भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिकस्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महानपुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिकचित्र'मिथिला रत्न'मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि।मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेखआ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू'मिथिलाक खोज'
मिथिलामे बाहरी लोकक आगमन आमिथिलासँ दूर देशमे पलायन, ई दुनू घटना निरंतर होइत रहल अछि। मुदा आइ कालिकपलायन एहि अर्थें विकट रूप लऽ लेने अछि कारण विगत तीस सालक अवधिमे भेलपलायन मिथिला गामकेँ खाली कऽ देलक।
1981 ई. मे पटनापर बनल महात्मा गाँधी सेतु आ पटना दरभंगा डीलक्स कोच सभकपाँती मिथिलावासीक हेँजक–हेँज बाहर बहरएवामे योगदान केलक। तत्कालीन सरकारसभक राजनैतिक आर्थिक शैक्षिक सामाजिक आ सांस्कृतिक एहि सभ क्षेत्रमे विफलताएकटा आधार तँ बनबे कएल, स्वतंत्रताक बादक तीस साल बिहार स्थित मिथिला आनेपाल स्थित मैथिली भाषी क्षेत्रक बीचमे एकटा विभाजक रेखा सेहो खींचि देलका। 1960 ई. मे बनल कमला बान्ह आ एखन धरि अपूर्ण कोसी परोयोजना मिथिलाक ग्रामीणआर्थिक आधारकेँ तोड़ि कऽ राखि देलक। प्राचीन कालक पलायन आ आइ काल्हिक पलायनमध्य एकटा मूल अंतर सेहो अछि। मिथिलाक मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण काएस्थ अपनविद्वत्ताक प्रदर्शन, पठन पाठन आ दोसर राजाक दरबारमे जीविकोपार्जन निमित्तप्राचीन कालहि सँ जाइत छलाह, तँ गएर मैथिल ब्राह्मण–कर्ण कायस्थ जातिवाणिज्य, अंगरक्षक आदिक कार्य लेल दूर देशक यात्रा करैत छ्लाह। प्राचीनकालमे मोरंग आ पछाति भदोही मिथिलाक बोनिहारक श्रम किनबाक केन्द्र बनल, मुदाएहिमे मोरंग नेपालक मिथिलाञ्चलमे पड़ैत अछि मुदा एकरा प्रवास एहि लेल कहलजाए लागल कारण ओतुक्का शासक गएर मैथिल गोरखा भऽ गेल छलाह।
पलायनक विभिन्न स्वरूपः- पलायन एकटा ऐतिहासिक प्रक्रियाक अंग अछि। अहाँकक्षेत्रक भौगोलिक स्थिति कोन देशमे अहाँकेँ पटकि देने अछि ताहिपर सेहो। सेमोरंग लग रहलोसँ भारतक मिथिलाञ्चलक वासीक लेल पछाति कम लोकप्रिय भेल कारण ओदोसर देशमे अवस्थित भेलाक कारण विभिन्न कारणसँ पलायनक लेल अनुपयुक्त भऽ गेल।कोलकाता स्वतंत्रताक बाद निकटवर्त्ती मेट्रो नगर रहए से लोक ओहि नगरमे खूबपलायन केलन्हि मुदा जखन विभिन्न राजनैतिक–आर्थिक नीतिक संकीर्णताक कारणसँबंगालक उद्योग–धंधा चौपट भऽ गेल, शैक्षिक केन्द्रक रूपमे ओकर महत्व कम भेलतखन पलायनक केन्द्र मुम्बइ आ दिल्ली भऽ गेल। बोनिहार आब भदोही आ मोरंग नञिवरन पंजाब–हरियाणा आ पश्चिमी उत्तरप्रदेश जाइत छथि आ बनिजार बाहरसँ मिथिलामेभरि गेल छथि। दरभंगा राजक गलत आर्थिक नीतिक कारण आरा छपराक लोक सभ भूमि आकामतक अधिपति कोना भऽ गेलाह से जगदीश प्रसाद मण्डल जीक साहित्यमे पूर्णरूपसँ देखार भेल अछि। 