भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार
लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व
लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक
रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित
रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक
'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम
प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित
आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha
holds the right for print-web archive/ right to translate those archives
and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).
ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/
पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन
संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक
अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह
(पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव
शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
मायानंद मिश्र : जखन गाममे कोसी बाढ़िक उत्पातक कारण सन 1940-41 ईस्वीमे गाम छोड़िकेँ प्रतापगंज थानाक गोविंदपुर जा कऽ हमरा सभकेँ रहऽ पड़ल। ओतए ओहि मातृवत बहीनक अपन पतिकुलक किछु जमीन छल, जाहिसँ मात्र पेट टा भरल जा सकैत छल। एहि गोविंदपुरमे सन 1945-46 ईस्वीमे हमर प्राथमिक कवित्व प्रतिभाक अंकुरण भेल छल। जखन ओहि ठामक कालीस्थानक लेल सुपौलक कोने ग्रामोफोनक कोनो गीतक सुरमे भगवतीक अर्चना-गीत लिखने छलहुँ, जकरा हम स्वयं गाबितो छलहुँ कीर्तन मंडलीमे।
विनीत उत्पल : उच्च शिक्षा कतएसँ भेटल? विस्तारसँ बताऊ?
मायानंद मिश्र : सन 1950 ईस्वीमे सुपौलसँ मैट्रिक पास कएलाक बाद आगू पढ़बाक समस्या छल जाहिमे आर्थिक-समस्या मुख्य छल। उत्साह सभक छलनि जे हम आगू पढी विशेषत: ज्येष्ठ माम पंडित रामकृष्ण झा किशुनजी तथा पिताजी पंडित बाबू नन्दन मिश्रजीक। उत्साह एहि लेल सभक छलनि जे हमरा मैट्रिकमे सेकेंड डिवीजन भेल छल जे ताहि दिनमे बहुत कम होइत छलैक। अपन इच्छा छल पटना कालेजक। आवेदन सेहो कएल। नामांकनक स्वीकृति-सूचना सेहो भेटल। किंतु अंतिम कालमे किसुनजीक विचार बदलि गेलनि जे दरभंगे। दरभंगामे पंडित श्री चंद्रनाथ मिश्र अमरजी छथिन, हुनके अभिभावकत्वमे। सन 52 ईस्वीमे विवाह कारणे आई.ए. क परीक्षा नहि देल आ सन 54 ईस्वीमे आगराक मैथिली महासभाक कारणे बी.ए. क परीक्षा नहि दऽ सकलहुँ।
विनीत उत्पल : मैथिली साहित्य दिश कोन मन आएल?
मायानंद मिश्र : सन 50 ईस्वीमे सी.एम. कॉलेजमे नाम लिखाओल। श्री अमरजीक डेरापर अधिक काल साहित्यिक गोष्ठी, दरभंगासँ सुपौल-मुरलीगंज-कटिहार तथा मुजफ्फरपुरसँ जयनगर धरि विभिन्न स्थानपर कवि सम्मेलन, वैदेही-कार्यालय तथा गीत लेखन। ‘भाङक लोटा’क प्रकाशन। समए चलैत गेल, परिचय-परिधि बढ़ैत गेल। एहि बीच दरभंगामे राजकमलजीसँ परिचय भेल। फेर ललित-राजकमल-मायानंद क गोष्ठी सभ, साहित्यिक चर्चा सभ जाहिमे रामू अर्थात रमाकांत मिश्र ओदिवानाथजीक निरंतर सहभागिता। सन 54 ईस्वीमे ललितजी सब-डिप्टी कलक्टर बनि दरभंगा चल गेलाह। राजकमलजी ता पटने छलाह। हमहूँ 56 ईस्वीक अंतमे रेडियो, पटना आबि गेलहुँ।
विनीत उत्पल : ओहिकालमे पटनामे साहित्यिक परिदृश्य केहन रहए ?
मायानंद मिश्र : पटनामे रेडियो स्टेशन, हास्य-व्यंग्य-सम्राट हरिमोहन बाबूक डेरा, पंडित जयनाथ बाबूक डेरा, गोपेशजीक डेरा, प्रो. आनंद बाबूक डेरा, फणीश्वरनाथ रेणुक डेरा, मुरादपुर खादी भंडार, श्री रूपनारायण ठाकुरजीक कार्यकर्ता-निवासमे माछ-भातक मासिक भोज आ चेतना समिति, पुस्तक भंडारकरामायण-गोष्ठी, अभिव्यंजना-प्रकाशन, विभिन्न समएओ विभिन्न स्थानपर घनघोर साहित्यिक चर्चा होइत छल। ओहि कालमे दक्षिण बिहारसँ मिथिलांचल धरि सभ जगह कवि सम्मेलनमे शामिल भेलहुँ।
विनीत उत्पल : पटनासँ सहरसा अएलहुँ, एतए केहन बीतल?
मायानंद मिश्र : एम.ए. क पश्चात सन 61 ईस्वीमे आबि गेलहुँ सहरसा कॉलेज, सहरसा। कॉलेज अध्ययन-अध्यापन, सघन-लेखन, बलुआसँ बम्बइ धरिविद्यापतिपर्व-समारोहमे मंच संचालन, भाषणो आ कविता पाठ सेहो, विभिन्न संस्थाक संगठनात्मक प्रक्रियाक अध्ययन, सहरसामे विभिन्न पर्व-समारोहक आयोजन, मैथिली चेतना परिषद, सहरसाक गठन, पटनामे मैथिली महासंघक संगठन, डाकबंगला चौक-जाम क कार्यक्रम, लेखन आ पाठन, प्राचीन इतिहासक सघन अध्ययन, पुन: प्रथम शैलपुत्री च, मंत्रपुत्र, पुरोहित आ स्त्रीधनक लेखन आ तकर हिन्दी आ॓ मैथिलीमे प्रकाशन, दिशांतर, अवांतर, चंद्रबिंदु क प्रकाशन। तकैत-तकैत सहरसा कॉलेज, सहरसा आ स्नातकोत्तर केंद्र, सहरसामे 33 वर्षक सेवा-काल समाप्त भऽ गेल आ 1994 ईस्वीमे अवकाश ग्रहण कऽ लेलहुँ।
विनीत उत्पल : अहाँक दृष्टिक विस्तार कोना भेल?
