भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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'विदेह' ५५ म अंक ०१ अप्रैल २०१० (वर्ष ३ मास २८ अंक ५५)- PART III
प्रेमशंकर सिंह: ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा।मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिलीनाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचाप्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिलीअकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशनभागलपुर२००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओनाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८। २००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगायात्री-चेतना पुरस्कार।
चेतना समिति ओ नाट्यमंच
सांस्कृतिक, साहित्यिक आ कलाक मुख्य केन्द्र रहल अछि बिहारक प्रशासनिक राजधानी पटना। जीवकोपार्जनार्थ मिथिलांचलवासी प्रचुर परिमाणमे एहि महानगरमे निवास करैत छथि। मैथिली भाषा-भाषीक एतेक विशाल जनसंख्या वाला महानगरक मातृभाषानुरागी लोकनिक सत्प्रयाससँ अपन भाषा आ साहित्य ओ रंगमंचक विकासमे महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह कयलक समानार्थी अछि, कारण एहि क्षेत्रमे जे किछु अवदान अछि ओ पटना आ चेतना समितिक योगदान एकहि बात थिक। आब ई प्रयोजनीय भ’ गेल अछि जे जनमानस ओहि अवदानकेँ जानय आ जँ महत्वपूर्ण अछि तँ ओकर मुक्त कण्ठे प्रशंसा क’ कए ओकरा स्वीकार करय। रंगमंचक क्षेत्रमे चेतना समितिक नाट्यमंचक अवदानक पूर्ण मिथिलाञ्चल एवं मिथिलेत्तार क्षेत्रक अवदानसँ परिचित होयबाक हेतु प्रेमशंकर सिंह (1942)क मैथिली नाटकक ओ रंगमंच (1978), मैथिली नाटकक परिचय (1981), जीवन झा (1987),नाट्यान्वाचय (2002)क एवं चेतना समिति ओ नाट्यमंच (2008)क अवलोकन कयल जा सकैछ।
ई निर्विवाद सत्य थिक जे मिथिलाञ्चल आ मिथिलेत्तर क्षेत्रमे मैथिली रंगमंचक शौकिया रंगमंचक संख्या अत्यन्त सीमित अछि। यद्यपि बीसम शताब्दीक तृतीय, चतुर्थ आ पंचम दशकमे समग्र भारतीय स्वतंत्रता-संग्राममे संलिप्त रहला, जाहि कारणेँ नाटकक सदृश समवेदक कलात्मक सृजन विकसित नहि भ’ पौलक, तथापि यत्र-तत्र पौराणिक, ऐतिहासिक तथा सामाजिक नाटकक मंचन होइत रहल। एहन प्रस्तुतिक मूल उद्देश्य छलैक राष्ट्र आ समाजक समक्ष एक उच्च कोटिक आदर्श प्रस्तुत करब। एहन शौकिया रंगमंच अत्यल्प संख्यामे समाजक संग जुड़ल आ एहिसँ आगॉं बढ़ि क’ ओ ने तँ जीवनक अभिन्न अंगे बनि सकल आ ने सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं कलात्मक विकासक माघ्यमे।
स्वतंत्रात्मक पश्चात् व्यक्ति-व्यक्तिक दृष्टिकोणमे परिवर्त्तन भेलैक आ समाजमे सांस्कृतिक साहित्यिक एवं कलात्मक विकासक अवरुद्ध द्वार खुजि गेलैक। स्वाधीनोत्तर युगमे सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं कलात्मक स्थितिक यथार्थ चित्रण जानबाक, बुझबाक आवश्यकता महसूस भेलैक समाज एवं जनमानसकेँ। सामान्य जनमानसक सुख-दु:ख, आशा-निराशा, कुण्ठा संत्रास, असन्तोष, क्षोभ, क्रोध एवं जीजिविषाकेँ वाणी देबाक हेतु नाटकककारक अन्तर उद्वेलित भेलनि आ एहि दिशामे सोझे-सोझ स्थितिक वर्णन करबाक हेतु नाटकक आश्रय लेलनि । शनै:-शनै: रंगमंच सामाजिक जीवनक सन्निकट अबैत गेल आ वर्त्तमान स्थितिमे तँ ओ एक अभिवाज्य अंग बनि गेल अछि। एकर परिणाम एतबे नहि भेलैक जे शौकियाक संगहि-संग अर्द्ध व्यावसायिक वा व्यावसायिक स्तरपर जनमानस रंगमंचक महत्वकेँ स्वीकारलक। एहिमे सबसँ क्रान्तिकारी परिवर्त्तन भेल जे महिला समुदाय एहिमे अपन सहभागिता देब प्रारम्भ कयलनि। हुनका सभक सक्रिय सहभागिताक फलस्वरूप शनै:-शनै: ई मानव जीवनक अविभाज्य अंग बनय लागल, किन्तु अत्यन्त दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति थिक जे मिथिलाञ्चल वा मिथिलेत्तर क्षेत्रमे अद्यापि व्यावसायिक रंगमंचक प्रादुर्भावे नहि भेलैक।