1936-37मे बर्मासँ सेहो भोजपुर बक्सरक लोक पूर्णियाँ, अररियामे भागि कऽ एलाह, डुमराँवक हरि बाबू हिनका सभकेँ बर्मामे बसेने छलाहआ बर्माक भारतसँ अलग भेलाक बाद ई लोकनि शरणार्थी बनि एहि क्षेत्रमे आबिगेलाह। कतेको बर्मा टोल एहि क्षेत्र सभमे अहाँकेँ भेटि जाएत। एहि क्षेत्रमेकृषि–वाणिज्यपर हिनको सभक दखल भेलन्हि। मिथिलामे भेल पलायनमे 1971 ई. मेबांग्लादेशक निर्माणक लगाति ओतुक्का हिन्दूक किशनगंजमे आ बादमे ओतुक्कामुस्लिमक पूर्णियाँ किशनगंजमे आगमन भेल। बाहर भेल पलायनक विरूद्ध भीतर आएलई पलायन मिथिलाक बोली–वाणी सभ वस्तुकेँ प्रभावित कएलक। जाति–धर्म आधारितविवाह मुस्लिम, राजपूत आ भूमिहार मध्य मिथिलाक भौगोलिक परिधिसँ बाहर हुअएलागल ताहिसँ सेहो बोली–वाणीक अंतर दृष्टिगोचर भेल। पलायन नीक आकि अधलाहः- पलायन जे बाहर जाइ वला आ भीतर आबै वला दुनू तरहक अछिकेँ अहाँ कोनो तरहेँ नहि रोकि सकै छी। मुदा एक खादी मध्य भेल ई विकट पलायनमूल मैथिल बोली–वाणीक पलायन विकट समस्याकेँ जन्म देलक। भुखमरी जे वादि-अकालआनलक, तकरासँ तँ मुक्ति भेटल मुदा सांस्कृतिक अकाल सेहो ई आनलक। गामपर बोझघटल, लोककेँ बटाइ लेल जमीन नै भेटै छलै, आब से बै छै, मुदा तकर विपरीतमिथिलाक भीतर शैक्षिक केन्द्रक पूर्ण समापन भऽ गेल, बाहरी बनिजार एतुक्काआर्थिक बाजारपर कब्जा कऽ लेलन्हि। विशालकाय सड़क परियोजना, आ सूचनाप्रौद्योगिकी, टेलीविजन, अखबार, पत्रिका आदि ततेक पूँजी केन्द्रित भऽ गेलजे ई स्थानीय वणिकक औकातिक बाहरक वस्तु भऽ गेल। क्षेत्रक राज्य–सभा आ विधानपरिषदमे जखन बाहरी पूँजीपति प्रवेश कऽ गेल छथि तखन आर कथूक चर्च की करी? पलायनक निदानः- हा पलायन केने काज नै चलत। जेना इस्रायलक प्रवासी ओकर शक्ति–सिद्धभेल छथि तहिना मैथिल प्रवासी सेहो मिथिलाक लेल ओतुक्का भाषा–संस्कृति–साहित्यआ अर्थनीतिक लेल सहायक सिद्ध हेताह मिथिला राज्यक मांगमे बीचक स्थिति जेनाबिहारक अंतर्गत मैथिली भाषी क्षेत्रमे प्राथमिक शिक्षाक माध्यम मैथिली हो, मैथिलीक रेडियो स्टेशन, टी.वी, चैनल लेल कम लाइसेंस फीस राखल जाए, इ मैथिलीपत्र–पत्रिकाकेँ सरकारी विज्ञापन भेटए आदि मांग–आदि सेहो धोंसियेबाक चाही।राज्य जहिया भेटत तहिया भेटत उपरका 2-3 बिन्दु जे भेटि जाएत तँ एकटा उपलब्धिहोएत आ लोकमे तखने जागृति आएत तखने ओ मिथिला राज्य एकर आर्थिक–शैक्षिकराजनैतिक स्थितिपर ओ विचार कऽ सकताह आ आंदोलनक भाग बनि सकताह।
तारानन्द वियोगी: (मिथिला सृजन:जून-जुलाई २०१०, वर्ष-१, अंक-२): हुनक (पंकज पराशरक)अनेक रचना एहनोछनि जकर जन्म दोसरक काव्य रचना पढ़लाक अनन्तर भेलनि अछि।कविता ओपरिपूर्णतः हुनके थिकनि मुदा किछु गोटेकेँ ई कहबाक अवसर भेटिगेलनि जेओ पंकज चोर-कवि थिकाह। हम देखैत छी जे चोर समीक्षक भने ओहोथु, चोर-कविओ कदापि नहि छथि। मुदा एना किएक भेल? एहि दुआरे भेल जेआनक रचना पढ़ि कऽअपन अनुभूतिमे उतरैत काल ओ आनक आभामंडलसँ तेनाआक्रान्त छलाह जे तकरछाप कविताक दृश्यमे देखार पड़ि गेल। ई वस्तुतःसिद्धताक कमी थिक, जकराक्यो रचनाकार रचिते-रचिते सिद्ध कऽ सकैत अछि।
गौरीनाथ (अनलकान्त))-सम्पादकीय अंतिका अक्टूबर-दिसंबर, 2009- जनवरी-मार्च, 2010- पंकजपराशर प्रसंगमे- हँ, दंद-फंद करैवला किछु लोक सब ठाम पहुँचि जाइ छैआतेहन लोक एतहुँ अपन धूर्तता आ चोरि कला देखबै छथि। मुदा तकरोअसलियतउजागर करब असंभव नइँ रहल। "विदेह"क गजेन्द्र ठाकुर एहन एक "युवा" (पंकज झा उर्फ पंकज पराशर) क असली चेहरा हाले मे देखोलनि।
We should be greatful to Pankaj Parashar that he did not lay claim on the magnum opus of Kavi Vidyapati. I know him very well and his group as well. They have no love for Maithili in fact they are the moles planted by vested Hindi writers to damage maithili.