मायानंद मिश्र : दृष्टिक विस्तार वस्तुत: मामक रूपमे युगांतकारी मैथिली साहित्यकार पंडित रामकृष्ण झा ‘किशुन’ द्वारा स्थापित मिथिला पुस्तकालयक कारणे भेल। ओहि ठाम 47 सँ 50 ईस्वीक बीचमे पढलहुँ जाहिमे प्रेमचंद, जैनेंद्र, इलाचंद्र जोशी, भगवतीचरण वर्मा, शरतचंद्र, बंकिम बाबू, रवींद्रनाथ ठाकुर तथा ताराशंकर वन्धोपाध्याय आदि प्रमुख छलाह। एहि समएमे किसुनजीक आदेश-निर्देशक विरूद्ध रातिकेँचोरा कऽ चंद्रकांताओ चंद्रकांता संतति संगहि शरलक होम्स सिरीज सेहो पढ़ि गेल रही। ओहि समएक ‘माया’ समकालीन ‘नई कहानियां’ छल जे नियमित पढ़ैत रही।
विनीत उत्पल : पहिल रचना कोन छल?
मायानंद मिश्र : 49 ईस्वीमे हरिमोहन बाबूक प्रभावक प्रचंड प्रतापे, हम प्रथम-प्रथम मैथिलीमे ‘हम रेल देखब’ नामक एकटा गद्य रचना कथात्मक शैलीमे लिखलहुँ जे हाइस्कूलक वार्षिक पत्रिकामे छपल। एहि प्रकाशन-प्रोत्साहनक कारणे भांगक लोटाक अधिकांश कथा, अही 49-50 ईस्वीमे लीखि गेलहुँ जकर प्रकाशन 51 ईस्वीमे प्रो. श्री कृष्णकांत मिश्रक वैदेही प्रकाशनक द्वारा भेल।
विनीत उत्पल : भांगक लोटा कतएसँ प्रकाशित भेल छल आ कहिया ?
मायानंद मिश्र : भांगक लोटाक दुइ गोट अंतिम कथा मैट्रिक परीक्षाक बाद लिखने छलहुँ जकर प्रतिलिपि श्री अमरजी कृपापूर्वक देखि देलनि, मुदा ओहूसँ पैघ उपलब्धि हमरा लेल भेल जे आचार्य सुमनजी दुइ बिन्दु नामे आ॓कर भूमिका लीखि देलनि आ प्रो कृष्णकांत मिश्रजी ओकरा सन 51 ई.मे छापि देल वैदेही प्रकाशनक दिससँ, हमरासँ एक्कोटा टाका नहि लेलनि। अपितु एक गोट टाका देलनि, मना कएलाक उपरांतो, पंडित त्रिलोकनाथ मिश्रजी आ॓कर मूल्य, जे ओहिपर छपल छल।
मायानंद मिश्र : भांगक लोटाक पश्चात हम हास्य कथा नहि लिखलहुँ। ईप्रकाशन प्रोत्साहन हमर कथा-लेखनक प्रेरणा अवश्य बनल जाहि कारणे , 51-52 ई सँ हास्य छोड़ि, सामाजिक जीवन-संघर्षपर आधारित मनोविज्ञानक गंभीर भावक कथा सभ लीखऽ लगलहुँ जाहिमे प्रमुख छल रूपिया, सुरबा, आगि मोम आ पाथर तथा सतदेवक कथा जे कालांतरमे, सन 60 ई.मे कलकत्ताक मैथिली प्रकाशनक दिससँ प्रकाशित ‘आगि मोम आ पाथर’ नामक संग्रहमे संकलित अछि, जकर अधिकांश कथा 59-60 ई.क मिथिला दर्शनमे प्रतिमास छपल छल। मुदामंच-जीवनमे हमर प्रवेश कथा-लेखनसँ नहि अपितु काव्य रचना विशेषत: गीत-रचनासँ भेल छल।
विनीत उत्पल : साहित्यिक यात्रामे केकर लेखनसँ प्रभावित भेलहुँ ?
मायानंद मिश्र : 40-50 ई. धरि अबैत-अबैत नेपाली आ॓ बच्चन क गीत-रचनाक प्रभाव हमरापर बहुत छल। सन 59 ई सँ बहुत पूर्वहि अर्थात दरभंगे कालमे सी.एम. कॉलेजक हिन्दी प्रोफेसर श्री सुरेंद्र मोहनजीसँ अज्ञेय द्वारा संपादित प्रतीक आ॓ तार सप्तक दुइ भाग पढ़ने छलहुँ आ अतिशय प्रभावित भेल छलहुँ। क्लासमे पढ़ल प्रसाद-पंत-निराला-महादेवी वर्मासँ सर्वथा भिन्न छल ई काव्य धारा, जाहि पर टी. एस. इलियट-एजरा पाउंड सँ लऽ कऽ एलेन गिन्सबर्ग आ॓ एंग्रीजेनरेशन तथा ब्रिटेनक कवि लोकनिक प्रभाव छल। शरतचंद चट्टोपाध्याय, रवींद्रनाथ ठाकुर, टालस्टॉयसँ प्रभावित रही।
विनीत उत्पल : अहाँ तँ हिन्दीमे किछु लिखने रहि?
मायानंद मिश्र : सन 49 ई मे किछु हिन्दी गीत लिखलहुँ, जकर तीन गोट मुखरा, पंक्ति एखनहुं मोन अछि, ‘अरमान मेरे दिल के सभी टूट चुके हैं’, ‘अधजली कामनाएंलेकर अपलक मैं गगन निहार रहा’ तथा ‘मैं अंतर मे तूफान लिए चलता हूं’ मुदा, 50 ई.क मैथिलीमे रचित ‘आ॓हि दिल छलहुँ हम भांग पीने’ तथा ‘नोचनी तोर गुण कते गैब’ अत्यंत लोकप्रिय भेल। ‘स्त्रीधन’ नामक उपन्यास नेशनल बुक ट्रस्ट छापने अछि।
विनीत उत्पल : गीतनाद, स्वरसंधानकेँ कोना साधलिऐ?
