'विदेह' ५८ म अंक १५ मइ २०१० (वर्ष ३ मास २९ अंक ५८)
एहि अंकमे अछि:-
३.६.१.राजदेव मंडल-तीन टा कविता २.सतीश चन्द्र झा-दूटा कविता
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
मैथिली देवनागरी वा मिथिलाक्षरमे नहि देखि/ लिखि पाबि रहल छी, (cannot see/write Maithili in Devanagari/ Mithilakshara follow links below or contact at ggajendra@videha.com) तँ एहि हेतु नीचाँक लिंक सभ पर जाऊ। संगहि विदेहक स्तंभ मैथिली भाषापाक/ रचना लेखनक नव-पुरान अंक पढ़ू।
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
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"मैथिल आर मिथिला" (मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त) पर जाऊ।
१. संपादकीय
मैथिलीक नामपर गानल-गूथल संस्था अछि। हँ मुदा दुर्गा पूजा समिति आ काली-पूजा समिति सभ नृत्य-नाटक (हिन्दी नाटक!) करबैत अछि, छागरक शिरा लॉटरी लगा कऽ बेचैत अछि आ मैथिल ब्राह्मण साहित्यकारकेँ पुरस्कृत सेहो करैत अछि। हाथ उठा कऽ जिन्दाबाद करू, मैथिलीपर उपकार करैले एहन संस्था सभक वार्षिक भक्क टुटबाक कार्यक्रमपर।
एम्हर जनकपुरमे विदेह आर्काइवक आधारपर छपल ९ टा पोथीक लोकार्पण नेपालमे भेल। राधाकृष्ण चौधरीजीक मिथिलाक इतिहासक पाण्डुलिपिक सेहो पहिल प्रूफक बाद पी.डी.एफ. वर्सन डाउनलोड लेल रिलीज भेल। ई सभटा पोथी आ मारते रास चित्रकथा/ कॉमिक्सक पोथी https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/ एहि लिंकपर पी.डी.एफ. डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि। प्रीति ठाकुरक गोनू झा आ आन चित्रकथा सेहो आब नीचाँक लिंकपर डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि:
आ विश्वनाथन आनन्द विश्व शतरंज प्रतियोगिता चारिम बेर जीति लेलन्हि।
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ १४ मई २०१०) ९८ देशक १,३१६ ठामसँ ४२,६५२ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी.सँ २,४०,९२२ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
सूचना: पंकज पराशरकेँ डगलस केलनर आ अरुण कमलक रचनाक चोरिक पुष्टिक बाद (proof file at http://www.box.net/shared/75xgdy37dr and detailed article and reactions at http://www.videha.co.in/videhablog.html बैन कए विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलनसँ निकालि देल गेल अछि। पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 ..उर्फ..नोम चोम्स्की..उर्फ राजकमल चौधरी.....उर्फ...इलारानी सिंह...उर्फ...कतेक उर्फ एहि लेखकक बनत नहि जानि... राजकमल चौधरीक अप्रकाशित पद्य (आब विदेह मैथिली पद्य २००९-१० मे प्रकाशित पृ.३९-४०) “बही-खाता”क एहि धूर्तता, चोरि कला आ दंद-फंद करैवला पंकज पराशर..उर्फ..उर्फ.. [गौरीनाथ-अनलकान्तक एहि चोर लेखकक लेल प्रयुक्त शब्द- सम्पादकीय अंतिका अक्टूबर-दिसंबर, 2009- जनवरी-मार्च, 2010- पंकज पराशर प्रसंगमे-] द्वारा “हिसाब” नामसँ छपबाओल गेल- विशेष विवरण http://aaum.blogspot.com/ पर।
We should be greatful to Pankaj Parashar that he did not lay claim on the magnum opus of Kavi We should be greatful to Pankaj Parashar that he did not lay claim on the magnum opus of Kavi Vidyapati. I know him very well and his group as well. They have no love for Maithili in fact they are the moles planted by vested Hindi writers to damage maithili.
Parashar and likes are the distructive lots and they are the culprits for agonising senior writers of Maithili those who dedicated their life for Maithili language and literature. I have no sympathy for him. I cant say, even, God bless them.
पंकज पराशरक पहिल मैथिली पद्य संग्रह ’समयकेँ अकानैत’ मैथिली पद्यक भविष्यक प्रति आश्वस्ति दैत मुदा एकर कविता सभ श्रीकान्त वर्माक मगधक अनुकृति होएबाक कारण आ रमेशक प्रति आक्षेपक कारण, ( पहिनहियो अरुण कमल आ बादमे डगलस केलनर, नोम चोम्स्की, इलारानी सिंह, श्रीकान्त वर्मा, राजकमल चौधरी आ प्राच्य आ पाश्चात्य रचनाक / कविता सभक निर्ल्ज्जतासँ पंकज पराशर द्वारा चोरिक कारण) मैथिली कविताक इतिहासमे एकटा कलंक लगा जाइत अछि।
ई पंकज झा पराशर पहिनहियेसँ एहि सभमे संलग्न अछि, हरेकृष्ण झाक कविताकेँ हिन्दीमे, बिना अनुमतिक, छपबै छथि ,डॉक्टर हुनका तनावसँ दूर रहबा लेल कहने छन्हि। ई गप आर पुष्ट होइत अचि कारण विद्यानन्द झा जीक कविता सेहो ई पंकज झा पराशर एकटा हिन्दी पत्रिकामे बिना अनुमतिक छपबओलक, माने ई आदत हिनकर पुरान छन्हि। सम्पादक)
एहि लेखकक खौँझा कऽ अपशब्दक प्रयोग बन्न नहि भेल अछि आ ई नाम बदलि-बदलि एखनो एहि सभ कार्यमे लिप्त अछि, आब ई अपन धंधा-चाकरी सेहो बदलि लेने अछि। स्पष्ट अछि जे एकरा विरुद्ध कड़गर डेग उठाओल जएबाक आवश्यकता अछि। उपरका समस्त जानकारी अहाँ गूगल, चिट्ठा जगतकेँ दी से आग्रह आ तकरा नीचाँ ई-पत्रपर सेहो अग्रसारित करी सेहो अनुरोध। vc.appointments@amu.ac.in, bisaria.ajay@gmail.com, vedprakas_s@yahoo.co.in, tasneem.Suhail@gmail.com, rajivshukla_hindi@yahoo.co.in, merajhindi@gmail.com, ashutosh_1966@yahoo.co.in, ashiqbalaut@yahoo.in, abdulalim_dr@rediffmail.com, zubairifarah@gmail.com, RameshHindi@gmail.com एहि लेखकक दिमागी हालतिक असली रूप एहि जालवृत्तपर सेहो भेटत जतए ओ न्जाम बदलि-बदलि अपन पुरना मालिकक कम्प्यूटरसँ घृणित पोस्ट करै छल।
Recently Some Maithil Brahmin Samaj Organisation has started selling prizes in the name of Yatri (Vaidyanath Mishra, Nagarjun) and Kiran (Kanchinath Jha) at Rahika.
There has been trend recently to grant these prizes to those intellectual thiefs who are basically opposed to the ideology's of Kiran and Yatri (Nagarjun).
The caste based organisations are killing the spirit of Yatriji and Kiranji, recently the fraud Pankaj Jha alias Pankaj Kumar Jha alias Pankaj Parashar alias Dr. Pankaj Parashar) was
stage managed to get this casteist award, The lecturer of Hindi at Aligarh Muslim University, just appointed as adhoc staff, will teach now how to lift verbatim articles of Noam Chomsky and Douglas Kellner and poems of Illarani Singh and Arun Kamal to his students. His Samay ke akanait (समय केँ अकानैत) is lifted from Magadh of Srikant Verma (श्रीकान्त वर्मा- मगध) and his Vilambit Kaik Yug me Nibaddha (विलम्बित कइक युग मे निबद्ध) is collection of pirated poems of Illarani Singh Srikant Verma and others.
We deplore the selling of these prizes to a person who has brought respect of Maithili to a lower level.
गौरीनाथ (अनलकान्त))- सम्पादकीय अंतिका अक्टूबर-दिसंबर, 2009- जनवरी-मार्च, 2010- पंकज पराशर प्रसंगमे- हँ, दंद-फंद करैवला किछु लोक सब ठाम पहुँचि जाइ छै आ तेहन लोक एतहुँ अपन धूर्तता आ चोरि कला देखबै छथि। मुदा तकरो असलियत उजागर करब असंभव नइँ रहल। "विदेह"क गजेन्द्र ठाकुर एहन एक "युवा" (पंकज झा उर्फ पंकज पराशर) क असली चेहरा हाले मे देखोलनि।
गौरीनाथ (अनलकान्त))- सम्पादकीय अंतिका अक्टूबर-दिसंबर, 2009- जनवरी-मार्च, 2010- पंकज पराशर प्रसंगमे- हँ, दंद-फंद करैवला किछु लोक सब ठाम पहुँचि जाइ छै आ तेहन लोक एतहुँ अपन धूर्तता आ चोरि कला देखबै छथि। मुदा तकरो असलियत उजागर करब असंभव नइँ रहल। "विदेह"क गजेन्द्र ठाकुर एहन एक "युवा" (पंकज झा उर्फ पंकज पराशर) क असली चेहरा हाले मे देखोलनि।
पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ राजकमल चौधरी.....उर्फ...
कतेक उर्फ एहि लेखकक बनत नहि जानि... राजकमल चौधरीक अप्रकाशित पद्य (आब विदेह मैथिली पद्य २००९-१० मे प्रकाशित पृ.३९-४०) “बही-खाता”क एहि धूर्तता, चोरि कला आ दंद-फंद करैवला पंकज पराशर..उर्फ..उर्फ.. [गौरीनाथ (अनलकान्त)क एहि चोर लेखकक लेल प्रयुक्त शब्द- सम्पादकीय अंतिका अक्टूबर-दिसंबर, 2009- जनवरी-मार्च, 2010- पंकज पराशर प्रसंगमे-] द्वारा “हिसाब” नामसँ छपबाओल गेल- देखू
सूचना: पंकज पराशरकेँ डगलस केलनर आ अरुण कमलक रचनाक चोरिक पुष्टिक बाद (proof file at http://www.box.net/shared/75xgdy37dr and detailed article and reactions at http://www.videha.co.in/videhablog.html बैन कए विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलनसँ निकालि देल गेल अछि।
पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ राजकमल चौधरी.....उर्फ...
कतेक उर्फ एहि लेखकक बनत नहि जानि... राजकमल चौधरीक अप्रकाशित पद्य (आब विदेह मैथिली पद्य २००९-१० मे प्रकाशित पृ.३९-४०) “बही-खाता”क एहि धूर्तता, चोरि कला आ दंद-फंद करैवला पंकज पराशर..उर्फ..उर्फ.. [गौरीनाथ (अनलकान्त)क एहि चोर लेखकक लेल प्रयुक्त शब्द- सम्पादकीय अंतिका अक्टूबर-दिसंबर, 2009- जनवरी-मार्च, 2010- पंकज पराशर प्रसंगमे-] द्वारा “हिसाब” नामसँ छपबाओल गेल- देखू
राजकमल चौधरी
बही-खाता
एहि खातापर हम घसैत छी
संसारक सभटा हिसाब
...
...
हमर सभटा अपराध, ज्ञान...सँ लीपल पोतल
अछि एक्कर सभटा पाता
ई हम्मर लालबही थिक जीवन-खाता
जीवन-खाता
पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ राजकमल चौधरी.....उर्फ...
