भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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'विदेह' ५५ म अंक ०१ अप्रैल २०१० (वर्ष ३ मास २८ अंक ५५)- PART V
डॉ. शेफालिकावर्मा
प्रतिवादकस्वर
हँ हम खून केने छी हम सासु बनय नहीचाहैत छी.हम माय बनय नही चाहैत छी. ..तैं हम ई खून केलों . तीन तीन टा खून हम नारी छीनारी ग्लानि भ रहल ऐछहम नारी किएक भेलों ?नारी के किएक महान मानल गेल ? नारी प्रकृति के निकृष्टतम कृति छी तैं हम अपन नारी जीवन जीवा लेल नहि चाहलों.हम माय बनि जीवा लेल चाहैत छलों सासु बनि जीवा लेल नहि चाहैत छी जज साहेब ------सासु ससुर ननदी हम तीन तीन टा खून केलों . जज साहेब हम चाहितों ते भागि के जान बचा सकैत छलों अपन ..दहेजक कारन हिनकर सबहक बनाओल षडयंत्रकहमरा लग कोनो सबूत नहि ऐछ --कोनो पुतोह लग कोनो सबूत नहि रहैत ऐछ..कानून सबूत चाहैत छैक साँच हो व फूसी हो . हमर सासु ससुर हमरा मारवाक षड्यंत्र केलनि एकर सबूत मात्र हम छी अओर हमर भगवान् ...सबुतकआधार पर चलयवाला आन्हर कानून टका पर सबूत अनैत ऐछ.आ ओही किन्लाहा सबूत पर अहाँ न्याय करैत छी जज साहेब --हमरा प्रतिकार लेवाक छल समाजक ठेकेदार सब स .हमरा फांसी दिय जज साहेब फांसी----- सौनसे कोर्ट स्तब्ध . सब वकील पाथरक मुरुत जनताक अपार भीढ़ के काठ मारि गेल छलैक . जज साहेबजेना हिमशिला सन श्वेतसर्द -लहास ---आंखि में अपन बेटाक ब्याहक मोल भाव नाचि गेल हो ...मुदिता हफैसी रहल छलीह . समस्त केशराशिकारी राति सन छिरिआयल छल . दुनू आंखि में घनघोर बरखा . दिनकरक ईजोत कृष्ण-पक्षक रंग ल लेलक. कारी कारी विषधर सांप सौनसे कोर्ट में कतेक काल धरि ससरैत रहल ...... मुदिता जीवनक मात्र बीस बसंत देखने छलीहआ ओ एहेन वीभत्सकाज क बैस्तीह ई अकल्पनीय छल.आ मुदिता..?पलक बंद केने..बाबूजी बाबूजी .अहाँ कते छी अहांक बेटी अहांक नाम पर कलंक लगा देलक . हत्यारिन नहि मुदा अहांक आदर्शक रक्षा केलक . बाबूजी हम नारी जीवन नहि जीवी सक्लों . आ आंखि से जेना व्यतीत छलछला गेल..... बेटा आब अहांक ब्याह भ रहल ऐछ . आब पतिक घर अहांक मान मर्यादा जीवन मरणसब किछ अछि .हम सब ते अहाँ लेल पाहून रहब पाहून..---मुदिताक पिता बेटीक माथ पर हाथ फेरैत बजलाह ---- मुदिताक मोने अपन ब्याहक प्रति विरोध भाव उठहल--जमीन जाल बेचि हमर ब्याह नहि करू बाबूजी / मुदिता बड भावुक छलीह सदिखन चिंतन में डूबल खाली अभावे टा ओकर पूंजी छल अभाव क्रांतिक कारन भ सकैत छै मुदा शर्त रही जायत छै विवेकक...पिताक गरीबी समाज में अभिशाप छल आदर्शवादी कीरानिक जीवने की छै --तेज जलधार में कम्पित जलकुम्भी सन. बी ए पास क मुदिता बैसल छलीह जता देखू ओत टका ..एतेक मूल्य वृद्धि वरक भ गेल छल जे वरक बाप के मृत्युक अतरिक्त कोनो बाट नहि देखा परैत छल ..मुदी रातुक भानस में की ऐछ आटा लेल मदना के पठोने छी बाबूजी ओह कतेक महगी आबी गेल छै ---नमहर साँस लैत शिविर बाबु बजलाह
