भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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आधुनिक पाठ्यप्रणाली प्रहसनक वैशिष्ट्य अछि जे प्रहसनकार सामाजिक परिवेशक यथार्थ मानसिकताक घटना चक्रक आधारपर हास्य-व्यंग्यक आयोजन क’ कए जतहि एक भाग समाजकेँ हँसौलनि अछि ततहि दोसर भाग ओकरा माध्यमे मानसिक स्थितिकेँ परिवर्त्तित करबाक प्रयास कयलनि अछि। उपर्युक्त प्रहसनक मंचन एम. एल. एकेडमी, लहेरियासरायक वार्षिकोत्सवक अवसरपर भेल जतय तत्कालीन बिहार सरकारक शिक्षा मंत्री हरिनाथ मिश्र उपस्थित रहथि। एकर निर्देशन प्रहसनकार स्वयं कयने रहथि।
एकांकी:
देशक पुननिर्माणक आवश्यकता एवं सामाजिक चेतनाकेँ ल’ कए मैथिलीमे एकांकी लिखनिहारमे एक सजग एकांकीकारक रूपमे मैथिली एकांकी द्वारपर दस्तक देलनि। एहि दृष्टिएँ हिनक निरक्षरता निवारक पाठ्शाला, श्रमदान, घरैया लूरि, ब्रह्मस्थान, हाकिमक हाकिम वा ननदिओक ननदि, मलरवि, दिशा बोध एवं कौआ ल’ गेल कान, इत्यादि मैथिलीमे उल्लेखनीय एकांकीक रूपमे चर्चित अछि जाहि आधारपर हिनका मैथिलीक सफल एकांकीक रूपमे परिगणित कयल गेल छनि। हिनक उपलब्ध एकांकीक विश्लेषण नाटकीय तत्वक आधारपर करब समीचीन होयत। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी थिक तेँ ओकर मूल्यांकन सामाजिक दृष्टिएँ अपेक्षित अछि।
वस्तु :
नाट्य तत्वक अन्तर्गत वस्तुक सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान अछि। वस्तु द्वारा एकांकीक गतिशील होइत अछि। रस-निष्पत्ति, चरित्रक सजीवता एवं गतिशीलताक लेल वस्तुक निर्माण कयल जाइत अछि। एहि दृष्टिएँ वस्तु एकांकीक प्रमुख तत्वक रूपमे स्वीकारल गेल अछि। एकरा अन्तर्गत कार्यावस्था वा व्यापार तत्व एकांकीकेँ सफल ओ सप्राण बनबाक उद्देश्यसँ कयल जाइत अछि। कार्यक गाति द्रुतगतिएँ बढ़यबाक दिशामे वस्तु-विन्यास श्रेष्ठ माध्यम थिक, कार्य एकांकीक प्रमुख साध्य थिक। नाटकीय सौष्ठवकेँ वस्तु-संगठन एवं व्यापक समुचित योजनाक रूपमे देखल जाइत अछि। एहि प्रसंगमे पाश्चात्य आलोचक ई.एम. फार्स्टरक कथन छनि जे कथानक घटनाक ओ कालक्रमानुसार वर्णन थिक जाहिमे कार्य-कारण-सम्बंधपर विशेष बल रहैत अछि। नाटकक वा एंकाकीमे संघर्ष वा द्वन्द्वक महत्ता सर्वोपरि अछि। तेँ वस्तु विन्यासक वा एकांकीमे संधर्ष वा द्वन्द्वक महत्ता सर्वोपरि अछि। तेँ वस्तु विन्यासक अन्तर्गत कथानकपर दबाब ओकर प्रतिक्रियाक अंकन कयल जाइछ। वस्तु-विन्यास लेखकक उद्देश्यक अनुरूप क्रमवद्धता एवं विस्तार ग्रहण करैछ। अतएव एकांकीकार वस्तु-विन्यास करबा काल जीवनमे घटित भेनिहार समसामयिक जीवनसँ सम्वद्ध रहैत छथि, कारण मानव जीवनसँ विच्छिन्न कोनो साहित्य उत्कृष्ट नहि भ’ सकैछ।
निरक्षता निवारक पाठशाला (1955)मे एकांकीकार जाहि समसामयिक समस्याक उपस्थापन एहिमे कयलनि अछि तकर संकेत ओ पचास वर्ष पूर्वहि कयने रहथि तकर प्रतिरूप बीसम शताब्दीक नवम दशकमे सरकारक माध्यमे निरक्षरकेँ साक्षार बनयबाक दिशामे प्रयास भेल अछि। सरकार वयस्क शिक्षा योजनापर करोड़क करोड़ रूपैया खर्च करैत जा रहल अछि जकर मूल उद्देश्य छैक जे कोहुना प्रत्येक भारतीयकेँ साक्षर बनाओल जाय। साहित्य-चिन्तक कतेक दूरदर्शी होइत छथि तकर वास्तविकताक परिचय एहि एकांकीक प्रणयनसँ पाठक वा दर्शककेँ उपलब्ध होइत छनि। समसामियक परिवेशमे सरकार वयस्क शिक्षा नीतिकेँ क्रियान्वित करबाक हेतु नुक्कड़ नाटकक आयोजन करैत अछि। जनसामान्यकेँ एहि दिशामे आकर्षित करबाक कतिपय प्रलोभन दैत अछि। तथापि ओकर कतेक परिणाम ओकरा भेटि रहल छैक तकरा स्पष्ट करबाक प्रयोजन नहि, प्रत्युत्त अनुभव करबाक योग्य थिक। किन्तु एकांकीकार समाजक एहि ज्वलन्त समस्याक सम्बन्धमे कतेक पूर्व ध्यानाकर्षित कयने छलाह तकर स्पष्टीकरण उक्त एकांकीक मननसँ स्पष्ट भ’ जाइत अछि। नेना बाबू ने तेना सोने झाकेँ शिक्षित करबाक निमित्त प्रयासरत भेलाह जकर फलस्वरूप ओ शिक्षित भ’ गेलाह। एकरा माध्यमे एकांकीकार एहि विषयकेँ उद्घाटित करबाक उपक्रम कयलनि अछि जे देशक उन्नति तखने सम्भव अछि जखन प्रत्येक भारतीय शिक्षित क’ कए ज्ञानक ज्योति प्रज्वलित क’ कए एकर वास्तविक महत्व बुझथि। तखने मातृभूमिक स्वतन्त्रताक वास्तविक अर्थ बुझबामे तथा अपन अधिकार ओ कर्त्तव्यक पालनमे सक्षम भ’ सकताह अन्यथा सब प्रयास निरर्थक अछि। एहि निमित्त आवश्यक अछि जे जनसामान्यकेँ शिक्षित कयल जाय। एहि प्रसंगमे चतुर्भुजक कथन छनि:
