भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार
लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व
लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक
रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित
रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक
'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम
प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित
आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha
holds the right for print-web archive/ right to translate those archives
and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).
ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/
पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन
संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक
अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह
(पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव
शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
'विदेह' ५५ म अंक ०१ अप्रैल २०१० (वर्ष ३ मास २८ अंक ५५)- PART IV
मैथिलीआन्दोलनकसजग प्रहरी जयकान्त मिश्र
विगतशताब्दीकप्रारम्भ भारतीय जनमानसक राष्ट्रीय जनमानसक राष्ट्रीय आ सांस्कृतिकजनजागरणकप्रत्यूष बेला थिक। एही बेलामे समाज सुधार आ राजनीतिक आन्दोलनकदेश-व्यापी चेतनासर्वत्र परिव्याप्त भेल। भारतीय संस्कृति आ सभ्यताक आत्म सुधारक लेलभारतीयजीवनगत दोषादि स्वीकृतिक प्रति मुखरित भेल। फलत: हिन्दू समाजक परिष्कार आपरिमार्जनक लेल बंग भूमिपर राजाराम मोहन रायक उदय भेलनि। उत्तर भारतमे आर्यसंस्कृतिक पुररुत्थानक निमित्त स्वामी दयानन्द आर्य समाज द्वाराहिन्दू जागरणकनव मन्त्र फूकलनि। ई वैह स्वर्णिम बेला थिक जे जनमानस अपन दोषादिकेँसुधारि क’संसारक प्रगतिशील जातिक प्रतिद्वन्द्वितामे अग्रसर हैबाक दृढ़ संकल्पकयलक।
भारतीयराजनीतिकक्षितिजपर महात्मा गांधी सदृश प्रबल शक्तिक आबिर्भाव भेलनि, जनिकनेतृत्त्वमेसमस्त भारतवासी ब्रिटिश साम्राज्यवादक जड़ि उन्नमुलनार्थ कटिवद्ध भ’गेल। असहयोग आन्दोलनक ई राजनैतिक चेतनाक मूर्त्त रूप छल। विदेशी वस्तुकवहिव्कार, स्वदेशीक प्रचार, हिन्दु-मुस्लिम एकता, सत्यक आग्रह नेने देशभक्तलोकनिक अहिंसात्मक युद्ध, विभिन्न भंगिमाक बुनियादकेँ ल’कए ई पुनीत आन्दोलन सम्पूर्ण देशमे परिव्याप्त भ’गेल। ई मात्र राजनैतिक आन्दोलन नहीं छल, प्रत्युत राष्ट्रक महान सांस्कृतिकआन्दोलनसेहो छल। महात्मा गांधीक राजनीति वस्तुत: सत्य, अहिंसा, पारस्परिकप्रेम, शान्तिक उज्ज्वल आदर्शसँ अनुप्राणित छल जे भारतीय संस्कृतिक सर्वोपरि निधिथिक।
समाजसुधार आराजनीतिक ई आन्दोलन ने केवल निजातीय संस्कृति आ शासनक प्रतिरोध कयलक, प्रत्युतमातृभूमि, मातृभाषा एवं संस्कृतिकेँ सजग आ प्रवुद्ध बनौलक। ई आन्दोलन जतयमातृभूमि, मातृभाषा एवं संस्कृतिसँ देशवासीकेँ प्रेमक पाठ पढ़ौलक ओतहिसमाज-सुधारआन्दोलनादिक माध्यमे एहि संस्कृतिक एक अत्यन्त भव्य आ उज्ज्वल रूपसमक्ष आयल।वर्त्तमान समस्याक समाधान, भविष्यक सुखद नवनिर्माण तथा विदेशी संस्कृतिकप्रबलप्रवाहसँ अपन सभ्यताकेँ उबारबाक, मातृभूमि आ मातृभाषाक गौरवमय अतीतक आश्रयलेलक।एहि प्रकारेँ विदेशी शासनसँ आतंकित मातृभूमिक निष्प्राण धमनीमे पुरातनसंस्कृतिकभव्य आदर्श, आचार आ निष्ठाक उष्ण रक्त प्रवाहित करबाक लेल युगक चेतनाअत्यन्ततीव्र गतिएँ गतिशील भ’गेल।
साहित्यकमाध्यमसँ युग-चेतनाक ई प्रवुद्ध स्वरूप विविध रूपमे व्यक्त होमय लागल।अपनसीमामे समटल ओहि समयक समस्त साहित्य वस्तुत: मातृभूमि, मातृभाषा एवंसांस्कृतिकजागरणक भाव भूमिपर स्थिर अछि। स्वदेश प्रेम, अतीतक प्रति गौरवगान, गांधीवादी विचारधाराक प्रति श्रद्धा सम्मान, राष्ट्रीय अखण्डताक समर्थन, जातीयसंस्कृतिकनव-निर्माण, सामाजिक कुण्ठादिक निवारण विविध भाव सामग्री समकालीनसाहित्य-सृजन आपोषण कयलक। उपर्युक्त वातावरण परिप्रेक्ष्यमे तत्कालीन साहित्यमेउच्चादर्शवादिता, मातृभाषाक प्रति अगाध श्रद्धा तथा ओकर मान्यतार्थ अधिकारप्राप्त करबाक लेल आन्दोलनक शुभारम्भ भेल।
उपर्युक्तपृष्ठभूमिमे विगत शताब्दीक तृतीय दशकमे एक एश्न अक्षर पुरूषप्रादुर्भूत भेलाहजनिक बहुआयामी व्याक्तित्त्व, मातृभाषाक उत्कर्षक लेल, अविरल नव-नव आयामकप्रेरणास्रोत, अनुसंधान, आन्दोलन, इतिहास-लेखन द्वारा विश्व स्तरपर मैथिलीकेँप्रतिष्ठितकरब, मातृभाषाक माध्यमे प्राथमिक शिक्षाक कार्यान्वयनक हेतु संघर्षरत आकानूनीलड़ाइ लड़निहार, दिशाबोधक, आलोचक तथा हेड़ायल-भुतिआयल मातृभाषानुरागीविभूतिकेँप्रकाशमे आनि, दिवारात्रि चिन्ताग्रस्त रहनिहार आन्दोलनकारी मातृभाषाकउत्थानार्थ महत्त्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कयलनि ओ रहथि प्रोफेसर डॉक्टरजयकान्तमिश्र (।922-2009)। विगत सात दशक धरि अनवरत एक रस एक चित्त भ’मातृभाषाक निष्प्राण धमनीमे उष्ण रक्तक संचार क’कए अभिनव साहित्यिक वातावरणक निर्माणक क’कए ओकर पोषण कयलनि। मैथिली भाषा आ साहित्य जखन गहन अन्धकारमे टापर-टोइया द’रहल छल तखन ओ अपन अभिनव अनुसन्धान आ एक सजग आन्दोलनकारीक रूपमे एक नवआलोकक रश्मिविकीर्ण कयलनि। हिनक समकालीन परिदृश्य छल भारतक स्वतन्त्रताक महासंग्रामजाहिमेकतिपय महासपूत अपन प्राणक आहूति देलनि आ रक्तसँ तर्पण कयलनि।
