भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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'विदेह' ५६ म अंक १५ अप्रैल २०१० (वर्ष ३ मास २८ अंक ५६) Part II
प्रेमशंकर सिंह: ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा।मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिलीनाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचाप्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिलीअकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशनभागलपुर२००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओनाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८। २००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगायात्री-चेतना पुरस्कार।
मायानन्दक रेडियो-रूपक-शिल्प
समय परिवर्त्तनशील अछि, जकर प्रभाव अभिव्यक्तिक माघ्यम पर पड़ैछ आ साहित्यक स्वरूप विधान सेहो परिवर्त्तित भ’ गेल। अभिव्यक्तिक परिवर्त्तनक फलस्वरूप नाट्यक रूप-विधान पूर्णत: परिवर्त्तित भ’ गेल अछि। रेडियो रूपक औहने सुंदर पाठ्य सामग्री भ’ सकैछ जेना संस्कृतक अमर कवि अपन नाटकक सभमे देलनि। रेडियोक आविष्कारक फलस्वरूप रेडियो-रूपककेँ जकरा दृश्य काव्यक अन्तर्गत गणना कयल जाइत छल ओ आब श्रव्य-काव्यक श्रेणीमे परिवर्त्तित भ’ गेल अछि। रेडियो-रूपक एक नवरूपमे हमरा समक्ष आयल अछि। जाहि कला कृतिकेँ रंगमंचपर प्रेक्षकक समक्ष प्रस्तुत कयल जाइत छल ओ आब स्टूडियोमे अभिनीत भ’ कए श्रोताक कान धरि पहुँचि गेल अछि। पूर्वमे नाट्य-प्रेमी नाटकक समक्ष प्रस्तुत होइत छलाह, किन्तु आब नाटकक हुनका समक्ष प्रस्तुत होमय लागल अछि। आधुनिक परिप्रेक्ष्यमे प्रेक्षक मात्र श्रोता रहि गेल अछि आ रेडियो सम्पन्न आ विभिन्न घरक प्रेक्षागृह बनि गेल अछि।
वस्तुत: रेडियो रूपक रंगमंचीय नाटकक दृश्य-पक्ष हैबाक कारणेँ शुद्ध शब्दमे निहित भावना पक्षमे कतहु-कतहु अवरोध्ा आबि सकैछ ओतय रेडिया-रूपकमे भावना पक्ष निर्वाध गतिशील रहैछ। रेडियो-रूपक पूर्णत: श्रव्य काव्यथिक।ध्वनि एकर मूलभूत अपार थिक ध्वनि भावाव्यक्तिक सशक्त साधन थिक। जे कार्य चित्रकारमे रंगक माघ्यमे करैछ रेडियो रूपककार आ प्रस्तुतकर्ता घ्वनिक माघ्यमे करैछ। एडवर्ड सेकविल वेस्टक कथान छनि जे आत्यन्तिक नमनीयता आ काल्चनात्मक सांकेतिकताक शक्तिक कारणेँ ई रंगमंच आ चित्रपटसँ अधिक नाटकीयताक सृष्टि करैत अछि।
अभिव्यक्तिक माघ्यमक परिवर्त्तनक प्रभाव मैथिली साहित्य चिन्तक मनीषी लोकनिपर सेहो पड़लनि कारण समयक जे मॉंग छलैक ओहिसँ साहित्य मनीषी लोकनि कोनो निरपेक्ष रहि सकैत छथि। एकर परिणाम भेल जे मैथिली साहित्यमे रेडियो-रूपकक रचनाक शुभारम्भ भेल तथा बीसम शताब्दीक उत्तरार्द्धमे ई विधा पूर्ण विकसित भ’ गेल जकर प्रभाव रचनाकार लोकनिपर पड़लनि।
स्वातंत्र्योत्तर काल मैथिली भाषा आ साहित्यक हेतु उत्थान कालक रूपमे जानल जाइत अछि, कारण कतिपय साहित्य-चिन्तक प्रादुर्भाव भेल जे मनसा-वाचा-कर्मणा अपन मातृभाषाक उन्नयनार्थ साहित्यिक गतिविधिमे सहयोग देलनि ताहि परिप्रेक्ष्यमे वर्त्तमान शताब्दी पल्लवित-पुष्पित भ’ रहल अछि। मैथिली भाषा आ साहित्यिक क्षेत्रमे गत शताब्दीमे क्रान्तिक बीज वपन भेल जे साहित्यिक गतिविधिकेँ दिश्ा संकेत करबामे सहायक सिद्ध भेल। कतिपय साहित्य सेवी तपः सपूत नव स्फूर्ति आ नव स्पन्दनक संग साहित्य ओ भाषाक सम्वर्द्धनमे अपन अभूतपूर्व साहित्यिक अवदानक संग प्रवेश कयलनि जे साहित्यक स्रोत एक नव स्पन्दनसँ भरय लागल तथा ओहिमे जे अभाव छल तकर पूत्यर्थ रचनाधर्मी साहित्य चिन्तक अत्यंत लगनशीलता आ तन्मयताक संग एकर सम्वर्द्धनार्थत्पर भेलाह जकर परिणाम भेल जे मातृभाषाक विशाल भण्डार केँ भरबाक निमित्त ओ सब कृत संकल्प भेलाह।
