भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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'विदेह' ६२ म अंक १५ जुलाइ २०१० (वर्ष ३ मास ३१ अंक ६२)- PART II
१.-गजेन्द्र ठाकुर- यू.पी.एस.सी.१- भारोपीय भाषा परिवार मध्य मैथिलीक स्थान २.-सुभाष चन्द्र यादव
१.
-गजेन्द्र ठाकुर
यू.पी.एस.सी.१
भारोपीय भाषा परिवार मध्य मैथिलीक स्थान
भाषाक पारिवारिक वर्गीकरण ऐतिहासिक आधारपर होइत अछि, जाहिमे भाषाक इतिहास, एक भाषाक दोसर भाषासँ उत्पत्ति, भाषाक आकृति-प्रकृति माने रचनात्मकताक संग अर्थ-तत्त्वपर सेहो ध्यान देल जाइत अछि। जेना कोनो व्यक्ति वा समूह बीजीपुरुषक संकल्पना करैत अछि आ ओतएसँ अपना धरि एकटा वंशवृक्षक निर्माण करैत अछि, तहिना भाषाक इतिहासक लेखक सेहो आदि, मध्य आ आधुनिक कालक आधारपर भाषाक पूर्ववर्ती आ बीज भाषाक संकल्पना सोझाँ अनैत छथि। मुदा भाषाक इतिहासमे पुत्री आ बहिन भाषाक संकल्पना सेहो एहि तरहेँ सोझाँ अबैत अछि।
मैथिलीक भारोपीय भाषा परिवारमे स्थान
स्थान, शब्द, व्याकरण आ ध्वनिक आधारपर भाषा एक-दोसरासँ लग होइत अछि। मुदा एहि मध्य किछु अपवाद सेहो अछि। अवेस्ता, अंग्रेजी आ जर्मन भाषा मैथिलीसँ भौगोलिक रूपसँ दूर रहलोपर एक्के परिवारक अछि, मुदा अरबी, तमिल आदि सापेक्ष रूपेँ भौगोलिक निकटता अछैत दोसर परिवारक अछि।
फेर भाषा स्थित आयातित विदेशज शब्दावलीक आधारपर हम एक भाषाकेँ दोसर भाषाक परिवारक सिद्ध नहि कऽ सकै छी। तहिना ध्वनिमूलक आ शब्दमूलक अर्थक साम्य सेहो दू भाषा परिवारकेँ एक वर्गमे नहि आनि सकैत अछि, जेना संस्कृतक जाल्म आ अरबीक जालिम -शब्दमूलक साम्य वा मैथिलीक मियाऊँ आ चीनी मन्दारिन भाषाक म्याऊँ (बिलाड़ि)- ध्वनिमूलक साम्य।
ध्वनिक साम्यमे सेहो कखनो काल गड़बड़ी होइत अछि, जेना मैथिलीमे ड़, ढ़ आ चन्द्रबिन्दुक खूब प्रयोग होइत अछि मुदा ई तीनू ध्वनि संस्कृतमे नहि अछि।
भौगोलिक आधारपर सेहो “भारोपीय भाषा” ई नामकरण पूर्ण रूपसँ समीचीन नहि अछि, कारण सम्पूर्ण भारतमे भारोपीय भाषा परिवारक उपस्थिति नहि अछि आ भारतमे भारोपीय भाषाक अतिरिक्त आनो भाषा परिवारक उपस्थिति अछि। यूरोपमे सेहो काकेशियन आदि भाषा परिवार भारोपीय भाषा परिवारमे नहि अबैत अछि।
व्याकरण साम्यक आधार दू भाषाकेँ एक परिवारमे रखबाक सभसँ सुदृढ़ आधार अछि।
मूल रूपसँ भारोपीय परिवारक भाषामे प्रत्ययक प्रयोग खूब होइत अछि आ धातुमे प्रत्यय जोड़ि शब्द बनैत अछि। पुल्लिंग, स्त्रीलिंग आ नपुंसक लिंग, ई तीन तरहक लिंग अछि तँ एकवचन, द्विवचन आ बहुवचन एहि तीन तरहक वचन। मुदा आब अधिकांश भाषामे एकवचन आ बहुवचन यैह दूटा वचन होइत अछि। जाहि क्रियाक फल स्वयं प्राप्त हो से आत्मनेपदी आ जकर फल दोसरकेँ भेटए से परस्मैपदी, ई दू तरहक क्रिया भारोपीय भाषमे रहैत अछि। समासक प्रयोग सेहो मोटा-मोटी भारोपीय भाषाक विशेषता अछि।
भारोपीय परिवारक दू भेद अछि। सए (१००) लेल प्रयुक्त मूल भारोपीय शब्द “क्मतोम” दू तरहेँ बाजल जाइत अछि। संस्कृतमे “शतम्” आ लैटिनमे “केन्टुम्”। एहि आधारपर संस्कृतसँ लग भाषा समूह अवेस्ता (भाषा आ ग्रंथ दुनूक नाम, जेन्द-अवेस्ता- ओहिपर भाष्य), फारसी, मैथिली, रूसी आदि अबैत अछि। केन्टुम् वर्गमे लैटिनसँ लग भाषा जेना ग्रीक, जर्मन, फ्रेंच, इटालियन आदि अबैत अछि।
शतम् वर्गमे भारत-इरानी (वा इन्डो आर्यन), बाल्टो-स्लाविक, आर्मीनी आ इलीरी भाषा समूह अबैत अछि।
इन्डो आर्यन वा भारतीय-ईरानी भाषा समूहमे ऋगवेद सभसँ प्राचीन अछि। जोराष्ट्रियन धर्मक अवेस्ता ग्रन्थ जे वैदिक कालक अछि ओ अवेस्ता भाषाक ग्रन्थ अछि। ईरानी भाषा समूहमे अवेस्ता, प्राचीन फारसी, पहलवी, पश्तो, बलूची आ कुर्द भाषा प्रमुख अछि। भारतीय आर्यभाषा समूहमे वैदिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत, पाली (प्राचीन प्राकृत ५००. ई.पू.सँ १०० ई.पू. धरि), प्राकृत (मध्य प्राकृत १०० ई.पू. सँ ५०० ई. धरि), अपभ्रंश (५०० ई. सँ ९०० ई. धरि) आ अवहट्ट (९०० ई. सँ ११०० ई. धरि) आ तकर बाद मागधी प्राकृतसँ मैथिली, बंगला, ओड़िया, असमी आदि भाषा (११०० ई. सँ) अबैत अछि।
विश्वक भाषाक पारिवारिक वर्ग
(अ)यूरेशिया, (आ)अफ्रीका, (इ)प्रशान्त महासागरक क्षेत्र (पैसिफिक), (ई)अमेरिका
(A)प्राचीन भारतीय आर्यभाषा (२५०० ई.पू.सँ ५०० ई. पू.)
(B)मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा (५०० ई.पू.सँ १००० ई.)