पटना सदृश महानगरमे चेतना समितिक तत्वावधानमे नाट्यभिनयक यात्राक शुभारम्भ भेलैक तकरे फलस्वरूप नाट्यमंचनक परम्पराक सूत्रपात भेलैक जाहिमे गृहिणी महिला वर्गक सहभागितासँ एकर प्राणमे नव स्पन्दन भरलक जे अनुर्वर छल। चेतना समितिक स्थापनोपरान्त सांस्कृतिक गतिविधिक संगहि-संग रंगमंचक क्षेत्रमे नवजागरणक संचार भेलैक सन् 1954 ई. सँ। किन्तु आम्भिक कालमे अनवरत एकाँकीक मंचन होइत जकर विवरण्ा आगाँ प्रस्तुत कयल जायत, मुदा सन् 1973 ई. सँ अद्यपर्यन्त एकांकी वा नाटकक मंचन होइत अाबि रहल अछि। भारतीय गणतंन्त्रमे एहन कोनो महानगर, नगर आ कस्बा नहि अछि जतय नियमित रूपसँ नाट्य-प्रस्तुति नहि होइत अछि, किन्तु नाट्यमंच अपन प्रस्तुतिसँ एकरा मूर्त्त रूप प्रदान करबामे सक्षम सिद्ध भेल अछि।
चेतना समितिक तत्वावधानमे आयोजित विद्यापति पर्वक प्रति शनै:-शनै: जनमानसमे एक प्रबल ज्वारक उद्भावना होइेत देखि एकर कार्यकारिणी समितिक अघ्यक्ष दिवाकर झा (1914-1997) एवं सचिव जटाशंकर दास (1923-2006) अनुभव कयलनि जे ई संस्था मात्र साहित्यिक गतिविधिपर केन्द्रित नहि रहय, प्रत्युत एकरामे अत्यधिक गतिशीलता अनबाक हेतु आ ओहन जनमानसक संग।जोड़बाक प्रयोजन बुझलनि जकरा हेतु मनोरंजनक किछु एहन कार्यक्रम सुनिश्चित कयल जाय जे अधिकाधिक संख्यामे जन्मानस एहि आयोजनमे सहभागी बनि सकथि तथा एकर क्रिया-कलापमे अपन उपस्थिति दर्ज करा सकथि। एहि सोचकेँ क्रिया रूप देबाक निमित कार्यकारिणी समिति एक उपसमिितक गठन कयलक जाहिमे बाबू लक्ष्मीपति सिंह (1907-1979), आनन्द मिश्र (1924-2006), गोपाल जी झा गोपेश (1931-2007) एवं कामेश्वर झाकेँ ई भार देल गेलनि जे एकरा कोना क्रियान्वित कयल जाय ताहि प्रसंगमे अपन ठोस विचार कार्यकारिणी समितिक समक्ष प्रस्तुत करथि। उपसमितिक सदस्य लोकनि एक स्वरेँ अपन विचार कार्यकारिणीक समक्ष प्रस्तुत कयलनि जे मिथिलांचलक गौरव-गरिमाक पुनर्राख्यान आ नाट्य साहित्यिक पुरातन परम्पराकेँ पुनरूजीवित करबाक हेतु एहि मंचसँ नाट्यभिनयक परम्पराक शुभारम्भ कलय जाय। उपसमितिक विचारसँ सहसत भ’ कार्यकारिणी समिति जनमानसक हृदयमे मातृभाषानुरागकेँ जागृत करबाक निमित नाट्योजनक प्रयोजनीयताक आवश्यकता अनुभव कयलक तथा एकरा क्रियान्वित करबाक दिशामे प्रयासरत भेल।
समिति अपन प्रयोगवस्थामे नाट्ययोजनक शुभारम्भ नाटकसँ नहि क’ कए एकांकीसँ करबाक निश्चय कयलक, कारण ओहि समय मैथिलीमे अभिनयोपयोगी नाटकक सर्वथा अभाव छलैक आ एकहि नाटकककेँ बारम्बार अभिनीत करब समुचित नहि बुझलक उपसमितिक स्दस्य लोकनि अभिनयोपयोगी एकांकीक अन्वेषण करब प्रारम्भ कयलनि। अभिनयोपयोगी एंकाकीक हेतु मैथिलीक वरेण्य साहित्य-मनीषी लोकनिक संग सम्पर्क साधल गेल। एहि दिशामे उपसमितिकेँ सफलता भेटलैक जे समकालीन मैथिली साहित्यपर अपन अमिट छाप छोड़ निहार बहुविधावादी रचनाकार हरिमोहन झा (1908-1989) सँ सम्पर्क साधल गेल आ हुनकासँ अनुरोध कयल गेल जे एक एहन एकांकी अभिनेयार्थ समितिकेँ उपलब्ध कराबथि जाहिमे मिथिलाक विद्या-वेदायन्ताक गौरवगाथाक उल्लेख हो। ओ समितिक एहि आग्रहकेँ स्वीकार क’ मण्डन मिश्र (1958) एकांकीक रचना क’ कए ओकर पाण्डुलिपि समितिक तत्कालीन पदाधिकारी लोकनिकेँ उपलब्ध करौलथिन जे मिथिलाक अतीतकेँ उद्भाषित करैछ जाहिसँ जनमासन रचित भ’ सकथि।
अभिनयोपयुक्त एकांकीक पाण्डुलिपि उपलब्ध भेलाक पश्चात् समितिक पदाधिकारी लोकनि अत्यधिक उत्साहित भ’ निर्णय लेलनि जे अद्यापि मैथिली रंगमंचपर महिला अभिनेत्रीक भूमिकामे मिथिलाञ्चल वा मिथिलेत्तर क्षेत्रमे पुरुष अभिनेतहि द्वारा अभिनेत्रीक भूमिकाक निष्पादन कराओल जाइत छल, ताहि परम्पराकेँ खण्डित करबाक दिशामे समिति सोचब प्रारम्भ कयलक। ई अनुभव कयल जाय लागल जँ महिला कलाकार उपलब्ध भ’ जाथि तँ नाट्य मंचन विशेष स्वाभाविक भ’ जायत। मुदा ई एक जटिल समस्या छल। महिला कलाकार औतीह कतयसँ? कोनो मैथिलीक मंचपर आबि अभिनय करथि से सोचनाइयो साहसक काज छल, तखन प्रस्ताव राखब आ मना क’ हुनका मंचपर उतारब आ ओर