कंऽ जाई । देखनाहर अचम्भित रहि जाई । मोईनकं ओहि कंछाड़ पर कंतेकं रास जामुनकं गाछ रहै़ख़ाईत-खाईत अघा जाई केयो रोकं-टोकं केनहार नहिं । खायल भऽ जाय तऽ जामुनकं डारि तोड़ि दातमनि कंरब़़ सभ चेन्ह मेटल । कंतेकं मजा अबैत छलै ! एखनो मोने आछ मोकंना जे महेशकं बाड़ि सँ केरा घौड़ चोरा कंऽ कंाटि अनने रहै आ सभ मिलि कंऽ नहरिकं कंछेड़ मे खाधि खुनि कंऽ ओकंरा गाड़ने रही । झलफल अन्हार होईते सभ ओहि ठाम जमा होई आ भरि ईच्छा केरा खाई ।

हम बान्ह दिस नजरि दौड़बैत छी । साँझकं मैलछौंह अऩहार पसरल जा रहल आछ । चरबाहा, घासबाली, गोबर-गोईठा बिछयबाली सभ अपन-अपन घर आपस भऽ रहल आछ । रस्ता कंात मे ठाढ़ हम बितल समय के अपन मुट्‌ठी मे बंद कंरबाकं अंतहीन प््रायास कंऽ रहल छी । बगल सँ एनहार - गेनहार किंछु अचम्भित सन हमर मुँह देखि आगू बढ़ि जाईत आछ ।

- 'बड़ी कंाल सँ आहाँ के एतऽ ठाढ़ देखि रहल छी। कंतऽ जेबई अपने? '

- ' एहि गाम मे कंतऽ जेबई से तऽ हमरा अपनो नहिं बुझल आछ । बस एतबे टा मोन आछ जे साईत हम कंहियो एहि गामकं वासी रही । बाबूकं नाम तऽ नहिं मोन आछ कंारण हम हुनकंर मुँहों नहिं देखने छलहुँ । हँ हमर कंक्कंा के नाम बुधन छल । '

- 'कंोन बुधन? '

- 'बुधन मंडल । '

- 'तोहर नाम मदना तऽ ने छह ? '
- 'हँ हमर नाम मदन आछ । '

सुनिते ओ आदमी हमरा भरि पाँज कंऽ पकंड़ि लेलकं - ' मदना रौ ! कंतऽ छलैहैं एतेकं बरख धरि ? हमरा सभ के तऽ भेल जे कंतौ मरि-खपि गेलैं । हमरा नहिं चिन्हलैं?हम जीबछा !तोहर लंगोटिया यार !! ' पेᆬर हमरा माथ सँ पैर तकं निघारैत बाजल- 'तों तऽ साहेब भऽ गेलैं हमरा आऊर तऽ गाम मे ओहिना के ओहिना---दुनियाँ-जहानकं फिरेसानी !!! खैर छोड़ ई बात सभ । ई कंह जे एतेकं दिन कंहाँ पतनुकंान लेने छलैहैं ? बुडिबकं कंहाँ के ! अहुना केयो गाम बिसरैत आछ ? ' पेᆬर ओहि ठाम एकंत्र लोकं सभ के हमर परिचय दैत कंहलकै - ' कंक्कंा एकंरा नहिं चिन्हलियै ! ई अपन मदना छी ! अरे ! दछिनबाड़ि टोल मे जे बुधन मंडल छल ओकंरे भातिज हम सभ तऽ संगे उठी -बैसी , खाई-खेलाई़़ । ' लोकंकं आन्भग्यता देखैत बाजल - 'अरे ! तों सभ कंी जानऽ गेलही एकंरा बुधन मंडल के मरलो तऽ जमना बीति गेलै़आ ईहो मदना तऽ गोड़ चालीस बरखकं बाद गाम आयल हैत । ' ओ हमरा जनाबऽ लागल- 'तोहर कंक्कंा-कंाकंी दुनू आन्हर भऽ कंऽ मुईलउ अंतकंाल मे केयो एकं घोंट पानि तकं ने देबऽ बला़। संतान तऽ भगवान देबे नहिं केलखिन । डीह पर ओहिना जंगल-झाड़ जनमल़़निपुत्रकं डीह पर केयो किंयैकं जायत ?'

लाठी टेकंने एकंटा वृद्ध भीड़ के चीड़ कंऽ बीच मे आयल । 'कंक्कंा एकंरा नहिं चिन्हलियै ?ई बुधन मंडलकं भातीज मदना थीकं जे अहींकं मारिकं डरे महींस छोड़ि कंऽ जे पड़ायल से आई एते बरिख के बाद उपर भेलै । ' जीबछा कंहने रहै ।

'अच्छा ई मदना छी ! एकंदमे बदलि गेल ! कंतऽ छलह हौ एतेकं दिन? कंोना मोन पड़लह गाम -घर एतेकं युगकं बाद? '
हम गुम्मे रहलहुँ ।

'कंक्कंा ई मदना नान्हि टा गलती केलकं जे एकंर महींस आहाँकं खेत चरि गेल ताहि लेल एकंरा चालीस बरखकं वनबास भोगय पड़लैकं आ ई नक्सलबादी अताई सभ जे एहन - एहन पैघ जुलुम कंरैत आछ तकंरा देखऽ बला केयो नहिं ! सत्ये अन्हेर भऽ रहल आछ एहि कंलयुग मे । ' कंहि कंऽ ओ आकंाश दिस तकंलकं । पेᆬर हमर बाँहि पकंड़ि कंऽ कंहलकं - 'चल यार घर पर बैसि कंऽ दुनू दोस्त भरि मन बतियायब । ' लोकंकं हुजूम हमरा पाछाँ-पाछाँ चलि रहल छल ।

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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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