दादीक बर्खक हिसाब कियो नहि बुझलनि। सभ अकबका गेलीह। सभ-सबहक मुँह देखए लगलीह। दादी बुझि , मुस्कुराइत शीलाकेँ कहलखिन- “ सासु , सासु नहि माए छथि। हमर छोट दियादिनी छथि। जखन हमरा पाँच बर्ख ऐठाम ऐला भेल रहए तखन रघू बौआक जन्म भेलनि। एक बेरक खेरहा कहै छी। काकियो समर्थे रहथि। मुदा हमरासँ उमरगर रहथि। माघ महीनाक मकरक मेला शुरु भेल। अपना गाम सभक बेसी लोक हरड़ी जाइत छल। हमरा संग रघू वौआ हरड़ी गेल। हरड़ीसँ कनिए वेसी विदेसर छै। मुदा विदेसरक मेला गड़वड़ हुअए लगलै। निरमलीसँ दड़िभंगा धरिक रेलवे कातक जते उचक्का अछि , सभ भोरुके गाड़ीसँ आबि उचकपन्नी शुरु कऽ दैत। जहिसँ नीक घरक लोक जाएव छोड़ि देलक। ओना विदेसरो बाबा बड़ जगताजोर तेँ कतवो उचकपन्नी होइ तइयो मेला बढ़ले जाइत। अपना गाम सभक लोक जाएव छोड़ि देलक। ओना क्षेत्रो नम्हर छैक , तहिपर सँ स्थानक लग-पासक लोक सेहो कान्ह उठेलनि। जेकर फल भेलै जे स्थानसँ उचकपन्नी समाप्त भेल। हरड़ीक संग दूटा बाधा उपस्थित भेल। परसा धाममे सूर्य भगवानक मुरती उखड़लासँ नव स्थान बनल। ओना मुरतियो दिव्य अछि। एक तँ सूर्य भगवानक दोसर बेस किमती पाथरो अछि। मंदिरो नीक। मुदा हालमे जे साम्प्रदायिक प्रभाव मदनेश्वरकेँ बढ़ौलक ओहिसँ परसो आ हड़ियोकेँ नीक झटका लगल। हरड़ी महादेबो छथि गहींरमे , जहिसँ सभ दिन जल भरल रहैत अछि। बीचहिमे सुभद्रा दादी दिशि देखि पुछलीह- “ बहीनि कत्ते दिन बौआकेँ -रघुनन्दन- दूध पिऔने छिअनि ?”
समरथाइमे हम खूब बुफगर रही। पहिल सन्तान भेले रहए। मरसम्फे दूध हुअए। काकी रोगा गेलीह। दूध टूटि गेलनि। हमरे दूध पीवि-पीवि वौआ जीअल। जखन बौआ साल भरिक भेला , अन्न-तन्न सेहो खाए लगलथि , डेगा-डेगी चलौ लगलथि , बोलिओ फुटलनि तखन काकी सिखा देलकनि दूधवाली माए कहैले। हमरो नीक लागए। बेटा तँ नहि कहिअनि मुदा , बच्चा कहैत रहिअनि। डेढ़ साल भेलापर हमरो दूध टूटए लगल। खाइ-पीवैमे तँ कोताही नहि हुअए मुदा , दोसर कारण भऽ गेल। मकरक मेला जाइत रही। काकी बच्चोकेँ नेने जाइले कहलनि। सभ साल ओतैसँ तरिपात कीनि-कीनि आनी आ सालो भरि मसल्ला खाइ छलौं। ओना हरड़ी मेलाक हरीस , माटिक नादि , टाड़ा-टाड़ी नामी रहए। सात-आठ बर्खक बच्चा रहथि। गामक बहुत जनिजातियो आ धियो-पूतो रहए। अपनो बेटा आ बच्चोकेँ हमहीं नेने गेलिएनि। अरबा चाउरक रोटी आ सीम-भाँटाक तरकारी बना लेलहुँ। गामोपर खा लेलहुँ। ”
बिचहिमे आशा टोकलकनि- “ खा कऽ महादेव दर्शन करए गेलियै ?”
आशाक बात सुनि दादी ठहाका दैत कहए लगलखिन- “ हरड़ी मेला स्त्रीगणक मेला छी। पुरुखसँ बेसी स्त्रीगण आ धिया-पूता रहैत अछि। दस बजेमे सभ खा-खा जाइत अछि आ दोसरि-तेसरि साँझि धरि घुरि-घुरि अबैत अछि। अपना सबहक कुटुमैती बेसी अही भाग अछि। एक दिशिसँ धीओ-बेटी अवैत आ दोसर दिशिसँ माइयो-पितिआइन जाइत। तेँ ओम्हरसँ बेटियो-जाति अबैत आ ऐम्हरसँ माइयो जाइत। सभकेँ मेलामे भेंटि-घाँट भऽ जाइत। जहिना बड़ियाकेँ बान्ह नहि छै , जे मन फुड़ै छै से करैए तहिना तँ जनिजातियो आ बूड़िबकहो अछि। जे मन फुड़तै से करत। हँ तँ कहै जे छेलियह , बच्चाकेँ नेने गेलिएनि। बेरहटिये पोखरिक महारपर बैसि खाए लगलौं। बच्चोकेँ एक खाड़ा रोटी आ तरकारी देलिएनि। हम दछिन-मुँहे-पोखरि दिशि घूमि कऽ खाए लगलौं। मूड़ी गोतने रही , माथपर साड़ी लटकल रहए। तेहि बीच एकटा झुनझुनाबला घुमैत-घुमैत अाएल। धिया-पूता सभ पाछु-पाछु रहए। ताड़क पातकेँ गुलाबी रंगमे रंगि झुनझुना बनौने रहए। एकटा झुनझुना हाथसँ बजबैत रहै आ बाकी पथियामे माथपर रखने रहए। आँएले-वाँएले बौओ रोटी खाइते पाछु धऽ लेलनि। हम बुझबे ने केलियै। धिया-पूता तँ खुरलुच्ची होइते अछि। झुनझुनाबला आगू बढ़ि गेल। बाटीमे पानि पीबि जखन पानि दइले तकलौं तँ देखवे ने केलिएनि। ले बलैया , ओते लोकमे कतऽ ताकब ? भारी पहपटिमे पड़ि गेलौं। हाँइ-हाँइ कऽ तरिपातो आ टड़ो लेलहुँ आ तकैले विदा भेलहुँ। एकटा झुनझुनाबला रहैत तखैन ने ठेकना कऽ जइतौं। से तँ जेम्हर देखियै ओम्हरो झुनझुनाबला रहए मन हारि मानि लेलक। मनमे हुअए लगल जे काकीकेँ की जबाब देबनि। मुदा मने-मन चण्डेश्वर बाबाकेँ कहलिएनि जे आन देवस्थानमे तँ कियो नहि हराइत अछि मुदा , तोरा स्थानमे भऽ गेलह। अखनुका जेकाँ ताबे धिया-पूताक चोरि देवस्थानमे नहि हुअए। मुदा तइओ मनमे खुटखुटी रहबे करए। तेकर कारण रहए जे कहियो-काल सुनियै फल्लां स्थानसँ फल्लांक बेटा वा बेटी हरा गेलइ। तेँ मनमे हुअए जे काकी की कहतीह ? तहूमे रोगाएल छथि। मने-मन समोह लागि गेल। मुदा फेरि मनमे भेल जे जँ कहीं घुरि-फिरि कऽ चलि आबथि। थोड़े-काल गुन-धुन कए , एक हाथकेँ तेरपात लेलहुँ आ दोसर हाथमे टाड़ा , तकए विदाह भेलौं। रस्ताक दुनू कात दोकानबला सभ दोकान लगौने रहए आ बीच देने लोक सभ चलए। मंदिरक आगू एक्के बेरि मंदिरक फाटकसँ बहुत लोक निकलल। रास्तापर रेड़ा भऽ गेल। तेहि काल माथपर सँ साड़ी ससरि गेल। आब की करब ? दुनू हाथो बरदाएल रहए। माथपर साड़ी कोना लेब ? नहि लेब तँ लोक की कहत ? तहि काल दहिना हाथक टाड़ा छुटि गेल। फुटि गेल। झुटका-झुटाक भऽ गेल। मुदा पहिने साड़ी ससारि कऽ माथपर लेलौं। एक गोरेकेँ पाएरमे झुटकाक कान गरि गेलै। ओ भिन्ने खिसिआइत कहलक- “ ऐहेन ढहलेल छह ते मेला-ठेला किअए अवै छह ?” मुदा अपन हारल रही , किछु नहि कहलियै। चुपे-चाप रेड़ासँ बहरेलौं। बाहर अबिते आँखि उठा कऽ तकलहुँ कि देखलहुँ जे उत्तरसँ दछिन मुँहे एकटा झुनझुनाबला अबैए। रस्ता कातमे ठाढ़ भऽ हिया-हिया देखए लगलौं कि पाछु-पाछु हिनको-रघुनन्दन बच्चाकेँ देखलिएनि। देहो हल्लुके रहए। खाली एक्केटा हाथ बरदाएल रहए। दौड़ि कऽ जा बाँहि पकड़ि कात केलिएनि। फेरि जखन पोखरिक महारपर एलौं तँ ककरो नहि देखिलियै। सभ चलि गेल रहए। आनो-आनो गामक यात्री घरमुँहा भऽ गेल रहए। हमहुँ ओही लाटमे विदा भऽ गेलौं। मुस्की दैत शीला पुछलकनि- “ तमसाएलमे फज्झतियो केलखिन ?”