मायानन्दक रेडियो रूपकक वैशिष्ट्य थिक ओ कथा-विन्यासमे अत्यल्प पात्रक प्रयोग कयलनि अछि। पात्रक चुनावमे ओ अपन कल्पना शक्तिक प्रयोग क’ कए अत्यंत कुशलताक संग पात्रक चयन कयलनि। हिनक रेडियो-रूपकमे प्रयुक्त पात्रक मन-मे कोनो-ने-कोनो द्वन्द्व अवश्य अछि। हुनक प्रत्येक पात्रक मानसिक द्वन्द्वक सूक्ष्मसँ सूक्ष्म परतकेँ उदघाटित करबामे सफलता प्राप्त कयलनि अछि। हिनक पात्रक मनोभाव आ द्वन्द्वकेँ अत्यंत कुशलताक संग उद्घाटित करबामे सक्षम भेलाह अछि।
मनुष्य जेहन देखबामे लगैछ भीतरसँ ओ ओहन नहि रहैछ। मनुष्यक वाह्य व्यवहार कोनो स्थितिमे ओकर वास्तविक चरित्रक परिचायक भइये ने सकैछ। मायानन्द एक मनोवैज्ञानी सदृश पात्रक अन्त: स्थलमे प्रवेश क’ कए मानवक कृत्रिम आवरणकेँ हटा क’ वास्तविक रूपकेँ स्पष्ट करबाक प्रयास अपन प्रत्येक रेडियो-रूपकमे कयलनि अछि। मनुष्यक आन्तरिक रूप अत्यंत संवेदनशील, भाव-प्रवण आ कोमल होइत अछि। ओ एहने पात्रक चयन कयलनि वा पात्रक जीवन क्षण्ाकेँ उद्घाटित कयलनि जाहिमे द्वन्द्वक तीव्रता अछि। मनोवैज्ञानिक पात्रक प्रभाव हुनक नाटकीय शिल्पपर प्रचुर परिमाणमे पड़ल अछि। हुनक विशिष्टता थिक जे ओ हरेक पात्रक भावनाक सधनता आ तीव्रताकेँ सरलतासँ पाठकक समक्ष प्रस्तुत कयलनि। हिनक रेडियो रूपकक धरातल मुख्यत: भावनात्मक अछि।
हिनक रेडियो रूपकमे पात्रक शील-निरूपणक विनियोगमे रूपककारक सफलता एहिमे अछि जे अत्यल्प पात्रक प्रयोग द्वारा घटनाकेँ मार्मिकताक संग उपस्थ्ति करबामे सक्षम भ’ पौलनि। अपन: आनमे तीन पुरुष पात्र आ दू महिला पात्री, गुड़ चाउरमे दू पुरुष एवं दू स्त्री पात्र, नवलोकः नवगप्पमे पॉंच पुरुष आ दू स्त्री पात्र तथा इतिहासक बिसरलमे चारि पुरुष आ तीन स्त्री पात्रक प्रयोग रेडियो रूपककार कयलनि अछि जे हुनक विलक्षण शिल्पक प्रमाण थिक।
इतिहासक बिसरल एक मनोवैज्ञानिक रेडियो रूपक थिक जकरा अर्न्तगत प्रत्येक पात्रक मानसिक यातनाक प्रसंगमे विस्तार पूर्वक विश्लेषण रूपककार कयलनि अछि। आर्य शिल्प, तुंगभद्रा, मारुति एवं महाराज रुद्रसिंह सभ मानसिक द्वन्द्वसँ गुजरि रहल अछि। महाराजक उत्कट अभिलाषा छलनि जे आर्य शिल्पी आ तुंगभद्राक सम्मिलित प्रयाससँ एक नूतन सौन्दर्य कलाक निर्माण संभव अछि, किन्तु साम्राज्ञी मारुति जे यथार्थ वस्तुस्थितिसँ अवगत छथि। ओ नहि चाहैत छथि जे एहन कार्य महाराज द्वारा कयल जाय तदर्थ ओ प्रयत्नशील भ’ आर्य शिल्पीकेँ ओतयसँ विदा भ’ जयबाक अनुरोध करैत छथि। प्रतिपाद्य रेडियो रूपकक पात्रक मानसिक अंतर्द्वन्द्व अपन पराकाष्ठासँ गुजरि रहल अछि।
दू भायक बीच अनार्द्वन्द्वक रूप भेटैछ अपन आन, गुड़ चाउर, नवलोक नवगप्प एवं एक्के बापक बेटामे। प्रत्येक पात्र अपना अनुसारेँ प्रत्येक कार्यकेँ क्रिया रूप देबापर उताहुल अछि, किन्तु स्थितिक यर्थाथतासँ अवगत भेलापर सभ एकहि भ’ जाइत अछि।
रेडियो रूपकमे मनोवैज्ञानिक चित्रणक अनेक सुविधा प्राप्त अछि जकर प्रयोग रूपककार पात्रक मानसिक ओझरौंठकेँ अत्यंत सरलासँ अंकित करैत छथि। एहिमे सामाजिक जीवनक विविध्ा रूपिणी यथार्थताकेँ अंकित कयल जा सकैछ जे अन्तरकेँ उद्वेलित कयनिहार द्वन्द्वक चित्रण भेल अछि। समाजमे भेटनिहार किछु विशेष प्रकारक व्यक्तिकेँ घ्यानमे राखि क’ एहि रेडियो रूपक सभक रचना भेल अछि।
