भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Sunday, July 04, 2010

'विदेह' ५९ म अंक ०१ जून २०१० (वर्ष ३ मास ३० अंक ५९)-PART I


'विदेह' ५९ म अंक ०१ जून २०१० (वर्ष ३ मास ३० अंक ५९)NEPAL       INDIA                     
                                                     
 वि  दे   विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in  विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine  विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-

१. संपादकीय संदेश


२. गद्य



 

३. पद्य






 

 

७. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]




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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।

example

गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'


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 १. संपादकीय

जेना काफिया वर्ण आ मात्राक संग शब्दकेँ सेहो प्रयुक्त करैत अछि तेहिना रदीफ एकर विपरीत शब्द आ शब्दक समूहक बदला वर्ण आ मात्राकेँ सेहो प्रयुक्त करत।

प्रारम्भ आ अन्तक शेर गजलक शेष शेरसँ बहरमे विभिन्नता लेने रहि सकैत अछि, वा पैघ गजलमे बीचोमे एकाध ठाम विविधता अनबा लेल एहन प्रयोग कऽ सकै छी।
आब कनेक आर कठिनाह विषयपर आबी। पहिल खेपमे देल मात्रिक छन्द गणनापर आबी।
छन्दः शास्त्रमे प्रयुक्त गुरुलघुछंदक परिचय प्राप्त करू।
तेरह टा स्वर वर्णमे अ,,,,लृ ई पाँच ह्र्स्व आर आ,,,,ए.ऐ,,, ई आठ दीर्घ स्वर अछि।
ई स्वर वर्ण जखन व्यंजन वर्णक संग जुड़ि जाइत अछि तँ ओकरासँ गुणिताक्षरबनैत अछि।
क्+अ= क,
क्+आ=का ।
एक स्वर मात्रा आकि एक गुणिताक्षरकेँ एक अक्षरकहल जाइत अछि। कोनो व्यंजन मात्रकेँ अक्षर नहि मानल जाइत अछि- जेना अवाक्शब्दमे दू टा अक्षर अछि, , वा ।

१. सभटा ह्रस्व स्वर आ ह्रस्व युक्त गुणिताक्षर लघुमानल जाइत अछि। एकरा ऊपर U लिखि एकर संकेत देल जाइत अछि।
२. सभटा दीर्घ स्वर आर दीर्घ स्वर युक्त गुणिताक्षर गुरुमानल जाइत अछि, आ एकर संकेत अछि, ऊपरमे एकटा छोट -।
३. अनुस्वार किंवा विसर्गयुक्त सभ अक्षर गुरू मानल जाइत अछि।
४. कोनो अक्षरक बाद संयुक्ताक्षर किंवा व्यंजन मात्र रहलासँ ओहि अक्षरकेँ गुरु मानल जाइत अछि। जेना- अच्, सत्य। एहिमे अ आ स दुनू गुरु अछि।
आब किछु शब्दावली देखी। 
(क्रमशः)


गजेन्द्र ठाकुर

ggajendra@videha.com

 




