भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आधर्मशास्त्री विद्यापतिकस्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महानपुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिलालोकनिकचित्र'मिथिला रत्न'मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि।मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नवस्थापत्य, चित्र, अभिलेखआ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू'मिथिलाक खोज'
१५७५-१६२५ (लगभग १६म शताब्दी), दिल्ली सल्तनतसँ जमीन्दारी किनलन्हि आ समर चौधरी भऽ गेलाह, महाराज भऽ गेलाह।
लौआमक दू शाखा
-महाराज कृष्णदेव (पहसरा बसैटी)
-महाराज भगीरथ- सौरिया (कटिहार-सोनालीक बीचमे)- एकटा स्थान दण्डखोड़- एतए अपराधीकेँ सजा देल जाइत छल (सौरिया शाखा द्वारा)।
पाँच वंश बाद पहसरा बसैटी- कृष्णदेव-देवनारायण-वीरनारायण-रामचन्द्र नारायण (जॉन बुकानन पूर्णियाँ गजेटियरमे हुनकर वर्णन किंग ऑफ पूर्णियाँक रूपमे कएने छथि)- इन्द्रनारायण (बिना सन्तान) रानी इन्द्रावती(सासुरक नाम- असल नाम लीलावती) हिनकर मृत्युतिथि १५-११-१८०३ मृत्युस्थान पूर्णियाँ, समए- मध्याह्ण काल, श्राद्ध खर्चक हेतु पूर्णियाँ जजसँ प्राप्ति- रु.५०००/- माँग रु.१५,६७०/-( बोर्ड ऑफ रेवेन्यु, फोर्ट विलियममे २९.११.१८०३ ई. केँ कार्यवाही)। इन्द्रनारायणक समकालीन सौरिया दिश राजा राजेन्द्रनारायण आ राजा महेन्द्रनारायण। महाराज इन्द्रनारायणक मृत्यु १७७६ ई. मे, तकर बाद २७ बर्ख धरि रानी इन्द्रावती राज कएलन्हि।
राज बनैली- रामनगर/ श्रीनगर/ गढ़बनैली/ सुल्तानगंज/ चंपानगर।
श्यामा मन्दिर बनारसमे संस्कृत पढ़बाक वृत्ति- रानी चन्द्रावती- कोइलख (राजा पद्मानन्द सिंह, पुतोहु-कुमार चन्द्रानन्द सिंहक पत्नी)- रामनगर।
विशेश्वर झा बैगनी नवादासँ पहसरा नोकरी करबा लेल अएलाह। हिनकर बेटा दीवान देवानन्द फेर चातुर्धरिक मनसबदार परमानन्द- संध्यागायत्रीसँ लोप बनैली समर सिंहकेँ मानि लेलन्हि। दुलार चौधरी/ फेर सिंह (बनैली राज), बुकानन हिनका चौधरी कहि सम्बोधित करैत छथि, मात्र एक बेर सिंह कहै छथि।
१६८०-१७०० ई.-दरभंगा राज, कन्दर्पीघाटक लड़ाई, राजा नरेन्द्र सिंह- दिल्ली सल्तनत आ जनताक बीचमे, बागमती तटपर समस्तीपुर ब्रह्महत्याक आरोपी नरेन्द्र सिंहकेँ बारि ब्राह्मण सभ पूर्णियाँ सुरगणे लौआम महाराज समर सिंह सन्तति महाराज नरनारायण, पहसरा बसैटी (कोशीक पूर्व)- फारबिसगंजसँ दण्डखोड़ा कटिहार तक बसाओल गेलाह। फेर माधव सिंहक समएमे दरभंगा आपस भेलाह।
पञ्जी- अधिकारक नियमावली- पञ्जी अयाची मिश्रक पौत्र ढाका कवि- ढाकामे जागीर भेटलन्हि। हल्ली झा तांत्रिक आ शिव कुमार शास्त्रीक बीच शास्त्रार्थ- प्रत्याहार वाक तंत्र द्वारा हल्ली शिवकुमार शास्त्रीक वाक् बन्न कए देलन्हि।
तस्कर केशव, मंगरौनी नरौने सुल्हनी- पराशर गोत्र माण्डर सिहौल मूलक काश्यप गोत्री खगनाथ झा- गाम जमसम। महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह लेल लड़की निहुछल गेल, गाममे पोखरि खुनाओल, मन्दिर बनल जे राजा दोसराक मन्दिरमे कोना पूजा करताह। केशव झा लड़कीकेँ लए गाम आबि गेलाह। धोती रंगाइत छल। पता केनिहार जे आएल तकरा पकड़ि कन्यादान करबाओल। तकर बाद राजा की करताह, पञ्जीकारकेँ बजा कऽ ओकर नाममे तस्कर उपाधि लगबाओल। खगनाथ झा- श्रीकान्त झा पाँजि, तस्कर केशव श्रोत्रिय ओहिठाम विवाह कएलापर श्रोत्रिय श्रेणी विराजमान रहितन्हि। पाञ्जि आ पानि अधोगामी, पछबारि पारक प्रथम श्रेणी आब नहि अछि।
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ ३० मार्च २०१०) ९६ देशक १,२३० ठामसँ ४०,६५१गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ २,३३,३८९ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)-धन्यवाद पाठकगण।