संवाद :
संवाद लेखनमे मायानन्द अत्यंत निपुण छथि। वातावरण आ प्रसंगक अनुरूप छाेट-पैघ सब प्रकारक संलाप हिनक रेडियो रूपकमे उपलब्ध होइछ। रेडियोपर हिनक नाटकक सफलताक रहस्य ई अछि जे रेडियोक लेल जाहि संसिलष्ट कथानकक एकाग्रता निश्चित दिशा आ सशक्त संलापक अपेक्षा हाेइत अछि तकर निर्वाह हिनक रेडियो रूपकमे उपलब्ध होइछ। हिनक रेडियो रूपकमे वाचिक तीव्रताक प्रचुरता अछि। अति संक्षिप्त संलाप द्वारा कोना घटना विकास आ भाव व्यंजनाक काज भ’ सकैछ तकर उदाहरण हिनक रेडियो रूपकमे उपलब्ध होइछ।
ई रेडियो रूपकमे संलाप सहज बोलचालक भाषामे लिखलनि अछि। ओहिमे वाकपटुता देखयबाक हेतु भेटैछ जे हास्य-व्यंग्यक सृजनक हेतु उपयुक्त अछि। संलापमे गति अछि। बातसँ बात क्रमिक रूपेँ बहराइत अछि जे हिनक रेडियो रूपकक वैशष्ट्य अछि। संलाप लेखनमे हिनका कुशलता छनि जे रेडियो रूपककेँ नीरस नहि होमय दैछ। संलापमे पात्र, प्रसंग एवं भावक अनुरूप परिवर्त्तित होइत रहैछ जाहिसँ रोचकता आबि जाइछ।
भाषा :
रेडियो रूपकक सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय थिक भाषा आ ई भाषा लिखलनि नहि, प्रत्युत भाषित होइछ। अतएव एहन भाषाक प्रयोग हो सर्वसाधारणकेँ बोधगम्य होइक। मायानन्दक रेडियो रूपकमेँ अप्रचलित शब्द जे साधारण जनमानससँ उठि जकॉं गेल अछि तकर प्रयोग अपन नाटकीय भाषान्तर्गत कयलनि। ओ भाषाकेँ व्यावहारिक रूपकेँ रेडियो रूपकमे स्थान देलनि। इएह कारण अछि जे हुनक भाषा कतहु अव्यवस्थित नहि भ’ पौलक। ओ शब्दकेँ तोड़ि- मड़ोड़ि क’ कहु विकृत नहि कयलनि। हुनक भाषाक रसधार सर्वथा स्वच्छन्द आ स्वाभाविक रुपेँ प्रकाशित भेल। ओ सब प्रकारक भावक प्रकाशनक क्षमता हुनक भाषामे अछि। परिस्थितिक अनुकूल ओ शब्दक चयन कयलनि। लोकोक्ति आ मुहावराक सफल प्रयोग हुनक भाषाक सौन्दर्यमे अपूर्व अभिवृद्धि कयलक अछि। हिनक भाषा-नैसर्गिक रसाद्र आ भावपूर्ण अछि। ओहिमे तन्मयता, सार्थकता आ स्वाभाविकताक सहज समावेश अछि। मायानन्दक रेडियो रूपकक विशेषता थिक जे स्थल-स्थलपर ओ एहन मार्मिक लोकोक्ति आ मुहावराक प्रयोग कयलनि जकर फलस्वरूप हुनक रूपकक संवाद अत्यंत प्राणवन्त बनि गेल अछि।
डा. नागेन्द्र आलोचक की आस्थामे हालीक काव्यमे एहि विषयकेँ स्पष्ट कयलनि अछि जे गद्य हाे अथवा पद्य दुनूमे रोजमर्राक घ्यान राखब आवश्यक अछि। भावनाक सटीक अभिव्यक्ति लोकोक्ति आ मुहावरा द्वारा सम्भव अछि। भावनाक सहजताक कारणेँ ओकार अभिव्यक्तिकेँ लेल सहज, स्वाभाविक भाषा ओ एकरे माघ्यमे सम्भव अछि। मानवक अत्यधिक जीवन्त, भाव-प्रवण आ ऐन्द्रिय अनु- अनिवार्यता ओहि भाषासँ सम्वद्ध होइत अछि जे यथार्थमे बजैत अछि।
हिनक एकांकी सभ चौपालसँ प्रसारित भेल जकर जनसाधारणसँ सम्पर्क हैबाक कारणेँ अलंकृत अर्थात् सजह स्वाभाविक आ सरल अछि, कारण एहन भाषामे कोनो प्रकारक आडम्बरक स्थान नहि रहैत अछि। इएह कारण अछि जे हिनक भाषा सर्वसाधारणक हेतु बोधगम्य अछि। भाषापर हिनका अधिकार छनि। हिनक भाषा मुहावरेदार अंलकृत आ काव्यात्मक अछि। हिनक भाषा व्यावहारिक जीवनक भाषा थिक।
एहि तथ्यकेँ उद्घाटित करबाक उद्देश्यसँ हिनक प्रत्येक रेडियो रूपकमे प्रयुक्त लोकोक्ति आ मुहावरापर विचार करब आवश्यक प्रतीत भ’ रहल अछि। लोक भाषाक यथार्थ रूपकेँ ओ अपन रेडियो रूपकमे उपस्थित कयलनि जकरा पाछॉं हुनक उद्देश्य छलनि जे श्रोतापर एकर प्रभाव पड़य।