 
जीबन-मरन
उपन्यास


जगदीश प्रसाद मण्डल
 (c) mithilesh kumar mandal
 छह बजे भिनसुरका ड्यूटी रहने डॉक्टर देवनन्दन पाँचे बजे ओछाइन छोड़ि नित्यकर्मसँ निवृत भऽ कपड़ा पहीरितै रहथि‍ आकि चाह नेने पत्नी आबि टेवुलपर रखि चोट्टे घुरि पिता-ससुरकेँ चाह देमए गेलीह। पिता लग चाह रखि बजलीह- बावू, बाबू......।
  पिताक उत्तर नहि देखि नाकक साँसपर हाथ दऽ अन्दाजए लगलीह। साँस चलैत नहि देखि, मनमे उठलनि। पिता तँ अपनो मुइलाह मुदा, तीनि मास बीमारीसँ ग्रसित भऽ मरल रहथि। मुदा हिनका तँ किछु नहि भेलनि तखन किअए साँस नहि चलैत छन्हि। असमंजसमे पड़ि गेलीह। मनमे फुरलनि अपने नहि ने किछु जनैत छी मुदा, ओ -पति- तँ डॉक्टर छथि। दिन-राति तँ यएह रमा-कठोलामे लागल रहैत छथि, पुछि लिअनि। फेरि मनमे एलनि जे अखन शुभ-शुभकेँ ड्यूटी जाए रहल छथि कोना अशुभ बात कहबनि। फेरि मनमे एलनि जे ड्यूटी तँ क्षणिक छी मुदा, मृत्यु तँ स्थायी छी, तेँ एहि आगू ओकर तुलना करब बचपना हएत। पिता लगसँ झटकि कऽ पतिक कोठरी जाए धमकलीह। चाह पीवि डॉ. देवनन्दन कोठरीसँ निकलैक तैयारी करैत रहथि। धड़फड़ाएल पत्नीकेँ देखि पुछलखिन- किछु मन पड़ल की?”
  नहि किछु मन नहि पड़ल। शीला बजलीह।
  तखन?”
  बावू भरिसक मरि गेलाह। कतबो बाँहि पकड़ि झुलौलियनि मुदा, आँखि नहि तकलनि।
  पिताक मृत्युक बात सुनि देवनन्दन घवड़ेला नहि। पुछलखिन- माए केतऽ छथि?”
  ओहो अपना कोठरीमे सुतले छथि। जहिना सभ दिन पहिने बाबूकेँ चाह दैत छलिएनि तहिना दइले गेलिएनि कि देखलिएनि।
 चलूकहि देवनन्दन आगू बढ़लथि। सासुकेँ उठबैले शीला दोसर कोठरी दिशि बढ़लीह। कोठरीमे पहुँचतै बजलीह- माए!
 माएसुनि सुभद्रा फुड़फुड़ा कऽ उठलीह। तहि बीच शीला चाह अानए गेलीह। राखल लोटाक पानिसँ सुभद्रा कुड़ुड़ करए लगलीह। कुड़ुड़ कए चाह पीलनि। देवनन्दन पत्नीकेँ सोर पाड़लनि। शीलाकेँ पहुँचतै कहलखिन- बावू मरि गेलाह।
  अपना कोठरीसँ सुभद्रो सुनलनि। मृत्यु सुनि दौड़िले पति लग पहुचलीह। मृत्यु पतिकेँ देखि घबड़ेली नहि। मन पड़लनि अपन जिनगी। जहिया दुनू गोटे एक बंधनमे बन्हि दुनियाँक लीला लेल संगी बनलहुँ। तेकरा साठि बर्ख भऽ गेल। ओहि बंधनसँ पूर्व ने हम किछु कहने रहिएनि आ ने ओ किछु कहने रहथि। कहियो भेंटे नहि भेल छल। तहिना बिना किछु कहनहि संग छोड़ि चलि गेलाह। मुदा तेँ कि साठि बर्खक, संग मिलि कएल काजो चलि जाएत। जहिना अबै दिन परिवार भरल-पुरल छल -सासु, ससुर छलाह तहिना तँ आइयो बेटा-पुतोहू अछिये। तहन सोग कथीक! मुस्की दैत बेटा दिशि तकलनि। तहि बीच फुदकैत आशा आबि माएकेँ पुछलक- माए, बाबा मरि गेलखिन?”
  आशाक बात सुनि सुभद्रा बजलीह- बाबा गाम गेलखुन।
  पिताक मृत्यु देखि देवनन्दन सोचए लगलाह। पिताक अपन समाज छलनि। जहि बीच रहि जिनगी बितौलनि। मुदा हमर समाज तँ अलग भऽ गेल अछि। तेँ उचित हएत जे एहिठामक समाज छोड़ि हुनका अपना समाजमे पहुँचा दिअनि। मृत्युक कोनो कर्म एहिठाम नहि कऽ हुनके समाजक अनुकूल करब बढ़ियाँ हाएत। शीलाकेँ कहलखिन- अहाँ तीनू गोटे एहिठाम रहू। गामेमे अगिला सभ काज हेतनि। हम जोगार करए जाइ छी।
  कोठरीसँ निकलि अगिला ओसारपर अबितै ड्राइवरकेँ ठाढ़ देखि कहलखिन- अस्पताल नहि जाएब। पेट्रोल पम्पपरसँ तेल भरौने आबह। गाम चलैक अछि।
  बिना किछु बजनहि ड्राइवर गाड़ी लऽ निकलि गेल। कोठरीमे आबि दुनू बेटाकेँ जनतब देवए लेल मोवाइलमे नम्वर लगौलनि। दयानन्द जेठ धर्मानन्द छोट बेटा। दयानन्द फोर्थ इयरक विद्यार्थी आ धर्मानन्द फस्ट इयरक। दुनू एक्के मेडिकल कॉलेजक छात्र। दयानन्दकेँ कहलखिन- बच्चा, बावू मरि गेलाह, तेँ दुनू भाँइ गाम आउ?”
  बाबाक मृत्युक समाचार सुनि दयानन्द कहलखिन- एहि लेल गाम किअए जाएब। आव तँ तेहेन बिजलीबला शवदाह बनि गेल अछि जे आसानीसँ काज सम्पन्न भऽ जाइत अछि।
  दयानन्दक विचार सुनि देवनन्दन कहलखिन- बच्चा, सभ जीव-जंतुकेँ अपन-अपन जिनगी होइत अछि। जे जाहि जिनगीमे जीवैत अछि ओकरा लेल वएह जिनगी आनन्ददायक होइत अछि। जना देखैत छहक जे चीनीमे सेहो कीड़ा -पीलू- फड़ैत अछि, मिरचाइमे सेहो फड़ैत अछि, करैलामे सेहो फड़ैत अछि। तीनूक सुआद तीनि तरहक होइत अछि। एक मीठ, दोसर कड़ू आ तेसर तीत। चीनीक कीड़ाकेँ जँ मिरचाइ वा करैलामे देल जाए तँ स्वाभाविक अछि जे ओ मरत। मुदा कि मिरचाइक कीड़ा वा करैलाक कीड़ा चीनीमे जीवि सकत। कथमपि नहि। ओ किअए मरत? ओ तँ अधलासँ नीकमे गेल। तहिना बावू सेहो सभ दिन गाममे रहि जीवन-यापन केलनि। ई तँ संयोग नीक रहल जे तोहर माए सप्पत-किरिया दऽ बूढ़ी -माए- केँ हँ कहौलनि। जहिसँ दुनू गोटे मास दिन पहिने ऐलाह। सेहो ऐलाक तीनिये दिनक उत्तर गाम जाइले कच्छर काटए लगलाह। कते सप्पत दऽ-दऽ माए मास दिन घेरलखुन नहि तँ तेसरे दिन चलि जइतथि।
  पिताक बात सुनि दयानन्द पुछलखिन- ई तँ बड़ आश्‍चर्यक बात कहै छी, बाबू?”
  दयानन्दक जिज्ञासा देखि देवनन्दन कहलखिन- कोनो आश्चर्य नहि। गामक दोसर नाम समाजो छिअए। जे शहर-बजारमे नहि अछि। समाजमे बंधन अछि जहि अनुकूल लोक चलैत अछि जकरा सामाजिक बंधन कहल जाइत छैक। एहि बंधनक भीतर धर्मक काज छिपल अछि जकरा सभ मिलि निमाहैत अछि। मुदा शहरमे से नहि छैक। कानून-कायदाक हिसावसँ चलैत अछि जहिमे दया-प्रेम नहि अछि। प्रतिदिन बूढ़ाकेँ दस गोटेक जिनगीक बात सुनब आ दस मिनट बजैक जे अभ्यास लगि गेल छन्हि से एहिठाम कोना हेतनि। सभ अपने पाछू बेहाल रहैत अछि। के केकर सुख-दुख, जीबन-मरन सुनत। भरि पेट नीक अन्ने-तीमन खुऔने लोकक मन असथिर थोड़े रहि सकैए। जाधरि आत्माक सन्तुष्ठि नहि हेतैक।