मायानंद मिश्र : गीत गाबऽ लागल छलहुँ 1942-43 ईस्वीसँ सुपौलमे अपन मातामहक कीर्तन मंडलीमे। हमरा लगैत अछि जे हमरामे कंठ-स्वर, स्वर-संधान-प्रतिभा तथा सुरताल-ज्ञान आदि जकर अनेक प्रशंसा भेल-मातामह पंडित नागेश्वर झासँ आएल अछि। एना गुनगुनाकऽ तँ किछु ने किछु गबैत छलाह आ तेँ कालान्तरमे जे हम गीत-रचना कएल से कोनो ने कोनो सुरतालमे रहैत छल। आ॓हि कारणे हम स्वयं सेहो गबैत छलहुँ तथा किछु गीत किछु गायक जाहिमे गायक चूड़ामणि पंडित रघु झाजी सेहो छथि, गबैत छलाह।
विनीत उत्पल : अहाँ गायन ज्ञान कतएसँ पेलिऐ ?
मायानंद मिश्र : सन 50 ई.क अंतिम चरणमे जखन ‘नभ आंगनमे पवनक रथ पर कारी-कारी बादरि आयल’ नामक गीत लिखलहुँ तँ गाबिये कऽ लिखलहुँ। यएह गायन-ज्ञान हमर छन्द-ज्ञान छल। जहाँ धरि आइयो मोन अछि, बिनु छन्द-ज्ञाने प्रारम्भोमे लिखल हमर गीत-रचनामे छन्द दोष, शास्त्रीय संगीत मर्मज्ञ पंडित कवि नै ईशनाथ झा ताकि सकलाह, जे एकर पहिल आधिकारिक श्रोता बनलाह आ ने आचार्य रमानाथ झा जे एहि गीतकेँ आई.ए.क लेल संकलित ‘कविता कुसुम’ मे सर्वप्रथम संकलित कएलनि।
विनीत उत्पल : अहाँ जहि साल आई.ए. मे रही, ओहि साल पाठ्यक्रममे अहाँक लिखल कविता सेहो छल की?
मायानंद मिश्र : अत्यधिक प्रसन्नता भेल छल आ॓हि दिन, जाहि दिन सन 52 ई.मे आचार्य पंडित रमानाथ झा आई.ए. क पाठ्यग्रंथक रूपमे कविता कुसुमक संकलन-संपादन कएलनि तथा आ॓हिमे ‘नभ आंगनमे पवनक रथपर’ नामक गीतकेँ स्थान दैत संकलित कएने छलाह। एना तँ कोनो संकलनमे स्थान भेटलासँ प्रसन्नता होइत किंतु एतए तँ स्वयं रमानाथ बाबू द्वारा संपादित ग्रंथक गप्प छल आ सेहो आई.ए. क पाठ्यग्रंथमे, जखन की हम ताधरि स्वयं आई.ए. पास नहि कएने छलहुँ।
मायानंद मिश्र : जहिना आ॓हि समएमे दरभंगासँ ‘वैदेही’ प्रकाशित होइत छल, तहिना कलकत्तासँ ‘मिथिलादर्शन’ आ॓ बादमे ‘मैथिली दर्शन।’ ललित आ॓ राजकमल सामान्यत: वैदेहीमे अधिक लिखैत छलाह तथा हम स्वयं अपेक्षाकृत मिथिला दर्शनमे। नाटको लिखने छी, कथा-कविता सेहो लिखने छी।
विनीत उत्पल : अभिव्यंजनावादी काव्य की छल?
मायानंद मिश्र : 59 ई मे मैथिलीमे अनेक नवीन काव्यक लेखन प्रथम-प्रथम कएल, जकरा हम अभिव्यंजनावादी काव्य कहने छी तथा जकर प्रथम प्रकाशन सन 60 ई. क आरंभमे ‘अभिव्यंजना’ नामक पत्रमे भेल अछि। संगहि अही 59 ई. मे हम एक वर्ष पूर्वक मैथिली पांडुलिपि ‘माटिक लोक’ क आधारपर प्रथम-प्रथम ‘माटी के लोक: सोने की नैया’ क नामसँ हिन्दीमे लेखनारंभ कएने छलहुँ। आ जहिना सन 50 ई. मे एकटा मैथिली कृति प्रकाशित भेल छल, तहिना सन 60 ई मे दुइगोट मैथिली कृति ‘बिहाड़ि पात आ पाथर’ तथा ‘आगि मोम आ पाथर’ प्रकाशित भेल।
विनीत उत्पल : आ॓हि काल की सपना छल?
मायानंद मिश्र : हिंदीक आ॓हि अज्ञेयी नई कविता जकाँ मैथिलीमे नवीन काव्यान्दोलन ठाढ़ करबाक उद्देश्यसँ अभिव्यंजनाक प्रकाशन-योजना मोनमे आएल छल, जाहिमे मात्र ‘नवीन काव्य’ टा रहत। आ ताहि लेल पहिने स्वयं किछु नवीन काव्य लिखल। आओ दू-चारि दिनपर हरिमोहन बाबूकेँ सुनाबी जे अभिव्यंजनामे हमरा एहने कविता चाही। आओदेबो केलनि जे अभिव्यंजनामे छपल छल। आधा 59 ई. क घोर व्यस्तताक फलस्वरूप सन 60 ई.क आरंभमे अभिव्यंजनाक प्रकाशन संभव भेल। प्रकाशनक खर्चओ लोकार्पण समारोहक सभटा खर्च स्वयं पंडित जयनाथ मिश्र, एकटा अर्द्ध परिचित किशोर युवा संपादकक उत्कट उत्कंठाओ महत्वपूर्ण महत्वाकांक्षापर द्रवित होइत, कयने छलाह। सन 60 ई हमर लेखकीय जीवनक लेल अति व्यस्ततापूर्ण रहल। एहि समएमे जँ एक दिस अनेक कथा लिखल तँ दोसर दिस अनेक नवीन काव्यक सेहो रचना कएल जे कालांतर ‘दिशांतर’ मे संकलित अछि। तेसर दिस जँ अभिव्यंजनाक संपादन कएल तँ किछु समीक्षा सेहो एहि कालखंडमे लिखल, जाहिमे सँ किछु मिथिला दर्शन, वैदेही आ॓ कृष्णकांत बाबूक मैथिली सम्मेलनक रचना संग्रहमे अछि। ओहि काल एकटा काल्पनिक रेडियो नाटक सेहो लिखने छी-इतिहासक बिसरल।
विनीत उत्पल : कोन-कोन पैघ साहित्यकारसँ भेट भेल छल?