Parashar and likes are the distructive lots and they are the culprits for agonising senior writers of Maithili those who dedicated their life for Maithili language and literature. I have no sympathy for him. I cant say, even, God bless them.- Chitra Mishra
पंकज पराशरक पहिल मैथिली पद्य संग्रह ’समयकेँ अकानैत’ मैथिली पद्यक भविष्यक प्रति आश्वस्ति दैत मुदा एकर कविता सभ श्रीकान्त वर्माक मगधक अनुकृति होएबाक कारण आ रमेशक प्रति आक्षेपक कारण, ( पहिनहियो अरुण कमल आ बादमे डगलस केलनर, नोम चोम्स्की, इलारानी सिंह, श्रीकान्त वर्मा, राजकमल चौधरी आ प्राच्य आ पाश्चात्य रचनाक / कविता सभक निर्ल्ज्जतासँ पंकज पराशर द्वारा चोरिक कारण) मैथिली कविताक इतिहासमे एकटा कलंक लगा जाइत अछि। ई पंकज झा पराशर पहिनहियेसँ एहि सभमे संलग्न अछि, हरेकृष्ण झाक कविताकेँ हिन्दीमे, बिना अनुमतिक, छपबै छथि ,डॉक्टर हुनका तनावसँ दूर रहबा लेल कहने छन्हि। ई गप आर पुष्ट होइत अचि कारण विद्यानन्द झा जीक कविता सेहो ई पंकज झा पराशर एकटा हिन्दी पत्रिकामे बिना अनुमतिक छपबओलक, माने ई आदत हिनकर पुरान छन्हि। सम्पादक)
Recently Some Maithil Brahmin Samaj Organisation has started selling prizes in the name of Yatri (Vaidyanath Mishra, Nagarjun) and Kiran (Kanchinath Jha) .
There has been trend recently to grant these prizes to those intellectual thiefs who are basically opposed to the ideology's of Kiran and Yatri (Nagarjun).
The caste based organisations are killing the spirit of Yatriji and Kiranji, recently the fraud Pankaj Jha alias Pankaj Kumar Jha alias Pankaj Parashar alias Dr. Pankaj Parashar) was
stage managed to get this casteist award, The lecturer of Hindi at Aligarh Muslim University, just appointed as adhoc staff, will teach now how to lift verbatim articles of Noam Chomsky and Douglas Kellner and poems of Illarani Singh and Arun Kamal to his students. His Samay ke akanait (समय केँ अकानैत) is lifted from Magadh of Srikant Verma (श्रीकान्त वर्मा- मगध) and his Vilambit Kaik Yug me Nibaddha (विलम्बित कइक युग मे निबद्ध) is collection of pirated poems of Illarani Singh Srikant Verma and others.ई संग्रह इलारानी सिंह, श्रीकान्त वर्मा, गजेन्द्र ठाकुर, राजकमल चौधरी आदि कविक पंकज पराशरद्वारा चोराएल रचनाक कारण बैन कए देल गेल। "रचना"पत्रिकाक कथित अतिथिसम्पादकक रूपमे पंकज पराशर द्वारा कवि-कहानीकार सभसँ रचना सेहो मँगबाओलगेल आ तकरा अपना नामसँ छपबाओल गेल। ई छद्म साहित्यकार पराशर गोत्रक (!!)पंकजकुमार झा उर्फ पंकज पराशर बहुतो लेखकक अप्रकाशित रचनाअनुवादकरबा लेल सेहो लेलक आ अपना नामेँ छपबा लेलक। पाठकक आग्रहपर आर्काइवमे ईतथ्यराखल जा रहल अछि।- सम्पादक
We deplore the selling of these prizes to a person who has brought respect of Maithili to a lower level.
तारानन्द वियोगी: (मिथिला सृजन:जून-जुलाई २०१०, वर्ष-१, अंक-२): हुनक (पंकज पराशरक)अनेक रचना एहनोछनि जकर जन्म दोसरक काव्य रचना पढ़लाक अनन्तर भेलनि अछि।कविता ओपरिपूर्णतः हुनके थिकनि मुदा किछु गोटेकेँ ई कहबाक अवसर भेटिगेलनि जेओ पंकज चोर-कवि थिकाह। हम देखैत छी जे चोर समीक्षक भने ओहोथु, चोर-कविओ कदापि नहि छथि। मुदा एना किएक भेल? एहि दुआरे भेल जेआनक रचना पढ़ि कऽअपन अनुभूतिमे उतरैत काल ओ आनक आभामंडलसँ तेनाआक्रान्त छलाह जे तकरछाप कविताक दृश्यमे देखार पड़ि गेल। ई वस्तुतःसिद्धताक कमी थिक, जकराक्यो रचनाकार रचिते-रचिते सिद्ध कऽ सकैत अछि।
गौरीनाथ (अनलकान्त))-सम्पादकीय अंतिका अक्टूबर-दिसंबर, 2009- जनवरी-मार्च, 2010- पंकजपराशर प्रसंगमे- हँ, दंद-फंद करैवला किछु लोक सब ठाम पहुँचि जाइ छैआतेहन लोक एतहुँ अपन धूर्तता आ चोरि कला देखबै छथि। मुदा तकरोअसलियतउजागर करब असंभव नइँ रहल। "विदेह"क गजेन्द्र ठाकुर एहन एक "युवा" (पंकज झा उर्फ पंकज पराशर) क असली चेहरा हाले मे देखोलनि।
पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ राजकमलचौधरी.....उर्फ...
पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ राजकमल चौधरी.....उर्फ...
कतेक उर्फ एहि लेखकक बनत नहि जानि... राजकमल चौधरीक अप्रकाशित पद्य (आब विदेह मैथिली पद्य २००९-१० मे प्रकाशित पृ.३९-४०) “बही-खाता”क एहि धूर्तता, चोरि कला आ दंद-फंद करैवला पंकज पराशर..उर्फ..उर्फ.. [गौरीनाथ (अनलकान्त)क एहि चोर लेखकक लेल प्रयुक्त शब्द- सम्पादकीय अंतिका अक्टूबर-दिसंबर, 2009- जनवरी-मार्च, 2010- पंकज पराशर प्रसंगमे-] द्वारा “हिसाब” नामसँ छपबाओल गेल- देखू
राजकमल चौधरी
बही-खाता
एहि खातापर हम घसैत छी
संसारक सभटा हिसाब
...
