भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, July 31, 2010

'विदेह' ६२ म अंक १५ जुलाइ २०१० (वर्ष ३ मास ३१ अंक ६२)- PART III


३. पद्य





३.६.इन्द्रकान्त झा- गीत

३.७.नन्‍द वि‍लास रायक आठटा कवि‍ता  

श्री कालीकान्त झा "बुच"
कालीकांत झा "बुच" 1934-2009
हिनक जन्म, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक कर्मभूमि समस्तीपुर जिलाक करियन ग्राममे 1934 . मे भेलनि  पिता स्व. पंडित राजकिशोर झा गामक मध्य विद्यालयक
प्रथम प्रधानाध्यापक छलाह। माता स्व. कला देवी गृहिणी छलीह। अंतरस्नातक समस्तीपुर कॉलेज,  समस्तीपुरसँ कयलाक पश्चात बिहार सरकारक प्रखंड कर्मचारीक रूपमे सेवा प्रारंभ कयलनि। बालहिं कालसँ कविता लेखनमे विशेष रूचि छल  मैथिली पत्रिका- मिथिला मिहिर, माटि- पानि,भाखा तथा मैथिली अकादमी पटना द्वारा प्रकाशित पत्रिकामे समय - समयपर हिनक रचना प्रकाशित होइत रहलनि। जीवनक विविध विधाकेँ अपन कविता एवं गीत प्रस्तुत कयलनि।साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित मैथिली कथाक इतिहास (संपादक डा. बासुकीनाथ झा )मे हास्य कथाकारक सूची मे, डा. विद्यापति झा हिनक रचना ‘‘धर्म शास्त्राचार्य"क उल्लेख कयलनि । मैथिली एकादमी पटना एवं मिथिला मिहिर द्वारा समय-समयपर हिनका प्रशंसा पत्र भेजल जाइत छल । श्रृंगार रस एवं हास्य रसक संग-संग विचारमूलक कविताक रचना सेहो कयलनि  डा. दुर्गानाथ झा श्रीश संकलित मैथिली साहित्यक इतिहासमे कविक रूपमे हिनक उल्लेख कएल गेल अछि |

वेदना
बैसलि छी सिनेहक पथार लऽ कऽ
पिया चलि गेलहुँ कतऽ पहाड़ दऽ कऽ
दरिसनक आश बनल कलुष सपना
पूजाक दीप भेल नोरक नपना
अहाँ आबू सजल चन्द्रहार लऽ कऽ
पिया...

उदरि महक चुलि बुलि तात बिनु शान्त
निशबद भुवनमे छोड़ि कतऽ गेलहुँ कान्त?
सेहन्तित छी लोढ़ि सिङगरहार लऽ कऽ
पिया...

सासुक मधुर गप्प झड़काबै गात
कएलक अकच्छ तरुण पुरबा बसात
स्वाती अएलनि रसवन्ती धार लऽ कऽ
पिया...

सिहकल सरस पूस देह ठिठुरल
परिमल सिनेहक आश माघो बीतल
आबि गेल फागुन फुहार लऽ कऽ
पिया...
१.राजदेव मंडलक दूटा कवि‍ता २.इन्द्रभूषण कुमार- दहेज
राजदेव मंडलक दूटा कवि‍ता-

