भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आधर्मशास्त्री विद्यापतिकस्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महानपुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिलालोकनिकचित्र'मिथिला रत्न'मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि।मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नवस्थापत्य, चित्र, अभिलेखआ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू'मिथिलाक खोज'
जेना काफिया वर्ण आ मात्राक संग शब्दकेँ सेहो प्रयुक्त करैतअछि तेहिनारदीफ एकर विपरीत शब्द आ शब्दक समूहक बदला वर्ण आ मात्राकेँ सेहो प्रयुक्तकरत।
प्रारम्भ आ अन्तक शेर गजलक शेष शेरसँ बहरमे विभिन्नता लेने रहि सकैत अछि, वा पैघ गजलमे बीचोमे एकाध ठाम विविधता अनबा लेल एहन प्रयोग कऽ सकै छी। आब कनेक आर कठिनाह विषयपर आबी। पहिल खेपमे देल मात्रिक छन्द गणनापर आबी। छन्दः शास्त्रमे प्रयुक्त ‘गुरु’ आ ‘लघु’ छंदक परिचय प्राप्त करू। तेरह टा स्वर वर्णमे अ,इ,उ,ऋ,लृ ई पाँच ह्र्स्व आर आ,ई,ऊ,ऋ,ए.ऐ,ओ,औ, ई आठदीर्घ स्वर अछि। ई स्वर वर्ण जखन व्यंजन वर्णक संग जुड़ि जाइत अछि तँ ओकरासँ ‘गुणिताक्षर’ बनैत अछि। क्+अ= क, क्+आ=का । एक स्वर मात्रा आकि एक गुणिताक्षरकेँ एक ‘अक्षर’ कहल जाइत अछि। कोनोव्यंजनमात्रकेँ अक्षर नहि मानल जाइत अछि- जेना ‘अवाक्’ शब्दमे दू टा अक्षर अछि, अ, वा ।
१. सभटा ह्रस्व स्वर आ ह्रस्व युक्त गुणिताक्षर ‘लघु’ मानल जाइत अछि।एकराऊपर U लिखि एकर संकेत देल जाइत अछि। २. सभटा दीर्घ स्वर आर दीर्घ स्वर युक्त गुणिताक्षर ‘गुरु’ मानल जाइतअछि, आ एकर संकेत अछि, ऊपरमे एकटा छोट -। ३. अनुस्वार किंवा विसर्गयुक्त सभ अक्षर गुरू मानल जाइत अछि। ४. कोनो अक्षरक बाद संयुक्ताक्षर किंवा व्यंजन मात्र रहलासँ ओहि अक्षरकेँगुरु मानल जाइत अछि। जेना- अच्, सत्य। एहिमे अ आ स दुनू गुरु अछि। आब किछु शब्दावली देखी।
गाड़ीमे बैसितहि देवनन्दन मनमे एलनि उमेरक हिसाबसँ मृत्यु उचिते भेलनि। अस्सी बर्ख धरि लोक बूढ़ होइत अछि आ ओहिसँ उपर भेलापर झुनकुट बूढ़ भऽ जाइत अछि। जहिना पाकल धान वा कोनो अन्न कटलापर अधिक छिजानैत नहि होइत मुदा, वएह जखन झुना जाइत तँ हवो-विहारिमे वा ओहुना टूर सभ खसए लगैत अछि। तहिना तँ मनुष्योक शरीर होइत। अधिक बएस भेलापर माने झुनकुट वूढ़ भेलापर शरीरक अंग सभ क्रियाहीन हुअए लगैत अछि। जहिसँ रंग-विरंगक बाधा सभ उपस्तिति हुअए लगैत अछि। बाधा उपस्थिति होइतै कतेक रंगक रोग-व्याधि आबि जाइत अछि। तहिसँ नीक भेलनि जे अखन धरि अपन सभ क्रिया-कलाप करैत रहलाह। सिर्फ प्राण-वायु शरीरसँ निकलनि। सुभद्राक मनमे खुशी एहि दुआरे होइन जे अधपक्कू भऽ नहि पूर्ण पकि कऽ दुनियाँ छोड़लनि। शीला आओर आशाक लेल धैनसन। बेसीसँ बेसी हम सभ हुकुम निमाहैवाली छी। परिवारक हानि-लाभसँ हमरा की। अखन धरि परिवारमे चारिम सीढ़ीपर छलहुँ आब तेसरपर एलहुँ। तहिना आशाक मनमे रहए जे हमर तँ कोनो हिसावे एहि परिवारमे ने अछि ने रहत। जहिना घर आ आंगनक बीच सीढ़ी बनल रहैत अछि जहिसँ लोक घरसँ बहार होइत आ बहारसँ घर जाइत तहिना।
माएक चेहरापर देवनन्दन नजरि देलखिन तँ बुझि पड़लनि जे पैछला कोनो बात मन पड़ि गेल छन्हि जहिसँ चिन्तित जेकाँ भऽ गेल छथि। चिन्ता मनसँ निकलितन्हि कोना? युक्ति सुझलनि जे आन कियो जँ किछु बाजत तहिसँ ओकर चिन्ता नहि मेटेतैक। भऽ सकैत अछि जे ओहि बातपर धियाने नहि दिअए। तहिसँ नीक जे किछु पूछि दिअए? जहिसँ आन बात मन पाड़ैमे पैछला बात दबि जाइ। नीक युक्ति फुड़ने मुस्की दैत कहलखिन- “माए, जखन हम छीहे तखन तोरा चिन्ता किअए होइ छओ?”