भारतकस्वतन्त्रता संग्रामक इतिहासमे सन् उन्नैस सय वियालिसक अगस्त क्रान्ति, जाहि मेभारत छोड़ो क’आन्दोलनक शंखनादक अति महत्त्वपूर्ण स्थान अछि, एहि महाक्रान्ति मेबूढ़-बूढ़ानुसनेतासँ अधिक जुआन-जहानक रक्त विशेष गर्म छलैक आ अंग्रेजी शासनक विरूद्धओकरा सभकस्वर अधिक मुखर छलैक। मिथिलाञ्चलक कतिपय स्वतन्त्रता सेनानी एहिमहासंग्राममेसहभागी बनि एकरा सफल बनयबामे सक्रिय सहभागिता देव प्रारम्भ कयलनि, जाहिमेमैथिलीकमहान सपूतक संगहि अपन बहु विधादिक साहित्य सृजनिहार डा. व्रज किशोर वर्मामणिपद्म (।9।8-।986) मनसा वाचा कर्मणा जेल यात्रा कयलनि, ब्रिटिश शासकक निर्मम कठोरयातनासहलनि, भूमिगत भेलाह आ फरारी मे जीवन व्यतीत कयलनिं एहि दृष्टिऍं हिनकसंस्मरणवियालसीक फरारीक सात दिन (।953) एवं फरारीक पाँच दिन (।96।) प्रकाशित अछि, हुनकासँभेट भेल छल (2004) जाहिमे स्वतन्त्रता आन्दोलनक क्रममे ओ जे डायरीलिखलनि तकरदारूण पीड़ादायक वर्णन कयलनि। एहिमे रचनाकारक सद्य: प्रस्फुटित भाव वाविचारकेँअभिव्यक्ति देलनि वा अपन अनुभवक रेखाकंन कयलनि जे अत्यन्त मार्मिक अछि।
प्रोफेसरजयकान्तमिश्रक जीवन धाराक दू रूप हमरा समक्ष अबैछ ओ थिक साहित्य आ आन्दोलन। दूनूक्षेत्रहिनक अत्यंत विस्तृत आ व्यापक अछि जकरा माध्यमे निष्प्राण मैथिली साहित्यमेनवस्पन्दन भरनिहार ई प्रथम सरस्वती पुत्र प्रादुर्भूत भेला जे मातृभाषाकेँजीवन दानदेलनि। ओ ने तँ स्वतन्त्रता संग्रामक महासमरमे सहभागी भेलाह आ ने तँ कोनोराजनीतिक दलसँ सम्वद्ध भेलाह, अपन मातृभाषाक उन्नयनार्थ सततआन्दोलनोन्मुख रहला, दिशा निर्देशा दिर्नेश कयलनि, अपन उचित माँगक प्रति सचेष्ट रहला, संघर्षरतरहलाआचार, व्यवहार वेष-भूषामे पूर्णत: मैथिल संस्कृतिक प्रतीक रहला जेवर्त्तमानपरिदृश्यमे अनुकरणीय थिक। हुनक समस्त जीवन-दर्शन, समस्त विचार-प्रवाह, युग चेतनाकव्यापक सन्निवेश हुनक वाणीक परिधान पहिन क’मिथिलाक सांस्कृतिक परम्परा आ मैथिली साहित्यक भूमिपर दृढ़तासँप्रतिष्ठित अछि।हुनक जीवनक सार्थकता अर्थ उपार्जनमे नहि छलनि, ख्यातिमे नहि छलनि, अधिकारकविस्तारमे नहि छलनि, लोकक मुखसँ साधुवादमे नहि छलनि, भोगमे नहि छलनि, हुनकजीवनकसार्थकता मात्रद जीवनकेँ गम्भीर रूपमे उपलब्ध करबामे, मातृभाषाक महत्त्वबुझबाकचेष्टा करबाक आनन्द मे छलनि। पैघ व्यक्तिक जीवन जीबाक एक ट्रेड सीक्रेटहोइत छैक, से हिनका स्वत: प्राप्त छलनि। हुनक जीवनक मूल उद्देश्य छलनिTo know how to live in any trade. नामी-गिरामी व्यक्तिक साहित्य संसार बहुत दूर धरि एक प्रतिभाशाली परिवारसदृशरहैछ जाहिमे ओ जीवनयापन कयलनि।
आन्दोलन-स्फुरण :
अनुसन्धानोत्तरएकनव प्रवृत्तिक जागरण हुनक मस्तिष्कमे भेलनि जे मैथिलीक गौरव-गरिमाकेँवर्त्तमानपरिप्रेक्ष्यमे जागृत करबाक निमित्त ओ रचनात्मक आ आन्दोलनात्मक मार्गकअनुसरनकयलनि। एहि लेल ओ अर्कमण्य, निष्क्रिय, सुसुप्त, धार्मिक कट्टरता, रूढ़िग्रस्ता, जीवनक अन्ध कूपमे डूबल मिथिलाञ्चल एवं प्रवासी मैथिल समाजमे नव जीवनकसंचार करबाकहेतु जनजागरणक अभियानक सूत्रपात कयलनि जे मिथिलाक सामाजिक, सांस्कृतिक एवंसाहित्यिक जीवनमे नवचेतना अनबाक हेतु ओ रचनात्मक आ आन्देलनात्मक रूखअख्तियारकयलनि। जकर व्यापक प्रभाव मैथिली भाषीपर अत्यन्त व्यापक रूपेँ पड़ल।
कविवरकउक्तपंक्तिक व्यापक प्रभाव हुनकापर पड़लनि जाहिसँ अभिभूत भ’ओ जन जागरणक अभियान चलौलनि जे जनमानस अपन मातृभाषाक महत्त्वकेँ जानय, बुझय आअपनसमुचित अधिकार प्राप्त करबाक दिशामे आन्दोलनोन्मुख हो, हुनका मान्यताछलनि जेमिथिलाञ्चल वासीमे भाषा चेतनाक सर्वथा अभाव छैक। भाषा चेतनाक अर्थ थिकमातृभाषाप्रति प्रेम, दायित्व बोध, कर्त्तव्य बोध, गौरव बोध अादि समस्त विषयचेतनाशब्दमे सन्निहित अछि। भाषाक उन्नति आ विकास ओहि भाषीक चेतनापर निर्भरकरैछ, किन्तु अकर्मण्य मैथिली भाषी जनमानसमे अपन भाषा आ साहित्यक सर्वांगीनविकासकआकांक्षाक अभाव देखि ओ सर्वप्रथम भाषा चेतना जगयबाक उपक्रम कयलनि जे हममैथिल छी, हमर मातृभाषा मैथिली थिक आ हम मिथिलावासी छी। एहि भावनासँ उत्प्रेरित भ’मिथिलाञ्चलक जन-जनसँ अनुरोध कयलनि जे जाति-भेद, वर्ग-भेद, छिद्रान्वेषणकप्रवृत्तिक परित्याग क’एक जुट भ’सम्मिलित रूपसँ मातृभाषाक विकास कार्यक प्रति समवद्ध भ’आन्दोलनकरो, कारण कोनो भाषा भाषीकेँ विनु संघर्ष कयने कोनो उपलब्धि नहिभेलैक जेऐतिहासिक दस्तावेजक रूपमे ओकर भाषा साहित्यमे नुकायल अछि।
मैथिलीआन्दोलनदधीचि बाबू भोलालाल दास (।894-।977)क कथन छलनि जे चुपचाप बैसने व्यक्ति वासंस्थावा भाषाकेँ न्यायोचित अधिकार नहि प्राप्त भ’सकैछ, अतएव मिथिलाञ्चलक सर्वांगीन विकास ओकर भाषा आ साहित्यक मान्यातार्थसमग्रमिथिलावासीकेँ एक सूत्रमे बान्हि, एकता प्रदर्शित क’भयंकर सिंहनाद करबाक प्रयोजन अछि आ अपन समुचित आधिकार प्राप्ति करबाक लेलअतुलितसंघर्ष करबाक आह्वान ओ जीवन पर्यन्त कयलनि। हुनक प्रसिद्ध पंक्ति थिक :
अन्यायीसत्ता छीप्रलय गगन समाचार अतिविषम।
हमरहि लघुहुँकारसँमहाप्रलय होइछ नियम॥
हिनकनेतृत्वमेजाहि आन्दोलनक शुभारम्भ भेल तकर प्रभाव मातृभाषानुरागी साहित्य सृजनिहारलोकनिपरसेहो पर्याप्त मात्रामे पड़लनि तथा एहि निमित्त काव्यक माध्यमे जन–जनमेअपन सांस्कृतिक अस्मिताक रक्षार्थ आन्दोलनोन्मुख भेलाह। आन्दोलनमे तखने बलआओत जखनहम अपन संस्कृतिक शंखनाद करब आ जन–जनमेभाषिक चेतनाक हुँकार भरब। एहि भावनासँ उत्प्रेरित भ’महाकवि आरसी प्रसाद सिंह (1911–1996)कसुप्रसिद्ध कविता बाजि गेल रण डंक एक उद्बोधनात्मक गीत रूपमे मैथिलीप्रेमीकजिह्वापर झंकृत होमय लागल :
बाजि गेलरण डंक, ललकारि रहल अछि।
गरजि-गरजिकय, जन-जनकेँ परचारि रहल अछि।
आबहु कीरहतीमैथिली बनलि वन्दनी?
तरुकछाँहमे बनिउदासिनी जनक नन्दनी?