मुँहझप्‍पा

एहि‍ मेलामे
कतए हेरा गेलौं मि‍त्र!
खेजैत-खोजैत भेल छी-अपस्‍यॉंत
परन्‍तु अहॉं तँ ओढ़ि‍ नेने छी-मुखौटा
अहॉंक चीन्‍हब भऽ गेल कठि‍नाह
एहि‍ सम्‍पूर्ण भीड़मे
मुखौटेधारी छथि‍-सभगोटे
कऽ रहल अछि‍ काज
मुखैटेक भीतरसँ
आदति‍ पड़ल छन्‍हि‍ सभकेँ पहि‍रबाक
आहि‍, आब नहि‍ भेटत-हमर ि‍मत्र
आननपर ब्‍याध्रानन लगाकए
ढुकि‍ गेलाह
एहि‍ युगक मुखौटाबला जाति‍मे
नि‍कलि‍ रहल अछि‍ नोर टप-टप
ऑंखि‍ भऽ गेल-झलफलाह
बढे़लहुँ हाथ
नोर पोछबाक हेतु
फट्ट दऽ ठेकल मुखौटा
अहि‍ रौ तोरी ई कोन बात
भेल संताप
लटकल अछि‍ केहेन खप्‍पा
हमरो मुँहपर मुँहझप्‍पा।

टूटल बन्‍हन

ई भूखल भेड़ि‍या
लेर चुबबैत
एकटक प्रपंची ऑंखि‍सँ
ताकि‍ रहल अछि‍-आहार
आ कऽ रहल अछि‍-स्‍मरण
सरस स्‍वादक
पूर्व प्राइज़ शि‍कारक सँग
घटि‍त घटनाक चि‍त्र
आबि‍ रहल दृष्‍टि‍क सोझा
आ दोगमे छपकल
शि‍कारी अछि‍ सन्‍नद्ध
बुद्धि‍क तीक्ष्‍ण तीर लऽ कऽ
कि‍न्‍तु चंचल भेड़ि‍या
कखन मारत हबक्का
तकर अपनहुँ नहि‍ छन्‍हि‍ पता
जठराग्‍नि‍ तेज भेलापर
बि‍सरि‍ जाय छथि‍
स्‍वजन-परि‍जनकेँ
मनक बन्‍हन टूटि‍ सकैत अछि‍
कखनहुँ
आ कए सकैत अछि‍-
आधात
चि‍र संचि‍त पवि‍त्र अंगपर
आ कऽ सकैत अछि‍ वि‍कृत
मनकेँ
तैं तेज तीर चलादेब आवश्‍यक
वा नहि‍ तँ कऽ दि‍यौक
नव आहारक व्‍यवस्‍था।

इन्द्रभूषण कुमार
दहेज

होएत् जनम बेटीक
,
धइस जाइत अछि जमीन
,
फाटि जाइत अछि आसमान
,
मुरझा जाइत अछि किछु पहिले तक
,
लहलहाति बारी-फुलवारी।

हां किछु अहिना होइत अछि
,
नहिं तऽ किएक !
उभरि जाति अछि
,
चिंताक रेहा सब
,
बाबुजीक अखन तक चमकति लालाटपर
,
उदास भऽ जाइत अछि दादा-दादी
,
ओ मासुमक एक एक गोट मुस्कानपर।

लऽ कऽ कोरामे सोचति अछि माए
,
लालन-पालन करब
,
जाहि धरि सकब
,
पढ़ेबो-लिखेबो करब
,
सिखाइब सास-ससुरक सेवा केनाई
,
समझायव सब शिल-गुण
,
एक पतिव्रता नारीक।

पर जुटाव कोना!
अंतहीन मांग-चांगक पूर्ति करबाक लेल....................दहेज
?

इन्द्रतभूषण कुमार गाम. लक्षमनि‍यॉं
पोस्टर. छजना भाया. नरहि‍या जि‍ला. मधुबनी बि‍हार

कुसुम ठाकुर
हाइकू
हाइकु छैक  
विधा सरल तैयो
रचि ज्यों पाबि  

हमरा लेल 
गर्वक गप्प बस 
हमहू  जानि 

नहि बुझल 
इ विधाक लिखब
कोन आखर 

सलिल जीक 
 मार्ग प्रदर्शन 
भेटल जानी 

मोन प्रसन्न 
भेटल नव विधा 
छी तैयो शिष्या

डेग बढ़ल 
सोचि नहि छोरब  
ज्यों दी आशीष 


"अहिंक धीया "