  पिताक बात सुनि दयानन्द हूँहकारी दैत कहलखिन- कहुना-कहुना तँ तीनि दिन पहुँचैमे लागत, ताधरि की कहब?”
 अखनो गाममे ऐहन चलनि अछि जे शरीरसँ परान निकलितहि जरवैक ओरियान हुअए लगैत अछि। अर्थी रखैक चलनि नहि अछि। तोरा सभकेँ अबैसँ पहिने दाह-संस्कार कऽ लेब। काजो तँ लगले सम्पन्न नहिएे होइत अछि। कहुना-कहुना तँ पनरह दिन लगिए जेतह।
  बड़बढ़िया। सौझुका गाड़ी पकड़ि दुनू भाँइ गाम आबि जाएब।
  मोबाइल ऑफ कऽ मने-मन देवनन्दन हिसाब मिलबए लगलाह। कमसँ कम पनरह दिनक काज अछि। उसारैयोमे किछु समए लगबै करत। मोटा-मोटी बीस दिन लगि जाएत। बीस दिनक आकस्मिक छुट्टीक दरखास्त लिखए लगलथि। दरखास्त लिखि टेवुलपर रखि पिताक कोठरी पहुँच पत्नीकेँ कहलखिन- गाममे बीस दिन लागत। तहि हिसाबसँ सभ सामान ओरिया लिअ। काजक समए अछि तेँ नीक-जेकाँ तैयार भऽ चलैक अछि।
  कहि माए लग बैसि गेलाह। शीला उठि कऽ चीज-वस्त्र ओरिआवए चलि गेलीह। सुभद्राक चेहरामे सोग नहि सुख -सिनेह- उमड़ैत। विचारक समुद्रमे डुबल। मने-मन खुश होइत जे हुनका अछैत जँ हम पहिने मरितहुँ तँ मनमे लागल रहैत जे शेष दिन हुनकर केहेन बीतितनि। मुदा से भगवान सुनलनि। जहिना हाथ पकड़लनि तहिना पार-घाट लगा देलिएनि। हमरा आब की अछि तेहेन भरल-पुरल फुलवाड़ी लगा देने छथि जे कतौ हेराएल रहब। उमेरोक हिसाबसँ नीके भेल। चारि बर्खक जेठो छलाह। माएकेँ विचारमे डूबल देखि देवनन्दन पुछलकनि- माए.......।
  मुस्की दैत सुभद्रा बजलीह- बौआ, एक्को मिसिया दुख नहि भऽ रहल अछि। ई तँ सृष्टिक नियमे छिअए। तहि लेल दुख कथीक।
  ओम्हर शीला कपड़ो-लत्ता सरियवैत आ मने-मन मुस्कुरेवो करैत रहति। मनमे फुड़लनि अनका जे हौ हमरा तँ सात गंगा नहेला फल भेटल। जना अनका देखै छियै, अनका कि अपन पितिऔते भाएकेँ देखिलिएनि जे मरै बेरिमे कक्का कोना घिनबिथिन्ह। से तँ नहि भेल। जिनगीमे कियो ऐहेन ओंगरी तँ नहि देखाएत?”
  तहि बीच ड्राइवर वाहरमे हार्न बजौलक। अवाज सुनितहि देवनन्दन माएकेँ कहलनि- माए, लगले हम अबै छी।
  कहि कोठरीसँ दरखास्त लऽ ड्राइवरकेँ ऑफिस दऽ अबैले कहलखिन। पुनः घुरि कऽ पिताक गोरथारीमे वैसि‍ तैयारीक  प्रतिक्षा करए लगलथि। आँखि माएपर पड़लनि। एक्को पाइ मायक  मुँह मलिन नहि, सोचए लगलथि। जहिना आंगनसँ घरक ओसारपर जेबा लेल बीचमे सीढ़ी बनल रहैत अछि तहिना तँ परिवारोमे अछि। मन पड़लनि बावाक सुनाओल माए-बापक विवाहक कथा। कोना नव परिवार बनि दुनू गोटे बाबा-दादीकेँ जिनगी पाड़ लगौलकनि। ओहने समए तँ आइ हमरो संगे आबि गेल। माएकेँ किअए मनमे कोनो तरहक अभाव अओतैक। एते दिन पिताक आशापर जीलनि आब हमरा दुनू परानीपर आबि गेलीह। जहिना पत्नीक सहयोग पतिकेँ आ पतिक आशा पत्नीकेँ बनल रहैत अछि तहिना तँ पतिक परोछ भेने बेटाक भऽ जाइत अछि। फेरि मन पड़लनि गामक स्कूलमे अपन नाओ लिखाएब। नीक मनुष्य बनैक लेल पिता चारि वर्खक अवस्थामे कन्हापर उठा भगवान रामक खिस्सा सुनवैत नाओ लिखा देलनि। ज्ञानक प्रति एत्ते प्रेम कोना कम पढ़ल-लिखल आदमीमे आएल? कोना सभ माए-बापक हृदयमे सरस्वती वैसल रहैत छथिन? भलेहीं सामाजिक कुव्यवस्था आ सत्ताक लापरवाहीसँ नहि भऽ पवैत अछि। जिनगीक मजबूरी अन्हारक काल कोठरीमे धकेल दैत अछि। मुदा हमरा से नहि भेल। गामक स्कूलमे लोअर -तीसरा- धरि पढ़लहुँ। लोअर पास करितहि मिड्ल स्कूलमे नाओ लिखवैक लेल रुपैआ देलनि। चारि वर्खक उपरान्त मिड्ल स्कूलसँ निकललहुँ। फेरि हाइ स्‍कूलक खर्च देलनि चारि वर्खक उपरान्त हाइ स्कूलसँ निकललहुँ। संयोगो नीक रहल आर.के. कॉलेज मधुबनीमे साइंसक पढ़ाइ शुरु भेल। जहिना उत्साह कओलेजमे नाओ लिखौने अपना रहए तहिना नव-नव शिक्षक बनने प्रोफेसरो सभकेँ रहनि। ओना ता धरि शिक्षो विभागमे चोर-दरवाजा खुजि गेलैक। मुदा अखुनका जेकाँ बड़की गाड़ी पास होइ जोकर नहि छोट-छीन एकपेरिया। बहुत नीक विद्यार्थी तँ हमहूँ नहिये छलहुँ मुदा, बहुत भुसकौलो नहि छलहुँ। जँ भुसकौल रहितहुँ तँ पास कोना करितहुँ। कहियो फेल नहि भेलहुँ। डॉक्टर बनैक विचार तँ मनमे आएलो नहि छल। विचार छल बी.एस.सी. केलाक उपरान्त हाइ-स्कूलक शिक्षक बनैक। चिकित्सा जगतमे विरड़ो उठल। दरभंगामे अस्पताल खुजल आ डॉक्टरीक पढाइयो शुरु भेल। आइ.एस.सी. पास केलहा संगी सभ मेडिकल कओलेजमे नाओ लिखवैक विचार हमरो देलक। पिताकेँ कहलिएनि। पढ़वैक इच्छा पहिनहिसँ रहनि। नाओ लिखवैक विचार दऽ देलनि। अगुआइल परिवार -अधिक खेतबला। कारखाना तँ अपना इलाकामे अछि नहि गोटि पंगरा स्थानीय व्यापारी आ बेसी माड़वारीक व्यापार चलैत- पढ़ि-लिखि नोकरी करैक पक्षमे नहि रहथि। गरीब परिवारक बच्चा, अभावमे पढ़ि नहि पबैत रहए। जे लाभ हमरो भेटल। मुदा आब बुझै छी जे डॉक्टर बनि गाम छोड़ब, परिवार-समाजकेँ छोड़ब भेल। जखन हम डॉक्टर बनलहुँ, रोगक इलाज करब काज भेल, तखन कि गाममे रोग आ रोगी नहि अछि। जहिना आकाश आओर पृथ्वीक बीचक सीमा होइत, जहिठाम पहुँच चिड़ै-चुनमुनी लसैक जाइत, तहिना देवनन्दनक वुद्धि लसकि गेलनि। ने आगूक बाट देखति आ ने पाछु हटल होनि। मन घोर-घोर होइत रहनि। माए दिशि, मुड़ी उठा तकलनि। मायक पँजरामे बैसल आशाकेँ अपन धुनिमे मग्न देखलनि। आशापरसँ नजरि ससरि दुनू बेटापर पड़लनि। डॉक्टरी पढ़ैत बेटापर नजरि पड़ितै अगिला पीढ़ी दिशि नजरि दौड़लनि। जहिना हम माए-बावूक सेवाक फल डॉक्टर छी तहिना तँ ओहो दुनू भाँइ हमर हएत। मुदा जे सुख-सुविधा पाबि हम दुनू गोटेसँ अलग भऽ जीवन-यापन कए रहल छी तहिना तँ ओहो दुनू भाँइ हमरासँ अलग भऽ जीवन-यापन करत। मुदा शरीरक गति जे गति -बालपन, युवापन