मायानंद मिश्र : दिनकरजी सँ हमर परिचय पंडित जयनाथे बाबू करौने छलाह मैथिली कविओ चौपाल स्वरक रूपमे। पहिल बेर दिनकरजी चौंकल छलाह आ चौपालक हमर स्वर आ॓ अभिव्यक्तिक अतिशय प्रशंसा कएने छलाह। रेणुजी सँ परिचय अति त्वरित गतिसँ अंतरंग आत्मीयतामे बदलि गेल छल। प्राय: नित्य रेडियो स्टेशनमे अथवा बुध दिनकेँ अधिक खन हुनका डेरापर सायंकालकेँ सांध्य गोष्ठीमे भेंट होइत रहल।
विनीत उत्पल : अहाँ जवाहरलाल नेहरू आ इंदिरा गांधीसँ सेहो भेंट कएने छलहुँ ?
मायानंद मिश्र : भारतक प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरूक चिर ऋणी रहब, जनिक विशेष आग्रहक कारणे, एतेक शीघ्र सन 65 ई मे मैथिलीकें देशक एकटा स्वतंत्र साहित्यिक भाषाक रूपमे साहित्य अकादमी मान्यता देलक। 73 ई मे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधीसँ सेहो भेंट भेल छल।
विनीत उत्पल : मैथिली चेतना परिषद संस्थानक निर्माण कोना कएलहुँ आ कोना कएलहुँ ?
मायानंद मिश्र : 62 ई. मे हम सहरसा मैथिली चेतना परिषद नामक संस्थाक निर्माण कएलहुँ पंडित श्री अमरेंद्र मिश्रजीक डेरापर। एहि संस्थाक तत्वावधानमे अभिव्यंजनाक प्रकशनक संगहि सन 62-63 ई मे प्रथम-प्रथम कविश्वर चंद्र प्रसिद्ध चंदा झाक जयंती समारोहक आयोजन कएने छलहुँ सहरसा परिसरमे। सहरसाक ई समारोहपूर्वांचलमिथिलांचलक पहिलओ आदिम समारोह तँ छलहे (प्राय:) संभव पिंडारूछ गामक पचासक दशक अनेक आयोजनक पश्चात ई दोसर स्थान छल, जाहि ठाम एहि प्रकारे हुनकर स्मरण कएल गेल। एहि स्मरण समारोहक एकटा कारणो हमरा मोनमे छल। हुनक मातृक बड़गाम छलनि, जतऽ हुनक प्रारंभिक शिक्षा भेल छलनि आ जे आधुनिक मैथिलीक सूत्रधार छलाह।
मायानंद मिश्र : हम दर्शनक गप्प नहि करैत छी। किछु-किछु निष्काम कर्मक मर्म पढल अछि, किछु-किछु बुझलो अछि। की सभक जीवन-दर्शनक अनुकूल चलि पबैत अछि। माया चलऽ दैत अछि ? अनेक-अनेक प्रश्न अछि जे अनुत्तरिते रहि जाइत अछि तथापि जीवन-प्रवाह अछि जे प्रवाहित होइत चल जाइत अछि, चल जाइत रहत, अविरल, अविराम।
विनीत उत्पल : कालगतिकेँ की मानैत छी ?
मायानंद मिश्र : सर्वोपरि काल-गति। मुदा, मनुष्य गति तँ एकमात्र संघर्षक गाथा थिक। जखन-जखन समाजक ई गतिओ दुर्गति होइत अछि, तखन-तखन समाजमे पुनर्जागरण होइत अछि। युगक धाराकेँ मोड़ि समाजमे रचनात्मक परिवर्तन अबैत अछि, निश्चित अबैत अछि। अबैत रहल अछि, जकर साक्षी थिक इतिहास, मानव इतिहास। आब ओही इतिहासक प्रतीक्षा अछि। प्रतीक्षाक एकटा भिन्ने सुख होइत छैक।
विनीत उत्पल : एखुनकाकालमे केकर रचना नीक लगैत अछि?
मायानंद मिश्र : मैथिलीमे नचिकेता, सुभाषचंद्र यादव, जयधारी सिंह आ डॉ महेंद्र झाक लिखल नीक लागैत अछि।
विनीत उत्पल : मैथिलीक भूत, वर्तमान आ भविष्यकेँलऽ कऽ की सोचैत छी ?
मायानंद मिश्र : सभ दिन रहताह विघापति। मैथिलीक सौभाग्य अछि जे अंग्रेज एहि भाषाकेँ लोकक आगू आनलक। मैथिलीमे लोक पढ़ैत अछि, मुदा कीनए लागत तखन लेखक आओर प्रकाशक आगू आएत।
१.कामिनीकामायनी- कथा-कनिया पूतरा के विवाह २.निबन्ध-बिपिनझा-किछु पजरैत प्रश्न
१
कामिनीकामायनी
कनिया पूतरा के विवाह ।
बङका बङका अटैची. . .सूटकेस. . एसी .. टी वी . ..फ्रीज पलंग .. .अगङमबगङमक’ पैकिंग .. ओहिना बान्हल. . .राखल छलै . ओही बङका हॉल सॅ लऽ क’ ओकर कोठरी आ’ तीनोकातकबरान्डा धरि ।घरक बाहरि कंपाउंड में ललका चरपहिया ठाढ झक झक करैत छल .।लोकवेद केगेलोपरांत. . ओ अपन माथ सॅ घोघ हॅटौलक़ . .नथिया बङ भारी छलै ..नाक बथैतबथैत फूलिक’ घोंघा जकॉ गोल भ’ गेल रहै .. ।नहुॅ नहुॅ ओकरा उतारि क’ ड्रेसिंग टेबुल प’ राखिदेलकै आ’ छोटकी नथिया निकालय लेल निहुरि क’ अपन अटैची खोलि रहल छल कि कानमें किछुअनसोंहात . . अप्रिय . . . पटुआ सन तीत .. .लोंगिया मिर्चे सन लेसैत. .किछु कटुवचन तीर जकॉ घुसिक’ ह्दय प्रदेश में खलबल्ली मचा देलकै . ।क्रोधक लुत्तीजेनासम्पूर्ण काया के एकेबेर प्रज्ज्वल्लित करबा लेल बेकल. . .मुदा मजबूरी . .नबअपरिचित माहौल आ’ पितृगृह के बिछौह . . .