भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Wednesday, April 14, 2010

'विदेह' ५५ म अंक ०१ अप्रैल २०१० (वर्ष ३ मास २८ अंक ५५)- PART IV


मैथिली आन्‍दोलनक सजग प्रहरी जयकान्‍त मिश्र

विगत शताब्‍दीक प्रारम्‍भ भारतीय जनमानसक राष्‍ट्रीय जनमानसक राष्‍ट्रीय आ सांस्‍कृतिक जनजागरणक प्रत्‍यूष बेला थिक। एही बेलामे समाज सुधार आ राजनीतिक आन्‍दोलनक देश-व्‍यापी चेतना सर्वत्र परिव्‍याप्‍त भेल। भारतीय संस्‍कृति आ सभ्यताक आत्‍म सुधारक लेल भारतीय जीवनगत दोषादि स्‍वीकृतिक प्रति मुखरित भेल। फलत: हिन्‍दू समाजक परिष्‍कार आ परिमार्जनक लेल बंग भूमिपर राजाराम मोहन रायक उदय भेलनि। उत्तर भारतमे आर्य संस्‍कृतिक पुररुत्‍थानक निमित्त स्‍वामी दयानन्‍द आर्य समाज द्वारा हिन्‍दू जागरणक नव मन्‍त्र फूकलनि। ई वैह स्‍वर्णिम बेला थिक जे जनमानस अपन दोषादिकेँ सुधारि क संसारक प्रगतिशील जातिक प्रतिद्वन्द्वितामे अग्रसर हैबाक दृढ़ संकल्‍प कयलक।

भारतीय राजनीतिक क्षितिजपर महात्‍मा गांधी सदृश प्रबल शक्तिक आबिर्भाव भेलनि, जनिक नेतृत्त्वमे समस्‍त भारतवासी ब्रिटिश साम्राज्‍यवादक जड़ि उन्‍नमुलनार्थ कटिवद्ध भ गेल। असहयोग आन्‍दोलनक ई राजनैतिक चेतनाक मूर्त्त रूप छल। विदेशी वस्‍तुक वहिव्‍कार, स्‍वदेशीक प्रचार, हिन्‍दु-मुस्लिम एकता, सत्‍यक आग्रह नेने देश भक्‍त लोकनिक अहिंसात्मक युद्ध, विभिन्‍न भंगिमाक बुनियादकेँ ल कए ई पुनीत आन्‍दोलन सम्‍पूर्ण देशमे परिव्‍याप्त भ गेल। ई मात्र राजनैतिक आन्दोलन नहीं छल, प्रत्युत राष्ट्रक महान सांस्कृतिक आन्दोलन सेहो छल। महात्‍मा गांधीक राजनीति वस्‍तुत: सत्‍य, अहिंसा, पारस्‍परिक प्रेम, शान्तिक उज्ज्वल आदर्शसँ अनुप्राणित छल जे भारतीय संस्‍कृतिक सर्वोपरि निधि थिक।

समाज सुधार आ राजनीतिक ई आन्‍दोलन ने केवल निजातीय संस्‍कृति आ शासनक प्रतिरोध कयलक, प्रत्‍युत मातृभूमि, मातृभाषा एवं संस्‍कृतिकेँ सजग आ प्रवुद्ध बनौलक। ई आन्दोलन जतय मातृभूमि, मातृभाषा एवं संस्‍कृतिसँ देशवासीकेँ प्रेमक पाठ पढ़ौलक ओतहि समाज-सुधार आन्‍दोलनादिक माध्‍यमे एहि संस्‍कृतिक एक अत्‍यन्‍त भव्‍य आ उज्ज्वल रूप समक्ष आयल। वर्त्तमान समस्‍याक समाधान, भविष्यक सुखद नवनिर्माण तथा विदेशी संस्‍कृतिक प्रबल प्रवाहसँ अपन सभ्‍यताकेँ उबारबाक, मातृभूमि आ मातृभाषाक गौरवमय अतीतक आश्रय लेलक। एहि प्रकारेँ विदेशी शासनसँ आतंकित मातृभूमिक निष्प्राण धमनीमे पुरातन संस्‍कृतिक भव्य आदर्श, आचार आ निष्‍ठाक उष्ण रक्‍त प्रवाहित करबाक लेल युगक चेतना अत्‍यन्त तीव्र गतिएँ गतिशील भ गेल।

साहित्‍यक माध्‍यमसँ युग-चेतनाक ई प्रवुद्ध स्‍वरूप विविध रूपमे व्‍यक्‍त होमय लागल। अपन सीमामे समटल ओहि समयक समस्‍त साहित्‍य वस्‍तुत: मातृभूमि, मातृभाषा एवं सांस्‍कृतिक जागरणक भाव भूमिपर स्थिर अछि। स्‍वदेश प्रेम, अतीतक प्रति गौरवगान, गांधीवादी विचार धाराक प्रति श्रद्धा सम्‍मान, राष्‍ट्रीय अखण्‍डताक समर्थन, जातीय संस्‍कृतिक नव-निर्माण, सामाजिक कुण्ठादिक निवारण विविध भाव सामग्री समकालीन साहित्‍य-सृजन आ पोषण कयलक। उपर्युक्‍त वातावरण परिप्रेक्ष्‍यमे तत्‍कालीन साहित्‍यमे उच्चादर्शवादिता, मातृभाषाक प्रति अगाध श्रद्धा तथा ओकर मान्‍यतार्थ अधिकार प्राप्‍त करबाक लेल आन्‍दोलनक शुभारम्‍भ भेल।

उपर्युक्‍त पृष्‍ठभूमिमे विगत शताब्‍दीक तृतीय दशकमे एक एश्‍न अ‍क्षर पुरूष प्रादुर्भूत भेलाह जनिक बहुआयामी व्‍याक्तित्त्व, मातृभाषाक उत्‍कर्षक लेल, अविरल नव-नव आयामक प्रेरणा स्रोत, अनुसंधान, आन्‍दोलन, इतिहास-लेखन द्वारा विश्‍व स्तरपर मैथिलीकेँ प्रतिष्ठित करब, मातृभाषाक माध्‍यमे प्राथमिक शिक्षाक कार्यान्वयनक हेतु संघर्षरत आ कानूनी लड़ाइ लड़निहार, दिशाबोधक, आलोचक तथा हेड़ायल-भुतिआयल मातृभाषानुरागी विभूतिकेँ प्रकाशमे आनि, दिवारात्रि चिन्‍ताग्रस्‍त रहनिहार आन्‍दोलनकारी मातृभाषाक उत्‍थानार्थ महत्त्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कयलनि ओ रहथि प्रोफेसर डॉक्टर जयकान्‍त मिश्र (।922-2009)। विगत सात दशक धरि अनवरत एक रस एक चित्त भ मातृभाषाक निष्‍प्राण धमनीमे उष्ण रक्‍तक संचार क कए अभिनव साहित्यिक वातावरणक निर्माणक क कए ओकर पोषण कयलनि। मैथिली भाषा आ साहित्‍य जखन गहन अन्‍धकारमे टापर-टोइया द रहल छल तखन ओ अपन अभिनव अनुसन्‍धान आ एक सजग आन्‍दोलनकारीक रूपमे एक नव आलोकक रश्मि विकीर्ण कयलनि। हिनक समकालीन परिदृश्‍य छल भारतक स्‍वतन्‍त्रताक महासंग्राम जाहिमे कतिपय महासपूत अपन प्राणक आहूति देलनि आ रक्‍तसँ तर्पण कयलनि।

भारतक स्‍वतन्‍त्रता संग्रामक इतिहासमे सन् उन्‍नैस सय वियालिसक अगस्‍त क्रान्ति, जाहि मे भारत छोड़ो क आन्‍दोलनक शंखनादक अति महत्त्वपूर्ण स्‍थान अछि, एहि महाक्रान्ति मे बूढ़-बूढ़ानुस नेतासँ अधिक जुआन-जहानक रक्‍त विशेष गर्म छलैक आ अंग्रेजी शासनक विरूद्ध ओकरा सभक स्‍वर अधिक मुखर छलैक। मिथिलाञ्चलक कतिपय स्‍वतन्‍त्रता सेनानी एहि महासंग्राममे सहभागी बनि एकरा सफल बनयबामे सक्रिय सहभागिता देव प्रारम्भ कयलनि, जाहिमे मैथिलीक महान सपूतक संगहि अपन बहु विधादिक साहित्‍य सृजनिहार डा. व्रज किशोर वर्मा मणिपद्म (98-986) मनसा वाचा कर्मणा जेल यात्रा कयलनि, ब्रिटिश शासकक निर्मम कठोर यातना सहलनि, भूमिगत भेलाह आ फरारी मे जीवन व्‍यतीत कयलनिं एहि दृष्टिऍं हिनक संस्‍मरण वियालसीक फरारीक सात दिन (।953) एवं फरारीक पाँच दिन (।96।) प्रकाशित अछि, हुनकासँ भेट भेल छल (2004) जाहिमे स्‍वतन्‍त्रता आन्‍दोलनक क्रममे ओ जे डायरी लिखलनि तकर दारूण पीड़ादायक वर्णन कयलनि। एहिमे रचनाकारक सद्य: प्रस्‍फुटित भाव वा विचारकेँ अभिव्‍यक्ति देलनि वा अपन अनुभवक रेखाकंन कयलनि जे अत्‍यन्‍त मार्मिक अछि।