स्नेहसँ भरल दादीक मुँहसँ निकललनि- “ राम-राम। अबोध बच्चाकेँ किअए किछु कहितिएनि। अबोध बच्चाकेँ तँ बुझा कऽ ने कहबै आकि मारि कऽ। मारलासँ बच्चा हेहरु भऽ जाइ छै कि ने ? हँ ते कहै छलौं ने , गामपर एलौं तँ काकीकेँ कहलिएनि जे ऐहन-ऐहन खुरलुच्ची बेदरा सेने कोनो मेला-ठेला नै जाय। काकी अकचका कऽ पुछलनि तँ सभ खेरहा कहलिएनि। उमेरक अन्तर रहितौ चौल करबे करैत छलिएनि। जूरशीतलमे अछीनजलसँ असीरवाद दइते छलिएनि। फगुआमे रंग-रंग खेलवो करै छलौं। (सुभद्रा दिशि देखि) बहीनि , अहाँक मालिकसँ कम्मे उमेरमे हमर मालिक संग छोड़लनि। करीब साठि बरीससँ उपरे भेलि हएत। अहाँ तँ एक बएसपर आबि गेल छी। भगवान कोनो चीजक परिवारसँ समाज धरि , कमी देने छथि जे सोग-पीड़ा करब। दुनियाँ फुलवारी छिअए। एक अबैत अछि एक जाइत अछि। जहिना सालो भरि एकटा (जड़-चेतन) जन्म लैत अछि , एकटा जुआनीक आनन्द लैत अछि आ एकटा पाकि कऽ सुखैत अछि। तहिना तँ मनुक्खोक होइत अछि। तहूमे भगवानक फुलवारीक अजीव गति छनि। हुनका फुलवारीमे सालक कोन , मासक कोन , दिनक कोन जे छने-छन एकटा अबैत अछि तँ दोसर जाइत अछि। हम अहाँ मनुक्ख छी। असकर मनुक्ख रहितो सामाजिक सेहो अछि। मुदा पहिने मनुक्ख छी तखन किछु आर। मनुष्यकेँ मनुष्यत्व प्राप्त करब प्रमुख काज छी। जखने मनुष्यकेँ मनुष्यत्व प्राप्त भऽ जाइत तखने ओ दुनियाँकेँ चिन्हए-जानए लगैत। अपन परिवारसँ समाज (मनुष्य-मात्र) धरिक संबंध स्थापित कऽ लैत अछि। जहिसँ संबंधक अनुरुप अपन दायित्व निमाहए लगैत अछि। ओना बच्चा-रघुनन्दन हमरा आगूमे बच्चे छथि। भलेहीं सामाजिक संबंधमे भाए-भौजीक संबंध अछि। मुदा भगवान अनुचित केलनि। उचित ई होएत जे पहिने हमरा लऽ चलितथि। ई विचार मनमे अबिते दुनू आँखि ढबढ़बा गेलनि।
बचनू , चंचल , झोली , बौकू आ बतहू , देहक कपड़ा उताड़ि खाली देहपर तौनी आ डाँड़मे धोती पहीरने कान्हपर कुड़हरि नेने पहुँचल। अंगनासँ दरवज्जा धरि जनिजाति , पुरुख आ बच्चा सभसँ भरल लोकक भीड़ि देखि देवनन्दनक मन उड़ैत रहनि। अंगनासँ दरवज्जा धरि पिताक हँसैत आत्मा देखथि। विसरि गेलाह अपन जिनगी। मनमे हुअए लगलनि जे बिनु कहनहुँ समाज कोना अप्पन काज बुझैत छथि। ऐहन काज समाजक केबल मृत्युए समए नहि , बेटा-बेटीक बिआहक संग अनेको समए हाेइत अछि। संग मिलि हँसी , संग मिलि कानी , संग मिलि गाबी आ संग मिलि नाची , तँ एहिसँ सुन्दर की होइत अछि। सुख ककरा कहबै ? जहि सुख लेल लोक नीचसँ नीच काज करैत अछि मुदा , पाबि नहि पबैत अछि।
एक छिन्ना धोती पहिरने श्रीकान्त पहुँचलाह। श्रीकान्त मधुवनी कोर्टसँ बड़ाबावूक पदसँ सेवानिवृत भेलि छलाह। मुँह निच्चाँ केने सोझे आंगन पहुँच ओ पएर छुबि गोड़ लागि एकटंगा दऽ ठोर पटपटबैत फुसुर-फुसुर कहए लगलखिन- “ काका , अहाँ परसादे जिनगी भरि कुरसीपर वैसि सेवा निवृत भेलहुँ। जहिसँ जहिना जिनगी चैनसँ बितेलहुँ तहिना अगिला शेष जिनगी सेहो बिताएव। ” सुभद्रा दिशि देखि बजलाह- “ काकी , हमहूँ अही समाजक बेटा छी। जहिना अहाँ देवकेँ बुझैत छिअनि तहिना बुझब। ”
श्रीकान्तक बात सुनि सुभद्रोकेँ मन पड़लनि। मनमे उठलनि जे देखियौ कौल्हुका छौँड़ा बूढ़ भऽ गेल। बूढ़ा तँ सहजहि झुनकुट बूढ़ छलाह। हवा-बिहाड़िमे टूटि कऽ खसवे करितथि। ऐहन मृत्यु भगवान सभकेँ देथुन। ऐहन मृत्यु तँ धरमतमे सभकेँ होइत छैक। कोनो कि हमरेटा चूड़ी फुटल , सिन्नुर धुआएत आकि दुनियाँमे बहुतोकेँ होइत अछि।
मूड़ि निच्चाँ केने श्रीकान्त अंगनासँ निकलि दरवज्जापर आबि देवनन्दनक बगलमे चुपचाप बैसि गेलाह। किछु बजैक साहसे नहि होइत रहनि। जना जीह्वामे थरथरी आबि गेल रहनि। साहस बटोरि , आँखि उठा , देवनन्दनकेँ कहलखिन- “ बाउ देव , ओना अहाँ बच्चा छी मुदा , हमरासँ सभ तरहेँ उपर छी। अपन बात कहै छी। अखुनका जेकाँ पहिने घरक स्थिति नहि रहाए। बाबू बड़ मेहनती रहथि। जहिना मनुक्खक किरदानी तहिना दैवीए प्रकोप सेहो सदिकाल चलिते रहए। एक दिशि बइमानी-शैतानी तँ दोसर दिशि पानि-बिहाड़ि भूमकम , रौदी , शीतलहरी होइते रहए। तइपर सँ रोग-व्याधि सेहो चलिते रहए। जखन टेस्ट परीक्षा दऽ पास केलौं तँ फार्म भरैक समए आएल। बाबू अस्सक रहथि। कालाजार भऽ गेल रहनि। (कालाज्वर सुनि देवनन्दनक मनमे एलनि जे सचमुच अपना इलाकामे कालाज्वर अखुनका केन्सरसँ कम नहि छल) दिनानुदिन देह हहड़ले जाइत रहनि। गुणाकरपुरसँ हाथीक लिद्दी आनि-आनि दिअनि। बच्चे रही तेँ बुझवो कम करियै। माए जे कहए से कऽ दिअए। फारम भरैले रुपैआ माएसँ मंगैक साहसे ने हुअए। भरि दिन तंग-तंग देखिएनि। दोसर-दोसर विद्यार्थी सभ फारम भरि लेलक। हमरा मनमे विचित्र उथल-पुथल होइत। अंतिम तारीख अबैत-अबैत आशा टूटि गेल। जेना विपत्ति कपारपर आबि गेल हुअए तहिना बुझि पड़ए। दुनियाँक रंग बेद-रंग लागए लगल। अंतिम दिनक चारि बजे , हेडमास्टर सहाएव एकटा विद्यार्थी दिअए समाद देलनि जे “ काल्हि धरि हमरा लग फारम रहत तेँ तूँ आबि कऽ फारम भरि लाए। कौल्हुका बाद भरब कठिन भऽ जेतह। ?” ने कोनो काज नीक लगे आ ने खेनाइ-पीनाइ। मनमे आएल एक बेरि रघुनन्दन कक्काकेँ कहिएनि आबि कऽ सभ बात कहलिएनि। पुछलनि- “ कहिया धरि काज छह ?”
कहलिएनि- “ आइ तँ आखिरी तारीक छी मुदा , हेड मास्सैव एते दया केलनि जे काल्हि धरि समए देलनि। दरबज्जेपर सँ काकीकेँ बक्सामे सँ रुपैआ नेने अबैले कहलखिन। जहिना बच्छाबला पैकार देने रहनि , तहिना आनि कऽ आगूमे रखि काकी कहलकनि- “ घरमे एक्कोटा चाउर नहि अछि....। जहिना काकी कहलखिन तहिना कक्का उत्तर देलखिन- “ एक-दू साँझ भुखलो रहि जाएब। मुदा एक जिनगीक प्रश्न अछि। तेँ ऐहने सभ काजकेँ ने लोक धरम बुझैए। ” रौदियाह समए रहए। जहिसँ गामक लोक कियो मड़ूआ रोटी , तँ कियो कोटाक जनेरक रोटी , कियो अल्हुआ तँ कियो खेसारीक उसना खाए। सेहो सभकेँ भरि पेट नहि होइ। कते गोटेकेँ तँ साँझक-साँझ चुल्हि नहि चढ़ैत रहए। कहैत-कहैत श्रीकान्तक आँखिमे नोर टघरए लगलनि। जते दुखक ताप श्रीकान्तक आँखिसँ टघरि-टघरि निच्चाँ खसैत तते देवनन्दनकेँ धरतीसँ उठैत हवासँ हृदय शीतल हुअए लगलनि। पुछलखिन- “ अखन परिवारक की स्थिति अछि ?”
धोती खूँटसँ आँखि पोछैत कहलखिन- “ बाउ , बड़ सुखसँ जीवैत छी। दुनू भाँइ बी.ए. पास कऽ नोकरी करैए। जेठका हाई स्कूलमे अछि आ छोटका ब्लौकमे। शनिए-शनि दुनू भाँइ अबैए आ सोमकेँ सबेरे खा-पी कऽ चलि जाइए। दुनू पुतोहूओ आ पाँचो-पोतीसँ घर भरल अछि। अपनो पेन्शन भेटिते अछि। भगवान बेटी नहि देलनि। मुदा तइओ दुनू बेटाकेँ पढ़ा , रहैले छह कोठरीक माकन आ तीनि बीघा खेत कीनिलहुँ। चौमासमे एकटा कल गरा देने छियै , जहिसँ तीमन-तरकारी कीनै नहि पड़ैत अछि। बाकी खेत बटाइ लगा देने छियै। भरि दिन अनमेनामे लगले रहै छी। कखनो ई नहि बुझि पड़ैए जे समए कोना काटब। एते दिन तँ ऑफिसेक फाइल उघलौं मुदा , आब दू घंटा कऽ रामाएण , महाभारत पढ़ै छी। तहि लागल बच्चे सभकेँ अपनो पढ़ा दइ छियै आ गोटे-गोटे खिस्सा रामाइनो-महाभारतसँ सुना दइ छियै। सालमे एक बेरि महिना भरिक हिसावसँ देशाटन सेहो कऽ लैत छी। जहिसँ तीर्थाटनो भऽ जाइत अछि। अपनो तँ बहुत नहिये अछि मुदा , कक्का बतौल बातकेँ अखनो कान धेने छी जे अपनासँ निच्चाँक जँ कियो किछु मंगै अबैत तँ नहि पान तँ पानक डंटियो लऽ जरुर सेवा करै छियै। मनमे कखनो कोनो चिन्ता नइ रहैए। ”
तहि बीच किसुनलाल साबेक जुटि खोलि भिजौने आबि दलानक आगूमे वैसि खरड़ै लगल। कान्हपर कुड़हरि नेने सोधन आबि करियाकाकाकेँ पुछलकनि- “ भैया , बाँस कटवै। ”
“ के सभ जाइ छह ?”
“ कएक टा कटबै ?”
“ रौ बुड़िबक , इहो पुछैक गप्प छी। खूब नमगर-चौड़गर चचड़ी बनवैक अछि। कोन चीजक कमी भैयाकेँ छन्हि जे मचोड़ि-सचोड़ि कऽ घरसँ बहार करबनि। कमसँ कम तँ चारिटा बाँस आनह। दूटा मुठवाँसी आ दूटा छिपगर लऽ आनह। ”
“ कोन बीटमे कटबै ?”
“ ऐना अनाड़ी जेकाँ किअए पूछै छह। तोरा कि नै देखल छह ?”
“ से तँ सभटा देखल अछि। साले-साल काटि कऽ लऽ जाइ तइओ ने देखल रहत। आकि आबे विसरि जाएब। जहिना जेठ भैया जीवैतमे छलाह तहिना तँ आगूओ रहता की ने। पाँचटा बाँस साले-साल सोझहोमे कटै छलिएनि परोछोमे कटबनि। मुदा से ने कहलौं। कहलौं जे हरोथक बीटमे कटवै कि चाभमे ?”
सोधनक बात सुनि करियाकाका गुम्म भऽ सोचए लगलथि। मुदा बुझल-गमल काज तेँ सोचैमे देरी नहि लगलनि। मुस्की दैत कहलखिन- “ हरोथ मरदनमा बाँस होइए छाती धरि मोंछ-दाढ़ी रहै छै। ओकरा चिक्कन बनबैमे देरी लगतह। संगे एकटा आरो ओजार -पगहरिया- तीनि दिन जहल चलि जाएत। काजक घरमे सभ चीजक काज बढ़ि जाइत अछि। ”
करियाकाकाक बात सुनि हँसैत सोधन वौकू दिस बढ़ल कि तखने धड़-फड़ाएल दुनू परानी लेलहा आएल। अपनाकेँ अपराधी बुझि करियाकाकाक आगूमे ठाढ़ भऽ गेल। करियाकाका बुझि गेलखिन जे भरिसक कतौ गेल छलै तेँ पछुआ गेल। आगू चलैबला जँ पछुआ जाइत तँ तेकर कारण होइ छै पछिला काज। मुस्कुराइत कहलखिन- “ चेला , अखन धरि सुतले छेलह ?”
ठोर विचकबैत लेलहा कहलकनि- “ काका , कतेक दिनक पछाति आइ काज लागल। वएह करैले चलि गेल छलौं। ”
“ कोन काज करए गेल छेलह ?”
“ घुरना भैयाकेँ आठ गो मझोलके शीशो गाछ छै वएह पांङेले गेल छेलौं। एक ते एहन गाछ नै देखलौं। सदिकाल चुट्टी आ घोरन लड़ाइये करैत रहैत अछि। मुदा आइ तँ अद्भुत देखलौं। चारिटा गाछपर ने चुट्टी ने घोरन छलै। मुदा एक भागक दूटा गाछमे लोहाड़ि रहए आ दूटा पर घोरन। तीनिटा तेँ पांगि नेने छलौं कि सोनमा माए दौड़ल आबि कऽ कहलक। जे रघू दादा मरि गेलखिन। छिप्पी दिससँ थोड़े पांगि नेने रही। सोचलौं जे उतड़ैमे ओते घोरन कटबे करत जते कटैक छै... ;
उत्तेजित भऽ
....ऐँह काका की कहब पाँखिबला बड़का-बड़का घोरनक छत्ता रहए। ओही पुरवैमे कनी अबेर भऽ गेल। ”
“ अच्छा की हेतै। अखन ते ढेरो काज पछुआएल अछि। भने टेंगारियो अननहि छह। सोधनक संग जा बाँस काटि आनह। ”
“ काका , कड़ची टाट बनबैले लऽ लेब। ताबे ओतै बोझ बान्हि कऽ रखि देवइ। ”
“ बड़बढ़ियाँ। ”
“ कक्का मूजक काज तँ सेहो ने हएत। ”
“ भने मन पाड़ि देलह। बिसरले छेलौं। ”
घरवालीकेँ लेलहा कहलक- “ पहिने दुनू गोटे काकाकेँ दर्शन कऽ लिअ। तखन हम बाँस काटए जाएब आ अहाँ मूज नेने आउ। गठूलाक बत्तीमे खोंसि कऽ रखने छी। अधा रखि लेब अधा नेने आएब। ”
कहि लेलहा करियाकाकाक कानमे फुस-फुसा कऽ कहलकनि- “ कक्का , थाकि गेल छी। पियासो लगि गेल अछि। पानि तँ पीबि लेब मुदा , अखन खाएब कोना। एक बेरि चीलमक भाँज लगा दिऔ। ”
लेलहापर करियाकाका बिगड़लखिन नहि! सोधनकेँ आँखिक इशारासँ कहलखिन- “ कुड़हरि-टेंगारी लेलहाे आ झोलीकेँ दऽ दहक आ हमर नाम कहि बौकासँ पाँच रुपैआक गांजा लऽ ओतै -बँसवीटी- पीबि लिहह। ”
काजक जुति-भाँति लगा करियाकाका बँसवाड़ि पहुँच गेलाह। तीनू गोटे गजोक पीवैक तैयारी करैत आ दुनू बापूत रघुनन्दन-देवनन्दनक तुलनो करैत रहए। सोधन बाजल- “ देवनन्दन कतबो पैघ डॉक्टर सहाएब भऽ जेता मुदा , तइसँ की रघू कक्काक परतर हेतनि ?”