जतेक पढ़ल लिखल लोक छी से यदि प्रतिज्ञा करी आ’ कम-सँ
कम दस व्यक्तिकेँ शिक्षित बनाबी। एक सँ दस, दस सँ सै,
उपर्युक्त वातावरणक पृष्ठभूमिमे एकांकीकार समाजक समक्ष एक प्रतिमान उपस्थित कयलनि अछि जे शिक्षित समाज भ’ कए अपन सामाजिक दायित्वक संगहि-संग राष्ट्रीय दायित्वकेँ बुझि देशक प्रति अपन त्याग कर्तव्यकेँ बुझथि। ई तखने सम्भव भ’ सकैछ जे लोक अपन अधिकार ओ कर्त्तव्यक प्रतिपूर्ण साकांक्ष भ’ पौताह अन्यथा ई संभव नहि। एहि दृष्टिएँ एकर कथानक समाजकेँ अपन अधिकार ओ कर्तव्यक प्रति दिशा-बोध करबैत अछि।
आधुनिक परिवेशमे दिन प्रतिदिन समसामयिक समाजक व्यक्ति आराम तलब बनल जा रहल अछि। ओ जेना श्रमक महत्वसँ अपरिचित भ’ गेल अछि। व्यक्ति-व्यक्तिमेे एतेक वेसी ऊर्जा छैक जे ओ सम्भव कार्य सेहो सम्भव क’ सकल अछि। तेँ मानव जीवनमे श्रम सर्वोपरि साधन थिक। एकांकीकार श्रमदान (1955) एकांकीमे समाजकेँ श्रमोन्मुख बनयबाक उद्देश्यसँ, शैशवावस्थहिसँ श्रमक महत्वकेँ बुझयबाक हेतु एहि एकांकीक रचना कयलनि। स्वातन्त्र्योत्तर भारतक सर्वतोमुखी विकासक शिक्षाक नव नीतिमे एकर उपयोगिताकेँ उद्घाटित करबाक उद्देश्यसँ अाधुनिक पाठान्तर्गत बुनियादी शिक्षाकेँ महत्व देबाक उद्देश्यसँ श्रमदान करबाक प्रवृत्ति जगेबाक लेल एहि एकांकीक ओ रचना कयलनि। एकरा माध्यमे आर्थिक स्वतन्त्रता तँ आसानीसँ भेिट जा सकैछ। अतएव तन-मन, धनसँ अपन मातृभूमिक सेवामे तत्पर भ’ जयबाक प्रयोजन अछि। व्यक्ति-व्यक्तिमे एहि भावनाकेँ जगयबाक हेतु जे प्रयास भेल ओ तँ अपन स्थानपर रहल, किन्तु विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तरपर ए.सी.सी., एन.सी.सी., एन.एस.एस., सदृश योजनाकेँ क्रियान्वित करबाक लेल स्थापना कयल गेलैक जकर मूल उद्देश्य छलैक श्रमदान करबाक प्रवृत्ति जगेबाक तथा भावी संतनिकेँ शेशवास्थाहिसँ अनुशासनक सूत्रमे बान्हल जाय जे भविष्यक हेतु लाभ प्रद भ’ सकैछ तेँ तँ ज्ञान-धन कहैछ:
देशक एक-एक गोटेसँ निवेदन अछि जे निर्माण कार्यमे
तन-मन-धनसँ सहायता करू। श्रमदानक भुखलि
भारत माता अहाँक आह्वान कै रहल अछि।(सामाधन, पृष्ठ -27)।
एहि प्रवृत्तिक उदय भेलासँ देशक नव-निर्माण निश्चित रूपेँ हैबाक सम्भावना अछि। सरकार एहि शिक्षा नीतिक सराहना करैत छनि आ जे स्कूल एवं कालेजमे पढ़निहारपर दबाव वा जनमानस उत्साहित भ’ कए एहि दिशामे कार्यरत हैताह। तखन सुन्दर लालक कथन छनि:
जे सोचलक ई बात बड़ बुधियार छल। देखहक आब पढ़ैत
छैक बारहोवर्णक धियापूता, सबकेँ नोकरी गेटतैक नहि,
तखन सब बेकार भेल गामेपर एहि खोन्हीसँ ओहि
खोन्ही ढ़हनाइत फिरैत छल से तँ नहि ने हैत। (समाधान, पुष्ठ-32)।
अनादि कालहिसँ समाज दुह वर्गमे विभाजित रहल अछि जकरा धनीक-गरीब वा शोषक-शोषित वा सम्पन्न-विपन्न आदि विविध संज्ञासँ विभिन्न समयमे सम्बोधित कयल जाइत रहल अछि। सामाजिक विषमता सबसेँ ज्वलन्त समस्या थिक जकर फलस्वरूप समाजक विभाजन भ’ गेलैक नया समाजन्क वर्त्तमान स्वरूप विलुपित भ’ गेल। आर्थिक परिस्थिित वा हित-सम्बन्धक आधारपर समाज मुख्यत: तीन श्रेणीमे विभाजित अछि। उच्च वर्ग, मध्य वर्ग ओ निम्न वर्ग। उपर्युक्त आधारपर समाजक अन्तर्गत वर्ग वैषम्यक आगमन भेलैक। सामाजिक वातावरणक उपर्युक्त पृष्ठभूमिमे हिनक ब्रह्मस्थान एक उल्लेखनीय एकांकी थिक, जाहिमे एकांकीकार शोषित