१. संपादकीय संदेश
२. गद्य
३. पद्य
६. बालानां कृते-. जगदीश प्रसाद मंडल-किछु प्रेरक कथा
७. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]
http://devanaagarii.net/
Go to the link below for download of old issues of VIDEHA Maithili e magazine in .pdf format and Maithili Audio/ Video/ Book/ paintings/ photo files. विदेहक पुरान अंक आ ऑडियो/ वीडियो/ पोथी/ चित्रकला/ फोटो सभक फाइल सभ (उच्चारण, बड़ सुख सार आ दूर्वाक्षत मंत्र सहित) डाउनलोड करबाक हेतु नीचाँक लिंक पर जाऊ।
VIDEHA ARCHIVE विदेह आर्काइव
भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
विदेह जालवृत्तक डिसकसन फोरमपर जाऊ।
"मैथिल आर मिथिला" (मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त) पर जाऊ।
१. संपादकीय
एहिमे दू-चारि टा गपपर ध्यान देमए पड़त।
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com२. गद्य
टूटल तारा
एखन फरिछ हेबा में किछुए विलंब छल ।क्षितिज धाे माॅजि क’ अपन रतुका कारीख
साफ करबा में लीन ।चैती बयार गाछ बिरीछक’ पात के हल्लुके सॅ छुबैत दुलराबैत
सहलाबैत बहि रहल छल आ’ संगहिं बढि रहल छल़ जमुना नदी के पार्श्व वर्ती
बिरीछ प’ रैन बसेरा करैत खग विहगक मधुर कलरव गान ।उम्हर रश्मि रथी के
सुआगतक तैयारी चलि रहल छल इम्हर अंतःपुर में रत्नवजडित बङका पलंग प’ सूतल
सुल्तानक आॅखि फूजि गेलै़ पार्श्व में सूतल चंपा के खिलल खिलल कली सन
मृग नयनी अपन सुतवा नाक गुलाबक फूल सन लाल लाल ठाेर ललाट प’
कमानी सन सजल भाैं सॅ अलाैकिक आभा पसारने ।साैंदर्य के साक्षात प्रतिमूर्ति के
देखि वजीरे आजम़ भाव विभाेर भ’ उठला़ ।आे हुनका अपन आगाेश में भरि लेलन्हि ।
सुन्नरी जागि रहल छलीह मुदा लाथ केने पडल़ सुल्तानके बलिष्ठ बाॅहि में
कसमसाति सन पडल नहूॅ नहूॅ मनुहा़रि करैत किछु प्रेमक फकडा दाेहराबैत रहली़
काेन में आतिशदान जरैत रहल छल ।
खिडकी सॅ आकाशक कालिमा छॅटेत देखि रूपसी हडबडा क’ उठि बैसली’
“जहाॅ पनाह अन्नदाता बङ़ विलंब भ’ चुकल अछि आब हमरा यथाशीघ्र प्रस्थान
के आज्ञा देल जाआे ।’ समा्रट क’ आॅखि में पीडा के लहरि स्पष्ट देखार भ’ गेल छलै
मुदा तत्क्षलण हुनक हाथ फराक भ’ गेल छलैन्ह आ’ आे एकदम माैन खिडकी के
बाहर नदी में दूर सॅ आबि रहल काेनाे कश्ती के देखबा में लागि गेल छलाह ।
सुन्दरिक’ विदाइर् के पछैत आेही रत्नेजडित महलक दराेदिवार जेना एकदम
बेराैनक सून सून सन लागए लगलै़ सुल्तान एतेक उदास भ’ गेल छलथि जेना
कियाे हुनक माथ स’ ताज छीन नेने हाेयन्हि बङ असहाय हारल जुआङी
सन ।
मस्तिष्कक साेर गुल कम करबा लेल आे पलंग सॅ उतरि अपन पएर में बेस
कीमती नागाेरी जुत्ती पहिर सुन्दर सुवासित बागीचा दिश टहलए जेबा लेल
प्रस्तुत भेला मुदा नहिं जानि माेन में काेन तरंग हिलकाेर मारि रहल छलैन्ह
पएर दीवाने खास क’ विपरीत संगमरमरक’ श्वेत धवल झराेखा दिस बढैत
गेलन्हि जिम्हर जमुना के कारी कचाेर पानि बङ शांत भाव सॅ कश्ती वाला के
मधुर रस सॅ भरल गीत सुनैत बहि रहल छल ।
कनि विलमैत नहूॅ नहूॅ आे वाटिका दिस अग्रसर भेला ।सुन्नर महल
एखनाें आैंधायल अलसाति सन पङल छल ।जाैवन सॅ प्रफुल्लित पुष्पदल प’ मॅडराति
भमरा सबहक गुॅजन आ’ नदी के धीर गंभीर हहराति स्वर ऊपर अकास में
भाेरक रूहानी़ आध्यात्मिेक ताकत़ चिङै़ चुनमुनी के मधुर ताऩ मुदा सुल्तानक
गमे इश्क प ‘किछु मरहमक काज नहिं करि सकल ।कत्ताे क्ष्ण मात्र नै बिलमति ।जेना
छरपट्टी लागि गेल हाेयन्हि ।उद्विग्न ह्द य सॅ आे खुदा के इबादत करबा लेल माेती
ंमस्जिद दिस बढि गेल छलाह ।
दूरस्थ मस्जिद सॅ आबैत अजानक स्वर हुनक ह्दयय के छूने बिन दशाे दिशा
में झहैर झहैर क’ विलुप्त भेल चलल जाइत छल ।बङ कुमन सॅ कहुना करि
अपन आसन बिछा ठेहुन माेङि नमाज पढलन्हि ।काॅच पाकल अपन नाम नाम दाढी
प’ हाथ फेरैत अतीत में डूबल भसियाएल सन स्नान करबा लेल आे हमाम दिश
मुङि गेलाह ।
चढैत सूरूजक संग दिवसक क्रिया कलाप प्रारंभ करए लेल दीवाने आम
में दरबार सजए लागल ।आब नै आे गुल रहल आ’ नहिं आे’ गुलशऩ सुल्तानक आे
बुलंद साख सेहाे नहिं बाॅचल छल मुदा तैयाे बङका नामक टेग त’ लागले छल
लाल किला के संग ।राजकाज सीमिते मुदा छलै त’ अवस्स ।
