भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Saturday, January 30, 2010
'विदेह' ५० म अंक १५ जनबरी २०१० (वर्ष ३ मास २५ अंक ५०)- Part_III
डा.रमानन्द झा ‘रमण’
तन्त्रानाथझा/ सुभद्रझा जन्मशतवार्षिकी
‘हम आगि आ हमरा प्रज्ज्वलित कएनिहार तन्त्रनाथ बसात।’ - सुभद्र झा
राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्रामक आगि जेना-जेना सुनगैत, पजरैत एवं लहकैत गेल, मिथिलाक संग मिथिलाक भौगोलिक
सीमासँ बाहर सांस्कृतिक मिथिलाक लोकमे अपन भाषा, साहित्य एवं संस्कृतिक विकास, प्रचार-प्रसार एवं संरक्षणक चेतना सेहो क्रमशः घनीभूत होइत रहल। एहि चेतनाक फलस्वरूप गत शताब्दीक पहिल दशक, मैथिली भाषा-साहित्यक लेल अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अछि। सांस्कृतिक मिथिलाक प्रबुद्ध मैथिल, मैथिलीमे पत्र-पत्रिकाक सम्पादन-प्रकाशन ओही दशकमे आरम्भ कएल। एहि सन्दर्भमे विद्यावाचस्पति मधुसूदन ओझा एवं म.म.मुरलीधर झाक नाम आदरक संग स्मरण कएल जाइछ। ओही दशकमे कमसँ कम एक सोड़हि मैथिलीक अवदानी साहित्यकारक जन्म भेल। ओ सभ अपन प्रतिभा अध्ययन-अनुशीलन एवं मातृभाषा प्रेमसँ मिथिला भाषाक मानकीकरण कएल। भाषा लेल विभिन्न प्रकारक प्रतिमान स्थापित कएल। हुनका लोकनिक संघर्षशील व्यक्तित्वसँ मैथिलीक आधार सुदृढ़ भेल। सरहपाद, ज्योतिरीश्वर आ महाकवि विद्यापतिक भाषा मैथिली, राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय स्तरपर भाषा-कुलमे गरिमापूर्ण स्थान पाबि सकल। दोसर दिश ओ सभ अपन-अपन कारयित्राी प्रतिभासँ मैथिली-साहित्यमे उत्कृष्ट विविधवर्णी रचनाक पथार लगा देलनि। हुनका लोकनिक समस्त क्षमता आ ऊर्जा मैथिली साहित्यक संवर्धन लेल तँ छलैके, एहू लेल ओ सभ चिन्तित एवं प्रयासरत छलाह जे आबएबाला युगमे अपन मातृभाषाक प्रति लोकमे सहज अनुराग रहैक, सम्बद्धता एवं प्रतिबद्धतामे कमी नहि आबए तथा साहित्य-सर्जनाक प्रवाहक गति अवरुद्ध नहि हो। एहि हेतु ओ सभ परती-पराँतहु जोति-कोड़ि पर्याप्त भूमि तैआर कए देलनि। आइ हुनके लोकनिक दूरदर्शिता, परिश्रम एवं प्रतापसँ उपजल जजात, हमरा लोकनिक बीचक कतेको गोटे काटि आ ओसा फूससँ, खपड़ा आ खपड़ासँ कोठा पीटि रहल छथि। ओहन-ओहन महानुभावक जन्म शतवार्षिकीक आयोजन निश्चिते श्लाघ्य एवं प्रेरणास्पद अछि। स्वागत योग्य अछि। आयोजकक संगहि ओ व्यक्ति धन्यवादक पात्र छथि। जनिका मनमे ई आयोजन उचड़ल छलनि वा उचड़ैत छनि।
सर्वप्रथम हम मैथिली भाषा साहित्यक लेल अत्यन्त महत्वपूर्ण गत शताब्दीक पहिल दशकमे जनमल मैथिलीक साहित्यकार, यथा - अच्युतानन्द दत्त, ईशनाथझा, कालीकुमार दास, कांचीनाथझा ‘किरण’, काशीकान्त मिश्र ‘मधुप’,
गणेश्वरझा ‘गणेश, जयनारायण झा‘विनीत, जीवानन्द ठाकुर, जीवनाथ झा, तन्त्रानाथ झा, दामोदरलाल दास ‘विशारद’,
दुर्गाधर झा, नरेन्द्रनाथ दास ‘विद्यालंकार’, प्रबोधनारायण चौधरी, बैद्यनाथ मिश्र ‘यात्राी’, भुवनेश्वर सिंह ‘भुवन’, महावीर झा ‘वीर’, रमानाथ झा, रमाकान्त झा(नेपाल), लक्ष्मीपति सिंह, शशिनाथ चैधरी, श्रीवल्लभ झा, श्यामानन्द झा, सुरेन्द्र झा ‘सुमन’, सुभद्र झा, हरिमोहन झा, हरिनन्दन ठाकुर ‘सरोज’ आदिकेँ जे मैथिली साहित्यक खंँाम्ह छलाह, वर्तमान शताब्दीक पहिल दशकक अन्तिम वर्षमे स्मरण करब। सुधी समाजक ध्यान एहि तथ्य दिश आकृष्ट करए चाहब जे उपर्युक्त अवदानी साहित्यकारक सूचीमे अधिकांश लोक सरिसब परिसरक छथि। अथवा सरिसब परिसरसँ अन्य प्रकारेँँ सम्बद्ध छथि वा सरिसब परिसरक शिष्यत्व ग्रहण कएलापर हुनक सर्जनात्मक प्रतिभाक अंकुर प्रस्फुटित भए पल्लवित-पुष्पित भेल अछि। अपन भाषा-साहित्यक प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण लेल सदिखन तत्पर एहि उर्वर परिसरक समागत मातृभाषा अनुरागी एवं विज्ञजनकेँ हमर प्रणाम निवेदित अछि।
डा.सुभद्र झा (जन्म 09 जुलाइ, 1909 - देहावसान 13 मइ, 2000) लिखलनि अछि जे ‘हम आगि आ हमरा
प्रज्ज्वलित कएनिहार तन्त्रानाथ बसात।’ सुभद्र झा एवं तन्त्रानाथ झा( जन्म 22 अगस्त, 1909 - देहावसान 02 मइ,1984)क पारिवारिक पृष्ठभूमि भिन्न छल, अध्ययन एवं अध्यापनक विषय भिन्न छल, स्वभावो भिन्न छलनि तथापि आगिक दाहकता बसातक गति पाबि तेहन ने ताप उत्पन्न कएलक जे पटना विश्वविद्यालयमे मैथिलीक स्वीकृतिक बाटक कतेको ढ़ेङ जरि सुड्डाह भए गेल। प्रतिकूल स्वभाव एवं पृष्ठभूमिक लोकमे एहन समर्पण, निःस्वार्थ मित्र भाव एवं मिलि सामाजिक काज करबाक तत्परताक उदाहरण सर्वथा दुर्लभ अछि। डा.दुर्गानाथ झा ‘श्रीश’ लिखल अछि जे मैथिली साहित्यक सजग प्रहरी सिनेटक सदस्य तन्त्रनाथ झा, अपन अनन्य मित्र डा. सुभद्र झाक संग मैथिलीक स्वीकृतिक सभ कार्यक संयोजन कएल करथि। ओ इहो लिखल अछि जे सुभद्र झाक चतुर-प्रयाससँ तन्त्रानाथ झा सिनेटर निर्वाचित भेल छलाह। से ठीके, जँ डेग-डेग पर डा.सुभद्र झाक सहयोग तन्त्रानाथ झाकेँ नहि भेटल रहितनि तँ विश्वविद्यालयक स्तरपर मैथिलीक मान्यताक हेतु प्रयासरत संग्रामी दलक सफल नेतृत्वक जे श्रेय
हुनका भेटि रहल छनि, से सम्भव नहि होइत। आ तखन मैथिली सूर्पनखाक हाथेँ कहिआ ने झपटा लेल गेल रहितथि।
तन्त्रानाथ झाक अवदान
तन्त्रानाथ झाक अवदानकेँ दू कोटिमे राखि सकैत छी - क.आन्दोलनात्मक एवं ख. साहित्य सर्जना द्वारा मैथिली साहित्यक संवर्धन।
तन्त्रानाथ झाक आन्दोलनात्मक काज मोटामोटी चारि प्रकारक अछि - 1. पटना विश्वविद्यालयक उच्चतर कक्षामे मैथिलीक स्वीकृति, 2. शिक्षक समुदायक लेल संघर्ष, 3. शिक्षाक क्षेत्रामे विकास कार्य- चन्द्रधारी मिथिला कालेजमे विभिन्न विषयक पढ़ाइक आरम्भ होएब तथा सरिसबमे हुनक सत् प्रयाससँ कालेजक स्थापना। तथा, 4. अखिल मैथिली साहित्य परिषदक मन्त्रीक रूपमेँ मैथिली भाषा आ’ साहित्यक प्रचार-प्रसार एवं संवर्धन। सामाजिक संलग्नता, सामाजिक कार्यमे रुचिक ह्रास तथा व्यक्ति केन्द्रित विचार-धाराक प्रमुखताक परिणामसँ कतेको मैथिल वा मैथिलीक प्राध्यापक आ सरकारी एवं गैर-सरकारी सेवामे छोट-पैघ ओहदापर सेवारत लोक ई कहैत-बजैत सुनल जाइत छथि जे हमर काज पढ़ाएब थिक, हमर काज लिखब थिक, हमर काज आन्दोलन करब वा मिथिला, मैथिल, मैथिली करब नहि थिक। तन्त्रानाथ झा एवं सुभद्र झा एहि विचारक नहि छलाह जे मैथिलीक अधिकारक हेतु संघर्ष, प्राप्त
अधिकारक सुरक्षाक तथा अध्यापन वा साहित्य-सर्जना करब पृथक-पृथक वर्गक लोकक दायित्व थिकैक। ओ साहित्य-सर्जना एवं मैथिलीक आन्दोलनमे सक्रियताकेँ एक दोसरक पूरक मानैत छलाह। साहित्य-सर्जना आ जागरण-अभियानमे सक्रिय कांचीनाथ झा ‘किरण’क नाम आदरक संग एही कारणसँ लेल जाइत अछि। आ इएह कारण थिक जे सभ प्रकारक सरकारी मान्यता, सुविधा, प्रोत्साहन एवं सुरक्षाक अछैतो मैथिलीेक प्राध्यापक अथवा मैथिलीक साहित्यकारक सामाजिक स्वीकार्यता सम्प्रति ह्रासोन्मुख अछि। कोंकणीक प्रसिद्ध लेखक, अङरेजीक शिक्षक एवं संघर्षरथी डा. आर.केलकर लिखल अछि जे अपन भाषाकेँ समृद्ध करबा लेल पहिने ओ सभ साहित्य सर्जना कएल, जखन बोली कहि अपमानित कएल जाए लागल तँ भाषाविज्ञानक छात्र भए गेलाह आ जखन शत्रु सभ हुनकर भाषाकेँ समाप्त करबा लेल एवं गोवाकेँ भारतक मानचित्रसँ पोछि देबाक गम्भीर चालि चलल तँ राजनीतिज्ञ बनि गेलाह। मैथिलीकेँ उचित विश्वविद्यालयीय मान्यता लेल व्यूह रचना कएनिहार एवं साहित्य सर्जक तन्त्रानाथ झा एवं सुभद्र झा हमरा लोकनिक आदर्श पुरुष छथि। तन्त्रानाथ झाक व्यक्तित्वसँ प्रेरणा लेबाक थिक जे आजीविकाक विषय भिन्न रहलहुँपर मातृभाषाक सेवामे जँ मातृभाषाक प्रति अनुराग हो, तँ कोनो बाधा-व्यवधान नहि छैक। आओरो किछु उदाहरण अछि। प्रो. हरिमोहन झा पढ़लनि आ पढ़ौलनि दर्शनशास्त्र मुदा लिखलनि मैथिलीमे। डा.जयकान्त मिश्र आ प्रो. उमानाथ झा पढ़लनि आ पढ़ौलनि अङरेजी, मुदा भंडार भरलनि मैथिलीक। प्रो. प्रबोधनारायण सिंह पढ़लनि आ’ पढ़ौलनि हिन्दी, मुदा आजीवन समर्पित रहलाह मैथिलीक लेल। सम्प्रति स्थिति एवं मानसिकता किछु भिन्न अछि। आन विषयक मैथिल प्राध्यापककेँ, अपवाद छोड़ि, मैथिली पढ़बा-लिखबामे अरुचि छनि आ’ अपन मातृभाषामे रचना करब अपन हीनता बुझैत छथि तँ दोसर दिश मैथिलीक कार्यक्रममे आन विषयक प्राध्यापकेँ मंचस्थ वा सक्रिय देखि मैथिलीक प्राध्यापक कन्हुआइ छथि। अर्थशास्त्रक प्राध्यापक तन्त्रानाथ झाक व्यक्तित्व आ’ मातृभाषा-प्रेम अनुकरणीय अछि।
तन्त्रानाथ झाक अवदान - साहित्य-सर्जना
तन्त्रानाथ झाक सर्जनात्मक प्रतिभाक दर्शन बाल्यकालहिमे होअए लागल छल। जकर पृष्ठभूमिमे निश्चिते हुनक
मातृकुलमे पाण्डित्य एवं साहित्य-सर्जनाक सुदीर्घ परम्पराक प्रभाव रहल होएतनि। मुदा, तात्कालिक प्रेरक भेल छलथिन्ह अग्रज आचार्य रमानाथ झा। ओ हुनकहि प्रेरणासँ ‘साहित्य पत्रा’क लेल माइकेल मधसूदन दत्तक ‘मेघनाद बध’क आदर्शपर ‘कीचक बध’क सर्जना कएल। कोनहुँ कविक पहिल कृति उच्च कोटिक कलात्मक एवं प्रयोगशील हो, अवश्य असामान्य प्रतिभाक द्योतक थिक। तन्त्रानाथ झाक मैथिली साहित्यक सेवा गद्य एवं पद्य- दूनू क्षेत्रमे अछि। पद्य साहित्यक अन्तर्गत अछि ‘कीचक बध’ एवं ‘कृष्णचरित’ महाकाव्य, कविता संग्रहमे अछि ‘मंगलपंचाशिका’, ‘नमस्या’ एवं ‘कीर्ण-विकीर्ण’। गद्यमे अछि ‘एकांकी चयनिका’, किछु निबन्ध, ललित निबन्ध, संस्मरण आदि। ओ किछु कथा सेहो लिखल। बाल कथा लिखल। मिथिलाक्षरक प्रचार-प्रसार लेल अपन हाथेँ किछु कथा लिखि, तकरा लिथो कराए प्रकाशित कराओल। एकर महत्त्व कथा-दृष्टिसँ जतेक हो, मिथिलाक सांस्कृतिक सम्पदा, मिथिलाक्षरक संरक्षण एवं प्रचार-प्रसारक दृष्टिसँ अवश्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अछि। ओ ‘कीर्तिलता’ एवं ‘हितोपदेश’क किछु अंशक भाषा अनुवाद एवं ‘हेमलेट,’ ‘मालती-माधव’ एवं ‘रत्नावली’क गद्यमे नाट्यसार लिखि प्रकाशित कएल। एहि सभमे तन्त्रानाथ झाक विलक्षणक गद्यक दर्शन होइत अछि। हिनक अनुसंधान परक निबन्ध, जे अङरेजी वा मैथिलीमे समए-समएपर विभिन्न पत्र-पत्रिकामे छपल अद्यावधि असंकलित अछि। ओहिमे प्रमुख अछि कवि रविनाथकृत सन 1304 सालक रौदीक वर्णन, सन्तकवि रामदास, Vishnu Puri : The Maithil Vaishnav Savant, Adventures of Maithil Pandits (Sachal Mishra and Mohan Mishra)आदि। तन्त्रानाथ झाक रचना साहित्यक विशेषताक चर्चा विस्तारसँ नहि कए मात्र एक दू बिन्दुक प्रसंग सूत्रमे उल्लेख करब-