प्रोफेसर जयकान्‍त मिश्रक जीवन धाराक दू रूप हमरा समक्ष अबैछ ओ थिक साहित्य आ आन्दोलन। दूनू क्षेत्र हिनक अत्यंत विस्तृत आ व्यापक अछि जकरा माध्यमे निष्प्राण मैथिली साहित्यमे नव स्पन्दन भरनिहार ई प्रथम सरस्वती पुत्र प्रादुर्भूत भेला जे मातृभाषाकेँ जीवन दान देलनि। ओ ने तँ स्‍वतन्‍त्रता संग्रामक महासमरमे सहभागी भेलाह आ ने तँ कोनो राजनीतिक दलसँ सम्वद्ध भेलाह, अपन मातृभाषाक उन्‍नयनार्थ सतत आन्‍दोलनोन्‍मुख रहला, दिशा निर्देशा दिर्नेश कयलनि, अपन उचित माँगक प्रति सचेष्‍ट रहला, संघर्षरत रहला आचार, व्‍यवहार वेष-भूषामे पूर्णत: मैथिल संस्‍कृतिक प्र‍तीक रहला जे वर्त्तमान परिदृश्‍यमे अनुकरणीय थिक। हुनक समस्‍त जीवन-दर्शन, समस्त विचार-प्रवाह, युग चेतनाक व्‍यापक सन्निवेश हुनक वाणीक परिधान पहिन क मिथिलाक सांस्‍कृतिक परम्‍परा आ मैथिली साहित्‍यक भूमिपर दृढ़तासँ प्रतिष्ठित अछि। हुनक जीवनक सार्थकता अर्थ उपार्जनमे नहि छलनि, ख्‍यातिमे नहि छलनि, अधिकारक विस्तारमे नहि छलनि, लोकक मुखसँ साधुवादमे नहि छलनि, भोगमे नहि छलनि, हुनक जीवनक सार्थकता मात्रद जीवनकेँ गम्‍भीर रूपमे उपलब्‍ध करबामे, मातृभाषाक महत्त्व बुझबाक चेष्‍टा करबाक आनन्द मे छलनि। पैघ व्‍यक्तिक जीवन जीबाक एक ट्रेड सीक्रेट होइत छैक, से हिनका स्‍वत: प्राप्‍त छलनि। हुनक जीवनक मूल उद्देश्‍य छलनि To know how to live in any trade. नामी-गिरामी व्‍यक्तिक साहित्‍य संसार बहुत दूर धरि एक प्रतिभाशाली परिवार सदृश रहैछ जाहिमे ओ जीवनयापन कयलनि।

आन्‍दोलन-स्‍फुरण :

अनुसन्‍धानोत्तर एक नव प्रवृत्तिक जागरण हुनक मस्तिष्कमे भेलनि जे मैथिलीक गौरव-गरिमाकेँ वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यमे जागृत करबाक निमित्त ओ रचनात्‍मक आ आन्‍दोलनात्मक मार्गक अनुसरन कयलनि। एहि लेल ओ अर्कमण्‍य, निष्क्रिय, सुसुप्‍त, धार्मिक कट्टरता, रूढ़िग्रस्‍ता, जीवनक अन्‍ध कूपमे डूबल मिथिलाञ्चल एवं प्रवासी मैथिल समाजमे नव जीवनक संचार करबाक हेतु जनजागरणक अभियानक सूत्रपात कयलनि जे मिथिलाक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक जीवनमे नवचेतना अनबाक हेतु ओ रचनात्‍मक आ आन्‍देलनात्‍मक रूख अख्तियार कयलनि। जकर व्‍यापक प्रभाव मैथिली भाषीपर अत्‍यन्‍त व्‍यापक रूपेँ पड़ल।
केन्‍द्र एवं विहार सरकारक उदासीनतासँ भाषाकेँ सर्वथा उपेक्षित देखि हुनका हृदयमे असीम पीड़ा आ आक्रोश होइत छलनि। ओ कविवर सीताराम झा (।89।-।975)क निम्‍नस्‍थ पंक्ति अतिशय प्रभावित भ आन्‍दोलनोन्‍मुख भेलाह :
अछि सलाइमे आगि बरत की बिना रगड़ने।
पायब निज अधिकार कतहु की बिना झगड़ने।
कविवरक उक्‍त पंक्तिक व्‍यापक प्रभाव हुनकापर पड़लनि जाहिसँ अभिभूत भ ओ जन जागरणक अभियान चलौलनि जे जनमानस अपन मातृभाषाक महत्त्वकेँ जानय, बुझय आ अपन समुचित अधिकार प्राप्‍त करबाक दिशामे आन्‍दोलनोन्‍मुख हो, हुनका मान्‍यता छलनि जे मिथिलाञ्चल वासीमे भाषा चेतनाक सर्वथा अभाव छैक। भाषा चेतनाक अर्थ थिक मातृभाषा प्रति प्रेम, दायित्‍व बोध, कर्त्तव्‍य बोध, गौरव बोध अ‍ादि समस्‍त विषय चेतना शब्‍दमे सन्निहित अछि। भाषाक उन्‍नति आ विकास ओहि भाषीक चेतनापर निर्भर करैछ, किन्‍तु अकर्मण्‍य मैथिली भाषी जनमानसमे अपन भाषा आ साहित्‍यक सर्वांगीन विकासक आकांक्षाक अभाव देखि ओ सर्वप्रथम भाषा चेतना जगयबाक उपक्रम कयलनि जे हम मैथिल छी, हमर मातृभाषा मैथिली थिक आ हम मिथिलावासी छी। एहि भावनासँ उत्‍प्रेरित भ मि‍थिलाञ्चलक जन-जनसँ अनुरोध कयलनि जे जाति-भेद, वर्ग-भेद, छिद्रान्वेषणक प्रवृत्तिक परित्‍याग क एक जुट भ सम्मिलित रूपसँ मातृभाषाक विकास कार्यक प्रति समवद्ध भ आन्‍दोलन करो, कारण कोनो भाषा भाषीकेँ विनु संघर्ष कयने कोनो उपलब्धि नहि भेलैक जे ऐतिहासिक दस्‍तावेजक रूपमे ओकर भाषा साहित्‍यमे नुकायल अछि।

मै‍थिली आन्‍दोलन दधीचि बाबू भोलालाल दास (।894-977)क कथन छलनि जे चुपचाप बैसने व्‍यक्ति वा संस्‍था वा भाषाकेँ न्‍यायो‍चित अधिकार नहि प्राप्‍त भ सकैछ, अतएव मिथिलाञ्चलक सर्वांगीन विकास ओकर भाषा आ साहित्‍यक मान्‍यातार्थ समग्र मिथिलावासीकेँ एक सूत्रमे बान्हि, एकता प्रदर्शित क भयंकर सिंहनाद करबाक प्रयोजन अछि आ अपन समुचित आधिकार प्राप्ति करबाक लेल अतुलित संघर्ष करबाक आह्वान ओ जीवन पर्यन्‍त कयलनि। हुनक प्रसिद्ध पंक्ति थिक :
अन्यायी सत्ता छी प्रलय गगन समाचार अतिविषम।
हमरहि लघु हुँकारसँ महाप्रलय होइछ नियम॥
हिनक नेतृत्वमे जाहि आन्दोलनक शुभारम्भ भेल तकर प्रभाव मातृभाषानुरागी साहित्य सृजनिहार लोकनिपर सेहो पर्याप्त मात्रामे पड़लनि तथा एहि निमित्त काव्यक माध्यमे जनजनमे अपन सांस्कृतिक अस्मिताक रक्षार्थ आन्दोलनोन्मुख भेलाह। आन्दोलनमे तखने बल आओत जखन हम अपन संस्कृतिक शंखनाद करब आ जनजनमे भाषिक चेतनाक हुँकार भरब। एहि भावनासँ उत्प्रेरित भ महाकवि आरसी प्रसाद सिंह (19111996) सुप्रसिद्ध कविता बाजि गेल रण डंक एक उद्बोधनात्मक गीत रूपमे मैथिली प्रेमीक जिह्वापर झंकृत होमय लागल :
बाजि गेल रण डंक, ललकारि रहल अछि।
गरजि-गरजि कय, जन-जनकेँ परचारि रहल अछि।
आबहु की रहती मैथिली बनलि वन्‍दनी ?
तरुक छाँहमे बनि उदासिनी जनक नन्‍दनी ?
(माटिक दीप)
उपर्युक्‍त परिप्रेक्ष्‍यमे ओ जनमानसकेँ उत्‍प्रेरित करबाक उद्देश्‍यसँ मातृभाषाक समुचित विकासार्थ जन आन्‍दोलनक सूत्रपात कयलनि। अखिल भारतीय भाषा सर्वेक्षणमे मैथिली भाषीक संस्‍था शनै:-शनै: विलीन होइत देखि कयलनि जे जनगणनाक अवसरपर मुखातिब भ अपन मातृभाषा मैथिली लिखावथि। ओ जतय कतहु सभा सोसायटीक मिटींगमे सहभागी होथि ततय सेहो समय बहार क मैथिली आन्‍दोलनक अद्यतन स्थितिकेँ उजगार करबाक अवसर निकालि लैत रहथि। हुनका एहि नाक कचोर छलनि जे स्‍कूल आ कॉलेजमे जतय मैथिलीक पठन-पाठनक सुविधा छैक ततय अभिभावक लोकनि अपन मातृभाषाकेँ उपेक्षाक दृष्टिसँ किएक देखेत छथि आ छात्रकेँ प्रोत्साहित नहि करैत छथि। पुस्‍तक एवं पत्रिका प्रकाशित होइत अछि, किन्‍तु ओकर क्रेताक अछि। मैथिली आन्‍दोलनक प्रति जनमासक उदासीनताकेँ दूर करबाक निमित्त आन्‍दोलन करबाक आवश्‍यकताक ओ अनुभव कयलनि। मातृभाषाक जागरणक सबसँ प्रबल आ सबसँ समर्थ स्‍वर मिथिलाक जनमानसकेँ झंकृत क देलक। विगत सात दशकसँ मातृभाषा प्रेमी जनमानसकेँ अधिक प्रवुद्ध आ उर्जस्वित स्‍वरूप देबाक लेल ओ एक महान तपस्वीक समान अखण्ड साधनामे रत रहला। वर्त्तमान युग धर्मक अनुरूप हुनक साधना अत्यन्त विराट आ भव्य अछि।
आन्दोलननेओ:
मातृभाषा मैथिलीक समुचित मान्‍यताक अभाव हिनका हृदयमे सतत खटकैत रहलनि, जाहिसँ उत्‍प्रेरित भ ओ आन्‍दोन्‍मुख भेलाह। कारण पुरातन कालहिसँ इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय प्राच्‍य एवं प्रतीच्‍य उच्‍च शिक्षाक हृदय स्‍थल रहल अछि जतय साहित्यिक एवं सांस्‍कृतिक क्षेत्रक लब्ध प्रतिष्ठ मातृभाषानुरागी साहित्‍य चिन्तक लोकनिक निवास रहलनि लकर दू कारण अछि। प्रथमत: धर्म-व लम्‍बी मैथिल समाज गंगा-यमुना विलुप्‍त सरस्‍वती नदीक संगम स्‍थल थिक आ विद्याव्रती लोकनिक जमाबड़ा रहल अछि। स्‍वाधीनतासँ पूर्व मातृभाषानुरागी जयकान्‍त मिश्र एकर विकासार्थ दू संस्‍थाक स्‍थापना कयलनि तीरभुक्ति पब्लिकेशन्स आ अखिल भारतीय मैथिली सहित्‍य समितिक मैथिल आन्‍दोलनक नेओ सन् 944 ई.मे रखलनि। हुनक उत्‍कट अभिलाषा छलनि जे सोफिया वाडि़या द्वारा संस्‍थापित अन्‍तर्राष्‍ट्रीय, साहित्यिक एवं सांस्‍कृतिक संस्‍था पी. ई. एन. (poets Essayist and Novelist) द्वारा मैथिलीकेँ मान्‍यता प्राप्‍त हो। उक्‍त संस्‍थाक ई सक्रिय सदस्‍य भ भारतीय भाषा एवं विदेशी साहित्यानुरागी लोकनिक ध्‍यान मैथिली भाषा आ साहित्‍यक परातन एवं अधुनातन उत्‍कर्षसँ अवगत करयबाक निमित्त आन्‍दोलनोन्‍मुख भ एकर पुनराख्यान क उक्‍त संस्‍था द्वारा मैथिलीकेँ मान्‍यता दिऔलनि जकर विस्‍तृत विवरण ओकर कार्य विवरिणीमे प्रकाशित अछि।