द्वारा एकरा अपना नामसँ एहि तरहेँ चोराओल गेल
हिसाब
हिसाब कहिते देरी ठोर पर
उताहुल भेल रहैत अछि
किताब
जे भरि जिनगी लगबैत छथि
राइ-राइ के हिसाब-
दुनिया-जहान सँ फराक बनल
अंततः बनि कऽ रहि जाइत छथि
हिसाबक किताब।
२००६
एहि लेखकक खौँझा कऽ अपशब्दक प्रयोग बन्न नहि भेल अछि आ ई नाम बदलि-बदलि एखनो एहि सभ कार्यमे लिप्त अछि, आब ई अपन धंधा-चाकरी सेहो बदलि लेने अछि। स्पष्ट अछि जे एकरा विरुद्ध कड़गर डेग उठाओल जएबाक आवश्यकता अछि। उपरका समस्त जानकारी अहाँ गूगल, चिट्ठा जगतकेँ दी से आग्रह आ तकरा नीचाँ ई-पत्रपर सेहो अग्रसारित करी सेहो अनुरोध।
vc.appointments@amu.ac.in, bisaria.ajay@gmail.com, vedprakas_s@yahoo.co.in, tasneem.Suhail@gmail.com, rajivshukla_hindi@yahoo.co.in, merajhindi@gmail.com, ashutosh_1966@yahoo.co.in, ashiqbalaut@yahoo.in, abdulalim_dr@rediffmail.com, zubairifarah@gmail.com, RameshHindi@gmail.com
एहि लेखकक दिमागी हालतिक असली रूप एहि जालवृत्तपर सेहो भेटत जतए ओ न्जाम बदलि-बदलि अपन पुरना मालिकक कम्प्यूटरसँ घृणित पोस्ट करै छल।
http://tirhutam.blogspot.com/
जगदीश प्रसाद मंडल
अवतारवाद
जीव आ ईश्वर-
जे केयो शरीर धारण करैत आ छोड़ैत, जन्मलैत आ मरैत, ओ संसारी जीव होइत अछि। मुदा जे सर्वत्र व्याप्त, सर्वशक्तिमान, सर्वरक्षक गुणसँ मंडित होइत ओ ईश्वर होइत। शास्त्रमे जे लक्षण ईश्वरक देल गेल अछि ओहि अनुसार ओ सबहक प्रतिपालक सेहो होइत छथि। हुनक स्वभाव क्रुर भइये ने सकैत छन्हि। िकऐक तँ ओ महादयालु होइत छथि। संगहि ओ सर्वत्र प्याप्त छथि तेँ कतौ अबै-जाइक जरूरते कोना हेतनि।
प्रश्न उठैत अछि जे ओ माछ आ काछुक रूप िकअए धारण केलनि? एहि रूपमे ऐवाक िक प्रयोजन भेलनि। मत्स्यावतार लऽ कऽ िकअए शंखासुरक हत्या केलनि? जे स्वयं सर्वपालक सर्वव्यापी आ महादयालु छथि। हुनका िकअए ककरोसँ द्वेष भेलनि? िकअए ओ सुअर बनि िहरण्याक्षसँ पृथ्वी छीनि अपना मुँहमे रखि लेलनि। िक पृथवी धीया-पूता खेलैक गेन्द सदृश्य अछि जे ओ मुँहमे रखि इतर पृथवीपर ठाढ़ भऽ हुनकासँ लड़ैत रहलाह आ अंतमे हत्या कऽ देलखिन। एतबे नहि, नरसिंह अवतार लऽ लोहाक खंभा फाड़ि हिरण्यकश्यपुकेँ पेट फाड़ि हत्या केलनि। की ईश्वर सभसँ पैघ हत्यारा छथि? वामन रूप धारण कऽ राजा बलिसँ तीनि डेग जमीन मांगि सौँसे राज्य हड़ैप लेलनि, िक दुनियॉंमे सभसँ पैघ धोखावाज वएह छलाह? ऐहन धोखावाजक आराधना कएलासँ केहन फल भेटत अपनो विचारि सकै छी। भीख मांगव मायावी, असमर्थ जीबक (मनुष्यक) काज छी नहि िक कर्मठ, ऐश्वर्यवान पुरूषक। एहि रूपे देखलापर बुझि पड़ैत जे मनक माया, कल्पना आओर अज्ञानता सभकेँ भरमा देने अछि। ततबे नहि, परशुराम बनि हैहय-वंशीय क्षत्रिएकेँ एक्कैस बेरि सामूहिक हत्या केलनि। जहन एक बेरि वंश नाश कऽ देलखिन तहन दोहरा कऽ कतएसँ फेरि क्षत्रिए आबि गेलाह जे दोहरबैत, तेहरबैत एक्कैस बेरि पहुँच गेलाह। अनन्त विश्व-ब्रहम्ाण्डक रचैता ईश्वर दशरथक बेटा राम बनि सीतासँ विआहो कऽ लेलनि आ हरण भेलापर गाछो-वृक्षसँ कानि-कानि पता पुछलथिन। बिना ओर-छोड़क समुद्रमे पाथरक पुलो बनबा देलखिन। इत्यादि-इत्यादि, अनेको प्रश्न विचारणीय अछि। हम सभ एक्कैसवी शताब्दीक समर्थ चेतना छी नहि कि सोलहवी शताब्दीक बाल चेतना।
जड़-चेतनात्मक विश्वसन्ताक वास्तविक बोध नहि रहने पहिने िकछु गोटे जगतकर्त्ता ईश्वरक जाल ठाढ़ केलनि आ पछाति अपन स्वार्थ सिद्ध करैक लेल नाना अवतारक कल्पना केलनि। छल करब, जोर-जबरदस्ती करब, यती-सतीक चरित्र भ्रष्ट करब, िक ईश्वरक काज थिक। ई सभ जाल-फरेबी मनुक्खक छी। एतबे नहि ईश्वरक नाओपर मनुष्यक खून सेहो बहाओल गेल अछि। सेहो खून सिर्फ मानवेत्तर जीवेक नहि बल्कि मूक, मासूम मनुष्यक सेहो। धनबल, शरीरबल, विद्याबलादिसँ सेहो सदैव गरीब आदमी अत्याचारीक शिकार बनैत रहल अछि। जे अखनो ऑंखिक सोझमे दिन राति भऽ रहल अछि।
श्रीमद्भागवतक स्कन्ध १ अध्याय ३ श्लोक ५ सँ लऽ कऽ २५म श्लोक धरि अवतारवादक व्याख्या अछि। जहिमे निम्न प्रकारक चर्चा अछि- (१) सनक, सन्नदन, सनातन, सनत्कुमार-ब्रह्मचर्य पालनक लेल, (२) सुअर-पृथ्वीकेँ रसातलसँ आनवाक लेल, (३) नारद-उपदेशकक लेल, (४) नर-नारायण-तपक लेल, (५) कपिल-सांख्य शास्त्रक उपदेश देबा लेल, (६) दत्तात्रेय-उपदेश देबा लेल, (७) यज्ञ रूचिप्रजापतिक पत्नी आकूतिसँ उत्पन्न भेल स्वायम्भुक मन्वन्तरक रक्षाक लेल, (८) ऋृषभदेव-परमहंसक आदर्श देखेबा लेल, (९) पृथु-पृथ्वीसँ औषधि दोहनक लेल, (१०) मत्स्य-डूबल पृथ्वीकेँ निकालबाक लेल जे शंखासुर वेदकेँ चोरा नेने रहए। जेकरा मारि कऽ मत्स्य वेदक उद्धार केलक, (११) कच्छप-समुद्र मथैमे सहयोगक लेल, (१२) धन्वन्तरि-समुद्रसँ अमृतक घैल लऽ प्रकट भेला, (१३) मोहिनी-देवता-दानवक झगड़ा फड़िछबैक लेल, (१४) नृसिंह-हिरण्यकश्यपुकेँ मारैक लेल, (१५) वामन-बलिकेँ ठकैक लेल, (१६) परशुराम-क्षत्रिएकेँ सामूिहक हत्याक लेल, (१७) व्यास-वेदक िवभाजन करैक लेल, (१८) श्रीराम-रावणकेँ मारैक लेल, (१९-२०) बलराम-कृष्ण- पृथ्वीक भार उताड़ैक लेल, (२१) कल्कि-पृथ्वीक भार उताड़ैक लेल। उपर वर्णित बाइस अवतार संग-संग आन-आन शास्त्रमे हंस आ हयग्रीवक चर्चा सेहो अछि। सनकादिकेँ उत्तर देवा लेल हंस आ मधुकैटभक हत्याक लेल हयग्रीवक चर्च अछि।
सभसँ पहिने अवतारवादक भावना ‘शतपथ ब्राह्मण’ मे भेटैत अछि। जेना िक एच. याकोवी- ‘इनकारनेशन, इन्साइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन एण्ड इथिक्स’ भाग ७१मे लिखने छथि। संग-संग एम. माेनिएर विलियम्स-‘ ड. विजडम पृष्ट ३८१मे सेहो लिखने छथि। एच. राय चौधरी- अर्लि हिस्ट्री ऑफ बैष्णव सेक्ट’ मे पृष्ट ९६मे सेहो लिखने छथि।
शुरूमे विष्णुक अपेक्षा प्रजापतिकेँ िवशेष महत्व छलनि। ‘शतपथ ब्राह्मणक अनुसार प्रजापतिए मत्स्य (१/८/१/१) कूर्म (कौछु) (७/५/१/५) आओर वराहक (१४/१/२/११) अवतार लेलनि। प्रजापतिकेँ बराह रूपक कथाक चर्च ‘तैत्तीरीय संहिता’ (७/१/५/१) तैत्तरीय ब्राह्मण (१/१/३/६) तैत्तरीय आरण्यक (१०/१/८) आओर काठक संहिता (८/१)मे प्रारंभिक रूपमे विद्यमान अछि। जेकर चर्च डॉ. कामिल बुल्के ‘रामकथा’ अनुच्छेद १४०मे केने छथि।
एहि रूपे देखैत छी जे मत्स्य, कूर्म वराहक अवतार शुरूमे प्रजापतिसँ छलनि। िकन्तु पछाति आबि िवष्णुक महत्व बढ़लापर तीनूक संबंध िवष्णुसँ भऽ गेलनि। महाभारतक नारायणी उपाख्यान (१२/३२६/७२) आ (१२/३३७) आ हरिवंश पुराण (४/४१)मे बराह आ विष्णुक संबंध मानि लेल गेल। आगू आबि तीनूक नाओसँ एक एकटा महापुराण सेहो लिखल गेल। जाहिमे तीनूक संबंध विष्णुसँ कए देल गेल अछि।
वामनावतार आ नृसिंह अवतार शुरूहेसँ िवष्णुसँ संबंधित अछि। वामनावतारक चर्चा ‘तैत्तीरीय संहिता’ (२/२/३/१) शतपथ ब्राह्मण (१/२/५/५) तैत्तीरीय ब्राह्मण (१/७/१७) आओर ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ (६/३/७) मे भेल अछि। नारायणी उपाख्यान (१२/३२६/७३) आओर हरिवंशपुराण (१/४१)मे सेहो उल्लेख अछि। िवष्णु पुराणमे (१/१६) ‘नृसिं’हक कथाक वर्णन सेहो अछि।
शुरूमे परशुरामक अवतार विषएक कथाक चर्च नहि भेटल अछि। मुदा नारायणी उपाख्यान (१२/३२६/७७) हरिवंश पुराण (१/४१/११२/१२०) आ विष्णु पुराण (१/९/१४३)मे विष्णुक अवतार मानल गेल अछि।
एहि रूपे प्राचीन साहित्यमे अवतारवादक चर्चा होइतहुँ विशेष पूजाक चलनि नहि भेल आ ने विष्णुक प्रधानते भेल रहए। कृष्णावतारक संग-अवतारवादक िवकासमे महत्वपूर्ण परिवर्तन प्रारंभ भेल। ओहि समएसँ अवतारवाद भक्तिभावसँ जुड़ि फुलैत-फड़ैत आजुक रूप धेने अछि।
वासुदेव कृष्ण भागवतक इष्टदेव छलाह। शुरूमे िवष्णुक संग हुनक संबंध नहि छलनि। हेमचन्द राय चौधरीक अनुसार तेसर शताब्दी ई. पू. वासुदेव कृष्ण आ विष्णुक अभिन्नताक भावना उत्पन्न भेल।
अवतारवादक प्रक्रियामे बौद्धधर्म जुड़ि गेल। बौद्धधर्म आ भागवत सम्प्रयाइक भक्तिमार्ग समान रूपसँ ब्राह्मण साहित्यक कर्मकांड आ यज्ञ प्रधान धर्मक प्रतिक्रियाक रूपमे उत्पन्न भेल आ विकास केलक। जाहि कारणे धर्मक क्षेत्रमे ब्राह्मणक एकाधिकार ढील भेल। बौद्धधर्मक अधिकाधिक प्रचार-प्रसार देखि भागवत समर्थक अपना दिशि आकर्षित करैक लेल भागवतक इष्टदेव वासुदेव कृष्णकेँ िवष्णु-नारायणक अवतार मानि लेलनि। ‘तैत्तीरीय आरण्यक’ (१०/१/६)मे वासुदेव आ िवष्णुक अभिन्नताक चर्च सभसँ पहिने भेल अछि।
एहिसँ अवतारवादककेँ भरपुर बल भेटल। संग-संग िवष्णुक महत्व सेहो बढ़ए लगल। जहिसँ अवतारवादक पूर्ण भावना रसे-रसे िवष्णु-नारायणमे केन्द्रित हुअए लगल। आ वैदिक साहित्यक आन-आन अवतारक क्रिया-कलाप विष्णुमे आरोपित भऽ गेल।
एक दिस अवतारवाद बढ़ि रहल छल तँ दोसर दिस रामक आदर्श चरित्र जनमानसक बीच प्रबल भऽ रहल छल। रामायणिक संग-संग रामक महत्व सेहो तेजीसँ बढ़ि रहल छल। रामक बीरताक वर्णनमे अलौकिकताक मात्रा सोहो बढ़ए लगल। एक दिस रावण पाप आ दुष्टताक प्रतीक बनि जनमानसक बीच आएल तँ दोसर दिस पुण्य आ सदाचारक प्रतीक राम बनलाह। जेकर फल भेल जे कृष्णे जेकॉं रामो िवष्णुक अवतारक श्रेणीमे आिब गेलाह। भरिसक पहिल शताब्दी ई. पूर्बेसँ राम िवष्णुक अवतार मानै जाय लगलाह। महाभारतक संग-संग वायु, ब्रह्माण्ड, विष्णु, मत्स्य, हरिवंश इत्यादि पुराणमे अवतारक तालिकामे राम सेहो छथि।
अवतारवादक पहिल कल्पना ‘शतपथ ब्राह्मण’मे अछि। जे ईसासँ एक हजार वर्ष पूर्वक रचना मानल जाइत अछि। शतपथ ब्राह्मणमे कहल गेल अछि जे प्रजापतिये माछ, कछुआ आ सूअरक अवतार धारण केलनि। जे शुद्ध कल्पनाश्रित बुझि पड़ैत अछि।
वामन अवतारक कल्पना ‘तैत्तीरीय संहित’मे अछि। हजार वर्ष पूर्व एकरो रचना मानल जाइत अछि। ओना वामन अवतारक कल्पना ऋृग्वेदक प्रथम मंडलक बाइसम सूक्तक अंतिम (१६/२१) छह मंत्रसँ सेहो उद्भुत मानल जाइत अछि।
इदं विष्णुविचिक्रमे त्रेधा िनदधे पदम। समूलमस्य पांसुरे।
त्रीणि पदा विचक्रमे विष्णुर्गोपा अदाभ्य: अतो धर्माणि धारयन्। (ऋृग्वेद- १/१२/१७-१८) टीका रामगोविन्द ित्रबेदी। विष्णु सूर्यक प्रतीक छथि। हुनक िकरण पाएर िछअनि। पृथ्वी, अंतरिक्ष आ दयुलोकमे किरण माने रोशनी पड़ब तीन पाएर पड़ब छिअनि। जे प्राय: सभ वैदिक जनै छथि। मुदा पाछु आबि एहि सूत्रकेँ कथा गढ़ि िवष्णु वामनक कथा बनि गेल अछि। कथा अछि िवष्णु वामन बनि राजा बलिकेँ ठकि कऽ तीन डेग भूमि मांगि सौँसे राज्ये नापि लेलनि। प्रश्न उठैत जे ऐहन-ऐहन ठककेँ जनमानस कोना ईश्वर मानि लेलक? पुराणक अनुसार िवष्णुु इन्द्रक छोट भाए कहल गेल छथि। जे अपन जेठ भाय इन्द्रक गद्दी स्थापित करैक लेल बलिकेँ धोखा देलनि।
मत्स्य, कच्छम, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम इत्यादि जे कियो अवतारक श्रेणीमे अएलाह, िकयो पूजनीय नहि भऽ सकलाह। अवतारक अंतिम छोरपर उदित रामे आ कृष्णेटा पूजनीय भेलाह।
वस्तुत: श्रमणक (बौद्ध-जैन) उत्तारवादक प्रतिक्रियामे अवतारवादक कल्पना भेल। महावीर आ बुद्धदेव महापुरूष छलाह। (उत्तारक अर्थ-सामान्य जीवकेँ दोसरसँ उपर उठब होइत अछि जखन कि अवतारक अर्थ महान सत्ताकेँ उपरसँ निच्चाँ उतड़व होइत अछि)। अवतारवादक परम्पराक अनुसार परमात्मा उतड़ि कऽ साधारण मनुष्य बनि गेलाह। पहिने कृष्णकेँ अवतार मानल गेलनि। जनिकर पूर्ण विकास गीताक कृष्णवतारमे भेलनि। ताधरि राम अवतारक श्रेणीमे नहि आएल छलाह। केवल धनुर्धारी वीर मानल जाइत छलाह। गीताकार कृष्णक मुँहसँ रामक संबंधमे कहबौलनि- ‘राम: शस्त्रभृतामहम।’
इसाक सौ वर्ष पूर्व धरि चारू भॉंइ रामकेँ बिष्णुक अंशावतारे मानल जाइत छलिन। रामकेँ पूर्ण परब्रह्म ईसाक बाद अध्यात्म रामायणसँ शुरू भेल। एहि रूपे अवतारवादक गुन्जाइस माने अँटावेश वेदमे नहि पछाति भेल।
प्रश्न उठैत जे अवतारवाद की थिक?