कठिन छल। समिति मैथिली रंगमंचपर एक क्रान्ति अनबाक दिशामे प्रयासरत भेल, कारण समितिक सतत प्रयास रहल अछि ले एहि मंचसँ एहन अभिनव कार्य कयल जाय जकर सुपरिणाम हैत जे जनमानसक हृदयमे रंगमंचक प्रति आकर्षण भावनाक उदय होयतैक तथा नाट्यभिनयमे स्वाभाविकता आ ओ तँ कोनो मैथिलानी रंगमंचार आबि अभिनय करथि ई सोचबो निराधार छल। ई अत्यन्त साहसक काज छल, तखन किनको समक्ष एहन प्रस्ताब रखबाक आ हुनका मना क’ मंचपर उतारब ओहूसँ कठिन छल। समिति सोचलक जे ओही मैथिलीनीक समक्ष प्रस्ताव राखल जाय जनिका हृदयमे मैथिल संस्कृतिक उत्कर्षमय परम्परामे आयोजित होइत सांस्कृतिक अनुष्ठनावा कार्यक्रमक प्रति आकर्षण आ आगाध श्रद्धा होइन। समिति एहि विषयसँ पूर्ण परिचित छल जे हरिमोहन झा उदारवादी प्रगतिशील विचार-धाराक साहित्य-मनीषी छथि तेँ समितिक पदाधिकारी लोकनि हुनक आश्रयमे उपस्थित भ’ अपन मनोभावनाकेँ रूपायित करबाक निमित्त हुनकासँ सविनय साग्रह अनुरोध कयलक जे एहि योजनाकेँ क्रियान्वित करबाक निमित्त कृपया अपन धर्मपत्नी सुभद्रा झा (1911-1982)केँ अपन एकांकीमे भारतीक भूमिकामे अभिनय करबाक अनुमति प्रदान कयल जाय। किछु क्षणतँ ओ इत्तस्ततःक स्थितिमे आबि गोलाह जे की कयल जाय? ओ अपन रचनादिमे मिथिलाञ्चल नारी जागरणक गखनाद करैशं रहथि तेँ ओ अपन उदारवादी दृष्टिकोणक परिचय दैत सहर्ष सांस्कृतिक चेतना सम्पन्न, मैथिल समाजक समक्ष एहि चुनौतीकेँ स्वीकार क’ कए युग-युगसँ आबि रहल बन्धन केँ तोड़ि मंचपर अयलीह आ सुभद्राकेँ मण्डन मिश्रक पत्नी भारतीक भूमिकामे रंगमंचपर उपस्थित हैबाक अनुमति देलथिन जे सर्वप्रथम मैथिलानी रंगकर्मीकरूपमे मैथिली रंगमंचपर अवतारित भ’ एहि अवरुद्ध धाराक द्वारकेँ भविष्यक हेतु खोलि देलनि जकरा एक ऐतिहासिक घटना कहब समुचित हैत आ मैथिल समाजक हेतु प्रकाश स्तम्भ बनि गेलीह।
मैथिली रंगमंचपर सुभद्रा झा पदार्पण महिला रंगकर्मीमे एक क्रान्ति आनि देलक। चेतना समिति एवं रंगमंच हेतु ई एक ऐतिहासिक घटना भेलैक आ मैथिली रंगमंचक इतिहासमे एक नव अघ्यायक शुभारम्भ भेलैक। हुनकासँ अनुप्राणित भ’ पटना विश्वविद्यालक स्नातकोत्तर विभागक एक छात्रा पनिभरनीक भूमिकामे रंगमंचपर उपस्थिति दर्ज करौलनि ओ छलीह अहिल्या चौधरी। एहि एकांकी अभिनय भेल छल लेडी स्टीफेन्सस हालमे। मण्डन मिश्रक भूमिकामे उतरल रहथि आविर्तक उपसम्पादक यदुनन्दन शर्मा आ हुनक पत्नी भारतीक भूमिकामे सुभद्रा झा। पनिभरनीक भूमिका कयने रहथि अहिल्या चौधरी आ ठिठराक भूमिकाक निर्वाह कयने रहथि इण्डियन नेशनलक इन्द्रकान्त झा।
विगत शताब्दीक षष्ठ दशकक उतरार्द्ध अर्थात् सन् 1958 ई. मे चेतना समितिक रंगमंचपर एहि एकांकीक सफलतापूर्वक मंचस्थ कयल गेल तथा महिला रंगकर्मी अपन सहभागितासँ एकरा अधिक प्राणवन्त बनौलनि। सुभद्रा झा एवं अहिल्या चौधरीक मैथिली रंगमंचपर उपस्थिति आ हुनका सभक अभिनय कौशल एतेक बेसी प्रभावोत्पादक भेल जे महिला वर्ग एहि कलाक प्रदर्शनमे अपन कुशल कलाकारिताक परिचय देलनि जाहिसँ प्रोत्साहित भ’ अधुनातन रंगमंच एतेक विकसित भ’ सकल अछि तकर श्रेय आ प्रेय हुनके लोकनिकेँ छनि। समाजक प्रति सोच, अपन उतरदरयित्वक प्रति प्रतिवद्धता, त्याग, सेवा-भावना आ कर्म निष्ठाक परिणाम थिक जे महिला रंगकर्मी सचेष्टता, तत्परता आ अपन अभिनय-कौशलक परिचय द’ रहल छथि। मैथिली रंगमंचक इतिहासमे एकर ऐतिहासिक महत्व छैक।
समिति द्वारा प्रस्तुत एंकाकीक मंचन अनेक दिन धरि पटनाक अतिरिक्त अन्यो स्थानपर चर्चित-अर्चित होइत रहल, जाहिसँ अनुप्राणित भ’ समितिक पदाधिकारी लोकनिक विचार भेलनि जे प्रतिवर्ष विद्यापति स्मृित पर्वोत्सवपर कोना-ने-कोनो रुकांकीक मंचन अवश्य कयल जाय, कारण जनमानसक अभिरुचि नाट्यमंचन दिस विशेष जागृत भेल आ अधिकाधिक संख्यामे जनमानसक सहभागिता होमय लागल।