(C)आधुनिक भारतीय आर्यभाषा(१००० ई. सँ आइ धरि)
(A)प्राचीन भारतीय आर्यभाषा (२५०० ई.पू.सँ ५०० ई. पू.)- वैदिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत (बाल्मीकि - “मानुषिमिह संस्कृताम्”- संस्कृत आ मानुषी दुनू भाषा।)
(B)मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा (५०० ई.पू.सँ १००० ई.)- पहिल प्राकृत (पाली), दोसर प्राकृत (साहित्यिक प्राकृत- शौरसेनी, महाराष्ट्री, मागधी, अर्द्धमागधी, पैशाची, ब्राचड, खस), तेसर प्राकृत (अपभ्रंश- प्रथमे-प्रथम व्याडि आ पतंजलि द्वारा उल्लेख।)
बाल्मीकि द्वारा सुन्दरकाण्डमे मानुषिमिह संस्कृताम्- संस्कृत आ मानुषी दुनू भाषाक ज्ञान हनुमानजीसँ कहबाओल गेल अछि। ज्योतिरीश्वर- “पुनु कइसन भाट- संस्कृत, पराकृत, अवहठ, पैशाची, सौरसेनी, मागधी छहु भाषाक तत्वज्ञ” संगहि ज्योतिरीश्वर द्वारा सात“उपभाषक” चर्च भेल अछि। प्राकृतक कैकटा प्रकार छल। ओहिमे मागधी प्राकृत मैथिली आ अन्य पूर्वी भारतक भाषाक विकासमे योगदान देलक। अर्धमागधीमे जैन धर्मग्रन्थ आ पालीमे बौद्ध धर्मग्रन्थ लिखल गेल। कालिदासक संस्कृत नाटकमे संस्कृतक अतिरिक्त अपभ्रंशक प्रयोग गएर अभिजात्य वर्गक लेल प्रयुक्त भेल तँ चर्यापदक भाषा सेहो मागधी मिश्रित अपभ्रंश छल। मैथिली सहित आन आधुनिक भारतीय आर्यभाषा दोसर प्राकृतसँ विकसित भेल सेहो देखि पड़ैत अछि। अपभ्रंश परवर्ती कालमे पूर्वी भारतमे अवहट्टक रूप लेलक। मैथिलीक विशेषता जाहिमे एकर सभ शब्दक स्वरांत होएब, क्रियारूपक जटिल होएब (मुदा ताहिमे लैंगिक भेद नहि होएब), सर्वनामक सम्बन्ध कारक रूप आदिक रूपरेखा अवहट्टमे दृष्टिगोचर होएब शुरू भऽ गेल छल।ऐतिहासिक आधारपर भाषाक पारिवारिक वर्गीकरणमे अवहट्ट (अवहट्ठ) केँ “मैथिल अपभ्रंश” ताहि कारणसँ कहल जाइत अछि आ मागधी प्राकृतसँ सेहो एकर विकास दृष्टिगोचर होइत अछि। अवहट्ठ मैथिलीसँ लग रहितो शौरसेनी प्राकृत-अपभ्रंशसँ सेहो लग अछि, मुदा देशी शब्दक प्रयोगसँ एहिमे अपभ्रंशसँ बहुत रास व्याकरणिक परिवर्तन देखा पड़ैत अछि। विद्यापतिक “कीर्तिलता” अवहट्ठमे अछि, मुदा “चर्या गीत” आ “वर्ण रत्नाकर” कीर्तिलतासँ पूर्ववर्ती होएबाक बादो पुरान मैथिली अछि आ अवहट्ठसँ सेहो लग अछि।दामोदर पंडितक “उक्ति व्यक्ति प्रकरण” सेहो कीर्तिलतासँ पूर्ववर्ती अछि मुदा पुरान अवधी आ पुरान कोशलीक प्रतिमान प्रस्तुत करैत अछि आ अवहट्ठसँ लग अछि। भारोपीय भाषा परिवारमे मैथिलीक स्थान मोटा-मोटी संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश आ अवहट्ठक ऐतिहासिक क्रममे अबैत अछि।
(९२३ शब्द)
२
सुभाष चन्द्र यादव,
1948-
जन्म ०५ मार्च१९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल। घरदेखिया (मैथिलीकथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्यअकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्यअकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषापरिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, बनैत-बिगड़ैत (मैथिली कथा-संग्रह २००९), मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेकअनुवाद प्रकाशित।
रचनाक पाठ आ लेखक
कोनो लेखक सँ ई अपेक्षा केनाइ जे ओ अपन रचनाक स्पष्टीकरण आ व्याख्या करए–एकटा अनुचित अपेक्षा होएत। ई काज लेखकक नहीं थिकैक। रचना चाहे कतबो दुर्बौध्य आ विवादास्पद हो, लेखक ओहि लेल जिम्मेदार तऽ होइत अछि, मुदा ओकर भाष्यकार हेबाक लेल बाध्य नहि। लेखक ककरा–ककरा अपन रचना बुझेने फिरत आ किएक? की ई सम्भव छैक? लेखक जँ चाहए तऽ अपन जीवन–काल मे रचनाक संदर्भमे किछु सम्वाद स्थापित कऽ सकैत अछि, मुदा मृत्योपरांत?
होक पाठक अपन बोध आ विवेकक अनुसार रचनाक पाठ करैत अछि। हरेक युगक सेहो अपन भिन्न बोध होइत छैक। तँ ई पाथ भिन्नता आ परिवर्त्तनशीलता हरेक समर्थ रचनाक आनिवार्य गुण होइत अछि। समय के संग–संग रचनाक संवेदनात्मक अभिप्राय बदलैत रहैत छैक। तँ इ युग बदलला पर रचनाक व्याख्या सेहो बदलि हाइत छैक। एहि तरहेँ कोनो एकटा रचना के एक्के टा आ समान पाठ नहीं होइत अछि; मूल्यवान रचनाक पाठ अनंत होइत अछि।
पाठ पर लेखकक नियंत्रण नहीं होइत छैक। तँ इ पाठ–भिन्नताक लेल ओकरा सफाइ आ स्पष्टीकरण देबाक कोनो बेगरता नहि हेबाक चाही।
हमर अपन अनुभव तऽ इ अछि जे जाधरि कोनो घटना कलात्मक विजनसँ दीप्त नहि होएत ताधरि ओ रचनामे रूपांतरित नहि भऽ सकत। ओहि आरंभिक विजनकेँ पाठक भिन्न–भिन्न रूपेँ पकड़ैत अछि आ अलग–अलग व्याख्या करैत अछि। हमरा लगैत अछि जे कोनो रचनाक विजन आ दर्शनकेँ पाठक भले नहि बुझि पबैत हो, ओकर मर्मकेँ जरूर पकड़ि लैत अछि; ओकर संवेदनात्मक तत्वकेँ हृदयंगम कऽ लैत अछि। लोक–कथा सँ उदाहरण ली तऽ बात बेशी स्पष्ट होएत। एकटा चिनमा खेलिऐ रओ भइया तइ ले पकड़ने जाइ–ए’- एहि उक्तिमे न्याय आ समानताकेँ जे विमर्श आ दर्शन छैक, तकरा पाठक भले नहि बूझि पबैत हो, मुदा स्वतंत्रताक लेल जे फुद्दीक आर्तनाद छैक तकर अनुभव पाठक अवश्य कऽ लैत अछि।