विश्व अनंत देश आ काल-व्यापी अछि। विश्वक मुख्य दू घटक-जड़ आ चेतन अछि। ओहिमे अपन-अपन गुण-धर्म निहित अछि। जहिसँ जगतक व्यवस्था अनादिकालसँ अवाधगतिए चलि रहल अछि। एहिसँ हटि दोसर ईश्वरक कल्पना तथ्यसँ अलग होएव अछि। कहल गेल अछि जे शंखासुर नामक राक्षस छलाह। ओ ब्रह्मा एहिठाम पहुँच वेद चोरा कऽ समुुद्रमे नुका कऽ रखि लेलक। जेकरा पुन: प्राप्त करबा लेल विष्णु मत्स्यावतार धारण कए समुद्रमे शंखासुरकेँ मारि वेद लऽ अनलनि। प्रश्न उठैत- कि ईश्वरक काज हत्या करब थिक? जे सर्वज्ञ, दयालु छथि हुनकर ऐहने किरदानी हेतनि। ओ तँ अपना सत्प्रेरणासँ ककरो बदलैत छथि। एहिना हिरण्याक्षक संबंधमे सेहो अछि। हिरण्याक्ष पृथ्वीकेँ चोरा कऽ टट्टीमे नुका रखलक। जेकरा विष्णु सुअरक अवतार लऽ थुथुनसँ पृथ्वीकेँ टट्टीसँ निकालि, िहरण्याक्षकेँ मािर उपर अनलनि। जहिसँ पृथ्वीक उद्धार भेल। प्रश्न उठैत- जखन पृथवीऐक चोरी भऽ गेल तँ ओकरा राखल कत्तऽ गेल। अपन गुरूत्वा शक्तिसँ पृथवी स्वयं धारित अछि।
ऐहने कथा हिरण्यकश्यपु आ प्रह्लादक सेहो अछि। प्रह्लाद विष्णुक भक्त रहथि जे हिरण्यकश्यपुकेँ पसन्द नहि रहनि। जहिसँ बान्हि देलखिन। प्रह्लादक दुख देखि ईश्वर (विष्णु) नर आ नारायणक िमश्रित रूप बना खूँटा फाड़ि कऽ नकलि हिरण्यकश्यपुकेँ मारलनि। प्रश्न उठैत- एक प्रह्लादक लेल ईश्वर खूँटा फाड़ि निकललाह मुदा, चंगेज खॉं, नादिरशाह, िमलावटखोर, जमाखोर, धूसखोर शोषकक लेल निन्न नहि टुटैत छन्हि।
वामन रूप बनि बलिसँ भीख मंगलनि। भीख मांगव, छल करब मायावी मनुक्खक काज छी नहि कि ईश्वरक।
जखन परशुराम हैहय क्षत्रिए वंशकेँ सामूहिक हत्या केलनि तँ फेिर दोहरा-तेहरा, एते तक िक एक्कैस बेरि, कऽ केकर हत्या केलनि। जँ ऐहन-ऐहन हत्यारा ईश्वर होथि तँ अपराधी ककरा कहवै।
अनंत विश्व-व्यापी जगत स्रष्टा ईश्वर (राम) दशरथक बेटा बनि सीतासँ विवाह करए औताह। ततबे नहि हरण भेलापर कानि-कानि गाछ-वृक्ष सभकेँ पता पुछथिन। गाए-चरबए लेल कृष्ण वृन्दावन आबि नारी संग रास करए औताह। की यएह लक्षण ईश्वरक वेद कहैत अछि।
विश्वमे मुख्य दू तत्व-जड़ आ चेतन अछि। जेकरा पुराकालसँ सांख्य दर्शन प्रकृति आ पुरूष कहैत आएल अछि। जड़ प्रकृतिमे अनेक तत्व अछि। जे सभ अनादि-अनंत अछि। ओहिमे अपन-अपन स्वभाव सिद्ध गुण-धर्मक क्रिया, ओकर सम्पत्ति छियै। जहिसँ सृष्टि निरंतर विद्यामान रहैत अछि। जँ से नहि तँ पूरबा आिक पछवा हवा जे बहैत अछि, ओकरा िकयो पूव आकि पछिम जा कऽ ठेलैत अछि आिक अपन दवावक नियमक अनुसार हवा स्वयं चलैत अछि। तहिना बरखो होइत अछि। पानि बरिसैक जे प्राकृतिक नियम छै, अनुकूल भेलापर बरखा होइत अछि। प्रकृति जड़ छी। ओ ई नइ बुझैए जे रौदी, कम बरखा आकि बेसी बरखा ककरो नोकसान करत आिक लाभ पहुँचाओत।
एक दिस १९८७ ईस्वीक पानि (बरखा) मिथिलांचलकेँ दहा देलक तँ दोसर दिस राजस्थान, गुजरात, उड़ीसा इत्यादि राज्यमे रौदी भऽ गेल। कि ऐहने काज सर्वज्ञ, दयालु आ सर्वशक्तिमान ईश्वरक छियनि?
झरनासँ पानि निकलब, धार बहब कि ईश्वरेक प्रेरणासँ होइत अछि। चान, सुरूज, तरेगण हुनके माने ईश्वरेक कृपासँ चमकैत अछि। फूल वएह फुलबैत छथि। अजीव-अजीव अंधविश्वासू कल्पना ठाढ़ कऽ अज्ञानी मनुष्यकेँ अदौसँ चालबाज सभ लुटैत आएल अछि।
जे मनुष्य ज्ञान अर्जन कऽ पवित्र आचरण बना स्वरूप स्थिति प्राप्त कऽ लैत वएह एहि जीवनकेँ सार्थक बना मुक्तिक अधिकारी बनैत छथि। जनिका लेल अलगसँ कोना कल्पित ईश्वरक प्रयोजन नहि छन्हि।
बीजकमे कबीर कहै छथि-
“ज्ञान हीन कर्ताकेँ भरमें, माये जग भरमाया।”
छल करब, बलपूर्वक ककरो धन-इज्जत लुटब, ई सभ संसारी मनुष्यक काज छी नहि कि ईश्वरक। यती, सती-पतिब्रता एवं सत्य बजनिहार आ सत्य मार्गपर चलनिहारकेँ पथ-भ्रष्ट करब, पतित बनाएव, कि ई सभ विवेकवान मनुष्यक काज छी।
अवतारक संबंधमे कबीर कहने छथि-
दश अवतार ईश्वरी माया, कर्ता कै जिन पूजा। कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो, उपजै खपै सो दूजा।
अथात् दस या चौबीस अवतारक कल्पना ईश्वरीए माया छी। ओहि कल्पित अवतारक पूजा करब, सत्यज्ञानसँ रहित मनुष्यक काज छी। जहिना अवतार तहिना अबतारी माने ईश्वर, दुनू लोकक मनक कल्पना छी। िकएक तँ जन्म आ मृत्य जगतक कर्ताकेँ कोना भऽ सकैत अछि।
चौबीस अवतारमे श्रीराम, कृष्ण, महात्मा बुद्ध इत्यादि ऐतिहासिक महापुरूष छथि। बाकी सभ काल्पनिक थिक। ओना अवतार तँ उतड़व आ जन्म लेबकेँ कहल जाइत अछि, जे प्राय: कर्मी जीवकेँ होइत अछि।
अवतारवाद मनुष्यमे हीनभावनाक जन्म दैत अछि। जँ से नहि तँ देश आ धर्मपर संकट ऐलापर अवतारी िकएक ने निवारण करैत अछि। जखन विधर्मी सोमनाथक मंदिर लुटि लेलक तखन पुजेगरी सभ िकएक मुँह तकैत रहि गेल। िकएक ने ईश्वरकेँ पुकारि बचौलक।
ताधरि मनुष्य उन्नति नहि कऽ सकैत अछि जाधरि ओ ई नहि बुझत जे धरतीपर मनुष्य सभसँ बलशाली अछि। ईश्वर, देवी-देवता, अवतारक कल्पना मनुष्यक ओहि अंधकार मस्तिष्कमे जन्म लैत अछि जहिमे ओ अपन दुर्बलताकेँ संयोगि अवकाशक सांस लैत अछि।
वस्तुत: आत्मा जखन महात्माक रूपमे विकसित होइत तखन परमात्मा स्वयं बनि जाइत अछि। काम-क्रोध, राग-द्वेष इत्यादि दुर्गुणपर जखन मनुष्य विजए पाबि जाइत अछि तखन अपने-आपमे ईश्वर, परमात्मा, दैव आ ब्रह्मक रूप देखए लगैत अछि।
श्रीमद्भागवत-
दरिद्रो यस्त्वसन्तुष्ट: कृपणो योऽ जितेन्द्रिय:।
गुणेष्वसक्तधीरीशो गुणसंगे विपर्यय: /११/१९/४४ जेकरा चित्तमे असन्तोष अछि वएह दरिद्र छी। जे िजतेन्द्रिय नहि अछि वएह कृपण छी। समर्थ, स्वतंत्र आर ईश्वर वएह छथि जिनकर चित्त-वृत्ति िवषए-भोगमे आसक्त नहि छन्हि। अहीक विपरीत जे विषएमे आसक्त अछि वएह सोलहन्नी पापी छी।
सरोज खिलाड़ी
सरोज खिलाडी
(नेपालके पहिल मैथिली रेडियो नाटक संचालक)बोतल राम
( मैथिली एकल नाटक )
स्टेज एकटा सड्क अछि । जाहि सड्कपर कोनो व्यक्ति गरिबके संकेतमे कपडा पहिरने सुतल अछि । कनीका देरतक सुतलाके बाद भोर होबके संकेत भेटते ओ व्यक्ति उठैत अछि । उठलाके बाद अपना झोरा सँ एकटा दारुके बोतल निकाली कक कुल्ला आजा करैत अछि । कुल्ला– आजाके पश्चात अपना आगामे एकटा दारुके बोतल राखी कऽ अपना झोरा सँ दुऽटा अगरबती,फुल चानन निकाली कक पुजा–आजा करैत अछि । जाहि पुजामे आरती बन्दना नेपथ्य सँ शुरु होइत अछि ।
नेपथ्य सँ– हमरा अपन दारुए अमृत लगैय
कोरस– हमरा अपन दारुए अमृत लगैय नेपथ्य सँ– हमरा सगुने आ सन्तरा मैगडल लगैय
कोरस– हमरा सगुने आ सन्तरा मैगडल लगैय
नेपथ्य सँ– हमरा अपन दारुए अमृत लगैय
कोरस– हमरा अपन दारुए अमृत लगैय
नेपथ्य सँ–जुरैय दुधिया त नै चाहि भरजीन
कोरस– जुरैय दुधिया त नै चाहि भरजीन
नेपथ्य सँ– दोसर जका नै चाहि मैगडल जीन
कोरस– दोसर जका नै चाहि मैगडल जीन
नेपथ्य सँ– हमरा जीवनके रक्षा करवला
कोरस– हमरा जीवनके रक्षा करवला
नेपथ्य सँ– हमरा दुधिएके बोतल भगवान लगैय
कोरस– जय होकककककक
नेपथ्य सँ– हमरा अपन दारुए अमृत लगैय
आरतीकऽ पश्चात पूजा कएने दारुके बोतलके प्रसाद माइनकक ग्रहण करैत अछि । पिलेलाके बाद
व्यक्ति ः– (सिसी फेकैत) साले दइए घोटमे खतम भगेलै ।
नेपथ्य स“ ः– (हसैत) चालैन दुस्लक सुपके जकरा ७२ गो देद ।
व्यक्ति ः–(मुंह दुसिकक हसैत) बाप जन्ममे नै छे कहियो हस्ने,वै कुता हैस ले कि बाइजले, (डेराइत) वै तो के छे रे ?