बेसकीमती वस्त्राभूषण आे राजमुकुट पहिर राजसिंहासन प’ बैसि राजकीय
माेहर लगबैत प्रशासक़ प्रबंधक आ’ न्यायाधीशक’ भूमिका निभाबैत निभाबैत आे’
जेना फेर सॅ नशा में मातल बहकल बहकलसन व्यवहार करए लागल छलाह़ ।
चतुर सुजान मं्रत्रि सबहक नजरि सॅ इर् नहिं बाॅचि सकल छल ।किंकर्त्तव्यविमूढ आे
सब़ ।आखिर करितथि त’ की ।लाल़ टरेस़ उन्मत्त आॅखि आ’ नशा के आगाेश
सॅ सुन्न हाेइर्त दिमाग क’ तंतु तंतु के सुरा आ’ सुन्नरि अपन हुश्न के
हुकुमत में बंधक बनाैने नचा रहल छल ।
हुस्ऩ जाम आ’ इर्श्कक’ भॅमर में घेरालि ऊबचुभ हाेइर्त माेहित नजरि सॅ आे अपन चारू कात देखल ।सम्पूर्ण दरबाऱ दरबारी़ प्रजा आ’ मंत्रि परिषद हुनका शत्रुसम दृष्टिगाेचर हाेमए लागल छल़ मस्तिष्कक खाेह में त’ मंडीलक घंटी आ’ मस्जिदक अजान सन एकेटा स्वर प्रतिध्वनित हाेमैत रहल छल इम्तियाज़ इम्तियाज़ इम्तियाज ।
हुनक वश चलितैन्ह त’ सम्पूर्ण संसारक मिल्कियत आेकरा नाम लिख आेकरा मल्लिकाए तरन्नुम बना विश्व मानचित्र प’ अमर बना दैतथि ।
शनैः शनैः बढैत प्रचंड धूप हुनक बेचैनी के अनमनस्कता के आआेर बेलगाम करय लागल छल ।तखने विशाल विशाल कारी चारी टा अश्व अपन वीर जाेद्वा संग आेत’ पधारल ।सहायक के घेाङा साैंपि सैनिक सब जहाॅपनाहक खिदमति में अपन आदाब अर्ज करैत बङका बङका डेग भरैत दीवाने खास के दिस मुङि चुकल छल ।
संर्पूण मंत्रिमंडल संग कनिकाल लेल सुल्तान सेहाे चिंता के अथाह सागरि में डूबि गेल छलथि गुप्तलचर सब काेन सनेस ल’ एहेन व्यग्र भ’ पहुॅचल अछि ।
आे सब यथाशीघ्र आेहिठामक कार्यवाही समाप्ता करि उठि चुकल छलाह ।
तीन साै बरक सॅ जे साम्राज्य जनमानस में घुसिक’ आेकर रग रग में अपन जङि जमा चुकल छल़ जेकर असीम सत्ता आ’ प्रचूर दाैलत साेऩ चानी हीरा जवाहरात लाेकक ह्दुय में भय वा इज्जतक कारण बनल छल जेकर विराट न्यायप्रियता़ वा क्रूरता के शासन प्रबंधक’ चारूकात पताका फहरा रहल छल़ आेहि विख्या़त साम्राज्यक हाथ सॅ एक के बाद एक करिक’ रियासत सब निकलल जा रहल छल ।चारूकात विद्राेहक अग्नि प्रज्ज्वलित हाेमए लागल ऊपर सॅ विदेसी आक्रमण घाघ आ’ शातिर खेलाङी इर्स्टइंडिया कंपनी त’ बङ चालाकी सॅ टामस राे के पठा जहाॅगीरे के शासनकाल में व्यापार करबा के अनुमति लइर्त शनैः शनैः अंगुरि पकैङ क’ पहुॅचा पकङनाय प्रारंभ करि देने छलै ।
मैत्री के नाम प’ एते पैघ छलावा आे पहिल अंगरेज के पछाति कत्तेक रास
राज के अपन भ्रामक महाजाल में फॅसबैत चलल गेल़ ऐतिहासिक दस्तावेज अहि दुर्भाग्य पूर्ण गाथा के पत््ऱायक्ष प्रमाण अछि जे भारत भूमि के अनेकानेक राज रजवाङा के कूप मंडूकता आपसी इर्रखा़ द्वेष आ’ अदूरदर्शिता के लाभ उठबैत सबसॅ फराक फराक संध़ि करैत आेकर नाम देलके़ ट्रीट्री फाॅर फ्रेन्डशिप़ ट्रीट्री एडाेप्टे शन चलाकी सॅ कखनाे संधि कखनाे खेल में हार जीतक बहाने हथियाबैत रहल सबटा राज्य ।
उम्हर अंगरेज क सर्तक चुस्त दिमाग इम्हर अभाग्यक प्रतीक़ इर् सुस्त़ सूतल सुल्ताऩ ।लाेक चकाेर सन हिनका दिश ताकि रहल छल़ सल्तनतक पुरान कला़ रण नीति देखाबए लेल मुदा एतए त’ नजारे किछु आैऱ ।
दीवाने खास में गुप्तमचर सबसॅ वार्ता करि आपसी विचार विमर्श क’ पश्चात दरबार उठि चुकल सुल्तानक कार्य अकुशलता क़र्त्तव्यहीनता़ आ’ विलासिता
सॅ उदास मंत्रिगण माथ झूकाैने अपन अपन घर दिस प्रस्थान त’ हाेमए लगला़ मुदा
नाना विध दुश्चिन्ता सॅ आशंका सॅ भरल मस्तिष्क पएर में जेना भारी भारी पाथरि बाॅधि देने छल़ कहुना करि घिसिया घिसिया क’ आगाॅ बढैत रहला अकस्मात बङ हिम्मत करि क’ वृद्व वजीर हाजी मियाॅ अपन भारी भरकम कनि बझल बझल सन स्वर में बाजि उठल छलाह ‘दाैलते आजम विपत्ति के कारी कारी घनगर बादरि आब शाही आकास सॅ बेशी दूर नहिं छैक खुदा माफ करथि मुदा किछुए दिन में इर् लाल सुर्ख इमारत सुसज्जित वैभव पूर्ण किला अंधार श्मशान घाट बनैत कालक तीव्र प्रवाह में नहिं विलुप्ता भ’ जाए ।अपने किछु फरमान जारी करितियै अहि विपत्ति में आखिर कएल की जाए सेना सब के कत्तेकाे मास सॅ दरमाहा नहि भेटलै अेाकराे सबहक माेन में आका्रेशक’ लुत्ती प्रज्ज्वलित भ’ रहल छै तइयाे जहाॅपनाहक आदेश प’ आेकरा सब में नब स्फूर्ति नब ऊर्जा उत्पसन्न कएल जा सकैत अछि ।’नहिं जानि काेन गप प’ सुल्तान एकदम हत्थाव सॅ उखङि गेला खाैंझाइत बाजि उठला ‘खुदा के इबादत करू सब मिल जुल क’ पाक कुरान शरीफ पढू उपर वला के रहमाेंकरम सॅ सब विपत्ति टैल जेतै अहाॅ सब व्यर्थ भयाक्रांत भ’ क’ काफिर जकाॅ गप करि रहल छी ।’