वा गरीब वा विपन्न वर्गपर होइत अत्याचारक वास्तविकतासँ अवगत करौलनि अछि। ग्रामीण परिवेशमे एहन परम्परा रहल अछि जे गामक डिहबाक अर्थात ब्रह्मस्थान गामक न्यायालय प्रतीक मानल जाइत छल, जतय नीक अधलाहक विश्लेषण क’ कए दोषीकेँ दण्ड देल जाइत छलैक, जकर ओ साक्षी होइत छलाह। समाजक आचार संहिताक ओ प्रतीक होइत छलाह। ब्रह्मस्थान जतय गाममे रहनिहारक सुख-दुःखक समान रूपेण सहभागी हाेइत छथि। समाज कल्याण जनिक सर्वप्रमुख वैशिष्ट्य छनि तथा सामाजिक कल्याणमे अपन कल्याण मानैत छथि। एहन न्यायालयमे बैसि क’ लोक दूधक दूध आ पानिक पानि न्याय करबामे वस्तुतः सक्षम होइत छथि। वैह डिहबार समाजमे सतत पूजित होइत रहल छथि तथा समाज हुनक सम्मान करैत आयल अछि।
बदलैत समाजिक परिवेशमे एहन मान्यतामे परिवर्त्तन भेल जकर परिणाम भेल अछि जे स्वातंत्र्योत्तर भारतमे राम राज्यक स्थापनाक उद्देश्यसँ ग्राम पंचायतक स्थापना कयल गेलैक तथा ओकर प्रधान मुखियाक हाथमे गामक न्याय करबाक उत्तरदायित्व देल गेलनि। मुदा मुखिया न्याय की करैत छथि ओ तँ अन्यायक प्रतीक बनि क’ अपन राक्षसी प्रवृत्तिसँ समाजपर अत्याचार करैत छथि। एही यर्थाथताक पृष्ठभूिममे एकांकीकार ब्रह्मस्थान एकांकीक कथाभित्तिक निर्माण कयलनि अछि।
पात्र एकांकी प्रणेताक मानसिक सन्तान होइछ। ओकरामे रक्त बीज संचरण करैछ। ओहिमे संकल्प-विश्वासक गोत्रता तथा जीवन दर्शनमे वंशजता रहैछ। ओकर समस्त अभिजात्य कौलिक रहैछ जकर सम्पूर्ण वर्ण शुद्व सेहो रहैछ। समग्रत: अपन प्रणेताक जीवन्त रंग-साक्षत्कारक जीवन्त रचना थिक। ओहिमे रागात्मकता, आसंग सृजन-संकल्पना, नाट्यानुभव, रंग- संस्कार तथा रंग-राशिक तात्विक संधातसँ उद्भूत रंगपुत्र अछि। एकांकी प्रणेताक आन्तरिक रंगयज्ञक रंग कुण्डसँ उत्पन्न तथा वरदान रूपमे प्राप्त रंग सिद्धि रंगवंशी रंगकुमार अछि। एकांकी प्रणेताक रंग प्रक्रियामे रचनामे पात्र केहन होइछ? ओ रंग-प्रक्रियामे कतयसँ अबैत अछि? एहि प्रश्नसँ बँचि क’ आगाँ जायब युक्ति संगत नहि होयत। एखन धरि बहुधा पात्रक गुण-प्रकार वर्ग तथा ओकरा संगक बात होइत अबैत हो, अधिकांशतः पृष्ठपेषण होइत अछि। पात्रक रंग प्रक्रियापर बड़ कम विचार भेल अछि। पात्र तँ रचनाकारक मानसिक सन्तान होइछ। रचनाकारक जीवनगत प्रतिवद्धतामे पात्रक मर्यादा थिक। ओ सेहो जीवनक प्रति ओहिना प्रतिवद्ध होथि।
हिनक पात्र योजनापर दृष्टिपात करैत छी तँ स्पष्ट भ’ जाइछ जे ओ मध्य एवं निम्नवर्गीय सामाजिक परिवेशक प्रतिनिधित्व करैत देखल जाइत अछि जकरा समक्ष रोजी-रोटीक संगहि-संग अपन जीवको्पार्जनार्थ विविध समस्या सुरसा सदृश मुह बौने ठाढ़ छैक। एहि दृष्टिएँ ब्रह्मस्थान एवं घरैयालूरिक अधिकांश पात्र निम्न गमैया सामाजिक परिवेशक प्रतिनिधत्व करैत अछि। ननदिओकेँ ननदि, मलरवि, दिशाबोध, वाइचान्स, कौआ ल’ गेल कानक अधिकांश पात्र सेहो ओही श्रेणीमे अबैत छथि। मध्यम वर्गीय श्रेणीमे घरैयालूरिक महेन्द्र बाबू ब्रह्मस्थानक हरिवंश बाबू एवं ननदिओकेँ ननदकि चेयरमैन प्रतिनिधित्व करैत छथि। उच्च वर्गक पात्रक अभाव हिनक एकांकीमे अछि।
वस्तुत: हिनक पात्रक संघर्षमे सामाजिक समायोजन (सोसल एडजस्टमेण्ट)क भावना सन्निहित अछि। हिनक आत्मसम्मानी पात्र अपन प्रकृतिक विरोधी नकारात्मक प्रवृत्तिक सामाजिक प्रवत्तिसँ अपन मेल नहि बैसा पबैत अछि। अतएव समायोजनक स्थितिमे ओ मानसिक आशांतिक अनुभव करैत अछि जे कोहुना ओहि मानसिक तनावसँ मुक्ति भेटय एकरा हेतु ओ अपन समायोजनक कारण भूत विरोधी प्रवृत्तिकेँ परास्त करय चाहैछ। एहि प्रयासमे ओकर समाज-विरोधी प्रवृत्तिसँ संघर्ष करय पड़ैत छैक।
एहि प्रकारेँ आत्मसम्मानी पात्रक संघर्ष सामाजिक समायोजनक दिशामे कयल गेल एक प्रयास थिक। इएह हुनक अन्त:स्थ सामाजिक प्रेरणाकेँ व्यावहारिक क्षेत्रमे आनि क’ उपस्थित क’ दैत अछि। एहन संघर्षमय प्रयासक फलस्वरूप आत्मसमानी पात्रक व्यक्तित्व निर्मित्त भेल अछि जे हिनक मिथिलांचलक समाजक एकांकीक अनुपम देन थिक। ब्रह्मस्थानक पचकौड़ी एही श्रेणीक पात्र अछि जे अपन आत्म-सम्मानक रक्षार्थ ब्रह्मस्थानकेँ कोड़ि क’ हुनक अस्तित्वकेँ मेटैबाक लेल तैयार अछि।