बताह, बुरि, बकलेल पत्ता नै की-की ने गामक लोक कहै। सगर गाम इएह बात। हौ कोनाकेँ इ भुसकौलहा सुभषवा मैट्रिक पास कऽ गेल आ कोन दके इंजिनीयरीमे नामों लिखा गेलै। हौ ओकर तँ एक फेजे पार छै। कहह तँ गामक छौड़ा कऽ संग कऽ-कऽ पत्ता नै की-की नियार भास करैत रहैत अछि। आ छौड़ो सभ खुब ओकर आगा पाछा करैत रहैत अछि, हमरा तँ लगैत अछि इ रूतबा रहलै तँ छौड़ा सभहक तँ छोड़ह, गामे कऽ नै उड़हारि चल जैह। सभहक नजरि गाम अबैत मांतर ओकरापर गड़ि जाइत छलै। आ सुभाषो एक आध दिनमे गाममे रहि, गामक हाल-चालसँ अवगत भऽ छौड़ा सभहक बैठार कऽ चल जाइत छल सिन्दरी।
गाम अति पिछड़ल-गमार आ हँसी-कुचिष्टाक समुद्र छल। सभहक एक बात, एक विचार कियो तेहेन पढ़ल लिखल नै, तै छल मूर्खक लाठी बिचे कपार सेहो छल। ककरो नेना-भुटका नीक जकाँ पढ़ाइ-लिखाइमे नै भीरल छल आ जे भीरलो छल से प्रोत्साहनक अभावमे डारटुट्टु जकाँ बैसी जाइत छल।
तखन पत्ता नै कोनाकेँ सुभाष ओहि गाम आ ओहि समाज आ ओहि वातावरणमे रहि मैट्रिक पास कय, इन्जीनियरीमे पढ़ि रहल अछि आ पाँच हजार रूपैया स्कॉलरसीप पाबैत अछि। आ पत्ता किएक नै थालमे जे कमल फुलाइत छै से कोना।
जे अपने खराप रहैत अछि ओकरा सौसे दुनियाँ खरापे लगैत छैंक। आ ताहीमे नीक, नीक तँ आर तीत ओकरा बुझाइत छैक। सैह बात छलै सुभाष मिसिया भरि नै सोहाइत छलै। ई गामक विकास लेल गाम अबैत देरी नीक-नीक योजना बनायब। जाहिमे नियम कानून छल-सभ छात्र स्व अध्यायमे लागल रही, दोसरो कऽ पढ़ाइ-लिखाइमे सहायता पहुँचाबथि, गामक रस्ता परहक गंदा कऽ मासमे 2 बेर नै तँ एक बेर अवश्य सभ युवा वर्ग मिलि - कोहारि खुशीसँ साफ सुथरा करैए। गामक सभ बिजली पोल सभपर चंदा लऽ बिजली लगा देल जाए। उसराहा बाबाक ढ़हैत मन्दिरपर ध्यान देल जाए। गाममे एकटा लाइब्रेरी होमक चाही, पत्र-पत्रिका ओतए नित्य आयल करए। गामक स्कूल मास्टरकेँ जा कऽ कहल जाए जे चटिया लोकनिपर नीक नजरि राखनिहार गामक कोनो काज श्राद्ध, उपनयन, आदि-आदिमे बिना कहने सभ ओतए जा हुनका परिश्रमसँ सेवा कयल जाए। गामक विकास लैल ब्लौंकसँ सम्पर्क स्थापित कयल जाए आ ओहि सँ गामक लोक कऽ लाभ होइन। आदि-----आदि---------।
यैह छल सुभाषक बतहपन्नी आ देखितहि-देखितहि ओ एकटा नव जागरण युवा संघक गठन कऽ बैसल। आ योजना सभ लागू भऽ जैह तैही हेतु सभ कृत संकल्पित भऽ गेल।
एम्हर गामक लोक कहए "केहेन-केहेन गेला तँ मोंछ बला एलाह" नूनू, रामचन्द्र, गोनाई आ गुर कते बेर एहेन-एहेन योजना बना, चकापर राखलक से रखले छनि आ हुनका सभक केश पाकि गेलनि, दाँत टुटि गेलनि आ लाठी लऽ चलैत छथि, आ योजना-योजने रही गेलैन हूँ-----। देखैत छीयैन लैटसहिबो कऽ------? बीस गोटए मुदे बीस रंगक बात।
एहि बेर सुभाष गर्मीक छुट्टीमे मास दिन गाममे रहल, आ गुहकट्टीसँ लऽ कऽ मन्दिर तकमे हाथ लगा देलक। अपनेमे दस-बीस रू. प्रति माह चन्दा लऽ पत्र पत्रिका मंगबय लागल। मन्दिरमे बेस पाइ लगितै तै धनिक लोक ओतए संघक सभ गोटा जाए भीख माँगए, दतखीसरी कऽ दैत छल, तेना तेना कऽ मन्दिर चमकए लागल। गामक कोनो नेना कऽ पढ़बाक समएमे बड़द-महीस किछु खोलने देखैत छल सुभाष तँ अपनेसँ खुट्टामे बान्हि अबै छल आ ओकर बाबू कऽ शिकायत करै छलै....हे हम अहाँक माल बान्हि देलौ अछि। उत्तर भेटै बड़का काज केलौ है, हम अपना बेटासँ माल चरबै छी, अहाँक मतलब। सुभाष कहैए से नहि भऽ सकैत अछि, पढ़ए कऽ समयमे पढ़त दोसर समएमे अहाँ अपना बेटासँ किछु कराउ।
नेनों-भुटका सभकेँ रुचि खुजलै पढ़ै-लिखैएकेँ ओ सभ माए-बापकेँ ठाए-फटाए उत्तर दऽ दैक, हम नै महीस खोलबौ। हमरा कोपी-किताब दे, आ कंठपर ठाढ़ भए किनबाबए। ओना जकर आर्थिक स्थिति एकदमे खराप छलै, सुभाष अपना पाइसँ स्कूलमे नाम लिखा दैक, किताब कॉपी कीनि दैक आ अपने गेलापर संघ कऽ भार द दैक ओकर कॉपी-कितापक, सिलेट-पेंसिलक।