सामाजिक पृष्ठभूमिपर आधारित एकांकी गोविन्द झाक मोछसंहारक (1965) कतोक घटना एहि रूपेँ विन्यस्त अछि जकरा मंचपर प्रस्तुत करब ओहि समय मे मंचीय-कौशलक अभाव रहितहुँ अत्यन्त सफलता पूर्वक ओकर मंचन भेल। एहि एकांकीमे महिला अभिनेत्रीक अभाव छल तेँ एकर प्रस्तुतिमे कोनो प्रकारक कठिनताक अनुभव निर्देशककेँ नहि भेलनि। एकर निर्देशन कयने रहथि गोपाल जी झा गोपेश।मिथिलाक प्रतिनिधि (1963) एकांकीक मंचन सेहो चेतनाक मंचपर भेल अछि जकर लेखक आ निर्देशन गोविन्द झा स्वयं कयलनि। एहिमे दू महिला अभिनेत्रीक छैक जकर अभिनयमे महिला अभिनेत्रीक भूमिकामे पुन: प्राचीन परम्पराकेँ स्थापित कयल गेल जे पुरुष द्वारा महिला अभिनेत्री भूमिकाक निर्वाह करओल गेल।
सन् 1962 ई. मे चीनी आक्रमणक पृष्ठभूमिमे गोपालजी झा गोपेश लिखित गुड़ूक चोट धोकड़े जानय तथा भारत-पाक युद्धक समय विनु विवाहे द्विरागमक मंचन चेतनाक तत्वावधानमे विद्यापति स्मृति पर्वोत्सवपर मंचित भेल छल लेडी स्टीफेन्सस हालक प्रंतगनमे। एहि प्रस्तुतिमे भारती ब्लाक वर्क्सक प्रोप्राइटर अर्जुन ठाकुरक संगहि-संग नगीना कुमर एवं निरंजन झा महिला अभिनेत्रीक रूपमे मंचपर उपस्थित भेल रहथि। पुरुष पात्रकेँ महिलाक भूमिकामे देखि क’ जनमानसँकेँ कोनो आश्चर्य नहि होइत छलैक एवं नायक-नायिकाक क्रिया-कलाप मे मर्यादाक वचनपर कोनो आश्चर्य वा व्यवधान नहि होइत छलैक। एहि अभिनयमे भाग लेनिहार अन्य कलाकारमे इण्डियन नेशनक बेचन झा, प्रियनारायण झा आ राजेन्द्र झा प्रभृति अपन-अपन भूमिकाक निर्वाह सफलता पूर्वक कयलनि। उक्त दुनू एकांकीमे गीतगाइनिक भूमिकामे कमला देवी एवं हुनक सखी लोकनिक सहयोग चेतनाक मंचकेँ उपलब्ध भेल छलैक।
चेतना द्वारा नियमित मंचक स्थापनाक पूर्व विद्यापति पर्वोत्सवपर जे एकांकी मंचित भेल ओ निम्नस्थ अछि:
वर्ष एकांकीएकांकीकार
1958 मण्डनमिश्रहरिमोहन झा
1959मोछ सहांरगोविन्द झा
1960मिथिलाक प्रतिनिधिगोविन्द झा
1961चंगेराक सनेसगोविन्द नारायण झा
1962गूड़क चोट धाकडे़ जानयगोपाल जी झा गोपेश
1965वीर कीर्ति सिंहगोविन्दझा1966बिनु विवाहे द्विरागमनगोपाल जी झा गोपेश
उपर्युक्त परम्पराक जे शुभारम्भ भेल छलैक ताहिमे कतिपय अपरिहार्य कारणेँ व्यतिक्रम भ’ गेलैक तथा समिति द्वारा रंगमंचक दिशामे जे प्रयास भेल छल ओ किछु अन्तरालक पश्चात् अवरुद्ध भ’ गेलैक।
किन्तु ताराकान्त झा (1927) जखन समितिक सचिवचक पदभार ग्रहण कयलनि तखन ओ एकर क्रियाकलापकेँ व्यापक फलक पर अनबाक प्रयास कयलनि। हुनक सोच छलनि समितिक विविध आयोजनादि एकहि स्थानपर केन्द्रित नहि रहय: प्रत्युत प्रचार-प्रसारक दृष्टिएँ पटना स्थित विभिन्न मुहल्ला सभमे एकर आयोजनकेँ मूर्त्त रूप प्रदान कयल जाय। ओ अपन एहि योजनाकेँ क्रियान्वित करबाक निमित्त अमरनाथ झा जयन्तीक आयोजन कंकड़बागक लोहिया नगरमे आयोजित करबाक निर्णय कयलनि जाहिमे समितिकेँ गजेन्द्र नारायण चौधरी, वासुकिनाथ झा, गणेशशंकर खर्गा सदृश कर्मठ कार्यकर्ता उपलबध भेलैक।
नाट्यमंच :
शनै:-शनै: चेतनासमितिक अपनउतरोत्तरविकास-यात्राक उत्थान वा उत्कर्षमेपहुँचि विविध रूपेमिथिलाकसांस्कृतिक एवं साहित्यिक विधाकेँ सम्पोषित करबाक दिशामेप्रयासरत भेल। ई अपन गौरवमय परम्पराक अनुरूप विद्यापति स्मृति पर्वोत्सवपर नाट्य मंचनक परम्परा पुर्नस्थापित करबाकतत्कालीन अघ्यक्ष कुमार तारानन्द सिंह (1920-) एवं सचिव ताराकान्त झासोचलनि जेसमितिक गतिविधिअत्यधिकप्राणवन्त बनाओल जाय, कारण ओ लोकनिदूरदर्शी व्यक्ति रहथि जनिका कार्यकालमेसमिति कतिपय नव-नव योजनाकेँ क्रियान्वित करबाक प्रयास कयलक। मैथिलीनाटककओ रंगमंचकेँ विस्तृत एवंव्यापकरूप देबाक निमित्तकार्यकारिणी समिति एक अनौपचारिक समितिक गठन कयलक जकर थींक टैंकक सदस्यरहथिगजेन्द्र नारायण चौधरी, वासुकिनाथ झा (1940), छत्रानन्द सिंहझा (1946) एवं गोकुलनाथमिश्रकेँ अधिकृत कयल गेलनि आ एहि योजनाकेँ कोना मूर्त्तरूप देल जाय ताहि हेतु प्रस्ताव देबाक भार देल गेलनि जकर सुपरिणाम भेल जेनाटककओरंगमंचकविकासार्थ रंगकर्मीक नाट्यमंच (1972) नामक एक प्रभावी प्रभागक स्थापनाकयलक जकरउद्देश्य भेलैक नवीन टेकनिकनाटककअन्वेषण ओकर मंचन तथा प्रकाशन। नाट्यायोजनकेँ मूर्त्तरूप प्रदान करबाक उत्तरदायित्वदेल गेलनि नवयुवक नाट्य कर्मी छत्रानन्द सिंह झाकेँ जे रेडियोसँसम्वद्धरहथि आ नाट्यमंचकतकनिकक सैद्धान्तिक एवं व्यवाहारिकपक्षक अधिकारिक जानकारी छलनि। अत्याधुनिकनाटककआ रंगमंचक दिशामे समिति क्रान्तिकारी डेग उठौलक जकर प्रयाससँ रंगमंचकेँनव-दिशाभेटलैक तथा नाट्यमंचनक परम्पराक शुभारम्भ भेलैक समिति द्वारा।