नें. स.ः– (गंभिर स्वरमे) हम छि दारु महराज ।
व्यक्ति ः– ( सोचैत) दारु महराज,कोन देशके राजा ?
ने. स. – राजा नै रे मूर्ख । तोहर दुस्मन ।
व्यक्ति – हमर दुस्मन, हमर दुस्मन त केउ भइए नै सकैय ।
ने. स. – संसारमे एहन कोनो व्यक्ति नै थिक, जकर दुश्मन नै छै ।
व्यक्ति – मुद्दा हमर दुश्मन, असम्भव ।
ने.स. – हम छियौ नै ।
व्यक्तिः– (डेराइत) तो के छे ?
ने. स. – हम वाहँ छि जे तोरा सन–सनके खोजैत रहैछै ।
व्यक्ति – (भगैत) पु–पु–पु–पु– पुलिस–पुलिस–पुलिस ।
ने. स. –रुक, पुलिस नई, दारुऽऽ ।
व्यक्ति – (हसैत) दाऽऽ रु । तखन त ताें हमर दोस भेले दोस ।
ने. स.– (जोर स“) किन्हु नई । दोस्त रहितियौ त हमरा पिलाके बाद हमरा सिसीके गारि पैढकऽ नै फेकते ।
व्यक्ति – दु तोरीके, वोटबा टा के बातला ।
ने. स.– बात कहु छोट भेलैय । बिना इखके मनुष्य कि, बिना बिखके साप कि ?
व्यक्ति – वै, त तो हमरा पर पिताइएकऽ कथि क लेबे ?
ने.स. – कलेबौ नै कदेलीयौ ।
व्यक्ति – (सोचैत) कलेबौ नै कदेलीयौ, वै कुता कथि रे रु
ने.स. – भिखमंगा (हसैत) भिखमंगा, भिखमंगा ।
व्यक्ति – (कटहसी सँ) भिखमंगा वहु मे हमरा, तों पागल छे बुइझगेलिऔ नामलोली ।
ने.स. – सोच, कनीका गंभीर सँ सोच ।
व्यक्ति – हटा सोच फोच हमरा स बेशी काविल के छै ऐत रु
ने.स. – काबिल नै तो मुर्ख छे, माहामुर्ख ।
व्यक्ति– (गंभीर सँ दारु पिवैतं) हम मुर्ख नै थिक ।
ने.स. – मुर्खकऽ लक्षण त ताें अखनो देखा देल्ही जे कनीका टाके सोचऽ बलाबातमे ताें हमरा पिबक लगले, रे बुद्घिके मारल, हमरा पिला स“ हम ककरो समस्याके सामाधान नै कदेइ छियै ।
व्यक्ति– टेढबात नै बाज, जे कहके छौ सोझ स“ बाज । तोरा सन– सनके अखनो दुटाके देखबउ बुझलिही कि ? (छाती ठोकैत मुहेभरे खसैत)
ने.स.– (हसैत)देखतै हमरा सन सनके आ गीरलैय मुहेभरे ।
व्यक्ति – (गंभीर स“) गीरलियैय नै , डान्स कैलीयैय, बुझलही कि ?
ने.स.– डान्स कि करबे दैवके कपार, भिखमंगा कहीके ।
व्यŒिाm—(गंभिर भ क) हम भिखमंगा कोना क छि रु
ने.स.–कोना नै छे, रे रहवला घर–घरारी सब बिकादेलीयौ । तोहर खनदानके उकटा देलीयौ,प्रतिष्ठाके नास कदेलीयौ, छोट–छोट भाई सब स“ पिटबौलियौ तोरा हम सड्क पर आइन देलियौ (हसैत) सड्क छाप
नेपथ्य स“ गीत– आब हम जीनगीमेऽऽऽऽ
दारुके कहियो हाऽऽत नई लगायव–२
घर बिकागेल घरारी बिकागेल, समाजमे प्रतिष्ठा
सर कुटुम दोस्त महिम स“ खतमभेल घनिष्ठा
आब हम जीनगीमे दारुके कहियो ..............
नई लगायव –४
व्यक्ति – (गंभिर भ क) हम भिखमंगा, मुर्ख, चपाट छलीय मुद्दा आब नई ।
ठिक कहलेहं तों, तोरे कारण हमर घर–घरारीसव तहस नहस भगेल ।
तोरा सन– सन नुकाकक रहल समाजके बरबादीके आब हम चिन्ह लेलौ । तोरा नई पिबऽके लेल हमरा के नई समझौलक, सर–कुटुम, माय–बाप, भाई–बहिन, समाज सबके सब हमरा समझबैत–समझबैत थाइकगेल मुद्दा हम अपन युथरइ नई छोरलौ । तोहर बात स“ आइ हमर आखि खुइल गेल । किया,किया तो समाजमे रहैछे ? (चिच्याइत छाति ठोकिकक कनैत)
कतेकके विधवा आ कतेकके विलटुवा बनादेल्ही तों । मुद्दा आब नई । आई तोरा हम खोइजकऽ समाजे स“ हटादेबौ ।
ने.स.–(खुब हसैत) हम तोरा नई भेटबउ ।
व्यक्ति – हम तोरा खोजी क रहबौ ।
ने.स.– (व्यंग स“) हम तोरा नई भेटबउ ।
व्यक्ति – देखै छियौ ताें कोना नई भेटैछे ।
ने.स.– (व्यंग स“) बच्चा, हम तोरा नई नई भेटबउ ।
(व्यक्ति चारुदिस खोजैछथि, खोजलाके बाद अपन कमिज फारै छथि । वै व्यक्तिके पुरा देहमे रंग बिरंगके दारु बान्हल रहैछै । जनौहमे सेहो २ — ४टा दारु बान्हल रहैछै फेर त फटलका फुल पेन्ट से हो निकालैछथि । हुन्का जाङघ आ छाबामे से हो दारुके बोतलसब बान्हल रहैछै । ओ सबटा दारुके सिसीके वहिठाम फोरैछथि । तखन ने.स.खुब कानके चिच्यायके आ छटपटायके अवाज अबैछै । व्यक्ति सिसी फोरैत फ्रिज)
( समाप्त )
बेचन ठाकुर “बेटीक अपमान” क संबंधमे अपन दू शब्द-
श्रीमान् अखन संसारक गति-विधिमे दिनानुदिन आशातीत पिरवर्तन भऽ रहल अछि जहिमे लोक अपन सभ्यता-संस्कृति आओर कर्त्तव्य परायणताकेँ िबसरि सांसारिक सुखकेँ अपनाए रहल छथि। लोभ चरम सीमापर अछि। जबकि दहेज देनाइ व लेनाइ कानूनी अपराध छी। एहि अपराधकेँ अपराध नहि बुझि आमदनीक स्त्रोत लोक बुझैत छथि। वर पक्ष मोछ पिजबैत छथि जे हमरा लाखक लाख दहेज भेटत। मुदा कनियॉं पक्ष माथा होंसतैत छथि जे हम लाखक दहेज कतएसँ आनब। एहि संदर्भमे लोक बेटीसँ घृणा करैत छथि आओर बेटीक अपमान करैत छथि तथा बेटा लेल जान-प्राण लगौने रहैत छथि। अल्ट्रासाउण्ड उचित इलाजक एकटा महत्वपूर्ण आविष्कार छी। सामान्यतया एकर प्रयोग गलत ढंगसँ कएल जाइत अछि। अल्ट्रासाउण्ड करा कऽ लोक बेटीकेँ नष्ट करबा लैत छथि आ बेटाकेँ सुरक्षित राखैत छथि एहि क्रममे बेटीक संख्या काफी घटि रहल अछि आओर बेटाक संख्या काफी बढ़ि रहल एहिसँ संसारक संतुलन बिगरि रहल अछि आओर भविष्यमे काफी बिगरि जाएत। संगहि अल्ट्रासाउण्ड करौनिहारिकेँ स्वास्थ्यपर प्रतिकुल प्रभाव पड़ैत अछि आ पड़त। अल्ट्रासाउण्डहि नहि कोनहु विधिसँ गर्भ जॉंच आओर नाश केनाइ बड्ड पैघ पापीक काज छी स्वभाविक अहितकर सिद्ध होएत।
प्रस्तुत नाटक “बेटीक अपमान” मे ई दर्शाएल गेल अछि जे गर्भपात नहि हाएवाक चाही आओर बेटा-बेटीमे समानता रहक चाही। बेटा-बेटीमे क्यो ककरोसँ कम नहि अछि। दुनू एहि संसारक आधार छी।
मनमौजी वा हुण्डपनी कएलासँ इज्जत नहि बॉंचत। विवेकी आदमी इज्जतहि लेल हरान रहैत छथि। विवेक वा इज्जत बजारू वस्तु नहि थिकैक। ई अपन क्रिया-कलाप व सत्संगहिसँ अबैत अछि। इत्यादि यएह सभ विषए-वस्तु रखैक प्रयास कएलहुँ हेन।
अपन त्रुटिक लेल क्षमाप्रार्थी होएवामे हमरा कोनो दुख नहि। अपन त्रुटिमे सुधार हेतु अपने सभसँ उचित मार्गदर्शनक आशा रखैत छी।
बेचन ठाकुर
बेटीक अपमान
पुरूष पात्र-
दीपक चौधरी- एकटा साधारण पढ़ल-लिखल िकसान
मोहन चौधरी- दीपक चौधीरीक बड़का बेटा
सोहन चाधरी- मझिला बेटा
गाेपाल चौधरी- छोटका बेटा
प्रदीप कुमार ठाकुर- एकटा वार्ड सदस्य (दीपकक)
बलवीर चौधरी- पंचायत शिक्षक
हरिश्चन्द्र चौधरी- पंचायत शिक्षक
हरिचन्द्र चौधरी- गरीब िकसान
महेन्द्र पंडित- दीपक चौधरीक लंगोटिया संगी
सुरेश कामत- दीपक चौधरीक मामा
सेानू- दीपक चौधरी- मामिऔत भाए
गंगाराम चौधरी- बलवीर चौधरीक छोट भाए
चन्देश्वर चौधरी- बलवीर चौधरीक पैघ भाय
हरेराम सिंह- बलवीर चौधरीक गामक एकटा वुजुर्ग
बौआ क्षा- एकटा अनपढ़ पुरहित
झमालाल महतो- दीपक चौधरीक पड़ोसी
सुरेन्द्र चौधरी- हरिश्चन्द्र चौधरीक भाए
प्रेमनाथ मेहता- एकटा प्रसिद्ध डाक्टर
टुनटुन- बलवीर चौधरीक भातीज
रमन कुमार- हरिश्चन्द्र चौधरी पंचायतक मुखिया
स्त्री पात्र-
वीणा देवी- दीपक चौधरीक पत्नी
सुनीता देवी- बलवीर चौधरीक दोसर पत्नी
मंजू- बड़की बेटा
संजू- छोटकी बेटी
राधा देवी- हरिश्चन्द्र चौधरीक पत्नी
शालिनी- हरिश्चन्द्र चौधरीक बेटी
अंक पहिल-
दृश्य पहिल-
(दीपक चौधरी एकटा साधारण पढ़ल-लिखल किसान छथि। हिनक घरनी वीणा देवी छथिन्ह। मोहन चौधरी, सोहन चौधरी आ गोपाल चौधरी हिनक तीनिटा पुत्र छथिन्ह। दीपक चौधरी अपन दुआरिपर दुनू परानी बैसि िकछु गप-सप्प करैत छथि।)
दीपक- मोहन माए, एगो गप कहु।
वीणा- कहुने, एक्केटा िकएक। जत्ते मोन तत्ते।
दीपक- एक गोट बेटीक इच्छा होइत अछि। बेटा तँ भगवान तीनि गोट देलनि।
वीणा- आब इच्छे कएने की भेटत? ई इच्छा जे पहिने होइताए तहन ने। पहिने बेटे लऽ जान जाइत छल। मोहनो बेरमे अहॉं कहलहुँ जे अल्ट्रासाउण्ड कराए लिअ। जदी बेटी होएत तँ ओकरा हटा देब।
दीपक- से तँ हम ठीके कहने रही। समए महगीक अछि। बेटीमे अग्गहसँ बिग्गह खरच अछि। आमदनी कोनो नहि।
वीणा- अहॉं तँ सभ दिन आमदनीए बुझलिऐक की टक्के।
दीपक- मोहन माए, एकटा कहबी अछि- “टाका हि धर्म:, कटा हि कर्म:, हे टाक तू सर्वोपरि”
वीणा- धूर जाउ, अहॉं खाली फकरे सुनबैत रहैत छी सुनु मोहन बाउ, दुनियॉंमे टक्केटा सभ किछु नहि अछि। ओकर सिंगारो ने होएवाक चाही। बेटा- बेटीए ने एहि दुनियॉंका सिंगार छी।
दीपक- लगैत अछि जे अहॉं हमर गुरू रही।
वीणा- हँ-हँ, कहब नीक तँ लागत दिक। आब हम कहि देब।
दीपक- हे हे चुप रहु, पोल नहि खोलु एहि भरल सभामे।
वीणा- नहि यौ, हमरा आब बर्दास नहि होएत। आब हम पोल खोलए देब।