चिन्ता सुनि सुभद्रा कहए लगलखिन- “बौआ, पुरना बात मन पड़ि गेल छलए तेँ कनी चिन्ता आबि गेल।”
लाड़ैन चलबैत शीला पुछलखिन- “बुढ़ोमे पुरना बात मने छन्हि?”
“कनियाँ, अहूँ एक उमेरपर आब एलौं तेँ कहै छी। हमरा दादी कहने रहथि जे जहिना माटिक कोठी बना लोक अन्न रखैए, जे बहुत दिन तक सुरक्षित रहैत तहिना मनुष्यकेँ अपन जिनगीक कर्मक लेल कोठी बना राखक चाही। सभसँ पहिने गणेश जी बनौलनि। जहिना अन्नक खढ़-भूस्सा, सूपसँ फटकि, हटा दैत छिअए तहिना जिनगीक कर्मक जे भूस्सा-भूस्सी अछि ओकरा हटा कर्मकेँ मोन राखक चाही। सुभद्रा बजितहि छलीह कि बिचहिमे आशा जोरसँ पुछलकनि- “कोन पुरना गप छियै?”
आशाक मुँह देखि सुभद्रोक मुँहमे पुरना अंकुर फुटल। मुस्की दैत कहए लगलखिन- “बुच्ची, बहु दिनका कथा छी अपने गाममे दू समुदायक छौँड़ा-छौँड़ीकेँ प्रेम भऽ गेलै। बच्चेसँ दुनू झंझारपुर हाट माए-बापक संग जाइत-अबैत रहए। गाममे दुनूक सभ काज-उद्यम फुट-फुट रहए। ने खेनाइ-पीनाइ एक ठीन होय आ ने पावनि-तिहार। मुदा खेती दुनू गोटेक एक्के रहए। दुनू गोटे तरकारीक खेती करए आ हाटमे जा-जा बेचै। गामेसँ दुनू गोटे संगे जाए आ हाटोपर एक्के ठाम बैसि तरकारी बेचै। जखन दुनूक बच्चा कनी चेष्टगर भेलै तँ कोनो-कोनो समान कीनि-कीनि आनए लगलै। दुनू संगे जाइ। एकटाकेँ ने हराइक डर रहैत मुदा, संगीक संग तँ बच्चा कम हेराएत अछि। बच्चेसँ दुनू गोटेकेँ बैचारिक मिलान हुअए लगलै। अपना सन-सन लोककेँ हँसी-चौल देखै-सुनै। देखा-देखी दुनू गोटेक बीच सेहो हँसी-चौल हुअए लगलैक। हाटमे तरकारी बेचैक लूरि आ खेतमे गोला-फोड़ैक, पटबैक, रोपैक, कमठौन करैक लूरि सेहो भऽ गेलैक। दुनूक नव दुनियाँ बनए लगलैक किऐक तँ बाप-माएसँ पाँच-दस किलोक मोटा फाजिल उठबए लगल। जहिसँ परिवारक काजो आ आमदनियो दोबरा गेलइ। बीचमे एकटा घटना घटलै।
“की घटना?” फुदकि कऽ आशा पुछलकनि।
“बुच्ची, झुठ की सत्य, भगवान जनथिन। मुदा गाममे चर्चा चलए लगलै। तना-तनी बढ़ए लगल। जहाँ-तहाँ गारि-गरौबलि आ पकड़ा-पकड़ी शुरु भऽ गेल। मुदा गामक जते मुँह पुरुख रहए, सभकेँ अपने-अपने अपेछितसँ कहा-कही हुअए लगलनि। कखनो काल माथा ठंढ़ा होइत नहि तँ बेसी काल गरमाएले रहए लगलनि। मुदा पनचैती के करत से पंचे नहि एक्कोटा गाममे। सभ मुँह-पुरुख अपनहिमे कनफुसकी कए पनचैतीक समए निर्धारित कऽ दुनू -लड़का-लड़कीक- बापकेँ कहि देलकनि। हाट-बजारक लोक दुनू गोटे रहबे करए, जबाव देलकनि जे पंच हम वएह मानब जे