भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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'विदेह' ५५ म अंक ०१ अप्रैल २०१० (वर्ष ३ मास २८ अंक ५५)- PART II
१.राजदेव मंडल-जगदीश प्रसाद मंडलक उपन्यास उत्थान-पतनपर २.जगदीश प्रसाद मंडल-उपन्यास-जीवन संघर्ष-२
१
राजदेव मंडल
जगदीश प्रसाद मंडलक उपन्यास उत्थान-पतनपर
नाटककार, कथाकार आ उपन्यासकारक रुपमे श्री जगदीश प्रसाद मंडलजी मैथिली साहित्यमे नूतन उर्जाक संग उपस्थित भेल छथि। हिनक जन्म १९५७ ई. मे भेल। विभिन्न पत्र-पत्रिकामे हिनक कथा, प्रेरक कथा उपन्यास सेहो प्रकाशित भऽ चुकल अछि।
एहि उपन्यास ‘उत्थान-पतन’ क माध्यमसँ लेखक गामक जिनगीकेँ यथार्थ आ नव रुपमे उपस्थित करबाक चेष्टा कएने छथि। गामक जड़ता, रीति-रिवाज, पावनि-तिहार, मूर्खता, विद्वता, अड़ि जाएबला भाव आ सहज स्वभाव आदि सहज रुपमे आबि गेल अछि।
तत्वक दृष्टिसँ देखल जाए तँ सर्वप्रथम कथावस्तु घ्यानकेँ आकृष्ट करैत अछि। कथावस्तु तँ सशक्त आधार अछि जाहिपर उपन्यासक कतेक रंगक प्रसाद ठाढ़ होइत अछि। जाहिमे जिनगीक श्वास रहब आवश्यक।
उत्थान-पतनमे गंगानंद, यमुनानंद, पंडित शंकर, सुधिया, ज्ञानचंद, भोलिया, विसेसर, भोलानाथ, सुकल, निलमणि, मोहिनी, रीता, महंथ रघुनाथ दास, लीला, दीनानाथ, गुलाब आदि अनेक पात्रसँ सज्जित भऽ अंचलक मार्मिक चित्र उपस्थित भेल अछि।
सामाजिक उत्थान करऽ बला बेकतीकेँ गामक एहि परम्परा आ धार्मिक आडम्बरसँ संधर्ष करऽ पड़ैत अछि। लेखक अपना पात्रक द्वारा अंधविश्वासकेँ तोड़ि परिवर्तन अनबाक प्रयास कएने छथि।
साहित्यक भाषा होएबाक चाही जन-भाषा। जेकरा साधारण जन सहज रुपसँ पचा सकए। एहि उपन्यासक भाषा गाम-घरक बोलचालक भाषा अछि। जेकरा प्रयोग करैत काल सहजहि नव-नव शब्दक निर्माण भऽ गेल अछि। साधारण जनक बोली आ नूतन शब्दक प्रयोग एहि उपन्यासमे प्रचुरताक संग देखल जा सकैत अछि। कथोपकथनमे सहजता संक्षिप्तता आओर स्वभाविकता अछि। जेना एहि कथोपकथनपर दृष्टिपात कएल जा सकैत अछि-
‘‘अगर दसखत कएल नइ होइत होअए तब?’’