बाबु जी एकटा बात ते अहाँ छोडियेदेलों ........मुदिता अधर पर मैलछांह हंसी लय बजलीह ---ओही जमाना में बेटीक ब्याह ले लड़का मंगनी में भेटैत छल आब मोलभावकर पढ़ैत छै--मुदिक गप सुनी शिविर बाबु चौंकीगेल छलाह ---बाबूजी एकटा बात पूछी ? लोग अपन बेटा के किएक बेचैत छैक कोना बेचैत छै..-----शिविर बाबुकआंखि में रेतकणझिलमिला गेल..बाबूजी माय कोना अपन बेटा के बेचैत ऐछ बेटाक दाम लग्वैत ऐछ ..अपन पेट में नाओ मास जीवन दान दैत ऐछ पालैत पोसैत ऐछ ओ माय कोना बेटा बेचवा लेल सहमत भ जायत ऐछ. बाबूजी सौरभ ते छोट ऐछ की ओकरा केओ दस हजार टका देत ते बेचि देवैक अहाँ ? मुदु---भरि स्वर में बजलाहबताही भ गेल छी अहाँ अंट शंट बजने जा रहल छी की भ गेल अहांके ...........नहि बाबूजी हम किनल बर से ब्याह नहि करब शिविर बाबु बेटीक पागल प्रलाप सुनी ओहिठाम से उठी गेल छलाह .....ओही राति ओ अपन माँ बबुजिक गप सुनने छलीह ------------मुदितक ब्याह ओहें घर में करब जे आदर्श हो ओ बड भावुक ऐछ विद्रोही प्रकृति के----आ बाप बेटीक गप सुनी माई दांत कासी लेने छलीह..एही बेटीक भविष्य की ऐछ ईश्वर !माय आशंकित सब दिन बेटा जकां पोसने छी आदर्श आ सिधांतक शिक्षा देने छी माथ पर गृहस्थिक भार पढ़तैक अपने शान्त भ जेतीह.. आतिश बाबुक बेटा सप्तक अहाँ के केहेन लागैत ऐछ .......बाबूजिक स्वर सुनी मुदी चोंकि गेलीह ---------आतिश बाबु छोट मोट रोजगार करैत छथि बेटा सेहो ओही रोजगार में लागल ऐछ...निक खैत पिबैत घर . सिधान्त्वादी लोक ....मुदा ओ बड टका माँगता मायक आशंका टका....हँसैत शिविर बजलाह .....'दहेज़ विरोधी संघक ' अध्यक्षछैथ. दहेज़ प्रथा हन्तेवा लेल जी जान से लागल छैथ .. ओ तखन ते बड निक . अपनो विवाह एकटा गरीब घरक लड़की से केने रहैथ आतिशबाबु के के नहि जनित ऐछ ..... हँ से ते ठीके हमहूँ जनैतछी. ....मायक स्वर मुदिताक कान में जायत रहल..हुनकर ससुरक घर दुआरी जगह जमीन सब बिका गेल रहनिहँदहेज़ नहि नेने छलाहएही में कोनो शंका नए.हँ सप्तक मायबापक परम आज्ञाकारी आ सुशिल ऐछ .. मुदिताक आंखि में सप्तकक रूप नाचलागल आदर्श आ सिधांतक गप सुनी ओकर ह्रदय सप्तके लेल नहि सम्पूर्ण परिवार लेल पूजा पुष्प सन समर्पित होयत रहल ...... आ एक दिन पालकी पर बैसी कनिया बनि मुदिता अपन सासुर आबी गेलीह
.................खाली कनिए टा ? सर सामान दान दहेज़ ....आही रोऊ बा ....सासुक प्रथम स्वर सुनतही मुदिता घोघ तर से देख चाहली....माँ भौजी के गहनों नैहरकतेहन सन नै ऐछ .......मुदिताक अंग परिक्षण करैत छोटकी ननदी बाजी उठलीह ......बाबूजी हद्द क देलखिन माँ .......मुदिताक समस्त तन तिक्त गंध से आवेष्टित भ गेलैक ..सासुरक प्रथम स्वागत गान ! मोटा जकां कोन में बैसल मुदिता माँ फ्रिज नहि टी वी नहि पलंग सोफा किछ ते नहि ..कतेक उछाह छल भैयाक ब्याह में ई सब आओत सीपी एखन तोहर बाबूजी के पुछैत छी . दहेज़ विरोधिक सभापति छैथ समाज में की घर में ?अपने घर डाहि हम आइग नहि तापब... एकटा बेटा आ .....पुनः मुदिता डीसी तकैत आग्नेय सवारे बजलीह .....बैसल की टुकुर टुकुर तकैत छी हम भाढ़फोरही ताढ़फोर्ही नै बूझैत छी ..जाऊ भानस भात बनाबू काज धाजकरू ..आ की माय एहो सब नै सिखेलक..... अपरिचित घर अनचिन्हार परिवेश में मुदिता निस्सहाय जकां सप्तक के ताकि रहल छलीहमात्र चारि दिनक जकरा से परिचय छल.ओ ते माय बहिनिक उक्ति सुनी कखन घसकि गेलैक कियो नहि बुझलक . मुदिता चुपचाप भनसा घर दिसि चली गेली ........हेपटोर पहिरी भनसा में नहि जाओ आंखि से देखने छलियेपटोर .......