सत्ता आँखिक सोझॉं नव-दर्शनक निर्माण करैत अछि जहिमे एकमात्र स्व रहैत अछि। स्वार्थान्ध सत्ताकेँ जीवित रखबाक हेतु मदति कयनिहार व्यक्ति आत्मकेन्द्रित बनि जाइत अछि। किन्तु ओकरा संधर्ष ओ करैत अछि जकरा लोकतन्त्रमे विश्वास एवं निष्ठा छैक। जे व्यक्ति सत्ताक विरोधमे नारा लगबैत अछि तकरापर विपत्तिक पहाड़ टूटि पड़ैत छैक। तथापि नैतिकता आ सत्ताक बलपर व्यक्तिक मनोबल बढ़ैत छैक आ असत् वृत्तिक संरक्षक कालजयी सेहो सद्वृत्तिसँ डेराय लगैत अछि। एहि प्रकारक जन-जागृतिक कार्य एकमात्र साहित्ये द्वारा संभावित अछि। हरिवंश बाबू गामक मुखिया छथि तेँ हुनक आज्ञाक बिना गामक एक पात पर्यन्त नहि हिल पबैत अछि। ओ एतेक वेसी स्वार्थान्ध छथि जे ओ अपन स्वक पूर्तिक निमित्त निरीह सुगियापर प्रहार करबामे कनेको कुठित नहि होइत छथि, कारण ओ हुनकर बेटा नूनू बचबाक आज्ञाक उल्लंघन कयलक अछि, जाहिसँ हुनका चोट पहुँचैत छनि। यद्यपि ओकर बेटा मखना अठारह दिनसँ ज्वराक्रान्त छैक माया, मोह, तथा ममता नामक कोनो वस्तु हुनक अन्तरात्मामे नहि छनि। तेँ निर्दयता पूर्वक व्यवहार करैत छथि जकर परिणाम अत्यन्त भयावह हाेइछ।
जाहि ग्रामांचलमे अशिक्षा एवं अन्ध श्रद्धाक प्रभाव रहत ओतय निर्धनता तथा शोषणक परम्परा निश्चित रूपेँ रहतैक। अधंश्रद्धाक प्रतीक छथि पंचकौड़ी तथा हुनक पत्नी सुगिया जे ब्रह्मस्थानपर कबुला पाती क’ कए मखनाक नीके होयबाक कामना करैत अछि। शोषित वर्गमे एकता अवश्य अछि तथापि ओ अन्यायसँ डेरायल रहैत अछि, किन्तु ओहिसँ मुक्त होयबाक इच्छा अवश्य रखैत अछि। मुदा सामाजिक परिवर्त्तित परिवेशमे से सम्भव नहि भ’ पबैत अछि।
वर्त्तमान परिवेशमे एक दोसराक उपयोग करबाक पाछॉं बेहाल अछि। एहि लेल कोनो तरहक योग्यता अपेक्षित नहि, प्रत्युत एक हथकण्डाक प्रयोजन अछि। मुदा एतबा निश्चित अछि जे लोक अपन लाभक लेल आेकर उपयोग दोसरापर करैत अछि। ई परम्परा समाजमे सतत चलैत रहैत अछि। एक बेर आक्टोपसक शिंकजामे पड़ि़ गेलापर वापसीक मार्ग अवरूद्व भ’ जाइत छैक। घरैयालूरिक महेन्द्र बाबू आ ब्रह्मस्थानक हरिवंश बाबू एही श्रेणीक पात्र छथि। जतय महेन्द्र बाबू अहि श्रेणीक प्रतिनिधि छथि जे शोषित वर्गक शोषण सूदिपर रूपैया लगा क’ करैत छथि, आ समाजक साइलॉक सदृश छथि जे खदुकाक कोंढ़-करेज पर्यन्त खोरैैबामे कनियो कुठित नहि होइत छथि ततहि हरिवंशबाबू एक अहंकारी व्यक्ति छथि, जे शोक वर्गपर अत्याचार करैत छथि। यद्यपि शोषित समाज हुनका सभक गतिविधिसँ पूर्णरूपेण परिचित अछि तथापि बेर-घड़ीपर वैह काज अबैत छथिन तेँ विरोध करबाक प्रश्ने ने उठैछ।
अत्यल्य पात्रक प्रयोग क’ कए दिशाबोध एकांकीक रचना एकांकीकार कयलनि। एहिमे कुल चारि पात्र अछि। नूनू, हुनक वृद्ध पिता, सुन्दर तथा हुनक युवती पत्नी। हमर सामाजिक परिवेशक उक्त चारू पात्र मानसिक विश्लेषण करबामे सक्षम भेलाह अछि। आधुनिक सामजिक परिवेशक प्रतीक छथि सुन्दर जे भौतिकवादी युगमे अपन जीवनकेँ सुखी-सम्पन्न सानन्दित बनयाबामे निम्नसँ निम्न स्तरपर जा सकैत छथि। किन्तु युवती पत्नीक विद्रोही तेवर एतेक बेसी प्रखर अछि जे हुनका सोझाँमे ओ अँटकि नहि पबैत छथि। किन्तु नूनू कर्तव्यनिष्ठ पात्र छथि जे एम.ए. इन फिलॉसफी रहितहुँ अपन कर्त्तव्यपरायणता संगहि संग पितृ एवं मातृभक्तिकेँ अपन पुनीत कर्त्तव्य बुझैत छथि। ओ दिग्भ्रमित सुन्दरकेँ आदर्श जीवन एवं कर्त्तव्यपरायणता पाठ अपन व्यवहारसँ पढ़ा क’ दिशाबोध करबैत छथि। नूनूक चरित्रसँ शिक्षित भ’ कए सुन्दर अपन संग मायक इलाजक लेल तत्परता देखायब अपन पुनीत कर्तव्य बुझैत छथि। एकांकीकार दिग्भ्रमित सामाजिकपरिवेशक जे वास्तविक मानसिकता भेल जा रहल अछि तकर यथार्थतासँ जन सामान्यकेँ परिचित करयबाक प्रयास कयलनि अछि जे आध्ाुनिक परिवेशमे उपेक्षणीय नहि प्रत्युत ग्रहणीय अछि।