गामक नवतुरमे अनुशासन जगजगार होमए लगलै। एक दोसरामे छोट-पैघ, अचार-विचार, उचित-अनुचित धारा फूटलै। जहाँ-तहाँसँ थोड़-थोड़ पोथी जमा भेल आ तामे एकटा तामे टटघर बना पुस्तकालय सेहो बनि गेल।
एतेक भेलाक बादो कुचिष्ट समाज कहै यौ सुभाष बाबू हमरा सभ कऽ पैखाना करैएमे दिक्कत होइत अछि, जल्दी रस्ता साफ कराउ, तखन ने हम सभ पतियानी लगा बैसब। सुभाष कहए जेहन अहाँ सभक विचार। अहाँ सभ जतेक गंदा करबै, हमरा सभ ओतेक साफ करबै। कारण आब गाम अहाँ सभक नै, हमरा सभक छी। एकर नीक अधलाहसँ अहाँ सभ कऽ कोन काज। अहाँ सभ तँ पाकल आम भेलौहुँ नै। "गेल माघ उंतीस दिन बाँकी"
समए छन-छन बितैत गेल आ किछु दिनुका बाद देखएमे आबए लागल जे गाम पूर्ण विकासमे लागि गेल आ एका एकी गाममे पोल सभपर बल्ब लागि गेल, पुस्तकालयमे बेस पोथी सभ जमा भऽ गेल, पत्र-पत्रिका बेस जुटए बिना पुस्तकालयपर गेने छात्र सभ कऽ चैन नहि आबैए रस्ता दुधसँ घोल, उसराहा बाबापर जे चढ़ाएल अछत माल-जाल चटैत रहै छल से आब ओहिमे खुब निसन केबाड़ लागी गेल। छतपर लाउडिस्पीकर भजन गबैत गामक मनोरम कऽ आर बढ़बए छल। ब्लौकसँ कल आएल, पहिले पुस्तकालयपर आ तकरा बाद सगर गाममे गोट बीसेक लगभग कल गरा गेल। लाउडिस्पीकर सुभाष अपन स्कॉलरसीप बला पाइसँ कीनल धरि ईटाक घर पुस्तकालय ब्लौकक फण्डसँ बनाएल गेलै।
आँखिक आगूमे एतेक परिवर्त्तन देखि आइ पूरा गाम छुब्द, चकित आ विस्मित अछि। कोना कऽ नव जागरण संघ, आ जाए संघ तै नै इ सोना बनैत गाम।
एहि समाजकेँ नै आगू चलि नै पाछु। जे कालि कहैए सुभषवा बताह, बुरि, बकलेलहा, सैह समाज आइ कहैत छैक सुभाषक बुद्धिक आ परिश्रमक इ परिणाम छी, चमकैत, खनकैत, हमर गाम।
सैह जे गामक बताह छल, अपन हीनता अपन खिध्यास सुनैत रहैत छल, से बताह बनी की-की नै कए देलक। मुदा वास्तविक बताह के...सुभाष आ गामक लोक.....?
आइ गाममे घर-घर बी.ए., एम.ए. पास अछि आ मैट्रिक कतेक गनाऊ। पूरा गाम मात्र एकों सुभषवाक बतहपनीसँ शिक्षित आ नोकरी-चाकरीमे लागी गेल अछि। नै तँ गामक लोकक अनुसार लोक एखनो घिर सेवने तहितए।
सुभाष अपन प्रतिभाक बले स्वीडनमे रीसर्च करैत अछि। आ गाम एखनो ओतसँ जाइत अबैत रहैत अछि। ओकरे सन कतेक प्रतिभाशाली लोक सभ ओहि गामक गौरव बढ़ा रहल अछि। ओकर गाम आदर्श गाम भऽ गेल अछि। संघ एखनो कार्यरत अछि आ जऽ जऽ छोटगर लोक गाम छोड़ने जाइत अछि पढ़ै लिखै लेल बाहर गेलासँ छोटतुरक बच्चा सभ ओहि क्रमक आगाँ बढ़बैत रहैत अछि।
सुभाषक एखनो अपना गामपर गर्व छैक आ पुरा गामक सुभाषपर। एखनो ओकर फोन जे अबैत छैक विदेशसँ तँ घंटाक-घंटा गामक मादे चर्च आ पुछताछ करैत रहैत अछि ओ।
२.-कामिनी कामायिनी
घडियाली नोर
प्रिय रत्ना
हम अहिठाम कुशल सॅ रहैत अहि विश्वासक संग चिट्टीलिख रहल छी जे अहूॅ सकल पेलवार स्वस्थ आ़ प्रसन्न हाेयब ।स्नातकक परीक्षा के उपरांत हमहूॅ खाली बैसल छी हाथ प़ हाथ धेने घर में अहिं जकाॅ ।विचारैत छी मिथिला पेंटिंग सीखू ।अहाँ बड नीक काज केलहूॅ जे बी एड में एडमीशन ल़ लेलहूॅ ।
हाँस्टल में हम सब वर्त्तमान राजनीतिक चर्चा में कत्तेक समय बिताबी ।अहाँ बरमहल हमर सबहक प्रगतिशील मंच में आबि अपन शहऱ अपन समाज आ़’ आेकर कथा व्यथा जाहि रूपें प्रस्तुत करी ताहि सॅ सब कियो मर्माहित भ’ जाए छल ।
अहाँ सदिखन अनका सबके कहैत छलिए जे अहाँ त’ हमरा अपन बेस्ट फ्रेंड मानैत छी मुदा हम अहाँ के कोनाे वैल्यू नहि दैत छी ।अहाँ के इर् धारणा निराधार अछि ।कि कहियो हम अहाँ के अनुचित सलाह देलहुँहमरे कहबा प’ अहाँ इंटर में अंगे्रजी नहि नेने रही़जनैत छलहूॅ जे अंगरेजी सम्हारब अहाँक बसक गप्प नहि छलआ’देखू कत्तेक नीक रिजल्ट रहल अहाँके ।