‘‘तब की? औंठा निशान दऽ देतइ।’’
‘‘भाय दूटा समांग आएल अछि। दुनूकेँ काज कऽ दहक।’’
‘‘अच्छा थमहह। किरानी बाबूसँ गप्प केने अबै छी।’’
कथोपकथन उपन्यासमे वर्णित जिनगीक अनुकूल अछि। दौड़ैत-पड़ाइत संसारमे बृहताकार उपन्यास पढ़बाक लेल समएक अभाव रहैत अछि। किन्तु भाषा आ शौलीमे जँ आकर्षणक गुण रहैत अछि तँ ओ जनमानसकेँ पढ़बाक लेल अपना दिशि घिचि लैत अछि। ताहि गुणसँ भरल-पूरल एहि उपन्यासक चित्रात्मक शैलीक एकटा उदाहरण देखल जा सकैत अछि।
केहनो अकर्मण्य बेकती जँ पूर्ण मनोयोगक संग आर्थिक उन्नतिमे दत्तचित भऽ जाए तँ हुनक प्रगति होएब निश्चित भऽ जाइत अछि। एहि दर्शनकेँ देखेबाक प्रयत्न लेखक पात्र श्यामानन्द द्वारा कएलनि अछि। परिवर्तनशीलता संसारक निअम थीक। परिवर्तनशीलता संसारक निअम थीक। सामन्तवादसँ पूँजीवाद आ पूँजीवादक गर्भहिसँ समाजवादक जन्म सेहो होइत अछि। ई अलग बात जे पूँजीवादसँ साम्राज्यवाद सेहो पनपैत अछि।
सामाजिक उत्थान समितिक निर्माण कऽ लेखक ई देखबए चाहैत छथि जे टूटैत गामक लेल एकता आवश्यक भऽ गेल अछि। जाहिसँ एक-दोसराक सहयोग भेटतैक आ गामक सम्पूर्ण विकास होएतैक। सबहक संगे सामाजिक न्याय होएतैक। श्यामानन्द द्वारा आधुनिक यंत्रसँ कृषि कार्य होइत अछि। जाहिसँ ओ सम्पन्न किसान बनि जाइत अछि। एहि माध्यमसँ लेखक देखाबए चाहैत छथि जे अपनहुँ गाम-घरमे जँ बेकती विवेक आ कर्म निष्ठासँ काज करए तँ ओकरा अर्जन करबाक लेल दोसर प्रदेश नहि जाए पड़तैक आ पलायन रुकि जएतैक।
एखनहुँ गाम-घरमे पूर्ण ज्ञानक किरिण नहि पहुँचि सकल अछि। ताहि कारणे एक गाम दोसर गामसँ लड़ैत-झगड़ैत अपना विकासकेँ अवरुद्ध कएने रहैत अछि। बेमारीकेँ डाइन-जोगिन आ भूत-प्रेतक प्रकोप मानैत अछि। ई समस्या सभ सहजहि एहि उपन्यासमे उपस्थित भऽ गेल अछि। एहि तरहेँ देखैत छी जे लेखक गामक यथार्थ जिनगीक चित्र उपस्थित कएने छथि, संगहि आदर्श रुप सेहो दृष्टिगत भऽ रहल अछि।
2
जगदीश प्रसाद मंडल1947- गाम-बेरमा, तमुरिया, जिला-मधुबनी। एम.ए.। कथा (गामक जिनगी-कथा संग्रह), नाटक(मिथिलाक बेटी-नाटक), उपन्यास(मौलाइलगाछकफूल,जीवनसंघर्ष,जीवनमरण,उत्थान-पतन,जिनगीकजीत-उपन्यास)। मार्क्सवादक गहन अध्ययन। मुदा सीलिंगसँ बचबाक लेल कम्युनिस्ट आन्दोलनमे गेनिहार लोक सभसँ भेँट भेने मोहभंग। हिनकर कथामे गामक लोकक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होइत अछि।
रबिन्द्रबाबु – ( समझबैत ) देखियौ अहँा सँ सम्वन्ध करबाकेलेल हम एकदम तैयार छि । अहाँके घरमे हम अपन बेटाके सम्बन्ध करब यि त सपनोमे नै सोचने छलौ ।
लिलाम्बरजी – नै–नै अपने यि कि कहल जाय छै । अपनेसँ हम कुटमैती करव यि त हमरालेलअहो भाग्य अछि । हम आय बहुत खुश छि ।
रबिन्द्रजी – मुद्दा एकटा बात ।
लिलाम्बरजी – ( घवराति ) कोन बात?
रबिन्द्रजी – हमर इच्छा अछि कि, आन विवाह स या कहि दोसर गाउँके विवाह स कनेक हटि क अपन बेटाके विवाह करी । ताकि लोको कहे कि हँ रबिन्द्रबाबु किछु नाँयापन देखिलखिनहँ अपन बेटाके विवाह स ।
लिलाम्बरजी –कहलजाय न त केहन नयाँपन ?
रबिन्द्रबाबु – देखियौ विवाह दानमे कतौ देवलेव नै होइछै मुदा अै विवाहमे हम अहँा देबलेव करु ।
लिलाम्बरजी – देबलेब ? ( घबराक ) केहन देबलेब ?