संवाद :
रंग रचना चाक्षुष यज्ञ थिक तथा रङ्गानुष्ठान ओकर कर्मकाण्ड। संवादक ऋचा स्तवनसँ युग पुरुषकेँ साक्षात् कयल जाइत अछि। रंगानुभव यज्ञ पुरुषक एहि गायित्री गायनसँ अवगाहन पबैत अछि आ सम्पूर्ण रंगकर्ममे प्रत्यक्ष होइत अछि। अतएव संवादक मन्त्रोचारसँ रंग कर्मक साक्षात्कार होइत अछि। एहि ऋचा गायनक निश्चित व्याकरण अछि। एहि प्रकारेँ संवादक प्रस्तुतीकरणक सेहो एक संहिता अछि जे ओहिमे निहित अछि। संवाद रंगानुभवक आत्मज थिक। संवाद रंग कर्मक व्यवहार ओ आचारण थिक निर्देशक, सूत्रधार ओ रंगकर्मीक संवादमे रंगकर्म, मंचन आ अभिनयक दिशाक अन्वेषण करैत छथि। कारण संवादक प्रत्येक शब्द, वाक्य रंगसिद्धिमे रहैत अछि। अतएव पूर्ण संवाद रचनामे एक तँ प्रत्येक शब्दसँ रंगकर्मक किरण फुटैत अछि, दोसर सम्पूर्ण संवाद एहन रंगसिद्ध शब्दक अनुशासित समन्वयसँ एक एहन आलोक विम्ब प्रस्तुत करैत अछि जे रंगकर्मक दिशा संकेत करैत अछि।
संवाद पात्रक बहुविधि व्यक्तित्वक दर्पण थिक, ओकर विधायिका चारिित्रकताक समानुपातिक विकासक मानदण्ड थिक। संवाद रचनामे नाटकक प्रणेताक अत्यन्त कठिन भूमिका रहैत छनि। हुनका एकहि संग विविध पात्रक भूमिकामे उतरि क’ ओकर मनःस्थितिक अनुरूप संवाद रचना करय पड़ैत छनि। कतहु संवाद आरोपित नहि लागय, पात्रक प्रकृति ओ रंगवेदनाक प्रतिकूल नहि हो जकरा सतत ध्यानमे राखय पड़ैत छनि।
उपर्युक्त परिप्रेक्ष्यमे हिनक संवाद योजनापर दृक्पात कयलापर स्पष्ट प्रतीत हाेइत अछि जे ओ प्रत्येक पात्रक संवाद-योजना ओकर परिस्थितिक अनुकूलहि निरूपण कयलनि अछि। प्रहसनमे जतय हास्य-व्यंग्यक प्रमुखता रहैत अछि ततय ओ तदनुरूपहि संवाद-योजना कयलनि अछि। हिनक प्रत्येक संवाद एहन बुझना जाइछ जेना ओ स्वयं पात्रक रूपमे उपस्थित भ’ कए अपन बात ओकरा मुहे कहयबाक प्रयास कयलनि अछि। हिनक एकांकी ओ प्रहसनक एक विशेषता अछि जे एकांकीकार ओहिमे पात्रोचित भाषाक संगहि-संग ग्राम्य भाषाक प्रयोग एतेक सहजताक संग कयलनि अछि जकर परिणाम भेल अछि जे हिनक भाषा-शैली अत्यन्त मर्मस्पर्शी बनि गेल अछि। यद्यपि ई संस्कृतक पण्डित छथि जनिका तत्सम शब्दक प्रयोग करबामे विशेष आभिरुचि रहबाक चाही, किन्तु ई भाषा प्रयोगमे एतेक, उदारचेता छिथ जे हिनक चाहे काव्य भाषा हो चाहे गद्यभाषा हो ओहिमे ठेंठसँ ठेंठ शब्दावलीक एतेक प्रचुर परिमाणमे प्रयोग करैत छथि जे पाठकक मर्मकेँ स्पर्श करबामे सहायक होइत अछि। जतेक दूर धरि एकांकी ओ प्रहसनमे भाषा प्रयोगक प्रश्न अछि ओहि परिप्रेक्ष्यमे निर्विवाद रूपेँ जा सकैछ जे लोकोक्तिक प्रयोग करबामे ई महारथ हासिल कयने छथि जे पाठकक ध्यानाकर्षित करैत अछि। प्रहसन ओ एकांकीक भाषाशैली वा संवाद योजना प्रस्तुत करबाक शैली एतेक सक्षम अछि जे नेपथ्यमे कोनो प्रकारक आडम्बर करबाकक प्रयोजन नहि पड़ैछ। रंगमंचक व्यवस्थाक एहन संकेत पात्रक माध्यमे देलनि अछि जे ओकर भूमिकाक नहि निर्माण करैछ। पात्र जखन परस्पर वार्तालाप करैछ तखन अपन मौन, आवेग, स्थिर दृष्टिएँ, कखनो-कखनो हँसि क’ कखनो- कखनो बीचमे रूकि क’ नाटकीय प्रभाव गम्भीर बना दैत अछि। एहि प्रकारेँ मंचीय सम्भावनासँ परिपूर्ण हिनक प्रहसन ओ एकांकी सामाजिक जीवनक विभिन्न समस्याकेँ जहिना-तहिना प्रस्तुत कयलक अछि।
एकांकी एवं प्रहसनक भाषा अन्य साहित्यिक विधादिक तुलनामे एक पृथक संस्कारसँ संयुक्त अछि। यथार्थक आग्रह कारणेँ ओकरा सामान्य जीवनक बोली वर्णक भाषासँ निकट होयब अनिवार्य अछि। हिनक एकांकी ओ प्रहसन सामान्य भाषाक भीतरहिसँ संचरित संस्कारित भेल अछि। एहि रूपमे एकांकीक वस्तुक लेल तथ्ये नहि करैछ, प्रत्युत सम्पूर्ण रचनातन्त्रक निर्माण सेहो करैछ। वस्तुत: हिनक एकांकी ओ प्रहसनक भाषा सम्पूर्ण सम्प्रेषणक भाषा थिक जाहिमे एक-एक शब्द कहल गेल अछि ओ महत्वपूर्ण नहि महत्वपूर्ण अछि एक समग्र प्रभाव आ ओ जे नहि कहल गेल अछि, जे, ध्वनित-व्यंजित मात्र कयल जाइत अछि। भाषा हिनक व्यक्तित्वमे रचल-बचल छनि जे सामजिक परिवेश, मानसिक चेतना सब मिलि क’ हिनक भाषिक प्रतिभाक निर्माण करबयमे सहायक भेल अछि। हिनक सर्जनात्मक बोध, चयन ओ संयोजनक सायास आग्रह सामान्यसँ विशिष्ट बना देलनि अछि।