हाजी मियाॅ के नजरि पहिने सॅ झूकल आब आआेर झुकि गेल छल ।आेहि वृद्व बुद्विमान पुरूख के संग देबए बला कत्तेकाे अमीर उमरा ।
कत्तेक षङयं्रंत्र भ’ रहल छलै़ सब तरि ।शाही सेना के जांबाज सेनापत़ि क़त्तेक बेर हाजी साहब दिस सक्षम नेतृत्व् के उम्मेद सॅ तकने रहै़ मुदा पुरान लाेक कृतज्ञता के चासनी में डूबल सुल्तान सॅ बगावत के गप साेचिआे नहि सकैत छल़ राजघराना में काेनाे सक्षम नेतृत्वा दूर दूर धरि नजरि नहिं आबि रहल छल ।
गुप्तन षडयंत्रक’ माध्यम सॅ आेहि सुन्नरि के जान सॅ मारब के कत्तेक प्रयास कएल गेल आेहि निशाबद्व सुतली राति में आेकर घर के आगि लगा सुपुर्दे खाक
करि देल गेल रहै़ मुदा किस्मत आेकर आे त’ आेहि राति अपन भवन में नै भ’ क’ हवेली के नर्म नाजुक अलंकृत पलंग प’ शाेभायमान छल ।अहि अग्नि कांड सॅ सुल्तानक शरीर में अपन पूर्वजक वीर खून प्रवाहित हाेमए लगलै । तामसे मूॅह सॅ झाग फेन बहराए लगलै चाराें कात गुप्त चर सतर्क भेल आखिर इ काेन आदम जातक करिस्तानी अछि ।
कएक दिन धरि आेहाे राज काज ठप्पा रहलै ।चारू कात मचल भयानक ड’र आशंका आ’ अस्थिरता के बीच फरियादि सब छाती पिटैत कानैत कल्पैत आपस जायत रहलै ।
इ‘ त’ आआेर विकट माहाैल ।आखिर कूटनीतिक चालि चलि आेही नर्तकी के समझा बूझा क’ सुल्तान सॅ कहाआेल गेल जे आगि आर कियाे नहिं आेकर अपने असावधानी सॅ जरैत मशाल सॅ लागि गेल छलै हवा तेज रहै खिङकी खुजल ।
इएह सब साेचैत हाजी मियाॅ आसमान में रूहानी ताकत के दिस आस सॅ तकने छलथि ।
सूरूज के भीषण ताप सॅ बचवा लेल त’ आेहि संगमरमरक वृहदाकार भवन के जमुना के पानि झींक क’ भीतरे भीतर शीतल बनेबाक साधन त’ वर्त्तमाने छलै़ मुदा तैयाे खस़ चाननक लेप आ’ विविध ठंढा सरबत के मध्य आेहि सहस्त्र जीव्हा बला धाह के राेकबा के भरिसक प्रयास कएल जा रहल छल ।
उम्हर प्रचंड भास्कर नहूॅ नहूॅ करिक’ अस्तगामी हाेबाक फेराक में छलथि
इम्हर सांझ में सुल्तानक मनाेरंजनक लेल रंगमहलके फर्श के झाङ फानूसके राेशनदानके़ दराे दीवार के धाे पाेछिक’ चमका चमका क’ सुसज्जित कएल जा रहल छल ।रंग शालाके देवार में चुनैल बेशकीमती पाथरि हीरा माेती़ पन्ना जवाहरात़ कंदीलक राेशनी में स्वर्गक सुषमा बखानि रहल छल ।जमुना दिस सॅ अबैत शीतल मद्विम बयार इत्र फुलैल केवङा़ रातरानी़ के गंध सॅ मॅह मॅह करैत सुखमय वातावरण़ ।
मशालची़ तबलची़ ढाेलकिया तानपूरा़ सितार सराेद़ पखावाज जलतरंग़ सारंगी़ अपन अपन वाद्य यंत्र नेने विशेषज्ञ सब अपन निर्धारित स्थान ध’ नेने रहथि ।हारमाेनियम प’ राग छेङल जा चुकल छल ।अपन ख्वाेबगाह सॅ निकसि रात्रिपरिधान में सुल्ताऩ बङका भव्य फाैवारा सॅ कनि मध्य राखल गावतकिया प’ स्थान ग्रहण करि चुकल छलाह कि तखने म्ुानहरि सांझ में संध्या सुन्नरि जकाॅ छम छम पाज्ेाब खनकाबैत़ अवगुंठन सॅ म्ुॅाह झॅपने नर्तकी के प्रवेश़ भेलै ।कनि झुकि क’ माेहिनी अदा सॅ सुल्तान के सलाम पेश करैत घाेघ उठा क’ फेंकलक़ भरिदिन आैंधायल चिन्तातुर मुखमंडल प’ जेठ में जेना सावनक हरियरि आबि गेलै़ ।आे मुस्कैला महफिल धन्य धन्य भ’ गेल नामी गिरामी मुॅह लगुआ अमीर उमरा़ झराेखा सॅ झकैत़ गुलाम किन्नर दास दासीगण । माैध सॅ सनल स्वर लहरी हवा में तूर जकाॅ दूर दूर धरि छितरै लागल छल़ ‘एै माेहब्बत तेरे अंजाम पे राेना्््््ऽ््ऽऽ््््््््ऽऽऽ््््््् आयाऽ्ऽ््््ऽऽ््।’बनल ठनल दू टा सुन्नरि अंगङाउर् र्लइत सुल्तान लग’ नमगर बङदीव नक्कानसी बला सुराहीदार स्वर्ण पात्र सॅ सुवर्णक गिलास में भरि भरि क’ शराब पराेसि रहल छल ।गजल़ ठुमरि कजरी नृत्यवगान सॅ भरल माहाैल में जाम प’ जाम पीबैत सुल्तान आ’ अमीऱ । जखने सुरू कयल ‘आज जानेऽऽऽ्् की जिद नाऽऽ््ऽ्ऽ्ऽ्कराे यूॅ ही पहलू ऽऽऽऽ्ऽ््में बैठे रहाेऽ्ऽ्ऽऽ’आ’ सुल्तान गिलास हाथ में नेने ठाढ भ’ झूमै लगला ।रूपकुवॅरिक’ के स्वर रंगशाला सॅ उछैल उछेल जमुना के विस्तृत पाट प’ विलिन हाेमैत रहलै ।