सीपी एकटा नुआ असगनी पर से दय दहीक फेरी लेतैक............एकटा मैलछांह नुआ हाथ में नेने मुदिता कांपी रहल छलीह छोलनी करछुलक मध्य ....साँझक कजरायल आंखि नोरा गेलआकास में त्रितियाक चान विधवाकटूटल चुढ़ी सन लटकल छल .....मुदिता सोचैत रहलीह .......कतेक सपना लोक देखैत ऐछ ..सपनाकतेक विचित्र शब्द थ्हिक सपना आंखि खुलल आ टूटी गेल..नहि नहि सपना के पक्ढ़वाक चेष्टा नै करवाक चाही ...परछाही कतहु पकरहल जाय .........बाप रे एतेक देर से भंसा घर में की अपन देह डाहि रहल छी ----सासुक कर्कश स्वर ----माय बाप भिखमंगा जकां बेटी के सांठी देलक आ बेटीक मलार कतेक!... एही परिवेश में दिनक पंछी उढ़ैत रहल विद्रोही मुदिताक सब स्वर शांत भ गेल. सब उत्ताप पर हिमपात भ गेल ...सप्तक राति के अवैत छल आ भिनसर होयताही निकलि जायत छल.मुदिताक मोन से ओकर सुखदुख से ओकरा कोनो मतलब नहि छल . ओ सरिपो माता पिता कआज्ञाकारी छल.आतिश बाबु बड पैघ समाज सुधारक छलाह हुनकर नाम प्रतिष्ठा छल दीया तर अन्हार.-----अहाँ शिविर बाबु से की कही विवाह थ्हिक केने छलों?कोनो सर सामान घर में नहि आयल .समाज सुधारवाक चक्कर में अपनाही घर में आगि लगा देलों. हम कहने छलों सिपिक माय इशारा में कतेक बात कहने रही ....हम टका पैसा नहि लेब एकेटा बेटा ऐछ ओकर माय के कतेक सुख सेहनता छै ----------भाढ़ह में जाय अहांक कहब सीपीक माय अगुता गेलीह अहाँ टका नहि लेलों ते अहांके किछ नहि भेटल अहाँ स्थिर राहु टका ते नाहीये भेल टीवी फ्रिज किछ ते नहि भेल...... आतिश बाबु सोच लगलाह कहू ते एकेटा बेटा आब ते हमरा घर में कहियो ई सब नहि आयत .....मुदिताक सासु दुःख आ वेदना से कानय लगलीह.......स्थिर रहु हम उपाय सोचैत छी. घरक एहेन वातावरण में मुदिता देरायल हिरनी जकां राति दिन चौन्कल रहैत छलीह डेरायल सनजंगली भेढ़िया सबहक मध्य एकटा मृग शावक माय बापक अल्हढ़ चंचल विद्रोहिणी मुदिता घरक कण कण में ओकरा षडयंत्रक आभास होइत छले. ..डेरायल चौन्कल भयभीत......... ओही राति सप्तकक बाहीं पर सुतल मुदिताक आंखि में नीन नहि छल. राति दिन खुजल आंखि से ओ भयंकर सपना देखैत छलीह ......की भ जायत ऐछ अहांके नहि ते अपने सुतैत छी नहि ते हमरा सूतदैत छी. मुदिताक चोंकब से अर्धनिद्रा में पडल सप्तक खौन्झा उठैत छल. ..........नीन नहि अबैत ऐछ -जेना अपना आप से बजलीह धन्य छी महाराज निन्न नहि अबैत ऐछ ते चुपचाप पडल रहु चोंकि चोंकि तिरिया चरित्त नहि देखाऊ . मुदी दिसि पीठ कय सप्तक बढ़बढ़हैत रहल--------मुदिता लहुलाहान भ गेलीह . तिरिया चरित्त? भावुक मोन कछोटी उठल तिरिया चरित्तकेकरा कहैत छैक के बनोलक एही शब्द के ? पुरुष चरित्त केओ किएक नहि बजैत छैक सबटावेद-पुराण रामायण गीता सब टा पुरुखक लिखल ऐछ तैं ई पक्षपात ! कतेक असहाय हम सब छी लंका से सीता के आनि राम अग्निपरीक्षा सीता क लेलानी मुदा एको बेर सीता प्रतिवाद नहि केलीहपत्नी से अलग रामो ते छलाहओ किएक ने परीक्षा देलनि रामायण पुरुषक लिखल छल. ---------निस्तब्ध्ह राति कतो कोनो मर्मर नै मुदिता चुपचाप पडल एही आँखिक नोरबही ओही आंखी में जाय सागर बना रहल छल..सब देशक लोक कहने ऐछ frelty thy name is woman कियो स्त्री के चीन्ही नै सकल. स्वयं स्त्री माय बनि बेटा बेचैत ऐछ पुतोह बनि जरैत ऐछ आ बची जायत ऐछ ते सासु बनि जरावैत ऐछ. बेटा क माय बनि की भ जायत छै स्त्री के ?