सोधनक बात सुनि करियाकाका जिज्ञासासँ पुछलखिन- “ से की ?”
“ भरि दिन कक्का महादेव जेकाँ लेन-देन करैत छलाह। डॉक्टर साहाएब बुते से हेतनि। ”
चीलममे दम मारि , ऊपर मुँहे धुँआ फेकैत करियाकाका बजलाह- “ अपने बात सोधन कहै छिअए। भलेहीं लोक हमरा माइयो-बापकेँ दोख लगा कहि दैत अछि जे जाबे माए-बाप , जन्मदाता भगवान ओ किछु गुण नहि देखलखिन तावे करिया नाम किअए रखि देलखिन। कोनो की हमर देहक रंग कारी अछि। तेँ , हम तँ समाजमे कलंके बनि जन्म लेने छी। कतबो लोककेँ बुझेबै तइओ हमर बात तरे पड़ि जाइत। जकरा बुझा देवइ ओ बुझि कऽ मुँह बन्न कऽ लेत। जेरक-जेर जे जनमि-जनमि कऽ नवका पीढ़ी बनबैत अछि ओ कोना बुझतै ? मुदा तइले दुख कहाँ होइए। हम तँ ओहन समाजक लोक नहि छी जे वित्तीय गामक सीमामे घर बना बुझैत अछि। हम तँ ओहि समाजक छी जहिमे जन्मसँ मृत्यु धरिक गाड़ी गुड़कैत अछि। पलहनिक ऐठामसँ लऽ कऽ असमसान धरि। ”
जाधरि करियाकाका बजैत रहति ताधरि लेलहा दू दम मारि लेलक। गहूमन सॉपक बीख जेकाँ लेलहा कऽ निशाँ चढ़ि गेल। सोधनक हाथमे चीलम दैत बाजल- “ कक्का , एक बेरि पटुआ काटए असाम गेलहुँ। अपना इलाकाक बहुत लोक साले-साल पटुओ आ धानो काटए मोरंग , असाम , ढाका धरि जाइत छल। मुदा हम पहिले-पहिल गेल रही। काकरभिट्टासँ बस पकड़ि सिलीगोड़ी होइत असाम गेलहुँ। एकटा बड़का धार -ब्रह्मपुत्र- देखलियै। बसक कंटेक्टर ओंगरीसँ एकटा पहाड़ देखबैत बाजल जे कामरुप कामाख्या मंदिर ओही पहाड़पर छै। ”
चीलम बढ़बैत सोधन पुछलक- “ कोन कमख्या ?”
सोधनक बात सुनि ठहाका मारि हँसि लेलहा बाजल- “ भैया , तोहूँ अनठा-अनठा बजै छह। हौ वएह कमख्या जइ ठीनसँ लोक जोग-टोन सीखि-सीखि अबैए आ अपना इलाकामे मौगी सभकेँ ठकैए। कहतह जे सभसँ पक्का मंत्र हमर कोखिया गुहारिक अछि। शुक्रक बेरागनक दस बजे रातिमे गुहारि करए जेतह। ”
सोधन- “ ओइ स्थानपर जा कऽ नहि देखलहक ?”
“ ऐँह , भैया तोहू हद करै छह। जखैन गौहाटी पहुँच गेलौं। तखैन नै जैइतहुँ। गेलौं। ते देखलियै जे चिड़ैसँ लऽ कऽ मनुक्ख धरिक वलि होइए। हँ , ते कहै छेलियह जे जखन बससँ उतड़लौं ते पानि पड़ैत रहै। कनियेँ काल अँटकलौं कि पानि छुटि गेलै चाह पीना बड़ीकाल भऽ गेल रहए। चाह पीवैले मन लुस-फुस करैत रहए। किछु नीके ने लगाए चारु गोटे एकटा चाहक दोकानमे गेलाैं तँ दोकानक सजाबट देखि कऽ किछु ने फुड़ल। अपना इलाकामे ओ सजावट कहाँ अछि। ”
सोधन- “ केहन सजाबट रहै ?”
लेलहा- “ दोकानदारेसँ पुछलियै ते कहलक ई बाँसक कैमचीक बनौल छियै। ओकर बनाइ देखि आश्चर्य लगल जे केहेन-केहेन लुरिगर लोक सभ अछि। बाँसेक कुरसी , टेबुल , गिरहक कप बनौने अछि। सिंहदुअरि परक मेहरावकेँ आध घंटा देखैत रहलौं। पथिया-मौनी तँ अपनो इलाकामे बनबैत अछि मुदा , ओहन कहाँ बनवैए। ने ओहन मेघडम्बर बनबैए आ ने ओहन मंदिर नुमा घर...
मुस्की दैत- ...ओम्हुरका बाँसो अजीब अछि। अपनो इलाकामे बीस-पच्चीस रंगक बाँस अछि। मुदा ओम्हर तँ सइयो रंगक अछि। जेहन कड़चीक दतमनि बनवै छह तेहन सऽ लऽ कऽ भरि-भरि पाँजक देखवहक। पालकीमे जे बाँस देखै छहक , बीटक-बीट ओ बाँस अछि। छत्ता बेट बनवैबला सेहो अछि। पुरान-पुरान बाँसक बीट सभ फुलाएल-फड़ल सेहो अछि। ”
चीलमो सठल। उठैत करियाकाका बजलाह- “ बेसी देरी नहि लगबिहह। हम ताबे आगू बढ़ै छी। ”
करियाकाकाक बात सुनि लेलहा- “ कक्का जहिना पानि उतड़ल कोदारि , खुरपी , हँसुआ इत्यादिसँ काजो कम होइत आ भीरो बेसी होइत। तहिना पनिउतड़ू पुरुख आ पनिचढ़ू पुरुखक काजमे होइत अछि। एत्तेकाल पनिउतड़ू छलौं आब पानि चढ़ि गेल। अहाँ पहुँचवो ने करब कि तइसँ पहिने हमसभ पहुँच जाएब। मुदा एकटा बात कहि दइ छी “ रघू कक्का गामक मेह छलाह। ” ई अंतिम काज समाज कऽ कान्हपर अछि तेँ नीक जेकाँ होिन। ”
चारिटा बाँस काटि तीनू गोटे पहुँचल। दुनू मुठबाँसीक दूटा बल्ला बनौलक। वाकी दुनू छिपगरहा फट्ठा बनबैले टोनए लगल। दू गोटे टोन बनबै आ दू गोटे दू-दू फाँक कऽ फट्ठा बनबए लगल।
रघुनन्दनक मृत्युक समाचार सुनि दियादीक बीच चुल्हि बन्न भऽ गेल। मुदा दियादमे एकरुपता नहि। जहिक चलैत किछु चुल्हि बन्न भेल आ किछु जरिते रहल। गाममे सभसँ नमहर दियादी रघुनन्दनक छन्हि। से कोनो एकाएक आइये भेलनि , से नहि। पहिनेसँ चलि अबैत छन्हि। पहिलुका रुतबा आब नहि छन्हि मुदा , तइओ गामक लोक मने-मन बुझैत अछि। पहिलुका रुतबा कमैक कारणो भेल। बेटीक बाढ़ि एने किछु परिवार तँ उपटिये गेल जे जहियासँ सतना आ रमचन्द्रा भेल तहियासँ तँ आरो दियादी घिना गेलनि। दुनू ऐहन भेल जे गामक कोन बात जे अपनो कुल-खनदानक बहीनिकेँ बहीनि नहि बुझैत। जहिसँ आनो-आनो आ अपनो परिवाक बूढ़-पुरान “ छगड़ा गोत्र ” कहए लगलथि। एहि सभ दुआरे रघुनन्दनोकेँ दियाद-वादसँ ओते मेल नहि रहनि जते सभ चाहनि। एकटा बात अखनो जरुर अछि जे आन दियाद आन जातिसँ कोनो तरहक झगड़ा-झंझटमे सभ एक भऽ जाइए। अखन धरि एते जरुर निमाहैत एलनि जे अर्थी-लहासकेँ अपने दियाद उठा कऽ अंगनासँ गाछी लऽ जाइत छथि।
अखनो गाममे सभसँ अधिक पढ़ल-लिखल दियादी-परिवार देवनन्दनेक छन्हि। मुदा गुरुकाका आ पढ़ुआ भैया ओछाइने धेने छथि। जहिया दयाकान्त डॉक्टरी पढ़ि नोकरी शुरु केलनि तहियेसँ धिया-पूताक संग गाम छोड़ि देलनि। तहिना उमाकान्तो इंजीनियरिंग पढ़ि केलनि। आब तँ सहजहि चलनिये माने फैशने भऽ गेल अछि साधारणो नोकरी केनिहार सभ गाम छोड़ि दइए। उमेरे तँ गुरुओ काका आ पढ़ुओ भाय बूढ़ नहिये भेलाहेँ मुदा , सोगे दुनू गोटे ओछाइन पकड़ि लेलनि। नीको मन रहै छनि तइओ घरपर सँ कतौ नहि जाइत छथि
अखुनका लोकक माने मर्द-औरतक जे छिछा-बिछा देखै छथिन तहिसँ मन सदिखन खसले रहै छन्हि। नवका लोको तेहने भऽ गेल अछि जे नीक विचार , नीक काजकेँ शब्द मात्र बुझैत छथि ओकर व्यवहारिक पक्षक गुणकेँ नहि बुझैत छथि। बुझवो कोना करताह ? जे कोनो फल काज केलाक उपरान्त भेटैत अछि ओ बिनु केने कोना भेटि सकैए। दियादीक परम्पराकेँ निमाहैक लेल सुखदेब देवनन्दन लग आबि कहलखिन- “ बौआ देव , अहाँ बच्चा छी तेँ दियादीक परम्परा कऽ नै बुझै छियै। अखन धरि अपना दियादीमे चलनि रहल जे लहासकेँ आंगनसँ गाछी अपन परिवारक -दियादीक- समांग अठा कऽ लऽ जाइत अछि। ”
सुखदेवक बात सुनि देवनन्दन किछु नहि बजलाह। मुदा कातमे ठाढ़ करियाकाका मुस्कियाए लगलाह। मनमे नचैत रहनि जे अखन गाममे छथि तेँ बेसी फुड़ै छन्हि। देह तेहन बनौने छथि जे अपन धोधि सम्हरबे ने करैत छनि , डॉड़सँ धोती ससरि-ससरि खसैत छन्हि आ रुआब बब्बेबला छन्हि। देवनन्दन दिशि देखि सुखदेवकेँ कहलखिन- “ हओ सुखदेव , भाय-सहाएब जाति-दियादसँ आगू बढ़ि समाजमे छथि तेँ कियो अपन करबह। जँ तोँ गाछिये लऽ जेवहुन तँ एहिमे अधला की ? इहो ते एकटा काजे भेल। लेकिन खाली बजनहिटा सँ ते नहि हेतह। तहि लेल संगोरो करए पड़तह। ” कहि करियाकाका मुँह चुप कऽ लेलाह किन्तु मनमे अबैत जे- जिनगी वितलनि वौहुक संग सिनेमा देखैमे आ ऐलाहेँ अपनत्व बुझैले। कोनो गत्रमे लाजो ने होइ छनि। मुदा एहि गप्पकेँ मनहिमे राखि बात बदलैत फेरि बाजलाह- “ जाधरि हम सभ ऐम्हुरका ओरियान करै छी ताधरि तहूँ संगोर केने आवह। ”
तहि बीच सुन्दर काका धड़फड़ाएल पहुँचलाह। दुनू ममिऔत भाय परसू कपड़-फोड़ोबलि कऽ नेने रहथिन ओहिक जिज्ञासामे गेल रहथि। दुनू ममिऔतक बीच डेढ़ कट्ठा घरारी। बीच गाममे घर छनि। गामो गदाल तेँ एक्को घुर घरारी कीनब असाध छनि। के अपन घर तोड़ि देतनि। ओना बाधमे पाँच बीघा खेत छनि मुदा धरारीक सुखे तँ असकरे बाधमे नहि बसताह। नानाक परिवार समटल रहने अइल-फइलसँ रहै छलाह। मालोक थैर नारक टालो बना लैत छलाह। इनारो अंगनाक कोनेमे रहनि। मुदा अपना परोछ होइते मनुक्खक बाढ़ि घरमे आबि गेलनि। दुनू भाँइ भिनौज कऽ लेलनि। करबो नीक बुझि पड़लनि। करमी लत्ती जेकाँ जेठका भायकेँ परिवार चतड़ि गेलनि। भगवानो दहिन भऽ सातटा बेटा आ छहटा बेटी देलखिन। पढ़वैक तँ कोनो समस्ये नहि जे विआहो-दान पछुआएले रहनि। मुदा तइओ घरक अभाव बुझि पड़ए लगलनि। अपने टी.बीक रोगी। धिया-पूता जनमबैत घरोबाली तेहने। मुदा जहिना क्रोध तहिना जेठ हेवाक रुआब मनमे दुनू गोटेकेँ रहबे करनि। छोट भाएकेँ दूटा बेटे टा। तेँ , कोनो तरहक अभाव नहि बुझि पड़नि। एक पीठिया पाँचो भाँइ लाठी उठौलक। समांगक पातर छोट भाए , कपार फोड़ा लेलनि। मुदा घरवाली बदला लइये लेलखिन। पहिने भायक चानिपर खापड़ि फोड़ि दियादिनीपर कनखा पटकैत कहलखिन- “ भरि दिन आहि-आलम करैत रहतीह आ राति कऽ केहन सुरखुड़ू भऽ जाइ छथि। ”
छोट दियादनिक गारि सुनि तँ उनटवै चाहलनि मुदा , तावे टोलक लोक सभ आबि झगड़ा छोड़ा देलकनि। ओहि झगड़ाकेँ निपटवैक लेल सुन्दरकाका गेल रहथि। मात्रिकेमे पता लगलनि जे रघुनन्दन भाय देश छोड़ि देलनि। मामकेँ पनरह दिनक समए दऽ आबि गेलथि। गाम अबिते अंगा , चप्पल निकालि धोतीक खूँट देहपर लऽ विदा भेला। अंगनासँ निकलिते पता लगलनि जे लहास अंगनेमे अछि तेँ गाछी दिसक रास्ता छोड़ि घरे दिसक पकड़लनि। डेढ़ियापर पहुँचते करियाकाका सोझमे पड़ि गेलखिन। पुछि देलखिन- “ काज सूढ़िआएल छह कि पछुआएल छह ?”