तहिना हमर कथा ‘नदी’ आ ‘कनियाँ–पुतरा’मे जीवनदायिनी शक्तिक रूपमे प्रेमकेँ जे विजन (दर्शन) छैक तकरा बूझब ओतेक आसान जँ नहियो होइ, तैयो नेहक अनुभूति तऽ पाठक करिते अछि। साहित्यमे असली चीज इएह संवेदना या मर्म होइत छैक। कोनो विचार (या दर्शन) संवेदनेक माध्यमसँ पाठक धरि पहुँचबाक चाही; कोनो नीरस विमर्श या नाराबाजीक रूपमे नहि। हमरा बुझने धर्म आ संस्कृतिक भित्ति प्रेमे थिक। प्रेमसँ बढ़ि कऽ एहि संसारमे कोनो दोसर भाव नहि अछि।
हमर कथा सभ कोनो विचारधारात्मक या आचारशास्त्रीय आग्रह लऽ कऽ नहि चलैत अछि। ओ अपन समयकेँ आचार–विचारकेँ व्यक्त तऽ करैत अछि, मुदा ओहि सँ बद्ध नहि अछि।
हमर धारणा अछि जे कलाकृति कोनो क्रांति नहि अनैत अछि। ओ मनुक्खक भावात्मक अभिवृत्ति आ दृष्टिकेँ बहुत सूक्ष्म ढ़ंगसँ बदलैत अछि आ दीर्घकालिक सामाजिक परिवर्त्तनक घटक होइत अछि। एकर अतिरिक्त आ किछु नहि। जे आलोचक एहिसँ इतर कोनो अपेक्षा आ आग्रह (जेना मैथिलीक चेतनावादी हठ) लऽ कऽ साहित्य लग जाएत, से अपनोकेँ ठकत आ दोसरोकेँ धोखा देत।
(मैथिली लेखक संघ द्वारा पटनामे आयोजित परिचर्चामे सुभाष चन्द्र यादवक वक्तव्य)
यौवनान्माद वशीभूत जनसामान्य केर वचन हो अथवा धीर-गभीर जनक मृदुवचन, प्रियतमा हेतु ’हे हृदयेश्वरी’ एहि पदक प्रयोग सुनि सर्वथा एहि पद केर चिन्तन स्वाभाविक छल।
सामान्यरूपें तऽ ’हृदय’ पदक आशय उरोभागस्थ रक्ताभिसरण आदि कार्य करय बला शरीरावयवविशेष मात्र होइत अछि मुदा प्रश्न ई उठैत अछि जे हृदयेश्वरी पदक सन्दर्भ में की ई आशय स्वीकार कयल जा सकैत अछि? कदाचित नहिं । कियाक तऽ कोनो प्राणी दोसर प्राणीक शरीरावयव विशेषक ’ईश्वरी’ अर्थात नियामिका, संचालिका, प्रेरिका अथवा निर्देशिका कोना भय सकैत छैक? एतय प्रश्न स्वाभाविक रहत जे शिरोभागस्थ हृदय सेहो तऽ शरीरावयव विशेषे अछि..? एकर उत्तर ई देल जा सकैत अछि जे दुनू क स्वभाव एवं कार्यप्रणाली पृथकशः छैक। शिरोभागस्थ मूलतः स्नायु सँ सम्बद्ध छैक; जेकर चर्चा आगू कयल जा रहल अछि।
अस्तु, चिरकाल चिन्तन एहि लेख केर रूप लेलक आओर एहि बिन्दु पर पहुंचल जे ’हृदयेश्वरी’ पद में हृदय केर आशय जनसामान्य द्वारा स्वीकृत आशय सँऽ भिन्न होइत छैक ।
एहि प्रश्नक केर उत्तर भेट गेला पर कि हृदय शब्द सँ उरोभागस्थ एक अंगविशेषमात्र केर बोध नहि होइत अछि; हमर दृष्टि अमरकोष आओर मेदिनीकोष दिस गेल
अमरकोषानुसार ’चित्त’ हृदय केर पर्याय रूप मे स्वीकरणीय अछि[1]। ओतहि मेदिनीकार सेहो एहि तथ्य के स्वीकार करैत छथि[2]। एहि तरहें दुनू कोषकार मस्तिष्क रूप अर्थ स्वीकार करैत छथि।
वैदिकग्रन्थ सेहो एहि तथ्य के समर्थन दैत अछि। शिवसंकल्प सूक्त में मन के हृदयस्थ कहल गेल अछि[3]। योगसूत्र सेहो हृदय केर आशय चित्त सँ लैत अछि[4]। मस्तिष्क सेहो हृदयवत कार्य करैत अछि; अस्तु ओकर अभिधान हृदय देल जा सकैत अछि। शतपथब्राह्मण[5] आओर बृहदारण्यक[6] उपनिषद त्र्यक्षर (हृ, द, य एहि तीन अक्षर) केर एकैकशः व्याख्या करैत अछि। मुण्डकोपनिषद[7] एकरा और स्पष्ट करैत कहैत अछि।
महाभारतक वनपर्व तऽ एकरा पूर्णतः स्पष्ट कय दैतब अछि जतय युधिष्ठिरसँ कहल जाइत छन्हि जे ’जीवात्मा’ हृदय में रहैत उत्तम अधम बुद्धि के विभिन्न द्रव्य सँ जोरैत अछि[9]।
एवं प्रकारें देखैत छी जे हृदय पद सँ ’उरस्थ हृदय’ शिरस्थ हृदय’ आओर नाभी[10] आशय लेल जाइत अछि।
एतय आवश्यक अछि जे उरोभागस्थ हृदय एवं शिरस्थ हृदय में अन्तर स्पष्ट कयल जाए। उरोभागस्थ हृदयक कार्य अछि-
· प्रत्येक अंग सँ अशुद्ध रक्त केर आहरण
· धमनी द्वारा शुद्धरक्तक प्रदान करब
· मस्तिष्क के सदा क्रियाशील राखब
शिरस्थ हृदयक कार्य अछि-
· संवेदक ज्ञानतन्तु द्वारा ज्ञानक आहरण
· कार्यतन्तु द्वारा कर्मेन्द्रिय के कार्यप्रदान करब
जितेन्द्र झा काठमाण्डू पढबालेल विदेश गेनिहार नेपाली विद्यार्थीक सँख्या बढिरहल अछि । पश्चिमी जीवनशैली स्वतन्त्रता आ विलासिता भोगऽलेल सेहो नपाली विद्यार्थी विदेश दिन आकर्षित भऽ रहल अछि । आइटी होटल म्यानेजमेन्ट व्यबस्थापन इन्जिनियरिंग विज्ञान सहित विषयदिस रुचि रहल विद्यार्थी विदेश जएबाक लेल बाध्य सेहो अछि कियाक त नेपालमे एहन विषयक उत्कृष्ट अध्ययन सँस्थानक कमी अछि ।
