भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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विद्यापति भूपरिक्रमा नामक ग्रन्थ देवसिंहहिक आगासँ लिखने छलाह ।१६ देवसिंहक राजत्वकालक समयमे तिरहुतपर दिल्ली ओ बंगालक मुसलमान शासक द्वारा संयुक्त रूपसँ हमला कयल गेल छल । एहि यु(क नेतृत्व शिवसिंह कयने रहथि, से विवरण विद्यापति रचित कीर्त्तिपताकासँ प्राप्त होएत अछि । एहि आकमर्णसँ देकुली राजधनी पर कोन तरहक प्रभाव पड़ल ¯कवा ई यु( कत लड़ल गेल से सूचना नहि भेटैत अछि । मुदा ओ यु( कतेक भीषण छथि ओ देवसिंहक सैन्य शक्ति कतेक सबल ओ संगठित छलनि तकर विस्तृत वर्णन कीर्त्तिपताकामे भेल अछि ।१७कीर्त्तिपताकामे पक्ष-विपक्षक कुल एकासी गोट ऐतिहासिक व्यक्तिक नामोल्लेख भेल अछि । जाहिसँ समकालीन राजनीतिमे ओइनिवार राजवंशक पराक्रम ओ ओकर राजनधनी देवकुलीक गरिमापर प्रकाश पड़ैत अछि । संगहि ओहि यु(मे तिरहुतक विजय भेल छल । ओ दिल्ली तथा बंगालक सेना अपन समस्त शक्ति गमा पीठ देखा मैदानसँ भागि गेल छल । अपना समयमे अपराजेय बूझल जायवला दिल्लीक सुल्तान ओ ओकर सहयोगी बंगालक शासक अपमानजनक पराजय एकटा आश्चर्यजनक घटनाक रूपमे इतिहासक पृष्ठमे अंकित भ गेल । विद्वालपतिक पुरुषपरीक्षाक अन्तमे तथा विद्यापतिके ँ देल गेल विस्पफी ताम्रपत्रामे गजनी ओ गौड़ ;बंगालद्धक शासकके ँ परास्त कयनिहार विजेताक रूपमे शिवसिंहक प्रशस्ति कयल गेल अछि ।१८ निश्चित रूपसँ एहि ऐतिहासिक तथ्य सबसँ जानल जा सकैछ जे अपना समयमे मिथिलाक राजधनी देवकुली कतेक उतार-चढ़ावके ँ देखलक, कतेक घटनाक ओ साक्षी बनल ।
देकुलीक ऐतिहासिक महत्त्व तँ अछिहे संगहि एकर महत्त्व धर्मिक दृष्टिएँ सेहो अछि । तकर कारण अछि एहि गामक उत्तर-पूर्वमे अवस्थित प्रसि( वर्(मानेश्वर स्थान । गामक लोकमे ¯कवदन्ती प्रचलित अछि जे ई वर्(मानेश्वर महादेव अंकुरित शिवलिंग थिकाह । ओइनिवार राजवंशक आश्रित एकटा वर्(मान नामक राजपंडितके ँ एहि शिवलिंगक दर्शन भेलनि । ते ँ हुनके नामपर एकर वर्(मानेश्वर नामकरण भेल ।
एहि गजरथपुरसँ ल.स. २९३मे महाराजाध्रिाज शिवसिंह द्वारा अपन प्रिय सखा विद्यापतिक नामसँ विस्पफी ताम्रपत्रा जारी कयल गेल छल । एहि ताम्रपत्रामे बागमती नदीक तटपर गजरथ आखयासँ प्रसि( पुरीक अवस्थितिक उल्लेख भेल अछिµ
वागवत्याःसरितस्टतेगजरथेत्याखयाप्रसि(ेपुरे
दित्सोत्साहविबृ(वाहुपुलकःसभ्यायमध्येसभम्।२८