ई स्त्री स्वातंत्र्य नारी विमर्श ई सब हथिक दांत छी पहिने स्वयं स्त्री के बदल पडत अपन अधिकार अपन शक्ति के चिन्ह पडत.........असहाय मुदिता आक्रोश से भरल छलीह . नाना प्रकारक विचारधारा ओकर मानस मंथन क रहल छल. पतिक प्रेमिल स्वरों से वंचित कोनो माय बाप अपन बेटीक ई स्थितिक कल्पना क सकैत ऐछ कतेक बेटी अपन सासुर में एहिना राति बित्वैत हेती. एकटा माय दोसरक बेटी गंजन करैत ऐछ मुदा स्वयं ओकर बेटीक भविष्य ? ...नींद नहि छल ओकर आंखि में ...राति तितल भिजल नीरवता एहेन जे खिड़की से अवैत हवाक स्वरों वाचाल छल. मुदितक ह्रदय में एकटा आशंका ..एकटा संशायक मेघ जेना कोनो प्रलयंकर झंझा आबे वाला हो समस्त क्षितिज अंधकार से आच्छादित .......अचक्के किछ स्वर जेना ओकर कान में आब लागल...एकटाअनजान भय से ओकर छाती कांपे लागल .ओकर समस्त इन्द्रियसजग सचेतन भ गेल ओ ओही शब्द सब के आत्मसात करवाक प्रयास कर लागल
...................हमहूँ एयैह सोचैत छी ..सासुक स्वर कान में पडल ..ओ आर सजग भ गेलीह ...शिविर बाबु ते सब सुख मनोरथ डाहि देलनि ..विनिश बाबुक बेटी से बात चलाबी...विनिश बाबु नगरपालिकाक चेयरमेनदेब लेब ते खूब करताह मुदा हुनका बेटी के आंखिचमकैत रहैत छैक...दुनू टा आंखि झिप झिप करत ऐछ जेना कनखी मारैत होई... .......सीपीक माय बजली निक आंखि वाली आन्लों ते की भेटल ....ई ते सांचे मुदा एही कनियाककी करब ई ते हल्ला गुल्ला मचाय सबटा प्रतिष्ठा माटी में मिला देत ........एकरो उपाय छैक मुदिताक सर्वांग कांपी रहल छलैक सांस जोर जोर से चली रहल छल .स्वरअस्पष्ट भेल जा रहल छल.पारामार ऐछ हँ पारामार ते दोकाने में अपन पडल रहैत ऐछ. लोक के की कहवैक..लोक के की..कही देवैक ..आत्महत्या क लेलीह..दोसर गोटे से फंसल छलीह आय पकड़ा गेलीह. ........वह.. ईते उत्तम ..हम ततेक जोर से चिकरी बाजबजे सब केओ हमर कथन के साँच बुझी जायत मुदितक सासुक स्वर में ख़ुशी छल दोसर गोटे से फंसल ...पारामार ..मरणोपरांत चरित्र पर दोषारोपण .... आवेश आ उत्तेजना से कांपी रहल छल मुदिता . आतिश बाबुक ऑफिस घर में तेबुलक दराज में रखललोडेडरेवाल्वारक ध्यान आबी गेलैक -----माय्बापकआज्ञाकारी पुत्र एही सब से अनभिज्ञ निचिं सुतल छल -------एकटा आवेश एकटा उत्तेजना एकटा एकटा मूर्च्छना में मुदिता ऑफिस घर से रिवाल्वर निकलियंत्रचलित जकां सासु ससुरक समक्ष ठाढ़ह भ गेलीह ............बहुत भेल बाबूजी अहाँ एहेन समाज सुधारक के प्रतिष्ठाक संग ज्जेनाई एही दुनिया से जेने निक छैआ एक गोली ससुरक छाती पर माय अहाँ माँ शब्द पर कलंक छी नारी रूप पर कलंक छी नारी भ नारी के प्रतिष्ठा नहि द सकैत छी.......दोसर गोली माय के छाती पर सीपी !..पैघ भ अंहु माय बनब सासु बनि पुतोहके पारामार खुआयब तैं ई अहांक लेल... तिनु लहाश ताढ़फर्हा रहल छल सप्तक केराक भालेरी जकां कंपित कखन दरवज्जा पर आबी ठाढ़ह भ गेल छल.....नहिअहांकेकिछ नहि कहब अहाँ माता पिताक आज्ञाकारीछी अवश्य मुदा हमर सोहाग छीएही सोहागक कारन सीता अपन सासु ससुर महल दोमहला सब के त्यागी के रामक संग वन चली गेल छलीह .....बस अहाँ अपन कलंककसंग जीवु............