गीत :
अमर मूल रूपेँ कवि छथि तेँ एकांकीमे सेहाे स्थल-स्थलपर हिनक काव्य प्रतिभाक प्रस्फुटन भेल छनि जकर प्रतिफल घरैयालूरि, हाकिमक हाकिम एवं श्रमदानमे सेहो हिनक काव्य-प्रतिभासँ पाठक एवं दर्शक परिचित होइत अछि घरैयालूरिमे ढ़ोलक झालिपर गबैत एक मण्डली प्रवेश करैत अछि जकर विषय-वस्तु थिक राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा देखाओल गेल गृह-उद्योग एवं कुटीर-उद्योग, तकर महत्तापर प्रकाश देल गेल अछि। एहि एकांकीमे प्रयुक्त गीतक महत्व मूलस्वर थिक जनसामान्यकेँ एहि दिस आकर्षित करब। हाकिमक हाकिम वा ननदिओक ननदिमे सहो उक्त परम्पराक पालन कयल गेल अछि, जखन मिडिल स्कूलक प्रागंणमे चेयर मैन साहेब उपस्थित भ’ छात्र लोकनिकेँ वार्षिकोत्सवक अवसरपर पारितोषिक देबाक लेल जाइत छथि तखन हुनक स्वागतार्थ स्वागतगानक आयोजन कयल जाइत अछि। श्रमदान एकांकीमे सेहो एहि परम्पराक निर्वाह कयल गेल अछि। स्वयं सेवकक दल कान्हपर कोदारि आ हाथमे छिट्टा ल’ कए श्रमक महत्ताकेँ प्रतिदिन करैत मातृभूमि भारत माताक आह्वान करैत छथि जे मानवतापर दानवताक स्पष्ट झाँकी भेटि रहल अछि। एहन विषम स्थितिमे दलितक उद्धारक हेतु एहिसँ उत्तम साधन आ की भ’ सकैछ ? श्रमक माध्यमे हमरा सभक उद्धार संभावित अछि। एहिसँ प्रेरित भ’ कए गबैया सब मिलि क’ देशक निर्माण, अपन भाग्यक निर्माण तथा भावी संतानक भविष्य निर्माणक हेतु कोसीक वन्दना करैत देखल जाइत छथि जाहिमे मातृभमिक कल्याणार्थ क्रान्तिकारी डेग उठबैत विश्व बन्धुत्वक भावनासँ प्रेिरत भ’ कए अबला-वृद्ध वनिता देशक नव-निर्माणक हेतु सन्नद्ध भ’ जाइत छथि जे त्याग तस्पया, आलस्य, भय, आदिक परित्याग क’ देशक निर्माणमे लागि जाथि। उपर्युक्त तीनू एकांकी गीतक शब्द-विन्यास संगीत परम्परानुरूप अछि।
उद्देश्य :
चन्द्रनाथ मिश्र अमरक जतबे एकांकी ओ प्रहसन प्रकाशमे आलय अछि ओहिमे एकांकीकारमिथिलांचलक परिप्रेक्ष्यमे जाहि सामाजिक समस्यादिकेँ प्रस्तुत कयलनि अछि ओ मात्र मिथिलांचलेक समस्या धरि सीमित नहि अछि, प्रत्युत सम्पूर्ण भारतवर्षक ओहि सामाजिक परिवेशक समस्या थिक जाहि परिवेश मे भारतीय निम्न एवं मध्यवित परिवार गुजर बसर करैत अछि। हमरा जनैत एकांकी ओ प्रहसनक रचनाक पाछाँ एकांकीकारक सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य रहलनि अछि जे एकरा माध्यमे मिथिलांचक सामाजिक परिवेश पुननिर्माणक संगहि-संग समाजमे एक एहन चेतना अानब जाहिसँ जर्जरित समाजक कायाकल्प कैल जा सकइयै। एक सफल शिक्षक होयबाक कारणेँ व्यावहािरक जीवनक अनुभवक आधारपर एक युगद्रष्टा साहित्कार सदृश ओ इएह सन्देश देबाक उपक्रम कयलनि जे शिक्षा जगतमे आमूलपरिवर्त्तन, परिवर्द्धन ओ परिमार्जनक प्रयाेजन अछि। एहि पृष्ठभूिममे ओ अपन एकांकी ओ प्रहसनक विषयवस्तुक चयन कयलनि जे व्यावहारिक जीवनमे जनसामान्यक हेतु लाभप्रद सिद्ध भ’ सकय।
प्रत्येक व्यक्तिक जीवनक एक सुनिश्चित उद्देश्य होइछ। ओहि ध्येयक प्रािप्तक हेतु व्यक्ति सब किछु तन-मन-धन समर्पित क’ दैत अछि। पुस्तक मनुष्यक गुरु एवं मित्रक संगहि सब किछु अछि। ओहिसँ फराक रहि क’ मनुष्यकेँ सुखक अनुभूति नहि भ’ सकैछ। मृगतृष्णाक पाछाँ-पाछाँ दौड़लासँ मनुष्यकेँ मात्र थकाने होइत छैक। किन्तु पुस्तकमे व्यस्त रहलापर मानसिक समाधान ओ ज्ञानक संगहि सम्मान भेटैछ। अतएव समाजसँ किछु माँगबाक लालसासँ नीक थिक जे अध्ययन- अध्यापनक सत्य दुनिया अपनायब राजमार्ग थिक। चन्द्रनाथ मिश्र अमरक विफुल साहित्य साधनाकेँ देखि प्रतिभाषित होइत अछि जे हिनक साहित्य साधना निशिचत रूपेँ हिनक राजमार्ग छनि जकरा अनुसरण क’ कए एतेक अवदान मैथिली साहित्यकेँ श्रीवृद्वि बनयबामे द’ पौलनि ओ जाहि सामाजिक परिवेशक प्रश्न एकांकी ओ प्रहसनमे उठौलनि ओ निश्चित रूपेँ मिशिलाक पृष्ठभूमिमे एक अभिशाप थिक।