आस बनल 

 
अछि अहाँक अम्बे
हम टूगर

ध्यान धरब
हम कोना आ नहि
सूझे तइयो 

पाप बहुत 
हम कयने छी हे 
अहिंक धीया

जायब कत
आब नहि सूझय
करू उद्धार 
 https://docs.google.com/a/videha.com/File?id=dfr4thq4_37drn5bhcw_bरमा कान्त झा सौराठ
मिथिलाक विकासक बात अछि जे मिथिलाक विकास कोना होएत। मिथिलाक विकासक लेल विषय-वस्तुक बारेमे एकजुट हेबेक चाही , एक दोसरकेँ साथ चलबाक विषय हो, जे विकास नेतागण अपन राजनीतिक रोटी नहि सेकथि आर मुद्दा सिर्फ विकासक होबक चाही ! आइ बिहारमे मिथिलाक भूमि विकाससँ वंचित आछि ! आइ हम सभ अपन रोजी रोटीक तलासमे दिल्लीमे छी, कियो पंजाब आ कियो मुम्बयमे कोपक शिकार होइत अछि ! यदि मिथिलामे रोजगार होइत तखन दिल्ली तँ दूर होइत। लोकमे दम होइत, कोशी कमलाक जल संसाधनकेँ मजबूत तटबन्ध रहितै आ गाम आइ जीवित होइत। सरकारक नीति जे बिहारक नामपर घोषना तँ होइत अछि लेकिन पैसा आँखिक नोर सुखलाक बाद जाइत अछि ! फेर जर्जर के जर्जर।  एकताक जरूरत आछि आर नितिश जी के नीति सही अछि जे पुनः बिहार बचेबाक नीति विकासक नीति रोजगारक नीति मिथिलाक चौतरफा विकासक नीति !

हम की हमर पहचान की

मिथिलाक पहचान माछ, पान ओ मखान ,
धोती कुर्ता ओ डोप्टा  ओ मुँहमे पान ,
धैर्यय ओ बलबान सभसँ भेटय सम्मान ,
आह नहि किनको हरदम मुहपर मुस्कान !
ई हमर मिथिलाक पहचान !!
सभसँ पछुआयल छी ओ जग नाम ,
खान पान हो सबकेँ देता समान ,
नहि कियो अपन नहि कियो आन ,
सभकेँ सुआगत एक समान !
ई हमर मिथिलाक  पहचान !!,
गंगा कोसी जीबछ धार ,
सभकेँ लगबथि बेर पार ,
धन समानक कुबेर के अवतार,
सगरुओ मिथिलाक महिमा अपरम पार,
ई मिथिलाक पहचान !!



घर ने पथार अछि टुटल मरैया,
भैया  नेने अएला सुन्दर बहुरिया ,
बुढ़ो जवान भेल देखी कऽ  बहुरिया ,
नेनाक चालि चले नवकी  कनियाँ ,
दिन हो राति बैसल सदिखन लाबैत  रहत  बात ,
निकलथि जखन बजार तखन सिटी बाजे हजार ,
घर ने पथारी अछि  टुटल मरैया ,
सभ मिल ताना मारय ,  ई जुल्मी  नजरिया ,
रातिकेँ सिटी बजबैए , पीबि तारी ओर दारू ,
माता के चरण कमलमे आरती प्रस्तुत
जय अम्बे जय अम्बे जय जय अम्बे जय अम्बे
नूतन सघन सजल नीरद छवि शंकर नाम लेबैया ,
योगनी कोटि आंगन डाकनी नाचत  ता ता थैया
जय अम्बे जय अम्बे जय जय अम्बे जय अम्बे !!
मुंडमाल उर बियाल बिराजित बसन बाघम्बर राजे ,
कर खप्पर अरु  कोसल सित अति कति किंकिन अति बाजे,
जय अम्बे जय अम्बे जय जय अम्बे जय अम्बे !!
संसार पयोनिधि पार उतारिन सभ आसन सुख देया !
डीमिक डीमिक कर डमरू बाजे नाचत ता ता थैया ,
जय अम्बे जय अम्बे जय जय अम्बे जय अम्बे !!
शिव  सनकादि आदि मुनि सेवक शुम्भ निशुम्भ बेधैया ,
रमा कान्त करू बिनती  आरती जय जय तारिणी मैया ,
जय अम्बे जय अम्बे जय जय अम्बे जय अम्बे !!