रबिन्द्रबाबु –( मजाक क कऽ ) केहन देबलेब । किछ ददिअ, ५ छिटी मकै ददिअ । मरुवा ददिअ, धान ददिअ । जाय स सारा गाँउमेे यि हल्ला चले कि, फलना गाँउमे फलनाके घरमे बिवाहमे धान,मकै मरुवा सन चिज लेलकैय ।
लिलाम्बरजी– ( हसैत ) मकै, धान, मरुवा,ठिक छै कोनो बात नै, हम अहँाके देवाके लेल तैयार छि । चलु ओमहर जा कऽ बातचित करिछि ।
( दुनु आदमी उठिछथि आ आगा बढिछथि )
रबिन्द्रबाबु – हमरा बिचारमे अैगला महिनामे विवाहके दिन राखलजाय ।
लिलाम्बरजी – जी, हमरो बिचार सयाह अछि ।
( ओ सव बातचित करैत आगा बढतिछथि । रस्तामे एकटा घैला राखल रहैय । घैलामे कोनो राक्षसके मुहँ बनाओल रहिछै । रविन्द्रबाबु बातचित करबाके क्रममे वै घैलाके लात सँ मारिछथि आ वो घैला फुटिजाइछै । घैला फुटिते एकटा तुरुन्तके जन्मल मुद्दा आन बच्चा सँ फरक किसिमके बच्चा निकलैय आ जोर जोर सँ हाँस लगैय । हसैत–हसैत वो बच्चा उडिजाइछै । आ जा क बैसैछै एकटा पहाड पर । )
नेपथ्यसँ ः– ( अहि प्रकार स गाउँ गाउँमे विवाहमे किछ ल कऽ विवाहके उत्सव मनेबाके चलन चल लागल । आ जन्मल ( बच्चाके अवाजमे ) दहेज–१० )
( दृश्य २ )
( गाउँके दृश्य अछि । साँझके समय बस्ती स कनेक आगा खेत दिस ३ टा युवा मदिरा सेवन क कऽ एक दोसरके बातके काट पर भिरल छथि । )
युवा १– सुन हमरवात । हम ओहिना नै दारु पिलीयौव्ा । अपना गाउँके खपटी बुढीया जे छौनै उ बुढीया चलैत –चलैत गीरपरलैय । हमरा दाया लागिगेल आ जा कऽ ओक्रा हम उठादेलियौव वै के वाद ओ बुढीया हमरा कथि कहलक बुझल छौ ?
( युवा २ आ ३ ) ( एकवेर )ं–कथि ?
युवा १ –धन्यबाद बौवा । जहिना तो हमरा उठादेलेहँ तहिना भगवान तोरोउठादेथुन । हमरा जे भगवान उठादेतै त हमर बाल–बच्चाके के पोसि देतै ?
युवा २ – तोहर दुख कोनो दुख नै छौ हमरा दुखके आगामे । सुन ह म कथिला मदिरा सेबन कैलियौव । हमरा घरमे एतेक मच्छर छौ । राइतमे जे हम सुतऽ जबौ, हमरा उ मच्छरसब एतेक माया करतौ, एतेक माया करतौ कि कि कहियौ । सव मच्छरसव मिलक ऽहमराउठाकऽ घरकेखपरा छुवाबके प्रयाश करतौ ओमहर उडिससव मिलकऽ हमरा भितर स जोर स पकरने रहतौ । बलु नै लजायदेबौ । बातो ठिके है । मच्छर सब जे हमरा लजायत खपरा छुवाबला आ कहु उपर छोरिदेलक त हम त गेली हाबा खाय । देह हात टुटीजायत । धन्यवाद देइछी वै उडिससबके जे कमतीमे पकरने रहैय । राइतभैर अै मच्छर आ उडिसके लडाइ स तंग भऽक हम मदिरा सेबन कैलीयौव ।
युवा ३ – तोहर दुनुके समस्या त–किछ नै छौ हमरा सामनेमे ।
-घोडाके अवाज अवैत अछि । तखने एकटा युवक जोर जोर सँ बाजलगैय । भागु–भागु दहेज आवीरहल अछि । हो काका हो भागा होउ गे दाइ गे भाग गेइ मँगलाके माइ गे भाग गेइ दहेज आबिरहल छौ । गाउँमे कुताके भूकनाइ तक बन्द । तखने राक्षस सन मनुष्य सबके घोडापर प्रवेश होइत अछि । १ टा राक्षस आगा–आगा आ ६–७ टा राक्षस पाछा–पाछा घोडा सँ अबैत अछि )
