भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आधर्मशास्त्री विद्यापतिकस्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महानपुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिलालोकनिकचित्र'मिथिला रत्न'मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि।मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नवस्थापत्य, चित्र, अभिलेखआ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू'मिथिलाक खोज'
२.कथा-लघुकथा अंग्रेजीक शॉर्ट स्टोरी आ मैथिलीमे अन्तर। एतए एक पन्नासँ छोट कथा भेल लघु कथा आ ओहिसँ पैघ आ ४-५ पन्नासँ १५-२० पन्ना धरि कथा आ दीर्घ कथा। फेर ५०-६० पन्नासँ उपन्यास शुरू।
३.१९४२-४३ क बंगालक अकालक विषयमे अमर्त्य सेन लिखै छथि जे एहि अकालमे बंगालमे लाखक लाख लोक मुइलाह (फेमीन इन्क्वायरी कमीशनक अनुसार १५ लाख) मुदा अमर्त्यक एकोटा सर-सम्बन्धीक मृत्यु ओहिमे नहि भेल। तहिना मिथिलाक १९६७ ई.क अकालमे भारतक प्रधानमंत्रीकेँ देखाओल गेलन्हि जे कोना मुसहर लोकनि बिसाँढ़ खा कऽ अकालसँ लड़ि रहल छथि, मुदा एहिपर कथा लिखल गेल २००९ ई.मे। २००९ ई. मे जगदीश प्रसाद मंडलजी बिसाँढ़पर मैथिलीमे कथा लिखलन्हि। आ एहि विलम्बक कारण सेहो स्पष्ट अछि। मैथिली साहित्यमे जे एकभगाह प्रवृत्ति रहल अछि, ताहि कारणसँ अमर्त्य सेन जेकाँ हमरो साहित्यकार सभ ओहि महाविभीषिकासँ ओतेक प्रभावित नहि भेल होएताह। आ एतए जगदीश प्रसाद मंडल जीक कथा मैथिली कथा धाराक यात्राकेँ एकभगाह होएबासँ बचा लैत अछि। एहि संग्रहक सभटा कथा उत्कृष्ट अछि, रिक्त स्थानक पूर्ति करैत अछि आ मैथिली साहित्यक पुनर्जागरणक प्रमाण उपलब्ध करबैत अछि।
४.
५.जगदीश प्रसाद मण्डल शिल्पी छथि, कथ्यकेँ तेना समेटि लैत छथि जे पाठक विस्मित रहि जाइत अछि। मुदा हिनका द्वारा कथ्यकेँ (कथा, उपन्यास, नाटक, प्रेरक-कथा सभमे) उद्देश्यपूर्ण बनेबाक आग्रह आ क्षमता हिनका मैथिली साहित्यमे ओहि स्थानपर स्थापित करैत अछि, जतएसँ मैथिली साहित्यक इतिहास “जगदीश प्रसाद मण्डलसँ पूर्व” आ “जगदीश प्रसाद मण्डलसँ” एहि दू खण्डमे पाठित होएत। समाजक सभ वर्ग हिनकर कथ्यमे भेटैत अछि आ से आलंकारिक रूपमे नहि वरन् अनायास, जे मैथिली साहित्य लेल एकटा हिलकोर अएबाक समान अछि। हिनकर कथ्यमे कतहु अभाव-भाषण नहि भेटत, सभ वर्गक लोकक जीवन शैलीक प्रति जे आदर आ गौरव ओ अपन कथ्यमे रखैत छथि से अद्भुत। हिनकर कथ्यमे नोकरी आ पलायनक विरुद्ध पारम्परिक आजीविकाक गौरव महिमामंडित भेटैत अछि, आ से प्रभावकारी होइत अछि हिनकर कथ्य आ कर्मक प्रति समान दृष्टिकोणक कारणसँ आ से अछि हिनकर व्यक्तिगत आ सामाजिक जीवनक श्रेष्ठताक कारणसँ। जे सोचैत छी, जे करैत छी सएह लिखैत छी- ताहि कारणसँ। यात्री आ धूमकेतु सन उपन्यासकार आ कुमार पवन आ धूमकेतु सन कथा-शिल्पीक अछैत मैथिली भाषा जनसामान्यसँ दूर रहल। मैथिली भाषाक आरोह-अवरोह मिथिलाक बाहरक लोककेँ सेहो आकर्षित करैत रहल आ ओही भाषाक आरोह-अवरोहमे समाज-संस्कृति-भाषासँ देखाओल जगदीशजीक सरोकारी साहित्य मिथिलाक सामाजिक क्षेत्र टा मे नहि वरन् आर्थिक क्षेत्रमे सेहो क्रान्ति आनत। विदेह मे हिनकर पाँचटा उपन्यास, एकटा नाटक आ दू दर्जनसँ बेशी कथा, नेना-भुटका-किशोर लेल सएसँ ऊपर प्रेरक कथा ई-प्रकाशित भऽ विश्व भरिमे पसरल मैथिली भाषीकेँ दलमलित करैत मैथिली साहित्यक एकटा रिक्त स्थानक पूर्ति कऽ देने अछि।
६.मैथिली भाषा साहित्य : बीसम शताब्दी - प्रेमशंकर सिंहजीक एहि निबन्ध-प्रबन्ध-समालोचना संग्रहमे मैथिली साहित्यक २०म शताब्दी आ एक्कैसम शताब्दीक पहिल दशकक विभिन्न प्रिय-अप्रिय पक्षपर चर्चा भेल अछि। अप्रिय पक्ष अबैत अछि एहि द्वारे जे राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक समस्या-परिवर्तन आ एकीकरणक प्रक्रिया कखनो काल परस्पर विरोधी होइत अछि।
७.