(माटिकदीप)
उपर्युक्तपरिप्रेक्ष्यमे ओ जनमानसकेँ उत्प्रेरित करबाक उद्देश्यसँ मातृभाषाकसमुचितविकासार्थ जन आन्दोलनक सूत्रपात कयलनि। अखिल भारतीय भाषा सर्वेक्षणमेमैथिली भाषीकसंस्था शनै:-शनै: विलीन होइत देखि कयलनि जे जनगणनाक अवसरपर मुखातिब भ’अपन मातृभाषा मैथिली लिखावथि। ओ जतय कतहु सभा सोसायटीक मिटींगमे सहभागीहोथि ततयसेहो समय बहार क’मैथिली आन्दोलनक अद्यतन स्थितिकेँ उजगार करबाक अवसर निकालि लैत रहथि।हुनका एहिनाक कचोर छलनि जे स्कूल आ कॉलेजमे जतय मैथिलीक पठन-पाठनक सुविधा छैक ततयअभिभावकलोकनि अपन मातृभाषाकेँ उपेक्षाक दृष्टिसँ किएक देखेत छथि आ छात्रकेँप्रोत्साहितनहि करैत छथि। पुस्तक एवं पत्रिका प्रकाशित होइत अछि, किन्तु ओकर क्रेताकअछि।मैथिली आन्दोलनक प्रति जनमासक उदासीनताकेँ दूर करबाक निमित्त आन्दोलनकरबाकआवश्यकताक ओ अनुभव कयलनि। मातृभाषाक जागरणक सबसँ प्रबल आ सबसँ समर्थ स्वरमिथिलाकजनमानसकेँ झंकृत क’देलक। विगत सात दशकसँ मातृभाषा प्रेमी जनमानसकेँ अधिक प्रवुद्ध आ उर्जस्वितस्वरूपदेबाक लेल ओ एक महान तपस्वीक समान अखण्ड साधनामे रत रहला। वर्त्तमान युगधर्मकअनुरूप हुनक साधना अत्यन्त विराट आ भव्य अछि।
आन्दोलन–नेओ:
मातृभाषामैथिलीकसमुचित मान्यताक अभाव हिनका हृदयमे सतत खटकैत रहलनि, जाहिसँ उत्प्रेरित भ’ओ आन्दोन्मुख भेलाह। कारण पुरातन कालहिसँ इलाहाबाद विश्वविद्यालयप्राच्य एवंप्रतीच्य उच्च शिक्षाक हृदय स्थल रहल अछि जतय साहित्यिक एवं सांस्कृतिकक्षेत्रक लब्ध प्रतिष्ठ मातृभाषानुरागी साहित्य चिन्तक लोकनिक निवास रहलनिलकर दूकारण अछि। प्रथमत: धर्म-व लम्बी मैथिल समाज गंगा-यमुना विलुप्त सरस्वतीनदीकसंगम स्थल थिक आ विद्याव्रती लोकनिक जमाबड़ा रहल अछि। स्वाधीनतासँ पूर्वमातृभाषानुरागी जयकान्त मिश्र एकर विकासार्थ दू संस्थाक स्थापना कयलनितीरभुक्तिपब्लिकेशन्स आ अखिल भारतीय मैथिली सहित्य समितिक मैथिल आन्दोलनक नेओ सन्।944 ई.मे रखलनि। हुनक उत्कट अभिलाषा छलनि जे सोफिया वाडि़या द्वारा संस्थापितअन्तर्राष्ट्रीय, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था पी. ई. एन.(poets Essayist and Novelist) द्वारामैथिलीकेँ मान्यता प्राप्त हो। उक्त संस्थाक ई सक्रिय सदस्य भ’भारतीय भाषा एवं विदेशी साहित्यानुरागी लोकनिक ध्यान मैथिली भाषा आसाहित्यकपरातन एवं अधुनातन उत्कर्षसँ अवगत करयबाक निमित्त आन्दोलनोन्मुख भ’एकर पुनराख्यान क’उक्त संस्था द्वारा मैथिलीकेँ मान्यता दिऔलनि जकर विस्तृत विवरण ओकरकार्यविवरिणीमे प्रकाशित अछि।
बिहारकतत्कालीनराज्यपाल डा. रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर ऑल इण्डिया रेडियोपर एक भाषण देलनिजाहि मेओ हृदयसँ अपन उद्गार व्यक्त करैत उद्घोषणा कयने रहथि जे मैथिली ज्ञानग्रन्थस्थप्राचीनतम भाषा थिक जे हिनका आन्दोन्मुख करबामे अति महत्त्वपूर्ण भूमिकाकनिर्वाहकयलक। ई घटना सन् ।956 ई. क थिक।
उक्तभाषणक एकऐतिहासिक परिदृश्य अछि जे मैथिली अन्दोलनक सक्रियतामे हिनका दिशा निर्देशकयलक।हिनक कर्मभूमि सेहो इलाहाबाद विश्वविद्यालयमे रहलनि जतय गणतन्त्र भारतकप्रथमप्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरूक जन्मभूमि छनि। ओ अवकाश भेटलापरनिश्चितरूपेँ ओतय अबैत-जाइत रहथि। अखिल भारतीय मैथिली साहित्यक अध्यक्ष आविश्वविद्यालयमे अङरेजी विभाग व्याख्याताक रूपमे ओ प्रधानमंत्रीसँ सन्।960 ई.मे आनन्द भवनमे दर्शनार्थीक रूपमे मैथिलीक दू पुस्तक वैद्यनाथ मिश्रयात्री (।9।।-।998)क काव्य-संग्रह चित्रा आ गल्पाञ्जलि कथा-संग्रह हुनका उपहारदेलथिन, संगहि अनुरोध कयलथिन जे मैथिली भाषा आ साहित्यक गौरवशाली साहित्यिकपरम्परा तेरहमशताब्दीसँ उपलब्ध अछि, किन्तु सरकारी मान्यताक अभावमे ई सर्वथाउपेक्षित अछि।पण्डित नेहरू ध्यान पूर्वक आ स्नेह पूर्वक हुनक नात सुनलथिन आ कहलथिनInstitutional reorganization is not soul management of the richness of a language. We enjoy with sound literature?
न्यायमूर्त्तिजस्टीस मल्लिकक सत्प्रेरणा आ यथार्थ विचारसँ उत्प्रेरित भ’कए ओ इलाहाबादमे सर गंगानाथ झा संस्कृत रिसर्च इन्सच्युटमे ।5 दिसम्बर।96। ई.मे मैथिली पुस्तक प्रदर्शनीक प्रथम आयोजन कयलनि तथा ओकर उद्घाटन करबाक लेलजस्टीसमल्ल्किसँ अनुरोध कयलथिन। ताधरि जस्टीस मल्लिक भारत सरकारक कमीशन फॉरमाइनो रीटीलैग्वेजजक चेयरमैन पदपर सुशोभित भ’गेल रहथि। ई सुखद संयोग थिक जे उक्त पुस्तक प्रदर्शनीक उद्घाटन करबाकदायित्त्वजस्टीस मल्लिक स्वीकार कयल थिन, जाहिमे ओहिठामक प्रबुद्ध साहित्यचिन्तक लोकनिभाषा आ साहित्यक प्राचीनतम गौरवशाली परम्परासँ अवगत भेलाह जे हुनकापरअमिट छापछौड़लक। उक्त अवसरपर यशस्वी कवि वैद्यनाथ मिश्र यात्री मैथिलीमेकाव्य-पाठ कयनेरहथि।
इलाहाबादपुस्तकप्रदर्शनीसँ अनुप्राणित आ अनुझोरित भ’कए ओ सोचलनि जे एहन प्रदर्शनीक आयोजन गणतन्त्र भारतक राजधानी दिल्लीमेकयल जाय तँनिश्चित रूपेँ मैथिली भाषा आ साहित्यकेँ मान्यता भेटबामे कोनो बाधा नहिआबि सकैछ।हुनकापर आन्दोलनक भूत एहन सवार भ’गेल छलनि। एकर आयोजनार्थ ओ अपन प्रोभिडेण्ड फण्डसँ लोन ल’कए 8 आ 9 जनवरी ।963 ई. मे दिल्लीक आजाद भवनमे ऐतिहासिक राष्ट्रीयपुस्तकप्रदर्शनीक आयोजन कयलनि जाहिमे मिथिलाञ्चल एवं प्रवासस्थ मैथिली प्रेमीलोकनिसँचन्दा एकत्रित कयल गेल आ भालण्टीयर सहभागी भेल रहथि। प्रदर्शनीक सजावटहृदयाकर्षकछल। बहुतायाद मैथिली पुस्तकादि पाण्डुलिपि एकत्रित कयल गेल छल जाहिमेमिथिलासंस्कृत रिसर्च इन्स्टीच्युट दरभंगा आ पटना विश्वविद्यालय विशेषउल्लेखनीयभूमिकाक निर्वाह कयलक। सांसद रूपमे ललितनारायण मिश्र (।922-।975) एवं यमुनाप्रसादमण्डल सहभागी भेल रहथि। भारत सरकारक संसदीय आ ऑल इण्डिया व्राडकास्टिंगकमंत्रीबाबू सत्यनारायण सिंहक अपरिमित सहयोगसँ प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लालनेहरू उक्तप्रदर्शनीक उद्धाटन कयलनि। यद्यपि ओ पन्द्रह मिनट विलम्बसँ पहुँचल रहथि, किन्तुपुस्तक एवं पाण्डुलिपिक अम्बार देखि ओ हतप्रद भ’गेल रहथि अपन उद्घाटन भाषणमे जे बजलथिन ओ कल्पनाक विपरीते अनुभव भेलनिआयोजकजयकान्त मिश्रकेँ। भीजिटिंग रजिस्टरमे ओ टिप्पणी कयलथिन, I was happy to inaugurate Maithili Book Exhibition and to see the largecollectio of books and Maneserispts in Maithili, this demonstnated that Maithili has been for long time and is to day a living among the people of that area. The lagnage deerves encou rgemend ? एहिप्रदर्शनीकेँसफल बनयबाक लेल हास्य-व्यंग्य सम्राट प्रोफेसर हरिमोहन झा (।