दीपक- हे हे मोहन माए, अहॉं बड्ड नीक लोक थिकहुँ। हमरा बेज्जती जुनि करू। हे हे पएर पकड़ै छी।
वीणा- अहॉं तँ तेना खेखनियॉं करए लागलहुँ से कहि नहि। खाइर आइ छोड़ि दैत छी।
दीपक- हे मोएन माए, आब गप-सप्प छोड़ु। हमरा जेबाक अछि जन ताकए लेल। देखै नहि छियैक जन सभकेँ किकेदारीए चाही हफकौरे चाही।
वीणा- बरनी आउ। हमरो भनसाक ओरीयान करबाक अछि।
दीपक- बेस तहन हम जाइत छी।
पस्थान
पटाक्षेप
दोसर दृश्य-
क्रमश:
१.बिपिन झा-बालमजदूर पर हमर लेखिनीक दृष्टि, २.बीरेन्द्र कुमार यादव-राजदेव मंडलक बाढ़िक चित्रपर
१
बिपिन झा बालमजदूर पर हमर लेखिनीक दृष्टि
एहि अंक मे हमर लेखिनी क दृष्टि ओहि बाबू भैया पर अछि जे संवैधानिक आओर सामाजिक नियम के ताख पर राखि के बच्चा के नोकर राखब विशेष नीक बुझैत छथि । एहि मे ओ दूइटा लाभ देखैत छथि- पहिल कम खर्च मे टहलुआ भेटब आ दोसर एकरा रखनाई सहज होयब।
ई गप्प केवल गामे घरक नहिं अपितु नीक नीक शैक्षणिक संस्थान तक के अछि। हम एतय एकटा एहने उदाहरण प्रस्तुत कय रहल छी। एकटा एहेन बच्चा जेकर हार्दिक इच्छा पढवाक छलैक ओ अपन शिक्षा सँ कोशो दूर भारतवर्षक एकटा उच्च शिक्षण संस्था क ढाबा मे काज करय हेतु मजबूर छल। ओकर पढबाक इच्छा देखि हमर एकटा मित्र प्रारंभिक रूप सँ पढेनाई शुरू केलखीन्ह| बात ओ बच्चा मात्र के नहिं अछि एहि तरह असंख्य बच्चा अछि जे अपन बाल्यावस्था लोकक टहल टिकोरा मे बिता दैत अछि।
स्वतन्त्रता सँ पूर्व १८८१ केर कारखाना अधिनियम, संगहि १९११, १९२२, १९३४, १९४६ केर संशोधित अधिनियम बालमजदूरी के हतोत्साहित करैत रहल अछि। संगहि स्वातंत्रोत्तर भारत मे सेहो संवैधानिक दृष्टि सँऽ यद्यपि अनेकनेक नियम सं संरक्षण प्राप्त छैक ई बच्चा कें मुदा व्यबहार मे कतेक ई अनुपालित होइत अछि ई सर्वविदित अछि।
अस्तु, एहि लेखक माध्यम सँ मात्र एतेक अभिव्यक्ति बुझलजाय जे बालमजदूरी के यथासाध्य निवारित करबाक व्यावहारिक स्तर पर प्रयास हो । बालमजदूरी संवैधानिक दृष्टि मात्र सँ अनुचित नहि मानल जाय अपितु एकर सामाजिक बहिष्कार सेहो अपेक्षित। आशा अछि जे ई अभिव्यक्ति जनमानसक सुतल चेतना के जगेबाक यत्न मे सफल रहत आ एहि भारतवर्षक एक एक टा बच्चा "बालोऽहं जगदानन्द" दिस अर्थात ज्ञानपरम्परा कें श्रीवृद्धि करबाक दिशा मे कदम बढा सकत।
२.
बीरेन्द्र कुमार यादव
ग्राम- घोघड़रिया, पोस्ट- मनोहपट्टी, भाया- निर्मली, जिला सुपौल
राजदेव मंडलक बाढ़िक चित्रपर-
मैथिली साहित्यक उत्कृष्ट संकलन विदेह पद्द २००९-१० पढ़ि खूब खुशी भेल। अनेको रचनाकारक संग मैथिली साहित्य जगतमे आधुनिकतासँ ओत प्रोत कवि राजदेव मंडलजीक रचना वर्ष २००९मे कोशीक विभिषिका जे कुसहा त्रासदीक नामसँ जानल जाइत अछि। अपन देश धरि नहि किन्तु समूचा विश्वक लोकक रोइयॉं-रोइयॉं ठाढ़ कएलक, संचार साधनक विभिन्न माध्यमसँ कोशीक मध्य बसनिहारक व्यथा-कथा जतेक भोगलहुँ-सुनलहुँ ओहिसँ बेसी मंडल जीक रचनामे कोशी बीच रहनिहारक दर्द मात्र छ: दृश्यमे दृष्टिगोचर भेल अछि।
मंडलजीक रचना रूचिकर लागल। एतेक दिन हिनकर रचना हिन्दी साहित्यमे पढ़ैत छलहुँ, आब मैथिलीमे हिनक रचना मिथिलाक माटि-पािन आ मिथिलामे रहनिहार लोकक लेल होमए लगल। एहि लेल मंडलजी धन्यवादक पात्र छथि। आशा करब जे मैथिली साहित्यमे िहनक रचना बराबरि आबए, हमरा सभकेँ पढ़बाक अवसर भेटए आ हमर मैथिली साहित्य समृद्ध हुअए।
प्रेमशंकर सिंह: ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा।मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिली नाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिली अकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशन भागलपुर २००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओ नाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८। २००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगा यात्री-चेतना पुरस्कार।
संस्मरण साहित्य
विगत अनेक शताब्दीसँ मैथिली भाषा ओ साहित्यक सुदीर्घ एवं समृद्धशाली साहित्यिक परम्परा अविछिन्न-अक्षुण्ण रूपेँ चलि आबि रहल अछि; किन्तु बीसम शताब्दीकेँ जँ एकर साहित्यिक विकास-यात्राकेँ स्वर्णयुगक संज्ञासँ अभिहित कयल जाय तँ एहिमे एक नव मोड़ आयल जे पत्र-पत्रिकाक उदय भेलैक तथा ओकर प्रकाशनक शुभारम्भ भेलैक जकर फलस्वरूप गद्यक विकासमे एक नव गति आयल। गद्यक विभिन्न रूप-विधानक प्रादुर्भाव पत्र-पत्रिकाक प्रकाशनसँ शुभारम्भ भेलैक। विगत शताब्दी प्रधानत: गद्य रूपमे ख्याति अर्जित कयलक आ ओकर प्रयोगक विविध रूप-विधानक रूपमे पाठकक समक्ष प्रस्तुत भेल। संघर्षमय युगक जीवनमे गद्यक मर्यादा एहि रुपेँ रूपायित क’ देलक जे ओ अभिव्यक्तिक असाधारण साधन बनि गेल। आधुनिक मैथिली गद्य गंगाकेँ सम्पोषित करबाक उद्देश्यसँ साहित्य-पुरोधा लोकनिक सत्प्रयाससँ ओकर परिष्कार आ परिमार्जन भेलैक। गत शताब्दीमे आत्म-कथा, आलोचना, उपन्यास, कथा, गल्प, जीवनी, डायरी, निबन्ध, संस्मरण, साक्षात्कार आदि अनेक साहित्यिक विधाक जन्म देलक आ साहित्यमे एक नव-स्पन्दन भरबामे महत्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कयलक।
ई श्रेय वस्तुत: पत्रिकादिकेँ छैक जे आधुनिक गद्यक आविर्भाव एवं विकास-यात्राकेँ गतिशील करबामे तथा साहित्यक श्रीवृद्धिक सहयोगमे अपेक्षित घ्यान देलक) एहि निमित्त साहित्य-सृजननिहार लोकनि नव-नव प्रवृत्तिक रचनाक दायित्वक भार वहन कयलनि आ सम्पादक लोकनि ओकरा यत्न पुरस्सर प्रकाशित कयलनि जकर फलस्वरूप मैथिली गद्यक प्रवर्द्धन भेलैक आ ओकरा विविध रूप-विधानमे विन्यस्त कयल जाय लागल। पत्रिकादिक माघ्यमे सेहो नव-नव रचनाकारकेँ प्रोत्साहन भेटलनि तथा हुनका सभक घ्यान ओहि विधा दिस आकर्षित भेलनि जकर एहि साहित्यान्तर्गत सर्वथा अभाव छलैक। एहिसँ अतिरिक्त विगत शताब्दीमे साहित्यक विकास यात्रामे अनेक उल्लेख योग्य काज भेल जकर ऐतिहासिक महत्व छैक। रचनाकारक भाव-प्रवणता, हार्दिकता, कल्पनाशीलता एवं स्वच्छनंद प्रवृत्तिक परिणाम स्वरूप मैथिली गद्य अपनाकेँ नव पल्लवसँ पल्लवित कयलक। विगत शताब्दीमे एकर सर्वतोमुखी विकास भेलैक जाहि आधारपर एकरा गद्ययुग कहबा समीचीन होयत, कारण मैथिली गद्य-गंगा शत-शत धारामे प्रवाहित होइत एकर साहित्य सागरकेँ भरलक आ पूर्ण कयलक।
उपर्युक्त पृष्ठभूमिक परिप्रेक्ष्यमे विगत शताब्दीमे एक अद्वितीय प्रतिभा सम्पन्न तप: सपूत रचनाकारक प्रादुर्भाव भेल आ अप्रतिम प्रतिभाक बलपर साहित्यक अनेक विधाकेँ संस्करित कयलिन आ ओकरा मिथिलाञ्चलक अभिज्ञान द’ कए भारतीय साहित्यक समकक्ष स्थापित कयलनि जे रचनाक प्रत्येक क्षेत्रमे, सर्जनाक यावतो प्रस्थानमे ओ अपन कृतिमे ने केवल परवर्त्ती पीढ़ीक हेतु; प्रत्युत्ा समकालीन रचनाकार लोकनिक हेतु सेहो शिखर पुरुष आ प्रेरक स्तम्भ बनि गेलाह ओ रहथि डा. व्रजकिशोर वर्मा मणिपद्म (1918-1986)। हुनक प्रकाशित साहित्य वैविघ्य-पूर्ण अछि, कारण साहित्यिक अभिव्यक्तिक कोनो विधा नहि बॉंचल रहल जकर सहज प्रयोगमे ओ उल्लेख्य योग्य सफलता नहि प्राप्त कयलनि। हुनका द्वारा रचित साहित्यक प्रचूरता आ विचित्रता अछि, किन्तु ओहिमे सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य थिक जे एहि परिमाण-प्राचूर्य्यमे हुनक अधिकांश साहित्यिक कृति अत्यंत उच्च कोटिक थिक। जाहिना हिनक रचनाक विशदता पाठककेँ चकित आ विस्मित क’ रहल अछि तहिना हुनक व्यक्तिक आघ्यात्मिक रहस्मयता सेहो अधिक जोड़ पकड़लक। हुनक आभ्यन्तरिक शक्ति हुनका निरन्तर चिर-नूतन रचनाक हेतु उत्प्रेरित करैत रहलनि तथा विश्राम करबाक लेल पलखति नहि देलकनि। ओ जीवनक विविध पथक पथिक रहथि तथा विषाद आ करुणाक बीच सौन्दर्यक अंवेषण करब हुनक लक्ष्य छलनि। हुनक मन आ मस्तिष्कक क्षितिज जागृत छलनि। ओ जीवन आ प्रकृतिक पक्षधर रहिथ। ओ एक दूरदर्शी साहित्य-मनीषी रहथि जे मैथिलीमे जाहि विधाक अभाव हुनका परिलक्षित भेलनि तकर पूत्यर्थ मनसा-वाचा-कर्मणा ओहिमे लागि गेलाह। हिनका द्वारा प्रयुक्त विधाहि साहित्यिक विधे नहि रहल, प्रत्युत आकर्षक विधाक रूपमे ख्याति अर्जित कयलक।