किछु शायर लाेकनि सेहाे अपन शेर सॅ आेहि रंग में आआेर रंग मिलाबैत रहला ।कनि काल में सुन्नरीक साेझाॅ ताेहफा के ढेर लागि गेल रहै ।
भीतर बैसल बाहर सॅ झॅकैत अमला सबहक राेम राेम सिसकि रहल छल महलक बाहर चाराें कात विद्राेह स्वर सुनाइ दैत छलै राजकर्मचारी के पकङि पकङि लाेक मारै़ ।आकुल व्याकुल जनानी सब महल सॅ पङेबाक ब्याेंत में लागल कत्तेकाे नाह़ कश्ती किला के सुरंग में तैयार केहनाे आपद स्थितिमें जमुना बाटे पङेबा लेल ।अन्तःपुर सॅ नित्यकप्रति कन्ना राेहट के आवाज़ आे असहाय स्त्रीगण दास दासी के मुॅह सॅ बाहरक गप सुनि मृत्युंभय सॅ काॅपैत जाेर जाेर सॅ घाना पसारबा आ’ इबादत तजि आैर की क’ सकैत छलीह ।
मनाेरंजऩ खेनाय पिनायके बाद गहराति राति में अपन आराम गाह में पसरल़ रूप सुंदरि के रंग में मातल सुल्तान आय आेकरा अपन घर नहिं जाए द’ रहल छल । “आब आैर नहिं क्षणभरिक अलगाव हमरा पागल करि दैत अछ़ि कहूॅ त’ इ लाल किला इर् संपूर्ण सम्पत्ति अहाॅ के नाम लिख क’ आहि प’ शाही माेहर लगा दैत छी।’
‘आलमपनाह़ हम अपने संग अहि वैभव विलास में त’ अपार आनंद आ’ हर्षक संग रहि सकैत छी़ इ त’ हमर अहाे भाग्य हाेयत मुदा आे दुर्दिनक हमर सखी जे महलक बाहर खरभुजा बेचैत अछ़ि हम आ’ आे दू शरीर एक प्राण आे काेना जीतै़ बिलैट जेतै आे ।’सुंनरि के अपन आगाेस में नेने मत्तवाला उन्मत्त प्रेमी सुल्तान आॅखि कनी खाेलने खाेलने बाजल छलाह ‘हम अहाॅ के संगी के अहाॅ के दासी मुर्करर करि रहल छी आब त’ खुशऽ्ऽ्ऽ्।’सुल्तान अपन छाति सॅ आेकर मुॅह उठा क’ पुछने छल़ कारी कजरारी बङका बङका पिपनी फङफङाबैत आे इत्मी्नान सॅ मुस्कैल छल जेना आेकर बङ पाकल गुरक’ इलाज भ’ गेल हाेए ।
आरामगाहक काेन में जरैत मशाल सल्तनत के अहि दुर्भाग्य प’ फफैक फफैक क’ कानला के बाद मीझा गेल छलै ।दूर कत्तेकाे नढिया गीदङ कूकूरक कननाय प्रारंभ भ’ चुकल रहै ।
चाराें दिशा भीषण अंधकार में विलिन ऊपर आकास में आय चाॅन सेहाे नै़ भयंकर अंधेरिया़ अपन आधिपत्य कायम करि चुकल छलै़ तखने दच्छिन दिसक आकास सॅ एक गाेट लहकैत टूटल तारा महलक’ प्रांगण में खसि पङल छलै ।
छथि । मिनापक संस्थापक योगेन्द्र साह नेपालीक प्रेरणा सँ अभिनय क्षेत्रमे आएल मदन मैथिलीक अतिरिक्त नेपाली सिनेमामे सेहो अभिनय कएने छथि । नेपाली सिनेमा सीता , सिमाना आ बीर गणेशमान मे हुनक कम दृश्य अछि मुदा अपन अभिनयकेँ बल पर दर्शक पर अलग छाप छोडय सफल भेल छथि । ओना मैथिली टेलि सिरियल काठक लोक , हंसा चलल परदेश , मिथिलाक व्यथा, कनियाँ, चमेली, परिणाम सहितमे तऽ बहुत महत्वपूर्ण पात्रमे छथि । रंङ्ग मञ्चमे तऽ ओ ककरो सँ पछे नहि छथि । फेर मिथिलाञ्चलक मात्र नहि नेपाल भारतक बहुत रास रङ्ग मञ्च पर अभिनय सेहो कएने छथि । मुदा जे मज्जा काठक लोकक कम्पनीक रोलमे आएल ओतेक कहियो नहि । ओ कहैत छथि –‘ मलंगिया सर सम्भवतः कम्पनीक रोल हमरे लेल लिखने रहथि की ?’
छथि ।
अछि ।
फगुआक दिन। मुरगाक बाङ सुनितहि ओछाइन छोड़ि पक्षधर बाबा परिवारक सभकेँ उठबैत टोलक रास्ता धेने गौँआकेँ हकार दिअए विदा भेलाह। मनो गद्गद्। भीतरसँ खुशी समुद्रक लहरि जेकाँ उफनैत रहनि। गौँवाकेँ फगुआक भाँग पीवैक हकार दए दरबज्जाक ओसारपर बैसि गर अटबए लगलथि जे दस किलो चीनी, मसल्ला आ भाँगक पत्तीक ओरियान तँ कइये नेने छी। आब खाली बाजा-गाजा संग लोककेँ अवैक अछि। एते बात मनमे अवितहि उठि कऽ भाँगक पत्ती आ मसल्ला -मरीच, सोंफ, सनतोलाक खोंइचा, गुलाव फूलक पत्ती, काबुलि बदाम- लऽ आँगन जाए पुतोहूँकेँ कहलखिन- ‘‘कनियाँ, बुरहीकेँ पुआ-मलपुआक ओरियान करए दिअनु आ अहाँ भाँग पीसू। खूब अमैनियासँ पत्ती धुअब। तीनि सलिया पत्ती छी, जल्ला-तल्ला लगल अछि।’’ कहि ओसारपर सभ सामान सूपमे रखि दरबज्जा दिशि घुरि गेलाह। हँ-हूँ केने बिना गांधारी मसल्लाक पुड़िया निच्चाँमे रखि पत्तीकेँ सूपमे पसारि आँखि गड़ा-गड़ा जल्ला तकए लगलीह। मनमे उठलनि जे आइ बूढ़ा सनकि-तनकि तँ ने गेलाहेँ। एत्ते भाँग लऽ कऽ की करताह। मुदा किछु बजलीह नहि। आँखि उठा कऽ देखि विहुँसि नजरि निच्चाँ कऽ लेलनि। ओना मिथिलाक नारी आँखिमे गांधारी जेकाँ पट्टी बान्हि घरती सदृश्य सभ किछु सहैत ऐलीह। दरबज्जापर बैसि पक्षधर सोचए लगलाह- जिनगीक एकटा दुर्गम स्थान दुर्गा टपा देलनि। मने-मन दुनू हाथ जोड़ि हृदयसँ सटा गोड़ लगलनि। अपना विचारसँ सुकन्या जिनगीक प्रेमी चुनलक। कोना नहि आनन्दसँ जीवैक असिरवाद दितिऐक। जहि फुलवारीकेँ लगबैमे अस्सी सालक श्रम लागल अछि ओहि श्रमकेँ, जहिना छोट-छोट बेदरा-बुदरी टिकुली पकड़ि पुनः उड़ा दैत अछि तहिना हमहूँ उड़ा देव। कथमपि नहि।