जय श्यामा माताक आरती
जय श्यामा  जय श्यामा जय जय श्यामा जय श्यामा ,
पनाचान्न वाहन महिष बिनासिनी नीरद छवि अभिरामा ,
चंड मुंड महिषासुर मर्दनी त्रिभुवन सुन्दर नामा .
जय जय जय श्यामा जय जय श्यामा .......................!!
शंभु धरनी समसान निवासिनी जग जननी  अभिरामा ,
सुम्भ निसुम्भ रक्क्त भव मर्दनी श्री गंगाधर बामा ,,
जय जय जय श्यामा जय जय श्यामा .......................!!
नारायण  नरसिंह  बिनोदिनी  बिन्ध्य शिखर बिश्रामा  ,
चमुंडा चंडासुर घातिनी पूर्ण निज मन कामा  ,
जय जय जय श्यामा जय जय श्यामा .......................!!
तुअ गुण वेद पुराण बखानत को नहि जानत नामा ,
सेवक अधम रमा कान्त  पुकारत पुरहु सकल मन कामा
जय जय जय श्यामा जय जय श्यामा .......................!!

की गलती हमरासँ भेल
ओकर सजा किए बेटाकेँ बजा लेलहुँ ,
हमरासँ दूर किए केलहुँ ,
आप्रद यदि हमरासँ भेल ,
तँ हमर किए नहि कष्ट देल,
छ्ल आसरा एकटा तकरो ,
अहाँ राखमे समा लेलहुँ ,
सभटा अहाँ जानै छी,
एना किए नुठुर अहाँ भेलहुँ ,
पूजा हम करै छी पाठ हम करै छी ,
नाम अहाँक लय सभ दिन उठी ,
आँखि खोलू हे माता आन्हर किए ,
हमर जीबनकेँ साकार करु , बेटाक संग ,
हमरो ओधर करु जीबन ,
ककरा मुँह देखि बितायब हम जिन्दगी ,
आब तँ पहर बनि जाएत जिन्दगी ,
एकटा कृपा करु माता सभ दुःख  हरू ,
माया जंजालक फंदासँ पार आब करू

चल चल रे हवा ,पूब दिसा
मिथिला राज्य बनाबी ,
जतए  सीताक नगरी ,
ओतहि खिलए सबरंग फुल ,
चाहु दिस हरियर होयत खेत ,
नहि तूँ करिहऽ ककरोसँ भेँट ,
चल चल रे हवा मिथिला देस ,
गंगा कोसी कमला बलान ,
नहि करती ककरो कलेस ,
सभक कमाना पूरा करती,
मिथिलाक नरेस ,
सभ दिन पूजब अहाँक  भेस ,
चल चल हवा मिथिला देस!

बिबाह ने भेल एकटा सोगातक संग भेटल
बिबाहकेँ एखन धरि झेल रहल छी ,
जेना बछड़ू बिना महिस बेकार तहिना खेल , भए रहल अछि,
सास तँ बुझु जे राँचीक काँके रिटायर
आर ससुर बुझू जे सगरु भारतसँ अवकाश प्राप्त ,
कहैले महिस स्कूलसँ बी.ए. पास ,
सास इंटर पास कनिया भेटली एम.ए. पास
सारकेँ पठेला देसे पार , छोटकी सारि सदिखन मुँहे फइर,
देखका दुनियाँ होए बेहाल, कनिक जेंगी होयत पहर .
बेटा हमर देखए तँ होय बेहाल ,
डरे भागए गाछी कात ,