बिहारक तत्‍कालीन राज्यपाल डा. रंगनाथ रामचन्‍द्र दिवाकर ऑल इण्डिया रेडियोपर एक भाषण देलनि जाहि मे ओ हृदयसँ अपन उद्गार व्‍यक्‍त करैत उद्घोषणा कयने रहथि जे मैथिली ज्ञान ग्रन्‍थस्‍थ प्राचीनतम भाषा थिक जे हिनका आन्‍दोन्‍मुख करबामे अति महत्त्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कयलक। ई घटना सन् ।956 ई. क थिक।

उक्‍त भाषणक एक ऐतिहासिक परिदृश्‍य अछि जे मैथिली अन्‍दोलनक सक्रियतामे हिनका दिशा निर्देश कयलक। हिनक कर्मभूमि सेहो इलाहाबाद विश्‍वविद्यालयमे रहलनि जतय गणतन्‍त्र भारतक प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरूक जन्‍मभूमि छनि। ओ अवकाश भेटलापर निश्चित रूपेँ ओतय अबैत-जाइत रहथि। अखिल भारतीय मैथिली साहित्‍यक अध्‍यक्ष आ विश्‍वविद्यालयमे अङरेजी विभाग व्‍याख्‍याताक रूपमे ओ प्रधानमंत्रीसँ सन् 960 ई. मे आनन्‍द भवनमे दर्शनार्थीक रूपमे मैथिलीक दू पुस्‍तक वैद्यनाथ मिश्र यात्री (9।।-।998)क काव्‍य-संग्रह चित्रा आ गल्पाञ्जलि कथा-संग्रह हुनका उपहार देलथिन, संगहि अनुरोध कयलथिन जे मैथिली भाषा आ साहित्‍यक गौरवशाली साहित्यिक परम्‍परा तेरहम शताब्‍दीसँ उपलब्‍ध अछि, किन्‍तु सरकारी मान्‍यताक अभावमे ई सर्वथा उपेक्षित अछि। पण्डित नेहरू ध्‍यान पूर्वक आ स्‍नेह पूर्वक हुनक नात सुनलथिन आ कहल‍थिन Institutional reorganization is not soul management of the richness of a language. We enjoy with sound literature?

प्रदर्शनी-प्रेरणा:

ओतहि हुनका भेटलथिन इलाहाबाद हाईकोर्टक चीफ जस्‍टीस न्‍यायमूर्ति बी. मल्लिक। ओ हुनका कहलथिन, एहि रूपेँ अहाँक मातृभाषाकेँ मान्‍यता नहि भेटि सकैछ। ओ सलाह देलथिन, एहि लेल आन्‍दोलनक तरीका अपनाबय पड़त, तखनहि अहाँक मातृभाषाकेँ मान्यता भेटि सकैछ। आन्दोलनक तरीका थिक जे अपन मातृभाषाक समृद्धशाली, गौरवशाली आ वैभवशाली परम्परासँ जनमानसक संगहि-संग साहित्‍य चिन्‍तक लोकनिक ध्‍यानाकर्षित करबाक उपक्रम करू।
न्‍यायमूर्त्ति जस्‍टीस मल्लिकक सत्‍प्रेरणा आ यथार्थ विचारसँ उत्‍प्रेरित भ कए ओ इलाहाबादमे सर गंगानाथ झा संस्‍कृत रिसर्च इन्‍सच्‍युटमे ।5 दिसम्‍बर 96। ई. मे मैथिली पुस्‍तक प्रदर्शनीक प्रथम आयोजन कयलनि तथा ओकर उद्घाटन करबाक लेल जस्‍टीस मल्ल्किसँ अनुरोध कयलथिन। ताधरि जस्‍टीस मल्लिक भारत सरकारक कमीशन फॉर माइनो रीटी लैग्वेजजक चेयरमैन पदपर सुशोभित भ गेल रहथि। ई सुखद संयोग थिक जे उक्‍त पुस्‍तक प्रदर्शनीक उद्घाटन करबाक दायित्त्व जस्‍टीस मल्लिक स्‍वीकार कयल थिन, जाहिमे ओहिठामक प्रबुद्ध साहित्‍य चिन्‍तक लोकनि भाषा आ साहित्‍यक प्राचीनतम गौरवशाली परम्‍परासँ अवगत भेलाह जे हुनकापर अमिट छाप छौड़लक। उक्‍त अवसरपर यशस्‍वी कवि वैद्यनाथ मिश्र यात्री मैथिलीमे काव्‍य-पाठ कयने रहथि।
इलाहाबाद पुस्‍तक प्रदर्शनीसँ अनुप्राणित आ अनुझोरित भ कए ओ सोचलनि जे एहन प्रदर्शनीक आयोजन गणतन्‍त्र भारतक राजधानी दिल्‍लीमे कयल जाय तँ निश्चित रूपेँ मैथिली भाषा आ साहित्‍यकेँ मान्‍यता भेटबामे कोनो बाधा नहि आबि सकैछ। हुनकापर आन्‍दोलनक भूत एहन सवार भ गेल छलनि। एकर आयोजनार्थ ओ अपन प्रोभिडेण्‍ड फण्‍डसँ लोन ल कए 89 जनवरी ।963 ई. मे दिल्‍लीक आजाद भवनमे ऐतिहासिक राष्‍ट्रीय पुस्‍तक प्रदर्शनीक आयोजन कयलनि जाहिमे मिथिलाञ्चल एवं प्रवासस्‍थ मैथिली प्रेमी लोकनिसँ चन्‍दा एकत्रित कयल गेल आ भालण्‍टीयर सहभागी भेल रहथि। प्रदर्शनीक सजावट हृदयाकर्षक छल। बहुतायाद मैथिली पुस्‍तकादि पाण्‍डुलिपि एकत्रित कयल गेल छल जाहिमे मिथिला संस्‍कृत रिसर्च इन्‍स्‍टीच्‍युट दरभंगा आ पटना विश्‍वविद्यालय विशेष उल्‍लेखनीय भूमिकाक निर्वाह कयलक। सांसद रूपमे ललितनारायण मिश्र (।922-975) एवं यमुना प्रसाद मण्‍डल सहभागी भेल रह‍थि। भारत सरकारक संसदीय आ ऑल इण्डिया व्राडकास्टिंगक मंत्री बाबू सत्‍यनारायण सिंहक अपरिमित सहयोगसँ प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू उक्‍त प्रदर्शनीक उद्धाटन कयलनि। यद्यपि ओ पन्‍द्रह मिनट विलम्‍बसँ पहुँचल रहथि, किन्‍तु पुस्तक एवं पाण्‍डुलिपिक अम्‍बार देखि ओ हतप्रद भ गेल रहथि अपन उद्घाटन भाषणमे जे बजलथिन ओ कल्पनाक विपरीते अनुभव भेलनि आयोजक जयकान्‍त मिश्रकेँ। भीजिटिंग रजिस्‍टरमे ओ टिप्‍पणी कयलथिन, I was happy to inaugurate Maithili Book Exhibition and to see the largecollectio  of books and Maneserispts in Maithili, this demonstnated that Maithili has been for long time and is to day a living among the people of that area. The lagnage deerves encou rgemend ?  एहि प्रदर्शनीकेँ सफल बनयबाक लेल हास्‍य-व्‍यंग्य सम्राट प्रोफेसर हरिमोहन झा (।908-984), मायानन्‍द मिश्र (।934), रामस्‍वरूप नटुआक अतिरिक्त अनेको गण्य-मान्‍य राजनैतिक, मैथिली साहित्‍य प्रेमी उनटि क प्रदर्शनीकेँ सफल बनयबाक हेतु उपस्थित भेल रहथि। प्रदर्शनीक शानदार सजावट मिथिलाञ्चल पेंटिंगक कारणेँ समग्र कार्यक्रमक झाँकी सिनेमा होलमे प्रदर्शित भेल जे मैथिलीक हेतु एक ऐतिहासिक घटना थिक। उक्‍त प्रदर्शनीक सफलता एहि बातक सबल प्रमाण थिक जे ओ एक सफल आयोजक रहथि तथा मैथिली आन्‍दोलनकेँ एक डेग आगू बढ़ौलनि।