८.मैथिली साहित्यक पुरान सन्दर्भ मैथिली भाषा आ साहित्यमे वर्णित अछि। लोकगाथा मे मणिपद्मक लोकगाथाक क्षेत्रमे अवदानकेँ रेखांकित करैत लोकगाथाक चर्चा भेल अछि । लोकनाट्य मे मैथिली लोकनाट्यक विस्तृत उल्लेख अछि। बीसम शताब्दी- स्वर्ण युगमे मैथिली साहित्यक सए बर्खक सर्वेक्षण अछि। पारंपरिक नाटक मे मैथिलीक आ मैथिलीमे अनूदित पारम्परिक नाटकक चर्चा अछि।सामाजिक विवर्तक जीवन झा मैथिली नाट्य साहित्यमे हुनका द्वारा आनल नूतन कथ्य-शिल्पकेँ रेखांकित करैत अछि। हरिमोहन झाक परवर्त्ती रचनाकारपर प्रभाव हरिमोहन झा पर समीक्षा अछि। मैथिली आन्दोलनक सजग प्रहरी जयकान्त मिश्रक अवदानक आधारित अछि। संस्मरण साहित्य मे मणिपद्मक हुनकासँ भेँट भेल छल क सन्दर्भमे संस्मरण साहित्यपर चर्चा भेल अछि। अमरक एकांकी: सामाजिक यथार्थ मे अमरजीक एहि विधा सभक तँ मायानन्दिक रेडियो शिल्पु मे मायानन्द मिश्रक एहि विधाक सर्वेक्षण अछि। चेतना समिति ओ नाट्यमंच मे चेतना समिति द्वारा कएल रचनात्मक कार्यक विवरण अछि।
९.
१०.एहि सभ आलेखमे सत्यक आ कलाक कार्यक सौंदर्यीकृत अवलोकन, संस्था सभक निर्माण वा वर्तमानमे संपूर्ण समुदायक धर्म-नस्ल-पंथ भेद रहित आर्थिक आ सामाजिक हितपर आधारित सुधारक आवश्यकता, महिला-लेखन आ बाल-साहित्यक स्थान-स्थापर चर्चा, यथासंभव मेडियोक्रिटी चिन्हित करबाक प्रयास, मूल्यांकनमे ककरो प्रति पूर्वाग्रह वा घृणा नहि राखब- ई सभटा समीक्षाक आवश्यक तत्वक ध्यान राखल गेल अछि। एक पाँतिक वक्तव्य कतहु नहि भेटत, पूर्ण विवेचन भेटत।
प्रतिज्ञा- जिनगिऐक लीला किअए कहै छी नावालिकक सीमा सेहो टपि गेलहुँ। जहिया जेल एलौं तहिया ने नावालिक छलौं। जहिसँ देश आ समाजक प्रति ने कोनो अधिकार छलए आ ने कोनो कर्तव्य। मुदा से तँ आब नहि रहल। ओना बालबोधे जे किछु केलहुँ ओहो कोनो अधला थोड़े केलहुँ।
कल्याणी- अखन धरि जे किछु भेल ओ बाल-बोधक खेल भेल। मुदा जहलक भीतर नावालिकक सीमा टपि वालिक भेलहुँ। १८वर्ष पूरा भेल। जिनगीक लेल आइ संकल्प ली जे जाधरि नरीक अन्याए होइत रहत ताधरि चैनक सॉंस नहि लेब।
प्रतिज्ञा- अखन धरि ने अहॉंकेँ एहि रूपे हम चिन्हैत छलौं आ ने अहॉं हमरा चिन्है छलौं। तैं दुनू गोटे संकल्पक संग शपथ ली जे जाधरि सॉंस रहत ताधरि संग-संग रहब।
कल्याणी- निश्चित। जे कियो एहि धरतीपर जन्म नेने अछि सभकेँ स्वतंत्र रूपे जीवैक अधिकार छे (किछु काल चुप भऽ) सृष्टिक शुरूहेसँ देखैत छी जे जहिना ऋृषि भेलाह तहिना ऋृषिका सेहो भेलीह। (पुन: रूकि) संग-संग िजनगी बितबितहुँ पुरूष नारीक संग भीतरघात करैत-करैत सकपंज कऽ देलनि। जेकर परिणाम भेल जे ओकर पहाड़ सदृश्य रूप बनि गेल अछि।