चिर नूतनताक अन्वेषी मणिपद्म मैथिली साहित्यमे संस्मरण साहित्यान्तर्गत चारि नव-विधाक प्रवर्त्तन कयलनि जकर सम्बन्ध अतीतसँ अछि, यद्यपि संस्मरणक संसार विषयक दृष्टिएँ व्यापक नहि, तथापि संवेदनाक गाम्भीर्य आ आत्मीय-स्पर्शक दृष्टिएँ अत्यंत श्रेष्ठ कोटिक साहित्य-विधाक अन्तर्गत अबैछ। भारतीय भाषा आ साहित्यमे एहि विधाक जन्म पाश्चात्य साहित्यिक संग सम्पर्क फलस्वरूप प्रारम्भ भेल जे अधुनातन सन्दर्भमे एक चर्चित विधाक रूपमे प्रचलित भेल अछि। एहि विधामे ओ विपुल परिमाणमे साहित्य-सृजन कयलनि किन्तु अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति अछि जे मैथिलीक तथाकथित इतिहासकार लोकनिक ध्यान एहि दिस नहि गेलनि आ ओकर चर्चा पर्यन्त नहि कयलनि। भारतीय साहित्य निर्माता सिरीजक अन्तर्गत साहित्य अकादेमीसँ हिनकापर मणिपद्म (1996) नामे एक मोनोग्राफ प्रकाशित भेल अछि जे अत्यंत उपहासात्मक अछि। ओकर लेखक एहि सीरिजक रचनाकेँ बिनु पढ़नहि उपेन्द्र महारथीक संस्मरणकेँ रामलोचनशरणक नामोल्लेख कयलनि अछि। इएह तँ मैथिलीक मोनोग्राफ लेखकक स्थिति अछि।
भारतीय स्वतंत्रता-संग्रामक इतिहासमे सन् उन्नीस सय बियालिसक अगस्त क्रान्तिक ऐतिहासिक दृष्टिएँ अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान अछि। एहि महाक्रान्तिमे बूढ़-बूढ़ानुस नेतासँ ल’ कए जुआन-जहानक रक्त बेसी गर्म छलैक आ अंग्रेजी शासन-व्यवस्थाक विरूद्ध ओकारा सभक स्वर अधिक मुखर भेल छलैक। उत्तर बिहार आ मिथिलाञ्चलक नवयुवक लोकनि एहि महायज्ञमे अपन प्राणक आहूति देलनि आ रक्तसँ तर्पण कयलनि। मणिपद्म स्वयं सजग, सचेष्ट आ निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी रहथि। एहि परिप्रेक्ष्यमे ओ मैथिली-संस्मरण प्रथमे-प्रथम डायरी शैलीक प्रवर्त्तन कयलनि अवश्य, किन्तु एकरा अतंर्गत ओ प्रचुर परिमाणमे रचना नहि क’ पौलनि वा कयनहु होयताह तँ ओ ने तँ प्रकाशित अछि आ आब अनुपलब्ध अछि। जँ कदाचित एहि विधामे प्रचुर परिमाणमे डायरी लिखने रहितथि तँ ओ निश्चये मैथिली साहित्यक अभूतपूर्व कृति होइत। एहि सिरीजक अन्तर्गत हुनक बियालसीक फरारी सात दिन (मिथिला मिहिर, 5 दिसम्बर 1953) एवं फरारीक पॉंच दिन (मिथिला मिहिर 31 दिसम्बर 1961) प्रकाशित अछि जाहिसँ स्वतंत्रता आंदोलनक क्रममे ओ डायरी लिखलनि तकर दारूण पीड़ादायक वर्णन कयलनि। एहिमे रचनाकार सद्य: स्फुटन भाव वा विचारकेँ अभिव्यक्ति देलनि वा अपन अनुभवक रेखाकंन वा विगत अनुभवक पुनर्मूल्यांकन कयलनि। एहिमे बियालसीक महाक्रान्तिमे फरारीक स्थितिमे जाहि परिस्थितिक चित्रण कयलनि जे नेपाल तराइक जन जीवनपर प्रकाश देलनि।
अपन दीर्घ सार्वजनिक जीवनमे ओ देशक राजनैतिक, साहित्यिक, सामाजिक आ सरकारी तंत्रमे कार्यरत व्यक्तिक सम्पर्कमे अयलाह, ओहि स्मृति कणकेँ जोड़ि क’ हुनकासँ भेट भेल छल सन् 1953 ई. सँ लिखब प्रारम्भ् कयलनि जकर समापन 1986 ई. धरि अनवरत चलैत रहलनि जकरा एहि सिरीजक अन्तर्गत अभिव्यक्ति देलनि। हिनक उपर्युक्त संस्मरण मात्र लेखकीय मनीषापर नहि आधृत अछि, प्रत्युत प्रकृति-प्रेम, ईश्वर प्रेम, स्वजाति प्रेम, महतक प्रति श्रद्धा, विनोद प्रियता आदिक समस्त वैशिष्ट्यक झलक एहिमे भेटैछ। ओ अपन दीर्घ साहित्यिक जीवनान्तर्गत जाहि-जाहि मातृभाषानुरागी आ साहित्यानुरागी साधक लोकनिक सम्पर्कमे अयलाह ओकरा संगहि अन्यान्य भाषानुरागी विद्वत् वर्गसँ अभिभूत भेलाह, जाहि रूपेँ हृदयंगम कयलनि, जाहि रूपेँ प्रभावित भेलाह, तनिके ओ श्रंृखलाक कडी़क आधार बनौलनि। हिनक संस्मरणात्मक आलेख यद्यपि विवरणात्मक अछि तथ्ािप ओ सत्य घटनापर आधृत अछि संगहि वर्णित व्यक्तिक मातृभाषानुराग आ साहित्यिक आन्दोलन परिचायक सेहो अछि। एहि सिरीजक अन्तर्गत प्रकाशित संस्मरण जीवनक एक पक्षकेँ उद्घाटित करैत अछि जे व्यक्ति अपन क्रियाकलापसँ आकर्षित कयलथिन तनिकेपर ओ लिखलनि। एकरा अन्तर्गत वर्णित व्यक्तिक व्यक्तित्व ओही वैशिष्ट्य तथा स्थितिकेँ जनमानसक समक्ष प्रस्तुत कयलनि जाहिसँ हिनक संस्मरण वास्तविक घटित घटनाक सन्निकट आ सम्भव भ’ सकल। ओ स्पष्ट रूपेँ अपन यथार्थ प्रतिक्रिया वर्णित व्यक्तिपर व्यक्त कयलनि जकर वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यमे ऐतिहासिक महत्व भ’ गेल अछि।
एहि श्रंृखलाक अन्तर्गत मैथिला भाषा आ साहित्यक निम्नस्थ व्यक्तित्वक संग हुनका साक्षात्कार भेलनि तथा अमिट छाप छोड़लथिन यथा सीताराम झा (1891-1975) (मिथिला मिहिर, 12 दिसम्बर 1953), वैद्यनाथ मिश्र यात्री (1911-1998) (मिथिला मिहिर, 26 दिसम्बर 1953), काञ्चीनाथ झा किरण (1906-1989) (मिथिला मिहिर, 23 जनवरी 1954), चन्द्रनाथ मिश्र अमर (1925) (मिथिला मिहिर, 30 जनवरी 1954), हरिमोहन झा (1908-1984), (मिथिला मिहिर, 13 मार्च 1954), कुलानन्द नन्दन (1908-1980) (मिथिला मिहिर, 27 मार्च 1954), सुधांशु शेखर चौधरी (1920-1990) (मिथिला मिहिर, 30 अपैल 1954), सोमदेव (1934) (10 अप्रैल 1954), सुरेन्द्र झा सुमन (1910-2002) (मिथिला मिहिर, 17 अप्रैल 1954), नरेन्द्रनाथ दास (1904-1993) (मिथिला मिहिर 1 मई 1954), मायानन्द मिश्र (1934) (मिथिला मिहिर, 8 मई 1951), भोलालाल दास (1894-1977) (मिथिला मिहिर, 15 मई 1954), लक्ष्मण झा (1916-2002) (मिथिला मिहिर, 22 मई 1954), गिरीन्द्रमोहन मिश्र (1890-1983) (मिथिला मिहिर, 14 अगस्त 1954), जगदीश्वरी प्रसाद ओझा (?) (मिथिला मिहिर, 28 अगस्त, 1954) उमेश मिश्र (1895-1967) मिथिला मिहिर, 4 सितम्बर, 1954) अमरनाथ झा (1897-1955) (मिथिला मिहिर, 11 सितम्बर, 1954), सोमनसदाइ (?) (मिथिला मिहिर, 25 सितम्बर, 1954), नइँ बिसरब (मिथिला दर्शन, जनवरी 1954), नंग्टू सॉंढ़ (मिथिला दर्शन, अगस्त 1960), कमला, यमुना आ गंगा (मिथिला दर्शन, जुलाई 1961), तीन गोट संस्मरण (वैदेही, जुलाई-अगस्त 1961), सामा चकेबा (वैदेही, सितम्बर 1961), गोदपाड़िनी नट्टिन (मिथिला मिहिर, 21 अप्रैल 1963), थानेदार (मिथिला मिहिर, 17 नवम्बर, 1963), राजकमल चौधरी (1929-1967) (मिथिला मिहिर, 30 जुलाई 1967), मिहिरोदय (मिथिला मिहिर, 1 मार्च 1970), रामकृष्ण झा किसुन (1923-1970), (मिथिला मिहिर, 2 अगस्त 1970), रमानाथ झा (1906-1971) (मिथिला मिहिर, 16 जनवरी, 1972), हजारीप्रसाद द्विवेदी (1907-1979) (मिथिला मिहिर, 27 मार्च 1973), बदरीनाथ झा (1893-1974) (मिथिला मिहिर, 30 सितम्बर 1973), ललितानारायण मिश्र (1922-1975) (मिथिला मिहिर, 19 जनवरी 1975), बलदेव मिश्र (1880-1979) (मिथिला मिहिर, 3 फरवरी 1975), विशालकाय महिला (?) (मिथिला मिहिर 2 नवम्बर 1975) राजाबहादुर विश्वेश्वर सिंह (1908-1976) (मिथिला मिहिर, 25 अप्रैल 1976), पिताश्री चल गेलाह (मिथिला मिहिर, 3 अक्तूबर, 1976), राजेश्वर झा (1922-1977) (मिथिला मिहिर 15 मई 1977), सुनीतिकुमार चटर्जी (मिथिला मिहिर 3 जुलाई, 1977), लक्ष्मीपति सिंह (1907-1979) (मिथिला मिहिर, 25 मार्च 1979), जयप्रकाश नारायण (1902-1979) (मिथिला मिहिर 14 अक्तूबर 1979) उपेन्द्र ठाकुर मोहन (1916-1980) (मिथिला मिहिर, 8 जून, 1980), चिरवत्सले (मिथिला मिहिर, 7 दिसम्बर 1980), उपेन्द्र महारथी (मृत्यु 1981) (मिथिला मिहिर, 1 मार्च, 1981), योगेन्द्र मल्लिक (?), (कर्णामृत, सितम्बर 1981), धर्मलाल सिंह (?) (मिथिला मिहिर, 29 नवम्बर 1981) सुभद्रा झा (1911-1982) (मिथिला मिहिर, 24 अक्तूबर 1982), राधाकृष्ण चौधरी (1924-1984) इत्यादि। कविवर सीताराम झा, बाबू भोलालाल दास एवं राधाकृष्ण चौधरी पर दुइ संस्मरण उपलब्ध होइछ जे एक तँ जीवितावस्था थिक आ दोसर मृत्यूपरान्त जे क्रमश: मिथिला मिहिर, 20 जुलाई 1975, मिथिला मिहिर, 19 जून 1977 एवं कर्णामृत, जनवरी-मार्च 1986 मे प्रकाशित भेल। उपर्युक्त संस्मणान्तर्गत ओ हुनक जीवन वृत्तक इतिहासे नहि, प्रस्तुत कयलनि, प्रत्युत हुनक साहित्यिक अभिरुचि एवं अवदानक संगहि-संग संगठनात्मक प्रवृत्तिक लेखा-जोखा प्रस्तुत कयलनि अछि जे मातृभाषाक विकासमे उल्लेख्य योग्य अवदानक कारणेँ चर्चित अछि।