साहित्‍य-अकादेमी-सामान्‍य परिषद

मैथिली पुस्‍तक प्रदर्शनी मै‍थिली आन्‍दोलनकेँ तीव्र करबा प्रियासक शुभारम्‍भ कुशल नेतृत्त्व मे आगाँ ससरल। एही अवधिमे एक ऐतिहासिक घटना भेल। हिनक पिताश्री महामोपाध्‍याय डॉक्टर उमेश मिश्र (।895-967)क नियुक्ति सर कामेश्‍वर सिंह संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय दरभंगाक कुलपित करूपमे भेलनि। ई सुखद संयोग छल जे हुनक कार्यकालमे साहित्‍य अकादेमीक सामान्य परिषदक विश्‍वविद्यालयक प्रतिनिधित्त्व करबाक हेतु एक प्रतिनिधिक नाम अनुशंसित करबाक सूचना भेटलनि। मातृभाषनुरागी कुलपतिक अतीव इच्‍छा छलनि जे एहन व्‍यक्तिक नाम अनुशंसित कयल जाय जे मैथिलीक मान्‍यतार्थ एहि भाषा आ साहित्‍यक पुरातन परम्पराक उपस्‍थापन सबल तर्क द्वारा प्रस्‍तुत क कए ओकर अध्‍यक्ष पण्डित जवाहर लाल नेहरूकेँ कन्भीन्‍स कहलि सकथि अंग्रेजीमे। कुलपति कर्यालय तीन वेर प्रोफेसर जयकान्‍त मिश्रक नाम प्रस्‍तावित क हुनक अनुमोदनार्थ प्रस्‍तुत कयलक, किन्‍तु कुलपति बारम्‍बार बिनु कोनो टिप्‍पणी कयने फाइल वापस क दे‍थि। हुनका एहि बातक आशंका छलनि जे जनमानस ई आरोप लगाओत जे अपन पुत्रक नाम अनुशंसित कयलनि। सामाजिक दवाब एवं मैथिली आन्दोलनक सजग प्रहरी जयकांत मिश्रक नाम अनुशंसित कयलथिन आ ओ सामान्‍य परिषद्क सदस्‍य मनोनीत भ गेलाह। ओ अपन मातृभाषा मैथिलीक मान्‍यतार्थ साहित्‍य अकादेमीक सामान्‍य परिषदमे आन्‍दोलन प्रारम्‍भ कयलनि।

मैथिलीक मान्‍यता

मैथिलीक मान्‍यता साहित्‍य अकादेमी अबिलम्‍ब दिय, ताहि हेतु ओ फाँड़बान्हि क आन्‍दोलनक शुभारम्‍भ कयलनि तनिक बलिदानक इतिहास जनमानससँ नुकायल नहि अछि। सामान्‍य परिषदक सम्‍मानीय सदस्‍य लोकनिक मैथिलीक गौरव गरिमाक ध्‍यानाकर्षित करबाक आ एकर महत्त्व निरुपित करबाक निमित्त अङरेजीमे दू बुक लेट ओ लिखलनि A Case for Maithili What they say about Maithili तकरा सदस्‍य लोकनिक बीच वितरित करब प्रारम्‍भ कयलनि। यद्यपि दिल्‍लीमे आयोजित पुस्‍तक प्रदर्शनीमे पण्डित नेहरू एहि बातक संकेत देने रहथि जे एहि पुरातन भाषाकेँ मान्यता भेटबाक चाही, किन्‍तु मैथिलीक दुर्भाग्‍य रहल जे अ‍कस्‍मात हुनक निधन भ गेलनि। हुनक मृत्‍यु परान्त मैथिलीक परम हितौषी प्रख्‍यात भाषाशास्री प्रोफेसर सुनीति कुमार चट्टोपाध्‍याय (।890-977) अकादेमीक अध्‍यक्ष बनलाह जे एकर गौरव-गरिमा आ पुरातनतासँ नीक जकाँ परिचित रहथि। प्रोफेसर चट्टोपाध्‍यायक अध्‍यक्ष बनितहि ई अत्यधिक आशान्वित भ गेलाह जे मैथिलीक मान्‍यता भेटबामे मात्र वैधानिक आशान्वित्त भ गेलाह जे मैथिलीक मान्‍यता भेटबामे मात्र वैधानिक प्रक्रिया शेष रहि गेल अछि। अकादेमी एहि लेल एक समिति गठित कयलक जकर सदस्‍य रहथि भाषाविद् प्रोफेसर डॉ. सुकार सेन (।900-992) प्रोफेसर डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी (।907-979) आ डॉ. सुभद्र झा (909-2000)। ई बैसक दिल्‍लीमे आहूत भेल एकर मान्‍यतार्थ। समितिक अनुशंसापर साहित्‍य अकादेमी सन् ।965 ई. मे मैथिली भाषा आ साहित्‍यकेँ आधुनिक भारतीय भाषाक रूपमे मान्‍यता प्रदान कयलक। एहि दिशामे प्रोफेसर जयकान्त मिश्रक आन्‍दोलनात्‍मक स्‍वरूप ऐतिहासिक घटनाक रूपमे सतत चिरस्‍मरणीय रहत मैथिली आन्‍दोलनक इतिहासमे।

लिपि-संरक्षण :

अन्‍य स्‍वतंत्र साहित्यिक आधुनिक भारतीय भाषादिक समान मैथिली भाषाकेँ अपन प्राचीन स्‍वतन्‍त्र लिपि छैक जकरा तिरहुता वा मिथिलाक्षर वा मैथिलाक्षर वा मैथिलीलिपि कहल जाइछ। तिरहुता नामसँ ज्ञात होइछ जे ई लिपि तिरहुत देशक थिक। जहिना भाषा आ सभ्‍यता एवं संस्‍कृति परस्‍पर अन्‍योन्‍याश्रित अछि तहिना लिपि आ भाषाक सम्‍बन्‍ध छैक। अपन लिपिसँ जहिना-जहिना सम्‍बन्ध विच्छेद होइत जायत तहिना-तहिना भाषाक प्रति ताहि अनुपातमे आकर्षण कम होइत जायत तकर प्रकृष्‍ट उदाहरण थिक मैथिली एहि लिपिक जाननिहारक संख्‍या दिनानुदिन नगण्ण होइत देखि जयकान्त मिश्रकेँ मर्मान्‍तक पीड़ा होइत छलनि। एहि समस्‍यापर ओ गम्‍भीरता पूर्वक विचार कयलनि आ एकर संरक्षणार्थ आन्‍दोलन चलौलनि। साहित्‍य अकादेमीमे मैथिलीक स्‍वीकृति प्रश्‍नपर बारम्बार ई समस्‍या उत्‍पन्‍न भेल छल, की एकरा अपन स्‍वतन्त्र लिपि छैक वा नहि ओ एहि समस्‍याक समाधानमे तर्क देलथिन जे एकरा अपन स्‍वतन्‍त्र लिपि छैक जकर इतिहास अति प्राचीन छैक। हुनक मान्‍यता छलनि जे मैथिलीक स्‍वतन्त्र लिपिक अस्तित्त्व स्‍थापित करबामे जे कठिनता लिपिक कारणेँ भेलनि आ वर्त्तमान परिप्रेक्ष्‍यमे भ रहल से नहि होइत जँ हमरा लोकनि एकरा संरक्षित रखने रहितहुँ तँ ई प्रश्‍न कथमपि नहि उठैत।

वार्त्तालापक क्रममे ओ हमरा एक बेर कहने रहथि जे पुरातन कालमे समग्र मिथिलाञ्चलमे तिरहुता लिपिक संगहि कैथी लिपिक प्रचलन छलैक। दरभंगा राजक कार्य-कलापमे सेहो तिरहुता लिपिक प्रयोग होइत छलैक, किन्‍तु ओकरा वहिष्कृत क कए हिन्‍दी बहुल देवनागरी लिपिकेँ लादि देल गेलैक जकर भयंकर दुष्‍परिणाम भेलैक जे शनैःशनैः जनमानससँ ई विलुप्त होइत चल गेल। एकरे फलस्‍वरूप मैथिली सदृश प्राचीनतम भाषाकेँ वर्त्तमान परिप्रेक्ष्‍यमे हिन्‍दीक अंगक रूपमे उद्घोषणा कयलनि जेना व्रजभाषा आ अवधीक प्रसंगमे कहल जाइछ। जँ तिरहुता लिपि प्रचलित रहैत आ एकर साहित्‍य सृजन एही लिपि मे होइत तँ एहन विवादक उद्भावना कथमपि नहि उपस्थित होइत। संस्‍कृतक हेतु वैकल्पिक रूपमे समस्‍त भारतमे देवनागरी लिपि व्‍यवहृत होमय लागल तकर प्रभाव मिथिलाञ्चलपर पड़ल आ मैथिली साहित्‍यक निर्माता लोकनि तिरहुताक स्‍थानपर देवनागरी लिपिक प्रयोग करय लगलाह जे मैथिलीक लेल कालदिवसक इतिहास प्रारम्‍भ भेल।

यद्यपि एहि लिपिक संरक्षणार्थ कतिपय आन्‍दोलन अवश्‍य कयल गेल, किन्‍तु कोनो प्रयास सफल नहि भ सफल। दरभंगासँ तिरहुता लिपिमे समाचार पत्र बहार करबाक प्रयास कयल गेलेक, मुदा ओहो विफल रहल। मैथिली भाषी जनमानस तिरहुता आ कैथी लिपिमे पढ़ैत-लिखैत छल आ एहिसँ अतिरिक्‍त कोनो लिपिक प्रयोगक ज्ञान भण्‍डारसँ जीवनाथ राय (।89।-।969) बाङला लिपिक आधारपर टाइप अवश्‍य बनाओल गेल आ ओ मैथिली प्रथम पुस्‍तकक रचना कयलनि, परन्‍तु ओहो प्रयास सफल नहि भ पौलक।

जखन मैथिली कोश प्रकाशित करबाक प्रश्‍न उपस्थित भेलनि तखन ओ विशुद्ध तिरहुता लिपिक टाइप बनबयबाक अथक आन्‍दोलन कयलनि, कारण हुनका बलबती आकांक्षा छलनि जे तिरहुता लिपिमे कोश प्रकाशित हो। एहि भावनासँ उत्‍प्रेरित भ तिरहुता ककहारा (।967) नामक एक बुक‍लेट छपौलनि। दैव दुर्योग एहन भेल जे हुनक ई आन्‍दोलन सफल नहि भ पौलनि। हुनक तर्क छलनि जँ हमरा लोकनि एकरा साहित्‍यक रिसर्ज अधिक सुकर होइत। वर्त्तमान परिप्रेक्ष्‍यमे एकर पुनरूत्थान करबाक हेतु ओ आन्‍दोलनोन्‍मुख रहथि कारण रिसर्च आ सांस्‍कृतिक कार्यादिमे अलंकरणक रूपमे विशेष उपादेय होयत।