908-।984), मायानन्दमिश्र (।934), रामस्वरूप नटुआक अतिरिक्त अनेको गण्य-मान्य राजनैतिक, मैथिलीसाहित्य प्रेमी उनटि क’प्रदर्शनीकेँ सफल बनयबाक हेतु उपस्थित भेल रहथि। प्रदर्शनीक शानदार सजावटमिथिलाञ्चल पेंटिंगक कारणेँ समग्र कार्यक्रमक झाँकी सिनेमा होलमे प्रदर्शितभेल जेमैथिलीक हेतु एक ऐतिहासिक घटना थिक। उक्त प्रदर्शनीक सफलता एहि बातक सबलप्रमाणथिक जे ओ एक सफल आयोजक रहथि तथा मैथिली आन्दोलनकेँ एक डेग आगू बढ़ौलनि।
साहित्य-अकादेमी-सामान्य परिषद
मैथिलीपुस्तकप्रदर्शनी मैथिली आन्दोलनकेँ तीव्र करबा प्रियासक शुभारम्भ कुशलनेतृत्त्व मेआगाँ ससरल। एही अवधिमे एक ऐतिहासिक घटना भेल। हिनक पिताश्री महामोपाध्यायडॉक्टरउमेश मिश्र (।895-।967)क नियुक्ति सर कामेश्वर सिंह संस्कृतविश्वविद्यालयदरभंगाक कुलपित करूपमे भेलनि। ई सुखद संयोग छल जे हुनक कार्यकालमे साहित्यअकादेमीक सामान्य परिषदक विश्वविद्यालयक प्रतिनिधित्त्व करबाक हेतु एकप्रतिनिधिकनाम अनुशंसित करबाक सूचना भेटलनि। मातृभाषनुरागी कुलपतिक अतीव इच्छा छलनिजे एहनव्यक्तिक नाम अनुशंसित कयल जाय जे मैथिलीक मान्यतार्थ एहि भाषा आसाहित्यकपुरातन परम्पराक उपस्थापन सबल तर्क द्वारा प्रस्तुत क’कए ओकर अध्यक्ष पण्डित जवाहर लाल नेहरूकेँ कन्भीन्स कहलि सकथिअंग्रेजीमे। कुलपतिकर्यालय तीन वेर प्रोफेसर जयकान्त मिश्रक नाम प्रस्तावित क’हुनक अनुमोदनार्थ प्रस्तुत कयलक, किन्तु कुलपति बारम्बार बिनु कोनोटिप्पणीकयने फाइल वापस क’देथि। हुनका एहि बातक आशंका छलनि जे जनमानस ई आरोप लगाओत जे अपन पुत्रकनामअनुशंसित कयलनि। सामाजिक दवाब एवं मैथिली आन्दोलनक सजग प्रहरी जयकांतमिश्रक नामअनुशंसित कयलथिन आ ओ सामान्य परिषद्क सदस्य मनोनीत भ’गेलाह। ओ अपन मातृभाषा मैथिलीक मान्यतार्थ साहित्य अकादेमीक सामान्यपरिषदमेआन्दोलन प्रारम्भ कयलनि।
मैथिलीकमान्यता
मैथिलीकमान्यतासाहित्य अकादेमी अबिलम्ब दिय, ताहि हेतु ओ फाँड़बान्हि क’आन्दोलनक शुभारम्भ कयलनि तनिक बलिदानक इतिहास जनमानससँ नुकायल नहि अछि।सामान्यपरिषदक सम्मानीय सदस्य लोकनिक मैथिलीक गौरव गरिमाक ध्यानाकर्षित करबाक आएकरमहत्त्व निरुपित करबाक निमित्त अङरेजीमे दू बुक लेट ओ लिखलनिA Case for Maithili आWhat they say about Maithili तकरासदस्य लोकनिकबीच वितरित करब प्रारम्भ कयलनि। यद्यपि दिल्लीमे आयोजित पुस्तकप्रदर्शनीमेपण्डित नेहरू एहि बातक संकेत देने रहथि जे एहि पुरातन भाषाकेँ मान्यताभेटबाक चाही, किन्तु मैथिलीक दुर्भाग्य रहल जे अकस्मात हुनक निधन भ’गेलनि। हुनक मृत्यु परान्त मैथिलीक परम हितौषी प्रख्यात भाषाशास्रीप्रोफेसरसुनीति कुमार चट्टोपाध्याय (।890-।977) अकादेमीक अध्यक्ष बनलाह जे एकरगौरव-गरिमाआ पुरातनतासँ नीक जकाँ परिचित रहथि। प्रोफेसर चट्टोपाध्यायक अध्यक्षबनितहि ईअत्यधिक आशान्वित भ’गेलाह जे मैथिलीक मान्यता भेटबामे मात्र वैधानिक आशान्वित्त भ’गेलाह जे मैथिलीक मान्यता भेटबामे मात्र वैधानिक प्रक्रिया शेष रहि गेलअछि।अकादेमी एहि लेल एक समिति गठित कयलक जकर सदस्य रहथि भाषाविद् प्रोफेसर डॉ.सुकारसेन (।900-।992) प्रोफेसर डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी (।907-।979) आ डॉ.सुभद्र झा (।909-2000)। ई बैसक दिल्लीमे आहूत भेल एकर मान्यतार्थ। समितिक अनुशंसापरसाहित्य अकादेमी सन् ।965 ई. मे मैथिली भाषा आ साहित्यकेँ आधुनिक भारतीयभाषाकरूपमे मान्यता प्रदान कयलक। एहि दिशामे प्रोफेसर जयकान्त मिश्रकआन्दोलनात्मकस्वरूप ऐतिहासिक घटनाक रूपमे सतत चिरस्मरणीय रहत मैथिली आन्दोलनकइतिहासमे।
लिपि-संरक्षण :
अन्यस्वतंत्रसाहित्यिक आधुनिक भारतीय भाषादिक समान मैथिली भाषाकेँ अपन प्राचीनस्वतन्त्र लिपिछैक जकरा तिरहुता वा मिथिलाक्षर वा मैथिलाक्षर वा मैथिलीलिपि कहल जाइछ।तिरहुतानामसँ ज्ञात होइछ जे ई लिपि तिरहुत देशक थिक। जहिना भाषा आ सभ्यता एवंसंस्कृतिपरस्पर अन्योन्याश्रित अछि तहिना लिपि आ भाषाक सम्बन्ध छैक। अपनलिपिसँजहिना-जहिना सम्बन्ध विच्छेद होइत जायत तहिना-तहिना भाषाक प्रति ताहिअनुपातमेआकर्षण कम होइत जायत तकर प्रकृष्ट उदाहरण थिक मैथिली एहि लिपिक जाननिहारकसंख्यादिनानुदिन नगण्ण होइत देखि जयकान्त मिश्रकेँ मर्मान्तक पीड़ा होइत छलनि।एहिसमस्यापर ओ गम्भीरता पूर्वक विचार कयलनि आ एकर संरक्षणार्थ आन्दोलनचलौलनि।साहित्य अकादेमीमे मैथिलीक स्वीकृति प्रश्नपर बारम्बार ई समस्याउत्पन्न भेलछल, की एकरा अपन स्वतन्त्र लिपि छैक वा नहि ओ एहि समस्याक समाधानमे तर्कदेलथिनजे एकरा अपन स्वतन्त्र लिपि छैक जकर इतिहास अति प्राचीन छैक। हुनकमान्यता छलनिजे मैथिलीक स्वतन्त्र लिपिक अस्तित्त्व स्थापित करबामे जे कठिनता लिपिककारणेँभेलनि आ वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यमे भ’रहल से नहि होइत जँ हमरा लोकनि एकरा संरक्षित रखने रहितहुँ तँ ई प्रश्नकथमपि नहिउठैत।
वार्त्तालापकक्रममे ओ हमरा एक बेर कहने रहथि जे पुरातन कालमे समग्र मिथिलाञ्चलमेतिरहुता लिपिकसंगहि कैथी लिपिक प्रचलन छलैक। दरभंगा राजक कार्य-कलापमे सेहो तिरहुतालिपिक प्रयोगहोइत छलैक, किन्तु ओकरा वहिष्कृत क’कए हिन्दी बहुल देवनागरी लिपिकेँ लादि देल गेलैक जकर भयंकर दुष्परिणामभेलैक जेशनैः–शनैःजनमानससँ ई विलुप्त होइत चल गेल। एकरे फलस्वरूप मैथिली सदृश प्राचीनतमभाषाकेँवर्त्तमान परिप्रेक्ष्यमे हिन्दीक अंगक रूपमे उद्घोषणा कयलनि जेनाव्रजभाषा आअवधीक प्रसंगमे कहल जाइछ। जँ तिरहुता लिपि प्रचलित रहैत आ एकर साहित्यसृजन एहीलिपि मे होइत तँ एहन विवादक उद्भावना कथमपि नहि उपस्थित होइत। संस्कृतकहेतुवैकल्पिक रूपमे समस्त भारतमे देवनागरी लिपि व्यवहृत होमय लागल तकर प्रभावमिथिलाञ्चलपर पड़ल आ मैथिली साहित्यक निर्माता लोकनि तिरहुताक स्थानपरदेवनागरीलिपिक प्रयोग करय लगलाह जे मैथिलीक लेल कालदिवसक इतिहास प्रारम्भ भेल।