...
हमर सभटा अपराध, ज्ञान...सँ लीपल पोतल
अछि एक्कर सभटा पाता
ई हम्मर लालबही थिक जीवन-खाता
जीवन-खाता
पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ राजकमल चौधरी.....उर्फ...
द्वारा एकरा अपना नामसँ एहि तरहेँ चोराओल गेल
हिसाब
हिसाब कहिते देरी ठोर पर
उताहुल भेल रहैत अछि
किताब
जे भरि जिनगी लगबैत छथि
राइ-राइ के हिसाब-
दुनिया-जहान सँ फराक बनल
अंततः बनि कऽ रहि जाइत छथि
हिसाबक किताब।
२००६
एहि लेखकक खौँझाकऽ अपशब्दक प्रयोग बन्न नहि भेल अछि आ ई नाम बदलि-बदलि एखनोएहि सभ कार्यमे लिप्त अछि, आब ई अपन धंधा-चाकरी सेहो बदलि लेने अछि। स्पष्ट अछि जे एकरा विरुद्ध कड़गर डेग उठाओल जएबाक आवश्यकता अछि। उपरका समस्त जानकारी अहाँ गूगल, चिट्ठा जगतकेँ दी से आग्रह आ तकरा नीचाँ ई-पत्रपर सेहो अग्रसारित करी सेहो अनुरोध।
ग्राम+पोस्ट-जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा।मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिलीअकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिली नाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओविद्यापति, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमेहास्य-व्यंग्य, मैथिली अकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशन भागलपुर २००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८१०.चेतना समिति ओ नाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८। २००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगा यात्री-चेतना पुरस्कार।
सामाजिकविवर्त्तक जीवन झा
उनैसम शताब्दीकपंचम दशकमे आधुनिक मैथिली साहित्यक क्षितिजपर एक प्रतिभा सम्पन्न साहित्य मनीषीकआविर्भाव भेल जे अपन नवोन्मेषशालिनी प्रतिभाक प्रसादात परिप्रदीत्पि प्रकाश पुञ्जसँबीसम शताब्दीक प्रथम दशक धरि अबैत-अबैत मैथिली नाट्य-साहित्यक पूर्ववर्त्तीपरम्परामे क्रान्तिकारी परिवर्त्तनआनि, परवर्त्तीयुगक नाट्यकार लोकनिक हेतु एक उन्मेष, नमोन्मेषक नेतृत्व नवीन नाट्यगद्यक जनक, प्रगतिशील विचारक, संवेदनशील मनोवृत्ति, कल्पनाशील मस्तिष्क,सरस रोमांचक अनुभूति एवं मैथिल समाजमे परिव्याप्त समस्याक प्रति अतिसाकांक्ष भ’समाजकेँ दिशा-निर्देश करबाक स्तुत्य प्रयास कयलनि, ओरहथि शलाका पुरुष कविवर जीवन झा (1848-1912) राजदरवारसँसम्पोषित रहितहुँ ओ जन-जनमे चेतनाक दीप जरौलनि,कण-कणमे उत्साह पसारलनि आ क्षण-क्षणमे सर्जनाक दिशा निर्दिष्ट कयलनि। युगपुरुष जीवनझाक समसामयिक समाज आ साहित्य बौद्धिक उत्तेजनाक लहरिसँ गुजरि रहल छल। राजनीति, समाजनीति, अर्थनीति, धर्मनीति, संस्कृति, संगीत, नाटककएवं चित्रकारीपर वैज्ञानिक प्रभावक फलस्वरूप परिवर्द्धन, परिवर्त्तन, परिमार्जन प्रारम्भ भ’गेल छलैक। शिक्षाक नवज्योतिक फलस्वरूप सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक चेतनाकउदय भेल, जकर स्वाभाविक अभिव्यक्ति हिनकनाटकादिक प्रमुख केन्द्रविन्दुथिक।