हम व्‍यक्तिगत रूपेँ जनैत छी जे कतेक बेर विश्‍वविद्यालय अनुदाय आयोगक मीटिंगमे किछु गोरे तिरहुता लिपिकेँ वहिष्‍कृत करबाक सुनियोजित योजना वद्ध भ आयल रहथि कारण ओ सभ तिरहुता लिपिसँ सर्वथा अनभिज्ञ रहथि। हम उक्‍त मीटिंगमे सहभागी छलहुँ। ओ अडिग रहला जे एकर पुरातन अस्तित्त्वकेँ संरक्षित राखब नितान्त प्रयोजनीय थिक। प्रत्‍येक मैथिली प्रेमी जनमानसक संगहि-संग विशेषत: मै‍‍थिली पढ़निहार छात्र आ मैथिली पढ़ौनिहार शिक्षक समुदायकेँ सतत ओ उत्‍प्रेरित करैत रहथि तिरहुता लिपि सिखबाक। अधिकांश मातृभाषानुरागीकेँ ओ उक्‍त लिपिमे पत्र लिखथि जनिका एकर ज्ञान छनि। एहन कतिपय पत्र हमरो लग अछि।
प्राथमिक शिक्षा-मातृभाषा

प्राथमिक शिक्षा आ मातृभाषा दुनूक परस्‍पराश्रित अछि। शिक्षा मानव जीवनक मेरुदण्‍ड थिक। शिक्षाक उद्देश्‍य थिक ज्ञानार्जन। ज्ञानार्जनक हेतु भाषा माध्‍यम थिक। अतएव कोनो भाषाक सफलता एहि बातपर अवलम्वित अछि जे कोन सीमा धरि ज्ञानार्जन आ अर्जित ज्ञानक अभिव्‍यक्तिमे सहायक होइछ, जकरा द्वारा व्‍यक्तित्वक निर्माण होइछ आ आन्तरिक गुणक शक्तिक विकास तथा ओ एक उत्तरदायी नागरिक रूपमे जनमानसक समक्ष प्रस्‍तुत होइछ। मातृभाषाक माध्‍यमे प्राथमिक शिक्षा एक सिक्‍काक दू पहलू थिक। अतएव प्रारम्भिकावस्‍थामे जीवनमे मातृभाषाक माध्‍यमे प्राथमिक शिक्षा दुनूक प्राथमिकता अपेक्षित अछि। एहि प्रसंगे भारतेन्दु बाबू हरिश्‍चन्‍द्र (।950-885)क कथन छनि :

निज भाषा उन्‍नति अहै, सब उन्‍नति की मूल।
बिनु निज भाषा ज्ञान केँ, मिटय न हृदयक मूल।

मातृभाषाक माध्‍यमे प्राथमिक शिक्षाक नहि व्‍यवस्‍था रहलाक कारणेँ हुनका हृदयमे अपार पीड़ा छलनि। एहि लेल ओ पृथकसँ जन आन्‍दोलन चलयबाक अभियान अवश्‍य चलौलनि, किन्‍तु बिहार सरकारक उदासीनताक कारणेँ हुनक ई स्‍वप्‍न साकार नहि भ पौलनि। हमरा जनैत मिथिलावासी अपन मातृभाषाक महत्त्व नहि बुझबाक ई दुखद परिणाम थिक। जँ जनमानस अपन बाल-गोपालकेँ मातृभाषाक महत्त्वसँ वस्‍तुत: अवगत करबि‍तथि तँ  एहन स्‍वस्‍थ वातावरणक निर्माण होइत जे सरकारकेँ बाध्‍य भ कए प्राथमिक शिक्षा मातृभाषाक माध्‍यमे लागू करय पड़ितैक।

जखन डॉ. जगन्‍नाथ मिश्र बिहारक मुख्‍यमंत्रीक पदपर सिंहासनारुढ़ भेलाह तखन जयकान्‍त मिश्र अत्‍यधिक आशन्वित भेला जे मातृभाषानुरागी मुख्‍यमंत्री मातृभाषाक माध्‍यमे प्राथमिक शिक्षाक उद्धोषणा अवश्‍य करता। किन्‍तु ओकर कोनो फलाफल नहि बहरायल। हुनक अवधारणा छलनि जे जँ प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा मैथिलीक माध्‍यमे होइत तँ मिथिलाञ्चलक अधिकांश समस्‍याक समाधान स्‍वत: भ जाइत। मातृभाषाक माध्‍यमे प्राथमिक शिक्षा नहि भेटबाक कारणेँ नेना-भुटकाकेँ शिक्षाक प्रतिरुचि भ जाइछ, जकर परिणाम होइछ जे विद्यालयसँ ओकर पलायन भ जाइछ। इएह प्रमुख कारण थिक जे प्राथमिक स्‍तरपर मातृभाषाक माध्‍यमे प्राथमिक शिक्षाक कार्यान्‍वयन हेतु ओ जीवन पर्यन्‍त आन्‍दोलनक संघर्ष करैत रहला। मिथिलाञ्चलमे मातृभाषा मै‍‍थिलीकेँ प्राथमिक स्‍तरपर शिक्षा नीति लागू करयबाक हेतु ओ पदयात्रा, वैसार, प्रचार अभियान तँ करबे कयलनि, एतेक धरि जे ओ कानूनी लड़ाइ लड़बामे पाछू नहि रहला।
एहि प्रसंगमे हुनक कथन छलनि जे आन-आन देश उन्‍नतिक शिखरपर पहुँचल अछि तकर प्रमुख कारण थिक जे ओ अपन मातृभाषाक महत्त्वसँ पूर्ण अवगत अछि। रुस, जापान, इंग्‍लैण्‍ड, अमेरिका आदि देशमे प्राथमिक शिक्षा ओकर मातृभाषाक माध्‍यमे देल जाइछ जे प्रगतिक पथपर दिनानुदिन अग्रसर भेल जा रहल अछि। ओ एहि विषयसँ मर्माहत रहथि जे मिथिलाञ्चलमे जनजागरणक अभावक शिक्षा लागू करयबाक दिशामे प्रयत्‍नशील नहि छथि। मै‍थिली शिक्षक मैथिली पढ़यबाक हेतु सचेष्‍ट नहि छथि। यावत् मैथिल समाज एहि प्रश्‍नक यशोचित उत्तर नहि देत, तावत मैथिलीकेँ आगाँ बढ़बाक कोनो आन्‍दोलन सफल नहि भ सकैछ।

सन् ।969 ई. मे मिथिला मण्‍डल मुम्‍बईक तत्त्वावधान मे आयोजित अखिल भारतीय मैथिली सम्‍मेलनमे विचारणीय विन्‍दु छल मातृभाषाक माध्‍यमे प्राथमिक शिक्षा। उक्‍त सम्‍मेलनमे विश्‍वविद्यालयक प्रतिनिधि रूपमे हम सम्मिलित भेल छलहुँ। ओतय मातृभाषाक माध्‍यमे प्राथमिक शिक्षाक कार्यान्‍वयनार्थ एक समिति गठित भेलैक जकर सदस्‍य हम सेहो छलहुँ आ प्रोफेसर जयकान्‍त मिश्र ओ अध्‍यक्ष रहथि। निर्णय निम्‍नस्‍थ अछि।

1. शैशवावस्‍थामे मातृभाषाक माध्‍यमे शिक्षाक व्‍यवस्‍था रहलापर ओकर ज्ञान आ मस्तिष्क विकास सहज, सुगम आ सुव्‍यवस्थित होइछ। विषय वस्‍तुक ज्ञान आरम्भिक संस्‍कार स्‍थायी होइछ। ओ सुगमता पूर्वक सब वस्‍तुक ज्ञान आरम्भिक संस्‍कार स्‍थायी होइछ। ओ सुगमता पूर्वक सब वस्‍तु ग्रहण करैछ जे विषय-वस्‍तु बुझबामे सहायक होइछ। एहिमे कोनो सन्‍देह नहि जे सुगमता पूर्वक ओकर विकासक सम्भावना अछि।

2. प्रजातन्‍त्रक प्रथम शर्त्त थिक जनमानसकेँ शिक्षित करब, जाहिसँ ओ कोनो कार्य सम्‍पूर्ण शक्तिक संग सहर्ष करता ओकर शक्ति विषय-वस्‍तु बुझबामे सहायक होइछ। जखन कोना समस्‍या उत्‍पन्न हैत तँ ओकर समाधान ओ आसानीसँ क पबैछ। मातृभाषाक माध्‍यमे प्राथमिक शिक्षा जीवित प्रजातन्‍त्रक मूल मन्‍त्र थिक।

3. एहिमे कोनो सन्‍देह नहि जे प्राथमिक शिक्षा मातृभाषाक माध्‍यमे देल जाय, कारण मै‍थिली एक प्राचीनतम जीवित भाषा थिक तेँ एकरा अनिवार्य रूपेँ लागू करबाक दिशामे प्रयासक प्रयोजन अछि आ बिहार राज्‍यक अधिकांश जिलामे ई बाजल जाइत अछि ततय अनिवार्य रूपेँ एकरा लागू करबाक हेतु सरकारपर दवाब बनायब आवश्‍यक अछि।