नाट्यमंचकस्थापनाकपश्चात् मौलिक नाट्यरचनाहेतु प्राचीन एवं अर्वाचीननाटकककारकआह्वान क’कए नव-नवनाटककअन्वेषणकप्रक्रिया प्रारम्भ भेल। एहि प्रकारेँ रंगमंचक एक सुदृढ परम्पराकस्थापना भेल जेविद्यापति स्मृति पर्व समारोहक अवसरपर वा समिति द्वारा आयोजित कोनोमहत्वपूर्णअवसरपर नाट्यमंचनक एक सशक्त माघ्यम स्थापित भेल। समितिकनाट्यमंच एक सार्थक भूमिकाक निर्वहण कयलक जकर लाभनाटकककारकसंगहि-संग रंगमंचकेँ निम्नस्थ लाभ भेटलैक:
1. आधुनिकपरिप्रेक्ष्यमेनवीन नाट्य-साहित्यक विकास यात्राक शुभारम्भ।
2. आधुनिक तकनिकक रंगमंचकस्थापना।
3. राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर मैथिलीनाटककआ रंगमंचकेँ स्थापित करबाक प्रयत्न।
6. अमंचितएवं अप्रकाशितनाटककपाण्डुलिपिकेँ आमंत्रित क’कए विशेषज्ञकअनुशंसा पर मंचन।
7. मंचनोपरान्तनाटकक प्रकाशन।
बीसम शताब्दीक सप्तदशकोत्तर कालावधिमे समितिक नाट्यमंच प्रभाग नाटकक लेखक लोकनिसँ नव-नव प्रवृत्ति आ नव-शिल्पक नाट्य रचनाक अनुरोध करब प्रारम्भ कयलक तथा मंचोपरान्त ओकर प्रकाशनक भार वहन करबाक दायित्व स्वीकारलक। नाट्यमंच प्रभाग द्वारा विद्यापति स्मृतिपर्वोत्सव वा अन्याय कोनो आयोजनोत्सवपर मौलिक, अनूदित वा उपन्यास वा कथाक नाट्य-रूप प्रस्तुत करबाक परम्पराक शुभारम्भ कयलक जे नाट्यलेखन आ मंचनक दिशामे ऐतिहासिक घटना थिक जे नव-नव प्रतिभाशाली नाट्य-लेखक लोकनिकेँ प्रोत्साहन भेटलनि तथा प्राचीन आ अर्वाचीन अभिनेता, अभिनेत्री आ निर्देशक लोकनि एकर प्रस्तुतिमे सहभागी बनलाह। अभिनयोपयोगी आ मंचोपयोगी नाटकक जे अभाव साहित्यान्तर्गत छल तकर पूत्यर्थ समितिक नाट्य प्रभागक ई निर्णय निश्चित रूपेण नाट्य-लेखन ओकर मंचन तथा ओकर प्रकाशनमे नव-दिशाक संकेत कयलक।
चेतना अपन कार्यक्रमकेँ व्यापक बनयबाक हेतु पूर्व निर्णयानुरूप सन् 1973 ई. मे अमरनाथ झा जयन्तीक आयोजन कंकड़बाग कॉलनीक लोहियानगरमे हैैबाक निर्णय भेलैक तथा इहो निर्णय भेलैक जे एहि अवसरपर एक नाट्याभिनयक आयोजन कयल जाय जाहिमे सहयोगी भेलाह वासुकिनाथ झा, गणेशशंकर खर्गा, अमरनाथ झा एवं छत्रानन्द सिंह झा। जखन ई प्रचार भेलैक जे एहि कॉलनीमे अमरनाथ झा जयन्तीक अवसरपर नाट्याभिनयक सेहो योजना छैक तखन कौलनीवासी सभक सहयोग पर्याप्त मात्रामे भेटय लगलनि। ओहि अवसरपर जनमानसक मनोरंजनार्थ हवेली रानी नाटकक मंचन भेल छल, जाहिमे रोहिणी रमण झा जे आब मैथिलीक नाटकककार आ अभिनेताक रूपमे चर्चित छथि अभिनेत्री रूपमे रंगमंचपर उतरल रहथि। एहि नाट्य योजनामे कतिपय सहयोगीक बल भेटल जाहिमे उल्लेखनीय छथि इण्डियन नेशनक इन्द्रकान्त झा बेचन झा, आर्यावर्त्तक शिवकान्त झा, राजभाषा विभागक महादेव झा मिथिलेन्दु एवं वेदानन्द झा जनसम्पर्क विभागक एहि आयोजनक ऐतिहासिक महत्व छैक जे बिहारक तत्कालीन मुख्यमंत्री केदार पाण्डेय एही मंचसँ बिहार पब्लिक सर्भिस कमीशनमे मैथिलीक स्वीकृति आ मिथिला विश्वविद्यालयक स्थापनाक उद्घोषणा कयने रहथि।
प्रारम्भिकावस्थामे अभिनयोपयुक्त नाटकक अभाव रहलैक ओकरा संगहि-संग रंगमंचकेँ नवरूप देबाक प्रयास भेलैक। समयाभावक कारणेँ समितिक नाट्यमंच प्रभाग द्वारा एकर प्रयोग प्रारम्भ भेलैक दिगम्बर झा लिखित एकांकी टुटैत लोकसँ। पुन: समितिकेँ महिला अभिनेत्रीक अन्वेषणक प्रक्रिया प्रारम्भ कयलक जाहिमे ओकरा कठिनताक सामना करय पड़लैक, किन्तु संयोगसँ रेडियोक अभिनेत्री प्रेमलता मिश्र प्रेम, कुमारी भारती मिश्र तथा अभिनेयताक रूपमे छात्रानन्द सिंह झा, जगन्नाथ झा, नरसिंह प्रसाद आ वेदानन्द झाक अविस्मरणीय सहयोगक फलस्वरूप ई प्रदर्शन अत्यन्त सफल भेल जाहिसँ आयोजक संगहि-संग संयोगकक सेहो उत्साहवर्द्धन भेलनि। एहि एकांकीक निर्देशन कयने रहथि गणेश प्रसाद सिन्हा तथा बिहार आर्ट थियेटरक संस्थापक अनिल कुमार मुखर्जीक अपरिमित तकनिक सहयोग भेटलनि। एहि एकांकीक मंचनक संग प्रथमे-प्रथम आधुनिक रंगमंचक अवधारणाक एकरा बानगी प्रस्तुतमे भेल।