विज्ञान आ व्यवस्थापन संकायमें रुचि रहल विद्यार्थी खास कऽ विदेश जाइत अछि ।दोसर दिस नेपालमेँ लोडसेडिंग आ पाबनि तिहार जकँ होबऽ बला बन्द हडतालक कारण सेहो विद्यार्थीसभ विदेशमेँ अपन सुरक्षित भविष्य देखैत अछि । एहि वर्ष मात्रे नेपालमें एगारह घण्टाधरि लोडसेडिंग भेल छल तहिना राजनीतिक दल आ सशस्त्र निशस्त्र समूह बन्द हडताल आहवान करिते रहैत अछि । विदेश गेनिहार विद्यार्थीमेँनिजी विद्यालय तथा कलेजमेँ अध्ययनरत विद्यार्थी सभ बेशी अछि । सरकारी क्याम्पस पढाइसँ बेशी राजनीतिके केन्द्र बनल अछि तेँ लगनशील आ मेहनती विद्यार्थी ओम्हर ताकहो नहि चाहैत अछि । नेपालक कन्सल्टयान्सीसभ विद्यार्थीके निजी खर्चमेँ विदेश पढऽ जाएलेल सहज बाट बना देने अछि । शैक्षिक परामर्शदातासभ विद्यार्थीके विदेशमेँ पढाईके जानकारीक सँगहि विदेश जएबालेल विद्यार्थीके प्रेरित सेहोे करैत अछि । शैक्षिक परामर्शदाता ममता उपाध्यायके अनुसार नेपालमें प्रयोगात्मक शिक्षा नहि अछि तें एत्त गुणस्तरीय पढाई सम्भव नहि अछि । तें नेपालमें एम. ए. आ पिच एच डी कएल विद्यार्थीसेहो गुणस्तरहीन होइत अछि ममताक कहब छन्हि । नेपालमें पढलाक बाद नोकरीक अवसर कम अछि ताहिलेल सेहो विद्यार्थी विदेश दिस आकर्षित भऽ रहल अछि ।
नेपालक आम विद्यार्थीक लेल विदेशक पढाइ सपना सेहो अछि कम आय भेल अभिभावकके धीयापुतासभके त नेपालेमे चित्त बुझएबाक स्थिति छै । विदेशमेँ उच्च शिक्षा अध्ययन करबाक लेल परामर्श लेबऽ आएल विद्यार्थी नेपालोमेँ अध्ययनकऽ कऽ भविष्य बनाओल जा सकैत अछि ताहिमेँ विश्वस्त अछि । सरकार पढबालेल विदेश पलायनकेँ रोकबालेल कोनो खास पहल एखनधरि नइ कएलक अछि नेपाली विद्यार्थी सँगहि प्रतिभा आ देशक पाइसेहो विदेश जाइत अछि से बुझब आबश्यक अछि । शिक्षामन्त्रालय एहिप्रति गम्भीर रहल दाबी शिक्षामन्त्री सर्र्वेन्द्रनाथ शुक्लके छन्हि । नेपालक विद्यालयके गुणस्तरीय बनाओल जाए तऽ विदेश गेनिहार विद्यार्थीक संख्या कम भ सकैया शुक्लके कहब छन्हि । विज्ञान आ व्यवस्थापन अध्ययन होबऽ बला ९० विद्यालयकें सरकार गुणस्तरीय बनाएबालेल सहयोग कऽ रहल शुक्ल जनतब देलनि । विद्यालयके क्षमता पाठयक्रम शिक्षक शैक्षिक सामग्री जेहन विषयवस्तु दिस सुधारके आवश्यकता अछि । नेपालमेँ एक तथ्यांकअनुसार ४० हजार विद्यार्थी प्रतिवर्ष स्नातक उत्तीर्ण करैत अछि जाहिमेँसँ नेपालमेँ मात्र दू हजारके रोजगारी भेटैत छैक । राजनीतिक अबस्था बन्द हडताल जेहन कारणसँ वार्षिक २० हजारसँ बेशी विद्यार्थी उच्च शिक्षा बास्ते विदेश जाइत अछि । ई त सरकारी तथ्यांक अछि । विदेश जाएलेल शिक्षा मन्त्रालयसँ सिफारिस लेनिहार विद्यार्थीक सँख्या मात्र ई अपना निजी खर्चमेँ विदेश गेनिहार विद्यार्थीक संख्या आओर बेशी अछि । विदेशमेँ मात्रे उत्कृष्ट शिक्षा भेटैत छैक से भ्रम चिरबादिस सम्बन्धित सभ पक्षके लागक चाही । राजनीतिक दलके सेहो शिक्षा क्षेत्रके बन्द हडताल मुक्त बनएबामेँ सहयोग करबाक चाही । विद्यार्थी देशक भविष्य होइत अछि भविष्यके अन्धकारमेँ धकेलबाक काज ककरोसँ नहि हुअए ।
कुसुमठाकुर
अलग राज्यक माँग कतेक सार्थक !!
ओना तs हमर स्वभाव अछि हम नहि लोक के उपदेश दैत छियैक आ नहि अपन मोनक भावना लोकक सोझां मे प्रकट होमय दैत छियैक। हम सुनय सबकेर छियैक मुदा हमरा मोन मे जे ठीक बुझाइत अछि ओतबा धरि करैत छियैक। एकर परिणाम इ होइत अछि जे हमरा सलाह देबय वाला केर कमी नहि छैक। सब के होइत छैन्ह जे ओ जे कहताह कहतिह सेहम अवश्य मानि लेबैन्ह।अपन अपन भावना केर हमरा पर थोपय के कोशिश बहुत लोक करय छथि। परोपदेश देनाइयो आसान होइत छैक। मुदा हमर भलाई केर विषय मे केसोचि रहल छथि इ ज्ञान तs हमरा अछि।मुदा दोसराक विचार सुनालाक किछु फायदा सेहो छैक। लोकक विचार सुनि अपन विचार व्यक्त करय मे आसानी होइत छैक आ आत्म विशवास सेहो बढैत छैक।
एकटा कहबी छैक "कोठा चढ़ी चढ़ी देखा सब घर एकहि लेखा " सब ठाम कमो बेसी एके स्थिति छैक, मुदा दोसरा केर विषय मे कम बुझय मे, आ देरी सs बुझय मे आबैत छैक, अपन तs लोक के सबटा बुझल रहैत छैक। पारिवारिक हो सामाजिक हो वा देशक, सब ठाम आपस मेविचार मे मतान्तर होइत रहैत छैक जे कि मनुष्य मात्र के लेल स्वाभाविक छैक आ हेबाक सेहो चाहि। जखैन्ह दस लोकक विचार होइत छैक तs ओहि मे किछु नीक किछु अधलाह सेहो विचार सोंझा मे आबैत छैक। मुदा आजु काल्हि सब ठाम स्वार्थ सर्वोपरि भs जाइत छैक। लोक के लेलदेश समाज सs ऊपर अपन स्वार्थ भs गेल छैक।
संस्था व न्यास केर स्थापना होइत छैक समाज आ संस्कृति केर उत्थानक लेल। मुदा संस्थाक स्थापना भेलैक नहि कि ओहि संस्थाक मुखिया पद आ कार्यकारणी मे सम्मिलित होयबाक लेल राजनीति शुरू भs जाइत छैक। एकटा संस्था मे कैयैक टा गुट बनि जाइत छैक। आ ओहि मे सदस्य ततेक नहि व्यस्त भs जाइत छथि कि हुनका लोकनि के सामाजिक कार्य आ संस्कृति के विषय मे सोचबाक फुर्सते कहाँ रहैत छैन्ह । आ ताहू सs जौं बेसी भेलैक आ बुझि जाय छथि जे आब हुनक ओहिठाम चलय वाला नहि छैन्ह तs एक टानव संस्था केर स्थापना कs लैत छथि। सामाजिक कार्य केर नाम परसाल मे एकटा वा दू टा सांस्कृतिक कार्यक्रम कs लैत छथि आ बुझैत छथि समाज केर उद्धार कs रहल छथि। ओहि कार्यक्रम मे पैघ पैघ हस्ती , नेता के बजा अपन डंका बजा लैत छथि।