सब एके संग मिलक’ मोन के उद्विग्नकरिदेलकै .. .आ’ डोका सन बङका बङका ऑखि में नोर डबडबा क’ काजर समेत खसबा लेलबेकल भ’ गेल छलै. . . ।अकस्मात नहिं जानि कोन देवयोग सॅ . ओकर स्मृति पटल के गुप्तखोह मेंव्यतीतक किछु .. . . .अन्हार आकास में बिजुरि जकॉ चमैकि उठलै .. आ’ क्षणमात्र लेलबाढिक’ पानि सन प्रलय मचबय लेल उबडूब करैत. . .ऑखिक पानि ठामेठाम ज्यों केत्यों . . . .ओहिना थिर रहि गेल रहै. ..।ठोर प आयल स्मित मुस्की सॅ. . श्यामल मुखचान सनचमैक उठलै. . . आ’ नोरक मध्य ठाढ भ’ गेल छल .. .कनिया पुतरा के विवाह . . । ओ दिन . . . .छुट्टी चलि रहल छलै गरमी के . .. दूर. . .संथाल परगना के कठोरपथरैल .. .ललका जमीन के भीजैबा लेल . ..उमङैत घुमङैत .. .कारी खरकट बादरि . .नाचि नाचिक’ ल’ग .े त’ आबै. . .मुदा बरसऽ के नाम नै लै .. .खोंझा रहल हौ जेना सूखलटटैल .. .पियासल धरती के ।मेघ त’ लगले रहै सदिखन . . .कत्तो भरिसक बरसल सेहो हेतैक .. .तैं. . .मद्विम .. .तेज बहैत बसात . . .खिङकी दरवज्जा के परदा के उङबैत बङसोहनगर लागिरहल छल । आ’ एहने सुखगर मौसमक दुपहरिया. . . ओकर कोठरी में होमए लागल कनिया केविवाहकब्योंत. . .।लाल मोलायम . . रबङक गुङिया सब के साबुन सॅ नहा धो क’ एकबार प’ पसारिपंखा के नीचा सुखबा लेल राखि .. लाडो . . अडोस पडोस में अपन किछु संगी सबसॅ रायमसविरा करए चलि गेल . . ।आधे पौन घंटा में त’ घुरि आयल छल .कोठरी मेंपैसिते . . .ओदृश्य देखि ओ ततेक कैस क’ चिकरल छल .. .जे दोसर कोठरी में विश्राम करैतदादी जेआइये गाम सॅ आयल छलीह झटकारैत बङका बङका डेग भरैत ओकरा लग आबि ठाढ भ’ गेलीह .. ईदेखि हुनको कोढ कॉपि गेलन्हि . ..मुॅह प’ दुखक भाव के संगे कंठ सॅ ‘ च्च ..च्च’ . .निकसि गेल छलैन्ह ।कोन मे बैसल दूनू अगिलका पएर सॅ दबने .. .टॉमी .. .लाललालगुङिया के हब्बर हब्बर चिबा रहल छल ।हाथ पएर छिङियाबैत. . . . औल बौल भेल . . .ओकरमुॅह सॅ गुङिया झिकऽ चाहै .. .त’ ओ लाल टरेस ऑखि केने . . .नाक हिलबैत . . .सबटादॉत देखाक’ ‘हूॅ.ऽ्््ऽऽ्ऽ्ऽकार करैत आर बेसी डरौन बनि गुर्रेऽ्् लागै ।
“हेऽ््ऽहे. . .मार बाढिनि’ कहैत दादी के किछुओ नहि फूरैलन्हि त’ बरान्डामें राखलएक टा पैना उठौलन्हि .. . आ’ कहुना करि क ओकरा मुॅह प’ मारने छलैथ ।एकेडंटा मेगुङिया छोङि किकियाइत कोठरी सॅ पङाऽ गेल छल ।गुङिया के त’ दुर्गति दुर्गतिभ’ चुकालछल. . . मोहनजोदङो के खोदाय मे बहरैल मूर्ति सन. . .अंग भंग़ . .एक टा ऑखिनिपट. . . . हाथ टूटल .. .गल मे छेदे छेद .. दुनू पएर चूसल चिबैल. . . .। “‘ई गुङियापपाकत्तो बाहर सॅ अनने छलथि. . .आब कत्त भेटतै. . .’ओकरा हिचुकि हिचुकि क’ कानैत खीझैतदेखि दादी ओकरा गरा लगाक’ दुलारैत पुचकारैत बजलिह “ई हो कोनो कनिया छै. .बिलैतिमेम .. .एकर भला लोक की वियाह करतै .. . इ त’ अपने विवाह करै छै आ’ छोङै छै .। ... . तोरा हम एहेन कनिया बना देबौ. . .जे खॉटी अपन देसक’. . एकरा सॅ हजार कच्छनीक ..कनि जे सब कहै छियौ सबटा समान जुटा दे .. देखिहैं संगी सब मुॅह बेने केबेने रहिजेतौ .. . ।” निर्दोख बालपन . . .पितामही के आश्वासन मात्र सॅ क्षण भरि में अपन अपारक्षति बिसरिपुलकैत. . .नान्हि नान्हि हाथ सॅ अपन ऑखिक नोर पोछैत . . .दू बीतक लाडो. .. . फुद्दी जकॉ उङि गेल छल .।रूइया के बङका बंडल .. .बैंडेज . ..आलमीरा मेंराखल पपा केपुरना मलमल के कुरता . . .लाल. उजरा. . करिया ताग सुइया .. .कैंची . ..सूखलपातरपातर लकङी आनि अपन पलंगक कात ओछाओल पटिया प’ राखि देने छल । ओकर ऑखि खूजलै . . देबाल घङी में चा.रि बाजि रहल छल. . . ‘एत्ते काल सुतिरहलौं’ मने मन सोचैत .. . पलंग सॅ नीचा झकलक . . . . .तीन टा सुन्नर पुतला बनि क’ तैयार . .. करिया रेशमी ताग सॅ डाढ धरि लटकल . .कारी कारी केश. . पैघ ..पैघ ऑख़ि उपरमेंतीरछा भौं .. .ठाढ नाक़ . .लाल लाल ठोर .. .।एक टा पुतरा के जुट्टी गुथैत ओमाथउठौने छलैथ .। आकरा देखि अहं भाव सॅ मुस्कैत फेर सॅ अपन काज में लागि गेली।दियासलाय के डिब्बा सब जे ओ रेलगाङी बनबऽ लेल रखने रहै .. .