1. प्रयोगशीलता - तन्त्रानाथ झा प्रयोगशील रचनाकार छलाह। एहिसँ मैथिली साहित्य लाभान्वित भेल अछि।
‘साहित्यपत्रा’मे महाकाव्यक पारम्परिक मानदण्डक आधारपर कविशेखर बदरीनाथ झाक ‘एकावली परिणय’ छपैत छल जे सामान्य पाठकक रसबोध लेल सरल नहि कहल जाएत। सम्भव थिक तन्त्रानाथ झा सामान्य पाठकक स्थिति बूझि गेल होथि। ओ ओही समय एकावली परिणयक भाषा-शिल्पक विपरीत मुक्त-वृत्त एवं सरल भाषामे ‘कीचकबध’ लिखि मैथिलीक मन्दिरमे अर्पित कए मुक्त-वृत्त शिल्पक मैथिलीमे श्रीगणेश कएल। मैथिलीक पाठक समुदाय लेल ‘कीचक बध’क प्रकाशन गुमकीक बाद सिहकी सन सुखद भेल। एहिना ओ सोनेट लिखल। मैथिली कथाक क्षेत्रमे शिल्प सम्बन्धी जड़ता तोड़ने छलाह। प्रो. उमानाथ झा ‘रेखाचित्र’मे संकलित कथाक माध्यमसँ। एक सर्जनात्मक प्रतिभा सम्पन्न कल्पनाशील रचनाकार साहित्यमे आएल जड़ताकेँ तोड़बाक हेतु कथ्यवर्ग एवं शिल्पवर्गमे कोना प्रयोग करैत अछि, तकर उदाहरण थिक तन्त्रानाथ झाक विपुल साहित्य।
2. तन्त्रानाथ झाक साहित्यमे समाजमे व्याप्त कुरीति, आडम्बर, अन्धविश्वासपर प्रहार अछि। एहि प्रहारक शिल्प
व्यंग्यात्मक अछि। ई समस्त साहित्यमे सहज सुलभ अछि। तन्त्रानाथ झाक व्यंग्यक प्रसंग सोमदेवक लिखब समीचीन अछि:
मेना-कोकिल, आ बगरामे जेना तेज अछि बाझ।
व्यंग्यधारसँ पिजा चोँच छथि से तहिना कवि माँझ।4
3. नारी सशक्तीकरण - एही सरिसब गामक सुआसिन चित्रलेखा देवी5 लिखल अछि जे तन्त्रानाथ झा अनेको पोथी
तथा गीत कविता लिखि केँ मैथिल समाजकेँ उठौलनि। तन्त्रानाथ झाक रचनात्मक व्यक्तित्वक प्रसंग एक महिलाक मन्तव्यमे ओहि समाजक प्रसंग तन्त्रानाथ झाक विचार आ सामाजिक स्तरपर हिनक अवदान प्रतिघ्वनित अछि। नारीक सशक्तीकरणक प्रसंग तन्त्रानाथ झाक दृष्टिक उदाहरण भेटैत अछि द्रुपद-सुताक चरित्रांकनमे। कीचकक व्यवहारसँ आतंकित द्रुपद-सुता विचारैत अछि -
‘अबला, भीरु,
की हम द्रुपद-राजकुल पाओल जन्म,
अबला भीरु कहाबए ? क्षत्रिय-केतु पाण्डु-बधू भए,
अबला भीरु कहाए मरब’6।
एहि पृष्ठभूमिमे द्रौपदीक आत्मबल जगैत छैक -‘शाद्र्दूली की कखनहु पाबए त्रास?’ आ तखन आत्मबलसँ
अभिभूत भए गुम्हरैत अछि -
अनल-शिखा-आलिंगन-शील विमूढ़, क्षुद्र पतंग समान होएत जरि भस्म।
तन्त्रानाथ झा मानैत छथि जे स्त्राीगण हमरा लोकनिक संस्कृति ओ सभ्यताक हेतु ‘रक्षणविधान’ काज कएलनि ओ कए रहल छथि। सम्प्रति स्त्री-शिक्षाक प्रसार द्रुत गतिएँ भए रहल अछि जे सामाजिक कल्याणक दृष्टिसँ आवश्यक थिक। कोनो समाज अर्धांशकेँ अशिक्षाक अन्धकार मध्य राखि उन्नतिपथपर अग्रसर नहि भए सकैत अछि।7
डा. सुुभद्र झा
सुभद्र झा अपन अनन्य मित्र तन्त्रनाथ झा जकाँ सौभाग्यशाली नहि छलाह। अन्यथा हुनकहु प्रकाशित-अप्रकाशित
साहित्य आजुक पाठकक लेल सुलभ भए गेल रहैत। हमरा जनैत एकर तीनटा प्रमुख कारण अछि -
1. भाषा-साहित्यक अध्ययन-अध्यापनमे कठिन भाषा विज्ञान सुभद्र झाक कार्य-क्षेत्र छल। दुर्योग एहन जे बिहारक
कोनो विश्वविद्यालयमे स्वतन्त्रा भाषा विज्ञानक विभाग अद्यावधि नहि अछि। एहन कठिन विषय के पढ़त आ पढ़ाओत?
एक भाषा वैज्ञानिकक शिष्यत्व के ग्रहण करत? जँ शिष्ये नहि तँ गुरुक वैदुष्यक प्रचार-प्रसार, स्थापनाक खंडन-मंडन एवं साहित्यक संकलन-प्रकाशन कोना होएत? ओ स्वयं लिखने छथि जे हम ‘आगि’ छी। आगिक प्रयोजन तँ सभकेँ होइत छैक, मुदा पकबाक डरसँ केओ छूबैत नहि अछि, देह-हाथ सेदि कात भए जाइत अछि।
2. सुभद्र झा भाषाविद छलाह, शास्त्र-मर्मज्ञ छलाह। देश-विदेशमे एक भाषाशास्त्रीक रूपमे आदर आ सम्मान
छलनि। मुदा ओ कविता, कथा, नाटक, एकांकी, उपन्यास आदि नहि लिखल। मंचपर जाए अपन हास्य-व्यंग्यक माध्यमसँ लोकक मनोरंजन नहि कएल। विद्वत्जनक बीच आदरक पात्र सुभद्र झा सामान्य पाठकक लोकप्रिय रचनाकार होइतथि कोना? तथा,
3. सुभद्रझा सन कीर्तिपुरुषक संतानमे हुनक कृतिक संरक्षण एवं प्रचार-प्रसारक प्रति अभिरुचिक अभाव अछि।
एहिसँ हिनक प्रकाशित रचना दुर्लभ भए गेल। अप्रकाशित प्रकाशमे नहि आबि सकल अछि।
सुुभद्र झाक कृृति:
संस्कृत, हिन्दी, अङरेजी, फ्रेंच एवं जर्मन भाषाक ज्ञाता सुभद्र झाक पहिल रचना कोन थिक आ से कहिआ छपल
तकर जनतब तँ हमरा नहि अछि। मुदा, हमरा जे हिनक प्रकाशित पहिल रचना देखबाक अवसर भेटल अछि से थिक मिथिला मिहिरक एकसँ बेसी अंकमे प्रकाशित ‘मैथिली भाषाक उत्त्पति’8 विषयक लेख। एहि लेखमे जाहि प्रकारेँ विभिन्न विद्वानक मतक खंडन-मंडनक उपरान्त अपन मत स्थापित कएल अछि, सुभद्र झाक गम्भीर अध्ययनक द्योतक थिक। दोसर थिक ‘मैथिलीमे संख्यावाचक शब्द ओ विशेषण’9। इहो थिक ओही मूल-गोत्रक। एहिसँ ई स्पष्ट अछि जे सुभद्र झाक प्रिय विषय भाषा विज्ञानक अध्ययन छल आ मैथिलीक भाषा वैज्ञानिक विश्लेषण करब हुनक इष्ट छलनि The Formation of The Maithili Language क अनुसार ओ सर्वप्रथम पटना कालेजक डा.ए.बनर्जी शास्त्रीक निर्देशनमे काज आरम्भ कएल। मुदा समाप्त भेलनि डा.सुनीति कुमार चटर्जीक निर्देशनमे।10
सुभद्र झाक रचना दू प्रकारक अछि। पहिल कोटिमे अछि मैथिली भाषा सम्बन्धी अङरेजीमे लिखित साहित्य। एहि
कोटिमे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अछि The Formation of The Maithili Language11 आ The Songs of
Vidyapati.12 The Formation of The Maithili Language हिनक शोध प्रबन्ध थिक जाहिपर पटना
विश्वविद्यालयमे डी.लिट क उपाधि भेटल छलनि तथा The Songs of Vidyapati नेपाल स्रोतक आधारपर विद्यापतिक 262 गीतक संग्रह थिक। एहिमे विद्यापति गीतक भाषा वैज्ञानिक विश्लेषण एवं गीतक अङरेजी अनुवाद अछि। दोसर कोटिमे अबैत अछि मैथिलीमे सम्पादित एवं लिखित पोथी सभ। ‘विद्यापति-गीतसंग्रह’’मे विद्यापतिक 370 गीत अछि। एहि संग्रहक भूमिका लेखक छथि प्रो.आनन्द मिश्र। विदेश यात्रा वर्णनक दू टा पोथी ‘प्रवास जीवन’(1950) एवं ‘यात्रा प्रकरण शतक’(1981) छनि। ओ 27 अगस्त,1946 ई केँ दू वर्षक लेल पटना विश्वविद्यालक अनुदानपर तथा महाराज कामेश्वर सिंहसँ प्राप्त आर्थिक सहयोगसँ उच्च शिक्षा हेतु फ्रांस गेल छलाह। ओतए ओ अर्थवेदक पैप्लाद, आधुनिक भाषा विज्ञान तथा ध्वनि विज्ञानक विशेष अध्ययन कएल।13 ओही यात्राक विलक्षणक वर्णन एहि दूनू पोथीमे अछि। ‘नातिक पत्राक उत्तर’ पत्रात्मक शैलीमे कहि सकैत छी जमाहिर लालक Discovery of Indiaक शैलीमे लिखित पोथी थिक। ओ अनेको जर्मन आ फ्रेंचमे लिखित पोथीक अनुवाद हिन्दी आ’ अङरेजीमे कएने छथि।14 जे जर्मन आ फ्रेंचमे हिनक असाधारण अधिकार देखबैत अछि। मुदा हिनक एहि
विद्वता एवं ज्ञानराशिक फलसँ मैथिली वंचित रहि गेल।
सुुभद्र झाक महत्व:
1. यद्यपि सुभद्र झाक पूर्वहु किछु विदेशी आ किछु भारतीय भाषाविद मैथिली भाषाक अध्ययन प्रस्तुत कएने छलाह।
मुदा, पहिल व्यक्ति भाषाविद डा.सुभद्र झा भेलाह जे एतेक गम्भीरता एवं विस्तारसँ मिथिला भाषाक विश्लेषण कएल जाहिसँ विश्व-भाषाक मानचित्रपर मैथिलीकेँ प्रतिष्ठापित होएबामे भाषावैज्ञानिक आधार भेटल।
2. विद्यापति गीतक भाषा शास्त्राीय विवेचन एवं गीतक अनुवाद अङरेजीमे कए विद्यापति गीतक महत्वकेँ सर्वप्रथम
अन्तरराष्ट्रीय पाठकक समक्ष आनल।
3. मैथिलीक विदेश यात्रा साहित्यक पहिल लेखक छथि सुभद्र झा। सुभद्र झासँ पूर्वहु कतोक मैथिली विदेश यात्रा कएने छल होएताह। पूर्वक अपेक्षा बेसी लोक देश विदेश भ्रमण, उच्च शिक्षा वा आजीविका हेतु जाइत अछि, मुदा डा.जगदीशचन्द्र झाकेँ छोड़ि यात्राक क्रममे प्राप्त अनुभवकेँ मैथिलीमे लिपिबद्ध कए अपन मातृभाषाक यात्रा साहित्यक संवर्धन कएनिहार कम लोक छथि। आ’ सेहो एतेक सूक्ष्मता एवं व्यापक रूपसँ।
4. ‘नातिक पत्रक उत्तर’मे एक इतिहासकार जकाँ, किन्तु सरल भाषा एवं नव ढ़ंगें ओ मैथिलीक स्वीकृति हेतु कएल
गेल आन्दोलन एवं विभिन्न समस्या आदिपर अपन विचार निर्भीकता एवं स्पष्टताक संग प्रस्तुत कएल अछि। एकरा जँ भाषा-आन्दोलनक विचार प्रधान इतिहासक पोथी कही, तँ अत्युक्ति नहि होएत।
5. डा.सुभद्रझा राष्ट्रीय भावना एवं मिथिला, मैथिल एवं मैथिलीक प्रेमसँ ओतप्रोत छलाह। हिनक एहि रूपक दर्शन
‘प्रवास जीवन’ एवं ‘यात्राप्रकरण शतक’सँ होइत अछि। पेरिसमे हिनक वस्त्राभरण देखि दर्शक सभ डा. एस.राधाकृष्णनक समक्षहिमे हिनकहि डा. एस.राधाकृष्णन् बूझि आकर्षित भए गेल छलाह।15
6. प्राच्य विद्याक गम्भीर वेत्ता, भाषाविज्ञानक प्रकाण्ड पण्डित, भाषाविद, सफल अनुवादक, सहजता आ सरलताक
प्रतिमूर्ति, सदिखन अनुसंधानरत शोध-निर्देशक, विद्वानक बीच विद्वान एवं सामान्यक बीच सामान्य, निरअहंकारी डा.सुभद्र झा मिथिलाक सारस्वत परम्पराक एक एहन विभूति छथि जनिक नामहिसँ मैथिल समाज अपनाकेँ गौरवान्वित अनुभव करैत अछि।
अन्तमे कहए चाहब जे आन्दोलनी भाषाविद साहित्यकार डा. सुभद्र झा कविता, कथा, उपन्यास आदि लिखि
मैथिलीक लोकप्रिय लेखक वा मंचासीन भए श्रोता-दर्शकक आकर्षणक केन्द्र भनहि नहि भेल होथि। मुदा, राष्ट्रीय
अन्तरराष्ट्रीय स्तरपर विज्ञजनक बीच जतेक ओ पढ़ल जाइत छथि वा उद्घृत होइत छथि, से किनसाइते मैथिलीक महानसँ महान लेखककेँ सौभाग्य भेल होनि वा होएतनि। ई मात्र डा.सुभद्र झा थिकाह जे मैथिलीक भाषा-वैज्ञानिक विश्लेषण, भाषा विज्ञान सम्मत तथ्यक आधारपर विस्तारसँ कएल एंव मिथिला भाषाक विशेषतासँ लोककेँ परिचित कराओल। मैथिली भारोपीय कुलक एक स्वतन्त्र भाषा थिक, ताहि प्रसंग पर्याप्त सामग्री एवं तर्क विश्व समुदायक समक्ष राखल। आ’ बेर पड़लापर एक नीतिकुशल कूटनीतिज्ञ जकाँ प्रतिकूलहुँ केँ अनुकूल बनाए पटना विश्वविद्यालयमे मैथिलीक स्वीकृति हेतु लोकक सङोर कए अपन मातृभाषा मैथिलीक हित-साधनमे सहायक भेलाह।
1. तन्त्रनाथ झा अभिनन्दन ग्रन्थ,1980, पृ.सं.84
2. तन्त्रानाथ झा अभिनन्दन ग्रन्थ, 1980, पृ.सं. 12, डा.दुर्गानाथ झा ‘श्रीश’
3. Our language was the symbol of our identity and we took to writing in this language so as to serve in its progress.When
our language was insulted as being only a dialect, we turned to be students of linguistics.When finally our enemies
made serious attempts to wipe out the language and very place of origin, Goa from the political map of India, then we
turned to be politicians. -Planning for the Survival of Konkani. - Dr.R. Kelkar, Goals and Strategies of Development of
Indian Languages,1998, CIIL Mysore./2
.............................