सीमा सॅ हमर घरक पता लए क’ अहाँ इर् चिट्टी लिखलहूॅ ताहि लेलधन्यवाद ।हमरा प्रतिअपन माेन में एतेक श्रद्वा आ’ इर्ज्जत राखए लेल सेहाे थन्यवादमुदा हमरा विचार सॅ केकराे दाेस्त बूझनाए मात्र बड पैघ गप छैक ।
घर में सबके हमरा दिस सॅ यथाेचित कहबैन्ह ।
अहाँक सखी
शैली ।
प्रियरत्ना
अहाँक टेढ बाकुड हैंडराइर्टिंग़खराप नहि मानब़हॅस्सी कए रहल छी़में लिखल मुदा अतिशय प्रेम सॅ भरल चिठ्ठी एखन तुरत हस्तगत भेल ।इर् जानि क’ प्रसन्नता भेल कि अहाँ बी ए सेकेंड डिविजन सॅ पास करि गेलहूॅ ।
एक त’ अहाँ कन्याऊपर सॅ अनुसूचित जातिएकर लाभ अहाँ किएक नहिं उठाबी।कोनाे तरहक गायडेन्स जाै हमरा सॅ चाही त’ निधाेक हमरा घर आबि सकैत छी वा चिठ्ठी पतरी के माध्यम सॅ सेहाे जानकारी लए सकैत छी ।
क्षितिज सॅ उतरिसांझ गाछ बिरीछ के अपना गिरफ्त में लेबए लागल छै ।हम बाहर जा रहल छी बूलए टहलए ।शेष गप सप्प दाेसर चिठ्ठी में।
पैघ के प्रणाम छाेट के आर्शिवाद
अहाँक संगी
शैली ।
प्रिय रत्ना
अहाँक एडमिट कार्ड आबि गेलइर् जानि प्रसन्नता भेल ।अहाँ अपन एक्जाम सेंटर अहि शहरि में देने छी से जानि आआेर प्रसन्नता भेल ।अहाँ लिखलहूॅ जे अहाँक कोनाे संबंधी हमर घरक लग़ पास में रहै छथिअहाँ आेतए आयब हमर सहयोग लेबा लेल स्वागत अछिअवश्य आऊ़।आेना अहि बीच में जे राइर्टर्स के किताब आ’ प्रतियोगी पत्रिका सब पढबा के लेल लिखने रही से सब अवश्य पढब ।किछु उपयोगी पुस्तक जे अहाँ के शहरि में नहिं उपलब्ध भ’ सकैछ़आ’ किछु नाेट्रस हम डाक सॅ पठा रहल छी।बूझल अछि जे अहाँक रटबाक क्षमता बड तीव्र अछिसबटा चीज ताेता जकाॅआॅखि मूनि क’ रटि जायब ।अहि गप के दुख नहि करब जे कोचिंग नहि करि सकैत छी ।स्वाध्याय सॅ सेहाे सफलता क बाट क’ सब टा विध्न बाधा हरण भ’ जाय छै ।हॅ लिखबाक खूब अभ्यास करबअहि सॅ लिखावट में सुधार हाेयत आ’ स्मरण सेहाे रहत ।सफलता अवस्स भेंटबाक’ चाहीइर् हमर अन्तः करणक स्वर थीक ।
अहि बेर कतेक गरमी पडि रहल छै़तहिना गाछी सब में आम लुधकल छै।
शेष सब यथावत ।अहाँक संगी
शैली ।
प्रिय रत्ना
अहाँ के परीक्षा दिन देखने छलहॅू मुदा गप नहिं भ’ सकल ।चश्मा लगा क’ सत्ते अहाँ गैजटेड आफीसर लागि रहल छलहूॅ ।अधिकांश प्रश्न त’ तीन साल पहिलुका रिपीट छल इतिहास आ’ राजनीति शास्त्र वला प्रश्न त’ वएह सब छल जे हम लिख क’ अहाँ के पठाैने रहीअहाँ नीक जकाॅ घाेंकि गेल रहाैं ।एडवांस मुबारक रिटेन त’ अहाँ निकालिए लेब आ’ इंटरव्यु में अहाँक वाक ् शक्ति के आगाॅ भला के टिक सकैय ।अहि गप सॅ अहाँ के दुख अछि जे बजबा काल अहाँ के स्त्रीलिंग पुलिंगक भान नञि रहैत अछि ।व्याकरण बड कमजाेर अछि ।कमजाेर व्याकरण अहाँ के किछु नहि बिगाडि सकैत अछिअहाँ में बड आत्म विश्वास अछि ।आेना इर् कहबी अवस्स माेन पाडने रहब जे‘नाे बडी कैन मेक यू इनफीरियर विदाउट योर परमीशन’ ।
अहाँ इर् की लिखलहू जे सिडुल कास्ट में सेहाे बड भीड छै।हेतैक मेडिकल इंजीनियरिंग में हेतैकपी सी एस में पुरूखक हेतैमुदा स्त्री उम्मीदवार कत्तेक छै।आ उपर सॅ आेतेक डल सेहाे नहि छी ।दुर्गा माॅ के पूजा करूहनुमान चालिसा पढू देखबै अहाँक सेलेक्शन अवश्य अवश्य अवश्य हाेयत ।
अहाँ उचित अर्थ में अपन पएर प’ ठाढ एक सफल सुयोग्य स्त्री भ’ गेलहूॅ ।आब अपन आे न्याय पूर्ण प्रशासनिक क्षमता देखबियाैजाहि लेल काआेलेज में एतेक भाषण दइर्त छलहूॅ ।
आशा अछि जे अहाँ अपन दायित्व के नीक जकाॅ निभायब बी डी आे साहिबा ।
शेष शुभ
अहाँक संगी
शैली ।
प्रिय रत्ना