सत्यानंदपाठक
कथा- स्वान विमर्श
आइ बारहम दिन बीतय पर अछि, मुदा ओइ बेल्ट वलाक कोनो अता-पता नहि अछि। परचून कें दुकानक आगा राति १० बजे धरि चलय वला चौपाल पर ओ आइयो नहि आयल आ' सभ ओकरहि लेल चिंतित छलथि। ककरो नीक नहि लगैत छलन्हि। ने बतियाय मे आ' ने खेलाय-धूपय मे। गोरकी मौसी आ' भुल्ला काका एक संग जरूर बैसल छलाह, मुदा बतिया नहि रहल छलाह। ओम्हर छोटकन सेहो उदास छल। ओ बेल्टे वलाक संग बेसी रहैत छल। दुनूक उम्र मे बड्ड कम फर्क छलैक। आब ओकरा संग खेलय वला कियो नहि छल। हं, मोती ओकरा बगल मे जरूर बैसल छल। मुदा एहि चितकबराक मन सेहो उदास छल।
मिनी दीदी नांगरि डोला रहल छलीह आ' बाट कें निहारि रहल छलीह। दहिना कात कुनो आहट भेला पऽर ओ बगलक गली में सेहो झांकि लैत छलीह। हुनका लगैत छलैन्ह जेना मैक्सी एम्हर सँ तऽ नहि आबि रहल अछि। ओहि बेल्ट वला नटखट कें लोक सभ प्यार सँ मैक्सी कहैत छथि। ओकरा पर सभ जान लुटबैत छलाह। ओ कहां जनमल, ओकर माय-बाप कें छथि ककरो पता नहि। जखन सँ ओ राति कऽ चौपाल पर आबय लागल सभकें पसिन्ह पडि गेल। ओ सिर्फ भुल्ले काका सँ डेराइत अछि। ओ कहियो काल डांटि-डपटि दैत छथिन्ह। मैक्सी भुल्ला काकाक बाहर निकलल दांत सँ डेराइत अछि। मैक्सी कहैत रहैत अछि जे अगर गलतियो सँ भुल्ला काकाक दांत कतहु फंसि गेल तऽ असाध्य घाउ भऽ सकैत अछि। ओना भुल्ला काकाक कोर पर लाल बनल भुल्ल आंखि कम खतरनाक नहि लगैत अछि। हुनकर आंखि सँ तऽ तैयो बचि सकैत अछि। ओना इ अलग बात छल कि भुल्ला काका सेहो ओकरा कम स्नेह नहि करैत छथि। अनुशासन अलग बात अछि।
परचूनक दुकानक मालिक गंजू महाजन दुकान समेटब शुरू कऽ देने छलाह। हुनकर तीनू बेटा अपन-अपन दायित्व मे लागि गेल छलाह। नन्हकू खाली पडल कार्टून कें कबाड में फेंकि रहल छल। बडका बेटा दुकान मे घटल समानक चिट्ठा बनबय में अपस्यांत छल। मझिला दुकानक बाहर पसरल समान कें भीतर ठेलि रहल छल आ' गंजू महाजन रोकड मिला रहल छलाह। इ सभ देखि गोरकी मौसीक आंखिक कोर भीजि गेल। नोर टपकहि वला छल। चितकबरा उसांस भरैत बाजल-ङङ्गआइयो नहि फिरल।'
गंजू महाजनक दुकानक आगाक खुलल स्थान दिनभरि कतेको तरहक जमघटिक केंद्र अछि। भोर आठ बजे सँ ओतय लगक इस्कूल मे अपना धीया-पूता कें पहुंचावय वला अभिभावक आपस मे बतिया लैत छथि। हिनका लोकनिक गप्प-सप्पक शाश्वत विषय इस्कूलक हेडमास्टरनीक धीया-पूताक प्रति क्रूरता आ' इस्कूल मे अजब-गजब कें नियम होइत अछि। हिनका लोकनिक गेलाक बाद ऑफिस जाय वला सभक हुजूम ओतय अबैत-जाइत रहैत अछि। बैग लटकौने नवका-नवका छौडा सभ बस पकडक लेल ओतय ठाढ भऽ जाइत अछि आओर बस अबैत मांतर इ सभ लपकि कऽ लटकि जाइत अछि। दुपहर एक बजे सँ तीन बजे धरि गार्जियन लोकनि फेर ओतय मंडराय लगैत छथि। हुनकर निशाना इस्कूल गेट होइत अछि। गेट सँ भारी-भरकम बस्ता लटकौने नेना-भुटका निकलैत छथि जिनका हुनकर