नजरि घुमबैत करियाकाका कहलखिन- “ ऐम्हुरका काज तँ डोरिआएले अछि मुदा...... ?”
“ बड़वढ़ियाँ ? कहि सुन्दरकाका आगू बढ़ि रघुरन्दन लग पहुँच गोड़ लागि ठोर पटपटवैत फुसुर-फुसुर कहलखिन- “ जिनगी भरि संगे रहलौं तेँ जँ किछु ऊँच-नीच भऽ गेल हुअए ते विसरि जाएब। ” कहि सुभद्रा दिशि देखि मुस्किया कऽ कहलखिन- “ भौजी। ”
सुन्दरकाकाक बोली सुनि सुभद्रा आँखि मिलवैत कहलखिन- “ बच्चा। ”
सुभद्राक मुँहे “ बच्चा ” सुनि सुन्दरकाका चोट्टे अंगनासँ निकलि देवनन्दन लग आबि कहलखिन- “ वाउ देव , दुनू भाँइमे तीनिये मासक जेठाइ-छोटाइ अछि। बच्चेसँ दुनू भाँइ संगे बितेलहुँ। सभ ओरियान तँ देखि रहल छी मुदा , भजनियाँ सभ कहाँ अछि। मृत्यु सोगे नहि खुशियो होइत अछि। खुशी तँ तखन होइत जखन खुशीक काज होएत। भाय-सहाएव अपनो रामाएण , महाभारत गबैत छलाह। संगे भजनियो-कीर्तनियाँक सेहो सुनैत छलाह। आइ जखन दुनियाँ छोड़ि रहलाहेँ तखन पाँचटा भजनो किअए नहि संग कऽ दिअनि। ”
सुन्दरकाकाक विचार सुनि देवनन्दन अवाक् भऽ गेलाह। मने-मन विचारि कहलखिन- “ कक्का , सभ बात तँ समाजक वुझैत नहि छी तहन ते करियाकाका जेना-जेना करैत छथि , से देखै छी। ”
देवनन्दनक बात सुनि सुन्दरकाकाक मनमे एलनि जे भरिसक किसुनलालकेँ नजरिमे नै एलै। मन लहरए लगलनि। जोरसँ तँ नहि मुदा , आस्तेसँ बजलाह- “ सुआइत लोक ओकरा कन्हा कहै छै। जेम्हरे देखत ओम्हरे बरिसत। ” टाटक अढ़सँ किसुनलालो सुन्दरकाकाक बात सुनलनि। मुदा किछु टोक-टाक नहि केलनि। भजनियाकेँ बजवैले सुन्दरकाका विदा होइत जोरसँ बजलाह- “ किसुन , भजनिया ऐठाम जाइ छी ताबे ऐठामक ओरिआन करह। ”
किछु दूर आगू बढ़लापर मन पड़लनि कि घुरि गेला। सुन्दर भायकेँ घुमैत देखि किसुनलालकेँ भेलनि जे भरिसक किछु गंजन बाकी रहि गेल से करैले घुमलाह। डोलैत छातीकेँ असथिर केलनि। मुदा भऽ गेल उन्टा। जहिना किसुनलाक मन गंजन सुनैले मन्हुआएल तहिना सुन्दरो भायक किसुनलालसँ पूछैले मन्हुआएल। लगमे आबि पुछलखिन- “ किसुन , समरथाइमे तँ साज-बाज बला भजन-किर्तन सुनए छलौं मुदा , आब तँ मने-मन गबै छी। अखन के सभ गबैया अछि ?”
अपन पुछब सुनि किसुनलाल उत्तेजित भऽ कहलखिन- “ आब की कोनो कमी छै। एते दिन ढोल-पीपहीपर जीबछ भाय गबैत छलाह। गुणापर छीतन आ रंगलाल सिंगा बजवैत छलाह। तीनूकेँ भाय-सहाएबसँ अपेछा छलनि। तीनू जीविते अछि , तेँ तीनू गोटेकेँ कहि देव आवश्यक अछि। ”
दुनू गोटे गप-सप्प करिते रहति कि बाँस-टेंगारी रखि लेलहा आबि बाजल- “ कक्का , एक बेरक खिस्सा कहै छी। भैयाक विआह रहए। बाउ हमरा लोकनियाँ जाइले कहलक। अपन मन वरिआती जाइक नै रहए। किऐक ते रजकुमराक विआह रहए। बच्चे रही। बिनु कहनहि बरिआतीक पछोर लागि गेलौं। अखुनका जेकाँ गाड़ी-सवारी थोड़ै रहै जे उताड़ि दइत। घरवारी ऐठाम पहुँचलापर हमरो गिनती भऽ गेल। भुजल बदाम , आ चूड़ा जलखै देलक। लूँगी मिरचाइ तेहेन कड़ू रहै जे ओहि लाटमे खूब खेलौं। रातियोमे खूब खेलौं। गद्पर गद् भऽ गेल। अफरि गेलौं। मन हुअए जे खूब फलिगर विछान होइत तँ ओंघरा-ओंघरा सुतितौं। दलान छोट रहए। चेतन सभकेँ ते दलानपर अँटाबेश भऽ गेलै मुदा , बच्चा सभकेँ जगहे नै भेलै। पछाति घरवारी मालक घरसँ मालकेँ निकालि बहरामे बान्हि देलक आ ओहिमे पुआर पसारि बिछान कऽ देलक। ओछाइन देखि मन खुशी भेल। एक कातमे पहिने जा कऽ जगह पकड़ि लेलौं। कत्तू रातिमे घरबारी छौंड़ा सभ आबि टीकमे चिड़चिड़ी आ देहमे कबछुआ पत्ता रगड़ि देलक। लगवै काल नै बुझलियै मुदा , जखन चुलचुलाए लगल कि नीन टुटल। बोरामे कसल धान जेकाँ पेट रहए। कुरियवैबला हाथ दुइयेटा रहए , आ कुरिआए सगरे देह। उठि कऽ ठाढ़ भऽ निच्चाँसँ उपर कुरियाबए लगलौं कि माथपर हाथ पड़ल। दुनू हाथ देलियै कि सौँसे माथ मानी-चानी सुपारी जेकाँ बुझि पड़ल। टोबैत-टोबैत ओंगरी टीकपर गेल कि मौगीक खोपा जेकाँ बुझि पड़ल। एक भागसँ चिड़चिड़ी टीकमे छोड़बी तँ दोसर दिस पकड़ि लिअए। ऐम्हर सौँसे देहो चुलचुलाइत रहए। तइपर सँ हुअए जे पेट फुटि जाएत। महा-मोसकिलमे पड़ि गेलौं। तामस उठि गेल। दुनू कान पकड़ि सप्पत खेलौं जे बरिआती नै जाएब। मुदा फेरि मनमे आएल जे अगर हम नै ककरो बरिआती जेबै तँ हमरा के जाएत ? जँ बरिआती नै जाएत ते विआह कना हएत ? कोनो कि ककरो फुसला कऽ मंदिरमे जा , कए कऽ लेब आ पछाति पनचैतीमे लाठी खाएब। बिनु बरिआतिये विआह केहन हएत ?” विआहक गवाह के हएत ? कहियो कोनो भगड़ा हएत तँ पनचैती के करत। एक तँ सगरे देह नोचैत तइपर सँ विआह मन पड़ि गेल। विआह मन पड़िते मनमे उपकल जे जाबे दुख नै काटब ताबे बोहूक सुख कना हएत ?”
मुस्की दैत करियाकाका कहलखिन- “ तोहूँ सभ दिनक ढहलेले-बकलेल रहि गेलेँ। भैयाकेँ की कहै छहुन से ने कहबहुन ?”
करियाकाकाक बात सुनि लेलहाक मन नोचनीसँ हटि भायक विआहपर पहुँचल बाजल- “ जखन बाउ कहलक जे लोकनियाँ जइहेँ , तखनेसँ आँगी-पेन्ट साफ करैक मन भेल गामपर तँ फटलौ-पुरान आ मैलो-कुचैल पीहिन लइ छी। बरिआतीमे ते छौँड़ी सभ पीहकारिये मारत। उसराहा परतीपर सँ उस आनि माएकेँ कहलियै खूब नीक जेकाँ उसैन दइले। जखन उसैन देलक आ सरेलै ते पोखरिक घाटपर जा कऽ खूब उज्जर कऽ खीचिलौं। दू ठीमन अंगा फाटल रहए। माएकेँ सी दइले कहलियै। काकीसँ सुइयाँ आनि पुरना साड़ीक पाढ़िसँ डोरा निकालि सीवि देलक। ”
काजक धुमसाही देखि करियाकाका कहलखिन- “ अखन कते पछुआएल छह सेहो बुझै छहक। जे कहैक छह से झब दे कहुन ?”