बङ नमहर प्रतीक्षा के बाद अहाँ क चिठ्ठी भेंटल।इर् जानि हार्दिक दुख भेल जे अहाँ के तलाक भ’ गेल ।खैरजे भवित्व्य छल तेकरा के मेटा सकैत अछ़ि।आेना अहाँ जे राेइर्ंया राेइर्ंया ठाढ करए बलावर्णनकएने रही आेहेन परिस्थिति में अहाँ सन पढल गुनल आफिसर के निर्वाह केना दुष्कर छल ।अपना दिस सॅ त’ अहाँ बङ कोरसिस केलियै निभाबए केमुदा़शराब पीबि क’ प्रतिदिन मार पीट करय वला मनुक्ख के भाग्य आ’ भगवान भराेसेसुधरए
लेल लाेक कत्तेक दिन धरि आस लगाैने दिवस गमावैत रहतै।
अहाँ अपन माय आ’ छाेटका भाइर् बहिन के अहरा लइर् अनलहू से नीक कएल ।आब अहाँ अपन राजनीतिक पटलकनि आआेर विस्तृत करू ।देश विदेशक न्यूज सूनितै रहबै । लिखलहू जे अहाँक स्वर्गीय नाना बङ पहिने एम पी छलाहआ’ आब आेत्तय के लाेक अहाँ के अपन प्रतिनिधि चुनि पार्लियामेंट में पठबए चाहैत अछि ।इर् त’ बङ नीक गप भेल ।अहाँक वक्तृत्व क्षमता आब खुजि क’ लाेकक साेझाॅ आयत ।
अहाँ पहिने आेहि क्षेत्र विशेषक जातिगत आंकङाआेकरसमस्याआ’ विकासक लेल की सब आ केहेन कदम उठेबाक चाही अहि सब प’ गहीङ शाेध प्रारंभ करि दियाै।अहि क्रम में घरे घर जा कए स्त्रीगण सब सॅ गप करि आेकर सबहक दिल जीतबा के प्रयास करबएक त’ आे रिजर्व सीट छै़आ’ अहाँ के नाना के नाम तीस बरखक बादाे लाेकक ठाेर प’ आेहिना छैक।अहाँ सीधे ब्लाॅक सॅ देशक पालियामेंट में नहि पहुँच गेलहु त’ हमर नाम प’ कूकूर पाेसि देब ।
बाहर अन्हार भ’ गेलै़सांझ मे त’ घर में रहनाए उचित नै । टहलए जा रहल छी ।
बेसफेर दाेसर चिठ्ठी में ।
अहाँक संगी
शैली ।
प्रिय रत्ना
अहाँ के चिठ्ठी में हमरा फेर सॅ मानसिक भटकाव के गंध लागि रहल अछि ।इर् की लिखलहूॅ जे खैरा जिला के कलक्टरजे अहींक बिरादरी के अछिसदिखन रेशमक’ डाेरी नेने अहाँक पाछाॅ पडल रहैत अछि ।आेकराे वैवाहिक जीवन तेहने सन छै ।कनिया नै छैगत भ’ गेलैवा छाेडि देने छै।हॅ आेहाे दाताैन के स्थान प’ भरिसक दारूए सॅ मुॅह धाेबति हेतैक़लाल टरेस आॅख़िजेनाकोनाे हिंसक पशु़ ।मुदा अहाँके इज्जत सेहाे बङ करैत अछिताहि लेल अहाँ आेकर अवगुण नहि देख पाबै छी।खैऱअहि में हम अहाँ के की मशविरा दिय अहि क्षेत्र में त’ अहाँ अपने बङ चतुर सुजान छी ।
ंमुदा कनि साेचू़अहि में अहाँ के कोन उत्तकृष्ट भविष्य देखाय पङि रहल अछि ।आय नै काल्ह़िअपनाे त’ अहाँ कलक्टर बनिए जायब।हमरा जनतब अहाँ के अपन धियान इलेक्शन लङबा दिस लगेबाक चाही ।अपन प्रतिभा नष्ट नै हाेमए देबैपैघ काज लेल अहाँ के जनम भेल अछि ।
अखन घर में किछु पाहुन पङक आयल छथि ताहि में व्यस्त छी ।
आर सब कुशल मंगल
अहाँक संगी
शैली ।
प्रिय रत्त्ना
अहाँके बङका पार्टी चुनाव लङबा लेल टिकट द’ देलक़बधाइर् हाेढेर रास उम्मीदवार क’ मध्य अहाँक टिकट भेंटनाएसरिपहॅू एक गाेट पैघ गप अछि ।अहाँ के आग्रह जे हम मास दिन अहाँ के संगे रही़अहाँ हमर ऋण कोशकी में पानि रहतै ता धरि नहिं बिसरब़अपन माए बाबू सॅ बेशी हमर आभारी छीजे घींच घाॅचि क’ सजा सॅवारिक’ मनुक्ख सॅ विशिष्ठ मनुक्ख बना देलहूॅआेहि जन्मक माए़बापभाय बहिनी किछु नै किछु अवस्स छीनै त’ के करै छै अनका लेल एतेक़।आन संगी सब त’ एको टा चिठ्ठी के उत्तर नहि पठाेलक ।
ंहमरा विचारैं इर् सब गप बिसरि जाऊ।हाँस्टल में त’ नहिएमुदा तेकरा बाद अहाँ के भाव विह्यवल चिठ्ठी सबहक उत्तर दइत दइर्त हम अहाँ के संगी अवश्य बूझय लागलाैं हैंआ’ अ ‘ फ्रेंड इन नीडइज अ फ्रेंड इन डीड।’दाेस्ती अपना आप में एक टा मजगूत नाता छैआेहाे दैवीक महान गिफ्ट छै ।
हम नाेमिनेसन दिन अहीं के संग छी ।हमरा सॅ ज़त्तेक भ’ सकत तैयार रहब ।
बधाइऱ्बधाइर्बधाइर्।ढाइर् लाख वाेट सॅ अहाँ जीत गेलहूॅ ।काउंटिंग काल कोनेा अपरिहार्य कारणे हम उपस्थित नहिं रहि सकलहूॅ ।बङ प्रसन्नता अछि सबटा वाेट अहाँ दूनू हाथे अपन झाेरा में हसाेथि लेलाैं ।आय एहेन लागि रहल अछि जेना नब सूरूज अपना संगे नव प्रभात नेने चाराें दिशा सॅ मंगल गान करैत सिंहनाद करि रहल अछि ।अहाँ सॅ हमरा एहने सफलताक उम्मीद छल ।आब मनाऊ भरि छाॅक हाेरीगाऊ खूब फागझाल मृदंग बजा बजा क’।