गार्जियन लपकि लैत छथि। नेना सभ अपना अभिभावक कें ओतय आइसक्रीम, जलपुरी, गोलगप्पाक ठेला दिस खींचय लगैत अछि आओर अभिभावक डांटि-डपटि-चुचकारक अस्त्र सँ हुनका बुझावक कोशिश करैत छथि। सांझ होइत मांतर ओतय थाकल-ठेहियायल लोकसभ, नवतुरिया छौंडा सभक जमघट लगैत अछि। परचून दुकान लगक शराबक दुकान टिमटिमाय लगैत अछि आ' फेर रंगीन सांझक नजारा उपस्थित भऽ जाइत अछि। राति ढहलाक संगहि प्लास्टिकक गिलास आ' छोट-पैघ बोतलक खन-खन सँ ओ स्थान गूंजय लगैत अछि। अलग-अलग झुंड मे लोकसभ सडक पर पासिखानाक आनंद मे डूबि जाइत छथि।
इ नवीन संस्कृति किछुए वर्ष सँ पनपल अछि। शराबक प्रचलन आओर ओकर उपलब्धता दुनू समान रूप सँ बढल अछि। पछिला किछु वर्ष मे एहि शहर मे शराब दुकानक बाढिसन आबि गेल अछि। हर पांच मे एक दुकान विदेशी शराबक अछि। शहर मे दूधक अभाव अछि। शराब दुकानक कोनो अभाव नहि। एहि बातक परवाह बिना कएने कि इ दुकान कहां होमय चाही। इस्कूल, मंदिर, व्यायामशाला बगल मे अछि तैयो कोनो परवाह नहि। शराबक दुकान बढलाक कारणहि शहर मे शराब सेवनक ढेरो तरीका इजाद भेल अछि। एहि क्रम मे ङङ्गफोर व्हील बार'क प्रचलन तेजी सँ बढल अछि। आफिस, दुकान आ' अपन प्रतिष्ठान सँ फुर्सत भेटल आओर चारिटा दोस्त तय कएल। बस फेर बोतल, सोडा, नमकीन और जलक बंदोबस्त भेल आओर बाटक कात लागल कारहि मे बार खुजि गेल। आब स्टेंडिंग बार सेहो आबि गेल अछि। शराब दुकानक सामनहि एकटा मोटरसाइकिल कें घेरि कऽ चारिटा दोस्त ठाढ भेटि जाथि तऽ बुझू ओतय ङङ्गस्टेंडिंग बार' चालू अछि।
गंजू महाजनक परचूनक दुकानक सामने वला जगह पर भोर छः बजे सँ राति बारह बजे धरि गतिविधि चलैत रहैत अछि। राति साढे नौ बजे सँ ओतय श्वान समाज जुटैत अछि। एहि समाजक लेल हऽम संस्कृतनिष्ठ शब्दक प्रयोग कएल अछि। ओना चालू भाषा मे कतेक शब्द अछि, मुदा एतय जाहि समाजक चरचा कएल जा रहल अछि ओ वास्तव मे साधारण नहि अछि। ओकर संवेदना, चिंतन प्रक्रिया आ' व्यवहार कतहु सँ आम आदमीक स्तर सँ कम नहि अछि। इ समाज जखन जुटैत अछि तऽ समाज, जनजीवन सहित कतेको मुद्दा पर गंभीर चरचा होइत अछि। समाजक लोक दिनभरि छितरायल रहैत अछि। भुल्ला काका आइयो ओहि पुरना दरबारक सामने दिनभरि जुटल रहैत छथि आओर कोनो अनचिन्हार आदमी कें देखैत मांतर भूकय लगैत छथि। गोरकी मौसी ओहि बैंक वला दंपति कें खूब स्नेहिल छथि। आब एहि उम्र मे गोरकी मौसीक लऽग कोनो गंभीर जिम्मेदारी नहि छन्हि। ओ दिनभरि दंपतिक घरक छहरदिवारी मे रहैत छथि आओर सांझ कऽ दंपतिक घर फिरते मांतर हुनकर काज समाप्त भऽ जाइत अछि। राति अन्हार होइत मांतर ओ घर सँ निकलि कऽ एहि चौपाल पर आबि जाइत छथि। मिनी दीदी कतहु बान्हल नहि छथि। ओ जन्महि सँ एहि दुआरि-ओहि दुआरि दौडैत रहली अछि। चितकबरा कें कियो कलकत्ता सँ लायल छल। कीनि कऽ। एक दिन बीमार पडि गेल तऽ ओकर मालिक ओकरा सडक पर छोडि गेल छल। छोटकन तऽ नया अछि। ओकर माय ओकरा एहि इलाका मे छोडि गेल। एहि बीच मैक्सीक एहि समाज मे आगमन भेल। ओ एकटा समृद्ध परिवारक दुलरुआ अछि। राति मे किछु समयक लेल ओ खुलल बसात मे छोडि देल जाइत अछि आओर ओ ओकर फायदा उठाकऽ समाजक चौपाल मे शामिल भऽ जाइत अछि।