रुपनगर हाइ स्कूलक बोर्ड परीक्षाक सेन्टर प्रेमनगरक हाइ स्कूल भेल। देहाती स्कूल रहितहुँ परीक्षार्थीकेँ डेराक कोनो चिन्ता मनमे नहि। सभक मनमे एते खुशी जे डेरापर धियाने ने जाइत। सभ निश्चििन्त जे गाम-घरमे अखनो विद्याकेँ देवी स्वरुप बुझि सभ मदति करए चाहैत छथि। जँ मधुबनी सेन्टर होइतै तहन ने डर होइतए जे मेहता लौजमे सभ सामान चोरिये भऽ जाएत, तेँ असुरक्षित अछि आ प्रोफेसर कोलनीक भड़े तते अछि जे ओतेमे तँ विद्यार्थी परीक्षाक सभ खर्च पुरा लेत। ओना प्रेमनगरक सइयोसँ उपर कुटुमैती रुपनगरमे अछि, तेँ किऐक ककरो मनमे रहैक चिन्ता हएत। तहूमे प्रेमनगर हाइ स्कूलक हेड मास्टर तेहन छथि जे स्कूलक समएमे स्कूलक काज करै छथि बाकी बारह बजे राति धरि विद्यार्थीक खोज-पुछाड़िमे लगल रहैत छथि जे ककरो कोनो तरहक असुविधा तँ ने भऽ रहल छैक। तहूमे तेहन दरबज्जा अनन्दी बाबाक छन्हि जे इलाकाक लोक अपन रहैक ठौर बुझैत अछि। घर्मशल्ले जेकाँ। धन्यवाद यशोदिया दादीकेँ दिअनि जे बुढ़ाढ़ियोमे अभ्यागत सबहक ऐँठ-काँठ बारह बजे राति धरि उठबितहि रहै छथि।
परीक्षासँ एकदिन पहिने लोचन सभ समान शुटकेशमे लए साइकिलसँ प्रेमनगर पहुँचल। लोचनक परिवारकेँ पक्षधरक परिवारसँ साठियो बर्ख उपरसँ दोस्ती अवैत रहनि। आजादीक हुड़-बड़ेड़ाक समए रहै। जहिना गामक धियापूता गुल्ली-डंटासँ क्रिकेटक मनोरंजन करैत तँ शहरक धिया-पूता जगहक अभावमे खेलक स्कूलमे नाओ लिखा मनोरंजन करैत अछि। तहिना पक्षधरो आ ज्ञानचन्दो आजादीक लड़ाइमे पढ़ाइ छोड़ि समाजक बीच आवि हुड़-बरेड़ामे शामिल भऽ गेला। समाजक काजमे हाथ बँटबए लगलाह। समाजमे ककरो ऐठाम बेटीक विआह होइत आ बरिआती अबैत तँ अपन बहीनि बुझि, बिनु कहनहुँ पाँच दिन निश्चित समए दिअए लगलखिन। तहिना आरो-आरो काज सभमे हाथ बँटबए लगलाह। मुदा अस्सी बर्खक उपरान्तो पक्षधर पक्षधरे आ ज्ञानचन्द ज्ञानचन्दे रहि गेलाह। कहियो कियो नेता नहि कहलकनि। हँ एत्ते जरुर भेलनि जे भाय-भैयारी भेने गाममे तते भौजाइ भऽ गेलनि जे बसन्त छोड़ि ग्रीष्मक रस्ते घेरि देलकनि। आब तँ सहजहि बुढ़ाढ़ीमे धियापूताक संग रंगो-रंग खेलै छथि आ जोगिड़ो गबै छथि। गाम स्वर्ग जेकाँ लागि रहलनि अछि। किऐक नहि मन लगतनि जहि गाममे कालीदास सन विद्वान, जे जही डारिपर बैसब ओहि डारिकेँ काटब, मुदा ने कुड़हरिक धमक लागत, ने डारि डोलत, ने दुनू हाथे कुड़हड़ि भाँजब तँ देह डोलत आ ने दुनू पाएरक वैलेंस गड़बड़ाएत। निश्चििन्तसँ जखन डारि खसए लगतै तखन ओहिपर बैसिले-बैसल धरतीपर चलि आएव, ऐहन विद्वान् सभसँ तँ गामे भरल अछि। एते दिन, अपराधीक कम संख्या रहने नजरि निच्चाँ रहैत छलैक मुदा आब ककरा कहबै अपनो घरवाली धमकी देती जे माए-बाप आ भाइ-भौजाइक पाछू लगल रहै छी आ अपना धिया-पूता लऽ किछु करबे ने करै छी। एहि जिनगीसँ जहर-माहूर खाए मरब नीक। हौ बाबू, हमरा ऐहन भ्रममे नहि दाए। एहि दुनियाँमे ने कियो अप्पन छी आ ने बिरान। सीता जेकाँ लक्ष्मणक रेखाक भीतर रहह। नहि तँ रावण औतह आ लऽ कऽ चलि जेतह। अपन-अपन पाएरपर ठाढ़ भऽ गंगोत्रीसँ निकलैत गंगाक पानि जेकाँ, जे साथीक संग उपर-निच्चाँ होइत प्रसांत महासागरमे मिलैत अछि तहिना समएक संग चलैत रहह।
देखले पक्षधर बाबाक घर-दुआर लोचनकेँ। ककरो पूछैक जरुरते किऐक होइतैक। साइकिल हड़हड़ौने दरबज्जापर पहुँच साइकिलसँ उतड़ि घरक देवालक पँजरामे साइकिल ठाढ़ कए दुनू हाथे बाबाक पाएर छूबि गोड़ लगलकनि। बाबाकेँ बुझले रहनि, कहलखिन- ‘‘भने अखने चलि ऐलह। सभ सामान सरिया सेन्टरपर जा कऽ देखि-सुनि अविहह।’’ कहि पोती सुकन्याकेँ सोर पाड़लखिन। मुदा लोचनो तँ अंगना-घर जाइते अबैत रहए। सुकन्याकेँ लोचन आंगनसँ बजा अनलक। भाए-बहीनि जेकाँ दुनूकेँ देखि पक्षधर सुकन्याक कहैक बात विसरि दुनू गोटेकेँ कहलखिन- ‘‘बाउ, आब तँ हम चलचलौ भेलियह। तोरे सबहक पार एहि दुनियाँमे ऐहलहेँ। दुनियाँमे जते मनुष्य अछि ओ अपना समएक जिम्मा लऽ जीबैत अछि। अखन तू सभ सुकुमार कोमल किसलय सदृश्य छह। मनुष्य बनि जिनगी जीविहह। हम दुनू संगी -पक्षधर आ ज्ञानचन्द- दू जातिक रहितहुँ संगे-संग जिनगी बितेलहुँ। जे समाजोक लोक बुझैत छथि। मुदा हुनको धन्यवाद दैत छिअनि जे संगीक महत्व अदौसँ बुझैत आएल छथि। जेकरे फल छी जाति-कुटुम्बसँ कनियो कम दोस्तीकेँ नहि बुझल जाइत अछि। संगे-संग जहलो कटलौं आ एक ओछाइनपर सुतबो करैत छी। मिथिलांचलक कोनो राजनीतिक वा सामाजिक संगठनक बात होइ, मुदा कि एहि संस्कृतिकेँ आँखिक सोझमे नष्ट होइत देखियैक।’’ मन पड़लनि गाड़ीक ओ दिन जहि दिन जहल जाइत काल दुनू गोटेकेँ पैखाना लागल। हाथमे हथकड़ी। ट्रेनक पैखाना-कोठरीमे पानि नहि। की कएल जाए? जेबीसँ रुमाल निकालि दू टुकड़ी फाड़ि दुनू गोटे शुद्ध भेलहुँ। आँखि ढबढ़बा गेलनि। भरल आँखिसँ पोतीकेँ कहलखिन- ‘‘बुच्ची, दरबज्जापर रहने बौआकेँ पढ़ि नहि हेतइ। एक तँ पढ़वह कि खाक। बहुत लीलसा छल जे परिवारमे इंजीनियर डॉक्टर देखियैक मुदा हमरा सन-सन परिवारक लेल सपना नहि तँ आरो की अछि। एक दिशि पनरह-बीस लाखक पढ़ाइ आ दोसर दुइयो हजार महिनाक आमदनीक परिवार नहि। मुदा अखन बच्चा छह, आशासँ जीवैक उत्साह मनमे जगबैक छह।’’
जहिना जनकजीक फुलवारीमे राम आ सीताक प्रथम मिलन भेलनि तहिना सुकन्या आ लोचनक बदलल रुपक बीच भेल। अखन धरि जे बच्चा खेलौना सदृश्य परिवारमे छल ओकरा कानमे एकाएक जिनगीक बात पड़लै। जिनगीक लेल प्रेम भरल संगीक जरुरत होइत अछि। जिनगीक बात सुनि दुनूक देह सिहरि गेलइ। सिहरैत देह देखि पक्षधर कहलखिन- ‘‘बुच्ची, लोचन तोहर पाहुन भेलखुन। अंगनेक ओसारक कोठरी दऽ दहुन। सभ देखभाल तोरे उपर। कोनो तरहक असुविधा पढ़ैमे नहि होइन।’’
पक्षधरक बात सुनि सुकन्या शुटकेस माथपर उठा लोचनक पाछू-पाछू विदा भेल। कोठरी खुजले रहै अँटकैक कतौ जरुरते नहि पड़लैक। एक जनिया चौकी, कपड़ाक लेल अलगनी, एकटा टेबुल आ एकटा कुरसी। कुरसीपर शुटकेश खोलि लोचन कपड़ा निकालि चौकीपर रखलक। चौकीपर रखितहि सुकन्या ओहि अलगनीपर रखलक जहिपर पहिनेसँ ओकर कपड़ा छलैक। साओनक झूला जेकाँ दुनूक कपड़ा झुलए लगल। किताब, काँपी, कलम निकालि टेबुलपर रखलक। एक्के कोर्सक किताव दुनूक। लोचन मैट्रिकक सेन-टप केंडीडेट आ सुकन्या मैट्रिकक विद्यार्थी। टेबुलक बगलमे लोचन लग ठाढ़ि भऽ सुकन्या किताव फुटा कऽ नहि राखि, सभकेँ जोड़ा लगा-लगा रखलक। दुनूक नजरि दुनू किताब-कापी-पेनक जोड़ापर अँटकि गेल। पहिनेसँ दोबर कितावक थाक भऽ गेल। अएना जेकाँ एक दोसरक हृदयमे अपन-अपन रुप देखए लगल। किताबक लिखावट प्रेसक होइत। तहूमे एक्के प्रेसक किताव। मुदा काँपी तँ अपन-अपन हाथक लिखल होइत। एक दोसराक काँपी उलटा-उलटा देखए लगल। देवनागरी लिखावट लोचनक सुन्दर मुदा अंग्रेजी लिखावट सुकन्याक सुन्दर। ऐना किअए भेल? एक्के हाथक लिखावट दब-तेज कोना भऽ गेल। मुदा उत्तर ककरो मनमे नहि अबैत। अनायास सुकन्याक मन नाँचल। एते काल भऽ गेल अखन धरि पानियो नहि अनलौं। धड़फड़ा कऽ कोठरीसँ निकलि छिपलीमे जलखै आ लोटामे पानि नेने आबि चौकीपर छिपली रखि हाथ शुद्ध करै लऽ लोटा बढ़ा, चौकीक गोड़थारी दिशि पलथा मारि बाबाक पाहुनकेँ खुआवए बैसि गेली। खेबाकाल पुरुख चुप रहैत, नोन-अनोनक प्रश्न किअए उठतै। समदर्शी मिथिला छियै कि ने?
एक बजेसँ लऽ कऽ चारि बजे धरि परीक्षाक कार्यक्रम रहैक। पहिल दिन लोचनो दुर्ग टपै लऽ जाएत तेँ सुकन्याक मन मृगा जेकाँ नचैत। भिनसरेसँ सुकन्या लोचनपर नजरि अटकौने....... समएपर अपन काज पुरबैक अछि। हमरा चलैत जँ शुभ काजमे बाधा होयत तँ भगवानक ऐठाम दोखी हएब। मास्टर साहेबक सिखौल बात सुकन्याकेँ मन पड़ल। काजक भार तँ लोचनक उपरमे छन्हि हम तँ हुनकर मदतिगार मात्र छिअनि। तेँ नीक हएत जे हुनकेसँ पूछि लिअनि। चंचल मनमे उठलै-पूजाक तैयारीमे सभ किछु फुलडालीमे सजबैत होएत बीचमे बाधा देब उचित नहि। हो न हो फूल-पत्तीक जगहे बदलि जाइन। अनायास मनमे उठल-हाय रे बा घड़ी तँ देखबे ने केलहुँ। अगर बारह बजि गेल हेतइ तँ खुअबैक दोखी के हएत? मन व्याकुल, अव्यवस्थित वस्त्र, केश छिड़िआएल, कर्मक भारसँ भादबक अन्हरिया जेकाँ अन्हार आँखिक आगू सुकन्याकेँ पसरि गेल। कतऽ जाउ ककरा पुछियै। गाछो-बिरीछ नहि अछि जे पुछि लैतियै। अस्त-व्यस्त अवस्थामे सुकन्या माए लग पहुँच बाजलि- ‘‘भानस भेलौ?’’