ओ एक दूरदर्शीसाहित्य चिन्तक सदृश आशा-निराशाक मिलन-विन्दुपरजनमानसकेँ देखलनि। ओ नैराश्यक अन्धकारमे आशाक दीप जरौलनि। युगीन परम्पराकेँ नीकजकाँ चिन्हलनि तथा युगानुभूति एवं कालक सत्यताक कोनो स्थितिकेँ अभिव्यक्त करबाकशक्तिकेँ दमित नहि क’पौलनि। सामाजिक वातावरणक विशिष्ट सन्दर्भमे सामाजिक विषमताक हुँकार, तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिकस्थितिक उपस्थापनमे अक्षर पुरुष प्रमाणित भेलाह। सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिकदृष्टिसँ जखन हम हिनक नाटकादिक परीक्षण-निरीक्षण करैत छी, तखन हम ओकरा समसामयिकसामाजिक स्थितिक दर्पण, सांस्कृतिकवैभवक धरोहरि आ आर्थिक विपन्नतासँ संत्रस्त समाजक यथार्थ एलबम कहि सकैत छी। ईसर्वविदित सत्य थिक जे ओहि कृतिकारक कृतित्व अक्षय रहैछ, जेसांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवनकवास्तविक प्रतिनिधित्व करैछ,जनिका हृदयमे उपर्युक्तक प्रतिपूर्ण आस्था रहैछ तथा ओकर अधःपतनकेँ जनमानसक समक्षरेखांकित क’सचेष्टहैबाकप्रेरणा दैछ, कारण साहित्य तँ हमरजीवनानुभूतिकेँप्रतिविम्बितकरैछ।
युगपुरुष जीवन झाकनाटकादिक प्रेरणास्रोत थिक नवीन जागरणक ज्योति। अपन सजग आँखिएँ ओ देश-देशान्तरकविकासोन्मुख गतिविधिपर दृष्टि निक्षेप कयलनि, एहि विषयक अनुभव कयलनि जेमैथिल समाजमे नवजागरणक अभाव अछि। ई अपननाटकककथानकक चयनक निमित्त मिथिलाक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिकस्थिति दिस दृक्पातकयलनि तथा अपन युगक
वास्तविक समसामयिक स्थितिक रूपायन ओहिमे कयलनि।
संस्कृत पण्डितरहितहुँ जीवन झा आधुनिकताक पूर्णपक्षपाती अपन कृतित्वमे दृष्टिगत होइत छथि।मिथिलांचलमे परिव्याप्त वैवाहिक समस्या छल तकरा केन्द्र-विन्दुबनाय सामाजिक वातावरणक विशिष्ट सन्दर्भमे देशन्नितिक निमित्तनाटककमाध्यमे जन-आन्दोलनक प्रेरणा देलनि, कारण मिथिलामोद ओ मैथिल महासभाकआविर्भावसँ पूर्वहि ई अपन नाट्य कृतिमे ओकर समाधानार्थ विचार प्रस्तुत कयलनि। मैथिलसमाजमे तिलक-दहेज, जाति-पाँजिक नामपरकन्यापर होइत अत्याचार एवं अन्याय एवं अन्य सामाजिक कुप्रथापर प्रत्यक्ष वा परोक्षरूपेँ अपन आलोचनात्मक दृष्टिकोण जनसामान्यक समक्ष प्रस्तुत कयलनि।
सामाजिकपृष्ठभूमिकेँ आधार बनाय ई मैथिलीमे नाट्य-लेखनक शुभारम्भ कयलनि। हिनक तीन सम्पूर्णनाटककसुन्दर संयोग (1904), सामवती पुनर्जन्म, नर्मदा सागर सट्टकएवं खण्डितमैथिली सट्टकसमकालीन सामाजिक,सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिस्थितिक उद्देश्य निर्धारणमे सहायक होइछ। वस्तुतः हिनकनाटकादिमे मैथिल समाजक विश्वास एवं संस्कारक प्रतिविम्ब भेटैछ, जकरा माध्यमे ओ उच्च जीवनकप्रतिष्ठाक आकांक्षी भेलाह। हिनक सम्पूर्ण नाट्य-साहित्यमे व्याप्त सामाजिक,सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्तरक सन्निवेशक कारणेँ मिथिलांचलक वातावरणमे परिव्याप्तअछि।
विवाहक चौमुखीसमस्यापर आधारित वासना, प्रेम, मिलन आ विछोह यद्यपि हिनकनाटकककेन्द्र-विन्दुथिक, जकर समाजशास्त्रीय एवंभाषाशास्त्रीय अध्ययन अपेक्षणीय अछि। सामाजिक वातावरणक विशिष्ट सन्दर्भमे मैथिलसामाजिक जीवनक अधिकाधिक प्रामाणिक रूप सुन्दर संयोग एवं नर्मदा सागर सट्टकमेप्रस्तुत करबामे ओ सफलता प्राप्त कयलनि। हिनक नाटकादि मात्र मनोरंजनक हेतु नहि, प्रत्युत जीवनक गम्भीरसमस्याक समाधान करबाक उद्देश्यसँ उत्प्रेरित भ’रचना कयलनि। एकर नायक-नायिका मिथिलांचलक परम्परागत कुलीन प्रथाक रूप प्रदर्शितकरैछ। यद्यपि सामवती पुनर्जन्मक कथानक पौराणिक पृष्ठभूमिपर आधारित अछि, तथापि ओकर प्रत्येक पात्रसमसामयिक समाज, संस्कृति एवंआर्थिक पृष्ठभूमिमे उतारल गेल अछि।