मुदा एक गाेट गप सदिखन माेन पाङने राखब़सांसद बनला उत्तर क्षेत्र के जनता सॅ विश्वासघात नहिं करबैआे सबटा वादा अवश्य पूरन करबै़जाहि आधार प’ इर् महासंग्राम जतिलहुँ ।
दूरदर्शन सॅ खबरि भेटल कि अहाँके स्त्री आ’ अनुसूचित जातिदूनू हाेबाक कारणे केबिनेट मिनिस्टरक पद सॅ नमाजल गेल अछ़ि साेशल वेल फेयर मिनिस्टरहिपहिपहुर्रे़।बङ प्रसन्न छी आय हम एकदम गदगद।अपन परिजन संगे खुशी मनाबए जा रहल छी।
अहू ठामक सांसदक विजय के खुशी में बङका विशाल जूलूस‘जिन्दा बादक’ नारा लगबैत हमर घरक साेंझा राेड सॅ गुजरि रहल अछि ।
अपार शुभ कामना के संग
अहाँक संगी
शैली ।
प्रिय रत्ना
कत्तेक बेर अहाँ के चिठ्ठी लिखलहूॅटेलिग्रामसेहाे पठाैलहूॅमुदा कोनाे जवाब नॅ भेंटल ।कत्तेक ताकि तुकि क’ अहाँ के फाेन नंबर उपरेलहूॅफाेन सेहाे कयलहूॅअहाँ के कोनाे पी ए उठाैलकनाम पता पुछिकनि कालक’ बाद कहैत अछि ‘ मैडम बाहर गेल छथिबाद में कखनाें गप करब ।’बाद में सेहाे कत्तेक बेर फाेन कयलहूॅ एयह जवाब।
हम इर् बूझै लेल व्यग्र छीजे मंत्री के रूप में अहाँ के केहेन केहेन अनुभव भ’ रहल अछि ।कि सब करि रहल छी आदि ।
जाैं चिठ्ठी भेटै त’ अवस्स पहुँचनामा पठैब ।लिखबा के जाैं टाइर्म नै भेटै त’ फाेन सएह खटखटा देबए ।आब त’ अहू शहरि में टेलिफाेन एक्सचेंज लागि गेल छैआ’ घरे घर फाेनभ’ गेलए ।फाेन नं पठा रहल छीआ’ पी ए के सेहाे लिखा देने छी ।
यथाशीघ्र संपर्क करब ।
अहाँकशैली ।
प्रिय रत्ना
आय अहाँ के अहि शहरक नव निर्मित स्टेडियम के उदघाटन करबा के छल ।अहाँ त’ हमरा बिसरिये गेलहूॅमुदा माेन नै पतियाय छल़भेलहमर लिखलाहा वा’ संदेश अहाँ धरि नहिं पहुँच रहल हाेयत ।
भाेरे सॅ हम स्टेडियम के प्रबंधक आ’ गण मान्य जनक संग अहाँ के प्रतीक्षा में एक पएर प’ ठाढ रही किंस्यात अहाँ सॅ भेंट भ’ जाए । ‘अहाँ अयलहूॅउज्जर झक झक सिल्कक नूआमाथ प’ बङ हल्लुक सन आॅचरि रखने़आॅखि के धूपक करिका चश्मा सॅ झॅपनेभीङ सॅ फराक़एक गाेट भव्य व्यक्तित्व ।मुदा आॅखि प’ चढल चश्मा केकारण प्रबंधकक कात मे ठाढ हमराशैली प’ एकटा दृष्टिपात सेहाे नञि कय सकलहूॅ ।कनि ढीठ बनिहम आगाॅ बढलहूॅ त’ एक गाेट अपरिचित सन ‘आैपचारिक‘नमस्ते’ के मुद्रा मेंदूनू हाथ जाेङिलाल रिबन काटि गङगङाति ताली के मध्य उदघाटन समाराेह क’ बाद बङ व्यस्त सन लगैत अपन ताम झाम अमला संग निकलि गेल छलाैंकत्ताै के आर प्राेग्राम छल ।
अनायास सब टा गप हमरा बूझबा में आबि गेल छलवाहमर भ्क खूजि गेल छल ।लागल जे भरल बाजार मे कियो हमरा चाकू मारि क’ हमर करेज निकालि क’ नेने चलि गेल हाेय ।कत्तेक काल थरि हमर बकार नै फूटल छल ।
अहीं के माेताबिकहाँस्टल में हम अहाँ के अपन ‘ बेस्ट फ्रेंङ’ नहिं बूझैत छलहूॅआब लागि रहल अछि‘अहाँ एतेक पैघ नाटक किएक रचने छलहूॅ ।अहाँ के बेचैनी छल किछु करबा केमुदा गाइर्ड के करितै़आब जखन अहाँ ‘ एलीट क्लास ‘के कहबए लगलहूॅपएरक नीचा के सबटा साेपान उखाङि फेंकलहुँस्वाभाविक छल कियाक त’ अहाँ कहियोक कराे बेस्ट कीफ्रेंड थरि कहाबए के जाेगर नहिं छलहूॅ आ’ नहिं हाेयब ।
अहाँक सबटा मगर मच्छी नाेर हमरा एकए क करि क’ माेन पङि रहल अछिआ’ हमर आत्मा जेना हमरे धिक्कारि रहल हाेय ।आेना उपरि सॅ खसबा के आेकरे ड’र रहैत छे जे ऊपर छैहमरा की़ हम त’ नीच्चे ठाढ छीही दैट इज डाउननीड्स फियर नाे फाैल।हॅ जेना ताेता जकाॅ हमरा सॅ नजरि फेर लेलहूॅ तेना कंस्टीचुएंसी के लाेक संग नहि फेरबै़प्रजातंत्र में जनते जनार्दन हाेइर्त छै़जाैं आेहाे अपन मुॅह फेर लेत त’ मूहे बल धङाम सॅ धरती प’ खसब ।इर् हमर एक गाेट पहिल आ’ आखिरी व्यक्तिगत काज बूझब ।