नाट्यमंचक विधिवत स्थापानोपरान्त जनमानसक मनोवृत्तिमे नाटकक आ रंगमंचक प्रति प्रतिवद्धताक संगहि-संग नाट्यमंचनक हेतु प्रतीक्षातुर रहब एक औत्सुकयक भावनाक उदय होइतहि समितिक पदाधिकारी लोकनि एकरा प्रति अपन सचेष्टता आ तत्पारता देखायब प्रारम्भ कयलनि तकरे परिणाम थिक जे नाट्यमंच मौलिक आ नव तकनिकक नाट्यक हेतु अन्वेषण करब प्रारम्भ कयलक। नाट्यमंचक संयोगक छत्रानन्द सिंह झाकेँ ई गुरुतर भार देल गेलनि जे अग्रिम वर्ष चेतनाक नाट्यमंचक तत्वावधानमे समसामयिक समस्यासँ सम्बन्धित एहन मौलिक नाट्य लेखकसँ सम्पर्क क’ कए नव तकनिकक नाटकक हेतु प्रयास करथि। एहि हेतु ओ हिन्दीक वरिष्ठ नाटककार आ मिथिला मिहिरक तत्कालीन सम्पादक सुधांशु शेखर चौधरी (1920-1990)सँ सम्पर्क साधि हुनकासँ एक एहन नाटकक अनुरोध कयलनि जे जनमानसक हृदयकेँ स्पर्श कयनिहार हो। एहि प्रसंगमे नाटककारक कथन छनि, आकाशवाणी पटनाक बटुक भाइक आ चेतना समितिक वर्त्तमान सचिव गजेन्द्र नारायण चौधरी ठोंठ मोकि हमरासँ भफाइत चाहक जिनगी लिखा लेलनि आ हम मैथिली नाटककारक रूपमे चीन्हल आ जानल जा सकलहुँ। (भफाइत चाहक जिनगीक आत्म-कश्य) ओ हुनक अनुरोधनि मैथिलीमे प्रथमे-प्रथम काल खण्डी नाटकक लिखलनि भफाइत चाहक जिनगी जकरा नाट्यमंचक तत्वावधानमे सन् 1974 ई. मे शहीद स्मारकक प्रांगणमे प्रस्तुत कयल गेल जाहिमे प्राय: पैंतीस हजारसँ बेसी मैथिल समाजक छॉंटल-बीछल लोक दम साधि नाटकक एक-एक शब्द पीबैत रहल, एक-एक दृश्यकेँ अपलक देखैत रहल। एहि प्रदर्शनक सफलताक प्रमुख करण छलैक जे एहि प्रकारक नाट्यायोजन चेतना समिति द्वारा पूर्वमे नहि भेल छल तेँ दर्शककेँ ई सर्वथा नवीनताक आभास भेटलैक। नाटकक सफलता एहिमे रहलैक जे अपेक्षित घ्वनि प्रकाश अा उपयुक्त प्रेक्षागृहक अभावोमे नाट्यमंच चुनल बीछल कलाकारक सक्रिय सहभागिताक फलस्वरूप एकरा रूपायित कयल जा सकल। अग्रिम वर्ष ओकर प्रकाशनक व्यवस्था कयल गेलैक जकर परिणाम भेलैक जे जनमानसक जन-मन-रंजनक साधनक संगहि समकालीन समाजमे व्याप्त वेरोजगारीक समस्याक हृदयस्पर्शी कथानक जनमानसक आकर्षणक केन्द्र विन्दु बनि गेलैक।
एहि प्रस्तुतिमे सहभागी रहथि छत्रानन्द सिंह झा, हृदयनाथ झा, वेदानन्दझा, अशर्फी पासवान आजनवी, बन्धु, फन्नत झा, परमानन्द झा, चन्द्रप्रकाश झा, मोदनाथ झा, मनमोहन चौधरी, शम्भुदेव झा, रामनरेश चौधरी, प्रेमलता मिश्र प्रेम, कुमारी रमा चन्द्रकान्ति, सुरजीत कुमार एवं सुनील कुमार। अपार जन समुदायक उपस्थितिमे ई नाटक प्रशंसिते नहि, प्रत्युत बहुतो दिन धरि चर्चाक विषय बनल रहल। नाटकक सफलतामे नाटकमे कलाकार लोकनिक ओ अदम्य उत्साहक संग-संग बिहार आर्ट थियेटर जन सम्पर्क विभाग आ भारत सरकारक संगीत एवं नाटकक विभागक कलाकार लोकनिक सहयोगकेँ अस्वीकारल नहि जा सकैछ।
वस्तुत: एहि प्रस्तुतिक सफलतासँ समितिक पदाधिकारी लोकनि पुन: हुनकासँ एक नव नाटकक रचनाक अनुरोध कयलक। आधुनिकताक सन्दर्भमे एक सेटक नाटककमे सुधांशु शेखर चौधरीक कथा-वस्तु मूल प्रवाह संग-संग एक वा एकसँ अधिक अन्तर प्रवाहक प्रयोग रहल अछि। ओ नाट्य मंचक संयोजक छत्रानन्द सिंह झाक प्रस्तुतिसँ एतेक प्रभावित भेलाह जे अपन दोसर नाटकक ढ़हैत देवाल लेटाइत आँचरक रचना क’ कए हुनका देलथिन प्रस्तुति करबाक हेतु। पुन: एहू काल-खण्डी नाटकक प्रदर्शन एतेक प्रभावकारी भेल आ जनमानस नवनाट्य प्रस्तुतिक हेतु वर्षभरि प्रतीक्षातुर रहय लागल। एहि प्रकारेँ नाट्यमंच नाटकक आ रंगमंचक दिशामे अपन डेग आगू बढबैत गेल। नाट्य-प्रदर्शनक सफलताक पाछॉं नाट्यामंचक प्रतिवद्ध कलाकार लोकनिक अदम्य उत्साहक फलस्वरुप एकर नाट्याभिनय अपार जनमानसक समक्ष भेल। एहि नाटककमे प्रतिभगी कलाकार लोकनिमे हृदयनाथ झा, मोदनाथ झा, अशर्फी पासवान अजनवी, शंभुदेव झा, रामनरेश चौधरी, सत्यनारायण राउत, वीरेन्द्रकुमार झा, फन्नत झा, बालाशंकर, कल्पनादास एवं प्रेमलता मिश्र प्रेम। एहि नाट्ययोजनक सब श्रेय कलाकार लोकनिक परिश्रमक संगहि-संग बिहार आर्ट थियेटर एवं जनसम्पर्क विभागक कलाकारकेँ रहलनि।