सुन्दर संयोगमेनाट्यकार समाजक ओहि मानसिक स्थितिक विश्लेषण कयलनि अछि, जे जाति-पाँजि, कुलीनता, बिकौआ प्रथापर प्रचलितबहु-विवाह आ पत्नी-परित्यागक सन विकृतिसँ उत्पन्न होइत छल। तथाकथित कुलीनजन अनेकबियाह करैत रहथि आ पत्नीकेँ नैहरमे छोड़ि दैत रहथि। भलमानुसक पत्नीक जीवन गति इएहछलैक। विवाह क’कए जाथि आ जीवन भरि वापस नहि आबथि। दाम्पत्य सुख एहन कन्याक निमित्त जीवन भरिअननभूत सत्य बनल रहि जाइत छलैक। ओ ने तँ कुमारिए रहैत छल आ वास्तवमे सधवे। सधवारहितो वैधव्य-वेदना सहैत रहैत छल। एहन स्थितिक चित्रण निम्नस्थ पंक्तिमे व्यिञ्जतभेल अछि:
सीमन्तक सिन्दूरक रेखासँ छी हमधन मन्ती।
हाथक दू लहठीसँ होइछ सधवामेनित गनती।
मिथिलांचलमे कुलीनताक बलपरप्रतिवर्ष विवाह करब सामान्य बात छल। समाजमे एहन परम्परा प्रचलित छलैक जे एक ठामविवाह आ चतुर्थी सम्पन्न क’कए दोसर ठाम पुनः विवाह करैत छलाह। कुलीन व्यक्ति विवाहोपरान्त पलटि क’जयबाक प्रयोजन नहि बुझैत रहथि। समयक क्रममे अपन पत्नीक आकृति आ सासुरक लोककेँ बिसरिजाथि। अत्यल्प परिचयक कारणेँ सर-कुटुम्बकेँ नहि चिन्हब तँ सर्वथा स्वाभाविक।
एहन विषम स्थितिमेकन्याक माता-पिता, समाज आ कन्याकेँ केहन मानसिक यातनाहोइत छलैक, निराशा आ विषादसँ आछन्नमनःस्थितिमे कोना जीवन यापन करैत छलमेस्वतः कल्पनातीत छल। कोनो सौभाग्यशालिनी कन्याकेँ पुनः दाम्पत्य जीवन प्राप्त होयतैक, कतेक उल्लास होयतैक, केहन हर्ष होयतैक, ओहो काल्पनिकअछि।मिथिलांचलमे प्रचलित कन्यादानी शब्द ओही परिणीता, किन्तु परित्यक्ता नारीक यातनामय इतिहासकेँ अपनामे समेटने अछि।
युगपुरुष जीवन झाकसमसामयिक सामाजिक वातावरणमे ईपरम्परा परिव्याप्त छल।सामाजिक जीवनमे ई प्रतिष्ठाक विषय छल।नाटकककारएहि सामाजिक परिस्थितिसँ पूर्ण अवगत रहथि। एकर दुष्प्रभावकेँ ओ अनुभव कयने रहथि।समाजक ओहि परिवेशमे कन्यापक्षक मानसिक अन्तर्द्वन्द्वकेँओ सुन्दर संयोगमे अभिव्यक्त कयलनि। समाजक समक्ष ओ सुन्दर मिश्र सदृश आदर्श पुरुषकरूपमे प्रस्तुत कयलनि।
सुन्दर मिश्र अपनसासुरक प्रत्येक व्यक्ति, अपन पत्नीकेँ तखने चिन्ह जाइत छथि, जखन हरदत्त पण्डा हुनकससुरक पूर्व पुरखाक नाम गाम बाँचैत छथि। ओ चतुर्थी दिन पत्नीक अस्वस्थताक कारणेँसासुर छोड़ि देने रहथि। ओ अपन पत्नी पर्यन्तकेँ नहि चिन्ह पौने रहथि। इएह स्थिति तँसरलाक ओकर माय, ओकर परिवार, ओकर सखी-बहिनया ओ समाजकछलैक। किन्तु सभक मनमे आशाक किरण छलैक जे भलमानुस सुन्दर मिश्र विवाह क’कए चल गेलाह तँ आ ने बिकौआ वर जकाँ नहि जे आबथि। एहि मानसिकताक अभिव्यक्ति सरस्वतीककथनमे अभिव्यक्त भेल अछि। जखन ओ वैद्यनाथकेँ प्रार्थना करैत छथि; हे वैद्यनाथ! जे जे कबुला कैल सभ मनोरथ पुरल, आब जमाइकेँ कुशल पूर्वकदेखीसेवरदान दिअ(सुन्दरसंयोग, पृष्ठ12)।
जखन पण्डाइन संकेतकरैत छथिन जे पण्डित बाबू सरलाक वर थिकथिन तखन हुनक निराशा व्यक्त होइत छनि, एहनभागहमर कहाँ जे जमायकेँ देखब परन्तु वैद्यनाथ बड़ गोटथिकाह।(सुन्दर-संयोग,पृष्ठ-19)
सरलाक मनोव्यथातावत धरि अव्यक्त रहैछ जावत धरि ओकरा संकेत नहि भेटैछ जे पण्डित बाबू सम्भवतः ओकरेवर थिकथिन। तत्पश्चात् ओकर विरह व्यथाक अभिव्यक्ति भेल अछि। मुदा ओ सामान्य विरहनहि थिक। सरलाक कथन गद्य आ गीतमे सामाजिक परिवेश-जन्य विषाद बजैत अछि,हे वैद्यनाथ!ऐ तरहेँ दुखिनीकेँ किए सतबैत छहक। (सुन्दर-संयोग, पृष्ठ-20)मेदुखिनीशब्दक मार्मिकताकअनुभूति तखने भ’सकैछ, जखन ओहि समयक सामाजिक परिवेशकअनुभव हो। ओहि सामाजिक कुप्रथाक पृष्ठभूमिमे सरलाक कथन विशेषार्थ बोध भ’जाइछ;
एतदिन शिवपदसेवल, केवल एतबहि काज।
सेप्रसन्न वर भाषल राखल मोर कुल लाज॥
(सुन्दरसंयोग,पृष्ठ-18)
बुझा देमक चाही कौखना अनजानकेँकनिएँ।
जे ई अपराध छौ तोहर किए हमरासँरुसल छी॥
(सुन्दरसंयोग,पृष्ठ-19)