आ वद्धापन- अछि ओ तँ सभक लेल अछि। बालपन आ वृद्धापनमे एक-दोसरक जरुरत सभकेँ होइत अछि। जेकरा अपन बुझि सभ सेवा करैत अछि ओ हजारो कोस दूर रहैत अछि। तखन सेवा कोना होएतैक? अगर जँ दुनियाँ भरिकेँ अपन बुझि सेवा करी तँ एतेक खून-खच्चर, छीना-झपटी, चोरी-छिनरपन, लूट-खसोट किऐक होइत अछि? विचित्र स्थितिमे देवनन्दन ओझरा गेलाह। मनमे एलनि हम डॉक्टर छी। हमरा सन-सन कतेको डॉक्टर अस्पतालसँ शहर धरि छथि मुदा, सेवा रहितहुँ जाति आ दलालक कोन जरुरत छैक। देखै छी जे जि‍नका जातिक आ दलालक आधार छन्हि ओ दिन-राति रुपैया ठिकियबैत रहैत छथि आ जनिका क्षेत्रीय वा जातिक आधार नहि छन्हि, सभ गुण रहितहुँ माछी मारैत छथि। फेरि मनमे उठलनि जे जहिया हम डॉक्टर बनलहुँ तहिया मात्र थर्मामीटर आ आला रहए। तहिना अस्पतालोमे रहै। मुदा आइ अनेको यंत्र, औजार अस्पतालोमे भऽ गेल आ अपनो कीनिलहुँ। जहिसँ चिकित्सा असान भेल जाइत अछि। मुदा ककरा लेल? कि अखन दवाइ आ चिकित्साक अभावमे लोक नहि मरैत अछि? सभकेँ चिकित्साक सुविधा भेटि गेल छैक? कि रोग लोककेँ पूछि-पूछि होइत छैक? जँ से नहि तँ हमरा स्वयं अपन सीमा-सरहद बुझक चाही। जँ से नहि बुझब तँ जहिना झाँट-बिहाड़िमे कीड़ी-मकोरीसँ लऽ कऽ चिड़ै-चुनमुनी जेकाँ नष्ट होइत चल जाएब। जँ सएह हएब तँ अनेरे एते वुद्धिकेँ किऐक रगड़ै छियैक। वेचारी ओहिना खसल खेत जेकाँ परती रहितथि। जहिपर धिया-पूता परो-पैखाना करैत आ खेलवो-धुपबो करैत।
        तहिबीच, एक झुण्ड स्टाफसँ छात्र धड़ि पहुँच कहलकनि- डॉक्टर सहाएब, लहासकेँ की करए चाहै छियैक?”
  आँखि उठा देवनन्दन सबहक चेहरा देखि मुस्कुराइत कहलखिन- गामेमे जरैबनि। एहिठाम सभ सुविधा रहितौ हिनक विचारक प्रतिकूल रहत। तेँ बीचमे हम अपन सिर दोख नहि लेब। सौँसे जिनगी गाम आ समाजक बीच बितौलनि, तेँ हमर फर्ज होइत अछि जे हिनका लऽ जाए समाजकेँ सुमझा दिअनि। हिनका निमि‍ते जे काज हएत ओ समाजक विचारानुसार हएत। जँ से नहि हएत तँ समाजक नजरिमे काँट बनि जाएब। जे नहि चाहै छी।
  देवनन्दनक विचार सुनि सभ गुम्म भऽ गेलाह। तहि बीच सीनियर डॉक्टर सबहक झुण्ड पहुँचलनि। मुदा किनको मनमे सोग नहि। सबहक मन प्रफुल्लित। परिवारमे ने कहियो काल जन्म आ मृत्यु होइत मुदा, अस्पतालमे तँ से नहि होइत। सभ दिन जन्म-मरण होइते रहैत अछि। मुस्की दैत डॉ. कृष्णकान्त देवनन्दनकेँ कहलखिन- आगूक काज किअए रोकने छी? पहिने शवदाहगृहमे फोन कऽ कए बुक करबऽ पड़त। जखुनका समए भेटत तहि हिसाबसँ ने जाएब।
  डॉक्टर कृष्णकान्तक विचार सुनि देवनन्दन गुम्मे रहलाह। मनमे नचए लगलनि जे स्टाफ आ जुनियर जे कहलनि हुनकर जवाब तँ दऽ देलिएनि। मुदा हिनका कि कहबनि। जँ विचार कटबनि तँ मनमे दुख हेतनि। हमरासँ वेसी दिन दुनियाँ देखने छथि। अपन विचारकेँ मनेमे राखि कहलखिन- हम तँ बेटा छिअनि मुदा, माए तँ जिनगीक संगी रहलखिन, तेँ हुनकर विचार बुझव जरुरी अछि।
  सभ क्‍यो मायक विचार सुनैक लेल कान ठाढ़ केलनि। माए -सुभद्रा- बजलीह- भलेहीं इहो घर-द्वार अपने छी मुदा, बनाओल छिअनि देवक। हुनकर -पतिक- बनौल गाममे छन्हि। अपन गाछी-कलम छन्हि, जे पुस्तैनी छिअनि। मुइलहा माने सुखलाहा गाछ सबहक जगहपर नवका गाछो लगौने छथि। पतिआनी लगा कऽ पैछला पुरखा सभ सजल छथि। तेँ हम ओहि पतिआनीकेँ छोड़ि अनतए कतौ दऽ अवियनि, ई नीक नहि बुझि पड़ैत अछि। सिर्फ लहासे जरबैक प्रश्न तँ नहि अछि अंतिम क्रिया धरि निमाहैक अछि। मासे-मास, साल भरि छाया हेतनि। साले-साल, बरसी हेतनि ताहिपरसँ पितृपक्ष सेहो हेतनि।
  सुभद्राक विचार सुनि सभ मुँह बन्न कऽ लेलनि। तहि बीच ड्राइवर आबि कहलकनि- गाड़ी तैयार अछि।
  ड्राइवरक बात सुनि देवनन्दन कपड़ा बदलैले गेलाह। कपड़ा बदलि कऽ आबि गाड़ीमे लहासकेँ चढ़वैक विचार केलनि। सभ कियो रहबे करथि‍ हाथे-पाथे लहासकेँ उठा गाड़ीमे चढ़ौलनि। लहासकेँ गाड़ीमे चढ़ा सभ क्यो चलि गेलाह।
  गाड़ीमे बैसितहि देवनन्दन मनमे एलनि उमेरक हिसाबसँ मृत्यु उचिते भेलनि। अस्सी बर्ख धरि लोक बूढ़ होइत अछि आ ओहिसँ उपर भेलापर झुनकुट बूढ़ भऽ जाइत अछि। जहिना पाकल धान वा कोनो अन्न कटलापर अधिक छिजानैत नहि होइत मुदा, वएह जखन झुना जाइत तँ हवो-विहारिमे वा ओहुना टूर सभ खसए लगैत अछि। तहिना तँ मनुष्योक शरीर होइत। अधिक बएस भेलापर माने झुनकुट वूढ़ भेलापर शरीरक अंग सभ क्रियाहीन हुअए लगैत अछि। जहिसँ रंग-विरंगक बाधा सभ उपस्तिति हुअए लगैत अछि। बाधा उपस्थिति होइतै कतेक रंगक रोग-व्याधि आबि जाइत अछि। तहिसँ नीक भेलनि जे अखन धरि अपन सभ क्रिया-कलाप करैत रहलाह। सिर्फ प्राण-वायु शरीरसँ निकलनि। सुभद्राक मनमे खुशी एहि दुआरे होइन जे अधपक्कू भऽ नहि पूर्ण पकि कऽ दुनियाँ छोड़लनि। शीला आओर आशाक लेल धैनसन। बेसीसँ बेसी हम सभ हुकुम निमाहैवाली छी। परिवारक हानि-लाभसँ हमरा की। अखन धरि परिवारमे चारिम सीढ़ीपर छलहुँ आब तेसरपर एलहुँ। तहिना आशाक मनमे रहए जे हमर तँ कोनो हिसावे एहि परिवारमे ने अछि ने रहत। जहिना घर आ आंगनक बीच सीढ़ी बनल रहैत अछि जहिसँ लोक घरसँ बहार होइत आ बहारसँ घर जाइत तहि‍ना।
  माएक चेहरापर देवनन्दन नजरि देलखिन तँ बुझि पड़लनि जे पैछला कोनो बात मन पड़ि गेल छन्हि जहिसँ चिन्तित जेकाँ भऽ गेल छथि। चिन्ता मनसँ निकलितन्हि कोना? युक्ति सुझलनि जे आन कियो जँ किछु बाजत तहिसँ ओकर चिन्ता नहि मेटेतैक। भऽ सकैत अछि जे ओहि बातपर धियाने नहि दिअए। तहिसँ नीक जे किछु पूछि दिअए? जहिसँ आन बात मन पाड़ैमे पैछला बात दबि जाइ। नीक युक्ति फुड़ने मुस्की दैत कहलखिन- माए, जखन हम छीहे तखन तोरा चिन्ता किअए होइ छओ?”