बाकि साल भरि गुट बाजी आ साबित करय मे बिता दैत छथि जे हुनक कार्यकाल मे कार्यक्रम बेसी नीक भेलैक। हम मानय छियैक जे कार्यक्रम अपन संस्कृति केर आइना होइत छैक, मुदा ओ तs स्थानीय कलाकार के मौक़ा दs कs सेहो करवायल जा सकैत छैक। इ कोन समाजक उत्थान भेलैक जे लोक सs मांगि कs कोष जमा कैल जाय आ मात्र कार्यक्रम मे खर्च कs देल जाय। बहुतो एहेन बच्चा शहर वा गाम मे छथि जे मेधावी रहितो पाई के अभाव मे आगू नहि पढि पाबय छथि। दवाई केर अभाव मे कतेक लोकक जान नहि बचा पाबय वाला परिवारक मददि केनाई समाजक उद्धार नहि भेलैक? आय काल्हि तs लाखक लाख खर्च करि कs एकटा कार्यक्रम कैल जाइत छैक।कहय लेल हम ओहि महान हस्ती केर पर्व मना रहल छी। कार्यक्रम करू मुदा कि अपन गाम शहर के भूखल के खाना खुआ तृप्त कs ओहि महान हस्ती के श्रद्धाँजलि नहि देल जा सकैत छैक। इ तs मात्र एक दू टा समाज के सहायतार्थ काज भेलैक ओहेन कैयैक टा सामाजिककाज छैक जे कैल जा सकय छैक।यदि सच मे लोक के अपन समाज आ संस्कृति सs लगाव छैन्ह तs जतेक कम संस्था रहतैक ततेक नीक काज आ समाजक उत्थान होयतैक। ओहि लेल मोन मे भावनाक काज छैक नहि कि दस टा संस्थाक।
देश मे नित्य नव नव राज्यक माँग भs रहल अछि। ओहि मेमिथिलांचलक माँग सेहो छैक। हमरा सँसेहो बहुत लोक पूछय छथि "अहाँमिथिला राज्य अलग हेबाक के पक्ष मे छी कि नहि "? हम एकहि टा सवाल हुनका लोकनि सँ पूछय छियैंह "कि राज्य अलग भेला सँ मिथिलाक उत्थान भs जेतैक "? इ सुनतहि सब के होइत छैन्ह हम मैथिल आ मिथिलाक शुभ चिन्तक नहीं छी। बुझाई छैन्ह जे अलग राज्य बनि गेला सँ मिथिलांचलक काया पलट भs जेतैक। एक गोटे जे अपना के मिथिला के लेल समर्पित कहय छथि, साफ़ कहलाह "मैथिल के मोन मे मिथिला के लेल जे प्रेम हेतैक से दोसरा केनहि" । हमर हुनका सँएकटा प्रश्न छल "कि पहिनेबिहार मेमैथिल मुख्य मंत्री, मंत्रीनहि भेल छथि "? जवाब भेंटल " ओ सब मैथिल छलथि मिथिलाक नहि"। अलग राज्य भेलाक बाद जे कीयो मुख्य मंत्री होयताह ओ मिथिलाक होयताह आ मात्र मिथिला के लेल सोचताह।
हमराइ बुझय मे नहि आबैत अछि जे लोककमानसिकता के कोना बदलल जासकैत छैक ? एखैंह ओ दरभंगा के छथि , ओ सहरसा के .....ओ मुंगेर के छथि ....किअलग राज्य भेला सँ आदमी केर मानसिकता बदलि जेतैक .....कि दरभंगा , सहरसा आ कि मुंगेर वाला भेद भाव मोन मे नहि औतेक ? आ जौं इ भेद भावना रहतैक तs सम्पूर्ण राज्यक विकास कोनाक भs सकैत छैक ? किमिथिलाक होइतो ओ सम्पूर्ण मिथिला केर विषय मे सोचताह ?
छोट छोट राज्य नीक होइत छैक , ओकर पक्ष मे हमहू छी मुदा बिना राज्यक बंटवारा केने सेहो बहुत काज कैयल जा सकैत छैक, जौं करय चाहि तs। ओना सब अपन स्वार्थ सिद्धि मेलागल रहय छथि इ अलग गप्प छैक। कि नीक स्कूल कॉलेज कारखाना के लेल बिना राज्य अलग बनने प्रयास नहि कैयल जा सकैत छैक? कि मात्र मिथिला राज्य बनि गेला सँ मिथिलाक उद्धार भs जयतैक ? मिथिला राज्यक अलग हो ताहि आन्दोलन मे अनेको लोक सक्रीय छथि , मुदा हुनका लोकनि सs एकटा प्रश्न .......ओ सब आत्मा सs पुछथि कि ओ सब मात्र राज्य आ समाज के लेल सोचय छथि किहुनकालोकनि के मोन मेलेस मात्रस्वार्थक भावना नहिछैन्ह ?
कैयैक टा राज्य अलग भेलैक अछि मुदा बेसी केर स्थिति पहिने सs बेसी खराब भs गेल छैक, झारखण्ड ओकर उदाहरण अछि। खनिज संपदा सँ संपन्न राज्यक स्थिति बिहार सs अलग भेलाक बाद आओर खराब भs गेल छैक। एहि राज्य मेनौ साल के भीतरसात टा मुख्यमंत्री बनि चुकल छथि । लोक के उम्मीद छलैक जे १० साल के भीतर एहिराज्य केर उन्नति भs जयतैक। उन्नति भेलैक अछि, मुदा राज्य केर नहि नेता सब केर। चोर उचक्का खूनिसब नेता भs गेल छथि आ पैघ सs पैघ गाड़ी मे घुमि रहल छथि , देश आ जनता केर संपत्ति केर उपभोग कs रहल छथि इ कि उन्नति नहि छैक ?
आसीन अन्हरिया चौठ। गोटि-पङरा खाऐन पीनि शुरु भऽ गेल। मातृनवमी-पितृपक्ष साझिये चलि रहल अछि। क्यो-क्यो बापो, दादा, परदादा नामसँ तँ कियो-कियो माइओ, दादी, परदादी इत्यादिक निमित्ते नति-नहि खुअबैत। जल-तर्पण सेहो परीबे दिनसँ शुरु भऽ गेल। मुदा इहो गोटि पङरे। किछु गोटे ठकिओने जे एकादशीकेँ जल-तपर्ण कऽ लेब। तहिना मातृपक्षक लेल नवमी आ पितृपक्षक लेल एकादशीकेँ न्योतहारी नति खुआ लेब। मुदा, गामक किछु जातिक बीच तेसरो तरहक होइत। ओ ई होति जे बेरा-बेरी सभ सौँसे टोलकेँ एक-एक दिन कऽ खुअबैत अछि। जेकरा ढढ़क कहैत अछि। किछु गोटे मातृपक्षक लेल महिलाकेँ आ पुरुष पक्षक लेल पुरुषकेँ न्योत दऽ सेहो खुअबैत अछि। पखक मातृपक्ष भिनौज भऽ गेल अछि। एकपक्ष मातृनवमी आ दोसर पितृपक्ष। जहिसँ नवमी मातृपक्षक हिस्सा आ एकादशी पितृपक्षक हिस्सा भऽ गेल दुनू टेंगारीकेँ घरसँ निकालि गुलटेन पच्चार दए सिलौटपर पिजबैक विचार केलक कि तमाकुल खाइक मन भेलै। चुनौटीसँ सकरी कट तमाकुल निकालि तरहत्थीपर डाँट बीछिते रहै कि पत्नी मुनिया आबि कहलक- ‘‘घरमे एक्को चुटकी नून नै अछि। भानसाक बेर भऽ गेल, कखैन आनब?’’ ‘‘अच्छा होउ, जाबे अहाँ सजमनि बनाएब ताबे हम दौड़ले नून नेने अबै छी। टेंगारी नेने जाउ कोठीक गोरा तरमे रखि देबै। हाँइ-हाँइ तमाकुल चुबए लगल। ठोरमे तमाकुल लइतै, मरचूनक दुआरे, कोनादन लगलै कि थूकड़ि कऽ फेकैत दोकान दिशि विदा भेल। एक तँ तमाकुल मनकेँ हौड़ि देलक दोसर काज टेंगारी पीजेनाइ पछुआइत देखि आरो मन घोर भऽ गेलैक। मनमे उठलै पुरने कपड़ा जेकाँ परिवारो होइए। जहिना पुरना कपड़ाकेँ एकठाम फाटब सीने दोसर ठाम मसकि जाइत तहिना परिवारोक काजक अछि। एकटा पुराउ दोसर आबि जाएत। मुदा चिन्ता आगू मुँहेे नहि ससरि रुकि गेलै। चिन्ताकेँ अटकितहि मनमे खुशी एलै। अपनापर ग्लानि भेलइ जे जहि धरतीपर बसल परिवारमे जन्म लैक सिहन्ता देवियो-देवताकेँ होइत छन्हि ओकरा हम माया-जाल किअए बुझै छी। ई दुनियाँ केकरा लेल छैक? ककरो कहने दुनियाँ असत्य भऽ जाएत। ई दुनियाँ उपयोग करैक छी नहि कि उपभोग करैक।
गुलटेनकेँ देखि आमक गाछक छाँहमे बैसल भुखना कहलक- ‘‘तमाकुल खा लाए कक्का, तखन जइहह।’’
ठाढ़ भऽ गुलटेन भुखनाकेँ कहलक- ‘‘बौआ, अगुताइल छी, जल्दी दू धूस्सा दहक आ लाबह। बेसी काल नै अँटकब।’’
ऐँह कक्का, तोहूँ सदिखन अगुताएले रहै छह। तमाकुलो खाइक छुट्टी नै रहै छह।’’ कहि भुखना चून झाड़ि चुटकीसँ तमाकुल बढ़ौलक। मुँहमे तमाकुल दइते रसगर लगलै। सुआद पाबि बाजल- ‘‘बड़ टिपगर खैनी खुऔलेँ भुखन। ऐहन टिपगर माल कोन दोकानक छिऔ?’’ ‘‘काका की कहबह; दिन आठम एकटा समस्तीपुरक बेपारी साइकिलपर एक बोझ तमाकुल लऽ बेचए आएल रहै। रातिमे अपने ऐठीन रहल। ऐँह काका भरि राति हिसाबे जगौनहि रहल। जेहने खिस्सकर तेहने महरैया रहए। खाइसँ पहिने महराइ गौलक आ खेला बाद एक्के टा तेहन खिस्सा, रजनी-सजनीक, उठौलक जे ओरेबे ने करै जखन डंडी-तराजू पछिम चलि गेल तखन हमहीं कहलियै जे आब छोड़ि दिऔ। बड़ राति भऽ गेल। तखन जा कऽ छोड़लक। भिनसर भने पोखरि-झाँखरि दिशिसँ आएल तँ चाह पीआ देलियै। दलानसँ साइकिल निकालि तमाकुल सरिअबए लगल। हमहूँ गिलास धोय चक्कापर रखि एलौं कि जेबीसँ दस टकही निकालि दिअए लगल कि कहलियै- ‘‘ई की दइ छी।’’ ओ कहलक हम बेपारी छी कोनो अभ्यागत नहि, तेँ खेनाइक पाइ दइ छी। आब तोंही कहह कक्का ओकरासँ पाइ लेब उचित होएत। कि हम सभ अपन बाप-दादाक बनौल प्रतिष्ठाकेँ भँसा देब? ई तँ बपौती सम्पति छी की ने एकरा कोना आँखिक सोझमे मेटाइत देखब।’’
थूक फेकि गुलटेन कहलक- ‘‘ऐहनो कियो बूड़िबक्की करै। पा भरि खेने हएत कि नै खेने हएत, तइ ले लोक अपन खानदानक नाक कटा लेत। नीक केलह जे पाइ नै छुलै।’’
अपन बड़प्पन देखि मुस्की दैत भुखना बाजल- ‘‘ऐँह कि कहिह काका, ओहो बड़ रगड़ी, कहए लगल जे से कोना हएत। हम कि कोनो भुखल-दुखल छी, आ कि व्यापारी छी। मुदा हमहूँ पाइ नै छुलिऐक तखन ओ दस-बारह टा पात निकालि कऽ दैत कहलक, जहिना अहाँक अन्न खेलौं तहिना हमहूँ तमाकुल खाइये लऽ दइ छी। सएह छी।’’
आगू बढ़ैत गुलटेन- ‘‘बौआ अखैन औगताइल छी। नूनक दुआरे तीमन अनोन रहि जाएत।’’
थोड़बे अटि कऽ घोघन साहुक दोकान। गुलटेनकेँ देखितहि झिंगुर काका कहलखिन- ‘‘अखन धरि माथमे केश लगले देखै छिअह।’’
माथ हसोथि कऽ देखैत गुलटेन बाजल- ‘‘अखन कटबै जोकर कहाँ भेल हेन। जखन कानपर केश लटकऽ लगत तखन ने कटाएव।’’ ‘‘बिसरि गेलह। काल्हिये ने बावूक बरखी छिअह। हमरो चच्चा सहाएवकेँ छिअनि। दुनू गोटे एक्के दिन ने मरल रहथुन।’’
झिंगुर काकाक बात सुनि गुलटेनकेँ धक् दऽ मन पड़ल। बाजल- ‘‘हँ, ठीके कहलौं काका। आइ ज अहाँ भेंटि नै होइतौं तँ बरखी छुटिये जाइत।’’ ‘‘अखनो किछु नहि भेल हेन। जा कऽ कटा आवह। हमर तँ तेहन झमटगर दियाद अछि जे भोरेसँ चारि गोटे लागल अछि मुदा अखनो धरि पार नहि लागल हेन।’’ ‘‘अखन तँ हमहीं टा घरपर छी। दियादिक तँ सभ कियो अपन-अपन हाल-रोजगारमे चलि गेल। कियो झंझारपुर वेपारीक संग गछकटियामे तँ कियो सुखेतक चिमनीपर ईंटा बनवैए। अपने केश कटाएब, ओरियान बात करब आ कि ओकरा सभकेँ बजवै लऽ जाएब।’’ ‘‘असली कर्ता तँ तोहीं ने छिअह। तोहर कटाएव जरुरी छह। हमरा सभमे तँ पाँच बर्षी धरि सभ दियाद-वाद केशो कटबैट अछि आ कमसँ कम एगारह गोटेकेँ खाइयो लऽ दैत अछि। तोरा सेहो एकटा आरो हेतह। खाएन-पीनि माने मातृनवमी-पितृपक्ष चलिते अछि। चाचाजीकेँ तीर्थेपर वर्षी पड़ि गेलनि, तेँ दोहरा कऽ खुअबैक झंझट नहि रहलनि। मुदा तूँ सभ ते एकादशीकेँ खुअबै छह तेँ तोरा दोहरा कऽ सेहो करै पड़तह। ओना ई सभ मन मानैक बात छी। मुदा, चलनियो तँ कोनो अपन महत्व रखैत अछि की ने।
झिंगुर काकाक बात सुनि दोकानदारकेँ गुलटेन कहलक- ‘‘हओ घोघन साहु, झब दे एक टका के नून दाए।’’