(दुर्गास्थानक आगूमे एक भाग पुरूष एक भाग महिला बैसल। एकटा डायरी, पेन नेने महिला दिससँ आगूमे कल्याणी-प्रतिज्ञा। पुरूष दिससँ सूर्यदेव, क्षितिजदेव, निसकान्त बैसल।)
सूर्यदेव-आजुक बैसारक लेल कल्याणी आ प्रतिज्ञाकेँ हृदएसँ शुभकामना दैत छिअनि जे एकटा नव परम्पराक शुभारंभ केलनि। आशा संग आगू बढ़ति सएह शुभकामना।
कल्याणी-भाय सहाएव, अहॉं सभ तरहेँ अगुआइल छी तेँ आगूक बाटक जते ज्ञान अहॉंकेँ अछि ओते हम थोड़े बुझै छी।
(बिचहिमे निसकान्त)
निसकान्त-सुरजू भाय, हमरो बात सुिन लिअ। काल्हिये दुनू परानीक झगड़ाक पनिचैतीमे गेल छलौं। बेचारा विसनाथकेँ देखते छियै जे डेढ़ सौ रूपैयाक कमाइ घर जोड़ैयामे करैए। सभ दिन कमा कऽ अबैए आ घरवालीक हाथमे दऽ दैत छै। घरवाली केहेन जे टी.भी. कीनैले पाइ जमा करैत जाइए। रौद-बसातमे काज करैबलाकेँ एकटा गंजीसँ थोड़े पाड़ लगतै। तइले घरवाली पाइये ने दैत अछि।
कल्याणी-(मूड़ी डोलबैत) की पनचैती केलियै?
निसकान्त-सैंए-बहूक झगड़ा पंच लबरा। हम नै बुझै छिऐ जे पावरक लड़ाइ छी। दुनू गोटेकेँ थोड़-थाम लगा देलियै। दू विचारक लड़ाइ हमरे बाप बुते फड़िआएल हएत।
सूर्यदेव-अच्छा एकटा कहऽ जे दुनू गोटेमे घरक गारजन के छी?
कल्याणी-अखन तँ आरो विकट भऽ गेल अछि जे देशक एक कोनसँ दोसर कोनमे रहनिहारक (पालल-पोसल) बीच संबंध स्थापित रहल। जहिसँ खान-पान, बात-विचार लूरि-ढंग सभ टकरा रहल अछि।
सूर्यदेव-एहिना खाइ-पीवैमे देखियौ। एक आदमीक (परिवारक) एक दिनक खर्च जते होइत अछि दोसर दिस ओहन परिवारक भरमार अछि जहि परिवारमे दसो-बर्खक आमदनी ओते नइ छै। ककरो असली नोर चुबै तब ने से तँ पिऔजक झॉंसक नोर चुबबैए।
कल्याणी-खेती-बाड़ीक की स्थिति अछि?
सूर्यदेव-सरकार मेला लागल। गाममे चारिटा ट्रेक्टर चलि आएल। एक तँ बाढ़िमे बारह आना बड़द गाममे मरि गेल, दोसर जे चारि आना बचल ओहो सभ गोवर उठबै दुआरे बेचि लेलनि। अखन गाममे एकोटा बड़द नै अछि। ले बलैया ट्रेक्टर कदबामे सकबे ने करै छै। खेती कोनो हएत?
कल्याणी-अजीव-अजीव बात सभ कहै छी, भैया?
सूर्यदेव-कते कहब बहीनि। जते खर्चमे पहिने लोक प्रोफेसर बनै छलाह तते अखन बच्चाक स्कूलमे खर्च हुअए लगल अछि। ककर बेटा पढ़त। शिक्षा केहन भऽ गेल अछि धोती-कुरताबला अा पेन्ट-कोटबला अपनामे रगड़ केने छथि जे हम नीक तँ हम नीक। के फड़िऔत? जहन कि प्रश्न नान्हिटा अछि जे जहिसँ जिनगी नीक-नहॉंति आगू मुँहे समएक संग ससरै।
प्रस्थान, पटाक्षेप। समाप्त।
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