ब्रहास्थान एक उल्लेखनीय एकांकीक रूपमे पाठकक समक्ष अबैत अछि जाहिमे एकांकीकार निम्नवर्गीय गमैया समाजक प्रतीक रूपमे सुगिया ओ पंचकौड़ीकेँप्रस्तुत क’ कए ई जनयबाक उपक्रम कयलनि अछि जे युग-युगसँ सीदित अछि, पीड़ित अछि, जकरापर अत्याचार तँ अवश्य होइत छैक, किन्तु अपन आक्रोशकेँ गामक मुखिया हरिवंश बाबूपर नहि प्रकट क’ कए ब्रह्मस्थानपर प्रकट करैत अछि जे भगवान सेहो शोषक वर्गक संग मिलि क’ अत्याचार करबामे सहयोग देबामे कनेको कुंठित नहि होइत छथि। जाहि समाजमे अशिक्षा ओ अन्धश्रद्धाक प्रभाव छैक ओतय गरीब तथा मजदूरक शोषणक परम्परा बनि क’ रहि जाइत अछि। ओकर मानसिकता एहन छैक जे ओ ने तँ भगवानक विरोध क’ सकैत अछि आ ने शोषक वर्गक प्रतिनिधि बनि क’ मूक रहि सकैछ। ओ अन्यायसँ डेरायल अछि तथा ओहिसँ मुक्ति पयबाक आकांक्षी सेहो अछि। एतय संघर्ष दोसर पक्ष सेहो अछि जे मुखिया एहि अन्यायक एक पुर्जा मात्र अछि।
सामाजिक यथार्थ विषयक चयन करबाक पाछाँ चन्द्रनाथ मिश्र अमरक मुख्य उद्देश्य छनि समाज-सुधार तथा जनसामान्यकेँ एहि दिस आकार्षित करब। एकांकीकार समाजक अन्यायपर प्रकाश द' कए जनसामान्यमे चैतन्य उत्पन्न कयलनि अछि। ओना तँ सभ देशक नाटकककार सामाजिक विषयकेँ आधार बना क’ कतिपय एकांकी ओ प्रहसनकार रचना कयलनि अछि जे पाठक वा दर्शकक आकर्षणक केन्द्र बनल अछि। भारतीय एकांकीकार ओ प्रहसनकार सामाजिक यथार्थक पूर्ण उपयोग कयलनि। प्रस्तुत एकांकीकार सामाजिक विषयक आधार बना क’ सुधार करबाक दिशामे प्रयास कयलनि। ओ मिथिलांचलक सामाजिक जीवनमे विस्तृत कुरीतिकेँ देखलनि तथा ओहिपर व्यंग्यात्मकताक शैलीमे प्रहार कयलनि। एकांकीकारक सुधारक वृत्तिक परिणाम स्वरूप समाजक जीवैत-जैत चित्र जनसाधारणक सोझाँ प्रस्तुत भेल तथा नवीन भावनाक विकासक लेल मार्ग प्रशस्त भेल। समाजक परिष्कार भावनासँ प्रेरित भ’ कए ओ एकांकी एवं प्रहसनक रचना कयलनि तथा सामाजिक परिवेशक अन्तर्गत वर्गगत बिडम्बनाकेँ नष्ट करबाक अद्देश्यसँ ओ हास्य-व्यंगयकेँ प्रमुख साधन बनौलनि।
संभवतः एहि वास्तविकतासँ अवगत नहि रहलाक कारणेँ डाॅ. दुर्गानाथ झा श्रीश (1929-2000) मैथिली साहित्यक इतिहास (1991)मे हिनकापर जे आरोप लगौलनि जे हिनक एकांकी जाहि प्रचार-प्रसारक स्वर अत्यन्त प्रमुख भेलासँ प्रत्येक एकांकी, सरकारी प्रचार साहित्य जकाँ लगैत अछि (पृष्ठ-301)। हमारा दृष्टिएँ दुर्गानाथ झा श्रीशक ई कथन सर्वथा दिग्भ्रमित विचार थिक, कारण साहित्यक प्रमुख उद्देश्य होइछ जे समाजमे घटित भेनिहार घटनाक यथार्थ पाठक ओ दर्शककेँ अवगत करायब, समाजक अभावमे साहित्य महत्वहीन भ’ जाइछ। एकांकीकार समाजक यथार्थक चित्रण क’ वास्तविकतासँ अवगत करयबाक प्रयास कयलनि जे सर्वथा ग्रहणीय अछि, अनुकरणीय अछि, कारण हुनक एकांकी ओ प्रहसनक विषय-वस्तु समाजोन्मुखी तथा समयक जे माँग छल तकरा परिप्रेक्ष्यमे लिखल गेल अछि।
नि:सारण :
चन्द्रनाथ मिश्र अमर अपन प्रहसन ओ एकांकीमे हास्य-व्यंग्यक अवतारणाक लेल विविध पात्र एवं परिस्थिति कथा-वस्तुमे नियोजित कयलनि अछि, कारण हुनक समसायिक सामाजिक परिवेशक अन्तर्गत एही प्रकारक ज्वलन्त समस्या छल जकर ओ अत्यन्त सूक्ष्मताक संग विश्लेषण कयलनि। प्रहसनक कथा अतिरंजित होइत अछि आ प्रहसनक पात्रक विविध क्रियाकलाप सेहो दर्शककेँ हँसबैत अछि। यद्यपि प्रहसन उहपासाम्क होइत अछि तथापि ओहिमे सुधारक भावना सन्निहित रहैत अछि जे हिनक प्रहसनक केन्द्र-विन्दु थिक।