निश्चित रूपसँ उपर्युक्त अभिलेख ई साबित करैत अछि जे शिवसिंहक समयमे देवकुली राजधानीक विस्तारऔरो दक्षिण ध्रि भेल । डा. रामदेवझाक मत छनि जे पश्चिममे बागमती नदीक पश्चिमी तटपर स्थित थलवार गामसँ लक पूबमे रामभद्रपुर ध्रि तथा उत्तरमे सिनुआरसँ लक दच्छिनमे सिधौली-सुरहाचट्टी ध्रिक परिसर शिवसिंहक समयमे राजधानी छल । एहि परिसरमे यद्यपि अनेक गाम अछि जकरा समेकित रूपसँ एकटा गजरथपुरक अभिधन देल गेल ।२९ वस्तुतः ई सम्पूर्ण परिसर पुरातात्त्विक सामग्री, प्राचीन मूर्त्ति, सरोवर, इनार आदि सबसँ परिपूर्ण अछि । एहि गजरथपुर राजधानीसँ शिवसिंह मिथिलाक स्वतन्त्राताक घोषणा कयलनि अपितु अपन मुद्रा सेहो चलौलनि ।३० दिल्लीक सुल्तान भारी पफौजक संग गजरथपुर राजधनीपर हमला कयलक । ओही हमलामे गजरथपुर उजड़ि गेल, ओकर ऐश्वर्य
विलुप्त भ गेलैक । कालक प्रवाहमे गजरथपुर नाम सेहो विलुप्त भ गेल । पछाति केवल एहि राजधनीक अन्तर्गत बसल गाम सब अपन पूर्व नामक संग शेष रहि गेल । एही मुसलमानी आक्रमणक आघात देवकुलीके ँ सेहो सह पड़ल होयतैक । वर्(मानेश्वर समेत सब देव मन्दिर ध्वस्त कयल गेल होयत जकर प्रमाण अछि देकुलीक भग्न मूर्त्ति ओ प्रस्तर खण्ड सभ ।
शिवसिंहक तिरोधनक बाद हुनक उत्तराध्किारी लोकनि हुनक उजड़ल राजधनीके ँ पफेरसँ बसयबाक प्रयास नहि कयलनि । सम्भवतः सुल्तानक संग आयल मुस्लिम सैनिक सब एतहि बसि गेल । एखनहुँ चन्दनपट्टी, बाँकीपुर, जीवर आदिमे मुसलमानक सघन आबादी अछि । विर्ध्मी शत्राु सेनाक निवास भेलाक कारणे शिवसिंहक बादक ओइनिवार राजा लोकनि गजरथपुर छोड़ि अपन राजधानी मिथिलाक उत्तर भागमे स्थिर करैत रहलाह ।३१
सम्भवतः देवकुली गाम बहुतो दिन ध्रि उजड़ले-उपटल रहल । एहि गामक वर्(मानेश्वर महादेव जनविहीन परिसरमे एकाकी रहबाक हेतु विवश भेलाह । पुनः ई गाम कहिया आबाद भेल से तँ निश्चित रूपसँ नहि कहल जा सकैत अछि मुदा कोना आबाद भेल से मौखिक स्रोतसँ बूझल होइत अछि । गामक एकटा वृ( पुरुष तृप्तिनारायणझा जे विवरण देलनि तदनुसार उजड़लाक बहुतो दिन बाद देकुली गाम एहिसँ उत्तर स्थित डरहारक कलिगामे-कलिगाम मूलक चौध्री उपनामधरी ब्राह्मण लोकनिक अध्ीन भ गेलनि । देकुली डरहारक संग जुड़ि गेल आ एहि मौजाक नवीन नाम पड़ल विसनपुर-महादेव । एहि नामकरणक पाछाँ कारण भेल देकुलीक प्रसि( वर्(मानेश्वर महादेव स्थान तँ दोसर दिस डरहार गामे एहने प्राचीन विष्णु मन्दिरक अवस्थिति । ई विष्णु मन्दिर एखनहुँ डरहारक पूर्वमे अछि । प्रायः एही कारणे ँ गामक नाम सेहो विष्णुपुर वा विसनपुर पड़ल । मुदा विसनपुर नाम अभिलेखे सबमे भेटैत अछि । एकर प्रचलित नाम डरहार छैक । एहि डरहार शब्दक की व्युत्पत्ति ओ एकर पाछाँ की इतिहास से अनुसन्ध्ेय अछि, मुदा डरहार एकटा मूलग्राम सेहो अछि । प×जीमे एकहरेडरहार नामक एकटा मूलक उल्लेख अछि ।