यद्यपिएहि लिपिकसंरक्षणार्थ कतिपय आन्दोलन अवश्य कयल गेल, किन्तु कोनो प्रयास सफल नहि भ’सफल। दरभंगासँ तिरहुता लिपिमे समाचार पत्र बहार करबाक प्रयास कयल गेलेक, मुदा ओहोविफल रहल। मैथिली भाषी जनमानस तिरहुता आ कैथी लिपिमे पढ़ैत-लिखैत छल आएहिसँअतिरिक्त कोनो लिपिक प्रयोगक ज्ञान भण्डारसँ जीवनाथ राय (।89।-।969) बाङला लिपिकआधारपर टाइप अवश्य बनाओल गेल आ ओ‘मैथिली’प्रथम पुस्तकक रचना कयलनि, परन्तु ओहो प्रयास सफल नहि भ’पौलक।
जखनमैथिली कोशप्रकाशित करबाक प्रश्न उपस्थित भेलनि तखन ओ विशुद्ध तिरहुता लिपिक टाइपबनबयबाकअथक आन्दोलन कयलनि, कारण हुनका बलबती आकांक्षा छलनि जे तिरहुता लिपिमे कोशप्रकाशित हो। एहि भावनासँ उत्प्रेरित भ’तिरहुता ककहारा (।967) नामक एक बुकलेट छपौलनि। दैव दुर्योग एहन भेल जेहुनक ईआन्दोलन सफल नहि भ’पौलनि। हुनक तर्क छलनि जँ हमरा लोकनि एकरा साहित्यक रिसर्ज अधिक सुकरहोइत।वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यमे एकर पुनरूत्थान करबाक हेतु ओ आन्दोलनोन्मुखरहथि कारणरिसर्च आ सांस्कृतिक कार्यादिमे अलंकरणक रूपमे विशेष उपादेय होयत।
हमव्यक्तिगतरूपेँ जनैत छी जे कतेक बेर विश्वविद्यालय अनुदाय आयोगक मीटिंगमे किछु गोरेतिरहुतालिपिकेँ वहिष्कृत करबाक सुनियोजित योजना वद्ध भ’आयल रहथि कारण ओ सभ तिरहुता लिपिसँ सर्वथा अनभिज्ञ रहथि। हम उक्त मीटिंगमेसहभागीछलहुँ। ओ अडिग रहला जे एकर पुरातन अस्तित्त्वकेँ संरक्षित राखब नितान्तप्रयोजनीयथिक। प्रत्येक मैथिली प्रेमी जनमानसक संगहि-संग विशेषत: मैथिली पढ़निहारछात्र आमैथिली पढ़ौनिहार शिक्षक समुदायकेँ सतत ओ उत्प्रेरित करैत रहथि तिरहुतालिपिसिखबाक। अधिकांश मातृभाषानुरागीकेँ ओ उक्त लिपिमे पत्र लिखथि जनिका एकरज्ञान छनि।एहन कतिपय पत्र हमरो लग अछि।
प्राथमिकशिक्षा-मातृभाषा
प्राथमिकशिक्षा आमातृभाषा दुनूक परस्पराश्रित अछि। शिक्षा मानव जीवनक मेरुदण्ड थिक।शिक्षाकउद्देश्य थिक ज्ञानार्जन। ज्ञानार्जनक हेतु भाषा माध्यम थिक। अतएव कोनोभाषाकसफलता एहि बातपर अवलम्वित अछि जे कोन सीमा धरि ज्ञानार्जन आ अर्जित ज्ञानकअभिव्यक्तिमे सहायक होइछ, जकरा द्वारा व्यक्तित्वक निर्माण होइछ आआन्तरिक गुणकशक्तिक विकास तथा ओ एक उत्तरदायी नागरिक रूपमे जनमानसक समक्ष प्रस्तुतहोइछ।मातृभाषाक माध्यमे प्राथमिक शिक्षा एक सिक्काक दू पहलू थिक। अतएवप्रारम्भिकावस्थामे जीवनमे मातृभाषाक माध्यमे प्राथमिक शिक्षा दुनूकप्राथमिकताअपेक्षित अछि। एहि प्रसंगे भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र (।950-।885)क कथनछनि :
निज भाषाउन्नतिअहै, सब उन्नति की मूल।
बिनु निजभाषाज्ञान केँ, मिटय न हृदयक मूल।
मातृभाषाकमाध्यमेप्राथमिक शिक्षाक नहि व्यवस्था रहलाक कारणेँ हुनका हृदयमे अपार पीड़ाछलनि। एहिलेल ओ पृथकसँ जन आन्दोलन चलयबाक अभियान अवश्य चलौलनि, किन्तु बिहारसरकारकउदासीनताक कारणेँ हुनक ई स्वप्न साकार नहि भ’पौलनि। हमरा जनैत मिथिलावासी अपन मातृभाषाक महत्त्व नहि बुझबाक ई दुखदपरिणाम थिक।जँ जनमानस अपन बाल-गोपालकेँ मातृभाषाक महत्त्वसँ वस्तुत: अवगत करबितथितँएहनस्वस्थ वातावरणक निर्माण होइत जे सरकारकेँ बाध्य भ’कए प्राथमिक शिक्षा मातृभाषाक माध्यमे लागू करय पड़ितैक।
जखन डॉ.जगन्नाथमिश्र बिहारक मुख्यमंत्रीक पदपर सिंहासनारुढ़ भेलाह तखन जयकान्त मिश्रअत्यधिकआशन्वित भेला जे मातृभाषानुरागी मुख्यमंत्री मातृभाषाक माध्यमे प्राथमिकशिक्षाकउद्धोषणा अवश्य करता। किन्तु ओकर कोनो फलाफल नहि बहरायल। हुनक अवधारणाछलनि जे जँप्राथमिक शिक्षा मातृभाषा मैथिलीक माध्यमे होइत तँ मिथिलाञ्चलक अधिकांशसमस्याकसमाधान स्वत: भ’जाइत। मातृभाषाक माध्यमे प्राथमिक शिक्षा नहि भेटबाक कारणेँ नेना-भुटकाकेँशिक्षाकप्रतिरुचि भ’जाइछ, जकर परिणाम होइछ जे विद्यालयसँ ओकर पलायन भ’जाइछ। इएह प्रमुख कारण थिक जे प्राथमिक स्तरपर मातृभाषाक माध्यमेप्राथमिकशिक्षाक कार्यान्वयन हेतु ओ जीवन पर्यन्त आन्दोलनक संघर्ष करैत रहला।मिथिलाञ्चलमे मातृभाषा मैथिलीकेँ प्राथमिक स्तरपर शिक्षा नीति लागूकरयबाक हेतुओ पदयात्रा, वैसार, प्रचार अभियान तँ करबे कयलनि, एतेक धरि जे ओ कानूनीलड़ाइलड़बामे पाछू नहि रहला।
एहिप्रसंगमे हुनककथन छलनि जे आन-आन देश उन्नतिक शिखरपर पहुँचल अछि तकर प्रमुख कारण थिक जे ओअपनमातृभाषाक महत्त्वसँ पूर्ण अवगत अछि। रुस, जापान, इंग्लैण्ड, अमेरिका आदिदेशमेप्राथमिक शिक्षा ओकर मातृभाषाक माध्यमे देल जाइछ जे प्रगतिक पथपरदिनानुदिन अग्रसरभेल जा रहल अछि। ओ एहि विषयसँ मर्माहत रहथि जे मिथिलाञ्चलमे जनजागरणक अभावकशिक्षालागू करयबाक दिशामे प्रयत्नशील नहि छथि। मैथिली शिक्षक मैथिली पढ़यबाकहेतुसचेष्ट नहि छथि। यावत् मैथिल समाज एहि प्रश्नक यशोचित उत्तर नहि देत, तावतमैथिलीकेँ आगाँ बढ़बाक कोनो आन्दोलन सफल नहि भ’सकैछ।
सन् ।969 ई. मेमिथिला मण्डल मुम्बईक तत्त्वावधान मे आयोजित अखिल भारतीय मैथिलीसम्मेलनमेविचारणीय विन्दु छल मातृभाषाक माध्यमे प्राथमिक शिक्षा। उक्त सम्मेलनमेविश्वविद्यालयक प्रतिनिधि रूपमे हम सम्मिलित भेल छलहुँ। ओतय मातृभाषाकमाध्यमेप्राथमिक शिक्षाक कार्यान्वयनार्थ एक समिति गठित भेलैक जकर सदस्य हम सेहोछलहुँ आप्रोफेसर जयकान्त मिश्र ओ अध्यक्ष रहथि। निर्णय निम्नस्थ अछि।
1. शैशवावस्थामेमातृभाषाक माध्यमे शिक्षाक व्यवस्था रहलापर ओकर ज्ञान आ मस्तिष्क विकाससहज, सुगम आ सुव्यवस्थित होइछ। विषय वस्तुक ज्ञान आरम्भिक संस्कार स्थायीहोइछ। ओसुगमता पूर्वक सब वस्तुक ज्ञान आरम्भिक संस्कार स्थायी होइछ। ओ सुगमतापूर्वक सबवस्तु ग्रहण करैछ जे विषय-वस्तु बुझबामे सहायक होइछ। एहिमे कोनो सन्देहनहि जेसुगमता पूर्वक ओकर विकासक सम्भावना अछि।
2. प्रजातन्त्रकप्रथम शर्त्त थिक जनमानसकेँ शिक्षित करब, जाहिसँ ओ कोनो कार्य सम्पूर्णशक्तिक संगसहर्ष करता ओकर शक्ति विषय-वस्तु बुझबामे सहायक होइछ। जखन कोना समस्याउत्पन्नहैत तँ ओकर समाधान ओ आसानीसँ क’पबैछ। मातृभाषाक माध्यमे प्राथमिक शिक्षा जीवित प्रजातन्त्रक मूल मन्त्रथिक।