मिथिला अछि नगरी , सौराठ अछि हमर गाम
देखू सभ दुनिया सहभा लगे अहि ठाम ,
सूरतसँ चलि कऽ सोमनाथ बसलाह बिच गाम ,
जखन चलला राम बिबाह करए , बाट पड़ैत अछि ई धाम ,
सोमनाथ आ राम संगहि बिबाह हेतु पहुँचला जनकपुर ,
सीता सभ सुकमारि कन्या ,पूजए चलली सती माताकेँ ,
सामने दुल्हा राम आ तीनू लोकोक नाथ ,
मिथिला अछि नगरी, सौराठ अछि हमर गाम ,
गोतम ओ तपो ऋषिगन सभ जान आबथि ,
सुन सुन धाम सब आबए , ई थिक मिथिला गाम .

नाम सुनीता रूप आब्निता अछि
सगरो गाम घूमी लाज नहि आबैत अछि
चुनरी फहराबै गीत गाबै ,  छौड़ाकेँ लुभबैत,
बुढ़बा हो आ जबान सभ सीटी बजबै,
कमर लचका कऽ सभ  बहकबै छिऐ,
तिरछी नजरियासँ सभकेँ जान मारै छी,
किनको मुस्कुरा कऽ चाहपर बजबै छी,
किए अहाँ सभकेँ घर उजारै छी,
चुनरी फहरा कऽ रसीला गीत गाबै छी

नचारी
कहाँ बैसल छी सोमनाथ यौ ,
सभ भए अहाँ बनू हम अनाथ ,
दोगू दौगू बाबा सोमनाथ ,
फँसलहुँ बिच मजधार ,
रस्ता देखि नहि ओहि पार ,
केबल अहाँ खेबन हार ,
बाबा दरस दिखा करी बेरपर ,
हमहूँ आयब सिबरातिकेँ सभ साल ,
लाएब आक धथूर ओ बेल पात ,
करब बाबाक सिंगार ,
कहाँ  बैसल छी सोमनाथ यौ ,
हम सभ भेलहुँ  अनाथ यौ,

खिले रे बदन
आयल बसंत नव नव खिले  रे बदन ,
पुरनका पात खसै जमीनपर,
हरस मन देखै दिगंत ,
थिक आली बसंत ,
हरु जुनि हे मन आहुके ,
एक दिन आएत बसंत ,
रूप सिंगारकेँ सजत तन ,
गाछ जनका फेर जायत तन,
अहुँकेँ आबत  बसंत ,
बिसू जायत जखन मन ,
अहुँकेँ आंगन खेलता ,
परम पीरिए के संग ,
अहुँकेँ आबत बसंत ,

बसन्त आबि  गेल नव कालिया सगरो गाछ छा गेल !
पुरबा पछवा बसात बहैए, जवानीक ओमद  भरैए ,
दुख ने दर्दक थिक रहैए, आम मंजरमे मधु  लगैए ,
देस दुनियाक हाथ चेला बनैए, बाबाक भाषन सुनैए,
कियो रमा देव , कियो कामदेव, सभ दौगी चोला पहिरे ,
नारी संग नाच नचैए, कियो चिकोटी कियो नागी पेची .
आनंद की भोगी बनैए, मदिराकेँ अमृत बुझा ,
झुट्ठे भगवानक नाम जपैए, अपना अपनीकेँ आबतर बुझैए?
कचड़ेमे परला बाबू सांचे ,
पीबि दारू तारी ,
भोर साँझ चिकड़ैत रही चित्त मर्म बुझले बानर
घूमी फिर कार्य्य ठेक हठात् गप्प पहुँचिकेँ,
सुनितु बहावे घरकेँ आबथि  ,
बान्हल महीस  डेंगाबथि !
जे किओ सामने आबथि मुँहसँ गारि निकालथि
परल साँझ मुनिसिमाक मायक ,
गारि दैत बजाबथि, की काज कएल भरिदिन ,
एम्हर आम्हर झगरा लगबथि,
चढ़ल नासा माथा ऊपर ,
सभटा नाम भुलाय!!
 .मृदुला प्रधान- एकटा आपबीती २.मनोज कुमार मंडल- कि‍सान ३.बेचन ठाकुर-
घरनी-बीसा

१.
 