दादी ओकर बङदीव महफाबना क’ ओहि में नव पुरान कतरन के ओहार लगा क’ . . .मोहक बना देने छलैथ . . .डिसपोजेबल सीरिंज के एक दोसर सॅ गोंद सॅ साटि क’ पंखा बनाओल गेल । आब सुरू भेल छल असल विवाहक तैयारी .. .कनिया के कपङा लत्ता गहना गुरिया. . . .मोतीके छेद में सूइया नै घूसै. . .त’ सोनी अपन घर सॅ फूल काढ बला पतरका सुइयाअनने छलै. . .कएक टा माला गॉथल गेल. ।. .मॉ के पुरना रेशमी . .सूती नूआ फाङि क’ बनलनूआ. . .घागरा प’ गोटा लगाओल गेल. . .टीन के चॉकलेट बाला डिब्बा सब में . .गुरियाके नूआफट्टा .. .जेवरात . कीचन सेट टी सेट .. . .. एक टा डिब्बा में लट खूट समानराखलगेल. . .छोट छोट मैटिक चुकङी के कान प’ छेद करि क’ ओकरा तराजू जकॉ बना ओहीमें चौरदालि .. .मखान. . .चीनी . . लमनचूस. . बिस्कुट . . .भार दौरक सब समान राखिएक गोटसम्पूर्ण नब गिरहस्थी के संसार सजैबाक पयत्न कएल गेल । संगी .. . संघतिया सॅ भरल ‘ बुद्वक’ दूपहरिया में बङ धूमधाम सॅ कनिया केविवाहकआयोजन भ’ रहल छल ।गुड्रडा अ ित प्रिय सखी जया के छलै .. ।ओ अपन गुुड्डा केसजा धजाक’ चाह वला बङका ट्रे में लत्ता बिछा . . ओही प’ ओकरा चीत्ते सुता क’ . . .अपन माथप’ नेने चारि टा बरियाती संग आबि गेल छल । विवाह हेतै कोना .. . . ।लाडो त’ अडियल घोङा बनल . . . ‘बिनु पंडितक कत्तोविवाहहोइत छै .. ।’ सविता जे ओतए सबसॅ बूझनूक आ’ उमिर में पैघ . . .करीब नौ बरखकछल. . .. अपन चारि बरखक लजकोटर भाय के परतारिक पंडित बनौलक . . . .ओ अनेरे लाजेमूॅहनुकौने . . . ‘बम. . बम.’ करेत कनिया बर दूनू के एक हाथ सॅ कनेरक फूल केमालापहिरौलक आ’ दोसर हाथ .के . .मुठ्ठी बन्हने पीठ क पाछॉ रखने ।जल्दी सॅ मालापहिराकदौगि क’ दोसर कोन में गेल आ’ मुठ्ठी में राखल चोरूका टॉफी अपन मुॅह में झटदनी राखिनेने छल । लङकी बला के भोज भात करेनाय आवश्यक छलै. . ।किएक त’ ओहो सब पैघ लोक संगक़त्तेकोविवाह क पार्टी में गेल छल त’ खेनाय पिनाय सएह मुख्य गप होय। ओकरे बङाय वाहिनताय । भोजक व्यवस्थात’ ओ अपने दम प’ करि नेने .चूकिया फोङिक’ अठन्नी चौवन्नी केढेर देखिसिंघाङा .. गुलाब जामून .. आ’ जिलेबी त’ मीत्तू साह के दोकान सॅ मॅगा नेनेरहै. .आ’ मॉ सेहो भनसिया के कहि पूङी आ’ खीर बनवा देने रहैथ ।घरक बङका बरामदा प’ दरीचादरि बिछा लाडो सबके भरि पेट. . . पत्तल प’ खुऔने रहै. ।. ‘देखी त ..हमअपन गुरियाके विवाह में केहेन हिय खोलिक भोज करि रहल छी .. . .आ इ सीमा जे केन्ो रहै. . .एकएक टा बिस्कूट खुआ देने रहै. . .. . . आ इ मा ला अपन गाछक लताम क’ एक एक टाफॉक पकङादेने रहै ।” खा पीब क’ सब गोटे गीत नादक कार्यक्रम में जूटल. . .”चलनी के चालल दूल्हाअंखियो नैखोले है. .सॅ सुरू होइत ‘बाबूल की दुआए लेती जाऽऽ््।’ प समाप्त भेलोपरांतकनिया केघघरा बदलि नबका नूआ पहिरा क’ बङका टा के घोघ तानि मोङ माङि ओही महॅफा मेंबैसाबऽ केकोरसीस करै .. त’ कखनो कनिया के माथ बाहर भ’ जाए त’ कखनो पएर । .. . .हारिक’ महफाके ऊपर कनिया के सूताक’ लाल डोरी सॅ बॉधि क’ विदा कराओल गेल ।पलंगक दोसरकोन मेंबिछल ललका दरी जया के अस्थाई बासा बनल .. . कनिया ओहि ठाम पहुॅचली । विदाइ के पछैति थाकि क’ चूर भेल सब कियो लूडो खेलय में लागि गेल छल. . .सविता केछोटका भाय सेहो ।
तेसर दिन जया आयल छल मूॅह बनौने . . दस ठाम सॅ नाक भौं कोंचियाति “ई की. . . .हमरगुड्डा के त’ तू ठकि लेलही. . . नै औंठी . . नै .. गरा में चैन .. ।” .. लाडो तबकलेल जकॉ ओकर मुॅह ताकितै रहि गेलै. . ।ओ त’ अहि में ऐंठल छल जे एतेक खरीचकरि क’ शान सॅ . . .अपन कनिया के विवाह केन्ो छल. .. . . एहेन भव्य समारोह त’ ओहीपरोपट्टामें कियो नहिं केन्ो छल । ओकर मूङी मित्र मंडली में खूब उॅच भ गेल रहै।अकस्मात इआरोप सुनि मूहें भरे खसल “इहो सब होय छै विवाह में . . .पहिने किएक नैबजलैं .. हमओरियान करितौं।’ “हमरो कत्त बूझल छल. . .आय हमर नानी आयल छथि. . ओ कहलैन्ह .. लङका .के दान दहेज देल जाए छै. . .गुड्डा हमर एत्तेक नीक . . नै एको टा कपङादेलही नैबरतन जात. . ।