चेतना समितिक ई अभिनव प्रयास भेलैक जे मिथिलाञ्चलक पुरातन सांस्कृतिक विरासत तथा नाट्य साहित्यक अविच्छिन्न समृद्धिशाली आ गौरवशाली परम्परामे एक नव प्राणक स्पन्दन भरबाक निमित नियमित रूपेँ प्राचीन एवं अर्वाचीन प्रतिभाशाली नाट्य-लेखकक आह्वान क’ कए नाट्य लेखनक दिशामे प्रोत्साहन, मंचोपरान्त ओकर प्रकाशनक व्यवस्थित परम्पराक व्यवस्था कयलक सन् 1973 ई. सँ जे जनमानसक मनोरंजनक संगहि-संग नाट्य-साहित्यिक सम्वर्द्धनक दिशामे गतिशील भेल जे विद्यापति स्मृति पर्वोत्सवपर संगहि-संग अमरनाथ झा, हरिमोहन झा, ललितनारायण मिश्र एवं जयनाथ मिश्र जयन्तीक अवसरपर मौलिक, अन्य भारतीय भाषासँ अनूदित वा मैथिलीक प्रसिद्ध उपन्यास वा कथाक नाट्य रूपान्तरणक परम्पराक शुभारम्भ कयलक जे अद्यपर्यन्त अव्याहत रूपेँ चलि आबि रहल अछि। एकर सुपरिणाम एतबा अवश्य भेलैक जे अद्यापि निरस्थ नाटकक मंचन समितिक तत्वाधानमे भेल अछि जकरा ऐतिहासिक घटना कहब विशेष समुचित हैत, कारण भंगिमा (1984)केँ छोड़ि क’ मिथिलाञ्चल वा मिथिलेत्तर क्षेत्रक कोनो नाट्य संस्था अद्यापि एतेक परिभाषामे नाट्यायोजन नहि क’ सकल अछि। एकरा द्वारा मंचित नाटकककेँ विविध काल-खंडमे सुविधानुसार विभन्न दशकमे प्रदर्शित नाटकक तिथिक अनुसारेँ कयल जा रहल अछि।
अमरनाथ झा जयन्तीक आयोजनपर महेन्द्र मलंगिया (1946) क ओकरा आडन्नक बारहमासा, गुणनाथ झाक पाथेय, गंगेश गुंजन (1941)क चौबटियापर/बुधिबधिया एवं रोहिणीरमण झाक अन्तिम गहना, हरिमोहन झा जयन्तीपर हुनकहि द्वारा लिखित एकांकी अयाची मिश्र (1956), हुनक प्रसिद्ध कथा पॉंच पत्रक एकल अभिनय एवं छत्रानन्द सिंह झाक आदर्श कुटुम्बक नाट्य रूपान्तरण, ललित नारायण मिश्र जयन्तीपर तन्त्रनाथ झा (1909-1994)क उपनयनाक भोज (1949) एवं अरविन्द अक्कू गुलाब छडी तथा जयनाथ मिश्रक जयन्तीपर हरिमोहन झाक प्रसिद्ध कथा कन्याक जीवनक नाट्य रूपान्तरण विभूति आनन्द द्वारा तित्तिर दाइकेँ मंचस्थ कयल गेल जकर विवरण निम्नास्थ अछि :
4 मार्च 1990 तितिरदाइरूपकार विभूति आनन्द विद्यापति भवनजयनाथमिश्र जयन्तीकिशोर कुमार झा
18 सितम्बर1990 आदर्श कुटुम्बरूपकार छात्रानन्द सिंह झाविद्यापतिभवनहरिमोहनझा जयन्तीउमाकान्त झा
2 नवम्बर 1990 राजा सल्हेसरोहिणीरमण झामिलरहाइस्कूल प्रांगण विद्यापतिपर्वप्रशान्तकान्त
अपन अस्तित्वक एक दशक पूर्ण कयलाक पश्चात् नाट्यमंच द्वारा 26 नवम्बर 1984 ई. मे ई एक नाट्य प्रतियोगिताक आयोजन कयलक जाहिमे प्रतिभागी नाट्यसंस्थाहि नाट्याभिनय कयलक। पटनामे प्रादुर्भूत रंगकर्मी सहमागी बनल। भंगिमाक प्रस्तुति छल प्रायश्चित छत्रानन्दसिंह झा द्वारा लिखित आ विनोद कुमार झा द्वारा निर्देिशत ई नाटकक अति प्राचीन कथ्थक संग मंचस्थ भेल। सीताक पाताल प्रवेश चिरपरिचित कथानकेँ नारी-मुक्ति-आन्दोलन चश्मासँ देखलापर एहि नाटकक कथानक प्रासंगिक छल अन्यथा गीत गाओल छल। नाटकक सम्वाद अत्यधिक सशक्त रहलाक कारणेँ नाट्य प्रस्तुति प्राणवन्त बनि गेल एहि नाटकक निर्देशन कयने रहथि विनोद कुमार झा हुनक अथक परिश्रमक झलक भैटल दर्शककेँ। ओना रामक गौरांग शरीर निर्देशकक राम-कथाक स्पष्ट अघ्ययन दिस प्रश्न चिह्न उपस्थित करैछ। एहि नाटकककेँ दर्शनीय बनयबाक पाछॉं विशिष्ट चमत्कारिक संवाद-योजना। प्रकाश-परिकल्पना आ प्रभावोत्पादक घ्वनिक माघ्यमे सीताक पाताल प्रवेश देखाओल गेल। एकर मंच-सज्जा पटनामे अद्यापि मंचित मैथिली नाटककमे सर्वोत्कृष्ट छल।