४.सोमदेव- तन्त्रनाथ झा अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ.सं.१४५
5. चित्रालेखा देवी, अवोधनाथ, 2008 पृ. सं. 5
6. कीचक बध, चारिम सर्ग, तन्त्रानाथ झा अनुपम कृति, पृ.सं. 68,
7. तन्त्रानाथ झा अनुपम कृति, 2004, झा, पृ.सं. 525, 8. मिथिला मिहिर, 06 नवम्बर, 1936
9. भारती,अप्रैल, 1937.
10. The Formation of The Maithili Language, Preface, Luzac & Company , Ltd, London,1958
11. The Formation of the Maithili language is a brilliant contribution to scientific analysis of the Maithili language, which
is spoken by about 2 crores people of Nepal and India. This Maithili language has been the literary vehicle of the
Vaisnava poets of Bengal, Assam and Orissa and has inspired the poets of Bengal from Chandidasa upto Rabindranath
Tagore. Maithili is from political point of view to be included in the dialects of Hindi, while linguistically it stands in
between Bengali and Hindi and is different from both especially on account of each verb forms. It has its own structural
form, although it is an Indo-Aryan language, its special features make it different from each of the literary modern
Indian languages.- Luzac & Company , Ltd, London,1958- www. Vedicbooks.net
12. The Songs of Vidyapti, 1954, Motilal Banarsi Dass, Vanarasi
14.(i).Grammar of the Prakrit Language by R.Pischal - Translator- Subhadra Jha, (ii).History of Indian Literature by
M.Winternitz- Transator- Subhadra Jha- Bhartiya Sahitya ka Itihas, (iii).The Abhidharmakosa of Vasubandu Chapter I
& II with commentary Annoted and rendered into French from Chinese - translated into English by Subhadra Jha -
K.P.Jayaswal, Patna, 4. A Descriptive Catologue of The Sanskrit Manuscripts-338 pages, 5. A Descriprtive Catologue
of The Sanskrit Manuscripts-362 pages etc.
@5
15. यात्रा प्रकरण शतक, 1981, मैथिली अकादमी, पृ.सं.62 - श्रीराधाकृष्णन्के ँविशुद्ध साहेबी ठाठमे बैसल देखल, ओ माथ पर मुरेट्ठा सेहो
नहि बन्हने रहथि। प्रदर्शनी देखि जाहि बड़कीटा बेंचक एक छोरपर राधाकृष्णन् बैसल रहथि तकर दोसर छोरपर हम आ’ मनकूर बैसि गेलहुँ।
हम मिरजइ आ’ धोतीमे रही। ते ,ँ जे आगन्तुक राधाकृष्णन् के ँ चिन्हैत रहन्हि से हुनका लग जाए भारत, भारतक सभ्यता आदिक विषयक
चर्चा हुनकासँ करए आ’ जे हुनका नहि चिन्हैत रहैन्हि, से हमरे वेष-भूषाक आधार पर हमरे राधाकृष्णन् बूझि ओहि प्रसंग चर्चा करए। परिणाम
ई भेलैक जे हुनका लग सात वा आठ व्यक्ति मात्रा रहलैन्हि मुदा हमरा तीन दिशासँ पचासक अन्दाज लोक घेरि लेल। आ’ हमहुँ ककरो भान
नहि होअए दिऐक जे हम राधाकृष्णन् नहि छी।
16. Bachcha Thakur- Subhadra Jha - 'Close to nature, people till his very last - 'A vibrant intellectual in the midst of
intellectuals, an ordinary man in the midst of the ordinary , a Maithil Brahmin in the midst of of his castemen, a
casteless figure in the midst of the men of the cross-sections of the society, a progressive in the midst of progressives,
a leftist in the midst of rightists, Dr.Jha epitomised the vast vistas of divergent crosss-currents in him with oceanic calm
and poise.' - The Indian Nation, Patna, 22 May, 2000.
ऋृषि वशिष्ठ
प्रकाशित कृति- जे हारय से नाक कटाबय (बाल साहित्य), कोढ़ियाघर स्वाहा (बाल साहित्य), झुठपकड़ा मशीन (बाल साहित्य), मैथिली धारावाहिकक कथा, पटकथा आ संवाद लेखन। एकर अतिरिक्त कथा आ व्यंग्य पत्र-पत्रिकामे प्रकाशित। पता- तेजगंगाधाम, परिहारपुर, मधुबनी-847235
जुआनी जिन्दाबाद
सगरो टोलमे एक्कहि बातक चर्च-बर्च छलैक। बुढ़-बुढ़ानुस सभ साँझक चारि बजबाक बाट तकैत छलाह। सबहक मूँहे एक्के बात- ‘‘लाख छै तेँ कि, देखहक काली-बाबुक बेटाकेँ। एखनुको समएमे सरबन पूत होइ छै की !’’ कियो-कियो इहो कहैत छलै जे- ‘‘बाबू, काली बाबू बड्ड कष्टेँ बेटाकेँ इंजीनियर बनौने छथि।’’
-‘‘से तँ ठीके, मुदा आइ काल्हि ई कष्ट ककरो-ककरो सार्थक होइ छै ! आ से काली बाबूकेँ भेलनि।’’
यैह गर्मीक समए छिऐ। परुकाँ साल कालीबाबूकेँ दू-बेर मासे दिनपर हार्ट एटैक भऽ गेल छलनि। सगरो गामक लोक कहैत छलै जे आब हिनकर बाँचब मोस्किल छनि। आ स्थिति छलनिहों तेहने। दोसर बेरक हार्ट एटैकक खबरि जखने कालीबाबुक बेटा नबोनाथकेँ लगलनि तँ ओ तुरत अमेरिकासँ अपना गाम आपस आबि गेलाह। गाम आबि ओ कालीबाबुक हालत देखलनि। ओ अपना संग कालीबाबूकेँ अमेरिका लऽ जेबाक तैयारी कएलनि। पहिने तँ कालीबाबू तैयारे नहि होइत छलाह मुदा बुझा-सुझाकए नबो तैयार केलनि। नबो तँ चाहैत छलाह जे माइयो संग चलए। ओ मुदा एक्कहि ठाम कहि देलखिन जे- ‘‘हमरा लऽ जेबाक जिद्द करबह तँ हम माहुर खा लेब। हम बिलेँत जा कऽ एको दिन जीबि नहि सकै छी।’’
सभ कागज-पत्तर तैयार कऽ नबो अपन पिताक संग अमेरिका जेबाक तैयारीपर छलाह। टोल-पड़ोसक लोकक कहब छलै जे- ’’आब बेकारे बुढ़ाकेँ लऽ जेबहुन। आब अबस्थो भेलनि। साठि टपि गेलनि तँ आब की !’’
कालीबाबुक छोट भाए तँ रुष्ट भऽ कऽ एतेक तक कहि देने छलखिन जे- ‘‘अमेरिकासँ हमर भाए-साहेब घुमि कऽ औताह से उमेद त्यागिये कऽ लथु।’’
इंजीनियर नबोनाथ सभकेँ बुझेबाक प्रयास करैत छलाह। माइ पर्यन्त सदिखन कनैत रहैत छलीह। कालीबाबू चुप्पचाप सभटा तमाशा देखैत छलाह। नबोनाथक माइ ई कखनो नहि कहैत छलखिन जे बाबूकेँ नै लऽ जाहून। हुनका एहि बातक विश्वास छलनि जे कालीबाबू अमेरिका जा कऽ ठीक भऽ जेताह।
जेना-तेना इंजीनियर साहेब कालीबाबूकेँ लऽ कऽ अमेरिका चल गेलाह। साल भरि बीत गेल अछि। एहि बीचमे रंग-बिरंगक समाचार आएल गेल। आइ वर्ष दिनपर कालीबाबू आपस आबि रहल छथि। कालीबाबूकेँ नबका हार्ट लगाओल गेलनिहेँ, से सभकेँ बुझल छैक। सबहक मोनमे विभिन्न तरहक जिज्ञासा छैक। कियो कहै जे- ‘‘अमेरिका जए कऽ की भेलनि ! रोगीक रोगिये रहि गेलाह ! कहाँदन दोसराक हार्ट लगाओल गेलनिहेँ।’’
‘‘आब तँ आर अपस्थक भऽ गेल हेताह। अनेरे बुढ़ारीमे गंजन। कहू तँ बेकारे ने चीड़-फाड़ करौलनि।’’
समए बितैत कतेक देरी। चारि बाजि गेल। बारह बजे पटनामे हवाइ जहाज अएबाक समए छलै। पटनासँ अएबामे बेसीसँ बेसी चारि घंटा। आब जइ घड़ी जे क्षण ने अएलाह। सड़कपर अबैत सभ गाड़ीकेँ सभ ठिकियबैत छल।
‘‘यैह आबिये गेलाह।’’
....मुदा ओ गाड़ी सुर्र...र्र.............दऽ आगाँ बढ़ि गेल।
कालीबाबुक दलानसँ कनिके दूर चौराहा छलै। चौराहापर विशाल पिपरक गाछ आ सड़कक काते-कात चाह-पानक दोकान। गाछक छाँहमे बैसल बच्चा किशोर आ बुढ़-बुढ़ानुस तँ सहजहिँ। खास कऽ सभकेँ कालीबाबुक प्रति बेसिये जिज्ञासा छलनि।
‘‘केहेन भेल हेताह? साफे बदलि गेल हेताह कि ओहने हेताह! ककरो चिन्हबो करताह कि नै?’’
‘‘जे जत्तहि सुनलक आगवानीमे पहुँचि गेल। कालीबाबुक दरवज्जापर एखनो भम्ह पड़ैत छनि मुदा एतए भीड़ जूटल अछि। पुरुष-पातकेँ गामपर नै रहने यैह दशा होइत छैक। भरि ठेहुन कऽ घास जनमि गेल छनि। सभ अही बातक चर्च करैत छल। मोन मुदा सबहक टाँगल छलै पच्छिम भरसँ आबएबला चारिपहिया वाहनपर। कालीबाबु प्राथमिक विद्यालयमे शिक्षक पदसँ रिटायर भेल छलाह। ठेंठ देहाती लोक। कोनो आधुनिकताक हवा नहि लागल छलनि। ओ वर्ष दिन अमेरिकामे कोना रहल हेताह। सभ यैह बात सोचैत छल। नबोक माइ कोनटा परसँ हुल्की मारि जाइत छलीह।
......यैह, लालरंगक चारिपहिया वाहन आबि कऽ रुकल। पीपर तरक भीड़ कालीबाबुुक दरवज्जापर पहुँचल। कियो दौड़ैत, कियो झटकैत आ कियो घिसियाइत। गाड़ीक आगाँक गेट खुजल। इंजीनियर नबोनाथ उतरलाह। आँखि परक करिया चश्माकेँ माथपर चढ़बैत हाथ जोड़ि सभकेँ प्रणाम केलनि आ पछिला गेट खोललनि। भीड़मे जूटल वृद्ध सभकेँ जेना साँस रुकि गेल छलनि। गेट खूजल.....। ..........अचरज! भारी अचरज!! कालीबाबू सूट-बूट पहिरने छलाह। करिया जिन्स आ लाल रंगक फोटो बनल टी शर्ट। आँखिपर करिया चश्मा। बेस चिक्कन-चाक्कन मूँह-कान। खूब निरोग। हाथमे गिटार लेने उतरलाह। बुढ़ सभ देखि कऽ अचरजमे पड़ि गेलाह।
‘‘देखहक हौ, ई की छनि कालीबाबूकेँ?’’
‘‘सारंगी लेलनिहेँ।’’
‘‘गुदरिया भऽ गेलाह-ए की?’’
‘‘वाह रे वाह! यैह भेलै बुढ़ारीमे घी ढारी।’’
इंजीनियर साहेब टिका-टिप्पणी सुनलनि। ओ हँसैत बजलाह- ‘‘बाबू जीकेँ अस्पतालमे पड़ल-पड़ल अकच्छ लगैत छलनि। असलमे डाॅक्टर हिना पुछलखिन जे आहाँकेँ सभसँ बेसी रुचि कथीमे आछि? संगीत पढ़ाइमे आकि आन कोनो काजमे! बाबूजी कहलखिन- ‘‘रंगीतमे। सेहो संगीत गाबए आ बजाबएमे। गाएब तँ मना छनि मुदा बजेबाक लेल गिटार डाॅक्टर देबाक अनुमति देलनि।’’
एतबा कालमे तँ कालीबाबू एक हाथमे गिटार लेने आ दोसर हाथ माथमे सटबैत नमस्कार केलनि। किछु बुढ़ हँसि कऽ मूँह घुमा लेलनि आ हँसैत नजरिसँ नजरि मिलबैत रहलाह। कालीबाबू डेगाडेगी दैत नाचए लगलाह आ गिटारपर बेसुरा टुम टाम करए लगलाह।
राजधर बुढ़ाकेँ नै रहल गेलनि। ओ व्यंग्य करैत बजलाह- ‘‘ई तँ कीदन भऽ गेलाह हौ इंजीनियर। चौबे चलला छब्बे बनए आ दुब्बे बनल अएलाह। अँइ हौ, ई तँ काली बताह भऽ गेलह-ए?’’
इंजीनियर साहेब सहज भऽ बजलाह- ‘‘असलमे बाबा, ओतुक्का तँ एहने माहौल छै किने।’’
‘‘हैइ, किछु रहौ। ई तँ साफे पगलेठ जकाँ करै छै। जीवन भरि एतए रहलै तँ किछु नै आ एक बर्खमे ओतुक्का सबार भऽ जेतै?’’