धन्यवाद
एक टा शुभेच्छु
१.जगदीश प्रसाद मंडल--तिलासंक्रान्तिक लाइ २.कुमार मनोज कश्यप-मास्टर साहेब
जगदीश प्रसाद मंडल1947- गाम-बेरमा, तमुरिया, जिला-मधुबनी। एम.ए.। कथा (गामक जिनगी-कथा संग्रह), नाटक(मिथिलाक बेटी-नाटक), उपन्यास(मौलाइलगाछकफूल,जीवनसंघर्ष,जीवनमरण,उत्थान-पतन,जिनगीकजीत-उपन्यास)। मार्क्सवादक गहन अध्ययन। मुदा सीलिंगसँ बचबाक लेल कम्युनिस्ट आन्दोलनमे गेनिहार लोक सभसँ भेँट भेने मोहभंग। हिनकर कथामे गामक लोकक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होइत अछि।
तिलासंक्रान्तिक लाइ
धानक लड़ती-चड़ती पतराइते गमैया विद्यालयमे तिलासंक्रान्तिक पढ़ाइ शुरु भऽ गेल। विद्यालयक लेल ने जगहक कमी आ ने पढ़ौनिहारक। इनार-पोखरिक घाट सन पवित्र स्थान आ बिनु आरक्षणक महिला शिक्षक। शिक्षको इमानदार। ने टयूशन फीस लइत आ ने दरमाहा। पढ़वैक लेल एते उताहुल जे खेनाइयो-पीनाइक चिन्ता नहि। छोट दिन होइतहुँ भानस-भातक कौड़ियो भरि ढकार नहि। पावनिक विषय नमहर तेँ पूरा विषयक शिक्षक तँ नहि मुदा टुकड़ी-टुकड़ी कऽ कए अपना-अपना ढंगसँ अपन हिस्साक विषय पढ़बए लगलीह।
पाँच दिन पहिनहि केदार कलकत्तासँ गाम आबि गेल। ओना ओ दुर्गोपूजामे सभ साल देबे करैत छथि, तिलोसंक्रान्ति सेहो नहिये छोड़ै छथि। कोना छोड़ताह? आब कि कलकत्ता ओ कलकत्ता रहल जे तीनि-तीनि दिन गाड़ीमे बैसल-बैसल देह-हाथ अकड़ि जाएत। आब तँ छह घंटाक रस्ता कलकत्ता थिक। तहूमे केदार अपन गाड़ी रखने छथि चाह-नास्ता कलकत्ताक डेरामे करैत छथि आ कलौ गाममे। हुनके सबहक तँ ई दुनियाँ आ देश छी। एक तँ बैंकक मैनेजरक दरमाहा दोसर कुरसीक कमीशन आ तहिपर सँ अपनो बैंकक शाखा खोलनहि छथि। कमीशने बेकतन तेँ स्टाफोक कमी नहि। कलकत्ता सन शहर जहिठाम भीखमंगो करोड़पति अछि।
गोपाल पेंट-शर्ट पहीरए लगल। अखन धरि तीनूक सिरसिराएल मन आगिक गरमी पाबि बसन्ती हवामे टहलए लगल। बुद्धु पत्नी दिस देखि हाथ पकड़ि पहुँचल फकीर जेकाँ बाजल- ‘‘आइ गोपला हाथसँ चलि जाइत। सबहक अंगनामे पावनिक उत्साह रहितै आ अपना दुनू गोटे बेटाक सोगमे करैत दिन बितैबतौं।’’
पिताक बात सुनि आशा चैंक गेलि। जना भूमकमक धक्का धरतीकेँ लगैत तहिना आशाक हृदयमे धक्का लगल। धड़फड़ा कऽ उठि कोठीपर राखल मुजेलासँ दूटा गोल-गोल लाइ लेने गोपलाक हाथमे देलक। हाथमे चूड़ाक लाइ अबितहि हबक मारलक। मुदा तेहन सक्कत जे ठोर चँछा गेलइ मुदा दाँतसँ लाइ नहि कटलै। माएकेँ कहलक- ‘‘लाइ कहाँ टुटैए।’’
बेटाक बात सुनि आशाक मनमे खुशी उपकल। अपन कारीगरीक परीछामे पास देखि मुस्की दैत पति दिशि देखि बाजलि- ‘‘तेहेन पाकमे लाइ बनौने छी जे बिना सिलौट-लोढ़ीसँ सुनत।’’
बेटाकेँ बुद्धू पुछलक- ‘‘आइ तँ कतौ नाचो-ताँच ने होइ छै तखन किअए तू रातिमे एते दूर चलि गेलेँ।’’
हाँइ-हाँइ गोपाल मुँहक लाइ कऽ चिबा घोटि कऽ माए दिस देखि बाजल- ‘‘लोक सभ साँझमे बजै छेलै जे पोखरिक घाटक तरमे कमलेसरी महरानी लाइ रखै छेथिन। वहाए अनैले गेल रहौं।’’
गोपलाक बात सुनि बुद्धुक मन माहुरा गेल। मने-मन बाजल जे अपना कमेने नहि होएत ओ भोला बावा बड़दक.......। मुदा क्रोधकेँ एहि दुआरे मनमे दबने रहल जे गामक लीला सभ आँखिक सोझमे नचए लगल रहैक। जे सभ जुआनीमे, मद-मस्त भोम्हरा जेँका जिनगी बितौलनि, बेटा-पुतोहूक चलैत मुँहसँ धुँआएल चुल्हि फूकए पड़ैत छन्हि। जाहिसँ दुनू आँखिमे नोर टघरैत रहैत छन्हि मुदा ओ हृदयक व्यथा नहि, धुँआ लागब बुझैत छथि। बुद्धूक हृदय पसीज गेल। मुरखो अछि तइयो तँ बेटे छी। बरखे ने चैदहटा भऽ गेलइ, मुदा भरि दिन तँ असकरे लग्गी लऽ कऽ बोनाएल रहैए। ने खाइक ठेकान रहै छै आ ने नहाइक। तहन बुद्धिसँ भेंट कोना हेतइ?