मायानन्द घ्वनि आ शब्दक माघ्यमे वातावरणक निर्माण कयलनि अछि। हिनक रेडियो रूपकक विशिष्टता अछि जे हमर ग्रामीण परिवेशक मघ्यवित्त परिवारक यथार्थ स्थितिकेँ उद्घाटित करबाक उपक्रम कयलनि अछि जे वर्त्तमान परिवेशमे खण्डित भेल जा रहल अछि तकरा कोना बचाओल जाय ताहि दिस संकेत कयलनि अछि। हिनक रेडियो रूपकमे परिवारकेँ तोड़बाक जे प्रयास सामाजिक परिवेशमे ज्वलन्त भ’ गेल तकरा ओ जोड़बाक प्रयास कयलनि अछि अपन आन, गुड़ चाउर, नवलोक नवगप्प आ एक्के बापक बेटामे। परिवारिक परिवेशमे रहि क’ लोक कोना एक दोसरापर टीका-टिप्पणी करैत अछि, किन्तु वास्तविकताक धरातलपर ओ कतेक सटीक उतरैत अछि तकरा स्पष्ट करब रूपककारक अभीष्ट परिलक्षित भ’ रहल अछि। इतिहासक बिसरलमे काल्पनिकताक विलक्षण प्रयोग क’ कए रूपककार एहन वातावरण सृजन कयलनि अछि जे कथानकक विकासमे कतहु व्यवधान नहि भ’ पबैत अछि।
ई अपन रेडियो रूपकमे श्रव्य-माघ्यमे घ्यानमे रखलनि। शब्द आ घ्वनि द्वारा यथोचित वातावरणक निर्माण कयलनि वातावरणक अनुरूप छोट-छोट सब प्रकारक संपादक रचना कयलनि। घ्वनि-प्रभाव आ संगीतक माघ्यमे रेडियो रूपककार वातावरण-निर्माण प्रभावशील ढंगसँ प्रस्तुत करबाक प्रयत्न कयलनि अछि।
उद्देश्य :
मायानन्द उद्देश्यक एकतापर घ्यान केन्द्रित कयलनि अछि। ओ सभ स्थितिकेँ एकहि दिशा दिस प्रेरित कयलनि। हिनक रेडियो रूपकक उद्देश्य मनोरंजन रहल अछि। किछु रेडियो रूपकमे ओ सामाजिक असंगतिपर तीक्ष्ण व्यंग्य कयलनि अछि। हिनक रेडियो रूपकमे उद्देश्य अपन कथ्यकेँ रोचक एवं आकर्षक रूपमे प्रस्तुत करबाक प्रयास थिक जाहिमे रुपककारकेँ पर्याप्त सफलता भेटलनि अछि।
रंग-शिल्य :
हिनक रेडियो-रूपकमे रंग-संकेत आ दृश्य-विधानक अन्तर्गत प्रथम श्राव्य, द्वितीय श्राव्य तदनुरूप अछि। ओ मघ्यवर्गीय सामाजिक जीवनक पृष्ठभूमिमे रेडियो-रूपकक रचना कयलनि। हिनक सभ रेडियो-रूपकमे पारिवारिक समस्याक उद्घाटन कयलनि जे सामाजिक यथार्थपर आधारित अछि। समाजिक यथार्थपर आधारित रेडियो रूपकमे ओ वर्त्तमान आर्थिक वैषभ्य आ ओहिसँ उत्पन्न समस्या दिस संकेत कयलनि अछि। ओ रेडियोकेँ घ्यानमे राखि क’ एकर रचना कयलनि आ ओ ओहि मे सफल भेलाह। ई सभ सामाजिक समस्याकेँ अपन प्रतिपाद्य बनौलनि। ओ एकरा प्रभावोत्पादक बनयबाक हेतु घ्वनि-प्रभावक उचित प्रयोगपर घ्यानकेँ केन्द्रित कयलनि। श्रव्य-संकेत आ घ्वनि-प्रभावक व्यवहारक प्रयोग कुशलतापूर्वक ओ अपन रेडियो रूपकमे कयलनि। बिनु कोनो नैरटरक सहायता नेने प्रसंगकेँ नाटकीय रूपमे, प्रस्तुत करबामे सफलता ओ प्राप्त कयलनि। दृश्य परिवर्तनमे नवीनता अनबाक ई प्रयास कयलनि। जिज्ञासा आ कोतूहलताकेँ प्रतिष्ठित करबाक उपक्रम कयलनि।
मायानन्दक प्रत्येक रेडियो रूपक रेडियोपर ब्राडकास्ट भेल। रेडियोक माघ्यम थिक घ्वनि। आँखिक अपेक्षा ओ कानक लेल अधिक रहैत अछि। अतएव ओहिमे एक्शनक अभाव रहैत अछि। ई अपन रेडियो रूपकमे घ्वन्यात्मक मूल्यपर अधिक घ्यान देलनि अछि। ई अपन रेडियो रूपकमे कार्य-व्यापारक एकाग्रता आ पात्रक चरित्राकंनपर अधिक बल देलनि अछि। हिनक प्रत्येक रेडियो रूपकक अन्त प्रभावशाली रूपमे भेल अछि। दृश्य-परिवर्तनक कलात्मक प्रयोग देखबामे अबैछ। विषय प्रधानात्मक प्रभाव हिनक रचना शिल्पपर पड़ल अछि। विषय प्रधानाताक प्रभाव हिनक रंग शिल्पर पड़ल अछि। ई हास्य-व्यंग्य प्रधान, गम्भीर, रोमांचक, दुखान्त आदि रेडियो रूपक लिखलनि। ओ श्रव्य-शिल्पपर विशेष घ्यान रखलनि अछि।