३२ अस्तु, पुनः अपन विषयपर आबी । विद्यापतिक जन्मभूमि बिस्पफी लग उसौत नामक कोनो गाम अछि । ओहि गाममे वत्स गोत्राीय, परिवारेउसौत मूलक ब्राह्मणक निवास छलनि । ओही गामक एकटा पंडित युवक रहथि कामदेवझा । हुनक विद्वत्तासँ प्रभावित भ क डरहारक एकटा चौध्री जमिन्दार अपन कन्यासँ हुनक विवाह करौलथिन । तथाकथित अपनासँ छोट कुलक कन्यासँ विवाह करबाक कारणे ँ कामदेवझाके ँ अपन परिवारसँ बहिष्कृत क देल गेलनि । तखन कामदेवझाक ससुर अपन बेटी-जमायके ँ ५२५ बीघाक रकबावला सौंसे देकुली मौजा दक एही गाममे हुनका लोकनिके ँ बसौलथिन । अपितु बेटी-जमायक राजपाट सम्हारबाक हेतु आवश्यक जन-वरजन्ना, पौनी-पसारीक रूपमे पन्द्रहटा आनो-आन जातिक परिवारके ँ बजाय क बसौलथिन । वर्(मानेश्वर महादेवक सेवा-पूजा हेतु महिसी ;सहरसाद्धसँ पंडा ब्राह्मणके ँ बजाय ओकरो बसौलथिन । एतावता देकुली मैथिल ब्राह्मणक बिकौआ ओ कन्यादानी व्यवस्थाक अन्तर्गत पफेरसँ बसल । ओही परिवारेउसौत मूलक कामदेवझाक वंशज लोकनि आब एक-सँ एकैस भ चुकल छथि ।
देकुली गाममे परिवार ;पल्लिवारद्ध मूलक ब्राह्मणक आगमन ओ निवासक सम्बन्ध्मे मौखिक स्रोत भने जे कहैत हो, विद्यापति रचित कीर्त्तिपताकासँ सेहो एहि सन्दर्भमे एकटा महत्त्वपूर्ण सूचना भेटैत अछि । देवसिंहक समयमे गजनी ओ गौड़क जे संयुक्त आक्रमण मिथिलापर भेल छल । तकर सामना देवसिंहक पुत्रा शिवसिंह अपन सैन्यबलक संग कयने छलाह । देवसिंहक सेनामे ब्राह्मण ओ क्षत्रिाय दुहू जातिक यो(ा छलनि ताही क्रममे पल्लिवार वंशक सेनाक सेहो उल्लेख भेल अछिµ
तहपल्लिवारधेरनिगरिट्ठ।
सरजालेमारिकरसमरध्टि्ठ॥३३
अर्थात् पल्लिवारक वंशक सूरवीर लोकनि यु(भूमिमे डटल छथि । दृढ़तापूर्वक यु( करैत ओ लोकनि वाणक जालसँ समरभूमिके ँ आच्छादिक क देने छथि । वस्तुतः देवसिंहक सेनाक पल्ल्विार वंशीय सैनिक ओ हुनक राजधानी देवकुलीमे वसलपरिवारे उसौत मूलक ब्राह्मणक निवासक बीच कोनो ऐतिहासिक सम्बन्ध् तँ ने अछि, एहू दिशामे अनुसन्धानक प्रयोजन अछि ।