  चिन्ता सुनि सुभद्रा कहए लगलखिन- बौआ, पुरना बात मन पड़ि गेल छलए तेँ कनी चिन्ता आबि गेल।
  लाड़ैन चलबैत शीला पुछलखिन- बुढ़ोमे पुरना बात मने छन्हि?”
  कनियाँ, अहूँ एक उमेरपर आब एलौं तेँ कहै छी। हमरा दादी कहने रहथि जे जहिना माटिक कोठी बना लोक अन्न रखैए, जे बहुत दिन तक सुरक्षित रहैत तहिना मनुष्यकेँ अपन जिनगीक कर्मक लेल कोठी बना राखक चाही। सभसँ पहिने गणेश जी बनौलनि। जहिना अन्नक खढ़-भूस्सा, सूपसँ फटकि, हटा दैत छिअए तहिना जिनगीक कर्मक जे भूस्सा-भूस्सी अछि ओकरा हटा कर्मकेँ मोन राखक चाही। सुभद्रा बजितहि‍ छलीह कि बिचहिमे आशा जोरसँ पुछलकनि- कोन पुरना गप छियै?”
  आशाक मुँह देखि सुभद्रोक मुँहमे पुरना अंकुर फुटल। मुस्की दैत कहए लगलखिन- बुच्ची, बहु दिनका कथा छी अपने गाममे दू समुदायक छौँड़ा-छौँड़ीकेँ प्रेम भऽ गेलै। बच्चेसँ दुनू झंझारपुर हाट माए-बापक संग जाइत-अबैत रहए। गाममे दुनूक सभ काज-उद्यम फुट-फुट रहए। ने खेनाइ-पीनाइ एक ठीन होय आ ने पावनि-तिहार। मुदा खेती दुनू गोटेक एक्के रहए। दुनू गोटे तरकारीक खेती करए आ हाटमे जा-जा बेचै। गामेसँ दुनू गोटे संगे जाए आ हाटोपर एक्के ठाम बैसि तरकारी बेचै। जखन दुनूक बच्चा कनी चेष्टगर भेलै तँ कोनो-कोनो समान कीनि-कीनि आनए लगलै। दुनू संगे जाइ। एकटाकेँ ने हराइक डर रहैत मुदा, संगीक संग तँ बच्चा कम हेराएत अछि। बच्चेसँ दुनू गोटेकेँ बैचारिक मिलान हुअए लगलै। अपना सन-सन लोककेँ हँसी-चौल देखै-सुनै। देखा-देखी दुनू गोटेक बीच सेहो हँसी-चौल हुअए लगलैक। हाटमे तरकारी बेचैक लूरि आ खेतमे गोला-फोड़ैक, पटबैक, रोपैक, कमठौन करैक लूरि सेहो भऽ गेलैक। दुनूक नव दुनियाँ बनए लगलैक किऐक तँ बाप-माएसँ पाँच-दस किलोक मोटा फाजिल उठबए लगल। जहिसँ परिवारक काजो आ आमदनियो दोबरा गेलइ। बीचमे एकटा घटना घटलै।
 की घटना?” फुदकि कऽ आशा पुछलकनि।
 बुच्ची, झुठ की सत्य, भगवान जनथिन। मुदा गाममे चर्चा चलए लगलै। तना-तनी बढ़ए लगल। जहाँ-तहाँ गारि-गरौबलि आ पकड़ा-पकड़ी शुरु भऽ गेल। मुदा गामक जते मुँह पुरुख रहए, सभकेँ अपने-अपने अपेछितसँ कहा-कही हुअए लगलनि। कखनो काल माथा ठंढ़ा होइत नहि तँ बेसी काल गरमाएले रहए लगलनि। मुदा पनचैती के करत से पंचे नहि एक्कोटा गाममे। सभ मुँह-पुरुख अपनहिमे कनफुसकी कए पनचैतीक समए निर्धारित कऽ दुनू -लड़का-लड़कीक- बापकेँ कहि देलकनि। हाट-बजारक लोक दुनू गोटे रहबे करए, जबाव देलकनि जे पंच हम वएह मानब जे निष्पक्ष होथि। मुँह-पुरुखक बीच दोसर उलझन ठाढ़ भऽ गेलनि। जँ एक समुदाइक रहैत तखन तँ दोसर ढ़ंगसँ पनचैती धरा कएल जा सकैत अछि मुदा, से नहि! दू जाति दू सम्‍प्रादायि‍क बीचक विवाद। सभ मुँह-पुरुखक माथ चकरा गेलनि। गाममे एक्को गोटे शेष नहि जे एक पक्ष नहि भऽ गेल होथि। तकैत-तकैत बुढ़ापर नजरि पड़लनि। सभ दिन तँ बुढ़ा अपन खेत-पथारसँ परिवार धरि रहलाह। गामसँ ओतबे मतलब जे मुरदा डाहए जाथि, वरिआती पुरथि, भोज खाथि, कतौ अगिलग्गी होय तँ जाथि। पर-पनचैतीक लूरि नहि। मतलबो नहि। कियो पुछबो नहि करनि।
  हँसैत शीला बजलीह- ऐहेन सोहल-सुथनी बूढ़ा छलनि?”
  पुतोहूक बात सुनि सुभद्राक आँखिमे सिंहक ज्योति एलनि। उत्साहित होइत बजलीह- कनियाँ, की-की लीला भेल, से की कहब। बुढ़ाक भीड़ि तँ कियो जाथि नहि मुदा, हमरा भरि-भरि दिन बरदबए लगल। अपन काज सभ खगए लगल। हमरा लग जे आवए तेना कऽ अपन बात कहि दिअए जे हम हँ कहि दिअए। जहिसँ हमर विचारे उधिया गेल। तखन बुढ़ाकेँ कहलिएनि। जखने कहलिएनि कि फड़कि उठलाह जे गाममे की कतए होयत छैक से हम नहि देखै छी। खाइ-पीबै काल सभ एक भऽ जाएत आ इज्जत-आबरुक बेर औतै तँ पड़ा जायत। ऐहेन गामसँ हटले रहब नीक। जेकराले चोरि करी सएह कहए चोरा। ऐहेन गामक कुचालिमे हमरा नहि पड़ैक अछि। भने अपन नून-रोटीक ओरियानमे समए वितबैत छी, शान्तिसँ रहैत छी। एक्के-दूइये सभ आबि-आबि कहए लगलाह। हारि कऽ हुनका बुझबैत-बुझबैत सुढ़िऐलहुँ। मानि गेलाह। चारि बजेक समए निर्धारित भेल। सौंसे गामक लोक एकत्रित भेलाह। आँखिक देखलाहा तँ एकहुँटा गवाह नहि मुदा, दुनूक -लड़का-लड़की- क्रिया-कलापसँ साबित भऽ गेल। एक मतसँ सभ सहमत भऽ गेलाह जे दुनूक बीच संबंध अछि। जखन संबंध अछि तखन निराकरण हुअए। गुन-गुनी फुस-फुसी वैसारमे शुरु भेल। चुपचाप बुढ़हा सभ देखैत-सुनैत रहथि। गुन-गुनी, फुस-फुसी जोड़ पकड़ए लगल। जोर पकड़ैत-पकड़ैत हल्ला हुअए लगल। दुनू दिशि‍ गाम बँटा गेल। एक पक्षक कहब रहए जे ऐहेन-ऐहेन संबंध कोन समाजमे नहि होइत छैक? कोनो कि अपने गामक पहिल घटना छी। आइ धरि की भेलैक? कहियो कोनो मुँह दुबराहाकेँ चारि थापर मारल गेलै तँ ककरो पाँच-दस रुपैआ जुर्माना भेलै। दोसर पक्षक कहब रहै जे जाति-सम्प्रदायक बंधन काँच सूतक बन्धन छी। एक वृत्ति, एक उम्रक लड़का-लड़की जँ अपन जिनगीक निर्णए स्वयं करए चाहैत अछि तँ समाजकेँ ओहिमे प्रोत्साहन करक चाही। दोसर विचार बुढ़ाकेँ जँचलनि। अपनो निर्णए दऽ देलखिन। ले बलैया, एक पक्षकेँ तँ खुशी भेलइ। मुदा दोसर पक्षक जे अगिला-वहान रहए ओ बुढ़हाक गट्टा पकड़ि कहलकनि- बड़ पैनिचैतियाक सार बनलथिहेँ। गट्टा पकड़ितहि बुढ़हाक नरसिंह तेज भऽ गेलनि। सभ वुझबो ने केलक। हाँइ-हाँइ कऽ वुढ़हा चारि-पाँच थापर ओकरा मुँहमे लगा देलखिन। लगक लोक कियो एक थापर देखलक तँ कियो दू थापर। मुदा बुढ़ो आ मारि खेनिहारो पाँच थापर बुझलक। गाममे सना-सनी भऽ गेल। दौड़ि-दौड़ि कऽ सभ अपना-अपना अंगनासँ लाठी आनि-आनि दू साइड भऽ गेल। अपन-अपन घरबलाकेँ लाठी लऽ-लऽ जाइत देखि स्त्रीगणो सभ दौड़ि-दौड़ि अबए लगलीह। ओना मारिक डर सभकेँ होय। एक बेरि १९४२ई.मे ऐहने घटना पहद्दीमे भेलि रहए। जहिमे लड़का-लड़कीकेँ आगि लगा घरेमे जराओल गेल रहए। जेकर परिणाम हत्याक मुकदमा चलल आ एकतीस गोटेकेँ आजन्म कारावास भेलि रहए। गामक स्त्रीगण ढ़ेरिया गेलीह। कियो बजए लगलीह जे मनुक्खक जिनगीकेँ मनुक्खक जिनगी बना जीवैक चाही तँ कियो बजैत-कुल-खानदानक नाक-कान कटौलक। कियो-किछु, कियो-किछु बजए। सभ अपने-अपने बजैमे बेहाल। जहिना पुरुख तहिना स्त्रीगण। मुदा तत्खनात झगड़ा रुकि गेल। सभ पुरुखकेँ अपन-अपन घरवाली लाठी छीनि-छीनि बाँहि पकड़ि-पकड़ि अपना-अपना आंगन लऽ गेेलीह। गामक खेलौनाकेँ सरकारी खेलाड़ी पकड़लनि। रंग एलै।