जतेक दूर धरिमायानन्दकरेडियो-रूपकक अछि ओ रेडियो रूपक-नाट्य-शिल्पक कसौटीपर अक्षरस: सटीक उतरैतअछि। हिनक रेडियो-रूपकमेकथानक-निर्माण, चरित्र-चित्रण,संवाद, उद्देश्य, वातावरण, भाषा-शैली, रंग-शिल्प, घ्वनि-प्रयोग आदि दृष्टिएँ, कुशलतासँनिर्वाह कयलनिअछि।हिनक रेडियो रूपकभावी-विकासकदिशा-निर्देशक क’सकैछ।
रेडियो-रूपक मैथिलीएकांकीशाखा रूपमेस्वतंत्र विधाक रूपमेविकसित भ’रहल अछि। मैथिलीमेविभिन्नप्रकारक रेडियोरूपककरचनानिरन्तर भ’रहल अछि। मायानन्द पाश्चात्यनाट्य-शिल्प आ नाट्य कृतिसँ धनिष्ठ रूपेँ सम्पर्कितभेलाह। रेडियो रूपक एकपैघसशक्त माघ्यम, एक जीवित रंगमंच प्रदान कयलक अछि। रेडियोक प्रचार-प्रसारअधिकभेलासँ अनेक व्यक्तिकेँ एहि रूपक रचना करबाक हेतु प्रेरित कयलक। मैथिलीरेडियो-रूपक लिखनिहारकेँभारतीयअन्य भाषा सदृश अद्यापि सौविघ्य नहि उपलब्ध छनि तथापिजेएहन रचना उपलब्ध भ’रहल अछि ओहि आधारपर रेडियो नाट्य-शिल्पकेँ जतेक विकसित हैबाक चाही ओ नहि भ’सकल अछि। रेडियो, नाट्य-लेखनक लेल रेडियोकेँ निकटसँ देखबाक-समझबाकप्रयोजनअछि। प्रतिभा आ माघ्यमक धनिष्ट परिचय रेडियो-नाट्य-लेखन हेतु अनिवार्यअछि।आकाशवाणी सरकारी नियंत्रणमेअछिआ प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार ओतय पहुँचि क’अपनप्रतिभाक।समुचित उपयोगनहि क’पबैत छथि, कारण ओहि ठामक यान्त्रिकतासँबन्हा जाइत छथि।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि
विचार टिप्पणी
वर्ष २०६७ क शुभागमन तथा जुडशीतलक मुहथरिपर हमसभ पहुँचल छी। मुदा चैनसँ बैसबाक आ निश्चिन्त रहबाक कोनो दऽर नहि देखा रहल अछि। मिथिलाक सन्दर्भमे जँ गप्प करी तँ नेपालदिस राज्य आमिल पीनहि अछि, अपन समाङसभ सेहो जडि नहि धऽकऽ उपरे उपरे कूदतिसन प्रतीत होइत छथि। एक तरहक समाङ मिथिलारूपी दूधकेँ सौँसे मधेशरूपी पानिमे मिलाकऽ एकर धवलता आ पौष्टिकता नष्ट करबापर तुलल छथि तँ दोसर तरहक समाङ दूधकेँ खालि अपने लोहियामे औँटैत मुट्ठीभरि लोकक लेल खोआ परसऽ चाहैत छथि।
जनकपुरमे हालहिँ सम्पन्न मिथिला महोत्सव देखाओल जा चुकल बाटकेँ पर्यन्त ध्यान नहि दऽ मात्र जनकपुरमे केन्द्रित कऽ मनाओल गेल। नेपालहिक विराटनगर, राजविराज, लहान, सर्लाही, वीरगञ्ज आदि जगहक लोककेँ सहभागिताक कोन कथा सूचना तक नहि देल गेलैक। एहि तरहेँसरकारी खर्चामेजनकपुर उत्सवक रूपमे भेल कोनो कार्यक्रमकेँ मिथिला महोत्सव कहनाइ मिथिलाक व्यापकतापर दोसर रूपेँ आघात पहुँचौनाइ छियैक। पहिने मिथिला खास जातिक कोँचामे लेपटाएल छल। बहुत मुश्किलसँ हमसभ ओहिठामसँ मिथिलाकेँ मुक्त करबामे किछु सफल भेलहुँ तँ आब किछु खास जगहक लोक एकरा जेबीमे राखऽ पर तुलल छथि।
दुश्मनसँ लडबामे आसान होइत छैक मुदा अप्पन लोक जँ बैमानी वा नादानीपर उतरि जाए तँ बड मुश्किल भऽ जाइत छैक। तथापि ई नव वर्ष हमरासभकेँ सद्बुद्धि दिअए जे हमसभ मिथिलाकेँ घरमे सैँतिकऽ रखबाक लोभसँ मुक्त होइ आ जँ क्यो बैमानीक भावसँ एहन कृत्य करैत अछि तँ तकरा यथासमय सबक सिखा सकी। जुडशीतलमे हमसभ हरियरीक लेल पानि तँ जरूर पटबैत छियैक मुदा गन्दगी फेकबाक काज सर्वप्रथम करैत छियैक। ई नव वर्ष हमरासभकेँ सएह मार्गदर्शन करएऽ ताहि शुभकामना संग एकटा एहि परिवेशपर लिखाएल गजलक जलथपकी-
गजल
—धीरेन्द्र प्रेमर्षि
जोरजुलुमसँ जे ने झुकए से भाले लगए पिअरगर यौ
इन्द्रधनुषी एहि दुनियामे लाले लगए पिअरगर यौ
ठोरे जँ सीयल रहतै तँ गुदुर–बुदुर की हेतै कपार!