गाड़ीबला सामान सभ उतारि कऽ विदा भऽ गेल। गाड़ी कनेक आगाँ बढ़ल। कालीबाबू मूँहकेँ गोल करैत सीटी बजबैत ड्राइवरकेँ बाॅइ.....बाॅइ केलनि। कोनटापर ठाढ़ भेल अपन पत्नीकेँ जखने देखलनि कि फेर मूँह चुकरियबैत सीटी बजौलनि.......‘हू......हूँ.......उ..... ’’ ’ओ बेचारी लजाइत कोनटापर सँ पड़ेेलीह। लोक सभ तमाशा देखि अपना घर दिस कऽ विदा होबए लागल। कालीबाबू फेर ओहिना सीटी बजबैत हाथ हिलबैत रहलाह।
भीड़ तँ उसरि गेल मुदा लोकक मोनमे चैन नहि भेलै। एतए ओतए सगरो कालियेबाबुक चर्च। कियो बताह कहए तँ कियो घताह। एक्के बरखमे लोक एना कऽ बदलतै। ओहिठाम तँ हुनकर बेटो छनि। ओ तँ दसो सालसँ अमेरिकामे रहए छै। कहाँ कोनो चालि-ढालि बदललैए ! राजधर बुढ़ा अपना मंडलमे घोषणा करैत बजलाह- ‘‘नबो इंजीनियरकेँ नीकक काज होइ तँ बापकेँ कोनो माथाबला डाॅक्टरसँ देखबौक।’’
रंग-विरंगक टिका-टिप्पणी होइत रहल। देखलाहा दृश्य राति भरि लोकक सोझाँ ओहिना नचैत रहलै। कथीलए ककरो निन्नो हेतइ।
कालीबाबुक रातिक निन्न तँ अमेरिकेमे छुटि गेलनि। ओ राति भरि कछमछ करैत आ गिटारकेँ टुनटुनबैत रहि गेलाह।
भोरे-भोरे कालीबाबुक दलानक सोझाँमे फेर भीड़ जुटि गेल। एहन अनर्गल काज काली बाबुक नै होइतनि जँ माथ ठीक रहितनि। ओ अपना कहलमे नै रहलाह। सबहक निष्कर्ष एक्कहिटा।
गर्मीक समए छलै। कालीबाबू भोरे-भोरे गंजी आ ठेहुन धरिक पैंट पहिरने, डाँड़ झुकलाहा सन अवस्थामे, माथक केश मेहदीसँ राँगल। ओ चौकीपर ठाढ़ गिटार बजेबामे अपसियाँत छलाह। मूँहक आकृति रंग-विरंगक भऽ रहल छलनि। गिटारक अवाज साफे बेसुरा। एहन उन्मत्त भऽ बजेनाइ नहि देखल-ए। देखलासँ कोनो प्रवीण गिटारवादक लगैत छलाह मुदा सुनलापर साफे अनारी। राजधर बुढ़ाकेँ कालीबाबुक बेस चिन्ता छलनि। ओ चिन्तित सन मुद्रामे बजलाह- ‘‘एहेन कोन पागलपन भेलै? कहह तँ जे काली कहियो नचारियो नहि गौलक तकरा ई बजेबाक कोन भूत सवार भऽ गेलइ।’’
नबोनाथ जेम्हरे निकलथि सभ बाबूक हालचाल पुछनि।
‘‘केहन छथि? आब नीक जकाँ रहए छथि कि ओहिना सारंगी लऽ कऽ नचै छथि?’’
कतेक कऽ की जबाब देथिन। सबहक कहब आ अपनो तँ देखिये रहल छलाह। नबो कालीबाबूकेँ मानसिक रोग विशेषज्ञसँ इलाज प्रारंभ केलनि। डाॅक्टर समूचा जाँच-पड़तालसँ मानसिक रोगक लक्षण नहि पौलनि। आब तँ मामला आरो ओझराएल जा रहल छल। इंजीनियर साहेब कऽ टपाक दऽ कहा गेलनि जे- ‘‘असलमे एहन सभ चालि-चलन आ व्यवहार हृदय प्रत्यारोपनक बाद भेलनिहेँ।’’
डाॅक्टर साहेब गंभीर अनुसंधानमे लगलाह। कालीबाबूकेँ जखन-तखन डाॅक्टर ओहिठाम बजाहटि होबए लागल।
समए बितैत गेल। साँझक समए रहए। डाॅक्टर नर्सिग होममे मानसिक रोगी सभ भरल छलइ। रंग-विरंगक उटपटाँग हरकैत सभ भऽ रहल छलै। डाॅक्टर साहेब गंभीर भेल कुर्सीपर बैसल छलाह आ टेबुलपर राखल कागज सभकेँ उनटबैत छलाह। सामनेक कुर्सीपर कालीबाबू उत्सुक सन मुद्रामे बैसल छलाह। आ बामा कात इंजीनियर नबोनाथ चौंकल सन मुद्रामे छलाह। डाॅक्टर की कहथिन की नइ!
डाॅक्टर साहेब सभ कागजकेँ पसारैत अपन लैप-टापकेँ आसस्तेसँ दबाबए लगलाह- ‘‘इंजीनियर साहेब, हम एहि केसक गंभीर अनुसंधान केलहुँ अछि संगहि सभटा सबूत जमा केलहुँ अछि।’’
इंजीनियर साहेब चौचंग भेलाह।
‘‘अहाँक पिताजीकेँ जे हृदय प्रत्यारोपित कैल गेल ओ वस्तुतः एकटा एक्कैस वर्षक मशहुर पाॅप गायकक हृदय छैक। ओ बेचारा एकटा दुर्घटनामे मारल गेल आ ओकर दान कएल हृदय आइ अहाँक पिताकेँ जीवन देने छनि।’’
‘‘मुदा’’- इंजीनियर साहेब उत्साहमे बजलाह।
- ‘‘हँ, इंजीनियर साहेब। कोशिकामे स्वभावक याददाश्त रहैत छैक।...... आ यैह कारण अछि जे ई रहि-रहि कऽ संगीतक पाछाँ बेहाल भऽ उठै छथि। एहि तथ्यकेँ युनिवर्सिटी आॅफ एरिजोना सेहो सिद्ध करैत अछि। ई युनिवर्सिटी अंग प्रत्यारोपनक कतेको मामिलापर शोध कऽ चुकल अछि।’’
डाॅक्टर साहेब आँगुरसँ लैपटाॅपक स्क्रीन दिस इशारा करैत बजलाह- ‘‘हे, देखियौ ने ! आब कोनो काज कठिन छैक? अहीठाम बैसले-बैसले सभटा शोधक जानकारी लऽ लिअ।’’
इंजीनियर साहेब झुकि कऽ लैपटाॅप दिशि तकैत बजलाह- ‘‘एकर मतलब आब बाबूजी अहिना रहि जेता?’’
डाॅक्टर हँमे मूड़ी डोलबैत बजलाह- ‘‘हूँ! कलाकारक जुआनी अवस्था छलैक ने! ओ तँ औनाहटि उचिते छैक।’’
कालीबाबू पीठपर टाँगल गिटार उतारलनि। खोलसँ बहार केलनि आ थैया-थैया...... दिग् दिग थैयाा करैत गिटार बजेबामे लीन भऽ गेलाह।
शिवशंकर श्रीनिवास
(मिथिलाक लोक-कथापर आधारित बाल कथा)
पण्डित ओ हुनक पुत्र
नैनापुर गाममे एकटा पण्डित रहथि। नाम रहनि- बौआ चौधरी। नैनापुर टोलक विद्यालयक ओ प्रधान गुरुजी रहथि। सभ हुनका बड़का गुरुजी कहनि। बड़का गुरुजीक पण्डिताइक सोरहा ओहि समयमे देश-विदेशमे छल। ओहि समएक प्रसिद्ध युवा विद्वान् मे बेसी गोटे हुनके शिष्य रहथि। देश-विदेशक लोक हुनका लग शास्त्रक गप्प बूझऽ अबैत छलाह। किन्तु बड़का गुरुजी रहथि बड़ क्रोधी, से सभ जनैत छल। क्रोध छोड़ि हुनकामे सभ टा गुणे रहनि। किन्तु हुनक क्रोधक चर्चा सभ करए।
बड़का गुरुजीक एक मात्र संतानमे बेटा, नाम रहै धनंजय।
धनंजय बड़ तेजस्वी रहय। लोक कहै धनंजय अयाची मिश्रक बेटा शंकरक दोसर अवतार छी। धनंजय बारहे-तेरह वर्षक उम्रमे बड़का विद्वान् भऽ गेल। इलाकाक लोक कहऽ लगलै- जेहने गुणमन्त बाप तेहने बेटा। किन्तु धनंजय उदास रहैत छल कारण जे बाप कहिओ नीक भाखा नहि कहथिन। ई कोनो विषयमे कतबो अंक आनय, परीक्षामे प्रथम घोषित होअए, कठिनसँ कठिन शास्त्रार्थ जीति कऽ आबय आ सोचय जे एहि बेर बाबू अवश्य प्रसन्न भऽ किछु कहता, किन्तु बाबू ओहिना धीर-गंभीर, किछु नहि कहलथिन। धनंजय अपन पिताक मुखसँ नीक गप्प सुनबाक लेल वा कोनो वाहवाहीक शब्द सुनबाक लेल ओहिना तरसय जेना उपासल पानि लेल तरसैत अछि। ओना बड़का-बड़का विद्वान् प्रशंसा करथिन, कतेको प्रसिद्ध विद्वान् हृदएसँ लगबथिन किन्तु पिताक मुँहसँ प्रशंसा सुनबाक हेतु मन रकटले रहै।
अठारह वर्षक उम्रमे धनंजय न्याय शास्त्रक एहन पोथी लिखलक जे सर्वत्र चर्चामे आबि गेल।
धनंजय अपन पोथी पढ़बाक लेल पिताकेँ देलक, किन्तु ओ पढ़ि घुमा देलथिन, किन्तु किछु कहलथिन नहि।
एक दिन धनंजय साहस कऽ केँ पिताकेँ पुछलक- “बाबू, पोथी पढ़ि अहाँ किछु सम्मति नहि देलहुँ।”
“थोड़े आर परिश्रम करू।” कहि पिता गंभीर भऽ गेलथिन।
धनंजयकेँ पिताक गप्प बहुत अधलाह लगलै, ततबे नहि, मनमे घोर प्रतिक्रिया भेलै। सोचलक- “ई हमर शत्रु छथि, जावत जीता तावत हमर यश-प्रतिष्ठासँ जरैत रहताह, कहिओ प्रशंसा नहि करताह।” से सोचैत-सोचैत बुझू बताह भऽ गेल। मनेमन निर्णय कएलक जे आइ रातिमे जखन ओ भोजन कऽ आङनसँ बहरेता तँ खर्गसँ गरदनि काटि पड़ा जाएब। अन्हरिया छैके केओ ने देखत।
दिन बीतल, साँझ भेलै आ तकर बाद राति। बड़का गुरुजी भोजन कऽ रहल छलाह, आगूमे पत्नी अंजनी बैसलि छलथिन। आ इम्हर धनंजय खर्ग लऽ कऽ ठाढ़ छल जे भोजन कऽ कोनटा लग औताह कि काटि कऽ पड़ा जाएब।
अंजनी कहलथिन- “धनंजयक पोथीक सुनै छी बड़ चर्चा छै।”
“हूँ”- पत्नीक गप्पपर बड़का गुरुजी बजलाह।
“एकटा बात कहू, तमसायब तँ नहि।” अंजनी अपन क्रोधी पति बड़का गुरुजीकेँ पुछलनि।
“कहू ने”- गुरुजी पुछलथिन।
“पहिने कहू जे तामस नहि करब।”
“अच्छा नहि करब, पूछू।”
“अहाँ धनंजयपर तमसाय किएक रहै छियनि? ”
“तमसाय किएक रहबनि? ”
“अहाँ आइ तक हुनकर प्रशंसा कयलियनि? ” पत्नी गप्पपर बड़का गुरुजी बहुत हँसलाह आ कहलथिन- “अहाँ नहि बुझै छिऐ।”
“हम बुझै छिऐ, ओ अहाँकेँ नहि सोहाइ छथि।”
“के एहन अभागल होएत जकरा बेटा नहि सोहेतै? बेटे एकटा एहन होइ छै, जकरा लोक अपनासँ पैघ देखऽ चाहैए।”- गुरुजी बजलाह।
ताहिपर पत्नी पुछलथिन- “कहू तँ अहाँक बेटा केहन पण्डित छथि? ”
“बहुत पैघ पण्डित छथि। हमरासँ बहुत आगू बढ़ि गेलाह।” गुरुजी बहुत आनन्दमे अंजनीकेँ कहलनि।
ओहिना आनन्दसँ आनन्द लैत अंजनी पुछलथिन- “ओ पोथी जे लिखलनि से केहन छै? ”
“बहुत उत्तम, हम कएटा बात ओहि पोथीसँ जनलहुँ अछि, बूझू गदगद छी। धनंजय पुत्रे नहि, पुत्र रत्न थिकाह।”
“तखन हुनकर प्रशंसा किएक ने करै छियनि?”
पुनः पत्नीक गप्पपर भभा कऽ हँसैत गुरुजी कहलथिन- “बुझलहुँ, हम हुनकर बाप छियनि, प्रशंसा करबनि तँ घमण्ड भऽ जयतनि आ तखन विकास रुकि जयतनि।”
“सुनू, हम अहाँक स्त्री छी। अहाँ जहिया हमर काजक प्रशंसा करै छी तहिया हम आरो नीकसँ काज करै छी। आ जहिया कोनोपर बिगड़ै छी तकर बाद आरो काज गड़बड़ा जाइए, ताहिपर अहाँ ध्यान देलिऐ? ”
“हूँ...।” कहि पत्नीक गप्पपर गुरुजी गंभीर होइत पुछलनि- “अहाँ आइ ई सभ किए पुछैत छी? ”
“अहाँ धनंजयकेँ पोथी दैत कहलियनि जे आर परिश्रम करू, से हुनका नीक नहि लगलनि।
“अहाँ कोना बुझलहुँ? ”
“हम माय छिऐ, हम ओतबो नहि बुझबै। तखनसँ हुनक माथ ठीक नहि बुझाइए।”
“ओ ज्ञानी छथि, हुनका हमर बातक कतहु क्रोध होइन? ”
“तखन अहाँकेँ क्रोध किए होइए? अहूँ तँ ज्ञानी छी।”
“हँ, से...।” पत्नी गप्पकेँ स्वीकारैत गुरुजी सोचैत भोजन करऽ लगलाह। मने-मन सोचलनि अंजनी ठीक कहैत छथिन।
ओम्हर कोनटाक अन्हारमे ठाढ़ गप्प सुनैत धनंजयक हालत विचित्र भऽ गेलै- “ओ एहन महान पिताक हत्याक लेल ठाढ़ अछि? ओ वस्तुतः पण्डित नहि मूर्ख अछि।” सोचैत धनंजय कानऽ लागल।
भोजन समाप्त कऽ गुरुजी ओसारापर सँ उतरि अङना अएलाह आकि धनंजय पएरपर खसि कनैत कहलक- बाबू हम बिना विचार कएने अहाँक हत्या कऽ दैतहुँ। हम बताह छी। हम मूर्ख छी। पातकी छी।”
“नहि धनंजय, अहाँ हमर हत्या करऽ लेल छलहुँ से बात नुका सकै छलहुँ, किन्तु अहाँ सत्यकेँ नुकेलहुँ नहि। अहाँ सत्यकेँ समक्ष अनबामे डरेलहुँ नहि। अहाँ वस्तुतः पण्डित छी।”
“नहि बाबू। हम क्रोधमे रही। अहाँक हत्या करब सोचलहुँ, तकर प्रायश्चित? ”
“प्रायश्चित् भऽ गेल।”
“से कोना? ”
“सत्यक खुलासासँ। आँखिक नोरसँ।”
“किन्तु बाबू? ”
“बेटा धनंजय, आइ अहाँक प्रसङसँ हमहूँ किछु सिखलहुँ।”
“बाबू!”