  दुनू पक्षक जते पंच पनचैतीमे रहए सभकेँ कोट-कचहरीसँ लाट-घाट पहिनहिसँ रहैक। नव खेलाड़ीक लेल नव खेल आ नव फील्ड तैयार भेल। दुनू परानीकेँ मारि-पीटक मुकदमामे फँसा देलक। जे पच्चीस बर्खक उपरान्त हाइ-कोर्टसँ फड़िआएल।
  आत्म विभोर भऽ सुभद्रा, बेटा, पुतोहू आ पोतीकेँ अपन जिनगीक कथा सुनबैत रहथिन। जहिना एकाग्र भऽ देवनन्दन सुनैत रहथि तहिना शीला। आशाक बुद्धिमे बात अँटबे नहि करैत, तेँ कखनो दादीक बातो सुनैत आ कखनो बावाक अरथियो दिशि देखैत। चौवन्नियाँ मुस्की दैत शीला सासुकेँ पुछलनि- माय, जहलो देखने छथिन?”
  पुतोहूक प्रश्नसँ सुभद्राकेँ दुख नहि भेलनि। मनमे एलनि जे भरिसक जिज्ञासा जागि रहल छनि। ओना देवनन्दनक नजरि सेहो माइयेपर अँटकल रहनि मुदा, चुपचाप सुनैक इच्छासँ कान पथने रहति सुभद्रा कहए लगलखिन- कनियाँ, बुढ़ा-संग तँ हमहूँ हाइ-कोट धरि लड़लहुँ। मुदा हाकिमक आगू दुइये दिन जाइ छलौं। जखन मैमला भेल तखन जमानत करबै जाय आ जहि दिन पुछै गल्ती केलहुँ अछि वा नहि, तहि दिन।
  शीला- जहलमे की सभ होइ छै से तँ नहि देखलखिन?”
  सुभद्रा- नहि कनियाँ! झूठ कोना बाजब। जे नहि देखलिएक से कोना कहब। भगवान सबहक देहमे रुइयाँ देने छथिन ककरो आगि किअए उठेवैक।
  शीला- बुढ़ा, कतेक बेरि जहल गेल छथिन?”
  बुढ़ाक नाम सुनि सुभद्राक मनमे खुशी आइल। मुस्की दैत कहलखिन- अपने मुँहे एक्कैस बेरि कहने छथि। ओना देखिएनि तँ हमहूँ मुदा, हमरा ठेकान नहि अछि।
 भेंटो करए जाथिन?”
  कहू, कोना नै जैतियनि। खाइ-पीबैक बौस मनाही केने रहथि मुदा, तमाकुल-चून दऽ दऽ अबिअनि।
 देखि कऽ कनवो करथिन।
 कनि‍तौं किअए। कोनो कि नइ बुझियै जे दस-पाँच दिनमे फेरि‍  निकलवे करताह। तइले कनितहुँ किअए। दस-पाँच दिन तँ लोक कुटुमैतियोमे जा कऽ रहैत अछि।
 बुढ़ासँ झगड़ो होइन?”
 झगड़ा किअए होइताए। तखन घरक काजमे कहा-कही हुअए। मुदा ओ हिसाब जोड़ि कऽ बुझा दथि। मन मानि जाए। एक बेरि एहिना भेल बौआ विआह लए।
  बौआक विआह सुनि आशो चौकन्ना भेलि आ शीलो देह-हाथ समेटि सुनैले कान ढाढ़ केलनि। मुदा देवनन्दनमे कोनो तरहक उत्सुकता नहि एलनि।
 बौआक विआह लए की भेलनि?”
 बौआ जखन पढ़िते रहए तखन विचार देखि‍यै समाजमे बौओसँ छोट-छोट बच्चा सभकेँ विआह होय। जखन समाजमे रहै छी तखन तँ समाजक संग चलए पड़त। मुदा बूढ़ा विचार रहनि जे जखन देव पढ़ि कऽ अपना पाएरपर ठाढ़ भऽ जाएत तखन विआह करब। हमरा हुअए जे अइ जिनगीक कोन ठेकान अछि अगर जँ विआह केने बिना मरि जाएब तँ अपनो मन लागले रहि जाएत। मुदा बुढ़ाकेँ परिवारक खर्च जोड़ए पड़नि। कहियो हाथमे सए-पचास रुपैआ नै रहैत छलनि। सदिखन एकटासँ एकटा भूर रहबे करैत छलै।
  पत्नी आ माइक गप-सप्‍प सुनैत देवनन्दन विचारक दुनियाँमे डूबल रहथि। मने-मन विचारैत रहति जे जहिना लंकामे विभीषण छलाह तहिना तँ अहू समाजमे अछि। सदिखन एक नहि एक आक्रमण होइतै रहैत अछि। जहि समाजकेँ हम नीक बुझै छियै ओहिमे अन्न-पानिसँ लऽ कऽ बुद्धि धरिक चोर किअए अछि। सदिखन लोक झुठे किअए बजैत अछि? अनका नीक देखि जरैत किअए अछि? दोसराक बहू-बेटीक इज्जत किअए लैत अछि? ककरो-क्यो गारि-मारि किअए करैत अछि? देवनन्दनक मन फटए लगलनि। किएक तँ मनमे प्रश्न उठलनि‍ जे समाजमे अछूत के अछि जे कोनो नहि कोनो रोगसँ -छुत- ग्रसित नहि अछि। जँ सभ रोगिये अछि तँ समाज नीक कोना भेल? जाधरि समाजक लोक समाजकेँ नीक नहि बनाओत ताधरि समाज नीक बनत कोना? जहि गाममे एक गोटेकेँ हेजा होइत छैक ओहिसँ सौँसे गाम रोग पसरि जाइत छैक। तहिना तँ आनो-आनो रोगक अछि। खास कऽ कऽ समाजक रोग! अपनापर नजरि एलनि। अपनापर नजरि अवितहि अपनाकेँ डॉक्टर देखलनि। मुदा केहेन डॉक्टर, जे खाली शरीरक रोगक छथि। मुदा रोग तँ एतवे नहि? शरीरक संग-संग मन-रोग आ परम्परा रोग सेहो अछि जकरा समाजक व्यवहारक रोग सेहो कहि सकै छियै। जहिना तेज धाराक धारमे भट्ठासँ सीरा दिशि बढ़व कठिन अछि, असंभव नहि? तहिना तँ समाजोमे अछि। जेम्हर देखै छी ओम्हर कोनो झाड़ीक बोन तँ किम्‍हरौ तीत फलक गाछक बोन तँ किम्हरौ मीठो फलक गाछक बोन अछि। जे जीवनक -जिनगीक- सैद्धान्तिक फलक बोन दिशि पहुँचबैत। तीत-मीठ फलक गाछ देखि संतोषक अंकुर हृदएमे जन्म लेलकनि। संतोषक अंकुरकेँ उगितहि दुनियाँक रंग बदलल बुझि पड़लनि। नजरि पितापर गेलनि। सिर दिशिसँ निङहारब शुरु केलनि। पएर लग अबैत-अबैत मन पड़लनि पिताक ओ राम कथा जे गामक स्कूलमे नाओ लिखबै दिन सुनौने रहनि। भगवान राम जंगल विदा भेला। गामक -अयोध्याक- समाज अरियातए संगे चललाह। गामक सीमानपर पहुँचैत-पहुँचैत साँझ पड़ि गेल। समाजक आग्रह होनि जे अपने बोन नहि जाय पुनः अयोध्या घुमि जाय। राम अपन संकल्पपर दृढ़ जे पिताक आदेश नहि काटब। साँझ भेने सभ कियो रात्रि विश्राम करए लगलथि। जखन सभ सुति रहलाह तखन राम लक्ष्मण सीता विदा भेलथि। स्थल रास्तासँ नहि। स्थल छोड़ि अकासक रास्तासँ। भोरमे जखन सबहक नीन टुटलनि तँ रामकेँ नहि देखलनि। रास्ता दिशि बढ़लाह तँ ने घोड़ाक टापक चेन्ह रहै आ ने रथक पहियाक। निराश भऽ सभ घुमि गेलाह। ऐहन समाजमे पूर्ण जीवन पिता कोना जीवि लेलनि? नजरि बढ़लनि जे समाजमे कत्ते परिवारसँ दोस्ती छलनि -अछि- आ कत्तेसँ दुसमनी? नजरि खिरबए लगलथि तँ वौआ गेलथि। माएकेँ पुछलखिन- माए, आइ तँ समाजक काज पड़त। कते परिवारसँ बाबूकेँ दोस्ती छलनि?”