हुनकासँ भेट भेल छलक परिधि मात्र मैथिली साहित्य मनीषी लोकनि धरि सीमित नहि रहल, प्रत्युत ओकर फलक विस्तृत छल तकर प्रारूप भेटछै जे विश्वक प्रख्यात भाषा शास्त्री विद्वत् वरेण्य सुनीतिकुमार चटर्जी, हिन्दीक प्रख्यात मनीषी आचार्य हजारी प्रसाद् द्विवेदी, महान राजनेता जयप्रकाश नारायण, मिथिलाक प्रख्यात चित्रकार उपेन्द्र महारथी, मिथिलाक यशस्वी राजनेता ललितनारायण मिश्र एवं महान् लक्षमीवान राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह इत्यादि व्यक्तिक प्रसंगमे अपन निजी धारणाकेँ रूपायित कयलनि।
एहिसँ अतिरिक्त अपन पूज्य पिताश्री आ पूज्या माताश्रीपर सेहो संस्मरणक रचना कयलनि। एहि सिरीजक अन्तर्गत समाजक उपेक्षित आ तिरस्कृत वर्गक प्रति हुनकर हृदयमे असीम श्रद्धा, अगाध प्रेम आ अपार सहानुभूति छलनि तकर यथार्थताक प्रति रूप भेटैछ सोमनसदाय, गोदपाड़ि़नी नट्टिन एवं नंग्टू सॉंढ़मे जाहिमे ओकर वास्तविक पृष्ठभूमिक रेखाकंन कयलनि। सरकारी तन्त्रक परिवेशमे भ्रष्टाचारी थानेदारक संग कोन स्थितिमे साक्षात्कार भेलनि तकर यथार्थ क्रिया-कलाप दिस हुनक घ्यान केन्द्रित भेलनि तकरो एहि सिरीजमे समाहित कयलनि। व्यवसायसँ ओ होमियोपैथ रहथि। ओ एक विशालकाय पहाड़ी रोगिणीक प्रसंगमे सेहो लिखलनि जे हुनकासँ इलाज कराबय आयल छलीह।
हुनकासँ भेट भेल छलक अन्तर्गत ओ स्मृतिकण आ साहित्यिक रिक्तताक जीवन परिचय, विचार-धारा, साहित्यिक प्रवृत्ति आ सामाजिक गतिविधिक परिचय प्रस्तुत कयलनि। एहि संस्मरणात्मक निबन्धमे ओ ने केवल प्राचीन परिपाटीक परित्याग कयलनि, प्रत्युत नवजीवन दृष्टि आ नव पद्धतिक श्रीगणेश कयलनि। एहन अनुभूति परक कृति सभमे ओ अपन अतीतक ओहि प्रसंगक उद्भावना कयलनि जे हुनक साहित्यिक व्यक्तित्वक नियामक सिद्ध भेल। एहि सिरीजमे जतबे संस्मरण उपलब्ध अछि ततबे ओ तद्युगीन साहित्यिक गतिविधिक दस्तावेज थिक जे मैथिली साहित्येतिहासमे अहं भूमिकाक निर्वाह करैछ। भावनात्मक आ वैयक्तिकताक संगहि-संग वैचारिकताक अद्भूत समन्वय एहिमे भेल अछि।
सैद्धाान्तिक दृष्टिएँ, हुनक संस्मरण-साहित्य साहित्यिक संस्मरणक विशिष्ट गुणसँ अलंकृत आ महत्वपूर्ण अछि। एहिमे कथात्मकताक दृष्टिएँ कथा, वैचारिकताक दृष्टिएँ निबन्ध आ भावनात्मकताक दृष्टिएँ कविता, एहि तीनू विधाक त्रिवेणीक अभूत पूर्व संगम भेल अछि। हिनक संस्मरणमे अनुभूति, वर्णन, विवरण, विचार, भाव, यथार्थ आ कल्पनाक अद्भूत समन्वय भेल अछि। हिनक संस्मरणात्मक निबंधक मूलाधार थिक भावना जे काव्यात्मकताक गुणसँ अंलकृत अछि।
एहि सिरीजक संस्मरणक अनुशीलनसँ अवबोध होइछ जे हिनका भारतीय साहित्यक संगहि-संग पाश्चात्य साहित्यक सेहो गहन अघ्ययन छलनि। एहि वास्तविकताक परिचय हुनक उपर्युक्त संस्मरणान्तर्गत डेग-डेगपर उपलब्ध होइछ। ओ अपन एहि रचनान्तर्गत एहन वातावरणक निर्माण कयलनि जाहिसँ पाश्चात्य साहित्य चिन्तक लोकनिक विश्व प्रसिद्ध रचना सभक सेहो विवरण प्रस्तुत करबामे कनियो कुंठित नहि भेलाह जे ओहि अवसरक हेतु उपयुक्त छल। एहिमे गांधीवादक संगहि-संग मार्क्सवादक छौंक स्थल-स्थलपर भेटैछ।
हुनकासँ भेट भेल छलमे तीव्र मानवीय संवेदना, व्यापक सहानुभूति, सजल करुणा, ममता आ आत्मीयता अछि जे अन्यत्र दुर्लभ अछि। एहिमे नोर आ तीव्र आवेगक गम्भीर चित्र तथा सामाजिक, राजनीतिक विचार-धाराक स्पष्ट छाप फराकहिसँ चिन्हल जा सकैछ। एहिमे साहित्यकार, शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ, मातृभाषानुरागी, उन्नायक, समाजसेवी, कलाकार आ विद्वत वर्गसँ सम्बन्धित व्यक्तिक संग साक्षात्कार अछि जे वर्त्तमान परिवेशमे अतिशय ज्ञानवर्द्धक आ ऐतिहासिक पृष्ठभूमिक निर्माण करैछ।
मणिपद्म एक पैघ यायावर रहथि। साहित्यिक यायावरकेँ एक अद्भूत आकर्षण अपना दिस आकर्षित करैछ, ओ मन्त्र मुग्ध भ’ कए ओहि दिस आकर्षित भ’ जाइछ। एहन साहित्य सर्जनमे ओ संवेदनशील भ’ कए निरपेक्ष रहथि। यायावरीक क्रममे हुनका रस्तामे पड़निहार मन्दिर, मस्जिद, मीनार, विजय स्तम्भ, खण्डहर, स्मारक, किला, कब्रिस्तान आ प्राचीन महलक संस्कृति, कला आ इतिहासकेँ एकत्रित क’ कए अपन यात्राक पृष्ठभूमि तैयार कयलनि। हिनक उपलब्ध यात्रा-साहित्य संस्मणात्मक थिक जाहिमे ओ एक सामान्य यात्री जकॉं अपन प्रभाव, प्रतिक्रिया आ संवेदनाकेँ महत्व देलनि। एहि सभकेँ ओ ओहिठाम गेल छलहुँ नामे यात्रा वृतान्त प्रस्तुत कयलनि जकरा अन्तर्गत कोरहॉंस गढ़क सॉंझ (मिथिला-मिहिर, 2 अप्रैल 1962), ई आषाढ़क प्रथम दिन (मिथिला मिहिर, 16 जून, 1963) पुण्यभूमि सरिसवपाही (मिथिला मिहिर, 14 मार्च, 1968), कुलदेवी विश्वेश्वरी (मिथिला मिहिर, 11 अगस्त, 1968), त्रिशूलातट प्रवास (मिथिला मिहिर, 12 जनवरी, 1969), एकटा पावन प्रतिष्ठान (मिथिला मिहिर, 10 अक्तूबर, 1971), प्रसंग एकटा स्मारकक (मिथिला मिहिर, 10 अप्रैल, 1975), महिषीक साधना केन्द्र (मिथिला मिहिर, 29 जून, 1975) एवं विसफीसँ वनगाम धरि (मिथिला मिहिर, 25 दिसम्बर 1983) आदि उल्लेखनीय अछि।
ओहिठाम गेल छलहुँमे ओ साहित्यक समग्र जीवनक अभिव्यक्ति रूपमे ग्रहण कयलनि। हिनका लेल प्रकृति सजीव अछि, यात्रामे जे पात्र भेटलथिन ओ हुनक आत्मीय आ स्वजन बनि गेलथिन। हिनक यात्रा साहित्य महाकाव्य आ उपन्यासक विराटत्व, कलाक आकर्षण, गीतिकाव्यक मोहक भावशीलता, संस्मरणक आत्मीयता, निबन्धक मुक्ति सभ किछु आनायासहि एहि मे भेटि जाइत अछि। ओ जे देखलनि, अनुभव कयलनि तकर यथार्थ चित्र एहिमे प्रस्तुत कयलनि।
एकर सर्वोपरि वैशिष्ट थिक-औत्सुक्य जे पाठक एकबेर पढ़ब प्रारम्भ करैछ तँ ओकर समाप्ति जा धरि नहि भ’ जाइछ ता धरि हुनका चैन नहि होइत छनि। हुनका भूगोलक विशद ज्ञान छलनि तेँ कोनो स्थानक भौगोलिक वर्णन करबामे ओ निपुणता देखौलनि जकर यथार्थ परिचय एहिमे उपलब्ध करौलनि। एहि श्रृंखलान्तर्गत जे रचनादि उपलब्ध अछि ओकर चिन्तन-मननसँ स्पष्ट प्रतिभाषित होइत अछि जे वर्णित विषयक फिल्माकंन क’ कए पाठकक समक्ष प्रस्तुत कयलनि जे पाठकक समक्ष वर्णित विषय-वस्तुक समग्र चित्र सोझाँ आबि जाइछ।
हिनक यात्रा-वृतान्त शैलीपर औपन्यासिक शैलीक प्रभाव परिलक्षित होइत अछि जे ओहिमे स्थान विशेषक विस्तृत-चित्रण कयलनि जहिना ओ देखलनि तहिना तकर यथार्थ चित्रण पाठकक समक्ष प्रस्तुत कयलनि। पाठककेँ सहसा बोध होमय लगैत छनि जेना ओहो ओहि यात्रााक सहयात्री होथि। हिनक वर्णन-कौशल चित्रात्मक होइत छलनि। एहन चित्रात्मक वर्णन निश्चये अप्रतिम प्रतिभाक परिचायक थिक जे सामान्य रचनाकार द्वारा सम्भव नहि। ओ जाहि वस्तुक वर्णन कयलनि तकर रनिंग कमेन्ट्री ओहिना प्रस्तुत कयलनि जेना आइ काल्हि क्रिकेट खेलक मैदानसँ रेडियो वा टेलिभीजनपर देल जाइछ।
यात्रा-विवरणमे रोचकता अपरिहार्य गुण मानल जाइछ, तकर सम्यक निर्वाह हिनक ओहिठाम गेल छलहुँमे भेल अछि। ओ अत्यन्त भावुक हृदयक व्यक्ति रहथि तेँ बिनु कोनो राग-द्वेषक ओकर यथार्थ वर्णन कयलनि। अपनाकेँ सत्य आ ज्ञानक भण्डार नहि बुझि क’ तथा पाठककेँ शिक्षित करबाक मनसा हुनकर कदापि
नहि छलनि, जेना ओ पञ्चभूतसँ भिन्न-भिन्न चरितक सहायतासँ, भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण उपस्थित कयलनि जाहि प्रकारेँ ओहिठाम गेल छलहुँमे जेना ओ अपनहि संग तर्क करैत यात्राक समापन कयलनि। एहि श्रृंखलान्तर्गतक रचनामे ओ जे किछु मैथिली पाठककेँ द’ पौलनि. ओ सभ हुनक आत्म परीक्षणक स्वगत कथन थिक।
मैथिलीक प्राचीन पत्रिकादिक अनुशीलनसँ ज्ञात होइछ जे हुनकर प्रबल इच्छा शक्ति छलनि जे ओ अपन व्यक्तिगत एवं साहित्यिक जीवनक आधारपर आत्मकथाक एक विस्तृत पुस्तकक रचना करथि तकर प्रतिमान उपलब्ध होइछ सांस्कृतिक समिति मधेपुर, मधुबनी द्वारा प्रकाशित स्मृति नामक स्मारिका तथा मैथिली प्रकाशमे प्रकाशित बाटे-घाटे (1983) एवं अनजान क्षितिज (1983) मे। बाटे-घाटे पहिने प्रकाशित भेल स्मृतिमे जे पश्चात् जा क’ मैथिली प्रकाशमे पुन: प्रकाशित भेल। एहि दुनू आलेखसँ ई विषय स्पष्ट होइछ। वस्तुत: ओ आत्मकथा लिखलनि वा नहि से अनुसन्धेय अछि।
मणिपद्यकेँ भाषापर जबरदस्त अधिकार छलनि। हुनक भाषाक चमक कहियो फिक्का नहि पड़लनि। अपन विलक्षण भाषाक कारणेँ ओ मैथिलीमे अनुपम उदाहरण रहथि। मैथिलीमे ओ अपन भाषा आ वर्णन-कौशल कारणेँ प्रख्यात रहथि। चाहे ओ प्रकृतिक दृश्य हो वा महानगरक कोलाहल पूर्ण वातावरण हो, ओ ओकर अत्यंत मनोहारी वर्णन अपन भाषाक बलपर कयलनि। हुनक डायरी, हुनकासँ भेट भेल छल, ओहिठाम गेल छलहुँ एवं आत्मकथा सभक भाषा-शैली अलंकृत अछि जाहिमे कतहुँ अस्वाभाविकताक आभास नहि भेटैछ। विम्ब-धार्मियता हुनक भाषाक सर्वाधिक वैशिष्ट्य थिक। एहन भाषामे संगीतात्मकताक लय आ धारा-प्रवाह अछि।