दृृश्य ३ –
(राक्षस पुरा गाउँ पर नजर फेरैत बजैय ।)
दहेज–दहेजके अै गाउँमे अबिते कुताके भुकनाइ बन्द । सुन गँउवासब
तोरा सबके साइत हमरा नै समझाव परत कि, जे हमर बात नै मानै छैओकर कि हालहोय छै । जखन हम सबके कहिदेने छियौ कि, अै गाँउमे, पुरा देशमे संसारमे यदि ककरो विवाह होतै त देवलेव होवहीके चाहि । वैके बाद सब स पहिले हमरा न्यौता परके चाहि, मुद्दा अै गाउके चलितरा हमरा अपन माउस खायके लेल नेयौता देलक । (बजबैत) हिरिङगा ।
( पाछा स घोडा पर बैसल एकटा राक्षस )
हिरिङगा – भगवान ।
दहेज – चलितराके घरमे जो ओकरा पिटैत निकाल ।
-हिरिङगा चलितरके पिटैत धकियबैत निकालै छै आ घरक लोक चलितरके छोडाबके लेल हात पैर जोरैत कनैत निकलैय )
हरिङगा – ( दहेज स ) भगवान, सार आबके लेल माइन्ते नै छल ।
युवा – रेइ दहेज रे मर्दाबाके बेटा छे त आ अकेले–अकेले फर्चियाले । रे दहेज लेइछे काहाँदुन । माइ करे कुटाओन पिसाओन पुतके नाम दुर्गादत । कोढीया । आ एकले देखैछियौ कतेक मायके दुध पिने छे । ३२ सो दात नै तोरिकऽहातमे धरादेलियौ त देखिहे ।
(दृश्य ८)
-दहेज गरम लोहाजका लाल भऽक सबटा अंगरक्षक राक्षसके आदेश देइछथि । )
दहेज – हम ऐकरा माइर कऽ अवैछि । तोसब अहि ठाम रह ।
-दहेज अकेले दौरैछथि युवाके मारला । युवा भगैत भगैत कनेका दुर लजाइत अछि । तखने १०–१२ टा युवा आर्दश विवाह लिखल बरका लाल बैनर लऽक अबैय । दहेजके ओ बैनेर देखेत होस उडी जाइछै । दहेजक अंगरक्षकसब हमला करैछथि युवासबपर मुद्दा युवासब केउ अपना जेवी सँ रुमाल निकालैछथि त केउ सर्ट खोली कऽ गंजी मात्र पहिरकऽठारह भजाइछथि । तहिना केउ बैनर पकरने रहैय । गंजी आ रुमालपर आर्दश विवाह लिखल रहैछै । ओ देख देख कऽ सब राक्षस सब केउ घेट पकैरक त केउ तलमला तलमलाकऽ चिच्चा–चिच्चा कऽ मैर जाति अछि । दहेज भागऽ लगैये पहाडदिस । सबयुवासब दहेजके खेहार लगैय । खेहारैत खेहारैत दहेजके पकैर कऽ अर्दश विवाह लिखल ललका कपडा सँ दहेजके झापी देइछै ।
आ ललका पकडाके हटैलाके बाद ओहि ठाम छाउर मात्र रहैछै ।जाहिके देख कऽ युवासबके मुखपर मुस्कान आविजाइछै । ओसब आर्दशविवाहके ललका कपडा लऽक अगा बढैत फ्रिज भजाइछै ।
१. बेचन ठाकुर,नाटक-‘छीनरदेवी’२.राधा कान्त मंडल ‘रमण’-कने हमहूँपढ़व
बेचन ठाकुर , चनौरा गंज, मधुबनी, बिहार।
‘छीनरदेवी’बेचनठाकुरक-
बेचन ठाकुर
(चनौरा गंज) दृश्य तेसर