  दोस्ती नाम सुनितहि सुभद्रा हरा गेलीह। जना शरीरसँ मन उड़ि गाममे बौआए लगलनि। मन पड़लनि संग मिलि कुमरम गीि‍त। विआह गीति, सामागीत, घरक गोसाँइसँ लऽ कऽ दुर्गास्थान धरिक गीति गाएब। सासुकेँ एकाग्र होइत देखि शीला बजलीह- बुढ़ी तँ नीन पड़ि गेलीह?”
  नीनक नाम सुतितहि आँखि खोलि सुभद्रा बजलीह- नइ कनियाँ नीन कहाँ पड़लौंहेँ। मन पड़ि गेल आमक गाछीक धिया-पूता। भगवानो बड़ अनर्थ केने छथिन जे ककरो ढेरीक-ढेरीक चीज देने छथिन तँ ककरो ढेरीक-ढेरी खेनिहार। पाकल-पाकल आम जखैन बच्चा सभकेँ दइ छियै आ ओकर हृदय जुराय छै तँ अपनो आत्मा जुरा जाइए।
  मुस्की दैत शीला- बूढ़ी फेरि ओंघा गेलीह।
  बोलीमे जोर दैत शीला पुन: बाजलि‍- बेटा पुछै छनि गाममे कत्ते गोटेसँ दोस्ती छन्हि?”
  ऐहेन गप किअए पुछलह, बौआ? ने कियो दोस अछि आ ने कियो दुसमन।
  देवनन्दन- जखन गाम पहुँचब तँ बावूकेँ जरबैले तँ लोक सभकेँ कहै पड़त की ने?”
  बेटाक बात सुनि सुभद्रा बजलीह- छिया, छिया। मिथिलाक समाज छी। एहि समाजमे मुरदा जरबैले ककरो घरक आँगि मिझवैले, ककरो-साँप-ताप कटने रहल वा गाछ-ताछपर सँ खसलापर ककरो कियो कहैत नहि छैक। ई सामाजिक काज छी। तेँ, अपन काज बुझि सभ अपने तैयार भऽ जाइत अछि।
        मायक बात सुनि देवनन्दन नमहर साँस छोड़लनि। गामक सीमापर अवितहि सभ चुप भऽ गेलाह अपन गाछी लग पहुचितहि देवनन्दन गाड़ी रोकवौलनि। रघुवीर भायकेँ देखने रहथिन एक बेरि -दिन- देखने रहथिन जे पछिमसँ कमला आ पूबसँ कोशीक बान्ह टूटि गेलइ। बरखो खूब होइत रहए। नेपालक पहाड़सँ तराइ धरिक पानि सेहो टघरि-टघरि बेग वनि अवैत रहए। पानिओ किअए ने औत आखिर ओकरो तँ समुद्रमे समेवाक लिलसा छैक। तहूमे मिथिलांचल बीच बाटपर अछि ओकरा किअए नै संग करैत जाएत। गामक उत्तरसँ बाढ़िक पानि ढूकल आ एक दिशिसँ पसरैत दछिन मुँहेक रास्ता धेलक। जाधरि पानि बासभूमिसँ हटि बाधक रास्ता धरि रहल ताधरि ककरो चिन्ता नहि भेलैक। मुदा जखन पानि मोटा कऽ अंगना-घर ढूकए लगल तखन सभकेँ चिन्ता हुअए लगलनि। गामक एकटा टोल गहीरगरमे बसल। चारु दिशिसँ पानि चढै़त-चढ़ैत आंगना घर ढूकि गेल। एक तँ ओहिना, बरखामे टटघरो आ भीतघरो ढहि-ढनमना गेल। तइपरसँ बाढ़िक वेग अबिते भीत घर खसए लगल टटघर सभ मचकी जेकाँ झुलए लगल। घर खसैत देखि टोलक सभ मालो-जाल आ चीजो-बौस आ धि‍यो-पूतोकेँ लऽ पोखरिक महार दिशि विदा भेल। पच्चीस परिवारक टोल। बेदरा-बुदरी लगा एक सए तीस आदमी। चालि‍स-पेंइतालीसटा गाए-महीसि, पच्चीस-तीसटा बकरियो। मालो-जाल बाढ़िक पानि आ आवाज सुनि डरे थरथर कपैत। कोनो-कोनोकेँ ऑखिसँ नोरो खसैत। मुदा एक्कोटा ने खाइले डिरिआइत आ ने पानि पीबैले। सभ अपन-अपन माल जालक डोरी खोलि देलक। डोरी खुजिते आगू-पाछू जोरिया सभ पानिक बेगसँ उपर भेल। मुदा एक्कोटा जान-माल नोकसान नहि भेल। एकाएक पानि नहि चढ़ल। टोलक समाचार सुनिते रघुनन्दन करियाकाकाकेँ दुलारुसँ बटुआ कहैत रहथिन सोर पाड़ि कहलखिन- ऐम्हर आवह हौ बटू।
  करिया काकाकेँ अबिते कहलखिन- सुनै छी जे पूबरि टोलमे बाढ़िक पानि चढ़ि गेलैक अछि। चलह तँ देखियै?”
  बिना किछु बजनहि करियाकाका संग भऽ गेलनि। थोड़े आगू बढ़लाह तँ देखलनि जे चेतनसँ लऽ कऽ धिया-पूता धरि किछु नहि किछु माथपर उठौने भीजैत-तीतैत गामक ऊँचका जगह दिशि जाए रहल अछि। मनमे उठलनि जतऽ जा रहल अछि ओतऽ रहत कोना? मुदा, आँखि उठा कऽ तकैयौमे लाज होनि‍। जे जनिजाति कहियो सोझामे बजैत नहि ओ सभ साड़ीक फाँड़ बन्हने माथपर, कियो अन्न, तँ कियो ओछाइन, तँ कियो बरतन-वासन नेने बच्चा सभक पाछु-पाछु जाए रहल छथि। लोकक दशा देखि करियाकाकाकेँ कहलखिन- बटू, सभकेँ अपना ऐठाम लऽ चलह जहाँ धरि सकड़ता धरत तहाँ धरि पार लगेवैक।
        दुनू गोटे सभकेँ सेग केने अपना घर चललथि। समस्या तँ देशक नहि सिर्फ एक टोलक अछि मुदा, पहाड़ोसँ नमहर। समाजक मनुक्खो तँ सभ रंग अछि केयो अनका दुखकेँ अपन दुख बुझि कनैत तँ केयो हँसैत। जे विपत्ति छैक ओ एक गोटे बुते कोना मेटौल जाएत। जँ नहि मेटौल जाएत तँ लोक मरैत केहेन परिस्थितिमे अछि। मनमे बुकौर लगि गेलनि कोनो बाटे नहि सुझति‍ रहनि‍। सभसँ पहिल समस्या अछि लोको आ मालो-जालकेँ पानिसँ बँचैक लेल जगह। अपना घरे कैकटा अछि। तहूमे सभ व्योतले। अंगनाक घर अन्न-पानिसँ आ जरना-काठीसँ भरल अछि। लऽ दऽ कऽ एकटा दरवाजा। जे परिवारक प्रतिष्ठा छी। दोसराक आश्रम-स्थल। मनमे नव आशा जगलनि जे जे विपत्तिमे पड़ल अछि ओ तँ अपन विपत्तिक मुकाबला करैक लेल सेहो अछि। मुँहसँ हँसी निकललनि। अंगनासँ दरवज्जा धरि सभकेँ ठौर धड़ौलनि। माल-जालकेँ तत्खनात् तँ बान्हे माने रस्तेपर खुँटा गारि-गारि बन्हैले कहलखिन। खाइक ओते जरुरी नहि बुझलनि जते माल-जालक ठौर। करियाकाकाकेँ कहलखिन- बटू, तत्खनात तँ सभ असथिर भेल। पहिने सभकेँ -मनुष्यो आ मालो-जाल- खाएक ओरियान करह। तेकर वाद अगिला काज देखिबै।