भाषाक धनी मणिपद्य अपन विचार-वल्लरीक प्रत्याख्यानमे शब्दक एहन अनुपम विन्यास कयलनि जे हुनक भाषामे छन्द रूप आ सुस्वादता अछि जे पाठकक संग हुनक व्यवहार, सौजन्य, आसक्ति आ हास्य-व्यंग्यक बोध होइछ आ जगक संग ओकर व्यवहारमे राग ओ दूरदर्शी काल्पनिकताक पुट भेटैछ। ओ तथ्यपूर्ण भाषाक प्रयोग कयलनि। उपर्युक्त रचनादिमे भाषा-काव्यमयी अछि जे स्थल-स्थलपर ओ अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा आ रूपकक झड़ी लगा देलनि जे हिनक एहि साहित्यक अनुपम उपलब्धि थिक।
हिनक भाषा मिथिलाञ्चलक लोक माटिक भाषा थिक। हिनक भाषापर हिनक व्यक्तित्वक एतेक गम्भीर छाप छलनि जे सुगमतापूर्वक चिन्हल जा सकैछ। हिनक भाषामे एहन अद्भूत शक्ति सम्पन्न आ वैभव पूर्ण अछि जाहि कारणेँ हिनक रचना सभकेँ बारम्बार पढ़बाक उत्सुकता पाठकक मनमे सतत जागृत होइत रहैछ चाहे उपन्यास हो, कथा हो, नाटकक हो, एकांकी हो, संस्मरण हो, यात्रा-वृतान्त हो, डायरी हो वा आत्म-कथा हो। एहिमे साधु भाषाक संगहि-संग ठेंठ चलन्त भाषाक स्रोतस्विनी प्रवाहित कयलनि। लोकप्रचलित शब्दावलीकेँ ओ मने-मन स्वीकार क’ लेने रहथि जकर यथार्थ प्रतिरूप हुनक समग्र साहित्यान्तर्गत प्रतिध्वनित होइत अछि। शास्त्रीय-भाषाक संगहि-संग ओ आंचलिक भाषाक अनुच्छिष्ट उपमाक प्रयोग प्रचुर परिमाणमे कयलनि। जनिका मिथिलांचलक ग्राम्य-शब्दाब्लीक उपमानक रसास्वादन करबाक होइन ओ मणिपद्य-साहित्यक अवगाहण करथु जाहिमे हुनका एहन-एहन शब्दावलीक संग साक्षात्कार होयतनि तकर यथार्थ अर्थ-बोधमे अवश्य कठिनता होयतनि। अन्यान्य भारतीय भाषामे हिनक रचनादिक अनुवाद करबा काल कतिपय समस्या उत्पन्न होइछ जे ओकर समानार्थी शब्द सुगमतापूर्वक नहि उपलब्ध होइछ जाहि सन्दर्भमे ओ प्रयोग कयलनि।
विषयगत विविधताक अनुरूप हिनक भाषा-शैली विविध रूप थिक। संस्कृत गार्भित मिश्रित भाषा, काव्यात्मक आ भाव बहुल भाषा, सामान्य लोकक भाषाक संगहि-संग ओ आलंकारिक भाषाक सेहो प्रयोग कयलनि। एहि श्रृंखलान्तर्गत रचनादिमे मिथिलाञ्चलक माटिपानिक अपूर्व सौष्ठव अछि। ई अत्यन्त छोट-छोट वाक्यक प्रयोग कयलनि जाहिसँ भाषासँ चमत्कार आबि गेल अछि। एहि रचना-समूहमे संलाप-शैलीक प्रयोग ओ कयलनि। काव्यक समानहि हिनक गद्यक भाषा-शैली सेहो अत्यन्त सरल, प्रवाह पूर्ण आ माघुर्य युक्त अछि। भाव, भाषा आ संगीतक त्रिवेणीक संगम बना क’ ओ गद्यक निर्माण कयलनि। हुनक शब्द-चयन अत्यन्त शिष्ट, भावानुकूल तथा सरल वाक्य-विन्यास अत्यन्त सुदृढ़ अछि। हुनक गद्य-भाषामे सर्वत्र कविताक सरसता, तल्लीनता, तन्मयता आ तीव्रता अछि। फलत: पाठक कखनो कोनो स्थलपर अरुचिकर नहि अनुभव नहि करैछ, प्रत्युत कलाकारक भावक संग बहैत चल जाइत अछि। ओ भाव-प्रवण रचनाकार रहथि। अतएव जाहि स्थलपर मार्मिक अनुभूति आ विलक्षण काल्पनिकताक समन्वय अछि ओतय भाषाक सौन्दर्य प्रेक्षणीय अछि। अपन भावुक अभिव्यक्तिमे ओ अत्यंत आलंकारिक एवं व्यंजनापूर्ण शैलीक प्रयोग कयलनि। हुनक शैलीमे कल्पनाक प्रौढ़ता, भावुकता, सजीवता आ भाषाक चमत्कार दर्शनीय अछि। हुनक भाषा-शैलीमे स्पनन्दन अछि, दृश्यकेँ मथबाक शक्ति अछि, सुकुमारता आ तरलता अछि जे मैथिलीमे अन्यत्र दुर्लभ अछि।
मणिपद्य गद्यक उदात्त रूप उपलब्ध होइछ हुनक डायरी, हुनकासँ भेट भेल छल, ओहि ठाम गेल छलहुँ आ आत्मकथामे। ओ गद्य रचना कयलनि कविक समान, हुनक गद्यक गुण कविताक गुण थिक। एहि सिरीजक गद्य तकर प्रतिमान प्रस्तुत करैछ जे ओहिमे शब्दालंकारक संगहि अर्थालंकारक अपूर्व चमत्कार भेटैछ। हुनक गद्य-साहित्य वा पद्य-साहित्य हुनक व्यक्तित्वक अखण्डताकेँ प्रमाणित करैछ। जहिना स्मितफान मलार्गेक पोलरीक गद्यक समानहि सांकेतिक होइत छलनि तहिना हिनक गद्य-साहित्य विषयोविशुद्ध आ भार रहित अछि। ओ अपन डायरी, संस्मरण, यात्रा वृतान्त आ आत्मकथामे एकरे आधार बनौलनि आ अपन भावनाक, अपन कल्पनाक, अपन मूल्यबोध आ मत पक्षक विस्तार कयलनि एहि सिरीजक गद्य-रचना एक रम्य रचनाक प्रतिमान प्रस्तुत करैछ।
स्वातंत्र्योत्तर मैथिली गद्य-साहित्यमे हिनक प्रवेश एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थिक जे ओ स्वातन्त्र्योत्तर गद्य-साहित्यक स्रष्टाक रूपमे ख्याति अर्जित कयलनि। गद्यक स्वरूप जाहि रूपेँ विवर्त्तित आ रूपान्तरित भेल जा रहल अछि तथा आधुनिक गद्य कहबासँ जकर बोध होइत अछि तकर साक्ष्य, प्रमाण आ उदाहरणक भण्डार थिक हिनक गद्य-साहित्य। हिनक गद्यमे साधु-भाषा ओ चलन्त-भाषा, धरौआ, गोष्ठी ओ दरबारी रीतिक प्राचीन, आधुनिक आ आधुनातन शैली हुनक अक्षय गद्य-साहित्य एकर साक्ष्य थिक जकरा हम गद्यक अणु-विश्व कही तँ कोनो अत्युक्ति नहि हैत। हिनक गद्यमे सब किछु अछि भारी, हल्लुक, गम्भीर, चपल, तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज, समतल, उबड़-खाबड़, अत्युक्ति, वक्रोक्ति, स्वाभावोक्ति तथा ओहिसँ मिलल-जुलल राग-रागिणी अछि। सात्विक मिताचारक सन्निकट, ऐश्वर्यक आत्मविकिरण हिनक गद्यक सर्वोपरि उपलब्धि थिक। जीवन स्मृति, परिमित, यथोचित ओ स्वतन्त्र थिक हिनक गद्य।
हिनक गद्यक अघ्ययनसँ मैथिली गद्य-धाराकेँ जानल जा सकैछ, जे ऐतिहासिक वा अन्यान्य कारणेँ अन्य कोनो मैथिली गद्यकारक प्रसंगमे नहि कहल जा सकैछ। हिनक गद्यमे पद्य-छन्दक वाणी अनगुञ्जित भ’ रहल अछि। हिनक वाक्य ऋजु अछि, शिक्षित सैन्य-दलक समान ओ कालवद्ध चरण मिला क’ चलैछ, आेकर श्रृंखला आ धारावाहिकता युक्ति निर्भर अछि जे एक अभिप्रायक क्षमतासँ सम्वद्ध अछि। हिनक गद्यक कल्प वा यूनिट वाक्य नहि अनुच्छेद थिक। यद्यपि हिनक गद्य महाकविक गद्य थिक तथापि ओ पद्य-गन्धी नहि। हिनक गद्य साहित्य अप्रतिम प्रतिभाक हस्ताक्षर थिक जे वेगवान आ दीप्तिपूर्ण अछि।
जे क्यो पाठक हुनक समग्र गद्य-साहित्यकेँ घ्यानसँ पढ़ने होयताह हुनक निश्चित धारणा होयतनि जे गद्य-शिल्पमे ओ मैथिलीक सर्वश्रेष्ठ-पुरुष रहथि तथा हुनक समकालीन गद्य-साहित्य अत्युच्च अछि। विशेषत: हुनक संस्मरणक गद्य तीव्र आ गम्भीर अछि। गद्य-शिल्पक एहन ऐश्वर्य, एहन वैभव अन्य कोनो गद्यकारक रचनामे प्रकट भेल अछि, ताहिमे सन्देह अछि।
हुनकासँ भेट भेल छल, डायरी, ओहिठाम गेल छलहुँ एवं आत्मकथाकेँ प्रकाशन तिथिक अनुरूपहि एकहि संग विश्लेषण कयल अछि। चारू सिरीजक रचना समूहकेँ समवेत रूपसँ हुनकासँ भेट भेल छल नाम देल अछि तकर दुइ कारण अछि। प्रथमत: हुनकासँ भेट भेल छलक संख्या अधिक अछि आ द्वितीय जे साहित्यिक दृष्टिएँ सभ तँ संस्मरणेक श्रेणीमे अबैत अछि।
रामप्रवेश मंडल गाम- रतनसारा पोस्ट- रतनसारा वाया- निर्मली जिला- मधुवनी
लघुकथा
पछतावा-
महाजन गैर-खड़ रहए। ककरोसँ गप करैत काल पहिने गारि पढ़ि दैत छल। जंगला आ मंगला दुनू गोटे एक्के गाम बैरमाक वासी छलए। अन्नक खरीद विक्री करैत छल। दुनू िमलि विचार कएलक जे महाजनसँ एहि गारिक बदला केना सठाएल जाए? बड़ी काल धरि एहि विषएपर िवचार करैत रहल। निर्णए भऽ गेल।
अगिला दिन दुनू गोटे महाजन लग पहुँचल। महाजन गारि पढ़नाइ शुरू करैत तहिसँ पहिने जंगल आ मंगल आपसमे थप्पर-मुक्का चलबैत गारि पढ़ैत महाजनक देहपर खसि पड़ल। हाॅ-हॉ करैत महाजन उठल। दुनूक बीच-बचाव करए लगल। बात तँ विचारे छल। जंगल मारै मंगलकेँ आ मंगल मारै जंगलकेँ। सभटा चोट खसए महाजनपर। तरगूमका घूस्सासँ महाजन चितंगे खसल आ बेहोश भऽ गेल।
महाजनक चाकर सभ ओकरा अस्पताल लऽ गेल दवाइ-विड़ो चलए लगल। िकछु खानक बाद जंगल मंगल पहुँचल। महाजनकेँ लगसँ देखलाक वाद अस्पतालक ओसारपर आिब फुसराहैट करैत आ हँसैत-हँसैत बाजल- “सारकेँ गारि पढ़वाक आदति आइसँ छूटि जाएत।”
तावत महाजनकेँ वेहोशी दूर भऽ गेल छल ओ जंगल आ मंगलकेँ सभटा गप्प सुनि लैलक। िकछु पलक वाद दुनू- जंगल आ मंगल महाजनकेँ लग आवि पूछलक- “कहू महाजन आव नीके छी ने?”
महाजन बाजल- “आव हम गारि ककरो नहि पढ़वैक मुदा, तहूँ सभ एहि करमकेँ नहि दोहरविहक।”
तीनूक चेहरापर हँसी आवि गेल।
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