‘‘अखने। अखन तँ आठो नै बाजल हएत।
‘‘जलखै भेलौ?’’
‘‘बच्चा कहलक एक्के बेर खा कऽ सबेरे जाएब।’’
जहिना केचुआ छोड़ैत समए साँपकेँ होइत, भले ही नव जीवन किऐक ने प्राप्त करै मुदा दर्द तँ हेबे करैत छैक। मीरा जेकाँ सुकन्या राजस्थानक तँ नहि। मिथिलाक वाला। परिवार आ समाजक सुकन्या अदौसँ समर्पित। बम्बईक धुन (गीतक धुन) बहुत मधुर होइत अछि तँ समवेत स्वरमे माए-वहिनक चैतावर, बारहमासा आ समदाउनक तँ मधु सदृश्य अछि। जहिना मधुमाछी उड़ि-उड़ि कखनो आमक गाछपर चढ़ि सोझे अपन प्रेमी मंजर लग पहुँच जाइत तँ लगले माटिपर ओंघराएल चमेलीक रसकेँ आमक रसमे महा मिश्रणक घोल बनबैत, तहिना ने छी।
कोठरीसँ निकलितहि लोचनक आँखि सुकन्यापर पड़ल। हजारो रश्मि रुपी तीर दुनूक बीच टकराए लगल। मुदा दू रंग। जहिना लड़ाइक मैदानमे वीर असीम विसवासक संग मरै लऽ नहि बलिदान होइ लऽ बढ़ैत अछि, तहिना लोचनोक हृदयमे होइत। कलीक खिलैत फूल जेकाँ मुँह। मुदा सुकन्या मने-मन भगवानसँ आराधना करैत जे ‘‘कुरुक्षेत्रसँ लोचन हँसैत आबए।’’
उचंगल मन फेरि उचङि गेल। ओसारसँ निच्चाँ उतड़ितहि सुकन्याक हृदय लोचनकेँ पाछूसँ ठेलए लगल। जहिना बच्चा सभ माटिक पहीया, कड़चीक गाड़ी बना धनखेतीक माटि उघि-उघि अंगनाक ओलतीमे दऽ खुशी होइत जे हमर अंगना चिक्कन भऽ गेल, तहिना आगू-बढ़ैत लोचनकेँ देखि सुकन्याकेँ खुशी होएत। मुदा खुशी अंटकल नहि। लगले चारि बाजि गेल। मनमे उठलै भुखल भायकेँ जलखै कहाँ खुएलहुँ। जहिना किसानक खेत दहा गेलासँ व्यापारमे मंदी आबि गेलासँ, बेरोजगार भेलासँ कि भीख मंगोकेँ कियो भीख देनिहार नहि रहत तहिना जे धरती करोड़ो पतिव्रता नारी पैदा केलक वहए धरती पतिहत्यारा भऽ जहल कटबैत अछि।
साढ़े चारि बजे बेरि-बेरि देखलोपरान्त सुकन्याक नजरि मौकनी हाथीपर चढ़ल गणेश जी जेकाँ लोचनकेँ अबैत देखि लोटामे पानि-थारीमे जलखै परोसि आंगनक ओलतीमे ठाढ़ भऽ देखय लगल। अखन धरिक लोचनक साइयो मनोहर रुप मनमे नाचए लगलै। कोठरी आबि लोचन गरमाएल देहक कपड़ा बदलि जलखै करए लगल। विस्मित भेल सुकन्याक मुँह बाजि उठल- ‘‘केहन परीछा भेल भाय?’’
‘‘बहुत बढ़ियाँ। जरुर पास करब।’’
जरुर पास सुनि सुकन्याक हृदय हनुमानक राम जेकाँ देखलक। मनमे आशाक सिहकी उठलैक। संगिये तँ जिनगीक जीत दिअबैत अछि। अपन सुखद जिनगीक मनोहर रुप लोचनमे देखि सुकन्या मोहित होइत बाजलि- ‘‘औझुका पेपर तँ नीक भेल मुदा आन दिनक जँ अधला हुअए, तहन?’’
‘‘ओ ओहि दिनक मेहनतपर निर्भर अछि। ऐकर जबाव हँ-नहिमे नहि देल जा सकैत अछि।’’
सातम दिन परीक्षाक अंत भेल। स्कूलसँ आबि पक्षधरकेँ गोड़ लागि लोचन बाजल- ‘‘बाबा परीछा समाप्त भऽ गेल। गाम जाइ छी।’’
असिरवाद दइसँ पहिनहि बाबाक मनमे उठलनि, जहन एहिठाम काज सम्पन्न भऽ गेलैक तहन रोकब उचित नहि। सबेर-अबेर भेनहुँ अपन घर तँ पहुँच जाएत। बात बदलैत बाबा पुछलखिन- ‘‘केहन परीछा भेलह?’’