(स्थान-सुभाष ठाकुरक घर। दुनू परानी ललनक विषएमे गप-सप करैत छथि।) मीरा- यै ललनक बाबू, हमर विचार अछि जे आब ललनकेँ कोनो बढ़ियाँ धाइमसँदेखाए दियौक। सुभाष- यै ललनक माए, रातिमे अपन घरक गोसांइ काली बंदी हमरा सप्पन देलनिजे बौआकेँ कोनो चिक्कन धाइमसँ देखा। हम पुछलियनि जे के चिक्कन धाइम छथितऽ ओ कहलनि जे खोपामे रोडक कातमे परवतिया कोइर नामक एकटा धाइम छथि, ओएकदम सिद्ध धाइम छथि आ ओ जे किछु कहैत छथि से उचितो मे उचित। ओतए तोरामोनक भ्रम दूर भऽ जेतौक। मीरा- ललन बाउ, घरक गोसांइ बड़ पैघ होइत छथिन्ह हुनक कहल नहि करबनि तँकिनक कहल करबनि। सुभाष- हँ हँ हुनक कहल करबाके अछि! ललन, ललन, बौआ ललन।
(ललनक प्रवेश। ललन बताहक अवस्थामे छथि।) ललन- हमरा तों बौआ किएक कहैत छह? हम तोहर बौआ नहि छियह। हम तोहर नानाछियह। आइसँ तों हमरा नाना कहह। सुभाष- ललन नाना, हमरा सङे चलू एकठाम मेला देखै लए। मएओ जेतीह। ललन- हम पएरहि नहि जेबह। हम कनहापर जेबह। सुभाष- चलह ने, बेसी कनहेपर चलिह आ कने-मने पएरो। ललन- बेस चलह। हमरा ओतए रसगुल्ला, लाय मुरही, झिल्ली किनि दिह। बगियोकीनि दिह। मीरा- चल ने, सबटा कीनि देबौक।
(सुभाष, मीरा ओ ललन जा रहलाह अछि परबतिया कोइर ओहिठाम। परबतिया गहबरमेबैसल छथि! मृदंग बाजि रहल अछि। किछए कालमे परबतियाक देहपर काली बंदीसवार भऽ जाइत छथिन्ह। मृदंग बजनाइ बन्द भऽ जाइत अछि) परबतिया- होऽऽऽ बोल जय गंगा। बोल जय गंगा। काली बंदी छियह हम। बोल जयगंगा। बाजह, के कहाली छह? बोल जय गंगा। जल्दी लग आबह। बोल जय गंगा जल्दीआबह। हमरा जेबाक छह बाबा धाम। फेर गंगोकेँ देखनाइ अछि।
(तीनू परानी लग जाइत छथि। ललन देह-हाथ पटकि रहल अछि। मूरी हिलाए रहलअछि।भगत पीड़ि परसँ माटि लऽ कऽ ललनक देहपर फेंकलथि। ललन शांत भऽ जाइत अछि।भगत ललनक माथक पूरा पकड़ैत छथि।) परबतिया- हओ बाबू, एकरा केलहा नहि छह। जे कियो तोरा कहैत छह जे एकराकेलहा अछि से तोहर कट्टर दुश्मन छियह। तोरा दुनू दियादमे झगड़ा लगाबएचाहैत छह। बोल जय गंगा। काली बंदी छियह। हओ बाबू ओ तोरासँ ऊपरे ऊपरमुँह धएने रहैत छह। ओ आस्तीनक साँप छियह। हओ बाबू तोड़ै लऽ सब चाहैत अछिमुदा, जोड़ै लऽ कियो नहि। बोल जय गंगा। ओ बड़का धुर्त्त छह, मचण्ड छह। सुभाष- सरकार, हमरा बहुते लोक कहलक जे अहाँक छोटकी भाबो पहुँचल फकीरअछि।ओकरहि ई कारामात छी। परबतिया- बोल जय गंगा। हओ बाबू, कने तोहुँ सोचहक, अकल लगाबहक जे जदिडाइनकेँ एतेक पावर रहितैक तँ ओ अपन विद्यासँ सौंसे दुनियाँपर शासन करैतरहितैक। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य मंत्री, एस.डी.ओ., कलक्टर, थाना-पुलिस बैंक सभटा वएह रहितैक ने। बोल जय गंगा। हओ बाबू, डायनपरविश्वास केनाइ खाटी अंध विश्वास छी। ई मोनक भ्रम छी। ई मोनक शंका छी।