केहेन विवाह गरीबहा जकॉ. . ।” ओकरा गेलोपरांत ओ गुमसुम बाहर कुरसी प’ बैसल रहै. . ।सांझ नहूॅ नहॅू भरियायलगलै. . .।एना उदास. . .उदास देखि कंपाउंड में टहलैत दादी. . ओकरा लग आबि पूछलथि त’ ओ अपनमोनक सबटा व्यथा उङिल देलकै. .।दादी बजली “हे. . . लैह. . ओ कोठा सोफा बलाबरक माए. . .ओ कत्त देलकौ तोहर कनिया के गहना गुरिया. . .नै नथिया नै टीका .. .नैनूआ .. नैलहठी. . एहनो कत्तो विवाह होय छै ..सासुरो सॅ भार दोर आबै छै .. .तौं त’ एत्तेकसामान देबे केलही .. .. . ओना त’ सासुर में राजा के बेटी के सेहो दूषै छैलोक़ . .जेहाथी त’ देलथि मुदा ओकरा बान्हय लेल कङी त’ देबै नहि केलथि ।मुदा ओकर कोनमूॅह छैदूसब के”। इ सुनैत मातर लाडो के संपूर्ण शरीर में जेना सौसे ललका पिपरी लुधैक गेल होय . . . ओदौगल जया के घर ।
जया अपन कोठरी मे टांग पसारने बैसल कनिया पुतरा के पेटार खोलने असार पसारकरैत . .चीज वोस्त सरिया ब्ऽ मे व्यस्त छल ।लाडो एकदम सॅ ननस्टॉप रेर्काड जकॉ सुरूभ’ गेलै “ हमर त’ पच्चीस टाका खरच भ’ चुकल अछि. . तोहर कत्तेक पाय खर्च भेलौ. . .चुकियाहम्मर फुटल की तोहर . . ।” आ’ अहि उकटा पैंची मे गप ततेक बढि गेलय जे जयागुङिया केल’क कैस क’ बजारि देलकै .. “ले ल जो अपन गुङिया के”आ तामसे किटकिटाक’ ओकरहाथ मेअपन बीसो दॉत गङा देलकै. . ।लाडो दर्द सॅ बिलबिला उठल .. .हाथ छोङबैत ओ ओकरगुड्डाके अपन पएरक नीचा लतमर्दन करैत ओकर मुकुट .. .तोङि देलकै. . मुॅह पिचकादेलकै. . “एहने बर .. नै हाथ . .नै पएर ..” कहैत. . तामसे आन्हर होइत. . जया के झोंटखींच क’ चारि मुक्का पीठ प’ मारैत. . लंक लगा क’ ओत्त सॅ पङाऽ गेल छल । अहि घटना के उपरांत त’ दूनू मे तेहेन तनातनी जे एक दोसर के शोणित पीबए लेलउद्वत. .।नेना भुटका मे दू फॉङ भ’ गेल रहै. .।किछु दूनू पख के धेने .. .नारदककार्य संपन्नकरबा मे लागल । ओही दिन मेघ बरसि गेल रहै . . .चारो कातक जमीन भीजल. त्त्. .. . . .जलखई करिक’ धिया पुत्ता के झूंड़ .. . . . पडोस मे .. . पछिला हफ्ता ट्रकसॅ . .उझिलल बौलक ढेर पर उछलम खूद करै .. पहुॅचल । . . .केकरो घर बनैत रहै. .कल्हुकाबारीश सॅ बौल भींजल .. .ओकरा खोदि खोदिक ओही मे अपन पएर राखि घर बनाबए मेअसीमउत्साह आ ऊर्जा सॅ जूटल छल . . कि तखने कोनो अगत्ती आबिक लाडो के कहलकै. “हौआ अपनगाछक नीचा बनल चबूतरा प’ बैसल जया तोरा देखि क’ मुॅह बिचकाबै छौ. . आ’ किदुन किदुनबाजि ओहि चारू छौंङी सब संगे खूब ठहक्का मारै छौ. . ।”ओकरा जेना बिरनी काटिलेलकै. . .अपन पएर प’ थोपल बालू के एक झटका मे फेंकैत ओ दौगल चबूतरा दिस .. .।ओकरा पाछॉआन धिया पुत्ता सेहो अपन अपन महल के धराशायी करैत. . .तूफान मेल बनल पहुॅचल। दुनू पाटी घरक पाछॉ वला इनरक कात के बङका चबूतरा प घों घें करैत फॉङ बन्हने .. .।इवाक् युद्व. . .मल्ल युद्व में परिणत होमए लेल बेकल ।तखन दूनू .. क्रिकेटखेलैत अपनअपन छोट भायक हाथ सॅ बैट छीन नेने रहै. . .।धोबिनिया जे संजोगे सॅ कपङानेनेउम्हरसॅ आबैत रहै .. . .. दौगल लाडो के घर. . .चपरासी दौङा क’ ओकरा पङबाकआनल गेल।एतेक गरमागरमी देखि क मतारी सब अपन अपन वीर बॉकुङा के खूब थपङियेने रहैथ।. . .सबकियो छगुन्ता मे डूबल . . . नेना भुटका के संसार मे कोना एतेक कडुआहठ भरिगेलय । तेकरा बाद त’ कनिया पुतरा के विवाहे बन्न ।सबहक घर सॅ इ आदेश ‘खेलबैं त’ खेल . .मुदा विवाहदान किन्नौह नहि. . . ।’ ओ त हॉस्टल चलि गेल छल चौदह बरखक बनवास मे . ।ओत्त सॅ पपाके ट्रन्सफर भेलाके बादखिस्से खतम .. इ मस्तिष्कक कोन गव्हर सॅ निकैल ओकर स्मृति पटल प’ चान सनचमैक उठलेसेनहि जानि ।ओ तुच्छ सन बेकार खेल वास्तव मे असल जीनग्ी के खेल छल .. . जतएउत्साहउमंग आ’ उल्लासक मध्य बङका काज प्रारंभ करैत लोक छोटका छोटका चीज मे उलझिअपन जीनगीनर्क बना लैत अछि । विदाइ के काल मॉ के बोल कान मे घुरय लगलै. . ‘नैहरखूजल. . पढलकिताब. . सब किछु स्पष्ट .. मुदा सासुर ..नब अपरिचित पोथी. . गुढ रहस्य सॅभरल. .