परंच एहन पहिले कहियो नहि भेल। जखन सँ मैक्सी समाज मे शामिल भेल अछि ओ नियमित रूप सँ चौपाल पर हाजिर होइत रहल अछि। हं, कोनो दिन अपन मालिकक संग कतहु जाइछ तऽ ओ ओहि दिन नहि अबैत छल, मुदा दोसर दिन ओ फेर मौजूद भऽ जाइत छल। इ पहिल मौका छल जे बारह दिन सँ गायब छल। एहिलेल समाजक लोक मे खूब चिंता पसरल छल।
गोरकी मौसी कहलनि-ङङ्गमैक्सी के बिना चौपाल सुन्न लगैत अछि।' भुल्ला काका मौसीक तरफ देखैत सहमति मे मुडी हिलौलनि। मौसी फेर बजली-ङङ्गहमरा चिंता एहि बातक भऽ रहल अछि कि ओहि अभिशप्त ३० अक्टूबरहि सँ मैक्सी गायब अछि। ओहि दिन शहर मे कतेको ठाम पैघ-पैघ बम विस्फोट भेल छल। कतहु मैक्सियो तऽ ओकर चपेटि मे नहि आबि गेल?'
- ङङ्गअ-रे की बात करै छी मौसी। तीस अक्टूबर कऽ मैक्सीक मालिकक छुट्टी नहि छल। एहिलेल ओहि दिन ओ बाहर नहि निकलल होयत।' चितकबरा कहलक।
चितकबरा- ङङ्गभऽ सकैत अछि बम विस्फोट वला दिन ओ मालिकक संग नहि निकलल हो।'
गोरकी मौसी-ङङ्गभऽ सकैत अछि। मुदा संकट सिर्फ ओही दिनक तऽ नहि अछि। बम विस्फोटक बाद सँ तऽ समाज पर संकटक बादल छारलहि अछि।'
चितकबरा-ङङ्गकोना?'
गोरकी मौसी-ङङ्गतू एकदम भोला छह चितकबरा। कि तोरा बुझना नहि जाइत छह? जाहि दिन बम फाटल ओहि दिन लागल जेना जलजला आबि गेल अछि। हम ओहि राति चौपाल पर आयल जरूर रही, मुदा दस मिनटक लेल। महाजनक दुकान बंद छल आओर हमरा रातुक भोजन नहि भेल। किछुए काल मे सटका पटकैत किछु वर्दीधारी आयल आओर हमरा सभ कें पडाय पडल। तहिया सँ लऽ कऽ आइधरि माहौल शांतहि नहि भऽ रहल अछि। दिनभरि सायरनक अवाज गूंजैत अछि आओर वर्दीधारी लोकनिक आयब-जायब लागल अछि। बाट पर भीड निट्ठाह घटि गेल अछि आओर सून-मशान बाट हमरा समाजक दोसर मुहल्लाक कतेको गोटेक जान लऽ लेलक अछि।'
चितबकरा-ङङ्गअहां ठीक कहैत छी मौसी। हम ओहि दिन गणेशगुडी गेल छलहुं। ओतय कें नजारा देखि कऽ करेज कांपि गेल। गाडीक कबाड, जरल दुकान। कोन मे किछु पूजाक समान आ' जरैत मोमबत्ती।'
मिनू-ङङ्गहं, तीस अक्टूबरक ओहि दर्दनाक मंजरक बाद सँ तऽ माहौल बिलकुल अलग भऽ गेल अछि। कतय ओ हलचल आ' कतय इ सन्नाटा। एकदम मरघटसन। किछु लोक भोकासी पाडि कऽ कानि रहल छलथि, तऽ किछु लोक फफकि-फफकि कऽ करेजा गला रहल छलाह। जरल वस्तुक ढेर पर हम देखलहुं इस्कूलक बैग। जूता-चप्पलक अंबार लागल छल। एहि घटनाक बाद शायद पडेबाक क्रम मे लोकक पैर पिछरल हेतनि। लोकसभ बतिया रहल छलाह। ओहि दिन की भेल छल। एकटा बुढवा बाबा फफकि-फफकि कऽ बाजि रहल छलाह-ङङ्गओ अपन नातिन कें लऽ कऽ बजार आयल छलथि। नातिने जिद्द कएने