गमछामे नोन बान्हि गुलटेन लफड़ल घर दिशि चलल। मनमे पिता नाचए लगलनि। हृदय पसीज गेलनि। स्मरण भेलनि, अनका जेकाँ बाबू नहि छलाह। आगू-पाछुक बात जनैत छलाह। जँ से नहि जनितथि तँ किऐक ने अनके जेकाँ हमरो खेत-पथार कीनि देने रहितथि। कोनो कि कमाइ खटाइ नहि छलाह। जँ से नहि छलाह तँ कातिक मासमे ओते खरचा कऽ कऽ भागवत कोना करबै छलाह। तहिपर सँ भोजो-भनडारा करिते छलाह। हमरे ले कि कम केलनि। घर-गिरहस्तीक सभ लूरि सिखा देलनि। बारहो मासक काज। हम कि कोनो नोकरी करै छी जे सालो भरि कहियो बैसारी नहि होइत अछि। कमाइ छी खाइ छी ठाठसँ जिनगी बीतबै छी। जँ खेते रहैत आ खेतीक करैक लूरिये नहि रहैत तँ छुछे खेते लऽ कऽ की होइतै। गाममे देखबे करै छी खेतबला सभहक दशा। रौदी हुअअ कि दाही अछैते खेते हाट-बजारसँ मोटा उघैत छथि। हमरा तँ एक्को धुर घरारी छोड़ि नहि अछि। तेँ कि ककरोसँ अधला जीबै छी। अपन खुशहाल जिनगीपर नजरि अवितहि आनन्दसँ हृदय ओलड़ि गेलनि। मरहन्ना धान जेकाँ लटुआइल नहि अपन चढ़ल जुआनी जेकाँ खेतसँ आँड़िपर ओलड़ल। कोना लोक बजैत अछि जे जकरा अ आ नहि लिखल अबैत अछि ओ मुरुख अछि। बावू तँ औंठे-निशान दऽ मट्टियो तेल आ चिन्नयो कोटासँ अनैत छलाह। बड़का-बड़का सर्टियोफिकेटबला सभकेँ देखैत छिअनि जे दारु पीवि लेताह आ बीच सड़कपर ठाढ़ भऽ अंग्रेजीमे भाषण करैत लोकक रस्ता रोकने रहैत छथि। तहिसँ हजार गुना नीक ने बावू छलाह। खाइ बेरिमे अंगनामे नहि रहैत छलहुँ तँ शोर पाड़ि संगे खुअवैत छलाह। जहिया कहियो नीक-निकुत अनै छलाह आ थारीमे अन्दाजसँ वेसी बुझि पड़ैत छलनि तँ थारीसँ निकालि माएकेँ दैत छेलखिन नहि तँ ओते छोड़ि कऽ उठैत छलाह। आ हा-हा ऐहन बाप होएव कि अधला छी। जखन काज करऽ जाइत छलाह तँ संगे नेने जाय छलाह आ काजक लूरि सिखवै छलाह। जहन काजक लूरि भेल तहन ने बोइन करऽ लगलहुँ। केहन हुनकर सालो भरिक हिसाव छलनि। आसीन-कातिक गछपंगियाँ आ खढ़ कटिया हुनकेसँ सीखिलहुँ। तहिना अगहन-पूस धन कटिया, नार बन्हिया, दौन केनाइ, टाल लगौनाइ सीखने छी। किअए एक्को दिन बैसारी रहत। अखनुका छौँड़ा सभ जेकाँ नहि ने जे कहत काजे ने अछि। कि रस्तापर बालू उड़ाएव आकि पानि डेंगाएव। मुर्खो रहैत बावूए ने सिखौलनि जे फागुनसँ जेठ धरि घरहटक समए होइ छै। जेकरा घरहट करैक लूरि रहत वएह ने अपनो घर आ अनको घर बन्हैमे मदति कऽ सकैत अछि। जेकरा लूरिये ने रहतै ओकरा इन्दिरा आवासमे मुखिया, चिमनीबला, सिमटीबला नै ठकत तँ कि जेकरा अपन घर बनबैक लूरि रहत, ओकरा ठकत। अपनापर गुलटेनकेँ भरोष होइतहि मनमे खुशी उपकल। मुँहसँ हँसी निकलल। ओगरवाहीक गाछीक मचकीपर नजरि गेलै। कि हमरा सबहक दुनियाँ अछि। बड़क गाछपर सँ बड़्ड़् काटि बरहा बनबै छी। मूठबाँसीक बल्ला, पीढ़ियाँ आ कील बना गाछक डारिमे लटका झुलबो करै छी आ गेबो करैत छी। जे चौमासा, छहमासा, बारहमासा मचकीक स्टेटपर होइत अछि ओ बाजा-बूजी आ वैसि कऽ गबैमे कोना होएत? असकरे कृष्ण राधाक संग कदमक झूलापर चढ़ि नचबो करैत छलाह, बाँसुरियो बजवैत छलाह आ आसो लगबैत छलाह। मुदा, अखन तँ देखैत छी जे बाजा कियो बजवैत, नाच कियो करैत आ गीति कियो गवैत अछि। तेहने ने देखिनिहारो छथि। कियो कैसियोबलाकेँ देखैत तँ कियो ठेकैताकेँ, कियो नचनिहारक नाच देखैत तँ कियो ओकर कानक झुमकाकेँ। गौनिहारक आबाज सुनैत, नहि कि ओकर मुँह देखैत अछि।
नोनक मोटरी पत्नीकेँ दैत गुलटेन कहलक- ‘‘बाबूक बरखी काल्हिये छी। बिसरि गेल छलौं। केश कटौने अबै छी। ताबे अहाँ बरखी लऽ जे चाउर रखने छी ओकरा निकालि रौदमे पसारि दिऔ। राहड़ि सेहो उलबए पड़त। बेरु पहर तीमन-तरकारी आ मसल्ला हाटसँ लँ आनब। दूध तँ आइये पौरल जाइत। ओना अमहौरपर सौझुको दूध जनमि जाएत।’’
पतिक बात सुनि मुनिया बजलीह- ‘‘ऐहेन जे अहाँ बिसराह छी, सब काज चौबीसमा घड़ीमे सम्हरत। ने कुटुमकेँ नोत देलौं आ ने बेटी-जमाइकेँ खबरि देलिएनि।’’ ‘‘अच्छा सभ हेतै। अनजान-सुनजान महाकल्याण। बाबू कोनो अधरमी रहथि जे कोनो बाधा हएत। उगलाहा सभ देखबो करै छथि आ पारो लगौताह।’’
कहि गुलटेन केश कटबए विदा भेल। केश कट करखीक जानकारी सबजना न्योत दऽ चोटे घुरि गेल।
काजमे गुलटेन जेहने होशगर माने लुरिगर तेहने बिसराह। जे सभ बुझैत। उजड़ल गाम कोनो बसत। दरिद्र गाम कोनो सुभ्यस्त बनत, एहि कलाक प्रदर्शन गुलटेनक काज देखबैत। अनाड़ीकेँ काजक लूरि सिखाएब, हनपटाह गाए-महीसि दुहब, डरबूकसँ डरबूक गाएकेँ बहाएब माने साँढ़ लग लऽ जा पाल खुआएब, घोरनोबला आ चुट्टियाहो गाछपर चढ़ि आम तोड़ब, झोंझगर बाँसमे पत्ता तोरव, सुरुंगवा शीशो पाङब, सुआगर घर छाड़ब, सक्कत खेत जोतब, पनिगर खेतमे धान रोपब, सांङिपर ढेंग उठाएव, दुखताहकेँ खाटपर उठा डॉक्टर ऐठाम लऽ जाएब, फड़काह बच्छाकेँ पटकि नाथव, हर लागएव इत्यादि काज समाजमे ककरो कऽ दैत। कोना नहि करैत? एकरे तँ अपन बपौती सम्पति बुझैत अछि।
वर्षी भोजक चर्चा जनिजातिक माध्यमसँ सगरे गाम पसरि गेल। अपन दायित्व बुझि एका-एकी मरदो आ स्त्रीगणो गुलटेन ऐठाम आबए लागल। जहिना अनका ऐठाम काज भेने गुलटेनो बिनु कहनहुँ पहुँच जाइत तहिना समाजोक लोक आवए लगलाह। रवियापर नजरि पड़ितहि गुलटेन कहलक- ‘‘रबी, तोरा ऐठाम तँ जाइये ले छलौं। भने आबिये गेलह। बहुत दिन जीबह।’’