3. एहिमेकोनोसन्देह नहि जे प्राथमिक शिक्षा मातृभाषाक माध्यमे देल जाय, कारण मैथिलीएकप्राचीनतम जीवित भाषा थिक तेँ एकरा अनिवार्य रूपेँ लागू करबाक दिशामेप्रयासकप्रयोजन अछि आ बिहार राज्यक अधिकांश जिलामे ई बाजल जाइत अछि ततय अनिवार्यरूपेँएकरा लागू करबाक हेतु सरकारपर दवाब बनायब आवश्यक अछि।
किन्तुदुर्योगकविषय थिक जे सरकारक उदासीनताक कारणेँ ने तँ मैथिलीमे प्राथमिक शिक्षाकपुस्तकप्रकाशित भेल आ ने तँ ओकर अध्यापनक व्यवस्था अद्यापि भेल अछि जेचिन्तनीय विषयथिक। अतएव सरकार एहि नीतिक विरोधमे जनमत संग्रह क’कए सशक्त आन्दोलनक प्रेरणा ओ देलनि जे मूक बधिर सरकारकेँ जगयबाक प्रयोजनअछि।सुसुप्त सरकारकेँ जाधरि जगाओल नहि जायत ताधरि मिथिलाञ्चलमे प्राथमिकशिक्षाकमाध्यम मैथिलीकेँ नहि भेटला मिथिला आ मैथिलीक सर्वतो भावेन विकास आ विविधसमस्यादिक निदान ओकर निराकरण ताधार सम्भावित नहि अछि जाधरि ओहिसँ लड़बाकशक्तिकलेल आवश्यकता अछि जनमानसक चेतन विचार आ सक्रिय सहयोग। एहि लेल मातृभाषाकमाध्यमेप्राथमिक शिक्षा अपेक्षित अछि। हिनका द्वारा चलाओल गेल एहि आन्दोलनकेँसाकार रूपदेबाक दिशामे प्रयास अपेक्षित अछि। ई विषय अद्यापि अस्पष्ट अछि जे भारतीयसंविधान, साहित्य अकादेमी आ अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था पी.ई.एन.द्वाराएहि भाषा आ साहित्यकेँ मान्तता प्राप्त अछि तखन बिहार सरकार प्राथमिकशिक्षाकरूपमे एकरा लागू किएक ने करैत अछि? एकरालागूकयलासँ सरकारक प्रतिष्ठामे विकास होयतैक आ जनमत ओकरा पक्षमे अनायासहिआकर्षित भ’जायत।
आन्दोलन-नवआयाम :
जयकान्तमिश्रमैथिली आन्दोलनकेँ नव स्वरूप प्रदान करबाक आकांक्षी रहथि, कारण हुनकप्रबल इच्छाछलनि जे आन्दोलन सम्बन्धी कार्यक्रमकेँ रुचित करबाक निमित्त झुण्डबान्हिक, ढोलबजा क’, गाम-गाममे घूमि क’मातृभाषाक की महत्त्व छैक तकरा बुझायब परमावश्यक अछि। एहि लेलमुख्य-मुख्यस्थानपर मीटिंगक आयोजन करब आ मातृभाषाक वास्तविक महत्त्व आ तज्जनितविविधसमस्यादिसँ जनमानसक ध्यानार्षित करबा मैथिली भाषापर मात्र ब्राह्मण आकर्णकायस्थक वर्चस्वकेँ समाप्त करबाक लेल सेहो आन्दोलनक आवश्यकता अछि तकर ओअनुभवकयलनि। ओ मिथिलाञ्चलक मुसलमानकेँ मैथिली आन्दोलनक संग जोड़बाक बलवतीइच्छा शक्तिछलनि हुनका। ओ एहन आन्दोलनक आकांक्षी रहथि जे जनमानस वैह यथार्थ रूपेँप्रतिनिधित्त्व क’सकैछ जे ओहि अंचल, ओहि क्षेत्रक, ओहि समाजक सर्वांगीन विकास आ उन्नतिक हेतुसततसक्रिय रहथि। किन्तु असीम पीड़ा हुनका एहि बातक छलनि जे मिथिलाञ्चल अपनविकासक लेलआन्दोलनक प्रति सतत उदासीन रहल अछि। मैथिली आन्दोलनमे तीव्रता अनबाक हेतुजाधरिसांसद विधायक आ ग्राम पंचायत प्रतिनिधिक सहयोग नहि भेटत ताधरि ई धारदार नहिभ’सकैछ। ओ एहि बातसँ अत्यधिक दु:खी रहथि जे मिथिलाञ्चलसँ निर्वाचित प्रतिनिधिलोकनिमेमातृभाषाक प्रति जनजागरणक अभाव परिलक्षित भेलनि।
जयकान्तमिश्रमैथिली आन्दोलनकेँ नव आयाग प्रदान करबाक प्रयास कयलनि। हुनक धारणा छलनि जेजाधरिएकरा राष्ट्रीय रूप नहि प्रदान कयल जायत ताधरि मैथिली भाषाआ साहित्यकविकासकसम्मावना नहि। जहिना ओड़िया भाषी, असमिया भाषी आ नेपाली भाषीकेँ अपन भाषा आसाहित्यक प्रति अगाध श्रद्धा आ सम्मान छैक जे अपन चिर स्नेही अपार भाषाजननीकनारा बुलन्द करैत अछि तहिना मैथिली भाषीकेँ सेहो अपन भाषा आ साहित्यकप्रतिस्नेह आ श्रद्धा उत्पन्न करबाक लेल आन्दोलनक प्रयोजनक ओ अनुभव कयलनि।जाहि-जाहिभाषा आ साहित्यकेँ साहित्य अकादेमी मान्यता देने अछि ओहि सबभाषा-समूहकेँ भारतीयसंविधानक अष्टम अनुसूचीमे नहि सम्मिलित कयल जायत तकरा लेल एकरात्मकतासूत्रमेआबद्ध भ’राष्ट्रीय स्तरपर आन्दोलनक प्रयोजन अछि। एहि आन्दोलनकेँ तीव्रतर रूपदेबाक हेतुअनेक गामक ओ पद-यात्रा कयलनि आ जिला-जिलामे जन आन्दोलनक करबाक आह्वानकयलनि। हुनकदृढ़ धारण्त छलनि ज मैथिली आन्दोलन तँ पत्र-पत्रिका, पत्रकार, साहित्यकार आसहृदय मैथिली प्रेमी धरि सीमित अछि तकरा व्यापक परिधिमे अनबाक प्रयोजनअछि।
हुनकधारणा छलनि जेजाधरि एकरा राष्ट्रीय स्वरूप नहि देल जायत ताधरि एहि भाषाक विकास आकल्याणकसम्भावना हुनका दृष्टिगत नहि होइत छलनि। एहि प्रसंगमे हुनक धारणा छलनि, जहिना पौलरोवसन रचित गीतकेँ लूथर किंग नामक निग्रो नेता निग्रो आन्दोलनमे उपयोगकयलनि तहिनाहमरा लोकनिकेँ अपन भाषाक संग्राम गीत घोषित करबाक आवश्यकता अछि:
we shall over come, we shall over come
we shall over came some day, o! deep in my heart
I do Leo live, we shall over come some day
we will hare in peace, we will ho hand in handहुनक मान्यता छलनि जे जाधरि मिथिलाञ्चल वासी उपर्युक्त काव्यांशसँ नहिअनुप्राणित हैता ताधरि हमर आन्दोलनकारी स्वरूपक यथार्थ परिचय नहि आ उपलब्धिनहि भ’सकैछ।
अपन जीवनकपरिणतवयमे मिथिलाकेँ स्वतन्त्र राज्यक रूपमे स्थापनार्थ आन्दोलनमे सहभागीभेलाह तथाएहि अभियानकेँ सफल बनयबाक दिशामे संघर्षरत भेलाह। अपन स्वाभिमानक रक्षार्थओआन्दोलनक अग्निकेँ प्रज्वलित कयलनि जे अद्यापि जनमानस संघर्षशील अछि।हुनकआकांक्षा छलनि जे राष्ट्रक अखण्डता आ एकता रहओ, किन्तु अपना घरमे, अपनाजिला, अपना प्रान्तमे अपन भाषा आ संस्कृति अक्षुण्ण राखि अग्रसर हैबाक प्रयोजनअछि।लोक भरिपोख, भरिमन जीवित रहि देशक उन्नतिमे सहभागी हैत। कुण्ठित, कलुषित, हीनव्यक्तित्वक विकास कहियो नहि सम्भव अछि।
ओमातृभाषाकेँजीवित रखबाक आकांक्षी रहथि, कारण मातृभाषाक मरण जीवनक प्रश्नक हेतु हमरालोकनिकेँकोनो सक्रिय डेग उठयबाक प्रयोजन अछि। एहि प्रसंगमे ओ एक महत्त्वपूर्ण बातकबरोबरिचर्चा करैत रहथि जे द्धितीय विश्वयुद्ध चलैत छल। फ्रांसकेँ चारुकातसँजर्मन सेनाघेरि नने छल। फ्रेंच अकादमीक पेरिस नगरमे सभा छल। एहि सभामे अधिकाधिकसाहित्यकार ओविद्वान् सम्मिलित भ’नियमानुसार विचार-विमर्श कयलनि। हुनका सभक इएह दावी छलनि जे केहनो विकट आसंकटकालीनस्थितिमे भाषा आ साहित्यक कार्यक परित्याग करब समुचित नहि। ओ एहिसँप्रेरणा देलनिजे मातृभाषाक माध्यमे प्राथमिक शिक्षाक प्रयोजनीयतापर प्रकाश देलनि। एहिविकटसमस्याक समाधानक हेतु ओ विचार विमर्श क’एकर समाधान तकबाक प्रेरणा देलनि। जँ मातृभाषाक रूपमे मैथिली सिखबाक, लिखबाक, पढ़बाक हिस्सक नहि लागत तँ आगाँ कखनो कहियो कोनो स्थितिमे आगाँ नहि बढ़िसकब। एहिविडम्बनाकेँ हमरा सभकेँ बुझबाक थिक। अपन मातृभाषाकेँ जीवित रखबाक ओमूलमन्त्रदेलनि। एहि लेल समाजक दृष्टि सम्पन्न आ सामर्थ्यवान लोकक सहभागिता मैथिलीआन्दोलनक लेल प्रयोजनीय अछि। जे यथार्थमे जुड़ल चेतनाक संग सामाजिकविकासकेँदृष्टिमे राखि आन्दोलनक नेतृत्व करथि।