        खेनाइ बनबैक लेल आगि आ चुल्हिक जरुरत पड़त। चूड़ा तँ घरमे ओते अछि नहि। तहूँमे फक्का-फुक्की भेलि। ओहिसँ काज नहि चलत। जँ चाउर-दालि, तरकारी सभकेँ फुटा-फुटा देबै तँ ओते चुल्हिक वेवस्था कतए हएत? से नहि तँ पहिने नारक टालसँ नार खींच सभ माल-जालकेँ दऽ देल जाए। लोकक लेल चारि गोटे एक्केठाम भानस करए। सएह केलनि। भानस हुअए लगल। दुनू गोटे -रघुनन्दनो आ करियोकाका- गाममे घूमि-घूमि सभकेँ गर लगौलनि। बीस दिन बाद सभ अपना-अपना ऐठाम गेल।
   करियाकाकाक कानमे पड़िते, दौड़ि कऽ गाड़ी लग आबि देवनन्दनकेँ कहलखिन- डॉक्टर सहाएब, भैयाकेँ पहिने घरपर लऽ चलिअनु। घरपर मृत्यु नहि भेलि छन्हि। अपनो परिवारक आ समाजोक लोक अंतिम दर्शन कए लेतनि। तेकर बाद बरियाती साजि गाछी अनबनि।
  करियाकाकाक विचार सुनि सबहक मनमे समाजक प्रति श्रद्धा जगलनि। देवनन्दनक मनमे एलनि समाजमे पिताक कएल काज। जे समाजक प्रतिष्ठाक कारण रहनि।
  करियाकाकाक बात देवनन्दन मानि, चारु गोटे-देवनन्दन, सुभद्रा, शीला आ आशा- गाड़ीसँ उतड़ि गेलथि। तहि बीच गाममे समाचार पसरि गेल। समाचार पसरिते जे जेत्तै सुनलनि ओ ओत्तेसँ देखैले दौड़लथि। धिया-पूता, बूढ़-बुढ़ानुससँ रास्ता अन्हरा गेल। गाड़ी कोना आगू बढ़त से रस्ते नहि। जे पहुँचैत, मूड़िआरी दऽ दऽ मुँह देखए चाहैत। मुँह झाँपल। तेँ सभ चद्दरि ओढ़ने सुतल आदमी देखैत। लोकक भीड़ चारु भरसँ गाड़ीकेँ घेड़ि नेने। ने आगू बढ़ैक बाट खाली आ ने कियो रघुनन्दनकेँ देखि पबैत छलाह। माटिक मुरुत जेकाँ चारु गोटे निच्चॉंमे ठाढ़ भऽ सबहक मुँह देखैत। रंग-विरंगक मुँह देखि पड़नि‍। ककरो-ककरो आँखिमे नोरो आ मनमे सोगो तँ ककरो-ककरो आँखिमे ने नोर आ ने सोग। मने-मन करियाकाका विचारि बजलथि- अहाँ सभ रास्ता छोड़ि दिऔ। भैयाकेँ अंगना लऽ चलैत छिअनि ओतै उताड़ि कऽ रखबनि आ सभ दर्शन करब।
  करियाकाकाक बात मानि रास्ता छोड़ि देलक। आगू-आगू गाड़ी पाछु-पाछु सभ घर दिशि बढ़लाह घर-पर अबिते रधुनन्‍दनक मृत्‍यु शरीरकेँ उताड़ि‍ उत्तर सि‍रहौने सुता देलकनि‍। लगमे सुभद्रा, शीला आ आशा बैसि गेलीह। देवनन्दनकेँ करियाकाका कहलखिन- बौआ, अहाँ दरवज्जापर बैसू। समाज सभ जिज्ञासो करए औताह आ ऐम्हर हम आगूक ओरिआनो करैत छी।
        दियादिक सभ चुल्हि मिझा गेल। मुदा सभकेँ मनमे खुशी रहनि। सभसँ उमेरगर रघुनन्दने छलाह। ओना तइओ वेवहारिक रुपमे सबहक आँखिमे नोर रहनि मुदा, मनमे दुख नहि। उत्तर-मुँहे सुतल, नव वस्त्रसँ मुँह छोड़ि सौँसे देह झाँपल। सिरमामे तुलसी गाछ आ गूगूलक सुगंध अंगनामे पसरैत। मर्द-औरतसँ आंगन भरल। मर्द सभ तँ दर्शन कऽ-कए दरवज्जापर आबि जाइत मुदा, स्त्रीगण सभ अंगनेमे बैसि गप-सप्‍प करए लगथि‍। छोटका-बच्चा सभ ओसारपर खेलए लगल। एक साए एगारह बर्खक रधिया दादी, बाँसक बत्तीक ठेंगाक हाथे एलीह। झुनकुट बूढ़ि। ने मुँहमे एक्कोटा दाँत आ ने एक्कोटा केश कारी। चौड़गर मुँह। दहिना गालपर एकटा नमहर मसुहरि। जहिपर इंच भरिक दूटा पाकल केश। सौँसे देहक चमड़ी ढील भऽ घोकचि-घोकचि गेल। चानिपर तीनिटा रेघा जेकाँ बनि गेल। गालक उपरका भागमे सेहो रेघा जेकाँ मुदा, निचला भागमे गायक गरदनि जेकाँ चमड़ी लटकि गेल। आंगनमे पएर दइते नवतुरियो आ सियानो सभ दादीक लेल रस्तो बनौलनि आ सुभद्रा लग बैसैक जगहो। मुदा दादीक आँखिक नोरमे दर्द रहनि। ओना अखन धरि नोर पुतलीसँ भीतरे छलनि। तहि काल पाँच वर्खक एकटा छौँड़ा लुचबा दादीक ठेंगा पकड़ि तीनू झुनझुना -तारक बना ठोकल रहनि- डोला-डोला बजबए लगल। अंगनाक सभ खढ़ू-मढ़ू लगमे जमा भऽ गेल। धिया-पूताकेँ देखि डॉटि कऽ सुबधी बाजलि- भने ते तू सभ ओसारपर खेलै छलेँ, अइठीन किअए एलेँ?”
  सुबधीक बात दादीकेँ नीक नहि‍ लगलनि। कहलखिन- कनियाँ, बच्चा सभकेँ किअए डटै छियै। अहाँ समरथ छी तेँ ने बुझै छियै, ई सभ अखैन कियाँने गेलै। जहिना जाड़क उत्तर गरमीमास अबैए आ गरमीक उत्तर बरखा। जे गरमीसँ शुरु भऽ जाड़मे ठेका दैत अछि। तहिना तँ ई देहो अछि। हम तँ कातिक-अगहनक जाड़ भेलहुँ ई बच्चा सभ तँ फागुन-चैतक जाड़ छी। मुदा सूर्ज तँ वएह रहैत छथि। भलेहीं कहियो उग्र तँ कहियो शीतल भऽ जाइ छथि।
  दादी बजिते रहथि कि शीला उठि कऽ दहिना बाँहि पकड़ि आगू लऽ जाए लगलीह। रघुनन्दन लग पहुँचतहि आँखिसँ साओनक बरखा जेकाँ, नोर झहरए लगलनि। मुदा बेसी काल नहि झहरलनि। केवल ओतवेकाल झहरलनि जतेकाल अपन उमेरपर मन अँटकलनि। आगूसँ पाछू मुँहेक रघुनन्दनक जिनगी दिशि नजरि बढ़िते मुँहसँ हँसी निकलए लगलनि। दादीक हँसी देखि आशा बाजलि- बाँबीकेँ एक्कोटा दाँत नहि छन्हि। आब हेतनि?”
  आशाक बात सुनि दादी जोरसँ हँसलीह। बिनु दाँतक चौड़गर मुँह तीनि गोटेक मुँहक बरोबरि। एक झोंक हँसि दादी सुभद्राकेँ कहए लगलखिन- दियादिनी, अहाँ बच्चा छी। तेँ, कने दुख होइते हएत। मुदा अहाँसँ कम्मे उमेरमे हमर स्वामी संग छोड़ि चलि गेलथि। तहि आगू अहाँक विपत्ति छोट अछि। भगवान अहाँकेँ सभ किछु देने छथि। भरल-पूरल परिवार अछि श्रवणकुमार सन बेटा लछमी सन पुतोहूँ छथि। ऐहन सुन्नर खेलौना सन पोती अछि तहन किअए सोग करै छी। आब अपना सभ सृष्टिक ओहन बीज स्वरुप बनि गेल छी जहिसँ अंकुरक संभावना नहि। जहिना कोनो अन्न बीआ वा फलक बीआ साल भरिक उत्तर पुरान भऽ जाइत, जहिमे अंकुरक शक्ति झीण भऽ जाइ छै तहिना भऽ गेलहुँ। मुदा तेँ कि, अन्ने फलक बीज जेकाँ मनुष्योक शक्ति साले भरिमे झीण भऽ जाएत। सबहक शक्तियो एक समान नहि होइत।
  तहि बीच फुदकि कऽ आशा पुछलकनि- बाँबी, अहाँकेँ कते दिन भेलि अछि?”
  आशाक बात सुनि- हे गै डकडरबा बेटी, तूँ हमरा दिन पूछै छेँ। साढ़े बाइस गाही बर्ख भेलि अछि।

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