रवि- ‘‘किअए भैया? अखने फोकचाहावाली काकी अंगनामे बजलीह; तब बुझलौं।’’ ‘‘ठीके सुनलक। बिसरि गेल छलौं। दोकानपर झिंगुर काका मन पाड़ि देलनि। मुदा काज तँ कौल्हुका बदला परसू नै हएत।’’ ‘‘हमरा बुते जे हेतह तइमे पाछू थोड़े हेबह।’’ ‘‘चाउर-दालि तँ घरेमे अछि। तेल-मसल्ला, तरकारी हाटेपर सँ लऽ आनब मुदा पंचकेँ दुइओ कौर दही नै खुऐबनि से नीक हएत?’’ ‘‘सौझका दूध अपनो रहत आ किसुनोसँ लऽ लेब। कत्ते दूध पौरबहक?’’ ‘‘दू मन चाउर रान्हब। अधोमन तँ दही चाही।’’ ‘‘अधा मन सँ हेतह?’’ ‘‘अपना सभमे दहिये कते परसल जाइत अछि। गरीब लोक अन्ने बेसी खाइत अछि। दूध-दही आ कि फल-फलहरी जे खाइयो चाहत से आनत कतऽ सँ।’’ ‘‘हँ, ई तँ ठीके कहलह। हम तँ कहबह जे तरकारियो किअए हाटपर सँ अनबह। अखन तँ सबहक चारपर सजमनि कदीमा आ बाड़ीमे भट्टा अछिये तइ ले पाइ किअए खर्च करवह। धड़फड़मे अदौरी बनौल नै हेतह। बैगन आ अदौरी नै बनेबह से केहन हएत?’’ ‘‘मन होइए जे बर-बरीक ओरियान करी।’’ ‘‘तों सनकि गेलह हेन। बड़-बड़ीक घाटि कते मेठनियाँ होइत अछि से नै बुझै छहक।’’ ‘‘हँ, से तँ ठीके कहलक।’’ ‘‘अखन जाइ छिअह। दहीसँ तू निचेन भऽ जाह। काल्हि दुपहरमे ने काज हेतह। आ कि पुजौनिहारो औथुन।’’ ‘‘अपना सभमे कत्ते पुजौनिहारकेँ देखै छहक। जतिया आगू कोनो पतिया लगै छै।’’
भगिन पुतोहू दालि दड़ड़ै लऽ अबैत छलि। डेढ़ियापर अवितहि गुलटेनपर नजरि पड़ितहि मुँह बीजकबैत बाजलि- ‘‘बुढ़हा अपनो मरताह आ दोसरोकेँ जान मारथिन काल्हि-परसू ई सब काज नै होइतै। कहि दालिक मुजेला लऽ जाँत दिशि बढ़लि।
गोसांइ डुबिते भाय भजनाक संग सिंहेसरी पहुँचलि। अपना माथपर अपन पहिरएबला कपड़ा आ अल्लूक मोटरी आ भजनाक माथपर चाउर-दालिक। बिनु छँटले चाउर आ गोट्टे दलि। आंगन पहुँच सिंहेसरी कानल नहि। माए-बाप लग बेटीक कानव तँ सिनेहक होइत। मुदा सिंहेसरीक मन तखनेसँ लहकल जखने भजना बरखीक चर्चा केलक। मनमे उठै जे अपना खूँटापर लघैर महीसि अछि, बरखी सन काजमे जँ एक्को कराही दही नहि लऽ जाएब से केहन हएत? ओसारपर मोटरी रखि माएसँ झगड़ा शुरु करैत बाजलि- ‘‘ऐँ गे बुढ़िया, हमरा कोनो आए-उपाए नै यऽ जे, काल्हि बाबाक बरखी छिअनि आ आइ तू अबै ले कहलेँ?’’
तहि बीच गुलटेन सेहो हाटसँ आबि गेला। माथपर मोटरी रहबे करनि कि मुनिया बाजलि- ‘‘दाय, हमर कोन दोख अछि मासे-मास जे छाया करैत एलौं तेकर ठेकाने ने रहल। बापो तेहन विसराह छेथुन जे बिसरि गेलखुन। आइये बुझलौं।’’
माएक जबाव सुनि सिंहेसरीक तामस पिता दिस बढ़ए लगल। मुदा मुँह-झाड़ि बाजब उचित नहि बुझि माएकेँ अगुअबैत बाजलि- ‘‘जाबे बाबा जीवैत छलाह ताबे कत्ते मानै छलाह। आब जखन ओ नहि छथि तखन हुनकर किरिया-करम छोड़ि देबनि। एगारहो गोटेक तँ ओरियान कऽ कऽ अबितौं।’’
बेटी आ पत्नीक बात गुलटेन चुपचाप सुनैत। कखनो मनमे उठै जे गलती हमरे भेल। फेरि होइ जे कोनो काज करै काल ने उनटा-पुनटा भेने गल्ती होइत अछि। मुदा, हम तँ बिसरि गेल छलौं। सामंजस्य करैत गुलटेन बाजल- ‘‘पाहुन किअए ने ऐलखुन?’’
सिंहेसरी- ‘‘से तू नै बुझै छहक जे नोकरिया-चकरियाक घर छी जे ताला लगा देवै आ विदा भऽ जाएब। दुनू परानी लगल रहै छी तखन ते एक्को क्षणक छुट्टी नै होइए। ढेनुआर महीसिकेँ छोड़ि कऽ दुनू गोरे कना अबितौं।’’
बेटीक बात सुनि मुनिया बाजलि- ‘‘अइ घर ओइ घरमे कोन अन्तर अछि। तोरा लिये जेहने ई तेहने उ। अहूठीन ते दहीक ओरियान भइये रहल हेन। तइ ले तोरा किअए मनमे दुख होइ छौ। हम तोहर माए नइ छियौ। कोनो आइऐक छियै कि सभ दिनेक बिसराह छथुन। तइ ले तामस किअए होइ छह। मोटरी सभकेँ खोलि-खोलि चीज-बौस ओरिया कऽ राखह। पहिने पएर धोय गोसाँइकेँ गोड़ लगहुन।’’
पत्नी आ बेटीकेँ शान्ति होइत देखि गुलटेन मुस्की दैत बाजल- ‘‘गाममे जेकर काज हम केने छी ओ कि हम्मर नै करत। कते भारी काजे अछि।’’
घरक गोसाँइकेँ गोड़ लागि सिंहेसरी पिताकेँ गोड़ लगैले बढ़ल कि गुलटेनक आँखि सिमसिमा गेल। सिमसिमाएल मने पुछलक- ‘‘बुच्ची, कोनो चीजक दुख-तकलीफ ने ते होइ छह?’’
हँसैत सिंहेसरी कहलक- ‘‘बाबाक बात कान धेने छी। हाथ-पएर लड़बै छी सुखसँ दिन कटैए।’’
भोजमे खूब जस गुलटेनकेँ भेल। भरि-दिन ऐम्हर-दौड़ तँ ओम्हर-ताकमे दुनू परानीकेँ रहल। मुनियाक छाती केराक भालरि जेकाँ कपैत। बिना अन्ने-पानिक भरि दिन खटैत रहलीह। जेना भुख-पियास कतौ पड़ा गेलनि। मुदा भोजनक जस दुनू परानी गुलटेनकेँ, जहिना ऊसर खेतमे कुश लहलहाइत, तहिना लहलहा देलक। पिताकेँ सिंहेसरी कहलक- ‘‘सभ काज सम्पन्न भऽ गेल। आब अपनो सभ खा लाए।’’
खेला-पीला उपरान्त गुलटेनक मनमे, सिनेमाक रील जेकाँ, नाचए लगल- ठीके ने लोक कहैत छथि जे जेहन करत से तेहन पाओत। जहिना बाबूक मन शुद्ध छलनि तहिना ने क्रियो-कर्म हेतनि। आ-हा-हा ओंगरी पकड़ि-पकड़ि घर बन्हैक लूरि सिखौलनि। बारहो मासक काज जीवैक लेल सिखौलनि। मने-मन पिताकेँ गोड़ लगलक।
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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