किन्‍तु दुर्योगक विषय थिक जे सरकारक उदासीनताक कारणेँ ने तँ मै‍थिलीमे प्रा‍थमिक शिक्षाक पुस्‍तक प्रकाशित भेल आ ने तँ ओकर अध्‍यापनक व्‍यवस्‍था अद्यापि भेल अछि जे चिन्‍तनीय विषय थिक। अतएव सरकार एहि नीतिक विरोधमे जनमत संग्रह क कए सशक्‍त आन्‍दोलनक प्रेरणा ओ देलनि जे मूक बधिर सरकारकेँ जगयबाक प्रयोजन अछि। सुसुप्‍त सरकारकेँ जाधरि जगाओल नहि जायत ताधरि मिथिलाञ्चलमे प्राथमिक शिक्षाक माध्‍यम मैथिलीकेँ नहि भेटला मिथिला आ मै‍थिलीक सर्वतो भावेन विकास आ विविध समस्‍यादिक निदान ओकर निराकरण ताधार सम्भावित नहि अछि जाधरि ओहिसँ लड़बाक शक्तिक लेल आवश्‍यकता अछि जनमानसक चेतन विचार आ सक्रिय सहयोग। एहि लेल मातृभाषाक माध्‍यमे प्राथमिक शिक्षा अपेक्षित अछि। हिनका द्वारा चलाओल गेल एहि आन्‍दोलनकेँ साकार रूप देबाक दिशामे प्रयास अपेक्षित अछि। ई विषय अद्यापि अस्‍पष्‍ट अछि जे भारतीय संविधान, साहित्य अकादेमी आ अन्‍तर्राष्‍ट्रीय साहित्यिक संस्‍था पी.ई.एन. द्वारा एहि भाषा आ साहित्‍यकेँ मान्‍तता प्राप्त अछि तखन बिहार सरकार प्राथमिक शिक्षाक रूपमे एकरा लागू किएक ने करैत अछि? एकरा लागू कयलासँ सरकारक प्रतिष्‍ठामे विकास होयतैक आ जनमत ओकरा पक्षमे अनायासहि आकर्षित भ जायत।

आन्दोलन-नवआयाम :

जयकान्‍त मिश्र मैथिली आन्‍दोलनकेँ नव स्‍वरूप प्रदान करबाक आकांक्षी रहथि, कारण हुनक प्रबल इच्‍छा छलनि जे आन्‍दोलन सम्‍बन्‍धी कार्यक्रमकेँ रुचित करबाक निमित्त झुण्‍ड बान्हिक, ढोल बजा क, गाम-गाममे घूमि क मातृभाषाक की महत्त्व छैक तकरा बुझायब परमावश्‍यक अछि। एहि लेल मुख्‍य-मुख्‍य स्‍थानपर मीटिंगक आयोजन करब आ मातृभाषाक वास्‍तविक महत्त्व आ तज्‍जनित विविध समस्‍यादिसँ जनमानसक ध्‍यानार्षित करबा मैथिली भाषापर मात्र ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थक वर्चस्वकेँ समाप्त करबाक लेल सेहो आन्दोलनक आवश्यकता अछि तकर ओ अनुभव कयलनि। ओ मिथिलाञ्चलक मुसलमानकेँ मै‍थिली आन्‍दोलनक संग जोड़बाक बलवती इच्‍छा शक्ति छलनि हुनका। ओ एहन आन्‍दोलनक आकांक्षी रहथि जे जनमानस वैह यथार्थ रूपेँ प्रतिनिधित्त्व क सकैछ जे ओहि अंचल, ओहि क्षेत्रक, ओहि समाजक सर्वांगीन विकास आ उन्नतिक हेतु सतत सक्रिय रहथि। किन्‍तु असीम पीड़ा हुनका एहि बातक छलनि जे मिथिलाञ्चल अपन विकासक लेल आन्दोलनक प्रति सतत उदासीन रहल अछि। मैथिली आन्‍दोलनमे तीव्रता अनबाक हेतु जाधरि सांसद विधायक आ ग्राम पंचायत प्रतिनिधिक सहयोग नहि भेटत ताधरि ई धारदार नहि सकैछ। ओ एहि बातसँ अत्यधिक दु:खी रहथि जे मिथिलाञ्चलसँ निर्वाचित प्रतिनिधि लोकनिमे मातृभाषाक प्रति जनजागरणक अभाव परिलक्षित भेलनि।

जयकान्‍त मिश्र मैथिली आन्‍दोलनकेँ नव आयाग प्रदान करबाक प्रयास कयलनि। हुनक धारणा छलनि जे जाधरि एकरा राष्‍ट्रीय रूप नहि प्रदान कयल जायत ताधरि मै‍थिली भाषाआ साहित्‍यक विकासक सम्‍मावना नहि। जहिना ओड़िया भाषी, असमिया भाषी आ नेपाली भाषीकेँ अपन भाषा आ साहित्‍यक प्रति अगाध श्रद्धा आ सम्‍मान छैक जे अपन चिर स्‍नेही अपार भाषा जननीक नारा बुलन्‍द करैत अछि तहिना मैथिली भाषीकेँ सेहो अपन भाषा आ साहित्‍यक प्रति स्‍नेह आ श्रद्धा उत्‍पन्‍न करबाक लेल आन्‍दोलनक प्रयोजनक ओ अनुभव कयलनि। जाहि-जाहि भाषा आ साहित्‍यकेँ साहित्‍य अकादेमी मान्‍यता देने अछि ओहि सब भाषा-समूहकेँ भारतीय संविधानक अष्टम अनुसूचीमे नहि सम्मिलित कयल जायत तकरा लेल एकरात्‍मकता सूत्रमे आबद्ध भ राष्‍ट्रीय स्‍तरपर आन्‍दोलनक प्रयोजन अछि। एहि आन्‍दोलनकेँ तीव्रतर रूप देबाक हेतु अनेक गामक ओ पद-यात्रा कयलनि आ जिला-जिलामे जन आन्‍दोलनक करबाक आह्वान कयलनि। हुनक दृढ़ धारण्‍त छलनि ज मैथिली आन्‍दोलन तँ पत्र-पत्रिका, पत्रकार, साहित्‍यकार आ सहृदय मैथिली प्रेमी धरि सीमित अछि तकरा व्‍यापक परिधिमे अनबाक प्रयोजन अछि।

हुनक धारणा छलनि जे जाधरि एकरा राष्‍ट्रीय स्‍वरूप नहि देल जायत ताधरि एहि भाषाक विकास आ कल्‍याणक सम्भावना हुनका दृष्टिगत नहि होइत छलनि। एहि प्रसंगमे हुनक धारणा छलनि, जहिना पौल रोवसन रचित गीतकेँ लूथर किंग नामक निग्रो नेता निग्रो आन्‍दोलनमे उपयोग कयलनि तहिना हमरा लोकनिकेँ अपन भाषाक संग्राम गीत घोषित करबाक आवश्‍यकता अछि:
we shall over come, we shall over come
we shall over came some day, o! deep in my heart
I do Leo live, we shall over come some day
we will hare in peace, we will ho hand in hand हुनक मान्‍यता छलनि जे जाधरि मिथिलाञ्चल वासी उपर्युक्‍त काव्‍यांशसँ नहि अनु प्राणित हैता ताधरि हमर आन्‍दोलनकारी स्‍वरूपक यथार्थ परिचय नहि आ उपलब्धि नहि भ सकैछ।

मै‍थिली आन्‍दोलन जकर ओ सूत्रधार रह‍थि अनेक धरि ओकरा चलौलनि तकरा ओ टिमटिमाइत दीप मानैत रहथि। मैथिलीक नामपर जतेक आन्‍दोलन चलाओल जा रहल अछि ओ साधारणत: हमर आन्‍दोलनकेँ उजागर करैत अछि। छोट-छोट बातकेँ ल, कए आन्‍दोलन करब तकरा ओ कथमपि आन्‍दोलनक संज्ञासँ नहि अलंकृत करैत रहथि। मैथिली आन्‍दोलनकेँ संचालित करबाक लेल ओ विराट शक्तिक ओ अनुभव कयलनि। मैथिली भाषी द्वारा संचालित आन्‍दोलनकेँ ओ तकरा विकास नहि, प्रत्‍युत विनाश मानैत रहथि। मैथिली आनदोलनक असफलताक कारणक उल्‍लेख करैत हुनक कथन छलनि जे पंजाबी आ उर्दू सदृश हमर भाषाक कोनो धर्मसँ सम्वद्ध नहि अछि। मैथिली बजनिहारक संख्‍या भारतमे सातम अछि। हमर भाषाकेँ स्‍वतन्‍त्र लिपि छैक। एकर अतीत अत्‍यन्‍त समज्‍जवल अछि। हमर महान सांस्‍कृतिक परम्‍परा विश्‍वकेँ दिशा विदेशी करैत रहल अछि। सांस्‍कृतिक अस्मिताक रक्षाक लेल आन्‍दोलन आधुनिक परिप्रेक्ष्‍यमे धर्म थिक।

अपन जीवनक परिणत वयमे मिथिलाकेँ स्‍वतन्‍त्र राज्‍यक रूपमे स्‍थापनार्थ आन्‍दोलनमे सहभागी भेलाह तथा एहि अभियानकेँ सफल बनयबाक दिशामे संघर्षरत भेलाह। अपन स्‍वाभिमानक रक्षार्थ आन्‍दोलनक अग्निकेँ प्रज्‍वलित कयलनि जे अद्यापि जनमानस संघर्षशील अछि। हुनक आकांक्षा छलनि जे राष्‍ट्रक अखण्‍डता आ एकता रहओ, किन्‍तु अपना घरमे, अपना जिला, अपना प्रान्‍तमे अपन भाषा आ संस्‍कृति अक्षुण्‍ण राखि अग्रसर हैबाक प्रयोजन अछि। लोक भरिपोख, भरिमन जीवित रहि देशक उन्‍नतिमे सहभागी हैत। कुण्ठित, कलुषित, हीन व्‍यक्तित्‍वक विकास कहियो नहि सम्‍भव अछि।