सरलाक विरहसमाजशास्त्रीय विषय थिक जे समाजक परिस्थितिसँ उत्पन्न भेल अछि। एहि तथ्यकेँनाट्यकार अन्तमे स्पष्ट करैत छथि। सुन्दर सासुरसँ गाम जयबाक जखन प्रस्ताव करैत छथि, तखन उद्विग्न भ’जाइछ, हमरा बुझिपरैए जे एहि लोकक मन फेरि अन्तऽगेलैक। (सुन्दर संयोग,पृष्ठ-33)।ओ सुन्दरकेँ कहैत छथिन, औरनहि किछु, जे फेरि ओएह बरहमासा सबनेगाबक पड़ै (सुन्दर संयोग,पृष्ठ-34)।
सुन्दर जखन ओहिबारहमासा गीतक जिज्ञासा करैत छथिन तँ सरलाक उत्तर थिक, छओ मासक प्राप्त खन लोकबाजैजे आब नहि औथीन तखन सँ कादम्बरी बहिनक संग इएह गीत सब गबै छलहुँ। (सुन्दर संयोग, पृष्ठ-34)
सुन्दर संयोगनाटकककथानक सामान्य प्रेम-कथाक परिधिमे नहि राखल जा सकैछ। ओ थिक मैथिल समाजमे प्रचलितनारी-यातनाक मानस-इतिकथा।प्रकारान्तरेँ नाट्यकार ओहि प्रथाक प्रति अरुचि प्रदर्शित करैत समाधान रूपमे सुन्दरसदृश आदर्श पुरुषक प्रयोजनीयता देखौलनि। सुन्दरमे आदर्श पतिक प्राण प्रतिष्ठा क’कए नाट्यकार समाजकेँ कान्ता सम्मति उपदेश देलनि।
हिनकनाटककमेमिथिलाक सामाजिक जीवनमे व्याप्त विवाह सम्बन्धी कुप्रथादिक प्रति आलोचनात्मकदृष्टिकोण प्रतिफलित भेल अछि, तकर विश्लेषणसँ प्रतिभाषित होइछ जेनाटकककारसामाजिक सुधारक प्रति पूर्णतः साकांक्ष रहथि। विवाह सदृश अतिमहत्वपूर्ण संयोजनमेनिरीह पात्री होइछकन्या।सामवती पुनर्जन्मक प्रस्तावनामे नटीक कथन थिक:
कन्या कुल मर्यादामेबान्हलिफूजयमुँह न बकार।
(सामवतीपुनर्जन्म, पृष्ठ-3)
समाजमे कन्याकेँपुत्रक अपेक्षा न्यून मानल जाइत अछि जे सर्वथा अनुचित। तेँ तँ गौतमीक कथन थिक; तखनपुत्र वा कन्या दु टा संसारमे ह्वै छैक। हम तँ बड़ि प्रसन्न छी। (सामवती पुनर्जन्मपृष्ठ-23)
जीवन झा कालीनमिथिलांचलक समाज दुइ वर्ग-सम्पन्न एवं विपन्न वर्गमे विभाजित छल। ताहि कारणेँस्वजातिमे जाति-पाँजि, कुलीन-अकुलीन, सोति-जोग, भलमानुष, जयवार, पठियार इत्यादिक विचारसमाजमे घून जकाँ लागल छलैक। एकरे फलस्वरूप कन्या-विक्रय, बिकौआप्रथा, बहुविवाहप्रथा आ अनेक अमानुषिक समस्याकेँ जन्म दैत छल। ई श्रेय युगपुरुष जीवन झाकेँछनि जे अपन नाटकक माध्यमे एकर साक्षात विरोध करबाक साहस कयलनि।नर्मदा सागरसट्टकक सुन्दर मिश्र तकर ज्वलन्त प्रमाण छथि। मोदन मिश्र सुन्दर मिश्रकेँ नीकजाति-पाँजिक वर त्रिविक्रम ठाकुरक संग नर्मदाक विवाह करयबाक विचार दैत अपन मतकसमर्थनमे कहैत छथि:
कुलहीन जमाय अधीन कुलीन सुताअनुताप सदा सहती।
बसि नीच मनुष्यक बीच यथोचितनीच कथा कहती सुनती।।
पठियार अगार अाचार-विचारविचारि विचारि व्यथा सहती।
परिवार समान जहाँ न तहाँभरिजन्म कोना सुखसँरहती॥
(कविवरजीवन झा रचनावली, पृष्ठ-107)
उपर्युक्त पंक्तिमे कन्याकपिताक मानसिक व्यथाकतथा सामाजिक व्यवस्था, ओकर परिवेश आपरिस्थितिक रेखांकननाटकककारअत्यन्त सूक्ष्मताक संग क’कए समाजकेँ दिशा-निर्देश करबाक उपक्रम कयलनि। एहिपर सुन्दर मिश्रक कथन छनि :
अक्षरपुरुष जीवन झामिथिलांचलक सामाजिक जीवनक कतिपय चित्रण अत्यन्त कुशलताक संग कयलनि अछि। सामवतीपुनर्जन्म एवं नर्मदा सागर सट्टकमे सामाजिक रीति नीतिक चर्चा करैत नाट्यकार जाहिवैवाहिक प्रथाक उल्लेख कयलनि अछि से अत्यन्त प्राचीन परम्परा अछि। मिथिलांचलमे एहिप्रकारक प्रथा एवं परम्परा प्रचलित अछि जे वैवाहिक अवसरपर वर एवं कन्या पक्षक घटकपजिआड़क मिलान होइछ, जाहिमे पर्याप्त टाकाक प्रयोजन पड़ैछ जाहिसँ विवाहक उचित प्रबन्धकयल जा सकय। सामवती पुनर्जन्ममे एहि प्रसंगक विश्लेषण पूर्वमे कयल गेल अछि। नर्मदासागर सट्टकमे सेहो एहि स्थितिक चित्रण भेल अछि। घटकराज नर्मदाक विवाहार्थ ओ सागरकओतय प्रस्तुत होइत छथि तँ सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमिमे एहि परम्पराक निर्वाहकोना करैत छथि तकर अवलोकन तँ करू, औजी!एहना ठाम घटक जे हयतमेलगले कोना विचार देत? पजिआड़केँ जे इच्छा होइन्हमेबूझि लै जाउ। (कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-97)।