मुस्की दैत लोचन- ‘‘पास करब बाबा।’’
लोचनक मुस्की पक्षधरक हृदयकेँ, सलाइक काठी जेकाँ, आनन्दक कोठरीकेँ रगड़ि देलकनि। मन पड़लनि जनकपुरक धनुष यज्ञ। ठहाका मारि कहलखिन- ‘‘भाग्य ककरो लिखल नहि होइ छैक, बनाओल जाइ छै बौआ।’’
आंगनक ओलती लग ठाढ़ि सुकन्याक मन मृगा जेकाँ व्याकुल भऽ नचैत। जहिना अपने नाभिक सुगंधसँ मृगा नचैत तहिना सुकन्याक मन परीक्षाक समाचार सुनै लऽ नचैत। मुदा दरबज्जो तँ दोसराक नहिये छी, सोचि आगू बढ़ल।
दुनू गोटेकेँ माने सुकन्या आ लोचनकेँ देखि पक्षधर बाबा कहलखिन- ‘‘आइ तोँ विद्याध्ययनसँ गृहस्ताश्रममे प्रवेश कऽ रहल छह। तेँ बाबाक लगाओल फुलवारीक सुखल-मौलाएल डारिकेँ कमठौन कऽ खाद-पानिसँ सेवा करिहह। ओहिमे नव-नव कलश चलतै। जहिसँ हँसैत-खेलाइत जिनगी चलतह।’’
मूड़ी गोंतने लोचन आंगन आबि पानि पीबि किताव सरियवैक विचार केलक। कितावपर किताब गेटल देखि हाथ काँपए लगलै। सुकन्याक मन कानि उठल। जहिना कोनो धारक दुनू मोहारपर बैसल यात्रीकेँ होइत अछि तहिना सुकन्याक मनमे उठए लगल। लोचन सफलताक जिनगीमे पहुँच गेल आ हम? आशा-निराशाक क्षितिजपर लसकि गेल सुकन्या।
सीमाधरि लोचनकेँ अरिआतए सुकन्या विदा भेलि। गामक सीमा बिला गेल। ने लोचन सीमा देखैत जे घुमैक आग्रह करितैक आ ने सुकन्या देखैत जे अंतिम विदाइ दइतैक। अजीव गामोक सीमा अछि। एक्को परिवारकेँ गाम मानल जाइत अछि -जेना भोजमे- तहिना दसोगाम माला बनि गाम बनि जाइत (दस गम्मा जाति) अछि। अरिआतने-अरिआतने सुकन्या लोचनक घर धरि पहुँच गेली।
पनरह दिन बीतैत-बीतैत अनेको मौगिआही कचहरीमे फैसला लिखा गेल जे ‘सुकन्या पक्षधरक घरसँ निकलि अजाति भऽ गेलि।’ कचहरीक फैसला सुनि-सुनि दुनू गोटेक सुकन्याक माए-बापक करेज दड़कए लगलैक गेलइ। कनैत मन बाजए लगलैक, मनो ने अछि जे कहियासँ दुनू परिवारमे दोस्ती अछि। सभ तुर हमहूूँ जाइ छी आ ओहो सभ आबि रहैत छथि। मुदा आइ की देखि रहल छी। जाधरि पिता जीबैत छथि ता धरि एहि परिवारक हम सभ के होइ छी? समाजक लोकक जबाव ओ देथिन। पिताकेँ गामक लोकक बात कहलखिन। बेटा-पुतोहूक बात सुनि गरजि कऽ पक्षधर कहलखिन- ‘‘जइ समाजमे मनुक्खक खरीद-बिकरी गाए-महीसि, खेत-पथार जेकाँ होइए कि ओहि समाजकेँ पँच तत्वक बनल मनुष्य कहल जा सकैत अछि। जँ से नहि त हमर कियो मालिक नहि छी। कियो ओंगरी देखाओत त ओकर ओंगरी काटि लेबइ। आइये दोस्तक ऐठाम जाइ छी आ देखि-सुनि अबै छी।
जहन भाँग पानिमे अलगि गेल तहन पुतोहू बुझलनि जे भाँग पीसा गेल। पोछि-पाछि सिलौटकेँ धोय बाटीमे रखलनि। दरबज्जापर बैसल पक्षधरक मनमे उठलनि जे नअ बाजि गेल, अखन धरि किअए ने कियो आएल। फेरि मन उनटि कऽ भाँगपर गेलनि। भाँगपर नजरि पहुँचतहि मनमे उठलनि जे बिनु भाँग पीनहि तँ ने सभ निसा गेल अछि। तहन भाँगक जरुरते की? किछु दिन पहिने धरि सभ गाममे एकदिना फगुआ होइत छलै, मुदा आब तीन दिना भऽ गेल। ओना तीनि रंगक पतरो आबि गेल अछि। मुदा अपना गाममे तँ एकदिने अखनो धरि होइत आएल अछि आ जाधरि जीबि ताधरि होइत रहत।
कीर्तन मंडलीक संग-संग आनो-आन पक्षधर ऐठाम पहुँचलाह। अनगिनित थोपरी बजौनिहार आ अनगिनत गबैयाक समारोह। चीनीमे धोड़ल भाँग। सभसँ उमरदार रहितहुँ पक्षधर भाँग परसिनिहारकेँ कहलखिन- ‘‘पहिने नवतुरिया सभकेँ पिआबह। वहए सभ ने बेसी काल गेबो करतह आ नचवो करतह।’’ मुदा एक्कोटा नवतुरिया बाबाक बात नहि सुनलक। सबहक यएह कहब रहै जे बाबा सभसँ श्रेष्ठ गाममे छथि, अनुभवी सेहो छथि। तेँ जँ ओ गोबर खत्तेमे खसताह तइओ हम सभ नहि छोड़बनि। नवतुरियाक बात सुनि पक्षधरक मनमे उठलनि अखन आंगनमे कहाँ छी दरबज्जापर छी। दस गोटेक बीच छी। तहन के छोट के पैघ कोना हएत? सभ तँ ब्रह्मेक अंश छी। तहूमे एते टुकड़ी एकठाम एकत्रित छी। दू गिलास भाँग पीबि पक्षधर उठि कऽ ठाढ़ होइत फगुआ शुरु केलनि- ‘‘सदा आनन्द रहे एहि दुआरे, मोहन खेले होरी हो।’’ ढोलक, झालि, कठझालि, हरिमुनिया, मजीरा, खजुरी, डम्फा, गुमगुमाक संग सइयो जोड़ थोपड़ीक महामिश्रणक धुनक संग कोइली सन मधुर अवाजसँ लऽ कऽ टिटहीक टाँहि धरिक बोल अकासमे पसरि गेल। ओना जमीनो खाली नहि रहल। इंगलिश डान्ससँ लऽ कऽ जानी धरिक नाच आ मेल-फीमेलक जोगीड़ा जोर पकड़िनहि रहै। बजनियो सभ अपन-अपन बाजो बजबैत आ कुदि-कुदि नचबो करैत। गोसाँइ डूबै बेरि फेरि पक्षधर भाँग बनबौलनि। अपन शक्तिकेँ कमजोर होइत देखि दोबरा-दोबरा सभ पीलक। उत्साहो दोबरेलै। पुरनिमाक राति। हँसैत चान। फागुन मास रहने अकासमे कतौ बादल नहि। मुदा तरेगण मलिन भऽ अपन जान लऽ झखैत। किऐक नहि तरेगण अपना जान लऽ झखत? आखिर बसन्त-बसन्तीक समागमक दिन छी की ने।
गामक दछिनवरिया सीमापर समन जरए लगल। समनक धधड़ाकेँ पक्षधर उत्तरसँ दछिन मुँहे कुदलाह। बाबाकेँ देखितहि सभ एका-एकी कूदए लगल।
धधड़ा मिझा गेल। मुदा जरनाक आगि चकचक करितहि रहल। समदाउन गबैत सभ घरमुँहा भेलाह।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।