“जावत क्रोध रहत तावत ज्ञान हँटल रहत। हम सभ दिन विद्या सिखलहुँ आ सिखौलहुँ किन्तु हमरामे क्रोधक स्वभाव रहबे कएल आ...। ”
“आ की बाबू? ”
“सभकेँ, जे काज करए ओकरा प्रोत्साहन दीऐ। आ कोनो बात केओ कहए वा नहि कहए, दुनू स्थितिमे सोची, से नहि कएने अहाँ सन ज्ञानी बापकेँ मारब सोचैत अछि। ”
३. पद्य
३.१. कालीकांत झा "बुच" 1934-2009- आगाँ
३.२.१. श्री काली नाथ ठाकुर-सून मिथिलाञ्चल…..। २.एकइसम सदीक नाम-प्रेम विदेह ललन ३. विनीत ठाकुर- जाढ़
३.३.१.पूर्णियाँ कवि स्व. प्रशान्तक कविता २. सुदिप कुमार झा-दूटा रचना
३.४.१.एक भुम जोड़ एक सत्य् बराबर दू क्षण- अयोध्यामनाथ चौधरी २. हमर माय- डॉ. शेफालिका वर्मा ३.नवका साल, पुरने हाल ! धीरेन्द्र प्रेमर्षि
३.५.१. सतीश चन्द्र झा २.मधेशक आवाज-वौएलाल साह ३.हिमांशु चौधरी -पाथर ४. -क्षणिका-प्रशांत मिश्र-हड़ाहि
३.६.१. अरविन्द ठाकुर-गजल २. महेन्द्र कुमार मिश्र-पद्य ३.इन्कपलाव सुरेन्द्रव लाभ
३.७. शिव कुमार झा-किछु पद्य
३.८.१. कुमार पवन-नहि बिसरैछ/ काल्हि तँ रवि छै २. रोशन जनकपुरी-चप्ा्ाथरल आ सड़क ३.ओम कुमार झा-थर-थर कापिँ रहल छौ तोहर पयर ४. राजदेव मंडल-कविता
स्व.कालीकान्त झा "बुच"
कालीकांत झा "बुच" 1934-2009
हिनक जन्म, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक कर्मभूमि समस्तीपुर जिलाक करियन ग्राममे 1934 ई0 मे भेलनि । पिता स्व0 पंडित राजकिशोर झा गामक मध्य विद्यालयक
प्रथम प्रधानाध्यापक छलाह। माता स्व0 कला देवी गृहिणी छलीह। अंतरस्नातक समस्तीपुर कॉलेज, समस्तीपुरसँ कयलाक पश्चात बिहार सरकारक प्रखंड कर्मचारीक रूपमे सेवा प्रारंभ कयलनि। बालहिं कालसँ कविता लेखनमे विशेष रूचि छल । मैथिली पत्रिका- मिथिला मिहिर, माटि- पानि, भाखा तथा मैथिली अकादमी पटना द्वारा प्रकाशित पत्रिकामे समय - समयपर हिनक रचना प्रकाशित होइत रहलनि। जीवनक विविध विधाकेँ अपन कविता एवं गीत प्रस्तुत कयलनि। साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित मैथिली कथाक इतिहास (संपादक डाॅ0 बासुकीनाथ झा )मे हास्य कथाकारक सूची मे, डाॅ0 विद्यापति झा हिनक रचना ‘‘धर्म शास्त्राचार्य"क उल्लेख कयलनि । मैथिली एकादमी पटना एवं मिथिला मिहिर द्वारा समय-समयपर हिनका प्रशंसा पत्र भेजल जाइत छल । श्रृंगार रस एवं हास्य रसक संग-संग विचारमूलक कविताक रचना सेहो कयलनि । डाॅ0 दुर्गानाथ झा श्रीश संकलित मैथिली साहित्यक इतिहासमे कविक रूपमे हिनक उल्लेख कएल गेल अछि |
!! शिव शक्ति पूजन !!
उमा संग शंकर केॅ पुजबनि पागल प्रेम मगनमा ।
गंगा जल भरि भार चढ़यबनि लेप देवेनि चंदनमा ।।
आक धतूर बेल पातक संग सजि - सजि सुभग सुमनमा,
दारूण दुर्दिन दीप जरा कऽ दुःखक धूप धुमनमा ।
उमा संग ................................................................... ।।
अक्षत छीटि दूभि सॅ झपवनि सुन्नर गोर बदनमा,
नीलकंठ केॅ भोग लगयबनि अमरित कनमा - कनमा ।
उमा संग ................................................................... ।।
श्रद्धा सागरक बीच विश्वासक राखब मेरू मथनमा,
केशर कुमकुम कस्तूरी सॅ गमका देबेनि भवनमा ।
उमा संग ................................................................... ।।
छम-छम नाचि नचारी सुनयबनि माॅ गौरी क अंगनमा,
आशुतोष तैयो नहि ढ़रता तऽ खसि पड़ब चरणनमा ।
उमा संग ................................................................... ।।
!! विरहिनी !!
रहि - रहि कऽ अहॅक लेल देह फेर धयलहुॅ अछि,
लागल अहींक एक ध्यान,
आऊ-आऊ रूसल हमर भगवान ।
सहलहुॅ कतेको हम जन्मक असहय ज्वाल,
कहुना वितयलहुॅ अछि मरणक बहु अंतराल,
मधुवन मे हे मोहन आइ हमर अवसर अछि,
राखि लियऽ राधिका केर मान ।
आऊ............................................................... ।।
वृन्दावन कुहरैछ यमुना कनैछ हाय,
गोदावरी आॅचर तर छाती हहरैछ आय ।
गोकुल मे लाख - लाख मोन बहटारल हम
तैयो वर व्याकुल परान ।
आऊ............................................................... ।।
अहॅक रूप राखि नैन युग - युग सॅ जागलि छी,
मुरली केर मधुर वैन गुनि - गुनि कऽ पागलि छी।
परकीया पतिता हम प्रेमक पुजारिन केॅ,
नहि - चाहि गीता केर ज्ञान ।
आऊ............................................................... ।।
जकरा छै लागल हा विरहक प्रचंड रोग,
तकरा की कऽ सकतै निष्कामी कर्मयोग।
हमरा लग अपने छी चीर नवनीत चोर
अंतः बनू बरू महान ।
आऊ............................................................... ।।
अहॅक लेल अपयश केॅ जीवन मे जोगि लेब,
पापो जौं लागत तऽ नरको केॅ भोगि लेब,
इच्छा नहि मृत्युक अपवर्गक आ स्वर्गक अछि,
अहॅक छाड़ि चाही ने आन,
आऊ............................................................. ।।
!! नचारी !!
दहिना कऽ अपन भाग्य वाम,
जा रहलहुॅ बैद्यनाथ धाम ।
त्यागि भाई बन्धु घऽर गाम,
जा रहलहुॅ बैद्यनाथ धाम ।।
कामनाक कामरू केॅ गंगा मे बोरि - बोरि,
आयल छी अजगैबी नाथ शरण हाथ जोरि,
नाचि - नाचि गाबि ठाम - ठाम,
जा रहलहुॅ बैद्यनाथ धाम ।।
दुःखक अथाह धार भैरव जी पार करू,
बरका टा पापी हम हमरो उद्धार करू,
लैत रहब जीवन भरि नाम
जा रहलहुॅ बैद्यनाथ धाम ।।
चुट्टी केर धारी सन धामो मे भीड़ देखि,
छाती मे धकधकी सभ केॅ अधीर देखि,
कोना की करबै हे राम ?
जा रहलहुॅ बैद्यनाथ धाम ।।
!! गीत !!
राम मंत्रवत अहॅक नाम जपि - जपि दिवस बितावै छी ,
रातुक बीच चान पर तपि - तपि ध्यान लगावै छी ।
कहू अहाॅ की आन हमर छी,
देहक रूसल प्राण हमर छी
हे पाथरक देवता जागू
अहीं एक भगवान हमर छी
हम निर्दोष फूल तैयो निरमाल बनावै छी,
रातुक..................................................... ।।
जाहि बाट केॅ नित्य बहारी
हम तीतल आॅचर सॅ झारी,
जकरा अपना मे रखने अछि,
हमर आॅखि ई कारी-कारी
आई ताहि पर किएक अलसित गति सॅ आवै छी
रातुक..................................................... ।।
हमरा लेल राजपद त्यागू
भवन छोड़ि कानन केॅ भागू,
पाछूक सीता सन सुन्नरि
दौड़ि पड़ि औ आगू - आगू,
प्यासल प्रेमक जलद मर्यादा किएक जगावै छी
रातुक..................................................... ।।
आऊ - आऊ हे प्रिय अभ्यागत्
अछि पसरल हृदयासन स्वागत्
प्रियतम अहॅक पलकहुॅ लकि सॅ,
हमर जन्म जन्मान्तर जागत
लाऊ पखारि चरण नयन सॅ जल छलकाबै छी,
रातुक..................................................... ।।
!! गय नानी !!
गय नानी गय नानी बड़ बदमास भेलैं गय नानी ।
नाना संगे लड़ाई काल समाठ लेलैं गय नानी ।।
तोरे धरि नाना केर बातो,
तो उनटौले पिड़ही सातो,
तोरा डरे करथि ई थरथर
त्यागि देलेनि सौंसे आंगन घर,
नड़रौने तैयो हुनका खरिहान गेलैं गय नानी ।
गय नानी.............................................. ।।
नाना खतिर छिपली कारी
तोरा छौ स्टीलक थारी
नाना पावथि नोन सोहारी
अपना लय तरूआ तरकारी
अधजनमू दही केर मूड़ी काटि खेलै गय नानी,
गय नानी.............................................. ।।
रहलनि आब कतऽ की हुनका,
लागि गेल छनि तोहर ठुनका
मुॅह मे रखने टुटल दाॅत छथि,
खून देखि कऽ अपस्यांत छथि,
भनसा घर सॅ नाचि - नाचि बथान गेलैं गय नानी ।
गय नानी.............................................. ।।
!! नेना गीत !!
(हीरा - बेटी)
हीरा बेटी हमर बड़ दुलरैतिन ।
देखि कनियो कसरि चट् रूसि जयथिन ।।
भोरे उठिते निनायल माॅगथि बिस्कुट,
नहबऽ काल हेरथि नव बाबासूट,
बुच्ची हम्मर सरोवर केर छोटकी मीन ।
देखि ............................................... ।।
बाप गेलथिन बजार आनथिन केरा,
चाही नितः चैपाड़ि परक दू पेरा,
बिनु दूधक ई सहि जेती भरि दिन ।
देखि ............................................... ।।
चाह जेबऽ मे माॅ जौं करथि देरिये,
ई ताकथि बाबू केॅ कनडेरिये,
खाइते - खाइते आॅगन सॅ एक - दू - दिन ।
देखि ............................................... ।।
आइ भोरे सॅ खेलनि बऽत मुक्का,
मूॅहे भेलेनि जेना फूटल चुक्का ,
छथि हेहरि ई फेरो करथि बिनबिन ।
देखि ............................................... ।।
!! स्वागत गान !!
आऊ - आऊ - आऊ सभक स्वागत करै छी,
नैन मे समाउ हृदयासन धरै छी ।।
उल्लासक गीत कतऽ सगरो करूणा क्रन्दन,
उपटि रहल विपटि रहल मैथिलीक नन्दन वन,
भ्रमर झुण्ड प्यासल छथि विहग वृन्द बड़ भूखन,
मुरूझल छथि आम - मऽहु रऽसक सरिता सूखल,
बबुरे वन कवि कोकिल लाजे मरै छी ।
आऊ............................. ।।
विद्यापति शिव स्वरूप मृत्युंजय मऽरल छथि,
हमरा सबहक अभाग अजरो भऽ जऽड़ल छथि,
मात्र ई समारोही गोष्ठी सॅ की हेतै ?
स्थिति जहिना तहिना संवत एतै जेतै
मुरदा जगाउ लाउ पैर पकड़ै छी,
आऊ............................. ।।
काव्य पाठ करू मुदा कान्ह पर लियऽ लाठी,
एक हाथ रसक श्रोत दोसर मे खोर नाठी
पुरना किछु त्यागि - त्यागि पकड़ू किछु नऽव ढ़ंग
मोंछो पिजाउ बाउ श्रृंगारक संग - संग
अहाॅ गीत गाउ मुदा हऽम हहरै छी,
आऊ............................. ।।
अहॅक चपल चरण ऋृतुराजक सूचक अछि,
अपने आत्मस्वरूप आशय तऽ ‘बूचक’ अछि,
दीन हीन साधन सभ सॅ विहीन यद्यपि हम,
उद्वेलित श्रद्धा समुद्र नहि तरंगो कम ।
शर्वरीश स्पर्शक लेल हहरै छी ।
अभ्यागत आउ सभक स्वागत करै छी ।
आऊ............................. ।।
विशेष:- ई छल विद्यापति स्मृति पर्व समारोह 1984 ( आयोजन स्थल - ग्राम - बैद्यनाथपुर प्रखंड रोसड़ा, जिला - समस्तीपुर ) मे आगत अतिथिक स्वागत मे स्व0 कविक ओहि कालक मैथिलीक दशा पर पीड़ादायक प्रस्तुति ।
!! मातृ गीत !!
तोरे मुस्की मे अभिनव आनंदक अनुपम देश गय !
तोरे दयादृष्टि मे नव नव सौन्दर्यक परिवेश गय !!
चिता भस्म तन, कर कपाल छल,
रूप अशुभ गर मुंडमाल छल,
सर्पकंठ, विष असन दिगम्बर,
मरूघट वास कतऽ आंग़न घर ?
तोरे हाथ पकड़ि भिखमँगबा भोला भेला महेश गय ।
तोरे दयादृष्टि ..................................................................।।
माइक हाथ पकड़लनि बाबू,
ओहि हाथ पर हुनके काबू,
बेटो तऽ चरणक अधिकारी
उठलै तखन प्रश्न ई भारी,
तोहर हाथ पैर दु दुहू मे महिमा ककर विशेष गय ।
तोरे दयादृष्टि ..................................................................।।
शिशुक लेल आरामदेह
माइक शरीर मोमक चाही,
मक्खन सन कोमल करेज आ,
हास शरद सोमक चाही,
तखन किए पथरयलहुॅ धयलहुॅ अपन पाथरक भेष अय ।
तोरे दयादृष्टि ..................................................................।।
!! सोन दाइ !!
रहतौ ने हास, बहि जेतौ विलास गय,
दुई दिवसक जिनगी सॅ हेवेॅ निराश गय ।।
भरमक तरंग बीच मृगतृष्णा जागल छौ,
मोहक उमंग बीच, प्राण किएक पागल छौ,
चलि जेतौ सुनेॅ कंठ लागल पियास गय ।
दुई............................................................... ।।
बाल वृन्द जा रहला, नव - नव युवको चलला,
बूढ़ - सूढ़ जरि - मरि कऽ माटि तऽर परि गलला,
तैयो छौ अपना पर व्यर्थ विश्वास गय ।
दुई............................................................... ।।
अपना केॅ चीन्हे तोॅ नाम तोहर ‘‘सोन दाइ’’
टलहा सॅ मेझर भऽ मूॅह छौ मलीन आइ
देश कोश विसरि - काटि रहलेॅ प्रवास गय ।
दुई............................................................... ।।
नेनपन चलि भागलि आब इतिवस्था एतौ,
कहेॅ कनेक गुनि धुनि कऽ तकर बाद की हेतौ,
कहिया धरि कऽ सकबेॅ पर घर मे वास गय ।
दुई............................................................... ।।
!! हील हाइ - हाइ !!