छलन्हि कि हमरा बजार जयबाक अछि। ओ नातिन कें जूता कीनि देलन्हि आओर सोचलन्हि जे किछु तरकारी कीनि ली। इएह सोचब काल साबित भेल। ओ अखन तरकारीक दुकानलग पहुंचल छलाह कि कान सुन्न भऽ गेलन्हि। ओ खसि पडलाह। आओर फेर जखन होश आयल तऽ ........।' बुढवा बाबाक बात सुनि कऽ तऽ हम सन्न रहि गेलहुं। हम हुनकर आओर बात सुनय चाहैत छलहुं। जेना कि हुनकर नातिन कें की भेलनि, मगर सायरनक अवाज गूंजि उठल आओर एकटा वर्दीधारी सटका मारि कऽ हमरा भगा देलक।'
गोरकी मौसी-ङङ्गअरे, सभसँ अधलाह बात तऽ हमरा समाजक लेल भेल। बम विस्फोटक घटनाक दिन सँ तऽ हमरालोकनिक जिनाइ हराम भऽ गेल अछि। सडक सुन्न भेल तऽ हमर लोक सडक पर मटरगश्ती करक लेल निकलि पडल। हुनका की पता छलन्हि कि एहन स्थिति मे दु-चारि टा गाडी चलैत अछि ओ काफी लापरवाह होइत अछि। कतेक लोक एहि लापरवाह गाडीक चपेटि मे आबि गेलाह। जहां-तहां खद्दरधारी आओर वर्दीधारी लोक प्रकट भऽ जाइत छथि आ' हमरालोकनिक खैर नहि। सिर्फ यैह लोकनि नहि, बल्कि किछु घडियाल सेहो उभरि कऽ आबि गेल छथि ओ जगह-जगह मजमा लगा रहल छथि आओर मोमबत्ती जरा कऽ घडियाली नोर टपका रहल छथि। ओना घटनास्थल आओर प्रतिष्ठान आ' सरकारी संस्थान मे श्रद्धासुमन अर्पित कए आ' रैली निकालि कऽ अपन एकजुटता प्रदर्शित करय वला लोक सराहनीय काज कऽ रहल छथि। मुदा दुखक बात इ अछि जे घडियाल सभ सेहो एहि मे अपन फायदा बटोरक प्रयास करब शुरू कऽ देलनि अछि। बजार नहि लागि रहल अछि तऽ हमरा लेल लोक की छोडताह। से पेट पर आफत आबि गेल अछि।'
भुल्ला काका-ङङ्गतू ठीक कहैत छह। हमरो अंदेशा भऽ रहल अछि। या तऽ मैक्सी ओहि दिन बम विस्फोटक चपेटि मे आबि गेल होयत अथवा ओकर बाद जे हंगामा भऽ रहल अछि ओहि मे कतहु दबि गेल होयत।'
- ङङ्गहम भीडक धक्का खाइत फटकी चलल जा रहल छलहुं, मुदा हमर नजरि मालकिनहि पर छल। हम देखलहुं जे मालकिन कोनो तरहें उठली आओर किछु लोक हुनका दुकानक भीतर लऽ गेलाह। ओकरा बाद तऽ हम बस भटकैत रहलहुं। एम्हर आबक रास्ता खोजैत रहलहुं। एहि बीच हम वर्दीवलाक कतेक सटका खएलहुं कहि नहि सकैत छी। एकटा तऽ हमरा पकडि लेने छल आओर रस्सी सँ बान्हि देने छल। शायद ओ हमरा अपन घर लऽ जाय चाहैत छल। मुदा हम कोनो तरहें ओकर चंगुल सँ आजाद भऽ गेलहुं आओर भागि पडेलहुं। एहि बीच हम सिर्फ भागितहि रहलहुं अछि। ओ लोकनि आओर अपना लोकनि सँ सेहो। अपन लोक सभ तऽ हमरा संग अपन इलाका मे घुसपैठीक जकां देखलक आओर कतेक लोक हमरा पर टूटि पडलाह। हम कोनो तरहे बचैत आइ नारंगी तिनाली पहुंचलहुं तऽ ओ अपन इलाकाक पहचान भेल। हम बचि गेलहुं।'
एतेक कहि कऽ मैक्सी सांसहि लऽ रहल छल कि सायरन बाजि उठल। सब बुझि गेल कि आब वर्दी वला आबि धमकताह। एहिलेल सभ अपन-अपन बाट पकडलन्हि।
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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