मातृभाषाकेँ जीवित रखबाक आकांक्षी रहथि, कारण मातृभाषाक मरण जीवनक प्रश्‍नक हेतु हमरा लोकनिकेँ कोनो सक्रिय डेग उठयबाक प्रयोजन अछि। एहि प्रसंगमे ओ एक महत्त्वपूर्ण बातक बरोबरि चर्चा करैत रहथि जे द्धितीय विश्‍वयुद्ध चलैत छल। फ्रांसकेँ चारुकातसँ जर्मन सेना घेरि नने छल। फ्रेंच अकादमीक पेरिस नगरमे सभा छल। एहि सभामे अधिकाधिक साहित्‍यकार ओ विद्वान् सम्मिलित भ नियमानुसार विचार-विमर्श कयलनि। हुनका सभक इएह दावी छलनि जे केहनो विकट आ संकटकालीन स्थितिमे भाषा आ साहित्‍यक कार्यक परित्‍याग करब समुचित नहि। ओ एहिसँ प्रेरणा देलनि जे मातृभाषाक माध्‍यमे प्राथमिक शिक्षाक प्रयोजनीयतापर प्रकाश देलनि। एहि विकट समस्‍याक समाधानक हेतु ओ विचार विमर्श क एकर समाधान तकबाक प्रेरणा देलनि। जँ मातृभाषाक रूपमे मै‍थिली सिखबाक, लिखबाक, पढ़बाक हिस्‍सक नहि लागत तँ आगाँ कखनो कहियो कोनो स्थितिमे आगाँ नहि बढ़ि सकब। एहि विडम्बनाकेँ हमरा सभकेँ बुझबाक थिक। अपन मातृभाषाकेँ जीवित रखबाक ओ मूलमन्‍त्र देलनि। एहि लेल समाजक दृष्टि सम्पन्‍न आ सामर्थ्‍यवान लोकक सहभागिता मैथिली आन्‍दोलनक लेल प्रयोजनीय अछि। जे यथार्थमे जुड़ल चेतनाक संग सामाजिक विकासकेँ दृष्टिमे राखि आन्‍दोलनक नेतृत्‍व करथि।

ओ एहि बातकेँ स्‍वीकार करैत रहथि जे मैथिली आन्‍दोलनक लेल सशक्‍त नेतृत्त्वक आवश्‍यकता, दृढ़ इच्‍छा शक्ति, एकात्‍मकता आ समर्पण भावनासँ आन्‍दोलन कयलेपर अपन अधिकार प्राप्‍त करबामे कामयाबी भेटि सकैछ। केन्‍द्र हो वा राज्‍य सरकार ओ आन्‍दोलनक भाषा बुझैत अछि। एहि लेल जनजागरण क प्रयोजन अछि, विनु भय होहि न प्रीति। भाषा आ संस्‍कृतिक विकासक लेल संघर्ष करबाक ओ प्रेरणा देलनि।

उपलब्धि :

मै‍थिलीक वास्‍तविक विकासार्थ जयकान्‍त मिश्र द्वारा चलाओल आन्‍दोलनक कतिपय नव उपलब्धि थिक। हुनक आन्‍दोलनकारी स्‍वरूपक पहिल परिचय भेटैछ जे भारतक प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरूकेँ मैथिली भाषा आ साहित्‍यक गौरवशाली प्राचीन पराम्‍परासँ अवगत करौलनि तथा एकर विकासक लेल पथ प्रशस्‍त करबाक निवेदन कयलनि। मैथिली भाषा आ साहित्‍यक समृद्धशाली परम्‍परासँ जनमानसक ध्‍यान आकर्षित करबा लेल सन् 1961ई. आ सन् 1963ई. मे क्रमश: इलाहाबाद आ दिल्‍लीमे पुस्‍तक प्रदर्शनीक आयोजन कयलनि। साहित्‍य अकादेमीक दिल्‍लीमे पुस्‍तक प्रदर्शनीक आयोजन कयलनि। साहित्‍य अकादेमीक सामान्‍य परिषद्क सदस्‍यक मनोनयनक पश्‍चात् अपन मातृभाषाक साहित्यिक पुरातन परम्‍परासँ अन्यान्‍य भारतीय भाषाभाषीकेँ एकर महत्त्वसँ अवगत करबाक निमित्त संघर्षशील भ कए आन्‍दोलन कयलनि जकर परिणाम सकरात्‍मक रहल आ मैथिलीकेँ मान्‍यता भेटल साहित्‍य अकादेमी द्वारा आ भारतीय संविधानक अष्‍टम अनुसूचीमे।

मैथिली आन्‍दोलन सतल गतिशील तकर परिणाम अछि जे ओ शनै:शनै: नीचाँसँ ऊपर ससरल अछि। ई आन्‍दोलनक परिणाम थिक जे भारतीय संविधानक अष्‍टम अनुसूचीमे अपन स्‍थान स्‍वीकृत करौलक। मैथिलीक वास्‍तविक विकास हेतु अद्यापि आन्‍दोलन अपेक्षित अछि। आवश्‍यकता अछि जे हमरा लोकनि आन्‍दोलनोन्मुख भ प्रयास करबाक चाही जे राजभाषाक रूपमे एकरा स्‍वीकृति भटैक। हुनक एहि सकारात्‍मक आन्‍दोलनकेँ मूर्त्त रूप प्रदान करबामे मिथिलाञ्चल आ प्रवासी मातृभाषानुरागी संस्‍थादि अपरिमित सहयोग भेटलनि जकर पुनराख्‍यानक प्रयोजन नहि।

जयकान्‍त मिश्र द्वारा चलाओल मैथिली आन्‍दोलन जे उपलब्धि प्राप्‍तकयलक अछि ओ सर्ववर्ग व्‍यापी भेल अछि आ बहुत अ‍ंशमे सफलता प्राप्‍त कयलक अछि। प्राथमिक शिक्षाक विषयमे मैथिलीकेँ कण्ठ मोकबाक जे सरकार प्रयास कयजक अछि ओहि दिस ओ ध्‍यानाकर्षित कयलनि। मैथिली आन्‍दोलनक इतिहास साक्षी अछि जे हमर विविध माङ क्रमश: स्‍वीकृति भेटैत गेल अछि आ राजनैतिक स्‍वीकृत भेटि पश्‍चात् ओहिसँ लाभान्वित होयबाक भरिगर दायित्त्व मातृभाषानुरागी लोकनिपर आबि गेल अछि लकर निर्वाह प्रत्‍येक मैथिल सपूतक पुनीत कर्त्तव्‍य थिक।

नि:सारण :

मैथिली साहित्‍यक प्राचीन परम्‍पराकेँ इतिहास-लेखन द्वारा करबाक दिशामे, निखिल विश्‍वमे एकरा महत्त्व निरुपित करबाक दिशामे, जनजागरणक जे अभियान चलौलनि, एकर मान्‍यतार्थ सतत संघर्षशील रहला, मातृभाषाक समुचित विकासक लेल दधीचिक समान हड्डी गलौलनि तनिक अक्षय अवदानकेँ अग्रगाति आ अक्षुष्‍ण रखबाक दिशामे प्रत्‍येक मातृभाषानुरागी जनमानसक पुनीत कर्त्तवय थिक। ई श्रेय आ प्रेय हिनके छनि जे ओ अपन सत्‍प्रयाससँ मैथिली साहित्‍यक समृद्ध आव्‍यापक स्‍वरूप प्रदान कयलनि जे मैथिलीक अस्तित्त्व सुरक्षित रहि सकल। यद्यपि हुनका समक्ष कोनो आदर्श आ मार्ग प्रशस्त कयनिहार नहि छल तथापि मातृभाषाक सम्वर्द्धनार्थ ओ जे काज कयलनि तकर प्रभाव परवर्त्ती पीढ़ीपर पड़ल। एहि दृष्टिसँ ओ आदर्श पुरुष रहथि। ओ मार्ग निर्देशक बनि मातृभाषानुरागक बीजक वपन कयलनि आ ओकर उन्‍नयनार्थ अति महत्त्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कयलनि। हुनक तप, त्‍याग, तपस्‍या, कर्मशीलता, वैचारिक स्‍तर सतत अटल-अडिग रहनिहार मातृभाषानुरागी जनमानसकेँ चिरन्‍तन प्रेरणा-पुन्‍ज बनल रहला। ओ अपन अद्वितीय वैदुव्य आ मै‍थिली आन्‍दोलनक अग्रदूत बनि जे आदर्श छोड़ि गेलाह ओ मातृभाषानुरागी लोकनिक लेल सतत प्रेरणा स्रोत बनल रहला ओ परवर्त्ती पीढ़ीकेँ अनुसंधानक प्रेरणा देलनि जे अद्यापि मातृभाषाक विकासार्थ अनेक कार्य अवशेष अछि तकरा पूर्ति करबाक संकेत देलनि।

हिनक मातृभाषाक अपरिमित बहुमूल्‍य साहित्यिक आ आन्‍दोलनकारी अवदानसँ अतिशय प्रभावित भ विश्रुत भाषा शास्‍त्री प्रोफेसर सुनीति कुमार चटर्जी मैथिली शब्‍द कोशक प्रथम खण्‍डे फॉरवार्ड लिखलनि ले डा. सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन (।850-94।)क पश्‍चात भारतमे मै‍थिलीक सर्व श्रैष्‍ठहित चिन्‍तक रूपमे अजर अमर आ अक्षुण्‍ण रहता: His name will lee handed down to posterity in India as the greatest benefactor of Maithili at present day after that of illustrious George Abraham Gieryeson, and will earn for him gratitude of sixteen millions of Maithili speakers in the first instance and of the scholarly world of India, in the second वस्‍तुत: हिनक ई सौभाग्‍य रहलनि जे अपन जीवन काल ओ मैथिलीक विकास विस्‍तारकेँ देखि पौलनि।

उपर्युक्‍त परिप्रेक्ष्‍यमे हुनक आलेखादि यत्र-तत्र विविध संग्रहादिमे आ पत्रिकादिमे प्रकाशित अछि जे वर्त्तमानमे धूल-धूसरित भ रहल अछि तकरा एकत्रित क कए प्रकाशमे आनब प्रत्‍येक मै‍थिली भाषाभाषी मातृभाषानुरागीक पुनीत कर्त्तव्‍य थिक। इएह एहि युगपुरुषक प्रति वास्‍तविक श्रद्धाञ्जलि हैत जे हुनक मातृभाषानुरागक लेल व्‍य‍क्‍त विचारादि वर्त्तमान परिप्रेक्ष्‍यमे प्रकाशित क कए परवर्त्ती भावी पीढ़ीक दिशा-बोध, मार्ग निर्देशनक पथ प्रशस्‍त करयबामे सक्षम भ पाओत अन्‍यथा ओ अक्षय कृति कालक प्रवाहमे गिरि-गह्वरमे विलीन भ जायत।   
१.     प्रकाश चन्द्र -नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा -विश्व रंगमंच दिवस : 27 मार्च २.बिपिन झा-भारत-नेपाल आओर मिथिलांचल