खुडियौलक कसि - कसि कऽ नीपल करेज केॅ,
धुरियौलक धीपल मनक हाइ वेज केॅ,
कहऽ पड़ल आइ -
नील - नील चप्पल केर हील हाइ - हाइ ।।
बेकसूर केश अधगेड़ेॅ सॅ काटल छै,
कोन घसबहबाक हाथेॅ छपाटल छै,
अथवा हय दाइ -
ठढ़िया गेन्हारी केॅ चरि गेलै गाइ ।।
पर्स लटकौने कमरच्छा सॅ आयलि छै,
नवसिक्खू डानि जकाॅ भूखलि पियासलि छै,
बचबऽ हौ भाइ -
हऽम एक दूइये ओ आखड़ अढ़ाइ ।।
एखनो धरि भौजी केॅ लजवन्ती जगिते छनि,
बूढ़ि भेली भैया लग लाज कते लगिते छनि,
सुनहक ढ़ोढ़ाई -
देखिये कऽ खा लै छी, घिबही मिठाइ ।।
!! मिथिला क बेटी !!
सीता केॅ सितिया बनौलक सौभाग्य हमर,
रघुपति केॅ महुअक करौलक अनुराग हमर,
मिथिला केर धरती अकाशे सॅ ऊॅच जतऽ
जगदम्बे दुलरैतिन दाइ,
जतऽ पुरूषोत्तम रामे जमाइ ।।
हमर उर्मिला सनि जनमलि कक्कर कन्या,
जकरा सॅ तिरहुत की ? अवधो भेलै धन्या,
कोन सतवंती सॅ संवल लऽ लखन लाल,
काले पर कयलनि चढ़ाई ।
इहो बात मने मोन पड़ल आइ ।।
सूर्यवंश वैभव लग तुच्छ इन्द्रआसन छल,
ताहि त्यागि योगासन पूर्ण अनुशासन छल,
भरत भक्ति दिव्य दीप जगमग जग कऽ उठलै,
माण्डवी केर सेवा सलाइ ।
वास लेला नंदिग्रामे जमाइ ।।
अखिल भुवन विजयी भऽ शंकर आदिगुरू बनलनि,
महिषी मे आवि मंडन केॅ मर्दित कयलनि
मुदापस्त भऽगेलनि मिथिलाक बेटी सॅ
शारदा बनलि भारती दाइ ।
गर्वित मिथिला भूमि आइ ।।
!! जेठी करेह !!
गय जेठी करेह तोॅ सवेरे उधिआइ छेॅ ।
वरखा तऽ हेठै भेलै अनेरे उपलाइ छेॅ ।।
तोरो वाटर वेज बनल छौ,
डेभलाॅप मेन्टक डेज बनल छौ,
बहुत ऊॅच खतराक विन्दु गय,
एना किए अकुलाइ छेॅ ?
गय ...................................................... ।।
ई इन्होर पानि चमकै छौ,
मोर - मोर पर भौरी दै छौ,
काटि - काटि डीहक करेज केॅ,
तऽरे तऽर समाइ छेॅ ।
गय ...................................................... ।।
बहकल तोहर रेतक धक्का,
चहकल हम्मर धैर्यक पक्का,
सत्यानाश सभक कऽ देवेॅ
आवै छेॅ आ जाइ छेॅ,
गय ...................................................... ।।
जत्र - तत्र भऽ जेतौ मौॅका,
इंजीनियर बनतौ बुरिबौका,
वान्हि तोड़ि कऽ प्रलय मचेवेॅ
एहने दाइ बुझाइ छेॅ
गय ...................................................... ।।
!! ऊँ नमः शिवाय !!
श्याम छटा पर राधा गंगा धार देखू बहिना,
वाम जटा तर वामा केर श्रृंगार देखू बहिना ।
वदन मनोहर कुंद ईन्दु सन
भुवन वृत्त केर मध्य विन्दु सन,
जड़ चेतन मोहक मृदु मुस्की
लऽ रहलाह विक्ख केर चुश्की,
लुटा रहल छथि अमृत केर भंडार देखू बहिना ।
श्याम छटा ............................................................ ।।
दीपित कुंडल लोल - लोल अछि,
प्रति विम्बित दुहू कपोल अछि,
सर्पराज केर छत्र मनोहर,
ममता मे विभोर डमरू धर,
कर त्रिशूल उर उरगक गिरिमल हार देखू बहिना ।
श्याम छटा ............................................................ ।।
केहरि छालक पट विभूषित तन,
चंद्रालं कृत शिव प्रमुदित मन,
वाम अंक गिरिराज कुमारी,
गर लटकल गणेश भयहारी
हिनके शरणागत सगरो संसार देखू वहिना ।
श्याम छटा ............................................................ ।।
!! मणिद्वीपक महरानी !!
अयली जगदम्बा दुर्गा देवी कल्याणी अय,
मणिद्वीपक महरानी अय !
नाऽ ऽ ऽ।।
सध्यः सुधा सिन्धु स्नात, मांजल गंगा जल सॅ गात,
सेवक खातिर तजलनि नवरतनक रजधानी अय,
मणिद्वीपक .............................................. ।।
टपि कऽ अट्ठारह प्राकार देवी भऽ गेली साकार
सभकेॅ सुना रहलि छथि अप्पन अभयावाणी अय,
मणिद्वीपक .............................................. ।।
हरि पीताम्बर सॅ पद झारथि,
विधि सुरसरि सॅ चरण पखारथि,
तरबा रगड़ि रहल छथि, रहि - रहि शंकर ज्ञानी अय,
मणिद्वीपक .............................................. ।।
महिषासुरक आव की डऽर, माता छाड़ू सिंहक भऽर,
लोके राच्छस भऽ कऽ कऽ रहलै मनमानी अय,
मणिद्वीपक .............................................. ।।
१. श्री काली नाथ ठाकुर-सून मिथिलाञ्चल…..। २.एकइसम सदीक नाम-प्रेम विदेह ललन ३. विनीत ठाकुर- जाढ़
श्री काली नाथ ठाकुर, आत्मज शिवनाथ ठाकुर प्रसिद्ध लोचन ठाकुर
ग्राम सर्वसीमा, मधुबनी, बिहार JK सिंथेटिक्स लि० कानपुर में १९७३ सँ १९९५ तक कार्य कयला कऽ उपरान्त स्वास्थ्यक प्रतिकूलता सँऽ स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लय सम्प्रति कानपूर सारस्वत साधना मे संलग्न।
सून मिथिलाञ्चल…..।
सून मिथिलाञ्चल,
जनु बूझि पडल
छथि रूसि रहल- धरती
सुखा कऽ भय गेल टाँट
पडती पराँट
फाटल दराडि-’
के देखि देखि
अछि
- कानि रहल
जन जीवन,
अन्नक क- अभाव
पेटक चिन्ता,
सर्वत्र व्याप्त
अछि- मँहगी सँ
जन जन तवाह
सभ जन कनैछ
छै धँसल आँखि ओ रुच्छ केश
भऽ गेल सुखा कऽ
काँट काँट
सटि पेट- पीठ में
एक भेल
तन पर माँसक
नहिं छैक लेश।
छ्थि पूँजीपति बाबू भैया
नेता मुखिया
कर्ता-धर्ता
पालनकर्ता
सौँसे गामक छथि
कर्णधार
के बाजि सकत?
कर तनि विरोध
देथिन उजाडि
दय दय
मुसकी
कसि व्यंगवाण,
अव्वल गरीब पर
चलनि रोऽऽब
बैसल दलान पर
रचल करै छथि षड्यन्त्र
सतत
निज घोघि बढेवाक हेतु
दू- चारि वा
दस बीस रुपैया कर्ज
देथि- आ’ सादा कागज
पर- औंठा निशान
लगवावथि बिहुंसैत
छथि रखैत
कजरौटी बगलहि मे
सदखनि
के कय सकैछ
दुनकर परतड
बुधियारी में
से बुझा दैत
छथि
अपनहि सभकें
हे भारत भूमिक पुत्र आवहु चेतह,
ई धर्मराज सभ
रक्त तोहर
रहतह चूसैइत सदा
यदि नहि होयबह
जागरूक
लडह अपन अधिकार हेतु
लोकतन्त्र केर रक्षा
भय सकैछ तोहरे बलपर
एवं लोक तन्त्र केर रक्षहि सँऽ
बचतह तोहरो प्राण-
इज्जति – मान॥
२.एकइसम सदीक नाम
— प्रेम विदेह ललन
अजगूत एकइसम सदी अछि क’ रहल
होएबाक ने चाही जे सएह अछि भ’ रहल
करैत छल धनिक यौ शोषण गरीबके
गरीबे गरीबपर जुलुम आइ क’ रहल
बदलि गेल अछि आब अपनक परिभाषा
अपन त’ अपनेके घेंट अछि काटि रहल
दहेजक बेपार अछि बनल विवाह
प्रेमक नाटक आइ फैसन अछि भ’ रहल
करैत रहू मंचपर जाति–पाति अंत
जातीय संगठन अछि दिन–दिन बढ़ि रहल
एखाने अछि अनपढ़मे भाइ इमानदारी
पढ़लहबा जिलास’ देशधरि लूीट रहल
चीउजे नै,मनुक्खोम आब भेटैए नकली
नाङट उघार ललन सदी अछि भ’ हल ।
३. विनीत ठाकुर- जाढ़
मिथिलेश्वर मौवाही – ६, धनुषा, नेपाल
जाढ़
गत्तर–गत्तर जाढ़ दागे की कहु भाइ यौ
राति काटब कोना ओढ़ीकऽ चटाइ यौ
दुःखक पथार आव पसरल एकचारी
थर–थर कापै बैसल बुधनी बेचारी
हाथ–हाथ नहि सुझे लागलछै बड़ धूनी
लाही लत्तिपर बरसै परै जेना फूँहीँ
सुनि नहि पराती शब्दै नहि चिड़ीया
कोक्रीया गेलै आइ की दादी बुढ़ीया
गत्तर–गत्तर जाढ़ दागे की कहु भाइ यौ
राति काटब कोना ओढ़ीकऽ चटाइ यौ
घूर की फूकब भटे नहि निङ्हाँस–पोरा
करेजामें साटगे बुधनी नेनाके लऽ कोरा
कोपित भऽ धर्ती–जलवायु उगलै छै जहर
ताँय नागिन फूफकार छोरै शितलहर
गत्तर–गत्तर जाढ़ दागे की कहु भाइ यौ
राति काटब कोना ओढ़ीकऽ चटाइ यौ
१.पूर्णियाँ कवि स्व. प्रशान्तक कविता २. सुदिप कुमार झा-दूटा रचना
पूर्णियाँ कवि स्व. प्रशान्तक कविता- करू की वृद्ध अथबल छी
पित्त तँ चढ़ैत अछि बहुतो
करू की वृद्ध अथबल छी
सुदमिया माय जे आयल छलि
नैहरसँ महफापर चढ़ि कऽ
तनिका साइकिलपर चढ़ि देखि
सड़कक कातमे दुबकल छी
करू की वृद्ध अथबल छी
नवका पैसा सन बुधियार बनि
चमकैत अछि छौंड़ा!
पियरक्का दुअन्नीसँ अकार्य भेल
बैसल छी-
करू की वृद्ध अथबल छी
मोकामा पुल बनि गेने
सिमरिया घाटक स्टीमर जेकाँ
अकार्य भेल बैसल छी
करू की वृद्ध अथबल छी
पित्त तँ चढ़ैत अछि बहुतो
करू की वृद्ध अथबल छी
(स्मृतिपर आधारित)
सुदिप कुमार झा
दूटा रचना ः—
गामक सिमानपर फाटल दरारि
चिबाब’ बबलगम लाब’ कोदारि
मनमे छा’ पोसने किए गनगुआरि
बांइट लेब मसुरी तोड़’ ई आरि
एक पत्र प्रेमके लिखक’ त’ भेज’
सांठब हम भार अपन आंचर पसारि
उठब’ मानवता, छोड़ि अड़ारि
तों हमरा दुवारि हम तोड़ा दुवारि
००
पहाड़क उचाइपरस’
एकटा गुम्बापक खिड़की दने
एकटा लड़की निचा देखैत छै
उपत्यलकामे
बहुत–रासे गुड्डीसब
आकाश्मे़ झुलुवा झूलि रहल छै
अस्तामइत सुरुजक कातमे
एकटा गुड्डी डुबकी मारैछ
धरतीके चुम्माु लैत उठैछ आकाश दिस
जखन घन्टीम बजै छैक
निस्तनब्धटतामे हेराइत
ओकर पपनी भीज जाइत छैक
नइ जानि किए
उपर आकाशक लेल
वा निचा संसारक लेल ।
१.एक भुम जोड़ एक सत्यम बराबर दू क्षण- अयोध्याीनाथ चौधरी २.२. हमर माय- डॉ. शेफालिका वर्मा
३.नवका साल, पुरने हाल !- धीरेन्द्र प्रेमर्षि
१
एक भुम जोड़ एक सत्य बराबर दू क्षण अयोध्यारनाथ चौधरी
१
कौखन हमरा सभक मौन आक््रस�ामक बनि जाइछ
आ विवेक सहजहि कोनो खिड़कि द’ उड़िया गेल रहैछ तावतधरि
किछु निराश क्षणक प्रतीक्षा फेर ओकरा बजालैछ
आ तावते ओकर काया–कल्पे भ’ जाइछ
सब मनुपुत्र मोम भ’ जाइत छथि एक–दू क्षणक जिनगीमे ।
कहियो चौंकल अछि अहांक दुनू तरहथ्थीथ ?
आ तदुपरान्त किताब बनाक’ पढ़�हुं असछ ओकरा ः
तहिए गिरह बान्हिगेल हमर बातक
निर्जीब भेल आंखिके निहारैत रहि जायब अहां
पलक टो–टो क’ फुसियाही आवेश करैत ।
मोने–मोने गुनैत ।।
एक क्षण बाद
हाथ अपनाके समेटि क’ अहांक माथपर चढ़िक’ बाजत नियामकस’
चकित छी अहांक दुष्टन व्यहवहार पर’
आ’ ओ ओहि एक दिन सबसं बजै छथि
भ्रम आ प्रवंचनाक कथा सएह पुछलक अछि की ः?
केहन टांट सत्या राखि देलियह अछि सोझामे
एकोबेर चुमिलैह टांट भेल गर्दनि, आ माथ, आ मुंह
एहिना बुझबहक की
जीबैत मस्किकआइत गुलाबमे कांटने होइछ किदन ।
करन्द्वसमे गछारल अहांक हीरक, मुक्ता, रुपरानी वा जे किछु
ठीके बड़ कोमल आ सुन्दरर अइ
मुदा ततबे सत्यआ छैक विधान आ परम्पनरा
ततबे कटु आ अनिवार्य ।
उधियाइत विवेक कें गछारिक’
मुनुपुत्र सुखी भ’ पायब निर्बिवाद ।
दुष्टुता, भ्रम, प्रवंचना
आ’ एकरा सभक संज्ञामात्र
उधियाइत कोनो गैस थिक ।
एक परिवोधन आ शेष कविता
२
एक मुट्टी अखरा बालु फंकबाक वाध्यतता जतबे छोट भ’ सकैछ,
ततबे विरात आ डूबल अछि हमरा घरमे एक–एकटा सीताक आक्रोश,
आब बुझल जे सीता माने कोन दुःख ।
एकटा दृष्टासन्तक
आ और किछु नहि
मात्र एकटा निर्मम दृष्टा न्त
चाहिएक एहि लोकके, समाजके
ओहि एकटाक पाछां सहस्त्रो कत्लेिआम होइत रहैं निर्विध्न ....