मृदुला प्रधान
एकटा आपबीती

इलाई -बिलाई खूब खैलक
 गंभीर श्रोता बैसले रहलाह ,
अनचिन्हार           लोकक
 भेड़िया -धसान         मे, 
 मुख्य               अतिथि
बिनु      खैने        गेलाह. 
२.
मनोज कुमार मंडल
कि‍सान

मुरगाक बॉंग सुि‍न
चि‍ड़ैएक कि‍लोल
खुजल ऑंखि‍ आर
नि‍कलल बोल
कट, कट, कट, कट
कुट्टि‍ कटबाक आवाज
खुआ-पीआ कए
मस्‍त कऽ देल
बैलक कान्‍ह तानि‍
खड़ा भऽ गेल
गलाक घुमरल घंटी
टन-टन-टन-टन
कान्‍हपर हल आ
हाथमे पेना
आगू बैल लऽ
चलल कि‍सान।
जाधरि‍ लोक
कमलासँ गंडक नाधंत
ताधरि‍ खुजल पएर
आउ, आउ करैत
खेतक ढेपा
गरदा-गरदा भऽ जाएत
खेत देखि‍
थकान मेटाएल
घर चलल आब
कि‍सान।
करमेक धरम बनाउ
पूजा बुझलैन्‍ह
खेत-खलि‍हान
अन्न प्रसाद थि‍क
अहि‍ प्रसादक
के ति‍रस्‍कार करत?
सहक तन मोटैलएन्‍ह
अपन देह सुखाबैत
कि‍सान।
ि‍ना अन्न
जीन नइ
की हुनके जीनगी
सबसँ नि‍म्‍न?
कोउन नइ धाराक
नि‍यम उल्‍टा अछि‍?
सबहक मो-फो
जि‍नकासँ
ति‍नके लोक
अधलाह कहैत
नइ अछि‍ हुनका
तेकर चि‍ंता।
गाछ बनि‍
छॉंह दैत कि‍सान।
अहि‍ दीनकेँ नहि‍
छथि‍ कोइ देखएबला
हुनका जे
बुरबक बुझैत
की हुनक वि‍वेक
हेरा गेल?
आकि‍ बुइधि‍क
हरण भए गेल?
अहि‍ अन्नदाताक
देखि‍ जतेक हँसि‍ली

नइ होएत वि‍कास

बि‍न कि‍सान।
  ३.
बेचन ठाकुर-

घरनी-बीसा
दोहा-

श्रीमती घरनी पि‍रयै, अपन मन करए काज।
सौस ससुर भैंसुर केर, छथि‍ नहि‍ राखै लाज।।
     लाज धाक सभ छोड़ि‍केँ, चलए ओ घोघ उधारि‍।
     बुढ़ पुरान डॉंटए तहन, हुनका देलनि‍ गारि‍।।