कत्तेको बरख लागै छै बॉचबा में . . किछु मगज मे घूसै छै .. मुदा सदिखनविवेक सॅ काजलेबए के पाठ पढबैत .. ।’ ड्राइंग रूम सॅ एखनो धरि व्यंग .. आक्रोश सॅ भरल अचटि कुचटि क’ स्वर आबिरहल छल “मोहनजी त’ गोनू झा के बाप निकलला .. जहिना कहलियैन्ह दू टा वस्त्र मेंकनिया चाहीतहिना दू टा वस्त्र में पठा देलन्हि ।बङका पाग बला लोक ..’ ‘इजे छहौर महौरकेलथि . . गाङी देलथि . .से त’ बेटिये के कमाए हेतैै न .. .एतेक दिन सॅ कमा रहल छै।’ ‘एहेनकंगाल कुटुम .. . कहु त’ वरक माय के एकटा डायमंडके सेट धरि नै देलकै ।कत्तफॅसादेलथि बज्रभूषण बाबू हमर बेटा के .. ।. जटाधारी बाबू केहेन नीक कथा देनेछलैथ. . .इनकम टैक्स कमीश्नरक एकलौती संतान .. कतेक मकान . . .क तैक फारम हाउस. . .मुदा जोरे कपार. . ।” लाडो क’ ऑखि मे थीर नोर भरभरा क’ खसय लगलै .. .मनुक्ख एसगरे बिन पैलवार केरहि नहिसकैत अछि .. .क़तबो पैर प’ ठाढ . . भ’ जाए .. .प्रगति के . . संपत्ति केसर्वोच्चशिखर प’ ठाढ भ’ जाए .. . .एकरा संग वा ओकरा संग .. .केकरो नै केकरो संग त’ चाहबैकरी .. । संयम त्याग आ’ बुद्वि के बल प’ पैलवार चलै छै. . ।अही अतकही बतकही में नहिंफॅसिक’ नब जीनगी के नीक जकॉ कोना जीबी तेकर सुरूआत करबाक चाही ।आखिर पढल गुनल अपनपएर प’ ठाढ के मतलब की ।तोङनाय त’ एक क्षणक काज छै .. बना क’राखब मे न’ काबिलती।व्यवहारसॅ अपन बनबय पङतै सबके ।घरक चारदीवारी सॅ बाहर . . . आफिसमे. . . कत्तेकोतरहक गपसुनबाक . . सहबा के पङै छै. .. जौं घरे में सहि ली त’ अनर्थ की .. ।हॅ ..जखन जानप’ पङि जायत तखन त’ सोचले जेतै .. ।अनेको तरहक सद विचार सॅ मन हल्लुक भगेलै. .।ऑखिक नोर पोछि लाडो कान मे इयर फोन लगा आइ पौड प’ गीत सुनए लागल छल ।
२.
बिपिनझा
किछु पजरैत प्रश्न
महात्मा कसाब केँ फाँसी सजा के घोषणा कऽ पश्चात मीडिया में जनसामान्य, बुद्धजीवी, सरकार सभक प्रतिक्रिया सूनि मन में हसी छटल। केयो श्रीमान एकराआतंकवाद पर गम्भीर प्रहार घोषित करै छलखिन्ह त केयो एकरा भारतीय सुरक्षा एजेंसी, भारतीय न्यायपालिका सभक विजय कहलथि मुदा अगर ई घटना केँ निष्पक्ष मूल्यांकन करीए त कतेक प्रश्न मन मे उठैत अछि। ई चिन्तनीय प्रश्न अछि जे राष्ट्रीय-सुरक्षा- अखणडता पर की पर की सामान्य नीति हेबाक चाही ?एहि सम्बन्धित कमजोरराजनैतिक इच्छाशक्ति देखि जनसामान्य में कोनो प्रतिक्रिया कियान होइत अछि? राष्ट्रीय सुरक्षा विषयपर न्यायिक-प्राशासनिक-राजनैतिक शिथिलता-लापरवाहीअ कि अक्षम्य अपराधनहि अछि? आखिर ई अफजल-कसाब आदि स्वनामधन्य महात्मा के फाँसी सजा कहियातक क्रियान्वयित हेतन्हि? ई अनुभव होइत अछि जे राष्ट्रक आत्मा कतौ हेरा गेलई राष्ट्रीय संवेदना कतौ सुसुप्त अवस्था में बैसल छै राष्ट्र कऽ रोइओप में भारत असफल भय गेल ! भय सकैत अछि जे ई तमाम उलझन निर्मूल मात्र साबित होई भविष्य में मुदा चिन्तन त अनिवार्य अछि नै? ई सत्युअ आ यथार्थ छी जे भारत बहुत शक्तिशाली अछि आ ई मोट झंझावातक सामना आसानी से कय सकैत अछि मुदा मात्र ई चीज रटि कें वर्तमान समस्या आ लापरवाही सँमूह नहि मोडि सकैत अछि।
अपन देशक राजनैतिक स्वरूप अनेक विकृति सँ आप्लावित अछि एतदर्थ एकाएक सुधार सम्भव नहिं मुदा बुद्धिजीवी जनसामान्य अपन लोकतान्तिक समाज में एते सशक्तअछि जे ई कोनो परिवर्तन बड आसानी सँ आनि सकैत अछि।
समस्या अनन्त अछि राष्ट्रक समक्ष ! आब सभ व्यक्ति सबटा समस्या स परिचित छथि एतदर्थ आवश्युकता एहि कार्यक अछि जे एकटा सामान्य राष्ट्रीय जनचेतना जागृत होमय आ ई भ समस्या के समाधान हेतु अपन योगदान दथि।
ई बात स्मरणीय अछि जी बुद्धिजीवी समाज राष्ट्रक आधार स्तम्भ अछि अतः ओ नेतृत्व प्रशासन तन्त्र पर ओई तरहक हरसम्भव दबाब वनावथि जे राष्टीय सुरक्षा, विकास, प्रगति स सम्बन्धित सभटा लक्ष्य पूर्ण करि सकथि
ई विश्वास दृढ अछि जे भारत राष्ट्र अपन ऐतिहासिक यात्रा मे अनेक प्रश्नक उत्तर देलक। वर्तमान सम्मुख अछि आबि राष्ट्र कऽ एकटा व्यष्टि अंग रूप में अपनयोगदान दय अपन दायित्वक निर्वहण करी॥
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।