जीह नहि टकसैंत छैक एखनि ।
एकटा दूरन्तै परम्पःरा किंबा रीति सहैत,
बकार बन्न् केनेछी हम–अहां आ सब
अयाची हड्डी लुटौलन्हिे, सेहो ठीक
एकाएकी घाब बनाओल जाइत अंग अंगके निनिर्मेष तकैत रहु
तखनि, सबटा ठीके–ठीके
समाज चाहैए जे ओकरामे रहनिहार लोथ भ’ जाए
ओकर एक एकटा प्राणी बीत राग बनल रहय आजीव,
आ संघर्ष करैत रहय अपना गराक घेघंस ।
अहां अपनाकें खुदे परिवोधि लिअ एहिना कतेक छोट–छीन जीवन सामान्य रुपे वितैत–बितैत
कौखन मनोरंजन हेतु आ’ कौखन अज्ञात, अनचेकामे
कतेक कीड़ा–फतिंगा पोसि वा पीचि देल जाइछ ।
सरिपहुं तनुक अइ ई जीब । छुइ मुइ ।
कोने ने,
ई सब कोनो बात छैक,
एतेक निश्चबय राखू जे परिबोधि नहि रहल छी हम अहांके,
किएक त अहां आरो भयाक्रान्त क’ देब
अहुं सएह कहैत छी कहि ।
एतबे बुझि राखु जहियांस अहां दृष्टाकन्त बनल छी
हमरा अहांस’ सहानुभुति अछि ।
मनुक्खहक पीड़ासं मनुक्खभके सहानुभुति होइ
ककरो दूटा आंखि पनिछा जाइ
एहि स’ पैघ जीवनक कोन उपलब्धिक भ’सकैछ ?
हम किछुटा नहि कहब ।
आत्मिहत्या। दूबेर प्रायः नहि भ’सकैछ ,
ई त, महज मामुली बोध थीक
ओना अहांक कोना बिकल्पा हमरा नीक लागत ।
जखन जीवन माने तनुक
त’ की हर्जनृ एकटा द्दृष्टानन्ति बनल रही ?
ओना हम पुछबाक व्याजज मात्र करैत छी ।
२. हमर माय- डॉ. शेफालिका वर्मा
आय हम अपन मृत्यु देख्लों
लहास पडल छल
लोग फुटि फुटि कानि रहल छल
हमर जिनगी में ,हमर बाट पर
कांट बिछावे वाला
सव हिचुकी रहल छल जकरा
हमर जीवन से कोनो मतलब नहीं छल
सबहक मुंह से हमर प्रशंसा
निकलि रहल छल
(जेकरा लेल जीवन भरि हम
तरसैत रहलों )
घढ़ी घढ़ी क गप्प फुलझरी जकां
छुटि रहल छल .....
आह ?
भीतर से ओ कतेक खुश छलाह
असगर आकास में हम चान सन
चम्कब दम्कब
ई ते छल मोनक बात
आंखि सावन भादोक आकास
हमर बेटा सव स्तब्ध्ह
हुनक चीकरब भोकरब देखि अपन नोर
बिसरी गेल
अपन दुःख बिसरि गेल जिनका लेल माय
भरि जीवन तरसैत रहलीह की
वैह लोग छथि ई सभ ?चैन से माय के
एकोटा सांस नहीं लेबे देलान्ही
की वैह लोग छथि ई सभ ??आ
हुनक अंतरात्मा विद्रोह कै उठल
चुप भय जाओ अहाँ लोकनि
बंद करू तमाशा , ई कानब बाजब
जिनगी भरि हमर माय दीयाजकां
जरैत रहलीह
आय जखन ई चैन से सुति रहल ऐछ
गहीर निन्न में परल ऐछ
तखन अहाँ सब किएक हल्ला मचा रहल छि
किएक चिकरी रहल छि ???
सभ चुप भै गेल ..मायक मृत्यु से
बेटा पगलाय गेल ऐछ ..
आ दुनू बेटा झुकि के हमर माथ चुमलक
ईश्वर: हमर माय के चैन देब , अगलों जनम
हम एही माय के कोखि से जनम ली
आ अचक्के ओ चिकरी कनैत बेसुध भय गेलाह
"हमर माय "
३.नवका साल, पुरने हाल !
- धीरेन्द्र प्रेमर्षि
फेर आबि गेल नवका साल
हमर मुदा अछि पुरने हाल
बदलल पतड़ा बढ़ि गेल खतरा
एमकी कोना टहलतै काल!
पाप बढ़ए जनु कोपर बाँस
पुण्यक उखड़ि रहल छै साँस
लोकक मूहक मुस्की देखू
लगै जेना खरिदल मधुमास
बाटघाट बिछबैत भ्रमजाल
फेर आबि गेल नवका साल
भेल पात झड़ि नाङट गाछ
पोखरि छोड़ि पड़ाएल माछ
सुग्घड़ रस्ता चलनिहारसभ
लोथ भेल अछि लगने काछ
मानवताकेर झुकबैत भाल
फेर आबि गेल नवका साल
फूटैत बम्म आ छूटैत गोली
बन्द कऽ रहल न्यायक बोली
नव-नव सालमे नव-नव ढङ्गे
खेलल जाइ सोनितसँ होली
धरतीक आँचर बनबैत लाल
फेर आबि गेल नवका साल
मिझाइत कालक दीप बुझी
रातिक अन्त समीप बुझी
दर्द निकालैत सृष्टिक घाओ
बहा रहल अछि पीप बुझी
ठोकैत एक नव-युगलए ताल
फेर आबि गेल नवका साल
धीरेन्द्र प्रेमर्षि- गीतसङ्ग्रह कोन सुर सजाबी? सँ
१. सतीश चन्द्र झा २.मधेशक आवाज-वौएलाल साह ३.हिमांशु चौधरी -पाथर ४. -क्षणिका-प्रशांत मिश्र-हड़ाहि
सतीश चन्द्र झा-राम जानकी नगर,मधुबनी,एम0 ए0 दर्शन शास्त्र
समप्रति मिथिला जनता इन्टर कालेन मे व्याख्याता पद पर 10 वर्ष सँ कार्यरत, संगे 15 साल सं अप्पन एकटा एन0जी0ओ0 क सेहो संचालन।
गरीबक स्विर्ग
खसलै कोना ठिठुरि क' दुखिया
माघक जाढ़ हार मे लगलै।
काठी देह बयस अस्सीग के
क्षण मे देहक प्राण निकललै।
छलै एकटा फाटल कंबल
पुत्रक माया ओकरे देलकैं।
अपने दुखिया आगि तापि क'
पिता धर्म के मान बढ़ेलकै।
भाग्यधहीन जीवन गरीब के
भूखल पेट बृद्ध के काया।
बिना स्वाबर्थ के दान कहाँ छै।
के बुझतै सरकारक माया।
मुक्तझ भेल कहुना झंझट सँ
माया मोह त्या गि क' भागल।
गाम टोल के लोक सहटि क'
सद्गुण ओकर बखान' लागल।
कते नीक छल दुखिया सभकें
दैत रहल ई संग गाम मे।
जायत स्वईर्ग भक्तक छल भारी
लीन रहै छल ‘राम नाम' मे।
लगलै हँसी जोर सँ सुनि क'
पड़ल देह दुखिया के तखने।
कते लोक अछि एखनो पागल
आइ बुझलियै हमहूँ मरने।
दुख अभाव पीड़ित जन जीवन
कोना स्वअर्ग केर सीढ़ी चढ़तै।
धर्म कर्म धन कें शोभा छै
निर्धन की ईश्वेर ल' करतै।
२.मधेशक आवाज- वौएलाल साह
मँा जानकी सँ कामना करैछी, शहीदक सवहक चिर शान्ति0क लेल
बढ़ु मधेशी आगा बढ़ु मधेशक अधिकार प्राप्ति लेल
युवा, विद्याथीिर् आंदोलन करु,मधेशक अधिकार प्राप्तिा लेल,
एही आंदोलनमे नै लड़लौ, त भाग्यत बुझु जे फुटीए गेल
व्याआपारी, कर्मचारी सेहो लरु, अपन भविष्य् वचाव लेल
काम,काज छोइर आँन्दो लन करु, हजुरी प्रथा छोरावैइ लेल
मधेशी शहीद पुकाइर रहलछै, मधेशक अधिकार प्राप्ति लेल
सहीदक सपना पुरा करु, मिटा दिअ शासक के खेल
इ नेपाल को छै वाटल, हिमाल, पहाड़, तराइ तै कैला
एही मधेशीके “मधेश‘ वाँटमे छै पुरे ऊरीए गेल
हिमाल, पहाड़,तराइ तँ’ कैला छुटियौलनि, कधेश शाषक के जेव मे गेल
जागु मधेशी जेवी फारु, अपन मधेश पावै के लेल,
मधेश,तराइ के वोट लकँ’ शाशक सव आगा वढ़ि गेल।
तराइन, मधेशी, लडि रहल अइ, देखु केहन शाशकके खेल
पानिस’ ठंढ़ा आगी स गरम, एही आब आंदोलनके गती छै भेल,
मधेशी आयोग कायम हो, एही शाशक वर्ग शवहक लेल
३. हिमांशु चौधरी
पाथर
१
पाथरकें आगां
दीप बारैत
किएक समयके
बरबाद कएने छी
ओकर आंखिमे
एतेक गर्दा पड़ल छैक
जे
फुल आ गाछ धरिकें
ने देखैत अछि
फुल आ गाछक जीवन
कलासन अछि
काव्य सन अछि
दृश्य आ द्रष्टागक
प्रतीकसन अछि
तें
किएक ने पंचम स्व रमे
फुल आ गाछक गान करब
विश्वागस अछि
एहि दुनूकें गानसं
पतझड़ सेहो मधुमास भ’ क’ आबि जाएत
ताहि कारणे
पाथरकें सुतए दियौ
किएक की
पाथर तं
निद्राक अन्तिदम अवस्थाक होइत अछि ।
२
कथा
शुन्य भाव
शुन्य काश होइतहुं
ने बिसरल छी व्यशथा
ने खतम होइबला अछि अनन्तंता
सुनल अछि
विश्वाछस आ प्रेमहिसं
संसार बनल अछि
शुन्य नकारने छैक
शुन्य तं
पुर्णक गर्भमे होइत अछि
शुन्यकसं सभ उठैत अछि
आ
ओहीमे
सभ लीन होइत अछि
कतेक बड़का अछि पृथ्वीै
तरहथीके भीतर अछि एकर आयतनजे
कखनो सुटैक जाइत अछि
त क
कखनो फुलि जाइत अछि
तें
इतिहास आ वर्तमान बीचक अन्तेरकें
सड़क साक्षी रखैत
बिसङगतिक खाद्यि
आ
आत्म कथाकें कथा बीच
बांचल छी
सर्व सत्येा प्रतिष्ठितः ल’ क
चेतनाक संवाहक सभके
प्रतीक्षामे छी
जे
एकटा स्मृमतिक दोसर
ताजमहल बना देत
तत्वहमसि निर्मित मुल्यिके
प्रतिष्ठिात क’ देत ।
३
की भार सांठू
लाते–लातसं घाहिल
लाशे–लाशस’ गन्हाेएल
सङक्रान्तिठक पीड़ामे
की भार सांठू
थुराएल चानी
फुफुड़िआएल अहिबक फड़
शोकाएल चाउर पिपाएल आंजुर
दन्तएकथाक पात्रजकां
कचोट द’ रहल अछि
गत्र–गत्रमे बेधल भाला–गड़ांस
टीसे–टीस द’ रहल अछि
फाटल–चिटल कपड़ा–लत्ता
मूंह कतहु हाथ कतहुं
स्ट्रेतमे राखल सिगरेटक ठुट्ठीसन
लावारिश भ’ गेल
इतिहासमे बहल नोर
फेर एहिबेर सेहो बहि गेल
गन्हाहएल लाशक भार कोना क’ सांठू ?
अनिष्टिकारी अमरौती पीने अछि
ओकरा लेल
सत्य म, शिवम आ सुन्दठरमक सर्जक बाधकतत्वभ
बाधकतत्व मरि जाए
माहुरे–माहुर भ’ जाए
अन्याेय अमरलती
द्रौपदीक चिरसन नमरैत चलि जाए
एहन सनकमे सनकैत ओकर अमरौती
कखनो बारुद फेकैए
कखनो धराप रखैए
बारुद आ धरापमे पोस्तामदाना कत’ ताकू
जे अनरसा बनाएब आ भार सांठब...
क्या नभासमे फाटल गाछदेखि
अन्ह ड़ि–बिहाड़ि अएबे करत
विश्वाससक जयन्तीट अङ्कुरित भेल अछि
परन्चा बहुतो धोएल सींथक सेनुरक
कारुणीकताक भार कोनाक सांठू ?....
४
गीत
उड़ैत धुआंमे करेज उड़ैत जा रहल अछि
जीवित इच्छाे सिसकी भरैत जा रहल अछि
पियाला भितर मदमस्त चेहरा देखैत छलहुं
ओहि चेहराकें रेखा कोरैत छलहुं हम
गरम बुन्नीेमे चेहरा पकैत जा रहल अछि
सिनेहक कसगर बन्हेनमे बान्ह ल छलहुं हम
ओहि बन्हननकें तोरण बनौने छलहुं हम
झहरैत नोरमे बन्हहन खुजैत जा रहल अछि
सोनित एके होइतो पेराएल हलहुं हम
बित–बितपर तिरस्काहरस पीड़ाएल छलहुं हम
सिलेटके आखरसन सभ मेटाइत जा रहल अछि
५
बाल गीत
कुत–कुतामे जितलहुं तं गोटरसमे ओसरा गेलहुं
गोटी देखि–देखि चकित छी, की करु चकरा गेलहुं
आस रखने छी जितैत जाइ झिझिरकोनामे घेरा जाइत छी
आस–पास कहैत–कहैत धप्पाज कहए ले बिसरा जाइत छी
कट्टी करु ककरांस’ झुला झुलैत ओझरा गेलहुं
एक सलाइ, दु सलाइ तेसर बेरमे चोन्हगरा जाइत छी
पानि–पानि कहैत–कहैत अंगनेमे ओंघरा जाइत छी
माछ–माछ बेंग कहए काल, अंगुरी मोड़एमे गड़बड़ा गेलहुं
कौड़ी तासमे पाइ हारने मन्हुलआ जाइछि
तीर–धनमी चलबैत काल सङीएके आखि फोङि देलहुं
४.