एहन मुर्दा शान्तिसँ तँ बबाले लगए पिअरगर यौ
कुच्ची–कलमक रूप सुरेबगर रहलै, रहतै सबदिनमा
जखन अन्हरिया पसरल होइक, मशाले लगए पिअरगर यौ
खालि शब्दक जाल बुनल नहि चाही आब जवाब कोनो
नगर–डगरमे गुञ्जैत सबल सबाले लगए पिअरगर यौ
जुड़शीतलकेर भोरहरियामे धह–धह जरए कपार जखन
जलथपकी नहि, तखन जाँघपर ताले लगए पिअरगर यौ
माथा बन्हबैत कफन, उड़ाबए लाल गुलाल अकाशे जँ
हमरा तँ ओहि समय–सुन्दरीक गाले लगए पिअरगर यौ
साल–सालपर अबैत रहैए, सगरो दुनिया नवका साल
नवयुगक मुहथरि खोलैत नव साले लगए पिअरगर यौ
उमेश मंडल
निर्मलीसँ जनकपुर धाम
प्राय: बच्चेसँ जनकपुर धाम जेबाक जिज्ञासा छल जे आयोजित कथा गोष्ठी ‘‘सगर राति दीप जरय’’ क 69म खेपमे शामिल भऽ 3 अप्रैल 2010 केँ पूरा भेल। जहिसँ दोहरी खुशी भेटल।
चारिए बजे भोरमे निर्मली टीशनपर पहुँचलहुँ। करीब पॉंच बजे गाड़ी खुजल आ समएसँ सकड़ी टीशनपर उतरलहुँ। सकड़ीसँ जयनगरक मेल नहि रहने मेक्सी पकड़ि मधुबनी गेलहुँ। मधुबनीसँ पुन: मेक्सी पकड़ि कलवाही, नगर कोठी होइत जयनगर गेलौं। तखन ढाइ बजैत रहै। जयनगरसँ जनकपुर लेल नेपाली ट्रेन
तीन बजेमे खुलत से जानकरी भेल। तहि बीच हमसभ भोजन केलौं आ समएसँ अबिब ट्रेनमे बैसि रहलौं।
मैक्सीमे जखन भीड़ आ गुमारसँ परेशान रही तँ मनमे हुअए जे कोनो तरहेँ जयनगर तक पहुँचक अछि। ओइठॉंसँ तँ ट्रेनक यात्रा रहत। मुदा, ट्रेनक नमती आ भीड़ देखि हुअए जे बसे जेकॉं हाल हएत। सएह भेल। मुदा, तइयो मनमे खुशी रहए िकएक तँ दस-बारह गोटाक संगवे रहए जहिसँ यात्रामे कोनो कठिनाइ नहि बुझना गेल, भरि रस्ता गप-सप्प चलैत रहल। नव कथाकारक संग-संग श्री जगदीश प्रसाद मंडल आ श्री राजदेव मंडल सेहो संगमे रहथि, जे हमरा सबहक लेल सौभाग्य छल। गोसॉंइ लुक-झुक करिते छल तावत् गाड़ी जनकपुर धाम पहुँचि गेल।
ट्रेनसँ उतरि हमसभ रामानन्द युवा क्लब जेबाक लेल आगॉं बढ़लौं। िमथिला महोत्सवसँ जनकपुर भरि बाजारमे रमणीय वातावरण छल। जहिसँ चाह-जलपान केनाइ आकि रिक्सासँ गेनाइ सभ कियो िबसरि गेलाह। पएरे सभ बिदा भेलौं। देखैत-सुनैत समए रामानन्द युवा क्लबमे प्रवेश केलौं। दोसर मंजिलपर पएर दइते रही आकि श्री राजाराम सिंह राठौरजी भेंट भऽ गेला। हमरा सभकेँ देखते हाथ पकड़ि बड़ी अहलाद्सँ यथोचित स्थानपर लऽ गेलथि। उपस्थित साहित्यकार लोकनिकेँ देखि हर्ष भेल। दीप जरा गोष्ठिक शुभारम्भ भेल। संयोजक महोदय श्री राजाराम सिंह राठौर सभ व्यवस्था बड़ नीक जेकॉं कएने रहथि। कथा जानकीक नामसँ एकटा बैनर टांगल रहै। आदरणीय रमानन्द झा “रमण”जी पहिनहिसँ उपस्थित रहथि। गोष्ठीक संचालन आदरणीय फूलचन्द्र िमश्रजीकेँ देल गेलनि।
गोष्ठिक शुरूहेँमे दर्जन भरि पोथीक लोकार्पण कएल गेल, जहिमे मौलाइल गाछक फूल (उपन्यास) आ िमथिलाक बेटी (नाटक)- जगदीश प्रसाद मंडल। भाग रौ आ बलचन्द्रा (नाटक)- िवभा रानी। हम पुछैत छी (कविता संग्रह)- विनीत उत्पल। नताशा (कॉंिमक्स)- देवांशु वत्स। अर्चिस (कविता संग्रह)- ज्योति सुनीत चौधरी। नेपथ्य (नाटक संग्रह) आ नैमिकानन (कथा संग्रह)- सम्पादक- रेबती रमण लाल। िमथिला सृजन (पत्रिका) सम्पादक ऋृषि बशिष्ठ। विदेह- कथा 2009-10, प्रबन्ध समालोचना 2009-10 आ विदेह पद्य 2009-10 सम्पादक गजेन्द ठाकुर जीक रहनि।