बेटाक बात सुनि माएक मन उमड़ि गेलनि। बुझबैत बजलीह- ‘‘रौ औआ अपना की कोनो चीजक कमी अछि। जते रंगक धान गिरहतकेँ होइ छै तते अपनो ने होइए। सतरियाक चूड़ा कुटने छी, लाइ बनौने छी आ ओकरे खिचैड़ियो रान्हव।’’
मुदा पुतोहू उत्तर नहि देलकनि। आशाकेँ मन पड़लनि जाड़सँ कँपैत गोपाल।
२.
कुमार मनोज कश्यप
मास्टरसाहेब
परोपट्टा भरि मे मास्टर साहेब के नाम सँ चिन्हल जायवलाभगवानबाबू आब एहि दुनिया मे नहि रहलाह --ई समाचार सुनिते भरि गामक लोकक बीच मे हुनकर व्यत्तिᆬत्व आ कृतित्वक मादें क्रिया-प्रतिक्रिया होमय लागल । हुनकर अंतिम दर्शनक हेतु लोक सभ जुटऽ लागल ।
मास्टर साहेब नेनपन मे पढ़ेने तऽ हमरो छलाह़़ओ गामक स्कूल मे मास्टर आ हम गामक बच्चा़हुनका सँ नहि पढ़ितौं तऽ जयतौं कतऽ ? हमरो मोन कहलक जे गुरूदेवक अंतिम-दर्शन कऽ अपन श्रद्धांजलि दऽ आबी । अपन बाल सखा आलोक सँ पुछलियै- ' चलबैं ?' ओ छुटितहिं मुँह बीचकबैत बाजल- 'धुर् ! की जाऊ देखय हुनका । तेना पढ़ेलनि जे कतहु गोड़ा नहि बैसल । ' ओकर स्वर मे विषाद तऽ स्पष्ट छलैक मुदा मुईनाहर के बारे मे एहन वत्तᆬव्य तऽ साईत नहिये हेबाक चाही ।
पढ़ाई तऽ मास्टर साहेब के ठिके शून्ये छलनि। क्लास मे आबते ककरो ठाढ़ करा कऽ कहैत छलखिन कोनो पाठ जोर सँ पढ़ऽ आ अपने टेबुल पर पैर पसारि लगैत छलाह फोंफ काटऽ । जहाँ केयो कनेको बाजल किं एक दिस सँ सभ के छौंकिंया दैत छलखिन । बच्चा सभ मास्टर साहेब के 'दुख-हरणी '(पाकल बाँसक छौंकी) नामे सँ थर-थर कँपैत छल।
आलोक पर तऽ मास्टर साहेब के खास ध्यान रहैत छलैन । हुनकर घर आ स्कूल सटले छलै । जऽन-हरवाहकपनपीयाई स्कूले लऽ आबथि आ आलोक जा कऽ ओकरा सभ के पनपीयाई कराबय । एकदिन बहाना बनबैत कहबो केने रहनि जे हमर पढ़ाई छुटि जायत । मास्टर साहेब ओहो बहाना के विफल करैत कहने रहथिन - 'तों जो, ताबत हम पढ़ाई रोकने छी । ' ओकरा गेलाक बाद बाजल रहथि - 'कहुना कऽ बईलेलौं ओकरा । ओ क्लास मे रहैत तऽ ककरो पढ़ऽ नहि दैत ।' पनपीयाई पहुँचेबाक बाद व्रᆬमशहे आलोक मास्टर साहेबक कपड़ा खिचब सँ लऽ कऽ घरक अनयान्यो काज करऽ लागल ।
एक दिन मास्टर साहेब क्लास मे आबते आलोक के ठाढ़ होमय कहि कऽ ओकरा कहलखिन- 'अलोक ! काल्हि तोहर बाबू भेटल छलाह। कहैत छलाह जे आलोक हिन्दी मे बड़ कमजोर आछ से कने आहाँ ओकरा पर ध्यान दियौ़साँझ मे एक घंटा पढ़ा देल करियौ । ' पेᆬर आदेशक स्वर मे बजलाह -'तों काल्हि सँ पाँच बजे साँझ मे हमरा ओतऽ आबि जायल कर पढ़बा लेल ।' सभ विद्यार्थी आलोकक मुँह दिस ताकऽ लागल छल । जे मास्टर साहेब क्लास मे नहि पढ़बैत छथिन से आलोक के ट्यूशन पढेथिन ककरो विश्वासे नहि होई ।
स्कूलक छुट्टी होईते तमतमायल आलोक सीधा अपन बाबू सँ जा कऽ पुछलकै जे मास्टर साहेब के की कहि देलियैन । ओ तऽ पहिने चवुᆬएलाह पेᆬर याददाश्त पर जोर दैत बजलाह--' अच्छा, अच्छा । अरे हम किंयैक कहबनि ट्यूशन पढ़ेबाक हेत ु। काल्हि चौक पर अपने कहऽ लगलाह जे आहाँक बेटा हमर विषय मे बड़ कमजोर आछ । ओकरा किंयैक नहि पठा दैत छियै हमरा ओतऽ पढ़ऽ लेल़़हम किं कोनो पाई लेबै। '
से मास्टर साहेब आब नहि रहलाह। हुनकर अंगना मेलोकक भीड़ बढ़ले जा रहल छल । जनि-जाति ओघढ़िया दऽ रहल छल़़पुरूष-पात्र अंतिम-यात्राक तैयारी मे जुटल छल । मास्टर साहेबक नश्वर शरीर भने पंच-तत्व मे विलिन भऽ जाउन ; मुदा हुनकर व्यत्तिᆬत्व के लोक कोना विसरि सकत ।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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