ओ एहिबातकेँस्वीकार करैत रहथि जे मैथिली आन्दोलनक लेल सशक्त नेतृत्त्वक आवश्यकता, दृढ़इच्छा शक्ति, एकात्मकता आ समर्पण भावनासँ आन्दोलन कयलेपर अपन अधिकारप्राप्तकरबामे कामयाबी भेटि सकैछ। केन्द्र हो वा राज्य सरकार ओ आन्दोलनक भाषाबुझैतअछि। एहि लेल जनजागरण क प्रयोजन अछि, विनु भय होहि न प्रीति। भाषा आसंस्कृतिकविकासक लेल संघर्ष करबाक ओ प्रेरणा देलनि।
उपलब्धि :
मैथिलीकवास्तविकविकासार्थ जयकान्त मिश्र द्वारा चलाओल आन्दोलनक कतिपय नव उपलब्धि थिक।हुनकआन्दोलनकारी स्वरूपक पहिल परिचय भेटैछ जे भारतक प्रधानमंत्री पण्डितजवाहर लालनेहरूकेँ मैथिली भाषा आ साहित्यक गौरवशाली प्राचीन पराम्परासँ अवगतकरौलनि तथाएकर विकासक लेल पथ प्रशस्त करबाक निवेदन कयलनि। मैथिली भाषा आ साहित्यकसमृद्धशाली परम्परासँ जनमानसक ध्यान आकर्षित करबा लेल सन् 1961ई. आ सन् 1963ई. मेक्रमश: इलाहाबाद आ दिल्लीमे पुस्तक प्रदर्शनीक आयोजन कयलनि। साहित्यअकादेमीकदिल्लीमे पुस्तक प्रदर्शनीक आयोजन कयलनि। साहित्य अकादेमीक सामान्यपरिषद्कसदस्यक मनोनयनक पश्चात् अपन मातृभाषाक साहित्यिक पुरातन परम्परासँअन्यान्यभारतीय भाषाभाषीकेँ एकर महत्त्वसँ अवगत करबाक निमित्त संघर्षशील भ’कए आन्दोलन कयलनि जकर परिणाम सकरात्मक रहल आ मैथिलीकेँ मान्यता भेटलसाहित्यअकादेमी द्वारा आ भारतीय संविधानक अष्टम अनुसूचीमे।
मैथिलीआन्दोलनसतल गतिशील तकर परिणाम अछि जे ओ शनै:शनै: नीचाँसँ ऊपर ससरल अछि। ईआन्दोलनक परिणामथिक जे भारतीय संविधानक अष्टम अनुसूचीमे अपन स्थान स्वीकृत करौलक।मैथिलीकवास्तविक विकास हेतु अद्यापि आन्दोलन अपेक्षित अछि। आवश्यकता अछि जेहमरा लोकनिआन्दोलनोन्मुख भ’प्रयास करबाक चाही जे राजभाषाक रूपमे एकरा स्वीकृति भटैक। हुनक एहिसकारात्मकआन्दोलनकेँ मूर्त्त रूप प्रदान करबामे मिथिलाञ्चल आ प्रवासीमातृभाषानुरागीसंस्थादि अपरिमित सहयोग भेटलनि जकर पुनराख्यानक प्रयोजन नहि।
जयकान्तमिश्रद्वारा चलाओल मैथिली आन्दोलन जे उपलब्धि प्राप्तकयलक अछि ओ सर्ववर्गव्यापी भेलअछि आ बहुत अंशमे सफलता प्राप्त कयलक अछि। प्राथमिक शिक्षाक विषयमेमैथिलीकेँकण्ठ मोकबाक जे सरकार प्रयास कयजक अछि ओहि दिस ओ ध्यानाकर्षित कयलनि।मैथिलीआन्दोलनक इतिहास साक्षी अछि जे हमर विविध माङ क्रमश: स्वीकृति भेटैत गेलअछि आराजनैतिक स्वीकृत भेटि पश्चात् ओहिसँ लाभान्वित होयबाक भरिगर दायित्त्वमातृभाषानुरागी लोकनिपर आबि गेल अछि लकर निर्वाह प्रत्येक मैथिल सपूतकपुनीतकर्त्तव्य थिक।
नि:सारण :
मैथिलीसाहित्यकप्राचीन परम्पराकेँ इतिहास-लेखन द्वारा करबाक दिशामे, निखिल विश्वमे एकरामहत्त्वनिरुपित करबाक दिशामे, जनजागरणक जे अभियान चलौलनि, एकर मान्यतार्थ सततसंघर्षशीलरहला, मातृभाषाक समुचित विकासक लेल दधीचिक समान हड्डी गलौलनि तनिक अक्षयअवदानकेँअग्रगाति आ अक्षुष्ण रखबाक दिशामे प्रत्येक मातृभाषानुरागी जनमानसक पुनीतकर्त्तवय थिक। ई श्रेय आ प्रेय हिनके छनि जे ओ अपन सत्प्रयाससँ मैथिलीसाहित्यकसमृद्ध आव्यापक स्वरूप प्रदान कयलनि जे मैथिलीक अस्तित्त्व सुरक्षित रहिसकल।यद्यपि हुनका समक्ष कोनो आदर्श आ मार्ग प्रशस्त कयनिहार नहि छल तथापिमातृभाषाकसम्वर्द्धनार्थ ओ जे काज कयलनि तकर प्रभाव परवर्त्ती पीढ़ीपर पड़ल। एहिदृष्टिसँ ओआदर्श पुरुष रहथि। ओ मार्ग निर्देशक बनि मातृभाषानुरागक बीजक वपन कयलनि आओकरउन्नयनार्थ अति महत्त्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कयलनि। हुनक तप, त्याग, तपस्या, कर्मशीलता, वैचारिक स्तर सतत अटल-अडिग रहनिहार मातृभाषानुरागी जनमानसकेँचिरन्तनप्रेरणा-पुन्ज बनल रहला। ओ अपन अद्वितीय वैदुव्य आ मैथिली आन्दोलनकअग्रदूत बनिजे आदर्श छोड़ि गेलाह ओ मातृभाषानुरागी लोकनिक लेल सतत प्रेरणा स्रोत बनलरहला ओपरवर्त्ती पीढ़ीकेँ अनुसंधानक प्रेरणा देलनि जे अद्यापि मातृभाषाकविकासार्थ अनेककार्य अवशेष अछि तकरा पूर्ति करबाक संकेत देलनि।
हिनकमातृभाषाकअपरिमित बहुमूल्य साहित्यिक आ आन्दोलनकारी अवदानसँ अतिशय प्रभावित भ’विश्रुत भाषा शास्त्री प्रोफेसर सुनीति कुमार चटर्जी मैथिली शब्द कोशकप्रथमखण्डे फॉरवार्ड लिखलनि ले डा. सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन (।850-।94।)कपश्चात भारतमे मैथिलीक सर्व श्रैष्ठहित चिन्तक रूपमे अजर अमर आअक्षुण्ण रहता:His name will lee handed down to posterity in India as the greatest benefactor of Maithili at present day after that of illustrious George Abraham Gieryeson, and will earn for him gratitude of sixteen millions of Maithili speakers in the first instance and of the scholarly world of India, in the second वस्तुत:हिनक ई सौभाग्य रहलनि जे अपन जीवन काल ओ मैथिलीक विकास विस्तारकेँ देखिपौलनि।
उपर्युक्तपरिप्रेक्ष्यमे हुनक आलेखादि यत्र-तत्र विविध संग्रहादिमे आ पत्रिकादिमेप्रकाशितअछि जे वर्त्तमानमे धूल-धूसरित भ’रहल अछि तकरा एकत्रित क’कए प्रकाशमे आनब प्रत्येक मैथिली भाषाभाषी मातृभाषानुरागीक पुनीतकर्त्तव्य थिक।इएह एहि युगपुरुषक प्रति वास्तविक श्रद्धाञ्जलि हैत जे हुनकमातृभाषानुरागक लेलव्यक्त विचारादि वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यमे प्रकाशित क’कए परवर्त्ती भावी पीढ़ीक दिशा-बोध, मार्ग निर्देशनक पथ प्रशस्त करयबामेसक्षम भ’पाओत अन्यथा ओ अक्षय कृति कालक प्रवाहमे गिरि-गह्वरमे विलीन भ’जायत।
१.प्रकाश चन्द्र -नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा -विश्व रंगमंच दिवस : 27 मार्च २.बिपिन झा-भारत-नेपाल आओर मिथिलांचल
१.