एहि तरहेँ बारह गोट पोथीक लोर्कापणक शिलशिला करीब घंटा भरिक रहल। फोटोग्राफर सभ फोटो खिचलनि। तहिबीच चाह-जलपान सेहो चलल। रजिस्टरपर सभ कथाकार अपन-अपन उपस्थिति आ कथाक नाम दर्ज केलनि। पहिल कथा श्री सुरेन्द्र नाथ, दोसर श्रीमती िवजेता चौधरी, तेसर िवभूति आनन्द फेर िजज्ञासु जी, जगदीश प्रसाद मंडल, रौशन जनकपुरी, अरविन्द ठाकुर, ऋृषि बशिष्ठ, उमेश मंडल, रघुनाथ मुखिया, महाकान्त ठाकुर, चौधरी जयंत तुलसी, बेचन ठाकुर, कपिलेश्वर राउत, मनोज कुमार मंडल, खड़ा नन्द यादव, राजदेव मंडल, दुर्गानन्द मंडल इत्यादि तीस गोट कथाकार कथा पाठ केलनि। तीन-तीन कथाक पाली होइत छल। एक पालीक पठित कथापर समीक्षा होइत रहए। प्रखर समीक्षक डॉ. रामावतार यादव, डॉ राजेन्द्र िवमल, रौशन जनकपुरी, डॉ रमानन्द झा रमण, श्री हीरेन्द्र कुमार झा, श्री योगानन्द झा, श्री अजीत आजाद आदि अपन दृष्टिकोण दैत समीक्षा रखलखिन। ई शिलशिला राति भरि चलैत रहल। लागि रहल छल जे ई नव कथाकारक लेल ट्रेनिंग काॅलेज सदृश्य अछि।
भिनसर छह बजे गोष्ठिक समापन भेल। अगिला कथा गोष्ठी 70म सगर राति दीप जरय केँ प्रस्ताव श्री योगानन्द झाजी रखलनि। आदरणीय रमानन्द झा रमण जीक संग-संग सभ साहित्यकार लोकनि सहर्ष एकरा स्वीकार केलनि। रजिस्टर आ दीप श्री राजाराम सिंह राठौर जी अगिला कथा उत्पल हेतु श्री योगानन्द झा जीकेँ देलनि। एकबेर सभ खुशी-खुशी थोपड़ी बजेलनि।
अगिला कथा गोष्ठीक स्थान- कविलपुर लहेरियासरय (दरभंगा)
तिथि- 12 जून 2010
संयोजक- श्री योगानन्द झा
कबिलपुर (दरभंगा)
रामानन्द युवा कल्व जनकपुर धाममे ३ अप्रैल २०१० 69म सगर राित दीप जरय- कथा गोष्ठीकेँ उद्दघाटन- डॉ रामावतार यादवकेँ द्वारा कएल गेल। संयोजक श्री राजाराम सिंह राठौर आ रामानन्द युवा कल्व रहथि।
12टा पोथीक विमोचनक कएल भेल
1मौलाइल गाछक फूल (उपन्यास)
जगदीश प्रसाद मंडल
-- डॉ राजेन्द विमल
--
-- श्री रामनन्द झा ‘‘रमण’’
2 िमथिलाक बेटी (नाटक)
जगदीश प्रसाद मंडल
-- डॉ राजेन्द्र विमल
-- श्री रामानन्द झा ‘‘रमण’’
--
3विदेह पद्द 2009-10
-- श्री हीरेन्द्र कुमार झा
--
-- श्री रामानन्द झा ‘‘रमण’’
4 िवदेह प्रवन्ध-समालोचना 2009-10
-- डॉ विभूति आनन्द
--
--
5विदेह कथा 2009-10
-- डॉ विभूति आनन्द
-- श्री अजीत आजाद
--
6 हम पुछैत छी (कविता संग्रह)
विनीत उत्पल
-- राम भरोस कापड़ि ‘‘भ्रमर’’
--
--
7 भाग रौ आ बलचन्द्रा (नाटक)
विभा रानी
-- श्री अरविन्द ठाकुर
--
--
8 अिर्चस (कविता संग्रह)
ज्योति सुनीत चाैधरी
-- डॉ विभूति आनन्द
--
-- श्री रामानन्द झा ‘‘रमण’’
9 नताशा पहिल चित्र श्रंृखला
देवांशु वत्स
-- श्री प्रफूल कुमार मौन
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--
10 नेपथ्य (नाटक)
-- डॉ रेबती रमण लाल
-- डाॅ रामावतार यादव
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--
11 नैमिकानन (कथा संग्रह)
-- श्री फूलचन्द्र िमश्र
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12 िमथिला सृजन पत्रिका
सम्पादक- ऋृषि बशिष्ठ
-- डॉ राजेन्द्र विमल
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--
एहि तरहेँ दर्जन भरि पोथीक लोकार्पण भेल। आ एहि कथा गोष्ठीमे 30 टा कथाक पाठ भेल जाहिमे सभसँ खुशीक बात ई जे दजनोसँ बेसी नव कथा कारक उपस्थिति रहय।
कथाकार आ कथाक नाम एहि तरहेँ छल-
श्री सुरेन्द्र नाथ सुमन-संस्कृति
श्रीमती विजेता चौधरी-भ्रूण
िवभूति आनन्द- अरे
जिज्ञासू जी- विवस्ता
जगदीश प्रसाद मंडल- प्रेमी
रौशन जनक पुरी-
ऋृषि बशिष्ठ- जौवॉं
उमेश मंडल- जेहन मन तेहन जिनगी
रघुनाथ मुखिया- वंश
महाकान्त ठाकुर- दियादी
चौधरी ज्यंत तुलसी- के वुरि
बेचन ठाकुर- पत्तावाली
कपिलेश्वर राउत- सलाह
मनोज कुमार मंडल- घासवाहिनी
खड़ानन्द यादव- गहुमक बोड़ा
दुर्गानन्द मंडल- लाल भौजी
राजदेव मंडल-
गजेन्द्र ठाकुर-
कथा-तस्कर
१