क्षणिका-प्रशांत मिश्र
हड़ाहि
एकटा हड़ाहि जे राति मे पटकलन्हि साँए के
तोड़लन्हि चौकी
भोरे-भोर पड़ोसनी के गरिअबैत कहलखिन्ह
हँ,चुप्प रह गे सत्तबरती
राँड़ी, छुच्छी, सँएखौकी
१. अरविन्द ठाकुर-गजल २. महेन्द्र कुमार मिश्र-पद्य ३.इन्क1लाव सुरेन्द्रर लाभ
अरविन्द ठाकुर
गजल
कोना अजुका दिन ससरतै, राति कटतै हओ भजार
एक–एकटा पल हमरा लेल सूनामी केर प्रहार
बिसरि गेलछि मोन पछिला बेर कहिया खुश भेलहुँ
डाकिया आइयोने आनलक अछि कोनो खुशखबरीक तार
ई महाजन, ऊ महाजन, नञि कतहु अछि रामाबाण
बाण बेगरताक अछि भोंकल करेजक आर–पार
यओ अन्हारक दास! आबहुँ संततिक हित कामनासँ
बजरगुम्मी तोड़ि, करू किछु आगि बारयकेँ जोगार
पीड़सँ लड़बाक लेल राखय पड़त निज पर भरोस
पीड़ हरय के लेल नित्तह नञि एताह कोनो औतार
आधा–छिछा रहि जाइछ ‘अरबिन’ जीवनक सभटा गजल
ओझरल रदीफो–काफिया आ माथ पर मिसरा सवार
गजल
कानिकए बड़ी काल नेना हारिकए चुप भए गेलै
लगैए एहि ठामकेँ सभकान दिल्ली भए गेलै
पागधारी मगन छथि अपनहि बनायल कूप मे
हाथ भरि नम्हर जखनकि टीक दिल्ली भए गेलै
पेट, बासन, मुँह, जेबी, लोक–वेदक सभ सिंगार
गाम, घर, सीमान सभ केँ छुछ दिल्ली कए गेलै
ठेठ दिल्ली सँ चलल अछि प्रगतिक दाबा सूनामी
अनघोल दिल्ली मे भेलै जे देश दिल्ली भए गेलै
जे भेला औतार, पैगम्बर, मसीहा सन कनेको
सभ केँ पोसुआ बना ‘अरबिन’ दिल्ली लए गेलै।
गजल
मोन केँ छः पाँच छोड़ू, गिरह राखब नीक नञि
हाथ मे साबून लए कए फागू खेलब नीक नञि
आदम जकाँ जन्नत के वर्जित फल पर नण्ज़ि हा लगाऊ
क्षण भरिक जे खेल, सदिखन सएह खेलब नीक नञि
शब्द के औजार सँ भड़कायब लोकक भाव केँ
खेल छै ई सहज किंतु ई खेल खेलब नीक नञि
’ढ़ाइ आखर प्रेम’ पढ़ि पंडित भेला फक्कर कबीर
अहाँ एकरा खेल बूझि एकरा सँ खेलब, नीक नञि
हे! मखौलक वस्तु नञि थिक एहि प्रकृतिक उपादान
माटि, पानि कि रौद, हवा स द्धुत खेलब नीक नञि
खन आजादी, खन किरांती, खन चुनाओक खेल–बेल
पहिर खद्धर खेलैत अयलहुँ, आर खेलब नीक नञि
मृत्यू केँ खेलौर बूझि खेललहुँ सगर जिनगीक खेल
आब लगैछ जिनगी सँ ‘अरबिन’ एना खेलब नीक नञि।
गजल
की कही एहि बाढ़ि मे डगरक कथा–खिस्सा खराब
समाधिआरय मे खराब, ससुरारि मे बेसी खराब
बाढ़ि मे छप्पर निपत्ता, भेटल तारपोलीन खराब
चाऊर खरबहे छलै आ दालि किछु बेसी खराब
बाढ़ि मे भेटत कतय किछु नीक बोली कि वचन
मुखियाक बोली ओलसन, बीडीओ के मुँह खराब
डाग्डरक त कथे नञि, एहि बाढ़ि मे औषधि खराब
एहि खरबहा हाल मे धीया–पूता के मोन खराब
चढ़ल बाढ़ि आ सूचना–सम्वाद के साधन खराब
हाकिम सभक वाहन खराब अछि, नाह के पेनी खराब
की धसय छी बाढ़ि पर ‘अरबिन’, अहाँक माथा खराब
मतला त बकबासे जकाँ, मकता कने बेसी खराब
२. महेन्द्र कुमार मिश्र,
पूर्व सांसद,
चेला चम्ाच आ दलाल राखू अपनेटा संग
सेबाके सुविधा मिलत जनतामे रहत रंग
जनतमे रहत रंग चम्चाम बहुत जरुरी
चम्चा जौं होय संग होएत सब आशा पुरी
चर्चा अछि ओहि महा पुरुषके जे रामके वरण करए
जनता सभहक वात नहि वुझे अपने खुट्टा धरए
अपने खुट्टा धरै विवेेकक रति नहि लेस
संवेदनाक स्वधर कतौ नहि,जड़ै रहए मधेश
जिरीजा माधव आ हो प्रचण्डत,किएक चाही लोकतन्त्रल
लोकततन्त्र आव लोप भेल भोग तन्त्रए ला’ लडू
जनता सभहक हकहीत की,अपन झोड़ा भरु
अपन भरु नहि त’ पछतावा हेायत
वैर विरोधक चिन्ता नहि अपन परार कतै जायत
जुरल रहु यहि जोगारमे अपन परिजन नहि छुटए
लुटव अछि संस्कागर हमर लुइट सकी से लुटए
गाथ कथमैप नहि छोडूु धयने रहू झोड़ा
पात्र अपने वायह लायेक छी जेना सल्हेतसक घोड़ा
मंत्री नहि महामंत्री एहि धरतीक द्वय पुत
शरमस’ं मिथिला कानि रहल, देख हिनक करतुत
देख हिनक करतुत जनता धिक्काारि रहल अछि
लोभ लालचमे फसल नेताक,े आव जनता झटकारि रहल अछि
संविधान सभा निर्वाचनमे देखल एहन ताल
जनतासभ आराम करैछ, नेता अछि वेहाल
पैसा सभहक लोभमे फसल, विकायल मधेशी नेता
टेण्डसर भरि भरि मधेशक टिकट एत’ देता
गुन्डाल बदमास आ उच्चकका पौलक मधेशक टिकट
जेकरा विरोधमे मरल पचासो वायह मांग सिटत
आवहु जागू, जागूु औ मधेशी भैया
जिनगी भरि पछतावि रहव, करव,हाय दैया
३.इन्कजलाव
सुरेन्द्रन लाभ
अन्ह र उठल, विहारि उठल अछि,
आगि उठल अछि, पानि उठल अछि,
हर दिलमे दावानल धधकए
गाम गाममे बाढ़ि उठल अछि
बच्चाा उठल, जवान उठल अछि,
जनी उठल अछि, जाति उठल अछि,
गली गल्लीछमे आगि पसरलै
आइ हमर श्मिशान उठल अछि
आइ राम उठल, रहमान उठल अछि,
कुरान उठल अछि,रामायण उठल अछि ।
शंख चक्रलए कृष्ण, सभामे
महाभारतमे अखनि तुफान उठल अछि ।
बन्दूरक उठल, गोला उठल अछि
बारुद उठल अछि, बुट उठल अछि
छैने ओतेक पेस्तो,लमे गोली
बच्चाओ बच्चा जाति उठल अछि ।
भार उठल,साँझ उठल अछि,
बेर उठल अछि, राति उठल अछि
नसनसक खून अछि खौलि रहल
चुल्हीखक छाउरमे आगि उठल अछि ।
शोषित उठल,शासित उठल अछि
दबल उठल अछि, थकुचाएल उठल अछि
शाषक वर्गक नीन्न, उड़ल अछि
ओकर डरे थर–थर काँपि उठल अछि ।
नारा उठल , आकाश उठल अछि,
बस्तीउ उठल अछि, गाम उठल अछि,
घर–घरमे अन्घोाल उड़ैए
मुट्ठीमे इत्करलाब उठल अछि ।
शिव कुमार झा-किछु पद्य ३..शिव कुमार झा ‘‘टिल्लू‘‘,नाम ः शिव कुमार झा,पिताक नाम ः स्व0 काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘,माताक नाम ः स्व0 चन्द्रकला देवी,जन्म तिथि ः 11-12-1973,शिक्षा ः स्नातक (प्रतिष्ठा),जन्म स्थान ः मातृक ः मालीपुर मोड़तर, जि0 - बेगूसराय,मूलग्राम ः ग्राम $ पत्रालय - करियन,जिला - समस्तीपुर,पिन: 848101,संप्रति ः प्रबंधक, संग्रहण,जे0 एम0 ए0 स्टोर्स लि0,मेन रोड, बिस्टुपुर
जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधि ः वर्ष 1996 सॅ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक ,गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार - प्रसार हेतु डाॅ0 नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चैधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्व मे संलग्न
!! ऋतुराज मे विरहिनी !!
पिया कोना कऽ बिततै फागुन मास अपार औ,
जीवन भेल पहाड़ औ ना ..... ॥
कोइली कुहकै ठाढ़ि पात
होईछ मन मे अघात
एकसरि डूबि रहल छी, अहीं बिनु हम मझधार औ
जीवन भेल पहाड़ औ ना ..... ॥
भ्रमरक गुंजन लागय तीत,
केहेन निष्ठु र भेलहुॅ मीत
कोना कऽ सूखि सकत ई फूटल अश्रुधार औ,
जीवन भेल पहाड़ औ ना ..... ॥
सखी सभ सदिखन अछि कवदाबय,
बिछुरन रोदन लऽ कऽ आबय
बिहुंसल यौवन पसरल मेघ आ अभिसार औ,
जीवन भेल पहाड़ औ ना ..... ॥
देखिते अबीर गुलालक रंग
विरह बनौलक कलुष उमंग
कहू कोना उठत ई मृत शय्या क कहार औ,
जीवन भेल पहाड़ औ ना ..... ॥
!! चश्मा़क बोखार !!
सोलहम मे कएल अंतःस्थम प्रवेश,
हुलसल मन गेलहुॅ नवल देश ।
हिय बसथि कला । धयलहुॅ विज्ञान,
राखल जननी ईच्छाधक मान ।
वैद्य अंगरेजिया वनि बचाबू दीनक परान,
अर्थहीन मिथिला मे बढ़त शान ।
धऽ ध्या न सुनल सृष्टि।क इच्छा ,
गॉठि बान्हिि लेलहुॅ लऽ गुरूदीक्षा ।
कॉलेज मे बीतल पहिल सत्र,
आओल तातक आदेश पत्र ।
पढ़िते आबू अहॉ अपन गाम,
हैत ज्येबष्ठमक विवाह विद्यापति धाम
तन झमकि गेल, मन गेल गुदकि
भौजी केॅ देखबनि हऽम हुलकि ।
आगत रवि पहुॅचल जनम ग्राम,
शत अभ्यापगत छथि ताम-झाम ।
चहुॅ - दिशि भऽ रहल चहल पहल,
चिन्ह् - अनचिन्हग सखा सॅ भरल महल ।
एक नव नौतारि बहुआयामी,
पूछल सॅ छथि छोटकी मामी ।
प्रथमहि हुनका सॅ भेंट भेल,
भेल दुनू गोटे मे क्षणहिं मेल ।
सॉझे औतीह दीदी अनिता,
आकुल मॉ केर एक मात्र वनिता ।
देखिते देखैत आबि गेल सॉझ,
मॉ तकिते बाट ओसार मॉझ ।
दीदी आंगन अयलि हॅसिते हॅसैत
मॉ गऽर लगौलनि ठोहि कनैत ।
दीदीक नयन हेरायल रिमलेस मे,
देखि मामी पड़लनि पेशोपेस मे ।
चश्माम मे सुन्नसर दाईक विभा,
बढ़ि रहल हिनक नयनक शोभा ।
मामी ! ई सऽख नहि अॉखिक इलाज,
मॉथ दर्द सॅ छल वाधित सभ काज ।
सुनि मामी मोन भऽ गेल अलसित,
हुनक वाम अॉखि मे पीड़ा अतुलित ।
नोचिते नोचैत भेल नयन लाल,
दर्द पसरि रहल सम्पूनर्ण भाल ।
आंगन दलान पीड़ा किल्लोाल,
अॉखि धोलनि लऽ जल डोले डोल ।
फूलि गेल नयन केर अधर पऽल,
हऽम सेकलहुॅ लऽ गुलाब जऽल ।
वैद्यो आयल नहि कोनो असरि,
कछमछ कऽ रहली - रहली कुहरि ।
माते कयलनि बाबूजीक ध्यािनाकर्षण,
अॉगन मे आबि ओ दऽ रहला भाषण ।
सभ दोष सारक नहि दैछ ध्याषन,
वयस तीस मुदा एखनहुॅ अज्ञान ।
रक्तत जमल विलोचन झिल्लीा मे,
सैनिक कंत पड़ल छथि दिल्लील मे ।
सरहोजि सॅ पुछलनि पीड़ाक काल,
पहिल बेरि भेल छल परूॅका साल ।
मॉ सऽ कहलनि लाउ नव अंगा,
हिनका लऽ जायब दड़िभंगा ।
तिरस्काऽर करब नहि हएत उचित,
कनिया दरद सॅ अति विहुंसित ।
काल्हिद अछि विवाह अहॉ जुनि जाऊ,
करैत छी उपाय नहि घबराऊ
भोरे ‘टिल्लूा' जेता हिनक संग,
नहि विवाह मे कऽ सकलनि हुड़दंग ।
भातृक सासुर जेता चतुर्थी मे,
मातृ आदेश लागल हम अर्थी मे ।
नहि बात काटल शांत छलहुॅ सुनैत,
राति बितल सुजनी मे कनिते कनैत ।
कोन बदला लेलक बापक सार,
अपन संकट बान्हबल हमरा कपार ।
मामी केॅ हम नहि चीन्हि सकल,
भीतर सॅ इन्होहर ऊपर शीतल ।
नहि जा सकलहुॅ हम वरियाती,
गाबै छी हुनक दुःखक पॉती,
भोरे उठि दड़िभंगा जा रहलहुॅ,
नैनक शोणित सॅ नहा रहलहुॅ ।
पहुॅचल डॉक्टॅर मिसिर केर क्लि निक,
चक्षुक चिकित्सनक सभ सॅ नीक
दुआरे पर कम्पानउन्डसर नाम पुछल,
मामी नुपूर कहनि ओ कुकुर लिखल ।
देखऽ मे भऽल पर वज्र बहीर,
उपरि मन हॅसल, भीतर अधीर ।
वैद्य मिसिर कहल नहि दृष्टित दोष
दुहू अॉखिये देखै छथि कोसे - कोस ।
नेत्रक आगॉ नहि अछि अन्हाेर
हिनका लागल चश्माछक बोखार ।
हम लिखि दैत छी शून्य ग्ला।स,
बुझा दिऔन हिनक रिमलेशक प्या स ।
ताहू सॅ जौं नहि हेती नीक,
अॉखि सेकू बनि स्ने ही बनिक,
अधर पर मुस्की आगॉ अन्हाकर,
कानल मन सोचि विवाहक मल्हाॉर ।
डॉक्टमर बनऽ केर तृष्णा् मन सॅ भागल,
एहेन मरीज भेटत तऽ हएब पागल ।
धुरि गाम माता केर करब नमन,
तोड़ू जननी हमरा सॅ लेल वचन ।
चशमिश नैन मामी छथि अति गदरल,
हमर योजना हिनक भभटपन मे उड़ल ।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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