अरिपनक प्रस्तुति छल वैद्यनाथ मिश्र यात्रीक उपन्यास नवतुरिया (1954)क नाट्य रूपान्तरण कयने छलीह उषाकिरण खॉं जकर निर्देशन कयने रहथि त्रिलोचन झा। मृतपाय समस्यावला कथ्य आ छोट-छोट रेडियो टाइप दृश्यक रहितहुँ निर्देशक अपन प्रतिभाक बलेँ नीक प्रस्तुति कयने छलहि। अभिनेता लोकनिमे चुनि-चुनि क’ संवाद बजबाक प्रवृत्ति छल। किछु कलाकारक अभिनय अतीव प्रभावशाली छल, किन्तु शेष कलाकार पिछड़ि गेलाह, मंच-सज्जा नाटकक अनुरूप छल तथा पार्श्व-संगीत तथा प्रकाश अवस्था सामान्य छल।
नवनिर्मित नाटय-संस्था अभिनव भारतीक प्रस्तुति छल टूलेट जकर लेखक आ निर्देशक रहथि रवीन्द्रनाथ ठाककु,। निर्देशककेँ कलाकार लोकनिपर कोनो नियंत्रण नहि छलनि आ ओ सभ मंचपरक फूलदानसँ अत्यन्त हल्लुक हास्य उत्पन्नकरबामे सफल भेलाह। एकर प्रस्तुति ग्रामीण मंच सदृश प्रहसनक श्रेणीमे आबि गेल।
उपर्युक्त प्रतियोगितामे भंगिमाकेँ प्रथम, अरिपनकेँ द्वितीय आ अभिनव भारतीकेँ तृतीय घोषित क’ कए क्रमश: दू हजार एक सय, एकहजार पॉंच सय आ एक हजार एक सयक पुरस्कार चेतना समिति प्रदान कयने छल जे नाटकक आ रंगमंचक क्षेत्रमे एक साहसिक प्रयास कहल जा सकैछ।
मैथिली रंगमंचकेँ व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करबामे चेतना समितिक माँ पुत्र नाट्यमंच प्रभाग वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यमे मिलक पाथर बनि गेल अछि जे जाहि दिशामे एकर प्रयास प्रारम्भ भेलैक आ ओकरा मूर्त्तरूप प्रदान करैत गेल तकर श्रेय आ प्रेय एकर समर्पित कलाकार लोकनिकेँ छनि। समितिक ई प्रयास कतेक सार्थक भेलैक जे नाट्यमंचक स्थापनोपरान्त नव-नव तकनिकसँ संयुक्त कयक नवीनतासाँ संयुक्त एकसँ एक कलाकारकेँ मंचपर आनि हुनका अपन यथार्थ प्रतिभाक प्रदर्शनार्थ स्वर्णिम अवसर प्रदान कयलक। चेतना द्वारा नाटकक ओ रंगमंचक विकास यात्राक मार्गकेँ प्रशस्त करबाक हेतु जे अभियान चलौलक ओ साहित्येतिहासमे स्वर्णक्षरमे अंकित होयबाक योग्य थिक। एकरा इहो श्रेय आ प्रेय छैक जे एकर समर्पित कलाकार लोकनि अपन अभिनय कौशलक प्रदर्शनार्थ समितिक नाट्यमंचसँ अनुप्राणित भ’ कतिपय नव-नव नाट्य-संस्थादि स्थापित भेलैक अरिपन (1982), भंगिमा (1984), कलासमिति, आङन, भाव तरंग, अभिनव भारती आदि-आदि रंगकर्मी संस्थादिक जन्मक मूलमे चेतना समितिक नाट्यमंच प्रभाग अछि।
चेतनाक नाट्यमंचक नियमित प्रदर्शनिक फलस्वरूप जनमानसकेँ नाटकक देखबाक लुतुक पड़ि गेलैक अछि जाहिसँ दर्शकक संख्यामे अपार वृद्धि भेलैक ताहिमे सन्देह नहि। मैथिली रंगमंचीय गतिविधिक व्यौरा अछि जे रंगकर्मक क्षेत्रमे चेतनाक नाट्यमंच प्रभागक अवदानसँ हमरा परिचय करबैत अछि जे इतिहासक दृष्टिएँ उल्लेखनीय अघ्याय थिक। एहिमे सन्देह नहि जे मैथिली रंग जगतकेँ चेतनाक देनक चर्चा-अर्चा रंगमंचक इतिहासमे सतत स्मरणीय रहत, कारण एकरा स्थायित्व प्रदान करबाक दिशामे ई एहन ठोस कार्य कयलक अछि एकर नाट्य प्रभाग आ करैत आबि रहल अछि आ आशा कयल जाइत अछि जे भविष्यमे सेहो उज्ज्वल आ कर्मरत हैत से विश्वास अछि।
वस्तुतः चेतना समिति नाटकक ओ रंगमंचक माघ्यममे मिथिलाक सांस्कृतिक, साहित्यिक आ कलाक प्रचार-प्रसारक सुकार्य करैत आबि रहस अछि। समिति रंगमंचक माघ्यमे सांस्कृतिक आ साहित्यक आन्दोलन चलौलक जे जनचेतना जगयबामे सहायक सिद्ध भेल। एकर प्रयासक फलस्वरूप नाट्य-लेखन आ मंचनक विकासक दिशामे लोकक प्रतिवद्धता बढ़लैक। निजी निर्देशक, निजी तकनिशियन आ विशुद्ध मैथिल अभिनेता-अभिनेत्रीक सहयोगसँ नाट्य-प्रस्तुति करबामे निजी व्यक्तित्व निर्माण कयलक अछि संगहि अपन प्रदर्शनसँ राष्ट्रीय स्तरक कतिपय कलाकार बनौलन्हि। समितिक सत्प्रयासक फलस्वरूप नव नाटकक, नव-शैली आ नव-कथ्यक जन्म द’ कए नव जागरणक शंखनाद कयलक अछि। एकरासँ प्रेरित भ’ नव-नव संस्थादिक उदय आ विकास रंगमंचकेँ निस्सन्देह स्मृद्धि कयलक अछि। एकरा ई श्रेय आ प्रेय छैक जे नाट्यान्दोलनमे तीव्रता अनलक आ रंगमंचकेँ स्थायीत्व प्रदान करबाक निमित्त अत्यधिक क्रियाशील अछि।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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