शालिग्राममे छिद्र होइत अछि, कारी पाथर मात्र नर्मदामे भेटैत अछि। जमसम गाममे सभ किछु बदलल अछि, ग्रामदेवताक डिहबार स्थानसँ लऽ कऽ सभ ठाम मुदा किछु ने किछु लाक्षणिक वस्तु देखिये रहल छी। मुदा हमर गाथाक कोनो लक्षण एतए नहि अछि।
गाछी आ बाध बोन सभटा पतरा गेल अछि। सए बर्ख। बिज्झू आमक ओ गाछी। बीहरि सभसँ भरल। भाँति-भाँतिक चिड़ै-चुनमुनी आ छोट पैघ जीव-जन्तु। नेना रही। जेठसँ अगहन खुरचनिञा लत्ती लग गप करैत हम आ मालती। कहियो फागुन-चैतमे जाइ तँ लवङलताक लत्ती लग गप करी। मलकोका, कुमुद, भेंट, कमलगट्टा कन्द, रक्ताभ बिसाँढ़क ताकिमे कादो-पानिमे घुमैत हम आ ओ। खुल्ले पएर, काँट-कूसक बीच तड़पान-तड़पि कऽ कुदैत। आमक कलममे सतघरिया खेलाइत। हम आ मालती। करबीरसँ बेढैत अपन काल्पनिक-घर। एकहरा, दोहारा, जटाधारीक बीआ भरि साल जोगबैत मालती। मालती सेहो होएत हमरे बएसक। माए कहैत छल जे मालती छह मासक जेठ छल हमरासँ मुदा पिता कहैत छला जे छह मासक छोट अछि मालती हमरासँ। आ पिता से किएक कहै छलाह से बादमे जा कऽ ने बुझलिऐ।
राजाक मन्त्रीक सवारी खगनाथक दरबज्जापर! दुइये दिनमे कीसँ की भऽ गेल। ओ दूत जा कऽ किछु कहि तँ नञि अएलै जे खगनाथ अपन बेटीक बियाह लेल धरफरायल छथि। से सतर्की देखियौ। लोक सभ गर्दमगोल करैत। सभ स्वागतमे जुटल। आ हमहुँ सभ चीजक जाएजा लैत रही। साँझ होइत-होइत हमर पिता सेहो आबि गेल छलाह। ओम्हर राजाक मन्त्रीक स्वारी गेल आ एम्हर हमर पिता माथपर हाथ रखने गुम्म रहि गेलाह। खगनाथ सेहो मौन।
राजा अपन बियाह मालतीसँ करबाक प्रस्ताव खगनाथ लग पठेने छलाह। महाराज बीरेश्वर सिंह। कहू तँ। अपने चालीससँ उपरे होएत आ एहि तेरह-चौदह बरखक बचियासँ बियाहक प्रस्ताव। खगनाथक की ओकाति जे ओकरा मना करितथिन्ह।
हमर पिता चिन्तित जे आब पाँजि नहि बाँचत।
ओहि दिन साँझमे कोनटा लग मालतीसँ हमर भेँट भेल। करजनी सन-सन आँखि फुलल, जेना हबोढ़कार भऽ कानल होअए। की सभ गप केलहुँ मोनो नञि अछि। हँ आखिरीमे हम कहने धरि रहिऐ जे सभ ठीक भऽ जाएत।
७
जमसममे बीरेश्वर सिंह लेल लड़की निहुछल गेल!
जमसम गाममे पोखरि खुनाओल गेल। ओतए मन्दिर बनल जे राजा दोसराक मन्दिरमे कोना पूजा करताह।
मुदा हमहुँ रही मधुरापति कविक पुत्र केशव।
बियाहक दिन लगीचे रहै आ दोसर कोनो दिन सेहो नञि रहै। आ ओहि दिन मालतीसँ सभ गप भइये गेल छल।
कटही गाड़ीमे आगूक चाप आ पाछूक उलाड़, आगाँक चाप नीक कारण पाछाँ उलाड़ भेलापर गाड़ी उनटि जाएत। मुदा हम ओहिना गाड़ीकेँ उलाड़ केने बँसबिट्टी लग मालतीक इन्तजारीमे रही।
ओ आयलि आ गाड़ीपर बैसि गेलि। जे कियो रस्तामे देखए से डरे नञि टोकए जे गाड़ी ने उनटि जाइ एकर। एकटा पतरंगी चिड़ै देखि उल्लसित होअए लागलि मालती तँ आँगुरसँ हम ओकर ठोढ़ बन्न कऽ देलिऐ।
मालतीकेँ लऽ कऽ गाम आबि गेलहुँ, धोती रंगाइत छल। फेर जे मालतीक पता करबाक लेल आएल रहए तकरा पकड़ि राखल। आ ’कन्यादान के करत’क अनघोल भेलापर ओकरा सोझाँ अनलहुँ जे कन्यादान यएह करबाओत।
सलमशाही चमरउ जुत्ता उतारि धोती पहीरि हम विवाह लेल विध सभ पूर्ण केलहुँ।मालतीक सीथमे सिनुर हमरे हाथसँ देब लिखल जे रहै।
आ सए बर्खक बाद आइ एहि गाममे कोनो नाटक होएतैक। सुल्ताना डाकू।
आ हम तस्कर केशव, मंगरौनी नरौने सुल्हनी- पराशर गोत्र, कवि मधुरापतिक पुत्र अपन गाथाक कोनो एकटा लक्षण एतए जमसम गाममे ताकि रहल छी। मुदा राजा बीरेश्वर सिंहक वएह पोखरि आ आब ढ़नमनाएल मन्डिल देखै छी, बेचारो घुरि कऽ लाजे एहि गाममे एबो नहि केलाह।
यएह पोखरि आ ढ़नमनाएल मन्दिर हमर प्रेमक अछि अवशेष।
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अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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