एकांकीमे सामाजिक समस्याक विभिन्न पहलूकेँ ओ प्रभावोत्यादक शैलीमे प्रभावशाली ढंगसँ प्रस्तुत कयलनि अछि।एकांकीकार यथास्थान सहज स्फूर्तिसँ मार्मिक विचारकेँ अभिव्यक्त कयनिहार ग्राम्य भाषाक माध्यमे प्रस्तुत कयलनि। हिनक एकांकी ओ प्रहसनक भाषा तथा ओकरा प्रस्तुत करबाक शैली एतेक सक्षम अछि जे नेपथ्यमे कोनो प्रकारक आयोजनक प्रयोजने नहि पड़ैछ। ई एकांकी ओ प्रहसनमे रंग-व्यवस्थाक एहन संकेत पात्रक माध्यमे देलनि अछि जाहिसँ एकर भूमिका निर्माण स्वयं भ’ जाइछ। एक पात्र दोसरा संग वार्तालाप करैत अपन अावेग, मौन एवं स्थिर दृष्टिएँ बीच-बीचमे रूकि क’ नाटकीय प्रभावकेँ गम्भीर बना देलनि अछि। एहि प्रकारेँ मंचीय सम्भावनासँ परिपूर्ण हिनक ओ प्रहसनक सामाजिक जीवनक यथार्थताक विभिन्न समस्याकेँ एहि प्रकारेँ रू-ब-रू प्रस्तुत कयलनि अछि जाहिसँ ओ लोकनि बिनु भेने नहि रहि सकैछ। हिनक एकांकी ओ प्रहसनक भाषामे सूक्ष्मता एवं प्रत्यक्षता अछि।
चन्द्रनाथ मिश्र अमर अपन समसामयिक जीवनक दैनिक, आर्थिक सामाजिक समस्याकेँ विचार प्रधान ढंगसँ सोझरयबाक प्रयास कयलनि। ओ काल्पनिक जीवनसँ हरि क’ यथार्थक सहरजमीनपर अयलाह। कथानक, पात्र, चरित्र चित्रण, भाषा, वेशभूषा, सभमे यथार्थताक प्रति अभिरुचि हिनक एकांकी ओ प्रहसनक विशिष्टता अछि। यथार्थवादी प्रगतिशील समस्याकेँ ओ एकांकी एवं प्रहसनमे स्थान देलनि। ई नाटकीय भाषाक संस्कार कयलनि, नव भावक संजीविनी ओकरा देलनि एवं कलाक विभिन्न रूपमे सार्थक प्रयोग कयलनि तथा वर्त्तमान मैथिली गद्यकेँ दिशा देलनि। हिनक एकांकी ओ प्रहसनमे रस-निष्पत्ति स्वयं होइत अछि। विशेषत: हास्य-व्यँग्यक ई मैथिलीमे सिद्धस्त लेखक छथि जकर प्रतिरूप हिनक समग्र साहित्यमे उपलब्ध होइत अछि। हिनक एकांकी ओ प्रहसन आभिनयोपयोगी अछि जकरा प्रस्तुत करबाक हेतु कोनो तामझामक आयोजनक प्रयोजन नहि पड़ैछ। हिनक एकांकी-प्रहसन जहिना पठनीय अछि तहिना अभिनीय सेहो। एहि प्रकारेँ हिनक एकांकी-प्रहसनक माध्यमे मिथिलांचलक सामाजक समस्त सामाजिक जीवनक झलक भटैत अछि जे विविध रूपमे प्रत्यक्षीकरण भ’ जाइत अछि।
सुजीत कुमार झा
थाल माटिक पावनि
मिथिलाञ्चल पावनि तिहारक हिसाव सँ धनी क्षेत्र मानल जाइत अछि । कोनो महिना एहन नहि होइत अछि जइमे प्रमुख पावनि सभ नहि हुए । फेर लोक ओतवे उत्साहकेँ संग मनबैत अछि ।
अहिक्रममे थाल माटिक पावनि किछुए दिन पूर्व मिथिलाञ्चलमे सम्पन्न भेल अछि । जुडशीतल पावनिकेँ रुपमे मनाओल जायबला पावनिमे एक दोसरकेँ थाल माटि लगाओल गेल ।
थाल माटिक पावनि मिथिलाञ्चलक हरेक स्थान पर ओतवे उत्साह के सँग मनाओल जाइत अछि । मुदा मिथिलाक राजधानी जनकपुरमे किछ विशेषे देखल गेल । जनकपुरक समाजिक क्षेत्रमे लम्बा समयसँ काज करैत आएल राम युवा कमिटी आ रामजानकी युवा कमिटी अलग अलग स्थान पर थाल माटिक उत्सव मनौलक । ओ उत्सवमे सैयकडो व्यक्तिक सहभागिता छल । राम युवा कमिटी जनकपुरक अध्यक्ष सोहन ठाकुर कहलन्हि — जुडशीतल जाहि उत्साहके सँग पहिले मनाओल जाइत छल ओहिमे किछ वर्ष सँ कमी बुझा रहल छल ।
ओ कमी दुर करबाक लेल उत्वसके रुपमे जुडशीतल मनेलौ ।
उत्सवक बाद पुरे जनकपुर थाल माटि सँ भरि गेल छल । संचारकर्मी रामअशीष यादव कहलन्हि ‘बहुत दिनक बाद जुडशीतलक अनुभव अहिवेर भेल ।’
गाममे सेहो
गाममे कोनो उत्सव हुए वा सत्यनारायण भगवानक पूजा एकटा अलग होइत अछि । लोकके कसि कऽ सहभागिता रहैत अछि । फेर थाल माटिक बात करी तऽ गाममेअहिरुप सँ थालमाटि खेलल जाइत अछि की कतेको दिन तक गाममे थाले माटि नहि रहैत अछि । धनुषा जिल्लाक गंगुलीक गुड्डु गंगुली कहैत छथि — ‘गंगुली गाममे थालमाटि खेलबाक लेल बाहर कमायबला युवासभ जुमि जाइत छी । पावनि सेहो मनालैत छी आ युवा सभ बीच भेटघाट सेहो भऽ जाइत अछि ।’
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अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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