प्रकाश चन्द्र
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा
विश्व रंगमंच दिवस : 27 मार्च
सभ साल 27 मार्च क’ विश्व रंगमंच दिवस मनाओल जाइत अछि । वर्ष 1961 मे इंटरनेशनल थिएटर इस्टीट्यूट (आई. टी. आई.), यूनेस्को एहि दिवसक घोषणा केलक । ई गप्प 1959क अछि - हेलसिंकी शहर मे 27 मार्चक दिन पहिल बेर विश्वक रंगकर्मीक जमाबरा भेल छल । एहि आयोजनक नाम थिएटर कांग्रेस राखल गेल छल । आगू आबि क’ अही दिन के विश्व रंगमंच दिवस घोषित कयल गेल । इंटरनेशनल थिएटर इस्टीट्यूट वर्ष 1962 स’ लगातार 27 मार्च क’ अपन सभ केन्द्र पर आयोजन के रूप मे मनाबैत आबि रहल अछि । 1962 स’ एहन प्रावधान बनाओल गेल जे एहि दिनक लेल कोनो अंतरराष्ट्रीय रंग व्यक्तित्व के मनोनीत कयल जेतनि जे अपन संदेश देताह । एहि संदेश के समूचा विश्व मे प्रसारित कयल जाएत । 27 मार्च क’ सभ रंगकर्मी क बीच एकर पाठ कयल जाइत अछि । वर्ष 1962 मे सबस’ पहिल रंग संदेश ज्याँ कॉक्तो देने छलाह आ एहि बेर 2010 मे ई सौभाग्य ब्रिटेनक रंगकर्मी डेम जूडी डेंच के भेटनहि अछि । एकटा सूचनाइहो जे एखन तक मात्र एक्के टा भारतीय के ई सौभाग्य प्राप्त भेलन्हि अछि । ओ छथि भारतक कन्नड भाषी सुप्रसिद्ध नाटककार गिरीश कारनाड - हिनका वर्ष 2002 मे विश्व रंग संदेश देबाक लेल आमंत्रित कयल गेल रहनि ।एहि दिन विश्वक सभ केन्द्र कोनो ने कोनो रूपे आयोजन करैत अछि । नेपालक केन्द्र एहि दिनक उपलक्ष्य मे कोनो एकटा वरीष्ठ रंगकर्मी केँ विश्व रंग दिवस सम्मान स’ सम्मानित करैत अछि । एहन सम्मान एखन तक मैथिली रंगमंचक मात्र एक गोटे महेन्द्र मलंगिया केँ प्राप्त भेलन्हि अछि ।एहि साल 2010 के संदेश मे डेम जूडी डेंच कहलनि अछि जे :
“ रंगमंच मनोरंजन आ प्रेरणाक माध्यम त’ अछिये संगहि एक दोसर सभ्यता आ लोकक बीच संबंध स्थापित करबाक क्षमता सेहो एहि मेनिहित अछि । एतबे नहि रंगमंच सर्व साधारण के शिक्षित करैत अछि आ नव नव सूचना, नव नव प्रयोगक जानकारी देबाक काज सेहो करैत अछि ।
समूचा दुनिया मे रंगमंच कयल जाइत अछि मुदा ई ज़रूरी नहिजे एहि लेल कोनो बनल बनाओल प्रेक्षागृहे टा मात्र मे कयल जाय । एकर मंचन अफ्रीकाक कोनो छोट स’ छोट गाम मे सेहो कयल जा सकैत अछि आ एकरा प्रशांत महासागरक बीच कोनो छोटका द्वीप पर सेहो कयल जा सकैत अछि । हॉ ! जरूरत मात्र एतबे, एकरा लेल कनीटा जगह होइ आ देखबा लेल दर्शक । रंगमंच मे हमरा सभ केँ कनेबाक क्षमता त’ अछिये मुदा हमरा सभ के किछु सोचबा लेल आ विमर्श करबाक लेल सेहो सामर्थ्य एकरा मे होबाक चाही ।
रंगमंच एकटा टीम वर्क अछि । एहि टीम मे अभिनेता छथि, जिनका हम सभ देखैत छियनि मुदा बहुतो एहन लोक सभ जुटल रहैत छथि,जिनका लोक कहियो नहि देख पबैत छनि । मुदा, ओ लोकनि सेहो ओतबे महत्वपूर्ण होइत छथि जतेक कि अभिनेता । एहि लोकक कतेको तरहक विशेषता आ कार्य कुशलताक कारणे कोनो प्रस्तुति संभव भ’पबैत अछि । तेँ कोनो प्रस्तुतिक सफलताक श्रेय हुनको लोकनि के ओतबे देबाक चाहियनि ।
ई सत्य अछि जे 27 मार्च क’ सभसाल रंगमंच दिवस मनाओल जाइत अछि मुदा सालक सभ दिन के रंगमंच दिवसक रूप मे मनेबाक चाही । किएक त’ स ’ दर्शक केँ मनोरंजन प्रदान कयल जाइत छनि , हुनका शिक्षित करबाक आ हुनका मे बुद्धिक बिस्तार लयबाक जिम्मेदारी हमरे लोकनि के अछि । दर्शकक बिना हमरा लोकनिक अस्तित्वक कोनो अर्थ नहि अछि ।”
डेम जूडी डेंच के बिचार पढ़ि क’ लगैत अछि जे चाहे मिथिला हो वा सम्पूर्ण भारत, एशिया हो वा यूरोप सभ ठाम रंगकर्मीक सोच आ हुनकर लक्ष्य एक्के तरहक छनि । समाज के मानसिक संबल प्रदान करबाक लेल हमरा सभ के बेसी स’ बेसी रंगकर्म दिस अग्रसर होयबाक चही ।
२.
बिपिन झा
बिपिन झा
भारत-नेपाल आओर मिथिलांचल
नेपाल और भारतक सम्बन्धक सीधा प्रभाव मिथिलांचल पर पडनाई स्वाभाविक अछि। भारत आ नेपालक वैदेशिक सम्बन्ध सदिखन मधुर रहल अछि। एकर गवाह राजा जनक केर कालक इतिहास आ सुगौली सन्धि अछि। नवंबर १९५५ मऽ नेपाल महाराजक भारत यात्रा आ अक्टूबर १९५६ मे भारतक राष्ट्रपतिकनेपाल यात्रा सम्बन्ध कें औरो मधुर बनेलक। चीनी आक्रमण के बाद लालबहादुर शास्त्रीक नेपाल यात्रा, अक्टूबर १९६६ में इन्दिरा गान्धीक नेपाल यात्रा १९७५ में नेपालक महाराज वीरेन्द्रक भारत यात्रा सम्बन्ध कें मधुर बनेबाक अन्य आयाम रहल अछि।
एहि लेख में हम किछु महत्वपूर्ण बिन्दु पर चर्चा करबाक हेतु प्रस्तुत छी जे स्पष्ट करत जे भारत आ नेपाल केर मध्य जे वैदेशिक सम्बन्ध अछि ओहि सं मिथिलांचल के साक्षात लाभ की अछि। ओ एहि बिन्दु पर चर्चित अछि-
· अतीतकालीन विवादित मुद्दा-
अतीतकालीन प्रमुख विवादित मुद्दा अछि- कालापानी क्षेत्र (महत्वपूर्ण गाम- कुटी, गुंजी आओर नांबे) ई क्षेत्र नेपाल भारत आ चीनक त्रिकोण पर स्थित अछि। नेपाल कहैत अछि जे भारत १९६२ में ई अधिगृहीत कय लेलक।
दोसर विवादित मुद्दा अछि- १८१६ कें सुगौली सन्धि। १९९७ में ई विवाद बढि गेल छल।
· वर्तमानसमस्या-
वर्तमान समस्या में प्रमुखतः अछि-
§ माओवादी द्वारा भारत भूमिक उपयोग
§ पकिस्तानी खुफिया एजेंसी द्वारानेपाल भूमिक उपयोग
§ नेपाल आ चीनक मधुर सम्बन्ध, जे भारतक विदेश नीतिक उल्लंघनो कय जाइत अछि।
§ असम आ बंगाल में नेपाली क जनसंख्या आधिक्य समस्या
§ नेपाल में भारतीय नागरिकक संग भेदपूर्ण व्यवहार।
· वर्तमान व्यापारिक स्थिति-
भारत आ नेपालक मध्य व्यापारिक स्थिति सन्तोषप्रद अछि। वर्ष १९९६ सँ २००९धरि नेपाल द्वारा भारत कऽ कयल गेल निर्यात ३.७ अरब रुपया सँ बढि के ४०.९ अरब भय गेल ओतहि भारत द्वारा नेपाल कऽ कयल गेल निर्यात २.४ अरब सँ १६३.९ अरब भय गेल।
· नेपाल के देल जारहल सहयोग-
भारत नेपाल कें सतत सहयोग करैत रहल अछि। वर्तमान परिदृश्य कें गणना अधोलिखित रूप में कय सकैत छी-
§ नेपालक राष्ट्रीय पुलिस अकादमी भवन निर्माणार्थ भारत ३२० करोड कें मदद करबाक हेतु तयार अछि।
§ भारत २२ करोड लागत सं पोलीटेक्निक कालेज निर्माण हेतु मदद करत।
§ बीरगंज-रक्सौल, बिराटनगर-जोगबनीमें २०० करोडक आर्थिक मदद ICPहेतु देत।
§ घेघा नियन्त्रण कार्यक्रम में सहायता दय रहल अछि।
§ मनमोहन-माधवकुमार केर वर्ताक दौरान ५६०० मेगावाट बला पंचेश्वर पनबिजली परियोजना में गति आनब आ नेपाल में बागमती क सफाई सम्बध में चर्चा भेल अछि।
· सम्बन्धक भविष्य-
उक्त चर्चाक अनन्तर कहल जा सकैत अछि जे नेपाल भारत सम्बन्ध मधुर रहल अछि आ भविष्यों में मधुर रहत कितु एहि बात सँ मूँह नहि फेरल जा सकैत अछि जे जतेक बात चीत हो ओहि काल में भारतीय विदेश नीतिक उपेक्षा नहि हो। भारत नेपाल क मधुर सम्बन्ध मिथिलांचलक उत्कर्षक स्रोत रहत एहि में कतहु सन्देह नहिं।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।