मौखिक स्रोतक अनुसार १८९६मे जखन दरभंगा जिलाक कैडेस्ट्रल सर्वे सुरू भेल ताहिमे देकुलीके ँ बिसनपुर-महादेव मौजासँ पफराक क पुनः एकटा स्वतन्त्रा मौजाक रूप देल गेलैक । पुरना सर्वे-खतियान ओ नक्शामे एहि मौजाक नाम देवकली लिखल भेटैत अछि । नक्शामे वर्(मानेश्वर स्थानक जगह काटल अछि जाहिपर मन्दिरक रेखाचित्रा अंकित क शिवाला लिखल अछि । यैह वर्(मानेश्वर शिवालय एहि गामक प्राचीन गौरव-गाथाके ँ अक्षुण्ण रखने अछि । ¯कवदन्तीक अनुसार पहिने ई महादेव खढ़क खोपड़ीमे छलाह । प्रति वर्ष गाममे आगि लगैत छलैक । पछाति ईंटाक पक्का मन्दिर बनाओल गेलैक । वर्(मानेश्वर परिसरक अवलोकनसँ प्रतीत होइछ जेना एकर निर्माण ओ स्थापना कोनो तन्त्रा प(तिसँ भेल होइक । परिसरक आकार त्रिाभुज जकाँ छैक । परिसरक पूब ओ पच्छिम भुजामे दूटा सरोवर एखनहु विद्यमान छैक । सम्भवतः परिसरक दच्छिनवला भुजा दिससँ सेहो पूर्वमे कोनो सरोवर छल जे भथि गेल । किए तँ मन्दिरक सामने दच्छिनमे सड़कक कातवला जमीन एखनहुँ डोभी सन लगैत अछि ।
वर्(मानेश्वर महादेवक खयाति जागन्त शिव-स्थानक रूपमे रहल अछि । अदौसँ माघी कमरथुआ लोकनिक विश्राम स्थलक रूपमे ई मान्य रहल अछि । पफागुन मासक मकर ओ शिवरात्रिाके ँ एत बड़ पैघ मेला लगैत अछि से आइयो चलि रहल अछि । वर्त्तमानमे एहि मन्दिरके ँ औरो बेसी जागृत करबाक प्रयासमे ग्रामीण लोकनि लागल छथि । नवीन मन्दिरक निर्माण कयल गेल अछि । शिवरात्रिाक अवसरपर पछिला किछु वर्षसँ भव्य आयोजन कयल जाय लागल अछि । तथापि आइ आवश्यकता अछि जे मिथिलाक एहि विस्मृत राजधनी देकुलीक ऐतिहासिक ओ पुरातात्त्विक गरिमाक रक्षा करैत एहि दिस अध्येता लोकनिक ध्यान आकृष्ट कयल जाय । एहि गामक गर्भमे दबल पड़ल इतिहासके ँ वैज्ञानिक ढंगसँ उत्खनन क सामने आनल जाय । यदा-कदा जे पुरातात्त्विक सामग्री सब भेटैत रहल अछि तकरा एकटा संग्रहालय बना क संरक्षित कयल जाय । महाकवि विद्यापतिक कर्मभूमिक रूपमे एहि गामके ँ चिन्हित कयल जाय । संगहि एहि गामक पुरातत्त्वक तुलना मिथिलाक अन्यान्य देकुली नामधरी गामक संग करैत नामक समरूपताक इतिहासक अन्वेषण कयल जाय । वर्(मानेश्वर स्थानक खयाति ओ प्राचीनताके ँ इतिहास ओ आध्यात्मिकताकमानचित्रापर स्थापित कयल जाय । ई दायित्व देकुली ग्रामवासी लोकनिक संग-संग मिथिला निवासी समस्त प्रबु( जनक थिकनि ।
३२.रमानाथझा, मैथिल ब्राह्मणों की पंजी व्यवस्था, दरभंगा- पृ.- ११
३३.कीर्त्तिपताका ;पूर्वोक्त-१७द्ध, पृ.- ४७
सम्पर्क : कबिलपुर, लहेरियासराय
दरभंगा- ८४६००१
जितेन्द्र झा
1.काठमाण्डूमेँ कोहबर घर : वर ने कनिञा तैइयो बढिञा 2.परम्पराके निरन्तरतामेँ प्रवास बाधक नहि