१.
     प्रकाश चन्द्र
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा
विश्व रंगमंच दिवस : 27 मार्च

सभ साल 27 मार्च क विश्व रंगमंच दिवस मनाओल जाइत अछि । वर्ष 1961 मे इंटरनेशनल थिएटर इस्टीट्यूट (आई. टी. आई.), यूनेस्को एहि दिवसक घोषणा केलक । ई गप्प 1959क अछि - हेलसिंकी शहर मे 27 मार्चक दिन पहिल बेर विश्वक रंगकर्मीक जमाबरा भेल छल । एहि आयोजनक नाम थिएटर कांग्रेस राखल गेल छल । आगू आबि क अही दिन के विश्व रंगमंच दिवस घोषित कयल गेल ।  इंटरनेशनल थिएटर इस्टीट्यूट वर्ष 1962 स लगातार 27 मार्च क अपन सभ केन्द्र पर आयोजन के रूप मे मनाबैत आबि रहल अछि । 1962 स एहन प्रावधान बनाओल गेल जे एहि दिनक लेल कोनो अंतरराष्ट्रीय रंग व्यक्तित्व के मनोनीत कयल जेतनि जे अपन संदेश देताह । एहि संदेश के  समूचा विश्व मे प्रसारित कयल जाएत ।  27 मार्च क  सभ रंगकर्मी क बीच एकर पाठ कयल जाइत अछि । वर्ष 1962 मे सबस पहिल रंग संदेश ज्याँ कॉक्तो देने छलाह आ एहि बेर 2010 मे  ई सौभाग्य ब्रिटेनक रंगकर्मी डेम जूडी डेंच के भेटनहि अछि । एकटा सूचना  इहो जे एखन तक मात्र एक्के टा भारतीय के ई सौभाग्य प्राप्त भेलन्हि अछि । ओ छथि भारतक कन्नड भाषी सुप्रसिद्ध नाटककार गिरीश कारनाड - हिनका वर्ष 2002 मे विश्व रंग संदेश देबाक लेल आमंत्रित कयल गेल रहनि ।  एहि दिन विश्वक सभ केन्द्र  कोनो ने कोनो रूपे आयोजन करैत अछि । नेपालक केन्द्र एहि दिनक उपलक्ष्य मे कोनो एकटा वरीष्ठ रंगकर्मी केँ विश्व रंग दिवस सम्मान सम्मानित करैत अछि । एहन सम्मान एखन तक मैथिली रंगमंचक मात्र एक गोटे महेन्द्र मलंगिया केँ प्राप्त भेलन्हि अछि ।  एहि साल 2010 के संदेश मे डेम जूडी डेंच कहलनि अछि जे :

रंगमंच मनोरंजन आ प्रेरणाक माध्यम त अछिये संगहि एक दोसर सभ्यता आ लोकक बीच संबंध स्थापित करबाक क्षमता सेहो एहि मे  निहित अछि । एतबे नहि रंगमंच सर्व साधारण के शिक्षित करैत अछि आ नव नव सूचना, नव नव प्रयोगक जानकारी देबाक काज सेहो करैत अछि ।  

समूचा दुनिया मे रंगमंच कयल जाइत अछि मुदा ई ज़रूरी नहि  जे एहि लेल कोनो बनल बनाओल प्रेक्षागृहे टा मात्र मे कयल जाय । एकर मंचन अफ्रीकाक कोनो छोट स छोट गाम मे सेहो कयल जा सकैत अछि आ एकरा प्रशांत महासागरक बीच कोनो छोटका द्वीप पर सेहो कयल जा सकैत अछि । हॉ ! जरूरत मात्र एतबे, एकरा लेल कनीटा जगह होइ आ देखबा लेल दर्शक । रंगमंच मे हमरा सभ केँ कनेबाक क्षमता त अछिये मुदा हमरा सभ के किछु सोचबा लेल आ विमर्श करबाक लेल सेहो सामर्थ्य एकरा मे होबाक चाही । 

रंगमंच एकटा टीम वर्क अछि । एहि टीम मे अभिनेता छथि, जिनका हम सभ देखैत छियनि मुदा बहुतो एहन लोक सभ जुटल रहैत छथि,  जिनका लोक कहियो नहि देख पबैत छनि । मुदा, ओ लोकनि सेहो ओतबे महत्वपूर्ण होइत छथि जतेक कि अभिनेता । एहि लोकक कतेको तरहक विशेषता आ कार्य कुशलताक कारणे कोनो प्रस्तुति संभव भ  पबैत अछि । तेँ कोनो  प्रस्तुतिक सफलताक श्रेय हुनको लोकनि के ओतबे देबाक चाहियनि ।

ई सत्य अछि जे 27 मार्च क सभ  साल रंगमंच दिवस मनाओल जाइत अछि मुदा सालक सभ दिन के रंगमंच दिवसक रूप मे मनेबाक चाही । किएक त दर्शक केँ मनोरंजन प्रदान कयल जाइत छनि , हुनका शिक्षित करबाक आ हुनका मे बुद्धिक बिस्तार लयबाक जिम्मेदारी हमरे लोकनि के अछि । दर्शकक बिना हमरा लोकनिक अस्तित्वक कोनो अर्थ नहि अछि ।     

डेम जूडी डेंच के बिचार पढ़ि क लगैत अछि जे चाहे मिथिला हो वा सम्पूर्ण भारत, एशिया हो वा यूरोप सभ ठाम रंगकर्मीक सोच आ हुनकर लक्ष्य एक्के तरहक छनि । समाज के मानसिक संबल प्रदान करबाक लेल हमरा सभ के बेसी स बेसी रंगकर्म दिस अग्रसर होयबाक चही ।  
२.

बिपिन झा
बिपिन झा
भारत-नेपाल आओर मिथिलांचल
नेपाल और भारतक सम्बन्धक सीधा प्रभाव मिथिलांचल पर पडनाई स्वाभाविक अछि। भारत आ नेपालक वैदेशिक सम्बन्ध सदिखन मधुर रहल अछि। एकर गवाह राजा जनक केर कालक इतिहास आ सुगौली सन्धि अछि। नवंबर १९५५ मऽ नेपाल महाराजक भारत यात्रा आ अक्टूबर १९५६ मे भारतक राष्ट्रपतिक  नेपाल यात्रा सम्बन्ध कें औरो मधुर बनेलक। चीनी आक्रमण के बाद लालबहादुर शास्त्रीक नेपाल यात्रा, अक्टूबर १९६६ में इन्दिरा गान्धीक नेपाल यात्रा १९७५ में नेपालक महाराज वीरेन्द्रक भारत यात्रा सम्बन्ध कें मधुर बनेबाक अन्य आयाम रहल अछि।
एहि लेख में हम किछु महत्वपूर्ण बिन्दु पर चर्चा करबाक हेतु प्रस्तुत छी जे स्पष्ट करत जे भारत आ नेपाल केर मध्य जे वैदेशिक सम्बन्ध अछि ओहि सं मिथिलांचल के साक्षात लाभ की अछि। ओ एहि बिन्दु पर चर्चित अछि-
·         अतीतकालीन विवादित मुद्दा-
अतीतकालीन प्रमुख विवादित मुद्दा अछि- कालापानी क्षेत्र (महत्वपूर्ण गाम- कुटी, गुंजी आओर नांबे) ई क्षेत्र नेपाल भारत आ चीनक त्रिकोण पर स्थित अछि। नेपाल कहैत अछि जे भारत १९६२ में ई अधिगृहीत कय लेलक।
दोसर विवादित मुद्दा अछि- १८१६ कें सुगौली सन्धि। १९९७ में ई विवाद बढि गेल छल।

·         वर्तमान  समस्या-
वर्तमान समस्या में प्रमुखतः अछि-
§  माओवादी द्वारा भारत भूमिक उपयोग
§  पकिस्तानी खुफिया एजेंसी द्वारा  नेपाल भूमिक उपयोग
§  नेपाल आ चीनक मधुर सम्बन्ध, जे भारतक विदेश नीतिक उल्लंघनो कय जाइत अछि।
§  असम आ बंगाल में नेपाली क जनसंख्या आधिक्य समस्या
§  नेपाल में भारतीय नागरिकक संग भेदपूर्ण व्यवहार।

·         वर्तमान व्यापारिक स्थिति-
भारत आ नेपालक मध्य व्यापारिक स्थिति सन्तोषप्रद अछि। वर्ष १९९६ सँ २००९  धरि नेपाल द्वारा भारत कऽ कयल गेल निर्यात ३.७ अरब रुपया सँ बढि के ४०.९ अरब भय गेल ओतहि भारत द्वारा नेपाल कऽ कयल गेल निर्यात २.४ अरब सँ १६३.९ अरब भय गेल।

·         नेपाल के देल जारहल सहयोग-
भारत नेपाल कें सतत सहयोग करैत रहल अछि। वर्तमान परिदृश्य कें गणना अधोलिखित रूप में कय सकैत छी-
§  नेपालक राष्ट्रीय पुलिस अकादमी भवन निर्माणार्थ भारत ३२० करोड कें मदद करबाक हेतु तयार अछि।
§  भारत २२ करोड लागत सं पोलीटेक्निक कालेज निर्माण हेतु मदद करत।
§  बीरगंज-रक्सौल, बिराटनगर-जोगबनी  में २०० करोडक आर्थिक मदद  ICP  हेतु देत।
§  घेघा नियन्त्रण कार्यक्रम में सहायता दय रहल अछि।
§  मनमोहन-माधवकुमार केर वर्ताक दौरान ५६०० मेगावाट बला पंचेश्वर पनबिजली परियोजना में गति आनब आ नेपाल में बागमती क सफाई सम्बध में चर्चा भेल अछि।

·         सम्बन्धक भविष्य-
उक्त चर्चाक अनन्तर कहल जा सकैत अछि जे नेपाल भारत सम्बन्ध मधुर रहल अछि आ भविष्यों में मधुर रहत कितु एहि बात सँ मूँह नहि फेरल जा सकैत अछि जे जतेक बात चीत हो ओहि काल में भारतीय विदेश नीतिक उपेक्षा नहि हो। भारत नेपाल क मधुर सम्बन्ध मिथिलांचलक उत्कर्षक स्रोत रहत एहि में कतहु सन्देह नहिं।

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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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