सामाजिकव्यवस्थाकेँ सुदृढ़ बनयबामे आर्थिक स्थितिक दृढ़ता अत्यन्त प्रयोजनीय बुझना जाइछ।वित्त विहीन व्यक्तिक सामाजिक जीवनमे कोनो मूल्य नहि रहि जाइछ। अतएव जाहि समाजकआर्थिक जीवन जतेक सबल रहत ओ उन्नतिक पथपर अग्रसर भ’समाजकेँ दिशा-निर्देश करबामे सक्षम भ’सकैछ। जतेक दूर धरि मिथिलांचलक सामाजिक जीवनक आर्थिक स्थितिक प्रश्न अछि ओ सदासर्वदा आर्थिक विपन्नतासँ संत्रस्त रहल जकर फलस्वरूप कन्या-विक्रय सदृश कुप्रथाकजन्म भेलैक। जीवन झा अपन नाटकादिमे आर्थिक विपन्नताक दिग्दर्शन अनेक स्थलपर करौलनिअछि। सामवती पुनर्जन्ममे सामवान एवं सुमेधाक वैवाहिक प्रसंगमे सामाजिक आर्थिकविपन्नताक दिग्दर्शन होइत अछि जे विवाहक नियोजनार्थ प्रचुर टाकाक प्रयोजनार्थ समाजकविपन्नताक दिग्दर्शन करौलनि अछि। एहि प्रसंगमे बन्धुजीवक कथन समसामयिक समाजकविपन्नताक चित्र दर्शबैत अछि जखन ओ कहैछ, घरमे तैखन सुखजौं पर्याप्त धन हो। हमरा तँ सतत सभ वस्तुक व्ययता लगले रहैए। (सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-20)।
शलाकापुरुष जीवनझाकेँ सामाजिक जीवनक गम्भीर अनुभव छलनि तेँ ओ स्थल-स्थलपर नारी दोषदिस समाजकेँ साकांक्ष करैत देखल जाइत छथि। सामाजिक, सांस्कृतिकतथा आर्थिक पृष्ठभूमिमे नारीकेँ सामाजिक मर्यादाक पालनार्थ मद्यपान, निरर्थकभ्रमणशील बनब, तन्त्राकआह्वान, पतिपर निष्प्रयोजन रोष, दुर्जन व्यक्तिक संग प्रवास गमन आदिकेँ ओ कुल ललनाकनिमित्त वर्जित कयलनि। एहि प्रसंगमे ओ नर्मदा सागर सट्टकमे अपन अभिमत प्रगट कयलनि :
मद्यपान पर्य्यटन पुनि तन्द्रापतिपर रोष।
दुर्जन सङ्ग प्रवास यैह छवटानारिक दोष॥
(कविवरजीवन झा रचनावली, पृष्ठ-112)
बीसम शताब्दीकप्रथम दशकक मैथिली नाट्य सहित्यक जनक अक्षर पुरुष जीवन झा अपन समयक प्रकाश स्तम्भरहथि जनिक नाटकादिमे मिथिलाक सामाजिक, सांस्कृतिकएवं आर्थिक जीवनक जाहि स्वरूपक प्रदर्शन करैछ तकर सार्थकता एहिमे अछि जेनाटकककारओकर समुचित समाधान ओही समस्यान्तर्गत कयलनि। युग विधायक जीवन झा एहि विचारधाराकअत्यन्त व्यापक प्रभाव हुनक समसामयिक साहित्यकार लोकनिपर पड़लनि जे परवर्त्तीयुगकनाटकककारलोकनिक हेतु एक प्रकाश-पुञ्ज प्रमाणित भेल। एकर श्रेय आ प्रेय कविवर जीवन झाकेँ छनिजे मिथिलांचलक तत्कालीन सामाजिकसांस्कृतिकएवं आर्थिक परिस्थितिकेँ नीक जकाँ जानि बूझि क’युगक आवश्यकताकेँ ध्यानमे राखि क’अपना सम्मुख जनसाधारणक दृष्टिकोणकेँ समन्वित क’कए मौलिक नाट्य-रचनाकसूत्रपात कयलनि तथा नाट्य-प्रणालीक सन्दर्भमे नवीन दृष्टिकोण अपनौलनि। हुनकानाट्य-रचनाक ज्ञान निश्चये विस्तृत छलनि। ओ समसामयिक समाजमे घटित होइत घटनाकेँ अपनअनुभवक आधारपर विश्लेषण कयलनि। आधुनिक मैथिली नाट्य साहित्यान्तर्गत अक्षर पुरुषजीवन झानाटककक्षेत्रमे सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्थितिक प्रसंगमे एक कीर्तिमान स्थापितकयलनि जे एहि साहित्यक निमित्त एक अविस्मरणीय ऐतिहासिक घटना थिक जे अधुनातनसन्दर्भमे मैथिल समाजक हेतु दिशाबोधक प्रमाणित भेल।
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