1.काठमाण्डूमेँ कोहबर घर : वर ने कनिञा तैइयो बढिञा
केवाडमेँ स्वागतम् । घरके भितमे वर कनिञाक चित्र, हाथीपर चढिकऽ गौर पुजैत नवविवाहिता, डोली कहार सेहो । कोहबर घर मैथिली सँस्कृतिके एकटा अनुपम नमुना, गवाह नव दाम्पत्यक । वर कनिञाक मिलनके साक्षी सेहो । ई कोहबर घर कोनो बर कनिञालेल नहि अछि, ई अछि मिथिलासँस्कृतिक जीवैत नमुना । मैथिलीक समृद्ध परम्परा आ संस्कारके चिनारी बनल अछि ई कोहबर घर ।
काठमाण्डूक कुपण्डोलस्थित महागुठी आर्ट ग्यालरीमेँ सजाओल कोहबर घर मैथिली सँस्कृतिके बखान करैत अछि । एहि कोहबरमेँ रहल पाग, डोपटा, वियनि, डोला कहार, गुआ—माला जेहन चीजसभ आओर आकर्षक बना देने अछि । तहिना वियाहक विधसिन्दुरदान, मुँहदेखाइ, विदाइ के पेन्टिंगसभ सेहो कोहबर घर देखनिहारके अपना दिस खिचैत अछि ।
हस्तकलाक समान उपलब्ध होबऽबला ई दोकान मेँ कोहबर घरके मिथिला पेन्टिंगके उजागर करबाक प्रयास कएल गेल अछि । विवाहमेँ विधके क्रममे काज लागऽबला आ मैथिली घरके प्रतीक उखरि—समाठ, कोठी जेहन वस्तु सेहो गमैया लुक दैत अछि एहि कोहबर घरके ।
एत्तऽ एलासँ लगैत अछि जे कोनो मिथिलासंग्रहालयमेँ चलि एलहँु । मैथिली सँस्कृतिके संरक्षणक नामपर बडका बडका भाषण केनिहारसभके एहि कोहबर घरसँ किछु ज्ञान भेटि सकैत अछि । मिथिला पेन्टिंगके लोकप्रियता आ मैथिली सँस्कृतिके मौलिकता कारण ई कृत्रिम कोहबर घर देश विदेशक कला प्रेमीके मोन मोहि लैत अछि । मिथिला पेन्टिंगके वाहक मात्र नहि समग्र संस्कृतिके परिचायक ई नमुना कोहबर घर काठमाण्डूसँ देश विदेशक लोकके मैथिली संस्कृति दिस आकर्षित करैत अछि ।
2.परम्पराके निरन्तरतामेँ प्रवास बाधक नहि
गामसँ कोशोदूर रहितोअपन परम्परा आ सँस्कारके बचाकऽ राखऽमें मैथिल महिलाक बडका योगदान अछि । ग्रामीण परिवेशमेँ सहज रुपेँ पाबनि तिहार केनिहारि महिलाक अपेक्षा शहर आ दूर देशमेँ रहल मैथिल महिलाके पाबनिक ओरिआओनपातीमेँ दिक्कति त होइते छन्हि मुदा पाबनिपर एकर कोनो प्रभाव नहि परैत अछि ।
काठमाण्डूमेँ बरसाइत पाबनि केनिहारि अर्चना झाक कहब मानी त काठमाण्डूमेँ रहियोकऽ कोनो दिक्कति नहि होइछन्हि एहि पाबनिमेँ । गाममेँ सभ महिला बडका बरक गाछ तर जम्मा भऽ बरक पुजा करैत छथि त शहरमेँ गमलामेँ बरक गाछ राखिकऽ बेगरता पुरा कएल जाइत अछि । बटसावित्री अर्थात बरसाइतमेँ अहिवात महिला अपन पतिक लम्बा आयुक कामना करैत छथि, नव कनियाँकलेल इ पाबनि बेशी महत्व रखैत अछि । नवकनियाँ सभकेँ प्रोढ महिला वरसाइतक विध विधान सिखाकऽ पुजामेँ सहयोग कएल करैत छथिन्ह । काठमाण्डूमेँ महिला सभ सामुहिक रुपेँ एहन पाबनि पुजल करैत छथि । सामाजिक सदभाव आ एकदोसराके बुझबालेल सेहो शहरवासी मैथिल महिलाक लेल एहन पाबनि निक अवसर भऽ गेल अछि । शरिर कतउ रहए मोनमें अपन परम्परा आ सँस्कारप्रति श्रद्धा होएबाक चाही, अपन सँस्कृति आ परम्पराके निरन्तरता देबामेँ प्रवास बाधक नहि होइत अछि ।
१.बीरेन्द्र कुमार यादव-कथा- हमर समाज२.जीवकान्त-जगदीश प्रसाद मंडलक उपन्यास- “मौलाइल गाछक फूल” पर३.धीरेन्द्र कुमार-जगदीश प्रसाद मंडलक उपन्यास- “मौलाइल गाछक फूल” पर४.राजदेव मंडल- कुरूक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल पत्र
बीरूक बात सुिन बिचहिमे बिन्नू कहलखिन- “अहॉं सभ बकझक जुनि करू, धर्मक काज देखबा, सुनवा आ कएलासँ स्वर्ग होइछ। हम सभ मिलि देवी पूजा पाठ आ दर्शन करए एक दिन अवश्य जाएव।”
एहेन परिवर्तन होएव तत्काल संभव नहि छैक। शिक्षा प्रचारसँ आ समाजसेवी सभक सेवा आ श्रमसँ एना भए जाए तँ आश्चर्यक बात नहि।
रमाकान्त जखन मद्राससँ घुरैत छथि, तखनसँ अन्त धरि उपन्यास शिथिल भए जाइत अछि। तकर वाद सभ घटनाक अन्दाज पाठककेँ भए जाइत छैक। उपन्यासमे अन्त-अन्त धरि मोड़ अएवाक चाही, घटना सभमे आकस्मिता होएवाक चाही, से नहि छैक।
पोथीक भाषा खाँटी लोकक भाषा थिक, किताबी भाषा नहि थिक। सेहो एकटा विशिष्ट आ महत्वपूर्ण बनबैत छैक। साहित्यमे एहेन घर-ऑंगनक पात्र नहि आएल छल, से सभ प्रवेश कएलक अछि।
दरबार में से केओ बजाक..हुजुर हम एतेक गोटे के खून केने छी जाकर हिसाब नहि ऐछ, केओ हम एतेक बच्चाक खून, केओ हम एतेक स्त्रीक संग बलात्कार केने छी , हम जते जते डकैती करय गेलों ,ओहिठाम केकरो जीवित नै छोढ़लों, हम गाम क गाम उजारी देने छी , हम कतेक अपहरण केने छी से कही नै सकैत छी.; जतेक मुंह ओतेक बात . मुदा , शैतानक माथलाजसे झुकिगेल ,बाजल ===छिः छिः ,अहाँ सबहक काज देखि हमरा लाज भ रहल कोनो जोकरक अहाँ सब नहि छी. --परेसान जका चारू क़ात दरबार में ताकलक....... आर केओ छैक ?
एकटा प्रौढ़ , सभ्य ,शालीन व्यक्तिउठि के ठाढ़ भेल ,माथ झुकोने विनम्रता से बाजल -----
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शैतान ख़ुशी से गद गद भ गेल ..ई थीक हमर राज्यक असली वारिस .......
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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