लेलहा- “ हँ ते काका , विआहसँ दू दिन पहिने रघुनी काका आबि बाउकेँ कहलखिन जे जेहने बेटा-बेटी धनिकक तेहने तँ गरीबोकेँ। माए-बाप तँ माइये-बाप होइत। सबहक हृदय तँ भगवान एक्के रंग बनौने छथिन। बेटा-बेटीक विआहमे तँ सभकेँ एक्के रंग मनोरथ होइत अछि। गामेमे सिंगहरिया बाजा अछि। एकटा सोहनगर बजो भऽ जेतह आ ओहो बेचारा -रंगलाल- समाजक संग खेबो करत आ हँसि-बाजि कऽ बिताइयो लेत। ”
काकाक बात सुनि बाबू कहलकनि- “ ओ-सिंगाबला तँ रुपैइयो लेत , से कतएसँ देवइ।
तइपर रघुनन्दन काका कहलखिन- “ हमरा संगे चलह। कहि देवै जे समाजक काज छिये तेँ नहि पान तँ पानक डंटियो लऽ कऽ काज सम्हारि दहक। रुपैया नै ने हेतह मुदा , खाइले ते देतह। ”
सएह भेलइ। दुआर लगैसँ पहिने , रस्तेमे हमरा कहि देलक जे वौआ , नाच देखा देवउ। तूँ हमरे लग रहिहेँ। जखन बर दुआर लागल कि सौँसे गामक बुढ़िया-सुढ़िया सभ चंगेड़ामे चरि-मुँहा दिआरी बारने भैया लग गीत गबैत रहए। जते ढेरबा आ समरथकी सभ रहए ओ पाछूमे हाँ-हाँ , हीं-हीं करैत रहए। चुपेचाप रंगलाल काका बीचमे सन्हिया गेलखिन। हमहूँ पाछू-पाछू गेलौं। अन्हार रहबे करै कि एके-बेरि खूब जोरसँ सिंगा फूँकि देलखिन। तते जोरसँ अवाज भेलै जे सभटा पड़ाएल। एक्के बेरि जे पड़ाएल कि ऐँड़ी-दोरी लगलै। एकटा खसल कि ओहिपर भेड़ी जेकाँ खसए लगल। जहिना अन्नक ढेरी लगबै काल पथिया-पथिये उपरसँ देल जाइ छै , तहिना। हमहूँ बीचमे पड़ि गेलौं। ठाहाका मारि पुनः बाजल- “ काका की कहब ? दसटा सँ बेसिये ढेरबासँ अधवयसू धरि तरोमे रहए आ उपरोमे। तते भारी लगै जे कनैए लगलौं। ”
मुस्की दैत करियाकाका- “ धुर बूड़ि , ऐहने पुरुख। ”
“ ताबे ते बच्चे रही की ने...
मुस्की दैत- “ से कि कोनो हमहींटा कनैत रही आकि तरमे पड़ल सभ कनैत रहए। ”
“ आ उपरका ?”
“ ओ सभ ते खिखिर जेकाँ हँसैत रहए। तेँ काका , ओहो बेचारा आब चौथापनेमे अछि। आब ते नबका-नबका बम्बैया बजन्त्री सभ भऽ गेल ओकरो कहि देवइ कक्का। ”
सुन्दर काका- “ अच्छा , तूँ सभ एम्हुरका काज सम्हारह , हम ओम्हर जाइ छी। ” सुन्दर काका विदा भेला कि करियो काकाकेँ मन पड़लनि। बाजलाह- “ भाय , कने सुनि लिअ। एक गोटे छुटि जाएत। ”
“ के ?”
“ छीतन भाय। ” एक दिनक बात मन पड़ल। अगहन मास रहए। धुरझाड़ धन कटनी चलैत रहए। एक्के ठीन हमहूँ रही आ भइयो रहथि। हुनका जन रहनि हम अपने कटैत रही। करीब-बारह-एक बजे छियै। दुनू परानी छीतन भाय सुगर हहकारने खसलाहा खेतमे चरैले छोड़ि गुना नेने भाय-सहाएब लग पहुँचलथि। काटल धान जे पसरल रहए ओहिपर दुनू परानी बैसि गुना टुनटनबए लगला। भैया कहलनि- “ बटु , तमाकुल खाए लाए। ” एलौं। खूब बढ़िया जेकाँ तमाकुल चुनेलौं। दुनू भाइयो खेलौं आ छीतनोकेँ देलियै। छीतन घरवालीकेँ कहलक- “ भायक धानमे अपनो सबहक साझी अछि कि ने। पाँचटा गीत सुना दिअनु। दुनू परानी गुनापर गीत गबए लगलाह। से कि कहूँ भाय , हुअए जे दुनू गोटेकेँ हाथसँ उठा माथपर लऽ ली। ओहन सिनेहसँ कहियो नहि सुनने छलौं , जेहन सुनलौं। राजा भरथरी आ पिंगलाक गीति गौने रहए। बेचारा जीविते अछि। ओहू वेचाराकेँ कहि देवइ। ”
“ बड़वढ़िया ” कहि सुन्दरकाका आगू बढ़लाह। जीबछक घर पहिने पड़ैत रहए। जीबछक ऐठाम पहुँच जीबछकेँ कहलखिन- “ भाय , रघू-भैया दुनियाँ छोड़ि देलनि। अपन बाजाक संग चलह। ”
सुन्दरकाकाक बात सुनि घरवालीकेँ सोर पाड़ि जीवछ कहलक- “ गिरहत वौआ मरि गेलखिन। छौँड़ा सभकेँ सोर पाड़ियौ। सभ बापूत जाएब। ”
बेटा-भातिजकेँ बजबए मुनियाँ विदा भेलि। सुन्दरकाकाकेँ जीबछ कहए लगलनि- “ भाय , एक दिनक गप कहै छी। माध मास रहए। शीतलहरी लागल रहए। जहिना दिन तहिना राति। दिनोमे नइ खेने रही। जाड़े बुझि पड़ए जे मरि जाएब। घुरले जरनो सठि गेल। की डाहब से रहवे ने करए। बिछानमे पुआर देने रहियै , बस ओतबे रहए। मन हुअए जे ओकरे जरा ली फेरि हुअए जे जखैन आगि मिझा जाएत तखन सुतब कतऽ। भुखे मन सेहो छटपटाइत रहए। दुनू परानी गिरहत बौआ अइठीन गेलौं। रघुनन्दन बौआ करसीक बड़का घुर मालक घरमे लगौने रहथि। अपनो बैसल रहथि। हिनका लग पहुँचैक डेगे ने उठाए। जी-जॉति कऽ खरीहानेसँ सोर पाड़लिएनि। घुरे लगसँ कहलनि ऐम्हरे आवह। गेलौं। खेबो केलौं आ मालेघरमे घुरे लग बिछान विछा सुतबो केलौं। जँ कनियो कानमे भनक लागल रहैत तँ अपने आबि जइतौं मुदा , अखैन तक नै सुनने छलौं। चलू-चलू पीठेपर चलै छी। ”
ढोल-पीपही लऽ जीवछ , गुना लऽ छीतन आ सिंगा लऽ रंगलाल पहुँच , अपन-अपन बाजा बजबए लगल। जहिना बेटीक विआहमे सोहनगर गीत गाओल जाइत , तहिना वाजाक मुँहसँ निकलए लगल। घरे-अंगना नहि गामक वातावरण महमह करए लगल। बाजाक धुनपर कियो घुनघुना-घुनघुना गीति गबैत तँ धिया-पूता नचैत। बूढ़-बुढ़ानुस मने-मन रघुनन्दनकेँ स्मरण करैत तँ टूटैट संबंध परिवारक गार्जन सभ देखैत।
धड़फड़ाएल फोच भाय आबि देवनन्दनकेँ कहलखिन- “ डॉक्टर सहाएब सभ किछु तँ ओरियान देखै छी मुदा , “ सरर , आ घी , कहाँ अछि ?”
फोच भायक बात सुनि देवनन्दन उत्तर देलखिन- “ करियाकाका , सुन्दरकाका सभ ओरियान कऽ रहल छथि। हुनके उपर सभ भार छन्हि। बजा कऽ पुछि लिअनु। ”
एकाएकी करियाकाका , सुन्दरकाका , लेलहा , बचनू देवनन्दन लग ऐलाह। करियाकाकाकेँ अविते फोच भाय पुछलखिन- “ कारी-भाय , सभ काज तँ समटाएले बुझि पड़ैत अछि मुदा , घी आ सरर , नहि देखै छी। ”
फोच भाय पाही जमीन्दारक मुँहलगुआ। ओना ने आब जमीन्दारी अछि आ ने जमीन्दार। मुदा एक साए पाँच बर्खक ढीला बावू जीविते छथि। खेत-पथार तँ कमि गेलनि मुदा , दरवारी चालि छन्हहेँ। अखनो भाँग पीसै , पान लगबै , मालिश करै , संगे टहलै आ भानस करैले नोकर रखनहि छथि। वएह संगे टहलैबला फोच भाय।
फोच भायक गप्प सुनि करियाकाकाक मन नाचए लगलनि। सुन्दरकाका मने-मन खुश होइत जे भने हमरा नहि पुछलनि। करियाकाका मनमे अवए लगलनि जे आँखिक सोझमे देखै छी जे कियो लहासकेँ धारमे फेकैत अछि तँ कियो धारक कातमे गारैत अछि। कियो आमक लकड़ीसँ जरवैत अछि तँ कियो बगुरसँ। कियो संठी-गोइठासँ जरबैत अछि ते कियो मुँहमे आगि छुवा गाड़ैत अछि। तहि ठाम सरर आ घीउक कोन जरुरत अछि।
फोच भायक बात सुनि बचनू बाजल- “ फोच काका , अपन कएल काज कहै छी। नानी मरि गेलि। ओना मरैसँ तीनि दिन पहिनहिसँ दुनू माय-पूत ओतै रही। आँखिक देखल नानाक गाछी अछि। जइ साल अपन गाछी नइ फड़ैत छलए। तइ साल चलि जाय छलौं। खूब मारि-धुसि कऽ डेढ़ मास खाइ छलौं। तेसर साल जे कोसी नाश केलक ओहिमे मामाकेँ के कहे जे इलाकाक गाछी-कलम , बँसवारि उपटि गेल। अंगनाक सभ नानीकेँ मुइने कनैत रहए आ मामा जरबैक लकड़ीले कनैत रहथि। कानब दू रंग बुझि पड़ए। जहिना एक धुनक गीत भिन्न-भिन्न गवैयाक मुँहेँ एक्के स्वरमे गाओल जाइत। तहिना तँ मरैयोक अछि। मामाक कानब सुनि लगमे जाए पुछलिएनि। तँ कहलनि जे भागिन माए मरि गेलीह तेकर दुख नहि अछि। दुख तँ तखन ने होइत अछि जखन माए-बापकेँ अछैत बेटा-बेटी मरैत। मुदा अपन जे पूबरिया गाछी छलै ओ माइये-बावूक रोपल छलनि। बाल-बच्चा जेकाँ दुनू गोटे सेवा कऽ लगौने रहथि। उत्तरवारि भाग एक-पाँति सरही आम लगौने रहथि आ सौँसे कलम कलमी रहए। मुदा सरही तँ सरहीये रहए। एकदम बड़वड़ीया। कनियेँ-कनियेँटा आम होय। तहूमे गोटे-गोटे मीठ होय नइ तँ सभ खट्टे। मुदा कलमीक चुनल रहनि। अगते रोहणिसँ गुलाब खास आ डोमा बम्बै पकऽ लगए। जाबे सठवो ने करए तावे कृष्ण भोग , लड़ूवा पाकब शुरु भऽ जाए। पीठेपर मालदह पकए लगैत। मालदह सठवो ने करै कि कलकतिया पकए लगैत। पाल परक कलकतियासँ सभ साल आद्रा पावनि हुअए। कलकतिया सठिते फैजली मोहर ठाकुर आ राइर पकए लगए। एहि हिसाबकेँ देखि पुछलिएनि ते कहलनि जे वौआ सभ रंग आमक जरुरत होइत अछि। जखन जारैनिक जरुरत हेतह ते कलमीक डारि कटैमे मात्सर्य लगतह। मुदा सरहीमे से नै हेतह। हँ सरहियोमे तखन हेतह जखन कलमिये सन नम्हरो आ सुअदगरो रहतह। जरनाक जरुरत चुल्हियो आ मुरदो डाहैमे हेतह। केबल जरबैएेक काजटा तँ नहि अछि। मुइलाक बाद गाछोक उत्सर्ग होइत अछि। तहि लेल तँ बड़वड़िये नीक अछि। मुदा काटि कऽ जरबैक बात तँ जँचल मुदा , उत्सर्ग नहि जँचल। हुनकर लगौल छलनि। अपना विचारसँ लगौलनि। कोसीक विकराल बाढ़िसँ पहिने नाना मरल रहथि तेँ हुनका सुकाठ माने सरही आमक लकड़ीसँ जराओल गेलनि। एक-एकटा गाछ पुरहितो-पात्रकेँ देलिएनि। हुनका तँ सोलहो आना गाछी रोपैक फल भेटि गेलनि। मुदा माएकेँ कोना जराएब आ की दान देबइ। मामाक बात सुनि दुखो भेल आ तामसो उठल। जखन छल तखन भोगलौं। अखन नइए तँ कानव किअए ? कहलिएनि- “ मामा जँ कनलासँ दुख भगितै आ सुख भेटितै ते एहिना ई दुनियाँ रहितै। अनेरे अंगनामे रखने छी आ कनै छी। चलू , हमरा सभ लूरि अछि। खाधि खुनि गोरहोसँ जरबैक लूरि अछि आ सनठियो-मनेजरसँ , सुकाठोसँ जरबैक लूरि अछि आ कुकाठोसँ। अगवे वाँसो-कड़चीसँ। ”
बचनूक बात सुनि सभ ठमकलाह मुदा , फोच भायकेँ तामस चढ़ि गेलनि। दाँत पीसैत बजलाह- “ साओनमे जनमल गीदर भादवमे आएल बाढ़ि तँ कहलक जे ऐहन बाढ़ि देखबे ने केलहुँ। देखैत-देखैत दाँत-पोन झड़ि गेल हमर आ सिखवै छेँ तूँ। ”
करियाकाका सुन्दरकाका दिस तकलनि। सुन्दरकाका पहिनहिसँ करियाकाका दिस देखैत रहथि। दुनू गोटेँकेँ फोच भाय िदससँ नजरि हटल देखि लेलहा फोच भायकेँ चोहटैत बाजल- “ फोच भैया , अहाँकेँ ओतवे काल धरि भैया कहब जते काल अहूँ छोट भाए बुझब। अहाँक देहमे हजार रुपैआक कपड़ा , हजार रुपैआ घड़ी आ दस हजारक मोवाइल अछि। मुदा हमरो दिस देखू। रघूकाका आ देव भायसँ हमरो ओते अपेछा अछि जते अहाँकेँ अछि। अहाँ कहने हम पड़ा जाएब से बात नहि। अंतिम संस्कार कइये कऽ जाएब। ने काज अहाँ परिवारक छी आ ने हमरा परिवारक। काज करए ऐठाम ऐलौंहेँ घरवारी जना आदेश देताह तना कऽ देवनि। अहाँ फुचफुचेने की हएत ?”
लेलहाक बात सुनि फोच भाय सहमलाह। भाषा बदलैत बजलाह- “ ऐह , खिशिया गेलह लेलहू। दस गोटे जखने एकठाम बैसलौं तखने दस रंगक गप चलत। तहि लेल एते बिगड़बाक कोन काज अछि। ऐहन-ऐहन छोट-छीन गपक लेल समाज टूटि जाइत। जहिना सभ एकठाम रहैत एलहुँहेँ तहिना आगूओ रहब की ने। ”
वातावरण ठंढ़ाइत देखि सुन्दर काका दरवज्जासँ उठि जीबछ लग पहुँच , कहलखिन- “ बटगबनीक समए आएल जाइत अछि। धियान राखब। ” कहि दरवज्जापर आबि करियाकाकाकेँ कहलखिन- “ किसुन , अखन बैसैक समए नहि अछि। बैसलासँ काज पछुआएत। ”
“ हँ-हँ , से तँ ठीके ” कहैत करियाकाका उठि गेलाह। करियाकाकाकेँ उठितहि एका-एकी कतेक गोटे उठि गेलाह। मने-मन फोच भाय जरल जाइत रहथि। ठोर पटपटबैत- “ जकरा जे मन फुड़ै छै से करैए। ने बजैक ठेकान आ ने बाप-दादाक कएल काजक। ”
दरवज्जापर सँ उठि फोच भाय आंगन दिशि टहलि गेलाह। मनमे अन्हर उठल रहनि। भेल काज -जना चचरी बनाएव- सभपर नजरि-गड़ा-गड़ा देखए लगलथि जे कतऽ कि गल्ती अछि। मुदा नजरि गल्तीक जड़िपर जाइते ने रहनि। जँ से जइतनि तँ इहो बात बुझितथि जे “ गल्ती , ओहन व्यवस्था पैदा करैत अछि जे चलनिमे रहैत अछि नहि कि आगूक व्यस्थामे। दरवज्जाक डेढ़ियापर चंचल चचरी बनवैत रहए आ बौकू सावेक जौर बँटैत रहए। आँखि गुड़रि फोच भाय चचरीक लम्बाई-चौड़ाइ देखए लगलथि। फट्ठा बैसवैत मुस्की दैत चंचल कहलकनि- “ नजरि नै लगा देवइ , भैया ?” चंचलक मुस्की फोच भायक छातीमे महुराएल तीर जेकाँ लगलनि। किछु बोकरए चाहलथि कि तहि काल उत्तरवारि टोलमे जोरसँ हल्ला होइत सुनलखिन। जत्तए जे कियो रहथि कान ठाढ़ कऽ सुनए लगलथि। हल्लाक कारण रहै अढ़ूलिया आपराजितक झगड़ा।
रधुनन्दनक दियादक भगिनमान मनोहरक परिवार। तीनि पुस्तसँ मनोहर एहि गाममे। बाबे आवि सासुरमे बसल रहनि। मुदा जे मनोहरो परिवारक छियै ओहो दियादे जेकाँ काज-उद्यममे संग-साथ दइत। पैछला हाट लौफामे मनोहर बीस हजारमे गाए बेचलक। ओहिसँ नीक बगलेक गाममे तीस हजारमे टोहिया गेलइ। पनरह दिनक समए बना रुपैयाक ओरियान करए लगल। हिसाब जोड़ने जे बीस हजारमे गाए बिकाएल बच्छोक पोसिनदार कहलक जे दुनू बच्छा बेचि हमहूँ गाइये पोसब। बच्छा पोसब तँ ओहि पोसिनदारक लेल अछि जे खेतीयो करैत हुअए। जहिना सभ दिन , नवका कारमे बैसनिहारकेँ आनन्द होइत तहिना नव बड़द जोतिहार हरवाहकेँ। ने गियर बदलैक काज आ ने स्पीड कम बेसी करैक। रहवो किअए करतै , अपन-अपन खेतक यात्रा बीचमे कतौ दू-बट्टी-तीनि-बट्टी नहि पड़ैत। जहि चालिमे जोतए चाहब ओहि चालिमे हर लाधि दिऔ। एक्के बेर खोलै बेरिमे लदहा छिटकवैक काज। बेचारा पोसिनिहारकेँ खेती नइ छै। छोट पूँजीकेँ पैघ बनवैक काज कऽ रहल अछि। मुदा ओही वेचाराकेँ की दोख देवै , जइतै तँ पछिले हाट मुदा , बीमारीक चक्करमे तेना पड़ल अछि जे दुनू बच्छो हलि गेलै। वेचाराक बड़ सुन्दर विचार छै। अपन ढेनुआर गाए (उत्पादित पूँजी) भऽ जेतैक। समयक फेरि देखि मनोहर बीसो हजार रुपैआ देवालमे तख्ता देल आलमारीक ग्रन्थमे रखि देलक। खुल्ला रैक। रैकपर सिर्फ भागवत , देवी भागवत , सुखसागर , योगवशिष्ट , कबीर मन्सुर , बाइबिल , कुरान आ कृष्ण-उद्धव संवाद धरि। कृष्ण-उद्धव संवादमे बीसो हजारीक नोट पन्नामे दऽ दऽ सैंति कऽ राखल। काल्हि दिनमे सोहन आवि मनोहर माएकेँ कहि कृष्ण-उद्धव संवाद लऽ गेल। ग्रन्थ उनटा कऽ देखैक काजे नहि। अविश्वासक कतौ गंधे नहि। साँझमे जखन मनोहर लालटेन लेसि ग्रन्थ निकालए गेल तँ कृष्ण-उद्धव संवाद नहि देखलक। मनमे शंका भेलै। मुदा चोरीक शंका नइ भेलै। लगातार दुनू गोटेक बीच पोथीक लेन-देन होइत। माएकेँ पुछलक- “ माए , सोहन भाय किताबो लऽ गेल छथि। ”
“ हँ। ”
“ किछु पोथीमे छेलैहियो ?”
“ खोलि कऽ कहाँ देखिलियै। ”
मनोहर गुम्म भऽ गेल। मनमे एलै , अखने जा कऽ बुझि ली। फेरि दोसर मन कहलकै- “ पाइयक मामलामे राति कऽ नहि जाएब , नीक। आगूमे लालटेन रखि वैसि गेल। मुदा मनकेँ अन्हार दावए लगलै। सोग बढ़ए लगलै। माएकेँ कहलक- “ माए , मन नीक नै लगैए। नै खाएव। ”
जोर करैसँ पहिने माइयक मनमे आइलि भोजन तँ नीक मनक छियै। अधला मनक तँ ओ.......। सोचि पुतोहू-अढ़ूलियाकेँ कहलनि- “ कनियाँ , बौऔक मन दबे छै हमरो -बेटे दुखसँ दुख जनमैत- खाइक मन नइ होइए। ” मुदा , पुरनकी पुतोहू थोड़े नवकी पुतोहूकेँ झझकारि कऽ उत्तर देलकनि- “ चुुल्हि लगमे जखन अधपक्कू भऽ गेलौं। तखन हिनकर मन खराब भेलनि। होइताए हमरा तँ भऽ गेलनि हिनके। एक ताव लगतै तरकारियो भइये गेल। रोटी पहिने पका नेने छलौं। खहिहथि भोरे। तखन मन नीक हेतनि। ” मुदा , फेरि वेचारीक मनमे पत्नी आ पुतोहूक रुप आबि वैसि गेलनि। जिनकाले भानस केलौं से जखन खेबे ने करताह तँ हमही.....। ओहिना झाँपि कऽ सभ किछु राखि देवै। सबेरे जखने मनोहर सुनलनि। जे रघुनी भैया मरि गेलाह। तखने आबि दरबज्जापर मूड़ी झुका कातमे बैसि गेल। सभकेँ होइत जे गाममे सभसँ बेसी दुख मनोहरे कऽ भऽ रहल छैक। असीम दुख। सेर-समांग दुनूक। माइयो माछूसँ गेलखिन। खाली आंगन देखि अढ़ूलियाकेँ भुखे नहि रहल गेलनि। बेचारी चारिटा रोटी आ घेराक भुजिया लऽ खाए लगलीह। तहि काल अपराजित आबि अढ़ूलियाकेँ डेढ़ियेपर सँ चिकरल- “ कनियाँ , काकी गेलखिन। ”
मुँहमे घेरा-रोटी चिबबैत अढ़ूलिया बाजलि। मुँह भारी देखि अपराजित ससरि कऽ आंगन आबि गेलीह तँ देखलनि जे बीचे दुआरिपर केवाड़ लग बैसि हाँइ-हाँइ खाइत अछि। जहिना करिया भेम्ह कटलासँ एक्के बेरि सनसना कऽ बीख चढ़ि जाइत , तहिना अपराजितकेँ चढ़ि गेलनि। मुदा निधोखसँ अढ़ूलिया चपा-चैप चपने जाइत। जत्ते अढ़ूलियाक मुँह चलै तत्ते अपराजितकेँ तरसँ खौंत चढ़ैत। अढ़ूलिया बुझि गेली जे जँ कहीं सरेरा माने हल्ला केलनि तँ सीनेपर पकड़ा जाएब से नहि तँ जाबे मुँह खोलथि-खोलथि ताबे थारी अखारि कऽ रखि देवइ। वरदाससँ बहार होइते झपटैत अपराजित बाजलि- “ आँइ गे निरविचारी तोरा कोनो गत्तरमे लाज छौ कि नै ?”
अखन धरि अढ़ूलिया मुँह नहि खोललक। थारी माँजि अँठि फेरि हाथ धोइ लोटा रखि उत्तर देलक- “ हिनका बड़ लाज छन्हि। जे झूठ-मूठ कऽ बझा कऽ अलबट जोडै़ छथि। हमरे नै कोनो गत्तरमे लाज अछि। बूढ़ भऽ कऽ ई झूठ बजै छथि से बड़वढ़िया , हम बड़ निरलज्जी। ”
“ ऐँ गे तोरा एतबो ने विचार छौ जे जाबे अँगनासँ लहास नै उठलै ताबे मुँहमे अन्न किअए देलौं। पहिने अंगना-घर करितेँ तखन ने भानस-भात करितेँ। ”
“ हिनका दियादी छनि कि हमरा। हम भगिनमान छी। लोकक सहोदरो भाए अनतए रहने विरान भऽ जाइ छै आ दूरोक लोक लगमे रहने अप्पन भऽ जाइ छै। हमरा कोन अंगना-घर करैक काज अछि। ”
अढ़ूलियाक बात अपराजितकेँ बेसम्हार कऽ देलक। बाजलि- “ जेहने कुल-खुट रहतौ तेहने ने बुधियो हेतौ ?”