निष्पक्ष होथि। मुँह-पुरुखक बीच दोसर उलझन ठाढ़ भऽ गेलनि। जँ एक समुदाइक रहैत तखन तँ दोसर ढ़ंगसँ पनचैती धरा कएल जा सकैत अछि मुदा, से नहि! दू जाति दू सम्प्रादायिक बीचक विवाद। सभ मुँह-पुरुखक माथ चकरा गेलनि। गाममे एक्को गोटे शेष नहि जे एक पक्ष नहि भऽ गेल होथि। तकैत-तकैत बुढ़ापर नजरि पड़लनि। सभ दिन तँ बुढ़ा अपन खेत-पथारसँ परिवार धरि रहलाह। गामसँ ओतबे मतलब जे मुरदा डाहए जाथि, वरिआती पुरथि, भोज खाथि, कतौ अगिलग्गी होय तँ जाथि। पर-पनचैतीक लूरि नहि। मतलबो नहि। कियो पुछबो नहि करनि।”
हँसैत शीला बजलीह- “ऐहेन सोहल-सुथनी बूढ़ा छलनि?”
पुतोहूक बात सुनि सुभद्राक आँखिमे सिंहक ज्योति एलनि। उत्साहित होइत बजलीह- “कनियाँ, की-की लीला भेल, से की कहब।” बुढ़ाक भीड़ि तँ कियो जाथि नहि मुदा, हमरा भरि-भरि दिन बरदबए लगल। अपन काज सभ खगए लगल। हमरा लग जे आवए तेना कऽ अपन बात कहि दिअए जे हम “हँ” कहि दिअए। जहिसँ हमर विचारे उधिया गेल। तखन बुढ़ाकेँ कहलिएनि। जखने कहलिएनि कि फड़कि उठलाह जे गाममे की कतए होयत छैक से हम नहि देखै छी। खाइ-पीबै काल सभ एक भऽ जाएत आ इज्जत-आबरुक बेर औतै तँ पड़ा जायत। ऐहेन गामसँ हटले रहब नीक। जेकराले चोरि करी सएह कहए चोरा। ऐहेन गामक कुचालिमे हमरा नहि पड़ैक अछि। भने अपन नून-रोटीक ओरियानमे समए वितबैत छी, शान्तिसँ रहैत छी। एक्के-दूइये सभ आबि-आबि कहए लगलाह। हारि कऽ हुनका बुझबैत-बुझबैत सुढ़िऐलहुँ। मानि गेलाह। चारि बजेक समए निर्धारित भेल। सौंसे गामक लोक एकत्रित भेलाह। आँखिक देखलाहा तँ एकहुँटा गवाह नहि मुदा, दुनूक -लड़का-लड़की- क्रिया-कलापसँ साबित भऽ गेल। एक मतसँ सभ सहमत भऽ गेलाह जे दुनूक बीच संबंध अछि। जखन संबंध अछि तखन निराकरण हुअए। गुन-गुनी फुस-फुसी वैसारमे शुरु भेल। चुपचाप बुढ़हा सभ देखैत-सुनैत रहथि। गुन-गुनी, फुस-फुसी जोड़ पकड़ए लगल। जोर पकड़ैत-पकड़ैत हल्ला हुअए लगल। दुनू दिशि गाम बँटा गेल। एक पक्षक कहब रहए जे ऐहेन-ऐहेन संबंध कोन समाजमे नहि होइत छैक? कोनो कि अपने गामक पहिल घटना छी। आइ धरि की भेलैक? कहियो कोनो मुँह दुबराहाकेँ चारि थापर मारल गेलै तँ ककरो पाँच-दस रुपैआ जुर्माना भेलै। दोसर पक्षक कहब रहै जे जाति-सम्प्रदायक बंधन काँच सूतक बन्धन छी। एक वृत्ति, एक उम्रक लड़का-लड़की जँ अपन जिनगीक निर्णए स्वयं करए चाहैत अछि तँ समाजकेँ ओहिमे प्रोत्साहन करक चाही। दोसर विचार बुढ़ाकेँ जँचलनि। अपनो निर्णए दऽ देलखिन। ले