चौपाइ-

जै घरनी परम अवगुण आगार।
कनि‍या तीनू लोक उजागर।।
     घरबलाक मलि‍काइन बलगर।
     नाम ससुरक घि‍नाबए नैहर।।
महा गलगर ढि‍ठगर बहुरंगी।
हरदम रहए कुमतक केर संगी।।
     गोर देह गौरब से आनहर।
     करै ओ सदि‍खन खटखट हर हर।।
कन फुसकी करबामे कमाल।
झगड़ा लगाबैमे बहाल।।
     कनेको खर खुटखुटए तैयो।
     धर परान लादि‍ मैयो मैयो।।
सदा पसीन करए बैसारी।
टि‍बी सि‍लेमामे तैयारी।।
     रूइयॉं रूइयॉं तामस भाबए।
     दर-दीयादमे आगि‍ लगाबए।।
अहॉंक गप घरबला मानए।
घरबलाक गप दूर भगाबए।।
     तील गाछकेँ ताड़ बनाबए।
     सोझराइल काज ओझराबए।।
कनि‍यो डॉंटू लोचन नोर।
मटि‍या तेल डरे लागू गोर।।
     चप कचौड़ी चटपटी चाही।
     माछ-मौस लेल ढुकए हाही।।
नैहर लेल मुलकि‍त धि‍यान।
सोसरा लेल बड कम गि‍यान।।
     पायन चेन खेत बेचाबए।
     सखक चीज तुरन्‍त कीनाबए।।
काजक डरसँ भूत लगाबए।
आस-पड़ोसकेँ खुब देबाबए।।
     अपन धि‍या-पुता अछि‍ महाराज।
     अनकर बुरबक बकलेल राज।।
जे कि‍यो पढ़ए घरनी बीसा।
दीयादीमे हरदम नीसा।।
     जय जय जय टोल-टापर माइ।
     सौस ससुर घरबलाक साइ।।
जे जन सए बेर करए ई पाठ।
हरखि‍त मने आशीष दुनू हाथ।।
     बेचनदास घरनीक चेला।
     अवगुण छोड़ि‍ करू गुणक खेला।।


दोहा-
आजूक बौह बड हेहर, परि‍वार काल रूप।
आइ धरि‍ कि‍यो नहि‍ बचलनि‍, छोट पैघ नर भूप।।

प्रेमसँ बाजू

पति‍वर गृहस्‍वामी की- जय।
ननदि‍क कट्टर दुश्‍मन की- जय।
सौसक सौस की- जय।
परि‍वार कलहदायि‍नी की- जय।
खापैरपाणि‍ की- जय।
बारहैनधारि‍णी की- जय।
     इति‍ शुभम्
 इन्द्रकान्त झा (१९४३- )
गीत
बेइमान जकरा कहब
गारिए पढ़त।
बलगर होएत
मारबो करत।
थाना दौड़ाओत
इज्जत उतारत।
जेबी खाली करत
जेबी भरत।
मुदा
जेलक खिचड़ी खोआओत।
इमानदार ककरा कहब
जकरा कहब
स्वागत करत।
अनका बेइमानक बखारी कहत
भ्रष्टाचारक अखारा बुझत
अपनाकेँ गंगा, यमुना आ
त्रिवेणीक संगम कहत॥

चल चल गुजरिनी
मिथिलाक धाम गै
जतय कौशिकी मैयाकेँ
खल खल बहैत देखिहें
अनकर विनाशपर
हँसैत देखिहें
माछ काछु घड़ियालकेँ
उछलैत देखिहें
जलजन्तुकेँ लड़ैत देखिहें
मुदा सभकेँ संस्कृत बजैत सुनिहें
तूँ रुकि जहिहें गै
देखिहें तूँ कोशीक पेटमे
बहैत गाम घरकेँ घरोमे मुर्दा बाहरोमे मुर्दा
मुर्दा मुर्दाकेँ झगड़ैत देखिहें
खेरातक अन्नपर
कुत्ताकेँ भूकैत सुनिहें
मुसोकेँ देखिहें बोरा कुतरैत गै
मुदा नेताकेँ देखिहेँ
घरकेँ भरैत गै
मुदा नेताकेँ देखिहेँ
घरकेँ भरैत गै
सम्बन्धीकेँ पढ़बैत गै कफनक कपड़ा चोरबैत गै
चल जहिहें सरकार दरवार गै
कहि दिहैन नेताक हाल-चाल गै
घूमि जहिहें मिथिलाक गाम गै
चल चल गुजरिनी मिथिलाक धाम गै।
नन्‍द वि‍लास रायक आठटा कवि‍ता-
1.
जल छी जीवन
हवा छी प्राण
एहि‍ दुनू बि‍ना
बॉंचत नहि‍ प्राण।