कुल-खनदानक उपराग बुझि अढ़ूलिया बेसम्हार भऽ बाजलि- “ यएह जँ बड़ नीक कुल-खनदानक छथि तँ कहाँ भेलनि जे मनुक्ख जेकाँ चुपचाप लगमे अवितथि। खाति देखितथि तँ पुइछ लितथि जे कनियाँ एना किअए करै छी। रातिमे नै खेने रही से बुझैक काज हिनका नहि भेलनि मुदा , छुछे उपदेश दइले चलि एलहुँ। अपन काज आँखि-मूनि कऽ करैत रहितथि , हमरा टोकैक जरुरत किअए भेलनि। ”
मुदा अपराजितो अपने सीमामे रहथि तेँ वोलीमे गरमी रहबे करनि। अधोबात अढ़ूलियाक नहि सुनलनि , अपने बजैमे बेताल रहथि। मुदा मनमे शंका उठलनि जे हो-न-हो अखन ऐकरे अंगनामे छियै , कोनो दोखे लगा दिअए। रसे-रसे पाछु मुँहेँ डेगो उठबैत आ दूरीक हिसावसँ बोलियोमे जोर दैत। मुदा भऽ गेलइ कोनादन। एक्के-दुइये टोलक धियो-पूता सहटि-सहटि आवए लगल। तहिना जनि-जाइतिओक ढबाहि लागि गेल। चिपड़ी पाथैत महिनाथपुरवाली गोबराएले हाथे पहुँचलीह। तहिना फुल तोड़ए जाइत नवानीवाली फुलडाली नेनहि पहुँचलीह। सभसँ कमाल ननौरवाली केलनि। खाइले बेटा कनैत रहै ओकरा आरो चारि थापर उपरसँ लगा फनकैत पहुँचलीह। तहिना लखनौरवाली खिसिया कऽ बेटाक आगूमे भात-दालिक बरतने (जहिमे भानस होइत) रखि , अपनाकेँ पछुआइत बुझि लफड़ल पहुँचलीह। विचित्र भऽ गेलइ। सभ अपने-अपने फुड़ने अपन-अपन विरोधीकेँ चिक्कारी दऽ दऽ गरिअबैत। केयो ककरो बात सुनैले तैयार नहि। मुदा बजैत-बजैत मुँह दुखेने आकि बुधि जगने आस्ते-आस्ते हल्ला कम हुअए लगलै। कम होएत-होएत हल्ला सोलहन्नी शान्त भऽ गेल। मुदा तरे-तर कोना नै कौना दू पाटी बनि शब्दवाणक तैयारी करए लागलि। मुदा खलीफा किम्हरहुँ नहि। अखन धरि पूबारिपार वाली दादी आ पछवारिपार वाली दादीकेँ सभ अपन-अपन अगुआ बुझैत। अगुआइ करैक बुधियो छन्हि। मुदा पूवारिपार वाली एहि दुआरे नहि पहुँचलीह जे चारिमे दिनसँ दुखित छथि। आइ एकादशी कोना छोडितथि। विछानसँ उठैक होश नहि। तहिना पछवारिपार वाली अपना घरवलाकेँ डेढ़ बीघा जमीनक जिनगी बुझा दुनू परानी अपनो मालक गोवर आ बेरु पहर एक बेरि चारागाह जा एक छिट्टा आरो लऽ अनैत। सएह अनैले गेल रहए। जहिसँ गामक किछु गोटे कुट्टी-चालि करैत। मुदा दादियो पाछु घुरि कऽ देखए वाली नहि। जखने कनियो भनक लगि जानि जे फलनी-चिनली बाजल तँ अंगना पहुँच उपराग दऽ अबैत। आब कहाँ कियो गोवर बिछनी कहै छै।
आंगनसँ टहलैत आवि फोच भाय चचरी लग पहुँच आँखि दौड़ा-दौड़ा नाप-जोख करए लगलाह। मुदा काज अधखड़ुए तेँ गरे ने अँटनि। काजक दुनियाँमे अपन अँटावेश नहि देखि वाद-विवादक दुनियाँमे पहुँच बतहूँकेँ पुछलखिन- “ कतेटा चचरी बनत ?”
डोरी फट्ठेपर रखि आगूमे ओंगरीक नहसँ चेन्ह दैत बतहू बाजल- “ अइठीन तक। ”
“ झुझुआन बुझि पड़ै छौ। ”
“ से की ?”
“ साढ़े तीन हाथ तँ सएह भेल। तेकर वाद जँ एक्को बीत आगू-पाछु नहि रहत से केहन हएत ?”
फोच भायक बात सुनि बतहू गुम्म भऽ गेल। कातमे ठाढ़ भऽ लेलहा सभ बात सुनैत। मुदा एहि आशामे अखन चुप रहए जे जिनकासँ गप करैत छथि पहिने हुनकर जबाव ने सुनि लेब। जँ अपने सक्षम वाद-विवाद कऽ सकथि तँ सर्वोत्तम। नहि तँ जखन ऐठाम छी तँ ओते दूर धरि कोना बतहा भैयाकेँ पाछु हुअए देब। बतहूकेँ चुप देखि लेलहा बाजल- “ फोच भैया , अहाँसे अधिक उमेरक बतहा भैया शरीर धुनि रहल छथि , तहिकालमे एतवो नै बुझलियै जे जिनका जहि काजक लूरि अछि से तहिमे सहयोग करथि। तइ कालमे अपन कोनो कर्तव्य नहि मुदा.......। अखन धरि जिनगीमे कते चचरी बनेलौं आ कते मुरदा जरौलौंहेँ। हँ ई बात जरुर अछि जे गोटि-पंङरा जँ जरौनौ हएब तँ ओहन मुरदा जिनका चचरीक जरुरते नहि भेल। पलंगपर उठा असमसान पहुँचै छथि। चचरीक स्कूलमे पढ़लौं हम आ हिसाब वुझि गेलियै अहाँ। ”
लेलहाक बात सुनि फोच भाय तिलमिला गेलाह। क्रोधसँ आँखिमे नोर एलनि आकि डरसँ , ई बात लेलहा नहि बुझि सकल। अगिला गप सुनैले कान पाथि देलक। मुदा कोनो प्रश्न नहि अबैत देखि बाजल- “ पचासो ओहन मुरदा डाहने छी वा गारने छी जेकरा चारि गोटे बदला दू गोटे पथियामे उठा सीक लगा , वाँसक ढाठपर उठा अंगनासँ असमसान लऽ गेल छी। ऐहन-ऐहन की सभ केने छी से कहैक अखन समए नहि अछि। नहि तँ......। ”
आँगनसँ पटपटाइत दरवज्जापर आबि देवनन्दनकेँ दुनू हाथ जोड़ि कहलखिन- “ कठिआरीक हमरो हाजिरी। ”
“ बेस-बेस। गेल जाओ। एतवे की कम छियै। ”
दरवज्जापर सँ फोच भाय विदा तँ भऽ गेलाह। मुदा मनमे अन्हर-विहाड़ि उठए लगलनि। आगू मुँहे डेगे ने उठनि। पाछु घुरि बेरि-बेरि तकथि।
अरथी उठवैक लेल आ कठिआरी जाइ लेल घोल-फचक्का हुअए लगल। जनिजाति आ धिया-पूताक झुण्ड बाजाक लोभे आगू-आवि-आवि ठाढ़ भऽ गेल। किछु गोटेक कहब जे अपन पत्नियो धरि असमसान नहि जाएत तँ किछु गोटेक कहब जे जिनका बेटा नहि रहैत छनि हुनका तँ पत्निये आगि दइत छथि। कोना मनाही कएल जाएत। तहिना धिया-पूताक संबंधमे सेहो प्रश्न उठैत जे ई तँ अन्तिम संस्कार कर्म छी जहिमे खाधि खुनल जाएत , लकड़ी काटि जराओल जाएत। तहिमे धिया-पूता अनेरे जा कऽ की करत। मुदा संस्कारे ने संस्कार पैदा करैत अछि। अरथीक मुँहमे आगि लगाएवे ने संस्कार छी। जेकर जरुरत ककरा नहि छैक ? आजुक धिये-पूते ने काल्हि जुआन बनि करत। तेँ ओकरा काजसँ विमुख करव उचित नहि। मुदा काज -मुर्दा जराएब- जतेटा अछि , जते लोकसँ कएल जाएत ततवे लोक ने चाही। फेरि एत्ते लोकक काज कोन छै ? फेरि बाजा-बूजीक कोन काज अछि ? काज केवल मुरदे जराएब टा छी आकि बेटी जेकाँ एक ठामसँ दोसर ठाम पहुँचयबो छी। इम्हर बाजा गड़गड़ाइत। रंग-विरंगक सोहर , रंग-विरंग दुआरि निकालि , वटगबनीक रिहलसल मने-मन चलैत। जहिना तरे-तर करियाकाकाकेँ तहिना सुन्दर काकाकेँ छातीक पसीना गोलगलाकेँ भिजबैत। मन घोर-घोर दुनूक। दुनूकेँ अपन मन हारि मानि गेलनि। सहयोगीक जरुरत पड़लनि मुदा , सहयोगी के ? करियाकाकाक नजरि सुन्दर भायपर आ सुन्दकाकाक नजरि किसुनपर अपन-अपन जगहसँ उठि आँखिक इशारा चौमासक आड़िपर देलनि। आगू-पाछू दुनू गोटे चौमासक आड़ि दिशि चारि डेग बढ़ौलनि कि पाछुसँ लेलहा टोकलकनि- “ काका कतऽ ससरल जाइ छियै। काज अछि ऐठाम आ अहाँ विदा भेलौं बाध दिशि ? लेलहाक बात दुनू गोटेक करेजकेँ छेदि देलकनि। छटपटाइत मन कहलकनि- “ तेहेन उफाँटि टोकि देलक जे , कि विचार हएत की नहि। मुदा दरवारमे जहिना भिखमंगाक विजकल मन रहैत तहिना दुनू गोटेक रहनि। कठहँसी हँसी हँसि दुनू गोटे संगहि कहलखिन- “ जमात करे करामात ? वौआ। तोहूँ इम्हरे आबह ?”
तीनू गोटे चौमासक आड़िपर वैसि काजक समीक्षा करए लगलाह। मुदा , मुर्दा जराएव आ कठिआरी जाएब दू प्रश्न भेल। किछु गोटेकेँ लकड़ी कटैसँ खाधि धरि खुनए पड़त। किछु गोटे ओहिना मूड़ी गोति कऽ शोक मनौताह। सवा पहर मुरदा जरैमे लगै छै तइपर सँ जारन काटै , फाड़ैसँ लऽ कऽ अछिया सजाएब धरि अछि। घरोपर कते खटनी भेलि अछि। ओहूना दू घंटा खटलाक बाद किछु खाइ-पीवैक मन होइ छै। विचहिमे लेलहा टपकल- “ ओइ जगहपर खाइक मन हएत ?”