बलैया, एक पक्षकेँ तँ खुशी भेलइ। मुदा दोसर पक्षक जे अगिला-वहान रहए ओ बुढ़हाक गट्टा पकड़ि कहलकनि- “बड़ पैनिचैतियाक सार बनलथिहेँ। गट्टा पकड़ितहि बुढ़हाक नरसिंह तेज भऽ गेलनि। सभ वुझबो ने केलक। हाँइ-हाँइ कऽ वुढ़हा चारि-पाँच थापर ओकरा मुँहमे लगा देलखिन। लगक लोक कियो एक थापर देखलक तँ कियो दू थापर। मुदा बुढ़ो आ मारि खेनिहारो पाँच थापर बुझलक। गाममे सना-सनी भऽ गेल। दौड़ि-दौड़ि कऽ सभ अपना-अपना अंगनासँ लाठी आनि-आनि दू साइड भऽ गेल। अपन-अपन घरबलाकेँ लाठी लऽ-लऽ जाइत देखि स्त्रीगणो सभ दौड़ि-दौड़ि अबए लगलीह। ओना मारिक डर सभकेँ होय। एक बेरि १९४२ई.मे ऐहने घटना पहद्दीमे भेलि रहए। जहिमे लड़का-लड़कीकेँ आगि लगा घरेमे जराओल गेल रहए। जेकर परिणाम हत्याक मुकदमा चलल आ एकतीस गोटेकेँ आजन्म कारावास भेलि रहए। गामक स्त्रीगण ढ़ेरिया गेलीह। कियो बजए लगलीह जे मनुक्खक जिनगीकेँ मनुक्खक जिनगी बना जीवैक चाही तँ कियो बजैत-कुल-खानदानक नाक-कान कटौलक। कियो-किछु, कियो-किछु बजए। सभ अपने-अपने बजैमे बेहाल। जहिना पुरुख तहिना स्त्रीगण। मुदा तत्खनात झगड़ा रुकि गेल। सभ पुरुखकेँ अपन-अपन घरवाली लाठी छीनि-छीनि बाँहि पकड़ि-पकड़ि अपना-अपना आंगन लऽ गेेलीह। गामक खेलौनाकेँ सरकारी खेलाड़ी पकड़लनि। रंग एलै।
आशाक बात सुनि दादी जोरसँ हँसलीह। बिनु दाँतक चौड़गर मुँह तीनि गोटेक मुँहक बरोबरि। एक झोंक हँसि दादी सुभद्राकेँ कहए लगलखिन- “दियादिनी, अहाँ बच्चा छी। तेँ, कने दुख होइते हएत। मुदा अहाँसँ कम्मे उमेरमे हमर स्वामी संग छोड़ि चलि गेलथि। तहि आगू अहाँक विपत्ति छोट अछि। भगवान अहाँकेँ सभ किछु देने छथि। भरल-पूरल परिवार अछि श्रवणकुमार सन बेटा लछमी सन पुतोहूँ छथि। ऐहन सुन्नर खेलौना सन पोती अछि तहन किअए सोग करै छी। आब अपना सभ सृष्टिक ओहन बीज स्वरुप बनि गेल छी जहिसँ अंकुरक संभावना नहि। जहिना कोनो अन्न बीआ वा फलक बीआ साल भरिक उत्तर पुरान भऽ जाइत, जहिमे अंकुरक शक्ति झीण भऽ जाइ छै तहिना भऽ गेलहुँ। मुदा तेँ कि, अन्ने फलक बीज जेकाँ मनुष्योक शक्ति साले भरिमे झीण भऽ जाएत। सबहक शक्तियो एक समान नहि होइत।”
तहि बीच फुदकि कऽ आशा पुछलकनि- “बाँबी, अहाँकेँ कते दिन भेलि अछि?”
आशाक बात सुनि- “हे गै डकडरबा बेटी, तूँ हमरा दिन पूछै छेँ। साढ़े बाइस गाही बर्ख भेलि अछि।”
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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