2.
आउ
सभ मि‍लि‍ कऽ
जलकेँ प्रदूषनसँ
बचाउ।

3.
हवाकेँ प्रदूषनसँ
बचेवाक खाति‍र
गाछी-वि‍रछी लगाउ।

4.
घर-घरमे
शौचालय बनाउ
आ खुलामे
शौच करए नहि‍ जाउ।

5.
नदी-पोखैरमे
कचरा नहि‍ गि‍राउ
आ जलमे रहएबला
जीब-जन्‍तुकेँ बचाउ।

6.
सौर उर्जा लगाउ
साइकिल चलाउ
पेट्रोल-डीजल
नहि‍ जराउ
प्रदूषनसँ हवाकेँ बचाउ।

7.
जोर-जोरसँ रेडी नहि‍ बजाउ
हवाकेँ ध्‍वनि‍ प्रदूषनसँ बचाउ।

8.
जँ एहि‍ सभपर देबै धि‍यान
तँ बचत सभक प्राण
आ हएत सबहक कल्‍याण
कि‍यो ने पड़व बेमार
भेटत सभकेँ आराम।

........
कृष्ण कुमार राय किशन

परिचय:- वर्तमानमे आकाशवाणी दिल्लीमे संवाददाता सह समाचार वाचक रूपमे कार्यरत छी। हिंदी आ मैथिलीमे लेखन। शिक्षा- एम. फिल पत्रकारिता व जनसंचार कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्रसॅं।
जन्म:- कलकतामे । मूल निवासी:-ग्राम -मंगरौना, भाया -अंधराठाढ़ी जिला-मधुबनी बिहार।
 हाकिम भऽ गेलाह

किएक चिन्हता आब कका
ओ तऽ हाकिम भऽ गेलाह
अबैत रहैत छथि कहियो कऽ गाम
मुदा अपने लोक सॅं अनचिन्हार भऽ गेलाह।

जूनि पूछू यौ बाबू ,हाकिम होइते
ओ कि सभ केलाह
बूढ़ माए-बाप के छोड़ि कऽ एसगर
अपने शहरी बाबू भऽ गेलाह।

आस लगेने माए हुनकर,गाम आबि
बौआ करताह कनेक टहल-टिकोरा
नहि परैत छनि माए-बाप कहियो मोन
मुदा खाई मे मगन छथि पनीरक पकौड़ा।

झर-झर बहए माएक ऑंखि सॅं नोर
किएक नहि अबै छथि हमर बौआ गाम?
मरि जाएब तऽ आबिए के कि करबहक
हाकिम होइते, किएक भेलह तांे एहेन कठोर?

ई सुनतैंह भेल मोन प्रसन्न
जे अबैत छथि कका गाम
भेंट होइते कहलियैनि कका यौ प्रणाम
नहि चिनहलिअ तोरा, बाजह अपन नाम।

ऑंखि आनहर भेल, कि देखैत छियै कम
एना किएक बजैत छह बाजह कनेक तूंॅ कम
आई कनेक बेसिए बाजब हम
अहूॅं तऽ होएब बूढ़, औरदा अछि कनेक कम।


कि थीक उचित, कि थीक अनुचित
मोन मे कनेक अहांॅ विचार करू
किशनकरत एतेबाक नेहोरा
जिबैत जिनगी माए-बापक सतकार करू।

नहि तऽ टुकूर-टुकूर ताकब एसगर
अहिंक धिया पूता अहॉं के देख परेता
बरू जल्दी मरि जाए ई बूढ़बा
मोने-मोन ओ एतबाक कहता।

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