सुन्दरलाल- “ धुर बूड़ि , सब दिन आड़िये-धुर , गाछिये-विरछीमे खाइछेँ से विसरि गेलही। ”
मुँह सकुचबैत लेलहाक मन लेलहाकेँ कहलकै- “ अनेरे बजलौं। ”
तीनू गोटे विचारलनि जे पहिनहि घरवारी (जे जरबए नहि जेती) केँ जनाए दिअौन जे कमसँ कम दू बेर चाह आ लोकक हिसाबसँ सुखल जलखै आ पानि पठा दथि। अपने सभ ने वारीक रहब जेकरा जते मेहनत हेतै ओकरा ओते अहगर कऽ देवइ। मुदा नहि लऽ गेने तँ एकटा आफद हएत जाबे धिया-पूताक पेट भरल रहतै ताबे ने नाचत। जखने पेट कुलकुलेतै कि घर दिशि विदा हएत। बिना हाथ-पाएर धोनहि भनसा घर पहुँच जाएत। तेँ ओकरो तँ घेरि कऽ रखि नचबैक अछि। किछु गोटे ऐहन जरुर छथि जे मुँहमे किछु नहि लेता। लेवो कोना करता। एक जिनगीक ओहन सीमान छी जे सोझाक प्रश्न छी। तेँ हटल वा बाइस कऽ आनवो उचित नहि। सुन्दर काकाक मनमे उठलनि-सीमानक विवाद तँ दू खेत , दू गाम , दू दुनियाँ भऽ जाइत। कियो मृत्युकेँ खुशीसँ छाती लगबैत छथि तँ कियो कानैत-कलपैत। शुभ काज तँ खाइत-पीवैत हएब नीक। मुँहसँ हँसी निकललनि कि तहि बीच लेलहाक नजरि मुँहपर पड़लनि। मुस्की देखि अपनेपर शंका भेलै जे फेरि ने तँ किछु हूसल। मुदा अहं जगलै बाजल- “ काका , जते अबेर करब औते अबेर हएत। अबेर भेने कते गोटे बीमार पड़त।
तीनू गोटे वाड़ीसँ दरवज्जापर आबि एक्के बेरि कहलखिन- “ राम-नाम सत्य छी। ”
आहि रे बा! फेरि चचरी लग हुज्जति शुरु भेल। केयो वजैत जे जीवैतमे काकाक उपकारक बदला नहि दऽ सकलिएनि , तेँ उठाएब ? किछु गोटेक कहब जे काका की वाबा की भैया हमरो माए-वाबूकेँ उठौने रहथि , तेँ उठाएब। किछु गोटेक कहब जे बड़ बेरपर रुपैया सम्हारने रहथि तेँ अपन कर्ज चुकाएव ? आड़िपर गप सुनि लेलहोमे पावर एलै। हुज्जतियाकेँ दुनू हाथे इशारा दैत कहलक- “ सुनै जाइ जउ कान्ही लगा कऽ उठविअनु नै ते एक भग्गु भेने दरद हेतनि। ”
लेलहाक विचार सभ मानि चारि गोटे चचरी उठबै बावा लग पहुँचल। चचरी लग पहुँचते जना एक्के वेरि सबहक मुँह चहा उठल। रघुनन्दन नहि रघुनन्दनक अरथी उठि रहल छनि। सुभद्रा आँखि , कोशिक ओहि धारा सदृश्य बहए लगलनि जे पहाड़क झरना होइत समतल जमीनपर आवि अनवरत चलैत रहैत अछि।
आंगनसँ निकलितहि एक दिशि “ राम-नाम सत्य छी ? तँ दोसर दिशि शहनाइपर बहिनिक विदाइक धुन। यएह तँ सुख-दुखक जगह दुनियाँ छी। घरक मुहथरिपर एक दिस करियाकाका आ दोसर दिस सुन्दरकाका ढाढ़ भऽ अंतिम प्रणाम कऽ आगू बढ़ौलकनि। तहि पाछु देवनन्दक हाथमे आगि दऽ विदा केलनि। तहि पाछु बरियाती सजि गेल। सभ बरियातीकेँ निकललाक बाद सुभद्रा आ शीला रुकि गेलीह। समए पाबि करियाकाका शीलाकेँ चाह-जलखै-पानिक बात कहि , रेलगाड़ीक गार्ड जेकाँ , पाछु-पाछु चलला। गाछीक माने कलमक कोनपर पहुँचतहि करियाकाका आ सुन्दरकाकाक खोज हुअए लगल। मूड़ि-उठा देवनन्दनो तकैत। मुदा दुनू गोटे अधे रस्तामे अवैत रहथि। गाछी पहुँचते करियाकाका आगू बढ़ि ओंगरीसँ इशारा दैत कहलखिन- “ एहिठाम भैया मचान-खोपरी बनवैत रहथि...।
दोसर दिशि माने उत्तर-पूरब कोनमे देखवैत- आ एहिठाम वेसी काल बैइसै छलाह। तेँ नीक हएत जे विचहिमे दिअनि। ”
कहि लेलहाकेँ कहलखिन- “ लेलहुँ , चलह। पहिने लकड़ी देखी। करियाकाका सुन्दरकाका , लेलहा , बचनू , चंचल सभ वढ़ल। इम्हर जीबछो , छीतन आ रंगलाल अपन-अपन जगह टेबि बाजा उठौलक। केवल मालदहक कलम। खाली चारु हत्तापर शीशो , जामुन , गम्हारि लगौने रहथि। एकोटा आमक गाछ सुुरेब नहि। सभ अष्टावक्र। तहूमे मृत्युक लेल जीवितकेँ बलि देव उचित नहि बुझि आमक गाछसँ नजरि हटा लेलनि। गम्हारि दिशि नजरि दइते लेलहा बाजल- “ गम्हारि महराज आ जामुन महराज तँ तेहन छथि जे अपना बुते अपनो नै पार लगतनि तँ मरल देह माने मुरदा हिनका बुते जराओल हेतनि। लेलहाक बात सुनि सुन्दरोकाका आ करियोकाका आँखि मिला मुस्की देलनि। मुदा लेलहाक बाजबसँ चंचलकेँ तामस पजरऽ लगलै। खढ़क आगि जेकाँ लगले पजरि गेल- “ यौ सुनरकाका , जहिना पनियाह जामुनक लकड़ी होइए तहिना गमहारियोक। एहिसँ नीक आमक हएत। कने रुखो होइए। एहिसँ रुख इलचीक होइ छै। अनेने काजमे कोन भदबा लगौने छी। हैवए तँ देखै छी दछिनवरिया हत्ता परक शीशो सुखल अछि। मुरदा जरवैले ओहन जारन चाही जेकर धधड़ा कड़गड़ होय। ”
सभ कियो दछिनवरिया हत्ता लग पहुँचलाह। दस-पनरहटा शीशो पैछला साल हवाक बीमारीमे सुखि गेल छलैक। तीनिए चारिटा साइजक गाछ नहि तँ सभ अनसाइजक। जे जरने भाव बिकाएत। पातर गाछ कटने चारिटा पाँचटा काटए पड़त। से नहि तँ ओहन दूटा गाछ काटि लिअ जहिसँ सभ काज नीक जेकाँ भइयो जाएत आ थोड़-थाड़ डोमोले रहि जेतइ। मुदा लेलहाक नजरि तर चलि गेल। बाजल- “ काका , कते लकड़ीसँ मुरदा जरैत अछि। ”
करियाकाकाकेँ सुनल तँ रहनि मुदा , लिखल नहि पढ़ने रहथि। प्रश्नक जवावो नहि देव उचित नहि। भलेहीं कहि दिअए , नै बुझल अछि। मुदा जे काज संगे मिलि एत्ते केने छी तहिमे हमहीं सोलहन्नी कोना मूर्ख बनि जाइ। फड़कि कऽ कहलखिन- “ ऐँ रौ लेलहा , तोहर हम ठकदरुआ छिऔ जे ऐहन बात पुछलेँ। एते मुरदा जे संगे जरौलौं से हम देखलिए आ तू आँखि मुनने रहेँ। ”
करियाकाकाक बात सुनि दोहरी नजरि खसलै। मनमे रहए जे काजक लकड़ी छी , वेसी जराएव उचित नहि , जँ जड़ि दिशिसँ टोनि कऽ लऽ जाय तँ घरक केबाड़ी भऽ जाएत। पहिने टोनि कऽ कलमक सीमा टपा कऽ रखि दिएे। पछाति लऽ जाएब। से मंगैसँ पहिने करियाकाकाकेँ खिसिया देलकनि। अपन काजक रुखि खराव होइत देखि सोचलक जे से नहि तँ सझिया कऽ कए बाजी। बाजल- “ कक्का , दुनू भाँइ छी। बहुत लकड़ी अछि। निचका टोनि कऽ केवाड़ बनवैक विचार होइए ?”
मने-मन हिसाव जोड़ि कहलखिन- “ काज जोकर निकालि कऽ सिरौना-पथौना सौँसे रहए दिहक आ उपरका फाड़ि लीहह। तावे हम अगिला काज देखै छियै। ”
कहि कोदारि लऽ अछियाक खाधि नापि खुनैले झोलीकेँ कहलखिन- “ हँसैत झोली बाजल- “ भाय लोकनि सुनि लिअ। हमहूँ बुढ़ाइले जाइ छी मुदा , जाबे बाँहिमे दम अछि ताबे समाजक भार -अछिया खुनब- उघैत रहब। एक साए पच्चीसम अपनासँ उमेरगरक अछिया खुनने छी। अपनासँ कम उमेरक खुनैक मौका नै भेटल। ”
कहि अछिया खुनए लगल। तहि काल जीबछ शहनाइपर उठौलक- “ मन सुमिरन करले रात-दिना। जगमे कोइ नहि अपना। ”
अछिया खुना गेल। शीशोक ओहन मोट लकड़ी सिरहौना-पतौनामे देल गेलनि जते मोटगर ओछाइनपर जिनगीमे कहियो सुतल नहि छलाह। एक-एक चेरा चढ़बैत छाती भरि ऊँच चेरा काकाक संग जरैक लेल तैयार भऽ गेल। सुन्दरकाका देवनन्दनकेँ बाँहि पकड़ि , धधकैत उक मुँहमे लगौलनि।
मुँहमे उक पड़ितहि , बिजलोकाक इजोत जेकाँ , सबहक मनमे पहुँच गेलखिन। बाबा , काका , भैया , भाए , बौआ , वच्चा , नूनू इत्यादि हजारो काकाक रुप पटेरक फुल जेकाँ उड़ए लगल। जहिना पटेरक एकटा डाँटमे हजारो-लाखो पूर्ण फूल निकलैत तहिना रंग-विरंगक फूल बनि रघुनन्दन मने-मन उड़ए लगलथि।
आंगनसँ अरियाति सुभद्रो आ शीलो रहि गेलीह। शीलाक मनमे चाह , जलखै पठवैक ओरियान करब रहनि। जबकि सुभद्रा सोचैति जे घर-निप्पो सुखाइये गेल अछि। मास दिन कोना भीजल रहत। पुतोहू जनीकेँ ओरियाने-बात करैक छनि। तहिसँ नीक जे एक-गिलास पानि छिटि लाभर-जीभर बाढ़निसँ बहारि देबइ। आब तँ चारिम दिनसँ सभ दिन घर-अंगना होइते रहत। सएह केलनि। चाह-जलखै लेल गाछियेसँ बौकू आ शीतला चलि आएल। दुनू गोटेकेँ सभ समान दऽ निचेन भेलीह। धिया-पूताक हलहोरिमे आशा सिंगरिया-बाजाबलाक पाछू-पाछू चलि गेलि छलि। ताधरि सुभद्रो आंगन बहारि निचेन भेलीह।
शीला- “ माए , कतौ वैसि कऽ बुढ़ाक बात कहथु ?”
सुभद्रा- “ हँ तँ कनियाँ! जहिठाम बुढ़ा सुतल छलाह तहीठाम आउ। भने तुलसियोक गाछ बगलेमे अछि। ”
दुनू गोटे वैसितहि छलि कि लोहनावाली दादी हहाइल-फुहाइल पहुँचलीह। लोहनावालीकेँ देखि शीला कहलकनि- “ आवथु बाबी , अंगने आबथु। अखन तँ अंगनामे दुइये गोरे छी। सभ पाछु-पाछु गेला। ”
आंगन घर नीपल नहि देखि लोहनावालीक मनमे तरे-तरे क्रोधक लहकी-लहकए लगलनि। मुदा क्रोधकेँ दबैत सुभद्राकेँ कहलखिन- “ दियादनी , अहाँ तँ हमरासँ जेठ छी मुदा , सब विधि-वेवहार सभकेँ थोड़े मन रहै छै। एहिमे एकटा विधि आरो होइ छै। ”
“ की ?”
“ स्वामीक निमित्ते कपारमे पाथर लगाएब। ”
“ मुस्की दैत सुभद्रा- “ हँ , हँ , ई तँ हमरो मन अछि। ”
“ अखन नहि बैसब। जाइ छी। ”
“ बेस , बेस। जाउ। ”
पुनः दुनू गोटे बुढ़ाक जगहपर जा बैसलीह आखिसँ नोर हराएल।
मुस्की दैत शीला बजलीह- “ माए , बुढ़ासँ कहियो झगड़ो भेल छलनि ?”
“ बूढ़ा नर्कसँ स्वर्ग गेलाह। हुनकर आगि नहि उठेबनि। हमरो माए-बाप सिखा देने रहथि। मुदा जत्ते माए-बाबू सिखौने रहथि तइसँ बहुत बेसी बुढ़ा सिखौलनि। सदिखन कहैत रहैत छलाह जे जेकरा मनुक्ख बुझै छियै ओ मनुक्खक हॉड़-मांसक बनल एक ढॉचा मात्र छी। मुदा एकरा मनुक्ख बनवै छै मन। मन जेहेन रहत तेहेन ओ मनुक्ख बनत। जेहेन मनुक्ख बनत तते लोकक मनमे जगह भेटत। जगहो दू तरहक होइ छै। एक तरहक होइत अछि नीक आ दोसर अधला। मनुक्खकेँ सदिखन नीक विचार मनमे राखैक चाही। ”
बिचहिमे शीला टपकि पड़लीह- “ परिवारमे तँ घरहटो होइ छै , विआहो , पावनि होइ छै। ओ काज कोना करै छेलखिन। ”
“ कनियाँ , परिवारमे नमहर काज भेने चुल्हियोक काज बढ़ि जाइत अछि। मुदा सदिखन ई मनमे राखी जे अपन काज सम्हारि किछु दोसरोक काज करी। जहिना बाँसक बीट तीन सलिया , चरिसलिया धरि समटल रहैत अछि। पतरो रहैत कते-कते नमहर रहैत अछि। कड़ची सभकेँ समटि कऽ रखै छै। वएह कड़ची छी परिवारक अपनासँ बढ़ि दोसराक काजमे सहयोग करब। आजुक लोकक मन ढील भऽ गेल छै। जेकर फलाफल सोझेमे अछि। ”
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