बोल जय गंगा। हओ बाबू, अगर शंकाबला आदमी केकरो हँसैत देखि लेलक तँ ओकरोहोइत छैक जे ओ हमरेपर हँसल। तें हम यएह कहबह जे तों नीक लोक लागैत छह, एहि भ्रममे नहि पड़ह। नहि जौं पड़लह तँ सत्यानाश भऽ जेतह। हम तोरहि घरगोसांइ काली बंदी बाजैत छियह। बोल जय गंगा। हओ बाबू, आब हमरा देरी भऽरहल छह, हमर विमान ऊपरमे लागल छह। मीरा- सरकार, ई ठीक कोना होएत, से उपए बता दथुन्ह न? ई एना किएक करैतअछि? परबतिया- बोल जय गंगा। हओ बाबू, एहि छौंड़ाकेँ छीनर देवी लागलि छह। सुभाष- छीनरदेवी हटत कोना? परबतिया- हँ हटत, नहि किएक हटत? जल्दी तों एकर बिआह केहनो लड़कीसँ करह।सभ ठीक भऽ जेतह। आओरो कोनो कष्ट छह? सुभाष- नहि सरकार, जदि अपने सहाय रहबैक तँ कोनो कष्ट नहि होएतैक। मीरा- सरकार, कने विभूति दए दिअ।
(परबतिया मीराकेँ विभूति देलनि।) परबतिया- बोल जय गंगा। बोल जय गंगा। बोल जय गंगा। आब हम जाइ छियह। बाबाधाम।
(कहैत कहैत काली बंदी चलि जाइत छथि।) सुभाष- सरकार, अपनेक दक्षिणा? परबतिया- पाँच टका मात्र। सुभाष- सरकार एतबै? परबतिया- हँ पाँचहि टका मात्र। उहो गहबरमे प्रसाद चढ़ाबए लेल। हमरागहबरमे ठकै फुसलबै बला काज नहि होइत अछि। हमरा गहबरमे कलयाणक आ संतोषकगप होइत अछि। शंका वा भ्रम बढ़ाबए बला नहि, पूर्णतः हटाबए बला गप होइतअछि आब अपने सभ जाउ। एकर बिआह जल्दी करु, छीनरदेवी भागि जाएत।
(तीनू परानी माथा टेक कऽ प्रणाम करैत छथि आ आर्शीवाद लऽ कऽ प्रस्थानकरैत छथि।) पटाक्षेप दृश्य चारिम क्रमशः
2.
राधा कान्त मंडल ‘रमण’ जन्म- 01 03 1978 पिता- श्री तुरन्त लाल मण्डल गाम- धबौली, लौकही भाया- निर्मली जिला-मधुबनी षिक्षा- स्नातक
मैथिली एकांकी
कने हमहूँ पढ़व
पात्र परिचय
1. धनिकलाल पंचाइतक मुखियाजी छथि।
2. चम्पत लाल मुंशी मुखियाजीकेँ
3. दुखना गरीव व्यक्ति
4. दुखनी ‘‘ ’’
5. अमर ‘‘ ’’
6. रीता ‘‘ ’’
प्रथम दृश्य
(दुखना दुखनी अपन घरमे जीवनकेँ पलक घड़ी दुखसँ वितबैत छलै जेकरा एकसांझक भोजनपर आफद छल। ई बात अपनामे विचार करैत दुखना आ दुखनीक प्रवेशहोइत अछि। दुखनी आंगन घरक काज करैत छलि आ मने-मन विचारैत छल जे हेभगवान आइ हम आ हमर धिया पुता खाएत की तहि बीचमे दुखनाक प्रवेश)
दुखना- सुनै छहक ने?
दुखनी- अहाँ बाजू ने की भेल हेँ?
दुखना- आइ बच्चा सभ की खतौ घरमे किछो छौ कि नाइ, हम तू तँ भूख मेटा लेवआ बच्चा कोना रहतौ।
मुंशी- (कपैत बाजलाह) जी......जी हुजूर हम आब बुझि गेलौं, जे...... जेपाँच हजारमे जेतै न मुऽऽ....मुखिया जी।
मुखियाजी- (हँसैत) ई भेलौ ने एकटा मुंशीया बुद्धि ई तँ बुझि जे हमराअन्नक असर।
तेसर दृश्य- क्रमशः
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
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